VEDIC THEORY

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UNIT 1

वेद परिचय
संहिताएँ

ऋग्वेद

परिचय एवं मित्व:

ऋग्वेद सबसे प्राचीन वेद माना जाता िै। इसमें 1,028 सूक्त िैं जो ऋहियों
द्वािा उच्चारित मंत्ों का संग्रि िैं। ये सूक्त दे वताओं की स्तुहत, प्रार्थना औि
यज्ञ से संबंहित िैं। ऋग्वेद में मुख्य रूप से अहि, इं द्र, वरुण, औि सोम
जैसे दे वताओं का वणथन हमलता िै।

मित्व: ऋग्वेद भाितीय िमथ , दर्थन औि संस्कृहत का आिािभूत ग्रंर् िै।


यि न केवल िाहमथक अनुष्ठानों के हलए बल्कि साहिल्किक, भािाई औि
ऐहतिाहसक अध्ययन के हलए भी मित्वपूणथ िै।

यजुवेद

परिचय एवं मित्व:

यजुवेद यज्ञों औि अनुष्ठानों से संबंहित िै। इसमें गद्य औि पद्य दोनों का


समावेर् िै औि यि मुख्यतः यज्ञों में उच्चारित िोने वाले मंत्ों का संकलन
िै। इसे दो भागों में बांटा गया िै: र्ुक्ल यजुवेद औि कृष्ण यजुवेद।

मित्व : यजुवेद का मित्व यज्ञों औि अनुष्ठानों में मंत्ों के सिी उच्चािण


औि प्रहियाओं के हवविण में िै। यि िाहमथक अनुष्ठानों की प्रहिया को
सुव्यवल्कथर्त किने में मदद किता िै।
सामवेद

परिचय एवं मित्व:

सामवेद मुख्यतः संगीत औि गायन से संबंहित िै। इसमें ऋग्वेद के कुछ


मंत्ों का संगीतमय रूप में प्रस्तु त हकया गया िै। यि वेद हवर्ेि रूप से
सोमयज्ञ से संबंहित िै।

मित्व: सामवे द भाितीय संगीत की उत्पहि का स्रोत माना जाता िै। यि


वेद िाहमथक अनुष्ठानों में संगीत की भूहमका को दर्ाथता िै ।

अर्वथवेद

परिचय एवं मित्व:

अर्वथ वेद में जादू -टोना, औिहि, स्वास्थ्य औि गृिथर् जीवन से संबंहित
मंत् िैं। इसमें िोगों के उपचाि, र्ांहत मंत् औि अहभचाि (तंत्-मंत्) से
संबंहित मंत् र्ाहमल िैं।

मित्व: अर्वथवेद िाहमथक, हचहकत्सकीय औि सामाहजक जीवन में


मित्वपूणथ भूहमका हनभाता िै। यि मानव जीवन के हवहभन्न पिलुओ ं पि
प्रकार् डालता िै ।

ब्राह्मण

परिचय एवं मित्व:


ब्राह्मण ग्रंर् वेदों के कमथकांड औि यज्ञों की हवस्तृत व्याख्या किते िैं। ये
ग्रंर् मुख्यतः यज्ञों के हनयम, प्रहिया औि मित्व पि केंहद्रत िैं।

वेदों से संबंहित ब्राह्मण ग्रंर्:

- ऋग्वेद: ऐतिे य ब्राह्मण, कौिीतहक ब्राह्मण

- यजुवेद: तैहििीय ब्राह्मण, र्तपर् ब्राह्मण

- सामवेद: पंचहवंर् ब्राह्मण, र्ाल्किल्य ब्राह्मण

- अर्वथवेद: गोपर् ब्राह्मण

प्रहतपाद्य हविय एवं मित्व:

ब्राह्मण ग्रंर् यज्ञों के आयोजन, हवहि-हविान औि उनके आध्याल्किक मित्व


पि चचाथ किते िैं। ये ग्रंर् यज्ञों के गूढ़ ििस्ों औि प्रतीकवाद को समझने
में मदद किते िैं।

आिण्यक

परिचय एवं मित्व:

आिण्यक ग्रंर् वेदों के कमथकांड औि ध्यान के हमहित रूपों पि केंहद्रत िैं।


ये ग्रंर् उन ऋहियों द्वािा हलखे गए िैं जो जंगलों में ििते र्े।

वेदों से संबंहित आिण्यक ग्रंर्:

- ऋग्वेद: ऐतिे य आिण्यक


- यजुवेद: तैहििीय आिण्यक

- सामवेद: चां दोग्य आिण्यक

- अर्वथवेद: गोपर् आिण्यक

प्रहतपाद्य हविय एवं मित्व:

आिण्यक ग्रंर् यज्ञों के प्रतीकवाद, ध्यान औि आिज्ञान पि चचाथ किते िैं।


ये ग्रंर् मानव जीवन के आध्याल्किक औि भौहतक दोनों पिलुओ ं को
संतुहलत किने का प्रयास किते िैं।

