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MAINS WALLAH (STATIC + CURRENT)

स वल सेवा मु परी ा-2024 पर अं तम ‘ हार’

भूगोल
और आपदा बंधन

वशेषताएँ
सम एवं सिं नोटस ्
ामािणक ोत से अ ितत आकड़ ँ े एवं त य
गणव
ु ू उ र लेखन के िलए मह वपण
ापण ू क -वडस

िवगत वष म पछेू गए के साथ समायोिजत
पारपं रक टॉिप स का समसामियक घटनाओ ं के साथ जोड़कर ततीकरण

िवषय सूची
‰ भारतीय मानसून................................................................... 20
1. भू-आकृति विज्ञान 1-9
‰ भारतीय मानसून की उत््पत्ति.................................................... 20
‰ पृथ््ववी की उत््पत्ति और विकास���������������������������������������������������� 1
‰ मानसून की प्रकृ ति एवं महत्तत्वपूर््ण पहलू........................................ 21
‰ पृथ््ववी की आय........................................................................
ु 1
‰ हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) और भारतीय मानसून 21
‰ पृथ््ववी की गतियाँ .................................................................... 1
‰ पृथ््ववी का चंबु कीय क्षेत्र.............................................................. 2
‰ अल-नीनो और भारतीय मानसून.............................................. 22
‰ पृथ््ववी की आंतरिक संरचना........................................................ 2 ‰ ला-नीना और भारतीय मानसून................................................. 22
‰ महासागरीय और महाद्वीपीय वितरण............................................ 3 ‰ मानसून पर चक्रवात/विरोधी चक्रवात का प्रभाव............................ 22
‰ प््ललेटोों की गति की क्रियाविधि ..................................................... 4 ‰ वर््षषा का वितरण.................................................................... 23
‰ ज््ववालामुखी........................................................................... 6 ‰ देश मेें बदलता वर््षण प्रतिरूप.................................................... 23
‰ भू-आकृ तियाँ और उनका विकास................................................ 6
5. भारत मेें जनसंख्या और प्रवासन 25-32
2. जलवायु विज्ञान 10-13
‰ जनसंख््यया अध््ययन का महत्तत्व.................................................. 25
‰ परिचय............................................................................... 10
‰ भारत मेें उच््च जनसंख््यया वृद्धि के लिए जिम््ममेदार कारक.................. 25
‰ जलवायु और मौसम के बीच अंतर............................................. 10
‰ उच््च जनसंख््यया वृद्धि के निहितार््थ ............................................. 26
‰ पृथ््ववी का वायमु ंडल............................................................... 10
‰ जलवायु परिवर््त न और वातावरण.............................................. 11
‰ जनसंख््यया का वितरण और उसका घनत््व.................................... 26
‰ ऊष््ममा बजट......................................................................... 11 ‰ भारत मेें जनसंख््यया जनगणना................................................... 26
‰ हिमांक-मंडल (क्रायोस््फफीयर) और जलवायु परिवर््त न...................... 12 ‰ कार््यशील जनसंख््यया.............................................................. 26
‰ फुजिवारा प्रभाव.................................................................... 12 ‰ जनसांख््ययिकीय लाभांश: अवसरोों की खिड़की............................... 27
3. समुद्र विज्ञान 14-18 ‰ मानव विकास....................................................................... 28
‰ चीन और भारत: जनसंख््यया की विरोधाभासी प्रवृत्तियाँ.................... 29
‰ परिचय............................................................................... 14
‰ प्रवास................................................................................ 29
‰ महासागरीय उच््चचावच............................................................ 14
‰ लवणता (SALINITY)........................................................... 14 ‰ आंतरिक प्रवास.................................................................... 29
‰ महासागरीय जल संचलन........................................................ 15 ‰ बाह्य प्रवास.......................................................................... 31
‰ जलवायु परिवर््त न और महासागर परिसंचरण................................ 16
6. मानव अधिवास और संबधं ित मुद्दे 33-37
‰ प्रवाल भित्तियाँ..................................................................... 16
‰ महासागरीय प्रदूषण............................................................... 17 ‰ बस््ततियोों का वर्गीकरण............................................................. 33
‰ समुद्री संसाधन..................................................................... 17 ‰ भारत मेें नगरीकरण............................................................... 33
‰ अटलांटिक भूमध््यरेखीय प्रतिवर्ती परिसंचरण............................... 17 ‰ शहरीकरण का दोषपूर््ण प्रतिरूप................................................. 34
‰ गहरे समुद्र मेें अन््ववेषण की पहल................................................ 18 ‰ मानव बस््ततियाँ और जल प्रदूषण................................................ 35
4. भारतीय जलवायु 19-24 ‰ मानव बस््ततियाँ और वायु प्रदूषण................................................ 35
‰ भारतीय जलवायु की विशिष्ट विशेषताएँ....................................... 19 ‰ तटीय भारतीय शहरोों पर जलवायु परिवर््त न का प्रभाव..................... 36
‰ भारत की जलवायु का निर््धधारण करने वाले कारक.......................... 19 ‰ जलवायु स््ममार््ट शहरोों का आकलन और इसका प्रभाव..................... 36

I
‰ चनु ौतियोों के समाधान के लिए की गई पहल.................................. 64
7. भारत के भूमि उपयोग
‰ गैर-पारंपरिक ऊर््जजा स्रोत......................................................... 64
प्रतिरूप की विशेषता विविध क्षेत्र 38-41
‰ सौर ऊर््जजा........................................................................... 65
‰ भूमि उपयोग नियोजन............................................................ 38 ‰ ज््ववारीय ऊर््जजा...................................................................... 65
‰ भारत मेें भूमि उपयोग के प्रतिरूप मेें परिवर््त न ............................... 39 ‰ हाइड्रोजन आधारित ऊर््जजा....................................................... 66
‰ भूमि उपयोग वर्गीकरण............................................................ 39 ‰ हाइब्रिड नवीकरणीय ऊर््जजा...................................................... 66
‰ मरुस््थलीकरण..................................................................... 40 ‰ गैस आधारित अर््थ व््यवस््थथा...................................................... 67
8. प्राथमिक, माध्यमिक और ‰ फ््ललाई ऐश लाभ.................................................................... 68
तृतीयक क्षेत्र के उद्योगोों की अवस्थिति 42-59 ‰ लिथियम भंडार.................................................................... 68
‰ अपतटीय पवन ऊर््जजा............................................................. 69
‰ प्राथमिक गतिविधियाँ............................................................. 42
‰ भारत मेें कृ षि क्षेत्र.................................................................. 43 10. भारत मेें जल संसाधन और उनका प्रबंधन 71-76
‰ कृ षि के प्रकार...................................................................... 43
‰ जल संकट.......................................................................... 71
‰ भारत मेें सहकारी खेती........................................................... 44
‰ जल संसाधन प्रबंधन�������������������������������������������������������������� 71
‰ भारतीय कृ षि मेें प्रमुख बाधाएँ................................................... 44
‰ भारत मेें पारंपरिक जल प्रबंधन प्रथाएँ......................................... 72
‰ भारत मेें डेयरी क्षेत्र................................................................ 45
‰ जल उपयोग दक्षता................................................................ 72
‰ कृ षि आधारित और कृ षि प्रसंस््करण उद्योग.................................. 46
‰ सूक्षष्म जल संभर विकास एवं प्रबंधन........................................... 73
‰ भारत मेें खनन क्षेत्र................................................................ 47
‰ जल संसाधन प्रबंधन के लिए सरकारी पहलेें................................. 74
‰ द्वितीयक क्षेत्र........................................................................ 49
‰ जल संसाधन प्रबंधन के लिए आगे की राह .................................. 74
‰ उद्योगोों के प्रकार................................................................... 50
‰ उद्योगोों की अवस््थथिति को प्रभावित करने वाले कारक..................... 50 11. भारत मेें परिवहन और संचार 77-85
‰ भारत मेें औद्योगिक गलियारे . .................................................. 51
‰ परिचय............................................................................... 77
‰ क्षेत्रीय संसाधन-आधारित विनिर््ममाण और प्रबंधन की रणनीति............ 51
‰ औद्योगिक विकास मेें सधु ार हेतु परिवहन की उपयोगिता.................. 77
‰ वस्त्र उद्योग.......................................................................... 52
‰ रेलवे परिवहन प्रणाली............................................................ 77
‰ सूती वस्त्र उद्योग................................................................... 52
‰ सड़क परिवहन..................................................................... 79
‰ जूट उद्योग........................................................................... 54
‰ नागरिक विमानन/नागरिक उड् डयन........................................... 80
‰ चीनी उद्योग......................................................................... 55
‰ जहाजरानी और अंतर्देशीय जलमार््ग .......................................... 81
‰ सरकारी पहल...................................................................... 56
‰ तृतीयक क्षेत्र........................................................................ 58
‰ नदियोों को आपस मेें जोड़ना..................................................... 84
‰ चतुर््थक क्षेत्र/ज्ञान आधारित उद्योग............................................. 58 12 संकट बनाम आपदा  86-96
‰ क््वविनरी क्षेत्र (पंचम सेवा क्षेत्र)................................................... 59
‰ परिचय............................................................................... 86
9. खनिज और ऊर्जा संसाधन 60-70 ‰ आपदा का वर्गीकरण.............................................................. 86
‰ खनिज संसाधनोों के प्रकार....................................................... 60 ‰ भूकंप................................................................................. 86
‰ भारत मेें प्रमुख खनिज संसाधनोों का वितरण................................. 60 ‰ चक्रवात.............................................................................. 88
‰ खनिजोों का उत््पपादन.............................................................. 62 ‰ सूखा................................................................................. 89
‰ ऊर््जजा संसाधन...................................................................... 63 ‰ भूस््खलन (LANDSLIDES)................................................... 90
‰ ऊर््जजा के स्रोत...................................................................... 63 ‰ हीटवेव............................................................................... 92
‰ भारत मेें विद्युत उत््पपादन के प्रमुख स्रोत....................................... 64 ‰ वनाग््ननि............................................................................... 93
‰ भारत के विद्युत क्षेत्र की समस््ययाएँ.............................................. 64 ‰ बाढ़................................................................................... 95

 II
1 भू-आकृति विज्ञान

पृथ्वी की उत्पत्ति और विकास पृथ्वी की आयु


पृथ््ववी जो कि हमारा ग्रह है एक विशाल और गतिशील सौर मडं ल का भाग है। z वैज्ञानिकोों का अनमु ान है कि पृथ््ववी लगभग 4.54 बिलियन वर््ष पुरानी है,
पृथ््ववी की उत््पत्ति और सौर मडं ल का उद्भव एक-दसू रे से जटिल रूप से सबं ंधित जिसमेें लगभग 50 मिलियन वर््ष की त्रुटि है। पृथ््ववी की आयु का अनमु ान
है। पृथ््ववी की उत््पत्ति और विकास के लिए निम््नलिखित सिद््धाांत दिए गए हैैं: लगाने के लिए वैज्ञानिकोों द्वारा रेडियोमेट्रिक डेटिंग नामक तकनीक का उपयोग
z बिग बैैं ग सिद््धाांत: इसका प्रतिपादन एडविन हब््बल द्वारा किया गया था। इस किया गया। यह विधि तकनीकी चट्टानोों के भीतर रे डियोधर्मी तत्तत्ववों के विखडं न
सिद््धाांत के अनसु ार, ब्रह््माांड की उत््पत्ति लगभग 13.6 अरब वर््ष पर््वू एक ‘अति का विश्लेषण करती है।
छोटे गोलक’ (एकाकी परमाण)ु से हुई थी, जिसमेें एक विशाल विस््फफोट के z रे डियोमेट्रिक डेटिंग दो प्रकार से की जाती है। एक मेें कार््बन-14 जैसे
बाद तेजी से विस््ततार हुआ। अल््पकालिक रे डियोधर्मी तत्तत्ववों की उपस््थथिति को मापा जाता है। दसू रे मेें,
z निहारिका परिकल््पना: कांट ​​और लाप््ललास द्वारा प्रतिपादित, यह सिद््धाांत
वैज्ञानिक दीर््घ अवधि तक होने वाले रे डियोधर्मी तत्तत्ववों के क्षय को उनके स््थथिर
एक बड़़े, गर््म, गैसीय निहारिका के प्रारंभिक अस््ततित््व की पष्ु टि करता है। समय क्षय उत््पपादोों के साथ जाँच/ट्रैक करते हैैं, जैसे कि पोटेशियम-14 का आर््गन-40
मेें क्षय होना।
के साथ हुए विकिरण के कारण इसकी ऊष््ममा मेें कमी आई, जिससे इसमेें
सक ं ु चन हुआ और उसके उपरांत यह ठंडा हुआ। इस घमू ते हुए द्रव््यमान मेें z इन अनपु ातोों का विश्लेषण करके वैज्ञानिक चट्टान की आयु की गणना कर
घर््णन सकते हैैं और इसके फलस््वरूप हमारे ग्रह की आयु के बारे मेें बहुमल्ू ्य जानकारी
ू के कारण एक उभार विकसित हुआ और अतत ं ः पदार््थ वलयोों के रूप
प्राप्त कर सकते हैैं।
मेें अलग हो गया, जिससे संघनित होकर ग्रहों का निर््ममाण हुआ , जबकि केें द्रीय
द्रव््यमान से सर््यू का निर््ममाण हुआ। हालांँकि, यह सिद््धाांत सर््यू और ग्रहोों के मध््य पृथ्वी की गतियााँ
विद्यमान कोणीय गति मेें विशाल अतं र को स््पष्ट करने मेें सक्षम नहीीं है।
z ग्रहाणु परिकल््पना: इसका प्रतिपादन चेम््बरलेन और मौलटन द्वारा किया गया पृथ््ववी की दो मख्ु ्य गतियाँ घर््णन
ू गति और परिक्रमण गति हैैं। घर््णन ू का अर््थ है
था। इसके अनसु ार, एक गजु रता हुआ तारा सर््यू के संपर््क मेें आया, जिससे पृथ््ववी का अपनी धरु ी पर घमू ना, जिससे दिन और रात के चक्र का निर््ममाण होता
एक सिगार के आकार मेें पदार््थ का विस््ततार हुआ। माना जाता है कि यह पदार््थ है। परिक्रमण का अर््थ है पृथ््ववी का सर््यू के चारोों ओर एक निश्चित पथ या कक्षा मेें
संघनित हुआ, जिससे ग्रहोों का निर््ममाण हुआ, जो उल््ककापिंडोों की व््ययाख््यया करता घमू ना, जिससे मौसम चक्र का निर््ममाण होता है।
है। हालाँकि, प्रारंभिक पृथ््ववी से तीव्र ऊष््ममा के कारण गैसेें सघं नित होने के पृथ्वी के घूर्न
्ण के प्रभाव:
बजाय बाहर उत््सर््जजित हुई।ं z दिन और रात: पृथ््ववी के घमू ने से दिन और रात का 24 घटं े का चक्र बनता है।
z ज््ववारीय परिकल््पना: जीींस और जेफ़री ने एक ‘द्विआधारी तारे /बाइनरी स््टटार’ z पथ्ृ ्ववी का आकार: घर््णनू के कारण पृथ््ववी भमू ध््य रे खा पर थोड़़ी उभरी हुई
(Binary Star) परिदृश््य प्रस््ततावित किया, जिसमेें सर््यू दसू रे तारे के सपं र््क मेें और ध्रुवोों पर चपटी हो जाती है।
आता है, जिससे ज््ववारीय बल ग्रहोों का निर््ममाण करने वाले पदार्थथों को बाहर z दैनिक घटनाए:ंँ पृथ््ववी के घर््णन
ू के कारण हम सर्ू योदय, सर््ययाू स््त और दोपहर
की ओर खीींच लेते हैैं। इस सिद््धाांत की एक सीमा यह है कि यह सर््यू के अदं र का अनभु व करते हैैं।
विघटनकारी बलोों के बारे मेें नहीीं बताता है। z पवन और धारा का विक्षेपण: पृथ््ववी के घर््णन ू के कारण निर््ममित कोरिओलिस
z प्रोटोप््ललै नेट परिकल््पना: यह सिद््धाांत बताता है कि तीव्रता से घर््णणित ू निहारिका प्रभाव, पवनोों और समद्री
ु धाराओ ं को विक्षेपित करता है।
पदार््थ से विशाल घर््णणित ू क्षेत्ररों का निर््ममाण हुआ, जिन््हेें भवं र/गर््त कहा जाता z आभासी गति: घर््णन ू से यह भ्रम उत््पन््न होता है कि सर््यू , तारे और चद्रं मा
है। ये गर््त गरुु त््ववाकर््षण के माध््यम से आस-पास के पदार्थथों को आकर््षषित करते आकाश मेें गति करते रहते हैैं।
हैैं, अतत ं ः प्रोटोप््ललैनेट का निर््ममाण होता है। इन विशाल गर्ततों के अतर््गत ं छोटे पृथ्वी के परिक्रमण के प्रभाव:
गर्ततों से ग्रह तथा उपग्रहोों का निर््ममाण हुआ होगा।
z हमारा ग्रह (पृथ््ववी) सर््यू के चारोों ओर एक अण््डडाकार कक्षा मेें गति करता है,
हालाँकि प्रत््ययेक सिद््धाांत महत्तत्वपर््णू अतर्दृष्
ं टि प्रदान करता है परंतु इन सभी की अपनी जिसके कारण इसकी गति परू े वर््ष परिवर््ततित होती रहती है। सर््यू से सबसे दरू
सीमाएँ हैैं। नई खोजेें लगातार हमारी समझ को परिष््ककृत करती हैैं, जिससे पृथ््ववी की होने पर इसकी गति सबसे धीमी होती है (अपसौर) और सबसे निकट होने पर
उत््पत्ति एक निरंतर वैज्ञानिक रहस््य बनी हुई है। इसकी गति सबसे तीव्र होती है (उपसौर)।
z परिक्रमण के प्रभाव: प्रत््यक्ष स्रोत अप्रत््यक्ष स्रोत
 मौसम मेें परिवर््तन: z गहरे समद्र ु z अप्रत््यक्ष रूप से पदार््थ के गणोु ों का विश्लेषण आतं रिक
 पृथ््ववी सर््य
ू के चारोों ओर चक््कर लगाते समय अपनी धरु ी पर झक ु ी रहती मेें ड्रिलिंग भाग के बारे मेें जानकारी प्रदान करता है।
है, जिसके कारण ऋतओ ु ं मेें परिवर््तन होता है। पृथ््ववी के अलग-अलग परियोजना z उल््ककापिंड जो कभी-कभी पृथ््ववी तक पहुच ँ ते हैैं।
हिस््सोों मेें वर््ष भर अलग-अलग मात्रा मेें सर््यू की रोशनी प्राप्त होती है, z ज््ववालामखी ु z गरु ु त््ववाकर््षण
जिससे मौसमी बदलाव होते हैैं। विस््फफोट z चब ंु कीय क्षेत्र
 दैनिक प्रकाश की अवधि: पृथ््ववी के परिक्रमण के कारण दैनिक प्रकाश
z भूकंपीय गतिविधि: यह पृथ््ववी के अद ं रूनी भाग के
की अवधि भी परिवर््ततित होती है। संबंधित गोलार्द््धों मेें गर््ममियोों मेें दिन लंबे बारे मेें जानकारी के सबसे महत्तत्वपर््णू स्रोतोों मेें से एक
तथा सर््ददियोों मेें दिन छोटे होते हैैं। है। इसलिए, हम इस पर विस््ततार से चर््चचा करेें गे।
 पवन पेटियोों मेें परिवर््तन: परिक्रमण के कारण वैश्विक पवनोों की पेटियाँ
भक
ू ं पीय जाँच के आधार पर पृथ््ववी के आतं रिक भाग को सामान््यतः तीन प्रमख ु
प्रभावित होती है। जैस-े जैसे पृथ््ववी घमू ती है, पवन पेटी मेें परिवर््तन होता भागोों मेें विभाजित किया गया है:
है, जिससे वैश्विक स््तर पर मौसमी प्रणाली प्रभावित होती है। z भ-ू पर््पटी/क्रस््ट

तीन उत्तरी ध्रुव: z भ-ू प्रवार/मेेंटल

पृथ््ववी के तीन उत्तरी ध्रुव- भौगोलिक, चबंु कीय और भ-ू चबंु कीय हैैं। z कोर

z भौगोलिक उत्तरी ध्रुव: यह पृथ््ववी का भौतिक शीर््ष है, वह बिंद ु जहाँ घर््णन ू भू-पर््पटी/क्रस््ट: यह पृथ््ववी का सबसे बाह्य आवरण, है जिसकी मोटाई
की धरु ी पृथ््ववी की सतह को विकीर््णणित करती है। महासागरोों के ऊपर सबसे कम (5-10 किमी) और महाद्वीपोों के नीचे सबसे
z चुंबकीय उत्तरी ध्रुव: यह उत्तरी गोलार््ध का वह बिंद ु है, जहाँ पृथ््ववी का अधिक (35 किमी, पर््वतीय बेल््ट मेें 70 किमी तक) होती है। मोहोरोविक
चबंु कीय क्षेत्र सीधा नीचे की ओर झक ु ा होता है। यह स््थथिर नहीीं होता है और असंबद्धता क्रस््ट को मेेंटल से पृथक करती है।
चबंु कीय क्षेत्र मेें होने वाले परिवर््तनोों के कारण लगातार परिवर््ततित होता रहता है।
z भू-चुंबकीय उत्तरी ध्रुव: यह चम्ु ्बकीय मड ं ल का सबसे उत्तरी बिंदु है, जो
पृथ््ववी का चबंु कीय आवरण है, जो हमेें सर््यू से आने वाले आवेशित कणोों से
सरु क्षित रखता है।

प्रमुख शब्दावलियाँ
उष््ण गैसीय निहारिका; के न्द्रापसारक बल; गरुु त््ववाकर््ष ण खिंचाव;
ज््ववारीय विकृ तियाँ; सूर््य की द्वि-माध््य्ममीय उत््पत्ति; प्रोटो-प््ललेनेट;
महाद्वीपोों का जिगसॉ फ़़िट; हिमनद जमाव; प््ललेसर जमाव; जीवाश््म
वितरण; ध्रुवीय पलायन बल; ज््ववारीय बल आदि।
z महाद्वीपीय क्रस््ट दो परतोों मेें विभाजित होती हैैं:
पृथ्वी का चुब
ं कीय क्षेत्र  सियाल (SiAl) (ऊपरी): सिलिका और एल््ययुमीनियम से यक्त ु (11 किमी
z पृथ््ववी का आतं रिक भाग एक विशाल चबंु क की तरह कार््य करता है, जो एक मोटी)।
सरु क्षात््मक आवरण का निर््ममाण करता है जिसे मैग््ननेटोस््फफीयर/चबंु कीय क्षेत्र  सिमा (SiMa) (निचली): सिलिका और मैग््ननीशियम से यक्त ु (22 किमी
कहा जाता है। मोटी)।
z पृथ््ववी के घर््णन
ू और सर््यू से आने वाले आवेशित कणोों (सौर पवन) के निरंतर z कॉनराड असंबद्धता ऊपरी क्रस््ट (SiAl) और निचली क्रस््ट (SiMa) को

प्रवाह से निर््ममित यह गतिशील क्षेत्र, हमारे ग्रह को हानिकारक विकिरण और पृथक करती है।
वायमु डं लीय क्षरण से सरु क्षा प्रदान करता है। मेेंटल: पृथ््ववी की आतं रिक ऊर््जजा का स्रोत, जो प््ललेट विवर््तनिकी और भक ू ं प जैसी
z पृथ््ववी के बाहरी कोर के भीतर पिघले हुए लोहे के संचलन से चबंु कीय क्षेत्र घटनाओ ं को संचालित करता है। इसका विस््ततार मोहोरोविक असंबद्धता से
का निर््ममाण होता है, जो हमारे ग्रह की सरु क्षा के लिए अतं रिक्ष मेें दरू तक विस््ततृत 2900 किमी. की गहराई तक है।
होता है। z गुटेनबर््ग -वीचर््ट असंबद्धता मेेंटल को कोर के पृथक करती है।

z भक ू ं पीय तरंगोों के बढ़ते वेग से पता चलता है कि क्रस््ट की तल ु ना मेें मेेंटल मेें
पृथ्वी की आंतरिक संरचना
स््थथित पदार््थ अधिक सघन है।
पृथ््ववी के आतं रिक भाग के बारे मेें हमारा अधिकांश ज्ञान अनमु ानोों और निष््कर्षषों
z मेें टल की दो परतेें होती हैैं:
पर आधारित है। फिर भी, जानकारी का एक अश ं प्रत््यक्ष अवलोकन और पदार्थथों
 ऊपरी मेें टल (0-1000 किमी.):
के विश्लेषण के माध््यम से प्राप्त किया जाता है।

2  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


 इसके अतर््गत
ं (दो मेेंटल परतोों के मध््य) स््थथित गटु ेनबर््ग परत मेें कम भकू ं पीय  पैैंजिया सबसे पहले लॉरे शिया (अगं ारालैैंड) और गोोंडवाना मेें विभाजित
वेग का क्षेत्र पाया जाता है। हुआ, जिससे क्रमशः उत्तरी और दक्षिणी भाग का निर््ममाण हुआ।
 निचला मेेंटल (1000 - 2900 किमी.)  इसके बाद के चरणोों मेें, लॉरे शिया और गोोंडवानालैैंड विखडितं होकर
z स््थलमड ं ल, जिसमेें भपू र््पटी और ऊपरी मेेंटल का सबसे ऊपरी भाग शामिल वर््तमान स््थथिति पर आ गए।
है, दर््बु लमडं ल/एस््थथेनोस््फफीयर जो कि निचले मेेंटल मेें एक प््ललास््टटिक जैसा क्षेत्र महाद्वीपीय विस्थापन के साक्ष्य:
है, पर स््थथित होता है।
z महाद्वीपोों की भौगोलिक साम््यरूपता: महाद्वीपोों, विशेषकर दक्षिण अमेरिका
कोर: यह पृथ््ववी की सबसे आतं रिक परत है, जो गुटेनबर््ग-वीचर््ट असंबद्धता और अफ्रीका की तटरे खाएंँ एक पहेली के टुकड़ों के समान एक दसू रे से जड़ु ़ी
द्वारा मेेंटल से पृथक होती है तथा केें द्र तक विस््ततारित होती है। हुई हैैं, जिससे इस बात का पता चलता है कि वे कभी आपस मेें जड़ु ़ी हुई थी।
z अत््यधिक दाब के कारण कोर का बाह्य भाग तरल और आंतरिक भाग

ठोस होता है- लेहमैन असम्बद्धता, बाह्य और आतंरिक कोर को पृथक करती
है । अफ्रीका भारत
z S-तरंगोों की अनपु स््थथिति बाह्य कोर की तरल अवस््थथा की पष्ु टि करती है।
z कोर का तापमान लगभग 6000 डिग्री सेल््ससियस अनमु ानित है और इसका दक्षिण अमेरिका
दाब 3 मिलियन वायमु डं ल के दाब से भी अधिक है। ऑस्ट्रेलिया
z अनमु ानित है कि कोर का निर््ममाण मख्ु ्य रूप से निकल और लोहे (NiFe)
से हुआ है।
अंटार््कटिका
सिनोग््ननाथस गोरोसॉरस
महासागरीय और महाद्वीपीय वितरण
के भंडार मेसोसॉरस
महासागरोों और महाद्वीपोों का वितरण वर््तमान मेें जिस प्रकार से है, भ-ू वैज्ञानिक
इतिहास मेें कभी भी एक समान नहीीं रहा है। महासागरोों और महाद्वीपोों की सापेक्ष z महाद्वीपोों पर स््थथित चट्टानोों की समान आयु: महासागरोों के विपरीत किनारोों
गति को समझाने के लिए विभिन््न सिद््धाांत प्रस््ततुत किये गये हैैं। पर समान आयु और संरचना वाली चट्टानेें पाई जाती हैैं, जैसे ब्राजील और
पश्चिमी अफ्रीका के तटोों पर 2 अरब वर््ष प्राचीन चट्टानोों की उपस््थथिति।
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धधांत
z हिमनद निक्षेप: भारत के गोोंडवाना तंत्र के तलछट 6 अलग-अलग भ-ू भागोों मेें
z अल्फ्रेड वेगेनर पहले व््यक्ति थे, जिन््होोंने वर््ष 1912 मेें महाद्वीपीय विस््थथापन
एक समान हैैं। इसका आधार टिलाइट (हिमनद जमाव का एक रूप) से निर््ममित
का एक व््ययापक सिद््धाांत प्रस््ततुत किया था।
है, जो लंबे समय तक हिमनदीकरण का संकेत देता है।
z सिद््धाांत:
z प््ललेसर निक्षेप: घाना मेें प्रचरु मात्रा मेें पाए जाने वाले स््वर््ण भडं ारोों का स्रोत
 उनका मानना ​​था कि सभी महाद्वीप एक समय पैैंजिया (Pangaea) के रूप
स््थथानीय चट्टान नहीीं बल््ककि इसकी उत््पत्ति ब्राजील मेें पाए जाने वाली गोल््ड
मेें एक साथ जड़ु ़े हुए थे, जो चारोों ओर से समद्रु से घिरा हुआ था, जिसे बेरिंग वीनस (Gold-Bearing Veins) से मानी जाती है, जो अतीत के
पैैंथालासा (Panthalassa) कहा गया।
संबंधोों की पष्ु टि करती हैैं।
z जीवाश््म वितरण: उथले जल मेें पाए जाने वाले सरीसृप, मेसोसॉरस के
जीवाश््म दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका दोनोों मेें पाए जाते हैैं, जिससे इस
बात का संकेत मिलता है कि ये महाद्वीप कभी एक दसू रे के अत््यधिक निकट
स््थथित रहे होोंगे।
z विस््थथापन के लिए उत्तरदायी बल: वेगनर ने महाद्वीपीय विस््थथापन के लिए
दो बलोों को उत्तरदायी माना।
 ध्रुवीय पलायन बल: यह पृथ््ववी के घर््णन ू से संबंधित है।
 ज््ववारीय बल: यह सर््य ू और चद्रं मा के बीच आकर््षण के कारण उत््पन््न
होता है।
 वेगनर का मानना ​​था कि इन बलोों के दीर््घघावधि तक बने रहने के

परिणामस््वरूप महाद्वीपोों का विस््थथापन हुआ।


 हालाँकि वेगनर के सिद््धाांत को स््ववीकार कर लिया गया है, परंतु विस््थथापन

के लिए उत्तरदायी बलोों को अस््ववीकार कर दिया गया है।

भू-आकृ ति विज्ञ 3
संवहनीय धारा सिद्धधांत (1930, आर््थर होम्स ):
z सिद््धाांत: महाद्वीपीय संचलन/गति पृथ््ववी के मेेंटल के आतं रिक भाग मेें स््थथित
गर््म चट्टानोों की धीमी गति से बहने वाली संवहनीय धाराओ ं के कारण होती
है।
z प्रेरक बल: मेेंटल मेें रे डियोधर्मी तत्तत्ववों से उत््पन््न होने वाली ऊष््ममा तापमान मेें
अतं र उत््पन््न करती है, जिससे ऊष््ण, उत््प्ललावनशील चट्टान का परिसंचरण
होता है।
z आलोचना: कुछ वैज्ञानिकोों का प्रश्न हैैं कि क््यया रे डियोधर्मी क्षय से महाद्वीपीय
गति के लिए आवश््यक प्रबल संवहन धाराओ ं को बनाए रखने के लिए पर््ययाप्त
ऊष््ममा उत््पन््न होती है।
समुद्रतल प्रसार सिद्धधांत (1961, हैरी हेस ):
z सिद््धाांत: ज््ववालामखी
ु विस््फफोटोों के कारण समद्रु तल का लगातार मध््य- कुछ महत्त्वपूर््ण छोटी प्लेटोों के नाम इस प्रकार हैैं:
महासागरीय कटकोों पर प्रसार हो रहा है। नया समद्रु तल परु ाने हिस््सोों को बाहर z कोकोस प््ललेट: मध््य अमेरिका और प्रशांत प््ललेट के बीच।
की ओर धके लता है, जिससे महाद्वीप अलग-अलग हो जाते हैैं। z नज़का प््ललेट: दक्षिण अमेरिका और प्रशांत प््ललेट के मध््य।
z साक्षष्य: महासागरीय क्रस््ट कटकोों के पास नवीन है तथा कटकोों से दरू धीरे -धीरे z अरे बियन प््ललेट: ज़़्ययादातर सऊदी अरब का भ- ू भाग।
परु ाना होता जाता है। एक महासागर बेसिन का प्रसार होने पर दसू रे बेसिन का
z फिलीपाइन प््ललेट: एशियाई और प्रशांत प््ललेटोों के मध््य।
आकार छोटा नहीीं होता है, जो दर््शशाता है कि अतिरिक्त प्रक्रियाएँ संचालित हो
z कैरोलीन प््ललेट: फिलीपीन और भारतीय प््ललेटोों के मध््य (न््ययू गिनी के उत्तर मेें)
रही हैैं।
z फ़़ूजी प््ललेट: ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पर््वू मेें।
z समुद्रतल का उपयोग: हेस ने यह सिद््धाांत दिया कि प्रसारित कटकोों द्वारा
पीछे धके ले गए समद्रु तल को महासागरीय गर्ततों के अवतलन क्षेत्ररों मेें परिवर््ततित प््ललेटोों के किनारे : प््ललेट के किनारे तीन प्रकार के होते हैैं:
कर दिया गया है। अपसारी किनारा:
प्लेट विवर््तनिकी सिद्धधांत (1967, मैकेेंजी, पार््कर और मॉर््गन ): z प््ललेटेें मध््य महासागरीय कटकोों से दरू चली जाती हैैं, जिससेें नवीन समद्री
ु तल
z सिद््धाांत: पृथ््ववी का कठोर बाह्य आवरण, जिसे स््थलमडं ल/लीथोस््फफीयर कहा का निर््ममाण होता है। इससे भ्रंश घाटियोों और ज््ववालामखी ु य चट्टानोों जैसे
जाता है, बड़े गतिशील विवर््तनिक प््ललेटोों (टेक््टटोनिक प््ललेट्स) मेें विखडित
ं हुआ। बेसाल््ट (तीव्रता से ठंडा होने से निर््ममित) और गैब्रो (धीमी गति से ठंडा होने
ये प््ललेटेें महाद्वीपीय और महासागरीय दोनोों प्रकार की परतोों से मिलकर बनी से निर््ममित) का निर््ममाण होता है।
हैैं। अभिसारी किनारा:
z प््ललेट की गति: प््ललेटेें पृथ््ववी की सतह पर प्रति वर््ष कुछ सेेंटीमीटर की गति से z जब दो प््ललेटेें एक साथ आती हैैं या एक दसू रे के निकट आती हैैं, तो इसे
क्षैतिज रूप से गति करती हैैं। अभिसारी किनारे के रूप मेें जाना जाता है:
z प््ललेटोों की संरचना: ये प््ललेटेें मख्ु ्य रूप से महासागरीय (जैस,े प्रशांत प््ललेट) या  महासागरीय-महाद्वीपीय अभिसरण: सघन महासागरीय प््ललेटेें हल््ककी
महाद्वीपीय (जैस,े यरू े शियन प््ललेट) या दोनोों का संयोजन हो सकती हैैं।
महाद्वीपीय प््ललेटोों के नीचे क्षेपित हो जाती हैैं, जिससे गहरे महासागरीय
प्लेटोों की गति की क्रियाविधि गर्ततों का निर््ममाण होता हैैं। कै स््कके ड पर््वतोों के नीचे के धसं ाव क्षेत्र ज््ववालामखी
ु य
z पृथ््ववी का स््थलमडं ल कई बड़ी और कुछ छोटी प््ललेटोों मेें विभाजित है। गतिविधि को बढ़़ावा देते हैैं।
 महासागरीय-महासागरीय अभिसरण: उपरोक्त के समान (महासागरीय-
z नवीन वलित पर््वत श्रेणियाँ, गर््त और/या मख्ु ्य प््ललेटोों के चारोों और स््थथित भ्रंश
z प्रमुख/बड़ी प््ललेटेें इस प्रकार हैैं: महाद्वीपीय), सघन प््ललेट मेेंटल मेें क्षेपित हो जाती है, जिससे गर््त और
ज््ववालामुखी द्वीपीय चाप का निर््ममाण होता हैैं (उदाहरण के लिए-
 अट ं ार््कटिका और उसके चारोों और स््थथित समद्री ु प््ललेट
जापान)।
 उत्तरी अमेरिकी प््ललेट (पश्चिमी अटलांटिक तल कै रिबियाई द्वीपोों के साथ
 महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण: आपस मेें टकराने वाले महाद्वीप
दक्षिण अमेरिकी प््ललेट से अलग होती है)
अत््यधिक उत््प्ललावनशील होते हैैं, जिससे हिमालय जैसी विशाल पर््वत
 दक्षिण अमेरिकी प््ललेट (पश्चिमी अटलांटिक तल कै रिबियाई द्वीपोों के साथ

उत्तरी अमेरिकी प््ललेट से अलग होती है) ृंखलाओ ं का निर््ममाण होता हैैं।
 प्रशांत प््ललेट रूपाांतरित किनारा:
 इड ं ो-ऑस्ट्रेलिया-न््ययूजीलैैंड प््ललेट यहाँ प््ललेटेें एक दसू रे के समानांतर क्षैतिज रूप से विस््थथापित होती हैैं, जिससे
 पर्वी ू अटलांटिक तल के साथ अफ्रीकन प््ललेट अत््यधिक घर््षण उत््पन््न होता है और सैन एंड्रियास भ्रंश जैसे रूपांतरित भ्रंशोों
 यरू े शिया और समीपवर्ती महासागरीय प््ललेट।
का निर््ममाण होता हैैं।

4  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


भूकंपीयता और भूकंप
z भूकंप और उनका स्रोत: भक ू ं प पृथ््ववी के स््थलमडं ल मेें अचानक ऊर््जजा निर््ममुक्ति
संबंधी एक घटना है, जिससे जमीन मेें हलचल उत््पन््न होती है। यह ऊर््जजा
भकू म््प मल ू से उत््पन््न होती है, जो गहराई मेें भमि ू गत स््थथित होती है और
भक ू ं पीय तरंगोों के रूप मेें बाहर की ओर गति करती है। जब कोई गंभीर भक ू ं प,
जल के नीचे आता है, तो यह सनु ामी को उत््पन््न करने के लिए समद्रु तल को
पर््ययाप्त रूप से विस््थथापित कर सकता है।
z भूकंप के कारण: भक ू ं प का मख्ु ्य कारण पृथ््ववी की विवर््तनिकी प््ललेटोों की z भकू ं पीय तरंगोों के व््यवहार का विश्लेषण करके , वैज्ञानिक पृथ््ववी के आतं रिक
गति और उनमेें होने वाली परस््पर क्रियाएँ हैैं। हालाँकि ज््ववालामखी ु विस््फफोट, भाग के बारे मेें विस््ततृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैैं। गहराई के साथ P और
उल््ककापिंडोों का प्रभाव और भमि ू गत परमाणु विस््फफोट सहित अन््य कारक भी S तरंगोों की बढ़ती गति से पता चलता है कि जैसे-जैसे हम केें द्र की
मख्ु ्य भमिकू ा निभा सकते हैैं। ओर बढ़ते हैैं, पथ्ृ ्ववी की संरचना मेें परिवर््तन आता है। यह संभवतः कोर
के निकट सघन पदार्थथों की एक स््तरित संरचना की पुष्टि करता है।
भूकंप का अभिलेखन/रिकॉर््डडििंग:
z सीस््ममोग्राफ: ये उपकरण भक ू ं प के समय सतह पर होने वाली हलचल को
रिकॉर््ड करते हैैं तथा विश्लेषण के लिए सीस््ममोग्राम का उपयोग करते हैैं।
z रिक््टर स््ककेल: भक ू ं प के परिमाण (उत््सर््जजित ऊर््जजा) को 0 से 10 के रिक््टर
स््कके ल पर मापता है, जिसमेें बढती संख््ययाएँ अधिक बल को प्रदर््शशित करती हैैं।
z मरकली पैमाना: भक ू ं प की तीव्रता (अनमु ानित कंपन और क्षति) को 1 से
12 के पैमाने पर मापता है, जिसमेें उच््च संख््ययाएँ अधिक गंभीर प्रभावोों का
संकेत देती हैैं।
भूकंप के प्रकार:
z विवर््तनिकीय भूकंप: यह भक ू म््प का सर््ववाधिक सामान््य प्रकार है, जो
विवर््तनिक प््ललेटोों की गति के कारण उत््पन््न होता है।
भूकंपीय तरंगोों के प्रकार: z ज््ववालामुखीय भूकंप: मैग््ममा मेें उत््पन््न संचलन के कारण सक्रिय ज््ववालामखु ियोों
z प्राथमिक (P) तरंगेें: ध््वनि तरंगोों के समान, P-तरंगेें ठोस, तरल और गैसीय के पास उत््पन््न होते हैैं।
माध््यम से गति करती हैैं। ये भक ू ं प तरंगोों मेें सबसे तेज़ और सबसे अधिक z विध््ववंसक (Collapse) भूकंप: भमि ू गत खदानोों या गफ
ु ाओ ं के धसं ने से
आवृत्ति वाली होती हैैं। उत््पन््न होते हैैं।
z द्वितीयक (S) तरंगेें: इन तरंगोों मेें कण पथ के लंबवत गति करते हैैं । P-तरंगोों z विस््फफोट भूकंप: शक्तिशाली विस््फफोटकोों या परमाणु उपकरणोों के विस््फफोट से
के विपरीत S-तरंगेें के वल ठोस माध््यम से गजु रती हैैं और इसकी आवृत्ति उत््पन््न होते हैैं।
P-तरंगोों के समान होती है। z प्रेरित भूकंप: बड़़े जल निकायोों मेें मानवीय गतिविधियोों के कारण वृहद
z धरातलीय (L) तरंगेें: ये तरंगेें पृथ््ववी की ऊपरी सतह तक ही सीमित हैैं, L-तरंगेें जलभराव से उत््पन््न हो सकते हैैं।
सबसे धीमी लेकिन सबसे विनाशकारी प्रकार की भक ू ं पीय तरंगेें हैैं। ये रोलिंग
भूकंप के विनाशकारी परिणाम:
(नलिकाकार) गति मेें होती है और वे सतह पर अत््यधिक हलचल उत््पन््न
z सतह पर संचलन तथा विखंडन: कभी-कभी दरारोों या भ्रंशोों के साथ भमि ू
करती हैैं।
पर उत््पन््न विध््ववंसक संचलन।
छाया क्षेत्र: z भूस््खलन और हिमस््खलन: भक ू ं प ढलानोों पर भस्ू ्खलन और पहाड़़ी क्षेत्ररों
z पृथ््ववी के जिस क्षेत्र को छाया क्षेत्र कहा जाता है, वहाँ पथ्ृ ्ववी की आंतरिक मेें हिमस््खलन का कारण बन सकते हैैं।
संरचना के कारण P और S दोनोों तरंगोों का अनुभव नहीीं किया जाता है। z आग: क्षतिग्रस््त विद्युत लाइनेें या टूटी हुई गैस पाइपलाइनेें आग लगने का
P-तरंगेें तरल कोर के मध््य से गज़ु र सकती हैैं, जबकि S-तरंगेें नहीीं। इस अतं र कारण बन सकती हैैं।
के कारण ऐसे क्षेत्र का निर््ममाण होता है, जहाँ भक
ू ं प केें द्र से एक निश्चित दरू ी के z मृदा का द्रवीकरण: संचलन से ठोस मृदा तरल अवस््थथा मेें परिवर््ततित हो
बाद के वल P-तरंगेें ही गति कर सकती है। सकती है, जिससे सरं चनात््मक अस््थथिरता उत््पन््न हो सकती है।

भू-आकृ ति विज्ञ 5
z सना
ु मी और बाढ़: जल के नीचे उत््पन््न होने वाले भक ू ं प विनाशकारी सनु ामी पाइरोक््ललास््टटिक पदार््थ
उत््पन््न कर सकते हैैं, जबकि क्षतिग्रस््त बाँध या जलमार््ग बाढ़ का कारण बन पाइरोक््ललास््टटिक पदार््थ
द्रव लावा
( ग ाढ़ा) विस््कस (गाढ़ा) लावा
सकते हैैं। क्रे टर ठं डा लावा साइड वेेंट
स् ्कस ावा क्रे टर
वि ल ठोस लावा
केेंद्रीय वेेंट
z जीवन की क्षति: दख ु द बात यह है कि भक ू ं प से मनष्ु ्य और जानवर दोनोों साइड
वेेंट
केेंद्रीय वेेंट
मैग््ममा चैम््बर मैग््ममा चैम््बर
को क्षति हो सकती है। सिंडर कोन ज््ववालामुखी शील््ड ज््ववालामुखी मिश्रित ज््ववालामुखी लावा डोम

भूकंप का वैश्विक वितरण


z प्रशांत महासागर के किनारे पाई जाने वाली परि-प्रशांत भक ू ं पीय बेल््ट या पेटी ज्वालामुखी के प्रकार
विश्व की सबसे बड़़ा भक ू ं प बेल््ट है, इस क्षेत्र मेें पृथ््ववी के लगभग 81 प्रतिशत मिश्रित z मिश्रित ज््ववालामखीु मेें फे लसिक से लेकर मध््यवर्ती चट्टान
भक ू ं प आते हैैं। जिस कारण इसे ‘रिंग ऑफ फायर’ के नाम से जाना जाता है। ज््ववालामुखी होती हैैं।
z एल््पपाइड (Alpide) भक ू ं पीय बेल््ट का विस््ततार जावा से समु ात्रा तक है, जो z लावा की चिपचिपाहट का अर््थ है कि इन ज््ववालामखु ियोों
हिमालय, भमू ध््य सागर से होकर अटलांटिक मेें समाप्त होती है। विश्व के सबसे मेें होने वाले उदगार मेें अधिकतर समय विस््फफोटक होते हैैं।
बड़़े भक ू ं पोों मेें से लगभग 17 प्रतिशत इसी बेल््ट मेें उत््पन््न होते हैैं। शील््ड z शील््ड ज््ववालामखीु से निकलने वाला लावा तरल होता
z तीसरी प्रमख ु बेल््ट या पेटी मध््य अटलांटिक कटक है, जो जलमग््न है। इस ज््ववालामुखी है और आसानी से बहता है।
कटक से ज्ञात होता है कि दो विवर््तनिक प््ललेटोों का विस््ततार कहाँ तक हुआ z लावा मेें कम चिपचिपाहट का अर््थ है कि शील््ड
है ( अपसारी प््ललेट का किनारा)। ज््ववालामखी ु मेें उदगार की प्रकृ ति गैर-विस््फफोटक
होती है।
भारत का भूकंपीय मानचित्रण काल््डडेरा z वे सामान््यतः इतने विस््फफोटक होते हैैं कि जब इनमेें
z देश के भक ू ं पीय इतिहास के अनसु ार, भारत की कुल भमि ू का ~59% भाग विस््फफोट होता है , तो वे किसी ऊँं ची सरं चना का निर््ममाण
(भारत के सभी राज््योों को मिलाकर) अलग-अलग तीव्रता के भक ू ं पोों से ग्रस््त करने के बजाय स््वयं प्रसारित हो जाते हैैं।
है। z विस््फफोटक उदगार से निर््ममित गड््ढढोों को कै ल््डडेरा कहा
z देश के भक ू ं पीय जोन के मानचित्रण के आधार पर देश को कुल चार भक ू ं पीय जाता है।
क्षेत्ररों मेें वर्गीकृ त किया है। सिंडर शंकु z सिंडर शक ं ु आकार मेें शक्ं ्ववाकार होता है, परंतु यह मिश्रित
z ज़़ोन V भक ू ं पीय रूप से सबसे अधिक सक्रिय क्षेत्र है, जबकि ज़़ोन II सबसे ज््ववालामखी ु से बहुत छोटा होता है।
कम सक्रिय है। देश का लगभग ~ 11% क्षेत्र ज़़ोन V मेें, ~ 18% ज़़ोन IV मध््य z ये ज््ववालामखी ु समद्री
ु क्षेत्ररों मेें पाए जाते हैैं।
मेें, ~ 30% ज़़ोन III मेें और शेष ज़़ोन II के अतर््गत ं शामिल है। महासागरीय z इस कटक के मध््य भाग मेें सामान््यतः विस््फफोट होते रहते
कटक हैैं।
ज्वालामुखी ज््ववालामुखी
जब पृथ््ववी की आतं रिक परतोों को तोड़ते हुए मैग््ममा, गैसे,ें राख और चट्टानोों के
z
भू-आकृतियााँ और उनका विकास
टुकड़ोों का उद्गार पृथ््ववी की सतह पर होता है, तब यह प्रक्रिया ‘ज््ववालामुखीयता’
कहलाती है। प्रत््ययेक विस््फफोट के साथ ज््ववालामखी
ु की सरं चना मेें वृद्धि होती है। भ-ू आकृ तियाँ पृथ््ववी की सतह पर पाई जाने वाली ऐसी विशेषता है, जिनका निर््ममाण
z भमि
ू के अदं र गहराई मेें, पिघली हुयी चट्टानेें (मैग््ममा के रूप मेें) नलिकाओ ं के प्राकृतिक रूप से होता है तथा इसका आकार सामान््यतः घाटी या पर््वत जैसा होता
माध््यम से ऊपर की ओर आने से पहले एक संरचना मेें एकत्र होती हैैं तथा है। इनका आकार पहाड़़ियोों जैसा छोटा या पर््वतोों जैसा अत््यधिक विशाल हो सकता
छिद्ररों से प्रस््फफुटित होती हैैं। है।
ज्वालामुखी के प्रमुख भाग: पवन निर््ममित (Aeolian) भू-आकृतियााँ
z मैग््ममा चैैंबर: एक ज््वलनशील भमि ू गत निकाय, जहाँ पिघली हुई चट्टानेें और z वाय,ु दर््ल
ु भ वनस््पति और कम वर््षषा वाले ऊष््ण रे गिस््ततानोों मेें एक शक्तिशाली
गैसेें एकत्र होती हैैं। कारक है, जो अपरदन और निक्षेपण के माध््यम से अद्वितीय वातोढ़
z वाहक नली (Conduit): एक बेलनाकार मार््ग, जो मैग््ममा और ज््ववालामखी ु य भ-ू आकृ तियोों का निर््ममाण करती है।
पदार्थथों को चैैंबर से भ-ू सतह तक लाता है। z अपरदन भू-आकृतियाँ:

z कटक (Vent): ज््ववालामखी ु के शीर््ष पर स््थथित वह छिद्र जिसके माध््यम से  वेेंटिफै क््टट्:

ज््ववालामखीु य पदार््थ प्रस््फफुटित होते हैैं। पवन द्वारा उड़ने वाली रे त के घर््षण और पॉलिश की गई चट्टानोों के कारण
z क्रे टर: केें द्रीय छिद्र के चारोों ओर एक कटोरे नमु ा आकार का गड्ढा, जो गड्ढेदार और नालीदार सतहोों का निर््ममाण होता है।
विस््फफोटक पदार्थथों के विस््फफोट से निर््ममित होता है।  यारडांग:

z ढलान/स््ललोप््स: ज््ववालामखी ु के किनारे जो धीरे -धीरे केें द्रीय छिद्र से नीचे की  ये वायु अपरदन द्वारा निर््ममित बालू की सव्ु ्यवस््थथित सघन पंक्तियाँ
ओर आते हैैं। हैैं, जो पवन के प्रवाह की दिशा मेें होती हैैं।

6  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


अपवाह बेसिन (वात-गर््त): दरारेें/क्रवैस (Crevasses): गतिशील हिमनदोों मेें गहरी दरारेें बन जाती
जब पवन सतह पर उपस््थथित पदार्थथों को उड़ाकर ले जाती है, तो वात-गर््त है।
का निर््ममाण होता है।  फियोर््ड: जब हिमनद घाटियाँ समद्र ु के नीचे धसं जाती है, तो लंबे, संकीर््ण
 क्षत्रक शैल: मार््ग का निर््ममाण होता है।
पवन अपरदन के कारण चट्टानेें, चौड़़ी चोटी और संकरे आधार वाली बन z अपरदित भू-आकृतियाँ:

जाती हैैं, क््योोंकि पवनेें निचले भागोों पर अधिक तीव्रता से कटाव करती  हिमोढ़: पिघलते हुए हिमनदोों के निक्षेप द्वारा निर््ममित तलछट से बनी

है। पहाड़़ियाँ या कटक।


 ज़़्ययूजेन:  हिमनद टिल: हिमनदोों द्वारा अपने पीछे छोड़़े गए चट्टानोों और मलबे का

 सपाट शीर््ष वाले पठार, जिनमेें कठोर टोपीनम ु ा चट्टान के नीचे अव््यवस््थथित मिश्रण, जिसमेें पत््थरोों से लेकर बारीक कण तक शामिल होते
अपेक्षाकृत नरम चट्टान की परत है, वायु अपरदन के अवशेष हैैं। हैैं।
 गुंबदाकार टीला: खड़़ी ढलानोों और गोलाकार चोटियोों वाली पृथक  हिमनद/ग््ललेशियल फ््ललोर: हिमनदीय मृदा का सबसे महीन घटक, जो

पहाड़़ियाँ, जो आस-पास की नरम चट्टानोों के वाय-ु अपरदन के कारण हिमनदीय नदियोों और झीलोों के परिवर््ततित स््वरूप के लिए उत्तरदायी है।
निर््ममित होती हैैं।  हिमनद/ग््ललेशियल इरे टिक््स:

z निक्षेपित भू-आकृतियाँ: पीछे हटते हिमनदोों द्वारा निक्षेपित किए गए बड़़े पत््थर, सामान््यतः अपने
 बालुका स््ततूप: पवनोों द्वारा निर््ममित रे त के टीले, रे गिस््ततानोों और समद्र
ु तटोों उद्गम स््थल से बहुत दरू स््थथित होते हैैं।
पर पाए जाते हैैं। z हिमानीकृत/हिमाच््छछादित भू-आकृतियोों का महत्तत्व:

 अर्दद्धचंद्राकार स््ततूप: अर्दद्धचन्द्राकार रे त के टीले/स््ततूप जिनका  हिमानीकृ त/हिमाच््छछादित भ- ू आकृ तियाँ पर््वू जलवायु के बारे मेें सक ं ेत
आकार अग्रें जी के अक्षर ‘C’ से मिलता-जल ु ता होता है। देती हैैं। उदाहरण के लिए- भारत के तालचेर जैसे स््थथानोों मेें हिमनदीय
 रैखिक/रे खीय स््ततूप: टीलोों की सीधी या लगभग सीधी रे खाएँ।
चट्टानोों की उपस््थथिति इस क्षेत्र मेें हिमनदीकरण की अवधि का संकेत देती
है।
 तारा स््ततूप: कम से कम तीन तरफ नक ु ीली लकीरेें और स््ललिप फे स
(तीव्र ढलान) वाले स््ततूप। भूमिगत/भौम जल से निर््ममित कार्सस्ट (Karst) भू-आकृतियााँ
 परवलयिक स््ततूप: अर्दद्धचद्राक ं ार टीलोों के समान, लेकिन इसका z अद्वितीय भ-ू आकृ तियोों की विशेषता वाले कार््स््ट परिदृश््य, घल ु नशील आधार-
ढलान अदं र की ओर होता है। शैल (जैसे चनू ा पत््थर) और प्रचरु वर््षषा वाले क्षेत्ररों मेें निर््ममित होते हैैं।
 गुम््बदाकार टीले : अत््यधिक दर््ल ु भ प्रकार के स््ततूप, गोलाकार, z अपरदित भू-आकृतियाँ:

ढलान अनपु स््थथित।  घोलरंध्र: चट्टान या गफ ु ा की छत के ढहने से रिसाव के बाद निर््ममित गड्ढे
z लोएस: ये रे गिस््ततान के बाहर निक्षेपित होने वाली पवन द्वारा उड़ाकर लाए गये या छे द।
महीन धल ू के कण हैैं, जो सामान््यतः एक समान और छिद्रयक्त ु होते हैैं।  डोलाइन: घोलरंध्र के विलय से निर््ममित बड़़े आकार के गड्ढे।
(उदाहरण: मिसिसिपी नदी घाटी के साथ लोएस का निक्षेप)।  घाटी रंध्र/ युवाला: अनेक डोलाइनोों और घोलरंध्ररों के विलय से निर््ममित

हिमानी/हिमनद निर््ममित (Glacial) भू-आकृतियााँ और भी बड़़े आकार के गड्ढे।


 पोलज: बड़े आकार के निक्षेप, कभी-कभी भ्रंशन से प्रभावित हो जाते
z हिमानी/हिमनद गतिशील बर््फ का एक विशाल पिंड है, जो गरुु त््ववाकर््षण के
कारण गति करता है। हिमनदोों द्वारा कटाव मख्ु ्य रूप से टूटने और घर््षण के हैैं।
कारण होता है।  विलुप्तित धाराएँ/डिसअपीयरिंग स्ट्रीम:

z अपरदित भू-आकृतियाँ: सतही जलधाराएंँ जो भमि ू गत छिद्ररों के माध््यम से लप्तु हो जाती हैैं, तथा
 सर््क : पर््वतीय ढलानोों पर हिमनद अपरदन के कारण अत््यधिक ऊंँचाई पर
आगे चलकर गंफित ु रूप मेें पनु ः दृष्टिगत होती हैैं।
z अपरदित भू-आकृतियाँ:
बने कटोरे नमु ा आकार के गड्ढे।
 स््टटैलैक््टटाइट्स: कन््दरा की छत से लटकते हुए हिम-कण/हिमस््तम््भोों जैसी
 नुनाटक, अरे त और गिरि शृृं ग या हाॅर््न :
संरचनाए,ंँ जो खनिजोों के अवक्षेपित होने से निर््ममित होती हैैं।
ये सभी विशेषताएँ विभिन््न दिशाओ ं मेें बहने वाले अनेक हिमनदोों के
 स््टटैले ग््ममाइटस: कंदराओ ं के फर््श से ऊपर की तरफ बढ़ते टीले, जो टपकते
कटाव के परिणामस््वरूप निर््ममित होती हैैं।
 नुनाटक: ग््ललेशियर/हिमनदोों की बर््फ से उभरी चट्टानी चोटियाँ।
खनिज निक्षेप से निर््ममित होते हैैं।
 स््ततंभ: यह स््टटैलैक््टटाइट्स और स््टटैलेग््ममाइट का संलयन है।
 अरे त(Arêtes): ग््ललेशियरोों/हिमनदोों को अलग करने वाली नक ु ीली
पर््वत श्रेणी। z कार््स््ट स््थलाकृति का महत्तत्व:

 गिरि शृग या हाॅर््न : चारोों तरफ से ग््ललेशियरोों द्वारा निर््ममित नोकयक्त  कार््स््ट क्षेत्ररों मेें प्रारंभिक मानव विकास से संबंधित कलाकृ तियांँ संरक्षित

चोटियाँ। है।

भू-आकृ ति विज्ञ 7
 हमारे पर््वजो
ू ों के लिए बहुमल्ू ्य संसाधन उपलब््ध है।  कंदराएँ, आर््च, स््टटैक और स््टटंप: लगातार लहरोों के टकराने से शीर््षस््थल
 विविध जीवन रूपोों के साथ अद्वितीय पारिस््थथितिक तंत्र के विकास मेें पर कंदराओ ं का निर््ममाण होता है । समय के साथ, ये कंदराएँ आर््च मेें
सहायक। परिवर््ततित हो जाती हैैं, फिर स््टटैक (अलग-अलग चट्टान के खभं )े और
अतत ं ः निरन््तर कटाव के कारण स््टटंप का निर््ममाण होता है।
जलोढ़ (Alluvial) भू-आकृतियााँ
z अपरदित भू-आकृतियाँ
z नदी और जलधाराओ ं के कटाव से जलोढ़ तंत्र प्रभावित होता है।
 पुलिन: ये रे तीले स््थल लहरोों से टकराकर समद्र ु द्वारा निक्षेपित किए गए
z अपरदित भू-आकृतियाँ: चट्टानोों के टुकड़ों से निर््ममित हैैं।
 जलप्रपात: कठोर चट्टानोों से गिरती नदियाँ, जो सामान््यतः नवीन नदियाँ
 स््पपिट, रोधिका और लैगून: स््पपिट रे त के लम््बबे खड ं होते हैैं, जो समद्रु मेें
होती हैैं। फै ले होते हैैं। यदि स््पपिट का विस््ततार खाड़़ी मेें होता है तथा दो शीर््षस््थलोों
 कैनियन और गाॅर््ज : ये कटाव से निर््ममित खड़़ी ढलानोों वाली गहरी को जोड़ता है, तो यह एक अवरोधिका मेें परिवर््ततित हो जाता है, कभी-कभी
घाटियाँ, होती हैैं। घाटियाँ सीढ़़ीनमु ा ढलानोों से यक्त
ु अत््यधिक गहरी होती इसके पीछे लैगनू (उथली झीलेें) का निर््ममाण होता हैैं।
हैैं। z तटीय भू-आकृतियोों का महत्तत्व:
 नदी के जलोढ़ मै दान: पर््वतोों या पहाड़़ियोों के मध््य स््थथित निचले क्षेत्र ,
 पर््यटन के न्दद्र: तटीय भ- ू आकृ तियाँ विशेषकर समद्रु तट, प्रमख ु पर््यटन
जहाँ से सामान््यतः नदी बहती है। स््थल के रूप मेें कार््य करते हैैं।
 जलगर््ततिक: चट्टान मेें कटोरे नम ु ा आकार के गड्ढे, जो प्रवाहित जल और  खनिज संसाधन: समद्र ु तटोों पर सोना (सवर््ण ु रे खा नदी) और थोरियम
अवसाद से भरे हुए होते हैैं। (के रल) जैसे बहुमल्ू ्य खनिज पाए जा सकते हैैं।
z अपरदित भू-आकृतियाँ: z तटीय क्षरण का बढ़ता खतरा:
 जलोढ़ पंख और शंकु: बहते जल द्वारा अपने पीछे छोड़़े गए अवसाद
 सभ ु ेद्य तटरेखाएँ: भारत की तटरे खा पर अत््यधिक क्षरण का खतरा है,
से पंख के आकार के निक्षेप। शक ं ु की तल
ु ना मेें जलोढ़ पंख मेें ढलान जिससे इसकी 33.6% तटरे खा असरु क्षित है। ओडिशा मेें तटरे खा क्षरण
कम होता है। इसका एक प्रमख ु उदाहरण है, जो इसके 28% तट को प्रभावित कर रहा
 प्राकृतिक तटबंध: नदी के किनारे बहते जल के कारण बनी तलछट की
है।
ऊँची चट्टानेें।  समुदायोों पर प्रभाव: तटीय क्षरण से समद ु ाय विस््थथापित होते हैैं, आवास
 बाढ़ के मै दान: नदियोों के किनारे स््थथित निचले, समतल, बाढ़ की आशक ं ा नष्ट होते हैैं, तथा नावोों, जालोों और संचालन के लिए स््थथान न होने के
वाले तथा तलछट जमा से समृद्ध क्षेत्र। कारण मत््स््ययन गतिविधियाँ बाधित होती हैैं।
 प्रवाह/चैनल और रोधिका: नदियोों मेें जल के नीचे की रे त के कटक
z तटीय क्षरण की रोकथाम के लिए सरकारी प्रयास:
(चैनल) और निक्षेपित तलछट (रोधिका) से निर््ममित ऊंँचे क्षेत्र।  मैैंग्रोव और शेल््टर बेल््ट लगाना।
 डेल््टटा: नदी के मह ु ाने पर त्रिकोणीय भ-ू आकृ तियाँ, जो झीलोों या समद्रु रों  जियो-ट्यब ू लगाना।
मेें तलछट के निक्षेपण से निर््ममित होती हैैं तथा यह प्रौढ़ नदियोों की विशेषता
 विस््थथापित समुदायोों के लिए पुनर््ववास कार््यक्रम: क्षरण को रोकने के
है।
लिए शमन उपायोों के तौर पर 1500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैैं।
z जलोढ़ भू-आकृतियोों का महत्तत्व:
 जलोढ़ प्रणालियोों के निक्षेपण से निर््ममित मैदान विश्व के उपजाऊ क्षेत्ररों मेें
निष्कर््ष:
से एक हैैं, जिन््होोंने अनेक सभ््यताओ ं को आश्रय दिया है। भ-ू आकृ ति विज्ञान का अध््ययन पृथ््ववी की सतह को आकार देने वाली प्रक्रियाओ ं
 इसके अलावा जलोढ़ तंत्र द्वारा लाई गई चट्टानेें स्रोत चट्टानोों की खनिज ं टि प्रदान करता है, जो भ-ू विज्ञान, जल विज्ञान, वायमु डं लीय
के बारे मेें महत्तत्वपर््णू अतर्दृष्
सरं चना को दर््शशाती हैैं। और जैविक बलोों के बीच गतिशील अतं ःक्रियाओ ं की व््ययापक समझ प्रदान करता
है। भ-ू आकृ तियोों और उन््हेें निर््ममाण और संशोधित करने वाली प्रक्रियाओ ं की जाँच
तटीय (Coastal) भू-आकृतियााँ करके , भ-ू आकृ ति वैज्ञानिक पर््वू वातावरण की व््ययाख््यया कर सकते हैैं और भविष््य
z अपरदित भू-आकृतियाँ: मेें होने वाले परिवर््तनोों के बारे मेें अनमु ान लगा सकते हैैं, जिससे प्राकृतिक खतरोों,
 शीर््ष स््थल और खाड़़ियाँ: शक्तिशाली तरंगे,ें नरम चट्टानोों को नष्ट कर पर््ययावरण प्रबंधन और परिदृश््य विकास के बारे मेें हमारे ज्ञान मेें वृद्धि होती है।
खाड़़ियोों का निर््ममाण करती हैैं, जबकि अवरोधक चट्टानेें शीर््षस््थल/उभरी भ-ू आकृ ति विज्ञान से प्राप्त ज्ञान हमेें उचित निर््णय लेने की क्षमता से यक्त ु करता
हुई चट्टानोों का निर््ममाण करती हैैं। है, जो हमारे पर््ययावरण की रक्षा और संरक्षण कर सकता है, संसाधनोों के सतत
 भंग ृ ु और तरंग घर््षषित भंगृ ु प््ललेटफार््म: लहरेें निरंतर चट्टानोों से टकराती विकास को सनु िश्चित कर सकता है और समदु ायोों को भ-ू आकृ ति संबंधी खतरोों से
हैैं, जिससे खड़़ी ढलानोों का निर््ममाण होता है। लहरोों के कटाव से चट्टान सरु क्षित कर सकता है। जैस-े जैसे हम आगे बढ़ेंगे, इस क्षेत्र मेें निरंतर अनसु धं ान और
के आधार पर एक सपाट, लहरदार -कटाव वाले प््ललेटफार््म का निर््ममाण शिक्षा, पृथ््ववी के गतिशील परिदृश््य को समझने और उसके अतर््गत ं सामजं स््यपर््णू
होता है। ढंग से रहने की हमारी समझ मेें महत्तत्वपर््णू रूप से सहायक होगी।

8  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z पर््वत पारिस््थथितिकी तंत्र को विकास पहलोों और पर््यटन के ऋणात््मक प्रभाव
से किस प्रकार पनु : स््थथापित किया जा सकता है?(2019)
प्रमुख शब्दावलियाँ 'मेेंटल प््ललूम' को परिभाषित कीजिये और प््ललेट विवर््तनिकी मेें इसकी भमिक
z ू ा
बिग बैैंग थ््ययोरी, नेबल ु र परिकल््पना, प््ललेनेटेसिमल परिकल््पना, को स््पष्ट कीजिये।(2018)
ज््ववारीय परिकल््पना, प्रोटोप््ललानेट परिकल््पना, रेडियोमेट्रिक डेटिंग, z ‘नासा’ का जनू ो मिशन पृथ््ववी की उत््पत्ति और विकास को समझने मेें किस
घूर््णन, परिक्रमण, अर््थ बल््ग, कोरिओलिस प्रभाव, अपसौर, उपसौर, प्रकार सहायता करता है? (2017)
पृथ््ववी का चंबु कीय क्षेत्र, कोनराड असंबद्धता, मेेंटल, गटु ेनबर््ग-वेइचर््ट z क््यया कारण है कि संसार का वलित पर््वत (फोल््डडेड माउंटेन) तंत्र महाद्वीपोों के
असंबद्धता, लिथोस््फफीयर, एस््थथेनोस््फफीयर, कर््स््ट स््थलाकृ ति, सीमांतोों के साथ-साथ अवस््थथित है? वलित पर््वतोों के वैश्विक वितरण और
डोलिन््स, उवालास, पोलजेस, स््टटैलेक््टटाइट् स, स््टटैलेग््ममाइट् स भक ू ं पोों एवं ज््ववालामखु ियोों के बीच साहचर््य को उजागर कीजिये।(2014)
विगत वर्षषों के प्रश्न z इडं ोनेशियाई और फिलीपीींस द्वीपसमहोू ों मेें हज़ारोों द्वीपोों के विरचन की व््ययाख््यया
कीजिये।(2014)
z फियाॅर््ड कै से बनते हैैं? वे दनु िया के कुछ सबसे सरु म््य क्षेत्ररों का निर््ममाण क््योों
करते हैैं?(2023) z ‘महाद्वीपीय विस््थथापन’ के सिद््धाांत से आप क््यया समझते हैैं? इसके पक्ष मेें प्रमख

साक्षष्ययों की विवेचना कीजिये।(2013)
z परि-प्रशांत क्षेत्र के भ-ू भौतिकीय अभिलक्षणोों का विवेचन कीजिये।(2020)

भू-आकृ ति विज्ञ 9
2 जलवायु विज्ञान

परिचय पृथ्वी का वायुमड


ं ल
हमारी पृथ््ववी गैसोों की एक पतली परत से घिरी हुई है, जिसे वायमु डं ल के रूप मेें वायमु डं ल विभिन््न प्रकार की गैसोों, जलवाष््प और धल ू कणोों से बना है। वायमु डं ल
जाना जाता है। इसमेें मख्ु ्य रूप से नाइट्रोजन और ऑक््ससीजन की बहुलता है। यह का संघटन स््थथिर नहीीं है, यह समय और स््थथान के अनसु ार परिवर््ततित होती रहती
गैसीय आवरण बाहर की ओर गोलाकार रूप मेें फै ला हुआ है, यह आवरण भमू ध््य है। वायमु डं ल मेें नाइट्रोजन और ऑक््ससीजन दो मख्ु ्य गैसेें हैैं। इसका 99 प्रतिशत
रे खा पर चौड़़ा और पृथ््ववी की घर््णन
ू गति व गरुु त््ववाकर््षण के कारण ध्रुवोों पर थोड़़ा भाग इन््हीीं दो गैसोों से बना है। अन््य गैसेें जैसे कार््बन डाइऑक््ससाइड, हाइड्रोजन,
सपाट होता है। वायमु डं ल को अलग-अलग परतोों मेें विभाजित किया गया है, जिनमेें नियोन, हीलियम आदि वायमु डं ल के शेष भाग का निर््ममाण करती हैैं।
से प्रत््ययेक का तापमान और रासायनिक संरचना अलग-अलग है। ये परतेें पृथ््ववी के
गरुु त््ववाकर््षण द्वारा अपनी जगह पर टिकी रहती हैैं, जो वायमु डं ल मेें मौजदू गैसोों के
प्रकारोों को भी प्रभावित करती हैैं।

ऑक््ससीजन आर््गन (0.93%)


20.95% िजनान (0.000009%)
िनयॉन (0.0018%)
हाइड्रोजन (0.00005%)
नाइट्रोजन हीिलयम (0.0005%)
िक्रप््टन (0.0001%)
78.08% कार््बन डाईऑक््ससाइड (0.38%)

जलवायु और मौसम के बीच अंतर


z कालक्रम (Timescale) :मौसम अल््पकालिक (घटों ों से लेकर दिनोों तक)
होता है जबकि जलवायु दीर््घकालिक (दशकोों से लेकर शताब््ददियोों तक) होती
है। मौसम का आप प्रतिदिन अनभु व कर सकते हैैं जबकि जलवायु को दीर््घ
अवधि मेें औसत मौसम अवस््थथा के रूप मेें समझा जा सकता है।
z परिवर््तनशीलता (Variability): मौसम अत््यधिक परिवर््तनशील है और
यह तेज़़ी से बदलता है। जलवाय,ु औसत मौसम की स््थथिति को दर््शशाती है, जो वायुमंडल की संरचना
दैनिक उतार-चढ़़ाव को संतलित ु करती है परतेें (Layers) विवरण (Details)
z स््थथानिक विस््ततार (Spatial Scope): मौसम थोड़ी दरू ी पर भी काफी भिन््न z वायमु डं ल की सबसे निचली परत की औसतन
हो सकता है। जलवायु एक बड़़े क्षेत्रफल जैसे शहर, क्षेत्र या संपर््णू पृथ््ववी पर ऊँचाई 13 किमी है, अधिकांश मौसमी घटनाएँ
सामान््य मौसम अवस््थथा का वर््णन करती है। इसी परत मेें घटित होती हैैं।
z पूर््ववानुमान (Predictability): छोटे बदलावोों के प्रति संवेदनशीलता के z यह भमू ध््य रे खा पर मोटी (18 किमी) और ध्रुवोों
कारण दीर््घ अवधि के लिए मौसम का पर््ववान ू मु ान लगाना कठिन है। जलवायु पर पतली (8 किमी) है।
क्षोभमंडल
दीर््घ अवधि के स््तर पर ज़़्ययादा पर््ववान
ू मु ान योग््य है क््योोंकि यह बड़़े, अधिक
(Troposphere) z इस परत मेें ऊँचाई मेें वृद्धि के साथ तापमान मेें
स््थथिर कारकोों से प्रभावित होती है।
लगातार गिरावट होती है (165 मीटर पर 1°C)।
z प्रभाव (Impact): मौसम हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित करता है, जबकि
जलवायु के पारिस््थथितिकी तंत्र, कृ षि, जल ससं ाधन और सपं र््णू समाज पर z यह क्षोभसीमा (Tropopause) द्वारा समताप
व््ययापक प्रभाव होते हैैं। जलवायु परिवर््तन का आवासोों से लेकर चरम मौसमी मडं ल से अलग होती है (इस सीमा पर तापमान
घटनाओ ं तक समस््त वस््ततुओ ं पर महत्तत्वपर््णू दीर््घकालिक प्रभाव हो सकता है। -45°C से -80°C के आसपास स््थथिर रहता है)।
z यह परत पृथ््ववी से 50 किमी की ऊँचाई तक z धरातलीय ओजोन (Surface Ozone):तापमान मेें वृद्धि से धरातलीय
विस््ततृत है। ओजोन मेें वृद्धि हो सकती है, जो एक हानिकारक वायु प्रदषक ू है।
z वायमु डं ल की अधिकांश ओजोन इसमेें समाहित z विषम तापन और शीतलन (Uneven Heating and Cooling):ओजोन

है, जो पराबैैंगनी किरणोों (UV rays) को जलवायु को गर््म करता है, जबकि ब््ललैक कार््बन जैसे कुछ कण इसको गर््म
अवशोषित करती है और ऊँचाई के साथ तापमान करने मेें योगदान कर सकते हैैं और सल््फफेट जैसे अन््य कण शीतलन प्रभाव
मेें वृद्धि करती है। डाल सकते हैैं।
समताप मंडल z इस परत के निचले भाग मेें 20 किमी की ऊँचाई z तीव्र जलवायु परिवर््तन (Drastic climatic changes): जलवायु
(Stratosphere) तक तापमान मेें कोई परिवर््तन नहीीं आता, इसके प्रतिमान यह भविष््यवाणी करते हैैं कि यदि हम "सामान््य रूप से" चलते रहेेंगे
ऊपर 50 किमी की ऊँचाई तक तापमान मेें वृद्धि तो भारी परिवर््तन होोंगे, जिसमेें वैश्विक तापमान मेें 2.8°C की वृद्धि शामिल
होती है।
है, तथा भमिू और आर््कटिक मेें तापमान मेें और भी अधिक वृद्धि होगी।
z मौसमी घटनाओ ं से मक्त ु होने के कारण यह मडं ल
इन वायमु डं लीय व््यवधानोों और उनके व््ययापक प्रभावोों को कम करने के लिए
हवाई यात्रा के लिए आदर््श है।
जलवायु परिवर््तन से निपटना अत््ययंत महत्तत्वपर््णू है।
z इस मडं ल के निचले संस््तरोों पर कभी- कभी
पक्षाभ (Cirrus) मेघ दिखाई देते हैैं। ऊष्मा बजट
z समताप मडं ल के ऊपर,मध््यमडं ल सीमा
पृथ््ववी आने वाले सौर विकिरण (लघतु रंग विकिरण) को अवशोषित करती है और
(Mesopause) पर न््ययूनतम तापमान -90°C
तक पहुचँ जाता है। ऊष््ममा को स््थलीय विकिरण (दीर््घतरंग विकिरण) के रूप मेें वापस अतं रिक्ष मेें
मध््यमंडल z पृथ््ववी के वायमु डं ल मेें प्रवेश करने पर अधिकांश छोड़ती है।आने वाली और बाहर जाने वाली ऊष््ममा के बीच यह संतल ु न पृथ््ववी को
(Mesosphere) उल््कका पिडं इस परत मेें आने पर जल जाती हैैं। एक स््थथिर तापमान बनाए रखने की अनमु ति देता है, जिसे पृथ््ववी का ऊष््ममा बजट
z अत््यधिक निम््न तापमान के कारण दर््ल ु भ कहा जाता है।
जलवाष््प ध्रुवीय-मध््यमडं लीय रात्रिचर बादलोों मेें जलवायु और पृथ्वी का ऊर्जा बजट
परिवर््ततित हो जाता है। z असमान तापन और नियमन (Uneven Heating and Regulation):
z सर््यू से पराबैैंगनी और एक््स-किरणोों के विकिरण गोलाकार पृथ््ववी असमान सौर ताप प्राप्त करती है, जिसमेें गर््म भमू ध््यरे खीय क्षेत्र
के अवशोषण के कारण इस परत के तापमान मेें और ठंडे ध्रुवीय क्षेत्र होते हैैं। इसके अलावा, वायमु डं ल और महासागर (पृथ््ववी
पनु ः वृद्धि हो जाती है। का ताप इजं न) गर्मी के पनर्
तापमंडल ु ्ववितरण और संतलु न बनाए रखने के लिए विभिन््न
z अतं रराष्ट्रीय अतं रिक्ष स््टटेशन और उपग्रह इसी प्रक्रियाओ ं के माध््यम से एक साथ काम करते हैैं।
(Thermosphere)
परत मेें परिक्रमा करते हैैं।
z जलवायविक शक्तियाँ और असंतुलन (Climate Forcings and
z कार््मन रे खा (100 किमी ऊँचाई) पृथ््ववी के
वायमु डं ल को बाहरी अतं रिक्ष से अलग करती है। Imbalance):सौर गतिविधि, ज््ववालामखी ु विस््फफोट (प्राकृतिक), और
z विद्युत आवेशित कणोों वाला ऊपरी क्षेत्र (80- मानवीय गतिविधियाँ (एयरोसोल, वनोों की कटाई, ग्रीनहाउस गैसेें) जैसे कारक
आयनमंडल 400 किमी)। जिन््हेें जलवायविक शक्तियाँ कहा जाता है, इस सतं ल ु न को बाधित कर सकते
(Ionosphere) z रे डियो तरंगोों को परावर््ततित करता है, जिससे रे डियो हैैं। और जलवायु परिवर््तन का कारण बन सकते हैैं।
संचार संभव होता है। z मानवीय प्रभाव (Human Impact):हाल ही मेें NASA ने एक अध््ययन
z आयनमडं ल के ऊपर, 400 किमी से अधिक तक मेें पष्ु टि की है कि मानव-जनित ग्रीनहाउस गैसेें वैश्विक तापन के प्राथमिक कारक
बहिर्मं डल विस््ततृत। हैैं। पृथ््ववी के ऊर््जजा बजट मेें यह असंतल
ु न वायमु डं ल की निचली परतोों मेें ताप
(Exosphere) z यहाँ पर तापमान धीरे -धीरे बढ़ते हैैं साथ ही हवाएँ वृद्धि के कारण होता है, जिसके परिणामस््वरूप वैश्विक जलवायु प्रतिरूप मेें
अत््ययंत विरल होती है। दीर््घकालिक परिवर््तन होते हैैं।
जलवायु परिवर््तन और वातावरण शहरी ऊष्मा द्वीप और ऊष्मा तरंगोों के बीच अंतर्क्रिया
z मानवीय गतिविधियोों के कारण निचले और मध््य वायमु डं ल मेें परिवर््तन हो रहे z लू की लहर(Heat Waves): लू की लहरेें अत््यधिक उच््च तापमान की
हैैं, जिससे हवा के प्रतिरूप मेें बदलाव के माध््यम से ऊपरी वायमु डं ल को अवधि होती हैैं, जो सामान््य अधिकतम स््तर से अधिक होती है, जो अक््सर गर्मी
प्रभावित करते हैैं। इन बदलावोों के महत्तत्वपर््णू परिणाम होोंगे: के मौसम के दौरान भारत के उत्तर-पश्चिमी और दक्षिण मध््य क्षेत्ररों मेें होती है।
z ऊष््ममीय लहरोों (Heat Waves):जलवायु परिवर््तन उच््च दाब प्रणालियोों को z लू की लहरोों का प्रभाव (Impacts of Heat Waves): लक ू े लहरोों के
तीव्र करता है, जिससे अधिक संख््यया मेें और गंभीर तापीय लहर उत््पन््न होती हैैं। प्रभावोों के उदाहरणोों मेें पर्वोत्त
ू र एशिया मेें 2018 की लू की लहर शामिल है,
z ऊपरी वायुमंडल का संकुचन (Contracting Upper Atmosphere): जिसके परिणामस््वरूप जापान मेें ऊष््ममाघात (Heat Strokes) के कारण बड़़ी
CO2के स््तर मेें वृद्धि ऊपरी वायमु डं ल को ठंडा और संकुचित करती हैैं, जिससे सख्ं ्यया मेें लोग अस््पताल मेें भर्ती हुए और चीन मेें लंबे समय तक उच््च तापमान
अतं रिक्ष मेें उपस््थथित मलबे का जीवनकाल प्रभावित होता है। की चेतावनी दी गई।

जलवायु विज्ञ 11
z प्रति-चक्रवात की भूमिका (Role of Anticyclones): हाल के शोध से जिससे वैश्विक परिसंचरण प्रतिरूप प्रभावित होता है और संभावित रूप से
ज्ञात होता है कि पर्वोत्त ू र एशिया मेें अत््यधिक गर्मी की घटनाओ ं और इस क्षेत्र क्षेत्रीय जलवायु मेें परिवर््तन होता है।
मेें प्रति-चक्रवात की भागीदारी के बीच सबं ंध है। z प्रतिक्रियात््मक लूप््स: (Feedback Loops):क्रायोस््फफीयर अन््य जलवायु
z शहरी ऊष््ममा द्वीप प्रभाव (Urban Heat Island Effect):लू की लहरोों प्रणालियोों के साथ परस््पर क्रिया करता है। बर््फ के पिघलने से फंसी हुई
के दौरान, शहरी क्षेत्ररों मेें आसपास के ग्रामीण क्षेत्ररों की तल ु ना मेें तापमान मेें ग्रीनहाउस गैसेें निकलती हैैं, जो इस दष्ु ्चक्र मेें तापन की क्रिया को तेज करती हैैं।
वृद्धि का अनभु व होता है। बढ़़ी हुई संवेदी ऊष््ममा उत््सर््जन, कम वाष््पपीकरण z जल भंडार (Water Reservoir):क्रायोस््फफीयर मेें बर््फ और हिम के रूप मेें
शीतलन, तथा उच््च मानवजनित ऊष््ममा जैसे कारक इस प्रभाव मेें योगदान करते बहुत अधिक मात्रा मेें ताजा पानी जमा रहता है। क्रायोस््फफीयर मेें होने वाले
हैैं। शहरी ऊष््ममा द्वीप का निर््ममाण शहरी क्षेत्ररों मेें धरतलीय ऊष््ममा बजट मेें परिवर््तन, परिवर््तन से मानव उपभोग, कृ षि और जलविद्युत के लिए पानी की आपर््तति ू
कृ त्रिम सतहोों की ऊष््ममा भडं ारण क्षमता मेें वृद्धि, तथा वाष््पपीकरण शीतलन मेें बाधित हो सकती है, जिससे कमी और संघर््ष की स््थथिति पैदा हो सकती है।
कमी के कारण उच््च तापमान के कारण होता है। z आवासीय हानि (Habitat Loss):पिघलती बर््फ ध्रुवीय पारिस््थथितिकी तंत्र
वायुमंडलीय नदी (Atmospheric River) और ठंडी परिस््थथितियोों पर निर््भर प्रजातियोों के लिए सकटं है। इससे पारिस््थथितिक
z नमी के संकीर््ण प्रवाह (Narrow Channels of Moisture): संतल ु न बिगड़ता है और समग्र जैव विविधता कम होती है।
वायमु डं लीय नदियाँ वायमु डं ल मेें लंबे, संकीर््ण गलियारे हैैं जो उष््णकटिबंधीय हिमाांक-मंडल ( क्रायोस्फीयर ) का महत्त्व
क्षेत्ररों से ध्रुवोों की ओर भारी मात्रा मेें जलवाष््प ले जाती हैैं। z जलवायु विनियमन (Climate Regulation):सर््यू के प्रकाश को परावर््ततित
z नमी के शक्तिकेें द्र (Moisture Powerhouses): नमी के ये सक ं ीर््ण करके , क्रायोस््फफीयर पृथ््ववी को ठंडा रखता है और वैश्विक जलवायु स््वरूप को
गलियारे हज़़ारोों किलोमीटर तक फै ले हो सकते हैैं और असाधारण रूप से प्रभावित करता है।
उच््च जलवाष््प धारण की विशेषता रखते हैैं। z समुद्र-तल नियंत्रण (Sea Level Control):क्रायोस््फफीयर समद्रु के स््तर को
z वर््षषा दायक और उपद्रवी (Rainmakers and Troublemakers):
नियंत्रित करने मेें सहायता करता है, जिससे तटीय क्षेत्ररों मेें विनाशकारी बाढ़
वायमु डं लीय नदियाँ पृथ््ववी के जल-चक्र मेें महत्तत्वपर््णू भमिक ू ा निभाते हैैं,ये को रोका जा सकता है।
आवश््यक वर््षषा प्रदान करती हैैं। हालाँकि, सतह पर पहुचँ ने पर ये भारी बारिश z जल सरु क्षा (Water Security):पिघली हुई बर््फ पारिस््थथितिकी तंत्र और
और बर््फ बारी कर सकती हैैं, जिससे संभावित रूप से बाढ़, भस्ू ्खलन और मानव जाति के लिए मीठे पानी की आपर््तति ू करती है।
अन््य हानिकारक चरम मौसमी घटनाएँ हो सकती हैैं।
z जलवायु प्रतिक्रिया (Climate Feedback):क्रायोस््फफीयर मेें परिवर््तन
हिमाांक-मंडल ( क्रायोस्फीयर ) प्रतिक्रियात््मक लप्ू ्स के माध््यम से जलवायु परिवर््तन मेें वृद्धि कर सकता हैैं।
और जलवायु परिवर््तन z जैव विविधता समर््थन (Biodiversity Support):क्रायोस््फफीयर अद्वितीय
z क्रायोस््फफीयर पृथ््ववी की सतह के उन हिस््सोों को संदर््भभित करता है जहाँ पानी पारिस््थथितिकी तंत्र और शीत अनक ु ू लित प्रजातियोों को बनाए रखता है।
ठोस रूप मेें होता है, जिसमेें बर््फ आच््छछादित क्षेत्र, ग््ललेशियर, बर््फ की टोपियाँ, z मौसम प्रतिरूप (Weather Patterns):क्रायोस््फफीयर मौसम प्रतिरूप को
बर््फ की चादरेें, समद्री ु बर््फ , जमी हुई झीलेें और नदियाँ, और पर््ममाफ्रॉस््ट (स््थथायी प्रभावित करता है, तफ ू ान, वर््षषा और चरम तापमान को प्रभावित करता है।
रूप से जमी हुई सतह) शामिल हैैं। क्रायोस्फीयर की सुरक्षा के लिए पहल
z जलवायु परिवर््तन पर अतं र-सरकारी पैनल (IPCC) की महासागर और z ध्रुवीय विज्ञान और क्रायोस््फफीयर अनुसंधान: यह कार््यक्रम सीधे ध्रुवीय
क्रायोस््फफीयर मेें जलवायु परिवर््तन पर विशेष रिपोर््ट (SROCC) के अनसु ार, क्षेत्ररों और जमी हुई पृथ््ववी की सभी सतहोों की जांच करता है। PACER- ध्रुवीय
हाल के दशकोों मेें वैश्विक तापन के कारण क्रायोस््फफीयर मेें महत्तत्वपर््णू कमी आई जलवाय,ु बर््फ की चादरोों, ग््ललेशियरोों और पर््ममाफ्रॉस््ट पर शोध का समर््थन करता
है। इसमेें बर््फ की चादरोों और ग््ललेशियरोों का सिकुड़ना, बर््फ का आवरण कम है, इन महत्तत्वपर््णू क्षेत्ररों पर व््ययापक ज्ञान का आधार बनाने के लिए वैज्ञानिकोों
होना, आर््कटिक समद्री ु बर््फ की सीमा और मोटाई मेें कमी और पर््ममाफ्रॉस््ट और संस््थथानोों के बीच सहयोग को बढ़़ावा देता है।
क्षेत्ररों मेें तापमान मेें वृद्धि आदि शामिल है। z पथ्ृ ्ववी प्रणाली विज्ञान अनुसंधान कार््यक्रम के माध््यम से वायुमंडल और
वैश्विक जलवायु पर हिमाांक-मंडल( क्रायोस्फीयर ) का प्रभाव क्रायोस््फफीयर: यह पहल वायमु डं ल और क्रायोस््फफीयर के बीच परस््पर सबं ंधोों
पर केें द्रित है। ACROSS का उद्देश््य हमारी समझ को बेहतर बनाना है कि ये
z एल््बबिडो प्रभाव (Albedo Effect):क्रायोस््फफीयर की चमकीली, परावर््तक
दोनोों प्रणालियाँ कै से परस््पर क्रिया करती हैैं और जलवायु परिवर््तन, मौसम
सतहेें सर््यू के प्रकाश को अतं रिक्ष मेें परावर््ततित करती हैैं, जिससे पृथ््ववी ठंडी
प्रतिरूप और पर््ययावरणीय प्रक्रियाओ ं को कै से प्रभावित करती हैैं।
रहती है। हालाँकि, बर््फ पिघलने से गहरे रंग की सतहेें उजागर होती हैैं, जिससे
ऊष््ममा का अवशोषण बढ़ता है और तापमान मेें वृद्धि होती है। फुजिवारा प्रभाव
z समुद्र के जलस््तर मेें वृद्धि (Rising Seas):ग््ललेशियर और बर््फ की चादरेें परिभाषा: फुजिवारा प्रभाव मौसम विज्ञान मेें एक घटना है जिसमे दो निकटवर्ती
पिघलने से समद्रु के जलस््तर मेें वृद्धि होती है, जिससे तटीय क्षेत्ररों मेें रहने वाले चक्रवाती प्रणालियाँ, जैसे उष््णकटिबंधीय चक्रवात या तूफ़़ान, एक सामान््य केें द्र
समदु ायोों के लिए बाढ़, कटाव और विस््थथापन का संकट उत््पन््न होता है। के चारोों ओर घमू ते हुए एक दसू रे के साथ परस््पर क्रिया करते हैैं। यह प्रभाव तब
z महासागरीय व््यवधान (Ocean Disruption):पिघलती बर््फ से निकलने होता है जब चक्रवात एक दसू रे की गति और तीव्रता को प्रभावित करने के लिए
वाला ताजा पानी समद्रु की लवणता और तापमान को प्रभावित करता है, पर््ययाप्त रूप से निकट होते हैैं।

