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Class 12 Hindi Aroh Chapter 7 Summary क िवतावली उ र

कांड से), ल मण-मू छ और राम का िवलाप

किवतावली (उ र कांड से), ल मण-म ू छ और राम का िवलाप किवता का सारांश

(i) किवतावली (उ र-कांड से) प्रसंग म किव ने अपने समय का यथाथ िचत्रण िकया है। किव का कथन है िक
समाज म िकसान, बिनए, िभखारी, भाट, नौकर-चाकर, चोर आिद सभी की ि थित अ यंत दयनीय है। समाज का उ च
और िन न वग धम-अधम का प्र येक काय करता है। यहाँ तक िक लोग अपने पेट की खाितर अपने बेटा-बेटी को बेच रहे
ह।

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पेट की आग संसार की सबसे बड़ी पीड़ा है। समाज म िकसान के पास करने को खेती नहीं, िभखारी को भीख नहीं
िमलती। यापारी के पास यापार नहीं तथा नौकरों के पास करने के िलए कोई काय नहीं। समाज म चारों ओर बेकारी,
भखू , गरीबी और अधम का बोलबाला है। अब तो ऐसी अव था म दीन-दुिखयों की र ा करनेवाले श्री राम ही कृपा कर
सकते ह। अंत म किव समाज म फैली जाित-पाित और छु आछू त का भी – खंडन करते ह।

(ii) ‘ल मण-मछू ा और राम का िवलाप’ प्रसंग लोक-नायक तुल सीदास के श्रे ठ महाका य ‘रामचिरतमानस’ के
लंकाकांड से िलया गया । है। प्र तुत प्रसंग म किव ने ल मण को शि त बाण लगने के प चात उनकी मछ ू ा-अव था
तथा राम के िवलाप का का िणक िचत्र प्र तुत िकया है। यहाँ किव ने शोक म डूबे राम के प्रलाप तथा हनुमान जी का
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संजीवनी बूटी लेकर आने की घटना का सजीव अंकन िकया है।

किव ने क ण रस म वीर रस का अनठू ा िमश्रण िकया है। ल मण-मछ ू ा के प चात हनुमान जी जब संजीवनी बूटी लेकर
लौट रहे थे तो भरत ने उ ह रा स समझकर तीर मारा था, िजससे वे मिू छत हो गए थे। भरत जी ने उ ह व थ कर
अपने बाण पर बैठ ाकर राम जी के पास जाने के िलए कहा था। हनुमान जी भरत जी का ग ुणगान करते हुए प्र थान कर
गए थे। उधर श्री रामचंदर् जी ल मण को दय से लगा िवलाप कर रहे ह।
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वे एकटक हनुमान जी के आने की प्रती ा म ह। श्री रामचंदर् अपने अनुज ल मण को नसीहत दे रहे ह िक आप मेरे िलए
माता-िपता को छोड़ यहाँ जंगल म चले आए। िजस प्रेम के कारण तुमने सब कु छ याग िदया आज वही प्रेम मुझे
िदखाओ। श्री राम जी ल मण को संबोधन कर कह रहे ह िक हे भाई! िजस प्रकार पंख के िबना प ी अ यंत दीन होता है
और मिण के िबना साँप दीन हो जाता है उसी प्रकार आपके िबना भी मेरा जीवन भी अ यंत दीन एवं असहाय हो जाएगा।
राम सोच रहे ह िक वह अयो या म या मुहँ लेकर जाएंगे। अयो यावासी तो यही समझगे िक नारी के िलए राम ने एक भाई
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को गवाँ िदया। सम त संसार म अपयश फैल जाएगा।

