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MAINS WALLAH (STATIC + CURRENT)

स वल सेवा मु परी ा-2024 पर अं तम ‘ हार’

आधु नक भारत

वशेषताएँ
सम एवं सिं नोटस ्
ामािणक ोत से अ ितत आकड़ ँ े एवं त य
गणव
ु ू उ र लेखन के िलए मह वपण
ापण ू क -वडस

िवगत वष म पछेू गए के साथ समायोिजत
पारपं रक टॉिप स का समसामियक घटनाओ ं के साथ जोड़कर ततीकरण

िवषय सूची
‰ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन मेें प्रेस की भूमिका................................ 36
1. 18 वीीं शताब्दी का संक्र मण काल  1-10
‰ प्रेस के विकास का महत्तत्व......................................................... 36
‰ यूरोपीय लोगोों का आगमन��������������������������������������������������������� 1 ‰ भारत मेें सिविल सेवाओं का विकास........................................... 37
‰ भारत मेें पर्ु ्त गाली शासन����������������������������������������������������������� 1 ‰ ब्रिटिश शासन के अंतर््गत स््थथानीय निकायोों का विकास.................... 38
‰ 18वीीं सदी मेें भारत की सामाजिक-आर््थथि क और राजनीतिक स््थथिति����� 4 ‰ भारतीय राज््योों के प्रति ब्रिटिश नीति.......................................... 38
2. किसान, आदिवासी और अन्य आंदोलन  11-16 ‰ अंग्रेजोों की आर््थथि क नीतियाँ...................................................... 38
‰ राजस््व नीतियाँ, भारतीय कृ षि और ब्रिटिश शासन������������������������� 40
‰ प्रस््ततावना ........................................................................... 11
‰ भू-राजस््व प्रणाली का प्रभाव.................................................... 41
‰ किसान आंदोलन.................................................................. 12
‰ पारंपरिक कारीगर उद्योग का पतन और
‰ जनजातीय विद्रोह................................................................. 14
ग्रामीण अर््थव््यवस््थथा का कमजोर होना........................................ 42
‰ भारत मेें सैन््य विद्रोह.............................................................. 16
‰ अठारहवीीं शताब््ददी के मध््य से औपनिवेशिक
3. 1857 का विद्रोह  17-24 भारत मेें अकालोों की संख््यया मेें अचानक वृद्धि................................ 43
‰ 1857 के विद्रोह के मुख््य कारण������������������������������������������������ 17
‰ सामाजिक नीतियाँ................................................................. 44
‰ महात््ममा गांधी और रवीींद्र नाथ टैगोर के मध््य तुलना........................ 46
‰ विद्रोह मेें क्षेत्रीय विविधताएँ...................................................... 19
‰ 1857 के विद्रोह की विफलता के प्रमख
ु कारण.............................. 20 6. भारतीय राष्टट्र वाद का उदय 49-56
‰ विद्रोह के परिणाम................................................................. 20 ‰ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स््थथापना������������������������������������������ 51
‰ विद्रोह की प्रकृ ति................................................................... 22 ‰ नरमपंथी चरण के दृष्टिकोण और सीमाएँ (1885 -1905)................. 53
4. सामाजिक-धार््ममिक सुधार आंदोलन 25-32 7. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन- चरण-I (1905-1917)
‰ परिचय������������������������������������������������������������������������������� 25 55-66
‰ हिंदू सधु ार आंदोलन.............................................................. 26 ‰ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स््थथापना������������������������������������������ 51
‰ सिख सधु ार आंदोलन............................................................. 29 ‰ बंगाल का विभाजन (1905) और कर््जन की
‰ जाति आधारित शोषण के ख़़िलाफ़ संघर््ष..................................... 29 प्रतिक्रियावादी नीतियाँ (1899-1905)....................................... 55
‰ सामाजिक-धार््ममिक सधु ार आंदोलनोों की सामान््य विशेषताएँ.............. 31 ‰ गदर पार्टी और कामागाटामारू प्रकरण........................................ 61
5. भ
 ारत मेें ब्रिटिश नीतियोों का विश्लेषण (1757 से 8. भ
 ारतीय राष्ट्रीय आंदोलन -
1947 तक )  33-48 द्वितीय चरण (1918-1939)  67-83
‰ परिचय������������������������������������������������������������������������������� 25 ‰ गांधीवादी यगु की शरुु आत������������������������������������������������������� 67
‰ प्रशासनिक नीतियाँ................................................................ 33 ‰ स््वराज पार्टी (1923)............................................................. 73
‰ ब्रिटिश सर्वोच््चता का विस््ततार................................................... 33 ‰ सांप्रदायिक पंचाट (1932) और पूना समझौता (1933).................. 79
‰ भारत मेें ब्रिटिश विदेश नीति..................................................... 34 ‰ भारत सरकार अधिनियम, 1935.............................................. 81
‰ राष्टट्रवाद और भारतीय प्रेस...................................................... 35 ‰ 1937 का चनु ाव................................................................... 82

I
9. भ
 ारतीय राष्ट्रीय आंदोलन 10. भ
 ारतीय राष्ट्रीय आंदोलन मेें
तृतीय चरण (1939-1947)  84-92 विभिन्न वर्गगों की भूमिका  93-101
‰ द्वितीय विश्व यद्ध
ु और भारत: प्रभाव............................................ 84 ‰ राष्ट्रीय आंदोलन मेें महिलाओं द्वारा निभाई गई भूमिका������������������� 93
‰ अगस््त प्रस््तताव (1940).......................................................... 84 ‰ राष्ट्रीय आंदोलन मेें महिलाओं के योगदान की सीमाएँ .................... 94
‰ क्रिप््स मिशन (1942): महत्तत्व और परिणाम.................................. 85 ‰ भारतीय संविधान के निर््ममाण मेें योगदान देने वाली प्रमख
ु महिलाएँ...... 95
‰ भारत छोड़़ो आंदोलन (1942) या अगस््त क््राांति............................ 86 ‰ राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान उद्योगपतियोों का योगदान..................... 97
‰ सी. आर. फार््ममूला या राजाजी फार््ममूला और गांधी-जिन््नना वार््तता (1944)��� ‰ स््वतंत्रता संग्राम मेें रियासतोों की भूमिका...................................... 98
���������������������������������������������������������������������������������������� 86
‰ शिमला सम््ममेलन और वेवेल योजना (1945)................................ 87 राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख
‰ इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) या आजाद हिंद फौज और आईएनए व्यक्तित्व और उनका योगदान 102-110
मुकदमे: महत्तत्व ..................................................................... 87 ‰ बाल गंगाधर तिलक – द लॉयन ऑफ महाराष्टट्र ...........................102
‰ आरआईएन रेटिंग विद्रोह (रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह) (1946).......... 88 ‰ सरदार वल््लभ भाई पटेल की विचारधारा - भारत के लौह परुु ष........103
‰ द्वितीय विश्व यद्ध
ु और उसके बाद............................................... 89 ‰ जवाहरलाल नेहरू का योगदान - आधनि
ु क भारत के निर््ममाता...........103
‰ 1945 के चनु ाव.................................................................... 89 ‰ सभु ाष चंद्र बोस का योगदान - नेताजी .......................................104
‰ कै बिनेट मिशन (1946): महत्तत्व और परिणाम................................ 90 ‰ विचारधाराओं की तल
ु ना: जवाहरलाल नेहरू और सभु ाष चंद्र बोस.....105
‰ माउंटबेटन योजना (1947) या 3 जून योजना और विभिन््न हितधारकोों की
‰ विचारधाराओं की तुलना: जवाहरलाल नेहरू और महात््ममा गांधी.......105
प्रतिक्रियाएँ.......................................................................... 91
‰ विचारधाराओं की तुलना : सभु ाष चंद्र बोस और महात््ममा गांधी..........106
‰ 1940 के दशक मेें सत्ता हस््तताांतरण की प्रक्रिया को जटिल बनाने मेें ब्रिटिश
‰ भारतीय स््वतंत्रता संग्राम मेें डॉ. बी.आर. अंबेडकर का योगदान........106
साम्राज््यवादी शक्ति की भूमिका................................................. 91

 II
1 18 वीीं शताब्दी का संक्रमण काल

यूरोपीय लोगोों का आगमन भारत मेें पुर्ग


्त ाली शासन

अंग्रेजोों द्वारा भारत मेें औपचारिक प्रभत्ु ्व स््थथापित करने से पहले भी भारत और आरंभिक आगमन (1498-1509):
यूरोपीय देशोों के मध््य व््ययापार एक सामान््य बात थी। भारत और यूरोप के बीच z वास््कको-डी-गामा (1498): पहला कदम, व््ययापार प्रभुत््व- एकाधिकार
सीरिया, मिस्र और ऑक््सस घाटी के माध््यम से आर््थथिक संबंध थे। यूरोप मेें नियंत्रण के उद्देश््य से स््थथापित व््ययापारिक पोस््ट।
15वीीं शताब््ददी भमि z फ््राांसिस््कको डी अल््ममेडा (1505-1509): भारत मेें पहला पुर््तगाली
ू और समद्ु री मार्गगों की भौगोलिक खोजोों का समय था। एक
वायसराय: नौसैनिक प्रभत्ु ्व सनिश् ु चित करने के लिए ‘ब््ललू वाटर’ नीति लागू की।
इतालवी खोजकर््तता क्रिस््टटोफर कोलंबस ने 1492 ई. मेें अमेरिका की खोज की,
जबकि एक पुर््तगाली खोजकर््तता वास््कको-डी-गामा ने 1498 ई. मेें यूरोप से भारत अल्फफांसो डी अल्बुकर््क (1509-1515):
तक एक नया समद्ु री मार््ग खोजा। वह मालाबार तट पर कालीकट पहुचँ ा। यह z पुर््तगाली वर््चस््व के वास््ततुकार: रणनीतिक नियंत्रण, प्रमुख क्षेत्र और
स््थथानीय एकीकरण- हिदं महासागर का रणनीतिक नियंत्रण हासिल किया,
अवधि, जिसे प्रायः ‘अन््ववेषण का युग’ कहा जाता है, 15वीीं शताब््ददी के अंत
गोवा और भटकल पर कब््जजा किया, स््थथानीय स््तर पर निवास करने और शादी
मेें शरू
ु हुई और 19वीीं शताब््ददी तक विस््ततारित हुई। इसकी विशेषता मख्ु ्य रूप करने जैसी नीतियाँ लागू कीीं।
से यूरोपीय शक्तियाँ थीीं, जिनमेें पुर््तगाली, डच, अंग्रेज और फ््राांसीसी आदि थे, z साम्राज््यवाद की नीति: व््ययापारिक मार््ग और मसाले- व््ययापार मार्गगों को
जो भारत सहित एशिया के विभिन््न हिस््सोों मेें व््ययापार मार््ग और प्रभत्ु ्व स््थथापित नियंत्रित करने और मसाला स्रोतोों को सरु क्षित करने पर ध््ययान केें द्रित किया गया।
करने की कोशिश कर रहे थे। इन खोजोों ने भारतीय उपमहाद्वीप पर महत्तत्वपूर््ण z सपं ूर््ण भारत मेें विस््ततार: विभिन््न स््थथानोों पर पर््तगा
ु ली बस््ततियाँ स््थथापित कीीं।
सांस््ककृ तिक, आर््थथिक और राजनीतिक परिवर््तनोों के लिए मंच तैयार किया। नीनो डी कु न्हा के तहत एकीकरण (1529-1538):
यूरोपीय लोग भारत क्ययों आए: खोज के लिए उत्प्रेरक कारक z नीनो डी कुन््हहा (1529-1538): राजधानी का स््थथानांतरण और पूर््व की
भारत मेें यूरोपीय लोगोों का आगमन कोई आकस््ममिक घटना नहीीं थी। नए समद्ु री ओर विस््ततार- राजधानी को गोवा ले जाया गया तथा पश्चिमी तट से परे पर््तगा
ु ली
क्षेत्र के विस््ततार को पर्ू वी तटोों तक विस््ततृत किया गया।
मार्गगों की खोज के लिए कई प्रमख ु कारक थे:
z अवरुद्ध व््ययापार मार््ग : एशिया के लिए भमि ू मार्गगों को नियंत्रित करने वाले भारत मेें पुर््तगालियोों का योगदान:
ओटोमन््स ने यरू ोपीय लोगोों को सस््तते सामान और भारत सहित आकर््षक z चिकित््ससा: गार््ससिया दा ओर््टटा जैसे पर््तगा
ु ली विद्वानोों ने 1563 ई. मेें औषधीय
बाजारोों तक पहुचँ के लिए समद्ु री मार््ग खोजने के लिए मजबरू किया। जड़़ी-बटियोू ों पर पहला ग्रंथ लिखकर भारत के चिकित््ससा ज्ञान को समृद्ध किया।
z तंबाकू की खेती: भारत मेें तंबाकू की खेती शरू ु की गई, जिससे कृषि
z समुद्री मार््ग की खोज: डियाज और वास््कको-डी-गामा जैसे खोजकर््तताओ ं ने
पद्धतियोों मेें विविधता आई।
अरब प्रभत्ु ्व को दरकिनार करते हुए भारत के लिए समद्ु री मार््ग खोजा।
z प््रििंटिंग प्रेस: ​​साक्षरता और संचार को आगे बढ़़ाते हुए 1556 ई. मेें गोवा मेें
z शाही समर््थन: सशक्त शासकोों ने नई खोजोों को धन और प्रशस््तति के मार््ग के पहला प््रििंटिंग प्रेस स््थथापित किया गया।
रूप मेें देखा और अभियानोों को समर््थन दिया। z वास््ततुकला: दक््कन क्षेत्र मेें चर््च संबंधी वास््ततुकला को प्रभावित किया, जिसका
z तकनीक ने खोजोों को बढ़़ावा दिया: कंपास और एस्ट्रोलैब जैसे नेविगेशन उदाहरण पश्चिमी तट के साथ विस््ततृत मैनएु लाइन इमारतेें हैैं।
उपकरणोों मेें प्रगति ने लंबी यात्राओ ं को संभव बना दिया। भारत मेें डच शासन
z लाभ और धर््म: एशियाई धन के सपने और ईसाई धर््म के प्रसार ने खोजकर््तताओ ं z शुरुआत: व््ययावसायिक हितोों से प्रेरित होकर डचोों ने पर््वू की ओर कदम बढ़़ाया,
और निवेशकोों को प्रेरित किया। 1596 ई. मेें कॉर्नेलिस डी हाउटमैन की समात्रा
ु और बैैंटम की यात्रा ने उनके
प्रारंभिक कारोबारी प्रयासोों को चिह्नित किया।
z सयं ुक्त स््टटॉक कंपनियोों का उदय: इस नए व््यवसाय मॉडल ने जोखिम साझा
z डच सस ं द का चार््टर (1602): मार््च, 1602 मेें डच संसद के चार््टर ने नीदरलैैंड
किया और बड़़े पैमाने के व््ययापार उद्यमोों को वित्त पोषित किया।
की ‘यनू ाइटेड ईस््ट इडिं या कंपनी’ की स््थथापना को औपचारिक रूप दिया,
z इन कारकोों ने यरू ोप मेें अन््ववेषण के यगु की शरुु आत की, जिसकी परिणति जिससे उसे यद्ध
ु की घोषणा करने, संधियोों पर हस््तताक्षर करने और किले स््थथापित
भारत मेें उनके आगमन के साथ नए व््ययापारिक मार्गगों की खोज के रूप मेें हुई। करने के अधिकार सहित व््ययापक शक्तियाँ प्रदान की गई।ं
z भारत मेें डच फैक््टरियाँ: मसल ु ीपट्टनम (1605) से कोचीन (1663) तक, 1632 कंपनी को गोलकंु डा के सल्ु ्ततान से सनु हरा फरमान मिला,
डचोों ने पलि ु कट, सरू त और नागपट्टनम सहित भारत के पर्ू वी और पश्चिमी दोनोों
जिससे उनके व््ययापार की सुरक्षा और समृद्धि सुनिश्चित हुई।
तटोों पर कई फै क््टरियाँ स््थथापित कीीं।
z पतन: 1633 कंपनी ने पूर्वी भारत मेें अपना पहला कारखाना हरिहरपुर,
 इड ं ोनेशिया पर ध््ययान: इडं ोनेशिया के मसाला द्वीप समहोू ों मेें केें द्रित अपने बालासोर (ओडिशा) मेें स््थथापित किया।
प्राथमिक व््ययावसायिक हितोों के साथ डचोों ने भारत मेें साम्राज््य विस््ततार 1639 कंपनी को एक स््थथानीय राजा से मद्रास का पट्टा मिला।
पर व््ययापार को प्राथमिकता दी। 1651 कंपनी को हुगली (बंगाल) मेें व््ययापार करने की अनुमति दी गई।
 एग्ं ्ललो-डच युद्ध: एग्ं ्ललो-डच संघर््ष मेें अपनी हार के बाद डचोों ने भारत
1662 ब्रिटिश राजा चार््ल््स द्वितीय को एक पुर््तगाली राजकुमारी
मेें अपनी स््थथिति से हटकर अपना ध््ययान मलय द्वीप समहू की ओर केें द्रित
कर दिया। (कै थरीन ऑफ ब्रैगेेंजा) से शादी करने के लिए दहेज के रूप मेें
बॉम््बबे दिया गया था।
 बेदरा युद्ध (1759): एक लंबे संघर््ष के बाद बेदरा यद्ध ु मेें डचोों को
अग्ं रेजोों के हाथोों हार का सामना करना पड़़ा, जिससे भारत मेें उनके पतन 1667 औरंगजेब ने अंग्रेजोों को बंगाल मेें व््ययापार के लिए एक फरमान
मेें और योगदान हुआ। दिया।
भारत मेें ब्रिटिश शासन 1691 कंपनी को प्रति वर््ष 3,000 रुपये के भगु तान के बदले बंगाल मेें
‘द कंपनी ऑफ मर्चं ट्स ऑफ लंदन ट्रेडिंग इनटू द ईस््ट इडं ीज’ संयुक्त अपना व््ययापार जारी रखने का शाही आदेश मिला।
स््टटॉक कंपनी का नाम था, जो बाद मेें ‘ब्रिटिश ईस््ट इडिया
ं कंपनी’ बन गई। 1717 मगु ल बादशाह फर्रु खसियर ने कंपनी का मैग््ननाकार््टटा नामक एक
इसकी स््थथापना 1600 ई. मेें हुई थी। 1612 ई. मेें मगु ल सम्राट जहाँगीर ने इग्ं ्लैैंड फरमान जारी किया, जिसमेें कंपनी को बड़़ी संख््यया मेें व््ययापार
की महारानी एलिजाबेथ प्रथम के प्रतिनिधि राजनयिक सर थॉमस रो को सूरत मेें से संबंधित रियायतेें दी गई।ं
एक फै क्ट्री (एक व््ययापार स््टटेशन) खोलने की अनुमति दी, जिससे ब्रिटिश कंपनी
का आगमन भारत मेें पहली बार हुआ। फ्ररेंच
ईस््ट इडिया
ं कंपनी के प्रारंभिक वर््ष फ््राांसीसी ईस््ट इडि
ं या कंपनी की स््थथापना 1664 ई. मेें लुईस XIV के मंत्री
कोलबर््ट ने की थी, जिन््होोंने इसे भारतीय और प्रशांत महासागरोों मेें फ््राांसीसी
1600 ईस््ट इडि
ं या कंपनी की स््थथापना हुई। व््ययापार पर 50 साल का एकाधिकार भी दिया था।
1609 विलियम हॉकिन््स, जहाँगीर के दरबार मेें पहुचँ ा।
भारत मेें बस्तियााँ
1611 कै प््टन मिडलटन ने सूरत के मगु ल गवर््नर से वहाँ व््ययापार करने
की अनुमति प्राप्त की। 1667: फ्ररें कोइस कै रन ने सूरत मेें पहली फ््राांसीसी फै क्ट्री की स््थथापना की।
1669: गोलकंु डा के सुल््ततान से मर््क रा, मसूलीपट्टनम की अनुमति प्राप्त की।
1613 सूरत मेें ईस््ट इडि
ं या कंपनी का एक स््थथायी कारखाना स््थथापित 1673: कलकत्ता के पास चंद्रनगर, बंगाल के मगु ल सुभद्रा शाइस््तता खान
किया गया। से अनुमति प्राप्त की।
1615 राजा जेम््स प्रथम के राजदतू सर थॉमस रो, जहाँगीर के दरबार
डेनिश
मेें पहुचँ े। 1618 ई. तक राजदतू अंतर्देशीय टोल से छूट के
साथ मक्त ु व््ययापार की पष्ु टि करने वाले दो फ़रमान (सम्राट और 1616 ई. मेें गठित डेनिश ईस््ट इडि ं या कंपनी ने 1620 ई. मेें ट्ररेंक््ययूबार मेें एक
राजकुमार खर््रम ु से एक-एक) प्राप्त करने मेें सफल रहे। कारखाना और सेरामपुर मेें एक मख्ु ्य बस््तती स््थथापित की। डेनिश द्वारा स््थथापित
भारतीय उद्यम महत्तत्वपूर््ण नहीीं थे और 1845 ई. मेें उन््होोंने अपने कारखाने अंग्रेजोों
1616 कंपनी ने दक्षिण मेें अपना पहला कारखाना मसूलीपट्टनम मेें
को बेच दिए। डेनिश भारत मेें व््ययापार की तुलना मेें अपने मिशनरी कार्ययों के
स््थथापित किया।
लिए अधिक प्रसिद्ध हैैं।
विभिन्न साम्राज्यवादियोों के अधीन शासन की तुलना
पहलू भारत मेें पुर््तगाली शासन भारत मेें ब्रिटिश शासन भारत मेें फ््राांसीसी शासन भारत मेें डच शासन
समयावधि 1498-1961 1600-1947 1664-1954 1605-1824
भौगोलिक दायरा मख्ु ्य रूप से गोवा मेें केें द्रित भारतीय उपमहाद्वीप मेें विस््ततृत पांडिचेरी और चंद्रनगर सहित कोरोमंडल तट, मालाबार तट
विभिन््न क्षेत्ररों मेें और बंगाल मेें उपस््थथिति
शासन का फोकस व््ययापार, मिशनरी आर््थथिक शोषण, प्रशासनिक आर््थथिक शोषण, प्रशासनिक आर््थथिक शोषण, व््ययापार प्रभत्ु ्व,
गतिविधियाँ, सैन््य नियंत्रण सुधार, बागवानी अर््थव््यवस््थथा सुधार व््ययापारिक पोस््ट की स््थथापना
सांस््ककृतिक प्रभाव पुर््तगाली भाषा, संस््ककृ ति अंग्रेजी भाषा, कानूनी प्रणाली, फ्ररें च भाषा, कानूनी प्रणाली, डच भाषा, कानूनी प्रणाली,
और धर््म का प्रभाव शिक्षा का परिचय शिक्षा का परिचय शिक्षा का परिचय

2  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


विरोध आंदोलन सत्तावादी शासन के कारण स््वतंत्रता और प्रतिरोध के लिए स््वतंत्रता और प्रतिरोध के स््थथानीय शासकोों और यूरोपीय
सीमित प्रतिरोध महत्तत्वपूर््ण आंदोलन लिए आंदोलन प्रतिस््पर्द्धियोों से प्रतिरोध
शासन का अंत 1961 मेें भारतीय सैन््य 1947 मेें भारतीय स््वतंत्रता के 1 नवंबर, 1954 को समाप्त ब्रिटिश प्रभत्ु ्व के कारण कम
कार््रवाई के साथ समाप्त साथ समाप्त हुआ। हुआ। हुआ, औपचारिक रूप से
हुआ। 1825 मेें समाप्त हुआ।
विरासत पुर््तगाली भाषा, वास््ततुकला अंग्रेजी भाषा, कानूनी प्रणाली फ््राांसीसी भाषा, वास््ततुकला डच वास््ततुकला, जगहोों के नाम
और ईसाई धर््म की विरासत और संस््थथानोों की विरासत और संस््ककृ ति की विरासत और स््थथानीय रीति-रिवाजोों
पर प्रभाव की विरासत
धार््ममिक प्रेरणा कै थोलिकवाद और शासन प्रोटेस््टेेंटवाद से प्रभावित शासन कै थोलिक धर््म और शासन प्रोटेस््टेेंटवाद और
रूढ़़िवादी ईसाई धर््म से धर््मनिरपेक्ष प्रबोधन आदर्शशों व््ययावसायिक हितोों से प्रेरित
प्रेरित से प्रभावित
समुद्री बनाम समद्ु री ताकत के कारण राजनयिक और सैन््य व््ययापारिक चौकियोों पर व््ययापार प्रभत्ु ्व पर जोर देने के
मुख््यभूमि तटीय क्षेत्ररों के आसपास सफलताओ ं के आधार पर फोकस के साथ तटीय साथ तटीय उपस््थथिति
केें द्रित भारत की मख्ु ्य भमि
ू को उपस््थथिति
उपनिवेश बनाने पर ध््ययान
केें द्रित

ब्रिटेन भारत मेें प्रमुख यूरोपीय शक्ति क्ययों बन गया?  नेतृत््व: रॉबर््ट क््ललाइव, वॉरे न हेस््टटििंग््स, एलफिंस््टन, मनु रो और अन््य ने
उत््ककृ ष्ट नेतत्ृ ्व क्षमताओ ं का प्रदर््शन किया। सर आयर कूट, लॉर््ड लेक,
1. ब्रिटिश ईस््ट इडिया ं कंपनी को लाभ:
आर््थर वेलेजली और अन््य जैसे दसू री पंक्ति के नेतत्ृ ्वकर््तताओ ं से भी
 सरं चना और ने तृत््व: अन््य यरू ोपीय शक्तियोों की राज््य-नियंत्रित कंपनियोों
अग्ं रेजोों को लाभ हुआ।
के विपरीत ‘इग््ललिशं ईस््ट इडि
ं या’ कंपनी की सरं चना अधिक गतिशील थी।  वित्तीय सस ं ाधन: कंपनी से मजबतू वित्तीय समर््थन और बढ़़ी हुई
शेयरधारकोों से प्रभावित निर््ववाचित निदेशकोों ने बेहतर निर््णय लेने और व््ययापारिक सपं त्ति ने अग्ं रेजोों को भारत मेें अपने सैन््य अभियानोों को जारी
लाभप्रदता पर ध््ययान केें द्रित करना सनिश् ु चित किया। रखने की अनमति ु दी।
 नौसेना शक्ति: ब्रिटेन की रॉयल नेवी, जो अपने समय मेें सबसे बड़़ी और 4. भारतीय शासकोों की कमजोरियाँ:
उन््नत थी, ने उन््हेें भारत मेें अन््य यरू ोपीय शक्तियोों के साथ व््ययापार मार्गगों  आंतरिक विभाजन: अग् ं रेजोों ने भारतीय शासकोों के बीच राष्ट्रीय एकता
और सैन््य सघं र्षषों मेें महत्तत्वपर््णू लाभ दिया। की कमी का कुशलतापर््वू क लाभ उठाया, जिससे अक््सर आतं रिक संघर््ष
2. व््ययापक सामाजिक और तकनीकी कारक: होते थे।
 औद्योगिक क््राांति: ब्रिटेन की औद्योगिक क््राांति से कपड़़ा उत््पपादन, धातु  सैन््य हीनता: यरू ोपीय हथियारोों और कर््ममियोों को नियोजित करने के

विज्ञान और भाप ऊर््जजा मेें प्रगति हुई। इस आर््थथिक और तकनीकी बढ़त ने बावजदू भारतीय शासकोों के पास अग्ं रेजोों की तल ु ना मेें प्रभावी सैन््य
उन््हेें अन््य यरू ोपीय देशोों से आगे निकलने की अनमति ु दी। रणनीतियोों का अभाव था।
 कूटनीति: अग् ं रेजोों ने भारतीय क्षेत्ररों पर अपना नियंत्रण बढ़़ाने के लिए बड़़ी
 सैन््य शक्ति: अच््छछी तरह से प्रशिक्षित और अनशासि ु त ब्रिटिश सैनिकोों
ने तकनीकी प्रगति के साथ मिलकर अपनी सेना को एक दर्जेु य शक्ति चतरु ाई से डाक्ट्रिन ऑफ लैप््स (व््यपगत सिद््धाांत) और सहायक सधि ं
जैसी कूटनीतिक रणनीति का इस््ततेमाल किया।
बना दिया।
5. सांस््ककृतिक और मनोवैज्ञानिक युद्ध:
 स््थथिर सरकार: क््राांति और नेपोलियन के साथ यद्ध ु धों के दौरान फ््राांस जैसी  पश्चिमी शिक्षा और प्रबोधन आदर्शशों को बढ़़ावा: अग् ं रेजोों ने पश्चिमी
अन््य यरू ोपीय शक्तियोों द्वारा सामना की गई राजनीतिक अस््थथिरता की तल ु ना शिक्षा और प्रबोधन आदर्शशों को बढ़़ावा दिया, जिससे धीरे -धीरे भारत
मेें ब्रिटेन ने शासन की सापेक्ष स््थथिरता की अवधि का आनंद लिया, जिससे का बौद्धिक और सांस््ककृ तिक परिवेश बदल गया। यह सांस््ककृ तिक प्रभत्ु ्व
बेहतर रणनीतिक योजना की अनमति ु मिली। स््थथापित करने और ऐसे लोगोों का एक वर््ग बनाने की एक व््ययापक रणनीति
 वित्तीय शक्ति: बैैंक ऑफ इग्ं ्लैैंड के माध््यम से ऋण बाजारोों मेें ब्रिटेन का हिस््ससा था, जो “रक्त और रंग मेें भारतीय थे, लेकिन पसंद, राय,
के अभिनव प्रयोग ने उन््हेें सैन््य अभियानोों पर प्रतिस््पर्द्धियोों को मात देने नैतिकता और बद्धि ु से अग्ं रेज थे”, जिससे आसान शासन और प्रशासन
की अनमति ु दी। की सवि ु धा मिली।
3. भारत मेें परिस््थथिति का दोहन:  प्रचार का उपयोग: ब्रिटिश प्रचार ने अग् ं रेजोों को सभ््यता और आधनि ु कता
 शक्ति शून््यता: मग ु ल साम्राज््य के पतन और क्षेत्रीय शासकोों के बीच के वाहक के रूप मेें चित्रित किया, जिससे भारतीयोों और यरू ोपीय दोनोों की
संघर्षषों ने अग्ं रेजोों के लिए भारत मेें खदु को स््थथापित करने का अवसर नजर मेें उनके शासन को वैध बनाने मेें मदद मिली, जिससे उनके विस््ततार
दिया। का विरोध कम हो गया।

18 वीं शताब्दी का संक्रम 3


6. कानूनी और प्रशासनिक सुधार: z ऋणग्रस््तता मेें वृद्धि: अशिन दास गप्ता ु के अनसु ार, कंपनी का कॉर्पोरे ट
 ब्रिटिश कानूनोों की पुरःस््थथापना: ब्रिटिश कानन ू ी प्रथाओ ं और स््थथायी व््ययापारिक संस््थथागतकरण राजनीतिक सीमाओ ं को पार कर गया और ऋण
निपटान जैसे प्रशासनिक सधु ारोों की परु ःस््थथापना, जिसने प्रायः स््थथानीय की प्रचरु ता के कारण अतं र्देशीय और निर््ययात व््ययापार दोनोों मेें ऋण की दर
कृषि समदु ाय की कीमत पर, ब्रिटिश आर््थथिक हितोों के पक्ष मेें भमि
ू राजस््व मेें वृद्धि हुई।
प्रणालियोों का पनु र््गठन किया। z कंपनी पर निर््भरता: उत्तर भारत मेें कंपनी पर व््ययावसायिक निर््भरता के अपने
 सिविल सेवा: ब्रिटिश क्राउन के प्रति वफादार सिविल सेवा की स््थथापना,
चित्रण मेें, बी.आर. ग्रोवर का दावा है कि उतार-चढ़़ाव के कारण विदेशी व््ययापार
और कपास उद्योग मेें तेजी आई।
जिसने भारत जैसे विशाल और विविधतापर््णू देश के कुशल और प्रभावी
z जमीींदारोों द्वारा धन सचय
ं : जमीींदारोों की एकत्रित संपत्ति और किसानोों के साथ
प्रशासन मेें मदद की।
उच््च राजस््व बंदोबस््त को मगु ल साम्राज््य की परिधि मेें आर््थथिक समृद्धि का
निष््कर््ष तः कारकोों के संयोजन जैसे- ईस््ट इडि ं या कंपनी की कुशल संरचना, कारण माना जा सकता है।
औद्योगिक क््राांति के दौरान प्रगति, एक मजबूत और स््थथिर सरकार और भारत विलासिता की वस््ततुओ ं की माँग मेें वृद्धि: ईस््ट इडि
z ं या कंपनी की स््थथापना,
के भीतर आंतरिक विभाजन का लाभ उठाने की क्षमता आदि ने ब्रिटेन को भारत महँगी और विलासिता से संबंधित वस््ततुओ ं की बढ़ती माँग और श्रमिकोों पर
मेें प्रमख
ु यूरोपीय शक्ति के रूप मेें उभरने की अनुमति दी। स््थथानीय जमीींदारोों और सरदारोों के दबाव का परिणाम थी।
18वीीं सदी मेें भारत की सामाजिक-आर््थथिक और विद्वानोों का दृष्टिकोण
राजनीतिक स्थिति
सतीश चंद्रा का मानना ​​था कि सत्रहवीीं शताब््ददी के उत्तरार्दद्ध का राजकोषीय
सामाजिक स्थितियााँ संकट जागीर और मनसब से संबंधित मगु ल संस््थथानोों के कामकाज मेें
संरचनात््मक समस््ययाओ ं के कारण हुआ था।
z विरोधाभास की भूमि: अत््यधिक धन और वैभव अत््यधिक गरीबी के साथ-
साथ मौजदू थे। एक ओर समृद्ध और शक्तिशाली कुलीन वर््ग, जो विलासिता राजनीतिक स्थितियााँ
और आराम मेें रहते थे और दसू री ओर पिछड़़े, दलित और गरीब किसान थे। z पष्ठृ भूमि:
z जाति व््यवस््थथा: हिदं ू जन््म के आधार पर चार वर्णणों के अलावा कई जातियोों  सत्रहवीीं शताब््ददी के पहले दशक मेें मग ु ल साम्राज््य का पतन शरू ु हो गया।
(Castes) मेें विभाजित थे। जातियाँ सख््तती से स््थथापित की गई ं थी और प्रत््ययेक  हमारे अध््ययन काल की शरु ु आत अर््थथात 1739 मेें नादिर शाह के आक्रमण
व््यक्ति की जीवन भर के लिए सामाजिक प्रतिष्ठा निर््धधारित की गई थी। से दिल््लली पहले ही तबाह हो चक ु ी थी।
z महिलाओ ं की स््थथिति: उस समय महिलाओ ं मेें वैयक्तिकता का अभाव  1761 मेें मराठे ना कि मग ु ल, अब््ददाली के साथ यद्ध ु मेें उतरे और मगु ल
था। हालाँकि, अहिल््यया बाई जैसे अपवादोों ने 1766 से 1796 तक इदं ौर पर सम्राट 1783 तक ब्रिटिश पेेंशनभोगी रहे।
सफलतापर््वू क शासन किया और कई अन््य हिदं ू और मस््ललिम ु महिलाओ ं ने z निरंतर राजनीतिक प्रवाह: 1764 मेें बक््सर के यद्ध ु के बाद धमकी भरी ब्रिटिश
18वीीं सदी की राजनीति मेें महत्तत्वपर््णू भमि ू काएँ निभाई।ं उपस््थथिति वास््तव मेें साकार हो गई। अवध के नवाब शजा ु -उद-दौला के पतन
z शिक्षा: के कारण अग्ं रेज उत्तर भारत मेें आगे बढ़ सके ।
 उच््च शिक्षा सस्
z क्षेत्रीय पहचान का दावा: मगु ल साम्राज््य का लगातार विरोध क्षेत्रीय पहचान
ं ्थथान: उच््च शिक्षा संस््थथान संपर््णू देश मेें पाए जाते थे
की अभिव््यक्ति के माध््यम से दिखाया गया था, खासकर दक््कन भारत मेें।
लेकिन उन््हेें प्रायः समृद्ध जमीींदारोों, नवाबोों और राजाओ ं का समर््थन प्राप्त
गोलकंु डा और बीजापरु के क्षेत्ररों मेें सल््तनतोों के दावे से इस विरोध को बल
था।
मिला।
 प्रारंभिक शिक्षा: प्रारंभिक शिक्षा काफी व््ययापक थी। मौलवी इसे
z उत्तरी शक्तियोों का उदय: अफगानोों, सिखोों और महत्त्वाकांक्षी मराठोों जैसी
मसु लमानोों को मस््जजिदोों के मकतबोों मेें और हिदं ु अपने बच््चोों को कस््बोों प्रतिद्द्वं वी उत्तरी शक्तियोों के कारण मगलो
ु ों ने दिल््लली पर अपनी पकड़ खो दी।
और गाँव के स््ककूलोों मेें पढ़़ाते थे। z शक्तिशाली सम्राट का अभाव: विलियम इरविन के अनसु ार, यह साम्राज््य-
 साक्षरता स््तर: अप्रत््ययाशित रूप से, साक्षरता दर अग् ं रेजोों के अधीन केें द्रित रणनीति एक शक्तिशाली सम्राट पर निर््भर करती थी और जब सम्राट
होने वाली साक्षरता दर की तल ु ना मेें कम नहीीं थी। आज के मानकोों के की शक्ति कम हो गयी, तो परू ी व््यवस््थथा ने भारत के राजनीतिक मानचित्र को
अनसु ार अपर््ययाप्त होने के बावजदू बनि ु यादी शिक्षा उस समय की विशिष्ट कमजोर कर दिया।
आवश््यकताओ ं के लिए पर््ययाप्त थी। z व््ययापारियोों के साथ राजनीतिक साँठगाँठ: क्रमशः बंगाल और गजु रात की
जाँच करते समय, एम.एन. पियर््सन और फिलिप कै ल््ककििं स व््ययापार क्षेत्र, विशेष
आर््थथिक स्थितियााँ
रूप से बंगाल के ओमीचदं (अमीरचदं ) और जगत सेठ जैसे सेठोों के बढ़ते
z पष्ठृ भूमि: पर््वू -औपनिवेशिक राज््य की आर््थथिक सरं चना ने इसे औपनिवेशिक राजनीतिक महत्तत्व की ओर ध््ययान दिलाते हैैं।
राज््य से अलग करने की अनमति ु दी। z जागीरदारी सक ं ट: औरंगजेब के शासनकाल के अतं मेें जागीरदारोों की सख्ं ्यया
z बर््टन स््टटीन ने 18वीीं सदी के वित्तीय सक ं टोों के लिए कई सभं ावित कारण सामने मेें वृद्धि के साथ मनसबदारी प्रणाली का अतं तः पतन हो गया, जो एक व््यक्ति
रखे, जिनमेें मद्ु रा और सिक््कोों मेें धातु की मात्रा के संदर््भ मेें विनिमय के साधनोों की वफादारी, सेवा और जागीरदारी की स््थथिति (भमि ू राजस््व स््ववामित््व) पर
का मानकीकरण शामिल है। आधारित थी।

4  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


z यूरोपीय औपनिवेशिक प्रभाव:
18वीीं सदी: एक अंधकार युग
 खडि ं त राजनीति का उपयोग ब्रिटिश, फ््राांसीसी और पर््तगाु ली जैसी यरू ोपीय
z अव््यवस््थथा और अस््थथिरता: 18वीीं शताब््ददी को कभी अधं कार यगु माना औपनिवेशिक शक्तियोों द्वारा अपना प्रभत्ु ्व बढ़़ाने के लिए किया गया था।
जाता था, जिसके दौरान अव््यवस््थथा और अस््थथिरता का बोलबाला था।  उन््होोंने क्षेत्रीय शक्तियोों के बीच तनाव को भन ु ाया और विभिन््न क्षेत्ररों पर
z क्षेत्रीय राष्टट्ररों की विफलता: मगु ल साम्राज््य के पतन के बाद वे साम्राज््य धीरे -धीरे कब््जजा करने के लिए उन््हेें अपने लाभ के लिए इस््ततेमाल किया।
बनाने मेें विफल रहे और स््थथिरता केवल 18 वीीं शताब््ददी के अतं मेें ब्रिटिश  ‘फूट डालो और राज करो’ की रणनीति को लागू करके औपनिवेशिक

नियंत्रण के विस््ततार के साथ बहाल हुई। शक्तियोों ने राजनीतिक व््यवस््थथा को और अधिक छिन््न-भिन््न कर दिया।
 मग ु ल साम्राज््य का प्रभाव उतना व््ययापक या गहरा नहीीं था, जितना निष््कर््षतः यह स््पष्ट है कि अठारहवीीं शताब््ददी एक उल््ललेखनीय ऐतिहासिक युग
अक््सर सोचा जाता था। था, जिसे इतिहासकारोों ने दो अलग-अलग दृष्टिकोणोों से देखा। इतिहासकारोों
 भारत के कई सामाजिक समह ू और बड़़े हिस््ससे, विशेषकर उत्तर-पर््वू के एक वर््ग के अनुसार, मगु ल साम्राज््य के द:ु खद पतन से ‘अराजकता और
और दक्षिण, इससे बाहर रहे। अव््यवस््थथा’ फै ल गई। इतिहासकारोों के एक वर््ग ने क्षेत्रीयवादी परिप्रेक्षष्य का
वर््णन किया, जिसमेें इस बात पर ध््ययान केें द्रित किया गया कि कै से आस-पास
 इसलिए, मगलो ु ों के पतन को परू े भारत मेें हो रहे परिवर््तनोों को दर््शशाने के समदु ाय सामाजिक-आर््थथिक गतिविधि के जीवंत केें द्ररों मेें विकसित हुए।
के लिए पर््ययाप्त विषय के रूप मेें इस््ततेमाल नहीीं किया जा सकता है।
भारत मेें मुगल साम्राज्य का पतन
z विद्वानोों का दृष्टिकोण: इतिहासकार जदनु ाथ सरकार के अनसु ार, 23
जनू , 1757 को प््ललासी के यद्ध ु के बाद भारत का मध््य यगु समाप्त हो गया
और उसका आधनि ु क यगु शरू ु हुआ। वारे न हेस््टटििंग््स के बाद के बीस
वर्षषों मेें, हर किसी ने पश्चिमी प्रेरणा के ऊर््जजावान प्रभाव का अनभु व किया।
18वीीं सदी मेें खंडित राजनीति
इस समयावधि मेें जिन कठिनाइयोों का सामना करना पड़़ा, उन््होोंने विखंडित
स््वराज््य के खतरे को बढ़़ा दिया, जिससे एक जटिल और अस््थथिर राजनीतिक
वातावरण तैयार हो गया।
औरंगजेब की मृत््ययु (1707) के बाद मगु ल धीरे -धीरे अपने युग के अंत की
z मुगल साम्राज््य का पतन: अठारहवीीं शताब््ददी के मध््य मेें प्रभत्ु ्वशाली
ओर आ गए, जो लगभग 50 वर्षषों तक चला। मगु ल साम्राज््य के पतन के मख्ु ्य
मगु ल साम्राज््य धीरे -धीरे ढहने लगा। कमजोर नेतत्ृ ्व, उत्तराधिकार संघर्षषों कारण निम््नलिखित हैैं:-
और आर््थथिक कठिनाइयोों के कारण साम्राज््य कमजोर हो गया, जिसके कारण z कमजोर उत्तराधिकारी और विदेशी आक्रमण: औरंगजेब के उत्तराधिकारी
केें द्रीकृ त सत्ता का नुकसान हुआ। मगु ल साम्राज््य के पतन से सत्ता मेें शन्ू ्यता साम्राज््य के पतन को रोकने मेें शक्तिहीन थे। बाद के मगलो
ु ों ने किसी भी
आ गई, जिससे क्षेत्रीय शक्तियोों के उत््थथान को अनुमति मिली। उत्तराधिकार काननू का पालन नहीीं किया और जब भी किसी सम्राट की मृत््ययु
z क्षेत्रीय शक्तियोों का उदय:
होती थी, तब एक नई लड़़ाई शरू ु हो जाती थी।
 इस समय के दौरान मराठोों, सिखोों, राजपतो ू ों और विभिन््न प््राांतोों मेें कई मुगल साम्राज्य का पतन
क्षेत्रीय शक्तियोों का उदय हुआ। 1700 ई. तक मगु ल साम्राज््य कमजोर हो गया क््योोंकि राजाओ ं ने महलोों
 इन क्षेत्रीय शासकोों द्वारा अपने नियंत्रण को मजबतू करने और अपने प्रभाव और युद्ध पर बहुत अधिक पैसा खर््च किया।
क्षेत्र का विस््ततार करने के प्रयासोों के परिणामस््वरूप सघं र््ष हुआ और राज््य इसके अलावा भारत मेें हिदं ओ ु ं की बड़़ी आबादी अपने मस््ललिम
ु शासकोों के
व््यवस््थथा का विघटन हुआ। खिलाफ विद्रोह करने लगी।
 प्रत््ययेक शक्ति ने अपने स््वयं के हितोों के अनरुु प कार््य किया, जिसके ग्रेट ब्रिटेन ने इस कमजोरी का फायदा उठाया, भारत पर विजय प्राप्त की और
1858 मेें अंतिम मगु ल सम्राट को सत्ता से हटा दिया,
परिणामस््वरूप एक खडि ं त राजनीतिक व््यवस््थथा उत््पन््न हुई।
z वित्तीय मुद्दे: इस समय विभिन््न शक्तियोों को देने के लिए पर््ययाप्त धन या
z स््थथानीय अर््थव््यवस््थथाओ ं और शिल््पोों का पुनरुत््थथान:
जागीरेें नहीीं थीीं।
 यद्ध ु और राजनीतिक अस््थथिरता के कारण उत््पन््न समग्र आर््थथिक कठिनाइयोों z कमजोर सैन््य प्रशासन: मगु ल सेना मेें बहुत अधिक सख्ं ्यया मेें उच््च पदस््थ
के बावजदू , कुछ क्षेत्ररों मेें स््थथानीय शिल््प और व््ययापार मेें पनु रुत््थथान का अधिकारी थे। इसके अतिरिक्त सेना की प्रभावशीलता को बरकरार नहीीं रखा
अनभु व हुआ। उदाहरण के लिए, अवध और बंगाल जैसे क्षेत्ररों मेें कपड़़ा गया था।
उत््पपादन और व््ययापार मेें पनु रुद्धार देखा गया, विकेें द्रीकृ त नियंत्रण और z आर््थथिक विफलता: विलासितापर््णू जीवन मगु ल भारत का एक और पहलू
स््थथानीय संरक्षण से लाभ हुआ, जिससे उन््हेें केें द्रीय सत्ता से अपेक्षाकृ त था, जिसने भमि ू और व््ययापार से होने वाली आय का अधिकांश भाग खपा
स््वतंत्र आर््थथिक नेटवर््क विकसित करने की अनमति ु मिली। लिया, जिससे किसानोों और कारीगरोों को कठिन जीवन जीना पड़़ा।

18 वीं शताब्दी का संक्रम 5


z साम्राज््य का आकार और क्षेत्रीय शक्तियोों से ख़तरा: जैस-े जैसे मगु ल नेतत्व
ृ एवं प्रशासन
साम्राज््य बढ़ता गया, वैस-े वैसे दिल््लली मगु ल साम्राज््य की राजधानी के रूप मेें
z प्रभावशाली नेता: मराठोों के शिवाजी, मैसरू के हैदर अली और टीपू सल्ु ्ततान
प्रभावी नियंत्रण रखने मेें सक्षम नहीीं रही।
जैसे प्रभावशाली नेताओ ं के मार््गदर््शन मेें कई राज््य प्रमख ु ता से उभरे । इन
z उत्तर-पश्चिम सीमा की उपेक्षा: बाद के मगु ल सम्राटोों ने उत्तर-पश्चिमी सीमा
नेतत्ृ ्वकर््तताओ ं की दरू दर््शशिता, सैन््य कौशल और प्रशासनिक कौशल राज््य
की उपेक्षा की, जिससे नादिर शाह और अहमद शाह अब््ददाली के लिए दिल््लली
को बार-बार लटू ना संभव हो गया। गठन के लिए महत्तत्वपर््णू थे।
z नवाचार की कमी: विज्ञान या प्रौद्योगिकी मेें कोई ठोस नवप्रवर््तन न होने से z विविध प्रशासनिक प्रणालियाँ: संरचनाएँ भिन््न-भिन््न थीीं। मराठोों के पास
समस््यया और बदतर हो गई। अर्दद्ध-स््ववायत्त प्रमखो
ु ों के साथ अपेक्षाकृ त विकेें द्रीकृ त प्रणाली थी, जबकि हैदर
अली और टीपू सल्ु ्ततान के अधीन मैसरू मेें एक मजबतू केें द्रीकृ त प्रशासन था।
क्षेत्रीय राज्ययों का उदय
इन प्रणालियोों की प्रभावशीलता नेतत्ृ ्व और क्षेत्रीय सदं र््भ पर निर््भर करती थी।
18वीीं शताब््ददी मेें मगु ल साम्राज््य के पतन ने भारत मेें शक्ति शन्ू ्यता पैदा कर दी,
जिससे कई क्षेत्रीय राज््योों का उदय हुआ। इन राज््योों ने कई प्रकार की विशेषताओ ं वित्तीय नीतियााँ
का प्रदर््शन किया जिन््होोंने उनके उद्भव मेें योगदान दिया और उनके विस््ततार को z राजस््व सज ृ न पर ध््ययान: अधिकांश राज््योों ने भमि ू कर और व््ययापार मार्गगों
आकार दिया। यहाँ कुछ प्रमख ु विशेषताओ ं का आलोचनात््मक मल्ू ्ययाांकन दिया के नियंत्रण के माध््यम से राजस््व संग्रह को अधिकतम करने पर ध््ययान केें द्रित
गया है: किया। उदाहरण के लिए, मैसरू ने व््ययावसायिक फसल की खेती को बढ़़ावा
सैन्य शक्ति दिया। राजस््व संग्रहण की दक्षता राज््य की प्रशासनिक संरचना के आधार पर
z गनपाउडर (बारूद) प्रौद्योगिकी को अपनाना: अधिकांश राज््योों ने अपनी भिन््न-भिन््न होती थी।
सैन््य रणनीतियोों मेें मगु ल शैली के बारूद वाले हथियार और किले को शामिल z व््ययापार और वाणिज््य: मराठोों और गजु रात सल््तनत जैसे कुछ राज््योों ने
किया। अपनी भौगोलिक स््थथिति का लाभ उठाते हुए क्षेत्रीय और अतं रराष्ट्रीय व््ययापार
z घुड़सवार सेना पर जोर: अधिकांश क्षेत्रीय राज््य मगलो ु ों की विरासत, घड़ु सवार मेें सक्रिय रूप से भाग लिया। इस व््ययापार ने उन््हेें विस््ततार के लिए धन और
सेना पर बहुत अधिक निर््भर थे। हालाँकि, मराठोों जैसी कुछ शक्तियाँ, अपनी संसाधन उपलब््ध कराए।
गरु िल््लला रणनीति और अनक ु ू लनशीलता के कारण, बड़़ी व कम गतिशील
ताकतोों के खिलाफ अधिक सफल साबित हुए। सामाजिक और धार््ममिक परिदृश्य:
z आग््ननेयास्त्र और यूरोपीय प्रभाव: पर््तगा ु ली और ओटोमन््स जैसी यरू ोपीय z धार््ममिक सहिष््णणुता: जबकि हैदर अली के अधीन मैसरू जैसे कुछ राज््य धार््ममिक
शक्तियोों से आग््ननेयास्त््रों को अपनाने ने यद्ध
ु मेें महत्तत्वपर््णू भमि
ू का निभाई। सिखोों सहिष््णणुता के लिए जाने जाते थे, वहीीं रणजीत सिंह के अधीन सिख साम्राज््य
और मैसरू जैसे राज््योों ने सक्रिय रूप से इन प्रौद्योगिकियोों को शामिल किया। जैसे अन््य राज््योों की अधिक विशिष्ट धार््ममिक पहचान थी।
z सामाजिक सध ु ार: मैसरू के टीपू सल्ु ्ततान जैसे कुछ शासकोों ने सती (विधवा
को जलाने) और कन््यया भ्णरू हत््यया जैसे मद्ददोंु के समाधान के लिए सामाजिक
सधु ारोों का प्रयास किया। हालाँकि, ऐसे सधु ारोों की प्रभावशीलता और पहुचँ
भिन््न-भिन््न थी।
z धार््ममिक पहचान: अन््य मामलोों मेें, धर््म ने अधिक एकीकृ त भमि ू का निभाई।
उदाहरण के लिए, सिख साम्राज््य की स््थथापना एक विशिष्ट धार््ममिक पहचान
पर हुई थी जिसने इसके लोगोों को प्रेरित किया।
राजनीतिक व्यवस्थाएँ
z राजशाही स््वरूप: अधिकांश राज््य राजशाही थे, जिनमेें राजाओ ं या नवाबोों
का वंशानगु त शासन होता था। हालाँकि, वैधता प्रायः केवल वंश के बजाय
सैन््य ताकत और प्रशासनिक दक्षता पर निर््भर करती थी।
z विकेें द्रीकरण: जबकि हैदर अली के नेतत्ृ ्व मेें मैसरू जैसे कुछ राज््योों मेें मजबतू
केें द्रीय प्रशासन था, मराठोों जैसे अन््य राज््योों ने अर्दद्ध-स््ववायत्त प्रमखो
ु ों के साथ
अधिक विकेें द्रीकृ त संरचना का प्रदर््शन किया।
z स््थथिरता की अलग-अलग डिग्री: इन राज््योों की स््थथिरता अलग-अलग थी।
धर््म राजा के प्रशासन के तहत त्रावणकोर जैसे राज््योों ने सापेक्ष स््थथिरता का
आनंद लिया, जबकि मराठा संघ को विभिन््न गटोु ों के बीच आतं रिक संघर््ष
का सामना करना पड़़ा।

6  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


सीमाएँ और कमजोरियााँ मराठोों का उदय: मराठोों के उत्थान के लिए जिम्मेवार कारक
z सीमित तकनीकी उन््नति: जबकि कुछ राज््योों ने आग््ननेयास्त््रों को अपनाया, z भाषा और साहित््य का प्रभाव: संत एकनाथ ने मराठोों को अपनी मातृभाषा
वे आम तौर पर सैन््य प्रौद्योगिकी और आधनि ु कीकरण मेें यरू ोपीय शक्तियोों से पर गर््व करने को प्रोत््ससाहित किया, जिससे मराठोों के बीच समदु ाय और अपनेपन
पिछड़ गए। यह तकनीकी अतं र अग्ं रेजोों के साथ बाद के संघर्षषों मेें महत्तत्वपर््णू की भावना को बढ़़ावा देने मेें मदद मिली।
साबित हुआ। z भौगोलिक परिस््थथितियाँ: मराठा साम्राज््य के सत्ता मेें आने के लिए महाराष्टट्र
z सत्ता सघं र््ष और विखंडन: इन क्षेत्रीय राज््योों के बीच प्रभत्ु ्व की प्रतिस््पर्द्धा की स््थथिति और अन््य प्राकृतिक विशेषताओ ं ने योगदान दिया।
निरंतर चलने वाले सघं र्षषों को जन््म देता था, जो भारत मेें एक खडि ं त राजनीतिक z प्रबंधन मामलोों मेें प्रशिक्षण: शिवाजी के सत्ता मेें आने से बहुत पहले, मराठोों
परिदृश््य मेें योगदान करता था। ने प्रबंधन के मामलोों मेें ज्ञान और प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया था।
z भविष््य के लिए आधार तैयार करना: चनु ौतियोों के बावजदू इन क्षेत्रीय z दक्षिण की अस््थथिर राजनीतिक स््थथिति: वहाँ की अस््थथिर राजनीतिक स््थथिति
के कारण दक्षिण मेें मस््ललिम
ु साम्राज््योों के विघटन का खतरा था। मराठोों द्वारा
राज््योों ने विविध राजनीतिक और आर््थथिक प्रणालियोों का प्रयोग किया, जिससे
नियंत्रण करने के लिए वहाँ का राजनीतिक माहौल अनक ु ू ल था।
भारतीय शासन मेें भविष््य के विकास का मार््ग प्रशस््त हुआ।
z शिवाजी का प्रभावशाली व््यक्तित््व: शिवाजी महाराज के उत््थथान से पहले,
z उपनिवेशवाद का विरोध: मैसरू जैसे कुछ राज््योों ने उपनिवेशवाद विरोधी मराठा- समदु ाय कई दक््कन राज््योों मेें बिखरा हुआ था।
भावना का प्रदर््शन करते हुए ब्रिटिश ईस््ट इडि ं या कंपनी के विस््ततार का सक्रिय z ु भ-ू भाग के कारण मराठा काफी हद तक गरु िल््लला यद्ध
गुरिल््लला युद्ध: दर््गम ु
रूप से विरोध किया। करने के पक्षधर थे।
निष्कर््ष
विद्वानोों का परिप्रेक्ष्य
मगलो
ु ों के बाद क्षेत्रीय राज््योों के उद्भव ने भारतीय राजनीति की एक जटिल और
z इतिहासकार ग््राांट डफ का मत था कि मराठा जगं ल की आग की तरह
बहुआयामी तस््ववीर प्रस््ततुत की। जबकि सैन््य शक्ति नेतत्ृ ्व और आर््थथिक नीतियाँ
सहयाद्रि पर््वत से निकले थे।
उनके उद्भव के लिए महत्तत्वपूर््ण थीीं, आंतरिक प्रतिद्वंद्विता और सीमित तकनीकी
z ग््राांट डफ ने घड़ु सवारी, संस््ककृ त साहित््य, कई खेलोों और गरु िल््लला यद्ध
ु मेें
प्रगति ने अंततः बढ़ते ब्रिटिश साम्राज््य के सामने उनकी भेद्यता मेें योगदान दिया।
उनकी असाधारण प्रतिभा को देखते हुए बाजीराव प्रथम को ‘मराठोों का
इन विशेषताओ ं को समझने से भारतीय इतिहास के इस गतिशील काल का सक्षू ष्म
नेपोलियन’ उपनाम से सम््ममानित किया।
विश्ले षण संभव हो जाता है।
युद्ध और संधियााँ
युद्ध वर््ष एवं स््थथान सम््ममिलित लोग युद्ध/घेराबंदी/संधियाँ महत्तत्वपूर््ण विवरण परिणाम
प्रथम आंग््ल 1767-69 मैसूर सीमा हैदर अली, हैदराबाद के चेेंगम, तिरुवन््ननामलाई का हैदर अली की फ््राांसीसियोों से अंग्रेजी पर हैदर
मै सूर युद्ध निजाम, जोसेफ स््ममिथ, युद्ध, मित्रता, अली को बढ़त,
कर््नल ब्रुक््स, माधव राव अंबूर की घेराबंदी, मद्रास सरकार और कर््ननाटक
ओस््ककोटा मल ु वागुल और के नवाब के बीच मैसूर सीमा
बाउगलूर का युद्ध विवाद,
द्वितीय आंग््ल 1780-84 कर््ननाटक हैदर अली, टीपू सुल््ततान, पोर्टो नोवो का युद्ध, अंग्रेजोों द्वारा माहे पर कब््जजा , अनिर्णीत संघर््ष,
मै सूर युद्ध (अर््ककाट) आयर कूट और हेक््टर मैैंगलोर की संधि, मराठा और निजाम अंग्रेजोों के
मनु रो मैसूर की घेराबंदी, पक्ष मेें थे,
पोल््ललिलुर और शोलिन््घघुर का हैदर अली पराजित,
युद्ध,
तृतीय आंग््ल 1790-92 मालाबार टीपू सल्ु ्ततान, टेलिचेरी का युद्ध, त्रावणकोर पर टीपू का अंग्रेज विजयी,
मै सूर युद्ध तट कॉर््नवालिस और सेरिंगपट्टम की संधि, आक्रमण,
विलियम मेडोज अपना राज््य का आधा हिस््ससा
खो दिया, भारी जुर््ममाना
उसके 2 पत्ररों
ु को बंदी बनाकर
रखा गया,
चतुर््थ आंग््ल 1799 श्रीरंगपट्टनम टीपू सल्ु ्ततान, वेलेजली, सेरिंगपट्टम और मैलावेल््लली नेपोलियन की भारत पर अंग्रेज विजयी
मै सूर युद्ध आसफ जाह द्वितीय, का युद्ध, आक्रमण की योजना और टीपू
जेम््स स््टटुअर््ट श्रीरंगपट्टनम की घेराबंदी, की वार््तता,
टीपू मारा गया,
मैसूर ने आजादी खो दी,

18 वीं शताब्दी का संक्रम 7


मराठोों का पतन: मराठे , मुगलोों की जगह क््योों नहीीं ले सके पानीपत का युद्ध
z उत्तराधिकार का युद्ध: शिवाजी की मृत््ययु के बाद उनके पत्र ु शभं ाजी और z पानीपत का प्रथम युद्ध (1526):1526 मेें हुई पानीपत की पहली लड़़ाई
राजाराम उत्तराधिकार की लड़़ाई मेें लग गए।
बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच निर््णणायक संघर््ष था। इस लड़़ाई ने मगु ल
z आतंरिक राजनीतिक सग ं ठन: इसमेें एक संघ की विशेषताएँ थीीं, जहाँ प्रमख ु साम्राज््य की नीींव रखी, जिससे दिल््लली सल््तनत का शासन समाप्त हो गया।
या सरदार (भोोंसले, होल््कर, आदि) सत्ता साझा करते थे। z पानीपत का द्वितीय युद्ध (1556): 1556 मेें पानीपत की दस ू री लड़़ाई हुई,
z कमजोर कर प्रशासन: चौथ और सरदेशमख ु ी संग्रह, साथ ही चोरी और जिसमेें अकबर का मक ु ाबला हेमू से हुआ। इस लड़़ाई ने भारत मेें मगु ल शासन
लटू पाट मेें उनके कृ त््य, मराठोों के लिए महत्तत्वपर््णू थे। वे एक उत््पपादक राजस््व जारी रखने के पक्ष मेें निर््णय दिया।
प्रशासन प्रणाली बनाने मेें असमर््थ रहे। z पानीपत का तृतीय युद्ध (1761): 1761 मेें हुई पानीपत की तीसरी लड़़ाई
z कमजोर कूटनीति: मराठा अपने आसपास की सेनाओ ं के साथ गठबंधन
मेें मराठे, अहमद शाह अब््ददाली के खिलाफ खड़़े हुए थे। इस लड़़ाई ने भारत
बनाने मेें विफल रहे क््योोंकि उन््होोंने यह जानने के लिए समय नहीीं निकाला कि पर शासन करने की मराठोों की महत्त्वाकांक्षाओ ं की समाप्ति को चिह्नित किया।
अन््यत्र क््यया हो रहा था और उनके प्रतिद्द्वं वी क््यया कर रहे थे। दिल््लली का स््थथान अपने आप मेें आदर््श था: दिल््लली दो समृद्ध कृषि क्षेत्ररों,
z सहायक गठबंधन और एग्ं ्ललो-मराठा युद्ध: 1802 मेें बेसिन की संधि पर अर््थथात् सिंधु और गंगा के मैदान, के बीच अच््छछी तरह से अवस््थथित थी।
हस््तताक्षर करके पेशवा बाजीराव द्वितीय एक सहायक गठबंधन के लिए सहमत
भारत मेें ब्रिटिश शक्ति का विस्तार और सुदृढ़़ीकरण
हुए। यह मराठा साम्राज््य के पतन का प्रतीक था।
मराठा साम्राज््य, जिसे बाद मेें ‘मराठा संघ’ के नाम से जाना गया, ने 18वीीं 1757 मेें प््ललासी के युद्ध से लेकर 1849 मेें पंजाब पर कब््जजा करने तक अंग्रेजोों
शताब््ददी मेें प्रारंभिक आधनि ने राज््योों पर कब््जजा करके अपनी शक्ति का विस््ततार और सुदृढ़़ीकरण किया।
ु क भारत के एक बड़़े हिस््ससे पर शासन किया। सत्रहवीीं
शताब््ददी मेें मराठोों का उदय भारतीय इतिहास मेें एक प्रमख ु और आकर््षक युद्धधों द्वारा राज्ययों का विलय
विकास है। इस उत््थथान के लिए मख्ु ्य रूप से शिवाजी और वे परिस््थथितियाँ, विलय विलय की नीति
जिन््होोंने उनके और उनके सहयोगियोों के व््यक्तित््व को आकार दिया, जिम््ममेदार हैैं। किए
पानीपत (हरियाणा ): एक अनुकूल युद्धक्षेत्र के रूप मेें गए राज््य
z स््थथान का रणनीतिक महत्तत्व: z प््ललासी की लड़़ाई, 1757: सिराज-उद-दौला पर रॉबर््ट
 यमन ु ा नदी के किनारे इसकी अवस््थथिति इसे सैनिकोों और आपर््तति ू के क््ललाइव की जीत ने भारत मेें ब्रिटिश शासन की क्षेत्रीय
परिवहन के लिए एक आदर््श स््थथान बनाती है। नीींव रखी।
 ग्ररैंड ट्रंक रोड, जो उत्तर भारत और मध््य एशिया के बीच प्राथमिक वाणिज््य
z बक््सर की लड़़ाई, 1764: बंगाल के नवाब, अवध के नवाब
बंगाल और मगु ल शासक की संयक्त ु सेनाओ ं पर क््ललाइव की जीत
मार््ग के रूप मेें कार््य करती है, यहीीं पर स््थथित है।
ने अग्ं रेजी शक्ति की वास््तविक नीींव रखी
 इसने उत्तरी भारत के राजनीतिक केें द्र, दिल््लली पर कब््जजा करने के उद्देश््य
z इलाहाबाद की सधि ं , 1765: अग्ं रेजोों को बंगाल, बिहार और
से, दर्जेु य (Formidable) खैबर दर््ररा मार््ग सहित, उत्तर और उत्तर-पश्चिम उड़़ीसा की दीवानी का अधिकार दिया गया।
की सेनाओ ं के लिए एक प्राकृतिक प्रवेश द्वार के रूप मेें कार््य किया।
z 1765 से 1772 तक द्वैध शासन
z राजनीतिक प्रासगि ं कता:
z प्रथम आग्ं ्ल-मैसरू यद्ध
ु (1767-69): मद्रास की संधि
 उत्तर भारत कई छोटे-छोटे राज््योों मेें विभाजित हो गया था, जो मध््यकालीन
z द्वितीय आग्ं ्ल-मैसरू यद्धु (1780-84): मैैंगलोर की संधि
यगु के दौरान प्रभत्ु ्व के लिए लगातार प्रयास कर रहे थे।
मै सूर z तीसरा आग्ं ्ल-मैसरू यद्ध ु (1790-92): श्रीरंगपट्टनम की संधि
 दिल््लली, आगरा और जयपरु सहित कई महत्तत्वपर््ण ू राज््योों के चौराहे पर,
z चतर््थु आग्ं ्ल-मैसरू यद्ध
ु (1799): मैसरू पर ब्रिटिश सेना ने
पानीपत अवस््थथित था।
कब््जजा कर लिया
z निष््पक्ष मैदान: इसकी दरू स््थ अवस््थथिति ने इसे राजनीतिक दबाव के प्रति कम
संवेदनशील बना दिया क््योोंकि यह अन््य राज््योों के राजनीतिक केें द्ररों से दरू था। z प्रथम आग्ं ्ल-मराठा यद्ध ु (1775-82): सरू त की संधि, परु ं दर
की संधि, सालबाई की संधि
z दिल््लली से निकटता: पानीपत की दिल््लली से निकटता ने राजधानी को तत््ककाल
खतरोों से सरु क्षित रखते हुए यद्ध ु के मैदान मेें सैनिकोों, हथियारोों और आपर््तति ू मराठा z द्वितीय आग्ं ्ल-मराठा यद्ध ु (1803-05): बेसिन की संधि
की त््वरित तैनाती की सवि ु धा प्रदान की। z तीसरा आग्ं ्ल-मराठा यद्ध ु (1817-19): अग्ं रेजोों द्वारा मराठा
z भू-भाग के लाभ: पानीपत क्षेत्र का समतल इलाका घड़ु सवार सेना के लिए साम्राज््य पर पर््णू कब््जजा।
उपयक्त ु था, जो उस समय यद्ध ु का प्रमख ु तरीका था। सिंध z 1843 मेें गवर््नर-जनरल एलेनबरो के अधीन चार््ल््स नेपियर
z जलवायु सबं ंधी विचार: अन््य क्षेत्ररों की तल ु ना मेें इस क्षेत्र का अपेक्षाकृ त के प्रयासोों से सिंध को ब्रिटिश साम्राज््य मेें मिला लिया गया।
छोटा मानसनू मौसम, इसे सैन््य टकराव के लिए एक आदर््श स््थथान बनाता है।
z स््थथानीय शिल््प कौशल और युद्ध उपकरण आपूर््तति: स््थथानीय कारीगरोों z अमृतसर की संधि
ने यद्ध
ु उपकरणोों के उत््पपादन मेें उत््ककृ ष्टता हासिल की, जिससे दोनोों विरोधी पंजाब z प्रथम आग्ं ्ल-सिख यद्ध
ु (1845-46)
सेनाओ ं के लिए हथियारोों की सवि ु धाजनक आपर््तति ू सनिश् ु चित हुई। इस कारक
ने पानीपत मेें लड़़ी गई लड़़ाइयोों मेें महत्तत्वपर््णू भमि
ू का निभाई। z द्वितीय आग्ं ्ल-सिख यद्ध
ु (1848-49)

8  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


युद्ध के बिना राज्ययों का विलय विरोधाभास: भारतीय सैनिकोों के साथ ब्रिटिश ईस््ट इडि ं या कंपनी की सेनाओ ं
ने भारतीय शासकोों की सेनाओ ं के खिलाफ जीत हासिल की:
प्रशासनिक नीति विलय किए गए
राज््य ब्रिटिश ईस््ट इडि ं या कंपनी, जो भारतीय सैनिकोों पर बहुत अधिक निर््भर थी,
कई कारणोों से भारतीय शासकोों की सेनाओ ं को लगातार हराने मेें सक्षम थी:
z रिंग ऑफ फेेंस की नीति (1765-1813): z बक््सर की लड़़ाई के
बाद अवध को एक 1. कूटनीतिक महारत और रणनीतिक गठबंधन: ब्रिटिश ईस््ट इडि ं या कंपनी
 बफर जोन स््थथापित करके कंपनी की
सीमाओ ं को मजबतू करना। बफर राज््य के रूप ने रणनीतिक गठबंधनोों के माध््यम से भारतीय शासकोों के बीच विभाजन का
 सामान््य तौर पर, यह अपने क्षेत्ररों की रक्षा
मेें इस््ततेमाल किया कुशलतापूर््वक लाभ उठाया, विपक्षी शक्तियोों को तोड़़ा और अपने स््वयं के
के लिए अपने पड़़ोसियोों की सीमाओ ं की गया था। शक्ति आधार को मजबूत किया।
रक्षा करने की एक रणनीति थी। 2. तकनीकी वर््च स््व: बंदके ू ें और तोपोों जैसे आधनि ु क हथियारोों से लैस,
z सहायक सधि ं की नीति (1798 से आगे) z हैदराबाद अंग्रेजोों ने स््वदेशी सेनाओ ं पर एक निर््णणायक तकनीकी लाभ का आनंद
 इस पद्धति के तहत भारतीय राजाओ ं z मैसरू लिया, जिससे उनकी युद्धक्षेत्र कौशल मेें वृद्धि हुई।
द्वारा कंपनी के सैनिकोों को अपने यहाँ z तंजौर आदि 3. संगठनात््मक दक्षता: ब्रिटिश सेना का बेहतर संगठन और प्रशिक्षण प्रायः
रखा गया।
असंगठित और अप्रशिक्षित भारतीय सेनाओ ं के बिल््ककु ल विपरीत था,
 उन््हेें सैनिकोों के परिचालन से जड़
ु ़ी सभी
लागतोों को भी वहन करना पड़ता था जिससे उनकी युद्ध प्रभावशीलता मेें वृद्धि हुई।
और शासकोों को अपने दरबारोों मेें ब्रिटिश 4. वित्तीय श्रेष्ठता: ब्रिटिश ईस््ट इडि ं या कंपनी के पर््ययाप्त वित्तीय संसाधनोों ने
रेजिडेेंट की मेजबानी जारी रखनी होती थी। बड़़ी सेनाओ ं की भर्ती और उन््हेें सुसज््जजित करने की सुविधा प्रदान की, साथ
 उन््हेें ब्रिटिश सहमति के बिना किसी भी ही रिश्वतखोरी के माध््यम से स््थथानीय अधिकारियोों के हेरफे र को भी सक्षम
अन््य शासकोों के साथ गठबंधन और वार््तता बनाया, जिससे उनका प्रभत्ु ्व और मजबूत हुआ।
करने से मना किया गया था।
5. नौसेना प्रभुत््व और रसद (लाॅजिस््टटिक््स) बढ़त: समद्रु पर नियंत्रण ने
 यह गठबंधन नेपोलियन के खतरे का
मक ु ाबला करने की एक रणनीति थी, ब्रिटिश ईस््ट इडि ं या कंपनी को अद्वितीय रसद लचीलापन प्रदान किया,
जिसने कंपनी के लिए एक वास््तविक जिससे तेजी से सेना की आवाजाही और आपर््तति ू लाइनोों की अनुमति मिली,
खतरा पैदा कर दिया था। जो स््वदेशी शासकोों की पहुचँ से परे की क्षमता थी।
z व््यपगत का सिद््धाांत (1848-1859) z सतारा 6. एकीकृत कमांड संरचना और व््ययावसायिकता: एक केें द्रीकृ त और
 सिद््धाांत के अनस ु ार, कंपनी के आधिपत््य z झाँसी सव्ु ्यवस््थथित कमांड संरचना के तहत, ब्रिटिश सेना ने अपने विरोधियोों की
के अधीन किसी रियासत मेें कोई प्राकृतिक z नागपरु खंडित कमांड की तुलना मेें सैन््य संचालन मेें अधिक समन््वय और दक्षता
उत्तराधिकारी न होने की दशा मेें, रियासत z उदयपरु आदि का प्रदर््शन किया।
ब्रिटिशोों द्वारा कब््जजा कर ली जाएगी।
7. बाहरी समर््थ न और असाधारण नेतृत््व: क्राउन व संसद द्वारा समर््थथित और
z कुशासन का सिद््धाांत (1848-1856) z अवध अनुकरणीय नेतत्ृ ्व द्वारा निर्देशित, ब्रिटिश सेना को महत्तत्वपर््णू बाहरी समर््थन
 भारतीय शासक द्वारा कुशासन के आधार
और नेतत्ृ ्व का लाभ मिला, जिसने उनके सैन््य प्रयासोों को और मजबूत
पर भारतीय राज््योों का ब्रिटिश साम्राज््य
मेें विलय। किया तथा युद्ध के मैदान पर निरंतर सफलता सुनिश्चित की।
z उत््ककृष्ट निष्क्रियता की नीति (1864) z अफगानिस््ततान कूटनीतिक चालाकी, तकनीकी श्रेष्ठता, संगठनात््मक दक्षता, वित्तीय बढ़त,
 इसके अनस ु ार, अग्ं रेजोों को अफगानिस््ततान नौसैनिक प्रभत्ु ्व, एकीकृ त कमान, बाहरी समर््थन और असाधारण नेतत्ृ ्व के
के घरे लू मामलोों मेें हस््तक्षेप नहीीं करना संयोजन के माध््यम से, ब्रिटिश ईस््ट इडि ं या कंपनी ने भारतीय उपमहाद्वीप पर
चाहिए और उसके दरबार मेें एक अग्ं रेजी सैन््य आधिपत््य स््थथापित किया और स््थथायी औपनिवेशिक शासन की नीींव रखी।
प्रतिनिधि रखने की कोई आवश््यकता
नहीीं थी। 1857 से पहले प्रशासन

z प्राउड रिजर््व की नीति (1874) z अफगानिस््ततान 1858 तक भारत मेें प्रशासन ईस््ट इडि ं या कंपनी के हाथोों मेें था, जो एक
 लिटन ने 'प्राउड रिजर््व' की एक नई विदेश एकाधिकार वाली व््ययापारिक संस््थथा थी। भारतीय मामलोों के अपने प्रबंधन को
नीति शरू ु की, जिसका उद्देश््य वैज्ञानिक विनियमित करने के लिए, ब्रिटिश संसद ने दो प्रमख ु अधिनियम पारित किए,
सीमाएँ रखना और 'प्रभाव क्षेत्ररों' की सरु क्षा रेगुलेटिंग एक््ट और पिट्स इडि
ं या एक््ट। इसके बाद 1793, 1813, 1833
करना था। और 1853 के अधिनियम पारित किए गए जिनके द्वारा कंपनी भारत मेें अपने
 अफगानिस््ततान के साथ संबंधोों को अब
अधिकार और शक्ति से लगातार वंचित होती गई और उसके विशेषाधिकार
अस््पष्ट नहीीं रखा जा सकता था।
कम हो गए।