12  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


निष्कर््ष (Conclusion): विगत वर्षषों के प्रश्न
संक्षेप मेें, जलवायु विज्ञान न के वल पृथ््ववी की जलवायु प्रणालियोों के बारे मेें हमारी z क्षोभमडं ल एक बहुत ही महत्तत्वपर््णू वायमु डं लीय परत है जो मौसमी प्रक्रियाओ ं
वैज्ञानिक समझ को और अधिक बढ़ाता है, बल््ककि हमेें अपने ग्रह के भविष््य की को निर््धधारित करती है। कै से?(2022)
सरु क्षा के लिए एक व््ययापक निर््णय लेने मेें भी सक्षम बनाता है। चकँू ि हम निरंतर z मरुस््थलीकरण की प्रक्रिया मेें जलवायु की कोई सीमा नहीीं होती। उदाहरण
बदलती हुई जलवायु की वास््तविकताओ ं का सामना कर रहे हैैं, इसलिए जलवायु देकर पष्ु टि करेें ।(2019)
विज्ञान मेें चल रहे अनसु ंधान, शिक्षा और अतं रराष्ट्रीय सहयोग के महत्तत्व को z हिमांक-मडं ल (क्रायोस््फफीयर) वैश्विक जलवायु को कै से प्रभावित करता है?
नजरअदं ाज नहीीं किया जा सकता। सामहिक ू प्रयासोों के माध््यम से हम अपने विश्व (2017)
को आकार देने वाले जलवायु परिवर््तनोों को बेहतर ढंग से समझ सकते हैैं, पर््ववानू मु ान z वायु सहं ति की अवधारणा पर चर््चचा करेें और वृहत जलवायु परिवर््तन मेें इसकी
लगा सकते हैैं और उसके अनरू प प्रतिक्रिया कर सकते हैैं
। भमिकू ा की व््ययाख््यया करेें ।  (2016)

z उष््णकटिबंधीय चक्रवात मख्ु ्यतः दक्षिण चीन सागर, बंगाल की खाड़़ी और
मैक््ससिको की खाड़़ी तक ही सीमित रहते हैैं। क््योों?  (2014)
प्रमुख शब्दावलियाँ
z अधिकांश असामान््य जलवायु घटनाओ ं को एल-नीनो प्रभाव के परिणाम के
अंतर-मौसमी दोलन; मानसून की "सक्रिय" और "विराम" अवधि; रूप मेें समझाया जाता है। क््यया आप इस बात से सहमत हैैं?  (2014)
धरातलीय ओजोन (ग्राउंड ओजोन); चंबु कीय द्विध्रुव; असमान तापन z विश्व के शहरी आवास मेें ऊष््ममा द्वीपोों के निर््ममाण के कारणोों पर प्रकाश डालिए।
और शीतलन; लघु तरंग और दीर््घ तरंग विकिरण; जलवायविक (2013)
शक्तियाँ; अत््यधिक परावर््तक सतह; एल््बबिडो; आर््कटिक सागर बर््फ z मौसम विज्ञान मेें तापमान व््ययुत्कक्रमण की घटना के बारे मेें आप क््यया समझते
मेें कमी; तटीय समुदाय संकट; पर््ममाफ्रॉस््ट; ध्रुवीय भंवर, आदि। हैैं? यह मौसम और उस स््थथान के निवासियोों को कै से प्रभावित करता है?
(2013)

जलवायु विज्ञ 13
3 समुद्र विज्ञान
z जलचक्र (Water Cycle):समद्रु की सतह की लवणता पृथ््ववी के जल चक्र
परिचय
को दर््शशाती है, जो स््वच््छ जल के महासागरोों मेें प्रवेश (वर््षषा, नदियाँ) और
महासागर पृथ््ववी की सतह के 70% से अधिक भाग पर विस््ततृत हैैं। स््ववास््थ््य, बाहर निकलने (वाष््पपीकरण) के बीच संतल ु न को दर््शशाती है।
मानव-कल््ययाण और जीवित पर््ययावरण जो हम सभी को जीवित रखता है, सभी
लवणता को प्रभावित करने वाले कारक
जटिल रूप से आपस मेें जुड़़े हुए हैैं। इसके बावजूद, महासागरोों का अम््ललीकरण,
जलवायु परिवर््तन, प्रदषू णकारी गतिविधियाँ और समद्री ु संसाधनोों के अत््यधिक वाष्पीकरण (Evaporation): गर््म, शुष्क
दोहन ने महासागरोों को पृथ््ववी पर सबसे अधिक संकटग्रस््त पारिस््थथितिकी तंत्ररों क्षेत्ररों मेें उच्च वाष्पीकरण लवणता की मात्रा मेें वृद्धि करता है।
मेें से एक बना दिया है। z स््वच््छ जल की पूर््तति (Fresh-water Input):वर््षषा, नदियाँ और हिमखडं
लवणता को कम करते हैैं (उदाहरण के लिए, भमू ध््यरे खीय क्षेत्र)।
महासागरीय उच्चावच
z महासागरीय धाराओ ं का मिश्रण (Ocean Current Mixing):सीमित
z महाद्वीपीय मग््नतट (Continental Shelf):महाद्वीप के उथले जलमग््न मिश्रण वाले बंद समद्रु रों मेें लवणता अधिक होती है, जबकि खलु े समद्री
ु क्षेत्ररों
विस््ततार को महाद्वीपीय मग््नतट कहा जाता है। मेें लवणता कम होती है।
z महाद्वीपीय ढाल (Continental slope):महाद्वीपीय किनारे का निरंतर z जलवायु परिवर््तन (Climate Change):बढ़ते तापमान के कारण
ढलान वाला वह भाग, जो गहरे समद्रु तल के नितलीय मैदान तक फै ला हुआ वाष््पपीकरण बढ़ता है और जिससे संभावित रूप से लवणता बढ़ जाती है।
है, महाद्वीपीय ढलान के रूप मेें जाना जाता है।
लवणता का वितरण
z नितल मैदान (Abyssal plains):ये गंभीर समद्रु तल के विस््ततृत समतल
z ऊर््ध्ववाधर (Vertical):लवणता सामान््य रूप से उच््च अक््षाांशोों पर गहराई के
और आकारहीन मैदान हैैं।
साथ बढ़ती है, मध््य अक््षाांशोों मेें लगभग 35 मीटर तक चरम पर होती है, और
z जलमग््न गर््त (Submarine Trenches):समद्रु तल के प्रमख ु , लंबे, संकीर््ण फिर भमू ध््य रे खा की ओर घटती है।
स््थलाकृ तिक अवनमन को गर््त (समद्रीु खाइयाँ) कहते हैैं। z क्षैतिज (Horizontal): वैश्विक महासागर की लवणता 33 से 37 ग्राम प्रति
किलोग्राम तक होती है। सबसे उच््चतम लवणता उत्तरी गोलार्दद्ध मेें 15° और
20° अक््षाांशोों के मध््य पायी जाती है, जो धीरे -धीरे उत्तर की ओर घटती चली
जाती है।
लवणता मेें क्षेत्रीय विभिन्नता
z प्रशांत महासागर: लवणता इसके विशाल आकार और आकृ ति के कारण
भिन््न होती है।
z अटलांटिक महासागर: औसत लवणता लगभग 36-37 ग्राम प्रति किलोग्राम है।
z हिंद महासागर: औसत लवणता 35 ग्राम प्रति किलोग्राम है। बंगाल की खाड़़ी
मेें गंगा नदी के कारण लवणता कम है, इसके विपरीत अरब सागर मेें उच््च
लवणता (SALINITY) वाष््पपीकरण के कारण लवणता अधिक है।
लवणता से तात््पर््य प्रति किलोग्राम समद्री
ु जल मेें घल
ु े हुए नमक की मात्रा (ग्राम z अन््य समुद्र:
मेें) से है। यह महासागरीय गतिविधि और जलवायु को प्रभावित करने वाला एक  उत्तरी अटलांटिक बहाव द्वारा अधिक खारे पानी के प्रवाह के कारण उत्तरी
महत्तत्वपर््णू कारक है। सागर मेें अधिक लवणता देखी जाती है।
लवणता क्ययों महत्त्वपूर््ण है ?  बाल््टटिक सागर मेें भारी मात्रा मेें नदियोों के जल गिरने के कारण लवणता

z महासागर परिसंचरण (Ocean Circulation):लवणता, तापमान के साथ, कम होती है।


समद्री  भम ू ध््य सागर मेें उच््च वाष््पपीकरण के कारण लवणता अधिक पायी जाती है।
ु जल का घनत््व निर््धधारित करती है, जिसके कारण महासागरीय धाराएँ
बहती है जो दनु िया भर मेें तापमान का परिवहन करती हैैं, जिससे वैश्विक  काला सागर नदियोों द्वारा विशाल ताजे पानी के प्रवाह के कारण कम

जलवायु प्रभावित होती है। लवणता दर््ज करता है।


लवणता का प्रभाव (IMPACT OF SALINITY)  सर््यया
ू तप (Insolation):भमू ध््यरे खीय जल गर््म होकर फै लता है, जिससे
ठंडे मध््य-अक््षाांशीय जल की तल ु ना मेें उसका तल थोड़़ा ऊँचा हो जाता
z लवणता, तापमान के साथ-साथ समद्री ु जल घनत््व (खारा जल ताजे जल की
है, जिससे संचलन आरंभ होता है
अपेक्षा अधिक सघन होता है) को भी प्रभावित करती हैैं इसके परिणामस््वरूप
 पवन का प्रभाव (Wind's Influence):सतही जल पवन के घर््षण से
उष््णकटिबंध से ध्रुवोों तक समद्री
ु धाराओ ं का संचलन होता है।
z समद्रु की सतह की लवणता पृथ््ववी के समग्र जल-चक्र,वाष््पपीकरण और वर््षषा आगे की ओर ढके ला जाता है, जिसमेें कोरिओलिस बल (पृथ््ववी की घर््णन ू
के माध््यम से महासागरोों के अदं र और बाहर ताजे पानी के प्रवाह से निकटता गति के कारण हवाओ ं को विक्षेपित होना) धारा की दिशा को आकार देता
से जड़ु ़ी हुई है। है (उत्तर मेें दाई ओर,
ं दक्षिण मेें बाई ओर)।
ं उदाहरणोों मेें गल््फ स्ट्रीम (उत्तरी)
z लवणता और समद्री ु धाराओ ं मेें कोई भी बदलाव (छोटा या बड़़ा) क्षेत्र की और ब्राज़़ीलियन धारा (दक्षिण) शामिल हैैं।
जलवायु और समद्री ु -जीवन को प्रभावित कर सकता है।  स््थलीय बाधाएँ (Landmasses as Obstacles):दक्षिण अमेरिका की

तटीय आकृ ति जैसे भ-ू भाग धाराओ ं की प्रवाह दिशा को प्रभावित करते
महासागरीय जल संचलन
हैैं, जिससे पेरूवियन जैसी धारा उत््पन््न होती है।
महासागरीय जल महासागरीय जल का संचलन तीन रूपोों मेें होता है- जो तरंगेें, z द्वितीयक कारण, जो धारा के प्रवाह को प्रभावित करते हैैं:
ज््ववार-भाटा और धाराएँ हैैं।
 तापमान और लवणता (Temperature and Salinity):सघन,
महासागरीय तरंगेें (OCEAN WAVES) लवणीय जल नीचे बैठ जाता है, जबकि हल््कका पानी जल ऊपर उठता है,
z महासागरीय तरंगेें पवन द्वारा जल मेें ऊर््जजा स््थथानांतरित करने से बनती हैैं, जिससे जिससे धाराओ ं के भीतर ऊर््ध्ववाधर गति प्रभावित होती है।
दोलायमान गतियोों मेें विशिष्ट वृद्धि और गिरावट होती है।  जलवायु परिवर््तन प्रभाव (Climate Change Impact):ग्रीनहाउस
z तरंगेें क्षैतिज रूप से गति करती हैैं, जिसमेें ऊर््जजा जल के माध््यम से यात्रा करती है। गैसोों के कारण समद्रु की सतह का बढ़ता तापमान अटलांटिक
z लहर के उच््चतम बिंदु को शिखर कहा जाता है, जबकि निम््नतम बिंदु को भमू ध््यरे खीय प्रतिवर्ती परिसंचरण (अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर््नििंग
गर््त कहा जाता है। सर््ककु लेशन - AMOC) जैसी प्रमख ु धाराओ ं को बाधित कर सकता है,
ज्वार-भाटा (TIDES): जिससे संभावित रूप से वैश्विक जलवायु प्रतिरूप मेें बदलाव देखने को
समद्रु के जल-स््तर के नियमित रूप से ऊपर उठने को ज््ववार तथा नीचे उतरने मिल सकता है।
को भाटा कहते हैैं जो प्रतिदिन एक या दो बार होता है। चंद्रमा, सूर््य और पृथ््ववी महासागरीय धाराओ ं के प्रभाव
के घर््णन
ू का गुरुत््ववाकर््षण बल ज््ववार-भाटा को चलाने वाली प्राथमिक शक्तियाँ z जलवायु नियंत्रण (Climate Control):महासागरीय धाराएँ क्षेत्रीय
हैैं। ज््ववार-भाटा को आवृत्ति और सूर््य-चंद्रमा-पृथ््ववी की स््थथिति के आधार पर जलवायु को निर््धधारित करने मेें महत्तत्वपर््णू भमिक ू ा निभाती हैैं। गर््म धाराएँ
विभाजित किया जाता है:
आस-पास के क्षेत्ररों मेें तापमान बढ़़ाती हैैं, जबकि ठंडी धाराएँ शीतलन प्रभाव
z आवत्ति ृ के आधार पर (Based on Frequency):
डालती हैैं। (उदाहरण के लिए, उत्तरी अटलांटिक प्रवाह इग्ं ्लैैंड को गर््म रखता
 अर््ध-दैनिक ज््ववार (Semi-diurnal tides): प्रतिदिन दो उच््च और दो
है, कनारी धारा स््पपेन और पर््तु गाल के तापमान को कम करती है)
निम््न ज््ववार आते हैैं।
z वर््षषा और रेगिस््ततान (Rainfall and Deserts):गर््म धाराएँ तटीय क्षेत्ररों और
 दैनिक ज््ववार (Diurnal tides):प्रतिदिन के वल एक उच््च और एक
यहाँ तक कि अतर् ं श दे ीय क्षेत्ररों मेें वर््षषा प्रदान करती हैैं। इसके विपरीत, ठंडी
निम््न ज््ववार आता है।
धाराएँ उपोष््णकटिबंधीय क्षेत्ररों मेें महाद्वीपोों के पश्चिमी किनारोों पर वर््षषा रोककर
z सर््य ू -चंद्रमा-पथ्ृ ्ववी की स््थथिति के आधार पर (Based on Sun-Moon-
रे गिस््ततान का निर््ममाण करती हैैं।
Earth Alignment):
z मत््स््य क्षेत्र (Fishing Zone):गर््म और ठंडी धाराओ ं का अभिसरण प््लवक
 दीर््घ या बह ृ त् ज््ववार (Spring tides):सबसे ऊँचे और सबसे निम््न
ज््ववार तब आते हैैं जब सर््यू , चद्रं मा और पृथ््ववी एक सीधी रे खा मेें होते हैैं के विकास के लिए आदर््श परिस््थथितियाँ बनाता है, जो मछलियोों का प्रमख ु
(पर््णू मासी या अमावस््यया)। भोजन है, जिससे ये क्षेत्र मत््स््य उद्योग के लिए प्रमख ु क्षेत्र बन जाते हैैं।
 लघु ज््ववार (Neap tides):कम ऊँचाई वाले लघु ज््ववार तब आते हैैं जब
z नौवहन(Navigation):महासागरीय धाराएँ जहाज़ के संचालन को प्रभावित
सर््यू और चद्रं मा पृथ््ववी के समकोण पर होते हैैं। कर सकती हैैं। इन धाराओ ं को समझना अधिक कुशल यात्रा मार्गगों की अनमु ति
देता है
महासागरीय धाराएँ (OCEAN CURRENTS)
z तापमान संतुलन (Temperature Moderation):गर्मी को पनर् ु ्ववितरित
महासागरीय धाराएँ लंबी दरू ी तक एक विशेष दिशा मेें महासागरीय जल का
करके , धाराएँ तटीय तापमान को नियंत्रित करने मेें सहायता करती हैैं। उदाहरण
क्षैतिज प्रवाह हैैं। वे समद्रु के भीतर बहती हुई एक नदी के समान होती हैैं।
के लिए, गर््म उत्तरी अटलांटिक प्रवाह इग्ं ्लैैंड तट का मौसम सहु ावना रखती
महासागरीय धाराओं के उत्पन्न होने के कारण है, जबकि कनारी धारा स््पपेन और पर््तु गाल की जलवायु को संतलित ु करती
z प्राथमिक बल, जो जल संचलन की शुरुआत करते हैैं: है।

समुद्र विज 15
गायर, प्रवाह और विशाल धारा: प्रवाल के विकास के लिए आदर््श पर्यावरणीय परिस्थितियााँ
विशेषताएँ विवरण z सर््यू का प्रकाश (Sunlight): पॉलीप््स के भीतर ज़क़्ू ्ससैन््थथेला शैवाल को
गायर बड़़े स््तर पर वायु की गति के साथ घर््णन ू करने वाली समद्री
ु प्रकाश संश्लेषण के लिए सर््यू के प्रकाश की आवश््यकता होती है।
(Gyre) धाराओ ं की एक वृहत प्रणाली को गायर कहा जाता है। यह z ठोस आधार (Solid Foundation):अन््ततः सागरीय चबतरो ू ों की उपस््थथिति
कोरिओलिस बल, पवन, ज््ववार, तापमान और लवणता के भित्ति विकास के लिए आवश््यक है।
प्रभाव से बनते है। z गर््म, साफ पानी: आदर््श तापमान 20 डिग्री सेल््ससियस के आसपास और
प्रवाह जब महासागर का जल प्रचलित पवन वेग से प्रेरित होकर पानी की स््पष्टता अच््छछी होनी चाहिए।
(Drift) आगे बढ़ता है, तो इसे प्रवाह कहा जाता है। उदाहरण के लिए z लवणता (Salinity):प्रवाल अपने कंकाल बनाने के लिए खारे जल से
उत्तरी अटलांटिक प्रवाह। कै ल््शशियम निकालते हैैं।
धारा महाद्वीप पर नदी की तरह एक निश्चित पथ पर चलने वाले
z पोषक तत्तत्व (Nutrients):पोषक तत्तत्ववों की एक निरंतर आपर््तति
ू स््वस््थ प्रवाल
(Stream) महासागरीय जल को जलधारा कहते हैैं। वे प्रवाह की तुलना
के विकास मेें सहायता करती है।
मेें तेज़़ी से प्रवाहित होती हैैं। उदा.गल््फ स्ट्रीम ।
प्रवाल के जीवन प्रणाली पर वैश्विक तापन का प्रभाव
जलवायु परिवर््तन और महासागर परिसंचरण
z वैश्विक तापन के परिणामस््वरूप समद्रु के तापमान मेें वृद्धि प्रवाल के जीवन के
समद्री
ु धाराओ ं का विशाल तंत्र पृथ््ववी की जलवायु को नियंत्रित करने मेें लिए एक बड़़ा संकट बन गया है। यह तापन प्रवाल विरंजन को प्रेरित करता
महत्तत्वपूर््ण भमिक
ू ा निभाता है। ये धाराएँ ऊष््ममा का परिवहन करती हैैं, जिससे है, यह एक ऐसी घटना जिसमेें प्रवाल अपने अदं र रहने वाले महत्तत्वपर््णू शैवाल
स््थथानीय मौसम के प्रतिरूप से लेकर वैश्विक जलवायु स््थथिरता तक हर चीज़ पर को बाहर निकाल देता है, जिससे वे सफे द हो जाते हैैं और कमज़़ोर हो जाते
असर पड़ता है। जलवायु परिवर््तन के कारण महासागरीय परिसंचरण मेें बदलाव हैैं। उदाहरण: ऑस्ट्रेलिया मेें ग्रेट बैरियर रीफ़
के दरू गामी परिणाम हो सकते हैैं: z ऊष््ममीय तनाव के कारण प्रवाल विरंजन गंभीर और निरंतर होता जा रहा है।
z समुद्री पारिस््थथितिकी तंत्र मेें व््यवधान(Disrupted Marine

Ecosystems):जल के तापमान और धाराओ ं मेें परिवर््तन से प्रजनन क्षेत्र प्रवाल विरं जन के कारण
बाधित हो सकते हैैं और समद्री ु पारिस््थथितिकी प्रणालियोों के बीच संपर््कता मेें z महासागर का गर््म होना (Ocean Warming):जलवायु परिवर््तन इसका
बदलाव आ सकता है, जिससे मछलियोों की सख्ं ्यया और समग्र जैव विविधता मख्ु ्य कारण है।
पर असर पड़ सकता है। z प्रदूषण (Pollution): अपवाह, तफ़ ू ़ान से उत््पन््न मलबा और अन््य प्रदषक ू
z परिवर््ततित कार््बन चक्र (Altered Carbon Cycle):गर््म हवाओ ं के कारण प्रवाल को हानि पहुचँ ा सकते हैैं।
पिघलने वाली समद्री ु बर््फ शैवाल की वृद्धि को बाधित करती है, जो वायमु डं लीय z अत््यधिक सर््यू प्रकाश (Excessive Sunlight):उच््च सौर विकिरण उथले
कार््बन डाइऑक््ससाइड को अवशोषित करने मेें महत्तत्वपर््णू भमिक ू ा निभाती है। पानी के प्रवाल का विरंजन कर सकता है।
इससे जलवायु परिवर््तन मेें और तीव्रता आ सकती है। z निम््न ज््ववार (Low Tides):निम््न ज््ववार के दौरान हवा के सपं र््क मेें लंबे समय
z मत््स््य पालन का संकट (Fisheries at Risk):वर््तमान प्रतिरूप मेें परिवर््तन तक रहने से उथले प्रवाल विरंजित हो सकते हैैं।
से मत््स््य भडं ार मेें कमी आ सकती है, जिससे समद्रु पर निर््भर लाखोों लोगोों की
खाद्य सरु क्षा और आजीविका सकट महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए प्रवाल भित्ति का महत्त्व
ं मेें पड़ सकती है
z अन््य खतरे (Other Threats):समद्र ु के तापमान मेें वृद्धि,अम््ललीकरण और z आर््थथिक महत्तत्व (Economic Importance):प्रवाल भित्ति मत््स््य पालन
ऑक््ससीजन के स््तर मेें गिरावट समद्री ु जीवन और समद्री ु पारिस््थथितिकी तंत्र के और पर््यटन को बढ़़ावा देकर रोजगार और राजस््व उत््पन््न करते हैैं।
सवं ेदनशील सतं ल ु न से स ब
ं ं धी विभिन््न प्रकार के खतरे उत््पन््न करती है। z जैव विविधता तप्त स््थल (Biodiversity Hotspot):प्रवाल भित्तियाँ
विभिन््न समद्री
ु जीवोों का निवास स््थल हैैं, जिनमेें लगभग 4,000 मछली
प्रवाल भित्तियााँ प्रजातियाँ और असंख््य अन््य प्रजातियाँ पाई जाती हैैं।
प्रवाल भित्तियाँ जल के नीचे की संरचनाएँ हैैं जो मंगू ा नामक छोटे प्रवाल जीवोों z प्राकृतिक अवरोध (Natural Barrier):प्रवाल भित्तियाँ लहरोों की ऊर््जजा
द्वारा बनाई जाती हैैं। एक स््थथान पर असंख््य मंगू े एक साथ मिलकर समहू मेें रहते को अवशोषित करके , कटाव और तफ ू ान से होने वाली हानि को कम करके
है तथा अपने चारोों ओर चनू े की खोल बनाते हैैं, जिनसे इन जीवंत पारिस््थथितिकी तट रे खाओ ं की रक्षा करती हैैं
तंत्ररों का निर््ममाण होता हैैं। भारत मेें तीन प्रमखु प्रकार की प्रवाल भित्तियाँ पायी प्रवाल संरक्षण
जाती हैैं:
z तटीय प्रवाल भित्ति (Fringing Reefs):समद्र ु तट की सीमा पर निर््ममित z सतत अभ््ययास और मानवीय प्रभाव मेें कमी, आगे की क्षति को रोकने और
होती हैैं तथा उथले लैगनू का निर््ममाण करती हैैं। प्रवाल भित्तियोों को पनु ः स््वस््थ होने देने के लिए महत्तत्वपर््णू हैैं।
z अवरोधक प्रवाल भित्ति (Barrier Reefs):सागर तट के समानांतर कुछ
z विधिक सरु क्षा उपाय: भारत ने प्रवाल भित्तियोों की सरु क्षा के लिए विभिन््न
दरू ी पर स््थथित वृहदाकार प्रवाल भित्ति। विधियाँ लागू की हैैं, जिनमेें शामिल हैैं:
z प्रवाल वलय या ऐटॉल (Atolls):लैगन ू को घेरने वाली अगं ठू ी के आकार  वन््य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (अनस ु चू ी I) (The Wild Life
की भित्ति, जो मध््य महासागर मेें पाई जाती हैैं। Protection Act, 1972 (Schedule I))

16  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


 पर््ययावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 (The Environment Protection महत्तत्वपूर््ण तथ््य
Act, 1986 -EPA) z यनू ेस््कको के एक शोध के अनसु ार, प््ललास््टटिक कचरा सभी समद्रीु प्रदषू ण
 ईपीए के तहत तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसचू ना (सीआरजेड) 1991 का 80% भाग है, और प्रत््ययेक वर््ष लगभग 8 से 10 मिलियन मीट्रिक टन
(Coastal Regulation Zone Notification (CRZ) 1991 under प््ललास््टटिक समद्रु मेें समा जाता है।
the EPA) z शोध मेें कहा गया है कि 2050 तक, प््ललास््टटिक समद्रु मेें सभी मछलियोों से
 समद्री
ु संरक्षित क्षेत्र (Marine Protected Areas -MPAs) अधिक हो जाएगा।
महासागरीय प्रदष
ू ण समुद्री संसाधन
महासागरीय प्रदषू ण एक वृहत होता हुआ संकट है जिसमेें विभिन््न प्रकार के समद्री
ु संसाधनोों मेें समद्रु मेें पाई जाने वाली बहुमल्ू ्य सामग्री की एक विशाल
प्रदषक
ू जैसे विषैली धातुएँ, रसायन, प््ललास््टटिक, अपशिष्ट और कृ षि अपवाह ृंखला शामिल है, जिसमेें जीवित जीव (मछली, मगंू ा) से लेकर खनिज (तेल, गैस)
आदि शामिल हैैं। ये प्रदषकू संवेदनशील समद्री ु पारिस््थथितिकी तंत्र को बाधित और यहाँ तक ​​कि पर््यटन क्षमता भी शामिल है। इन संसाधनोों को बनने मेें लाखोों
करते हैैं और मानव स््ववास््थ््य के लिए जोखिम उत््पन््न करते हैैं। वर््ष लगते हैैं, जैसे कि सड़ते हुए समद्री
ु जीव से तेल और गैस का भडं ार बनता है।
महासागरीय प्रदष
ू ण का प्रभाव समुद्री संपदा कई रूपोों मेें आती है:
z माइक्रोप््ललास््टटिक का खतरा (Hazard of Microplastics): z जैविक संसाधन: इसमेें पशु जीवन (मछली, घोोंघा, आदि), वनस््पति जीवन
माइक्रोप््ललास््टटिक 5 मिलीमीटर से छोटे प््ललास््टटिक कण हैैं, जो एक बड़़ी चितं ा (पादप-प््लवक,समद्री
ु घास) और प्रवाल भित्तियाँ शामिल हैैं।
का विषय हैैं। वे समद्री ु मलबे का 80% से अधिक हिस््ससा हैैं।समद्री ु जीव इन z खनिज संसाधन: इनमेें रे त और बजरी के भडं ार, साथ ही तेल और प्राकृतिक
माइक्रोप््ललास््टटिक को भोजन समझकर निगल लेते हैैं। यह संदषू ण खाद्य ृंखला गैस जैसे ईधन
ं खनिज शामिल हैैं।
मेें ऊपर की ओर बढ़ता है और संभावित रूप से समद्री ु भोजन खाने वाले मानव गतिविधियााँ इन
मनष्ु ्योों तक पहुचँ ता है। महत्त्वपूर््ण संसाधनोों को संक ट मेें डालती हैैं:
z समुद्री जीवन को नुकसान (Harmed Marine Life):माइक्रोप््ललास््टटिक z एक हालिया रिपोर््ट बताती है कि दनु िया की 60% से अधिक प्रवाल भित्तियाँ
के सेवन से भोजन की क्षमता कम हो सकती है और समद्री ु जीवोों को नक ु सान सकटं ग्रस््त हैैं।
पहुचँ सकता है। कुल मिलाकर, समद्री ु प्रद ष
ू ण पारिस््थथितिकी तं त्र को बाधित z समद्री
ु ऊष््ममा तरंगेें और असतत मछली पकड़ने का अभ््ययास समद्री
ु पारिस््थथितिकी
और आवासोों को नष्ट करता है। तंत्र को और अधिक खतरे मेें डालता है।
z ऑक््ससीजन की कमी (Oxygen Depletion): मलबे के विघटन से जल
संरक्षण उपाय
मेें ऑक््ससीजन का स््तर कम हो जाता है, जिससे समद्री ु जीवोों का दम घटत ु ा है।
उदाहरण: मृत क्षेत्ररों का निर््ममाण z ब््ललू कार््बन इनिशिएटिव (Blue Carbon Initiative) और ब््ललू नेचर अलायंस
(Blue Nature Alliance) जैसी अतं रराष्ट्रीय पहल समद्री ु पारिस््थथितिकी तंत्र
z मानव स््ववास््थ््य जोखिम (Human Health Risks):शोध से पता चलता
के सरं क्षण और बहाली को बढ़़ावा देती हैैं।
है कि समद्री ु प्रदषू ण दषित
ू समद्री ु भोजन और प्रदषक ू यक्त ु समद्री
ु स्प्रे एरोसोल
z "मैजिकल मैैंग्रोव" (Magical mangroves) जैसे कार््यक्रम मैैंग्रोव संरक्षण के
के माध््यम से मानव स््ववास््थ््य को नकु सान पहुचँ ा सकता है।
महत्तत्व के बारे मेें जागरूकता बढ़़ाते हैैं।
समुद्री प्रदष
ू ण - न्यूनीकरण z दक्षिण पर््व ू एशिया मेें "ब््ललू इन्फ्रास्टट्रक््चर डेवलपमेेंट" तटीय विकास को
z जलवायु परिवर््तन कार््यवाही (Climate Change Action):जलवायु पारिस््थथितिक सरं क्षण के साथ सतं लित ु करने का प्रयास करता है।
परिवर््तन का सामना करने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत््सर््जन को कम करना महत्तत्वपूर््ण तथ््य
महत्तत्वपर््णू है, जो महासागर प्रदषू ण मेें एक प्रमखु योगदानकर््तता है। z वैश्विक जैव-विविधता आउटलक ु 5 (GBO-5) 2020 के अनसु ार विश्व
z बेहतर निगरानी (Enhanced Monitoring):ऑक््ससीजन की कमी और की 60 प्रतिशत से अधिक प्रवाल भित्तियोों की जैव विविधता खतरे मेें है।
महासागर के स््ववास््थ््य मेें होने वाले अन््य परिवर््तनोों को समझने के लिए बेहतर z 2016 उत्तरी ऑस्ट्रेलिया मेें समद्री ु तापीय लहरोों के कारण ग्रेट बैरियर रीफ
अवलोकन और डेटा विश्लेषण की आवश््यकता है। का गंभीर विरंजन हुआ, जिसके कारण कार्पेन््टटारिया की खाड़़ी मेें मैैंग्रोव
z जागरूकता बढ़़ाना (Raising Awareness):सार््वजनिक शिक्षा, मानव विनाश हुआ हैैं।
व््यवहार को बदलने और महासागरोों पर हमारी गतिविधियोों के प्रभाव को कम z वर््ष 2010 के बाद से स््थथायी रूप से पकड़़ी गई मछलियोों के अनप ु ात मेें 5
करने की कंु जी है। प्रतिशत की कमी आई है।
अंतरराष्ट् रीय प्रयास अटलाांटिक भूमध्यरेखीय प्रतिवर्ती परिसंचरण
z विनियम और संधियाँ (Regulations and Treaties): MARPOL AMOC समद्री ु धाराओ ं की एक विशाल प्रणाली है जो गर््म उष््णकटिबंधीय जल
और UNCLOS जैसे कई अतं रराष्ट्रीय समझौतोों का उद्देश््य जहाजोों से होने को उत्तर की ओर ले जाती है। यह परिसंचरण वैश्विक जलवायु को विनियमित करने
वाले प्रदषू ण को नियंत्रित करना और समद्री
ु पर््ययावरण की रक्षा करना है। इन के लिए महत्तत्वपर््णू है क््योोंकि यह ताप को पनर्
ु ्ववितरित करता है, जिससे संपर््णू विश्व
प्रयासोों को निरंतर लागू करने और सशक्त बनाने की आवश््यकता है। मेें मौसम का प्रतिरूप प्रभावित होता है।

समुद्र विज 17
AMOC का प्रभाव बनाने, उन््नत तकनीकोों और अवलोकनोों को विकसित करने, संसाधनोों का
आकलन करने और वैज्ञानिक अनसु ंधान करने पर केें द्रित है। सशक्त महासागर
z अस््थथिरता और प्रभाव (Fluctuations and Impacts): AMOC मेें
प्रारूप बनाकर, ओ-स््टटॉर््म््स का उद्देश््य महासागरीय ससं ाधनोों के स््थथायी प्रबंधन
स््ववाभाविक रूप से उतार-चढ़़ाव होता रहता है, लेकिन इसके कमज़़ोर होने के
का समर््थन करना और नीतिगत निर््णयोों को सचित ू करना है।
महत्तत्वपर््णू परिणाम हो सकते हैैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका के पर्वी ू तट पर
समद्रु का जलस््तर बढ़ सकता है, यरू ोप मेें कठोर सर््ददियाँ और ज़़्ययादा भीषण निष्कर््ष (Conclusion):
गर्मी पड़ सकती है, और ब्रिटेन मेें तीव्र तफ ू ानोों मेें वृद्धि देखी जा सकती है। समद्रु विज्ञान एक महत्तत्वपर््णू क्षेत्र है जो विश्व के महासागरोों के विषय मेें हमारी समझ
z हिंद महासागर की भूमिका (Indian Ocean's Role): दिलचस््प बात को बढ़़ाता है, जो पृथ््ववी की सतह के 70% से अधिक भाग को आच््छछादित करते
यह है कि हाल ही मेें किए गए शोध से पता चलता है कि हिदं महासागर मेें हैैं। महासागरीय धाराओ,ं समद्री ु पारिस््थथितिकी तंत्ररों और महासागरीय प्रक्रियाओ ं
बढ़ते तापमान से अटलांटिक मेें वायु और जल के परिसचं रण प्रतिरूप को का अध््ययन न के वल प्राकृतिक घटनाओ ं के बारे मेें हमारे ज्ञान को समृद्ध करता
प्रभावित करके AMOC को वास््तव मेें सहायता मिल सकती है। है, बल््ककि जलवायु को निर््धधारित करने,जैव विविधता का समर््थन करने और मानव
AMOC की जटिल गतिशीलता और हिदं महासागर जैसे सभं ावित प्रभावोों को आजीविका को बनाए रखने मेें महासागरोों की महत्तत्वपर््णू भमिक ू ा को भी उजागर
समझना भविष््य के जलवायु प्रतिरूप की भविष््यवाणी करने और उनके संभावित करता है। जैसे-जैसे हम बढ़ती पर््ययावरणीय चनु ौतियोों का सामना कर रहे हैैं, महासागर
प्रभावोों को कम करने के लिए महत्तत्वपर््णू है। विज्ञान से प्राप्त जानकारियाँ हमेें महासागरोों की रक्षा करने और भविष््य की पीढ़़ियोों
वैश्विक प्रतिवर्ती परिसंचरण के लिए हमारी पृथ््ववी के स््ववास््थ््य को सनु िश्चित करने के लिए सतत प्रथाओ ं और
(Global Overturning Circulation-GOC) नीतियोों को विकसित करने के लिए आवश््यक है।
z वैश्विक प्रतिवर्ती परिसंचरण (GOC) ठंडे, गहरे जल का भम ू ध््य रे खा की ओर
परिवहन और गर््म, सतह के निकट के जल का ध्रुव की ओर परिवहन है। प्रमुख शब्दावलियाँ
z महत्तत्व: यह महासागरीय ऊष््ममा वितरण और वायम ु डं लीय कार््बन
महासागरीय अम््ललीकरण, लवणता, महाद्वीपीय मग््नतट, महासागरीय
डाइऑक््ससाइड के स््तर को नियंत्रित करता है, इस प्रकार वैश्विक जलवायु मेें
धाराएँ, ज््ववार-भाटा, लहरेें, प्रवाल भित्तियाँ, समुद्री प्रदूषण, समुद्री
महत्तत्वपर््णू भमिक
ू ा निभाता है।
संसाधन, प््लवक, समुद्री घास, माइक्रोप््ललास््टटिक््स, अटलांटिक
गहरे समुद्र मेें अन्वेषण की पहल भूमध््यरेखीय प्रतिवर्ती परिसंचरण(AMOC), गहरे समुद्र मेें अन््ववेषण,
गहरे समद्रु का विशाल विस््ततार अभी भी काफी हद तक अज्ञात है, जिसमेें संसाधनोों बाथिमेट्रिक डेटा, नीली अर््थ व््यवस््थथा, सीबेड 2030, ओ-स््टटॉर््म,
सतत प्रबंधन, जलवायु परिवर््तन।
की खोज और वैज्ञानिक समझ के लिए अपार संभावनाएँ हैैं। आइए तीन प्रमख ु
पहलोों पर नज़र डालेें: विगत वर्षषों के प्रश्न
z गहरे समुद्र मिशन (Deep Ocean Mission-DOM):भारत द्वारा शरू ु z मैैंग्रोव के ह्रास के कारणोों पर चर््चचा करेें तथा तटीय पारिस््थथितिकी को बनाए
किया गया, DOM गहरे समद्रु के अन््ववेषण के लिए तकनीकी चनु ौतियोों से
रखने मेें उनके महत्तत्व को समझाएँ।(2019)
निपटता है। इसके निर््धधारित क्षेत्ररों मेें अडं रवाटर वाहन, पॉलीमेटेलिक नोड्यल ू
महासागर धाराएँ और जल राशियाँ समद्री ु जीवन और तटीय पर््ययावरण पर
जैसी संसाधन निष््कर््षण तकनीकेें और यहाँ तक ​​कि जलवायु परिवर््तन परामर््श
z

अपने प्रभावोों मेें किस-किस प्रकार परस््पर भिन््न हैैं? उपयक्त ु उदाहरण
सेवाएँ भी शामिल हैैं। इस मिशन का उद्देश््य भारत के विशेष आर््थथिक क्षेत्र के
दीजिए?  (2019)
भीतर मल्ू ्यवान संसाधनोों को प्रकट करना और देश की नीली अर््थव््यवस््थथा
को बढ़़ावा देना है। z वैश्विक तापन का प्रवाल जीवन तंत्र पर प्रभाव का, उदाहरणोों के साथ, आकलन
कीजिए।(2019)
z सीबे ड 2030 (Seabed 2030): यह सहयोगात््मक परियोजना 2030 तक

परू े महासागर तल का एक निश्चित मानचित्र बनाने का प्रयास करती है। मौजदू ा z समद्रीु पारिस््थथितिकी पर ‘मृत क्षेत्ररों’ (Dead Zones) के विस््ततार के क््यया-क््यया
बैथिमेट्रिक डेटा को एकत्र और एकीकृ त करके , सीबेड 2030 महासागर परिणाम होोंते हैैं? (2018)
परिसचं रण, समद्री ु पारिस््थथितिकी तंत्र और जलवायु प्रतिरूप को समझने के z महासागरी धाराओ ं की उत््पत्ति के उत्तरदायी कारकोों की व््ययाख््यया कीजिए। वे
लिए महत्तत्वपर््णू जानकारी प्रदान करता है। यह वैश्विक प्रयास महासागर स््ववास््थ््य प्रादेशिक जलवायओ ु ,ं समद्री
ु जीवन और नौचालन को किस प्रकार प्रभावित
से संबंधित सचितू निर््णय लेने को सशक्त बनाता है, जो हमारी पृथ््ववी और उसके करती हैैं?(2015)
लोगोों के कल््ययाण के लिए एक महत्तत्वपर््णू कारक है। z विश्व मेें ससं ाधन सकट ं से निपटने के लिए महासागरोों के विभिन््न ससं ाधनोों,
z ओ-स््टटॉर््म््स (O-STORMS):यह कार््यक्रम विभिन््न पहलओ ु ं मेें महासागरीय जिनका उपयोग किया जा सकता है, का आलोचनात््मक मल्ू ्ययाांकन कीजिए।
आकड़ो ं ों के महत्तत्व पर जोर देता है। ओ-स््टटॉर््म््स महासागरीय सेवाओ ं को बेहतर (2014)

18  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


4 भारतीय जलवायु

z जेट स्ट्रीम का प्रभाव: पश्चिमी जेट स्ट्रीम सहित ऊपरी वायु परिसंचरण
परिचय
प्रतिरूप, सर््ददियोों के मौसम को प्रभावित करते हैैं।
भारत की जलवायु यहाँ के लोगोों के जीवन पर महत्तत्वपूर््ण प्रभाव डालती है। z अक््षाांशीय भिन््नता: दक्षिणी भारत, भमू ध््य रे खा के पास, आम तौर पर गर््म
उष््णकटिबंधीय मानसून जलवायु, अपनी उष््ण व आर्दद्र गर््ममियोों और मानसूनी वर््षषा रहता है, जबकि उत्तर भारत इसकी समशीतोष््ण कटिबंधीय अवस््थथिति के कारण
के साथ, आर््थथिक गतिविधियोों से लेकर कपड़ों के चनु ाव तक सब कुछ निर््धधारित
ठंडी सर््ददियोों का अनभु व करता है।
करती है। हालाँकि, यह मौसम अत््यधिक परिवर््तनशील होता है, जिसमेें सूखा,
बाढ़ और चक्रवात जैसी चरम घटनाएँ जीवन व आजीविका को बाधित करती
हैैं। जलवायु परिवर््तन के कारण इन घटनाओ ं के और भीषण होने की आशंका है। प्रमुख शब्दावलियाँ
तथ््ययानुसार मौसम का प्रतिरूप; समुद्र तल मेें वृद्धि; पवनोों का प्रतिलोमन;
z चार मौसम: शीत ऋतु (दिसंबर से फरवरी), ग्रीष््म ऋतु (मार््च से मई), वर््षषा की मौसमीयता और भिन््नता; भारतीय जलवायु की विविधता;
मानसनू (जनू से सितंबर), और मानसनू के बाद या शरद ऋतु (अक््टटूबर ऋतुओ ं की बहुलता; सतही दाब और हवा; जेट स्ट्रीम और ऊपरी
और नवंबर)। वायु परिसंचरण; पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ और उष््णकटिबंधीय
z चरम तापमान: चरू ु (राजस््थथान) मेें गर््ममियोों मेें 50°C से ऊपर और द्रास चक्रवात; भूमि पर उच््च एवं निम््न दाब का प्रभाव; समुद्र से दूरियाँ
(लद्दाख) मेें सर््ददियोों मेें -45°C। - महाद्वीपीयता; वायदु ाब और पवनोों का वितरण; पश्चिमी चक्रवातोों
z क्षेत्रीय भिन््नता: उत्तर मेें गर््म/ठंडा, तट पर मध््यम, पश्चिम मेें शष्ु ्क और का आगमन आदि।
उत्तर पर््वू मेें आर्दद्र।
z विभिन््न वर््षषा प्रतिरूप: पश्चिमी तट पर भारी, उत्तर-पर््वू मेें नम (wet), भारत की जलवायु का निर्धारण करने वाले कारक
सबसे अधिक वर््षषा चेरापंजू ी (मेघालय) मेें लगभग 1080 सेमी और जैसलमेर अवस्थिति और उच्चावच
(राजस््थथान) मेें के वल 9 सेमी से ऊपर दर््ज की जाती है। z हिमालय पर््वत: हिमालय ठंडी आर््कटिक पवनोों को रोकता है, जिससे भारत
z चक्रवात: तटीय क्षेत्र चक्रवातोों से ग्रस््त होते हैैं, विशेषकर बंगाल की की जलवायु आकार लेती है।
खाड़़ी मेें।
z भूमि और जल वितरण: भमि ू और समद्रु का असमान तापन अलग-अलग
मौसमी वायु दाब क्षेत्र बनाता है।
भारतीय जलवायु की विशिष्ट विशेषताएँ
z तटीय निकटता: समद्रु के प्रभाव के कारण तटीय क्षेत्ररों मेें मध््यम तापमान का
भारत की जलवायु कई कारकोों का एक जटिल अतर्सं ं बंध है: अनभु व होता है, जबकि अतर् ं श दे ीय क्षेत्ररों मेें अत््यधिक तापमान का सामना
z भौगोलिक विविधता: स््थथान, ऊंचाई, समद्र ु से दरू ी और स््थथानीय उच््चचावच करना पड़ता है। (उदाहरण के लिए, कोोंकण तट पर तापमान मध््यम है लेकिन
विशेषताएँ सभी क्षेत्रीय विविधता मेें योगदान करती हैैं। कानपरु और अमृतसर अत््यधिक तापमान से प्रभावित होते हैैं)।
z एकाधिक ऋतुए:ँ भारत तीन प्राथमिक ऋतओ ु ं (शीतकाल, ग्रीष््म ऋत,ु z ऊंचाई/तुंगता (Altitude): ऊंचाई के साथ तापमान घटता है क््योोंकि चढ़़ाई
मानसनू ) का अनभु व करता है, लेकिन सक्षू ष्म मौसम परिवर््तन के आधार पर के दौरान हवा ठंडी होती है।
इसे छह ऋतओ ु ं मेें विभाजित किया जा सकता है।
z विविध उच््चचावच: भारत की विविध स््थलाकृ ति तापमान, वायदु ाब, वायु
z ऋतु परिवर््तनशील पवनेें: सर््ददियोों (उत्तर-पर््व ू से दक्षिण-पश्चिम) और गर््ममियोों
प्रतिरूप और वर््षषा वितरण को प्रभावित करती है।
(दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पर््वू ) के बीच पवनेें दिशा बदलती हैैं।
z मानसन ू ी वर््षषा: अधिकांश वार््षषिक वर््षषा (80%) ग्रीष््म मानसनू के दौरान कम वायुदाब और पवनेें
अवधि मेें होती है। z दाब और पवन प्रणाली: तापमान, ऊंचाई और पृथ््ववी का घर््णन ू वायदु ाब
z वायुदाब प्रणालियाँ: भमि ू पर उच््च और निम््न दाब प्रणालियाँ तापमान को वायु प्रतिरूप को प्रभावित करते है, जिससे वायु प्रवाह उच््च दाब वाले क्षेत्ररों
प्रभावित करती हैैं, जिससे गर्मी मेें निम््न दाब वाले क्षेत्र बनते हैैं। से निम््न दाब वाले क्षेत्ररों की ओर होता है।
z प्राकृतिक आपदाएँ: वर््षषा की मानसनी ू प्रकृ ति भारत को बाढ़, सख ू े और अन््य z जेट स्ट्रीम: ऊपरी स््तर की वायु धाराएँ (जेट स्ट्रीम) दनु िया भर मेें ऊष््ममा और
मौसम संबंधी आपदाओ ं से ग्रस््त बनाती है। नमी का पनर्ु ्ववितरण करती हैैं।
z वायुराशियाँ: तापमान और नमी के आधार पर वर्गीकृ त अलग-अलग  उपोष््णकटिबंधीय पश्चिमी जेट स्ट्रीम: पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ लाकर
वायरु ाशियाँ, विभिन््न क्षेत्ररों को प्रभावित करती हैैं। सर््ददियोों मेें, पश्चिमी चक्रवात शीतकालीन वर््षषा मेें भमिक ू ा निभाती है।
विशिष्ट क्षेत्ररों मेें वर््षषा लाते हैैं, जबकि दक्षिण-पश्चिम मानसनू गर््म हिदं महासागर z हिमालय और तिब््बती पठार: इन भभ ू ागोों के गर््म होने से दक्षिणावर््त वायु
से उत््पन््न होने वाले उष््णकटिबंधीय अवसादोों के कारण व््ययापक वर््षषा करता गति के साथ मानसनू परिसंचरण शरू ु होता है और उष््णकटिबंधीय पर्वी ू जेट
है। इन कारकोों मेें वर््ष की शीत और ग्रीष््म ऋतु के सदं र््भ मेें अलग-अलग तंत्र स्ट्रीम व मध््य एशियाई पश्चिमी जेट स्ट्रीम दोनोों के लिए आधार तैयार होता है।
होते हैैं। z अल नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO): प्रशांत महासागर मेें तापमान मेें
उतार-चढ़़ाव से जड़ु ़ी ENSO घटनाएँ, भारतीय मानसनू सहित वैश्विक मौसम
भारतीय मानसून
प्रतिरूप पर महत्तत्वपर््णू प्रभाव डालती हैैं।
z मानसनू शब््द की उत््पत्ति अरबी शब््द 'मौसम' से हुई है जिसका अर््थ 'ऋतु'  अल नीनो: अल नीनो के दौरान गर््म प्रशांत जल के कारण भारत मेें शष्ु ्क
होता है। यह मौसमी हवाओ ं के उलटफे र अर््थथात प्रतिलोमन के कारण होने स््थथिति और कम मानसनी ू वर््षषा होती है।
वाली एक वैश्विक घटना है। हालाँकि, सबसे महत्तत्वपर््णू मानसनी ू वर््षषा दक्षिण
 ला नीना: ला नीना आमतौर पर भारत मेें सामान््य से अधिक मानसनी ू
एशिया, विशेष रूप से भारत, म््ययााँमार, श्रीलंका, बांग््ललादेश और भटू ान मेें होती
वर््षषा लाता है।
है।
z वॉकर परिसंचरण:
z भारत के लिए, मानसनू महत्तत्वपर््णू है, जो मौसमी वर््षषा लाता है जो इसकी कृ षि,
 प्रशांत महासागर क्षेत्ररों के बीच दाब और तापमान मेें भिन््नता वॉकर
अर््थव््यवस््थथा और जीवन शैली को आकार देता है। मानसनू का आगमन,
अवधि, तीव्रता और वितरण सभी महत्तत्वपर््णू कारक हैैं। परिसंचरण को संचालित करती है।
 ला नीना के दौरान हिद ं महासागर की एक मजबतू शाखा के कारण अधिक
मानसून का तापीय सिद्धधांत
तीव्र मानसनी ू पवनेें और संभावित रूप से अधिक वर््षषा होती है।
z हैली का तापीय सिद््धाांत भारतीय मानसनू को सर््यू की स््पष्ट उत्तर दिशा की  अल नीनो घटनाओ ं के दौरान कमजोर मानसनी ू पवनेें देखी जाती हैैं।
ओर बढ़ने के कारण भमि ू और समद्रु के असमान तापन के लिए जिम््ममेदार
जे ट धाराएँ (Jet Streams)
मानता है। भारत मेें मजबतू मानसनू मेें दो प्रमख ु कारक योगदान करते हैैं: जेट स्ट्रीम वायुमंडल मेें हवा की तीव्र गति वाली धाराएँ होती हैैं, जो आमतौर
उपमहाद्वीप और आसपास के समद्रु रों का विशाल आकार, और विशाल पर पृथ््ववी की सतह से 6 से 9 मील ऊपर होती हैैं। ये धाराएँ मख्ु ्य रूप से
हिमालय। पश्चिम से पर््वू की ओर बहने वाली तीव्र पवनोों की विशेषता होती हैैं। पृथ््ववी का
z हैली का सिद््धाांत तंत्र की व््ययाख््यया इस प्रकार करता है: असमान तापन, विशेष रूप से गर््म और ठंडी वायु राशियोों के बीच, तापमान
 सौर परिवर््तन: मार््च विषव ु के बाद, सर््यू उत्तर की ओर बढ़ता हुआ प्रतीत मेें अंतर पैदा करता है जो जेट स्ट्रीम के निर््ममाण को बढ़़ावा देता है।
होता है, जिससे उत्तरी गोलार््ध मेें, विशेषकर भारत मेें, सौर विकिरण बढ़ प्रवाह को प्रभावित करने वाले कारक:
जाता है। भूभाग: भमि
z ू घर््षण पैदा करती है और जेट स्ट्रीम के सचु ारू प्रवाह को बाधित
 तीव्र तापन: यह विकिरण भारतीय उपमहाद्वीप को गर््म करता है, जिससे करती है, जिससे वे घमु ावदार हो जाती हैैं। पृथ््ववी का घर््णन
ू इस प्रभाव को
उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्ररों से लेकर पर्वी
ू तट तक एक बड़़ी निम््न दाब बेल््ट मजबतू करता है, जिससे जेट स्ट्रीम का विशिष्ट लहरदार प्रतिरूप बनता है।
का निर््ममाण करता है। z कोरिओलिस प्रभाव: यह घटना गतिमान वायु राशियोों को विक्षेपित करती
 निम््न दाब प्रणाली: यह निम््न दाब एक चब ंु क की तरह काम करता है, है, जिससे जेट स्ट्रीम का घमु ावदार पथ बनता है। यह उत्तरी गोलार््ध मेें हवा
जो आसपास के महासागरोों से नमी से भरी वायु राशियोों को खीींचता है। को दाई ं ओर और दक्षिणी गोलार््ध मेें बाई ं ओर विक्षेपित करता है।
 मानसन ू का प्रारंभ: इन वायु राशियोों का प्रवाह भारत मेें मानसनू के प्रमुख विशेषताएँ :
मौसम के आगमन को ट्रिगर करता है। z प्रवाह और अवस््थथिति: जेट स्ट्रीम आमतौर पर पृथ््ववी के घर््णन ू से प्रभावित
भारतीय मानसून की उत्पत्ति होकर पश्चिम से पर््वू की ओर बहती हैैं। वे ग््ललोब को घेरती हैैं, जो आमतौर
पर दोनोों गोलार्द््धों मेें ध्रुवोों और 20°अक््षाांश के बीच पायी जाती हैैं।
भमिू और समद्रु के अलग-अलग तापमान से प्रेरित भारतीय मानसनू कई अन््य z घुमावदार पथ: इनका पथ सीधी रे खा नहीीं होती है, बल््ककि वायमु डं लीय
प्रमख
ु कारकोों से प्रभावित होता है: परिस््थथितियोों से प्रभावित एक लहरदार प्रतिरूप होता है।
z जे ट स्ट्रीम:
z पवन गति: जेट स्ट्रीम का औसत वेग सर््ददियोों मेें 120 किलोमीटर प्रति घटं ा
 उपोष््णकटिबंधीय जे ट स्ट्रीम: कमजोर हो जाती है और उत्तर की ओर
और गर््ममियोों मेें 50 किलोमीटर प्रति घटं ा होता है। सबसे तेज पवनेें आमतौर
स््थथानांतरित हो जाती है, जिससे मानसनी ू पवनेें उत्तर की ओर बढ़ती हैैं पर जेट स्ट्रीम के शिखरोों और गर्ततों मेें पाई जाती हैैं।
और वर््षषा लाती हैैं। z मौसमी बदलाव: जेट स्ट्रीम की स््थथिति मौसम के साथ बदलती है। सर््ददियोों
 उष््णकटिबंधीय पूर्वी स्ट्रीम: बंगाल की खाड़़ी और अरब सागर से नमी मेें, यह हिमालय के दक्षिणी ढलानोों का अनसु रण करता है, जबकि गर््ममियोों
से भरे अवसादोों का मार््गदर््शन करती है, जो वर््षषा के प्रतिरूप को प्रभावित मेें, यह भमि
ू और महासागर के ताप प्रतिरूप मेें भिन््नता के कारण उत्तर की
करती है। ओर स््थथानांतरित हो जाता है।

20  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


जेट स्ट् रीम के प्रकार: अरब सागर शाखा:
z उपोष््णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम: दोनोों गोलार्द््धों मेें 30° अक््षाांश से ऊपर यह शाखा भारत की मख्ु ्य भमि ू पर पहुचँ कर तीन धाराओ ं मेें विभाजित हो जाती
स््थथित, इन जेट स्ट्रीम मेें पृथ््ववी के घमू ने के कारण पश्चिम से पर््वू की ओर है।
अधिक ससु गं त प्रवाह होता है। z पहली धारा पश्चिमी तट से टकराती है, जिससे भौगोलिक प्रभाव के कारण

z मध््य अक््षाांश या ध्रुवीय वाताग्र जेट स्ट्रीम: ध्रुवीय जेट स्ट्रीम उत्तरी और प्रतिवर््ष 250 सेमी से अधिक भारी वर््षषा होती है। इसका मतलब है कि पश्चिमी
दक्षिणी दोनोों गोलार्द््धों मेें 50-60° अक््षाांश रे खाओ ं के बीच स््थथित होती है। घाट पर नमी ले जाने वाली हवाएँ ऊपर उठती हैैं, जिससे हवा की ओर (500
ये जेट धाराएँ वहाँ बनती हैैं जहाँ ठंडी ध्रुवीय हवा गर््म उष््णकटिबंधीय हवा सेमी तक) भारी वर््षषा होती है और दसू री तरफ (लगभग 30-50 सेमी) नाटकीय
से मिलती है। वे पर््वू की ओर चलती हैैं लेकिन ध्रुवीय वाताग्र की गतिशील रूप से कमी आती है।
प्रकृ ति के कारण उपोष््णकटिबंधीय जेट धाराओ ं की तल ु ना मेें उनकी स््थथिति z दस ू री शाखा मध््य भारत मेें एक संकीर््ण घाटी प्रणाली, नर््मदा-तापी गर््त से होकर
अधिक परिवर््तनशील होती है। गजु रती है।
z तीसरी शाखा न््ययूनतम वर््षषा प्रभाव के साथ अरावली पर््वतमाला के साथ-साथ
मानसून की प्रकृति एवं महत्त्वपूर््ण पहलू
चलती है।
दक्षिण एशियाई क्षेत्र मेें वर््षषा के व््यवस््थथित अध््ययन से मानसून के विभिन््न
पहलुओ ं की जानकारी मिलती है, जिनमेें शामिल हैैं: बंगाल की खाड़़ी शाखा:
z मानसन ू का आगमन z यह शाखा भी दो अलग-अलग धाराओ ं मेें विभाजित हो जाती है।
z वर््षषा लाने वाली प्रणालियाँ z पहली शाखा गंगा-ब्रह्मपत्रु डेल््टटा को पार करती है और मेघालय तक पहुचँ ती
z मानसन ू अतं राल है, और एक बार फिर भौगोलिक प्रभाव का सामना करती है। इसके
z मानसन ू निवर््तन परिणामस््वरूप तीव्र वर््षषा होती है, जिसमेें चेरापंजू ी को औसतन 1,102 सेमी
वार््षषिक वर््षषा प्राप्त होती है और मासिनराम मेें 1,221 सेमी के साथ सबसे अधिक
मानसून का आगमन:
वार््षषिक वर््षषा का रिकॉर््ड है।
भारत मेें मानसनू का आगमन कई प्रमख ु कारकोों से प्रभावित होता है: z दसू री शाखा हिमालय की तलहटी का अनसु रण करती है, जो पर््वत श्रंखला
z भूमि और समुद्र के तापमान मेें विपरीतता: ग्रीष््म की तीव्र गर्मी उत्तर पश्चिम
से पश्चिम की ओर विक्षेपित होती है, और गंगा के मैदान मेें व््ययापक वर््षषा लाती
भारत पर निम््न दाब का क्षेत्र बनाती है। यह "सक््शन प्रभाव" भमू ध््य रे खा के है।
पार नमी से भरी दक्षिण-पर्वीू व््ययापारिक पवनोों को आकर््षषित करता है, जिससे
मानसनू की यात्रा शरू मानसून मेें ब्रेक या मानसून अंतराल:
ु हो जाती है।
z अंतर-उष््णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) का खिसकना: ITCZ,
दक्षिण-पश्चिम मानसून अवधि के दौरान कुछ दिनोों तक वर््षषा होने के बाद, यदि
निम््न दाब की एक बेल््ट जहाँ व््ययापारिक पवनेें एकत्रित होती हैैं, सर््यू की स््पष्ट एक या अधिक सप्ताह तक वर््षषा नहीीं होती है, तो इसे मानसून मेें रुकावट के रूप
गति के साथ उत्तर की ओर स््थथानांतरित हो जाती है। यह बदलाव भारत मेें मेें जाना जाता है। बरसात के मौसम मेें ये सख
ू ापन काफी आम है।
मानसनू के आगमन के साथ मेल खाता है। इसके अतिरिक्त, कुछ अन््य विशिष्ट मानसून का निवर््तन:
परिस््थथितियाँ भी दक्षिण पश्चिम मानसनू की शरुु आत को प्रभावित करती हैैं: सरल शब््दोों मेें निवर््तन का अर््थ है पीछे हटना। इसलिए, अक््टटूबर और नवंबर के
z निम््न दाब प्रणाली: मई के अत ं या जनू की शरुु आत मेें बंगाल की खाड़़ी महीनोों के दौरान उत्तर भारत के आसमान से दक्षिण-पश्चिम मानसनी ू पवनोों की
और अरब सागर मेें बनने वाले निम््न दाब वाले क्षेत्र या अवसाद मानसनू के वापसी को पीछे हटने वाले मानसून के रूप मेें जाना जाता है। निकासी धीरे -धीरे
मख्ु ्य भमि
ू आगमन को शरू ु कर सकते हैैं। होती है और इसमेें लगभग तीन महीने लगते हैैं।
z चक्रवाती गतिविधि: के रल और लक्षद्वीप के पास चक्रवाती भवरो ं ों का निर््ममाण हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) और भारतीय मानसून
पश्चिमी तट के साथ-साथ मानसनू की धारा को उत्तर की ओर धके ल सकता है। (INDIAN OCEAN DIPOLE (IOD) AND INDIAN
z तापमान-प्रे रित गर््त: भमि ू और समद्रु के बीच तापमान अतं र पश्चिमी तट पर MONSOON)
एक "गर््त" बना सकता है, जिससे संभावित रूप से मानसनू की शरुु आत मेें
देरी या कमजोर हो सकती है। z हिदं महासागर द्विध्रुव (आईओडी) एक जलवायु घटना है जो हिदं महासागर
के पर्वी
ू (बंगाल की खाड़़ी) और पश्चिमी (अरब सागर) क्षेत्ररों के बीच समद्रु की
z भूमध््य रे खा को पार करना: जब दक्षिणी गोलार््ध से व््ययापारिक पवनेें भम ू ध््य
सतह के तापमान मेें अतं र के कारण उत््पन््न होती है।
रे खा को पार करती हैैं, तो वे भारत की ओर मानसनी ू पवनोों का एक शक्तिशाली
उछाल लाती हैैं। z हिदं महासागर द्विध्रुव (आईओडी) का भारतीय मानसनू पर महत्तत्वपर््णू प्रभाव
पड़ता है, जो भारतीय उपमहाद्वीप मेें वर््षषा के वितरण और तीव्रता को प्रभावित
वर्षा लाने वाली प्रणालियााँ: करता है।
दक्षिण-पश्चिम मानसनू , भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिणी सिरे पर पहुचँ ने पर दो शाखाओ ं z हिदं महासागर द्विध्रुव (आईओडी) के सकारात््मक और नकारात््मक चरण
मेें विभाजित हो जाता है: अरब सागर शाखा और बंगाल की खाड़़ी शाखा। मानसनू वर््षषा प्रतिरूप पर विपरीत प्रभाव डाल सकते हैैं।

भारतीय जलवायु 21
सकारात््मक z गर््म पश्चिम, ठंडा पूर््व: पश्चिमी हिदं महासागर मेें गर््म भारतीय मानसून पर प्रभाव:
हिंद महासागर समद्रीु सतह का तापमान और पर््वू मेें ठंडा तापमान एक z मानसनू ी वर््षषा मेें वद्धि
ृ : ला नीना की स््थथिति के कारण आम तौर पर भारत
द्विध्रुव सकारात््मक आईओडी चरण बनाते हैैं। मेें दक्षिण-पश्चिम मानसनू (जनू -सितंबर) के दौरान वर््षषा मेें वृद्धि होती है।
(आईओडी) z उन््नत मानसनू : यह तापमान प्रतिरूप वायमु डं लीय z शीतकालीन वर््षषा मेें कमी: हालाँकि, ला नीना का पर्वोत्त ू र मानसनू (दिसंबर-
स््थथितियोों को मजबतू करता है जो मानसनू परिसंचरण फरवरी) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिससे क्षेत्र मेें कम वर््षषा होती है।
के अनक ु ू ल होते हैैं। इससे नमी का परिवहन बढ़ता है z चक्रवात गतिविधि: ला नीना वर्षषों मेें सामान््य से अधिक उत्तर की ओर स््थथित
और विशेषकर मध््य भारत मेें अधिक वर््षषा होती है। बंगाल की खाड़़ी मेें निम््न दाब प्रणाली और चक्रवात बनते देखे जाते हैैं।
z वर््षषा मेें वद्धि
ृ : अवलोकन से पता चलता है कि मध््य z दक्षिणी भारत मेें वर््षषा मेें कमी: इस उत्तर दिशा की ओर खिसकने के कारण,
भारत मेें सकारात््मक IOD वर्षषों के दौरान औसत से ये प्रणालियाँ पश्चिम की ओर बढ़ने के बजाय पनु रावर््तन (पर््वू की ओर वापस
अधिक वर््षषा होती है। झकन ु ा) की प्रवृत्ति रखती हैैं। परिणामस््वरूप, तमिलनाडु जैसे दक्षिणी भारतीय
नकारात््मक z ठंडा पश्चिम, गर््म पूर््व: एक नकारात््मक आईओडी तब क्षेत्ररों मेें ला नीना घटनाओ ं के दौरान कम वर््षषा होती है।
हिंद महासागर होता है जब तापमान प्रवणता उलट जाती है, पश्चिम मेें
द्विध्रुव ठंडा जल और पर््वू मेें गर््म जल होता है। मानसून के चरम महीनोों (जुलाई और अगस्त )
(आईओडी) z कमजोर मानसनू : इससे मानसनू परिसंचरण बाधित के दौरान चक्रवात दर््लभ
ु क्ययों होते हैैं ?
हो जाता है, जिससे मानसनू कमजोर हो जाता है और उष््णकटिबंधीय चक्रवातोों के निर््ममाण के लिए विशिष्ट पर््ययावरणीय परिस््थथितियोों
सभं ावित रूप से देरी हो जाती है। की आवश््यकता होती है। इसमे शामिल है:
z सख ू े का खतरा: नकारात््मक आईओडी विशेष रूप से z गर््म महासागरीय जल: सतही जल का तापमान काफी गहराई (लगभग 50

मध््य और पर्वी ू भारत मेें औसत से कम वर््षषा के कारण मीटर) तक कम से कम 26.5°C होना चाहिए।
सख ू े की स््थथिति पैदा कर सकता है। z आर्दद्र परतेें : वातावरण को अपेक्षाकृत नम होना चाहिए, खासकर सतह से

लगभग 5 किलोमीटर ऊपर।


अल-नीनो और भारतीय मानसून
z निम््न पवन कर््तन: सतह और ऊपरी वायम ु डं ल के बीच हवा की गति और
अल नीनो, प्रशांत महासागर के गर््म होने की घटना है, जो भारतीय मानसून को दिशा मेें न््ययूनतम अतं र महत्तत्वपर््णू होता है।
महत्तत्वपूर््ण रूप से प्रभावित करती है। मध््य और पूर्वी प्रशांत महासागर का गर््म हालाँकि, जल ु ाई और अगस््त के मानसनू के चरम महीनोों के दौरान, कुछ कारक
जल वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण पैटर््न को बाधित करता है, जिससे भारतीय चक्रवात बनने की सभं ावना को कम कर देते हैैं:
उपमहाद्वीप मेें वर््षषा प्रभावित होती है। z ते ज़ सतही पवनेें: मानसनी ू पवनेें सतह पर दक्षिण-पश्चिम या पश्चिम से चलती
अल-नीनो के संबंध मेें कुछ प्रमुख बातेें: हैैं, विशेषकर मानसनू गर््त के दक्षिण मेें। गर््त के उत्तर मेें पर्वी
ू या दक्षिण-पर्वी ू
पवनेें चलती हैैं, और ये पवनेें आम तौर पर भमि ू की तल
ु ना मेें समद्रु के ऊपर
z कमजोर मानसनू : अल नीनो वायमु डं लीय परिसचं रण को बाधित करता है,
अधिक तीव्र होती हैैं।
जिससे भमू ध््य रे खा पर नमी का प्रवाह कम हो जाता है। इसका मतलब परू े
z ऊपरी स््तर की पवनेें: ऊपरी स््तर की पवनेें भी दक्षिण मेें पश्चिमी या दक्षिण-
भारत मेें कमजोर मानसनू और कम वर््षषा है।
पश्चिमी दिशा और मानसनू गर््त के उत्तर मेें दक्षिण-पर््वू या पर््वू दिशा प्रदर््शशित
z विलंबित आगमन: अल नीनो मानसनू के आगमन मेें देरी कर सकता है,
करती हैैं। ऊंचाई के साथ इन पवनोों की गति तीव्र होती है। पश्चिमी पवनेें
जिससे कृ षि योजना, जल संसाधन प्रबंधन और समय पर वर््षषा पर निर््भर अन््य अधिकतम 20-25 समद्री ु मील तक पहुचँ ती हैैं, जबकि पर्वी ू पवनेें काफी तीव्र
क्षेत्ररों पर असर पड़ सकता है। होती हैैं, भारतीय प्रायद्वीप पर 60-80 समद्री ु मील की गति तक पहुचँ ती हैैं।
z असमान वितरण: अल नीनो का प्रभाव परू े भारत मेें अलग-अलग होता है। z उच््च पवन कर््तन: अलग-अलग ऊंचाई पर तेज और परिवर््तनशील पवनोों
अल नीनो वर्षषों के दौरान मध््य और उत्तरी क्षेत्र औसत से कम वर््षषा और सख ू े का संयोजन उच््च ऊर््ध्ववाधर पवन कर््तन का निर््ममाण करता है, जो तफ ू ान प्रणाली
के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैैं। के विकास और संगठन को बाधित करता है, जिससे इन महीनोों के दौरान
z क्षेत्रीय विविधताएँ: अल नीनो वर््षषा प्रतिरूप को बाधित कर सकता है, जिससे चक्रवात का निर््ममाण प्रतिकूल हो जाता है।
कमी वाले क्षेत्ररों मेें वृद्धि होगी और अन््य क्षेत्ररों मेें अचानक बाढ़ आ सकती जबकि मानसनू का मौसम चक्रवातोों के लिए आवश््यक गर््म समद्री ु तापमान और
है। गभं ीरता अल नीनो की तीव्रता और क्षेत्रीय वायमु डं लीय स््थथितियोों पर निर््भर आर्दद्र वातावरण प्रदान करता है, जल ु ाई और अगस््त के दौरान प्रचलित मजबतू
करती है। और परिवर््तनशील पवन प्रतिरूप उच््च वायु कर््तन पैदा करते हैैं, जो इन शक्तिशाली
तफ
ू ानोों के विकास को बाधित करते हैैं।
ला-नीना और भारतीय मानसून
मानसून पर चक्रवात/विरोधी चक्रवात का प्रभाव
ला नीना एक जलवायु प्रतिरूप है जो मध््य और पर्वी ू भमू ध््यरे खीय प्रशांत महासागर
मेें औसत समद्री
ु सतह के तापमान से अधिक ठंडा होने के साथ-साथ हवाओ,ं z अरब सागर मेें एक प्रतिचक्रवात, हिदं महासागर मेें एक चक्रवात और प्रशांत
वायदु ाब और वर््षषा जैसे वायमु डं लीय परिसचं रण प्रतिरूप मेें परिवर््तन की विशेषता महासागर मेें एक शक्तिशाली तफ ू ान अर््थथात टाइफून की उपस््थथिति के कारण
है। भारतीय मानसनू मेें और देरी और कमजोरी का अनभु व हो सकता है।

22  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z प्रतिचक्रवात और टाइफून मख्ु ्य भमि ू की ओर मानसनी ू पवनोों के प्रवाह मेें z वर््षषा मेें कमी: पाँच राज््योों - उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मेघालय और
बाधा उत््पन््न कर सकते हैैं, जिससे सभं ावित रूप से वर््षषा वितरण प्रभावित हो नागालैैंड - मेें इस अवधि के दौरान दक्षिण पश्चिम मानसनू वर््षषा मेें उल््ललेखनीय
सकता है और मानसनू की शरुु आत मेें देरी हो सकती है। गिरावट देखी गई। अरुणाचल प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ इन
z हालाँकि, भारतीय मौसम विभाग ने इन अटकलोों को खारिज कर दिया है और राज््योों मेें वार््षषिक वर््षषा मेें भी गिरावट देखी जा रही है।
कहा है कि इन समद्री ु गतिविधियोों का मानसनू पर प्रभाव वैज्ञानिक रूप से z राज््य विशिष्ट भिन््नताएँ: जबकि उपरोक्त राज््योों मेें कमी देखी गई, अन््य क्षेत्ररों
समर््थथित नहीीं है। ने विश्लेषण की गई समय सीमा के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसनू वर््षषा मेें कोई
z अल नीनो की स््थथिति भी एक ऐसा कारक है जो मानसनू को प्रभावित कर महत्तत्वपर््णू बदलाव नहीीं दिखाया है।
सकती है, हालांकि आईएमडी इसके प्रभाव को नगण््य मानता है। z जिला स््तरीय विश्लेषण: जिला स््तर पर वर््षषा के आक ं ड़ों की जाँच से अधिक
z कमजोर और विलंबित मानसनू की सभं ावना ने चावल के क्षेत्र मेें कमी के साथ सक्षू ष्म प्रतिरूप का पता चलता है। देश भर के कई जिलोों मेें पिछले 30 वर्षषों मेें
शरुु आती फसल की बआ ु ई पर अपना प्रभाव पहले ही दिखा दिया है। दक्षिण-पश्चिम मानसनू और वार््षषिक वर््षषा दोनोों मेें महत्तत्वपर््णू परिवर््तन हुए हैैं।
वर्षा का वितरण z भारी वर््षषा की घटनाओ ं मेें वद्धि ृ : दिलचस््प बात यह है कि सौराष्टट्र और
कच््छ, राजस््थथान के कुछ हिस््सोों, तमिलनाडु, आध्रं प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़,
वर्षा के वितरण को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक: मध््य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पर्वोत्त ू र भारत, कोोंकण और गोवा, और उत्तराखडं
z उच््चचावच विशेषताएँ: पर््वत और पठार महत्तत्वपर््णू भमिक ू ा निभाते हैैं। सहित कुछ क्षेत्ररों मेें भारी वर््षषा वाले दिनोों की आवृत्ति मेें काफी वृद्धि हुई है।
पवनाभिमखी ु ढालोों (नमी से भरी हवाओ ं का सामना करने वाले) मेें पवनाविमखी ु
ढालोों की तल कोपेन का भारत के जलवायु क्षेत्ररों का वर्गीकरण
ु ना मेें अधिक वर््षषा होती है। उदाहरण के लिए, पश्चिमी घाट मेें
उनकी पवनाभिमखी ु अवस््थथिति के कारण भारी वर््षषा होती है। z कोपेन ने वनस््पति के वितरण और जलवायु के बीच घनिष्ठ संबंध की पहचान
z चक्रवाती दाब: ये कम दाब वाली प्रणालियाँ देश भर मेें आगे बढ़ते हुए की। भारत के जलवायु क्षेत्ररों का कोपेन का वर्गीकरण औसत वार््षषिक और
विशिष्ट क्षेत्ररों मेें भारी वर््षषा लाती हैैं। बंगाल की खाड़़ी के ऊपर बनने वाले दबाव औसत मासिक तापमान व वर््षषा डेटा पर आधारित एक अनभु वजन््य वर्गीकरण
के कारण पर्वी ू तटोों और डेल््टटाओ ं मेें अक््सर भारी वर््षषा होती है। है।
z पवनोों की दिशा: नमी यक्त ु पवनोों की दिशा वर््षषा वितरण पर महत्तत्वपर््णू प्रभाव
डालती है। उदाहरण के लिए, अरावली पहाड़़ियाँ मानसनू की अरब सागर
शाखा को रोकती हैैं, जिससे राजस््थथान मेें कम वर््षषा होती है।
वर्षा प्रतिरूप:
z उत्तर की ओर कमी: जैस-े जैसे हम मेघालय (उच््च वर््षषा के लिए जाना जाता
है) से उत्तर की ओर हरियाणा और पंजाब के मैदानी इलाकोों की ओर बढ़ते
हैैं, वर््षषा आम तौर पर कम होती जाती है।
z तट से अंदर की ओर कमी: उत्तर की तरह, जैस-े जैसे आप तट से अतर् ं श
दे ीय
भागोों की ओर बढ़ते हैैं, प्रायद्वीपीय भारत मेें वर््षषा कम होती जाती है।
z ऊंचाई/तुंगता मेें वद्धि
ृ : पर्वोत्त
ू र मेें, ऊंचाई के साथ वर््षषा बढ़ती है, मासिनराम
(पठार पर स््थथित) मेें असाधारण रूप से उच््च वर््षषा होती है।
वर्षा वितरण:
z उच््च वर््षषा (200 सेमी से ऊपर): पश्चिमी घाट, पर्वोत्त
ू र के उप-हिमालयी क्षेत्र
और मेघालय की गारो, खासी और जयंतिया पहाड़़ियाँ।
z मध््यम वर््षषा (100-200 सेमी): पश्चिमी घाट के कुछ हिस््ससे, पश्चिम बंगाल,
ओडिशा, बिहार और कई अन््य राज््य।
z कम वर््षषा (60-100 सेमी): उत्तर प्रदेश, राजस््थथान के कुछ हिस््ससे और आतं रिक
दक््कन पठार।
z अपर््ययाप्त वर््षषा (60 सेमी से कम): पश्चिमी राजस््थथान, गजु रात, लद्दाख और
दक्षिण-मध््य भारत के कुछ हिस््ससे।
z कोपेन जलवायु समहोू ों को वर््षषा की मौसमी प्रकृ ति और तापमान विशेषताओ ं
देश मेें बदलता वर््षण प्रतिरूप के आधार पर, छोटे अक्षरोों द्वारा निर््ददिष्ट प्रकारोों मेें विभाजित किया गया है।
z जलवायु वर्गीकरण एवं जलवायु क्षेत्र इस प्रकार हैैं:
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने राज््य और जिला दोनोों स््तरोों पर पिछले
 लघु शुष््क मौसम (Amw) के साथ मानसन ू प्रकार: गोवा के दक्षिण
30 वर्षषों (1989-2018) के डेटा का उपयोग करके परू े भारत मेें मानसनू वर््षषा
प्रतिरूप का विश्लेषण किया। मख्ु ्य निष््कर््ष हैैं: मेें पश्चिमी तटीय क्षेत्र इस प्रकार की जलवायु का अनभु व करता है।

भारतीय जलवायु 23
 गर््ममियोों मेें शुष््क मौसम के साथ मानसनू प्रकार (As): इस प्रकार की निष्कर््ष
जलवायु का क्षेत्र कोरोमडं ल तट तक फै ला हुआ है।
बढ़ते तापमान, हिदं महासागर के गर््म होने, वर््षषा के प्रतिरूप मेें बदलाव, सूखे
 उष््णकटिबंधीय सवाना प्रकार (Aw): कुछ तटीय भागोों को छोड़कर
लगभग संपर््णू प्रायद्वीपीय क्षेत्र इस प्रकार की जलवायु का अनभु व करता है। की आवृत्ति मेें वृद्धि, समद्रु के स््तर मेें वृद्धि और चक्रवात प्रतिरूप मेें बदलाव के
 अर््ध-शुष््क स््टटेपी जलवायु (BShw): इस जलवायु क्षेत्र मेें प्रायद्वीपीय साथ भारत की जलवायु मेें महत्तत्वपूर््ण परिवर््तन हो रहे हैैं। इन परिवर््तनोों के लिए
पठार के आतं रिक भाग और गजु रात, राजस््थथान, हरियाणा, पंजाब और मख्ु ्य रूप से ग्रीनहाउस गैस उत््सर््जन और एयरोसोल फोर््सििंग जैसे मानव-प्रेरित
जम््ममू और कश््ममीर के कुछ हिस््ससे शामिल हैैं। कारक जिम््ममेदार हैैं। भारत के लिए इन परिवर््तनोों की निगरानी और अध््ययन जारी
 ऊष््ण मरुस््थलीय प्रकार (BWhw): इस प्रकार की जलवायु के वल रखना महत्तत्वपूर््ण है ताकि उनके प्रभावोों को बेहतर ढंग से समझा जा सके और
राजस््थथान के पश्चिमी भाग मेें पाई जाती है। जलवायु परिवर््तन के सामने देश के पारिस््थथितिकी तंत्र, अर््थव््यवस््थथा और समाज
 शुष््क सर््ददियोों के साथ मानसनू प्रकार (Cwg): भारत मेें बड़़े पैमाने पर की स््थथिरता और लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए अनुकूलन और शमन के
उत्तरी मैदानी इलाकोों मेें इस प्रकार की जलवायु का अनभु व होता है। लिए रणनीति विकसित की जा सके ।
 लघु ग्रीष््म ऋतु के साथ शीत-आर्दद्र सर््ददियाँ (Dfc): इस जलवायु की
विशेषता लघु ग्रीष््म ऋतु से होती है। यह क्षेत्र भारत के पर्वोत्त
ू र भागोों को प्रमुख शब्दावलियाँ
कवर करता है।
मानसून, जेट स्ट्रीम, अल नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO),
 ध्रुवीय प्रकार (E): इस प्रकार की जलवायु जम््ममू और कश््ममीर एवं पड़़ोसी
आईटीसीजेड, मानसून ब्रेक, हिंद महासागर द्विध्रुव (आईओडी), ला
पर््वत श्रंखलाओ ं मेें अनभु व की जाती है।
नीना, कोपेन का जलवायु वर्गीकरण, मानसून अर््थ व््यवस््थथा, जलवायु
मानसून और भारत का आर््थथिक जीवन परिवर््तन, वर््षषा प्रतिरूप मेें बदलाव, मानसूनी बाढ़, जलवायु नीति
z कृषि पर निर््भरता: भारत की 64% से अधिक आबादी अपनी आजीविका
के लिए कृ षि पर निर््भर है, जिससे मानसनू का मौसम महत्तत्वपर््णू हो जाता है। विगत वर्षषों के प्रश्न
यह मौसमी वर््षषा प्रतिरूप कृ षि चक्र की रीढ़ बनता है। z दक्षिण-पश्चिम मानसनू भोजपरु क्षेत्र मेें 'परु वैया' (पर्वी
ू ) क््योों कहलाता है? इस
z विविध फसलेें: भारत की जलवाय,ु मानसनी ू वर््षषा मेें क्षेत्रीय विविधताओ ं से दिशापरक मौसमी पवन प्रणाली ने क्षेत्र के सांस््ककृतिक लोकाचार को कै से
प्रभावित होकर, परू े देश मेें (हिमालय को छोड़कर, जहाँ तापमान लगातार कम प्रभावित किया है? (2023)
रहता है) विभिन््न प्रकार की फसलोों की खेती की अनमु ति देती है। z भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) की आवश््यकता
z वर््षषा की चुनौतियाँ: असमान मानसनी ू वर््षषा वितरण के कारण प्रत््ययेक वर््ष क््योों है? यह नेविगेशन मेें कै से मदद करता है? (2018)
कुछ क्षेत्ररों मेें सख
ू ा या बाढ़ आ सकती है। z मानसनू एशिया मेें रहने वाली 50 प्रतिशत से अधिक जनसख्ं ्यया के विगत
z सिच ं ाई और वर््षषा: कृ षि की सफलता के लिए समय पर और अच््छछी तरह से भरण-पोषण मेें सफल मानसनू जलवायु को क््यया अभिलक्षण समनदु शित े किए
वितरित वर््षषा महत्तत्वपर््णू होती है। सीमित सिंचाई अवसंरचना वाले क्षेत्र विफल
जा सकते हैैं? (2017)
मानसनू के प्रति विशेष रूप से सभु द्ये होते हैैं।
z आप कहाँ तक ​​सहमत हैैं कि मानवीकारी दृश््यभमियो ू ों के कारण भारतीय मानसनू
z मौसमी लाभ: उत्तर भारत मेें शीतोष््ण चक्रवातोों से होने वाली शीतकालीन
वर््षषा रबी फसलोों (सर््ददियोों मेें बोई जाने वाली और वसंत मेें काटी जाने वाली के आचरण मेें परिवर््तन होता रहा है? चर््चचा कीजिए।  (2015)
फसलेें) के लिए मल्ू ्यवान नमी प्रदान करती है। z भारत के पर्वी ू तट पर हाल ही मेें आए चक्रवात को "फाइलिन" (Phailin)
z जलवायु प्रभाव: भारत की विविध क्षेत्रीय जलवाय,ु जो मानसनू से आकार कहा गया।संसार मेें उष््णकटिबंधीय चक्रवातोों को कै से नाम दिया जाता हैैं? 
लेती है, देश की विभिन््न खाद्य प्राथमिकताओ,ं कपड़ों की शैलियोों और आवास  (2013)
प्रकारोों मेें परिलक्षित होती है। z पश्चिमी घाट की नदियाँ डेल््टटा नहीीं बनातीीं। क््योों? (2013)

