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PRAHAAR Modern India
PRAHAAR Modern India
आधु नक भारत
वशेषताएँ
सम एवं सिं नोटस ्
ामािणक ोत से अ ितत आकड़ ँ े एवं त य
गणव
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िवगत वष म पछेू गए के साथ समायोिजत
पारपं रक टॉिप स का समसामियक घटनाओ ं के साथ जोड़कर ततीकरण
ु
िवषय सूची
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन मेें प्रेस की भूमिका................................ 36
1. 18 वीीं शताब्दी का संक्र मण काल 1-10
प्रेस के विकास का महत्तत्व......................................................... 36
यूरोपीय लोगोों का आगमन��������������������������������������������������������� 1 भारत मेें सिविल सेवाओं का विकास........................................... 37
भारत मेें पर्ु ्त गाली शासन����������������������������������������������������������� 1 ब्रिटिश शासन के अंतर््गत स््थथानीय निकायोों का विकास.................... 38
18वीीं सदी मेें भारत की सामाजिक-आर््थथि क और राजनीतिक स््थथिति����� 4 भारतीय राज््योों के प्रति ब्रिटिश नीति.......................................... 38
2. किसान, आदिवासी और अन्य आंदोलन 11-16 अंग्रेजोों की आर््थथि क नीतियाँ...................................................... 38
राजस््व नीतियाँ, भारतीय कृ षि और ब्रिटिश शासन������������������������� 40
प्रस््ततावना ........................................................................... 11
भू-राजस््व प्रणाली का प्रभाव.................................................... 41
किसान आंदोलन.................................................................. 12
पारंपरिक कारीगर उद्योग का पतन और
जनजातीय विद्रोह................................................................. 14
ग्रामीण अर््थव््यवस््थथा का कमजोर होना........................................ 42
भारत मेें सैन््य विद्रोह.............................................................. 16
अठारहवीीं शताब््ददी के मध््य से औपनिवेशिक
3. 1857 का विद्रोह 17-24 भारत मेें अकालोों की संख््यया मेें अचानक वृद्धि................................ 43
1857 के विद्रोह के मुख््य कारण������������������������������������������������ 17
सामाजिक नीतियाँ................................................................. 44
महात््ममा गांधी और रवीींद्र नाथ टैगोर के मध््य तुलना........................ 46
विद्रोह मेें क्षेत्रीय विविधताएँ...................................................... 19
1857 के विद्रोह की विफलता के प्रमख
ु कारण.............................. 20 6. भारतीय राष्टट्र वाद का उदय 49-56
विद्रोह के परिणाम................................................................. 20 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स््थथापना������������������������������������������ 51
विद्रोह की प्रकृ ति................................................................... 22 नरमपंथी चरण के दृष्टिकोण और सीमाएँ (1885 -1905)................. 53
4. सामाजिक-धार््ममिक सुधार आंदोलन 25-32 7. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन- चरण-I (1905-1917)
परिचय������������������������������������������������������������������������������� 25 55-66
हिंदू सधु ार आंदोलन.............................................................. 26 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स््थथापना������������������������������������������ 51
सिख सधु ार आंदोलन............................................................. 29 बंगाल का विभाजन (1905) और कर््जन की
जाति आधारित शोषण के ख़़िलाफ़ संघर््ष..................................... 29 प्रतिक्रियावादी नीतियाँ (1899-1905)....................................... 55
सामाजिक-धार््ममिक सधु ार आंदोलनोों की सामान््य विशेषताएँ.............. 31 गदर पार्टी और कामागाटामारू प्रकरण........................................ 61
5. भ
ारत मेें ब्रिटिश नीतियोों का विश्लेषण (1757 से 8. भ
ारतीय राष्ट्रीय आंदोलन -
1947 तक ) 33-48 द्वितीय चरण (1918-1939) 67-83
परिचय������������������������������������������������������������������������������� 25 गांधीवादी यगु की शरुु आत������������������������������������������������������� 67
प्रशासनिक नीतियाँ................................................................ 33 स््वराज पार्टी (1923)............................................................. 73
ब्रिटिश सर्वोच््चता का विस््ततार................................................... 33 सांप्रदायिक पंचाट (1932) और पूना समझौता (1933).................. 79
भारत मेें ब्रिटिश विदेश नीति..................................................... 34 भारत सरकार अधिनियम, 1935.............................................. 81
राष्टट्रवाद और भारतीय प्रेस...................................................... 35 1937 का चनु ाव................................................................... 82
I
9. भ
ारतीय राष्ट्रीय आंदोलन 10. भ
ारतीय राष्ट्रीय आंदोलन मेें
तृतीय चरण (1939-1947) 84-92 विभिन्न वर्गगों की भूमिका 93-101
द्वितीय विश्व यद्ध
ु और भारत: प्रभाव............................................ 84 राष्ट्रीय आंदोलन मेें महिलाओं द्वारा निभाई गई भूमिका������������������� 93
अगस््त प्रस््तताव (1940).......................................................... 84 राष्ट्रीय आंदोलन मेें महिलाओं के योगदान की सीमाएँ .................... 94
क्रिप््स मिशन (1942): महत्तत्व और परिणाम.................................. 85 भारतीय संविधान के निर््ममाण मेें योगदान देने वाली प्रमख
ु महिलाएँ...... 95
भारत छोड़़ो आंदोलन (1942) या अगस््त क््राांति............................ 86 राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान उद्योगपतियोों का योगदान..................... 97
सी. आर. फार््ममूला या राजाजी फार््ममूला और गांधी-जिन््नना वार््तता (1944)��� स््वतंत्रता संग्राम मेें रियासतोों की भूमिका...................................... 98
���������������������������������������������������������������������������������������� 86
शिमला सम््ममेलन और वेवेल योजना (1945)................................ 87 राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख
इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) या आजाद हिंद फौज और आईएनए व्यक्तित्व और उनका योगदान 102-110
मुकदमे: महत्तत्व ..................................................................... 87 बाल गंगाधर तिलक – द लॉयन ऑफ महाराष्टट्र ...........................102
आरआईएन रेटिंग विद्रोह (रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह) (1946).......... 88 सरदार वल््लभ भाई पटेल की विचारधारा - भारत के लौह परुु ष........103
द्वितीय विश्व यद्ध
ु और उसके बाद............................................... 89 जवाहरलाल नेहरू का योगदान - आधनि
ु क भारत के निर््ममाता...........103
1945 के चनु ाव.................................................................... 89 सभु ाष चंद्र बोस का योगदान - नेताजी .......................................104
कै बिनेट मिशन (1946): महत्तत्व और परिणाम................................ 90 विचारधाराओं की तल
ु ना: जवाहरलाल नेहरू और सभु ाष चंद्र बोस.....105
माउंटबेटन योजना (1947) या 3 जून योजना और विभिन््न हितधारकोों की
विचारधाराओं की तुलना: जवाहरलाल नेहरू और महात््ममा गांधी.......105
प्रतिक्रियाएँ.......................................................................... 91
विचारधाराओं की तुलना : सभु ाष चंद्र बोस और महात््ममा गांधी..........106
1940 के दशक मेें सत्ता हस््तताांतरण की प्रक्रिया को जटिल बनाने मेें ब्रिटिश
भारतीय स््वतंत्रता संग्राम मेें डॉ. बी.आर. अंबेडकर का योगदान........106
साम्राज््यवादी शक्ति की भूमिका................................................. 91
II
1 18 वीीं शताब्दी का संक्रमण काल
अंग्रेजोों द्वारा भारत मेें औपचारिक प्रभत्ु ्व स््थथापित करने से पहले भी भारत और आरंभिक आगमन (1498-1509):
यूरोपीय देशोों के मध््य व््ययापार एक सामान््य बात थी। भारत और यूरोप के बीच z वास््कको-डी-गामा (1498): पहला कदम, व््ययापार प्रभुत््व- एकाधिकार
सीरिया, मिस्र और ऑक््सस घाटी के माध््यम से आर््थथिक संबंध थे। यूरोप मेें नियंत्रण के उद्देश््य से स््थथापित व््ययापारिक पोस््ट।
15वीीं शताब््ददी भमि z फ््राांसिस््कको डी अल््ममेडा (1505-1509): भारत मेें पहला पुर््तगाली
ू और समद्ु री मार्गगों की भौगोलिक खोजोों का समय था। एक
वायसराय: नौसैनिक प्रभत्ु ्व सनिश् ु चित करने के लिए ‘ब््ललू वाटर’ नीति लागू की।
इतालवी खोजकर््तता क्रिस््टटोफर कोलंबस ने 1492 ई. मेें अमेरिका की खोज की,
जबकि एक पुर््तगाली खोजकर््तता वास््कको-डी-गामा ने 1498 ई. मेें यूरोप से भारत अल्फफांसो डी अल्बुकर््क (1509-1515):
तक एक नया समद्ु री मार््ग खोजा। वह मालाबार तट पर कालीकट पहुचँ ा। यह z पुर््तगाली वर््चस््व के वास््ततुकार: रणनीतिक नियंत्रण, प्रमुख क्षेत्र और
स््थथानीय एकीकरण- हिदं महासागर का रणनीतिक नियंत्रण हासिल किया,
अवधि, जिसे प्रायः ‘अन््ववेषण का युग’ कहा जाता है, 15वीीं शताब््ददी के अंत
गोवा और भटकल पर कब््जजा किया, स््थथानीय स््तर पर निवास करने और शादी
मेें शरू
ु हुई और 19वीीं शताब््ददी तक विस््ततारित हुई। इसकी विशेषता मख्ु ्य रूप करने जैसी नीतियाँ लागू कीीं।
से यूरोपीय शक्तियाँ थीीं, जिनमेें पुर््तगाली, डच, अंग्रेज और फ््राांसीसी आदि थे, z साम्राज््यवाद की नीति: व््ययापारिक मार््ग और मसाले- व््ययापार मार्गगों को
जो भारत सहित एशिया के विभिन््न हिस््सोों मेें व््ययापार मार््ग और प्रभत्ु ्व स््थथापित नियंत्रित करने और मसाला स्रोतोों को सरु क्षित करने पर ध््ययान केें द्रित किया गया।
करने की कोशिश कर रहे थे। इन खोजोों ने भारतीय उपमहाद्वीप पर महत्तत्वपूर््ण z सपं ूर््ण भारत मेें विस््ततार: विभिन््न स््थथानोों पर पर््तगा
ु ली बस््ततियाँ स््थथापित कीीं।
सांस््ककृ तिक, आर््थथिक और राजनीतिक परिवर््तनोों के लिए मंच तैयार किया। नीनो डी कु न्हा के तहत एकीकरण (1529-1538):
यूरोपीय लोग भारत क्ययों आए: खोज के लिए उत्प्रेरक कारक z नीनो डी कुन््हहा (1529-1538): राजधानी का स््थथानांतरण और पूर््व की
भारत मेें यूरोपीय लोगोों का आगमन कोई आकस््ममिक घटना नहीीं थी। नए समद्ु री ओर विस््ततार- राजधानी को गोवा ले जाया गया तथा पश्चिमी तट से परे पर््तगा
ु ली
क्षेत्र के विस््ततार को पर्ू वी तटोों तक विस््ततृत किया गया।
मार्गगों की खोज के लिए कई प्रमख ु कारक थे:
z अवरुद्ध व््ययापार मार््ग : एशिया के लिए भमि ू मार्गगों को नियंत्रित करने वाले भारत मेें पुर््तगालियोों का योगदान:
ओटोमन््स ने यरू ोपीय लोगोों को सस््तते सामान और भारत सहित आकर््षक z चिकित््ससा: गार््ससिया दा ओर््टटा जैसे पर््तगा
ु ली विद्वानोों ने 1563 ई. मेें औषधीय
बाजारोों तक पहुचँ के लिए समद्ु री मार््ग खोजने के लिए मजबरू किया। जड़़ी-बटियोू ों पर पहला ग्रंथ लिखकर भारत के चिकित््ससा ज्ञान को समृद्ध किया।
z तंबाकू की खेती: भारत मेें तंबाकू की खेती शरू ु की गई, जिससे कृषि
z समुद्री मार््ग की खोज: डियाज और वास््कको-डी-गामा जैसे खोजकर््तताओ ं ने
पद्धतियोों मेें विविधता आई।
अरब प्रभत्ु ्व को दरकिनार करते हुए भारत के लिए समद्ु री मार््ग खोजा।
z प््रििंटिंग प्रेस: साक्षरता और संचार को आगे बढ़़ाते हुए 1556 ई. मेें गोवा मेें
z शाही समर््थन: सशक्त शासकोों ने नई खोजोों को धन और प्रशस््तति के मार््ग के पहला प््रििंटिंग प्रेस स््थथापित किया गया।
रूप मेें देखा और अभियानोों को समर््थन दिया। z वास््ततुकला: दक््कन क्षेत्र मेें चर््च संबंधी वास््ततुकला को प्रभावित किया, जिसका
z तकनीक ने खोजोों को बढ़़ावा दिया: कंपास और एस्ट्रोलैब जैसे नेविगेशन उदाहरण पश्चिमी तट के साथ विस््ततृत मैनएु लाइन इमारतेें हैैं।
उपकरणोों मेें प्रगति ने लंबी यात्राओ ं को संभव बना दिया। भारत मेें डच शासन
z लाभ और धर््म: एशियाई धन के सपने और ईसाई धर््म के प्रसार ने खोजकर््तताओ ं z शुरुआत: व््ययावसायिक हितोों से प्रेरित होकर डचोों ने पर््वू की ओर कदम बढ़़ाया,
और निवेशकोों को प्रेरित किया। 1596 ई. मेें कॉर्नेलिस डी हाउटमैन की समात्रा
ु और बैैंटम की यात्रा ने उनके
प्रारंभिक कारोबारी प्रयासोों को चिह्नित किया।
z सयं ुक्त स््टटॉक कंपनियोों का उदय: इस नए व््यवसाय मॉडल ने जोखिम साझा
z डच सस ं द का चार््टर (1602): मार््च, 1602 मेें डच संसद के चार््टर ने नीदरलैैंड
किया और बड़़े पैमाने के व््ययापार उद्यमोों को वित्त पोषित किया।
की ‘यनू ाइटेड ईस््ट इडिं या कंपनी’ की स््थथापना को औपचारिक रूप दिया,
z इन कारकोों ने यरू ोप मेें अन््ववेषण के यगु की शरुु आत की, जिसकी परिणति जिससे उसे यद्ध
ु की घोषणा करने, संधियोों पर हस््तताक्षर करने और किले स््थथापित
भारत मेें उनके आगमन के साथ नए व््ययापारिक मार्गगों की खोज के रूप मेें हुई। करने के अधिकार सहित व््ययापक शक्तियाँ प्रदान की गई।ं
z भारत मेें डच फैक््टरियाँ: मसल ु ीपट्टनम (1605) से कोचीन (1663) तक, 1632 कंपनी को गोलकंु डा के सल्ु ्ततान से सनु हरा फरमान मिला,
डचोों ने पलि ु कट, सरू त और नागपट्टनम सहित भारत के पर्ू वी और पश्चिमी दोनोों
जिससे उनके व््ययापार की सुरक्षा और समृद्धि सुनिश्चित हुई।
तटोों पर कई फै क््टरियाँ स््थथापित कीीं।
z पतन: 1633 कंपनी ने पूर्वी भारत मेें अपना पहला कारखाना हरिहरपुर,
इड ं ोनेशिया पर ध््ययान: इडं ोनेशिया के मसाला द्वीप समहोू ों मेें केें द्रित अपने बालासोर (ओडिशा) मेें स््थथापित किया।
प्राथमिक व््ययावसायिक हितोों के साथ डचोों ने भारत मेें साम्राज््य विस््ततार 1639 कंपनी को एक स््थथानीय राजा से मद्रास का पट्टा मिला।
पर व््ययापार को प्राथमिकता दी। 1651 कंपनी को हुगली (बंगाल) मेें व््ययापार करने की अनुमति दी गई।
एग्ं ्ललो-डच युद्ध: एग्ं ्ललो-डच संघर््ष मेें अपनी हार के बाद डचोों ने भारत
1662 ब्रिटिश राजा चार््ल््स द्वितीय को एक पुर््तगाली राजकुमारी
मेें अपनी स््थथिति से हटकर अपना ध््ययान मलय द्वीप समहू की ओर केें द्रित
कर दिया। (कै थरीन ऑफ ब्रैगेेंजा) से शादी करने के लिए दहेज के रूप मेें
बॉम््बबे दिया गया था।
बेदरा युद्ध (1759): एक लंबे संघर््ष के बाद बेदरा यद्ध ु मेें डचोों को
अग्ं रेजोों के हाथोों हार का सामना करना पड़़ा, जिससे भारत मेें उनके पतन 1667 औरंगजेब ने अंग्रेजोों को बंगाल मेें व््ययापार के लिए एक फरमान
मेें और योगदान हुआ। दिया।
भारत मेें ब्रिटिश शासन 1691 कंपनी को प्रति वर््ष 3,000 रुपये के भगु तान के बदले बंगाल मेें
‘द कंपनी ऑफ मर्चं ट्स ऑफ लंदन ट्रेडिंग इनटू द ईस््ट इडं ीज’ संयुक्त अपना व््ययापार जारी रखने का शाही आदेश मिला।
स््टटॉक कंपनी का नाम था, जो बाद मेें ‘ब्रिटिश ईस््ट इडिया
ं कंपनी’ बन गई। 1717 मगु ल बादशाह फर्रु खसियर ने कंपनी का मैग््ननाकार््टटा नामक एक
इसकी स््थथापना 1600 ई. मेें हुई थी। 1612 ई. मेें मगु ल सम्राट जहाँगीर ने इग्ं ्लैैंड फरमान जारी किया, जिसमेें कंपनी को बड़़ी संख््यया मेें व््ययापार
की महारानी एलिजाबेथ प्रथम के प्रतिनिधि राजनयिक सर थॉमस रो को सूरत मेें से संबंधित रियायतेें दी गई।ं
एक फै क्ट्री (एक व््ययापार स््टटेशन) खोलने की अनुमति दी, जिससे ब्रिटिश कंपनी
का आगमन भारत मेें पहली बार हुआ। फ्ररेंच
ईस््ट इडिया
ं कंपनी के प्रारंभिक वर््ष फ््राांसीसी ईस््ट इडि
ं या कंपनी की स््थथापना 1664 ई. मेें लुईस XIV के मंत्री
कोलबर््ट ने की थी, जिन््होोंने इसे भारतीय और प्रशांत महासागरोों मेें फ््राांसीसी
1600 ईस््ट इडि
ं या कंपनी की स््थथापना हुई। व््ययापार पर 50 साल का एकाधिकार भी दिया था।
1609 विलियम हॉकिन््स, जहाँगीर के दरबार मेें पहुचँ ा।
भारत मेें बस्तियााँ
1611 कै प््टन मिडलटन ने सूरत के मगु ल गवर््नर से वहाँ व््ययापार करने
की अनुमति प्राप्त की। 1667: फ्ररें कोइस कै रन ने सूरत मेें पहली फ््राांसीसी फै क्ट्री की स््थथापना की।
1669: गोलकंु डा के सुल््ततान से मर््क रा, मसूलीपट्टनम की अनुमति प्राप्त की।
1613 सूरत मेें ईस््ट इडि
ं या कंपनी का एक स््थथायी कारखाना स््थथापित 1673: कलकत्ता के पास चंद्रनगर, बंगाल के मगु ल सुभद्रा शाइस््तता खान
किया गया। से अनुमति प्राप्त की।
1615 राजा जेम््स प्रथम के राजदतू सर थॉमस रो, जहाँगीर के दरबार
डेनिश
मेें पहुचँ े। 1618 ई. तक राजदतू अंतर्देशीय टोल से छूट के
साथ मक्त ु व््ययापार की पष्ु टि करने वाले दो फ़रमान (सम्राट और 1616 ई. मेें गठित डेनिश ईस््ट इडि ं या कंपनी ने 1620 ई. मेें ट्ररेंक््ययूबार मेें एक
राजकुमार खर््रम ु से एक-एक) प्राप्त करने मेें सफल रहे। कारखाना और सेरामपुर मेें एक मख्ु ्य बस््तती स््थथापित की। डेनिश द्वारा स््थथापित
भारतीय उद्यम महत्तत्वपूर््ण नहीीं थे और 1845 ई. मेें उन््होोंने अपने कारखाने अंग्रेजोों
1616 कंपनी ने दक्षिण मेें अपना पहला कारखाना मसूलीपट्टनम मेें
को बेच दिए। डेनिश भारत मेें व््ययापार की तुलना मेें अपने मिशनरी कार्ययों के
स््थथापित किया।
लिए अधिक प्रसिद्ध हैैं।
विभिन्न साम्राज्यवादियोों के अधीन शासन की तुलना
पहलू भारत मेें पुर््तगाली शासन भारत मेें ब्रिटिश शासन भारत मेें फ््राांसीसी शासन भारत मेें डच शासन
समयावधि 1498-1961 1600-1947 1664-1954 1605-1824
भौगोलिक दायरा मख्ु ्य रूप से गोवा मेें केें द्रित भारतीय उपमहाद्वीप मेें विस््ततृत पांडिचेरी और चंद्रनगर सहित कोरोमंडल तट, मालाबार तट
विभिन््न क्षेत्ररों मेें और बंगाल मेें उपस््थथिति
शासन का फोकस व््ययापार, मिशनरी आर््थथिक शोषण, प्रशासनिक आर््थथिक शोषण, प्रशासनिक आर््थथिक शोषण, व््ययापार प्रभत्ु ्व,
गतिविधियाँ, सैन््य नियंत्रण सुधार, बागवानी अर््थव््यवस््थथा सुधार व््ययापारिक पोस््ट की स््थथापना
सांस््ककृतिक प्रभाव पुर््तगाली भाषा, संस््ककृ ति अंग्रेजी भाषा, कानूनी प्रणाली, फ्ररें च भाषा, कानूनी प्रणाली, डच भाषा, कानूनी प्रणाली,
और धर््म का प्रभाव शिक्षा का परिचय शिक्षा का परिचय शिक्षा का परिचय
ब्रिटेन भारत मेें प्रमुख यूरोपीय शक्ति क्ययों बन गया? नेतृत््व: रॉबर््ट क््ललाइव, वॉरे न हेस््टटििंग््स, एलफिंस््टन, मनु रो और अन््य ने
उत््ककृ ष्ट नेतत्ृ ्व क्षमताओ ं का प्रदर््शन किया। सर आयर कूट, लॉर््ड लेक,
1. ब्रिटिश ईस््ट इडिया ं कंपनी को लाभ:
आर््थर वेलेजली और अन््य जैसे दसू री पंक्ति के नेतत्ृ ्वकर््तताओ ं से भी
सरं चना और ने तृत््व: अन््य यरू ोपीय शक्तियोों की राज््य-नियंत्रित कंपनियोों
अग्ं रेजोों को लाभ हुआ।
के विपरीत ‘इग््ललिशं ईस््ट इडि
ं या’ कंपनी की सरं चना अधिक गतिशील थी। वित्तीय सस ं ाधन: कंपनी से मजबतू वित्तीय समर््थन और बढ़़ी हुई
शेयरधारकोों से प्रभावित निर््ववाचित निदेशकोों ने बेहतर निर््णय लेने और व््ययापारिक सपं त्ति ने अग्ं रेजोों को भारत मेें अपने सैन््य अभियानोों को जारी
लाभप्रदता पर ध््ययान केें द्रित करना सनिश् ु चित किया। रखने की अनमति ु दी।
नौसेना शक्ति: ब्रिटेन की रॉयल नेवी, जो अपने समय मेें सबसे बड़़ी और 4. भारतीय शासकोों की कमजोरियाँ:
उन््नत थी, ने उन््हेें भारत मेें अन््य यरू ोपीय शक्तियोों के साथ व््ययापार मार्गगों आंतरिक विभाजन: अग् ं रेजोों ने भारतीय शासकोों के बीच राष्ट्रीय एकता
और सैन््य सघं र्षषों मेें महत्तत्वपर््णू लाभ दिया। की कमी का कुशलतापर््वू क लाभ उठाया, जिससे अक््सर आतं रिक संघर््ष
2. व््ययापक सामाजिक और तकनीकी कारक: होते थे।
औद्योगिक क््राांति: ब्रिटेन की औद्योगिक क््राांति से कपड़़ा उत््पपादन, धातु सैन््य हीनता: यरू ोपीय हथियारोों और कर््ममियोों को नियोजित करने के
विज्ञान और भाप ऊर््जजा मेें प्रगति हुई। इस आर््थथिक और तकनीकी बढ़त ने बावजदू भारतीय शासकोों के पास अग्ं रेजोों की तल ु ना मेें प्रभावी सैन््य
उन््हेें अन््य यरू ोपीय देशोों से आगे निकलने की अनमति ु दी। रणनीतियोों का अभाव था।
कूटनीति: अग् ं रेजोों ने भारतीय क्षेत्ररों पर अपना नियंत्रण बढ़़ाने के लिए बड़़ी
सैन््य शक्ति: अच््छछी तरह से प्रशिक्षित और अनशासि ु त ब्रिटिश सैनिकोों
ने तकनीकी प्रगति के साथ मिलकर अपनी सेना को एक दर्जेु य शक्ति चतरु ाई से डाक्ट्रिन ऑफ लैप््स (व््यपगत सिद््धाांत) और सहायक सधि ं
जैसी कूटनीतिक रणनीति का इस््ततेमाल किया।
बना दिया।
5. सांस््ककृतिक और मनोवैज्ञानिक युद्ध:
स््थथिर सरकार: क््राांति और नेपोलियन के साथ यद्ध ु धों के दौरान फ््राांस जैसी पश्चिमी शिक्षा और प्रबोधन आदर्शशों को बढ़़ावा: अग् ं रेजोों ने पश्चिमी
अन््य यरू ोपीय शक्तियोों द्वारा सामना की गई राजनीतिक अस््थथिरता की तल ु ना शिक्षा और प्रबोधन आदर्शशों को बढ़़ावा दिया, जिससे धीरे -धीरे भारत
मेें ब्रिटेन ने शासन की सापेक्ष स््थथिरता की अवधि का आनंद लिया, जिससे का बौद्धिक और सांस््ककृ तिक परिवेश बदल गया। यह सांस््ककृ तिक प्रभत्ु ्व
बेहतर रणनीतिक योजना की अनमति ु मिली। स््थथापित करने और ऐसे लोगोों का एक वर््ग बनाने की एक व््ययापक रणनीति
वित्तीय शक्ति: बैैंक ऑफ इग्ं ्लैैंड के माध््यम से ऋण बाजारोों मेें ब्रिटेन का हिस््ससा था, जो “रक्त और रंग मेें भारतीय थे, लेकिन पसंद, राय,
के अभिनव प्रयोग ने उन््हेें सैन््य अभियानोों पर प्रतिस््पर्द्धियोों को मात देने नैतिकता और बद्धि ु से अग्ं रेज थे”, जिससे आसान शासन और प्रशासन
की अनमति ु दी। की सवि ु धा मिली।
3. भारत मेें परिस््थथिति का दोहन: प्रचार का उपयोग: ब्रिटिश प्रचार ने अग् ं रेजोों को सभ््यता और आधनि ु कता
शक्ति शून््यता: मग ु ल साम्राज््य के पतन और क्षेत्रीय शासकोों के बीच के वाहक के रूप मेें चित्रित किया, जिससे भारतीयोों और यरू ोपीय दोनोों की
संघर्षषों ने अग्ं रेजोों के लिए भारत मेें खदु को स््थथापित करने का अवसर नजर मेें उनके शासन को वैध बनाने मेें मदद मिली, जिससे उनके विस््ततार
दिया। का विरोध कम हो गया।
नियंत्रण के विस््ततार के साथ बहाल हुई। शक्तियोों ने राजनीतिक व््यवस््थथा को और अधिक छिन््न-भिन््न कर दिया।
मग ु ल साम्राज््य का प्रभाव उतना व््ययापक या गहरा नहीीं था, जितना निष््कर््षतः यह स््पष्ट है कि अठारहवीीं शताब््ददी एक उल््ललेखनीय ऐतिहासिक युग
अक््सर सोचा जाता था। था, जिसे इतिहासकारोों ने दो अलग-अलग दृष्टिकोणोों से देखा। इतिहासकारोों
भारत के कई सामाजिक समह ू और बड़़े हिस््ससे, विशेषकर उत्तर-पर््वू के एक वर््ग के अनुसार, मगु ल साम्राज््य के द:ु खद पतन से ‘अराजकता और
और दक्षिण, इससे बाहर रहे। अव््यवस््थथा’ फै ल गई। इतिहासकारोों के एक वर््ग ने क्षेत्रीयवादी परिप्रेक्षष्य का
वर््णन किया, जिसमेें इस बात पर ध््ययान केें द्रित किया गया कि कै से आस-पास
इसलिए, मगलो ु ों के पतन को परू े भारत मेें हो रहे परिवर््तनोों को दर््शशाने के समदु ाय सामाजिक-आर््थथिक गतिविधि के जीवंत केें द्ररों मेें विकसित हुए।
के लिए पर््ययाप्त विषय के रूप मेें इस््ततेमाल नहीीं किया जा सकता है।
भारत मेें मुगल साम्राज्य का पतन
z विद्वानोों का दृष्टिकोण: इतिहासकार जदनु ाथ सरकार के अनसु ार, 23
जनू , 1757 को प््ललासी के यद्ध ु के बाद भारत का मध््य यगु समाप्त हो गया
और उसका आधनि ु क यगु शरू ु हुआ। वारे न हेस््टटििंग््स के बाद के बीस
वर्षषों मेें, हर किसी ने पश्चिमी प्रेरणा के ऊर््जजावान प्रभाव का अनभु व किया।
18वीीं सदी मेें खंडित राजनीति
इस समयावधि मेें जिन कठिनाइयोों का सामना करना पड़़ा, उन््होोंने विखंडित
स््वराज््य के खतरे को बढ़़ा दिया, जिससे एक जटिल और अस््थथिर राजनीतिक
वातावरण तैयार हो गया।
औरंगजेब की मृत््ययु (1707) के बाद मगु ल धीरे -धीरे अपने युग के अंत की
z मुगल साम्राज््य का पतन: अठारहवीीं शताब््ददी के मध््य मेें प्रभत्ु ्वशाली
