जीवाजीव विवेचन - 12

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।।अर्ह म्।।

(दे व ों की ददव्य दु दिया)


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✍️ ….. इदिर्ास के स्वदणह म पृष् ों पर कई उत्तम आत्माओों के चररत् ों का आलेखि हुआ र्ै । मिुष्य
भव में ज आत्माएँ सोंपूणह कमों का क्षय कर दे िी र्ैं , वे आत्माएँ ि दे र् त्याग कर सीधी म क्ष में चली
जािी र्ैं , जर्ाँ वे आत्माएँ सदा काल के दलए रर्िी र्ैं , वे आत्माएँ जन्म-जरा- मृत्यु, आदध-व्यादध-
उपादध, र ग-श क-भय् आदद से सवहथा मुक्त र् जािी र्ैं , परों िु ज आत्माएँ सवह कमों का क्षय िर्ीों
करिी र्ै, उि आत्माओों क ि पुिः जन्म धारण करिा र्ी पड़िा र्ै।
● इस दवराट दवश्व में ज अिोंिािोंि आत्माएँ र्ै , वे जन्म-मरण क धारण करिी हुई दे व, मिुष्य,
िरक और दियहच इि चार गदिय ों में भ्रमण करिी र्ैं ।

● ज आत्माएँ अत्यदधक पाप करिी र्ै , वे आत्माएँ भव पररविहि कर िरक व दियंच गदि में जािी
र्ैं।

● ज आत्माएँ अत्यदधक पुण्य करिी र्ैं , वे आत्माएँ दे व व मिुष्य गदि में जािी र्ैं।

● ल कस्थिदि र्ी ऐसी र्ै दक क ई भी दे व पुिः दू सरे र्ी भव में दे व िर्ीों बििा र्ै और िरक के
जीव भी दे व ल क में उत्पन्न िर्ीों र् िे र्ैं । इससे स्पष्ट र्ै दक मिुष्य और दियेच र्ी भव पररविहि
कर दे वल क में पैदा र् िे र्ैं ।

● दे वगदि और म क्ष में बहुि बड़ा अोंिर र्ै। दे वगदि के दे व भी इस सोंसार में र्ी र्ैं। उिके भी
जन्म-मरण के चक्कर चालू र्ी र्ै। दे वगदि के दे व भी पूणह रूप से सुखी िर्ीों र्ैं। राग-द्वे ष, ल भ-
ईष्याह आदद से वे भी दु ः खी र् िे र्ैं। आयुष्य पूणह र् िे पर उन्हें भी दे वल क की ददव्य दु दिया का
त्याग कर मिुष्य या दियंच गदि में जािा र्ी पड़िा र्ै।

ि आइए! उस दे वल क की दु दिया का भी पररचय प्राप्त करें । दे वल क की दु दिया के ब ध से र्में


द फायदे र्ैं -
(1) पूवह के पुण्य के उदय से मिुष्य भव में ज कुछ धि-सुख-सोंपदत्त दमली र्ै , वर् दे वल क की
समृस्थि के आगे कुछ भी िर्ीों र्ै , अिः दे वल क की समृस्थि जाि लेिे पर मिुष्यल क की धि-
सोंपदत्त आदद का अदभमाि गल जािा र्ै। लाख रुपय ों क प्राप्त कर व्यस्थक्त िभी िक अदभमाि
कर सकिा र्ै , जब िक उसके सामिे क ई कर ड़पदि या अरबपदि आकर खड़ा ि र् जाय।
कर ड़पदि क दे खिे र्ी लखपदि का अदभमाि राख में दमल जािा र्ै।
(2) अिुलबली और अमाप सोंपदत्त के धिी ऐसे दे विाओों क भी आयुष्य पूरा र् जािे पर एक ददि
सब कुछ छ ड़कर मरिा पड़िा र्ै और भयोंकर गभाहवास आदद की पीड़ा सर्ि करिी पड़िी र्ै।
ये दे विा मरकर पोंचेस्थिय पशु-पक्षी और पृथ्वीकाय, अप्काय और विस्पदिकाय में भी चले जािे
र्ैं, अिः यर् दे वल क भी इच्छिीय िर्ीों र्ै , इच्छिीय ि एक मात् म क्ष र्ी र्ै , क् दों क वर्ाँ जािे के
बाद दु ः ख का लेश भी िर्ीों र्ै।

दे वल क की प्रास्थप्त यर् ि पुण्य की लीला र्ै और यर् पुण्य ि कभी भी ध खा दे सकिा र्ै। अिः
दे वल क की प्रास्थप्त भी र्मारे जीवि का लक्ष्य िर्ीों र् िा चादर्ए।
यद्यदप सभी दे विा पोंचेस्थिय कर्लािे र्ैं , परों िु उिका जन्म मिुष्य या पोंचेस्थिय दियहच की िरर् गभह
से िर्ीों र् िा र्ै , पुण्य के उदय से उन्हें गभह की पीड़ा सर्ि करिी िर्ीों पड़िी र्ै। दे वल क में कुछ
िल ों पर दवदशष्ट शय्याऐों र् िी र्ैं , दजिमें दे व अपिे शरीर की ऊँचाई, काोंदि व युवाविा के साथ
र्ी जन्म लेिे र्ैं। दे विाओों क बाल्यकाल बचपि िर्ीों र् िा र्ै , वे सदै व युवाविा में र्ी रर्िे र्ैं।
दे व शय्या में दे विाओों के इस जन्म क 'उपपाि' कर्िे र्ैं। एक अन्तमुहहूिह में र्ी दे विाओों का शरीर
िैयार र् जािा र्ै।
● वृिाविा के कारण दजस प्रकार मिुष्य का शरीर दशदथल कमज र र् जािा र्ै , ऐसी वृिाविा
दे विाओों क िर्ीों र् िी र्ै।
● मिुष्य और दियंच ों का शरीर औदाररक वगहणा के पुद्गल ों से बिा र् िा र्ै। मािव दे र् में र्ड्डी,
माोंस, खूि, चबी आदद अशुदचकारक पदाथह र् िे र्ैं , मािव दे र् की उत्पदत्त भी अशुदच में र्ी र् िी
र्ै, जबदक दे विाओों का शरीर वैदिय वगहणा के पुद्गल ों से बिा र् िा र्ै। औदाररक वगहणा के
पुिल ों की अपेक्षा वेदिय वगहणा के पुद्गल अत्योंि शुभ और सूक्ष्म र् िे र्ैं।

● दे विाओों के शरीर में दकसी प्रकार की अशु दच, मल-मूत्, माोंस- चबी, र्ड्डी आदद िर्ीों र् िे र्ैं ।

● मािव दे र् के साथ ज्वर, खाोंसी, दसरददह , पेट का ददह , सदी, जुखाम, टी.बी. डायबीटीस, कैंसर,
एड् स आदद अिेक प्रकार की बीमाररयाँ जुड़ी हुई र्ैं जबदक दे विाओों के शरीर में दकसी प्रकार के
शारीररक र ग िर्ीों र् िे र्ैं ।

मिुष्य क र ग दिवारण के दलए र्ॉस्पीटल में जािा पड़िा र्ै , यर्ाँ अिेक ददों के दिवारण के दलए
अिेक प्रकार की र्ास्थस्पटलें र्ैं , दे वल क में र ग का र्ी अभाव र् िे से दकसी भी प्रकार की र्ास्थस्पटल
िर्ीों र्ैं। सामान्य मािव के आयुष्य पर दकसी भी समय उपघाि लग सकिा र्ै , क् दों क उिका
आयुष्य स पघािी र् िा र्ै , र्ाँ, िीथहकर, गणधर चरम शरीरी आदद मिुष्य ों का आयुष्य दिरुपघािी
र् िे से उिके आयुष्य पर दकसी भी प्रकार का उपघाि िर्ीों लगिा र्ै ।
● दे विाओों का आयुष्य ि दिरुपघािी र्ी र् िा र्ै अथाह ि् वे अपिे आयुष्य का पूणह उपय ग करिे
र्ैं, उिकी अकाल मृत्यु िर्ीों र् िी र्ै ।

दे विाओों में आर्ार के मुख्य िीि भेद र्ैं -


1. ओजार्ार, 2. ल मार्ार और 3. कवलार्ार

● उत्पदत्त के प्रथम समय से शरीर पयाहस्थप्त की पूणहिा िक ग्रर्ण दकए जा रर्े पुद्गल ों के आर्ार
क ओजार्ार कर्िे र्ैं ।

● शरीर की पयाहस्थप्त पूणह र् िे पर स्पशहदिस्थिय द्वारा ज पुगल ों का लेिे र्ैं , उसे ल मार्ार कर्िे र्ैं।
● कवल से ज आर्ार लेिे र्ैं , उसे कवलार्ार कर्िे र्ैं। दे विाओों क कवलार्ार िर्ीों र् िा र्ै।

● सवह से जघन्य स्थिदिवाले दे विाओों क आर्ार की इच्छा एकाोंिर र् िी र्ै ।

● पल्य पम की स्थिदि वाले दे विाओों क 2 से 9 ददि के बाद आर्ार की इच्छा र् िी र्ै।

● दजििे सागर पम स्थिदि र् िी र्ै , उििे र्जार वषह के बाद आर्ार की इच्छा र् िी र्ै।
☝️ दे विाओों के आर्ार सोंबोंधी उपयुहक्त समय-दिदे श ल मार्ार सोंबोंधी र्ैं। ल मार्ार के द प्रकार
र्ैं–
(1) आभ ग और (2) अिाभ ग।
● इरादे पूवहक ज ल मार्ार दकया जािा र्ै , उसे आभ ग ल मार्ार कर्िे र्ैं और दबिा इरादे के र्ी
ज प्रदिसमय ल मार्ार र् िा र्ै , उसे अिाभ ग ल मार्ार कर्िे र्ैं।
● यर्ाँ दे विाओों के आर्ार का अोंिर आभ ग ल मार्ार की अपेक्षा से समझिा चादर्ए।

● दे विाओों क जब आर्ार की इच्छा र् िी र्ै िब उिके पु ण्य दय से मि से कस्थिि आर्ार के


शुभ पुद्गल स्पशहदिस्थिय द्वारा शरीर रूप में पररणि र् जािे र्ैं और उस समय मि में िृस्थप्त व
आह्लाद क अिुभव र् िा र्ै ।
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🔹🔸🔹श्वासोच्छवास🔹🔸🔹
(1) जघन्य स्थिदिवाले दे विा 7-7 स्त क के बाद एक बार श्वास लेिे र्ैं ।
(2) पल्य पम की स्थििवाले दे विा ददि में 1 बार श्वास लेिे र्ैं।
(3) दजििे सागर पम की स्थिदि र् िी र्ै , वे दे विा उििे पक्ष के बाद श्वास लेिे र्ैं।