18 वीं शताब्दी का संक्रम 9


ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन की विशेषताएँ विगत वर्षषों के प्रश्न
z वाणिज््ययिक प्रकृति: मल ू रूप से परिषद द्वारा शासन; जिसके पास, गवर््नर 1. अधिकांश भारतीय सिपाहियोों वाली ईस््ट इडि ं या की सेना क््योों
या गवर््नर-जनरल के पास निर््णणायक वोट के साथ, कार््यकारी और विधायी तत््ककालीन भारतीय शासकोों की संख््ययाबल मेें अधिक और बेहतर
शक्तियाँ थीीं। ससु ज््जजित सेना से लगातार जीतती रही? कारण बताएँ।
z बोर्डडों द्वारा शासन: अर््थथात व््ययापार बोर््ड, राजस््व बोर््ड, सैन््य बोर््ड आदि।  (2022)
z रिकॉर््ड द्वारा शासन: जब लेन-देन वाणिज््ययिक थे, रिकॉर््ड संक्षिप्त और 2. सुस््पष्ट कीजिए कि मध््य-अठारहवीीं शताब््ददी का भारत विखंडित
प्रबंधनीय थे। लेकिन राजनीतिक लेन-देन ने रिकॉर््ड के रखरखाव को बोझिल राज््यतंत्र की छाया से किस प्रकार ग्रसित था।
और भारी बना दिया।  (2017)
z अधिगृहीत क्षेत्ररों के प्रशासन का कुप्रबंधन: इसका एक उदाहरण क््ललाइव 3. पानीपत का तीसरा युद्ध 1761 मेें लड़ा गया था। क््यया कारण है कि
द्वारा बंगाल, बिहार और उड़़ीसा का दोहरा या द्वैध शासन है, जिसके इतनी अधिक साम्राज््य-प्रकंपी लड़़ाइयाँ पानीपत मेें लड़़ी गई थी?
परिणामस््वरूप बड़़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और दिवालियापन हुआ।  (2014)

10  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


किसान, आदिवासी और
2 अन्य आंदोलन
z समाज के प्रभावित पारंपरिक वर््ग: ऐसे समय मेें जब शहरी बद्धिज ु ीवियोों का
प्रस्तावना
नव निर््ममित वर््ग ब्रिटिश शासन से लाभ उठा रहा था, समाज का पारंपरिक वर््ग
भारत मेें ब्रिटिश सत्ता का अधिग्रहण धीरे -धीरे हुआ, जिसमेें ब्रिटिशोों की क्रमिक जिसका जीवन लगभग परू ी तरह से बदतर हो चक ु ा था, विद्रोह मेें शामिल था।
विजयोों और उसके बाद अर््थव््यवस््थथा एवं समाज को नियंत्रित करने के उनके z सामान््य परिस््थथितियोों का प्रतिनिधित््व: भले ही ये विद्रोह अलग-
प्रयासोों ने असंतोष और विरोध को जन््म दिया। ब्रिटिश शासन के खिलाफ अलग समय और स््थथानोों पर हुए होों, लेकिन ये विद्रोह आम तौर पर व््ययापक
भारतीय प्रतिरोध मेें विविध सामाजिक समहू शामिल थे- किसान, कारीगर, परिस््थथितियोों को दर््शशाते हैैं।
आदिवासी, शासक वर््ग, सैन््यकर्मी और धार््ममिक नेता आदि- जो अपने-अपने
कंपनी के शासन के विरुद्ध जन असंतोष और विद्रोह के लिए
हितोों की रक्षा के लिए सेना मेें शामिल हो गए। इतिहासकार बिपिन चंद्र के जिम्मेवार प्रमुख कारक
अनुसार, प्रतिरोध के तीन मख्ु ्य रूप थे: नागरिक विद्रोह, आदिवासी विद्रोह और
किसान आंदोलन। कंपनी की सेना मेें भारतीयोों द्वारा किए गए सैन््य विद्रोह ने इस नागरिक विद्रोह के कारण
ऐतिहासिक कालखण््ड को और भी व््ययापक बना दिया। z अर््थव््यवस््थथा: राजस््व का कोई निवेश नहीीं - मक्तु व््ययापार - सीमा शल्ु ्क
- शिल््पकारोों का ह्रास ।
ब्रिटिश सत्ता की
स््थथापना z प्रशासन: भ्रष्ट पलिु स, सामान््य प्रशासन एवं न््ययायपालिका (ब्रिटिश शासन
के पक्ष मेें झकु ाव)
प्रतिक्रिया मेें
लंबी प्रक्रिया प्रत््ययेक चरण पर असंतोष z भू-राजस््व प्रणाली: अधिकतम राजस््व- ऋण ,भमि ू बिक्री, बेदखली, अकाल।
z विद्वान एवं पुरोहित: पारंपरिक शासकोों की बेदखली - वित्तीय हानि -
अर््थव््यवस््थथा एवं समाज असंतोष
विद्रोह उत्तेजित हुआ।
का उपनिवेशीकरण
z जमीींदार और पोलिगार: भ-ू स््ववामित््व का ह्रास - बाहरी लोगोों द्वारा
1857 के विद्रोह मेें परिणति प्रतिस््थथापित - रोष मेें वृद्धि
नागरिक विद्रोह z ब्रिटिश शासन का विदेशी चरित्र: विदेशी शक्ति के तले अभिमान को ठे स
नेतत्ृ ्व लोकप्रिय तीन प्रकार नागरिक विद्रोहोों की शृंखला
जनजातीय उत््थथान
प्रतिरोध
किसान आंदोलन अपदस््थ शासक एवं जन आधार (किसान, लगभग प्रतिवर््ष एवं
जमीींदार, आदि। कारीगर, सैनिक) प्रत््ययेक स््थथान पर
नागरिक विद्रोह
आर््थथिक शोषण
नागरिक विद्रोह मेें समाज के वे वर््ग शामिल थे जो ब्रिटिश शासन से प्रभावित
z किसानोों और जमीींदारोों की क्षति: ब्रिटिश भमि ू राजस््व प्रणाली और आर््थथिक
थे। किसान, कारीगर, जनजातियाँ, शासक वर््ग, सैन््यकर्मी, धार््ममिक नेता आदि
परिवर््तनोों ने किसानोों और जमीींदारोों को नक
ु सान पहुचँ ाया, जिससे पीड़़ा और
सभी अपने-अपने हितोों की रक्षा के लिए संघर््ष मेें शामिल थे।
असंतोष उत््पन््न हुआ।
नागरिक विद्रोह की सामान्य विशेषताएँ z बेदखली और शोषण: किसानोों को राजस््व सग्रं हकर््तताओ,ं काश््तकारोों और
z पारंपरिक विरोध: नागरिक विद्रोहोों के अर्दद्ध-सामतं ी नेता, पश्चवादी सोच वाले साहूकारोों द्वारा बेदखली और शोषण का सामना करना पड़़ा, जिससे उनमेें
और पारंपरिक दृष्टिकोण वाले थे। आक्रोश बढ़ गया।
z पारंपरिक रीति-रिवाजोों को स््थथापित करने का लक्षष्य: उनका मल ू उद्देश््य z हस््तशिल््प उद्योगोों का ह्रास: विनिर््ममित वस््ततुओ ं और भारी शल्ु ्कोों को
शासन और सामाजिक संबंधोों के परु ाने स््वरूप को बहाल करना था। उदाहरण ब्रिटिशोों ने समर््थन दिया, जिसने भारतीय लघु एवं हस््तशिल््प उद्योगोों को नष्ट
के लिए, सन्ं ्ययासी विद्रोह। कर दिया, जिससे बेरोजगारी और गरीबी उत््पन््न हुई।
z स््थथानीय स््तर पर केें द्रित: ये विद्रोह स््थथानीय कारणोों और शिकायतोों के z कृषि की ओर सक्र ं मण और भूमि पर दबाव: उद्योगोों के विनाश ने लोगोों
परिणामस््वरूप हुए थे तथा इनके परिणाम भी स््थथानीय थे। को कृ षि करने के लिए मजबरू किया, जिससे भमि ू पर दबाव बढ़ गया।
सामाजिक एवं साांस्कृतिक असंतोष z नकदी फसलोों की माँग मेें उतार-चढ़़ाव: कपास जैसी नकदी फसलोों की
माँग मेें वृद्धि और गिरावट की परिवर््तनकारी स््थथितियोों ने किसानोों के लिए
z पुरोहित वर््ग पर प्रभाव: ब्रिटिश नीतियोों ने सामाजिक व््यवस््थथा को बाधित कर
अस््थथिरता पैदा की (जैसे, नील विद्रोह)। हालाँकि, माँग मेें वृद्धि से अस््थथायी
दिया, जिसका प्रभाव परु ोहित वर््ग पर पड़़ा, जिन््होोंने हस््तक्षेप का विरोध किया।
लाभ मिल सकता है, लेकिन इससे अक््सर बागान मालिकोों और व््ययापारियोों
z जनजातीय भूमि पर अतिक्रमण: जनजातीय क्षेत्ररों मेें राजस््व प्रशासन के द्वारा शोषण होता था।
विस््ततार ने उनके जीवन के तरीके को खतरे मेें डाल दिया, जिसके कारण z लुटेरे साहूकार: साहूकारोों ने उच््च ब््ययाज वाले ऋणोों के माध््यम से किसानोों का
प्रतिरोध हुआ। शोषण करने के लिए अग्रेजो ं ों के साथ सहयोग किया, जिससे उनकी आर््थथिक
z व््यक्तिगत कारक और सांस््ककृतिक तिरस््ककार: ब्रिटिश अहक ं ार और भारतीय कठिनाई और बढ़ गई ( उदाहरण: दक््कन विद्रोह)।
संस््ककृति के प्रति उपेक्षा ने शासकोों और जनता को अलग-थलग कर दिया, z आर््थथिक मुद्दा: किसान आदं ोलन मख्ु ्य रूप से तात््ककालिक आर््थथिक चितं ाओ ं
जिससे आक्रोश बढ़ गया। को संबोधित करते थे। उनका उद्देश््य लगान मेें कटौती, न््ययायपर््णू भमि ू राजस््व
प्रणाली और बेहतर कार््य स््थथितियोों के माध््यम से जमीींदारोों, साहूकारोों और
किसान आंदोलन
औपनिवेशिक सरकार द्वारा शोषण से खदु को बचाना था ( उदाहरण: पाबना
z किसान आदं ोलनोों ने स््वतंत्रता के बाद कृ षि सधु ारोों के लिए माहौल तैयार विद्रोह)।
किया। उदाहरण के लिए, जमीींदारी उन््ममूलन। z सीमित दायरा: इन आदं ोलनोों ने विशिष्ट शिकायतोों और स््थथानीय उत््पपीड़कोों,
z उन््होोंने भस्ू ्ववामी वर््ग की शक्ति को नष्ट कर दिया, जिससे कृ षि सरं चना मेें जिनमेें विदेशी बागान मालिक, जमीींदार और साहूकार शामिल थे, को लक्षित
परिवर््तन हुआ। किया। उनके पास संपर््णू औपनिवेशिक व््यवस््थथा को खत््म करने के लिए व््ययापक
z जमीींदारी क्षेत्ररों मेें किसानोों को उच््च लगान, अवैध कर, मनमाने ढंग से बेदखल दृष्टिकोण का अभाव था (उदाहरण: बारदोली सत््ययाग्रह, नील विद्रोह)।
किए जाने और अवैतनिक श्रम से पीड़़ित होना पड़़ा। रै यतवाड़ी क्षेत्ररों मेें, सरकार z तात््ककालिक समस््ययाओ ं का समाधान: किसान आदं ोलनोों ने अनचि ु त
ने स््वयं भारी भ-ू राजस््व लगाया। राजस््व मल्ू ्ययाांकन या शोषणकारी श्रम प्रथाओ ं जैसी विशिष्ट समस््ययाओ ं के
z अग्रेजो
ं ों द्वारा प्राकृ तिक और मानव संसाधनोों के शोषण के कारण प्रतिरोध तत््ककाल समाधान की माँग की। उन््होोंने दीर््घकालिक प्रणालीगत परिवर््तन के
आदं ोलनोों का उदय हुआ, जिनमेें मख्ु ्य रूप से किसान, आदिवासी और बजाय अल््पकालिक लक्षष्ययों को प्राप्त करने पर ध््ययान केें द्रित किया। (उदाहरण:
सैनिक शामिल थे। बारदोली सत््ययाग्रह, नील विद्रोह)
z ब्रिटिश शासनकाल की प्रथम शताब््ददी मेें, किसानोों और जनजातीय लोगोों के z सीमित सगं ठन और पहुच ँ : ये आदं ोलन अक््सर स््थथानीय होते थे और उनमेें
केें द्रीय सगं ठन का अभाव होता था। वे मख्ु ्य रूप से विशिष्ट क्षेत्ररों या समदु ायोों
बीच पनपता असंतोष, विभिन््न समयोों पर भारत के विभिन््न भागोों मेें लोकप्रिय
पर ध््ययान केें द्रित करते थे, जिससे उनका समग्र प्रभाव बाधित होता था। इसका
विद्रोहोों के रूप मेें सामने आया।
मतलब यह भी था कि उनके संघर्षषों मेें निरंतरता कम थी।
किसान आंदोलन – कारण, महत्त्व और सीमाएँ
महत्त्व
z भारतीय किसानोों का औपनिवेशिक शोषण: गरीब किसान वर््ग कारण z भावी आंदोलनोों के लिए आधार: किसान आदं ोलनोों ने, 1857 ई. के विद्रोह
औपनिवेशिक आर््थथिक नीतियाँ और प्रणाली (भमि
ू , प्रशासन ,न््ययायपालिका) जैसे बाद के आदं ोलनोों के लिए उत्प्रेरक के रूप मेें कार््य किया, क््योोंकि सैनिक
जमीींदारी (किराया; अवैध बकाया; बेगार) वर्दीधारी होकर भी मल ू रुप से किसान थे।
z प्रणाली: रै यतवाड़़ी (सरकार द्वारा अत््यधिक z कानूनी जागरूकता: किसान आदं ोलनोों ने अधिकारोों के बारे मेें अतं र्दृष्टि
भ-ू राजस््व) प्रदान की और उत््पपीड़कोों का काननू ी रूप से विरोध करने के तरीकोों के बारे मेें
साहूकारोों से धन लेकर जानकारी दी। इससे व््ययापक रूप से उपनिवेशवाद विरोधी भावना भड़क उठी।
z राष्ट्रीय आंदोलन का पूरक: किसान आदं ोलन वास््तविक धरातल मेें राष्ट्रीय
किसान काश््तकार मेें प्रतिस््थथापित इच््छछानुसार, आदं ोलनोों के परू क बने, राष्ट्रीय और किसान दोनोों क््राांतियाँ एक-दसू रे से प्रेरित
z प्रभाव:
बटाईदार, भमि
ू हीन। होकर आगे बढ़ीं। किसानोों ने स््वतंत्रता संग्राम के लिए बड़़े पैमाने पर समर््थन
भमिू , फसल, मवेशी - औपनिवेशिक व््यवस््थथा आधार के रूप मेें काम किया, जबकि राष्टट्रवाद और गांधी का सत््ययाग्रह दर््शन
द्वारा अधिग्रहण। गाँवोों मेें फै ल गया, जिससे अधिक संगठित और शांतिपर््णू किसान विद्रोह हुए।
z औपनिवेशिक राज््य के विरुद्ध प्रतिरोध z ग्रामीण सत्ता सरं चना मेें बदलाव: ग्रामीण क्षेत्ररों मेें किसान आदं ोलनोों ने
z कुछ ने अपराध करना शरू ु कर दिया ("सामाजिक दस््ययु") भस्ू ्ववामी वर््ग के प्रभाव को कम करके सत्ता संतल ु न को बदल दिया। उदाहरण
के लिए, हैदराबाद की सामतं ी सरकार को तेलंगाना आदं ोलन ने अपदस््थ कर
कारण: दिया, जिसका नेतत्ृ ्व किसानोों ने किया था।
z कष्टदायक भू-राजस््व प्रणाली: रै यतवाड़ी प्रणाली सहित ब्रिटिश भमि ू z स््वतंत्रता-पश्चात सध ु ार: यद्यपि किसानोों के विरोध-प्रदर््शन तत््ककाल फलदायी
राजस््व प्रणालियाँ दमनकारी और अक््सर कड़ी थीीं। अप्रत््ययाशित मौसम और नहीीं रहे, फिर भी उन््होोंने स््वतंत्रता-पश्चात परिवर््तनोों को प्रभावित किया, जिसके
न््ययूनतम फसल कीमतोों के साथ, इन नीतियोों ने किसानोों की आजीविका को परिणामस््वरूप जमीींदारी प्रथा समाप्त हो गई और काश््तकारोों के लिए काश््तकारी
बरु ी तरह प्रभावित किया (उदाहरण: दक््कन विद्रोह)। की गारंटी दी गई।

12  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


सीमाएँ आंदोलनोों z सीमित क्षेत्रीय z अखिल भारतीय आदं ोलन,
z नवीन दृष्टिकोण का अभाव: 19वीीं सदी के किसानोों के पास कोई नई का प्रसार विस््ततार जैसे बंगाल उदाहरण के लिए, अखिल
विचारधारा और नया सामाजिक, आर््थथिक और राजनीतिक कार््यक्रम नहीीं था। मेें पाबना विद्रोह। भारतीय किसान सभा।
z सामाजिक बाधा: हालाँकि, ये सघं र््ष परु ाने सामाजिक व््यवस््थथा के ढाँचे के उपनिवेशवाद z उपनिवेशवाद की z किसानोों मेें उपनिवेशवाद
भीतर हुए, जिसमेें वैकल््पपिक समाज की सकारात््मक अवधारणा का अभाव था। के मुद्दे शिकायतोों के विरोधी चेतना का उदय
z स््थथानीयकृत प्रसार: 19वीीं सदी के अधिकांश किसान आदं ोलन विशिष्ट क्षेत्ररों निवारण को लक्षष्य हुआ।
मेें स््थथानीयकृ त थे। उदाहरण के लिए, दक््कन विद्रोह महाराष्टट्र मेें हुआ था। नहीीं बनाया गया।
z औपनिवेशिक समझ का अभाव: आंदोलनकारियोों मेें उपनिवेशवाद की औपचारिक z राष्ट्रीय स््तर पर कोई z अखिल भारतीय किसान
पर््ययाप्त समझ का अभाव था। उन््होोंने उपनिवेशवाद को लक्षष्य नहीीं बनाया, बल््ककि संगठन औपचारिक संगठन सभा को स््ववामी सहजानंद
शिकायतोों के निवारण पर ध््ययान केें द्रित किया। नहीीं था। सरस््वती द्वारा स््थथापित
किया गया।
1857 ई. के बाद किसान आंदोलनोों का परिवर््ततित स्वरूप
किसान आंदोलन मेें समाज सुधारकोों का योगदान
z किसानोों का मुख््यधारा मेें प्रवेश: किसान अपनी माँगोों के लिए सीधे संघर््ष
करने वाले कृ षि आदं ोलनोों मेें मख्ु ्य शक्ति के रूप मेें उभरे । z महात््ममा जोतिराव फुले:
 उन््होोंने किसानोों मेें जागृति पैदा करने का निर््णय लिया और कई गाँवोों मेें
z उद्देश््य: माँगेें लगभग परू ी तरह से आर््थथिक मद्ददों
ु पर केें द्रित थीीं।
पैदल यात्रा की।
z तात््ककालिक शत्रुओ ं के विरुद्ध: ये आदं ोलन किसानोों के तात््ककालिक शत्रुओ,ं
 वे जन्ु ्नर गए और आद ं ोलन मेें सक्रिय रूप से भाग लिया।
विदेशी बागान मालिकोों और देशी जमीींदारोों एवं साहूकारोों के विरुद्ध थे।
 उन््होोंने ‘कृ षकोों का चाबक ु ’ (कल््टटीवेटर््स व््हहिपकॉर््ड) नामक पस्ु ्तक लिखी,
z उपनिवेशवाद और पराधीनता के विरुद्ध नहीीं: इन आदं ोलनोों का लक्षष्य
उपनिवेशवाद नहीीं था। इन आदं ोलनोों का उद्देश््य किसानोों की अधीनता या जिसमेें उन््होोंने किसानोों की समस््ययाओ ं का वर््णन किया।
 साप्ताहिक पत्रिका 'दीनबंध'ु ने किसानोों की समस््ययाओ ं को उजागर किया।
शोषण की व््यवस््थथा को समाप्त करना नहीीं था।
 उन््होोंने 1888 ई. मेें पण ु े के दौरे पर ड्यक ू ऑफ कनॉट को किसानोों की
z सीमित उद्देश््य: ये आंदोलन संघर््ष विशिष्ट, सीमित उद्देश््योों और विशेष
शिकायतोों के निवारण, जैसे साहूकारोों के विरोध पर केें द्रित थे। समस््ययाओ ं के बारे मेें बताया।
z सीमित प्रादेशिक विस््ततार: इन आदं ोलनोों की प्रादेशिक पहुचँ सीमित थी। z विट्ठल रामजी शिंदे और किसानोों की समस््यया:
संघर््ष या दीर््घकालिक संगठन की कोई निरंतरता नहीीं थी।  1928 ई. मेें शिद ं े ने लघु जोत विधेयक की विनाशकारी स््थथिति को रोकने
z कानूनी अधिकारोों के प्रति जागरूकता: किसानोों मेें अपने काननू ी अधिकारोों के लिए कदम उठाया ।
के प्रति अत््यधिक जागरूकता विकसित हुई तथा उन््होोंने अदालतोों के बाहर  उन््होोंने इस बात पर जोर दिया कि भ्रष्ट अधिकारियोों, कर््मचारियोों और

भी उनका समर््थन किया। साहूकारोों ने किसानोों से उनकी जमीन लटू ली है।


z पांडुरंग सदाशिव साने:
19वीीं और 20वीीं सदी के किसान आंदोलनोों के बीच तुलना
 साने गरु ु जी, जिन््हेें पांडुरंग सदाशिव साने के नाम से भी जाना जाता है,
विशेषताएँ 19वीीं सदी के 20वीीं सदी के किसान किसान आदं ोलनोों से जड़ु े एक प्रमख ु व््यक्ति थे।
किसान आंदोलन आंदोलन
 उन््होोंने कई क्षेत्ररों का दौरा किया और भमि ू कर माफी के लिए दबाव बनाया।
उद्देश््य z यह आदं ोलन z उपनिवेशवाद के विरुद्ध
 उन््होोंने कांग्रेस के फै जपरु अधिवेशन (1936) मेें भी किसानोों की समस््ययाओ ं
किसानोों के शोषण संघर््ष चपं ारण, खेड़़ा
को हल करने का काफी प्रयास किया।
को समाप्त करने के और बाद मेें बारदोली
बजाय लगभग परू ी आदं ोलनोों से शरू z डॉ. बी.आर. अबं ेडकर और किसान आदं ोलन:
ु हुआ।
तरह से आर््थथिक  ‘महार वतन’ के विरुद्ध उनके प्रभावी अभियान ने ग्रामीण गरीबोों के एक

मामलोों पर केें द्रित बड़़े हिस््ससे को वस््ततुतः दासता की स््थथिति से मक्त ु कराया।
था।  वे भ-ू स््ववामित््व की प्रचलित खोती प्रणाली (Khoti system) के खिलाफ

नेतृत््व z किसानोों के बीच से z इन आदं ोलनोों का नेतत्ृ ्व अपनी लड़़ाई मेें सफल रहे और उनका लक्षष्य अधिकांश लोगोों को इससे
ही नेता उभरे । कांग्रेस और कम््ययुनिस््ट मक्त
ु कराना था।
पार्टी ने किया था।  इसके अलावा, उन््होोंने किसानोों के चिरनेर सत््ययाग्रह का नेतत्ृ ्व किया।

उदाहरण के लिए, सरदार  डॉ. अब ं ेडकर ने 15 अगस््त, 1936 को किसानोों, प्रवासी मजदरोू ों और
वल््लभभाई पटेल के कपड़़ा श्रमिकोों सहित अन््य समस््ययाओ ं से निपटने के लिए एक राजनीतिक
नेतत्ृ ्व मेें खेड़़ा सत््ययाग्रह । संगठन के रूप मेें "स््वतंत्र लेबर पार्टी" की स््थथापना की।

किसान, आदिवासी और अन्यआंदो 13


भारतीय राष्ट् रीय काांग्रेस (INC) और किसान आंदोलन z पूर्वोत्तर सीमांत जनजातियाँ: भारतीय संघ के भीतर स््वतंत्रता या स््ववायत्तता
की माँग की, समय के साथ राष्ट्रीय आदं ोलन मेें विलय कर लिया। उदाहरण:
z प्रारंभ से ही किसानोों के मुद्ददों को प्राथमिकता: इसमेें उदारवादी चरण की
नागा विद्रोह ने पर्ू वोत्तर भारत मेें नागा लोगोों के लिए स््वतंत्रता की माँग की।
शरुु आत से ही भारतीय किसानोों के मद्ु दे को संबोधित किया गया। उग्रवादी
नेताओ ं ने ग्रामीण वर््ग की चितं ाओ ं को भी उठाया। z औपनिवेशिक व््यवधान: ब्रिटिश नीतियोों के कारण विस््थथापन और आक्रोश
z कांग्रेस का फैजपुर अधिवेशन और किसान: ने वनोों के साथ पारंपरिक आदिवासी सबं ंधोों को बाधित किया। उदाहरण: मडंु ा
 फै जपरु अधिवेशन के दौरान किसानोों के लाभ के लिए कई महत्तत्वपर््ण ू विद्रोह ब्रिटिश वन नीतियोों के कारण हुए विस््थथापन से उत््पन््न हुआ।
प्रस््ततावोों को मजं रू ी दी गई। z उत््पपीड़न और जबरन श्रम: अग्रेजो ं ों द्वारा किये गए उत््पपीड़न और जबरन श्रम के
 बैठक मेें आग्रह किया गया कि कृ षि ऋणोों की वसल ू ी स््थगित की जाए। प्रत््ययुत्तर मेें उग्रवादी आदं ोलन हुआ। उदाहरण: खासी और जयंतिया जनजातियोों
 इसके अतिरिक्त, इसमेें यह भी प्रावधान किया गया कि भमि ू हीन मजदरोू ों ने ब्रिटिश करोों और कोयला खदानोों मेें जबरन श्रम के खिलाफ विद्रोह किया।
को पर््ययाप्त न््ययूनतम वेतन मिलेगा। z जनजातीय पहचान और प्रतिरोध: नृजातीय पहचान की प्रबल भावना और
 अधिवेशन के अध््यक्ष पडि ं त जवाहरलाल नेहरू ने मजदरोू ों और किसानोों औपनिवेशिक अतिक्रमण के प्रतिरोध से प्रेरित था। उदाहरण: भील विद्रोह ने
को कांग्रेस की गतिविधियोों मेें भाग लेने के लिए आमत्ं रित किया। ब्रिटिश भमि ू अतिक्रमण के खिलाफ भील स््ववायत्तता का दावा किया।
z दबाव समूह के रूप मेें किसान आंदोलन: उभरते किसान आदं ोलनोों का z चयनात््मक हिंसा: विद्रोह ने सहानभु ति ू रखने वाले स््थथानीय लोगोों को राहत
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर काफी दबाव पड़़ा। इसके बावजदू भी कराची कांग्रेस देते हुए औपनिवेशिक अधिकारियोों और सहयोगियोों को निशाना बनाया।
चार््टर, किसानोों की समस््यया को हल करने मेें विफल रहा। हालाँकि, किसान उदाहरण के लिए, मडंु ा विद्रोह ने सहानभु ति ू रखने वाले ग्रामीणोों को छोड़ते
सभा के राजनीतिक दबाव के कारण फै जपरु कांग्रेस के कृ षि कार््यक्रम को कर चनु िंदा ब्रिटिश अधिकारियोों और बसने वालोों को निशाना बनाया।
सफलता मिली।
जनजातीय आंदोलनोों के लिए जिम्मेवार कारक
जनजातीय विद्रोह z अंग्रेजोों के अतिक्रमण के खिलाफ विरोध: जनजातियाँ अपने प्रभाव क्षेत्र मेें
ब्रिटिश नियंत्रण के तहत भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ हिस््सोों मेें जनजातीय अग्रेजो
ं ों के बढ़ते प्रभाव से खश ु नहीीं थीीं। उन््होोंने विद्रोह किया और प्राकृ तिक
विद्रोहोों की आवृत्ति और गंभीरता मेें नाटकीय रूप से वृद्धि हुई। 19वीीं शताब््ददी मेें संसाधनोों के इस््ततेमाल का विरोध करने के लिए सरकार के खिलाफ एकजटु
कोल विद्रोह, संथाल विद्रोह और मंडु ा विद्रोह हुए। आधनु िक शिक्षा के विकास, हो गए।
बौद्धिक युवा वर््ग का समावेश और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स््थथापना के z प्राधिकार द्वारा पारित पक्षपातपूर््ण अधिनियम: 1878 ई. के भारतीय वन
साथ ही, 19वीीं शताब््ददी के उत्तरार्दद्ध मेें राष्ट्रीय आंदोलन भी आकार लेने लगा। अधिनियम और 1865 ई. के सरकारी वन अधिनियम ने सरकार को वृक्षषों से
महत्त्व आच््छछादित सभी क्षेत्ररों पर पर््णू अधिकारिता प्रदान की।
z स््थथायी कृषि की शुरुआत: जनजातियोों की पारंपरिक भमि ू पर गैर-आदिवासी z मिशनरियोों की गतिविधियाँ: ईसाई मिशनरियोों के प्रयासोों से, जिनसे
लोगोों के आगमन से स््थथायी कृ षि का सृजन हुआ। जनजातियाँ घृणा करती थीीं, सामाजिक उथल-पथु ल भी उत््पन््न हुई।
z पारंपरिक आर््थथिक ढाँचे का ह्रास: अग्रेजो ं ों ने आदिवासी लोगोों को खदान z साहूकारोों का दमनकारी रवैया: साहूकारोों ने आदिवासी सदस््योों की
मजदरोू ों और निम््न दर्जे के मजदरोू ों के रूप मेें काम करने के लिए मजबरू किया सामाजिक वचं ना और बौद्धिक कमजोरियोों का फायदा उठाया। ब्रिटिश सरकार
क््योोंकि उन््होोंने उनके पारंपरिक आर््थथिक ढाँचे को नष्ट कर दिया था। ने साहूकारोों को सरु क्षा प्रदान की।
z प्राकृतिक सस ं ाधनोों का महत्तत्व: आदिवासियोों को प्राकृ तिक संसाधनोों का z औपनिवेशिक शक्ति की समझ का अभाव: भारतीय शासकोों के विपरीत,
दरुु पयोग विचलित कर रहा था। उन््होोंने महससू किया कि कै से अग्रेज ं अपनी ब्रिटिश, जनजातियोों की अपने मल ू निवास के प्रति प्रतिबद्धता को परू ी तरह
भौतिक उन््नति के लिए पृथ््ववी के संसाधनोों का दोहन करते हैैं।
से समझने मेें असमर््थ थे।
जनजातीय विद्रोह के विभिन्न पहलू
जनजातीय विद्रोह की सीमाएँ
z विद्रोह की श्रेणियाँ:
प्रारंभिक जनजातीय आंदोलनोों मेें कई कमियाँ थीीं, भले ही उन््होोंने ऐसा माहौल
 मुख््यभूमि के जनजातीय विद्रोह: ये विद्रोह मख् ु ्यभमि ू अर््थथात भारत
के आतं रिक मद्ददों
ु पर केें द्रित थे। बनाने मेें मदद की जो सत्ता के खिलाफ स््थथानीय विरोध को प्रोत््ससाहित करता
हो। जनजातीय विद्रोह की निम््नलिखित सीमाएँ थीीं -
 पूर्वोत्तर सीमांत के आदिवासी विद्रोह: ये विद्रोह पर् ू वोत्तर क्षेत्र मेें हुए और
z स््थथानीयकृत और पथ ृ क प्रसार: राष्ट्रीय दृष्टिकोण से ये स््थथानीय और पृथक
अक््सर भारत के भीतर स््ववायत्तता के उद्देश््य से हुए। उदाहरण: बंगाल और
बिहार मेें संथाल विद्रोह (1855) भ-ू स््ववामित््व के रीति-रिवाजोों मेें बदलाव घटनाएँ थीीं, जो समग्र रूप से देश की लोकप्रिय धारणा को प्रभावित करने मेें
के कारण मख्ु ्य भमिू के आदिवासी विद्रोह का उदाहरण है। असफल रहीीं। इससे इन क््राांतियोों के सभं ावित प्रभाव कम हो गए।
z मुख््य भूमि के जनजातीय विद्रोह: इनके माध््यम से भ-ू स््ववामित््व और बाहरी z स््थथानीय मुद्ददों पर आधारित: इसके अतिरिक्त, इनमेें से अधिकांश क््राांतियाँ

लोगोों द्वारा शोषण के मद्ददों


ु को संबोधित किया गया। उदाहरण: संथाल विद्रोह स््थथानीय समस््ययाओ ं के कारण उत््पन््न हुई थीीं तथा देश का बाकी हिस््ससा उन
ब्रिटिशोों द्वारा कर लगाने और जनजातीय भमि ू को जब््त करने के प्रयासोों की लोगोों के साथ सहानभु ति ू रखने मेें असमर््थ था जो विरोध कर रहे थे या उनकी
प्रतिक्रिया थी। दर््दु शा से जड़ु ़े हुए थे।

14  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


z विचारधारा का अभाव: ये विद्रोह के वल विशिष्ट शिकायतोों पर विरोध के बाहरी (ख) हो आदिवासियोों और मंडु ाओ ं द्वारा (1831); नई लागू की गई
प्रदर््शन थे; उनमेें क््राांतिकारी विचार, सोच या विचारधारा का पर््ययाप्त अभाव था। कृ षि राजस््व नीति के खिलाफ।
z वैकल््पपिक दृष्टिकोण का अभाव: उन््होोंने लोगोों को कोई वैकल््पपिक समाधान (ग) बिरसा मंडु ा के नेतत्ृ ्व मेें मंडु ाओ ं द्वारा (1899-1900; राँची के
नहीीं दिया या उन््हेें कार््रवाई करने के लिए प्रेरित नहीीं किया। इनमेें से अधिकतर दक्षिण मेें; बिरसा को पकड़ लिया गया और कै द कर लिया गया।
(घ) उलगुलान विद्रोह, बिरसा मंडु ा द्वारा समर््थथित (1860-1920);
क््राांतियोों के नेता अर्दद्ध-सामतं ी थे, जो परिणामस््वरूप पारंपरिक एवं रूढ़़िवादी
सामंती, जमीींदारी काश््तकारी और साहूकारोों और वन ठे केदारोों
विचार रखते थे।
द्वारा किए गए शोषण के खिलाफ।
z सौदेबाजी कौशल का अभाव: जब तक अग्रेज ं छोटी-छोटी रियायतेें देते 5. सिद्धो और कान््हहू के नेतत्ृ ्व मेें संथालोों द्वारा संथाल विद्रोह (1855-
या उनकी विशिष्ट माँगोों को स््ववीकार करते, तब तक उन््हेें आसानी से संतष्टु 56; बिहार); जमीींदारोों और साहूकारोों की प्रथाओ ं के खिलाफ; विद्रोह
किया जा सकता था। बाद मेें ब्रिटिश विरोधी हो गया और उसे दबा दिया गया।
6. चक्र बिश्नोई के नेतत्ृ ्व मेें कोोंध विद्रोह (1837-56 और बाद मेें 1914
जनजातीय आंदोलन और मुख्यधारा के स्वतंत्रता आंदोलन के
मेें; तमिलनाडु से बंगाल तक फै ला पहाड़़ी क्षेत्र; 1914 मेें उड़़ीसा मेें);
बीच अंतर
आदिवासी रीति-रिवाजोों मेें हस््तक्षेप और नए करोों के लागू किए जाने
जनजातीय विद्रोह का प्रारंभिक चरण मख्ु ्यधारा के स््वतंत्रता आंदोलन से के खिलाफ।
निम््नलिखित तरीकोों से अलग था: 7. नाइकडा या नायकदा आंदोलन (1860 का दशक; मध््य प्रदेश और
z विशिष्ट आवश््यकताएँ: राष्टट्रवादियोों के विपरीत, आदिवासी लोग अपनी
गुजरात); अंग्रेजोों और सवर््ण हिदं ओ ु ं के खिलाफ।
भमिू और परंपराओ ं पर प्रथागत अधिकार पनु ः प्राप्त करना चाहते थे। उनमेें 8. खरवारोों द्वारा खरवार विद्रोह (1870 का दशक; बिहार); राजस््व
राष्टट्र के स््वतंत्र होने की उनकी कोई आकांक्षा नहीीं थी। निपटान गतिविधियोों के विरुद्ध।
z हिंसा का प्रयोग: जनजातियोों ने अपने लक्षष्ययों को आगे बढ़़ाने के लिए 9. खोोंडा डोरा अभियान, कोर््ररा मल््लया के नेतत्ृ ्व मेें खोोंडा डोरा द्वारा
पारंपरिक हथियारोों और हिसं ा का प्रयोग करना शरू ु कर दिया, जबकि (1900; विशाखापत्तनम मेें डाबर क्षेत्र)।
मख्ु ्यधारा के राष्टट्रवादी नेता शांतिपर््णू आलोचना का समर््थन करते थे। 10. भील विद्रोह (1817-19 और 1913: पश्चिमी घाट का क्षेत्र); कंपनी
z स््थथानीय सग ं ठनात््मक सरं चनाएँ: प्रारंभिक वर्षषों मेें, जनजातियाँ अपनी शासन के विरुद्ध (1817-19 मेें) और भील राज बनाने के लिए।
स््वयं की सैन््य शक्तियोों का उपयोग करती थीीं, कर एकत्र करती थीीं तथा 11. भइु यां, जुआंग और काल््स द्वारा भइु याँ और जुआंग विद्रोह; पहला
रिश््ततेदारी संबंधोों के आधार पर एक साथ रहती थीीं तथा शिक्षित मध््यम विद्रोह रत््न नायक के नेतत्ृ ्व मेें हुआ; दसू रा विद्रोह धरनी धर नायक
वर््ग से उन््हेें बहुत कम सहायता मिलती थी। (1867-68; 1891-93; खेेंझर, उड़़ीसा) के नेतत्ृ ्व मेें हुआ; यह विद्रोह
z बौद्धिक समर््थन का अभाव: जनजातीय लोगोों के निशाने पर स््थथानीय 1867 ई. मेें अपने राजा की मृत््ययु के बाद एक ब्रिटिश आश्रित को
अधिकारी और साहूकार थे, जिन््होोंने राष्टट्रवादियोों के लक्षष्ययों के विपरीत, सिंहासन पर बिठाने के खिलाफ हुआ था।
उन््हेें उनकी भमि ू से खदेड़ दिया था। 12. कोया और खोोंडा सारा प्रमखो ु ों द्वारा कोया विद्रोह- 1879-80 ई. मेें
ब्रिटिश प्रशासन और साहूकारोों की दमनकारी और क्रू र कार््रवाइयोों का जनजातियोों तोम््ममा सोरा के नेतत्ृ ्व मेें- 1886 ई. मेें राजा अनंतयार के नेतत्ृ ्व मेें
ने दृढ़ प्रतिरोध करके प्रतिकार किया। भले ही वे ब्रिटिश शासन को समाप्त करने (पूर्वी गोदावरी क्षेत्र, आंध्र प्रदेश); पुलिस, साहूकारोों द्वारा उत््पपीड़न; नए
नियमोों और वन क्षेत्ररों पर उनके अधिकारोों से वंचित करना।
मेें असमर््थ थे, लेकिन उनके कार्ययों ने उनके साथी नागरिकोों को एकजुट होकर
13. बस््तर विद्रोह (1910; जगदलपुर); नए सामंती एवं वन करोों के
ब्रिटिश प्रथाओ ं का विरोध करने के लिए प्रोत््ससाहित किया। भारतीय स््वतंत्रता विरुद्ध हुआ।
संग्राम मेें रामोसी, भील और कोल की पहल ने 1947 ई. मेें स््वतंत्रता प्राप्त करने 14. ताना भगत आंदोलन- मंडु ा और उरांव जनजातियोों के बीच जतरा
मेें महत्तत्वपूर््ण भमि
ू का निभाई। भगत और बलराम भगत के नेतत्ृ ्व मेें हुआ, जिन््होोंने प्रचार किया कि
जनजातीय आंदोलन: अवधि, क्षेत्र, कारण एक नजर मेें भगवान का दयालु प्रतिनिधि आदिवासियोों को मक्त ु करने के लिए
1. चआ आएगा (1914-1915; छोटानागपुर); बाहरी लोगोों के हस््तक्षेप के
ु र आदिवासी जनजातियोों द्वारा चआ ु र विद्रोह (1769-1805);
खिलाफ; संस््ककृ तीकरण आंदोलन के रूप मेें शरू ु हुआ।
ब्रिटिश सरकार द्वारा बढ़ती माँगोों और आर््थथिक अभाव के खिलाफ
15. कोया के अल््ललूरी सीताराम राजू के नेतत्ृ ्व मेें रंपा विद्रोह (1916,
हुआ।
1922-1924; आंध्र प्रदेश के रंपा क्षेत्र मेें); ब्रिटिश हस््तक्षेप के
2. पहाड़़िया विद्रोह (1772-82 ; राज महल पहाड़ी); अपनी भमि ू पर खिलाफ; 1924 मेें राजू को पकड़ लिया गया और फाँसी दे दी गई।
ब्रिटिश विस््ततार के खिलाफ हुआ। 16. छोटानागपरु क्षेत्र के आदिवासियोों द्वारा झारखंड विद्रोह (1920 के
3. बुद्धो भगत के नेतत्ृ ्व मेें छोटानागपुर के कोल द्वारा कोल विद्रोह बाद; बिहार, उड़़ीसा और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस््ससे); आदिवासी
(1831); अपनी भमि ू पर ब्रिटिश शासन के विस््ततार और बाहरी लोगोों अधिकारोों और प्रतिनिधित््व के लिए एक महत्तत्वपूर््ण संगठन, आदिवासी
को अपनी भमि ू हस््तताांतरित करने के खिलाफ हुआ हालाँकि, इस महासभा का गठन 1938 ई. मेें किया गया और 1949 ई. मेें झारखंड
विद्रोह को दबा दिया गया। पार्टी द्वारा इसका स््थथान ले लिया गया।
4. हो और मंडु ा विद्रोह 17. वन सत््ययाग्रह
(क) राजा परहाट के नेतत्ृ ्व मेें हो आदिवासियोों द्वारा (1827; सिंहभमू (क) चेेंचू आदिवासियोों द्वारा (1920 का दशक; आंध्र प्रदेश के गंटु ू र
और छोटानागपुर); सिंहभमू पर अंग्रेजोों के कब््जजे के खिलाफ। जिले मेें),

किसान, आदिवासी और अन्यआंदो 15


(ख) पलामू के कारवारोों द्वारा (1930 का दशक; बिहार); वनोों पर z विदेश सेवा: सरकार ने भारत से बाहर तैनाती के लिए अतिरिक्त वेतन देने
बढ़ते ब्रिटिश नियंत्रण के विरुद्ध। से इनकार कर दिया।
18. गोोंड विद्रोह (1940) गोोंडधर््म के अनयु ायियोों को एक साथ लाने के लिए। z धार््ममिक चिंताएँ: सामान््य सेवा भर्ती अधिनियम (1856) हिदं ू सिपाहियोों की
उत्तर-पूर्वी सीमाांत जनजातीय आंदोलन: वर््ष, क्षेत्र, प्रमुख कारण मान््यताओ ं से संघर््षरत रहा।
1857 से पहले के आंदोलन z साझा शिकायतेें: सिपाहियोों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ नागरिक संघर्षषों
z अहोम विद्रोह (1828-33; असम); बर््ममा यद्ध ु के बाद कंपनी द्वारा किए गए के प्रति सहानभु तिू व््यक्त की।
वादोों को परू ा न किए जाने के विरोध मेें; कंपनी ने राज््य का विभाजन करके z धार््ममिक सघं र््ष: सेवा संबंधी आवश््यकताएँ, जैसे पगड़़ी के स््थथान पर टोपी
विद्रोह को दबा दिया। पहनना (वेल््ललोर विद्रोह, 1806), धार््ममिक प्रथाओ ं को आहत करती थी।
z खासी विद्रोह (1830 का दशक; जयंतिया और गारो हिल््स के बीच पहाड़़ी
प्रमुख सिपाही विद्रोह
क्षेत्र); ननु कलो (Nunklow) शासक तीरथ सिंह के नेतत्ृ ्व मेें; पहाड़़ी क्षेत्र पर
कब््जजे के खिलाफ। 1857 के भारतीय विद्रोह से पहले, कई महत्तत्वपूर््ण विद्रोह हुए:
z सिगं फोस विद्रोह (1830 का दशक; असम); 1839 ई. मेें सिंगफोस द्वारा z बंगाल मेें सिपाही विद्रोह (1764): बंगाल मेें सिपाहियोों के बीच विद्रोह, जो

असम के ब्रिटिश राजनीतिक एजेेंट की हत््यया कर दी गई; अतं तः इसे दबा पदवी (रैैंकोों) के भीतर असंतोष के शरुु आती संकेतोों को दर््शशाता है।
दिया गया। z वेल््ललोर विद्रोह (1806): वेल््ललोर मेें सिपाहियोों ने अपने सामाजिक और

1857 के बाद के आंदोलन धार््ममिक कार्ययों मेें हस््तक्षेप के खिलाफ विरोध किया, तथा विद्रोह मेें मैसरू के
z कुकी विद्रोह (1917-19; मणिपुर) प्रथम विश्व यद्ध ु के दौरान श्रमिक भर्ती शासक का झडं ा उठाया।
की ब्रिटिश नीतियोों के खिलाफ। z 47वीीं ने टिव इन््फैैंट्री का विद्रोह (1824): 47वीीं नेटिव इन््फैैंट्री इकाई के

z त्रिपुरा विद्रोह: गृहकर की दरोों मेें वृद्धि और क्षेत्र मेें बाहरी लोगोों को बसाने सिपाहियोों द्वारा जाति के अधीन पैदल मार््च एवं व््यक्तिगत समान परिवहन
के खिलाफ विद्रोह हेतु विद्रोह।
 परीक्षित जमातिया के नेतत्ृ ्व मेें (1863) z ग्रेने डियर कंपनी विद्रोह (1825) असम मेें ग्रेनेडियर कंपनी द्वारा विद्रोह।

 रत््नमणि के नेतत्ृ ्व मेें रियांग विद्रोह (1942-43) z शोलापुर विद्रोह महाराष्टट्र (1838) शोलापरु मेें एक भारतीय रे जिमेेंट द्वारा

 भारती सिंह के नेतत्ृ ्व मेें (1920 के दशक) विद्रोह।


z जेलियांग््राांग आंदोलन (1920 का दशक; मणिपुर) जेमी, लियांगमेई और z 34वीीं एन.आई., 22वीीं एन.आई., 66वीीं एन.आई., और 37वीीं एन.आई.
रोोंगमेई जनजातियोों के नेतत्ृ ्व मेें; 1917-19 मेें कुकी हिसं ा के दौरान उन््हेें सरु क्षा (नेटिव इन््फैैंट्री) (क्रमशः 1844, 1849, 1850, 1852) के विद्रोह विभिन््न
प्रदान करने मेें ब्रिटिशोों की विफलता के  विरुद्ध। नेटिव इन््फैैंट्री इकाइयोों मेें हुए विभिन््न विद्रोह थे।
z नागा आंदोलन (1905-31; मणिपुर) जादोनांग के नेतत्ृ ्व मेें; ब्रिटिश शासन हालाँकि, उपर््ययुक्त सभी विद्रोह महत्तत्वपूर््ण थे, लेकिन ये स््थथानीय थे यही कारण
के खिलाफ और नागा राज की स््थथापना के लिए।
है कि ब्रिटिश भारतीय सरकार द्वारा क्रू रतापूर््वक दबा दिए गए थे। इसमेें हिसं क
z हेराका पंथ (1930 का दशक; मणिपुर) गाइदिनल््ययू के नेतत्ृ ्व मेें, आदं ोलन
उपाय शामिल थे, जिसमेें नेतत्ृ ्वकर््तताओ ं की हत््यया और विद्रोही रे जिमेेंटोों को भंग
को दबा दिया गया लेकिन 1946 ई. मेें काबईु नागा एसोसिएशन का गठन
करना शामिल था। अपने सीमित दायरे के बावजूद, इन विद्रोहोों ने 1857 ई. के
किया गया।
प्रथम स््वतंत्रता संग्राम को आकार देने मेें महत्तत्वपूर््ण भमिू का निभाई।
z अन््य छोटे आंदोलन: 1860-62 ई. मेें जयंतिया हिल््स के सिंटेेंगोों का विद्रोह,
1861 ई. मेें फुलागड़ु ़ी किसानोों का विद्रोह, 1872-73 ई. मेें सफलाओ ं का
विद्रोह; 1882 ई. मेें कछार के कचा नागाओ ं का विद्रोह तथा 1904 ई. मेें प्रमुख शब्दावलियाँ
मणिपरु मेें महिलाओ ं का विद्रोह।
आर््थथि क शोषण, सांस््ककृ तिक तिरस््ककार, हस््तशिल््प उद्योग मेें
भारत मेें सैन्य विद्रोह गिरावट, भूमि राजस््व या भू-राजस््व प्रणाली, संन््ययासी विद्रोह,
सैनिकोों के बीच असंतोष, राजनीतिक मद्ददों
ु और सामाजिक कारकोों से प्रेरित ये दक््कन दंगे/विद्रोह, नील विद्रोह, पाबना विद्रोह, बारदोली सत््ययाग्रह,
विद्रोह 1857 ई. के विद्रोह के लिए महत्तत्वपूर््ण अग्रदतू थे। इन््होोंने ब्रिटिश शासन रैयतवाड़़ी प्रणाली, लुटेरे साहूकार, जमीींदारी उन््ममूलन, सामाजिक
के खिलाफ व््ययापक विद्रोह के बीज बोने का कार््य किया। और सांस््ककृ तिक असंतोष, जनजातीय भूमि पर प्रभाव, राष्टट्रवादी
आंदोलन, किसानोों मेें कानूनी जागरूकता, ग्रामीण सत्ता संरचना।
कारण
z असमान व््यवहार: सिपाहियोों को ब्रिटिश सैनिकोों की तल ु ना मेें कम वेतन विगत वर्षषों के प्रश्न
और कम पदोन््नति का सामना करना पड़ता था। 1857 का विप््लव, ब्रिटिश शासन के पर््ववर्ती सौ वर्षषों मेें बार-बार घटित छोटे
z ू
z दुर््व््यवहार: सिपाहियोों को ब्रिटिश अधिकारियोों से कठोर व््यवहार सहना एवं बड़़े स््थथानीय विद्रोहोों का चरमोत््कर््ष था। सस्ु ्पष्ट कीजिए। (2019)
पड़ता था।

16  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


3 1857 का विद्रोह
ईस््ट इडं िया कंपनी का हमेशा से ही विभिन््न क्षेत्ररों मेें विभिन््न समहोों
ू द्वारा विरोध किया जाता रहा था। आदिवासियोों, किसानोों और धार््ममिक समहोों
ू द्वारा किया गया
प्रतिरोध स््थथानीय और असंगठित स््वरूप के बावजदू भी संगठित रहा। 1857 ई. का विद्रोह ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक महत्तत्वपर्ू ्ण विद्रोह था जिसमेें असंतुष्ट
राजकुमारोों, असंतुष्ट सैनिकोों इत््ययादि ने भाग लिया था।
भारत मेें ब्रिटिश उपनिवेशवादियोों और पूर््ववर्ती आक्रमणकारियोों के मध्य अंतर
z भारत मेें ब्रिटिश साम्राज््य की स््थथापना ने देश के आर््थथिक, सामाजिक और राजनीतिक परिदृश््य को अत््यधिक परिवर््ततित किया। लगभग 1608 ई. मेें ब्रिटिश
व््ययापार के उद्देश््य से वाले भारत आए। यरू ोपीय लोगोों के आगमन से भारतीय समाज के सामाजिक-आर््थथिक और राजनीतिक क्त्रषे रों मेें कई बदलाव आए।
z प्रारंभिक आक्रमणकारियोों और ब्रिटिश साम्राज््य के बीच मख्ु ्य अतं र यह था कि पर््ववर्
ू ती किसी भी आक्रमणकारी ने भारतीय समाज, प्रशासन और अर््थव््यवस््थथा
मेें सरं चनात््मक परिवर््तन नहीीं किए।
1857 के विद्रोह के मुख्य कारण

z जाति एवं संप्रदाय आधारित प्रतीक चिन््ह पहनने पर z पदोन््नति की लभु ावनी नीति।
प्रतिबंध z ब्रिटिश विस््ततारवादी नीतियोों ने सभी शासकोों
z पादरी की धर््माांतरण गतिविधियोों की अफवाहेें। को बेदखल कर दिया या ब्रिटिश सहायक का
z सामान््य सेवा सचू ी अधिनियम, 1856 ने सभी को कहीीं सहायक बना दिया।
भी सेवा करने का आदेश।
z सहायक संधि और व््यपगत का सिद््धाांत।
z ब्रिटिश समकक्षषों की तल ु ना मेें स््वयं के पारिश्रमिक
से अप्रसन््न। z अग्ं रेजोों द्वारा शासकोों की अनेक उपाधियोों और
पेेंशन की समाप्ति।
z पदोन््नति एवं विशेषाधिकारोों के मामलोों मेें नस््ललीय
भेदभाव। z भारतीय जनता के सामाजिक-धार््ममिक मामलोों
z सिपाही एक 'वर्दीधारी किसान' थे जिनकी चेतना राजनीतिक मेें ब्रिटिश हस््तक्षेप।
ग्रामीण आबादी से जड़ु ़ी थी। z भारी कराधान
z विद्रोहोों का लंबा इतिहास। z भारतीय उत््पपादोों के प्रति भेदभावपर्ू ्ण टैरिफ नीति
1857 के विद्रोह z पारंपरिक हस््तशिल््प उद्योगोों का ह्रास
सैन््य आर््थथि क सहवर्ती औद्योगीकरण का अभाव
के कारण z

z जमीींदारोों ने गाँवोों मेें अपनी ज़मीनेें और हैसियत


सामाजिक- प्रशासनिक खो दी
तात््ककालिक धार््ममिक
z कंपनी प्रशासन मेें व््ययाप्त भ्रष्टाचार
z नस््ललीय भाव और श्रेष्ठता की भावना z ब्रिटिश शासन का अनपु स््थथित सप्रं भतु ा का
z सिंध/पंजाब मेें सेवा करते समय कोई
ईसाई मिशनरियोों की गतिविधि को संदहे की चरित्र
विदेशी सेवा भत्ता नहीीं z

z अवध का विलय दृष्टि से देखा जाने लगा


z एनफील््ड राइफल z सामाजिक-धार््ममिक सधु ार के रूप मेें सती प्रथा
के उन््ममूलन को हस््तक्षेप के रूप मेें देखा गया
z धार््ममिक असमर््थता या विकलांगता अधिनियम,
1856 एवं धार््ममिक भमिू पर कराधान
z राजनीतिक कारण:  उदाहरण के लिए, भारतीय राजाओ ं ने कई धार््ममिक और शैक्षणिक
 युद्ध और विजय: ईस््ट इडं िया कंपनी ने बेदखल शासक राजवशोों ं के बीच संगठनोों को किराया-मक्त ु संपत्ति दान की। कंपनी ने इनाम आयोग
असंतोष और वैमनस््य का बीज बोया। की नियुक्ति करके किराया-मुक्त सपं त्ति जब््त कर ली।
 उदाहरण के लिए, लार््ड डलहौजी ने पंजाब पर कब््जजा करके  उदाहरण के लिए, अके ले बंबई मेें आयोग ने 20,000 से अधिक

शाही राजवंश को अपमानित किया। दलीप सिंह को पदच््ययुत संपत्तियाँ जब््त कीीं।
कर इग्ं ्लैैंड निर््ववासित कर दिया गया और लाहौर दरबार की संपत्तियाँ  भारतीयोों को उच््च पदोों से वंचित करना: भारतीयोों को सैन््य और
बिक्री के लिए आरक्षित कर दी गई। नागरिक क्षेत्ररों सहित उच््च पदोों पर काम करने की अनमु ति नहीीं थी।
 सहायक सधं ि: भारतीयोों के प्रति अवमानना और नस््ललीय भेदभाव ने असंतोष और अपमान
 इस संधि ने भारत के शासकोों को अलग सशस्त्र सेना रखने से रोक की भावना पैदा की।
दिया।  पक्षपातपूर््ण विधि का शासन: ब्रिटिश कानन ू ी प्रणाली जटिल थी और
 उन््हेें "सहायक सैनिकोों" के लिए भग ु तान करना पड़ता था, जिनका न््ययाय प्रदान करना महंगा और अत््यधिक समय की माँग करने वाला
उपयोग कंपनी उनकी रक्षा के लिए करती थी। था। जटिल प्रशासनिक व््यवस््थथा ने अग्ं रेजोों के प्रति नाराजगी को और बढ़़ा
 हैदराबाद (1798), मै सरू (1799), तंजौर (1799), अवध दिया और 1857 के महान विद्रोह के लिए एक और कारण के रूप मेें
(1801), पेशवा (मराठा) (1802), और सिधं िया (1803) ने कार््य किया।
सहायक संधियाँ स््ववीकार की। z आर््थथिक कारण:
 परिणामस््वरूप, ये भारतीय राजा अपनी विदेश नीति का अग् ं रेजोों के  व््ययापारिक वर््ग का विनाश:
समक्ष आत््मसमर््पण करने हेतु मजबरू हो गए जिससे कई सैनिकोों  अग् ं रेजोों ने भारतीय वस््ततुओ ं पर ऊँचे शल्ु ्क लगा दिए, जिससे भारतीय
को अपनी नौकरियाँ गंवानी पड़ीं। व््ययापार प्रभावित हुआ।
 इस प्रकार, ईस््ट इडं िया कंपनी का "प्रभावी नियंत्रण" और भारतीय
 19वीीं सदी के मध््य तक कपास और रे शम उत््पपादोों का भारतीय
देशी राज््योों के क्रमिक विनाश का लक्षष्य एक निश्चित आकार लेने निर््ययात लगभग बंद हो गया।
मेें सफल हुआ।
 भू-राजस््व प्रणाली:
 व््यपगत का सिद््धाांत: सतारा, जयपुर, सब ं लपुर, बघाट, उदयपुर,
 भारतीयोों को सप ं त्ति के अधिकार की वैधता साबित करने के लिए
झाँसी और नागपुर की रियासतोों को लॉर््ड डलहौजी ने अपने अधीन कर
लिया। वाजिद अली शाह को कुशासन के आरोप से (अवध, 1856) अनदु ान पत्र प्रस््ततुत करना पड़ता था।
अपदस््थ करने से परू े देश मेें रोष और नफरत फै ल गई।  लॉर््ड डलहौजी द्वारा स््थथापित इनाम आयोग ने जमीींदारोों के स््ववामित््व

 क्षेत्रीय शासकोों के प्रति अनादर की भावना: डलहौजी, कै निंग और


दस््ततावेजोों की जाँच की।
ईस््ट इडं िया कंपनी के रवैये से नाममात्र के मगु ल बादशाहोों के अपमान से  दस््ततावेज न दिखाने पर भ- ू स््ववामित््व संबंधित दावोों का हनन किया
मसु लमान और हिदं ू दोनोों ही नाराज थे। नतीजतन, उन््होोंने विद्रोहियोों के गया।
साथ संधि करने का फै सला किया।  स््वदेशी उद्योगोों का विनाश:

 श्रे ष्ठता की भावना: अग् ं रेजोों ने भेदभाव और अलगाव की जानबझू कर  भारतीय हस््तनिर््ममित उत््पपाद अग् ं रेजी तकनीक निर््ममित वस््ततुओ ं का
अपनाई गई नीति के माध््यम से श्वेत श्रेष्ठता के नस््ललीय मिथकोों को कायम मक ु ाबला करने मेें अक्षम साबित हुए।
रखने की कोशिश की। इससे भारतीयोों को अनेक परे शानियोों का सामना  भारतीय विनिर््ममाण को मक्त ु व््ययापार और अग्ं रेजी मशीन-विनिर््ममित
करना पड़ा। वस््ततुओ ं पर सरु क्षात््मक शल्ु ्क की कमी का सामना करना पड़़ा।
 पेें शन का निलंबन: रानी जिंदन का वार््षषिक वजीफा 15,000 पाउंड से
 बागानोों के माध््यम से शोषण:
घटाकर 1,200 पाउंड कर दिया गया था और लक्ष्मी बाई, नाना साहिब,
 नील, जट ू , चाय और कॉफी जैसे बागान उद्योगोों ने बागान मालिकोों
तंजौर और कर््ननाटक के नवाब की पेेंशन समाप्त कर दी गई थी। इसने उन््हेें
का जीवन कठिन बना दिया।
अग्ं रेजोों के खिलाफ विद्रोह करने के लिए प्रेरित किया।
 बागान मालिकोों के प्रति अमानवीय व््यवहार और उत््पपीड़न ने
z प्रशासनिक कारण:
आक्रोश और विद्रोह को बढ़़ावा दिया।
 नई प्रशासनिक व््यवस््थथा: ब्रिटिश सरकार के अधिकारी भारतीयोों के
 आर््थथि क निकास या धन की निकासी:
प्रति अभिमानी और तिरस््ककारपर्ू ्ण होने के साथ-साथ गैर-मिलनसार भी
थे। परिणामस््वरूप, भारतीयोों को नई प्रशासनिक व््यवस््थथा के साथ तालमेल  आर््थथिक शोषण की आलोचना ने ब्रिटिश विरोधी भावना को

बिठाने मेें कठिनाई हुई। बढ़़ावा दिया।


 लाभ और विशे षाधिकारोों से वंचित: ईस््ट इडं िया के विलय कार््यक्रम  भारतीय धन का इग्ं ्लैैंड की ओर निरंतर हस््तताांतरण किया जा रहा

के कारण भारतीय अभिजात वर््ग को सामाजिक और आर््थथिक विशेषाधिकार था जिसके बदले मेें भारतीयोों को कोई लाभ नहीीं मिल रहा था (दादा
गंवाने पड़े। भाई नौरोजी)।

18  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


 आर््थथिक राष्टट्रवाद ने ब्रिटिश इरादोों के प्रति संदहे को बढ़़ावा दिया,  विदेश जाने का कानून: जनरल सर््वविस एनलिस््टमेेंट एक््ट (1856) ने
जिससे राष्ट्रीय आदं ोलनोों का मार््ग प्रशस््त हुआ। सिपाहियोों को विदेश मेें लड़ने के लिए कर््तव््य स््ववीकार करने का आदेश
z सामाजिक-धार््ममिक कारण: दिया, जिससे अंग्रेजोों के प्रति नाराजगी पैदा हुई।
 सामाजिक बहिष््ककार का रवैया: भारतीय ब्रिटिश सामाजिक बहिष््ककार  भारतीय और ब्रिटिश सैनिकोों के बीच असमानता:
नीतियोों और उनके अहक ं ारी व््यवहार से नाखश ु थे। अग्ं रेजोों द्वारा उनका  ब्रिटिश और भारतीय सेनाओ ं के बीच वैचारिक रुप से अत््यधिक
अपमान किया जा रहा था, उन पर हमला किया जा रहा था, और यहाँ अतं र था।
तक ​​कि उनकी हत््यया भी की जा रही थी। उदाहरण के लिए, प्रत््ययेक  भारतीय सैनिकोों को एहसास हो गया कि भारत मेें ब्रिटिश सत्ता पर
भारतीय मल ू के निवासी को सड़कोों पर सभी अग्ं रेजोों को सलाम (Salute) हमला करने से वह पराजित हो सकती है।
करने के लिए मजबरू किया जाता था।
 क्रीमिया का युद्ध (1854-56):
 मिशनरी गतिविधियाँ: 1813 ई. के चार््टर एक््ट के अनस ु ार, मिशनरियोों
 कई भारतीय सैनिकोों ने क्रीमिया यद्ध ु मेें लड़़ाई लड़़ी, जहाँ ब्रिटिश
को अपने धर््म और पश्चिमी शिक्षा का प्रसार करने की अनमु ति थी। भारतीयोों
विफलताओ ं ने भारत मेें उनके मनोबल को कमजोर कर दिया।
को ईसाई मिशनरियोों के माध््यम से सामाजिक परंपराओ ं और व््यवहारोों मेें
हस््तक्षेप करने का सदं हे था।  चर्बी वाले कारतूस:
 सिपाहियोों को चर्बीयक्त ु कारतसोों
ू की नोक काटनी पड़ती थी और
 सामाजिक परिवर््तन एवं रूढ़़िवादी विचार: अंग्रेजोों ने बाल विवाह,

शिशु हत््यया और सती प्रथा जैसी सामाजिक बरु ाइयोों को खत््म करने का अफवाह फै ली थी कि कारतसोों ू मेें गाय और सअ ू र की चर्बी लगी
प्रयास किया परंतु रूढ़़िवादी लोग इन परंपरागत काननोों ू मेें परिवर््तन का होती है।
विरोध कर रहे थे।  सिपाही अपनी धार््ममिक आस््थथाओ ं के अपमान से नाराज थे।

 अधिकारोों को सशक्त बनाना: उत्तराधिकार के अधिकार, विधवा विद्रोह की शुरुआत और प्रसार


पनु र््वविवाह, तथा महिलाओ ं के लिए पाश्चात््य शिक्षा हेतु स््ककू ल और कॉलेजोों
z 1857 का विद्रोह मेरठ से प्रारंभ हुआ था, जहाँ 85 घुड़सवार रे जिमेेंट के
से सबं ंधित काननोों ू को हिदं ओ ु ं द्वारा पर्ू ्ण रूप से स््ववीकार नहीीं किया गया। सिपाहियोों को चर्बी वाले कारतसू इस््ततेमाल करने से मना करने पर 2-10
 धार््ममिक लोगोों के प्रभाव मेें कमी: अग् ं रेज धार््ममिक लोगोों को बिना कोई साल की जेल की सजा सनु ाई गई थी। अगले दिन 10 मई, 1857 को
विशेषाधिकार दिए आम नागरिकोों के बराबर मानते थे। इस कारण वे ब्रिटिश तीन रे जिमेेंटोों द्वारा विद्रोह प्रारंभ कर दिया गया। उन््होोंने अंग्रेज अधिकारियोों
साम्राज््य के कट्टर दश्ु ्मन बन गए। की हत््यया की और अपने साथियोों की रिहाई के लिए जेल के दरवाजे तोड़
 रहस््यमय चीजोों का प्रचलन: 1850 ई. के आसपास गाँवोों मेें रोटी और
दिए।
कमल के फूल जैसी रहस््यमयी वस््ततुओ ं का क््राांति के संकेतोों के रूप मेें
z मंगल पांडे खल ु ेआम आदेश की अवहेलना करने वाले पहले सैनिक थे। 29
प्रचलन से अशांति का सक ं े त मिलता था। मार््च, 1857 को उन््होोंने कलकत्ता के पास बैरकपुर मेें दो अंग्रेज अफसरोों
 अंधविश्वास: 23 जन ू , 1857 को प््ललासी की लड़़ाई (1757) के शताब््ददी की हत््यया कर दी इसका प्रतिशोध लेने के उद्देश््य से अंग्रेजी सेना द्वारा
के अवसर पर लोग ब्रिटिश सत्ता के अतं का काल््पनिक अनमु ान लगाते उन््हेें गिरफ््ततार कर लिया गया, उन पर मक ु दमा चलाया गया और अतं तः उनकी
रहे। हत््यया कर दी गई साथ ही बैरकपरु रे जिमेटें को भगं कर दिया गया।
z सैन््य कारण:
 अफगान युद्ध पराजय:
प्रतीकात्मक प्रमुख के रूप मेें बहादरु शाह का चयन

 प्रथम अफगान यद्ध ु (1838-42) मेें हार के बाद ब्रिटिश सैन््य z मगु ल वंश का लंबा शासन भारत की राजनीतिक एकता का पारंपरिक
प्रतीक बन गया था। नतीजतन, दिल््लली जल््द ही विद्रोह का केें द्र बन गई,
अनश ु ासन मेें गिरावट आई।
जिसका प्रतीक बहादरु शाह था।
 इतिहासकारोों का कहना है कि ब्रिटिश सेना को अफगानिस््ततान से
z बहादरु शाह जफर, जो वृद्ध और शक्तिहीन थे, को भारत का सम्राट घोषित
वापस जाने के लिए मजबरू होना पड़़ा था, जिसमेें के वल एक सैनिक
कर दिया गया।
ही जीवित बचा था।
 सेना के प्रति निष्ठा मेें कमी: विद्रोह मेें क्षेत्रीय विविधताएँ
 भारतीय सैनिकोों ने अग् ं रेजी विस््ततार मेें सहायता करने और अपने ही यद्यपि विद्रोह बड़़ा और व््ययापक था, फिर भी यह अधिकांशतः विखंडित,
लोगोों का शोषण करने मेें अपनी भमि ू का को पहचानना शरू ु कर असंगठित और स््थथानीय बना रहा।
दिया। z प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. आर.सी. मजूमदार के अनुसार, इसका चरित्र

 पंजाब और अन््य सीमावर्ती क्षेत्ररों मेें गोरखाओ,ं सिखोों और अनियमित अखिल भारतीय न होकर स््थथानीय, सीमित और खराब ढंग से सगं ठित
सैनिकोों की भर्ती के कारण उनके भविष््य के प्रति भय बढ़ गया। था।