24  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


5 भारत मेें जनसंख्या और प्रवासन

परिचय जनसंख््यया वृद्धि की प्रवृत्तियाँ


स््थथिर जनसंख््यया की इस दौरान उच््च जन््म दरोों की भरपाई उच््च मृत््ययु दरोों
विश्व स््ववास््थ््य संगठन (डब््ल्ययूएचओ) जनसंख््यया को एक विशिष्ट स््थथान पर रहने अवधि (1901- से हो जाती थी, जिसके परिणामस््वरूप जनसंख््यया
वाले निवासियोों के पर््णू समहू के रूप मेें परिभाषित करता है, चाहे वह देश, क्षेत्र 1921) वृद्धि धीमी या नकारात््मक भी रहती थी। वर््ष 1921
या भौगोलिक क्षेत्र हो। यह परिभाषा कुल जनसंख््यया को शामिल कर सकती है इस अवधि की कम वृद्धि के कारण एक महत्तत्वपूर््ण
या किसी निश्चित समय पर लिंग और/या आयु समहू जैसे कारकोों के आधार पर मोड़ को चिन््हहित करता है, जिसे "जनसांख््ययिकीय
विभाजित की जा सकती है। विभाजक वर््ष के रूप मेें जाना जाता है।
जनसंख््यया: तथ््ययानुसार स््थथिर वृद्धि की जन््म दर ऊंची रही, लेकिन स््ववास््थ््य, स््वच््छता और
z कुल जनसंख््यया: वर््ष 2024 की शरुु आत मेें, भारत की जनसख्ं ्यया लगभग अवधि (1921- खाद्य वितरण प्रणालियोों मेें सुधार के कारण मृत््ययु दर
1.44 बिलियन है, जो इसे दनु िया का सबसे अधिक आबादी वाला देश 1951) मेें गिरावट शरू ु हो गई। इस अवधि की वृद्धि मौतोों
बनाती है, जिसने वर््ष 2023 के मध््य मेें चीन को पीछे छोड़ दिया। मेें कमी से प्रेरित थी।
z जनसंख््यया वद्धि
ृ दर: वर््ष 2023 की तल ु ना मेें वर््ष 2024 मेें भारत की तीव्र उच््च वृद्धि की मृत््ययु दर मेें गिरावट आई जबकि जन््म दर ऊंची रही,
जनसंख््यया 0.81% की दर से बढ़़ी है। अवधि (1951- जिससे तीव्र जनसंख््यया वृद्धि का दौर शरू ु हुआ। यह
z लिंग अनुपात: वर््ष 2023 के अतं तक, लिंगानपु ात लगभग 1,000 परुु षोों 1981) "विस््फफोट" निरंतर उच््च प्रजनन क्षमता के कारण
पर 939 महिलाएँ है। हुआ।
z जनसंख््यया घनत््व: वर््ष 2024 की शरुु आत मेें भारत का जनसंख््यया घनत््व धीमी गति के 1971-1981 मेें 22.2% की उच््चतम वृद्धि दर
लगभग 439 व््यक्ति प्रति वर््ग किलोमीटर है। निश्चित संके तोों के दर््ज की गई, जिसके बाद धीरे -धीरे गिरावट आई।
साथ उच््च वृद्धि की 2021 की जनगणना मेें पिछले दशक की तुलना मेें
z ग्रामीण-शहरी जनसंख््यया: ग्रामीण जनसंख््यया लगभग 65% है जबकि
अवधि (1981- कम जनसंख््यया वृद्धि देखी गई, जो परिवार नियोजन
शहरी जनसंख््यया लगभग 35% है।
2011) प्रयासोों मेें सफलता और छोटे परिवारोों की ओर
जनसंख्या अध्ययन का महत्त्व बदलाव का संकेत देती है।

z आर््थथिक महाशक्ति: ये कार््यबल (आकार, कौशल, जनसांख््ययिकी) का भारत मेें उच्च जनसंख्या वृद्धि के लिए जिम्मेदार कारक
विश्लेषण आर््थथिक रणनीतियोों को सचित
ू करने और उपभोक्ता व््यवहार व क्रय z उच््च प्रजनन दर: हालांकि थोड़़ी गिरावट के बावजदू , भारत की औसत प्रजनन
शक्ति के आधार पर बाजार क्षमता का आकलन करने के लिए करते हैैं। दर प्रतिस््थथापन स््तर (प्रति महिला 2.0 बच््चचे) से ऊपर बनी हुई है।
z सामाजिक सरु क्षा जाल: सभु द्ये आबादी (बच््चचे, बजु र््गु , कम आय) की (एनएफएचएस-5 डेटा: 2019-21 मेें 2.0)
पहचान करके , ये अध््ययन सामाजिक कल््ययाण कार््यक्रमोों और संसाधन आवंटन z मृत््ययु दर मेें गिरावट: बेहतर स््ववास््थ््य देखभाल और पोषण के कारण मृत््ययु दर
की जानकारी देते हैैं। मेें उल््ललेखनीय गिरावट आई है, खासकर शिशओ ु ं के लिए (एनएफएचएस-5
z कल््ययाण को बढ़़ावा: प्रजनन दर, गर््भनिरोधक उपयोग और प्रजनन स््ववास््थ््य के अनसु ार प्रति 1,000 जीवित जन््मोों पर आईएमआर 35)। यह जनसंख््यया के
को समझने से नीति निर््ममाताओ ं को परिवार नियोजन, मातृ/शिशु मृत््ययु दर को लिए लंबे जीवन काल मेें परिवर््ततित हो जाता है।
कम करने और समग्र कल््ययाण मेें सधु ार के लिए रणनीति विकसित करने की z सीमित परिवार नियोजन पहुच ँ : प्रगति के बावजदू , के वल आधी विवाहित
अनमु ति मिलती है। महिलाएँ ही आधनु िक गर््भ निरोधकोों का उपयोग करती हैैं, जिससे जनसंख््यया
z नीति आधार: साक्षष्य-आधारित नीति निर््ममाण विभिन््न जनसांख््ययिकीय समहोू ों नियंत्रण प्रयासोों मेें बाधा आती है।
की जरूरतोों, आकांक्षाओ ं और प्राथमिकताओ ं को समझने के लिए जनसख्ं ्यया z गरीबी और शिक्षा: गरीबी और निम््न शिक्षा स््तर उच््च प्रजनन दर से जड़ु ़े
अध््ययन पर निर््भर करता है। हुए हैैं, जैसा कि भारत की 27.5% आबादी गरीबी रे खा से नीचे रहती है
z भविष््य के लिए योजना: घनत््व, वितरण और वृद्धि प्रतिरूप पर जनसंख््यया (जनगणना 2011 डेटा)।
डेटा बनु ियादी ढाँचे के नियोजन (परिवहन, आवास, उपयोगिताओ)ं को सचित ू z सांस््ककृतिक और सामाजिक प्रभाव: बड़़े परिवारोों के लिए सांस््ककृतिक
करता है और विभिन््न प्रशासनिक कार्ययों मेें संसाधन आवंटन का मार््गदर््शन प्राथमिकताएँ और सामाजिक दबाव परिवार के आकार के सबं ंध मेें निर््णयोों
करता है। को आकार देने मेें भमिक ू ा निभाते हैैं।
जनसख्ं ्यया घनत््व अधिक होता है। (उदाहरण: दिल््लली, मबंु ई, कोलकाता,
उच्च जनसंख्या वृद्धि के निहितार््थ बेेंगलरुु और चेन््नई जैसे प्रमख
ु महानगर)
मुद्दे (issues) वितरण: दक्षिणी बनाम उत्तरी भारत
z भारत मेें जनसंख््यया वृद्धि और जनसांख््ययिकीय मापदडो ं ों मेें सधु ार राज््य मेें
z संसाधन तनाव: बढ़ती जनसंख््यया भोजन, पानी, आवास और ऊर््जजा जैसे
महत्तत्वपर््णू संसाधनोों पर दबाव पैदा करती है। विकास के स््तर पर सीधे आनपु ातिक है। स््ववास््थ््य और शिक्षा सविध ु ाएँ
z बुनियादी ढाँचे पर अत््यधिक बोझ: परिवहन, स््ववास््थ््य देखभाल, शिक्षा प्राथमिक स््ततंभ हैैं जो किसी भी क्षेत्र की जनसंख््यया पिरामिड तय करते हैैं।
z भारत मेें दक्षिणी विकसित राज््योों मेें उत्तरी राज््योों की तल ु ना मेें जनसंख््यया
और स््वच््छता के लिए मौजदू ा बनु ियादी ढाँचे पर अत््यधिक बोझ हो गया है।
विशेषताओ ं मेें सधु ार देखा गया है।
z रोजगार बाजार मेें तनाव: यदि रोजगार सृजन की गति बरकरार नहीीं रही तो
z दक्षिणी राज््य कम मृत््ययु और कम जन््म दर के कारण जनसांख््ययिकीय संक्रमण
उच््च जनसख्ं ्यया वृद्धि बेरोजगारी और अल््परोजगार को जन््म दे सकती है।
मॉडल के चरण 4 मेें प्रवेश कर चक ु े हैैं, जिससे विकास दर कम हो गई है।
z बढ़ती सामाजिक आवश््यकताएँ: बढ़ती आबादी अधिक स््ववास््थ््य सेवाओ ं
इन राज््योों की कुल प्रजनन दर प्रतिस््थथापन स््तर 2.1 से नीचे है।
और शैक्षणिक संस््थथानोों की माँग करती है।
z पर््ययावरणीय निम््ननीकरण: वनोन््ममूलन, प्रदषू ण और संसाधनोों की कमी जैसे भारत मेें जनसंख्या जनगणना
पर््ययावरणीय मद्ु दे बदतर हो गए हैैं। z परिभाषा: जैसा कि सयं क्त ु राष्टट्र द्वारा उल््ललिखित है, एक जनसख्ं ्यया जनगणना
संभावित लाभ एक विशिष्ट समय बिदं ु पर किसी देश की आबादी के बारे मेें जनसाख््ययिकं ीय, आर््थथिक
z आर््थथिक विकास: एक बड़़ा घरे लू बाजार और बढ़़ी हुई उपभोक्ता माँग आर््थथिक और सामाजिक डेटा को व््ययापक रूप से एकत्र, विश्लेषण और प्रसारित करती है।
विकास को प्रोत््ससाहित कर सकती है। z महत्तत्व: जनगणना के आक ं ड़़े भारत के नीति निर््ममाण, विकास योजना और
z जनसांख््ययिकीय लाभांश: शिक्षा और कौशल विकास मेें उचित निवेश के सरकारी कार््यक्रमोों के मल्ू ्ययाांकन मेें महत्तत्वपर््णू भमिक
ू ा निभाते हैैं। यह देश की
साथ, एक यवु ा आबादी उत््पपादकता और आर््थथिक विकास मेें वृद्धि कर सकती है। जनसख्ं ्यया गतिशीलता को समझने और साक्षष्य-आधारित निर््णय लेने की
जानकारी देने के लिए एक महत्तत्वपर््णू उपकरण के रूप मेें कार््य करता है।
चुनौतियााँ और विचार
z एक ऐतिहासिक प्रयास: भारत मेें पहली जनसंख््यया जनगणना 1872 मेें लॉर््ड
z सामाजिक कल््ययाण: बड़़ी आबादी के साथ पर््ययाप्त सामाजिक सेवाएँ और मेयो के शासन के तहत हुई, जिसका उद्देश््य ब्रिटिश भारत के लिए व््ययापक
कल््ययाण कार््यक्रम प्रदान करना अधिक कठिन हो जाता है। डेटा इकट्ठा करना था। इसने एक दशकीय (प्रत््ययेक दस वर््ष मेें) जनगणना परंपरा
z अनियोजित शहरीकरण: तेजी से शहरीकरण से शहरी बनु ियादी ढाँचे और की शरुु आत की जो आज भी जारी है। दसू री जनगणना 1881 मेें लॉर््ड रिपन
अनियोजित विकास पर दबाव पड़ सकता है। द्वारा हुई और यह हर दशक मेें शासन और नीति निर््ममाण मेें सहायता के लिए
z सतत विकास: चनु ौतियोों का समाधान करने और सतत विकास को बढ़़ावा जनसांख््ययिकीय अतर्दृष्
ं टि प्रदान करती रही।
देने के लिए दीर््घकालिक योजना और नीतियाँ महत्तत्वपर््णू हैैं। z स््वतंत्र भारत की प्रतिबद्धता: स््वतंत्रता के बाद पहली जनगणना 1951 मेें
जनसंख्या का वितरण और उसका घनत्व आयोजित की गई थी, जो इस चल रही श्रंखला मेें सातवीीं जनगणना थी। यह
निरंतरता राष्ट्रीय प्रगति के लिए जनगणना डेटा का उपयोग करने की भारत की
असमान वितरण भारत की जनसंख््यया का एक महत्तत्वपूर््ण पहलू है। शहरीकृ त, प्रतिबद्धता को रे खांकित करती है।
विकसित क्षेत्ररों और मैदानी क्षेत्ररों के आसपास उच््च घनत््व वाले क्षेत्र विकसित
हुए हैैं। पिछड़़े क्षेत्र और पहाड़़ी, रे गिस््ततानी क्षेत्र कम आबादी वाले हैैं। कार््यशील जनसंख्या
असमान जनसंख्या वितरण से संबंधित कारण: श्रम बल अक््टटूबर-दिसंबर 2023 की अवधि के लिए, शहरी क्षेत्ररों मेें
z भू-भाग: समतल मैदान कृ षि, परिवहन नेटवर््क और उद्योगोों के लिए अधिक भागीदारी दर एलएफपीआर बढ़कर 49.9% हो गया, जो पिछले वर््ष की
अनक ु ू ल होते हैैं, जिससे जनसख्ं ्यया घनत््व अधिक होता है। (उदाहरण: गगं ा समान अवधि मेें 48.2% था। 15 वर््ष और उससे अधिक
के मैदान मेें उच््च घनत््व बनाम अरुणाचल प्रदेश मेें कम घनत््व) आयु के व््यक्तियोों के लिए समग्र एलएफपीआर 2022-23
z जलवायु: अत््यधिक तापमान या कम वर््षषा वाले क्षेत्ररों मेें जनसंख््यया सघनता के लिए 54.6% तक पहुचँ गया।
कम होती है। (उदाहरण: हिमालय और थार मरुस््थल) भारत का जनसंख््यया महिला आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार महिला
घनत््व इसके वर््षषा प्रतिरूप को प्रतिबिंबित करता है। श्रम बल श्रम बल भागीदारी दर मेें उल््ललेखनीय वृद्धि देखी गई, जो
z खनिज संसाधन: खनिजोों के भडं ार निवेश को आकर््षषित करते हैैं, रोजगार भागीदारी दर 2023 मेें 37.0% तक पहुचँ गई।
पैदा करते हैैं (विशेष रूप से श्रम-केें द्रित खनन मेें), और उच््च जनसंख््यया घनत््व श्रमिक- शहरी क्षेत्ररों के लिए WPR अक््टटूबर-दिसंबर 2022 मेें
को जन््म देते हैैं। (उदाहरण: झारखडं मेें छोटा नागपरु पठार) जनसंख््यया 44.7% से बढ़कर अक््टटूबर-दिसंबर 2023 मेें 46.6% हो
z उपजाऊ मृदा: उपजाऊ मिट्टी वाली भमि ू उत््पपादक कृ षि का समर््थन करती है अनुपात गया।
और बस््ततियोों को बढ़़ावा देती है, जैसा कि जलोढ़ मिट्टी वाले घनी आबादी बेरोजगारी शहरी क्षेत्ररों मेें कुल बेरोजगारी दर अक््टटूबर-दिसंबर 2023
वाले गगं ा के मैदानोों मेें देखा जाता है। दर मेें घटकर 6.5% हो गई, जो पिछले वर््ष की समान तिमाही
z शहरीकरण: आर््थथिक गतिविधि और नौकरी के अवसर लोगोों को शहरोों की मेें 7.2% थी। ग्रामीण क्षेत्ररों के लिए, 2022-23 के लिए
ओर आकर््षषित करते हैैं, जिसके परिणामस््वरूप ग्रामीण क्षेत्ररों की तल ु ना मेें बेरोजगारी दर 2.4% बताई गई थी।

26  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


 शासन संबंधी मुद्दे: भ्रष्टाचार और अकुशल शासन सधु ारोों के प्रभावी
जनसाांख्यिकीय लाभाांश: अवसरोों की खिड़की
कार््ययान््वयन मेें बाधा डालते हैैं।
z संयुक्त राष्टट्र जनसंख््यया कोष (UNPF): जनसांख््ययिकीय लाभांश को उस z पर््ययावरणीय खतरे:
आर््थथिक विकास क्षमता के रूप मेें परिभाषित किया जाता है जो जनसंख््यया के  जलवायु परिवर््तन: प्रदष ू ण, पारिस््थथितिकी तंत्र का क्षरण और जलवायु
आयु ढाँचे मेें बदलाव से उत््पन््न हो सकती है, जहाँ कार््यशील आयु (15-64 परिवर््तन जैसे पर््ययावरणीय मद्ु दे आजीविका और कल््ययाण को प्रभावित
वर््ष) जनसंख््यया का अनपु ात गैर-कार््यशील आयु वर््ग से अधिक होता है। करते हैैं।
z भारत इस चरण को 2018 - 2055 के बीच अनभु व करे गा। यह चरण अलग- z तकनीकी बाधाएँ:
अलग राज््योों मेें अलग-अलग समय पर उपलब््ध होगा।
 डिजिटल विभाजन: प्रौद्योगिकी और डिजिटल साक्षरता तक असमान
z जिस देश मेें यवु ा लोगोों की बढ़ती संख््यया और घटती प्रजनन दर दोनोों हो, उसमेें पहुचँ सामाजिक और आर््थथिक अतं र को बढ़़ाती है।
जनसांख््ययिकीय लाभांश प्राप्त करने की क्षमता होती है।  रोजगार विस््थथापन: नौकरी मेें व््यवधानोों को दरू करने के लिए स््वचालन
z श्रम शक्ति मेें वृद्धि से आर््थथिक उत््पपादकता मेें वृद्धि सकल घरे लू उत््पपाद मेें वृद्धि के लिए कार््यबल को फिर से कुशल बनाने और उन््नत करने की आवश््यकता
जीवन स््तर मेें वृद्धि और एचडीआई स््ककोर मेें सधु ार होता है। होती है।
जनसाांख्यिकीय लाभाांश (DD) का महत्त्व: आगे की राह
z आर््थथिक उछाल: एक बड़़ा कार््यबल उच््च उत््पपादकता मेें रूपांतरित होता है, z युवाओ ं मेें निवेश: यवु ाओ ं को कार््यबल के लिए तैयार करने के लिए
जिससे आर््थथिक विकास और बाजार का विस््ततार होता है। गणु वत्तापर््णू शिक्षा, व््ययावसायिक प्रशिक्षण और डिजिटल साक्षरता को
z नवाचार केें द्र: एक यवु ा आबादी नए विचार लाती है और उद्यमिता को बढ़़ावा प्राथमिकता देना।
देती है, जिससे नवाचार और तकनीकी प्रगति होती है। z रोजगार और उद्यम: उद्यमिता को बढ़़ावा देना और रोजगार के अवसर पैदा
z सामाजिक उत््थथान: लाभांश शिक्षा, स््ववास््थ््य देखभाल और सामाजिक सरु क्षा करने के लिए छोटे व््यवसायोों का समर््थन करना।
प्रणालियोों मेें निवेश करने, गरीबी को कम करने और हाशिए पर रहने वाले z महिला सशक्तिकरण: महिलाओ ं की परू ी क्षमता को उजागर करने के लिए
समहोू ों को सशक्त बनाने के लिए एक खिड़की प्रदान करता है। शिक्षा और रोजगार तक समान पहुचँ सनु िश्चित करना।
z सतत भविष््य: कुशल कार््यबल और मानव पजंू ी विकास पर ध््ययान देने के z सामाजिक सरु क्षा जाल: सभ ु द्ये आबादी की सरु क्षा के लिए मजबतू सामाजिक
साथ, जनसांख््ययिकीय लाभांश एक राष्टट्र को दीर््घकालिक, सतत विकास और सरु क्षा प्रणाली स््थथापित करना।
वैश्विक प्रतिस््पर््धधात््मकता के लिए सशक्त बनाता है।
z वैश्विक ज्ञान साझाकरण: सर्वोत्तम प्रथाओ ं से सीखने और प्रौद्योगिकी
z भारत को लाभ: भारत इस घटना से अत््यधिक लाभान््ववित होने के लिए तैयार हस््तताांतरण की सविध ु ा के लिए अन््य देशोों के साथ सहयोग करना।
है, इसकी बड़़ी कामकाजी उम्र की आबादी एक विशाल उपभोक्ता बाजार और
इन प्रमख ु क्षेत्ररों पर ध््ययान केें द्रित करके , भारत अपने जनसांख््ययिकीय लाभांश का
एक मजबतू श्रम शक्ति का निर््ममाण कर रही है।
प्रभावी ढंग से लाभ उठा सकता है और सभी के लिए एक उज््जवल भविष््य बना
चुनौतियााँ: सकता है।
z सामाजिक मुद्दे: डिजिटल डिवाइड
z परिभाषा: डिजिटल डिवाइड का तात््पर््य जनसांख््ययिकी और क्षेत्ररों मेें सच ू ना
 सीमित अवसर: गण ु वत्तापर््णू स््ववास््थ््य देखभाल, शिक्षा और महिलाओ ं
व संचार प्रौद्योगिकियोों की पहुचँ , सामर््थ््य और उपलब््धता से वंचित होना है।
के लिए समान भागीदारी तक पहुचँ का अभाव मानवीय क्षमता को सीमित
z पहुच ँ : ऑक््सफै म इडि ं या असमानता रिपोर््ट 2022 के अनसु ार, भारत के
करता है।
सबसे गरीब 20% परिवारोों मेें से के वल 2.7% के पास कंप््ययूटर और 8.9%
 प्रतिभा पलायन: कुशल व््यक्तियोों के प्रवासन से देश का मानव पंज ू ी के पास इटं रनेट सविध ु ाएँ हैैं।
आधार कमजोर हो जाता है।
z डिजिटल साक्षरता: परू े भारत मेें के वल 38% परिवार ही डिजिटल रूप
z आर््थथिक चिंताएँ: से साक्षर हैैं।
 रोजगार बाज़़ार की समस््ययाएँ: अपर््ययाप्त नौकरियाँ और असमान आय z इट ं रनेट का उपयोग: इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्ररों मेें इटं रनेट का उपयोग
वितरण आर््थथिक असमानता पैदा करते हैैं। काफी कम है, शहरी आबादी के 67% के विपरीत, के वल 31% ग्रामीण
 अल््प निवेश: महत्तत्वपर््ण
ू क्षेत्ररों मेें निवेश की कमी वृद्धि और विकास मेें आबादी इटं रनेट का उपयोग करती है।
बाधा डालती है। z हाशिये पर पड़़े लोगोों तक पहुच ँ का अभाव: एससी और एसटी समदु ायोों
z राजनीतिक बाधाएँ: से संबंधित के वल 4% छात्ररों के पास कंप््ययूटर और इटं रनेट दोनोों तक पहुचँ
 अदूरदर्शी नीतियाँ: असंगत नीतियाँ, दीर््घकालिक योजना की कमी और
थी, जो जाति समहोू ों मेें महत्तत्वपर््णू असमानताओ ं को उजागर करता है।
z सतत विकास लक्षष्य: 2030 के लिए सतत विकास लक्षष्ययों (SDG) को
मानव विकास को प्राथमिकता देने की सीमित राजनीतिक इच््छछाशक्ति
बाधाएँ पैदा करती है। प्राप्त करने के लिए सचू ना और संचार प्रौद्योगिकी तक पहुचँ आवश््यक है।

भारत में जनसंख्या और प् 27


मानव विकास लैैंगिक अंतराल विश्व आर््थथिक मंच द्वारा प्रकाशित। यह सूचकांक
सूचकांक (Gender एचडीआई गणना मेें लिंग-विशिष्ट डेटा को
संयुक्त राष्टट्र विकास कार््यक्रम (UNDP): मानव विकास "लोगोों के विकल््पोों Gap Index) शामिल करके लैैंगिक असमानताओ ं को मापता
को बढ़़ाने की प्रक्रिया है", वो विकल््प उन््हेें "राजनीतिक स््वतंत्रता, अन््य है। यह परुु षोों और महिलाओ ं के बीच जीवन
गारंटीकृत मानव अधिकार और आत््म-सम््ममान के विभिन््न तत्तत्व" के साथ "लंबा प्रत््ययाशा, शिक्षा और आय मेें अंतर को ध््ययान
और स््वस््थ जीवन जीने, शिक्षित होने, सभ््य जीवन स््तर का आनंद लेने" की मेें रखता है। 146 देशोों मेें भारत 135वेें स््थथान
अनुमति देते हैैं। विकास शब््द गुणात््मक परिवर््तन को इगितं करता है जो विकास पर है।
शब््द से जड़ु ़े मात्रात््मक और मल्ू ्य-तटस््थ परिवर््तन के मक
ु ाबले सकारात््मक लैैंगिक असमानता लैैंगिक असमानता सूचकांक प्रजनन स््ववास््थ््य,
सूचकांक (Gender सशक्तिकरण और श्रम बाजार भागीदारी मेें लिंग
मल्ू ्य है।
Inequality Index- आधारित असमानताओ ं पर प्रकाश डालता है।
तथ््ययानुसार GII) यह मातृ मृत््ययु दर, किशोर जन््म दर, शैक्षिक
z भारत मेें साक्षरता दर: राष्ट्रीय सांख््ययिकी कार््ययालय (NSO) की नवीनतम उपलब््धधि और संसद मेें प्रतिनिधित््व जैसे
रिपोर््ट के अनसु ार, वर््ष 2023 मेें भारत मेें साक्षरता दर 77.7% है। संकेतकोों पर विचार करता है। 2021 मेें 190
z जीवन प्रत््ययाशा: संयक्त ु राष्टट्र के अनमु ान के अनसु ार वर््ष 2022 मेें यह देशोों मेें भारत 122वेें स््थथान पर है।
70.19 वर््ष है और वर््ष 2100 तक 82.0 तक पहुचँ ने की उम््ममीद है (वैश्विक असमानता-समायोजित यह सूचकांक किसी देश के भीतर असमानता
मानव विकास के लिए HDI को समायोजित करता है। यह
स््तर पर यह 72.6 वर््ष है)।
सूचकांक (Inequality- एचडीआर का हिस््ससा है। यह जनसंख््यया के
z मानव विकास सच ू कांक: HDI 2024 मेें भारत 191 देशोों मेें से 134वेें adjusted Human बीच स््ववास््थ््य, शिक्षा और आय वितरण मेें
स््थथान पर है। Development Index- असमानताओ ं को ध््ययान मेें रखता है।
z वैश्विक भूख सच ू कांक: 2023 मेें 121 देशोों मेें से 111। IHDI)
z लैैंगिक अंतराल सच ू कांक: 2023 रिपोर््ट मेें 146 मेें से 127। बहुआयामी बहुआयामी गरीबी सूचकांक स््ववास््थ््य, शिक्षा
गरीबी सूचकांक और जीवन स््तर सहित गरीबी के कई आयामोों
मानव विकास का महत्त्व (Multidimensional पर विचार करता है। यह उन व््यक्तियोों की
z सतत आजीविका: मानव विकास का मख्ु ्य फोकस अधिक सरु क्षित भविष््य Poverty Index-MPI) पहचान करता है जो अपने जीवन के विभिन््न
पहलुओ ं मेें एक साथ अभाव का अनुभव करते
के लिए, विशेष रूप से कृ षि और उद्यमिता मेें, सतत आय-सृजन के अवसर
हैैं। 2022 मेें भारत पहले स््थथान पर है।
पैदा करना है।
भारत मेें मानव विकास के लिए प्रमुख चुनौतियााँ
z एक कुशल राष्टट्र का निर््ममाण: मानव विकास एक कुशल कार््यबल को बढ़़ावा

देता है, उत््पपादकता, नवाचार और वैश्विक बाजार मेें भारत की प्रतिस््पर््धधात््मक z गरीबी: व््ययापक गरीबी (बहुआयामी निर््धनता सचू कांक (MPI) के अनसु ार
बढ़त को बढ़़ाता है। 16.4%) बनु ियादी जरूरतोों, स््ववास््थ््य देखभाल और शिक्षा तक पहुचँ को
सीमित करती है।
z वैश्विक लक्षष्ययों के साथ संरे खण: भारत के मानव विकास प्रयास गरीबी से
z शिक्षा: गणु वत्तापर््णू शिक्षा, विशेषकर ग्रामीण और सीमांत क्षेत्ररों मेें, एक बाधा
निपटने, शिक्षा और लैैंगिक समानता को बढ़़ावा देने, अच््छछे स््ववास््थ््य को
बनी हुई है।
सनु िश्चित करने और स््थथिरता को बढ़़ावा देकर संयक्त ु राष्टट्र के सतत विकास
z स््ववास््थ््य सेवा: गणु वत्तापर््णू स््ववास््थ््य देखभाल तक सीमित पहुचँ , विशेष रूप
लक्षष्ययों (एसडीजी) को प्राप्त करने मेें योगदान करते हैैं। से दरू दराज के क्षेत्ररों मेें (प्रति 1,000 लोगोों पर 1.4 बिस््तर, प्रति 1,445 लोगोों
z सभी के लिए स््ववास््थ््य: गण ु वत्तापर््णू स््ववास््थ््य सेवाओ ं को प्राथमिकता देना पर 1 डॉक््टर, प्रति 1,000 लोगोों पर 1.7 नर््स)।
मानव विकास की आधारशिला है, जो सभी के लिए बेहतर स््ववास््थ््य परिणाम z लैैंगिक असमानता: महिलाओ ं के लिए शिक्षा, रोजगार और संसाधनोों तक
और पहुचँ सनु िश्चित करता है। पहुचँ मेें लगातार असमानता।
z सभ ु ेद्य लोगोों का सशक्तिकरण: मानव विकास समान अवसर और भागीदारी z बेरोजगारी: उच््च बेरोजगारी दर (अप्रैल 2023 मेें 8.11%), विशेषकर यवु ाओ ं मेें।
सनु िश्चित करके महिलाओ,ं बच््चोों, ग्रामीण समदु ायोों और आदिवासी जनसँख््यया z डिजिटल डिवाइड: समान भागीदारी के लिए प्रौद्योगिकी तक पहुचँ के अतं र
सहित हाशिए पर रहने वाले समहोू ों के उत््थथान की दिशा मेें काम करता है। को पाटना।
मानव विकास को मापने के लिए विभिन््न सूचकांक z जनसंख््यया वद्धि ृ : बढ़ती जनसंख््यया (चीन को 1.4 बिलियन से अधिक) और
मानव विकास यह यूएनडीपी द्वारा प्रकाशित सबसे अधिक संसाधनोों और सेवाओ ं पर इसके प्रभाव का प्रबंधन करना।
सूचकांक (Human इस््ततेमाल किया जाने वाला सूचकांक है, जो आगे की राह
Development Index- मानव विकास के तीन बुनियादी आयामोों को
z व््यक्तियोों का सशक्तिकरण: उद्योग की जरूरतोों के अनरू
ु प कौशल विकास
HDI) जोड़ता है: प्रति व््यक्ति जीवन प्रत््ययाशा, शिक्षा
कार््यक्रमोों को बढ़़ावा देना और रोजगार क्षमता और आर््थथिक आत््मनिर््भरता
और सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई)। बढ़़ाने के लिए उद्यमिता के अवसर पैदा करना।

28  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z सामाजिक सरु क्षा जाल को मजबूत करना: सभु द्ये आबादी की सरु क्षा और नीतियोों का प्रभाव:
असमानता को कम करने के लिए स््ववास््थ््य देखभाल कवरे ज, आय सहायता
और पोषण पहल जैसे मजबतू सामाजिक कार््यक्रम लागू करना। z कम प्रजनन दर के कारण चीन की जनसंख््यया संरचना वृद्ध आबादी की ओर
स््थथानांतरित हो रही है।
z लैैंगिक समानता को बढ़़ावा: समावेशी और सतत विकास प्राप्त करने के
लिए शिक्षा, नौकरी के अवसरोों और निर््णय लेने मेें भागीदारी के माध््यम से z भारत की संघीय संरचना के परिणामस््वरूप परिवार नियोजन नीतियोों के अलग-
महिलाओ ं को सशक्त बनाना। अलग प्रभाव पड़़े, जिससे जनसख्ं ्यया मेें अधिक क्रमिक बदलाव आया।
z पर््ययावरणीय स््थथिरता सनु िश्चित करना: नवीकरणीय ऊर््जजा, टिकाऊ कृ षि, चुनौतियााँ और विचार:
अपशिष्ट प्रबंधन और संरक्षण प्रयासोों पर ध््ययान केें द्रित करते हुए विकास z दोनोों देशोों को बढ़ती आबादी के साथ चनु ौतियोों का सामना करना पड़ता है
योजनाओ ं मेें हरित प्रथाओ ं को एकीकृ त करना। और स््ववास््थ््य देखभाल और सामाजिक सरु क्षा के लिए योजना बनाने की
z नवाचार को बढ़़ावा: सतत भविष््य के लिए नवीन समाधान विकसित करने आवश््यकता होती है।
के लिए शिक्षा जगत, उद्योग और सरकार मेें अनसु ंधान व सहयोग को प्रोत््ससाहित बेटे को प्राथमिकता देने के कारण जन््म के समय लिंगानपु ात मेें असंतल
z ु न दोनोों
करना। देशोों मेें बना हुआ है।
मानव विकास को बढ़़ाने के लिए सरकार द्वारा पहल
सतत विकास:
z कौशल विकास: वर््ष 2015 मेें शरू ु किए गए कौशल भारत मिशन और z चीन और भारत की जनसख्ं ्यया का आकार और वृद्धि सतत विकास लक्षष्ययों
राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन (एनएसडीएम) का उद्देश््य कौशल प्रशिक्षण
को प्राप्त करने की उनकी क्षमता पर महत्तत्वपर््णू प्रभाव डालती है।
कार््यक्रमोों और व््ययावसायिक प्रशिक्षण के माध््यम से भारतीय कार््यबल की
रोजगार क्षमता को बढ़़ाना है। z सतत विकास और किसी को भी पीछे न छोड़ने के लिए उनकी आबादी की
भलाई सनु िश्चित करना महत्तत्वपर््णू है।
z स््वच््छ ऊर््जजा और स््ववास््थ््य: प्रधानमत्री
ं उज््ज््वला योजना (पीएमयवू ाई)
(2016) कम आय वाले परिवारोों को स््वच््छ खाना पकाने का ईधन ं (एलपीजी) प्रवास
प्रदान करती है, जबकि स््वच््छ भारत अभियान (स््वच््छ भारत मिशन) (2014)
खल z प्रवासन का तात््पर््य व््यक्तियोों के अपने सामान््य निवास स््थथान से दरू , या तो
ु े मेें शौच को खत््म करके स््वच््छता और सफाई को बढ़़ावा देता है। राष्ट्रीय
स््ववास््थ््य मिशन (एनएचएम) (2013) स््ववास््थ््य देखभाल पहुचँ मेें सधु ार और अतं रराष्ट्रीय सीमा के पार या किसी देश के भीतर आवागमन से है। इसमेें
मातृ एवं शिशु मृत््ययु दर को कम करने पर केें द्रित है। विभिन््न प्रकार के आवागमन शामिल हैैं, जैसे काम, शिक्षा, परिवार के पनर््ममि
ु लन
z ग्रामीण विकास और आजीविका: महात््ममा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार या मानवीय कारणोों से प्रवासन।
गारंटी अधिनियम (मनरे गा) (2005) ग्रामीण परिवारोों को प्रति वर््ष 100 दिनोों z अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (आईओएम): प्रवासी वह व््यक्ति होता है जो
के काम की गारंटी देता है, जबकि राष्ट्रीय पोषण मिशन (पोषण अभियान) अपने सामान््य निवास स््थथान से दरू चला जाता है, चाहे वह किसी देश के भीतर
(2017) विशेष रूप से महिलाओ ं और बच््चोों मेें कुपोषण से निपटता है। हो या अतं रराष्ट्रीय सीमा के पार, अस््थथायी या स््थथायी रूप से, और कई कारणोों से।
z मोटे तौर पर प्रवास को आंतरिक प्रवास और बाह्य प्रवास के रूप मेें विभाजित
चीन और भारत: किया जा सकता है।
जनसंख्या की विरोधाभासी प्रवृत्तियााँ
आंतरिक प्रवास
जनसंख्या वृद्धि:
z भारत मेें आतं रिक प्रवास मेें नौकरी के अवसर, शिक्षा और बेहतर जीवन
z संयक्त
ु राष्टट्र के अनसु ार, अप्रैल 2023 मेें भारत की जनसंख््यया चीन को पार
स््थथितियोों जैसे विभिन््न कारणोों से देश के भीतर लोगोों की आवाजाही शामिल है।
कर लगभग 1.426 बिलियन हो गई।
z यह आवास और सामाजिक एकीकरण की चनु ौतियाँ पेश करते हुए शहरीकरण
z इसके विपरीत, चीन की जनसंख््यया 2022 मेें चरम पर थी और इसमेें गिरावट
और आर््थथिक विकास मेें योगदान देता है।
शरू
ु हो गई है। अनमु ानोों से संकेत मिलता है कि कम प्रजनन दर और वृद्ध
आबादी के कारण सदी के अतं तक चीन की जनसंख््यया 1 अरब से नीचे गिर आंतरिक प्रवसन के प्रकार:
सकती है। z अंतर-राज््य प्रवास: लोग बेहतर नौकरी, शिक्षा या रहने की स््थथिति की तलाश
प्रजनन दर: मेें राज््य की सीमाओ ं के पार जाते हैैं।
z चीन की सख््त परिवार नियोजन नीतियोों (एक-बाल नीति) के कारण प्रजनन z ग्रामीण-शहरी प्रवासन: बेहतर अवसरोों की आकांक्षाओ ं से प्रेरित होकर,
क्षमता मेें भारी गिरावट आई, जो वर््ष 2022 मेें प्रति महिला 1.2 जन््म तक लोग नौकरियोों, शिक्षा और स््ववास््थ््य देखभाल के लिए ग्रामीण क्षेत्ररों से शहरोों
पहुचँ गई। की ओर पलायन करते हैैं।
z भारत की प्रजनन दर धीरे -धीरे कम हो रही है (2022 मेें प्रति महिला 2.0 z शहरी-ग्रामीण प्रवास: यह प्रति-प्रवाह, हालांकि कम प्रचलित है, इसमेें शांत
जन््म) और घटने से पहले वर््ष 2064 के आसपास चरम पर पहुचँ ने का अनमु ान जीवन चाहने वाले, सेवानिवृत्ति के बाद लौटने वाले, या विशिष्ट ग्रामीण
है। व््यवसायोों को अपनाने वाले व््यक्ति शामिल हैैं।

भारत में जनसंख्या और प् 29


z मौसमी प्रवासन: श्रमिकोों का अस््थथायी आवागमन, जो कृ षि मेें सामान््य है, z शहरी परिवर््तन: आतं रिक प्रवास शहरीकरण, रोजगार सृजन और शहरी क्षेत्ररों
विभिन््न क्षेत्ररों मेें श्रम की मौसमी माँगोों के बाद होता है। मेें आवश््यक सेवाओ ं तक पहुचँ का विस््ततार करने का एक प्रमख ु चालक है।
z शैक्षिक प्रवासन: छात्र शहरोों या अन््य राज््योों मेें स््थथित कॉलेजोों, विश्वविद्यालयोों यह आर््थथिक विविधीकरण और जीवन की उच््च गणु वत्ता को बढ़़ावा देता है।
या संस््थथानोों मेें उच््च शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रवास करते हैैं। z उर््ध््व गतिशीलता: व््यक्ति अपनी सामाजिक और आर््थथिक स््थथिति को ऊंचा
z रिवर््स माइग्रेशन: नौकरी छूटने, आर््थथिक कठिनाई या व््यक्तिगत कारणोों से उठाने के लिए आतं रिक प्रवास का लाभ उठा सकते हैैं। यह बेहतर शिक्षा,
व््यक्ति या परिवार अपने मल ू स््थथान पर लौट आते हैैं। स््ववास््थ््य देखभाल और रोजगार के अवसरोों के द्वार खोलता है।
तथ््ययानुसार z विचारोों का आदान-प्रदान (Cross-Pollination): लोगोों की आवाजाही
z आंतरिक प्रवासियोों की संख््यया: 2011 की जनगणना मेें भारत मेें आत ं रिक कौशल, ज्ञान और नवीन विचारोों के आदान-प्रदान की सविध ु ा प्रदान करती
प्रवासियोों की संख््यया 45.36 करोड़ दर््ज की गई, जो उस समय देश की है, जिससे स््थथानीय अर््थव््यवस््थथा और सामाजिक प्रणालियाँ समृद्ध होती हैैं।
आबादी का 37% थी। z लोगोों मेें निवेश: व््यक्तियोों को बेहतर शिक्षा और कौशल विकास के अवसरोों
z वार््षषिक शुद्ध प्रवासी प्रवाह: भारत मेें वार््षषिक शद्धु प्रवासी प्रवाह कामकाजी तक पहुचँ ने की अनमु ति देकर, आतं रिक प्रवासन समग्र उत््पपादकता और
उम्र की आबादी का लगभग 1% है। प्रतिस््पर््धधात््मकता को बढ़़ाता है, जिससे आर््थथिक विकास को गति मिलती है।
विश्व प्रवास रिपोर््ट 2024: चुनौतियााँ:
z संयक्त
ु अरब अमीरात, अमेरिका और सऊदी अरब जैसे देशोों मेें बड़़े प्रवासी z तनावपूर््ण शहरी बुनियादी ढाँचा: तेजी से प्रवासन से शहरी बनु ियादी ढाँचे
के साथ, भारत दनु िया मेें सबसे बड़़ी सख्ं ्यया मेें अतं रराष्ट्रीय प्रवासियोों (लगभग
पर बोझ पड़ता है, जिससे अपर््ययाप्त जल, स््वच््छता और स््ववास््थ््य देखभाल के
18 मिलियन) का मल ू स््थथान है। साथ अत््यधिक भीड़भाड़ वाली झग््गगि ु याँ बन जाती हैैं।
z रिपोर््ट के अनसु ार, भारत मेें परुु षोों की तल ु ना मेें महिला अप्रवासियोों की
z सामाजिक असमानता: प्रवासियोों को प्रायः सामाजिक बहिष््ककार, भेदभाव
हिस््ससेदारी थोड़़ी अधिक है। परुु ष उत्पप्रवासियोों के उल््ललेखनीय उच््च अनपु ात
और शिक्षा, स््ववास््थ््य देखभाल व सामाजिक कल््ययाण योजनाओ ं जैसी आवश््यक
वाले देशोों मेें भारत, बांग््ललादेश और पाकिस््ततान शामिल हैैं।
सेवाओ ं तक सीमित पहुचँ का सामना करना पड़ता है।
आंतरिक प्रवास के लिए जिम्मेदार कारक:
z आर््थथिक असरु क्षा: सीमित नौकरी के अवसर, विशेष रूप से अनौपचारिक
z आर््थथिक कारक: प्रवास अक््सर बेहतर रोजगार के अवसरोों, उच््च मजदरू ी क्षेत्र मेें, प्रवासियोों के लिए कम वेतन, शोषण और अनिश्चित कार््य स््थथितियोों
और बेहतर जीवन स््तर की खोज से प्रेरित होता है। इसमेें विविध नौकरियोों को जन््म देते हैैं।
और बनु ियादी ढाँचे के लिए ग्रामीण-शहरी प्रवास की प्रवृत्ति शामिल है। z दुर््व््यवहार के प्रति सभ ु ेद्यता: काननी
ू सरु क्षा, जागरूकता और सामाजिक
z सामाजिक कारक: विवाह, गणु वत्तापर््णू शिक्षा तक पहुचँ और मौजदू ा समर््थन की कमी के कारण प्रवासी महिलाएँ और बच््चचे विशेष रूप से शोषण,
सामाजिक नेटवर््क (परिवार, समदु ाय) आतं रिक प्रवास के महत्तत्वपर््णू कारण हैैं, तस््करी एवं बलात श्रम के प्रति सभु द्ये होते हैैं।
खासकर उन महिलाओ ं के लिए जो वैवाहिक निवास या शैक्षिक अवसरोों की z सामाजिक विघटन: प्रवासन सामाजिक नेटवर््क को बाधित कर सकता है,
तलाश मेें हैैं। परिवारोों को अलग कर सकता है, और प्रवासियोों और उनके प्रियजनोों के
z जनसांख््ययिकीय कारक: उच््च जनसंख््यया घनत््व, सीमित संसाधन और उम्र भावनात््मक और मनोवैज्ञानिक कल््ययाण पर नकारात््मक प्रभाव डाल सकता है।
(शिक्षा/नौकरी के लिए कम उम्र, सेवानिवृत्ति/स््ववास््थ््य देखभाल के लिए अधिक z सीमित स््ववास््थ््य सेवा: प्रवासियोों, विशेष रूप से अनौपचारिक बस््ततियोों मेें
उम्र) प्रवासन प्रतिरूप को प्रभावित कर सकते हैैं। रहने वालोों के पास प्रायः आवश््यक स््ववास््थ््य सेवाओ ं तक सीमित पहुचँ होती है।
z पर््ययावरणीय कारक: प्राकृतिक आपदाएँ, पर््ययावरणीय निम््ननीकरण (जल की
आगे की राह
कमी, प्रदषू ण), और जलवायु परिवर््तन लोगोों को बेहतर जीवन स््थथितियोों और
कम जोखिम के लिए पलायन करने के लिए प्रेरित कर सकते हैैं। z एकीकृत दृष्टिकोण: व््ययापक शहरी नियोजन लागू करना जिसमेें बनु ियादी
z राजनीतिक कारक: राजनीतिक अस््थथिरता, संघर््ष और सरकारी नीतियाँ ढाँचे के विकास, बनु ियादी सेवाओ ं और प्रवासन प्रबंधन रणनीतियोों को शामिल
(बनु ियादी ढाँचा परियोजनाएँ, विकास पहल) विशिष्ट क्षेत्ररों मेें सरु क्षा या आर््थथिक किया जाए।
अवसरोों के लिए प्रवासन को गति दे सकती हैैं। z समानता और समावेशन: भेदभाव का मक ु ाबला करते हुए प्रवासियोों के लिए
सामाजिक कल््ययाण कार््यक्रमोों, शिक्षा और स््ववास््थ््य देखभाल तक समान पहुचँ
आंतरिक प्रवास का महत्त्व:
सनु िश्चित करना।
z आर््थथिक प्रोत््ससाहन: आतं रिक प्रवासन आर््थथिक विकास के लिए एक इजं न z सशक्तिकरण और अवसर: आजीविका सृजन, उद्यमिता सहायता और
के रूप मेें कार््य करता है, जो तेजी से बढ़ते उद्योगोों और शहरी केें द्ररों को श्रम कौशल विकास कार््यक्रमोों के माध््यम से प्रवासियोों के लिए नौकरी की
की आपर््तति
ू करता है, जो परू े देश मेें उत््पपादन और विकास को प्रेरित करता है। संभावनाओ ं को बढ़़ाना।
z अंतराल को पाटना: इसमेें आर््थथिक गतिविधियोों को बढ़़ावा देने और कम z अधिकारोों की सरु क्षा: प्रवासियोों के लिए काननी ू सरु क्षा को मजबतू करना,
विकसित क्षेत्ररों मेें जीवन स््तर मेें सधु ार करके क्षेत्रीय असंतल
ु न को कम करने शोषण और तस््करी को संबोधित करना, और उनकी जरूरतोों को परू ा करने के
की क्षमता है। लिए सहायता प्रणाली स््थथापित करना।

30  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z सामाजिक एकीकरण: पनर््ममि ु लन की सविध ु ा प्रदान करके पारिवारिक z स््ववास््थ््य देखभाल की आवश््यकताएँ: लोग बेहतर स््ववास््थ््य सेवाओ,ं विशेष
अलगाव को कम करना और प्रवासी कल््ययाण को बढ़़ावा देने के लिए सामाजिक उपचारोों, या घर पर उपलब््ध उन््नत चिकित््ससा बनु ियादी ढाँचे तक पहुचँ के
सहायता नेटवर््क प्रदान करना। लिए पलायन करते हैैं।
z अंतराल को पाटना: भाषा समर््थन, सरलीकृ त दस््ततावेज़़ीकरण प्रक्रियाओ ं z जीवन की बेहतर गुणवत्ता: उच््च जीवन स््तर, बेहतर बनु ियादी ढाँचे और
और प्रवासी-अनक ु ू ल स््ववास््थ््य सेवाओ ं के माध््यम से शिक्षा तक पहुचँ मेें सधु ार स््ववास््थ््य देखभाल, शिक्षा और सामाजिक सेवाओ ं जैसी सविध
ु ाओ ं तक पहुचँ
करना। की इच््छछा से प्रवासन को प्रेरित किया जा सकता है।
z संसाधन-आधारित प्रवासन: महत्तत्वपर््णू प्राकृतिक ससं ाधनोों वाले क्षेत्ररों मेें
प्रमुख शब्दावलियाँ खनन, तेल और गैस, या कृ षि मेें रोजगार के अवसरोों के कारण प्रवासन का
अनभु व हो सकता है।
बाह्य-प्रवासन और आंतरिक-प्रवासन; मौसमी प्रवासन; रिवर््स
माइग्रेशन; प्रतिभा पलायन; सामाजिक प्रेषण; आंतरिक प्रवासन; बाह्य प्रवास: एक दोधारी तलवार
आकर््ष क और प्रतिलार््शक कारक; जनसांख््ययिकीय परिणाम; प्रवासी सकारात्मक प्रभाव:
मजदूर; आदि। z आर््थथिक संवद्धिृ (Boost): प्रवासन भेजने वाले और प्राप्त करने वाले दोनोों
देशोों मेें आर््थथिक विकास को बढ़़ावा देता है। प्रेषण, निवेश और कौशल
बाह्य प्रवास हस््तताांतरण विकास मेें योगदान करते हैैं।
बाह्य प्रवास से तात््पर््य अपने निवास स््थथान को बदलने के उद्देश््य से लोगोों के एक z सांस््ककृतिक विविधता: प्रवासन जीवंत सांस््ककृतिक आदान-प्रदान को बढ़़ावा
देश से दसू रे देश मेें जाने से है। इसमेें अतं रराष्ट्रीय सीमाओ ं को पार करना शामिल देता है, समाज को विविध विचारोों, परंपराओ ं और अनभु वोों से समृद्ध करता
है और यह स््ववैच््छछिक या मजबरू न हो सकता है। बाह्य प्रवासन का भेजने वाले और है।
प्राप्त करने वाले दोनोों देशोों पर महत्तत्वपर््णू प्रभाव पड़ता है। z कुशल कार््यबल: प्रवासी विदेशोों मेें मल्ू ्यवान कौशल और ज्ञान प्राप्त करते
बाह्य प्रवास के प्रकार: हैैं, जिसका वे अपने घर मेें उपयोग करके मानव पंजू ी को बढ़़ा सकते हैैं।
z भारत से दुनिया के विभिन््न हिस््सोों मेें उत्पप्रवासन (Emigration from z नवाचार केें द्र: प्रवासी अक््सर नए दृष्टिकोण और उद्यमशीलता की भावना
India to various parts of the world): यह विभिन््न कारणोों से भारतीय लाते हैैं, जिससे मेजबान देशोों मेें नवाचार और व््ययावसायिक विकास होता है।
नागरिकोों के अन््य देशोों मेें प्रवास को संदर््भभित करता है, जैसे कि रोजगार के z अंतराल भरना: बाहरी प्रवासन मेजबान देशोों के लिए कुशल और विविध
अवसर, शिक्षा, परिवार का पनर््ममि ु लन, या बेहतर जीवन स््थथितियोों की तलाश। कार््यबल प्रदान करके , श्रम की कमी को दरू करने मेें मदद करता है।
z विभिन््न देशोों से लोगोों का भारत मेें आप्रवासन (Immigration of z वैश्विक नेटवर््क : प्रवासन वैश्विक सबं ंधोों को मजबतू करता है, सीमाओ ं के पार
people from different countries to India): इसमेें विभिन््न देशोों से सहयोग को बढ़़ावा देता है और व््ययापार, कूटनीति और अतं रराष्ट्रीय संबंधोों
लोग विभिन््न उद्देश््योों के लिए भारत आ रहे हैैं, जिनमेें रोजगार, व््यवसाय, को लाभ पहुचँ ाता है।
शिक्षा, या पहले से ही देश मेें रह रहे परिवार के सदस््योों से जड़ु ना शामिल है। नकारात्मक प्रभाव:
z शरणार्थी प्रवासन: इस प्रकार के प्रवासन मेें ऐसे व््यक्ति शामिल होते हैैं जो z प्रतिभा पलायन: कुशल पेशवरो े ों का प्रवासन भेजने वाले देशोों को प्रतिभा
उत््पपीड़न, संघर््ष या अन््य प्रकार की हिसं ा के कारण अपने गृह देशोों से भागने और विशेषज्ञता से वंचित कर सकता है, जिससे विकास मेें बाधा उत््पन््न हो
के लिए मजबरू होते हैैं। सकती है।
बाह्य प्रवास के लिए उत्तरदायी कारक: z सभ ु ेद्य आबादी: प्रवासियोों को शोषण और भेदभाव का सामना करना पड़
z आर््थथिक कारक: लोग बेहतर नौकरियोों, उच््च वेतन और बेहतर जीवन स््तर सकता है, विशेष रूप से उन लोगोों को जिनके पास काननी ू सरु क्षा और सहायता
की तलाश मेें दसू रे देशोों मेें प्रवास करते हैैं। प्रणालियोों का अभाव है।
z शिक्षा: छात्र और पेशवे र उच््च शिक्षा, उन््नत डिग्री या विशेष प्रशिक्षण के z प्रेषण निर््भरता: प्रेषण पर अत््यधिक निर््भरता प्रेषण देशोों मेें आर््थथिक सभु द्ये ता
लिए विदेश चले जाते हैैं। पैदा करती है, जिससे दीर््घकालिक विकास प्रभावित होता है।
z सरु क्षा और सरु क्षा: राजनीतिक अस््थथिरता, संघर््ष, उत््पपीड़न और सामाजिक z सामाजिक घर््षण: सांस््ककृतिक मतभेद, संसाधन प्रतिस््पर््धधा और नौकरी
अशांति व््यक्तियोों को बाहरी शरण लेने के लिए प्रेरित कर सकती है। विस््थथापन की आशक ं ाएँ प्रवासियोों और मेजबान समदु ायोों के बीच सामाजिक
z पर््ययावरणीय चिंताएँ: प्राकृतिक आपदाएँ, जलवायु परिवर््तन और पर््ययावरणीय तनाव पैदा कर सकती हैैं।
क्षरण लोगोों को सरु क्षित और अधिक टिकाऊ जीवन के लिए पलायन करने z खोया हुआ निवेश: विदेश मेें स््थथायी रूप से बसने वाले प्रवासियोों को शिक्षित
के लिए मजबरू कर सकते हैैं। और प्रशिक्षित करने मेें किए गए निवेश को ‘भेजने वाले देश (Sending
z वैश्विक अवसर: वैश्वीकरण विभिन््न क्षेत्ररों मेें श्रम की माँग पैदा करता है, कौशल country)’ खो देते हैैं।
अतं राल को भरने के लिए प्रवासियोों को आकर््षषित करता है। z सामाजिक विघटन: प्रवासन से पारिवारिक अलगाव, सामाजिक सहायता
z समानता की माँग: नस््ल, जातीयता, धर््म या मान््यताओ ं के आधार पर भेदभाव प्रणालियोों की कमी और सांस््ककृतिक पहचान बनाए रखने मेें चनु ौतियाँ हो सकती
अधिक सहिष््णणु और समावेशी समाज के लिए प्रवासन को प्रेरित कर सकता है। हैैं।

भारत में जनसंख्या और प् 31


आगे की राह (WAY FORWARD): श्रम बाजार की जरूरतोों और सामाजिक एकीकरण जैसी चनु ौतियोों का समाधान
करने के लिए नीति निर््ममाताओ ं के लिए इन प्रतिरूप को समझना महत्तत्वपर््णू है।
z एकीकरण की सवि ु धा: प्रवासियोों को उनके नए समदु ायोों (आवास, स््ववास््थ््य जैस-े जैसे दनु िया विकसित हो रही है, सतत और समावेशी विकास को बढ़़ावा देने
देखभाल, शिक्षा, आदि) मेें एकीकृ त करने मेें मदद करने के लिए मजबतू नीतियाँ
के लिए जनसंख््यया और प्रवासन प्रक्रियाओ ं की व््ययापक समझ आवश््यक बनी हुई
लागू करना।
है।
z प्रवासी कल््ययाण मेें सध ु ार: खराब आवास, शोषणकारी कार््य और स््ववास््थ््य
देखभाल पहुचँ की कमी जैसे मद्ददों ु से निपटते हुए, प्रवासियोों के लिए पर््ययाप्त
सामाजिक सरु क्षा प्रदान करना। स््ववास््थ््य बीमा और आवास परियोजनाओ ं जैसे
प्रमुख शब्दावलियाँ
लक्षित सहायता कार््यक्रम विकसित करना। अपरिष््ककृ त साक्षरता दर; प्रभावी साक्षरता दर; मानव उत््पपादकता;
z प्रवासी अधिकारोों की रक्षा: प्रवासी श्रमिकोों के लिए उनके गृह और गंतव््य जनसांख््ययिकीय विभाजन; जनसांख््ययिकीय आपदा; जनसांख््ययिकी
राज््योों दोनोों मेें बनु ियादी अधिकारोों की गारंटी देने वाले तंत्र स््थथापित करना। उभार; वित्तीय समावेशन; समावेशी विकास; ऑनलाइन धोखाधड़़ी;
z कौशल और अवसरोों मेें निवेश: प्रवासी कौशल को बढ़़ाने और रोजगार
अप-स््ककिलिंग; डिजिटल डिवाइड; डिजिटल असमानता;
एवं उद्यमशीलता की संभावनाएँ पैदा करने के लिए निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी वित्तीय साक्षरता के लिए 5C दृष्टिकोण: सामग्री (Content)
+ क्षमता (Capacity) + समुदाय (Community) + संचार
करना।
(Communication) + सहयोग (Collaboration)।
z अंतरराष्ट्रीय सहयोग: साझा प्रवासन चन ु ौतियोों का समाधान करने, प्रवासी
अधिकारोों की रक्षा करने और सचू ना साझाकरण और समन््ववित नीतियोों के विगत वर्षषों के प्रश्न
माध््यम से सरु क्षित और व््यवस््थथित प्रवासन को बढ़़ावा देने के लिए अतं रराष्ट्रीय z भारत मेें मानव विकास आर््थथिक विकास के साथ कदमताल करने मेें विफल
भागीदारोों के साथ सहयोग करना। क््योों हुआ? (2023)
बाह्य प्रवासन अवसर और चनु ौतियाँ दोनोों प्रस््ततुत करता है। इसकी अनिवार््यता को z जनसंख््यया शिक्षा के मख्ु ्य उद्देश््योों की विवेचना करते हुए भारत मेें इन््हेें प्राप्त
स््ववीकार करके , प्रभावी एकीकरण नीतियोों को लागू करके और अतं रराष्ट्रीय सहयोग करने के उपायोों पर विस््ततृत प्रकाश डालिए। (2021)
को बढ़़ावा देकर, हम समावेशी और सतत विकास के लिए इसके लाभोों का उपयोग z कोविड-19 महामारी ने भारत मेें वर््ग असमानताओ ं और गरीबी को बढ़़ा दिया।
कर सकते हैैं। टिप््पणी। (2020)
निष्कर््ष (Conclusion): z भारत मेें ‘महत्त्वाकांक्षी जिलोों के कायाकल््प’ के लिए मल ू रणनीतियोों का
जनसख्ं ्यया और प्रवासन की गतिशीलता राष्ट्रीय और वैश्विक स््तर पर सामाजिक, उल््ललेख कीजिए और इसकी सफलता के लिए अभिसरण, सहयोग व प्रतिस््पर््धधा
आर््थथिक और पर््ययावरणीय परिदृश््य को आकार देने मेें महत्तत्वपर््णू है।जनसंख््यया रुझान, की प्रकृ ति की स््पष्ट कीजिए। (2018)
जिसमेें वृद्धि, गिरावट और आयु संरचना शामिल है, संसाधन आवंटन और विकास z समालोचनात््मक परीक्षण कीजिए कि क््यया बढ़ती जनसख्ं ्यया निर््धनता का मख्ु ्य
रणनीतियोों को प्रभावित करती है। विभिन््न आकर््षक-प्रतिकर््षक कारकोों से प्रेरित कारण है या कि निर््धनता भारत मेें जनसख्ं ्यया वृद्धि का मख्ु ्य कारण है। (2015)
प्रवासन, मल ू और गतं व््य दोनोों क्षेत्ररों को परिवर््ततित कर देता है, सांस््ककृतिक विविधता, z पिछले चार दशकोों मेें, भारत के भीतर और भारत के बाहर श्रमिक प्रवसन की
आर््थथिक अवसरोों और सामाजिक संरचनाओ ं को प्रभावित करता है। शहरीकरण, प्रवृत्तियोों मेें परिवर््तनोों पर चर््चचा कीजिए। (2015)

32  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


6 मानव अधिवास और संबधं ित मुद्दे

परिचय ग्रामीण बस्तियााँ


भगू ोल मेें, एक बस््तती, इलाका या आबादी वाला स््थथान, एक ऐसा समुदाय z यह उन घरोों के समहोू ों को संदर््भभित करता है जिन््हेें "गाँव" के रूप मेें जाना जाता
होता है जहाँ लोग निवास करते हैैं। एक बस््तती की जटिलता कुछ घरोों के है, साथ ही आस-पास की भमि ू जहाँ से निवासी अपना भोजन प्राप्त करते हैैं।
एक साथ समहू ीकृ त होने से लेकर आसपास के शहरीकृ त क्षेत्ररों वाले सबसे बड़़े z विशेष रूप से, भारत मेें, एक गाँव "राजस््व उद्देश््योों के लिए निश्चित सीमाओ ं

शहरोों तक हो सकती है। वाली भमि ू का एक टुकड़़ा है, जिसकी जनसख्ं ्यया पर स््पष्ट और लगातार ध््ययान
z बस््ततियोों मेें गाँव, कस््बबे, शहर और महानगर शामिल हो सकते हैैं। नहीीं दिया जाता है," जिसे अग्रें जी मेें "मौजा" के रूप मेें भी जाना जाता है।
z बस््ततियोों को मोटे तौर पर दो प्रकारोों मेें विभाजित किया जा सकता z इस परिभाषा के अनस ु ार, एक राजस््व गाँव एक विशिष्ट प्रशासनिक इकाई है
है- ग्रामीण और शहरी। जिसमेें एक या एक से अधिक आवासीय समहोू ों के साथ-साथ उनकी स््ववामित््व
वाली भमि ू भी शामिल होती है।
बस्तियोों का वर्गीकरण
भारत मेें गाँवोों का वितरण: 2011 की जनगणना के अनुसार भारत मेें
शहरी बस्ती 640,867 गाँव हैैं, जिनमेें वे गाँव भी शामिल हैैं जिनमेें आबादी नहीीं है।
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की दो तिहाई से ज््ययादा आबादी या
z शहरी बस््ततियोों मेें रहने वाले अधिकांश लोग गैर-प्राथमिक उद्योगोों जैसे
68.84% आबादी 6.4 लाख से ज़़्ययादा गाँवोों मेें रहती है। इनमेें से 16.6%
विनिर््ममाण और सेवा मेें कार््यरत होते हैैं।
से ज़़्ययादा आबादी अके ले उत्तर प्रदेश मेें है। चंडीगढ़ मेें सिर्फ़ पाँच गाँव हैैं।
z शहरी क्षेत्ररों मेें जनसंख््यया घनत््व आम तौर पर अधिक होता है - प्रति वर््ग किमी
400 से अधिक व््यक्ति। भारत मेें नगरीकरण
z सरकार द्वारा शहरी बस््तती घोषित किया गया हो। z परिभाषा: जनसख्ं ्यया का ग्रामीण से शहरी क्षेत्ररों मेें स््थथानांतरण, जिसके
z भारत मेें शहरी बस््ततियोों को वर्गीकृ त करने के लिए निम््नलिखित मानकोों का परिणामस््वरूप ग्रामीण क्षेत्ररों मेें रहने वाले लोगोों की संख््यया मेें गिरावट, और
उपयोग किया जाता है: जिस तरीके से समाज इस बदलाव के साथ खदु को ढालता है, उसे शहरीकरण
 2011 की जनगणना के अनस ु ार वहाँ 5000 से अधिक लोग निवास कहते हैैं।
करना चाहिए। z भारत मेें शहरीकरण की स््थथिति: भारत मेें शहरीकरण मुख््य रूप से
स््वतंत्रता के बाद की घटना थी, जिसका कारण देश द्वारा अर््थव््यवस््थथा की
मिश्रित प्रणाली को अपनाना था, जिससे निजी क्षेत्र के विकास को बढ़़ावा
मिला।
 भारत की शहरी आबादी वर््ष 2021 मेें 47.5 करोड़ हो गई।
रेखीय प्रतिरूप क्रॉस-आकार प्रतिरूप स््टटार-जैसा प्रतिरूप
 वर््ष 2021 मेें भारत की शहरीकरण दर 1.34% थी। 2021 मेें, भारत की

शहरीकरण दर मेें सालाना 1.5% की वृद्धि हुई। 2010 से 2021 के बीच


यह दर 19.6% बढ़़ी।
 वर््ष 2010 और 2021 के बीच, भारत की शहरीकरण दर 2021 मेें सबसे

वृत्ताकार प्रतिरूप टी-आकार प्रतिरूप दोहरा प्रतिरूप अधिक और 2010 मेें सबसे कम थी।
रेलवे सड़क नदी नहर कु आँ शहरीकरण बढ़ने का कारण
पुल मंदिर गाँव तालाब पेड़
z आर््थथिक अवसर: शहर अक््सर ग्रामीण क्षेत्ररों की तल ु ना मेें अधिक नौकरी के
 कार््यरत परुु षोों मेें से कम से कम 75% गैर-प्राथमिक उद्योगोों मेें कार््यरत अवसर और उच््च वेतन प्रदान करते हैैं।
होने चाहिए। z सेवाओ ं और सवि ु धाओ ं तक पहुच ँ : शहरी क्षेत्र स््ववास््थ््य सेवा, शिक्षा और
 नगर क्षेत्र समिति को शहरी क्षेत्र को अधिसचितू करना चाहिए था, जिसमेें परिवहन जैसी आवश््यक सेवाओ ं तक बेहतर पहुचँ प्रदान करते हैैं। मनोरंजन,
एक नगर पालिका, निगम या छावनी बोर््ड होना चाहिए। खरीदारी और सांस््ककृतिक गतिविधियोों जैसी सविध ु ाओ ं की उपलब््धता भी
 प्रति वर््ग किमी मेें 400 से अधिक व््यक्ति निवास करने चाहिए। लोगोों को शहरोों की ओर आकर््षषित करती है।
संयुक्त राष्टट्र का अनुमान है कि वर््ष 2050 तक विश्व की 68% आबादी के कारण, उनके बीच झग्ु ्गगी-झोपड़़ियोों के समहू बन जाते हैैं। उदाहरण स््वरूप
शहरी क्षेत्ररों मेें निवास करे गी। संजय कॉलोनी दक्षिणी दिल््लली की एक झग्ु ्गगी बस््तती है जो ओखला औद्योगिक
z वर््ष 2050 तक, दनु िया की आबादी का 68%, जो आज 55% है, शहरोों क्षेत्र मेें स््थथित है।
मेें रहने का अनमु ान है। सामाजिक-साांस्कृतिक प्रभाव
z अनम ु ानोों के अनसु ार, वर््ष 2050 तक, शहरीकरण के कारण दनु िया भर के
z गेटेड समुदाय (बंद आवासीय क्षेत्र): गेटेड समदु ायोों का उदय निम््न-मध््यम
शहरी क्षेत्ररों मेें 2.5 बिलियन से अधिक लोग रह सकते हैैं, जो कि ग्रामीण
से शहरी क्षेत्ररों मेें लोगोों का क्रमिक स््थथानांतरण के कारण है। वर््ग, गरीब बस््ततियोों/झग््गगियो
ु ों से घिरे महानगरीय क्षेत्ररों मेें दिखाई देता है। इससे
z इस जनसंख््यया वृद्धि का लगभग 90% हिस््ससा एशिया और अफ़््रीका मेें
इन क्षेत्ररों के बीच एक बड़़ा सामाजिक-सांस््ककृतिक विभाजन पैदा होता है।
देखने को मिलेगा। z मानसिक स््ववास््थ््य: मलिन बस््ततियोों और तथाकथित सभ््य आवासोों के बीच
z बे हतर बुनियादी ढाँचा: शहरोों मेें आमतौर पर बेहतर बनु ियादी ढाँचा होता रहने वालोों की मानसिक स््थथिति मेें बहुत बड़़ा अतं र होता है। मलिन बस््ततियोों
है, जिसमेें सड़क, सार््वजनिक परिवहन, बिजली और इटं रनेट कनेक््टटिविटी आदि मेें रहने वाले लोगोों मेें अक््सर हीनभावना की ग्रंथि विकसित हो जाती है, जो
शामिल है। उनके विकास मेें बाधा डालती है।
z ग्रामीण से शहरी प्रवास: जीवन की बेहतर गण ु वत्ता और अवसरोों की तलाश z सामाजिक गतिहीनता : अवसरोों की कमी से रोजगार के मामले मेें बस््ततियोों
मेें लोग ग्रामीण क्षेत्ररों से शहरोों की ओर पलायन करते हैैं। का अनौपचारिकीकरण होता है, जिसके परिणामस््वरूप सामाजिक गतिशीलता
z जनसंख््यया वद्धि ृ और शहरी फैलाव: प्राकृतिक जनसंख््यया वृद्धि शहरी क्षेत्ररों मेें कमी आती है।
के विस््ततार मेें योगदान करती है। जैस-े जैसे शहर बढ़ते हैैं, वे बाहरी क्षेत्ररों का z शिक्षा और सार््वजनिक स््ववास््थ््य: उन््हेें सार््वजनिक स््ककूलोों और अस््पतालोों
विस््ततार करते हुए, आसपास के क्षेत्ररों को शहरी ढाँचे मेें शामिल करते हैैं, इस पर निर््भर रहना पड़ता है जो कि ज््ययादातर परु ाने ढर्रे के हैैं। जबकि अन््य के पास
घटना को शहरी फै लाव (Urban Sprawl) के रूप मेें जाना जाता है। विश्वस््तरीय सविध ु ाओ ं से यक्त ु अच््छछे कॉन््वेेंट और निजी अस््पताल 24/7
भारत के नगरीकरण की समस्याएँ उपलब््ध हैैं।
z भीड़-भाड़ और आवास की कमी: अति तीव्र शहरीकरण से शहरोों मेें z जलापूर््तति और सीवरेज की समस््यया: झग्ु ्गगी-झोपड़़ियोों मेें रहने वालोों को
भीड़भाड़ बढ़ जाती है और पर््ययाप्त आवास की कमी हो जाती है, जिसके टैैंकरोों पर निर््भर रहना पड़ता है जो नियमित नहीीं होते और टैैंकर माफिया का
परिणामस््वरूप झग््गगियो
ु ों और अनौपचारिक बस््ततियोों का प्रसार होता है। कई भी मद्ु दा है। स््वच््छ भारत अभियान के बावजदू , बनु ियादी सीवरे ज की समस््यया
शहरी निवासियोों को रहने के लिए असविध ु ाजनक परिस््थथितियोों का सामना बनी हुई है।
करना पड़ता है, साथ ही स््वच््छ जल और स््वच््छता जैसी बनु ियादी सविध ु ाओ ं z शहरी अपराध: बनु ियादी सविध ु ाओ,ं अवसरोों की कमी, अलगाव और रोजगार
तक भी उनकी पहुचँ नहीीं होती है। के औपचारिकरण के अभाव के कारण, यवु ा अपराध के सपं र््क मेें आने के
z बुनियादी ढाँचे पर दबाव : सड़केें , सार््वजनिक परिवहन, सीवरे ज और बिजली लिए अधिक संवेदनशील होते हैैं।
सहित शहरी बनु ियादी ढाँचा अक््सर बढ़ती आबादी के साथ तालमेल बिठाने
के लिए सघं र््ष करता है। इसके परिणामस््वरूप यातायात की भीड़-भाड़, बार- उपाय / सुझाव
बार बिजली कटौती और अपर््ययाप्त अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली जैसी समस््यया z इन-सीटू स््लम पुनर््ववास कार््यक्रम (2013) : यह उनकी जमीन से हटाए जाने
उत््पन््न होती है। के डर को दरू करे गा जैसे - पीएम आवास योजना, दिल््लली सरकार की “जहाँ
z पर््ययावरणीय ह्रास : बढ़ते शहरीकरण से वायु और जल प्रदषू ण होता है, हरित झग्ु ्गगी वहीीं मकान” योजना आदि।
क्षेत्ररों का नकु सान होता है और ठोस अपशिष्ट का उच््च स््तर होता है। z अमृत (2015): इसका लक्षष्य यह सनु िश्चित करना कि प्रत््ययेक परिवार के पास
z सामाजिक असमानता : कई शहरी गरीबोों के पास गणु वत्तापर््णू शिक्षा, जल की गारंटीकृत आपर््तति ू के साथ एक नल और एक सीवर कनेक््शन हो।
स््ववास््थ््य सेवा और रोजगार के अवसरोों तक पहुचँ नहीीं है, जो गरीबी के चक्र z प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना (शहरी) (पीएमएवाई - यू : 2015):
को बनाए रखती है। ईएमआई के माध््यम से पनर््भभुु गतान के दौरान होम लोन की ब््ययाज दर पर छूट
z संसाधनोों की कमी : शहर अक््सर जल की कमी, भजू ल के अत््यधिक दोहन की पेशकश करके , यह शहरी गरीबोों के लिए होम लोन को किफायती बनाता है।
और भमि ू के लिए प्रतिस््पर््धधा से जझू ते हैैं, जिससे शहरी और ग्रामीण दोनोों
z स््ममार््ट सिटी मिशन मेें शहरोों मेें गरीबी को कम करने की क्षमता है क््योोंकि
आबादी प्रभावित होती है।
इसका लक्षष्य लोगोों को समग्र रूप से बनु ियादी सेवाएँ प्रदान करना है।
z महामारी के कारण उत््पन््न समस््ययाएँ : कोविड-19 महामारी ने शहरी
गरीबोों और झग्ु ्गगी-झोपड़़ी निवासियोों की दर््दु शा को और खराब कर दिया है। z लिंग-संवेदनशील बुनियादी ढाँचे को प्राथमिकता दी जानी चाहिए क््योोंकि
पर््णू कोविड लॉकडाउन के अचानक लागू होने से झग्ु ्गगीवासियोों की झग्ु ्गगी-झोपड़़ी वाले परिवारोों मेें स््ववास््थ््य, शिक्षा, आय और आवास मेें इसकी
जीविकोपार््जन की क्षमता को गंभीर नक ु सान पहुचँ ा है। सकारात््मक भमिक ू ा निभाता है। अगर ऐसा होता, तो धारावी जैसी मलिन
बस््ततियाँ COVID-19 हॉटस््पपॉट होने के कारण खबरोों मेें नहीीं होतीीं।
शहरीकरण का दोषपूर््ण प्रतिरूप z शहरी जल निकाय सच ू ना प्रणाली (UWAIS): स््वचालित सविध ु ा
अधिक जनसंख््यया और बेहतर अवसरोों के कारण, शहरोों मेें उपनगर नामक नए निष््कर््षण एल््गगोरिदम का उपयोग करके देश के सभी जल निकायोों के जल
क्षेत्र विकसित होते हैैं। लेकिन अनियोजित शहरीकरण और उप-नगरीकरण प्रसार क्षेत्र पर वास््तविक समय की जानकारी प्रदान करना।।

34  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z राज््य प्राधिकरणोों की सीमाएँ: जब जल निकासी और शहरी सीवेज सिस््टम
मानव बस्तियााँ और जल प्रदष
ू ण सहित अनियोजित शहरी बनु ियादी ढाँचे के मामलोों मेें हस््तक्षेप करने की बात
तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण देश को बड़़े पैमाने पर अपशिष्ट प्रबंधन आती है तो राज््य आपदा न््ययूनीकरण योजना का दायरा सीमित है।
चनु ौती का सामना करना पड़ रहा है। 37.7 करोड़ से अधिक शहरी लोग 7,935 z धार््ममिक और सामाजिक प्रथाएँ : मवेशियोों और अन््य जानवरोों के शवोों का
कस््बोों और शहरोों मेें रहते हैैं और प्रति वर््ष 62 मिलियन टन नगरपालिका ठोस नदियोों या जल निकायोों मेें निपटान किया जाता है। जलाशयोों पर शवोों का दाह
अपशिष्ट उत््पन््न करते हैैं। झीलोों/जल निकायोों पर संकट अपशिष्ट निपटान, सस्ं ्ककार किया जाता है। आशिकं रूप से जले हुए शवोों को भी जल स्रोतोों मेें
प्रदषको
ू ों का जमाव और कचरे के निरंतर निपटान ने झील के जल की गणु वत्ता को प्रवाहित किया जाता है।
गंभीर रूप से कम कर दिया है।
शहरी जल निकायोों की स्थितियोों मेें सुधार के लिए आगे की राह
राष्ट्रीय हरित न््ययायाधिकरण (एनजीटी) ने पूरे भारत मेें भजू ल मेें जहरीले
आर्सेनिक और फ््ललोराइड के व््ययापक मद्ु दे पर केें द्रीय भजू ल प्राधिकरण z शहरी जल निकासी प्रणालियोों की क्षमता मेें सध ु ार: ताकि यह अपशिष्ट
(सीजीडब््ल्ययूए) की प्रतिक्रिया पर असंतोष व््यक्त किया। आर्सेनिक के कारण निर््वहन और नगर पालिका के कचरे का प्रभावी ढंग से प्रबंधन कर सके ।
भजू ल संदषू ण भारत के 25 राज््योों के 230 जिलोों मेें प्रचलित है, जबकि z शहरी जल निकायोों के अतिक्रमण और विखंडन को प्रतिबंधित करना।
फ््ललोराइड के कारण होने वाला प्रदषू ण 27 राज््योों के 469 जिलोों मेें व््ययाप्त है। z नियोजित शहरीकरण सनु िश्चित करना ताकि जलग्रहण क्षेत्ररों, जल निकासी
भारत मेें शहरी जल निकायोों की निराशाजनक स्थिति : चैनलोों और झीलोों, तालाबोों आदि के क्षेत्ररों का चित्रण और संरक्षण किया जा
z अके ले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल््लली मेें, अव््यवस््थथित शहरीकरण के सके ।
कारण, लगभग 232 जल निकाय पहले से ही पनर्प्राप्ति ु सचू ी से बाहर हैैं। z शहरी जल निकायोों के बेहतर प्रबंधन के लिए हितधारकोों की भागीदारी
z वर््ष 1973 और 2007 के बीच बैैंगलोर मेें कम से कम 66 जल निकाय और क्षमता निर््ममाण।
नष्ट हो गए।
z पर््ययावरण सरं क्षण अधिनियम, 1986 को लागू करके औद्योगिक अपशिष्ट
z जल निकायोों के संरक्षण मेें चेन््नई का प्रदर््शन सबसे खराब रहा है।
की उचित निगरानी।
शहर मेें आर्दद्रभमि
ू पारिस््थथितिकी तंत्र के नाम पर जो कुछ बचा है, वह
पल््ललीकरनई दलदल है, जो वर््ष 1965 के बाद से अपने आकार के दसवेें जल निकाय पर््ययावरण को शद्ध ु करने के लिए डिटॉक््ससिफायर के रूप मेें कार््य करते
हिस््ससे तक सिकुड़ गया है। हैैं और शहरी पारिस््थथितिकी तंत्र को कई मानवजनित और भ-ू आकृ ति विज्ञान
कारकोों से उत््पन््न खतरोों से बचाने के लिए स््पपंज और स््ललुइस के रूप मेें कार््य करते
शहरी जल निकायोों का महत्त्व
हैैं।
z शहरी ऊष््ममा द्वीप प्रभाव मेें कमी: जल निकायोों मेें जल अधिक गर्मी को
अवशोषित करे गा, इससे पहले कि आसपास का वातावरण गर््म होने लगे और मानव बस्तियााँ और वायु प्रदष
ू ण
बाद मेें वाष््पपित हो जाए। इसके अलावा, जल निकाय सौर विकिरण को भी शहरीकरण के साथ-साथ औद्योगीकरण, वाहनोों से प्रदषू ण और जीवाश््म ईधन ं का
परावर््ततित करते हैैं, जिससे तापमान नियंत्रित रहता है। जलना आता है। वीपीटी जैसे विभिन््न उद्योगोों से निकलने वाला हानिकारक
z जल निकाय सक्षू ष्म जलवायु मापदंडोों को स््थथिर करते हैैं: जैसे सापेक्ष औद्योगिक धआ ंु या धल ू या फिर वाहन से होने वाला प्रदषू ण, शहर की भौगोलिक
आर्दद्रता, तापमान और वायु की गति आदि। जल निकाय वायु तापमान के दैनिक स््थथिति वायु प्रदषको
ू ों के तेजी से बढ़ने के लिए उत्प्रेरक के रूप मेें काम कर रही है।
परिवर््तन को नियंत्रित करते हैैं, जिससे यह परिवेशीय (व््ययापक) बन जाता है।
IQAir की विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर््ट 2023 के अनुसार, भारत की पहचान
z कार््बन पथ ृ क््करण: वायमु डं ल मेें कार््बन डाइऑक््ससाइड छोड़ने के बजाय,
दनु िया के तीसरे सबसे प्रदषित ू देश के रूप मेें की गई है। विश्व के शीर््ष 10
पौधे के समदु ाय और मिट्टी कार््बन को बरकरार रखते हैैं।
सबसे प्रदषित
ू शहरोों मेें से 9 भारत के हैैं।
z रोजगार सज ृ न: जलमार््ग, मछली पकड़ने आदि के माध््यम से।
z दैनिक जल आवश््यकता: प्रति व््यक्ति जल की उच््च खपत के कारण शहरी वायु प्रदष
ू ण का प्रभाव
जल निकायोों का महत्तत्व बहुत अधिक है। z शहरी ऊष््ममा द्वीप प्रभाव : “तीव्र शहरीकरण ने कंक्रीट के जंगल और डामर
z धार््ममिक उद्देश््य: भारतीय सस्ं ्ककृति मेें ऐतिहासिक रूप से जल की पजू ा की की सड़कोों का विकास किया है। शहरी क्षेत्र का लगभग 85% हिस््ससा कंक्रीट
जाती रही है। सरं चनाओ ं और धातु की सड़कोों से ढका हुआ है। यह सौर ऊर््जजा को
शहरी जल निकायोों के प्रदष
ू ण के कारण अवशोषित करता है और इसके परिणामस््वरूप शहरी ऊष््ममा द्वीप प्रभाव
पैदा होता है।
z तीव्र अनियोजित शहरीकरण: हाल के दशकोों के दौरान भारत मेें तेजी से हो
रहे शहरीकरण ने जलापर््तति
ू , अपशिष्ट जल उत््पपादन और इसके संग्रहण, उपचार z स््ववास््थ््य संबंधी मुद्दे : स््टटेट ऑफ ग््ललोबल एयर 2020 के अनुसार, बाहरी
और निपटान जैसी कई पर््ययावरणीय समस््ययाओ ं को जन््म दिया है। और घरे लू वायु प्रदषू ण के लंबे समय तक संपर््क मेें रहने से भारत मेें 2019
z अनुपचारित सीवेज का निर््वहन: घरे लू उपयोग के लिए आपर््तति ू किए गए मेें स्ट्रोक, दिल का दौरा, मधमु हे , फे फड़ों के कैैं सर, परु ानी फे फड़ों की बीमारियोों
जल का लगभग 80% अपशिष्ट जल के रूप मेें निकल जाता है। अधिकांश और नवजात रोगोों से 1.67 मिलियन से अधिक वार््षषिक मौतेें हुई।ं
मामलोों मेें, इस अपशिष्ट जल को अनपु चारित छोड़ दिया जाता है और सतही z मानसिक स््ववास््थ््य : प्रदषित ू वातावरण के लगातार संपर््क मेें रहने से तनाव
जल का बड़़े पैमाने पर प्रदषू ण होता है। और चितं ा बढ़ सकती है।

मानव अधिवास और संबंधित मुद् 35


z कृषि पर प्रभाव: वायु प्रदषू ण, विशेष रूप से जमीनी स््तर पर ओजोन, फसल z प्राण पोर््टल: इसे राष्ट्रीय स््वच््छ वायु कार््यक्रम (एनसीएपी) के तहत गैर-प्राप्ति
की पैदावार को नकारात््मक रूप से प्रभावित करता है, जिससे कृ षि क्षेत्र मेें शहरोों (एनएसी), या ऐसे शहरोों मेें पेश किया गया था जो एनसीएपी के तहत
आर््थथिक नक
ु सान होता है। पाँच वर््ष की अवधि मेें राष्ट्रीय वायु गणु वत्ता मानकोों को परू ा करने मेें विफल
रहे थे।
शहरी ऊष््ममा द्वीप z फ््ललू गैस डिसल््फराइजेशन: शहरी क्षेत्ररों मेें उद्योगोों को डीसल््फराइजेशन
मानदडों ों का पालन करना होगा।
z बीएस VI वाहन : बीएस IV से बीएस VI और उसके बाद के इलेक्ट्रिक
वाहनोों की ओर सही दिशा मेें एक लंबी छलांग होगी।
z वाहन स्क्रैपिंग नीति : यह परु ाने वाहनोों से बढ़ते प्रदषू ण को आर््थथिक रूप से
वनस््पति की कमी या वाष््पपीकरण के कारण शहर आसपास के टिकाऊ तरीके से रोके गी।
ग्रामीण इलाकोों की तुलना मेें अधिक गर््म रहते हैैं z राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक : उद्योग-विशिष्ट उत््सर््जन और
अपशिष्ट सीमाओ ं के साथ-साथ राष्ट्रीय परिवेशी वायु गणु वत्ता मानकोों की
अधिसचू ना।
z जैव विविधता के संबंध मेें: वायु प्रदषू ण उत््सर््जन के हानिकारक प्रभाव पृथ््ववी
तटीय भारतीय शहरोों पर जलवायु परिवर््तन का प्रभाव
पर जीवन की विविधता पर प्रभाव डाल सकते हैैं। वायु प्रदषू ण के कारण,
वायमु डं ल मेें SO2 और NOX उत््सर््जन ऑक््ससीकरण और नमी के जमाव से z समुद्री जलस््तर मेें वद्धि
ृ : जलवायु परिवर््तन से वर््ष 2035 तक मबंु ई मेें 2.7 करोड़
गजु रते हैैं, जिसके परिणामस््वरूप अम््ललीय वर््षषा होती है। दसू रे शब््दोों मेें, इसका लोग बाढ़ और समद्रु तल वृद्धि के उच््च जोखिम के साथ प्रभावित हो सकते हैैं।
मतलब यह है कि अम््ललीय वर््षषा हमारी जैव विविधता को नक ु सान पहुचँ ा z समुद्र जल अंतः प्रवेश : बढ़ते समद्रु तल भी तटीय जल भडं ारोों मेें खारे जल
सकती है। के अतं ःप्रवेश मेें योगदान करते हैैं, जिससे मीठे जल के ससं ाधनोों की गणु वत्ता
z इमारतोों और सामग्रियोों पर: SOX और NOX का उत््सर््जन पौधोों और और उपलब््धता प्रभावित होती है। यह अतं ःप्रवेश भजू ल आपर््तति ू के लिए
जानवरोों के जीवन के साथ-साथ भौतिक सतहोों को भी नक ु सान पहुचँ ा सकता खतरा है, जिस पर कई तटीय शहर पेयजल और कृ षि कार्ययों के लिए निर््भर
है और सभं ावित रूप से सरं चनात््मक क्षति का कारण बन सकता है। ऐसा ही करते हैैं। मीठे जल के स्रोतोों का दषित ू होना स््ववास््थ््य संबंधी खतरोों को जन््म
एक उदाहरण भारत का सफेद-संगमरमर वाला ताजमहल है, जो अम््ललीय दे सकता है और पहले से ही घनी आबादी वाले क्षेत्ररों मेें जल की कमी की
वर््षषा और उद्योग से SOX उत््सर््जन के परिणामस््वरूप पीला हो रहा है। समस््यया को और बढ़़ा सकता है।
वायु प्रदष
z कटाव और तटीय क्षरण : जलवायु परिवर््तन तटीय क्षरण को तेज करता है,
ू ण का कारण
जिससे तटीय क्षेत्ररों की स््थथिरता को खतरा पैदा होता है। गोवा जैसे भारतीय
z शहरी कचरे को जलाना, डीजल की कालिख, वाहनोों से निकलने वाला शहरोों मेें, कटाव पहले से ही एक महत्तत्वपर््णू चितं ा का विषय है, जो समद्रु तटोों,
धआ ु ,ं सड़क और निर््ममाण की धल ू और विद्युत उत््पपादन। बनु ियादी ढाँचे और पारिस््थथितिकी तंत्र को प्रभावित कर रहा है। जैस-े जैसे समद्रु
z अनियोजित शहरीकरण: शहरी क्षेत्ररों की बेतरतीब वृद्धि के कारण मलिन का स््तर बढ़ता है और तफ ू ान के बारंबारता मेें वृद्धि होती है और उनके परिणाम
बस््ततियोों का प्रसार हुआ है और खराब सार््वजनिक परिवहन ने सड़क पर निजी भी गंभीर होते जा रहे हैैं, कटाव की दर बढ़ने की उम््ममीद है, जिससे तटीय आवास,
वाहनोों का बोझ बढ़़ा दिया है। अपशिष्ट प्रबंधन के लिए उपयोग की जाने वाली पर््यटक आकर््षण और तटीय समदु ायोों की आजीविका खतरे मेें पड़ जाएगी।
लैैंडफिल हवा मेें प्रदषकू तत्तत्व भी छोड़ते है। z आर््थथिक असरु क्षा : तटीय शहर अक््सर शिपिंग, मछली पकड़ने और पर््यटन
z वाहन उत््सर््जन: कारोों, ट्रकोों और बसोों से निकलने वाले धएु ँ से नाइट्रोजन जैसे प्रमख ु उद्योगोों के लिए एक प्रमख ु आर््थथिक केें द्र होते हैैं। जलवायु परिवर््तन
ऑक््ससाइड (NOx), कार््बन मोनोऑक््ससाइड (CO) और पार््टटिकुलेट मैटर (PM) के प्रभाव जैसे समद्रु के स््तर मेें वृद्धि, अत््यधिक मौसम की घटनाएँ और तटीय
जैसे प्रदषकू निकलते हैैं। कटाव इन उद्योगोों को बाधित कर सकते हैैं, जिससे आर््थथिक नक ु सान हो सकता
z कृषि गतिविधियाँ: कीटनाशकोों, उर््वरकोों के उपयोग और फसल के अवशेषोों है और आजीविका प्रभावित हो सकती है। इसके अलावा, तटीय बनु ियादी
को जलाने से हानिकारक रसायन और कण हवा मेें फै लते हैैं। ढाँचे और समदु ायोों को जलवायु जोखिमोों से बचाने के लिए अनक ु ू लन और
z खराब प्रशासन: पर््ययावरण और प्रदषू ण के मद्ु दे को अभी भी वह नीतिगत शमन उपायोों की लागत स््थथानीय और राष्ट्रीय बजट पर दबाव डाल सकती है,
प्राथमिकता नहीीं मिल पाई है जिसके वह हकदार है। जिससे आर््थथिक कमजोरियाँ और बढ़ सकती हैैं।
z पटाखे: दिवाली के दौरान प्रतिबंध के बावजदू पटाखे का बड़़े पैमाने पर
जलवायु स्मार््ट शहरोों का आकलन और इसका प्रभाव
इस््ततेमाल किया गया। हालाँकि यह वायु प्रदषू ण का मख्ु ्य कारण नहीीं हो सकता
है, लेकिन निस््ससंदेह यह इसे बढ़़ाने मेें मदद करता है। जलवायु के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण को शहरी नियोजन और विकास मेें शामिल
करने के लिए, आवास और शहरी मामलोों के मत्रा ं लय द्वारा 100 स््ममार््ट शहरोों के
वायु प्रदष
ू ण से निपटने के उपाय लिए जलवायु स््ममार््ट शहर आकलन ढाँचा शरू ु किया गया था। इस ढाँचे मेें 5 क्षेत्ररों
z राष्ट्रीय स््वच््छ वायु कार््यक्रम (एनसीएपी): इसका उद्देश््य परू े भारत मेें वायु मेें 30 विविध संकेतक हैैं, जो शहरोों की निगरानी और मार््गदर््शन करते हैैं ताकि वे
गणु वत्ता की निगरानी के लिए सस्ं ्थथागत क्षमता का निर््ममाण और सदृु ढ़़ीकरण जलवायु परिवर््तन और बिगड़ती वायु गणु वत्ता के मद्ु दे से निपटने के लिए अपनी
करना था। तैयारियोों का आकलन कर सकेें ।

