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Internal Assignment for July 2023

PA-03
94620-70112
Public Administration
(II Year Examination)

Indian Administrative Institution भारतीय प्रशासनिक संस्थाएं

Max Marks: 30

Section-A

प्र.1. लोक कल्याणकारी राज्य को परिभाषित करें ।


लोक कल्याणकारी राज्य से तात्पर्य किसी विशेष वर्ग का कल्याण न होकर सम्पर्णू जनता का कल्याण होता है ।
इस तरह सम्पर्णू जनता को केन्द्र मानकर जो राज्य कार्य करता है , वह लोक कल्याणकारी राज्य है ।

प्र.2. नौकरशाही से आप क्या समझते हैं।


आज के समय में नौकरशाही से तात्पर्य एक ऐसे प्रशासन से है जो निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के किसी भी बड़े
संस्थान को नियंत्रित करता है । नौकरशाही प्रशासनिक रूप से उन लोगों को एक संगठन के तहत लाने का एक
तरीका है जिन्हें एक साथ काम करने की आवश्यकता है l

प्र.3. वित्तीय आयोग का मख्


ु य कार्य क्या है ।
वित्त आयोग का गठन राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनच् ु छे द 280 के तहत किया जाता है , मख्
ु य रूप से संघ और
राज्यों के बीच और स्वयं राज्यों के बीच कर राजस्व के वितरण पर अपनी सिफारिशें दे ने के लिए।

प्र.4. लोक कल्याणकारी राज्य का अर्थ क्या है ।


लोक-कल्याणकारी राज्य प्रमख ु रूप से आर्थिक सरु क्षा के विचार पर आधारित है । आर्थिक सरु क्षा से तात्पर्य सभी
व्यक्तियों को रोजगार, न्यन
ू तम जीवन-स्तर की गारण्टी एवं अधिकतम आर्थिक समानता से है । समाजवादी राज्य
आर्थिक समानता पर बल दे ता है यद्यपि समानता का यह विचार प्राकृतिक विधान और प्राकृतिक व्यवस्था के
विरुद्ध है l

प्र.5. दबाव समह ू का वर्णन करें ।


दबाव समह ू ऐसे ही संगठन है जो औपचारिक रूप से राजनीतिक प्रक्रिया में भाग नहीं लेत,े न ही अपने उम्मीदवार
खड़े करते हैं। इसके बजाय वे अपने सदस्यों के हितों की प्राप्ति के लिये राजनीति को प्रभावित करते हैं। वर्तमान
समय में 'नागरिक समाज संगठनों' को प्रमख ु दबाव समह ू के रूप में दे खा जाता है ।

प्र.6. केंद्रीय समाज कल्याण मंडल की भमि


ू का क्या है ।
केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड का मख्
ु य उद्‌
देश्य है समाज में महिलाओं के कल्याण, विकास और सशक्तिकरण के
लिए गैर-सरकारी संगठनों और स्वैच्छिक संगठनों के साथ रचनात्मक भागीदारी सनि ु श्चित करना तथा इस कार्य

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के लिए ऐसे अधिक से अधिक संगठनों को बढ़ावा दे ना। इसी उद्‌देश्य की पर्ति
ू के लिए 1953 में बोर्ड की स्थापना
की गई थी।

Section-B

प्र.1. एक लोकतांत्रिक समाज की भमि


ू का पर चर्चा करें ।
लोकतांत्रिक समाज की भमि ू का
लोकतंत्र ग्रीक शब्द DEMOS (लोक) तथा CRATIA (सत्ता) से मिलकर बना है , जिसका अर्थ है लोगों की सत्ता या
शासन। गिडिंग्स लोकतंत्र को न केवल शासन की एक प्रणाली मानते हैं बल्कि उन्होंने इसे राज्य और समाज की
एक विशिष्ट दशा या इन तीनों का संयोग अथवा समच् ु चय बताया है ।

