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अभिस्वीकृति

मैं अपने कक्षा 10 वीं की हिंदी शिक्षिका श्रीमती सलोनी जी के प्रति गहरा आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने मुझे रहीम जी
और कै
र् ला सत्यार् थी केविषय पर अध्ययन करनेकेलिएप्रे रित किया। उनकेमार्ग दर्न
और
शिक्षण ने मुझे हिंदी साहित्य और सामाजिक मुद्दों की गहराईयों को समझने में मदद की। उनकी शिक्षण शैली और धैर्य ने मेरे
लेखन कौशल को निखारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

इसके साथ ही, मैं अपने माता-पिता के प्रति भी हार्दिक धन्यवाद व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने मुझे निरंतर
नैतिक समर्थन और प्रोत्साहन दिया। उनकी प्रेमपूर्ण देखभाल और उत्साहवर्धन के बिना यह
कार्य संभव नहीं हो पाता। उनके सहयोग और मार्गदर्न ने
र्श मुझे हमे शा आगे बढ़ने के लिए
प्रेरित किया है।

आप सभी के सहयोग और समर्थन के लिए मैं हृदय से आभारी हूँ।

धन्यवाद!
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प्रस्तावना

1. अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ाना (रहीम जी)

अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ाना, जिन्हें सामान्यतः रहीम के नाम से जाना जाता है, भारतीय साहित्य और संस्कृति
के एक प्रमुख स्तंभ हैं। वे मुगल सम्राट अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक थे और
अपनी साहित्यिक कृतियों के माध्यम से जनसामान्य के दिलों में एक वि ष्ट स्थान
शि रखते हैं।
रहीम की कविताओं में जीवन की जटिलताओं और मानवीय संवेदनाओं का सरल और सटीक
चित्रण मिलता है। उनका जीवन और कृतित्व विविधता और गहराई से भरा हुआ है, जो आज भी पाठकों
को प्रेरित करता है।

2. कैलाश सत्यार्थी

कैलाश सत्यार्थी एक प्रमुख बाल अधिकार कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने अपने जीवन को बच्चों के अधिकारों की
रक्षा और बाल श्ररम के उन्मूलन के लिए समर्पित किया है। 1980 में शु%रू किए गए 'बचपन बचाओ
आंदोलन' के माध्यम से उन्होंने हजारों बच्चों को शो!षणऔर तस्करी से मुक्त कराया और
उन्हें सुरक्षित और शि क्षितबचपन का अधिकार दिलाया। 2014 में, उन्हें नोबेल शां तिपुरस्कार
से सम्मानित किया गया, जिससे उनके कार्यों को वैश्विक मान्यता मिली। इस पुरस्कार के माध्यम से न के वल उनके प्रयासों की
सराहना हुई, बल्कि बच्चों के अधिकारों की रक्षा के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया।

रहीम जी का जीवन परिचय, कवि व्यक्तित्व और उनकी रचनाओं पर प्रकाश


अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ाना, जिन्हें प्रख्यात रूप से रहीम के नाम से जाना जाता है, का जन्म 17 दिसंबर
1556 को लाहौर में हुआ था। वे मुगल सम्राट अकबर के दरबार के नव रत्नों में से एक थे और उनके
पिता बैरम ख़ान मुगल साम्राज्य के प्रमुख जनरल थे। रहीम का जीवन विभिन्न सामाजिक और धार्मिक
संस्कृ तियों के संगम का प्रतीक था, जिससे उनकी कविताओं में भी बहु-सांस्कृ तिक विविधता झ ल कती है।

रहीम एक बहुमुखी और विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी थे। वे न केवल एक कुशल राजनीतिज्ञ थे, बल्कि एक
महान योद्धा और विद्वान भी थे। हिंदी, फारसी और संस्कृ त भाषाओं पर उनका अद्भुत अधिकार था। उनकी
कविताओं में मानवीय मूल्यों, जीवन की अनिचितताओं तता , और सामाजिक सद्भाव का सुंदर समन्वय देखने
ओंश्चि
को मिलता है। रहीम की कविताओं में नैतिकता, सरलता और सूफियाना विचारधारा का अनूठा मिरणणश्र
मिलता है, जो उन्हें आज भी प्रासंगिक और अद्वितीय बनाता है।

रहीम की प्रमुख रचनाओं में "दोहे" विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। उनके दोहे सरल लेकिन गहन अर्थों से
परिपूर्ण होते हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को सहज और सटीक रूप में प्रस्तुत करते हैं। उनकी कृति
"रहीम सतसई" भी महत्वपूर्ण है, जिसमें 700 दोहे शामिल हैं। रहीम ने अपनी रचनाओं में मानवता,
करुणा, प्रेम और दान लता लता शी
का वर्णन किया है, जिससे उनकी रचनाएँ आज भी प्रेरणादायक हैं और जीवन
को दि देने वाली हैं। उनकी रचनाओं में प्रकृति और मानव जीवन के बीच के गहरे संबंध को भी
बड़े सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया गया है, जिससे पाठकों को जीवन के विभिन्न पहलुओं पर सोचने के लिए
प्रेरित किया जाता है।

रहीम का व्यक्तित्व और उनकी रचनाएँ उनके समय की सामाजिक और सांस्कृ तिक धारा को प्रतिबिंबित
करती हैं। वे न केवल एक कवि थे, बल्कि एक विचारक भी थे जिन्होंने अपने दोहों के माध्यम से समाज
में व्याप्त बुराइयों और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। उनकी रचनाओं में नैतिकता और जीवन
की गहरी समझ देखने को मिलती है, जो आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उस समय
थीं। रहीम के दोहे सादगी में गहराई लिए होते हैं और वे जीवन की जटिलताओं को सहजता से व्यक्त करते हैं।