36  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


अधिदेश निष्कर््ष
z ऊर््जजा और हरित भवन: इसका उद्देश््य शहर मेें ऊर््जजा-कुशल सड़क प्रकाश वर््तमान मेें भारत मेें शहरीकरण की तीव्र गति देखी जा रही है, लेकिन इसकी
व््यवस््थथा, हरित भवन को अपनाना और बढ़़ावा देना है। इससे शहरोों की ऊर््जजा अनियोजित प्रकृ ति और अनियमित विकास ने सामाजिक-आर््थथिक निहितार््थ
माँग को स््थथायी तरीके से परू ा किया जाता है ताकि प्रदषू ण कम हो। पैदा किए हैैं। जलवायु परिवर््तन के साथ जुड़़े संबंधोों के कारण स््थथिति और भी
z गतिशीलता और वायु गुणवत्ता: सार््वजनिक परिवहन की पर््ययाप्त उपलब््धता
खराब हो गई है। जलवायु स््ममार््ट सिटीज आकलन ढाँचा इस जटिल बंधन को
सनु िश्चित की जाएगी साथ ही स््वच््छ प्रौद्योगिकी से चलने वाले साझा वाहनोों तोड़ता है और इसके माध््यम से सतत विकास लक्षष्य 11 (स््थथायी शहर और
समदु ाय) प्राप्त किया जा सकता है।
को बढ़़ावा दिया जाएगा ताकि वाहनोों से होने वाला प्रदषू ण कम से कम हो।
इस प्रकार शहरी क्षेत्ररों मेें तापमान असमानता, शहरी ऊष््ममा द्वीप और वायु आगे की राह
प्रदषू ण जैसी समस््ययाओ ं से निपटा जा सकता है। z समावेशी शहर: शहरोों मेें, गरीबोों और निम््न-आय समहोू ों को मख्ु ्यधारा मेें
z अपशिष्ट प्रबंधन: इसका उद्देश््य लैैंडफिल््ड और डंप साइटोों को वैज्ञानिक
एकीकृ त किया जाना चाहिए। योजना मेें हाशिए पर रहने वाले समहोू ों की जरूरतोों
तरीकोों से प्रबंधित करना है ताकि वातावरण मेें कम से कम जहरीली गैसोों और को ध््ययान मेें रखना चाहिए, जैसे आवास, स््ववास््थ््य, जल, परिवहन और उचित
प्रदषू णकारी गैसोों का निर््वहन हो। इसके अलावा शष्ु ्क कचरे को पनु : प्राप्त मल्ू ्य पर अन््य सेवाएँ।
किया जाता है और पनर््चक्रित ु किया जाता है जिससे कचरे को कम किया z किफायती आवास: यह कम आय वाली आबादी के लिए एक महत्तत्वपर््णू
जाता है। चितं ा का विषय है, और उनकी जरूरतोों को परू ा करने वाले एक व््यवहार््य
मॉडल की अनपु स््थथिति मेें, भारत नियमोों और प्रोत््ससाहनोों की एक ृंखला
z शहरी नियोजन, हरित आवरण और जैव विविधता : हरित क्षेत्र मेें वृद्धि
बनाकर समस््यया से निपट सकता है जो मल्ू ्य-सामर््थ््य अतं र को पाट देगा।
जैव विविधता को बढ़़ावा देती है और पारिस््थथितिक संतल ु न बनाए रखती है।
z सेवाओ ं का वितरण : शहरी स््थथानीय निकायोों का प्रमख ु कार््य जल आपर््तति ू
इससे शहरोों मेें प्रभावी हीट सिक ं बने ग ा और दै न िक तापमान पैटर््न पर प्रतिकूल
और सीवरे ज प्रणाली का प्रबंधन करना होना चाहिए। उन््हेें अपने भौगोलिक
प्रभाव नहीीं पड़़ेगा। इसके अलावा यह शहरोों को आपदा प्रतिरोधी भी बनायेगा। अधिकार क्षेत्र मेें जल आपर््तति ू और वितरण का प्रभारी होना चाहिए, चाहे अपने
z जल संसाधन प्रबंधन : प्रभावी जल संसाधन प्रबंधन और ऊर््जजा-कुशल स्रोतोों से या परा-राज््य उपक्रमोों और अन््य सेवा प्रदाताओ ं के सहयोग से।
अपशिष्ट जल प्रबंधन प्रणाली को अपनाने से पीने योग््य जल की उपलब््धता z एकीकरण: स््थथायी शहरोों या महानगरीय क्षेत्ररों की स््थथापना करना, और
सनु िश्चित होती है और जल प्रदषू ण कम होता है। इस प्रकार यह वहाँ के स््थथानीय नगरपालिका, राज््य और राष्ट्रीय स््तर पर कई शहरी विकास और सबं ंधित
जल निकायोों और वनस््पतियोों व जीवोों का समर््थन करे गा। कुशल जल निकासी कार््यक्रमोों को एकीकृ त करना।
पैटर््न के माध््यम से आगे बाढ़/जल ठहराव के जोखिम को कम किया जाएगा। z भारत को शहरी नियोजन को केें द्रीय बनाना चाहिए : प्रतिभाशाली लोगोों
सस््टटेनेबल सिटीज इंडिया कार््यक्रम मेें निवेश, एक कठोर तथ््ययात््मक आधार और नवीन शहरी डिजाइन द्वारा मान््यता
z नेशनल इस् ं ्टटीट्यटू ऑफ अर््बन अफे यर््स (एनआईयएू ) और वर््ल््ड इकोनॉमिक प्राप्त कार््य द्वारा होना चाहिए। हाल के वर्षषों मेें, सरकार ने स््ममार््ट सिटी, अमृत,
फोरम ने संयक्तु रूप से विकसित "सस््टटेनेबल सिटीज इडि ं या प्रोग्राम" पर एक डिजिटल इडि ं या, स््वच््छ भारत और हृदय सहित शहरी नियोजन और प्रशासन
साथ काम करने के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओय)ू पर हस््तताक्षर किए हैैं। पर लक्षित कई पहल शरू ु की हैैं। इन कार््यक्रमोों के सफल होने के लिए, उन््हेें
z उद्देश््य: 'सस््टटेनेबल सिटीज़ इडि ं या' का लक्षष्य शहरोों के लिए व््यवस््थथित और प्रभावी योजना और प्रबंधन की एक ठोस नीींव की आवश््यकता है।
टिकाऊ तरीके से डीकार्बोनाइजेशन को संभव बनाना है जो उत््सर््जन को कम निष्कर््ष:
करे गा और लचीला व न््ययायसंगत शहरी पारिस््थथितिकी तंत्र का निर््ममाण करे गा। मानव बस््ततियाँ जटिल और गतिशील प्रणालियाँ हैैं जो सामाजिक, आर््थथिक और
यह कार््यक्रम भारत की COP26 मेें वर््ष 2070 तक शद्ध ु शन्ू ्य उत््सर््जन प्राप्त पर््ययावरणीय कारकोों के असंख््य प्रभाव से निर््धधारित होती हैैं। बस््ततियोों के वितरण,
करने की प्रतिज्ञा के अनरू ु प है। संरचना और कार्ययों को समझने से शहरी और ग्रामीण चनु ौतियोों, जैसे आवास
z घटक: दो वर्षषों के दौरान पाँच से सात भारतीय शहरोों मेें, फोरम और की कमी, बुनियादी ढाँचे की कमी और पर््ययावरणीय गिरावट को संबोधित करने
एनआईयएू फोरम की सिटी स््प््रििंट प्रक्रिया और डीकार्बोनाइजेशन के लिए मेें मदद मिलती है। इन मद्ददों
ु को कम करने और जीवन की गुणवत्ता को बढ़़ाने के
समाधान के टूलबॉक््स को अनक ु ू लित करेें गे। लिए सतत विकास प्रथाएँ और प्रभावी शहरी नियोजन महत्तत्वपूर््ण हैैं। जैसे-जैसे
z सिटी स््प््रििंट प्रक्रिया: कार््यशालाओ ं की एक ृंखला जिसमेें व््ययापार, आबादी बढ़ रही है और पलायन कर रही है, इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए
सरकार और नागरिक समाज के प्रतिनिधि शामिल होते हैैं, यह सिटी स््प््रििंट अनुकूली रणनीतियोों को लागू किया जाना चाहिए कि मानव बस््ततियाँ लचीली
पहल का एक हिस््ससा है, जिसका लक्षष्य मख्ु ्य रूप से स््वच््छ विद्युतीकरण और समावेशी रहेें, प्राकृ तिक पर््ययावरण के साथ सामंजस््यपर््णू सह-अस््ततित््व को
और परिपत्र अर््थव््यवस््थथा के माध््यम से डीकार्बोनाइजेशन को सविध ु ाजनक बढ़़ावा देें।
बनाना है।
z टूलबॉक््स समाधान: यह एक डिजिटल प््ललेटफॉर््म प्रदान करता है जिसमेें प्रमुख शब्दावलियाँ
दनु िया भर के 110 से अधिक शहरोों से इमारतोों, ऊर््जजा प्रणालियोों और
समावेशी शहर, संसाधन प्रबंधन, लैैंगिक-संवेदनशीलता, संसाधन की
गतिशीलता मेें स््वच््छ विद्युतीकरण, दक्षता और स््ममार््ट बनु ियादी ढाँचे के
कमी, सामाजिक गतिहीनता, टूलबॉक््स समाधान, वित्तीय कुप्रबंधन।
लिए 200 से अधिक सर्वोत्तम प्रथाओ ं के उदाहरण हैैं।

मानव अधिवास और संबंधित मुद् 37


भारत के भूमि उपयोग प्रतिरूप की
7 विशेषता विविध क्त्र
षे
z भारत का भमू ि उपयोग पैटर््न विभिन््न क्षेत्ररों के विविध समहोू ों की विशेषता है। भूमि उपयोग नियोजन का महत्त्व
z कृ षि भारत मेें एक प्रमखु क्षेत्र है, जहाँ भमू ि का उपयोग मख्ु ्य रूप से खाद्य प्राकृतिक सस
z ं ाधनोों का सरं क्षण: यह प्राकृ तिक संसाधनोों, जैसे वन, आर्दद्रभमू ि
फसलोों जैसे चावल, गेहूँ और दालोों के साथ-साथ कपास, गन््नना और तिलहन और जल निकायोों के सरं क्षण मेें योगदान दते ा है। उदाहरण के लिए, भमू ि
जैसी नकदी फसलोों को उगाने के लिए किया जाता है। उपयोग योजनाओ ं मेें जल की गणव ु त्ता की सरु क्षा और पारिस््थथितिकी तंत्र
z वन देश के एक महत्तत्वपर्ू ्ण हिस््ससे मेें फै ले हुए हैैं, जो वन््यजीवोों के लिए आवास, सेवाओ ं को बनाए रखने के लिए तटीय क्षेत्ररों के संरक्षण और पनर््स्थथा ु पना के
लकड़़ी के स्रोत और जैव विविधता सरं क्षण मेें योगदानकर््तता के रूप मेें कार््य प्रावधान शामिल हो सकते हैैं।
करते हैैं। z सतत विकास: यह भमू ि संसाधनोों के कुशल उपयोग और आर््थथिक, सामाजिक
z शहरी क्षेत्ररों का तेजी से विस््ततार हो रहा है, जिसके परिणामस््वरूप कृ षि और पर््ययावरणीय विचारोों को सतं लि ु त करके टिकाऊ विकास को बढ़़ावा दते ा है।
और ग्रामीण भमू ि आवासीय, वाणिज््ययिक और औद्योगिक क्षेत्ररों मेें बदल उदाहरण के लिए, यह खाद्य उत््पपादन के लिए कृ षि भमू ि के संरक्षण, प्राकृ तिक
रही है। औद्योगिक भमू ि विनिर््ममाण एवं औद्योगिक गतिविधियोों के लिए आवासोों और पारिस््थथितिकी प्रणालियोों की रक्षा करने और पर््ययावरणीय प्रभावोों
समर््पपित है। को कम करने के लिए बनि ु यादी ढाँचे के स््थथान का मार््गदर््शन करने मेें मदद
कर सकता है।
z ये भमू ि उपयोग क्षेत्र एक दसू रे के साथ परस््पर क्रिया करते हैैं, और भारत की
भमू ि उपयोग की गतिशील प्रकृ ति देश की अद्वितीय भौगोलिक और सामाजिक- z जलवायु परिवर््तन अनुकूलन: यह विभिन््न क्षेत्ररों की जलवायु जोखिमोों
के प्रति सवें दनशीलता पर विचार करके जलवायु परिवर््तन अनक ु ू लन मेें
आर््थथिक विशेषताओ ं को दर््शशाती है।
महत्तत्वपर्ू ्ण भमू िका निभाता है। उदाहरण के लिए, भमू ि उपयोग योजनाओ ं मेें
एसडीजी 15 : पृथ्वी पर जीवन हरित बनि ु यादी ढाँचे या आर्दद्रभमू ि बहाली जैसे उपाय शामिल किए जा सकते
हैैं ताकि लचीलेपन को बढ़़ाया जा सके और चरम मौसमी घटनाओ ं के प्रभावोों
वर््ष 2030 तक, मरुस््थलीकरण से निपटना, बंजर भमू ि और मिट्टी को बहाल
को कम किया जा सके।
करना, जिसमेें मरुस््थलीकरण, सूखा और बाढ़ से प्रभावित भमू ि भी शामिल
z आर््थथिक विकास और निवेश: भमू ि उपयोग योजना निवेश आकर््षषित करने
है, और भमू ि क्षरण-तटस््थ दनि ु या को प्राप्त करने का प्रयास करना। और आर््थथिक विकास को बढ़़ावा देने के लिए एक ढाँचा प्रदान करती है।
z 2015-16 की कृषि जनगणना के अनुसार, देश मेें परिचालन जोत का
उदाहरण के लिए, भमू ि उपयोग योजनाएँ विनिर््ममाण सवु िधाओ ं की स््थथापना
कुल सचि ू त क्षेत्रफल लगभग 146 मिलियन हेक््टटेयर था, जिसमेें शद्ध
ु बवु ाई को प्रोत््ससाहित करने और रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए विशिष्ट क्षेत्ररों
क्षेत्रफल लगभग 140.05 मिलियन हेक््टटेयर था। को औद्योगिक पार्ककों के रूप मेें नामित कर सकती हैैं।
z भारत राज््य वन रिपोर््ट 2021 के अनुसार, देश मेें कुल वन क्षेत्र लगभग
z आपदा जोखिम मेें कमी: यह प्राकृ तिक आपदाओ ं से जड़ु ़े जोखिमोों को कम
7,13,789 वर््ग किलोमीटर होने का अनमु ान था, जो भारत के कुल करने और प्रबंधित करने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमू िका निभाता है। उदाहरण के लिए,
भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 21.71% है। यह बाढ़ के मैदानोों को गैर-निर््ममित क्षेत्ररों के रूप मेें नामित कर सकता है, उचित
z भारतीय अंतरिक्ष अनुसध ं ान सगं ठन (ISRO) द्वारा किए गए बंजर भमू ि जल निकासी प्रणाली सनिश् ु चित कर सकता है, और भक ू ं प या भस्ू ्खलन से ग्रस््त
मानचित्रण अभ््ययास के अनसु ार, भारत मेें कुल बंजर भमू ि क्षेत्रफल लगभग उच््च जोखिम वाले क्षेत्ररों मेें विकास को प्रतिबंधित कर सकता है।
55.76 मिलियन हेक््टटेयर होने का अनमु ान लगाया गया था।
भूमि उपयोग परिवर््तन का प्रभाव
भूमि पर बढ़ता दबाव: जनसख्ं ्यया वृद्धि और बढ़ती खाद्य आवश््यकताओ ं के
भूमि उपयोग नियोजन z

कारण भमू ि और प्राकृ तिक संसाधनोों पर मानव का प्रभाव तेज हो रहा है। कृ षि
भमू ि उपयोग योजना मेें भमू ि के उपयोग को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए की बढ़ती तीव्रता भमू ि संसाधनोों और समग्र पर््ययावरण पर दबाव डालती है।
नीतियोों का विकास शामिल है। यह उपलब््ध संसाधनोों के अधिकतम उपयोग z जल-चक्र मेें व््यवधान: भमू ि उपयोग मेें परिवर््तन प्राकृ तिक जल रिसाव और
और सामाजिक एवं पर््ययावरणीय दोनोों क्षेत्ररों मेें अधिक वांछनीय परिणाम प्राप्त अपवाह पैटर््न को बदल दते ा है, जिससे भजू ल पनर््भ
ु रण प्रभावित होता है और
करने के लिए किया जाता है। बाढ़ और सख ू े का खतरा बढ़ जाता है।
z विकासात््मक विस््थथापन: अनमु ानित रूप से पिछले 50 वर्षषों मेें भारत मेें भूमि उपयोग के विभिन्न प्रकार : वर्गीकरण
'विकास परियोजनाओ'ं के कारण 5 करोड़ लोग विस््थथापित हो चक ु े हैैं। विस््थथापन
z वन : इसमेें वनोों से संबंधित या वनोों के रूप मेें प्रशासित किसी भी काननू ी
मेें बांध, खदानेें, औद्योगिक विकास, और वन््यजीव अभयारण््य और राष्ट्रीय
अधिनियम के तहत वन के रूप मेें वर्गीकृ त सभी भमू ि शामिल हैैं, चाहे वह
उद्यानोों के निर््ममाण जैसी परियोजनाएँ शामिल हैैं।
राज््य के स््ववामित््व वाली हो या निजी, और चाहे जंगली हो या संभावित वन
z आजीविका की हानि: भमू ि उपयोग परिवर््तन से कृ षि भमू ि, वन क्षेत्ररों और
भमू ि के रूप मेें रखी गई हो। वन मेें उगाई जाने वाली फसलोों का क्षेत्रफल
चरागाहोों तक पहुचँ समाप्त हो जाती है, जिससे आजीविका और जीवन की और चरागाह भमू ि या वन के भीतर चराई के लिए खले ु क्षेत्र को वन क्षेत्र के
गणवु त्ता प्रभावित होती है। उदाहरणोों मेें छत्तीसगढ़ मेें परसा ईस््ट केते बेसन अतं र््गत ही रहना चाहिए।
कोयला खदान शामिल है, जिसमेें 2,711.034 हेक््टटेयर भमू ि उपयोग परिवर््तन
z विविध वक्ष ृ फसलोों आदि के अंतर््गत भूमि : इसमेें सभी खते ी योग््य भमू ि
शामिल है और यह आदिवासी और पारंपरिक वनवासियोों की आजीविका को
शामिल है जो 'शद्ध ु बोया गया क्षेत्र' मेें शामिल नहीीं है लेकिन कुछ कृ षि कार्ययों
प्रभावित करता है।
मेें उपयोग की जाती है। इस श्रेणी मेें कै सरु िना पेड़ों, छप््पर वाली घास, बांस
z जलवायु परिवर््तन: कृ षि और शहरी विकास के लिए वनोों की कटाई और की झाड़़ियोों और ईधन ं आदि के लिए अन््य उप वनोों को वर्गीकृ त किया जाना
भमू ि रूपांतरण से महत्तत्वपर्ू ्ण मात्रा मेें कार््बन डाइऑक््ससाइड (CO2) और अन््य चाहिए जो 'फलोों के बागोों' के अतं र््गत शामिल नहीीं हैैं।
ग्रीनहाउस गैसेें निकलती हैैं।
z शुद्ध बोया गया क्षेत्र : यह फसलोों और बगीचोों के साथ बोये गये कुल क्षेत्र
z पर््ययावरणीय गिरावट और प्रदूषण का कारण: भमू ि उपयोग परिवर््तन के को दर््शशाता है। एक ही वर््ष मेें एक से अधिक बार बोये गए क्षेत्रफल की गणना
परिणामस््वरूप कृ षि उत््पपादकता, भजू ल प्रदषू ण और अन््य पर््ययावरणीय प्रभावोों केवल एक बार ही की जाती है।
मेें गिरावट आती है। इन प्रभावोों का स््ववास््थ््य, अर््थव््यवस््थथा और सामाजिक
भमू ि उपयोग पैटर््न मेें परिवर््तन कै से होता है और इसका क््यया प्रभाव होता है?
कल््ययाण पर दीर््घकालिक प्रभाव होता है।
कारण प्रभाव
भारत मेें भूमि उपयोग के प्रतिरूप मेें परिवर््तन z शहरीकरण : कृ षि या प्राकृ तिक z जैव विविधता का नुकसान :
किसी क्षेत्र मेें भमू ि-उपयोग, काफी हद तक, उस क्षेत्र मेें की गई आर््थथिक गतिविधियोों भमू ि को आवासीय, वाणिज््ययिक आवासोों के विखडं न से प्रजातियोों
की प्रकृ ति से प्रभावित होता है। हालाँकि, समय के साथ आर््थथिक गतिविधियाँ और औद्योगिक क्षेत्ररों मेें परिवर््ततित का जीवित रहना और प्रजनन
बदलती रहती हैैं, भमू ि, कई अन््य प्राकृ तिक संसाधनोों की तरह, अपने क्षेत्रफल के करना है। करना मश््ककिल
ु हो जाता है।
संदर््भ मेें तय होती है। किसी भी अर््थव््यवस््थथा मेें तीन प्रकार के परिवर््तन होते हैैं, जो z कृषि विस््ततार : बढ़ती जनसख्ं ्यया z मृदा क्षरण : निम््ननीकृ त मिट्टी
भमू ि उपयोग को प्रभावित करते हैैं। की माँगोों को परू ा करने के कृ षि उत््पपादकता को प्रभावित
1. अर््थव््यवस््थथा का आकार: बढ़ती जनसंख््यया, आय स््तर मेें परिवर््तन, लिए खाद्य उत््पपादन बढ़़ाने की करती है और मरुस््थलीकरण के
उपलब््ध प्रौद्योगिकी और संबंधित कारकोों के परिणामस््वरूप समय के साथ आवश््यकता से प्रेरित होता है। जोखिम को बढ़़ाती है।
अर््थव््यवस््थथा का आकार बढ़ता है। परिणामस््वरूप, समय के साथ भमू ि पर z औद्योगीकरण : इसके z जल चक्र मेें व््यवधान :
दबाव बढ़ता जाएगा और सीमांत भमू ि उपयोग मेें कमी आने लगेगी। लिए भमू ि के बड़़े हिस््ससे की शहरीकरण और वनोों की कटाई
2. अर््थव््यवस््थथा की संरचना: द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र आमतौर पर आवश््यकता होती है और जो से भमू ि की जल धारण और
प्राथमिक क्षेत्र, विशेष रूप से कृ षि क्षेत्र की तुलना मेें बहुत तेजी से बढ़ते हैैं। अक््सर मौजदू ा भमू ि उपयोग- परिष््ककृ तकरने की क्षमता कम हो
3. कृषि जै से किसी विशे ष क्षेत्र की निर््भरता: हालांकि समय के साथ कृ षि
प्रतिरूप को विस््थथापन की ओर जाती है।
गतिविधियोों का योगदान कम हो जाता है, लेकिन कृ षि संबंधी गतिविधियोों के ले जाता है। z जलवायु परिवर््तन : भमू ि
लिए भमू ि पर दबाव कम नहीीं होता है। z बुनियादी ढाँचा विकास उपयोग मेें परिवर््तन तापमान वृद्धि
: शहरीकरण और आर््थथिक और चरम मौसम की घटनाओ ं
भूमि उपयोग वर्गीकरण गतिविधियोों को समर््थन देने के जैसे जलवायु परिवर््तन के प्रभावोों
स््ववामित््व के आधार पर भमू ि को निजी भमू ि और सामदु ायिक भमू ि के रूप मेें लिए सड़कोों, राजमार्गगों, रेलवे को बढ़़ा दते ा है।
वर्गीकृ त किया जा सकता है। और अन््य बनि ु यादी ढाँचे के z कृषि उत््पपादकता मेें कमी :
1. निजी भूमि पर व््यक्तियोों का स््ववामित््व होता है। निर््ममाण को बढ़ावा देना। अस््थथिर प्रथाएँ मिट्टी के स््ववास््थ््य
2. सामुदायिक भूमि समदु ाय के स््ववामित््व मेें होती है, जिसका उपयोग समदु ाय z वनोों की कटाई : अक््सर को ख़राब करती हैैं, फसल की
के लोग चारा, फल, मेवे या औषधीय जड़़ी-बूटियाँ इकट्ठा करने जैसे सामान््य आर््थथिक प्रोत््ससाहन और कृ षि पैदावार कम करती हैैं और खाद्य
उपयोगोों के लिए करते हैैं। इन सामदु ायिक भमू ियोों को साझा संपत्ति संसाधन एवं विकास के लिए भमू ि की सरु क्षा को ख़तरा पैदा करती हैैं।
भी कहा जाता है। आवश््यकता से प्रेरित होती है।

भारत के भूमि उपयोग प्रतिरूप की विशेषता विविध 39


भूमि उपयोग परिवर््तन और जलवायु परिवर््तन के बीच संबंध z घास के मैदान (चारागाह) का विकास : गजु रात मेें बन््ननी क्षेत्र जैसे
z ग्रीन हॉउस गैसोों के उत््सर््जन पर भूमि उपयोग परिवर््तन का प्रभाव : बड़़े उदाहरणोों से पता चलता है कि घास के मैदानोों को विकसित करने, देहाती/
पैमाने पर भमू ि उपयोग परिवर््तन, जैसे कि वनोों की कटाई, शहरीकरण, या फसल स््थथानीय गतिविधियोों का समर््थन करने और क्षरण/क्षयित क्षेत्ररों मेें स््वदेशी
पैटर््न मेें परिवर््तन, सीधे समग्र ग्रीनहाउस गैस उत््सर््जन को प्रभावित करते हैैं। तकनीकोों को बढ़़ावा देने से भमू ि पनर््स्थथा
ु पन हासिल की जा सकती है।
z भूमि उपयोग मेें बदलाव और जूनोटिक रोग: संयक्त ु राष्टट्र कन््वेेंशन टू z जैव विविधता सरं क्षण : जैव विविधता के लिए भमू ि महत्तत्वपर्ू ्ण है,
कॉम््बबैट डिसर््टटिफिके शन (UNCCD) ने सलाह दी है कि जनू ोटिक रोगोों जैसे विविध पारिस््थथितिकी प्रणालियोों को संरक्षित करने के लिए भमू ि उपयोग
कोविड -19 को रोकने के लिए भमू ि उपयोग परिवर््तन को उत्कक्रमित किया परिवर््तन को तत््ककाल संबोधित करने की आवश््यकता पर बल दिया गया है।
जाए। प्राकृ तिक पारिस््थथितिकी प्रणालियोों को संरक्षित करके और मानवीय z उत्तरदायी भूमि प्रशासन : उत्तरदायी भमू ि प्रशासन को लागू करने से
गतिविधियोों और वन््यजीव आवासोों के बीच संतलन ु बनाए रखकर, जनू ोटिक पारिस््थथितिकी तंत्र का पनर््स्थथा
ु पन, जैव विविधता संरक्षण, भमू ि उपयोग
रोग संचरण के जोखिम को कम किया जा सकता है। आधारित अनक ु ू लन और छोटे पैमाने के किसानोों की आजीविका मेें सधु ार
z कार््बन के स्रोत और सिक ं के रूप मेें भूमि : वैश्विक कार््बन चक्र मेें भमू ि के लिए सक्षम वातावरण का निर््ममाण होता है।
कार््बन के स्रोत और सिंक दोनोों के रूप मेें कार््य करती है। इसके विपरीत, मिट्टी, z बंजर भूमि प्रबंधन : बंजर भमू ि का उचित प्रबंधन, जिसमेें खनन
पेड़, वृक्षारोपण और वन प्रकाश संश्लेषण के माध््यम से कार््बन डाइऑक््ससाइड गतिविधियोों पर नियंत्रण और उपचार के बाद औद्योगिक अपशिष्टटों और
को अवशोषित करते हैैं, कार््बन सिंक के रूप मेें कार््य करते हैैं और वायमु डं लीय अपशिष्टटों का उचित निर््वहन और निपटान शामिल है, औद्योगिक और
कार््बन डाइऑक््ससाइड की मात्रा को कम करते हैैं। उपनगरीय क्षेत्ररों मेें भमू ि और जल क्षरण को कम करता है।
z ग्रीन हाउस गैसोों का उत््सर््जन : कार््बन डाइऑक््ससाइड (CO2), मीथेन आगे की राह
(CH4) और नाइट्रस ऑक््ससाइड (N2O) जैसी ग्रीनहाउस गैसेें (GHG) भमू ि
z सध ं ारणीय भूमि प्रबंधन : संधारणीय भमू ि प्रबंधन प्रथाओ ं को बढ़़ावा देना
उपयोग गतिविधियोों के माध््यम से उत््सर््जजित या अवशोषित होती हैैं। कृ षि और जिनका उद्देश््य पारिस््थथितिकी तंत्र को सरं क्षित और पनर््स्थथापि त करना, भमू ि

पशपु ालन जैसी गतिविधियाँ मीथेन और नाइट्रस ऑक््ससाइड उत््सर््जन के प्रमख ु क्षरण को कम करना और मृदा स््ववास््थ््य को बढ़़ाना है। कृ षि गतिविधियोों के
स्रोत हैैं, जो शक्तिशाली ग्रीन हाउस गैसेें हैैं। पर््ययावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए कृ षि वानिकी, संरक्षण कृ षि और
z प्रतिक्रिया लूप््स और जलवायु प्रतिक्रियाएँ : भमू ि उपयोग मेें परिवर््तन सटीक कृ षि तकनीकोों जैसे उपायोों को लागू करना।
से फीडबैक लपू प्रारंभ हो सकते हैैं जो जलवायु परिवर््तन को और बढ़़ाते हैैं। z भूमि उपयोग नियोजन और विनियमन : भमू ि विकास निर््णयोों को निर्देशित
उदाहरण के लिए, ग्रीनहाउस गैस उत््सर््जन के कारण तापमान बढ़ने से भमू ि करने के लिए प्रभावी भमू ि उपयोग ज़़ोनिंग, भमू ि उपयोग परिवर््तन मल्ू ्ययाांकन
आवरण और वनस््पति पैटर््न मेें परिवर््तन हो सकता है, जैसे कि जंगल की और पर््ययावरणीय प्रभाव मल्ू ्ययाांकन प्रक्रियाओ ं को लागू करना।
आग मेें वृद्धि, जंगलोों का क्षरण या वनस््पति क्षेत्ररों मेें बदलाव। इन परिवर््तनोों z अंतरराष्ट्रीय सहयोग : प्रयासोों को समन््ववित करने और सर्वोत्तम प्रथाओ ं
से वातावरण मेें कार््बन और अधिक बढ़ जाते हैैं, जिससे जलवायु परिवर््तन को साझा करने के लिए जलवायु परिवर््तन पर संयक्त ु राष्टट्र फ्रेमवर््क कन््वेेंशन
और भी बढ़ जाता है। (UNFCCC), मरुस््थलीकरण से निपटने के लिए संयक्त ु राष्टट्र कन््वेेंशन
(UNCCD), और जैविक विविधता पर कन््वेेंशन (CBD) जैसी पहल का
भूमि एवं जलवायु परिवर््तन पर IPCC की विशेष रिपोर््ट : समर््थन करना।
ग्लोबल वार््ममििंग के विरुद्ध एक उपकरण के रूप मेें भूमि का उपयोग
मरुस्थलीकरण
z सतत प्रथाएँ/प्रणाली : जलवाय-ु स््ममार््ट कृ षि पद्धतियोों को लागू करना,
z UNCCD के अनसु ार, मरुस््थलीकरण को "शष्ु ्क, अर््ध-शष्ु ्क और शष्ु ्क
फसल भमू ि और पशधु न प्रबंधन मेें सधु ार करना, कृ षि वानिकी को
उप-आर्दद्र क्षेत्ररों मेें भमू ि क्षरण के रूप मेें परिभाषित किया जाता है, जो जलवायु
अपनाना, और मिट्टी मेें जैविक कार््बन सामग्री बढ़़ाना पारिस््थथितिकी तंत्र
परिवर््तन और मानवीय गतिविधियोों सहित विभिन््न कारकोों के परिणामस््वरूप
संरक्षण और भमू ि पनर््स्थथा
ु पन मेें योगदान दते ा है। होता है।" यह उस प्रक्रिया को सदं र््भभित करता है जिसके द्वारा उपजाऊ भमू ि क्षयित
z हरित मेखला और बांधोों का निर््ममाण : वनरोपण, वृक्षारोपण और हो जाती है, जिससे उत््पपादकता मेें गिरावट आती है और वनस््पति आवरण
पारिस््थथितिकी तंत्र पनर््स्थथा
ु पन कार््यक्रमोों से वायरु ोधक बनाए जा सकते हैैं जो का नक ु सान होता है। मरुस््थलीकरण सख ू ,े वनोों की कटाई, अत््यधिक चराई,
धलू और रेत के तफ ू ानोों को कम करते हैैं, तथा भमू ि को क्षरण से बचाते हैैं। अनचिु त कृ षि पद्धतियोों और जलवायु परिवर््तन जैसे कारकोों के परिणामस््वरूप
z रोकथाम और उत्कक्रमण (उलटाव) : मरुस््थलीकरण को रोकना, कम हो सकता है।
करना और उलटना-पलटना मिट्टी की उर््वरता मेें सधु ार करता है, मिट्टी z कारण :
 जलवायु परिवर््तन : जलवायु पैटर््न मेें परिवर््तन, जिसमेें लंबे समय
और बायोमास मेें कार््बन भडं ारण बढ़़ाता है, और कृ षि उत््पपादकता और
खाद्य सरु क्षा को बढ़़ाता है। तक सख ू ा और कम वर््षषा शामिल है, मिट्टी और वनस््पति को सख ु ाकर
मरुस््थलीकरण की प्रक्रिया को तेज कर सकता है।

40  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


 वनोों की कटाई : अक््सर कृ षि विस््ततार, कटाई, या ईधन
ं की लकड़़ी के
संग्रह के लिए पेड़ों और वनस््पति आवरण को हटाने से मिट्टी के कटाव भारत और मरुस्थलीकरण से निपटने हेतु संयक्त
ु राष्टट्र
कन्ववेंशन (UNCCD)
मेें योगदान होता है, नमी बनाए रखने की क्षमता को कम करता है, और
वर््ष 1994 मेें स््थथापित, मरुस््थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्टट्र कन््वेेंशन
भमू ि को मरुस््थलीकरण के प्रति संवेदनशील बनाता है।
(यूएनसीसीडी) एक कानूनी रूप से बाध््यकारी अंतरराष्ट्रीय समझौता है जो
 अत््यधिक चराई : भमू ि की वहन क्षमता से परे पशओु ं की अत््यधिक स््थथायी भमू ि प्रबंधन को बढ़़ावा देने के लिए पर््ययावरण और विकास को
चराई से वनस््पति का क्षरण, मिट्टी का संक्षारण और कटाव हो विशिष्ट रूप से जोड़ता है। यह एकमात्र सम््ममेलन है जो रियो सम््ममेलन के
सकता है, जिससे भमू ि मरुस््थलीकरण के प्रति अधिक संवेदनशील हो एजेेंडा 21 की प्रत््यक्ष अनुशंसा से उत््पन््न हुआ है।
जाती है। z भारत ने दिसंबर 1996 मेें मरुस््थलीकरण से निपटने के लिए कन््वेेंशन का

अस््थथिर कृषि पद्धतियाँ : खराब भमू ि प्रबंधन पद्धतियाँ, जैसे अनपु यक्त अनमु ोदन किया।
 ु
z भारत मेें सम््ममेलन का नोडल मत्राल ं य पर््ययावरण, वन एवं जलवायु परिवर््तन
सिंचाई तकनीक, रासायनिक उर््वरकोों और कीटनाशकोों का अत््यधिक
मत्राल
ं य है।
उपयोग, मोनोक्रॉपिंग और अनचि ु त मृदा संरक्षण उपाय, मिट्टी को खराब
z भारत को मरुस््थलीकरण की बहुत बड़़ी समस््यया का सामना करना पड़ रहा
कर सकते हैैं और मरुस््थलीकरण मेें योगदान कर सकते हैैं। है। वर््ष 2016 की इसरो रिपोर््ट मेें कहा गया था कि भारत मेें 29% भमू ि
 भूमि कुप्रबंधन : अनचि
ु त भमू ि-उपयोग नियोजन, अपर््ययाप्त भमू ि कार््यकाल निम््ननीकृ त हो गई है।
प्रणाली, भमू ि-उपयोग नियमोों की कमी और अनियंत्रित भमू ि विकास सभी
भमू ि क्षरण और मरुस््थलीकरण मेें योगदान कर सकते हैैं।
प्रमुख शब्दावलियाँ
 खनन और निष््कर््षण उद्योग : अनियमित खनन गतिविधियाँ, विशेष
रूप से शष्ु ्क और अर््ध-शष्ु ्क क्षेत्ररों मेें, मिट्टी मेें अव््यवस््थथा, प्रदषू ण और भूमि का कुशल उपयोग, भूमि-उपयोग परिवर््तन और वानिकी
(LULUCF); भूमि क्षरण तटस््थता (एलडीएन); भूमि के उपयोग को
वनस््पति की हानि का कारण बन सकती हैैं, जिससे मरुस््थलीकरण बढ़
विनियमित करना; आधनु िक भूमि उपयोग लक्षष्य; दर््लु भ भूमि का
सकता है। इष्टतम उपयोग; सतत भूमि प्रबंधन; पृथ््ववी पर जीवन; विस््थथापन
 गरीबी और जनसख् ं ्यया दबाव : गरीबी, जनसंख््यया वृद्धि और इसके और बेदखली; वन भूमि का परिवर््तन; सामुदायिक भूमि; खेती योग््य
परिणामस््वरूप संसाधनोों की माँग, प्राकृ तिक संसाधनोों के अतिदोहन, बंजर भूमि; वनोों की कटाई और भूमि कटाव और क्षरण; अनियमित
सीमांत भमू ि पर अतिक्रमण और जंगलोों और घास के मैदानोों को कृ षि मानवीय हस््तक्षेप.
या बस््ततियोों मेें बदलने जैसी अस््थथाई प्रथाओ ं को जन््म दे सकती है। विगत वर्षषों के प्रश्न
मानव कल््ययाण और पर््ययावरण दोनोों की सुरक्षा के दोहरे उद्देश््योों को प्राप्त करना 1. भमू ि एवं जल संसाधनोों का प्रभावी प्रबंधन मानव विपत्तियोों को प्रबल
तब तक अप्राप््य होगा जब तक कि विकसित राष्टट्र उत््सर््जन मेें उल््ललेखनीय रूप कम कर देगा। स््पष्ट कीजिए। (2018)
कमी लाने की प्राथमिक जिम््ममेदारी नहीीं लेते हैैं। ऐसा इसलिए है क््योोंकि ग््ललोबल 2. दलहन की कृ षि के लाभोों का उल््ललेख कीजिए जिसके कारण संयुक्त
वार््मििंग मेें उनका ऐतिहासिक और निरंतर योगदान सबसे अधिक है। इसके राष्टट्र के द्वारा वर््ष 2016 को अतं रराष्ट्रीय दलहन वर््ष घोषित किया
अतिरिक्त, भदृू श््य पनर््स्थथा
ु पन मात्र वृक्षारोपण से भी आगे जाता है; इसके लिए गया था। (2017)
वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के साथ स््वदेशी और स््थथानीय ज्ञान के मल्ू ्य 3. पर््यटन की प्रोन््नति के कारण जम््ममू और कश््ममीर, हिमाचल प्रदेश और
को पहचानने की आवश््यकता है, साथ ही स््थथानीय समदु ायोों की जरूरतोों को उत्तराखंड के राज््य अपनी पारिस््थथितिक वहन क्षमता की सीमाओ ं तक
एकीकृ त करने की भी आवश््यकता है। पहुचँ रहे है। समालोचनात््मक मल्ू ्ययाांकन कीजिए। (2015)

भारत के भूमि उपयोग प्रतिरूप की विशेषता विविध 41


प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक
8 क्त्र
षे के उद्योगोों की अवस्थिति
z औद्योगिक विवाद अधिनियम,1947 की धारा 2 (j) के अनुसार, "उद्योग" को किसी भी व््यवसाय, व््ययापार, उपक्रम, निर््ममाण, या नियोक्ताओ ं के कर््तव््य के साथ
साथ किसी भी कॉलिंग, सेवा, रोजगार, हस््तशिल््प, या औद्योगिक पेशे या श्रमिकोों की रूचि के रूप मेें परिभाषित किया गया है।
z अर््थव््यवस््थथा का औद्योगिक क्षेत्र अतिम ं उत््पपादोों (वाहन, प्रसंस््ककृ त खाद्य पदार््थ) और मध््यवर्ती वस््ततुओ ं (लोहा, इस््पपात, मशीनरी) के निर््ममाण से सबं धि
ं त है।
z विनिर््ममाण प्रक्रियाएँ औद्योगिक क्षेत्र का मूल हिस््ससा हैैं जो प्राकृ तिक सामग्री संपदा उपयोगिता की प्राथमिक वस््ततुओ ं को प्रसंस््करण, असेम््बलिंग और मरम््मत के
माध््यम से रूपांतरित करती हैैं।
भारत मेें क्षेत्रवार सकल घरेलू उत््पपाद (2023-24)
लोक प्रशासन, रक्षा और अन््य कृषि, वानिकी और
सेवाएँ: 12.77% मत््स््य पालन: 14.45%

खनन एवं उत््खनन:


2.15%
कृषि:
14.45% विनिर््ममाण : 17.17%
वित्तीय, रियल एस््टटेट और
पेशेवर सेवाएँ: 23.28% सेवाएँ: उद्योग:
54.73% 30.81%

विद्युत, गैस, जल आपूर््तति और


अन््य उपयोगिता सेवा: 2.36%
निर््ममाण : 9.13%
व््ययापार, होटल, परिवहन, संचार और
प्रसारण से संबंधित सेवाएँ: 18.68%
(आधार वर््ष 2011-2012)
2011-12 की कीमतोों पर, कृ षि और संबद्ध, उद्योग और सेवा क्षेत्र की संरचना क्रमशः 14.45%, 30.82% और 54.73% है।

प्राथमिक गतिविधियााँ z भारत मेें स््थथिति: 20वीीं पशुधन गणना के अनसु ार, भारत…
 लगभग 535.78 मिलियन के साथ विश्व मेें सबसे अधिक पशध ु न
z प्राथमिक क्षेत्र अर््थव््यवस््थथा का वह क्षेत्र होता है जो प्राकृ तिक संसाधनोों का
उपयोग करके वस््ततुओ ं का उत््पपादन करता है। विकासशील देशोों मेें प्राथमिक का मालिक है।
क्षेत्र का दबदबा होता है।  विश्व मेें भैैंसोों की कुल सख्
ं ्यया मेें प्रथम स््थथान पर - 109.85 मिलियन भैैंसे।ें
 बकरियोों की आबादी मेें दस ू रे स््थथान पर - 148.88 मिलियन बकरियाँ।
तथ्य
 विश्व का दस ू रा सबसे बड़़ा पोल्ट्री बाजार।
z भारतीय अर््थव््यवस््थथा का प्राथमिक क्षेत्र सकल घरेलू उत््पपाद का 18.20%
हिस््ससा है।  दसू रा सबसे बड़़ा मछली उत््पपादक और दनि ु या का दसू रा सबसे बड़़ा
z कुल मिलाकर लगभग 48.9% कार््यबल प्राथमिक क्षेत्र मेें कार््यरत है। जलीय कृ षि राष्टट्र भी।
 भेड़ों की जनसंख््यया मेें तीसरे स््थथान पर (74.26 मिलियन)।
 बत्तखोों और मर््गगियोों
ु की आबादी मेें पाँचवेें स््थथान पर (851.81 मिलियन)
 विश्व मेें ऊँटोों की सख्ं ्यया मेें दसवेें स््थथान पर - 2.5 लाख।
z सभी ग्रामीण परिवारोों के औसत 14% की तलन ु ा मेें, छोटे कृ षि परिवारोों के राजस््व मेें पशधु न का हिस््ससा लगभग 16% है। इसके अतिरिक्त, यह लगभग 8.8%
भारतीय आबादी को रोजगार देता है।
z भारत के पास प्रचरु मात्रा मेें पशधु न संसाधन हैैं, और यह उद्योग कृ षि जीडीपी का 25.6% और कुल जीडीपी मेें 4.11% का योगदान देता है।

पशुचारण शिकार और संग्रह वाणिज्यिक पशुधन पालन

जीवन-निर्वाह के लिए पशुओ ं का पालन: यह आर््थथिक गतिविधि उनके भरण-पोषण के लिए ग्रामीण भारत मेें जानवरोों को पालना कृ षि
उनके तात््ककालिक वातावरण पर निर््भर करती है। से जुड़़ा व््यवसाय माना जाता है। पशपु ालन
पशचु ारण निर््ववाह के लिए जानवरोों को पालने के कार््य से
शिकारी और संग्रहकर््तता निम््नलिखित पर निर््भर रहते भारतीय कृ षि का एक महत्तत्वपूर््ण हिस््ससा है
संबंधित है। विभिन््न जलवायु परिस््थथितियोों मेें रहने वाले लोगोों
हैैं: वे जानवर जिनका उन््होोंने शिकार किया। आसपास और 55% से अधिक ग्रामीण निवासियोों
ने उन क्षेत्ररों मेें पाए जाने वाले जानवरोों का चयन और पालन किया।
के जंगलोों से एकत्र किए गए खाने योग््य पौधे। को आजीविका प्रदान करता है।
z पशुपालन की स््थथिति: भौगोलिक कारकोों और तकनीकी
z भौगोलिक क्षेत्र: मध््य भारत का जनजातीय क्षेत्र z उत््पपाद: महत्तत्वपर् ू ्ण जानवरोों मेें भेड़,
विकास के आधार पर, आज पशु पालन या तो निर््ववाह या
और उत्तर पर््वू और पर्वी
ू भारत के पहाड़़ी क्षेत्र। भारत मवेशी, बकरी और घोड़़े शामिल हैैं।
व््ययावसायिक स््तर पर किया जाता है।
मेें बड़़े पैमाने पर जनजातीय समहू विशेष रूप से मांस, ऊन, खाल और त््वचा जैसे
z आदिम पशुपालन एक आदिम निर््ववाह गतिविधि है, जिसमेें
पीवीटीजी शिकार और संग्रहण मेें लगे हुए हैैं। जैसे उत््पपादोों को वैज्ञानिक तरीके से
चरवाहे भोजन, कपड़़े, आश्रय, उपकरण और परिवहन के अडं मान और निकोबार के ओगोों ं , जारवा, शोम््पपेन; ससं ाधित और पैक किया जाता है
लिए जानवरोों पर निर््भर होते हैैं। ओडिशा के बोोंडा, महाराष्टट्र के कतकरी। तथा विभिन््न विश्व बाजारोों मेें निर््ययात
z भौगोलिक क्षेत्र: हिमालय जैसे पर््वतीय क्षेत्ररों मेें , गुज््जर,
z व््ययावसायिक अवसर: आधनि ु क समय मेें कुछ किया जाता है।
बकरवाल, गद्दी और भोटिया गर््ममियोों मेें मैदानी इलाकोों संग्रहण बाजारोन््ममुख और व््ययावसायिक हो गई हैैं। z प्रमुख देश: न््ययूजीलैैं ड, ऑस्ट्रेलिया
से पहाड़ों की ओर और सर््ददियोों मेें ऊंचाई वाले चरागाहोों और सयं ुक्त राज््य अमेरिका
z ट्राइफेड: यह संस््थथा जनजातियोों द्वारा एकत्र किए
से मैदानी इलाकोों की ओर पलायन करते हैैं। इस तरह के महत्तत्वपर्ू ्ण देश हैैं जहाँ व््ययावसायिक
गए उत््पपादोों के लिए लाभकारी मल्ू ्य प्रदान करने के
मौसमी प्रवासन को ट््राांसह्यूमन््स के रूप मेें जाना जाता है। पशधु न पालन किया जाता है।
लिए काम कर रही है।
भारत मेें कृषि क्षेत्र
z आर््थथिक सर्वेक्षण 2022-23: भारतीय कृ षि क्षेत्र पिछले छह वर्षषों के दौरान 4.6% की औसत वार््षषिक वद्धि
ृ दर से बढ़ रहा है। 2020-21 मेें 3.3% की तलन
ु ा
मेें 2021-22 मेें इसमेें 3.0% की वृद्धि हुई।
 सभी सब््जजियोों मेें से भारत उनमेें से सबसे अधिक आलू, अदरक, भिंडी, प््ययाज, बैैं गन आदि का उत््पपादन करता है।

 इसके अलावा, भारत जूट, काजू, पपीता, मसाले , नारियल, आम, के ले और अन््य उत््पपादोों का दुनिया का शीर््ष उत््पपादक है।

 भारत विश्व का सबसे बड़़ा कपास निर््ययातक है।

 भारत मेें पशुपालन कृ षि उद्योग का एक महत्तत्वपर् ू ्ण घटक है। यह 32% से अधिक उत््पपादन के लिए जिम््ममेदार है
कृषि के प्रकार
जीवन-निर््ववाह कृषि वह है जिसमेें कृ षि क्षेत्र यूरोपीय लोगोों द्वारा उष््ण कटिबंध मेें स््थथित मिश्रित खेती: कृ षि का यह रूप दनि ु या के
स््थथानीय स््तर पर उगाए गए सभी या लगभग इतने उपनिवेशोों मेें बागानी कृषि की शुरुआत की गई थी। अत््यधिक विकसित हिस््सोों मेें पाया जाता है,
ही उत््पपादोों का उपभोग करते हैैं। इसे दो श्रेणियोों कुछ महत्तत्वपर्ू ्ण बागानी फसलेें चाय, कॉफी, कोको, जैसे। उत्तर-पश्चिमी यूरोप, पूर्वी उत्तरी अमे रिका,
मेें बांटा जा सकता है - आदिम निर््ववाह कृ षि और रबर, कपास, ताड़ का तेल, गन््नना, केले और अनानास यूरेशिया के कुछ हिस््ससे और दक्षिणी महाद्वीपोों
गहन निर््ववाह कृ षि। हैैं। यह एक प्रकार की व््ययावसायिक खेती है जहाँ के समशीतोष््ण अक््षाांश।
z आदिम निर््ववाह कृषि: आदिम निर््ववाह कृषि
उद्योगोों के साथ मजबूत संबंध रखते हुए मोनोकल््चर मिश्रित खेत आकार मेें मध््यम होते हैैं और आमतौर
या स््थथानांतरण खेती उष््णकटिबंधीय क्षेत्ररों मेें अर््थथात एकल कृ षि की जाती है। पर उनसे जुड़़ी फसलेें गेहूं, जौ, जई, राई, मक््कका,
कई जनजातियोों द्वारा व््ययापक रूप से की जाती भौगोलिक क्षेत्र: वे मख्ु ्यतः उष््णकटिबधं ीय क्षेत्ररों तक चारा और जड़ वाली फसलेें होती हैैं।
है, विशेष रूप से अफ्रीका, दक्षिण और मध््य
ही सीमित हैैं। भारत मेें बागानी कृ षि पूर्वोत्तर के पहाड़़ी z घटक: चारा फसलेें मिश्रित खेती का एक
अमेरिका और दक्षिण पर््वू एशिया मेें। जैसे भारत
क्षेत्ररों मेें विकसित हुई है। चाय बागान, नीलगिरि, महत्तत्वपर्ू ्ण घटक हैैं। मिट्टी की उर््वरता बनाए रखने
के पर्ू वोत्तर राज््योों मेें झमू िगं , मध््य अमेरिका
और मैक््ससिको मेें मिल््पपा और इडं ोनेशिया और अन््ननामलाई, बाबा बुदान और इलायची पहाड़़ियाँ मेें फसल चक्र और अंतर-शस््यन महत्तत्वपर्ू ्ण
मलेशिया मेें लदांग। आदि जिनमेें कॉफी, रबर आदि के बागान हैैं। भमू िका निभाते हैैं।

प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक क्षेत्र के उद्योगो 43


z गहन निर््ववाह कृषि: छोटी जोत और विशाल चुनौतियााँ: z फसल की खेती और पशपु ालन पर समान जोर
जनसंख््यया घनत््व के कारण लगभग 80% दिया जाता है। मवेशी, भेड़, सअ ू र और मर्ु गी
z मोनोकल््चर
किसानोों के पास छोटी और सीमांत भमू ि है। जैसे जानवर फसलोों के साथ-साथ मख्ु ्य आय
इसलिए वे गहन निर््ववाह कृ षि मेें लगे हुए हैैं। z अकुशल नीतियाँ: यह क्षेत्र विकृ त नीतियोों और प्रदान करते हैैं।
इस प्रकार की कृ षि मेें प्रति इकाई क्षेत्र मेें दीर््घकालिक दृष्टि की कमी से पीड़़ित है।
z के स स््टडी: कर््ननाटक के हासन जिले मेें किसानोों
उपज अधिक होती है लेकिन प्रति श्रम z मशीनीकरण का अभाव ने अपने नारियल के खेतोों मेें डेयरी फार््मििंग शरू

उत््पपादकता कम होती है। z जलवायु परिवर््तन का प्रभाव
की है, जिससे पता चला है कि पशओ ु ं की
z मल्
ू ्यवर््धन का अभाव देखभाल से नारियल के पेड़ों से राजस््व मेें भी
z बागानी कृ षि वनोन््ममूलन को बढ़़ावा दे रही है। वृद्धि होती है।

भारत मेें सहकारी खेती आगे की राह


z सहकारी आदं ोलन की सफलता कुछ ही राज््योों जैसे महाराष्टट्र और गजु रात तक
यह किसानोों का एक संगठन होता है जहाँ सामूहिक रूप से खेती की जाती
सीमित रही है। राष्ट्रीय स््तर पर, सहकारी संस््थथाएँ सकारात््मक प्रभाव डालने
है हालाँकि प्रत््ययेक सदस््य व््यक्तिगत रूप से अपनी भूमि का मालिक रहता
मेें विफल रही हैैं। इसका कारण सहकारी संस््थथाओ ं मेें राजनीतिक नियंत्रण
है। वे अपना लाभ अपनी भूमि जोत के अनुपात मेें साझा करते हैैं। भारत मेें
और भ्रष्टाचार है।
सहकारी आंदोलन ब्रिटिश शासन के दौरान शरू ु हुआ, हालाँकि स््वतंत्रता के
बाद सुधारोों और अनुकूल नीतियोों के कारण यह मजबूत हुआ। z फार््मर प्रोडूयसर कंपनी (FPC)
 यह सहकारी संस््थथाओ ं और कंपनी अधिनियम के तहत पंजीकृ त निजी
z पारस््परिक सहायता के सिद््धाांत का सस्ं ्थथागतकरण: योजना
लिमिटेड कंपनियोों के बीच का एक मिश्रित मॉडल है। यह कृ षि क्षेत्र की
आयोग के अनसु ार, सहकारी समितियाँ पारस््परिक सहायता के
सरं चनात््मक कमजोरियोों को दरू करे गा।
सिद््धाांत और संस््थथागतकरण का प्रतिनिधित््व करती हैैं।
 FPC वैधानिक प्रावधानोों के तहत किसानोों का कंपनी पर नियंत्रण बढ़़ाएगा,
z इकोनोमी ऑफ़ स््कके ल (Economies Of Scale): भारत इस प्रकार सहकारी सगं ठनोों की कमियोों को दरू करे गा।
मेें, 80% किसान छोटे और सीमांत हैैं। लैैंड-पूलिंग कृषि के
 सबसे बड़़े FPC- सह्याद्रि फार््म की सफलता की कहानी को परू े देश मेें
मशीनीकरण और परिशुद्ध सिच ं ाई को सक्षम बनाता है,
दोहराया जा सकता है।
इस प्रकार भमू ि की समग्र उत््पपादकता मेें सधु ार होता है। इससे
सदस््योों का प्रति व््यक्ति उत््पपादन बढ़ जाता है। कृषिगत रोजगार का बढ़ता हुआ हिस्सा
महत्तत्व

z आदानोों का सयं ोजन: यह एक मचं प्रदान करता है जहाँ


तथ्यानुसार
किसान एक साथ आ सकते हैैं और कुशल व वैज्ञानिक
तरीकोों को साझा कर सकते हैैं तथा इस प्रकार आधुनिक z आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) रिपोर््ट 2021-22: कुल कार््यबल
प्रथाओ ं को लागू किया जा सकता है। विचारोों, पूंजी, श्रम मेें कृ षि का हिस््ससा 1993-94 मेें 64.6% से घटकर 2018-19 मेें 45.5%
और पशुधन के इस तरह के परू क आदान-प्रदान से खेती से हो गया है।
अधिकतम उत््पपादन प्राप्त करने मेें मदद मिलेगी। z राष्ट्रीय आधार पर कृ षि उद्योग मेें 63% से अधिक महिलाएँ कार््यरत हैैं,
z ऋण तक पहुच ँ : सदस््योों की संयक्तु साख की क्षमता के कारण जबकि विनिर््ममाण क्षेत्र मेें महिला श्रमिकोों की संख््यया 11.8% है।
सहकारी समितियोों को ऋण की उपलब््धता आसान हो जाती है। भारतीय कृषि मेें प्रमुख बाधाएँ
z आर््थथिक ढाँचे मेें व््ययाप्त असमानता पर सीधा प्रहार करने मेें z सरं चनात््मक बाधाएँ:
सहकारी खेती विफल रही है क््योोंकि जमीींदारोों, भमू िहीन मजदरोोंू  परिचालन जोत: 2010-11 की कृ षि जनगणना के अनस ु ार, भारतीय
और बटाईदारोों के पारंपरिक सामाजिक भेदभाव को अभी भी किसानोों की औसत परिचालन जोत का आकार 1.15 हेक््टटेयर है
बरकरार रखा जा रहा है। और 85% किसान 2 हेक््टटेयर से कम वाले सीमांत और लघु कृषक
z सहकारी खेती के माध््यम से कृ षि के मशीनीकरण से रोजगार श्रेणियोों मेें आते हैैं।
चुनौतियाँ

की संभावनाएँ कम हो जाएँगी और ग्रामीण क्षेत्ररों मेें श्रमिकोों की  जीवन-निर््ववाह कृषि: भारतीय कृ षि बड़़े पै माने पर निर््ववाह-उन््ममुख है जो
संख््यया कम होने की संभावना है। छोटी जोत और मशीनीकृ त खेती करने मेें असमर््थता के कारण इकोनोमी
z कृ षि उत््पपादकता बढ़़ाने के लिए सहकारी खेती ही एकमात्र ऑफ़ स््ककेल (economies of scale) से वंचित करती है।
तरीका नहीीं है। उन््नत किस््म के बीज, उर््वरक, कृ षि उपकरण  फॉरवर््ड और बैकवर््ड लिंकेज: फॉरवर््ड लिंकेज की कमी के कारण
आदि अपनाकर कृ षि उत््पपादकता बढ़़ाने के लिए बेहतर विकल््प कृषि उत््पपादोों मेें मूल््यवर््धन और प्राथमिक प्रसस्ं ्करण विकसित देशोों
उपलब््ध हैैं। की तलनु ा मेें बहुत कम है।

44  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z वित्तीय बाधाएँ: z जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियाँ: ड्रिप z उद्योग 4.0: इसके अलावा,
 ऋण की कमी: ऋण तक सीमित पहुच ँ और असगं ठित ऋणदाताओ ं और स््प््रििंकलर सिंचाई जैसी उन््नत कृ षि मेें IoT, AI और ML
के चंगुल मेें फंसे किसान कम दाम मेें बेचने को मजबरू हो जाते हैैं। सिंचाई प्रणालियोों का कार््ययान््वयन। का उपयोग, अनुसध ं ान एवं
 धन का अप्रभावी प्रवाह: भारतीय कृ षि अनस ु ंधान परिषद - अतं रराष्ट्रीय z जैव कीटनाशक और जैव विकास मेें निजी निवेश, छोटे
आर््थथिक सहयोग और विकास संगठन (ICRIER-OECD) की रिपोर््ट के उर््वरक: प्राकृ तिक कीट नियंत्रण जोतोों और छोटे उत््पपादकोों के मद्ददों

अनसु ार, भारतीय किसानोों की सहायता और सब््ससिडी देने के लिए लागू विधियोों और जैविक उर््वरकोों के को हल करने के लिए सहकारी
किए गए कार््यक्रमोों की बहुतायत के बावजदू , प्रतिगामी विपणन नीतियोों उपयोग की ओर रुझान। आदं ोलन को पनर्जीव
ु ित करने के
के कारण धन की हानि हुई है। z जलवायु-स््ममार््ट कृषि: उन लिए सरकारी पहल और अन््य
z ढाँचागत बाधाएँ: प्रथाओ ं को अपनाना जो कृ षि को कारक भारत मेें कृ षि के स््वरूप
 सिच ं ाई की कमी: सिच ं ाई की कमी और अनियमित मानसनू खेती जलवायु परिवर््तन के प्रति लचीला को बदल रहे हैैं।
को असरु क्षित बना देता है जो यवु ा पीढ़़ी को अपने जोश और उद्यमिता बनाती हैैं। z जैव प्रौद्योगिकी: क््योोंकि
से इस क्षेत्र से दरू धकेल देता है। z स््ममार््ट सिचं ाई प्रणाली: सिंचाई आधनि ु क जैव प्रौद्योगिकी उत््पपाद
 खराब बुनियादी ढाँचा: भड ं ारण, परिवहन और अन््य उद्देश््योों के लिए कार््यक्रम को अनक ु ू लित करने के आर््थथिक रूप से व््यवहार््य हैैं, वे
बनि
ु यादी ढाँचे की कमी के कारण भारतीय किसानोों को शद्ध ु घाटा हुआ, लिए सेेंसर और स््ममार््ट नियंत्रकोों का कृ षि और खाद्य उद्योग दोनोों को
जिसके परिणामस््वरूप उन पर कर नहीीं लगाया गया। एकीकरण। बढ़़ा सकते हैैं, जिससे निर््ववाह
z चयनात््मक खरीद: सार््वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की 65 मिलियन टन z जैव प्रौद्योगिकी प्रगति: किसानोों की आय मेें वृद्धि होगी।
की आवश््यकताओ ं को परू ा करने के लिए बड़़ी मात्रा मेें खरीदे जाने वाले गेहूं फसल सधु ार के लिए क्रिस््पर z पेशेवरोों द्वारा कृषि मेें कई
और धान (चावल) को छोड़कर, सरकार केवल 23 फसलोों के लिए न््ययूनतम (CRISPR) और अन््य जीन- स््टटार््ट -अप: यह इस क्षेत्र मेें
समर््थन मल्ू ्य (MSP) घोषित करती है। संपादन प्रौद्योगिकियोों का उपयोग। समय और धन लगाने की अपार
 स््थथिर MSP दरेें : सरकार द्वारा घोषित न््ययूनतम समर््थन मल्
संभावना के लिए प्रशसं ा व््यक्त
ू ्य उत््पपादन
लागत मेें वृद्धि के अनरू करता है।
ु प नहीीं बढ़ता है।
 अनुचित पहुच ँ : सभी किसानोों और सभी फसलोों को इस कार््यक्रम का
सरकारी पहल
लाभ नहीीं मिलता है। देश के कई क्षेत्ररों, जैसे उत्तर पर्वी ू क्षेत्र, मेें अपर््ययाप्त
कार््ययान््वयन हुआ है। z प्रधानमंत्री किसान सम््ममान निधि (पीएम-किसान): इस योजना के
 गै र-वैज्ञानिक कृषि पद्धतियाँ: एमएसपी के परिणामस््वरूप गैर-वैज्ञानिक
तहत, परू े देश मेें किसान परिवारोों के बैैंक खातोों मेें सीधी लाभ अतं रण
कृ षि पद्धतियाँ उत््पन््न होती हैैं जो मिट्टी और जल पर इस हद तक दबाव (DBT) मोड के माध््यम से प्रति वर््ष ₹6000/- का वित्तीय लाभ तीन
डालती हैैं कि भजू ल स््तर बिगड़ जाता है और मृदा लवणीय हो जाती है। बराबर चार-माह की किस््तोों मेें हस््तताांतरित किया जाता है।
z अन््य बाधाएँ: z प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY): PMFBY को वर््ष 2016
 किसानोों की छोटी जोत, प्राथमिक और माध््यमिक प्रसंस््करण, आपर््तति ू मेें किसानोों को बवु ाई से पहले से लेकर कटाई के बाद तक सभी गैर-
श्ख रं ला, संसाधनोों और विपणन के कुशल उपयोग का समर््थन करने वाला रोकथाम योग््य प्राकृ तिक जोखिमोों के लिए फसलोों का व््ययापक जोखिम
बनिु यादी ढाँचा, बाजार मेें बिचौलियोों को कम करना। कवर सनिश् ु चित करने के लिए एक सरल और किफायती फसल बीमा उत््पपाद
कृषि आधुनिकीकरण मेें बदलते कृषि क्षेत्र के लिए भविष््य की प्रदान करने और पर््ययाप्त दावा राशि प्रदान करने के लिए शरू ु किया गया था।
रुझान संभावनाएँ z कृषि अवसरं चना निधि (AIF): इस योजना के तहत, बैैंकोों और वित्तीय
z परिशुद्ध कृषि: फील््ड-स््तरीय z विविध जलवायु क्षेत्र: ICAR संस््थथानोों द्वारा 3% प्रति वर््ष की ब््ययाज दर सब््ससिडी के साथ ऋण के रूप मेें
प्रबंधन को अनक ु ू लित करने के के अनसु ार, भारत मेें बहुत सी ₹1 लाख करोड़ प्रदान किए जाएँगे और CGTMSE के तहत ₹2 करोड़
लिए GPS, IoT सेेंसर और डेटा कृ षि योग््य भमू ि है जिसे 15 कृ षि- तक के ऋणोों के लिए ऋण गारंटी कवरे ज प्रदान किया जाएगा।
एनालिटिक््स का उपयोग करता है। जलवायु क्षेत्ररों मेें विभाजित किया z 10,000 नए FPO का गठन और सवं र््धन: भारत सरकार ने वर््ष 2020
z स््वचालन और रोबोटिक््स: गया है। ऐसे विविध फलदायी मेें “10,000 किसान उत््पपादक संगठनोों (एफपीओ) के गठन और संवर््धन”
स््ववायत्त ट्रैक््टर, ड्रोन और रोबोटिक वातावरणोों मेें विभिन््न प्रकार की के लिए केें द्रीय क्षेत्र की योजना (सीएसएस) शरू ु की।
हार्वेस््टर का परिचय। फसलेें उगाई जा सकती हैैं।
z आनुवंशिक रूप से सश ं ोधित z शहरीकरण: भारत की बढ़ती भारत मेें डेयरी क्षेत्र
फसलेें (GMO): कीट प्रतिरोध, जनसंख््यया, शहरीकरण, औसत z अर््थव््यवस््थथा मेें योगदान: यह कृ षि का सबसे बड़़ा क्षेत्र है जो राष्ट्रीय
सख ू ा सहनशीलता और उच््च आय और वैश्वीकरण के परिणाम अर््थव््यवस््थथा मेें 5% का योगदान देता है और सीधे 8 करोड़ से अधिक
पोषण मल्ू ्य जैसे उन््नत गणोों ु वाली भोजन की अधिक विविधता, मात्रा किसानोों को रोजगार प्रदान करता है। भारत दग्ु ्ध उत््पपादन मेें प्रथम स््थथान पर है
फसलोों का विकास। और गणव ु त्ता की माँग बढ़़ाएँगे। और वैश्विक दग्ु ्ध उत््पपादन मेें 23% का योगदान देता है।

प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक क्षेत्र के उद्योगो 45


z नीति आयोग के अनुसार,वर््ष 2033 मेें भारत का दग्ु ्ध उत््पपादन बढ़कर 330
z स््वच््छता की स््थथितियाँ: कई मवेशी मालिक अपने मवेशियोों
MMT हो जाएगा जबकि इसकी दधू की माँग 292 MMT होगी। इस प्रकार,
को उचित आश्रय प्रदान नहीीं करते हैैं, जिससे उन््हेें अत््यधिक
भारत के वर््ष 2033 तक दग्ु ्ध अधिशेष देश बनने की संभावना है।
जलवायु परिस््थथितियोों का सामना करना पड़ता है, जो आगे
z ऑपरेशन फ््लड: 1960 के दशक के बाद ऑपरेशन फ््लड के कारण, विश्व
दग्ु ्ध उत््पपादन मेें भारत का योगदान वर््ष 1970 मेें 5% से बढ़कर वर््ष 2021 मेें चलकर पशओ ु ं मेें थनैला रोग या स््तनशोथ (Mastitis) की
23% हो गया। आज, भारत दग्ु ्ध उत््पपादन मेें काफी हद तक आत््मनिर््भर है। स््थथिति पैदा करता है।
सरकारी पहल: आगे की राह
z राष्ट्रीय गोकुल मिशन: इसे वर््ष 2014 मेें पशु प्रजनन और डेयरी विकास के z सहकारी समितियोों को एकजुट होकर अपनी आवाज मजबूत करनी
लिए राष्ट्रीय कार््यक्रम के तहत लॉन््च किया गया था। इसका उद्देश््य देशी नस््लोों चाहिए। सरकार को सार््वजानिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत निजी
के विकास और उनके आनवु ंशिक सधु ार को बढ़़ावा देना है। निवेश को बढ़़ावा देकर क्षेत्र की बनि ु यादी जरूरतेें यानी सस््तते पशु आहार की
z राष्टट्रव््ययापी एआई (कृत्रिम गर््भभाधान) कार््यक्रम: इसका उद्देश््य वार््षषिक दग्ु ्ध उपलब््धता, आपर््तति ू श्खरं ला नेटवर््क का उन््नयन और कोल््ड स््टटोरे ज प्रदान
उत््पपादकता को 3000 किलोग्राम/पशु तक बढ़़ाना है। करना चाहिए।
z किसान क्रेडिट कार््ड (KCC): डेयरी किसानोों को किसान क्रेडिट कार््ड
z सच ू ना और सच ं ार प्रौद्योगिकियोों के उपयोग और सरकारी योजनाओ ं
(के सीसी) कार््यक्रम मेें शामिल किया गया है। यह किसानोों के लिए पर््ययाप्त
और समय पर ऋण सहायता सनिश् द्वारा सहायता प्राप्त स््टटार््ट -अप को बढ़़ावा देने से रोजगार के नए अवसर पैदा
ु चित करता है।
z मनरेगा: किसानोों को कोविड-19 के कारण हुई आय हानि की भरपाई के लिए होोंगे और नई पीढ़़ियोों को इस क्षेत्र मेें बनाए रखा जा सके गा।
डेयरी को मनरे गा के तहत लाया गया। z दुग््ध प्रसस्ं ्करण उद्योग एक उभरता हुआ उद्योग है, इसलिए सहकारी
z एक स््ववास््थ््य मिशन: पिछले वर््ष की तलन ु ा मेें 2022-23 के लिए पशधु न समितियोों को अप्रयक्त ु माँग को परू ा करने और किसानोों को अधिक रिटर््न
स््ववास््थ््य और रोग नियंत्रण के लिए धन आवंटन मेें लगभग 60% वृद्धि के प्रदान करने के लिए पनीर, दही और आइसक्रीम उत््पपादोों मेें उद्यम करना
साथ एक स््ववास््थ््य मिशन का कार््ययान््वयन स््वस््थ पशधु न और एक स््वस््थ चाहिए।
भारत सनिश् ु चित करे गा।
कृषि आधारित और कृषि प्रसंस्क रण उद्योग
z आय का विविधीकरण: डेयरी क्षेत्र ने किसानोों की आय मेें
वृद्धि की है तथा सख ू े और बाढ़ की संकटपर्ू ्ण अवधि के दौरान z कृ षि-आधारित कंपनियाँ वे होती हैैं जो अपना आधारभतू कच््चचा माल पौधोों
स््थथिर आय के माध््यम से आजीविका सरु क्षा सनिश् ु चित की है। और जानवरोों दोनोों के कृ षि उत््पपादन से प्राप्त करती हैैं। इसके अतिरिक्त, वे बेचे
z पोषण सबं ंधी सहायता: कुपोषण और अल््पपोषण को कम और इस््ततेमाल किए जा सकने वाले सामान बनाकर कृ षि उत््पपादन के मल्ू ्य को
डेयरी क्षेत्र का महत्तत्व

करने के लिए दग्ु ्ध उत््पपाद आहार का एक महत्तत्वपर्ू ्ण हिस््ससा बढ़़ा देते हैैं। भारत के वस्त्र, चीनी, वनस््पति तेल, चाय, कॉफी और चमड़़े के
हैैं। मध््ययाह्न भोजन योजना के तहत दग्ु ्ध उत््पपादोों को शामिल सामान इत््ययादि क्षेत्रक कृ षि-आधारित व््यवसायोों के कुछ उदाहरण हैैं।
करने से बच््चोों मेें बौनेपन और दबु लेपन को कम करने मेें
मदद मिलेगी। वर््तमान स्थिति
z महिला सशक्तिकरण: यह भारत मेें एक श्रम प्रधान क्षेत्र है z भले ही भारत दनि ु या मेें, चीन के बाद, फलोों और सब््जजियोों का दसू रा सबसे
और महिला आबादी इस क्षेत्र के कार््यबल का लगभग बड़़ा उत््पपादक है, लेकिन केवल 2% फसल को ही संसाधित किया जाता है।
69% है। इसलिए, डेयरी क्षेत्र का विकास सीधे तौर पर महिला
सशक्तिकरण को बढ़़ावा देता है। z भारत मेें दनि ु या की सबसे बड़़ी पशधु न आबादी है, जिसमेें 50% भैैंस
और 20% मवेशी हैैं, फिर भी देश के कुल मांस उत््पपादन का केवल 1%
z असगं ठित क्षेत्र: अधिकांश दग्ु ्ध उत््पपादक असंगठित हैैं और
इस प्रकार अपनी सगं ठित माँगोों की वकालत करने मेें मल्ू ्य-वर््धधित वस््ततुओ ं मेें बदल जाता है।
विफल रहते हैैं। z हालाँकि यहाँ एक बड़़ा विनिर््ममाण आधार है, लेकिन प्रसंस््करण बहुत कम
डेयरी क्षेत्र के सामने चुनौतियाँ

z खंडित आपूर््तति श्रंखला : दधू एक अत््यधिक खराब होने (10% से कम) होता है। लगभग 2% फल और सब््जजियाँ, 8% समद्री ु
वाला उत््पपाद है इसलिए इसे ग्राहक की ओर से तत््ककाल उत््पपाद, 35% दधू और 6% मर्ु गीपालन उत््पपाद ही संसाधित किये जाते है।
निपटान की आवश््यकता होती है। z सर्ू योदय उद्योग (Sunrise Industry): नीति आयोग ने खाद्य प्रसस्ं ्करण
z पशु चारे की कीमतेें: पशु चारे की निरंतर उपलब््धता की उद्योगोों की पहचान भारी घरेलू माँग वाले सर्यो
ू दय उद्योग के रूप मेें की है
कमी और इसकी ऊंची कीमतोों के कारण व््यवसाय का जो असंगठित क्षेत्र के उत््थथान की क्षमता रखता है।
लाभ मार््जजिन कम हो जाता है।
z जीडीपी मेें योगदान: भारत की जीडीपी मेें खाद्य प्रसंस््करण क्षेत्र का
z किसानोों को खराब रिटर््न: वसा-आधारित मूल््य निर््धधारण
नीति के परिणामस््वरूप किसानोों को बाजार कीमतोों की तलन ु ा योगदान 2% से भी कम है। इसलिए इसकी वास््तविक क्षमता का दोहन
मेें 20-30% कम पैसा मिलता है। करने के लिए निजी निवेश और नए स््टटार््ट-अप की आवश््यकता है।

46  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z आय विविधीकरण: ये उद्योग ग्रामीण क्षेत्ररों मेें लाभदायक z कृषि-उद्योग विकास निगम: प्रत््ययेक राज््य का कृ षि-उद्योग
विविधीकरण भी प्रदान करते हैैं जो ग्रामीण क्षेत्ररों मेें सर््वाांगीण विकास निगम मख्ु ्य रूप से किसानोों को कृ षि उपकरण, इनपटु
औद्योगिक विकास सनिश् ु चित करता है। और परामर््श सेवाएँ प्रदान करता है।
z रोजगार: वार््षषिक औद्योगिक सर्वेक्षण, 2016-17 से पता z लघु उद्योग विकास सगं ठन: यह संगठन छोटे कृ षि-उद्योगोों
चला कि कृषि-उद्योग औद्योगिक रोजगार मेें लगभग जैसे होजरी, पेय प्रसस्ं ्करण, खाद्य और प्रसस्ं ्करण आदि
36% का योगदान देता है। उद्योगोों को प्रोत््ससाहित करने, उनकी विकास नीतियोों और
z फॉरवर््ड और बैकवर््ड लिंकेज: फसल कटाई के कार््यक्रमोों का निर््ममाण करने, लघु उद्योगोों के साथ समन््वय
बाद प्रबंधन, गोदामोों, कोल््ड स््टटोरेज, लॉजिस््टटिक््स स््थथापित करने और उनकी निगरानी करने वाली एक शीर््ष
निकाय और नोडल एजेेंसी है।
सवि ु धाओ ं आदि मेें इन लिंकेज के विकास से अधिशेष
श्रम को कृ षि क्षेत्र से अधिक उत््पपादक औद्योगिक गतिविधियोों आगे की राह
मेें स््थथानांतरित किया जाएगा। z कृषि विपणन ढाँचे को बढ़़ाना: नीतिगत परिवर््तनोों के माध््यम से किसानोों
भोजन की बर््बबादी कम करना: संयक्त ु राष्टट्र के अनसु ार, की मल्ू ्य प्राप्ति को बढ़़ाना। किसान-उत््पपादक संगठनोों के माध््यम से प्रत््यक्ष
महत्तत्व

उत््पपादन का 40% नष्ट हो जाता है। नीति आयोग ने भी फसल विपणन को बढ़़ावा दिया जा सकता है।
कटाई के बाद वार््षषिक नक ु सान 90,000 करोड़ रुपये के करीब z एक एकीकृत कृषि निर््ययात मिशन: निर््ययात को बढ़़ावा देने और खाद्य

होने का अनमु ान लगाया था। प्रसंस््करण को बढ़़ाकर मल्ू ्य संवर््धन को 10% से 50% तक बढ़़ाने के लिए
z खाद्य मुद्रास््फफीति पर अंकुश: खाद्य प्रसस्ं ्करण भोजन की एक एकीकृ त कृ षि निर््ययात मिशन तैयार किया जा सकता है।
शेल््फ लाइफ को बढ़़ाता है, जिससे माँग के अनरू ु प आपर््तति
ू z एकीकृत दृष्टिकोण: एक एकीकृ त रणनीति की आवश््यकता है, जिसमेें

बनाए रखने और खाद्य मद्रा ु स््फफीति को कम करने मेें मदद फॉरवर््ड और बैकवर््ड कनेक््शन बनाने पर ध््ययान दिया जाए, जो क्षेत्र की आर््थथिक
मिलती है। उदाहरण के लिए, फ्रोजन सफल मटर परू े वर््ष व््यवहार््यता बढ़़ाने के लिए आवश््यक हैैं।
उपलब््ध रहते हैैं। z सार््वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): लॉजिस््टटिक््स, भड ं ारण और प्रसंस््करण
z व््ययापार को बढ़़ावा और विदेशी मुद्रा अर््जन: यह विदेशी के लिए बनि ु यादी ढाँचे के निर््ममाण के लिए जोखिम साझा करने और वित्तीय
मद्रा
ु के एक महत्तत्वपर्ू ्ण स्रोत के रूप मेें कार््य करता है। उदाहरण प्रोत््ससाहन के लिए एक अच््छछी तरह से विकसित रूपरे खा प्रदान करके निजी
के लिए, मध््य पर्वी क्षेत्र को उद्योग के समग्र विकास मेें अधिक सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए
ू देशोों मेें भारतीय बासमती चावल की
उच््च माँग है। प्रोत््ससाहित किया जाना चाहिए।
z कृषि उपज बाजार समिति (APMC) अधिनियम का समान कार््ययान््वयन:
z नीतियाँ:
यह सनिश् ु चित किया जाना चाहिए कि निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़़ाने के
z कृषि प्रसस्ं ्करण क््लस््टर: एक ससु ज््जजित आपर््तति ू श्ख
रं ला लिए कृ षि उपज बाजार समिति (APMC) अधिनियम को समान रूप से लागू
और अत््ययाधनि ु क बनि
ु यादी ढाँ च े के माध््यम से , इसका लक्षष्य किया जाए और जीएसटी कर ढाँचे को ससु ंगत बनाया जाए ताकि कीमतोों मेें
उत््पपादकोों या किसानोों के समहोू ों को प्रसंस््करणकर््तताओ ं और भारी अतं र को रोका जा सके ।
बाजारोों से जोड़ना है। आर््थथि क सर्वेक्षण (2022-23) के अनुसार, जलवायु परिवर््तन के नकारात््मक
z मेगा फूड पार््क : कार््यक्रम का उद्देश््य क््लस््टरिंग पद्धति का प्रभाव, खंडित भमू ि जोत, अपर््ययाप्त कृ षि मशीनीकरण, कम उत््पपादकता, प्रछन््न
उपयोग करके खाद्य प्रसंस््करण इकाइयोों की स््थथापना के लिए बेरोजगारी, बढ़ती इनपुट लागत सहित कई मद्ददों ु को देखते हुए भारतीय कृ षि को
व््ययावसायिक समहोू ों को आकर््षषित करने के लिए आधनि ु क फिर से तैयार करना होगा। देश की अर््थव््यवस््थथा के फलने-फूलने और नौकरियाँ
बनिु यादी ढाँ च े और साझा स व
ु िधाओ ं का निर््ममाण करना है। पैदा करने के लिए, कृ षि क्षेत्र का प्रदर््शन मजबूत बना रहना चाहिए।
सरकारी पहलेें

z खाद्य प्रसस्ं ्करण/सरं क्षण क्षमताओ ं का निर््ममाण/विस््ततार भारत मेें खनन क्षेत्र
(इकाई योजना): इस योजना का प्राथमिक लक्षष्य प्रसस्ं ्करण
और संरक्षण क्षमता का निर््ममाण करना और मौजदू ा खाद्य भारत मेें खनन क्षेत्र को भारतीय अर््थव््यवस््थथा के मख्ु ्य उद्योगोों मेें से एक कहा
जाता है क््योोंकि यह कई महत्तत्वपूर््ण उद्योगोों को बुनियादी कच््चचा माल प्रदान
प्रसंस््करण इकाइयोों का आधनि ु कीकरण/विस््ततार करना है
करता है। खनन ग्रह और अन््य खगोलीय पिंडोों से मल्ू ्यवान भवू ैज्ञानिक घटकोों
ताकि प्रसंस््करण के स््तर को बढ़़ाया जा सके और मल्ू ्यवर््धन
को निकालने की प्रक्रिया है।
किया जा सके , जिससे अपव््यय कम हो सके ।
z सस्ं ्थथागत व््यवस््थथाएँ: भारतीय खनन की स्थिति (MoSPI)
z कृषि मंत्रालय: यह बेकरी, कोल््ड स््टटोरे ज, चीनी मिल, तेल z अर््थव््यवस््थथा मेें योगदान: औद्योगिक क्षेत्र के सकल घरेलू उत््पपाद मेें
मिल और चावल मिलोों से सबं ंधित है। केवल 2.2% और 2.5% के बीच अतं र होने के बावजदू , खनन क्षेत्र का
z खादी एवं ग्रामोद्योग बोर््ड। सकल घरेलू उत््पपाद मेें योगदान 10% से 11% के बीच है।

प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक क्षेत्र के उद्योगो 47


z रोजगार: खनन उद्योग, जो 5.5 करोड़ से अधिक लोगोों को रोजगार देता है, z निर््ययात-आयात नीति: यह बड़़े पैमाने पर वाणिज््ययिक खनन गतिविधि
प्रत््यक्ष और अप्रत््यक्ष रूप से लगभग 1.1 करोड़ लोगोों को रोजगार देता है। मेें निवेश के लिए स््थथिरता प्रदान करने के लिए खनिज क्षेत्र के लिए
z राजस््व: खनन से भारत की जीडीपी 2022 की तीसरी तिमाही मेें 645.94 दीर््घकालिक निर््ययात-आयात नीति पर जोर देती है।
INR बिलियन से बढ़कर चौथी तिमाही मेें 787.32 INR बिलियन हो z विशिष्ट खनन क्षेत्र: नीति ने 'एक््सक््ललूसिव माइन' की अवधारणा
गई। वित्त वर््ष 24-25 तक खनन का योगदान 8 लाख करोड़ रुपये तक पेश की है जो खनन पट्टे के अनदु ान के लिए सैद््धाांतिक वैधानिक मजं रू ी
बढ़़ाने की योजना है। के साथ आएगी।
भारत मेें खनन क्षेत्र का विधायी ढााँचा z आसान निकासी: यह नीति निकासी की प्रक्रिया को सरल बनाएगी
z केें द्रीय सच ू ी: सचू ी I (केें द्रीय सचू ी) के क्रम संख््यया 54 पर प्रविष्टि के अनसु ार और खनिज विकास और खनन कार्ययों को शरू ु करने के लिए इसे समयबद्ध
केें द्र सरकार को भारत के EEZ के भीतर स््थथित खनिजोों का स््ववामित््व प्राप्त प्रक्रिया बनाएगी।
होना आवश््यक है। इसके लिए ही 1957 का खान और खनिज (विकास और नो-गो क्षेत्र: पारिस््थथितिकी तंत्र की नाजक
z ु ता को देखते हुए कुछ क्षेत्ररों को
विनियमन) (MMDR) अधिनियम बनाया गया था।
नो-गो क्षेत्र या अदृश््य क्षेत्र घोषित किया जाएगा।
z राज््य सच ू ी: भारतीय सवं िधान की सचू ी II (राज््य सचू ी) के क्रमांक 23 की
प्रविष्टि के तहत राज््य सरकार को अपनी सीमाओ ं के भीतर पाए जाने वाले z जिला खनिज निधि: नीति प्रभावित लोगोों को पनर््ववा ु स और पनर््स्थथा
ु पन
खनिजोों का स््ववामित््व रखना आवश््यक है। प्रदान करके खनन प्रभावित लोगोों का कल््ययाण सनिश् ु चित करने के लिए
z अंतरराष्ट्रीय सीबेड प्राधिकरण: खनिजोों की खोज और खनन अतं रराष्ट्रीय जिला खनिज निधि के उचित उपयोग पर जोर देती है।
सीबेड अथॉरिटी (आईएसए) द्वारा शासित होते हैैं। z अंतर-पीढ़़ीगत समता: नीति ने खनिज सस ं ाधन दोहन मेें अंतर-पीढ़़ीगत
 यह संयक्त ु राष्टट्र संधि द्वारा शासित है, जिसमेें भारत एक पक्षकार है। समता की अवधारणा पेश की है।
भारत को मध््य हिदं महासागर बेसिन मेें 75,000 वर््ग किलोमीटर मेें फै ले
पॉलीमेटेलिक नोड्यल्ू ्स का पता लगाने का एकमात्र अधिकार दिया गया है। सरकारी पहल:
z प्रत््यक्ष विदेशी निवेश (FDI) सीमा: स््वचालित मार््ग के तहत कुछ शर्ततों
महत्त्व
के साथ 100% तक की अनमति ु है।
z विकास: सरकार के अपने आकलन के अनसु ार, खनन मेें 1% अंक की वद्धि ृ
z PLI योजना: भारत सरकार ने निर््ययात बढ़़ाने और भारत की निर््ममाण क्षमताओ ं
औद्योगिक उत््पपादन की वद्धि ृ दर को 1.2-1.4% अंक तक बढ़़ा देती है।
को बढ़़ाने के लिए विशेष स््टटील मेें उत््पपादन-आधारित प्रोत््ससाहन (PLI) योजना
z रोजगार: इस क्षेत्र मेें एक प्रत््यक्ष नौकरी 10 अप्रत््यक्ष नौकरियाँ पैदा करती है।
शरूु करने की स््ववीकृ ति दे दी है।
z यह एक श्रम प्रधान उद्योग है जो बड़़े पैमाने पर अकुशल श्रमिकोों को रोजगार
के अवसर प्रदान करता है। z मिशन पूर्वोदय: इसमेें राष्ट्रीय विकास की अगली लहर को बढ़़ावा देने के
z उत््पपादन: भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़़ा कोयला उत््पपादक देश है लिए पर्वी ू भारत क्षेत्र की क्षमता को उजागर करने पर जोर दिया गया।
और कोयला भडं ार के मामले मेें 5वाँ सबसे बड़़ा देश है। यह तैयार स््टटील का z जिला खनिज फाउंडेशन फंड: इसकी स््थथापना खनन प्रभावित लोगोों के
शुद्ध निर््ययातक है और इसमेें स््टटील के कुछ ग्रेड मेें चैैंपियन बनने की क्षमता है। कल््ययाण के लिए की गई है।
z सकल मूल््यवर््धन: वर््ष 2021-22 मेें जीवीए मेें खनन और उत््खनन उद्योग z काबिल (KABIL): भारतीय उद्योगोों को महत्तत्वपर्ू ्ण और रणनीतिक खनिजोों
का योगदान (चालू कीमतोों पर) लगभग 2.4% था। की आपर््ततिू सनिश्ु चित करना।
z वर््ष 2019 के आक ं ड़ों के अनसु ार, खनिज क्षेत्र का सकल घरेलू उत््पपाद z पीएम खनिज क्षेत्रीय कल््ययाण योजना (2015): खनन और पर््ययावरण से
मेें योगदान 1.75% है। प्रभावित लोगोों का कल््ययाण सनिश्ु चित करना। डीएमएफ द्वारा लाग।ू
राष्ट् रीय खनिज नीति 2019 z राष्ट्रीय खनिज अन््ववेषण ट्रस््ट (NMET), 2004: खनिजोों के क्षेत्रीय और
इसमेें प्रमुख खनिजोों के उत््पपादन को 200% तक बढ़़ाने और सात वर्षषों विस््ततृत अन््ववेषण के लिए।
मेें खनिज क्षेत्र मेें व््ययापार घाटे को 50% तक कम करने की परिकल््पना
की गई है। नीति का लक्षष्य वित्तीय पैकेज, नीलामी के समय पहले इनकार का खान और खनिज (विनियमन और विकास ) संशोधन अधिनियम,
अधिकार आदि जैसी रियायतोों के माध््यम से निजी निवेश को आकर््षषित 2021
करना है। z खनिजोों के अंतिम उपयोग पर प्रतिबंध हटाना: इस विधेयक के
विशेषताएँ :
अनसु ार, किसी भी खदान को विशिष्ट अतिम ं उपयोग के लिए प्रतिबंधित
नहीीं किया जाएगा।
z राजस््व साझाकरण मॉडल: निजी क्षेत्र को अन््ववेषण के लिए प्रोत््ससाहित
करने के लिए इसने राजस््व-साझाकरण मॉडल अपनाया। z कै प््टटिव खदानोों द्वारा खनिजोों की बिक्री: विधेयक के अनसु ार (परमाणु
z खनन पट्टटों का स््थथानांतरण: इस नीति मेें निजी क्षेत्र के खनन क्षेत्ररों को खनिजोों को छोड़कर) कै प््टटिव खनिक अपनी जरूरतोों को परू ा करने के
बढ़़ावा देने के लिए खनन पट्टटों के हस््तताांतरण और समर््पपित खनिज बाद अपने वार््षषिक खनिज उत््पपादन का 50% तक खले ु बाजार मेें बेच
गलियारोों के निर््ममाण का प्रावधान है। सकते हैैं।