1857 का विद्र 19
z पंजाब, सयं ुक्त प््राांत, रुहेलखंड, अवध, नर््मदा और चबं ल के बीच का क्षेत्र,  मद्रास और बंबई की सेनाएँ ब्रिटिश ईस््ट इडं िया कंपनी के प्रति वफादार
साथ ही उत्तर-पर्वी
ू सीमा पर बंगाल और बिहार के पश्चिमी हिस््ससे प्रभावित रहीीं।
क्षेत्र थे। z विद्रोह की समयपूर््व शुरुआत:
z दोस््त मोहम््मद के शासनकाल मेें अफगानिस््ततान मेें सौहार््दपूर््ण माहौल था।  मल ू तः 31 मई, 1857 को विद्रोह की योजना निर््धधारित थी, परंतु यह विद्रोह
राजपूताना कुछ हद तक निर््भर था, जबकि सिध ं आत््मनिर््भर था। मेरठ मेें 10 मई को ही शरू ु हो गया।
 इसके कारणोों मेें मग ं ल पांडे की फाँसी और कुछ भारतीय रे जिमेटोों ें को भगं
दिल्ली
करना जैसी घटनाएँ शामिल थीीं।
z 12 मई, 1857 को सिपाहियोों ने दिल््लली पर कब््जजा कर लिया। इग्ं ्लैैंड के z सगं ठनात््मक सामंजस््य और एकता का अभाव:
राजनीतिक एजेेंट साइमन फ्रेजर लेफ््टटिनेेंट विलोबी ने जवाबी हमला करने की
 भारतीय विद्रोहियोों के पास पर््ययाप्त संगठन क्षमता एवं एकता का अभाव
कोशिश की लेकिन अतं तः हार गए; परिणामस््वरूप, उन््होोंने दिल््लली के गोला- था और उन््हेें कमजोर केें द्रीय नेतत्ृ ्व का सामना करना पड़़ा।
बारूद के भडं ार मेें आग लगा दी।
 व््यक्तिगत बहादरु ी के बावजद ू , उनमेें समन््वय और एकजटु कार््रवाई का
z बहादरु शाह द्वितीय को दिल््लली का बादशाह घोषित किया गया। वह के वल अनभव ु नहीीं था।
नेता के रूप मेें काम कर रहा था जबकि वास््तविक सत्ता की बागडोर बख््त z नेतृत््व का अभाव:
खान के हाथ मेें थी। 20 सितंबर, 1857 को अग्ं रेजोों ने दिल््लली पर फिर से
 बाबू कंु वर सिंह, झाँसी की रानी, तात््यया टोपे और नाना साहब जैसे कुछ
कब््जजा कर लिया। सक्षम नेता उभरे ।
z दिल््लली को हेनरी बर््ननार््ड और बी.जी. विल््सन ने आजाद कराया था।  हालाँकि, समग्र नेतत्ृ ्व बिखरा हुआ था।
z बहादरु शाह द्वितीय, जिन््होोंने हुमायँू के मकबरे मेें शरण ली थी, को लेफ््टटिनेेंट z विद्रोहियोों के बीच व््यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता:
हडसन ने हिरासत मेें ले लिया और उन््हेें रंगून निर््ववासित कर दिया गया।  विद्रोह के नेता व््यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता और ईर््ष्यया से ग्रस््त थे, जिससे एकता
z जॉन निकोलसन ने कश््ममीरी गेट पर चढ़़ाई कर शहर के प्रवेश द्वार पर नियंत्रण मेें बाधा आ रही थी।
कर लिया तथा गंभीर रूप से घायल हो गए।  लगातार पारस््परिक षड्यंत्ररों ने आद ं ोलन को कमजोर कर दिया।
बिहार z बहादुर शाह जफर का कमजोर नेतृत््व:
कुंवर सिहं 1857 के महान विद्रोह के दौरान आदं ोलन के एक प्रमख  अति ं म मगु ल सम्राट मेें अग्ं रेजोों की तल ु ना मेें शक्ति और नेतत्ृ ्व की कमी
z ु नेतत्ृ ्वकर््तता
थे। वह बिहार के भोजपरु जिले के जगदीशपुर के रहने वाले थे। थी।
 क्षेत्ररों का प्रभावी ढंग से नेतत्ृ ्व करने और सरु क्षा करने मेें उनकी असमर््थता
z 80 वर््ष की आयु मेें उन््होोंने ब्रिटिश ईस््ट इडं िया कंपनी की कमान के तहत
सैनिकोों के खिलाफ, सशस्त्र सैनिकोों के एक चयनित दल का नेतत्ृ ्व किया। वे ने विद्रोह की विफलता मेें योगदान दिया।
गरु िल््लला यद्ध
ु कला के महारथी थे। z एकीकृत विचारधारा का अभाव:
 प्रमख ु नेताओ ं की कमी के कारण एकीकृ त विचारधारा के निर््ममाण मेें बाधा
z उन््हेें उनके भाई बाबू अमर सिहं और उनके सेनापति हरे कृष््ण सिहं ने
सहायता प्रदान की। उत््पन््न हुई।
 विद्रोह मेें एक सस ु ंगत दृष्टिकोण या दिशा का अभाव था।
अन्य राज्य z परंपरागत एवं निम््न कोटि के हथियार:
स््थथान विद्रोह के नेतृत््वकर््तता  विद्रोहियोों के पास अग् ं रेजोों की तल ु ना मेें घटिया हथियार थे, अग्ं रेजोों के
असम दीवान मनीराम दत्त पास आधनि ु क राइफलेें और हथियार थे।
 भारतीय विद्रोहियोों के पास परु ानी और सीमित तोपेें, तलवारेें और
महाराष्टट्र सातारा – रंगो बापूजी गुप्ते
आग््ननेयास्त्र थे।
हिमाचल प्रदेश कुल््ललू- राणा प्रताप सिंह और वीर सिंह z युद्ध तकनीक मेें ब्रिटिशोों की श्रेष्ठता:
 इस अवधि के दौरान ब्रिटिश नौसैनिक शक्ति बेजोड़ थी, जिससे उन््हेें
1857 के विद्रोह की विफलता के प्रमुख कारण महत्तत्वपर्ू ्ण लाभ प्राप्त हुआ।
z स््थथानीय प्रकृति:  ब्रिटिश सेना ने अपनी बेहतर तकनीक और संसाधनोों के साथ भारतीय

 अपनी तीव्रता के बावजद ू , 1857 का विद्रोह अपने दायरे और संगठन मेें विद्रोहियोों पर अप्रत््ययाशित प्रहार किए।
सीमित था। z निगरानी प्रणाली ने विद्रोहियोों के इरादोों को उजागर किया:
 डॉ. आर.सी. मजम ू दार ने इसे एक राष्टट्रव््ययापी आदं ोलन के बजाय स््थथानीय,  ब्रिटिशोों को विद्रोहियोों की योजनाओ ं के बारे मेें विस््ततृत जानकारी प्राप्त
विवश और खराब ढंग से संगठित बताया। थी, जिससे उन््हेें विद्रोह का मक ु ाबला करने मेें लाभ मिला।
z असमान प्रसार: z ब्रिटिश साम्राज््य के असीमित सस ं ाधन: ब्रिटिशोों ने विश्व के विभिन््न भागोों
 यह विद्रोह मख् ु ्य रूप से उत्तरी और मध््य भारत मेें केें द्रित था, जबकि पर्वी
ू , से भारी संख््यया मेें सैनिकोों को तैनात किया तथा पर््ययाप्त सैन््य क्षमता की मदद
दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्र इससे कम प्रभावित हुए। से भारतीय विद्रोहियोों को आसानी से परास््त कर दिया।

20  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


विद्रोह के परिणाम नकारात्मक प्रभाव
z नस््ललीय भेदभाव मेें वद्धि ृ : भारतीयोों को शर््मििंदगी और अपमान का सामना
सकारात्मक प्रभाव करना पड़़ा क््योोंकि अग्ं रेजोों ने उन््हेें अविश्वसनीय बताया था। इसके परिणामस््वरूप
z सत्ता हस््तताांतरण (भारत सरकार अधिनियम, 1858): अग्ं रेजोों और भारतीयोों के बीच नस््ललीय भेदभाव बढ़ गए थे।
 ईस््ट इडं िया कंपनी से ब्रिटिश राज को राजनीतिक और प्रशासनिक शक्ति z सामाजिक सध ु ारोों मेें परिवर््तन: विद्रोह ने अग्ं रेजोों को यह समझा दिया कि
का हस््तताांतरण भारत सरकार अधिनियम, 1858 के माध््यम से किया भारत की स््थथापित सामाजिक-धार््ममिक प्रथाओ ं मेें हस््तक्षेप करना प्रतिकूल
गया था। परिणाम देने वाला है। सामाजिक नियमोों के प्रति तीव्र प्रतिरोध के परिणामस््वरूप
 इस अधिनियम के तहत, राज््य सचिव राज््य के माध््यम से ताज (Crown)
अग्ं रेजोों को पीछे हटने के लिए मजबरू होना पड़़ा।
के अधीन था । z प्रशासनिक परिवर््तनोों पर ध््ययान केें द्रित: 1857 के विद्रोह के बाद, अग्ं रेजोों
 उन््हेें सीधे ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी बनाया गया। देश के मामलोों
ने पश्चिमी अवधारणाओ ं को लाने और एक स््थथापित एशियाई समाज मेें सधु ार
लाने के बजाय एक स््थथिर और प्रभावी प्रशासन स््थथापित करने पर ध््ययान केें द्रित
को निपटाने मेें उनकी सहायता और सलाह के लिए भारत परिषद की
करने का निर््णय लिया।
स््थथापना की गई।
z फूट डालो और राज करो की नीति: विद्रोह के बाद अग्ं रेजोों ने भारतीयोों को
z 1858 ई. मेें महारानी की घोषणा और उसके बाद की रूपरेखा: उन््होोंने
जातियोों और वर्गगों मेें बाँटने की अत््ययाचारी नीति अपनाई थी। एक समदु ाय का
भारतीय प्रशासन के अधिग्रहण की घोषणा की और लोगोों को आश्वासन दिया प्रयोग, दसू रे समदु ाय के खिलाफ भड़काने मेें किया गया। हिदं ओ ु ं को जातियोों
कि उनके साथ ब्रिटिश ताज के नागरिकोों के समान व््यवहार किया जाएगा। मेें बाँटने का प्रयास किया गया और मसु लमानोों को हिदं ओ ु ं से लड़ने के लिए
गवर््नर-जनरल को वायसराय बना दिया गया। मजबरू किया गया।
z भारतीय सेना का पुनर््गठन: अग्ं रेजी और भारतीय सेना के बीच अनपु ात को z हिंदू-मुस््ललिम मतभेदोों मेें बढ़ोतरी: विद्रोह के विफल होने से हिदं ओ ु ं और
पनु ःसयं ोजित करना, सेनाओ ं का सगं ठन आदि जैसे बड़़े परिवर््तन किए गए। मसु लमानोों के बीच गलतफहमी पैदा हो गई। मसु लमानोों ने विद्रोहियोों के प्रति
z शासन मेें भागीदारी मेें वृद्धि: अधिक तीव्र और व््ययापक समर््थन प्रदर््शशित किया।
 भारत सरकार अधिनियम, 1858 के तहत, ताज की शक्ति का प्रयोग z क्षेत्रीय विजय के स््थथान पर आर््थथिक शोषण: महान विद्रोह की विफलता
इग्ं ्लैैंड मेें स््थथित सरकार द्वारा किया जाना था, जिसमेें भारत के लिए राज््य के साथ ही, ब्रिटिश क्षेत्रीय विजय का यगु समाप्त हो गया तथा क्षेत्रीय विजय
सचिव की पदवी शामिल थी। के स््थथान पर अग्ं रेजोों द्वारा भारतीयोों का आर््थथिक शोषण शरू ु हो गया।
 यह कानन ू लगभग साठ वर्षषों तक भारत मेें नई ब्रिटिश रणनीति के लिए z मुस््ललिम पुनर््जजागरण मेें कमी: विद्रोह से पहले दिल््लली मेें बढ़ रहे मस््ललि ु म
आधारशिला का काम करता रहा। पनु र््जजागरण को एक अपरू णीय झटका लगा। सी.एफ. एड्रं यजू के अनसु ार, विद्रोह
ने आध््ययात््ममिक जीवन मेें जो घातक तबाही मचाई, उसका पता लगाना कठिन
z विलय नीति की समाप्ति: ब्रिटिश सरकार ने विलय के सिद््धाांत जैसी नीतियोों
नहीीं है।
को त््ययाग दिया और भारतीय राज््योों की अखडं ता की गारंटी दी।
z सेना मेें सरं चनात््मक परिवर््तन: इसके परिणामस््वरूप भारतीय सैनिकोों की
z गोद लेने का अधिकार स््ववीकृत: ब्रिटिश अधिकारियोों ने रियासतोों के महत्तत्व
संख््यया 1857 ई. के 2.4 लाख से घटकर 1863 ई. तक 1.4 लाख हो गई,
को समझा और इसलिए देशी राजाओ ं द्वारा गोद लेने के अधिकार को विधिवत
जबकि दसू री ओर यरू ोपीय सैनिकोों की संख््यया 45,000 से बढ़कर 65,000 हो
स््ववीकार किया गया। गई।
z धार््ममिक स््वतंत्रता और समान व््यवहार: महारानी की घोषणा के अनसु ार,
प्रमुख व्यक्तियोों के विचार और दृष्टिकोण
भारत मेें सभी लोगोों को धार््ममिक स््वतंत्रता प्रदान की गई और प्रशासन ने किसी
भी तरह से किसी की धार््ममिक भावनाओ ं को ठे स नहीीं पहुचँ ाने की शपथ ली। व््यक्ति वक्तव््य/विचार
z किसानोों को अधिभोग अधिकार: 1859 ई. के बंगाल किराया अधिनियम एस.एन. सेन विद्रोह के कारण ब्रिटिश शासन के संविधान मेें निहित
के बाद, जिन किसानोों के पास 12 वर्षषों से अधिक समय से विशेष फसली थे, यह धर््म की रक्षा के लिए शरू ु किया गया विद्रोह था
भमिू (खेत) थी, उन््हेें अधिभोग के अधिकार का हकदार बनाया गया। लेकिन स््वतंत्रता आंदोलन मेें बदल गया।
z अन््य सध ु ार: मौलाना भारतीय राष्ट्रीय चरित्र बहुत नीचे गिर चकु ा था विद्रोह के
 कोलकाता और मद्रास मेें विश्वविद्यालय स््थथापित किए गए। अबुल लिए अंग्रेजोों को जिम््ममेदार ठहराया और लोगोों मेें सामान््य
 दड ं प्रक्रिया संहिता की शरुु आत की गई। कलाम असंतोष को स््ववीकार किया।
 भारतीय उच््च न््ययायालय अधिनियम का अधिनियमन किया गया। आजाद
 भारतीय दड ं संहिता (1858) पंडित सिर््फ सिपाही विद्रोह ही नहीीं, नागरिक विद्रोह का स््वरूप
 भारतीय परिषद अधिनियम, 1861 के पारित होने से भारत मेें पोर््टफोलियो
जवाहरलाल भी सामने आया। वास््तविक रूप सामंतवाद का था,
प्रणाली की शरुु आत हुई नेहरू हालाँकि, कुछ राष्टट्रवादी तत्तत्व भी मौजूद थे।

1857 का विद्र 21
z इनमेें से सैन््य विद्रोह और राष्ट्रीय स््वतंत्रता संग्राम इतिहासकारोों द्वारा समर््थथित
स््टटेनली यह विद्रोह से कहीीं अधिक था, ... फिर भी प्रथम स््वतंत्रता
सबसे महत्तत्वपर्ू ्ण व््ययाख््ययाएँ थीीं।
वोलपर््ट संग्राम से कहीीं कम।
परिप्रेक्ष्य: एक सैन्य विद्रोह
वी.डी. भारतीय स््वतंत्रता संग्राम का प्रथम विद्रोह था।
सावरकर z इतिहासकारोों के विचार:
 सर जॉन लारे न््स और सीले जैसे इतिहासकारोों के अनस ु ार 1857 ई. का
डॉ. ताराचंद विद्रोह विशेष रूप से मध््यम चरित्र का था और अपनी विद्रोह एक सैन््य विद्रोह था।
खोई हुई शक्ति को वापस पाने के लिए शक्तिहीन वर््ग का  मुंशी जीवनलाल, मोइनुद्दीन, सर सैय््यद अहमद खान, दुर््गगा दास
प्रतिनिधित््व करता है। बंदोपाध््ययाय आदि समकालीन भारतीयोों ने भी यही राय साझा की।
जे म््स हिदं ू मस््ललि
ु म षड्यंत्र था।  “सिपाही विद्रोह और 1857 का विद्रोह” पस् ु ्तक मेें आर.सी. मजूमदार
आउट्रम एवं ने तर््क दिया है कि यह विद्रोह स््वतंत्रता संग्राम नहीीं था।
ट्रेलर z इस तर््क के कारण:
 सैन््य केें द्र के निकट स््थथानीय प्रसार: विद्रोह के वल उत्तर भारत के एक
विद्रोह की प्रकृति छोटे से हिस््ससे तक ही सीमित था अतः यह संपर्ू ्ण उत्तर भारत या दक्षिण
भारत के अन््य क्षेत्ररों मेें न फै ल सका।
z विद्रोह की प्रकृति पर इतिहासकारोों के दृष्टिकोण:
 सैन््य छावनी क्षेत्ररों तक ही सीमित: विद्रोह सैन््य छावनी क्षेत्र मेें शरू ु
 अग्ं रेजोों ने इसे "सैन््य विद्रोह" करार दिया, क््योोंकि इसमेें लोकप्रिय समर््थन हुआ और सैन््य केें द्ररों मेें विकसित हुआ और प्रभाव प्राप्त किया।
या प्रमख ु नेतत्ृ ्व का अभाव था।  सैनिकोों की सक्रिय भागीदारी: जब सैनिकोों ने अग् ं रेजोों के खिलाफ
 हालाँकि, भारतीय देशभक्ततों ने इसे "राष्ट्रीय स््वतंत्रता संग्राम" के रूप मेें हथियार उठाना शरू ु किया, तो नाना साहब, बहादरु शाह और झाँसी की
सराहा। रानी जैसे क््राांतिकारी आगे आए।
 ब्रिटिश सैनिकोों द्वारा दमन: यदि यह राष्ट्रीय स््वतंत्रता संग्राम होता, तो
z 1857 ई. के विद्रोह की प्रकृ ति और चरित्र मेें निम््नलिखित तत्तत्व शामिल थे:
ब्रिटिश सैनिकोों का एक छोटा-सा हिस््ससा विद्रोह को दबा नहीीं सकता था।
 सैन््य विद्रोह
 सामान््यतः गाँव अप्रभावित थे : 1857 के विद्रोह मेें सामान््यतः गाँवोों
विद्रोह की प्रकृति की बहुत कम भागीदारी देखी गई। यह आदं ोलन शहरोों और कस््बोों तक
ही सीमित रहा तथा आसपास के गाँवोों तक नहीीं फै ला।
औपनिवेशिक राष्टट्रवादी परिप्रेक्ष्य: प्रथम स्वतंत्रता संग्राम
z विद्रोह की भयावहता को कम करके z विद्रोह को औपनिवेशिक z डॉ. के .एम. पणिक््कर ने इस विद्रोह को राष्ट्रीय क््राांति कहा है।
आक ं ना प्रभत्ु ्व के खिलाफ भारतीय z वी.डी. सावरकर और अशोक मेहता ने इसे स््वतंत्रता संग्राम कहा है।
z इसके राष्टट्रवादी चरित्र को नकारना प्रतिरोध के उदाहरण के रूप मेें z पंडित नेहरू के शब््दोों मेें: यह विद्रोह सैन््य विद्रोह से कहीीं अधिक था और
z इसके व््ययापक सामाजिक आधार को महिमामडं ित किया जाता है। यह तेजी से फै ला तथा एक लोकप्रिय विद्रोह और भारतीय स््वतंत्रता सग्ं राम
नजरअदं ाज करना z सर सैयद अहमद खान की का स््वरूप प्राप्त कर लिया।
z विद्रोह की वैधता को अस््ववीकार करना पस्ु ्तक - "असहाब-ए-बगावत- z कंजर्वेटिव पार्टी के समकालीन नेता श्री बेेंजामिन डिजरायली के अनुसार,
z यह सिर््फ एक सिपाही विद्रोह था,जो ए-हिदं " यह विद्रोह किसी तात््ककालिक कारण का परिणाम नहीीं था, बल््ककि यह एक
परू ी तरह से स््ववार््थ और देशभक्ति से z प्रथम राष्ट्रीय स््वतंत्रता संग्राम- सोची-समझी और संगठित योजना का परिणाम था।
परिपर्ू ्ण था - सर जॉन सील वीर सावरकर z इस तर््क के कारण:
 इसका प्रसार व््ययापक था और समाज के सभी वर्गगों के लोग इसमेें
z सभ््यता और बर््बरता के बीच सघं र््ष
- टी.आर. होम््स शामिल हुए।
 देशी सैनिकोों, जमीींदारोों और देशी शासकोों ने भी इसमेें सक्रिय भागीदारी
 मुगल सत्ता को बहाल करने का प्रयास दिखाई।
 अभिजात वर््ग की प्रतिक्रिया  विद्रोह कई महीनोों तक जारी रहा जो आम लोगोों के समर््थन के बिना संभव

 कृ षकोों की प्रतिक्रिया नहीीं था।


 अग् ं रेजोों के खिलाफ विद्रोह मेें हिदं ू और मसु लमान दोनोों ने संयक्त ु रूप से
 राष्ट्रीय क््राांति
भाग लिया।
 अश्वेत और श्वेत के बीच वर््चस््व के लिए नस््ललीय सघं र््ष  अधिकतर, आम लोगोों और नागरिकोों को अग् ं रेजोों द्वारा दडं ित किया
 प्राच््य और पाश्चात््य सभ््यता और संस््ककृति के बीच संघर््ष गया था।
 राष्ट्रीय स््वतंत्रता संग्राम  परु ु षोों के साथ-साथ महिलाओ ं ने भी इस विद्रोह मेें सक्रिय भाग लिया।

22  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


अतः 1857 के महान विद्रोह के परिणाम तात््ककालिक और दरू गामी दोनोों के बजाय, ब्रिटिश अधिकारियोों ने इसके सदृु ढ़़ीकरण पर अधिक ध््ययान केें द्रित
दृष्टिकोणोों से महत्तत्वपूर््ण रहे जिन््हेें उसकी प्रकृ ति पर इतिहासकारोों के बहुआयामी करना शरू ु कर दिया।
दृष्टिकोण से समझा जा सकता है। z इसे एक ऐसे यग ु के रूप मेें देखा जाता है जो तीव्र सधु ार के यगु और कठोर
1857 के विद्रोह मेें, क्षेत्रीय धार््ममिक एकता रूढ़़िवाद के दौर के बीच संक्रमण को दर््शशाता है। इस समयावधि मेें, अग्ं रेजोों ने
z अयोध््यया (बाबा रामचरण दास और मौलाना अमीर अली): निम््नलिखित क्षेत्ररों मेें परिवर््तन किए-
 अयोध््यया के मौलवी के रूप मेें जाने जाने वाले मौलाना अमीर अली और  अवसरं चनात््मक विकास: विद्रोह के बाद के वर्षषों मेें, 1869 ई. मेें स््ववेज

हनमु ानगढ़़ी के बाबा रामचरण दास ने सशस्त्र प्रतिरोध प्रयासोों का नेतत्ृ ्व नहर खोली गई जिससे इग्ं ्लैैंड और भारत के बीच आवागमन सल ु भ हुआ।
किया।  शासन:
 उन््हेें गिरफ््ततार कर लिया गया और एक साथ अयोध््यया के कुबेर टीले पर
 लॉर््ड मे यो ने 1870 ई. मेें राजस््व के लिए विकेें द्रीकरण की प्रवृत्ति
एक इमली के पेड़ पर फाँसी दे दी गई। शरू
ु की। बाद मेें, लॉर््ड रिपन ने इस प्रक्रिया को और अधिक व््ययापक
z रोहिलखंड (खान बहादुर खान और खुशी राम): बनाने का प्रयास किया।ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकोों ने भारत को
 11 मई, 1857 को दिल््लली मेें स््वतंत्र भारतीय सरकार की घोषणा के बाद
बंगाल, बॉम््बबे और मद्रास प्रेसीडेेंसी मेें विभाजित कर दिया।
खान बहादरु खान को मगु ल सम्राट का उप प्रतिनिधि नियक्त ु किया गया। गवर््नर की कार््यकारी परिषद को सरकार की देखरे ख का काम सौौंपा
 उन््होोंने राज््य पर शासन करने के लिए हिद ंओु ं और मसु लमानोों को मिलाकर गया था।
आठ सदस््योों की एक समिति बनाई, जिसमेें खश ु ी राम उनके अधीनस््थ
 सेवा सब ं ंधी मामले:
थे।
 सिविल सेवा हेतु आयु मानक: 1853 ई. मेें सिविल सेवा के
 इस सरकार ने गौहत््यया पर प्रतिबंध लगाकर हिद ं ू भावनाओ ं का सम््ममान
किया। लिए आवेदन करने की काननू ी न््ययूनतम आयु 23 वर््ष थी। 1860
ई. मेें इसे घटाकर 22 वर््ष, 1866 मेें 21 वर््ष तथा 1876 मेें 19 वर््ष
 खान और खश ु ी राम ने अग्ं रेजोों के खिलाफ कई लड़़ाइयोों मेें सेना का नेतत्ृ ्व
किया, लेकिन अतं तः बरे ली मेें एक महत्तत्वपर्ू ्ण लड़़ाई मेें हार गए। 20 मार््च, कर दिया गया।
1860 को परु ानी कोतवाली के बाहर कई अनयु ायियोों के साथ उन््हेें भी  सैन््य प्रबंधन: अग् ं रेजोों ने सैन््य बलोों को विभिन््न समहोों
ू मेें विभाजित
मार दिया गया। करने का प्रयास किया।
z मध््य भारत:  शिक्षा: पर््ववर्
ू ती विचारधाराओ ं के विपरीत, उच््च शिक्षा और बद्धि ु जीवियोों
 झाँसी: रानी लक्ष्मीबाई ने मस््ललि ु म कमांडरोों गल ु ाम गौस खान और खदु ा को तिरस््ककृ त किया जाता था क््योोंकि उन््हेें समकालीन राष्टट्रवाद के उपकरण
बख््श के साथ मिलकर ब्रिटिश सेना का जमकर विरोध किया। के रूप मेें माना जाता था।
 रानी लक्ष्मीबाई की निजी अग ु म महिला मजंु ार ने 18 जनू ,
ं रक्षक मस््ललि  प्रेस एवं सच ं ार:
1858 को ग््ववालियर के कोटा-की-सराय मेें हुए यद्ध ु मेें रानी के साथ अपने  भारतीय भाषाओ ं मेें प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाने के लिए 1858 ई.
प्राणोों की आहुति दे दी थी। का वर््ननाक््ययूलर प्रेस एक््ट पारित किया गया।
 मालवा क्षेत्र: तात््यया टोपे, राव साहब, लक्ष्मी बाई, फिरोजशाह और
 1870 ई. मेें टेलीग्राफ प्रणाली स््थथापित की गई थी।
मौलवी फजल हक ने एक संयक्त ु कमान बनाई, जिसमेें 70-80 हजार
लड़़ाकोों की एक बड़़ी विद्रोही सेना गठित की गई। इस सेना ने अग्ं रेजोों के विद्रोहियोों की विफलता के बावजूद, ब्रिटिश सरकार पर भारत के प्रति अपना
खिलाफ अनेक विद्रोहोों मेें सफलता हासिल की। दृष्टिकोण बदलने का दबाव डाला गया। अगस््त, 1858 मेें ईस््ट इडं िया कंपनी ने
z दिल््लली: भारत पर ब्रिटिश राज के हाथोों नियंत्रण खो दिया और रानी विक््टटोरिया को
 हिद
भारत की महारानी या भारत की साम्राज्ञी घोषित किया गया। परिणामस््वरूप,
ं ू और मस््ललि
ु म दोनोों समदु ायोों ने ब्रिटिश शासन को कमजोर करने के
लिए सहयोग किया और दिल््लली के सल्ु ्ततान बहादरु शाह जफर को अपना ईस््ट इडं िया कंपनी का शासन समाप्त हो गया।
नेता घोषित किया। निष्कर््ष
 उन््होोंने प्रतिज्ञा की कि सफल होने पर बहादरु शाह जफर को दिल््लली के 1857 ई. के विद्रोह को सफल या असफल अध््ययाय के रूप मेें वर्गीकृत
सल्ु ्ततान के रूप मेें पनु ः स््थथापित किया जाएगा, जिससे जन-एकता और नहीीं किया जा सकता है। हालाँकि, इसमेें साम्राज््यवाद के खिलाफ बीज थे
एकजटु ता प्रदर््शशित हुई। और इसने लोगोों को राष्टट्रवाद के लिए एकजुट किया। अपनी सीमाओ ं और
1857 का विद्रोह: औपनिवेशिक भारत के कमजोरियोों के बावजदू , देश को विदेशी शासन से आजाद कराने के लिए
प्रति ब्रिटिश नीतियोों के विकास मेें एक महत्त्वपूर््ण मोड़ सिपाहियोों का प्रयास एक देशभक्तिपर्ू ्ण कार््य था। इसने ब्रिटिश शासन के प्रतिरोध
z 1857 के विद्रोह ने अगले 90 वर्षषों तक औपनिवेशिक भारत के प्रति ब्रिटिश की स््थथानीय परंपराओ ं को स््थथापित किया, जिसने एक आधनि ु क राष्ट्रीय आंदोलन
नीतियोों को महत्तत्वपर्ू ्ण रूप से प्रभावित किया। अपने साम्राज््य का विस््ततार करने का मार््ग प्रशस््त किया।

1857 का विद्र 23
विगत वर्षषों के प्रश्न
प्रमुख शब्दावलियाँ 1. अधिकांश भारतीय सिपाहियोों वाली ईस््ट इडं िया की सेना क््योों
तत््ककालीन भारतीय शासकोों की संख््यया बल मेें अधिक और बेहतर
1857 का विद्रोह, ब्रिटिश उपनिवेशवाद, व््यपगत सिद््धाांत, सहायक
सुसज््जजित सेना से लगातार जीतती रही ? कारण बताएँ।
संधि, आर््थथि क शोषण, नस््ललीय भेदभाव, सैन््य शिकायतेें, हिंदू-
मुस््ललिम एकता, बहादरु शाह जफर, क्षेत्रीय विविधताएँ, 1857 के  (2022)
बाद ब्रिटिश नीतियाँ, 1858 की महारानी की घोषणा, शासन मेें 2. यह स््पष्ट कीजिए कि 1857 का विप््लव किस प्रकार औपनिवेशिक
परिवर््तन, आर््थथि क पतन, सामाजिक कानून, चर्बी वाले कारतूस, भारत के प्रति ब्रिटिश नीतियोों के विकासक्रम मेें एक महत्तत्वपूर््ण
राष्ट्रीय स््वतंत्रता संग्राम आदि। ऐतिहासिक मोड़ है। (2016)

24  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


सामाजिक-धार््ममि क सुधार
4 आंदोलन
परिचय z इन आदं ोलनोों के नेताओ ं ने z इन पहलोों ने पारंपरिक
आधनि ु क पश्चिमी सिद््धाांतोों को भारतीय सामाजिक-सांस््ककृ तिक
z 19वीीं शताब््ददी के पर््व
ू वार््ध मेें, भारतीय समाज की प्रमख
ु विशेषता जाति आधारित
व््यवस््थथा, सामाजिक पतन और कठोरता थी। इसने कुछ ऐसी प्रथाओ ं का मानने के बावजदू , पश्चिमी तर््ज पर मान््यताओ ं के प्रगतिवाद और
पालन किया जो मानवीय मान््यताओ ं या मल्ू ्योों के विरुद्ध थीीं लेकिन धर््म के समाज का परू ी तरह से पनु र््गठन करने तर््कवाद को दिखाने का प्रयास
नाम पर उन््हेें बरकरार रखा गया। इसलिए समाजिक परिवर््तन की आवश््यकता से इनकार कर दिया। किया।
महससू की जाने लगी। भारतीय समाज की संरचना को आधनि ु क बनाने के z पश्चिमीकरण के स््थथान पर z सामाजिक प्रतिष्ठा को पनु र्जीवित
उद्देश््य से अनेक आदं ोलन हुए। समाज को सधु ारने और पनु र्जीवित करने के आधनि ु कता उनका लक्षष्य था। करना इनका लक्षष्य था।
प्रयास मेें, कई लोगोों और आदं ोलनोों ने सामाजिक और धार््ममिक मानदडों ों को
z उदाहरण के लिए: ब्रह्म समाज, z उदाहरण के लिए: वहाबी
बदलने के लिए काम किया।
अलीगढ़ आदं ोलन आदं ोलन, देवबंद आदं ोलन और
सामाजिक-धार््ममिक आंदोलनोों की प्रकृति आर््य समाज आदं ोलन।
z धार््ममिक और सामाजिक मद्ददों ु के बीच संबंधोों की मान््यता आदं ोलनोों और उनके सामाजिक-धार््ममिक सुधार आंदोलनोों के कारण
नेताओ ं के सधु ार दृष्टिकोण की विशेषता थी। उन््होोंने धार््ममिक अवधारणाओ ं का
उपयोग करके सामाजिक मानदडों ों और रीति-रिवाजोों को बदलने की कोशिश 1. औपनिवेशिक आलोचना पर प्रतिक्रिया:
की।  ब्रिटिश शासन और आलोचना: ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियोों

z उदाहरण के लिए, समाज मेें जाति भेद को खत््म करने के लिए, के शव चद्रं सेन और ईसाई मिशनरियोों ने अक््सर भारतीय सामाजिक और धार््ममिक प्रथाओ ं
ने "ईश्वरीय एकता और मानव जाति के बंधत्ु ्व" की व््ययाख््यया की। को बर््बर और पिछड़़ा बताया, विशेष रूप से सती प्रथा (पति की मृत््ययु पर
z सधु ार आदं ोलनोों ने जिन मख्ु ्य सामाजिक मद्ददों
ु को उठाने की कोशिश की वे थे: चिता मेें विधवा को जलाने की प्रथा), बाल विवाह और जाति व््यवस््थथा
 जातिवाद और छुआछूत की आलोचना की।
 महिला उत््पपीड़न से मक्ु ति, जिसमेें सती प्रथा, बालहत््यया, बाल विवाह और  उदाहरण: राजा राम मोहन राय ने आशि ं क रूप से इन आलोचनाओ ं
विधवा विवाह को मान््यता और सामाजिक ज्ञान को बढ़़ावा देने के लिए की प्रतिक्रिया के रूप मेें 1828 मेें ब्रह्म समाज की स््थथापना की। उनका
शिक्षा से संघर््ष शामिल था। उद्देश््य हिदं ू धर््म को शद्धु करना और सती जैसी प्रथाओ ं को समाप्त करना
 धार््ममिक मद् ु दे जैसे बहुदवव
े ाद, मर््तति
ू पजू ा, धार््ममिक अधं विश्वास और परु ोहित था, जिसके खिलाफ उन््होोंने सफलतापर््वू क अभियान चलाया, जिसके
वर््ग का शोषण। परिणामस््वरूप 1829 मेें सती उन््ममूलन अधिनियम लागू हुआ।
सुधारवादी और पुनरुत्थानवादी आंदोलन 2. सामाजिक सुधार की इच््छछा:
z सधु ारवादी और पनु रुत््थथानवादी दोनोों आदं ोलनोों ने समाज मेें सामाजिक-धार््ममिक  आंतरिक सामाजिक आलोचना: कई भारतीय बद्धि ु जीवियोों ने अपनी
सधु ारोों को आगे बढ़़ाने मेें योगदान दिया, जिसने अतं तः एक समकालीन और सामाजिक प्रथाओ ं पर सवाल उठाना और उनकी आलोचना करना शरू ु
दरू दर्शी समाज के उद्भव का मार््ग प्रशस््त किया। कर दिया, उन प्रथाओ ं को हटाने के लिए सधु ार की आवश््यकता को
सुधारवादी आंदोलन पुनरुत््थथानवादी आंदोलन पहचानने पर बल दिया, जिन््हेें प्रतिगामी और दमनकारी माना जाता था।
z ये समह ू किसी सामाजिक प्रथा ये आदं ोलन धर््म की खोई हुई  उदाहरण: ईश्वर चद्र
z
ं विद्यासागर ने विधवा पनु र््वविवाह का समर््थन किया,
या धार््ममिक संस््थथा को अपनाने या शद्धु ता पर दृढ़ता से निर््भर थे जिससे 1856 का हिदं ू विधवा पनु र््वविवाह अधिनियम बना, जो उनके समर््थन
अस््ववीकार करने के निष््कर््ष पर जिसे वे पनु र््स्थथापित करने का और सधु ारवादी विचारधारा का प्रत््यक्ष परिणाम था।
पहुचँ ने के लिए तर््क और बद्धिव ु ाद प्रयास कर रहे थे। 3. शिक्षित मध््यम वर््ग का उदय:
पर अधिक निर््भर थे। z पन ु रुत््थथानवादी आदं ोलन तर््क  पश्चिमी शिक्षा: अग् ं रेजोों द्वारा पश्चिमी शिक्षा की शरू
ु आत से शिक्षित
z सामाजिक-सांस््ककृ तिक क्षेत्र मेें और विवेक के बजाय परंपरा के भारतीयोों के एक नए वर््ग का उदय हुआ जो उदार और प्रगतिशील विचारोों
आधनि ु क पश्चिमी म ल्
ू ्योों, जै स े अनरू ु प थे। से अवगत हुए।
लैैंगिक समानता और प्रत््ययेक को  उदाहरण: हेनरी लई ु स विवियन डेरोजियो से प्रेरित यंग बंगाल आदं ोलन,
अपना जीवन साथी को चनु ने की बंगाल क्षेत्र के यवु ाओ ं द्वारा किया गया एक बौद्धिक और सामाजिक
स््वतंत्रता, उदार विचार आदि इन आदं ोलन था, जो तर््कवाद का समर््थन करता था और मौजदू ा धार््ममिक और
आदं ोलनोों की विशेषताएँ थीीं। सामाजिक मानदडों ों की आलोचना करता था।
4. धार््ममिक पुनरुत््थथानवाद: 3. परिवर््तन के प्रतीक के माध््यम से सुधार : यह व््यक्तिगत, अपरंपरागत
 धर््म को पुनर्जीवित और तर््क सगत ं बनाने की आवश््यकता: पश्चिमी गतिविधि के माध््यम से परिवर््तन के प्रतीक उत््पन््न करने का एक प्रयास था।
सांस््ककृ तिक और धार््ममिक वर््चस््व से कथित खतरे के जवाब मेें, सदियोों  उदाहरण के लिए, 'डेरोज़़ियन' या 'यंग बंगाल', सध ु ार आदं ोलन के
से भ्रष्ट और विकृ त माने जाने वाले तत्तत्ववों को हटाकर भारतीय धर्ममों की भीतर एक आक्रामक विचारधारा का प्रतीक था। वे पश्चिमी दनि ु या की नई
पनु र््स्थथापना हेतु एक आदं ोलन चलाया गया। सोच से काफी प्रभावित थे और सामाजिक मद्ददों ु पर उनका दृष्टिकोण ज््ययादा
 उदाहरण: स््ववामी दयानंद सरस््वती ने 1875 मेें आर््य समाज की स््थथापना तार््ककि क था।
की, जिसने हिदं ू धर््म को उसकी कथित शद्ध ु वैदिक जड़ों की ओर लौटने 4. सामाजिक कार््य के माध््यम से सुधार: रामकृ ष््ण मिशन, आर््य समाज और
की मांग की, वेदोों के अस््ततित््व पर जोर दिया और मर््तति ू पजू ा और जाति ईश्वर चंद्र विद्यासागर की सभी गतिविधियोों ने इस पद्धति को प्रदर््शशित किया।
प्रतिबंधोों की निंदा की।  उदाहरण के लिए, रामकृ ष््ण मिशन और आर््य समाज सामाजिक कार्ययों मेें
5. महिलाओ ं और वंचित समूहोों का सशक्तिकरण: लगे रहे जिसके माध््यम से उन््होोंने सधु ार और उत््थथान की अवधारणाओ ं को
 सामाजिक अन््ययाय: गंभीर सामाजिक भेदभाव और बनि ु यादी अधिकारोों फै लाने का प्रयास किया।
की कमी से पीड़़ित महिलाओ ं और निम््न जातीय समहोू ों की दर््दु शा के बारे सामाजिक-धार््ममिक सुधार आंदोलनोों का वर्गीकरण
मेें जागरूकता बढ़ रही थी।
धर््म पर आधारित भगू ोल पर आधारित वर््ग पर आधारित
 उदाहरण: जातिगत उत््पपीड़न के खिलाफ लड़ने और सामाजिक समानता

को बढ़़ावा देने के लिए ज््ययोतिराव फुले ने 1873 मेें सत््यशोधक समाज हिदं ू सुधार आंदोलन पूर्वी भारत महिलाओ ं की दशा
की स््थथापना की। वह महिलाओ ं और निचली जातियोों की शिक्षा के भी मस््ललिम
ु सुधार आंदोलन पश्चिम भारत जातिगत भेदभाव
प्रबल समर््थक थे। सिख सुधार आंदोलन उत्तर भारत
6. वैश्विक आंदोलनोों का प्रभाव:
पारसी सुधार आंदोलन दक्षिण भारत
 वैश्विक विचारधाराओ ं का प्रभाव: उन््ममूलनवाद, मताधिकारवाद और

अन््य सधु ार आदं ोलनोों जैसे वैश्विक आदं ोलनोों के प्रभाव ने भारतीय हिंद ू सुधार आंदोलन
विचारकोों और नेताओ ं को अपने समाज मेें समान परिवर््तन लागू करने
हिदं ू सामाजिक-धार््ममिक सुधार आंदोलन ज््ययादातर प्रकृति मेें सुधारवादी थे,
के लिए प्रभावित किया।
हालांकि, कुछ आंदोलन, जैसे आर््य समाज आंदोलन, रामकृ ष््ण मिशन आदि
 उदाहरण: वैश्विक महिला मताधिकार आद ं ोलन से प्रभावित होकर पंडिता पुनरुत््थथानवादी थे।
रमाबाई ने भारतीय महिलाओ ं की मक्ु ति और उनके शिक्षा के अधिकार
की वकालत की। राजा राम मोहन राय और ब्रह्म समाज
z परिचय : वह एक उत््ककृ ष्ट विद्वान, मानवतावादी और देशभक्त थे। राष्टट्र के प्रति
सुधार के उद्देश्य से अपनाई गई विधियााँ
उनके अगाध प्रेम के कारण उनका जीवन भारतीयोों के सामाजिक, धार््ममिक,
सामाजिक-धार््ममिक प्रथाओ ं को बदलने के प्रयास मेें निम््नलिखित चार तकनीकोों बौद्धिक और राजनीतिक नवीनीकरण के लिए समर््पपित था।
का उपयोग किया गया:
z सगं ठन से सबं द्ध: आत््ममीय सभा (1814), ब्रह्म सभा (1828) (बाद मेें इसका
1. आंतरिक सुधार: राममोहन राय ने इस तकनीक को खोजा। उनके अनुसार,
नाम बदलकर ब्रह्म समाज कर दिया गया)
सफल होने के लिए किसी भी सुधार को समाज के भीतर से ही लोगोों की
z योगदान:
जागरूकता बढ़़ाने की आवश््यकता होती है। इस पद्धति की वकालत करने
 वैज्ञानिक स््वभाव पर ध््ययान: बहुदवव े ाद, मर््तति
ू पजू ा की निंदा की और
वाले लोगोों ने निबंध प्रकाशित किए थे और विभिन््न सामाजिक मद्ददों ु पर
चर््चचा और बहस की थी। मानवीय तर््क और विवेक की वकालत की क््योोंकि वे किसी भी धार््ममिक
 उदाहरण के लिए, राममोहन का सती प्रथा के विरुद्ध अभियान, विधवा
ग्रंथ से अधिक महत्तत्वपर््णू हैैं।
विवाह पर विद्यासागर के पर्चे और बी.एम मालाबारी का सम््मति  अंधविश्वास पर प्रहार:अवतार मेें आस््थथा को त््ययाग दिया और नैतिकता,

(सहमति) की उम्र बढ़़ाने के प्रयास। अच््छछाई और एक अपरिवर््तनीय, शाश्वत ईश्वर की पजू ा को प्रोत््ससाहित किया।
2. विधान के माध््यम से सुधार : यह सरकारी कार््रवाई की प्रभावशीलता का  उपे क्षित समूहोों के लिए विरोध प्रदर््शन: समाज मेें प्रचलित जाति

प्रतीक था। इस दृष्टिकोण के समर््थकोों का मानना ​​था कि सुधार पहल को व््यवस््थथा और छुआछूत की आलोचना की।
सफल बनाने के लिए सरकारी एवं कानूनी सहायता आवश््यक है।  महिला सशक्तिकरण: सती प्रथा, बहुविवाह और बाल विवाह जैसी

 उदाहरण के लिए, बंगाल मेें के शव चंद्र सेन, महाराष्टट्र मेें महादेव प्रथाओ ं का विरोध किया। उनके प्रयासोों से 1829 मेें सती प्रथा समाप्त हुई।
गोविंद रानाडे और आंध्र मेें वीरेशलिंगम जैसे व््यक्तियोों ने सरकार से ऐसे  आधुनिक शिक्षा: वह कलकत्ता के हिद ं ू कॉलेज (प्रेसीडेेंसी कॉलेज) की
काननोू ों की वकालत करने की अपील की, जो सहमति की उम्र बढ़़ाएगा, स््थथापना मेें शामिल थे। इसके अतिरिक्त, उन््होोंने अपने ससं ाधनोों से कलकत्ता
नागरिक संघोों को वैध बनाएगा और विधवा विवाह की अनमति ु देगा। मेें एक अग्ं रेजी स््ककू ल का समर््थन किया।

26  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


z साहित््ययिक कार््य: z रामकृष््ण आंदोलन
 तह ु फ़त-उल-मवु ाहिदीन (एके श्वरवादियोों के लिए एक उपहार)  रामकृष््ण आंदोलन की स््थथापना 1887 मेें रामकृ ष््ण परमहस ं की शिक्षाओ ं
 यीशु के उपदेश (1820) पर की गई थी।
 वेदोों और उपनिषदोों का बांग््लला मेें अनवु ाद  आद ं ोलन के दो मुख््य लक्षष्य थे:
 त््ययाग और व््ययावहारिक आध््ययात््ममिकता के लिए प्रतिबद्ध भिक्ओ षु ं के
 संवाद कौमदी

एक समहू की स््थथापना करना , जिनमेें से शिक्षकोों और कार््यकर््तताओ ं
 मिरात-उल-अखबार (फ़़ारसी)
को रामकृ ष््ण के जीवन का उदाहरण देकर सार््वभौमिक सत््य के वैदिक
 आत््ममीय सभा का प्रकाशन (बंगाल गजट)
संदशे को फै लाने के लिए भेजा जाएगा।
दयानंद सरस्वती और आर््य समाज  जाति, पंथ या रंग की परवाह किए बिना सभी परु ु षोों, महिलाओ ं
z परिचय: दयानन््द सरस््वती के बचपन का नाम मल ू शक ं र था। (बाद मेें स््ववामी और बच््चोों को ईश्वर की सच््चची अभिव््यक्ति के रूप मेें देखते हुए
दयानंद सरस््वती के नाम से जाने गए) उन््होोंने 1875 मेें आर््य समाज की स््थथापना प्रचार और धर््ममार््थ कार््य जारी रखना।
की जोकि आधनि ु क भारत मेें एक महान हिदं ू सधु ारवादी आदं ोलन था । z स््ववामी विवेकानंद
z सबं द्ध सगं ठन: 1886 मेें आर््य समाज, दयानंद एग्ं ्ललोवैदिक (DAV) कॉलेज,  उन््होोंने 1893 मेें शिकागो, इलिनोइस मेें धर््म सस ं द के उद्घाटन मेें भारत
शद्धि
ु आदं ोलन। का प्रतिनिधित््व किया।
z साहित््ययिक कार््य: सत््ययार््थ प्रकाश  वेदांत प्रणाली को ग्रहण किया।

z शुद्धि आंदोलन:  जीव (जीवित वस््ततुओ)ं की सेवा के दर््शन का प्रचार शिव की पूजा है।

 आर््य समाजियोों ने भारत के सामाजिक-धार््ममिक और राजनीतिक एकीकरण यंग बंगाल आंदोलन


के लिए शद्धि
ु आदं ोलन को एक शक्तिशाली उपकरण के रूप मेें देखा। z हेनरी विवियन डेरोजियो:
 इसमेें उन हिदं ओ ु ं का पनु र््धर््माांतरण शामिल था जो पहले स््ववेच््छछा से या  इस आद ं ोलन का नेतत्ृ ्व हेनरी विवियन डेरोजियो ने किया था।
जबरन अन््य धर्ममों मेें परिवर््ततित हो गए थे, लेकिन अब हिदं ू धर््म मेें लौटने  आधनि ु क भारत के प्रथम राष्टट्रवादी कवि, जो प्रगतिशील प्रवृत्तियोों के
के लिए तैयार थे, साथ ही अन््य धर्ममों के धर््माांतरण को रोकने पर भी प्रेरणास्रोत भी थे और पश्चिमी शिक्षा और विज्ञान का प्रसार करने वाले
ध््ययान केें द्रित किया। प्रथम विचारक भी थे।
z योगदान: फ््राांसीसी क््राांति से प्रभावित: हेनरी विवियन डेरोजियो फ््राांसिसी क््राांति (1789)
 भे दभाव मुक्त समाज: एकजट ु वर््ग (धार््ममिक, सामाजिक और राष्ट्रीय) के विचार स््वतंत्रता, समानता और बंधत्ु ्व से काफी प्रभावित थे।
और जाति-मक्त ु समाज का दृष्टिकोण। विदेशी कब््जजे से मक्ु ति और सभी z कोलकाता मेें हिद ं ू कॉलेज ने यंग बंगाल आदं ोलन के नेतत्ृ ्वकर््तता के रूप मेें
को आर््य धर््म के पालन की ओर उन््ममुख करना। कार््य किया, जो हिदं ू समाज मेें सधु ार के लिए एक क््राांतिकारी प्रयास था।
 वेदोों के महत्तत्व पर जोर: वैदिक शिक्षा और धार््ममिक शद्धु ता को पनु र्जीवित z डेरोज़़ियो ने अपने छात्ररों को निम््नलिखित के लिए प्रोत््ससाहित किया:

किया गया। उनका मानना ​​था कि ईश्वर ने मनष्ु ्य को जो ज्ञान दिया था वह  आलोचनात््मक एवं तर््क संगत ढंग से सोचना

वेदोों मेें निहित है और आधनि ु क विज्ञान की नीींव भी वहीीं पाई जा सकती है।  सत्ता के सभी रूपोों को चन ु ौती देना
 अंधविश्वासोों पर प्रहार: हिदं ू रूढ़़िवाद, जातिगत कठोरता, अस््पपृश््यता,  स््वतंत्रता, समानता और बंधत्ु ्व को महत्तत्व देना
मर््तति
ू पजू ा, बहुदवव े ाद, जाद-ू टोना, आकर््षण और पशु बलि मेें विश्वास, अन््य  महान फ््राांसीसी क््राांति से प्रेरणा लेकर परु ानी प्रथाओ ं और परंपराओ ं को
कुप्रथाओ ं पर हमला किया गया। अस््ववीकार करना
 आधुनिक शिक्षा: उन््होोंने पश्चिमी विज्ञान को सीखने को वरीयता दी।  शिक्षा और महिला अधिकारोों के पक्ष मेें आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया
दयानन््द एग्ं ्ललो-वैदिक (DAV) कॉलेज की भी स््थथापना की।
महादेव गोविन्द रानाडे और प्रार््थना समाज
राम कृष्ण मिशन और स्वामी विवेकानन्द z डॉ आत््ममा राम पांडुरंग ने 1876 ​​मे,ें बंबई मेें प्रार््थना समाज की स््थथापना
z रामकृ ष््ण परमहसं ने धार््ममिक कुप्रथाओ ं से मक्ु ति पाने के लिए त््ययाग, ध््ययान की। इसने महाराष्टट्र मेें वही कार््य किया जो ब्रह्म समाज ने बंगाल मेें किया था।
और भक्ति की सदियोों परु ानी प्रथाओ ं की ओर रुख किया। z इस समाज की स््थथापना हिदं ू धर््म मेें सधु ार और एक ईश्वर की पजू ा को बढ़़ावा
z वह एक संत व््यक्ति थे जिन््होोंने इस बात पर जोर दिया कि ईश्वर और मोक्ष तक देने के प्रयोजन से की गई थी।
पहुचँ ने के कई रास््तते हैैं और दसू रोों की सेवा करना ही ईश्वर की सेवा करना है। z महादेव गोविंद रानाडे और आर.जी. भंडारकर प्रार््थना समाज के महान
उन््होोंने सभी धर्ममों की मल ू भतू समानता को भी पहचाना। नेता थे।

सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोल 27


z प्रार््थना समाज के सामाजिक परिवर््तन के निम््नलिखित चार बिंदु थे:  यह आदं ोलन पश्चिमी लोगोों द्वारा निर्देशित और समर््थथित था जिन््होोंने
1. जाति व््यवस््थथा की अस््ववीकृति भारतीय धार््ममिक और दार््शनिक परंपराओ ं का महिमामडं न किया। इससे
2. स्त्री शिक्षा भारतीयोों को अपना आत््मविश्वास पनु ः प्राप्त करने मेें मदद मिली।
3. विधवा पुनर््वविवाह  शिक्षा के क्षेत्र मेें उन््होोंने महत्तत्वपर््णू योगदान दिया और बनारस मेें सेेंट्रल
4. लड़का एवं लड़की दोनोों के लिए विवाह की आयु बढ़़ाना हिंदू कॉलेज की स््थथापना की।
z महादेव गोविंद रानाडे का योगदान:
 थियोसोफिकल सोसायटी के मख्ु ्ययालय मेें दर््ल ु भ सस्ं ्ककृ त पस्ु ्तकोों का एक
 दर््शन: धार््ममिक और सामाजिक सध ु ार एक-दसू रे मेें एकीकृ त हैैं। सामाजिक,
आर््थथिक एवं राजनीतिक क्षेत्ररों मेें सफलता के लिए धार््ममिक सधु ार लचीले पस्ु ्तकालय जोड़़ा गया, जो ज्ञान के केें द्र के रूप मेें विकसित हुआ।
होने चाहिए। ईश्वर चंद्र विद्यासागर और महिला उत्थान
 सग ं ठन: विधवा पनु र््वविवाह एसोसिएशन (1861) और डेक््कन एजक ु े शन z उन््ननीसवीीं सदी के मध््य के एक महान व््यक्ति ईश्वर चद्रं विद्यासागर का जन््म
सोसायटी की स््थथापना की गई। उन््होोंने पूना सार््वजनिक सभा की भी 1820 मेें बंगाल मेें एक साधारण ब्राह्मण परिवार मेें हुआ था।
स््थथापना की।
z 1851 मेें उन््होोंने सस्ं ्ककृत महाविद्यालय के प्राचार््य का पद सभं ाला। वह एक
 मूर््तति पूजा पर सख््त प्रतिबंध के विरुद्ध : ब्रह्म समाज के विचारोों से
प्रसिद्ध संस््ककृ त विद्वान थे।
प्रभावित होने के बावजदू प्रार््थना समाज ने मूर््तति पूजा पर सख््त प्रतिबंध
की वकालत नहीीं की। z विद्यासागर के विचार पश्चिमी और भारतीय सिद््धाांतोों का मिश्रण थे। उनके नैतिक
 जाति प्रथा:यह समाज जाति व््यवस््थथा से स््पष्ट अलगाव के लिए कठोर
मानक उच््च थे, वे अत््यधिक मानवतावादी और वचितो ं ों के प्रति दयालु थे।
नहीीं था। z उन््होोंने विधवा पुनर््वविवाह के पक्ष मेें एक अभियान चलाया, परिणामस््वरूप
1856 मेें विधवा पनु र््वविवाह अधिनियम लागू हुआ।
ज्योतिबा फुले और सत्यशोधक समाज
z 'सत््यशोधक' समाज की स््थथापना 1873 मेें ज््ययोतिबा फुले ने की थी। इस z उन््होोंने बहुविवाह और बालविवाह के खिलाफ भी संघर््ष का नेतत्ृ ्व
आदं ोलन के परिणामस््वरूप दलित समदु ायोों को वर््ग पहचान की भावना प्राप्त किया।
हुई। फुले ने ब्राह्मणोों के राम के प्रतीक के विपरीत राजा बलि के प्रतीक z विद्यासागर ने स्त्री शिक्षा के लिए काफी प्रयास किये। 1849 मेें, उन््होोंने भारतीय
का इस््ततेमाल किया। बालिकाओ ं के लिए प्रथम बालिका स््ककू ल, बेथ््ययून स््ककू ल की स््थथापना के
z उद्देश््य लिए बेथ््ययून के साथ काम किया। उन््होोंने स््ककूलोों के सरकारी निरीक्षक के रूप
 सामाज सेवा मेें सहायता की और उन््हेें अपने खर््च पर चलाया।
 महिलाओ ं और निचली जातियोों के सदस््योों के बीच शिक्षा का प्रसार
मुस्लिम सुधार आंदोलन
 सामाजिक एवं आर््थथिक असमानता को दरू करना
z सधु ार आदं ोलनोों के यगु मेें, मसु लमानोों के बीच भी सधु ारवादी सामाजिक और
z साहित््ययिक कार््य धार््ममिक आदं ोलन उभरे थे।
 सार््वजनिक सत््यधर््म और गल ु ामगिरी
z अधिकांश मसु लमानोों को डर था कि पश्चिमी शिक्षा उनकी आस््थथा को ख़तरे
 दोनोों आम जन के लिए प्रेरणास्रोत बन गये
मेें डाल देगी क््योोंकि यह इस््ललाम के विपरीत है।
एनी बेसेेंट और थियोसोफिकल सोसायटी z देवबंद और अलीगढ़ आदं ोलन के बीच अतं र:
z थियोसोफिकल सोसायटी की स््थथापना अमेरिकी कर््नल एच.एस.अल््ककोट और
देवबंद आंदोलन अलीगढ आंदोलन
रूसी अध््ययात््मवादी मैडम एच.पी. ब््ललावात््स्ककी ने की थी।
z 1875 मेें अमेरिका मेें यह आधनि ु क भारत के धर््म, समाज और संस््ककृ ति के इसका उद्देश््य मस््ललिम
ु समदु ाय का इसने पश्चिमी दनि ु या के अनुसार
विकास के लिए महत्तत्वपर््णू रहा है। नैतिक और धार््ममिक नवीनीकरण मसु लमानोों के जीवन स््तर को आगे
z उद्देश््य करना था। बढ़़ाने की मांग की।
 प्राचीन दर््शन, धर््म और विज्ञान मेें अनस ु धं ान को प्रोत््ससाहित करना
यह पनु रुत््थथानवादी आंदोलन था। यह सधु ारवादी आन््ददोलन था।
 मनष्ु ्य के भीतर मौजद ू दिव््य क्षमता को सक्रिय करना और वैश्विक मानव
भाईचारा बढ़ाना। आधनि ु क एवं पाश्चात््य शिक्षा के युवाओ ं को आधनि ु क शिक्षा प्रदान
z एनी बेसेेंट: विरूद्ध था। करने पर ध््ययान केें द्रित किया गया
 1893 मेें मैडम ब््ललावात््स्ककी के निधन के बाद, एनी बेसेेंट ने भारत की यात्रा था।
की और आदं ोलन को पनु र्जीवित करने और पनु र््स्थथापित करने मेें मदद की।
अंग्रेजोों के विरुद्ध जिहाद की उदारवादी विचारोों और ब्रिटिश
 1907 मेें , वह सोसायटी के अध््यक्ष के रूप मेें अल््ककोट की उत्तराधिकारी
भावना को प्रोत््ससाहित करना था। सरकार के प्रायोजन को बढ़़ावा देना
बनी। उन््होोंने कृष््ण और गीता के उपदेशोों का महत्तत्व आत््मसात करते
हुए कई लोगोों के हित मेें योगदान दिया। था।

28  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


सिख सुधार आंदोलन दादा भाई नौरोजी का योगदान

z गुरुद्वारा सध ु ार आंदोलन: z उन््हेें समाज सधु ारक, अतं रराष्ट्रीय संपर््क और सांख््ययिकीय उदारवाद के लिए
 1920 के दशक से पहले गरु ु द्वारोों का संचालन उदासी सिख महतों ों द्वारा जाना जाता है।
किया जाता था। ये महतं गरुु द्वारे के चढ़़ावे और गरुु द्वारोों को प्राप्त अन््य z समाज सध ु ार:
आय को अपनी आय मानते थे।  लड़कियोों की शिक्षा पर ध््ययान देना: नौरोजी का प्रयास लैैंगिक समानता

 गरु ु द्वारोों को इन भ्रष्ट महतों ों से मक्त


ु कराने और गरुु द्वारोों को सिखोों की एक के प्रति उनके सधु ारवादी उत््ससाह से प्रेरित था। बाद मेें उन््होोंने स््टटूडेेंट्स
प्रतिनिधि संस््थथा को सौौंपने के लिए एक आदं ोलन चलाया गया। लिटरेरी एडं साइटं िफिक सोसाइटी (SLSS) के तत्त्वावधान मेें अक््टटूबर
 1925 मेें एक कानन ू बनाया गया जिसने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक 1849 मेें लड़कियोों की शिक्षा के लिए छह स््ककू ल खोले।
समिति को गरुु द्वारोों की देखरे ख का अधिकार दिया।  धार््ममिक सध ु ार: इन सधु ारोों को सामाजिक कठिनाइयोों के अलावा अनचि ु त
z निरंकारी आंदोलन (1851): समझे जाने वाले धार््ममिक अनष्ु ठानोों को तर््क सगं त बनाने के लिए लागू किया
 सिख धर््म के एक संप्रदाय के रुप मेें इसकी स््थथापना बाबा दयाल दास गया था।
द्वारा की गयी थी।  सग ं ठन की स््थथापना: रहनुमाई मजदायस््ननान सभा (मजदायस््ननान
 उन््होोंने उचित धार््ममिक अभ््ययास पर जोर दिया, जो स््ववीकार््य था उसे स््पष्ट सभा के मार््गदर््शकोों की सोसायटी) और रफ््त गोफ््ततार, एक गजु राती
करने के लिए हुकुमनामा तैयार किया और अपने पजु ारियोों द्वारा नियक्त ु पत्रिका, की स््थथापना 1851 मेें नौरोजी और उनके सहयोगियोों द्वारा की गई
पजू ा स््थलोों का एक नेटवर््क स््थथापित किया। थी।
 वे अग् ं रेजोों के साथ सहयोग करके आगे बढ़़े।  रूढ़़िवादी रीति-रिवाजोों के ख़़िलाफ़: रहनम ु ाई मजदायस््ननान सभा
z अकाली अभियान: गरुु द्वारोों के भ्रष्ट प्रबंधन को सही करने के लिए 19वीीं ने पारसी धर््म मेें उपस््थथित रूढ़़िवादी प्रथाओ ं के खिलाफ और साथ ही
सदी के अतं मेें अकाली अभियान के नाम से जाना जाने वाला एक नया महिलाओ ं के उत््थथान के लिए अभियान चलाये।
सधु ारवादी आदं ोलन था।
 1920 के बाद जब पंजाब मेें अकाली आद ं ोलन सामने आया तो सिख आर््थथिक और राजनीतिक सुधार
आदं ोलनोों ने व््ययापक स््वरूप ग्रहण किया। दादा भाई नौरोजी ने आर््थथिक और राजनीतिक क्षेत्र मेें भी महत्तत्वपूर््ण योगदान
z सिख सभा: सिख धार््ममिक सधु ार आदं ोलन 1870 के दशक मेें अमृतसर और दिया, जिसे संक्षेप मेें इस प्रकार प्रस््ततुत किया जा सकता है -
लाहौर मेें दो सिंह सभाओ ं की स््थथापना के साथ शरू z आर््थथि क नीति के आलोचक: ब्रिटिश आर््थथिक नीति के अग्रणी
ु हुआ।
z 1892 मेें अमृतसर मेें खालसा कॉलेज की स््थथापना गुरुमुखी, सिख शिक्षा आलोचक, 'धन की निकासी' ('Drain of Wealth') सिद््धाांत की वकालत।
z राजनीतिक योगदान:
और पंजाबी साहित््य की उन््नति मेें योगदान दिया।
 सामाजिक और राजनीतिक मद्ददों ु पर चर््चचा करने के उद्देश््य से 'लंदन
z सिख धर््म को मजबतू करने के प्रयास मेें कई गरुु ओ ं ने सिखोों के बीच धार््ममिक
और सामाजिक सधु ार पहल का नेतत्ृ ्व किया। बाबा दयाल दास ने निरंकार इडि
ं यन सोसाइटी' की स््थथापना मेें सहायक।
 ब्रिटिश लोगोों को भारतीय दृष्टिकोण से अवगत कराने के लिए 'ईस््ट
(निराकार) ईश्वर की अवधारणा को बढ़़ावा दिया।
इडि
ं या एसोसिएशन' (1867)' की स््थथापना मेें सहायता की।
पारसी सुधार आंदोलन z यक ू े हाउस ऑफ कॉमन््स मेें लिबरल पार्टी के सदस््य और संसद सदस््य
पारसी धार््ममिक सुधार संघ की स््थथापना 1851 मेें हुई। इसने धार््ममिक रूढ़़िवाद के (सांसद/MP) के रूप मेें कार््य किया।
खिलाफ संघर््ष किया। इस आंदोलन के तहत निम््नलिखित सुधार शरू ु किए गए:
z स््थथापित सग ं ठन: नौरोजी फरदोनजी, दादाभाई नौरोजी, एस.एस. बंगाली और जाति आधारित शोषण के खिलाफ संघर््ष
अन््य लोगोों ने विशेषकर लड़कियोों के बीच शिक्षा के प्रसार के लिए रहनुमाई z समस््ययाएँ
मजदायस््ननान सभा या धार््ममिक सधु ार संघ की स््थथापना की।
 हिद ं ू 'चतुर््वर््ण आश्रम' अवधारणा के अनसु ार, एक व््यक्ति की जाति
z रूढ़़िवादी प्रथाओ ं के विरुद्ध: उन््होोंने पारसी धर््म मेें रूढ़़िवादी प्रथाओ ं और
जनसंख््यया के विभिन््न वर्गगों मेें उनकी स््थथिति और सापेक्ष शद्ध ु ता को
बाल विवाह के खिलाफ भी अभियान चलाया।
निर््धधारित करती है।
z धार््ममिक सध ु ार: पारसी धर््म की प्राचीन शद्ध
ु ता को पनु र्जीवित करने हेतु अनेक
 जातिगत कारक वस्त्र , भोजन, निवास स््थथान, पीने और सिंचाई के लिए
प्रयास किये।
पानी के स्रोत और मदिरो ं ों मेें प्रवेश जैसी गतिविधियोों को नियंत्रित करते थे।
z कार्ययों मेें फिजूलखर्ची के विरुद्ध: नेतत्ृ ्वकर््तताओ ं ने भव््य सगाई समारोहोों,
 अनस ु चि
ू त जाति/दलितोों को भेदभावपर््णू जाति व््यवस््थथा से सबसे अधिक
विवाह और अतिम ं संस््ककार जैसे रीति-रिवाजोों का विरोध किया।
z वैज्ञानिक स््वभाव: उन््होोंने लोगोों को ज््ययोतिष का प्रयोग करने से हतोत््ससाहित
नक ु सान उठाना पड़़ा, उन््हेें जन््म असमानता पर आधारित अपमानजनक
किया और वैज्ञानिक विकास को बढ़़ावा दिया। और अमानवीय व््यवहार का सामना करना पड़ता था।

सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोल 29


z जाति-आधारित भेदभाव को कम करने मेें योगदान देने वाले कारकोों  लैैंगिक भेदभाव:
मेें शामिल हैैं:  अग् ं रेजोों ने इस््ललाम और हिदं ू धर््म के व््यक्तिगत काननोू ों का सम््ममान
 ब्रिटिश शासन: अग् ं रेजी शासन ने शायद अनजाने मेें ऐसी स््थथितियाँ पैदा किया।
की, जिससे जातिगत चेतना कुछ हद तक कमजोर हो गई।  विवाह, तलाक, सप ं त्ति, उत्तराधिकार और गोद लेने के सदर््भ ं मेें, ये
 सामाजिक सध ु ार आंदोलन: उन््होोंने जाति-आधारित शोषण को ख़त््म नियम महिलाओ ं को दोयम दर्जे के नागरिकोों के रूप मेें देखते थे
करने के लिए भी कार््य किया। ये आदं ोलन समाज को विभाजित करने और पितृसत्तात््मक परिवार के अधिकारोों का सम््ममान किया गया।
वाली ताकतोों के खिलाफ लड़़ाई मेें स््वतंत्रता और समानता के सिद््धाांतोों  इस संदर््भ मेें महिलाओ ं को घरे लू और गल ु ामी की श्रेणी मेें धके लने
से प्रेरित थे। के लिए राष्टट्रवादी परुु ष अभिजात वर््ग और औपनिवेशिक राज््य के
 साक्षरता और वैज्ञानिक स््वभाव: शैक्षिक अवसरोों मेें वृद्धि और सामान््य
बीच एक "व््ययापक सहमति" प्रतीत हुई।
 सार््वजनिक जीवन मेें पर््ददा प्रथा का प्रचलन: भारतीय बद्धि ु जीवियोों
जागृति से निचली जातियोों मेें समानता हेतु जागरूकता फै लने लगी थी।
ने भारत के गौरवशाली अतीत का सम््ममान करने के लिए महिलाओ ं के
 गांधी जी की भूमिका: उन््होोंने 1932 मेें अखिल भारतीय हरिजन सघ ं
लिए नैतिक संहिता का उपयोग किया। उसे पश्चिम के "दूषित प्रभाव"
की स््थथापना की। "अस््पपृश््यता की जड़ और शाखा उन््ममूलन" के लिए
से बचाने की आवश््यकता थी। परिणामस््वरूप, बंगाल और महाराष्टट्र के
उनका धर््मयद्ध ु मानवतावाद और तर््क पर आधारित था। अस््पपृश््यता निवारण
मस््ललिम
ु और हिदं ू दोनोों अभिजात वर्गगों ने पर््ददा प्रथा मेें महिलाओ ं से अलग
गांधीजी जैसे नेताओ ं के लिए सभी सार््वजनिक गतिविधियोों मेें प्राथमिक था।
होने की अवधारणा को सार््वभौमिक बना दिया।
 सध ु ारकोों की भूमिका:
 कानून की सामाजिक स््ववीकृति के मुद्दे: उदाहरण के लिए, भले ही
 ज््ययोतिबा फुले ने महाराष्टट्र मेें उच््च जाति के प्रभत्ु ्व के खिलाफ,
अग्ं रेजोों ने विधवा पनु र््वविवाह को अधिकृ त किया था परंतु भारतीय लोगोों ने
संघर््ष के एक हिस््ससे के रूप मेें, ब्राह्मणवादी धार््ममिक सत्ता के खिलाफ अपनी महिलाओ ं को कठोर तपस््ववी विधवा जीवन जीने हेतु बाध््य किया
आजीवन धर््मयद्ध ु चलाया। क््योोंकि यह एक प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया था।
 भीमराव अंबेडकर ने जातिगत अत््ययाचार का विरोध करने के लिए  उपचारात््मक दृष्टिकोण मेें कमी: भारतीयोों और ब्रिटिश दोनोों ने
अपना जीवन समर््पपित कर दिया और इस प्रक्रिया मेें अखिल भारतीय महिलाओ ं की कठिनाइयोों और दावोों को सामाजिक मामलोों के रूप मेें
अनसु चि ू त जाति महासंघ (All India Scheduled Castes देखा, और महिलाओ ं की निम््न स््थथिति को कायम रखने वाली सामाजिक
Federation) की स््थथापना की। संरचनाओ,ं जातिगत असमानताओ ं या धार््ममिक हठधर््ममियोों पर सवाल उठाने
 अखिल भारतीय दलित वर््ग संघ (All India Depressed से इनकार कर दिया। उनके पास लैैंगिक समानता को बढ़़ावा देने की कोई
Classes Association) की स््थथापना 1930 मेें अबं ेडकर द्वारा योजना नहीीं थी।
दलितोों के उत््थथान हेतु की गयी थी।  महिला श्रम शक्ति भागीदारी एवं आय असमानता : भारतीय

 समसामयिक रूप से विकसित मानवाधिकार अवधारणा: समानता व््यवसायियोों और बागान मालिकोों ने महिला श्रमिकोों को अप्रतिबद्ध और
और मानवाधिकार के मल्ू ्योों के विकास ने भी समाज से जातिगत भेदभाव क्षमताओ ं की कमी के रूप मेें देखना शरू ु कर दिया। इसके अतिरिक्त,
को दरू करने मेें मदद की। महिलाओ ं की मज़दरू ी परुु षोों की तल ु ना मेें कम थी।
 स््वतंत्रता आंदोलन: यह आधनि ु क भारत मेें राष्ट्रीयता की भावना के भारतीय बुद्धिजीवियोों और ब्रिटिश नौकरशाहोों दोनोों ने 19वीीं सदी मेें भारतीय
विकास और लोकतंत्र के प्रसार मेें एक प्रमख ु बाधा बन गया, जिसने महिलाओ ं की स््थथिति को ऊपर उठाने के लिए संघर््ष किया। हालाँकि, महिलाओ ं
जातियोों के आधार पर भेदभाव के उन््ममूलन को बढ़़ावा दिया। स््वतंत्र भारत की शिक्षा, श्रम भागीदारी और परिवार और समाज मेें स््थथिति के मद्ु दे घरे लू
के संविधान मेें जाति के आधार पर समानता और गैर-भेदभाव की जरुरत जीवन तक सीमित थे। इनमेें लैैंगिक समानता, धार््ममिक रूढ़़िवादिता और जातिगत
पर ध््ययान केें द्रित किया। असमानताओ ं के मद्ददों ु को संबोधित करने की उपेक्षा की गई।
महिलाओ ं की भूमिका
सामाजिक-धार््ममिक आंदोलनोों मेें महिलाओ ं के मुद्दे
z सरला देवी चौधरानी: उन््होोंने 1910 मेें इलाहाबाद मेें भारतीय महिला संगठन
z 19वीीं सदी की शरुु आत मेें भारतीय महिलाओ ं की स््थथिति अच््छछी नहीीं थी।
की स््थथापना की। इसके लक्षष्ययों मेें महिलाओ ं की शिक्षा को आगे बढ़़ाना और
z सती प्रथा, पर््ददा प्रथा, बाल विवाह, कन््यया भ्रूण हत््यया, वधू का कीमत और परू े भारत मेें महिलाओ ं की सामाजिक आर््थथिक और राजनीतिक स््थथिति को
बहुविवाह जैसी बरु ी प्रथाओ ं के कारण उनका जीवन अत््ययंत कठिन हो गया था। सदृु ढ़ करना शामिल था।
z शैक्षिक, सामाजिक और आर््थथिक संभावनाओ ं के संबंध मेें, भारत मेें परुु षोों z पंडिता रमा बाई:
और महिलाओ ं के बीच कोई समानता नहीीं थी।  पंडिता रमा बाई ने अपनी शिक्षा इग्ं ्लैैंड और संयक्तु राज््य अमेरिका दोनोों से
z परिणामस््वरूप, 19वीीं शताब््ददी के दौरान महिलाओ ं से सबं ंधित प्राप्त की। उन््होोंने भारतीय महिलाओ ं के साथ होने वाले अनचि
ु त व््यवहार
निम््नलिखित महत्तत्वपूर््ण मुद्दे सामने आए: के बारे मेें लिखा।