दे विाओों में काम-भ ग -

● दे विाओों में स्त्री-पुरुष अथाहि् दे व-दे वी र् िे र्ैं , िपुोंसक िर्ीों।


● दे दवय ों की उत्पदत्त भी भविपदि, व्योंिर, ज्य दिष्क और सौधमह व ईशाि प्रथम द वैमादिक
दे वल क िक र्ी र्ै।
● भविपदि, व्योंिर, ज्य दिष्क और प्रथम द वैमादिक दे वल क के दे व, मिुष्य ों की िरर् दे दवय ों से
काम-भ ग करिे र्ैं।
● िीसरे व चौथे दे वल क के दे विा, स्पशह (दे दवय ों के दवदवध अोंग ों के स्पशह) से कामसेवि करिे
र्ैं।
● पाँचवें व छठे दे वल क के दे विा दे दवय ों के स्वरूप दशहि से कामसेवि करिे र्ैं ।
● सािवें आठवें दे वल क के दे विा, दे दवय ों के मधुर सोंगीि मृदुर्ास्य आदद के श्रवण से कामसेवि
करिे र्ैं।
● िौवें दसवें ग्यारर्वें िथा बारर्वें दे वल क के दे विा दे वी का मि से सोंकि कर कामसेवि
करिे र्ैं।
● िौ ग्रैवेयक व पाँच अिुत्तर के दे विा मैथुि सेवि िर्ीों करिे र्ैं ।
● िीसरे आदद दे वल क में दे दवयाँ िर्ीों र् िी र्ैं , परों िु उि दे वल क के दे विाओों के सोंकि मात् से ,
दे वी शस्थक्त से वे दे दवयाँ स्वयों र्ी उि दे विाओों के पास पहुँच जािी र्ैं और उिकी इच्छाओों क
पूणह करिी र्ै।

सौधमह व ईशाि दे वल क में द -द प्रकार की दे दवयाँ र् िी र्ैं –

(1) पररगृदर्िा– दकसी दे व की पत्नी रूप में रर्ी हुई दे वी पररगृदर्िा कर्लािी र्ै ।
(2) अपररगृदर्िा - ज सवह सामान्य दे व के उपभ ग में आिेवाली अपररगृदर्िा कर्लािी र्ै।
वेदना
दे विाओों क लगभग शािा वेदिीय का र्ी उदय र् िा र्ै , बीच-बीच में अशािा का भी उदय र् िा
र्ै । सिि शािा वेदिीय का उदय छर् मास िक रर्िा र्ै , दफर अशािा का उदय र् िा र्ै , ज
उत्कृष्ट से अन्तमुहहुिह िक रर्िा र्ै। दफर पुिः शािा का उदय चालू र् जािा र्ै ।

दे वलोक में उपपात

(1) अन्य िीदथहकी 12वें दे वल क िक उत्पन्न र् सकिे र्ैं।


(2) दमथ्यादृदष्ट सोंयि 9वें ग्रैवेयक िक उत्पन्न र् सकिे र्ैं ।
(3) सम्यग्ददृदष्ट साधु वैमादिक दे व से लेकर सवाहथहदसि दवमाि में उत्पन्न र् सकिे र्ैं।
(4) चौदर्पूवी 5वें दे वल क से सवाहथहदसि में उत्पन्न र् सकिे र्ैं।
(5) पोंचेस्थिय दियहच मरकर 8वें दे वल क में पैदा र् सकिे र्ैं।

दे विाओों के दवमाि
● दे विाओों के दवमाि ल कस्थिदि से र्ी आकाश में दबिा दकसी आधार के रर्े हुए र्ैं ।
● िीथहकर के जन्मादभषेक, केवलज्ञाि, दिवाहण आदद के प्रसोंग पर इि ों के आसि स्विः र्ी कोंदपि
र् िे र्ैं।
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'दे व्योंदि स्वरूप इदि दे वा'
● अपिे स्वरूप से ज दीस्थप्तमाि र्ै , उसे दे व कर्िे र्ैं ।
● दे व िामकमह के उदय से ज उत्पन्न र् िे र्ैं , उसे दे व कर्िे र्ैं ।

दे वत्व प्रास्थप्त के मुख्य चार र्ेिु र्ैं


1. सराग सोंयम (राग सदर्ि व्यस्थक्त का सोंयम)
2. सयमासोंयम (श्रावकत्व का पालि)
3. बाल िपस्या (दमथ्यात्वी की िपस्या)
4. अकाम-दिजहरा (म क्ष की इच्छा दबिा की िपस्या)

दे व ों की पर्चाि के चार लक्षण र्ैं -


1. अम्लाि पुष्पमाला
2. अदिमेष िेत्
3. मिसाकारी (मि के अिुसार प्रत्येक कायह का सोंपाददि र् िा)
4. पृथ्वी से चार अोंगुल ऊपर रर्िा।

दे व ों के पाँच पयाहस्थप्त -
आर्ार, शरीर, इस्थिय, श्वास च्छ्वास पयाहस्थप्त ि यथावि् र्ै , भाषा और मिः पयाहस्थप्त का कायह युगपि्
र् जािा र्ै, इसदलए दे व ों के पयाहस्थप्त पाोंच मािी गई र्ैं।

दे व ों के मुख्य चार प्रकार र्ै -


1. भविपदि 2. व्योंिर
3. ज्य दिष्क 4. वैमादिक
इिके अवान्तर भेद 99 र् जािे र्ैं।
( 10 भविपदि, 15 परमाधादमहक, 16 वाणव्योंिर, 10 दत्जृोंभक, 10 ज्य दिष्क, 3 दकस्थिदषक, 9
ल कास्थन्तक, 12 वैमादिक, 9 ग्रैवेयक, 5 अिुत्तर दवमाि )
उपर क्त कुल 99 जादि के पयाहप्त एवों अपयाहप्त से दे विाओों के कुल 198 प्रकार र् िे र्ैं।
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🔹🔸🔹1️🔹🔸🔹
🙏🙏भवनपतत दे व🙏🙏
( दे विाओों का प्रथम प्रकार )
इसी रत्नप्रभा पृथ्वी में एक र्जार य जि िीचे जािे के बाद भविपदि दे व ों के भवि आ जािे र्ैं ।
रत्नप्रभा पृथ्वी के प्रिर ों में पर्ली िारकी के िारक जीव रर्िे र्ैं। अन्तर ों में भविपदि दे व ों के
दवशाल भवि र्ैं। एक-एक अन्तर में एक-एक जादि के भविपदि रर्िे र्ैं। भविवासी र् िे के
कारण र्ी उन्हें भविपदि कर्ा र्ै।

रत्नप्रभा िरकभूदम के वणहि में बिाया गया र्ै दक उसके एक लाख अस्सी र्जार य जि के पृथ्वी
दपण्ड में से ऊपर के एक र्जार और िीचे के एक र्जार य जि क छ ड़कर शेष एक लाख
अठर्िर र्जार य जि के पृथ्वीदपण्ड में बारर् अन्तर र्ै। ऊपर के द अन्तर ों क छ ड़कर शेष
दस अन्तर ों में असुरकुमार आदद दस भविपदि दे व रर्िे र्ैं। असुरकुमार जादि के दे व प्रायः
आवास ों में और कभी भवि ों में बसिे र्ैं िथा िागकुमार आदद सब प्राय भवि ों में र्ी बसिे र्ैं।
आवास रत्नप्रभा के एक लाख अठर्त्तर र्जार य जि के भाग में सब जगर् र्ै पर भवि ि रत्नप्रभा
के िीच 90 र्जार य जि के भाग में र्ी र्ै। आवास बड़े मण्डप जैसे र् िे र्ैं और भवि िगर के
समाि। भवि बार्र से ग ल भीिर से समचिुष्क ण और िल में पुष्कर कदणहका जैसे र् िे र्ैं ।

ये भविपदि दे व इसदलये कुमार कर्े जािे र्ैं दक ये कुमार की िरर् मि र्र िथा सुकुमार ददखिे
र्ैं। उिकी गदि मृदु व मि र्र र् िी र्ै िथा वे िीड़ाशील र् िे र्ैं। दस प्रकार के भविपदि दे व ों
की दचन्हाददस्वरूप सम्पदत्त जन्मिा अपिी-अपिी जादि में दभन्न-दभन्न र्ै।
जैसे–असुरकुमार ों के मुकुट में चूड़ामदण का, िागकुमार ों के िाग का, दवद् युिकुमार ों के वज्र का,
सुपणहकुमार ों के गरूढ़ का, अदिकुमार ों के घट का, वािकुमार ों के अश्व का।
(सोंग्रर्णी ग्रन्थ में उददधकुमार ों के अश्व का और वािकुमार ों के मकर का दचह्न उस्थिस्थखि र्ै)
स्तदििकुमार ों के वधहमाि (सक रा सोंपुट) का, उददधकुमार ों के मकर का, द्वीपकुमार ों के दसोंर्
का, और ददक्कुमार ों के र्स्थस्त का दचन्ह र् िा र्ै ।
िागकुमार आदद सब के दचह्न उिके आभरण में र् िे र्ैं। सभी के वस्तु शस्त्र भूषण आदद दवदवध
र् िे र्ैं।
➖➖➖➖➖➖➖➖
भविपदि दे व ों के दस प्रकार र्ैं
1.असुरकुमार 2.िागकुमार 3.सुपणहकुमार
4.दवद् युिकुमार 5.अदिकुमार 6.द्वीपकुमार
7.उददधकुमार 8.ददक्कुमार 9.वायुकुमार
10. स्तदििकुमार
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【1】
असुरकुमार दे व
शरीर का वणह – कृष्ण
वस्त्र का वणह – रक्त
मुकुट का दचन्ह – चुड़ामदण
रत्नप्रभा भूदम के बारर् अन्तर ों में से पर्ले और अस्थन्तम अन्तर क छ ड़कर शेष दस अन्तर ों में
से पर्ले अन्तर में असुरकुमार जादि के भविपदि दे व रर्िे र्ैं। इस अन्तर के द दवभाग र्ै।
1. ददक्षण दवभाग 2. उत्तर दवभाग
● ददक्षण दवभाग में उिके 44 लाख भवि र्ै। चमरें द्र उिके स्वामी र्ै। चमरे ि के चौसठ र्जार
सामादिक दे व द लाख छप्पि र्जार आत्मरक्षक दे व और पाँच अग्रमदर्दषयाों र्ै। प्रत्ये क
अग्रमदर्षी का भी आठ आठ र्जार का पररवार र्ै। चमरे ि की साि अिीक (सेिाएों ) र्ैं। िीि
प्रकार की पररषद् र्ै –
● आभ्यन्तर पररषद के चौबीस र्जार दे व र्ैं ।
● मध्य पररषद् के अट्ठाईस र्जार दे व र्ै और
● बाह्य पररषद् के बत्तीस र्जार दे व र्ै। इसी प्रकार....
● आभ्यन्तर पररषद की 350 दे दवयाँ
● मध्य पररषद् की 300 दे दवयाँ और
● बाह्य पररषद की 250 दे दवयाँ र्ैं।
★ दे व ों की आयु जघन्य दस र्जार वषह और उत्कृष्ट एक सागर पम की र्ै ।
★ दे दवय ों की आयु जघन्य दस र्जार वषह उत्कृष्ट 3.5 पल्य पम की र्ै।
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
• विहमाि में ज चमरे ि र्ै वर् पूवहभव में पुरण िाम का िापस था। 12 वषह िक दु ष्कर िप कर
अोंि में 1 मास का पाद पगमि अिशि कर चमरे ि बिा। अपिी उत्पदत्त के बाद ज्ञािचक्षु द्वारा
उसिे अपिे ऊपर रर्े हुए सौधमह इि क दे खा, मेरे ऊपर यर् कौि र्ै ? इस प्रकार दवचार कर
उत्तर वैदिय रूप कर अपिे पररध िामक शस्त्र क साथ लेकर स धमह सभा में जाकर सौधमह इि
क ललकारिे लगा। चमरे ि की इस बादलश चेष्टा क दे ख सौधमह इि िे गुस्से में आकर उसके
पीछे वज्र छ ड़ा। वज्र क दे ख चमरे ि डर गया और अपिे रक्षण के दलए वीरप्रभु के द चरण ों के
बीच घुस गया।