एक लोकतांत्रिक समाज की प्रमख


ु विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं: -

(अ) ऐसे समाज में सभी निर्णय खल


ु े विचार-विमर्श से लिये जाते हैं,

(ब) निर्णय प्रक्रिया में सम्पर्ण


ू समाज को सहभागी बनाये जाने का प्रयत्न किया जाता है ,

(स) निर्णय लेने का अधिकार जनता द्वारा चन


ु े हुए प्रतिनिधियों का होता है , तथा

(द) अन्तिम निर्णय बहुमत के आधार पर लिये जाते हैं।

भारत एक लोकतांत्रिक समाजवादी समाज:-


भारत ने स्वतंत्रता के पश्चात ् लोकतांत्रिक व्यवस्था को अंगीकार किया है यह सर्वविदित तथ्य है . किन्तु भारत के
संविधान निर्माताओं ने संविधान की प्रारूप रचना के समय इस तथ्य को आत्मसात ् कर लिया था कि इतने बड़े
लोकतंत्र के निवासियों की विपन्नता को दरू करने के लिये हमें एक लोकतांत्रिक समाजवादी चिंतन को अपनी
जीवनशैली और शासन व्यवस्था का आधार बनाना होगा। संविधान में दे श के पिछड़े वर्गों के लिये स्वीकृत की गई
आरक्षण व्यवस्था और नीति निदे शक तत्त्वों में निर्बल वर्गों के उत्थान के लिए स्वीकृत निर्देश इस समाजवादी
चिंतन के आधार माने ज सकते हैं। स्वतंत्रता के तत्काल पश्चात ् हमारे दे श की सरकार ने उस भल ू को परिष्कार
किया जो संविधान निर्माताओं से रह गई थी और योजनाबद्ध विकास का मार्ग स्वीकार करते हुए इस निर्मित
1950 में एक योजना आयोग की स्थापना की जिसे समतावादी समाज के निर्माण की दशा में योजना के निरूपण
का दायित्व सौंपा गया। इसी क्रम में 1954 55 में हमारी संसद व कांग्रेस दल ने एक सर्वसम्मत प्रस्ताव स्वीकार
करते हुए दे श की सरकार को यह निर्देश दिये कि हमें एक समाजवादी समाज की रचना के लिए आगे बढ़ना है ।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक ऐसे लोकतांत्रिक समाजवाद की वकालत की जो इस दे श के निवासियों की आर्थिक
एवं सामाजिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिये सन्निष्ठ प्रयत्न कर सके।

प्र.3. भारत में न्यायपालिका के कार्यों का वर्णन करें ।

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● .न्यायिक समीक्षा और संविधान की व्याख्या (Judicial Review and Interpretation of the
Constitution): न्यायपालिका का यह सर्वोपरि महत्व का कार्य है । व्यवस्थापिका द्वारा जिन विधियों का
निर्माण किया जाता है , उनके अभिप्रायः का स्पष्टीकरण कानन ू ों की व्याख्या के कार्य के अन्तर्गत
न्यायपालिका द्वारा किया जाता है । भारत के सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक समीक्षा और संविधान की
व्याख्या का स्पष्ट अधिकार संविधान द्वारा दिया गया है । सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक समीक्षा और
संविधान की व्याख्या के कार्य से राजनीतिक पद्धति का सावयवी अंग बन जाता है । कानन ू ों की व्याख्या
करना और उसके अनस ु ार अपने निर्णय दे ना एक तरह से कानन ू ों की वैधता की जाँच करना है । अपने इस
कार्य से न्यायपालिका काननू विषयक संदेहपर्ण ू परिस्थितियों की निश्चित व्याख्या कर, उनके
स्पष्टीकरण द्वारा कानन ू के क्षे त्र को व्यापक बना सकती है ।

● अभियोगों का निर्णय (Decision of Cases) व्यवस्थापिका द्वारा पारित एवं कार्यपालिका द्वारा
क्रियान्वित विधियों की अवहे लना करने वाले नागरिकों के विरुद्ध जो अभियोग प्रस्तत
ु किये जाते हैं.
उनका निर्णय न्यायपालिका द्वारा किया जाता है । इसके अलावा नागरिकों को पारस्परिक झगड़ों तथा
नागरिकों और सरकार के बीच विवादों का निर्णय भी इसी के द्वारा किया जाता है ।