ओर आ गए, जो लगभग 50 वर्षषों तक चला। मगु ल साम्राज््य के पतन के मख्ु ्य
मगु ल साम्राज््य धीरे -धीरे ढहने लगा। कमजोर नेतत्ृ ्व, उत्तराधिकार संघर्षषों कारण निम््नलिखित हैैं:-
और आर््थथिक कठिनाइयोों के कारण साम्राज््य कमजोर हो गया, जिसके कारण z कमजोर उत्तराधिकारी और विदेशी आक्रमण: औरंगजेब के उत्तराधिकारी
केें द्रीकृ त सत्ता का नुकसान हुआ। मगु ल साम्राज््य के पतन से सत्ता मेें शन्ू ्यता साम्राज््य के पतन को रोकने मेें शक्तिहीन थे। बाद के मगलो
ु ों ने किसी भी
आ गई, जिससे क्षेत्रीय शक्तियोों के उत््थथान को अनुमति मिली। उत्तराधिकार काननू का पालन नहीीं किया और जब भी किसी सम्राट की मृत््ययु
z क्षेत्रीय शक्तियोों का उदय:
होती थी, तब एक नई लड़़ाई शरू ु हो जाती थी।
इस समय के दौरान मराठोों, सिखोों, राजपतो ू ों और विभिन््न प््राांतोों मेें कई मुगल साम्राज्य का पतन
क्षेत्रीय शक्तियोों का उदय हुआ। 1700 ई. तक मगु ल साम्राज््य कमजोर हो गया क््योोंकि राजाओ ं ने महलोों
इन क्षेत्रीय शासकोों द्वारा अपने नियंत्रण को मजबतू करने और अपने प्रभाव और युद्ध पर बहुत अधिक पैसा खर््च किया।
क्षेत्र का विस््ततार करने के प्रयासोों के परिणामस््वरूप सघं र््ष हुआ और राज््य इसके अलावा भारत मेें हिदं ओ ु ं की बड़़ी आबादी अपने मस््ललिम
ु शासकोों के
व््यवस््थथा का विघटन हुआ। खिलाफ विद्रोह करने लगी।
प्रत््ययेक शक्ति ने अपने स््वयं के हितोों के अनरुु प कार््य किया, जिसके ग्रेट ब्रिटेन ने इस कमजोरी का फायदा उठाया, भारत पर विजय प्राप्त की और
1858 मेें अंतिम मगु ल सम्राट को सत्ता से हटा दिया,
परिणामस््वरूप एक खडि ं त राजनीतिक व््यवस््थथा उत््पन््न हुई।
z वित्तीय मुद्दे: इस समय विभिन््न शक्तियोों को देने के लिए पर््ययाप्त धन या
z स््थथानीय अर््थव््यवस््थथाओ ं और शिल््पोों का पुनरुत््थथान:
जागीरेें नहीीं थीीं।
यद्ध ु और राजनीतिक अस््थथिरता के कारण उत््पन््न समग्र आर््थथिक कठिनाइयोों z कमजोर सैन््य प्रशासन: मगु ल सेना मेें बहुत अधिक सख्ं ्यया मेें उच््च पदस््थ
के बावजदू , कुछ क्षेत्ररों मेें स््थथानीय शिल््प और व््ययापार मेें पनु रुत््थथान का अधिकारी थे। इसके अतिरिक्त सेना की प्रभावशीलता को बरकरार नहीीं रखा
अनभु व हुआ। उदाहरण के लिए, अवध और बंगाल जैसे क्षेत्ररों मेें कपड़़ा गया था।
उत््पपादन और व््ययापार मेें पनु रुद्धार देखा गया, विकेें द्रीकृ त नियंत्रण और z आर््थथिक विफलता: विलासितापर््णू जीवन मगु ल भारत का एक और पहलू
स््थथानीय संरक्षण से लाभ हुआ, जिससे उन््हेें केें द्रीय सत्ता से अपेक्षाकृ त था, जिसने भमि ू और व््ययापार से होने वाली आय का अधिकांश भाग खपा
स््वतंत्र आर््थथिक नेटवर््क विकसित करने की अनमति ु मिली। लिया, जिससे किसानोों और कारीगरोों को कठिन जीवन जीना पड़़ा।
z प्राउड रिजर््व की नीति (1874) z अफगानिस््ततान 1858 तक भारत मेें प्रशासन ईस््ट इडि ं या कंपनी के हाथोों मेें था, जो एक
लिटन ने 'प्राउड रिजर््व' की एक नई विदेश एकाधिकार वाली व््ययापारिक संस््थथा थी। भारतीय मामलोों के अपने प्रबंधन को
नीति शरू ु की, जिसका उद्देश््य वैज्ञानिक विनियमित करने के लिए, ब्रिटिश संसद ने दो प्रमख ु अधिनियम पारित किए,
सीमाएँ रखना और 'प्रभाव क्षेत्ररों' की सरु क्षा रेगुलेटिंग एक््ट और पिट्स इडि
ं या एक््ट। इसके बाद 1793, 1813, 1833
करना था। और 1853 के अधिनियम पारित किए गए जिनके द्वारा कंपनी भारत मेें अपने
अफगानिस््ततान के साथ संबंधोों को अब
अधिकार और शक्ति से लगातार वंचित होती गई और उसके विशेषाधिकार
अस््पष्ट नहीीं रखा जा सकता था।
कम हो गए।
मामलोों पर केें द्रित बड़़े हिस््ससे को वस््ततुतः दासता की स््थथिति से मक्त ु कराया।
था। वे भ-ू स््ववामित््व की प्रचलित खोती प्रणाली (Khoti system) के खिलाफ
नेतृत््व z किसानोों के बीच से z इन आदं ोलनोों का नेतत्ृ ्व अपनी लड़़ाई मेें सफल रहे और उनका लक्षष्य अधिकांश लोगोों को इससे
ही नेता उभरे । कांग्रेस और कम््ययुनिस््ट मक्त
ु कराना था।
पार्टी ने किया था। इसके अलावा, उन््होोंने किसानोों के चिरनेर सत््ययाग्रह का नेतत्ृ ्व किया।
उदाहरण के लिए, सरदार डॉ. अब ं ेडकर ने 15 अगस््त, 1936 को किसानोों, प्रवासी मजदरोू ों और
वल््लभभाई पटेल के कपड़़ा श्रमिकोों सहित अन््य समस््ययाओ ं से निपटने के लिए एक राजनीतिक
नेतत्ृ ्व मेें खेड़़ा सत््ययाग्रह । संगठन के रूप मेें "स््वतंत्र लेबर पार्टी" की स््थथापना की।
असम के ब्रिटिश राजनीतिक एजेेंट की हत््यया कर दी गई; अतं तः इसे दबा पदवी (रैैंकोों) के भीतर असंतोष के शरुु आती संकेतोों को दर््शशाता है।
दिया गया। z वेल््ललोर विद्रोह (1806): वेल््ललोर मेें सिपाहियोों ने अपने सामाजिक और
1857 के बाद के आंदोलन धार््ममिक कार्ययों मेें हस््तक्षेप के खिलाफ विरोध किया, तथा विद्रोह मेें मैसरू के
z कुकी विद्रोह (1917-19; मणिपुर) प्रथम विश्व यद्ध ु के दौरान श्रमिक भर्ती शासक का झडं ा उठाया।
की ब्रिटिश नीतियोों के खिलाफ। z 47वीीं ने टिव इन््फैैंट्री का विद्रोह (1824): 47वीीं नेटिव इन््फैैंट्री इकाई के
z त्रिपुरा विद्रोह: गृहकर की दरोों मेें वृद्धि और क्षेत्र मेें बाहरी लोगोों को बसाने सिपाहियोों द्वारा जाति के अधीन पैदल मार््च एवं व््यक्तिगत समान परिवहन
के खिलाफ विद्रोह हेतु विद्रोह।
परीक्षित जमातिया के नेतत्ृ ्व मेें (1863) z ग्रेने डियर कंपनी विद्रोह (1825) असम मेें ग्रेनेडियर कंपनी द्वारा विद्रोह।
रत््नमणि के नेतत्ृ ्व मेें रियांग विद्रोह (1942-43) z शोलापुर विद्रोह महाराष्टट्र (1838) शोलापरु मेें एक भारतीय रे जिमेेंट द्वारा
z जाति एवं संप्रदाय आधारित प्रतीक चिन््ह पहनने पर z पदोन््नति की लभु ावनी नीति।
प्रतिबंध z ब्रिटिश विस््ततारवादी नीतियोों ने सभी शासकोों
z पादरी की धर््माांतरण गतिविधियोों की अफवाहेें। को बेदखल कर दिया या ब्रिटिश सहायक का
z सामान््य सेवा सचू ी अधिनियम, 1856 ने सभी को कहीीं सहायक बना दिया।
भी सेवा करने का आदेश।
z सहायक संधि और व््यपगत का सिद््धाांत।
z ब्रिटिश समकक्षषों की तल ु ना मेें स््वयं के पारिश्रमिक
से अप्रसन््न। z अग्ं रेजोों द्वारा शासकोों की अनेक उपाधियोों और
पेेंशन की समाप्ति।
z पदोन््नति एवं विशेषाधिकारोों के मामलोों मेें नस््ललीय
भेदभाव। z भारतीय जनता के सामाजिक-धार््ममिक मामलोों
z सिपाही एक 'वर्दीधारी किसान' थे जिनकी चेतना राजनीतिक मेें ब्रिटिश हस््तक्षेप।
ग्रामीण आबादी से जड़ु ़ी थी। z भारी कराधान
z विद्रोहोों का लंबा इतिहास। z भारतीय उत््पपादोों के प्रति भेदभावपर्ू ्ण टैरिफ नीति
1857 के विद्रोह z पारंपरिक हस््तशिल््प उद्योगोों का ह्रास
सैन््य आर््थथि क सहवर्ती औद्योगीकरण का अभाव
के कारण z
शाही राजवंश को अपमानित किया। दलीप सिंह को पदच््ययुत संपत्तियाँ जब््त कीीं।
कर इग्ं ्लैैंड निर््ववासित कर दिया गया और लाहौर दरबार की संपत्तियाँ भारतीयोों को उच््च पदोों से वंचित करना: भारतीयोों को सैन््य और
बिक्री के लिए आरक्षित कर दी गई। नागरिक क्षेत्ररों सहित उच््च पदोों पर काम करने की अनमु ति नहीीं थी।
सहायक सधं ि: भारतीयोों के प्रति अवमानना और नस््ललीय भेदभाव ने असंतोष और अपमान
इस संधि ने भारत के शासकोों को अलग सशस्त्र सेना रखने से रोक की भावना पैदा की।
दिया। पक्षपातपूर््ण विधि का शासन: ब्रिटिश कानन ू ी प्रणाली जटिल थी और
उन््हेें "सहायक सैनिकोों" के लिए भग ु तान करना पड़ता था, जिनका न््ययाय प्रदान करना महंगा और अत््यधिक समय की माँग करने वाला
उपयोग कंपनी उनकी रक्षा के लिए करती थी। था। जटिल प्रशासनिक व््यवस््थथा ने अग्ं रेजोों के प्रति नाराजगी को और बढ़़ा
हैदराबाद (1798), मै सरू (1799), तंजौर (1799), अवध दिया और 1857 के महान विद्रोह के लिए एक और कारण के रूप मेें
(1801), पेशवा (मराठा) (1802), और सिधं िया (1803) ने कार््य किया।
सहायक संधियाँ स््ववीकार की। z आर््थथिक कारण:
परिणामस््वरूप, ये भारतीय राजा अपनी विदेश नीति का अग् ं रेजोों के व््ययापारिक वर््ग का विनाश:
समक्ष आत््मसमर््पण करने हेतु मजबरू हो गए जिससे कई सैनिकोों अग् ं रेजोों ने भारतीय वस््ततुओ ं पर ऊँचे शल्ु ्क लगा दिए, जिससे भारतीय
को अपनी नौकरियाँ गंवानी पड़ीं। व््ययापार प्रभावित हुआ।
इस प्रकार, ईस््ट इडं िया कंपनी का "प्रभावी नियंत्रण" और भारतीय
19वीीं सदी के मध््य तक कपास और रे शम उत््पपादोों का भारतीय
देशी राज््योों के क्रमिक विनाश का लक्षष्य एक निश्चित आकार लेने निर््ययात लगभग बंद हो गया।
मेें सफल हुआ।
भू-राजस््व प्रणाली:
व््यपगत का सिद््धाांत: सतारा, जयपुर, सब ं लपुर, बघाट, उदयपुर,
भारतीयोों को सप ं त्ति के अधिकार की वैधता साबित करने के लिए
झाँसी और नागपुर की रियासतोों को लॉर््ड डलहौजी ने अपने अधीन कर
लिया। वाजिद अली शाह को कुशासन के आरोप से (अवध, 1856) अनदु ान पत्र प्रस््ततुत करना पड़ता था।
अपदस््थ करने से परू े देश मेें रोष और नफरत फै ल गई। लॉर््ड डलहौजी द्वारा स््थथापित इनाम आयोग ने जमीींदारोों के स््ववामित््व
श्रे ष्ठता की भावना: अग् ं रेजोों ने भेदभाव और अलगाव की जानबझू कर भारतीय हस््तनिर््ममित उत््पपाद अग् ं रेजी तकनीक निर््ममित वस््ततुओ ं का
अपनाई गई नीति के माध््यम से श्वेत श्रेष्ठता के नस््ललीय मिथकोों को कायम मक ु ाबला करने मेें अक्षम साबित हुए।
रखने की कोशिश की। इससे भारतीयोों को अनेक परे शानियोों का सामना भारतीय विनिर््ममाण को मक्त ु व््ययापार और अग्ं रेजी मशीन-विनिर््ममित
करना पड़ा। वस््ततुओ ं पर सरु क्षात््मक शल्ु ्क की कमी का सामना करना पड़़ा।
पेें शन का निलंबन: रानी जिंदन का वार््षषिक वजीफा 15,000 पाउंड से
बागानोों के माध््यम से शोषण:
घटाकर 1,200 पाउंड कर दिया गया था और लक्ष्मी बाई, नाना साहिब,
नील, जट ू , चाय और कॉफी जैसे बागान उद्योगोों ने बागान मालिकोों
तंजौर और कर््ननाटक के नवाब की पेेंशन समाप्त कर दी गई थी। इसने उन््हेें
का जीवन कठिन बना दिया।
अग्ं रेजोों के खिलाफ विद्रोह करने के लिए प्रेरित किया।
बागान मालिकोों के प्रति अमानवीय व््यवहार और उत््पपीड़न ने
z प्रशासनिक कारण:
आक्रोश और विद्रोह को बढ़़ावा दिया।
नई प्रशासनिक व््यवस््थथा: ब्रिटिश सरकार के अधिकारी भारतीयोों के
आर््थथि क निकास या धन की निकासी:
प्रति अभिमानी और तिरस््ककारपर्ू ्ण होने के साथ-साथ गैर-मिलनसार भी
थे। परिणामस््वरूप, भारतीयोों को नई प्रशासनिक व््यवस््थथा के साथ तालमेल आर््थथिक शोषण की आलोचना ने ब्रिटिश विरोधी भावना को
के कारण भारतीय अभिजात वर््ग को सामाजिक और आर््थथिक विशेषाधिकार था जिसके बदले मेें भारतीयोों को कोई लाभ नहीीं मिल रहा था (दादा
गंवाने पड़े। भाई नौरोजी)।
शिशु हत््यया और सती प्रथा जैसी सामाजिक बरु ाइयोों को खत््म करने का अफवाह फै ली थी कि कारतसोों ू मेें गाय और सअ ू र की चर्बी लगी
प्रयास किया परंतु रूढ़़िवादी लोग इन परंपरागत काननोों ू मेें परिवर््तन का होती है।
विरोध कर रहे थे। सिपाही अपनी धार््ममिक आस््थथाओ ं के अपमान से नाराज थे।
प्रथम अफगान यद्ध ु (1838-42) मेें हार के बाद ब्रिटिश सैन््य z मगु ल वंश का लंबा शासन भारत की राजनीतिक एकता का पारंपरिक
प्रतीक बन गया था। नतीजतन, दिल््लली जल््द ही विद्रोह का केें द्र बन गई,
अनश ु ासन मेें गिरावट आई।
जिसका प्रतीक बहादरु शाह था।
इतिहासकारोों का कहना है कि ब्रिटिश सेना को अफगानिस््ततान से
z बहादरु शाह जफर, जो वृद्ध और शक्तिहीन थे, को भारत का सम्राट घोषित
वापस जाने के लिए मजबरू होना पड़़ा था, जिसमेें के वल एक सैनिक
कर दिया गया।
ही जीवित बचा था।
सेना के प्रति निष्ठा मेें कमी: विद्रोह मेें क्षेत्रीय विविधताएँ
भारतीय सैनिकोों ने अग् ं रेजी विस््ततार मेें सहायता करने और अपने ही यद्यपि विद्रोह बड़़ा और व््ययापक था, फिर भी यह अधिकांशतः विखंडित,
लोगोों का शोषण करने मेें अपनी भमि ू का को पहचानना शरू ु कर असंगठित और स््थथानीय बना रहा।
दिया। z प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. आर.सी. मजूमदार के अनुसार, इसका चरित्र
पंजाब और अन््य सीमावर्ती क्षेत्ररों मेें गोरखाओ,ं सिखोों और अनियमित अखिल भारतीय न होकर स््थथानीय, सीमित और खराब ढंग से सगं ठित
सैनिकोों की भर्ती के कारण उनके भविष््य के प्रति भय बढ़ गया। था।
1857 का विद्र 19
z पंजाब, सयं ुक्त प््राांत, रुहेलखंड, अवध, नर््मदा और चबं ल के बीच का क्षेत्र, मद्रास और बंबई की सेनाएँ ब्रिटिश ईस््ट इडं िया कंपनी के प्रति वफादार
साथ ही उत्तर-पर्वी
ू सीमा पर बंगाल और बिहार के पश्चिमी हिस््ससे प्रभावित रहीीं।
क्षेत्र थे। z विद्रोह की समयपूर््व शुरुआत:
z दोस््त मोहम््मद के शासनकाल मेें अफगानिस््ततान मेें सौहार््दपूर््ण माहौल था। मल ू तः 31 मई, 1857 को विद्रोह की योजना निर््धधारित थी, परंतु यह विद्रोह
राजपूताना कुछ हद तक निर््भर था, जबकि सिध ं आत््मनिर््भर था। मेरठ मेें 10 मई को ही शरू ु हो गया।
इसके कारणोों मेें मग ं ल पांडे की फाँसी और कुछ भारतीय रे जिमेटोों ें को भगं
दिल्ली
करना जैसी घटनाएँ शामिल थीीं।
z 12 मई, 1857 को सिपाहियोों ने दिल््लली पर कब््जजा कर लिया। इग्ं ्लैैंड के z सगं ठनात््मक सामंजस््य और एकता का अभाव:
राजनीतिक एजेेंट साइमन फ्रेजर लेफ््टटिनेेंट विलोबी ने जवाबी हमला करने की
भारतीय विद्रोहियोों के पास पर््ययाप्त संगठन क्षमता एवं एकता का अभाव
कोशिश की लेकिन अतं तः हार गए; परिणामस््वरूप, उन््होोंने दिल््लली के गोला- था और उन््हेें कमजोर केें द्रीय नेतत्ृ ्व का सामना करना पड़़ा।
बारूद के भडं ार मेें आग लगा दी।
व््यक्तिगत बहादरु ी के बावजद ू , उनमेें समन््वय और एकजटु कार््रवाई का
z बहादरु शाह द्वितीय को दिल््लली का बादशाह घोषित किया गया। वह के वल अनभव ु नहीीं था।
नेता के रूप मेें काम कर रहा था जबकि वास््तविक सत्ता की बागडोर बख््त z नेतृत््व का अभाव:
खान के हाथ मेें थी। 20 सितंबर, 1857 को अग्ं रेजोों ने दिल््लली पर फिर से
बाबू कंु वर सिंह, झाँसी की रानी, तात््यया टोपे और नाना साहब जैसे कुछ
कब््जजा कर लिया। सक्षम नेता उभरे ।
z दिल््लली को हेनरी बर््ननार््ड और बी.जी. विल््सन ने आजाद कराया था। हालाँकि, समग्र नेतत्ृ ्व बिखरा हुआ था।
z बहादरु शाह द्वितीय, जिन््होोंने हुमायँू के मकबरे मेें शरण ली थी, को लेफ््टटिनेेंट z विद्रोहियोों के बीच व््यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता:
हडसन ने हिरासत मेें ले लिया और उन््हेें रंगून निर््ववासित कर दिया गया। विद्रोह के नेता व््यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता और ईर््ष्यया से ग्रस््त थे, जिससे एकता
z जॉन निकोलसन ने कश््ममीरी गेट पर चढ़़ाई कर शहर के प्रवेश द्वार पर नियंत्रण मेें बाधा आ रही थी।
कर लिया तथा गंभीर रूप से घायल हो गए। लगातार पारस््परिक षड्यंत्ररों ने आद ं ोलन को कमजोर कर दिया।
बिहार z बहादुर शाह जफर का कमजोर नेतृत््व:
कुंवर सिहं 1857 के महान विद्रोह के दौरान आदं ोलन के एक प्रमख अति ं म मगु ल सम्राट मेें अग्ं रेजोों की तल ु ना मेें शक्ति और नेतत्ृ ्व की कमी
z ु नेतत्ृ ्वकर््तता
थे। वह बिहार के भोजपरु जिले के जगदीशपुर के रहने वाले थे। थी।
क्षेत्ररों का प्रभावी ढंग से नेतत्ृ ्व करने और सरु क्षा करने मेें उनकी असमर््थता
z 80 वर््ष की आयु मेें उन््होोंने ब्रिटिश ईस््ट इडं िया कंपनी की कमान के तहत
सैनिकोों के खिलाफ, सशस्त्र सैनिकोों के एक चयनित दल का नेतत्ृ ्व किया। वे ने विद्रोह की विफलता मेें योगदान दिया।
गरु िल््लला यद्ध
ु कला के महारथी थे। z एकीकृत विचारधारा का अभाव:
प्रमख ु नेताओ ं की कमी के कारण एकीकृ त विचारधारा के निर््ममाण मेें बाधा
z उन््हेें उनके भाई बाबू अमर सिहं और उनके सेनापति हरे कृष््ण सिहं ने
सहायता प्रदान की। उत््पन््न हुई।
विद्रोह मेें एक सस ु ंगत दृष्टिकोण या दिशा का अभाव था।
अन्य राज्य z परंपरागत एवं निम््न कोटि के हथियार:
स््थथान विद्रोह के नेतृत््वकर््तता विद्रोहियोों के पास अग् ं रेजोों की तल ु ना मेें घटिया हथियार थे, अग्ं रेजोों के
असम दीवान मनीराम दत्त पास आधनि ु क राइफलेें और हथियार थे।
भारतीय विद्रोहियोों के पास परु ानी और सीमित तोपेें, तलवारेें और
महाराष्टट्र सातारा – रंगो बापूजी गुप्ते
आग््ननेयास्त्र थे।
हिमाचल प्रदेश कुल््ललू- राणा प्रताप सिंह और वीर सिंह z युद्ध तकनीक मेें ब्रिटिशोों की श्रेष्ठता:
इस अवधि के दौरान ब्रिटिश नौसैनिक शक्ति बेजोड़ थी, जिससे उन््हेें
1857 के विद्रोह की विफलता के प्रमुख कारण महत्तत्वपर्ू ्ण लाभ प्राप्त हुआ।
z स््थथानीय प्रकृति: ब्रिटिश सेना ने अपनी बेहतर तकनीक और संसाधनोों के साथ भारतीय
अपनी तीव्रता के बावजद ू , 1857 का विद्रोह अपने दायरे और संगठन मेें विद्रोहियोों पर अप्रत््ययाशित प्रहार किए।
सीमित था। z निगरानी प्रणाली ने विद्रोहियोों के इरादोों को उजागर किया:
डॉ. आर.सी. मजम ू दार ने इसे एक राष्टट्रव््ययापी आदं ोलन के बजाय स््थथानीय, ब्रिटिशोों को विद्रोहियोों की योजनाओ ं के बारे मेें विस््ततृत जानकारी प्राप्त
विवश और खराब ढंग से संगठित बताया। थी, जिससे उन््हेें विद्रोह का मक ु ाबला करने मेें लाभ मिला।
z असमान प्रसार: z ब्रिटिश साम्राज््य के असीमित सस ं ाधन: ब्रिटिशोों ने विश्व के विभिन््न भागोों
यह विद्रोह मख् ु ्य रूप से उत्तरी और मध््य भारत मेें केें द्रित था, जबकि पर्वी
ू , से भारी संख््यया मेें सैनिकोों को तैनात किया तथा पर््ययाप्त सैन््य क्षमता की मदद
दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्र इससे कम प्रभावित हुए। से भारतीय विद्रोहियोों को आसानी से परास््त कर दिया।
1857 का विद्र 21
z इनमेें से सैन््य विद्रोह और राष्ट्रीय स््वतंत्रता संग्राम इतिहासकारोों द्वारा समर््थथित
स््टटेनली यह विद्रोह से कहीीं अधिक था, ... फिर भी प्रथम स््वतंत्रता
सबसे महत्तत्वपर्ू ्ण व््ययाख््ययाएँ थीीं।
वोलपर््ट संग्राम से कहीीं कम।
परिप्रेक्ष्य: एक सैन्य विद्रोह
वी.डी. भारतीय स््वतंत्रता संग्राम का प्रथम विद्रोह था।
सावरकर z इतिहासकारोों के विचार:
सर जॉन लारे न््स और सीले जैसे इतिहासकारोों के अनस ु ार 1857 ई. का
डॉ. ताराचंद विद्रोह विशेष रूप से मध््यम चरित्र का था और अपनी विद्रोह एक सैन््य विद्रोह था।
खोई हुई शक्ति को वापस पाने के लिए शक्तिहीन वर््ग का मुंशी जीवनलाल, मोइनुद्दीन, सर सैय््यद अहमद खान, दुर््गगा दास
प्रतिनिधित््व करता है। बंदोपाध््ययाय आदि समकालीन भारतीयोों ने भी यही राय साझा की।
जे म््स हिदं ू मस््ललि
ु म षड्यंत्र था। “सिपाही विद्रोह और 1857 का विद्रोह” पस् ु ्तक मेें आर.सी. मजूमदार
आउट्रम एवं ने तर््क दिया है कि यह विद्रोह स््वतंत्रता संग्राम नहीीं था।
ट्रेलर z इस तर््क के कारण:
सैन््य केें द्र के निकट स््थथानीय प्रसार: विद्रोह के वल उत्तर भारत के एक
विद्रोह की प्रकृति छोटे से हिस््ससे तक ही सीमित था अतः यह संपर्ू ्ण उत्तर भारत या दक्षिण
भारत के अन््य क्षेत्ररों मेें न फै ल सका।
z विद्रोह की प्रकृति पर इतिहासकारोों के दृष्टिकोण:
सैन््य छावनी क्षेत्ररों तक ही सीमित: विद्रोह सैन््य छावनी क्षेत्र मेें शरू ु
अग्ं रेजोों ने इसे "सैन््य विद्रोह" करार दिया, क््योोंकि इसमेें लोकप्रिय समर््थन हुआ और सैन््य केें द्ररों मेें विकसित हुआ और प्रभाव प्राप्त किया।
या प्रमख ु नेतत्ृ ्व का अभाव था। सैनिकोों की सक्रिय भागीदारी: जब सैनिकोों ने अग् ं रेजोों के खिलाफ
हालाँकि, भारतीय देशभक्ततों ने इसे "राष्ट्रीय स््वतंत्रता संग्राम" के रूप मेें हथियार उठाना शरू ु किया, तो नाना साहब, बहादरु शाह और झाँसी की
सराहा। रानी जैसे क््राांतिकारी आगे आए।
ब्रिटिश सैनिकोों द्वारा दमन: यदि यह राष्ट्रीय स््वतंत्रता संग्राम होता, तो
z 1857 ई. के विद्रोह की प्रकृ ति और चरित्र मेें निम््नलिखित तत्तत्व शामिल थे:
ब्रिटिश सैनिकोों का एक छोटा-सा हिस््ससा विद्रोह को दबा नहीीं सकता था।
सैन््य विद्रोह
सामान््यतः गाँव अप्रभावित थे : 1857 के विद्रोह मेें सामान््यतः गाँवोों
विद्रोह की प्रकृति की बहुत कम भागीदारी देखी गई। यह आदं ोलन शहरोों और कस््बोों तक
ही सीमित रहा तथा आसपास के गाँवोों तक नहीीं फै ला।
औपनिवेशिक राष्टट्रवादी परिप्रेक्ष्य: प्रथम स्वतंत्रता संग्राम
z विद्रोह की भयावहता को कम करके z विद्रोह को औपनिवेशिक z डॉ. के .एम. पणिक््कर ने इस विद्रोह को राष्ट्रीय क््राांति कहा है।
आक ं ना प्रभत्ु ्व के खिलाफ भारतीय z वी.डी. सावरकर और अशोक मेहता ने इसे स््वतंत्रता संग्राम कहा है।
z इसके राष्टट्रवादी चरित्र को नकारना प्रतिरोध के उदाहरण के रूप मेें z पंडित नेहरू के शब््दोों मेें: यह विद्रोह सैन््य विद्रोह से कहीीं अधिक था और
z इसके व््ययापक सामाजिक आधार को महिमामडं ित किया जाता है। यह तेजी से फै ला तथा एक लोकप्रिय विद्रोह और भारतीय स््वतंत्रता सग्ं राम
नजरअदं ाज करना z सर सैयद अहमद खान की का स््वरूप प्राप्त कर लिया।
z विद्रोह की वैधता को अस््ववीकार करना पस्ु ्तक - "असहाब-ए-बगावत- z कंजर्वेटिव पार्टी के समकालीन नेता श्री बेेंजामिन डिजरायली के अनुसार,
z यह सिर््फ एक सिपाही विद्रोह था,जो ए-हिदं " यह विद्रोह किसी तात््ककालिक कारण का परिणाम नहीीं था, बल््ककि यह एक
परू ी तरह से स््ववार््थ और देशभक्ति से z प्रथम राष्ट्रीय स््वतंत्रता संग्राम- सोची-समझी और संगठित योजना का परिणाम था।
परिपर्ू ्ण था - सर जॉन सील वीर सावरकर z इस तर््क के कारण:
इसका प्रसार व््ययापक था और समाज के सभी वर्गगों के लोग इसमेें
z सभ््यता और बर््बरता के बीच सघं र््ष
- टी.आर. होम््स शामिल हुए।
देशी सैनिकोों, जमीींदारोों और देशी शासकोों ने भी इसमेें सक्रिय भागीदारी
मुगल सत्ता को बहाल करने का प्रयास दिखाई।
अभिजात वर््ग की प्रतिक्रिया विद्रोह कई महीनोों तक जारी रहा जो आम लोगोों के समर््थन के बिना संभव
हनमु ानगढ़़ी के बाबा रामचरण दास ने सशस्त्र प्रतिरोध प्रयासोों का नेतत्ृ ्व नहर खोली गई जिससे इग्ं ्लैैंड और भारत के बीच आवागमन सल ु भ हुआ।
किया। शासन:
उन््हेें गिरफ््ततार कर लिया गया और एक साथ अयोध््यया के कुबेर टीले पर
लॉर््ड मे यो ने 1870 ई. मेें राजस््व के लिए विकेें द्रीकरण की प्रवृत्ति
एक इमली के पेड़ पर फाँसी दे दी गई। शरू
ु की। बाद मेें, लॉर््ड रिपन ने इस प्रक्रिया को और अधिक व््ययापक
z रोहिलखंड (खान बहादुर खान और खुशी राम): बनाने का प्रयास किया।ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकोों ने भारत को
11 मई, 1857 को दिल््लली मेें स््वतंत्र भारतीय सरकार की घोषणा के बाद
बंगाल, बॉम््बबे और मद्रास प्रेसीडेेंसी मेें विभाजित कर दिया।
खान बहादरु खान को मगु ल सम्राट का उप प्रतिनिधि नियक्त ु किया गया। गवर््नर की कार््यकारी परिषद को सरकार की देखरे ख का काम सौौंपा
उन््होोंने राज््य पर शासन करने के लिए हिद ंओु ं और मसु लमानोों को मिलाकर गया था।
आठ सदस््योों की एक समिति बनाई, जिसमेें खश ु ी राम उनके अधीनस््थ
सेवा सब ं ंधी मामले:
थे।
सिविल सेवा हेतु आयु मानक: 1853 ई. मेें सिविल सेवा के
इस सरकार ने गौहत््यया पर प्रतिबंध लगाकर हिद ं ू भावनाओ ं का सम््ममान
किया। लिए आवेदन करने की काननू ी न््ययूनतम आयु 23 वर््ष थी। 1860
ई. मेें इसे घटाकर 22 वर््ष, 1866 मेें 21 वर््ष तथा 1876 मेें 19 वर््ष
खान और खश ु ी राम ने अग्ं रेजोों के खिलाफ कई लड़़ाइयोों मेें सेना का नेतत्ृ ्व
किया, लेकिन अतं तः बरे ली मेें एक महत्तत्वपर्ू ्ण लड़़ाई मेें हार गए। 20 मार््च, कर दिया गया।
1860 को परु ानी कोतवाली के बाहर कई अनयु ायियोों के साथ उन््हेें भी सैन््य प्रबंधन: अग् ं रेजोों ने सैन््य बलोों को विभिन््न समहोों
ू मेें विभाजित
मार दिया गया। करने का प्रयास किया।
z मध््य भारत: शिक्षा: पर््ववर्
ू ती विचारधाराओ ं के विपरीत, उच््च शिक्षा और बद्धि ु जीवियोों
झाँसी: रानी लक्ष्मीबाई ने मस््ललि ु म कमांडरोों गल ु ाम गौस खान और खदु ा को तिरस््ककृ त किया जाता था क््योोंकि उन््हेें समकालीन राष्टट्रवाद के उपकरण
बख््श के साथ मिलकर ब्रिटिश सेना का जमकर विरोध किया। के रूप मेें माना जाता था।
रानी लक्ष्मीबाई की निजी अग ु म महिला मजंु ार ने 18 जनू ,
ं रक्षक मस््ललि प्रेस एवं सच ं ार:
1858 को ग््ववालियर के कोटा-की-सराय मेें हुए यद्ध ु मेें रानी के साथ अपने भारतीय भाषाओ ं मेें प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाने के लिए 1858 ई.
