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Class 7th Ncert Science Notes in Hindi_watermark
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अध्याय 1 : पादपों में पोषण | Nutrition in Plants
1.वसा
2.प्रोटीन
3.ववटाभमन
4.कार्बोहाइड्रेट
5.खतनज लवण
❍ पोषण :- सजीवों द्वारा भोजन ग्रहण करने एवं इसके उपयोग की ववधि को पोषण कहते
हैं।
❍ स्वपोषी :- जजसमें जीव अपना भोजन स्वयं संश्लेवषत करते हैं ऐसे पादपों को स्वपोषी
कहते हैं।
जैसे :- पेड़- पौिे
1. ित
ृ जीवी :- जीव क्रकसी मत
ृ एवं ववघटटत पदाथों से पोषक तत्व प्राप्त करते हैं , मत
ृ जीवी
पोषण कहलाती है ।
2. परजीवी :- जीव अपना भोजन अन्य जीवों (परपोषी) के र्बनाए भोजन पर तनभयर रहते हैं,
परजीवी पोषण कहलाती है ।
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जैसे :- अमरर्बेल
❍ कीटभक्षी :- ऐसे पादप भी है , जो कीटों को पकड़ते हैं तथा उन्हें पचा जाते है ऐसे
कीटभक्षी पादप कहलाते हैं।
कार्बयन डाइऑक्साइड + जल (+ सय
ू य के प्रकाश + क्लोरोक्रफल) → कार्बोहाइड्रेट + ऑक्सीजन
❍ खाद्य फैक्ट्री :– केवल पादप ही ऐसे जीव हैं , जो जल , कार्बयनडाइऑक्साइड एवं खतनज
की सहायता से अपना भोजन र्बना सकते हैं ।
❍ रन्ध्र :- पवियों की स्तनों पर छोटे -छोटे तछद्र पाए जाते है जजससे गैसों का आदान-प्रदान
होता है । ऐसे तछद्रों को रन्र कब्ते है ।
❍ क्ट्लोरोक्रफल :- पवियों में एक हरा वणयक होता है जजसे क्लोरोक्रफल कहते हैं।
❍ खाद्य संश्लेषण :- हरे पादप प्रकाश संश्लेषण प्रिम द्वारा अपना खाद्य स्वयं संश्लेवषत
करते हैं। -\
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❍ हरे पादप कार्बयन डाइऑक्साइड, जल एवं खतनज जैसे सरल रासायतनक पदाथों का उपयोग
खाद्य संश्लेषण के भलए करते हैं।
❍ शैवाल :- आपने गीली दीवारों पर , तालार्ब अथवा ठहरे हुए जलाशय में हरे अवपंकी ( काई
जैसे पादप ) दे खें होंगे। ये सामान्यतः कुछ जीवों की वद्
ृ धि के कारण र्बनते हैं , जजन्हें शैवाल
कहते हैं।
❍ राइजोबबयि :- वायम
ु ण्डलीय नाइट्रोजन को ववलय पदाथों में पररवततयत कर दे ते हैं।
1.वसा
2.प्रोटीन
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3.ववटाभमन
4.कार्बोहाइड्रेट
5.खतनज लवण
❍ प्राणणयों के पोषण िें पोषक तत्त्वो की आवश्यकता आहार ग्रहण करने की ववधि और शरीर
में इसके उप्योगर्बकी ववधि सजममभलत हैं।
❍ पाचन :- जटटल खाद्य पदाथों का सरल को सरल में रूप में र्बदल दे ते है , इस प्रिम को
पाचन कहते हैं।
❍ प्राणणयों िें पोषण की आवश्यकताओं के भलए भोजन अंतग्रयहण की ववधियााँ एवं शरीर मे
इनका उपयोग सजममभलत है ।
आहार नाल तर्था स्रावी ग्रम्न्ध्र्थयााँ संयक्ट्त सेप से िानव के पाचन तंर का ननिायण करती हैं।
1. मुख-गुटहका
2. ग्रभसका
3. आमाशय
4. क्षुद्रांत्र (छोटी आूँत )
5. र्बह
ृ दांत्र (र्बड़ी आूँत )
6. गुदा
○ ये सभी भाग भमलकर आहार नाल ( पाचन नली ) का तनमायण करते हैं।
❍ पाचन तंर :- पाचक रस जटटल पदाथों को सरल रूप में र्बदल दे ते हैं।
❍ अंतग्रयहण :- भोजन के अंतग्रयहण मुख द्वारा होता है । आहार को शरीर के अंदर लेने की
क्रिया अंतग्रयहण कहलाती हैं।
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❍ वयस्कों के पास आितौर पर 32 दांत होते हैं
(1) कं ृ तक या छे दक दांत :- दांत के प्रकार में कृतंक दांत तेज िार वाले छै नी जैसे चौड़े होते
हैं और भोजन के पकड़ने, काटने या कुतरने का कायय करती है । हर जर्बड़े (Jaw) में इनकी
संख्या चार होती है ।
(2)भेदक या रदनक दांत :- दांत के प्रकार (Types of teeth) में रदनक दांत नुकीले दांत होते
हैं और भोजन को चीरने या फाड़ने का कायय करती है । प्रत्येक जर्बड़े में दो की संख्या में होते
हैं।
(3) अग्रचवणयक दांत :- दांत के प्रकार में अग्रचवणयक दांत क्रकनारे पर चपटे , चौकोर व रे खादार
होते हैं। इनका कायय भोजन को चर्बाना है और ये हमारे प्रत्येक जर्बड़े में 4 की संख्या में होते
हैं।
(4) चवयणक दांत :- दांत के प्रकार (Types of teeth) में चवयणक दांत के भसर चौरस व तेज
िार के होते हैं। इसका मुख्य कायय भोजन को चर्बाना है और प्रत्येक जर्बड़े में छह की संख्या
में होते
❍ िख एवं िख-गटहका :- भोजन का अंतग्रयहण मुख द्वारा होता है । आहार को शरीर के अंदर
लेने की क्रिया अंतग्रयहण कहलाती हैं।
○ जीभ पर स्वाद-कभलकाएूँ होती हैं, जजनकी सहायता से हमें ववभभन्न प्रकार के स्वाद का पता
चलता है ।
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❍ भोजन नली :-ग्रासनली (ईसॉफगस) लगभग 25 सेंटीमीटर लंर्बी एक संकरी पेशीय नली
होती है जो मुख के पीछे गलकोष से आरं भ होती है , सीने से थोरे भसक डायफ़्राम से गुज़रती है
और उदर जस्थत हृदय द्वार पर जाकर समाप्त होती है । ग्रासनली, ग्रसनी से जुड़ी तथा नीचे
आमाशय में खल
ु ने वाली नली होती है ।
❍ आिाशय :- आमाशय, ग्रास नली और छोटी आंत के र्बीच में जस्थत होता है । यह छोटी
आंतों में आं…
❍ अग्नन्ध्याशय :- हल्के पीले रं ग की र्बड़ी ग्रजन्थ है , जो आमाशय के ठीक नीचे जस्थत होती
हैं।
