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PRAHAAR_Geography & Disaster Management
PRAHAAR_Geography & Disaster Management
भूगोल
और आपदा बंधन
वशेषताएँ
सम एवं सिं नोटस ्
ामािणक ोत से अ ितत आकड़ ँ े एवं त य
गणव
ु ू उ र लेखन के िलए मह वपण
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िवगत वष म पछेू गए के साथ समायोिजत
पारपं रक टॉिप स का समसामियक घटनाओ ं के साथ जोड़कर ततीकरण
ु
िवषय सूची
भारतीय मानसून................................................................... 20
1. भू-आकृति विज्ञान 1-9
भारतीय मानसून की उत््पत्ति.................................................... 20
पृथ््ववी की उत््पत्ति और विकास���������������������������������������������������� 1
मानसून की प्रकृ ति एवं महत्तत्वपूर््ण पहलू........................................ 21
पृथ््ववी की आय........................................................................
ु 1
हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) और भारतीय मानसून 21
पृथ््ववी की गतियाँ .................................................................... 1
पृथ््ववी का चंबु कीय क्षेत्र.............................................................. 2
अल-नीनो और भारतीय मानसून.............................................. 22
पृथ््ववी की आंतरिक संरचना........................................................ 2 ला-नीना और भारतीय मानसून................................................. 22
महासागरीय और महाद्वीपीय वितरण............................................ 3 मानसून पर चक्रवात/विरोधी चक्रवात का प्रभाव............................ 22
प््ललेटोों की गति की क्रियाविधि ..................................................... 4 वर््षषा का वितरण.................................................................... 23
ज््ववालामुखी........................................................................... 6 देश मेें बदलता वर््षण प्रतिरूप.................................................... 23
भू-आकृ तियाँ और उनका विकास................................................ 6
5. भारत मेें जनसंख्या और प्रवासन 25-32
2. जलवायु विज्ञान 10-13
जनसंख््यया अध््ययन का महत्तत्व.................................................. 25
परिचय............................................................................... 10
भारत मेें उच््च जनसंख््यया वृद्धि के लिए जिम््ममेदार कारक.................. 25
जलवायु और मौसम के बीच अंतर............................................. 10
उच््च जनसंख््यया वृद्धि के निहितार््थ ............................................. 26
पृथ््ववी का वायमु ंडल............................................................... 10
जलवायु परिवर््त न और वातावरण.............................................. 11
जनसंख््यया का वितरण और उसका घनत््व.................................... 26
ऊष््ममा बजट......................................................................... 11 भारत मेें जनसंख््यया जनगणना................................................... 26
हिमांक-मंडल (क्रायोस््फफीयर) और जलवायु परिवर््त न...................... 12 कार््यशील जनसंख््यया.............................................................. 26
फुजिवारा प्रभाव.................................................................... 12 जनसांख््ययिकीय लाभांश: अवसरोों की खिड़की............................... 27
3. समुद्र विज्ञान 14-18 मानव विकास....................................................................... 28
चीन और भारत: जनसंख््यया की विरोधाभासी प्रवृत्तियाँ.................... 29
परिचय............................................................................... 14
प्रवास................................................................................ 29
महासागरीय उच््चचावच............................................................ 14
लवणता (SALINITY)........................................................... 14 आंतरिक प्रवास.................................................................... 29
महासागरीय जल संचलन........................................................ 15 बाह्य प्रवास.......................................................................... 31
जलवायु परिवर््त न और महासागर परिसंचरण................................ 16
6. मानव अधिवास और संबधं ित मुद्दे 33-37
प्रवाल भित्तियाँ..................................................................... 16
महासागरीय प्रदूषण............................................................... 17 बस््ततियोों का वर्गीकरण............................................................. 33
समुद्री संसाधन..................................................................... 17 भारत मेें नगरीकरण............................................................... 33
अटलांटिक भूमध््यरेखीय प्रतिवर्ती परिसंचरण............................... 17 शहरीकरण का दोषपूर््ण प्रतिरूप................................................. 34
गहरे समुद्र मेें अन््ववेषण की पहल................................................ 18 मानव बस््ततियाँ और जल प्रदूषण................................................ 35
4. भारतीय जलवायु 19-24 मानव बस््ततियाँ और वायु प्रदूषण................................................ 35
भारतीय जलवायु की विशिष्ट विशेषताएँ....................................... 19 तटीय भारतीय शहरोों पर जलवायु परिवर््त न का प्रभाव..................... 36
भारत की जलवायु का निर््धधारण करने वाले कारक.......................... 19 जलवायु स््ममार््ट शहरोों का आकलन और इसका प्रभाव..................... 36
I
चनु ौतियोों के समाधान के लिए की गई पहल.................................. 64
7. भारत के भूमि उपयोग
गैर-पारंपरिक ऊर््जजा स्रोत......................................................... 64
प्रतिरूप की विशेषता विविध क्षेत्र 38-41
सौर ऊर््जजा........................................................................... 65
भूमि उपयोग नियोजन............................................................ 38 ज््ववारीय ऊर््जजा...................................................................... 65
भारत मेें भूमि उपयोग के प्रतिरूप मेें परिवर््त न ............................... 39 हाइड्रोजन आधारित ऊर््जजा....................................................... 66
भूमि उपयोग वर्गीकरण............................................................ 39 हाइब्रिड नवीकरणीय ऊर््जजा...................................................... 66
मरुस््थलीकरण..................................................................... 40 गैस आधारित अर््थ व््यवस््थथा...................................................... 67
8. प्राथमिक, माध्यमिक और फ््ललाई ऐश लाभ.................................................................... 68
तृतीयक क्षेत्र के उद्योगोों की अवस्थिति 42-59 लिथियम भंडार.................................................................... 68
अपतटीय पवन ऊर््जजा............................................................. 69
प्राथमिक गतिविधियाँ............................................................. 42
भारत मेें कृ षि क्षेत्र.................................................................. 43 10. भारत मेें जल संसाधन और उनका प्रबंधन 71-76
कृ षि के प्रकार...................................................................... 43
जल संकट.......................................................................... 71
भारत मेें सहकारी खेती........................................................... 44
जल संसाधन प्रबंधन�������������������������������������������������������������� 71
भारतीय कृ षि मेें प्रमुख बाधाएँ................................................... 44
भारत मेें पारंपरिक जल प्रबंधन प्रथाएँ......................................... 72
भारत मेें डेयरी क्षेत्र................................................................ 45
जल उपयोग दक्षता................................................................ 72
कृ षि आधारित और कृ षि प्रसंस््करण उद्योग.................................. 46
सूक्षष्म जल संभर विकास एवं प्रबंधन........................................... 73
भारत मेें खनन क्षेत्र................................................................ 47
जल संसाधन प्रबंधन के लिए सरकारी पहलेें................................. 74
द्वितीयक क्षेत्र........................................................................ 49
जल संसाधन प्रबंधन के लिए आगे की राह .................................. 74
उद्योगोों के प्रकार................................................................... 50
उद्योगोों की अवस््थथिति को प्रभावित करने वाले कारक..................... 50 11. भारत मेें परिवहन और संचार 77-85
भारत मेें औद्योगिक गलियारे . .................................................. 51
परिचय............................................................................... 77
क्षेत्रीय संसाधन-आधारित विनिर््ममाण और प्रबंधन की रणनीति............ 51
औद्योगिक विकास मेें सधु ार हेतु परिवहन की उपयोगिता.................. 77
वस्त्र उद्योग.......................................................................... 52
रेलवे परिवहन प्रणाली............................................................ 77
सूती वस्त्र उद्योग................................................................... 52
सड़क परिवहन..................................................................... 79
जूट उद्योग........................................................................... 54
नागरिक विमानन/नागरिक उड् डयन........................................... 80
चीनी उद्योग......................................................................... 55
जहाजरानी और अंतर्देशीय जलमार््ग .......................................... 81
सरकारी पहल...................................................................... 56
तृतीयक क्षेत्र........................................................................ 58
नदियोों को आपस मेें जोड़ना..................................................... 84
चतुर््थक क्षेत्र/ज्ञान आधारित उद्योग............................................. 58 12 संकट बनाम आपदा 86-96
क््वविनरी क्षेत्र (पंचम सेवा क्षेत्र)................................................... 59
परिचय............................................................................... 86
9. खनिज और ऊर्जा संसाधन 60-70 आपदा का वर्गीकरण.............................................................. 86
खनिज संसाधनोों के प्रकार....................................................... 60 भूकंप................................................................................. 86
भारत मेें प्रमुख खनिज संसाधनोों का वितरण................................. 60 चक्रवात.............................................................................. 88
खनिजोों का उत््पपादन.............................................................. 62 सूखा................................................................................. 89
ऊर््जजा संसाधन...................................................................... 63 भूस््खलन (LANDSLIDES)................................................... 90
ऊर््जजा के स्रोत...................................................................... 63 हीटवेव............................................................................... 92
भारत मेें विद्युत उत््पपादन के प्रमुख स्रोत....................................... 64 वनाग््ननि............................................................................... 93
भारत के विद्युत क्षेत्र की समस््ययाएँ.............................................. 64 बाढ़................................................................................... 95
II
1 भू-आकृति विज्ञान
पृथ््ववी के तीन उत्तरी ध्रुव- भौगोलिक, चबंु कीय और भ-ू चबंु कीय हैैं। z कोर
z भौगोलिक उत्तरी ध्रुव: यह पृथ््ववी का भौतिक शीर््ष है, वह बिंद ु जहाँ घर््णन ू भू-पर््पटी/क्रस््ट: यह पृथ््ववी का सबसे बाह्य आवरण, है जिसकी मोटाई
की धरु ी पृथ््ववी की सतह को विकीर््णणित करती है। महासागरोों के ऊपर सबसे कम (5-10 किमी) और महाद्वीपोों के नीचे सबसे
z चुंबकीय उत्तरी ध्रुव: यह उत्तरी गोलार््ध का वह बिंद ु है, जहाँ पृथ््ववी का अधिक (35 किमी, पर््वतीय बेल््ट मेें 70 किमी तक) होती है। मोहोरोविक
चबंु कीय क्षेत्र सीधा नीचे की ओर झक ु ा होता है। यह स््थथिर नहीीं होता है और असंबद्धता क्रस््ट को मेेंटल से पृथक करती है।
चबंु कीय क्षेत्र मेें होने वाले परिवर््तनोों के कारण लगातार परिवर््ततित होता रहता है।
z भू-चुंबकीय उत्तरी ध्रुव: यह चम्ु ्बकीय मड ं ल का सबसे उत्तरी बिंदु है, जो
पृथ््ववी का चबंु कीय आवरण है, जो हमेें सर््यू से आने वाले आवेशित कणोों से
सरु क्षित रखता है।
प्रमुख शब्दावलियाँ
उष््ण गैसीय निहारिका; के न्द्रापसारक बल; गरुु त््ववाकर््ष ण खिंचाव;
ज््ववारीय विकृ तियाँ; सूर््य की द्वि-माध््य्ममीय उत््पत्ति; प्रोटो-प््ललेनेट;
महाद्वीपोों का जिगसॉ फ़़िट; हिमनद जमाव; प््ललेसर जमाव; जीवाश््म
वितरण; ध्रुवीय पलायन बल; ज््ववारीय बल आदि।
z महाद्वीपीय क्रस््ट दो परतोों मेें विभाजित होती हैैं:
पृथ्वी का चुब
ं कीय क्षेत्र सियाल (SiAl) (ऊपरी): सिलिका और एल््ययुमीनियम से यक्त ु (11 किमी
z पृथ््ववी का आतं रिक भाग एक विशाल चबंु क की तरह कार््य करता है, जो एक मोटी)।
सरु क्षात््मक आवरण का निर््ममाण करता है जिसे मैग््ननेटोस््फफीयर/चबंु कीय क्षेत्र सिमा (SiMa) (निचली): सिलिका और मैग््ननीशियम से यक्त ु (22 किमी
कहा जाता है। मोटी)।
z पृथ््ववी के घर््णन
ू और सर््यू से आने वाले आवेशित कणोों (सौर पवन) के निरंतर z कॉनराड असंबद्धता ऊपरी क्रस््ट (SiAl) और निचली क्रस््ट (SiMa) को
प्रवाह से निर््ममित यह गतिशील क्षेत्र, हमारे ग्रह को हानिकारक विकिरण और पृथक करती है।
वायमु डं लीय क्षरण से सरु क्षा प्रदान करता है। मेेंटल: पृथ््ववी की आतं रिक ऊर््जजा का स्रोत, जो प््ललेट विवर््तनिकी और भक ू ं प जैसी
z पृथ््ववी के बाहरी कोर के भीतर पिघले हुए लोहे के संचलन से चबंु कीय क्षेत्र घटनाओ ं को संचालित करता है। इसका विस््ततार मोहोरोविक असंबद्धता से
का निर््ममाण होता है, जो हमारे ग्रह की सरु क्षा के लिए अतं रिक्ष मेें दरू तक विस््ततृत 2900 किमी. की गहराई तक है।
होता है। z गुटेनबर््ग -वीचर््ट असंबद्धता मेेंटल को कोर के पृथक करती है।
z भक ू ं पीय तरंगोों के बढ़ते वेग से पता चलता है कि क्रस््ट की तल ु ना मेें मेेंटल मेें
पृथ्वी की आंतरिक संरचना
स््थथित पदार््थ अधिक सघन है।
पृथ््ववी के आतं रिक भाग के बारे मेें हमारा अधिकांश ज्ञान अनमु ानोों और निष््कर्षषों
z मेें टल की दो परतेें होती हैैं:
पर आधारित है। फिर भी, जानकारी का एक अश ं प्रत््यक्ष अवलोकन और पदार्थथों
ऊपरी मेें टल (0-1000 किमी.):
के विश्लेषण के माध््यम से प्राप्त किया जाता है।
ठोस होता है- लेहमैन असम्बद्धता, बाह्य और आतंरिक कोर को पृथक करती
है । अफ्रीका भारत
z S-तरंगोों की अनपु स््थथिति बाह्य कोर की तरल अवस््थथा की पष्ु टि करती है।
z कोर का तापमान लगभग 6000 डिग्री सेल््ससियस अनमु ानित है और इसका दक्षिण अमेरिका
दाब 3 मिलियन वायमु डं ल के दाब से भी अधिक है। ऑस्ट्रेलिया
z अनमु ानित है कि कोर का निर््ममाण मख्ु ्य रूप से निकल और लोहे (NiFe)
से हुआ है।
अंटार््कटिका
सिनोग््ननाथस गोरोसॉरस
महासागरीय और महाद्वीपीय वितरण
के भंडार मेसोसॉरस
महासागरोों और महाद्वीपोों का वितरण वर््तमान मेें जिस प्रकार से है, भ-ू वैज्ञानिक
इतिहास मेें कभी भी एक समान नहीीं रहा है। महासागरोों और महाद्वीपोों की सापेक्ष z महाद्वीपोों पर स््थथित चट्टानोों की समान आयु: महासागरोों के विपरीत किनारोों
गति को समझाने के लिए विभिन््न सिद््धाांत प्रस््ततुत किये गये हैैं। पर समान आयु और संरचना वाली चट्टानेें पाई जाती हैैं, जैसे ब्राजील और
पश्चिमी अफ्रीका के तटोों पर 2 अरब वर््ष प्राचीन चट्टानोों की उपस््थथिति।
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धधांत
z हिमनद निक्षेप: भारत के गोोंडवाना तंत्र के तलछट 6 अलग-अलग भ-ू भागोों मेें
z अल्फ्रेड वेगेनर पहले व््यक्ति थे, जिन््होोंने वर््ष 1912 मेें महाद्वीपीय विस््थथापन
एक समान हैैं। इसका आधार टिलाइट (हिमनद जमाव का एक रूप) से निर््ममित
का एक व््ययापक सिद््धाांत प्रस््ततुत किया था।
है, जो लंबे समय तक हिमनदीकरण का संकेत देता है।
z सिद््धाांत:
z प््ललेसर निक्षेप: घाना मेें प्रचरु मात्रा मेें पाए जाने वाले स््वर््ण भडं ारोों का स्रोत
उनका मानना था कि सभी महाद्वीप एक समय पैैंजिया (Pangaea) के रूप
स््थथानीय चट्टान नहीीं बल््ककि इसकी उत््पत्ति ब्राजील मेें पाए जाने वाली गोल््ड
मेें एक साथ जड़ु ़े हुए थे, जो चारोों ओर से समद्रु से घिरा हुआ था, जिसे बेरिंग वीनस (Gold-Bearing Veins) से मानी जाती है, जो अतीत के
पैैंथालासा (Panthalassa) कहा गया।
संबंधोों की पष्ु टि करती हैैं।
z जीवाश््म वितरण: उथले जल मेें पाए जाने वाले सरीसृप, मेसोसॉरस के
जीवाश््म दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका दोनोों मेें पाए जाते हैैं, जिससे इस
बात का संकेत मिलता है कि ये महाद्वीप कभी एक दसू रे के अत््यधिक निकट
स््थथित रहे होोंगे।
z विस््थथापन के लिए उत्तरदायी बल: वेगनर ने महाद्वीपीय विस््थथापन के लिए
दो बलोों को उत्तरदायी माना।
ध्रुवीय पलायन बल: यह पृथ््ववी के घर््णन ू से संबंधित है।
ज््ववारीय बल: यह सर््य ू और चद्रं मा के बीच आकर््षण के कारण उत््पन््न
होता है।
वेगनर का मानना था कि इन बलोों के दीर््घघावधि तक बने रहने के
भू-आकृ ति विज्ञ 3
संवहनीय धारा सिद्धधांत (1930, आर््थर होम्स ):
z सिद््धाांत: महाद्वीपीय संचलन/गति पृथ््ववी के मेेंटल के आतं रिक भाग मेें स््थथित
गर््म चट्टानोों की धीमी गति से बहने वाली संवहनीय धाराओ ं के कारण होती
है।
z प्रेरक बल: मेेंटल मेें रे डियोधर्मी तत्तत्ववों से उत््पन््न होने वाली ऊष््ममा तापमान मेें
अतं र उत््पन््न करती है, जिससे ऊष््ण, उत््प्ललावनशील चट्टान का परिसंचरण
होता है।
z आलोचना: कुछ वैज्ञानिकोों का प्रश्न हैैं कि क््यया रे डियोधर्मी क्षय से महाद्वीपीय
गति के लिए आवश््यक प्रबल संवहन धाराओ ं को बनाए रखने के लिए पर््ययाप्त
ऊष््ममा उत््पन््न होती है।
समुद्रतल प्रसार सिद्धधांत (1961, हैरी हेस ):
z सिद््धाांत: ज््ववालामखी
ु विस््फफोटोों के कारण समद्रु तल का लगातार मध््य- कुछ महत्त्वपूर््ण छोटी प्लेटोों के नाम इस प्रकार हैैं:
महासागरीय कटकोों पर प्रसार हो रहा है। नया समद्रु तल परु ाने हिस््सोों को बाहर z कोकोस प््ललेट: मध््य अमेरिका और प्रशांत प््ललेट के बीच।
की ओर धके लता है, जिससे महाद्वीप अलग-अलग हो जाते हैैं। z नज़का प््ललेट: दक्षिण अमेरिका और प्रशांत प््ललेट के मध््य।
z साक्षष्य: महासागरीय क्रस््ट कटकोों के पास नवीन है तथा कटकोों से दरू धीरे -धीरे z अरे बियन प््ललेट: ज़़्ययादातर सऊदी अरब का भ- ू भाग।
परु ाना होता जाता है। एक महासागर बेसिन का प्रसार होने पर दसू रे बेसिन का
z फिलीपाइन प््ललेट: एशियाई और प्रशांत प््ललेटोों के मध््य।
आकार छोटा नहीीं होता है, जो दर््शशाता है कि अतिरिक्त प्रक्रियाएँ संचालित हो
z कैरोलीन प््ललेट: फिलीपीन और भारतीय प््ललेटोों के मध््य (न््ययू गिनी के उत्तर मेें)
रही हैैं।
z फ़़ूजी प््ललेट: ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पर््वू मेें।
z समुद्रतल का उपयोग: हेस ने यह सिद््धाांत दिया कि प्रसारित कटकोों द्वारा
पीछे धके ले गए समद्रु तल को महासागरीय गर्ततों के अवतलन क्षेत्ररों मेें परिवर््ततित प््ललेटोों के किनारे : प््ललेट के किनारे तीन प्रकार के होते हैैं:
कर दिया गया है। अपसारी किनारा:
प्लेट विवर््तनिकी सिद्धधांत (1967, मैकेेंजी, पार््कर और मॉर््गन ): z प््ललेटेें मध््य महासागरीय कटकोों से दरू चली जाती हैैं, जिससेें नवीन समद्री
ु तल
z सिद््धाांत: पृथ््ववी का कठोर बाह्य आवरण, जिसे स््थलमडं ल/लीथोस््फफीयर कहा का निर््ममाण होता है। इससे भ्रंश घाटियोों और ज््ववालामखी ु य चट्टानोों जैसे
जाता है, बड़े गतिशील विवर््तनिक प््ललेटोों (टेक््टटोनिक प््ललेट्स) मेें विखडित
ं हुआ। बेसाल््ट (तीव्रता से ठंडा होने से निर््ममित) और गैब्रो (धीमी गति से ठंडा होने
ये प््ललेटेें महाद्वीपीय और महासागरीय दोनोों प्रकार की परतोों से मिलकर बनी से निर््ममित) का निर््ममाण होता है।
हैैं। अभिसारी किनारा:
z प््ललेट की गति: प््ललेटेें पृथ््ववी की सतह पर प्रति वर््ष कुछ सेेंटीमीटर की गति से z जब दो प््ललेटेें एक साथ आती हैैं या एक दसू रे के निकट आती हैैं, तो इसे
क्षैतिज रूप से गति करती हैैं। अभिसारी किनारे के रूप मेें जाना जाता है:
z प््ललेटोों की संरचना: ये प््ललेटेें मख्ु ्य रूप से महासागरीय (जैस,े प्रशांत प््ललेट) या महासागरीय-महाद्वीपीय अभिसरण: सघन महासागरीय प््ललेटेें हल््ककी
महाद्वीपीय (जैस,े यरू े शियन प््ललेट) या दोनोों का संयोजन हो सकती हैैं।
महाद्वीपीय प््ललेटोों के नीचे क्षेपित हो जाती हैैं, जिससे गहरे महासागरीय
प्लेटोों की गति की क्रियाविधि गर्ततों का निर््ममाण होता हैैं। कै स््कके ड पर््वतोों के नीचे के धसं ाव क्षेत्र ज््ववालामखी
ु य
z पृथ््ववी का स््थलमडं ल कई बड़ी और कुछ छोटी प््ललेटोों मेें विभाजित है। गतिविधि को बढ़़ावा देते हैैं।
महासागरीय-महासागरीय अभिसरण: उपरोक्त के समान (महासागरीय-
z नवीन वलित पर््वत श्रेणियाँ, गर््त और/या मख्ु ्य प््ललेटोों के चारोों और स््थथित भ्रंश
z प्रमुख/बड़ी प््ललेटेें इस प्रकार हैैं: महाद्वीपीय), सघन प््ललेट मेेंटल मेें क्षेपित हो जाती है, जिससे गर््त और
ज््ववालामुखी द्वीपीय चाप का निर््ममाण होता हैैं (उदाहरण के लिए-
अट ं ार््कटिका और उसके चारोों और स््थथित समद्री ु प््ललेट
जापान)।
उत्तरी अमेरिकी प््ललेट (पश्चिमी अटलांटिक तल कै रिबियाई द्वीपोों के साथ
महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण: आपस मेें टकराने वाले महाद्वीप
दक्षिण अमेरिकी प््ललेट से अलग होती है)
अत््यधिक उत््प्ललावनशील होते हैैं, जिससे हिमालय जैसी विशाल पर््वत
दक्षिण अमेरिकी प््ललेट (पश्चिमी अटलांटिक तल कै रिबियाई द्वीपोों के साथ
उत्तरी अमेरिकी प््ललेट से अलग होती है) ृंखलाओ ं का निर््ममाण होता हैैं।
प्रशांत प््ललेट रूपाांतरित किनारा:
इड ं ो-ऑस्ट्रेलिया-न््ययूजीलैैंड प््ललेट यहाँ प््ललेटेें एक दसू रे के समानांतर क्षैतिज रूप से विस््थथापित होती हैैं, जिससे
पर्वी ू अटलांटिक तल के साथ अफ्रीकन प््ललेट अत््यधिक घर््षण उत््पन््न होता है और सैन एंड्रियास भ्रंश जैसे रूपांतरित भ्रंशोों
यरू े शिया और समीपवर्ती महासागरीय प््ललेट।
का निर््ममाण होता हैैं।
भू-आकृ ति विज्ञ 5
z सना
ु मी और बाढ़: जल के नीचे उत््पन््न होने वाले भक ू ं प विनाशकारी सनु ामी पाइरोक््ललास््टटिक पदार््थ
उत््पन््न कर सकते हैैं, जबकि क्षतिग्रस््त बाँध या जलमार््ग बाढ़ का कारण बन पाइरोक््ललास््टटिक पदार््थ
द्रव लावा
( ग ाढ़ा) विस््कस (गाढ़ा) लावा
सकते हैैं। क्रे टर ठं डा लावा साइड वेेंट
स् ्कस ावा क्रे टर
वि ल ठोस लावा
केेंद्रीय वेेंट
z जीवन की क्षति: दख ु द बात यह है कि भक ू ं प से मनष्ु ्य और जानवर दोनोों साइड
वेेंट
केेंद्रीय वेेंट
मैग््ममा चैम््बर मैग््ममा चैम््बर
को क्षति हो सकती है। सिंडर कोन ज््ववालामुखी शील््ड ज््ववालामुखी मिश्रित ज््ववालामुखी लावा डोम
z कटक (Vent): ज््ववालामखी ु के शीर््ष पर स््थथित वह छिद्र जिसके माध््यम से वेेंटिफै क््टट्:
ज््ववालामखीु य पदार््थ प्रस््फफुटित होते हैैं। पवन द्वारा उड़ने वाली रे त के घर््षण और पॉलिश की गई चट्टानोों के कारण
z क्रे टर: केें द्रीय छिद्र के चारोों ओर एक कटोरे नमु ा आकार का गड्ढा, जो गड्ढेदार और नालीदार सतहोों का निर््ममाण होता है।
विस््फफोटक पदार्थथों के विस््फफोट से निर््ममित होता है। यारडांग:
z ढलान/स््ललोप््स: ज््ववालामखी ु के किनारे जो धीरे -धीरे केें द्रीय छिद्र से नीचे की ये वायु अपरदन द्वारा निर््ममित बालू की सव्ु ्यवस््थथित सघन पंक्तियाँ
ओर आते हैैं। हैैं, जो पवन के प्रवाह की दिशा मेें होती हैैं।
जाती हैैं, क््योोंकि पवनेें निचले भागोों पर अधिक तीव्रता से कटाव करती हिमोढ़: पिघलते हुए हिमनदोों के निक्षेप द्वारा निर््ममित तलछट से बनी
सपाट शीर््ष वाले पठार, जिनमेें कठोर टोपीनम ु ा चट्टान के नीचे अव््यवस््थथित मिश्रण, जिसमेें पत््थरोों से लेकर बारीक कण तक शामिल होते
अपेक्षाकृत नरम चट्टान की परत है, वायु अपरदन के अवशेष हैैं। हैैं।
गुंबदाकार टीला: खड़़ी ढलानोों और गोलाकार चोटियोों वाली पृथक हिमनद/ग््ललेशियल फ््ललोर: हिमनदीय मृदा का सबसे महीन घटक, जो
पहाड़़ियाँ, जो आस-पास की नरम चट्टानोों के वाय-ु अपरदन के कारण हिमनदीय नदियोों और झीलोों के परिवर््ततित स््वरूप के लिए उत्तरदायी है।
निर््ममित होती हैैं। हिमनद/ग््ललेशियल इरे टिक््स:
z निक्षेपित भू-आकृतियाँ: पीछे हटते हिमनदोों द्वारा निक्षेपित किए गए बड़़े पत््थर, सामान््यतः अपने
बालुका स््ततूप: पवनोों द्वारा निर््ममित रे त के टीले, रे गिस््ततानोों और समद्र
ु तटोों उद्गम स््थल से बहुत दरू स््थथित होते हैैं।
पर पाए जाते हैैं। z हिमानीकृत/हिमाच््छछादित भू-आकृतियोों का महत्तत्व:
अर्दद्धचंद्राकार स््ततूप: अर्दद्धचन्द्राकार रे त के टीले/स््ततूप जिनका हिमानीकृ त/हिमाच््छछादित भ- ू आकृ तियाँ पर््वू जलवायु के बारे मेें सक ं ेत
आकार अग्रें जी के अक्षर ‘C’ से मिलता-जल ु ता होता है। देती हैैं। उदाहरण के लिए- भारत के तालचेर जैसे स््थथानोों मेें हिमनदीय
रैखिक/रे खीय स््ततूप: टीलोों की सीधी या लगभग सीधी रे खाएँ।
चट्टानोों की उपस््थथिति इस क्षेत्र मेें हिमनदीकरण की अवधि का संकेत देती
है।
तारा स््ततूप: कम से कम तीन तरफ नक ु ीली लकीरेें और स््ललिप फे स
(तीव्र ढलान) वाले स््ततूप। भूमिगत/भौम जल से निर््ममित कार्सस्ट (Karst) भू-आकृतियााँ
परवलयिक स््ततूप: अर्दद्धचद्राक ं ार टीलोों के समान, लेकिन इसका z अद्वितीय भ-ू आकृ तियोों की विशेषता वाले कार््स््ट परिदृश््य, घल ु नशील आधार-
ढलान अदं र की ओर होता है। शैल (जैसे चनू ा पत््थर) और प्रचरु वर््षषा वाले क्षेत्ररों मेें निर््ममित होते हैैं।
गुम््बदाकार टीले : अत््यधिक दर््ल ु भ प्रकार के स््ततूप, गोलाकार, z अपरदित भू-आकृतियाँ:
ढलान अनपु स््थथित। घोलरंध्र: चट्टान या गफ ु ा की छत के ढहने से रिसाव के बाद निर््ममित गड्ढे
z लोएस: ये रे गिस््ततान के बाहर निक्षेपित होने वाली पवन द्वारा उड़ाकर लाए गये या छे द।
महीन धल ू के कण हैैं, जो सामान््यतः एक समान और छिद्रयक्त ु होते हैैं। डोलाइन: घोलरंध्र के विलय से निर््ममित बड़़े आकार के गड्ढे।
(उदाहरण: मिसिसिपी नदी घाटी के साथ लोएस का निक्षेप)। घाटी रंध्र/ युवाला: अनेक डोलाइनोों और घोलरंध्ररों के विलय से निर््ममित
z अपरदित भू-आकृतियाँ: सतही जलधाराएंँ जो भमि ू गत छिद्ररों के माध््यम से लप्तु हो जाती हैैं, तथा