प्राणोों की आहुति दे दी थी। का वर््ननाक््ययूलर प्रेस एक््ट पारित किया गया।
मालवा क्षेत्र: तात््यया टोपे, राव साहब, लक्ष्मी बाई, फिरोजशाह और
1870 ई. मेें टेलीग्राफ प्रणाली स््थथापित की गई थी।
मौलवी फजल हक ने एक संयक्त ु कमान बनाई, जिसमेें 70-80 हजार
लड़़ाकोों की एक बड़़ी विद्रोही सेना गठित की गई। इस सेना ने अग्ं रेजोों के विद्रोहियोों की विफलता के बावजूद, ब्रिटिश सरकार पर भारत के प्रति अपना
खिलाफ अनेक विद्रोहोों मेें सफलता हासिल की। दृष्टिकोण बदलने का दबाव डाला गया। अगस््त, 1858 मेें ईस््ट इडं िया कंपनी ने
z दिल््लली: भारत पर ब्रिटिश राज के हाथोों नियंत्रण खो दिया और रानी विक््टटोरिया को
हिद
भारत की महारानी या भारत की साम्राज्ञी घोषित किया गया। परिणामस््वरूप,
ं ू और मस््ललि
ु म दोनोों समदु ायोों ने ब्रिटिश शासन को कमजोर करने के
लिए सहयोग किया और दिल््लली के सल्ु ्ततान बहादरु शाह जफर को अपना ईस््ट इडं िया कंपनी का शासन समाप्त हो गया।
नेता घोषित किया। निष्कर््ष
उन््होोंने प्रतिज्ञा की कि सफल होने पर बहादरु शाह जफर को दिल््लली के 1857 ई. के विद्रोह को सफल या असफल अध््ययाय के रूप मेें वर्गीकृत
सल्ु ्ततान के रूप मेें पनु ः स््थथापित किया जाएगा, जिससे जन-एकता और नहीीं किया जा सकता है। हालाँकि, इसमेें साम्राज््यवाद के खिलाफ बीज थे
एकजटु ता प्रदर््शशित हुई। और इसने लोगोों को राष्टट्रवाद के लिए एकजुट किया। अपनी सीमाओ ं और
1857 का विद्रोह: औपनिवेशिक भारत के कमजोरियोों के बावजदू , देश को विदेशी शासन से आजाद कराने के लिए
प्रति ब्रिटिश नीतियोों के विकास मेें एक महत्त्वपूर््ण मोड़ सिपाहियोों का प्रयास एक देशभक्तिपर्ू ्ण कार््य था। इसने ब्रिटिश शासन के प्रतिरोध
z 1857 के विद्रोह ने अगले 90 वर्षषों तक औपनिवेशिक भारत के प्रति ब्रिटिश की स््थथानीय परंपराओ ं को स््थथापित किया, जिसने एक आधनि ु क राष्ट्रीय आंदोलन
नीतियोों को महत्तत्वपर्ू ्ण रूप से प्रभावित किया। अपने साम्राज््य का विस््ततार करने का मार््ग प्रशस््त किया।
1857 का विद्र 23
विगत वर्षषों के प्रश्न
प्रमुख शब्दावलियाँ 1. अधिकांश भारतीय सिपाहियोों वाली ईस््ट इडं िया की सेना क््योों
तत््ककालीन भारतीय शासकोों की संख््यया बल मेें अधिक और बेहतर
1857 का विद्रोह, ब्रिटिश उपनिवेशवाद, व््यपगत सिद््धाांत, सहायक
सुसज््जजित सेना से लगातार जीतती रही ? कारण बताएँ।
संधि, आर््थथि क शोषण, नस््ललीय भेदभाव, सैन््य शिकायतेें, हिंदू-
मुस््ललिम एकता, बहादरु शाह जफर, क्षेत्रीय विविधताएँ, 1857 के (2022)
बाद ब्रिटिश नीतियाँ, 1858 की महारानी की घोषणा, शासन मेें 2. यह स््पष्ट कीजिए कि 1857 का विप््लव किस प्रकार औपनिवेशिक
परिवर््तन, आर््थथि क पतन, सामाजिक कानून, चर्बी वाले कारतूस, भारत के प्रति ब्रिटिश नीतियोों के विकासक्रम मेें एक महत्तत्वपूर््ण
राष्ट्रीय स््वतंत्रता संग्राम आदि। ऐतिहासिक मोड़ है। (2016)
z उदाहरण के लिए, समाज मेें जाति भेद को खत््म करने के लिए, के शव चद्रं सेन और ईसाई मिशनरियोों ने अक््सर भारतीय सामाजिक और धार््ममिक प्रथाओ ं
ने "ईश्वरीय एकता और मानव जाति के बंधत्ु ्व" की व््ययाख््यया की। को बर््बर और पिछड़़ा बताया, विशेष रूप से सती प्रथा (पति की मृत््ययु पर
z सधु ार आदं ोलनोों ने जिन मख्ु ्य सामाजिक मद्ददों
ु को उठाने की कोशिश की वे थे: चिता मेें विधवा को जलाने की प्रथा), बाल विवाह और जाति व््यवस््थथा
जातिवाद और छुआछूत की आलोचना की।
महिला उत््पपीड़न से मक्ु ति, जिसमेें सती प्रथा, बालहत््यया, बाल विवाह और उदाहरण: राजा राम मोहन राय ने आशि ं क रूप से इन आलोचनाओ ं
विधवा विवाह को मान््यता और सामाजिक ज्ञान को बढ़़ावा देने के लिए की प्रतिक्रिया के रूप मेें 1828 मेें ब्रह्म समाज की स््थथापना की। उनका
शिक्षा से संघर््ष शामिल था। उद्देश््य हिदं ू धर््म को शद्धु करना और सती जैसी प्रथाओ ं को समाप्त करना
धार््ममिक मद् ु दे जैसे बहुदवव
े ाद, मर््तति
ू पजू ा, धार््ममिक अधं विश्वास और परु ोहित था, जिसके खिलाफ उन््होोंने सफलतापर््वू क अभियान चलाया, जिसके
वर््ग का शोषण। परिणामस््वरूप 1829 मेें सती उन््ममूलन अधिनियम लागू हुआ।
सुधारवादी और पुनरुत्थानवादी आंदोलन 2. सामाजिक सुधार की इच््छछा:
z सधु ारवादी और पनु रुत््थथानवादी दोनोों आदं ोलनोों ने समाज मेें सामाजिक-धार््ममिक आंतरिक सामाजिक आलोचना: कई भारतीय बद्धि ु जीवियोों ने अपनी
सधु ारोों को आगे बढ़़ाने मेें योगदान दिया, जिसने अतं तः एक समकालीन और सामाजिक प्रथाओ ं पर सवाल उठाना और उनकी आलोचना करना शरू ु
दरू दर्शी समाज के उद्भव का मार््ग प्रशस््त किया। कर दिया, उन प्रथाओ ं को हटाने के लिए सधु ार की आवश््यकता को
सुधारवादी आंदोलन पुनरुत््थथानवादी आंदोलन पहचानने पर बल दिया, जिन््हेें प्रतिगामी और दमनकारी माना जाता था।
z ये समह ू किसी सामाजिक प्रथा ये आदं ोलन धर््म की खोई हुई उदाहरण: ईश्वर चद्र
z
ं विद्यासागर ने विधवा पनु र््वविवाह का समर््थन किया,
या धार््ममिक संस््थथा को अपनाने या शद्धु ता पर दृढ़ता से निर््भर थे जिससे 1856 का हिदं ू विधवा पनु र््वविवाह अधिनियम बना, जो उनके समर््थन
अस््ववीकार करने के निष््कर््ष पर जिसे वे पनु र््स्थथापित करने का और सधु ारवादी विचारधारा का प्रत््यक्ष परिणाम था।
पहुचँ ने के लिए तर््क और बद्धिव ु ाद प्रयास कर रहे थे। 3. शिक्षित मध््यम वर््ग का उदय:
पर अधिक निर््भर थे। z पन ु रुत््थथानवादी आदं ोलन तर््क पश्चिमी शिक्षा: अग् ं रेजोों द्वारा पश्चिमी शिक्षा की शरू
ु आत से शिक्षित
z सामाजिक-सांस््ककृ तिक क्षेत्र मेें और विवेक के बजाय परंपरा के भारतीयोों के एक नए वर््ग का उदय हुआ जो उदार और प्रगतिशील विचारोों
आधनि ु क पश्चिमी म ल्
ू ्योों, जै स े अनरू ु प थे। से अवगत हुए।
लैैंगिक समानता और प्रत््ययेक को उदाहरण: हेनरी लई ु स विवियन डेरोजियो से प्रेरित यंग बंगाल आदं ोलन,
अपना जीवन साथी को चनु ने की बंगाल क्षेत्र के यवु ाओ ं द्वारा किया गया एक बौद्धिक और सामाजिक
स््वतंत्रता, उदार विचार आदि इन आदं ोलन था, जो तर््कवाद का समर््थन करता था और मौजदू ा धार््ममिक और
आदं ोलनोों की विशेषताएँ थीीं। सामाजिक मानदडों ों की आलोचना करता था।
4. धार््ममिक पुनरुत््थथानवाद: 3. परिवर््तन के प्रतीक के माध््यम से सुधार : यह व््यक्तिगत, अपरंपरागत
धर््म को पुनर्जीवित और तर््क सगत ं बनाने की आवश््यकता: पश्चिमी गतिविधि के माध््यम से परिवर््तन के प्रतीक उत््पन््न करने का एक प्रयास था।
सांस््ककृ तिक और धार््ममिक वर््चस््व से कथित खतरे के जवाब मेें, सदियोों उदाहरण के लिए, 'डेरोज़़ियन' या 'यंग बंगाल', सध ु ार आदं ोलन के
से भ्रष्ट और विकृ त माने जाने वाले तत्तत्ववों को हटाकर भारतीय धर्ममों की भीतर एक आक्रामक विचारधारा का प्रतीक था। वे पश्चिमी दनि ु या की नई
पनु र््स्थथापना हेतु एक आदं ोलन चलाया गया। सोच से काफी प्रभावित थे और सामाजिक मद्ददों ु पर उनका दृष्टिकोण ज््ययादा
उदाहरण: स््ववामी दयानंद सरस््वती ने 1875 मेें आर््य समाज की स््थथापना तार््ककि क था।
की, जिसने हिदं ू धर््म को उसकी कथित शद्ध ु वैदिक जड़ों की ओर लौटने 4. सामाजिक कार््य के माध््यम से सुधार: रामकृ ष््ण मिशन, आर््य समाज और
की मांग की, वेदोों के अस््ततित््व पर जोर दिया और मर््तति ू पजू ा और जाति ईश्वर चंद्र विद्यासागर की सभी गतिविधियोों ने इस पद्धति को प्रदर््शशित किया।
प्रतिबंधोों की निंदा की। उदाहरण के लिए, रामकृ ष््ण मिशन और आर््य समाज सामाजिक कार्ययों मेें
5. महिलाओ ं और वंचित समूहोों का सशक्तिकरण: लगे रहे जिसके माध््यम से उन््होोंने सधु ार और उत््थथान की अवधारणाओ ं को
सामाजिक अन््ययाय: गंभीर सामाजिक भेदभाव और बनि ु यादी अधिकारोों फै लाने का प्रयास किया।
की कमी से पीड़़ित महिलाओ ं और निम््न जातीय समहोू ों की दर््दु शा के बारे सामाजिक-धार््ममिक सुधार आंदोलनोों का वर्गीकरण
मेें जागरूकता बढ़ रही थी।
धर््म पर आधारित भगू ोल पर आधारित वर््ग पर आधारित
उदाहरण: जातिगत उत््पपीड़न के खिलाफ लड़ने और सामाजिक समानता
को बढ़़ावा देने के लिए ज््ययोतिराव फुले ने 1873 मेें सत््यशोधक समाज हिदं ू सुधार आंदोलन पूर्वी भारत महिलाओ ं की दशा
की स््थथापना की। वह महिलाओ ं और निचली जातियोों की शिक्षा के भी मस््ललिम
ु सुधार आंदोलन पश्चिम भारत जातिगत भेदभाव
प्रबल समर््थक थे। सिख सुधार आंदोलन उत्तर भारत
6. वैश्विक आंदोलनोों का प्रभाव:
पारसी सुधार आंदोलन दक्षिण भारत
वैश्विक विचारधाराओ ं का प्रभाव: उन््ममूलनवाद, मताधिकारवाद और
अन््य सधु ार आदं ोलनोों जैसे वैश्विक आदं ोलनोों के प्रभाव ने भारतीय हिंद ू सुधार आंदोलन
विचारकोों और नेताओ ं को अपने समाज मेें समान परिवर््तन लागू करने
हिदं ू सामाजिक-धार््ममिक सुधार आंदोलन ज््ययादातर प्रकृति मेें सुधारवादी थे,
के लिए प्रभावित किया।
हालांकि, कुछ आंदोलन, जैसे आर््य समाज आंदोलन, रामकृ ष््ण मिशन आदि
उदाहरण: वैश्विक महिला मताधिकार आद ं ोलन से प्रभावित होकर पंडिता पुनरुत््थथानवादी थे।
रमाबाई ने भारतीय महिलाओ ं की मक्ु ति और उनके शिक्षा के अधिकार
की वकालत की। राजा राम मोहन राय और ब्रह्म समाज
z परिचय : वह एक उत््ककृ ष्ट विद्वान, मानवतावादी और देशभक्त थे। राष्टट्र के प्रति
सुधार के उद्देश्य से अपनाई गई विधियााँ
उनके अगाध प्रेम के कारण उनका जीवन भारतीयोों के सामाजिक, धार््ममिक,
सामाजिक-धार््ममिक प्रथाओ ं को बदलने के प्रयास मेें निम््नलिखित चार तकनीकोों बौद्धिक और राजनीतिक नवीनीकरण के लिए समर््पपित था।
का उपयोग किया गया:
z सगं ठन से सबं द्ध: आत््ममीय सभा (1814), ब्रह्म सभा (1828) (बाद मेें इसका
1. आंतरिक सुधार: राममोहन राय ने इस तकनीक को खोजा। उनके अनुसार,
नाम बदलकर ब्रह्म समाज कर दिया गया)
सफल होने के लिए किसी भी सुधार को समाज के भीतर से ही लोगोों की
z योगदान:
जागरूकता बढ़़ाने की आवश््यकता होती है। इस पद्धति की वकालत करने
वैज्ञानिक स््वभाव पर ध््ययान: बहुदवव े ाद, मर््तति
ू पजू ा की निंदा की और
वाले लोगोों ने निबंध प्रकाशित किए थे और विभिन््न सामाजिक मद्ददों ु पर
चर््चचा और बहस की थी। मानवीय तर््क और विवेक की वकालत की क््योोंकि वे किसी भी धार््ममिक
उदाहरण के लिए, राममोहन का सती प्रथा के विरुद्ध अभियान, विधवा
ग्रंथ से अधिक महत्तत्वपर््णू हैैं।
विवाह पर विद्यासागर के पर्चे और बी.एम मालाबारी का सम््मति अंधविश्वास पर प्रहार:अवतार मेें आस््थथा को त््ययाग दिया और नैतिकता,
(सहमति) की उम्र बढ़़ाने के प्रयास। अच््छछाई और एक अपरिवर््तनीय, शाश्वत ईश्वर की पजू ा को प्रोत््ससाहित किया।
2. विधान के माध््यम से सुधार : यह सरकारी कार््रवाई की प्रभावशीलता का उपे क्षित समूहोों के लिए विरोध प्रदर््शन: समाज मेें प्रचलित जाति
प्रतीक था। इस दृष्टिकोण के समर््थकोों का मानना था कि सुधार पहल को व््यवस््थथा और छुआछूत की आलोचना की।
सफल बनाने के लिए सरकारी एवं कानूनी सहायता आवश््यक है। महिला सशक्तिकरण: सती प्रथा, बहुविवाह और बाल विवाह जैसी
उदाहरण के लिए, बंगाल मेें के शव चंद्र सेन, महाराष्टट्र मेें महादेव प्रथाओ ं का विरोध किया। उनके प्रयासोों से 1829 मेें सती प्रथा समाप्त हुई।
गोविंद रानाडे और आंध्र मेें वीरेशलिंगम जैसे व््यक्तियोों ने सरकार से ऐसे आधुनिक शिक्षा: वह कलकत्ता के हिद ं ू कॉलेज (प्रेसीडेेंसी कॉलेज) की
काननोू ों की वकालत करने की अपील की, जो सहमति की उम्र बढ़़ाएगा, स््थथापना मेें शामिल थे। इसके अतिरिक्त, उन््होोंने अपने ससं ाधनोों से कलकत्ता
नागरिक संघोों को वैध बनाएगा और विधवा विवाह की अनमति ु देगा। मेें एक अग्ं रेजी स््ककू ल का समर््थन किया।
z शुद्धि आंदोलन: जीव (जीवित वस््ततुओ)ं की सेवा के दर््शन का प्रचार शिव की पूजा है।
किया गया। उनका मानना था कि ईश्वर ने मनष्ु ्य को जो ज्ञान दिया था वह आलोचनात््मक एवं तर््क संगत ढंग से सोचना
वेदोों मेें निहित है और आधनि ु क विज्ञान की नीींव भी वहीीं पाई जा सकती है। सत्ता के सभी रूपोों को चन ु ौती देना
अंधविश्वासोों पर प्रहार: हिदं ू रूढ़़िवाद, जातिगत कठोरता, अस््पपृश््यता, स््वतंत्रता, समानता और बंधत्ु ्व को महत्तत्व देना
मर््तति
ू पजू ा, बहुदवव े ाद, जाद-ू टोना, आकर््षण और पशु बलि मेें विश्वास, अन््य महान फ््राांसीसी क््राांति से प्रेरणा लेकर परु ानी प्रथाओ ं और परंपराओ ं को
कुप्रथाओ ं पर हमला किया गया। अस््ववीकार करना
आधुनिक शिक्षा: उन््होोंने पश्चिमी विज्ञान को सीखने को वरीयता दी। शिक्षा और महिला अधिकारोों के पक्ष मेें आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया
दयानन््द एग्ं ्ललो-वैदिक (DAV) कॉलेज की भी स््थथापना की।
महादेव गोविन्द रानाडे और प्रार््थना समाज
राम कृष्ण मिशन और स्वामी विवेकानन्द z डॉ आत््ममा राम पांडुरंग ने 1876 मे,ें बंबई मेें प्रार््थना समाज की स््थथापना
z रामकृ ष््ण परमहसं ने धार््ममिक कुप्रथाओ ं से मक्ु ति पाने के लिए त््ययाग, ध््ययान की। इसने महाराष्टट्र मेें वही कार््य किया जो ब्रह्म समाज ने बंगाल मेें किया था।
और भक्ति की सदियोों परु ानी प्रथाओ ं की ओर रुख किया। z इस समाज की स््थथापना हिदं ू धर््म मेें सधु ार और एक ईश्वर की पजू ा को बढ़़ावा
z वह एक संत व््यक्ति थे जिन््होोंने इस बात पर जोर दिया कि ईश्वर और मोक्ष तक देने के प्रयोजन से की गई थी।
पहुचँ ने के कई रास््तते हैैं और दसू रोों की सेवा करना ही ईश्वर की सेवा करना है। z महादेव गोविंद रानाडे और आर.जी. भंडारकर प्रार््थना समाज के महान
उन््होोंने सभी धर्ममों की मल ू भतू समानता को भी पहचाना। नेता थे।
z गुरुद्वारा सध ु ार आंदोलन: z उन््हेें समाज सधु ारक, अतं रराष्ट्रीय संपर््क और सांख््ययिकीय उदारवाद के लिए
1920 के दशक से पहले गरु ु द्वारोों का संचालन उदासी सिख महतों ों द्वारा जाना जाता है।
किया जाता था। ये महतं गरुु द्वारे के चढ़़ावे और गरुु द्वारोों को प्राप्त अन््य z समाज सध ु ार:
आय को अपनी आय मानते थे। लड़कियोों की शिक्षा पर ध््ययान देना: नौरोजी का प्रयास लैैंगिक समानता
समसामयिक रूप से विकसित मानवाधिकार अवधारणा: समानता व््यवसायियोों और बागान मालिकोों ने महिला श्रमिकोों को अप्रतिबद्ध और
और मानवाधिकार के मल्ू ्योों के विकास ने भी समाज से जातिगत भेदभाव क्षमताओ ं की कमी के रूप मेें देखना शरू ु कर दिया। इसके अतिरिक्त,
को दरू करने मेें मदद की। महिलाओ ं की मज़दरू ी परुु षोों की तल ु ना मेें कम थी।
स््वतंत्रता आंदोलन: यह आधनि ु क भारत मेें राष्ट्रीयता की भावना के भारतीय बुद्धिजीवियोों और ब्रिटिश नौकरशाहोों दोनोों ने 19वीीं सदी मेें भारतीय
विकास और लोकतंत्र के प्रसार मेें एक प्रमख ु बाधा बन गया, जिसने महिलाओ ं की स््थथिति को ऊपर उठाने के लिए संघर््ष किया। हालाँकि, महिलाओ ं
जातियोों के आधार पर भेदभाव के उन््ममूलन को बढ़़ावा दिया। स््वतंत्र भारत की शिक्षा, श्रम भागीदारी और परिवार और समाज मेें स््थथिति के मद्ु दे घरे लू
के संविधान मेें जाति के आधार पर समानता और गैर-भेदभाव की जरुरत जीवन तक सीमित थे। इनमेें लैैंगिक समानता, धार््ममिक रूढ़़िवादिता और जातिगत
पर ध््ययान केें द्रित किया। असमानताओ ं के मद्ददों ु को संबोधित करने की उपेक्षा की गई।
महिलाओ ं की भूमिका
सामाजिक-धार््ममिक आंदोलनोों मेें महिलाओ ं के मुद्दे
z सरला देवी चौधरानी: उन््होोंने 1910 मेें इलाहाबाद मेें भारतीय महिला संगठन
z 19वीीं सदी की शरुु आत मेें भारतीय महिलाओ ं की स््थथिति अच््छछी नहीीं थी।
की स््थथापना की। इसके लक्षष्ययों मेें महिलाओ ं की शिक्षा को आगे बढ़़ाना और
z सती प्रथा, पर््ददा प्रथा, बाल विवाह, कन््यया भ्रूण हत््यया, वधू का कीमत और परू े भारत मेें महिलाओ ं की सामाजिक आर््थथिक और राजनीतिक स््थथिति को
बहुविवाह जैसी बरु ी प्रथाओ ं के कारण उनका जीवन अत््ययंत कठिन हो गया था। सदृु ढ़ करना शामिल था।
z शैक्षिक, सामाजिक और आर््थथिक संभावनाओ ं के संबंध मेें, भारत मेें परुु षोों z पंडिता रमा बाई:
और महिलाओ ं के बीच कोई समानता नहीीं थी। पंडिता रमा बाई ने अपनी शिक्षा इग्ं ्लैैंड और संयक्तु राज््य अमेरिका दोनोों से
z परिणामस््वरूप, 19वीीं शताब््ददी के दौरान महिलाओ ं से सबं ंधित प्राप्त की। उन््होोंने भारतीय महिलाओ ं के साथ होने वाले अनचि
ु त व््यवहार
निम््नलिखित महत्तत्वपूर््ण मुद्दे सामने आए: के बारे मेें लिखा।
विवाह, सती प्रथा, विधवा पनु र््वविवाह को बढ़़ावा देने आदि पर रोक लगाने 1. यंग बंगाल और ब्रह्मो समाज के विशेष संदर््भ मेें सामाजिक-धार््ममिक
के लिए काननू बनाए गए और जनता के बीच कार््रवाई के माध््यम से उन््हेें सधु ार आंदोलनोों के उत््थथान तथा विकास को रे खांकित कीजिए।
लागू किया गया। (2021)
धार््ममिक आधार पर विभाजन: अग् ं रेजोों ने सधु ारोों के माध््यम से लोगोों को 2. उन््ननीसवीीं शताब््ददी के ‘भारतीय पुनर््जजागरण’ और राष्ट्रीय पहचान के
धर््म, वर््ग और जातियोों के आधार पर विभाजित करने का भी प्रयास किया। उद्भव के मध््य सहलग््नताओ ं का परीक्षण कीजिए। (2019)
उपनिवेश माना गया है। इसके उपनिवेशवाद के विभिन््न चरण हैैं: के लिए पश्चिम जीवनशैली को बढ़़ावा दिया गया।
z प्रथम चरण: व््ययापार पर एकाधिकार और प्रत््यक्ष लूट (1757-1813): z तीसरा चरण: वित्तीय पूज ँ ी का युग (1860 से आगे):
एकाधिकार को सग ु म बनाने वाली सफलताएँ: बंगाल की जीत के निवेश मेें वद्ृ धि: भारत के रे लमार्गगों मेें निवेश, भारत सरकार को ऋण
साथ-साथ दक्षिण भारत के कुछ हिस््सोों व शेष भारत पर विजय तथा तथा व््ययापार, वृक्षारोपण, कोयला खनन, जटू मिलोों, शिपिंग और बैैंकिंग
व््ययापार पर एकाधिकार स््थथापित करने और सरकारी ससं ाधनोों को हड़पने मेें निवेश की राशि मेें महत्तत्वपर्ू ्ण वृद्धि देखी गई।
के लक्षष्ययों को इस चरण मेें तेजी से हासिल किया गया। बढ़ती प्रतिस््पर्द्धा: इस समय, अन््य नई साम्राज््यवादी शक्तियोों से
हस््तशिल््प पर एकाधिकार: अब ईस््ट इडं िया कंपनी ने भारत मेें व््ययापार प्रतिस््पर्द्धा ने दनु िया मेें ब्रिटेन की स््थथिति के लिए निरंतर खतरा पैदा किया।
और हस््तशिल््प पर एकाधिकार स््थथापित करने के लिए राजनीति मेें अपने परिणामस््वरूप, भारत पर उसका प्रभत्ु ्व और मजबतू हो गया।
प्रभाव का फायदा उठाया। औद्योगिक क््राांति नहीीं बल््ककि विस््ततार: तीन प्रमख ु घटनाओ-ं प्रथम
इस अवधि के दौरान किए गए परिवर््तन: इस चरण मेें उपनिवेश मेें कोई विश्व यद्धु , महाम द
ं ी (1929-34) और द्वितीय विश्व य द्ध
ु - ने विदेशी व््ययापार
बनु ियादी परिवर््तन नहीीं हुआ। परिवर््तन सिर््फ सैन््य संगठन, प्रौद्योगिकी और और विदेशी धन के प्रवेश को कम कर दिया या रोक दिया। इस तरह
राजस््व प्रशासन के शीर््ष स््तर पर किए गए। सबं ंध प्रभावित हुए थे, अतः भारत मेें के वल औद्योगिक विस््ततार हुआ
z दूसरा चरण: मुक्त व््ययापार का युग (1813-1860): था, औद्योगिक क््राांति नहीीं।
एकतरफा मुक्त व््ययापार नीति: इस चरण मेें सबसे महत्तत्वपर् ू ्ण परिवर््तनोों मेें
ब्रिटिश सर्वोच्चता का विस्तार
से एक ब्रिटिश सरकार की एकतरफा मक्त ु व््ययापार नीति थी, जिसने भारत
को कच््चचे माल के निर््ययातक और ब्रिटिश निर््ममित वस््ततुओ ं के आयातक ईस््ट इडं िया कंपनी का मानना था कि उसकी शक्तियाँ भारतीय राज््योों की तुलना
मेें बदल दिया। मेें अधिक मजबूत थीीं और सर्वोच््चता की नीति (Policy of Paramountcy)
के अनुसार उसकी शक्तियाँ सर्वोच््च या सर्वोपरि थीीं। 1757-1857 की अवधि के
भारत मेें उपनिवेशवाद दौरान कंपनी द्वारा कूटनीति और प्रशासनिक तंत्र द्वारा विलय की नीति (Policy
के चरण
of Annexation) के माध््यम से साम्राज््यवादी विस््ततार और ब्रिटिश सर्वोच््चता
प्रथम को मजबूत करने की प्रक्रिया जारी रखी गई थी।
चरण z व््ययापारिक पूज
ँ ीवाद या वाणिज््यवाद (1757-1813)
z व््ययापार पर एकाधिकार। रिंग-फेें स की नीति (1765-1813):
z सरकारी राजस््व पर कब््जजा। z अर््थ: रिंग-फेें सिंग, वॉरे न हेस््टटििंग््स द्वारा संक्रमण क्षेत्र स््थथापित करके कंपनी की
सीमाओ ं को मजबतू करने के लिए नियोजित एक रणनीति थी।
दूसरा
z मुक्त व््ययापार का उपनिवेशवाद (1813-1860) उद्देश््य: सामान््य तौर पर, यह अपने क्षेत्ररों की रक्षा के लिए अपने पड़़ोसियोों
चरण z इंग््लैैंड और विश्व के साथ आर््थथि क एकीकरण।
z
z भारतीय बाजार मेें निःशुल््क प्रवेश। की सीमाओ ं की रक्षा करने की एक रणनीति थी।
z भू-राजस््व प्रणाली। z विवरण: इसमेें राज््योों को सहायक बलोों को बनाए रखने की आवश््यकता थी,
तीसरा जिन््हेें कंपनी के अधिकारियोों द्वारा आपर््तति ू , संगठित और नेतत्ृ ्व किया जाना
चरण था, जिसके बदले मेें राज््य के नेताओ ं द्वारा इसका मआ ु वजा दिया जाना था।
z विदेशी निवेश का युग (1860 के दशक से प्रारंभ)
z उदाहरण: 1964 ई. मेें बक््सर यद्ध ु के बाद अवध को एक बफर राज््य के रूप
z रेलवे, डाक, तार, बैैंकिंग प्रणाली आदि का विकास।
मेें उपयोग किया गया था।
सहायक संधि (सब्सिडियरी एलायंस ) (1798 से आगे ) इन नीतियोों का प्रभाव
z मूल: लॉर््ड वेलेजली ने भारत मेें सहायक गठबंधन को ‘गैर-हस््तक्षेप नीति’ z EIC (ईस््ट इंडिया कंपनी) का स््वरूप परिवर््तन: कंपनी मख्ु ्यतः वाणिज््ययिक
(Non-Intervention Policy) के रूप मेें उपयोग किया, लेकिन इस वाक््ययाांश शक्ति से अपने स््वरूप को विकसित करके मख्ु ्य रूप से क्षेत्रीय शक्ति मेें परिवर््ततित
का सर््वप्रथम प्रयोग फ््राांसीसी गवर््नर डूप््लले ने किया था। हो गई।
z उद्देश््य: इसका मल ू उद्देश््य बिना यद्धु और लागत वहन किए भारतीय सेनाओ ं z भारतीय शासकोों पर नियंत्रण: भारतीय शासकोों की योग््यता तथा उनके सैन््य
को नियंत्रित करना था।
एवं विदेशी संबंधोों को तय करने का अधिकार अग्ं रेजोों ने अपने हाथ मेें ले लिया।
z विवरण: इस पद्धति के अतं र््गत भारतीय राजाओ ं द्वारा कंपनी के सैनिकोों को
z रियासतोों पर नियंत्रण: कंपनी ने सतारा, जैतपरु , सबं लपरु , नागपरु और झाँसी
स््थथापित किया जाना था। उन््हेें सैनिकोों के संचालन से संबंधित सभी लागतोों को
भी वहन करना पड़ता था और शासकोों को अपने राज््योों मेें ब्रिटिश नागरिकोों की आदि रियासतोों को अपने अधीन कर लिया।
मेजबानी जारी रखनी होती थी। z साम्राज््यवादी विस््ततार: धीरे -धीरे लेकिन तेजी से सपं र्ू ्ण भारतीय उपमहाद्वीप
z उदाहरण: सहायक संधि को स््ववीकार करने वाला पहला शासक हैदराबाद ब्रिटिश शासन के अधीन हो गया।
का निजाम था। z भारतीय अर््थव््यवस््थथा को ब्रिटिश हितोों के अधीन करना: इन नीतियोों के
परिणामस््वरूप भारत की अर््थव््यवस््थथा, कृषि, राजस््व आदि पर अग्ं रेजोों का
नोट:
सीधा नियंत्रण हो गया।
“वेलेजली ने भारत मेें ब्रिटिश साम्राज््य को भारत के ब्रिटिश साम्राज््य मेें z 1857 का विद्रोह: व््यपगत का सिद््धाांत (हड़प नीति) और कुशासन का सिद््धाांत
बदल दिया। भारत मेें कंपनी राजनीतिक शक्तियोों मेें से एक थी, किंतु वह
जैसी नीतियाँ विद्रोह का कारण बनीीं।
सर्वोच््च शक्ति बन गई और पूरे देश पर स््वयं को एकमात्र संरक्षक होने का
दावा किया। वेलेजली के समय से भारत की सुरक्षा की जिम््ममेदारी कंपनी z ब्रिटिश ताज का प्रत््यक्ष शासन (Direct rule of the British Crown):
की थी।” - सिडनी जे . ओवेन इन नीतियोों के कारण 1857 का विद्रोह हुआ जिसके कारण अतं तः कंपनी का
पतन हो गया और भारत का प्रशासन सीधे महारानी के अधीन हो गया।
व्यपगत का सिद्धधांत (1848-1859)
z विवरण: इस सिद््धाांत के अनसु ार, यदि कंपनी के प्रत््यक्ष या अप्रत््यक्ष नियंत्रण भारत मेें ब्रिटिश विदेश नीति
के अधीन किसी रियासत के पास काननू ी उत्तराधिकारी नहीीं होगा, तो रियासत भारत मेें ब्रिटिश राज के दौरान, ब्रिटिश विदेश नीति की विशेषता साम्राज््यवाद,
पर ब्रिटिश द्वारा कब््जजा कर लिया जाएगा। रणनीतिक चातुर््य और आर््थथिक हितोों का मिश्रण थी। सर््वव््ययापी लक्षष्य उन पड़़ोसी
z उदाहरण: लॉर््ड डलहौजी ने भारतीय राज््योों को हड़पने के लिए इस रणनीति को देशोों और शक्तियोों के साथ संबंधोों का प्रबंधन करते हुए ब्रिटिश साम्राज््य के प्रभाव
बड़़े पैमाने पर अपनाया। जैसे सतारा (1848), जैतपरु और संबलपरु (1849), की रक्षा और विस््ततार करना था, जो भारत पर उसके नियंत्रण को खतरे मेें डाल
बघाट (1850), उदयपरु (1852), झाँसी(1853), नागपरु (1854) आदि राज््योों
सकते थे। भारत मेें ब्रिटिश विदेश नीति के प्रमख ु पहलुओ ं और रणनीतियोों का
का विलय, हड़प नीति से किया।
विस््ततृत विश्ले षण निम््नवत है:
कुशासन का सिद्धधांत (1848-1856)
रणनीतिक बफर और विस्तार
z विवरण: भारतीय शासक द्वारा कुप्रबंधन के आधार पर भारतीय राज््योों का
विलय। 1. द ग्रेट गेम (The Great Game):
भारत मेें ब्रिटिश विदेश नीति तथाकथित ‘ग्रेट गेम’ से काफी प्रभावित थी,
z उदाहरण: डलहौजी ने 1856 ई. मेें अवध के अतिम
ं शासक वाजिद अली शाह
के प्रशासनिक प्रबंधन मेें कुशासन को आधार बनाते हुए अवध पर कब््जजा कर यह शब््द ब्रिटिश साम्राज््य और रूस के बीच भरू ाजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का
लिया। वर््णन करने के लिए उपयोग किया जाता था। भारत के लिए सरु क्षा की मख्ु ्य
चितं ा दक्षिण की ओर संभावित रूसी विस््ततार से थी।
अंग्जो
रे ों ने ये नीतियााँ क्ययों लागू कीीं?