○ ‘ अग्नन्याशतयक रस ‘ , कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन पर क्रिया करके सरल रूप में पररवततयत कर
दे ता है ।
❍ क्षद्ांर िें अवशोषण :- भोजन के सभी घटकों का पाचन क्षुद्रांत्र में पूरा हो जाता है ।
○ अवशोषण :- पचा हुआ भोजन अवशोवषत होकर क्षुद्रांत्र की भीतत से रुधिर वाटहकाओं में
जाने की प्रक्रिया अवशोषण कहलाता है ।
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❍ बह
ृ दांर (बड़ी आाँत ) :- यह लगभग 1.5 मीटर लंर्बी होती हैं।
इसका कायय एवं कुछ लवणों का अवशोषण करना है ।
❍ घास खाने वाले जंतओं िें पाचन :- गाय , भैंस तथा घास खाने वाले जन्तु
○ सेिेन :- ये जन्तु पहले घास को जल्दी-जल्दी तनगलकर आमाशय के एक भाग में भंडाररत
कर लेते है । यह भाग रूमेन ( प्रथम आमाशय ) कहलाता है ।
2. र्बाद में जन्तु इसको छोटे वपंडको के रूप में पुनः मुख में लाता है तथा जजसे वह चर्बाता
रहता है जजसे रोमन्थन (जुगाली करना ) कहते है ।
○ अमीर्बा जलाशयों में पाया जाने वाला एककोभशक जीव है ।अमीर्बा के कोभशका में एक
कोभशका णिल्ली होती है ।
○ पादाभ ( कृत्रत्रम पाूँव ) जजससे ये गतत करते है एवं भोजन पकड़ते हैं।
○ खाद्य िानी में ही पाचक रस स्राववत होते है जजससे खाद्य पदाथय को सरल रूप में र्बदल
दे ते है ।
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अध्याय 3.रे शों से वस्त्र तक (From Fiber To
Fabric)
तंत :- एक प्रकार से रे शे होते है जजससे तागे या िागे र्बनाये जाते हैं।
प्राकृनतक तंत :- जो तंतु पादपों या जंतुओं से प्राप्त होते है उन्हें प्राकृततक तंतु कहते है ।
संम्श्लष्ट तंत :– रासायतनक पदाथों द्वारा र्बनाये गए तंतु को संजश्लष्ट तंतु कहते है ।
❍ रे शे :- जंतओ
ु ं से प्राप्त क्रकए जाने वाले रे शों को जांतव रे शे कहते हैं।
❍ ऊन :- जजन जंतओ
ु ं के शरीर र्बालों से ढके होते हैं। ऊन रोयेंदार रे शों से प्राप्त की जाती है ।
जैसे – भेड़ , र्बकरी , याक , लामा , ऊूँट आटद।
• भेड़ो की कुछ नस्लों में केवल तंतुरूपी मुलायम र्बाल ही होते हैं।
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❍ वरणात्िक प्रजनन :- तंतुरूपी मुलायम र्बालों जैसे ववशेष गुणयुक्त भेड़ें उत्पन्न करने के
भलए जनकों के चयन की प्रक्रिया ‘ वरणात्मक प्रजनन ‘ कहलाती है ।
❍ ऊन प्रदान करने वाले जंतु :- हमारे दे श के ववभभन्न भागों में भेड़ो की अनेक नस्लें पाई
जाती हैं।
○ अंगोरा र्बकरी जो जममू एवं कश्मीर के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
○ दक्षक्षण अमेररका में पाए जाने वाले लामा और ऐल्पेका से भी ऊन प्राप्त होती है ।
❍ पश्िीना शॉलें :- कश्मीरी र्बकरी की त्वचा के तनकट मुलायम र्बाल ( फ़र ) होते हैं , इनसे
र्बेहतरीन शॉलें र्बनाई जाती , जजन्हें पश्मीना शॉलें कहते हैं।
○ भेड़ पालन :–जममू और कश्मीर , टहमाचल प्रदे श , उिराखंड पवयतीय क्षेत्रों में
❍ ऊन की कटाई :- भेड़ के र्बालों को त्वचा को पतली परत के साथ शरीर से उतार भलया
जाता है ।
❍ अभभिाजयन :- त्वचा सटहत उतारे गए र्बालों को टूँ क्रकयो में डालकर अच्छी तरह से िोया
जाता है , जजससे उनकी धचकनाई , िल
ू और गतय तनकल जाए यह प्रिम अभभमाजयन कहलाता
है ।
प्रिम :- ऊन की कटाई — अभभमाजयन — छूँ टाई — र्बर की छूँ टाई — रं गाई — रीभलंग
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❍ रे शि :- रे शम (भसल्क) के रे शे भी ‘ जांतव रे शे ‘ होते है । रे शम के क्रकट रे शम के फ़ाइर्बरो
को र्बनाते हैं।
○ प्यप
ू ा :- कुछ कायान्तरण करने वाले कुछ कीटों के जीवन-चि की एक अवस्था का नाम
है । यह कायान्तर के दौरान होने वाली चार अवस्थाओं में से एक अवस्था है ।
इन कीटों के कायान्तरण की चार अवस्थाएं ये हैं – भ्रूण (embryo), डडंभ (larva), प्यूपा तथा
पूणय कीट या पूणक
य (imago)।
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अध्याय 4. ऊष्मा | Heat
क्रकसी पदाथय के गमय या ठं डे होने के कारण उसमें जो ऊजाय होती है उसे उसकी ऊष्मीय
ऊजाय कहते हैं। इसका मात्रक भी जल
ू (Joule) होता है पर इसे कैलोरी (Calorie) में भी व्यक्त
करते हैं।
र्थिायिीटर :- ताप मापने के भलए उपयोग की जाने वाली यजु क्त को तापमापी ( थमायमीटर )
कहते है ।
○ डॉक्टरी थमायमीटर :- जजस तापमापी से हम अपने शरीर के ताप को मापते हैं उसे डॉक्टरी
थमायमीटर कहते हैं।
○ सेजल्सयस स्केल :- ताप मापने के स्केल जजसे C द्वारा दशायते हैं। डॉक्टरी थमायमीटर से
हम 35 C से 42 C तक के ताप ही माप सकते हैं।
○ आपके शरीर का ताप को सदै व इसके मात्रक C के साथ व्यक्त करना चाटहए। मानव शरीर
का सामान्य ताप 37° क्रक होता है ।
○ मानव शरीर का ताप सामान्यतः 35 C से कम तथा 42 C से अधिक नही होता।
इसभलए थमायमीटर का पररसर 35 C से 42 C है ।
○ ऊष्िा का स्र्थानांतरण :- जर्ब क्रकसी र्बतयन को ज्वाला पर रखते हैं तो वह तप्त हो जाता
है । ऊष्मा र्बतयन से पररवेश की ओर स्थानांतररत हो जाती है । ऊष्मा सदै व गमय वस्तु की
अपेक्षाकृत ठं डी वस्तु की ओर प्रवाटहत होती है ।
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○ चालन :- वह प्रिम जजसमें ऊष्मा क्रकसी वस्तु के गमय भसरे से ठं डे भसरे की ओर