उपहनिद्

परिचय एवं मित्व:

उपहनिद् वे दों के दार्थ हनक औि आध्याल्किक हर्क्षाओं का संकलन िैं ।


इन्हें वेदां त भी किा जाता िै , क्ोंहक ये वेदों के अंहतम भाग िैं।

वे दों से संबंहित उपहनिद् :

- ऋग्वेद: ऐतिे य उपहनिद्

- यजुवेद: ईर्, कठ, तैहििीय उपहनिद्

- सामवेद: छां दोग्य, केन उपहनिद्

- अर्वथवेद: मुिक, मािूक्, प्रश्न उपहनिद्


प्रहतपाद्य हविय एवं मित्व:

उपहनिद् आिा, ब्रह्म, माया, मोक्ष औि योग जैसे हवियों पि केंहद्रत िैं । ये
ग्रंर् आिज्ञान औि ब्रह्मज्ञान की ओि मागथदर्थन किते िैं।

वेदाङ्ग

परिचय एवं मित्व:

वेदाङ्ग वेदों के अध्ययन औि अनुष्ठानों की हवहि को समझने के हलए


सिायक ग्रंर् िैं। ये छः िैं: हर्क्षा, व्याकिण, छन्द, हनरुक्त, ज्योहति औि
कल्प।

प्रहतपाद्य हविय एवं मित्व:

- हर्क्षा: उच्चािण औि स्वि हवज्ञान

- व्याकिण: भािा औि व्याकिण के हनयम

- छन्द: वैहदक मंत्ों के छन्द

- हनरुक्त: वैहदक र्ब्ों का व्याख्या

- ज्योहति: खगोल हवज्ञान औि कालगणना

- कल्प: अनुष्ठानों औि यज्ञों की हवहि

वेदाङ्ग वेदों के सिी अध्ययन औि अनुष्ठानों की र्ु द्धता बनाए िखने में
मित्वपूणथ भूहमका हनभाते िैं। इनका उद्दे श्य वेदों के ज्ञान को संिहक्षत औि
संप्रेहित किना िै।
UNIT 2

वैहदक मंत्, सूक्त, दे वता एवं कल्पसूत्

वैहदक मंत्, सूक्त, दे वता परिचय एवं हवर्ेिताएँ

वैहदक मंत्:

वैहदक मंत् पहवत् औि संस्कृत भािा में हलखे गए िैं , जो मुख्यतः ऋचाओं के रूप में
िोते िैं । इन्हें वेदों में संकहलत हकया गया िै औि ये िाहमथक अनुष्ठानों, यज्ञों, औि
दे वताओं की स्तु हत के हलए उपयोग हकए जाते िैं । मंत्ों में उच्चािण, स्विों का सिी
उपयोग, औि यज्ञ के समय उनका हवर्ेि मित्त्व िोता िै ।

वैहदक सूक्त:

सूक्त वेदों का एक खंड िोता िै हजसमें कई मंत् या ऋचाएँ एक सार् हमलकि एक


हवहर्ष्ट उद्दे श्य या दे वता की स्तु हत किते िैं । प्रिेक सूक्त एक हवहर्ष्ट दे वता को
समहपथत िोता िै औि उसमें उस दे वता की महिमा, कायथ औि गुणों का वणथन हकया
जाता िै ।

दे वता:

वैहदक दे वता मुख्यतः प्राकृहतक र्ल्कक्तयों औि तत्वों के प्रतीक िोते िैं । प्रमुख वैहदक
दे वताओं में इं द्र (वज्रिािी दे वता), अहि (अहि दे वता), सोम (अमृत के दे वता), वरुण
(सि औि जल के दे वता), औि सूयथ (सूयथ दे वता) र्ाहमल िैं ।
कल्पसूत् परिचय एवं मित्त्व

परिचय:

कल्पसूत् वेदांगों का एक हिस्सा िै, हजसमें यज्ञ औि अनुष्ठानों की हवहियाँ, हनयम,


औि प्रहियाएँ वहणथत िैं । इन्हें वैहदक यज्ञों औि अनुष्ठानों के आयोजन में मागथ दर्थन
दे ने के हलए हलखा गया िै ।

मित्त्व:

कल्पसूत् यज्ञों की सिी प्रहिया औि हनयमों को समझने में मित्वपूणथ भूहमका हनभाते
िैं । ये अनुष्ठानों की र्ुद्धता औि िाहमथक हवहियों का पालन सुहनहित किते िैं ।
कल्पसूत्ों का अध्ययन यज्ञों औि िाहमथक अनुष्ठानों की गिन समझ प्रदान किता िै ।

िौतसूत् एवं वेद के िौतसूत्

परिचय:

िौतसूत् वेदों से संबंहित सूत् साहिि का एक भाग िै, हजसमें यज्ञों औि अनुष्ठानों की
हवस्तृ त हवहियाँ वहणथत िैं । ये मुख्यतः वैहदक अनुष्ठानों के हलए मित्वपूणथ िोते िैं औि
इन्हें िुहत साहिि के रूप में माना जाता िै ।