अग् ं रेजोों ने भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा को मजबतू किया और
z ब्रिटिश साम्राज््य का विस््ततार: नए क्षेत्ररों को अपने नियंत्रण मेें लाकर भारत मेें
ब्रिटिश साम्राज््य का विस््ततार करना। अफगानिस््ततान मेें एक बफर राज््य स््थथापित करने के लिए कई अफगान
z फ््राांसीसी प्रभाव को कम करना: फ््राांसीसी प्रभाव को कम करना ताकि अग्ं रेज यद्धधों
ु (1839-1842, 1878-1880, 1919) मेें भाग लिया, जो भारतीय
भारत मेें सर्वोपरि शक्ति बन सकेें । उपमहाद्वीप की ओर रूसी विस््ततार को रोकने मेें सहायक सिद्ध हुआ।
z युद्ध के बिना भारतीय राज््योों पर विजय: खल ु े स््तर पर राज््योों के विलय से 2. उत्तर-पूर््व सीमा:
भारत मेें कंपनी और गृह सरकार दोनोों के लिए राजनीतिक जटिलताएँ पैदा हो इसी प्रकार, ब्रिटिश नीति का उद्देश््य भारत की पर् ू वोत्तर सीमाओ ं को सरु क्षित
जाती। करना था। इसमेें असम जैसे क्षेत्ररों पर कब््जजा करना और राजनीतिक एजेेंटोों
z राजस््व मेें वद्ृ धि: ब्रिटिश ईस््ट इडं िया कंपनी को भारत राज््य पर अपना प्रभत्ु ्व के माध््यम से पहाड़़ी क्षेत्ररों मेें स््थथानीय सरदारोों को शामिल करना शामिल
स््थथापित करने मेें सक्षम बनाना, जिससे उनके राजस््व मेें वृद्धि हो। था। 1914 ई. मेें खीींची गई मैकमोहन रे खा मेें ब्रिटिश भारत और तिब््बत के
z कंपनी की सीमाओ ं की रक्षा करना: रिंग-फेें स की नीति शरू ु करके , कंपनी बीच सीमाओ ं को परिभाषित करने की माँग की गई थी, हालाँकि, चीन ने
ने अपने क्षेत्ररों को अन््य क्षेत्रीय और विदेशी खतरोों से बचाने की कोशिश की। इसका विरोध किया था।
z भारत सरकार अधिनियम, 1935: इसने संघीय लोक सेवा आयोग की लागू किया, जिससे बनु ियादी ढाँचे के निर््ममाण मेें मदद मिली, जिससे न के वल
स््थथापना का प्रावधान किया। सचं ार और परिवहन मेें सधु ार हुआ, बल््ककि त््वरित सैन््य तैनाती के साथ-साथ
z स््वतंत्रता के बाद: जे एल नेहरू, भारतीय सिविल सेवाओ ं (ICS) को खत््म आर््थथिक शोषण भी सभं व हुआ।
करना चाहते थे, लेकिन सरदार पटेल ने एक मजबतू नौकरशाही बनाने पर z कूटनीतिक और राजनीतिक हेरफेर: लॉर््ड डलहौजी जैसे सिविल सेवकोों ने
बल दिया। उन राज््योों को अपने कब््जजे मेें लेने के लिए व््यपगत नीति का उपयोग किया,
ब्रिटिश भारत मेें सिविल सेवाओ ं की भूमिका जिनके शासकोों को अक्षम माना जाता था या जो जैविक उत्तराधिकारी के बिना
z वाणिज््ययिक मामले: प्रारंभ मेें, कंपनी के कर््मचारी जो वाणिज््ययिक मामलोों मेें मर गए, जिससे भारत मेें ब्रिटिश क्षेत्र का काफी विस््ततार हुआ।
शामिल थे, सिविल सेवक थे। z बुनियादी ढाँचे का विकास: ब्रिटिश सिविल सेवक प्रशासन के अत ं र््गत, रे लवे
z कलेक््टर के रूप मेें: कलेक््टर राजस््व सगं ठन का प्रमख ु था, जिस पर के विकास, जैसे कि 1853 मेें शरू ु हुई भारतीय रे लवे नेटवर््क की स््थथापना,
पंजीकरण, परिवर््तन और जोत के विभाजन की जिम््ममेदारी थी; विवादोों का ने सैनिकोों और सामानोों की तीव्र आवाजाही की सवि ु धा प्रदान की, भारतीय
निपटारा, ऋणग्रस््त संपदा का प्रबंधन, कृ षकोों को ऋण और अकाल से राहत अर््थव््यवस््थथा को वैश्विक बाजारोों के साथ एकीकृ त किया और ब्रिटिश प्रभत्ु ्व
सबं ंधित अधिकार क्षेत्र भी कलेक््टर के पास था। को मजबतू किया।
z साम्राज््यवाद विरोधी भावना: व््ययापक गरीबी और शोषण के कारण जनता मेें की स््थथिति दयनीय हो गई।
साम्राज््यवाद विरोधी भावना मेें वृद्धि होने लगी। सनसेट क््ललॉज: इससे जमीींदारोों के लिए भी बड़़ी कठिनाई हुई, जिनमेें से
z वास््तविक स््थथिति से अवगत होना: इसने ब्रिटिश शासन की शोषणकारी और कई समय पर राजस््व का भगु तान करने मेें असमर््थ थे और 'सनसेट क््ललॉज'
स््ववार्थी प्रकृति को उजागर किया और लोगोों को यह विश्वास दिलाया कि मौजदू ा के अतं र््गत अपनी जमीन खो बैठे।
गरीबी का मख्ु ्य कारण अग्ं रेज थे। जमीींदार घरानोों का पतन: बड़़ी सख् ं ्यया मेें पारंपरिक जमीींदार घराने ढह
राजस्व नीतियााँ, भारतीय कृषि और ब्रिटिश शासन गए।
उप-सघ ं र््ष (Sub-Infeudation): इस प्रणाली ने उप-संघर््ष को भी
1765 मेें बंगाल, बिहार और उड़़ीसा की दीवानी ईस््ट इडं िया कंपनी को सौौंपे जाने
बढ़़ावा दिया, यानी जमीींदार और कृ षक के बीच बिचौलियोों की कई परतेें
के बाद उपनिवेश से अधिकतम राजस््व प्राप्त करना, ब्रिटिश प्रशासन का मख्ु ्य
थीीं, जिससे किसानोों की मसु ीबतेें और भी बढ़ गई।ं
उद्देश््य बन गया था। उपनिवेश के राजस््व का प्राथमिक स्रोत कृषि करोों से था और
सरकार को ब्रिटिश निवेशकोों के लिए लाभांश भी वितरित करना था। इसे प्राप्त z रैयतवाड़़ी प्रणाली (1820):
करने के लिए, ब्रिटिश सरकार ने विभिन््न प्रकार की भ-ू राजस््व रणनीतियोों का मूल: अलेक््जेेंडर रीड और थॉमस मन ु रो द्वारा शरू ु की गई रै यतवाड़़ी
प्रयोग किया। प्रणाली के अतं र््गत, शरू ु मेें राजस््व प्रत््ययेक गाँ व से अलग से एकत्र किया
भूमि राजस्व प्रणाली: जाता था, लेकिन बाद मेें प्रत््ययेक कृ षक या रै यत का व््यक्तिगत रूप से
मल्ू ्ययाांकन किया जाता था।
z इजारेदार प्रणाली (1773):
सप ं त्ति का स््ववामित््व: जमीींदारोों को नहीीं, बल््ककि किसानोों को संपत्ति के
बंगाल मेें वॉरे न हेस््टटििंग््स द्वारा शरू ु की गई राजस््व खेती के अतं र््गत,
जिला कलेक््टर उच््चतम बोली लगाने वाले को राजस््व एकत्रित करने का मालिकोों के रूप मेें स््थथापित किया गया।
अधिकार देते थे। क्षेत्र: मद्रास, बॉम््बबे प्रेसीडेेंसी।
मनमाने ढंग से उच््च राजस््व माँगोों के कारण, यह प्रणाली परू ी तरह से z लाभ:
विनाशकारी थी और इसने उत््पपादकोों को नष्ट कर दिया। किसी मध््यस््थ की अनप ु स््थथिति के कारण राज््य द्वारा एकत्रित राजस््व मेें
इजारे दार प्रणाली की विफलता ने अधिक न््ययायसंगत और टिकाऊ राजस््व वृद्धि।
संग्रह पद्धति की आवश््यकता पर प्रकाश डाला, जिसके परिणामस््वरूप z कमियाँ:
अतं तः 1793 मेें स््थथायी बंदोबस््त की शरुु आत हुई। आकलन दोषपर् ू ्ण थे।
z स््थथायी बंदोबस््त (1793): किसान करोों के अत््यधिक बोझ से दबे हुए थे।
मूल: कॉर््नवालिस ने 1793 मेें स््थथायी बंदोबस््त की प्रणाली शरू ु की, करोों का भग ु तान करने मेें असमर््थ किसान साहूकारोों के पास जाते थे, जो
जिसके अतं र््गत 'जमीींदार', भमि ू के मालिक या संरक्षक के रूप मेें स््थथापित थे। उनका शोषण करते थे।
जमीींदारोों की भूमिका: जमीींदार किसानोों से भ- ू राजस््व वसल ू करते थे। z महलवाड़़ी प्रणाली (1822):
राज््य को जमीींदारोों द्वारा किसानोों से एकत्र किए गए लगान का 10/11वाँ
हॉल््ट मैकेेंजी द्वारा शरू ु की गई, इस प्रणाली के अतं र््गत राज््य ने ग्रामीण
हिस््ससा प्राप्त करना था, के वल 1/11वाँ हिस््ससा जमीींदारोों को मिलता था।
भ-ू राजस््व के रूप मेें उन््हेें जो रकम चक समदु ाय मेें से किसी एक के साथ समझौता किया या कुछ मामलोों मेें
ु ानी पड़ती थी, उसे स््थथायी कर दिया
जाता था। पारंपरिक 'तालक ु दार' के साथ समझौता किया।
सामहि ू क मालिकाना अधिकारोों को कुछ मान््यता दी गई।
क्षेत्र: पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, आध्र ं प्रदेश और मध््य
प्रदेश मेें इस प्रणाली का प्रचलन सबसे अधिक था। क्षेत्र: भारत के उत्तर और उत्तर-पश्चिम भाग।
सामाजिक नीतियााँ
वुड डिस््पपैच (1854):
अंग्जो
रे ों के अधीन शिक्षा का विकास मै काले वक्तव््य (1835): 1. भारत सरकार से जनता की
1. विवाद का निर््णय शिक्षा की जिम््ममेदारी लेने के
भारत मेें आधनु िक शिक्षा पारंपरिक गुरुकुलोों और मदरसोों से परिवर््ततित होकर प्राच््यवादी-आंग््लवादी आग्ं ्लवादियोों के पक्ष मेें लिए कहा गया, इस प्रकार
विवाद: गया - सीमित संसाधनोों 'डाउनवर््ड निस््पपंदन सिद््धाांत'
ब्रिटिश शासन के अंतर््गत शरू ु हुई। 1835 से पहले शरुु आती प्रयासोों मेें कलकत्ता को के वल अग्ं रेजी भाषा के को खारिज कर दिया।
1. आंग््लवादी: सरकार द्वारा 2. सबसे नीचे गाँवोों मेें स््थथानीय
मदरसा (1781) और संस््ककृ त कॉलेज (1791) की स््थथापना शामिल थी। 1835 शिक्षा पर व््यय विशेष रूप माध््यम से पश्चिमी विज्ञान
भाषा के प्राथमिक स््ककूलोों
से आधनु िक अध््ययन के और साहित््य के शिक्षण के
के बाद लॉर््ड मैकाले के शिक्षा पर वक्तव््य मेें अंग्रेजी शिक्षा और पश्चिमी ज्ञान की लिए होना चाहिए। लिए समर््पपित किया जाना से पदानुक्रम को व््यवस््थथित
किया गया, इसके बाद एंग््ललो-
था।
वकालत की गई, जिसके परिणामस््वरूप 1857 मेें कलकत्ता, बॉम््बबे और मद्रास मेें 2. प्राच््यविद्: जबकि छात्ररों 2. बड़़ी संख््यया मेें प्राथमिक वर््ननाक््ययुलर हाई स््ककू ल और
जिला स््तर पर एक संबद्ध
को नौकरी लेने के लिए विद्यालयोों के बजाय कुछ
विश्वविद्यालयोों की स््थथापना हुई। तैयार करने के उद्देश््य अंग्रेजी स््ककू ल और कॉलेज
कॉलेज और कलकत्ता, बॉम््बबे
से पश्चिमी विज्ञान और और मद्रास के प्रेसीडेेंसी
खोले गए, इस प्रकार
1764 और 1835 के बीच किए गए उपाय: साहित््य पढ़़ाया जाना सार््वजनिक शिक्षा की
शहरोों मेें संबद्ध विश्वविद्यालय
शामिल किए गए।
चाहिए, पारंपरिक भारतीय उपेक्षा की गई ('डाउनवर््ड 3. उच््च अध््ययन के लिए शिक्षा
इस अवधि के दौरान अंग्रेजोों ने निम््नलिखित प्रतिष्ठानोों के माध््यम से बेहतर शिक्षा के विस््ततार पर भी फिल््टरे शन थ््ययोरी')। के माध््यम के रूप मेें अंग्रेजी
बल दिया जाना चाहिए। और स््ककू ल स््तर पर स््थथानीय
प्रशासन के लिए विभिन््न क्षेत्रीय भाषाओ ं को सीखने और विविध संस््ककृतियोों को 3. आंग््लवादी शिक्षा के भाषाओ ं की सिफारिश की गई।
माध््यम के लिए अंग्रेजी
समझने का प्रयास किया: बनाम भारतीय भाषाओ ं
4. महिला और व््ययावसायिक
शिक्षा, शिक्षकोों के प्रशिक्षण
z 1781 मेें कलकत्ता मदरसा: वारे न हेस््टटििंग््स ने उर््ददू/फारसी मेें लिखे इस््ललामी (स््थथानीय भाषाओ ं सहित) के और धर््मनिरपेक्ष शिक्षा को
सवाल पर विभाजित थे। बढ़़ावा देने पर बल दिया गया।
काननू का अध््ययन करने के लिए 1781 मेें कलकत्ता मदरसा की स््थथापना की। नोट: भारत मेें ‘अंग्रेजी शिक्षा का
मैग््नना कार््टटा’ माना जाता है।
z 1784 मेें एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल: विलियम जोन््स ने भारतीय
संस््ककृति और इतिहास को समझने के लिए 1784 मेें एशियाटिक सोसाइटी z सहायता अनुदान: वडु डिस््पपैच द्वारा भारतीय शिक्षा के लिए अनदु ान सहायता
ऑफ बंगाल की स््थथापना की। प्रणाली को बढ़़ावा दिया गया।
z हीनता की भावना: महात््ममा गांधी ने तर््क दिया कि औपनिवेशिक शिक्षा ने लगीीं। उनमेें से कुछ ने डॉक््टर बनने के लिए प्रशिक्षण लिया, कुछ शिक्षक
भारतीयोों के मन मेें हीनता की भावना पैदा की। इसने उन््हेें पश्चिमी सभ््यता को श्रेष्ठ बन गई।ं कई महिलाओ ं ने समाज मेें महिलाओ ं के स््थथान पर अपने
मानने पर मजबरू कर दिया और अपनी संस््ककृति पर उनके गर््व को नष्ट कर दिया। आलोचनात््मक विचार लिखना और प्रकाशित करना शरू ु किया।
उन््ननीसवीीं सदी के अंत तक: महिलाएँ स््वयं सध ु ार के लिए सक्रिय रूप
ब्रिटिश भारत मेें महिला शिक्षा:
से कार््य कर रही थीीं। उन््होोंने किताबेें लिखीीं, पत्रिकाओ ं का संपादन किया,
z ईसाई मिशनरियोों की भूमिका: स््ककूलोों और प्रशिक्षण केें द्ररों की स््थथापना की और महिला संघोों की स््थथापना
वे लड़कियोों की शिक्षा मेें रुचि लेते थे। की।
रॉबर््ट मे (Robert May), एक ईसाई मिशनरी, ने 1814 और 1815 मेें राजनीतिक दबाव समूह की स््थथापना: उन््होोंने महिला मताधिकार
चिनसरु ा (हुगली जिला) मेें कई स््ककूलोों की स््थथापना की, जिनमेें महिलाओ ं (मतदान का अधिकार) और महिलाओ ं के लिए बेहतर स््ववास््थ््य देखभाल
को शिक्षित करने के लिए भी सेवाएँ दी गई।ं और शिक्षा हेतु काननू बनाने के लिए राजनीतिक दबाव समहू बनाए।
z ब्रिटिश सरकार की भूमिका: अन््य ने ताओ ं द्वारा सहयोग: जवाहरलाल नेहरू और सभ ु ाष चद्रं बोस जैसे
वुड का एजुकेशन डिस््पपैच, 1854: इसने महिलाओ ं की शिक्षा पर ध््ययान नेताओ ं ने महिलाओ ं के लिए अधिक समानता और स््वतंत्रता की माँगोों को
अपना समर््थन दिया और इस प्रकार महिला शिक्षा को बढ़़ावा दिया।
केें द्रित किया।
हंटर कमीशन: इसमेें 1881 मेें महिला शिक्षा की आवश््यकता पर भी महात्मा गाांधी और रवीींद्र नाथटै गोर के मध्य तुलना
जोर दिया गया। भारतीय इतिहास की दो महान शख््ससियतोों, महात््ममा गांधी और रवीींद्रनाथ टैगोर के
उच््च शिक्षा: कलकत्ता, बॉम््बबे और मद्रास विश्वविद्यालयोों मेें 1875 तक शिक्षा पर विशिष्ट और प्रभावशाली विचार थे, जो भारत के लिए उनकी दार््शनिक
लड़कियोों को प्रवेश की अनमति
ु नहीीं थी। 1882 के बाद लड़कियोों को मान््यताओ ं और दृष्टिकोण को दर््शशाते हैैं। यहाँ उनके शैक्षिक दर््शन का तुलनात््मक
उच््च शिक्षा के लिए जाने की अनमतिु दी गई। विश्ले षण दिया गया है:
न््ययूनतम विवाह योग््य आयु मेें वद्ृ धि: लड़कियोों की न््ययूनतम विवाह योग््य 1. दार््शनिक आधार
गांधी: उनका शैक्षिक दर््शन, जिसे प्रायः ‘नई तालीम या बनु ियादी शिक्षा’
आयु मेें वृद्धि से महिला शिक्षा को बहुत लाभ हुआ।
के रूप मेें जाना जाता है, व््ययावहारिकता और नैतिकता मेें गहराई से निहित
z समाज सध
ु ारक:
था। गांधी जी का मानना था कि शिक्षा को सामाजिक जीवन के साथ घनिष्ठ
ईश्वरचंद्र विद्यासागर: कलकत्ता मेें विद्यासागर और बंबई मेें कई अन््य
रूप से जोड़़ा जाना चाहिए और आत््मनिर््भरता पर जोर देना चाहिए। उन््होोंने
सधु ारकोों ने लड़कियोों के लिए स््ककू ल स््थथापित किए। शिक्षा को सामाजिक, आर््थथिक और नैतिक रूप से व््यक्तिगत विकास प्राप्त
ब्रह्म समाज: ब्रह्म समाज के सदस््योों ने महिला शिक्षा को बढ़़ावा देने के करने के एक उपकरण के रूप मेें देखा।
लिए पत्रिकाएँ लिखीीं। टै गोर: इसके विपरीत, टैगोर का दर््शन अधिक आदर््शवादी था, जो पर्वी ू
सावित्रीबाई फुले: महिला शिक्षा के क्षेत्र मेें अग्रणी के रूप मेें प्रतिष्ठित, और पश्चिमी दर््शन के मिश्रण से प्रभावित था। उन््होोंने मन के बौद्धिक विकास
सावित्रीबाई फुले और उनके पति, समाज सधु ारक ज््ययोतिराव फुले ने 1848 के अलावा इद्रियो
ं ों के सौौंदर््य विकास पर भी जोर दिया। टैगोर उस शिक्षा मेें
मेें पणु े शहर मेें भिडेवाड़़ा मेें लड़कियोों के लिए भारत का पहला स््ककू ल विश्वास करते थे, जो प्रकृति के साथ गहरा सबं ंध विकसित करती है और
शरू ु किया और वह इसकी पहली शिक्षिका बनीीं। रचनात््मक अभिव््यक्ति को बढ़़ावा देती है।
मानवीय, रचनात््मक रूप से स््वतंत्र और स््वतंत्र विचार करने मेें सक्षम होों। के बंगाल विनियमन अधिनियमोों ने एक नवजात शिशु की हत््यया करना
टैगोर की शिक्षा का उद्देश््य लोगोों के बीच एक सार््वभौमिक बंधन को बढ़़ावा गैर-काननू ी बना दिया।
देने के लिए भौगोलिक और सांस््ककृतिक सीमाओ ं को पार करना था। भारतीय संस््ककृति की धारणा को बदलने के लिए 1870 मेें कन््यया भ्रूण हत््यया
4. पद्धतियाँ को गैर-काननू ी घोषित करने के लिए एक काननू पारित किया गया था।
गांधी: कार््य करके सीखने पर बल दिया। वह अनभ ु वात््मक शिक्षा के z सती प्रथा का उन््ममूलन:
समर््थक थे, जहाँ शिक्षा सीधे जीवन के व््ययावहारिक पहलओ ु ं से जड़ु ़ी थी। बंगाल सती विनियमन (1829): 1829 मेें गवर््नर-जनरल लॉर््ड विलियम
उन््होोंने एक ऐसी शिक्षा प्रणाली को प्रोत््ससाहित किया, जो के वल पाठ्य बेेंटिक ने बंगाल सती विनियमन, 1829 पारित किया, जिसने परू े ब्रिटिश
ज्ञान पर आधारित नहीीं थी बल््ककि पर््ययावरण के साथ व््ययावहारिक जड़ु ़ाव भारत मेें सती प्रथा को अवैध बना दिया।
पर आधारित थी। गै र इरादतन हत््यया: इस नियम के द्वारा सती प्रथा के लिए उकसाने वाले
थ््ययोरी’ मेें कहा गया कि अंग्रेजोों ने ब्रिटेन मेें धन प्रवाहित करके भारत का गया था। उन््होोंने राजनीतिक विचारधाराओ,ं घोषणापत्ररों और उपनिवेशवाद के
शोषण किया। बाद के भारत के दर््शन का निर््ममाण किया।
इग्ं ्लैैंड मेें औद्योगिक क््राांति के बाद ब्रिटेन को कच््चचे माल और बाजार की इन सग ं ठनोों ने बद्धि
ु जीवियोों, नेताओ ं और कार््यकर््तताओ ं को स््वतंत्रता और
आवश््यकता थी। भारत ने दोनोों की आपर््तति ू की। स््वतंत्रता के बाद के शासन को आकार देने वाले, सामाजिक-राजनीतिक
z कांग्रेस-पूर््व सग
मद्ददों
ु पर बहस करने की अनमु ति दी।
ं ठन: इनमेें से कई सगं ठन विशिष्ट क्षेत्ररों मेें सचं ालित थे, इनमे
से कई संगठनोों के लक्षष्य सभी भारतीयोों के लिए थे, न कि के वल एक समहू z जन लामबंदी और जन जागरूकता: औपनिवेशिक भारतीय राजनीतिक
भारतीय राष्ट्रवाद का 51
सुरक्षा वाल्व सिद्धधांत और काांग्रेस नहीीं दे सकते।" भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का लक्षष्य ब्रिटिश व््यवस््थथा मेें
सधु ार से हटकर स््वतंत्रता प्राप्त करना हो गया। यह परिवर््तन दर््शशाता है कि
z सरु क्षा वाल््व सिद््धाांत की उत््पत्ति: सरु क्षा वाल््व सिद््धाांत का श्रेय वर््ष 1884
कांग्रेस एक सरु क्षा वाल््व से कहीीं अधिक थी, जो स््वशासन की बढ़ती
से 1888 तक भारत के वायसराय रहे लॉर््ड डफरिन को दिया जाता है।
माँग को दर््शशाती है।
उन््होोंने तर््क दिया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जैसे राजनीतिक संस््थथानोों
यह कारण इस दावे का खंडन होता है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक ब्रिटिश
के माध््यम से ब्रिटिश भारतीय राष्टट्रवाद को प्रसारित और नियंत्रित कर
औपनिवेशिक सुरक्षा वाल््व थी। उनका तर््क है कि कांग्रेस एक अधिक जटिल,
सकते थे तथा विभिन््न प्रकार के क््राांतिकारी आदं ोलनोों को रोक सकते थे। संगठित आंदोलन था, जिसने भारत को स््वतंत्रता प्राप्त करने मेें मदद की।
z ऐतिहासिक प्रमाण: विलियम वेडरबर््न की ए.ओ. ह्मयू द्वारा लिखी गई जीवनी
काांग्रेस का लक्ष्य और उद्देश्य
ने 7 खडों ों की गप्तु रिपोर्टटों से यह सिद््धाांत प्रेरित है।
z बिपिन चंद्रा के मुताबिक कांग्रेस के दो मूल उद्देश््य थे। अन््य उद्देश््य दो
कांग्रेस निर््ममाण की सरु क्षा वाल््व थ््ययोरी मेें शिमला मेें ए.ओ. ह्म यू के पास
बनु ियादी उद्देश््योों के इर््द-गिर््द घमू ते थे-
गोपनीय रिपोर्टटों के 7 खडं होने का हवाला दिया गया, जिसमेें भारतीय
राष्टट्र-निर््ममाण और भारतीय पहचान को बढ़़ावा देना।
समाज मेें बढ़ती अशांति की चेतावनी दी गई थी।
परू े भारत मेें राजनीतिक कार््यकर््तताओ ं को इकट्ठा करने और संगठित करने
z सर वैलेेंटाइन शिरोल की वर््ष 1910 की पस्ु ्तक ‘इडि ं यन अनरे स््ट’ ने सरु क्षा
वाल््व सिद््धाांत को प्रसारित किया। के लिए एक एकल राजनीतिक कार््यक्रम या मचं प्रदान करना।
z भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले अध््यक्ष व््ययोमेश चद्र
ं बनर्जी ने 3 लक्षष्य निर््धधारित
शिरोल ने दावा किया कि अग् ं रेजोों ने राजनीतिक दबाव कम करने और
अपनी सत्ता के लिए अधिक गंभीर चनु ौतियोों को टालने के लिए भारतीय किए:
राष्ट्रीय कांग्रेस को बढ़़ावा दिया। 1. राष्ट्रीय एकता को मजबूत करना। इसके लिए देश भर मेें कांग्रेस के
वर््ष 1916 मेें प्रकाशित 'यंग इडि अधिवेशन आयोजित किए गए। इन सत्ररों की अध््यक्षता विभिन््न क्षेत्ररों
z ं या' मेें, गरमपंथी नेता लाला लाजपत राय
ने सरु क्षा-वाल््व सिद््धाांत का उपयोग करते हुए कांग्रेस के नरमपंथियोों की के अध््यक्षषों ने की।
2. सभी धर्ममों तक पहुँचना और अल््पसंख््यकोों की चिंताओ ं को कम
आलोचना की।
करना। वर््ष 1888 के सत्र मेें, यदि अधिकांश हिदं ू या मस््ललि ु म किसी
z आर. पाल््ममे दत्त की प्रमाणित कृति ‘इडि ं या टुडे’ ने इस सिद््धाांत को और
प्रस््तताव का विरोध करते, तो वह पारित नहीीं होता।
मजबतू किया।
3. कांग्रेस एक धर््मनिरपे क्ष राष्टट्र के निर््ममाण के लिए दृढ़ संकल््पपित
सुरक्षा वाल्व सिद्धधांत का खंडन क्ययों किया जाता है ? थी।
z कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीीं: सात खडों ों की गप्तु रिपोर््ट कभी भी भौतिक सामाजिक सुधार कांग्रेस के लिए सीमा से बाहर था। दसू रे कांग्रेस अधिवेशन
रूप मेें नहीीं मिली। के अध््यक्षीय भाषण मेें दादाभाई नौरोजी ने यह स््पष्ट किया कि सामाजिक सुधार
z ब्रिटिश नियंत्रण का अभाव: अपने बाद के वर्षषों मेें, कांग्रेस ने राजनीतिक कांग्रेस के दायरे से बाहर है। उनका मानना था कि कांग्रेस को के वल राष्ट्रीय मद्ददों ु
सधु ारोों की माँग करके ब्रिटिश नियंत्रण को चनु ौती दी। को ही संबोधित करना चाहिए।
z यह सरु क्षा वाल््व की धारणा का खंडन करता है कि कांग्रेस ने विपक्ष को शुरुआती दौर मेें काांग्रेस की सीमाएँ
नियंत्रित किया। z अभिजात वर््ग का नेतृत््व: प्रारंभिक कांग्रेस का नेतत्ृ ्व मख्ु ्य रूप से दादाभाई
z कट्टरपंथी समूहोों और क््राांतिकारी सगं ठनोों का उदय: क््राांतिकारियोों और उग्र नौरोजी और सरेु ें द्रनाथ बनर्जी जैसे अग्ं रेजी-शिक्षित, उच््च वर््ग के व््यक्तियोों द्वारा
राष्टट्रवादियोों ने अधिक प्रत््यक्ष और हिसं क तरीकोों से स््वतंत्रता की माँग की, यह किया गया था। जिसने भारतीय जनता तक कांग्रेस की व््ययापक पहुचँ को सीमित
साबित करते हुए कि कांग्रेस एकमात्र राष्टट्रवादी निकाय नहीीं था। कर दिया, जो मख्ु ्यतः ग्रामीण और वंचित वर््ग से थे।
z जमीनी स््तर पर लामबंदी: सरु क्षा वाल््व सिद््धाांत के अनसु ार, कांग्रेस एक z मध््यम मार््ग: कांग्रेस की शरुु आती रणनीतियोों की विशेषता याचिकाएँ, संकल््प