● मौलिक अधिकारों का रक्षक (Custodian of Fundamental Rights):- न्यायपालिका व्यक्ति की


स्वतन्त्रता तथा उनके अधिकारों की रक्षा का कार्य करती हैं। यदि सरकार या सरकारी पदाधिकारी या कोई
संस्था या किसी नागरिक द्वारा इन मौलिक अधिकारों का हनन किया जाये तो वह व्यक्ति न्यायपालिका
में अपने अधिकारों की रक्षा के लिए याचिका प्रस्तत ु कर सकता है । भारत का संविधान इन दोनों ही
न्यायालयों को मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए याचिका सन ु ने का प्रारं भिक क्षेत्राधिकार प्रदान करता
है । कोई भी पीड़ित नागरिक असाधारण उपचार के अन्तर्गत इन न्यायालयों के समक्ष बन्दी प्रत्यक्षीकरण,
अधिकार पच् ृ छा, परमादे श निषेधाज्ञा और उत्प्रेषण के लेख जारी करने की प्रार्थना कर सकता है । इस तरह
नागरिकों के अधिकारों की रक्षा का कार्य न्यायालयों ‌द्वारा ही किया जाता है ।

● नागरिक अधिकारों की रक्षा (Protection of Civil Rights) न्यायपालिका व्यक्ति की स्वतंत्रता तथा
उनके अधिकारों की रक्षा का कार्य करती हैं। व्यक्ति को न्याय मिलता रहे , उसके अधिकार सरु क्षित रहे तो
वह राजनीतिक प्रक्रिया की भागीदारी में शामिल हो जाता है । दे श की सामान्य विधि द्वारा निःसतृ जो भी
अधिकार नागरिकों को मिलते हैं, वे नागरिक अधिकार माने जाते हैं।

● संविधान की संरक्षक (Guardian of the Constitution): सरकार के अन्य दो अंग व्यवस्थापिका और


कार्यपालिका द्वारा संपादित किये जाने वाले कार्य संविधान की भावना एवं प्रावधानों के अनक ु ू ल हैं अथवा
नहीं, यह न्यायपालिका का कार्य है । संविधान की रक्षा के लिए अमेरिका में 1803 ई० में मख्
ु य
न्यायाधिपति मार्शल ने मार्बरी बनाम मैडीसन वाद में यह निर्णय दिया था कि उच्चतम न्यायालय को यह
अधिकार है कि वह यह दे ख सकें कि कांग्रेस द्वारा पास किया गया कानन ू संविधान के अनरू ु प है या नहीं।
न्यायपालिका के इस अधिकार को न्यायिक पन ु रावलोकन के नाम से भी जाना जाता है ।

प्र.4. लोक कल्याणकारी राज्य की भमिू का पर चर्चा करें ।


लोक कल्याणकारी राज्य की भमि ू का
● आन्तरिक शांति एवं बाह्य आक्रमणों से रक्षा
राज्य का स्वरुप चाहे अहस्तक्षेपवादी हो या लोक कल्याणकारी अपने दे श की सीमाओं और सम्मान की बाह्य
आक्रमण से रक्षा करना प्राथमिक कर्तव्य है । प्रत्येक राज्य को आन्तरिक शांति एवं कानन
ू व्यवस्था बनाये रखना

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प्रमख
ु कर्तव्य है । जो राज्य अपनी सम्प्रभत
ु ा, स्वतंत्रता एवं अस्तित्व की रक्षा नहीं कर सकता वह राज्य कहलाने
योग्य नहीं है । इस कार्य को सम्पन्न करने के लिए राज्य को सेना व पलि ु स की व्यवस्था करनी होती है ।