सर््क : पर््वतीय ढलानोों पर हिमनद अपरदन के कारण अत््यधिक ऊंँचाई पर
आगे चलकर गंफित ु रूप मेें पनु ः दृष्टिगत होती हैैं।
z अपरदित भू-आकृतियाँ:
बने कटोरे नमु ा आकार के गड्ढे।
स््टटैलैक््टटाइट्स: कन््दरा की छत से लटकते हुए हिम-कण/हिमस््तम््भोों जैसी
नुनाटक, अरे त और गिरि शृृं ग या हाॅर््न :
संरचनाए,ंँ जो खनिजोों के अवक्षेपित होने से निर््ममित होती हैैं।
ये सभी विशेषताएँ विभिन््न दिशाओ ं मेें बहने वाले अनेक हिमनदोों के
स््टटैले ग््ममाइटस: कंदराओ ं के फर््श से ऊपर की तरफ बढ़ते टीले, जो टपकते
कटाव के परिणामस््वरूप निर््ममित होती हैैं।
नुनाटक: ग््ललेशियर/हिमनदोों की बर््फ से उभरी चट्टानी चोटियाँ।
खनिज निक्षेप से निर््ममित होते हैैं।
स््ततंभ: यह स््टटैलैक््टटाइट्स और स््टटैलेग््ममाइट का संलयन है।
अरे त(Arêtes): ग््ललेशियरोों/हिमनदोों को अलग करने वाली नक ु ीली
पर््वत श्रेणी। z कार््स््ट स््थलाकृति का महत्तत्व:
गिरि शृग या हाॅर््न : चारोों तरफ से ग््ललेशियरोों द्वारा निर््ममित नोकयक्त कार््स््ट क्षेत्ररों मेें प्रारंभिक मानव विकास से संबंधित कलाकृ तियांँ संरक्षित
ु
चोटियाँ। है।
भू-आकृ ति विज्ञ 7
हमारे पर््वजो
ू ों के लिए बहुमल्ू ्य संसाधन उपलब््ध है। कंदराएँ, आर््च, स््टटैक और स््टटंप: लगातार लहरोों के टकराने से शीर््षस््थल
विविध जीवन रूपोों के साथ अद्वितीय पारिस््थथितिक तंत्र के विकास मेें पर कंदराओ ं का निर््ममाण होता है । समय के साथ, ये कंदराएँ आर््च मेें
सहायक। परिवर््ततित हो जाती हैैं, फिर स््टटैक (अलग-अलग चट्टान के खभं )े और
अतत ं ः निरन््तर कटाव के कारण स््टटंप का निर््ममाण होता है।
जलोढ़ (Alluvial) भू-आकृतियााँ
z अपरदित भू-आकृतियाँ
z नदी और जलधाराओ ं के कटाव से जलोढ़ तंत्र प्रभावित होता है।
पुलिन: ये रे तीले स््थल लहरोों से टकराकर समद्र ु द्वारा निक्षेपित किए गए
z अपरदित भू-आकृतियाँ: चट्टानोों के टुकड़ों से निर््ममित हैैं।
जलप्रपात: कठोर चट्टानोों से गिरती नदियाँ, जो सामान््यतः नवीन नदियाँ
स््पपिट, रोधिका और लैगून: स््पपिट रे त के लम््बबे खड ं होते हैैं, जो समद्रु मेें
होती हैैं। फै ले होते हैैं। यदि स््पपिट का विस््ततार खाड़़ी मेें होता है तथा दो शीर््षस््थलोों
कैनियन और गाॅर््ज : ये कटाव से निर््ममित खड़़ी ढलानोों वाली गहरी को जोड़ता है, तो यह एक अवरोधिका मेें परिवर््ततित हो जाता है, कभी-कभी
घाटियाँ, होती हैैं। घाटियाँ सीढ़़ीनमु ा ढलानोों से यक्त
ु अत््यधिक गहरी होती इसके पीछे लैगनू (उथली झीलेें) का निर््ममाण होता हैैं।
हैैं। z तटीय भू-आकृतियोों का महत्तत्व:
नदी के जलोढ़ मै दान: पर््वतोों या पहाड़़ियोों के मध््य स््थथित निचले क्षेत्र ,
पर््यटन के न्दद्र: तटीय भ- ू आकृ तियाँ विशेषकर समद्रु तट, प्रमख ु पर््यटन
जहाँ से सामान््यतः नदी बहती है। स््थल के रूप मेें कार््य करते हैैं।
जलगर््ततिक: चट्टान मेें कटोरे नम ु ा आकार के गड्ढे, जो प्रवाहित जल और खनिज संसाधन: समद्र ु तटोों पर सोना (सवर््ण ु रे खा नदी) और थोरियम
अवसाद से भरे हुए होते हैैं। (के रल) जैसे बहुमल्ू ्य खनिज पाए जा सकते हैैं।
z अपरदित भू-आकृतियाँ: z तटीय क्षरण का बढ़ता खतरा:
जलोढ़ पंख और शंकु: बहते जल द्वारा अपने पीछे छोड़़े गए अवसाद
सभ ु ेद्य तटरेखाएँ: भारत की तटरे खा पर अत््यधिक क्षरण का खतरा है,
से पंख के आकार के निक्षेप। शक ं ु की तल
ु ना मेें जलोढ़ पंख मेें ढलान जिससे इसकी 33.6% तटरे खा असरु क्षित है। ओडिशा मेें तटरे खा क्षरण
कम होता है। इसका एक प्रमख ु उदाहरण है, जो इसके 28% तट को प्रभावित कर रहा
प्राकृतिक तटबंध: नदी के किनारे बहते जल के कारण बनी तलछट की
है।
ऊँची चट्टानेें। समुदायोों पर प्रभाव: तटीय क्षरण से समद ु ाय विस््थथापित होते हैैं, आवास
बाढ़ के मै दान: नदियोों के किनारे स््थथित निचले, समतल, बाढ़ की आशक ं ा नष्ट होते हैैं, तथा नावोों, जालोों और संचालन के लिए स््थथान न होने के
वाले तथा तलछट जमा से समृद्ध क्षेत्र। कारण मत््स््ययन गतिविधियाँ बाधित होती हैैं।
प्रवाह/चैनल और रोधिका: नदियोों मेें जल के नीचे की रे त के कटक
z तटीय क्षरण की रोकथाम के लिए सरकारी प्रयास:
(चैनल) और निक्षेपित तलछट (रोधिका) से निर््ममित ऊंँचे क्षेत्र। मैैंग्रोव और शेल््टर बेल््ट लगाना।
डेल््टटा: नदी के मह ु ाने पर त्रिकोणीय भ-ू आकृ तियाँ, जो झीलोों या समद्रु रों जियो-ट्यब ू लगाना।
मेें तलछट के निक्षेपण से निर््ममित होती हैैं तथा यह प्रौढ़ नदियोों की विशेषता
विस््थथापित समुदायोों के लिए पुनर््ववास कार््यक्रम: क्षरण को रोकने के
है।
लिए शमन उपायोों के तौर पर 1500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैैं।
z जलोढ़ भू-आकृतियोों का महत्तत्व:
जलोढ़ प्रणालियोों के निक्षेपण से निर््ममित मैदान विश्व के उपजाऊ क्षेत्ररों मेें
निष्कर््ष:
से एक हैैं, जिन््होोंने अनेक सभ््यताओ ं को आश्रय दिया है। भ-ू आकृ ति विज्ञान का अध््ययन पृथ््ववी की सतह को आकार देने वाली प्रक्रियाओ ं
इसके अलावा जलोढ़ तंत्र द्वारा लाई गई चट्टानेें स्रोत चट्टानोों की खनिज ं टि प्रदान करता है, जो भ-ू विज्ञान, जल विज्ञान, वायमु डं लीय
के बारे मेें महत्तत्वपर््णू अतर्दृष्
सरं चना को दर््शशाती हैैं। और जैविक बलोों के बीच गतिशील अतं ःक्रियाओ ं की व््ययापक समझ प्रदान करता
है। भ-ू आकृ तियोों और उन््हेें निर््ममाण और संशोधित करने वाली प्रक्रियाओ ं की जाँच
तटीय (Coastal) भू-आकृतियााँ करके , भ-ू आकृ ति वैज्ञानिक पर््वू वातावरण की व््ययाख््यया कर सकते हैैं और भविष््य
z अपरदित भू-आकृतियाँ: मेें होने वाले परिवर््तनोों के बारे मेें अनमु ान लगा सकते हैैं, जिससे प्राकृतिक खतरोों,
शीर््ष स््थल और खाड़़ियाँ: शक्तिशाली तरंगे,ें नरम चट्टानोों को नष्ट कर पर््ययावरण प्रबंधन और परिदृश््य विकास के बारे मेें हमारे ज्ञान मेें वृद्धि होती है।
खाड़़ियोों का निर््ममाण करती हैैं, जबकि अवरोधक चट्टानेें शीर््षस््थल/उभरी भ-ू आकृ ति विज्ञान से प्राप्त ज्ञान हमेें उचित निर््णय लेने की क्षमता से यक्त ु करता
हुई चट्टानोों का निर््ममाण करती हैैं। है, जो हमारे पर््ययावरण की रक्षा और संरक्षण कर सकता है, संसाधनोों के सतत
भंग ृ ु और तरंग घर््षषित भंगृ ु प््ललेटफार््म: लहरेें निरंतर चट्टानोों से टकराती विकास को सनु िश्चित कर सकता है और समदु ायोों को भ-ू आकृ ति संबंधी खतरोों से
हैैं, जिससे खड़़ी ढलानोों का निर््ममाण होता है। लहरोों के कटाव से चट्टान सरु क्षित कर सकता है। जैस-े जैसे हम आगे बढ़ेंगे, इस क्षेत्र मेें निरंतर अनसु धं ान और
के आधार पर एक सपाट, लहरदार -कटाव वाले प््ललेटफार््म का निर््ममाण शिक्षा, पृथ््ववी के गतिशील परिदृश््य को समझने और उसके अतर््गत ं सामजं स््यपर््णू
होता है। ढंग से रहने की हमारी समझ मेें महत्तत्वपर््णू रूप से सहायक होगी।
भू-आकृ ति विज्ञ 9
2 जलवायु विज्ञान
है, जो पराबैैंगनी किरणोों (UV rays) को जलवायु को गर््म करता है, जबकि ब््ललैक कार््बन जैसे कुछ कण इसको गर््म
अवशोषित करती है और ऊँचाई के साथ तापमान करने मेें योगदान कर सकते हैैं और सल््फफेट जैसे अन््य कण शीतलन प्रभाव
मेें वृद्धि करती है। डाल सकते हैैं।
समताप मंडल z इस परत के निचले भाग मेें 20 किमी की ऊँचाई z तीव्र जलवायु परिवर््तन (Drastic climatic changes): जलवायु
(Stratosphere) तक तापमान मेें कोई परिवर््तन नहीीं आता, इसके प्रतिमान यह भविष््यवाणी करते हैैं कि यदि हम "सामान््य रूप से" चलते रहेेंगे
ऊपर 50 किमी की ऊँचाई तक तापमान मेें वृद्धि तो भारी परिवर््तन होोंगे, जिसमेें वैश्विक तापमान मेें 2.8°C की वृद्धि शामिल
होती है।
है, तथा भमिू और आर््कटिक मेें तापमान मेें और भी अधिक वृद्धि होगी।
z मौसमी घटनाओ ं से मक्त ु होने के कारण यह मडं ल
इन वायमु डं लीय व््यवधानोों और उनके व््ययापक प्रभावोों को कम करने के लिए
हवाई यात्रा के लिए आदर््श है।
जलवायु परिवर््तन से निपटना अत््ययंत महत्तत्वपर््णू है।
z इस मडं ल के निचले संस््तरोों पर कभी- कभी
पक्षाभ (Cirrus) मेघ दिखाई देते हैैं। ऊष्मा बजट
z समताप मडं ल के ऊपर,मध््यमडं ल सीमा
पृथ््ववी आने वाले सौर विकिरण (लघतु रंग विकिरण) को अवशोषित करती है और
(Mesopause) पर न््ययूनतम तापमान -90°C
तक पहुचँ जाता है। ऊष््ममा को स््थलीय विकिरण (दीर््घतरंग विकिरण) के रूप मेें वापस अतं रिक्ष मेें
मध््यमंडल z पृथ््ववी के वायमु डं ल मेें प्रवेश करने पर अधिकांश छोड़ती है।आने वाली और बाहर जाने वाली ऊष््ममा के बीच यह संतल ु न पृथ््ववी को
(Mesosphere) उल््कका पिडं इस परत मेें आने पर जल जाती हैैं। एक स््थथिर तापमान बनाए रखने की अनमु ति देता है, जिसे पृथ््ववी का ऊष््ममा बजट
z अत््यधिक निम््न तापमान के कारण दर््ल ु भ कहा जाता है।
जलवाष््प ध्रुवीय-मध््यमडं लीय रात्रिचर बादलोों मेें जलवायु और पृथ्वी का ऊर्जा बजट
परिवर््ततित हो जाता है। z असमान तापन और नियमन (Uneven Heating and Regulation):
z सर््यू से पराबैैंगनी और एक््स-किरणोों के विकिरण गोलाकार पृथ््ववी असमान सौर ताप प्राप्त करती है, जिसमेें गर््म भमू ध््यरे खीय क्षेत्र
के अवशोषण के कारण इस परत के तापमान मेें और ठंडे ध्रुवीय क्षेत्र होते हैैं। इसके अलावा, वायमु डं ल और महासागर (पृथ््ववी
पनु ः वृद्धि हो जाती है। का ताप इजं न) गर्मी के पनर्
तापमंडल ु ्ववितरण और संतलु न बनाए रखने के लिए विभिन््न
z अतं रराष्ट्रीय अतं रिक्ष स््टटेशन और उपग्रह इसी प्रक्रियाओ ं के माध््यम से एक साथ काम करते हैैं।
(Thermosphere)
परत मेें परिक्रमा करते हैैं।
z जलवायविक शक्तियाँ और असंतुलन (Climate Forcings and
z कार््मन रे खा (100 किमी ऊँचाई) पृथ््ववी के
वायमु डं ल को बाहरी अतं रिक्ष से अलग करती है। Imbalance):सौर गतिविधि, ज््ववालामखी ु विस््फफोट (प्राकृतिक), और
z विद्युत आवेशित कणोों वाला ऊपरी क्षेत्र (80- मानवीय गतिविधियाँ (एयरोसोल, वनोों की कटाई, ग्रीनहाउस गैसेें) जैसे कारक
आयनमंडल 400 किमी)। जिन््हेें जलवायविक शक्तियाँ कहा जाता है, इस सतं ल ु न को बाधित कर सकते
(Ionosphere) z रे डियो तरंगोों को परावर््ततित करता है, जिससे रे डियो हैैं। और जलवायु परिवर््तन का कारण बन सकते हैैं।
संचार संभव होता है। z मानवीय प्रभाव (Human Impact):हाल ही मेें NASA ने एक अध््ययन
z आयनमडं ल के ऊपर, 400 किमी से अधिक तक मेें पष्ु टि की है कि मानव-जनित ग्रीनहाउस गैसेें वैश्विक तापन के प्राथमिक कारक
बहिर्मं डल विस््ततृत। हैैं। पृथ््ववी के ऊर््जजा बजट मेें यह असंतल
ु न वायमु डं ल की निचली परतोों मेें ताप
(Exosphere) z यहाँ पर तापमान धीरे -धीरे बढ़ते हैैं साथ ही हवाएँ वृद्धि के कारण होता है, जिसके परिणामस््वरूप वैश्विक जलवायु प्रतिरूप मेें
अत््ययंत विरल होती है। दीर््घकालिक परिवर््तन होते हैैं।
जलवायु परिवर््तन और वातावरण शहरी ऊष्मा द्वीप और ऊष्मा तरंगोों के बीच अंतर्क्रिया
z मानवीय गतिविधियोों के कारण निचले और मध््य वायमु डं ल मेें परिवर््तन हो रहे z लू की लहर(Heat Waves): लू की लहरेें अत््यधिक उच््च तापमान की
हैैं, जिससे हवा के प्रतिरूप मेें बदलाव के माध््यम से ऊपरी वायमु डं ल को अवधि होती हैैं, जो सामान््य अधिकतम स््तर से अधिक होती है, जो अक््सर गर्मी
प्रभावित करते हैैं। इन बदलावोों के महत्तत्वपर््णू परिणाम होोंगे: के मौसम के दौरान भारत के उत्तर-पश्चिमी और दक्षिण मध््य क्षेत्ररों मेें होती है।
z ऊष््ममीय लहरोों (Heat Waves):जलवायु परिवर््तन उच््च दाब प्रणालियोों को z लू की लहरोों का प्रभाव (Impacts of Heat Waves): लक ू े लहरोों के
तीव्र करता है, जिससे अधिक संख््यया मेें और गंभीर तापीय लहर उत््पन््न होती हैैं। प्रभावोों के उदाहरणोों मेें पर्वोत्त
ू र एशिया मेें 2018 की लू की लहर शामिल है,
z ऊपरी वायुमंडल का संकुचन (Contracting Upper Atmosphere): जिसके परिणामस््वरूप जापान मेें ऊष््ममाघात (Heat Strokes) के कारण बड़़ी
CO2के स््तर मेें वृद्धि ऊपरी वायमु डं ल को ठंडा और संकुचित करती हैैं, जिससे सख्ं ्यया मेें लोग अस््पताल मेें भर्ती हुए और चीन मेें लंबे समय तक उच््च तापमान
अतं रिक्ष मेें उपस््थथित मलबे का जीवनकाल प्रभावित होता है। की चेतावनी दी गई।
जलवायु विज्ञ 11
z प्रति-चक्रवात की भूमिका (Role of Anticyclones): हाल के शोध से जिससे वैश्विक परिसंचरण प्रतिरूप प्रभावित होता है और संभावित रूप से
ज्ञात होता है कि पर्वोत्त ू र एशिया मेें अत््यधिक गर्मी की घटनाओ ं और इस क्षेत्र क्षेत्रीय जलवायु मेें परिवर््तन होता है।
मेें प्रति-चक्रवात की भागीदारी के बीच सबं ंध है। z प्रतिक्रियात््मक लूप््स: (Feedback Loops):क्रायोस््फफीयर अन््य जलवायु
z शहरी ऊष््ममा द्वीप प्रभाव (Urban Heat Island Effect):लू की लहरोों प्रणालियोों के साथ परस््पर क्रिया करता है। बर््फ के पिघलने से फंसी हुई
के दौरान, शहरी क्षेत्ररों मेें आसपास के ग्रामीण क्षेत्ररों की तल ु ना मेें तापमान मेें ग्रीनहाउस गैसेें निकलती हैैं, जो इस दष्ु ्चक्र मेें तापन की क्रिया को तेज करती हैैं।
वृद्धि का अनभु व होता है। बढ़़ी हुई संवेदी ऊष््ममा उत््सर््जन, कम वाष््पपीकरण z जल भंडार (Water Reservoir):क्रायोस््फफीयर मेें बर््फ और हिम के रूप मेें
शीतलन, तथा उच््च मानवजनित ऊष््ममा जैसे कारक इस प्रभाव मेें योगदान करते बहुत अधिक मात्रा मेें ताजा पानी जमा रहता है। क्रायोस््फफीयर मेें होने वाले
हैैं। शहरी ऊष््ममा द्वीप का निर््ममाण शहरी क्षेत्ररों मेें धरतलीय ऊष््ममा बजट मेें परिवर््तन, परिवर््तन से मानव उपभोग, कृ षि और जलविद्युत के लिए पानी की आपर््तति ू
कृ त्रिम सतहोों की ऊष््ममा भडं ारण क्षमता मेें वृद्धि, तथा वाष््पपीकरण शीतलन मेें बाधित हो सकती है, जिससे कमी और संघर््ष की स््थथिति पैदा हो सकती है।
कमी के कारण उच््च तापमान के कारण होता है। z आवासीय हानि (Habitat Loss):पिघलती बर््फ ध्रुवीय पारिस््थथितिकी तंत्र
वायुमंडलीय नदी (Atmospheric River) और ठंडी परिस््थथितियोों पर निर््भर प्रजातियोों के लिए सकटं है। इससे पारिस््थथितिक
z नमी के संकीर््ण प्रवाह (Narrow Channels of Moisture): संतल ु न बिगड़ता है और समग्र जैव विविधता कम होती है।
वायमु डं लीय नदियाँ वायमु डं ल मेें लंबे, संकीर््ण गलियारे हैैं जो उष््णकटिबंधीय हिमाांक-मंडल ( क्रायोस्फीयर ) का महत्त्व
क्षेत्ररों से ध्रुवोों की ओर भारी मात्रा मेें जलवाष््प ले जाती हैैं। z जलवायु विनियमन (Climate Regulation):सर््यू के प्रकाश को परावर््ततित
z नमी के शक्तिकेें द्र (Moisture Powerhouses): नमी के ये सक ं ीर््ण करके , क्रायोस््फफीयर पृथ््ववी को ठंडा रखता है और वैश्विक जलवायु स््वरूप को
गलियारे हज़़ारोों किलोमीटर तक फै ले हो सकते हैैं और असाधारण रूप से प्रभावित करता है।
उच््च जलवाष््प धारण की विशेषता रखते हैैं। z समुद्र-तल नियंत्रण (Sea Level Control):क्रायोस््फफीयर समद्रु के स््तर को
z वर््षषा दायक और उपद्रवी (Rainmakers and Troublemakers):
नियंत्रित करने मेें सहायता करता है, जिससे तटीय क्षेत्ररों मेें विनाशकारी बाढ़
वायमु डं लीय नदियाँ पृथ््ववी के जल-चक्र मेें महत्तत्वपर््णू भमिक ू ा निभाते हैैं,ये को रोका जा सकता है।
आवश््यक वर््षषा प्रदान करती हैैं। हालाँकि, सतह पर पहुचँ ने पर ये भारी बारिश z जल सरु क्षा (Water Security):पिघली हुई बर््फ पारिस््थथितिकी तंत्र और
और बर््फ बारी कर सकती हैैं, जिससे संभावित रूप से बाढ़, भस्ू ्खलन और मानव जाति के लिए मीठे पानी की आपर््तति ू करती है।
अन््य हानिकारक चरम मौसमी घटनाएँ हो सकती हैैं।
z जलवायु प्रतिक्रिया (Climate Feedback):क्रायोस््फफीयर मेें परिवर््तन
हिमाांक-मंडल ( क्रायोस्फीयर ) प्रतिक्रियात््मक लप्ू ्स के माध््यम से जलवायु परिवर््तन मेें वृद्धि कर सकता हैैं।
और जलवायु परिवर््तन z जैव विविधता समर््थन (Biodiversity Support):क्रायोस््फफीयर अद्वितीय
z क्रायोस््फफीयर पृथ््ववी की सतह के उन हिस््सोों को संदर््भभित करता है जहाँ पानी पारिस््थथितिकी तंत्र और शीत अनक ु ू लित प्रजातियोों को बनाए रखता है।
ठोस रूप मेें होता है, जिसमेें बर््फ आच््छछादित क्षेत्र, ग््ललेशियर, बर््फ की टोपियाँ, z मौसम प्रतिरूप (Weather Patterns):क्रायोस््फफीयर मौसम प्रतिरूप को
बर््फ की चादरेें, समद्री ु बर््फ , जमी हुई झीलेें और नदियाँ, और पर््ममाफ्रॉस््ट (स््थथायी प्रभावित करता है, तफ ू ान, वर््षषा और चरम तापमान को प्रभावित करता है।
रूप से जमी हुई सतह) शामिल हैैं। क्रायोस्फीयर की सुरक्षा के लिए पहल
z जलवायु परिवर््तन पर अतं र-सरकारी पैनल (IPCC) की महासागर और z ध्रुवीय विज्ञान और क्रायोस््फफीयर अनुसंधान: यह कार््यक्रम सीधे ध्रुवीय
क्रायोस््फफीयर मेें जलवायु परिवर््तन पर विशेष रिपोर््ट (SROCC) के अनसु ार, क्षेत्ररों और जमी हुई पृथ््ववी की सभी सतहोों की जांच करता है। PACER- ध्रुवीय
हाल के दशकोों मेें वैश्विक तापन के कारण क्रायोस््फफीयर मेें महत्तत्वपर््णू कमी आई जलवाय,ु बर््फ की चादरोों, ग््ललेशियरोों और पर््ममाफ्रॉस््ट पर शोध का समर््थन करता
है। इसमेें बर््फ की चादरोों और ग््ललेशियरोों का सिकुड़ना, बर््फ का आवरण कम है, इन महत्तत्वपर््णू क्षेत्ररों पर व््ययापक ज्ञान का आधार बनाने के लिए वैज्ञानिकोों
होना, आर््कटिक समद्री ु बर््फ की सीमा और मोटाई मेें कमी और पर््ममाफ्रॉस््ट और संस््थथानोों के बीच सहयोग को बढ़़ावा देता है।
क्षेत्ररों मेें तापमान मेें वृद्धि आदि शामिल है। z पथ्ृ ्ववी प्रणाली विज्ञान अनुसंधान कार््यक्रम के माध््यम से वायुमंडल और
वैश्विक जलवायु पर हिमाांक-मंडल( क्रायोस्फीयर ) का प्रभाव क्रायोस््फफीयर: यह पहल वायमु डं ल और क्रायोस््फफीयर के बीच परस््पर सबं ंधोों
पर केें द्रित है। ACROSS का उद्देश््य हमारी समझ को बेहतर बनाना है कि ये
z एल््बबिडो प्रभाव (Albedo Effect):क्रायोस््फफीयर की चमकीली, परावर््तक
दोनोों प्रणालियाँ कै से परस््पर क्रिया करती हैैं और जलवायु परिवर््तन, मौसम
सतहेें सर््यू के प्रकाश को अतं रिक्ष मेें परावर््ततित करती हैैं, जिससे पृथ््ववी ठंडी
प्रतिरूप और पर््ययावरणीय प्रक्रियाओ ं को कै से प्रभावित करती हैैं।
रहती है। हालाँकि, बर््फ पिघलने से गहरे रंग की सतहेें उजागर होती हैैं, जिससे
ऊष््ममा का अवशोषण बढ़ता है और तापमान मेें वृद्धि होती है। फुजिवारा प्रभाव
z समुद्र के जलस््तर मेें वृद्धि (Rising Seas):ग््ललेशियर और बर््फ की चादरेें परिभाषा: फुजिवारा प्रभाव मौसम विज्ञान मेें एक घटना है जिसमे दो निकटवर्ती
पिघलने से समद्रु के जलस््तर मेें वृद्धि होती है, जिससे तटीय क्षेत्ररों मेें रहने वाले चक्रवाती प्रणालियाँ, जैसे उष््णकटिबंधीय चक्रवात या तूफ़़ान, एक सामान््य केें द्र
समदु ायोों के लिए बाढ़, कटाव और विस््थथापन का संकट उत््पन््न होता है। के चारोों ओर घमू ते हुए एक दसू रे के साथ परस््पर क्रिया करते हैैं। यह प्रभाव तब
z महासागरीय व््यवधान (Ocean Disruption):पिघलती बर््फ से निकलने होता है जब चक्रवात एक दसू रे की गति और तीव्रता को प्रभावित करने के लिए
वाला ताजा पानी समद्रु की लवणता और तापमान को प्रभावित करता है, पर््ययाप्त रूप से निकट होते हैैं।
जलवायु विज्ञ 13
3 समुद्र विज्ञान
z जलचक्र (Water Cycle):समद्रु की सतह की लवणता पृथ््ववी के जल चक्र
परिचय
को दर््शशाती है, जो स््वच््छ जल के महासागरोों मेें प्रवेश (वर््षषा, नदियाँ) और
महासागर पृथ््ववी की सतह के 70% से अधिक भाग पर विस््ततृत हैैं। स््ववास््थ््य, बाहर निकलने (वाष््पपीकरण) के बीच संतल ु न को दर््शशाती है।
मानव-कल््ययाण और जीवित पर््ययावरण जो हम सभी को जीवित रखता है, सभी
लवणता को प्रभावित करने वाले कारक
जटिल रूप से आपस मेें जुड़़े हुए हैैं। इसके बावजूद, महासागरोों का अम््ललीकरण,
जलवायु परिवर््तन, प्रदषू णकारी गतिविधियाँ और समद्री ु संसाधनोों के अत््यधिक वाष्पीकरण (Evaporation): गर््म, शुष्क
दोहन ने महासागरोों को पृथ््ववी पर सबसे अधिक संकटग्रस््त पारिस््थथितिकी तंत्ररों क्षेत्ररों मेें उच्च वाष्पीकरण लवणता की मात्रा मेें वृद्धि करता है।
मेें से एक बना दिया है। z स््वच््छ जल की पूर््तति (Fresh-water Input):वर््षषा, नदियाँ और हिमखडं
लवणता को कम करते हैैं (उदाहरण के लिए, भमू ध््यरे खीय क्षेत्र)।
महासागरीय उच्चावच
z महासागरीय धाराओ ं का मिश्रण (Ocean Current Mixing):सीमित
z महाद्वीपीय मग््नतट (Continental Shelf):महाद्वीप के उथले जलमग््न मिश्रण वाले बंद समद्रु रों मेें लवणता अधिक होती है, जबकि खलु े समद्री
ु क्षेत्ररों
विस््ततार को महाद्वीपीय मग््नतट कहा जाता है। मेें लवणता कम होती है।
z महाद्वीपीय ढाल (Continental slope):महाद्वीपीय किनारे का निरंतर z जलवायु परिवर््तन (Climate Change):बढ़ते तापमान के कारण
ढलान वाला वह भाग, जो गहरे समद्रु तल के नितलीय मैदान तक फै ला हुआ वाष््पपीकरण बढ़ता है और जिससे संभावित रूप से लवणता बढ़ जाती है।
है, महाद्वीपीय ढलान के रूप मेें जाना जाता है।
लवणता का वितरण
z नितल मैदान (Abyssal plains):ये गंभीर समद्रु तल के विस््ततृत समतल
z ऊर््ध्ववाधर (Vertical):लवणता सामान््य रूप से उच््च अक््षाांशोों पर गहराई के
और आकारहीन मैदान हैैं।
साथ बढ़ती है, मध््य अक््षाांशोों मेें लगभग 35 मीटर तक चरम पर होती है, और
z जलमग््न गर््त (Submarine Trenches):समद्रु तल के प्रमख ु , लंबे, संकीर््ण फिर भमू ध््य रे खा की ओर घटती है।
स््थलाकृ तिक अवनमन को गर््त (समद्रीु खाइयाँ) कहते हैैं। z क्षैतिज (Horizontal): वैश्विक महासागर की लवणता 33 से 37 ग्राम प्रति
किलोग्राम तक होती है। सबसे उच््चतम लवणता उत्तरी गोलार्दद्ध मेें 15° और
20° अक््षाांशोों के मध््य पायी जाती है, जो धीरे -धीरे उत्तर की ओर घटती चली
जाती है।
लवणता मेें क्षेत्रीय विभिन्नता
z प्रशांत महासागर: लवणता इसके विशाल आकार और आकृ ति के कारण
भिन््न होती है।
z अटलांटिक महासागर: औसत लवणता लगभग 36-37 ग्राम प्रति किलोग्राम है।
z हिंद महासागर: औसत लवणता 35 ग्राम प्रति किलोग्राम है। बंगाल की खाड़़ी
मेें गंगा नदी के कारण लवणता कम है, इसके विपरीत अरब सागर मेें उच््च
लवणता (SALINITY) वाष््पपीकरण के कारण लवणता अधिक है।
लवणता से तात््पर््य प्रति किलोग्राम समद्री
ु जल मेें घल
ु े हुए नमक की मात्रा (ग्राम z अन््य समुद्र:
मेें) से है। यह महासागरीय गतिविधि और जलवायु को प्रभावित करने वाला एक उत्तरी अटलांटिक बहाव द्वारा अधिक खारे पानी के प्रवाह के कारण उत्तरी
महत्तत्वपर््णू कारक है। सागर मेें अधिक लवणता देखी जाती है।
लवणता क्ययों महत्त्वपूर््ण है ? बाल््टटिक सागर मेें भारी मात्रा मेें नदियोों के जल गिरने के कारण लवणता
तटीय आकृ ति जैसे भ-ू भाग धाराओ ं की प्रवाह दिशा को प्रभावित करते
महासागरीय जल संचलन
हैैं, जिससे पेरूवियन जैसी धारा उत््पन््न होती है।
महासागरीय जल महासागरीय जल का संचलन तीन रूपोों मेें होता है- जो तरंगेें, z द्वितीयक कारण, जो धारा के प्रवाह को प्रभावित करते हैैं:
ज््ववार-भाटा और धाराएँ हैैं।
तापमान और लवणता (Temperature and Salinity):सघन,
महासागरीय तरंगेें (OCEAN WAVES) लवणीय जल नीचे बैठ जाता है, जबकि हल््कका पानी जल ऊपर उठता है,
z महासागरीय तरंगेें पवन द्वारा जल मेें ऊर््जजा स््थथानांतरित करने से बनती हैैं, जिससे जिससे धाराओ ं के भीतर ऊर््ध्ववाधर गति प्रभावित होती है।
दोलायमान गतियोों मेें विशिष्ट वृद्धि और गिरावट होती है। जलवायु परिवर््तन प्रभाव (Climate Change Impact):ग्रीनहाउस
z तरंगेें क्षैतिज रूप से गति करती हैैं, जिसमेें ऊर््जजा जल के माध््यम से यात्रा करती है। गैसोों के कारण समद्रु की सतह का बढ़ता तापमान अटलांटिक
z लहर के उच््चतम बिंदु को शिखर कहा जाता है, जबकि निम््नतम बिंदु को भमू ध््यरे खीय प्रतिवर्ती परिसंचरण (अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर््नििंग
गर््त कहा जाता है। सर््ककु लेशन - AMOC) जैसी प्रमख ु धाराओ ं को बाधित कर सकता है,
ज्वार-भाटा (TIDES): जिससे संभावित रूप से वैश्विक जलवायु प्रतिरूप मेें बदलाव देखने को
समद्रु के जल-स््तर के नियमित रूप से ऊपर उठने को ज््ववार तथा नीचे उतरने मिल सकता है।
को भाटा कहते हैैं जो प्रतिदिन एक या दो बार होता है। चंद्रमा, सूर््य और पृथ््ववी महासागरीय धाराओ ं के प्रभाव
के घर््णन
ू का गुरुत््ववाकर््षण बल ज््ववार-भाटा को चलाने वाली प्राथमिक शक्तियाँ z जलवायु नियंत्रण (Climate Control):महासागरीय धाराएँ क्षेत्रीय
हैैं। ज््ववार-भाटा को आवृत्ति और सूर््य-चंद्रमा-पृथ््ववी की स््थथिति के आधार पर जलवायु को निर््धधारित करने मेें महत्तत्वपर््णू भमिक ू ा निभाती हैैं। गर््म धाराएँ
विभाजित किया जाता है:
आस-पास के क्षेत्ररों मेें तापमान बढ़़ाती हैैं, जबकि ठंडी धाराएँ शीतलन प्रभाव
z आवत्ति ृ के आधार पर (Based on Frequency):
डालती हैैं। (उदाहरण के लिए, उत्तरी अटलांटिक प्रवाह इग्ं ्लैैंड को गर््म रखता
अर््ध-दैनिक ज््ववार (Semi-diurnal tides): प्रतिदिन दो उच््च और दो
है, कनारी धारा स््पपेन और पर््तु गाल के तापमान को कम करती है)
निम््न ज््ववार आते हैैं।
z वर््षषा और रेगिस््ततान (Rainfall and Deserts):गर््म धाराएँ तटीय क्षेत्ररों और
दैनिक ज््ववार (Diurnal tides):प्रतिदिन के वल एक उच््च और एक
यहाँ तक कि अतर् ं श दे ीय क्षेत्ररों मेें वर््षषा प्रदान करती हैैं। इसके विपरीत, ठंडी
निम््न ज््ववार आता है।
धाराएँ उपोष््णकटिबंधीय क्षेत्ररों मेें महाद्वीपोों के पश्चिमी किनारोों पर वर््षषा रोककर
z सर््य ू -चंद्रमा-पथ्ृ ्ववी की स््थथिति के आधार पर (Based on Sun-Moon-
रे गिस््ततान का निर््ममाण करती हैैं।
Earth Alignment):
z मत््स््य क्षेत्र (Fishing Zone):गर््म और ठंडी धाराओ ं का अभिसरण प््लवक
दीर््घ या बह ृ त् ज््ववार (Spring tides):सबसे ऊँचे और सबसे निम््न
ज््ववार तब आते हैैं जब सर््यू , चद्रं मा और पृथ््ववी एक सीधी रे खा मेें होते हैैं के विकास के लिए आदर््श परिस््थथितियाँ बनाता है, जो मछलियोों का प्रमख ु
(पर््णू मासी या अमावस््यया)। भोजन है, जिससे ये क्षेत्र मत््स््य उद्योग के लिए प्रमख ु क्षेत्र बन जाते हैैं।
लघु ज््ववार (Neap tides):कम ऊँचाई वाले लघु ज््ववार तब आते हैैं जब
z नौवहन(Navigation):महासागरीय धाराएँ जहाज़ के संचालन को प्रभावित
सर््यू और चद्रं मा पृथ््ववी के समकोण पर होते हैैं। कर सकती हैैं। इन धाराओ ं को समझना अधिक कुशल यात्रा मार्गगों की अनमु ति
देता है
महासागरीय धाराएँ (OCEAN CURRENTS)
z तापमान संतुलन (Temperature Moderation):गर्मी को पनर् ु ्ववितरित
महासागरीय धाराएँ लंबी दरू ी तक एक विशेष दिशा मेें महासागरीय जल का
करके , धाराएँ तटीय तापमान को नियंत्रित करने मेें सहायता करती हैैं। उदाहरण
क्षैतिज प्रवाह हैैं। वे समद्रु के भीतर बहती हुई एक नदी के समान होती हैैं।
के लिए, गर््म उत्तरी अटलांटिक प्रवाह इग्ं ्लैैंड तट का मौसम सहु ावना रखती
महासागरीय धाराओं के उत्पन्न होने के कारण है, जबकि कनारी धारा स््पपेन और पर््तु गाल की जलवायु को संतलित ु करती
z प्राथमिक बल, जो जल संचलन की शुरुआत करते हैैं: है।
समुद्र विज 15
गायर, प्रवाह और विशाल धारा: प्रवाल के विकास के लिए आदर््श पर्यावरणीय परिस्थितियााँ
विशेषताएँ विवरण z सर््यू का प्रकाश (Sunlight): पॉलीप््स के भीतर ज़क़्ू ्ससैन््थथेला शैवाल को
गायर बड़़े स््तर पर वायु की गति के साथ घर््णन ू करने वाली समद्री
ु प्रकाश संश्लेषण के लिए सर््यू के प्रकाश की आवश््यकता होती है।
(Gyre) धाराओ ं की एक वृहत प्रणाली को गायर कहा जाता है। यह z ठोस आधार (Solid Foundation):अन््ततः सागरीय चबतरो ू ों की उपस््थथिति
कोरिओलिस बल, पवन, ज््ववार, तापमान और लवणता के भित्ति विकास के लिए आवश््यक है।
प्रभाव से बनते है। z गर््म, साफ पानी: आदर््श तापमान 20 डिग्री सेल््ससियस के आसपास और
प्रवाह जब महासागर का जल प्रचलित पवन वेग से प्रेरित होकर पानी की स््पष्टता अच््छछी होनी चाहिए।
(Drift) आगे बढ़ता है, तो इसे प्रवाह कहा जाता है। उदाहरण के लिए z लवणता (Salinity):प्रवाल अपने कंकाल बनाने के लिए खारे जल से
उत्तरी अटलांटिक प्रवाह। कै ल््शशियम निकालते हैैं।
धारा महाद्वीप पर नदी की तरह एक निश्चित पथ पर चलने वाले
z पोषक तत्तत्व (Nutrients):पोषक तत्तत्ववों की एक निरंतर आपर््तति
ू स््वस््थ प्रवाल
(Stream) महासागरीय जल को जलधारा कहते हैैं। वे प्रवाह की तुलना