48  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z कुछ मामलोों मेें केें द्र सरकार द्वारा नीलामी: कुछ परिस््थथितियोों मेें, केें द्र भारतीय संदर््भ मेें औद्योगिक क्षेत्र का महत्त्व
सरकार नीलामी आयोजित कर सकती है। यदि ऐसा होता है, तो विधेयक आर््थथिक:
राज््य सरकार से परामर््श के बाद इसे ऐसा करने का अधिकार देता है।
z रोजगार प्रदानकर्त्ता : औद्योगिक क्षेत्र ने नौकरियाँ पैदा करने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण
z वैधानिक मंजूरी का हस््तताांतरण: विधेयक के अनसु ार, हस््तताांतरित योगदान दिया है। जैसे-जैसे उद्योग परिपक््व होते हैैं, रोजगार के अवसर बढ़ते
वैधानिक मजं रू ी नए पट्टेदार की परू ी लीज अवधि तक प्रभावी रहेगी। हैैं। भारत मेें 11 करोड़ कर््मचारियोों को नौकरी देकर, MSME जैसे उद्योगोों ने
z समय सीमा समाप्त लीज वाली खदानोों का आवंटन: विधेयक के अर््ध-कुशल कार््यबल को अवशोषित करने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमू िका निभाई है।
अनसु ार, समाप्त हो चक ु ी लीज वाली खदानोों को कुछ परिस््थथितियोों मेें z ट्रिकल-डाउन प्रभाव: औद्योगिक क्षेत्र मेें वृद्धि अन््य क्षेत्ररों मेें वृद्धि को सक्रिय
सरकारी कंपनी को आवंटित किया जा सकता है, बशर्ते कि खदानेें या तो करती है जैसे:
कोयला, लिग््ननाइट या परमाणु खनिज होों।  कृ षि का विकास

 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास


आगे की राह
 आत््मनिर््भर विकास:
z इन लोगोों का विश्वास हासिल करने के लिए खनन परियोजना से
प्रभावित विस््थथापितोों का उचित पुनर््ववास और उनके कल््ययाण के लिए  तेजी से बढ़ता पंज ू ीगत वस््ततु क्षेत्रक परिवहन, कृ षि और संचार क्षेत्रकोों के
जिला खनिज निधि का उपयोग अनिवार््य है। यह उन््हेें वामपंथी उग्रवाद विस््ततार को प्रोत््ससाहित करता है।
गतिविधियोों का समर््थन करने से रोके गा।  इससे आवश््यकताओ ं की आपर््तति ू के लिए विदेशी देशोों पर हमारी निर््भरता
z राष्ट्रीय खनिज नीति 2019 के प्रभावी कार््ययान््वयन और खनिज ब््ललॉक भी समाप्त होती है।
आवंटन मेें पारदर््शशिता बनाए रखनी चाहिए।  डेटा (औद्योगिक उत््पपादन सच ू कांक): सांख््ययिकी और कार््यक्रम
z किसी भी परियोजना के आवंटन से पहले पर््ययावरण प्रभाव आकलन कार््ययान््वयन मत्रालं य (MoSPI) के आक
ं ड़ों के अनसु ार, भारत का
(ईआईए) और सामाजिक प्रभाव आकलन (एसआईए) का प्रभावी औद्योगिक उत््पपादन सचू कांक (IIP) फरवरी मेें 5.7% बढ़ गया, जो जनवरी
सचं ालन सनिश् ु चित किया जाना चाहिए। मेें 3.8% था। दिसबं र 2023 मेें 4.2% IIP वृद्धि देखी गई। फरवरी मेें
z पारिस््थथितिक रूप से सवें दनशील क्षेत्ररों की सरु क्षा के लिए एनजीटी के दिशा- विद्युत उत््पपादन साल-दर-साल (YoY) 7.5% बढ़़ा, जबकि जनवरी मेें
यह 6.9% था।
निर्देशोों का भी पालन किया जाना चाहिए। जैसे हाल ही मेें एनजीटी ने यपू ी
सरकार को अवैध रे त खनन पर अक ं ु श लगाने के लिए उपचारात््मक कार््रवाई z राजनीतिक:
करने का आदेश दिया है।  अंतरराष्ट्रीय प्रभाव मेें वद्धि ृ : व््ययापार को बढ़़ावा देने मेें औद्योगीकरण से
z ब््ललॉकोों के समय पर आवंटन और औद्योगिक क्षेत्ररों की माँगोों को परू ा करने के सहायता मिलती है, जिसका वैश्विक व््ययापार पर महत्तत्वपर्ू ्ण प्रभाव पड़ता है।
लिए एकल खिड़की और समयबद्ध पर््ययावरण एवं वन मंजूरी महत्तत्वपर्ू ्ण व््ययापार से विकसित देशोों को कम औद्योगिक रूप से विकसित देशोों की
होगी। तलनु ा मेें अधिक लाभ होता है।
 स््थथिरता: तीव्र आर््थथिक विकास वाली अर््थव््यवस््थथा गृह यद्ध ु जैसे
निष्कर््ष: सामाजिक दबावोों के प्रति कम संवेदनशील होती है जिससे राजनीतिक
z भारत मेें विशाल खनिज क्षमता विद्यमान है लेकिन वास््तविक क्षमता की स््थथिरता बढ़ती है।
तुलना मेें खोजा गया क्षेत्र बहुत कम है जिसके कारण भारी खनिज आयात z सामाजिक:
बिल पैदा होता है। खनिजोों की सतत और नियमित आपर््तति ू औद्योगिक क्षेत्र के  गरीबी उन््ममूलन: औद्योगिक क्षेत्र मेें यह क्षेत्रीय परिवर््तन बे रोजगारी
निर््बबाध कामकाज की कुंजी है जो किसी भी अर््थव््यवस््थथा का विकास और गरीबी उन््ममूलन के लिए एक पूर््व शर््त है। सयं ुक्त राष्टट्र विकास
इजं न है। भारत के पास अपने खनिज क्षेत्र के उद्देश््योों से चकू ने की कोई गजंु ाइश कार््यक्रम (UNDP) की रिपोर््ट के अनसु ार भारत ने औद्योगिक क्षेत्ररों
नहीीं है, इसलिए अपेक्षित उत््पपादन प्रदान करने वाले प्रभावी कामकाज के लिए मेें नौकरी के मानक बढ़़ाकर लगभग 25 करोड़ लोगोों को गरीबी से बाहर
प्रति वर््ष 8-9% की विकास दर बनाए रखनी होगी। निकाला है।
द्वितीयक क्षेत्र  समतामूलक विकास: इसका उद्देश््य आदिवासी और पिछड़़े क्षेत्ररों मेें

उद्योग स््थथापित करके क्षेत्रीय असमानताओ ं को कम करना भी था।


z द्वितीयक क्षेत्र मेें औद्योगिक क्षेत्र शामिल है जो प्राकृतिक कच््चचे माल का जैसे पिछड़़े क्षेत्ररों मेें उद्योगोों को बढ़़ावा देने से दरू दराज के क्षेत्ररों मेें भी
प्रसस्ं ्करण करता है और उन््हेें तैयार उत््पपादोों मेें परिवर््ततित करता है। विकास का फल वितरित करने मेें मदद मिली है। महाराष्टट्र के विदर््भ क्षेत्र
z यह अर््थव््यवस््थथा की रीढ़ है जो प्राथमिक क्षेत्र से आए और कुछ कौशल का विकास इसका उदाहरण है।
हासिल कर चुके लोगोों को रोजगार प्रदान करता है।  जनसांख््ययिकीय लाभांश: भारत आने वाले दशक मेें सबसे बड़़ा
z भारतीय अर््थव््यवस््थथा के महत्तत्वपर्ू ्ण क्षेत्ररों मेें से एक, द्वितीयक क्षेत्र देश के सभी जनसांख््ययिकीय लाभांश देखने जा रहा है। विनिर््ममाण क्षेत्र महत्तत्वपर्ू ्ण है
रोजगार का 14% हिस््ससा है। क््योोंकि यह श्रम-गहन नौकरियाँ पैदा कर सकता है और भावी पीढ़़ी के
z इसके अलावा, द्वितीयक क्षेत्र सकल घरेलू उत््पपाद मेें लगभग एक चौथाई लिए बेहतर जीवन स््तर को बढ़़ावा दे सकता है। जैसे वस्त्र, ऑटोमोबाइल
योगदान देता है। परिवहन और उद्योग इस क्षेत्रक के दो सबसे अच््छछे उदाहरण हैैं। क्षेत्ररों मेें भारी माँग और नई नौकरियाँ पैदा करने की क्षमता है।

प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक क्षेत्र के उद्योगो 49


z तकनीकी: पशुधन आधारित उद्योग: ये क्षेत्र कच््चचे माल के स्रोत
 नवाचार और सहयोग: अनस ु ंधान एवं विकास मेें वृद्धि से उद्योगोों को के रूप मेें जानवरोों पर निर््भर हैैं। कुछ ग्राम-आधारित
मजबतू ी मिलती है और उच््च शिक्षा संस््थथानोों के साथ साझेदारी के माध््यम उद्योगोों मेें वे उद्योग शामिल हैैं जो जूते, डेयरी, खाल,
से प््लग-एडं -प््लले तकनीक को बढ़़ावा मिलता है। खाल, हड्डियाँ, सीींग आदि का उत््पपादन करते हैैं।
 उद्योग 4.0: उद्योग 4.0 के उद्भव के साथ इसने अन््य सामाजिक क्षेत्ररों मेें वन-आधारित उद्योग: इनमेें वे शामिल हैैं जो कागज,
प्रौद्योगिकी के उपयोग की गंजु ाइश खोल दी है, जिससे एक स््पपिलओवर कार््डबोर््ड, लाख, रे यान, राल, चमड़़ा, लकड़़ी के उपकरण
प्रभाव पैदा हुआ है। और टोकरियाँ बनाते हैैं।
z सरु क्षा:
 राष्ट्रीय सरु क्षा मेें वद्धि
ृ : घरेलू स््तर पर रक्षा मशीनरी और उपकरणोों का निजी क्षेत्र: जमशेदपुर मेें स््थथित उद्योग जिनका स््ववामित््व
उत््पपादन करने की हमारी क्षमता ने हमेें अपने व््यवसायोों की वृद्धि के कारण लोगोों या बजाज ऑटो या टिस््कको जैसी कंपनियोों के पास
इसे आयात करने के लिए महगं ी विदेशी मद्रा ु का भगु तान करने से बचने की है, उन््हेें निजी क्षेत्र के उद्योग कहा जाता है।
अनमतिु दी है। सार््वजनिक क्षेत्र: भारत हेवी इलेक्ट्रिकल््स लिमिटेड
 आर््थथि क सरु क्षा: यह हमेें पश्चिमी देशोों पर गैर-निर््भर बनाती है जो और दर््गगा
ु पुर स््टटील प््ललाांट जैसी कंपनियाँ जिनका स््ववामित््व
विकासशील देशोों का शोषण करने के लिए विभिन््न उपकरणोों का उपयोग सरकार के पास है।
करते हैैं। उदाहरण के लिए, यूएस पीएल-480 कार््यक्रम। संयुक्त क्षेत्र: गुजरात अल््कलीज़ लिमिटेड और ऑयल
इडि
ं या लिमिटेड जैसे व््यवसाय जो राज््य और/या इसकी
उद्योगोों के प्रकार स््ववामित््व के
एजेेंसियोों के संयुक्त स््ववामित््व मेें हैैं, संयुक्त क्षेत्र के
आधार पर
विनिर््ममाण उद्योगोों को विभिन््न आधारोों पर वर्गीकृ त किया जा सकता है। उद्योगोों के व््यवसायोों के उदाहरण हैैं।
उद्योगोों का
कुछ बुनियादी वर्गीकरण निम््नलिखित हैैं: सहकारी: ये व््यक्तियोों के एक समहू द्वारा संयुक्त रूप से
वर्गीकरण
बड़़े उद्योग: ऐसे व््यवसाय जो प्रत््ययेक इकाई मेें कई स््ववामित््व और संचालित होते हैैं जो आम तौर पर एक
श्रमिकोों को रोजगार देते हैैं उन््हेें बड़़े पैमाने के व््यवसाय निश्चित उद्योग के लिए कच््चचा माल प्रदान करते हैैं, जैसे
कहा जाता है। बड़़े पैमाने के उद्यमोों मेें सूती और जूट कि चीनी मिल जो किसानोों द्वारा संयुक्त रूप से स््ववामित््व
वस्त्र उद्योग शामिल हैैं। और संचालित होती है, को सहकारी क्षेत्र के व््यवसायोों
श्रमिक बल मध््यम उद्योग: मध््यम स््तर के उद्योगोों को उन उद्योगोों के रूप मेें जाना जाता है।
की मात्रा के रूप मेें परिभाषित किया जाता है जो न तो बहुत बड़़ी बहुराष्ट्रीय: एक बहुराष्ट्रीय निगम (एमएनसी) के पास
(आकार) के संख््यया मेें और न ही बहुत कम संख््यया मेें श्रमिकोों को अपने देश के अलावा कम से कम एक अन््य देश मेें भी
आधार पर रोजगार देते हैैं। मध््यम आकार के उद्यमोों के उदाहरण कार््ययालय और संपत्ति होती है।
साइकिल, रेडियो और टेलीविजन उद्योग हैैं।
उद्योगोों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक
लघु उद्योग: व््यक्तिगत स््ववामित््व वाले संचालित
व््यवसाय जो केवल कुछ श्रमिकोों को नियुक्त करते हैैं उद्योग की अवस््थथिति को प्रभावित करने वाले कई कारक हैैं जिन््हेें दो व््ययापक
उन््हेें लघ-ु स््तरीय व््यवसाय कहा जाता है। श्रेणियोों मेें विभाजित किया जा सकता है, भौगोलिक कारक और गैर-भौगोलिक
कारक।
भारी उद्योग: "भारी उद्योग" शब््द का तात््पर््य उन
उद्योगोों से है जो एक ही प्रकार के भारी और स््थथूल कच््चचे z विद्युत: उद्योगोों के स््थथानीयकरण के लिए निरंतर विद्युत आपर््तति

कच््चचे माल
माल से सामान बनाते हैैं। भारी उद्योगोों का लोहा और एक आवश््यकता है।
और तै यार
इस््पपात क्षेत्र द्वारा अच््छछा प्रतिनिधित््व किया जाता है। कच््चचा माल: कच््चचा माल औद्योगिक अवस््थथिति का सबसे
माल के z
हल््कके उद्योग: हल््कके उद्योग हल््कके तैयार माल बनाते बुनियादी निर््णणायक कारक रहा है।
आधार पर
हैैं और हल््कके कच््चचे माल का उपयोग करते हैैं। हल््कके
z श्रम: जब तक कि इसके विपरीत कोई ठोस तर््क न हो, कोई
उद्योगोों मेें सिलाई मशीनेें और विद्युत के पंखे शामिल हैैं।
इस बात का खडं न नहीीं कर सकता कि अतीत मेें श्रम बल की
भौगोलिक

कृषि आधारित उद्योग: वे उद्योग जो कच््चचे माल के उपस््थथिति उद्योग के लिए आकर््षक होती थी।
स्रोत के रूप मेें कृ षि पर निर््भर होते हैैं, कृ षि आधारित
z बाजार: जब तक तैयार माल बाजार तक नहीीं पहुचँ जाता तब
उद्योग कहलाते हैैं। चीनी, वनस््पति तेल, जूट वस्त्र, और
कच््चचे माल के तक विनिर््ममाण की परू ी प्रक्रिया बेकार है।
सतू ी वस्त्र कृ षि आधारित उद्योगोों के उदाहरण हैैं।
स्रोत के z परिवहन: कच््चचे माल का संयोजन और तैयार माल की बिक्री
खनिज-आधारित उद्योग: इस समहू मेें लोहा और
आधार पर दोनोों के लिए भमू ि या जल मार््ग से परिवहन की आवश््यकता
इस््पपात, एल््ययूमीनियम और सीमेेंट जैसे व््यवसाय शामिल
हैैं जो मख्ु ्य रूप से अपने कच््चचे माल के लिए खनिजोों होती है।
पर निर््भर हैैं।

50  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z पूर््ण परियोजना: आठ परियोजनाओ ं मेें से चार के लिए प्रमख ु ट्रंक बनि
ु यादी
z जल: वस्त्र, रसायन और लौह-इस््पपात जैसे उद्योगोों को अपने
ढाँचे का काम परू ा हो चक ु ा है।
कामकाज के लिए भारी मात्रा मेें जल की आवश््यकता होती
 ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश मेें एकीकृ त औद्योगिक टाउनशिप;
है, इसलिए जल संसाधनोों की निकटता इन उद्योगोों के लिए
 गज ु रात मेें धोलेरा विशेष निवेश क्षेत्र;
फायदेमदं है। जैसे हुगली नदी के निकट होने से बंगाल मेें जटू
उद्योग को लाभ होता है।  महाराष्टट्र मेें शेेंद्रा बिडकिन औद्योगिक क्षेत्र; और

 एकीकृ त औद्योगिक टाउनशिप-विक्रम उद्योगपरु ी, मध््य प्रदेश।


z पूंजी: पंजू ी-गहन आधनि ु क उद्योगोों को पर््ययाप्त निवेश की
आवश््यकता होती है। z प्रक्रियाधीन परियोजनाएँ: अन््य 4 अनमु ोदित परियोजनाएँ कार््ययान््वयन/
z सरकारी नीतियाँ: उदा. अनक ु ू ल सरकारी नीतियोों और विकास के विभिन््न चरणोों मेें हैैं। इन परियोजनाओ ं की स््थथिति इस प्रकार है:
 चे न््नई बेें गलुरु औद्योगिक गलियारे (CBIC) के तहत कर््ननाटक मेें
प्रोत््ससाहनोों के कारण गुजरात की औद्योगिक नीति ने पश्चिम
बंगाल से टाटा के नैनो सयं ंत्र को आकर््षषित किया है। तुमकुरु नोड
 सीबीआईसी के तहत आंध्र प्रदेश मेें कृष््णणापटनम नोड:
z समूहीकृत अर््थव््यवस््थथाओ ं तक पहुच ँ : लाभ विभिन््न
उद्योगोों के बीच मौजदू संबंधोों से प्राप्त होते हैैं।  दिल््लली-मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर (DMIC) के तहत हरियाणा के
गैर-भौगोलिक

z औद्योगिक जड़ता: क्षेत्र की जड़ता के कारण उद्योग अपने नांगल चौधरी मेें एकीकृत मल््टटी मॉडल लॉजिस््टटिक््स हब
 DMIC के तहत उत्तर प्रदेश के दादरी मेें मल््टटी-मॉडल लॉजिस््टटिक््स/
मूल प्रतिष्ठान के स््थथान पर ही विकसित होते हैैं। जैसे
अलीगढ़ मेें ताला उद्योग। ट््राांसपोर््ट हब।
z ऐतिहासिक कारक: मुंबई, कोलकाता और चेन््नई स््थथान औद्योगिक गलियारोों का महत्त्व
हमारे औपनिवेशिक अतीत से बहुत प्रभावित हैैं। z औद्योगिक गलियारोों मेें 4 प्रमुख घटक शामिल हैैं: परिवहन, भडं ारण,
z बैैंकिंग और ऋण सवि ु धाएँ: उद्योग के विकास के लिए लाखोों अग्रेषण (Forwarding) और मल्ू ्य वर््धधित लॉजिस््टटिक््स।
रुपये के दैनिक विनिमय की आवश््यकता होती है, जो केवल z आर््थथिक विकास: औद्योगिक गलियारे विश्वस््तरीय परिवहन सवु िधाएँ प्रदान
बैैंकिंग सवु िधाओ ं द्वारा ही संभव है। करने के लिए बनाए गए हैैं जो औद्योगिक समहोू ों को जोड़ते हैैं। उच््च क्षमता
वाले समर््पपित माल गलियारे वैश्विक विनिर््ममाण और निवेश गंतव््य बनाने के
भारत मेें औद्योगिक गलियारे (INDUSTRIAL लिए रीढ़ की हड्डी के रूप मेें कार््य करते हैैं।
CORRIDORS -IC) z लॉजिस््टटिक सध ु ार: आईसी वैश्विक लॉजिस््टटिक मानकोों के अनरू ु प कार्गो
z राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास निगम (NICDC) एक विशेष प्रयोजन के मल््टटी-मोडल मूवमेेंट को सवि ु धाजनक बनाने मेें मदद करेगा। इससे
वाहन है जिसका लक्षष्य राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार््यक्रम के लॉजिस््टटिक््स की लागत कम होगी और भारतीय वस््ततुओ ं की प्रतिस््पर््धधात््मकता
कार््ययान््वयन को स््थथापित करना, बढ़़ावा देना और सवु िधाजनक बनाना है। मेें सधु ार होगा।
z उद्देश््य: औद्योगिक विकास को विशेष बल देते हुए मुख््य परिवहन मार्गगों z व््यवसाय करने मेें आसानी: औद्योगिक गलियारे मेें व््यवसाय शरू ु करने,
पर इनकी परिकल््पना की गई है। इसमेें निर््ययात मेें वृद्धि, रोजगार सृजन, निर््ममाण परमिट से निपटने और सपं त्ति पंजीकरण के लिए तेजी से मजं रू ी
पर््ययावरण प्रबंधन आदि पर लक्षित कई परियोजनाएँ शामिल हैैं। की सवु िधा प्रदान करे गी। यह अधिक व््ययापार और निवेश को आकर््षषित करे गा।
z रोजगार सज ृ न: औद्योगिक गलियारे उद्योगोों को आगे और पीछे दोनोों तरफ
से जोड़ते हैैं और इसलिए लॉजिस््टटिक क्षेत्र और भडं ारण क्षेत्र मेें रोजगार पैदा
करने की व््ययापक क्षमता रखते हैैं। यह बनि ु यादी ढाँचे के विकास को बढ़़ावा
देगा और सबं ंधित क्षेत्ररों मेें रोजगार पैदा करे गा।
क्षेत्रीय संसाधन-आधारित विनिर्माण और प्रबंधन की
रणनीति
जो उद्योग कच््चचे माल के पास स््थथित हैैं वे स््थथानीय इनपुट का उपयोग करते
हैैं और उन््हेें अंतिम सामग्री मेें बदल देते हैैं। इससे रोजगार सृजन और समग्र
क्षेत्रीय विकास मेें भी मदद मिलती है। यह रणनीति पिछड़़े क्षेत्र के विकास
और समान विकास को बढ़़ावा देने मेें मदद करती है। यह स््थथानीय उत््पपादोों
और कलाकृतियोों को बढ़़ावा देता है तथा उन््हेें राष्ट्रीय और वैश्विक ब््राांडोों
z वर््तमान स््थथिति: सरकार ने राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास और मेें परिवर््ततित करने का प्रयास करता है। इस रणनीति के तहत उद्योगोों को
कार््ययान््वयन ट्रस््ट (NICDIT) के तहत आठ (8) परियोजनाओ ं को मजं रू ी प्राकृ तिक संसाधनोों की उपलब््धता के आधार पर आकर््षषित किया जाता है और
और स््ववीकृ ति दी है। परिवहन, विद्युत आदि जै सी अन््य सुविधाएँ प्रदान की जाती हैैं।

प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक क्षेत्र के उद्योगो 51


वर््ष 2022 तक, राष्ट्रीय विनिर््ममाण नीति का लक्षष्य विनिर््ममाण को देश की जीडीपी
क्षेत्रीय क्षमता का दोहन करने क्षेत्रीय संसाधन-आधारित
का 25% बनाना था। हालाँकि, यह देखा गया है कि कुछ क्षेत्ररों मेें उनकी अनुकूल
के लिए सरकार पहल विनिर््ममाण का प्रभाव
भौगोलिक स््थथिति और उच््च स््तर के औद्योगीकरण के कारण असाधारण तेजी
z ओडिशा औद्योगिक विकास z कार््ययात््मक विशेषज्ञता: जहाँ एक से विकास होता है, जबकि अन््य क्षेत्र पीछे रह जाते हैैं। इस लिहाज से क्षेत्रीय
योजना: विजन 2025: यह प्रकार का संसाधन मख्ु ्य फोकस विनिर््ममाण बहुत महत्तत्वपूर््ण हो जाता है।
योजना 2.5 लाख करोड़ रुपये होता है, वहाँ उद्योगोों मेें काम करने
वस्त्र उद्योग
के निवेश को आकर््षषित करने के लिए विशेषज्ञ कौशल सेट वाले
और 30 लाख प्रत््यक्ष और लोगोों की आवश््यकता होती है। z भारत मेें घरेलू परिधान और वस्त्र उद्योग देश के सकल घरेलू उत््पपाद (जीडीपी)
अप्रत््यक्ष रोजगार पैदा करने मेें लगभग 2.3% और औद्योगिक उत््पपादन मेें 13% का योगदान देता है।
z सहायक उद्योगोों की स््थथापना:
के उद्देश््य से पाँच उद्योगोों पर z रोजगार: कृ षि के बाद भारत मेें दसू रा सबसे बड़़ा नियोक्ता होने के नाते, उद्योग
जब किसी विशेष प्रकार के
केें द्रित है। देश की अर््थव््यवस््थथा के लिए महत्तत्वपर्ू ्ण है। इसके अतिरिक्त, यह प्रत््यक्ष और
उद्योग की स््थथापना किसी दिए गए
अप्रत््यक्ष रूप से लगभग 10.5 करोड़ लोगोों को रोजगार देता है।
z भौगोलिक सक ं े त (GI) टै ग संसाधन के साथ की जाती है, तो
z निर््ययात: भारत वस्त्र और परिधान का दनि ु या का दसू रा सबसे बड़़ा उत््पपादक
वाले उत््पपाद: इन््हेें स््थथानीय MSME के रूप मेें कई सहायक और निर््ययातक भी है, जो सभी अतं रराष्ट्रीय व््ययापार का 5% हिस््ससा है। 2018-
स््तर पर उत््पपादित किया जा उद्यम स््थथापित होते हैैं 19 मेें, यह भारत से होने वाले सभी निर््ययात का 12% था।
सकता है और विभिन््न राज््योों z द्वितीयक रोजगार: इसके z बाजार: भारतीय वस्त््रों के लिए दो सबसे बड़़े निर््ययात बाजार अमेरिका और
व क्षेत्ररों मेें अतं रराष्ट्रीय स््तर पर अलावा, ऐसे अतिरिक्त उद्योग भी यरू ोपीय संघ हैैं, इसके बाद कई एशियाई देश और मध््य पर््वू आते हैैं।
बेचा जा सकता है। हैैं जो प्राथमिक उद्योग के साथ- z मूल््य: वर््ष 2022 मेें भारतीय वस्त्र और परिधान बाजार का आकार लगभग
z एक स््टटेशन एक उत््पपाद: 25 साथ द्वितीयक रोजगार का भी $165 अरब होने का अनमु ान है, जिसमेें घरेलू बाजार $125 अरब और निर््ययात
मार््च 2022 को यह कार््यक्रम समर््थन करते हैैं। $40 अरब का योगदान देगा।
19 भारतीय रेलवे स््टटेशनोों पर z विकसित आपूर््तति श्रंखला: क्षेत्र z अनमु ान है कि उद्योग का बाजार आकार 10% की चक्रवृद्धि दर (CAGR)
शरू ु किया गया था। मेें आपर््तति
ू श्खरं ला की स््थथापना से से बढ़कर वर््ष 2030 तक $350 बिलियन तक पहुचँ जाएगा।
z यूपी सरकार की एक जिला, रोजगार की अधिक संभावनाएँ  सरकार अगले पाँच वर्षषों मेें भारत के कपड़़ा निर््ययात को मौजद ू ा $44.4
एक उत््पपाद योजना क्षेत्रीय खल ु ती हैैं बिलियन से बढ़़ाकर $100 बिलियन करने के लिए प्रतिबद्ध है।
पारंपरिक उद्योगोों को बढ़़ावा z परिवहन लागत मेें कमी: उत््पपादन सूती वस्त्र उद्योग
देने का प्रयास करती है। सवु िधाओ ं और कच््चचे आपर््तति ू की
z जलवायु की स््थथिति: पाला रहित जलवाय,ु तापमान 20 से 30 °C के
z उत्तर पूर््व औद्योगिक विकास निकटता से परिवहन खर््च कम हो
बीच, और कम वार््षषिक वर््षषा, काली मिट्टी या जलोढ़ मिट्टी।
योजना उद्योगोों को पर्ू वोत्तर जाएगा।
z खेती के अंतर््गत क्षेत्र: इसके अतिरिक्त, यह सबसे अधिक कपास की खेती
क्षेत्र मेें स््थथापित करने के लिए z माँग मेें विविधता: उपभोक्ता करता है, जो दनि ु या भर की सभी कृ षि भमू ि का लगभग 25% है। भारत मेें
प्रोत््ससाहित करती है। वस््ततुओ ं के लिए अधिक और सबसे बड़़े कपास उत््पपादक राज््योों मेें गजु रात, महाराष्टट्र, आध्रं प्रदेश, हरियाणा,
z मिशन पूर्वोदय: इसे एकीकृ त अधिक विविध माँग होगी। इससे पंजाब, मध््य प्रदेश, राजस््थथान, कर््ननाटक और तमिलनाडु शामिल हैैं। भारत
स््टटील हब की स््थथापना के एक चक्र शरू ु होता है जिससे की कपास टोकरी, जो महाराष्टट्र, गजु रात, आध्रं प्रदेश और तेलंगाना राज््योों
माध््यम से पर्वी ू भारत के त््वरित द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्ररों के से बनी है, देश के दो-तिहाई से अधिक कपास का उत््पपादन करती है।
विकास के लिए वर््ष 2020 मेें उत््पपादन, वितरण और समर््थन मेें z हिस््ससेदारी: सतू ी वस्त्र उत््पपादन मेें हथकरघा और मिलोों के बाद पावरलूम
लॉन््च किया गया था। विस््ततार हो सकता है। की हिस््ससेदारी सबसे बड़़ी (लगभग 80%) है। यह एक कृ षि आधारित
उद्योग है जो शद्ध ु कच््चचे माल पर निर््भर करता है।
चुनौतियााँ
z बुनियादी ढाँचे की कमी: झारखडं , छत्तीसगढ़, पर्ू वोत्तर क्षेत्र जैसे संसाधन कपास उद्योग के विकास के लिए जिम्मेदार कारक
समृद्ध क्षेत्र परू क बनि
ु यादी ढाँचे की कमी के कारण उद्योगोों को आकर््षषित करने z ऐतिहासिक कारक: औद्योगिक क््राांति और बाद मेें प्रथम और द्वितीय
मेें विफल रहते हैैं। विश्व युद्ध, स््वदेशी आदं ोलन और राजकोषीय सरु क्षा अनदु ान ने इस उद्योग
z कौशल और आधुनिकीकरण की कमी: स््थथानीय कारीगर आधनि ु क के विकास को तेजी से प्रेरित किया।
उपकरणोों की कमी के कारण वैश्विक माँगोों के अनसु ार स््थथानीय कलाकृ तियोों z स््थथानिक कारक: स््वतंत्रता के बाद, उद्योग भी उच््च श्रम लागत वाले
को सश ं ोधित करने मेें विफल रहते हैैं। क्षेत्ररों से कम श्रम लागत वाले क्षेत्ररों मेें स््थथानांतरित हो गया। मदरु ै ,
z नीति निर््ममाण मेें दूरदर््शशिता का अभाव: स््थथानीय कौशल के खराब विकास तिरुनेलवेली और कोयंबटूर मेें इस उद्योग की स््थथापना मेें श्रम लागत कारक
और खराब विपणन के कारण क्षेत्रीय उत््पपाद मान््यता प्राप्त ब््राांडोों मेें बदलने मेें ने महत्तत्वपर्ू ्ण भमू िका निभाई। महत्तत्वपूर््ण केें द्र: मबंु ई, अहमदाबाद, कोयंबटूर,
विफल रहे हैैं। इदं ौर, कानपरु आदि।

52  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z अर््थव््यवस््थथा मेें योगदान: घरेलू परिधान और कपड़़ा उद्योग z उन््नत गुणवत्ता: इसके अतिरिक्त, भारत अब अपने अत््यधिक
भारत के सकल घरेलू उत््पपाद (जीडीपी) मेें लगभग 2.3% का कुशल कार््यबल और तकनीकी सफलताओ ं के कारण
योगदान देता है। औद्योगिक उत््पपादन मेें 13% और निर््ययात मेें अतं रराष्ट्रीय मानकोों को परू ा करने वाले उच््च गणव ु त्ता वाले
12% का योगदान देता है। भारत का कपड़़ा और परिधान के वस्त्र बनाने मेें सक्षम है।
वैश्विक व््ययापार मेें 4% की हिस््ससेदारी है। z विविध वस््ततुएँ: यह क्षेत्र विभिन््न प्रकार की वस््ततुओ ं का निर््ययात
z दूसरा सबसे बड़़ा नियोक्ता: कृ षि के बाद यह दसू रा सबसे करता है, जिसमेें पहनने के लिए तैयार कपड़़े और कपास से
बड़़ा नियोक्ता है। निर््ममित वस्त्र शामिल हैैं।
भारतीय रोजगार की रीढ़

z रोजगार सख् ं ्यया: सरकारी आक ं ड़ों के अनसु ार, उद्योग प्रत््यक्ष z ब््राांड इडिय
ं ा: व््यवसाय समदु ाय विभिन््न अतं रराष्ट्रीय मचोों ं
रूप से लगभग 4.5 करोड़ लोगोों को रोजगार देता है और पर "ब््राांड इडि ं या" के विपणन के लिए समर््पपित है, जो श्रम
अप्रत््यक्ष रूप से अन््य 6 करोड़ नौकरियोों का समर््थन करता मानकोों, स््थथिरता, परिपत्रता, नैतिक सोर््सििंग और विनिर््ममाण मेें
है। कार््यबल मेें महिलाओ ं की बहुतायत है, जो परू े श्रम बल का इसके लाभोों पर जोर देता है।
60% से 70% हिस््ससा हैैं। z RoSCTL का विस््ततार: वैश्विक बाजार मेें भारतीय वस्त्र उद्योग
z ग्रामीण क्षेत्र: वस्त्र उद्योग भी ग्रामीण निवासियोों के लिए रोजगार की प्रतिस््पर््धधात््मकता बढ़़ाने के लिए, RoSCTL योजना को
के सबसे महत्तत्वपर्ू ्ण स्रोतोों मेें से एक है। परिधान/परिधान और मेड-अप के निर््ययात के लिए बढ़़ा दिया
z पीएलआई योजना: सितंबर 2021 मेें कपड़़ा क्षेत्र के लिए गया है।
स््ववीकृ त प्रोडक््शन लिंक््ड इसें ेंटिव (पीएलआई) योजना से z पीएम मित्र (MITRA) योजना: सात प्रधानमत्री ं मेगा
सीधे लगभग 7.5 लाख नए रोजगार पैदा होने और सहायक इटं ीग्रेटेड टेक््सटाइल रीजन एँड अपैरल (पीएम मित्र) पार््क की
गतिविधियोों के माध््यम से कुछ और लाख रोजगार पैदा होने स््थथापना।
की उम््ममीद है। z ATUFS - सश ं ोधित प्रौद्योगिकी उन््नयन निधि योजना:
z अप्रचलित उपकरण: भारत मेें केवल 18 से 20% करघे इसे वस्त्र उद्योग के प्रौद्योगिकी उन््नयन के लिए वर््ष 2015 मेें
सरकारी पहल

स््वचालित हैैं, जबकि नॉर्वे मेें 83 से 76%, ऑस्ट्रेलिया मेें शरू ु किया गया था।
70 से 70%, पाकिस््ततान मेें 60% और चीन मेें 45 से 50% z एसआईटीपी - इटं ीग्रेटे ड टे क््सटाइल पार्ककों के लिए
स््वचालित हैैं। योजना: क््लस््टर दृष्टिकोण के साथ छोटी और मध््यम इकाइयोों
z कच््चचे कपास की कमी: कच््चचा कपास दर््ल ु भ है और माँग को को विश्व स््तरीय अत््ययाधनि ु क बनि ु यादी ढाँचा सवु िधाएँ प्रदान
परू ा करने के लिए कभी भी पर््ययाप्त नहीीं रहा है। करना।
z निम््न श्रम उत््पपादकता: भारत मेें एक श्रमिक आम तौर पर दो z समर््थ- वस्त्र क्षेत्र मेें क्षमता निर््ममाण के लिए योजना: इस
करघोों का प्रबंधन करता है, जबकि जापान मेें तीस और संयक्त ु योजना का उद्देश््य वस्त्र क्षेत्र मेें कुशल श्रमिकोों की कमी को
समस््यया

राज््य अमेरिका मेें साठ करघे का प्रबंधन करता है। दरू करना है।
z हड़तालेें: औद्योगिक क्षेत्र मेें श्रम विवाद प्रचलित हैैं, लेकिन z पीएलआईएस - उत््पपादन से जुड़़ी प्रोत््ससाहन योजना: इस
नियमित श्रमिकोों की हड़तालोों के परिणामस््वरूप सतू ी वस्त्र उद्योग योजना का उद्देश््य उन उद्योगोों को बढ़़ावा देना है जो मानव
को काफी नक ु सान होता है। निर््ममित फाइबर परिधान, मानव निर््ममित फाइबर कपड़़े और
z कपास की बढ़ती कीमतेें: वर््ष 2022-23 हेतु कपास का तकनीकी वस्त्र खडोों ं के उत््पपादन मेें निवेश करते हैैं।
न््ययूनतम समर््थन मल्ू ्य (MSP) मध््यम स््टटेपल के लिए रु.6080/ वस्त्र क्षेत्र के लिए आगे की राह
क््ववििंटल और लॉन््ग स््टटेपल के लिए रु. 6380/क््ववििंटल तय किया z क्षमता निर््ममाण: उच््च प्रयोज््य आय मजबतू आर््थथिक विकास का परिणाम
गया है। है। उत््पपाद की माँग मेें वृद्धि के परिणामस््वरूप एक विशाल घरेलू बाजार तैयार
z व््ययापक नेटवर््क : छोटे और बड़़े निर््ममाताओ,ं निर््ययातकोों और हो गया है। कर््मचारियोों और व््यवसाय मालिकोों के कौशल और क्षमताओ ं का
व््ययापारियोों के अपने व््ययापक नेटवर््क के कारण, भारतीय कपड़़ा निर््ममाण करना आवश््यक और जरूरी है।
क्षेत्र काफी प्रतिस््पर््धधात््मक है। मूल््य वर््धधित सेवाओ ं मेें निवेश: इस क्षेत्र के विकास के लिए मल्ू ्य वर््धधित
वैश्विक व््ययापार मेें

z
बढ़ता महत्तत्व

z स््थथानीय विनिर््ममाण को प्रोत््ससाहन : "मेक इन इडि ं या", सेवाओ,ं जैसे विपणन, गोदाम किराये, शिपिंग, कूरियर और अन््य उत््पपाद पर््तति ू
"आत््मनिर््भर भारत" और प्रदर््शन आधारित प्रोत््ससाहन लागतोों मेें निवेश की आवश््यकता है।
(पीएलआई) पहल, जो स््थथानीय विनिर््ममाण को प्रोत््ससाहित z आधुनिकीकरण: उत््पपादन को बढ़़ावा देना, लागत बचाना, कई कार्ययों मेें
करने और निर््ययात बढ़़ाने का प्रयास करती हैैं, ने भी उद्योग जनशक्ति को तर््क संगत बनाना, कम रखरखाव और क्षेत्र की ऊर््जजा दक्षता मेें
की मदद की है। सधु ार करना आवश््यक है।

प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक क्षेत्र के उद्योगो 53


z अनुसध ं ान एवं विकास: सरकारी अनसु ंधान एवं विकास संगठनोों और पश्चिम बंगाल के अलावा, जूट मिलेें बिहार मेें पूर््णणिया, कटिहार, समस््ततीपुर,
शैक्षणिक संस््थथानोों को व््यवसायोों के साथ अधिक निकटता से काम करना दरभंगा और गया, छत्तीसगढ़ मेें रायगढ़, उड़़ीसा मेें कटक और आंध्र प्रदेश मेें
चाहिए और अनसु ंधान एवं विकास मेें संलग््न होना चाहिए जो सतू ी वस्त्र उद्योग गंटु ू र, विशाखापट्टनम, नेल््ललीमारला, चेलिवेल््ससा, एबुरु और ओगं ोल मेें स््थथित हैैं।
की बदलती माँगोों के लिए अधिक प्रासगि ं क है। त्रिपुरा और असम मेें एक-एक जूट मिल है।
z न््ययूनतम समर््थन मूल््य (MSP) योजना का पुनर््गठन: यदि बाजार दरेें
पश्चिम बंगाल के लिए अनुकूल स्थिति
न््ययूनतम समर््थन मल्ू ्य (MSP) से नीचे चली जाती हैैं, तो सब््ससिडी के प्रत््यक्ष
हस््तताांतरण की योजना बनाई जा सकती है, तो सरकार कम पैसा खर््च करे गी z तापमान: जटू 25 से 35 °C के बीच तापमान के साथ गर््म, आर्दद्र जलवायु
की माँग करता है।
और कपास किसानोों को उतनी ही राहत मिलेगी।
z वर््षषा: पश्चिम बंगाल मेें औसत वार््षषिक वर््षषा लगभग 150-250 सेमी होती
z बाजार सबं ंधी रणनीति: कपास क्षेत्र को उच््च कीमतेें निर््धधारित करनी चाहिए, है, जो फसल की वृद्धि के लिए पर््ययाप्त है। जटू उत््पपादन के लिए पर््ययाप्त
विशेष उत््पपादोों और बाजारोों को लक्षित करना चाहिए और अधिक मल्ू ्य-वर््धधित वर््षषा आवश््यक है।
बाजारोों के लिए उत््पपादोों को फिर से डिजाइन करना चाहिए। सतत विकास z मृदा: जटू उपजाऊ, जलोढ़ मृदा पर पनपता है जिसमेें कार््बनिक पदार््थ की
के लिए, इसे क्षेत्रीय और क््लस््टर सब््ससिडी, प्रौद्योगिकी उन््नयन और प्रतिभा मात्रा अधिक होती है और जल बनाए रखने की अच््छछी क्षमता होती है।
विकास सब््ससिडी पर भी ध््ययान केें द्रित करना होगा। z भूमि: जटू को ऐसे भभू ाग की आवश््यकता होती है जो समतल या धीमेें
निष्कर््ष ढाल वाला, अच््छछी जल निकासी वाला और उच््च जल धारण क्षमता वाला
हो। पश्चिम बंगाल राज््य मेें नहरोों और जलाशयोों का एक व््ययापक नेटवर््क
z स््ककिल इडियं ा, मेक-इन-इडिय ं ा और आत््मनिर््भर भारत जैसे कार््यक्रमोों है जो सिंचाई को संभव बनाता है, और इसके डेल््टटा मैदान जटू की खेती
के साथ-साथ विदेशी कंपनियोों के लिए भारत मेें प्रबंधन परामर््श फर्ममों के के लिए अच््छछी तरह से अनक ु ू लित हैैं।
निरंतर विकास और विकास से भारतीय कपड़़ा उद्योग के विकास मेें सहायता z श्रम: जटू की खेती के लिए बहुत अधिक श्रम की आवश््यकता होती है,
मिल रही है। यदि कुशल जनशक्ति और अपने उत््पपादोों के लिए एक अच््छछा विशेषकर फसल और प्रसस्ं ्करण के दौरान।
बाजार उपलब््ध हो तो कपड़़ा उद्योग वैश्विक बाजार मेें प्रतिस््पर्धी बन जाएगा।
भारत की जूट अर््थव््यवस््थथा लड़खड़़ा रही है जबकि बांग््ललादेश की
वैश्विक दिग््गजोों के लिए उचित बाजार प्रवेश रणनीतियोों के साथ, भारतीय अर््थव््यवस््थथा फल-फूल रही है
कपड़़ा उद्योग का भविष््य मजबतू है, जो मजबतू घरेलू और निर््ययात माँग दोनोों z कृषि लागत और मूल््य आयोग (CACP) की वर््ष 2021 की रिपोर््ट के
से प्रेरित है। अनसु ार, 2000-01 और 2009-10 के बीच, देश मेें जटू के तहत औसत क्षेत्र
जूट उद्योग 0.82 मिलियन हेक््टटेयर था। 2010-11 और 2019-20 के बीच यह घटकर
0.73 मिलियन हेक््टटेयर हो गया।
z जलवायु परिस््थथिति: जटू उगाने के लिए गर््म और आर्दद्र क्षेत्र सबसे उपयक्त ु भारतीय मामला बांग््ललादेश मामला
होते हैैं। 80 से 90% की उच््च आर्दद्रता का स््तर, 120 से 150 सेेंटीमीटर की z गिरती कीमतेें : 2000 के दशक z लाभप्रद स््थथिति: उत््पपादन की कम
पर््ययाप्त वर््षषा और 24 से 35 °C के बीच का तापमान जरूरी होता है। के अतं मेें यह 30,000-40,000 लागत, जो कम वेतन, अनक ु ूल
z उत््पपादन: जटू उत््पपादोों का सबसे बड़़ा उत््पपादक भारत है। हालांकि, क्षेत्रफल और रुपये प्रति टन से घटकर 2010- विद्युत दरोों, निर््ययात के लिए नकद
व््ययापार के मामले मेें बांग््ललादेश आगे है, जो वैश्विक जटू निर््ययात का तीन-चौथाई 2011 मेें 25,000 रुपये प्रति टन सब््ससिडी और बेहतर फाइबर
हिस््ससा अपने नाम करता है, जबकि भारत का योगदान 7% है। हो गई। इससे मश््ककिल
ु से लागत गणव
ु त्ता से प्रेरित है।
निकल पाती थी। z बेहतर गुणवत्ता: भारत के जट ू
z रोजगार: यह कंपनी लगभग 40 लाख कृ षक परिवारोों का समर््थन करती है
z केें द्रीय खरीद: 90% जट ू tकी उत््पपादन को संघर््ष करना पड़ रहा
और 1.4 लाख तृतीयक श्रमिकोों और 2.6 लाख विनिर््ममाण श्रमिकोों को सीधे बोरियाँ भारतीय खाद्य निगम और है, विशेषकर गणव ु त्ता को लेकर।
रोजगार देती है। राज््य खरीद संगठनोों को दी जाती भारत का जटू उद्योग अपर््ययाप्त सधु ार
z उत््पपादन की प्रक्रिया: जटू उद्योग की उत््पपादन प्रक्रिया मेें कई चरण शामिल हैैं, जबकि शेष 10% का निर््ययात अवसंरचना से ग्रस््त है, जो फसल
हैैं, जैसे जटू फाइबर की तैयारी, कताई, बनु ाई, ब््ललीचिगं , रंगाई, परिष््करण और या सीधे बिक्री कर दी जाती है। कटाई के बाद एक चरण होता है।
कच््चचे माल और इसके तैयार उत््पपादोों दोनोों का विपणन। z भारत की हिस््ससेदारी: CACP z विभिन््न सब््ससिडी: बांग््ललादेश मेें

z अधिकांश जटू मिलेें और उत््पपादन, कुल उत््पपादन का 80% से अधिक, पश्चिम शोध के अनसु ार, वैश्विक जटू तीन से चार विभिन््न प्रकार की
निर््ययात मेें भारत की हिस््ससेदारी सब््ससिडी है, जो उसे निर््ययात बाजार
बंगाल मेें स््थथित हैैं।
बमश््ककिल
ु 7% है, जबकि मेें अच््छछा प्रदर््शन करने मेें मदद
z परू े उद्योग का 10% आंध्र प्रदेश मेें और शेष उत्तर प्रदेश और बिहार मेें होने बांग््ललादेश की हिस््ससेदारी लगभग करती है।
के कारण, यह क्षेत्र पश्चिम की ओर फै ल गया है। 75% है। z विविधीकरण: देश की सफलता
z अधिकांश जटू मिलेें कलकत्ता के 64 किलोमीटर के दायरे मेें हुगली नदी z खे ती का घटता क्षेत्रफल: का एक अन््य कारक विविध जटू
के किनारे एक छोटी, 100 किलोमीटर लंबी पेटी तक ही सीमित हैैं। यह पेटी 2019-20 मेें यह घटकर 0.73 उत््पपादोों के बाजार पर कब््जजा है,
केवल 3 किमी चौड़़ी है। मिलियन हेक््टटेयर रह गया। जिसका एक बड़़ा बाजार है।

54  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


जूट उद्योग के समक्ष चुनौतियाँ सरकारी पहल चीनी उद्योग
z कच््चचा माल: अधिकांश जट ू z एटं ी-डपिं ंग शुल््क: वर््ष 2017
उत््पपादक क्षेत्र बांग््ललादेश चले मेें, भारत ने अपने स््थथानीय जटू भारत मेें चीनी व््यवसाय गन््नने का उपयोग करता है, जो एक भारी, कम मल्ू ्य
गए जिसके परिणामस््वरूप कच््चचे उद्योग की सरु क्षा के लिए एक वाला, जल््ददी खराब होने वाला कच््चचा माल है। कोई भी फसल जो चीनी पैदा
माल की भारी कमी हो गई। सरं क्षणवादी एटं ी-डपि ं ंग शुल््क करती है, जैसे चक ु ं दर या गन््नना, का उपयोग चीनी बनाने के लिए किया जा
इसलिए गणव ु त्तापर्ू ्ण कच््चचे जटू की लगाया। सकता है। दसू री ओर, भारत मेें चीनी का मख्ु ्य स्रोत गन््नना है। सूती वस्त्र उद्योग
उपलब््धता और रकबा घट रहा है। z जूट स््ममार््ट : यह जटू उत््पपादोों की के बाद यह दनि ु या का दसू रा सबसे बड़़ा कृ षि क्षेत्र है।
z अप्रचलित मशीनरी: अधिकांश खरीद के लिए एक मचं प्रदान
तथ्यानुसार
मिलेें परु ानी हैैं जिनमेें अप्रचलित करता है और जटू क्षेत्र मेें पारदर््शशिता
मशीनरी लगी है जिसके को बढ़़ावा देता है। z उत््पपादन: चीनी सीजन (अक््टटूबर-दिसंबर) 2021-22 मेें भारत दनि ु या के
परिणामस््वरूप कम उत््पपादकता सबसे बड़़े चीनी उत््पपादक और उपभोक्ता के साथ-साथ ब्राजील के बाद
z जूट आईके यर (Jute ICARE):
और निम््न गणव ु त्ता का उत््पपादन यह किसानोों को प्रमाणित बीज, दनि
ु या का दसू रा सबसे बड़़ा चीनी निर््ययातक बनकर उभरा है।
होता है और आधनि ु कीकरण समय-समय पर होने वाली शादियोों z खपत: घरेलू माँग लगभग 27 मिलियन टन प्रतिवर््ष है। गन््नने का उपयोग
तकनीक के अपर््ययाप्त प्रयास होते हैैं। के लिए नेल वीडर और लाइन मेें चीनी के अलावा इथेनॉल बनाने के लिए भी किया जाता है।
z बांग््ललादेश मेें उन््नत तकनीक बआ ु ई की सवु िधा के लिए बीज z रोजगार: चीनी उद्योग एक महत्तत्वपर्ू ्ण कृ षि-आधारित व््यवसाय है जिसमेें
वाली नव स््थथापित जटू मिलेें ड्रिल प्रदान करके मदद करता है। 50 मिलियन गन््नना किसान और लगभग 5 लाख चीनी मिलोों मेें सीधे तौर
भारतीय जटू उत््पपादोों की तलन ु ा मेें z सरकार ने 100% खाद्यान््न और पर कार््यरत कर््मचारी हैैं।
सस््तती दर पर बेहतर गणव ु त्ता वाले 20% चीनी की पैकेजिंग जूट
जटू उत््पपाद तैयार करती हैैं। की बोरियोों मेें करना अनिवार््य चीनी उत््पपादन के लिए भौगोलिक परिस््थथितियाँ:
z तापमान: 21-27°C के बीच
z बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ: कर दिया है।
विद्युत, परिवहन और पंजू ी भी z एमएसपी: किसानोों को जटू की z जलवायु: गर््म और आर्दद्र जलवाय.ु

जटू उद्योग की स््थथिरता के लिए खेती के लिए प्रोत््ससाहित करने के स््थथानीय कारक z वर््षषा: लगभग. 75-100 सेमी.
कई खतरे पैदा करते हैैं। लिए जटू को एमएसपी व््यवस््थथा मेें z मृदा: गहरी समृद्ध दोमट मिट्टी।
z ऊँ ची कीमतेें : मिलेें कच््चचे जट ू को शामिल किया गया है। z शीर््ष गन््नना उत््पपादक राज््य: महाराष्टट्र >
प्रसंस््करण के बाद जिस कीमत पर z जूट जियो-टे क््सटाइल््स उत्तर प्रदेश > कर््ननाटक
बेच रही हैैं उससे अधिक कीमत पर (JGT): इसे तकनीकी वस्त्र
चीनी उद्योग मेें सघनता के दो प्रमुख क्षेत्र हैैं-
खरीद रही हैैं। मिशन के तहत शामिल किया
z उत्तर: उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा।
z जूट फाइबर की खराब गया है। जेजीटी सबसे महत्तत्वपर्ू ्ण
गुणवत्ता: चक्रवात अम््फफान, विविधीकृ त जटू उत््पपादोों मेें से एक z दक्षिण: महाराष्टट्र, कर््ननाटक, तमिलनाडु।
बाढ़ जैसी प्राकृ तिक आपदाओ ं है। इसे सिविल इजं ीनियरिंग, मृदा z महाराष्टट्र: यप ू ी को पछाड़कर शीर््ष स््थथान पर
के कारण खेतोों मेें जल जमाव हो अपरदन नियंत्रण, सड़क फुटपाथ पहुचँ गया है। महत्तत्वपर्ू ्ण केें द्र अहमदनगर
जाता है। इससे किसान समय से निर््ममाण और नदी तटोों की सरु क्षा और कोल््हहापरु हैैं।
पहले ही फसल काट लेते हैैं। जैसे कई क्षेत्ररों मेें लागू किया जा z उत्तर प्रदेश: यहाँ महाराष्टट्र की तलन ु ा मेें
सकता है। अधिक चीनी मिलेें हैैं लेकिन वे आकार
भौगोलिक वितरण
जूट व््यवसाय को ग्रीन की बढ़ती वैश्विक माँग के चलते नया सहारा मेें छोटी हैैं इसलिए उत््पपादन महाराष्टट्र की
मिला है। तलन ु ा मेें कम है। महत्तत्वपर्ू ्ण केें द्र मेरठ और
z सद ं र््भ: भारतीय जटू मिल््स एसोसिएशन के अनसु ार, बड़़े ब््राांड प्रत््ययेक वर््ष गोरखपरु हैैं।
1,000 करोड़ रुपये से अधिक के शॉपिगं बैग खरीदते हैैं। z तमिलनाडु: इसने प्रति एकड़ गन््नने की उच््च

z क््ववाांटम जंप: भारत के जट ू बैग निर््ययात का मल्ू ्य 2016 मेें लगभग 350 उत््पपादकता, उच््च सक्रो ु ज सामग्री, उच््च
करोड़ रुपये था, लेकिन हाल ही मेें समाप्त वित्तीय वर््ष 2021 के अतं तक, पनर्प्राप्ति
ु दर और लंबे पेराई सत्र को दिखाया
यह राशि लगभग तीन गनु ा बढ़कर 1,000 करोड़ रुपये हो गई है। है जिसने इसे भारत मेें सबसे अधिक उपज
z नोट: जट ू के शॉपिगं बैग का जीवनकाल प््ललास््टटिक के बैग की तलन ु ा मेें प्राप्त करने मेें सक्षम बनाया है। महत्तत्वपर्ू ्ण केें द्र
600 गनु ा अधिक होता है। कोयंबटूर, करूर हैैं।

प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक क्षेत्र के उद्योगो 55


महाराष्टट्र फिर से शीर््ष चीनी उत््पपादक के रूप मेें उभरकर उत्तर प्रदेश से आगे
निकल गया रंगराजन समिति का फार््ममूला
z प्रचुर जल आपूर््तति : गन््नना एक ऐसी फसल है जिसके z इसकी स््थथापना वर््ष 2012 मेें चीनी व््यवसाय को विनियमित करने के लिए
लिए बहुत अधिक जल की आवश््यकता होती है, सझु ाव देने के लिए की गई थी।
जिसे महाराष्ट्रीयन किसान वर््षषा, जलाशयोों, नहरोों की z चीनी आयात और निर््ययात पर मात्रात््मक नियंत्रण का उन््ममूलन; उपयक्त ु टैरिफ
महाराष्टट्र प्रणाली और भजू ल के माध््यम से सफलतापर््वू क प्राप्त के साथ उनका प्रतिस््थथापन।
के विशाल कर रहे थे। z मिलोों को खोई से उत््पन््न ऊर््जजा का उपयोग करने मेें सक्षम बनाने के लिए
चीनी उत््पपादन राज््योों को अपने काननोों
z गन््नने का उत््पपादन कम बताया जाना: महाराष्टट्र के ू मेें बदलाव करना चाहिए।
के पीछे के
वास््तविक गन््नना उत््पपादन की स््थथिति के बारे मेें दी गई  समिति ने चीनी और अन््य उप-उत््पपादोों की कीमत को ध््ययान मेें रखते
कारक
जानकारी परू ी तरह से सही नहीीं थी। अतं मेें, इससे हुए गन््नना मल्ू ्य तय करने का एक फॉर््ममूला सझु ाया है।
गन््नने की खेती के लिए उपयोग किए जाने वाले क्षेत्र  यदि फॉर््ममूला-आधारित गन््नने की कीमत सरकार द्वारा उचित भग ु तान के
मेें 11.42 लाख से 12.4 लाख हेक््टटेयर की वृद्धि हुई। रूप मेें मानी जाने वाली कीमत से नीचे चली जाती है तो सरकार उपकर
z इथेनॉल के लिए डायवर््जन: क््योोंकि उत्तर प्रदेश की शल्ु ्क के माध््यम से एक समर््पपित निधि बनाकर अतं र को पाट सकती है।
गन््नने की फसल का एक महत्तत्वपर्ू ्ण हिस््ससा इथेनॉल  केें द्र सरकार के अनस ु ार, किन््हीीं दो चीनी मिलोों के बीच न््ययूनतम 15
उद्योग मेें स््थथानांतरित कर दिया गया था, उत्तर प्रदेश किमी की रे खीय दरू ी होनी चाहिए।
देश मेें इथेनॉल के शीर््ष उत््पपादक के रूप मेें उभरा है।  निष््कर्षषों के आधार पर, कृ षि लागत और मल् ू ्य आयोग (CACP) ने
z अत््यधिक वर््षषा: उत्तर प्रदेश राज््य मेें अत््यधिक वर््षषा गन््नना मल्ू ्य निर््धधारण के लिए एक हाइब्रिड रणनीति की सिफारिश की
उत्तर प्रदेश मेें और जलभराव की समस््यया के कारण गन््नने की फसल जिसमेें उचित और लाभकारी मल्ू ्य (FRP) शामिल है।
चीनी उत््पपादन को भारी नक ु सान हुआ।
कम होने का सरकारी पहल
कारण z एकल किस््म का उपयोग: उत्तर प्रदेश के गन््नना क्षेत्र
(87%) की अधिकांश भमू ि पर एक ही प्रकार का गन््नना z इथेनॉल उत््पपादन को प्रोत््ससाहन: चीनी मिलोों को अपना परिचालन बनाए
(Co- 0238) उगाया जाता है। इस गन््नने की किस््म की रखने मेें मदद करने के लिए, सरकार ने उनसे अतिरिक्त चीनी को इथेनॉल
पैदावार अधिक नहीीं होती है। उत््पपादन मेें स््थथानांतरित करने और शेष चीनी का निर््ययात करने का आग्रह
z फंगल रोग: गन््नने की फसल पर फंगस लाल सड़न किया है।
(red rot) का प्रतिकूल प्रभाव उत्तर प्रदेश के घटते z पेट्रोल के साथ इथेनॉल मिश्रण (ईबीपी) कार््यक्रम: जैव ईधन ं पर राष्ट्रीय
गन््नना उत््पपादन का एक प्रमखु कारण है। नीति 2018 के अनसु ार, इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार््यक्रम का इथेनॉल
मिश्रण के लिए सझु ाया गया लक्षष्य वर््ष 2025 तक 20% है।
चीनी उद्योग का महत्त्व z उचित और लाभकारी मूल््य (एफआरपी): चीनी किसानोों की सहायता
z एकाधिक कड़़ियाँ: गन््नने की खेती से लेकर चीनी और शराब के उत््पपादन करने और उनके बकाया गन््नना ऋणोों का भगु तान करने के लिए, केें द्र सरकार
तक, चीनी उद्योग काफी हद तक श्रम पर निर््भर करता है। यह उत्तर प्रदेश, ने 2019-20 वित्तीय वर््ष के लिए चीनी के न््ययूनतम बिक्री मल्ू ्य (एमएसपी)
महाराष्टट्र, तमिलनाडु, कर््ननाटक और कई अन््य राज््योों के कई जिलोों मेें रोजगार को रु 29 से रु 31 तक बढ़़ाने पर सहमति व््यक्त की है।
का प्राथमिक स्रोत है। z राज््य सलाहकृत मूल््य (SAP): केें द्र सरकार द्वारा एफआरपी निर््धधारित किए
z उप-उत््पपाद: गन््नने को प्राथमिक कच््चचे माल के रूप मेें उपयोग करके , निर््ममाता जाने के बावजदू राज््य सरकारेें एक राज््य सलाहकृ त मल्ू ्य निर््धधारित करने मेें
अब चीनी, इथेनॉल, कागज, ऊर््जजा आदि का उत््पपादन कर सकते हैैं। सक्षम हैैं जो एक चीनी मिल को किसानोों को देना होगा।
z पशुओ ं को खिलाने के लिए: अपने महान पोषण मल्ू ्य के कारण, गन््नने कर्नाटक HC: इथेनॉल विनिर्माण इकाई को चीनी कारखाने के 15
के गड़ु का उपयोग मवेशियोों को खिलाने और शराब के निर््ममाण दोनोों के किलोमीटर के दायरे मेें स्थापित नहीीं किया जा सकता है
लिए किया जाता है। z चीनी फै क्ट्री के 15 किमी के दायरे मेें इथेनॉल निर््ममाण इकाई स््थथापित नहीीं
z जैव ईधन:ं गन््नना गड़ु , जो चीनी उत््पपादन का एक उप-उत््पपाद है, का उपयोग की जा सकती है। काननू ी बदलावोों के परिणामस््वरूप, केवल इथेनॉल का
भारत मेें खपत होने वाले अधिकांश इथेनॉल को बनाने के लिए किया उत््पपादन करने वाले कारखाने को अब "चीनी कारखाना" भी कहा जाता
जाता है। है, और पहले से मौजदू कारखाने के 15 किलोमीटर के दायरे मेें एक और
z खोई: खोई का प्राथमिक उपयोग अभी भी ईधन ं के रूप मेें होता है। हालाँकि, "चीनी कारखाना" बनाने पर काननू का निषेध अभी भी ऐसे प्रतिष्ठानोों पर
यह कागज उद्योग के लिए एक अच््छछा कच््चचा माल भी बनता है। लागू होता है।

56  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z कर््ननाटक उच््च न््ययायालय ने 1966 और 2021 के बीच गन््नना (नियंत्रण) z ईधनं दक्षता: जीवाश््म ईधन ं कुछ जैव ईधन ं की तलनु ा मेें
आदेश की शर्ततों की जाँच के बाद निर््धधारित किया कि 2021 से शरू
ु होकर, अधिक ऊर््जजा पैदा करते हैैं।
केवल चीनी या इथेनॉल मेें से किसी का भी उत््पपादन इस काननू के प्रयोजनोों z अनियमित उत््सर््जन: अनियमित कार्बोनिल उत््सर््जन, जैसे
के लिए "कारखाना या चीनी कारखाना" के रूप मेें अर््हता प्राप्त करने के एसीटैल््डडिहाइड उत््सर््जन, सामान््य पेट्रोल की तलनु ा मेें E10
लिए आवश््यक था। और E20 के साथ अधिक था।
आगे की राह z जल का उपयोग: गन््नने की फसल की उचित सिचं ाई के
z गन््नना मानचित्रण: भारत मेें जल, खाद्य और ऊर््जजा क्षेत्ररों मेें गन््नने के महत्तत्व के लिए भारी मात्रा मेें जल की आवश््यकता होती है।
बावजदू , हाल के वर्षषों और समय श्ख रं ला मेें कोई विश्वसनीय गन््नना मानचित्र z महँगा: ये ईधन ं हालाँकि स््वच््छ होते हैैं लेकिन ईधन
ं टैैंक

चुनौतियाँ
नहीीं हैैं। इस प्रकार, गन््नना क्षेत्ररों के मानचित्रण के लिए रिमोट सेेंसिंग प्रौद्योगिकियोों और वितरण उपकरणोों से इनका वाष््पपीकरण उत््सर््जन अधिक
को तैनात करने की आवश््यकता है। होता है। जिससे वे महगं े हो गए हैैं।
z नवाचार: गन््नने मेें अनसु ंधान और विकास कम उपज और कम चीनी रिकवरी z विनियामक स््ववीकृति: वर््तमान मेें, इथेनॉल उत््पपादन संयंत्र/
दर जैसे मद्ददों
ु का समाधान करने मेें मदद कर सकता है। उदाहरण के लिए, डिस््टटिलरियाँ "लाल श्रेणी" के अतं र््गत आती हैैं और नई और
2016-17 मेें, उत्तर प्रदेश (यपू ी) मेें उपयोग के लिए गन््नने की एक नई किस््म विस््ततार परियोजनाओ ं के लिए वायु और जल अधिनियम के
(सीओ 238) विकसित की गई थी। तहत पर््ययावरण मजं रू ी की आवश््यकता होती है।
z इथेनॉल विकल््प: यदि इथेनॉल विकल््प- 'ऑटो ईधन ं के रूप मेें उपयोग के z अनाज की उपलब््धता: सब््ससिडी वाले खाद्यान््न के
लिए पेट्रोल के साथ इथेनॉल का मिश्रण' ठीक से लागू किया जाता है, तो यह लिए डिस््टटिलरी और सार््वजनिक वितरण प्रणाली के बीच
चीनी मिलोों को आवश््यक नकदी प्रवाह प्रदान करे गा, किसानोों के लिए बेहतर प्रतिस््पर््धधा के प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैैं।
कीमतेें सनिश्ु चित करे गा, भारत की ऊर््जजा सरु क्षा को बढ़़ाएगा और प्रदषू ण को
तथ्य
कम करे गा।
z पिछले 10 वर्षषों मेें, चीनी मिलोों ने इथेनॉल की बिक्री से 94,000 करोड़
z चीनी का मूल््य निर््धधारण: इस संदर््भ मेें, रंगराजन समिति ने चीनी और अन््य
रुपये से अधिक का राजस््व अर््जजित किया है, जिससे चीनी मिलोों की आय
उप-उत््पपादोों की कीमत को ध््ययान मेें रखते हुए गन््नने की कीमतेें तय करने के
मेें बढ़ोत्तरी हुई है।
लिए एक राजस््व साझेदारी फॉर््ममूला का सझु ाव दिया है।
z इथेनॉल के उत््पपादन से पेट्रोलियम या कच््चचे तेल के आयात मेें आनपु ातिक
इथेनॉल सम्मिश्रण कार््यक्रम कमी आई है जिसके परिणामस््वरूप भारत के लिए विदेशी मद्रा ु की बचत
z ऊर््जजा सरु क्षा: चीन और अमेरिका के बाद भारत दनि ु या मेें हुई है। 2022-23 मेें, लगभग 502 करोड़ लीटर इथेनॉल के उत््पपादन के
ऊर््जजा का तीसरा सबसे बड़़ा उपभोक्ता है। इथेनॉल कुछ हद साथ, भारत ने लगभग ₹ 24,300 करोड़ की विदेशी मद्रा ु बचाई है और
भारत की ऊर््जजा सरु क्षा मेें सधु ार हुआ है।
तक ऊर््जजा आत््मनिर््भरता सनिश्
ु चित करे गा।
z कृषि क्षेत्र के लिए समर््थन: इससे चीनी मिल मालिकोों आगे की राह
को किसानोों को गन््नने के लिए उनके लंबित एफआरपी का z वाहन निर््ममाताओ ं को भविष््य के लिए तैयार करना: उद्योग और पेट्रोल पंप
भगु तान करने मेें मदद मिलेगी। को E85 और E100 जैसे अगले प्रयासोों के लिए तैयार किया जाना चाहिए।
z पारिस््थथितिक लाभ: इस ईधन ं मेें वायमु डं ल से हानिकारक z कचरे से बने इथे नॉल पर फिर से ध््ययान केें द्रित करना: यदि भारत कचरे से

ग्रीनहाउस गैसोों को कम करने की क्षमता है। बने इथेनॉल पर फिर से ध््ययान केें द्रित करना चनु ता है तो उसके पास टिकाऊ
z उद्यमशीलता का अवसर: यदि पेट्रोल की खपत मौजदू ा जैव ईधनं नीति मेें वैश्विक नेतृत््वकर््तता बनने का एक वास््तविक अवसर है।
महत्तत्व

z जल-अनुकूल फसलेें : नई इथेनॉल नीति को यह सनिश् ु चित करना चाहिए कि


गति से बढ़ती रही तो वर््ष 2030 मेें 20% मिश्रण लक्षष्य को
यह किसानोों को जल-गहन फसलोों की ओर न ले जाए और ऐसे देश मेें जल
परू ा करने के लिए भारत को सालाना 10 बिलियन लीटर
संकट पैदा न करे जहाँ इसकी कमी पहले से ही गंभीर है।
इथेनॉल की आवश््यकता होने की उम््ममीद है।
सरकार ने वर््ष 2022 तक विनिर््ममाण क्षेत्र की विकास दर को दोगुना करने
z प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन: बायोएथेनॉल का उत््पपादन
का लक्षष्य रखा है जिसके लिए विदेशी निवेश, 'उद्योग 4.0' जैसी नवीनतम
सामान््य रूप से फलोों और सब््जजियोों के अपशिष्ट, फसल के तकनीकोों को बढ़़ावा देना और सरकारी योजनाओ ं के प्रभावी कार््ययान््वयन की
अवशेष, लकड़़ी के गदू ,े पशु अपशिष्ट या कचरे से किया आवश््यकता है: भारत को संभावित जनसांख््ययिकीय लाभांश प्राप्त है। कुशल
जा सकता है। मानव पूंजी के साथ अर््थव््यवस््थथा और बुनियादी ढाँचे के विकास मेें
z किसानोों की आय मेें वद्धि ृ : इथेनॉल उत््पपादन किसानोों के संरचनात््मक सुधार आत््मनिर््भर भारत के लक्षष्य को पूरा करने के लिए एक
लिए आय के स्रोत मेें विविधता ला सकता है। जीत की स््थथिति बनाएँगे।

प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक क्षेत्र के उद्योगो 57


तृतीयक क्षेत्र z कौशल अंतराल और कार््यबल विकास: कार््यबल के पास
मौजदू कौशल और सेवा क्षेत्र द्वारा माँगे गए कौशल के बीच
z तृतीयक क्षेत्र सेवा क्षेत्र से संबंधित है। अधिकांश तृतीयक कार््य सलाहकारोों, एक महत्तत्वपर्ू ्ण अतं र मौजदू है।
औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त पेशेवरोों और कुशल कार््यबल द्वारा किए जाते हैैं।
z बुनियादी ढाँचे की कमी: हालाँकि प्रगति हो रही है, कई क्षेत्ररों
z तृतीयक क्षेत्र या सेवा क्षेत्र विभिन््न प्रकार की सेवाएँ प्रदान करता है, जिनमेें मेें अभी भी मजबतू डिजिटल अवसंरचना की कमी है, जिससे
यात्रा, बैैंकिंग, बीमा, शिक्षा, व््ययापार, परिवहन और संचार शामिल हैैं। यह कच््चचे आईटी, ई-कॉमर््स और दरू संचार जैसे क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैैं।
माल के बजाय तैयार और अतिम ं वस््ततुओ ं से संबंधित होता है। z विनियामक और नीतिगत बाधाएँ: भारत के विनियामक ढाँचे

चुनौतियाँ
तथ्य के माध््यम से नेविगेट करना बोझिल हो सकता है, जटिल और
z सेवाओ ं के उत््पपादन के मामले मेें भारत दनि ु या का पंद्रहवाँ सबसे बड़़ा अक््सर बदलते काननोों ू के कारण व््यवसायोों पर असर पड़ता है।
देश है। z प्रतिस््पर््धधा और बाजार सतं ृप्ति: आईटी और खदु रा जैसे क्षेत्ररों
z रोजगार: यह क्षेत्र 23% कार््यबल को रोजगार प्रदान करता है और 1991- को घरेलू एवं वैश्विक स््तर पर तीव्र प्रतिस््पर््धधा का सामना करना
2000 मेें 7.5% की वृद्धि दर के साथ सबसे तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र है। पड़ता है, जिससे कीमतोों और मार््जजिन पर दबाव पड़ता है।
z तृतीयक क्षेत्र उत््पपादकता बढ़़ाने के लिए वैज्ञानिक अनुसध ं ान और z तकनीकी व््यवधान: तीव्र तकनीकी परिवर््तन: प्रौद्योगिकी मेें
नवीन विकास पर निर््भर करता है। विकसित देश 80% से अधिक सेवा निरंतर प्रगति के लिए सेवा प्रदाताओ ं को निरंतर नवाचार और
क्षेत्र को रोजगार देते हैैं। अनक ु ू लन की आवश््यकता होती है, जो ससं ाधन-गहन हो सकता है।
z सेवा क्षेत्र अर््थव््यवस््थथा के कुल आकार का लगभग 60%, कुल चतुर््थक क्षेत्र/ज्ञान आधारित उद्योग
निर््ययात का लगभग 38% और भारत मेें कुल प्रत््यक्ष विदेशी निवेश ज्ञान-आधारित और विशेष ज्ञान और तकनीकी क्षमताओ ं की आवश््यकता
(FDI) प्रवाह का दो-तिहाई हिस््ससा है। वाला, सेवा क्षेत्र का यह क्षेत्र ज्ञान-उन््ममुख है।
z सेवा क्षेत्र भारत का सबसे बड़़ा क्षेत्र है। 2023-24 मेें सेवा क्षेत्र के लिए
z नवाचार: ज्ञान-आधारित उद्योग ज्ञान सृजित करने, प्रसार
चालू मल्ू ्योों पर सकल मल्ू ्य वर््धधित (GVA) का अनमु ान 146.35 लाख
करने और लागू करने के लिए आधुनिक सच ू ना व सच ं ार
करोड़ रुपये है। प्रौद्योगिकी सिद््धाांतोों, नवाचार एवं अनुसध ं ान, विशेष
z सेवा क्षेत्र भारत के 266.78 लाख करोड़ रुपये के सकल मल्ू ्य वर््धधित कौशल का उपयोग करता है।
(GVA) का 54.86% हिस््ससा है। 73.50 लाख करोड़ रुपये के GVA के z उद्योग 4.0: कृ त्रिम बद्धिम ु त्ता (AI), मशीन लर््नििंग (ML) और
साथ, उद्योग क्षेत्र का योगदान 27.55% है। इटं रनेट ऑफ थिंग््स (IoT) जैसी नई और उन््नत तकनीकोों के
z वैश्विक निर््ययात: वैश्विक सेवा निर््ययात मेें भारतीय सेवा क्षेत्र की हिस््ससेदारी आगमन के साथ, पारंपरिक मैनुअल कार्ययों को आसानी
महत्तत्व

वर््ष 2022 तक 3.3% से बढ़कर 4.2% होने की उम््ममीद है। से बदला जा सकता है। इससे विशिष्ट कौशल की
z मजबूत माँग: भारत सॉफ््टवेयर सेवाओ ं के लिए एक निर््ययात आवश््यकता वाले नए रोजगार सजि ृ त होोंगे।
केें द्र के रूप मेें उभरा है। भारतीय सॉफ््टवेयर उद्योग के वर््ष 2030 z आईटी क्षेत्र: वैश्वीकरण की शरु ु आत के साथ, युवा आबादी
तक $1 ट्रिलियन तक पहुच ँ ने की उम््ममीद है। और आईटी क्षेत्र मेें भारी वद्धि ृ के साथ भारत ज्ञान-आधारित
उद्योग की शरुु आत करने के लिए एक मजबतू उम््ममीदवार है।
z रोजगार: यह भारत के श्रम बल के 25% लोगोों को रोजगार
z आय मेें वद्धि ृ : अर््थव््यवस््थथा मेें ज्ञान आधारित उद्योग की
के अवसर प्रदान करता है। पर््यटन, स््ववास््थ््य सेवा, शिक्षा।
हिस््ससेदारी बढ़ने से भारत के मध््य आय जाल और आय
उदाहरण के लिए आयुर्वेद, हठयोग, विपश््यना आदि की
असमानता की समस््ययाओ ं से उबरने की सभ ं ावना है।
भारतीय सेवा क्षेत्र का महत्तत्व

बढ़ती मान््यता के कारण हेल््थके यर टूरिज््म और योग टूरिज््म


वैश्विक पर््यटकोों को आकर््षषित कर रहे हैैं। z श्रम प्रधान: भारतीय अर््थव््यवस््थथा अभी भी श्रम प्रधान
अर््थव््यवस््थथा है। भारत मेें अकुशल श्रमिक और अप्रशिक्षित
z प्रतिस््पर््धधात््मक लाभ: भारत की अत््यधिक कुशल जनशक्ति
श्रमिक भारी मात्रा मेें हैैं। ज्ञान उद्योगोों को अधिकांश लोगोों
और कम लागत पर उपलब््ध जनसांख््ययिकीय लाभांश ने को शिक्षा और कौशल प्रदान करने की आवश््यकता होगी।
बीपीओ, के पीओ, बिजनेस प्रोसेसिगं उद्योगोों को भारत z कुशल पेशेवरोों की कमी: भारतीय शिक्षा प्रणाली मेें
को आकर््षषित किया है।
चुनौतियाँ

विसंगतियोों के कारण, ज्ञान उद्योग मेें पर््ययाप्त मात्रा मेें उच््च


z नीति समर््थन: मेक इन इडि ं या, डिजिटल इडि ं या पहल पर ध््ययान कुशल पेशेवर नहीीं हैैं, मख्ु ्यतः कौशल-आधारित प्रशिक्षण की
केें द्रित करने और सभी सेवा क्षेत्ररों मेें भारत की उद्यमशीलता का कमी और रटने पर केें द्रित शिक्षाविदोों के कारण न कि सोचने
विस््ततार करने पर सरकार के प्रयास। और नवाचार करने की क्षमता पर।
z सच ं ार: संचार सेवाओ ं मेें क््राांति से लाभान््ववित, Unacademy z बेरोजगारी की समस््यया: ज्ञान आधारित उद्योगोों से बेरोजगारी
जैसी उभरती एडटेक कंपनियोों को उभरते उद्योगोों के रूप मेें जैसी समस््ययाएँ पैदा होने की सभ ं ावना है क््योोंकि यह केवल
देखा जाता है उच््च कौशल वाली नौकरियाँ ही पैदा करे गा।

58  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


क्विनरी क्षेत्र (पंचम सेवा क्षेत्र ) आगे की राह
क््वविनरी क्षेत्र मेें विचारोों का निर््ममाण, पुनर््गठन और व््ययाख््यया, डेटा विश्ले षण, z शिक्षा प्रणाली के लिए बजटीय आवंटन मेें वद्धि ृ : छात्ररों के दृष्टिकोण
व््ययापार विश्ले षण, आलोचनात््मक सोच, मल्ू ्ययाांकन और नई तकनीकोों का उन््नयन मेें बदलाव लाने की आवश््यकता है। उन््हेें नौकरी ढूंढने के बजाय नौकरियाँ
शामिल है। इस समहू के वरिष्ठ कंपनी अधिकारियोों, सरकारी अधिकारियोों, शोध पैदा करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
वैज्ञानिकोों, वित्तीय और कानूनी विशेषज्ञञों और अन््य पेशेवरोों को वर््णणित करने z प्रारंभिक शिक्षा के बाद से नवाचार सस्ं ्ककृति को बढ़़ावा: छात्रवत्ति ृ
के लिए अक््सर "गोल््ड कॉलर" शब््द का प्रयोग किया जाता है। इस क्षेत्र मेें प्रदान करके और उन््नत प्रयोगशालाओ ं और विश्व स््तरीय उपकरणोों का
शामिल हैैं: वरिष्ठ व््ययापारिक कर्मी, सीईओ, प्रबंध निदेशक, वैज्ञानिक, उच््च प्रावधान करके पीएचडी और अनसु ंधान एवं विकास को बढ़़ावा देना चाहिए।
सरकारी अधिकारी, वित्तीय और कानूनी विशेषज्ञ आदि।
z उद्यमिता का विविधीकरण: अन््य क्षेत्ररों मेें प्रोत््ससाहन के माध््यम से: कृ षि,
z रोजगार: यद्यपि क््वविनरी क्षेत्र मेें रोजगार की हिस््ससेदारी कम है,
इलेक्ट्रॉनिक््स आदि।
इस क्षेत्र की वद्धि ृ अन््य क्षेत्ररों मेें रोजगार सज
ृ न सनिश् ु चित
करती है जो कुशल, अर््धकुशल या अकुशल हैैं। जैसे उद्यमियोों निष्कर््ष
की वृद्धि से नई नौकरियाँ पैदा करने वाले अधिक उद्यम अर््थव््यवस््थथा के विभिन््न क्षेत्र-प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक, चतुर््धधातुक और
पैदा होोंगे।
पंचक-आर््थथिक परिदृश््य को आकार देने मेें अलग-अलग लेकिन परस््पर जुड़़ी
z यह क्षेत्र तकनीकी प्रगति की गति सनिश् ु चित करता है जो राष्टट्र
भमू िका निभाते हैैं। इन क्षेत्ररों को समझने से यह समझने मेें मदद मिलती है कि
की आर््थथिक वृद्धि को निर्देशित करता है।
z सकल घरे लू उत््पपाद मेें उच््च हिस््ससेदारी: यह क्षेत्र अत््यधिक
वस््ततुओ ं और सेवाओ ं को प्रदान करने के लिए संसाधनोों को कै से निकाला जाता
कुशल पेशेवरोों को रोजगार प्रदान करता है, इस प्रकार रोजगार है, परिवर््ततित किया जाता है और उपयोग किया जाता है। यह अर््थव््यवस््थथाओ ं की
सज ृ न मेें हिस््ससेदारी बहुत कम है, साथ ही उनके द्वारा प्रदान की विकसित होती प्रकृ ति पर भी प्रकाश डालता है क््योोंकि वे प्राथमिक-आधारित
महत्तत्व

जाने वाली उच््च मल्ू ्य और विशिष्ट सेवाओ ं के कारण सकल गतिविधियोों से अधिक उन््नत, सेवा-उन््ममुख और सचू ना-संचालित प्रक्रियाओ ं मेें
घरेलू उत््पपाद मेें योगदान बहुत अधिक है। परिवर््ततित हो रही हैैं। इन क्षेत्ररों का विश्ले षण आर््थथिक विकास, रोजगार के रुझान
z नॉलेज हाउस: इस क्षेत्र मेें उच््च योग््य और बौद्धिक पेशेवर और वैश्विक व््ययापार प्रतिरुप मेें मल्ू ्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, जिससे सतत
शामिल हैैं। उनका मार््गदर््शन और ज्ञान साझा करने से नई विकास और विकास के लिए बेहतर नीति-निर््ममाण और रणनीतिक योजना बनाना
पीढ़़ियोों से लाभ प्राप्त करने मेें मदद मिलती है। जैसे अनभु वी संभव हो जाता है।
डॉक््टरोों से ज्ञान हस््तताांतरण उनके कनिष्ठठों को सर््वश्रेष्ठ डॉक््टर
लाने मेें मदद करता है।
z विकसित देशोों मेें क््वविनरी क्षेत्र अत््यधिक विकसित है और
प्रमुख शब्दावलियाँ
अनसु ंधान व नवाचार मेें लगा हुआ है। जैसे इलेक्ट्रिक कारोों का आदिम निर््ववाह कृ षि; गहन निर््ववाह कृ षि; बागानी कृ षि; मिश्रित खेती;
डिजाइन और विकास। जलवायु के प्रति लचीली प्रथाएँ; जलवायु अनुकूल कृ षि; जलवाय-ु
z खराब शिक्षा: देश मेें शिक्षा की गणव ु त्ता देश मेें क््वविनरी क्षेत्र स््ममार््ट कृ षि; सहकारी खेती; जैविक खेती; शून््य बजट प्राकृ तिक
की गणव ु त्ता तय करती है। खेती; सामूहिक खेती; कृ षि का महिलाकरण; लाल कॉलर नौकरियाँ;
z उच््च शिक्षा की खराब गुणवत्ता: यह अधिकांश प्रतिभाओ ं छिपी हुई बेरोजगारी; प्रच््छन््न बेरोजगारी; आदि।
को विदेशी विश्वविद्यालयोों मेें जाने के लिए मजबरू करती है। वे
अपना शोध कार््य भारत से बाहर करते हैैं। भारतीय प्रतिभा के विगत वर्षषों के प्रश्न
ऐसे निर््ययात को देश मेें बरकरार रखा जाना चाहिए। जैसे दनि ु या 1. उत्तर-पश्चिम भारत के कृ षि आधारित खाद्य प्रसंस््करण उद्योगोों के
की कई बहुराष्ट्रीय कंपनियोों के सीईओ भारतीय हैैं। सदुं र पिचाई स््थथानीयकरण के कारकोों पर चर््चचा कीजिए।  (2019)
अल््फफाबेट इक ं के सीईओ हैैं। 2. भारत मेें औद्योगिक गलियारोों का क््यया महत्तत्व है? औद्योगिक गलियारोों
चुनौतियाँ

z खराब नवाचार: भारत मेें अनुसध ं ान और विकास को चिन््हहित करते हुए उनके प्रमख ु अभिलक्षणोों को समझाइये।
पारिस््थथितिकी तंत्र बहुत खराब है और नवाचार की गुणवत्ता  (2018)
वैश्विक नवाचारोों के लिए गौण है। 3. क््यया कारण है कि भारत मेें हरित क््राांति पर्वी
ू प्रदे
श मेें उर््वरक मृदा और
z उद्यमिता प्रयास: भारत मेें उद्यमिता प्रयास केवल आईटीईएस जल की बढ़िया उपलब््धता के बावजूद, असलियत मेें उससे बच कर
क्षेत्र मेें केें द्रित हैैं। नए उद्यमियोों द्वारा कृ षि, ऑटोमोबाइल, आगे निकल गई? (2014)
इलेक्ट्रॉनिक््स क्षेत्ररों की खोज नहीीं की जाती है। ये क्षेत्र अपनी 4. क््यया आप इस बात से सहमत हैैं कि भारत के दक्षिणी राज््योों मेें नई
वास््तविक क्षमता हासिल करने मेें पिछड़ रहे हैैं। चीनी मिलेें खोलने की प्रवृति बढ़ रही है? न््ययायसंगत विवेचन कीजिए।
z नीति का अभाव: सरकारी प्रयास इस क्षेत्र को बढ़़ावा देने के  (2013)
लिए लक्षित नहीीं हैैं। क््वविनरी सेक््टर को बढ़़ावा देने के लिए 5. भारत मेें अति विके न्द्रीकृ त सूती कपड़ा उद्योग की स््थथापना मेें कारकोों
अभी तक राष्ट्रीय नीति नहीीं बनाई गई है। का विश्ले षण कीजिए। (2013)

प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक क्षेत्र के उद्योगो 59


9 खनिज और ऊर््जजा संसाधन

खनिज प्राकृ तिक रूप से पाए जाने वाले अकार््बनिक पदार््थ हैैं जो पृथ््ववी की पर््पटी  तांबा: तांबे के भडं ार मख्ु ्य रूप से झारखंड, मध््य प्रदेश और राजस््थथान
मेें पाए जाते हैैं। इनमेें विशिष्ट रासायनिक संरचना और उच््च क्रम बद्ध परमाण््वविक मेें पाए जाते हैैं। विद्युत उद्योग मेें तार, मोटर, ट््राांसफार््मर और जनरे टर के
व््यवस््थथा होती है, जिसके परिणाम स््वरूप क्रिस््टलीय संरचना बनती है। ये पदार््थ निर््ममाण के लिए तांबा आवश््यक है। वर््ष 2021-22 मेें सांद्र तांबे का
एकल या कई तत्तत्ववों से मिलकर बने होते हैैं और विभिन््न आकारोों, रंगोों और उत््पपादन 114.42 हजार टन रहा, जो पिछले वर््ष की तलन ु ा मेें लगभग
कठोरता के स््तरोों का प्रदर््शन करते हैैं। खनिजोों को उनके अद्वितीय भौतिक और 5.25% अधिक है।
रासायनिक गुणोों के कारण पहचाना जाता है, जो उन््हेें विभिन््न उद्योगोों और
दैनिक जीवन मेें अमल्ू ्य बनाता है। उदाहरण के लिए, क््ववार््टट््ज का इलेक्ट्रॉनिक््स
और घड़़ियोों मेें व््ययापक रूप से उपयोग किया जाता है, जबकि जिप््सम निर््ममाण
सामग्री का एक प्रमख ु घटक है। खनिज निष््कर््षण और प्रसंस््करण प्रौद्योगिकियोों
मेें हालिया प्रगति उनके अनुप्रयोगोों को बढ़़ाती रहती है, जिससे नवाचार और
आर््थथिक विकास को गति मिलती है।