30  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


 उन््होोंने जरूरतमदं विधवाओ ं की सहायता के लिए पणु े मेें आर््य महिला z आत््मसम््ममान: सधु ार आदं ोलनोों ने भारतीयोों मेें आत््मसम््ममान, स््वतंत्रता और
सभा और सारदा सदन की स््थथापना की। देशभक्ति की भावना को बढ़़ावा दिया।
 उन््होोंने भारतीय महिलाओ ं की शैक्षिक स््थथिति मेें सध
ु ार की वकालत की। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मेें
 ले डी डफरिन कॉले ज उनके अनरु ोध पर महिलाओ ं को चिकित््ससा शिक्षा सामाजिक-धार््ममिक आंदोलनोों का प्रभाव
प्रदान करना शरू ु किया। z धार््ममिक पुनरुत््थथान:एक तर््क सगं त, सहिष््णणु आस््थथा के रूप मेें हिदं ू धर््म के
z महरीबाई टाटा: भारत मेें राष्ट्रीय महिला परिषद की स््थथापना 1925 मेें पनु रुद्धार का उद्देश््य उन््ननीसवीीं शताब््ददी मेें ईसाई धर््म और इस््ललाम के उदय के
अतं रराष्ट्रीय महिला परिषद के एक राष्ट्रीय सहयोगी के रूप मेें की गई थी। बाद अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पनु ः प्राप्त करना था।
z मार््गरेट कजिन््स :1917 मेें, मार््गरे ट कजिन््स ने महिलाओ ं के मतदान के z हाशिये पर उपस््थथित समाज: भारतीय समाज मेें महिलाओ,ं अछूतोों और अन््य
अधिकार का मद्ु दा उठाया और महिलाओ ं के मतदान के अधिकार के लिए
दलित और हाशिए पर रहने वाले समदु ायोों के खिलाफ किए गए अपमानजनक
सरोजिनी नायडू के साथ मिलकर वायसराय से मल ु ाकात की।
कृ त््योों पर प्रहार किया गया।
महिलाओ ं के लिए विधायी उपाय
z वैज्ञानिक भागीदारी मेें वद्धि ृ : निःस््ववार््थता, धर््मपरायणता और तर््कवाद की
ब्रिटिश प्रशासन द्वारा पारित विशेषताएँ भावनाओ ं को बढ़़ावा देना।
अधिनियम
z जाति व््यवस््थथा के ख़़िलाफ़: सधु ार आदं ोलनोों ने जाति व््यवस््थथा की कठोरता
बंगाल सती विनियमन अधिनियम सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाना और और वंशानगु त लक्षणोों की आलोचना के रूप मेें कार््य किया।
(1829) इसे अवैध प्रथा बनाना z समाजिक सहिष््णणुता को बढ़़ावा: समानता, स््वदेशीकरण और विभिन््न
हिदं ू विधवा पुनर््वविवाह अधिनियम विधवाओ ं के पुनर््वविवाह को वैध सस्ं ्ककृ तियोों और धर्ममों के सह-अस््ततित््व मेें विश्वास को प्रोत््ससाहित किया।
1856 (अधिनियम XV, 1856) बनाया z राष्टट्रवादी भावना का विकास : सामाजिक-धार््ममिक आदं ोलनोों ने आबादी
देशी (Native) विवाह अधिनियम निषेध के लिए विधायी कार््रवाई के मेें राष्ट्रीय जागृति पैदा की।
(1872) उद्देश््य से, लेकिन यह हिदं ,ू मस््ललिम
ु z साहित््य का विकास: इन सधु ारकोों ने अपने संदशो े ों को बढ़़ावा देने के लिए
और अन््य मान््यता प्राप्त धर्ममों पर पस्ु ्तकोों, नाटकोों, लघु कथाओ,ं कविताओ ं और प्रेस का उपयोग किया।
लागू नहीीं था।
सामाजिक-धार््ममिक आंदोलनोों की सीमाएँ
सहमति की आयु का अधिनियम 12 वर््ष से कम उम्र की कन््यया के
(1891) विवाह पर रोक लगा दी गई z सधु ार आदं ोलन काफी हद तक परुु ष प्रधान थे और लैैंगिक समानता को
शारदा अधिनियम (1929) विवाह की न््ययूनतम आयु बढ़़ाकर प्राथमिकता देने मेें विफल रहे। उदाहरण के लिए, ब्रह्म समाज के नेतत्ृ ्वकर््तता
14 वर््ष कर दी गई के शव चद्रं सेन ने सार््वजनिक रूप से बाल विवाह का विरोध करने और इग्ं ्लैैंड
मेें ईसाई धर््म के प्रभाव से प्रभावित होने के बावजदू , अपनी 14 वर्षीय बेटी को
1843 का दासता अधिनियम गुलामी या दासता की प्रथा को
कूच बिहार के महाराजा के बेटे से विवाह करने की अनमति ु दी, इस प्रकार
(नियम -V) अवैध घोषित कर दिया गया
बाल विवाह के खिलाफ उनके रुख का खडं न किया।
सामाजिक-धार््ममिक सुधार z सधु ार आदं ोलनोों के लक्षष्य संकीर््ण थे। उदाहरण के लिए, समाज मेें लैैंगिक
आंदोलनोों की सामान्य विशेषताएँ समानता को बढ़़ावा देने के बजाय महिलाओ ं को बेहतर पत््ननी और मां बनने
z एके श्वरवाद: एक ईश्वर और सभी धर्ममों की मल ू भतू समानता मेें विश्वास के उद्देश््य के लिए शिक्षित करना।
से सभी सधु ारकोों द्वारा प्रचारित किया गया था। इसलिए, उन््होोंने विभिन््न धार््ममिक z सधु ारोों ने लैैंगिक भेदभाव और पितृसत्ता के व््ययापक प्रणालीगत मद्ददों
ु को नहीीं
दृष्टिकोणोों के बीच अतं र को कम करने का प्रयास किया। उठाया। उदाहरण के लिए, दहेज की आलोचना की गई लेकिन महिलाओ ं
z धार््ममिक सध ु ार: परु ोहितवाद, समारोह, मर््ततिू पजू ा और बहुदवव े ाद सभी की की परुु षोों पर आर््थथिक निर््भरता को नजरअदं ाज कर दिया गया।
सधु ारकोों द्वारा निंदा की गई। इन सधु ार आदं ोलनोों ने जाति व््यवस््थथा और बाल z महिलाओ ं की शिक्षा के प्रयास अक््सर उच््च जाति की महिलाओ ं तक ही
विवाह की प्रथा का भी विरोध किया जो उनके मानवतावादी पक्ष के स््पष्ट सीमित थे, निचली जातियोों और वर्गगों की महिलाओ ं के साथ होने वाले अतं र-
उदाहरण थे। भेदभाव को नज़रअदं ाज कर दिया गया।
z महिलाओ ं की स््थथिति व शिक्षा पर बल: सधु ारकोों का उद्देश््य समाज मेें z सधु ार आदं ोलन अक््सर क्षेत्रीय और समदु ाय-विशिष्ट तक ही सीमित थे। बड़़ी
महिलाओ ं और लड़कियोों की स््थथिति को ऊपर उठाना था। उन सभी ने महिलाओ ं संख््यया मेें ग्रामीण महिलाओ ं को भेदभाव और उत््पपीड़न का सामना करना पड़़ा।
को शिक्षित करने के महत्तत्व पर जोर दिया। z सधु ार आदं ोलनोों ने महिलाओ ं के लिए उनके घर से बाहर अवसर प्रदान
z सामाजिक समानता: जाति व््यवस््थथा और अस््पपृश््यता को चनु ौती देकर, नहीीं किये। सार््वजनिक जीवन या कामकाज मेें महिलाओ ं की भागीदारी का
सधु ारकोों ने भारत के लोगोों को एक राष्टट्र मेें एकजटु करने मेें योगदान दिया। अभाव था।

सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोल 31


भारत मेें पूरी शताब्दी के दौरान
 उदाहरण के लिए, सैय््यद अहमद खान अग्ं रेजोों का समर््थन करने के लिए
सामाजिक सुधार के प्रति सरकार का दृष्टिकोण मख
ु र थे जबकि हिदं ू सधु ार आदं ोलन ब्रिटिश प्रशासन के पक्ष मेें नहीीं थे।
z हालाँकि 19वीीं सदी की शरुु आत मेें ब्रिटिश नीतियोों ने सामाजिक कुरीतियोों को निष्कर््ष
दरू करने मेें सहायता की, साथ ही, उन््होोंने उत्तरोत्तर भारत के सामाजिक-धार््ममिक समग्र रूप से सामाजिक-धार््ममिक सुधार आंदोलनोों ने पारंपरिक संस््ककृ ति के पिछड़़े
ताने-बाने मेें भी दरार पैदा की क््योोंकि वे ज््ययादातर अग्ं रेजी (पश्चिमी) दृष्टिकोण
तत्तत्ववों की धार््ममिक और सामाजिक बुराइयोों दोनोों का विरोध किया। चिकित््ससा,
और रवैय््यये पर आधारित थीीं।
शिक्षा, दर््शन आदि जैसे पारंपरिक संस््थथानोों के पुनरुद्धार पर मख्ु ्य रूप से ध््ययान
z सामाजिक सध ु ारोों के प्रति अंग्रेजोों के दृष्टिकोण को सक्षे ं प मेें इस प्रकार
केें द्रित किया था। उन््होोंने समाज के लोकतंत्रीकरण, अंधविश्वासोों और पुरानी
प्रस््ततुत किया जा सकता है -
परंपराओ ं के उन््ममूलन और ज्ञान के प्रसार के लिए संघर््ष किया। जिससे भारत मेें
 अधोमुखी निस््पपंदन सिद््धाांत: अग् ं रेज दभु ाषियोों का एक वर््ग तैयार करने
के लिए उच््च और मध््यम वर््ग के लोगोों के एक चनि ु ंदा समहू को प्रशिक्षित देशव््ययापी जनजागृति को बढ़ावा मिल।
करने का इरादा रखते थे।
 कामकाजी पेशेवर लोग : सामाजिक-धार््ममिक सध ु ारोों ने लोगोों को ब्रिटिश प्रमुख शब्दावलियाँ
नीतियोों को लागू करने और सैन््य और वृक्षारोपण सेवाओ ं के लिए मानव सामाजिक-धार््ममि क सधु ार, जाति उन््ममूलन, महिला हिंसा मक्ु ति,
बल उपलब््ध कराया। शैक्षिक सधु ार, ब्रह्म समाज, आर््य समाज, रामकृ ष््ण मिशन, यंग बंगाल
 उदाहरण के लिए, समद्र ु पार करने जैसी निषिद्ध गतिविधियाँ धीरे -धीरे आंदोलन, प्रार््थ ना समाज, सत््यशोधक समाज, थियोसोफिकल
सामान््य हो गई।ं सोसायटी, अलीगढ़ आंदोलन, देवबंद आंदोलन, विधवा पनु र््वविवाह,
 ईसाई मिशनरी गतिविधियोों का विकास : चार््टर अधिनियम 1813 के बाल विवाह, अस््पपृश््यता, मिशनरी गतिविधियाँ, पश्चिमी शिक्षा,
बाद, ईसाई मिशनरियोों को धार््ममिक गतिविधियोों के विस््ततार की अनमति ु पनु रुत््थथानवादी और सधु ारवादी आंदोलन, हिंदू-मस््ललि ु म एकता,
दी गई और सामाजिक-धार््ममिक सधु ारोों ने उनके प्रयासोों को सचु ारू बना एके श्वरवाद, बद्ु धिवाद, सामाजिक समानता, राष्ट्रीय जागृति।
दिया।
विगत वर्षषों के प्रश्न
 स््थथानीय लोगोों के बीच कानून का शासन स््थथापित करना: बाल

विवाह, सती प्रथा, विधवा पनु र््वविवाह को बढ़़ावा देने आदि पर रोक लगाने 1. यंग बंगाल और ब्रह्मो समाज के विशेष संदर््भ मेें सामाजिक-धार््ममिक
के लिए काननू बनाए गए और जनता के बीच कार््रवाई के माध््यम से उन््हेें सधु ार आंदोलनोों के उत््थथान तथा विकास को रे खांकित कीजिए।
लागू किया गया।  (2021)
 धार््ममिक आधार पर विभाजन: अग् ं रेजोों ने सधु ारोों के माध््यम से लोगोों को 2. उन््ननीसवीीं शताब््ददी के ‘भारतीय पुनर््जजागरण’ और राष्ट्रीय पहचान के
धर््म, वर््ग और जातियोों के आधार पर विभाजित करने का भी प्रयास किया। उद्भव के मध््य सहलग््नताओ ं का परीक्षण कीजिए। (2019)

32  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


भारत मेें ब्रिटिश नीतियोों का
5 विश्ले षण (1757 से 1947 तक)
 प्रशासन: प्रशासन को अधिक विस््ततृत और व््ययापक बनाया गया ताकि
प्रशासनिक नीतियााँ आयात गाँवोों तक पहुचँ सके और कच््चचा माल आसानी से बाहर निकाला
भारत मेें उपनिवेशवाद के चरण जा सके ।
 कृषि का व््यवसायीकरण: सबसे महत्तत्वपर् ू ्ण विशेषताओ ं मेें से एक कृषि
उपनिवेशवाद औद्योगिक पँजू ीवाद की तरह ही एक आधनु िक ऐतिहासिक घटना
है। यह उपनिवेश के आधनु िक ऐतिहासिक विकास के विशिष्ट चरण का वर््णन का व््यवसायीकरण था, जो कि अधिकांश भारतीय किसानोों के लिए एक
करता है, जो पारंपरिक अर््थव््यवस््थथा और आधनु िक पँजू ीवादी अर््थव््यवस््थथा मजबरू करने वाली और अस््ववाभाविक प्रक्रिया थी।
के बीच संरचनात््मक हस््तक्षेप करता है। भारत को आमतौर पर एक आदर््श  पश्चिम जीवनशै ली को बढ़़ावा: ब्रिटिश वस््ततुओ ं की माँग मेें तेजी लाने

उपनिवेश माना गया है। इसके उपनिवेशवाद के विभिन््न चरण हैैं: के लिए पश्चिम जीवनशैली को बढ़़ावा दिया गया।
z प्रथम चरण: व््ययापार पर एकाधिकार और प्रत््यक्ष लूट (1757-1813): z तीसरा चरण: वित्तीय पूज ँ ी का युग (1860 से आगे):
 एकाधिकार को सग ु म बनाने वाली सफलताएँ: बंगाल की जीत के  निवेश मेें वद्ृ धि: भारत के रे लमार्गगों मेें निवेश, भारत सरकार को ऋण
साथ-साथ दक्षिण भारत के कुछ हिस््सोों व शेष भारत पर विजय तथा तथा व््ययापार, वृक्षारोपण, कोयला खनन, जटू मिलोों, शिपिंग और बैैंकिंग
व््ययापार पर एकाधिकार स््थथापित करने और सरकारी ससं ाधनोों को हड़पने मेें निवेश की राशि मेें महत्तत्वपर्ू ्ण वृद्धि देखी गई।
के लक्षष्ययों को इस चरण मेें तेजी से हासिल किया गया।  बढ़ती प्रतिस््पर्द्धा: इस समय, अन््य नई साम्राज््यवादी शक्तियोों से
 हस््तशिल््प पर एकाधिकार: अब ईस््ट इडं िया कंपनी ने भारत मेें व््ययापार प्रतिस््पर्द्धा ने दनु िया मेें ब्रिटेन की स््थथिति के लिए निरंतर खतरा पैदा किया।
और हस््तशिल््प पर एकाधिकार स््थथापित करने के लिए राजनीति मेें अपने परिणामस््वरूप, भारत पर उसका प्रभत्ु ्व और मजबतू हो गया।
प्रभाव का फायदा उठाया।  औद्योगिक क््राांति नहीीं बल््ककि विस््ततार: तीन प्रमख ु घटनाओ-ं प्रथम
 इस अवधि के दौरान किए गए परिवर््तन: इस चरण मेें उपनिवेश मेें कोई विश्व यद्धु , महाम द
ं ी (1929-34) और द्वितीय विश्व य द्ध
ु - ने विदेशी व््ययापार
बनु ियादी परिवर््तन नहीीं हुआ। परिवर््तन सिर््फ सैन््य संगठन, प्रौद्योगिकी और और विदेशी धन के प्रवेश को कम कर दिया या रोक दिया। इस तरह
राजस््व प्रशासन के शीर््ष स््तर पर किए गए। सबं ंध प्रभावित हुए थे, अतः भारत मेें के वल औद्योगिक विस््ततार हुआ
z दूसरा चरण: मुक्त व््ययापार का युग (1813-1860): था, औद्योगिक क््राांति नहीीं।
 एकतरफा मुक्त व््ययापार नीति: इस चरण मेें सबसे महत्तत्वपर् ू ्ण परिवर््तनोों मेें
ब्रिटिश सर्वोच्चता का विस्तार
से एक ब्रिटिश सरकार की एकतरफा मक्त ु व््ययापार नीति थी, जिसने भारत
को कच््चचे माल के निर््ययातक और ब्रिटिश निर््ममित वस््ततुओ ं के आयातक ईस््ट इडं िया कंपनी का मानना था कि उसकी शक्तियाँ भारतीय राज््योों की तुलना
मेें बदल दिया। मेें अधिक मजबूत थीीं और सर्वोच््चता की नीति (Policy of Paramountcy)
के अनुसार उसकी शक्तियाँ सर्वोच््च या सर्वोपरि थीीं। 1757-1857 की अवधि के
भारत मेें उपनिवेशवाद दौरान कंपनी द्वारा कूटनीति और प्रशासनिक तंत्र द्वारा विलय की नीति (Policy
के चरण
of Annexation) के माध््यम से साम्राज््यवादी विस््ततार और ब्रिटिश सर्वोच््चता
प्रथम को मजबूत करने की प्रक्रिया जारी रखी गई थी।
चरण z व््ययापारिक पूज
ँ ीवाद या वाणिज््यवाद (1757-1813)
z व््ययापार पर एकाधिकार। रिंग-फेें स की नीति (1765-1813):
z सरकारी राजस््व पर कब््जजा। z अर््थ: रिंग-फेें सिंग, वॉरे न हेस््टटििंग््स द्वारा संक्रमण क्षेत्र स््थथापित करके कंपनी की
सीमाओ ं को मजबतू करने के लिए नियोजित एक रणनीति थी।
दूसरा
z मुक्त व््ययापार का उपनिवेशवाद (1813-1860) उद्देश््य: सामान््य तौर पर, यह अपने क्षेत्ररों की रक्षा के लिए अपने पड़़ोसियोों
चरण z इंग््लैैंड और विश्व के साथ आर््थथि क एकीकरण।
z

z भारतीय बाजार मेें निःशुल््क प्रवेश। की सीमाओ ं की रक्षा करने की एक रणनीति थी।
z भू-राजस््व प्रणाली। z विवरण: इसमेें राज््योों को सहायक बलोों को बनाए रखने की आवश््यकता थी,
तीसरा जिन््हेें कंपनी के अधिकारियोों द्वारा आपर््तति ू , संगठित और नेतत्ृ ्व किया जाना
चरण था, जिसके बदले मेें राज््य के नेताओ ं द्वारा इसका मआ ु वजा दिया जाना था।
z विदेशी निवेश का युग (1860 के दशक से प्रारंभ)
z उदाहरण: 1964 ई. मेें बक््सर यद्ध ु के बाद अवध को एक बफर राज््य के रूप
z रेलवे, डाक, तार, बैैंकिंग प्रणाली आदि का विकास।
मेें उपयोग किया गया था।
सहायक संधि (सब्सिडियरी एलायंस ) (1798 से आगे ) इन नीतियोों का प्रभाव
z मूल: लॉर््ड वेलेजली ने भारत मेें सहायक गठबंधन को ‘गैर-हस््तक्षेप नीति’ z EIC (ईस््ट इंडिया कंपनी) का स््वरूप परिवर््तन: कंपनी मख्ु ्यतः वाणिज््ययिक
(Non-Intervention Policy) के रूप मेें उपयोग किया, लेकिन इस वाक््ययाांश शक्ति से अपने स््वरूप को विकसित करके मख्ु ्य रूप से क्षेत्रीय शक्ति मेें परिवर््ततित
का सर््वप्रथम प्रयोग फ््राांसीसी गवर््नर डूप््लले ने किया था। हो गई।
z उद्देश््य: इसका मल ू उद्देश््य बिना यद्धु और लागत वहन किए भारतीय सेनाओ ं z भारतीय शासकोों पर नियंत्रण: भारतीय शासकोों की योग््यता तथा उनके सैन््य
को नियंत्रित करना था।
एवं विदेशी संबंधोों को तय करने का अधिकार अग्ं रेजोों ने अपने हाथ मेें ले लिया।
z विवरण: इस पद्धति के अतं र््गत भारतीय राजाओ ं द्वारा कंपनी के सैनिकोों को
z रियासतोों पर नियंत्रण: कंपनी ने सतारा, जैतपरु , सबं लपरु , नागपरु और झाँसी
स््थथापित किया जाना था। उन््हेें सैनिकोों के संचालन से संबंधित सभी लागतोों को
भी वहन करना पड़ता था और शासकोों को अपने राज््योों मेें ब्रिटिश नागरिकोों की आदि रियासतोों को अपने अधीन कर लिया।
मेजबानी जारी रखनी होती थी। z साम्राज््यवादी विस््ततार: धीरे -धीरे लेकिन तेजी से सपं र्ू ्ण भारतीय उपमहाद्वीप
z उदाहरण: सहायक संधि को स््ववीकार करने वाला पहला शासक हैदराबाद ब्रिटिश शासन के अधीन हो गया।
का निजाम था। z भारतीय अर््थव््यवस््थथा को ब्रिटिश हितोों के अधीन करना: इन नीतियोों के
परिणामस््वरूप भारत की अर््थव््यवस््थथा, कृषि, राजस््व आदि पर अग्ं रेजोों का
नोट:
सीधा नियंत्रण हो गया।
“वेलेजली ने भारत मेें ब्रिटिश साम्राज््य को भारत के ब्रिटिश साम्राज््य मेें z 1857 का विद्रोह: व््यपगत का सिद््धाांत (हड़प नीति) और कुशासन का सिद््धाांत
बदल दिया। भारत मेें कंपनी राजनीतिक शक्तियोों मेें से एक थी, किंतु वह
जैसी नीतियाँ विद्रोह का कारण बनीीं।
सर्वोच््च शक्ति बन गई और पूरे देश पर स््वयं को एकमात्र संरक्षक होने का
दावा किया। वेलेजली के समय से भारत की सुरक्षा की जिम््ममेदारी कंपनी z ब्रिटिश ताज का प्रत््यक्ष शासन (Direct rule of the British Crown):
की थी।” - सिडनी जे . ओवेन इन नीतियोों के कारण 1857 का विद्रोह हुआ जिसके कारण अतं तः कंपनी का
पतन हो गया और भारत का प्रशासन सीधे महारानी के अधीन हो गया।
व्यपगत का सिद्धधांत (1848-1859)
z विवरण: इस सिद््धाांत के अनसु ार, यदि कंपनी के प्रत््यक्ष या अप्रत््यक्ष नियंत्रण भारत मेें ब्रिटिश विदेश नीति
के अधीन किसी रियासत के पास काननू ी उत्तराधिकारी नहीीं होगा, तो रियासत भारत मेें ब्रिटिश राज के दौरान, ब्रिटिश विदेश नीति की विशेषता साम्राज््यवाद,
पर ब्रिटिश द्वारा कब््जजा कर लिया जाएगा। रणनीतिक चातुर््य और आर््थथिक हितोों का मिश्रण थी। सर््वव््ययापी लक्षष्य उन पड़़ोसी
z उदाहरण: लॉर््ड डलहौजी ने भारतीय राज््योों को हड़पने के लिए इस रणनीति को देशोों और शक्तियोों के साथ संबंधोों का प्रबंधन करते हुए ब्रिटिश साम्राज््य के प्रभाव
बड़़े पैमाने पर अपनाया। जैसे सतारा (1848), जैतपरु और संबलपरु (1849), की रक्षा और विस््ततार करना था, जो भारत पर उसके नियंत्रण को खतरे मेें डाल
बघाट (1850), उदयपरु (1852), झाँसी(1853), नागपरु (1854) आदि राज््योों
सकते थे। भारत मेें ब्रिटिश विदेश नीति के प्रमख ु पहलुओ ं और रणनीतियोों का
का विलय, हड़प नीति से किया।
विस््ततृत विश्ले षण निम््नवत है:
कुशासन का सिद्धधांत (1848-1856)
रणनीतिक बफर और विस्तार
z विवरण: भारतीय शासक द्वारा कुप्रबंधन के आधार पर भारतीय राज््योों का
विलय। 1. द ग्रेट गेम (The Great Game):
 भारत मेें ब्रिटिश विदेश नीति तथाकथित ‘ग्रेट गेम’ से काफी प्रभावित थी,
z उदाहरण: डलहौजी ने 1856 ई. मेें अवध के अतिम
ं शासक वाजिद अली शाह
के प्रशासनिक प्रबंधन मेें कुशासन को आधार बनाते हुए अवध पर कब््जजा कर यह शब््द ब्रिटिश साम्राज््य और रूस के बीच भरू ाजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का
लिया। वर््णन करने के लिए उपयोग किया जाता था। भारत के लिए सरु क्षा की मख्ु ्य
चितं ा दक्षिण की ओर संभावित रूसी विस््ततार से थी।
अंग्जो
रे ों ने ये नीतियााँ क्ययों लागू कीीं?
 अग् ं रेजोों ने भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा को मजबतू किया और
z ब्रिटिश साम्राज््य का विस््ततार: नए क्षेत्ररों को अपने नियंत्रण मेें लाकर भारत मेें
ब्रिटिश साम्राज््य का विस््ततार करना। अफगानिस््ततान मेें एक बफर राज््य स््थथापित करने के लिए कई अफगान
z फ््राांसीसी प्रभाव को कम करना: फ््राांसीसी प्रभाव को कम करना ताकि अग्ं रेज यद्धधों
ु (1839-1842, 1878-1880, 1919) मेें भाग लिया, जो भारतीय
भारत मेें सर्वोपरि शक्ति बन सकेें । उपमहाद्वीप की ओर रूसी विस््ततार को रोकने मेें सहायक सिद्ध हुआ।
z युद्ध के बिना भारतीय राज््योों पर विजय: खल ु े स््तर पर राज््योों के विलय से 2. उत्तर-पूर््व सीमा:
भारत मेें कंपनी और गृह सरकार दोनोों के लिए राजनीतिक जटिलताएँ पैदा हो  इसी प्रकार, ब्रिटिश नीति का उद्देश््य भारत की पर् ू वोत्तर सीमाओ ं को सरु क्षित
जाती। करना था। इसमेें असम जैसे क्षेत्ररों पर कब््जजा करना और राजनीतिक एजेेंटोों
z राजस््व मेें वद्ृ धि: ब्रिटिश ईस््ट इडं िया कंपनी को भारत राज््य पर अपना प्रभत्ु ्व के माध््यम से पहाड़़ी क्षेत्ररों मेें स््थथानीय सरदारोों को शामिल करना शामिल
स््थथापित करने मेें सक्षम बनाना, जिससे उनके राजस््व मेें वृद्धि हो। था। 1914 ई. मेें खीींची गई मैकमोहन रे खा मेें ब्रिटिश भारत और तिब््बत के
z कंपनी की सीमाओ ं की रक्षा करना: रिंग-फेें स की नीति शरू ु करके , कंपनी बीच सीमाओ ं को परिभाषित करने की माँग की गई थी, हालाँकि, चीन ने
ने अपने क्षेत्ररों को अन््य क्षेत्रीय और विदेशी खतरोों से बचाने की कोशिश की। इसका विरोध किया था।

34  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


आर््थथिक शोषण और व्यापार भारत मेें ब्रिटिश विदेश नीति रणनीतिक, आर््थथिक और राजनीतिक उद्देश््योों के एक
जटिल मिश्रण से प्रेरित थी, जिसका उद्देश््य क्षेत्र मेें ब्रिटिश हितोों की लाभप्रदता
1. व््ययापार का एकाधिकार: और सुरक्षा सुनिश्चित करना था। अंग्रेजोों द्वारा लागू की गई नीतियोों का भारत के
 ब्रिटिश ईस््ट इडं िया कंपनी ने शरू ु मेें भारत मेें ब्रिटिश व््ययापार पर एकाधिकार राजनीतिक और आर््थथिक ताने-बाने पर गहरा प्रभाव पड़़ा, जिनमेें से कई ने ब्रिटिश
नियंत्रण रखा था। इस एकाधिकार ने अग्ं रेजोों को भारत के विशाल संसाधनोों शासन के अंत के लंबे समय बाद तक उपमहाद्वीप के इतिहास को प्रभावित किया।
का शोषण करने, स््थथानीय अर््थव््यवस््थथा मेें परिवर््तन करने और ब्रिटेन के इन नीतियोों की विरासत ने स््वतंत्रता के संक्रमण के दौरान और उसके बाद क्षेत्र के
पक्ष मेें व््ययापार की शर्ततों को निर््धधारित करने की अनमति ु दी। सामने आने वाली कई चनौतियोु ों मेें योगदान दिया।
 1858 ई. मेें ब्रिटिश क्राउन के सत्ता मेें आने के बाद, ब्रिटिश सरकार ने उन प्रेस का विकास
नीतियोों को बढ़़ावा देना जारी रखा। भारत के भारी आर््थथिक नक ु सान के भारतीय प्रेस के माध््यम से देशभक्ति की भावना को बढ़ने से रोकने के लिए ब्रिटिश
कीमत पर ब्रिटिश अर््थव््यवस््थथा को लाभ हुआ, जिसमेें भारत को ब्रिटिश सरकार ने इस पर नियंत्रण स््थथापित करने का प्रयास किया। विकास संबंधी मद्ददोंु ,
वस््ततुओ ं के लिए बाजार और कच््चचे माल का स्रोत बनाने के लिए भारत अशिक्षा, औपनिवेशिक सीमाओ ं और दमन के कारण भारतीय प्रेस का विकास
का विऔद्योगीकरण (Deindustrialization) भी शामिल था। बाधित हुआ। इसने स््वतंत्रता संबंधी विश्वासोों का प्रसार किया और स््वतंत्रता के
2. शोषण के लिए बुनियादी ढाँचा: संघर््ष मेें एक महत्तत्वपूर््ण हथियार बनकर उभरा।
 रे लवे, सड़कोों और बंदरगाहोों के निर््ममाण से संसाधनोों के आसान निष््कर््षण भारत मेें प्रेस की उत्पत्ति
और निर््ययात मेें अपेक्षित सरलता हुई। स््पष्ट रूप से आधनु िकीकरण प्रभाव z भारत मेें पहली प््रििंटिंग मशीन: 1557 ई. मेें ईसाई धर््म को बढ़़ावा देने के लिए
होने के बावजदू , बनु ियादी ढाँचे को मख्ु ्य रूप से ब्रिटिश नियंत्रण और पर््तग
ु ालियोों ने गोवा मेें एक प््रििंटिंग मशीन लगाई।
आर््थथिक हितोों को मजबतू करने के लिए विकसित किया गया था। z हिक््ककी का बंगाल गजट: भारत का पहला अखबार ‘बंगाल गजट’ जेम््स
ऑगस््टस हिक््ककी द्वारा 1780 ई. मेें शरू ु किया गया था। इसने कंपनी के
कू टनीतिक जोड़तोड़ और संधियााँ
कर््मचारियोों और वॉरे न हेस््टटििंग््स की भ्रष्ट प्रथाओ ं को उजागर किया।
1. सहायक संधि:
सेेंसरशिप और विनियम
 लॉर््ड वेलेजली द्वारा शरू ु की गई, सहायक सधि ं ऐसी प्रणाली थी, जो
अनिवार््य रूप से भारतीय रियासतोों को ब्रिटिश सरं क्षण के अतं र््गत सप्रं भतु ा प्रेस का विकास
मेें महत्तत्वपर्ू ्ण क्षति के साथ जागीरदार राज््योों के रूप मेें स््थथापित करती थीीं। आरंभिक विनियमन
इस नीति ने न के वल ब्रिटिश क्षेत्र का विस््ततार किया बल््ककि फ््राांसीसियोों प्रेस सेेंसरशिप अधिनियम, 1799: भारत पर फ््राांसीसी आक्रमण की आशंका
जैसी अन््य यरू ोपीय शक्तियोों को भी भारत मेें प्रभाव जमाने से रोका। से लॉर््ड वेलेजली द्वारा अधिनियमित; पर््वू -सेेंसरशिप सहित लगभग यद्ध ु कालीन
प्रेस प्रतिबंध लगाए गए; लॉर््ड हेस््टटििंग््स के समय इसमेें कुछ ढील दी गई।
2. फूट डालो और राज करो:
 ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकीकृ त विरोध को रोकने के लिए, विशेष
लाइसेेंसिंग विनियम, 1823: कार््यवाहक गवर््नर-जनरल जॉन एडम््स द्वारा
अधिनियमित; बिना लाइसेेंस के प्रेस शरूु करना या उसका उपयोग करना दडनं ीय
रणनीति के अतं र््गत अग्ं रेजोों ने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपनाई, अपराध था (राजा राममोहन राय को ‘मिरात-उल-अकबर’ का प्रकाशन बदं करना पड़़ा।)
जिसने भारत के भीतर विभाजन की भावना को मजबतू किया, जैसे कि
1835 का प्रेस अधिनियम या मेटकाफ अधिनियम: मेटकाफ ने 1823 ई.
हिदं ू और मसु लमानोों के बीच विभाजनकारी भावना। भारत मेें सांप्रदायिक के अध््ययादेश को निरस््त कर दिया और एक उदार नीति का पालन किया; इसे
सबं ंधोों पर इन घटनाओ ं का स््थथायी प्रभाव पड़़ा। ‘भारतीय प्रेस के मक्ति
ु दाता’ के रूप मेें जाना जाता है।

रियासतोों का संचालन लाइसेेंसिंग अधिनियम, 1857: 1857 के विद्रोह की प्रतिक्रिया मेें, इस


अधिनियम ने लाइसेेंसिंग प्रतिबंध लगाए।
1. व््यपगत का सिद््धाांत:
 लॉर््ड डलहौजी द्वारा पेश की गई इस नीति मेें यह निर््धधारित किया गया था पंजीकरण अधिनियम, 1867: 1835 ई. के मेटकाफ अधिनियम को
कि अग्ं रेजोों के सीधे प्रभाव वाले किसी भी रियासत या क्षेत्र को स््वचालित प्रतिस््थथापित किया, जो कि एक नियामक था, प्रतिबंधात््मक नहीीं। इसने प्रत््ययेक
पस्ु ्तक/समाचार पत्र मेें मद्रु क और प्रकाशक के नाम के साथ-साथ प्रकाशन का
रूप से कब््जजा कर लिया जाएगा, यदि शासक या तो “स््पष्ट रूप से अक्षम स््थथान भी शामिल करना अनिवार््य कर दिया।
हो या प्रत््यक्ष उत्तराधिकारी के बिना मर गया हो।” इस नीति ने प्रत््यक्ष
राष्टट्र वाद और भारतीय प्रेस
सैन््य विजय के बिना भारत मेें ब्रिटिश क्षेत्ररों का विस््ततार करने मेें मदद की।
2. सर्वोच््चता: वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम, 1878
 सर्वोपरिता के सिद््धाांत के अत ं र््गत, ब्रिटिश क्राउन ने बाहरी और आतं रिक z मूल: इसे 1878 ई. मेें लॉर््ड लिटन द्वारा पेश किया गया था।
संप्रभतु ा दोनोों को दरकिनार करते हुए, रियासतोों पर अतिम ं अधिकार का z कारण: प्रेस मेें लेखन के बढ़ते प्रभाव के कारण, विशेषकर स््थथानीय भाषा
दावा किया। इससे अग्ं रेजोों को इन राज््योों के विदेशी मामलोों को नियंत्रित के प्रेस मेें।
करने और उन््हेें ब्रिटिश प्रशासनिक ढाँचे मेें एकीकृ त करने की अनमति ु z उद्देश््य: स््थथानीय प्रेस को ब्रिटिश नीतियोों की आलोचना व््यक्त करने से रोकने
मिल गई। के लिए समाचार पत्ररों को नियंत्रित करना था।

भारत में ब्रिटिश नीतियों काविश्लेषण (1757 से 19 35


z प्रावधान: इन नियमोों के अतं र््गत, किसी भी जिला मजिस्ट्रेट या पलिस ु आयक्त ु z राजनीतिक जागृति: प्रेस विविध दृष्टिकोणोों और बहसोों के लिए एक मचं
को किसी समाचार पत्र के प््रििंटर और प्रकाशक को कुछ प्रकार की सामग्री बन गया, जिससे स््वतंत्रता आदं ोलन के भीतर बौद्धिक और वैचारिक विकास
प्रकाशित न करने, सरु क्षा की माँग करने और आपत्तिजनक समझे जाने वाले को बढ़़ावा मिला। इसने शिकायतोों की अभिव््यक्ति और स््वशासन की माँगोों
किसी भी मद्रि ु त सामग्री को जब््त करने के लिए मजबरू करने का अधिकार को व््यक्त करने की सवि ु धा भी प्रदान की, जिससे अतं तः विभिन््न राजनीतिक
दिया गया था। संगठनोों का गठन और प्रचार हुआ।
z समाचार पत्र (अपराध प्रोत््ससाहन अधिनियम, 1908): इस अधिनियम ने z राष्ट्रीय चेतना का प्रचार: प्रेस ने राष्ट्रीय नेताओ ं को जनता के साथ संवाद
मजिस्ट्रेटोों को ऐसी स््थथिति मेें प्रेस की संपत्ति को जब््त करने का अधिकार दे करने और उन््हेें स््वतंत्रता के संघर््ष के लिए संगठित करने का एक साधन प्रदान
दिया, जब प्रेस ने आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित की हो, जो हिसं क चरमपथं ी किया। इसने राष्ट्रीय एकता और उद्देश््य की भावना को बढ़़ावा दिया। उदाहरण
कृ त््योों को उत्प्रेरित करती हो या हत््यया के औचित््य के रूप मेें होती हो। के लिए, 1920 के दशक के असहयोग आदं ोलन के दौरान, प्रेस ने गांधी के
z भारतीय प्रेस अधिनियम, 1910: इसने स््थथानीय सरकारोों को देशद्रोही सदं शो
े ों को प्रसारित करने और समर््थकोों को इस उद्देश््य के लिए सगठि ं त करने मेें
मामलोों वाले किसी भी समाचार पत्र या पस्ु ्तक के खिलाफ वारंट जारी करने महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाई थी।
का अधिकार दिया, जिसे महामहिम के समक्ष जब््त कर लिया जाना था और z सामाजिक-धार््ममिक आंदोलनोों का नेतृत््व करना: भारतीय प्रेस प्रकाशनोों
इस प्रकार बड़़ी मात्रा मेें राष्टट्रवादी प्रेस और राजनीतिक साहित््य के प्रकाशन पर ने कन््यया भ्रूण हत््यया, विधवा समस््यया, बाल विवाह, वेश््ययावृत्ति, अस््पपृश््यता और
रोक लगा दी गई। अधं विश्वास जैसे मद्ददों ु पर बहस मेें शामिल होकर सधु ारवादी विचारोों को बढ़़ावा
z भारतीय प्रेस (आपातकालीन शक्तियाँ) अधिनियम, 1931: 1931 ई. के देने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाई। उन््होोंने इन सामाजिक मद्ददों
ु को सबं ोधित करने
भारतीय प्रेस अधिनियम ने प््राांतीय सरकारोों को सविनय अवज्ञा को प्रोत््ससाहित के उद्देश््य से सामाजिक-धार््ममिक आदं ोलनोों मेें सक्रिय रूप से योगदान दिया।
करने वाले प्रचार पर अक ं ु श लगाने का व््ययापक अधिकार प्रदान किया। 1932 ई. नोट:
मेें सरकारी प्राधिकार को कमजोर करने के उद्देश््य से की गई, सभी कार््र वाइयोों को “मैैंने पत्रकारिता को इसके लिए नहीीं, बल््ककि जीवन मेें अपने मिशन के रूप
अधिनियम मेें शामिल करने के लिए इसका विस््ततार किया गया। मेें जो सोचा है, उसमेें सहायता के रूप मेें अपनाया है।” - ‘यंग इंडिया’ मेें
महात््ममा गांधी के विचार
नोट:
“प्रेस को पूरी तरह से सटीक और नवीनतम जानकारी प्रदान करने के लिए, प्रेस के विकास का महत्त्व
लिटन ने ‘भारत के लिए प्रेस आयुक्त’ का पद स््थथापित किया। उनका मख्ु ्य z राष्ट्रीय चेतना का विकास: प्रेस ने जनमत जटु ाने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाई,
काम प्रेस और सरकार के बीच संपर््क स््थथापित करना था” - एन. कृष््ण मूर््तति जिससे राष्ट्रीय चेतना के विकास मेें सहायता मिली।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन मेें प्रेस की भूमिका z राजनीतिक चेतना का प्रसार: भारतीय राजनीतिक परिदृश््य का कोई भी पहलू
ऐसा नहीीं था, जिस पर देशी प्रेस ने विस््ततार से चर््चचा न की हो। भारतीय प्रेस ने इन
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन पर प्रेस का प्रभाव बहुआयामी था और इसने स््वतंत्रता
सभी मद्ददों
ु पर विभिन््न प्रकार की प्रतिक्रियाएँ दीीं।
संग्राम के विभिन््न पहलुओ ं मेें महत्तत्वपूर््ण भमि
ू का निभाई।
z सामाजिक-सांस््ककृतिक परिवर््तन: प्रेस ने सामाजिक सधु ारोों के विचारोों को
z उपनिवेशवाद की आर््थथिक आलोचना: प्रेस ने भारत मेें ब्रिटिश आर््थथिक
फै लाया और मौजदू ा सामाजिक बरु ाई के खिलाफ अभियान चलाया। जैसे राजा
नीतियोों का आलोचनात््मक विश्ले षण प्रस््ततुत करने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि ू का
राममोहन राय द्वारा रचित सवं ाद कौमुदी ने सती प्रथा के उन््मल मू न (रोकथाम) के
निभाई। इसने देश की वास््तविक आर््थथिक स््थथितियोों पर प्रकाश डाला और
लिए सक्रिय रूप से अभियान चलाया था।
ब्रिटिश विरोधी भावनाओ ं को हवा दी। उदाहरण के लिए- दादाभाई नौरोजी
की पुस््तक ‘पॉवर्टी एडं अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया’ (Poverty and z राष्टट्रवाद को बढ़़ावा देना: प्रेस ने न के वल राष्टट्र-राज््य की नीींव रखी, बल््ककि
Un-British Rule in India) ने धन की निकासी के सिद््धाांत (Drain भारत मेें राष्टट्रवाद, धर््मनिरपेक्षता और जन-समर््थक प्रशासन यानी स््वशासी
of Wealth Theory) को पेश किया, जबकि रमेश चंद्र दत्त के ‘भारत का संस््थथाओ ं की भावना पैदा की।
आर््थथिक इतिहास’ (Economic History of India) ने 1757 ई. के बाद z आर््थथिक जागृति: दादाभाई नरोजी, महादेव गोविन््द रानाडे और कई अन््य
से औपनिवेशिक शासन के आर््थथिक रिकॉर््ड की गहन जाँच की। लोगोों ने ‘धन की निकासी’ के सिद््धाांत का प्रचार किया। प्रेस के माध््यम से लोगोों
z शिक्षा और सच ू ना प्रसार: स््थथानीय और एग्ं ्ललो-इडं ियन दोनोों प्रेस प्रकाशनोों मेें आर््थथिक चेतना जागृत हुई।
ने स््थथानीय, राष्ट्रीय और अतं रराष्ट्रीय घटनाओ ं पर रिपोर््टििंग करके जनता को z औपनिवेशिक शासन की दमनकारी एवं शोषणकारी नीतियोों का विरोध:
शिक्षित किया। उन््होोंने सचू ना के एक महत्तत्वपर्ू ्ण स्रोत के रूप मेें कार््य किया और इसके परिणामस््वरूप साम्राज््यवाद विरोधी भावनाओ ं मेें वृद्धि हुई जिसने
जनमत को सगठि ं त करने व विद्रोहोों के लिए वैचारिक आधार तैयार करने मेें स््वतंत्रता संग्राम को मजबतू किया।
महत्तत्वपर्ू ्ण योगदान दिया। उदाहरण के लिए, एचसी मुखर्जी की ‘हिंदू पैट्रियट’ z एकता को मजबूत बनाना: प्रेस ने कहा कि भारत मेें राजनीतिक आदं ोलन को
ने राष्टट्रवादी उद्देश््य मेें योगदान देते हुए बंगाल मेें नील बागान मालिकोों के मजबतू बनाया जाना चाहिए और भारतीयोों को देश मेें विभिन््न धार््ममिक समहोू ों
उत््पपीड़न को सक्रिय रूप से उजागर किया। के बीच मौजदू नफरत को भल ू जाना चाहिए।

36  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


z जिला मजिस्ट्रेट के रूप मेें: उन््होोंने निचली अदालतोों पर सामान््य पर््यवेक्षण
भारत मेें सिविल सेवाओं का विकास
किया और विशेष रूप से पलिस ु कार््य का निर्देशन किया।
भारत मेें सिविल सेवा की प्रारंभिक शरुु आत 1757 के बाद के वर्षषों मेें हुई जब z सभी प्रमुख पदोों का धारण: अधिकारियोों का ये समहू वायसराय के समीपस््थ
ईस््ट इडं िया कंपनी कई क्षेत्ररों मेें वास््तविक शासक बन गई थी। कंपनी ने अनुबंधित
था और इस तरह प््राांतीय सरकारोों पर हावी हो गए।
सिविल सेवा (Covenanted Civil Services) की स््थथापना की।
z सरकारी गतिविधियोों की निगरानी: वे अतं तः ब्रिटिश भारत मेें शामिल
इसके विकास को प्रभावित करने वाली घटनाएँ :
दो सौ पचास जिलोों मेें सभी सरकारी गतिविधियोों की देखरे ख के लिए
z कलेक््टर की नियुक्ति: 1770 मेें तत््ककालीन गवर््नर जनरल वारे न हेस््टटििंग््स ने जिम््ममेदार थे।
बंगाल को जिलोों मेें विभाजित कर कलेक््टर नियक्त ु किया।
z सेफ््टटी वाल््व सिद््धाांत (Safety Valve): कुछ इतिहासकारोों का मानना ​​है
z शक्ति का विभाजन: गवर््नर-जनरल कॉर््नवालिस ने न््ययायपालिका को
कि सिविल सेवक ए.ओ. ह्यूम ने भारतीयोों के बढ़ते असंतोष को दरू करने के
कलेक््टर से अलग कर दिया। इसलिए उन््हेें 'सिविल सेवाओ ं के जनक' के
लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन किया था।
रूप मेें जाना जाता है।
 वेलेजली ने नव-नियक्त ु सिविल सेवकोों को प्रशिक्षण देने के लिए 1800 सिविल सेवकोों ने ब्रिटिश विस्तार मेें कैसे मदद की?
मेें फोर््ट विलियम कॉलेज की स््थथापना की। ब्रिटिश सिविल सेवकोों ने रणनीतिक प्रशासन, नीति प्रवर््तन और बुनियादी ढाँचे
z सरं क्षण प्रणाली (Patronage System): 1853 तक सभी सिविल सेवकोों के विकास के माध््यम से भारत मेें ब्रिटिश शासन के विस््ततार और सुदृढ़़ीकरण
को निदेशक मडं ल (कोर््ट ऑफ डायरे क््टर््स) द्वारा नामांकित किया जाता था। को सुविधाजनक बनाने मेें महत्तत्वपूर््ण भमि ू का निभाई। उनमेें से कुछ इस प्रकार हैैं:
z चार््टर अधिनियम, 1853: निदेशक मडं ल की संरक्षण प्रणाली समाप्त कर z प्रशासनिक नियंत्रण: लॉर््ड कॉर््नवालिस ने ‘कॉर््नवालिस कोड’ की शरु ु आत
दी गई। इसलिए 1853 के बाद से सिविल सेवकोों के चयन के लिए लंदन मेें करके प्रशासनिक प्रणाली मेें सधु ार किया, जिसने सिविल सेवा को पेशवे र बना
परीक्षाएँ आयोजित की जाने लगीीं। दिया, जिससे क्षेत्ररों पर कुशल शासन और नियंत्रण सनु िश्चित हुआ।
z भारतीय सिविल सेवा अधिनियम, 1861: सिविल सेवा अधिनियम, 1861 z राजस््व संग्रह: कॉर््नवालिस के अत ं र््गत सिविल सेवकोों द्वारा बंगाल मेें स््थथायी
मेें यह निर््धधारित किया गया कि किसी भी व््यक्ति को, चाहे वह भारतीय हो या बंदोबस््त के कार््ययान््वयन ने राजस््व संग्रह को मानकीकृ त किया, जिससे ब्रिटेन
यरू ोपीय, किसी भी कार््ययालय मेें नियक्त ु किया जा सकता है (संलग््न अनसु चू ी मेें राजस््व प्रवाह मेें उल््ललेखनीय वृद्धि हुई और क्षेत्र मेें ब्रिटिश आर््थथिक हितोों
मेें निर््ददिष्ट), बशर्ते कि वह भारत मेें कम-से-कम 7 वर्षषों तक रहा हो। को स््थथिर स््वरूप प्रदान किया गया।
z एचिसन आयोग (Aitchison Commission): भारतीय सिविल सेवाओ ं
z कानूनी और न््ययायिक भूमिकाएँ: भारतीय सिविल सेवा (ICS) की स््थथापना
की समीक्षा के लिए 1886 मेें एचिसन आयोग की नियक्ति ु की गई थी। आयोग
ने सिविल सेवकोों का एक कै डर तैयार किया, जिन््होोंने ब्रिटिश काननोू ों को लागू
ने 1887 मेें अपनी रिपोर््ट प्रस््ततुत की, जिसमेें सेवाओ ं को तीन समहोू ों मेें पनर््गठि
ु त
करने की सिफारिश की गई: शाही, प््राांतीय और अधीनस््थ। किया और स््थथानीय असंतोष को दबाया, जिससे ब्रिटिश सत्ता भारतीय समाज
के भीतर और अधिक गहराई से स््थथापित हो गई।
z भारत सरकार अधिनियम, 1919: इसमेें प््राांतीय स््तर पर लोक सेवा आयोग
की स््थथापना का प्रावधान किया गया। z सर्वेक्षण और मानचित्रण: सर जॉर््ज एवरे स््ट के नेतत्ृ ्व मेें महान त्रिकोणमितीय

 भारत मेें सिविल सेवा परीक्षाएँ 1923 मेें आयोजित की गई ं थीीं।


सर्वेक्षण ने विस््ततृत भौगोलिक डेटा प्रदान किया, जो सैन््य और प्रशासनिक
z ली आयोग (Lee Commission): 1923 मेें, ब्रिटिश सरकार ने ली आयोग योजनाओ ं के लिए आवश््यक था, जिससे नए क्षेत्ररों मेें ब्रिटिश नियंत्रण के
को भारत सरकार द्वारा दी जाने वाली सर्वोच््च भारतीय सार््वजनिक सेवाओ ं विस््ततार मेें सहायता मिली।
की नस््ललीय संरचना की जाँच करने के लिए कहा। z नीति का कार््ययान््वयन: सिविल सेवकोों ने 'रे लवे और टेलीग्राफ अधिनियम'

z भारत सरकार अधिनियम, 1935: इसने संघीय लोक सेवा आयोग की लागू किया, जिससे बनु ियादी ढाँचे के निर््ममाण मेें मदद मिली, जिससे न के वल
स््थथापना का प्रावधान किया। सचं ार और परिवहन मेें सधु ार हुआ, बल््ककि त््वरित सैन््य तैनाती के साथ-साथ
z स््वतंत्रता के बाद: जे एल नेहरू, भारतीय सिविल सेवाओ ं (ICS) को खत््म आर््थथिक शोषण भी सभं व हुआ।
करना चाहते थे, लेकिन सरदार पटेल ने एक मजबतू नौकरशाही बनाने पर z कूटनीतिक और राजनीतिक हेरफेर: लॉर््ड डलहौजी जैसे सिविल सेवकोों ने
बल दिया। उन राज््योों को अपने कब््जजे मेें लेने के लिए व््यपगत नीति का उपयोग किया,
ब्रिटिश भारत मेें सिविल सेवाओ ं की भूमिका जिनके शासकोों को अक्षम माना जाता था या जो जैविक उत्तराधिकारी के बिना
z वाणिज््ययिक मामले: प्रारंभ मेें, कंपनी के कर््मचारी जो वाणिज््ययिक मामलोों मेें मर गए, जिससे भारत मेें ब्रिटिश क्षेत्र का काफी विस््ततार हुआ।
शामिल थे, सिविल सेवक थे। z बुनियादी ढाँचे का विकास: ब्रिटिश सिविल सेवक प्रशासन के अत ं र््गत, रे लवे
z कलेक््टर के रूप मेें: कलेक््टर राजस््व सगं ठन का प्रमख ु था, जिस पर के विकास, जैसे कि 1853 मेें शरू ु हुई भारतीय रे लवे नेटवर््क की स््थथापना,
पंजीकरण, परिवर््तन और जोत के विभाजन की जिम््ममेदारी थी; विवादोों का ने सैनिकोों और सामानोों की तीव्र आवाजाही की सवि ु धा प्रदान की, भारतीय
निपटारा, ऋणग्रस््त संपदा का प्रबंधन, कृ षकोों को ऋण और अकाल से राहत अर््थव््यवस््थथा को वैश्विक बाजारोों के साथ एकीकृ त किया और ब्रिटिश प्रभत्ु ्व
सबं ंधित अधिकार क्षेत्र भी कलेक््टर के पास था। को मजबतू किया।

भारत में ब्रिटिश नीतियों काविश्लेषण (1757 से 19 37


ब्रिटिश शासन के अंतर््गत स्थानीय निकायोों का विकास अंग्रेजोों की नीति का विवरण
नीति
अंग्रेज भारत मेें व््ययापारी के रूप मेें आए थे। स््थथानीय सरकारेें शायद ही उनकी
रिंग-फेेंस की यह नीति, जिसने कंपनी की सीमाओ ं की रक्षा के लिए
पहली प्राथमिकता थीीं। वस््ततुतः भारत मेें ब्रिटिश शासन के आगमन तक ग्रामीण
नीति बफर जोन स््थथापित करने का प्रयास किया, मराठा
गणतंत्र पर््ययाप्त विकसित हुआ। ब्रिटिश काल के दौरान, पंचायती राज संस््थथा के वल
राजस््व एकत्र करने के लिए बनाई गई थी और वास््तविक सत्ता पंचायती राज और मैसरू साम्राज््य के साथ वॉरे न हेस््टटििंग््स के संघर््ष मेें
संस््थथा को हस््तताांतरित नहीीं की गई थी। परिलक्षित हुई।
वेलेजली की सहायक गठबंधन नीति रिंग फेें स नीति का
स्थानीय निकायोों के संबंध मेें किए गए उपाय
विस््ततार थी।
z ब्रिटिश शासन के आरंभिक दिनोों मेें अग्ं रेजोों की रुचि मनोनीत सदस््योों वाले अधीनस््थ जैसे-जैसे साम्राज््यवाद का विचार फै ला, सर्वोच््चता की
स््थथानीय निकायोों के निर््ममाण तक ही सीमित थी। ये निकाय व््ययापारिक केें द्ररों के अलगाव की विचारधारा आकार लेने लगी।
आसपास बनाए गए थे। नीति (1813- भारतीय राज््योों से अपेक्षा की गई थी कि वे अपनी श्रेष्ठता
z यह भारत के तत््ककालीन वायसराय लॉर््ड मेयो (1869 से 1872) थे, जिन््होोंने 1857) को पहचानने के लिए ब्रिटिश प्रशासन के साथ अधीनस््थ
प्रशासनिक दक्षता लाने के लिए शक्तियोों के विकेें द्रीकरण की आवश््यकता
तरीके से सहयोग करेेंगे।
महससू किया और वर््ष 1870 मेें शहरी नगर पालिकाओ ं मेें निर््ववाचित
प्रतिनिधियोों की अवधारणा पेश की। राज््योों ने आंतरिक प्रशासनिक संप्रभतु ा बरकरार रखी
लेकिन सभी प्रकार की बाहरी संप्रभतु ा को खो दिया।
z बंगाल चौकीदार अधिनियम, 1870:
अधीनस््थ संघ राज््योों के लिए युद्ध, शांति या तटस््थता की घोषणा करने
 बंगाल मेें मल ू ग्राम पंचायती व््यवस््थथा को 1870 के बंगाल चौकीदार
की नीति की शक्ति के साथ, भारत सरकार के पास अंतरराष्ट्रीय
अधिनियम के साथ पनर् ु जीवित किया गया था।
(1857-1935) मामलोों पर पूर््ण और निर््वविवाद अधिकार था।
 चौकीदार अधिनियम ने जिला न््ययायाधीशोों को नामित सदस््योों के साथ
ब्रिटिश सरकार ने राज््योों के आंतरिक मामलोों मेें हस््तक्षेप
गाँवोों मेें पंचायतेें बनाने का अधिकार दिया ताकि वे अपने द्वारा नियोजित
चौकीदारोों (वॉचमेन) के लिए कर एकत्र कर सकेें । करने के अपने अधिकार का प्रयोग किया।
अंतरराष्ट्रीय संबंधोों के लिए, भारत का राज््य क्षेत्र ब्रिटिश
रिपन संकल्प, 1882 क्षेत्र के समान होगा और राज््य के विषय ब्रिटिश विषयोों
z अविश्वसनीय रूप से, लॉर््ड रिपन ने स््थथानीय सरकार के विकास मेें योगदान के समान होोंगे, यह बटलर आयोग द्वारा 1927 मेें
दिया। उन््होोंने औपचारिक रूप से नामांकित सदस््योों द्वारा संचालित नगरपालिका प्रस््ततावित किया गया।
प्रशासन की पिछली व््यवस््थथा को समाप्त कर दिया। समान संघ की 1935 के भारत सरकार अधिनियम ने एक संघीय सभा
z उनके स््थथानीय स््वशासन प्रस््तताव मेें दक्षता बढ़़ाने के लिए स््थथानीय बोर्डडों को नीति का प्रस््तताव रखा।
छोटे समहोू ों मेें विभाजित करने का आह्वान किया गया। (1935-1947) राष्ट्रीय आंदोलन की शक्ति को कम करने मेें रियासतोों
z उन््होोंने सार््वजनिक भागीदारी सनु िश्चित करने के लिए स््थथानीय बोर्डडों के लिए की सहायता प्राप्त करना।
एक चनु ाव प्रक्रिया की स््थथापना की।
z 1919 के मोोंटे ग््ययु-चेम््सफोर््ड सध ु ार:
अंग्जो
रे ों की आर््थथिक नीतियााँ
 इस सध ु ार ने स््थथानीय सरकार के विषय को प््राांतोों के क्षेत्र मेें स््थथानांतरित अंग्रेजोों की आर््थथिक नीतियाँ ब्रिटिश आर््थथिक हितोों की सुरक्षा और उन््नति से
कर दिया। संबंधित थीीं। इसका उद्देश््य उपनिवेशित देश और उसके लोगोों की आर््थथिक
 सध ु ार मेें यह भी सिफारिश की गई कि जहाँ तक ​​संभव हो स््थथानीय निकायोों स््थथिति को विकसित करना नहीीं था। ऐसी नीतियोों ने भारतीय अर््थव््यवस््थथा की
मेें पर्ू ्ण नियंत्रण होना चाहिए और बाहरी नियंत्रण से उनके लिए यथासंभव संरचना मेें एक मल ू भतू परिवर््तन किया - देश को ब्रिटेन के लिए कच््चचे माल
स््वतंत्रता होनी चाहिए। के आपर््ततिू कर््तता और ब्रिटेन मेें निर््ममित औद्योगिक उत््पपादोों के उपभोक्ता के रूप
z भारत सरकार अधिनियम, 1935: मेें बदल दिया। इस प्रकार, भारत औद्योगिकीकृ त ब्रिटेन के लिए एक बाजार
 अधिकांश प््राांतीय प्रशासनोों ने महसस ू किया कि प््राांतोों मेें लोकप्रिय रूप से बन गया।
निर््ववाचित सरकारेें होने के परिणामस््वरूप, ग्राम पचं ायतोों सहित स््थथानीय विभिन्न चरणोों के दौरान आर््थथिक नीति:
स््वशासन संगठनोों को और अधिक लोकतांत्रिक बनाने के लिए काननू
पारित करना बाध््यकारी है। z ब्रिटिश शासन की स््थथापना का प्रारंभिक चरण:
 कंपनी की प्राथमिकता भारतीय संसाधनोों के माध््यम से अपने व््ययापार को
भारतीय राज्ययों के प्रति ब्रिटिश नीति वित्तपोषित करना था।
भारत की रियासतोों के प्रति ब्रिटिश नीति उनकी अपनी महत्त्वाकांक्षाओ ं से  भारत मेें ब्रिटिश नीति ने राजस््व सग्र ं ह बढ़़ाने और व््ययापार निवेश को
निर््धधारित होती थी, जो समता तक पहुचँ ने से लेकर पूर््ण अधीनता तक थी। प्रोत््ससाहित करने पर बल दिया।
ब्रिटिश शासन और भारतीय राज््योों के बीच संबंधोों के विकास को समझने के  परिणामस््वरूप, भारत से ब्रिटेन की ओर धन का निकास शरू ु हो गया,
लिए विभिन््न ब्रिटिश शासन नीतियोों को नीचे चार््ट के माध््यम से प्रदर््शशित किया जिससे बंगाल मेें निर््धनता की स््थथिति हो गई और भारतीय अर््थव््यवस््थथा
गया है। पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़़ा।

38  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


z 19वीीं सदी की शुरुआत: धन निकास के घटक
 ब्रिटेन मेें औद्योगिक पँज ू ीवाद का उदय। z वाणिज््ययिक राजस््व: क्षेत्रीय विस््ततार के माध््यम से, कंपनी वाणिज््ययिक राजस््व
 कच््चचे माल की आपर््तति ू करते हुए भारत को ब्रिटेन मेें तैयार माल के बाजार बढ़़ाने और निर््ययात के लिए भारतीय वस््ततुओ ं तक पहुचँ प्राप्त करने मेें सक्षम थी।
मेें परिवर््ततित करने के लिए आर््थथिक नीति मेें बदलाव। z निजी पूज ँ ी का स््थथानांतरण: इग्ं ्लैैंड मेें निजी पँजू ी का स््थथानांतरण भी निकासी
 इसके परिणामस््वरूप हस््तशिल््प उद्योगोों का पतन हुआ और कृषि का का हिस््ससा था।
व््यवसायीकरण हुआ, जिसके कारण गरीबी, बेरोजगारी और बार-बार z गृह शुल््क भी निकासी का एक बड़़ा हिस््ससा था। इसमेें इग्ं ्लैैंड मेें कंपनी के
अकाल की घटनाएँ हुई।ं कर््मचारियोों को दिया जाने वाला वेतन/ पेेंशन शामिल था।
z 1858 के बाद: z वेतन: भारत मेें प्रदान की जाने वाली सेवाओ ं के लिए इग्ं ्लैैंड मेें बैैंकोों, बीमा
 भारत को ब्रिटिश पँज ू ी निवेश के लिए खल ु ा रखा गया। कंपनियोों और शिपिंग निगमोों को भगु तान किया गया, धन भारत से दरू
 रे लवे, जहाजरानी उद्योग आदि मेें निवेश के लिए ब्रिटेन से भारत मेें पँज ू ी स््थथानांतरित करने का एक और तरीका था।
का प्रवाह हुआ और इसके बदले मेें ब्रिटेन को गृह शल्ु ्क की प्राप्ति।
नोट:
आर््थथिक अपवाह सिद्धधांत और इसके समर््थक “हमारा तंत्र एक स््पपंज की तरह काम करता है, जो गंगा के किनारोों से सभी
धन निकासी सिद््धाांत के अनुसार, भारत को किसी आर््थथिक या व््ययावसायिक लाभ अच््छछी चीजोों को सोखता है और उन््हेें टेम््स के किनारोों पर निचोड़ देता
के बिना ही अपने संसाधनोों का एकतरफा हस््तताांतरण ब्रिटेन को किया जा रहा था। है।” - जॉन सुलिवन
सिद्धधांत के समर््थक धन निकास का प्रभाव
z दादाभाई नौरोजी: z राजस््व निर््ययात: भारत के राजस््व का एक बड़़ा हिस््ससा ‘गृह शल्ु ्क’ के रूप मेें
 1867 मेें एक भाषण मेें, उन््होोंने तर््क दिया कि ब्रिटेन भारत की संपत्ति को ब्रिटेन को भेजा जाता था, जिसमेें भारत मेें ब्रिटिश नागरिक और सैन््य सेवाओ ं
हड़प रहा है, जो देश के राजस््व का लगभग 25 प्रतिशत है, जिसे 'इग्ं ्लैैंड के लिए भगु तान, पेेंशन और ब्रिटिश निवेश पर ब््ययाज शामिल था। उदाहरण के
के सस ं ाधनोों मेें जोड़़ा जा रहा है'। लिए, भारतीय करदाताओ ं से प्राप्त राजस््व का एक महत्तत्वपर्ू ्ण हिस््ससा भारत मेें
 1873 मेें, उन््होोंने 'भारत के हितोों की अनदेखी करने और इसे इग्ं ्लैैंड के कार््यरत ब्रिटिश अधिकारियोों के वेतन और पेेंशन का भगु तान करने के लिए
लाभ के लिए हथकंडा बनाने' के लिए ब्रिटेन की आलोचना की। उपयोग किया जाता था।
 उनकी पस् ु ्तक ‘पॉवर्टी एडं अन-ब्रिटिश रूल इन इडं िया’ (1901) राष्टट्रवादी z भारत का विऔद्योगीकरण: ब्रिटिश नीतियोों ने ब्रिटिश निर््ममित वस््ततुओ ं के
राजनीतिक अर््थव््यवस््थथा के निर््ममाण मेें एक महत्तत्वपर्ू ्ण उपलब््धधि बनी हुई है। आयात का समर््थन किया और भारतीय उद्योगोों का विनाश कर दिया, जिससे
z रमेश चंद्र दत्त: पारंपरिक शिल््प और उद्योगोों का पतन हुआ। इसमेें भारतीय निर््ममित वस््ततुओ ं पर
उच््च कर (टैरिफ) लगाना शामिल था, जबकि ब्रिटिश वस््ततुओ ं को कम या बिना
 अपनी पस् ु ्तक ‘इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इंडिया’ मेें उन््होोंने प््ललासी के
शल्ु ्क के भारत मेें प्रवेश की अनमति ु देना शामिल था। ढाका जैसे शहर, जो
यद्ध
ु के बाद से अग्ं रेजोों के अधीन देश की संपर्ू ्ण आर््थथिक व््यवस््थथा के
कभी अपनी मलमल के उद्योग लिए प्रसिद्ध थे, ने अपने बनु करोों की आजीविका
बारे मेें लिखा।
को नष्ट होते देखा।
 रमेश चद्र ं दत्त के अनसु ार, भारत के शद्ध ु राजस््व का आधा हिस््ससा हर वर््ष z ब्रिटिश लाभ के लिए पूज ँ ी निवेश: रे लवे और टेलीग्राफ जैसी बनु ियादी ढाँचा
भारत से बाहर जाता है। परियोजनाएँ मख्ु ्य रूप से भारतीय आर््थथिक विकास को बढ़़ावा देने के बजाय
z महादेव गोविन््द रानाडे: ब्रिटिश सैन््य और आर््थथिक हितोों की पर््तति
ू करती थीीं। उदाहरण के लिए, रे लवे का
 महादेव गोविन््द रानाडे ने धन की बर््बबादी को दर््शशाते हुए ‘भारतीय उपयोग इग्ं ्लैैंड मेें शिपमेेंट के लिए अदं रूनी हिस््सोों से बंदरगाहोों तक कच््चचे माल
अर््थशास्त्र पर निबंध’ लिखा। के परिवहन के लिए किया जाता था और ब्रिटिश उत््पपादोों को भारत मेें वापस
 उन््होोंने घोषणा की कि भारत की राष्ट्रीय आय का एक-तिहाई से अधिक लाया जाता था, जिससे स््थथानीय व््यवसाय कमजोर हो जाते थे।
हिस््ससा किसी-न-किसी रूप मेें सरकार द्वारा छीन लिया गया है। z कृषि शोषण: निर््ययात बाजारोों के लिए नकदी फसलोों (जैसे कपास और नील)
z विलियम डिग््बबी: की खेती पर औपनिवेशिक बल के कारण खाद्य फसलोों का विस््थथापन हुआ,
 उनकी गणना के अनस ु ार, वार््षषिक धन निकासी £30 मिलियन थी। जिससे भोजन की उपलब््धता मेें भारी कमी आई और अकाल की स््थथिति बनने मेें
योगदान किया। बलपर््वू क खेती की नीतियाँ, जो किसानोों को कुछ चनु िंदा फसलेें
नोट: उगाने के लिए बाध््य करती थीीं, ने कृषि अर््थव््यवस््थथा और खाद्य आत््मनिर््भरता
को गंभीर रूप से प्रभावित किया।
“मल ू तः ​​निरंकुश शासन के अंतर््गत लोग जो कुछ उत््पन््न करते हैैं उसे अपने
पास रखते हैैं और उसका आनंद लेते हैैं, हालाँकि, कभी-कभी उन््हेें कुछ हिसं ा z अकाल और गरीबी: ब्रिटिश कृषि नीतियाँ और भारी कराधान भारत मेें
कई अकालोों का कारण बनी। 1770 का बंगाल का महाअकाल, 1876-78
का भी सामना करना पड़ता है। ब्रिटिश भारतीय निरंकुश शासन के अंतर््गत,
का अकाल और 1940 के दशक की शरुु आत मेें बंगाल का अकाल, जिसमेें
व््यक्ति शांति मेें है, कोई हिसं ा नहीीं है; उसके संसाधनोों की निकासी अदृश््य
सामहि ू क रूप से लाखोों लोग मारे गए थे, इन नीतियोों के कारण स््थथिति और भी
रूप से शांतिपूर््वक होती है- वह शांति से भख ू ा मरता है और शांतिपूर््वक भयावह हो गई थी। इन अकालोों के दौरान, स््थथानीय स््तर पर खाद्य सामग्री की
कानून और व््यवस््थथा के साथ ही नष्ट हो जाता है।” -दादाभाई नौरोजी भारी कमी के बावजदू ब्रिटेन को खाद्य निर््ययात जारी रहा।

भारत में ब्रिटिश नीतियों काविश्लेषण (1757 से 19 39


z शिक्षा एवं स््ववास््थ््य की उपेक्षा: भारत से निष््ककासित धन का कुछ हिस््ससा शिक्षा z लाभ:
और स््ववास््थ््य देखभाल जैसी महत्तत्वपर्ू ्ण सार््वजनिक सेवाओ ं मेें पनु ः निवेश किया  फसल उत््पपादन मेें वद्ृ धि: कंपनी का लक्षष्य इस प्रणाली के माध््यम से
गया। भारत मेें साक्षरता दर और स््ववास््थ््य की स््थथिति ब्रिटिश शासन के अतं र््गत जमीींदारोों का एक व््यवसायिक विचारधारा वाला वर््ग स््थथापित करना था,
अन््य क्षेत्ररों से बहुत पीछे थी, जिससे कई पीढ़़ियोों तक भारत का सामाजिक और जो पैसा कमाने के लिए अपने खेतोों मेें फसल उत््पपादन बढ़़ाने के लिए
आर््थथिक विकास प्रभावित हुआ।
काम करे गा।
धन की निकासी के सिद््धाांत ने आम जनता को किस प्रकार प्रभावित किया
 प्रशासन मेें आसानी: राज््य के लिए प्रत््ययेक किसान के बजाय थोड़़ी
z आर््थथिक जागृति: लोगोों को एहसास हुआ कि ब्रिटिश शासन भारत के आर््थथिक
संख््यया मेें जमीींदारोों से निपटना आसान होगा।
हितोों के लिए हानिकारक था क््योोंकि औपनिवेशिक सरकार की आर््थथिक नीतियाँ
 निष्ठावान वर््ग का उदय: समाज का एक महत्तत्वपर् ू ्ण हिस््ससा ब्रिटिश सरकार
ब्रिटेन के लाभ के लिए बनी थीीं।
z आर््थथिक राष्टट्रवाद: भारत मेें आर््थथिक राष्टट्रवाद का उदय उपनिवेश के सरकारी
के प्रति वफादारी विकसित करे गा।
अधिकारियोों और धन के निकास सिद््धाांत को प्रतिपादित करने वाले शरुु आती z कमियाँ:
राष्टट्रवादियोों के मध््य वैचारिक प्रतिस््पर्द्धा से हुआ।  दरिद्रता: इससे उच््च राजस््व निर््धधारण के बोझ के कारण काश््तकार-कृ षक

z साम्राज््यवाद विरोधी भावना: व््ययापक गरीबी और शोषण के कारण जनता मेें की स््थथिति दयनीय हो गई।
साम्राज््यवाद विरोधी भावना मेें वृद्धि होने लगी।  सनसेट क््ललॉज: इससे जमीींदारोों के लिए भी बड़़ी कठिनाई हुई, जिनमेें से

z वास््तविक स््थथिति से अवगत होना: इसने ब्रिटिश शासन की शोषणकारी और कई समय पर राजस््व का भगु तान करने मेें असमर््थ थे और 'सनसेट क््ललॉज'
स््ववार्थी प्रकृति को उजागर किया और लोगोों को यह विश्वास दिलाया कि मौजदू ा के अतं र््गत अपनी जमीन खो बैठे।
गरीबी का मख्ु ्य कारण अग्ं रेज थे।  जमीींदार घरानोों का पतन: बड़़ी सख् ं ्यया मेें पारंपरिक जमीींदार घराने ढह
राजस्व नीतियााँ, भारतीय कृषि और ब्रिटिश शासन गए।
 उप-सघ ं र््ष (Sub-Infeudation): इस प्रणाली ने उप-संघर््ष को भी
1765 मेें बंगाल, बिहार और उड़़ीसा की दीवानी ईस््ट इडं िया कंपनी को सौौंपे जाने
बढ़़ावा दिया, यानी जमीींदार और कृ षक के बीच बिचौलियोों की कई परतेें
के बाद उपनिवेश से अधिकतम राजस््व प्राप्त करना, ब्रिटिश प्रशासन का मख्ु ्य
थीीं, जिससे किसानोों की मसु ीबतेें और भी बढ़ गई।ं
उद्देश््य बन गया था। उपनिवेश के राजस््व का प्राथमिक स्रोत कृषि करोों से था और
सरकार को ब्रिटिश निवेशकोों के लिए लाभांश भी वितरित करना था। इसे प्राप्त z रैयतवाड़़ी प्रणाली (1820):
करने के लिए, ब्रिटिश सरकार ने विभिन््न प्रकार की भ-ू राजस््व रणनीतियोों का  मूल: अलेक््जेेंडर रीड और थॉमस मन ु रो द्वारा शरू ु की गई रै यतवाड़़ी
प्रयोग किया। प्रणाली के अतं र््गत, शरू ु मेें राजस््व प्रत््ययेक गाँ व से अलग से एकत्र किया
भूमि राजस्व प्रणाली: जाता था, लेकिन बाद मेें प्रत््ययेक कृ षक या रै यत का व््यक्तिगत रूप से
मल्ू ्ययाांकन किया जाता था।
z इजारेदार प्रणाली (1773):
 सप ं त्ति का स््ववामित््व: जमीींदारोों को नहीीं, बल््ककि किसानोों को संपत्ति के
 बंगाल मेें वॉरे न हेस््टटििंग््स द्वारा शरू ु की गई राजस््व खेती के अतं र््गत,
जिला कलेक््टर उच््चतम बोली लगाने वाले को राजस््व एकत्रित करने का मालिकोों के रूप मेें स््थथापित किया गया।
अधिकार देते थे।  क्षेत्र: मद्रास, बॉम््बबे प्रेसीडेेंसी।