शिेि िे जब चमरे ि क प्रभु की शरण स्वीकारिे हुए दे खा, िभी चार अोंगुल के अोंिर में रर्े वज्र
का शकेि िे सोंर्रण कर दलया।

●चमरे ि द्वारा सौधमह दे वल क में जाकर सौधमह इि से लड़िे की घटिा अिोंिकाल में एक
आश्चयह समझिा चादर्ए।

● इस चमरे ि के 64000 सामादिक दे व व 33 त्ायास्थस्त्रोंशक दे व र् िे र्ैं।


~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
● उत्तर दवभाग में चालीस लाख भवि र्ैं। इिके स्वामी बलेि र्ै । बलेि के 60 र्जार सामादिक
दे व, द लाख चालीस र्जार आत्मरक्षक दे व, छर् अग्रमदर्दषयाँ दजिका छर्-छर् र्जार का
पररवार र्ै साि अिीक (सेिा) और िीि पररषद र्ैं।
● आभ्यन्तर पररषद के बीस र्जार दे व,
● मध्य पररषद के चौबीस र्जार दे व और
● बाह्य पररषद् के अट्ठाईस र्जार दे व र्ै।
● आभ्यन्तर पररषद में 450 दे दवयाँ ,
● मध्य पररषद में 400 दे दवयाँ और
● बाह्य पररषद में 350 दे दवयाँ र्ैं।
★ इि दे व ों की आयु जघन्य दस र्जार वषह से कुछ अदधक और उत्कृष्ट एक सागर पम से कुछ
अदधक र्ै ।
★ इिकी दे दवय ों की आयु जघन्य दस र्जार वषह से कुछ अदधक िथा उत्कृष्ट 4½ पल्य पम की
र्ै।
( असुरकुमार दवशेषिया आवास ों में रर्िे र्ैं , कभी-कभी भवि ों में भी रर्िे र्ैं। इिके आवास
िािा रत्न ों की प्रभा वाले चोंदेव ों से युक्त र् िे र्ैं। उिके आवास इिके शरीर की अवगार्िा के
अिुसार र्ी लम्बे चौड़े िथा ऊोंचे र् िे र्ैं )
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
नौ तनकाय के दे व

दू सरे िागकुमार से लेकर दसवें स्तदििकुमार िक क िवदिकाय के दे व कर्िे र्ैं। ददक्षण दवभाग ों
में दिकाय ों के प्रत्येक इि के छर्-छर् र्जार सामादिक दे व र्ैं , चौबीस-चौबीस र्जार आत्मरक्षक
दे व र्ै , छर्-छर् अग्रमदर्दषयाँ र्ै। प्रत्येक अग्रमदर्षी का छर्-छर् र्जार का पररवार र्ै। िौ र्ी इि ों
की साि-साि अिीक र्ैं । िीि-िीि पररषद् र्ैं। आभ्यन्तर पररषद् के साठ र्जार दे व र्ैं , मध्य पररषद्
के दसत्तर र्जार और बाह्य पररषद् के अस्सी र्जार दे व र्ैं। आभ्यन्तर पररषद् में 175 दे दवयाँ र्ैं ,
मध्य पररषद् में 150 दे दवयाँ और बाह्य पररषद् में 125 दे दवयाँ र्ैं। इि िौ र्ी जादिय ों के दे व ों की
आयु जघन्य दस र्जार वषह और उत्कृष्ट डे ढ़ पल्य पम की र्ै। दे दवय ों की आयु जघन्य दस र्जार
वषह और उत्कृष्ट पौि पल्य पम की र्ै।

उत्तर दवभाग के िौ र्ी इि ों के सामादिक दे व ,ों आत्मरक्षक दे व ,ों अग्रमदर्दषय ,ों अग्रमदर्दषय ों के
पररवार, अिीक और पररषद ों की सोंख्या ददक्षण दवभाग के समाि र्ी र्ै। पररषद् के दे व ों की सोंख्या
में अन्तर र्ैं। आभ्यन्तर पररषद् के पचास र्जार दे व, मध्य पररषद् के साठ र्जार दे व और बाह्य
पररषद् के सत्तर र्जार दे व र्ैं। आभ्यन्तर पररषद् की दे दवयाँ 225, मध्य पररषद् की 200, बाह्य
पररषद् की 175 दे दवयाँ र्ैं। सबकी आयु जघन्य दस र्जार वषह और उत्कृष्ट कुछ कम द पल्य पम
की र्ै। दे दवय ों की आयु जघन्य 10 र्जार वषह, उत्कृष्ट कुछ कम 1 पल्य पम की र्ै।

पूवोक्त दस ों अन्तर ों में रर्िे वाले ददक्षण ददशा के दे व ों के भवि दमलकर 4 कर ड़ 6 लाख र्ै और
उत्तर दवभाग के सब भवि िीि कर ड़ दछयासठ लाख र्ैं। इिमें छ टे से छ टा भवि एक लाख
य जि (जम्बूद्वीप के बराबर) का र्ै। मध्य भवि पैंिालीस लाख य जि (अढाई द्वीप के बराबर) के
र्ैं िथा सब से बड़ा भवि असोंख्याि द्वीप- समुद्र ों के बराबर अथाहि् असोंख्याि य जि का र्ै। सब
भवि भीिर से चौक र, बार्र से ग लाकार, रत्नमय और मर्ा प्रकाशयुक्त िथा समस्त सुख
सामदग्रय ों से भरपूर र्ैं। सोंख्याि य जि के भवि में सोंख्याि दे व-दे दवय ों का दिवास र्ै िथा असोंख्याि
य जि के भवि में असोंख्याि दे व दे दवय ों का दिवास र्ै ।

भविपदि दे व ों के दवदभन्न जादिय ों के शरीर का वणह अलग-अलग प्रकार का र्ै । वस्त्र भी उन्हें
अलग-अलग रों ग का पसन्द आिा र्ै। उिकी पर्चाि उिके एक-एक में बिे हुए दचह्न ों से र् िी र्ै।
इि सबके स्पष्टीकरण के दलए एक िादलका इस प्रकार र्ै –

भवनपतत दे व की जातत
शरीर वणह–वस्त्र का वणह–मुकुट का दचन्ह
-------------- ---- ----- --------------
1.असुरकुमार – ( कृष्ण–रक्त–चुड़ामदण )
2.िागकुमार– ( श्वेि–िील–िागफणी )
3.सुपणहकुमार– ( किक–श्वेि–गरूड़ )
4.दवद् युत्कुमार– ( रक्त–िील–वज्र )
5.अदिकुमार– ( रक्त–िील–वज्र )
6.द्वीपकुमार– ( रक्त–िील–दसोंर् )
7.उददधकुमार– ( श्वेि–िील–अश्व )
8.ददशाकुमार - ( रक्त–श्वेि–र्स्ती )
9.वायुकुमार– ( िील–गुलाबी–मगर )
10.स्तदििकुमार– ( किक–श्वेि–सक रा युगल )
● भविवासी दे व ों की आयु-स्थिदि जघन्यिः दस र्जार वषह और उत्कृष्टिः दकोंदचि् अदधक एक
सागर पम की र्ै।
● भविवासी दे व ों की दजििी आयु स्थिदि र्ै उििी र्ी उिकी जघन्य या उत्कृष्ट काय स्थिदि र्ै ।
● उिका अन्तर—अपिे-अपिे काय क छ ड़कर पुिः उसी काय में उत्पन्न र् िे का काल
जघन्यिः अन्तमुहहूिह और उत्कृष्टिः अिन्त काल का र्ै ।
● वणह, गन्ध, रस, स्पशह और सोंिाि की दृदष्ट से उिके र्जार ों भेद र् िे र्ैं।

🔹🔸🔹2️🔹🔸🔹
व्यन्तर और वाणव्यंतर
( दू सरे प्रकार के दे व )
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रत्नप्रमा भूदम के पृथ्वी दपण्ड के ऊपरी एक र्जार य जि के पृथ्वी दपण्ड में से एक सौ य जि ऊपर
और एक सौ य जि िीचे छ ड़कर बीच में आठ सौ य जि की प लार र्ै। इस प लार में असोंख्याि
ग्राम र्ैं। इिमें आठ प्रकार के व्यन्तर दे व रर्िे र्ैं। उिके िाम इस प्रकार र्ै – 1 दपशाच, 2 भूि, 3,
यक्ष, 4. राक्षस, 5 दकन्नर, 6. दकोंपुरुष, 7 मर् रग और 8 गन्धवह।

ऊपर के भाग में सौ य जि ज छ ड़ ददये थे , उसमें भी दस य जि ऊपर और दस य जि िीचे


छ ड़कर बीच में अस्सी य जि की प लार र्ै। इस प लार में असोंख्याि िगर र्ै। इि िगर ों में आठ
प्रकार के वाणव्यन्तर दे व रर्िे र्ैं। इिके िाम इस प्रकार– 1 आिपन्नी, 2 पािपन्नी, 3. इसीवाई. 4.
भूइवाई. 5. कास्थन्दय, 6. मर्ाकास्थन्दय 7 क र्ण्ड और 8 पयोंगदे व।

उक्त व्यन्तर ों और वाणव्यन्तर ों के ज िगर बिाये गये र्ैं उिमें छ टे से छ टा भरि क्षेत् के बराबर
(526 य जि से कुछ अदधक) मध्यम मर्ादवदे र् क्षेत् के बराबर (33624 य जि से कुछ अदधक)
और बड़े से बड़ा जम्बूद्वीप के बराबर (एक लाख य जि का) र्ै।

उक्त द ि ों प लार ों के द -द दवभाग र्ैं - ददक्षण भाग और उत्तर भाग इि दवभाग ों में रर्िे वाले
स लर् प्रकार के व्यन्तर और वाणव्यन्तर दे व ों की एक-एक जादि के द -द इि र्ैं। अिः कुल
बत्तीस इि र्ैं। प्रत्येक इि के चार-चार र्जार सामादिक दे व र्ैं । स लर्-स लर् र्जार
आत्मरक्षक दे व र्ै , चार-चार अग्रमदर्दषयाँ र्ै। प्रत्येक अग्रमदर्षी के र्जार-र्जार का पररवार र्ै।
साि अिीक र्ैं । िीि पररषद् र्ैं। आभ्यन्तर पररषद् के आठ र्जार दे व, मध्य पररषद् के दस र्जार
दे व और बाह्य पररषद के बारर् र्जार दे व र्ैं । इि दे व ों की आयु जघन्य दस र्जार वषह और
उत्कृष्ट एक पल्य पम की र्ै । दे दवय ों की जघन्य आयु दस र्जार वषह और उत्कृष्ट अधह पल्य पम
की र्ै। व्यन्तर और वाणव्यन्तर दे व चोंचल स्वभाव के र् िे र्ैं। मि र्र िगर ों में दे दवय ों के साथ
िृत्य-गाि करिे हुए पूवोपादजहि पुण्य के फल ों का अिुभव करिे हुए दवचरिे र्ैं । दवदवध अन्तर ों में
रर्िे के कारण इन्हें 'व्यन्तर कर्िे र्ैं। वि में भ्रमण करिे के अदधक शौकीि र् िे के कारण इन्हें
'वाणव्यन्तर' कर्िे र्ैं।
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व्यंतरों के प्रभेद