महत्त्वपूर््ण तथ्य
वर््ष 2024 तक, भारत मेें खनन क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत््पपाद (जीडीपी) मेें
लगभग 2.2% से 2.5% का योगदान दे रहा है। पूरे औद्योगिक क्षेत्र के GDP
की तुलना मेें, खनन उद्योग का योगदान लगभग 10% से 11% तक होता है।

खनिज संसाधनोों के प्रकार


z लौह खनिज:
 लौह अयस््क: भारत के पास एशिया मेें लौह अयस््क का सबसे बड़़ा भड ं ार
है। भारत मेें पाए जाने वाले दो मख्ु ्य प्रकार के अयस््क हेमेटाइट और
मैग््ननेटाइट हैैं। लौह अयस््क के कुल भडं ार का लगभग 95% ओडिशा,
झारखंड, छत्तीसगढ़, कर््ननाटक, गोवा आदि राज््योों मेें मौजदू हैैं। वित्त
वर््ष 2023 मेें उत््पपादित धातु खनिजोों का कुल मल्ू ्य लगभग 132,747 z गैर-धात््वविक/अधात््वविक खनिज:
करोड़ रुपये तक पहुचँ गया है।  वर््ष 2021-22 के दौरान गैर-धात््वविक खनिजोों के उत््पपादन का मल् ू ्य पिछले
 मैैं गनीज: मैैंगनीज भड ं ार विभिन््न भवू ैज्ञानिक संरचनाओ ं मेें पाए जाते वर््ष की तलनु ा मेें 14.83% बढ़कर 10606 करोड़ रुपये हो गया।
हैैं और मख्ु ्य रूप से धारवाड़ प्रणाली से संबंधित हैैं। मैैंगनीज के प्रमख ु  अभ्रक: अभ्रक एक महत्तत्वपर् ू ्ण गैर-धात््वविक खनिज है जिसका उपयोग
उत््पपादक ओडिशा, कर््ननाटक, तेलंगाना, गोवा और झारखडं हैैं। वर््ष विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उद्योगोों मेें किया जाता है। यह झारखडं , आध्रं
2021-22 मेें मैैंगनीज अयस््क का उत््पपादन 2.70 मिलियन टन रहा, जो प्रदेश, तेलंगाना आदि राज््योों मेें पाया जाता है।
पिछले वर््ष की तलन ु ा मेें लगभग 0.27% कम है।  अन््य गै र-धात््वविक खनिज: चन ू ा पत््थर, डोलोमाइट और फॉस््फफे ट भारत
z अलौह खनिज: मेें अन््य महत्तत्वपर्ू ्ण गैर-धात््वविक खनिज हैैं।
 बॉक््ससाइट: बॉक््ससाइट भड ं ार के मामले मेें भारत दनिु या मेें चौथे स््थथान
पर है। यह मख्ु ्य रूप से तृतीयक निक्षेपोों मेें पाया जाता है और लेटराइट
भारत मेें प्रमुख खनिज संसाधनोों का वितरण
चट्टानोों से जड़ु ़ा होता है। बॉक््ससाइट के प्रमख
ु उत््पपादक ओडिशा,झारखंड, भारत मेें खनिज पेटियाँ: भारत भौगोलिक रूप से समृद्ध है और देश भर मेें
गुजरात और छत्तीसगढ़ हैैं। वर््ष 2021-22 मेें बॉक््ससाइट का उत््पपादन कई खनिज पेटियाँ हैैं। ये खनिज पेटियाँ ऐसे क्षेत्र हैैं जो अपने महत्तत्वपूर््ण खनिज
22.49 मिलियन टन रहा, जो पिछले वर््ष की तलन ु ा मेें 10.37% कम है। भंडार के लिए जाने जाते हैैं।
बेल््ट क्षेत्र/क्षेत्र क्षमता
उत्तर-पूर्वी यह खनिज पेटी पश्चिम मेें राजस््थथान मेें z यह कोयला, लौह अयस््क, तांबा, सीसा और जस््तता के समृद्ध भडं ार के लिए जाना जाता है।
प्रायद्वीपीयपेटी अरावली पर््वतमाला से लेकर पूर््व मेें z कोयला: इस क्षेत्र मेें व््ययापक कोयला भडं ार है, जो विद्युत उत््पपादन और औद्योगिक उपयोग के
झारखंड और ओडिशा मेें छोटा नागपरु लिए ऊर््जजा का एक महत्तत्वपर्ू ्ण स्रोत प्रदान करता है।
पठार तक विस््ततृत है। z लौह अयस््क: इस पेटी मेें लौह अयस््क का पर््ययाप्त भडं ार है, जो भारत के लौह और इस््पपात
उद्योग मेें योगदान देता है।
z तांबा, सीसा और जस््तता: इन धातओ ु ं मेें आर््थथिक क्षमता है और इन््हेें विभिन््न औद्योगिक
अनप्रु योगोों के लिए निकाला जा सकता है।
दक्षिण-पश्चिमी कर््ननाटक, गोवा और महाराष्टट्र के कुछ z यह पेटी लौह अयस््क, मैैंगनीज, चनू ा पत््थर और बॉक््ससाइट के प्रचरु भडं ार के लिए जाना जाता है।
पेटी हिस््सोों मेें स््थथित है। z लौह अयस््क: यह क्षेत्र अपने उच््च गणव ु त्ता के लौह अयस््क भडं ार के लिए जाना जाता है,
जो इसे लौह और इस््पपात उद्योग के लिए एक महत्तत्वपर्ू ्ण स्रोत बनाता है।
z मैैंगनीज: इस पेटी मेें महत्तत्वपर्ू ्ण मैैंगनीज भडं ार हैैं, जो इस््पपात उत््पपादन और विभिन््न अन््य उद्योगोों
के लिए आवश््यक हैैं।
z बॉक््ससाइट: बॉक््ससाइट अयस््क की उपस््थथिति एल््ययूमीनियम उत््पपादन के अवसर प्रदान करती है।
उत्तर-पश्चिमी यह खनिज पेटी राजस््थथान और z यह चनू ा पत््थर, संगमरमर, जिप््सम, रॉक फॉस््फफे ट, लिग््ननाइट और बेेंटोनाइट के भडं ार के लिए
पेटी गुजरात मेें फै ली हुई है। जाना जाता है।
z चूना पत््थर और सगं मरमर: पेटी मेें चनू ा पत््थर और संगमरमर के प्रचरु भडं ार हैैं, जिनका उपयोग
निर््ममाण उद्योग और सीमेेंट निर््ममाण मेें बड़़े पैमाने पर किया जाता है।
z जिप््सम: इस क्षेत्र मेें जिप््सम भडं ार है, जिसका उपयोग निर््ममाण सामग्री, कृ षि और विनिर््ममाण
क्षेत्ररों मेें किया जाता है।
z बेेंटोनाइट: बेेंटोनाइट जमा मेें विभिन््न औद्योगिक उपयोगोों की सभं ावना है, जैसे ड्रिलिंग तरल
पदार््थ, फाउंड्री मोल््ड और पर््ययावरणीय अनप्रु योग।
मध््यवर्तीपेटी यह पेटी छत्तीसगढ़ और मध््य प्रदेश मेें z यह अपने महत्तत्वपर्ू ्ण कोयला भडं ार, साथ ही लौह अयस््क, बॉक््ससाइट, चनू ा पत््थर और डोलोमाइट
स््थथित है। के भडं ार के लिए जाना जाता है।
z कोयला: इस क्षेत्र मेें पर््ययाप्त कोयला भडं ार है, जो भारत की ऊर््जजा जरूरतोों को परू ा करने मेें
योगदान देता है।
z लौह अयस््क: पेटी मेें लौह अयस््क का भडं ार है, जो लौह और इस््पपात उद्योग का सहायता
करता है।
z बॉक््ससाइट, चूना पत््थर और डोलोमाइट: इन खनिजोों मेें एल््ययूमीनियम उत््पपादन, सीमेेंट निर््ममाण
और निर््ममाण सामग्री सहित औद्योगिक उपयोग की क्षमता है।
दक्षिणी पेटी तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर््ननाटक z यह पेटी लौह अयस््क, बॉक््ससाइट और चनू ा पत््थर के समृद्ध भडं ार के लिए जाना जाता है।
मेें स््थथित है, z लौह अयस््क: इस क्षेत्र मेें लौह अयस््क के भडं ार हैैं जिनका उपयोग इस््पपात उत््पपादन के लिए
किया जाता है।
z बॉक््ससाइट और चूना पत््थर: इन खनिजोों का उपयोग एल््ययूमीनियम उत््पपादन, सीमेेंट निर््ममाण
और निर््ममाण सामग्री मेें किया जाता है।
पूर्वी पेटी यह खनिज पेटी ओडिशा, पश्चिम z यह लौह अयस््क, कोयला, मैैंगनीज और क्रोमाइट के विशाल भडं ार के लिए जाना जाता है।
बंगाल और झारखंड के कुछ हिस््सोों z लौह अयस््क: इस क्षेत्र मेें व््ययापक लौह अयस््क भडं ार हैैं, जो लौह और इस््पपात उद्योग का
तक फै ली हुई है। समर््थन करते हैैं।
z कोयला:इस पेटी मेें महत्तत्वपर्ू ्ण कोयला भडं ार है, जो भारत की ऊर््जजा आवश््यकताओ ं को परू ा
करने मेें योगदान देता है।
z मैैंगनीज और क्रोमाइट: इन खनिजोों मेें इस््पपात उत््पपादन, लौह मिश्र धातु निर््ममाण और विभिन््न
औद्योगिक अनप्रु योगोों की क्षमता है।

खनिज और ऊर्जा संसाध 61


पश्चिमी पेटी महाराष्टट्र और गुजरात मेें स््थथित है। z यह पेटी मैैंगनीज, बॉक््ससाइट, चनू ा पत््थर और जिप््सम के भडं ार के लिए जाना जाता है।
z मैैंगनीज: इस पेटी मेें मैैंगनीज भडं ार हैैं, जो इस््पपात उत््पपादन और अन््य उद्योगोों के लिए आवश््यक
हैैं।
z बॉक््ससाइट: यह क्षेत्र एल््ययूमीनियम उत््पपादन के लिए बॉक््ससाइट निष््कर््षण के अवसर प्रदान
करता है।
z चूना पत््थर और जिप््सम: इन खनिजोों मेें निर््ममाण सामग्री, सीमेेंट निर््ममाण और अन््य औद्योगिक
अनप्रु योगोों के लिए क्षमता है।
z क्रोमाइट: भारत क्रोमाइट के सबसे बड़़े उत््पपादकोों मेें से एक है, जो धातु
खनिजोों का उत्पादन
विज्ञान, रसायन और अपवर््तक जैसे विभिन््न उद्योगोों मेें उपयोग किए जाने वाले
z वर््ष 2023-24 के दौरान 19 राज््योों से खनिज उत््पपादन की जानकारी मिलती क्रोमियम का एक प्रमख ु स्रोत है। ओडिशा और कर््ननाटक प्राथमिक क्रोमाइट
है। विशेष रूप से, खनिज उत््पपादन के कुल मल्ू ्य का लगभग 97.04% केवल उत््पपादक राज््य हैैं।
सात राज््योों मेें केें द्रित था, जो इस क्षेत्र मेें उनके महत्तत्वपर्ू ्ण योगदान को रे खांकित प्रमुख क्षेत्र(SCOPE)
करता है।
z राजस््व सज ृ न: खनिज निष््कर््षण से रॉयल््टटी, कर और पट्टा भगु तान के माध््यम
z कोयला: भारत वैश्विक स््तर पर कोयले के सबसे बड़़े उत््पपादकोों मेें से एक है। से सरकारी राजस््व उत््पन््न होता है। इस धन का उपयोग बनि ु यादी ढाँच,े
इसमेें कोयले का महत्तत्वपर्ू ्ण भडं ार है और यह बिटुमिनस, सब-बिटुमिनस और सामाजिक कल््ययाण और आर््थथिक विकास के लिए किया जा सकता है।
लिग््ननाइट सहित विभिन््न प्रकार के कोयले का उत््पपादन करता है। कोयले का z बुनियादी ढाँचे का विकास: खनिज क्षेत्ररों के लिए सड़क, रेलवे, बंदरगाह
उपयोग मख्ु ्य रूप से विद्युत उत््पपादन, औद्योगिक प्रक्रियाओ ं और घरोों मेें ईधन ं और विद्युत आपर््तति ू जैसे बनि ु यादी ढाँचे के विकास की आवश््यकता होती
के रूप मेें किया जाता है। है, जिससे कुशल खनिज परिवहन की सवु िधा मिलती है और जिससे क्षेत्रीय
विकास को बढ़़ावा मिलता है।
z अनुसध ं ान और अन््ववेषण: खनिज क्षेत्र नए भडं ारोों की पहचान करने, मौजदू ा
भडं ारोों का आकलन करने और अन््ववेषण और भवू ैज्ञानिक सर्वेक्षणोों के माध््यम
से खनन क्षेत्र का विस््ततार करने के लिए अनसु ंधान के अवसर प्रदान करते हैैं।
z खनन कार््य: खनिज क्षेत्ररों अनक ु ू ल भवू ैज्ञानिक स््थथितियोों और प्रचरु मात्रा मेें
भडं ार प्रदान करते हैैं, जो खनन कंपनियोों को कोयला, लौह अयस््क, चनू ा पत््थर,
बॉक््ससाइट, मैैंगनीज और क्रोमाइट जैसे खनिज निकालने के लिए आकर््षषित
करते हैैं।
z औद्योगिक विकास: खनिज पेटियोों मेें खनिज भडं ार औद्योगिक विकास और
स््टटील, सीमेेंट, एल््ययूमीनियम, विद्युत उत््पपादन एवं रसायन जैसे उद्योगोों के लिए
मल्ू ्यवर््धन को बढ़़ावा देते हैैं।
z लौह अयस््क: भारत मेें लौह अयस््क का उत््पपादन वर््ष 2023 मेें 14% बढ़कर z रोजगार सज ृ न: खनिज क्षेत्ररों मेें खनन कार््य रोजगार के अवसर पैदा करते
282 मिलियन टन (mnt) के सर््वकालिक उच््च स््तर पर पहुच ँ गया, हैैं, जिससे स््थथानीय समदु ायोों को लाभ होता है। कुशल खनिक, इजं ीनियर,
जबकि वर््ष 2022 मेें यह 248 मिलियन टन था। सहायक कर््मचारी और सेवा प्रदाता क्षेत्र मेें रोजगार सृजन व आर््थथिक विकास
z बॉक््ससाइट: भारत मेें महत्तत्वपर्ू ्ण बॉक््ससाइट भडं ार हैैं और यह बॉक््ससाइट अयस््क मेें योगदान करते हैैं।
के प्रमख ु उत््पपादकोों मेें से एक है, जो एल््ययूमीनियम उत््पपादन के लिए उपयोग z सतत विकास: खनिज पट्टियाँ दीर््घकालिक विकास के लिए पर््ययावरण सरं क्षण,
किया जाने वाला प्राथमिक अयस््क है। भारत मेें प्रमख ु बॉक््ससाइट उत््पपादक सामदु ायिक भागीदारी और सामाजिक उत्तरदायित््व सनिश् ु चित करने वाली सतत
राज््योों मेें ओडिशा, गजु रात और झारखडं शामिल है। ओडिशा विशेष रूप से खनन प्रथाओ ं का समर््थन कर सकती हैैं, साथ ही साथ नकारात््मक प्रभावोों
उल््ललेखनीय है क््योोंकि यहाँ देश के कुछ सबसे बड़़े बॉक््ससाइट भडं ार पाए जाते हैैं। को कम कर सकती हैैं।
z मैैंगनीज: भारत मैैंगनीज अयस््क का एक महत्तत्वपर्ू ्ण उत््पपादक है, जिसका मख्ु ्य चुनौतियााँ
रूप से उपयोग लौह मिश्र धातु के उत््पपादन के लिए इस््पपात उद्योग मेें किया z पर््ययावरण सबं ंधी चिंताएँ: वनोों की कटाई, मिट्टी का कटाव, जल प्रदषू ण और
जाता है। प्रमख ु मैैंगनीज उत््पपादक राज््योों मेें ओडिशा, महाराष्टट्र, मध््य प्रदेश निवास स््थथान का विनाशआदि प्रमख ु पर््ययावरणीय चितं ाएँ हैैं।
और कर््ननाटक शामिल हैैं। z विनियामक ढाँचा: भारत मेें खनन क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले जटिल
z चूना पत््थर: भारत चनू ा पत््थर के शीर््ष उत््पपादकोों मेें से एक है, जिसका उपयोग नियामक ढाँचे के कारण जटिल नियमोों का अनपु ालन करना, परमिट प्राप्त
मख्ु ्य रूप से सीमेेंट उद्योग मेें किया जाता है। राजस््थथान, मध््य प्रदेश, आध्रं करना और काननू ी आवश््यकताओ ं को परू ा करना खनन कंपनियोों के लिए
प्रदेश और गजु रात जैसे राज््योों मेें चनू ा पत््थर के प्रचरु भडं ार हैैं। एक चनु ौतीपर्ू ्ण कार््य होता है।

62  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z भूमि अधिग्रहण और सामुदायिक विस््थथापन संबंधी समस््ययाएँ भी प्रमख ु हैैं। अंतरराष्ट्रीय ऊर््जजा एजेेंसी (IEA) के अनुसार, ऊर््जजा को कार््य करने की क्षमता
z बुनियादी ढाँचा विकास: आवश््यक परिवहन नेटवर््क और बिजली आपर््तति ू या परिवर््तन लाने और कार््य निष््पपादित करने की क्षमता के रूप मेें परिभाषित
विकसित करने के लिए रसद और परिचालन सबं ंधी चनु ौतियाँ उत््पन््न होती हैैं। किया जाता है। ऊर््जजा विभिन््न रूपोों मेें प्रकट होती है, जिसमेें गतिज ऊर््जजा (गति
z तकनीकी प्रगति: आधनि ु क प्रौद्योगिकियोों की उपलब््धता और अपनाना छोटी से संबंधित), स््थथितिज ऊर््जजा (किसी वस््ततु की स््थथिति या अवस््थथा से संबंधित),
खनन कंपनियोों और दरू दराज के क्षेत्ररों के लिए खनिज निष््कर््षण को अधिकतम तापीय ऊर््जजा (तापमान से संबंधित), रासायनिक ऊर््जजा (रासायनिक प्रतिक्रियाओ ं
करने, पर््ययावरणीय प्रभावोों को कम करने और उन््नत खनन प्रौद्योगिकियोों और के दौरान जारी या अवशोषित), और विद्युत ऊर््जजा ( विद्युत आवेशोों के प्रवाह
उपकरणोों को अपनाने संबंधी चनु ौतियाँ पेश करता है। से संबद्ध)। ऊर््जजा के ये विविध रूप हमारे दैनिक जीवन और वृहत पर््ययावरण मेें
आगे की राह अनेक प्रक्रियाओ ं और प्रणालियोों के लिए आधारभतू हैैं।
z सतत खनन अभ््ययास:पर््ययावरणीय प्रभावोों को कम करने और सामदु ायिक
महत्त्वपूर््ण तथ्य
भागीदारी व सामाजिक जिम््ममेदारी को प्राथमिकता देने के लिए सख््त
पर््ययावरणीय नियमोों, जिम््ममेदार तकनीकोों और उन््नत प्रौद्योगिकियोों के माध््यम z ऊर््जजा खपत: भारत के केें द्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के अनसु ार,
से खनन करना चाहिए। वित्तीय वर््ष 2023-2024 के दौरान भारत मेें कुल ऊर््जजा खपत 1550
z नियामक ढाँचे का सदृ ु ढ़ीकरण : नियमोों को एकीकृ त करके , नौकरशाही/ बिलियन यनि ू ट (BU) है। इसमेें विद्युत की खपत के साथ-साथ ऊर््जजा के
लालफीताशाही को कम करके और स््पष्ट अनपु ालन दिशानिर्देश प्रदान करके अन््य स्रोत जैसे तेल, कोयला और प्राकृ तिक गैस भी शामिल हैैं।
खनन क्षेत्र के नियामक ढाँचे को सव्ु ्यवस््थथित करना चाहिए। z ऊर््जजा मिश्रण:बिजली उत््पपादन के मामले मेें, भारत मेें ऊर््जजा मिश्रण मेें
z आधारभूत सरं चना विकास: परिवहन, विद्युत आपर््तति ू और जल प्रबंधन विभिन््न स्रोत शामिल हैैं। ऊर््जजा मत्राल
ं य के अनसु ार, 2024 तक, भारत
सहित खनिज क्षेत्ररों मेें बनि
ु यादी ढाँचे के विकास को प्राथमिकता देें। की बिजलीउत््पपादन मेें प्रमख ु योगदान कर््तता कोयला (लगभग 69%),
z अनुसध ं ान और विकास: क्षेत्र की तकनीकी प्रगति के लिए अन््ववेषण तकनीकोों नवीकरणीय ऊर््जजा स्रोत (लगभग 26%), पनबिजली ऊर््जजा (लगभग 3%),
को बढ़़ाने, संसाधन पनर्प्राप्ति
ु और नवीन प्रौद्योगिकियोों को विकसित करने पर और परमाणु ऊर््जजा (लगभग 2%) थे।
ध््ययान केें द्रित करनाचाहिए। z नवीकरणीय ऊर््जजा क्षमता: भारत अक्षय ऊर््जजा स्रोतोों को सक्रिय रूप से
z क्षमता निर््ममाण और कौशल विकास: उन््नत प्रौद्योगिकियोों को अपनाने,
बढ़़ावा दे रहा है। अप्रैल 2024 तक, भारत की स््थथापित नवीकरणीय ऊर््जजा
टिकाऊ प्रथाओ ं को लागू करने और जिम््ममेदार खनन को बढ़़ावा देने के लिए क्षमता लगभग 144.75 गीगावाट (GW) तक पहुचँ गई, जिसमेें सौर ऊर््जजा
कुशल कार््य बल सनिश् ु चित करना चाहिए। (82.64 GW), पवनऊर््जजा (46.16 GW), बायोमास और लघु जल विद्युत
z हितधारकोों सहयोग: यह चन ु ौतियोों का समाधान करने, सामान््य समाधान शामिल हैैं, जैसा कि नवीन और नवीकरणीय ऊर््जजा मत्राल ं य द्वारा रिपोर््ट
खोजने और खनिज क्षेत्ररों मेें सतत विकास को बढ़़ावा देने के लिए एक समग्र
किया गया है। (एमएनआरई) बड़़ी पनबिजली सहित नवीकरणीय ऊर््जजा
और समावेशी दृष्टिकोण की सवु िधा प्रदान कर सकता है।
स्रोतोों की संयक्त
ु स््थथापित क्षमता 191.67 गीगा वॉट है।
भारत प्राकृ तिक संसाधनोों, विशेष रूप से खनिजोों से संपन््न देश है। ये कई उद्योगोों
के लिए कच््चचे माल के रूप मेें कार््य करते हैैं, जो तीव्र औद्योगीकरण और
बुनियादी ढाँचे के विकास का मार््ग प्रशस््त करते हैैं। यह बदले मेें अर््थव््यवस््थथा
ऊर्जा के स्रोत
के विकास को सतत विकास और पाँच ट्रिलियन-डॉलर अर््थव््यवस््थथा के मार््ग मापदंड ऊर््जजा के पारंपरिक ऊर््जजा के गैर-पारंपरिक स्रोत
पर ले जाने मेें सवु िधा प्रदान करे गा। यह अर््थव््यवस््थथा के सतत विकास को स्रोत
सुनिश्चित करता है।
परिभाषा ऊर््जजा के पारंपरिक स्रोत ऊर््जजा के गैर-पारंपरिक स्रोत,
ऊर्जा संसाधन ऊर््जजा उत््पपादन के लिए जिन््हेें नवीकरणीय या वैकल््पपिक
पारंपरिक और व््ययापक स्रोतोों के रूप मेें भी जाना जाता
ऊर््जजा के स्रोत रूप से उपयोग किए जाने है, प्राकृ तिक संसाधनोों से प्राप्त
वाले स्रोतोों को संदर््भभित होते हैैं जिनकी पूर््तति होती है और
पारंपरिक स्रोत गैर-पारंपरिक स्रोत करते हैैं जो लंबे समय से पर््ययावरण पर न््ययूनतम प्रभाव
उपयोग मेें हैैं। पड़ता है।
वाणिज््ययिक गैर-वाणिज््ययिक z ज््ववारीय ऊर््जजा उदाहरण पारंपरिक स्रोतोों मेें गैर-पारंपरिक स्रोतोों मेें सौर
z कोयला z जलाऊ, लकड़़ी z जैव ऊर््जजा कोयला, तेल और ऊर््जजा, पवन ऊर््जजा, जल विद्युत,
z पेट्रोलियम z प्राकृतिक गैस z सौर ऊर््जजा प्राकृ तिक गैस जैसे बायोमास, भतू ापीय ऊर््जजा और
z प्राकृतिक गैस z सख ू ा गोबर पवन ऊर््जजा जीवाश््म ईधन
z ं के साथ- ज््ववारीय ऊर््जजा शामिल हैैं।
z शहरी कचरे से साथ पारंपरिक परमाणु
ऊर््जजा ऊर््जजा भी शामिल है।

खनिज और ऊर्जा संसाध 63


z 100% प्रत््यक्ष विदेशी निवेश की स््वचालित स््ववीकृति:विदेशी निवेश
भारत मेें विद्युत उत्पादन के प्रमुख स्रोत को बढ़़ावा देने के लिए 100% प्रत््यक्ष विदेशी निवेश के स््वचालित स््ववीकृ ति
z तापीय ऊर््जजा: की घोषणा की गई है।
 तेल और कोयले का उपयोग करके उत््पन््न तापीय ऊर््जजा भारत मेें विद्युत z अल्ट्रा-मेगा सौर ऊर््जजा: राजस््थथान, गजु रात, तमिलनाडु और जम््ममू-कश््ममीर के
का एक महत्तत्वपर्ू ्ण स्रोत है। लद्दाख मेें अल्ट्रा मेगा सौर ऊर््जजा परियोजनाओ ं की घोषणा की गई है।
 वर््ष 2023 मेें, भारत की कोयले की खपत अनम ु ानित 23.1 हेक््ससा जल्ू ्स z उज््ज््वल डिस््ककॉम एश््ययोरेेंस योजना (उदय) सरकार द्वारा राज््य के स््ववामित््व
तक पहुचँ गई, जो पिछले वर्षषों की तलन ु ा मेें उल््ललेखनीय वृद्धि है। वाली विद्युत वितरण कंपनियोों (डिस््ककॉम) के परिचालन और वित्तीय बदलाव
को प्रोत््ससाहित करने के लिए शरू ु की गई थी, जिसका उद्देश््य वित्त वर््ष 2019
z जलविद्युत ऊर््जजा: तक समग्र तकनीकी और वाणिज््ययिक (एटी एण््ड सी) घाटे को 15% तक
 पन बिजली ऊर््जजा विद्युत उत््पन््न करने के लिए बहते पानी की ऊर््जजा का कम करना था।
उपयोग करती है और यह नवीकरणीय ऊर््जजा का एक रूप है। z सौभाग््य योजना: देश मेें सार््वभौमिक घरेलू विद्युतीकरण प्राप्त करना। यह
 2024 तक, 60% लोड फै क््टर पर लगभग 148,701 मेगा वाट की गरीबी रे खा से नीचे के परिवारोों को मफ्ु ्त विद्युत कनेक््शन प्रदान करता है और
अनमु ानित क्षमता के साथ, भारत की जल विद्युत क्षमता महत्तत्वपर्ू ्ण बनी कनेक््शन पर सब््ससिडी देता है।
हुई है। z राष्ट्रीय स््ममार््ट ग्रिड मिशन (National Smart Grid Mission-
z कम उपयोग की गई क्षमता: कम उपयोग की गई जल विद्युत क्षमता के NSGM): इसका उद्देश््य स््ममार््ट ग्रिड विकसित करना है जो नवीकरणीय ऊर््जजा
मामले मेें भारत विश्वस््तर पर चौथे स््थथान पर है। स्रोतोों को एकीकृ त करने और माँग प्रतिक्रिया तंत्र को बढ़़ावा देने के साथ-साथ
z परमाणु ऊर््जजा: कुशल और विश्वसनीय विद्युत पारे षण और वितरण को सक्षम बनाता है।
z ऊर््जजा दक्षता कार््यक्रम: उद्योगोों, भवनोों और उपकरणोों मेें ऊर््जजा संरक्षण और
 कोयला, गैस, जल-विद्युत और पवन ऊर््जजा के बाद परमाणु ऊर््जजा भारत मेें
दक्षता को बढ़़ावा देना। जैसे प्रदर््शन, उपलब््धधि और व््ययापार (Perform,
विद्युत का पाँचवाँ सबसे बड़़ा स्रोत है। Achieve, and Trade-PAT) योजना और ऊर््जजा सरं क्षण भवन सहि ं ता
 वर््ष 2024 तक, भारत अब लगभग 7,480 मेगावाट की कुल स््थथापित (Energy Conservation Building Code-ECBC)आदि।
क्षमता वाले 22 परमाणु रिएक््टरोों का संचालन करता है। z हरित ऊर््जजा गलियारे: संसाधन संपन््न क्षेत्ररों से खपत केें द्ररों तक नवीकरणीय
ऊर््जजा की निकासी और प्रसारण को सगु म बनाना।
भारत के विद्युत क्षेत्र की समस्याएँ
z अपर््ययाप्त विद्युत आपूर््तति: भारत अभी भी कई क्षेत्ररों मेें लगातार विद्युत की आगे की राह
कटौती और विद्युत की कमी का सामना करता है, जो औद्योगिक उत््पपादकता z भविष््य की सभ ं ावनाएँ: केें द्रीय विद्युत प्राधिकरण (Central Electricity
को प्रभावित करती है और नागरिकोों के जीवन की गणव ु त्ता को बाधित करती है। Authority-CEA) का अनमु ान है कि भारत वर््ष 2030 तक 267 गीगावॉट
z अपर््ययाप्त ग्रिड अवसरं चना: भारत मेें परु ानी और अपर््ययाप्त पावर ग्रिड कोयला आधारित क्षमता तक पहुचँ जाएगा।
अवसंरचना के कारण उच््च पारे षण और वितरण हानि होती है, जिससे z नवीकरणीय ऊर््जजा को बढ़़ावा देना: नवीकरणीय ऊर््जजा स्रोतोों की फै लाव
अक्षमताएँ और विद्युत की बर््बबादी होती है। मेें वृद्धि करना चाहिए।
z जीवाश््म ईधन ं पर निर््भरता: विद्युत उत््पपादन के लिए कोयले और अन््य z ग्रिड अवसरं चना का उन््नयन: नवीकरणीय ऊर््जजा को समायोजित करने और
जीवाश््म ईधन घाटे को कम करने के लिए पावर ग्रिड इन्फ्रास्टट्रक््चर का आधनि ु कीकरण करना
ं पर भारत की निर््भरता वायु प्रदषू ण, ग्रीनहाउस गैस उत््सर््जन
चाहिए।
और जलवायु परिवर््तन मेें योगदान करती है।
z वितरण प्रणालियोों का सदृु ढ़़ीकरण: घाटे को कम करेें और बिलिंग और
z विद्युत वितरण कंपनियोों (डिस््ककॉम) की वित्तीय व््यवहार््यता: भारत मेें
संग्रह प्रणालियोों मेें सधु ार करना।
विद्युत वितरण कंपनियोों को ट््राांसमिशन घाटे, अक्षम बिलिंग प्रणाली के कारण
z विनियामक ढाँचे का सदृु ढ़़ीकरण: टैरिफ सधु ारोों को लागू करेें और वित्तीय
वित्तीय संकट का सामना करना पड़ता है। स््थथिरता सनिश्
ु चित करेें।
z मूल््य निर््धधारण और टै रिफ सबं ंधी-मुद्दे: क्षेत्रीय टैरिफ असमानताए,ं क्रॉस- z ग्रामीण विद्युतीकरण पर ध््ययान: समावेशी विकास के लिए ग्रामीण क्षेत्ररों के
सब््ससिडी और सब््ससिडी के कारण वित्तीय असंतलन ु पैदा होता है और क्षेत्र की विद्युतीकरण को प्राथमिकता देना।
स््थथिरता मेें बाधा आती है। z सार््वजनिक जागरूकता और शिक्षा: ऊर््जजा सरं क्षण और जिम््ममेदार ऊर््जजा
z ग्रामीण क्षेत्ररों मेें ऊर््जजा पहुचँ : कई दरू दराज के गांवोों मेें अभी भी विद्युत खपत को बढ़़ावा देना।
कनेक््शन की कमी है, जो ग्रामीण समदु ायोों के सामाजिक-आर््थथिक विकास
और जीवन की गणव ु त्ता मेें बाधा उत््पन््न करती है। गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोत
ये प्राकृ तिक रूप से पुनः प्राप्त हो सकते हैैं तथा परम््परागत जीवाश््म ईधन
ं की
चुनौतियोों के समाधान के लिए की गई पहल
तुलना मेें इनका पर््ययावरण पर प्रभाव काफी कम होता है। ये स्रोत प्राकृ तिक
z राष्ट्रीय अवसरं चना पाइपलाइन: भारत सरकार ने वित्त वर््ष 2019-25 के प्रक्रियाओ ं या घटनाओ ं से ऊर््जजा का दोहन करते हैैं और इसे सीमित संसाधनोों
लिए राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन के तहत 111 लाख करोड़ रुपये ($1.4 को कम किए बिना या बड़़ी मात्रा मेें ग्रीन हाउस गैसोों का उत््सर््जन किए बिना
ट्रिलियन) आवंटित किए हैैं। ऊर््जजा के उपयोगी रूपोों मेें परिवर््ततित करते हैैं।

64  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


सौर ऊर्जा z भूमि और स््थथान-सबं ंधी आवश््यकताएँ: सौर ऊर््जजा संयंत्ररों के
अंतरराष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर््जजा एजेें सी (International Renewable लिए महत्तत्वपर्ू ्ण रूप से स््थथान की आवश््यकता होती है, जिससे
Energy Agency-IRENA) के अनुसार, "सौर ऊर््जजा का तात््पर््य सौर फोटो घनी आबादी वाले क्षेत्ररों या जहाँ भमू ि सीमित है, वहाँ चनु ौतियाँ
वोल््टटिक (पीवी) या सौर तापीय प्रौद्योगिकियोों का उपयोग कर के सूर््य के प्रकाश आती हैैं।
को विद्युत या ऊष््ममा मेें परिवर््ततित करना है। z सर््यू के प्रकाश पर निर््भरता: सौर ऊर््जजा सर््यू के प्रकाश पर
अत््यधिक निर््भर करती है, जो इसे सीमित धपू या लंबे समय
महत्त्वपूर््ण तथ्य
तक बादल छाए रहने वाले क्षेत्ररों के लिए अनपु यक्त ु बनाती है।
z स््थथापित सौर क्षमता: वर््ष 2024 तक, भारत की संचयी स््थथापित सौर
z ऊर््जजा भंडारण चुनौतियाँ: बाद मेें उपयोग के लिए अतिरिक्त
ऊर््जजा क्षमता लगभग 82.46 गीगावाट (GW) तक पहुचँ गई है।
सौर ऊर््जजा को संगहृ ीत करने के लिए बैटरी जैसे अतिरिक्त
z सौर पार््क विकास: वर््ष 2022 तक, 40 गीगावॉट से अधिक की संयक्त ु
उपकरणोों की आवश््यकता होती है, जिससे कुल लागत बढ़
क्षमता वाले 50 से अधिक सौर पार््क विकास के विभिन््न चरणोों मेें थे।
जाती है।
z सौर रूफटॉप सस्ं ्थथापन: वर््ष 2024 तक, भारत मेें सौर छतोों की संचयी
स््थथापित क्षमता लगभग 11.9 गीगावॉट थी। z पारेषण और वितरण चुनौतियाँ: मौजदू ा ग्रिडोों मेें एकीकरण के
z सबसे बड़़ा सौर ऊर््जजा सयं ंत्र: राजस््थथान मेें भडला सौर पार््क भारत के लिए सौर ऊर््जजा की विकेें द्रीकृ त प्रकृ ति को समायोजित करने के
सबसे बड़़े सौर ऊर््जजा संयंत्ररों मेें से एक है। इसकी कुल स््थथापित क्षमता लिए उन््नयन की आवश््यकता हो सकती है।
2.25 गीगावॉट है। z सौर तापीय संयंत्र सर््यू के प्रकाश को केें द्रित करने और विद्युत उत््पपादन, तापन
z सौर फोटोवोल््टटिक (PV) प्रणालियाँ सर््यू के प्रकाश को सीधे विद्युत मेें और शीतलन सहित विभिन््न अनप्रु योगोों के लिए ऊष््ममा उत््पन््न करने के लिए
परिवर््ततित करने के लिए सेमी कंडक््टर सामग्रियोों से बने सौर पैनलोों का उपयोग दर््पण या लेेंस का उपयोग करती हैैं।"
करती हैैं।
आगे की राह
z नवीकरणीय और सतत: सौर ऊर््जजा सर््यू के प्रकाश पर निर््भर
z ऊर््जजा भंडारण मेें प्रगति: बैटरी भडं ारण मेें अनसु ंधान एवं विकास और सौर
है, जो प्रचरु मात्रा मेें उपलब््ध है, तथाइससे ससं ाधनोों का क्षयन
ऊर््जजा मेें रुक-रुक कर होने वाली समस््यया से निपटने के लिए नवोन््ववेषी समाधान
हीीं होता है, तथा उत््सर््जन भी नहीीं होता है।
होना चाहिए।
z कार््बन पदचिह्न मेें कमी: सौर ऊर््जजा ग्रीनहाउस गैस उत््सर््जन
को कम करती है, जलवायु परिवर््तन से लड़ने मेें मदद करती है। z लागत मेें कमी: सौर ऊर््जजा को अधिक किफायती और सलु भ बनाने के लिए
z ऊर््जजा लागत मेें बचत: सौर पैनल संस््थथापित करने से विद्युत बिल तकनी की प्रगति, बड़े पैमाने की किफ़ायतेें (economies of scale)और
सहायक नीतियाँ होना चाहिए।
सौर ऊर््जजा के लाभ

मेें महत्तत्वपर्ू ्ण बचत होती है, जिससे पारंपरिक उपयोगिताओ ं पर


निर््भरता कम हो जाती है। z ग्रिड एकीकरण और बुनियादी ढाँचे का उन््नयन: सौर ऊर््जजा के निर््बबाध
z रोजगार सज ृ न और आर््थथिक विकास: सौर उद्योग रोजगार एकीकरण के लिए स््ममार््ट ग्रिड प्रौद्योगिकियाँ और ट््राांसमिशन/वितरण संवर्दद्धन
के अवसर उत््पन््न करता है और स््थथानीय अर््थव््यवस््थथाओ ं मेें होना चाहिए।
योगदान देता है। z सहायक नीतियाँ और प्रोत््ससाहन: सौर ऊर््जजा अपनाने को प्रोत््ससाहित करने
z ऊर््जजा स््वतंत्रता और सरु क्षा: ऊर््जजा स्रोतोों मेें विविधता लाने से के लिए फीड-इन टैरिफ, टैक््स क्रेडिट और सव्ु ्यवस््थथित अनमति
ु प्रक्रियाओ ं
जीवाश््म ईधन ं पर निर््भरता कम हो जाती है, जिससे ऊर््जजा सरु क्षा जैसी सरकारी पहल होने चाहिए।
बढ़ती है। निरंतर अनुसध
z ं ान और विकास: नक ु सान को दरू करने और सौर ऊर््जजा
z ऑफ-ग्रिड विद्युत आपूर््तति: सौर ऊर््जजा पारंपरिक ग्रिड पहुचँ के की दक्षता, विश्वसनीयता और व््ययापक उपयोग मेें सधु ार के लिए नवाचार मेें
बिना दरू दराज के क्षेत्ररों मेें विद्युत प्रदान कर सकती है।
निवेशको बढ़ावा देना चाहिए।
z रुक- रुक कर होना: सौर ऊर््जजा सर््यू के प्रकाश की उपलब््धता
पर निर््भर करती है, जिससे यह परिवर््तनशील हो जाती है और ज्वारीय ऊर्जा
सौर ऊर््जजा के नुकसान

इससे निरंतर आपर््तति ू के लिए ऊर््जजा भडं ारण या बैकअप सिस््टम ज््ववारीय ऊर््जजा नवीकरणीय ऊर््जजा का एक रूप है जो विद्युत उत््पन््न करने
की आवश््यकता होती है। के लिए महासागरोों और समुद्ररों मेें ज््ववारीय गतिविधियोों की शक्ति का
z उच््च प्रारंभिक लागत: सौर पैनलोों और उपकरणोों के लिए उपयोग करती है। इसमेें ज््ववारीय टर््बबाइनोों या बैराजोों का उपयोग शामिल है, जो
अग्रिम निवेश निषेधात््मक हो सकता है, जिससे संभावित रूप ज््ववारीय धाराओ ं की गतिज ऊर््जजा को लेकर, इसे प्रयोग करने योग््य विद्युत ऊर््जजा
से इसे अपनाने मेें बाधा आ सकती है।
मेें परिवर््ततित करते हैैं।

खनिज और ऊर्जा संसाध 65


महत्त्वपूर््ण तथ्य
हाइड्रोजन के रंग
z ज््ववारीय ऊर््जजा क्षमता: भारत के समद्रु तट पर अनमु ानित ज््ववारीय ऊर््जजा हरा पवन और सौर जैसे नवीकरणीय स्रोतोों से विद्युत का उपयोग
क्षमता लगभग 12,455 मेगावाट (MW)है। करके जल के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा उत््पपादित हाइड्रोजन शन्ू ्य
कार््बन डाइऑक््ससाइड उत््सर््जन उत््पन््न होता है।
z कच््छ की खाड़़ी: गजु रात मेें कच््छ की खाड़़ी को भारत मेें ज््ववारीय ऊर््जजा
विकास के लिए सबसे उपयक्त ु स््थलोों मेें से एक माना जाता है।
नीला जीवाश््म ईधनं (यानी, ग्रे, काला, या भरू ा हाइड्रोजन) से
उत््पपादित हाइड्रोजन जहाँ कार््बन डाइऑक््ससाइड को कै प््चर
ज््ववारीय ऊर््जजा के लाभ ज््ववारीय शक्ति के नुकसान किया जाता है और या तो संग्रहीत या पुन: उपयोग किया
z स््वच््छ और नवीकरणीय: z पर््ययावरणीय प्रभाव: संयंत्ररों को जाता है।
अन््य नवीकरणीय ऊर््जजा संयंत्ररों विद्युत उत््पपादन के लिए अशांत ग्रे भाप-मीथेन सुधार का उपयोग करके प्राकृ तिक गैस से
की तलन ु ा मेें इससे कोई प्रदषू ण जल की आवश््यकता होती है, हाइड्रोजन निकाला जाता है। यह आज दनिु या मेें हाइड्रोजन
नहीीं है और यह अधिक स््थथान भी और इसके लिए एक बड़़ी नीींव उत््पपादन का सबसे आम उत््पपादन है।
नहीीं घेरता है। बनाने की आवश््यकता होती है।
फिरोजा मीथेन (मीथेन पायरोलिसिस) के थर््मल विभाजन द्वारा
z पूर््ववानुमानित और विश्वसनीय: इस प्रकार के जल के अदं र निर््ममाण
उत््पपादित हाइड्रोजन। जहाँ कार््बन डाइऑक््ससाइड के स््थथान
अधिकांश क्षेत्ररों मेें प्रतिदिन दो से निवास स््थथान का विनाश हो
पर ठोस कार््बन तरीका होता है।
उच््च ज््ववार और दो निम््न ज््ववार सकता है।
का अनभु व होता है। इस चक्र की भूरा/काला गैसीकरण का उपयोग करके कोयले से निकाला गया
z उच््च निर््ममाण लागत:समद्री ु
आसानी से भविष््यवाणी की जाती हाइड्रोजन।
जल की अशांत, संक्षारक प्रकृ ति
है और कई अन््य नवीकरणीय को झेलने के लिए पर््ययाप्त मजबतू पीला विभिन््न स्रोतोों (यानी, नवीकरणीय और जीवाश््म ईधन) ं से
संसाधनोों के विपरीत, यह सरं चनाओ ं का निर््ममाण करना ग्रिड विद्युत का उपयोग करके इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा उत््पपादित
अप्रत््ययाशित परिवर््तनोों के अधीन होगा, जो कोई सस््तता उपक्रम नहीीं हाइड्रोजन।
नहीीं है। सफेद औद्योगिक प्रक्रियाओ ं के उपोत््पपाद के रूप मेें उत््पपादित
हो सकता है।
z लंबे समय तक चलने वाले हाइड्रोजन, इसके (दर््ल
ु भ) प्राकृ तिक रूप मेें होने वाले
z उपयुक्त स््थथानोों की कमी: तट
उपकरण: अधिकांश ज््ववारीय हाइड्रोजन को भी संदर््भभित करता है।
के पास का प्रत््ययेक समद्री
ु परिदृश््य
सयं ंत्ररों का औसत अनमु ानितआयु
ज््ववारीय ऊर््जजा सवु िधा के लिए स््वदेशी विनिर््ममाण क्षमताओ ं का विकास।
75-100 वर्षषों का कार््यशील 
उपयक्त ु नहीीं है।  उद्योग के लिए निवेश और व््ययापार के अवसरोों को आकर््षषित करना।
उपयोग है। इसकी तलन ु ा मेें, एक
सौर पैनल आमतौर पर औसतन z व््ययापक असगं तता: इजं ीनियरिंग  रोजगार और आर््थथिक विकास के अवसर पैदा करना।
25-30 वर्षषों के बाद खराब हो खामियाँ और तकनीकी त्रुटियाँ
 अनस ु ंधान एवं विकास परियोजनाओ ं को सहायताव बढ़ावा देना।
जाता है। जैसे अत््यधिक टरबाइन विफलता
दर, कम जल की स््थथिति के दौरान z वर््ष 2030 तक मिशन के अनुमानित परिणाम हैैं:
z कम गति पर प्रभावी: ज््ववारीय
विद्युत पैदा करने मेें विफलता,  देश मेें लगभग 125 गीगावॉट की संबद्ध नवीकरणीय ऊर््जजा क्षमता वृद्धि के
ऊर््जजा प्रणालियाँ तब भी ऊर््जजा
उत््पन््न कर सकती हैैं जब उनके और मजबतू धाराएँ टरबाइनोों को साथ प्रति वर््ष कम से कम 5 एमएमटी (मिलियन मीट्रिक टन) की हरित
ऊपर से या उनके बीच से गजु रने ठीक से काम करने से रोक रही हैैं। हाइड्रोजन उत््पपादन क्षमता का विकास करने का लक्षष्य है।
वाला जल अपेक्षाकृ त धीमी गति यह इसलिए भी असगं त है क््योोंकि  कुल मिलाकर ₹8,00,000 करोड़ से अधिक का निवेश करना।

से चल रहा हो। यह ज््ववार प रही निर््भर है।  छह लाख से अधिक नौकरियोों का सृज नकरना।

 जीवाश््म ईधन ं आयात मेें ₹1,00,000 करोड़ से अधिक की कमी करना।


हाइड््ररोजन आधारित ऊर्जा
 वार््षषिक ग्रीनहाउस गैस उत््सर््जन मेें लगभग 50 एमएमटी की कमी करना।
z भारत ने राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन शरू ु किया। मिशन के उद्देश््य हैैं-
 भारत को दनि ु या मेें हरित हाइड्रोजन का अग्रणी उत््पपादक और आपर््ततिू कर््तता हाइब्रिड नवीकरणीय ऊर्जा
बनाना। हाइब्रिड नवीकरणीय ऊर््जजा से तात््पर््य विद्युत उत््पन््न करने के लिए दो या दो
 हरित हाइड्रोजन और उसके व््ययुत््पन््न उत््पपादोों के निर््ययात के लिए अवसरोों से अधिक नवीकरणीय ऊर््जजा स्रोतोों के समन््वय से है। यह ऊर््जजा उत््पपादन को
का निर््ममाण करना। अधिकतम करने, संयंत्र की स््थथिरता/टिकाऊपन मेें सधु ार करने और संसाधन
 आयातित जीवाश््म ईधन ं और फीडस््टटॉक पर निर््भरता मेें कमी उपयोग को अनक ु ू लित करने के लिए परू क तरीके से विभिन््न नवीकरणी ऊर््जजा
करना। प्रौद्योगिकियोों जैसे सौर, पवन, जल, बायोमास या भतू ापीय को जोड़ती है।

66  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


लाभ नुकसान z प्रचुरता और उपलब््धता: प्राकृ तिक गैस प्रचरु मात्रा मेें उपलब््ध है और
z निर््बबाध विद्युत आपूर््तति: हाइब्रिड z जटिल नियंत्रण प्रक्रिया: प्राकृ तिक भडं ारोों से व््ययापक रूप से उपलब््ध है। कोयले और तेल की तलन ु ा
नवीकरणीय प्रणालियाँ बिना विभिन््न प्रकार के ऊर््जजा स्रोतोों मेें अपेक्षा कृ त कम कार््बन उत््सर््जन के कारण यह स््वच््छ ऊर््जजा स्रोतोों की ओर
किसी रुकावट के लगातार विद्युत के उपयोग के कारण, प्रणालियोों परिवर््तन मेें एक महत्तत्व पर्ू ्ण घटक है।
प्रदान करती हैैं, क््योोंकि सौर ऊर््जजा से सबं ंधित कुछ ज्ञान की प्राकृतिक गैस के गुण:
की मौसमी क्षतिपर््तति ू पवन ऊर््जजा आवश््यकता होती है। विभिन््न z अत््यधिक ज््वलनशीलता: प्राकृ तिक गैस अत््यधिक ज््वलनशील होती है,
उत््पपादन द्वारा की जा सकती है। ऊर््जजा स्रोतोों के संचालन, उनकी जिसका मख्ु ्य कारण इसमेें मीथेन की मात्रा अधिक होना है।
नवीकरणीय स्रोतोों का सर्वोत्तम परस््पर क्रिया और समन््वय को
z z भौतिक विशेषताएँ: यह रंगहीन, स््ववादहीन और गंधहीन होती है। रिसाव का
नियंत्रित किया जाना चाहिए और
उपयोग: यद्यपि बैटरियाँ ऊर््जजा पता लगाने के लिए आमतौर पर प्राकृ तिक गैस मेें गधं क मिलाया जाता है।
यह जटिल हो सकता है।
को संग्रहीत करने के लिए संयंत्र z घनत््व: प्राकृ तिक गैस हवा की तलन ु ा मेें कम घनी होती है, जिससे रिसाव की
से जड़ु ़ी होती हैैं, इसलिए तेज धपू z उच््च सस्ं ्थथापन लागत:इनकी
स््थथिति मेें यह जल््ददी से नष्ट हो जाती है, जिससे खतरनाक संचय का खतरा
रखरखाव लागत कम है, लेकिन
वाले दिनोों और तेज हवा की गति कम हो जाता है।
संयंत्र की सस्ं ्थथापन के लिए
वाले दिनोों मेें उत््पन््न अतिरिक्त z सक्षा
ं रकता: अपनी उच््च मीथेन और कम कार््बन संरचना के कारण, प्राकृ तिक
प्रारंभिक निवेश सौर ऊर््जजा संयंत्र
ऊर््जजा की कोई बर््बबादी नहीीं होती है। गैस अन््य जीवाश््म ईधन ं की तलन ु ा मेें कम सक्ं षारक होती है।
की तलन ु ा मेें अधिक है।
z रखरखाव लागतकमी:हाइब्रिड z प्राकृतिक गै स पर््ययावरण की दृष्टि से स््वच््छ है क््योोंकि, अन््य
z बैटरीका लाइफ़ कम होना:
नवीकरणीय ऊर््जजा प्रणालियोों की सयं ंत्र से जड़ु ़ी बैटरियोों का जीवन गैसोों के विपरीत, प्राकृ तिक गैस प्रदषू कोों के रूप मेें वायमु डं ल मेें
रखरखाव लागत पारंपरिक जनरे टर कम हो सकता है क््योोंकि वे अक््सर बहुत कम उप-उत््पपाद उत््सर््जजित करती है।
की तलन ु ा मेें कम है जो ईधन ं के गर्मी, बारिश आदि जैसे प्राकृ तिक z किफायती: यह अन््य जलने वाले ईधन ं जितना महगं ा नहीीं है।
रूप मेें डीजल का उपयोग करते हैैं। कारकोों के संपर््क मेें रहती हैैं। z यह खाना पकाने या बिजली के उत््पपादन के उद्देश््योों के लिए
z उच््च दक्षता: हाइब्रिड सौर ऊर््जजा z जुड़ने योग््य उपकरणोों की सवि ु धाजनक है, इसे पाइपलाइनोों की मदद से सीधे उपभोक्ता
प्राकृतिक गैस के लाभ

प्रणालियाँ पारंपरिक जनरे टर की सख् ं ्यया सीमित है हाइब्रिड सौर के घर से जोड़़ा जा सकता है।
तलनु ा मेें अधिक कुशलता से काम ऊर््जजा प्रणाली से जड़ु ने योग््य z प्रयोग करने के लिए सरु क्षित : प्राकृ तिक गैस हवा से हल््ककी
करती हैैं जो कुछ शर्ततों के तहत उपकरणोों की संख््यया सीमित होती होती है। रिसाव की स््थथिति मेें, यह आग से बचने के लिए तेजी
ईधन ं बर््बबाद करते हैैं। है। से हवा मेें फै ल जाता है।
z प्रचुर मात्रा मेें उपलब््ध: अध््ययन के अनस ु ार, उपलब््ध
गैस आधारित अर््थव्यवस्था
प्राकृ तिक गैस की मात्रा कच््चचे तेल या ऐसे अन््य उत््पपादोों से
z गैस-आधारित अर््थव््यवस््थथा की अवधारणा एक आर््थथिक मॉडल को संदर््भभित अधिक है।
करती है जो उत््पपादन, वितरण और खपत के लिए प्राथमिक ऊर््जजा स्रोत के रूप
z प्राकृतिक गै स पहुच ँ ाना आसान है: भारत मेें घरोों तक गैस
मेें प्राकृ तिक गैस पर बहुत अधिक निर््भर करती है। यह मॉडल विद्युत उत््पपादन,
की डिलीवरी के वर््तमान तरीके को ध््ययान मेें रखते हुए, बहुत
औद्योगिक प्रक्रियाओ,ं परिवहन और आवासीय अनप्रु योगोों सहित विभिन््न
सारे धातु सिलेेंडरोों का उपयोग किया जा रहा है। प्राकृ तिक गैस
क्षेत्ररों मेें प्राकृ तिक गैस के उपयोग को शामिल करता है।
पहुचँ ाने के लिए पाइपोों के नेटवर््क की आवश््यकता है।
z भारत मेें प्राकृतिक गैस: वर््तमान मेें, भारत के ऊर््जजा मिश्रण मेें प्राकृ तिक
गैस की हिस््ससेदारी केवल 6% है, जो वैश्विक औसत 23% से काफी कम है। z सीमित मात्रा: भारत मेें प्राकृ तिक गैस का विशाल भडं ार नहीीं
है। देश मेें खपत होने वाली अधिकांश प्राकृ तिक गैस को दसू रे
z बढ़ती हिस््ससेदारी और भविष््य मेें वद्धि ृ :भारत सरकार ने वर््ष 2030 तक ऊर््जजा
देशोों से आयात करना पड़ता है।
मिश्रण मेें प्राकृ तिक गैस की हिस््ससेदारी को 15% तक बढ़़ाने का महत्त्वाकांक्षी
लक्षष्य रखा है। हालाँकि भारत की वर््तमान प्राकृ तिक गैस खपत वैश्विक औसत z प्राकृतिक गैस अत््यधिक दहनशील: चकि ँू प्राकृ तिक गैस
प्राकृतिक गैस के नुकसान

का लगभग एक तिहाई है, लेकिन यह अनमु ान लगाया गया है आने वाले वर्षषों गंधहीन होती है, इसलिए रिसाव का पता लगाना भी मश््ककिल ु
मेें इसमेें पर््ययाप्त वृद्धि होगी। होता है।
z आयात: भारत तरलीकृ त प्राकृ तिक गैस (एलएनजी) के रूप मेें अपनी प्राकृ तिक z प्राकृतिक गैस ऊर््जजा का एक गैर-नवीकरणीय स्रोत:
गैस का 55% आयात करता है, जो घरेलू उत््पपादन मेें वृद्धि और आपर््तति ू स्रोतोों विशेषज्ञञों का कहना है कि भविष््य मेें प्राकृ तिक गैस समाप्त हो
के विविधीकरण की आवश््यकता को रे खांकित करता है। जाएगी और हमेें इसे अन््य देशोों से आयात करना होगा।
z प्रशासन: भारत मेें, ओएनजीसी और ऑयल इडि ं या लिमिटेड द्वारा उत््पपादित z कार््बन डाइऑक््ससाइड उत््सर््जन:: यह कार््बन डाई ऑक््ससाइड
प्राकृ तिक गैस का 80% प्रशासित मल्ू ्यतंत्र (Administered Price उत््सर््जजित करता है जो हमारे वायमु डं ल के लिए हानिकारक है।
Mechanism) के अधीन है, जिस का अर््थ है कि इसकी कीमत सरकार द्वारा वायमु डं ल मेें कार््बन डाई ऑक््ससाइड के निरंतर प्रवेश से जलवायु
नियंत्रित की जाती है। परिवर््तन और भमू डं लीय उष््मन को भी बढ़़ावा मिलेगा।

खनिज और ऊर्जा संसाध 67


 अपशिष्टटों के पनु ः उपयोग से प्रदषू ण मेें कमी आती है।
z लंबी प्रसस्ं ्करण प्रक्रिया: चकि ँू प्राकृ तिक गैस मेें अन््य घटक
होते हैैं जिन््हेें आवासीय या व््ययावसायिक उद्देश््योों के लिए उपयोग  वातावरण मेें शामिल होने वाली ग्रीन हाउस गैसोों की मात्रा को कम करता है।
करने से पहले हटाना पड़ता है, इसलिए इसे संसाधित करने मेें  इसकी हाइड्रोफोबिक प्रकृ ति सड़कोों और संरचनाओ ं से पानी की उचित
बहुत समय और श्रम-शक्ति लगती है। निकासी मेें सहायता करती है।
z रिसाव: भले ही यह हवा से हल््कका है और आसानी से फै ल पर्यावरणीय समस्याएँ
सकता है, प्राकृ तिक गैस के साथ एक बड़़ा खतरा यह है कि z भूजल सदं ू षण: कोयले के दहन के बाद प्राप्त फ््ललाई ऐश मेें तत्तत्ववों (जैसे
चकि
ँू यह रंगहीन, गंधहीन और स््ववादहीन है, अगर यह रिसाव आर्सेनिक, बेरियम, बेरिलियम, आदि) की सांद्रता बढ़ जाती है।
शरू ु कर दे, तो रिसाव का पता लगाना बहुत मश््ककिलह
ु ोता है। z पारिस््थथितिकी: फ््ललाई ऐश की धल ू ऊपरी मृदा पर जमा हो जाती है, जिससे
इन सभी नुकसानोों के बावजूद, प्राकृ तिक गैस इस दनि ु या मेें सबसे सस््तते और pH बढ़ जाता है और आस-पास के पारिस््थथिति की तंत्र मेें पौधोों और जानवरोों
आसानी से उपलब््ध जीवाश््म ईधन ं मेें से एक है
। यह माना जा सकता है कि पर असर पड़ता है।
प्राकृ तिक गैस अन््य जीवाश््म ईधन
ं के लिए एक व््यवहार््य विकल््प के रूप मेें काम z स््ववास््थ््य के लिए खतरा: फ््ललाई ऐश मेें भारी धातओ
ु ं (जैसे कै डमियम, बेरियम,
कर सकती है जब तक कि कुछ और अधिक कुशल नहीीं मिल जाता। क्रोमियम, तांबा, सीसा, पारा आदि) की थोड़़ी मात्रा होती है जो स््ववास््थ््य के
लिए हानिकारक हैैं।
फ्लाई ऐश लाभ
लिथियम भंडार
फ््ललाई ऐश का उपयोग
भारत सरकार के परमाणु ऊर््जजा विभाग के परमाणु खनिज अन््ववेषण और
अन््य-15.84% कृषि-1.02% अनुसंधान निदेशालय (एएमडी) के शोधकर््तताओ ं के अनुसार, कर््ननाटक के
माइन फीलिंग
6.76% मांड्या जिले मेें संभावित लिथियम भंडार पाए गए हैैं। यह खोज महत्तत्वपूर््ण है
सीमेेंट- 48.13% पुनर्गग्रहण - 8.72% क््योोंकि इस भंडार को देश के लिथियम के सबसे बड़़े स्रोत के रूप मेें माना जा
रहा है, जो एक ऐसा तत्तत्व है जो इलेक्ट्रिक वाहनोों मेें उपयोग की जाने वाली
बैटरी तकनीक मेें तेजी से अपनाया जा रहा है।
z इससे पहले, भारत ने जम््ममू और कश््ममीर के रियासी जिले मेें लगभग 5.9
सड़केें एवं तटबंध मिलियन टन की मात्रा मेें पर््ययाप्त लिथियम भडं ार की खोज की है।
13.02%
ई ंटेें - 6.51% लिथियम खनन से जुड़़ी चुनौतियााँ:
z नाजुक हिमालयी पारिस््थथितिकी तंत्र पर प्रभाव: हिमालय, पर््ययावरणीय
z फ््ललाई ऐश कोयला थर््मल पावर प््ललाांट मेें कोयले के दहन का एक अवांछित, रूप से कमजोर और संवेदनशील क्षेत्र होने के कारण, अनियोजित विकास
बिना जला हुआ अवशेष है। यह भट्टी मेें कोयला जलाने के दौरान ग्रिप गैसोों गतिविधियोों के परिणामस््वरूप दीर््घकालिक नकारात््मक प्रभावोों के प्रति
के साथ उत््सर््जजित होता है और इलेक्ट्रोस््टटैटिक प्रीसिपिटेटर््स का उपयोग करके संवेदनशील है।
एकत्र किया जाता है। पलायक (क्षणिक) धल ू उत््सर््जन को कम करने के लिए z जैव विविधता ह्रास:जम््ममू-कश््ममीर के बीच के क्षेत्र सहित हिमालयी क्षेत्र
प्रीसिपिटेटर््स की मदद से एकत्रित फ््ललाई ऐश को गीले घोल मेें परिवर््ततित मेें खनन कार्ययों से जैव विविधता को भारी पैमाने पर नकु सान हो सकता है।
किया जाता है। z खनन गतिविधियोों से क्षेत्र की विशिष्ट पारिस््थथितिक विविधता पर प्रतिकूल
z फिर इसे स््लरी पाइपलाइनोों के माध््यम से वैज्ञानिक रूप से डिजाइन किए गए प्रभाव पड़ सकता है।
राख के तालाबोों तक पहुचँ ाया जाता है। z प्रतिकूल पर््ययावरणीय प्रभाव: अयस््क से लिथियम के निष््कर््षण से जल,
z कंक्रीट और सीमेेंट मेें उपयोगिता के सदं र््भ मेें: यह उच््च परम शक्ति, बढ़़ी मिट्टी और वायु प्रदषू ण सहित पर््ययावरणीय परिणाम होते हैैं।
हुई स््थथायित््व, बेहतर कार््यशीलता आदि प्रदान करता है।  निष््कर््षण प्रक्रिया अत््यधिक जल-गहन है, प्रति टन लिथियम के लिए

z फ््ललाई ऐश ईटोोंं के रूप मेें उपयोग के सदं र््भ मेें: यह मिट्टी की खदु ाई को लगभग 2.2 मिलियन लीटर जल की आवश््यकता होती है।
कम करता है, समान गणव ु त्ता वाली मिट्टी की ईटं की तलन ु ा मेें ईटं की लागत z नदी प्रणालियोों पर प्रभाव: हिमालय कई नदियोों के उद्गम स््थल के रूप मेें
कम होती है, आदि। कार््य करता है, जिससे कोई भी खनन गतिविधि परू े समीपवर्ती पारिस््थथितिकी
z फ््ललाई ऐश के उपयोग के अन््य लाभ: तंत्र के लिए एक संभावित खतरा बन जाती है।
 अधिकांश निर््ममाण मिश्रणोों के लिए ऊपरी मिट्टी को सामग्री के रूप मेें  खनन कार्ययों से उत््पन््न प्रदष
ू ण का नदी तंत्ररों पर दरू गामी परिणाम हो
प्रतिस््थथापित करके मिट्टी के कटाव को कम करता है। सकता है।

68  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z खाद्य सरु क्षा सबं ंधी चिंताएँ: लिथियम का खनन और प्रसंस््करण उच््च कार््बन z स््थथानीय उपसंरचना निर््ममाताओ,ं संस््थथापना जहाजोों और प्रशिक्षित श्रमिकोों जैसे
उत््सर््जन, जल की खपत और भमू ि उपयोग के तरीकोों के कारण खाद्य सरु क्षा सहायक बुनियादी ढाँचे की कमी।
के लिए जोखिम पैदा कर सकता है। z तटवर्ती पवन फार्ममों की तलनु ा मेें मजबतू सरं चनाओ ं और नीींव की आवश््यकता
 चिली जैसे देश, जहाँ एक टन लिथियम पैदा करने के लिए बड़़ी मात्रा के कारण अपतटीय पवन टर््बबाइनोों की सस्ं ्थथापना लागत अधिक होती है।
मेें पानी की आवश््यकता होती है, जल संसाधनोों पर संभावित प्रभाव पर
भारत मेें अपतटीय पवन ऊर्जा विकास पर अनुशंसाएँ
प्रकाश डालते हैैं।
z नवीकरणीय खरीद दायित््व: सरकार द्वारा निर््ददिष्ट बाध््य संस््थथाएँ जैसे विद्युत
अपतटीय पवन ऊर्जा वितरण कंपनियाँ, खल ु ी पहुचँ वाले उपभोक्ता और कै प््टटिव उपयोगकर््तता अपनी
अपतटीय पवन ऊर््जजा मेें जल निकायोों, विशेष रूप से महासागरोों मेें पवन फार्ममों कुल विद्युत खपत का एक न््ययूनतम हिस््ससा नवीकरणीय ऊर््जजा स्रोतोों से प्राप्त
की स््थथापना शामिल है। ये फार््म बिजली पैदा करने के लिए मजबूत, लगातार कर सकते हैैं, इसे "नवीकरणीय खरीद दायित््व" के नाम से जाना जाता है।
चल रही समद्री ु हवाओ ं का उपयोग करते हैैं। अपतटीय पवन फार्ममों मेें या तो z निम््न कर: भारत मेें, जीएसटी काननू विद्युत और विद्युत की बिक्री को जीएसटी
समद्रु तल पर स््थथिर आधार वाली टर््बबाइनोों का उपयोग किया जा सकता है, या से छूट देता है। इसके विपरीत, जब पवन ऊर््जजा उत््पपादन कंपनियाँ परियोजना
फिर तैरती हुई पवन टर््बबाइनोों का उपयोग किया जा सकता है, जो गहरे पानी के स््थथापित करने के लिए सामान और/या सेवाएँ खरीदने के लिए जीएसटी का
लिए उपयुक्त होती हैैं। यह तकनीक वीकरणीय ऊर््जजा का उत््पपादन करने के लिए भगु तान करती हैैं तो वे इनपटु टैक््स क्रेडिट का दावा नहीीं कर सकती हैैं।
खलेु पानी मेें विशाल पवन संसाधनोों का लाभ उठाती है, जो ग्रीन हाउस गैस z फीड-इन टै रिफ: डिस््ककॉम फीड-इन टैरिफ (FIT) नियमोों को अपना सकते हैैं
उत््सर््जन मेें कमी और ऊर््जजा स्रोतोों के विविधीकरण मेें महत्तत्वपर्ू ्ण योगदान देती है। और अपतटीय पवन ऊर््जजा की खरीद को अनिवार््य बना सकते हैैं। विकास के
अपतटीय पवन ऊर्जा के लाभ प्रारंभिक चरण मेें अपतटीय पवन ऊर््जजा को एफआईटी के माध््यम से तब तक
बढ़़ावा दिया जा सकता है जब तक कि यह आर््थथिक रूप से व््यवहार््य न हो जाए।
z भूमि की सीमित उपलब््धता: भारत मेें, जहाँ भमू ि सीमित है और जनसंख््यया
बढ़ रही है, जल निकायोों पर स््थथित बड़़े पवन फार््म महत्तत्वपर्ू ्ण होोंगे। z मानित उत््पपादन प्रावधान (Deemed Generation Provision):
संभावित रूप से उत््पन््न बड़़ी मात्रा मेें बिजली को अवशोषित करने मेें राज््य
z दक्षता: जल स्रोतोों के ऊपर हवा की गति तेज़ और दिशा मेें एक समान
लोड डिस््पपैचसेेंटर (State Load Dispatch Centres) की अक्षमता के
होती है। परिणाम स््वरूप, अपतटीय पवन फार््म प्रतिस््थथापित क्षमता से अधिक
कारण अपतटीय पवन परियोजनाओ ं को कटौती की चितं ाओ ं से सरु क्षा की
बिजली पैदा करते हैैं।
आवश््यकता है। इसके लिए अपतटीय पवन को "मानित उत््पपादन प्रावधान"
z निरंतर ऊर््जजा उत््पपादन: चकि ँू दिन के समय अपतटीय हवा तेज होती है,
दिया जा सकता है।
इसलिए जब उपभोक्ता माँग अपने उच््चतम स््तर पर होती है तो यह अधिक
z एक दूरदर्शी नीति का निर््ममाण: लागत कम करने और ऑफ-टेकर जोखिमोों
ससु ंगत और कुशल विद्युत उत््पपादन सनिश् ु चित करती है।
के संबंध मेें दीर््घकालिक सरु क्षा सनिश्
ु चित करने के लिए उद्देश््योों को स््पष्ट करेें।
z लंबे परिचालन घंटे: अपतटीय पवन ऊर््जजा, तटवर्ती पवन फार्ममों की तलन ु ा
मेें अपने उच््च क्षमता उपयोग कारक (Capacity Utilisation Factor-
CUF) के कारण लंबे समय तक परिचालन की अनमति ु देती है। प्रमुख शब्दावलियाँ
z ऊर््जजा सरु क्षा और विविधीकरण: अपतटीय पवन ऊर््जजा का विकास भारत के ऊर््जजा के पारंपरिक और गैर-पारंपरिक स्रोत; ऊर््जजा टोकरी; गैस
ऊर््जजा मिश्रण मेें विविधता लाने, जीवाश््म ईधनं पर निर््भरता कम करने और ऊर््जजा आधारित अर््थ व््यवस््थथा; विद्युत शक्ति; ऊष््ममा विद्युत; अपशिष्ट से
सरु क्षा बढ़़ाने मेें मदद करता है। यह विद्युत का एक विश्वसनीय और स््वदेशी धन; उच््च और निम््न राख सामग्री; जलविद्युत ऊर््जजा; अविकसित
क्षमता; भंडारण की वैकल््पपिक व््यवस््थथा; परमाणु शक्ति; पारेषण और
स्रोत प्रदान करता है, जिससे आयातित ईधन ं पर निर््भरता कम हो जाती है।
वितरण हानियाँ; आदि।
z बुनियादी ढाँचे का विकास: अपतटीय पवन परियोजनाओ ं के लिए बंदरगाहोों,
ट््राांसमिशन नेटवर््क और ग्रिड इटं रकनेक््शन जैसे बनि
ु यादी ढाँचे की स््थथापना की विगत वर्षषों के प्रश्न
आवश््यकता होती है।
z भारत की लंबी तट रे खा की संसाधन संभावनाओ ं पर टिप््पणी कीजिए तथा
अपतटीय पवन ऊर्जा की चुनौतियााँ इन क्षेत्ररों मेें प्राकृ तिक आपदा तैयारी की स््थथिति पर प्रकाश डालिए। (2023)
z उत््पपादन की उच््च लागत: भारत मेें अपतटीय पवन शल्ु ्क 7-9 रुपये प्रति z 'डेक््कनट्रैप' की प्राकृ तिक ससं ाधन क्षमता पर चर््चचा कीजिए। (2022)
यनिू ट के बीच होने की सभं ावना है, जबकि तटवर्ती पवन के लिए यह 2.8- z भारत मेें पवन ऊर््जजा की क्षमता की जाँच करेें और इसके सीमित स््थथानिक प्रसार
2.9 रुपये प्रति यनि
ू ट है। के कारणोों की व््ययाख््यया करेें।  (2022)
z अपतटीय पवन फार्ममों को लहरोों और यहाँ तक कि तेज़ हवाओ ं की हानिकारक z विश्व मेें खनिज तेल के असमान वितरण के बहुआयामी प्रभावोों की विवेचना
क्रिया के कारण उच््च रख रखाव लागत की आवश््यकता होती है। कीजिए।  (2021)

खनिज और ऊर्जा संसाध 69


z भारत गोोंडवाना लैैंड के देशोों मेें से एक होने के बावजदू , इसका खनन उद्योग z प्राकृ तिक संसाधन-समृद्ध अफ्रीका के उभरते आर््थथिक क्षेत्र मेें भारत अपना
इसके सकल घरेलू उत््पपाद (जीडीपी) मेें प्रतिशत के हिसाब से बहुत कम योगदान स््थथान किस प्रकार देखता है? (2015)
देता है। विवेचना कीजिए। (2021) z विश्व मेें लौह एवं इस््पपात उद्योग के स््थथानिक प्रतिरूप मेें परिवर््तन का वर््णन
z कच््चचे माल के स्रोत से दरू लौह एवं इस््पपात उद्योगोों की वर््तमान स््थथिति का कीजिए। (2014)
उदाहरण देकर वर््णन कीजिए। (2020) z जीवाश््म ईधन ं की बढ़ती कमी के साथ, भारत मेें परमाणु ऊर््जजा का महत्तत्व और
भी अधिक बढ़ रहा है। भारत एवं विश्व मेें परमाणु ऊर््जजा उत््पपादन हेतु आवश््यक
z भारत मेें सौर ऊर््जजा की प्रचरु सभं ावनाएँ हैैं, हालाँकि इसके विकास मेें क्षेत्रीय
कच््चचे माल की उपलब््धता परविवेचना कीजिए। (2013)
भिन््नताएँ हैैं। विस््ततृत वर््णन कीजिए। 
z ऐसा कहा जाता है कि भारत के पास शेल तेल और गैस का पर््ययाप्त भडं ार है,
 (2020)
जो एक चौथा ईसदी तक देश की जरूरतोों को परू ा कर सकता है। हालाँकि,
z भारत आर््कटिक प्रदेश के ससं ाधनोों मेें किस कारण गहन रूचि ले रहा है? संसाधनोों का दोहन एजेेंडे मेें शीर््ष पर नहीीं दिखता है। उपलब््धता और इसमेें
 (2018) शामिल मद्ददों
ु पर समालोचनात््मक विवेचना कीजिए।  (2013)

70  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


भारत मेें जल संसाधन और उनका
10 प्रबंधन
भारत, जहाँ दनि ु या की 18% आबादी रहती है, के पास वैश्विक मीठे पानी के
केवल 4% संसाधनोों तक पहुचँ है। मीठे पानी का प्राथमिक स्रोत मानसनू है, जो
जल संसाधन प्रबंधन
औसतन 4,000 बिलियन क््ययूबिक मीटर (बीसीएम), या लगभग 1,170 मिली (WATER RESOURCE MANAGEMENT-WRM)
मीटर वार््षषिक वर््षषा का स्रोत है है। z विश्व बैैंक जल संसाधन प्रबंधन को "सभी जल उपयोगोों के लिए जलमात्रा
z मानसन ू पर निर््भरता: अधिकांश भारतीय राज््य अपनी जल की जरूरतोों को और गुणवत्ता दोनोों के संदर््भ मेें जल संसाधनोों की योजना बनाने, विकसित
परू ा करने के लिए मानसनू के मौसम पर बहुत अधिक निर््भर हैैं। करने और प्रबंधन करने की प्रक्रिया" के रूप मेें परिभाषित करता है।
z प्रादेशिक असमानताएँ: जबकि कुछ उत्तरी राज््योों मेें जल संसाधनोों की प्रचरु ता
 इसमेें संस््थथान, बनि
ु यादी ढाँचा, प्रोत््ससाहन और सचू ना प्रणालियाँ शामिल
है, वहीीं राजस््थथान, महाराष्टट्र और तमिलनाडु जैसे अन््य राज््योों को जल की
हैैं जो जल प्रबंधन का समर््थन और मार््गदर््शन करती हैैं।
भारी कमी का सामना करना पड़ता है। यह असमानताएँ इस महत्तत्वपर्ू ्ण संसाधन
 इसमेें बाढ़, सख ू ा और प्रदषू ण सहित जल संबंधी जोखिमोों का प्रबंधन
तक स््थथायी पहुचँ सनिश्ु चित करने के लिए देश भर मेें प्रभावी जल प्रबंधन और
वितरण रणनीतियोों की महत्तत्वपर्ू ्ण आवश््यकता को उजागर करती हैैं। भी शामिल है।

संवैधानिक प्रावधान: सातवीीं अनुसूची महत्त्वपूर््ण तथ्य


z केें द्रीय सचू ी (सचू ी I की प्रविष्टि 56): अतं र-राज््ययीय नदियोों का विनियमन z वर््ष 1951 मेें भारत मेें प्रति व््यक्ति जल की उपलब््धता 5177 क््ययूबिक
और विकास केें द्र के दायरे मेें आता है और संसद द्वारा विधान के माध््यम मीटर थी, लेकिन वर््ष 2011 मेें यह गिरकर 1545 क््ययूबिक मीटर हो गई है
से जनहित मेें आवश््यक माना जाता है। और वर््ष 2030 तक इससे और भी कम होकर 1300 क््ययूबिक मीटर होने
का अनमु ान है।
z राज््य सच ू ी (सचू ी II की प्रविष्टि 17): यह जल स्रोतोों, सिंचाई के लिए
नहरोों, जल निकासी प्रणालियोों, जल भडं ारण और जल शक्ति के साथ राज््य z सरकारी थिंक टैैंक नीति आयोग के अनसु ार, अगर भारत मेें जल संरक्षण
सचू ी मेें जल को जोड़़ा गया है। के लिए रणनीतियोों का पालन नहीीं किया गया तो बेेंगलरुु , दिल््लली और
हैदराबाद सहित 20 और शहरोों मेें अगले वर्षषों मेें भजू ल खत््म हो जाएगा।
जल संकट (WATER SCARCITY) z सतत विकास लक्षष्य (SDG) 6:सभी के लिए जल और स््वच््छता
z फाल््केेंमार््क सच ू कांक (Falkenmark Index):इसके अनसु ार, यदि किसी तक पहुचँ सनिश् ु चित SDG सरु क्षित जल, स््वच््छता और साफ-सफाई
राष्टट्र का प्रति व््यक्ति वार््षषिक नवीकरणीय जल उपयोग है तक पहुचँ स््ववास््थ््य और कल््ययाण के लिए सबसे बनि ु यादी मानवीय
 जल तनाव (Water Stress): यदि मात्रा 1,700 घन मीटर से कम है
आवश््यकता है।
तो देश कथित तौर पर जल तनाव का अनभु व कर रहा है। भारत मेें जल प्रबंधन की आवश्यकता
 जल की कमी (Water Shortage): ऐसा माना जाता है कि 1,000
z नीति आयोग: जनू 2018 मेें, नीति आयोग ने "समग्र जल प्रबंधन
घन मीटर से नीचे जल की कमी है। सच ू कांक(Composite Water Management Index-CWMI)"
 जल सक ं ट (Water Scarcity): 500 घन मीटर से नीचे, जल सक
ं ट है। शीर््षक से एक रिपोर््ट जारी की।
शून्य दिवस (DAY ZERO)  भारत मेें लगभग 60 करोड़ लोग अत््यधिक जल तनाव का अनभ ु व कर
z वह दिन जब किसी शहर के नल सख ू जाते हैैं और लोगोों को पानी का रहे थे।
दैनिक कोटा लेने के लिए लाइन मेें खड़़ा होना पड़ता है।  सरु क्षित जल की अपर््ययाप्त पहुच ँ के परिणामस््वरूप प्रतिवर््ष 2 लाख लोगोों
z अंतरराष्ट्रीय उदाहरण (दक्षिण अफ्रीका): के पटाउन मेें, "डे जीरो" या की मौत हो रही थी।
जिस दिन जल खत््म हो जाएगा, की संभावना वर््ष 2016 से 2018 के  भारत का लगभग 70% पानी प्रदषि ू त है, पानी की गणवु त्ता के मामले मेें
बीच मौजदू थी। भारत 122 देशोों मेें से 120 वेें स््थथान पर है।
z भारतीय उदाहरण: चेन््नई, भारत के प्रमख
ु शहरोों मेें से एक, गंभीर, अभतू पर््वू z केें द्रीय भूजल बोर््ड: केें द्रीय भजू ल बोर््ड के नवीनतम आक ं ड़ों (2017) के
जल की कमी का सामना कर रहा है और दसू री तरफ शहरी बाढ़ का सामना अनसु ार, भारत के 700 जिलोों मेें से 256 ने भजू लस््तर को "गंभीर" या
कर रहा है। 'अत््यधिक दोहन' वाला घोषित किया है।
1000 z जल मीटरिंग: आवासीय और व््ययावसायिक दोनोों भवनोों मेें जल के उपयोग
900
800 All India
को ट्रैक करने के लिए जल के मीटर स््थथापित करना जल की बर््बबादी को कम
Rainfall in mm

700
600
75% करने की एक और प्रभावी तकनीक है। यह रिसाव का पता लगाने मेें सहायता
500 कर सकता है।
400
300 z ग्रे वाटर रीसाइक््ललििंग: यह शौचालयोों को फ््लश करने और पौधोों को जल
200
100 देने जैसी चीजोों के लिए शॉवर, वॉशिगं मशीन और रसोई सिक ं से उपयोग किए
0
गए और अपशिष्ट जल का पनु : उपयोग करने की एक तकनीक है।
(Mar-May)

(Oct-Dec)
(Jun-Sep)
Monsson

Monsson

Monsson
(Jan-Feb)
Monsoon
Winer

Post
Pre

z जल-कुशल सहायक उपकरण: नए विकास उपयोग पैटर््न से समझौता किए


बिना जल की बचत की सीमा को आगे बढ़़ा रहे हैैं, जैसे नल और शॉवर मेें
z असमान वितरण: भारत के बड़़े हिस््ससे मेें जल के असमान वितरण के कारण
परिवर््ततित स्प्रे पैटर््न और शौचालयोों मेें फ््लश दबाव मेें वृद्धि आदि।
वर््षषा और भजू ल की कमी बनी हुई है।
z शहरी क्षेत्ररों की माँग: शहरोों मेें आपर््तति
ू की तलन ु ा मेें जल की अधिक शहरी नियोजन: भूमि और जल प्रबंधन का समन््वय
आवश््यकता है। इसके अतिरिक्त, जल संरक्षण इस बात की गारंटी देगा कि
आने वाली पीढ़़ियोों के लिए स््वच््छ जल उपलब््ध रहेगा।
संस््थथागत: विधान जलापूर््तति
z सामाजिक और राजनीतिक सघं र््ष: जल की कमी के कारण सरकार के लक्षष्य: जीवन
और प्रबंधन
की गुणवत्ता और

ठोस कचरा
स््वच््छता
विभिन््न स््तरोों पर सामाजिक और राजनीतिक संघर््ष हो रहे हैैं। आंतरिक जल
सक ं ट भी राष्ट्रीय सरु क्षा चिंता का विषय है। पर््ययावरण संरक्षण।
z विषम प्राथमिकताएँ: आसपास के क्षेत्ररों मेें अर््ध-शहरी और ग्रामीण समदु ायोों
मेें रहने वाले लाखोों लोगोों की कीमत पर शहरी मेगासिटी की ओर जल का शहरी जल निकासी
और बाढ़ प्रबंधन
मोड़ना भारत मेें एक नियमित अभ््ययास रहा है।
z दूषित जल सस ं ाधन: पीने के पानी मेें सधु ार के बावजदू , कई अन््य जल
स्रोत जैव और रासायनिक दोनोों प्रदषू कोों से दषि एकीकृत शहरी जल प्रबंधन प्रणाली (INTEGRATED URBAN
ू त हैैं, और देश की 21% से
WATER MANAGEMENT SYSTEM-IUWM)
अधिक बीमारियाँ जल से सबं ंधित हैैं।
z चक्रीय वर््षषा: चकि ँू भारत की वर््षषा काफी हद तक चक्रीय है, इसलिए फसलोों z IUWM एक ऐसी प्रक्रिया है जो यह सनिश् ु चित करती है कि जल आपर््तति
ू ,
की सिंचाई के लिए जल की आवश््यकता होती है। जल वन््य जीवन और प्रयक्त
ु जल प्रबंधन, स््वच््छता और तफ
ू ानी जल प्रबंधन की योजना आर््थथिक
पारिस््थथितिकी की रक्षा करता है। विकास और भमू ि उपयोग के अनरू ु प बनाई जा सके ।
जल उपयोग दक्षता (WATER USE EFFICIENCY)
साझा कुआँ पार नाड़ा तालाब रपट
इसे फसल द्वारा प्रयुक्त जल की प्रति इकाई से उत््पपादित बायोमास या अनाज के
पारंपरिक जल संचयन विधियाँ रूप मेें अवशोषित कार््बन की मात्रा के रूप मेें परिभाषित किया जाता है। यह जल
आपर््तति
ू स्रोतोों के सावधानीपर््वू क प्रबंधन, जल सेवा प्रौद्योगिकियोों के उपयोग,
अत््यधिक माँग मेें कमी और अन््य कार्ययों के बारे मेें है। जल उपयोग दक्षता बढ़़ाने
बावड़ी जोहड़ झालरा टोबा पट
के लिए निम््नलिखित तरीके हो सकते हैैं।

z ऊर््जजा की बचत: जल की माँग के साथ-साथ विद्युत आपर््तति


ू और जल-आधारित सूक्ष्म सिंचाई (Micro Irrigation)
विद्युत उत््पपादन की आवश््यकता भी काफी हद तक बढ़ गई है। z जल उपयोग दक्षता: सक्षू ष्म सिंचाई द्वारा जल उपयोग दक्षता 50-90% की
सीमा तक सनिश् ु चित की जा सकती है।
भारत मेें पारंपरिक जल प्रबंधन प्रथाएँ
z सभ
ं ाव््यता: भारत मेें सक्षू ष्म सिंचाई पर गठित टास््कफोर््स (2004) के अनसु ार,
जल प्रबंधन के आधुनिक तरीके भारत मेें ड्रिप सिंचाई की क्षमता कुल 27 मिलियन हेक््टटेयर है।
z वर््षषा जल सच ं यन: वर््षषा जल का संग्रहण भजू लस््तर को पनु ःबढ़़ाने तथा फव्वारा सिंचाई (Sprinkler Irrigation)
प्राकृ तिक जल को बचाने का एक बहुत ही प्रभावी तरीका है।
z यह बारिश की तरह जल लगाने की एक विधि है। यह अधिकांश पंक्ति, खेत
z दबाव कम करने वाले वाल््व: हाइड्रोलिक सिस््टम मेें, दबाव कम करने
और पेड़ वाली फसलोों के लिए उपयक्त
ु है।
वाला वाल््व अनिवार््य रूप से दबाव की मात्रा को नियंत्रित करता है। ये वाल््व
गारंटी देते हैैं कि इस््ततेमाल किया जाने वाला पानी का स््तर पहले से तय है। z पानी का छिड़काव फसल की छत्र छाया के ऊपर या नीचे किया जा सकता है।