माता सुिमत्रा ने ल मण को मेरे हाथ म यह सोचकर सौंपा था िक म सब प्रकार से उसकी र ा क ँ गा। श्री राम जी के
सोचते-सोचते उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। वे ! फूट-कूटकर रोने लगे। हनुमान के संजीवनी बूटी ले आने पर श्री
राम अ यंत प्रस न हुए। उ होंने हनुमान के प्रित कृत ता य त की। वै ने तुरंत ल मण का उपचार िकया िजससे
ल मण को होश आ गया। राम ने अपने अनुज को दय से लगाया। इस दृ य को देख राम-सेना के सभी सैिनक बहुत
प्रस न हुए।

हनुमान जी ने पुनः वै को उनके िनवास थान पर पहुंचा िदया। रावण इस वृ ांत को सुनकर अ यिधक उदास हो उठा
और याकु ल होकर कुं भकरण के महल म गया। कुं भकरण को जब रावण ने जगाया तो वह यमराज के समान शरीर धारण
कर उठ खड़ा हुआ। रावण ने उसके सम अपनी संपूण कथा का बखान िकया। साथ ही हनुमान जी के रण-कौशल और
बहादुरी का पिरचय भी िदया िक उसने अनेक असुरों का संहार कर िदया है।

किवतावली (उ र कांड से), ल मण-म ू छ और राम का िवलाप किव पिरचय

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गो वामी तुल सीदास िहंदी-सािह य के भि तकाल की सग ुणधारा की रामभि त शाखा के मुकुट िशरोमिण माने जाते ह।
इ होंने अपनी महान रचना रामचिरतमानस के ारा केवल राम-का य को ही सम ृ नहीं िकया बि क मानस के ारा
त कालीन समाज का भी मागदशन िकया है। अतः तुल सीदास जी एक भ त होने के साथ-साथ लोकनायक भी थे।

गो वामी तुल सीदास जी के ज म- थान, ितिथ एवं पिरवार के बारे म िव ान


एकमत नहीं ह। कु छ िव ानों ने इनका ज म सोरों म भाद्रपद शु ल एकादशी
मंगलवार िव० संवत 1589 माना है। जाज िग्रयसन भी इनका ज म संवत सगर
1589 को ही मानते ह। िशव िसंह ारा रिचत ‘िशव िसंह सरोज’ ग्रंथ म इनका
ज म संवत 1583 वीकार िकया है। बेणीमाधव ारा रिचत ‘ग ुसाई ं चिरत’ के
आधार पर तुल सीदास का ज म िवक् रमी संवत 1554 माना जाता है। इनका
ज म श्रावण शु ला स तमी को उ र प्रदेश के बाँदा िजले के राजापुर गाँव म

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हुआ था। इनके ज म के संबंध म ये पंि तयाँ प्रिस ह

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पंदर् ह सौ चौवन िवषै कािलंदी के तीर।
पाउल मु ला स तमी तुलसी धरे सरीर॥

इनके िपता का नाम पंिडत आ मा राम तथा माता का नाम हुल सी था। ज म के समय वे रोए नहीं, बि क उ होंने राम नाम
ट चारण िकया । िजससे उनका नाम-राम बोला पड़ गया। अशुभ मुहूत म ज म लेने के कारण इनके माता-िपता ने इ ह
याग िदया। ज म के तीन िदन । बाद ही इनकी माता का देहांत हो गया। बाद म मुिनया नामक दासी म इनका पालन-
पोषण िकया लेिकन इसकी म ृ यु के प चात इ ह ार- ार भीख माँगकर पेट भरना पड़ा। बाबा नरहिरदास ने इनकी
दयनीय दशा पर दया कर इ ह अपने आश्रम म रख िलया तथा इ ह पढ़ाया-िलखाया। ग ु जी ने इनका नाम तुल सी रख
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िदया था। इनकी-िव ा से प्रभािवत होकर पंिडत दीनबंध ु पाठक ने अपनी क या र नावली से इनका िववाह कर िदया
था। तुल सी को अपनी प नी से अगाध प्रेम था।