● शिक्षा और स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्य


लोक कल्याणकारी राज्य का मख् ु य ध्येय अपने नागरिकों को सम्पर्ण ू व्यक्तित्व के विकास हे तु शैक्षणिक एव
स्वास्थ्य सम्बन्धी वातावरण तैयार करना होता है । इस प्रकार राज्य शिक्षण संस्थाओं की स्थापना करता है और
एक निश्चित स्तर तक शिक्षा को अनिवार्य तथा निशल् ु क बनाता है । तकनीकि एव प्रबन्धकीय शिक्षा केन्द्रों की
स्थापना के साथ-साथ जन समह ू के स्वास्थ्य रक्षा हे तु चिकित्सालयों, मात ृ एवं शिशु कल्याण केन्द्र एवं प्रसवगह
ृ ों
इत्यादि की स्थापना कर जनसाधारण के स्वास्थ्य की रक्षा की जिम्मेदारी राज्य के कंर्धी पर होती है ।

● आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सरु क्षा


आर्थिक सरु क्षा के अन्तर्गत रोजगार की गारन्टी, आर्थिक समानता, मद्र
ु ा निर्माण इत्यादि और सामाजिक सरु क्षा के
अन्तर्गत सामाजिक समानता, सामाजिक न्याय की आदर्श भावना तथा राजनीतिक सरु क्षा के अन्तर्गत जनता में
राजनीतिक सत्ता निवास, नागरिक स्वतंत्रताएँ, मानवाधिकारों का संरक्षण इत्यादि व्यवस्थाएँ लोक कल्याणकारी
राज्य के द्वारा सम्पन्न की जाती है ।

● कृषि, उ‌द्योग और व्यापार का नियमन व विकास


राज्य कृषि, उ‌द्योग और व्यापार का इस प्रकार नियमन करता है कि किसी व्यक्ति का शोषण न हो। भारी उ‌द्योगों
पर राज्य स्वयं नियंत्रण रखता है इसमें मद्र
ु ा निर्माण, प्रमाणिक माप और तोल की व्यवस्थाएँ कृषकों को
राजकोषीय सहायता, नहरों का निर्माण, प्रमाणिक बीज व खाद का वितरण और कृषि सध ु ार इत्यादि सम्मिलित हैं।

प्र.5. रे लवे बोर्ड का वर्णन करें ।


रे लवे-बोर्ड अपने आप में एक ऐसा उदाहरण है जो अपनी संगठनात्मक संरचना में एक लोक उ‌द्यम भी है और
सरकार का मंत्रालय भी। यह रे लवे की नीति निर्धारण स्थिति से लेकर उसके क्रियान्वयन तक के समस्त दायित्वों
का एक साथ निर्वाह करता है । इतने बड़े लोक उद्यम के कार्य संचालन में कतिपय न्यन ू ताएँ पाया जाना भी कोई
अस्वाभाविक बात नहीं है । रे लवे के संचालन में जनसाधारण को होने वाली असवि ु धाओं तथा उसके कर्मचारियों
द्वारा, विभिन्न स्तरों में जो भ्रष्टाचार की शिकायतें होती हैं उनके समाधान की दिशा में रे लवे बोर्ड कोई प्रभावी
कदम नहीं उठा पाया है । रे लों का समय सारिणी के अनस ु ार न चल पाना तथा रे ल कर्मचारियों द्वारा यात्रियों के
साथ विनम्र व्यवहार न किया जाना इत्यादि शिकायतें रे लवे बोर्ड को बराबर मिलती रहती हैं। इन शिकायतों का
समाधान कभी तो रे लवे बोर्ड तत्काल कर लेता है किन्तु कभी-कभी इसके व्यापक संगठन के कारण शिकायतों का
समाधान नहीं भी हो पाता। वस्तत ु ः रे लवे बोर्ड का यह दायित्व बनता है कि यात्रियों को अधिकतम सवि ु धाएं दे ते हुए
रे लवे का कुशल और सरु क्षित संचालन आश्वस्त करे ।