के विकास मेें सहायता करती है।
मेें तेज़़ी से प्रवाहित होती हैैं। उदा.गल््फ स्ट्रीम ।
प्रवाल के जीवन प्रणाली पर वैश्विक तापन का प्रभाव
जलवायु परिवर््तन और महासागर परिसंचरण
z वैश्विक तापन के परिणामस््वरूप समद्रु के तापमान मेें वृद्धि प्रवाल के जीवन के
समद्री
ु धाराओ ं का विशाल तंत्र पृथ््ववी की जलवायु को नियंत्रित करने मेें लिए एक बड़़ा संकट बन गया है। यह तापन प्रवाल विरंजन को प्रेरित करता
महत्तत्वपूर््ण भमिक
ू ा निभाता है। ये धाराएँ ऊष््ममा का परिवहन करती हैैं, जिससे है, यह एक ऐसी घटना जिसमेें प्रवाल अपने अदं र रहने वाले महत्तत्वपर््णू शैवाल
स््थथानीय मौसम के प्रतिरूप से लेकर वैश्विक जलवायु स््थथिरता तक हर चीज़ पर को बाहर निकाल देता है, जिससे वे सफे द हो जाते हैैं और कमज़़ोर हो जाते
असर पड़ता है। जलवायु परिवर््तन के कारण महासागरीय परिसंचरण मेें बदलाव हैैं। उदाहरण: ऑस्ट्रेलिया मेें ग्रेट बैरियर रीफ़
के दरू गामी परिणाम हो सकते हैैं: z ऊष््ममीय तनाव के कारण प्रवाल विरंजन गंभीर और निरंतर होता जा रहा है।
z समुद्री पारिस््थथितिकी तंत्र मेें व््यवधान(Disrupted Marine
Ecosystems):जल के तापमान और धाराओ ं मेें परिवर््तन से प्रजनन क्षेत्र प्रवाल विरं जन के कारण
बाधित हो सकते हैैं और समद्री ु पारिस््थथितिकी प्रणालियोों के बीच संपर््कता मेें z महासागर का गर््म होना (Ocean Warming):जलवायु परिवर््तन इसका
बदलाव आ सकता है, जिससे मछलियोों की सख्ं ्यया और समग्र जैव विविधता मख्ु ्य कारण है।
पर असर पड़ सकता है। z प्रदूषण (Pollution): अपवाह, तफ़ ू ़ान से उत््पन््न मलबा और अन््य प्रदषक ू
z परिवर््ततित कार््बन चक्र (Altered Carbon Cycle):गर््म हवाओ ं के कारण प्रवाल को हानि पहुचँ ा सकते हैैं।
पिघलने वाली समद्री ु बर््फ शैवाल की वृद्धि को बाधित करती है, जो वायमु डं लीय z अत््यधिक सर््यू प्रकाश (Excessive Sunlight):उच््च सौर विकिरण उथले
कार््बन डाइऑक््ससाइड को अवशोषित करने मेें महत्तत्वपर््णू भमिक ू ा निभाती है। पानी के प्रवाल का विरंजन कर सकता है।
इससे जलवायु परिवर््तन मेें और तीव्रता आ सकती है। z निम््न ज््ववार (Low Tides):निम््न ज््ववार के दौरान हवा के सपं र््क मेें लंबे समय
z मत््स््य पालन का संकट (Fisheries at Risk):वर््तमान प्रतिरूप मेें परिवर््तन तक रहने से उथले प्रवाल विरंजित हो सकते हैैं।
से मत््स््य भडं ार मेें कमी आ सकती है, जिससे समद्रु पर निर््भर लाखोों लोगोों की
खाद्य सरु क्षा और आजीविका सकट महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए प्रवाल भित्ति का महत्त्व
ं मेें पड़ सकती है
z अन््य खतरे (Other Threats):समद्र ु के तापमान मेें वृद्धि,अम््ललीकरण और z आर््थथिक महत्तत्व (Economic Importance):प्रवाल भित्ति मत््स््य पालन
ऑक््ससीजन के स््तर मेें गिरावट समद्री ु जीवन और समद्री ु पारिस््थथितिकी तंत्र के और पर््यटन को बढ़़ावा देकर रोजगार और राजस््व उत््पन््न करते हैैं।
सवं ेदनशील सतं ल ु न से स ब
ं ं धी विभिन््न प्रकार के खतरे उत््पन््न करती है। z जैव विविधता तप्त स््थल (Biodiversity Hotspot):प्रवाल भित्तियाँ
विभिन््न समद्री
ु जीवोों का निवास स््थल हैैं, जिनमेें लगभग 4,000 मछली
प्रवाल भित्तियााँ प्रजातियाँ और असंख््य अन््य प्रजातियाँ पाई जाती हैैं।
प्रवाल भित्तियाँ जल के नीचे की संरचनाएँ हैैं जो मंगू ा नामक छोटे प्रवाल जीवोों z प्राकृतिक अवरोध (Natural Barrier):प्रवाल भित्तियाँ लहरोों की ऊर््जजा
द्वारा बनाई जाती हैैं। एक स््थथान पर असंख््य मंगू े एक साथ मिलकर समहू मेें रहते को अवशोषित करके , कटाव और तफ ू ान से होने वाली हानि को कम करके
है तथा अपने चारोों ओर चनू े की खोल बनाते हैैं, जिनसे इन जीवंत पारिस््थथितिकी तट रे खाओ ं की रक्षा करती हैैं
तंत्ररों का निर््ममाण होता हैैं। भारत मेें तीन प्रमखु प्रकार की प्रवाल भित्तियाँ पायी प्रवाल संरक्षण
जाती हैैं:
z तटीय प्रवाल भित्ति (Fringing Reefs):समद्र ु तट की सीमा पर निर््ममित z सतत अभ््ययास और मानवीय प्रभाव मेें कमी, आगे की क्षति को रोकने और
होती हैैं तथा उथले लैगनू का निर््ममाण करती हैैं। प्रवाल भित्तियोों को पनु ः स््वस््थ होने देने के लिए महत्तत्वपर््णू हैैं।
z अवरोधक प्रवाल भित्ति (Barrier Reefs):सागर तट के समानांतर कुछ
z विधिक सरु क्षा उपाय: भारत ने प्रवाल भित्तियोों की सरु क्षा के लिए विभिन््न
दरू ी पर स््थथित वृहदाकार प्रवाल भित्ति। विधियाँ लागू की हैैं, जिनमेें शामिल हैैं:
z प्रवाल वलय या ऐटॉल (Atolls):लैगन ू को घेरने वाली अगं ठू ी के आकार वन््य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (अनस ु चू ी I) (The Wild Life
की भित्ति, जो मध््य महासागर मेें पाई जाती हैैं। Protection Act, 1972 (Schedule I))
समुद्र विज 17
AMOC का प्रभाव बनाने, उन््नत तकनीकोों और अवलोकनोों को विकसित करने, संसाधनोों का
आकलन करने और वैज्ञानिक अनसु ंधान करने पर केें द्रित है। सशक्त महासागर
z अस््थथिरता और प्रभाव (Fluctuations and Impacts): AMOC मेें
प्रारूप बनाकर, ओ-स््टटॉर््म््स का उद्देश््य महासागरीय ससं ाधनोों के स््थथायी प्रबंधन
स््ववाभाविक रूप से उतार-चढ़़ाव होता रहता है, लेकिन इसके कमज़़ोर होने के
का समर््थन करना और नीतिगत निर््णयोों को सचित ू करना है।
महत्तत्वपर््णू परिणाम हो सकते हैैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका के पर्वी ू तट पर
समद्रु का जलस््तर बढ़ सकता है, यरू ोप मेें कठोर सर््ददियाँ और ज़़्ययादा भीषण निष्कर््ष (Conclusion):
गर्मी पड़ सकती है, और ब्रिटेन मेें तीव्र तफ ू ानोों मेें वृद्धि देखी जा सकती है। समद्रु विज्ञान एक महत्तत्वपर््णू क्षेत्र है जो विश्व के महासागरोों के विषय मेें हमारी समझ
z हिंद महासागर की भूमिका (Indian Ocean's Role): दिलचस््प बात को बढ़़ाता है, जो पृथ््ववी की सतह के 70% से अधिक भाग को आच््छछादित करते
यह है कि हाल ही मेें किए गए शोध से पता चलता है कि हिदं महासागर मेें हैैं। महासागरीय धाराओ,ं समद्री ु पारिस््थथितिकी तंत्ररों और महासागरीय प्रक्रियाओ ं
बढ़ते तापमान से अटलांटिक मेें वायु और जल के परिसचं रण प्रतिरूप को का अध््ययन न के वल प्राकृतिक घटनाओ ं के बारे मेें हमारे ज्ञान को समृद्ध करता
प्रभावित करके AMOC को वास््तव मेें सहायता मिल सकती है। है, बल््ककि जलवायु को निर््धधारित करने,जैव विविधता का समर््थन करने और मानव
AMOC की जटिल गतिशीलता और हिदं महासागर जैसे सभं ावित प्रभावोों को आजीविका को बनाए रखने मेें महासागरोों की महत्तत्वपर््णू भमिक ू ा को भी उजागर
समझना भविष््य के जलवायु प्रतिरूप की भविष््यवाणी करने और उनके संभावित करता है। जैसे-जैसे हम बढ़ती पर््ययावरणीय चनु ौतियोों का सामना कर रहे हैैं, महासागर
प्रभावोों को कम करने के लिए महत्तत्वपर््णू है। विज्ञान से प्राप्त जानकारियाँ हमेें महासागरोों की रक्षा करने और भविष््य की पीढ़़ियोों
वैश्विक प्रतिवर्ती परिसंचरण के लिए हमारी पृथ््ववी के स््ववास््थ््य को सनु िश्चित करने के लिए सतत प्रथाओ ं और
(Global Overturning Circulation-GOC) नीतियोों को विकसित करने के लिए आवश््यक है।
z वैश्विक प्रतिवर्ती परिसंचरण (GOC) ठंडे, गहरे जल का भम ू ध््य रे खा की ओर
परिवहन और गर््म, सतह के निकट के जल का ध्रुव की ओर परिवहन है। प्रमुख शब्दावलियाँ
z महत्तत्व: यह महासागरीय ऊष््ममा वितरण और वायम ु डं लीय कार््बन
महासागरीय अम््ललीकरण, लवणता, महाद्वीपीय मग््नतट, महासागरीय
डाइऑक््ससाइड के स््तर को नियंत्रित करता है, इस प्रकार वैश्विक जलवायु मेें
धाराएँ, ज््ववार-भाटा, लहरेें, प्रवाल भित्तियाँ, समुद्री प्रदूषण, समुद्री
महत्तत्वपर््णू भमिक
ू ा निभाता है।
संसाधन, प््लवक, समुद्री घास, माइक्रोप््ललास््टटिक््स, अटलांटिक
गहरे समुद्र मेें अन्वेषण की पहल भूमध््यरेखीय प्रतिवर्ती परिसंचरण(AMOC), गहरे समुद्र मेें अन््ववेषण,
गहरे समद्रु का विशाल विस््ततार अभी भी काफी हद तक अज्ञात है, जिसमेें संसाधनोों बाथिमेट्रिक डेटा, नीली अर््थ व््यवस््थथा, सीबेड 2030, ओ-स््टटॉर््म,
सतत प्रबंधन, जलवायु परिवर््तन।
की खोज और वैज्ञानिक समझ के लिए अपार संभावनाएँ हैैं। आइए तीन प्रमख ु
पहलोों पर नज़र डालेें: विगत वर्षषों के प्रश्न
z गहरे समुद्र मिशन (Deep Ocean Mission-DOM):भारत द्वारा शरू ु z मैैंग्रोव के ह्रास के कारणोों पर चर््चचा करेें तथा तटीय पारिस््थथितिकी को बनाए
किया गया, DOM गहरे समद्रु के अन््ववेषण के लिए तकनीकी चनु ौतियोों से
रखने मेें उनके महत्तत्व को समझाएँ।(2019)
निपटता है। इसके निर््धधारित क्षेत्ररों मेें अडं रवाटर वाहन, पॉलीमेटेलिक नोड्यल ू
महासागर धाराएँ और जल राशियाँ समद्री ु जीवन और तटीय पर््ययावरण पर
जैसी संसाधन निष््कर््षण तकनीकेें और यहाँ तक कि जलवायु परिवर््तन परामर््श
z
अपने प्रभावोों मेें किस-किस प्रकार परस््पर भिन््न हैैं? उपयक्त ु उदाहरण
सेवाएँ भी शामिल हैैं। इस मिशन का उद्देश््य भारत के विशेष आर््थथिक क्षेत्र के
दीजिए? (2019)
भीतर मल्ू ्यवान संसाधनोों को प्रकट करना और देश की नीली अर््थव््यवस््थथा
को बढ़़ावा देना है। z वैश्विक तापन का प्रवाल जीवन तंत्र पर प्रभाव का, उदाहरणोों के साथ, आकलन
कीजिए।(2019)
z सीबे ड 2030 (Seabed 2030): यह सहयोगात््मक परियोजना 2030 तक
परू े महासागर तल का एक निश्चित मानचित्र बनाने का प्रयास करती है। मौजदू ा z समद्रीु पारिस््थथितिकी पर ‘मृत क्षेत्ररों’ (Dead Zones) के विस््ततार के क््यया-क््यया
बैथिमेट्रिक डेटा को एकत्र और एकीकृ त करके , सीबेड 2030 महासागर परिणाम होोंते हैैं? (2018)
परिसचं रण, समद्री ु पारिस््थथितिकी तंत्र और जलवायु प्रतिरूप को समझने के z महासागरी धाराओ ं की उत््पत्ति के उत्तरदायी कारकोों की व््ययाख््यया कीजिए। वे
लिए महत्तत्वपर््णू जानकारी प्रदान करता है। यह वैश्विक प्रयास महासागर स््ववास््थ््य प्रादेशिक जलवायओ ु ,ं समद्री
ु जीवन और नौचालन को किस प्रकार प्रभावित
से संबंधित सचितू निर््णय लेने को सशक्त बनाता है, जो हमारी पृथ््ववी और उसके करती हैैं?(2015)
लोगोों के कल््ययाण के लिए एक महत्तत्वपर््णू कारक है। z विश्व मेें ससं ाधन सकट ं से निपटने के लिए महासागरोों के विभिन््न ससं ाधनोों,
z ओ-स््टटॉर््म््स (O-STORMS):यह कार््यक्रम विभिन््न पहलओ ु ं मेें महासागरीय जिनका उपयोग किया जा सकता है, का आलोचनात््मक मल्ू ्ययाांकन कीजिए।
आकड़ो ं ों के महत्तत्व पर जोर देता है। ओ-स््टटॉर््म््स महासागरीय सेवाओ ं को बेहतर (2014)
z जेट स्ट्रीम का प्रभाव: पश्चिमी जेट स्ट्रीम सहित ऊपरी वायु परिसंचरण
परिचय
प्रतिरूप, सर््ददियोों के मौसम को प्रभावित करते हैैं।
भारत की जलवायु यहाँ के लोगोों के जीवन पर महत्तत्वपूर््ण प्रभाव डालती है। z अक््षाांशीय भिन््नता: दक्षिणी भारत, भमू ध््य रे खा के पास, आम तौर पर गर््म
उष््णकटिबंधीय मानसून जलवायु, अपनी उष््ण व आर्दद्र गर््ममियोों और मानसूनी वर््षषा रहता है, जबकि उत्तर भारत इसकी समशीतोष््ण कटिबंधीय अवस््थथिति के कारण
के साथ, आर््थथिक गतिविधियोों से लेकर कपड़ों के चनु ाव तक सब कुछ निर््धधारित
ठंडी सर््ददियोों का अनभु व करता है।
करती है। हालाँकि, यह मौसम अत््यधिक परिवर््तनशील होता है, जिसमेें सूखा,
बाढ़ और चक्रवात जैसी चरम घटनाएँ जीवन व आजीविका को बाधित करती
हैैं। जलवायु परिवर््तन के कारण इन घटनाओ ं के और भीषण होने की आशंका है। प्रमुख शब्दावलियाँ
तथ््ययानुसार मौसम का प्रतिरूप; समुद्र तल मेें वृद्धि; पवनोों का प्रतिलोमन;
z चार मौसम: शीत ऋतु (दिसंबर से फरवरी), ग्रीष््म ऋतु (मार््च से मई), वर््षषा की मौसमीयता और भिन््नता; भारतीय जलवायु की विविधता;
मानसनू (जनू से सितंबर), और मानसनू के बाद या शरद ऋतु (अक््टटूबर ऋतुओ ं की बहुलता; सतही दाब और हवा; जेट स्ट्रीम और ऊपरी
और नवंबर)। वायु परिसंचरण; पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ और उष््णकटिबंधीय
z चरम तापमान: चरू ु (राजस््थथान) मेें गर््ममियोों मेें 50°C से ऊपर और द्रास चक्रवात; भूमि पर उच््च एवं निम््न दाब का प्रभाव; समुद्र से दूरियाँ
(लद्दाख) मेें सर््ददियोों मेें -45°C। - महाद्वीपीयता; वायदु ाब और पवनोों का वितरण; पश्चिमी चक्रवातोों
z क्षेत्रीय भिन््नता: उत्तर मेें गर््म/ठंडा, तट पर मध््यम, पश्चिम मेें शष्ु ्क और का आगमन आदि।
उत्तर पर््वू मेें आर्दद्र।
z विभिन््न वर््षषा प्रतिरूप: पश्चिमी तट पर भारी, उत्तर-पर््वू मेें नम (wet), भारत की जलवायु का निर्धारण करने वाले कारक
सबसे अधिक वर््षषा चेरापंजू ी (मेघालय) मेें लगभग 1080 सेमी और जैसलमेर अवस्थिति और उच्चावच
(राजस््थथान) मेें के वल 9 सेमी से ऊपर दर््ज की जाती है। z हिमालय पर््वत: हिमालय ठंडी आर््कटिक पवनोों को रोकता है, जिससे भारत
z चक्रवात: तटीय क्षेत्र चक्रवातोों से ग्रस््त होते हैैं, विशेषकर बंगाल की की जलवायु आकार लेती है।
खाड़़ी मेें।
z भूमि और जल वितरण: भमि ू और समद्रु का असमान तापन अलग-अलग
मौसमी वायु दाब क्षेत्र बनाता है।
भारतीय जलवायु की विशिष्ट विशेषताएँ
z तटीय निकटता: समद्रु के प्रभाव के कारण तटीय क्षेत्ररों मेें मध््यम तापमान का
भारत की जलवायु कई कारकोों का एक जटिल अतर्सं ं बंध है: अनभु व होता है, जबकि अतर् ं श दे ीय क्षेत्ररों मेें अत््यधिक तापमान का सामना
z भौगोलिक विविधता: स््थथान, ऊंचाई, समद्र ु से दरू ी और स््थथानीय उच््चचावच करना पड़ता है। (उदाहरण के लिए, कोोंकण तट पर तापमान मध््यम है लेकिन
विशेषताएँ सभी क्षेत्रीय विविधता मेें योगदान करती हैैं। कानपरु और अमृतसर अत््यधिक तापमान से प्रभावित होते हैैं)।
z एकाधिक ऋतुए:ँ भारत तीन प्राथमिक ऋतओ ु ं (शीतकाल, ग्रीष््म ऋत,ु z ऊंचाई/तुंगता (Altitude): ऊंचाई के साथ तापमान घटता है क््योोंकि चढ़़ाई
मानसनू ) का अनभु व करता है, लेकिन सक्षू ष्म मौसम परिवर््तन के आधार पर के दौरान हवा ठंडी होती है।
इसे छह ऋतओ ु ं मेें विभाजित किया जा सकता है।
z विविध उच््चचावच: भारत की विविध स््थलाकृ ति तापमान, वायदु ाब, वायु
z ऋतु परिवर््तनशील पवनेें: सर््ददियोों (उत्तर-पर््व ू से दक्षिण-पश्चिम) और गर््ममियोों
प्रतिरूप और वर््षषा वितरण को प्रभावित करती है।
(दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पर््वू ) के बीच पवनेें दिशा बदलती हैैं।
z मानसन ू ी वर््षषा: अधिकांश वार््षषिक वर््षषा (80%) ग्रीष््म मानसनू के दौरान कम वायुदाब और पवनेें
अवधि मेें होती है। z दाब और पवन प्रणाली: तापमान, ऊंचाई और पृथ््ववी का घर््णन ू वायदु ाब
z वायुदाब प्रणालियाँ: भमि ू पर उच््च और निम््न दाब प्रणालियाँ तापमान को वायु प्रतिरूप को प्रभावित करते है, जिससे वायु प्रवाह उच््च दाब वाले क्षेत्ररों
प्रभावित करती हैैं, जिससे गर्मी मेें निम््न दाब वाले क्षेत्र बनते हैैं। से निम््न दाब वाले क्षेत्ररों की ओर होता है।
z प्राकृतिक आपदाएँ: वर््षषा की मानसनी ू प्रकृ ति भारत को बाढ़, सख ू े और अन््य z जेट स्ट्रीम: ऊपरी स््तर की वायु धाराएँ (जेट स्ट्रीम) दनु िया भर मेें ऊष््ममा और
मौसम संबंधी आपदाओ ं से ग्रस््त बनाती है। नमी का पनर्ु ्ववितरण करती हैैं।
z वायुराशियाँ: तापमान और नमी के आधार पर वर्गीकृ त अलग-अलग उपोष््णकटिबंधीय पश्चिमी जेट स्ट्रीम: पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ लाकर
वायरु ाशियाँ, विभिन््न क्षेत्ररों को प्रभावित करती हैैं। सर््ददियोों मेें, पश्चिमी चक्रवात शीतकालीन वर््षषा मेें भमिक ू ा निभाती है।
विशिष्ट क्षेत्ररों मेें वर््षषा लाते हैैं, जबकि दक्षिण-पश्चिम मानसनू गर््म हिदं महासागर z हिमालय और तिब््बती पठार: इन भभ ू ागोों के गर््म होने से दक्षिणावर््त वायु
से उत््पन््न होने वाले उष््णकटिबंधीय अवसादोों के कारण व््ययापक वर््षषा करता गति के साथ मानसनू परिसंचरण शरू ु होता है और उष््णकटिबंधीय पर्वी ू जेट
है। इन कारकोों मेें वर््ष की शीत और ग्रीष््म ऋतु के सदं र््भ मेें अलग-अलग तंत्र स्ट्रीम व मध््य एशियाई पश्चिमी जेट स्ट्रीम दोनोों के लिए आधार तैयार होता है।
होते हैैं। z अल नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO): प्रशांत महासागर मेें तापमान मेें
उतार-चढ़़ाव से जड़ु ़ी ENSO घटनाएँ, भारतीय मानसनू सहित वैश्विक मौसम
भारतीय मानसून
प्रतिरूप पर महत्तत्वपर््णू प्रभाव डालती हैैं।
z मानसनू शब््द की उत््पत्ति अरबी शब््द 'मौसम' से हुई है जिसका अर््थ 'ऋतु' अल नीनो: अल नीनो के दौरान गर््म प्रशांत जल के कारण भारत मेें शष्ु ्क
होता है। यह मौसमी हवाओ ं के उलटफे र अर््थथात प्रतिलोमन के कारण होने स््थथिति और कम मानसनी ू वर््षषा होती है।
वाली एक वैश्विक घटना है। हालाँकि, सबसे महत्तत्वपर््णू मानसनी ू वर््षषा दक्षिण
ला नीना: ला नीना आमतौर पर भारत मेें सामान््य से अधिक मानसनी ू
एशिया, विशेष रूप से भारत, म््ययााँमार, श्रीलंका, बांग््ललादेश और भटू ान मेें होती
वर््षषा लाता है।
है।
z वॉकर परिसंचरण:
z भारत के लिए, मानसनू महत्तत्वपर््णू है, जो मौसमी वर््षषा लाता है जो इसकी कृ षि,
प्रशांत महासागर क्षेत्ररों के बीच दाब और तापमान मेें भिन््नता वॉकर
अर््थव््यवस््थथा और जीवन शैली को आकार देता है। मानसनू का आगमन,
अवधि, तीव्रता और वितरण सभी महत्तत्वपर््णू कारक हैैं। परिसंचरण को संचालित करती है।
ला नीना के दौरान हिद ं महासागर की एक मजबतू शाखा के कारण अधिक
मानसून का तापीय सिद्धधांत
तीव्र मानसनी ू पवनेें और संभावित रूप से अधिक वर््षषा होती है।
z हैली का तापीय सिद््धाांत भारतीय मानसनू को सर््यू की स््पष्ट उत्तर दिशा की अल नीनो घटनाओ ं के दौरान कमजोर मानसनी ू पवनेें देखी जाती हैैं।
ओर बढ़ने के कारण भमि ू और समद्रु के असमान तापन के लिए जिम््ममेदार
जे ट धाराएँ (Jet Streams)
मानता है। भारत मेें मजबतू मानसनू मेें दो प्रमख ु कारक योगदान करते हैैं: जेट स्ट्रीम वायुमंडल मेें हवा की तीव्र गति वाली धाराएँ होती हैैं, जो आमतौर
उपमहाद्वीप और आसपास के समद्रु रों का विशाल आकार, और विशाल पर पृथ््ववी की सतह से 6 से 9 मील ऊपर होती हैैं। ये धाराएँ मख्ु ्य रूप से
हिमालय। पश्चिम से पर््वू की ओर बहने वाली तीव्र पवनोों की विशेषता होती हैैं। पृथ््ववी का
z हैली का सिद््धाांत तंत्र की व््ययाख््यया इस प्रकार करता है: असमान तापन, विशेष रूप से गर््म और ठंडी वायु राशियोों के बीच, तापमान
सौर परिवर््तन: मार््च विषव ु के बाद, सर््यू उत्तर की ओर बढ़ता हुआ प्रतीत मेें अंतर पैदा करता है जो जेट स्ट्रीम के निर््ममाण को बढ़़ावा देता है।
होता है, जिससे उत्तरी गोलार््ध मेें, विशेषकर भारत मेें, सौर विकिरण बढ़ प्रवाह को प्रभावित करने वाले कारक:
जाता है। भूभाग: भमि
z ू घर््षण पैदा करती है और जेट स्ट्रीम के सचु ारू प्रवाह को बाधित
तीव्र तापन: यह विकिरण भारतीय उपमहाद्वीप को गर््म करता है, जिससे करती है, जिससे वे घमु ावदार हो जाती हैैं। पृथ््ववी का घर््णन
ू इस प्रभाव को
उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्ररों से लेकर पर्वी
ू तट तक एक बड़़ी निम््न दाब बेल््ट मजबतू करता है, जिससे जेट स्ट्रीम का विशिष्ट लहरदार प्रतिरूप बनता है।
का निर््ममाण करता है। z कोरिओलिस प्रभाव: यह घटना गतिमान वायु राशियोों को विक्षेपित करती
निम््न दाब प्रणाली: यह निम््न दाब एक चब ंु क की तरह काम करता है, है, जिससे जेट स्ट्रीम का घमु ावदार पथ बनता है। यह उत्तरी गोलार््ध मेें हवा
जो आसपास के महासागरोों से नमी से भरी वायु राशियोों को खीींचता है। को दाई ं ओर और दक्षिणी गोलार््ध मेें बाई ं ओर विक्षेपित करता है।
मानसन ू का प्रारंभ: इन वायु राशियोों का प्रवाह भारत मेें मानसनू के प्रमुख विशेषताएँ :
मौसम के आगमन को ट्रिगर करता है। z प्रवाह और अवस््थथिति: जेट स्ट्रीम आमतौर पर पृथ््ववी के घर््णन ू से प्रभावित
भारतीय मानसून की उत्पत्ति होकर पश्चिम से पर््वू की ओर बहती हैैं। वे ग््ललोब को घेरती हैैं, जो आमतौर
पर दोनोों गोलार्द््धों मेें ध्रुवोों और 20°अक््षाांश के बीच पायी जाती हैैं।
भमिू और समद्रु के अलग-अलग तापमान से प्रेरित भारतीय मानसनू कई अन््य z घुमावदार पथ: इनका पथ सीधी रे खा नहीीं होती है, बल््ककि वायमु डं लीय
प्रमख
ु कारकोों से प्रभावित होता है: परिस््थथितियोों से प्रभावित एक लहरदार प्रतिरूप होता है।
z जे ट स्ट्रीम:
z पवन गति: जेट स्ट्रीम का औसत वेग सर््ददियोों मेें 120 किलोमीटर प्रति घटं ा
उपोष््णकटिबंधीय जे ट स्ट्रीम: कमजोर हो जाती है और उत्तर की ओर
और गर््ममियोों मेें 50 किलोमीटर प्रति घटं ा होता है। सबसे तेज पवनेें आमतौर
स््थथानांतरित हो जाती है, जिससे मानसनी ू पवनेें उत्तर की ओर बढ़ती हैैं पर जेट स्ट्रीम के शिखरोों और गर्ततों मेें पाई जाती हैैं।
और वर््षषा लाती हैैं। z मौसमी बदलाव: जेट स्ट्रीम की स््थथिति मौसम के साथ बदलती है। सर््ददियोों
उष््णकटिबंधीय पूर्वी स्ट्रीम: बंगाल की खाड़़ी और अरब सागर से नमी मेें, यह हिमालय के दक्षिणी ढलानोों का अनसु रण करता है, जबकि गर््ममियोों
से भरे अवसादोों का मार््गदर््शन करती है, जो वर््षषा के प्रतिरूप को प्रभावित मेें, यह भमि
ू और महासागर के ताप प्रतिरूप मेें भिन््नता के कारण उत्तर की
करती है। ओर स््थथानांतरित हो जाता है।
z मध््य अक््षाांश या ध्रुवीय वाताग्र जेट स्ट्रीम: ध्रुवीय जेट स्ट्रीम उत्तरी और प्रतिवर््ष 250 सेमी से अधिक भारी वर््षषा होती है। इसका मतलब है कि पश्चिमी
दक्षिणी दोनोों गोलार्द््धों मेें 50-60° अक््षाांश रे खाओ ं के बीच स््थथित होती है। घाट पर नमी ले जाने वाली हवाएँ ऊपर उठती हैैं, जिससे हवा की ओर (500
ये जेट धाराएँ वहाँ बनती हैैं जहाँ ठंडी ध्रुवीय हवा गर््म उष््णकटिबंधीय हवा सेमी तक) भारी वर््षषा होती है और दसू री तरफ (लगभग 30-50 सेमी) नाटकीय
से मिलती है। वे पर््वू की ओर चलती हैैं लेकिन ध्रुवीय वाताग्र की गतिशील रूप से कमी आती है।
प्रकृ ति के कारण उपोष््णकटिबंधीय जेट धाराओ ं की तल ु ना मेें उनकी स््थथिति z दस ू री शाखा मध््य भारत मेें एक संकीर््ण घाटी प्रणाली, नर््मदा-तापी गर््त से होकर
अधिक परिवर््तनशील होती है। गजु रती है।
z तीसरी शाखा न््ययूनतम वर््षषा प्रभाव के साथ अरावली पर््वतमाला के साथ-साथ
मानसून की प्रकृति एवं महत्त्वपूर््ण पहलू
चलती है।
दक्षिण एशियाई क्षेत्र मेें वर््षषा के व््यवस््थथित अध््ययन से मानसून के विभिन््न
पहलुओ ं की जानकारी मिलती है, जिनमेें शामिल हैैं: बंगाल की खाड़़ी शाखा:
z मानसन ू का आगमन z यह शाखा भी दो अलग-अलग धाराओ ं मेें विभाजित हो जाती है।
z वर््षषा लाने वाली प्रणालियाँ z पहली शाखा गंगा-ब्रह्मपत्रु डेल््टटा को पार करती है और मेघालय तक पहुचँ ती
z मानसन ू अतं राल है, और एक बार फिर भौगोलिक प्रभाव का सामना करती है। इसके
z मानसन ू निवर््तन परिणामस््वरूप तीव्र वर््षषा होती है, जिसमेें चेरापंजू ी को औसतन 1,102 सेमी
वार््षषिक वर््षषा प्राप्त होती है और मासिनराम मेें 1,221 सेमी के साथ सबसे अधिक
मानसून का आगमन:
वार््षषिक वर््षषा का रिकॉर््ड है।
भारत मेें मानसनू का आगमन कई प्रमख ु कारकोों से प्रभावित होता है: z दसू री शाखा हिमालय की तलहटी का अनसु रण करती है, जो पर््वत श्रंखला
z भूमि और समुद्र के तापमान मेें विपरीतता: ग्रीष््म की तीव्र गर्मी उत्तर पश्चिम
से पश्चिम की ओर विक्षेपित होती है, और गंगा के मैदान मेें व््ययापक वर््षषा लाती
भारत पर निम््न दाब का क्षेत्र बनाती है। यह "सक््शन प्रभाव" भमू ध््य रे खा के है।
पार नमी से भरी दक्षिण-पर्वीू व््ययापारिक पवनोों को आकर््षषित करता है, जिससे
मानसनू की यात्रा शरू मानसून मेें ब्रेक या मानसून अंतराल:
ु हो जाती है।
z अंतर-उष््णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) का खिसकना: ITCZ,
दक्षिण-पश्चिम मानसून अवधि के दौरान कुछ दिनोों तक वर््षषा होने के बाद, यदि
निम््न दाब की एक बेल््ट जहाँ व््ययापारिक पवनेें एकत्रित होती हैैं, सर््यू की स््पष्ट एक या अधिक सप्ताह तक वर््षषा नहीीं होती है, तो इसे मानसून मेें रुकावट के रूप
गति के साथ उत्तर की ओर स््थथानांतरित हो जाती है। यह बदलाव भारत मेें मेें जाना जाता है। बरसात के मौसम मेें ये सख
ू ापन काफी आम है।
मानसनू के आगमन के साथ मेल खाता है। इसके अतिरिक्त, कुछ अन््य विशिष्ट मानसून का निवर््तन:
परिस््थथितियाँ भी दक्षिण पश्चिम मानसनू की शरुु आत को प्रभावित करती हैैं: सरल शब््दोों मेें निवर््तन का अर््थ है पीछे हटना। इसलिए, अक््टटूबर और नवंबर के
z निम््न दाब प्रणाली: मई के अत ं या जनू की शरुु आत मेें बंगाल की खाड़़ी महीनोों के दौरान उत्तर भारत के आसमान से दक्षिण-पश्चिम मानसनी ू पवनोों की
और अरब सागर मेें बनने वाले निम््न दाब वाले क्षेत्र या अवसाद मानसनू के वापसी को पीछे हटने वाले मानसून के रूप मेें जाना जाता है। निकासी धीरे -धीरे
मख्ु ्य भमि
ू आगमन को शरू ु कर सकते हैैं। होती है और इसमेें लगभग तीन महीने लगते हैैं।
z चक्रवाती गतिविधि: के रल और लक्षद्वीप के पास चक्रवाती भवरो ं ों का निर््ममाण हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) और भारतीय मानसून
पश्चिमी तट के साथ-साथ मानसनू की धारा को उत्तर की ओर धके ल सकता है। (INDIAN OCEAN DIPOLE (IOD) AND INDIAN
z तापमान-प्रे रित गर््त: भमि ू और समद्रु के बीच तापमान अतं र पश्चिमी तट पर MONSOON)
एक "गर््त" बना सकता है, जिससे संभावित रूप से मानसनू की शरुु आत मेें
देरी या कमजोर हो सकती है। z हिदं महासागर द्विध्रुव (आईओडी) एक जलवायु घटना है जो हिदं महासागर
के पर्वी
ू (बंगाल की खाड़़ी) और पश्चिमी (अरब सागर) क्षेत्ररों के बीच समद्रु की
z भूमध््य रे खा को पार करना: जब दक्षिणी गोलार््ध से व््ययापारिक पवनेें भम ू ध््य
सतह के तापमान मेें अतं र के कारण उत््पन््न होती है।
रे खा को पार करती हैैं, तो वे भारत की ओर मानसनी ू पवनोों का एक शक्तिशाली
उछाल लाती हैैं। z हिदं महासागर द्विध्रुव (आईओडी) का भारतीय मानसनू पर महत्तत्वपर््णू प्रभाव
पड़ता है, जो भारतीय उपमहाद्वीप मेें वर््षषा के वितरण और तीव्रता को प्रभावित
वर्षा लाने वाली प्रणालियााँ: करता है।
दक्षिण-पश्चिम मानसनू , भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिणी सिरे पर पहुचँ ने पर दो शाखाओ ं z हिदं महासागर द्विध्रुव (आईओडी) के सकारात््मक और नकारात््मक चरण
मेें विभाजित हो जाता है: अरब सागर शाखा और बंगाल की खाड़़ी शाखा। मानसनू वर््षषा प्रतिरूप पर विपरीत प्रभाव डाल सकते हैैं।
भारतीय जलवायु 21
सकारात््मक z गर््म पश्चिम, ठंडा पूर््व: पश्चिमी हिदं महासागर मेें गर््म भारतीय मानसून पर प्रभाव:
हिंद महासागर समद्रीु सतह का तापमान और पर््वू मेें ठंडा तापमान एक z मानसनू ी वर््षषा मेें वद्धि
ृ : ला नीना की स््थथिति के कारण आम तौर पर भारत
द्विध्रुव सकारात््मक आईओडी चरण बनाते हैैं। मेें दक्षिण-पश्चिम मानसनू (जनू -सितंबर) के दौरान वर््षषा मेें वृद्धि होती है।
(आईओडी) z उन््नत मानसनू : यह तापमान प्रतिरूप वायमु डं लीय z शीतकालीन वर््षषा मेें कमी: हालाँकि, ला नीना का पर्वोत्त ू र मानसनू (दिसंबर-
स््थथितियोों को मजबतू करता है जो मानसनू परिसंचरण फरवरी) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिससे क्षेत्र मेें कम वर््षषा होती है।
के अनक ु ू ल होते हैैं। इससे नमी का परिवहन बढ़ता है z चक्रवात गतिविधि: ला नीना वर्षषों मेें सामान््य से अधिक उत्तर की ओर स््थथित
और विशेषकर मध््य भारत मेें अधिक वर््षषा होती है। बंगाल की खाड़़ी मेें निम््न दाब प्रणाली और चक्रवात बनते देखे जाते हैैं।
z वर््षषा मेें वद्धि
ृ : अवलोकन से पता चलता है कि मध््य z दक्षिणी भारत मेें वर््षषा मेें कमी: इस उत्तर दिशा की ओर खिसकने के कारण,
भारत मेें सकारात््मक IOD वर्षषों के दौरान औसत से ये प्रणालियाँ पश्चिम की ओर बढ़ने के बजाय पनु रावर््तन (पर््वू की ओर वापस
अधिक वर््षषा होती है। झकन ु ा) की प्रवृत्ति रखती हैैं। परिणामस््वरूप, तमिलनाडु जैसे दक्षिणी भारतीय
नकारात््मक z ठंडा पश्चिम, गर््म पूर््व: एक नकारात््मक आईओडी तब क्षेत्ररों मेें ला नीना घटनाओ ं के दौरान कम वर््षषा होती है।
हिंद महासागर होता है जब तापमान प्रवणता उलट जाती है, पश्चिम मेें
द्विध्रुव ठंडा जल और पर््वू मेें गर््म जल होता है। मानसून के चरम महीनोों (जुलाई और अगस्त )
(आईओडी) z कमजोर मानसनू : इससे मानसनू परिसंचरण बाधित के दौरान चक्रवात दर््लभ
ु क्ययों होते हैैं ?