तुल सीदास की राम साधना का श्रेय बहुत हद तक उनकी प नी र नावली को िदया जाता है। माना जाता है िक एक बार
अपनी प नी के मादक चले जाने पर तुल सीदास जी पीछे -पीछे वहाँ पहुँच गए। इस पर प नी को बहुत संकोच हुआ तो वे
उनको फटकार लगाते हुए बोली
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लाज न आवत आपको दौरे आयहु साथ।
िधक् -िधक ऐसे प्रेम को कहाँ कहाँ हाँ नाथ ॥
अि थ चममय देह मम, तासौं ऐसी प्रीित।
होती जो श्री राम महं, होित न तो भवभीित॥
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प नी की इस फटकार से वे बहुत लि जत हुए और उनके दय म संसार के प्रित िवरि त उ प न हो गई। इसके प चात
उ होंने वै रा य ले • िलया तथा प्रभु-भि त म लीन हो गए। जीवन के अंितम िदनों म इनको बहुत क ट भोगना पड़ा तथा
श्रावण शु ल स तमी िवक् रमी संवत 0 1680 म इनका देहांत हो गया। इनकी म ृ यु के संबंध म यह दोहा प्रिस है

संवत् सौलह सौ असी, असी गंग के तीर।


श्रावण शु ला स तमी, तुलसी त यौ शरीर॥

रचनाएँ—-नागरी प्रचािरणी सभा काशी (वाराणसी) ने तुल सी सािह य को ‘तुल सी ग्रंथावली’ के नाम से प्रकािशत
िकया है। इसके अनुसार तुल सी के ० नाम से िलखे ग्रंथों की सं या 37 बताई जाती है लेिकन िव ानों ने इनके केवल
12 ग्रंथों को ही प्रामािणक माना है शेष अ य ग्रंथ दूसरे किवयों ने िलखकर उनके नाम से प्रकािशत कर िदए होंगे।
तुल सी जी ारा िलखे गए 12 प्रामािणक ग्रंथ-रामचिरतमानस, वै रा य संदीपनी, रामलला नहछू , ० बरवै रामायण, पावती
मंगल, जानकी मंगल, रामा ा प्र न, दोहावली, किवतावली, गीतावली, कृ ण गीतावली और िवनय-पित्रका ह।

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तुल सी के नाम से प्रचािरत रचनाओं म-अंकावली बजरंग बाण, भरत-िमलाप, हनुमान चालीसा, हनुमान पंचक, हनुमान
बाहुक, गीता भाषा, छ पय रामायण आिद ग्रंथों का उ लेख िकया जाता है। परंत ु िव ान उ ह तुल सी की रचनाएँ नहीं
मानते। तुल सीदास की प्रामािणक रचनाओं म रामचिरतमानस, िवनय-पित्रका, किवतावली तथा गीतावली िवशेष
लोकिप्रय ह। ‘रामचिरत’ तो उनकी कीित का आधार तंभ है।

िहंद ु तान के प्र येक िहंद ू घर म ‘रामचिरतमानस’ की एक प्रित अव य िमलती है। इसे उ र भारत की बाइिबल माना
जाता है। िहंद ू घरानों म इसको पिवत्र ग्रंथ मानकर इसकी पूजा की जाती है। भ तगण इसकी चौपाइयों का मु त कंठ
से गान करते ह। यह महाका य भारत म ही नहीं बि क संपूण िव व म लोकिप्रय है। िवनय-पित्रका साधारण जनता म
इतना लोकिप्रय नहीं है िजतना िक भ तों तथा दाशिनकों म प्रिस है। किवतावली और गीतावली अपने मधुर, सरस
गीतों के कारण जनता म काफी लोकिप्रय ह।

इन सभी ग्रंथों म तुल सी जी ने राम के चिरत्र का ही अंकन िकया है। िवनय-पित्रका तुल सी की अंितम रचना मानी