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Section "C

प्र.1. प्रशासनिक संस्थानों की भमि ू का की व्याख्या करें l


लोकतांत्रिक समाजवादी समाज में प्रशासनिक संस्थाओं की भमि ू का
लोकतान्त्रिक समाजवादी समाज में प्रशासनिक संस्थाओं की प्रकृति से इन संस्थाओं की भमि ू का स्वतः स्पष्ट हो
जाती है । प्रकृति के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ऐसे समाज में प्रशासनिक संस्थाओं की भमि ू का अत्यधिक
व्यापक हो जाती है । एक ओर उन्हें राज्य के अनिवार्य कार्यों का निष्पादन तो करना ही होता है तथापि दस ू री तरफ
लोकतान्त्रिक एवं समाजवादी मल् ू यों की स्थापना का दायित्व भी उन्हें वहन करना होता है । लोकतान्त्रिक मल्ू यों की
स्थापना के लिए प्रशासनिक संस्थाएं विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन करती हैं एवं समाजवादी
मल्ू यों की प्राप्ति के लिए उत्पादन के साधनों पर नियन्त्रण रखती हैं। एक लोकतान्त्रिक समाजवादी समाज में
प्रशासनिक संस्थाओं की भमि ू का को निम्न शीर्षकों के माध्यम से समझा जा सकता है :

(i)अनिवार्य कार्य
राज्य या समाज का स्वरूप कैसा भी हो, प्रत्येक स्थिति में राज्य के कुछ कार्य अनिवार्य होते हैं। राज्य के इन
अनिवार्य कार्यों का निष्पादन प्रशासनिक संस्थाओं द्वारा ही किया जाता है ।

प्रशासनिक सीमाओं के प्रथम अनिवार्य कार्यों में आन्तरिक शान्ति व्यवस्था बनाए रखना तथा विदे शी आक्रमण से
रक्षा को सम्मिलित किया जाता है । सेना तथा पलि ु स से सम्बन्धित संस्थाएं इन कार्यों का निष्पादन करती हैं।
प्रशासनिक संस्थाओं के अनिवार्य कार्यों की श्रेणी में आने वाले दस
ू रे प्रकार के कार्य वे हैं, जिनका सम्बन्ध राज्य

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तथा उसके निवासियों की पारस्परिक सम्बन्धों से होता है । इस दायित्व की पर्ति
ू हे तु प्रशासनिक संस्थाएं कानन

एवं नियमों के निर्धारण में महत्वपर्ण
ू भमि
ू का का निर्वहन करती है ।

(ii) सामाजिक विकास


सामाजिक विकास के उद्दे श्यों की प्राप्ति हे तु प्रशासनिक संस्थाएं विभिन्न सेवाओं को नागरिकों तक पहुँचाती हैं।
नागरिकों के शैक्षणिक विकास के लिए शैक्षणिक वातावरण निर्मित किया जाता है अर्थात ् विभिन्न शैक्षणिक
संस्थाओं की स्थापना व निर्माण किया जाता है तथा एक न्यन ू तम स्तर तक निःशल्ु क शिक्षा की व्यवस्था भी की
जाती है । समाज में व्याप्त विभिन्न बरु ाइयों को नियंत्रित करने का दायित्व भी प्रशासनिक संस्थाओं का होता है । ये
संस्थाएं विभिन्न सामाजिक नियमों व कानन ू ों को क्रियान्वित करती हैं। सामाजिक विकास की दृष्टि से ये संस्थाएं
समाज के कमजोर व पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का न केवल निर्माण करती
हैं अपितु उनका संचालन भी करती हैं। इस प्रकार समाज के सामाजिक विकास का दायित्व प्रशासनिक संस्थाओं
का ही होता है ।

(iii) आर्थिक विकास


आर्थिक विकास के उद्दे श्य से प्रशासनिक संस्थाएं न केवल अर्थव्यवस्था का संचालन करती हैं अपितु विभिन्न
सिद्धान्तों की खोज करके उन्हें क्रियान्वित भी करती हैं। नियोजित अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत प्रशासनिक संस्थाएं
दीर्घकालीन व अल्पकालीन योजनाएं निर्मित करती हैं। इन योजनाओं के माध्यम से आर्थिक विकास की गति को
नियमित किया जाता है । भारत में योजना आयोग नामक प्रशासनिक संस्था इस कार्य हे तु उत्तरदायी है । इसके
अतिरिक्त विभिन्न संस्थाएं दे श में उपलब्ध आर्थिक साधनों का पता लगाती हैं। उपलब्ध साधनों का अधिकतम
उपयोग करने के उद्दे श्य से प्रशासनिक संस्थाएं विभिन्न अनस ु ध
ं ान करके आर्थिक नीतियों का निरूपण करती हैं।
अतः एक लोकतांत्रिक समाजवादी समाज में प्रशासनतंत्र आर्थिक विकास का सशक्त वाहक होता है ।