 मनमाने ढंग से उच््च राजस््व माँगोों के कारण, यह प्रणाली परू ी तरह से z लाभ:
विनाशकारी थी और इसने उत््पपादकोों को नष्ट कर दिया।  किसी मध््यस््थ की अनप ु स््थथिति के कारण राज््य द्वारा एकत्रित राजस््व मेें
 इजारे दार प्रणाली की विफलता ने अधिक न््ययायसंगत और टिकाऊ राजस््व वृद्धि।
संग्रह पद्धति की आवश््यकता पर प्रकाश डाला, जिसके परिणामस््वरूप z कमियाँ:
अतं तः 1793 मेें स््थथायी बंदोबस््त की शरुु आत हुई।  आकलन दोषपर् ू ्ण थे।
z स््थथायी बंदोबस््त (1793):  किसान करोों के अत््यधिक बोझ से दबे हुए थे।
 मूल: कॉर््नवालिस ने 1793 मेें स््थथायी बंदोबस््त की प्रणाली शरू ु की,  करोों का भग ु तान करने मेें असमर््थ किसान साहूकारोों के पास जाते थे, जो
जिसके अतं र््गत 'जमीींदार', भमि ू के मालिक या संरक्षक के रूप मेें स््थथापित थे। उनका शोषण करते थे।
 जमीींदारोों की भूमिका: जमीींदार किसानोों से भ- ू राजस््व वसल ू करते थे। z महलवाड़़ी प्रणाली (1822):
राज््य को जमीींदारोों द्वारा किसानोों से एकत्र किए गए लगान का 10/11वाँ
 हॉल््ट मैकेेंजी द्वारा शरू ु की गई, इस प्रणाली के अतं र््गत राज््य ने ग्रामीण
हिस््ससा प्राप्त करना था, के वल 1/11वाँ हिस््ससा जमीींदारोों को मिलता था।
भ-ू राजस््व के रूप मेें उन््हेें जो रकम चक समदु ाय मेें से किसी एक के साथ समझौता किया या कुछ मामलोों मेें
ु ानी पड़ती थी, उसे स््थथायी कर दिया
जाता था। पारंपरिक 'तालक ु दार' के साथ समझौता किया।
 सामहि ू क मालिकाना अधिकारोों को कुछ मान््यता दी गई।
 क्षेत्र: पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, आध्र ं प्रदेश और मध््य
प्रदेश मेें इस प्रणाली का प्रचलन सबसे अधिक था।  क्षेत्र: भारत के उत्तर और उत्तर-पश्चिम भाग।

40  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


z लाभ: व्यवसायीकरण के प्रभाव
 सरकार के लिए स््थथिर आय।
गरीबी
 अधिक कुशल राजस््व प्रणाली।
z नकदी फसलोों के निर््ययात का मख्ु ्य उद्देश््य संसाधनोों को भारत से बाहर भेजना था।
z कमियाँ:
z भारतीय ससं ाधन ब्रिटेन को हस््तताांतरित कर दिए गए।
 किसानोों/कृ षकोों का शोषण।
z इन निर््ययातोों के बदले मेें भारत को कोई आय या आयात प्राप्त नहीीं हुआ।
 किसान सख ू े की स््थथिति मेें भी कर देने के लिए बाध््य थे।
z साहूकारोों पर निर््भरता मेें वद्ृ धि: भारतीय साहूकार किसानोों को व््ययावसायिक
भू- राजस्व प्रणाली का प्रभाव फसलेें उगाने के लिए नकद अग्रिम राशि देते थे और यदि किसान उन््हेें समय
z कृषि मेें नवाचार का अभाव: कृ षकोों की खराब वित्तीय स््थथिति के कारण पर वापस भगु तान करने मेें विफल रहते थे, तो किसानोों की भमि ू साहूकारोों के
किसी भी तकनीकी नवाचार की कमी के कारण कृषि स््थथिर हो जाती है। स््ववामित््व मेें आ जाती थी।
z किसानोों की दयनीय स््थथिति: किसान लगभग अपनी इच््छछानसु ार काश््तकार ग्रामीण अर््थव्यवस्था मेें अस्थिरता
बन गए।
z व््यवसायीकरण के कारण कीमतोों मेें अस््थथिरता आ गई।
z अप्रत््यक्ष जमीींदारी: इससे जमीींदार बिचौलियोों और उप-मध््यस््थोों की संख््यया
z उदाहरण के लिए- यदि भारत के पश्चिम मेें चीनी (गन््नने) की फसल अच््छछी
मेें वृद्धि हुई, जिससे अप्रत््यक्ष जमीींदारी प्रथा को बढ़़ावा मिला।
होती, तो कलकत्ता मेें कीमतेें गिर सकती थीीं और आज़मगढ़ मेें चीनी मिलेें
z साहूकार वर््ग का उदय: ब्रिटिश सरकार द्वारा राजस््व की समयबद्ध और
किसानोों को अपने वादे से कम भगु तान कर सकती थीीं।
अत््यधिक माँग ने किसानोों को साहूकारोों से ऋण लेने के लिए मजबरू किया,
जिन््होोंने बदले मेें उच््च ब््ययाज दरेें लगाकर किसानोों का शोषण किया। z पूर््ण श्रम बाजार का अविकसित होना: बलपर््वू क और राज््य शक्ति के
z भूस््ववामी एवं जमीींदारोों का उदय: जमीींदार और भस्ू ्ववामी, ब्रिटिश निरंतर हस््तक्षेप ने बाजारोों को विकृ त कर दिया और एक पर्ू ्ण श्रम बाजार की
औपनिवेशिक शासन के लिए एक महत्तत्वपर्ू ्ण वर््ग और सहयोगी बन कर उभरे । उपस््थथिति को रोक दिया।
z प्रादेशिक विस््ततार: भ-ू राजस््व से आय के लालच ने भी कंपनी को भारत मेें z लघु कृषि: न तो तरीकोों मेें बदलाव किया गया और न ही उत््पपादन के संगठन
क्षेत्रीय विस््ततार की आक्रामक नीति अपनाने के लिए प्रेरित किया। मेें। परिणामस््वरूप, पारिवारिक श्रम पर आधारित लघु खेती भारतीय ग्रामीण
इलाकोों मेें प्रमख
ु बनी रही।
कृषि का व्यवसायीकरण
z अकाल की घटना: वाणिज््ययिक गैर-खाद्य फसलोों के प्रतिस््थथापन के कारण
z परिचय:
खाद्यान््न की कमी हुई, जिसके परिणामस््वरूप खाद्य फसलोों की खेती के क्षेत्र
 भारतीय कृषि का व््यवसायीकरण 1813 के बाद शरू ु हुआ, जब इग्ं ्लैैंड मेें
मेें कमी आई।
औद्योगिक क््राांति ने गति पकड़़ी।
z किसान विद्रोह: अग्ं रेजोों द्वारा भारतीय किसानोों का उत््पपीड़न; जैसे- 1859
 1860 ई. के आसपास, औद्योगिक क््राांति के साथ-साथ, वाणिज््ययिक कृषि
का नील विद्रोह।
को प्रमख
ु ता मिलनी शरू ु हुई।
 कंपनी ने जिन फसलोों पर ध््ययान केें द्रित किया; उनमेें नील, कपास, कच््चचा सकारात्मक प्रभाव:
रे शम, अफ़़ीम, काली मिर््च और 19वीीं सदी मेें चाय और चीनी भी शामिल z सामाजिक आदान-प्रदान: व््यवसायीकरण ने सामाजिक आदान-प्रदान को
थीीं। बढ़़ावा दिया और इससे भारतीय अर््थव््यवस््थथा के पँजू ीवादी स््वरूप मेें परिवर््तन
व्यवसायीकरण के लिए अग्रणी कारक सभं व हो गया।
z ब्रिटिश सर्वोपरिता: ब्रिटिश द्वारा स््थथापित राजनीतिक एकीकरण और उसके z आर््थथिक राष्टट्रवाद: जब कृषि समस््ययाओ ं ने राष्ट्रीय रूप धारण कर लिया तो
बाद एकल राष्ट्रीय बाजार का उदय हुआ। इससे आर््थथिक राष्टट्रवाद को बल मिला।
z ब्रिटे न मेें औद्योगिक क््राांति: ब्रिटेन मेें कच््चचे माल की माँग को परू ा करने के z क्षेत्र विशेष फसल की खेती: इससे कुशल आधार पर फसलोों की क्षेत्रीय
लिए कपास, जटू , चाय और तंबाकू जैसी कई व््ययावसायिक फसलेें शरू ु की गई।ं विशेषज्ञताएँ भी सामने आई।
z सांस््ककृतिक क्षरण: प्रतिस््पर्द्धा और अनबु ंध द्वारा रीति-रिवाज और परंपरा के
इतिहासकार का दृष्टिकोण
प्रतिस््थथापन के कारण भारतीय कृषि का व््यवसायीकरण भी हुआ।
“कंपनी के कर््मचारियोों ने मल
ू निवासियोों को महँगा खरीदने और सस््तते
z बेहतर सच ं ार और परिवहन का बुनियादी ढाँचा: कृषि वस््ततुओ ं के व््ययापार
करने की क्षमता, विशेष रूप से लंबी दरू ी तक, बेहतर संचार और परिवहन, रे लवे मेें बेचने के लिए मजबूर किया... इस प्रकार कलकत्ता मेें अंग्रेजोों के पास
के विस््ततार आदि के कारण सभं व हुई। अत््यधिक संपत्ति तीव्रता से जमा हो गई, जिस कारण करीब तीस करोड़
लोग गरीबी की चरम सीमा तक पहुचँ गए। उन््हेें पहले कभी भी इस तरह
z भू-राजस््व भुगतान का मुद्रीकरण: मद्ु रा अर््थव््यवस््थथा के प्रसार ने वस््ततु
अत््ययाचार या उत््पपीड़न के अधीन नहीीं रहना पड़़ा था…” - मै काले
विनिमय का स््थथान ले लिया और कृषि वस््ततुएँ बाजार की वस््ततुएँ बन गई।ं

भारत में ब्रिटिश नीतियों काविश्लेषण (1757 से 19 41


पारंपरिक कारीगर उद्योग का पतन भारतीय अर््थव्यवस्था का विऔद्योगीकरण और ग्रामीणीकरण
और ग्रामीण अर््थव्यवस्था का कमजोर होना कार््ल मार््क््स के अनुसार, “यह ब्रिटिश घसु पैठिए थे, जिन््होोंने भारतीय हथकरघा
अर््थव््यवस््थथा मेें गिरावट 1757 के बाद शरू उद्योग को खत््म कर दिया और चरखे को नष्ट कर दिया। इग्ं ्लैैंड ने यूरोपीय बाजार
ु हुई, जब ईस््ट इडं िया कंपनी ने बंगाल
के कारीगरोों के उत््पपादन पर एकाधिकार स््थथापित कर लिया। कारीगरोों को कंपनी से भारतीय कपास को बहार करना शरू ु किया; फिर इसने हिदं स्ु ्ततान मेें एक विशेष
के लिए कम कीमत पर माल की आपर््तति स््थथिति का निर््ममाण किया और अंत मेें, कपास की मातृभमि ू को ही समाप्त कर
ू करने के लिए मजबूर किया गया, जिससे
बुनकरोों और अन््य कारीगरोों की दशा अत््यधिक दयनीय होती चली गई। दिया।” कपास के साथ ढाका, सूरत, मर््शशि ु दाबाद और कई अन््य समृद्ध शहरोों का
पतन भारत के विऔद्योगीकरण की गवाही देता है।
गिरावट के पीछे जिम्मेवार कारक
व्यवस्थित विऔद्योगीकरण के पीछे का उद्देश्य:
z दरबारी सस्ं ्ककृति का लुप्त होना: दरबारी संस््ककृति के लप्तु होने के कारण
कारीगर संरक्षकोों और संविदात््मक लेन-देन से वंचित होते चले गए। z कच््चचे माल की माँग: भारत से सस््तते दर पर कच््चचा माल प्राप्त करना।
z भारतीयोों का अंग्रेजीकरण: नव स््थथापित भारतीय ‘बर््जजुु आ वर््ग’ ने न के वल z ब्रिटे न मेें औद्योगिक क््राांति को सगु म बनाना: औद्योगिक क््राांति से प्रेरित
स््थथानीय उद्योगोों के सामानोों का तिरस््ककार किया, बल््ककि हर यरू ोपीय चीज की ब्रिटिश उद्योगोों की जरूरतोों को परू ा करने के लिए भारत को के वल कच््चचे माल
नकल करने का भी प्रयास किया। के निर््ययातक तक सीमित करना।
z मशीन निर््ममित वस््ततुओ ं से प्रतिस््पर्द्धा: अग्ं रेज अपने मशीन-निर््ममित वस्त््रों को z ब्रिटिश वस््ततुओ ं का बाजार: ब्रिटिश निर््ममित वस््ततुओ ं को भारतीय बाजार मेें
भारत मेें आयात कर सकते थे और उन््हेें कम कीमत पर और अधिक मात्रा मेें अधिक कीमत पर बेचना।
बेच सकते थे। विऔद्योगीकरण की ओर ले जाने वाली घटनाएँ
z एकतरफा व््ययापार नीतियाँ: अग्ं रेज भारतीय बाज़़ारोों तक शल्ु ्क-मक्त ु पहुचँ z के लिको अधिनियम: 1720 मेें, ब्रिटिश सरकार ने इग्ं ्लैैंड मेें मद्रि
ु त सतू ी वस्त््रों
बनाने मेें सक्षम थे। इसके विपरीत यरू ोपीय बाजारोों मेें भारतीय वस््ततुओ ं पर पर््ययाप्त के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया।
कर लगाए गए। z 1813 का चार््टर एक््ट: 1813 के चार््टर अधिनियम के बाद भारतीय बाजार मेें
z हथियारोों के उपयोग और स््ववामित््व पर प्रतिबंध: ब्रिटिश शासन ने हथियारोों, सस््तते और मशीन-निर््ममित वस्त््रों के आयात की बाढ़ आ गई।
शस्त््रों और ढालोों का उत््पपादन करने वाले हस््तशिल््प को भी उनके उपयोग और z भारतीय निर््ययात मेें गिरावट: 1820 के बाद यरू ोपीय बाजार भारतीय निर््ययात
स््ववामित््व पर सक्रिय रूप से प्रतिबंध लगाकर प्रभावी ढंग से नष्ट कर दिया। के लिए लगभग बंद हो गए।
z बुनियादी ढाँचे का विकास: रे लवे जैसी बेहतर परिवहन सवि ु धाओ ं ने भारत सच
z ं ार अवसरं चना का निर््ममाण: 1855 मेें स््थथापित रे ल नेटवर््क ने देश के सदु रू
के भीतरी इलाकोों को आर््थथिक और वाणिज््ययिक शोषण के लिए अत््यधिक कोने तक पहुचँ की सवि ु धा प्रदान की।
सल ु भ बना दिया।
नोट:
पारंपरिक उद्योग का पतन के
“पृथक आत््मनिर््भर गाँवोों के कवच को स््टटील की रे लगाड़ी से छे द दिया गया
पश्चात् ग्रामीण अर््थव्यवस्था का पतन
और गाँवोों का जीवन रक्त समाप्त हो गया" - डी.एच. बुकानन
z ग्रामीण अर््थव््यवस््थथा का विविधीकरण: आजीविका के पारंपरिक साधनोों
को प्रतिस््थथापित करने के लिए कोई स््थथानीय उद्यम विकसित नहीीं हुए थे। इससे विऔद्योगीकरण के कारण
ग्रामीण अर््थव््यवस््थथा के विविधीकरण मेें बाधा उत््पन््न हुई। z सरं क्षक सस्ं ्ककृति का लुप्त होना: स््वदेशी शिल््प को बढ़़ावा देने वाले पारंपरिक
z कृषि की ओर स््थथानांतरण: पारंपरिक रोजगार मेें गिरावट के कारण, कारीगरोों शासक वर््ग का पतन।
ने आय के स्रोत के रूप मेें कृषि की ओर रुख किया, जिससे भमि ू पर निर््भरता z भारत मेें औद्योगीकरण न होना: भारत मेें औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया के
और दबाव बढ़ता गया। साथ पारंपरिक आजीविका के नक ु सान की भरपाई न हो पाना।
z ग्रामीण गरीबी मेें वद्ृ धि: कृषि पर अत््यधिक निर््भरता के कारण गरीबी मेें वृद्धि z भारतीयोों का अंग्रेजीकरण: इन नवनिर््ममित भारतीय 'पँजू ीपति वर््ग' ने न के वल
हुई और गाँव की आर््थथिक संरचना विकृ त होती गई। स््वदेशी उत््पपादोों का तिरस््ककार किया बल््ककि उन सभी यरू ोपीय चीजोों की नकल
z मध््यस््थोों (बिचौलियोों) का उदय: नकदी, ऋण और अनबु ंधोों की लोकप्रियता करने की भी कोशिश की, जिन््हेें ‘ज्ञानोदय की पहचान’ माना जाता था।
बढ़ने से व््ययापारियोों, बैैंकरोों, बनिया और अन््य बिचौलियोों ने उपनिवेशवाद के z ब्रिटे न मेें औद्योगिक क््राांति: इसके परिणामस््वरूप मशीन-निर््ममित वस््ततुओ ं की
अतं र््गत ग्रामीण अर््थव््यवस््थथा मेें आर््थथिक और सामाजिक संबंधोों पर शासन माँग मेें वृद्धि हुई।
करना शरू ु कर दिया। z टै रिफ नीति: अपने घरे लू विनिर््ममाण उद्योगोों को मजबतू स््थथिति मेें लाने के लिए,
z आदिवासियोों और छोटे किसानोों की गरीबी: कारीगरोों द्वारा MFP की माँग इग्ं ्लैैंड ने आयात शल्ु ्क लगाकर सरु क्षा की नीति अपनाई। लेकिन भारत के लिए
मेें कमी के परिणामस््वरूप आदिवासी अर््थव््यवस््थथा मेें विकृति आई। उन््होोंने मक्तु व््ययापार की नीति का पालन किया।
z साप्ताहिक हाटोों का ह्रास: किसानोों और कारीगरोों के पतन के कारण लेन-देन z भारत मेें कमजोर औद्योगिक सरं चना: जिसके कारण भारतीय निर््ममाताओ ं
कम हो गया और इस प्रकार कई समदु ायोों ने साप्ताहिक हाट या बाजार लगाना को नये बाजार नहीीं मिल पा रहे थे। भारत मेें औद्योगिक उद्यमियोों का कोई वर््ग
बंद कर दिया। नहीीं था।

42  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


विऔद्योगीकरण का प्रभाव अकाल पड़ने के कारण
z ग्रामीण अर््थव््यवस््थथा की विकृति: अग्ं रेजोों ने ‘कृषि और हस््तशिल््प के z कृषि निवेश की उपेक्षा: उदाहरण के लिए- कम वर््षषा के कारण खाद्यान््न
मिश्रण से निर््ममित बाजार’ को समाप्त कर दिया। गाँव की अर््थव््यवस््थथा का उत््पपादन पर नकारात््मक प्रभाव पड़़ा क््योोंकि सिंचाई की कोई सवि ु धा नहीीं थी।
आतं रिक संतल ु न बिगड़ गया। z खाद्यान््न निर््ययात: भारत मेें कमी के बावजदू ब्रिटिश सरकार अपने मल ू देश
बेरोजगारी और अल््प-रोजगार: इससे व््ययावसायिक संरचना मेें असंतल इग्ं ्लैैंड और अन््य जगहोों पर खाद्यान््न का निर््ययात करती रही।
z ु न
पैदा हो गया, जिससे ग्रामीण बेरोजगारी और अल््प-रोजगार उत््पन््न हुआ। z सेना के लिए आपूर््तति: इसने अपने सैनिकोों को खिलाने के लिए भी खाद्यान््न
का उपयोग किया, जो दनु िया के विभिन््न हिस््सोों मेें यद्ध ु लड़ रहे थे।
z विनगरीकरण: इसके कारण कई शहरोों का पतन हुआ।
z गरीबी: अकाल, गरीबी का प्रत््यक्ष परिणाम थे।
z भारत का ग्रामीणीकरण: कारीगरोों को पारंपरिक व््यवसायोों से विस््थथापित z कृषि का व््यवसायीकरण: कृषि को खाद्यान््न उत््पपादन से नकदी फसलोों की
कर दिया गया। आजीविका का कोई अन््य वैकल््पपिक स्रोत नहीीं मिलने पर, ओर स््थथानांतरित करना।
कारीगर वापस लौटकर कृषि कार्ययों मेें संलग््न हो गए। z भारत के व््ययापार की सरं चना मेें परिवर््तन: इसके परिणामस््वरूप भी भोजन
z कृषि निर््भरता: कृषि पर अत््यधिक निर््भरता के परिणामस््वरूप - की कमी हुई।
 भमि ू जोत के उपविभाजन और विखडन ं की समस््ययाएँ उत््पन््न हुई। अकाल का प्रभाव:
 अत््यधिक खेती या अनत्ु ्पपादक भमि ू पर खेती के कारण कृषि का ह्रास हुआ। z जनसख् ं ्यया वद्ृ धि मेें ठहराव: यह बड़़े पैमाने पर मृत््ययु दर के कारण हुआ।
 कृषि जीवन निर््ववाह का साधन बनकर रह गई।
z पारंपरिक भारतीय समाज का विनाश: यह बड़़े पैमाने पर प्रवासन, भीड़भाड़,
 पँज ू ीगत संसाधनोों की कमी के कारण भमि ू सधु ार नहीीं हो सका। अनाज के लिए सघं र््ष आदि के कारण हुआ।
z देशभक्ति की भावना को प्रेरित करना: उदारवादी, उग्रवादी और गांधीवादी z महिलाओ ं के शोषण मेें वद्ृ धि: अकाल ने बड़़ी संख््यया मेें महिलाओ ं को
यगोु ों मेें बद्ु धिजीवियोों के बीच देशभक्ति की भावनाएँ समान रूप से उभरती रहीीं, वेश््ययावृत्ति की ओर बढ़ाया।
साथ ही कभी-कभी विभिन््न प्रकार के शहरी और ग्रामीण क्षेत्ररों मेें भी प्रत््यक्ष z कपड़़े का अभाव: ब्रिटिश सेना ने भारत मेें उत््पपादित लगभग सभी वस्त््रों
रूप से उभरीीं। का उपभोग कर लिया, जिसके परिणामस््वरूप वस्त््रों या किसी भी प्रकार के
कपड़ोों की कमी हो गई।
वि-औद्योगीकरण का प्रभाव: z बेघर महिलाएँ और बच््चचे: अकाल के परिणामस््वरूप आगे बढ़ने और सेना
z स््वदेशी उत््पपादोों की विशिष्ट किस््मोों को प्रतिस््थथापित करने मेें आयातित वस््ततुओ ं मेें शामिल होने के लिए परुु षोों ने अपनी जमीनेें बेचनी शरू ु कर दीीं। राहत की
की विफलता। तलाश मेें, वे एक स््थथान से दसू रे स््थथान पर जाते रहे। परिणामस््वरूप, महिलाएँ
z कई क्षेत्ररों मेें ग्रामीण स््तर पर बाजार एकीकरण की अनपु स््थथिति से सरु क्षा और उनके बच््चचे बेघर हो गए।
प्रदान की गई। z अस््वच््छता और संक्रमण का प्रकोप: अकाल के कारण व््ययापक और
z रोजगार के अधिक व््यवहार््य अवसरोों की कमी के कारण लाभहीन होने के भयावह स््वच््छता समस््ययाएँ और सक्रम ं ण का प्रकोप फै लता चला गया।
बावजदू भी कुछ शिल््पोों को बलपर््वू क जारी रखा गया। संचार एवं प्रौद्योगिकी के आधुनिक साधनोों का विकास
औपनिवेशिक शासन के अंतर््गत रे लवे, बंदरगाह, जल परिवहन, डाक और तार
नोट: जैसे बुनियादी ढाँचे का विकास हुआ। इस विकास के पीछे वास््तविक उद्देश््य
लोगोों को बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करना नहीीं बल््ककि विभिन््न औपनिवेशिक
“...विऔद्योगीकरण एक सोची-समझी ब्रिटिश नीति थी, कोई दर््घु टना नहीीं।
हितोों की पूर््तति करना था।
इसके विपरीत ब्रिटिश उद्योग विकसित हुए और भारतीय उद्योग, टैरिफ
ब्रिटिश शासन के अंतर््गत विभिन्न बुनियादी ढााँचे विकसित हुए :
और विनियामक हस््तक्षेपोों द्वारा बाधित किए गए, जिसके परिणामस््वरूप
इसका विकास नहीीं हो पाया और ब्रिटिश उद्योगोों द्वारा भारतीय बाजार का आधारभूत
विवरण
अधिग्रहण कर लिया गया” - ‘एन एरा ऑफ डार््कनेस’ मेें शशि थरूर संरचना
z इसने लोगोों को लंबी दरू ी की यात्रा करने मेें सक्षम बनाया
अठारहवीीं शताब्दी के मध्य से औपनिवेशिक और इस तरह भौगोलिक और सांस््ककृतिक बाधाओ ं को
भारत मेें अकालोों की संख्या मेें अचानक वृद्धि तोड़ दिया।
रेलवे
अकाल एक ऐसी स््थथिति है, जहाँ बहुत से लोगोों के पास भोजन की कमी हो z इसने भारतीय कृषि के व््यवसायीकरण को बढ़़ावा
जाती है और वे भख दिया, जिसने भारत मेें ग्रामीण अर््थव््यवस््थथाओ ं की
ू और बीमारी के कारण उनकी मृत््ययु होने लगती है। ब्रिटिश
आत््मनिर््भरता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला।
काल मेें कुल 31 अकाल पड़़े। सबसे विनाशकारी 1943 का बंगाल अकाल
था, जिसके परिणामस््वरूप लगभग 2 से 3 मिलियन लोगोों की मृत््ययु हो गई। ये z इसने भारत के भीतर सेना को संगठित करने के उद्देश््य
अकाल बड़़े पैमाने पर औपनिवेशिक नीतियोों का परिणाम थे, जिनमेें रै क-रेेंटिंग को परू ा किया।
(वह किराया जो किसी संपत्ति के मालिक और उसे किराए पर देने वाले व््यक्ति सड़कें z ग्रामीण इलाकोों से कच््चचे माल को निकटतम रे लवे स््टटेशन
के बीच सहमति से तय किया जाता है, न कि किसी कानून द्वारा नियंत्रित किया या बंदरगाह तक लाकर दरू इग्ं ्लैैंड या अन््य लक्षित
जाता है), मक्त
ु व््ययापार, कृषि की उपेक्षा और उच््च कर जैसे कारक शामिल थे। विदेशी गंतव््योों तक भेजना।

भारत में ब्रिटिश नीतियों काविश्लेषण (1757 से 19 43


z ब्रिटेन से कच््चचे माल का निर््ययात और तैयार माल का z 1791 मेें सस्ं ्ककृ त कॉलेज: जोनाथन डंकन ने हिदं ू काननू का अध््ययन करने
पत्तन के लिए 1791 मेें वाराणसी मेें संस््ककृ त कॉलेज की स््थथापना की।
आयात करना।
z 1813 का चार््टर अधिनियम: 1813 के चार््टर एक््ट मेें भारतीय शिक्षा प्रणाली
z उपयोगी किंतु सार््वजनिक उद्देश््य की पर््तति
ू के बावजदू
डाक को बढ़़ावा देने के लिए 1 लाख रुपये का आवंटन किया गया था।
अपर््ययाप्त रहा।
z 1817 मेें हिंदू कॉलेज: राजा राममोहन राय और डेविड हेयर ने 1817 मेें हिदं ू
अंतर देशीय z कभी-कभी यह अलाभकारी साबित हुआ, जैसे कि कॉलेज की स््थथापना की।
जलमार््ग उड़़ीसा तट पर तटीय नहर के मामले मेें।
1835 और 1947 के मध्य किए गए उपाय:
z इसने काननू और व््यवस््थथा बनाए रखने के उद्देश््य को परू ा
इलेक्ट्रिक किया। इस काल मेें अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार किया गया।
टे लीग्राफ z प्राच््यवादी-आंग््लवादी विवाद: ईस््ट इडं िया कम््पनी को पश्चिमी शिक्षा या
z प्रशासन की कार््यकुशलता को बढ़़ाना।
भारतीय शिक्षा को बढ़़ावा देना चाहिए या नहीीं, इस पर मतभेद और अग्ं रेजी
इस बुनियादी ढााँचे के विकास से या भारतीय भाषाओ ं के बीच शिक्षा के माध््यम पर बहस के कारण एक विवाद
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मेें कैसे मदद मिली? पैदा हुआ जिसे ‘ओरिएटं लिस््ट-एग््ललिस ं िस््ट’ (प्राच््यवादी-आग्ं ्लवादी) विवाद
z भौगोलिक और सांस््ककृतिक बाधाओ ं को तोड़ना: रे लवे ने देश भर मेें लोगोों के रूप मेें जाना जाता है।
की आवाजाही को सवि ु धाजनक बनाया। z लॉर््ड मै काले का 1835 का वक्तव््य: 1835 मेें ओरिएट ं लिस््ट-एग््ललिस
ं िस््ट
z जनता के बीच एकता को मजबूत करना: रे लवे स््टटेशन जन-राष्टट्रवाद के (प्राच््यवादी-आग्ं ्लवादी) विवाद को संबोधित करने के लिए, विलियम बेेंटिक
स््थल बन गए, जिनका उपयोग एम.के .गांधी द्वारा वास््तव मेें धर््मनिरपेक्ष उद्देश््योों ने लॉर््ड मैकाले की अध््यक्षता मेें सार््वजनिक निर्देश की एक सामान््य समिति
के लिए किया गया, जिससे जनता के बीच एकता मजबतू हुई। का गठन किया, जिसने आग्ं ्लवादियोों के पक्ष मेें निर््णय किया।
z राष्ट्रीय नेताओ ं के मध््य सवं ाद: उपमहाद्वीप के विभिन््न क्षेत्ररों के सभी शिक्षित z 1854 मेें चार््ल््स वुड डिस््पपैच:
राष्टट्रवादी बेहतर संचार बनु ियादी ढाँचे के माध््यम से एक-दसू रे के साथ संवाद  इसे अग् ं रेजी शिक्षा का मैग््नना कार््टटा भी कहा जाता है।
करने मेें सक्षम थे। उन््होोंने विदेशी नियंत्रण मेें रह रहे जैसे मद्ददों
ु पर चर््चचा और
 सिफारिशेें :
विचारोों का आदान-प्रदान किया।
z अनुदेश का माध््यम (Medium of Instruction): वड ु डिस््पपैच ने प्राथमिक
z ब्रिटिश शासन की वास््तविक प्रकृति: बेहतर संचार के साथ, लोगोों के मध््य
जागरूकता आई कि परू े भारतीय उपमहाद्वीप मेें हुए व््ययापक भमि विद्यालयोों मेें स््थथानीय भाषाओ,ं उच््च विद्यालयोों मेें एग्ं ्ललो-वर््ननाक््ययुलर भाषाओ ं
ू दोहन और
अनपु यक्त और कॉलेज के छात्ररों के लिए शिक्षण के माध््यम के रूप मेें अग्ं रेजी के उपयोग
ु कर वसल ू ी के लिए ब्रिटिश शासन दोषी था, कोई भी क्षेत्र इससे
अछूता नहीीं था। की वकालत की।
z जन शिक्षा: वड ु डिस््पपैच ने जन शिक्षा के विस््ततार की सिफारिश की।
z क््राांतिकारियोों के लिए आसान लक्षष्य के रूप मेें: उदाहरण के लिए- ब्रिटिश
विरोधी आक्रोश और तोड़फोड़ के लिए रे लगाड़़ियाँ सबसे प्रतीकात््मक और z विश्वविद्यालयोों का निर््ममाण: वड ु डिस््पपैच ने कलकत्ता, बॉम््बबे और मद्रास के
व््ययावहारिक सहारा बन गई।ं तीन प्रेसीडेेंसी शहरोों मेें विश्वविद्यालयोों के निर््ममाण की वकालत की।

सामाजिक नीतियााँ
वुड डिस््पपैच (1854):
अंग्जो
रे ों के अधीन शिक्षा का विकास मै काले वक्तव््य (1835): 1. भारत सरकार से जनता की
1. विवाद का निर््णय शिक्षा की जिम््ममेदारी लेने के
भारत मेें आधनु िक शिक्षा पारंपरिक गुरुकुलोों और मदरसोों से परिवर््ततित होकर प्राच््यवादी-आंग््लवादी आग्ं ्लवादियोों के पक्ष मेें लिए कहा गया, इस प्रकार
विवाद: गया - सीमित संसाधनोों 'डाउनवर््ड निस््पपंदन सिद््धाांत'
ब्रिटिश शासन के अंतर््गत शरू ु हुई। 1835 से पहले शरुु आती प्रयासोों मेें कलकत्ता को के वल अग्ं रेजी भाषा के को खारिज कर दिया।
1. आंग््लवादी: सरकार द्वारा 2. सबसे नीचे गाँवोों मेें स््थथानीय
मदरसा (1781) और संस््ककृ त कॉलेज (1791) की स््थथापना शामिल थी। 1835 शिक्षा पर व््यय विशेष रूप माध््यम से पश्चिमी विज्ञान
भाषा के प्राथमिक स््ककूलोों
से आधनु िक अध््ययन के और साहित््य के शिक्षण के
के बाद लॉर््ड मैकाले के शिक्षा पर वक्तव््य मेें अंग्रेजी शिक्षा और पश्चिमी ज्ञान की लिए होना चाहिए। लिए समर््पपित किया जाना से पदानुक्रम को व््यवस््थथित
किया गया, इसके बाद एंग््ललो-
था।
वकालत की गई, जिसके परिणामस््वरूप 1857 मेें कलकत्ता, बॉम््बबे और मद्रास मेें 2. प्राच््यविद्: जबकि छात्ररों 2. बड़़ी संख््यया मेें प्राथमिक वर््ननाक््ययुलर हाई स््ककू ल और
जिला स््तर पर एक संबद्ध
को नौकरी लेने के लिए विद्यालयोों के बजाय कुछ
विश्वविद्यालयोों की स््थथापना हुई। तैयार करने के उद्देश््य अंग्रेजी स््ककू ल और कॉलेज
कॉलेज और कलकत्ता, बॉम््बबे
से पश्चिमी विज्ञान और और मद्रास के प्रेसीडेेंसी
खोले गए, इस प्रकार
1764 और 1835 के बीच किए गए उपाय: साहित््य पढ़़ाया जाना सार््वजनिक शिक्षा की
शहरोों मेें संबद्ध विश्वविद्यालय
शामिल किए गए।
चाहिए, पारंपरिक भारतीय उपेक्षा की गई ('डाउनवर््ड 3. उच््च अध््ययन के लिए शिक्षा
इस अवधि के दौरान अंग्रेजोों ने निम््नलिखित प्रतिष्ठानोों के माध््यम से बेहतर शिक्षा के विस््ततार पर भी फिल््टरे शन थ््ययोरी')। के माध््यम के रूप मेें अंग्रेजी
बल दिया जाना चाहिए। और स््ककू ल स््तर पर स््थथानीय
प्रशासन के लिए विभिन््न क्षेत्रीय भाषाओ ं को सीखने और विविध संस््ककृतियोों को 3. आंग््लवादी शिक्षा के भाषाओ ं की सिफारिश की गई।
माध््यम के लिए अंग्रेजी
समझने का प्रयास किया: बनाम भारतीय भाषाओ ं
4. महिला और व््ययावसायिक
शिक्षा, शिक्षकोों के प्रशिक्षण
z 1781 मेें कलकत्ता मदरसा: वारे न हेस््टटििंग््स ने उर््ददू/फारसी मेें लिखे इस््ललामी (स््थथानीय भाषाओ ं सहित) के और धर््मनिरपेक्ष शिक्षा को
सवाल पर विभाजित थे। बढ़़ावा देने पर बल दिया गया।
काननू का अध््ययन करने के लिए 1781 मेें कलकत्ता मदरसा की स््थथापना की। नोट: भारत मेें ‘अंग्रेजी शिक्षा का
मैग््नना कार््टटा’ माना जाता है।
z 1784 मेें एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल: विलियम जोन््स ने भारतीय

संस््ककृति और इतिहास को समझने के लिए 1784 मेें एशियाटिक सोसाइटी z सहायता अनुदान: वडु डिस््पपैच द्वारा भारतीय शिक्षा के लिए अनदु ान सहायता
ऑफ बंगाल की स््थथापना की। प्रणाली को बढ़़ावा दिया गया।

44  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


z महिला शिक्षा: डिस््पपैच ने महिलाओ ं की शिक्षा के लिए सरकारी समर््थन अंग्जो
रे ों द्वारा ब्रिटिश शिक्षा के प्रसार का कारण:
जारी रखने की वकालत की।
z प्रशासन मेें निम््न पद भरना: ब्रिटिश वाणिज््ययिक प्रतिष्ठानोों मेें अधीनस््थ पदोों
z शिक्षक प्रशिक्षण: वडु डिस््पपैच ने प्रत््ययेक प््राांत मेें शिक्षक प्रशिक्षण कार््यक्रम
की बढ़ती संख््यया को भरने के लिए शिक्षित भारतीयोों की कम लागत वाली
खोलने का सझु ाव दिया। विशेष विद्यालयोों मेें शिक्षकोों को इजं ीनियरिंग,
आपर््तति
ू सनु िश्चित करना।
चिकित््ससा और काननू मेें प्रशिक्षित होना चाहिए।
z ब्रिटिश वस््ततुओ ं के लिए बाजार बनाना: उन््हेें उम््ममीद थी कि शिक्षित भारतीय
z श्रेणीबद्ध स््ककूलोों का नेटवर््क : वडु डिस््पपैच ने देश भर मेें श्रेणीबद्ध स््ककूलोों के
भारत मेें ब्रिटिश वस््ततुओ ं के बाजार को बढ़़ावा देने मेें सहायता करेेंगे।
एक नेटवर््क के निर््ममाण को बढ़़ावा देने का प्रस््तताव रखा।
z प्रभाव: z ब्रिटिश शासन का महिमामंडन करना: ऐसी धारणा थी कि पश्चिमी शिक्षा
भारतीयोों को ब्रिटिश शासन को स््ववीकार करने मेें मदद करे गी, विशेषकर जब
 प््राांतीय विश्वविद्यालयोों की स््थथापना: 1857 मेें बंबई, मद्रास और
यह ब्रिटिश विजेताओ ं और उनके शासन के गणोु ों की प्रशसं ा करती थी।
कलकत्ता मेें विश्वविद्यालय स््थथापित किए गए।
z प्राधिकरण को मजबूत बनाना: अग्ं रेजी शिक्षा के प्रसार के माध््यम से भारत
 शिक्षा विभाग: इन््हेें प्रत््ययेक प््राांत मेें स््थथापित किया गया था।
मेें अपने राजनीतिक प्रभत्ु ्व के स््ततंभोों को मजबतू करना।
 महिलाओ ं के लिए शिक्षा: बेथ््ययून स््ककू ल की स््थथापना जे.ई.डी. बेथ््ययून
ने महिलाओ ं को शिक्षा प्रदान करने के लिए की थी। z मिशनरियोों का प्रभाव: मिशनरियोों ने मख्ु ्य रूप से धर््माांतरण के उद्देश््योों के
लिए पश्चिमी शिक्षा को अपनाने को बढ़़ावा दिया।
 सस् ं ्थथा का निर््ममाण: पसू ा, बिहार मेें एक कृषि सस्ं ्थथान और रूड़की मेें एक
इजं ीनियरिंग संस््थथान की स््थथापना की गई। शिक्षा पर ब्रिटिश प्रयासोों का आकलन:
 शिक्षा का पश्चिमीकरण: स््ककूलोों और कॉलेजोों मेें यरू ोपीय हेडमास््टरोों और z महिला शिक्षा की अनदेखी: प्रशासन ने बड़़े पैमाने पर महिलाओ ं की शिक्षा
प्रधानाचार्ययों की उपस््थथिति के कारण ब्रिटिश भारत की शैक्षिक प्रणाली को अनदेखा कर दिया क््योोंकि वह रूढ़़िवादी वर््ग को परे शान नहीीं करना
तेजी से पश्चिमीकरण की प्रक्रिया से गजु री। चाहता था।
 स््वतंत्र भारतीय शिक्षक: स््वतंत्र भारतीय शिक्षक थे। z तकनीकी शिक्षा की अज्ञानता: विज्ञान और प्रौद्योगिकी मेें शिक्षा की गंभीर
z हंटर कमीशन (1882-1883): 1882 मेें नियक्त ु हटं र कमीशन ने प्राथमिक रूप से उपेक्षा की गई। 1857 तक कलकत्ता, बॉम््बबे और मद्रास मेें के वल तीन
और माध््यमिक शिक्षा पर बल दिया, अधिक सरकारी स््ककूलोों की सिफारिश मेडिकल कॉलेज मौजदू थे और एकमात्र इजं ीनियरिंग स््ककू ल रूड़की मेें था, जो
की, शिक्षा प्रशासन मेें भारतीयोों की भागीदारी बढ़ाने की माँग की और महिला के वल यरू ोपीय और यरू े शियाई लोगोों के लिए ही सल ु भ था।
शिक्षा मेें सधु ार के लिए सिफारिशेें की। z समुदाय और राज््य के बीच सतं ुलन बनाए रखना: दो सामाजिक प्रणालियोों
z 1904 मेें थॉमस रेले आयोग: इसकी स््थथापना भारत मेें विश्वविद्यालयोों के के मध््य, समदु ाय और राज््य की माँगोों को संतलि ु त करने के लिए शैक्षिक
कामकाज की जाँच करने के लिए की गई थी, जिसके परिणामस््वरूप भारतीय प्रणाली विकसित हुई।
विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904 आया। z शिक्षा तक सार््वभौमिक पहुच ँ नहीीं: शिक्षा तक पहुचँ के मानदडं प्रत््ययेक
z 1913 की शिक्षा नीति पर सक ं ल््प: इस नीति मेें सरकार ने निरक्षरता दरू क्षेत्ररों की परंपराओ ं द्वारा नियंत्रित होते थे। राज््य इस पहलू के बारे मेें विशेष
करने की जिम््ममेदारी स््ववीकार की और प््राांतीय सरकार से निःशल्ु ्क प्रारंभिक जागरूक नहीीं था और इसलिए सभी प्रकार के संस््थथानोों पर लागू होने वाली
शिक्षा प्रदान करने का आग्रह किया। पहुचँ को नियंत्रित करने वाला कोई विनियमन नहीीं था।
z सैडलर विश्वविद्यालय आयोग, 1917: कलकत्ता विश्वविद्यालय के कामकाज z शैक्षिक प्रशासक: अग्ं रेजी शिक्षा के आगमन के साथ, शिक्षा की संरचना मेें
की जाँच करना। शैक्षिक प्रशासक की एक अलग भमि ू का शामिल हो गई।
z 1929 का हार्टोग आयोग: भारत मेें शिक्षा के विकास की जाँच के लिए z अंग्रेजी शिक्षा का असमान प्रभाव: अग्ं रेजी शिक्षा का प्रभाव भी समान नहीीं
1929 मेें हार्टोग आयोग की स््थथापना की गई थी। इसमेें ड्रॉपआउट दर को कम था। गाँवोों की तल ु ना मेें शहरोों मेें साक्षरता और शिक्षा अधिक व््ययापक थी।
करने, व््ययावसायिक शिक्षा को बढ़़ावा देने तथा प्राथमिक और माध््यमिक शिक्षा
z सामूहिक शिक्षा की उपेक्षा: औपनिवेशिक शासन के अतं र््गत, जन शिक्षा की
मेें सधु ार पर ध््ययान केें द्रित किया गया।
उपेक्षा की गई थी और एक शहरी शिक्षित अभिजात वर््ग बनाने का प्रयास किया
z 1944 मेें शिक्षा की सार्जजेंट योजना: इसने पर््ययाप्त तकनीकी, व््ययावसायिक गया था, जो शासक और शासित के बीच दभु ाषिया के रूप मेें कार््य करे गा।
और कला शिक्षा की सिफारिश की।
ब्रिटिश शिक्षा का प्रभाव
बुनियादी z शिक्षित मध््यम वर््ग का उदय: इससे लोगोों का एक नया वर््ग तैयार करने मेें
शिक्षा की वर््धधा मदद मिली, जिन््होोंने बाद मेें शासन के साथ-साथ भारत मेें प्रशासन के कई
सेवा के माध््यम से पहले सात साल की
स््ककूलोों के आसपास के योजना (1937) स््ककू ली शिक्षा मातभृ ाषा के पहलओ ु ं को नियंत्रित करने मेें अग्ं रेजोों की मदद की।
समदु ाय के साथ संपर््क माध््यम मेें दी जानी चाहिए
और यह निःशुल््क और
स््थथापित करना। अनिवार््य होनी चाहिए। z ईसाई मिशनरियोों की भूमिका मेें वद्ृ धि: भारत आए हुए ईसाई मिशनरियोों
ने ऐसे स््ककू ल खोलने शरूु किए, जहाँ अग्ं रेजी पढ़़ाई जाती थी।
कक्षा 2 से 8वीीं तक पाठ् यक्रम मेें बुनियादी
हिदं ी मेें और कक्षा 8वीीं हस््तकला को शामिल
z भारतीयोों द्वारा अंग्रेजी का प्रयोग: भारतीयोों द्वारा अग्ं रेजी के उपयोग ने
के बाद अंग्रेजी मेें ही करना। एक ऐसी भाषा प्रदान की, जो परू े देश मेें फै ल गई और उनके लिए एक आम
अध््ययापन।
संपर््क बन गई।

भारत में ब्रिटिश नीतियों काविश्लेषण (1757 से 19 45


z पश्चिम से प्रभाव: अँग्रेजी किताबेें और समाचार-पत्र भारतीयोों के लिए समद्रु z विकास क्रम:
पार यानी दसू रे देशोों से नए विचार लेकर आए, जिसका स््पष्ट प्रभाव भारतीयोों  उन््ननीसवीीं सदी के दौरान: अधिकांश शिक्षित महिलाओ ं को उदार पिता
पर पड़़ा।
या पतियोों द्वारा घर पर ही शिक्षा दी जाती थी।
z राष्ट्रीय चेतना का उदय: स््वतंत्रता, लोकतंत्र, समानता और भाईचारे जैसे  सदी का उत्तरार्दद्ध: पंजाब मेें आर््य समाज और महाराष्टट्र मेें ज््ययोतिराव फुले
पश्चिम के ताजा विचारोों ने अग्ं रेजी जानने वाले भारतीयोों की सोच पर अपना द्वारा लड़कियोों के लिए स््ककू ल स््थथापित किए गए।
प्रभाव डालना शरूु कर दिया, जिससे राष्ट्रीय चेतना का जन््म हुआ।  बीसवीीं सदी की शुरुआत: भोपाल की बेगम जैसी मस््ललिम महिलाओ ं ने

z राजनीतिक नेताओ ं और समाज सध ु ारकोों का उदय: इसने शिक्षित महिलाओ ं के बीच शिक्षा को बढ़़ावा देने मेें उल््ललेखनीय भमि ू का निभाई।
राजनीतिक नेताओ ं और समाज सधु ारकोों की एक पीढ़़ी तैयार की, जिन््होोंने उन््होोंने अलीगढ़ मेें लड़कियोों के लिए एक प्राथमिक विद्यालय की स््थथापना
देश के स््वतंत्रता संग्राम मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाई। की। एक और उल््ललेखनीय महिला बेगम रोके या सखावत हुसैन ने पटना
z जन जागृति: समाचार पत्ररों और पैम््फलेटोों के प्रकाशन से जनता मेें जागृति और कलकत्ता मेें मस््ललिम
ु लड़कियोों के लिए स््ककू ल शरूु किए।
आई।  1880 के दशक तक: भारतीय महिलाएँ विश्वविद्यालयोों मेें प्रवेश करने

z हीनता की भावना: महात््ममा गांधी ने तर््क दिया कि औपनिवेशिक शिक्षा ने लगीीं। उनमेें से कुछ ने डॉक््टर बनने के लिए प्रशिक्षण लिया, कुछ शिक्षक
भारतीयोों के मन मेें हीनता की भावना पैदा की। इसने उन््हेें पश्चिमी सभ््यता को श्रेष्ठ बन गई।ं कई महिलाओ ं ने समाज मेें महिलाओ ं के स््थथान पर अपने
मानने पर मजबरू कर दिया और अपनी संस््ककृति पर उनके गर््व को नष्ट कर दिया। आलोचनात््मक विचार लिखना और प्रकाशित करना शरू ु किया।
 उन््ननीसवीीं सदी के अंत तक: महिलाएँ स््वयं सध ु ार के लिए सक्रिय रूप
ब्रिटिश भारत मेें महिला शिक्षा:
से कार््य कर रही थीीं। उन््होोंने किताबेें लिखीीं, पत्रिकाओ ं का संपादन किया,
z ईसाई मिशनरियोों की भूमिका: स््ककूलोों और प्रशिक्षण केें द्ररों की स््थथापना की और महिला संघोों की स््थथापना
 वे लड़कियोों की शिक्षा मेें रुचि लेते थे। की।
 रॉबर््ट मे (Robert May), एक ईसाई मिशनरी, ने 1814 और 1815 मेें  राजनीतिक दबाव समूह की स््थथापना: उन््होोंने महिला मताधिकार

चिनसरु ा (हुगली जिला) मेें कई स््ककूलोों की स््थथापना की, जिनमेें महिलाओ ं (मतदान का अधिकार) और महिलाओ ं के लिए बेहतर स््ववास््थ््य देखभाल
को शिक्षित करने के लिए भी सेवाएँ दी गई।ं और शिक्षा हेतु काननू बनाने के लिए राजनीतिक दबाव समहू बनाए।
z ब्रिटिश सरकार की भूमिका:  अन््य ने ताओ ं द्वारा सहयोग: जवाहरलाल नेहरू और सभ ु ाष चद्रं बोस जैसे
 वुड का एजुकेशन डिस््पपैच, 1854: इसने महिलाओ ं की शिक्षा पर ध््ययान नेताओ ं ने महिलाओ ं के लिए अधिक समानता और स््वतंत्रता की माँगोों को
अपना समर््थन दिया और इस प्रकार महिला शिक्षा को बढ़़ावा दिया।
केें द्रित किया।
 हंटर कमीशन: इसमेें 1881 मेें महिला शिक्षा की आवश््यकता पर भी महात्मा गाांधी और रवीींद्र नाथटै गोर के मध्य तुलना
जोर दिया गया। भारतीय इतिहास की दो महान शख््ससियतोों, महात््ममा गांधी और रवीींद्रनाथ टैगोर के
 उच््च शिक्षा: कलकत्ता, बॉम््बबे और मद्रास विश्वविद्यालयोों मेें 1875 तक शिक्षा पर विशिष्ट और प्रभावशाली विचार थे, जो भारत के लिए उनकी दार््शनिक
लड़कियोों को प्रवेश की अनमति
ु नहीीं थी। 1882 के बाद लड़कियोों को मान््यताओ ं और दृष्टिकोण को दर््शशाते हैैं। यहाँ उनके शैक्षिक दर््शन का तुलनात््मक
उच््च शिक्षा के लिए जाने की अनमतिु दी गई। विश्ले षण दिया गया है:
 न््ययूनतम विवाह योग््य आयु मेें वद्ृ धि: लड़कियोों की न््ययूनतम विवाह योग््य 1. दार््शनिक आधार
 गांधी: उनका शैक्षिक दर््शन, जिसे प्रायः ‘नई तालीम या बनु ियादी शिक्षा’
आयु मेें वृद्धि से महिला शिक्षा को बहुत लाभ हुआ।
के रूप मेें जाना जाता है, व््ययावहारिकता और नैतिकता मेें गहराई से निहित
z समाज सध
ु ारक:
था। गांधी जी का मानना ​​था कि शिक्षा को सामाजिक जीवन के साथ घनिष्ठ
 ईश्वरचंद्र विद्यासागर: कलकत्ता मेें विद्यासागर और बंबई मेें कई अन््य
रूप से जोड़़ा जाना चाहिए और आत््मनिर््भरता पर जोर देना चाहिए। उन््होोंने
सधु ारकोों ने लड़कियोों के लिए स््ककू ल स््थथापित किए। शिक्षा को सामाजिक, आर््थथिक और नैतिक रूप से व््यक्तिगत विकास प्राप्त
 ब्रह्म समाज: ब्रह्म समाज के सदस््योों ने महिला शिक्षा को बढ़़ावा देने के करने के एक उपकरण के रूप मेें देखा।
लिए पत्रिकाएँ लिखीीं।  टै गोर: इसके विपरीत, टैगोर का दर््शन अधिक आदर््शवादी था, जो पर्वी ू
 सावित्रीबाई फुले: महिला शिक्षा के क्षेत्र मेें अग्रणी के रूप मेें प्रतिष्ठित, और पश्चिमी दर््शन के मिश्रण से प्रभावित था। उन््होोंने मन के बौद्धिक विकास
सावित्रीबाई फुले और उनके पति, समाज सधु ारक ज््ययोतिराव फुले ने 1848 के अलावा इद्रियो
ं ों के सौौंदर््य विकास पर भी जोर दिया। टैगोर उस शिक्षा मेें
मेें पणु े शहर मेें भिडेवाड़़ा मेें लड़कियोों के लिए भारत का पहला स््ककू ल विश्वास करते थे, जो प्रकृति के साथ गहरा सबं ंध विकसित करती है और
शरू ु किया और वह इसकी पहली शिक्षिका बनीीं। रचनात््मक अभिव््यक्ति को बढ़़ावा देती है।

46  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


2. पाठ्यचर््यया और शिक्षाशास्त्र विभिन्न गवर््नरोों और वायसराय द्वारा शुरू किए गए सामाजिक सुधार
 गांधी: एक ऐसी शिक्षा प्रणाली की वकालत की, जो कार््य-केें द्रित हो और
गवर््नर और
सीखने वाले के सामाजिक-आर््थथिक वातावरण से जड़ु ़ी हो। नई तालीम के सामाजिक सुधार
वायसराय
अतं र््गत पाठ्यक्रम मेें श्रम की गरिमा और आर््थथिक आत््मनिर््भरता को बढ़़ावा
देने के लिए पारंपरिक शैक्षणिक विषयोों के साथ-साथ शारीरिक श्रम, शिल््प लॉर््ड विलियम बेेंटिक सती प्रथा और अन््य क्रू र प्रथाओ ं का उन््मल
मू न
(1828-1835) (1829)
कार््य और आत््मनिर््भरता शामिल थी।
कन््यया भ्रूण हत््यया और ठगी का दमन (1830)
 टै गोर: शांतिनिके तन मेें टैगोर का पाठ्यक्रम व््ययापक और समावेशी था, अराजकता का उन््मल मू न
जिसमेें पारंपरिक विषयोों के साथ-साथ कला, संगीत, नृत््य और नाटक पर मानव बलि का उन््मल मू न
जोर दिया गया था। वह खल ु ी हवा वाली शिक्षा मेें विश्वास करते थे, जहाँ लॉर््ड एलेनबरो दासता का उन््मल
मू न (1843)
छात्र पारंपरिक प्रतिबंधात््मक कक्षा प्रणाली से मक्त
ु थे, जिसके बारे मेें उनका (1842-1844)
मानना ​​था कि यह रचनात््मकता को दबा देता है।
लॉर््ड हार््डििंग प्रथम कन््यया भ्रूण हत््यया का उन््मल
मू न
3. शिक्षा के लक्षष्य
(1844-1848) मानव बलि का उन््मल मू न
 गांधी: उनका अतिम ं लक्षष्य नैतिक नागरिकोों और आत््मनिर््भर व््यक्तियोों
को तैयार करना था, जो ग्रामीण समदु ायोों की सेवा और उत््थथान कर सकेें । लॉर््ड डलहौजी विधवा पुनर््वविवाह अधिनियम, 1856 ने महिला
गांधी जी के दृष्टिकोण मेें शिक्षा को स््वराज (स््व-शासन) प्राप्त करने और (1848-1856) शिक्षा का समर््थन किया
सामाजिक सधु ारोों को बढ़़ावा देने के साधन के रूप मेें उपयोग करना शामिल 1947 तक सामाजिक सुधारोों के लिए विधायी पहल
था। z कन््यया भ्रूण हत््यया का उन््ममूलन:
 टै गोर: ऐसे वैश्विक नागरिक तैयार करने का प्रयास किया, जो गहराई से  बंगाल विनियमन अधिनियम (1795 और 1804): 1795 और 1804

मानवीय, रचनात््मक रूप से स््वतंत्र और स््वतंत्र विचार करने मेें सक्षम होों। के बंगाल विनियमन अधिनियमोों ने एक नवजात शिशु की हत््यया करना
टैगोर की शिक्षा का उद्देश््य लोगोों के बीच एक सार््वभौमिक बंधन को बढ़़ावा गैर-काननू ी बना दिया।
देने के लिए भौगोलिक और सांस््ककृतिक सीमाओ ं को पार करना था।  भारतीय संस््ककृति की धारणा को बदलने के लिए 1870 मेें कन््यया भ्रूण हत््यया

4. पद्धतियाँ को गैर-काननू ी घोषित करने के लिए एक काननू पारित किया गया था।
 गांधी: कार््य करके सीखने पर बल दिया। वह अनभ ु वात््मक शिक्षा के z सती प्रथा का उन््ममूलन:
समर््थक थे, जहाँ शिक्षा सीधे जीवन के व््ययावहारिक पहलओ ु ं से जड़ु ़ी थी।  बंगाल सती विनियमन (1829): 1829 मेें गवर््नर-जनरल लॉर््ड विलियम

उन््होोंने एक ऐसी शिक्षा प्रणाली को प्रोत््ससाहित किया, जो के वल पाठ्य बेेंटिक ने बंगाल सती विनियमन, 1829 पारित किया, जिसने परू े ब्रिटिश
ज्ञान पर आधारित नहीीं थी बल््ककि पर््ययावरण के साथ व््ययावहारिक जड़ु ़ाव भारत मेें सती प्रथा को अवैध बना दिया।
पर आधारित थी।  गै र इरादतन हत््यया: इस नियम के द्वारा सती प्रथा के लिए उकसाने वाले

लोगोों को ‘गैर-इरादतन हत््यया’ का दोषी घोषित किया गया।


 टै गोर: वैयक्तिगत शिक्षा की वकालत की, जहाँ शिक्षण को बच््चचे की
व््यक्तिगत आवश््यकताओ ं के अनरू z दास प्रथा का उन््ममूलन:
ु प ढाला जा सके । उन््होोंने शिक्षा मेें प्रेरणा
 1833 का चार््टर अधिनियम: 1833 के चार््टर एक््ट मेें भारत मेें दास प्रथा
के महत्तत्व पर जोर देते हुए तर््क दिया कि सीखने के प्रति प्रेम कठोर शैक्षणिक
को गैर-काननू ी घोषित कर दिया गया।
प्रयास से अधिक महत्तत्वपर्ू ्ण है।
 1843 का अधिनियम V: 1843 के अधिनियम V द्वारा दास प्रथा को
5. प्रभाव और विरासत
अपराध घोषित किया गया।
 गांधी: नई शिक्षा ने भारत मेें व््ययावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास
 1860 की दड ं संहिता: 1860 की दडं संहिता द्वारा भी दासोों का व््ययापार
पर केें द्रित विभिन््न शैक्षिक पहलोों को प्रभावित किया, विशेष रूप से ग्रामीण
निषिद्ध किया गया।
क्षेत्ररों मेें। हालाँकि, इसका प्रभाव मख्ु ्यधारा की शिक्षा मेें व््ययापक औपचारिक
z विधवा पुनर््वविवाह:
अनरू ु पण (Formal Adoptation) के सदं र््भ मेें सीमित था।
 1856 का हिंदू विधवा पुनर््वविवाह अधिनियम: इस अधिनियम ने हिद ंू
 टै गोर: टैगोर के विचारोों के कारण विश्वभारती विश्वविद्यालय की स््थथापना
विधवाओ ं के पनर््ववि
ु वाह को वै ध बना दिया।
हुई, जो आज भी प्रगतिशील शिक्षा और सांस््ककृतिक आदान-प्रदान का केें द्र
 अधिकार और विरासत: इस अधिनियम ने उन सभी विधवाओ ं के समस््त
बना हुआ है। उनके शैक्षिक प्रयोगोों ने दनु िया भर मेें मक्त ु विद्यालयी शिक्षा अधिकार और विरासत भी प्रदान किया, जो उनकी पहली शादी के समय
और वैकल््पपिक शिक्षा आदं ोलनोों को प्रभावित किया है। उनके पास थीीं।

भारत में ब्रिटिश नीतियों काविश्लेषण (1757 से 19 47


z बाल विवाह पर रोक:
 1872 का मूलनिवासी विवाह अधिनियम (सिविल विवाह प्रमुख शब्दावलियाँ
अधिनियम): इसने बाल विवाह के खिलाफ काननू बनाने की माँग की, उपनिवेशवाद के चरण, ब्रिटिश सर्वोच््चता, विस््ततार की नीतियाँ,
लेकिन इसकी पहुचँ अत््यधिक सीमित थी क््योोंकि इसमेें मस््ललिम
ु , हिदं ू या आर््थथि क शोषण, धन की निकासी, शैक्षिक सधु ार, न््ययायपालिका
का विकास, प्रेस नियंत्रण, सिविल सेवा विकास, बनि
ु यादी ढाँचे का
अन््य स््ववीकृ त धर््म शामिल नहीीं थे। विकास, सामाजिक नीतियाँ, ब्रिटिश भारत मेें विधायी सधु ार।
 सहमति की आयु अधिनियम, 1891: बी.एम मालाबारी के प्रयास से विगत वर्षषों के प्रश्न
1891 मेें सफलता मिली, जब सहमति की आयु अधिनियम, जो 12 वर््ष 1. औपनिवेशिक भारत की अठारहवीीं शताब््ददी के मध््य से क््योों अकाल
पड़ने मेें अचानक वृद्धि देखने को मिलती है? कारण बताएँ। (2022)
से कम उम्र की लड़कियोों की शादी पर रोक लगाता था, पारित किया गया।
2. परीक्षण कीजिए कि औपनिवेशिक भारत मेें पारंपरिक कारीगारी उद्योग के
 बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929: इसे शारदा अधिनियम के पतन ने किस प्रकार ग्रामीण अर््थव््यवस््थथा को अपंग बना दिया।(2017)
3. भारत मेें अठारहवीीं शताब््ददी के मध््य से स््वतंत्रता तक अंग्रेजोों की
रूप मेें भी जाना जाता है, इसने विवाह के लिए लड़कियोों के लिए की
आर््थथिक नीतियोों के विभिन््न पक्षषों का समालोचनात््मक परीक्षण
आयु 14 वर््ष और लड़कोों के लिए 18 वर््ष निर््धधारित की। कीजिए। (2014)

48  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


6 भारतीय राष्ट्रवाद का उदय
भारतीय राष्टट्र वाद का उदय और जिम्मेवार कारक z प्रेस और साहित््य का उपयोग: प्रेस ने आधिकारिक नीति की आलोचना
की और एकता का आह्वान किया।
भारतीय राष्टट्रवाद, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के प्रति एक महत्तत्वपूर््ण और
 इसने लोकतंत्र, नागरिक स््वतंत्रता, औद्योगिकीकरण और स््वशासन को
परिवर््तनकारी प्रतिक्रिया थी। इसने भारत के स््वतंत्रता संग्राम मेें एक महत्तत्वपूर््ण
चरण को चिह्नित किया और देश के भविष््य को आकार देने मेें महत्तत्वपूर््ण भी बढ़़ावा दिया।
भमि
ू का निभाई। भारतीय राष्टट्रवाद 19वीीं सदी के अंत मेें शरू ु हुआ और 20वीीं z अंग्रेजोों द्वारा निर््ममित सस्ं ्थथाएँ: जैसे ही अग्ं रेजोों ने अधिक सहयोगियोों की भर्ती
सदी की शरुु आत मेें परू े भारत मेें फै ल गया। के लिए स््थथानीय स््वशासन और चनु ाव प्रणाली शरू ु की, हित समहोू ों ने अपने
प्रभाव क्षेत्र का विस््ततार किया।
भारत मेें राष्टट्र वाद के उदय के कारण
z भारत का राजनीतिक और प्रशासनिक एकीकरण: ब्रिटिश शासन की
भारतीय राष्टट्रवाद के उदय का श्रेय कई कारकोों को दिया जा सकता है, जिन््होोंने
नीतियोों ने भारत को राजनीतिक रूप से एकीकृ त किया।
देश के इतिहास और राजनीतिक परिदृश््य को आकार दिया।
 एक पेशव े र सिविल सेवा, समान न््ययायपालिका और देश भर मेें संहिताबद्ध
भारतीय राष्टट्रवाद के उदय के लिए जिम््ममे दार कुछ प्रमुख कारक यहाँ
दिए गए हैैं: नागरिक एवं आपराधिक काननोू ों ने भारत की सदियोों परु ानी सांस््ककृ तिक
z भारत के गौरवशाली इतिहास की पुनः खोज: भारत के सांस््ककृ तिक
एकता मेें राजनीतिक एकता जोड़ दी।
पनर््जजा
ु गरण ने राष्टट्रवादी भावनाओ ं को बढ़़ावा दिया। विद्वानोों, लेखकोों और z भारत का आर््थथिक एकीकरण: रे ल गाड़ियोों , सड़कोों, विद्तयु और टेलीग्राफ
कलाकारोों ने भारतीय संस््ककृ ति, इतिहास और परंपराओ ं को बढ़़ावा दिया। सहित आधनु िक परिवहन व संचार बनु ियादी ढाँचे का उद्देश््य ब्रिटिश आर््थथिक
 यरू ोपीय शोधकर््तताओ ं की यह मान््यता कि इड ं ो-आर््यन अन््य यरू ोपीय पैठ और वाणिज््ययिक शोषण को बढ़़ावा देना था।
देशोों के समान ही नृजातीय समहू थे, ने शिक्षित भारतीयोों के आत््म-  इस प्रकार, विभिन््न क्षेत्ररों के निवासियोों का आर््थथिक भविष््य आपस मेें

सम््ममान को बढ़़ाया। जड़ु गया।


 राष्टट्रवादियोों ने अपने नए आत््मविश्वास से औपनिवेशिक मिथकोों को z नेताओ ं द्वारा सच ं ार के आधुनिक साधनोों का उचित उपयोग: आधनु िक
ध््वस््त कर दिया। यात्रा और संचार का अर््थ है विविध क्षेत्ररों के नेता एकजटु हो सकते हैैं।
z पश्चिमी शिक्षा और विचार: अग् ं रेजी ने विविध भाषाई क्षेत्ररों के राष्टट्रवादी  इससे आर््थथिक और राजनीतिक मद्ददों ु पर राजनीतिक चर््चचा और जनमत
नेताओ ं को संवाद करने मेें सक्षम बनाया। जटु ाने मेें सवि
ु धा हुई।
 वकील, डॉक््टर और इग्ं ्लैैंड मेें अध््ययन करने वाले अन््य लोग उदार
वैश्विक मामलोों का प्रभाव:
पेशवे र थे।
z अंग्रेजोों की रूढ़़िवादी एवं प्रतिक्रियावादी नीतियाँ: 1877 ई. के भयंकर
 उन््होोंने एक स््वतंत्र देश मेें आधनु िक राजनीतिक संस््थथानोों की तल ु ना
अकाल के दौरान आयोजित दिल््लली दरबार, वर््ननाक््ययूलर प्रेस अधिनियम
भारतीय प्रणाली से की, जो नागरिकोों को बनु ियादी अधिकारोों से भी
(1878) और शस्त्र अधिनियम (1878) की व््ययापक आलोचना हुई।
वंचित करती है।
 इल््बर््ट बिल विवाद के कारण राष्टट्रवादियोों को एहसास हुआ कि यरू ोपीय
z मध््य वर््ग का उद्भव: इन नए अवसरोों ने पारंपरिक भारतीय सामाजिक
हित निष््पक्षता और निष््पक्ष खेल को रोकते हैैं।
विभाजनोों को तोड़ दिया और बंगाल के भद्रलोक, बॉम््बबे के चितपावन
ब्राह्मणोों और मद्रास के तमिल ब्राह्मणोों जैसे विशेषाधिकार प्राप्त स््वदेशी z सांस््ककृतिक दमन: ब्रिटिश शासन ने भारतीय संस््ककृ ति का दमन किया। पश्चिमी
समहोू ों से एक नया स््थथिति समहू - पश्चिमी शिक्षित अभिजात वर््ग बनाया। शिक्षा और नैतिकता को बढ़़ावा दिया गया, जबकि भारतीय भाषा और परंपरा
z सामाजिक-धार््ममि क आंदोलन: 19वीीं सदी के अत
का अपमान और ब्रिटिश काननोू ों और संस््थथानोों को प्रोत््ससाहित किया गया।
ं और 20वीीं सदी की
 सांस््ककृ तिक उत््पपीड़न ने सांस््ककृ तिक पहचान और भारतीय विरासत को पन ुः
शरुु आत मेें सामाजिक-धार््ममिक आदं ोलनोों ने सांस््ककृ तिक गौरव और सामाजिक
सधु ार को बढ़़ावा दिया। प्राप्त करने की भावना तीव्र की।
 आर््य समाज, रामकृष््ण मिशन और सिंह सभा ने भारतीय परंपराओ ं को z देशी साहित््य का विकास: बंकिम चद्रं चटर्जी के उपन््ययास ‘आनंदमठ’ और
पनर्
ु जीवित करने, सामाजिक अन््ययाय से लड़ने और एक राष्ट्रीय पहचान दीनबंधु मित्र के नाटक ‘नील दर््पण’ ने भारतीयोों पर प्रभाव डाला और उन््हेें
बनाने की माँग की। ब्रिटिश विरोधी बना दिया।
 भारतेेंदु हरिश्चंद्र के नाटक ‘भारत दुर््दशा’ मेें ब्रिटिश शासन के तहत z प्रतिनिधित््व और वकालत: राजनीतिक संगठनोों ने भारतीयोों को
भारतीयोों की दर््दु शा को दर््शशाया गया है। अपनी शिकायतोों, अधिकारोों और शासन की माँगोों को व््यक्त करने की
z प्रथम स््वतंत्रता सग् ं राम: 1857 ई. के विद्रोह ने भारतीय राष्टट्रवाद के लिए अनमु ति दी। उन््होोंने भारतीयोों के कल््ययाण और निर््णय लेने मेें भागीदारी की
उत्प्रेरक का काम किया। वकालत की।
 अग् ं रेजोों के नापाक इरादोों को जानने के बाद लोगोों ने रानी लक्ष्मीबाई,  इन सग ं ठनोों ने औपनिवेशिक सरकार की भेदभावपर्ू ्ण नीतियोों को चनु ौती
नानासाहेब, तात््यया टोपे और अन््य वीरोों को याद किया। दी और सामाजिक समानता की माँग की।
z अंग्रेजोों द्वारा आर््थथि क शोषण: दादा भाई नौरोजी की ‘ड्रेन ऑफ वेल््थ z नीति निर््ममाण और योजना: भारत का भविष््य राजनीतिक संगठनोों द्वारा गढ़़ा