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जाती है। यह तुल सी का प्राथना ग्रंथ है। सािहि यक िवशेषताएँ-तुल सीदास जी रामभि त धारा के सवश्रे ठ

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सािह यकार माने जाते ह। इ होंने अपनी रामभि त के मा यम से भारतीय जनमानस म नवीन चेतना जागत ृ की है। इनका
सािह य लोकमंगल की भावना से पिरपूण है। इनके सािह य की प्रमुख िवशेषताएँ िन निलिखत ह

(i) राम का व प-तुल सी के का य का आदश राम ह। इ होंने अपने का य म राम को िव णु का अवतार मानकर उनके
िनग ुण
और सग ुण दोनों पों की आराधना की है। ये कहते ह

दशरथ सुत ितहुँ लोक बखाना।


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राम-नाम का मरम है आना॥

तुल सी जी राम को धम का उ ार करनेवाला तथा अधम का नाश करनेवाला मानते ह। इनके राम एक ओर तो अयो या के
राजा दशरथ के पुतर् है तो दूसरी ओर घट-घट म रहने वाले िनग ुण ब्र । इ होंने राम के चिरत्र म शील, शि त और
सौंदय का अनठू ा सम वय प्र तुत िकया है।

(ii) िवषय की यापकता-तुल सी-सािह य म भाव िविवधता उनकी प्रमुख िवशेषता है। इ होंने अपने का य म जीवन के
िविवध पों को यथाथ अिभ यि त प्रदान की ह। रामचिरतमानस म राम-ज म से लेकर राम के राजितलक की संपूण
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कथा को सात कांडों म प्र तुत िकया है। इ होंने राम-कथा म िविवध प्रसंगों के मा यम से राजनैितक, सामािजक एवं
पािरवािरक जीवन के आदश को समाज के सम प्र तुत कर खंिडत िहंद ू समाज को किद्रत िकया है। मानस के उ र
का य म किलयुग के प्रकोप का वणन आज भी समसामियक है तथा हमारा मागदशन करता है।

(iii) लोकमंगल की भावना-तुल सी जी स चे लोकनायक थे। इनकी सम त भि त-भावना लोक-क याण की भावना पर
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ही िटकी हुई है। लोक-क याण हेत ु ही इ होंने सम वय की थापना की है। इनका सम त का य आदश समाज की
थापना का संदेश देता है। तुल सी का य म आदश ही आदश है। मानस म किव ने कौश या को आदश माता, राम को
आदश पुतर् , सीता को आदश प नी, भरत और ल मण को आदश भाई, हनुमान को आदश सेवक, सुगर् ीव को आदश िमत्र
तथा राजितलक के बाद राम को एक आदश राजा के प म ।प्र तुत िकया है। इस प्रकार तुल सी ने आदश गहृ थ,
आदश समाज और आदश रा य की क पना को साकार प प्रदान िकया है।

(iv) सम वय की भावना–तुल सीदास का का य लोक-क याण तथा सम वय की िवराट भावना से ओत-प्रोत है।
समकालीन युग संक्रमण का युग था। सम त िहंद ू जाित सामािजक एवं राजनैितक दृि ट से पतन की ओर जा रही थी
लोगों के मन से धािमक भावना समा त हो रही थी। ई या, ेष, घण
ृ ा, नफ़रत, नाि तकता आिद बुरी भावनाएँ बढ़ती जा रही
थीं। ढोंगी-साधु सं यािसयों का बोलबाला था। ऐसी िवकट पिरि थितयों का मुकाबला करने हेत ु तुल सी जी ने सम वय
की भावना का सहारा िलया। इ होंने सवप्रथम धािमक संकीणताओं को िमटाने के िलए शैवों एवं वै णवों म सम वय
थािपत िकया। इसके बाद इ होंने लोक और शा त्र, गहृ थ और वै रा य, भि त और ान, िनग ुण और सग ुण, भाषा और
सं कृत, शील, शि त और सौंदय आिद म अनठू ा सम वय थािपत करने का सफल प्रयास िकया। ान की श्रे ठता
िस करते हुए तुल सी ने कहा है