(iv) राजनीतिक विकास


राष्ट्र में लोकतांत्रिक मल्
ू यों की रक्षा तभी सम्भव है जब उस राष्ट्र का राजनीतिक विकास हो और समाजवाद लाने
के लिए यह आवश्यक है कि राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक को राजनीतिक न्याय उपलब्ध हो। इस प्रकार लोकतंत्र व
समाजवाद दोनों व्यवस्थाओं में राजनीतिक विकास को आवश्यक तत्व माना जाता है । इस उद्दे श्य की पर्ति ू हे तु
प्रशासनिक संस्था विभिन्न स्वरों पर निर्वाचन की व्यवस्था करती हैं। निर्वाचन कार्य पता लगाती हैं। उपलब्ध
साधनों का अधिकतम उपयोग करने के उद्दे श्य से प्रशासनिक संस्थाएं विभिन्न अनस ु ध
ं ान करके आर्थिक नीतियों
का निरूपण करती हैं। अतः एक लोकतांत्रिक समाजवादी समाज में प्रशासनतंत्र आर्थिक विकास का सशक्त वाहक
होता है ।

(v) राजनीतिक विकास


राष्ट्र में लोकतांत्रिक मल्
ू यों की रक्षा तभी सम्भव है जब उस राष्ट्र का राजनीतिक विकास हो और समाजवाद लाने
के लिए यह आवश्यक है कि राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक को राजनीतिक न्याय उपलब्ध हो। इस प्रकार लोकतंत्र व
समाजवाद दोनों व्यवस्थाओं में राजनीतिक विकास को आवश्यक तत्व माना जाता है । इस उद्दे श्य की पर्ति ू हे तु
प्रशासनिक संस्थाएं विभिन्न स्तरों पर निर्वाचन की व्यवस्था करती हैं। निर्वाचन कार्य निष्पक्ष हो इसके लिए
संस्थाओं द्वारा समय-समय पर विभिन्न नियम बनाए जाते हैं तथा उन नियमों की पालना भी सनि ु श्चित
करवायी जाती है । इसके अतिरिक्त इन संस्थाओं पर यह दायित्व भी है कि वह ऐसे कार्य करे जिससे प्रत्येक
व्यक्ति की राजनीति में सक्रियता सनि ु श्चित हो। इस प्रकार एज लोकतांत्रिक समाजवादी समाज में प्रशासनिक
संस्थाएं राजनीतिक विकास हे तु विभिन्न कार्य निष्पादित करती हैं।

(vi) अन्य कार्य


उपर्युक्त वर्णित कार्यों के अतिरिक्त प्रशासनिक संस्थाओं द्वारा अन्य विविध कार्यों का भी निष्पादन किया जाता
है । जैसे, नागरिकों की सवि ु धा हे तु ये संस्थाएं प्रमख
ु उ‌द्योगों का संचालन स्वयं करती है क्योंकि नागरिकों को

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श्रेष्ठम सवि
ु धाएं दे ने के लिए इन पर राज्य का नियंत्रण आवश्यक है । जैसे यातायात के साधनों का संचालन, जल व
विद्यत ु का प्रबन्ध, दरू संचार व टे लीफोन की सवि
ु धा, अस्पतालों का संचालन व प्रबन्ध आदि।