1. दपशाच (पिर् प्रकार के र्ै)


कुष्माण्ड, पटक, ज ष, आह्नक, काल, मर्ाकाल, चौक्ष, अचौक्ष, िाल दपशाच, मुखर दपशाच,
अधस्तारक, दे र्, मर्ादवदे र्, िूष्णीक और वि दपशाच।
● ददक्षण ददशा के इि –कालेि
● उत्तर ददशा के इि –मर्ाकालेि
● शरीर का वणह – कृष्ण
● मुकुट का दचन्ह – कोंदव वृक्ष
~~~~~~~~~~~~~~~~
2 भूि (िौ प्रकार के र्ैं)
सुरूप, प्रदिरूप, अदिरूप, भूत्त िम, स्कस्थन्दक, मर्ास्कस्थन्दक, मर्ावेग, प्रदिच्छन्न और आकाशग
● ददक्षण ददशा के इि –सुरूपेि
● उत्तर ददशा के इि –प्रदिरूपेि
● शरीर का वणह – कृष्ण
● मुकुट का दचन्ह – शादल वृक्ष
~~~~~~~~~~~~~~~~
3. यक्ष ( िेरर् प्रकार के र्ैं )
पूणहभद्र, मदणभद्र, श्वेिभद्र, र्ररभद्र, सुमि भद्र व्यदिपादिक भद्र, सुभद्र, सवहि भद्र, मिुष्ययक्ष,
विादधपदि विार्ार रूप यक्ष और यक्ष त्तम ।
● ददक्षण ददशा के इि – पूणाहभद्रे ि
● उत्तर ददशा के इि– मदणमर्ेि
● शरीर का वणह – कृष्ण
● मुकुट का दचन्ह – बड़ वृक्ष
~~~~~~~~~~~~~~~~
4. राक्षस (साि प्रकार के र्ैं)
भ ग, मर्ाभीम, दवघ्न, दविायक, जल राक्षस, राक्षस और ब्रह्मराक्षस ।
● ददक्षण ददशा के इि – भीमेि
● उत्तर ददशा के इि–मर्ाभीमेि
● शरीर का वणह – श्वेि
● मुकुट का दचन्ह – पाडली वृक्ष
~~~~~~~~~~~~~~~~
5. दकन्नर (दस प्रकार के र्ैं)
दकन्नर, दकोंपुरुष, दकोंपुरुष त्तम, दकन्नर िम हृदयोंगम, रूपशाली. अदिस्थन्दि, मि रम, रदिदप्रय और
रदिश्रेष्।
● ददक्षण ददशा के इि –दकन्नरे ि
● उत्तर ददशा के इि– दकोंपुरूषेि
● शरीर का वणह – िीला
● मुकुट का दचन्ह – अश क वृक्ष
~~~~~~~~~~~~~~~~
6. दकोंपुरुष (दस प्रकार के र्ैं)
पुरुष, सत्पुरुष, मर्ापुरुष, पुरुष वृषम, पुरुष त्तम अदिपुरुष, मरुदे व, मरूि, मेरुप्रम और
यशस्वाि्।
● ददक्षण ददशा के इि –सुपुरूषेि
● उत्तर ददशा के इि – मर्ापुरूषेि
● शरीर का वणह – श्वेि
● मुकुट का दचन्ह – चोंपक वृक्ष
~~~~~~~~~~~~~~~~
7. मर् रग (दस प्रकार के र्ैं )
मुजोंग, भ गशाली, मर्ाकाय, अदिकाय, स्कन्धशाली, मि रम, मर्ावेग, मर्ेष्वा, मेरुकान्त और
भास्वाि्।
● ददक्षण ददशा के इि - अदिकायेि
● उत्तर ददशा के इि – मर्ाकायेि
● शरीर का वणह – कृष्ण
● मुकुट का दचन्ह – िाग वृक्ष
~~~~~~~~~~~~~~~~
8. गन्धवह (बारर् प्रकार के र्ैं )
र्ार्ा, हूहू, िुम्बुरव, िारद, ऋदषवाददक, भूिवाददक, कादम्ब, मर्ाकादम्ब, रै वि, दवश्वावसु,
गीिरदि और गीि यश।
● ददक्षण ददशा के इि– गीिरिीि
● उत्तर ददशा के इि – गीिरसेि
● शरीर का वणह – कृष्ण
● मुकुट का दचन्ह – दटम्बरु वृक्ष
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आठ वाणव्यंतर
1.आिपन्नी –
● ददक्षण ददशा के इि– सदन्नदर्िेि
● उत्तर ददशा के इि – सन्मािेि
● शरीर का वणह – कृष्ण
● मुकुट का दचन्ह – कदों ब वृक्ष
~~~~~~~~~~~~~~~~
2.पािपन्नी –
● ददक्षण ददशा के इि – धािेि
● उत्तर ददशा के इि – दवधािेि
● शरीर का वणह – कृष्ण
● मुकुट का दचन्ह – शादल वृक्ष
~~~~~~~~~~~~~~~~
3. इसीवाई –
● ददक्षण ददशा के इि –ईसीि
● उत्तर ददशा के इि – इसीपिेि
● शरीर का वणह – कृष्ण
● मुकुट का दचन्ह – बड़ वृक्ष
~~~~~~~~~~~~~~~~
4.भूइवाई –
● ददक्षण ददशा के इि– ईश्वरे ि
● उत्तर ददशा के इि –मर्े श्वरे ि
● शरीर का वणह – श्वैि
● मुकुट का दचन्ह – पाडली वृक्ष
~~~~~~~~~~~~~~~~
5. कोंददय –
● ददक्षण ददशा के इि– सुवच्छे ि
● उत्तर ददशा के इि –दवशालेि
● शरीर का वणह – िीला
● मुकुट का दचन्ह – अश क वृक्ष
~~~~~~~~~~~~~~~~
6. मर्ाकोंददय –
● ददक्षण ददशा के इि– र्ास्येि
● उत्तर ददशा के इि – र्ास्यरिीि
● शरीर का वणह – श्वेि
◆ मुकुट का दचन्ह – चोंपक वृक्ष
~~~~~~~~~~~~~~~~
7. क र्ोंड –
● ददक्षण ददशा के इि– श्वेिेि
● उत्तर ददशा के इि – मर्ाश्वेिेि
● शरीर का वणह – कृष्ण
● मुकुट का दचन्ह – िाग वृक्ष
~~~~~~~~~~~~~~~~
8.पयोंगदे व –
◆ ददक्षण ददशा के इि– पर्ोंगेि
● उत्तर ददशा के इि –पर्ों गपिेि
● शरीर का वणह – कृष्ण
● मुकुट का दचन्ह – दटम्बरु वृक्ष

प्रश्न– व्योंिर दे व ों का िाि िीचे र्ै , दफर ऊपर क् ों आिे र्ैं ?


उत्तर– व्योंिर दे व ों का िीचे जन्म िाि र्ै , मिुष्यल क िीड़ािल र्ै , इसदलए यर्ाों बार-बार आिे
रर्िे र्ैं।
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प्रश्न– वट, पीपल आदद वृक्ष ों में दे विाओों का दिवास र् िा र्ै , ऐसा कर्ा जािा र्ै। क्ा इसमें सचाई
र्ै?
उत्तर– इि वृक्ष ों पर कभी- कभी व्योंिर दे व कुछ समय दवशेष के दलये अपिा प्रभुत्व जमा लेिे र्ैं।
व्योंिर दे व ों का वृक्ष ों से दवशेष लगाव भी र्ै। उिके ज दचह्न लक्षण आये र्ैं , वे सभी अलग अलग
जादि के वृक्ष र्ैं।
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प्रश्न– िरक में जैसे परमाधादमहक दे व ों का दखल र्ै , वैसे क्ा मिुष्यल क में भी व्योंिर दे व ों का
र्स्तक्षेप रर्िा र्ै ?
उत्तर– दकसी जादि के दे व दवशेष की यर्ाों दखलोंदाजी िर्ीों र् िी। इि दे व ों में भी अपिी व्यविा
र् िी र्ै। उससे र्टकर कायह करिा उिके दलए दण्डिीय मािा जािा र्ै , दफर भी दपछले अिुबोंध ों
के कारण यर्ाों दे विा कर्ीों-कर्ीों इष्ट-अदिष्ट कर सकिे र्ैं।
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प्रश्न– भैरू
ों जी, मािाजी, र्िुमािजी, दपिरजी आदद दे विा कौि र्ैं ? यर्ाों अपिे धाम क् ों बिािे र्ैं ?
उत्तर– ये सब व्योंिर जादि के दे व लगिे र्ैं। ये अपिी पूजा, प्रदिष्ा व ख्यादि पािे के दलये कुछ
चमत्कार ददखा दे िे र्ैं अथवा दकसी क थ ड़ा-बहुि लाभ पहुोंचा दे िे र्ैं। ल ग ों क ि इििा र्ी
चादर्ए और वे उि दे व ों की भस्थक्त में लग जािे र्ैं। कर्ीों-कर्ीों इिके िाम का पाखण्ड भी चलिा
र्ै।
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प्रश्न– र्िुमािजी मुक्त र् गये, ऐसा र्म माििे र्ैं। दफर यर्ाँ इस िाम से कौि प्रकट र् िे र्ैं ?
उत्तर– अोंजिी पुत् र्िुमाि दिदश्चि र्ी मुक्त र् गये। यर्ाों ज प्रकट र् िे र्ैं वे उिसे दभन्न र्ैं , दकन्तु
उसी िाम से प्रकट र् कर अपिा चमत्कार ददखािे र्ैं।

● व्यन्तर दे व ों की आयु स्थिदि जघन्यिः दस र्जार वषह और उत्कृष्टिः एक पल्य पम की र्ै।


● व्योंिर दे व ों की दजििी आयु स्थिदि र्ै उििी र्ी उिकी जघन्य या उत्कृष्ट काय स्थिदि र्ै।
● उिका अन्तर - अपिे-अपिे काय क छ ड़कर पुिः उसी काय में उत्पन्न र् िे का काल
जघन्यिः अन्तमुहहूिह और उत्कृष्टि अिन्त काल का र्ै ।
● वणह, गन्ध, रस, स्पशह और सोंिाि की दृदष्ट से उिके र्जार ों भेद र् िे र्ैं।
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दस प्रकार के ततययक्जंभक दे व
(1) अन्नजृोंभक (2) पािजृोंभक
(3) वस्त्रजृोंभक, (4) लेणजृोंभक,
(5) पुष्पजृोंभक (6) फलजृोंभक
(7) पुष्पफल जृोंभक (8) शयिजृोंभक
(9) दवद्याजृोंभक (10) अदियि जृोंभक।

