पाठ-16 सुश्रुत

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पाठ-16 सश्र

ु त ु

मौखिक
क-वैज्ञानिक अनसु धं ानों से जहाँ एक ओर मानव ने अपनी आयु में वद्
ृ धि की है , वहीं दस
ू री ओर शल्य चिकित्सा
द्वारा भयंकर रोगों पर भी काबू पा लिया है ।

ख-प्राचीन काल में जड़ी-बटि


ू यों द्वारा रोगों का उपचार किया जाता था। यद्
ु ध में घायल सैनिकों के कुचले या
जख्मी अगों का शल्य चिकित्सा द्वारा उपचार किया जाता था।

ग-सश्र
ु त ु शल्य तंत्र को रचना ईसा पर्व
ू छठी शताब्दी में हुई।

घ. सश्र
ु तु संहिता में लगभग एक सौ बीस अध्याय हैं। इस ग्रंथ का लेखन प्रश्नोत्तर रूप में किया गया है । प्रश्न सश्र
ु त ु
द्वारा किए गए हैं जिनके समाधान धन्वंतरि ने दिए हैं।

घ-टे जिस अरब के प्रसिद्ध चिकित्सक थे। उन्होंने अपनी पस्


ु तकों में सश्र
ु त ु को शल्य विज्ञान का आचार्य कहा है ।

• लिखित

क. शल्य चिकित्सा द्वारा हम भयंकर रोगों पर काबू पा सकते हैं। प्राचीन काल में यद्
ु ध में घायल सैनिकों के अंगों
का प्रत्यारोपण
इसी विधि से होता था। आजकल तो इस दिशा में इतनी उन्नति हो चक ु ी है कि एक व्यक्ति के अंग अब दसू रे
व्यक्ति के शरीर
में लगाए जा सकते हैं। आजकल तो बिना चीर-फाड़ के लेजर किरणों द्वारा भी शल्य चिकित्सा होती है ।

ख. भारत में शल्य चिकित्सा का इतिहास हजारों साल परु ाना है । तब संसार के वर्तमान विकसित कहलाए जानेवाले
दे श भी इस पद्धति के बारे में नहीं जानते थे। वैद्य जड़ी-बटि
ू यों से तो रोगों का उपचार करते हो थे, चीर-फाड़ द्वारा
भी इलाज किया जाता था। यद् ु ध में घायल सैनिकों के अंगों को प्रत्यारोपण भी इसी विधि से होता था। ईसा पर्व

छठी शताब्दी में सश्र
ु त ु द्वारा लिखित ग्रंथ- सश्र
ु त ु शल्य तंत्र इसी विषय पर आधारित है । दौ सौ वर्ष बाद के लेखकों
ने इस ग्रंथ को नया रूप प्रदान किया।

ग-प्राचीनकाल में विद्‌यार्थियों को छे द्य-भेद्यव-कर्म सिखाया जाता था। फलों, सब्जियों तरह-तरह के पत ु लों, मत

जानवरों को और-फाड़कर अभ्यास किया जाता था। उन्हें शव की त्वचा बेधकर शरीर की मांसपेशियों, हड्डियों तथा
भीतरी भागों का अध्ययन
कराया जाता था।
घ. एक कुशल चिकित्सक बनने के लिए पस् ु तकीय ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक प्रयोग द्वारा प्राप्त ज्ञान होना
भी अनिवार्य है ।

ङ-सश्र
ु तु ने सश्र
ु त ु शल्य तंत्र की रचना की। इसका विषय शल्य चिकित्सा था। इसमें लगभग सौ चिकित्सा यंत्रों का
वर्णन किया गया है । शल्य चिकित्सा के लिए बारीक सत ू और रे शम के धागों का प्रयोग किया जाता था। विभिन्न
अंगों को शल्य चिकित्सा, पट्टियाँ बाँधने और मरहम लगाने को विस्तत ृ जानकारी के साथ-साथ अंग-प्रत्यारोपण
की भी इसमें चर्चा की गई है ।

आशय स्पष्टीकरण-
जैसे विषैले सर्प के विष से व्यक्ति का बचना असंभव है उसी प्रकार अधरू े ज्ञानवाला चिकित्सक न तो व्यक्तिय के
रोग का सही अंदाज़ा लगा सकता है और न उसको सही चिकित्सा कर सकता है । हाँ व्यक्ति को मत्ृ यु के मँह ु में
अवश्य पहुँचा सकता है ।

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