मित्त्व:
िौतसूत् यज्ञों औि अनुष्ठानों की र्ुद्धता औि उनकी हवहियों का सिी ढं ग से पालन
सुहनहित किते िैं । इनका अध्ययन वैहदक िमथर्ास्त्ों की गिन समझ के हलए
आवश्यक िै ।

गृ ह्यसूत् परिचय एवं प्रमुख गृ ह्यसूत्

परिचय:

गृ ह्यसूत् घिे लू अनुष्ठानों औि संस्कािों के हनयमों का संकलन िै । इनमें हववाि,


नामकिण, गभाथिान, उपनयन, औि िाद्ध जैसे संस्कािों का हवस्तृ त हवविण हमलता
िै । गृ ह्यसूत्ों का पालन घि के भीति हकए जाने वाले िाहमथक अनुष्ठानों में हकया जाता
िै ।

प्रमुख गृ ह्यसूत्:

1. आश्वलायन गृह्यसूत्

2. पािस्कि गृह्यसूत्

3. गृत्समद गृह्यसूत्

4. कािायन गृह्यसूत्

मित्त्व:

गृ ह्यसूत् वैहदक कालीन घिे लू जीवन औि संस्कािों की सिी हवहि औि प्रहियाओं को


बनाए िखने में सिायक िोते िैं । ये व्यल्कक्तगत औि पारिवारिक िाहमथक अनुष्ठानों की
र्ुद्धता सुहनहित किते िैं ।
िमथसूत् परिचय एवं प्रमुख िमथसूत्

परिचय:

िमथसूत् वैहदक कालीन समाज के िाहमथक, नैहतक औि सामाहजक हनयमों का


संकलन िै । ये िाहमथक कतथ व्यों, आचाि-संहिता, औि सामाहजक व्यवथर्ा के हनयमों
को थर्ाहपत किते िैं ।

प्रमुख िमथसूत्:

1. गौतम िमथसूत्

2. बौिायन िमथसूत्

3. आपस्तंब िमथसूत्

4. वहसष्ठ िमथसूत्

मित्त्व:

िमथसूत् समाज की नैहतक औि िाहमथक व्यवथर्ा को बनाए िखने में मित्वपू णथ


भूहमका हनभाते िैं । ये समाज के हवहभन्न वगों के कतथ व्यों औि अहिकािों को स्पष्ट
किते िैं औि सामाहजक न्याय औि नैहतकता को बढ़ावा दे ते िैं ।

र्ुल्बसूत् परिचय एवं प्रमुख र्ुल्बसूत्


परिचय:

र्ुल्बसूत् वैहदक यज्ञ वेहदयों के हनमाथण की ज्याहमतीय हवहियों का संकलन िै । इनमें


यज्ञ वेहदयों के आकाि, माप औि हनमाथण की प्रहिया का वणथन िै ।

प्रमुख र्ुल्बसूत्:

1. बौिायन र्ुल्बसूत्

2. आपस्तंब र्ुल्बसूत्

3. कािायन र्ुल्बसूत्

4. माणव र्ुल्बसूत्

मित्त्व:

र्ुल्बसूत् प्राचीन भाितीय ज्याहमहत औि गहणत के अध्ययन के मित्वपूणथ स्रोत िैं । ये


यज्ञ वेहदयों के हनमाथण में सिी माप औि ज्याहमतीय हवहियों का पालन सुहनहित किते
िैं । इनका अध्ययन वैहदक गहणत औि ज्याहमहत की प्रगहत को समझने में सिायक
िोता िै ।

इन सभी वैहदक ग्रं र्ों औि साहिि का अध्ययन िमें वैहदक काल की सामाहजक,
िाहमथक, औि वैज्ञाहनक उन्नहत के बािे में गििी जानकािी प्रदान किता िै । यि िमािी
प्राचीन ििोिि औि ज्ञान का संिक्षण औि प्रचाि-प्रसाि किने में मित्वपूणथ िै ।

UNIT 3

वेदों में हवज्ञान


वेदों में हनहित हवज्ञान का परिचय, संबंि एवं मित्व

वेदों में हनहित हवज्ञान, प्राचीन भाितीय समाज के व्यापक औि समृद्ध ज्ञान का प्रमाण
िै । वेदों में हवहभन्न हवज्ञान र्ाखाओं का उल्लेख हमलता िै , जो यि दर्ाथता िै हक
वैहदक युग में हवज्ञान औि तकनीकी ज्ञान उन्नत अवथर्ा में र्ा। ये हवज्ञान र्ाखाएँ न
केवल िाहमथक औि आध्याल्किक जीवन का हिस्सा र्ी,ं बल्कि दै हनक जीवन औि
समाज की भौहतक प्रगहत में भी मित्वपू णथ भूहमका हनभाती र्ी ं।

िसायन हवज्ञान

परिचय एवं मित्व:

वेदों में िसायन हवज्ञान का अध्ययन ‘िसर्ास्त्’ के रूप में जाना जाता िै । इसमें िातु ,
खहनज औि औिहियों के िासायहनक गुणों औि उपयोग का वणथन िै । अर्वथवेद में
हवहभन्न िातुओ ं औि उनकी हमििातु ओ ं का उल्लेख हमलता िै ।

मित्व:

वैहदक िसायन हवज्ञान हचहकत्सा, िातु हवज्ञान औि औिहि हनमाथण में मित्वपू णथ र्ा।
इसे भाितीय आयुवेद औि िातु हवज्ञान की नी ंव माना जा सकता िै ।

भौहतक हवज्ञान

परिचय एवं मित्व:

वेदों में भौहतक हवज्ञान का उल्लेख अहि, प्रकार्, ध्वहन औि ब्रह्माि के तत्वों के
रूप में हमलता िै । ऋग्वे द में अहि के हवहभन्न रूपों औि उसकी ऊजाथ का हवस्तृत
वणथन िै ।
मित्व:

वैहदक भौहतक हवज्ञान ने अहि, प्रकार् औि ध्वहन की मौहलक समझ हवकहसत किने
में योगदान हदया। ये अविािणाएं आिु हनक भौहतक हवज्ञान की नी ंव का हिस्सा मानी
जा सकती िैं ।

वनस्पहत हवज्ञान

परिचय एवं मित्व:

वेदों में हवहभन्न पे ड़-पौिों, उनके औििीय गुणों औि उपयोग का हवस्तृ त हवविण िै ।
अर्वथवेद औि आयुवेद में औििीय पौिों का उल्लेख हमलता िै।

मित्व:

वनस्पहत हवज्ञान का यि ज्ञान आयुवेहदक हचहकत्सा प्रणाली का आिाि िै । यि प्राचीन


भाितीय हचहकत्सा पद्धहत में प्राकृहतक औिहियों के उपयोग को बढ़ावा दे ता िै ।

जन्तु हवज्ञान

परिचय एवं मित्व:

वेदों में हवहभन्न पर्ु-पहक्षयों औि उनके व्यविाि का वणथन िै । यजुवेद में पर्ु -बहल
औि उनके िाहमथक मित्व का उल्लेख हमलता िै ।

मित्व:

जन्तु हवज्ञान का यि ज्ञान कृहि, पर्ुपालन औि िाहमथक अनुष्ठानों में मित्वपू णथ र्ा।
यि मानव औि पर्ु के बीच के संबंि को भी दर्ाथता िै ।
कृहि हवज्ञान

परिचय एवं मित्व:

वेदों में कृहि औि खेती के हवहभन्न तिीकों का वणथन िै । अर्वथवेद में कृहि के हलए
आवश्यक उपकिणों औि हवहियों का उल्लेख िै ।

मित्व:

कृहि हवज्ञान का यि ज्ञान वैहदक समाज की आिहनभथिता औि आहर्थक ल्कथर्िता का


आिाि र्ा। यि भाितीय कृहि की प्राचीन पद्धहतयों को समझने में मदद किता िै ।

आयुहवथज्ञान

परिचय एवं मित्व:

वेदों में आयुहवथज्ञान का हवस्तृ त वणथन िै , हजसे आयुवेद के रूप में जाना जाता िै ।
इसमें र्िीि, स्वास्थ्य, िोग औि उपचाि के तिीकों का उल्लेख िै ।

मित्व:

आयुहवथज्ञान का यि ज्ञान आज भी भाितीय हचहकत्सा पद्धहत में मित्वपूणथ भूहमका


हनभाता िै । यि समग्र स्वास्थ्य औि जीवनर्ैली में संतुलन बनाए िखने की हदर्ा में
योगदान दे ता िै ।

गहणतर्ास्त्
परिचय एवं मित्व:

वेदों में गहणतर्ास्त् का उल्लेख ‘र्ुल्ब सूत्’ के रूप में हमलता िै , हजसमें ज्याहमहत,
अंकगहणत औि गणनाओं का हवविण िै ।

मित्व:

गहणतर्ास्त् का यि ज्ञान वेदों के यज्ञ वेहदयों के हनमाथण औि अनुष्ठानों के आयोजन


में मित्वपू णथ र्ा। यि प्राचीन भाितीय गहणत के हवकास का प्रमाण िै ।

पयाथविण

परिचय एवं मित्व:

वेदों में पयाथविण संिक्षण औि संतुलन का हवर्ेि मित्व हदया गया िै । ऋग्वे द औि
अर्वथवेद में प्रकृहत के तत्वों की स्तु हत औि संिक्षण का उल्लेख िै।

मित्व:

पयाथविण का यि ज्ञान प्राचीन भाितीय समाज की प्रकृहत के प्रहत संवेदनर्ीलता औि


उसका सम्मान दर्ाथता िै । यि आिु हनक पयाथविण संिक्षण के हसद्धांतों के सार् मेल
खाता िै औि सतत हवकास की हदर्ा में मागथ दर्थन किता िै ।