🔹🔸🔹3️🔹🔸🔹
🌞🌜ज्योततष्क दे व ✨🪐🌟
( दे विाओों का िीसरा प्रकार )
ये सभी दियहग्ल क क अपिी ज्य दि से प्रकादशि करिे र्ैं , इसदलए ज्य दिष्क दे व कर्लािे र्ैं।
ये अढाई द्वीप में गदिशील र्ैं , अढाई द्वीप से बार्र स्थिर र्ैं। ये दिरन्तर सुमेरु पवहि की प्रददक्षणा
दिया करिे र्ैं। मेरुपवहि के 1121 य जि क छ ड़ कर इिके दवमाि चार ों ददशाओों में उसकी
सिि प्रददक्षणा करिे रर्िे र्ैं। मिुष्य ल क के ज्य दिष्क मेरु के 1121 य जि चार ों ओर दू र सदा
भ्रमण करिे रर्िे र्ैं। मिुष्य ल क मे एक सौ बत्तीस सूयह और एक सौ बत्तीस चि र्ै।
● जम्बूद्वीप में द -द , लवण समुद्र में चार-चार धािकी खण्ड में बारर् बारर्, काल ददध में बयालीस
बयालीस और पुष्कराधह में बर्त्तर बर्त्तर सूयह और चि र्ै।
● एक चि का पररवार 28 िक्षत् 88 ग्रर् और 66975 क टाक दट िार ों का र्ै। यद्यदप ल कमयाहदा
के स्वभावािुसार ज्य दिष्क दवमाि सदा अपिे आप घूमिे रर्िे र्ैं , िददप समृस्थि दवशेष प्रकट करिे
के दलये और अदभय ग्य (सेवक) िामकमह के उदय से िीड़ाशील कुछ दे व दवमाि क उठािे र्ैं।
सामिे के भाग में दसोंर्ाकृदि दादर्िे गजाकृदि पीछे वृषभाकृदि और बायें अश्वाकृदि वाले दे व दवमाि
क उठाकर चलिे रर्िे र्ैं। इि ज्य दिष्क ों की गदि के कारण मिुष्य ल क में कालव्यवर्ार र् िा
र्ै।

चिमा, सूयह, िक्षत् ग्रर् और िारागण ये पाोंच प्रकार के ज्य दिष्क दे व र्ैं। ददशादवचारी (अथाहि्
मेरुपवहि की प्रददक्षणा करिे हुए भ्रमण करिे वाले) ज्य दिष्क दे व र्ैं ।

● मेरु के समिल भूभाग से साि सौ िब्बे य जि की ऊँचाई पर ज्य दिष चि का क्षेत् आरम्भ
र् िा र्ै। यर् क्षेत् ऊँचाई में एक सौ दस य जि का र्ै और दिरछे असोंख्याि द्वीप समुद्रपयहन्त र्ैं।
● इस क्षेत् के आरम्भ में िारामण्डल र्ैं।
(समिल भूदम से 790 य जि की ऊँचाई पर)
● यर्ाँ से दस य जि की ऊँचाई पर अथाहि्
(समिल भूदम से 800 य जि की ऊँचाई पर सूयह का दवमाि र्ै)
● वर्ाँ से अस्सी य जि ऊँचाई पर अथाहि्
(समिल भूदम से 880 य जि ऊपर चि का दवमाि र्ै)
● वर्ाँ से बीस य जि की ऊँचाई िक अथाहि्
(समिल भूभाग से 900 य जि ऊँचाई िक ग्रर् िक्षत् और प्रकीणह िारागण र्ैं )
....प्रकीणह िार ों से आशय यर् र्ै दक कुछ िारे ऐसे र्ैं ज अदियिचारी र् िे से कभी सूयह-चि के
िीचे चलिे र्ैं और कभी ऊपर।
●चि से चार य जि की ऊँचाई पर अथाहि्
(समिल भूदम से 884 य जि की ऊोंचाई पर िक्षत् र्ैं)
● वर्ाँ से चार य जि ऊँचे जािे पर अथाहि्
( समिल भूभाग से 888 य जि की ऊँचाई पर र्ररि रत्नमय बुध ग्रर् र्ैं)
● वर्ाँ से िीि य जि की ऊँचाई पर अथाहि्
(समिल भूभाग से 891 य जि की ऊँचाई पर स्फदटक रत्नमय शुि का दवमाि र्ै)
● शुि से िीि य जि की ऊोंचाई पर अथाहि्
(समिल भूभाग से 894 य जि की ऊँचाई पर पीि रत्नमय गुरु का दवमाि र्ै)
● गुरु से िीि य जि ऊपर अथाहि्
(समिल भूदम से 897 य जि की ऊँचाई पर रक्त रत्नमय मोंगल का दवमाि र्ै)
● और मोंगल से िीि य जि ऊपर अथाहि्
(समिल भूभाग से 900 य जि की ऊँचाई पर जामुिरों ग मय शदि का दवमाि र्ै)
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ज्य दिष (प्रकाशमाि) दवमाि में रर्िे से ये सूयह आदद ज्य दिष्क कर्लािे र्ैं । इि सबके मुकुट ों
में प्रभामण्डल जैसा उज्ज्वल दचह्न र् िा र्ै । सूयह के सूयहमण्डल जैसा चि के चिमण्डल जैसा
और िारा के िारामण्डल जैसा दचन्ह र् िा र्ै ।

सब ज्य दिष्क ों के इि जम्बूद्वीप के चि और सूयह र्ैं ।


एक चन्द्र का पररवार
(88 ग्रर्, 28 िक्षत् और 66975 क ड़ाक ड़ी िारे )
88 ग्रर्–
1 अोंगारक 2 दवकालक 3 ल दर्िाक्ष 4 शिैश्चर 5 आधुदिक 6 प्रधुदिक 7 कण 8 कणक 9
कणकणक 10 कण दविावी 11 कण शिावी 12 स म 13 सदर्ि 14 अश्वसि 15 कयोत्वि 16
कबुहक 17 अजककह 18 दुों दमक 19 शोंख 20. शोंख िाम 21 शख वणह 22 कोंश 23 कोंश िाम 24
कोंश वणह 25 िील 26 िील भास 27 रूप 28 रूपाय भास 29 भस्म 30 भस्मरास 31 दिल 32
पुष्पवणह 33 दक 34 दकवणह 35 काय 36 वध्य 37 इिागी 38 धूमकेिु 39 र्री, 40. दपोंगलक 41
बुध, 42 शुि 43 वृर्स्पदि 44 राहु 45 अगस्थस्त 46. माणवक 47 कालस्पशह 48 धुरक 49 प्रमुख
50 दवकट 51 दवपघ्नकि 52 प्रकि 53 जयल 54 अरुण 55. अदिल, 56 काल 57 मर्ाकाल 58
स्वस्थस्तक, 59 सौवस्थस्तक 60 वधहमािक, 61 पालम्ब क 62 दित्य दक 63 स्वयोंप्रम 64 आभास 65
प्रभास 66 श्रेयस्कर 67 क्षेमोंकर 68 आभकर 69 प्रभाकर 70 अरज 71 दवरज 72 अश क 73
िस क 74 दवमल 75 दविि 76 दववस्त्र 77 दवशाल 78 शाल 79 सुव्रि 80 अदिवृि 81 एकजटी
82 दद्वजटी 83 कर क 84 करी 85 राजा 86 अगहल B7 पुष्पकेिु 88 भावकेिु ।

िक्षत् 28–
1. अदभदजि 2 श्रवण 3 घदिष्ा 4 शिदभषा 5 पूवह भाद्रपद 6 उत्तर भाद्रपद 7 रे विी 8 अदश्विी 9.
भरणी 10 कृदत्तका 11 र दर्णी 12 मृगदशर 13 आद्राह 14 पुिवहसु 15 पुष्य 16 आश्लेषा 17 मघा
18 पूवह फाल्गुिी 19 उत्तरा फाल्गुिी 20 र्स्त 21 दचत्ा 22 स्वादि 23 दवशाखा 24 अिुराधा 25
ज्येष्ा 26. मूल 27 पूवाहषाढ़ा 28 उत्तराषाढा।
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
जोंबूद्वीप–( 2 चि व 2 सूयह )
(ग्रर्-176,िक्षत्-56,िारा- 133950 क ड़ाक ड़ी)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
लवण समुद्र–( 4 चि व 4 सूयह )
(ग्रर्-352,िक्षत्-112,िारा-267900 क ड़ाक ड़ी)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
घािकीखोंड–(12 चि व 12 सूयह )
(ग्रर्-1056,िक्षत्-337,िारा-8,03,700 क ड़ाक ड़ी)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
काल दधी समुद्र–(42 चि व 42 सूयह )
(ग्रर्-3696,िक्षत्-1176,िारा-28,12,950 क ड़ाक ड़ी)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पुष्कराधह द्बीप–
(ग्रर्-6336,िक्षत्-2,016,िारा-48,22,200 क ड़ाक ड़ी)
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★ िार ों की ऋस्थि सबसे कम र्ै िार ों से िक्षत् की ऋस्थि अदधक र्ै। िक्षत् से ग्रर् की अदधक र्ै।
ग्रर् से सूयह की ऋस्थि अदधक र्ै और सूयह से चोंद्र की ऋस्थि अदधक र्ै ।
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ज्य दिषी दे व ों की गदि–
1. चिमा की गदि सबसे मोंद र् िी र्ै।
2. सूयह की गदि उससे शीघ्र र् िी र्ै।
3. ग्रर् की गदि उससे शीघ्र र् िी र्ै।
4. िक्षत् की गदि उससे शीघ्र र् िी र्ै।
5. िारा की गदि सबसे शीघ्र र् िी र्ै ।
ज्य दिषी दे व ों की गदि में फकह क् ों र्ै ?
....ज दजििा ज्यादा ऋस्थि सम्पन्न, वैभव, ऐश्वयह सम्पन्न र् िा र्ै , उसकी चाल उििी र्ी श्रेष् एवों
मोंद-मोंद र् िी र्ै और ज सामान्य कमहचारी ल ग र् िे र्ैं , वे शीघ्र - शीघ्र इधर-उधर दौड़िे रर्िे र्ैं
। ज्य दिषी दे व ों में चोंद्रमा की ऋस्थि सवाहदधक र्ै , जबदक िारा की ऋस्थि सबसे कम र्ै। इसदलए
चोंद्रमा की गदि सबसे मोंद र्ै एवों िारा की गदि सबसे शीघ्र र्ै ।
ज्य दिष्क दे व ों में इों द्र दकििे र्ैं ?
....ज्य दिष्क दे व ों में द इों द्र र्ैं –
1. चि और 2. सूयह
अधहपुष्करद्बीप में
(72 चि और 72 सूयह)

● ज्य दिष्क दे व ों के गमि पथ क मोंडल कर्िे र्ैं।


( जम्बूद्वीप में सूयह के 184, चि के 15 िथा िक्षत् के 8 मोंडल र्ैं )
( चि के प्रत्येक मोंडल में 35 य जि का अन्तर र्ै । सूयह और िक्षत् के प्रत्येक मोंडल का अन्तर
द -द य जि र्ै )