प्र.3 लोक कल्याणकारी राज्य की विशेषताओं पर चर्चा करें


लोक कल्याणकारी राज्य की विशेषताएँ

लोक कल्याणकारी राज्य की प्रमख


ु विशेषताएँ निम्न हैं-

1.सकारात्मक राज्य
ए.आर. दे साई ने अपने लेख 'द मिथ ऑफ द वेल्फेयर स्टे ट' में लोक कल्याणकारी राज्य को एक ऐसी संस्था माना
है जो आवश्यक बरु ाई नहीं है बल्कि सकारात्मक अच्छाई लाने में समर्थ है । अर्थात ् राज्य एक ऐसा माध्यम है जो
सदै व नागरिक हितों में वद्
ृ धि करने का प्रयास करता है तथा शोषण, अन्याय, भय, गरीबी, लाचारी, अशिक्षा,
इत्यादि हालातों में सध
ु ार करने के लिए वचनबद्ध है ।

2.प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था


राजतंत्र, कुलीनतंत्र या अधिनायक तंत्र में व्यक्ति अपने विवेक के आधार पर दायित्वों का सम्पादन नहीं कर
सकता। कल्याणकारी राज्य के आदर्श एवं मल् ू य लोकतांत्रिक व्यवस्था में पष्पि
ु त व हो सकते हैं। वस्तत
ु ः वैयक्तिक
स्वतंत्रता, मानवीय अधिकारों का सम्मान और सामाजिक परिवर्तन जैसे कार्यों के सम्पादक के लिए लोकतांत्रिक
व्यवस्था का होना अत्यावश्यक है जिसके अभाव में लोक कल्याणकारी अवधारणा अपना अस्तित्व बनाए रखने में
सफल नहीं हो पायेगी।

3.आर्थिक सरु क्षा


प्रारम्भ में लोक कल्याणकारी राज्य का मल ू लक्ष्य आर्थिक सरु क्षा की व्यवस्था करना है जिसके अभाव में
राजनीतिक स्वतंत्रता का कोई मल् ू य नहीं है । ऐतिहासिक पष्ृ ठभमि ू से ज्ञात होता है कि प्रत्येक शासकीय
व्यवस्थाओं में राजनीतिक सत्ता प्रायः उन व्यक्तियों के हार्थों में केन्द्रित रही जो आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न थे।
आर्थिक सरु का तात्पर्य निम्न तत्वों में निहित हो सकता है - मिश्रित अर्थव्यवस्था का पक्षधर।

4. राजनीतिक सरु क्षा


लोक कल्याणकारी राज्य की यह विशेषता होती है कि वह दे श में ऐसी व्यवस्था करे जिसमें सभी व्यक्ति
राजनीतिक सत्ता में सहभागी बन सके और अपने विवेक व संवध ै ानिक प्रावधानों के अनरू
ु प राजनीतिक शक्ति एवं
अधिकारों का प्रयोग कर सके।

● राजनीतिक सत्ता जनता में निहित


ध्यातव्य रहे कि लोक कल्याणकारी राज्य प्रायः लोकतंत्रीय शासन व्यवस्था की अपेक्षा करता है । ऐसे राज्य में
सभी नागरिकों को वास्तविक रूप में नागरिक स्वतंत्रता का वातावरण भी मिलना चाहिए। नागरिकों को विचार
अभिव्यक्ति और राजनीतिक दलों के गठन की स्वतंत्रता के साथ ही मतदान करने और चन ु ाव लड़ने की पर्ण

स्वतंत्रता होनी चाहिए। इस प्रकार जनता द्वारा ही सरकार का चन ु ाव एवं उसके द्वारा इसे परिवर्तित करने व
अपदस्थ करने की शक्ति होनी चाहिए। अतः स्पष्ट है कि अन्ततः सम्पर्ण ू सत्ता एवं राजनीतिक अधिकारों का
उपभोग जनता द्वारा किया जाता है तथा सम्पर्ण ू शक्ति उसी में निहित होती है ।

● नागरिक स्वतंत्रताएँ

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संविधान द्वारा लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना मात्र से ही राजनीतिक सरु क्षा प्राप्त नहीं हो जाती अपितु
ऐसे वातावरण की रचना राज्य द्वारा की जानी चाहिए जिसमें सभी व्यक्ति निर्बाध रूप से सभी स्वतंत्रताओं का
उपभोग कर सके। इन स्वतंत्रताओं के अभाव में लोककल्याण की साधना नहीं हो सकती और इसके अभाव में लोक
कल्याणकारी राज्य आत्मा रहित शरीर के समान होगा।