सािांर्

वेदों में हनहित हवज्ञान का अध्ययन यि दर्ाथता िै हक वैहदक युग में ज्ञान औि हवज्ञान
की उन्नत ल्कथर्हत र्ी। यि ज्ञान न केवल िाहमथक औि आध्याल्किक जीवन का हिस्सा
र्ा, बल्कि समाज के भौहतक औि सांस्कृहतक हवकास में भी मित्वपूणथ योगदान दे ता
र्ा। वेदों में हनहित हवहवि हवज्ञान र्ाखाएँ आज भी प्रासंहगक िैं औि आिु हनक
हवज्ञान के हवहभन्न क्षेत्ों में प्रे िणा का स्रोत बनी हुई िैं ।

UNIT 4

वैहदक समाज एवं परिवाि

परिचय एवं मित्व

परिचय:

वैहदक समाज एक संगहठत औि सुव्यवल्कथर्त सामाहजक संिचना र्ी हजसमें परिवाि


को सबसे मित्वपू णथ इकाई माना जाता र्ा। परिवाि को 'कुल' या 'गृ ि' किा जाता
र्ा, औि इसे समाज की आिािभूत इकाई माना जाता र्ा। परिवाि हपतृ सिािक
र्ा, हजसमें हपता या घि के वरिष्ठ सदस् को मुल्कखया माना जाता र्ा।

मित्व:

वैहदक समाज की पारिवारिक संिचना ने सामाहजक ल्कथर्िता औि संगठन को बनाए


िखने में मित्वपू णथ भूहमका हनभाई। परिवाि ने बच्चों की हर्क्षा, सामाहजक मूल्यों
औि िाहमथक अनुष्ठानों का पालन किने का माध्यम प्रदान हकया। इसके अहतरिक्त,
पारिवारिक इकाई ने आहर्थक सियोग औि सिायता प्रदान की, हजससे समाज की
आिहनभथिता बनी ििी।

वैहदक जनिाज्य

परिचय एवं मित्व

परिचय:
वैहदक काल में जनजातीय गणिाज्य (जनिाज्य) की पिं पिा र्ी। प्रिेक जनिाज्य का
नेतृत्व एक िाजा द्वािा हकया जाता र्ा, हजसे सभा औि सहमहत के समर्थन से चुना
जाता र्ा। िाजा का कायथ समाज की सुिक्षा, न्याय व्यवथर्ा औि यज्ञों का संचालन
किना र्ा।

मित्व:

जनिाज्य व्यवथर्ा ने प्राचीन भाितीय समाज में लोकतांहत्क हसद्धांतों की नी ंव िखी।


यि प्रणाली सामूहिक हनणथय ले ने की पिं पिा को दर्ाथती िै , जो सामाहजक समिसता
औि न्यायपूणथ र्ासन की अविािणा को बढ़ावा दे ती र्ी।

वैहदक प्रर्ासहनक व्यवथर्ा

परिचय एवं मित्व

परिचय:

वैहदक काल में प्रर्ासहनक व्यवथर्ा व्यवल्कथर्त औि संगहठत र्ी। िाजा का मुख्य
कायथ न्याय किना, यज्ञों का आयोजन किना, औि समाज की िक्षा किना र्ा। िाजा
के सिायता के हलए हवहभन्न अहिकािी िोते र्े , जैसे पु िोहित (िाहमथक अनुष्ठानों के
हलए), सेनापहत (सेना के प्रमुख), औि ग्रामणी (ग्राम प्रमुख)।

मित्व: वैहदक प्रर्ासहनक व्यवथर्ा ने समाज की सुिक्षा, न्याय औि िाहमथक


अनुष्ठानों को सुहनहित किने में मित्वपू णथ भूहमका हनभाई। यि व्यवथर्ा समाज की
संिचना को सुव्यवल्कथर्त िखने औि र्ासन में अनुर्ासन बनाए िखने में सिायक
र्ी।

वैहदक कालीन भौगोहलक ल्कथर्हत

परिचय एवं मित्व


परिचय:

वैहदक काल में आयों का मुख्य हनवास क्षेत् 'सप्त-हसंिु' क्षेत् र्ा, हजसमें सात प्रमुख
नहदयाँ र्ाहमल र्ी ं - हसंिु, सिस्वती, िावी, चेनाब, झेलम, सतलुज, औि यमुना। इस
क्षेत् में ििे -भिे मैदान, उपजाऊ भूहम, औि पयाथप्त जल संसािन र्े।

मित्व:

भौगोहलक ल्कथर्हत ने वैहदक समाज के आहर्थक औि सांस्कृहतक हवकास में मित्वपू णथ


भूहमका हनभाई। उपजाऊ भूहम औि जल संसािनों की उपलब्धता ने कृहि को
प्रोत्साहित हकया, हजससे समाज की आहर्थक ल्कथर्िता बनी ििी। इसके अलावा, इस
क्षेत् ने व्यापाि औि सांस्कृहतक आदान-प्रदान को भी बढ़ावा हदया।