थ््ययोरी’ मेें कहा गया कि अंग्रेजोों ने ब्रिटेन मेें धन प्रवाहित करके भारत का गया था। उन््होोंने राजनीतिक विचारधाराओ,ं घोषणापत्ररों और उपनिवेशवाद के
शोषण किया। बाद के भारत के दर््शन का निर््ममाण किया।
 इग्ं ्लैैंड मेें औद्योगिक क््राांति के बाद ब्रिटेन को कच््चचे माल और बाजार की  इन सग ं ठनोों ने बद्धि
ु जीवियोों, नेताओ ं और कार््यकर््तताओ ं को स््वतंत्रता और
आवश््यकता थी। भारत ने दोनोों की आपर््तति ू की। स््वतंत्रता के बाद के शासन को आकार देने वाले, सामाजिक-राजनीतिक
z कांग्रेस-पूर््व सग
मद्ददों
ु पर बहस करने की अनमु ति दी।
ं ठन: इनमेें से कई सगं ठन विशिष्ट क्षेत्ररों मेें सचं ालित थे, इनमे
से कई संगठनोों के लक्षष्य सभी भारतीयोों के लिए थे, न कि के वल एक समहू z जन लामबंदी और जन जागरूकता: औपनिवेशिक भारतीय राजनीतिक

के लिए। संगठनोों ने जनता को लामबंद करने और औपनिवेशिक अन््ययाय के बारे मेें


 आधनु िक राष्टट्रवाद और सप्र
जागरूकता बढ़़ाने की कोशिश की। विरोध प्रदर््शनोों, सार््वजनिक बैठकोों और
ं भतु ा उनके मार््गदर््शक सिद््धाांत थे। उनका मानना​​
था कि भारतीयोों को अपना निर््णय स््वयं लेने मेें सक्षम होना चाहिए। जन आदं ोलनोों ने स््वतंत्रता के लिए समर््थन जटु ाया।
z अंतरराष्ट्रीय समर््थन और एकजुटता: औपनिवेशिक भारत मेें राजनीतिक
z भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन््म: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने वैचारिक रूप
संगठनोों ने दनु िया भर मेें उपनिवेशवाद विरोधी आदं ोलनोों और सहानभु ति ू रखने
से ब्रिटिशोों से लड़कर भारत को स््वतंत्रता प्राप्त करने मेें मदद की।
वाले समहोू ों के साथ गठबंधन बनाया।
 दादा भाई नौरोजी और एस.एन. बनर्जी जैसे नरमपंथियोों और बाल गंगाधर
 इन प्रयासोों का उद्देश््य ब्रिटिश सरकार पर अत ं रराष्ट्रीय दबाव बनाना तथा
तिलक, बिपिन चद्रं पाल और लाला लाजपत राय जैसे गरमपथियो ं ों ने
भारत की स््वतंत्रता के लिए सहायता प्राप्त करना था।
भारतीयोों के मध््य राष्टट्रवाद की भावना जागृत करने का प्रयास किया।
अन््य लोगोों के अलावा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने स््वतंत्रता आंदोलन को
इन तत्तत्ववों ने राष्टट्रवाद को बढ़़ावा दिया। भारतीयोों को एक नई स््फफूर््तति प्राप्त हुई।
आकार देने और वर््ष 1947 मेें एक स््वतंत्र भारत के निर््ममाण मेें मदद की।
भारतीय अब जागृत होकर आजादी की लड़़ाई मेें शामिल होने लगे। ब्रिटिश
शासन धीरे -धीरे कमजोर हो रहा था। साथ ही 1885 ई. मेें भारतीय राष्ट्रीय काांग्रेस से पहले की राजनीतिक संस्थाएँ
कांग्रेस की स््थथापना ने इसे गति दी। z बंगाल के पहले राजनीतिक कार््यकर््तता राजा राम मोहन राय थे। पश्चिमी विचारोों
भारत मेें प्रारंभिक राजनीतिक ने उनके व््यक्तित््व को आकार दिया। उनके कारण ही अग्ं रेजोों की नजर सबसे
संगठन और उनकी उपलब्धियााँ पहले भारतीय मद्ददोंु पर पड़़ी।
 1836 ई. के चार््टर अधिनियम के कई उदार प्रावधानोों का श्रेय उन््हीीं को
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) ने भारतीय स््वतंत्रता संग्राम के दौरान एक
निर््णणायक राजनीतिक संघर््ष का नेतत्ृ ्व किया। हालाँकि, कांग्रेस पहली राजनीतिक दिया जाता है।
संस््थथा नहीीं थी। राजनीतिक अधिकार संघ, कांग्रेस के पहले से ही अस््ततित््व मेें थे। z हालाँकि, उनके साथियोों ने 1836 ई. मेें बंगाल के पहले राजनीतिक सगं ठन
‘बंगभाषा प्रकाशन सभा’ की स््थथापना की।
राजनीतिक संगठन बनाने की आवश्यकता
राजनीतिक संगठन विवरण
औपनिवेशिक भारत की विशिष्ट आवश््यकताओ ं और परिस््थथितियोों ने राजनीतिक
संगठन को प्रेरित किया। उस समय राजनीतिक संगठनोों के गठन के कुछ मख्ु ्य बंगभाषा z राजा राममोहन राय, प्रसन््नना कुमार ठाकुर,
कारण इस प्रकार हैैं: प्रकाशन/ कालीनाथ चौधरी, द्वारकानाथ टै गोर और
z औपनिवेशिक प्रतिरोध: औपनिवेशिक भारतीय राजनीतिक संगठनोों का
प्रकाशिका अन््य ने 1836 ई. मेें ‘बंगभाषा प्रकाशिका सभा’
लक्षष्य ब्रिटिश शासन को समाप्त करना था। दमनकारी नीतियोों, आर््थथिक शोषण सभा (1836) की स््थथापना की।
और राजनीतिक एवं सामाजिक अधिकारोों के हनन ने इन संगठनोों को जन््म z वे भारतीयोों की उच््च सरकारी पदोों पर नियक्ति ु ,
दिया। प्रेस की स््वतंत्रता और रै यतोों के जमीींदारी उत््पपीड़न
z राष्टट्रवाद और पहचान: राजनीतिक संगठनोों ने भारतीय राष्टट्रवाद और पहचान
से मक्ति
ु की वकालत कर रहे थे।
को बढ़़ावा दिया। उन््होोंने क्षेत्रीय और सांस््ककृ तिक आधार पर विविध समदु ायोों z संगठन ने वाद-विवाद और जनमत के माध््यम से
तथा धार््ममिक समहोू ों को एकजटु किया। इन सगं ठनोों ने स््वतंत्र भारत मेें राष्ट्रीय बंगाली शिक्षा को बढ़़ावा दिया।
एकता व गौरव को बढ़़ावा दिया। z इसने बंगाली स््थथानीय साहित््य को बढ़़ावा दिया।

50  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


जमीींदारी z द्वारकानाथ टै गोर ने जमीींदारोों के हितोों की रक्षा काांग्रेस-पूर््व संगठनोों की सीमित सफलता के कारक
एसोसिएशन के लिए मार््च, 1838 मेें जमीींदारी एसोसिएशन की z एकता का अभाव: प्रारंभिक भारतीय राजनीतिक दलोों को एकता बनाए
स््थथापना की, जिसे ‘लैैंडहोल््डर््स एसोसिएशन’
रखने के लिए संघर््ष करना पड़़ा। विघटन, परस््पर विरोधी विचारधाराओ ं और
के नाम से भी जाना जाता है।
z जमीींदारी एसोसिएशन भारत का पहला व््यक्तिगत संघर्षषों ने अक््सर उनके राजनीतिक प्रभाव को कम कर दिया।
राजनीतिक सगं ठन था। z सीमित समर््थन आधार: इन संगठनोों को पर््ययाप्त जनाधार के बिना ब्रिटिश
z अपने लक्षष्ययों के लिए, यह संवैधानिक प्रदर््शन का औपनिवेशिक शासन से लड़ने के लिए संघर््ष करना पड़़ा।
उपयोग करने वाला पहला आदं ोलन था। z ब्रिटिश दमन: ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकरण ने अपने नियंत्रण के लिए
ब्रिटिश इडि
ं या z अप्रैल, 1843 मेें विलियम एडम द्वारा स््थथापित खतरा समझी जाने वाली राजनीतिक गतिविधियोों को तरु ं त दबा दिया।
सोसाइटी बंगाल ब्रिटिश इडि ं या सोसाइटी ने राष्टट्रवाद z प्रारंभिक राजनीतिक सगं ठनोों मेें प्रभावी रीतियोों और लक्षष्ययों का अभाव
और राजनीतिक शिक्षा को बढ़़ावा दिया।
था। उन््हेें समर््थन हासिल करने के लिए संघर््ष करना पड़़ा क््योोंकि वे स््थथानीय मद्ददों

z ब्रिटिश इडि ं यन सोसाइटी की स््थथापना वर््ष
1851 ई. मेें हुई थी जब जमीींदारी एसोसिएशन पर ध््ययान केें द्रित करते थे और भारत की स््वतंत्रता के लिए कोई व््ययापक दृष्टिकोण
और बंगाल ब्रिटिश इडि ं या सोसाइटी का विलय प्रस््ततुत नहीीं करते थे।
हुआ था। z सच ं ार चुनौतियाँ: खराब संचार बनु ियादी ढाँचे के कारण विशाल और विविध
z रीति और माँगेें: इसने कंपनी के नए चार््टर मेें भारतीय उपमहाद्वीप मेें राजनीतिक संगठनोों को लामबंद करने और समन््वय करने
अपनी कुछ सिफारिशोों को शामिल करने के लिए
मेें परे शानी होती थी।
ब्रिटिश संसद मेें आवेदन किया, जैसे लोकलभु ावन
लक्षष्ययों के साथ एक अलग विधायिका की स््थथापना जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से पहले के कई राजनीतिक संगठन अपने लक्षष्ययों
करना। को प्राप्त करने मेें विफल रहे, उन््होोंने भविष््य के आंदोलनोों के लिए रूपरे खा तैयार
 नौकरशाहोों का वेतन कम करना। की और भारत मेें राष्टट्रवादी चेतना को बढ़़ाया। वर््ष 1885 मेें स््थथापित भारतीय
 नमक, उत््पपाद शल् ु ्क और डाक का उन््ममूलन। राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत को स््वतंत्रता प्राप्त करने मेें मदद की।
z सफलता: 1853 ई. मेें गवर््नर-जनरल की विधान
परिषद मेें छह सदस््योों की वृद्धि हुई। भारतीय राष्ट् रीय काांग्रेस की स्थापना
इडि
ं यन z स््थथापना: शिशिर कुमार घोष ने राष्टट्रवाद और काांग्रेस की स्थापना के लिए अग्रणी कारक
एसोसिएशन ऑफ राजनीतिक शिक्षा को बढ़़ावा देने के लिए वर््ष
कलकत्ता 1875 मेें इडि ं यन लीग की स््थथापना की। z जनता की राजनीतिक जागृति: वर््ष 1885 मेें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की
z सरेु ेंद्रनाथ बनर्जी और आनंद मोहन बोस ने स््थथापना कोई आकस््ममिक घटना नहीीं थी।
वर््ष 1876 मेें इडि ं यन लीग की जगह इडि ं यन  यह एक राजनीतिक जागृति की परिणति थी, जो 1860 और 1870 के
एसोसिएशन ऑफ कलकत्ता की स््थथापना की। दशक मेें शरू ु हुई और 1870 के दशक के अतं और 1880 के दशक की
z प्रमुख भूमिका: यह सस्ं ्थथा प्रमख ु ता से तब शरुु आत मेें तीव्र हो गई।
उभरी जब इसने 'इल््बर््ट बिल' विवाद (1883)
मेें सशक्त रुख अपनाया। z ए.ओ. ह्यूम की पहल: ब्रिटिश सिविल अधिकारी एलन ऑक््टटेवियन ह्मयू
z रीति: इसकी कल््पना 'अखिल भारतीय राष्ट्रीय ने एक राजनीतिक वार््तता और प्रतिनिधित््व मचं की आवश््यकता को पहचाना
सम््ममेलन' के रूप मेें की गई और इसकी बैठक व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स््थथापना की। वर््ष 1885 मेें ह्यूम ने कांग्रेस का
1883 ई. मेें कलकत्ता मेें हुई। अधिवेशन बुलाया और इसके महासचिव बने।
z इसके उद्देश््य थे: z नरमपंथी और प्रारंभिक नेतृत््व: इन राजनेताओ ं ने ब्रिटिश औपनिवेशिक ढाँचे
 राजनीतिक व््यवस््थथा के लिए लोकप्रिय
के भीतर संवैधानिक सधु ारोों, शांतिपर्ू ्ण साधनोों और भारतीय हितोों को बढ़़ावा
समर््थन का निर््ममाण करना।
दिया।
 राजनीतिक कार््यक्रमोों के लिए भारतीयोों को
एकजटु करना। z सध
ु ार की माँग: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने शरू
ु मेें ब्रिटिश औपनिवेशिक
 एसोसिएशन ने कई बंगाली और गैर-बंगाली सरकार के तहत प्रशासन, सिविल सेवाओ ं और विधान परिषदोों मेें भारतीयोों के
शाखाएँ खोलीीं। लिए प्रतिनिधित््व बढ़़ाने की माँग की।
 कम आय वाले सदस््योों को आकर््षषित करने z जन लामबंदी: ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक व््ययापक आदं ोलन स््थथापित करने
के लिए, एसोसिएशन द्वारा बहुत कम शल्ु ्क के लिए, पार्टी ने आम लोगोों, श्रमिकोों, किसानोों और अन््य लोगोों के साथ काम
लिया गया।
किया।

भारतीय राष्ट्रवाद का 51
सुरक्षा वाल्व सिद्धधांत और काांग्रेस नहीीं दे सकते।" भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का लक्षष्य ब्रिटिश व््यवस््थथा मेें
सधु ार से हटकर स््वतंत्रता प्राप्त करना हो गया। यह परिवर््तन दर््शशाता है कि
z सरु क्षा वाल््व सिद््धाांत की उत््पत्ति: सरु क्षा वाल््व सिद््धाांत का श्रेय वर््ष 1884
कांग्रेस एक सरु क्षा वाल््व से कहीीं अधिक थी, जो स््वशासन की बढ़ती
से 1888 तक भारत के वायसराय रहे लॉर््ड डफरिन को दिया जाता है।
माँग को दर््शशाती है।
 उन््होोंने तर््क दिया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जैसे राजनीतिक संस््थथानोों
यह कारण इस दावे का खंडन होता है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक ब्रिटिश
के माध््यम से ब्रिटिश भारतीय राष्टट्रवाद को प्रसारित और नियंत्रित कर
औपनिवेशिक सुरक्षा वाल््व थी। उनका तर््क है कि कांग्रेस एक अधिक जटिल,
सकते थे तथा विभिन््न प्रकार के क््राांतिकारी आदं ोलनोों को रोक सकते थे। संगठित आंदोलन था, जिसने भारत को स््वतंत्रता प्राप्त करने मेें मदद की।
z ऐतिहासिक प्रमाण: विलियम वेडरबर््न की ए.ओ. ह्मयू द्वारा लिखी गई जीवनी
काांग्रेस का लक्ष्य और उद्देश्य
ने 7 खडों ों की गप्तु रिपोर्टटों से यह सिद््धाांत प्रेरित है।
z बिपिन चंद्रा के मुताबिक कांग्रेस के दो मूल उद्देश््य थे। अन््य उद्देश््य दो
 कांग्रेस निर््ममाण की सरु क्षा वाल््व थ््ययोरी मेें शिमला मेें ए.ओ. ह्म यू के पास
बनु ियादी उद्देश््योों के इर््द-गिर््द घमू ते थे-
गोपनीय रिपोर्टटों के 7 खडं होने का हवाला दिया गया, जिसमेें भारतीय
 राष्टट्र-निर््ममाण और भारतीय पहचान को बढ़़ावा देना।
समाज मेें बढ़ती अशांति की चेतावनी दी गई थी।
 परू े भारत मेें राजनीतिक कार््यकर््तताओ ं को इकट्ठा करने और संगठित करने
z सर वैलेेंटाइन शिरोल की वर््ष 1910 की पस्ु ्तक ‘इडि ं यन अनरे स््ट’ ने सरु क्षा
वाल््व सिद््धाांत को प्रसारित किया। के लिए एक एकल राजनीतिक कार््यक्रम या मचं प्रदान करना।
z भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले अध््यक्ष व््ययोमेश चद्र
ं बनर्जी ने 3 लक्षष्य निर््धधारित
 शिरोल ने दावा किया कि अग् ं रेजोों ने राजनीतिक दबाव कम करने और
अपनी सत्ता के लिए अधिक गंभीर चनु ौतियोों को टालने के लिए भारतीय किए:
राष्ट्रीय कांग्रेस को बढ़़ावा दिया। 1. राष्ट्रीय एकता को मजबूत करना। इसके लिए देश भर मेें कांग्रेस के

वर््ष 1916 मेें प्रकाशित 'यंग इडि अधिवेशन आयोजित किए गए। इन सत्ररों की अध््यक्षता विभिन््न क्षेत्ररों
z ं या' मेें, गरमपंथी नेता लाला लाजपत राय
ने सरु क्षा-वाल््व सिद््धाांत का उपयोग करते हुए कांग्रेस के नरमपंथियोों की के अध््यक्षषों ने की।
2. सभी धर्ममों तक पहुँचना और अल््पसंख््यकोों की चिंताओ ं को कम
आलोचना की।
करना। वर््ष 1888 के सत्र मेें, यदि अधिकांश हिदं ू या मस््ललि ु म किसी
z आर. पाल््ममे दत्त की प्रमाणित कृति ‘इडि ं या टुडे’ ने इस सिद््धाांत को और
प्रस््तताव का विरोध करते, तो वह पारित नहीीं होता।
मजबतू किया।
3. कांग्रेस एक धर््मनिरपे क्ष राष्टट्र के निर््ममाण के लिए दृढ़ संकल््पपित
सुरक्षा वाल्व सिद्धधांत का खंडन क्ययों किया जाता है ? थी।
z कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीीं: सात खडों ों की गप्तु रिपोर््ट कभी भी भौतिक सामाजिक सुधार कांग्रेस के लिए सीमा से बाहर था। दसू रे कांग्रेस अधिवेशन
रूप मेें नहीीं मिली। के अध््यक्षीय भाषण मेें दादाभाई नौरोजी ने यह स््पष्ट किया कि सामाजिक सुधार
z ब्रिटिश नियंत्रण का अभाव: अपने बाद के वर्षषों मेें, कांग्रेस ने राजनीतिक कांग्रेस के दायरे से बाहर है। उनका मानना था कि कांग्रेस को के वल राष्ट्रीय मद्ददों ु
सधु ारोों की माँग करके ब्रिटिश नियंत्रण को चनु ौती दी। को ही संबोधित करना चाहिए।
z यह सरु क्षा वाल््व की धारणा का खंडन करता है कि कांग्रेस ने विपक्ष को शुरुआती दौर मेें काांग्रेस की सीमाएँ
नियंत्रित किया। z अभिजात वर््ग का नेतृत््व: प्रारंभिक कांग्रेस का नेतत्ृ ्व मख्ु ्य रूप से दादाभाई
z कट्टरपंथी समूहोों और क््राांतिकारी सगं ठनोों का उदय: क््राांतिकारियोों और उग्र नौरोजी और सरेु ें द्रनाथ बनर्जी जैसे अग्ं रेजी-शिक्षित, उच््च वर््ग के व््यक्तियोों द्वारा
राष्टट्रवादियोों ने अधिक प्रत््यक्ष और हिसं क तरीकोों से स््वतंत्रता की माँग की, यह किया गया था। जिसने भारतीय जनता तक कांग्रेस की व््ययापक पहुचँ को सीमित
साबित करते हुए कि कांग्रेस एकमात्र राष्टट्रवादी निकाय नहीीं था। कर दिया, जो मख्ु ्यतः ग्रामीण और वंचित वर््ग से थे।
z जमीनी स््तर पर लामबंदी: सरु क्षा वाल््व सिद््धाांत के अनसु ार, कांग्रेस एक z मध््यम मार््ग: कांग्रेस की शरुु आती रणनीतियोों की विशेषता याचिकाएँ, संकल््प
ब्रिटिश संगठन था, जिसे ब्रिटिश सरकार ने असंतोष को कम करने के लिए और चर््चचाएँ थीीं, जिन््हेें अक््सर ‘भिक्षावृत्ति की राजनीति’ कहा जाता था। अग्ं रेजोों
स््थथापित किया था। की आक्रामक नीतियोों के विरुद्ध अत््यधिक निष्क्रिय और अप्रभावी होने के
 लेकिन यह भारतीयोों के लिए स््वशासन की आकांक्षाओ ं को व््यक्त करने का कारण इस उदारवादी दृष्टिकोण की आलोचना की गई।
एक मचं बन गया और राष्टट्रवादी भावनाओ ं को आकार देने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण z सामूहिक भागीदारी का अभाव: प्रारंभिक आदं ोलन और गतिविधियाँ काफी
भमि
ू का निभाई। हद तक शहरी अभिजात वर््ग तक ही सीमित थीीं, जिसमेें विशाल ग्रामीण
z दमनकारी तरीके : ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियोों ने राष्टट्रवादी आदं ोलनोों, आबादी को शामिल करने के लिए बहुत कम प्रयास किए गए थे।
विशेषकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को कुचलने के लिए दमनकारी तरीकोों का z क्षेत्रीय असतं ुलन: कांग्रेस का नेतत्ृ ्व और गतिविधियाँ मख्ु ्य रूप से कुछ ही
उपयोग किया। क्षेत्ररों, जैसे बॉम््बबे, कलकत्ता और मद्रास तक ही सीमित रहीीं, जिसके कारण
 डफरिन और उनके भारतीय सहयोगियोों ने कभी भी कांग्रेस का समर््थन नहीीं भारत के विविध भौगोलिक और सांस््ककृ तिक परिदृश््य मेें असमान प्रतिनिधित््व
किया, उन््होोंने घोषणा की, "हम कांग्रेस को अस््ततित््व मेें रहने की अनमु ति एवं भागीदारी हुई।

52  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


z सामाजिक मुद्ददों को संबोधित करने मेें धीमी गति: अपने प्रारंभिक वर्षषों  आर््थथिक सध ु ारोों और नागरिक अधिकारोों की माँग की: शरुु आती
मेें, कांग्रेस मौलिक सामाजिक सधु ारोों को संबोधित करने मेें सतर््क थी, मख्ु ्य कांग्रेस नेताओ ं ने भारत की गरीबी के बारे मेें चितं ा व््यक्त करने के साथ
रूप से राजनीतिक और प्रशासनिक मद्ददों ु पर ध््ययान केें द्रित करती थी। इस समाधान प्रदान किए।
दृष्टिकोण ने प्रायः सामाजिक रूप से हाशिए पर रहने वाले समहोू ों को अलग-  उन््होोंने होम चार्जेज को कम करने की माँग की, विशेष रूप से महँगे
थलग कर दिया, जो जातिगत भेदभाव और अस््पपृश््यता जैसे महत्तत्वपर्ू ्ण मद्ददों ु सैन््य अभियानोों से होने वाले खर्चे के साथ ही स््थथायी बंदोबस््त का विस््ततार
से प्रभावित थे। करने, आयकर और पलि ु स व््यवस््थथा मेें सधु ार लाने, वन काननोू ों को रद्द
z सच ं ार अंतराल: कांग्रेस की कार््यवाही और संचार के लिए प्राथमिक भाषा करने व नमक कर वृद्धि का विरोध करने की माँग की।
के रूप मेें अग्ं रेजी के उपयोग ने आबादी के एक बड़़े हिस््ससे को बाहर कर दिया  ऐसे उपायोों से औद्योगिक विकास को बढ़़ावा मिलेगा, धन का बहिर््ववाह
क््योोंकि बहुत से लोग अग्ं रेजी मेें पारंगत नहीीं थे, जिससे व््ययापक जड़ु ़ाव और रुके गा, नौकरियाँ पैदा होोंगी और स््थथिति मेें सधु ार होगा।
समझ सीमित हो गई।
 उन््होोंने ‘प्रतिनिधित््व के बिना कोई कराधान नहीीं’ का नारा दिया।
z सीमित आक्रामक मुद्रा: पर् ू ्ण स््वतंत्रता के लिए कांग्रेस की शरुु आती
अनिच््छछा और ब्रिटिश शासन के तहत प्रभत्ु ्व की स््थथिति से उसकी संतष्टि ु को नरमपंथियोों द्वारा अपनाई गई विधियााँ
औपनिवेशिक उत््पपीड़न का परू ी तरह से सामना करने के संकल््प की कमी के z प्रार््थना और याचिका: संजय सेठ के अनसु ार, सरकारी कार््रवाई या निष्क्रियता
रूप मेें देखा गया। की निंदा करने या कार््रवाई का एक नया तरीका सझु ाने वाले कांग्रेस के
अपनी सीमाओ ं के बावजूद इसने राष्ट्रीय एकता को बढ़़ावा देकर और समय-समय प्रस््ततावोों मेें हमेशा 'निंदा' के बजाय 'खेद' और 'माँग' के बजाय 'सुझाव'
पर महत्तत्वपर्ू ्ण राजनीतिक माँगेें करके भारतीय राजनीति के आधनु िकीकरण को होते थे।
चिह्नित किया, जैसे- "सरकार का आधार व््ययापक होना चाहिए और लोगोों को  इस तरह की विनम्रता को 'गरमपंथी' कांग्रेस नेताओ ं द्वारा आत््म-सम््ममान

इसमेें अपना उचित और वैध हिस््ससा मिलना चाहिए।" की कमी के संकेत के रूप मेें और अतं तः भिक्षावृत्ति के रूप मेें इसका
उपहास किया गया।
नरमपंथी चरण के दृष्टिकोण और सीमाएँ
(1885 -1905) z भारत के लोगोों का प्रतिनिधित््व: दसू री ओर, अनरु ोध 'भारत के लोगोों' के
नाम पर किए गए थे और इसका उद्देश््य सरकार के आधार को व््ययापक बनाना
नरमपंथियोों की मााँगेें और सफलता था ताकि लोगोों को ‘उसमेें उनका उचित और वैध हिस््ससा’ दिया जा सके ।
कांग्रेस अपने शरुु आती वर्षषों मेें अपनी माँगोों और तरीकोों के कारण ‘उदारवादी’ z उपनिवेशवाद की आर््थथिक आलोचना: कांग्रेस की बहसोों और प्रस््ततावोों
थी। उदाहरण के लिए: पर गरीबी हावी रही।
z परिषद का विस््ततार: इसका उद्देश््य सरकार मेें भारतीय प्रतिनिधित््व को मजबत ू  दादाभाई नौरोजी और अन््य लोगोों ने गरीबी और उसके कारणोों का अध््ययन
करने के लिए प््राांतीय और केें द्रीय परिषदोों की शक्तियोों का विस््ततार करना और किया और एक ‘ब्रिटिश’ शासन की वकालत की, जिससे भारत को
उनके निर््ववाचित सदस््योों को बढ़़ाना था। लाभ होगा।
 1892 ई. के भारतीय परिषद अधिनियम ने केें द्रीय और प््राांतीय विधान  नौरोजी की प्रमख ु कृति ‘पॉवर्टी एडं अन-ब्रिटिश रूल इन इडि ं या’ के
परिषदोों का विस््ततार किया। अलावा, कई अन््य प्रकाशनोों ने भारत पर साम्राज््यवाद के आर््थथिक प्रभावोों
 विधान परिषदोों ने बजट पर बहस की और कार््यपालिका से प्रश्न किए। की आलोचनात््मक जाँच की।
z चुनाव और मतदान शक्तियोों की माँग: वर््ग और समद ु ाय के वही सदस््य जो  ‘भारत मेें गरीबी की समस््यया’ (1895), महादेव गोविंद रानाडे की ‘भारतीय
"बद्धि
ु मानी और स््वतंत्र रूप से इसका प्रयोग करने मेें सक्षम" थे, वही चनु ाव अर््थशास्त्र पर निबंध’ (1896), रोमेश चद्रं दत्त की दो खडों ों वाली ‘भारत
लड़ने के लिए योग््य थे। का आर््थथिक इतिहास’ (1902) और सब्रु मण््यम अय््यर की ‘भारत मेें ब्रिटिश
 नामांकन का उपयोग केें द्रीय और प््राांतीय विधान परिषदोों मेें किया जाता था। शासन के कुछ आर््थथिक पहल’ू (1903) आदि ने भारत से इग्ं ्लैैंड की
z सिविल सेवा का भारतीयकरण करने के लिए इग्ं ्लैैंड और भारत मेें सिविल ओर लगातार ‘धन के निकास’ के कारण भारत की बढ़ती गरीबी के लिए
सेवा परीक्षा आयोजित करना आवश््यक हो गया। औपनिवेशिक शासन को दोषी ठहराया।
 वर््ष 1877-80 मेें, एक व््ययापक अभियान मेें सार््वजनिक सेवाओ ं के  उन््होोंने देश से ‘धन की निकासी’, ‘ग्रामीणीकरण’ और ‘वि-औद्योगिकीकरण’

भारतीयकरण की माँग की गई और लॉर््ड लिटन की महँगी अफगान यात्राओ ं का विरोध किया और भारत की औपनिवेशिक अर््थव््यवस््थथा पर ध््ययान
का विरोध किया गया, जिसका भगु तान भारतीय राजस््व से किया जाता था। केें द्रित करके शास्त्रीय आर््थथिक सिद््धाांत की अमर््तू ता और ऐतिहासिकता
z सत्ता को अलग करने की माँग की: कांग्रेस ने प्रशासन और न््ययायपालिका को चनु ौती दी।
को अलग करने तथा जरू ी परीक्षणोों का विस््ततार का प्रयास किया। z सार््वजनिक बैठकेें और सम््ममेलन: भारतीय मद्ददों ु के बारे मेें जागरूकता बढ़़ाने
 प्रेस की स््वतंत्रता के लिए सघ ं र््ष किया: भारतीय प्रेस और संघ भी वर््ष के लिए नरमपथियो ं ों ने सार््वजनिक बैठकेें और सम््ममेलन आयोजित किए। इन
1878 के वर््ननाक््ययूलर प्रेस अधिनियम के विरोध मेें थे। आयोजनोों मेें बहस, भाषण और विचारोों की मेजबानी की गई।

भारतीय राष्ट्रवाद का 53
z प्रेस और प्रकाशन: नरमपंथी मीडिया के प्रभाव को समझते थे। उन््होोंने अपने z आक्रामक नेतृत््व की कमी: ब्रिटिश शासन का सामना करने मेें उनकी
विचारोों के प्रसार और जनता को शिक्षित करने के लिए समाचार पत्र, पत्रिकाएँ मख ु रता की कमी के लिए नरमपथियो ं ों की आलोचना की गई। उनके विनम्र
और पस््तति ु काएँ प्रकाशित कीीं। और वफादार दृष्टिकोण को कमजोरी के रूप मेें देखा गया, खासकर जब ब्रिटिश
z मददगार ब्रिटिश अधिकारियोों के साथ सहयोग: नरमपंथी उन ब्रिटिश अधिकारियोों ने उनकी माँगोों को खारिज कर दिया या नजरअदं ाज कर दिया।
अग्ं रेजोों ने अक््सर इस नरम रुख का लाभ उठाया और बिना किसी वास््तविक
अधिकारियोों के साथ गठबंधन और संबंध बनाने मेें विश्वास करते थे, जो भारतीय
दबाव के अपने विवेक से सधु ारोों को लागू किया।
समस््ययाओ ं के प्रति सहानभु ति ू रखते थे। उन््होोंने सधु ारोों के लिए अनक ु ू ल सरकारी
z व््ययापक सामाजिक मुद्ददों को सबं ोधित करने मेें विफलता: उनका ध््ययान
अधिकारियोों की पैरवी की और भारतीय समस््ययाओ ं को संबोधित किया।
मख्ु ्य रूप से राजनीतिक और प्रशासनिक मद्ददों ु पर केें द्रित रहा और भारतीय
z शिक्षा: नरमपथियो ं ों ने समझा कि शिक्षा भारतीयोों को सशक्त करे गी। इसलिए समाज के भीतर जातिगत भेदभाव, गरीबी और जनता के लिए शिक्षा जैसे
उन््होोंने स््ककूलोों की स््थथापना की और साक्षरता तथा नागरिकोों को जागरूक करने आवश््यक सामाजिक सधु ारोों की उपेक्षा की गई। इससे भारत के सामाजिक
के लिए शैक्षिक परिवर््तनोों की वकालत की। ताने-बाने पर उनका प्रभाव सीमित हो गया और उनका समर््थन आधार भी
z परिषद का उपयोग: अग्ं रेज चाहते थे कि परिषदेें अधिक मख ु र भारतीय नेताओ ं सीमित हो गया।
की अनदेखी करते हुए उनकी राजनीतिक स््थथिति को मजबतू ी प्रदान करेें । z औपनिवेशिक शक्ति को कम आँकना: नरमपंथियोों ने भारत पर नियंत्रण
 हालाँकि, राष्टट्रवादियोों ने इन परिषदोों का उपयोग समस््ययाओ ं को व््यक्त बनाए रखने की ब्रिटिश प्रतिबद्धता को कम आँका। वे अग्ं रेजोों द्वारा एक निष््पक्ष
करने, नौकरशाही की कमियोों को उजागर करने, सरकारी नीतियोों/प्रस््ततावोों और न््ययायपर्ू ्ण प्रशासन की संभावना मेें विश्वास करते थे, जो अक््सर भारत
का विरोध करने और बनु ियादी आर््थथिक मद्ददों मेें ब्रिटिश नीतियोों को रे खांकित करने वाले औपनिवेशिक आर््थथिक हितोों के
ु , विशेष रूप से सार््वजनिक
विपरीत था।
धन के मामलोों को उठाने के लिए किया।
z बाद के आंदोलनोों से अभिभूत: कांग्रेस के भीतर उग्रवादियोों का उदय,
z अंतरराष्ट्रीय मंच: नरमपंथियोों ने विदेशोों मेें भारतीय हितोों को बढ़़ावा दिया। जिन््होोंने स््वराज (स््वशासन) की वकालत की और बाद मेें गांधी के उदय ने
उन््होोंने भारतीय औपनिवेशिक समस््ययाओ ं के बारे मेें जागरूकता बढ़़ाने और जन-लामबंदी रणनीतियोों (जैसे असहयोग आदं ोलन) के साथ नरमपंथियोों के
उनकी माँगोों का समर््थन करने के लिए विश्वव््ययापी सम््ममेलनोों मेें भाग लिया। तरीकोों को परु ाना और कम प्रभावी बना दिया।
नरमपंथियोों की सीमाएँ निष्कर््ष
z सीमित उद्देश््य: नरमपथियों ों ने पर्ू ्ण स््वतंत्रता की माँग किए बिना मख्ु ्य रूप से नरमपंथी त्रुटिपूर््ण थे, लेकिन निपुण थे। उन््होोंने राष्टट्रवादी आंदोलन खड़़ा किया,
छोटे प्रशासनिक सधु ारोों, निष््पक्ष प्रतिनिधित््व और शासन प्रक्रिया मेें अधिक भारतीयोों को शिक्षित किया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को आकार दिया।
भागीदारी पर ध््ययान केें द्रित किया। उनकी याचिकाएँ और अभ््ययावेदन अक््सर बाद मेें भारतीय स््वतंत्रता संग्राम का स््वरूप नरमपंथियोों की सीमाओ ं के कारण
सेवाओ ं और परिषदोों मेें भारतीय प्रतिनिधित््व मेें वृद्धि जैसी रियायतोों की माँग उग्र हो गया।
करते थे, जिन््हेें बाद के राष्टट्रवादियोों द्वारा अपर््ययाप्त माना गया।
z रूढ़़िवादी तरीके : उन््होोंने अपनी माँगोों को सामने रखने के लिए याचिकाओ,ं प्रमुख शब्दावलियाँ
भाषणोों और लेखोों पर भरोसा किया। ब्रिटिशोों की शाही नीतियोों के विरुद्ध
भारतीय राष्टट्रवाद का उदय, सामाजिक-धार््ममिक आंदोलन, पश्चिमी
अत््यधिक निष्क्रिय और अप्रभावी होने के कारण इस दृष्टिकोण की अक््सर शिक्षा, मध््यम वर््ग का उदय, प्रेस का उपयोग, ब्रिटिश प्रशासनिक
आलोचना की गई, जिसके लिए अधिक मख ु र कार््र वाई की आवश््यकता थी। नीतियाँ, आर््थथि क शोषण, सांस््ककृ तिक दमन।
z सक ं ीर््ण सामाजिक आधार: उदारवादी नेता मख्ु ्य रूप से शिक्षित अभिजात
वर््ग और उच््च-मध््यम वर््ग के पेशवे रोों से आते थे। इससे भारत की व््ययापक विगत वर्षषों के प्रश्न
जनता, जो मख्ु ्य रूप से गरीब और वंचित थे, के साथ उनकी अपील और 1. नरमपंथियोों की भमि ू का ने किस सीमा तक व््ययापक स््वतंत्रता आंदोलन
कनेक््टटिविटी सीमित हो गई। उदाहरण के लिए, दादाभाई नौरोजी और गोपाल का आधार तैयार किया? टिप््पणी कीजिए। (2021)
कृष््ण गोखले जैसे व््यक्तित््व औसत भारतीय किसान या श्रमिकोों के साथ 2. उन््ननीसवीीं सदी के 'भारतीय पनर््जजा
ु गरण' और राष्ट्रीय पहचान के उद्भव
घलु -मिल नहीीं पाए और उनके बीच एक दरू ी बनी रही। के मध््य सहलग््नताओ ं का परीक्षण कीजिए। (2019)

54  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन- चरण-I
7 (1905-1917)
बंगाल का विभाजन (1905) और कर््जन की लॉर््ड कर््जन के सुधार
प्रतिक्रियावादी नीतियााँ (1899-1905) z 1902 ई. मेें विश्वविद्यालय आयोग: कर््जन ने देश मेें विश्वविद्यालय शिक्षा के
मद्ददों
ु के समाधान के लिए 1902 ई. मेें विश्वविद्यालय आयोग की स््थथापना की।
लॉर््ड कर््जन 30 दिसंबर, 1898 को भारत का नया वायसराय बना। 1903 ई.
z 1904 ई. का भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम: कर््जन ने आयोग के
मेें एक शाही घोषणा के माध््यम से बंगाल विभाजन की घोषणा की गई, जिसके
निष््कर्षषों और सिफारिशोों के जवाब मेें 1904 ई. का भारतीय विश्वविद्यालय
तहत पूर्वी बंगाल के एक नए प््राांत के गठन के साथ पुराने बंगाल प््राांत का क्षेत्रफल
अधिनियम लागू किया, जिससे भारत के सभी विश्वविद्यालयोों को सरकारी
कम हो गया, जो बाद मेें पर्ू वी पाकिस््ततान और वर््तमान बांग््ललादेश बन गया। प्राधिकार के तहत लाया गया।
लॉर््ड कर््जन की प्रतिक्रियावादी नीतियााँ z वैज्ञानिक सध ु ार: पसू ा (बिहार-बंगाल प्रेसीडेेंसी) मेें कृ षि अनसु ंधान संस््थथान
z 1899 ई. का कलकत्ता निगम अधिनियम: उन््होोंने भारतीयोों को स््वशासन बनाया गया।
से वंचित करने के लिए 1899 ई. के कलकत्ता निगम अधिनियम द्वारा निर््ववाचित z प्रशासनिक: कर््जन ने पलि ु स मेें सधु ार, भ्रष्टाचार खत््म करने और आर््थथिक
विधान मडलो ं ों की संख््यया सीमित कर दी। विकास को बढ़़ावा देने के लिए काम किया।
 रूढ़़िवाद को पुनर्जीवित किया: कर््जन ने लॉर््ड मेयो की नीतियोों की मख् ु ्य
z भारतीयोों के प्रति घृणा: वह भारतीयोों के साथ अनादर का व््यवहार करता था।
उन््होोंने बंगालियोों को कायर, वाचाल, बेकार बात करने वाला और दिखावटी विशेषताओ ं को अद्यतन करके भारत मेें रूढ़़िवाद को पनु र्जीवित किया।
 पुलिस सध ु ार: 1902 मेें कर््जन ने पलि
ु स आयोग की स््थथापना की, जिसके
देशभक्त करार दिया।
अध््यक्ष सर एड्रं यू फ्रेजर थे। कर््जन ने आयोग की सभी सिफारिशोों को
z भारतीयोों के प्रति दुर््व््यवहार: उन््होोंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध््यक्ष से
स््ववीकार कर लागू किया।
मिलने से इनकार कर दिया।
 प्रशिक्षण स््ककूलोों की स््थथापना: उन््होोंने अधिकारियोों और सिपाहियोों दोनोों
z बंगाल का विभाजन: बंगाल का विभाजन उनकी सबसे बड़़ी भल ू थी। यह के लिए प्रशिक्षण स््ककूलोों की स््थथापना के साथ प््राांतीय पलि
ु स सेवाओ ं की
लंबे समय मेें अग्ं रेजोों के लिए विनाशकारी साबित हुआ। स््थथापना की।
कर््जन की प्रतिगामी नीतियााँ और उनके प्रभाव  एनडब््ल्ययूएफपी की स््थथापना: नॉर््थ वेस््ट फ्रंटियर प््राांत (एनडब््ल्ययूएफपी)

z राजनीतिक अस््थथिरता का मार््ग प्रशस््त: कर््जन के अभद्र बयानोों और की स््थथापना कर््जन के शासन के दौरान की गई थी और यह सिधं ु नदी के
साम्राज््यवादी उद्देश््योों ने भारत की राजनीतिक अस््थथिरता को बढ़़ा दिया। कर््जन लगभग ऊपरी हिस््ससे को कवर करता था।
की साम्राज््यवादी कार््र वाइयोों ने भारतीय राजनीति पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। z इपं ीरियल कै डेट कोर की स््थथापना: इपं ीरियल कै डेट कोर की स््थथापना की गई,
जिसने बाद मेें सेना के भारतीयकरण के लिए एक उपकरण के रूप मेें काम किया।
z राष्ट्रीयता की भावना का जन््म: उसके अत््ययाचार ने राष्ट्रीयता की गहन
भावना को जन््म दिया। इस दृष्टि से कर््जन भारत का अनजाने मेें हितैषी सिद्ध विभाजन की पृष्ठभूमि और ब्रिटिश उद्देश्य
हुआ। z आधिकारिक कारण: बंगाल एक एकल प््राांत था, जिसमेें बिहार, उड़़ीसा,
z स््वदेशी आंदोलन: स््वदेशी आदं ोलन की स््थथापना वर््ष 1905 मेें बंगाल मेें बंगाल और ढाका राज््य शामिल थे। विभाजन का उद्देश््य मस््ललिम ु बाहुल््य
स््वदेशी के पक्ष मेें ब्रिटिश उत््पपादोों के बहिष््ककार की माँग के साथ की गई थी। आबादी को पर्ू वी बंगाल और बिहार के साथ उड़़ीसा और बंगाल की हिदं ू
1857 ई. के विद्रोह के बाद संभवतः यह पहला बड़़ा आदं ोलन था। बाहुल््य आबादी के हिस््ससे को दसू रे प््राांत के रूप मेें अलग करने पर केें द्रित था।
z प्रशासनिक सगु मता: ब्रिटिश सरकार ने कहा कि यह बंगाल के अविकसित
z उपनिवेशवाद-विरोधी आंदोलन: उपनिवेशवाद-विरोधी आदं ोलन का
पर्ू वी भाग मेें विकास को बढ़़ावा देने और प्रशासनिक सगु मता के लिए किया
नेतत्ृ ्व पहले नरमपंथियोों ने किया था, लेकिन बाद मेें यह गरमपंथियोों के माध््यम
गया था क््योोंकि जनसंख््यया के मामले मेें बंगाल सबसे बड़़ा प््राांत था, जिससे
से परू े देश मेें फै ल गया। तिलक, बिपिन पाल और अरबिंदो घोष जैसे नेता प्रशासन चनु ौतीपर््णू हो गया था।
कांग्रेस मेें लोकप्रिय हो रहे थे।
z मुख््य लक्षष्य ‘फूट डालो और राज करो’: हालाँकि, ब्रिटिश सरकार का
z क््राांतिकारी गतिविधियोों का उद्भव: बाद मेें यगु ांतर जैसे क््राांतिकारी संगठन मख्ु ्य लक्षष्य उस समय देश के सबसे प्रमख ु राष्टट्रवादी वर््ग के मध््य 'फूट डालो
उभरने लगे। जिन््होोंने उपनिवेशवाद विरोधी अभियानोों मेें सक्रिय भमि ू का निभाई और राज करो' था और मस््ललिम ु समदु ाय को उनके लिए एक अलग प््राांत के
और यवु ाओ ं के मध््य राष्टट्रवाद का प्रसार किया। वादे के साथ भारतीय राष्टट्रवाद से दरू किया गया था।
z बंगाली सस््ककृति
ं और भाषा: राष्टट्रवादियोों ने इसे के वल नौकरशाही सगु मता के पृष्ठभूमि और पूरे आंदोलन मेें की गईं कार््रवाइयााँ
रूप मेें नहीीं, बल््ककि भारतीय राष्टट्रवाद के लिए एक चनु ौती के रूप मेें देखा। उन््होोंने
z विभाजन विरोधी अभियान: स््वदेशी आदं ोलन, विभाजन विरोधी अभियान
इसे बंगाली संस््ककृति और भाषा पर हमला भी माना।
के रूप मेें उभरा, जो बंगाल को विभाजित करने के ब्रिटिश निर््णय के जवाब मेें
z राष्टट्रवादी आंदोलन के आधार को विखंडित करना: कर््जन के शब््दोों मेें, शरूु किया गया था।
इसका उद्देश््य "कलकत्ता को आदं ोलन के मख्ु ्य केें द्र से अलग करना था” क््योोंकि z स््वदेशी आंदोलन: सदी के अतं मेें स््वदेशी आदं ोलन की शरुु आत ने भारतीय
कलकत्ता उस समय कांग्रेस और राष्टट्रवादी आदं ोलन का एक प्रमख ु केें द्र था। राष्ट्रीय आदं ोलन मेें एक महत्तत्वपर््णू प्रगति को चिह्नित किया।
रिस्ले (भारत सरकार के गृह सचिव, 1904) z विभाजन का दिन: 16 अक््टटूबर, 1905 को बंगाल का विभाजन हुआ और इसे
बंगाल एकजुट है, तो ताकतवर है। विभाजित बंगाल कई अलग-अलग ‘शोक दिवस’ के रूप मेें मनाया गया।
तरीकोों से आगे बढ़़ेगा। हमारे मख्ु ्य उद्देश््योों मेें से एक है अपने शासन के z हिंदू मुस््ललिम एकता: हिदं -ू मस््ललिम
ु सद्भाव के साथ-साथ बंगाली एकता के
प्रमख
ु विरोधियोों के समहू को विभाजित करके कमजोर करना। संकेत के रूप मेें राखियाँ बाँधी गई।ं लोगोों ने पवित्र जलधाराओ ं मेें स््ननान किया।
z कांग्रेस के भीतर फूट: विभाजन ने कांग्रेस के भीतर भी फूट पैदा कर दी, क््योोंकि z राष्टट्रगान और गीत: लोगोों ने वदं मे ातरम गाकर एकता का सदं श े दिया। टैगोर
नरमपंथियोों ने विभाजन के विरोध मेें प्रदर््शन और अभियान को के वल बंगाल ने बंगाल विभाजन की पृष्टभमि ू पर ‘आमार सोनार बांग््लला’ की रचना की, जो
तक सीमित रखने की कोशिश की। 1971 ई. मेें बांग््ललादश
े का राष्टट्रगान बना।
z राष्टट्रव््ययापी आंदोलन: दसू री ओर, गरमपंथियोों ने एक राष्टट्रव््ययापी आदं ोलन z तिरंगा झंडा: बंगाल मेें स््वदेशी आदं ोलन के दौरान एक तिरंगा झडं ा (लाल,
शरू
ु करने और स््वदेशी आदं ोलन की स््थथापना करके अपना प्रभाव महससू हरा और पीला) विकसित किया गया था। इसमेें ब्रिटिश भारत के आठ प््राांतोों
कराने की कोशिश की। का प्रतिनिधित््व करने के लिए आठ कमल तथा हिदं ओ ु ं एवं मसु लमानोों का
प्रतिनिधित््व करने के लिए एक अर्दद्धचद्रं शामिल था।
विभाजन पर राष्टट्र वादी प्रतिक्रिया
z प्राचीन गौरव की पुनर्प्राप्ति: भारतीयोों ने अपने अतीत की महान उपलब््धधियोों
z बढ़ता तनाव: इससे दोनोों पक्षषों के बीच तनाव बढ़ गया, जो 1906 ई. के कांग्रेस को खोजने के लिए समय मेें पीछे मड़ु कर देखना शरू ु किया। उन््होोंने उस अद्भुत
अधिवेशन मेें समाप्त हुआ, जब दादाभाई नौरोजी को अध््यक्ष चनु कर टकराव को समय के बारे मेें प्रचार-प्रसार करना शरू ु किया, जब कला और स््थथापत््य, विज्ञान
टाला गया (उन््हेें दोनोों गटोु ों ने सम््ममान दिया और परिणामस््वरूप, तिलक- एक और गणित, धर््म और संस््ककृति, काननू और दर््शन तथा शिल््प और व््ययापार
गरमपंथी नेता, ने भी उनके नाम पर सहमति जताई), हालाँकि, वे प्रारंभ से ही फल-फूल रहे थे।
अध््यक्ष पद के लिए प्रबल दावेदार थे। z आयात पर प्रतिबंध: आदं ोलन के दौरान कई बार विदेशी वस्त््रों की माँग मेें
गिरावट आई। मैनचेस््टर फै ब्रिक और लिवरपल ू नमक के बहिष््ककार की व््ययापक
नोट:
रूप से वकालत की गई।
z मानवतावादी कवि-दार््शनिक रवीींद्रनाथ टैगोर ने लॉर््ड कर््जन की सरकार
के लिए एक आक्रोशपर््णू अलंकारिक चनु ौती पेश की, जिसने 1905 ई. z स््वयंसेवकोों का दल: गरमपंथियोों ने स््वयंसेवकोों के दल या समितियोों का भी
मेें बंगाल को विभाजित करने की योजना बनाई थी। आयोजन किया। बंगाल मेें अश्विनी कुमार दत्त की ‘स््वदेश बांधव समिति’ इसका
z यह मधरु गीत आक्रोश और दृढ़ सक ं ल््प दोनोों को व््यक्त करता है- उदाहरण है। इससे राजनीतिक चेतना के प्रसार मेें सहायता मिली।
उपनिवेशीकृ त जनता दमनकारी औपनिवेशिक सरकार का सामना करने महत्त्वपूर््ण तथ्य:
और उसके पक्षपातपर््णू फै सलोों को उलटने के लिए तैयार थी, जो अपनी
z आयातित सतू ी माल की मात्रा मेें गिरावट: अगस््त, 1905 और सितंबर,
सत्ता के मद मेें चरू थी।
1906 के बीच आयातित सतू ी माल की मात्रा मेें 22%, सतू ी रस््ससी और
स्वदेशी आंदोलन (1905) धागे मेें 44%, नमक मेें 11%, सिगरे ट मेें 55% और जतू े-जतू ी मेें 68%
की गिरावट आई।
अगस््त, 1905 मेें कलकत्ता टाउन हॉल असेेंबली मेें एक बहिष््ककार प्रस््तताव पारित
z देशी विद्रोह से कहीीं अधिक: बहिष््ककार आदं ोलन एक 'देशी विद्रोह' से
किया गया और स््वदेशी आंदोलन आधिकारिक तौर पर शरू ु किया गया। कहीीं अधिक था, जिसने यरू ोपीय उत््पपादोों को खारिज कर दिया।
बाल गंगाधर तिलक आंदोलन का नेतत्व

स््वराज या स््वशासन, स््वधर््म के पालन के लिए आवश््यक है। स््वराज के z नेतृत््व: नरमपंथियोों, विशेष रूप से सरेु ें द्रनाथ बनर्जी, कृ ष््ण कुमार मित्रा और
बिना, कोई सामाजिक सुधार नहीीं हो सकता, कोई औद्योगिक प्रगति नहीीं पी. सी. रे ने प्रारंभिक नेतत्ृ ्व प्रदान किया। आदं ोलन के दौरान नरमपंथी और
हो सकती, कोई शिक्षा उपयोगी नहीीं हो सकती और राष्ट्रीय जीवन की कोई गरमपथं ी दोनोों ने मिलकर काम किया।
पूर््तति नहीीं हो सकती। यही हम चाहते हैैं, यही कारण है कि ईश्वर ने हमेें उसे
z पंजाब: पजं ाब मेें आदं ोलन का नेतत्ृ ्व अजीत सिहं और लाला लाजपत राय
परू ा करने के लिए दनि ु या मेें भेजा है। ने किया।

56  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


z दिल््लली: दिल््लली मेें सैयद हैदर रजा ने कमान सभं ाली। पतन के कारण
z मद्रास: चिदबं रम पिल््लई ने मद्रास प्रेसीडेेंसी मेें आदं ोलन का नेतत्ृ ्व किया, जिसे z सरू त विभाजन: कांग्रेस मेें असंतोष था और 1907 ई. मेें कांग्रेस के विभाजन
बिपिन चद्रं पाल के दौरे के दौरान उनके ओजपर््णू भाषणोों से और प्रेरणा मिली।
(सरू त) ने नेतत्ृ ्व को कमजोर कर दिया।
z बॉम््बबे प्रेसीडेेंसी: बॉम््बबे प्रेसीडेेंसी मेें जी.के . गोखले और बी.जी. तिलक ने
आदं ोलन का नेतत्ृ ्व किया। z सरकारी दमन: 1908 ई. मेें तिलक को छह वर््ष की कै द हुई तथा अश्विनी कुमार
दत्त व अन््य को निर््ववासित कर दिया गया।
स्वदेशी आंदोलन और काांग्रेस का विभाजन
z नेतृत््व शून््यता: बिपिन चद्रं पाल और अरबिंदो घोष दोनोों राजनीति से बाहर
z कलकत्ता अधिवेशन मेें प्रस््तताव: विभाजन से पहले दादा भाई नौरोजी के हो गए।
अधीन कलकत्ता अधिवेशन मेें चार प्रस््ततावोों पर मतदान हुआ- बहिष््ककार, राष्ट्रीय
z बहिष््ककार के आर््थथिक प्रभाव: सीमित घरे लू आपर््तति
ू और आर््थथिक प्रभावोों के
शिक्षा, स््वदेशी और विभाजन की निंदा।
कारण, आम लोग अब आयातित वस््ततुओ ं का बहिष््ककार जारी नहीीं रख सकते
z प्रस््तताव पर विवाद: मद्ु दा यह था कि क््यया इन प्रस््ततावोों को बरकरार रखा जाना
चाहिए या अस््ववीकार कर दिया जाना चाहिए, कांग्रेस मेें विवाद का एक प्रमख ु थे। एक और चितं ा नौकरी छूटने की थी।
स्रोत बन गया। z सरकार की कठोर प्रतिक्रिया: सरकार ने कठोर प्रतिक्रिया व््यक्त की और
z आंदोलन के दायरे को सीमित करना: नरमपंथियोों के नेतत्ृ ्व वाले एक गटु ने छात्ररों को निष््ककासित कर दिया गया, कई लोगोों को नौकरी से निकाल दिया गया
आदं ोलन के दायरे को सीमित करने की माँग की। और गिरफ््ततारियाँ की गई।ं
z अखिल भारतीय आंदोलन: गरमपंथी इसे व््ययापक लड़़ाई के रूप मेें अखिल स्वदेशी आंदोलन का आकलन
भारतीय आदं ोलन बनाना चाहते थे।
z विभाजन की राजनीति और स््वराज से परे: इसके अलावा, गरमपंथी स्वदेशी आंदोलन का महत्त्व
विभाजन की राजनीति से परे जाकर पर््णू स््वराज की माँग करना चाहते थे, जबकि z व््ययापक भागीदारी: स््वदेशी और बहिष््ककार आदं ोलन भारत के शरुु आत
नरमपंथियोों का मानना ​​था कि देश अभी ऐसी माँगोों और जन लामबंदी के लिए बीसवीीं सदी के आदं ोलन थे, जिन््होोंने आधनि ु क राष्टट्रवादी राजनीति मेें व््ययापक
तैयार नहीीं है। जड़ु ़ाव को प्रोत््ससाहित किया।
स्वदेशी आंदोलन का प्रभाव z महिलाओ ं की सहभागिता: पहली बार महिलाएँ, विदेशी निर््ममित वस््ततुओ ं को
z आत््मनिर््भरता पर जोर: इसका तात््पर््य राष्ट्रीय गरिमा, सम््ममान और बेचने वाली दक ु ानोों के विरुद्ध जल
ु सू और धरनोों मेें शामिल होने के लिए अपने
आत््मविश्वास तथा गाँवोों के सामाजिक और आर््थथिक उत््थथान पर जोर देना था। घरोों से बाहर निकलीीं।
z स््वदेशी या राष्ट्रीय शिक्षा का कार््यक्रम: टैगोर के शांतिनिके तन से प्रेरित z कांग्रेस की प्रकृति मेें परिवर््तन : स््वदेशी और बहिष््ककार आदं ोलनोों ने भारतीय
बंगाल नेशनल कॉलेज की स््थथापना अरबिंदो घोष द्वारा की गई थी, साथ ही वे राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) की प्रकृ ति को भी बदल दिया, जो ज््ययादातर उदारवादियोों
उसके प्रधानाचार््य भी बने। जल््द ही देश के विभिन््न हिस््सोों मेें राष्ट्रीय स््ककू ल और द्वारा सचं ालित होती थी, किंतु अब उग्रवादियोों द्वारा परिभाषित की जाने लगी,
कॉलेज खोले गए। जिन््होोंने 1906 ई. के कलकत्ता अधिवेशन मेें स््वराज या स््वशासन की माँग
z स््वदेशी या स््वदेशी उद्यम: स््वदेशी भावना को स््वदेशी कपड़़ा मिलोों, साबनु उठाई।
और माचिस कारखानोों, चर््मशोधन कारखानोों, बैैंकोों, बीमा कंपनियोों, दक ु ानोों z निष्क्रिय प्रतिरोध के आदर्शशों का उदय: असहयोग और निष्क्रिय प्रतिरोध
आदि की स््थथापना मेें भी अभिव््यक्ति मिली।
के आदर््श, जिन््हेें महात््ममा गांधी ने कई वर्षषों बाद प्रभावी ढंग से उपयोग किया,
z सांस््ककृतिक क्षेत्र मेें प्रभाव: इस अवसर पर लिखी गई टैगोर की कविता
बीसवीीं सदी की शरुु आत मेें स््वदेशी और बहिष््ककार आदं ोलनोों से उत््पन््न हुए।
‘अमार सोनार बांग््लला’ थी, जिसने बाद मेें बांग््ललादश े के मक्तिु सग्ं राम को प्रेरित
किया। तमिलनाडु मेें सब्रम ु ण््यम भारती ने ‘सदु श
े गीतम’ लिखा। चित्रकला मेें स्वदेशी आंदोलन की आलोचना
अवनीींद्रनाथ टैगोर ने विक््टटोरियन प्रकृ तिवाद के वर््चस््व को तोड़़ा। z अखिल भारतीय भागीदारी का अभाव: दक्षिणी राज््य अधिकतर आदं ोलन
z विदेशी वस््ततुओ ं का बहिष््ककार: इसमेें विदेशी कपड़़े और विदेश निर््ममित नमक से अप्रभावित थे।
या चीनी का बहिष््ककार और सार््वजनिक दहन शामिल था।
z किसान वर््ग अप्रभावित: यह किसान वर््ग को भी अपने साथ नहीीं जोड़ सका
z सार््वजनिक बैठकेें और जुलूस: यह जनसमहू जटु ाने और लोकप्रिय
और इस प्रकार इसकी आलोचना अक््सर ‘मध््यवर्गीय आदं ोलन’ के रूप मेें की
अभिव््यक्ति के प्रमख ु साधनोों के रूप मेें उभरे ।
जाती है।
z स््वयंसेवकोों का दल या समितियाँ: इन समितियोों ने जादईु लालटेन
व््ययाख््ययानोों/ भाषणोों, स््वदेशी गीतोों और अपने सदस््योों को शारीरिक एवं नैतिक z मुस््ललिम भागीदारी का अभाव: अधिकांश मसु लमानोों ने भाग नहीीं लिया या
प्रशिक्षण प्रदान करके जनता के बीच राजनीतिक चेतना पैदा की। उनकी भागीदारी सीमित थी। अतं तः 1906 ई. मेें मस््ललिम ु लीग की स््थथापना हुई।
z पारंपरिक लोकप्रिय त््ययोहारोों और मेलोों का भावनापूर््ण उपयोग: तिलक z सांप्रदायिक दृष्टिकोण: जब हिदं ओ ु ं ने अपने अतीत से प्रेरणा ली, जिसमेें
के गणपति और शिवाजी उत््सव न के वल पश्चिमी भारत मेें, बल््ककि बंगाल मेें भी सम््ममानित चित्र हिदं ू धार््ममिक चित्ररों (जैसे भारत माता आदि) से लिए गए थे, तो
स््वदेशी प्रचार का माध््यम बन गए। अन््य समदु ायोों के सदस््योों ने खदु को अलग-थलग महससू किया।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन- चरण-I (1905-1 57


मुस्लिम लीग (1906) 1906 ई. मेें ढाका मेें अपनी स््थथापना के चार दशक बाद मस््ललिम
ु लीग के लक्षष्य पूरे
हो गए। संगठन के राजनीतिक नेताओ ं ने मस््ललिम
ु व््ययापारिक हितोों की रक्षा के लिए
अखिल भारतीय मस््ललिम ु लीग (जिसे ‘मस््ललिम
ु लीग’ के नाम से भी जाना जाता
एक अलग देश का प्रस््तताव रखा। इसके अलावा एक अलग पाकिस््ततान राज््य की
है) 1906 ई. मेें ब्रिटिश भारत मेें स््थथापित एक राजनीतिक दल था। इसकी स््थथापना
भारतीय मसु लमानोों के हितोों को साधने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अवधारणा भारतीय मसु लमानोों के बीच जोर पकड़ने लगी।
राजनीतिक विकल््प के रूप मेें की गई थी। सूरत विभाजन (1907) और इसका प्रभाव
स्थापना 1906 ई. मेें दादाभाई नौरोजी के नए अध््यक्ष के रूप मेें चयन के साथ, एक आसन््न
z लखनऊ मेें गठन: 1901 ई. तक एक राष्ट्रीय मस््ललिम ु राजनीतिक पार्टी की टकराव टल गया; दोनोों पक्षषों को शांत कर दिया गया क््योोंकि दोनोों ही उनका
स््थथापना को महत्तत्वपर््णू माना जाने लगा था। इसकी स््थथापना का पहला कदम सम््ममान करते थे। इस अधिवेशन मेें नौरोजी ने असहमतियोों का समाधान करने
सितंबर, 1906 का लखनऊ सम््ममेलन था, जिसमेें परू े भारत के प्रतिनिधियोों ने के लिए 'स््वराज' की अवधारणा प्रस््ततुत की और इसे कांग्रेस का उद्देश््य घोषित
भाग लिया था। किया गया।
z शिमला प्रतिनिधिमंडल: अक््टटूबर, 1906 मेें शिमला प्रतिनिधिमडं ल ने बाल गंगाधर तिलक
समस््यया का पनु र््ममूल््ययाांकन किया और ढाका मेें होने वाले शैक्षिक सम््ममेलन के
वार््षषिक सम््ममेलन के अवसर पर पार्टी के उद्देश््योों को स््थथापित करने का सक ं ल््प आज के उग्रवादी कल के उदारवादी होोंगे, जैसे आज के उदारवादी कल के
लिया। अतं तः 30 दिसंबर, 1906 ई. को ढाका मेें 'मस््ललिम ु लीग' की स््थथापना उग्रवादी थे।
की गई। नरमपंथी गरमपंथी
z नामकरण: इस बीच, नवाब सलीमल््लला ु खान ने एक व््ययापक प्रस््तताव पेश किया z सामाजिक आधार: कस््बोों मेें z सामाजिक आधार: कस््बोों मेें
जिसमेें उन््होोंने पार्टी का नाम अखिल भारतीय मस््ललिम
ु परिसंघ रखने का प्रस््तताव जमीींदार और उच््च मध््यम वर््ग। शिक्षित मध््यम और निम््न मध््यम
रखा। वर््ग।
z वैचारिक प्रेरणा: पश्चिमी
प्रारंभिक वर््ष उदारवादी विचार और यरू ोपीय z वैचारिक प्रेरणा: भारतीय
z नीींव: सल््तता
ु न महु म््मद शाह (आगा खान III) को मस््ललिम ु लीग का पहला इतिहास। इतिहास, सांस््ककृतिक विरासत
मानद अध््यक्ष नामित किया गया था, हालाँकि, वे ढाका मेें पहले सत्र मेें शामिल z राजनीतिक विचारधारा: और हिदं ू पारंपरिक प्रतीक।
नहीीं हुए थे। ब्रिटेन के साथ होना। z राजनीतिक विचारधारा: ब्रिटेन
z जिन््नना: मोहम््मद अली जिन््नना 1913 ई. मेें मस््ललिम
ु लीग मेें शामिल हो गए। के द्वारा भारत का शोषण कायम
z भारत के सामाजिक,
z प्रारंभिक उद्देश््य: लीग की स््थथापना ब्रिटिश राज मेें सेवा के लिए छात्ररों को रहेगा।
राजनीतिक और सांस््ककृतिक
प्रशिक्षित करने के लिए की गई थी, लेकिन यह जल््द ही एक राजनीतिक शक्ति
हित। z अयोग््य ब्रिटिश क्राउन: माना
बन गई।
z वफादार: ब्रिटिश ताज के प्रति जाता था कि ब्रिटिश क्राउन
राष्टट्र वादी आंदोलन मेें भागीदारी भारतीय वफादारी का दावा करने
समर््पपित वफादारी।
z बहुमत के शासन से चिंतित: मस््ललिम ु लीग ने हमेशा स््वतंत्र भारत मेें एकता के योग््य नहीीं था।
z जनता तैयार नहीीं: माना जाता
की वकालत की थी, लेकिन उन््हेें चितं ा थी कि यहाँ हिदं ओ ु ं का शासन होगा, जो जनता मेें विश्वास: जनता की
है कि आदं ोलन मध््यवर्गीय z
आबादी का बहुसंख््यक हिस््ससा थे।
बद्धिज
ु ीवियोों तक ही सीमित भाग लेने और बलिदान देने की
z कांग्रेस के साथ गठबंधन: प्रथम विश्व यद्ध ु (1914-18) के बाद मस््ललिम ु लीग
होना चाहिए; जनता अभी क्षमता पर बहुत विश्वास था।
ने ब्रिटिश साम्राज््य के अदं र स््वशासन के लिए अभियान चलाने के लिए कांग्रेस
के साथ गठबंधन किया। राजनीतिक कार्ययों मेें भाग लेने z स््वराज: भारतीयोों की समस््ययाओ ं
z जिन््नना के 14 बिंदु: इसके अलावा 1920 के दशक के अतं और 1930 के के लिए तैयार नहीीं है। के लिए औपनिवेशिक शासन
दशक की शरुु आत मेें, जिन््नना ने भारतीय मसु लमानोों के विचारोों को 14 सिद््धाांतोों z सवं ैधानिक माँगेें: संवैधानिक से मक्तिु के रूप मेें स््वराज की
मेें संकुचित कर दिया। इनमेें संघीय सरकार और केें द्र सरकार मेें मस््ललिमो ु ों की सधु ारोों और सेवाओ ं मेें माँग की।
एक-तिहाई भागीदारी के विचार शामिल थे। भारतीयोों के लिए हिस््ससेदारी z गैर-सवं ैधानिक साधन: अपने
z युद्ध मेें भागीदारी का समर््थन: कांग्रेस ने इस उद्घोषणा को मजं रू ी देने से इनकार की माँग की। उद्देश््योों को प्राप्त करने के लिए
कर दिया। जबकि मस््ललिम ु लीग ब्रिटिश शासन की आलोचना करती रही, उन््होोंने z सवं ैधानिक साधन: बहिष््ककार और निष्क्रिय प्रतिरोध
स््वतंत्रता के लिए बेहतर बातचीत की स््थथिति स््थथापित करने के लिए यद्ध ु मेें भारत सवं ैधानिक तरीकोों के ही प्रयोग जैसे गैर-संवैधानिक तरीकोों का
की भागीदारी का समर््थन करने का फै सला किया। उपयोग करने मेें संकोच नहीीं
पर जोर दिया गया।
z द्वि-राष्टट्र सिद््धाांत के प्रस््ततावक: 1940 ई. मेें जिन््नना ने द्वितीय विश्व यद्ध ु के किया।
z दलाल नहीीं: वे देशभक्त थे
समय ब्रिटिश भारत के हिस््ससे रहे क्षेत्ररों से एक अलग मस््ललिम ु राज््य की स््थथापना
और दलाल वर््ग की भमि ू का z बलिदान: वे देशभक्त थे, जिन््होोंने
की वकालत शरू ु की, जिसे बाद मेें ‘द्वि-राष्टट्र सिद््धाांत’ के रूप मेें जाना जाने
लगा। नहीीं निभाते थे। देश के लिए बलिदान दिया।

58  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


विभाजन के कारण कराची क्रॉनिकल
z असहमति: चार प्रस््ततावोों को जारी रखने और आदं ोलन को देश के बाकी एक एशियाई ने जो किया है, वह दसू रे भी कर सकते हैैं... यदि जापान रूस
हिस््सोों तक विस््ततारित करने पर असहमति पैदा हुई। को हरा सकता है, तो भारत भी उतनी ही आसानी से इग्ं ्लैैंड को हरा सकता
z नरमपंथियोों की विफलता: जब नरमपंथी महत्तत्वपर््णू बढ़त बनाने मेें विफल रहे, है... आइए हम अंग्रेजोों को समद्रु मेें खदेड़ देें और जापान के साथ विश्व की
तो गरमपंथी आक्रोशित हो गए। महाशक्तियोों मेें अपना स््थथान बनाएं।
z अंतरराष्ट्रीय प्रभाव: गरमपंथी भारत के बाहर दो घटनाओ ं से भी प्रेरित थे उद्भव के पीछे के कारण
अर््थथात् जापान द्वारा रूस की हार और इथियोपियाई लोगोों द्वारा इतालवी सेना
z नरमपंथियोों की विफलता: राजनीतिक रूप से जागरूक राष्टट्रवादियोों ने सोचा
की हार, दोनोों ने यरू ोपीय सर्वोच््चता की छवि को तोड़ दिया।
कि ब्रिटिश शोषण जारी रहेगा क््योोंकि उचित माँगोों का ब्रिटिश नीतियोों पर बहुत
z मॉर्ले की निष्क्रियता: गरमपंथी नए राज््य सचिव ‘मॉर्ले’ के नामांकन को लेकर कम प्रभाव था। नरमपंथियोों का मानना ​​था कि विदेशी शासन शायद बदल
आशावादी थे, लेकिन उन््होोंने विभाजन के प्रश्न पर कुछ नहीीं किया, जिससे जाएगा और उनकी माँगोों पर ध््ययान देगा, लेकिन ऐसा नहीीं हुआ।
गरमपथं ी नाराज हो गए। z कर््जन का कांग्रेस विरोधी रुख: कर््जन के कांग्रेस विरोधी रुख ने कई लोगोों को
z अध््यक्ष पद पर विवाद: उग्रवादी चाहते थे कि तिलक या लाला लाजपत राय आश्वस््त किया कि कांग्रेस एक बेकार संगठन बनी रहेगी।
अध््यक्ष बनेें, लेकिन नरमपथं ी चाहते थे कि 1907 ई. के सत्र मेें रासबिहारी बोस z कांग्रेस की स््थथिति: कांग्रेस काफी हद तक एक जमीींदार और उच््च-मध््यम वर््ग
अध््यक्ष बनेें। की कुलीन पार्टी की स््थथिति मेें पहुचँ गई थी। बंकिम चद्रं जैसे कवियोों ने कांग्रेस
प्रभाव सत्र को ‘तीन दिवसीय वार््षषिक शो’ के रूप मेें वर््णणित किया।
z दो दलोों मेें विभाजित: सरू त मेें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के z भारतीय परिषद अधिनियम (आईसीए), 1892 की विफलता: 1892 ई.
विभाजन के परिणामस््वरूप पार्टी दो दलोों, गरमपंथी और नरमपंथी मेें विभाजित का आईसीए एक बड़़ी विफलता थी, जिसने नरमपंथियोों की रणनीति पर सवाल
हो गई। उठाया।
z कांग्रेस कमजोर हुई: ​​इस फूट ने कांग्रेस को कमजोर कर दिया और भारतीय
z अंतरराष्ट्रीय प्रभाव: अतं रराष्ट्रीय घटनाओ ं मेें जापान ने रूस को हराया।
स््वतंत्रता के लिए संघर््ष करने की उसकी क्षमता को बाधित कर दिया। इथियोपियाई लोगोों द्वारा इतालवी सेना की हार ने पश्चिमी श्रेष्ठता की धारणा को
z गरमपंथियोों का उदय: विभाजन के बाद गरमपंथी नेताओ ं का प्रभाव बढ़़ा और
ध््वस््त कर दिया।
उन््होोंने कांग्रेस को आजादी प्राप्त करने के लिए ज््ययादा आक्रामक और उग्र रास््तते z व््ययापक दमन: 1907 ई. मेें राष्टट्रवादी नेताओ ं लाला लाजपत राय और
की ओर ले जाने का प्रयास किया। अजीत सिहं का निर््ववासन। 1908 ई. मेें के .के . मित्रा और अश्विनी कुमार दत्त को
निर््ववासित किया गया। 1908 ई. मेें तिलक को 6 वर््ष जेल की सजा सनु ाई गई।
z सरकारी नीति मेें परिवर््तन: इसने उदारवादी राष्टट्रवादियोों के प्रति सरकार के