हो जाता है, जिससे मानसनू कमजोर हो जाता है और उष््णकटिबंधीय चक्रवातोों के निर््ममाण के लिए विशिष्ट पर््ययावरणीय परिस््थथितियोों
सभं ावित रूप से देरी हो जाती है। की आवश््यकता होती है। इसमे शामिल है:
z सख ू े का खतरा: नकारात््मक आईओडी विशेष रूप से z गर््म महासागरीय जल: सतही जल का तापमान काफी गहराई (लगभग 50
मध््य और पर्वी ू भारत मेें औसत से कम वर््षषा के कारण मीटर) तक कम से कम 26.5°C होना चाहिए।
सख ू े की स््थथिति पैदा कर सकता है। z आर्दद्र परतेें : वातावरण को अपेक्षाकृत नम होना चाहिए, खासकर सतह से
भारतीय जलवायु 23
गर््ममियोों मेें शुष््क मौसम के साथ मानसनू प्रकार (As): इस प्रकार की निष्कर््ष
जलवायु का क्षेत्र कोरोमडं ल तट तक फै ला हुआ है।
बढ़ते तापमान, हिदं महासागर के गर््म होने, वर््षषा के प्रतिरूप मेें बदलाव, सूखे
उष््णकटिबंधीय सवाना प्रकार (Aw): कुछ तटीय भागोों को छोड़कर
लगभग संपर््णू प्रायद्वीपीय क्षेत्र इस प्रकार की जलवायु का अनभु व करता है। की आवृत्ति मेें वृद्धि, समद्रु के स््तर मेें वृद्धि और चक्रवात प्रतिरूप मेें बदलाव के
अर््ध-शुष््क स््टटेपी जलवायु (BShw): इस जलवायु क्षेत्र मेें प्रायद्वीपीय साथ भारत की जलवायु मेें महत्तत्वपूर््ण परिवर््तन हो रहे हैैं। इन परिवर््तनोों के लिए
पठार के आतं रिक भाग और गजु रात, राजस््थथान, हरियाणा, पंजाब और मख्ु ्य रूप से ग्रीनहाउस गैस उत््सर््जन और एयरोसोल फोर््सििंग जैसे मानव-प्रेरित
जम््ममू और कश््ममीर के कुछ हिस््ससे शामिल हैैं। कारक जिम््ममेदार हैैं। भारत के लिए इन परिवर््तनोों की निगरानी और अध््ययन जारी
ऊष््ण मरुस््थलीय प्रकार (BWhw): इस प्रकार की जलवायु के वल रखना महत्तत्वपूर््ण है ताकि उनके प्रभावोों को बेहतर ढंग से समझा जा सके और
राजस््थथान के पश्चिमी भाग मेें पाई जाती है। जलवायु परिवर््तन के सामने देश के पारिस््थथितिकी तंत्र, अर््थव््यवस््थथा और समाज
शुष््क सर््ददियोों के साथ मानसनू प्रकार (Cwg): भारत मेें बड़़े पैमाने पर की स््थथिरता और लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए अनुकूलन और शमन के
उत्तरी मैदानी इलाकोों मेें इस प्रकार की जलवायु का अनभु व होता है। लिए रणनीति विकसित की जा सके ।
लघु ग्रीष््म ऋतु के साथ शीत-आर्दद्र सर््ददियाँ (Dfc): इस जलवायु की
विशेषता लघु ग्रीष््म ऋतु से होती है। यह क्षेत्र भारत के पर्वोत्त
ू र भागोों को प्रमुख शब्दावलियाँ
कवर करता है।
मानसून, जेट स्ट्रीम, अल नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO),
ध्रुवीय प्रकार (E): इस प्रकार की जलवायु जम््ममू और कश््ममीर एवं पड़़ोसी
आईटीसीजेड, मानसून ब्रेक, हिंद महासागर द्विध्रुव (आईओडी), ला
पर््वत श्रंखलाओ ं मेें अनभु व की जाती है।
नीना, कोपेन का जलवायु वर्गीकरण, मानसून अर््थ व््यवस््थथा, जलवायु
मानसून और भारत का आर््थथिक जीवन परिवर््तन, वर््षषा प्रतिरूप मेें बदलाव, मानसूनी बाढ़, जलवायु नीति
z कृषि पर निर््भरता: भारत की 64% से अधिक आबादी अपनी आजीविका
के लिए कृ षि पर निर््भर है, जिससे मानसनू का मौसम महत्तत्वपर््णू हो जाता है। विगत वर्षषों के प्रश्न
यह मौसमी वर््षषा प्रतिरूप कृ षि चक्र की रीढ़ बनता है। z दक्षिण-पश्चिम मानसनू भोजपरु क्षेत्र मेें 'परु वैया' (पर्वी
ू ) क््योों कहलाता है? इस
z विविध फसलेें: भारत की जलवाय,ु मानसनी ू वर््षषा मेें क्षेत्रीय विविधताओ ं से दिशापरक मौसमी पवन प्रणाली ने क्षेत्र के सांस््ककृतिक लोकाचार को कै से
प्रभावित होकर, परू े देश मेें (हिमालय को छोड़कर, जहाँ तापमान लगातार कम प्रभावित किया है? (2023)
रहता है) विभिन््न प्रकार की फसलोों की खेती की अनमु ति देती है। z भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) की आवश््यकता
z वर््षषा की चुनौतियाँ: असमान मानसनी ू वर््षषा वितरण के कारण प्रत््ययेक वर््ष क््योों है? यह नेविगेशन मेें कै से मदद करता है? (2018)
कुछ क्षेत्ररों मेें सख
ू ा या बाढ़ आ सकती है। z मानसनू एशिया मेें रहने वाली 50 प्रतिशत से अधिक जनसख्ं ्यया के विगत
z सिच ं ाई और वर््षषा: कृ षि की सफलता के लिए समय पर और अच््छछी तरह से भरण-पोषण मेें सफल मानसनू जलवायु को क््यया अभिलक्षण समनदु शित े किए
वितरित वर््षषा महत्तत्वपर््णू होती है। सीमित सिंचाई अवसंरचना वाले क्षेत्र विफल
जा सकते हैैं? (2017)
मानसनू के प्रति विशेष रूप से सभु द्ये होते हैैं।
z आप कहाँ तक सहमत हैैं कि मानवीकारी दृश््यभमियो ू ों के कारण भारतीय मानसनू
z मौसमी लाभ: उत्तर भारत मेें शीतोष््ण चक्रवातोों से होने वाली शीतकालीन
वर््षषा रबी फसलोों (सर््ददियोों मेें बोई जाने वाली और वसंत मेें काटी जाने वाली के आचरण मेें परिवर््तन होता रहा है? चर््चचा कीजिए। (2015)
फसलेें) के लिए मल्ू ्यवान नमी प्रदान करती है। z भारत के पर्वी ू तट पर हाल ही मेें आए चक्रवात को "फाइलिन" (Phailin)
z जलवायु प्रभाव: भारत की विविध क्षेत्रीय जलवाय,ु जो मानसनू से आकार कहा गया।संसार मेें उष््णकटिबंधीय चक्रवातोों को कै से नाम दिया जाता हैैं?
लेती है, देश की विभिन््न खाद्य प्राथमिकताओ,ं कपड़ों की शैलियोों और आवास (2013)
प्रकारोों मेें परिलक्षित होती है। z पश्चिमी घाट की नदियाँ डेल््टटा नहीीं बनातीीं। क््योों? (2013)
z आर््थथिक महाशक्ति: ये कार््यबल (आकार, कौशल, जनसांख््ययिकी) का भारत मेें उच्च जनसंख्या वृद्धि के लिए जिम्मेदार कारक
विश्लेषण आर््थथिक रणनीतियोों को सचित
ू करने और उपभोक्ता व््यवहार व क्रय z उच््च प्रजनन दर: हालांकि थोड़़ी गिरावट के बावजदू , भारत की औसत प्रजनन
शक्ति के आधार पर बाजार क्षमता का आकलन करने के लिए करते हैैं। दर प्रतिस््थथापन स््तर (प्रति महिला 2.0 बच््चचे) से ऊपर बनी हुई है।
z सामाजिक सरु क्षा जाल: सभु द्ये आबादी (बच््चचे, बजु र््गु , कम आय) की (एनएफएचएस-5 डेटा: 2019-21 मेें 2.0)
पहचान करके , ये अध््ययन सामाजिक कल््ययाण कार््यक्रमोों और संसाधन आवंटन z मृत््ययु दर मेें गिरावट: बेहतर स््ववास््थ््य देखभाल और पोषण के कारण मृत््ययु दर
की जानकारी देते हैैं। मेें उल््ललेखनीय गिरावट आई है, खासकर शिशओ ु ं के लिए (एनएफएचएस-5
z कल््ययाण को बढ़़ावा: प्रजनन दर, गर््भनिरोधक उपयोग और प्रजनन स््ववास््थ््य के अनसु ार प्रति 1,000 जीवित जन््मोों पर आईएमआर 35)। यह जनसंख््यया के
को समझने से नीति निर््ममाताओ ं को परिवार नियोजन, मातृ/शिशु मृत््ययु दर को लिए लंबे जीवन काल मेें परिवर््ततित हो जाता है।
कम करने और समग्र कल््ययाण मेें सधु ार के लिए रणनीति विकसित करने की z सीमित परिवार नियोजन पहुच ँ : प्रगति के बावजदू , के वल आधी विवाहित
अनमु ति मिलती है। महिलाएँ ही आधनु िक गर््भ निरोधकोों का उपयोग करती हैैं, जिससे जनसंख््यया
z नीति आधार: साक्षष्य-आधारित नीति निर््ममाण विभिन््न जनसांख््ययिकीय समहोू ों नियंत्रण प्रयासोों मेें बाधा आती है।
की जरूरतोों, आकांक्षाओ ं और प्राथमिकताओ ं को समझने के लिए जनसख्ं ्यया z गरीबी और शिक्षा: गरीबी और निम््न शिक्षा स््तर उच््च प्रजनन दर से जड़ु ़े
अध््ययन पर निर््भर करता है। हुए हैैं, जैसा कि भारत की 27.5% आबादी गरीबी रे खा से नीचे रहती है
z भविष््य के लिए योजना: घनत््व, वितरण और वृद्धि प्रतिरूप पर जनसंख््यया (जनगणना 2011 डेटा)।
डेटा बनु ियादी ढाँचे के नियोजन (परिवहन, आवास, उपयोगिताओ)ं को सचित ू z सांस््ककृतिक और सामाजिक प्रभाव: बड़़े परिवारोों के लिए सांस््ककृतिक
करता है और विभिन््न प्रशासनिक कार्ययों मेें संसाधन आवंटन का मार््गदर््शन प्राथमिकताएँ और सामाजिक दबाव परिवार के आकार के सबं ंध मेें निर््णयोों
करता है। को आकार देने मेें भमिक ू ा निभाते हैैं।
जनसख्ं ्यया घनत््व अधिक होता है। (उदाहरण: दिल््लली, मबंु ई, कोलकाता,
उच्च जनसंख्या वृद्धि के निहितार््थ बेेंगलरुु और चेन््नई जैसे प्रमख
ु महानगर)
मुद्दे (issues) वितरण: दक्षिणी बनाम उत्तरी भारत
z भारत मेें जनसंख््यया वृद्धि और जनसांख््ययिकीय मापदडो ं ों मेें सधु ार राज््य मेें
z संसाधन तनाव: बढ़ती जनसंख््यया भोजन, पानी, आवास और ऊर््जजा जैसे
महत्तत्वपर््णू संसाधनोों पर दबाव पैदा करती है। विकास के स््तर पर सीधे आनपु ातिक है। स््ववास््थ््य और शिक्षा सविध ु ाएँ
z बुनियादी ढाँचे पर अत््यधिक बोझ: परिवहन, स््ववास््थ््य देखभाल, शिक्षा प्राथमिक स््ततंभ हैैं जो किसी भी क्षेत्र की जनसंख््यया पिरामिड तय करते हैैं।
z भारत मेें दक्षिणी विकसित राज््योों मेें उत्तरी राज््योों की तल ु ना मेें जनसंख््यया
और स््वच््छता के लिए मौजदू ा बनु ियादी ढाँचे पर अत््यधिक बोझ हो गया है।
विशेषताओ ं मेें सधु ार देखा गया है।
z रोजगार बाजार मेें तनाव: यदि रोजगार सृजन की गति बरकरार नहीीं रही तो
z दक्षिणी राज््य कम मृत््ययु और कम जन््म दर के कारण जनसांख््ययिकीय संक्रमण
उच््च जनसख्ं ्यया वृद्धि बेरोजगारी और अल््परोजगार को जन््म दे सकती है।
मॉडल के चरण 4 मेें प्रवेश कर चक ु े हैैं, जिससे विकास दर कम हो गई है।
z बढ़ती सामाजिक आवश््यकताएँ: बढ़ती आबादी अधिक स््ववास््थ््य सेवाओ ं
इन राज््योों की कुल प्रजनन दर प्रतिस््थथापन स््तर 2.1 से नीचे है।
और शैक्षणिक संस््थथानोों की माँग करती है।
z पर््ययावरणीय निम््ननीकरण: वनोन््ममूलन, प्रदषू ण और संसाधनोों की कमी जैसे भारत मेें जनसंख्या जनगणना
पर््ययावरणीय मद्ु दे बदतर हो गए हैैं। z परिभाषा: जैसा कि सयं क्त ु राष्टट्र द्वारा उल््ललिखित है, एक जनसख्ं ्यया जनगणना
संभावित लाभ एक विशिष्ट समय बिदं ु पर किसी देश की आबादी के बारे मेें जनसाख््ययिकं ीय, आर््थथिक
z आर््थथिक विकास: एक बड़़ा घरे लू बाजार और बढ़़ी हुई उपभोक्ता माँग आर््थथिक और सामाजिक डेटा को व््ययापक रूप से एकत्र, विश्लेषण और प्रसारित करती है।
विकास को प्रोत््ससाहित कर सकती है। z महत्तत्व: जनगणना के आक ं ड़़े भारत के नीति निर््ममाण, विकास योजना और
z जनसांख््ययिकीय लाभांश: शिक्षा और कौशल विकास मेें उचित निवेश के सरकारी कार््यक्रमोों के मल्ू ्ययाांकन मेें महत्तत्वपर््णू भमिक
ू ा निभाते हैैं। यह देश की
साथ, एक यवु ा आबादी उत््पपादकता और आर््थथिक विकास मेें वृद्धि कर सकती है। जनसख्ं ्यया गतिशीलता को समझने और साक्षष्य-आधारित निर््णय लेने की
जानकारी देने के लिए एक महत्तत्वपर््णू उपकरण के रूप मेें कार््य करता है।
चुनौतियााँ और विचार
z एक ऐतिहासिक प्रयास: भारत मेें पहली जनसंख््यया जनगणना 1872 मेें लॉर््ड
z सामाजिक कल््ययाण: बड़़ी आबादी के साथ पर््ययाप्त सामाजिक सेवाएँ और मेयो के शासन के तहत हुई, जिसका उद्देश््य ब्रिटिश भारत के लिए व््ययापक
कल््ययाण कार््यक्रम प्रदान करना अधिक कठिन हो जाता है। डेटा इकट्ठा करना था। इसने एक दशकीय (प्रत््ययेक दस वर््ष मेें) जनगणना परंपरा
z अनियोजित शहरीकरण: तेजी से शहरीकरण से शहरी बनु ियादी ढाँचे और की शरुु आत की जो आज भी जारी है। दसू री जनगणना 1881 मेें लॉर््ड रिपन
अनियोजित विकास पर दबाव पड़ सकता है। द्वारा हुई और यह हर दशक मेें शासन और नीति निर््ममाण मेें सहायता के लिए
z सतत विकास: चनु ौतियोों का समाधान करने और सतत विकास को बढ़़ावा जनसांख््ययिकीय अतर्दृष्
ं टि प्रदान करती रही।
देने के लिए दीर््घकालिक योजना और नीतियाँ महत्तत्वपर््णू हैैं। z स््वतंत्र भारत की प्रतिबद्धता: स््वतंत्रता के बाद पहली जनगणना 1951 मेें
जनसंख्या का वितरण और उसका घनत्व आयोजित की गई थी, जो इस चल रही श्रंखला मेें सातवीीं जनगणना थी। यह
निरंतरता राष्ट्रीय प्रगति के लिए जनगणना डेटा का उपयोग करने की भारत की
असमान वितरण भारत की जनसंख््यया का एक महत्तत्वपूर््ण पहलू है। शहरीकृ त, प्रतिबद्धता को रे खांकित करती है।
विकसित क्षेत्ररों और मैदानी क्षेत्ररों के आसपास उच््च घनत््व वाले क्षेत्र विकसित
हुए हैैं। पिछड़़े क्षेत्र और पहाड़़ी, रे गिस््ततानी क्षेत्र कम आबादी वाले हैैं। कार््यशील जनसंख्या
असमान जनसंख्या वितरण से संबंधित कारण: श्रम बल अक््टटूबर-दिसंबर 2023 की अवधि के लिए, शहरी क्षेत्ररों मेें
z भू-भाग: समतल मैदान कृ षि, परिवहन नेटवर््क और उद्योगोों के लिए अधिक भागीदारी दर एलएफपीआर बढ़कर 49.9% हो गया, जो पिछले वर््ष की
अनक ु ू ल होते हैैं, जिससे जनसख्ं ्यया घनत््व अधिक होता है। (उदाहरण: गगं ा समान अवधि मेें 48.2% था। 15 वर््ष और उससे अधिक
के मैदान मेें उच््च घनत््व बनाम अरुणाचल प्रदेश मेें कम घनत््व) आयु के व््यक्तियोों के लिए समग्र एलएफपीआर 2022-23
z जलवायु: अत््यधिक तापमान या कम वर््षषा वाले क्षेत्ररों मेें जनसंख््यया सघनता के लिए 54.6% तक पहुचँ गया।
कम होती है। (उदाहरण: हिमालय और थार मरुस््थल) भारत का जनसंख््यया महिला आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार महिला
घनत््व इसके वर््षषा प्रतिरूप को प्रतिबिंबित करता है। श्रम बल श्रम बल भागीदारी दर मेें उल््ललेखनीय वृद्धि देखी गई, जो
z खनिज संसाधन: खनिजोों के भडं ार निवेश को आकर््षषित करते हैैं, रोजगार भागीदारी दर 2023 मेें 37.0% तक पहुचँ गई।
पैदा करते हैैं (विशेष रूप से श्रम-केें द्रित खनन मेें), और उच््च जनसंख््यया घनत््व श्रमिक- शहरी क्षेत्ररों के लिए WPR अक््टटूबर-दिसंबर 2022 मेें
को जन््म देते हैैं। (उदाहरण: झारखडं मेें छोटा नागपरु पठार) जनसंख््यया 44.7% से बढ़कर अक््टटूबर-दिसंबर 2023 मेें 46.6% हो
z उपजाऊ मृदा: उपजाऊ मिट्टी वाली भमि ू उत््पपादक कृ षि का समर््थन करती है अनुपात गया।
और बस््ततियोों को बढ़़ावा देती है, जैसा कि जलोढ़ मिट्टी वाले घनी आबादी बेरोजगारी शहरी क्षेत्ररों मेें कुल बेरोजगारी दर अक््टटूबर-दिसंबर 2023
वाले गगं ा के मैदानोों मेें देखा जाता है। दर मेें घटकर 6.5% हो गई, जो पिछले वर््ष की समान तिमाही
z शहरीकरण: आर््थथिक गतिविधि और नौकरी के अवसर लोगोों को शहरोों की मेें 7.2% थी। ग्रामीण क्षेत्ररों के लिए, 2022-23 के लिए
ओर आकर््षषित करते हैैं, जिसके परिणामस््वरूप ग्रामीण क्षेत्ररों की तल ु ना मेें बेरोजगारी दर 2.4% बताई गई थी।
देता है, उत््पपादकता, नवाचार और वैश्विक बाजार मेें भारत की प्रतिस््पर््धधात््मक z गरीबी: व््ययापक गरीबी (बहुआयामी निर््धनता सचू कांक (MPI) के अनसु ार
बढ़त को बढ़़ाता है। 16.4%) बनु ियादी जरूरतोों, स््ववास््थ््य देखभाल और शिक्षा तक पहुचँ को
सीमित करती है।
z वैश्विक लक्षष्ययों के साथ संरे खण: भारत के मानव विकास प्रयास गरीबी से
z शिक्षा: गणु वत्तापर््णू शिक्षा, विशेषकर ग्रामीण और सीमांत क्षेत्ररों मेें, एक बाधा
निपटने, शिक्षा और लैैंगिक समानता को बढ़़ावा देने, अच््छछे स््ववास््थ््य को
बनी हुई है।
सनु िश्चित करने और स््थथिरता को बढ़़ावा देकर संयक्त ु राष्टट्र के सतत विकास
z स््ववास््थ््य सेवा: गणु वत्तापर््णू स््ववास््थ््य देखभाल तक सीमित पहुचँ , विशेष रूप
लक्षष्ययों (एसडीजी) को प्राप्त करने मेें योगदान करते हैैं। से दरू दराज के क्षेत्ररों मेें (प्रति 1,000 लोगोों पर 1.4 बिस््तर, प्रति 1,445 लोगोों
z सभी के लिए स््ववास््थ््य: गण ु वत्तापर््णू स््ववास््थ््य सेवाओ ं को प्राथमिकता देना पर 1 डॉक््टर, प्रति 1,000 लोगोों पर 1.7 नर््स)।
मानव विकास की आधारशिला है, जो सभी के लिए बेहतर स््ववास््थ््य परिणाम z लैैंगिक असमानता: महिलाओ ं के लिए शिक्षा, रोजगार और संसाधनोों तक
और पहुचँ सनु िश्चित करता है। पहुचँ मेें लगातार असमानता।
z सभ ु ेद्य लोगोों का सशक्तिकरण: मानव विकास समान अवसर और भागीदारी z बेरोजगारी: उच््च बेरोजगारी दर (अप्रैल 2023 मेें 8.11%), विशेषकर यवु ाओ ं मेें।
सनु िश्चित करके महिलाओ,ं बच््चोों, ग्रामीण समदु ायोों और आदिवासी जनसँख््यया z डिजिटल डिवाइड: समान भागीदारी के लिए प्रौद्योगिकी तक पहुचँ के अतं र
सहित हाशिए पर रहने वाले समहोू ों के उत््थथान की दिशा मेें काम करता है। को पाटना।
मानव विकास को मापने के लिए विभिन््न सूचकांक z जनसंख््यया वद्धि ृ : बढ़ती जनसंख््यया (चीन को 1.4 बिलियन से अधिक) और
मानव विकास यह यूएनडीपी द्वारा प्रकाशित सबसे अधिक संसाधनोों और सेवाओ ं पर इसके प्रभाव का प्रबंधन करना।
सूचकांक (Human इस््ततेमाल किया जाने वाला सूचकांक है, जो आगे की राह
Development Index- मानव विकास के तीन बुनियादी आयामोों को
z व््यक्तियोों का सशक्तिकरण: उद्योग की जरूरतोों के अनरू
ु प कौशल विकास
HDI) जोड़ता है: प्रति व््यक्ति जीवन प्रत््ययाशा, शिक्षा
कार््यक्रमोों को बढ़़ावा देना और रोजगार क्षमता और आर््थथिक आत््मनिर््भरता
और सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई)। बढ़़ाने के लिए उद्यमिता के अवसर पैदा करना।
शहरोों तक हो सकती है। वाली भमि ू का एक टुकड़़ा है, जिसकी जनसख्ं ्यया पर स््पष्ट और लगातार ध््ययान
z बस््ततियोों मेें गाँव, कस््बबे, शहर और महानगर शामिल हो सकते हैैं। नहीीं दिया जाता है," जिसे अग्रें जी मेें "मौजा" के रूप मेें भी जाना जाता है।
z बस््ततियोों को मोटे तौर पर दो प्रकारोों मेें विभाजित किया जा सकता z इस परिभाषा के अनस ु ार, एक राजस््व गाँव एक विशिष्ट प्रशासनिक इकाई है
है- ग्रामीण और शहरी। जिसमेें एक या एक से अधिक आवासीय समहोू ों के साथ-साथ उनकी स््ववामित््व
वाली भमि ू भी शामिल होती है।
बस्तियोों का वर्गीकरण
भारत मेें गाँवोों का वितरण: 2011 की जनगणना के अनुसार भारत मेें
शहरी बस्ती 640,867 गाँव हैैं, जिनमेें वे गाँव भी शामिल हैैं जिनमेें आबादी नहीीं है।
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की दो तिहाई से ज््ययादा आबादी या
z शहरी बस््ततियोों मेें रहने वाले अधिकांश लोग गैर-प्राथमिक उद्योगोों जैसे
68.84% आबादी 6.4 लाख से ज़़्ययादा गाँवोों मेें रहती है। इनमेें से 16.6%
विनिर््ममाण और सेवा मेें कार््यरत होते हैैं।
से ज़़्ययादा आबादी अके ले उत्तर प्रदेश मेें है। चंडीगढ़ मेें सिर्फ़ पाँच गाँव हैैं।
z शहरी क्षेत्ररों मेें जनसंख््यया घनत््व आम तौर पर अधिक होता है - प्रति वर््ग किमी
400 से अधिक व््यक्ति। भारत मेें नगरीकरण
z सरकार द्वारा शहरी बस््तती घोषित किया गया हो। z परिभाषा: जनसख्ं ्यया का ग्रामीण से शहरी क्षेत्ररों मेें स््थथानांतरण, जिसके
z भारत मेें शहरी बस््ततियोों को वर्गीकृ त करने के लिए निम््नलिखित मानकोों का परिणामस््वरूप ग्रामीण क्षेत्ररों मेें रहने वाले लोगोों की संख््यया मेें गिरावट, और
उपयोग किया जाता है: जिस तरीके से समाज इस बदलाव के साथ खदु को ढालता है, उसे शहरीकरण
2011 की जनगणना के अनस ु ार वहाँ 5000 से अधिक लोग निवास कहते हैैं।
करना चाहिए। z भारत मेें शहरीकरण की स््थथिति: भारत मेें शहरीकरण मुख््य रूप से
स््वतंत्रता के बाद की घटना थी, जिसका कारण देश द्वारा अर््थव््यवस््थथा की
मिश्रित प्रणाली को अपनाना था, जिससे निजी क्षेत्र के विकास को बढ़़ावा
मिला।
भारत की शहरी आबादी वर््ष 2021 मेें 47.5 करोड़ हो गई।
रेखीय प्रतिरूप क्रॉस-आकार प्रतिरूप स््टटार-जैसा प्रतिरूप
वर््ष 2021 मेें भारत की शहरीकरण दर 1.34% थी। 2021 मेें, भारत की
वृत्ताकार प्रतिरूप टी-आकार प्रतिरूप दोहरा प्रतिरूप अधिक और 2010 मेें सबसे कम थी।
रेलवे सड़क नदी नहर कु आँ शहरीकरण बढ़ने का कारण
पुल मंदिर गाँव तालाब पेड़
z आर््थथिक अवसर: शहर अक््सर ग्रामीण क्षेत्ररों की तल ु ना मेें अधिक नौकरी के
कार््यरत परुु षोों मेें से कम से कम 75% गैर-प्राथमिक उद्योगोों मेें कार््यरत अवसर और उच््च वेतन प्रदान करते हैैं।
होने चाहिए। z सेवाओ ं और सवि ु धाओ ं तक पहुच ँ : शहरी क्षेत्र स््ववास््थ््य सेवा, शिक्षा और
नगर क्षेत्र समिति को शहरी क्षेत्र को अधिसचितू करना चाहिए था, जिसमेें परिवहन जैसी आवश््यक सेवाओ ं तक बेहतर पहुचँ प्रदान करते हैैं। मनोरंजन,
एक नगर पालिका, निगम या छावनी बोर््ड होना चाहिए। खरीदारी और सांस््ककृतिक गतिविधियोों जैसी सविध ु ाओ ं की उपलब््धता भी
प्रति वर््ग किमी मेें 400 से अधिक व््यक्ति निवास करने चाहिए। लोगोों को शहरोों की ओर आकर््षषित करती है।
संयुक्त राष्टट्र का अनुमान है कि वर््ष 2050 तक विश्व की 68% आबादी के कारण, उनके बीच झग्ु ्गगी-झोपड़़ियोों के समहू बन जाते हैैं। उदाहरण स््वरूप
शहरी क्षेत्ररों मेें निवास करे गी। संजय कॉलोनी दक्षिणी दिल््लली की एक झग्ु ्गगी बस््तती है जो ओखला औद्योगिक
z वर््ष 2050 तक, दनु िया की आबादी का 68%, जो आज 55% है, शहरोों क्षेत्र मेें स््थथित है।
मेें रहने का अनमु ान है। सामाजिक-साांस्कृतिक प्रभाव
z अनम ु ानोों के अनसु ार, वर््ष 2050 तक, शहरीकरण के कारण दनु िया भर के
z गेटेड समुदाय (बंद आवासीय क्षेत्र): गेटेड समदु ायोों का उदय निम््न-मध््यम
शहरी क्षेत्ररों मेें 2.5 बिलियन से अधिक लोग रह सकते हैैं, जो कि ग्रामीण
से शहरी क्षेत्ररों मेें लोगोों का क्रमिक स््थथानांतरण के कारण है। वर््ग, गरीब बस््ततियोों/झग््गगियो
ु ों से घिरे महानगरीय क्षेत्ररों मेें दिखाई देता है। इससे
z इस जनसंख््यया वृद्धि का लगभग 90% हिस््ससा एशिया और अफ़््रीका मेें
इन क्षेत्ररों के बीच एक बड़़ा सामाजिक-सांस््ककृतिक विभाजन पैदा होता है।
देखने को मिलेगा। z मानसिक स््ववास््थ््य: मलिन बस््ततियोों और तथाकथित सभ््य आवासोों के बीच
z बे हतर बुनियादी ढाँचा: शहरोों मेें आमतौर पर बेहतर बनु ियादी ढाँचा होता रहने वालोों की मानसिक स््थथिति मेें बहुत बड़़ा अतं र होता है। मलिन बस््ततियोों
है, जिसमेें सड़क, सार््वजनिक परिवहन, बिजली और इटं रनेट कनेक््टटिविटी आदि मेें रहने वाले लोगोों मेें अक््सर हीनभावना की ग्रंथि विकसित हो जाती है, जो
शामिल है। उनके विकास मेें बाधा डालती है।
z ग्रामीण से शहरी प्रवास: जीवन की बेहतर गण ु वत्ता और अवसरोों की तलाश z सामाजिक गतिहीनता : अवसरोों की कमी से रोजगार के मामले मेें बस््ततियोों
मेें लोग ग्रामीण क्षेत्ररों से शहरोों की ओर पलायन करते हैैं। का अनौपचारिकीकरण होता है, जिसके परिणामस््वरूप सामाजिक गतिशीलता
z जनसंख््यया वद्धि ृ और शहरी फैलाव: प्राकृतिक जनसंख््यया वृद्धि शहरी क्षेत्ररों मेें कमी आती है।
के विस््ततार मेें योगदान करती है। जैस-े जैसे शहर बढ़ते हैैं, वे बाहरी क्षेत्ररों का z शिक्षा और सार््वजनिक स््ववास््थ््य: उन््हेें सार््वजनिक स््ककूलोों और अस््पतालोों
विस््ततार करते हुए, आसपास के क्षेत्ररों को शहरी ढाँचे मेें शामिल करते हैैं, इस पर निर््भर रहना पड़ता है जो कि ज््ययादातर परु ाने ढर्रे के हैैं। जबकि अन््य के पास
घटना को शहरी फै लाव (Urban Sprawl) के रूप मेें जाना जाता है। विश्वस््तरीय सविध ु ाओ ं से यक्त ु अच््छछे कॉन््वेेंट और निजी अस््पताल 24/7
भारत के नगरीकरण की समस्याएँ उपलब््ध हैैं।
z भीड़-भाड़ और आवास की कमी: अति तीव्र शहरीकरण से शहरोों मेें z जलापूर््तति और सीवरेज की समस््यया: झग्ु ्गगी-झोपड़़ियोों मेें रहने वालोों को
भीड़भाड़ बढ़ जाती है और पर््ययाप्त आवास की कमी हो जाती है, जिसके टैैंकरोों पर निर््भर रहना पड़ता है जो नियमित नहीीं होते और टैैंकर माफिया का
परिणामस््वरूप झग््गगियो
ु ों और अनौपचारिक बस््ततियोों का प्रसार होता है। कई भी मद्ु दा है। स््वच््छ भारत अभियान के बावजदू , बनु ियादी सीवरे ज की समस््यया
शहरी निवासियोों को रहने के लिए असविध ु ाजनक परिस््थथितियोों का सामना बनी हुई है।
करना पड़ता है, साथ ही स््वच््छ जल और स््वच््छता जैसी बनु ियादी सविध ु ाओ ं z शहरी अपराध: बनु ियादी सविध ु ाओ,ं अवसरोों की कमी, अलगाव और रोजगार
तक भी उनकी पहुचँ नहीीं होती है। के औपचारिकरण के अभाव के कारण, यवु ा अपराध के सपं र््क मेें आने के
z बुनियादी ढाँचे पर दबाव : सड़केें , सार््वजनिक परिवहन, सीवरे ज और बिजली लिए अधिक संवेदनशील होते हैैं।