वैहदक कालीन आहर्थक जीवन

परिचय एवं मित्व

परिचय:

वैहदक काल में आहर्थक जीवन मुख्यतः कृहि पि आिारित र्ा। लोग जौ, गे हं, औि
चावल जैसी फसलों की खेती किते र्े। पर्ुपालन भी एक मित्वपूणथ आहर्थक
गहतहवहि र्ी, हजसमें गायों, बैलों, औि घोड़ों का पालन प्रमुख र्ा। व्यापाि औि
वाहणज्य का भी उल्लेख हमलता िै, हजसमें वस्तु हवहनमय प्रणाली प्रचहलत र्ी।

मित्व:

वैहदक कालीन आहर्थक जीवन ने समाज की आिहनभथिता औि आहर्थक ल्कथर्िता को


सुहनहित हकया। कृहि औि पर्ुपालन ने खाद्य सुिक्षा औि पोिण सुहनहित हकया,
जबहक व्यापाि ने सामाहजक औि सांस्कृहतक संपकथ को बढ़ावा हदया।
वैहदक ऋहि एवं ऋहिकाओं का परिचय एवं उनकी मित्वपू णथ भूहमका

परिचय एवं भूहमका

परिचय:

वैहदक ऋहि औि ऋहिकाएँ ज्ञान, िमथ, औि दर्थन के क्षेत् में मित्वपूणथ योगदान दे ने
वाले मिान हवद्वान र्े। ऋहि पु रुि औि महिलाएँ दोनों िोती र्ी,ं हजन्होंने वेदों की
िचना की औि िाहमथक, दार्थहनक, औि सामाहजक हसद्धांतों का प्रचाि-प्रसाि हकया।
कुछ प्रमुख ऋहियों में वहर्ष्ठ, हवश्वाहमत्, अगस्त्य, औि अहत् र्ाहमल िैं, जबहक
प्रमुख ऋहिकाओं में गागी, मैत्ेयी, औि लोपामुद्रा का उल्लेख हमलता िै ।

मित्वपू णथ भूहमका:

1. वेदों की िचना: ऋहियों ने वेदों की िचना की, जो भाितीय िमथ, दर्थन, औि


साहिि का आिाि िैं।

2. िाहमथक औि दार्थहनक ज्ञान का प्रचाि: ऋहियों ने िाहमथक अनुष्ठानों, यज्ञों, औि


दार्थहनक हसद्धांतों का प्रचाि-प्रसाि हकया।

3. हर्क्षा औि समाज सुिाि: ऋहिकाओं ने हर्क्षा के क्षेत् में योगदान हदया औि


समाज सुिाि में मित्वपूणथ भूहमका हनभाई।

4. हवज्ञान औि हचहकत्सा: कई ऋहियों ने आयुवेद, ज्योहति, औि अन्य हवज्ञान


र्ाखाओं में मित्वपूणथ योगदान हदया।

मित्व

वैहदक ऋहि औि ऋहिकाएँ समाज के आध्याल्किक औि बौल्कद्धक हवकास में मित्वपूणथ


भूहमका हनभाते र्े। उन्होंने िाहमथक औि दार्थहनक ज्ञान का प्रसाि हकया, हजससे
समाज को नैहतक औि सांस्कृहतक मागथ दर्थन हमला। इनके योगदान ने भाितीय
संस्कृहत औि सभ्यता की नी ंव को मजबूत हकया औि आने वाली पीहढ़यों के हलए
अमूल्य ज्ञान औि पिं पिाएँ थर्ाहपत की ं।

UNIT 5

वैहदक गुरुकुल पिं पिा

परिचय एवं मित्व

परिचय:

वैहदक गु रुकुल पिं पिा प्राचीन भाितीय हर्क्षा प्रणाली का आिाि र्ी, हजसमें हर्क्षा
का केंद्र गुरु का आिम या गुरुकुल िोता र्ा। इसमें हवद्याहर्थयों (हर्ष्ों) को गु रुकुल
में ििकि हर्क्षा प्राप्त किनी िोती र्ी। यि हर्क्षा प्रणाली पू िी तिि से आवासीय र्ी,
जिाँ छात् अपने गुरु के मागथ दर्थन में हर्क्षा प्राप्त किते र्े। गु रुकुलों में वेद, िमथ,
िाजनीहत, युद्ध कला, गहणत, हवज्ञान, औि अन्य हवियों का अध्ययन किाया जाता
र्ा।

मित्व:

गु रुकुल पिं पिा ने हर्ष्ों को न केवल र्ैहक्षक ज्ञान प्रदान हकया बल्कि उन्हें
नैहतकता, अनुर्ासन, औि आिहनभथिता भी हसखाई। यि प्रणाली गुरु-हर्ष् पिं पिा
पि आिारित र्ी, हजसमें गु रु औि हर्ष् के बीच गििा औि व्यल्कक्तगत संबंि िोता
र्ा। यि हर्क्षा प्रणाली व्यल्कक्तगत हवकास औि समाज के नैहतक औि सांस्कृहतक
मूल्यों को सुदृढ़ किने में मित्वपू णथ भूहमका हनभाती र्ी।