● मानवाधिकारों पर केन्द्रित
लोक कल्याणकारी राज्य की विशेषताओं में शोषण एवं भयमक् ु त समाज की स्थापना करना प्रमख
ु है । इस हे तु
मानव दस ू रे मानव के साथ किसी प्रकार का अत्याचार एवं भेदभाव न कर सके ऐसी व्यवस्था राज्य द्वारा किया
जाना चाहिए। इस प्रकार ऐसे राज्य की विचारधारा 'प्रत्येक सभी के लिए तथा सभी प्रत्येक के लिए' सिद्धान्त पर
आधारित है । राज्य प्रत्येक व्यक्ति में इस भावना का विकास करता है कि व्यक्ति और समाज का अटूट सम्बन्ध है
तथा प्रत्येक व्यक्ति का हित दस ू रे व्यक्ति के हित में निहित है ।

5.सामाजिक सरु क्षा


लोक कल्याणकारी राज्य नागरिकों को अधिक से अधिक सामाजिक सरु क्षा प्रदान करता है । बेरोजगारों के लिए
रोजगार, निर्बल एवं कमजोर वर्गों की सहायताएं बीमारी एवं बढ़
ु ापे की स्थिति से निपटने के लिए सार्वजनिक
अस्पताल एवं बीमा इत्यादि की व्यवस्था करता है ।

6.व्यक्तिवाद एवं समाजवाद के मध्य समझौता


कल्याणकारी राज्य की अवधारणा व्यक्तिवाद की स्वतंत्रता एवं समाजवाद की समानता के मीच सामंजस्य का
मार्ग है इसमें व्यक्ति को इतनी स्वतंत्रता होती है कि वह अपने जीवन की सभी अपेक्षित जरूरतों को परू ा कर सके
तथापि राज्य के पास यह शक्ति भी होती है कि वह अत्यधिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाकर समाजवाद के मल् ू यों
को स्थापित करे । प्रो. हॉब्मेन के अनस
ु ार 'यह दो अतियों के मध्य एक समझौता है जिसमें एक तरफ साम्यवाद है
दसू री तरफ अनियंत्रित व्यक्तिवाद।" इस प्रकार लोक कल्याणकारी राज्य मानवीय मल् ू यों के समाजिक पक्षों की
रक्षा करता है ।

7.राज्य के कार्य क्षेत्र में वद्


ृ धि
कल्याणकारी राज्य की विचारधारा अहस्तक्षेपवादी धारणा या पलि ु स राज्य के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया है । यह इस
मान्यता पर आधारित है कि राज्य को वे सभी जनहितकारी कार्य करने चाहिए। जिनके करने से व्यक्ति की
स्वतंत्रता नष्ट या कम नहीं, होती। इस दृष्टि से यह प्रशासकीय राज्य की अवधारणा के अनक ु ू ल है जिसमें राज्य के
द्वारा अधिकाधिक कार्य सम्पन्न किये जाते हैं। इसके द्वारा न केवल आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सरु क्षा,
वरन ् जैसे कि हॉब्सन ने कहा है दि' 'डॉक्टर, नर्स, शिक्षक, व्यापारी, उत्पादक, बीमा कम्पनी के ऐजेन्ट, मकान
बनाने वाले, रे ल्वे नियंत्रक तथा अन्य सैंकड़ों रूपों में कार्य किया जाना चाहिए। वस्तत ु ः लोक कल्याणकारी राज्य के
कार्यों में वे सभी कार्य शामिल हैं जिनकी जनता अपेक्षा करती है , जिन्हें सीमाओं में बाँधना मश्किु ल ही नहीं बल्कि
असंभव है ।

8. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना


कल्याणकारी राज्य का विचार केवल राष्ट्रीय सीमाओं में आबद्ध नहीं है अपितु यह अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं
सम्मान की भावना में निहित है ।

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