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कहिहं संतमुिन वे द पुराना।
निहं कछु दुलभ ान समाना॥

(v) प्रबंध कौशल-का य-कला की दृि ट से तुल सी रिचत ‘रामचिरतमानस’ िहंदी सािह य का श्रे ठतम प्रबंध का य है।
इस महाका य म किव ने सम त का य शा त्रीय िनयमों का पालन करते हुए संपूण रामजीवन का अनठू ा िचत्रण िकया
है। मानस म राम-सीता का प्रथम-दशन, राम वनगमन, दशरथ-म ृ यु, भरत िमलाप, सीताहरण, ल मण मछ ू ा आिद अनेक
मािमक प्रसंगों की भी सजीवता से रचना हुई है। इस प्रकार प्रबंधकार के प म तुल सी जी एक सफल किव ह।

(vi) भि त भावना- तुल सी की भि त दा यभाव की भि त पर आधािरत है। इनकी भि त संत कबीरदास आिद िनग ुण
संतों की भांित | ान और योग से पिरपूण भावना से यु त रह यमयी नहीं है। इनकी भि त सीधी-सादी, सरल एवं सहज
है। तुल सी के राम संसार | के कण-कण म समाए हुए ह। वे सभी को सुल भ ह।। तुल सीदास जी की भि त सेवक-से य
भाव पर आधािरत आदश भि त है। उ होंने रामानुजाचाय के िस ांत िविश ट वै तवाद को अपनी भि त का आधार बनाया

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है।

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यहाँ जीव ब्र का ही अंश है। इनकी भि त लोक संगर् ह की भावना से ओत-प्रोत है। इ होंने राम म शील, शि त और
सौंदय का ग ुणगान करते हुए लोक-क याण की कामना की है। तुल सी ने श्री राम को सवग ुण संप न तथा वयं को
अ यंत तु छ, दीन-हीन माना है। यही भावना उनकी भि त म य त हुई है

राम सो बड़ो है कौन, मोसों कौन छोटो?


राम सो खरो है कौन, मोसों कौन खोटो?

(vi) चिरत्र-िचत्रण-तुल सीदास जी का चिरत्र-िचत्रण अ यंत उदा एवं श्रे ठ है। इस दृि ट से इनकी तुल ना संसार
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के श्रे ठ किवयों के साथ की जा सकती है। इनके पात्र जहाँ देखने म लौिकक ह, जनसाधारण की भाँित िदखाई देते ह,
वहाँ उनम अलौिकक ग ुण भी होते है। तलसी का चिरत्र आदशवादी है जो िनरंतर समाज को प्रेरणा देते ह। इनके
रामचिरतमानस म कौश या एक आदश माँ, श्री राम आदश पुतर् , सीता आदश प नी, ल मण-भरत आदश भाई, हनुमान
आदश सेवक, सुगर् ीव आदश िमत्र है।

इनके साथ-साथ ग ु विश ट जी, अंगद, शबरी आिद ऐसे श्रे ठ पात्र ह जो संसार को िश ा देते रहते है। तुल सी जी ने
अपने सािह य म मनु य-देवता, नर-नारी, पशु-प ी, श्रे ठ-अधम आिद सभी पात्रों का सहज वाभािवक िचत्रण िकया है
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जैसे जनकपुर म सीता वयंवर | के समय ल मण के जोश का सजीव िचत्रण िकया है