हर्क्षा

परिचय:

गु रुकुल हर्क्षा प्रणाली में हर्क्षा को एक समग्र प्रहिया माना जाता र्ा, हजसमें
र्ािीरिक, मानहसक, औि आध्याल्किक हवकास पि जोि हदया जाता र्ा। हर्क्षा का
उद्दे श्य न केवल ज्ञान प्राप्त किना बल्कि जीवन के सभी पिलु ओ ं में संतुलन औि
अनुर्ासन प्राप्त किना र्ा।

हर्क्षा के छि घटक तत्त्व

1. हर्क्षक (गुरु):

परिचय: गुरु हर्क्षण के केंद्र हबंदु िोते र्े औि उनका मुख्य कायथ हर्ष्ों को ज्ञान
प्रदान किना औि उनका मागथ दर्थन किना िोता र्ा।

मित्त्व: गुरु का ज्ञान, अनुभव, औि नैहतकता हर्ष्ों को प्रे रित किती र्ी। गुरु-
हर्ष् संबंि में गुरु का आदि औि आज्ञा का पालन मित्वपू णथ िोता र्ा।

2. हर्क्षार्ी (हर्ष्):

परिचय: हर्ष् वे हवद्यार्ी िोते र्े जो गु रुकुल में ििकि हर्क्षा प्राप्त किते र्े। उन्हें
गु रु की सेवा औि अध्ययन में पूणथतः समहपथ त िोना पड़ता र्ा।

मित्त्व: हर्ष् का अनुर्ासन, आज्ञाकारिता, औि ज्ञान के प्रहत समपथ ण हर्क्षा की


गु णविा को हनिाथरित किता र्ा।

3. हर्क्षा के केंद्र (गुरुकुल):

परिचय: गुरुकुल वि थर्ान र्ा जिाँ हर्क्षा प्रदान की जाती र्ी। यि गु रु का आिम
िोता र्ा, जिाँ हर्ष् हनवास किते औि हर्क्षा प्राप्त किते र्े।

मित्त्व: गुरुकुल एक र्ांहत औि अनुर्ासन का वाताविण प्रदान किता र्ा, जिाँ


हर्ष् ध्यान, अध्ययन, औि हवहभन्न र्ािीरिक गहतहवहियों में भाग लेते र्े।

4. हर्क्षा का हविय:

परिचय: गुरुकुल में पढ़ाए जाने वाले हवियों में वेद, उपहनिद, व्याकिण, गहणत,
आयुवेद, ज्योहति, िाजनीहत, युद्ध कला, औि अन्य र्ास्त् र्ाहमल र्े।
मित्त्व: इन हवियों का अध्ययन हर्ष्ों को व्यापक ज्ञान प्रदान किता र्ा औि उन्हें
समाज में हवहभन्न भूहमकाओं के हलए तै याि किता र्ा।

5. माता-हपता:

परिचय: माता-हपता हर्ष्ों की प्रािं हभक हर्क्षा औि संस्कािों के प्रर्म हर्क्षक िोते
र्े। वे अपने बच्चों को गु रुकुल भेजते र्े ताहक वे उच्च हर्क्षा प्राप्त कि सकें।

मित्त्व: माता-हपता का समर्थन औि मागथदर्थन हर्ष्ों के नैहतक औि मानहसक


हवकास में मित्वपू णथ भूहमका हनभाता र्ा।

6. समाज:

परिचय: समाज हर्क्षा प्रणाली का एक अहभन्न हिस्सा र्ा। समाज के लोग गु रुकुल
का समर्थन किते र्े औि हर्क्षा को समाज की प्रगहत औि संस्कृहत के संिक्षण का
माध्यम मानते र्े।

मित्त्व: समाज हर्क्षा के मित्व को मान्यता दे ता र्ा औि गुरुकुलों के संचालन में


योगदान किता र्ा। सामाहजक समर्थन से हर्क्षा प्रणाली सुदृढ़ औि समृद्ध िोती र्ी।

हनष्किथ

वैहदक गु रुकुल पिं पिा एक समग्र औि समहपथ त हर्क्षा प्रणाली र्ी, हजसने व्यल्कक्तयों
के सवाांगीण हवकास में मित्वपू णथ भूहमका हनभाई। इस प्रणाली ने न केवल ज्ञान का
प्रसाि हकया बल्कि नैहतकता, अनुर्ासन, औि समाज के प्रहत हजम्मेदािी की भावना
भी हवकहसत की। गुरुकुल पिं पिा ने भाितीय समाज के सांस्कृहतक औि बौल्कद्धक
हवकास में एक मित्वपू णथ भूहमका हनभाई, जो आज भी प्रे िणा का स्रोत िै ।