स्थानांतररत होती है , चालन कहलाता है ।
○ चालक :- जो पदाथय ऊष्मा को आसानी से जाने दे ते हैं उन्हें उष्मा का चालक कहते हैं।
○ कचालक :- जो पदाथय अपने उष्मा को आसानी से नही जाने दे ते , उन्हें उष्मा का कुचालक
कहते हैं।
○ संवहन :- द्रवों तथा गैसों में ऊष्मा संवहन द्वारा स्थानांतररत होती हैं।
○ सिद् सिीर :- समद्रु की ओर से आने वाली वायु को समद्रु समीर कहते हैं। तटीय क्षेत्रों
में टदन के समय स्थल शीघ्र गमय हो जाता है ।
○ र्थल सिीर :- स्थल से ठं डी वायु समुद्र की ओर र्बहती है जजसे थल समीर कहते है । रात्रत्र में
समुद्र का जल िीमी गतत से ठं डा होता है।
• सभी गमय वपंड ववक्रकरणों के रूप में ऊष्मा ववक्रकररत करते हैं।
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अध्याय 5: अमल, क्षारक और लवण | Acids, Bases
and Salts
❍ अमल :- अमल स्वाद में खट्टा होता है । पदाथों का स्वाद खट्टा इसभलए होता है ,क्योंक्रक
इनमें अमल ( एभसड ) होते है । एभसड शब्द की उत्पवि “लैटटन शब्द एभसयर ” से है जजसका
अथय है खट्टा ।
❍ क्षार :- क्षार स्वाद में कड़वा होता है । ऐसे पदाथय , जजनका स्वाद कड़वा होता है और जो
स्पशय करने पर सार्बन
ु जैसे लगते हैं , क्षारक कहलाते हैं।
❍ सच
ू क :- कोई पदाथयअमलीय अथवा क्षरकीय है इसका परीक्षण करने के भलए ववशेष प्रकार
के पदाथों का उपयोग क्रकया जाता है ।
○ उदासीन ववलयन :- ऐसे ववलयन , जो लाल अथवा नीले भलटमस पत्र के रं ग को पररवततयत
नही करते , उदासीन ववलयन कहलाते हैं। ऐसे पदाथय न तो अमलीय होते हैं और न ही
क्षारकीय ।
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उदाहरण :- हाइड्रोक्लोररक अमल (HCI ) + सोडडयम हाईड्रॉक्साइड (NaOH ) –> सोडडयम
क्लोराइड ( NaC1) + जल (H2O) ) + (उष्मा)
○ भोजन के पाचन में हमारी सहायता करता है , लेक्रकन आमाशय में अमल की आवश्यकता
से अधिक मात्रा होने से अपाचन होता है ।
○ चींटी का डंक :- जर्ब चींटी काटती है तो यह त्वचा में अमलीय डाल दे ती है । ढं क के प्रभाव
को नमीयुक्त खाने का सोडा (सोडडयम है ड्रोजनककार्बोनेट ) अथवा कैलेमाइन ववलयन मलकर
उदासीन क्रकया जाता है ,जजसमें जजंक कार्बोनेट होता है ।
○ िद
ृ ा उपचार :- यटद मद
ृ ा अत्यधिक अमलीय अथवा अत्यधिक क्षारकीय हो , तो पादपों (
पौिों ) की वद्
ृ धि अच्छी नही होती । मद ृ ा अत्यधिक अमलीय होने पर , उसे त्रर्बना र्बि
ु ा हुआ
चन
ु ा ( कैजल्शयम हाईड्रॉक्साइड ) जैसे क्षारकों से उपचाररत क्रकया जाता है
○ यटद मद
ृ ा क्षारकीय हो , तो इसमें जैव पदाथय भमलाए जाते हैं। जैव पदाथय ( कमपोस्ट खाद
) मद
ृ ा में अमल तनमूक्तय करते हैं।
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अध्याय 6 : भौततक एवं रासायतनक पररवतयन |
Physical and Chemical changes
❍ दै तनक जीवन में हमें अपने आस-पास र्बहुत से पररवतयन टदखाई दे ते हैं। इन पररवतयन में
एक या अधिक पदाथय सजममभलत हो सकते हैं।
○ भौनतक पररवतयन :- वह पररवतयन , जजसमें क्रकसी पदाथय के भौततक गुणों में पररवतयन हो
जाता है , भौततक पररवतयन कहलाता है ।
○जर्ब लोहा पानी तथा ऑक्सीजन के संपकय में आता है तो जंग लग जाता है । हवा
या ऑक्सीजन की अनुपजस्थतत में लोहे में जंग नहीं लगता।
○ लोहे के चाकू, हथोड़े, पें चकस या क्रकसी अन्य औज़ार को क्रकसी नमी वाले स्थान में कुछ
टदन रख टदया जाये तो इन चीज़ों पर कत्थई (Brown) रं ग क्रक एक परत सी जम जाती है ।
इसी को जंग कहते हैं। जंग वास्तव में लोहे का ऑक्साइड है । इसका रासायतनक सूत्र Fe2O3.
पें ट करने से लोहे के पदाथय का ऊपरी भाग छुप जाता है । वह वायु के साथ सीिे संपकय में
नहीं आता जजसके कारण उसमें जंग नहीं लगता। इसभलए पें ट करने से हम लोहे के उस
पदाथय को जंग लगने से र्बचा सकते हैं
• रं ग में पररवतयन ।
• क्रकसी गैस का र्बनना।
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• ध्वतन का उत्पन्न होना।
• क्रकसी नए गंि का र्बनना।
• उष्मा , प्रकाश अथवा क्रकसी अन्य प्रकार के ववक्रकरण।
○ क्रिस्टलीकरण :- क्रकसी पदाथय के शुद्ि क्रिस्टल उनके ववलयन से प्राप्त क्रकए जा सकते हैं।
यह प्रक्रिया क्रिस्टलीकरण कहलाती हैं।
❍ दै ननक िौसि की ररपोटय में वपछले 24 घण्टों के ताप , आद्रय ता और वषाय के र्बारे में
जानकारी होती है ।
○ िौसि :- क्रकसी स्थान पर तापमान , आद्रय ता , वषाय वेग आटद के संदभय में वायम
ु ंडल की
प्रततटदन की पररजस्थतत उस स्थान का मौसम कहलाती है । तापमान , आद्रय ता और अन्य
कारक मौसम के घटक कहलाते है ।
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○ मौसम की ररपोटय भारत मौसम ववज्ञान ववभाग द्वारा तैयार की जाती हैं।
○ मौसम की ररपोटय के भलए अधिकतम-न्यूनतम तापमापी का उपयोग क्रकया जाता है ।
○ मौसम में सभी पररवतयन सूयय के कारण होते है ।
❍ जलवाय :- क्रकसी स्थान पर अनेक वषों में मापी गई मौसम की औसत दशा को जलवायु
कहते हैं।
○ आद्य ता :- वायु में क्रकसी भी समय जलवाष्प मात्रा को ‘आद्रय ता ‘कहते है । जर्ब वायु में
जलवाष्प की मात्रा अत्यधिक होती है , तो उसे आद्रय कहते है ।