● ज्य दिष्क दे व ों में िेज लेश्या र् िी र्ै ।

● चर ज्य दिष्क दे व जम्बूद्वीप के मेरु पवहि की पररिमा लगािे र्ैं।


● अढ़ाई द्बीप के बार्र अचर ज्य दिष्क दे व र्ै। वर्ाँ दजस जगर् सूयह र्ै वर्ाँ ददि र्ै और जर्ाँ
चि र्ै वर्ाँ र्रदम राि रर्िी र्ै।
● अल क से ज्य दिष्क चि 1111 य जि की दू री पर र्ै ।
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★ सूयह आदद की गदि के कारण र्ी कालदवभाग का व्यवर्ार चलिा र्ै। काल के अदवभाज्य अोंश
क समय कर्िे र्ै। असोंख्य समय की 1 आवदलका र् िी र्ै।

● मिुष्यल क के बार्र के सूयह चोंद्र के दवमाि ों का प्रकाश समशीि ष्ण र् िा र्ै अथाहि सूयह के
दकरण अदििीक्ष्ण िर्ीों र् िे र्ैं और चोंद्र के दकरण अदिशीिल िर्ीों र् िे र्ैं।

प्रत्येक ज्य दिषी के स्वामी के 4 अग्र मदर्दषयाँ र्ैं। प्रत्येक अग्रमदर्षी का चार-चार र्जार दे दवय ों
का पररवार र्ै। चार र्जार सामादिक दे व र्ैं । स लर् र्जार आत्मरक्षक दे व र्ै। आभ्यन्तर पररषद
के आठ र्जार दे व र्ैं। मध्य पररषद के दस र्जार दे व र्ैं । बाह्य पररषद के बारर् र्जार दे व र्ैं
साि प्रकार की अिीक र्ै। और भी बहुि-सा पररवार र्ै ।

ज्य दिष्क दे व ों की स्थिदि


● िारा दवमािवासी दे व की स्थिदि जघन्य पल्य पम का आठवाँ भाग और उत्कृष्ट पल्य पम का
चौथा भाग अथाहि पाव पल्य पम र्ै। िारा दे दवय ों की स्थिदि जघन्य पल्य का आठवाँ भाग और
उत्कृष्ट पल्य के आठवें भाग से कुछ अदधक र्ै।

● सूयह दवमािवासी दे व ों की आयु जघन्य पाव पल्य पम की और उत्कृष्ट एक पल्य पम िथा एक


र्जार वषह की र्ै। इिकी दे दवय ों की आयु जघन्य पाव पल्य पम और उत्कृष्ट आधा पल्य पम और
500 वषह की र्ै।
● चि दवमािवासी दे व ों की आयु जघन्य पाव पल्य पम की और उत्कृष्ट एक पल्य पम िथा एक
लाख वषह की र्ै। इिकी दे दवय ों की स्थिदि जघन्य पाव पल्य पम और उत्कृष्ट अधह पल्य पम िथा
पचास र्जार वषह की र्ै ।

● िक्षत् दवमाि ों में रर्िे वाले दे व ों की आयु जघन्य पाव पल्य पम और उत्कृष्ट आधे पल्य पम की
र्ै। इिकी दे दवय ों की आयु जघन्य पाव पल्य पम और उत्कृष्ट पाव पल्य पम से कुछ अदधक र्ै।
● ग्रर् दवमािवासी दे व ों की आयु जघन्य पाव पल्य पम की और उत्कृष्ट एक पल्य पम की र्ै।
इिकी दे दवय ों की जघन्य आयु पाव पल्य पम की ओर उत्कृष्ट आयु आधे पल्य पम की र्ै ।

● ज्य दिष्क दे व ों की दजििी आयु स्थिदि र्ै उििी र्ी उिकी जघन्य या उत्कृष्ट काय स्थिदि र्ै।
● उिका अन्तर—अपिे अपिे काय क छ ड़कर पुिः उसी काय में उत्पन्न र् िे का काल
जघन्यिः अन्तमुहहूत्तह और उत्कृष्टिः अिन्त काल का र्ै ।
● वणह, गन्ध, रस, स्पशह और सोंिाि की दृदष्ट से उिके र्जार ों भेद र् िे र्ैं।

🔹🔸🔹4️🔹🔸🔹
🧜🏽‍♂️ वैमातनक दे व 🧜🏽‍♂️
( दे विाओों का चिुथह प्रकार )
➖➖➖➖➖➖➖➖
दवमाि में उत्पन्न र् िे के कारण इन्हें वैमादिक दे व कर्िे र्ैं। वैमादिक दे व ों के मुख्य द भेद र् िे
र्ैं–
(1) कि पपन्न और (2) किािीि

●जर्ाँ छ टे बड़े की मयाहदा र्ै उस दे वल क क कि कर्िे र्ैं । कि में उत्पन्न हुए दे विाओों क
कि पपन्न और जर्ाँ कि िर्ीों र्ै , ऐसे दे वल क में उत्पन्न हुए दे विाओों क किािीि कर्िे र्ैं।

● 12️ दे वल क के कि र् िे से उन्हें कि पपन्न कर्िे र्ैं उसके बाद 9 ग्रैवेयक और 5 अिुत्तर में
कि का अभाव र् िे से उि दे विाओों क किािीि कर्िे र्ैं ।

● ज्य दिष चि से ऊपर असोंख्य य जि जािे पर मेरु के ददक्षण भाग में सौधमह और उत्तर भाग में
ईशाि कि आया हुआ र्ै। ईशाि दे वल क कुछ ऊपर र्ै द ि ों समश्रेणी में िर्ीों र्ै।

● स धमह से असोंख्य य जि ऊपर समश्रेणी में सििकुमार का कि र्ै। ईशाि से असोंख्य य जि


ऊपर समश्रेणी में मार्ेि कि र्ै।

● सििकुमार व मार्ेि के बीच में ऊपर ब्रह्मल क र्ै। उसके ऊपर ऊपर िमश लाोंिक
मर्ाशुि और सर्स्त्रार दे वल क र्ै ।

● उसके ऊपर सौधमह-ईशाि की िरर् आिि और प्राणि द कि आए हुए र्ैं और उसके ऊपर
आचरण और अच्युि आए हुए र्ैं।

● सौधमह ईशाि दे वल क में दवमाि पूवह-पदश्चम में लोंबे व उत्तर ददक्षण में चौड़े असोंख्य क ड़ा
क ड़ी य जि प्रमाण र्ै।

इि द ि ों दे वल क में 13 प्रिर र्ै। प्रत्येक प्रत्तर के बीच में इिक दवमाि र्ै।

िीसरे चौथे दे वल क में 12 प्रत्तर र्ै । पाँचवें दे वल क में 6 प्रिर र्ै। छठे दे वल क में 5 प्रत्तर र्ै ।
सािवें आठवें दे वल क के 4–4 प्रिर र्ै। िौवें-दसवें में 4 प्रत्तर, ग्यारर्वें-बारर्वें दे वल क में 4
प्रत्तर र्ै। 9 ग्रैवेयक के 9 प्रत्तर िथा अिुत्तर दवमाि का एक प्रत्तर र्ै।
(13+12+6+5+4+4+4+4+9+1)

इस प्रकार उर्ध्हल क में वैमादिक दे विाओों के कुल 62 प्रत्तर र्ै। प्रत्येक प्रत्तर की म टाई 3200
य जि र्ै। दजस प्रकार िरक के प्रत्तर ों में िारदकय ों के आवास र् िे र्ैं , उसी प्रकार वैमादिक के
प्रत्तर ों की भूदम के ऊपर दे विाओों के आवास र् िे र्ैं । प्रत्येक प्रत्तर सवहरत्नमय स्वच्छ एवों दशहिीय
र् िे र्ैं।

सौधमह और ईशाि दे वल क में 965 ग लदवमाि 988 दत्क ण दवमाि 972 चौरस दवमाि र्ै।
पुष्पाशकीणह दवमाि ों की सोंख्या 59, 97 075 र्ै। इस प्रकार द ि ों दे वल क में कुल 60 लाख दवमाि
र्ैं, दजिमें से 32 लाख सौधमह दे वल क के और 28 लाख ईशाि दे वल क के र्ै।