रवैये और नीति मेें बदलाव का भी संकेत दिया। z स््वतंत्रता पर अंकुश: आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम ने पत्रकारिता की
स््वतंत्रता पर गंभीर रूप से अक ं ु श लगा दिया।
z सध ु ारोों के लिए प्रेरणा: सरू त विभाजन, 1909 के मॉर्ले-मिटं ो सधु ार के लिए
 बिना मुकदमे के निर््ववासन: 1897 ई. मेें नाटू बंधओ ु ं की गिरफ््ततारी और
प्रेरणा था।
निर््ववासन, यहाँ तक ​​कि उनके विरुद्ध आरोपोों को सार््वजनिक किए बिना की
सूरत विभाजन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को गरमपंथियोों और नरमपंथियोों
घटना ने जनता को नाराज कर दिया।
मेें विभाजित कर दिया, जिससे पार्टी की स््वतंत्रता की लड़़ाई कमजोर हो गई।
 तिलक को कै द कर लिया गया: उसी वर््ष सार््वजनिक आक्रोश भड़काने
गरमपंथियोों को प्रमख ु ता मिली, जिससे कांग्रेस अधिक उग्रवादी दृष्टिकोण की ओर
के लिए तिलक और अन््य अखबार संपादकोों को जेल की सजा सनु ाई गई।
बढ़़ी। फूट ने सरकारी नीति मेें बदलाव का संकेत दिया और 1909 के मिंटो-मॉर्ले
सुधारोों को प्रेरित किया। विभाजन को एक राष्ट्रीय आपदा के रूप मेें देखा जाता है, z राजनीतिक चेतना: राजनीतिक ज्ञान के प्रसार ने भारतीयोों को यह एहसास
जिससे राष्ट्रीय आंदोलन अस््थथायी रूप से रुक जाता है। गरमपंथियोों के क््राांतिकारी कराया कि ब्रिटिश शासन भारत के लिए फायदेमदं नहीीं था और इसके
प्रयासोों ने लोगोों को अंग्रेजोों के विरुद्ध नई आशा दी। आठ वर्षषों के बाद 1916 ई. मेें परिणामस््वरूप ‘व््हहाइट मैन््स बर््डन सिद््धाांत’ को अस््ववीकार कर दिया गया।
नरमपंथी और गरमपंथी लखनऊ मेें फिर से एकजुट हुए, जिससे स््वतंत्रता आंदोलन तात्कालिक कारण
की गति बहाल हुई। z बंगाल का विभाजन: कर््जन के शासनकाल के दौरान बंगाल का विभाजन
उग्रवादी एवं क्ररांतिकारी राष्टट्र वाद का उदय हुआ और यह भारतीय मक्ति ु संग्राम के इतिहास मेें महत्तत्वपर््णू क्षणोों मेें से एक
गरमपंथियोों या उग्रवादियोों का उत््थथान उल््ललेखनीय रूप से भारत मेें राष्टट्रवाद के बन गया।
उदय के कारणोों के समान हैैं। तिलक, अश्विनी कुमार दत्त और अन््य नेता शरू ु z अन््य घटनाएँ: जैसे नगरपालिका अधिनियम और दिल््लली दरबार, ने सार््वजनिक
से ही उग्र राष्टट्रवाद प्रसारित करने मेें शामिल रहे। स््वदेशी आंदोलन का नेतत्ृ ्व आक्रोश को बढ़़ावा दिया।
नरमपंथियोों से बिपिन चंद्र पाल, अरबिंदो घोष, तिलक जैसे और अन््य उग्रवादियोों z प्रारंभिक उग्रवादी राष्टट्रवादियोों की विफलता: वे आदं ोलन को स््पष्ट दिशा
के पास स््थथानांतरित हो गया। देने मेें विफल रहे। वे आम जनता तक पहुचँ ने मेें भी असफल रहे।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन- चरण-I (1905-1 59


क्ररांतिकारी आंदोलन के प्रभाव z लक्षष्य प्राप्त करने मेें असमर््थ: यह आदं ोलन स््वतंत्रता के अपने लक्षष्य को
प्राप्त करने मेें असमर््थ रहा।
z राजनीतिक जागरूकता: ब्रिटिश अधिकारियोों की हत््यया और बंगाल मेें
z नेतृत््व शून््यता: फरवरी, 1931 मेें इलाहाबाद के एक सार््वजनिक पार््क मेें एक
अनश ु ीलन समिति जैसे समहोू ों द्वारा किए गए बमबारी अभियानोों ने भारतीयोों मठु भेड़ मेें चद्रं शेखर आजाद की हत््यया ने पंजाब, उत्तर प्रदेश और बिहार मेें
के बीच स््वतंत्रता आदं ोलन के लिए जागरूकता और समर््थन बढ़़ाया। क््राांतिकारी संघर््ष को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया। सर््यू सेन की शहादत ने
z ब्रिटिश दमन: इन हिसं क कृ त््योों के जवाब मेें, ब्रिटिश सरकार ने 1919 ई. के बंगाल मेें आतंकवादी गतिविधियोों के अतं का भी संकेत दिया।
रॉलेट एक््ट जैसे कठोर काननू बनाए, जिसमेें बिना मक ु दमे के हिरासत मेें लेने z साधनोों पर पुनर््वविचार: विभिन््न जेलोों सहित अडम ं ान मेें बंद क््राांतिकारियोों ने
की अनमति ु दी गई, जिससे व््ययापक तौर पर अशांति फै ली और जलियाँवाला पनु र््वविचार की प्रक्रिया शरू
ु की।
बाग नरसंहार जैसी घटनाएँ हुई।ं z नई विचारधाराएँ: मार््क््सवाद को बड़़ी संख््यया मेें क््राांतिकारियोों ने अपनाया।
z राष्टट्रवादी आंदोलनोों पर प्रभाव: क््राांतिकारियोों के कट्टरपंथी तरीकोों ने भारतीय क्ररांतिकारी आंदोलन का महत्त्व:
राष्टट्रवादी आदं ोलन के भीतर विभाजन पैदा कर दिया, जो गांधी जैसे नेताओ ं z सगं ठित रूप: संगठित राष्ट्रीय आदं ोलन के प्रभाव मेें क््राांतिकारी आदं ोलनोों
के आदर्शशों के विपरीत था, जो अहिसं ा की वकालत करते थे। हालाँकि इन ने सगं ठित रूप लेना शरू ु कर दिया।
क््राांतिकारियोों की बहादरु ी ने कई लोगोों, विशेषकर यवु ाओ ं को प्रेरित भी किया। z भारतीयोों को प्रोत््ससाहित किया: इसने भारतीयोों को भारत मेें ब्रिटिश नियंत्रण
z सरु क्षा उपाय: अग्ं रेजोों ने भारत मेें अपनी खफि ु या और पलिसि ु गं प्रयासोों का को हिसं क रूप से उखाड़ फेें कने के लिए प्रोत््ससाहित किया।
विस््ततार किया, क््राांतिकारी गतिविधियोों का मक ु ाबला करने के लिए एजेेंसियोों हालाँकि, उन््होोंने सशस्त्र क््राांति द्वारा स््वतंत्रता प्राप्त करने के अपने घोषित लक्षष्य
की स््थथापना की और उन््हेें बढ़़ाया, एक विरासत जिसने स््वतंत्रता के बाद भारत को हासिल नहीीं किया, लेकिन वे लोगोों को एकजुट करने, स््वशासन, अपने
के अपने सरु क्षा तंत्र को प्रभावित किया। अधिकारोों के लिए जागरूक करने के साथ अधिकारियोों के दिलोों मेें भय पैदा
z भविष््य के आंदोलनोों के लिए प्रेरणा: 20वीीं सदी के आरंभिक क््राांतिकारियोों करने मेें सफल रहे।
के बलिदान ने बाद की पीढ़़ियोों को प्रेरित किया, जिनमेें सभु ाष चद्रं बोस जैसे मॉर्ले-मिंटो सुधार (1909) और प्रतिक्रियाएँ
नेता और बाद के राष्टट्रवादी आदं ोलन शामिल थे, जिन््होोंने औपनिवेशिक शासन मॉर्ले-मिंटो सुधार 1909 ई. मेें किए गए थे, जबकि लॉर््ड मिंटो भारत के गवर््नर
के विरुद्ध लड़़ाई मेें उनकी स््थथायी विरासत को रे खांकित किया। जनरल थे।
क्ररांतिकारियोों और उग्रवादियोों के मध्य लॉर््ड मॉर्ले
पहलू क््राांतिकारी उग्रवादी संभव है कि सुधार ब्रिटिश राज को नहीीं बचा पाएँ, लेकिन अगर ऐसा नहीीं
दृष्टिकोण हिसं क प्रतिरोध और अहिसं क विरोध, याचिकाएँ होता है, तो कुछ और भी नहीीं बचा पाएगा।
अतिवादी तरीके और विचार-विमर््श ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
लक्षष्य ब्रिटिश शासन से पूर््ण प्रारंभ मेें ब्रिटिश साम्राज््य के z मुस््ललिम नेताओ ं की माँग: अक््टटूबर, 1906 मेें आगा खान के नेतत्ृ ्व मेें
स््वतंत्रता भीतर अधिक स््ववायत्तता शिमला प्रतिनिधिमडं ल ने लॉर््ड मिटं ो से मल ु ाकात की और मसु लमानोों के लिए
मख्ु ्य व््यक्ति भगत सिंह, चंद्रशेखर बाल गंगाधर तिलक, लाला अलग निर््ववाचन क्षेत्ररों के साथ-साथ मसु लमानोों द्वारा किए जा रहे साम्राज््य की
आजाद, सुभाष चन्दद्र लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल रक्षा के लिए ‘योगदान के मल््य ू ’ के कारण उनकी संख््ययात््मक ताकत से अधिक
बोस प्रतिनिधित््व की माँग की।
प्रमखु काकोरी षड्यंत्र, चटगाँव बंगाल विभाजन विरोध, स््वदेशी z मुस््ललिम लीग: इस समहू ने दिसंबर, 1906 मेें ढाका के नवाब सलीमल््लला ु ह,
घटनाएँ शस्त्रागार पर छापा आंदोलन नवाब मोहसिन-उल-मल््क ु और वकार-उल-मल््क ु द्वारा स््थथापित मस््ललिम
ु लीग
दर््शन वैश्विक क््राांतिकारी क््राांतिकारियोों से तुलनात््मक का तेजी से अधिग्रहण कर लिया।
आंदोलनोों से प्रेरित रूप से धीरे -धीरे सुधारोों और z साम्राज््य के प्रति निष्ठा: मस््ललिम
ु लीग ने मस््ललिम
ु अभिजात वर््ग को कांग्रेस
होकर, ब्रिटिश शासन संवैधानिक साधनोों से प्रभावित से दरू रखते हुए साम्राज््य के प्रति निष्ठा को बढ़़ावा देने का प्रयास किया।
को तत््ककाल समाप्त करना स््वशासन मेें वृद्धि z दमन करना पर््ययाप्त नहीीं: भारत के रूढ़़िवादी वायसराय मिटं ो और भारत के
स््वतंत्रता तात््ककालिकता और स््वतंत्रता आंदोलन मेें व््ययापक उदारवादी राज््य सचिव जॉन मॉर्ले, दोनोों सहमत थे कि बंगाल मेें विद्रोहोों पर
नके ल कसना महत्तत्वपर््णू है, लेकिन लॉर््ड कर््जन के बंगाल विभाजन के बाद
संग्राम पर अंतरराष्ट्रीय ध््ययान भागीदारी की नीींव रखी, बाद
ब्रिटिश राज की सरु क्षा बहाल करने के लिए पर््ययाप्त नहीीं है।
प्रभाव आकर््षषित किया, भावी मेें असहयोग आंदोलन जैसी
पीढ़़ियोों को प्रेरित किया नीतियोों को प्रभावित किया z आशा: उनका मानना ​​था कि भारतीय उच््च वर्गगों और जनसख्ं ्यया के बढ़ते
पश्चिमी हिस््ससे मेें आशा जगाने के लिए एक कठोर कदम की आवश््यकता है।
क्ररांतिकारी आंदोलन का पतन
मोोंटफोर््ड रिपोर््ट
z कोई जन समर््थन नहीीं: यह लोगोों को सगं ठित करने मेें असमर््थ था। आम
जनता के बीच इसका कोई समर््थन नहीीं था। वे व््यक्तिगत वीरता मेें विश्वास 1909 ई. के सुधारोों मेें भारतीय समस््ययाओ ं का कोई समाधान नहीीं था और
करते थे। न ही वे इसका समाधान कर सकते थे।

60  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


सकारात्मक विशेषताएँ क््राांतिकारी युद्ध छे ड़ने का अवसर: क््राांतिकारी इसका लाभ उठाने के
z स््वशासन के तत्तत्व: इसमेें अप्रत््यक्ष चनु ावोों की अनमति
ु देकर स््वशासन के लिए कृ तसंकल््प थे, उन््होोंने इसे ब्रिटिश शासन के विरुद्ध युद्ध
तत्तत्व शामिल थे। छे ड़ने और देश को आजाद कराने के अवसर के तौर पर देखा।
z बजट मतदान: इसमेें बजट के एक हिस््ससे पर मतदान करने की क्षमता शामिल प्रथम विश्व युद्ध का भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन पर प्रभाव
थी। z भारत की वित्तीय और मानवीय हानियाँ: यद्ध ु के लिए भारत से करोड़ों
z प्रश्न करने का अधिकार: प्रश्न पछू ने के सदर््भ ं मेें अधिक अधिकार प्रदान रुपये इग्ं ्लैैंड भेजे गए और यरू ोप मेें लड़ते हुए भारतीय सैनिक शहीद हो गए।
किए गए। z श्रमिक वर््ग: यरू ोप की जरूरतोों को परू ा करने के लिए नए उद्योग तो स््थथापित
z प्रतिनिधित््व: अधिक प्रतिनिधित््व प्रदान किया गया। हुए, जिससे मध््यम वर््ग के लिए रोजगार के अवसर बढ़़े। लेकिन मजदरू ी कम
नकारात्मक विशेषताएँ थी और काम करने की परिस््थथितियाँ खराब थीीं। चकि ँू , उस वक्त ट्रेड यनि
ू यन
लोकप्रिय नहीीं हुई थी, इसलिए मजदरोू ों के पास अपने अधिकारोों के लिए
z अलग निर््ववाचन क्षेत्र: सधु ारोों मेें अन््य बातोों के अलावा मसु लमानोों के लिए
मोलभाव की शक्ति भी कम थी।
एक अलग निर््ववाचन क्षेत्र शामिल था।
z कृषि: भख ु मरी के संकट के बाद, प्रथम विश्व यद्ध ु के कारण दनि ु या भर के
z सांप्रदायिकता को बढ़़ावा: इसने सांप्रदायिकता के बीज बोए और एकता
बाजारोों मेें कृ षि वस््ततुओ ं की कीमतोों मेें गिरावट आई। इससे किसान और
की दिशा मेें भारत की ऐतिहासिक प्रगति को बाधित किया। लॉर््ड मिटं ो को
‘सांप्रदायिक निर््ववाचन क्षेत्र का जनक’ करार दिया गया। अधिक कर््ज मेें डूब गए।
z दुर््दशा से ध््ययान भटकाना: इसने भारतीयोों का ध््ययान आर््थथिक और राजनीतिक
z राजनीति और राष्टट्रवाद: राष्टट्रवादी नेताओ ं ने इसे आगे के अधिकारोों पर
मद्ददों बातचीत करने का एक अवसर माना और इस उम््ममीद मेें सशर््त समर््थन दिया
ु से भी भटका दिया।
गया कि ब्रिटेन यद्ध ु के बाद भारतीयोों के पक्ष मेें राजनीतिक कदम उठाएगा।
z कोई वास््तविक शक्ति नहीीं: विधान परिषदोों का विस््ततार किया गया, लेकिन

सदस््योों को अभी भी अप्रत््यक्ष रूप से चनु ा गया था और परिषदोों के पास कोई z आर््थथिक दुर््दशा: यद्ध ु के बाद आर््थथिक स््थथिति खराब हो गई। यद्ध ु के दौरान
वास््तविक शक्तियाँ नहीीं थीीं, जैसे बजट बहस, हालाँकि, अब उन््हेें प्रस््तताव फलने-फूलने वाले उद्योग को अब बंद होने और उत््पपादन मेें गिरावट का सामना
पारित करने की अनमति ु थी। करना पड़़ा।
z भारतीयोों का सीमित सघ ं : वायसराय और गवर््नरोों की कार््यकारी परिषदोों के z नकारात््मक पारस््परिकता: यद्ध ु के दौरान किए गए वादोों की अवहेलना की
साथ। सत््ययेन्दद्र प्रसाद सिन््हहा (एसपी सिन््हहा) वायसराय की कार््यकारी परिषद मेें गई और साम्राज््यवाद को बढ़़ावा दिया गया। जबकि उपनिवेशोों को लोकतंत्र
काननू ी सदस््य के रूप मेें नियक्त ु होने वाले पहले भारतीय थे (सख्ं ्यया एक तक का वादा किया गया था, बदले मेें उन््हेें एक घटिया सौदा मिला। पर््वू मेें पराजित
सीमित थी)। राष्टट्ररों के उपनिवेशोों को यद्ध
ु परु स््ककार के रूप मेें विजेताओ ं के बीच वितरित
z सीमित मताधिकार: मताधिकार पहली बार पेश किया गया था। हालाँकि,
कर दिया गया था।
यह प्रतिबंधित था क््योोंकि महिलाओ ं को मतदान का अधिकार नहीीं था और z असतं ोष: यद्ध ु के बाद राष्ट्रीय नेता सरकार के कार्ययों से असंतष्टु थे। 1919
यह अन््य तरीकोों से भी सीमित था। का भारत सरकार अधिनियम अत््ययंत असफल था।
1909 ई. के सुधारोों ने देश के नागरिकोों को वास््तविक सुधारोों के बजाय आभासी z क्रोधित मुसलमान: सेव्रेस की संधि के बाद ओटोमन साम्राज््य के साथ
सधु ार प्रदान किए। लोग स््वशासन चाहते थे, लेकिन उन््हेें के वल ‘परोपकारी व््यवहार ने मस््ललिम
ु भावनाओ ं को जगाया तथा खिलाफत आदं ोलन और
निरंकुशता’ ही मिली। असहयोग के लिए जमीन तैयार की।
प्रथम विश्व युद्ध (1914 -1919): प्रभाव और प्रतिक्रियाएँ z ट्रे ड यूनियनोों का उदय: यद्ध ु के बाद ट्रेड यनिू यन भी विकसित हुए, 1920 मेें
एन. एम. जोशी के नेतत्ृ ्व मेें एटक (AITUC) की स््थथापना के साथ प्रारंभिक
प्रथम विश्व युद्ध (1914-1919) मेें जर््मनी, ऑस्ट्रिया-हगं री और तुर्की के विरुद्ध
प्रगति हुई।
ब्रिटेन, फ््राांस, रूस, संयुक्त राज््य अमेरिका, इटली और जापान के साथ शामिल
हो गया। गदर पार्टी और कामागाटामारू प्रकरण
प्रथम विश्व युद्ध की प्रतिक्रियाएँ
गरमपंथी गलत धारणा का समर््थन: उदाहरण के लिए- युद्ध के प्रयासोों प्रथम विश्व युद्ध और गदर आंदोलन
का समर््थन गलत धारणा मेें किया था कि ब्रिटेन भारत की z अवसर: विश्व यद्ध
ु ने गदर आदं ोलनकारियोों को ब्रिटिश अधिपतियोों के खिलाफ
वफादारी को आभार के रूप मेें स््वशासन (Swarajya) के विद्रोह करने का अवसर भी प्रदान किया।
साथ पुरस््ककृ त करे गा। z आप्रवासियोों का उपयोग: गदर आदं ोलन के नेताओ ं ने संयक्त ु राज््य अमेरिका
नरमपंथी समर््थन और पारस््परिकता की उम््ममीद: दसू री ओर, के पश्चिमी तट पर आप्रवासियोों को भारत लौटने और भारतीय सैनिकोों की
नरमपंथियोों ने सरकार के प्रति अपना समर््थन व््यक्त किया, मदद से एक सशस्त्र क््राांति शरू
ु करने के लिए प्रेरित किया। भारतीयोों को वापस
यह उम््ममीद करते हुए कि सरकार भी उनके प्रति नरम रुख लौटने के लिए मनाने के लिए कुछ नेताओ ं को सदु रू पर्ू वी देशोों मेें स््थथानांतरित
अपनाएगी। कर दिया गया।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन- चरण-I (1905-1 61


z सेना की भक्ति को परिवर््ततित करने का प्रयास: गदर आदं ोलनकारियोों को  ब्रिटिश प्रतिक्रिया: अग्ं रेजोों ने यद्ध
ु कालीन खतरे का जवाब दमनकारी
पता चला कि पंजाब राज््य काफी बदल चक ु ा है। किसी ने भी उनका समर््थन उपायोों के रूप मेें अपने शस्त्रागार के साथ दिया, जो 1857 के बाद सबसे
नहीीं किया और खालसा ने उन््हेें ‘धर््मभ्रष्ट सिख’ तक कह दिया। मजबतू नेतत्ृ ्व व््ययापक था, जिसका नेतत्ृ ्व भारत रक्षा अधिनियम ने किया, जिसे विशेष
के बिना भारतीय सैनिकोों की वफादारी को अपने पक्ष मेें करने का उनका प्रयास रूप से गदर आदं ोलन को कुचलने के लिए मार््च, 1915 मेें पारित किया
विफल रहा। गया था।
z क््राांति की ओर रुख: अतं तः उन््होोंने मार््गदर््शन के लिए क््राांतिकारी नेताओ ं गदर आंदोलन का मूल्ययांकन
की ओर रुख किया, लेकिन सरकार ने गदर आन््ददोलनकारियोों के मध््य z सफलता:
सफलतापर््वू क घसु पैठ कर ली थी और क््राांति से पहले, उनमेें से अधिकांश को
 वैचारिक सफलता: गदर आद ं ोलन की सफलता विचारधारा के क्षेत्र
गिरफ््ततार कर लिया गया था। सरकार की प्रतिक्रिया कठोर थी और राजनीतिक
मेें थी।
नेताओ ं की एक परू ी पीढ़़ी को खत््म कर दिया गया।
 राष्टट्रवाद को बढ़़ावा: इसने परू ी तरह से धर््मनिरपेक्ष रहते हुए उग्र राष्टट्रवाद
कामागाटामारू प्रकरण को बढ़़ावा दिया।
z महत्तत्व: इस घटना का महत्तत्व इस तथ््य से है कि इसने पंजाब मेें एक विस््फफोटक z सीमाएँ:

परिदृश््य को जन््म दिया।  कम आंकलन: मख् ु ्य दोष यह था कि उन््होोंने किसी भी हिसं क विद्रोह से
z सिगं ापुर से वैैंकूवर: कामागाटामारू उस जहाज का नाम था, जो 370 लोगोों पहले संगठनात््मक, बौद्धिक, वित्तीय और इसी तरह हर स््तर पर आवश््यक
को सिंगापरु से वैैंकूवर ला रहा था, जिनमेें ज््ययादातर सिख, पंजाबी और मस््ललिम
ु तैयारी की सीमा और मात्रा का परू ी तरह से कम आक ं लन किया था।
अप्रवासी थे। दो महीने की कठिनाई और अनिश्चितता के बाद, उन््हेें कनाडाई  असग ं ठित: एक अन््य महत्तत्वपर््णू मद्ु दा संगठनात््मक ढाँचे की कमी है; गदर
अधिकारियोों द्वारा वापस भेज दिया गया। आदं ोलन उग्रवादियोों की खदु को संगठित करने की क्षमता से अधिक
z ब्रिटिश प्रभाव: यह व््ययापक रूप से माना जाता था कि कनाडाई अधिकारी उनके उत््ससाह के कारण कायम रहा।
ब्रिटिश प्रशासन से प्रभावित थे। सितंबर, 1914 ई. मेें जहाज ने अतं तः कलकत्ता  दीर््घकालिक ने तृत््व का अभाव: गदर आद ं ोलन मेें एक मजबतू और
मेें लंगर डाला। बंदियोों ने पजं ाब जाने वाली ट्रेन मेें चढ़ने से इक
ं ार कर दिया। दीर््घकालिक नेतत्ृ ्व का भी अभाव था, जो आदं ोलन के विविध हिस््सोों
कलकत्ता के निकट बज बज मेें पलि ु स के साथ हुई झड़प मेें 22 लोग मारे गए। को एकजटु करने मेें सक्षम हो।
z क्रोधित गदर आंदोलनकारी: गदर नेता इससे क्रोधित हो गए और प्रथम  अनदेखी: उन््होोंने इस बात को नजरअद ं ाज कर दिया कि कुछ हजार
विश्व यद्ध
ु की शरुु आत के साथ, उन््होोंने भारत मेें ब्रिटिश नियंत्रण को समाप्त असंतष्टु अप्रवासी भारतीयोों को एकजटु करना, जो पहले से ही गोरे
करने के लिए एक हिसं क हमला करने का संकल््प लिया। उन््होोंने सेनानियोों को विदेशियोों के हाथोों नस््ललीय उत््पपीड़न के कारण भावनात््मक रूप से प्रभावित
भारत की यात्रा करने के लिए प्रोत््ससाहित किया। थे तल ु नात््मक रूप से सरल था , जबकि भारत मेें लाखोों किसानोों और
गदर पार्टी और आंदोलन (1915) सैनिकोों को संगठित करने और प्रेरित करना बहुत मश््ककि ु ल था।
z गदर आदं ोलन, गदर पार्टी के क््राांतिकारी नेताओ ं द्वारा ब्रिटिश भारत पर हिसं क हालाँकि, यह राजनीतिक और सैन््य मोर्चचों पर ज््ययादा कुछ हासिल करने मेें विफल
हमला करने का एक प्रयास था। प्रथम विश्व यद्ध रहा क््योोंकि इसमेें संगठित और निरंतर नेतत्ृ ्व की कमी थी; संगठनात््मक, वैचारिक,
ु के प्रसार और कामागाटामारू
घटना ने गदर आदं ोलन को जन््म दिया। भारत भर मेें कई स््थथानोों पर हिसं क वित्तीय और सामरिक रणनीतिक - हर स््तर पर आवश््यक तैयारी की सीमा का
विद्रोह की तारीख 21 फरवरी, 1915 निर््धधारित की गई थी। कम करके आंकलन किया गया था और शायद लाला हरदयाल एक आयोजक
के काम के लिए अनुपयुक्त थे।
 क््राांतिकारी: प्रथम विश्व यद्ध ु के दौरान क््राांतिकारियोों की संख््यया मेें भी वृद्धि
हुई। इनमेें से सबसे उल््ललेखनीय गदर पार्टी थी, जिसकी स््थथापना सैन होम रूल आंदोलन
फ््राांसिस््कको मेें लाला हरदयाल, सोहन सिहं भाकना, मोहम््मद बरकतल््लला ु ह होम रूल आंदोलन, प्रथम विश्व युद्ध के प्रति भारतीय प्रतिक्रिया थी, जो कम
और अन््य लोगोों ने मिलकर की थी। आक्रामक लेकिन अधिक प्रभावी थी। चँकि ू , लोग पहले से ही भारी कराधान
 विस््ततृत प्रभाव: यह एक धर््मनिरपेक्ष पार्टी थी और इसका प्रभाव अन््य और मल््य
ू वृद्धि के कारण युद्धकालीन कठिनाइयोों का बोझ महसूस कर रहे थे,
एशियाई देशोों तक फै ल गया, जहाँ भारतीय रहते थे। तिलक और एनी बेसेेंट के नेतत्ृ ्व मेें अभियान काफी उत््ससाह के साथ शरू
ु हुआ
 असफल प्रयास: जैसे ही प्रथम विश्व यद्ध
था। होमरूल लीग अभियान ने घरे लू शासन के माध््यम से स््वशासन का संदेश
ु शरू ु हुआ, गदर पार्टी ब्रिटिश
साम्राज््य के विरुद्ध लड़़ाई मेें शामिल हो गई। 21 फरवरी, 1915 विद्रोह आम आदमी तक पहुचँ ाने का प्रयास किया।
के दिन के रूप मेें नामित किया गया था, जो कि पजं ाब से शरू ु होने वाला आंदोलन की पृष्ठभूमि
था। हालाँकि, योजना को ब्रिटिश सीआईडी ​​ने विफल कर दिया और गदर z 1909 के अधिनियम की निराशा: 1909 के अधिनियम की निराशा और
आदं ोलनकारियोों को पकड़ लिया गया, उन पर मक ु दमा चलाया गया और नरमपथियो
ं ों की प्रगति मेें विफलता के कारण एक नए आदं ोलन की नीींव रखी
कई लोगोों को फाँसी दे दी गई। गई थी।

62  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


z तिलक की भूमिका: 1914 ई. मेें तिलक को जेल से रिहा कर दिया गया, पतन के पीछे के कारण
वे एक बड़़ी भमि ू का निभाने के लिए तैयार थे; हालाँकि, कांग्रेस का नेतत्ृ ्व
नरमपंथियोों के पास था, जिससे उन््हेें एक अलग संगठन बनाने के लिए मजबरू z नरमपंथियोों का तुष्टीकरण: बेसेेंट की रिहाई के बाद, नरमपंथियोों को खश ु
होना पड़़ा। किया गया और उनके आक्रोश को शांत किया गया।
z रूसी क््राांति का प्रभाव: जबकि 1917 ई. की रूसी क््राांति अभी भी क्रियाशील z अगस््त घोषणा: ब्रिटेन की संसद मेें, नए विदेश मत्री ं मांटेग््ययू ने दावा किया
थी, इसने एक अतिरिक्त बढ़त दी। कि भारतीयोों को प्रशासन मेें अतिरिक्त भमि ू काएँ दी जाएँगी (उनके पर््वू वर्ती
z लखनऊ समझौता (1916): इसके अतं र््गत कांग्रेस के दोनोों पक्षषों नरमपंथी मॉर्ले के विपरीत, जिन््होोंने ऐसी किसी भी संभावना से इनकार किया था)। मांटेग््ययू
और गरमपंथी मेें सल ु ह हो गई। कांग्रेस और मस््ललिम
ु लीग ने अगले वर््ष देश की उद्घोषणा को 'अगस््त घोषणा' नाम दिया गया था।
मेें प्रतिनिधि सरकार के लिए मिलकर काम करने का वादा करते हुए ऐतिहासिक z गांधी का उदय: गांधी के उदय और सविनय अवज्ञा आदं ोलन की चर््चचाओ ं
लखनऊ समझौता किया। ने राष्ट्रीय स््तर पर ध््ययान आकर््षषित किया।
होम रूल लीग आंदोलन (सितंबर, 1916) z रिक्त नेतृत््व: तिलक संयक्त ु राज््य अमेरिका चले गए, जिससे नेतत्ृ ्व मेें रिक्तता
z गतिविधियाँ फिर से शुरू: 1914 ई. मेें जेल से रिहा होने के बाद तिलक ने आई।
अपनी राष्टट्रवादी गतिविधियाँ फिर से शरू ु कीीं। वे कांग्रेस मेें प्रवेश पाने का z साम्पप्रदायिक दगं े: 1917-18 ई. मेें सांप्रदायिक दगं े भड़क उठे ।
प्रयास कर रहे थे। हालाँकि, उनका पहला प्रयास फिरोजशाह मेहता के नेतत्ृ ्व आंदोलन की सफलता
वाले नरमपंथियोों द्वारा विफल कर दिया गया था।
z जनसमर््थन: आदं ोलन जनता को आकर््षषित करने मेें सफल रहा, जिससे
z विरोध मेें कमी: हालाँकि, फिरोजशाह मेहता की मृत््ययु के बाद गरमपंथियोों के
नरमपंथियोों की कुलीन भागीदारी प्रतिमान से दरू बदलाव का संकेत मिला।
विरुद्ध विरोध कम हो गया और उन््हेें दिसंबर, 1915 मेें कांग्रेस मेें फिर से
z कांग्रेस को मजबूत किया: तिलक और बेसेेंट के प्रयासोों ने 1916 ई. के
शामिल होने की अनमति ु मिल गई।
z नरमपंथियोों का रवैया: ऐसा लग रहा था कि स््वशासन के मोर्चे पर कोई लखनऊ समझौते के बाद कांग्रेस को पनु र्जीवित किया।
प्रगति नहीीं हुई है और कई नेता नरमपंथियोों के रवैये से निराश थे। z सरकार पर दबाव: उन््होोंने सरकार पर 1919 के मांटेग््ययू-चेम््सफोर््ड सध ु ारोों
z आयरिश प्रभाव: आयरिश विद्रोह से प्रेरित होकर डॉ. एनी बेसेेंट (जॉर््ज मेें और अधिक बदलाव करने के लिए दबाव डाला। इसके अलावा, इस
अरुुंडेल के साथ), जिन््होोंने थियोसोफिकल सोसाइटी के साथ अपनी भागीदारी अभियान ने जन लामबंदी की गांधीवादी राजनीति के लिए आधार तैयार किया।
के माध््यम से राष्ट्रीय कार््र वाई मेें काफी विशेषज्ञता हासिल की थी, ने सितंबर, z होमरूल लीग और संबंधित गतिविधियोों का कुछ अच््छछा प्रभाव पड़़ा और

1916 मेें भारत मेें होमरूल आदं ोलन शरू ु किया। आने वाले वर्षषों मेें मक्ति
ु आदं ोलन के नए मार््ग को आकार देने मेें मदद मिली।
z सहायता: बी. डब््ल्ययू. वाडिया और सी. पी. रामास््ववामी अय््यर ने उनके प्रयासोों इसने शहर और गाँवोों के बीच एक संगठनात््मक संबंध स््थथापित किया, जो बाद
मेें उनकी सहायता की। बाल गंगाधर तिलक ने एक और होमरूल आदं ोलन मेें महत्तत्वपूर््ण साबित हुआ, जब राष्ट्रीय आंदोलन अपने व््ययापक चरण मेें प्रवेश
चलाया और उत््ससाहपर््वू क उसका समर््थन किया। किया। इसने राष्ट्रीय आंदोलन को एक नया आयाम और तात््ककालिकता की
z स््वराज: तिलक ने पहल की और 1916 ई. मेें महाराष्टट्र होमरूल लीग आदं ोलन भावना प्रदान की।
शरू ु किया। होमरूल आदं ोलन के दौरान, तिलक ने घोषणा की, "स््वराज मेरा
लखनऊ समझौता (दिसंबर, 1916): महत्त्व और प्रभाव
जन््मसिद्ध अधिकार है और मैैं इसे लेकर रहूगँ ा।"
z नया राजनीतिक परिदृश््य: गांधी आदं ोलन मेें सक्रिय नहीीं थे क््योोंकि वे पिछले प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, तुर्की ने ब्रिटेन के विरुद्ध लड़़ाई लड़़ी; मसु लमानोों ने
वर््ष ही आए थे और अभी भी नए राजनीतिक परिदृश््य पर विचार कर रहे थे। तुर्की का समर््थन किया और वे अंग्रेजोों से क्रोधित हो गए। कांग्रेस भी स््वशासन
की माँग करते-करते ऊब चक ु ी थी।
आंदोलन का उद्देश्य
ए.सी. मजूमदार (काांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन के
z डोमिनियन स््टटेटस का दर््जजा प्राप्त करना: डोमिनियन स््टटेटस का दर््जजा प्राप्त
अध्यक्ष-1916)
करने के लिए, जैसा कि ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और न््ययूजीलैैंड जैसे अन््य
ब्रिटिश उपनिवेश करते हैैं। लगभग दस वर्षषों के अलगाव और गलतफहमी के जंगल और अप्रिय विवादोों
की भलू भलैया मेें भटकने के बाद... भारतीय राष्टट्रवादी पार्टी के दोनोों पक्ष
z राजनीतिक शिक्षा को बढ़़ावा: स््वशासन के लिए समर््थन उत््पन््न करने के
इस तथ््य को समझ गए हैैं कि मिलकर रहेेंगे तो मजबूत रहेेंगे, पर बंट जाएंगे
लिए राजनीतिक शिक्षा और बहस को बढ़़ावा देना।
तो गिर जाएंगे।
z भारतीयोों को प्रेरित किया: भारतीयोों को सरकार के दमन के विरुद्ध बोलने
के लिए प्रेरित करना। लखनऊ सत्र का महत्त्व
z ब्रिटिश सरकार पर दबाव: भारतीय राजनीतिक प्रतिनिधित््व बढ़़ाने के लिए z एकीकरण: सरू त विभाजन के बाद दस साल के अतं राल के बाद, इस सत्र मेें
ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालना। नरमपंथी और उग्रवादी दोनोों एकजटु हो गए।
z राजनीतिक गतिविधियोों को पुनर्जीवित करना: कांग्रेस पार्टी के सिद््धाांतोों z सर््वसम््मति: लखनऊ सत्र के दौरान, कांग्रेस और मस््ललिम
ु लीग ने आगे के
का पालन करते हुए भारत मेें राजनीतिक गतिविधि को पनु र्जीवित करना। लिए राजनीतिक सहमति स््थथापित करते हुए, लखनऊ संधि का गठन किया।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन- चरण-I (1905-1 63


z हिंदू-मुस््ललिम सहयोग: इसने भारतीय स््वतंत्रता आदं ोलन मेें हिदं -ू मस््ललिम
ु उल्लेखनीय विशेषताएँ
सहयोग के लिए राह दिखाई, जैसा कि खिलाफत आदं ोलन और असहयोग
z प्रशासन मेें भारतीय: प्रशासन मेें भारतीयोों की भागीदारी बढ़़ाने के लिए इसे
आदं ोलन मेें देखा गया।
पारित किया गया था।
z एकजुटता को मजबूत: इसने दोनोों समहोू ों को एक ही छतरी के नीचे एकजटु
z दस-वर्षीय सध ु ार: यह अधिनियम वर््ष 1919 से 1929 तक दस वर्षषों तक
करके कांग्रेस को भी मजबतू किया।
प्रभावी रहा।
z सांप्रदायिक राजनीति को औपचारिक रूप: एक अलग सांप्रदायिक
z रियासतोों को शामिल किया: इस अधिनियम की सरं चना ने ब्रिटेन को घरे लू
निर््ववाचन क्षेत्र पर पार््टटियोों के बीच समझौते ने औपचारिक रूप से भारत मेें
सांप्रदायिक राजनीति का निर््ममाण किया। राजनीतिक दलोों के बढ़ते प्रभत्ु ्व को संतलि ु त करने के लिए रियासतोों (जो सीधे
राज््योों की परिषद मेें प्रतिनिधित््व करते थे) को नियक्त ु करने की अनमति ु दी।
z सांप्रदायिक वीटो: 1916 ई. के लखनऊ समझौते के अनसु ार, यदि किसी
भी धर््म के 3/4 से अधिक सदस््य प्रस््तताव का विरोध करते हैैं, तो कोई भी z प््राांतीय द्वैध शासन: प््राांतोों के लिए, अधिनियम ने शासन की दोहरी प्रणाली
विधायिका कार््य करने मेें असमर््थ होगी। इस तरह के प्रस््तताव की स््ववीकृ ति के (द्वैध शासन) स््थथापित की।
परिणामस््वरूप विधायिका मेें एक प्रकार के सांप्रदायिक वीटो की स््थथापना हुई। z विकेें द्रीकरण: इसने विषयोों को 'केें द्रीय विषय' और 'प््राांतीय विषय' के रूप मेें
z मुस््ललिम लीग को अपनाया: इस व््यवस््थथा के माध््यम से, कांग्रेस ने बिना चित्रित किया, जिससे प््राांतोों पर नियंत्रण आसान हो गया। प््राांतीय विषयोों को
किसी विरोध के मस््ललिमु लीग की इस धारणा को भी स््ववीकार कर लिया कि आगे इस प्रकार वर्गीकृ त किया गया:
भारत परस््पर विरोधी हितोों वाली दो अलग-अलग आबादी मेें विभाजित है।  आरक्षित विषय: गवर््नर द्वारा अपनी 'कार््यकारी परिषद' की सहायता से

शासित। रक्षा (सैन््य), विदेश मामले और संचार आरक्षित सचू ी के विषयोों


लखनऊ सत्र का मूल्ययांक न
मेें थे।
z खिलाफत आंदोलन मेें सहयोग: इस अनबु ंध ने खिलाफत आदं ोलन और
 हस््तताांतरित विषय: 'प््राांतीय विधान परिषद' के प्रभारी 'मत्रियो ं ों' की सहायता
1920 ई. मेें शरू ु हुए मोहनदास गांधी के असहयोग आदं ोलन मेें हिदं -ू मस््ललिम ु
से गवर््नर द्वारा प्रशासित। कृ षि, स््थथानीय सरकार पर््यवेक्षण, स््ववास््थ््य और
सहयोग के लिए आधार तैयार किया।
शिक्षा 'हस््तताांतरित सचू ी' के विषयोों मेें थे।
z सांप्रदायिकता का रंग: कांग्रेस प््राांतीय परिषद चन ु ावोों मेें मसु लमानोों के लिए
z द्वैध शासन: 'द्वैध शासन' शब््द सरकार के इस दोहरे स््वरूप को संदर््भभित करता
अलग निर््ववाचन क्षेत्ररों पर भी सहमत हुई, जो समझौते के सबसे विवादास््पद
पहलओ है। हालाँकि, इस नई प्रणाली को लोकप्रिय स््ववीकृ ति नहीीं मिली।
ु ं मेें से एक था।
z कांग्रेस द्वारा भूल: पृथक निर््ववाचन मड
z प्रत््यक्ष चुनाव: पहली बार, 'प्रत््यक्ष चनु ाव' आयोजित किए गए और देश मेें
ं ल की स््ववीकृ ति को कांग्रेस की सबसे
बड़़ी भलो ू ों मेें से एक के रूप मेें दे
ख ा जाता है, जिससे देश मेें शक्तिशाली कराधान, शिक्षा और संपत्ति के स््ववामित््व के आधार पर एक प्रतिबंधित
सांप्रदायिकता को बढ़़ावा मिला। इसके अलावा इसमेें न तो हिदं ू और न ही मताधिकार प्रदान किया गया।
मस््ललिम
ु आम जनता शामिल थी। z द्विसदनीय प्रणाली: केें द्र मेें बनाई गई और इस द्विसदनीय प्रणाली मेें दोनोों
z विभाजित हितोों को मान््यता: समझौते से यह स््पष्ट हो गया कि भारत मेें
सदनोों के सदस््य बहुमत द्वारा सीधे चनु े गए। एक सदनीय प््राांतीय विधान परिषदोों
विभिन््न समदु ाय हैैं, जिनमेें से प्रत््ययेक के अपने-अपने हित हैैं। का गठन।
z विनाशकारी शांतिवादी कार््र वाइयाँ: मस््ललिम ु प्रतिनिधियोों की संख््यया प््राांत z केें द्रीकरण: केें द्रीय विधानमडं ल को परू े भारत देश के लिए काननू पारित करने
दर प््राांत निर््धधारित की जाती थी। यह कांग्रेस की सबसे विनाशकारी कार््र वाइयोों का अधिकार दिया गया।
मेें से एक थी। इसने न के वल सांप्रदायिक प्रतिनिधित््व को बल््ककि सांप्रदायिक z गवर््नर जनरल का वीटो: गवर््नर जनरल को अध््ययादेशोों को समन करने,
विशेषाधिकारोों को भी मान््यता दी। स््थगित करने, भगं करने और प्रकाशित करने का अधिकार दिया गया था।
लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन का भारत पर दीर््घकाल तक प्रभाव रहा। हो सकता z भारतीयोों का अनुपात: वायसराय की कार््यकारी परिषद मेें भारतीयोों का
है कि इसने अस््थथायी रूप से युद्धरत समहोू ों को एक साथ ला दिया हो, लेकिन अनपु ात बढ़़ाकर आठ मेें से तीन कर दिया गया। संख््यया बढ़़ा दी गई, लेकिन
इसने मस््ललिम
ु लीग की नफरत और विभाजनकारी नीतियोों को वैध बना दिया। परिषद के वल एक सलाहकार निकाय बनकर रह गई, जिसके पास कोई
माांटेग्यू-चेम्सफोर््ड सुधार (1919) वास््तविक शक्ति नहीीं थी।
1918 ई. मेें मोोंट-फोर््ड (मांटेग््ययू चेम््सफोर््ड) आयोग ने अपनी रिपोर््ट जारी की। z सध ु ार प्रावधान की जाँच: मांटेग््ययू-चेम््सफोर््ड अध््ययन के अनसु ार, दस वर्षषों
इसने भारतीय स््वशासन के लिए रास््तता तैयार करने का दावा किया, लेकिन इसने के बाद समीक्षा होनी थी। सर जॉन साइमन ने समीक्षा के प्रभारी समहू (साइमन
प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान भारतीयोों को अंग्रेजोों की सहायता करने कमीशन) का नेतत्ृ ्व किया, जिसने अतिरिक्त संवैधानिक परिवर््तनोों का सझु ाव
के लिए प्रेरित करने की भी कोशिश की। पहली बार, भारत सरकार ने धीरे -धीरे दिया।
एक उत्तरदायी सरकार लागू करने की अपनी इच््छछा व््यक्त की। z भारतीयोों के लिए स््वशासन: परिवर््तनोों का एक महत्तत्वपर््णू प्रभाव यह पड़़ा
कि राष्टट्रवादियोों की स््वशासन या होमरूल की माँग को अब देशद्रोही नहीीं
एम. के. गाांधी
माना जा सकता क््योोंकि भारतीयोों के लिए स््वशासन प्राप्त करना, अब
मोोंटफोर््ड सुधार भारत से उसकी संपत्ति का और अधिक दोहन करने और आधिकारिक रूप से सरकारी नीति का हिस््ससा बन गई थी, जैसा कि मांटेग््ययू
उसकी दासता को लंबे समय तक बढ़़ाने का एक तरीका मात्र था। की अगस््त घोषणा मेें व््यक्त किया गया था।

64  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


संवैधानिक इतिहास मेें एक महत्तत्वपूर््ण स््थथान है। भारतीय संवैधानिक सुधारोों पर
वाल्टर रीड, द ज्वेल इन द क्राउन को बनाए रखना मांटेग््ययू-चेम््सफोर््ड रिपोर््ट को मांटेग््ययू घोषणा के साथ, आधनि
ु क भारत के
हस््तताांतरण का उद्देश््य समाज के एक बड़़े हिस््ससे को यथास््थथिति से जोड़ना था। मै ग््ननाकार््टटा का शीर््षक दिया गया।
लेकिन स््थथानीय समदु ायोों को शक्तियाँ हस््तताांतरित करने का तात््पर््य यह था कि चंद्रशेखर आजाद का योगदान
जो शक्ति ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध उपयोग हो, उसे सांप्रदायिक प्रतिद्वंद्विता के
चंद्रशेखर आजाद का भारतीय स््वतंत्रता संग्राम मेें महत्तत्वपूर््ण योगदान था, जो पूर््ण
कुचक्र मेें फँ सा दिया गया। विभाजन के माध््यम से ब्रिटेन ने हमेशा अपने लाभ
स््वतंत्रता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध
के लिए काम किया और मोोंट-फोर््ड सधु ारोों के द्वारा निरंकुशता के लिए अपनी
सशस्त्र प्रतिरोध को नियोजित करने की तत््परता के लिए जाने जाते थे। 23 जुलाई,
उदारता की घोषणा की।
1906 को मध््य प्रदेश के भाभरा मेें जन््ममे आजाद भारतीय स््वतंत्रता संग्राम के
सुधारोों की कमियााँ इतिहास मेें वीरता और आत््म-बलिदान के प्रतीक बन गए।
z सीमित मताधिकार: मताधिकार काफी प्रतिबंधित था। इस तथ््य के बावजदू प्रारंभिक जीवन और प्रभाव
कि भारत की जनसंख््यया 26 करोड़ से अधिक होने का अनमु ान लगाया गया z प्रारंभिक क््राांतिवाद: आजाद वर््ष 1919 मेें जलियाँवाला बाग हत््ययाकांड से
था, लेकिन केें द्रीय विधायिका के लिए मतदाताओ ं की संख््यया लगभग 15 बहुत प्रभावित हुए, जिसने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध उनके दृढ़ संकल््प को जन््म
लाख तक ही बढ़़ाई गई थी। दिया। महात््ममा गांधी द्वारा शरू ु किए गए असहयोग आदं ोलन मेें उनकी प्रारंभिक
z वायसराय का वीटो: केें द्र मेें वायसराय और उसकी कार््यकारी परिषद पर भागीदारी ने भी उनके मार््ग को आकार दिया, लेकिन 1922 ई. मेें चौरी-चौरा
विधायिका का कोई अधिकार नहीीं था। घटना के बाद आदं ोलन के स््थगित होने से उनका गांधीवादी तरीकोों से मोहभगं
z अपर््ययाप्त विषय विभाजन: केें द्र के स््तर पर विषय का विभाजन अपर््ययाप्त था। हो गया।
प््राांतीय स््तर पर, विषयोों का विभाजन और प्रशासन अतार््ककि क और z क््राांतिकारी गतिविधियोों की ओर रुझान: यह मोहभगं उन््हेें हिदं स्ु ्ततान
अव््ययावहारिक था। सिंचाई, वित्त, पलि ु स, प्रेस और न््ययाय सभी आरक्षित थे। रिपब््ललिकन एसोसिएशन (एचआरए) की स््थथापना की ओर ले गया, जो बाद
z प््राांतोों को कम शक्ति: प््राांतीय मत्रियो
ं ों के पास बजट या नौकरशाही पर बहुत मेें हिदं स्ु ्ततान सोशलिस््ट रिपब््ललिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) बना, जहाँ वे
कम अधिकार थे, जिसके परिणामस््वरूप दोनोों के बीच अक््सर संघर््ष होता था। राम प्रसाद बिस््ममिल जैसे लोगोों से काफी प्रभावित हुए।
z मंत्रियोों से सलाह नहीीं लेना: प्रमख ु विषयोों पर अक््सर मत्रियो
ं ों से सलाह नहीीं प्रमुख योगदान
ली जाती थी; वास््तव मेें, गवर््नर द्वारा असाधारण समझे जाने वाले किसी भी z एचआरए का एचएसआरए मेें पुनर््गठन: 1928 ई. मेें भगत सिंह और
मामले पर मत्रियों ों के निर््णयोों पलटा जा सकता था। चद्रं शेखर आजाद ने हिदं स्ु ्ततान रिपब््ललिकन एसोसिएशन (एचआरए) को
भारत मेें प्रतिक्रिया हिदं स्ु ्ततान सोशलिस््ट रिपब््ललिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) मेें बदल दिया।
उनका लक्षष्य पर््णू स््वतंत्रता प्राप्त करने और समाजवादी सिद््धाांतोों पर आधारित
z कांग्रेस की निराशा: कांग्रेस ने प्रभावी स््वशासन की माँग करने के बजाय
भारत की स््थथापना के लिए अधिक संगठित और हिसं क तरीकोों का उपयोग
सधु ारोों को ‘निराशाजनक’ और ‘असंतोषजनक’ माना। करना था।
z राजनीतिक माँगोों के अनुरूप नहीीं: 1919 ई. के परिवर््तन भारत की
z प्रमुख घटनाओ ं मेें भागीदारी: आजाद अग्ं रेजोों के विरुद्ध कई प्रमख ु कार््र वाइयोों
राजनीतिक माँगोों को परू ा नहीीं करते थे। मेें शामिल थे:
z विपक्ष मेें एकजुटता: विधान परिषद के भारतीय सदस््य इन नीतियोों के विरोध
 काकोरी ट्रेन एक््शन (1925): उन््होोंने सीधे तौर पर भाग नहीीं लिया,
मेें एकजटु थे। जिन््नना सहित कई परिषद सदस््योों ने विरोध मेें इस््ततीफा दे दिया। लेकिन सगं ठन को वित्तीय ससं ाधन हासिल करने मेें मदद करते हुए योजना
z जनता के साथ विश्वासघात: इन उपायोों को परू े भारत मेें बड़़े पैमाने पर ब्रिटिश और उसके क्रियान््वयन मेें शामिल थे।
यद्धु प्रयासोों के लिए आबादी के मजबतू समर््थन के साथ विश्वासघात के रूप  असेेंबली कांड (1929): हालाँकि, प्राथमिक तौर पर इस घटना को अज ं ाम
मेें माना गया। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिया, आजाद ने योजना के चरणोों मेें
z गांधीजी का विरोध: गांधीजी ने रोलेट एक््ट के विरुद्ध राज््यव््ययापी विरोध महत्तत्वपर््णू भमि
ू का निभाई।
प्रदर््शन शरूु किया, जिसमेें पंजाब सबसे आगे रहा।  सांडर््स हत््ययाकांड (1928): लाला लाजपत राय की हत््यया के जवाब मेें

z नरसह ं ार: अप्रैल, 1919 मेें लोगोों के एकत्रित होने पर रोक लगाने वाले प्रतिबंधोों ब्रिटिश पलि ु स अधिकारी जे.पी. सांडर््स की हत््यया की गई, आजाद इस
के अनजाने उल््ललंघन के परिणामस््वरूप अमृतसर के जलियाँवाला बाग मेें हत््ययाकांड की योजना मेें शामिल थे।
नरसंहार किया गया। z क््राांतिकारी आदर्शशों का प्रचार: आजाद, भारत के यवु ाओ ं को स््वतंत्रता
मांटेग््ययू-चेम््सफोर््ड रिपोर््ट ने बाद मेें 1935 ई. के भारत सरकार अधिनियम और संग्राम के प्रति उत््ससाहित करने के लिए यवु ा कार््यकर््तताओ ं की भर्ती करने और
अंततः संविधान की नीींव के रूप मेें काम किया। इन परिवर््तनोों के परिणामस््वरूप समाजवादी आदर्शशों का प्रचार-प्रसार करने के इच््छछु क थे। वे झाँसी मेें
उत्तरदायी सरकार, स््वशासन और एक संघीय ढाँचे के आवश््यक विचार सामने क््राांतिकारियोों को प्रशिक्षण प्रदान करते थे और धीरे -धीरे यह क््राांतिकारी
आए। भारतीय संवैधानिक सुधारोों पर मांटेग््ययू-चेम््सफोर््ड रिपोर््ट का देश के गतिविधियोों का केें द्र बन गया।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन- चरण-I (1905-1 65


रणनीति और विचारधारा z प्रेरणादायक व््यक्ति: उनकी विरासत अनगिनत भारतीयोों को प्रेरित करती है
और भारतीय स््वतंत्रता के लिए उनके बलिदान के सम््ममान मेें कई सार््वजनिक
z गुरिल््लला युद्ध: आजाद ने गरु िल््लला रणनीति की वकालत की और उसका
संस््थथानोों और महिमो
ु ों का नाम उनके नाम पर रखा गया है।
अभ््ययास किया, जिसमेें ब्रिटिश अधिकारियोों पर अचानक हमले और क््राांतिकारी
गतिविधियोों को वित्तपोषित करने के लिए डकै ती शामिल थी। उनके तरीकोों चंद्रशेखर आजाद भारतीय इतिहास मेें सबसे प्रसिद्ध क््राांतिकारियोों मेें से एक हैैं।
को अग्ं रेजोों के विरुद्ध एक साहसी और समझौता न करने वाले रुख से चिह्नित उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि जोशीले व््यक्ति अपने देश की आजादी
किया गया था, जो उन््हेें उस समय के अधिक उदारवादी दृष्टिकोण से अलग के लिए किस हद तक लड़ेंगे। उनकी रणनीति, समाजवाद के प्रति वैचारिक
करता था। प्रतिबद्धता और अंतिम बलिदान को भारत के स््वतंत्रता संग्राम के एक प्रमख ु
z स््वतंत्रता के बाद के भारत के लिए दृष्टिकोण: हालाँकि, मख्ु ्य रूप से हिस््ससे के रूप मेें अध््ययन किया जाता है।
ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेें कने पर ध््ययान केें द्रित किया गया था, आजाद और
उनके साथियोों के पास एक समाजवादी भारत का सपना था, जहाँ न््ययाय और प्रमुख शब्दावलियाँ
सामाजिक समानता कायम हो। वे मौजदू ा व््यवस््थथा को नष्ट करने और उसके
लॉर््ड कर््जन, बंगाल का विभाजन, प्रतिक्रियावादी नीतियाँ, स््वदेशी
स््थथान पर समाजवादी संरचना लाने मेें विश्वास करते थे। आंदोलन, राष्टट्रवादी प्रतिक्रिया, कर््जन के सधु ार, सांप्रदायिक
विरासत और मृत्यु विभाजन, राजनीतिक अस््थथिरता, उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन,
क््राांतिकारी गतिविधियाँ।
z बहादुरी और बलिदान का प्रतीक: अग्ं रेजोों द्वारा कभी भी जिदं ा न पकड़़े
जाने की आजाद की प्रतिबद्धता तब परू ी हुई, जब उन््होोंने 27 फरवरी, 1931 विगत वर्षषों के प्रश्न
को अल्फ्रेड पार््क , इलाहाबाद मेें पलि
ु स के साथ मठु भेड़ के दौरान खदु को 1. लॉर््ड कर््जन की नीतियोों एवं राष्ट्रीय आंदोलन पर उनके दरू गामी प्रभावोों
गोली मार ली। वे एक शहीद और उत््पपीड़न के विरुद्ध प्रतिरोध का एक स््थथायी
का मल््ययाां
ू कन कीजिए। (2020)
प्रतीक बन गए।

66  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन
8 - द्वितीय चरण (1918-1939)
गाांधीवादी युग की शुरुआत
गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका मेें लगभग 20 वर््ष से अधिक का समय बिताया था। वहीीं से उनके सत््ययाग्रह के प्रयोग शरू
ु हुए। दक्षिण अफ्रीका मेें रहते हुए, उन््होोंने 1903
मेें साप्ताहिक समाचार पत्र ‘इडं ियन ओपिनियन’ की स््थथापना की। गांधीजी 9 जनवरी, 1915 को दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट आए थे। 1916 मेें अहमदाबाद मेें
साबरमती आश्रम की स््थथापना करने से पहले, उन््होोंने भारत आने के बाद अपना पहला वर््ष पूरे भारत मेें घमू ते हुए, भारतीय परिस््थथितियोों और लोगोों के जनजीवन
का अध््ययन करते हुए बिताया।
गाांधीजी की प्रारंभिक जीवन-यात्रा और दक्षिण अफ्रीका मेें सत्य के प्रयोग
z जन््म और पालन-पोषण: मोहनदास करमचदं गांधी का जन््म 2 अक््टटूबर, 1869 को गजु रात के पोरबंदर, काठियावाड़ रियासत मेें हुआ था। इनके पिता राजकोट
के दीवान (मत्रीं ) थे।
z प्रारंभिक जीवन-यात्रा: इग्ं ्लैैंड मेें काननू की पढ़़ाई करने के बाद, गांधी जी ने अपने मवु क््ककिल दादा अब््ददुल््लला से जड़ु ़े एक मामले के सिलसिले मेें 1893 मेें दक्षिण
अफ्रीका की यात्रा की।
z दक्षिण अफ्रीकी घटनाक्रम: दक्षिण अफ्रीका मेें, उन््होोंने श्वेत नस््लवाद का घिनौना चेहरा देखा, साथ ही उन एशियाई लोगोों को भी अपमान और अवमानना का
सामना करना पड़़ा जो मजदरू के रूप मेें दक्षिण अफ्रीका आए थे।
z पीड़ितोों के अधिकारोों के लिए सघं र््ष: उन््होोंने भारतीय श्रमिकोों को सगं ठित करने के लिए दक्षिण अफ्रीका मेें रहने का फै सला किया ताकि वे पीड़ितोों के अधिकारोों
के लिए लड़ सकेें । उन््होोंने 1914 तक वहाँ रहकर आम जनमानस के अधिकारोों की वकालत की, जब तक कि वे भारत नहीीं लौटे।
z दक्षिण अफ्रीका मेें भारतीय समूह: दक्षिण अफ्रीका मेें भारतीयोों को तीन समहोू ों मेें विभाजित किया गया था: चीनी बागानोों पर काम करने वाले गिरमिटिया भारतीय
मजदरू , व््ययापारी जिनमेें अधिकांश मेमन मसु लमान थे और पर््वू -गिरमिटिया मजदरू ।
z नस््ललीय भेदभाव को स््ववीकृति: वहाँ रहने वाले अधिकतर भारतीयअशिक्षित थे और अग्रें जी बहुत कम या बिलकुल नहीीं बोलते थे। उन््होोंने नस््ललीय भेदभाव को
जीवन के एक सामान््य पहलू के रूप मेें स््ववीकार कर लिया था।
z आरोपित अक्षमताएँ: उन््हेें वोट देने की अनमति ु नहीीं दी गई। वे के वल निर््ददिष्ट क्षेत्ररों मेें ही रह सकते थे जो गदं े और भीड़भाड़ वाले थे। एशियाई और अफ्रीकियोों
को रात 9 बजे के बाद अपने घर छोड़ने की अनमति ु नहीीं थी, न ही उन््हेें सार््वजनिक फुटपाथ का उपयोग करने की अनमति ु थी।

दक्षिण अफ्रीका मेें गांधीजी का अनुभव

जनता के पास किसी उद्देश््य के लिए भाग लेने और बलिदान देने की


अपार क्षमता थी जिसने उन््हेें प्रेरित किया।
वह अपने नेतत्ृ ्व मेें विभिन््न वर्गगों और धर्ममों के
भारतीयोों को एकजटु करने मेें सफल रहे।

उन््होोंने महसूस किया कि नेताओ ं को कभी-कभी अलोकप्रिय


निर््णय लेने पड़ते हैैं।

उन््होोंने अपनी स््वयं की नेतत्ृ ्व शैली और


संघर््ष की तकनीक विकसित की।
दक्षिण अफ्रीका मेें गाांधीजी का मध्यमार्गी संघर््ष (1893-1906) गाांधी जी की सत्याग्रह तकनीक
z याचिकाएँ और अभ््ययावेदन भेजना: इस चरण के दौरान, गांधीजी ने दक्षिण z सत््य एवं अहिंसा: दक्षिण अफ्रीका मेें अपने प्रवास के दौरान, गांधीजी ने
अफ्रीका और ब्रिटेन मेें अधिकारियोों को याचिकाएँ और अभ््ययावेदन भेजने सत््ययाग्रह की विधि विकसित की। उन््होोंने अपनी सत््ययाग्रह तकनीक का आधार
का निर््णय लिया। सत््य और अहिसं ा को बनाया।
z भारतीयोों को एकजुट करना: उन््होोंने नेटाल इडं ियन कांग्रेस की स््थथापना की z अनेक विचारधाराओ ं का सगं म: उन््होोंने भारतीय संस््ककृति के कुछ हिस््सोों
और भारतीयोों के विभिन््न समहोू ों को एकजटु करने के लिए भारतीय विचारोों को दसू रा गाल (Cheek) आगे करने की ईसाई अनिवार््यता और टॉल््स्टटॉय की
का प्रकाशन शरूु किया। विचारधारा के साथ मिला दिया, जिसमेें कहा गया था कि अहिसं क प्रतिरोध
दक्षिण अफ्रीका मेें गाांधीजी का बरु ाई से लड़ने का सबसे बड़़ा तरीका था।
निष्क्रि य प्रतिरोध या सत्याग्रह (1906-1914) z अपनाई गई विधियाँ: गांधीजी के अनसु ार, एक सच््चचा सत््ययाग्रही असहयोग
z सत््ययाग्रह: गांधीजी के संघर््ष का यह दसू रा चरण था जो 1906 से शरू ु हुआ, और बहिष््ककार के विचारोों पर विश्वास करता है। सत््ययाग्रह के तरीकोों मेें करोों
गांधीजी की रणनीति निष्क्रिय प्रतिरोध या सविनय अवज्ञा के प्रयोग के लिए का भगु तान करने से इनकार करना और परु स््ककारोों और जिम््ममेदारी के पदोों को
प्रसिद्ध थी, जिसे उन््होोंने सत््ययाग्रह का नाम दिया था। अस््ववीकार करना शामिल है।
z पंजीकरण प्रमाणपत्ररों के विरुद्ध सत््ययाग्रह (1906): दक्षिण अफ्रीका मेें एक z कष्ट सहने की इच््छछा: एक सत््ययाग्रही को गलत काम करने वाले के खिलाफ
नए काननू के तहत भारतीयोों को हर समय अपनी उंगलियोों के निशान के साथ अपनी लड़़ाई मेें कष्ट सहने के लिए तैयार रहना चाहिए। यह कष्ट सत््य के प्रति
पंजीकरण प्रमाणपत्र साथ रखना आवश््यक था। उनकी भक्ति का एक हिस््ससा था।
z निष्क्रिय प्रतिरोध सघं की स््थथापना: गांधीजी ने काननू का विरोध करने और
z नफरत एवं दुर््भभावना का त््ययाग: गलत काम करने वाले से लड़ते समय भी,
इस तरह की अवज्ञा के परिणामोों का अनभु व करने के लिए एक अभियान
एक सच््चचे सत््ययाग्रही के मन मेें गलत काम करने वाले के प्रति कोई दर््भभा ु वना
चलाने के लिए निष्क्रिय प्रतिरोध संघ की स््थथापना की।
नहीीं होनी चाहिए। घृणा उसके चरित्र की विशेषता नहीीं होती है।
z विरोधी प्रतिकार प्रथा का आरंभ: इस प्रकार सत््ययाग्रह, या सत््य के प्रति
समर््पण, हिसं ा का सहारा लिए बिना विरोधियोों का प्रतिरोध करने की प्रथा z सत््ययाग्रह के वल साहसी और मजबूतोों के लिए: गांधीजी का सत््ययाग्रह
का जन््म हुआ। के वल साहसी और शक्तिशाली लोगोों के लिए था; यह कमजोर और कायरोों
z प्रवासी भारतीयोों की प्रतिक्रिया: गांधी के नेतत्ृ ्व मेें भारतीयोों ने सार््वजनिक के लिए नहीीं था। कायरता की अपेक्षा हिसं ा को प्राथमिकता दी गई।
रूप से अपने पंजीकरण प्रमाणपत्र जलाकर प्रतिक्रिया व््यक्त की। z साधन और साध््य: विचार और व््यवहार को कभी अलग नहीीं किया जा
z समझौता समाधान: इन सभी ने दक्षिण अफ्रीकी प्रशासन की नकारात््मकता सकता। दसू रे शब््दोों मेें, साधन उद्देश््योों (साध््य) को उचित नहीीं ठहरा सकते।
को उजागर किया। जिससे अतं त: एक समझौतापर््णू समाधान निकाला गया। भारत आगमन के बाद गाांधीजी का प्रारंभिक सत्याग्रह
z कानूनोों का उलंघन: भारतीय प्रवास को प्रतिबंधित करने वाले नए नियमोों
1. चंपारण सत््ययाग्रह (1917)
के विरोध को शामिल करने के लिए पिछले अभियान का विस््ततार किया गया
 नील किसानोों की समस््यया: अग्रेजो ं ों ने गरीब किसानोों को नील की खेती
था। भारतीयोों ने एक प््राांत से दसू रे प््राांत मेें जाकर और लाइसेेंस प्रदान करने से
इनकार करके काननोू ों का उलंघन कर विरोध प्रकट किया। करने के लिए मजबरू किया, क््योोंकि उनके पास कोई अन््य विकल््प नहीीं था।
 तिनकठिया प्रणाली: तिनकठिया प्रणाली के अनस ु ार, किसानोों को अपनी
z मतदान कर और भारतीय विवाहोों को अमान््य घोषित करने के विरुद्ध
अभियान: सभी पर््वू -गिरमिटिया भारतीयोों पर तीन पाउंड का मतदान कर भमिू के 3/20वेें हिस््ससे पर नील उगाने के लिए मजबरू किया जाता था
लगाया गया था। मतदान कर (Poll Tax) को समाप्त करने की माँग ने अभियान और उन््हेें अपने द्वारा उत््पपादित नील का के वल एक-तिहाई हिस््ससा रखने
के आधार को व््ययापक बना दिया। की अनमति ु थी, जबकि अन््य दो-तिहाई हिस््ससा ब्रिटिश/यरू ोपीय बागान
z विवाह को अमान््य घोषित करना: सर्वोच््च न््ययायालय ने इसी दौरान घोषणा मालिकोों को देना पड़ता था।
कर ऐसे किसी भी विवाह को अमान््य घोषित कर दिया जो ईसाई रीति-रिवाजोों  नील का दोहन: बंगाल काश््तकारी अधिनियम और अन््य प्रतिक्रियावादी
के अनसु ार नहीीं किया गया था और विवाह रजिस्ट्रार द्वारा पंजीकृ त नहीीं किया नियमोों ने किसानोों को अपनी भमि ू के 3/20 और कुछ मामलोों मेें 5/20 तक
गया था। नील की खेती करने के लिए बाध््य करके नील के दोहन को बढ़़ावा दिया।
गाांधीजी का दक्षिण अफ्रीकी अनुभव (1893 से 1914)  राजकुमार शुक््ल की पहल: राजकुमार शक््ल ु चपं ारण (बिहार) के एक
z जनसमूह की क्षमता: गांधीजी को आभास हुआ कि लोगोों मेें किसी ऐसे नील उत््पपादक किसान थे, जो गांधीजी से मिले थे। उन््होोंने गांधीजी से
उद्देश््य के लिए शामिल होने और बलिदान देने की अपार क्षमता है, जिसमेें चपं ारण के किसानोों की समस््यया को देखने के लिए चपं ारण आने का
उनके अधिकार और सर््वहित निहित होों अतः इससे उन््हेें आतं रिक प्रेरणा मिली। आग्रह किया।
z समान उद्देश््य हेतु वर्गीय एकजुटता: अपने मार््गदर््शन मेें, वह कई धर्ममों और  चंपारण यात्रा एवं सघ ं र््ष: 1917 मेें, गाँधीजी ने कठोर नील बागान
वर्गगों के भारतीयोों के साथ-साथ परुु षोों और महिलाओ ं को एक साथ लाने मेें व््यवस््थथा से लड़ने के लिए किसानोों को प्रोत््ससाहित करने के लिए बिहार
सक्षम हुए। के चपं ारण की यात्रा की और किसानोों के अधिकारोों की वकालत की।
z प्रतिरोध के नए तरीके : छोटे स््तर पर, वह अपना नेतत्ृ ्व और राजनीतिक  रचनात््मक कार््य: उन््होोंने ग्रामीण साफ-सफाई, स््ककूलोों और अस््पतालोों
शैली विकसित करने मेें सक्षम थे, साथ ही प्रतिरोध के नए तरीके भी विकसित का निर््ममाण, और ग्राम नेताओ ं को पर््ददा-प्रथा, अस््पपृश््यता और महिलाओ ं
करने मेें सक्षम थे। के उत््पपीड़न को समाप्त करने के लिए राजी करना शरू ु किया।

68  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


 सगं ठित विरोध प्रदर््शन और हड़तालेें: गांधी जी ने जमीींदारोों के खिलाफ
संगठित विरोध प्रदर््शन और हड़तालोों का नेतत्ृ ्व किया, जिन््होोंने ब्रिटिश चंपारण, अहमदाबाद और खेड़़ा आंदोलनोों की उपलब्धियााँ
सरकार के साथ क्षेत्र के गरीब किसानोों के लिए अधिक मआ ु वजे और खेती z सत््ययाग्रह तकनीक: गांधी जी ने लोगोों को अपनी सत््ययाग्रह तकनीक की
पर अधिकार की पेशकश करते हुए एक समझौता किया। उपयोगिता बताई।
 बापू और महात््ममा की उपाधि: इस संघर््ष के दौरान ही गांधी जी के समर््पण
z जनता के बीच पहुच ँ स््थथापित: उन््होोंने जनता के बीच अपने पैर जमा
और त््ययाग के लिए लोगोों द्वारा उन््हेें बापू और महात््ममा कहा जाने लगा। लिए और उनके लोकप्रिय अनयु ायी बनना शरू ु हो गए।
2. अहमदाबाद मेें मिल मजदूरोों की हड़ताल (1918) z मजबूती और कमजोरियाँ: उन््होोंने जनता के बीच अपनी पैठ बनाई
और उनकी मजबतू क्षमताओ ं और कमजोरियोों के बारे मेें बेहतर जानकारी
 कपास मिल श्रमिकोों के बीच आंदोलन: महात््ममा गांधी ने 1918 मेें
हासिल की।
सतू ी मिल मजदरोू ों के बीच एक सत््ययाग्रह आदं ोलन आयोजित करने के
z सम््ममान एवं समर््पण: उन््हेें अनेक लोगोों, विशेषकर यवु ाओ ं का सम््ममान
लिए अहमदाबाद की यात्रा की।
और समर््पण प्राप्त हुआ।
 प््ललेग बोनस की माँग: श्रमिकोों ने अन््य बातोों के अलावा, महामारी के