❍ जलवाय और अनकूलन :- जंतु उन जस्थततयों में जीने के भलए अनुकूभलत होते हैं , जजनमें
वे रहते हैं।
○ अनकूलन :- जजन ववभशष्ट संरचनाओं अथवा स्वभाव की उपजस्थतत क्रकसी पौिे अथवा जंतु
को उसके पररवेश में रहने के योग्नय र्बनाती है , अनुकूलन कहलाता हैं।
○स्र्थलीय आवास :- स्थल ( जमीन ) पर पाए जाने वाले पौिों एवं जंतुओं के आवास को
स्थलीय आवास कहते हैं।
उदाहरण :- वन , घास के मैदान , मरुस्थल , तटीय एवं पवयतीय क्षेत्र आटद।
○ जलीय आवास :- जलाशय , दलदल , िील , नटदयाूँ , एवं समुद्र , जहाूँ पौिे एवं जंतु जल में
रहते हैं , जलीय आवास कहलाता है ।
○ अनकूभलत :- जंतु उन पररजस्थततयों के भलए अनुकूभलत होते हैं , जजनमें वह वास करते हैं।
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○ चरि जलवायवी :- उष्णकटटर्बंिीय और रव
ु ीय क्षेत्र , जहाूँ की चरम जलवायवी पररजस्थततयाूँ
होती हैं।
○ रवीय क्षेर :- रव
ु ों में वषय के छः महीने तक सूयायस्त नहीं होता है शेष छः महीने तक
सूयोदय नहीं होता है ।
○ रवीय क्षेर :- जंतु कुछ ववशेष गुणों के कारण जैसे , शरीर पर श्वेत (सफेद) फर , सूंघने
की तीव्र शजक्त , त्वचा के नीचे वसा की परत , तैरने और चलने के भलए चौड़े और लंर्बे
नखरों आटद के कारण अत्यधिक सदय जलवायु के भलए अनुकूभलत होते है ।
○ सटदय यों में तापमान सामान्यतः 15 C से अधिक रहता है । गभमययों में तापमान 40 C से
अधिक हो जाता है । इन क्षेत्रों में प्रचरु मात्रा में वषाय होती है ।
○ सतत गमी और वषाय के कारण इस क्षेत्र में ववभभन्न प्रकार के पादप और जंतु पाए जाते
हैं।
○ उष्णकटटर्बंिीय वषायवनों में जंतु इस प्रकार अनुकूभलत होते हैं क्रक उन्हें अन्य प्रकार के
जंतुओं से भभन्न भोजन और आ्रयय की आवश्यकता होती है , ताक्रक उनमें परस्पर स्पिाय
कम से कम हो।
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○ उष्णकटटर्बंिीय वषायवनों में रहने वाले जंतुओं के कुछ अनुकूलनों में वक्ष
ृ ों पर आवास ,
मजर्बूत पूँछ
ू का ववकास , लंर्बी और ववशाल चोंच , चटख रं ग , तीखे पैटनय/प्रततरूप , तीव्र स्वर
ध्वतन ( तेज आवाज़ ) , फलों का आहार , सुनने की संवेदनशील शजक्त , तीव्र दृजष्ट , मोटी
त्वचा ( खाल ) , परभक्षक्षयों से र्बचने के भलए छद्मावरण की क्षमता आटद सजममभलत हैं।
अध्याय 8 : पवन , तफ़
ू ान और चिवात | Wind,
Storm and Cyclone
❍ वाय दाब :-पथ्ृ वी की सतह पर वायु के भार द्वारा लगाया गया दार्ब , वायु दार्ब
कहलाता है । हमारे आस-पास की वायु दार्ब डालती है ।
❍ पवन :- उच्च दार्ब क्षेत्र से तनमन दार्ब क्षेत्र की ओर वायु की गतत को ‘ पवन ‘ कहते
हैं। पवन सदै व अधिक वायु दार्ब वाले क्षेत्र से कम वायु दार्ब वाले क्षेत्र की ओर गतत करती
है । गनतशील वाय पवन कहलाती है ।
○ पवन का वेग र्बढ़ने से वायु दार्ब वास्तव में कम हो जाता है । गमय क्रकए जाने पर वायु का
प्रसार होता है । गमय वायु , ठं डी वायु की अपेक्षा हल्की होती है ।
भम
ू ध्यरे खीय और रव
ु ीय क्षेत्रों का आसमान रूप से गमय होना। थल और जल का आसमान
रूप से गमय होना। गमय मानसन
ू हवाएूँ अपने साथ जलवाष्प लाती हैं , जजससे वषाय होती है ।
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❍ तड़ड़त झंझावात :- िंिा के साथ तडड़त (त्रर्बजली) भी धगरे , तो उसे तडड़त िंिावात कहते
है । कम वायम
ु ंडलीय दवार्ब के क्षेत्र के चारों ओर गमय हवा की तेज आंिी चलती वही चिवात
कहलता है ।
○ दक्षक्षणी गोलाद्यि में इन गमय हवाओं को चिवात के नाम से जानते हैं और ये घड़ी की सुई
के चलने की टदशा में चलती हैं।
○उिरी गोलाद्यि में इन गमय हवाओं को हरीकेन या टाइफून कहा जाता है । ये घड़ी की सुई के
ववपरीत टदशा में घूमती हैं।
❍ टॉरनेडो :- टॉरनेडो गहरे रं ग के कीपाकर र्बादल होते है । इनकी कीप जैसी संरचना आकाश
से पथ्
ृ वी तल की ओर आती हुई प्रतीत होती हैं। उपग्रहों तथा राडार जैसी उन्नत प्रौद्योधगकी
की सहायता से चिवातों को मॉतनटर करना आसान हो गया है ।
अध्याय 9 मद
ृ ा | Soil
❍ िद
ृ ा :- पथ्ृ वी की ऊपरी परत है जो पौिों की वद्ृ धि के भलए प्राकृततक माध्यम प्रदान
करता है । एक सेंटीमीटर मद
ृ ा को र्बनने में सैकड़ों वषय लग जाता है । तथा इसके त्रर्बना इस
पथ्
ृ वी पर जीवन का अजस्तत्व असंभव है । मद
ृ ा का तनमायण चट्टानों से प्राप्त खतनजों और
जैव पदाथय तथा भूभम पर पाए जाने वाले खतनजों से होता है ।
❍ िद
ृ ा की परत :- ह्यूमस , जल मतृ तका , र्बालू , र्बजरी आटद।
○ ह्यूिस :- मद
ृ ा में उपजस्थत सड़े-गले जैव पदाथय ह्यूमस कहलाते हैं।
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○ अपक्षय :- पवन , जल और टहम की क्रिया से चट्टानों के टूटने पर मदृ ा का तनमायण
होता है । यह प्रिम अपक्षय कहलाता है ।
○ िद
ृ ा पररच्छे टदका :- क्रकसी स्थान की मद
ृ ा पररच्छे टदका वहाूँ की मद
ृ ा की ववभभन्न परतों का
पररच्छे द होती है ।
○ शीषयिद
ृ ा :- सर्बसे ऊपर वाली संस्तर-जस्थतत सामान्यतः गहरे रं ग की होती है , क्योंक्रक यह
ह्यूमस और खतनजों से समद्
ृ ि होती है ।
• शीषयमद
ृ ा कृभमयों , कृन्तकों , छछूंदर , अनेक जीवों को आवास प्रदान करती है । छोटे पादपों