इि सभी दवमाि ों की पृथ्वी ल क स्वभाव से र्ी घि ददध पर रर्ी हुई र्ै।


आयु स्थिदि–दचन्ह–िाम
. 1
● पर्ले दे वल क का दचन्ह मृग र्ै । इिका िाम सौधमह र्ै। सौधमह दे व ों की आयु स्थिदि जघन्यि:
एक पल्य पम और उत्कृष्टि: द सागर पम की र्ै।
सामादिक दे व– 84000
आत्मरक्षक दे व–336000
समभूदम से 1.5 राजू ऊपर
दवमाि – घि ददध के आधार पर
दवमाि – 32 लाख
दवमाि 5 वणह के–
( सफेद, पीला, लाल,िीला, काला )
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2️
● दू सरे दे वल क का दचन्ह मदर्ष र्ै। इिका िाम ईशाि र्ै। ईशाि दे व ों की आयु स्थिदि जघन्यिः
दकोंदचि अदधक एक पल्य पम और उत्कृष्टि: दकोंदचि अदधक द सागर पम की र्ै।
सामादिक दे व–80000
आत्मरक्षक दे व–320000
समभूदम से 1.5 राजू ऊपर
दवमाि – घि ददध के आधार पर
दवमाि – 28 लाख
दवमाि 5 वणह के–
(सफेद, पीला, लाल,िीला,काला)
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3️
● िीसरे दे वल क का दचन्ह वरार् र्ै। इिका िाम सित्कुमार र्ै। सित्कुमार दे व ों की आयु -स्थिदि
जघन्यिः द सागर पम और उत्कृष्टिः साि सागर पम की र्ै।
सामादिक दे व–72000
आत्मरक्षक दे व–288000
समभूदम से 2.5 राजू ऊपर
दवमाि – घिवाि के आधार पर
दवमाि – 12 लाख
दवमाि 4 वणह के–
(सफेद, पीला, लाल,िीला,)
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4️
● चौथे दे वल क का दचन्ह दसोंर् र्ै। इिका िाम मार्ेि र्ै। मार्ेिकुमार दे व ों की आयु स्थिदि
जघन्यि: दकोंदचि अदधक द सागर पम और उत्कृष्टि: दकोंदचि अदधक साि सागर पम की र्ै।
सामादिक दे व–70000
आत्मरक्षक दे व–28000
समभूदम से 2.5 राजू ऊपर
दवमाि घिवाि के आधार पर
दवमाि – 8 लाख
दवमाि 4 वणह के–
(सफेद, पीला, लाल,िीला,)
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5️
● पाँचवें दे वल क का दचन्ह बकरा र्ै। इिका िाम ब्रह्मल क र्ै । ब्रह्मल क दे व ों की आयु स्थिदि
जघन्यि: साि सागर पम और उत्कृष्टिः दस सागर पम की र्ै।
सामादिक दे व–60000
आत्मरक्षक दे व–240000
समभूदम से 3.25 राजू ऊपर
दवमाि – घिवाि के आधार पर
दवमाि – 4 लाख
दवमाि 3 वणह के–(सफेद, पीला, लाल)
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6️
● छठवें दे वल क का दचन्ह मेंढ़क र्ै । इिका िाम लाोंिक र्ै।लान्तक दे व ों की आयु स्थिदि
जघन्यि: दस सागर पम और उत्कृष्टि चौदर् सागर पम की र्ै ।
सामादिक दे व–50000
आत्मरक्षक दे व–200000
समभूदम से 3.5 राजू ऊपर
दवमाि– घि ददध और घिवाि के आधार पर
दवमाि – 50000
दवमाि 3 वणह के–(सफेद, पीला, लाल)
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7️
● सािवें दे वल क का दचन्ह अश्व र्ै। इिका िाम मर्ाशुि र्ै। मर्ाशुि दे व ों की आयु स्थिदि
जघन्यि: चौदर् सागर पम और उत्कृष्टि सिरर् सागर पम की र्ै।
सामादिक दे व–40000
आत्मरक्षक दे व–160000
समभूदम से 3.75 राजू ऊपर
दवमाि– घि ददध और घिवाि के आधार पर
दवमाि – 40000
दवमाि 2 वणह के–(सफेद, पीला)
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8️
● आठवें दे वल क का दचन्ह र्ाथी र्ै। इिका िाम सर्स्रार र्ै। सर्स्रार दे व ों की आयु स्थिदि
जघन्यिः सिरर् सागर पम और उत्कृष्टि अठारर् सागर पम की र्ै।
सामादिक दे व–30000
आत्मरक्षक दे व–120000
समभूदम से 4 राजू ऊपर
दवमाि– घि ददध और घिवाि के आधार पर
दवमाि –6000
दवमाि 2 वणह के–(सफेद, पीला)
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9️➖1️0
● िवें-दसवें दे वल क का दचन्ह सपह र्ै। इिका िाम आिि, प्राणि र्ै। आिि दे व ों की आयु स्थिदि
जघन्यिः अठारर् सागर पम और उत्कृष्टि: उन्नीस सागर पम की र्ै।और प्राणि दे व ों की आयु
स्थिदि जघन्यि: उन्नीस सागर पम और उत्कृष्टि: बीस सागर पम की र्ै।
सामादिक दे व–20000
आत्मरक्षक दे व–80000
समभूदम से 4.5 राजू ऊपर
दवमाि – आकाश के आधार पर
दवमाि – 400
दवमाि का वणह – सफेद
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11 -12
● ग्यारर्वें-बारर्वें दे वल क का दचन्ह वृषभ र्ै । इिका िाम आरण, अच्युि र्ै ।आरण दे व ों की आयु
स्थिदि जघन्यि: बीस सागर पम और उत्कृष्टि: इक्कीस सागर पम की र्ै । और अच्युि दे व ों की
आयु स्थिदि जघन्यिः इक्कीस सागर पम और उत्कृष्टिः बाईस सागर पम की र्ै।
सामादिक दे व –10000
आत्मरक्षक दे व – 40000
समभूदम से 5 राजू ऊपर
दवमाि – आकाश के आधार पर
दवमाि – 300
दवमाि का वणह – सफेद
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लोकान्तन्तक दे व
ये पाँचवे दे वल क के पास रर्िे र्ैं। इिके स्वामी दे व एकभवाविारी र् िे र्ैं अथाह ि् शीघ्र र्ी ल क
का अोंि करिे वाले र् िे से इन्हें ल कास्थन्तक कर्िे र्ैं। ल कास्थन्तक दवमाि ों से असोंख्याि य जि दू री
पर ल क का अोंि र्ै।
पाँचवें ब्रह्मदे वल क के िीसरे ररष्ट िामक प्रिर की ददक्षण ददशा में असोंख्याि य जि की आठ
कृष्णरादज र्ैं। इि कृष्णरादजय ों में घर, दु काि, ग्राम िर्ीों र्ै परन्तु उसमें वैमादिक दे व, गजहिा,
दबजली और बरसाि र्ै। इिमें चि सूयह ग्रर् िक्षत्, िारा इत्यादद का प्रकाश िर्ीों र्ै। इिमें बादर
अपकाय, बादर अदिकाय, बादर विस्पदिकाय िर्ीों र्ै। मात् एक गदि में से दू सरी गदि में जािे हुए
जीव र् सकिे र्ैं। इि आठ कृष्णरादजय ों में आठ अवकाशाोंिर (खाली जगर्) दजिमें आठ
ल काोंदिक दे व ों के दवमाि र्ैं । और एक दवमाि बीच में र्ै । सब दमलाकर कुल 9 ल काोंदिक दे व ों के
दवमाि आवास र्ैं। ये दे व िीथहकर ों क दीक्षा लेिे के दलए प्रेरणा दे िे र्ैं। यर् उिका परम्परा से जीि
व्यवर्ार र्ै। इि सब दे व ों की स्थिदि जघन्य 7 सागर पम की एवों उत्कृष्ट 8 सागर पम की र् िी र्ै ।
➖➖➖➖➖➖➖➖
9 ग्रैवेयक दे व

ग्यारर्वें बारर्वें दे वल क से एक रज्जू ऊपर िव ग्रैवेयक क पर्ली प्रिर र्ै। पर्ली िीि प्रत्तर थ ड़े -
थ ड़े अोंिर पर र्ै। दफर थ ड़ा ज्यादा अोंिर छ ड़कर उसी प्रकार और िीि प्रिर र्ै और दफर थ ड़ा
ज्यादा अोंिर छ ड़कर उसी प्रकार 3 प्रिर र्ै। इस प्रकार 3 प्रिर का एक दत्क, कुल 9 प्रिर के 3
दत्क कर्लािे र्ैं। यर् प्रत्तर द रज्जू लम्बे चौड़े र्ैं।

1.भद्र– प्रथम ग्रैवेयक दे व ों की आयु स्थिदि जघन्यि: बाईस सागर पम और उत्कृष्टि: िेईस
सागर पम की र्ै।

2. सुभद्र– दद्विीय ग्रैवेयक दे व ों की आयु स्थिदि जघन्यि: िेईस सागर पम और उत्कृष्टिः चौबीस
सागर पम की र्ै।

3. सुजाि– िृिीय ग्रैवेयक की आयु स्थिदि जघन्यिः चौबीस


सागर पम और उत्कृष्टि पच्चीस सागर पम की र्ै।

4. सुमािस– चिुथह ग्रैवेयक की आयु स्थिदि जघन्यि: पच्चीस सागर पम और उत्कृष्टिः छब्बीस
सागर पम की र्ै।

5. सुदशहि– पोंचम ग्रैवेयक की आयु स्थिदि जघन्यिः छब्बीस सागर पम और उत्कृष्टिः सिाईस
सागर पम की र्ै।

6. दप्रयदशहि– षष्टम् ग्रैवेयक की आयु-स्थिदि जघन्यिः सत्ताईस सागर पम और उत्कृष्टि: अठ्ठाईस


सागर पम की र्ै।

7. अम घ– सप्तम ग्रैवैयक की आयु-स्थिदि जघन्यि: अठाईस सागर पम और उत्कृष्टिः उििीस


सागर पम की र्ै।

8. सुप्रदिबि– अष्टम ग्रैवेयक की आयु स्थिदि जघन्यिः उििीस सागर पम और उत्कृष्टि: िीस
सागर पम की र्ै।

9. यश धर– िवम ग्रैवेयक की आयु स्थिदि जघन्यि: िीस सागर पम और उत्कृष्टि: इकिीस
सागर पम की र्ै।
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तकन्तितिक दे व
जैसे मिुष्य जादि में दिम्न स्तर के मिुष्य भी दगिे जािे र्ैं , वैसे र्ी दे व ों में भी कुछ घृणास्पद अशुभ
दवदिया वाले, दमथ्यादृदष्ट, अज्ञािी दे व भी र् िे र्ैं ज दकस्थिदषक दे व कर्लािे र्ैं । ऐसे दे व िीि
प्रकार के र्ैं 1. िीि पल्य वाले 2 िीि सागर वाले और 3 िेरर् सागर पम की आयु वाले।
● भविवादसय ों से लगाकर पर्ले दू सरे दे वल क िक िीि पल्य पि की आयु वाले दकस्थिषी र् िे
र्ैं।
● चौथे दे वल क िक िीि सागर पम की आयु वाले दकस्थिदपक दे व र् िे र्ैं ।
● छठ दे वल क िक िेरर् सागर पम की आयु वाले दकस्थिषक दे व र् िे र्ै।
....प्राय दे व गुरु धमह की दिन्दा करिे वाले और िप-सोंयम की च री करिे वाले िथा र्ास्यादद की
रुदच वाले मरकर दकस्थिदषक दे व र् िे र्ैं।
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
पााँच अनुत्तर तवमान
पाोंचवाँ अिुत्तर दवमाि - समिल भूदम से कुछ कम साि रज्जु ऊपर 6½ रज्जु घिाकार दवस्तार में
चार ों ददशाओों में चार दवमाि र्ै। वे ग्यारर् सौ य जि ऊँचे , इक्कीस सौ य जि अगिाई वाले िथा
असोंख्याि य जि के लम्बे-चौड़े र्ैं। इि चार ों दवमाि ों के मध्य में एक लाख य जि लम्बा-चौड़ा
ग लाकार पाँचवा दवमाि र्ै।
उक्त पाँच ों दवमाि सवोत्कृष्ट और सब से ऊपर र् िे के कारण अिुत्तर दवमाि कर्लािे र्ैं। इि
अिुत्तर दवमािवासी दे व ों की अवगार्िा एक र्ाथ प्रमाण र्ै। इिमें से चार दवमाि ों के दे व ों की जघन्य
आयु 31 सागर पम और उत्कृष्ट आयु 33 सागर पम की र्ै। सवाहथहदसस्थि दवमािवासी दे व ों की आयु
33 सागर पम र्ै। इसमें जघन्य-उत्कृष्ट का भेद िर्ीों र्ै । सबकी आयु बराबर र्ै।

1. दवजय–(पूवह में)
2. वैजयोंि–(ददक्षण में)
3. जयोंि–(पदश्चम में)
4. अपरादजि–(उत्तर में)
5. सवाहथहदसि–(मध्य में)
उक्त पाँच ों दवमाि ों में शुि सोंयम का पालि करिे वाले , साधु उत्पन्न र् िे र्ैं। वे दे व वर्ाँ ज्ञािादद में
दिमि रर्िे र्ैं । जब उन्हें दकसी प्रकार का सोंशय र् िा र्ै , िब ये शय्या से िीचे उिरकर मिुष्य
ल क में दवचरिे हुए िीथहकर भगवाि क वन्दिा - िमस्कार करके प्रश्न पूछिे र्ैं । भगवाि उस प्रश्न
के उत्तर क पुदगल ों में पररणि करिे र्ैं। ये दे व अपिे अवदधज्ञाि से उन्हें ग्रर्ण कर लेिे र्ै और
उिके प्रश्न का समाधाि र् जािा र्ै। पाँच अिुत्तर दवमािवासी दे व एकान्त सम्यग्ददृदष्ट र्ैं।
वैमादिक दे व ों के ज छब्बीस प्रकार र्ैं , उिमें बारर् प्रकार के दे व ों में शासक- शादसि व्यविा र्ै।
वर्ाों इि का एकछत् राज्य र्ै। अिुशासि भोंग करिे वाल ों के दलये वर्ाों कठ र दण्ड की व्यविा
र्ै। ऊपर के चौदर् प्रकार ों के दे व ों (9 ग्रैवेयक व 5 अिुत्तर) में अपिी-अपिी व्यविा र्ै , सब
अर्दमि र्ैं। वर्ाों शासक-शादसि का सम्बन्ध िर्ीों र्ै।
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
उत्तर त्तर अदधकिा और र्ीििा

अदधकिा– िीचे-िीचे के दे व ों से ऊपर-ऊपर के... 1.दे व-स्थिदि, 2.प्रभाव, 3.सुख, 4.द् युदि,
5.लेश्या दवशुस्थि, 6.इस्थिय दवषय और 7.अवदध दवषय में अदधक र् िे र्ैं।
र्ीििा– चार बािें ऐसी र्ैं ज िीचे की अपेक्षा ऊपर के दे व ों में कम र् िी र्ै –
1. गदि, 2. शरीर, 3. पररग्रर् और 4. अदभमाि।

प्रश्न– दे व ों के सोंिाि र् िी र्ै या िर्ीों?