UNIT 6

वैहदक यज्ञ भाितीय संस्कृहत औि िमथ में एक मित्वपू णथ भूहमका हनभाते िैं । वेदों में
यज्ञ को पिमािा की आिािना का सवोिम सािन माना गया िै । यज्ञ से तात्पयथ िै -
"समपथण" या "आहुहत" दे ना। वैहदक यज्ञ अनेक प्रकाि के िोते िैं, हजनका उद्दे श्य
हभन्न-हभन्न िोता िै । हनम्नहलल्कखत में प्रमुख वैहदक यज्ञों का परिचय, मित्व औि
हवविण हदया गया िै :

1. दर्थ यज्ञ (Darsh Yajna)

परिचय: दर्थ यज्ञ अमावस्ा (नई चंद्रमा) के हदन हकया जाता िै । इसे 'दर्थपौणथमास
यज्ञ' भी किा जाता िै क्ोंहक इसे अमावस्ा औि पू हणथमा दोनों हदनों में हकया जाता
िै ।

मित्त्व: इसका मुख्य उद्दे श्य जीवन के नकािािक प्रभावों को समाप्त किना औि
र्ांहत औि समृल्कद्ध की थर्ापना किना िै ।

2. पौणथमास यज्ञ (Purnamas Yajna)

परिचय: पौणथमास यज्ञ पू हणथमा (पू णथ चंद्रमा) के हदन हकया जाता िै।

मित्त्व: इस यज्ञ का उद्दे श्य आथर्ा औि र्ांहत को बढ़ाना, एवं इच्छाओं की पू हतथ
किना िै ।

3. सोमयज्ञ (Somayajna)

परिचय: सोमयज्ञ एक हवर्ेि प्रकाि का यज्ञ िै हजसमें सोमलता के िस का प्रयोग


िोता िै ।

मित्त्व: इसे दे वताओं को प्रसन्न किने औि र्ल्कक्त, समृल्कद्ध एवं र्ांहत प्राप्त किने के
हलए हकया जाता िै ।

4. सवथमेि यज्ञ (Sarvamedha Yajna)


परिचय: सवथमेि यज्ञ एक बहुत िी मित्वपूणथ यज्ञ िै हजसमें सभी प्रकाि की आहुहतयाँ
दी जाती िैं ।

मित्त्व: इसका उद्दे श्य संपूणथ हवश्व की भलाई औि र्ांहत के हलए िोता िै ।

5. वाजपेय यज्ञ (Vajapeya Yajna)

परिचय: वाजपे य यज्ञ एक बहुत िी मित्त्वपूणथ यज्ञ िै , हजसमें घी, अनाज, औि अन्य
पदार्ों की आहुहत दी जाती िै ।

मित्त्व: इसे अिंत फलदायी औि र्ांहत प्रदान किने वाला यज्ञ माना जाता िै । इसे
किने से िाजा की र्ल्कक्त औि सामर्थ्थ में वृल्कद्ध िोती िै ।

6. िाजसूय यज्ञ (Rajasuya Yajna)

परिचय: यि यज्ञ एक िाजा द्वािा हकया जाता िै जो पू िे दे र् पि अपना अहिकाि


थर्ाहपत किना चािता िै ।

मित्त्व: यि यज्ञ र्ल्कक्त, साम्राज्य औि र्ौयथ की प्रतीक माना जाता िै । इसे किने वाला
िाजा 'सवथभौम' किलाता िै ।

7. सौत्ामणी यज्ञ (Sautramani Yajna)

परिचय: यि यज्ञ हवर्ेि रूप से इं द्र दे वता के सम्मान में हकया जाता िै ।

मित्त्व: इसे किने का मुख्य उद्दे श्य र्िाब के सेवन से उत्पन्न दोिों को समाप्त किना
औि र्ुल्कद्ध प्राप्त किना िै ।
8. अश्वमेि यज्ञ (Ashwamedha Yajna)

परिचय: यि यज्ञ एक मिान यज्ञ िै हजसमें एक घोड़े को मुख्य पात् बनाकि यज्ञ हकया
जाता िै । यि यज्ञ हवर्ेि रूप से िाजा द्वािा हकया जाता िै ।

मित्त्व: अश्वमेि यज्ञ का उद्दे श्य िाजा की सिा औि प्रभुत्व की थर्ापना किना िोता
िै । इसे किने से िाजा को समस्त हदर्ाओं में हवजय प्राप्त िोती िै।

इन सभी यज्ञों का वैहदक िमथ औि संस्कृहत में बहुत िी मित्वपूणथ थर्ान िै । यज्ञों का
उद्दे श्य न केवल व्यल्कक्तगत बल्कि सामूहिक औि सावथभौहमक कल्याण भी िै । यज्ञों से
पयाथविण र्ुद्ध िोता िै , आिा की र्ांहत हमलती िै औि दे वताओं का आर्ीवाथद प्राप्त
िोता िै ।

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