72  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


बूंद /टपकन सिंचाई (Drip Irrigation) भारत मेें सूक्ष्म सिंचाई
z इसमेें मिट्टी की सतह के ऊपर से या सतह के नीचे दबे पानी को पौधोों की z 2024 तक, भारत मेें सक्षू ष्म सिंचाई की औसत पहुचँ -22% है- जो कई अन््य
जड़ों तक धीरे -धीरे टपकने देता है, जिसमेें पानी और पोषक तत्तत्ववों को बचाने देशोों की तलनु ा मेें काफी कम है।
की क्षमता है। z केवल चार भारतीय राज््य - सिक््ककिम, आध्रं प्रदेश, कर््ननाटक और महाराष्टट्र -
z इसका लक्षष्य पानी को सीधे जड़ क्षेत्र मेें पहुचँ ाना और वाष््पपीकरण को न््ययूनतम मेें इस समय उनकी कुल कृ षि योग््य भमू िका 50% से अधिक हिस््ससा सक्षू ष्म
करना है। ड्रिप सिंचाई प्रक्रिया मेें, जल और पोषक तत्तत्ववों को 'ड्रिपर लाइन' सिचं ाई के अतं र््गत आता है; शेष राज््योों मेें यह आक ं ड़़ा 15% से भी कम है।
नामक पाइपोों से परू े खेत मेें पहुचँ ाया जाता है, जिसमेें छोटी इकाइयाँ होती हैैं z यद्यपि उत्तर प्रदेश सबसे अधिक गन््नना पैदा करता है, एक ऐसी फसल जिसके
जिन््हेें 'ड्रिपर' कहा जाता है। लिए बहुत अधिक पानी की आवश््यकता होती है, वहाँ इसका केवल 1.5%
उप-सतही सिंचाई(Sub-surface irrigation) हिस््ससा है और, पंजाब मेें सक्षू ष्म सिंचाई के तहत इसका क्षेत्रफल केवल 1.2% है।
z यह सिचं ाई तकनीक मिट्टी की सतह के नीचे से आने वाले जल से पौधोों की z सरकार अगले पाँच वर्षषों मेें 100 लाख एकड़ भूमि को सक्षू ष्म सिच ं ाई से
सिंचाई करती है। यह सक्षू ष्म सिंचाई प्रभावी एवं लाभप्रद है। जोड़ना चाहती है।
z इसे सही ढंग से काम करने के लिए केवल थोड़़े से जल के दबाव की सूक्ष्म जल संभर विकास एवं प्रबंधन (MICRO-
आवश््यकता होती है। WATERSHED DEVELOPMENT AND
बब्बलर सिंचाई (Bubbler irrigation) MANAGEMENT)
z यह छोटी धाराओ ं और फव््ववारोों के माध््यम से लगभग 230 लीटर प्रति घटं े z जल सभं र एक भूजल वैज्ञानिक भूमि इकाई है जो जल इकट्ठा करती है
की दर से जल फै लाता है। और इसे एक केें द्रीय स््थथान के माध््यम से खाली करती है। जल सभं र प्रबंधन
z इसे उन परिस््थथितियोों मेें प्राथमिकता दी जाती है जहाँ तरु ं त बहुत अधिक जल का मख्ु ्य लक्षष्य विभिन््न तकनीकोों का उपयोग करके भजू ल का भडं ारण और
लगाने की आवश््यकता होती है। पनु ःपर््तति
ू करना है, जिसमेें अतं ःस्राव टैैंक, पनर््भ
ु रण कुएँ और कृ त्रिम तालाब
सूक्ष्म सिंचाई के लाभ आदि शामिल हैैं।
जल की बचत मेें सहायक:सक्षू ष्म सिंचाई ओवरहेड सिस््टम की तलन z यह विकेें द्रीकृ त दृष्टिकोण के साथ जल संरक्षण और दर््ल ु भ जल संसाधनोों के
z ु ा मेें
जल के उपयोग को 25-40% और सतही सिंचाई की तलन प्रबंधन के सबसे कुशल तरीकोों मेें से एक है।
ु ा मेें 45-60%
तक कम कर सकती है। z सक्षू ष्म जल संभर का आकार 100 से 1000 हेक््टटेयर तक होता है।
z समान जल अनुप्रयोग: उच््च एकरूपता के परिणामस््वरूप कुशल सिंचाई z इसलिए, यह बेहतर जल संसाधन प्रबंधन के लिए क्षेत्र-विशिष्ट दृष्टिकोण
होती है, जिससे जल, विद्युत और उर््वरकोों की बर््बबादी कम होती है। अपनाने की गंजु ाइश देता है।
z बिजली बचाने मेें सहायक:आमतौर पर, सक्षू ष्म सिंचाई प्रणालियोों मेें डिलीवरी z प्रौद्योगिकियोों का समन््वय: जल सभ ं र प्रबंधन लोगोों और जानवरोों की
पाइप कम दबाव (2-4 बार) पर काम करते हैैं। इसलिए, इन््हेें पम््पपििंग के लिए बनिु यादी जरूरतोों को निरंतर तरीके से परू ा करने के लिए भमू ि, जल और
कम ऊर््जजा की आवश््यकता होती है। पौधोों के संसाधनोों के अनुकूलतम विकास के लिए जल निकासी क्षेत्र की
z रासायनिक अनुप्रयोग मेें सध ु ार: सक्षू ष्म सिंचाई प्रणालियोों के माध््यम से प्राकृतिक सीमाओ ं के भीतर प्रौद्योगिकियोों का समन््वय है।
फर््टटिगेशन इकाइयोों द्वारा पौधोों को सीधे रसायन (खाद आदि) दिए जा सकते हैैं। z जलसभं र का वर्गीकरण (आकार के आधार पर):
z खरपतवार और बीमारियोों मेें कमी: खरपतवार फसलोों के साथ पोषक  वृहद जलसंभर (> 50,000 हेक््टटेयर)

तत्तत्ववों, नमी और धपू के लिए प्रतिस््पर््धधा करते हैैं, जिससे फसल की गणव ु त्ता  उप-जलसभ ं र (10,000 से 50,000 हेक््टटेयर)
और पैदावार कम हो सकती है। सक्षू ष्म-सिचं ाई से खेत मेें सिर््फ उसी जगह जल  मिली-जलसंभर (1000 से 10000 हेक््टटेयर)

पहुचँ ता है जहाँ जरूरत होती है, जिससे खरपतवारोों को कम बढ़़ावा मिलता  सक्ष ू ष्म जलसभं र (100 से 1000 हेक््टटेयर)
है। साथ ही, पत्तियोों पर कम जल गिरने से फंगल रोगोों की सभं ावना भी कम हो  मिनी जलसंभर (1-100 हेक््टटेयर)
जाती है।
z इज़राइल की सफलता की कहानी: जल की कमी वाला एक मरुस््थलीय सूक्ष्म जल संभर प्रबंधन के लाभ
देश जल अधिशेष वाला देश बन गया है क््योोंकि इसने सक्षू ष्म सिंचाई पद्धतियोों, z जल उपयोग दक्षता मेें वद्धि
ृ : ड्रिप सिंचाई और फव््ववारा सिंचाई जैसी विधियोों
विशेष रूप से ड्रिप सिंचाई को अपनाया है जो खल ु ी नहरोों के माध््यम से की के उपयोग से जल की बचत होती है।
जाने वाली सिच ं ाई के लिए उपयोग किए जाने वाले लगभग तीन-चौथाई z मृदा क्षरण की रोकथाम: यह मृदा क्षरण को रोकने, बंजर भमू ि मेें पेड़ लगाने,
जल को बचाता है। भजू ल तक पहुचँ ने और मिट्टी की नमी के सरं क्षण मेें भी मदद करता है।

भारत में जल संसाधन और उनका प्रब 73


z जीवन की गुणवत्ता मेें सध ु ार: सक्षू ष्म जल संभर प्रबंधन पीने और सिंचाई दोनोों अंतरराष्ट् रीय पहल
उद्देश््योों के लिए जल की उपलब््धता मेें वृद्धि करके सख ू ाग्रस््त क्षेत्र के जीवन की
संयुक्त राष्टट्र जल सम््ममेलन और निर््णय मंच (UN Water
गणव
ु त्ता मेें सधु ार करने मेें मदद करता है, उदाहरण के लिए, महिलाओ ं और

पहल
Conference and Decision-Making Platform)
लड़कियोों को जल लाने के लिए लंबी दरू ी तय नहीीं करनी पड़़ेगी। नदियोों के अधिकारोों का सार््वभौमिक घोषणा पत्र
z वनस््पति मेें अनुरूप विकास: जल संसाधनोों के तर््क संगत उपयोग से अर््ध- z संयक्त ु राष्टट्र-जल सम््ममेलन नामक एक वैश्विक सम््ममेलन है जो जल
शष्ु ्क क्षेत्ररों मेें वनस््पति मेें वृद्धि होती है। क्षेत्र की कुछ प्रमख ु चितं ाओ ं के इर््द-गिर््द सरकार, व््ययापार, गैर-
z सख ू ाग्रस््त क्षेत्ररों के लिए: जल की कमी और सख ू े की समस््यया का समाधान लाभकारी और वित्त पोषण पहलोों को बेहतर ढंग से समन््वयित
कर सकती है। सक्षू ष्म-जल संभर परियोजनाएँ क्षेत्र के बायोमास घटक को बढ़़ाकर करने का प्रयास करती है।
अवांछित वाष््पपीकरण को रोक सकती हैैं। z यह राष्टट्ररों को निवेश करने, प्रौद्योगिकी हस््तताांतरण और दस ू रोों की
z प्राकृतिक जल सस ं ाधनोों का पुनरुद्धार: तालाबोों, झीलोों आदि का पनु रुद्धार। गलतियोों से सीखने के लिए एक मचं प्रदान करता है।

जानकारी
z यह घोषणा पत्र सिविल सोसायटी एक का प्रयास है, जो उन
z बुनियादी ढाँचे का विकास: इसमेें वर््षषा जल को संग्रहित करने और मिट्टी
की नमी के स््तर को बढ़़ाने के लिए टैैंक, कृ त्रिम तालाब, चेक डैम आदि जैसे मल ू भतू अधिकारोों को रे खांकित करता है जिनके लिए सभी
नदियाँ हकदार हैैं।
बनिु यादी ढाँचे का विकास होता है।
z प्रकृ ति को अधिकार प्रदान करने की वैश्विक प्रवृत्ति को एक ऐसे

जल संसाधन प्रबंधन के लिए सरकारी पहलेें दृष्टिकोण से महत्तत्वपर्ू ्ण बदलाव के रूप मेें देखा जा रहा है, जो
प्रकृ ति के अत््यधिक दोहन पर आधारित है, एक ऐसे दृष्टिकोण
z जल शक्ति मंत्रालय :देश मेें जल प्रबंधन के लिए पहले के दो जल-संबंधी
की ओर जहाँ संरक्षण उपायोों को प्रकृ ति तक विस््ततारित किया
मत्रालयोों
ं को एकीकृ त करके 2019 मेें इस का गठन किया गया
जा रहा है।
z स््वजल योजना: इसे ग्रामीण क्षेत्ररों मेें लोगोों को पीने के जल की स््थथायी पहुचँ
प्रदान करने के लिए एक माँग-आधारित और समुदाय-केें द्रित कार््यक्रम के
जल संसाधन प्रबंधन के लिए आगे की राह
रूप मेें डिजाइन किया गया है। यह ग्रामीण समदु ायोों, गैर सरकारी संगठनोों और
सरकार के बीच सवु िधा प्रदाता के रूप मेें साझेदारी को प्रोत््ससाहित करता है। z अर््थ गंगा मॉडल: नदी के सतत विकास के लिए सरकार का नया मॉडल
z जल जीवन मिशन (2019): वर््ष 2024 तक प्रत््ययेक ग्रामीण परिवार को पाइप  अर््थ गंगा मॉडल का मल ू लक्षष्य लोगोों को अर््थव््यवस््थथा के माध््यम से
से पीने योग््य जल उपलब््ध कराने का लक्षष्य है। नदी से जोड़ना है।
z नदी जोड़ों परियोजना: सख ू ाग्रस््त और वर््षषा आधारित क्षेत्ररों मेें जल की  इसका लक्षष्य गंगा बेसिन के भीतर से सकल घरेलू उत््पपाद मेें कम से कम

उपलब््धता बढ़़ाकर जल के वितरण मेें अधिक समानता सनिश् ु चित करना। 3% का योगदान प्राप्त करना है।
z अटल भूजल योजना (ABHY): वर््ष 2019 मेें चयनित राज््योों मेें भजू ल  अर््थ गंगा परियोजना के हिस््ससे के रूप मेें किए गए हस््तक्षेप संयक्त ु राष्टट्र
संसाधनोों के प्रबंधन मेें सधु ार के लिए शरू ु की गई। के सतत विकास लक्षष्ययों के प्रति भारत की प्रतिबद्धताओ ं के अनरू ु प हैैं।
z प्रधानमंत्री कृषि सिच ं ाई योजना: कृ षि उत््पपादकता मेें सधु ार लाने और देश z जल प्रबंधन के लिए जल-सामाजिक दृष्टिकोण की आवश््यकता है
मेें संसाधनोों के बेहतर उपयोग को सनिश् ु चित करने के लिए अर््थथात "प्रति बूंद,  IPCC की चौथी मूल््ययााँकन रिपोर््ट (2007) मेें सामाजिक भेद्यता और
अधिक फसल"। जल प्रणालियोों मेें परिवर््तन के बीच संबंध को रे खांकित किया गया था।
z राष्ट्रीय जल मिशन: एकीकृ त जल संसाधन प्रबंधन सनिश् ु चित करने के लिए  विश्व स््तर पर, यह अनम ु ान लगाया गया है कि यदि मौजदू ा रुझान जारी
जल के संरक्षण, बर््बबादी को कम करने और राज््योों के बीच व भीतर अधिक रहा, तो वर््ष 2030 तक मीठे जल की माँग और आपूर््तति के बीच का
समान वितरण सनिश् ु चित करने मेें मदद करना। अंतर 40% तक बढ़ सकता है।
के स स्टडी: अनमोल जीवन अभियान  सय ं ुक्त राष्टट्र विश्व जल विकास रिपोर््ट , 2021 मेें जल के सही मल्ू ्ययााँकन
z 'अनमोल जीवन अभियान' (Precious Life Campaign) राजस््थथान के पर जोर दिया गया है, जिसमेें पाँच दृष्टिकोणोों को ध््ययान मेें रखा गया है।
बाड़मेर मेें एक हालिया परियोजना शरू ु की गई है, जिसने ग्रामीण पंचायतोों z समग्र जल प्रबंधन प्रणाली
और संपत्ति मालिकोों को हैैंडपंप और लॉकिंग ढक््कन जोड़कर टांका संरचना  जैसे-जैसे शहरोों का तेजी से विस््ततार हुआ है, जल की खपत मेें उल््ललेखनीय

को अपग्रेड करने के लिए प्रेरित किया है। इसमेें हैैंडपपं और ताला लगाने वृद्धि हुई है। जल की कमी और जल का क्षय ऐसी प्रमख ु समस््ययाएँ हैैं,
योग््य ढक््कन जोड़ना शामिल है। जिनका सामना लोगोों को जल््द ही करना पड़़ेगा, भले ही लोगोों की इच््छछाएँ
z यह परियोजना मकान मालिकोों और ग्राम पचं ायतोों को अपने टांकोों को महानगरोों की ओर जाने के लिए प्रेरित कर रही होों।
सरं चनात््मक रूप से उन््नत करने के लिए प्रोत््ससाहित करती है, जिसमेें हैैंडपपं  यह सनिश् ु चित करने के लिए कि भविष््य मेें अधिकांश महानगरीय क्षेत्र
और ताला लगाने योग््य ढक््कन शामिल हैैं। आत््मनिर््भर हो सकते हैैं, जल प्रबंधन मेें एक क््राांति लाने की जरूरत है।

74  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z भारत का जल दृष्टिकोण(vision):सतत भविष््य के लिए रोडमैप z प्रकृति-आधारित समाधान: नीति "प्रकृ ति-आधारित समाधानोों" के माध््यम
 भारत के जल विजन नामक एक सरकारी कार््यक्रम का उद्देश््य सभी भारतीयोों से जल की आपर््तति ू पर ध््ययान केें द्रित करती है, जैसे कि जलग्रहण क्षेत्ररों का
को स््वच््छ, सरु क्षित जल तक पहुचँ प्रदान करना है। कायाकल््प, जिसे पारिस््थथितिकी तंत्र सेवाओ ं के लिए मआ ु वजे के माध््यम से
 यह पहल जल संसाधन संरक्षण और टिकाऊ जल प्रथाओ ं की उन््नति प्रोत््ससाहित किया जाना है, आदि।
पर भी जोर देती है। z राष्ट्रीय जल आयोग: एक एकीकृ त बहु-विषयक, बहु-हितधारक राष्ट्रीय जल
z रिवर सिटीज़ एलायंस:यह सदस््य शहरोों को शहरी नदियोों के स््थथायी प्रबंधन आयोग (NWC) का निर््ममाण, जो राज््योों के अनसु रण के लिए एक उदाहरण
के लिए महत्तत्वपर्ू ्ण पहलओ
ु ं पर चर््चचा और जानकारी का आदान-प्रदान करने बन जाएगा।
के लिए एक मचं प्रदान करता है।
z स््वदेशी ज्ञान का उपयोग: हमारे लोगोों की जल प्रबंधन तकनीक एक अमल्ू ्य
जल नीति का मसौदा बौद्धिक संसाधन है जिसका परू ी तरह से लाभ उठाया जाना चाहिए।
z यह राष्ट्रीय जल नीति (National Water Policy-NWP) जल प्रबंधन के बाांध सुरक्षा अधिनियम, 2021
लिए बहु-विषयक, बहु-हितधारक दृष्टिकोण का प्रयास करती है।
बांध सरु क्षा अधिनियम 2021 भारत के सभी निर््ददिष्ट बांधोों के सरु क्षित और प्रभावी
उद्श्य
दे : कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए व््ययापक निगरानी, ​​निरीक्षण, संचालन
z इसका उद्देश््य उपचारित सीवेज के पनर््चक्रण
ु /पनु : उपयोग, जल निकायोों के और रखरखाव प्रोटोकॉल को अनिवार््य करता है। इस अधिनियम का उद्देश््य
कायाकल््प और जल संरक्षण पर ध््ययान केें द्रित करते हुए प्रत््ययेक शहर के लिए बांध विफलताओ ं से जुड़़े जोखिमोों को कम करना, संरचनात््मक प्रमाणिकता को
शहरी जल संतलन ु योजना के विकास के माध््यम से जल की एक चक्रीय बढ़़ाना और कड़़े सुरक्षा उपायोों और नियमित निगरानी प्रक्रियाओ ं को लागू करके
अर््थव््यवस््थथा को बढ़़ावा देना है।
निचले इलाकोों के समदु ायोों की रक्षा करना है।
z यह शहरोों को 'आत््मनिर््भर' और 'जल सरु क्षित' बनाने पर केें द्रित है। मिशन
ने इच््छछित परिणाम प्राप्त करने के लिए 2.68 करोड़ नल कनेक््शन के प्रावधान विशेषताएँ
का लक्षष्य रखा है। z राष्ट्रीय बांध सरु क्षा प्राधिकरण (National Dam Safety Authority-
नई जल नीति की आवश्यकता: NDSA): यह NDSA के गठन का प्रावधान करता है जो राष्ट्रीय बाँध सरु क्षा
समिति (NCDS) की नीतियोों को लागू करने के लिए जिम््ममेदार होगा, और
z बढ़ती माँग: हाल के अनमु ानोों से पता चलता है कि यदि माँग का मौजदू ा
पैटर््न जारी रहा, तो वर््ष 2030 तक जल की राष्ट्रीय माँग का लगभग आधा राज््य बांध सरु क्षा सगं ठनोों (या SDSO) और बांध मालिकोों के बीच मद्ददों ु का
हिस््ससा परू ा नहीीं हो पाएगा। समाधान करे गा।
z वर््ष 2050 तक जल की उपलब््धता मेें गिरावट: जल की उपलब््धता बदतर z राज््य बांध सरु क्षा सगं ठन (State Dam Safety Organisations-
होने वाली है और वर््ष 2050 तक प्रति व््यक्ति औसत वार््षषिक जल उपलब््धता SDSOs) यह अधिनियम राज््य बाँध सरु क्षा संगठनोों (SDSO) और राज््य
मेें 37% की गिरावट का अनमु ान है। बाँध सरु क्षा समितियोों (SCDS) के गठन का भी प्रावधान करता है। प्रत््ययेक
z जल तनाव परिदृश््य: भारत दनि ु या मेें भजू ल का सबसे बड़़ा दोहन करने वाला राज््य के SDSO का अधिकार क्षेत्र उस विशिष्ट राज््य के सभी बांधोों तक
देश है। लगभग 60 करोड़ भारतीयोों को अत््यधिक से अत््यधिक जल तनाव विस््ततारित होगा।
का सामना करना पड़ता है। z बांध सरु क्षा पर राष्ट्रीय समिति (National Committee on Dam
z गिरता जल स््तर और बिगड़ती जल गुणवत्ता: इसने जल प्रबंधन दृष्टिकोण Safety-NCDS): अधिनियम बांध सरु क्षा पर एक राष्ट्रीय समिति के गठन
की ओर स््थथानांतरित करने की आवश््यकता को समय की माँग बना दिया है। का प्रावधान करता है, जिसकी अध््यक्षता केें द्रीय जल आयक्त ु (CWC) द्वारा
नीति की मुख्य विशेषताएँ : की जाएगी।
z आपूर््तति-केें द्रित दृष्टिकोण: नीति आपूर््तति-केें द्रित दृष्टिकोण से हटकर माँगोों z बांधोों की निगरानी: यह देश भर मेें सभी निर््ददिष्ट बांधोों की निगरानी, ​​निरीक्षण,
के प्रबंधन पर जोर देती है। उदाहरण के लिए, फसल विविधीकरण। संचालन और रखरखाव प्रदान करता है।
z कम करना-पुनर््चक्रण करना-पुन: उपयोग दृष्टिकोण:यह दृष्टिकोण सीवेज z दडं का प्रावधान: अधिनियम उल््ललंघन के मामले मेें कठोर दडं का प्रावधान
के उपचार और शहरी नदी क्षेत्ररों के पर््ययावरण-पनु रुद्धार के साथ एकीकृ त शहरी करता है, जिसमेें दो वर््ष के कारावास की सजा भी शामिल है।
जल आपर््ततिू और विके न्द्रीकृ त अपशिष्ट जल प्रबंधन के लिए प्रस््ततावित किया अधिनियम का महत्त्व
गया है।
z एकरूपता लाना: सरकार चाहती है कि प्रक्रियाओ ं मेें एकरूपता हो जिसका
z आपूर््तति पक्ष के विकल््पोों का व््यवस््थथितीकरण : बड़़े बांधोों मेें संग्रहित
जल का उपयोग करके , पर््यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण (SCADA) अनपु ालन सभी बांध मालिक एक विशेष प्रकार के बड़़े बांध के लिए करते हैैं।
प्रणालियोों और दबावयक्त ु सक्षू ष्म सिंचाई के साथ संयक्त ु रूप से दबावयक्त
ु बंद z सख््त दिशा निर्देश: जल राज््य का विषय है और अधिनियम ने राज््य को
परिवहन पाइपलाइनोों को लगा करके बहुत कम लागत पर सिंचित क्षेत्र का अधिकार भी प्रदान किया है। अधिनियम यह सनिश् ु चित करने के लिए दिशानिर्देश
विस््ततार किया जा सकता है। और एक तंत्र प्रदान करता है कि दिशानिर्देशोों का पालन किया जाए।

भारत में जल संसाधन और उनका प्रब 75


z गुणवत्ता सनिश्ु चित: अधिनियम एक तंत्र प्रदान करता है जहाँ उन लोगोों की z जल निकायोों को शहरी भमू ि उपयोग मेें लाने के पर््ययावरणीय निहितार््थ क््यया हैैं?
मान््यता का ध््ययान रखा जाना चाहिए जो वास््तव मेें निर््ममाण और रखरखाव मेें उदाहरण सहित समझाइए। (2021)
भाग लेने जा रहे हैैं। z हिमालय के हिमनदोों के पिघलने का भारत के जल संसाधनोों पर किस प्रकार
z सरु क्षा: बांधोों को नक ु सान होने की संभावना रहती है और इसलिए उनकी दरू गामी प्रभाव होगा? (2020)
सरु क्षा बहुत महत्तत्वपर्ू ्ण है। यह अधिनियम बांध सरु क्षा मानकोों के निर््ममाण का z नदियोों को आपस मेें जोड़ना सख ू ा, बाढ़ और बाधित जल परिवहन जैसी
प्रावधान करता है। बहुआयामी अन््तर््सम््बन््धधित समस््ययाओ ं का व््यवहार््य समाधान दे सकता है।
निष्कर््ष आलोचनात््मक परीक्षण कीजिए। (2020)
बेहतर शहरी जल प्रबंधन के लिए नए विचारोों के साथ आना आवश््यक है z जल प्रतिबल (वाटर स्ट्रैस) का क््यया मतलब है? भारत मेें यह किस प्रकार और

क््योोंकि जनसंख््यया विस््ततार और जलवायु परिवर््तन के कारण जल का उपयोग किस कारण प्रादेशिकता: भिन््न-भिन््न है? (2019)
बढ़ रहा है। विभिन््न स््थथानीय संदर्भभों मेें अधिक से अधिक लोगोों को कठिनाइयोों z "भारत मेें अवक्षयी (डिप््ललीटिंग) भौम जल संसाधनोों का आदर््श समाधान

से अवगत कराने की आवश््यकता है। क्षेत्रीय विभागोों जैसे संगठनोों के लिए भी जल संरक्षण प्रणाली है।" शहरी क्षेत्ररों मेें इसको किस प्रकार प्रभावी बनाया जा
इसी तरह के समायोजन आवश््यक हैैं जिनका महत्तत्वपूर््ण प्रभाव होता है। जल सकता है? (2018)
चनु ौतियोों का समाधान करने के लिए व््ययापक और व््यवस््थथित समाधानोों को लागू z जल-उपयोग दक्षता से आप क््यया समझते है? जल-उपयोग दक्षता को बढ़ाने मेें
करने की आवश््यकता है। सक्षू ष्म सिंचाई की भमू िका का वर््णन कीजिए। (2017)
z भारत मेें अत ं र्देशीय जल परिवहन की समस््ययाओ ं एवं सम््भभावनाओ ं को गिनाइए।
प्रमुख शब्दावलियाँ  (2016)
z भारत के सख ू ा-प्रवण और अर््ध-शष्ु ्क प्रदेशोों मेें लघु जलसंभर विकास
ऊर््जजा के पारंपरिक और गैर-पारंपरिक स्रोत; ऊर््जजा टोकरी; गैस
आधारित अर््थ व््यवस््थथा; विद्युत शक्ति; ऊष््ममा विद्युत; अपशिष्ट से परियोजनाएँ किस प्रकार जल संरक्षण मेें सहायक हैैं?  (2016)
z उत्तरध्रुव सागर मेें तेल की खोज के क््यया आर््थथिक महत्तत्व है और इसके संभव
धन; उच््च और निम््न राख सामग्री; जलविद्युत ऊर््जजा; अविकसित
क्षमता; भंडारण की वैकल््पपिक व््यवस््थथा; परमाणु शक्ति; पारेषण और पर््ययावरणीय परिणाम क््यया होोंगे?  (2015)
वितरण हानियाँ; आदि। z भारत अलवणजल (फ्रै श वाटर) संसाधनोों से सस ु ंपन््न है। समालोचन पर््वू क
परीक्षण कीजिए कि क््यया कारण है कि भारत इसके बावजदू जलाभाव से ग्रसित
विगत वर्षषों के प्रश्न है।  (2015)
z आज विश्व ताजे जल के संसाधन की उपलब््धता और पहुचँ के संकट से क््योों z भारतीय उप-महाद्वीप मेें घटती हुई हिमालयी हिमनदियोों (ग््ललेशियर््स) और

जझू रहा है? (2023) जलवायु परिवर््तन के लक्षणोों के बीच संबंध उजागर कीजिए। (2014)

76  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


11 भारत मेें परिवहन और संचार

परिचय रेलवे परिवहन प्रणाली


भारत मेें परिवहन की एक जटिल एवं विविधतापूर््ण प्रणाली है, जो देश की z भारतीय रे ल भारत की जीवन रेखा है। भारत के कोने-कोने मेें फै ले अपने
अर््थव््यवस््थथा और दैनिक जीवन मेें महत्तत्वपूर््ण भमि
ू का निभाती है, जिसमेें सड़क, विशाल नेटवर््क के साथ, यह न के वल यात्रियोों और माल का परिवहन करने
रे ल, वायु और जल परिवहन शामिल हैैं। वाला संगठन है, बल््ककि एक सामाजिक कल््ययाण संगठन भी है।
z पिछले 9 वर्षषों मेें भारतीय विमानन उद्योग मेें उल््ललेखनीय वृद्धि देखी गई है। z भारत मेें दनिय
ु ा की चौथी सबसे बड़़ी रे लवे प्रणाली है, जो के वल अमेरिका,
देश मेें परिचालित हवाई अड््डडोों की संख््यया वर््ष 2014 मेें 74 से दोगनु ी होकर रूस और चीन के बाद है। भारतीय रे लवे मेें पटरियोों की कुल लंबाई 126,366
अप्रैल 2023 मेें 148 हो गई है, जिसमेें 137 हवाई अड्डे, 2 वाटर एयरोड्रम किलोमीटर है, जिनमेें 7,335 स््टटेशन हैैं, जो 68,000 किलोमीटर के क्षेत्र मेें
और 9 हेलीपोर््ट शामिल हैैं। विस््ततारित हैैं। वर््ष 2022-23 मेें 5243 किलोमीटर लंबे ट्रैक का विस््ततार किया
z वित्त वर््ष 2023-24 के लिए, भारत मेें कुल हवाई यात्री यातायात 190 मिलियन गया, जबकि वर््ष 2021-22 मेें 2909 किलोमीटर लंबा ट्रैक स््थथापित किया गया।
से अधिक अनमु ानित है। भारत मेें घरे लू हवाई यात्रियोों की संख््यया वर््ष 2030 z वर््ष 2024 की शरुु आत तक, रे लवे अवसरं चना परियोजनाओ ं के लिए प्रस््ततावित
तक वार््षषिक रूप से 300 मिलियन तक पहुचँ ने की उम््ममीद है। 29,147 किलोमीटर की योजनाबद्ध लंबाई मेें से 9,910 किलोमीटर लंबाई
की नई ट्रैक चालू कर दी गई है।
औद्योगिक विकास मेें
z भारतीय रे लवे द्वारा प्रतिदिन 9000 मालगाड़़ियोों का संचालन किया जाता है
सुधार हेतु परिवहन की उपयोगिता जो लगभग 3.05 मिलियन टन माल परिवहित करती हैैं। भारतीय रे लवे
z इनपुट/आगत और आउटपुट/उत््पपाद का परिवहन: परिवहन द्वारा उद्योगोों द्वारा वित्त वर््ष 2021-22 मेें 1418 मीट्रिक टन की तल ु ना मेें वर््ष 2022-23
को कच््चचे माल और श्रम की आवाजाही उपलब््ध होती है एवं उपभोक्ताओ ं मेें 1512 मीट्रिक टन माल की ढुलाई की गई है।
को अतिम ं उत््पपाद प्राप्त होता है। मजबूत बुनियादी रेलवे ढाांँचे की आवश्यकता
z बाजार तक पहुच ँ : परिवहन उद्योगोों को नए बाजारोों मेें प्रवेश करने, अपनी
z आर््थथिक विकास: रे लवे माल और यात्रियोों के लिए परिवहन का एक कुशल
पहुचँ का विस््ततार करने और बिक्री तथा राजस््व क्षमता को बढ़़ाने मेें सहायक
और लागत प्रभावी तरीका प्रदान कर आर््थथिक विकास को सवि ु धाजनक बनाने
है, जिससे औद्योगिक विकास को बढ़़ावा मिलता है।
मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाता है।
z दूरस््थ के क्षेत्ररों तक पहुच ँ : उदाहरण के लिए गैस पाइपलाइनोों से बरौनी और
z कनेक््टटिविटी: रे लवे लोगोों को आसानी से यात्रा करने की सविु धा प्रदान करता
मथरु ा मेें पेट्रोके मिकल कॉम््प्ललेक््स की स््थथापना संभव हो पाई है और दरू दराज
है, सामाजिक और सांस््ककृतिक आदान-प्रदान को बढ़़ावा देता है साथ ही शिक्षा,
के क्षेत्ररों की बाजार तक पहुचँ सभं व हो पाई है। स््ववास््थ््य सेवा और रोजगार के अवसरोों तक पहुचँ बढ़़ाता है।
z औद्योगिक क््लस््टर और SEZs: सफल औद्योगिक क््लस््टर और एसईजेड z जन परिवहन: एक बड़़ी आबादी के साथ, भारतीय लोग परिवहन के लिए
(SEZs) के लिए मजबतू परिवहन अवसंरचना महत्तत्वपर्ू ्ण है, जो कुशल आपर््तति ू रे लवे पर अत््यधिक निर््भर हैैं। एक मजबतू रे लवे बनिय
ु ादी ढाँंचा लाखोों लोगोों
श्रंखला, संसाधनोों के साझाकरण और इष्टतम विकास के लिए सहयोग को के लिए सरु क्षित, आरामदायक और किफायती यात्रा विकल््प सनिश् ु चित करता
सक्षम बनाता है। है, जिससे सड़कोों और राजमार्गगों पर भीड़-भाड़ कम होती है।
z आर््थथिक विकास: विकास को आकर््षषित करने के लिए एक अच््छछी परिवहन माल ढुलाई: यह रसद लागत को कम करने, आपर््तति
z ू ृंखला दक्षता को बढ़़ाने
प्रणाली महत्तत्वपर्ू ्ण है जो रोजगार सृजन और आर््थथिक विकास को बढ़़ावा देती और कृ षि, विनिर््ममाण एवं खनन जैसे उद्योगोों के विकास मेें सहायक है।
है। उदाहरण के लिए ससं ाधन सपं न््न उत्तर पर्ू वी क्षेत्ररों मेें खराब औद्योगिक
z पर््ययावरणीय लाभ: रे ल यात्रा और माल परिवहन को बढ़़ावा देकर, भारत के
विकास का मख्ु ्य कारण खराब परिवहन सवि ु धाओ ं का होना है। कार््बन उत््सर््जन को कम कर सकता है, वायु प्रदषण
ू को कम करने तथा सतत्
z रोजगार सज ृ न: स््थल, जल और विमानन क्षेत्र लाखोों लोगोों को रोजगार के विकास और पर््ययावरण सरं क्षण मेें योगदान दे सकता है।
अवसर प्रदान करता है।
z व््ययापार और निर््ययात के अवसर: अच््छछी तरह से जड़ु ़े परिवहन नेटवर््क उद्योगोों राष्ट् रीय रेल योजना विजन – 2030
को वैश्विक बाजारोों तक पहुचँ ने, अतं रराष्ट्रीय व््ययापार मेें सल
ं ग््न होने और निर््ययात z भारतीय रे लवे ने भारत के लिए राष्ट्रीय रे ल योजना (NRP) विजन- 2030
तथा बाजार जोखिम मेें वृद्धि के माध््यम से आर््थथिक विकास को बढ़़ावा देने मेें तैयार किया है, जिसका लक्षष्य वर््ष 2030 तक "भविष््य के लिए तैयार"
सक्षम बनाते हैैं। (Future- Ready) रे लवे प्रणाली विकसित करना है।
z राष्ट्रीय रेल योजना के मुख््य उद्देश््य निम््नलिखित हैैं: z क्षमता सबं ंधी बाधाएँ: सीमित ट्रैक और टर््ममिनल की उपलब््धता बढ़ती माँग
 माल ढुलाई मेें रे लवे की औसत हिस््ससेदारी मेें वद्ृ धि: परिचालन को परू ा करने मेें सक्षम नहीीं है, जिससे ट्रेनेें व््यस््त रहती हैैं और उनकी आवृत्ति
क्षमताओ ं और वाणिज््ययिक नीति पहलोों के माध््यम से माल ढुलाई मेें रे लवे कम हो जाती है।
की औसतन हिस््ससेदारी को 45% तक बढ़़ाने के लिए रणनीति निर््ममित z सरु क्षा सबं ंधी चिंताएँ: मानवीय त्टरु ि, ट्रैक मेें कमी और उपकरणोों मेें आई
करना। खराबी के कारण दर््घट ु नाएँ एक महत्तत्वपर्ू ्ण चनु ौती बनी हुई हैैं। उदाहरण के लिए,
 माल ढुलाई के पारगमन समय मेें कमी: मालगाड़़ियोों की औसत गति
वर््ष 2018 मेें अमृतसर ट्रेन दर््घट
ु ना।
को 50 किमी/घटं ा तक बढ़़ाकर माल ढुलाई के पारगमन समय को काफी z उच््च परिचालन लागत: भारतीय रे लवे को राजस््व चनु ौतियोों का सामना
हद तक कम करना। करना पड़ रहा है, साथ ही वेतन, पेेंशन और चिकित््ससा सवि ु धाओ ं सहित
कर््मचारियोों के प्रबंधन व््यय मेें वृद्धि का सामना करना पड़ता है, जिससे वित्तीय
 समर््पपित माल गलियारे (Dedicated Freight Corridors): माल
तनाव बढ़ रहा है।
ढुलाई की कुशल आवाजाही की सवि ु धा के लिए नए समर््पपित माल ढुलाई
z भीड़भाड़ एवं व््यस््तता: भारतीय रे लवे को मबंु ई और हावड़़ा जैसे प्रमख ु
गलियारोों की पहचान करना।
जंक््शनोों पर भीड़भाड़ का सामना करना पड़ रहा है, जिससे देरी और कार््य
 हाई-स््पपीड रे ल कॉरिडोर: यात्री संपर््क बढ़़ाने के लिए नए हाई-स््पपीड रे ल
दक्षता पर प्रभाव पड़ रहा है।
कॉरिडोर की पहचान करना।
सरकारी पहलेें
 रोलिंग स््टटॉक और लोकोमोटिव मूल््ययाांकन: यात्री यातायात के लिए

रोलिंग स््टटॉक की आवश््यकता और माल ढुलाई के लिए रे ल वैगन की z अमृत ​​भारत स््टटेशन योजना (2022): इसमेें दीर््घकालिक दृष्टि के साथ निरंतर
आधार पर 1000 छोटे स््टटेशनोों के विकास की परिकल््पना की गई है।
आवश््यकता का आकलन करना, साथ ही 100% विद्तयु ीकरण और माल
ढुलाई के औसत हिस््ससेदारी को बढ़़ाने के उद्देश््योों को प्राप्त करने हेतु z "एक राष्टट्र एक कार््ड" प्रणाली (2019): "एक राष्टट्र एक कार््ड" भगु तान
लोकोमोटिव की आवश््यकता का आकलन करना। को सरल बनाता है और ट्रेनोों, बसोों एवं मेट्रो सेवाओ ं सहित परिवहन के कई
साधनोों के लिए एक ही कार््ड द्वारा यात्रियोों को यात्रा करने की सवि ु धा प्रदान
 निजी क्षेत्र की भागीदारी: रोलिंग स््टटॉक के सच ं ालन और स््ववामित््व, करता है।
माल, यात्री टर््ममिनलोों के विकास और ट्रैक के बनिय ु ादी ढांँचे के विकास/ z कवच: भारत वर््ष 2012 से अपना स््वयं का ‘ट्रेन कोलिजन अवॉइडेेंस सिस््टम’
संचालन के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी। (TCAS) विकसित कर रहा है, जिसे अब कवच या "आर््मर" के रूप मेें
राष्ट्रीय रे ल योजना विजन 2024 जाना जाता है।
राष्ट्रीय रे ल योजना के एक भाग के रूप मेें वर््ष 2024 तक महत्तत्वपूर््ण z राष्ट्रीय रेल योजना (NRP): NRP का लक्षष्य वर््ष 2030 तक भविष््य के
परियोजनाओ ं के त््वरित कार््ययान््वयन के लिए विजन 2024 शरू ु किया गया लिए रे लवे प्रणाली विकसित करना है। इसमेें समर््पपित माल ढुलाई गलियारोों
है, जिसमेें शामिल हैैं: (जैसे, पर्ू वी और पश्चिमी समर््पपित माल ढुलाई गलियारे ) और हाई स््पपीड रेल
z 100% विद्त यु ीकरण। कोरीडोर (जैसे, मबंु ई-अहमदाबाद बल ु ेट ट्रेन परियोजना) का निर््ममाण शामिल है।
z व््यस््त मार्गगों की मल््टटी-ट्रैकिंग। रेल इडिया डेवलपमेेंट फंड (RIDF) (2017): महत्तत्वपर्ू ्ण रे लवे परियोजनाओ ं
z ं
z दिल््लली-हावड़़ा और दिल््लली-मब ंु ई मार्गगों पर गति को 160 किमी/घटं ा तक के लिए धन एकत्र करने, बनिय ु ादी ढांँचे के विकास, क्षमता विस््ततार और रे लवे
बढ़ाना। नेटवर््क के आधनि ु कीकरण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए RIDF
z अन््य स््वर््णणिम चतर््भभु
ु ज-स््वर््णणिम विकर््ण (GQ/GD) मार्गगों पर गति को 130 की स््थथापना करना।
किमी/घटं ा तक करना। z समर््पपित माल ढुलाई गलियारे/डेडिके टे ड फ्रे ट कॉरिडोर (DFCs): पर्ू वी
z GQ/GD मार्गगों पर सभी लेवल क्रॉसिंग को समाप्त करना।
समर््पपित माल ढुलाई गलियारे (EDFCs) और पश्चिमी समर््पपित माल ढुलाई
गलियारे (WDFCs) के निर््ममाण का उद्देश््य माल परिवहन दक्षता मेें सधु ार
भारतीय रेलवे की चुनौतियााँ करना तथा मौजदू ा रे लवे लाइनोों पर भीड़-भाड़ एवं व््यस््ततता को कम करना है।
z यात्री परिवहन: यात्री परिवहन मेें सब््ससिडी का बोझ और उच््च परिचालन
आगे की राह
अनपु ात भारतीय रे लवे के समक्ष उच््च गणु वत्तायक्त
ु सेवाएँ और सरु क्षा सवि
ु धाएँ
प्रदान करने मेें बाधक है। रेलवे आधुनिकीकरण पर
बिबेक देबरॉय समिति की सिफारिशेें (2015)
z औसत गति: विकसित देशोों की तल ु ना मेें भारत मेें रे लवे की औसत गति
बहुत कम है। इन कारणोों से, यात्रियोों की भीड़ स््थल और विमानन परिवहन z आधुनिकीकरण और उन््नयन: परिचालन दक्षता, सरु क्षा और यात्री अनभु व
का उपयोग कर रही है। को बेहतर बनाने के लिए आधनि ु क प्रौद्योगिकियोों, सिग््नलिंग प्रणालियोों और
रोलिंग स््टटॉक मेें निवेश करना।
 वर््ष 2022-23 मेें सेमी-हाई-स््पपीड ट्रेन की औसत गति 81.38 किमी प्रति
z बुनियादी ढांँचे का विस््ततार: कनेक््टटिविटी का विस््ततार करने, भीड़ को कम
घटं ा थी, जबकि मालगाड़़ियोों की औसत गति 46.71 किमी प्रति घटं ा थी।
करने और क्षेत्ररों मेें आर््थथिक विकास को बढ़़ावा देने के लिए नई रे लवे लाइनोों,
z माल परिवहन: सस््तती दरोों और गंतव््य-आधारित डिलीवरी के कारण सड़क समर््पपित माल ढुलाई गलियारोों और हाई-स््पपीड रे ल नेटवर््क के विकास को
परिवहन से उच््च प्रतिस््पर््धधा। निरंतर बनाए रखना।

78  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z मेक इन इडिया ं और आत््मनिर््भरता: आयात पर निर््भरता कम करने के लिए ग्रामीण सड़केें z देश के कुल सड़क नेटवर््क मेें 71.4% हिस््ससा ग्रामीण
रे लवे क्षेत्र मेें स््वदेशी विनिर््ममाण और अनसु ंधान एवं विकास क्षमताओ ं को सड़कोों का है। जनवरी 2024 तक ग्रामीण सड़कोों की
बढ़़ावा देना। लंबाई 63,45,403 किलोमीटर थी।
z ग्राहक अनुभव को बे हतर बनाना: रिपोर््ट मेें यात्री सवि ु धाओ,ं स््वच््छता और z पांँच राज््योों महाराष्टट्र, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश और
समग्र ग्राहक अनभु व को बेहतर बनाने के महत्तत्व पर प्रकाश डाला गया है। मध््य प्रदेश मेें देश की कुल ग्रामीण सड़कोों का 42.4%
z माल परिवहन के लिए ‘रोल-ऑन रोल-ऑफ’ मॉडल: रे ल पर लोड किए हिस््ससा है।
गए ट्रकोों का परिवहन करने, राजस््व सृजन को बढ़़ाने और कार््बन फुटप््रििंट को चुनौतियााँ
कम करने के लिए समर््पपित माल गलियारोों/डेडिके टेड फ्रेट कॉरिडोर(Dedicated z सड़क पर भीड़भाड़: अपर््ययाप्त सड़क क्षमता और यातायात प्रबंधन भीड़भाड़
Freight Corridors-DFCs) पर ‘रोल-ऑन रोल-ऑफ’ मॉडल को लागू करना। के लिए उत्तरदायी हैैं, जिससे यात्रा का समय, ईधन ं की खपत और वायु प्रदषण ू
z व््यवसायीकरण और आउटसोर््सििंग: रे लवे उत््पपादन इकाइयोों के बढ़ता है। भारत के तीन शहर वैश्विक यातायात भीड़भाड़/व््यस््तता मेें शीर््ष 10
व््यवसायीकरण और सचं ालन को सव्ु ्यवस््थथित करने तथा दक्षता मेें सधु ार करने स््थथानोों मेें से हैैं।
के लिए चिकित््ससा सेवाओ ं को आउटसोर््स करने के अवसरोों की खोज करना। z खराब सड़क अवसरं चना: व््ययापक सड़क नेटवर््क के बावजदू , काफी सड़केें
भारतीय रे लवे प्रणाली की देश के परिवहन बुनियादी ढाँंचे मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का खराब गणु वत्ता, अपर््ययाप्त रख-रखाव और उचित संकेत और प्रकाश व््यवस््थथा
है, जिसमेें महत्तत्वपूर््ण सुधार, डिजिटलीकरण, कौशल विकास और सुरक्षा संवर्दद्धन की कमी से ग्रस््त हैैं। इससे सड़क सरु क्षा बाधित होती है, वाहनोों की रखरखाव
शामिल हैैं साथ ही इसे राजस््व, व््यय और जीवाश््म ईधन ं पर निर््भरता की लागत बढ़ती है एवं परिवहन की समग्र दक्षता प्रभावित होती है।
चनु ौतियोों का सामना करना पड़ रहा है, जिन््हेें राष्ट्रीय रे ल योजना, सार््वजनिक- z सड़क सरु क्षा: भारत मेें सड़क दर््घट ु नाएँ-2022’ पर प्रकाशित वार््षषिक रिपोर््ट
निजी भागीदारी और टिकाऊ प्रथाओ ं जैसी पहलोों के माध््यम से संबोधित किया के अनसु ार, कै लेेंडर वर््ष 2022 के दौरान 1,68,491 लोगोों की जान गई और
जा रहा है। 4,43,366 लोग घायल हुए।
सड़क परिवहन z सड़क उपयोगकर््तताओ ं का व््यवहार: यातायात नियमोों का पालन न करना,
जिसमेें तेज गति से वाहन चलाना, लेन का अनचि ु त उपयोग और पैदल यात्रियोों
सड़कोों के विशाल नेटवर््क या जाल के साथ, भारत दनिय ु ा के सबसे बड़़े सड़क की सरु क्षा की अनदेखी शामिल है, सड़क परिवहन की चनु ौतियोों को बढ़़ाता
नेटवर््क मेें से एक है, जो ग्रामीण और शहरी क्षेत्ररों को जोड़ता है, व््ययापार और
है।
वाणिज््य को सुविधाजनक बनाता है तथा लोगोों और वस््ततुओ ं की गतिशीलता
z पहाड़़ी और दूरस््थ क्षेत्ररों मेें सड़क सपं र््क : पहाड़़ी इलाकोों, चनु ौतीपर्ू ्ण
को सक्षम बनाता है। सड़क परिवहन की भारत की परिवहन प्रणाली मेें एक
भौगोलिक क्षेत्ररों और कठिन भ-ू भाग वाले दरू दराज के क्षेत्ररों मेें सड़क संपर््क
महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का है, जो देश भर मेें यात्री और माल दोनोों की आवाजाही के
स््थथापित करना अनठू ी चनु ौतियोों मेें शामिल है।
लिए जीवन रे खा के रूप मेें कार््य करता है।
भारत मेें सड़कोों से संबंधित आँकड़़े और तथ््य z पर््ययावरणीय प्रभाव: सड़क परिवहन, वायु और ध््वनि प्रदषण ू का एक कारण
सड़कोों की z भारत मेें लगभग 66.71 लाख किलोमीटर सड़कोों का
है, जो मानव स््ववास््थ््य और पर््ययावरण दोनोों को प्रभावित करता है।
कुल लंबाई जाल या नेटवर््क है, जो अमेरिका के बाद दनिय ु ा मेें दसू रा z परिवहन साधनोों का एकीकरण: सड़क, रे ल और जलमार््ग जैसे परिवहन के
सबसे बड़़ा नेटवर््क है। विभिन््न साधनोों का कुशलतापर््वू क एकीकरण एक निर््बबाध और मल््टटीमॉडल
जीवीए z सड़क परिवहन भारत के परिवहन क्षेत्र मेें प्रमख ु खडं है परिवहन प्रणाली के लिए आवश््यक है।
(GVA)मेें और वर््ष 2023-24 मेें सकल मल्ू ्य वर््धधित (GVA) मेें भारतमाला परियोजना (2017)
योगदान इसका योगदान 3.06% होगा।
z इसका उद्देश््य रोजगार के अवसर निर््ममित करना और राष्ट्रीय राजमार््ग संपर््क के
z वर््ष 2023 के अत ं तक भारत मेें लगभग 323 मिलियन
माध््यम से देश भर के 550 जिलोों को जोड़ना है। साथ ही विभिन््न हस््तक्षेपोों
पंजीकृ त मोटर वाहन थे।
के माध््यम से भारत मेें माल और यात्री आवागमन की दक्षता को अनक ु ू लित
राष्ट्रीय z इनकी कुल लंबाई लगभग 146,145 किलोमीटर है, जो

राजमार््ग वर््ष 2014 मेें 91,287 किलोमीटर से 60% की वृद्धि करना है।
को दर््शशाता है। z परियोजना की प्रमुख विशेषताएँ और घटक इस प्रकार हैैं:
z जनवरी 2024 तक, महाराष्टट्र मेें 18,459 किमी (13.4%)  आर््थथि क गलियारे : भारी माल के यातायात के लिए निर््बबाध और तीव्र

के साथ राष्ट्रीय राजमार्गगों का सबसे बड़़ा नेटवर््क है, परिवहन सनिश् ु चित करने के लिए लगभग 26,200 किलोमीटर आर््थथिक
इसके बाद उत्तर प्रदेश और राजस््थथान का स््थथान है जहाँ गलियारोों का निर््ममाण और विकास करना।
राष्ट्रीय राजमार्गगों की कुल लंबाई क्रमशः 13,248 किमी  सप ं र््क मार््ग या अंतर-गलियारे (Feeder Routes or Inter
(8.9%) और 12,000 किमी (7.8%) हैैं। Corridors): बनिय ु ादी ढाँचे की विषमता को दरू करने और कनेक््टटिविटी
राज््य राजमार््ग z वर््ष 2024 की शरुु आत तक, भारत मेें राज््य राजमार्गगों की मेें सधु ार करने के लिए 6,000 किलोमीटर सपं र््क मार््ग या अतं र-गलियारे
कुल लंबाई लगभग 183,011 किलोमीटर थी। का विकास करना।

भारत में परिवहन और संचा 79


 राष्ट्रीय कॉरिडोर दक्षता मेें सध ु ार: एलिवेटेड कॉरिडोर, बाईपास, रिंग
नागरिक विमानन/नागरिक उड्डयन
रोड, लेन विस््ततार और लॉजिस््टटिक््स पार्ककों के निर््ममाण के माध््यम से स््वर््णणिम
चतर््भभुु ज और उत्तर-दक्षिण और पर््वू -पश्चिम गलियारोों सहित राष्ट्रीय कॉरिडोर नागरिक विमानन से तात््पर््य देश के भीतर विमानन गतिविधियोों के संचालन,
की दक्षता मेें सधु ार पर ध््ययान केें द्रित किया गया। इसके तहत भारतमाला विनियमन और विकास से है। भारत मेें नागरिक विमानन एक तेजी से बढ़ता
परियोजना के चरण-I के तहत 34,800 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार््ग लंबाई हुआ क्षेत्र है, जिसकी देश के परिवहन बुनियादी ढाँचे और आर््थथिक विकास मेें
के विकास की योजना बनाई गई थी। महत्तत्वपूर््ण भमि
ू का है।
पीएम-गति शक्ति (2021)
योजना के छ: स्तंभ:
राष्ट्रीय नागरिक विमानन
व््ययापकता: सभी मौजदू ा और नियोजित पहलोों के लिए केें द्रीकृ त पोर््टल,
नीति 2016
z

जो व््ययापक योजना और क्रियान््वयन के लिए महत्तत्वपर्ू ्ण डेटा प्रदान करता है।


z प्राथमिकता: विभिन््न विभागोों की परियोजनाओ ं को प्राथमिकता देने मेें
मदद करने के लिए क्रॉस-सेक््टरल इटं रै क््शन स््थथापित करना ।
z अनुकूलन: महत्तत्वपर्ू ्ण अतं राल की पहचान करने और परिवहन के लिए
सबसे इष्टतम मार्गगों का चयन करने के लिए राष्ट्रीय मास््टर प््ललान निर््ममित
करना। NCAP 2016 मेें निम््नलिखित क्षेत्र शामिल हैैं
z समन््वय: देरी से बचने और कार््ययान््वयन मेें सधु ार करने के लिए मत्ं रालयोों विमानन सुरक्षा आव्रजन
क्षेत्रीय संपर््क
और विभागोों के बीच गतिविधियोों का समग्र समन््वय और सहयोग स््थथापित और सीमा शुल््क
करना।
सुरक्षा
z विश्ले षणात््मक: बेहतर दृश््यता और निगरानी के लिए कई परतोों के साथ हेलीकॉप््टर
जीआईएस-आधारित स््थथानिक योजना और विश्लेषणात््मक उपकरण
स््थथापित करना। हवाई परिवहन संचालन चार््टर
z सक्रियता/डायनामिक: उपग्रह चित्ररों के माध््यम से अतं र-क्षेत्रीय
परियोजनाओ ं की वास््तविक समय पर होने वाली प्रगति की निगरानी और मार््ग विस््ततार दिशा-निर्देश रखरखाव, मरम््मत और
आवधिक अद्यतन करना। ओवरहाल

पर््वतमाला परियोजना (2022) अंतरराष्ट्रीय संचालन के लिए ग्राउंड हैैंडलिंग


5/20 आवश््यकताएँ
z राष्ट्रीय रोपवे विकास कार््यक्रम के भाग के रूप मेें पर््वतमाला परियोजना
का उद्देश््य पारिस््थथितिक रूप से सतत रोपवे प्रणालियोों का उपयोग करके पहाड़़ी द्विपक्षीय यातायात अधिकार
एयर-कार्गो
क्षेत्ररों मेें कनेक््टटिविटी को बढ़़ाना है।
z मुख््य बिंदु: कोड-शेयर समझौते एयरोनॉिटकल
‘मेक इन इंिडया’
 इसे पब््ललिक-प्राइवेट पार््टनरशिप (PPP) मोड के माध््यम से लागू किया

जाएगा। वित्तीय सहायता विमानन शिक्षा और कौशल


विकास
 यह दर््गम ु इलाकोों मेें पारंपरिक सड़कोों के लिए पर््ययावरण के अनक ु ू ल विकल््प
भी प्रदान करता है। राज््य सरकार द्वारा विकसित सतत विमानन
हवाई अड् डे, पीपीपी मोड मेें
 यह कनेक््टटिविटी मेें सध ु ार करने, यात्रियोों के लिए सवि ु धा और पर््यटन को निजी अनुभाग
बढ़़ावा देने पर केें द्रित है। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण
विविध
z लक्षित क्षेत्र: उत्तराखडं , हिमाचल प्रदेश, मणिपरु , जम््ममू और कश््ममीर तथा
अन््य पर्ू वोत्तर राज््योों पर प्रारंभिक रूप से ध््ययान केें द्रित किया जाएगा। आवश््यक सेवाएँ रखरखाव
वायु नेविगेशन सेवाएँ अधिनियम, 1968
z अंतिम छोर तक कनेक््टटिविटी/लास््ट माइल कनेक््टटिविटी:
 रोपवे प्रणाली विशेष तौर पर 3S (एक तरह की के बल कार प्रणाली) या

इसी प्रकार की तकनीक का उपयोग करने वाली प्रणालियाँ, पहाड़़ी क्षेत्ररों भारत मेें नागरिक विमानन क्षेत्र की चुनौतियााँ:
मेें अतिम
ं छोर तक कनेक््टटिविटी मेें सधु ार करती हैैं। z वित्त पोषण और निवेश: हवाईअड््डडोों के विकास और विस््ततार के लिए पर््ययाप्त
 इसके माध््यम से प्रति घट ं े काफी संख््यया मेें यात्रियोों को ले जाया जा सकता धन जटु ाना, निजी निवेश को आकर््षषित करना और टिकाऊ वित्तीय मॉडल
है। सनिश्
ु चित करना चनु ौती बनी हुई है।

80  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z एयर ट्रैफिक कंजेशन: बढ़ते एयर ट्रैफिक के साथ, प्रमख ु हवाई अड््डडोों और z कौशल विकास पहल: सरकार कौशल विकास के लिए विमानन क्षेत्र कौशल
हवाई क्षेत्र मेें भीड़भाड़ चितं ा का विषय बनी हुई है। इससे देरी, ईधन ं की खपत परिषद और इसी प्रकार के संगठनोों को अपना समर््थन प्रदान करती है तथा
मेें वृद्धि और उच््च लागत की समस््यया उत््पन््न होती है। पायलटोों की टाइप रे टिंग के लिए बजटीय सहायता प्रदान करती है।
z कौशल की कमी: पायलट, एयर ट्रैफिक कंट्रोलर और रखरखाव इज ं ीनियरोों मेक इन इडिया
z ं : मेक इन इडिय ं ा पहल विमान, विमान घटकोों और रखरखाव,
जैसे कुशल विमानन पेशवे रोों की बढ़ती माँग को परू ा करना एक चनु ौती बनी मरम््मत और संचालन/ओवरहाल (Maintenance, Repair, and Overhaul-
हुई है। MRO) सवि ु धाओ ं के लिए घरे लू विनिर््ममाण और संयोजन को प्रोत््ससाहित करती
z सरु क्षा और सरं क्षण: सरु क्षा प्रोटोकॉल को मजबत ू करना, उन््नत तकनीकोों है।
को लागू करना और विभिन््न हितधारकोों के बीच समन््वय को स््थथापित करना
z कृषि उड़़ान: सरकार ने छोटे शहरोों से अतं रराष्ट्रीय बाजारोों तक शीघ्र खराब
चनु ौतीपर्ू ्ण कार््य बना हुआ है।
होने वाले कृ षि उत््पपादोों के लिए हवाई परिवहन की सवि ु धा प्रदान करने तथा
z क्षेत्रीय सप ं र््क : दरू दराज के क्षेत्ररों मेें क्षेत्रीय संपर््क और पहुचँ को बढ़़ावा देने
कृ षि निर््ययात को बढ़़ावा देने के लिए वर््ष 2019 मेें कृ षि उड़़ान योजना शरू ु
के लिए भौगोलिक चनु ौतियोों पर नियंत्रण स््थथापित करना, छोटे हवाई अड्डे
विकसित करना और रसद संबंधी बाधाओ ं को दरू करना आवश््यक है। की।
z लागत सरं चना: ईधन ं की कीमतोों, करोों और हवाई अड्डे के शल्ु ्कोों सहित z हरित पहल: सरकार विमानन क्षेत्र मेें पर््ययावरण अनक ु ू ल प्रथाओ ं को बढ़़ावा
परिचालन लागतोों का प्रबंधन करना एयरलाइनोों की वित्तीय स््थथिरता के लिए देती है, जिसमेें रखरखाव, मरम््मत और संचालन/ओवरहाल (MRO) से
महत्तत्वपर्ू ्ण है। संबंधित गतिविधियोों को प्रोत््ससाहन देने के लिए, एमआरओ सेवा प्रदाताओ ं
z पर््ययावरणीय प्रभाव: कार््बन उत््सर््जन, ध््वनि प्रदषण ू और भमि ू उपयोग सहित के लिए भमि ू आवटं न और MRO गतिविधियोों पर वैट शन्ू ्य-रे टिंग शामिल
विमानन के पर््ययावरणीय प्रभाव के लिए स््थथायी प्रथाओ ं और शमन उपायोों की है।
आवश््यकता होती है। आत््मनिर््भर भारत अभियान के अंतर््गत सुधार
z प्रतिस््पर््धधा और बाजार गतिशीलता: प्रतिस््पर््धधा का प्रबंधन, निष््पक्ष प्रथाओ ं नागरिक विमानन के लिए कुशल हवाई क्षेत्र प्रबंधन:
को सनिश् ु चित करना और समान अवसर प्रदान करना नियामक अधिकारियोों के z भारत सरकार नागरिक उड़़ानोों की दक्षता बढ़़ाने के लिए हवाई क्षेत्र के उपयोग
समक्ष आने वाली चनु ौतियाँ हैैं। पर प्रतिबंधोों को कम करने की योजना बना रही है।
संबंधित तथ््य z अपेक्षित लाभोों मेें विमानन क्षेत्र के लिए लगभग 1,000 करोड़ रुपये का
z भारतीय विमानन उद्योग सकल घरे लू उत््पपाद मेें 5% योगदान देता है, यह
अनमु ानित वार््षषिक लाभ शामिल है।
4 मिलियन रोजगार प्रदान करता है, और पर््यटन के माध््यम से 7 मिलियन
रोजगार उपलब््ध कराता है। z हवाई क्षेत्र के अनकु ू लन से ईधन
ं की खपत कम होगी, उड़़ान का समय कम
होगा और पर््ययावरण पर सकारात््मक प्रभाव पड़़ेगा।
z वित्त वर््ष 2023-24 मेें, भारत का विमानन यातायात लगभग 190 मिलियन

यात्रियोों तक पहुचँ गया। विमान रखरखाव, मरम्मत और संचालन/


z वैश्विक स््तर पर भारत 7वेें सबसे बड़़े नागरिक विमानन बाजार के रूप मेें
ओवरहॉल (MRO) के लिए भारत का वैश्विक केें द्र:
शामिल है और वर््ष 2024 तक तीसरा स््थथान पर आने का अनमु ान है। z विकास को बढ़़ावा देने के लिए एमआरओ पारिस््थथितिकी तंत्र (MRO
z वर््ष 2036 तक, भारत का कुल यात्री आवागमन 480 मिलियन तक पहुच ँ ने Ecosystem) के लिए कर व््यवस््थथा को यक्ति ु संगत बनाया गया है।
की उम््ममीद है, जो जापान और जर््मनी के संयक्त ु यात्री आवागमन से अधिक z अगले तीन वर्षषों मेें, विमान घटक मरम््मत और एयरफ्रेम रखरखाव मेें 800
हो जाएगा। करोड़ रुपये से 2,000 करोड़ रुपये तक की वृद्धि होने की उम््ममीद है।
सरकारी पहलेें: z दनिय
ु ा भर के प्रमखु इजं न निर््ममाताओ ं द्वारा भारत मेें इजं न मरम््मत की सवि
ु धाएंँ
z उड़़ान योजना: उड़़े देश का आम नागरिक (उड़़ान) योजना एयरलाइनोों को स््थथापित करने की उम््ममीद है।
वित्तीय प्रोत््ससाहन देकर और हवाई अड्डे के बनिय ु ादी ढांँचे मेें सधु ार कर z इसके अतिरिक्त, रक्षा क्षेत्र और नागरिक एमआरओ के बीच अभिसरण
किफायती क्षेत्रीय हवाई संपर््क को बढ़़ावा देती है। स््थथापित करने के प्रयास किए जाएगं े, ताकि एक स््तर की अर््थव््यवस््थथाओ ं
z क्षेत्रीय सपं र््क योजना (RCS): सरकार ने ‘नो-फ्रिल््स’ हवाई अड््डडोों के रूप को विकसित किया जा सके और एयरलाइनोों की रखरखाव लागत को कम
मेें हवाई पट्टियोों/हवाई अड््डडोों को पनु र्जीवित करके और वहनीय हवाई शल्ु ्क किया जा सके ।
का निर््धधारण कर क्षेत्रीय सपं र््क बढ़़ाने के लिए RCS को शरू
ु किया। जहाजरानी और अंतर्देशीय जलमार््ग
z राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति: वर््ष 2016 मेें सरकार द्वारा राष्ट्रीय नागरिक
उड्डयन नीति प्रस््ततुत की, गई जिसका उद्देश््य पर््यटन, रोजगार और संतलि ु त भारत के परिवहन नेटवर््क मेें शिपिंग और अंतर्देशीय जलमार्गगों की महत्तत्वपूर््ण
क्षेत्रीय विकास को बढ़़ावा देना है। भमि
ू का हैैं, जिससे माल और यात्रियोों की आवाजाही सुगम होती है। भारतीय
z ओपन स््ककाई समझौते: सरकार ने अतं रराष्ट्रीय हवाई संपर््क को बढ़़ावा देने अंतर्देशीय जलमार््ग प्राधिकरण (IWAI) इन जलमार्गगों को विनियमित करने
के लिए सार््क देशोों और दिल््लली से 5000 किलोमीटर से आगे के देशोों के साथ और विकसित करने, जहाजोों के लिए नौवहन क्षमता सुनिश्चित करने और परिवहन
ओपन स््ककाई समझौते किए। दक्षता मेें सधु ार करने के लिए उत्तरदायी है।

भारत में परिवहन और संचा 81


संबंधित तथ््य z नौगम््य: भारत मेें, लगभग 14,500 किमी. नदी चैनल नौगम््य हैैं। लेकिन के वल
z भारत के बाहरी व््ययापार का मात्रा के हिसाब से लगभग 90% और मल्ू ्य के 2000 किमी का उपयोग किया जाता है।
हिसाब से 70% व््ययापार बंदरगाहोों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। z पहुच ँ : जलमार््ग दरू दराज के क्षेत्ररों तक पहुचँ प्रदान करते हैैं और अतं र्देशीय
z अतं र्देशीय जल परिवहन (IWT) थोक माल/बल््क कार्गो के लिए एक क्षेत्ररों को तटीय बंदरगाहोों से जोड़ते हैैं।
किफायती तरीका है, लेकिन वर््तमान मेें यह भारत के मॉडल मिक््स का z थोक माल का परिवहन: जल परिवहन द्वारा बड़़ी मात्रा मेें थोक वस््ततुओ ं को
के वल 2% ही है। एक स््थथान से दसू रे स््थथान तक कुशलतापर््वू क ले जाया जा सकता है।
z सरकार का लक्षष्य मैरीटाइम इडिया ं विजन (MIV)-2030 के माध््यम z पर््यटन और मनोरंजन: जलमार््ग पर््यटन के लिए अवसर प्रदान करते हैैं, जिससे
से वर््ष 2030 तक अपनी हिस््ससेदारी को 5% तक बढ़़ाना है। स््थथानीय अर््थव््यवस््थथा को बढ़़ावा मिलता है।
z मैरीटाइम इडियां विजन (MIV) 2030 के अनसु ार वर््ष 2030 तक z विकास: यह निर््ययात और आयात को बढ़़ावा देता है क््योोंकि इससे बंदरगाहोों
राष्ट्रीय जलमार्गगों पर माल की आवाजाही का लक्षष्य 200 मीट्रिक मिलियन
और आतं रिक क्षेत्ररों के मध््य माल ले जाने की रसद लागत मेें कमी आती है।
टन (MMT) है।
z भारत मेें अतं र्देशीय जलमार्गगों का एक व््ययापक नेटवर््क है जिसका विस््ततार चुनौतियााँ
20,000 किलोमीटर से अधिक मेें है, जिसमेें नदियाँ, नहरेें और बैकवाटर z इटं रमॉडल कनेक््टटिविटी: निर््बबाध परिवहन के लिए जलमार््ग, सड़क और रे ल
शामिल हैैं। राष्ट्रीय जलमार््ग अधिनियम, 2016 के तहत 111 अंतर्देशीय नेटवर््क के बीच प्रभावी इटं रमॉडल कनेक््टटिविटी महत्तत्वपर्ू ्ण है।
जलमार्गगों को राष्ट्रीय जलमार््ग घोषित किया गया है।
z ट््राांसशिपमेेंट पोर््ट: वर््तमान मेें भारत मेें ट््राांसशिपमेेंट पोर््ट की अनपु स््थथिति के
जलमार््ग परिवहन के लाभ कारण कंटेनरोों का एक बड़़ा हिस््ससा कोलंबो और सिगं ापरु जैसे अन््य बंदरगाहोों
z लागत प्रभावी: IWT की लागत लगभग 0.25 रुपये/किमी है, रे ल की 1.5 के माध््यम से ट््राांसशिप किया जाता है।
रुपये/किमी है जबकि सड़क परिवहन की 2.5 रुपये/किमी है। z प्रतिस््पर््धधात््मकता: जलमार््ग परिवहन को सड़क और रे ल जैसे परिवहन के
z ईधनं कुशल: अतं र्देशीय जलमार््ग परिवहन मेें रे ल या सड़क मार््ग की तल ु ना अन््य साधनोों जो अधिक लचीलापन और तीव्र वितरण प्रदान कर सकते हैैं,
मेें ईधन
ं की कम खपत होती है
। विश्व बैैं क के अनसु ार, अतं र्दे
श ीय जलमार्गगों से प्रतिस््पर््धधा का सामना करना पड़ता है ।
द्वारा एक लीटर ईधनं मेें 105 टन-किमी की ढुलाई होती है, रे ल द्वारा के वल z मानकीकृत विनियमोों का अभाव: विभिन््न राज््योों और क्षेत्ररों मेें विनियमोों
85 टन-किमी और सड़क द्वारा 24 टन-किमी की ढुलाई होती है। का सामजं स््य चनु ौतीपर्ू ्ण हो सकता है, जिससे परिचालन गतिविधियोों मेें
z कम उत््सर््जन: कंटेनर जहाजोों से होने वाला CO2 उत््सर््जन सड़क परिवहन असगं तताएँं और जटिलताएँं उत््पन््न हो सकती हैैं।
वाहनोों की तलु ना मेें बहुत कम होता है। z सीमित कवरेज: जलमार््ग सभी क्षेत्ररों मेें उपलब््ध नहीीं हो सकते हैैं, जिससे
z भीड़भाड़ कम करना: यह हमारे जाम हुए राजमार्गगों और अधिक भार वाले उनकी पहुचँ और प्रयोज््यता सीमित हो जाती है।
रे लवे के बोझ को कम करने मेें सहायक हैैं तथा इससे दर््घट ु नाओ ं मेें भी कमी रख-रखाव और निकर््षण/ड्रेजिंग: नौगम््यता सनिश्
z ु चित करने के लिए जलमार्गगों
आएगी।
का नियमित रखरखाव और निकर््षण/ड्रेजिंग आवश््यक है, लेकिन इन
गतिविधियोों के लिए निरंतर निवेश की आवश््यकता होती है और ये पर््ययावरणीय
चितं ाओ ं से भी प्रभावित हो सकती हैैं।
z सीमित बाजार एकीकरण: विद्यमान आपर््तति ू ृंखलाओ ं और रसद नेटवर््क
मेें जलमार््ग परिवहन को एकीकृ त करना जटिल हो सकता है, जिसके लिए
विभिन््न हितधारकोों और प्रणालियोों के बीच समन््वय की आवश््यकता होती
है।
पर्यावरण और समाज के लिए जलमार््ग के लाभ
z पर््ययावरणीय लाभ:
 निम््न कार््बन उत््सर््जन: जलमार््ग द्वारा परिवहन सामान््यतः अधिक ऊर््जजा

कुशल होता है और सड़क या हवाई परिवहन जैसे परिवहन के अन््य साधनोों


की तलु ना मेें कार््बन का कम उत््सर््जन करता है।
 भीड़भाड़ और सड़क यातायात मेें कमी: जलमार््ग परिवहन माल

परिवहन का एक वैकल््पपिक साधन प्रदान कर सड़कोों पर होने वाली की


भीड़भाड़ को कम करने मेें मदद करता है।
 वन््यजीव और प्राकृतिक आवास मेें कम व््यवधान: नहरोों का निर््ममाण

या नदी चैनलोों को गहरा करना, प्राकृ तिक आवासोों मेें व््यवधान को कम


कर सकता है जिसका प्रभाव वन््यजीवोों पर भी देखा जा सकता है।

82  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z सामाजिक-आर््थथिक लाभ केें द्रीय सड़क एवं z वर््ष 2019 मेें निधि मेें संशोधन करके अतं र्देशीय
 आर््थथि क विकास: जलमार््ग व््ययापार और वाणिज््य को सवि ु धाजनक बनाने अवसंरचना निधि जलमार्गगों को वित्तपोषण के लिए पात्र अवसरं चना
मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाते हैैं। यह माल, विशेष रूप से थोक या भारी (CRIF) उप-क्षेत्ररों मेें से एक के रूप मेें शामिल किया गया।
माल के परिवहन का एक लागत प्रभावी साधन प्रदान करता है। z इससे अतं र्देशीय जलमार््ग अवसंरचना के विकास
 रोजगार के अवसर: जलमार््ग परिवहन विभिन््न क्षेत्ररों मेें रोजगार के अवसर और रखरखाव के लिए निधि का उपयोग करने की
उत््पन््न करता है। इसमेें जहाज निर््ममाण, बंदरगाह संचालन, रसद और अनमति ु प्राप्त होते है।
रखरखाव शामिल है, जो कुशल तथा अकुशल श्रमिकोों की एक विविध मैरीटाइम इंडिया विजन (MIV) 2030
श्रेणी के लिए रोजगार प्रदान करता है।
z मैरीटाइम इडिय
ं ा विजन 2030 (MIV 2030) बंदरगाह, जहाजरानी और
 क्षेत्रीय विकास: जलमार््ग परिवहन अत ं र्देशीय क्षेत्ररों को तटीय क्षेत्ररों और जलमार््ग मंत्रालय द्वारा तैयार किया गया एक खाका है, जिसका उद्देश््य
अतं रराष्ट्रीय बाजारोों से जोड़कर क्षेत्रीय विकास को बढ़़ावा दे सकता है।
भारत को वैश्विक समुद्री क्षेत्र मेें अग्रणी बनाना है।
 परिवहन दक्षता: जलमार््ग परिवहन विशेष रूप से बड़़ी मात्रा मेें माल के
z इसका उद्देश््य आने वाले दशक मेें भारत के समद्री ु क्षेत्र का समन््ववित और
परिवहन का एक कुशल तरीका प्रदान करता है।
त््वरित विकास सनिश्
ु चित करना है।
 पहुच ँ और कनेक््टटिविटी: यह दरू दराज के समदु ायोों के लिए एक
z MIV 2030 को बंदरगाहोों, शिपयार््ड, अतं र्देशीय जलमार्गगों, व््ययापार निकायोों
विश्वसनीय परिवहन का विकल््प प्रदान करता है, जिससे वस््ततुओ,ं सेवाओ ं
और उद्योग विशेषज्ञञों सहित 350 से अधिक सार््वजनिक और निजी क्षेत्र के
और स््ववास््थ््य सेवा तक पहुचंँ आसान हो जाती है।
हितधारकोों के परामर््श के सहयोग से विकसित किया गया है।
सरकार द्वारा किये गए प्रयास
भारतीय समुद्री क्षेत्र की मुख्य विशेषताएँ
भारतीय अंतर्देशीय z अधिनियम मेें जहाजरानी और नौवहन के लिए
जलमार््ग अतं र्देशीय जलमार्गगों के विनियमन और विकास z भारत के 7500 किलोमीटर लंबे समद्रु तट पर 12 प्रमख ु बंदरगाह और 200
प्राधिकरण तथा इससे सबं ंधित मामलोों के लिए एक प्राधिकरण से अधिक गैर-प्रमख ु बंदरगाह हैैं, जो व््ययापार और विकास मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का
अधिनियम, 1985 की स््थथापना का प्रावधान किया गया है। निभाते हैैं।
z तदनसु ार, 1986 मेें भारतीय अतं र्देशीय जलमार््ग z देश के व््ययापार की मात्रा का 95% और व््ययापार मल्ू ्य का 65% समद्री ु परिवहन
प्राधिकरण (IWAI) का गठन किया गया। के माध््यम से किया जाता है।
राष्ट्रीय जलमार््ग z अधिनियम मेें 111 नदियोों या नदी के खडों ों, z अतं र्देशीय जल परिवहन मेें उल््ललेखनीय वृद्धि देखी गई है, विगत पाँच वर्षषों मेें
अधिनियम, 2016 खाड़़ियोों, महु ानाओ ं को राष्ट्रीय (अतं र्देशीय) कार्गो का मॉडल शेयर 0.5% से बढ़कर 2% हो गया है।
जलमार््ग घोषित किया गया। z जहाजोों के पनु र््चक्रण मेें भारत विश्व स््तर पर तीसरे स््थथान पर और जहाज निर््ममाण
z यह केें द्र सरकार को जहाजरानी और नौवहन मेें 21वेें स््थथान पर है।
एवं यांत्रिक रूप से चालित जहाजोों के माध््यम से
z देश समद्री ु उद्योग के लिए प्रशिक्षित जनशक्ति की आपर््तति ू करने वाले शीर््ष 5
परिवहन के सबं ंध मेें विकास के लिए इन जलमार्गगों
को विनियमित करने की अनमति देशोों मेें से एक है।
ु प्रदान करता है।
जलमार््ग विकास z इसका उद्देश््य राष्ट्रीय जलमार््ग-1 (NW-1) की आगे की राह
परियोजना नौवहन क्षमता मेें सधु ार करना है। इस परियोजना z बुनियादी ढांँचे का विकास: कनेक््टटिविटी और पहुचंँ मेें सधु ार के लिए
(JMVP) (2015) को भारत सरकार द्वारा तकनीकी सहायता और विश्व बंदरगाहोों, अतं र्देशीय जलमार्गगों और संबंधित बनिय ु ादी ढांँचे के विकास मेें
बैैंक की निवेश सहायता से क्रियान््ववित किया जा
निवेश करना। इसमेें मौजदू ा बंदरगाहोों का आधनि ु कीकरण, नए बंदरगाहोों का
रहा है।
निर््ममाण और अतं र्देशीय जलमार्गगों के नेटवर््क का विस््ततार करना शामिल है।
सागरमाला z सागरमाला कार््यक्रम बंदरगाहोों के आधनि ु कीकरण
परियोजना (2015) और विकास, बंदरगाह के मध््य संपर््क मेें सधु ार, z सार््वजनिक-निजी भागीदारी: विशेषज्ञता, ससं ाधनोों और निवेश का लाभ
बंदरगाह आधारित औद्योगीकरण को बढ़़ावा देने प्राप्त करने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग को बढ़़ावा देना।
तथा तटीय समदु ायोों को लाभ प्रदान करने पर z जागरूकता और माँग को बढ़़ावा: व््यवसायोों और उपभोक्ताओ ं के बीच
केें द्रित है। जल परिवहन से प्राप्त होने वाले लाभोों, जैसे लागत-प्रभावशीलता, कम भीड़
z इसका उद्देश््य घरे लू और अतं रराष्ट्रीय व््ययापार के भाड़ और पर््ययावरणीय लाभोों के बारे मेें जागरूकता उत््पन््न करना।
लिए रसद लागत को कम करना तथा ‘समग्र मॉडल z मल््टटीमॉडल परिवहन के साथ एकीकरण: माल और यात्रियोों की निर््बबाध
मिश्रण’ (Overall Modal Mix) मेें जल परिवहन आवाजाही को सवि ु धाजनक बनाने के लिए सड़क, रे ल और वायु जैसे विभिन््न
की हिस््ससेदारी बढ़़ाना है। परिवहन साधनोों के बीच समन््वय तथा एकीकरण को बढ़़ाना।
z इसका उद्देश््य मौजदू ा 6% से ‘मॉडल मिश्रण’ मेें z पर््ययावरणीय स््थथिरता: स््वच््छ ईधन ं के उपयोग को प्रोत््ससाहित करना, अपशिष्ट
घरे लू जलमार्गगों की हिस््ससेदारी को बढ़़ाकर रसद प्रबंधन प्रणालियोों को लागू करना, तथा सतत संचालन सनिश् ु चित करने के लिए
लागत को कम करना है। पर््ययावरण अनक ुू ल प्रौद्योगिकियोों को अपनाना।

भारत में परिवहन और संचा 83


z निगरानी और मूल््ययाांकन: जल परिवहन क्षेत्र मेें की गई पहलोों की प्रगति और प्रायद्वीपीय घटक
प्रभाव को निरीक्षण करने के लिए एक मजबतू निगरानी एवं मल्ू ्ययाांकन ढांँचा राष्ट्रीय नदी जोड़़ो परियोजना (NRLP) का प्रायद्वीपीय घटक दक्षिणी भारत की
स््थथापित करना। नदियोों को आपस मेें जोड़ने पर केें द्रित है। इसमेें महानदी और गोदावरी नदियोों
के अधिशेष जल को कृ ष््णणा, कावेरी, पेन््ननार और वैगई नदियोों मेें स््थथानांतरित
मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030
करना शामिल है।
बंदरगाहोों, नौवहन और जलमार्गगों मेें 150 से अधिक पहलोों इस घटक मेें चार उप-घटक संबध
ं शामिल हैैं
की पहचान की गई। z महानदी और गोदावरी नदी घाटियोों को कावेरी, कृ ष््णणा और वैगई नदी प्रणालियोों
बंदरगाह
• विश्व स््तरीय बंदरगाह अवसंरचना
से जोड़ना।
• EODB मेें सुधार के लिए 'स््ममार््ट बंदरगाह' z के न और बेतवा नदियोों के साथ-साथ पार््वती और कालीसिंध नदियोों को
• लॉजिस््टटिक््स लागत मेें कमी लाना और मल््टटी-मॉडल परिवर््तन को सक्षम बनाना चबं ल नदी से जोड़ना।
• संस््थथागत, विनियामक और विधायी सुधार
• सुरक्षित, सतत और हरित समुद्री क्षेत्र
z तापी के दक्षिण मेें पश्चिम की ओर प्रवाहित होने वाली नदियोों को बॉम््बबे के
उत्तर मेें प्रवाहित होने वाली नदियोों से जोड़ना।
शिपिंग
z एनआरएलपी (NRLP) का उद्देश््य जल की प्रचरु ता वाले बेसिनोों से जल की
• जहाज निर््ममाण, मरम््मत और पुनर््चक्रण मेें आत््मनिर््भरता
• शिपिंग नीति और संस््थथागत ढाँचे मेें सुधार कमी वाले बेसिनोों मेें जल के स््थथानांतरण द्वारा जल की कमी और बाढ़ की
• भारत की वैश्विक स््थथिति को बढ़़ाना चनु ौतियोों का समाधान करना, बेहतर जल ससं ाधन प्रबंधन को बढ़़ावा देना
• महासागर, तटीय और द्वीप क्रूज हब और भारत के विभिन््न क्षेत्ररों की बढ़ती हुई जल की मांँगोों को परू ा करना है।
• विश्व स््तरीय समुद्री अनुसंधान, शिक्षा और प्रशिक्षण
लाभ
जलमार््ग
• कार्गो आवागमन को बढ़़ावा देना z समतापूर््ण जल वितरण: नदियोों को आपस मेें जोड़ने से क्षेत्ररों के बीच जल
• क्षेत्रीय संपर््क ससं ाधनोों का उचित बंटवारा सनिश् ु चित किया जा सकता है, जल की कमी को
• मल््टटीमॉडलिटी दरू किया जा सकता है तथा जल के सतत उपयोग को बढ़़ावा दिया जा सकता
• तटीय एकीकरण
है।
• नदी क्रूज पर््यटन
• शहरी जल परिवहन z सख ू े मेें कमी: जल की प्रचरु ता वाले क्षेत्ररों से जल स््थथानांतरित करके , नदियोों
को आपस मेें जोड़ने से सख ू े की समस््यया से निपटा जा सकता है, जल की कमी
नदियोों को आपस मेें जोड़ना वाले क्षेत्ररों मेें कृ षि और आजीविका को बढ़़ावा मिल सकता है।
z बाढ़ नियंत्रण: नदियोों को आपस मेें जोड़ने से जल प्रवाह नियंत्रित होता है,
राष्ट् रीय नदी जोड़़ो परियोजना (NRLP) बाढ़ का जोखिम कम होता है और जान-माल तथा बनिय ु ादी ढाँचे को होने
z राष्ट्रीय नदी जोड़़ो परियोजना (NRLP) एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, वाली क्षति को कम किया जा सकता है।
जिसका उद्देश््य लगभग 3000 भडं ारण बांधोों के नेटवर््क के माध््यम से 37 z सिच ं ाई और कृषि: नदियोों को आपस मेें जोड़ने से सिंचाई क्षमता बढ़ती है,
नदियोों को आपस मेें जोड़कर भारत मेें जल की कमी और बाढ़ की समस््ययाओ ं कृ षि योग््य क्षेत्ररों का विस््ततार होता है और कृ षि उत््पपादकता बढ़ती है।
को दरू करना है। इस अतं र्संबंध या इटं रलिंकिंग से एक विशाल दक्षिण एशियाई z जल विद्युत उत््पपादन: आपस मेें जड़ु ़ी नदियाँ जल विद्तयु के माध््यम से स््वच््छ
जल ग्रिड का निर््ममाण होगा। ऊर््जजा उत््पपादन के अवसर प्रदान करती हैैं, जो देश की ऊर््जजा आवश््यकताओ ं
z राष्ट्रीय जल विकास एजेेंसी (NWDA) इस परियोजना की नोडल एजेेंसी को पर्ू ्ण करने मेें सहायक होती हैैं।
है। गोदावरी और कृष््णणा नदी को आपस मेें जोड़ने का कार््य वर््ष 2015 मेें z लॉजिस््टटिक््स लागत: यह परियोजना लॉजिस््टटिक््स और माल की आवाजाही
के लिए बनिय ु ादी ढाँचे को बढ़़ाएगी और लॉजिस््टटिक््स लागत को कम करे गी।
पर्ू ्ण हो चक
ु ा है। इसके अतं र््गत अगली परियोजना के न-बेतवा लिंक परियोजना
है। z स््वच््छ परिवहन प्रणाली/विकल््प: परिवहन के स््वच््छ, कम कार््बन उत््सर््जन
विकल््प के विकास से कार््बन फुटप््रििंट को कम करने मेें मदद मिलेगी एवं
z इस परियोजना मेें दो मुख््य घटक शामिल हैैं: हिमालयी घटक और
परिवहन के सस््तते विकल््प की सवि ु धा प्राप्त होगी।
प्रायद्वीपीय घटक।
पाइपलाइन परिवहन का विकास
हिमालयी घटक
पाइपलाइन पेट्रोलियम, पेट्रोलियम उत््पपाद, प्राकृ तिक गैस, जल, दधू आदि के
z हिमालय घटक हिमालय से निकलने वाली नदियोों पर केें द्रित है और इसमेें 14 परिवहन का सबसे सुविधाजनक, कुशल और किफायती तरीका है। ठोस पदार्थथों
प्रस््ततावित परियोजनाएँ शामिल हैैं। को घोल मेें परिवर््ततित करने के बाद उनका पाइपलाइन के माध््यम से परिवहन
z इसमेें गंगा और ब्रह्मपत्रु नदियोों के साथ-साथ उनकी सहायक नदियोों पर भडं ारण किया जा सकता है। पाइपलाइनोों ने मौजूदा सतही परिवहन प्रणाली पर बढ़ते
बाँधोों का निर््ममाण शामिल है। दबाव को कम किया है।

84  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


लाभ z क्षमता: इसकी क्षमता निश्चित होती है और इसे बढ़़ाया नहीीं जा सकता।
z उपयक्त ु मोड/प्रणाली: ये तरल पदार््थ और गैसोों के परिवहन का सबसे z प्रारंभिक लागत: प्रारंभिक लागत बहुत अधिक होती है और इसलिए इसमेें
सविु धाजनक तरीका है। पाइपलाइनोों के माध््यम से पारगमन क्षति न््यनयू तम होती हैैं। उच््च पंजू ी निवेश की आवश््यकता होती है।
बिछाने मेें सरल: पाइपलाइनोों को दर््गम z सरु क्षा: यर गैर-राज््य अभिकर््तताओ ं के हमलोों के प्रति संवेदनशील हैैं। उदाहरण
z ु इलाकोों मेें तथा जल के नीचे भी
स््थथापित करना या बिछाना आसान है। यहाँ तक कि ये बाढ़, हिमपात, चक्रवात के लिए, आतंकवादी समहोू ों द्वारा अतं रराष्ट्रीय तापी पाइपलाइन को नष्ट करना।
आदि जैसे मौसमी बदलावोों से भी प्रभावित नहीीं होती हैैं। z मरम््मत: भमि ू गत पाइपलाइनोों की मरम््मत करना मश््ककि ु ल है तथा रिसाव का
z कम रखरखाव लागत: पाइपलाइनोों को कम ऊर््जजा और रखरखाव की पता लगाना भी बहुत कठिन होता है।
आवश््यकता होती है।
z पर््ययावरण के अनुकूल: पाइपलाइनेें सरु क्षित, दर््घट
ु ना-मक्त
ु और पर््ययावरण के प्रमुख शब्दावलियाँ
अनक ु ू ल हैैं। समर््पपित माल गलियारा, रोलिंग स््टटॉक, ट्रेन कोलिजन अवॉइडेेंस
z सस््तता परिवहन: परिवहन लागत अन््य परिवहन साधनोों की तल ु ना मेें बहुत सिस््टम, ओपन स््ककाई अग्रीमेेंट, समद्ु री भारत विजन।
कम है।
z औद्योगिक विकास: यह आस-पास के क्षेत्ररों मेें उद्योगोों को स््थथापित करने मेें विगत वर्षषों के प्रश्न
सहायक है जैसे कि गैस पाइपलाइनोों के पास उर््वरक उद्योगोों की स््थथापना z दक्ष और किफायती शहरी सार््वजनिक परिवहन किस प्रकार भारत के द्रुत
(जगदीशपरु , सवाई माधोपरु )। आर््थथिक विकास की कंु जी है? (2019)
हानि z नदियोों को आपस मेें जोड़ना सख ू ा, बाढ़ और बाधित जल-परिवहन जैसी
बहु-आयामी अतं र-संबंधित समस््ययाओ ं का व््यवहार््य समाधान दे सकता है।
z लचीलेपन का अभाव: पाइपलाइनेें हर जगह नहीीं बिछाई जा सकती, उनका
आलोचनात््मक परीक्षण कीजिए। (2020)
उपयोग कुछ ही गंतव््योों के लिए किया जा सकता है।