की जड़े पूरी तरह से शीषयमद
ृ ा में ही रहती हैं।
○ िध्यपरत :- शीषयमद
ृ ा से नीचे की परत में ह्यूमस कम होती है , लेक्रकन खतनज अधिक
होते हैं। यह परत सामान्यतः अधिक कठोर और अधिक संहत होती है ।
○ आिार शैल :- जो दरारों और ववदरोंयुक्त शैलों के छोटे ढे लों की र्बनी होती है । इसे फावड़े से
खोदना कटठन होता है ।
❍ िद
ृ ा :- शैलों कणों और ह्यम
ू स का भम्रयण मद
ृ ा कहलाता है । र्बैक्टीररया , पादप मल
ू ,
और केंचए
ु आटद जीव भी मद
ृ ा के महत्वपण
ू य अंग होते है ।
○ बलई िद
ृ ा :- मद
ृ ा में र्बड़े कणों के अनप
ु ात अधिक होता है , तो वह र्बलई
ु मद
ृ ा कहलाती है ।
○ िण्ृ िय िद
ृ ा :- मद
ृ ा में र्बारीक (सूक्ष्म) कणों का अनुपात अधिक होता है , तो मण्ृ मय मद
ृ ा
कहलाती है ।
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○ दिती िद
ृ ा :- मद
ृ ा के र्बड़े और छोटे कणों की मात्रा लगभग समान होती है , तो यह दम
ु ती
मद
ृ ा कहलाती है ।
○ िवृ िका िद
ृ ा :– मद
ृ ा के कण र्बहुत छोटे होने के कारण परस्पर जुड़े रहते हैं ।
○ गाद :- गाद मद
ृ ा कणों के भम्रयण होती है ।
○ धचकनी भिट्टी :- मवृ िका भमट्टी का उपयोग र्बतयनों , णखलौनों और मूततययों को र्बनाने के
भलए क्रकया जाता है ।
○ िद
ृ ा के गण :-
जल की मात्रा (ml)
अंत:स्त्रवण ( ml/min)=———
अंत:स्त्रवण (Min)
○ पवन , वषाय , ताप , प्रकाश , और आद्रय ता द्वारा प्रभाववत होता है । जलवायु कारक भी , जो
मद
ृ ा पररच्छे टदका और मद
ृ ा की संरचना को पररवतयन लाते हैं। मद
ृ ा के घटक क्रकसी क्षेत्र ववशेष
में उगने वाली वनस्पतत तथा फ़सलो की क्रकस्म का तनिायरण करते हैं।
❍ िद
ृ ा और फसलें :- मतृ तका (धचकनी भमट्टी ) और दम ु ट मद ृ ा गें हूूँ , चना , और िान को
उगाने के भलए उपयक्ु त है । कपास को र्बलई
ु दम
ु ट भमट्टी में उगाया जाता है । जल की
तनकासी आसानी से हो जाती और पयायप्त पररमाण में वायु को िारण करती हैं।
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अध्याय 10 : जीवों में श्वसन | Respiration in
Living Organisms
❍ श्वसन :- सभी जीवों के जीववत रहने के भलए अतनवायय है । यह जीव द्वारा भलए गए
भोजन से ऊजाय को तनमुयक्त करता है ।
○ श्वसन द्वारा :- जो वायु शरीर के अंदर लेते हैं , उसमें उपजस्थत ऑक्सीजन का उपयोग
ग्नलूकोस को कार्बयन डाइऑक्साइड और जल में ववखंडन के भलए क्रकया जाता हैं, यह प्रिम में
ऊजाय तनमुक्
य त होती है ।
○ जीव :- जीव की प्रत्येक कोभशका पोषण , पररवहन , उत्सजयन , जनन जैसे कायों में भूभमका
तनभाती है ।
○ कोभशकीय श्वसन :- कोभशका में भोजन के ववखंडन के प्रिम में ऊजाय होती है , जजसे
कोभशकीय श्वसन कहते हैं। सभी जीवों की कोभशकाओं में कोभशकीय श्वसन होता है ।
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ऑक्सीजन की उपजस्थतत में
ग्नलूकोस ——————————
○ व्यायाम करते समय हमारे शरीर की कुछ पेभशयाूँ अवायवीय द्वारा श्वसन की अततररक्त
माूँग को परू ा करती हैं।
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○ श्वसन दर :- कोई व्यजक्त एक भमनट में जजतनी र्बार श्वसन करता है , वह उसकी श्वसन
दर कहलाती है ।
• कोई वयस्क व्यजक्त वव्रयाम की अवस्था में एक भमनट में औसतन 15-18 र्बार साूँस अंदर
लेता है और र्बाहर तनकालता है । अधिक व्यायाम करने में श्वसन दर 25 र्बार प्रतत भमनट तक
र्बढ़ सकती है । सामान्य व्यजक्त हर भमनट 15 र्बार सांस लेता छोड़ता है । पूरे टदन में लगभग
21,600 र्बार सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया करता है .
ग्रसनी (गला): नाक और मुंह से स्वरयंत्र तक हवा को तनदे भशत करता है । स्वरयंत्र (वॉयस
र्बॉक्स): वायु को श्वासनली की ओर तनदे भशत करता है और इसमें स्वर के भलए मुखर तार
होते हैं। श्वासनली (ववंडपाइप): र्बाएं और दाएं ब्रोजन्कयल ट्यूर्बों में ववभाजजत होती है जो र्बाएं
और दाएं फेफड़ों में हवा को तनदे भशत करती है ।
○फेफड़े: छाती गह
ु ा में यजु ग्नमत अंग जो रक्त और वायु के र्बीच गैस ववतनमय को सक्षम करते
हैं। फेफड़ों को पांच पाभलयों में र्बांटा गया है ।ब्रोजन्कयल ट्यर्ब
ू : फेफड़ों के भीतर नभलकाएं जो
हवा को ब्रोंचीओल्स में तनदे भशत करती हैं और फेफड़ों से हवा को र्बाहर तनकलने दे ती हैं।
○ ब्रोम्न्ध्कयल ट्यूब: फेफड़ों के भीतर नभलकाएं जो हवा को ब्रोंचीओल्स में तनदे भशत करती हैं
और फेफड़ों से हवा को र्बाहर तनकलने दे ती हैं।
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○फफ्फसीय भशराएाँ: रक्त वाटहकाएूँ जो फेफड़ों से ऑक्सीजन युक्त रक्त को वापस हृदय तक
पहुूँचाती हैं।
श्वसन की मांसपेभशयां
○डायाफ्राि: पेशीय ववभाजन जो छाती गुहा को उदर गुहा से अलग करता है । यह सांस लेने
को सक्षम करने के भलए भसकुड़ता है और आराम करता है ।
○ इंटरकोस्टल िांसपेभशयां: पसभलयों के र्बीच जस्थत मांसपेभशयों के कई समूह जो सांस लेने में
सहायता के भलए छाती गह
ु ा को ववस्तार और भसकोड़ने में मदद करते हैं। पेट की मांसपेभशयां:
हवा को तेजी से र्बाहर तनकालने में सहायता करती हैं।
○ हिारे श्वसन तंर के अंगों िें िख्यतः नाभसका, नासामागय, ग्रसनी, कंठ नली, वायुनाल,