उत्तर– िर्ीों। दे विाओों के सोंिाि िर्ीों र् िी। वे ि स्वयों र्ी दे व शय्या में उत्पन्न र् जािे र्ैं। जब
िक आयुष्य पूणह िर्ीों करिे िब िक उस शय्या में दू सरा दे व उत्पन्न िर्ीों र् िा र्ै।
प्रश्न– उिका पालि-प षण कौि करिा र्ै ?
उत्तर– अन्तमुहहूिह में र्ी वे 32 वषह के युवा के समाि बि जािे र्ैं , अि: पालि-प षण की
आवश्यकिा िर्ीों र् िी र्ै।

प्रश्न– क्ा दे विा दवषय सेवि करिे र्ैं ?

उत्तर– र्ाँ। दे व दवषय सेवि करिे र्ैं ।

प्रश्न– दे विा दवषय सेवि दकस प्रकार करिे र्ैं ?


उत्तर– भविपदि, वाणव्योंिर, ज्य दिषी और पर्ले, दू सरे दे वल क के दे व मिुष्य ों की िरर् काया
से कामभ ग भ गिे र्ैं ।
● िीसरे चौथे दे वल क में दे वी के स्पशह मात् से िृस्थप्त र् जािी र्ै।
● पाँचवें-छठें दे वल क में दे वी के रूपदशहि मात् से िृस्थप्त र् जािी र्ै।
● सािवें-आठवें दे वल क में दे वी के शब्द श्रवण मात् से िृस्थप्त र् जािी र्ै।
● िवें से बारर्वें दे वल क में दे वी के दचोंिि मात् से र्ी िृस्थप्त र् जािी र्ै।

प्रश्न– क्ा सभी दे वल क ों में दे दवयाँ उत्पन्न र् िी र्ैं ?


उत्तर– िर्ीों, भविपदि, वाणव्योंिर, ज्य दिषी, पर्ले, दू सरे दे वल क में दे दवयाँ उत्पन्न र् िी र्ैं , आगे
के दे वल क ों में दे दवयाँ उत्पन्न िर्ीों र् िीों, दकन्तु दे दवय ों के स्मरण मात् से पर्ले, दू सरे दे वल क की
दे दवयाँ र्ी वर्ाँ पहुँच जािी र्ैं।

प्रश्न– दे दवयाँ दकििे प्रकार की र् िी र्ैं ?


उत्तर_ द प्रकार की
1. पररग्रर्ीिा– पररणिा स्त्री के समाि, दजस दे वल क में पैदा र् िी र्ै , उस दे वल क के दे व ों के र्ी
काम आिी र्ै।
2. अपररगृर्ीिा– िगरवधु के समाि। ज उस दे वल क के दे व ों के साथ-साथ अन्य दे व ों के भी
काम में आिी र्ै।

प्रश्न– सभी दे व ों के कुल इि दकििे र् िे र्ैं ?

उत्तर– सभी दे व ों के कुल 64 इों द्र र् िे र्ैं।


10 भविपदि के 20 इों द्र,
16 वाणव्योंिर के 32 इों द्र,
ज्य दिषी के 2 इों द्र,
12 दे वल क के 10 इों द्र,
(कुल 64 इों द्र)

प्रश्न– एक समय में दकििे दे व उत्पन्न र् सकिे र्ैं ?


उत्तर– पर्ले दे वल क से आठवें दे वल क िक एक समय में एक साथ एक, द , िीि, सोंख्याि,
असोंख्याि िक जीव उत्पन्न र् सकिे र्ैं। आठवें से आगे के दे वल क ों में सोंख्याि दे विा र्ी उत्पन्न
र् सकिे र्ैं , असोंख्यािा िर्ीों। क् दों क आठवें दे वल क से आगे मिुष्य र्ी जा सकिे र्ैं और मिुष्य
सोंख्याि र्ी र्ैं।
प्रश्न– दे विा कौि-सा आर्ार करिे र्ैं ? - उत्तर– दे विा वैदिय पुद्गल ों का आर्ार करिे र्ैं।

प्रश्न– चार ों जादि के दे व दकस-दकस ल क में रर्िे र्ैं ?


उत्तर–
● भविपदि अध ल क में,
● वाणव्योंिर- ज्य दिषी दिछाल क में,
● वैमादिक ऊर्ध्हल क में।

प्रश्न– क्ा सभी दे विा सम्यग्ददृदष्ट र्ी र् िे र्ैं ?


उत्तर– 5 अिुत्तर दवमािवासी दे व एकान्त सम्यग्ददृदष्ट र् िे र्ैं , दकन्तु शेष सभी दे वल क के दे विाओों
में िीि ों दृदष्टयाँ र् सकिी र्ैं । सम्यग्ददृदष्ट, दमथ्यादृदष्ट एवों दमश्रदृदष्ट। 15 परमाधामी, 3 दकस्थिषी
एकाोंि दमथ्यादृदष्ट र् िे र्ैं।
प्रश्न– पाँच ों अिुत्तर दवमाि ों के दे व समपुण्यवाि र् िे र्ैं ?
उत्तर– िर्ीों। चार अिुत्तर दवमाि ों के दे व ि समाि पुण्य वाले र् िे र्ैं , परन्तु सवाह थहदसि
दवमािवासी दे व सवोत्कृष्ट पुण्यवािी वाले र् िे र्ैं। शास्त्रकार कर्िे र्ैं उिके शरीर क अवगार्िा
कम (1 र्ाथ से कम) र् िी र्ै पर सुख अपार र् िा र्ै। उिके सभी दे व ों की उम्र अजघन्य-
अिुत्कृष्ट 33 सागर पम की र् िी र्ै , दजसमें से 16.5 सागर पम िक एक र्ी करवट में िन्मय
बिकर आत्म-दचोंिि में ििीि रर्िे र्ैं। वे अिकषायी, र्लुकमी एवों एकभवािारी र् िे र्ैं। सभी
दे व अर्दमि र् िे र्ैं। स्वामी सेवक का भाव िर्ीों र् िा।

प्रश्न– क्ा प्रभु मर्ावीर के शासि में क ई जीव सवाहथहदसि में गया?
उत्तर– भगवाि मर्ावीर के शासि में बहुि-सी आत्माएँ उत्कृष्ट करणी करके सवाहथहदसि में गई
र्ैं--
1. काकन्दी के धन्ना जी, 2. राजगृर्ी के शादलभद्र जी आदद।

दे व ों के अन्य ज्ञािव्य दवषय–


1 उच्छवास – जैसे-जैसे दे व ों की आयु स्थिदि बढ़िी जािी र्ै , वैसे-वैसे उच्छवास का समय भी
बढ़िा जािा र्ै। जैसे- दस र्जार वषह की आयु वाले दे व ों का एक एक उच्छवास साि साि स्त क
में र् िा।एक पल्य यम की आयु वाले दे व ों का उच्छवास पृथक्त्व मुहूिह में एक र्ी र् िा र्ै।
सागर पम की आयु वाले दे व ों के दवषय में यर् दियम र्ै दक दजिकी आयु दजििे सागर पम की र्
उिका एक उच्छवास उििे र्ी पक्ष मे र् िा र्ै।
2 आर्ार– आर्ार के दवषय में यर् दियम र्ै दक दस र्जार वषह की आयु वाले दे व एक-एक ददि
बीच में छ ड़कर आर्ार ग्रर्ण करिे र्ैं। पल्य पम की आयु वाले दे व द से लेकर िौ ददि के बाद
आर्ार लेिे र्ैं। सागर पम की स्थिदि वाले दे व ों के दवषय में यर् दियम र्ै दक दजिकी आयु दजििे
सागर पम की र् वे दे व उत्तिे र्जार वषह के बाद आर्ार ग्रर्ण करिे र्ैं । दे व कवलार्ार िर्ीों
करिे दकन्तु र मार्ार करिे र्ैं। अथाहि वे शुभ पुदगल ों क र म ों द्वारा खीचकर िृप्त र् जािे र्ैं ।
3 वेदिा– सामान्यि दे व ों के सािा (सुख-वेदिा) र्ी र् िी र्ै। कभी असािा (दु ः ख- वेदिा) र् जाये
ि वर् अन्तमुहहूिह से अदधक काल िक िर्ीों रर्िी। सािा वेदिा भी लगािार छर् मर्ीिे िक एक
सी रर्कर बदल जािी र्ै।
4 उपपाद– उपपाद अथाहि् उत्पन्न र् िे की य ग्यिा जैिेिर दलोंगी दमथ्यात्वी बारर्वे स्वगह िक र्ी
उत्पन्न र् सकिे र्ैं। जैि दलोंगी दमथ्यात्वी ग्रैवेयक िक जा सकिे र्ैं। सम्यग्ददृदष्ट पर्ले स्वगह से
सवाहथहदसस्थि िक कर्ीों भी उत्पन्न र् सकिे र्ैं। परन्तु यर् अदिवायह िर्ीों दक सभी सम्यग्ददृदष्ट
वैमादिक स्वगह में र्ी उत्पन्न र् । चिुदहश पूवहधारी आराधक सोंयि पाँचवे स्वगह से िीचे उत्पन्न िर्ीों
र् िे।
5. अिुभाव– अिुभाव का अथह र्ै ल क स्वभाव। इसके कारण र्ी सब दवमाि िथा दसिदशला
आदद आकाश में दिराधार अवस्थिि र्ैं। अररर्न्त भगवाि के जन्मादभषेक आदद प्रसोंग ों पर दे व ों
के आसि ों का कस्थम्पि र् िा भी ल कािुभाव र्ी र्ै। आसिकम्प के अिन्तर अवदधज्ञाि के
उपय ग से िीथहकर की मदर्मा क जािकर कुछ दे व उिके दिकट पहुँचकर उिकी स्तुदि,
वन्दिा, उपासिा आदद करके आत्मकल्याण करिे र्ैं। कुछ दे व अपिे र्ी िाि पर प्रत्युत्थाि,
अोंजदलकमह, प्रदणपाि िमस्कार आदद द्वारा िीथहकर की अचाह करिे र्ैं। यर् भी ल कािुमाव का र्ी
कायह र्ै।
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प्रस्तुतत – सुरेश चन्द्र बोरतदया
भीलवाड़ा
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