भारत में परिवहन और संचा 85


12 संकट बनाम आपदा

परिचय आपदा का वर्गीकरण


आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के अनुसार, "आपदा" को किसी भी क्षेत्र मेें z वायुमंडलीय: बर्फीले तफ ू ान, तड़ितझझं ा, तड़ित, टॉरनेडो, उष््णकटिबंधीय
प्राकृ तिक या मानव निर््ममित कारकोों, दर््घट ु नाओ ं या लापरवाही के कारण होने चक्रवात, सख
ू ा, ओलावृष्टि/करकापात, पाला, ल,ू शीत लहर, आदि।
वाली भयावह घटना या गंभीर घटना के रूप मेें परिभाषित किया जाता है। ऐसी z भौमिक: भक ू ं प, ज््ववालामखु ी विस््फफोट, भस्ू ्खलन, हिमस््खलन/हिमघाव,
घटनाओ ं के परिणामस््वरूप जान-माल की क्षति, मानवीय पीड़़ा, संपत्ति की क्षति अवतलन, मृदा अपरदन।
या पर््ययावरण को नुकसान पहुचँं ता है तथा यह इतना व््ययापक स््तर पर होता है z जलीय: बाढ़, ज््ववारीय लहरेें, समद्री
ु धाराएँ, तफ ू ानी लहरेें, सनु ामी।
कि प्रभावित समदु ाय इससे निपटने मेें सक्षम नहीीं होता। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन
z जैविक: पौधे और जानवर उपनिवेशक के रूप मेें (टिड्डे, आदि)। कीट
प्राधिकरण के अनुसार, विभिन््न प्रकार की आपदाओ ं के प्रति संवेदनशीलता के
संक्रमण- फफंू द, जीवाणु और विषाणु जनित रोग जैसे बर््ड फ््ललू, डेेंग,ू आदि।
कारण भारत को आपदा प्रवण देश कहा जाता है, इसके कारण हैैं:
z ~85% भमि ू एकल या अनेक आपदाओ ं के प्रति संवेदनशील है। भूकंप
z ~59% भमि ू क्षेत्र भक
ू ं प के प्रति संवेदनशील है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अनुसार, भक ू ं प एक ऐसी
z ~12% क्षेत्र बाढ़-प्रवण है।
z ~8% चक्रवातोों के प्रति संवेदनशील है।
घटना है जो बिना किसी पूर््व चेतावनी के आती है तथा इसमेें जमीन और
z ~70% खेती योग््य भमि
उसके ऊपर स््थथित प्रत््ययेक वस््ततु मेें तीव्र कंपन उत््पन््न होता है। यह गतिशील
ू सख ू ा प्रवण है।
z ~57% क्षेत्र उच््च भक
स््थलमंडलीय या भपू र््पटी प््ललेटोों मेें संचित तनाव के मक्त ु होने के परिणामस््वरूप
ू ं पीय क्षेत्ररों मेें स््थथित है।
तथ््य के अनुसार उत््पन््न होता है। भारतीय संदर््भ मेें, भारतीय प््ललेट की गति यरू े शियन प््ललेट द्वारा
लगातार बाधित हो रही है, जिसके परिणामस््वरूप ऊर््जजा का अत््यधिक संचय हो
दिल््लली स््थथित गैर-लाभकारी संस््थथा सेेंटर फॉर साइस ं एडं एनवायरनमेें ट
रहा है, जो अतं तः ऊर््जजा के अचानक मक्त ु होने के कारण हिमालय पर््वतमाला मेें
(CSE) द्वारा तैयार की गई एक रिपोर््ट के अनुसार, भारत मेें 1 जनवरी से 30
सितंबर, 2022 के बीच 273 दिनोों मेें से 241 दिनोों मेें चरम मौसमी स््थथितियाँ भक ू ं प का कारण बन रहा है।
की स््थथिति देखी गई। लू, शीत लहर, चक्रवात, तड़ित या आकाशीय विद्युत, तथ््य के अनुसार
z वैश्विक स््तर पर भारतीय की हिस््ससेदारी: भक ू ं पीय आक ँं ड़ों के
मसू लाधार वर््षषा, बाढ़ और भस्ू ्खलन उनमेें से कुछ हैैं।
अनसु ार,विगत वर््ष पांँच स््तर की तीव्रता वाले लगभग 1,300 भक ू ं प आए,
संकट एक खतरनाक या जोखिमपूर््ण भौतिक स््थथिति या घटना है जो जिनमेें से 40 अके ले भारत मेें आए।
निकट या नजदीकी (Proximity) रूप से घटित होती है। इससे बहुत
z सितंबर 2017 से अगस््त 2020 के बीच, राष्ट्रीय भक ू ं पीय नेटवर््क द्वारा
कम संख््यया मेें लोग प्रभावित होते हैैं। इससे चोट लग सकती है, जान-
संकट (Hazard)

माल की क्षति हो सकती है या संपत्ति का नुकसान हो सकता है। कुल 745 भक ू ं प दर््ज किए गए हैैं।
वर्गीकरण: z भारत के सद ं र््भ मेें: भारत का लगभग 60% भभू ाग, जिसमेें इसके सभी
z प्राकृतिक सक ं ट: भकू ं प, चक्रवात, बाढ़ और सख ू ा। राज््य शामिल हैैं, विभिन््न तीव्रता के भक ू ं पोों के प्रति संवेदनशील है।
z मानव निर््ममित सक ं ट: विस््फफोट; खतरनाक अपशिष्ट का उत््सर््जन;  सरकारी आक ंँ ड़ों के अनसु ार, भारत का 59% भभू ाग विभिन््न तीव्रता
बांधोों की विफलता; वाय,ु जल और भमि ू प्रदषण
ू ; आतंकवाद, के भक ू ं पोों के प्रति संवेदनशील है।
नागरिक अशांति और यद्ध ु ।  देश का लगभग 11% हिस््ससा जोन V मेें 18% हिस््ससा जोन IV मेें, 30%
संयुक्त राष्टट्र के अनुसार, आपदा एक अनपेक्षित या विशाल आपदा हिस््ससा जोन III मेें और शेष हिस््ससा जोन II मेें शामिल है।
की घटना है जो किसी समाज (या समदु ाय) के आवश््यक स््वरूप और
भारत और भूकंप:
नियमित संचालन को प्रभावित करती है।
आपदा (Disaster)

वर्गीकरण: z हालिया भूकंप: विगत 15 वर्षषों मेें भारत मेें 10 बड़़े भक


ू ं प आए हैैं, जिसके
z विवर््तनिकी घटनाएँ (भक ू ं प, ज््ववालामखु ी) परिणामस््वरूप 20,000 से अधिक लोगोों की मृत््ययु हुई है।
z मौसम संबंधी घटनाएँ (तफ ू ान, चक्रवात, बवंडर, बाढ़, सख ू ा) z हिमालय की सवं ेदनशीलता: संपर्ू ्ण हिमालय क्षेत्र 8.0 से अधिक तीव्रता
z स््थलाकृ ति से संबंधित घटनाएँ (भस् ू ्खलन, हिमस््खलन) वाले बड़़े भक ू ं पोों के लिए अतिसंवेदनशील है। इसका मख्ु ्य कारण भारतीय
z संक्रामक (फसलोों पर टिड्डियोों का आक्रमण, महामारी), प््ललेट का यरू े शियन प््ललेट की ओर लगभग 50 मिमी प्रति वर््ष की गति से बढ़ना
z मानवीय घटनाएँ (औद्योगिक दर््घट ु नाएँ, परमाणु बम)। है।
z अन््य प्रवण क्षेत्र: हिमालयी क्षेत्र और सिंध-ु गंगा के मैदानोों के अलावा, z अग््ननि: भक ू ं प के कारण आग तब लगती है जब धरती के हिलने के कारण
प्रायद्वीपीय भारत भी महत्तत्वपर्ू ्ण भकू ं पोों के लिए प्रवण है, जैसा कि कोयना विद्तयु और गैस की लाइनेें उखड़ जाती हैैं।
(1967), लातरू (1993) और जबलपरु (1997) मेें आए भक ू ं पोों से स््पष्ट है। z मानवीय क्षति: वर््ष 1998 से वर््ष 2017 के बीच लगभग 563 भक ू ं पोों, जिनमेें
z कोयना भूकंप: कोयना भक ू ं प मानव-प्रेरित गतिविधियोों का परिणाम था, जो सनु ामी भी शामिल है, के कारण कुल मौतोों मेें से 56% या 747,234 लोगोों
वर््ष 1962 मेें परू ा किए गए बड़़े कोयना बांध के निर््ममाण के कारण उत््पन््न हुआ की जान चली गई।
था। इस तरह के भक ू ं प जलाशय प्रेरित भक ू ं पीयता (RIS) प्रक्रिया के माध््यम सरं चनात््मक क्षति: विश्व बैैंक के अनसु ार भक
z ू ं प के कारण बनिय
ु ादी ढांँचे की
से उत््पन््न हो सकते हैैं।
10% क्षति होती है।
भूकंप संभावित क्षेत्र: z आर््थथिक प्रभाव: विश्व बैैंक के अनसु ार सार््वजनिक और निजी संपत्ति की क्षति
z भारतीय मानक ब््ययूरो ने ऐतिहासिक भक ू ं पीय गतिविधि के आधार पर भारत कुल 4.97 बिलियन अमेरिकी डॉलर आक ं ी गई थी और सकल घरे लू उत््पपाद
के क्षेत्ररों को चार भक
ू ं पीय क्षेत्ररों मेें वर्गीकृ त किया है। ये क्षेत्र II, III, IV और के संदर््भ मेें प्रतिशत क्षति भारत के सकल घरे लू उत््पपाद का 1% थी।
V हैैं। इनमेें से, जोन V भक ू ं पीय रूप से सबसे अधिक सक्रिय क्षेत्र और जोन अर््थक्वेक स्वॉर््म/भूकंप समूह:
II सबसे कम सक्रिय क्षेत्र है।
z परिभाषा: भक ू ं प समहू एक स््थथानीय क्षेत्र मेें एक निश्चित अवधि मेें होने वाले
छोटे भक ू ं पोों की एक श्रंखला है, जिसमेें कोई ज्ञात मख्ु ्य भक ू ं प नहीीं होता है।
z अवधि और आवत्ति ृ : भूकंप समहू कई सप्ताहोों तक प्रभावी रह सकते हैैं
और अपेक्षाकृ त छोटे क्षेत्र मेें हज़़ारोों एवं कम तीव्रता वाले भक ू ं प उत््पन््न कर
सकते हैैं।
z दिल््लली-एनसीआर 2021: वर््ष 2021 मेें, दिल््लली-एनसीआर क्षेत्र मेें कम

तीव्रता वाले भक ू ं प या आफ््टरशॉक के कारण कम-से-कम पाँच बार भक ू ं प के


झटके महससू किए गए।
z पूर््ववा भास आघात/झटके : भक ू ं प समहू बहुत बड़़े मख्ु ्य भक ू ं प के लिए
पर््ववा
ू भास के रूप मेें कार््य कर सकते हैैं।
z पश्चात््वर्ती आघात/शॉक से तुलना: ये समह ू सामान््यतः भतू ापीय गतिविधि
से संबंधित होते हैैं, पश्चात््वर्ती आघात/शॉक एक प्रमख ु स््ललिप/ढाल के बाद
दोषपर्ू ्ण पनु र््समायोजन प्रक्रिया का परिणाम होते हैैं, जैसा कि USGS द्वारा देखा
भारत मेें भूकंप की संभावना के कारण: गया है।
z प््ललेट सच ं लन: भारतीय प््ललेट यरू े शियन प््ललेट से लगभग 47 मिमी/वर््ष की दर पूर््ववा भासआघात/शॉक पश्चात््वर्ती आघात/शॉक
से टकरा रही है, जो इस क्षेत्र मेें भक ू ं पोों की उच््च आवृत्ति और तीव्रता का (Foreshocks) (Aftershocks)
प्राथमिक कारण है। z पर््ववा
ू भास आघात/शॉक वे z जब भक ू ं प आता है, तो भक ू ं प के
z हिमालयन बेल््ट: जावा-समु ात्रा प््ललेट का इडं ो-ऑस्ट्रेलियाई प््ललेट, यरू े शियन भक ूं प होते हैैं जो उसी स््थथान आस-पास तनाव की स््थथिति अचानक
प््ललेट और बर्मी प््ललेट से टकराव अतं र््ननिहित चट्टानोों मेें दबाव उत््पन््न कर रहा पर बड़़े भक ू ं प से पर््वू महससू परिवर््ततित हो जाती है। पृथ््ववी पनु :
है, जिससे भक ू ं प के रूप मेें ऊर््जजा मक्त
ु होती है। किये जाते हैैं। संतल ु न स््थथापित करना चाहती है।
z दक््कन का पठार: कुछ भगू र््भ शास्त्रियोों के अनसु ार, लातरू और उस््ममानाबाद z इन््हेें भक ू ं प को पर््ववा ू भास के रूप z समय के साथ आघात कम होते जाते
(महाराष्टट्र) के पास भीमा (कृ ष््णणा) फॉल््ट लाइन के कारण ऊर््जजा निर््ममाण इस मेें तब तक पहचाना नहीीं जा हैैं, हालाँंकि वे बहुत बड़़े मख्ु ्य अघात
क्षेत्र मेें भकू ं प का प्रमख ु कारण है। सकता जब तक कि उसी क्षेत्र के कारण कई दिनोों, हफ््तोों, महीनोों या
मेें बड़़ा भक ू ं प न आ जाए। वर्षषों तक जारी रह सकते हैैं।
भूकंप का प्रभाव
आगे की राह:
z भूस््खलन: भक ू ं प से भस्ू ्खलन और मृदा के धँसने की प्रक्रिया हो सकता है,
विशेषकर जल यक्त ु मृदा वाले क्षेत्ररों मेें। उदाहरण- महाराष्टट्र मेें मालिन भस्ू ्खलन, z निर््ममाण सहिं ता/बिल््डडििंग कोड: निर््ममाण संहिता, दिशा-निर्देश, मैनअु ल और
उत्तराखडं मेें के दारनाथ भस्ू ्खलन। उपनियमोों को पनु : तैयार करना और उनका सख््तती से क्रियान््वयन करना।
z द्रवीकरण: भक ू ं प के समय उत््पन््न होने वाले कंपनोों से ढीली हुई मृदा तरल उदाहरण: राष्ट्रीय भवन सहि ं ता, 2005।
मेें परिवर््ततित हो सकती है। z सामुदायिक भागीदारी: शिक्षा और जागरूकता के माध््यम से आपदा
z सनु ामी: समद्रु तल से सतह तक आने वाली बड़़ी सनु ामी मानव स््ववास््थ््य, न््यनयू ीकरण की प्रक्रिया मेें समदु ायोों को शामिल करना। आपदा प्रबंधन के क्षेत्र
संपत्ति और बनिय ु ादी ढाँचे के लिए खतरनाक सिद्ध होती है। उदाहरण के लिए मेें कार््य करने वाले स््थथानीय गैर सरकारी संगठनोों का तंत्र या नेटवर््क स््थथापित
वर््ष 2004 मेें हिदं महासागर मेें आए भक ू ं प और सनु ामी। करना।

संकट बनाम आपदा 87


z समग्र दृष्टिकोण: आपदा जोखिम न््यनयू ीकरण के लिए सेेंडाई फ्रेमवर््क आपदा उष््णकटिबंधीय z 27 °C से अधिक तापमान वाली विशाल समद्री ु सतह।
प्रबंधन के लिए एक व््ययापक दृष्टिकोण प्रदान करता है। चक्रवात के z पहले से विद्यमान दर््बु ल दाब यक्तु क्षेत्र या निम््न-स््तरीय
z उचित तै यारी: भक ू ं प के अत््यधिक जोखिम वाले भक ू ं पीय क्षेत्ररों मेें, भक
ू ंप उद्भव के लिए चक्रवाती परिसचं रण।
प्रबंधन के लिए एक विशिष्ट विभाग स््थथापित किया जाना चाहिए। प्रारंभिक z चक्रवाती गर््त बनाने के लिए पर््ययाप्त कोरिओलिस बल
z अनुसध ं ान और विकास: आपदा न््यनयू ीकरण, तैयारी और रोकथाम तथा स््थथितियाँ की उपस््थथिति।
आपदा के बाद के प्रबंधन के विभिन््न पहलओ ू ं मेें अनसु ंधान और विकास को z ऊर््ध्ववाधर पवनोों की गति मेें छोटे परिवर््तन या रूपांतरण।
बढ़ावा देना। z समद्रु तल प्रणाली के पर ऊपरी विचलन।
z रे ट्रोफिटिंग: एनडीएमए ने कई आईआईटी और आवश््यक मत् ं रालयोों के अवस््थथिति z इस क्षेत्र का लगभग 71% हिस््ससा दस राज््योों (गजु रात,
विशेषज्ञञों के साथ "भक ू ं पीय रे ट्रोफिटिंग" पर दिशा-निर्देश जारी किए है। महाराष्टट्र, गोवा, कर््ननाटक, के रल, तमिलनाडु, पडु ु चरे ी,
आध्रं प्रदेश, उड़़ीसा और पश्चिम बंगाल) मेें है।
उदाहरण: गृह मत्ं रालय के अतं र््गत, वर््ष 2014 मेें राष्ट्रीय रे ट्रोफिटिंग कार््यक्रम
z उष््णकटिबंधीय चक्रवात तीव्र निम््न दाब यक्त ु क्षेत्र हैैं जो
शरू ु किया गया था।
वायमु डं ल मेें 30° उत्तरी और 30° दक्षिणी अक््षाांशोों
z शिक्षा: अवसंरचना और इज ं ीनियरिंग संस््थथानोों के लिए शैक्षिक पाठ्यक्रम के बीच स््थथित क्षेत्र तक सीमित होते हैैं, जिसके चारोों
विकसित करना तथा पॉलिटेक््ननिक और स््ककूलोों मेें तकनीकी प्रशिक्षण आपदा ओर उच््च-वेग वाली पवनेें चलती हैैं।
से संबंधित विषयोों को शामिल करना।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात की
राष्ट्रीय रे ट्रोफिटिंग कार््यक्रम के आवृत्ति और तीव्रता मेें वृद्धि के कारण
अंतर््गत मोबाइल ऐप््स
z जलवायु परिवर््तन: समद्रु की सतह का बढ़ता तापमान चक्रवातोों को और
z ‘इडिया ं क््ववेक’: यह मोबाइल ऐप, जिसने राष्ट्रीय भक ू ं प विज्ञान केें द्र
अधिक ऊर््जजा प्रदान करता है, जिससे वे और अधिक तीव्र हो जाते हैैं तथा
(National Centre for Seismology) द्वारा तैयार किया गया है, जो
अत््यधिक शक्तिशाली बन जाते हैैं।
वास््तविक समय मेें भक ू ं प के बारे मेें जानकारी प्रसारित करता है।
 उदाहरण के लिए, अरब सागर मेें 2001-2019 के दौरान चक्रवाती तफ ू ानोों
z ‘सागर वाणी’: एक स््ममार््टफोन ऐप जो तटीय क्षेत्ररों मेें मदद करने के उद्देश््य
की आवृत्ति मेें 52% की वृद्धि हुई है।
से उपयोगकर््तता समदु ाय को समद्रु से संबंधित जानकारी और अलर््ट के बारे
मेें जानकारी प्रदान करता है।
निष्कर््ष:
"यह आपदा नहीीं है, बल््ककि आपदा के लिए तै यार न होना ही जानलेवा
है।" जान और संपत्ति की क्षति को कम करने का समाधान भक
ू ं प के खिलाफ
प्रभावी तैयारी करना है।
चक्रवात
नेचर कम््ययुनिके शंस पत्रिका मेें प्रकाशित एक अध््ययन के अनुसार, ग््ललोबल वार््मििंग
और प्रशांत दशकीय दोलन/पैसिफिक डेकाडल ऑसिलेशन (PDO) नामक
चक्रीय घटना के संयोजन से आने वाले वर्षषों मेें उष््णकटिबंधीय चक्रवातोों की
आवृत्ति बढ़ सकती है।
तथ््य के अनुसार
z भारतीय उपमहाद्वीप, जिसकी तटरे खा 8041 किलोमीटर लंबी है, वैश्विक

स््तर पर आने वाले लगभग 10% उष््णकटिबंधीय चक्रवातोों इसकी भाग


मेें आते हैैं।
z अरब सागर की तल ु ना मेें बंगाल की खाड़़ी मेें लगभग चार गनु ा अधिक
चक्रवात आते हैैं। z गर््म महासागरीय जल: जैसे-जैसे वैश्विक तापमान मेें वृद्धि हो रही है, हिदं
चक्रवातोों का z भारत मेें, अधिकांश चक्रवात मानसनू के बाद आते हैैं, महासागर गर््म हो रहा है, जिससे चक्रवातोों के उद्भव और तीव्रता को गति देने
आना अर््थथात अक््टटूबर से दिसंबर तक या मानसनू से पहले के के लिए अधिक ऊष््ममा और आर्दद्रता प्राप्त होती है।
मौसम मेें अप्रैल से मई तक।  उदाहरण के लिए, अरब सागर के ऊपर समद्र ु की सतह का बढ़ता तापमान
z चक्रवात का जीवनकाल या अवधि सामान््यतः 7 से चक्रवातोों को तीव्र करने के लिए पर््ययाप्त ऊर््जजा प्रदान कर रहा है, उदाहरण
14 दिनोों की होती है। के लिए, ताउते चक्रवात।

88  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z समुद्र के स््तर मेें वद्ृ धि: समद्रु स््तर मेें वृद्धि का अर््थ है कि तफू ानी लहरेें तौउते z समय: मई 2021
अतं र्देशीय क्षेत्ररों मेें प्रवेश कर सकती हैैं, जिससे व््ययापक तटीय बाढ़ और क्षति z उत््पत्ति: अरब सागर
हो सकती है। उदाहरण के लिए, अरब सागर मेें उत््पन््न निसर््ग चक्रवात ने तटीय
z लैैंडफॉल: गजु रात, महाराष्टट्र और कर््ननाटक।
जल प््ललावन, कटाव और पश्चिमी तट पर वनस््पति को गंभीर क्षति पहुचंँ ाई।
यास z समय: मई 2021
z पवनोों का परिवर््ततित स््वरूप: वायमु डं लीय परिसंचरण पैटर््न/स््वरूप मेें
z उत््पत्ति: बंगाल की खाड़़ी
परिवर््तन चक्रवातोों को अधिक संवेदनशील क्षेत्ररों की ओर ले जा सकते हैैं और
z लैैंडफॉल: ओडिशा, झारखडं और बिहार
उन््हेें तीव्रता प्रदान कर सकते हैैं।
निसर््ग z उत््पत्ति: 2020 मेें अरब सागर
z महासागरीय ताप सामग्री: बढ़़ी हुई ताप सामग्री के परिणामस््वरूप चक्रवात
z लैैंडफॉल: महाराष्टट्र
अधिक प्रबल हो सकते हैैं। उदाहरण के लिए, महासागरीय ताप सामग्री विसंगति
ने क््ययार चक्रवात और ओखी चक्रवात की तीव्रता को बढ़़ाया है। आगे की राह:
z मानसनू परिवर््तनशीलता: हिदं महासागर द्विध्रुव और अल नीनो-दक्षिणी z क्षमता निर््ममाण: यद्यपि उष््णकटिबंधीय चक्रवातोों के कारण होने वाले खतरोों
दोलन (ENSO) मानसनू पैटर््न को प्रभावित कर सकते हैैं, जिसके परिणामस््वरूप को कम नहीीं किया जा सकता है, फिर भी उनके प्रभावोों को कम करने के लिए
चक्रवात का विकास प्रभावित हो सकता है। शमन रणनीतियांँ तैयार की जा सकती हैैं।
चक्रवातोों का प्रभाव: z तटीय चेतावनी प्रणाली मेें सध ु ार: प्रारंभिक विश्वसनीय चेतावनी महत्तत्वपर्ू ्ण
अल््पकालिक शमन उपायोों मेें से एक है, जो समय पर कार््र वाई किए जाने पर
z मानवीय क्षति: चक्रवात, अत््यधिक जीवन की क्षति, संपत्ति के नक ु सान
और दैनिक जीवन मेें गिरावट के लिए जिम््ममेदार हैैं। चक्रवात से संबंधित आपदाओ ं की गंभीरता को कम कर सकता है।
z आर््थथिक प्रभाव: चक्रवातोों के प्रभाव से प्रत््यक्ष आर््थथिक क्षति होती है जैसे z चक्रवात आश्रय/साइक््ललोनशेल््टर का निर््ममाण: बहुउद्देश््ययीय उपयोग जैसे
कि संपत्ति के मल्ू ्य मेें कमी और निवेश मेें कमी जो कि आपदा का सामाजिक- विद्यालय भवन, सामदु ायिक केें द्र या कोई अन््य सार््वजनिक उपयोगिता भवनोों
आर््थथिक प्रभाव है। का निर््ममाण।
z आजीविका: अधिकतर चक्रवात तटीय जिलोों को प्रभावित करते हैैं। मछली z बेहतर जल निकासी के लिए नहरोों और तटबंधोों का निर््ममाण: तटीय क्षेत्ररों
पकड़ने पर प्रतिबंध लगा दिए जाने के कारण तटीय क्षेत्ररों मेें स््थथित कई गांँवोों मेें छोटी नालियोों मेें सधु ार के अलावा तट पर नहरोों का नेटवर््क जल प्रबंधन
के लोग, जो के वल मछली पकड़ने पर निर््भर थे, भोजन और स््वच््छ पेयजल का एक प्रभावी साधन है।
तक अपनी पहुचंँ स््थथापित करने मेें सक्षम नहीीं होते हैैं। z शेल््टर बेल््ट वक् ृ षारोपण: शेल््टर बेल््ट पेड़ों की एक बाढ़ या रोधिका हैैं जो
z सरं चनात््मक क्षति: सड़कोों, पलो ु ों और तटबंध जैसे बनिय ु ादी ढाँचोों की क्षति वायु के वेग को कम करने तथा वायु अपरदन को रोकने के लिए मानव बस््ततियोों
के परिणामस््वरूप जनता और सरकार दोनोों को नक ु सान होता है। और कृ षि फसलोों की रक्षा के लिए लगाई जाती हैैं।
z बाढ़: चक्रवातोों के कारण भारी वर््षषा और बाढ़ आ सकती है जो पर््ययावरण के z महत्तत्वपूर््ण प्रतिष्ठानोों की रेट्रोफिटिंग: चक्रवात-प्रवण क्षेत्ररों मेें सड़कोों/पलियो
ु ों/
लिए अलग प्रकार की आपदा है। पलो
ु ों को अच््छछी तरह से रखरखाव किए जाने की आवश््यकता है।
z कृषि क्षति: फसलोों की क्षति के परिणामस््वरूप किसानोों की आय कम हो z चक्रवात जोखिम शमन के लिए जागरूकता को बढ़ाना: सामदु ायिक
सकती है, खाद्य पदार्थथों की कीमतेें बढ़ सकती हैैं। भागीदारी के साथ सार््वजनिक जागरूकता कार््यक्रम आपदा जोखिम प्रबंधन
z समुद्र का स््तर: चक्रवातोों के कारण समद्रु के स््तर मेें असामान््य वृद्धि को का एक महत्तत्वपर्ू ्ण घटक है।
‘स््टटॉर््म सर््ज’ के रूप मेें जाना जाता है। निष्कर््ष:
चक्रवात विवरण उष््णकटिबंधीय चक्रवात प्राकृ तिक घटनाएँ हैैं जिनका सामना भारत मेें सामान््यतः
बिपरजॉय z समय: जनू 2023 किया जाता है। राज््य के समर््थन और प्रशासनिक मदद के बावजूद, लोगोों को
z उत््पत्ति: अरब सागर
स््वयं के तरीकोों का उपयोग करके स््थथानीय समाधान द्वारा आगे आना होगा।
z लैैं डफॉल: गज ु रात लोगोों की भागीदारी, सहयोग और सभी हितधारकोों के बीच जागरूकता आपदा
मैैं डस z समय: दिसंबर 2022
को कम करने मेें मदद करे गी।
z लैैं डफॉल: अडम ं ान और निकोबार द्वीप और तमिलनाडु
सितरंग समय: अक््टटूबर 2022 सूखा
उत््पत्ति: बंगाल की खाड़़ी भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) किसी भी क्षेत्र मेें सूखे को तक
लैैंडफॉल: ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम और अंडमान परिभाषित करता है, जब उस क्षेत्र मेें वर््षषा की कमी उसके दीर््घकालिक सामान््य
और निकोबार द्वीप समहू से, 26% हो। केें द्रीय कृषि एवं सहकारिता मंत्रालय के सूखा संकट प्रबंधन
आसानी z समय: माय 2022 योजना दस््ततावेज के अनुसार देश का 68 प्रतिशत हिस््ससा सूखे की चपेट मेें है,
z उत््पत्ति: बंगाल की खाड़़ी जिसमेें से लगभग 33% क्षेत्र मेें लगातार सूखे की समस््यया बनी हुई है, जबकि
z लैैं डफॉल: आध्र ं प्रदेश, तमिल नाडु, कर््ननाटक एडं ओडिशा 35% क्षेत्र सूखाग्रस््त है।

संकट बनाम आपदा 89


तथ््य के अनुसार z गरीबी: सख ू ा और गरीबी एक दसू रे से संबंधित हैैं क््योोंकि सख
ू ाग्रस््त क्षेत्ररों मेें
z ड्राउट इन नंबर रिपोर््ट, 2022 के अनसु ार, भारत उन देशोों मेें से एक है जो लाखोों की संख््यया मेें गरीब लोग रहते हैैं।
सखू े से सबसे ज््ययादा प्रभावित हैैं। वर््ष 2020 से वर््ष 2022 के बीच, देश z प्रवास: लोग भोजन, जल, हरा चारा और रोजगार की तलाश मेें अपने निवास
के लगभग दो-तिहाई हिस््ससे को सख ू े का सामना करना पड़़ा। क्षेत्र से पलायन करने को मजबरू होते हैैं।
 रिपोर््ट के अनस ु ार, वर््ष 1998 से वर््ष 2017 के बीच भारत मेें गंभीर सखू े
के कारण सकल घरे लू उत््पपाद (GDP) मेें 2 से 5% की गिरावट आई। आगे की राह:
z वैश्विक सख ू ा सवं ेदनशीलता सच ू कांक मेें भारत भी शामिल है। भारत भी z शुष््क क्षेत्ररों के लिए उपयुक्त कृषि पद्धतियाँ: जैसे मोटे और कठोर अनाजोों
उप-सहारा अफ्रीका की तरह ही सख ू े के प्रति संवेदनशील है। का उत््पपादन; गहरी जतु ाई द्वारा मृदा की नमी का संरक्षण, छोटे बांधोों के पीछे
 आक ंँ ड़ों के अनसु ार, वर््ष 1997 के बाद से भारत मेें सख
ू ा प्रभावित क्षेत्र जल भडं ारण, तालाबोों और टैैंकोों मेें जल संग्रह करना और सिंचाई के लिए
मेें 57% की वृद्धि हुई है। स््प््रििंकलर तकनीकी का उपयोग करना।
z सख ू ा प्रतिरोधी फसलेें उपजाना: कपास, मगंू , बाजरा, गेहूँ आदि सख ू ा
सूखे के प्रकार
प्रतिरोधी फसलेें बोने से सख ू े के प्रभाव को कु छ हद तक कम किया जा सकता है।
z मौसम विज्ञान सबं ंधी सख ू ा: यह एक ऐसी स््थथिति है जब अपर््ययाप्त वर््षषा की z वर््षषा जल सच ं यन: खेतोों के चारोों ओर ऊँची मेड़ बनाकर, सीढ़़ीनमु ा खेती
एक लंबी अवधि होती है और उस अपर््ययाप्त वर््षषा का वितरण भी असमान होता
अपनाकर और खेतोों की मेड़ों पर पेड़ लगाकर वर््षषा जल का अधिकतम उपयोग
है, यानी कुछ इलाकोों मेें बहुत कम वर््षषा होती है तो कुछ मेें ज््ययादा।
किया जा सकता है।
z कृषि सख ू ा: इसे भमि ू -आर्दद्रता सख
ू े के रूप मेें भी जाना जाता है, जो फसलोों
z सख््त सरकारी नीतियाँ: इनमेें गैर-अनपु ालन के लिए करोों मेें वृद्धि और
के लिए आवश््यक मृदा की आर्दद्रता की कमी के कारण होता है, जिसके
पर््ययावरण मेें उत््सर््जजित होने वाली ग्रीन हाउस गैसोों की मात्रा को विनियमित
परिणामस््वरूप फसलेें मरु झा जाती हैैं।
करना शामिल है।
z जल विज्ञान सबं ंधित सख ू ा: यह तब उत््पन््न होता है जब विभिन््न भडं ारण
z पर््ययावरण के प्रति जागरूकता : इसमेें आगे आने वाली पीढ़़ी को पर््ययावरण
और जलाशयोों जैसे कि जलभृत, झीलेें, जलाशय आदि मेें जल की उपलब््धता
संरक्षण, सधु ार और सरु क्षा की आवश््यकता के साथ-साथ पनु र््चक्रण, पनु ः
उस सीमा तक कम हो जाती है, जिसे वर््षषा द्वारा पनु ः जल््ददी नहीीं भरा जा सकता है।
उपयोग और अधिक पेड़ लगाने की आवश््यकता के बारे मेें शिक्षित करना
z पारिस््थथितिकीय सख ू ा: जब जल की कमी के कारण प्राकृ तिक पारिस््थथितिकी
शामिल है।
तंत्र की उत््पपादकता कम हो जाती है और पारिस््थथितिकी सक ं ट के परिणामस््वरूप
पारिस््थथितिकी तंत्र मेें क्षति होती है। निष्कर््ष:
सूखे के कारण सरकार को हमारे देश मेें प्रभावी जल प्रबंधन के लिए नई तकनीकोों का आविष््ककार
करने के लिए अनुसंधान और विकास परियोजनाओ ं मेें निवेश करने की
z देश के विभिन््न भागोों मेें वर््षषा का असमान वितरण।
आवश््यकता है। जलवायु परिवर््तन संभावित रूप से सूखे जैसी घटनाओ ं की
z 33% फसली क्षेत्र मेें 750 मिमी की कम औसत वार््षषिक वर््षषा सख ू े की आवृत्ति को बढ़़ाएगा। मध््यम और दीर््घकालिक समाधानोों के प्रभावी कार््ययान््वयन
सभं ावना को बढ़़ाती है।
से सूखे के प्रभाव को कम करने मेें मदद मिलेगी।
z भजू ल का अत््यधिक दोहन और सतही जल का समचि ु त सरं क्षण न करना,
जिससे सिंचाई के लिए पर््ययाप्त जल उपलब््ध नहीीं होता। भूस्खलन (LANDSLIDES)
z सीमित सिच ं ाई कवरेज और खराब सिच ं ाई तकनीक: देश मेें शद्ध ु सिंचित भारतीय प्रौद्योगिकी संस््थथान दिल््लली ने भारत के लिए पहला उच््च रिज़़ॉल््ययूशन
क्षेत्र 50% से कम है। ऐसे क्षेत्ररों मेें कृ षि की पर्ू ्ण निर््भरता वर््षषा पर होने के कारण युक्त भस्ू ्खलन संवेदनशीलता मानचित्र निर््ममित किया है और मानचित्र डेटा
सख ू े का प्रभाव देखा जाता है। निःशल्ु ्क उपलब््ध है।
सूखे का प्रभाव: भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्र के बारे मेें:
z भूख: सख ू े के कारण भोजन और जल की कमी हो जाती है, लोग भख ू , z आईआईटी दिल््लली की टीम ने एक राष्ट्रीय भस्ू ्खलन संवेदनशीलता मानचित्र
कुपोषण और महामारी से मर जाते हैैं और लोगोों के स््ववास््थ््य पर असर पड़ता है। बनाया है, जिसमेें नवीनतम आक ंँ ड़ों तथा डेटा संग्रहण एवं मानचित्रण तकनीकोों
z आर््थथिक: सकल घरे लू उत््पपाद (GDP) मेें कृ षि का योगदान 3.1% कम हुआ का उपयोग किया गया है।
और कृ षि से होने वाली आय की क्षति 39,000 करोड़ रुपये अनमु ानित है।  उच््च/हाई रिज़़ॉल््ययूशन: मानचित्र, 100 मीटर के रिज़़ॉल््यश यू न पर
z कृषि: जल की कमी के कारण फसलेें नष्ट हो जाती हैैं। वर््षषा आधारित क्षेत्ररों सवं ेदनशीलता को दर््शशा सकता है।
मेें गंभीर सख ू े के कारण कृ षि उत््पपादन मेें 20 से 40% की कमी आई है।  पहचान किये गए क्षेत्र: मानचित्र ने कुछ उच््च भस् ू ्खलन सवं ेदनशीलता
z पर््ययावरण: सतही जल स््तर मेें कमी, सतही जल का प्रदषण ू बढ़ना, आर्दद्रभमि
ू को पहचाना, जैसे हिमालय की तलहटी के कुछ हिस््ससे, असम-मेघालय
का सख ू ना और जै व विविधता की हानि। क्षेत्र और पश्चिमी घाट का क्षेत्र।
z रोजगार: किसान स््वयं रोजगार से वंचित हैैं। लगभग 50% ग्रामीण कार््यबल  नवीन जानकारी: इसने उच््च जोखिम वाले कुछ पहले से अज्ञात स््थथानोों का
सख ू ाग्रस््त जिलोों मेें केें द्रित है। भी खल ु ासा किया, जैसे कि आध्रं प्रदेश के उत्तर मेें पर्ू वी घाट के कुछ क्षेत्र।

90  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z ‘एनसेेंबल मशीन लर््नििंग’ तकनीक का लाभ उठाना: ‘एनसेेंबल मशीन इसरो के भारत संबंधी भूस्खलन एटलस के निष्कर््ष:
लर््नििंग’ का उपयोग तक किया जाता है जब किसी एक मॉडल से बड़़े स््तर पर
z भूस््खलन जोखिम मेें वैश्विक स््थथिति: भारत वैश्विक स््तर पर भस्ू ्खलन
प्रभाव का औसत निकालने के लिए कई मशीन लर््नििंग मॉडल का एक साथ
की आशक ं ा वाले शीर््ष पाँच देशोों मेें से एक है, जहाँ प्रतिवर््ष प्रति 100 वर््ग
उपयोग किया जाता है।
किलोमीटर मेें कम से कम एक व््यक्ति की मृत््ययु होती है।
z प्रयोग किए गए कारक: उन््होोंने मृदा आवरण, क्षेत्र को कवर करने वाले वृक्षषों
z वर््षषा परिवर््तनशीलता पैटर््न: हिमालय और पश्चिमी घाट भस्ू ्खलन का
की सख्ं ्यया, सड़कोों या पहाड़ों से दरू ी आदि जैसे कारकोों पर जानकारी एकत्र
प्राथमिक कारण हैैं, जो अत््यधिक सवं ेदनशील हैैं।
की। उन््होोंने जियो सड़क का उपयोग किया, जो भारत मेें राष्ट्रीय सड़क नेटवर््क
पर डेटा आधारित एक ऑनलाइन प्रणाली है, जो शहरोों के बाहर स््थथित सड़कोों z भूस््खलन की आशंका वाले भूमि क्षेत्र: हिमाच््छछादित क्षेत्ररों को अलावा,
का डेटा प्रदान करती है। यह देश के भौगोलिक भमि ू क्षेत्र का लगभग 12.6% है।
z क्षेत्रीय परिवर््तनशीलता: 66.5% भस्ू ्खलन उत्तर-पश्चिमी हिमालय से,
भूस्खलन के बारे मेें: लगभग 18.8% उत्तर-पर्ू वी हिमालय से और लगभग 14.7% पश्चिमी घाट
z परिभाषा: यह ढलान से नीचे चट्टान, मृदा या मलबे के द्रव््यमान का गतिमान से दर््ज किए गए हैैं।
होने से संबंधित है।
जोशीमठ मेें भू-धँसाव के कारण
z भूस््खलन प्रवण क्षेत्र: कम वृक्ष वाले क्षेत्र, सड़क निर््ममाण गतिविधि के निकट
तथा अधिक खड़़ी स््थथानीय ढलान वाले क्षेत्र अधिक अस््थथिर होते हैैं और z भंगुर/सवं ेदनशील पारिस््थथितिकी: यह पारिस््थथितिकी अविश्वसनीय रूप से
भस्ू ्खलन के सबं ंध मेें प्रवण होते हैैं। भगं रु है क््योोंकि जोशीमठ शहर का निर््ममाण एक परु ाने भस्ू ्खलन निक्षेप पर किया
गया था, जो चट्टान के बजाय रे त और पत््थर से बना है तथा इसकी भार वहन
भारत मेें भूस्खलन का अवलोकन: करने की क्षमता कम है।
z भारत मेें भूस््खलन की बढ़ती घटनाए:ंँ पिछले 50 वर्षषों मेें मानवीय z 1976 की मिश्रा समिति की रिपोर््ट की सिफारिशोों की अवहेलना: समिति
गतिविधियोों के कारण भस्ू ्खलन की मात्रा और आवृत्ति मेें वृद्धि हुई है। अपनी रिपोर््ट मेें इस निष््कर््ष पर पहुचंँ ी थी कि जिस क्षेत्र पर शहर का निर््ममाण
 उदाहरण के लिए, भारत ने राष्ट्रीय भारतमाला परियोजना (“रोड टू किया गया है वह वास््तव मेें रे त और पत््थर का निक्षेप है, जो बहुत पहले हुए
प्रास््पपेरिटी”) पहल के तहत पर््वतीय राज््योों मेें अपने सड़क नेटवर््क मेें भस्ू ्खलन का अवशेष है।
सधु ार और विस््ततार किया है। z जलविद्युत परियोजनाएँ: जोशीमठ की नीींव को 520 मेगावाट एनटीपीसी
 हालाँकि, कोपरनिकस संगठन द्वारा NH-7 पर ऋषिके श और जोशीमठ तपोवन विष््णणुगाड हाइड्रो पावर प््ललाांट (धौली गंगा नदी) के निर््ममाण से किसी
के बीच प्रति किलोमीटर क्षेत्र मेें एक से अधिक भस्ू ्खलन की घटना दर््ज भी अन््य कारक की तल ु ना मेें अधिक नक ु सान हुआ हो सकता है।
की गई है। z भू-क्षरण: शहर के भविष््य निर््धधारण मेें अन््य कारकोों मेें प्राकृ तिक धाराओ ं के
भूस््खलन के प्रमुख कारण साथ भस्ू ्खलन और विष््णणुप्रयाग से आने वाली धाराएँ शामिल हैैं।
z नदी के कटाव, उत््खनन, खनन आदि के कारण पहाड़़ी ढलान z भौगोलिक दोष: जहाँ भारतीय प््ललेट नीचे की ओर खिसकती है, वहाँ
के निचले हिस््ससे का कटाव। भौगोलिक क्रियाएँ पनु ः सक्रिय हो सकती हैैं है, जिसे चट्टान के दो ब््ललॉकोों के
z इमारतोों, जलाशयोों, राजमार््ग यातायात आदि जैसे बाहरी भार बीच विभजं न या विभजं न पेटियोों के रूप मेें वर््णणित किया जाता है।
मेें वृद्धि।
आगे की राह:
बाह्य z जल की मात्रा मेें वृद्धि के कारण ढलान सामग्री के इकाई
z भस्ू ्खलन की निगरानी मेें सेेंसर, उपग्रह इमेजरी और भमि ू पर आधारित उपकरणोों
कारण भार मेें वृद्धि।
की तैनाती शामिल है, ताकि सतह की गतिशीलता और संभावित भस्ू ्खलन
z भक ू ं प, विस््फफोट, यातायात आदि के कारण कंपन। के पर््वू कारकोों को ज्ञात किया जा सके ।
z वनोों की कटाई के कारण होने वाले मानवजनित परिवर््तन।
z एनएचएआई पहल: भारतीय राष्ट्रीय राजमार््ग प्राधिकरण (NHAI) मन्ु ्ननार
z सरु ं ग खोदने, भमि ू गत गफु ाओ ं के ढहने, रिसाव के कारण होने मेें कोच््चचि-धनषु कोडी राष्ट्रीय राजमार््ग के गैप रोड खडं पर भस्ू ्खलन का पता
वाले कटाव आदि के कारण होने वाली दर््बु लताएँ। लगाने वाली प्रणाली स््थथापित करने की योजना बना रहा है, ताकि भस्ू ्खलन
z छिद्र जल दाब मेें वृद्धि।
की प्रारंभिक चेतावनी दी जा सके ।
z प्रगतिशील पार्श्वीकरण के कारण संयोजी शक्ति मेें कमी।
z भूस््खलन पहचान प्रणाली: आईआईटी-मडं ी, भारतीय सेना और
z तनाव के कारण बारी-बारी से उभार एवं अवतलन के कारण डीआरडीओ द्वारा विकसित यह प्रणाली निगरानी क्षमताओ ं को बढ़़ाती है।
दरारेें। भूस््खलन सक ं ट मानचित्र: यएू वी, स््थलीय लेजर स््ककै नर और उच््च-
आंतरिक z
z भ्श रं , सयं ोजक, बेडिंग तल, दरार आदि की उपस््थथिति और रिज़़ॉल््यश
कारण यू न वाले पृथ््ववी अवलोकन (EO) डेटा का उपयोग करके तैयार किये
उनका अभिविन््ययास। गए ये मानचित्र विश्वसनीय और मान््य भस्ू ्खलन ज़़ोनिंग को सनिश् ु चित करते हैैं।
z चट्टानोों और मृदा का निक्षेपण और पिघलना।
z अंतरराष्ट्रीय अभ््ययास: ब्राजील की SNAKE प्रणाली भस्ू ्खलन की प्रारंभिक
z पृथ््ववी की सामग्री की संपीड़न शक्ति, कर््तन शक्ति, आदि जैसे चेतावनी के लिए डिजिटल निगरानी और चेतावनी तंत्र मेें प्रगति का उदाहरण
भौतिक गणु । है।

संकट बनाम आपदा 91


z जागरूकता कार््यक्रम: जागरूकता और बचाव तैयारी की संस््ककृति को बढ़़ावा

HAPS के घटक
देने के उद्देश््य से, ये कार््यक्रम समदु ायोों को सतर््क रहने और संभावित आपदाओ ं
के विरुद्ध निवारक उपाय अपनाने मेें मदद करते हैैं।
हीटवेव क्षेत्रीय ताप प्रोफ़़ाइल
पूर््व हीटवेब््स, ग्रीष््म तापमान और भूमि सतह के तापमान
भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने भारत के विभिन््न हिस््सोों के लिए हीटवेव के
का अवलोकन।
संबंध मेें अलर््ट जारी किया है।
भेद्यता मूल््ययाांकन
हीटवेव के बारे मेें: उच््च जोखिम यक्त ु क्षेत्ररों की पहचान करता है और कमजोर
z हीटवेव: हीटवेव अत््यधिक उच््च तापमान की विस््ततारित अवधि है जिसका समूहोों के लिए हस््तक्षेप को प्राथमिकता देता है।
मानव स््ववास््थ््य, पर््ययावरण और अर््थव््यवस््थथा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। शमन अनुशंसाएँ
भारत एक उष््णकटिबंधीय देश है जो हीटवेव की स््थथिति के लिए विशेष रूप गर्मी के प्रभावोों को कम करने के लिए शहरी हरियाली और
से संवेदनशील है। बनि
ु यादी ढाँचे मेें बदलाव जैसी रणनीतियाँ पेश करता है।
z हीटवेव की घोषणा: आईएमडी के अनसु ार, हीटवेव की परिभाषा क्षेत्ररों की प्रतिक्रिया योजना
भौगोलिक स््थथिति पर निर््भर करती है। हीटवेव की घोषणाओ ं के लिए शीतलन केेंद्ररों और जलयोजन किटोों सहित हीटवेव से पहले, उसके
निम््नलिखित मानदडं हैैं: दौरान और बाद मेें की जाने वाली कार््रवाइयोों को निर््ददिष्ट करती है।
 हीट वेव की घोषणा तभी मानी जाती है जब किसी स््टटेशन का भूमिकाएँ और जिम््ममेदारियाँ
अधिकतम तापमान मैदानी इलाकोों के लिए आपदा प्रतिक्रिया के लिए सरकारी और गैर-सरकारी
 मैदानी इलाकोों के लिए कम से कम 40 °C या उससे अधिक संगठनोों को कार््य सौौंपता है।
 तटीय क्षेत्ररों के लिए 37 °C या उससे अधिक
हीटवेव की स्थिति से
 और पहाड़़ी क्षेत्ररों के लिए कम से कम 30 °C या उससे अधिक निपटने के लिए हीट एक्शन प्लान (HAP):
हो। z हीट एक््शन प््ललान (HAP) के बारे मेें: यह आर््थथिक रूप से नक ु सानदायक
 हीटवेव की गंभीरता उसके सामान््य तापमान से विचलन द्वारा और जीवन के लिए घातक हीटवेव के संदर््भ मेें भारत की प्राथमिक नीतिगत
निर््धधारित होती है प्रतिक्रिया है।
 सामान््य हीटवेव: जब सामान््य से विचलन 4.5-6.4°C हो। z उद्देश््य: इसका उद्देश््य हीटवेव के प्रभाव को कम करना है तथा राज््य, जिला
 गंभीर हीटवेव: जब सामान््य से विचलन 6.4°C से अधिक हो। और शहर के सरकारी विभागोों मेें विभिन््न प्रकार की प्रारंभिक गतिविधियाँ,
 वास््तविक अधिकतम तापमान के आधार पर (के वल मै दानी आपदा प्रतिक्रियाएँ और हीटवेव के बाद के उपायोों को निर््धधारित करना है।
इलाकोों के लिए): HAPs की चुनौतियााँ :
 हीट वेव: जब वास््तविक अधिकतम तापमान 45°C हो।
z स््थथानीय सदं र््भ सीमाएँ: वर््तमान HAPs हीटवेव को परिभाषित करने के लिए
 गंभीर हीट वेव: जब वास््तविक अधिकतम तापमान 47°C हो। राष्ट्रीय सीमा का उपयोग करते हैैं, जो विभिन््न क्षेत्ररों मेें विविध जलवाय,ु
z आईएमडी "सामान््य तापमान से विचलन" और "वास््तविक अधिकतम भौगोलिक और शहरी स््थथितियोों को पर््ययाप्त रूप से प्रतिबिंबित नहीीं करते हैैं।
तापमान" के मानदडों ों पर तभी विचार करता है, जब किसी मौसम विज्ञान उदाहरण के लिए, कई शहरोों मेें हीटवेव की घोषणा के बिना अत््यधिक तापमान
उपखडं मेें कम से कम दो स््टटेशन ऐसे उच््च अधिकतम तापमान की रिपोर््ट का अनभु व किया जाता है।
करते हैैं या जब कम से कम एक स््टटेशन ने कम से कम दो लगातार दिनोों मेें z साइलो अप्रोच दृष्टिकोण: HAPs अक््सर सीमित वित्तीय सहायता के साथ
सामान््य से संगत विचलन दर््ज किया हो। अके ले ही कार््य करते हैैं, जिससे उनकी प्रभावशीलता कम हो जाती है।
भारत मेें हीटवेव की स्थिति: z अपर््ययाप्त कानूनी आधार: अधिकांश HAPs मेें मजबतू काननू ी अधिकार
z नवबं र मेें विश्व बैैंक की रिपोर््ट मेें चेतावनी दी गई थी कि वर््ष 2030 तक भारत का अभाव है, जो कार््ययान््वयन और अनपु ालन को कमजोर करता है। नए डेटा
भर मेें वार््षषिक रूप से 160-200 मिलियन से अधिक लोग घातक हीटवेव के या परिणामोों के आधार पर HAPs को अपडेट करने के लिए कोई ससु ंगत तंत्र
सपं र््क मेें आ सकते हैैं। नहीीं है।
z गर्मी के मौसम के लिए आईएमडी के पर््ववा ू नमु ानोों मेें कहा गया कि पर््वू और z केें द्रित नियोजन का अभाव: जबकि HAPs दीर््घकालिक उपायोों का उल््ललेख
उत्तर-पर््वू के कुछ हिस््सोों और उत्तर-पश्चिम मेें कुछ इलाकोों को छोड़कर भारत करते हैैं, वे अक््सर नियोजन को बनिय ु ादी ढाँचे (विशेष रूप से कूल रूफ) तक
के अधिकांश हिस््सोों मेें सामान््य से अधिक अधिकतम और न््यनयू तम तापमान सीमित रखते हैैं और ‘हरित’ और ‘जलीय’ स््थथानोों पर न््यनयू तम ध््ययान केें द्रित
का अनभु व होगा। करते हैैं।

92  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z ससं ाधन आवंटन: HAPs की सफलता स््थथानीय सरकार की प्राथमिकताओ ं भारत मेें हाल ही मेें आई हीटवेव के कारण:
और उपलब््ध संसाधनोों के आधार पर व््ययापक रूप से भिन््न होती है। व््ययापक
z कंक्रीट क्षेत्ररों मेें वद्ृ धि: नगरीय ऊष््ममा द्वीप प्रभाव परिवेश के तापमान को
ताप कार््र वाई के लिए समर््पपित वित्त पोषण और सहयोगी वित्तीय नियोजन
वास््तविक तापमान से 3 से 4 डिग्री अधिक कर देते हैैं।
महत्तत्वपर्ू ्ण हैैं।
z पश्चिमी विक्षोभ की अनुपस््थथिति या क्षीण होना: वर््षषा लाने वाले पश्चिमी
विक्षोभ या उष््णकटिबंधीय तफ़ ू ़ान जो मार््च-अप्रैल मेें उत्तर भारत मेें भमू ध््य
भारत का कूलिंग एक््शन प््ललान सागर से वर््षषा लाते हैैं, अनपु स््थथित रहे हैैं।
यह विभिन््न क्षेत्ररों की कूलिंग
हीट वेव््स आवश््यकताओं को संबोधित
करने के लिए एक दीर््घकालिक
z शुष््क और गर््म पश्चिमी पवनेें: उत्तर-पश्चिम और मध््य भारत मेें बलचि
मध््य पाकिस््ततान और थार मरुस््थल से बहने वाली लगातार शष्ु ्क और गर््म
ू स््ततान,

के बारे मेें दृष्टिकोण प्रदान करता है। पश्चिमी पवनोों ने हीटवेव की वृद्धि मेें योगदान दिया है।
z जलवायु परिवर््तन: पिछले 100 वर्षषों मेें वैश्विक तापमान मेें औसतन 0.8
मॉडल हीट एक््शन प््ललान डिग्री की वृद्धि हुई है, इसलिए और अधिक हीटवेव की आशक ं ा थी। रात के
भारत के जलवायु खतरे और सुभेद्यता
एटलस
इसे राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण तापमान मेें भी वृद्धि हो रही है।
(NDMA) द्वारा हाइपरलोकल
यह एटलस प्रमुख मौसम की घटनाओं के
चेतावनी प्रणाली, शहरोों की भेद्यता z वर््षषा की कमी: सामान््यतः तापमान उच््च होने की अवधि मेें समय-समय पर
संबंध मेें प्रत््ययेक भारतीय जिले के लिए
शून््य, निम््न, मध््यम, उच््च और बहुत
मानचित्रण और जलवायु-लचीला वर््षषा होती है, लेकिन मार््च और अप्रैल मेें यह काफी हद तक अनपु स््थथित रही।
आवास नीतियोों को प्रदान करने के
उच््च श्रेणियोों के जोखिमोों के साथ भेद्यता
की एक ृंखला प्रदान करता है।
लिए जारी किया गया है। हीटवेव का प्रभाव:
z वनाग््ननि का जोखिम: हीटवेव वनाग््ननि के लिए ईधन ं के रूप मेें कार््य करती
आगे की राह हैैं, जो प्रत््ययेक वर््ष बहुत सारे भ-ू भाग को नष्ट कर देती हैैं।
z व््ययापक जलवायु जोखिम आकलन: एक पर्ू ्ण विकसित जलवायु जोखिम z बादल निर््ममाण की प्रकिया अवरुद्ध: यह स््थथिति बादलोों को बनने से भी
आकलन ढांँचा विकसित करने की आवश््यकता है जो हीटवेव के जोखिम रोकती है, जिससे सर््यू विकिरण की अधिक मात्रा सतह पर पहुचँ जाती है।
वाले क्षेत्ररों की सटीक पहचान कर सके और लोगोों और संपत्तियोों के जोखिम z हीट स्ट्रोक और अचानक मृत््ययु: बहुत अधिक तापमान या आर्दद्र परिस््थथितियाँ
का मल्ू ्ययाांकन कर सके । हीटस्ट्रोक या हीट स्ट्रेस का जोखिम बढ़़ाती हैैं।
z सश ं ोधित ताप सच ू कांक का विकास: एक बहुआयामी ताप सचू कांक बनाने z स््ववास््थ््य समस््ययाएँ: वृद्ध लोग और हृदय रोग, श्वसन रोग और मधमु हे जैसी
की आवश््यकता है जो तापमान से परे कारकोों, जैसे आर्दद्रता और शहरी ताप परु ानी बीमारियोों से ग्रसित लोग हीटस्ट्रोक के प्रति अधिक सवं ेदनशील होते
द्वीप प्रभाव को ध््ययान मेें रखता हो। हैैं, क््योोंकि आयु के साथ शरीर की ऊष््ममा को नियंत्रित करने की क्षमता कम
z शहरी नियोजन और लचीले पन के साथ एकीकरण: संसाधनोों को अधिक हो जाती है।
प्रभावी ढंग से एकत्र करने के लिए HAP को व््ययापक शहरी लचीलेपन और z वनस््पति पर प्रभाव: गर्मी के कारण फसलोों को भी नक ु सान पहुचँ सकता है,
जलवायु अनक ु ू लन रणनीतियोों से जोड़ा जाए। वनस््पति सख ू सकती है और सख ू े की स््थथिति उत््पन््न हो सकती है।
z प्रकृति-आधारित समाधानोों का समावेश: अत््यधिक गर्मी के प्रभावोों को z ऊर््जजा की माँग मेें वद्ृ धि : भीषण हीटवेब, ऊर््जजा की माँग, विशेष रूप से विद्तयु
कम करने के लिए HAP मेें हरित स््थथानोों को रणनीतिक स््थथापित करने और की माँग मेें भी वृद्धि करती है, जिससे विद्तयु की दरेें बढ़ जाती हैैं।
जलीय बनिय ु ादी ढाँचे (Blue infrastructure) के विकास जैसे प्रकृ ति-
आधारित समाधानोों को एकीकृ त करने पर ध््ययान केें द्रित करने की आवश््यकता निष्कर््ष:
है। मानव-प्रेरित जलवायु परिवर््तन ने दनिय
ु ा भर मेें चरम मौसम प्रणाली मेें परिवर््तन
संबंधित तथ््य: भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण किया है, जिसमेें दीर््घ अवधि की हीटवेब से से लेकर भारी वर््षषा तक शामिल है।
z एनसीआरबी के अनुसार, वर््ष 2021 मेें भारत मेें हीटवेब से संबंधित 374 हीटवेब के प्रभाव को कम करने के लिए लोगोों मेें जागरूकता बढ़ाने और आपदा
मौतेें हुई ं हैैं, जो वर््ष 2020 मेें दर््ज किए गए 530 मामलोों से कम है। तैयारी के उपायोों से हीटवेब की तीव्रता और आवृत्ति को कम किया जा सकता
z एनडीएमए (NDMA) का अनम ु ान है कि वर््ष 2000 से वर््ष 2020 के बीच है।
हीट वेव से 17,767 मौतेें हुई। यह एक महत्तत्वपर्ू ्ण संख््यया है जो भारत मेें
हीटवेव के दीर््घकालिक प्रभाव को उजागर करती है। वनाग्नि
z राज््य पर््ययावरण स््थथिति रिपोर््ट 2022 मेें दावा किया गया है कि मार््च 2021 वनाग््ननि को एक खलु ी और स््वतंत्र रूप से फै लने वाले दहन के रूप मेें परिभाषित
से मई 2022 तक देश मेें 280 हीटवेव दिन देखे गए, जो पिछले 12 वर्षषों किया जा सकता है जो प्राकृ तिक ईधन ं को जलाती है। दहन, आग या अग््ननि का
मेें सबसे अधिक है। यह डेटा जलवायु परिवर््तन के कारण भारत मेें बढ़ते दसू रा नाम है। जब आग नियंत्रण से बाहर हो जाती है तो इसे वनाग््ननि के रूप मेें
हीटवेव के खतरे को रे खांकित करता है। जाना जाता है।

संकट बनाम आपदा 93


z वर््ष 2024 मेें वनाग््ननि की स््थथिति: FSI के आकंँ ड़ों के अनसु ार, मार््च 2024
के दौरान मिजोरम (3,738), मणिपरु (1,702), असम (1,652), मेघालय
वनाग्नि (1,252) और महाराष्टट्र (1,215) मेें सर््ववाधिक वनाग््ननि की घटनाएँ दर््ज की गई।ं
भारत मेें वनाग्नि को रोकने के लिए उठाए गए कदम:
वर्गीकरण z राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP) 2019: संशोधित NDMP
भूमिगत आग: सतही आग: 2019 के तहत, वनाग््ननि को एक खतरे के रूप मेें शामिल किया गया है और
सतह के नीचे जलने वाली कम तीव्रता आग की लपटेें सतही अपशिष्ट और इसे सबं ोधित किया गया है, जिसमेें विशिष्ट समयबद्ध कार््य योजनाएँं और केें द्रीय,
वाली आग, जो अक््सर पूरी तरह से वनस््पति के माध््यम से जंगल की सतह राज््य एजेेंसियोों तथा प्रमख
ु हितधारकोों की स््पष्ट भमि
ू काएंँ और उत्तरदायित््व
भूमिगत फै ल जाती है। पर फै लती हैैं। शामिल हैैं।
क्राउन फायर: भूमिगत आग: z वनाग््ननि चेतावनी प्रणाली: वर््ष 2004 से, FSI द्वारा वास््तविक समय मेें
• पेड़ों और झाड़़ियोों के शीर््ष जल जाते हैैं, • सतह के नीचे मौजूद जैविक ई ंधन को
जो अक््सर सतह पर लगी आग के कारण
वनाग््ननि की निगरानी के लिए वनाग््ननि चेतावनी प्रणाली विकसित की है।
जलाती है, जिसमेें डफ लेयर, टु ंड्रा या
होता है।  जनवरी 2019 मेें शरू ु किए गए अपने उन््नत सस्ं ्करण मेें, यह प्रणाली अब
दलदल की जैविक मृदा शामिल है।
• ढलानोों पर, गर््म हवा के प्रवाह के कारण नासा और इसरो से एकत्रित उपग्रह जानकारी का उपयोग करती है।
आग तेजी से ऊपर की ओर फै ल सकती • जड़़ी-बूटियोों की वृद्धि और जैविक
है, जबकि नीचे की ओर फै लने की संभावना पदार््थ को नष्ट करती है, जिससे z अग््ननि मौसम सच ू कांक आधारित वन अग््ननि खतरा रेटिंग प्रणाली
कम होती है। वनस््पति को नुकसान पहुचँ सकता है। (FFDRS): यह भमि ू पर संवेदनशील क्षेत्ररों की पहचान करती है-
 जोखिम मेें कमी और शमन
वनाग्नि के कारण:
 अत््यधिक अग््ननि प्रवण क्षेत्ररों की पहचान
z प्राकृतिक कारण: कई बार वनाग््ननि प्राकृ तिक कारणोों से उत््पन््न होती है जैसे
 संसाधन आवंटन और संग्रहण
आकाशीय विद्तयु के गिरने से पेड़ों मेें आग लग जाती है। हालाँकि, वर््षषा बिना
ज़़्ययादा नक z वन अग््ननि जियो-पोर््टल: यह भारत मेें वनाग््ननि से सबं ंधित जानकारी के लिए
ु सान पहुचँ ाए ऐसी आग को बझु ा देती है। उच््च वायमु डं लीय तापमान
और सख ू ापन (कम आर्दद्रता) वनाग््ननि के लिए अनक ु ू ल परिस््थथितियाँ प्रदान एकल बिंदु स्रोत के रूप मेें कार््य करता है।
करते हैैं। z वनाग््ननि पर राष्ट्रीय कार््य योजना (NAPFF): इसे वर््ष 2018 मेें
z मानव निर््ममित कारण: आग तब लगती है जब खल ु ी लौ, सिगरे ट या बीड़़ी, MoEF&CC द्वारा वन सीमांत समदु ायोों को सचू ना प्रदान कर एवं उन््हेें सक्षम
बिजली की चिगं ारी या किसी भी तरह की आग का स्रोत ज््वलनशील पदार््थ और सशक्त बनाकर राज््य वन विभागोों के साथ कार््य करने के लिए प्रोत््ससाहित
के संपर््क मेें आता है। 95% से ज़़्ययादा वनाग््ननि मानव जनित होती है। कर वनाग््ननि मेें कमी लाने हेतु लॉन््च किया गया था।
 WWF इट ं रनेशनल की 2020 रिपोर््ट के अनसु ार, दनिय ु ा भर मेें 75% वनाग्नि का प्रभाव:
वनाग््ननि के लिए मनष्ु ्य जिम््ममेदार हैैं। z ग््ललोबल वार््मििंग: जब वनस््पति आग से नष्ट हो जाती है, तो वातावरण मेें
भारत मेें वनाग्नि की सुभद्य
े ता: ग्रीनहाउस गैसोों की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे जलवायु परिवर््तन और ग््ललोबल
z वनाग््ननि प्रवण क्षेत्र: भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) द्वारा द्विवार््षषिक रूप से वार््मििंग का संकट उत््पन््न होता है।
प्रकाशित भारत वन स््थथिति रिपोर््ट (ISFR) 2019 के अनसु ार, भारत का 36% z मृदा क्षरण: वनाग््ननि मृदा मेें उपयोगी सक्षू ष्मजीवोों को नष्ट कर देती है, जो मृदा
से अधिक वन क्षेत्र बार-बार लगने वाली वनाग््ननि के प्रति सभु द्ये है। को विघटित करते हैैं और मृदा मेें सक्षू ष्मजीवी गतिविधि को बढ़़ावा देते हैैं,
 लगभग 4% वन क्षेत्र आग के प्रति ‘अत््यधिक सभ ु द्ये ’ था, और अन््य जिसके परिणामस््वरूप मृदा क्षरण होता है।
6% क्षेत्र वनाग््ननि के प्रति ‘बहुत अधिक’ सभु द्ये था z आजीविका: आदिवासी लोगोों और ग्रामीण निर््धनोों की आजीविका की क्षति,
z सभ ु ेद्य राज््य: हाल के दिनोों मेें वनाग््ननि की लगातार घटनाओ ं वाले ग््ययारह मख्ु ्य क््योोंकि लगभग 300 मिलियन लोग अपनी आजीविका के लिए वन क्षेत्ररों से
राज््य निम््नलिखित हैैं: गैर-लकड़़ी वन उत््पपादोों के सग्रं ह पर प्रत््यक्ष रूप से निर््भर हैैं।
 आध्र ं प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, मिजोरम, मध््य प्रदेश, z पारिस््थथितिकी तंत्र और जैव विविधता की क्षति: वनाग््ननि पारिस््थथितिकी
महाराष्टट्र, ओडिशा, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और उत्तराखडं । तंत्र और जैव विविधता की क्षति होती है जो विभिन््न प्रकार की वनस््पतियोों
z पारिस््थथितिकी तंत्ररों मेें वनाग््ननि की सभ ु ेद्यता: FSI के अनसु ार, शष्ु ्क और वन््यजीवोों के आवासोों एवं जटिल अतं ःक्रियाओ ं को नष्ट कर देती है।
पर््णपाती वनोों मेें गभं ीर आग लगती है, जबकि सदाबहार, अर््ध-सदाबहार और z वन क्षरण: वार््षषिक रूप से होने वाली वनाग््ननि की घटनाओ ं के परिणामस््वरूप
पर््वतीय समशीतोष््ण वन तल ु नात््मक रूप से आग के प्रति कम सभु द्ये / विभिन््न वन स््थथानोों मेें लगभग मिट्टी की उर््वरता, जैव विविधता और
संवेदनशील होते हैैं। पारिस््थथितिकी तंत्र जैसे कुछ वन तत्तत्ववों की गणु वत्ता मेें लगातार गिरावट आ
z ट्रिगरिंग/सक्रिय करने वाले कारक: रही है।
 भारत मेें 95% वनाग््ननि का कारण मानवीय गतिविधियाँ हैैं, जैसे जलाने z स््ववास््थ््य समस््यया: श्वसन और हृदय तंत्र वनाग््ननि से उत््पन््न धएु ँ से प्रभावित
की कृ षि पद्धतियांँ, वनोों की कटाई, जलाऊ लकड़़ी को जलाना आदि। होते हैैं,विशेषकर अगर इसमेें PM 2.5 कणोों (2.5 मिलीमीटर से छोटे कण)
 सख ू ा और उच््च तापमान, वनाग््ननि के खतरे को और बढ़़ा देते हैैं। की उच््च सांद्रता विद्यमान हो।

94  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


आगे की राह: भारत मेें बाढ़ के कारण:
z अग््ननिशामक जलाशय: वनाग््ननि को बझु ाने के लिए जल अभी भी मख्ु ्य z प्राकृतिक कारण
तरीका है। इसलिए बड़़े, समीपवर्ती और आग के खतरे वाले वन क्षेत्ररों मेें,  भारी वर््षषा: नदी के जलग्रहण क्षेत्र मेें भारी वर््षषा के कारण जल उसके

उपयक्तु जलमार्गगों पर अग््ननिशामक जल आपर््तति ू प्रणाली का होना या उसका किनारोों से प्रवाहित होता है, जिसके परिणामस््वरूप आस-पास के इलाकोों
निर््ममाण और रखरखाव करना या जल निकासी के लिए कृ त्रिम जलाशय बनाना मेें बाढ़ आ जाती है।
आवश््यक है।  अवसादोों का निक्षेपण: अवसादन के कारण नदी तल उथले हो जाते हैैं।

z हवाई निगरानी: हवाई निगरानी उड़़ानेें (Aerial surveillance flights) ऐसी नदियोों की जल-वहन क्षमता कम हो जाती है। परिणामस््वरूप, अधिक
उच््च आग जोखिम के समय मेें प्रारंभिक चरण मेें वनाग््ननि का पता लगाने का वर््षषा का जल नदी के किनारोों से प्रवाहित हो जाता है।
एक संभावित साधन हैैं।  चक्रवात: चक्रवात के कारण असामान््य ऊँचाई की समद्री ु लहरेें उत््पन््न
z सच ं ार उपकरण: वनाग््ननि से के वल अग््ननिशमन सेवा और वन प्राधिकरण होती हैैं और जल आस-पास के तटीय क्षेत्ररों मेें फै ल जाता है। अक््टटूबर
परिचालन टीमोों के बीच कार््यशील संचार के साथ शीघ्र और सफलतापर््वू क 1994 मेें उड़़ीसा मेें आए चक्रवात ने भयंकर बाढ़ उत््पन््न की और इससे
लड़़ा जा सकता है। जान-माल का अभतू पर््वू नक ु सान हुआ।
 बादल फटना: इनके परिणामस््वरूप अचानक बाढ़ आती है, जैसा कि
z सहयोग और सयं ुक्त अभ््ययास: वन मालिकोों, प्रशासन, तथा अग््ननि और
आपातकालीन सेवाओ ं की विभिन््न शाखाओ ं के बीच सहयोग वनाग््ननि के वर््ष 2013 मेें उत्तराखडं मेें आई बाढ़ (के दारनाथ मेें अचानक बाढ़) और
मामले मेें विशेष महत्तत्व रखता है। 2021 मेें (चमोली आपदा) मेें देखा गया।
 नदी के मार््ग मेें परिवर््तन: नदी के मार््ग मेें परिवर््तन और घम ु ाव बाढ़ का
z मशीनरी और उपकरण: वनाग््ननि से निपटने के लिए उपयक्त ु अग््ननिशमन
कारण बनते हैैं।
उपकरण और मशीनरी का रखरखाव आवश््यक है।
 सन ु ामी: जब सनु ामी तट से टकराती है तो बड़़े तटीय क्षेत्र बढ़ते समद्री ु
z वनाग््ननि की निगरानी: वनाग््ननि अवलोकन प्रणालियोों का उपयोग करने से
जल से भर जाते हैैं।
वनाग््ननि की संख््यया मेें कमी नहीीं आई है, लेकिन इसकी सीमा कम हो गई है।
z मानवजनित कारण:
निष्कर््ष:  जल निकासी व््यवस््थथा मेें बाधा: पलो ु ों, सड़कोों, रे लवे ट्रैक, नहरोों आदि
वनाग््ननि आमतौर पर मौसमी होती है। ये आमतौर पर शष्ु ्क मौसम मेें शरू ु होती हैैं के खराब नियोजित निर््ममाण के कारण जल निकासी की समस््यया जल के
और पर््ययाप्त सावधानियोों से उन््हेें रोका जा सकता है। इसलिए वनाग््ननि को नियंत्रित प्रवाह मेें बाधा डालती है और इसका परिणाम बाढ़ के रूप मेें सामने आता
करने का सबसे अच््छछा तरीका है, इसे फै लने से रोकना, यह कार््य वन मेें छोटी-छोटी है।
खाइयोों के आकार मेें अग््ननिरोधक बनाकर किया जा सकता है।  वनोन््ममूलन: वनस््पति जल के प्रवाह मेें बाधा उत््पन््न करती है और इसे

भमि ू मेें अन््ततःक्षेपित होने मेें सहायक होती है। वनोन््ममूलन के परिणामस््वरूप,
बाढ़
भमि ू अवरोध मक्त ु हो जाती है और जल अधिक गति से नदियोों मेें प्रवाहित
भारत बाढ़ के प्रति अत््यधिक संवेदनशील है। 329 मिलियन हेक््टटेयर (MHA) के हो जाता है और बाढ़ का कारण बनता है।
कुल भौगोलिक क्षेत्र मेें से 40 MHA से अधिक बाढ़-प्रवण क्षेत्र है। बाढ़ एक  बाढ़ के मै दानोों पर अतिक्रमण: पिछले कुछ वर्षषों मेें बाढ़ के मैदानोों मेें
आवर्ती घटना है, जिससे जान-माल का भारी नक ु सान होता है और आजीविका अतिक्रमण के कारण जनसख्ं ्यया दबाव ने बाढ़ की समस््यया को और बढ़़ा
प्रणालियोों, संपत्ति, बनिय
ु ादी ढाँचे और सार््वजनिक उपयोगिताओ ं को नक ु सान दिया है
पहुचँ ता है।  शहरी नियोजन: अनचि ु त नगर नियोजन और अपर््ययाप्त जल निकासी
भारत मेें बाढ़ का वितरण व््यवस््थथा शहरी बाढ़ का कारण बनती है। उदाहरण- चेन््नई बाढ़।
z इसकी सभु द्ये ता इस तथ््य से उजागर होती है कि 3290 लाख हेक््टटेयर भौगोलिक बाढ़ का प्रभाव:
क्षेत्र मेें से 40 मिलियन हेक््टटेयर बाढ़ की चपेट मेें है, जो कि 12% है। z जन हानि: बाढ़ प्रभावित क्षेत्ररों मेें डूबने, गंभीर रूप से घायल होने और
z राज््यवार अध््ययन से पता चलता है कि देश मेें बाढ़ से होने वाली क्षति का डायरिया, हैजा, पीलिया या वायरल संक्रमण जैसी महामारियोों के फै लने से
लगभग 27% बिहार मेें, 33% उत्तर प्रदेश और उत्तराखडं मेें और 15% पजं ाब मानव और पशधु न की मृत््ययु होना आम समस््ययाएँ हैैं।
व हरियाणा मेें होता है। z सरं चनात््मक क्षति: बाढ़ के दौरान मिट्टी की झोपड़़ियाँ और कमज़़ोर नीींव पर
z गंगा, ब्रह्मपत्रु , कोसी, दामोदर, महानदी आदि जैसी उत्तर भारतीय नदियोों के बनी इमारतेें ढह जाती हैैं, जिससे मानव जीवन और संपत्ति को ख़तरा होता है।
मध््य और निचले हिस््ससे बहुत कम ढाल के कारण बाढ़ की चपेट मेें आते हैैं। z वित्तीय बोझ: बाढ़ से होने वाले कुछ नक ु सान और क्षति बीमा द्वारा कवर
z प्रायद्वीपीय नदियाँ परिपक््व हैैं और उनमेें कठोर चट्टानी तल हैैं, इसलिए उनके किए जाते हैैं, लेकिन सभी नहीीं। सरकार कभी-कभी बाढ़ से प्रभावित लोगोों
बेसिन उथले हैैं। इससे वे बाढ़ की चपेट मेें आ जाती हैैं। को राज््य-स््तरीय सहायता प्रदान करती है।

संकट बनाम आपदा 95


z भावनात््मक आघात: बाढ़ पीड़़ितोों को अक््सर आपदा के दौरान और बाद
मेें कई तरह की भावनाओ ं का अनभु व होता है, जिसमेें चितं ा, भय, उदासी,
हानि और हताशा शामिल है। उदाहरण के लिए- माजल ु ी द्वीप के निवासी जो
नियमित रूप से बाढ़ का सामना करते हैैं।
z सामग्री का नुकसान: भमि ू पर रखी गई सभी सामग्री, जैसे-खाद्य भडं ार,
उपकरण, वाहन, पशधु न, मशीनरी, नमक के स्रोत और मछली पकड़ने वाली
नावेें पानी मेें डूब सकती हैैं और खराब हो सकती हैैं।
z उपयोगिता क्षति: जलापर््तति ू , सीवरे ज, संचार लाइनेें, बिजली लाइनेें, परिवहन
नेटवर््क और रे लवे जैसी उपयोगिताएँ जोखिम मेें रहती हैैं।
बाढ़ प्रबंधन के उपाय:
z तटबंध: बाढ़ सरु क्षा तटबंधोों का निर््ममाण करके , बाढ़ के पानी को तटोों से बाहर
z नगरीय ऊष््ममा द्वीप प्रभाव: NDMA के अनसु ार, नगरीय ऊष््ममा द्वीप प्रभाव
निकलने और आस-पास के क्षेत्ररों मेें फै लने से रोका जा सकता है। दिल््लली के
के कारण शहरी क्षेत्ररों मेें वर््षषा मेें वृद्धि हुई है।
पास यमनु ा पर तटबंधोों का निर््ममाण बाढ़ को नियंत्रित करने मेें सफल रहा है।
 गर््म वायु वर््षषा यक्त
ु बादलोों को नगरीय ऊष््ममा द्वीप से गजु रते समय ऊपर
z वनरोपण: नदियोों के जलग्रहण क्षेत्ररों मेें पेड़ लगाकर बाढ़ के प्रकोप को कम
धके लती है।
किया जा सकता है।
 ऊष््ममा द्वीप ऐसे शहरीकृ त क्षेत्र हैैं, जहाँ बाहरी क्षेत्ररों की तल ु ना मेें अधिक
z जल निकासी व््यवस््थथा के आधारभूत स््वरुप की बहाली: सड़कोों, नहरोों,
तापमान होता है
रे ल पटरियोों आदि के निर््ममाण से जल निकासी व््यवस््थथा आमतौर पर अवरुद्ध
z निचले इलाकोों मेें अतिक्रमण: भारतीय शहरोों के मल ू निर््ममित क्षेत्र का विस््ततार
हो जाती है। जल निकासी व््यवस््थथा के आधारभतू स््वरूप को बहाल करके
हुआ है और शहरोों मेें भमि ू की बढ़ती कीमतोों और भमि ू की कम उपलब््धता
बाढ़ को रोका जा सकता है।
के कारण भारतीय शहरोों और कस््बोों के निचले इलाकोों मेें नए विकास हो रहे है।ैं
z जलाशय: नदियोों के मार््ग मेें जलाशयोों का निर््ममाण करके बाढ़ के समय
z दोषपूर््ण जल निकासी प्रणाली: शहरी क्षेत्ररों मेें अत््यधिक वर््षषा की घटनाओ ं
अतिरिक्त जल को सग्रं हित किया जा सकता है। हालाँकि, अब तक अपनाए
को संभालने मेें सक्षम पर््ययाप्त जल निकासी बनिय ु ादी ढाँचे का अभाव है।
गए ऐसे उपाय सफल नहीीं हुए हैैं। दामोदर मेें बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए
 खराब योजना और अभेद्य सतहेें, जैसे कि इमारतेें और राजमार््ग, जल को
बनाए गए बाँध बाढ़ को नियंत्रित नहीीं कर सके ।
जमीन मेें रिसने नहीीं देतीीं और अपर््ययाप्त जल निकासी प्रणालियोों पर बोझ
निष्कर््ष: डालती हैैं।
भारत अपनी भौगोलिक स््थथिति के कारण वार््षषिक बाढ़ के प्रति संवेदनशील है  नालियोों को कंक्रीट से पक््कका करने और जल को जमीन मेें रिसने से रोकने

और इससे जान-माल को भारी नुकसान होता है। बाढ़ एक प्राकृ तिक घटना है, से समस््यया और भी बढ़ जाती है।
इसे पूरी तरह से नियंत्रित नहीीं किया जा सकता है। हालाँकि, सरकार उचित कदम z नगरीकरण: नियोजित और अनियोजित दोनोों तरह का तीव्र नगरीकरण बाढ़
उठाकर बाढ़ से होने वाले खतरोों को काफी हद तक कम कर सकती है। के लिए उत्तरदायी है।
 मानव निर््ममित अवसंरचना ढाँचा, जिसमेें फ््ललाईओवर, सड़कोों का
शहरी बाढ़
चौड़़ीकरण, शहरी बस््ततियाँ शामिल हैैं, जलभराव वाले क्षेत्ररों मेें शहरी बाढ़
चक्रवात मिचांग व््ययापक बाढ़ का कारण बना है, जिससे बुनियादी ढाँचे को गंभीर मेें योगदान करते हैैं।
नुकसान पहुचँ ा है और आजीविका मेें व््यवधान उत््पन््न हुआ है।  गरु ु ग्राम और बेेंगलरुु मेें हाल ही मेें आई बाढ़ ऐसी ही योजना विफलताओ ं
शहरी बाढ़ क्या है ?? के उदाहरण हैैं।
z शहरी बाढ़ को ‘आमतौर पर सख ू े क्षेत्ररों मेें अचानक अत््यधिक वर््षषा, उफनती z अपशिष्ट निपटान की अनुचित प्रथाएँ भी बाढ़ मेें योगदान करती हैैं: कई
नदी या झील, पिघलती बर््फ या असाधारण रूप से उच््च ज््ववार से आने वाले शहरोों मेें जल निकायोों, शहरी हरित क्षेत्ररों और छोटे जंगलोों पर अवैध विकास
जल की बड़़ी मात्रा मेें जलमग््नता’ के रूप मेें परिभाषित किया जा सकता है। और अतिक्रमण देखा गया है।
z सरकारी आँकड़ोों के अनसु ार, वर््ष 2012 से 2021 के बीच भारत मेें बाढ़ और  तमिलनाडु मेें वेलाचेरी झील ‘सीवेज डिस््चचार््ज’ के कारण विलप्त ु हो गई है।
भारी वर््षषा के कारण 17,000 से अधिक लोग मारे गए। शहरी बाढ़ का प्रभाव:
भारतीय शहरोों मेें बाढ़/शहरी बाढ़ के पीछे के कारण: z मूर््त हानियाँ: वे हानियाँ, जिन््हेें भौतिक रूप से मापा जा सकता है और
z जलवायु परिवर््तन: वैश्विक जलवायु परिवर््तन के परिणामस््वरूप मौसम के जिन््हेें आर््थथिक मल्ू ्य दिया जा सकता है। ये हानियाँ प्रत््यक्ष या अप्रत््यक्ष हो
पैटर््न मेें बदलाव आ रहा है और अल््पपावधि वर््षषा की तीव्रता बढ़ रही है। सकती हैैं।
 प्रत््यक्ष: इमारतोों को संरचनात््मक क्षति, संपत्ति की क्षति, बनिय ु ादी ढाँचे
 उदाहरण के लिए: शहरीकरण से जलग्रहण क्षेत्र विकसित होते हैैं, जिससे

बाढ़ की बारंबारता 1.8 से 8 गनु ा और बाढ़ की मात्रा 6 गनु ा तक बढ़ को क्षति


जाती है।  अप्रत््यक्ष: आर््थथिक क्षति, यातायात व््यवधान और आपातकालीन लागतेें।

96  प्रहार 2024: भूगोल और आपदा प्रबंधन


z भारी वर््षषा/बर््फ पिघलना और सोपानी प्रक्रियाएँ (Heavy Rainfall/
Snowmelt and Cascading Processes): तीव्र वर््षषा या तेज़ बर््फ
पिघलना, साथ ही सोपानी प्रक्रियाओ ं के परिणामस््वरूप झील मेें जल की
आवश््यकता काफी बढ़ जाती है, जिससे संभावित रूप से झील के ऊपरी भाग
से बाढ़ आ सकती है।
z भूकंप: भक ू ं प प्रत््यक्ष रूप से बांधोों मेें दरार और इनकी विफलता का कारण
बन सकते हैैं, जिसके परिणामस््वरूप ग््ललेशियल झील का विस््फफोट बाढ़ आ
सकती है।

प्रमुख शब्दावलियाँ
द्रवीकरण, भूकंप समूह, आपदा जोखिम न््ययूनीकरण के लिए सेेंडाई
z अमूर््त हानियाँ: अमर््तू हानियोों मेें जीवन की हानि, द्वितीयक स््ववास््थ््य प्रभाव फ्रे मवर््क, प्रशांत दशकीय दोलन, ताप कार््रवाई योजनाएँ, ग््ललेशियल
और संक्रमण या पर््ययावरण को होने वाली क्षतियाँ शामिल हैैं, जिनका मौद्रिक झीलोों का विस््फफोट, बाढ़
रूप से आकलन करना कठिन है, क््योोंकि उनका व््ययापार नहीीं किया जाता है।
 प्रत््यक्ष: जनहानि, स््ववास््थ््य प्रभाव, पारिस््थथितिकीय हानियाँ विगत वर्षषों के प्रश्न
 अप्रत््यक्ष: बाढ़ के बाद की पन ु र्प्राप्ति प्रक्रिया, लोगोों को मानसिक क्षति z बाँधोों की विफलता हमेशा प्रलयकारी होती हैैं, विशेष रूप से नीचे की ओर,
जिसके परिणामस््वरूप जीवन और संपत्ति का भारी नक ु सान होता है। बाँधोों की
हिमनद झीलोों के फटने से बाढ़
विफलता के विभिन््न कारणोों का विश्लेषण कीजिये। बड़़े बाँधोों की विफलता
z नंदा देवी ग््ललेशियर घटना: जोशीमठ, उत्तराखडं मेें नंदा देवी ग््ललेशियर के एक के दो उदाहरण दीजिए। (2023)
हिस््ससे के टूटने से राज््य के कुछ हिस््सोों मेें भारी बाढ़ आई। z भारतीय उपमहाद्वीप के संदर््भ मेें बादल फटने की क्रियाविधि और घटना को
z बांधित हिमनद झीलेें: हिमनद झीलोों के फटने से बाढ़ (GLOF) तब आती समझाइये। हाल के दो उदाहरणोों की चर््चचा कीजिए। (2022)
हैैं जब हिमनद झील मेें सग्रं हीत जल की पर््ययाप्त मात्रा अचानक प्रवाहित हो
z भारत मेें तटीय अपरदन के कारणोों और प्रभावोों को समझाइये। खतरे का
जाती है।
मक ु ाबला करने के लिए उपलब््ध तटीय प्रबंधन तकनीकेें क््यया हैैं? (2022)
z हिमालयी राज््योों मेें गंभीर चिंता: हिमोढ़-बांधित हिमनद झीलोों का निर््ममाण
और GLOFs की घटना भारत के हिमालयी राज््योों मेें महत्तत्वपर्ू ्ण चितं ा का z भक ू ं प सबं ंधित सक
ं टोों के लिए भारत की भेद्यता की विवेचना कीजिए। पिछले
विषय है। तीन दशकोों मेें ,भारत के विभिन््न भागोों मेें भक ू ं प द्वारा उत््पन््न बड़ी आपदाओ ं
के उदाहरण प्रमख ु विशेषताओ ं के साथ दीजिए। (2021)
GLOFs उत्पन्न होने के विभिन्न कारक
z भस्ू ्खलन के विभिन््न कारणोों और प्रभावोों का वर््णन कीजिए। राष्ट्रीय भस्ू ्खलन
z तीव्र ढलान सच ं लन: झील मेें तीव्र ढलान संचलन (फिसलन, गिरना,
जोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्तत्वपर्ू ्ण घटकोों का उल््ललेख कीजिए। (2021)
हिमस््खलन) विस््थथापन तरंगोों को जन््म देता है, जिससे बांध परू ा भर जाता है
या तत््ककाल टूट जाता है। z हैदराबाद और पणु े जैसे स््ममार््ट शहरोों सहित भारत के लाखोों शहरोों मेें भारी बाढ़
z बांध का दीर््घकालिक क्षरण: समय के साथ, बांध की आतं रिक संरचना का कारण बताइए। स््थथायी उपचारात््मक उपाय सझु ाइए। (2020)
खराब हो सकती है, जिससे आधार पर स््थथित बर््फ पिघलने के कारण z भारत मेें बाढ़ को सिंचाई के और सभी मौसम मेें अतं र्देशीय नौसंचालन के एक
‘हाइड्रोस््टटेटिक दाब’ बढ़ जाता है, जिसके परिणामस््वरूप अतं तः बांध विफल धारणीय स्रोत मेें किस तरह परिवर््ततित किया जा सकता है? (2017)
हो जाता है। z भारत के प्रमख ु नगर बाढ़ अधिक असरु क्षित होते जा रहे हैैं। विवेचना कीजिए।
z ब््ललैक कार््बन: जीवाश््म ईधन, ं लकड़़ी और अन््य ईधन ं के अधरू े दहन से उत््पन््न  (2016)
ब््ललैक कार््बन के बढ़ते स््तर, कम एल््बबिडो मेें योगदान करते हैैं, जिससे ग््ललेशियर z मबंु ई, दिल््लली और कोलकाता देश के तीन विराट नगर हैैं, परंतु दिल््लली मेें वायु
पिघलने मेें तेजी आती है। प्रदषण ू , अन््य दो नगरोों की तल ु ना मेें कहीीं अधिक गंभीर समस््यया है। इसका
z मानवजनित गतिविधियाँ: बड़़े पैमाने पर पर््यटन, सड़क निर््ममाण और क््यया कारण है? (2015)
जलविद्तयु परियोजनाओ ं जैसी विकास परियोजनाएँ और भारतीय हिमालयी पश्चिमी घाट की तल
z ु ना मेें हिमालय मेें अधिक भस्ू ्खलन की घटनाओ ं के प्रायः
क्षेत्र के विशिष्ट क्षेत्ररों मेें ‘स््ललैश-एडं -बर््न’ खेती जैसी कुछ कृ षि पद्धतियाँ GLOF
होते रहने के कारण बताइए। (2013)
के जोखिम मेें योगदान कर सकती हैैं।

संकट बनाम आपदा 97

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