श्वसनी, श्वासनली तथा फेंफड़े सजममभलत होते हैं।
○ जर्ब हम हवा को अंदर खींचते हैं तो इसमें मुख्यतः 79 प्रततशत नाइट्रोजन, लगभग 21
प्रततशत ऑक्सीजन तथा 0.04 प्रततशत कार्बयन-डाइ-ऑक्साइड होती है । श्वसन क्रिया में एक
अणु ग्नलूकोज के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप कार्बयन डाइऑक्साइड, जल वाष्प तथा लगभग
686 क्रकलो कैलोरी ऊजाय तनकलती है ।
○स्वरयंर (वॉयस बॉक्ट्स): वायु को श्वासनली की ओर तनदे भशत करता है और इसमें स्वर के
भलए मख
ु र तार होते हैं।
श्वासनली (ववंडपाइप): र्बाएं और दाएं ब्रोजन्कयल ट्यूर्बों में ववभाजजत होती है जो र्बाएं और दाएं
फेफड़ों में हवा को तनदे भशत करती है ।
○फेफड़े: छाती गह
ु ा में यजु ग्नमत अंग जो रक्त और वायु के र्बीच गैस ववतनमय को सक्षम करते
हैं। फेफड़ों को पांच पाभलयों में र्बांटा गया है ।
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○ ब्रोम्न्ध्कयल ट्यूब: फेफड़ों के भीतर नभलकाएं जो हवा को ब्रोंचीओल्स में तनदे भशत करती हैं
और फेफड़ों से हवा को र्बाहर तनकलने दे ती हैं।
○ब्रोम्न्ध्कओल्स : फेफड़ों के भीतर छोटी ब्रोजन्कयल नभलकाएं जो वायु को छोटे वायुकोशों में
तनदे भशत करती हैं जजन्हें एजल्वयोली कहा जाता है ।
○फफ्फसीय भशराएाँ: रक्त वाटहकाएूँ जो फेफड़ों से ऑक्सीजन युक्त रक्त को वापस हृदय तक
पहुूँचाती हैं।
श्वसन की मांसपेभशयां
○डायाफ्राि: पेशीय ववभाजन जो छाती गुहा को उदर गुहा से अलग करता है । यह सांस लेने
को सक्षम करने के भलए भसकुड़ता है और आराम करता है ।
○ इंटरकोस्टल िांसपेभशयां: पसभलयों के र्बीच जस्थत मांसपेभशयों के कई समूह जो सांस लेने में
सहायता के भलए छाती गह
ु ा को ववस्तार और भसकोड़ने में मदद करते हैं।
○पेट की मांसपेभशयां: हवा को तेजी से र्बाहर तनकालने में सहायता करती हैं। हमारे श्वसन तंत्र
के अंगों में मुख्यतः नाभसका, नासामागय, ग्रसनी, कंठ नली, वायुनाल, श्वसनी, श्वासनली तथा
फेंफड़े सजममभलत होते हैं। जर्ब हम हवा को अंदर खींचते हैं तो इसमें मुख्यतः 79 प्रततशत
नाइट्रोजन, लगभग 21 प्रततशत ऑक्सीजन तथा 0.04 प्रततशत कार्बयन-डाइ-ऑक्साइड होती
है । श्वसन क्रिया में एक अणु ग्नलक
ू ोज के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप कार्बयन डाइऑक्साइड,
जल वाष्प तथा लगभग 686 क्रकलो कैलोरी ऊजाय तनकलती है ।
❍ जंतओं िें श्वसन :- गाय , भैंस , कुिे , और त्रर्बल्ली जैसे जीवों में श्वसन अंग और श्वसन
प्रिम मानव के समान ही होते है ।
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○कॉकरोच :- कीटों में गैस के ववतनमय के भलए वायु नभलयों का जाल त्रर्बछा होता है ।
○ केंचआ :- केंचए
ु में गैसों का ववतनमय उसकी आद्रय त्वचा के माध्यम से होता है ।
○ पादप :- पादप में प्रत्येक अंग वायु से स्वतंत्र रूप से ऑक्सीजन ग्रहण करके कार्बयन
डाइऑक्साइड को तनमक्
ुय त करते है ।
○ पररसंचरण तंर :- ह्रदय और रक्त वाटहतनयाूँ संयुक्त रूप से हमारे शरीर का पररसंचरण
तंत्र र्बनाती हैं।
○ हीिोग्नलोबबन :- लाल रक्त की कोभशका होती है , जजनमें एक लाल वणयक होता है , जजसे
हीमोग्नलोत्रर्बन कहते हैं। हीमोग्नलोत्रर्बन के कारण ही रक्त का रं ग लाल होता है ।
○ श्वेत रक्ट्त कोभशकाएाँ :- ये कोभशकाएूँ उन रोगाणुओं को नष्ट करती हैं , जो हमारे शरीर में
प्रवेश कर जाते हैं।
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○ प्लेटलेट्स :- रक्त का थक्का र्बन जाना उसमें एक अन्य प्रकार की कोभशकाओं की
उपजस्थतत के कारण होता है ।
○ स्पंदन दर :- प्रतत भमनट स्पंदो की संख्या स्पंदन दर कहलाती है । स्वस्थ वयस्क व्यजक्त
की स्पंदन दर सामान्यतः 72 से 80 स्पंदन प्रतत भमनट होती है ।
○ ह्रदय :- जो रक्त द्वारा पदाथों के पररवहन के भलए पंप के रूप में कायय करता है । यह
तनरं तर िड़कता रहता है । ह्रदय चार कक्षों में र्बूँटा होता है ।
○ स्टे र्थॉस्कोप :- धचक्रकत्सक आपके ह्रदय स्पंद को मापने के भलए स्टे थॉस्कोप नामक यंत्र का
उपयोग करते हैं। रक्त पररसंचरण की खोज ववभलयम हावे (1578-1657) ने क्रकया ।
❍ उत्सजयन :- सजीवों द्वारा कोभशकाओं में तनभमयत होने वाले अपभशष्ट पदाथों को र्बाहर
तनकालने के प्रिम को उत्सजयन कहते हैं। उत्सजयन में भाग लेने वाले सभी अंग भमलकर
उत्सजयन तंत्र र्बनाते हैं।
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❍ िानव उत्सजयन तंर :- रक्त में उपजस्थत अपभशष्ट पदाथों को शरीर से र्बाहर तनकाला जाना
चाटहए।bरक्त को छानने की व्यवस्था की आवश्यकता होती हैं। यह व्यवस्था गुदों में उपजस्थत
रक्त कोभशकाओं द्वारा उपलब्ि की जाती है । उपयोगी पदाथों को रक्त में पुनः अवशोवषत
कर भलया जाता है । जल में घुल हुए अपभशष्ट पदाथय मूत्र के रूप में पथ
ृ क कर भलए जाते है ।
○ िर
ू िागय :- मत्र
ू ाशय से एक पेशीय नली जड़
ु ी होती है , जजसे मत्र
ू मागय कहते हैं।
○ िररन्ध्ि :- जजससे मत्र
ू शरीर से र्बाहर तनकाल टदया जाता है ।
○ वयस्क व्यम्क्ट्त सािान्ध्यतः 24 घण्टे में 1 से 1.8 लीटर मूत्र करता है । मूत्र में 95% जल ,