सहित शहरी बनु ियादी ढाँचा अक््सर बढ़ती आबादी के साथ तालमेल बिठाने
के लिए सघं र््ष करता है। इसके परिणामस््वरूप यातायात की भीड़-भाड़, बार- उपाय / सुझाव
बार बिजली कटौती और अपर््ययाप्त अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली जैसी समस््यया z इन-सीटू स््लम पुनर््ववास कार््यक्रम (2013) : यह उनकी जमीन से हटाए जाने
उत््पन््न होती है। के डर को दरू करे गा जैसे - पीएम आवास योजना, दिल््लली सरकार की “जहाँ
z पर््ययावरणीय ह्रास : बढ़ते शहरीकरण से वायु और जल प्रदषू ण होता है, हरित झग्ु ्गगी वहीीं मकान” योजना आदि।
क्षेत्ररों का नकु सान होता है और ठोस अपशिष्ट का उच््च स््तर होता है। z अमृत (2015): इसका लक्षष्य यह सनु िश्चित करना कि प्रत््ययेक परिवार के पास
z सामाजिक असमानता : कई शहरी गरीबोों के पास गणु वत्तापर््णू शिक्षा, जल की गारंटीकृत आपर््तति ू के साथ एक नल और एक सीवर कनेक््शन हो।
स््ववास््थ््य सेवा और रोजगार के अवसरोों तक पहुचँ नहीीं है, जो गरीबी के चक्र z प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना (शहरी) (पीएमएवाई - यू : 2015):
को बनाए रखती है। ईएमआई के माध््यम से पनर््भभुु गतान के दौरान होम लोन की ब््ययाज दर पर छूट
z संसाधनोों की कमी : शहर अक््सर जल की कमी, भजू ल के अत््यधिक दोहन की पेशकश करके , यह शहरी गरीबोों के लिए होम लोन को किफायती बनाता है।
और भमि ू के लिए प्रतिस््पर््धधा से जझू ते हैैं, जिससे शहरी और ग्रामीण दोनोों
z स््ममार््ट सिटी मिशन मेें शहरोों मेें गरीबी को कम करने की क्षमता है क््योोंकि
आबादी प्रभावित होती है।
इसका लक्षष्य लोगोों को समग्र रूप से बनु ियादी सेवाएँ प्रदान करना है।
z महामारी के कारण उत््पन््न समस््ययाएँ : कोविड-19 महामारी ने शहरी
गरीबोों और झग्ु ्गगी-झोपड़़ी निवासियोों की दर््दु शा को और खराब कर दिया है। z लिंग-संवेदनशील बुनियादी ढाँचे को प्राथमिकता दी जानी चाहिए क््योोंकि
पर््णू कोविड लॉकडाउन के अचानक लागू होने से झग्ु ्गगीवासियोों की झग्ु ्गगी-झोपड़़ी वाले परिवारोों मेें स््ववास््थ््य, शिक्षा, आय और आवास मेें इसकी
जीविकोपार््जन की क्षमता को गंभीर नक ु सान पहुचँ ा है। सकारात््मक भमिक ू ा निभाता है। अगर ऐसा होता, तो धारावी जैसी मलिन
बस््ततियाँ COVID-19 हॉटस््पपॉट होने के कारण खबरोों मेें नहीीं होतीीं।
शहरीकरण का दोषपूर््ण प्रतिरूप z शहरी जल निकाय सच ू ना प्रणाली (UWAIS): स््वचालित सविध ु ा
अधिक जनसंख््यया और बेहतर अवसरोों के कारण, शहरोों मेें उपनगर नामक नए निष््कर््षण एल््गगोरिदम का उपयोग करके देश के सभी जल निकायोों के जल
क्षेत्र विकसित होते हैैं। लेकिन अनियोजित शहरीकरण और उप-नगरीकरण प्रसार क्षेत्र पर वास््तविक समय की जानकारी प्रदान करना।।
कारण भमू ि और प्राकृ तिक संसाधनोों पर मानव का प्रभाव तेज हो रहा है। कृ षि
भमू ि उपयोग योजना मेें भमू ि के उपयोग को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए की बढ़ती तीव्रता भमू ि संसाधनोों और समग्र पर््ययावरण पर दबाव डालती है।
नीतियोों का विकास शामिल है। यह उपलब््ध संसाधनोों के अधिकतम उपयोग z जल-चक्र मेें व््यवधान: भमू ि उपयोग मेें परिवर््तन प्राकृ तिक जल रिसाव और
और सामाजिक एवं पर््ययावरणीय दोनोों क्षेत्ररों मेें अधिक वांछनीय परिणाम प्राप्त अपवाह पैटर््न को बदल दते ा है, जिससे भजू ल पनर््भ
ु रण प्रभावित होता है और
करने के लिए किया जाता है। बाढ़ और सख ू े का खतरा बढ़ जाता है।
z विकासात््मक विस््थथापन: अनमु ानित रूप से पिछले 50 वर्षषों मेें भारत मेें भूमि उपयोग के विभिन्न प्रकार : वर्गीकरण
'विकास परियोजनाओ'ं के कारण 5 करोड़ लोग विस््थथापित हो चक ु े हैैं। विस््थथापन
z वन : इसमेें वनोों से संबंधित या वनोों के रूप मेें प्रशासित किसी भी काननू ी
मेें बांध, खदानेें, औद्योगिक विकास, और वन््यजीव अभयारण््य और राष्ट्रीय
अधिनियम के तहत वन के रूप मेें वर्गीकृ त सभी भमू ि शामिल हैैं, चाहे वह
उद्यानोों के निर््ममाण जैसी परियोजनाएँ शामिल हैैं।
राज््य के स््ववामित््व वाली हो या निजी, और चाहे जंगली हो या संभावित वन
z आजीविका की हानि: भमू ि उपयोग परिवर््तन से कृ षि भमू ि, वन क्षेत्ररों और
भमू ि के रूप मेें रखी गई हो। वन मेें उगाई जाने वाली फसलोों का क्षेत्रफल
चरागाहोों तक पहुचँ समाप्त हो जाती है, जिससे आजीविका और जीवन की और चरागाह भमू ि या वन के भीतर चराई के लिए खले ु क्षेत्र को वन क्षेत्र के
गणवु त्ता प्रभावित होती है। उदाहरणोों मेें छत्तीसगढ़ मेें परसा ईस््ट केते बेसन अतं र््गत ही रहना चाहिए।
कोयला खदान शामिल है, जिसमेें 2,711.034 हेक््टटेयर भमू ि उपयोग परिवर््तन
z विविध वक्ष ृ फसलोों आदि के अंतर््गत भूमि : इसमेें सभी खते ी योग््य भमू ि
शामिल है और यह आदिवासी और पारंपरिक वनवासियोों की आजीविका को
शामिल है जो 'शद्ध ु बोया गया क्षेत्र' मेें शामिल नहीीं है लेकिन कुछ कृ षि कार्ययों
प्रभावित करता है।
मेें उपयोग की जाती है। इस श्रेणी मेें कै सरु िना पेड़ों, छप््पर वाली घास, बांस
z जलवायु परिवर््तन: कृ षि और शहरी विकास के लिए वनोों की कटाई और की झाड़़ियोों और ईधन ं आदि के लिए अन््य उप वनोों को वर्गीकृ त किया जाना
भमू ि रूपांतरण से महत्तत्वपर्ू ्ण मात्रा मेें कार््बन डाइऑक््ससाइड (CO2) और अन््य चाहिए जो 'फलोों के बागोों' के अतं र््गत शामिल नहीीं हैैं।
ग्रीनहाउस गैसेें निकलती हैैं।
z शुद्ध बोया गया क्षेत्र : यह फसलोों और बगीचोों के साथ बोये गये कुल क्षेत्र
z पर््ययावरणीय गिरावट और प्रदूषण का कारण: भमू ि उपयोग परिवर््तन के को दर््शशाता है। एक ही वर््ष मेें एक से अधिक बार बोये गए क्षेत्रफल की गणना
परिणामस््वरूप कृ षि उत््पपादकता, भजू ल प्रदषू ण और अन््य पर््ययावरणीय प्रभावोों केवल एक बार ही की जाती है।
मेें गिरावट आती है। इन प्रभावोों का स््ववास््थ््य, अर््थव््यवस््थथा और सामाजिक
भमू ि उपयोग पैटर््न मेें परिवर््तन कै से होता है और इसका क््यया प्रभाव होता है?
कल््ययाण पर दीर््घकालिक प्रभाव होता है।
कारण प्रभाव
भारत मेें भूमि उपयोग के प्रतिरूप मेें परिवर््तन z शहरीकरण : कृ षि या प्राकृ तिक z जैव विविधता का नुकसान :
किसी क्षेत्र मेें भमू ि-उपयोग, काफी हद तक, उस क्षेत्र मेें की गई आर््थथिक गतिविधियोों भमू ि को आवासीय, वाणिज््ययिक आवासोों के विखडं न से प्रजातियोों
की प्रकृ ति से प्रभावित होता है। हालाँकि, समय के साथ आर््थथिक गतिविधियाँ और औद्योगिक क्षेत्ररों मेें परिवर््ततित का जीवित रहना और प्रजनन
बदलती रहती हैैं, भमू ि, कई अन््य प्राकृ तिक संसाधनोों की तरह, अपने क्षेत्रफल के करना है। करना मश््ककिल
ु हो जाता है।
संदर््भ मेें तय होती है। किसी भी अर््थव््यवस््थथा मेें तीन प्रकार के परिवर््तन होते हैैं, जो z कृषि विस््ततार : बढ़ती जनसख्ं ्यया z मृदा क्षरण : निम््ननीकृ त मिट्टी
भमू ि उपयोग को प्रभावित करते हैैं। की माँगोों को परू ा करने के कृ षि उत््पपादकता को प्रभावित
1. अर््थव््यवस््थथा का आकार: बढ़ती जनसंख््यया, आय स््तर मेें परिवर््तन, लिए खाद्य उत््पपादन बढ़़ाने की करती है और मरुस््थलीकरण के
उपलब््ध प्रौद्योगिकी और संबंधित कारकोों के परिणामस््वरूप समय के साथ आवश््यकता से प्रेरित होता है। जोखिम को बढ़़ाती है।
अर््थव््यवस््थथा का आकार बढ़ता है। परिणामस््वरूप, समय के साथ भमू ि पर z औद्योगीकरण : इसके z जल चक्र मेें व््यवधान :
दबाव बढ़ता जाएगा और सीमांत भमू ि उपयोग मेें कमी आने लगेगी। लिए भमू ि के बड़़े हिस््ससे की शहरीकरण और वनोों की कटाई
2. अर््थव््यवस््थथा की संरचना: द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र आमतौर पर आवश््यकता होती है और जो से भमू ि की जल धारण और
प्राथमिक क्षेत्र, विशेष रूप से कृ षि क्षेत्र की तुलना मेें बहुत तेजी से बढ़ते हैैं। अक््सर मौजदू ा भमू ि उपयोग- परिष््ककृ तकरने की क्षमता कम हो
3. कृषि जै से किसी विशे ष क्षेत्र की निर््भरता: हालांकि समय के साथ कृ षि
प्रतिरूप को विस््थथापन की ओर जाती है।
गतिविधियोों का योगदान कम हो जाता है, लेकिन कृ षि संबंधी गतिविधियोों के ले जाता है। z जलवायु परिवर््तन : भमू ि
लिए भमू ि पर दबाव कम नहीीं होता है। z बुनियादी ढाँचा विकास उपयोग मेें परिवर््तन तापमान वृद्धि
: शहरीकरण और आर््थथिक और चरम मौसम की घटनाओ ं
भूमि उपयोग वर्गीकरण गतिविधियोों को समर््थन देने के जैसे जलवायु परिवर््तन के प्रभावोों
स््ववामित््व के आधार पर भमू ि को निजी भमू ि और सामदु ायिक भमू ि के रूप मेें लिए सड़कोों, राजमार्गगों, रेलवे को बढ़़ा दते ा है।
वर्गीकृ त किया जा सकता है। और अन््य बनि ु यादी ढाँचे के z कृषि उत््पपादकता मेें कमी :
1. निजी भूमि पर व््यक्तियोों का स््ववामित््व होता है। निर््ममाण को बढ़ावा देना। अस््थथिर प्रथाएँ मिट्टी के स््ववास््थ््य
2. सामुदायिक भूमि समदु ाय के स््ववामित््व मेें होती है, जिसका उपयोग समदु ाय z वनोों की कटाई : अक््सर को ख़राब करती हैैं, फसल की
के लोग चारा, फल, मेवे या औषधीय जड़़ी-बूटियाँ इकट्ठा करने जैसे सामान््य आर््थथिक प्रोत््ससाहन और कृ षि पैदावार कम करती हैैं और खाद्य
उपयोगोों के लिए करते हैैं। इन सामदु ायिक भमू ियोों को साझा संपत्ति संसाधन एवं विकास के लिए भमू ि की सरु क्षा को ख़तरा पैदा करती हैैं।
भी कहा जाता है। आवश््यकता से प्रेरित होती है।
अस््थथिर कृषि पद्धतियाँ : खराब भमू ि प्रबंधन पद्धतियाँ, जैसे अनपु यक्त अनमु ोदन किया।
ु
z भारत मेें सम््ममेलन का नोडल मत्राल ं य पर््ययावरण, वन एवं जलवायु परिवर््तन
सिंचाई तकनीक, रासायनिक उर््वरकोों और कीटनाशकोों का अत््यधिक
मत्राल
ं य है।
उपयोग, मोनोक्रॉपिंग और अनचि ु त मृदा संरक्षण उपाय, मिट्टी को खराब
z भारत को मरुस््थलीकरण की बहुत बड़़ी समस््यया का सामना करना पड़ रहा
कर सकते हैैं और मरुस््थलीकरण मेें योगदान कर सकते हैैं। है। वर््ष 2016 की इसरो रिपोर््ट मेें कहा गया था कि भारत मेें 29% भमू ि
भूमि कुप्रबंधन : अनचि
ु त भमू ि-उपयोग नियोजन, अपर््ययाप्त भमू ि कार््यकाल निम््ननीकृ त हो गई है।
प्रणाली, भमू ि-उपयोग नियमोों की कमी और अनियंत्रित भमू ि विकास सभी
भमू ि क्षरण और मरुस््थलीकरण मेें योगदान कर सकते हैैं।
प्रमुख शब्दावलियाँ
खनन और निष््कर््षण उद्योग : अनियमित खनन गतिविधियाँ, विशेष
रूप से शष्ु ्क और अर््ध-शष्ु ्क क्षेत्ररों मेें, मिट्टी मेें अव््यवस््थथा, प्रदषू ण और भूमि का कुशल उपयोग, भूमि-उपयोग परिवर््तन और वानिकी
(LULUCF); भूमि क्षरण तटस््थता (एलडीएन); भूमि के उपयोग को
वनस््पति की हानि का कारण बन सकती हैैं, जिससे मरुस््थलीकरण बढ़
विनियमित करना; आधनु िक भूमि उपयोग लक्षष्य; दर््लु भ भूमि का
सकता है। इष्टतम उपयोग; सतत भूमि प्रबंधन; पृथ््ववी पर जीवन; विस््थथापन
गरीबी और जनसख् ं ्यया दबाव : गरीबी, जनसंख््यया वृद्धि और इसके और बेदखली; वन भूमि का परिवर््तन; सामुदायिक भूमि; खेती योग््य
परिणामस््वरूप संसाधनोों की माँग, प्राकृ तिक संसाधनोों के अतिदोहन, बंजर भूमि; वनोों की कटाई और भूमि कटाव और क्षरण; अनियमित
सीमांत भमू ि पर अतिक्रमण और जंगलोों और घास के मैदानोों को कृ षि मानवीय हस््तक्षेप.
या बस््ततियोों मेें बदलने जैसी अस््थथाई प्रथाओ ं को जन््म दे सकती है। विगत वर्षषों के प्रश्न
मानव कल््ययाण और पर््ययावरण दोनोों की सुरक्षा के दोहरे उद्देश््योों को प्राप्त करना 1. भमू ि एवं जल संसाधनोों का प्रभावी प्रबंधन मानव विपत्तियोों को प्रबल
तब तक अप्राप््य होगा जब तक कि विकसित राष्टट्र उत््सर््जन मेें उल््ललेखनीय रूप कम कर देगा। स््पष्ट कीजिए। (2018)
कमी लाने की प्राथमिक जिम््ममेदारी नहीीं लेते हैैं। ऐसा इसलिए है क््योोंकि ग््ललोबल 2. दलहन की कृ षि के लाभोों का उल््ललेख कीजिए जिसके कारण संयुक्त
वार््मििंग मेें उनका ऐतिहासिक और निरंतर योगदान सबसे अधिक है। इसके राष्टट्र के द्वारा वर््ष 2016 को अतं रराष्ट्रीय दलहन वर््ष घोषित किया
अतिरिक्त, भदृू श््य पनर््स्थथा
ु पन मात्र वृक्षारोपण से भी आगे जाता है; इसके लिए गया था। (2017)
वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के साथ स््वदेशी और स््थथानीय ज्ञान के मल्ू ्य 3. पर््यटन की प्रोन््नति के कारण जम््ममू और कश््ममीर, हिमाचल प्रदेश और
को पहचानने की आवश््यकता है, साथ ही स््थथानीय समदु ायोों की जरूरतोों को उत्तराखंड के राज््य अपनी पारिस््थथितिक वहन क्षमता की सीमाओ ं तक
एकीकृ त करने की भी आवश््यकता है। पहुचँ रहे है। समालोचनात््मक मल्ू ्ययाांकन कीजिए। (2015)
प्राथमिक गतिविधियााँ z भारत मेें स््थथिति: 20वीीं पशुधन गणना के अनसु ार, भारत…
लगभग 535.78 मिलियन के साथ विश्व मेें सबसे अधिक पशध ु न
z प्राथमिक क्षेत्र अर््थव््यवस््थथा का वह क्षेत्र होता है जो प्राकृ तिक संसाधनोों का
उपयोग करके वस््ततुओ ं का उत््पपादन करता है। विकासशील देशोों मेें प्राथमिक का मालिक है।
क्षेत्र का दबदबा होता है। विश्व मेें भैैंसोों की कुल सख्
ं ्यया मेें प्रथम स््थथान पर - 109.85 मिलियन भैैंसे।ें
बकरियोों की आबादी मेें दस ू रे स््थथान पर - 148.88 मिलियन बकरियाँ।
तथ्य
विश्व का दस ू रा सबसे बड़़ा पोल्ट्री बाजार।
z भारतीय अर््थव््यवस््थथा का प्राथमिक क्षेत्र सकल घरेलू उत््पपाद का 18.20%
हिस््ससा है। दसू रा सबसे बड़़ा मछली उत््पपादक और दनि ु या का दसू रा सबसे बड़़ा
z कुल मिलाकर लगभग 48.9% कार््यबल प्राथमिक क्षेत्र मेें कार््यरत है। जलीय कृ षि राष्टट्र भी।
भेड़ों की जनसंख््यया मेें तीसरे स््थथान पर (74.26 मिलियन)।
बत्तखोों और मर््गगियोों
ु की आबादी मेें पाँचवेें स््थथान पर (851.81 मिलियन)
विश्व मेें ऊँटोों की सख्ं ्यया मेें दसवेें स््थथान पर - 2.5 लाख।
z सभी ग्रामीण परिवारोों के औसत 14% की तलन ु ा मेें, छोटे कृ षि परिवारोों के राजस््व मेें पशधु न का हिस््ससा लगभग 16% है। इसके अतिरिक्त, यह लगभग 8.8%
भारतीय आबादी को रोजगार देता है।
z भारत के पास प्रचरु मात्रा मेें पशधु न संसाधन हैैं, और यह उद्योग कृ षि जीडीपी का 25.6% और कुल जीडीपी मेें 4.11% का योगदान देता है।
जीवन-निर्वाह के लिए पशुओ ं का पालन: यह आर््थथिक गतिविधि उनके भरण-पोषण के लिए ग्रामीण भारत मेें जानवरोों को पालना कृ षि
उनके तात््ककालिक वातावरण पर निर््भर करती है। से जुड़़ा व््यवसाय माना जाता है। पशपु ालन
पशचु ारण निर््ववाह के लिए जानवरोों को पालने के कार््य से
शिकारी और संग्रहकर््तता निम््नलिखित पर निर््भर रहते भारतीय कृ षि का एक महत्तत्वपूर््ण हिस््ससा है
संबंधित है। विभिन््न जलवायु परिस््थथितियोों मेें रहने वाले लोगोों
हैैं: वे जानवर जिनका उन््होोंने शिकार किया। आसपास और 55% से अधिक ग्रामीण निवासियोों
ने उन क्षेत्ररों मेें पाए जाने वाले जानवरोों का चयन और पालन किया।
के जंगलोों से एकत्र किए गए खाने योग््य पौधे। को आजीविका प्रदान करता है।
z पशुपालन की स््थथिति: भौगोलिक कारकोों और तकनीकी
z भौगोलिक क्षेत्र: मध््य भारत का जनजातीय क्षेत्र z उत््पपाद: महत्तत्वपर् ू ्ण जानवरोों मेें भेड़,
विकास के आधार पर, आज पशु पालन या तो निर््ववाह या
और उत्तर पर््वू और पर्वी
ू भारत के पहाड़़ी क्षेत्र। भारत मवेशी, बकरी और घोड़़े शामिल हैैं।
व््ययावसायिक स््तर पर किया जाता है।
मेें बड़़े पैमाने पर जनजातीय समहू विशेष रूप से मांस, ऊन, खाल और त््वचा जैसे
z आदिम पशुपालन एक आदिम निर््ववाह गतिविधि है, जिसमेें
पीवीटीजी शिकार और संग्रहण मेें लगे हुए हैैं। जैसे उत््पपादोों को वैज्ञानिक तरीके से
चरवाहे भोजन, कपड़़े, आश्रय, उपकरण और परिवहन के अडं मान और निकोबार के ओगोों ं , जारवा, शोम््पपेन; ससं ाधित और पैक किया जाता है
लिए जानवरोों पर निर््भर होते हैैं। ओडिशा के बोोंडा, महाराष्टट्र के कतकरी। तथा विभिन््न विश्व बाजारोों मेें निर््ययात
z भौगोलिक क्षेत्र: हिमालय जैसे पर््वतीय क्षेत्ररों मेें , गुज््जर,
z व््ययावसायिक अवसर: आधनि ु क समय मेें कुछ किया जाता है।
बकरवाल, गद्दी और भोटिया गर््ममियोों मेें मैदानी इलाकोों संग्रहण बाजारोन््ममुख और व््ययावसायिक हो गई हैैं। z प्रमुख देश: न््ययूजीलैैं ड, ऑस्ट्रेलिया
से पहाड़ों की ओर और सर््ददियोों मेें ऊंचाई वाले चरागाहोों और सयं ुक्त राज््य अमेरिका
z ट्राइफेड: यह संस््थथा जनजातियोों द्वारा एकत्र किए
से मैदानी इलाकोों की ओर पलायन करते हैैं। इस तरह के महत्तत्वपर्ू ्ण देश हैैं जहाँ व््ययावसायिक
गए उत््पपादोों के लिए लाभकारी मल्ू ्य प्रदान करने के
मौसमी प्रवासन को ट््राांसह्यूमन््स के रूप मेें जाना जाता है। पशधु न पालन किया जाता है।
लिए काम कर रही है।
भारत मेें कृषि क्षेत्र
z आर््थथिक सर्वेक्षण 2022-23: भारतीय कृ षि क्षेत्र पिछले छह वर्षषों के दौरान 4.6% की औसत वार््षषिक वद्धि
ृ दर से बढ़ रहा है। 2020-21 मेें 3.3% की तलन
ु ा
मेें 2021-22 मेें इसमेें 3.0% की वृद्धि हुई।
सभी सब््जजियोों मेें से भारत उनमेें से सबसे अधिक आलू, अदरक, भिंडी, प््ययाज, बैैं गन आदि का उत््पपादन करता है।
इसके अलावा, भारत जूट, काजू, पपीता, मसाले , नारियल, आम, के ले और अन््य उत््पपादोों का दुनिया का शीर््ष उत््पपादक है।
भारत मेें पशुपालन कृ षि उद्योग का एक महत्तत्वपर् ू ्ण घटक है। यह 32% से अधिक उत््पपादन के लिए जिम््ममेदार है
कृषि के प्रकार
जीवन-निर््ववाह कृषि वह है जिसमेें कृ षि क्षेत्र यूरोपीय लोगोों द्वारा उष््ण कटिबंध मेें स््थथित मिश्रित खेती: कृ षि का यह रूप दनि ु या के
स््थथानीय स््तर पर उगाए गए सभी या लगभग इतने उपनिवेशोों मेें बागानी कृषि की शुरुआत की गई थी। अत््यधिक विकसित हिस््सोों मेें पाया जाता है,
ही उत््पपादोों का उपभोग करते हैैं। इसे दो श्रेणियोों कुछ महत्तत्वपर्ू ्ण बागानी फसलेें चाय, कॉफी, कोको, जैसे। उत्तर-पश्चिमी यूरोप, पूर्वी उत्तरी अमे रिका,
मेें बांटा जा सकता है - आदिम निर््ववाह कृ षि और रबर, कपास, ताड़ का तेल, गन््नना, केले और अनानास यूरेशिया के कुछ हिस््ससे और दक्षिणी महाद्वीपोों
गहन निर््ववाह कृ षि। हैैं। यह एक प्रकार की व््ययावसायिक खेती है जहाँ के समशीतोष््ण अक््षाांश।
z आदिम निर््ववाह कृषि: आदिम निर््ववाह कृषि
उद्योगोों के साथ मजबूत संबंध रखते हुए मोनोकल््चर मिश्रित खेत आकार मेें मध््यम होते हैैं और आमतौर
या स््थथानांतरण खेती उष््णकटिबंधीय क्षेत्ररों मेें अर््थथात एकल कृ षि की जाती है। पर उनसे जुड़़ी फसलेें गेहूं, जौ, जई, राई, मक््कका,
कई जनजातियोों द्वारा व््ययापक रूप से की जाती भौगोलिक क्षेत्र: वे मख्ु ्यतः उष््णकटिबधं ीय क्षेत्ररों तक चारा और जड़ वाली फसलेें होती हैैं।
है, विशेष रूप से अफ्रीका, दक्षिण और मध््य
ही सीमित हैैं। भारत मेें बागानी कृ षि पूर्वोत्तर के पहाड़़ी z घटक: चारा फसलेें मिश्रित खेती का एक
अमेरिका और दक्षिण पर््वू एशिया मेें। जैसे भारत
क्षेत्ररों मेें विकसित हुई है। चाय बागान, नीलगिरि, महत्तत्वपर्ू ्ण घटक हैैं। मिट्टी की उर््वरता बनाए रखने
के पर्ू वोत्तर राज््योों मेें झमू िगं , मध््य अमेरिका
और मैक््ससिको मेें मिल््पपा और इडं ोनेशिया और अन््ननामलाई, बाबा बुदान और इलायची पहाड़़ियाँ मेें फसल चक्र और अंतर-शस््यन महत्तत्वपर्ू ्ण
मलेशिया मेें लदांग। आदि जिनमेें कॉफी, रबर आदि के बागान हैैं। भमू िका निभाते हैैं।
की संभावनाएँ कम हो जाएँगी और ग्रामीण क्षेत्ररों मेें श्रमिकोों की जीवन-निर््ववाह कृषि: भारतीय कृ षि बड़़े पै माने पर निर््ववाह-उन््ममुख है जो
संख््यया कम होने की संभावना है। छोटी जोत और मशीनीकृ त खेती करने मेें असमर््थता के कारण इकोनोमी
z कृ षि उत््पपादकता बढ़़ाने के लिए सहकारी खेती ही एकमात्र ऑफ़ स््ककेल (economies of scale) से वंचित करती है।
तरीका नहीीं है। उन््नत किस््म के बीज, उर््वरक, कृ षि उपकरण फॉरवर््ड और बैकवर््ड लिंकेज: फॉरवर््ड लिंकेज की कमी के कारण
आदि अपनाकर कृ षि उत््पपादकता बढ़़ाने के लिए बेहतर विकल््प कृषि उत््पपादोों मेें मूल््यवर््धन और प्राथमिक प्रसस्ं ्करण विकसित देशोों
उपलब््ध हैैं। की तलनु ा मेें बहुत कम है।
करने के लिए दग्ु ्ध उत््पपाद आहार का एक महत्तत्वपर्ू ्ण हिस््ससा बढ़़ा देते हैैं। भारत के वस्त्र, चीनी, वनस््पति तेल, चाय, कॉफी और चमड़़े के
हैैं। मध््ययाह्न भोजन योजना के तहत दग्ु ्ध उत््पपादोों को शामिल सामान इत््ययादि क्षेत्रक कृ षि-आधारित व््यवसायोों के कुछ उदाहरण हैैं।
करने से बच््चोों मेें बौनेपन और दबु लेपन को कम करने मेें
मदद मिलेगी। वर््तमान स्थिति
z महिला सशक्तिकरण: यह भारत मेें एक श्रम प्रधान क्षेत्र है z भले ही भारत दनि ु या मेें, चीन के बाद, फलोों और सब््जजियोों का दसू रा सबसे
और महिला आबादी इस क्षेत्र के कार््यबल का लगभग बड़़ा उत््पपादक है, लेकिन केवल 2% फसल को ही संसाधित किया जाता है।
69% है। इसलिए, डेयरी क्षेत्र का विकास सीधे तौर पर महिला
सशक्तिकरण को बढ़़ावा देता है। z भारत मेें दनि ु या की सबसे बड़़ी पशधु न आबादी है, जिसमेें 50% भैैंस
और 20% मवेशी हैैं, फिर भी देश के कुल मांस उत््पपादन का केवल 1%
z असगं ठित क्षेत्र: अधिकांश दग्ु ्ध उत््पपादक असंगठित हैैं और
इस प्रकार अपनी सगं ठित माँगोों की वकालत करने मेें मल्ू ्य-वर््धधित वस््ततुओ ं मेें बदल जाता है।
विफल रहते हैैं। z हालाँकि यहाँ एक बड़़ा विनिर््ममाण आधार है, लेकिन प्रसंस््करण बहुत कम
डेयरी क्षेत्र के सामने चुनौतियाँ
z खंडित आपूर््तति श्रंखला : दधू एक अत््यधिक खराब होने (10% से कम) होता है। लगभग 2% फल और सब््जजियाँ, 8% समद्री ु
वाला उत््पपाद है इसलिए इसे ग्राहक की ओर से तत््ककाल उत््पपाद, 35% दधू और 6% मर्ु गीपालन उत््पपाद ही संसाधित किये जाते है।
निपटान की आवश््यकता होती है। z सर्ू योदय उद्योग (Sunrise Industry): नीति आयोग ने खाद्य प्रसस्ं ्करण
z पशु चारे की कीमतेें: पशु चारे की निरंतर उपलब््धता की उद्योगोों की पहचान भारी घरेलू माँग वाले सर्यो
ू दय उद्योग के रूप मेें की है
कमी और इसकी ऊंची कीमतोों के कारण व््यवसाय का जो असंगठित क्षेत्र के उत््थथान की क्षमता रखता है।
लाभ मार््जजिन कम हो जाता है।
z जीडीपी मेें योगदान: भारत की जीडीपी मेें खाद्य प्रसंस््करण क्षेत्र का
z किसानोों को खराब रिटर््न: वसा-आधारित मूल््य निर््धधारण
नीति के परिणामस््वरूप किसानोों को बाजार कीमतोों की तलन ु ा योगदान 2% से भी कम है। इसलिए इसकी वास््तविक क्षमता का दोहन
मेें 20-30% कम पैसा मिलता है। करने के लिए निजी निवेश और नए स््टटार््ट-अप की आवश््यकता है।
उत््पपादन का 40% नष्ट हो जाता है। नीति आयोग ने भी फसल विपणन को बढ़़ावा दिया जा सकता है।
कटाई के बाद वार््षषिक नक ु सान 90,000 करोड़ रुपये के करीब z एक एकीकृत कृषि निर््ययात मिशन: निर््ययात को बढ़़ावा देने और खाद्य
होने का अनमु ान लगाया था। प्रसंस््करण को बढ़़ाकर मल्ू ्य संवर््धन को 10% से 50% तक बढ़़ाने के लिए
z खाद्य मुद्रास््फफीति पर अंकुश: खाद्य प्रसस्ं ्करण भोजन की एक एकीकृ त कृ षि निर््ययात मिशन तैयार किया जा सकता है।
शेल््फ लाइफ को बढ़़ाता है, जिससे माँग के अनरू ु प आपर््तति
ू z एकीकृत दृष्टिकोण: एक एकीकृ त रणनीति की आवश््यकता है, जिसमेें
बनाए रखने और खाद्य मद्रा ु स््फफीति को कम करने मेें मदद फॉरवर््ड और बैकवर््ड कनेक््शन बनाने पर ध््ययान दिया जाए, जो क्षेत्र की आर््थथिक
मिलती है। उदाहरण के लिए, फ्रोजन सफल मटर परू े वर््ष व््यवहार््यता बढ़़ाने के लिए आवश््यक हैैं।
उपलब््ध रहते हैैं। z सार््वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): लॉजिस््टटिक््स, भड ं ारण और प्रसंस््करण