ब्रिटिश संगठन था, जिसे ब्रिटिश सरकार ने असंतोष को कम करने के लिए और चर््चचाएँ थीीं, जिन््हेें अक््सर ‘भिक्षावृत्ति की राजनीति’ कहा जाता था। अग्ं रेजोों
स््थथापित किया था। की आक्रामक नीतियोों के विरुद्ध अत््यधिक निष्क्रिय और अप्रभावी होने के
लेकिन यह भारतीयोों के लिए स््वशासन की आकांक्षाओ ं को व््यक्त करने का कारण इस उदारवादी दृष्टिकोण की आलोचना की गई।
एक मचं बन गया और राष्टट्रवादी भावनाओ ं को आकार देने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण z सामूहिक भागीदारी का अभाव: प्रारंभिक आदं ोलन और गतिविधियाँ काफी
भमि
ू का निभाई। हद तक शहरी अभिजात वर््ग तक ही सीमित थीीं, जिसमेें विशाल ग्रामीण
z दमनकारी तरीके : ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियोों ने राष्टट्रवादी आदं ोलनोों, आबादी को शामिल करने के लिए बहुत कम प्रयास किए गए थे।
विशेषकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को कुचलने के लिए दमनकारी तरीकोों का z क्षेत्रीय असतं ुलन: कांग्रेस का नेतत्ृ ्व और गतिविधियाँ मख्ु ्य रूप से कुछ ही
उपयोग किया। क्षेत्ररों, जैसे बॉम््बबे, कलकत्ता और मद्रास तक ही सीमित रहीीं, जिसके कारण
डफरिन और उनके भारतीय सहयोगियोों ने कभी भी कांग्रेस का समर््थन नहीीं भारत के विविध भौगोलिक और सांस््ककृ तिक परिदृश््य मेें असमान प्रतिनिधित््व
किया, उन््होोंने घोषणा की, "हम कांग्रेस को अस््ततित््व मेें रहने की अनमु ति एवं भागीदारी हुई।
इसमेें अपना उचित और वैध हिस््ससा मिलना चाहिए।" की कमी के संकेत के रूप मेें और अतं तः भिक्षावृत्ति के रूप मेें इसका
उपहास किया गया।
नरमपंथी चरण के दृष्टिकोण और सीमाएँ
(1885 -1905) z भारत के लोगोों का प्रतिनिधित््व: दसू री ओर, अनरु ोध 'भारत के लोगोों' के
नाम पर किए गए थे और इसका उद्देश््य सरकार के आधार को व््ययापक बनाना
नरमपंथियोों की मााँगेें और सफलता था ताकि लोगोों को ‘उसमेें उनका उचित और वैध हिस््ससा’ दिया जा सके ।
कांग्रेस अपने शरुु आती वर्षषों मेें अपनी माँगोों और तरीकोों के कारण ‘उदारवादी’ z उपनिवेशवाद की आर््थथिक आलोचना: कांग्रेस की बहसोों और प्रस््ततावोों
थी। उदाहरण के लिए: पर गरीबी हावी रही।
z परिषद का विस््ततार: इसका उद्देश््य सरकार मेें भारतीय प्रतिनिधित््व को मजबत ू दादाभाई नौरोजी और अन््य लोगोों ने गरीबी और उसके कारणोों का अध््ययन
करने के लिए प््राांतीय और केें द्रीय परिषदोों की शक्तियोों का विस््ततार करना और किया और एक ‘ब्रिटिश’ शासन की वकालत की, जिससे भारत को
उनके निर््ववाचित सदस््योों को बढ़़ाना था। लाभ होगा।
1892 ई. के भारतीय परिषद अधिनियम ने केें द्रीय और प््राांतीय विधान नौरोजी की प्रमख ु कृति ‘पॉवर्टी एडं अन-ब्रिटिश रूल इन इडि ं या’ के
परिषदोों का विस््ततार किया। अलावा, कई अन््य प्रकाशनोों ने भारत पर साम्राज््यवाद के आर््थथिक प्रभावोों
विधान परिषदोों ने बजट पर बहस की और कार््यपालिका से प्रश्न किए। की आलोचनात््मक जाँच की।
z चुनाव और मतदान शक्तियोों की माँग: वर््ग और समद ु ाय के वही सदस््य जो ‘भारत मेें गरीबी की समस््यया’ (1895), महादेव गोविंद रानाडे की ‘भारतीय
"बद्धि
ु मानी और स््वतंत्र रूप से इसका प्रयोग करने मेें सक्षम" थे, वही चनु ाव अर््थशास्त्र पर निबंध’ (1896), रोमेश चद्रं दत्त की दो खडों ों वाली ‘भारत
लड़ने के लिए योग््य थे। का आर््थथिक इतिहास’ (1902) और सब्रु मण््यम अय््यर की ‘भारत मेें ब्रिटिश
नामांकन का उपयोग केें द्रीय और प््राांतीय विधान परिषदोों मेें किया जाता था। शासन के कुछ आर््थथिक पहल’ू (1903) आदि ने भारत से इग्ं ्लैैंड की
z सिविल सेवा का भारतीयकरण करने के लिए इग्ं ्लैैंड और भारत मेें सिविल ओर लगातार ‘धन के निकास’ के कारण भारत की बढ़ती गरीबी के लिए
सेवा परीक्षा आयोजित करना आवश््यक हो गया। औपनिवेशिक शासन को दोषी ठहराया।
वर््ष 1877-80 मेें, एक व््ययापक अभियान मेें सार््वजनिक सेवाओ ं के उन््होोंने देश से ‘धन की निकासी’, ‘ग्रामीणीकरण’ और ‘वि-औद्योगिकीकरण’
भारतीयकरण की माँग की गई और लॉर््ड लिटन की महँगी अफगान यात्राओ ं का विरोध किया और भारत की औपनिवेशिक अर््थव््यवस््थथा पर ध््ययान
का विरोध किया गया, जिसका भगु तान भारतीय राजस््व से किया जाता था। केें द्रित करके शास्त्रीय आर््थथिक सिद््धाांत की अमर््तू ता और ऐतिहासिकता
z सत्ता को अलग करने की माँग की: कांग्रेस ने प्रशासन और न््ययायपालिका को चनु ौती दी।
को अलग करने तथा जरू ी परीक्षणोों का विस््ततार का प्रयास किया। z सार््वजनिक बैठकेें और सम््ममेलन: भारतीय मद्ददों ु के बारे मेें जागरूकता बढ़़ाने
प्रेस की स््वतंत्रता के लिए सघ ं र््ष किया: भारतीय प्रेस और संघ भी वर््ष के लिए नरमपथियो ं ों ने सार््वजनिक बैठकेें और सम््ममेलन आयोजित किए। इन
1878 के वर््ननाक््ययूलर प्रेस अधिनियम के विरोध मेें थे। आयोजनोों मेें बहस, भाषण और विचारोों की मेजबानी की गई।
भारतीय राष्ट्रवाद का 53
z प्रेस और प्रकाशन: नरमपंथी मीडिया के प्रभाव को समझते थे। उन््होोंने अपने z आक्रामक नेतृत््व की कमी: ब्रिटिश शासन का सामना करने मेें उनकी
विचारोों के प्रसार और जनता को शिक्षित करने के लिए समाचार पत्र, पत्रिकाएँ मख ु रता की कमी के लिए नरमपथियो ं ों की आलोचना की गई। उनके विनम्र
और पस््तति ु काएँ प्रकाशित कीीं। और वफादार दृष्टिकोण को कमजोरी के रूप मेें देखा गया, खासकर जब ब्रिटिश
z मददगार ब्रिटिश अधिकारियोों के साथ सहयोग: नरमपंथी उन ब्रिटिश अधिकारियोों ने उनकी माँगोों को खारिज कर दिया या नजरअदं ाज कर दिया।
अग्ं रेजोों ने अक््सर इस नरम रुख का लाभ उठाया और बिना किसी वास््तविक
अधिकारियोों के साथ गठबंधन और संबंध बनाने मेें विश्वास करते थे, जो भारतीय
दबाव के अपने विवेक से सधु ारोों को लागू किया।
समस््ययाओ ं के प्रति सहानभु ति ू रखते थे। उन््होोंने सधु ारोों के लिए अनक ु ू ल सरकारी
z व््ययापक सामाजिक मुद्ददों को सबं ोधित करने मेें विफलता: उनका ध््ययान
अधिकारियोों की पैरवी की और भारतीय समस््ययाओ ं को संबोधित किया।
मख्ु ्य रूप से राजनीतिक और प्रशासनिक मद्ददों ु पर केें द्रित रहा और भारतीय
z शिक्षा: नरमपथियो ं ों ने समझा कि शिक्षा भारतीयोों को सशक्त करे गी। इसलिए समाज के भीतर जातिगत भेदभाव, गरीबी और जनता के लिए शिक्षा जैसे
उन््होोंने स््ककूलोों की स््थथापना की और साक्षरता तथा नागरिकोों को जागरूक करने आवश््यक सामाजिक सधु ारोों की उपेक्षा की गई। इससे भारत के सामाजिक
के लिए शैक्षिक परिवर््तनोों की वकालत की। ताने-बाने पर उनका प्रभाव सीमित हो गया और उनका समर््थन आधार भी
z परिषद का उपयोग: अग्ं रेज चाहते थे कि परिषदेें अधिक मख ु र भारतीय नेताओ ं सीमित हो गया।
की अनदेखी करते हुए उनकी राजनीतिक स््थथिति को मजबतू ी प्रदान करेें । z औपनिवेशिक शक्ति को कम आँकना: नरमपंथियोों ने भारत पर नियंत्रण
हालाँकि, राष्टट्रवादियोों ने इन परिषदोों का उपयोग समस््ययाओ ं को व््यक्त बनाए रखने की ब्रिटिश प्रतिबद्धता को कम आँका। वे अग्ं रेजोों द्वारा एक निष््पक्ष
करने, नौकरशाही की कमियोों को उजागर करने, सरकारी नीतियोों/प्रस््ततावोों और न््ययायपर्ू ्ण प्रशासन की संभावना मेें विश्वास करते थे, जो अक््सर भारत
का विरोध करने और बनु ियादी आर््थथिक मद्ददों मेें ब्रिटिश नीतियोों को रे खांकित करने वाले औपनिवेशिक आर््थथिक हितोों के
ु , विशेष रूप से सार््वजनिक
विपरीत था।
धन के मामलोों को उठाने के लिए किया।
z बाद के आंदोलनोों से अभिभूत: कांग्रेस के भीतर उग्रवादियोों का उदय,
z अंतरराष्ट्रीय मंच: नरमपंथियोों ने विदेशोों मेें भारतीय हितोों को बढ़़ावा दिया। जिन््होोंने स््वराज (स््वशासन) की वकालत की और बाद मेें गांधी के उदय ने
उन््होोंने भारतीय औपनिवेशिक समस््ययाओ ं के बारे मेें जागरूकता बढ़़ाने और जन-लामबंदी रणनीतियोों (जैसे असहयोग आदं ोलन) के साथ नरमपंथियोों के
उनकी माँगोों का समर््थन करने के लिए विश्वव््ययापी सम््ममेलनोों मेें भाग लिया। तरीकोों को परु ाना और कम प्रभावी बना दिया।
नरमपंथियोों की सीमाएँ निष्कर््ष
z सीमित उद्देश््य: नरमपथियों ों ने पर्ू ्ण स््वतंत्रता की माँग किए बिना मख्ु ्य रूप से नरमपंथी त्रुटिपूर््ण थे, लेकिन निपुण थे। उन््होोंने राष्टट्रवादी आंदोलन खड़़ा किया,
छोटे प्रशासनिक सधु ारोों, निष््पक्ष प्रतिनिधित््व और शासन प्रक्रिया मेें अधिक भारतीयोों को शिक्षित किया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को आकार दिया।
भागीदारी पर ध््ययान केें द्रित किया। उनकी याचिकाएँ और अभ््ययावेदन अक््सर बाद मेें भारतीय स््वतंत्रता संग्राम का स््वरूप नरमपंथियोों की सीमाओ ं के कारण
सेवाओ ं और परिषदोों मेें भारतीय प्रतिनिधित््व मेें वृद्धि जैसी रियायतोों की माँग उग्र हो गया।
करते थे, जिन््हेें बाद के राष्टट्रवादियोों द्वारा अपर््ययाप्त माना गया।
z रूढ़़िवादी तरीके : उन््होोंने अपनी माँगोों को सामने रखने के लिए याचिकाओ,ं प्रमुख शब्दावलियाँ
भाषणोों और लेखोों पर भरोसा किया। ब्रिटिशोों की शाही नीतियोों के विरुद्ध
भारतीय राष्टट्रवाद का उदय, सामाजिक-धार््ममिक आंदोलन, पश्चिमी
अत््यधिक निष्क्रिय और अप्रभावी होने के कारण इस दृष्टिकोण की अक््सर शिक्षा, मध््यम वर््ग का उदय, प्रेस का उपयोग, ब्रिटिश प्रशासनिक
आलोचना की गई, जिसके लिए अधिक मख ु र कार््र वाई की आवश््यकता थी। नीतियाँ, आर््थथि क शोषण, सांस््ककृ तिक दमन।
z सक ं ीर््ण सामाजिक आधार: उदारवादी नेता मख्ु ्य रूप से शिक्षित अभिजात
वर््ग और उच््च-मध््यम वर््ग के पेशवे रोों से आते थे। इससे भारत की व््ययापक विगत वर्षषों के प्रश्न
जनता, जो मख्ु ्य रूप से गरीब और वंचित थे, के साथ उनकी अपील और 1. नरमपंथियोों की भमि ू का ने किस सीमा तक व््ययापक स््वतंत्रता आंदोलन
कनेक््टटिविटी सीमित हो गई। उदाहरण के लिए, दादाभाई नौरोजी और गोपाल का आधार तैयार किया? टिप््पणी कीजिए। (2021)
कृष््ण गोखले जैसे व््यक्तित््व औसत भारतीय किसान या श्रमिकोों के साथ 2. उन््ननीसवीीं सदी के 'भारतीय पनर््जजा
ु गरण' और राष्ट्रीय पहचान के उद्भव
घलु -मिल नहीीं पाए और उनके बीच एक दरू ी बनी रही। के मध््य सहलग््नताओ ं का परीक्षण कीजिए। (2019)
z राजनीतिक अस््थथिरता का मार््ग प्रशस््त: कर््जन के अभद्र बयानोों और की स््थथापना कर््जन के शासन के दौरान की गई थी और यह सिधं ु नदी के
साम्राज््यवादी उद्देश््योों ने भारत की राजनीतिक अस््थथिरता को बढ़़ा दिया। कर््जन लगभग ऊपरी हिस््ससे को कवर करता था।
की साम्राज््यवादी कार््र वाइयोों ने भारतीय राजनीति पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। z इपं ीरियल कै डेट कोर की स््थथापना: इपं ीरियल कै डेट कोर की स््थथापना की गई,
जिसने बाद मेें सेना के भारतीयकरण के लिए एक उपकरण के रूप मेें काम किया।
z राष्ट्रीयता की भावना का जन््म: उसके अत््ययाचार ने राष्ट्रीयता की गहन
भावना को जन््म दिया। इस दृष्टि से कर््जन भारत का अनजाने मेें हितैषी सिद्ध विभाजन की पृष्ठभूमि और ब्रिटिश उद्देश्य
हुआ। z आधिकारिक कारण: बंगाल एक एकल प््राांत था, जिसमेें बिहार, उड़़ीसा,
z स््वदेशी आंदोलन: स््वदेशी आदं ोलन की स््थथापना वर््ष 1905 मेें बंगाल मेें बंगाल और ढाका राज््य शामिल थे। विभाजन का उद्देश््य मस््ललिम ु बाहुल््य
स््वदेशी के पक्ष मेें ब्रिटिश उत््पपादोों के बहिष््ककार की माँग के साथ की गई थी। आबादी को पर्ू वी बंगाल और बिहार के साथ उड़़ीसा और बंगाल की हिदं ू
1857 ई. के विद्रोह के बाद संभवतः यह पहला बड़़ा आदं ोलन था। बाहुल््य आबादी के हिस््ससे को दसू रे प््राांत के रूप मेें अलग करने पर केें द्रित था।
z प्रशासनिक सगु मता: ब्रिटिश सरकार ने कहा कि यह बंगाल के अविकसित
z उपनिवेशवाद-विरोधी आंदोलन: उपनिवेशवाद-विरोधी आदं ोलन का
पर्ू वी भाग मेें विकास को बढ़़ावा देने और प्रशासनिक सगु मता के लिए किया
नेतत्ृ ्व पहले नरमपंथियोों ने किया था, लेकिन बाद मेें यह गरमपंथियोों के माध््यम
गया था क््योोंकि जनसंख््यया के मामले मेें बंगाल सबसे बड़़ा प््राांत था, जिससे
से परू े देश मेें फै ल गया। तिलक, बिपिन पाल और अरबिंदो घोष जैसे नेता प्रशासन चनु ौतीपर््णू हो गया था।
कांग्रेस मेें लोकप्रिय हो रहे थे।
z मुख््य लक्षष्य ‘फूट डालो और राज करो’: हालाँकि, ब्रिटिश सरकार का
z क््राांतिकारी गतिविधियोों का उद्भव: बाद मेें यगु ांतर जैसे क््राांतिकारी संगठन मख्ु ्य लक्षष्य उस समय देश के सबसे प्रमख ु राष्टट्रवादी वर््ग के मध््य 'फूट डालो
उभरने लगे। जिन््होोंने उपनिवेशवाद विरोधी अभियानोों मेें सक्रिय भमि ू का निभाई और राज करो' था और मस््ललिम ु समदु ाय को उनके लिए एक अलग प््राांत के
और यवु ाओ ं के मध््य राष्टट्रवाद का प्रसार किया। वादे के साथ भारतीय राष्टट्रवाद से दरू किया गया था।
z बंगाली सस््ककृति
ं और भाषा: राष्टट्रवादियोों ने इसे के वल नौकरशाही सगु मता के पृष्ठभूमि और पूरे आंदोलन मेें की गईं कार््रवाइयााँ
रूप मेें नहीीं, बल््ककि भारतीय राष्टट्रवाद के लिए एक चनु ौती के रूप मेें देखा। उन््होोंने
z विभाजन विरोधी अभियान: स््वदेशी आदं ोलन, विभाजन विरोधी अभियान
इसे बंगाली संस््ककृति और भाषा पर हमला भी माना।
के रूप मेें उभरा, जो बंगाल को विभाजित करने के ब्रिटिश निर््णय के जवाब मेें
z राष्टट्रवादी आंदोलन के आधार को विखंडित करना: कर््जन के शब््दोों मेें, शरूु किया गया था।
इसका उद्देश््य "कलकत्ता को आदं ोलन के मख्ु ्य केें द्र से अलग करना था” क््योोंकि z स््वदेशी आंदोलन: सदी के अतं मेें स््वदेशी आदं ोलन की शरुु आत ने भारतीय
कलकत्ता उस समय कांग्रेस और राष्टट्रवादी आदं ोलन का एक प्रमख ु केें द्र था। राष्ट्रीय आदं ोलन मेें एक महत्तत्वपर््णू प्रगति को चिह्नित किया।
रिस्ले (भारत सरकार के गृह सचिव, 1904) z विभाजन का दिन: 16 अक््टटूबर, 1905 को बंगाल का विभाजन हुआ और इसे
बंगाल एकजुट है, तो ताकतवर है। विभाजित बंगाल कई अलग-अलग ‘शोक दिवस’ के रूप मेें मनाया गया।
तरीकोों से आगे बढ़़ेगा। हमारे मख्ु ्य उद्देश््योों मेें से एक है अपने शासन के z हिंदू मुस््ललिम एकता: हिदं -ू मस््ललिम
ु सद्भाव के साथ-साथ बंगाली एकता के
प्रमख
ु विरोधियोों के समहू को विभाजित करके कमजोर करना। संकेत के रूप मेें राखियाँ बाँधी गई।ं लोगोों ने पवित्र जलधाराओ ं मेें स््ननान किया।
z कांग्रेस के भीतर फूट: विभाजन ने कांग्रेस के भीतर भी फूट पैदा कर दी, क््योोंकि z राष्टट्रगान और गीत: लोगोों ने वदं मे ातरम गाकर एकता का सदं श े दिया। टैगोर
नरमपंथियोों ने विभाजन के विरोध मेें प्रदर््शन और अभियान को के वल बंगाल ने बंगाल विभाजन की पृष्टभमि ू पर ‘आमार सोनार बांग््लला’ की रचना की, जो
तक सीमित रखने की कोशिश की। 1971 ई. मेें बांग््ललादश
े का राष्टट्रगान बना।
z राष्टट्रव््ययापी आंदोलन: दसू री ओर, गरमपंथियोों ने एक राष्टट्रव््ययापी आदं ोलन z तिरंगा झंडा: बंगाल मेें स््वदेशी आदं ोलन के दौरान एक तिरंगा झडं ा (लाल,
शरू
ु करने और स््वदेशी आदं ोलन की स््थथापना करके अपना प्रभाव महससू हरा और पीला) विकसित किया गया था। इसमेें ब्रिटिश भारत के आठ प््राांतोों
कराने की कोशिश की। का प्रतिनिधित््व करने के लिए आठ कमल तथा हिदं ओ ु ं एवं मसु लमानोों का
प्रतिनिधित््व करने के लिए एक अर्दद्धचद्रं शामिल था।
विभाजन पर राष्टट्र वादी प्रतिक्रिया
z प्राचीन गौरव की पुनर्प्राप्ति: भारतीयोों ने अपने अतीत की महान उपलब््धधियोों
z बढ़ता तनाव: इससे दोनोों पक्षषों के बीच तनाव बढ़ गया, जो 1906 ई. के कांग्रेस को खोजने के लिए समय मेें पीछे मड़ु कर देखना शरू ु किया। उन््होोंने उस अद्भुत
अधिवेशन मेें समाप्त हुआ, जब दादाभाई नौरोजी को अध््यक्ष चनु कर टकराव को समय के बारे मेें प्रचार-प्रसार करना शरू ु किया, जब कला और स््थथापत््य, विज्ञान
टाला गया (उन््हेें दोनोों गटोु ों ने सम््ममान दिया और परिणामस््वरूप, तिलक- एक और गणित, धर््म और संस््ककृति, काननू और दर््शन तथा शिल््प और व््ययापार
गरमपंथी नेता, ने भी उनके नाम पर सहमति जताई), हालाँकि, वे प्रारंभ से ही फल-फूल रहे थे।
अध््यक्ष पद के लिए प्रबल दावेदार थे। z आयात पर प्रतिबंध: आदं ोलन के दौरान कई बार विदेशी वस्त््रों की माँग मेें
गिरावट आई। मैनचेस््टर फै ब्रिक और लिवरपल ू नमक के बहिष््ककार की व््ययापक
नोट:
रूप से वकालत की गई।
z मानवतावादी कवि-दार््शनिक रवीींद्रनाथ टैगोर ने लॉर््ड कर््जन की सरकार
के लिए एक आक्रोशपर््णू अलंकारिक चनु ौती पेश की, जिसने 1905 ई. z स््वयंसेवकोों का दल: गरमपंथियोों ने स््वयंसेवकोों के दल या समितियोों का भी
मेें बंगाल को विभाजित करने की योजना बनाई थी। आयोजन किया। बंगाल मेें अश्विनी कुमार दत्त की ‘स््वदेश बांधव समिति’ इसका
z यह मधरु गीत आक्रोश और दृढ़ सक ं ल््प दोनोों को व््यक्त करता है- उदाहरण है। इससे राजनीतिक चेतना के प्रसार मेें सहायता मिली।
उपनिवेशीकृ त जनता दमनकारी औपनिवेशिक सरकार का सामना करने महत्त्वपूर््ण तथ्य:
और उसके पक्षपातपर््णू फै सलोों को उलटने के लिए तैयार थी, जो अपनी
z आयातित सतू ी माल की मात्रा मेें गिरावट: अगस््त, 1905 और सितंबर,
सत्ता के मद मेें चरू थी।
1906 के बीच आयातित सतू ी माल की मात्रा मेें 22%, सतू ी रस््ससी और
स्वदेशी आंदोलन (1905) धागे मेें 44%, नमक मेें 11%, सिगरे ट मेें 55% और जतू े-जतू ी मेें 68%
की गिरावट आई।
अगस््त, 1905 मेें कलकत्ता टाउन हॉल असेेंबली मेें एक बहिष््ककार प्रस््तताव पारित
z देशी विद्रोह से कहीीं अधिक: बहिष््ककार आदं ोलन एक 'देशी विद्रोह' से
किया गया और स््वदेशी आंदोलन आधिकारिक तौर पर शरू ु किया गया। कहीीं अधिक था, जिसने यरू ोपीय उत््पपादोों को खारिज कर दिया।
बाल गंगाधर तिलक आंदोलन का नेतत्व
ृ
स््वराज या स््वशासन, स््वधर््म के पालन के लिए आवश््यक है। स््वराज के z नेतृत््व: नरमपंथियोों, विशेष रूप से सरेु ें द्रनाथ बनर्जी, कृ ष््ण कुमार मित्रा और
बिना, कोई सामाजिक सुधार नहीीं हो सकता, कोई औद्योगिक प्रगति नहीीं पी. सी. रे ने प्रारंभिक नेतत्ृ ्व प्रदान किया। आदं ोलन के दौरान नरमपंथी और
हो सकती, कोई शिक्षा उपयोगी नहीीं हो सकती और राष्ट्रीय जीवन की कोई गरमपथं ी दोनोों ने मिलकर काम किया।
पूर््तति नहीीं हो सकती। यही हम चाहते हैैं, यही कारण है कि ईश्वर ने हमेें उसे
z पंजाब: पजं ाब मेें आदं ोलन का नेतत्ृ ्व अजीत सिहं और लाला लाजपत राय
परू ा करने के लिए दनि ु या मेें भेजा है। ने किया।
रवैये और नीति मेें बदलाव का भी संकेत दिया। z स््वतंत्रता पर अंकुश: आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम ने पत्रकारिता की
स््वतंत्रता पर गंभीर रूप से अक ं ु श लगा दिया।
z सध ु ारोों के लिए प्रेरणा: सरू त विभाजन, 1909 के मॉर्ले-मिटं ो सधु ार के लिए
बिना मुकदमे के निर््ववासन: 1897 ई. मेें नाटू बंधओ ु ं की गिरफ््ततारी और
प्रेरणा था।
निर््ववासन, यहाँ तक कि उनके विरुद्ध आरोपोों को सार््वजनिक किए बिना की
सूरत विभाजन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को गरमपंथियोों और नरमपंथियोों
घटना ने जनता को नाराज कर दिया।
मेें विभाजित कर दिया, जिससे पार्टी की स््वतंत्रता की लड़़ाई कमजोर हो गई।
तिलक को कै द कर लिया गया: उसी वर््ष सार््वजनिक आक्रोश भड़काने
गरमपंथियोों को प्रमख ु ता मिली, जिससे कांग्रेस अधिक उग्रवादी दृष्टिकोण की ओर
के लिए तिलक और अन््य अखबार संपादकोों को जेल की सजा सनु ाई गई।
बढ़़ी। फूट ने सरकारी नीति मेें बदलाव का संकेत दिया और 1909 के मिंटो-मॉर्ले
सुधारोों को प्रेरित किया। विभाजन को एक राष्ट्रीय आपदा के रूप मेें देखा जाता है, z राजनीतिक चेतना: राजनीतिक ज्ञान के प्रसार ने भारतीयोों को यह एहसास
जिससे राष्ट्रीय आंदोलन अस््थथायी रूप से रुक जाता है। गरमपंथियोों के क््राांतिकारी कराया कि ब्रिटिश शासन भारत के लिए फायदेमदं नहीीं था और इसके
प्रयासोों ने लोगोों को अंग्रेजोों के विरुद्ध नई आशा दी। आठ वर्षषों के बाद 1916 ई. मेें परिणामस््वरूप ‘व््हहाइट मैन््स बर््डन सिद््धाांत’ को अस््ववीकार कर दिया गया।
नरमपंथी और गरमपंथी लखनऊ मेें फिर से एकजुट हुए, जिससे स््वतंत्रता आंदोलन तात्कालिक कारण
की गति बहाल हुई। z बंगाल का विभाजन: कर््जन के शासनकाल के दौरान बंगाल का विभाजन
उग्रवादी एवं क्ररांतिकारी राष्टट्र वाद का उदय हुआ और यह भारतीय मक्ति ु संग्राम के इतिहास मेें महत्तत्वपर््णू क्षणोों मेें से एक
गरमपंथियोों या उग्रवादियोों का उत््थथान उल््ललेखनीय रूप से भारत मेें राष्टट्रवाद के बन गया।
उदय के कारणोों के समान हैैं। तिलक, अश्विनी कुमार दत्त और अन््य नेता शरू ु z अन््य घटनाएँ: जैसे नगरपालिका अधिनियम और दिल््लली दरबार, ने सार््वजनिक
से ही उग्र राष्टट्रवाद प्रसारित करने मेें शामिल रहे। स््वदेशी आंदोलन का नेतत्ृ ्व आक्रोश को बढ़़ावा दिया।
नरमपंथियोों से बिपिन चंद्र पाल, अरबिंदो घोष, तिलक जैसे और अन््य उग्रवादियोों z प्रारंभिक उग्रवादी राष्टट्रवादियोों की विफलता: वे आदं ोलन को स््पष्ट दिशा
के पास स््थथानांतरित हो गया। देने मेें विफल रहे। वे आम जनता तक पहुचँ ने मेें भी असफल रहे।
सदस््योों को अभी भी अप्रत््यक्ष रूप से चनु ा गया था और परिषदोों के पास कोई z आर््थथिक दुर््दशा: यद्ध ु के बाद आर््थथिक स््थथिति खराब हो गई। यद्ध ु के दौरान