2.5% यूररया , और 2.5% अन्य अपभशष्ट उत्पाद होते हैं। लवण और यूररया जल के साथ
स्वेद (पसीने) के रूप में शरीर से र्बाहर तनकाल टदए जाते हैं। पक्षी , कीट , और तछपकली अिय
घन (सेमी सॉभलड ) रूप में यरू रक अमल का उत्सजयन करते हैं।
○ जाइलि :- जल और पोषक तत्वों के पररवहन के भलए पादपों में संवहन ऊतक होता है ।
○ फ्लोएि :- भोजन को पादप के सभी भागों में संवहन ऊतक द्वारा क्रकया जाता है ।
• जाइलि और फ्लोएि पादपों िें पदार्थों का पररवहन करते हैं।
○ पादप मद
ृ ा से खतनज पोषक तत्व और जल अवशोवषत करते हैं।
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अध्याय 12: पादप में जनन | Reproduction in
Plants
पादप कैसे जनन करते हैं और पादप में जनन ववभभन्न ववधियों द्वारा होता है , जजनके र्बारे
में हम इस अध्याय में पढ़ें गे।
❍ जनन की ववधियााँ :- अधिकांश पादपों में मूल , तना , और पवियां होती हैं।
1.अलैंधगक जनन :- पादप त्रर्बना र्बीजों के ही नए पादप को उत्पन्न कर सकते हैं। अलैंधगक
जनन है , जजसमें पादप के मूल , तने ,पिी कली के कातयक अंग द्वारा नया पादप प्राप्त
क्रकया है ।
○ िकलन :- यीस्ट कोभशका से र्बाहर तनकलने वाला छोटे र्बल्र्ब मुकुल या कली कहलाता है ।
• यीस्ट एक कोभशका जीव है । जनन कोभशका से ववलग होकर नई यीस्ट कोभशका र्बनाता
है । यटद पयायप्त पोषण उपलब्ि हो , तो यीस्ट कुछ ही घण्टों में वद्
ृ धि करके जनन करने
लगते है ।
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○ शैवाल :- जल और पोषक तत्व उपलब्ि होते हैं , तो शैवाल वद्
ृ धि करते हैं और तेजी से
खंडन द्वारा गुणन करते हैं। शैवाल दो या अधिक खंडों में ववखंडडत हो जाते हैं। ये खंड अथवा
टुकड़े नए जीवों में वद्
ृ धि कर जाते हैं।
○ बीजाण :- वायु में उपजस्थत र्बीजाणुओं से कवक उग जाते हैं। र्बीजाणु अलैंधगक जनन ही
करते हैं।
○ यग्निनज :- नर तथा मादा यग्नु मकों (संयोग) द्वारा र्बनी कोभशका यग्नु मनज कहलाती है ।
○ बीज प्रकीणयन :- र्बीज ववभभन्न स्थानों पर उगे हुए होते है , ये र्बीज प्रकीणयन के कारण
होता है ।
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अध्याय 13: गतत एवं समय | Speed and Time
❍ गनत :- समय के साथ क्रकसी वस्तु की जस्थतत में पररवतयन को गतत कहते हैं। प्रथ्वी का
सूयय के चारो ओर पररिमा करने की गतत
• वतल
ुय गतत , आवती गतत , घूणन
य गतत तीन प्रकार की गततयाूँ है ।
❍ चाल :- क्रकसी वस्तु द्वारा एकांक समय में तय की गई दरू ी को उसकी चाल कहते हैं। चाल
से हमें पता चलता है क्रक कौन तेज चल रहा है ।
कल तय की गई दरू ी
चाल = ————————-
❍ सिय की िाप :- र्बहुत ही घटनाएूँ , तनजश्चत अंतरालों के पश्चात स्वयं दोहराती हैं।
• सूयोदय – एक टदन
•अिावस्या – एक महीना
•पथ्
ृ वी की पररििा – एक वषय
○ लोलक :- क्रकसी खूंटी से लटके ऐसे भार को लोलक कहते हैं यटद कोई वपंड आवतय गतत
करते हुए एक तनजश्चत पथ पर क्रकसी तनजश्चत त्रर्बंद ु के सापेक्ष इिर-उिर गतत दोलन गतत
कहते हैं।
○ आवतयकाल :- सरल लोलक एक दोलन पूरा करने में जजतना समय लगाता है ।
• प्रचीन काल :- संसार के ववभभन्न भागों में समय मापन के भलए र्बहुत-सी यजु क्तयों का
उपयोग क्रकया जाता था। िप ू घड़ी , रे त-घड़ी , जल-घड़ी आटद । जंतरमंतर , नई टदल्ली में
िप
ू घड़ी है ।
○ चाल िापना :- क्रकसी वस्तु द्वारा एकांक समय में तय की गई दरू ी को चाल कहते
हैं। चालमापी :- मीटर के कोने में km/h भलखा होता है ।
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• पार्थिापी :- वाहन द्वारा तय की गई दरू ी को मापता है ।
○ दरू ी-सिय :– क्रकसी वपण्ड द्वारा तय की गई कुल दरू ी तथा उस दरू ी को तय करने में लगे
कुल समय के अनुपात को उस वपण्ड की औसत चाल कहते हैं।
○ चाल :- क्रकसी व्यजक्त/यातायात के सािन द्वारा इकाई समय में चली गई दरू ी, चाल
कहलाती हैं।
○ सिय :- क्रकसी व्यजक्त/यातायात के सािन द्वारा इकाई चाल से चली गई दरू ी, उसके समय
को तनिायररत करती हैं।
○ वस्तुओं की गतत को उनको दरू ी-समय ग्राफ़ द्वारा धचत्रात्मक रूप में प्रस्तुत क्रकया जा
सकता है ।
○ भारतवषय में समय अनुरक्षण सेवा , नई टदल्ली की राष्ट्रीय भौततकी प्रयोशाला द्वारा प्रदान
की जाती है ।
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अध्याय 15 : प्रकाश | Light
जैस—
े सय
ू ,य तारे , जग
ु न,ू ववद्यत
ु ् का र्बल्र्ब आटद।
❍ पारदशी वस्त :- जजस वस्तु के आर-पार दे ख सकते हैं, उस वस्तु को पारदशी वस्तु कहते हैं
जैसे :- शीश , काूँच , पानी आटद।
❍ अपारदशी वस्त :- जजस वस्तु को आर-पार नहीं दे ख सकते, उस वस्तु को अपारदशी वस्तु
कहते हैं।
जैसे :- दीवार , लकड़ी , पुस्तक आटद।
❍ पारभासी वस्त :- जजन वस्तुओं के आर-पार दे ख तो सकते हैं परं तु र्बहुत स्पष्ट नहीं, ऐसी
वस्तुओं को पारभासी वस्तुएं कहते हैं।
जैसे :- िआ
ु ूँ, कोहरा, और तेल लगा कागज़ आटद।
1. सितल दपयण :- जजस दपयण की परावतयन सतह समतल होती है , उसे समतल दपयण कहते
हैं।
जैसे :-इसका उपयोग घरों में चेहरा दे खने के काम आता है ।
2. गोलीय दपयण :- गोलीय दपयण कांच के खोखले गोले का भाग होता है , जजसकी एक सतह