z व््ययापार को बढ़़ावा और विदेशी मुद्रा अर््जन: यह विदेशी के लिए बनि ु यादी ढाँचे के निर््ममाण के लिए जोखिम साझा करने और वित्तीय
मद्रा
ु के एक महत्तत्वपर्ू ्ण स्रोत के रूप मेें कार््य करता है। उदाहरण प्रोत््ससाहन के लिए एक अच््छछी तरह से विकसित रूपरे खा प्रदान करके निजी
के लिए, मध््य पर्वी क्षेत्र को उद्योग के समग्र विकास मेें अधिक सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए
ू देशोों मेें भारतीय बासमती चावल की
उच््च माँग है। प्रोत््ससाहित किया जाना चाहिए।
z कृषि उपज बाजार समिति (APMC) अधिनियम का समान कार््ययान््वयन:
z नीतियाँ:
यह सनिश् ु चित किया जाना चाहिए कि निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़़ाने के
z कृषि प्रसस्ं ्करण क््लस््टर: एक ससु ज््जजित आपर््तति ू श्ख
रं ला लिए कृ षि उपज बाजार समिति (APMC) अधिनियम को समान रूप से लागू
और अत््ययाधनि ु क बनि
ु यादी ढाँ च े के माध््यम से , इसका लक्षष्य किया जाए और जीएसटी कर ढाँचे को ससु ंगत बनाया जाए ताकि कीमतोों मेें
उत््पपादकोों या किसानोों के समहोू ों को प्रसंस््करणकर््तताओ ं और भारी अतं र को रोका जा सके ।
बाजारोों से जोड़ना है। आर््थथि क सर्वेक्षण (2022-23) के अनुसार, जलवायु परिवर््तन के नकारात््मक
z मेगा फूड पार््क : कार््यक्रम का उद्देश््य क््लस््टरिंग पद्धति का प्रभाव, खंडित भमू ि जोत, अपर््ययाप्त कृ षि मशीनीकरण, कम उत््पपादकता, प्रछन््न
उपयोग करके खाद्य प्रसंस््करण इकाइयोों की स््थथापना के लिए बेरोजगारी, बढ़ती इनपुट लागत सहित कई मद्ददों ु को देखते हुए भारतीय कृ षि को
व््ययावसायिक समहोू ों को आकर््षषित करने के लिए आधनि ु क फिर से तैयार करना होगा। देश की अर््थव््यवस््थथा के फलने-फूलने और नौकरियाँ
बनिु यादी ढाँ च े और साझा स व
ु िधाओ ं का निर््ममाण करना है। पैदा करने के लिए, कृ षि क्षेत्र का प्रदर््शन मजबूत बना रहना चाहिए।
सरकारी पहलेें
z खाद्य प्रसस्ं ्करण/सरं क्षण क्षमताओ ं का निर््ममाण/विस््ततार भारत मेें खनन क्षेत्र
(इकाई योजना): इस योजना का प्राथमिक लक्षष्य प्रसस्ं ्करण
और संरक्षण क्षमता का निर््ममाण करना और मौजदू ा खाद्य भारत मेें खनन क्षेत्र को भारतीय अर््थव््यवस््थथा के मख्ु ्य उद्योगोों मेें से एक कहा
जाता है क््योोंकि यह कई महत्तत्वपूर््ण उद्योगोों को बुनियादी कच््चचा माल प्रदान
प्रसंस््करण इकाइयोों का आधनि ु कीकरण/विस््ततार करना है
करता है। खनन ग्रह और अन््य खगोलीय पिंडोों से मल्ू ्यवान भवू ैज्ञानिक घटकोों
ताकि प्रसंस््करण के स््तर को बढ़़ाया जा सके और मल्ू ्यवर््धन
को निकालने की प्रक्रिया है।
किया जा सके , जिससे अपव््यय कम हो सके ।
z सस्ं ्थथागत व््यवस््थथाएँ: भारतीय खनन की स्थिति (MoSPI)
z कृषि मंत्रालय: यह बेकरी, कोल््ड स््टटोरे ज, चीनी मिल, तेल z अर््थव््यवस््थथा मेें योगदान: औद्योगिक क्षेत्र के सकल घरेलू उत््पपाद मेें
मिल और चावल मिलोों से सबं ंधित है। केवल 2.2% और 2.5% के बीच अतं र होने के बावजदू , खनन क्षेत्र का
z खादी एवं ग्रामोद्योग बोर््ड। सकल घरेलू उत््पपाद मेें योगदान 10% से 11% के बीच है।
कृषि आधारित उद्योग: वे उद्योग जो कच््चचे माल के उपस््थथिति उद्योग के लिए आकर््षक होती थी।
स्रोत के रूप मेें कृ षि पर निर््भर होते हैैं, कृ षि आधारित
z बाजार: जब तक तैयार माल बाजार तक नहीीं पहुचँ जाता तब
उद्योग कहलाते हैैं। चीनी, वनस््पति तेल, जूट वस्त्र, और
कच््चचे माल के तक विनिर््ममाण की परू ी प्रक्रिया बेकार है।
सतू ी वस्त्र कृ षि आधारित उद्योगोों के उदाहरण हैैं।
स्रोत के z परिवहन: कच््चचे माल का संयोजन और तैयार माल की बिक्री
खनिज-आधारित उद्योग: इस समहू मेें लोहा और
आधार पर दोनोों के लिए भमू ि या जल मार््ग से परिवहन की आवश््यकता
इस््पपात, एल््ययूमीनियम और सीमेेंट जैसे व््यवसाय शामिल
हैैं जो मख्ु ्य रूप से अपने कच््चचे माल के लिए खनिजोों होती है।
पर निर््भर हैैं।
z औद्योगिक जड़ता: क्षेत्र की जड़ता के कारण उद्योग अपने नांगल चौधरी मेें एकीकृत मल््टटी मॉडल लॉजिस््टटिक््स हब
DMIC के तहत उत्तर प्रदेश के दादरी मेें मल््टटी-मॉडल लॉजिस््टटिक््स/
मूल प्रतिष्ठान के स््थथान पर ही विकसित होते हैैं। जैसे
अलीगढ़ मेें ताला उद्योग। ट््राांसपोर््ट हब।
z ऐतिहासिक कारक: मुंबई, कोलकाता और चेन््नई स््थथान औद्योगिक गलियारोों का महत्त्व
हमारे औपनिवेशिक अतीत से बहुत प्रभावित हैैं। z औद्योगिक गलियारोों मेें 4 प्रमुख घटक शामिल हैैं: परिवहन, भडं ारण,
z बैैंकिंग और ऋण सवि ु धाएँ: उद्योग के विकास के लिए लाखोों अग्रेषण (Forwarding) और मल्ू ्य वर््धधित लॉजिस््टटिक््स।
रुपये के दैनिक विनिमय की आवश््यकता होती है, जो केवल z आर््थथिक विकास: औद्योगिक गलियारे विश्वस््तरीय परिवहन सवु िधाएँ प्रदान
बैैंकिंग सवु िधाओ ं द्वारा ही संभव है। करने के लिए बनाए गए हैैं जो औद्योगिक समहोू ों को जोड़ते हैैं। उच््च क्षमता
वाले समर््पपित माल गलियारे वैश्विक विनिर््ममाण और निवेश गंतव््य बनाने के
भारत मेें औद्योगिक गलियारे (INDUSTRIAL लिए रीढ़ की हड्डी के रूप मेें कार््य करते हैैं।
CORRIDORS -IC) z लॉजिस््टटिक सध ु ार: आईसी वैश्विक लॉजिस््टटिक मानकोों के अनरू ु प कार्गो
z राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास निगम (NICDC) एक विशेष प्रयोजन के मल््टटी-मोडल मूवमेेंट को सवि ु धाजनक बनाने मेें मदद करेगा। इससे
वाहन है जिसका लक्षष्य राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार््यक्रम के लॉजिस््टटिक््स की लागत कम होगी और भारतीय वस््ततुओ ं की प्रतिस््पर््धधात््मकता
कार््ययान््वयन को स््थथापित करना, बढ़़ावा देना और सवु िधाजनक बनाना है। मेें सधु ार होगा।
z उद्देश््य: औद्योगिक विकास को विशेष बल देते हुए मुख््य परिवहन मार्गगों z व््यवसाय करने मेें आसानी: औद्योगिक गलियारे मेें व््यवसाय शरू ु करने,
पर इनकी परिकल््पना की गई है। इसमेें निर््ययात मेें वृद्धि, रोजगार सृजन, निर््ममाण परमिट से निपटने और सपं त्ति पंजीकरण के लिए तेजी से मजं रू ी
पर््ययावरण प्रबंधन आदि पर लक्षित कई परियोजनाएँ शामिल हैैं। की सवु िधा प्रदान करे गी। यह अधिक व््ययापार और निवेश को आकर््षषित करे गा।
z रोजगार सज ृ न: औद्योगिक गलियारे उद्योगोों को आगे और पीछे दोनोों तरफ
से जोड़ते हैैं और इसलिए लॉजिस््टटिक क्षेत्र और भडं ारण क्षेत्र मेें रोजगार पैदा
करने की व््ययापक क्षमता रखते हैैं। यह बनि ु यादी ढाँचे के विकास को बढ़़ावा
देगा और सबं ंधित क्षेत्ररों मेें रोजगार पैदा करे गा।
क्षेत्रीय संसाधन-आधारित विनिर्माण और प्रबंधन की
रणनीति
जो उद्योग कच््चचे माल के पास स््थथित हैैं वे स््थथानीय इनपुट का उपयोग करते
हैैं और उन््हेें अंतिम सामग्री मेें बदल देते हैैं। इससे रोजगार सृजन और समग्र
क्षेत्रीय विकास मेें भी मदद मिलती है। यह रणनीति पिछड़़े क्षेत्र के विकास
और समान विकास को बढ़़ावा देने मेें मदद करती है। यह स््थथानीय उत््पपादोों
और कलाकृतियोों को बढ़़ावा देता है तथा उन््हेें राष्ट्रीय और वैश्विक ब््राांडोों
z वर््तमान स््थथिति: सरकार ने राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास और मेें परिवर््ततित करने का प्रयास करता है। इस रणनीति के तहत उद्योगोों को
कार््ययान््वयन ट्रस््ट (NICDIT) के तहत आठ (8) परियोजनाओ ं को मजं रू ी प्राकृ तिक संसाधनोों की उपलब््धता के आधार पर आकर््षषित किया जाता है और
और स््ववीकृ ति दी है। परिवहन, विद्युत आदि जै सी अन््य सुविधाएँ प्रदान की जाती हैैं।
z रोजगार सख् ं ्यया: सरकारी आक ं ड़ों के अनसु ार, उद्योग प्रत््यक्ष z ब््राांड इडिय
ं ा: व््यवसाय समदु ाय विभिन््न अतं रराष्ट्रीय मचोों ं
रूप से लगभग 4.5 करोड़ लोगोों को रोजगार देता है और पर "ब््राांड इडि ं या" के विपणन के लिए समर््पपित है, जो श्रम
अप्रत््यक्ष रूप से अन््य 6 करोड़ नौकरियोों का समर््थन करता मानकोों, स््थथिरता, परिपत्रता, नैतिक सोर््सििंग और विनिर््ममाण मेें
है। कार््यबल मेें महिलाओ ं की बहुतायत है, जो परू े श्रम बल का इसके लाभोों पर जोर देता है।
60% से 70% हिस््ससा हैैं। z RoSCTL का विस््ततार: वैश्विक बाजार मेें भारतीय वस्त्र उद्योग
z ग्रामीण क्षेत्र: वस्त्र उद्योग भी ग्रामीण निवासियोों के लिए रोजगार की प्रतिस््पर््धधात््मकता बढ़़ाने के लिए, RoSCTL योजना को
के सबसे महत्तत्वपर्ू ्ण स्रोतोों मेें से एक है। परिधान/परिधान और मेड-अप के निर््ययात के लिए बढ़़ा दिया
z पीएलआई योजना: सितंबर 2021 मेें कपड़़ा क्षेत्र के लिए गया है।
स््ववीकृ त प्रोडक््शन लिंक््ड इसें ेंटिव (पीएलआई) योजना से z पीएम मित्र (MITRA) योजना: सात प्रधानमत्री ं मेगा
सीधे लगभग 7.5 लाख नए रोजगार पैदा होने और सहायक इटं ीग्रेटेड टेक््सटाइल रीजन एँड अपैरल (पीएम मित्र) पार््क की
गतिविधियोों के माध््यम से कुछ और लाख रोजगार पैदा होने स््थथापना।
की उम््ममीद है। z ATUFS - सश ं ोधित प्रौद्योगिकी उन््नयन निधि योजना:
z अप्रचलित उपकरण: भारत मेें केवल 18 से 20% करघे इसे वस्त्र उद्योग के प्रौद्योगिकी उन््नयन के लिए वर््ष 2015 मेें
सरकारी पहल
स््वचालित हैैं, जबकि नॉर्वे मेें 83 से 76%, ऑस्ट्रेलिया मेें शरू ु किया गया था।
70 से 70%, पाकिस््ततान मेें 60% और चीन मेें 45 से 50% z एसआईटीपी - इटं ीग्रेटे ड टे क््सटाइल पार्ककों के लिए
स््वचालित हैैं। योजना: क््लस््टर दृष्टिकोण के साथ छोटी और मध््यम इकाइयोों
z कच््चचे कपास की कमी: कच््चचा कपास दर््ल ु भ है और माँग को को विश्व स््तरीय अत््ययाधनि ु क बनि ु यादी ढाँचा सवु िधाएँ प्रदान
परू ा करने के लिए कभी भी पर््ययाप्त नहीीं रहा है। करना।
z निम््न श्रम उत््पपादकता: भारत मेें एक श्रमिक आम तौर पर दो z समर््थ- वस्त्र क्षेत्र मेें क्षमता निर््ममाण के लिए योजना: इस
करघोों का प्रबंधन करता है, जबकि जापान मेें तीस और संयक्त ु योजना का उद्देश््य वस्त्र क्षेत्र मेें कुशल श्रमिकोों की कमी को
समस््यया
राज््य अमेरिका मेें साठ करघे का प्रबंधन करता है। दरू करना है।
z हड़तालेें: औद्योगिक क्षेत्र मेें श्रम विवाद प्रचलित हैैं, लेकिन z पीएलआईएस - उत््पपादन से जुड़़ी प्रोत््ससाहन योजना: इस
नियमित श्रमिकोों की हड़तालोों के परिणामस््वरूप सतू ी वस्त्र उद्योग योजना का उद्देश््य उन उद्योगोों को बढ़़ावा देना है जो मानव
को काफी नक ु सान होता है। निर््ममित फाइबर परिधान, मानव निर््ममित फाइबर कपड़़े और
z कपास की बढ़ती कीमतेें: वर््ष 2022-23 हेतु कपास का तकनीकी वस्त्र खडोों ं के उत््पपादन मेें निवेश करते हैैं।
न््ययूनतम समर््थन मल्ू ्य (MSP) मध््यम स््टटेपल के लिए रु.6080/ वस्त्र क्षेत्र के लिए आगे की राह
क््ववििंटल और लॉन््ग स््टटेपल के लिए रु. 6380/क््ववििंटल तय किया z क्षमता निर््ममाण: उच््च प्रयोज््य आय मजबतू आर््थथिक विकास का परिणाम
गया है। है। उत््पपाद की माँग मेें वृद्धि के परिणामस््वरूप एक विशाल घरेलू बाजार तैयार
z व््ययापक नेटवर््क : छोटे और बड़़े निर््ममाताओ,ं निर््ययातकोों और हो गया है। कर््मचारियोों और व््यवसाय मालिकोों के कौशल और क्षमताओ ं का
व््ययापारियोों के अपने व््ययापक नेटवर््क के कारण, भारतीय कपड़़ा निर््ममाण करना आवश््यक और जरूरी है।
क्षेत्र काफी प्रतिस््पर््धधात््मक है। मूल््य वर््धधित सेवाओ ं मेें निवेश: इस क्षेत्र के विकास के लिए मल्ू ्य वर््धधित
वैश्विक व््ययापार मेें
z
बढ़ता महत्तत्व
z स््थथानीय विनिर््ममाण को प्रोत््ससाहन : "मेक इन इडि ं या", सेवाओ,ं जैसे विपणन, गोदाम किराये, शिपिंग, कूरियर और अन््य उत््पपाद पर््तति ू
"आत््मनिर््भर भारत" और प्रदर््शन आधारित प्रोत््ससाहन लागतोों मेें निवेश की आवश््यकता है।
(पीएलआई) पहल, जो स््थथानीय विनिर््ममाण को प्रोत््ससाहित z आधुनिकीकरण: उत््पपादन को बढ़़ावा देना, लागत बचाना, कई कार्ययों मेें
करने और निर््ययात बढ़़ाने का प्रयास करती हैैं, ने भी उद्योग जनशक्ति को तर््क संगत बनाना, कम रखरखाव और क्षेत्र की ऊर््जजा दक्षता मेें
की मदद की है। सधु ार करना आवश््यक है।
z अधिकांश जटू मिलेें और उत््पपादन, कुल उत््पपादन का 80% से अधिक, पश्चिम शोध के अनसु ार, वैश्विक जटू तीन से चार विभिन््न प्रकार की
निर््ययात मेें भारत की हिस््ससेदारी सब््ससिडी है, जो उसे निर््ययात बाजार
बंगाल मेें स््थथित हैैं।
बमश््ककिल
ु 7% है, जबकि मेें अच््छछा प्रदर््शन करने मेें मदद
z परू े उद्योग का 10% आंध्र प्रदेश मेें और शेष उत्तर प्रदेश और बिहार मेें होने बांग््ललादेश की हिस््ससेदारी लगभग करती है।
के कारण, यह क्षेत्र पश्चिम की ओर फै ल गया है। 75% है। z विविधीकरण: देश की सफलता
z अधिकांश जटू मिलेें कलकत्ता के 64 किलोमीटर के दायरे मेें हुगली नदी z खे ती का घटता क्षेत्रफल: का एक अन््य कारक विविध जटू
के किनारे एक छोटी, 100 किलोमीटर लंबी पेटी तक ही सीमित हैैं। यह पेटी 2019-20 मेें यह घटकर 0.73 उत््पपादोों के बाजार पर कब््जजा है,
केवल 3 किमी चौड़़ी है। मिलियन हेक््टटेयर रह गया। जिसका एक बड़़ा बाजार है।
जटू उद्योग की स््थथिरता के लिए खेती के लिए प्रोत््ससाहित करने के स््थथानीय कारक z वर््षषा: लगभग. 75-100 सेमी.
कई खतरे पैदा करते हैैं। लिए जटू को एमएसपी व््यवस््थथा मेें z मृदा: गहरी समृद्ध दोमट मिट्टी।
z ऊँ ची कीमतेें : मिलेें कच््चचे जट ू को शामिल किया गया है। z शीर््ष गन््नना उत््पपादक राज््य: महाराष्टट्र >
प्रसंस््करण के बाद जिस कीमत पर z जूट जियो-टे क््सटाइल््स उत्तर प्रदेश > कर््ननाटक
बेच रही हैैं उससे अधिक कीमत पर (JGT): इसे तकनीकी वस्त्र
चीनी उद्योग मेें सघनता के दो प्रमुख क्षेत्र हैैं-
खरीद रही हैैं। मिशन के तहत शामिल किया
z उत्तर: उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा।
z जूट फाइबर की खराब गया है। जेजीटी सबसे महत्तत्वपर्ू ्ण
गुणवत्ता: चक्रवात अम््फफान, विविधीकृ त जटू उत््पपादोों मेें से एक z दक्षिण: महाराष्टट्र, कर््ननाटक, तमिलनाडु।
बाढ़ जैसी प्राकृ तिक आपदाओ ं है। इसे सिविल इजं ीनियरिंग, मृदा z महाराष्टट्र: यप ू ी को पछाड़कर शीर््ष स््थथान पर
के कारण खेतोों मेें जल जमाव हो अपरदन नियंत्रण, सड़क फुटपाथ पहुचँ गया है। महत्तत्वपर्ू ्ण केें द्र अहमदनगर
जाता है। इससे किसान समय से निर््ममाण और नदी तटोों की सरु क्षा और कोल््हहापरु हैैं।
पहले ही फसल काट लेते हैैं। जैसे कई क्षेत्ररों मेें लागू किया जा z उत्तर प्रदेश: यहाँ महाराष्टट्र की तलन ु ा मेें
सकता है। अधिक चीनी मिलेें हैैं लेकिन वे आकार
भौगोलिक वितरण
जूट व््यवसाय को ग्रीन की बढ़ती वैश्विक माँग के चलते नया सहारा मेें छोटी हैैं इसलिए उत््पपादन महाराष्टट्र की
मिला है। तलन ु ा मेें कम है। महत्तत्वपर्ू ्ण केें द्र मेरठ और
z सद ं र््भ: भारतीय जटू मिल््स एसोसिएशन के अनसु ार, बड़़े ब््राांड प्रत््ययेक वर््ष गोरखपरु हैैं।
1,000 करोड़ रुपये से अधिक के शॉपिगं बैग खरीदते हैैं। z तमिलनाडु: इसने प्रति एकड़ गन््नने की उच््च
z क््ववाांटम जंप: भारत के जट ू बैग निर््ययात का मल्ू ्य 2016 मेें लगभग 350 उत््पपादकता, उच््च सक्रो ु ज सामग्री, उच््च
करोड़ रुपये था, लेकिन हाल ही मेें समाप्त वित्तीय वर््ष 2021 के अतं तक, पनर्प्राप्ति
ु दर और लंबे पेराई सत्र को दिखाया
यह राशि लगभग तीन गनु ा बढ़कर 1,000 करोड़ रुपये हो गई है। है जिसने इसे भारत मेें सबसे अधिक उपज
z नोट: जट ू के शॉपिगं बैग का जीवनकाल प््ललास््टटिक के बैग की तलन ु ा मेें प्राप्त करने मेें सक्षम बनाया है। महत्तत्वपर्ू ्ण केें द्र
600 गनु ा अधिक होता है। कोयंबटूर, करूर हैैं।
चुनौतियाँ
नहीीं हैैं। इस प्रकार, गन््नना क्षेत्ररों के मानचित्रण के लिए रिमोट सेेंसिंग प्रौद्योगिकियोों और वितरण उपकरणोों से इनका वाष््पपीकरण उत््सर््जन अधिक
को तैनात करने की आवश््यकता है। होता है। जिससे वे महगं े हो गए हैैं।
z नवाचार: गन््नने मेें अनसु ंधान और विकास कम उपज और कम चीनी रिकवरी z विनियामक स््ववीकृति: वर््तमान मेें, इथेनॉल उत््पपादन संयंत्र/
दर जैसे मद्ददों
ु का समाधान करने मेें मदद कर सकता है। उदाहरण के लिए, डिस््टटिलरियाँ "लाल श्रेणी" के अतं र््गत आती हैैं और नई और
2016-17 मेें, उत्तर प्रदेश (यपू ी) मेें उपयोग के लिए गन््नने की एक नई किस््म विस््ततार परियोजनाओ ं के लिए वायु और जल अधिनियम के
(सीओ 238) विकसित की गई थी। तहत पर््ययावरण मजं रू ी की आवश््यकता होती है।
z इथेनॉल विकल््प: यदि इथेनॉल विकल््प- 'ऑटो ईधन ं के रूप मेें उपयोग के z अनाज की उपलब््धता: सब््ससिडी वाले खाद्यान््न के
लिए पेट्रोल के साथ इथेनॉल का मिश्रण' ठीक से लागू किया जाता है, तो यह लिए डिस््टटिलरी और सार््वजनिक वितरण प्रणाली के बीच
चीनी मिलोों को आवश््यक नकदी प्रवाह प्रदान करे गा, किसानोों के लिए बेहतर प्रतिस््पर््धधा के प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैैं।
कीमतेें सनिश्ु चित करे गा, भारत की ऊर््जजा सरु क्षा को बढ़़ाएगा और प्रदषू ण को
तथ्य
कम करे गा।
z पिछले 10 वर्षषों मेें, चीनी मिलोों ने इथेनॉल की बिक्री से 94,000 करोड़
z चीनी का मूल््य निर््धधारण: इस संदर््भ मेें, रंगराजन समिति ने चीनी और अन््य
रुपये से अधिक का राजस््व अर््जजित किया है, जिससे चीनी मिलोों की आय
उप-उत््पपादोों की कीमत को ध््ययान मेें रखते हुए गन््नने की कीमतेें तय करने के
मेें बढ़ोत्तरी हुई है।
लिए एक राजस््व साझेदारी फॉर््ममूला का सझु ाव दिया है।
z इथेनॉल के उत््पपादन से पेट्रोलियम या कच््चचे तेल के आयात मेें आनपु ातिक
इथेनॉल सम्मिश्रण कार््यक्रम कमी आई है जिसके परिणामस््वरूप भारत के लिए विदेशी मद्रा ु की बचत
z ऊर््जजा सरु क्षा: चीन और अमेरिका के बाद भारत दनि ु या मेें हुई है। 2022-23 मेें, लगभग 502 करोड़ लीटर इथेनॉल के उत््पपादन के
ऊर््जजा का तीसरा सबसे बड़़ा उपभोक्ता है। इथेनॉल कुछ हद साथ, भारत ने लगभग ₹ 24,300 करोड़ की विदेशी मद्रा ु बचाई है और
भारत की ऊर््जजा सरु क्षा मेें सधु ार हुआ है।
तक ऊर््जजा आत््मनिर््भरता सनिश्
ु चित करे गा।
z कृषि क्षेत्र के लिए समर््थन: इससे चीनी मिल मालिकोों आगे की राह
को किसानोों को गन््नने के लिए उनके लंबित एफआरपी का z वाहन निर््ममाताओ ं को भविष््य के लिए तैयार करना: उद्योग और पेट्रोल पंप
भगु तान करने मेें मदद मिलेगी। को E85 और E100 जैसे अगले प्रयासोों के लिए तैयार किया जाना चाहिए।
z पारिस््थथितिक लाभ: इस ईधन ं मेें वायमु डं ल से हानिकारक z कचरे से बने इथे नॉल पर फिर से ध््ययान केें द्रित करना: यदि भारत कचरे से
ग्रीनहाउस गैसोों को कम करने की क्षमता है। बने इथेनॉल पर फिर से ध््ययान केें द्रित करना चनु ता है तो उसके पास टिकाऊ
z उद्यमशीलता का अवसर: यदि पेट्रोल की खपत मौजदू ा जैव ईधनं नीति मेें वैश्विक नेतृत््वकर््तता बनने का एक वास््तविक अवसर है।
महत्तत्व
चुनौतियाँ
तथ्य के माध््यम से नेविगेट करना बोझिल हो सकता है, जटिल और
z सेवाओ ं के उत््पपादन के मामले मेें भारत दनि ु या का पंद्रहवाँ सबसे बड़़ा अक््सर बदलते काननोों ू के कारण व््यवसायोों पर असर पड़ता है।
देश है। z प्रतिस््पर््धधा और बाजार सतं ृप्ति: आईटी और खदु रा जैसे क्षेत्ररों
z रोजगार: यह क्षेत्र 23% कार््यबल को रोजगार प्रदान करता है और 1991- को घरेलू एवं वैश्विक स््तर पर तीव्र प्रतिस््पर््धधा का सामना करना
2000 मेें 7.5% की वृद्धि दर के साथ सबसे तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र है। पड़ता है, जिससे कीमतोों और मार््जजिन पर दबाव पड़ता है।
z तृतीयक क्षेत्र उत््पपादकता बढ़़ाने के लिए वैज्ञानिक अनुसध ं ान और z तकनीकी व््यवधान: तीव्र तकनीकी परिवर््तन: प्रौद्योगिकी मेें
नवीन विकास पर निर््भर करता है। विकसित देश 80% से अधिक सेवा निरंतर प्रगति के लिए सेवा प्रदाताओ ं को निरंतर नवाचार और
क्षेत्र को रोजगार देते हैैं। अनक ु ू लन की आवश््यकता होती है, जो ससं ाधन-गहन हो सकता है।
z सेवा क्षेत्र अर््थव््यवस््थथा के कुल आकार का लगभग 60%, कुल चतुर््थक क्षेत्र/ज्ञान आधारित उद्योग
निर््ययात का लगभग 38% और भारत मेें कुल प्रत््यक्ष विदेशी निवेश ज्ञान-आधारित और विशेष ज्ञान और तकनीकी क्षमताओ ं की आवश््यकता
(FDI) प्रवाह का दो-तिहाई हिस््ससा है। वाला, सेवा क्षेत्र का यह क्षेत्र ज्ञान-उन््ममुख है।
z सेवा क्षेत्र भारत का सबसे बड़़ा क्षेत्र है। 2023-24 मेें सेवा क्षेत्र के लिए
z नवाचार: ज्ञान-आधारित उद्योग ज्ञान सृजित करने, प्रसार
चालू मल्ू ्योों पर सकल मल्ू ्य वर््धधित (GVA) का अनमु ान 146.35 लाख
करने और लागू करने के लिए आधुनिक सच ू ना व सच ं ार
करोड़ रुपये है। प्रौद्योगिकी सिद््धाांतोों, नवाचार एवं अनुसध ं ान, विशेष
z सेवा क्षेत्र भारत के 266.78 लाख करोड़ रुपये के सकल मल्ू ्य वर््धधित कौशल का उपयोग करता है।
(GVA) का 54.86% हिस््ससा है। 73.50 लाख करोड़ रुपये के GVA के z उद्योग 4.0: कृ त्रिम बद्धिम ु त्ता (AI), मशीन लर््नििंग (ML) और
साथ, उद्योग क्षेत्र का योगदान 27.55% है। इटं रनेट ऑफ थिंग््स (IoT) जैसी नई और उन््नत तकनीकोों के
z वैश्विक निर््ययात: वैश्विक सेवा निर््ययात मेें भारतीय सेवा क्षेत्र की हिस््ससेदारी आगमन के साथ, पारंपरिक मैनुअल कार्ययों को आसानी
महत्तत्व
वर््ष 2022 तक 3.3% से बढ़कर 4.2% होने की उम््ममीद है। से बदला जा सकता है। इससे विशिष्ट कौशल की
z मजबूत माँग: भारत सॉफ््टवेयर सेवाओ ं के लिए एक निर््ययात आवश््यकता वाले नए रोजगार सजि ृ त होोंगे।
केें द्र के रूप मेें उभरा है। भारतीय सॉफ््टवेयर उद्योग के वर््ष 2030 z आईटी क्षेत्र: वैश्वीकरण की शरु ु आत के साथ, युवा आबादी
तक $1 ट्रिलियन तक पहुच ँ ने की उम््ममीद है। और आईटी क्षेत्र मेें भारी वद्धि ृ के साथ भारत ज्ञान-आधारित
उद्योग की शरुु आत करने के लिए एक मजबतू उम््ममीदवार है।
z रोजगार: यह भारत के श्रम बल के 25% लोगोों को रोजगार
z आय मेें वद्धि ृ : अर््थव््यवस््थथा मेें ज्ञान आधारित उद्योग की
के अवसर प्रदान करता है। पर््यटन, स््ववास््थ््य सेवा, शिक्षा।
हिस््ससेदारी बढ़ने से भारत के मध््य आय जाल और आय
उदाहरण के लिए आयुर्वेद, हठयोग, विपश््यना आदि की
असमानता की समस््ययाओ ं से उबरने की सभ ं ावना है।
भारतीय सेवा क्षेत्र का महत्तत्व
जाने वाली उच््च मल्ू ्य और विशिष्ट सेवाओ ं के कारण सकल गतिविधियोों से अधिक उन््नत, सेवा-उन््ममुख और सचू ना-संचालित प्रक्रियाओ ं मेें
घरेलू उत््पपाद मेें योगदान बहुत अधिक है। परिवर््ततित हो रही हैैं। इन क्षेत्ररों का विश्ले षण आर््थथिक विकास, रोजगार के रुझान
z नॉलेज हाउस: इस क्षेत्र मेें उच््च योग््य और बौद्धिक पेशेवर और वैश्विक व््ययापार प्रतिरुप मेें मल्ू ्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, जिससे सतत
शामिल हैैं। उनका मार््गदर््शन और ज्ञान साझा करने से नई विकास और विकास के लिए बेहतर नीति-निर््ममाण और रणनीतिक योजना बनाना
पीढ़़ियोों से लाभ प्राप्त करने मेें मदद मिलती है। जैसे अनभु वी संभव हो जाता है।
डॉक््टरोों से ज्ञान हस््तताांतरण उनके कनिष्ठठों को सर््वश्रेष्ठ डॉक््टर
लाने मेें मदद करता है।
z विकसित देशोों मेें क््वविनरी क्षेत्र अत््यधिक विकसित है और
प्रमुख शब्दावलियाँ
अनसु ंधान व नवाचार मेें लगा हुआ है। जैसे इलेक्ट्रिक कारोों का आदिम निर््ववाह कृ षि; गहन निर््ववाह कृ षि; बागानी कृ षि; मिश्रित खेती;
डिजाइन और विकास। जलवायु के प्रति लचीली प्रथाएँ; जलवायु अनुकूल कृ षि; जलवाय-ु
z खराब शिक्षा: देश मेें शिक्षा की गणव ु त्ता देश मेें क््वविनरी क्षेत्र स््ममार््ट कृ षि; सहकारी खेती; जैविक खेती; शून््य बजट प्राकृ तिक