वास््तविक शक्तियाँ नहीीं थीीं, जैसे बजट बहस, हालाँकि, अब उन््हेें प्रस््तताव फलने-फूलने वाले उद्योग को अब बंद होने और उत््पपादन मेें गिरावट का सामना
पारित करने की अनमति ु थी। करना पड़़ा।
z भारतीयोों का सीमित सघ ं : वायसराय और गवर््नरोों की कार््यकारी परिषदोों के z नकारात््मक पारस््परिकता: यद्ध ु के दौरान किए गए वादोों की अवहेलना की
साथ। सत््ययेन्दद्र प्रसाद सिन््हहा (एसपी सिन््हहा) वायसराय की कार््यकारी परिषद मेें गई और साम्राज््यवाद को बढ़़ावा दिया गया। जबकि उपनिवेशोों को लोकतंत्र
काननू ी सदस््य के रूप मेें नियक्त ु होने वाले पहले भारतीय थे (सख्ं ्यया एक तक का वादा किया गया था, बदले मेें उन््हेें एक घटिया सौदा मिला। पर््वू मेें पराजित
सीमित थी)। राष्टट्ररों के उपनिवेशोों को यद्ध
ु परु स््ककार के रूप मेें विजेताओ ं के बीच वितरित
z सीमित मताधिकार: मताधिकार पहली बार पेश किया गया था। हालाँकि,
कर दिया गया था।
यह प्रतिबंधित था क््योोंकि महिलाओ ं को मतदान का अधिकार नहीीं था और z असतं ोष: यद्ध ु के बाद राष्ट्रीय नेता सरकार के कार्ययों से असंतष्टु थे। 1919
यह अन््य तरीकोों से भी सीमित था। का भारत सरकार अधिनियम अत््ययंत असफल था।
1909 ई. के सुधारोों ने देश के नागरिकोों को वास््तविक सुधारोों के बजाय आभासी z क्रोधित मुसलमान: सेव्रेस की संधि के बाद ओटोमन साम्राज््य के साथ
सधु ार प्रदान किए। लोग स््वशासन चाहते थे, लेकिन उन््हेें के वल ‘परोपकारी व््यवहार ने मस््ललिम
ु भावनाओ ं को जगाया तथा खिलाफत आदं ोलन और
निरंकुशता’ ही मिली। असहयोग के लिए जमीन तैयार की।
प्रथम विश्व युद्ध (1914 -1919): प्रभाव और प्रतिक्रियाएँ z ट्रे ड यूनियनोों का उदय: यद्ध ु के बाद ट्रेड यनिू यन भी विकसित हुए, 1920 मेें
एन. एम. जोशी के नेतत्ृ ्व मेें एटक (AITUC) की स््थथापना के साथ प्रारंभिक
प्रथम विश्व युद्ध (1914-1919) मेें जर््मनी, ऑस्ट्रिया-हगं री और तुर्की के विरुद्ध
प्रगति हुई।
ब्रिटेन, फ््राांस, रूस, संयुक्त राज््य अमेरिका, इटली और जापान के साथ शामिल
हो गया। गदर पार्टी और कामागाटामारू प्रकरण
प्रथम विश्व युद्ध की प्रतिक्रियाएँ
गरमपंथी गलत धारणा का समर््थन: उदाहरण के लिए- युद्ध के प्रयासोों प्रथम विश्व युद्ध और गदर आंदोलन
का समर््थन गलत धारणा मेें किया था कि ब्रिटेन भारत की z अवसर: विश्व यद्ध
ु ने गदर आदं ोलनकारियोों को ब्रिटिश अधिपतियोों के खिलाफ
वफादारी को आभार के रूप मेें स््वशासन (Swarajya) के विद्रोह करने का अवसर भी प्रदान किया।
साथ पुरस््ककृ त करे गा। z आप्रवासियोों का उपयोग: गदर आदं ोलन के नेताओ ं ने संयक्त ु राज््य अमेरिका
नरमपंथी समर््थन और पारस््परिकता की उम््ममीद: दसू री ओर, के पश्चिमी तट पर आप्रवासियोों को भारत लौटने और भारतीय सैनिकोों की
नरमपंथियोों ने सरकार के प्रति अपना समर््थन व््यक्त किया, मदद से एक सशस्त्र क््राांति शरू
ु करने के लिए प्रेरित किया। भारतीयोों को वापस
यह उम््ममीद करते हुए कि सरकार भी उनके प्रति नरम रुख लौटने के लिए मनाने के लिए कुछ नेताओ ं को सदु रू पर्ू वी देशोों मेें स््थथानांतरित
अपनाएगी। कर दिया गया।
परिदृश््य को जन््म दिया। कम आंकलन: मख् ु ्य दोष यह था कि उन््होोंने किसी भी हिसं क विद्रोह से
z सिगं ापुर से वैैंकूवर: कामागाटामारू उस जहाज का नाम था, जो 370 लोगोों पहले संगठनात््मक, बौद्धिक, वित्तीय और इसी तरह हर स््तर पर आवश््यक
को सिंगापरु से वैैंकूवर ला रहा था, जिनमेें ज््ययादातर सिख, पंजाबी और मस््ललिम
ु तैयारी की सीमा और मात्रा का परू ी तरह से कम आक ं लन किया था।
अप्रवासी थे। दो महीने की कठिनाई और अनिश्चितता के बाद, उन््हेें कनाडाई असग ं ठित: एक अन््य महत्तत्वपर््णू मद्ु दा संगठनात््मक ढाँचे की कमी है; गदर
अधिकारियोों द्वारा वापस भेज दिया गया। आदं ोलन उग्रवादियोों की खदु को संगठित करने की क्षमता से अधिक
z ब्रिटिश प्रभाव: यह व््ययापक रूप से माना जाता था कि कनाडाई अधिकारी उनके उत््ससाह के कारण कायम रहा।
ब्रिटिश प्रशासन से प्रभावित थे। सितंबर, 1914 ई. मेें जहाज ने अतं तः कलकत्ता दीर््घकालिक ने तृत््व का अभाव: गदर आद ं ोलन मेें एक मजबतू और
मेें लंगर डाला। बंदियोों ने पजं ाब जाने वाली ट्रेन मेें चढ़ने से इक
ं ार कर दिया। दीर््घकालिक नेतत्ृ ्व का भी अभाव था, जो आदं ोलन के विविध हिस््सोों
कलकत्ता के निकट बज बज मेें पलि ु स के साथ हुई झड़प मेें 22 लोग मारे गए। को एकजटु करने मेें सक्षम हो।
z क्रोधित गदर आंदोलनकारी: गदर नेता इससे क्रोधित हो गए और प्रथम अनदेखी: उन््होोंने इस बात को नजरअद ं ाज कर दिया कि कुछ हजार
विश्व यद्ध
ु की शरुु आत के साथ, उन््होोंने भारत मेें ब्रिटिश नियंत्रण को समाप्त असंतष्टु अप्रवासी भारतीयोों को एकजटु करना, जो पहले से ही गोरे
करने के लिए एक हिसं क हमला करने का संकल््प लिया। उन््होोंने सेनानियोों को विदेशियोों के हाथोों नस््ललीय उत््पपीड़न के कारण भावनात््मक रूप से प्रभावित
भारत की यात्रा करने के लिए प्रोत््ससाहित किया। थे तल ु नात््मक रूप से सरल था , जबकि भारत मेें लाखोों किसानोों और
गदर पार्टी और आंदोलन (1915) सैनिकोों को संगठित करने और प्रेरित करना बहुत मश््ककि ु ल था।
z गदर आदं ोलन, गदर पार्टी के क््राांतिकारी नेताओ ं द्वारा ब्रिटिश भारत पर हिसं क हालाँकि, यह राजनीतिक और सैन््य मोर्चचों पर ज््ययादा कुछ हासिल करने मेें विफल
हमला करने का एक प्रयास था। प्रथम विश्व यद्ध रहा क््योोंकि इसमेें संगठित और निरंतर नेतत्ृ ्व की कमी थी; संगठनात््मक, वैचारिक,
ु के प्रसार और कामागाटामारू
घटना ने गदर आदं ोलन को जन््म दिया। भारत भर मेें कई स््थथानोों पर हिसं क वित्तीय और सामरिक रणनीतिक - हर स््तर पर आवश््यक तैयारी की सीमा का
विद्रोह की तारीख 21 फरवरी, 1915 निर््धधारित की गई थी। कम करके आंकलन किया गया था और शायद लाला हरदयाल एक आयोजक
के काम के लिए अनुपयुक्त थे।
क््राांतिकारी: प्रथम विश्व यद्ध ु के दौरान क््राांतिकारियोों की संख््यया मेें भी वृद्धि
हुई। इनमेें से सबसे उल््ललेखनीय गदर पार्टी थी, जिसकी स््थथापना सैन होम रूल आंदोलन
फ््राांसिस््कको मेें लाला हरदयाल, सोहन सिहं भाकना, मोहम््मद बरकतल््लला ु ह होम रूल आंदोलन, प्रथम विश्व युद्ध के प्रति भारतीय प्रतिक्रिया थी, जो कम
और अन््य लोगोों ने मिलकर की थी। आक्रामक लेकिन अधिक प्रभावी थी। चँकि ू , लोग पहले से ही भारी कराधान
विस््ततृत प्रभाव: यह एक धर््मनिरपेक्ष पार्टी थी और इसका प्रभाव अन््य और मल््य
ू वृद्धि के कारण युद्धकालीन कठिनाइयोों का बोझ महसूस कर रहे थे,
एशियाई देशोों तक फै ल गया, जहाँ भारतीय रहते थे। तिलक और एनी बेसेेंट के नेतत्ृ ्व मेें अभियान काफी उत््ससाह के साथ शरू
ु हुआ
असफल प्रयास: जैसे ही प्रथम विश्व यद्ध
था। होमरूल लीग अभियान ने घरे लू शासन के माध््यम से स््वशासन का संदेश
ु शरू ु हुआ, गदर पार्टी ब्रिटिश
साम्राज््य के विरुद्ध लड़़ाई मेें शामिल हो गई। 21 फरवरी, 1915 विद्रोह आम आदमी तक पहुचँ ाने का प्रयास किया।
के दिन के रूप मेें नामित किया गया था, जो कि पजं ाब से शरू ु होने वाला आंदोलन की पृष्ठभूमि
था। हालाँकि, योजना को ब्रिटिश सीआईडी ने विफल कर दिया और गदर z 1909 के अधिनियम की निराशा: 1909 के अधिनियम की निराशा और
आदं ोलनकारियोों को पकड़ लिया गया, उन पर मक ु दमा चलाया गया और नरमपथियो
ं ों की प्रगति मेें विफलता के कारण एक नए आदं ोलन की नीींव रखी
कई लोगोों को फाँसी दे दी गई। गई थी।
1916 मेें भारत मेें होमरूल आदं ोलन शरू ु किया। आने वाले वर्षषों मेें मक्ति
ु आदं ोलन के नए मार््ग को आकार देने मेें मदद मिली।
z सहायता: बी. डब््ल्ययू. वाडिया और सी. पी. रामास््ववामी अय््यर ने उनके प्रयासोों इसने शहर और गाँवोों के बीच एक संगठनात््मक संबंध स््थथापित किया, जो बाद
मेें उनकी सहायता की। बाल गंगाधर तिलक ने एक और होमरूल आदं ोलन मेें महत्तत्वपूर््ण साबित हुआ, जब राष्ट्रीय आंदोलन अपने व््ययापक चरण मेें प्रवेश
चलाया और उत््ससाहपर््वू क उसका समर््थन किया। किया। इसने राष्ट्रीय आंदोलन को एक नया आयाम और तात््ककालिकता की
z स््वराज: तिलक ने पहल की और 1916 ई. मेें महाराष्टट्र होमरूल लीग आदं ोलन भावना प्रदान की।
शरू ु किया। होमरूल आदं ोलन के दौरान, तिलक ने घोषणा की, "स््वराज मेरा
लखनऊ समझौता (दिसंबर, 1916): महत्त्व और प्रभाव
जन््मसिद्ध अधिकार है और मैैं इसे लेकर रहूगँ ा।"
z नया राजनीतिक परिदृश््य: गांधी आदं ोलन मेें सक्रिय नहीीं थे क््योोंकि वे पिछले प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, तुर्की ने ब्रिटेन के विरुद्ध लड़़ाई लड़़ी; मसु लमानोों ने
वर््ष ही आए थे और अभी भी नए राजनीतिक परिदृश््य पर विचार कर रहे थे। तुर्की का समर््थन किया और वे अंग्रेजोों से क्रोधित हो गए। कांग्रेस भी स््वशासन
की माँग करते-करते ऊब चक ु ी थी।
आंदोलन का उद्देश्य
ए.सी. मजूमदार (काांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन के
z डोमिनियन स््टटेटस का दर््जजा प्राप्त करना: डोमिनियन स््टटेटस का दर््जजा प्राप्त
अध्यक्ष-1916)
करने के लिए, जैसा कि ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और न््ययूजीलैैंड जैसे अन््य
ब्रिटिश उपनिवेश करते हैैं। लगभग दस वर्षषों के अलगाव और गलतफहमी के जंगल और अप्रिय विवादोों
की भलू भलैया मेें भटकने के बाद... भारतीय राष्टट्रवादी पार्टी के दोनोों पक्ष
z राजनीतिक शिक्षा को बढ़़ावा: स््वशासन के लिए समर््थन उत््पन््न करने के
इस तथ््य को समझ गए हैैं कि मिलकर रहेेंगे तो मजबूत रहेेंगे, पर बंट जाएंगे
लिए राजनीतिक शिक्षा और बहस को बढ़़ावा देना।
तो गिर जाएंगे।
z भारतीयोों को प्रेरित किया: भारतीयोों को सरकार के दमन के विरुद्ध बोलने
के लिए प्रेरित करना। लखनऊ सत्र का महत्त्व
z ब्रिटिश सरकार पर दबाव: भारतीय राजनीतिक प्रतिनिधित््व बढ़़ाने के लिए z एकीकरण: सरू त विभाजन के बाद दस साल के अतं राल के बाद, इस सत्र मेें
ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालना। नरमपंथी और उग्रवादी दोनोों एकजटु हो गए।
z राजनीतिक गतिविधियोों को पुनर्जीवित करना: कांग्रेस पार्टी के सिद््धाांतोों z सर््वसम््मति: लखनऊ सत्र के दौरान, कांग्रेस और मस््ललिम
ु लीग ने आगे के
का पालन करते हुए भारत मेें राजनीतिक गतिविधि को पनु र्जीवित करना। लिए राजनीतिक सहमति स््थथापित करते हुए, लखनऊ संधि का गठन किया।
z नरसह ं ार: अप्रैल, 1919 मेें लोगोों के एकत्रित होने पर रोक लगाने वाले प्रतिबंधोों ब्रिटिश पलि ु स अधिकारी जे.पी. सांडर््स की हत््यया की गई, आजाद इस
के अनजाने उल््ललंघन के परिणामस््वरूप अमृतसर के जलियाँवाला बाग मेें हत््ययाकांड की योजना मेें शामिल थे।
नरसंहार किया गया। z क््राांतिकारी आदर्शशों का प्रचार: आजाद, भारत के यवु ाओ ं को स््वतंत्रता
मांटेग््ययू-चेम््सफोर््ड रिपोर््ट ने बाद मेें 1935 ई. के भारत सरकार अधिनियम और संग्राम के प्रति उत््ससाहित करने के लिए यवु ा कार््यकर््तताओ ं की भर्ती करने और
अंततः संविधान की नीींव के रूप मेें काम किया। इन परिवर््तनोों के परिणामस््वरूप समाजवादी आदर्शशों का प्रचार-प्रसार करने के इच््छछु क थे। वे झाँसी मेें
उत्तरदायी सरकार, स््वशासन और एक संघीय ढाँचे के आवश््यक विचार सामने क््राांतिकारियोों को प्रशिक्षण प्रदान करते थे और धीरे -धीरे यह क््राांतिकारी
आए। भारतीय संवैधानिक सुधारोों पर मांटेग््ययू-चेम््सफोर््ड रिपोर््ट का देश के गतिविधियोों का केें द्र बन गया।
बाद 'प््ललेग बोनस' जारी रखने की माँग की। गाांधी जी की प्रमुख विचारधाराएँ
महात््ममा गांधी का हस््तक्षेप: महात््ममा गांधी ने इस विवाद मेें हस््तक्षेप किया
z सत््य और अहिंसा: गांधीवादी विचारधारा के दो प्रमख ु तत्तत्व, सत््य और
और अहमदाबाद के श्रमिकोों और मिल मालिकोों के बीच मध््यस््थता की। अहिसं ा हैैं।
सत््य: गांधी जी के अनस ु ार वाणी और आचरण की सत््यता सापेक्ष सत््य
हड़ताल एवं वेतन वद्धि ृ समझौता: उन््होोंने कर््मचारियोों को हड़ताल पर
है, साथ ही पर््णू सत््य ही परम सत््य है। ईश्वर परम सत््य है (चकि ँू ईश्वर
जाने और वेतन मेें 35% वृद्धि की माँग करने की सिफारिश की। पहले भी सत््य है) और नैतिकता- नैतिक काननू और संहिता, इसकी नीींव है।
मजदरू 50% वेतन वृद्धि की माँग कर रहे थे। उन््होोंने आमरण अनशन अहिंसा: के वल शांतिपर््ण ू होने या हिसं ा प्रकटीकरण की कमी के बजाय,
किया और मिल मालिकोों ने मजदरोू ों को वेतन वृद्धि देने का फै सला किया। महात््ममा गांधी इसे सक्रिय प्रेम का प्रतिनिधित््व करने वाला मानते थे- जो
गांधी जी के प्रमुख सहयोगी: अनसय ू ा बहन सत््ययाग्रह के दौरान गांधीजी हर तरह से हिसं ा के विपरीत है।
की प्रमख ु सहयोगियोों मेें से एक थीीं। हालाँ कि, वह मिल मालिकोों मेें से एक z सत््ययाग्रह: गांधी जी ने अपनी व््ययापक अहिसं क कार््र वाई की रणनीति को
और गांधीजी के करीबी दोस््त अबं ालाल साराभाई की बहन थीीं। सत््ययाग्रह कहा। इसमेें प्रत््ययेक अन््ययाय, उत््पपीड़न और शोषण के विरुद्ध शद्धु तम
अहमदाबाद टे क््सटाइल ले बर एसोसिएशन: उन््होोंने मिल हड़ताल के आत््ममिक शक्ति को शामिल करना शामिल है।
दौरान 'अहमदाबाद टेक््सटाइल लेबर एसोसिएशन' की स््थथापना भी की। z अहिंसा अधिकार सरु क्षा का एक साधन: अहिसं ा अर््थथात दसू रोों को कोई
इसने गांधीजी को शहरी और औद्योगिक आधार प्रदान किया और उन््हेें नक ु सान पहुचँ ाए बिना व््यक्तिगत पीड़़ा के माध््यम से अधिकार हासिल करने
शहर मेें औद्योगिक संबंधोों की दिशा तय करने का श्रेय दिया जाता है। का एक साधन है।
z सर्वोदय: सर्वोदय एक गाँधीवादी सिद््धाांत है जिसका अर््थ है 'सार््वभौमिक
3. खेड़़ा या कै रा सत््ययाग्रह (1918)
उत््थथान' या 'सभी की प्रगति'। गांधी जी ने राजनीतिक अर््थव््यवस््थथा पर जॉन
किसानोों का समर््थन: उन््होोंने गज ु रात के खेड़़ा जिले के किसानोों का रस््ककिन के निबंध, "अनटू दिस लास््ट" के अनवु ाद के शीर््षक के रूप मेें इस
समर््थन करने के लिए एक सत््ययाग्रह का आयोजन किया। वाक््ययाांश को गढ़़ा।
फसल बर््बबादी और प््ललेग महामारी: फसल बर््बबाद होने और प््ललेग z स््वराज: यद्यपि, स््वराज शब््द का शाब््ददिक अर््थ ‘स््व-शासन’ है, गांधी जी
महामारी के कारण, खेड़़ा के किसान राजस््व का भगु तान करने मेें असमर््थ ने इसका आशय संपर््णू क््राांति से लगाया जो जीवन के सभी पहलओ ु ं को
थे और उन््होोंने इसे कम करने की माँग की। सम््ममिलित करती है।
बढ़़ा हुआ राजस््व: अनेक चन ु ौतियोों के बावजदू , ब्रिटिश सरकार ने राजस््व z सार््वजनिक स््वराज ही व््यक्तिगत स््वराज: गांधी जी के लिए, लोगोों का
मेें वृद्धि की। सरदार वल््लभ भाई पटेल और अन््य समर््पपित गाँधीवादियोों स््वराज व््यक्तिगत स््वराज (स््व-शासन) का कुल योग था, इसलिए उन््होोंने इस
बात पर जोर दिया कि स््वराज का मतलब उनके देशवासियोों के लिए स््वतंत्रता है।
ने ग्रामीण इलाकोों का दौरा किया, ग्रामीणोों को संगठित किया और उन््हेें
राजनीतिक नेतत्ृ ्व और दिशा प्रदान की। z ट्रस््टटीशिप सिद््धाांत: गांधी जी ने ट्रस््टटीशिप को एक सामाजिक आर््थथिक सिद््धाांत
के रूप मेें प्रस््ततावित किया।
आंदोलन को गुजराती बनाए रखने की प्राथमिकता: अहमदाबाद और
z न््ययासोों के ट्रस््टटी: यह अमीर लोगोों के लिए उन ट्रस््टोों के ट्रस््टटी के रूप मेें
वडोदरा के अनेक क््राांतिकारी गजु राती विद्रोह के आयोजकोों मेें शामिल सेवा करने के लिए एक तंत्र स््थथापित करता है जो लोगोों के सामान््य कल््ययाण
हो गए, लेकिन गांधी और पटेल ने आदं ोलन को परू ी तरह से गजु राती की देखभाल करते हैैं।
बनाए रखने को प्राथमिकता देते हुए, अन््य क्षेत्ररों से भारतीयोों की भागीदारी z स््वदेशी: स््वदेशी का तात््पर््य किसी के स््थथानीय समदु ाय के भीतर राजनीतिक
को रोक दिया। और आर््थथिक रूप से कार््य करने पर जोर देना है।
राजस््व माफी समझौता: एकजट ु विरोध का सामना करने के बाद, ब्रिटिश z सामुदायिक आत््मनिर््भरता हेतु कुटीर उद्योग: गांधीजी हस््तशिल््प उद्योगोों
सरकार एक समझौते पर पहुचँ ी और उस वर््ष और अगले वर््ष के लिए एवं अन््य कुटीर उद्योगोों का समर््थन करते थे, जो समदु ाय और आत््मनिर््भरता
राजस््व माफ कर दिया गया। के बीच एक महत्तत्वपर््णू कड़ी के रुप मेें था।
ही सेवा'। वर््तमान स््वच््छ भारत अभियान उनसे ही प्रेरित है। सांप्रदायिक दगों ों और संस््थथागत सधु ारोों जैसे कारकोों के कारण होमरूल
z व््यक्ति की आंतरिक स््वच््छता: हालाँकि, गांधीजी का स््वच््छता आदं ोलन लीग समाप्त हो गई।
के वल शारीरिक सफाई से कहीीं अधिक है और गांधीजी का मानना था कि यद्यपि, महात््ममा गांधी के आगमन से पहले की राजनीतिक गतिविधियोों ने राष्ट्रीय
व््यक्ति को मानसिक शारीरिक और आतं रिक सफाई पर अधिक ध््ययान देने की आंदोलन की नीींव रखी, लेकिन आंदोलनोों की गांधीवादी प्रकृ ति ने इसके चरित्र
आवश््यकता है। को ही बदलने का प्रयास किया।
z भ्रष्टाचार मुक्त समाज: गांधीजी का मानना था कि स््वच््छ भारत के लिए राष्ट् रीय आंदोलन मेें गाांधीजी का सकारात्मक प्रभाव:
स््वच््छ सड़कोों और शौचालयोों के अलावा, हमेें अधिक पारदर््शशिता और z राष्ट्रीय आंदोलन का जनसामान््य की ओर उन््ममुख होना: राष्ट्रीय आदं ोलन
जवाबदेही के साथ भ्रष्टाचार मक्त ु समाज की भी आवश््यकता है। का आधार जनसामान््य की ओर स््थथानांतरित हो गया। उदाहरण के लिए,
z स््थथिरता एवं अपरिग्रह: गांधीजी का मानना था कि "पृथ््ववी के पास सभी चपं ारण सत््ययाग्रह, खेड़़ा सत््ययाग्रह आदि ने किसानोों की दर््दु शा को उजागर किया।
मानवोों की आवश््यकताओ ं के लिए पर््ययाप्त संसाधन है, लेकिन एक मानव के z उपेक्षित वर्गगों (सबाल््टर््न) को मुख््यधारा मेें लाना: राष्ट्रीय स््वतंत्रता सग्राम
ं
लालच को परू ा करने के लिए भी पर््ययाप्त संसाधन नहीीं है।" मेें गांधी के आगमन ने अब तक के उपेक्षित वर्गगों को राष्ट्रीय आदं ोलन की
z नैतिक महत्तत्व: गांधीवादी सिद््धाांतोों का नैतिक और व््ययावहारिक महत्तत्व भी है मख्ु ्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया। जैसे, हरिजन अभियान; सविनय अवज्ञा
क््योोंकि मानव समाज के मल्ू ्योों मेें निरंतर गिरावट देखी जा रही है। आदं ोलन, असहयोग आदं ोलन आदि मेें महिलाओ ं की भमि ू का।
तैयारी के लिए कम समय होने के बावजदू बहुमत से पर््ययाप्त सीटेें हासिल की।
स्वराज पार्टी के गठन का कारण उसने प््राांतोों मेें गठबंधन सरकारेें भी बनाई ं और विधान सभाओ ं मेें महत्तत्वपर््णू
z असहयोग आंदोलन की समाप्ति का निर््णय: आदं ोलन वापस लेने के विषयोों को उठाया।
गांधीजी के फै सले से जनता नाराज हो गई। उनके फै सले की उनके सहयोगियोों z विधानमंडलोों से वापसी: 1925 मेें सी. आर. दास की मृत््ययु के बाद, स््वशासन
ने कड़़ी आलोचना की, जिनमेें मोतीलाल नेहरू, सी. आर. दास और एन. सी. सधु ारोों को लागू करने मेें सरकार की विफलता के जवाब मेें स््वराजवादियोों ने
के लकर, विट्ठलभाई पटेल, जी. एस. कपार्डे, एस. श्रीनिवास अयंगर और एम. विधानसभाओ ं से हटने का फै सला किया।
आर. जयकर शामिल थे, जिन््होोंने स््वराज पार्टी की स््थथापना की थी। z 'प्रतिक्रियावादी पार्टी ('रिस््पपॉन््ससिविस््ट पार्टी'): हालाँकि, अन््य सदस््योों
z कांग्रेस खिलाफत-स््वराज््य पार्टी: 1 जनवरी, 1923 को 'कांग्रेस खिलाफत- ने एक अलग पार्टी, 'रिस््पपॉन््ससिविस््ट पार्टी' मेें बने रहने और उसमेें शामिल होने
स््वराज््य पार्टी ' ने 'स््वराज पार्टी' की नीींव रखी। का चनु ाव किया, जो अभी भी अग्रेजो ं ों (लाजपत राय, मदन मोहन मालवीय,
z विधान परिषदोों मेें प्रवेश: इसके बाद इसने एक प्रतिबंधात््मक कार््यक्रम एनसी के लकर और एमआर जयकर) के साथ सहयोग का समर््थन करती थी।
प्रस््ततावित किया जो अपने सदस््योों को चनु ाव लड़कर विधान परिषदोों (1919 z चुनावी प्रदर््शन (1926): अन््य पार््टटियोों के सामदु ायिक अभियानोों, कमजोर
के मोोंटफोर््ड सधु ारोों के तहत स््थथापित) मेें प्रवेश करने के लिए प्रोत््ससाहित करे गा नेतत्ृ ्व, सत्ता-विरोधी लहर और अन््य कारकोों के कारण, पार्टी ने 1926 के
ताकि विधायिका को भीतर से समाप्त किया जा सके और नैतिक दबाव का चनु ावोों मेें उतना अच््छछा प्रदर््शन नहीीं किया जितना पहले किया था।
उपयोग करके प्राधिकरण को लोकप्रिय माँग स््वशासन को मानने के लिए
मजबरू किया जा सके । स्वराज पार्टी का मूल्ययांकन
z प्रो-चेेंजर््स और नो-चेेंजर््स: परिषद मेें प्रवेश के समर््थकोों को 'प्रो चेेंजर््स' के नाम z सार््वजनिक सरु क्षा विधेयक को हराना: हालाँकि, यह कुछ
से जाना जाता था और इसमेें सी. आर. दास, मोतीलाल नेहरू, हकीम अजमल अच््छछे काम करने मेें कामयाब रही, जैसे कि 1928 के सार््वजनिक
खान और एन. सी. के लकर शामिल थे। जबकि विरोधियोों को 'नो-चेेंजर््स' के सरु क्षा विधेयक को हराना, जिसने कम््ययुनिस््ट विचारधारा से प्रेरित
रूप मेें जाना जाता था और इसमेें वल््लभभाई, राजेेंद्र प्रसाद, विजयराघवचार््य विध््ववंसक तत्तत्ववों को निर््ववासित करने का प्रयास किया था। इसमेें
और सी. राजगोपालाचारी शामिल थे। बिना किसी मक ु दमे के किसी को गिरफ््ततार करने की अनमति ु
उपलब््धधियाँ
z
क््राांतिकारी भावना को बढ़़ावा दिया।
z मुस््ललिम समर््थकोों को अलग-थलग कर दिया गया: उन््होोंने z नवीन समाजवादी विचारधाराओ ं का उदय: आयोग के बाद, भगत सिंह