जनक वचन सुिन सब नर-नारी। देिख जान िकिह भए दुखारी।


भाखे लखन कु िटल भाई भौहे। रदपुट फरकत नयन हिरसिह ॥
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(viii) प्रकृित-िचत्रण- तुल सी सािह य म प्रकृित का भी अनठू ा िचत्रण हुआ है। इ होंने कहीं-कहीं पंचवटी,
िचत्रकूट, वन, जंगल, नदी, पवत, पशु-प ी आिद का सजीव एवं सुंदर िचत्रण िकया है। इनका बा प्रकृित की अपे ा
अंतः प्रकृित-िचत्रण म मन अिधक रमा है। इ होंने प्रकृित के आलंबन प का सुंदर एवं सजीव िचत्रण िकया है।

(ix) का य प- तुल सी जी रामभि त के श्रे ठ किव ह। इ होंने गीित, प्रबंध एवं मु तक तीनों का य- पों का प्रयोग
करके अपने सािह य का िचत्रण िकया है। रामचिरतमानस िहंदी-सािह य का श्रे ठ प्रबंध का य है। इसम किव ने सात
कांडों म श्री रामचंदर् जी के संपूण जीवन का अनठू ा वणन िकया है। इसी प्रकार गीतावली, किवतावली, दोहावली आिद
भी श्रे ठ ग्रंथ है। पावती मंगल, जानकी मंगल, रामलला नहछू आिद उनके श्रे ठ मु तक का य ह।

(x) भाषा-शैल ी-तुल सीदास जी एक महान िव ान थे। उ होंने अपने सािह य की रचना अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं म
की है। उ होंने दोनों भाषाओं का सुंदर प्रयोग कर श्रे ठ सािह य सृजन िकया है। रामचिरतमानस म अवधी तथा िवनय
पित्रका आिद म ब्रज भाषा का सुंदर प्रयोग हुआ है। अवधी भाषा म त सम श दावली का प्रचुर प्रयोग हुआ है। इसके
साथ-साथ उ होंने भोजपुरी, बुंदेल खंडी, राज थानी, फ़ारसी आिद भाषाओं का भी प्रयोग िकया है।

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(xi) अलंकार- तुल सी का य म अलंकारों का सफल एवं सुंदर प्रयोग हुआ है। उपमा, पक, उ प्रे ा आिद उनके िप्रय
अलंकार है।। सांग पक िचत्रण तो इनकी मह वपूण िवशेषता है। इसके साथ-साथ अनुप्रास, िवभावना, िवरोधाभास,
वक् रोि त, पदमैतर् ी, वरमैतर् ी | आिद अलंकारों का भी सुंदर एवं सजीव िचत्रण िकया है। अनुप्रास की छया तो सवत्र
िदखाई देती है। पक अलंकार का सुंदर उदाहरण द्र ट य है

उिदत उदय िगरी मंच पर, रघुवर बाल पतंग।


िवकसे संत सरोज सब लोचन हिषत भंग।

(xii) छंद-किव की द-योजना अ यंत श्रे ठ है। इ होंने अपनी का य-भाषा म विणक और माित्रक दों का सुंदर अंकन
िकया है। तुल सी जी ने दोहा, चौपाई, किव , सवै या, छ पय, बरवै , पद, कुं डिलयाँ आिद छंदों का सुंदर प्रयोग िकया है।

(xiii) रस- तुल सीदास जी को रस िस किव कहना कोई अितशयोि त नहीं है। उ होंने अनेक भावों एवं रसों का सुंदर

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एवं सजीव िचत्रांकन
िकया है। इनके का य म भि त की प्रधानता होने के कारण शांत रस की सवत्र अिभ यंजना है। शंगृ ार रस का भी सुंदर

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िचत्रण िमलता
है लेिकन वह मयादा से पिरपूण है। किव ने श्रंगृ ार के संयोग एवं िवयोग दोनों प ों की सजीव एवं मािमक अिभ यि त की
है। सारांश प म हम कह सकते ह िक गो वामी तुल सीदास िहंदी सािह य के श्रे ठ किव माने जाते ह। उनका संपूण
का य आदश, लोक-क याण एवं सम वय की भावना से ओत-प्रोत ह। वे स चे अथ म लोकनायक थे।
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