की गणव ु त्ता तय करती है। खेती; सामूहिक खेती; कृ षि का महिलाकरण; लाल कॉलर नौकरियाँ;
z उच््च शिक्षा की खराब गुणवत्ता: यह अधिकांश प्रतिभाओ ं छिपी हुई बेरोजगारी; प्रच््छन््न बेरोजगारी; आदि।
को विदेशी विश्वविद्यालयोों मेें जाने के लिए मजबरू करती है। वे
अपना शोध कार््य भारत से बाहर करते हैैं। भारतीय प्रतिभा के विगत वर्षषों के प्रश्न
ऐसे निर््ययात को देश मेें बरकरार रखा जाना चाहिए। जैसे दनि ु या 1. उत्तर-पश्चिम भारत के कृ षि आधारित खाद्य प्रसंस््करण उद्योगोों के
की कई बहुराष्ट्रीय कंपनियोों के सीईओ भारतीय हैैं। सदुं र पिचाई स््थथानीयकरण के कारकोों पर चर््चचा कीजिए। (2019)
अल््फफाबेट इक ं के सीईओ हैैं। 2. भारत मेें औद्योगिक गलियारोों का क््यया महत्तत्व है? औद्योगिक गलियारोों
चुनौतियाँ
z खराब नवाचार: भारत मेें अनुसध ं ान और विकास को चिन््हहित करते हुए उनके प्रमख ु अभिलक्षणोों को समझाइये।
पारिस््थथितिकी तंत्र बहुत खराब है और नवाचार की गुणवत्ता (2018)
वैश्विक नवाचारोों के लिए गौण है। 3. क््यया कारण है कि भारत मेें हरित क््राांति पर्वी
ू प्रदे
श मेें उर््वरक मृदा और
z उद्यमिता प्रयास: भारत मेें उद्यमिता प्रयास केवल आईटीईएस जल की बढ़िया उपलब््धता के बावजूद, असलियत मेें उससे बच कर
क्षेत्र मेें केें द्रित हैैं। नए उद्यमियोों द्वारा कृ षि, ऑटोमोबाइल, आगे निकल गई? (2014)
इलेक्ट्रॉनिक््स क्षेत्ररों की खोज नहीीं की जाती है। ये क्षेत्र अपनी 4. क््यया आप इस बात से सहमत हैैं कि भारत के दक्षिणी राज््योों मेें नई
वास््तविक क्षमता हासिल करने मेें पिछड़ रहे हैैं। चीनी मिलेें खोलने की प्रवृति बढ़ रही है? न््ययायसंगत विवेचन कीजिए।
z नीति का अभाव: सरकारी प्रयास इस क्षेत्र को बढ़़ावा देने के (2013)
लिए लक्षित नहीीं हैैं। क््वविनरी सेक््टर को बढ़़ावा देने के लिए 5. भारत मेें अति विके न्द्रीकृ त सूती कपड़ा उद्योग की स््थथापना मेें कारकोों
अभी तक राष्ट्रीय नीति नहीीं बनाई गई है। का विश्ले षण कीजिए। (2013)
खनिज प्राकृ तिक रूप से पाए जाने वाले अकार््बनिक पदार््थ हैैं जो पृथ््ववी की पर््पटी तांबा: तांबे के भडं ार मख्ु ्य रूप से झारखंड, मध््य प्रदेश और राजस््थथान
मेें पाए जाते हैैं। इनमेें विशिष्ट रासायनिक संरचना और उच््च क्रम बद्ध परमाण््वविक मेें पाए जाते हैैं। विद्युत उद्योग मेें तार, मोटर, ट््राांसफार््मर और जनरे टर के
व््यवस््थथा होती है, जिसके परिणाम स््वरूप क्रिस््टलीय संरचना बनती है। ये पदार््थ निर््ममाण के लिए तांबा आवश््यक है। वर््ष 2021-22 मेें सांद्र तांबे का
एकल या कई तत्तत्ववों से मिलकर बने होते हैैं और विभिन््न आकारोों, रंगोों और उत््पपादन 114.42 हजार टन रहा, जो पिछले वर््ष की तलन ु ा मेें लगभग
कठोरता के स््तरोों का प्रदर््शन करते हैैं। खनिजोों को उनके अद्वितीय भौतिक और 5.25% अधिक है।
रासायनिक गुणोों के कारण पहचाना जाता है, जो उन््हेें विभिन््न उद्योगोों और
दैनिक जीवन मेें अमल्ू ्य बनाता है। उदाहरण के लिए, क््ववार््टट््ज का इलेक्ट्रॉनिक््स
और घड़़ियोों मेें व््ययापक रूप से उपयोग किया जाता है, जबकि जिप््सम निर््ममाण
सामग्री का एक प्रमख ु घटक है। खनिज निष््कर््षण और प्रसंस््करण प्रौद्योगिकियोों
मेें हालिया प्रगति उनके अनुप्रयोगोों को बढ़़ाती रहती है, जिससे नवाचार और
आर््थथिक विकास को गति मिलती है।
महत्त्वपूर््ण तथ्य
वर््ष 2024 तक, भारत मेें खनन क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत््पपाद (जीडीपी) मेें
लगभग 2.2% से 2.5% का योगदान दे रहा है। पूरे औद्योगिक क्षेत्र के GDP
की तुलना मेें, खनन उद्योग का योगदान लगभग 10% से 11% तक होता है।
इससे निरंतर आपर््तति ू के लिए ऊर््जजा भडं ारण या बैकअप सिस््टम ज््ववारीय ऊर््जजा नवीकरणीय ऊर््जजा का एक रूप है जो विद्युत उत््पन््न करने
की आवश््यकता होती है। के लिए महासागरोों और समुद्ररों मेें ज््ववारीय गतिविधियोों की शक्ति का
z उच््च प्रारंभिक लागत: सौर पैनलोों और उपकरणोों के लिए उपयोग करती है। इसमेें ज््ववारीय टर््बबाइनोों या बैराजोों का उपयोग शामिल है, जो
अग्रिम निवेश निषेधात््मक हो सकता है, जिससे संभावित रूप ज््ववारीय धाराओ ं की गतिज ऊर््जजा को लेकर, इसे प्रयोग करने योग््य विद्युत ऊर््जजा
से इसे अपनाने मेें बाधा आ सकती है।
मेें परिवर््ततित करते हैैं।
से चल रहा हो। यह ज््ववार प रही निर््भर है। छह लाख से अधिक नौकरियोों का सृज नकरना।
प्रणालियाँ पारंपरिक जनरे टर की सख् ं ्यया सीमित है हाइब्रिड सौर के घर से जोड़़ा जा सकता है।
तलनु ा मेें अधिक कुशलता से काम ऊर््जजा प्रणाली से जड़ु ने योग््य z प्रयोग करने के लिए सरु क्षित : प्राकृ तिक गैस हवा से हल््ककी
करती हैैं जो कुछ शर्ततों के तहत उपकरणोों की संख््यया सीमित होती होती है। रिसाव की स््थथिति मेें, यह आग से बचने के लिए तेजी
ईधन ं बर््बबाद करते हैैं। है। से हवा मेें फै ल जाता है।
z प्रचुर मात्रा मेें उपलब््ध: अध््ययन के अनस ु ार, उपलब््ध
गैस आधारित अर््थव्यवस्था
प्राकृ तिक गैस की मात्रा कच््चचे तेल या ऐसे अन््य उत््पपादोों से
z गैस-आधारित अर््थव््यवस््थथा की अवधारणा एक आर््थथिक मॉडल को संदर््भभित अधिक है।
करती है जो उत््पपादन, वितरण और खपत के लिए प्राथमिक ऊर््जजा स्रोत के रूप
z प्राकृतिक गै स पहुच ँ ाना आसान है: भारत मेें घरोों तक गैस
मेें प्राकृ तिक गैस पर बहुत अधिक निर््भर करती है। यह मॉडल विद्युत उत््पपादन,
की डिलीवरी के वर््तमान तरीके को ध््ययान मेें रखते हुए, बहुत
औद्योगिक प्रक्रियाओ,ं परिवहन और आवासीय अनप्रु योगोों सहित विभिन््न
सारे धातु सिलेेंडरोों का उपयोग किया जा रहा है। प्राकृ तिक गैस
क्षेत्ररों मेें प्राकृ तिक गैस के उपयोग को शामिल करता है।
पहुचँ ाने के लिए पाइपोों के नेटवर््क की आवश््यकता है।
z भारत मेें प्राकृतिक गैस: वर््तमान मेें, भारत के ऊर््जजा मिश्रण मेें प्राकृ तिक
गैस की हिस््ससेदारी केवल 6% है, जो वैश्विक औसत 23% से काफी कम है। z सीमित मात्रा: भारत मेें प्राकृ तिक गैस का विशाल भडं ार नहीीं
है। देश मेें खपत होने वाली अधिकांश प्राकृ तिक गैस को दसू रे
z बढ़ती हिस््ससेदारी और भविष््य मेें वद्धि ृ :भारत सरकार ने वर््ष 2030 तक ऊर््जजा
देशोों से आयात करना पड़ता है।
मिश्रण मेें प्राकृ तिक गैस की हिस््ससेदारी को 15% तक बढ़़ाने का महत्त्वाकांक्षी
लक्षष्य रखा है। हालाँकि भारत की वर््तमान प्राकृ तिक गैस खपत वैश्विक औसत z प्राकृतिक गैस अत््यधिक दहनशील: चकि ँू प्राकृ तिक गैस
प्राकृतिक गैस के नुकसान
का लगभग एक तिहाई है, लेकिन यह अनमु ान लगाया गया है आने वाले वर्षषों गंधहीन होती है, इसलिए रिसाव का पता लगाना भी मश््ककिल ु
मेें इसमेें पर््ययाप्त वृद्धि होगी। होता है।
z आयात: भारत तरलीकृ त प्राकृ तिक गैस (एलएनजी) के रूप मेें अपनी प्राकृ तिक z प्राकृतिक गैस ऊर््जजा का एक गैर-नवीकरणीय स्रोत:
गैस का 55% आयात करता है, जो घरेलू उत््पपादन मेें वृद्धि और आपर््तति ू स्रोतोों विशेषज्ञञों का कहना है कि भविष््य मेें प्राकृ तिक गैस समाप्त हो
के विविधीकरण की आवश््यकता को रे खांकित करता है। जाएगी और हमेें इसे अन््य देशोों से आयात करना होगा।
z प्रशासन: भारत मेें, ओएनजीसी और ऑयल इडि ं या लिमिटेड द्वारा उत््पपादित z कार््बन डाइऑक््ससाइड उत््सर््जन:: यह कार््बन डाई ऑक््ससाइड
प्राकृ तिक गैस का 80% प्रशासित मल्ू ्यतंत्र (Administered Price उत््सर््जजित करता है जो हमारे वायमु डं ल के लिए हानिकारक है।
Mechanism) के अधीन है, जिस का अर््थ है कि इसकी कीमत सरकार द्वारा वायमु डं ल मेें कार््बन डाई ऑक््ससाइड के निरंतर प्रवेश से जलवायु
नियंत्रित की जाती है। परिवर््तन और भमू डं लीय उष््मन को भी बढ़़ावा मिलेगा।
z फ््ललाई ऐश ईटोोंं के रूप मेें उपयोग के सदं र््भ मेें: यह मिट्टी की खदु ाई को लगभग 2.2 मिलियन लीटर जल की आवश््यकता होती है।
कम करता है, समान गणव ु त्ता वाली मिट्टी की ईटं की तलन ु ा मेें ईटं की लागत z नदी प्रणालियोों पर प्रभाव: हिमालय कई नदियोों के उद्गम स््थल के रूप मेें
कम होती है, आदि। कार््य करता है, जिससे कोई भी खनन गतिविधि परू े समीपवर्ती पारिस््थथितिकी
z फ््ललाई ऐश के उपयोग के अन््य लाभ: तंत्र के लिए एक संभावित खतरा बन जाती है।
अधिकांश निर््ममाण मिश्रणोों के लिए ऊपरी मिट्टी को सामग्री के रूप मेें खनन कार्ययों से उत््पन््न प्रदष
ू ण का नदी तंत्ररों पर दरू गामी परिणाम हो
प्रतिस््थथापित करके मिट्टी के कटाव को कम करता है। सकता है।
700
600
75% करने की एक और प्रभावी तकनीक है। यह रिसाव का पता लगाने मेें सहायता
500 कर सकता है।
400
300 z ग्रे वाटर रीसाइक््ललििंग: यह शौचालयोों को फ््लश करने और पौधोों को जल
200
100 देने जैसी चीजोों के लिए शॉवर, वॉशिगं मशीन और रसोई सिक ं से उपयोग किए
0
गए और अपशिष्ट जल का पनु : उपयोग करने की एक तकनीक है।
(Mar-May)
(Oct-Dec)
(Jun-Sep)
Monsson
Monsson
Monsson
(Jan-Feb)
Monsoon
Winer
Post
Pre
ठोस कचरा
स््वच््छता
विभिन््न स््तरोों पर सामाजिक और राजनीतिक संघर््ष हो रहे हैैं। आंतरिक जल
सक ं ट भी राष्ट्रीय सरु क्षा चिंता का विषय है। पर््ययावरण संरक्षण।
z विषम प्राथमिकताएँ: आसपास के क्षेत्ररों मेें अर््ध-शहरी और ग्रामीण समदु ायोों
मेें रहने वाले लाखोों लोगोों की कीमत पर शहरी मेगासिटी की ओर जल का शहरी जल निकासी
और बाढ़ प्रबंधन
मोड़ना भारत मेें एक नियमित अभ््ययास रहा है।
z दूषित जल सस ं ाधन: पीने के पानी मेें सधु ार के बावजदू , कई अन््य जल
स्रोत जैव और रासायनिक दोनोों प्रदषू कोों से दषि एकीकृत शहरी जल प्रबंधन प्रणाली (INTEGRATED URBAN
ू त हैैं, और देश की 21% से
WATER MANAGEMENT SYSTEM-IUWM)
अधिक बीमारियाँ जल से सबं ंधित हैैं।
z चक्रीय वर््षषा: चकि ँू भारत की वर््षषा काफी हद तक चक्रीय है, इसलिए फसलोों z IUWM एक ऐसी प्रक्रिया है जो यह सनिश् ु चित करती है कि जल आपर््तति
ू ,
की सिंचाई के लिए जल की आवश््यकता होती है। जल वन््य जीवन और प्रयक्त
ु जल प्रबंधन, स््वच््छता और तफ
ू ानी जल प्रबंधन की योजना आर््थथिक
पारिस््थथितिकी की रक्षा करता है। विकास और भमू ि उपयोग के अनरू ु प बनाई जा सके ।
जल उपयोग दक्षता (WATER USE EFFICIENCY)
साझा कुआँ पार नाड़ा तालाब रपट
इसे फसल द्वारा प्रयुक्त जल की प्रति इकाई से उत््पपादित बायोमास या अनाज के
पारंपरिक जल संचयन विधियाँ रूप मेें अवशोषित कार््बन की मात्रा के रूप मेें परिभाषित किया जाता है। यह जल
आपर््तति
ू स्रोतोों के सावधानीपर््वू क प्रबंधन, जल सेवा प्रौद्योगिकियोों के उपयोग,
अत््यधिक माँग मेें कमी और अन््य कार्ययों के बारे मेें है। जल उपयोग दक्षता बढ़़ाने
बावड़ी जोहड़ झालरा टोबा पट
के लिए निम््नलिखित तरीके हो सकते हैैं।
तत्तत्ववों, नमी और धपू के लिए प्रतिस््पर््धधा करते हैैं, जिससे फसल की गणव ु त्ता उप-जलसभ ं र (10,000 से 50,000 हेक््टटेयर)
और पैदावार कम हो सकती है। सक्षू ष्म-सिचं ाई से खेत मेें सिर््फ उसी जगह जल मिली-जलसंभर (1000 से 10000 हेक््टटेयर)
पहुचँ ता है जहाँ जरूरत होती है, जिससे खरपतवारोों को कम बढ़़ावा मिलता सक्ष ू ष्म जलसभं र (100 से 1000 हेक््टटेयर)
है। साथ ही, पत्तियोों पर कम जल गिरने से फंगल रोगोों की सभं ावना भी कम हो मिनी जलसंभर (1-100 हेक््टटेयर)
जाती है।
z इज़राइल की सफलता की कहानी: जल की कमी वाला एक मरुस््थलीय सूक्ष्म जल संभर प्रबंधन के लाभ
देश जल अधिशेष वाला देश बन गया है क््योोंकि इसने सक्षू ष्म सिंचाई पद्धतियोों, z जल उपयोग दक्षता मेें वद्धि
ृ : ड्रिप सिंचाई और फव््ववारा सिंचाई जैसी विधियोों
विशेष रूप से ड्रिप सिंचाई को अपनाया है जो खल ु ी नहरोों के माध््यम से की के उपयोग से जल की बचत होती है।
जाने वाली सिच ं ाई के लिए उपयोग किए जाने वाले लगभग तीन-चौथाई z मृदा क्षरण की रोकथाम: यह मृदा क्षरण को रोकने, बंजर भमू ि मेें पेड़ लगाने,
जल को बचाता है। भजू ल तक पहुचँ ने और मिट्टी की नमी के सरं क्षण मेें भी मदद करता है।
पहल
Conference and Decision-Making Platform)
लड़कियोों को जल लाने के लिए लंबी दरू ी तय नहीीं करनी पड़़ेगी। नदियोों के अधिकारोों का सार््वभौमिक घोषणा पत्र
z वनस््पति मेें अनुरूप विकास: जल संसाधनोों के तर््क संगत उपयोग से अर््ध- z संयक्त ु राष्टट्र-जल सम््ममेलन नामक एक वैश्विक सम््ममेलन है जो जल
शष्ु ्क क्षेत्ररों मेें वनस््पति मेें वृद्धि होती है। क्षेत्र की कुछ प्रमख ु चितं ाओ ं के इर््द-गिर््द सरकार, व््ययापार, गैर-
z सख ू ाग्रस््त क्षेत्ररों के लिए: जल की कमी और सख ू े की समस््यया का समाधान लाभकारी और वित्त पोषण पहलोों को बेहतर ढंग से समन््वयित
कर सकती है। सक्षू ष्म-जल संभर परियोजनाएँ क्षेत्र के बायोमास घटक को बढ़़ाकर करने का प्रयास करती है।
अवांछित वाष््पपीकरण को रोक सकती हैैं। z यह राष्टट्ररों को निवेश करने, प्रौद्योगिकी हस््तताांतरण और दस ू रोों की
z प्राकृतिक जल सस ं ाधनोों का पुनरुद्धार: तालाबोों, झीलोों आदि का पनु रुद्धार। गलतियोों से सीखने के लिए एक मचं प्रदान करता है।
जानकारी
z यह घोषणा पत्र सिविल सोसायटी एक का प्रयास है, जो उन
z बुनियादी ढाँचे का विकास: इसमेें वर््षषा जल को संग्रहित करने और मिट्टी
की नमी के स््तर को बढ़़ाने के लिए टैैंक, कृ त्रिम तालाब, चेक डैम आदि जैसे मल ू भतू अधिकारोों को रे खांकित करता है जिनके लिए सभी
नदियाँ हकदार हैैं।
बनिु यादी ढाँचे का विकास होता है।
z प्रकृ ति को अधिकार प्रदान करने की वैश्विक प्रवृत्ति को एक ऐसे
जल संसाधन प्रबंधन के लिए सरकारी पहलेें दृष्टिकोण से महत्तत्वपर्ू ्ण बदलाव के रूप मेें देखा जा रहा है, जो
प्रकृ ति के अत््यधिक दोहन पर आधारित है, एक ऐसे दृष्टिकोण
z जल शक्ति मंत्रालय :देश मेें जल प्रबंधन के लिए पहले के दो जल-संबंधी
की ओर जहाँ संरक्षण उपायोों को प्रकृ ति तक विस््ततारित किया
मत्रालयोों
ं को एकीकृ त करके 2019 मेें इस का गठन किया गया
जा रहा है।
z स््वजल योजना: इसे ग्रामीण क्षेत्ररों मेें लोगोों को पीने के जल की स््थथायी पहुचँ
प्रदान करने के लिए एक माँग-आधारित और समुदाय-केें द्रित कार््यक्रम के
जल संसाधन प्रबंधन के लिए आगे की राह
रूप मेें डिजाइन किया गया है। यह ग्रामीण समदु ायोों, गैर सरकारी संगठनोों और
सरकार के बीच सवु िधा प्रदाता के रूप मेें साझेदारी को प्रोत््ससाहित करता है। z अर््थ गंगा मॉडल: नदी के सतत विकास के लिए सरकार का नया मॉडल
z जल जीवन मिशन (2019): वर््ष 2024 तक प्रत््ययेक ग्रामीण परिवार को पाइप अर््थ गंगा मॉडल का मल ू लक्षष्य लोगोों को अर््थव््यवस््थथा के माध््यम से
से पीने योग््य जल उपलब््ध कराने का लक्षष्य है। नदी से जोड़ना है।
z नदी जोड़ों परियोजना: सख ू ाग्रस््त और वर््षषा आधारित क्षेत्ररों मेें जल की इसका लक्षष्य गंगा बेसिन के भीतर से सकल घरेलू उत््पपाद मेें कम से कम
उपलब््धता बढ़़ाकर जल के वितरण मेें अधिक समानता सनिश् ु चित करना। 3% का योगदान प्राप्त करना है।
z अटल भूजल योजना (ABHY): वर््ष 2019 मेें चयनित राज््योों मेें भजू ल अर््थ गंगा परियोजना के हिस््ससे के रूप मेें किए गए हस््तक्षेप संयक्त ु राष्टट्र
संसाधनोों के प्रबंधन मेें सधु ार के लिए शरू ु की गई। के सतत विकास लक्षष्ययों के प्रति भारत की प्रतिबद्धताओ ं के अनरू ु प हैैं।
z प्रधानमंत्री कृषि सिच ं ाई योजना: कृ षि उत््पपादकता मेें सधु ार लाने और देश z जल प्रबंधन के लिए जल-सामाजिक दृष्टिकोण की आवश््यकता है
मेें संसाधनोों के बेहतर उपयोग को सनिश् ु चित करने के लिए अर््थथात "प्रति बूंद, IPCC की चौथी मूल््ययााँकन रिपोर््ट (2007) मेें सामाजिक भेद्यता और
अधिक फसल"। जल प्रणालियोों मेें परिवर््तन के बीच संबंध को रे खांकित किया गया था।
z राष्ट्रीय जल मिशन: एकीकृ त जल संसाधन प्रबंधन सनिश् ु चित करने के लिए विश्व स््तर पर, यह अनम ु ान लगाया गया है कि यदि मौजदू ा रुझान जारी
जल के संरक्षण, बर््बबादी को कम करने और राज््योों के बीच व भीतर अधिक रहा, तो वर््ष 2030 तक मीठे जल की माँग और आपूर््तति के बीच का
समान वितरण सनिश् ु चित करने मेें मदद करना। अंतर 40% तक बढ़ सकता है।
के स स्टडी: अनमोल जीवन अभियान सय ं ुक्त राष्टट्र विश्व जल विकास रिपोर््ट , 2021 मेें जल के सही मल्ू ्ययााँकन
z 'अनमोल जीवन अभियान' (Precious Life Campaign) राजस््थथान के पर जोर दिया गया है, जिसमेें पाँच दृष्टिकोणोों को ध््ययान मेें रखा गया है।
बाड़मेर मेें एक हालिया परियोजना शरू ु की गई है, जिसने ग्रामीण पंचायतोों z समग्र जल प्रबंधन प्रणाली
और संपत्ति मालिकोों को हैैंडपंप और लॉकिंग ढक््कन जोड़कर टांका संरचना जैसे-जैसे शहरोों का तेजी से विस््ततार हुआ है, जल की खपत मेें उल््ललेखनीय
को अपग्रेड करने के लिए प्रेरित किया है। इसमेें हैैंडपपं और ताला लगाने वृद्धि हुई है। जल की कमी और जल का क्षय ऐसी प्रमख ु समस््ययाएँ हैैं,
योग््य ढक््कन जोड़ना शामिल है। जिनका सामना लोगोों को जल््द ही करना पड़़ेगा, भले ही लोगोों की इच््छछाएँ
z यह परियोजना मकान मालिकोों और ग्राम पचं ायतोों को अपने टांकोों को महानगरोों की ओर जाने के लिए प्रेरित कर रही होों।
सरं चनात््मक रूप से उन््नत करने के लिए प्रोत््ससाहित करती है, जिसमेें हैैंडपपं यह सनिश् ु चित करने के लिए कि भविष््य मेें अधिकांश महानगरीय क्षेत्र
और ताला लगाने योग््य ढक््कन शामिल हैैं। आत््मनिर््भर हो सकते हैैं, जल प्रबंधन मेें एक क््राांति लाने की जरूरत है।
क््योोंकि जनसंख््यया विस््ततार और जलवायु परिवर््तन के कारण जल का उपयोग किस कारण प्रादेशिकता: भिन््न-भिन््न है? (2019)
बढ़ रहा है। विभिन््न स््थथानीय संदर्भभों मेें अधिक से अधिक लोगोों को कठिनाइयोों z "भारत मेें अवक्षयी (डिप््ललीटिंग) भौम जल संसाधनोों का आदर््श समाधान
से अवगत कराने की आवश््यकता है। क्षेत्रीय विभागोों जैसे संगठनोों के लिए भी जल संरक्षण प्रणाली है।" शहरी क्षेत्ररों मेें इसको किस प्रकार प्रभावी बनाया जा
इसी तरह के समायोजन आवश््यक हैैं जिनका महत्तत्वपूर््ण प्रभाव होता है। जल सकता है? (2018)
चनु ौतियोों का समाधान करने के लिए व््ययापक और व््यवस््थथित समाधानोों को लागू z जल-उपयोग दक्षता से आप क््यया समझते है? जल-उपयोग दक्षता को बढ़ाने मेें
करने की आवश््यकता है। सक्षू ष्म सिंचाई की भमू िका का वर््णन कीजिए। (2017)
z भारत मेें अत ं र्देशीय जल परिवहन की समस््ययाओ ं एवं सम््भभावनाओ ं को गिनाइए।
प्रमुख शब्दावलियाँ (2016)
z भारत के सख ू ा-प्रवण और अर््ध-शष्ु ्क प्रदेशोों मेें लघु जलसंभर विकास
ऊर््जजा के पारंपरिक और गैर-पारंपरिक स्रोत; ऊर््जजा टोकरी; गैस
आधारित अर््थ व््यवस््थथा; विद्युत शक्ति; ऊष््ममा विद्युत; अपशिष्ट से परियोजनाएँ किस प्रकार जल संरक्षण मेें सहायक हैैं? (2016)
z उत्तरध्रुव सागर मेें तेल की खोज के क््यया आर््थथिक महत्तत्व है और इसके संभव
धन; उच््च और निम््न राख सामग्री; जलविद्युत ऊर््जजा; अविकसित
क्षमता; भंडारण की वैकल््पपिक व््यवस््थथा; परमाणु शक्ति; पारेषण और पर््ययावरणीय परिणाम क््यया होोंगे? (2015)
वितरण हानियाँ; आदि। z भारत अलवणजल (फ्रै श वाटर) संसाधनोों से सस ु ंपन््न है। समालोचन पर््वू क
परीक्षण कीजिए कि क््यया कारण है कि भारत इसके बावजदू जलाभाव से ग्रसित
विगत वर्षषों के प्रश्न है। (2015)
z आज विश्व ताजे जल के संसाधन की उपलब््धता और पहुचँ के संकट से क््योों z भारतीय उप-महाद्वीप मेें घटती हुई हिमालयी हिमनदियोों (ग््ललेशियर््स) और
जझू रहा है? (2023) जलवायु परिवर््तन के लक्षणोों के बीच संबंध उजागर कीजिए। (2014)
रोलिंग स््टटॉक की आवश््यकता और माल ढुलाई के लिए रे ल वैगन की z अमृत भारत स््टटेशन योजना (2022): इसमेें दीर््घकालिक दृष्टि के साथ निरंतर
आधार पर 1000 छोटे स््टटेशनोों के विकास की परिकल््पना की गई है।
आवश््यकता का आकलन करना, साथ ही 100% विद्तयु ीकरण और माल
ढुलाई के औसत हिस््ससेदारी को बढ़़ाने के उद्देश््योों को प्राप्त करने हेतु z "एक राष्टट्र एक कार््ड" प्रणाली (2019): "एक राष्टट्र एक कार््ड" भगु तान
लोकोमोटिव की आवश््यकता का आकलन करना। को सरल बनाता है और ट्रेनोों, बसोों एवं मेट्रो सेवाओ ं सहित परिवहन के कई
साधनोों के लिए एक ही कार््ड द्वारा यात्रियोों को यात्रा करने की सवि ु धा प्रदान
निजी क्षेत्र की भागीदारी: रोलिंग स््टटॉक के सच ं ालन और स््ववामित््व, करता है।
माल, यात्री टर््ममिनलोों के विकास और ट्रैक के बनिय ु ादी ढांँचे के विकास/ z कवच: भारत वर््ष 2012 से अपना स््वयं का ‘ट्रेन कोलिजन अवॉइडेेंस सिस््टम’
संचालन के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी। (TCAS) विकसित कर रहा है, जिसे अब कवच या "आर््मर" के रूप मेें
राष्ट्रीय रे ल योजना विजन 2024 जाना जाता है।
राष्ट्रीय रे ल योजना के एक भाग के रूप मेें वर््ष 2024 तक महत्तत्वपूर््ण z राष्ट्रीय रेल योजना (NRP): NRP का लक्षष्य वर््ष 2030 तक भविष््य के
परियोजनाओ ं के त््वरित कार््ययान््वयन के लिए विजन 2024 शरू ु किया गया लिए रे लवे प्रणाली विकसित करना है। इसमेें समर््पपित माल ढुलाई गलियारोों
है, जिसमेें शामिल हैैं: (जैसे, पर्ू वी और पश्चिमी समर््पपित माल ढुलाई गलियारे ) और हाई स््पपीड रेल
z 100% विद्त यु ीकरण। कोरीडोर (जैसे, मबंु ई-अहमदाबाद बल ु ेट ट्रेन परियोजना) का निर््ममाण शामिल है।
z व््यस््त मार्गगों की मल््टटी-ट्रैकिंग। रेल इडिया डेवलपमेेंट फंड (RIDF) (2017): महत्तत्वपर्ू ्ण रे लवे परियोजनाओ ं
z ं
z दिल््लली-हावड़़ा और दिल््लली-मब ंु ई मार्गगों पर गति को 160 किमी/घटं ा तक के लिए धन एकत्र करने, बनिय ु ादी ढांँचे के विकास, क्षमता विस््ततार और रे लवे
बढ़ाना। नेटवर््क के आधनि ु कीकरण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए RIDF
z अन््य स््वर््णणिम चतर््भभु
ु ज-स््वर््णणिम विकर््ण (GQ/GD) मार्गगों पर गति को 130 की स््थथापना करना।
किमी/घटं ा तक करना। z समर््पपित माल ढुलाई गलियारे/डेडिके टे ड फ्रे ट कॉरिडोर (DFCs): पर्ू वी
z GQ/GD मार्गगों पर सभी लेवल क्रॉसिंग को समाप्त करना।
समर््पपित माल ढुलाई गलियारे (EDFCs) और पश्चिमी समर््पपित माल ढुलाई
गलियारे (WDFCs) के निर््ममाण का उद्देश््य माल परिवहन दक्षता मेें सधु ार
भारतीय रेलवे की चुनौतियााँ करना तथा मौजदू ा रे लवे लाइनोों पर भीड़-भाड़ एवं व््यस््ततता को कम करना है।
z यात्री परिवहन: यात्री परिवहन मेें सब््ससिडी का बोझ और उच््च परिचालन
आगे की राह
अनपु ात भारतीय रे लवे के समक्ष उच््च गणु वत्तायक्त
ु सेवाएँ और सरु क्षा सवि
ु धाएँ
प्रदान करने मेें बाधक है। रेलवे आधुनिकीकरण पर
बिबेक देबरॉय समिति की सिफारिशेें (2015)
z औसत गति: विकसित देशोों की तल ु ना मेें भारत मेें रे लवे की औसत गति
बहुत कम है। इन कारणोों से, यात्रियोों की भीड़ स््थल और विमानन परिवहन z आधुनिकीकरण और उन््नयन: परिचालन दक्षता, सरु क्षा और यात्री अनभु व
का उपयोग कर रही है। को बेहतर बनाने के लिए आधनि ु क प्रौद्योगिकियोों, सिग््नलिंग प्रणालियोों और
रोलिंग स््टटॉक मेें निवेश करना।
वर््ष 2022-23 मेें सेमी-हाई-स््पपीड ट्रेन की औसत गति 81.38 किमी प्रति
z बुनियादी ढांँचे का विस््ततार: कनेक््टटिविटी का विस््ततार करने, भीड़ को कम
घटं ा थी, जबकि मालगाड़़ियोों की औसत गति 46.71 किमी प्रति घटं ा थी।
करने और क्षेत्ररों मेें आर््थथिक विकास को बढ़़ावा देने के लिए नई रे लवे लाइनोों,
z माल परिवहन: सस््तती दरोों और गंतव््य-आधारित डिलीवरी के कारण सड़क समर््पपित माल ढुलाई गलियारोों और हाई-स््पपीड रे ल नेटवर््क के विकास को
परिवहन से उच््च प्रतिस््पर््धधा। निरंतर बनाए रखना।