ग्रामीण हितोों के मस््ललिम
ु समर््थकोों को अलग-थलग कर दिया। और सभु ाषचद्रं बोस सहित यवु ा नेताओ ं की एक नई पीढ़़ी प्रमख ु ता से उभरी।
z बंगाली किसानोों की पीड़़ा के समक्ष असमर््थ: वे बंगाल के यवु ाओ ं के इस प्रवाह से नई समाजवादी विचारधाराओ ं का उदय हुआ।
किसानोों की पीड़़ा को कम करने मेें भी असमर््थ रहे।
राष्ट् रीय आंदोलन पर साइमन कमीशन की नियुक्ति का प्रभाव:
साइमन कमीशन (1928)
z समाजवादी तर््ज पर व््ययापक सामाजिक-आर््थथिक सध ु ार: इसने न के वल
z परिचय: राष्टट्रवादी आदं ोलन की प्रतिक्रिया मेें गठित साइमन आयोग को भारत पर््णू स््वतंत्रता बल््ककि समाजवादी तर््ज पर व््ययापक सामाजिक-आर््थथिक सधु ारोों
मेें 1919 अधिनियम द्वारा सवि
ु धाजनक सवं ैधानिक प्रणाली के कामकाज की की माँग करने वाले क््राांतिकारी तत्तत्ववों को बढ़़ावा दिया।
जाँच करने और संशोधनोों के लिए सिफारिशेें करने का काम सौौंपा गया था। z सामूहिक कार््रवाई का आयोजन: जब साइमन कमीशन की घोषणा की गई,
साइमन कमीशन की स््थथापना नवंबर, 1927 मेें की गई थी और यह फरवरी, तो कांग्रेस को, जिसके पास कोई सक्रिय योजना नहीीं थी, उसे एक मद्ु दा मिल
1928 मेें भारत आया था।
गया जिस पर वह सामहि ू क कार््र वाई आयोजित कर सके ।
z शासन मॉडल की प्रगति की समीक्षा के लिए समिति: भारतीय आबादी ने
z भारतीय एकता की सभ ं ावनाएँ: भारतीय राजनेताओ ं को एक सर््वसम््मत
माँग की कि सरकार की बोझिल द्वैध शासन प्रणाली को संशोधित किया जाए
संविधान तैयार करने की लॉर््ड बर्के नहेड की चनु ौती को कई राजनीतिक समहोू ों
और भारत सरकार अधिनियम, 1919 मेें ही कहा गया था कि शासन मॉडल की
ने स््ववीकार कर लिया और इसलिए इस समय भारतीय एकता की सभं ावनाएँ
प्रगति की समीक्षा के लिए दस साल बाद एक समिति का गठन किया जाएगा।
उज््ज््वल दिखाई दीीं।
z एक भी भारतीय सदस््य नहीीं: भारत का भविष््य निर््धधारित करने वाले साइमन
कमीशन मेें एक भी भारतीय सदस््य को शामिल न किए जाने से भारतीयोों मेें नेहरू रिपोर््ट (1928)
विशेष नाराजगी थी और उन््होोंने स््वयं को अपमानित महससू किया। 'नेहरू रिपोर््ट' (1928) भारत के लिए एक प्रस््ततावित नए डोमिनियन संविधान
(स््वयं मेें कोई संविधान नहीीं) का प्रस््तताव करने वाला एक पेपर था। इसका मसौदा
साइमन कमीशन के तहत प्रमुख प्रस्ताव मोतीलाल नेहरू की अध््यक्षता वाली सर््वदलीय सम््ममेलन समिति द्वारा तैयार
z नए सविध ं ान की रूपरेखा: एक नए संविधान की रूपरे खा प्रस््ततावित किया गया था, जिसमेें उनके बेटे जवाहरलाल नेहरू सचिव थे। इस समिति मेें
की गई। नौ अन््य सदस््य थे, जिनमेें दो मस््ललिम
ु भी शामिल थे। हालाँकि, रिपोर््ट मेें पूर््ण
z द्वैध शासन व््यवस््थथा की समाप्ति: द्वैध शासन को समाप्त कर दिया स््वतंत्रता की वकालत नहीीं की गई थी, नेहरू रिपोर््ट मेें प्रस््ततावित संविधान मेें
जाना चाहिए और विधानमडं ल के प्रति जवाबदेह मत्रियो ं ों को सभी प््राांतीय भारत को ब्रिटिश राष्टट्रमंडल के भीतर प्रभत्ु ्व का दर््जजा देने का आह्वान किया गया
जिम््ममेदारियाँ सौौंपी जानी चाहिए। यह केें द्र मेें द्वैध शासन का कट्टर विरोधी था। था। बाद मेें इसके अधिकांश प्रस््तताव स््वतंत्र भारत के संविधान की बुनियाद बने।
इसने द्वैध शासन के बजाय एक जिम््ममेदार प््राांतीय सरकार की वकालत की।
z एक पूर््ण सघं ीय सघं का प्रस््तताव: इसने प्रस््ततावित किया कि एक पर््णू 'नेहरू रिपोर््ट ' (1928) की सिफारिशेें
संघीय संघ, जिसमेें ब्रिटिश भारत और रियासतेें दोनोों शामिल होों, एक 1. इसमेें डोमिनियन स््टटेटस का अनुरोध किया गया।
एकजटु , स््ववायत्त भारत के लिए एकमात्र दीर््घकालिक विकल््प था। 2. इसमेें अंततः भारत सरकार अधिनियम, 1935 के विपरीत, मौलिक
z मताधिकार का विस््ततार किया जाए: इसमेें प्रस््ततावित किया गया कि अधिकार संबंधी अधिकार-पत्र भी शामिल था।
मताधिकार का विस््ततार किया जाए और विधानमडं ल का विस््ततार किया 3. इसमेें अल््पसंख््यकोों के लिए अलग निर््ववाचक मंडल का कोई प्रावधान
जाए। नहीीं किया गया।
जिन्ना का चौदह सूत्री फॉर््ममूला नेहरू रिपोर््ट पर सरकार की निष्क्रियता और समान प्रभत्ु ्व की स््थथिति की किसी
भी माँग पर सहमत होने मेें विफलता के बाद, गांधीजी ने कांग्रेस और पूरे देश
z इसकी प्रतिक्रिया मेें, मोहम््मद अली जिन््नना ने 1929 मेें अपने चौदह सत्री ू के बीच बढ़ते असंतोष के बीच एक नई रणनीति की तलाश की।
फॉर््ममूले तैयार किए, जो स््वतंत्र अखडं भारत मेें भागीदारी के लिए मस््ललिम ु
समदु ाय की मख्ु ्य माँग बने। महात्मा गाांधी की मााँगेें
z 14-सत्ू रीय फॉर््ममूले के मुख््य बिंदु: z पूर््ण स््वराज की माँग: 31 जनवरी, 1930 को पर््णू स््वराज की माँग के तरु ं त
अलग-अलग चन ु ावी जिले होों। बाद, उन््होोंने ग््ययारह माँगोों (11 सत्री
ू य माँगोों) को रे खांकित करते हुए वायसराय
इरविन को एक पत्र सौौंपा।
केें द्रीय विधायिकाओ ं मेें 33% सीटेें मस ु लमानोों के लिए आरक्षित होों।
z माँगोों को व््ययापक बनाना: इसका उद्देश््य माँगोों को व््ययापक बनाना था ताकि
प््राांतोों के पास अवशिष्ट शक्तियाँ होों।
भारतीय समाज के सभी वर््ग उनसे जड़ु सकेें और एक देश व््ययापी अभियान
क्षेत्रीय स््ववायत्तता हो।
मेें शामिल हो सकेें ।
सघ ं मेें शामिल राज््योों की मजं रू ी के बिना केें द्र द्वारा कोई सवं ैधानिक z प्रमुख माँगेें: इनमेें अन््य बातोों के अलावा, पर््णू शराब बंदी, राजनीतिक कै दियोों
परिवर््तन न किया जाए। की रिहाई, विदेशी कपड़ों पर शल्ु ्क लगाना, आग््ननेयास्त्र लाइसेेंस जारी करना,
सेवाओ ं मेें मस््ललिमो
ु ों का पर््ययाप्त प्रतिनिधित््व हो। भमि ू राजस््व मेें 50% की कमी, भारतीय निर््ययात लाभदायक बनाने के लिए
पूर््ण स्वराज की मााँग (1929) रुपया स््टर््लििंग विनिमय अनपु ात मेें कमी, भारतीयोों के लिए तटीय नौवहन
z पष्ठृ भूमि: नेहरू रिपोर््ट के बाद, जिसमेें डोमिनियन स््टटेटस को उनकी माँग बताते संबंधी सवि ु धाएँ और नमक कर का उन््ममूलन शामिल था।
हुए उनकी उम््ममीदोों को खारिज कर दिया गया तत््पश्चात जवाहरलाल नेहरू, z सर््ववाधिक प्रेरक माँग: सबसे प्रेरक माँग नमक कर को रद्द करने की थी। नमक
सभु ाष चद्रं बोस और सत््यमर््ततिू ने सक्रियता दिखाई। एक ऐसी मल ू भतू आवश््यकता थी जिसका सेवन अमीर और गरीब दोनोों करते
z गतिरोध की स््थथिति: हालाँकि, मोतीलाल नेहरू और गांधी डोमिनियन स््टटेटस थे और यह सबसे महत्तत्वपर््णू खाद्य पदार्थथों मेें से एक था।
का दावा करके हासिल की गई उपलब््धधियोों को छोड़ने मेें झिझक रहे थे और z ब्रिटिश सत्ता का सर््ववाधिक दमनकारी चेहरा उजागर: महात््ममा गांधी ने,
उन््होोंने आग्रह किया कि सरकार उन््हेें एक वर््ष का समय दे। ब्रिटिश सत्ता के सबसे दमनकारी चेहरे को उसके नमक पर कर आरोपित करने
z उदारवादियोों का रुख: हालाँकि, इससे उदारवादियोों या जवाहर लाल और और इसके उत््पपादन पर सरकार के एकाधिकार के मद्ु दे के साथ उजागर किया।
अन््य लोगोों का हौसला कम नहीीं हुआ। प्रस्तावित 11 सूत्रीय मााँगोों पर भारतीय प्रतिक्रिया:
z पूर््ण स््वराज: दिसंबर, 1929 मेें जवाहरलाल नेहरू की अध््यक्षता मेें लाहौर z विरोधाभासी नीति: 11 सत्री ू य माँगोों को लेकर राष्टट्रवादी नेताओ ं मेें कुछ
कांग्रेस ने भारत के लिए 'पर््णू स््वराज' या पर््णू स््वतंत्रता की माँग को औपचारिक नाराजगी थी, जिसे वे स््वराज घोषणा के विरोधाभासी मानते थे, जो कि कुछ
रूप दिया। समय पहले ही जारी की गई थी।
z भारतीय ध््वज प्रदर््शन: 31 दिसंबर की अर्दद्ध रात्रि मेें जवाहरलाल नेहरू ने z औद्योगिक वर््ग का समर््थन: औद्योगिक वर््ग ने गांधीवादी माँगोों का परू े
रावी नदी के तट पर प्रथम बार भारतीय झडं ा फहराकर जश्न मनाया। दिल से समर््थन किया क््योोंकि वे उन््हेें अधिक आर््थथिक प्रकृ ति का मानते थे।
दिए और वन निवासियोों ने कई स््थथानोों पर वन नियमोों को तोड़ दिया, लकड़़ी से उनका क््यया तात््पर््य है। गांधी जी ने उन््हेें शांतिपर््णू तरीके से
इकट्ठा करने और पशओ ु ं को चराने के लिए आरक्षित वनोों मेें प्रवेश किया। अग्रेजो
ं ों का विरोध करने के लिए प्रोत््ससाहित किया।
z व््ययापक बहिष््ककार: शराब की दक ु ानोों के व््ययापक बहिष््ककार के विरोध मेें ताड़ z व््ययापक भागीदारी के साथ समान उद्देश््य: इसका उद्देश््य माँगोों
के पेड़ों को काट दिया गया। को व््ययापक बनाना था ताकि भारतीय समाज के सभी वर््ग उनके
z खुदाई खिदमतगार आंदोलन: खान अब््ददुल गफ््फफार खान ने उत्तर-पश्चिम साथ जड़ु सकेें और एक ही अभियान मेें शामिल हो सकेें ।
सीमा के प््राांतोों मेें खदु ाई खिदमतगार आदं ोलन प्रारंभ किया। z औद्योगिक वर््ग का समर््थन: औद्योगिक वर््ग ने गांधीवादी
z रानी गाईदिन््ल्ययू: मात्र 13 साल की उम्र मेें रानी गाईदिन््ल्ययू ने मणिपरु मेें माँगोों का परू े दिल से समर््थन किया क््योोंकि वे उन््हेें अधिक
गांधीजी के आह्वान पर सकारात््मक प्रीतिक्रिया जाहिर की परंतु उन््हेें आजीवन आर््थथिक प्रकृ ति का मानते थे।
कारावास की सजा सनु ाई गई और 1947 मेें उन््हेें रिहा कर दिया गया। z आंदोलन सभी सामाजिक समूहोों को लामबंद नहीीं कर
z चौकीदारी कर देने से मनाही: चौकीदार कर भगु तान न करने का अभियान सका: स््वराज की अमर््तू सक ं ल््पना, सभी सामाजिक समहोू ों को
देश के पर्वी ू हिस््ससे मेें चलाया गया। आकर््षषित न कर सकी।
z वन नियमोों का उल््ललंघन: दक्षिणी और मध््य क्षेत्ररों मेें भी वन नियम तोड़़े गए। z अछूत: ऐसा ही एक समहू देश का तथाकथित 'अछूत' वर््ग था,
z बारदोली सत््ययाग्रह (1928): सविनय अवज्ञा आदं ोलन से ठीक पहले पटेल जिसने 1930 के दशक मेें खदु को दलित या उत््पपीड़़ित कहना
ने बारदोली सत््ययाग्रह की शरुु आत की और यह सविनय अवज्ञा आदं ोलन के शरू
ु कर दिया था।
विफलताएँ
दौरान देश के अन््य हिस््सोों मेें एक आदर््श कर-मक्त ु अभियान बनकर उभरा। z मुसलमानोों की उदासीनता: खान अब््ददुल गफ््फफार खान के
z 'नो-रेवेन््ययू, नो रेेंट': उत्तर प्रदेश मेें 'नो-रे वेन््ययू, नो रेेंट' अभियान का एक और नेतत्ृ ्व वाले NWFP को छोड़कर, मसु लमान उदासीन रहे।
प्रकार देखने को मिला, जहाँ जमीींदारोों को नो-रे वेन््ययू आह्वान जारी किया गया नेताओ ं की सांप्रदायिक बयानबाजी के साथ-साथ उनकी माँगोों
था, जिन््हेें सरकार को राजस््व का भगु तान नहीीं करने का आह्वान किया गया पर सरकार की अनक ु ू ल प्रतिक्रिया से उनका ध्रुवीकरण हो गया।
था साथ ही किसानोों को नो-रेेंट आह्वान जारी किया गया था।
z सांकेतिक समर््थन: औद्योगिक वर््ग के वल हल््कका-फुल््कका
z जन लामबंदी रणनीतियाँ: प्रभात फे री और पत्रिका (अवैध अखबार) सहित समर््थन प्रदान कर रहा है।
कई सार््वजनिक लामबंदी रणनीतियोों का इस््ततेमाल किया गया। बच््चोों के लिए
z भागीदारी मेें कमी: किसानोों की भागीदारी बहुत कम रही।
वानर सेना और लड़कियोों के लिए मजं री सेना का गठन किया गया।
कृ त््योों मेें लगे हुए थे, गांधी ने विदेशी वस्त््रों को जलाया, अबं ेडकर ने जन सवं ाद व सच ं ार के तरीके : गांधी ने स््थथानीय भाषा मेें सवं ाद किया,
मनस्ु ्ममृति को जलाया, दोनोों (विदेशी वस्त्र और मनस्ु ्ममृति) गल ु ामी का जबकि अबं ेडकर ने अग्रें जी मेें संवाद स््थथापित किया। गांधीजी ने असहयोग,
प्रतीक थे। हड़ताल, सत््ययाग्रह का सहारा लिया, अबं ेडकर काननू और संवैधानिक
बदलाव मेें साझा विश्वास: मजबरू ी के बजाय शिक्षा के जरिए सामाजिक
तरीकोों के पालन की ओर झक ु े रहे।
और राजनीतिक बदलाव मेें साझा विश्वास किया। भारत सरकार अधिनियम, 1935
सामाजिक परिवर््तन के लिए धर््म के उपयोग की वकालत की।
इस अधिनियम के माध््यम से प्रमख ु राज््योों और प््राांतोों से मिलाकर एक अखिल
राज््य की सीमित सप्रभ ं ुता: व््यक्तिगत स््वतंत्रता की सरु क्षा के लिए राज््य
भारतीय संघीय ढाँचे की स््थथापना की जानी थी। रियासतोों के समावेश की कल््पना
की सीमित संप्रभु शक्ति का समर््थन किया।
प््राांतोों के बढ़ते राष्टट्रवाद के प्रतिसंतुलन के रूप मेें की गई थी।
शांतिपूर््ण विरोध का समर््थन: सामाजिक परिवर््तन के लिए, शांतिपर््ण ू
तरीकोों से विरोध करने की वकालत की। अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ
लोकतांत्रिक और शांतिपर््ण ू तरीकोों के माध््यम से सामाजिक सद्भाव z सघं वाद की स््थथापना: इसने भारत मेें संघवाद की स््थथापना की, जिसके घटक
और परिवर््तन पर जोर दिया गया। प्रमख ु राज््योों और प््राांतोों के साथ-साथ संघ सचू ी, राज््य सचू ी और समवर्ती सचू ी
z मतभेद या असमानताएँ थे। हालाँकि, रियासतोों ने इसे मजं रू ी नहीीं दी।
स््वतंत्रता और लोकतंत्र: गांधी जी जनसमर््थन के माध््यम से सत्ता से z प््राांतीय स््ववायत्तता: प््राांतोों मेें जिम््ममेदार सरकार की शरुु आत करते हुए प््राांतीय
आजादी छीनने और स््वशासन मेें विश्वास करते थे, जबकि अबं ेडकर शाही स््ववायत्तता से प््राांतीय द्वैध शासन को प्रतिस््थथापित कर दिया। राज््यपाल अब उन
शासकोों द्वारा दी जाने वाली आजादी की उम््ममीद करते थे। मत्रियो
ं ों की सलाह पर कार््य करने लगे थे जो प््राांतीय विधानमडं ल को रिपोर््ट
सस ं दीय प्रणाली पर विरोधाभासी दृष्टिकोण: अबं ेडकर ने संसदीय करते हैैं।
प्रणाली की वकालत की, जबकि गांधी के मन मेें इसके प्रति बहुत कम z द्विसदनीयवाद: ग््ययारह मेें से छह प््राांतोों मेें द्विसदनीयवाद लागू किया गया।
सम््ममान था, क््योोंकि उन््हेें नेताओ ं के प्रभत्ु ्व की सभं ावना का अदं ाजा था। z द्विसदनीय सघं ीय विधानमंडल: इसके तहत एक द्विसदनीय संघीय विधायिका
सामाजिक मुद्ददों के प्रति दृष्टिकोण: गांधी ने नैतिक कृ त््योों और प्रायश्चित का प्रावधान किया गया था जिसमेें (रियासतोों) राज््योों को असंगत महत्तत्व दिया
के माध््यम से अस््पपृश््यता को खत््म करने पर ध््ययान केें द्रित किया, जबकि गया था। इसके अलावा, राज््योों के प्रतिनिधियोों को लोगोों द्वारा चनु े जाने के
अबं ेडकर के लिए अस््पपृश््यता की समाप्ति का माध््यम काननू ी और बजाय सीधे शासकोों द्वारा नियक्त ु किया जाना था।
संवैधानिक उपचार से था। z बर््ममा को भारत से अलग किया गया: बर््ममा को भारत से अलग कर एक प््राांत
अब ं ेडकर छुआछूत को एक प्रमख ु सामाजिक समस््यया मानते थे, का दर््जजा दे दिया गया।
जबकि गांधी इसे कई चनु ौतियोों मेें से एक मानते थे। z सघं ीय स््तर पर द्वैध शासन की शुरुआत: संघीय/के न्द्रीय स््तर पर द्वैध शासन
जाति और हिंदू धर््म पर विचार: गांधी ने जाति और वर््ण के बीच अत ं र लागू किया गया और प््राांतीय स््तर पर समाप्त कर दिया गया।
किया, जाति को एक पतन के रूप मेें देखा, अबं ेडकर ने हिदं ू धर््मग्रंथोों और z गवर््नर-जनरल एवं प््राांतीय गवर््नरोों को आपातकालीन शक्तियाँ दी गई:ं
जाति व््यवस््थथा की निंदा की।
ब्रिटिश सरकार को गवर््नर-जनरल तथा गवर््नरोों की नियक्ु ति करनी थी। हालाँकि,
अब ं ेडकर ने हिदं ू एकता के विचार का विरोध किया, जबकि गांधी ने प््राांतीय गवर््नरोों को विशेष शक्तियाँ दी गई थीीं। उनके पास काननू पर वीटो करने
भारतीय एकता पर जोर दिया और इसके विभाजन के लिए ब्रिटिश की शक्ति थी, इसके अलावा, उन््होोंने सिविल सेवा और पलि ु स पर परू ा नियंत्रण
शासन को जिम््ममेदार ठहराया।
बनाए रखा।
साधन और साध््य: अब ं ेडकर ने उचित लक्षष्य के लिए उचित साधनोों का z पथ ृ क निर््ववाचन क्षेत्र: 1909 और 1919 के अधिनियमोों के तहत हिदं ओ ु ं और
समर््थन किया, जबकि गांधी ने लक्षष्य निर््धधारित करने के लिए साधनोों की
मसु लमानोों के लिए अलग-अलग निर््ववाचन क्षेत्ररों की स््थथापना की गई थी।
शद्धु ता पर जोर दिया।
z सीमित मताधिकार: ब्रिटिश भारत की कुल आबादी के के वल 14% (1/6)
मशीनीकरण के प्रति दृष्टिकोण: गांधीजी ने मशीनीकरण के
को वोट देने का अधिकार दिया गया था।
अमानवीय प्रभाव का विरोध किया, जबकि अबं ेडकर का मानना
था कि मशीनरी समाज को लाभ पहुचँ ा सकती है। z प्रमुख विभाग ब्रिटिश नियंत्रण मेें रहे: रक्षा और विदेशी मामले जैसे प्रमख ु
विभाग ब्रिटिश नियंत्रण मेें रहे, जबकि गवर््नर-जनरल को शेष विषयोों पर विशेष
कानून और सविध ं ान के प्रति दृष्टिकोण: गांधी जी ने न््ययाय के लिए
अन््ययायपर््णू काननोू ों की अवज्ञा का समर््थन किया और अबं ेडकर का झक अधिकार था।
ु ाव
काननू और संवैधानिकता के पालन की ओर था। z बजट पर मतदान: बजट पर मतदान करने की भी अनमति ु दी गई थी।
लोग मतदान कर सकते थे और केें द्रीय विधानसभा के लिए, जनसंख््यया के 1 समूह ‘सी’: बंगाल और असम को शामिल करे गा।
प्रतिशत से भी कम लोग मतदान के पात्र थे। मुख््य आयुक्त का प््राांत: तीन (दिल््लली, अजमेर- मारवाड़़ा और कूर््ग) समह ू
‘ए’ मेें शामिल होोंगे और एक (बलचिस््तता ू न) सम ह
ू ‘बी’ मेें शामिल होगा।
कैबिनेट मिशन (1946): महत्त्व और परिणाम
z रियासतेें: उन््हेें चर््चचा के माध््यम से केें द्रीय संविधान सभा मेें पर््ययाप्त प्रतिनिधित््व
परिचय: दिया जाएगा।
z कै बिनेट मिशन योजना भारतीय राजनीतिक दलोों और प्रतिनिधियोों के बीच z वापस लेने की शक्ति: तीन स््तरोों (सघं , समूह और प््राांत) पर सवि ं धान
किसी समझौते पर पहुच ँ ने मेें विफल रहने की प्रतिक्रिया मेें, कै बिनेट मिशन को अति ं म रूप दिए जाने के बाद प््राांतोों को किसी भी समहू से वापस लेने का
अधिकार होगा, लेकिन सघं से नहीीं। दस साल बाद, वे सभं ावित रूप से सवं िधान
और वायसराय लॉर््ड वेवेल ने 16 मई, 1946 को एक वक्तव््य जारी किया,
के प्रावधानोों पर फिर से विचार कर सकते हैैं।
जिसमेें देश के संवैधानिक भविष््य के लिए सिफारिशेें शामिल थीीं।
z स््वतंत्रता ही अंतिम उद्देश््य: चाहे ब्रिटिश राष्टट्रमडं ल के भीतर हो या बाहर,
z सदस््य: भारत के राज््य सचिव लॉर््ड पेथिक लॉरेेंस, व््ययापार बोर््ड के अध््यक्ष
स््वतंत्रता ही अति ं म उद्देश््य होगा।
सर स््टटैफोर््ड क्रिप््स और एडमिरल लॉर््ड या नौसेना प्रमख ु ए.वी. अलेक््जेेंडर
शामिल थे। महत्त्व:
z सवि ं धान सभा पर प्रभाव: "राज््य पत्र" के रूप मेें संदर््भभित इस योजना ने,
S.W.ER विशेष रूप से सघं वाद और नेहरू के उद्देश््य प्रस््तताव के सबं ंध मेें, सवं िधान सभा
पंजाब की प्रारंभिक बहसोों को महत्तत्वपर््णू रूप से प्रभावित किया।
बलूचिस््ततान z वैधता का स्रोत: योजना ने विधानसभा के लिए काननू ी वैधता के स्रोत के रूप
मेें कार््य किया, साथ ही मस्ु ्ललिम लीग को शामिल करने की संभावना के लिए भी
बंगाल असम
िसंध स््थथान आरक्षित किया। इसके अतिरिक्त विधानसभा ने अपनी वैधता को के वल
िबहार बंगाल
योजना से नहीीं बल््ककि भारतीय जनता से प्राप्त होने के रूप मेें पेश किया।
मध्य प्रदेश z अकादमिक महत्तत्व: कै बिनेट मिशन योजना भारतीय संविधानवाद, काननू ,
बंबई
राजनीति और इतिहास के विभिन््न पहलओ ु ,ं विशेष रूप से संघवाद और
विभाजन से संबंधित पहलओ ु ं की खोज करने वाले अकादमिक शोध के लिए
आवश््यक पठनीय सामग्री है।
z लॉर््ड वेवेल का दृष्टिकोण: लॉर््ड वेवेल के विचार भारत मेें घटते ब्रिटिश प्रभाव
को रे खांकित करते हैैं। वहीीं ब्रिटिश प्रतिष्ठा और अतीत की गति पर निर््भरता को
उजागर करते हैैं, जो दोनोों ही कम होते जा रहे थे।
मिशन की योजना:
स्वीकृति और अस्वीकृति
z त्रिस््तरीय सरं चना: भारत संघ के लिए कै बिनेट मिशन ने प््राांतोों और रियासतोों z 6 जनू और 24 जनू , 1946 को क्रमशः मस्ु ्ललिम लीग और कांग्रेस ने
के साथ त्रिस््तरीय लचीले सघं ीय ढाँचे की सिफारिश की। कै बिनेट मिशन द्वारा प्रस््ततावित दीर््घकालिक रणनीति का समर््थन किया।
z केें द्रीय शक्ति: सघं सरकार के वल विदेशी मामलोों, रक्षा और संचार के z जल ु ाई, 1946 मेें प््राांतीय विधानसभाओ ं मेें सवं िधान सभा के लिए
लिए प्रभारी होगी तथा उसके पास इन क्षेत्ररों के लिए आवश््यक धन जटु ाने का चनु ाव हुए।
अधिकार होगा। z 10 जल ु ाई, 1946 को नेहरू ने घोषणा की, "संविधान सभा मेें भाग लेने
z अवशिष्ट शक्ति: शेष सभी शक्तियाँ प््राांतीय सरकारोों को प्रदान की जाएगी, के हमारे निर््णय के अलावा हम किसी अन््य चर््चचा के लिए बाध््य नहीीं हैैं।”
जिनमेें से प्रत््ययेक को समहोू ों मेें संगठित होने की स््वतंत्रता होगी, उनकी अपनी z 29 जल ु ाई, 1946 को नेहरू की टिप््पणी के जवाब मेें लीग ने दीर््घकालिक
विधायिकाएँ और कार््यकारी शाखाएँ होोंगी तथा वे यह चनु सकेें गे कि किन रणनीति के प्रति अपनी स््ववीकृ ति वापस ले ली तथा पाकिस््ततान के निर््ममाण
प््राांतीय विषयोों का समाधान संयक्त ु रूप से किया जा सकता है। के लिए 16 अगस््त से "प्रत््यक्ष कार््रवाई" का आह्वान किया।
महिलाओ ं की अपरिहार््य भमि ू का को उजागर किया। परिस््थथितियोों से निपटती थी, जहाँ उनके पतियोों और बेटोों के कार्ययों के
कारण राष्टट्रवाद का संचार घरोों तक हो गया था।
राष्ट् रीय आंदोलन मेें महिलाओं
z सविनय अवज्ञा और दांडी नमक मार््च (1930 का दशक):
द्वारा निभाई गई भूमिका
जन-जागरूकता: सविनय अवज्ञा आद ं ोलन के दौरान महिला स््वयंसेवकोों
गाांधीवादी चरण से पहले महिलाओ ं की भूमिका ने प्रदर््शनोों, रै लियोों, विरोध प्रदर््शनोों और प्रभात फे रियोों मेें भाग लेकर
z प्रारंभिक चरण: जन-जागरूकता बढ़ाने मेें योगदान दिया।
ने तृत््व सभा ं ला: परुु षोों की गिरफ््ततारी के बाद, महिला संगठनोों ने सविनय