कैलाश सत्यार्थी के बारे में

कैलाश सत्यार्थी का जन्म 11 जनवरी 1954 को विदिशा, मध्य प्रदेश में हुआ था। वे एक प्रमुख बाल
अधिकार कार्यकर्ता और बाल श्रम के खिलाफ संघर्ष करने वाले समाजसेवी हैं। 1980 में उन्होंने
'बचपन बचाओ आंदोलन' की स्थापना की, जिसका उद्देय श्य बच्चों को बाल श्रम, तस्करी और शोषण से मुक्त
कराना है। उनके नेतृत्व में, इस आंदोलन ने हजारों बच्चों को स्वतंत्रता दिलाई और उन्हें शिक्षा और
सुरक्षित बचपन का अधिकार प्रदान किया।

सत्यार्थी का कार्य राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक मान्यता प्राप्त कर चुका है। उन्होंने
विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में बाल श्रम और बाल तस्करी के मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए
अथक प्रयास किया है। सत्यार्थी के प्रयासों के परिणामस्वरूप, भारत में बाल श्रम के खिलाफ सख्त
कानून बनाए गए और उन्हें प्रभावी रूप से लागू किया गया।

2014 में, कैलाश सत्यार्थी को पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई के साथ नोबेल शांति पुरस्कार से
सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार बाल अधिकारों की रक्षा और बच्चों की शिक्षा के अधिकार के लिए
उनके अप्रतिम योगदान के लिए दिया गया। उन्हें यह पुरस्कार देने का निर्णय अत्यंत उचित
था, क्योंकि उन्होंने न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए
संघर्ष किया है। उनके अभियान ने न केवल हजारों बच्चों को स्वतंत्रता दिलाई, बल्कि समाज में बाल
श्रम के प्रति दृष्टिकोण में भी महत्वपूर्ण बदलाव लाया है।
सत्यार्थी के कार्यों का वैश्विक स्तर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। उनका मानना है कि बच्चों की शिक्षा और
सुरक्षा समाज की प्रगति के लिए अनिवार्य है। उनके प्रयासों ने यह स्पष्ट किया है कि किसी भी समाज
की वास्तविक उन्नति तभी हो सकती है जब उसके सभी बच्चों को सुरक्षित और शिक्षित बचपन मिले। सत्यार्थी
के विचारों ने समाज के विभिन्न वर्गों को बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारों के महत्व को समझने के
लिए प्रेरित किया है। उनके प्रयासों से कई गैर-सरकारी संगठन भी प्रेरित हुए हैं, जिन्होंने बच्चों की
सुरक्षा और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए हैं।

कैलाश सत्यार्थी का संघर्ष और उनकी उपलब्धियाँ हमें यह सिखाती हैं कि एक व्यक्ति की दृढ़ संकल्प और समर्पण
समाज में बड़े बदलाव ला सकता है। उनके जीवन और कार्यों ने यह सिद्ध कर दिया है कि बच्चों के
अधिकारों की रक्षा करना केवल एक कानूनी आवयकता कता श्य
नहीं है, बल्कि यह एक नैतिक जिम्मेदारी भी है।
सत्यार्थी के योगदान ने न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए
एक मजबूत आधार स्थापित किया है। उनका जीवन और कार्य हमें निरंतर प्रेरित करता है कि हम अपने
समाज में बच्चों की भलाई के लिए सदैव प्रयासरत रहें।

निष्कर्ष

रहीम जी और कैलाश सत्यार्थी, दोनों ही अपने-अपने क्षेत्रों में उत्कृष्टता के प्रतीक हैं और
समाज के प्रति उनके योगदान को सदैव याद रखा जाएगा। रहीम जी की साहित्यिक कृतियाँ और कवि
व्यक्तित्व मानवीय संवेदनाओं, नैतिक मूल्यों और सामाजिक सद्भावना का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
उनकी रचनाएँ आज भी पाठकों को प्रेरित करती हैं और साहित्यिक धरोहर के रूप में अनमोल हैं।

दूसरी ओर, कैलाश सत्यार्थी ने बच्चों के अधिकारों की रक्षा और बाल श्रम के उन्मूलन के लिए
अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनके द्वारा शुरू किया गया 'बचपन बचाओ आंदोलन' और उनकी
अद्वितीय मेहनत ने न केवल हजारों बच्चों को शोषण से मुक्त कराया, बल्कि समाज में बाल
अधिकारों के प्रति जागरूकता भी फैलाई। 2014 में उन्हें मिले नोबेल शांति पुरस्कार ने उनके
कार्यों को वैश्विक स्तर पर मान्यता दी और यह साबित किया कि सही दि में प्रयास करने से समाज में
सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।

दोनों महान हस्तियों के जीवन और कार्य हमें यह सिखाते हैं कि साहित्य और सामाजिक सेवा के माध्यम से समाज
में महत्वपूर्ण और स्थायी परिवर्तन संभव है। रहीम जी की साहित्यिक प्रतिभा और सत्यार्थी जी की सामाजिक
सेवा हमें प्रेरित करती है कि हम भी अपने-अपने क्षेत्रों में समर्पण और निष्ठा के साथ कार्य
करें और समाज की भलाई के लिए योगदान दें।

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