राजमार््ग वर््ष 2014 मेें 91,287 किलोमीटर से 60% की वृद्धि करना है।
को दर््शशाता है। z परियोजना की प्रमुख विशेषताएँ और घटक इस प्रकार हैैं:
z जनवरी 2024 तक, महाराष्टट्र मेें 18,459 किमी (13.4%) आर््थथि क गलियारे : भारी माल के यातायात के लिए निर््बबाध और तीव्र
के साथ राष्ट्रीय राजमार्गगों का सबसे बड़़ा नेटवर््क है, परिवहन सनिश् ु चित करने के लिए लगभग 26,200 किलोमीटर आर््थथिक
इसके बाद उत्तर प्रदेश और राजस््थथान का स््थथान है जहाँ गलियारोों का निर््ममाण और विकास करना।
राष्ट्रीय राजमार्गगों की कुल लंबाई क्रमशः 13,248 किमी सप ं र््क मार््ग या अंतर-गलियारे (Feeder Routes or Inter
(8.9%) और 12,000 किमी (7.8%) हैैं। Corridors): बनिय ु ादी ढाँचे की विषमता को दरू करने और कनेक््टटिविटी
राज््य राजमार््ग z वर््ष 2024 की शरुु आत तक, भारत मेें राज््य राजमार्गगों की मेें सधु ार करने के लिए 6,000 किलोमीटर सपं र््क मार््ग या अतं र-गलियारे
कुल लंबाई लगभग 183,011 किलोमीटर थी। का विकास करना।
इसी प्रकार की तकनीक का उपयोग करने वाली प्रणालियाँ, पहाड़़ी क्षेत्ररों भारत मेें नागरिक विमानन क्षेत्र की चुनौतियााँ:
मेें अतिम
ं छोर तक कनेक््टटिविटी मेें सधु ार करती हैैं। z वित्त पोषण और निवेश: हवाईअड््डडोों के विकास और विस््ततार के लिए पर््ययाप्त
इसके माध््यम से प्रति घट ं े काफी संख््यया मेें यात्रियोों को ले जाया जा सकता धन जटु ाना, निजी निवेश को आकर््षषित करना और टिकाऊ वित्तीय मॉडल
है। सनिश्
ु चित करना चनु ौती बनी हुई है।
माल की क्षति हो सकती है या संपत्ति का नुकसान हो सकता है। कुल 745 भक ू ं प दर््ज किए गए हैैं।
वर्गीकरण: z भारत के सद ं र््भ मेें: भारत का लगभग 60% भभू ाग, जिसमेें इसके सभी
z प्राकृतिक सक ं ट: भकू ं प, चक्रवात, बाढ़ और सख ू ा। राज््य शामिल हैैं, विभिन््न तीव्रता के भक ू ं पोों के प्रति संवेदनशील है।
z मानव निर््ममित सक ं ट: विस््फफोट; खतरनाक अपशिष्ट का उत््सर््जन; सरकारी आक ंँ ड़ों के अनसु ार, भारत का 59% भभू ाग विभिन््न तीव्रता
बांधोों की विफलता; वाय,ु जल और भमि ू प्रदषण
ू ; आतंकवाद, के भक ू ं पोों के प्रति संवेदनशील है।
नागरिक अशांति और यद्ध ु । देश का लगभग 11% हिस््ससा जोन V मेें 18% हिस््ससा जोन IV मेें, 30%
संयुक्त राष्टट्र के अनुसार, आपदा एक अनपेक्षित या विशाल आपदा हिस््ससा जोन III मेें और शेष हिस््ससा जोन II मेें शामिल है।
की घटना है जो किसी समाज (या समदु ाय) के आवश््यक स््वरूप और
भारत और भूकंप:
नियमित संचालन को प्रभावित करती है।
आपदा (Disaster)
HAPS के घटक
देने के उद्देश््य से, ये कार््यक्रम समदु ायोों को सतर््क रहने और संभावित आपदाओ ं
के विरुद्ध निवारक उपाय अपनाने मेें मदद करते हैैं।
हीटवेव क्षेत्रीय ताप प्रोफ़़ाइल
पूर््व हीटवेब््स, ग्रीष््म तापमान और भूमि सतह के तापमान
भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने भारत के विभिन््न हिस््सोों के लिए हीटवेव के
का अवलोकन।
संबंध मेें अलर््ट जारी किया है।
भेद्यता मूल््ययाांकन
हीटवेव के बारे मेें: उच््च जोखिम यक्त ु क्षेत्ररों की पहचान करता है और कमजोर
z हीटवेव: हीटवेव अत््यधिक उच््च तापमान की विस््ततारित अवधि है जिसका समूहोों के लिए हस््तक्षेप को प्राथमिकता देता है।
मानव स््ववास््थ््य, पर््ययावरण और अर््थव््यवस््थथा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। शमन अनुशंसाएँ
भारत एक उष््णकटिबंधीय देश है जो हीटवेव की स््थथिति के लिए विशेष रूप गर्मी के प्रभावोों को कम करने के लिए शहरी हरियाली और
से संवेदनशील है। बनि
ु यादी ढाँचे मेें बदलाव जैसी रणनीतियाँ पेश करता है।
z हीटवेव की घोषणा: आईएमडी के अनसु ार, हीटवेव की परिभाषा क्षेत्ररों की प्रतिक्रिया योजना
भौगोलिक स््थथिति पर निर््भर करती है। हीटवेव की घोषणाओ ं के लिए शीतलन केेंद्ररों और जलयोजन किटोों सहित हीटवेव से पहले, उसके
निम््नलिखित मानदडं हैैं: दौरान और बाद मेें की जाने वाली कार््रवाइयोों को निर््ददिष्ट करती है।
हीट वेव की घोषणा तभी मानी जाती है जब किसी स््टटेशन का भूमिकाएँ और जिम््ममेदारियाँ
अधिकतम तापमान मैदानी इलाकोों के लिए आपदा प्रतिक्रिया के लिए सरकारी और गैर-सरकारी
मैदानी इलाकोों के लिए कम से कम 40 °C या उससे अधिक संगठनोों को कार््य सौौंपता है।
तटीय क्षेत्ररों के लिए 37 °C या उससे अधिक
हीटवेव की स्थिति से
और पहाड़़ी क्षेत्ररों के लिए कम से कम 30 °C या उससे अधिक निपटने के लिए हीट एक्शन प्लान (HAP):
हो। z हीट एक््शन प््ललान (HAP) के बारे मेें: यह आर््थथिक रूप से नक ु सानदायक
हीटवेव की गंभीरता उसके सामान््य तापमान से विचलन द्वारा और जीवन के लिए घातक हीटवेव के संदर््भ मेें भारत की प्राथमिक नीतिगत
निर््धधारित होती है प्रतिक्रिया है।
सामान््य हीटवेव: जब सामान््य से विचलन 4.5-6.4°C हो। z उद्देश््य: इसका उद्देश््य हीटवेव के प्रभाव को कम करना है तथा राज््य, जिला
गंभीर हीटवेव: जब सामान््य से विचलन 6.4°C से अधिक हो। और शहर के सरकारी विभागोों मेें विभिन््न प्रकार की प्रारंभिक गतिविधियाँ,
वास््तविक अधिकतम तापमान के आधार पर (के वल मै दानी आपदा प्रतिक्रियाएँ और हीटवेव के बाद के उपायोों को निर््धधारित करना है।
इलाकोों के लिए): HAPs की चुनौतियााँ :
हीट वेव: जब वास््तविक अधिकतम तापमान 45°C हो।
z स््थथानीय सदं र््भ सीमाएँ: वर््तमान HAPs हीटवेव को परिभाषित करने के लिए
गंभीर हीट वेव: जब वास््तविक अधिकतम तापमान 47°C हो। राष्ट्रीय सीमा का उपयोग करते हैैं, जो विभिन््न क्षेत्ररों मेें विविध जलवाय,ु
z आईएमडी "सामान््य तापमान से विचलन" और "वास््तविक अधिकतम भौगोलिक और शहरी स््थथितियोों को पर््ययाप्त रूप से प्रतिबिंबित नहीीं करते हैैं।
तापमान" के मानदडों ों पर तभी विचार करता है, जब किसी मौसम विज्ञान उदाहरण के लिए, कई शहरोों मेें हीटवेव की घोषणा के बिना अत््यधिक तापमान
उपखडं मेें कम से कम दो स््टटेशन ऐसे उच््च अधिकतम तापमान की रिपोर््ट का अनभु व किया जाता है।
करते हैैं या जब कम से कम एक स््टटेशन ने कम से कम दो लगातार दिनोों मेें z साइलो अप्रोच दृष्टिकोण: HAPs अक््सर सीमित वित्तीय सहायता के साथ
सामान््य से संगत विचलन दर््ज किया हो। अके ले ही कार््य करते हैैं, जिससे उनकी प्रभावशीलता कम हो जाती है।
भारत मेें हीटवेव की स्थिति: z अपर््ययाप्त कानूनी आधार: अधिकांश HAPs मेें मजबतू काननू ी अधिकार
z नवबं र मेें विश्व बैैंक की रिपोर््ट मेें चेतावनी दी गई थी कि वर््ष 2030 तक भारत का अभाव है, जो कार््ययान््वयन और अनपु ालन को कमजोर करता है। नए डेटा
भर मेें वार््षषिक रूप से 160-200 मिलियन से अधिक लोग घातक हीटवेव के या परिणामोों के आधार पर HAPs को अपडेट करने के लिए कोई ससु ंगत तंत्र
सपं र््क मेें आ सकते हैैं। नहीीं है।
z गर्मी के मौसम के लिए आईएमडी के पर््ववा ू नमु ानोों मेें कहा गया कि पर््वू और z केें द्रित नियोजन का अभाव: जबकि HAPs दीर््घकालिक उपायोों का उल््ललेख
उत्तर-पर््वू के कुछ हिस््सोों और उत्तर-पश्चिम मेें कुछ इलाकोों को छोड़कर भारत करते हैैं, वे अक््सर नियोजन को बनिय ु ादी ढाँचे (विशेष रूप से कूल रूफ) तक
के अधिकांश हिस््सोों मेें सामान््य से अधिक अधिकतम और न््यनयू तम तापमान सीमित रखते हैैं और ‘हरित’ और ‘जलीय’ स््थथानोों पर न््यनयू तम ध््ययान केें द्रित
का अनभु व होगा। करते हैैं।
के बारे मेें दृष्टिकोण प्रदान करता है। पश्चिमी पवनोों ने हीटवेव की वृद्धि मेें योगदान दिया है।
z जलवायु परिवर््तन: पिछले 100 वर्षषों मेें वैश्विक तापमान मेें औसतन 0.8
मॉडल हीट एक््शन प््ललान डिग्री की वृद्धि हुई है, इसलिए और अधिक हीटवेव की आशक ं ा थी। रात के
भारत के जलवायु खतरे और सुभेद्यता
एटलस
इसे राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण तापमान मेें भी वृद्धि हो रही है।
(NDMA) द्वारा हाइपरलोकल
यह एटलस प्रमुख मौसम की घटनाओं के
चेतावनी प्रणाली, शहरोों की भेद्यता z वर््षषा की कमी: सामान््यतः तापमान उच््च होने की अवधि मेें समय-समय पर
संबंध मेें प्रत््ययेक भारतीय जिले के लिए
शून््य, निम््न, मध््यम, उच््च और बहुत
मानचित्रण और जलवायु-लचीला वर््षषा होती है, लेकिन मार््च और अप्रैल मेें यह काफी हद तक अनपु स््थथित रही।
आवास नीतियोों को प्रदान करने के
उच््च श्रेणियोों के जोखिमोों के साथ भेद्यता
की एक ृंखला प्रदान करता है।
लिए जारी किया गया है। हीटवेव का प्रभाव:
z वनाग््ननि का जोखिम: हीटवेव वनाग््ननि के लिए ईधन ं के रूप मेें कार््य करती
आगे की राह हैैं, जो प्रत््ययेक वर््ष बहुत सारे भ-ू भाग को नष्ट कर देती हैैं।
z व््ययापक जलवायु जोखिम आकलन: एक पर्ू ्ण विकसित जलवायु जोखिम z बादल निर््ममाण की प्रकिया अवरुद्ध: यह स््थथिति बादलोों को बनने से भी
आकलन ढांँचा विकसित करने की आवश््यकता है जो हीटवेव के जोखिम रोकती है, जिससे सर््यू विकिरण की अधिक मात्रा सतह पर पहुचँ जाती है।
वाले क्षेत्ररों की सटीक पहचान कर सके और लोगोों और संपत्तियोों के जोखिम z हीट स्ट्रोक और अचानक मृत््ययु: बहुत अधिक तापमान या आर्दद्र परिस््थथितियाँ
का मल्ू ्ययाांकन कर सके । हीटस्ट्रोक या हीट स्ट्रेस का जोखिम बढ़़ाती हैैं।
z सश ं ोधित ताप सच ू कांक का विकास: एक बहुआयामी ताप सचू कांक बनाने z स््ववास््थ््य समस््ययाएँ: वृद्ध लोग और हृदय रोग, श्वसन रोग और मधमु हे जैसी
की आवश््यकता है जो तापमान से परे कारकोों, जैसे आर्दद्रता और शहरी ताप परु ानी बीमारियोों से ग्रसित लोग हीटस्ट्रोक के प्रति अधिक सवं ेदनशील होते
द्वीप प्रभाव को ध््ययान मेें रखता हो। हैैं, क््योोंकि आयु के साथ शरीर की ऊष््ममा को नियंत्रित करने की क्षमता कम
z शहरी नियोजन और लचीले पन के साथ एकीकरण: संसाधनोों को अधिक हो जाती है।
प्रभावी ढंग से एकत्र करने के लिए HAP को व््ययापक शहरी लचीलेपन और z वनस््पति पर प्रभाव: गर्मी के कारण फसलोों को भी नक ु सान पहुचँ सकता है,
जलवायु अनक ु ू लन रणनीतियोों से जोड़ा जाए। वनस््पति सख ू सकती है और सख ू े की स््थथिति उत््पन््न हो सकती है।
z प्रकृति-आधारित समाधानोों का समावेश: अत््यधिक गर्मी के प्रभावोों को z ऊर््जजा की माँग मेें वद्ृ धि : भीषण हीटवेब, ऊर््जजा की माँग, विशेष रूप से विद्तयु
कम करने के लिए HAP मेें हरित स््थथानोों को रणनीतिक स््थथापित करने और की माँग मेें भी वृद्धि करती है, जिससे विद्तयु की दरेें बढ़ जाती हैैं।
जलीय बनिय ु ादी ढाँचे (Blue infrastructure) के विकास जैसे प्रकृ ति-
आधारित समाधानोों को एकीकृ त करने पर ध््ययान केें द्रित करने की आवश््यकता निष्कर््ष:
है। मानव-प्रेरित जलवायु परिवर््तन ने दनिय
ु ा भर मेें चरम मौसम प्रणाली मेें परिवर््तन
संबंधित तथ््य: भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण किया है, जिसमेें दीर््घ अवधि की हीटवेब से से लेकर भारी वर््षषा तक शामिल है।
z एनसीआरबी के अनुसार, वर््ष 2021 मेें भारत मेें हीटवेब से संबंधित 374 हीटवेब के प्रभाव को कम करने के लिए लोगोों मेें जागरूकता बढ़ाने और आपदा
मौतेें हुई ं हैैं, जो वर््ष 2020 मेें दर््ज किए गए 530 मामलोों से कम है। तैयारी के उपायोों से हीटवेब की तीव्रता और आवृत्ति को कम किया जा सकता
z एनडीएमए (NDMA) का अनम ु ान है कि वर््ष 2000 से वर््ष 2020 के बीच है।
हीट वेव से 17,767 मौतेें हुई। यह एक महत्तत्वपर्ू ्ण संख््यया है जो भारत मेें
हीटवेव के दीर््घकालिक प्रभाव को उजागर करती है। वनाग्नि
z राज््य पर््ययावरण स््थथिति रिपोर््ट 2022 मेें दावा किया गया है कि मार््च 2021 वनाग््ननि को एक खलु ी और स््वतंत्र रूप से फै लने वाले दहन के रूप मेें परिभाषित
से मई 2022 तक देश मेें 280 हीटवेव दिन देखे गए, जो पिछले 12 वर्षषों किया जा सकता है जो प्राकृ तिक ईधन ं को जलाती है। दहन, आग या अग््ननि का
मेें सबसे अधिक है। यह डेटा जलवायु परिवर््तन के कारण भारत मेें बढ़ते दसू रा नाम है। जब आग नियंत्रण से बाहर हो जाती है तो इसे वनाग््ननि के रूप मेें
हीटवेव के खतरे को रे खांकित करता है। जाना जाता है।
उपयक्तु जलमार्गगों पर अग््ननिशामक जल आपर््तति ू प्रणाली का होना या उसका किनारोों से प्रवाहित होता है, जिसके परिणामस््वरूप आस-पास के इलाकोों
निर््ममाण और रखरखाव करना या जल निकासी के लिए कृ त्रिम जलाशय बनाना मेें बाढ़ आ जाती है।
आवश््यक है। अवसादोों का निक्षेपण: अवसादन के कारण नदी तल उथले हो जाते हैैं।
z हवाई निगरानी: हवाई निगरानी उड़़ानेें (Aerial surveillance flights) ऐसी नदियोों की जल-वहन क्षमता कम हो जाती है। परिणामस््वरूप, अधिक
उच््च आग जोखिम के समय मेें प्रारंभिक चरण मेें वनाग््ननि का पता लगाने का वर््षषा का जल नदी के किनारोों से प्रवाहित हो जाता है।
एक संभावित साधन हैैं। चक्रवात: चक्रवात के कारण असामान््य ऊँचाई की समद्री ु लहरेें उत््पन््न
z सच ं ार उपकरण: वनाग््ननि से के वल अग््ननिशमन सेवा और वन प्राधिकरण होती हैैं और जल आस-पास के तटीय क्षेत्ररों मेें फै ल जाता है। अक््टटूबर
परिचालन टीमोों के बीच कार््यशील संचार के साथ शीघ्र और सफलतापर््वू क 1994 मेें उड़़ीसा मेें आए चक्रवात ने भयंकर बाढ़ उत््पन््न की और इससे
लड़़ा जा सकता है। जान-माल का अभतू पर््वू नक ु सान हुआ।
बादल फटना: इनके परिणामस््वरूप अचानक बाढ़ आती है, जैसा कि
z सहयोग और सयं ुक्त अभ््ययास: वन मालिकोों, प्रशासन, तथा अग््ननि और
आपातकालीन सेवाओ ं की विभिन््न शाखाओ ं के बीच सहयोग वनाग््ननि के वर््ष 2013 मेें उत्तराखडं मेें आई बाढ़ (के दारनाथ मेें अचानक बाढ़) और
मामले मेें विशेष महत्तत्व रखता है। 2021 मेें (चमोली आपदा) मेें देखा गया।
नदी के मार््ग मेें परिवर््तन: नदी के मार््ग मेें परिवर््तन और घम ु ाव बाढ़ का
z मशीनरी और उपकरण: वनाग््ननि से निपटने के लिए उपयक्त ु अग््ननिशमन
कारण बनते हैैं।
उपकरण और मशीनरी का रखरखाव आवश््यक है।
सन ु ामी: जब सनु ामी तट से टकराती है तो बड़़े तटीय क्षेत्र बढ़ते समद्री ु
z वनाग््ननि की निगरानी: वनाग््ननि अवलोकन प्रणालियोों का उपयोग करने से
जल से भर जाते हैैं।
वनाग््ननि की संख््यया मेें कमी नहीीं आई है, लेकिन इसकी सीमा कम हो गई है।
z मानवजनित कारण:
निष्कर््ष: जल निकासी व््यवस््थथा मेें बाधा: पलो ु ों, सड़कोों, रे लवे ट्रैक, नहरोों आदि
वनाग््ननि आमतौर पर मौसमी होती है। ये आमतौर पर शष्ु ्क मौसम मेें शरू ु होती हैैं के खराब नियोजित निर््ममाण के कारण जल निकासी की समस््यया जल के
और पर््ययाप्त सावधानियोों से उन््हेें रोका जा सकता है। इसलिए वनाग््ननि को नियंत्रित प्रवाह मेें बाधा डालती है और इसका परिणाम बाढ़ के रूप मेें सामने आता
करने का सबसे अच््छछा तरीका है, इसे फै लने से रोकना, यह कार््य वन मेें छोटी-छोटी है।
खाइयोों के आकार मेें अग््ननिरोधक बनाकर किया जा सकता है। वनोन््ममूलन: वनस््पति जल के प्रवाह मेें बाधा उत््पन््न करती है और इसे
भमि ू मेें अन््ततःक्षेपित होने मेें सहायक होती है। वनोन््ममूलन के परिणामस््वरूप,
बाढ़
भमि ू अवरोध मक्त ु हो जाती है और जल अधिक गति से नदियोों मेें प्रवाहित
भारत बाढ़ के प्रति अत््यधिक संवेदनशील है। 329 मिलियन हेक््टटेयर (MHA) के हो जाता है और बाढ़ का कारण बनता है।
कुल भौगोलिक क्षेत्र मेें से 40 MHA से अधिक बाढ़-प्रवण क्षेत्र है। बाढ़ एक बाढ़ के मै दानोों पर अतिक्रमण: पिछले कुछ वर्षषों मेें बाढ़ के मैदानोों मेें
आवर्ती घटना है, जिससे जान-माल का भारी नक ु सान होता है और आजीविका अतिक्रमण के कारण जनसख्ं ्यया दबाव ने बाढ़ की समस््यया को और बढ़़ा
प्रणालियोों, संपत्ति, बनिय
ु ादी ढाँचे और सार््वजनिक उपयोगिताओ ं को नक ु सान दिया है
पहुचँ ता है। शहरी नियोजन: अनचि ु त नगर नियोजन और अपर््ययाप्त जल निकासी
भारत मेें बाढ़ का वितरण व््यवस््थथा शहरी बाढ़ का कारण बनती है। उदाहरण- चेन््नई बाढ़।
z इसकी सभु द्ये ता इस तथ््य से उजागर होती है कि 3290 लाख हेक््टटेयर भौगोलिक बाढ़ का प्रभाव:
क्षेत्र मेें से 40 मिलियन हेक््टटेयर बाढ़ की चपेट मेें है, जो कि 12% है। z जन हानि: बाढ़ प्रभावित क्षेत्ररों मेें डूबने, गंभीर रूप से घायल होने और
z राज््यवार अध््ययन से पता चलता है कि देश मेें बाढ़ से होने वाली क्षति का डायरिया, हैजा, पीलिया या वायरल संक्रमण जैसी महामारियोों के फै लने से
लगभग 27% बिहार मेें, 33% उत्तर प्रदेश और उत्तराखडं मेें और 15% पजं ाब मानव और पशधु न की मृत््ययु होना आम समस््ययाएँ हैैं।
व हरियाणा मेें होता है। z सरं चनात््मक क्षति: बाढ़ के दौरान मिट्टी की झोपड़़ियाँ और कमज़़ोर नीींव पर
z गंगा, ब्रह्मपत्रु , कोसी, दामोदर, महानदी आदि जैसी उत्तर भारतीय नदियोों के बनी इमारतेें ढह जाती हैैं, जिससे मानव जीवन और संपत्ति को ख़तरा होता है।
मध््य और निचले हिस््ससे बहुत कम ढाल के कारण बाढ़ की चपेट मेें आते हैैं। z वित्तीय बोझ: बाढ़ से होने वाले कुछ नक ु सान और क्षति बीमा द्वारा कवर
z प्रायद्वीपीय नदियाँ परिपक््व हैैं और उनमेें कठोर चट्टानी तल हैैं, इसलिए उनके किए जाते हैैं, लेकिन सभी नहीीं। सरकार कभी-कभी बाढ़ से प्रभावित लोगोों
बेसिन उथले हैैं। इससे वे बाढ़ की चपेट मेें आ जाती हैैं। को राज््य-स््तरीय सहायता प्रदान करती है।
और इससे जान-माल को भारी नुकसान होता है। बाढ़ एक प्राकृ तिक घटना है, से समस््यया और भी बढ़ जाती है।
इसे पूरी तरह से नियंत्रित नहीीं किया जा सकता है। हालाँकि, सरकार उचित कदम z नगरीकरण: नियोजित और अनियोजित दोनोों तरह का तीव्र नगरीकरण बाढ़
उठाकर बाढ़ से होने वाले खतरोों को काफी हद तक कम कर सकती है। के लिए उत्तरदायी है।
मानव निर््ममित अवसंरचना ढाँचा, जिसमेें फ््ललाईओवर, सड़कोों का
शहरी बाढ़
चौड़़ीकरण, शहरी बस््ततियाँ शामिल हैैं, जलभराव वाले क्षेत्ररों मेें शहरी बाढ़
चक्रवात मिचांग व््ययापक बाढ़ का कारण बना है, जिससे बुनियादी ढाँचे को गंभीर मेें योगदान करते हैैं।
नुकसान पहुचँ ा है और आजीविका मेें व््यवधान उत््पन््न हुआ है। गरु ु ग्राम और बेेंगलरुु मेें हाल ही मेें आई बाढ़ ऐसी ही योजना विफलताओ ं
शहरी बाढ़ क्या है ?? के उदाहरण हैैं।
z शहरी बाढ़ को ‘आमतौर पर सख ू े क्षेत्ररों मेें अचानक अत््यधिक वर््षषा, उफनती z अपशिष्ट निपटान की अनुचित प्रथाएँ भी बाढ़ मेें योगदान करती हैैं: कई
नदी या झील, पिघलती बर््फ या असाधारण रूप से उच््च ज््ववार से आने वाले शहरोों मेें जल निकायोों, शहरी हरित क्षेत्ररों और छोटे जंगलोों पर अवैध विकास
जल की बड़़ी मात्रा मेें जलमग््नता’ के रूप मेें परिभाषित किया जा सकता है। और अतिक्रमण देखा गया है।
z सरकारी आँकड़ोों के अनसु ार, वर््ष 2012 से 2021 के बीच भारत मेें बाढ़ और तमिलनाडु मेें वेलाचेरी झील ‘सीवेज डिस््चचार््ज’ के कारण विलप्त ु हो गई है।
भारी वर््षषा के कारण 17,000 से अधिक लोग मारे गए। शहरी बाढ़ का प्रभाव:
भारतीय शहरोों मेें बाढ़/शहरी बाढ़ के पीछे के कारण: z मूर््त हानियाँ: वे हानियाँ, जिन््हेें भौतिक रूप से मापा जा सकता है और
z जलवायु परिवर््तन: वैश्विक जलवायु परिवर््तन के परिणामस््वरूप मौसम के जिन््हेें आर््थथिक मल्ू ्य दिया जा सकता है। ये हानियाँ प्रत््यक्ष या अप्रत््यक्ष हो
पैटर््न मेें बदलाव आ रहा है और अल््पपावधि वर््षषा की तीव्रता बढ़ रही है। सकती हैैं।
प्रत््यक्ष: इमारतोों को संरचनात््मक क्षति, संपत्ति की क्षति, बनिय ु ादी ढाँचे
उदाहरण के लिए: शहरीकरण से जलग्रहण क्षेत्र विकसित होते हैैं, जिससे
प्रमुख शब्दावलियाँ
द्रवीकरण, भूकंप समूह, आपदा जोखिम न््ययूनीकरण के लिए सेेंडाई
z अमूर््त हानियाँ: अमर््तू हानियोों मेें जीवन की हानि, द्वितीयक स््ववास््थ््य प्रभाव फ्रे मवर््क, प्रशांत दशकीय दोलन, ताप कार््रवाई योजनाएँ, ग््ललेशियल
और संक्रमण या पर््ययावरण को होने वाली क्षतियाँ शामिल हैैं, जिनका मौद्रिक झीलोों का विस््फफोट, बाढ़
रूप से आकलन करना कठिन है, क््योोंकि उनका व््ययापार नहीीं किया जाता है।
प्रत््यक्ष: जनहानि, स््ववास््थ््य प्रभाव, पारिस््थथितिकीय हानियाँ विगत वर्षषों के प्रश्न
अप्रत््यक्ष: बाढ़ के बाद की पन ु र्प्राप्ति प्रक्रिया, लोगोों को मानसिक क्षति z बाँधोों की विफलता हमेशा प्रलयकारी होती हैैं, विशेष रूप से नीचे की ओर,
जिसके परिणामस््वरूप जीवन और संपत्ति का भारी नक ु सान होता है। बाँधोों की
हिमनद झीलोों के फटने से बाढ़
विफलता के विभिन््न कारणोों का विश्लेषण कीजिये। बड़़े बाँधोों की विफलता
z नंदा देवी ग््ललेशियर घटना: जोशीमठ, उत्तराखडं मेें नंदा देवी ग््ललेशियर के एक के दो उदाहरण दीजिए। (2023)
हिस््ससे के टूटने से राज््य के कुछ हिस््सोों मेें भारी बाढ़ आई। z भारतीय उपमहाद्वीप के संदर््भ मेें बादल फटने की क्रियाविधि और घटना को
z बांधित हिमनद झीलेें: हिमनद झीलोों के फटने से बाढ़ (GLOF) तब आती समझाइये। हाल के दो उदाहरणोों की चर््चचा कीजिए। (2022)
हैैं जब हिमनद झील मेें सग्रं हीत जल की पर््ययाप्त मात्रा अचानक प्रवाहित हो
z भारत मेें तटीय अपरदन के कारणोों और प्रभावोों को समझाइये। खतरे का
जाती है।
मक ु ाबला करने के लिए उपलब््ध तटीय प्रबंधन तकनीकेें क््यया हैैं? (2022)
z हिमालयी राज््योों मेें गंभीर चिंता: हिमोढ़-बांधित हिमनद झीलोों का निर््ममाण
और GLOFs की घटना भारत के हिमालयी राज््योों मेें महत्तत्वपर्ू ्ण चितं ा का z भक ू ं प सबं ंधित सक
ं टोों के लिए भारत की भेद्यता की विवेचना कीजिए। पिछले
विषय है। तीन दशकोों मेें ,भारत के विभिन््न भागोों मेें भक ू ं प द्वारा उत््पन््न बड़ी आपदाओ ं
के उदाहरण प्रमख ु विशेषताओ ं के साथ दीजिए। (2021)
GLOFs उत्पन्न होने के विभिन्न कारक
z भस्ू ्खलन के विभिन््न कारणोों और प्रभावोों का वर््णन कीजिए। राष्ट्रीय भस्ू ्खलन
z तीव्र ढलान सच ं लन: झील मेें तीव्र ढलान संचलन (फिसलन, गिरना,
जोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्तत्वपर्ू ्ण घटकोों का उल््ललेख कीजिए। (2021)
हिमस््खलन) विस््थथापन तरंगोों को जन््म देता है, जिससे बांध परू ा भर जाता है
या तत््ककाल टूट जाता है। z हैदराबाद और पणु े जैसे स््ममार््ट शहरोों सहित भारत के लाखोों शहरोों मेें भारी बाढ़
z बांध का दीर््घकालिक क्षरण: समय के साथ, बांध की आतं रिक संरचना का कारण बताइए। स््थथायी उपचारात््मक उपाय सझु ाइए। (2020)
खराब हो सकती है, जिससे आधार पर स््थथित बर््फ पिघलने के कारण z भारत मेें बाढ़ को सिंचाई के और सभी मौसम मेें अतं र्देशीय नौसंचालन के एक
‘हाइड्रोस््टटेटिक दाब’ बढ़ जाता है, जिसके परिणामस््वरूप अतं तः बांध विफल धारणीय स्रोत मेें किस तरह परिवर््ततित किया जा सकता है? (2017)
हो जाता है। z भारत के प्रमख ु नगर बाढ़ अधिक असरु क्षित होते जा रहे हैैं। विवेचना कीजिए।
z ब््ललैक कार््बन: जीवाश््म ईधन, ं लकड़़ी और अन््य ईधन ं के अधरू े दहन से उत््पन््न (2016)
ब््ललैक कार््बन के बढ़ते स््तर, कम एल््बबिडो मेें योगदान करते हैैं, जिससे ग््ललेशियर z मबंु ई, दिल््लली और कोलकाता देश के तीन विराट नगर हैैं, परंतु दिल््लली मेें वायु
पिघलने मेें तेजी आती है। प्रदषण ू , अन््य दो नगरोों की तल ु ना मेें कहीीं अधिक गंभीर समस््यया है। इसका
z मानवजनित गतिविधियाँ: बड़़े पैमाने पर पर््यटन, सड़क निर््ममाण और क््यया कारण है? (2015)
जलविद्तयु परियोजनाओ ं जैसी विकास परियोजनाएँ और भारतीय हिमालयी पश्चिमी घाट की तल
z ु ना मेें हिमालय मेें अधिक भस्ू ्खलन की घटनाओ ं के प्रायः
क्षेत्र के विशिष्ट क्षेत्ररों मेें ‘स््ललैश-एडं -बर््न’ खेती जैसी कुछ कृ षि पद्धतियाँ GLOF
होते रहने के कारण बताइए। (2013)
के जोखिम मेें योगदान कर सकती हैैं।