ब्रिटिश कर््नल मै ल््कम को गरु िल््लला यद्ध ु मेें भीमा बाई होल््कर ने हराया
था। उन््होोंने 1817 मेें अग्ं रेजोों के खिलाफ यद्धु का नेतत्ृ ्व किया था। अवज्ञा जारी रखने और बैठकेें आयोजित करने की जिम््ममेदारी संभाली।
रचनात््मक गतिविधियाँ: उन््होोंने गांधीवादी रचनात््मक कार््यक्रम को भी
कित्तूर की रानी चे न््नम््ममा और अवध की रानी बे गम हजरत महल
सहित कई महिलाओ ं ने 1857 के विद्रोह से बहुत पहले 19वीीं सदी मेें जारी रखा, जिसमेें निष्क्रिय प्रतिरोध के रूप मेें कपड़़ा बनन ु ा और उपवास
ब्रिटिश ईस््ट इडि करना शामिल था। उनमेें से कुछ को सेविका या स््ककाउट के रूप मेें जाना
ं या कंपनी के खिलाफ लड़़ाई लड़़ी थी।
जाता था।
महारानी वेलु नचियार (1730-1796) ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ
बहादरु ी से लड़़ाई लड़़ी और उन््हेें निर््णणायक रूप से पराजित किया। z नमक सत््ययाग्रह:
1930 के दशक मेें, नमक सत््ययाग्रह के दौरान कमलादेवी चट्टोपाध््ययाय
त्रावणकोर की रानी गौरी पार््वती बाई ने लड़कियोों की शिक्षा के महत्तत्व
पर ध््ययान केें द्रित किया, जिससे महिलाओ ं को सामाजिक और शैक्षणिक का नाम एक प्रमख ु चेहरे के रूप मेें सामने आया।
कलंक से उबरने मेें मदद मिली। सरोजिनी नायडू ने धरसाना नमक सत््ययाग्रह का ने तृत््व किया।
z प्रथम स््वतंत्रता सग्ं राम (1857-58): z महिलाओ ं की लामबंदी: आध्रं प्रदेश मेें करिश््ममाई नेता दर््गगा ु बाई ने गांधी जी
1857 के स््वतंत्रता संग्राम (महान विद्रोह) मेें महिलाओ ं ने सराहनीय
का भाषण सनन ु े के लिए एक हजार से अधिक देवदासियोों को एकत्र किया
भमिू का निभाई। हालांकि मथु ल ु क्ष्मी रे ड्डी, मार््गरे ट कजिन््स और सरोजिनी नायडू को जेल मेें
डाल दिया गया।
चौहान रानी, तपस््वविनी महारानी, रामगढ़ की रानी, रानी जिंदन कौर,
रानी तासे बाई, बैजा बाई जैसी महिलाओ ं ने अपनी साहसी सेनाओ ं z भारत छोड़़ो आंदोलन (1942)
उपनिवेशवादियोों ने उस समय के लगभग सभी प्रमख ु राष्ट्रीय नेताओ ं को
के साथ यद्ध ु का नेतत्ृ ्व किया।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी बहादरु ी और उत््ककृ ष्ट नेतत्ृ ्व के
एक के बाद एक गिरफ््ततार कर लिया।
महिलाओ ं ने 1942 मेें विरोध मार््च, हड़ताल और प्रदर््शन आयोजित करके ,
माध््यम से सच््चची देशभक्ति का उल््ललेखनीय उदाहरण पेश किया।
स््वदेशी आंदोलन: महिलाओ ं को हस््तशिल््प की ओर जैसे कपड़़े बनन गिरफ््ततारी का जोखिम उठाकर और उपनिवेशवाद विरोधी साहित््य वितरित
z ु े के
लिए प्रोत््ससाहित किया गया, आयातित वस््ततुओ ं के उपयोग से हतोत््ससाहित करके आदं ोलन को आगे बढ़़ाया।
सच ु ते ा कृ पलानी ने फै जाबाद मेें व््यक्तिगत सत््ययाग्रह की शरुु आत की और
किया गया, तथा शराब की दक ु ानोों को बंद कराने के लिए धरना अभियानोों मेें
भाग लिया गया। उन््हेें दो साल के लिए जेल मेें डाल दिया गया।
स्वतंत्रता आन्दोलनोों के दौरान महिलाओ ं का योगदान राष्ट् रीय आंदोलन के दौरान महिलाओ ं
के योगदान मेें गाांधीजी की भूमिका
z सामाजिक और महिला लामबंदी: कस््ततूरबा गांधी और सावित्री बाई फुले
जैसी महिला नेत्रियाँ सामाजिक ताने-बाने को बदलने के लिए आगे आई ं । z गांधी जी ने असहयोग आन््ददोलन के दौरान कहा था, " कोई भी यज्ञ
महिलाओ ं की भागीदारी के बिना अधरू ा रह जाता है।"
z क््राांतिकारी आंदोलन: भारतीय महिलाओ ं ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ
क््राांतिकारी आदं ोलनोों मेें भी भाग लिया, जैसे - कल््पना दत्ता ने चटगाँव z लक्ष्मीबाई से लेकर भीमा होल््कर तक, महिलाओ ं ने गांधी-पर््वू भारत के
स््वतंत्रता संग्राम के दौरान अदम््य साहस का परिचय दिया।
शस्त्रागार पर छापे मेें भाग लिया।
z बाद मेें, महिलाएँ नैतिकता और मातृत््व का आदर््श प्रतिनिधित््व बन गई।ं लेकिन
रानी गाइदिन््ल्ययू , जिन््हेें “नागा की रानी” के नाम से भी जाना जाता
गांधीजी के आगमन के बाद राष्टट्रवादी आदं ोलन मेें महिलाओ ं की भागीदारी
है, ने अग्ं रेजोों के खिलाफ नागा राष्टट्रवादी आदं ोलन का नेतत्ृ ्व किया।
मेें महत्तत्वपर्ू ्ण बदलाव आया।
प्रीतिलता वाद्देदार ने 1932 मेें पहाड़ताली यरू ोपीय क््लब पर सशस्त्र
फिक््ककी का गठन : इस प्रयास की परिणति 1927 मेें भारतीय वाणिज््य एवं उद्योग महासघ ं (फिक््ककी) के गठन के रूप मेें हुई, जिसमेें भारत के सभी भागोों
से बड़़ी संख््यया मेें तथा अधिकतम प्रतिनिधित््व शामिल था।
स््वतंत्रता आंदोलन के लिए वित्तपोषण: मद्रास राज््य की कांग्रेस शाखा को चिदब ं रम पिल््लई द्वारा वित्त पोषित किया गया था।
स््वदेशी हस््तशिल््प का विकास: आयातित वस््ततुओ ं का बहिष््ककार करने के बाद, पंज ू ीपति वर््ग ने कंपनियोों का विकास किया और विकल््प के रूप मेें स््वदेशी
वस््ततुओ ं का निर््ममाण किया।
बंगाली भाषा मेें भारत श्रमजीवी का प्रकाशन , साथ ही एनएम लोखडं े राष्ट् रीय आंदोलन के दौरान रियासतोों का योगदान
द्वारा "बॉम््बबे मिलहैैंड्स एसोसिएशन" की स््थथापना और मराठी पत्रिका z 1857 के विद्रोह के लिए समर््थन: झांसी, बरेली और जगदीशपुर जैसी
“दीनबंध”ु का प्रकाशन किया था। रियासतोों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ 1857 के विद्रोह मेें भाग लिया।
एकीकृ त हो गये। परिलक्षित हुआ। जवाहरलाल नेहरू, सभु ाष चन्दद्र बोस और अन््य
आन््ददोलनकर््तताओ ं ने सक्रिय रूप से मजदरोू ों और किसानोों को प्रभावित
राष्ट् रीय आंदोलन का विभिन्न
करने वाले मद्ददों
ु को उठाया।
विचारधाराओ ं के साथ सामाजिक विस्तार
मार््क््सवादी और साम््यवादी विचारधाराओ ं का प्रसार करते हुए परू े देश मेें
z राष्टट्रवादी क््राांति:
मजदरोू ों और किसानोों की पार््टटियाँ स््थथापित की गई।ं
क््राांतिकारियोों ने वैसे राष्टट्र की परिकल््पना की जैसा कि पर् ू ्ण स््वतंत्रता प्राप्ति
z सांप्रदायिकता:
के बाद होता।
असहयोग आद ं ोलन के वापस लिए जाने के बाद आन््ददोलनकर््तताओ ं को
उन््होोंने विशेष लक्षष्य के साथ व््ययापक संघर््ष के उत्प्रेरक के रूप मेें कार््य
निराशा और मोहभगं का अनभु व हुआ।
करने के लिए श्रमिकोों, छात्ररों और किसानोों को संगठित करने के लिए
इस दौरान हिद ं ू महासभा और लीग दोनोों ने फिर से उभार का अनभु व
लगन से काम किया।
किया। राष्टट्रवादियोों को देशद्रोही करार दिया गया क््योोंकि भय का मनोविज्ञान
काकोरी मेें ट्रेन डकै ती जैसी विभिन््न गतिविधियोों का उपयोग धन जट ु ाने धीरे -धीरे हावी होने लगा था।
के लिए किया गया।
कांग्रेस के नेता दबाव का विरोध करने मेें असफल रहे और उन््होोंने
यव ु ाओ ं को जोगेश चद्रं चटर्जी, सचिन सान््ययाल और भगत सिहं के नेतत्ृ ्व सांप्रदायिक या अर््ध-सांप्रदायिक रवैया अपना लिया।
वाली पंजाब नौजवान सभा द्वारा जागृत किया गया । सांप्रदायिकता के दो प्रमख ु सगठन
ं मुस््ललिम लीग और हिंदू महासभा
z गांधीवाद: थे।
गांधीवाद, सत््ययाग्रह और रचनात््मक कार््यक्रम के माध््यम से राष्ट्रीय संघर््ष z जाति आधारित आंदोलन:
के लिए जन आधार का विस््ततार किया गया । ये जाति आधारित अत््ययाचारोों की प्रतिक्रिया के रूप मेें उभरे । जस््टटिस पार्टी,
गांधीजी के नेतत्ृ ्व मेें कांग्रेस संघर््ष-विराम-संघर््ष के फार््ममूले के कारण भारत आत््मसम््ममान आदं ोलन और वायकोम सत््ययाग्रह जैसे आदं ोलनोों ने क्रू र
की ग्रामीण आबादी से जड़ु ने मेें सक्षम थी। जाति-आधारित प्रथाओ ं के बारे मेें जागरूकता पैदा की।
अत ं तः हाशिये पर पड़़े समाज के लोग भारतीय संघर््ष मेें शामिल हो गये। उन््होोंने अपनी राय व््यक्त करने और अपने अधिकारोों की मांग करने के
उदाहरण: मदि ं र प्रवेश के लिए आदं ोलन, हरिजन कल््ययाण, चपं ारण और लिए गोलमेज सम््ममेलनोों मेें भाग लिया।
खेड़़ा मेें किसानोों का विरोध, अहमदाबाद मिल मजदरोू ों का आदं ोलन आदि। z किसान:
z साम््यवाद: उत्तर प्रदेश, आध्र ं प्रदेश के रम््पपा क्षेत्र, राजस््थथान और बम््बई तथा मद्रास
श्रमिक वर््ग सामाजिक समानता प्राप्त करने के स््पष्ट उद्देश््य के साथ इस
के रै यतवाड़़ी क्षेत्ररों मेें काश््तकारी काननोू ों मेें सश
ं ोधन, कम किराया, बेदखली
आदं ोलन मेें शामिल हुआ। से सरु क्षा और कर््ज से राहत के लिए किसान आदं ोलन हुए । वल््लभभाई
पटेल (1928) ने गजु रात मेें बारदोली सत््ययाग्रह का नेतत्ृ ्व किया।
एमएन रॉय उस विचारधारा के प्रेरणास्रोत थे जिसने अनेक भारतीय
z श्रमिक वर््ग:
बद्धिज
ु ीवियोों को आकर््षषित किया, जिसके परिणामस््वरूप 1925 मेें भारतीय
बॉम््बबे मेें कपास मिल मजदरोू ों की हड़ताल (1919 और 1920) के माध््यम
कम््ययुनिस््ट पार्टी की स््थथापना हुई।
से, उन््होोंने असहयोग आदं ोलन मेें भाग लिया।
उन््होोंने मजदरू वर््ग को संगठित करने के बाद बम््बई, टिस््कको और दक्षिणी
1926 के ट्रेड यनि ू यन अधिनियम के काननू बनने के बाद उनकी सक्रियता
रे लवे मेें हड़तालेें आयोजित की।
बढ़ गई। सविनय अवज्ञा आदं ोलन के दौरान हुई श्रमिक हड़तालोों से अग्ं रेजोों
निसद ं हे स््वतंत्रता के सघं र््ष को इसने वैश्विक मचं तक पहुचँ ाया और को गंभीर झटका लगा और 1946 के भारतीय नौसेना विद्रोह मेें उनकी
अतं रराष्ट्रीय संगठनोों का समर््थन प्राप्त किया। व््ययापक भागीदारी से लाभ हुआ ।
(अग्ं रेजी मेें) का सम््पपादन किया, जो राष्टट्रवादी विचारोों और जन- आदं ोलन
z प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: के लिए मचं के रूप मेें कार््य करते थे।
जन््म: बाल गंगाधर तिलक का जन््म 23 जल ु ाई 1856 को महाराष्टट्र के तिलक की प्रभावशाली वाक् दक्षता तथा लेखन के माध््यम से आम लोगोों
रत््ननागिरी मेें एक मध््यम वर्गीय ब्राह्मण परिवार मेें हुआ था। से जड़ु ने की क्षमता ने स््वतंत्रता आदं ोलन के लिए जन-समर््थन जटु ाने मेें
शिक्षा: तिलक ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पण ु े के डेक््कन कॉलेज मेें प्राप्त मदद की।
की, जहाँ वे शिक्षा मेें उत््ककृ ष्ट थे और सामाजिक और राजनीतिक मद्दु दों मेें z सांस््ककृतिक और शैक्षिक पुनरुत््थथान मेें योगदान:
गहरी रुचि दिखाते थे। तिलक के अनस ु ार राष्टट्रवादी भावनाओ ं को बढ़़ावा देने के लिए भारतीय
ब्रह्म समाज का प्रभाव: अपने कॉले ज के दिनोों मेें वे ब्रह्म समाज द्वारा संस््ककृ ति और शिक्षा का अत््यधिक महत्तत्वपर्ू ्ण साधन थे।
प्रचारित सामाजिक सधु ार के विचारोों से बहुत प्रभावित हुए। वे समाज से तिलक ने गणेश चतर्थी ु के उत््सव को एक सार््वजनिक त््ययोहार के रूप मेें
जड़ु गए और सामाजिक एवं शैक्षिक गतिविधियोों मेें सक्रिय रूप से शामिल पनु र्जीवित करने और लोकप्रिय बनाने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि ू का निभाई और
हो गए। इसे राष्टट्रवादी उत््ससाह व््यक्त करने के एक मचं मेें बदल दिया ।
z भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मेें भूमिका: तिलक ने भारतीय संस््ककृ ति, साहित््य, संगीत और इतिहास के महत्तत्व पर
कांग्रेस मेें शामिल होना: तिलक 1890 मेें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मेें भी जोर दिया तथा भारतीय जनता मेें इसके प्रति गर््व और आत््मविश्वास
शामिल हुए और एक मुखर राष्टट्रवादी नेता के रूप मेें उभरे। की भावना को बढ़़ावा दिया।
z स््वदेशी और बहिष््ककार आंदोलनोों को बढ़़ावा देना: स््वशासन, आर््थथिक राष्टट्रवाद और सांस््ककृ तिक पन ु रुत््थथान पर उनके प्रयासोों
तिलक ने स््वदेशी आद ं ोलन को बढ़़ावा देने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाई, ने राष्ट्रीय आदं ोलन पर स््थथायी प्रभाव छोड़़ा।
जिसमेें उन््होोंने विशेष रूप से स््वदेशी उद्योगोों के समर््थन और ब्रिटिश 1884 मेें उन््होोंने डेक््कन एजक ु े शन सोसाइटी की स््थथापना की जिसका उद्देश््य
वस््ततुओ ं के बहिष््ककार का आह्वान किया गया था। भारतीयोों मेें शिक्षा और सांस््ककृ तिक जागरूकता को बढ़़ावा देना था।
उनका मानना था कि आर््थथिक राष्टट्रवाद और आत््मनिर््भरता भारत की ब्रिटिश शासन और कारावास का विरोध
प्रगति और स््वतंत्रता के लिए आवश््यक थे। z तिलक ने खल ु े तौर पर ब्रिटिश नीतियोों और प्रशासन की आलोचना की तथा
तिलक की नेतत्ृ ्व शक्ति और प्रेरक क्षमताओ ं ने जनता को संगठित करने ब्रिटिश शोषण को समाप्त कर भारतीय स््वशासन की स््थथापना का आह्वान किया।
मेें मदद की, जिससे स््वदेशी और बहिष््ककार आदं ोलनोों मेें व््ययापक भागीदारी z ब्रिटिश अधिकारियोों ने उन््हेें कई बार गिरफ््ततार किया, उन पर मक ु दमे चलाए
हुई, जिसका भारतीय अर््थव््यवस््थथा पर महत्तत्वपर्ू ्ण प्रभाव पड़़ा और ब्रिटिश और उन््हेें कारावास की सज़़ा दी, क््योोंकि वे उन््हेें अपने औपनिवेशिक शासन
सत्ता को चनु ौती मिली। के लिए एक बड़़ा ख़तरा मानते थे।
z होमरूल और स््वशासन की वकालत: z कारावास के बावजदू तिलक भारतीय स््वतंत्रता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर
1916 मेें तिलक ने भारत के लिए स््वशासन की मांग करते हुए अखिल अडिग रहे तथा राष्टट्रवाद और स््वतंत्रता के सिद््धाांतोों की रक्षा करते रहे।
भारतीय होमरूल लीग की स््थथापना की। तिलक की विचारधारा:
उनका उद्देश््य स््वशासन प्राप्त करने के साझा लक्षष्य के तहत विभिन््न क्षेत्ररों z तिलक की विचारधारा स््वशासन, सांस््ककृ तिक पनु रुत््थथान और राष्टट्रवादी उत््ससाह
और समदु ायोों के भारतीयोों को एकजटु करना था। के सिद््धाांतोों के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता से आकार लेती थी। उनके विचारोों
तिलक के प्रयासोों ने बाद के होमरूल आद ं ोलन की नीींव रखी, जो स््वतंत्रता और कार्ययों ने जनता को प्रेरित करने मेें मदद की और भिन््न-भिन््न माध््यमोों से
संग्राम का एक अभिन््न अगं बन गया। स््वतंत्रता आदं ोलन की गति मेें योगदान दिया।
राष्टट्रवादी भावनाओ ं को व््यक्त करने और भारतीय सांस््ककृ तिक पहचान की उन््होोंने भमि
ू पनु र््ववितरण और किसानोों के अधिकारोों के सरं क्षण सहित कृषि
मजबूत भावना पैदा करने के लिए गणेश चतुर्थी को एक सार््वजनिक त््ययोहार सधु ारोों की वकालत की।
के रूप मेें पुनर्जीवित किया। पटेल के प्रयासोों का उद्देश््य किसानोों को सशक्त बनाना, उनकी सामाजिक-
3. जन आंदोलन: तिलक स््वतंत्रता के लिए जनता को संगठित करने मेें आर््थथिक शिकायतोों का समाधान करना और स््वतंत्रता आदं ोलन मेें उनकी
विश्वास करते थे । तिलक ने राष्टट्रवादी विचारोों का प्रसार किया और अपने सक्रिय भागीदारी सनिश् ु चित करना था।
समाचार पत्ररों के सरी और मराठा के माध््यम से आम जनता को ब्रिटिश शासन z धर््म निरपे क्षता और सामाजिक सद्भाव:
से लड़ने के लिए प्रोत््ससाहित किया। पटेल के समावेशी दृष्टिकोण ने भारतीय स््वतंत्रता आद ं ोलन की शक्ति और
4. स््वदेशी और बहिष््ककार आंदोलन: उन््होोंने आर््थथिक राष्टट्रवाद की वकालत विविधता मेें योगदान दिया तथा एक धर््मनिरपेक्ष और बहुलवादी स््वतंत्र
की और भारतीयोों से ब्रिटिश वस््ततुओ ं का बहिष््ककार करने और स््वदेशी उद्योगोों भारत की नीींव रखी।
का समर््थन करने का आग्रह किया। z सविं धानवाद और लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता:
5. औपनिवेशिक दमन के खिलाफ़ प्रतिरोध: तिलक ने ब्रिटिश नीतियोों और पटेल संविधानवाद और लोकतंत्र के सिद््धाांतोों मेें दृढ़ विश्वास रखते थे।
उनके प्रशासन की खल ु कर आलोचना की , भारतीय संसाधनोों के शोषण उन््होोंने भारतीय संविधान के प्रारूपण मेें महत्तत्वपर्
ू ्ण भमि
ू का निभाई तथा यह
और भारतीय लोगोों को बुनियादी अधिकारोों से वंचित किये जाने का प्रतिरोध सनिश्
ु चित किया कि यह लोगोों की आकांक्षाओ ं को प्रतिबिंबित करे तथा
किया। उन््होोंने बंगाल विभाजन और भारी कर लगाने जैसे दमनकारी उपायोों एक लोकतांत्रिक और समावेशी राष्टट्र के लिए मजबतू आधार प्रदान करे ।
का सक्रिय रूप से विरोध किया। सरदार वल््लभभाई पटेल की विचारधारा एकता, अहिसं ा, मजबूत नेतत्ृ ्व और
तिलक की विचारधारा ने भारतीय स््वतंत्रता आंदोलन को राष्टट्रवाद, सांस््ककृ तिक सामाजिक सद्भाव पर केें द्रित थी। एकजुट और एकीकृ त भारत के उनके दृष्टिकोण
पनु रुत््थथान और जन- आंदोलन की भावना से भरकर उसे आकार देने मेें मदद ने, उनके रणनीतिक और संगठनात््मक कौशल के साथ मिलकर स््वतंत्रता
की। स््वराज और स््वशासन के सिद््धाांतोों के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता , साथ आंदोलन की सफलता मेें महत्तत्वपूर््ण भमि ू का निभाई।
ही सांस््ककृ तिक पहचान और आर््थथिक स््वतंत्रता पर उनके जोर ने ब्रिटिश जवाहरलाल नेहरू का योगदान -
औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर््ष के लिए एक मजबूत वैचारिक आधार आधुनिक भारत के निर्माता
प्रदान किया। z भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मेें नेतृत््व:
सरदार वल्लभ भाई पटेल की विचारधारा - नेहरू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मेें एक प्रमख ु नेता के रूप मेें उभरे और इसकी
भारत के लौह पुरुष नीतियोों और रणनीतियोों को आकार देने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि ू का निभाई।
उन््होोंने कई अवसरोों पर भारतीय राष्ट्रीय काग् ं सरे के अध््यक्ष के रूप मेें कार््य
z एकता और एकीकरण:
किया तथा स््वतत्रं ता सग्ं राम के लिए गतिशील नेतत्ृ ्व और स््पष्ट दृष्टि प्रदान की।
पटेल की विचारधारा विभिन््न रियासतोों की एकता और एकीकरण के
z आधुनिक भारत का दृष्टिकोण:
महत्तत्व पर आधारित थी। नेहरू ने एक ऐसे स््वतंत्र भारत की कल््पना की थी जिसमेें आधनि ु कता,
उदाहरण: पटेल ने स््वतंत्रता के बाद 500 से अधिक रियासतोों को भारतीय वैज्ञानिक सोच और औद्योगीकरण शामिल हो।
संघ मेें एकीकृ त करने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाई, जिससे भारत की क्षेत्रीय उन््होोंने राष्ट्रीय विकास के उत्प्रेरक के रूप मेें शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी
अखडं ता सनिश् ु चित हुई। के महत्तत्व पर बल दिया।
z अहिंसक प्रतिरोध और सत््ययाग्रह: नेहरू के दृष्टिकोण ने भारत के स््वतंत्रता-पश्चात औद्योगिकीकरण और
महात््ममा गांधी के अहिस ं ा के दर््शन से प्रेरित होकर, पटेल ने ब्रिटिश शासन भारतीय प्रौद्योगिकी संस््थथान (आईआईटी) जैसे वैज्ञानिक अनसु ंधान
को चनु ौती देने के साधन के रूप मेें सत््ययाग्रह (अहिंसक प्रतिरोध) के सस्ं ्थथानोों की स््थथापना की नीींव रखी।
सिद््धाांत को अपनाया। z पूर््ण स््वराज की वकालत:
उन््होोंने नमक सत््ययाग्रह और भारत छोड़़ो आद ं ोलन सहित विभिन््न अहिसं क नेहरू ने पर् ू ्ण स््वराज की मांग की। उन््होोंने 1929 मेें ऐतिहासिक लाहौर
आदं ोलनोों मेें सक्रिय रूप से भाग लिया और ब्रिटिश उत््पपीड़न के खिलाफ प्रस््तताव को अपनाने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाई, जिसमेें भारत मेें पर्ू ्ण
सविनय अवज्ञा को बढ़़ावा दिया। स््वतंत्रता और एक संप्रभु गणराज््य की स््थथापना की मांग की गई थी।
लोकतांत्रिक राष्टट्र के निर््ममाण के उनके प्रयासोों से चिह्नित है। जैसे देशोों से सहायता मांगी।
उनके नेतत्ृ ्व ने भारत की लोकतांत्रिक संस््थथाओ,ं धर््मनिरपेक्ष पहचान और बोस के प्रयासोों से भारतीय स््वतंत्रता संग्राम के बारे मेें वैश्विक जागरूकता
सामाजिक न््ययाय के प्रति प्रतिबद्धता की नीींव रखी। बढ़़ाने मेें मदद मिली और विभिन््न क्षेत्ररों से समर््थन प्राप्त हुआ।
नेहरू की दरू दृष्टि और राष्ट्रीय व अत ं रराष्ट्रीय एकीकरण व विकास संबंधी z राष्ट्रीय नायक के रूप मेें योगदान:
नीतियाँ आधनि ु क भारत के विकास और शासन को आकार दे रही हैैं। “जय हिंद” के नारे के साथ सभ ु ाष चद्रं बोस की अटूट प्रतिबद्धता और
उनके उग्रवादी दृष्टिकोण ने उन््हेें राष्ट्रीय नायक और आने वाली पीढ़़ियोों
सुभाष चंद्र बोस का योगदान - नेताजी के लिए प्रेरणा बना दिया।
z ब्रिटिश शासन के विरुद्ध अवज्ञा: स््वतंत्रता आंदोलन मेें बोस का योगदान हमेें ब्रिटिश शासन को चन ु ौती
सभ ु ाष चद्रं बोस ने भारत मेें ब्रिटिश शासन का कड़़ा विरोध किया और देने के लिए भारतीय नेताओ ं द्वारा अपनाई गई विविध रणनीतियोों की
स््वतंत्रता संग्राम मेें सक्रिय रूप से भाग लिया। याद दिलाता है।
अहिस ं क सविनय अवज्ञा आदं ोलन मेें सक्रिय भागीदारी। उद्यम के बीच संतल ु न स््थथापित करना था।
भारत की विदेश नीति मेें गटनि ु रपेक्ष सिद््धाांतोों की वकालत। मिश्रित अर््थव््यवस््थथा के दृष्टिकोण के माध््यम से आर््थथिक वृद्धि और विकास
शासन को उखाड़ फेें कना था। वो ब्रिटिश प्रतिष्ठानोों के खिलाफ क््राांतिकारी को बढ़़ावा देने के लिए भारतीय औद्योगिक आयोग का समर््थन किया।
कृ त््योों की योजना बनाने और उन््हेें अजं ाम देने सहित विभिन््न गतिविधियोों उदाहरण : इस पहल का उद्देश््य ब्रिटिश आयात पर निर््भरता को कम करना
z साहित््ययिक योगदान और सांस््ककृतिक पुनरुत््थथान: नायडू की कविताओ ं की पट्टियोों, चाँद, सितारोों और " वंदे मातरम " के साथ भारतीय ध््वज
और साहित््ययिक कृतियोों ने स््वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्टट्रवादी भावना जागृत को डिजाइन किया था।
करने और भारतीय संस््ककृ ति और विरासत को संरक्षित करने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि ू का 1907 मेें जर््मनी के स््टटुटगार््ड मेें समाजवादी बैठकोों के दौरान झड ं ा फहराया
निभाई। और फ्री इडि ं या सोसाइटी की स््थथापना की।