पर पॉभलश की जाती है ।
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1.अवतल दपयण
2. उतल दपयण
जैसे :-इसका उपयोग घरों में चेहरा दे खने के काम आता है । A M B U L A N C E ( पीछे का
दृश्य टदखाने वाला दपयण ) स्पष्ट पढ़ सकते है ।
○गोलीय दपयण :- गोलीय दपयण कांच के खोखले गोले का भाग होता है , जजसकी एक सतह
पर पॉभलश की जाती है ।
• अवतल दपयण :- इस दपयण में परावतयक सतह अंदर की ओर से उभरा हुआ रहता है । अवतल
दपयण का उपयोग गाड़ी के हे डलाइट एवं सचय लाइट में उिल दपयण का प्रयोग क्रकया जाता है ।
• उिल दपयण :- इस दपयण में परावतयक सतह र्बाहर की ओर से उभरा हुआ रहता है । उिल
दपयण का उपयोग इसका उपयोग गाड़ी में चालक की सीट के पीछे के दृश्य को दे खने में
क्रकया जाता है ।
○ लेंस :- यह र्बहुत छोटे वप्रंट को पढ़ने के भलए उपयोग क्रकया जाता है । लेंसों का उपयोग
व्यापक रूप में चश्मों , दरू र्बीनों , सूक्ष्मदभशययों में क्रकया जाता है । लेंस पारदशी होते है ,इनमें
प्रकाश गुजर सकता है ।
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○ सूयय का प्रकाश :- वषाय के पश्चात , जर्ब सूयय आकाश में क्षक्षततज के पास होता है । इंद्रिनुष
आकाश में अनेक रं गों के एक र्बड़े िनुष के रूप में टदखलाई दे ता है ।
अध्याय 16 : जल एक र्बहुमल्
ू य संसािन | Water a
Precious Resource
❍ जल :- जल एक महत्वपण
ू य नवीकरणीय प्राकृततक संसािन है , भप
ू ष्ृ ठ का तीन-चौथाई
भाग जल से ढका है । लगभग 3.5 अरर्ब वषय पहले जीवन , आटद महासागरों में ही प्रारं भ हुआ
था। आज भी ही महासागर पथ्ृ वी की सतह के दो-ततहाई भाग को ढके हुए हैं। पथ्
ृ वी की सतह
के लगभग 71% भाग जल से ढका है । जो लवणीय रूप में महासागरों में उपलब्ि है ।
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○ वषय 2000 में र्बढ़कर 6000 घन क्रक.मी/ वषय से भी अधिक हो गई है ।
○ जल की अवस्र्थाएाँ :- तीन अवस्थाओं में उपलब्ि है । • ठोस अवस्था में जल र्बफ़य , टहम के
रूप में उपलब्ि हैं। • द्रव अवस्था में िीलों , नटदयों , भौमजल के रूप में उपलब्ि हैं। • गैसीय
अवस्था में वायु में जलवाष्प के रूप में उपजस्थत हैं।
○ जल प्रबंिन :- वषाय के पानी का र्बाद में उत्पादक कामों में इस्तेमाल के भलए इकट्ठा करने
को वषाय जल संग्रहण कहा जाता है ।
○ जल िहत्वपूणय स्रोत :-
• जनसंख्या प्रसार
• बढ़ते हए उिोग
• खेतों की भसंचाई
• पीने के जल
• जीव-जंत के भलए
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अध्याय 17 : वन हमारी जीवन रे खा | Forest is Our
Lifeline
” हरे -भरे वन हमारे भलए उतने ही महत्वपूणय हैं , जजतना हमारे फेफड़े हैं । अमेजन जंगल
को पथ्
ृ वी का फेफड़ा कहा जाता हैं।
○ घास स्र्थल :- सामान्य वषाय वाले क्षेत्रों में छोटे आकार वाले वक्ष
ृ और घास उगती है जजससे
ववश्व के घास स्थलों का तनमायण होता है ।
○ वनस्पनत :- र्बहुमूल्य संसािन हैं। पौिे हमें इमारती लकड़ी दे ते हैं , ऑक्सीजन उतपन्न
करते है , और फल , गोंद , कागज प्रदान करते है ।
○ वनों के प्रकार:-
2.सदाबहार वन: पजश्चमी घाट पूवोिर भारत तथा अंडमान तनकोर्बार द्वीप समूह में जस्थत
उच्च वषाय क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
3.पणयपाती वन: यह वन केवल उन्हीं क्षेत्रों में पाये जाते हैं जहां मध्यम स्तर की मौसमी वषाय
जो केवल कुछ ही महीनों तक होती है ।
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4. िैंग्रोव वन: नटदयों के डेल्टा तथा तटों के क्रकनारे उगते हैं। यह वक्ष
ृ लवणयुक्त तथा शुद्ि
जल सभी में वद्
ृ धि करते हैं।
5.भारत सरकार ने सन 1952 िें वन संरक्षण नीनत लागू क्रकया वन्ध्य प्राणी अधिननयि सन
1972 में लागू हुआ।
राष्रीय कृवष आयोग ने (सन 1976-1979) सािाम्जक वाननकी को तीन भागों में र्बांटा है
1.फािय वाननकी।
2. शहरी वाननकी।
3.ग्रािीण वाननकी।
शष्क उष्णकटटबंिीय,
पवयतीय उप-उष्णकटटबंिीय,
उप-अल्पाइन,
उप शीतोष्ण तर्था शीतोष्ण जजन्हें 16 मुख्य वन प्रकारों में उपववभाजजत क्रकया गया है ।
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पथ्
ृ वी के 31% भूभम पर वन है और भारत में 24% भूभम पर वन हैं। वनों से हम प्रत्यक्ष एवं
अप्रत्यक्ष रूप में अनेक लाभ प्राप्त करते हैं, जैसे – प्रत्यक्ष लाभ स्वरूप हम वनों से इिारती
काष्ठ, जलाऊ ईंिन, पशओं के भलए चारा, गोंद, लाख, फल, जड़ी – बूटटयााँ आटद प्राप्त करते हैं
तो अप्रत्यक्ष रूप में वन वषाय, र्बाढ़ की रोकथाम करते हैं, सुन्दर अभयारण्य एवं आकषयक
पययटक स्थल दे ते हैं ।
ह्यूिस :- एक गहरे रं ग के पदाथय में पररवततयत कर दे ते हैं , जजसे ह्यूमस कहते हैं।
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○ अपभशस्ट जल :- घरों का वाटहत मल , उिोगों , अस्पतालों , काययलयों और अन्य उपयोगों
के र्बाद प्रवाटहत क्रकए जाने वाला अपभशष्ट जल होता है ।
○ वाटहत िल :-
5. सक्ष्
ू िजीव :- प्रोटोजोआ आटद
○ प्रदवू षत जल का उपचार :-
• शलाका छनन
• जल अपिधर्थर
• वानतत द्व को क्रफल्टर
• धग्रट और बालू अलग करने की टाँ की
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