बाद 'प््ललेग बोनस' जारी रखने की माँग की। गाांधी जी की प्रमुख विचारधाराएँ
 महात््ममा गांधी का हस््तक्षेप: महात््ममा गांधी ने इस विवाद मेें हस््तक्षेप किया
z सत््य और अहिंसा: गांधीवादी विचारधारा के दो प्रमख ु तत्तत्व, सत््य और
और अहमदाबाद के श्रमिकोों और मिल मालिकोों के बीच मध््यस््थता की। अहिसं ा हैैं।
 सत््य: गांधी जी के अनस ु ार वाणी और आचरण की सत््यता सापेक्ष सत््य
 हड़ताल एवं वेतन वद्धि ृ समझौता: उन््होोंने कर््मचारियोों को हड़ताल पर
है, साथ ही पर््णू सत््य ही परम सत््य है। ईश्वर परम सत््य है (चकि ँू ईश्वर
जाने और वेतन मेें 35% वृद्धि की माँग करने की सिफारिश की। पहले भी सत््य है) और नैतिकता- नैतिक काननू और संहिता, इसकी नीींव है।
मजदरू 50% वेतन वृद्धि की माँग कर रहे थे। उन््होोंने आमरण अनशन  अहिंसा: के वल शांतिपर््ण ू होने या हिसं ा प्रकटीकरण की कमी के बजाय,
किया और मिल मालिकोों ने मजदरोू ों को वेतन वृद्धि देने का फै सला किया। महात््ममा गांधी इसे सक्रिय प्रेम का प्रतिनिधित््व करने वाला मानते थे- जो
 गांधी जी के प्रमुख सहयोगी: अनसय ू ा बहन सत््ययाग्रह के दौरान गांधीजी हर तरह से हिसं ा के विपरीत है।
की प्रमख ु सहयोगियोों मेें से एक थीीं। हालाँ कि, वह मिल मालिकोों मेें से एक z सत््ययाग्रह: गांधी जी ने अपनी व््ययापक अहिसं क कार््र वाई की रणनीति को
और गांधीजी के करीबी दोस््त अबं ालाल साराभाई की बहन थीीं। सत््ययाग्रह कहा। इसमेें प्रत््ययेक अन््ययाय, उत््पपीड़न और शोषण के विरुद्ध शद्धु तम
 अहमदाबाद टे क््सटाइल ले बर एसोसिएशन: उन््होोंने मिल हड़ताल के आत््ममिक शक्ति को शामिल करना शामिल है।
दौरान 'अहमदाबाद टेक््सटाइल लेबर एसोसिएशन' की स््थथापना भी की। z अहिंसा अधिकार सरु क्षा का एक साधन: अहिसं ा अर््थथात दसू रोों को कोई
इसने गांधीजी को शहरी और औद्योगिक आधार प्रदान किया और उन््हेें नक ु सान पहुचँ ाए बिना व््यक्तिगत पीड़़ा के माध््यम से अधिकार हासिल करने
शहर मेें औद्योगिक संबंधोों की दिशा तय करने का श्रेय दिया जाता है। का एक साधन है।
z सर्वोदय: सर्वोदय एक गाँधीवादी सिद््धाांत है जिसका अर््थ है 'सार््वभौमिक
3. खेड़़ा या कै रा सत््ययाग्रह (1918)
उत््थथान' या 'सभी की प्रगति'। गांधी जी ने राजनीतिक अर््थव््यवस््थथा पर जॉन
 किसानोों का समर््थन: उन््होोंने गज ु रात के खेड़़ा जिले के किसानोों का रस््ककिन के निबंध, "अनटू दिस लास््ट" के अनवु ाद के शीर््षक के रूप मेें इस
समर््थन करने के लिए एक सत््ययाग्रह का आयोजन किया। वाक््ययाांश को गढ़़ा।
 फसल बर््बबादी और प््ललेग महामारी: फसल बर््बबाद होने और प््ललेग z स््वराज: यद्यपि, स््वराज शब््द का शाब््ददिक अर््थ ‘स््व-शासन’ है, गांधी जी
महामारी के कारण, खेड़़ा के किसान राजस््व का भगु तान करने मेें असमर््थ ने इसका आशय संपर््णू क््राांति से लगाया जो जीवन के सभी पहलओ ु ं को
थे और उन््होोंने इसे कम करने की माँग की। सम््ममिलित करती है।
 बढ़़ा हुआ राजस््व: अनेक चन ु ौतियोों के बावजदू , ब्रिटिश सरकार ने राजस््व z सार््वजनिक स््वराज ही व््यक्तिगत स््वराज: गांधी जी के लिए, लोगोों का
मेें वृद्धि की। सरदार वल््लभ भाई पटेल और अन््य समर््पपित गाँधीवादियोों स््वराज व््यक्तिगत स््वराज (स््व-शासन) का कुल योग था, इसलिए उन््होोंने इस
बात पर जोर दिया कि स््वराज का मतलब उनके देशवासियोों के लिए स््वतंत्रता है।
ने ग्रामीण इलाकोों का दौरा किया, ग्रामीणोों को संगठित किया और उन््हेें
राजनीतिक नेतत्ृ ्व और दिशा प्रदान की। z ट्रस््टटीशिप सिद््धाांत: गांधी जी ने ट्रस््टटीशिप को एक सामाजिक आर््थथिक सिद््धाांत
के रूप मेें प्रस््ततावित किया।
 आंदोलन को गुजराती बनाए रखने की प्राथमिकता: अहमदाबाद और
z न््ययासोों के ट्रस््टटी: यह अमीर लोगोों के लिए उन ट्रस््टोों के ट्रस््टटी के रूप मेें
वडोदरा के अनेक क््राांतिकारी गजु राती विद्रोह के आयोजकोों मेें शामिल सेवा करने के लिए एक तंत्र स््थथापित करता है जो लोगोों के सामान््य कल््ययाण
हो गए, लेकिन गांधी और पटेल ने आदं ोलन को परू ी तरह से गजु राती की देखभाल करते हैैं।
बनाए रखने को प्राथमिकता देते हुए, अन््य क्षेत्ररों से भारतीयोों की भागीदारी z स््वदेशी: स््वदेशी का तात््पर््य किसी के स््थथानीय समदु ाय के भीतर राजनीतिक
को रोक दिया। और आर््थथिक रूप से कार््य करने पर जोर देना है।
 राजस््व माफी समझौता: एकजट ु विरोध का सामना करने के बाद, ब्रिटिश z सामुदायिक आत््मनिर््भरता हेतु कुटीर उद्योग: गांधीजी हस््तशिल््प उद्योगोों
सरकार एक समझौते पर पहुचँ ी और उस वर््ष और अगले वर््ष के लिए एवं अन््य कुटीर उद्योगोों का समर््थन करते थे, जो समदु ाय और आत््मनिर््भरता
राजस््व माफ कर दिया गया। के बीच एक महत्तत्वपर््णू कड़ी के रुप मेें था।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन - द्वितीय चरण (1918 69


वर््तमान परिप्रेक्ष्य मेें गाांधीवादी विचारोों की प्रासंगिकता इस प्रकार देखा जा सकता है कि गांधीजी के राजनीतिक प्रयासोों ने न के वल हमेें
आजादी दिलाई बल््ककि उनका दर््शन इतने वर्षषों के बाद भी भारत और दनि ु या
z सिविल सेवाएँ: गांधीवादी दर््शन के केें द्र मेें सत््य है, क््योोंकि उन््होोंने जीवन
को आलोकित कर रहा हैैं। इस प्रकार प्रत््ययेक व््यक्ति को एक सुखी, समृद्ध,
भर सत््यवादी बने रहने का प्रयास किया था। विभिन््न स््थथितियोों मेें, संकट की
स््वस््थ, शांतिपूर््ण और सतत भविष््य के लिए अपने दैनिक जीवन मेें गांधीवादी
तात््ककालिकता के बावजदू , सत््य पर गांधीवादी विचार अपरिवर््तनीय थे।
विचारधाराओ ं का प्रमख ु ता से पालन करना चाहिए।
z सत््यता का मूल््य: व््ययापक भ्रष्टाचार के समय मेें, सिविल सेवकोों के लिए स््वयं
और जनता के प्रति सत््यता का यह मल्ू ्य महत्तत्वपर््णू है। गाांधीजी का भारत आगमन: स्वतंत्रता संग्राम पर प्रभाव
z अहिंसा: गांधीवाद का एक महत्तत्वपर््णू घटक अहिसं ा है, जो ब्रिटिश राज के z भारतीय राष्ट्रीय स््वतंत्रता संग्राम मेें महात््ममा गांधी का प्रवेश 1915 मेें हुआ, जब
खिलाफ भारत के स््वतंत्रता अभियान मेें गांधीजी द्वारा इस््ततेमाल किया जाने वे दो दशकोों के सामाजिक/राजनीतिक संघर््ष के बाद दक्षिण अफ्रीका से लौटे।
वाला मख्ु ्य हथियार था। गांधी की राजनीति की शैली, जैसा कि दक्षिण अफ्रीका मेें उनके राजनीतिक
प्रयोगोों के माध््यम से विकसित हुई, ने भारत मेें स््वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय
z धर््मनिरपेक्षता: गांधीवाद धार््ममिक और आस््थथा की दृष्टि से सहिष््णणु है और आदं ोलन के चरित्र को बदल दिया, जो उनके आगमन तक, निम््नलिखित वर्गगों
आज दनि ु या को उन स््थथानोों पर अधिक धार््ममिक और आस््थथा की दृष्टि से सहिष््णणु का प्रतिनिधित््व कर रहा था:
लोगोों की आवश््यकता है जहाँ धर््म के नाम पर हिसं ा होती है।
z सक ं ीर््ण सामाजिक/ राजनीतिक आधार: राष्ट्रीय आदं ोलन का उदारवादी
z सहिष््णणुता: सहिष््णणुता रूपी सिद््धाांत के माध््यम से समाज मेें, धर््म, जाति, चरण संकीर््ण सामाजिक एवं राजनीतिक आधार के अभिशाप से घिरा हुआ
जातीयता और क्षेत्र के आधार पर दैनिक जीवन मेें होने वाले जातीय पर््ववा ू ग्रह था। उदाहरण के लिए, नरमपंथियोों का मानना था कि आदं ोलन को मध््यम वर््ग
को बेअसर करने मेें मदद मिलेगी। के बद्धि ु जीवियोों तक ही सीमित रखा जाना चाहिए।
z भेदभावविहीन समाज का निर््ममाण: गांधीजी जातिगत ऊँच-नीच और z केें द्रित वर््ग हित: गांधीजी के आगमन से पहले, राष्ट्रीय आद ं ोलन सामहि ू क
अस््पपृश््यता के विरोधी थे और उन््होोंने निचली जाति के लोगोों को सम््ममान देने हितोों और वर््ग चेतना का प्रतिबिंब था। उदाहरण के लिए, जमीींदारी सघं
के लिए ‘हरिजन’ शब््द गढ़़ा था। (भमि ू धारक समाज) की स््थथापना जमीींदारोों के हितोों की रक्षा के लिए की गई थी।
z गांधीवादी समाजवाद: समाजवाद के प्रति गांधी का दृष्टिकोण राजनीतिक z सक ं ीर््ण माँगेें: गांधीजी के आगमन से पहले राष्ट्रीय आदं ोलन की माँगेें वर््ग-
से अधिक सामाजिक है, क््योोंकि गांधीजी का मानना था कि एक ऐसा समाज पर््ववा
ू ग्रह को दर््शशाती थीीं। जैसे, सरकारी सेवाओ ं का भारतीयकरण, विधानमडलो ं ों
गरीबी, भख ू और बेरोजगारी से मक्त ु होगा, जिसमेें शिक्षा और स््ववास््थ््य देखभाल मेें अधिक प्रतिनिधित््व आदि।
तक सार््वभौमिक पहुचँ होगी। z पश्चिमी शिक्षा प्राप्त बुद्धिजीवी: राष्ट्रीय आद ं ोलन को नेतत्ृ ्व पश्चिमी शिक्षित
z मार््गदर््शक सिद््धाांत: गरीबी उन््ममूलन से लेकर सर््व शिक्षा अभियान और नेताओ ं द्वारा किया जा रहा था, जो अक््सर अदं रूनी इलाकोों मेें भख ू से मरने
सार््वभौमिक स््ववास््थ््य देखभाल (आयष््ममा ु न भारत) से लेकर कौशल भारत वाले लाखोों लोगोों की दर््दु शा से अलग रहते थे।
कार््यक्रमोों तक, गांधीवाद मार््गदर््शक सिद््धाांत के रूप मेें कार््य करता है। z सग ं ठनात््मक सामंजस््य का अभाव:
z विकेें द्रीकरण: सत्ता विकेें द्रीकरण की गांधीवादी अवधारणा को जमीनी स््तर पर  प्रार््थना, विरोध और याचिकापर््ण ू नीति के मध््यम से अनक ु ू ल परिणाम
सशक्त स््थथानीय स््वशासन के माध््यम से लोकतंत्र मेें प्राप्त किया जा सकता है। नहीीं मिल सके ।
z स््थथानीय स््वशासन की प्रासगि ं कता: उदाहरण के लिए, भारत सरकार ने  चरमपंथी नेताओ ं द्वारा प्रतिपादित उग्रवादी राष्टट्रवाद, राष्ट्रीय आद ं ोलन को
क्रमशः ग्रामीण और शहरी क्षेत्ररों मेें पंचायती राज और नगर पालिका प्रणालियोों एक समर््पपित दिशा/ध््ययान केें द्रित करने मेें विफल रहा।
को लागू करके गाँधीवादी स््थथानीय स््वशासन की अवधारणा को प्रासंगिक  उदाहरण के लिए, सरू त विभाजन ने राष्ट्रीय आद ं ोलन को बाधित किया;
बनाया है। गदर चरमपंथी समहू की गतिविधियोों के सीमित परिणाम रहे।
z स््वच््छता: गांधीजी स््वच््छता को बहुत महत्तत्व देते थे। उनका नारा था: 'स््वच््छता  प्रभावी संगठन की कमी, चरमपंथियोों और नरमपंथियोों के बीच मतभेद,

ही सेवा'। वर््तमान स््वच््छ भारत अभियान उनसे ही प्रेरित है। सांप्रदायिक दगों ों और संस््थथागत सधु ारोों जैसे कारकोों के कारण होमरूल
z व््यक्ति की आंतरिक स््वच््छता: हालाँकि, गांधीजी का स््वच््छता आदं ोलन लीग समाप्त हो गई।
के वल शारीरिक सफाई से कहीीं अधिक है और गांधीजी का मानना था कि यद्यपि, महात््ममा गांधी के आगमन से पहले की राजनीतिक गतिविधियोों ने राष्ट्रीय
व््यक्ति को मानसिक शारीरिक और आतं रिक सफाई पर अधिक ध््ययान देने की आंदोलन की नीींव रखी, लेकिन आंदोलनोों की गांधीवादी प्रकृ ति ने इसके चरित्र
आवश््यकता है। को ही बदलने का प्रयास किया।
z भ्रष्टाचार मुक्त समाज: गांधीजी का मानना था कि स््वच््छ भारत के लिए राष्ट् रीय आंदोलन मेें गाांधीजी का सकारात्मक प्रभाव:
स््वच््छ सड़कोों और शौचालयोों के अलावा, हमेें अधिक पारदर््शशिता और z राष्ट्रीय आंदोलन का जनसामान््य की ओर उन््ममुख होना: राष्ट्रीय आदं ोलन
जवाबदेही के साथ भ्रष्टाचार मक्त ु समाज की भी आवश््यकता है। का आधार जनसामान््य की ओर स््थथानांतरित हो गया। उदाहरण के लिए,
z स््थथिरता एवं अपरिग्रह: गांधीजी का मानना था कि "पृथ््ववी के पास सभी चपं ारण सत््ययाग्रह, खेड़़ा सत््ययाग्रह आदि ने किसानोों की दर््दु शा को उजागर किया।
मानवोों की आवश््यकताओ ं के लिए पर््ययाप्त संसाधन है, लेकिन एक मानव के z उपेक्षित वर्गगों (सबाल््टर््न) को मुख््यधारा मेें लाना: राष्ट्रीय स््वतंत्रता सग्राम

लालच को परू ा करने के लिए भी पर््ययाप्त संसाधन नहीीं है।" मेें गांधी के आगमन ने अब तक के उपेक्षित वर्गगों को राष्ट्रीय आदं ोलन की
z नैतिक महत्तत्व: गांधीवादी सिद््धाांतोों का नैतिक और व््ययावहारिक महत्तत्व भी है मख्ु ्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया। जैसे, हरिजन अभियान; सविनय अवज्ञा
क््योोंकि मानव समाज के मल्ू ्योों मेें निरंतर गिरावट देखी जा रही है। आदं ोलन, असहयोग आदं ोलन आदि मेें महिलाओ ं की भमि ू का।

70  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


z साध््य से अधिक साधन पर जोर: राजनीति की गांधीवादी शैली ने राजनीतिक
सहयोग तथा असहयोग
स््वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक एकीकरण के बड़़े लक्षष्य के साथ राष्ट्रीय
आदं ोलन को एक आदर््शवादी और नैतिक चरित्र पर बल दिया। उदाहरण z असहयोग हेतु उत्तरदायी घटनाएँ: हालाँकि, गांधीजी शरू ु मेें अग्रेजो
ं ों के
साथ सहयोग कर रहे थे, पंजाब की घटनाओ ं (जलियांवाला बाग, मार््शल
के लिए, चौरी-चौरा मेें हिसं ा के बाद असहयोग आदं ोलन को वापस लेना।
लॉ, हटं र रिपोर््ट) और तर्
ु की के खलीफा के साथ व््यवहार ने उन््हेें असहयोग
z गांधीवादी विचारधारा के मुख््य तत्तत्व: का मार््ग अपनाने के लिए प्रेरित किया।
 गांधीजी द्वारा दिए गए सत््ययाग्रह (सत््य और अहिस ं ा के आदर््श) ने स््वतंत्रता z भारतीय अनुपालन के अभाव मेें ब्रिटिश नियंत्रण समाप्त: इसके
संग्राम की प्रकृ ति को शांतिपर््णू विरोध प्रदर््शन की ओर उन््ममुख करने का अलावा, जैसा कि ‘हिदं स््वराज’ मेें कहा गया था, यह के वल भारतीय
प्रयास किया। सहयोग ही था जिसने भारत मेें ब्रिटिश नियंत्रण को कायम रखा और
 स््वराज: गांधीजी ने स््वतंत्रता की अवधारणा को स््वशासन के विचारोों मेें यदि भारतीयोों ने सहयोग करना बंद कर दिया, तो ब्रिटिश शासन ध््वस््त
हो जाएगा।
लोकप्रिय, विकसित और विस््ततारित किया। जैसे, खादी और ग्रामोद्योग
को बढ़़ावा देना। आंदोलन की पृष्ठभूमि
 भय मुक्त: गांधीवादी विरोध प्रदर््शन के नैतिक चरित्र ने लोगोों के दिमागोों z प्रारंभ: 1 अगस््त, 1920 को 'असहयोग-खिलाफत' आदं ोलन प्रारंभ हुआ था।
को अग्रेजो
ं ों द्वारा पैदा किए गए भय के आधिपत््य से मक्त ु करने मेें मदद की। z कलकत्ता कांग्रेस का प्रस््तताव: सितंबर, 1920 मेें कांग्रेस ने लाला लाजपत
z राष्टट्र निर््ममाण: गांधी जी ने राष्ट्रीय आद ं ोलन को एक समग्र/समावेशी स््वरूप राय की अध््यक्षता मेें कलकत्ता मेें एक प्रस््तताव पारित किया, जिसमेें पंजाब
दिया जो स््वतंत्रता के बाद राष्टट्र निर््ममाण के कार््य मेें सहायक रहा। उदाहरण के (जलियांवाला बाग) और खिलाफत आदं ोलन की माँगोों को परू ा करने और
लिए, हिदं -ू मस््ललिम एकता पर जोर, छुआछूत के खिलाफ अभियान आदि। स््वराज की स््थथापना होने तक सरकार के साथ असहयोग की गांधीजी की

योजना पर सहमति व््यक्त की गई।
z लचीली कार््यप्रणाली: राष्ट्रीय संघर््ष को और अधिक लचीला बनाने के
z प्रत््ययेक समूह का अपना विशेष उद्देश््य: इस आदं ोलन मेें विभिन््न सामाजिक-
लिए, महात््ममा गांधी ने संघर््ष विराम और लचीली संघर््ष रणनीति तैयार की।
आर््थथिक समहू लगे हुए थे, प्रत््ययेक का अपना विशेष उद्देश््य था तथा दिसंबर,
उदाहरण के लिए, गांधी जी ने द्वितीय गोलमेज सम््ममेलन के बाद सविनय
1920 मेें नागपरु सत्र मेें इसकी पष्टि ु की गई।
अवज्ञा आदं ोलन को फिर से शरू ु किया।
z स््वराज की अपील: उन सभी ने स््वराज की अपील पर प्रतिक्रिया व््यक्त की,
अतः राष्ट्रीय स््वतंत्रता संग्राम मेें गांधीवादी प्रभाव समकालीन भारत के मल्ू ्योों,
हालाँकि, इस शब््द का अर््थ अलग-अलग लोगोों के लिए अलग-अलग था।
विचारोों और हितोों को आकार देने हेतु महत्तत्वपूर््ण सिद्ध हुए। यही बात वसुदेव
z ब्रिटिश साम्राज््य की नीींव को चुनौती: 1857 के विद्रोह के बाद पहली
कुटुंबकम, उदार लोकतंत्र, जन-कल््ययाण आदि के दृष्टिकोण मेें भी परिलक्षित
बार, असहयोग ने ब्रिटिश साम्राज््य की नीींव को चनु ौती देने का प्रयास किया।
होती है।
z स््वराज से आंदोलन को बढ़़ावा: गांधीजी ने स््पष्ट रूप से कहा था, "यदि
खिलाफत और असहयोग आंदोलन (1919-1922) असहयोग को एक आदं ोलन के रूप मेें कायम रखा जाए तो एक वर््ष के भीतर
1916 के लखनऊ समझौते ने राष्ट्रीय संघर््ष मेें हिदं -ू मस््ललिम
ु एकता की नीींव को स््वराज संभव है।"
स््थथापित किया। तुर्की के मद्ु दे ने गांधीजी को अंग्रेजोों के खिलाफ संयुक्त प्रयास z छात्ररों की भागीदारी: हजारोों छात्ररों ने ब्रिटिश स््ककूलोों और विश्वविद्यालयोों को
की तैयारी के लिए हिदं ओ ु ं और मसु लमानोों के बीच एकीकृ त संबंध स््थथापित छोड़ दिया, और राष्ट्रीय स््ककूलोों और संस््थथानोों की एक नई पीढ़़ी उभरी, जिनमेें
करने का अवसर प्रदान किया। जामिया मिलिया, काशी विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ और अन््य शामिल थे। इन
संस््थथानोों का नेतत्ृ ्व सभु ाष चद्रं बोस, लाला लाजपत राय और जाकिर हुसैन
असहयोग की अवधारणा की उत्पत्ति:
सहित कई नेताओ ं द्वारा किया जा रहा था।
z भारतीयोों के सहयोग के कारण अंग्रेजोों का शासन: महात््ममा गांधी ने अपनी
z तिलक-स््वराज निधि: तिलक के सम््ममान और राष्ट्रीय भावनाओ ं को बढ़़ावा
प्रसिद्ध पस्ु ्तक हिदं स््वराज (1909) मेें कहा कि भारत मेें ब्रिटिश शासन की
देने के लिए स््थथापित तिलक-स््वराज निधि को 1 करोड़ रुपये से अधिक का
स््थथापना भारतीयोों की भागीदारी से हुई थी और यह उनके सहयोग के कारण अभिदान प्राप्त हुआ।
ही कायम रहा।
z जिन््नना द्वारा स््वराज का विरोध: जिन््नना और मालवीय ने स््वराज के विचार
z भारतीय अनुपालन के अभाव मेें ब्रिटिश नियंत्रण समाप्त: यदि भारतीय का विरोध किया और जिन््नना ने 15 साल के सहयोग के बाद कांग्रेस छोड़ दी।
अनपु ालन करने मेें विफल रहे, तो भारत मेें ब्रिटिश नियंत्रण एक वर््ष मेें समाप्त z व््यक्तिगत व सामूहिक भागीदारी: मोतीलाल नेहरू, परू ु षोत्तम दास टंडन,
हो जाएगा और स््वराज उसका स््थथान ले लेगा। गणेश शक ं र विद्यार्थी, गोविंद बल््लभ पंत और लाल बहादरु शास्त्री सहित
z रौलट सत््ययाग्रह की सफलता: उनके नेतत्ृ ्व मेें रौलट सत््ययाग्रह की सफलता मध््य प््राांत के कई प्रमख ु राष्टट्रवादियोों ने भाग लिया। लाला लाजपत राय ने
के साथ, गांधीजी ने चीजोों को अगले स््तर पर ले जाने का फै सला किया अर््थथात पंजाब के किसानोों का नेतत्ृ ्व किया, बाबा राम चद्रं ने अवध के किसानोों का
सत््ययाग्रह से असहयोग तक। नेतत्ृ ्व किया और पट्टाभि सीतारमैया ने आध्रं के किसानोों का नेतत्ृ ्व किया।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन - द्वितीय चरण (1918 71


z मध््यम वर््ग की भागीदारी: यह आदं ोलन शहरोों मेें मध््यम वर््ग की भागीदारी के z बिखराव के सक ं े त: आदं ोलन मेें टूट-फूट या बिखराव के लक्षण भी दिखाई
साथ शरू ु हुआ। हजारोों छात्ररों ने सरकार द्वारा संचालित संस््थथानोों और कॉलेजोों देने लगे थे। यह स््ववाभाविक था क््योोंकि उच््च तीव्रता के साथ किसी भी विद्रोह
को छोड़ दिया, प्रधानाध््ययापकोों और शिक्षकोों ने इस््ततीफा दे दिया और वकीलोों को लंबे समय तक कायम रखना असंभव है।
ने प्रैक््टटिस करना बंद कर दिया। z वार््तता मेें रुचि का अभाव: ऐसा प्रतीत हुआ कि सरकार बातचीत मेें रुचि
z 1920 के काउंसिल चुनावोों का बहिष््ककार: 1920 के काउंसिल चनु ावोों नहीीं ले रही थी।
का मद्रास को छोड़कर सभी प््राांतोों मेें बहिष््ककार किया गया, जहाँ गैर-ब्राह्मण z खिलाफत के मुद्दे का धूमिल होना: आदं ोलन का मख्ु ्य केें द्र बिंद,ु खिलाफत
पार्टी जस््टटिस पार्टी का मानना था कि काउंसिल मेें प्रवेश करना सत्ता प्राप्त मद्ु दा भी जल््ददी ही समाप्त हो गया। नवंबर, 1922 मेें मस्ु ्तफा कमाल पाशा के
करने का एक तरीका है। नेतत्ृ ्व मेें तर्
ु की के लोग उठ खड़़े हुए और उन््होोंने सल्ु ्ततान को राजनीतिक सत्ता
असहयोग आंदोलन का महत्त्व से बेदखल कर दिया। तर् ु की को एक धर््मनिरपेक्ष राज््य घोषित कर दिया गया
है। परिणामस््वरूप, खिलाफत मद्ु दा अप्रासंगिक हो गया।
z आर््थथिक परिणाम: असहयोग के आर््थथिक परिणाम काफी नाटकीय रहे थे।
इसके माध््यम से विदेशी वस््ततुओ ं का बहिष््ककार किया गया, शराब की दक z 'द ट्रीटी ऑफ सेवर््स' को पुनः लिखा जाना: अग्रेजो ं ों ने तर्
ु की के पक्ष मेें 'द
ु ानोों पर
धरना दिया गया और विदेशी कपड़ों को बड़़े पैमाने पर आग मेें जलाया गया था। ट्रीटी ऑफ सेवर््स' को पनु ः लिखा परिणामस््वरूप, एकता का कारण लप्तु हो
गया और मसु लमान अब कांग्रेस से जड़ु ़े नहीीं रहे।
z शहरी क्षेत्ररों मेें इसका दमन किया गया: हालाँकि, कई कारणोों से शहरी क्षेत्ररों
मेें इस आदं ोलन को दबा दिया गया था, जिसमेें यह तथ््य भी शामिल था कि z अली भाइयोों और मुसलमानोों का समर््थन: अली भाइयोों और मसु लमानोों
खादी बड़़े पैमाने पर उत््पपादित मिल कपड़़े की तल का समर््थन राष्टट्रवादी के बजाय धार््ममिक था। जैसे-जैसे इस उद्देश््य के प्रति उनका
ु ना मेें अधिक महगं ी थी और
शहरी गरीब इसे खरीदने मेें सक्षम नहीीं थे। ब्रिटिश संस््थथाओ ं के पर््णू बहिष््ककार समर््थन कम होता गया, वैस-े वैसे उनका समर््थन भी कम होता गया।
मेें कठिनाइयाँ थीीं क््योोंकि वे महत्तत्वपर््णू सेवाएँ प्रदान करती थीीं। z मोपला (के रल) की घटना: मोपला घटना ने हिदं ओ ु ं और मसु लमानोों के
z ग्रामीण क्षेत्ररों मेें असहयोग: धीरे -धीरे यह आदं ोलन शहरोों से ग्रामीण इलाकोों बीच जबरदस््त शत्रुता पैदा कर दी।
की ओर उन््ममुख हो गया, जिसमेें किसान और आदिवासी क्षेत्र भी शामिल थे। z कांग्रेस एक लोकप्रिय पार्टी बनकर उभरी: पहले,
कांग्रेस के खिलाफ सबसे गंभीर आलोचनाओ ं मेें से
असहयोग को लेक र काांग्रेस की चिंताएँ एक यह थी कि यह आबादी के के वल एक हिस््ससे का
z बहिष््ककार करने मेें झिझक: हालाँकि, कांग्रेस के कई सदस््य सझु ावोों को प्रतिनिधित््व करने वाले अभिजात वर््ग की पार्टी थी।
लेकर आशकि ं त थे। वे नवंबर, 1920 के काउंसिल चनु ावोों का बहिष््ककार z सभी वर्गगों की भागीदारी: पहली बार इसमेें सभी वर्गगों
करने से झिझक रहे थे क््योोंकि उन््हेें लगा कि इस पहल से सार््वजनिक अशांति की भागीदारी बढ़ी। 1920 के कांग्रेस अधिवेशन से,
फै ल जाएगी। शामिल होने की शल्ु ्क और शामिल होने की उम्र मेें काफी
z तीखी बहस/ वाद–विवाद: सितंबर से दिसंबर के बीच कांग्रेस के भीतर तीखी कटौती की गई, जिससे कांग्रेस पार्टी का विस््ततार गाँवोों
बहस चली। एक समय के लिए, ऐसा भी लगा जैसे आदं ोलन के समर््थकोों और तक हुआ और इसके जनाधार का भी विस््ततार किया गया।
विरोधियोों के बीच कोई सहमति नहीीं बन पाएगी। z शक्तिशाली नेताओ ं का उभरना: खिलाफत आदं ोलन
z गांधीजी द्वारा नेतृत््व: महात््ममा गांधी ने असहयोग आदं ोलन (1920-22) का ने कई मजबतू व कद्दावर नेताओ ं को जन््म दिया, जिनमेें
नेतत्ृ ्व किया। बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चद्रं पाल, मोहम््मद अली जिन््नना मौलाना आजाद, सैफुद्दीन किचल,ू एम. ए. असं ारी और
और एनी बेसेेंट जैसे दिग््गजोों ने इस प्रस््तताव का परु जोर विरोध किया। हालाँकि, अन््य शामिल थे।
भारतीय राष्टट्रवादियोों की यवु ा पीढ़़ी ने गांधीजी का परु जोर स््ववागत की और उपलब््धधियाँ z राष्ट्रीय प्रतीक के रूप मेें चरखा: गांधीजी ने अहिसं ा
उनका समर््थन किया। और सत््ययाग्रह के रूप मेें एक नया बौद्धिक विकल््प प्रदान
z व््ययापक समर््थन: गाँधीजी की पहल को कांग्रेस पार्टी ने अपनाया और उन््हेें किया, जो बाद मेें राष्ट्रीय प्रतिरोध के लिए महत्तत्वपर््णू
अबल ु कलाम आज़़ाद, मख्ु ्ततार अहमद असं ारी, हकीम अजमल खान, अब््बबास उपकरण बन गया।
तैयबजी, मौलाना मोहम््मद अली और मौलाना शौकत अली जैसे मस््ललिम ु z मुस््ललिम भागीदारी: मालाबार मेें मोपला विद्रोह के
नेताओ ं का व््ययापक समर््थन मिला। अपवाद के साथ, आदं ोलन मेें मस््ललिम
ु भागीदारी देखी
गााँधीजी: आंदोलन से उदासीनता या दरू ी के कारण गई।
z चौरी-चौरा घटना (1922) : गांधी जी का मानना था कि लोगोों ने अहिसं क z अंग्रेजी हुकूमत से भय मुक्त वातावरण: लोगोों के मन
मार््ग को परू ी तरह से न हीीं सीखा और समझा है। चौरी-चौरा जैसी घटनाएँ से अग्रेजो
ं ों की शक्ति के प्रति भय को दरू होने लगा उनमेें
उस जनु नू और ऊर््जजा को भड़का सकती हैैं जो आदं ोलन को सामान््य रूप से आत््मविश्वास बढ़ा।
हिसं क बना देगी। z शैक्षणिक सस्ं ्थथानोों का गठन: कई शैक्षणिक संस््थथानोों
z हिंसक आंदोलन: एक हिसं क आदं ोलन को औपनिवेशिक सत्ता द्वारा आसानी का गठन किया गया, जिनमेें जामिया मिलिया इस््ललामिया,
से दबाया जा सकता था, जो प्रदर््शनकारियोों के खिलाफ राज््य के सशस्त्र बल बिहार विद्यापीठ, काशी विद्यापीठ, गजु रात विद्यापीठ
का उपयोग करने के लिए हिसं ा की घटनाओ ं का फायदा उठा सकता था। और अन््य शामिल हैैं।

72  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


z स््वराज लक्षष्य हासिल नहीीं हुआ: जैसा कि घोषित z कांग्रेस के एक भाग के रूप मेें स््वराज पार्टी: परिवर््तन-समर््थकोों ने इस
किया गया था, स््वराज एक साल मेें हासिल नहीीं हुआ। अवधारणा को अपनाया और स््वराज पार्टी की स््थथापना की। बाद मेें, 1923 मेें
इससे कई लोगोों को निराशा हुई। दिल््लली मेें एक बैठक मेें, संघर्षषों को काफी हद तक हल किया गया और यह
z मुस््ललिम अलगाव: असहयोग की विफलता का मतलब घोषणा की गई कि स््वराज पार्टी कांग्रेस का एक हिस््ससा है।
खिलाफत की विफलता भी है। अली बंधओ  प्रारंभ मेें गांधीजी का विरोध: जब गांधीजी जेल से लौटे, तो शरू ु मेें वे
ु ं ने अपनी
विफलता के लिए कांग्रेस को जिम््ममेदार ठहराया। कांग्रेस परिषद मेें प्रवेश के विचार के साथ-साथ वैचारिक आधार पर परिषद के
की आगे की कार््र वाइयोों मेें मसु लमानोों से कम उत््ससाहपर््णू संचालन मेें स््वराजवादियोों द्वारा बाधा डालने के विचार के भी विरोधी थे।
सहयोग मिला। z रचनात््मक कार््य को स््ववीकार करना: चकि ँू , अग्रेजो
ं ों को व््यवधान की आशा
z कांग्रेस मेें विभाजन: आदं ोलन को एकाएक वापस लेने थी इसलिए गांधीजी ने कांग्रेस मेें स््वराजवादियोों के रचनात््मक कार्ययों को स््ववीकार
कमियाँ
को कई लोगोों ने नापसंद किया, जबकि अन््य प््राांतीय करना शरू ु कर दिया और 1924 के बेलगाम अधिवेशन मेें स््वराजवादियोों को
चनु ावोों मेें भाग लेने के लिए उत््ससुक हो गए, जिससे स््वराज पर््णू समर््थन दिया गया।
पार्टी का जन््म हुआ। z तात््ककालिक लक्षष्य के रूप मेें डोमिनियन स््टटेटस: स््वराज पार्टी के घोषणापत्र
z क््राांतिकारी गतिविधि का पुनरुद्धार: इससे बंगाल के मेें कहा गया था, "हालाँकि, पार्टी का अतिम ं लक्षष्य स््वराज है, लेकिन इसका
विभाजन के बाद क््राांतिकारी गतिविधि के दसू रे चरण तात््ककालिक लक्षष्य डोमिनियन स््टटेटस होगा" और "यह कांग्रेस के भीतर एक
का भी जन््म हुआ। पार्टी है, न कि प्रतिद्द्वं वी पार्टी।"
z निम््न वर्गगों मेें व््ययापक पहुच
ँ का अभाव: खादी गरीबोों z विधायिका के भीतर असहयोग: इसमेें दावा किया गया कि वे विधायिका
की पहुचँ से बाहर थी, जिसने मध््यम और निम््न वर्गगों को के भीतर असहयोग करेेंगे, कामकाज मेें बाधा डालेेंगे और राष्ट्रीय मद्ददों ु की
आदं ोलन से दरू कर दिया। ओर ध््ययान आकर््षषित करेेंगे।
चुनाव और परिणाम: 1923-24 के चनु ावोों मेें पार्टी ने भाग लिया और
स्वराज पार्टी (1923) z

तैयारी के लिए कम समय होने के बावजदू बहुमत से पर््ययाप्त सीटेें हासिल की।
स्वराज पार्टी के गठन का कारण उसने प््राांतोों मेें गठबंधन सरकारेें भी बनाई ं और विधान सभाओ ं मेें महत्तत्वपर््णू
z असहयोग आंदोलन की समाप्ति का निर््णय: आदं ोलन वापस लेने के विषयोों को उठाया।
गांधीजी के फै सले से जनता नाराज हो गई। उनके फै सले की उनके सहयोगियोों z विधानमंडलोों से वापसी: 1925 मेें सी. आर. दास की मृत््ययु के बाद, स््वशासन
ने कड़़ी आलोचना की, जिनमेें मोतीलाल नेहरू, सी. आर. दास और एन. सी. सधु ारोों को लागू करने मेें सरकार की विफलता के जवाब मेें स््वराजवादियोों ने
के लकर, विट्ठलभाई पटेल, जी. एस. कपार्डे, एस. श्रीनिवास अयंगर और एम. विधानसभाओ ं से हटने का फै सला किया।
आर. जयकर शामिल थे, जिन््होोंने स््वराज पार्टी की स््थथापना की थी। z 'प्रतिक्रियावादी पार्टी ('रिस््पपॉन््ससिविस््ट पार्टी'): हालाँकि, अन््य सदस््योों
z कांग्रेस खिलाफत-स््वराज््य पार्टी: 1 जनवरी, 1923 को 'कांग्रेस खिलाफत- ने एक अलग पार्टी, 'रिस््पपॉन््ससिविस््ट पार्टी' मेें बने रहने और उसमेें शामिल होने
स््वराज््य पार्टी ' ने 'स््वराज पार्टी' की नीींव रखी। का चनु ाव किया, जो अभी भी अग्रेजो ं ों (लाजपत राय, मदन मोहन मालवीय,
z विधान परिषदोों मेें प्रवेश: इसके बाद इसने एक प्रतिबंधात््मक कार््यक्रम एनसी के लकर और एमआर जयकर) के साथ सहयोग का समर््थन करती थी।
प्रस््ततावित किया जो अपने सदस््योों को चनु ाव लड़कर विधान परिषदोों (1919 z चुनावी प्रदर््शन (1926): अन््य पार््टटियोों के सामदु ायिक अभियानोों, कमजोर
के मोोंटफोर््ड सधु ारोों के तहत स््थथापित) मेें प्रवेश करने के लिए प्रोत््ससाहित करे गा नेतत्ृ ्व, सत्ता-विरोधी लहर और अन््य कारकोों के कारण, पार्टी ने 1926 के
ताकि विधायिका को भीतर से समाप्त किया जा सके और नैतिक दबाव का चनु ावोों मेें उतना अच््छछा प्रदर््शन नहीीं किया जितना पहले किया था।
उपयोग करके प्राधिकरण को लोकप्रिय माँग स््वशासन को मानने के लिए
मजबरू किया जा सके । स्वराज पार्टी का मूल्ययांकन
z प्रो-चेेंजर््स और नो-चेेंजर््स: परिषद मेें प्रवेश के समर््थकोों को 'प्रो चेेंजर््स' के नाम z सार््वजनिक सरु क्षा विधेयक को हराना: हालाँकि, यह कुछ
से जाना जाता था और इसमेें सी. आर. दास, मोतीलाल नेहरू, हकीम अजमल अच््छछे काम करने मेें कामयाब रही, जैसे कि 1928 के सार््वजनिक
खान और एन. सी. के लकर शामिल थे। जबकि विरोधियोों को 'नो-चेेंजर््स' के सरु क्षा विधेयक को हराना, जिसने कम््ययुनिस््ट विचारधारा से प्रेरित
रूप मेें जाना जाता था और इसमेें वल््लभभाई, राजेेंद्र प्रसाद, विजयराघवचार््य विध््ववंसक तत्तत्ववों को निर््ववासित करने का प्रयास किया था। इसमेें
और सी. राजगोपालाचारी शामिल थे। बिना किसी मक ु दमे के किसी को गिरफ््ततार करने की अनमति ु
उपलब््धधियाँ

 गया अधिवेशन (1922): कांग्रेस के गया अधिवेशन मेें समर््थकोों के प्रवेश


दी गई थी।
का प्रस््तताव अस््ववीकार कर दिया गया।
z राजनीतिक शून््य की भरपाई: उन््होोंने राजनीतिक परिदृश््य से
 जनता के बीच रचनात््मक कार््य: उन््होोंने (नो-चेेंजर््स) कहा कि परिषदोों
गांधीजी की अनपु स््थथिति के कारण पैदा हुए उस राजनीतिक शन्ू ्य
मेें प्रवेश करने से उनका जनता के बीच रचनात््मक कार््य को करने से
को भरा, जब राष्ट्रीय आदं ोलन अपने सबसे कमजोर दौर मेें था।
ध््ययान भटक जाएगा और परिषदोों मेें प्रवेश करने वाली विधायिकाएँ अतं तः
व््यवस््थथा का भाग हो जाएगं ी और बाद मेें रबर स््टटाांप के रूप मेें परिवर््ततित z अधिनियम (1919) की वास््तविकता को उजागर करना:
हो जाएगं ी। उन््होोंने 1919 के अधिनियम के खोखलेपन को उजागर किया।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन - द्वितीय चरण (1918 73


z राजनीतिक जागरूकता: विधानसभा मेें मोतीलाल और सी. राष्टट्रवादियोों और काांग्रेस की प्रतिक्रिया
आर. दास की सक्रिय भागीदारी ने मीडिया का ध््ययान आकर््षषित z कांग्रेस का विरोध प्रदर््शन: 1927 मेें कांग्रेस मद्रास मेें इसका विरोध करने पर
किया, जिससे विधान सभाओ ं के कामकाज मेें लोगोों की रुचि सहमत हुई। इसकी आलोचना का मख्ु ्य कारण यह था कि, भारत मेें सवं ैधानिक
बढ़़ी और उनकी राजनीतिक जागरूकता का स््तर बढ़़ा। सधु ारोों का आकलन करने के आयोग के लक्षष्य के बावजदू , इसके सभी सदस््य
z क्षेत्रीय सरकारोों का असली स््वरूप उजागर: इसने क्षेत्रीय श्वेत थे, जिनमेें कोई भारतीय प्रतिनिधित््व नहीीं था।
सरकारोों की वास््तविक प्रकृ ति के साथ-साथ 1919 के सधु ारोों z “साइमन वापस जाओ” के नारे: 1928 मेें जब साइमन कमीशन भारत
के खोखलेपन को भी उजागर किया। पहुचँ ा, तो उसका स््ववागत काले झडों ों और "साइमन वापस जाओ" के नारे
z बजट का व््ययापक जाँच: इससे बजट का भी प्रभावी ढंग से के साथ किया गया।
खल ु ासा हुआ और पहली बार बजट का व््ययापक जाँच किया गया।
युवाओ ं की एक नई पीढ़़ी का उदय
z सरकारी नीतियोों मेें सेेंध लगाने मेें असमर््थ: वे सरकारी
z युवाओ ं को अपनी योग््यता प्रदर््शशित करने का अवसर: साइमन कमीशन ने
नीतियोों मेें सेेंध लगाने मेें असमर््थ थे और जल््द ही सत्ता की
यवु ाओ ं को अपनी योग््यता प्रदर््शशित करने का अवसर प्रदान किया। इस आयोग
राजनीति मेें शामिल हो गए।
ने, साथ ही लाला लाजपत राय की मृत््ययु ने, भगत सिहं और अन््य लोगोों की
जुड़ने मेें असमर््थ: वे आम जनता से जड़ु ने मेें असमर््थ रहे।
कमियाँ

z
क््राांतिकारी भावना को बढ़़ावा दिया।
z मुस््ललिम समर््थकोों को अलग-थलग कर दिया गया: उन््होोंने z नवीन समाजवादी विचारधाराओ ं का उदय: आयोग के बाद, भगत सिंह
ग्रामीण हितोों के मस््ललिम
ु समर््थकोों को अलग-थलग कर दिया। और सभु ाषचद्रं बोस सहित यवु ा नेताओ ं की एक नई पीढ़़ी प्रमख ु ता से उभरी।
z बंगाली किसानोों की पीड़़ा के समक्ष असमर््थ: वे बंगाल के यवु ाओ ं के इस प्रवाह से नई समाजवादी विचारधाराओ ं का उदय हुआ।
किसानोों की पीड़़ा को कम करने मेें भी असमर््थ रहे।
राष्ट् रीय आंदोलन पर साइमन कमीशन की नियुक्ति का प्रभाव:
साइमन कमीशन (1928)
z समाजवादी तर््ज पर व््ययापक सामाजिक-आर््थथिक सध ु ार: इसने न के वल
z परिचय: राष्टट्रवादी आदं ोलन की प्रतिक्रिया मेें गठित साइमन आयोग को भारत पर््णू स््वतंत्रता बल््ककि समाजवादी तर््ज पर व््ययापक सामाजिक-आर््थथिक सधु ारोों
मेें 1919 अधिनियम द्वारा सवि
ु धाजनक सवं ैधानिक प्रणाली के कामकाज की की माँग करने वाले क््राांतिकारी तत्तत्ववों को बढ़़ावा दिया।
जाँच करने और संशोधनोों के लिए सिफारिशेें करने का काम सौौंपा गया था। z सामूहिक कार््रवाई का आयोजन: जब साइमन कमीशन की घोषणा की गई,
साइमन कमीशन की स््थथापना नवंबर, 1927 मेें की गई थी और यह फरवरी, तो कांग्रेस को, जिसके पास कोई सक्रिय योजना नहीीं थी, उसे एक मद्ु दा मिल
1928 मेें भारत आया था।
गया जिस पर वह सामहि ू क कार््र वाई आयोजित कर सके ।
z शासन मॉडल की प्रगति की समीक्षा के लिए समिति: भारतीय आबादी ने
z भारतीय एकता की सभ ं ावनाएँ: भारतीय राजनेताओ ं को एक सर््वसम््मत
माँग की कि सरकार की बोझिल द्वैध शासन प्रणाली को संशोधित किया जाए
संविधान तैयार करने की लॉर््ड बर्के नहेड की चनु ौती को कई राजनीतिक समहोू ों
और भारत सरकार अधिनियम, 1919 मेें ही कहा गया था कि शासन मॉडल की
ने स््ववीकार कर लिया और इसलिए इस समय भारतीय एकता की सभं ावनाएँ
प्रगति की समीक्षा के लिए दस साल बाद एक समिति का गठन किया जाएगा।
उज््ज््वल दिखाई दीीं।
z एक भी भारतीय सदस््य नहीीं: भारत का भविष््य निर््धधारित करने वाले साइमन
कमीशन मेें एक भी भारतीय सदस््य को शामिल न किए जाने से भारतीयोों मेें नेहरू रिपोर््ट (1928)
विशेष नाराजगी थी और उन््होोंने स््वयं को अपमानित महससू किया। 'नेहरू रिपोर््ट' (1928) भारत के लिए एक प्रस््ततावित नए डोमिनियन संविधान
(स््वयं मेें कोई संविधान नहीीं) का प्रस््तताव करने वाला एक पेपर था। इसका मसौदा
साइमन कमीशन के तहत प्रमुख प्रस्ताव मोतीलाल नेहरू की अध््यक्षता वाली सर््वदलीय सम््ममेलन समिति द्वारा तैयार
z नए सविध ं ान की रूपरेखा: एक नए संविधान की रूपरे खा प्रस््ततावित किया गया था, जिसमेें उनके बेटे जवाहरलाल नेहरू सचिव थे। इस समिति मेें
की गई। नौ अन््य सदस््य थे, जिनमेें दो मस््ललिम
ु भी शामिल थे। हालाँकि, रिपोर््ट मेें पूर््ण
z द्वैध शासन व््यवस््थथा की समाप्ति: द्वैध शासन को समाप्त कर दिया स््वतंत्रता की वकालत नहीीं की गई थी, नेहरू रिपोर््ट मेें प्रस््ततावित संविधान मेें
जाना चाहिए और विधानमडं ल के प्रति जवाबदेह मत्रियो ं ों को सभी प््राांतीय भारत को ब्रिटिश राष्टट्रमंडल के भीतर प्रभत्ु ्व का दर््जजा देने का आह्वान किया गया
जिम््ममेदारियाँ सौौंपी जानी चाहिए। यह केें द्र मेें द्वैध शासन का कट्टर विरोधी था। था। बाद मेें इसके अधिकांश प्रस््तताव स््वतंत्र भारत के संविधान की बुनियाद बने।
इसने द्वैध शासन के बजाय एक जिम््ममेदार प््राांतीय सरकार की वकालत की।
z एक पूर््ण सघं ीय सघं का प्रस््तताव: इसने प्रस््ततावित किया कि एक पर््णू 'नेहरू रिपोर््ट ' (1928) की सिफारिशेें
संघीय संघ, जिसमेें ब्रिटिश भारत और रियासतेें दोनोों शामिल होों, एक 1. इसमेें डोमिनियन स््टटेटस का अनुरोध किया गया।
एकजटु , स््ववायत्त भारत के लिए एकमात्र दीर््घकालिक विकल््प था। 2. इसमेें अंततः भारत सरकार अधिनियम, 1935 के विपरीत, मौलिक
z मताधिकार का विस््ततार किया जाए: इसमेें प्रस््ततावित किया गया कि अधिकार संबंधी अधिकार-पत्र भी शामिल था।
मताधिकार का विस््ततार किया जाए और विधानमडं ल का विस््ततार किया 3. इसमेें अल््पसंख््यकोों के लिए अलग निर््ववाचक मंडल का कोई प्रावधान
जाए। नहीीं किया गया।

74  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


4. पद-सोपानात््मक न््ययायपालिका की व््यवस््थथा की जाए। विकल्प के रूप मेें महत्त्वपूर््ण निर््णय
5. राज््य और धर््म के पृथक््करण पर जोर दिया गया।
z बहिष््ककार: गोलमेज सम््ममेलन का बहिष््ककार।
6. सरकार की संसदीय प्रणाली।
z पूर््ण स््वराज: पर््णू स््वराज के लिए प्रयास।
7. केें द्र सरकार के पास अवशिष्ट अधिकार।
8. वयस््क मताधिकार। z इस््ततीफा देने का अधिकार: विधानमडं ल के सभी सदस््योों को इस््ततीफा
9. प््राांतीय सीमाओ ं का भाषाई पुनर््वविभाजन। देने का अधिकार है।
z स््वतंत्रता दिवस: यह घोषणा की गई कि 26 जनवरी, 1930 को स््वतंत्रता
रिपोर््ट का विरोध क्ययों किया गया?
दिवस के रूप मेें मनाया जाएगा, जिसमेें व््यक्तियोों द्वारा पर््णू स््वतंत्रता के
z सांप्रदायिक/ पथ ृ क निर््ववाचन मंडल की समाप्ति: इसने सांप्रदायिक/ लिए लड़ने की प्रतिबद्धता ली गई।
पृथक निर््ववाचन मण््डल को समाप्त कर दिया, जिससे मस््ललिम ु लीग और अन््य z नेतृत््व मेें पीढ़़ीगत बदलाव: लाहौर अधिवेशन मेें नेतत्ृ ्व मेें पीढ़़ीगत
अल््पसंख््यक आबादी नाराज हो गई। बदलाव भी देखा गया।
z डोमिनियन स््टटेटस का अनरु ोध: इसने पर््णू स््वतंत्रता के बजाय डोमिनियन z गांधीजी के नेतृत््व मेें सविनय अवज्ञा: यह भी निर््धधारित किया गया कि
स््टटेटस का अनरु ोध किया- इस बिंदु पर, जवाहर लाल नेहरू भी अपने पिता से गांधीजी के नेतत्ृ ्व मेें सविनय अवज्ञा आदं ोलन चलाया जायेगा।
असहमत थे (जैसा कि एक साल बाद पर््णू स््वराज की उनकी इच््छछा से देखा
z पूर््ण स््वराज के लिए प्रतिबद्धताएँ: एक राष्टट्रव््ययापी बैठक बल ु ाई गई और
गया था)। 'इडं िपेेंडेेंस फॉर इडं िया लीग' की स््थथापना नेहरू और सभु ाष ने की थी।
उसमेें ग्रामीण और शहरी दोनोों क्षेत्ररों से बड़़ी संख््यया मेें लोग शामिल हुए थे,
z सांप्रदायिक टकराव: इस रिपोर््ट को मस््ललिम ु लीग, हिदं ू महासभा या उत््ससाही जिसमेें पर््णू स््वराज के लिए प्रतिबद्धताएँ व््यक्त की गई थीीं।
सिखोों ने स््ववीकार नहीीं किया और इसने सांप्रदायिक संघर््ष और टकराव को
बढ़ावा दिया। सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930)

जिन्ना का चौदह सूत्री फॉर््ममूला नेहरू रिपोर््ट पर सरकार की निष्क्रियता और समान प्रभत्ु ्व की स््थथिति की किसी
भी माँग पर सहमत होने मेें विफलता के बाद, गांधीजी ने कांग्रेस और पूरे देश
z इसकी प्रतिक्रिया मेें, मोहम््मद अली जिन््नना ने 1929 मेें अपने चौदह सत्री ू के बीच बढ़ते असंतोष के बीच एक नई रणनीति की तलाश की।
फॉर््ममूले तैयार किए, जो स््वतंत्र अखडं भारत मेें भागीदारी के लिए मस््ललिम ु
समदु ाय की मख्ु ्य माँग बने। महात्मा गाांधी की मााँगेें
z 14-सत्ू रीय फॉर््ममूले के मुख््य बिंदु: z पूर््ण स््वराज की माँग: 31 जनवरी, 1930 को पर््णू स््वराज की माँग के तरु ं त
 अलग-अलग चन ु ावी जिले होों। बाद, उन््होोंने ग््ययारह माँगोों (11 सत्री
ू य माँगोों) को रे खांकित करते हुए वायसराय
इरविन को एक पत्र सौौंपा।
 केें द्रीय विधायिकाओ ं मेें 33% सीटेें मस ु लमानोों के लिए आरक्षित होों।
z माँगोों को व््ययापक बनाना: इसका उद्देश््य माँगोों को व््ययापक बनाना था ताकि
 प््राांतोों के पास अवशिष्ट शक्तियाँ होों।
भारतीय समाज के सभी वर््ग उनसे जड़ु सकेें और एक देश व््ययापी अभियान
 क्षेत्रीय स््ववायत्तता हो।
मेें शामिल हो सकेें ।
 सघ ं मेें शामिल राज््योों की मजं रू ी के बिना केें द्र द्वारा कोई सवं ैधानिक z प्रमुख माँगेें: इनमेें अन््य बातोों के अलावा, पर््णू शराब बंदी, राजनीतिक कै दियोों
परिवर््तन न किया जाए। की रिहाई, विदेशी कपड़ों पर शल्ु ्क लगाना, आग््ननेयास्त्र लाइसेेंस जारी करना,
 सेवाओ ं मेें मस््ललिमो
ु ों का पर््ययाप्त प्रतिनिधित््व हो। भमि ू राजस््व मेें 50% की कमी, भारतीय निर््ययात लाभदायक बनाने के लिए
पूर््ण स्वराज की मााँग (1929) रुपया स््टर््लििंग विनिमय अनपु ात मेें कमी, भारतीयोों के लिए तटीय नौवहन
z पष्ठृ भूमि: नेहरू रिपोर््ट के बाद, जिसमेें डोमिनियन स््टटेटस को उनकी माँग बताते संबंधी सवि ु धाएँ और नमक कर का उन््ममूलन शामिल था।
हुए उनकी उम््ममीदोों को खारिज कर दिया गया तत््पश्चात जवाहरलाल नेहरू, z सर््ववाधिक प्रेरक माँग: सबसे प्रेरक माँग नमक कर को रद्द करने की थी। नमक
सभु ाष चद्रं बोस और सत््यमर््ततिू ने सक्रियता दिखाई। एक ऐसी मल ू भतू आवश््यकता थी जिसका सेवन अमीर और गरीब दोनोों करते
z गतिरोध की स््थथिति: हालाँकि, मोतीलाल नेहरू और गांधी डोमिनियन स््टटेटस थे और यह सबसे महत्तत्वपर््णू खाद्य पदार्थथों मेें से एक था।
का दावा करके हासिल की गई उपलब््धधियोों को छोड़ने मेें झिझक रहे थे और z ब्रिटिश सत्ता का सर््ववाधिक दमनकारी चेहरा उजागर: महात््ममा गांधी ने,
उन््होोंने आग्रह किया कि सरकार उन््हेें एक वर््ष का समय दे। ब्रिटिश सत्ता के सबसे दमनकारी चेहरे को उसके नमक पर कर आरोपित करने
z उदारवादियोों का रुख: हालाँकि, इससे उदारवादियोों या जवाहर लाल और और इसके उत््पपादन पर सरकार के एकाधिकार के मद्ु दे के साथ उजागर किया।
अन््य लोगोों का हौसला कम नहीीं हुआ। प्रस्तावित 11 सूत्रीय मााँगोों पर भारतीय प्रतिक्रिया:
z पूर््ण स््वराज: दिसंबर, 1929 मेें जवाहरलाल नेहरू की अध््यक्षता मेें लाहौर z विरोधाभासी नीति: 11 सत्री ू य माँगोों को लेकर राष्टट्रवादी नेताओ ं मेें कुछ
कांग्रेस ने भारत के लिए 'पर््णू स््वराज' या पर््णू स््वतंत्रता की माँग को औपचारिक नाराजगी थी, जिसे वे स््वराज घोषणा के विरोधाभासी मानते थे, जो कि कुछ
रूप दिया। समय पहले ही जारी की गई थी।
z भारतीय ध््वज प्रदर््शन: 31 दिसंबर की अर्दद्ध रात्रि मेें जवाहरलाल नेहरू ने z औद्योगिक वर््ग का समर््थन: औद्योगिक वर््ग ने गांधीवादी माँगोों का परू े
रावी नदी के तट पर प्रथम बार भारतीय झडं ा फहराकर जश्न मनाया। दिल से समर््थन किया क््योोंकि वे उन््हेें अधिक आर््थथिक प्रकृ ति का मानते थे।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन - द्वितीय चरण (1918 75


z माँगोों पर कोई प्रतिक्रिया नहीीं: पत्र के अनसु ार, यदि 11 मार््च तक माँगेें परू ी अंग्रेजोों की प्रतिक्रिया
नहीीं की गई,ं तो कांग्रेस सविनय अवज्ञा अभियान शरू ु करे गी। यद्यपि इरविन
ने सौदेबाजी करने से इनकार कर दिया और जिससे माँगोों को कोई प्रतिक्रिया z कांग्रेस नेताओ ं की गिरफ््ततारी: स््थथिति से चिति ं त औपनिवेशिक अधिकारियोों
नहीीं मिली। ने कांग्रेस नेताओ ं को एक-एक करके गिरफ््ततार करना शरू ु कर दिया।
z ऐतिहासिक नमक मार््च: महात््ममा गांधी ने सरोजिनी नायडू सहित अपने 78 z हिंसक झड़पेें: इसके परिणामस््वरूप कई स््थथानोों पर हिसं क झड़पेें हुई।ं
वफादार स््वयंसेवकोों के साथ अपना ऐतिहासिक नमक मार््च (दांडी मार््च) शरू ु z दमन की क्रू र नीति: भयभीत सरकार ने दमन की क्रू र नीति से जवाब दिया।
किया। कांग्रेस ने गांधीजी को सविनय अवज्ञा आदं ोलन शरू ु करने का नेतत्ृ ्व शांतिपर््णू प्रदर््शन कर रहे सत््ययाग्रहियोों पर हमला किया गया, महिलाओ ं और
अधिकार दिया। बच््चोों को पीटा गया और लगभग 60,000 लोगोों को जेल मेें डाल दिया गया।
z व््ययापक जनभागीदारी: महात््ममा गांधी जहाँ भी गए, उन््हेें सनु ने के लिए z प्रमुख राजनेताओ ं की गिरफ््ततारी: सी. राजगोपालाचारी, वल््लभाई पटेल,
हजारोों लोग एकत्र होते थे और उन््होोंने उन््हेें समझाया कि स््वराज से उनका जवाहर लाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, जे. एम. सेनगप्ु ता और अन््य प्रमख ु
क््यया तात््पर््य है साथ ही उन््होोंने जनता को शांतिपर््णू तरीके से अग्रेजो ं ों का विरोध राजनेताओ ं को भी हिरासत मेें लिया गया। मई, 1930 मेें गांधीजी को भी
करने के लिए प्रेरित किया। गिरफ््ततार कर लिया गया और अब््बबास तैयबजी को नेतत्ृ ्व सौौंपा गया, बाद मेें
z नमक कानून का उल््ललंघन: इस आदं ोलन मेें भारी भीड़ उमड़़ी। हर जगह उन््हेें भी गिरफ््ततार कर लिया गया। उसके बाद आदं ोलन का नेतत्ृ ्व सरोजिनी
नमक काननू तोड़़े गए। महिलाओ ं ने भी बड़़ी संख््यया मेें इस आदं ोलन मेें भाग नायडू ने संभाला, हालाँकि, कुछ ही समय मेें, उन््हेें भी गिरफ््ततार कर लिया गया।
लिया। जिसमेें कमला नेहरू (जवाहरलाल नेहरू की पत््ननी) और स््वरूप रानी z कांग्रेस को असवं ैधानिक घोषित कर दिया गया: सरकार ने कई दमनकारी
(जवाहरलाल नेहरू की माँ) सबसे आगे थीीं। सी. राजगोपालचारी ने तमिलनाडु प्रस््तताव जारी किए और कांग्रेस को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया।
मेें मार््च का नेतत्ृ ्व किया, जबकि के के लप््पन ने मालाबार मेें मार््च का नेतत्ृ ्व आंदोलन का मूल््ययाांकन
किया।
z देश के विभिन््न हिस््सोों मेें विस््ततार: देश के विभिन््न हिस््सोों मेें हजारोों लोगोों z ऐतिहासिक नमक मार््च: महात््ममा गांधी ने सरोजिनी नायडू
ने नमक प्रतिबंध की अवज्ञा की, नमक बनाया और सरकारी नमक सवि सहित अपने 78 वफादार स््वयंसेवकोों के साथ अपना ऐतिहासिक
ु धाओ ं
के सामने प्रदर््शन किया। नमक मार््च शरू ु किया। कांग्रेस ने गांधीजी को सविनय अवज्ञा
आदं ोलन शरू ु करने का नेतत्ृ ्व अधिकार प्रदान किया।
z अवज्ञा: जैसे ही आदं ोलन ने जोर पकड़़ा, अतं रराष्ट्रीय कपड़ों का बहिष््ककार
किया गया और शराब की दक ु ानोों पर धरना दिया गया। किसानोों ने राजस््व z सामूहिक भागीदारी: महात््ममा गांधी जहाँ भी गए, उन््हेें सनु ने के
और चौकीदारी कर देने से इनकार कर दिया, गाँव के अधिकारियोों ने पद छोड़ लिए हजारोों लोग इकट्ठा हुए और उन््होोंने समझाया कि स््वराज
उपलब््धधियाँ

दिए और वन निवासियोों ने कई स््थथानोों पर वन नियमोों को तोड़ दिया, लकड़़ी से उनका क््यया तात््पर््य है। गांधी जी ने उन््हेें शांतिपर््णू तरीके से
इकट्ठा करने और पशओ ु ं को चराने के लिए आरक्षित वनोों मेें प्रवेश किया। अग्रेजो
ं ों का विरोध करने के लिए प्रोत््ससाहित किया।
z व््ययापक बहिष््ककार: शराब की दक ु ानोों के व््ययापक बहिष््ककार के विरोध मेें ताड़ z व््ययापक भागीदारी के साथ समान उद्देश््य: इसका उद्देश््य माँगोों
के पेड़ों को काट दिया गया। को व््ययापक बनाना था ताकि भारतीय समाज के सभी वर््ग उनके
z खुदाई खिदमतगार आंदोलन: खान अब््ददुल गफ््फफार खान ने उत्तर-पश्चिम साथ जड़ु सकेें और एक ही अभियान मेें शामिल हो सकेें ।
सीमा के प््राांतोों मेें खदु ाई खिदमतगार आदं ोलन प्रारंभ किया। z औद्योगिक वर््ग का समर््थन: औद्योगिक वर््ग ने गांधीवादी
z रानी गाईदिन््ल्ययू: मात्र 13 साल की उम्र मेें रानी गाईदिन््ल्ययू ने मणिपरु मेें माँगोों का परू े दिल से समर््थन किया क््योोंकि वे उन््हेें अधिक
गांधीजी के आह्वान पर सकारात््मक प्रीतिक्रिया जाहिर की परंतु उन््हेें आजीवन आर््थथिक प्रकृ ति का मानते थे।
कारावास की सजा सनु ाई गई और 1947 मेें उन््हेें रिहा कर दिया गया। z आंदोलन सभी सामाजिक समूहोों को लामबंद नहीीं कर
z चौकीदारी कर देने से मनाही: चौकीदार कर भगु तान न करने का अभियान सका: स््वराज की अमर््तू सक ं ल््पना, सभी सामाजिक समहोू ों को
देश के पर्वी ू हिस््ससे मेें चलाया गया। आकर््षषित न कर सकी।
z वन नियमोों का उल््ललंघन: दक्षिणी और मध््य क्षेत्ररों मेें भी वन नियम तोड़़े गए। z अछूत: ऐसा ही एक समहू देश का तथाकथित 'अछूत' वर््ग था,
z बारदोली सत््ययाग्रह (1928): सविनय अवज्ञा आदं ोलन से ठीक पहले पटेल जिसने 1930 के दशक मेें खदु को दलित या उत््पपीड़़ित कहना
ने बारदोली सत््ययाग्रह की शरुु आत की और यह सविनय अवज्ञा आदं ोलन के शरू
ु कर दिया था।
विफलताएँ

दौरान देश के अन््य हिस््सोों मेें एक आदर््श कर-मक्त ु अभियान बनकर उभरा। z मुसलमानोों की उदासीनता: खान अब््ददुल गफ््फफार खान के
z 'नो-रेवेन््ययू, नो रेेंट': उत्तर प्रदेश मेें 'नो-रे वेन््ययू, नो रेेंट' अभियान का एक और नेतत्ृ ्व वाले NWFP को छोड़कर, मसु लमान उदासीन रहे।
प्रकार देखने को मिला, जहाँ जमीींदारोों को नो-रे वेन््ययू आह्वान जारी किया गया नेताओ ं की सांप्रदायिक बयानबाजी के साथ-साथ उनकी माँगोों
था, जिन््हेें सरकार को राजस््व का भगु तान नहीीं करने का आह्वान किया गया पर सरकार की अनक ु ू ल प्रतिक्रिया से उनका ध्रुवीकरण हो गया।
था साथ ही किसानोों को नो-रेेंट आह्वान जारी किया गया था।
z सांकेतिक समर््थन: औद्योगिक वर््ग के वल हल््कका-फुल््कका
z जन लामबंदी रणनीतियाँ: प्रभात फे री और पत्रिका (अवैध अखबार) सहित समर््थन प्रदान कर रहा है।
कई सार््वजनिक लामबंदी रणनीतियोों का इस््ततेमाल किया गया। बच््चोों के लिए
z भागीदारी मेें कमी: किसानोों की भागीदारी बहुत कम रही।
वानर सेना और लड़कियोों के लिए मजं री सेना का गठन किया गया।

76  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


असहयोग तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन नमक को महत्त्वपूर््ण विषय के रूप मेें क्ययों चुना गया?
z औपनिवेशिक कानूनोों का उल््ललंघन: अग्रेजो ं ों के साथ सहयोग करने से z सबसे अमानवीय कर प्रणाली: जैसा कि गांधी ने कहा, "पानी के अलावा
इनकार करने के बजाय, जैसा कि उन््होोंने 1921-22 मेें किया था, अब लोगोों को कोई अन््य वस््ततु नहीीं है, जिस पर कर लगाकर सरकार लाखोों भख ू े लोगोों,
औपनिवेशिक काननोू ों का उल््ललंघन करने के लिए कहा गया। परिणामस््वरूप, बीमारोों, अपगों ों और परू ी तरह से असहाय लोगोों तक पहुचँ सके , यह सबसे
एक वैचारिक विकास हुआ। अमानवीय कर प्रणाली है।"
z वास््तविक स््वतंत्रता: असहयोग आद ं ोलन की तल ु ना मेें इस बार लक्षष्य z स््वराज के आदर््श से सबं ंध स््थथापित: खादी की तरह नमक ने भी तरु ं त
वास््तविक स््वतंत्रता था। स््वराज के आदर््श को ग्रामीण गरीबोों की सबसे स््पष्ट और सार््वभौमिक शिकायत
z अंतरराष्ट्रीय मंच पर गांधी जी की लोकप्रियता मेें वद्धि ृ : हालाँकि, उस से जोड़ दिया।
समय मस््ललिम
ु और श्रमिक भागीदारी कम ही रही थी, इस अभियान ने गांधी को
z सामूहिक पीड़़ा से प्रतीकात््मक जुड़़ाव: इसने शहरी जनता को सामहि ू क
अतं रराष्ट्रीय मचं पर महत्तत्वपर््णू नेतत्ृ ्व के रुप मेें स््थथापित किया और पहली बार,
पीड़़ा से प्रतीकात््मक रूप से जड़ु ने का मौका दिया।
महिलाएँ बड़़ी संख््यया मेें राष्ट्रीय आदं ोलन मेें शामिल हुई।ं
z देशव््ययापी भागीदारी: असहयोग आद ं ोलन देश के कुछ क्षेत्ररों तक ही सीमित गााँधी-इरविन समझौता या दिल्ली समझौता (मार््च 1931) और
था, जबकि सविनय अवज्ञा आदं ोलन मेें कई भारतीय नेताओ ं ने इस आदं ोलन मेें इसका महत्त्व
सक्रिय रूप से भाग लिया और इसका व््ययापक विस््ततार हुआ। z सविनय अवज्ञा आदं ोलन के दौरान जैस-े जैसे ब्रिटिश दमन अधिक गंभीर होता
z आंदोलन मेें गिरावट: चौरी-चौरा घटना के हिस ं क स््वरूप के बाद एक बार गया, सामान््य जनता को परे शानी उठानी पड़़ी।
असहयोग आदं ोलन की छवि धमि ू ल पड़ गई थी, जबकि सविनय अवज्ञा z ऐसी परिस््थथितियोों मेें, महात््ममा गांधी ने एक बार फिर आदं ोलन समाप्त करने का
आदं ोलन मेें महात््ममा गांधी द्वारा इरविन के साथ समझौते पर हस््तताक्षर करने के फै सला किया और कई अन््य लोगोों के साथ उन््हेें गिरफ््ततार कर लिया गया।
बाद अभियान मेें गिरावट आई।
z कांग्रेस ने गोलमेज के उद्घाटन सम््ममेलन मेें भाग नहीीं लिया, जिसमेें मस््ललिम
ु लीग,
असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन की तुलना:
हिदं ू महासभा, चैैंबर ऑफ प््रििंसेस, उदारवादी और दलित शामिल थे, और यह
पहलू असहयोग आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन
समयावधि 1920-1922 ई. सोचा गया कि कांग्रेस की भागीदारी के बिना कोई भी समझौता निरर््थक होगा।
1930-1934 ई.
z इरविन भी समाधान खोजने के लिए उत््ससुक थे और एक प्रतीकात््मक संकेत
नेतत्ृ ्वकर््तता महात््ममा गांधी महात््ममा गांधी
के रूप मेें, उन््होोंने राजनीतिक कै दियोों को रिहा कर दिया और सीधे गांधी से
प्रमख ु विदेशी वस््ततुओ,ं सरकार के कुछ कानूनोों, माँगोों
बात करने का फै सला किया।
विशेषताएँ शैक्षणिक संस््थथानोों,
और आदेशोों को मानने से इनकार
सरकारी सेवाओ ं और करना। नमक मार््च को एक प्रमख ु z इस सदं र््भ मेें गांधी जी ने 5 मार््च, 1931 को इरविन के साथ एक समझौता किया।
अदालतोों का बहिष््ककार।
घटना के रूप मेें शामिल किया z इस समझौते ने कांग्रेस को सरकार के साथ बराबरी पर ला दिया और ब्रिटेन
गया है। मेें इरविन की इस पहल की काफी आलोचना की गई।
तात््ककालिक जलियांवाला बाग साइमन कमीशन की विफलता
कारण नरसंहार और रौलट और उसके परिणामस््वरूप व््ययापक प्रस्तावित शर्ततें
एक््ट जन असंतोष z सविनय अवज्ञा आंदोलन को निलंबित किया: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने
प्रतिरोध का असहयोग के माध््यम से अहिसं क प्रतिरोध, लेकिन विशिष्ट अपना सविनय अवज्ञा आदं ोलन स््थगित कर दिया।
माध््यम अहिसं क प्रतिरोध काननोू ों के प्रत््यक्ष उल््ललंघन के साथ z गोलमेज सम््ममेलन मेें भागीदारी: गोलमेज सम््ममेलन मेें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
(उदाहरण के लिए, नमक बनाना) की भागीदारी का प्रस््तताव किया गया।
उद्देश््य कांग्रेस द्वारा परिभाषित ब्रिटिश कानूनोों की वैधता और
स््वराज (स््व-शासन) प्राधिकार को चनु ौती देना और z प्रतिबंध हटाना: ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की गतिविधियोों
प्राप्त करने के लिए पूर््ण स््वराज (पूर््ण स््वतंत्रता) की पर प्रतिबंध लगाने वाले सभी अध््ययादेशोों को वापस लेना।
माँग करना z नमक कर हटाना: तटीय भागो मेें रहने वाले लोगो को निजी उपयोग के लिए
सरकार की गिरफ््ततारी, हिसं ा और कठोर दमन, सामहि ू क गिरफ््ततारियां, काननू ी रूप से नमक का उत््पपादन और संग्रहण की अनमति ु मिल गई।
प्रतिक्रिया रोलेट एक््ट की समाप्ति द्वितीय गोलमेज सम््ममेलन मेें वार््तता z वे बिंदु जिन््हेें अग्रेजो
ं ों ने गांधी-इरविन समझौते या दिल््लली समझौते के हिस््ससे
जैसी रियायतोों के के रूप मेें स््ववीकार करने से इनकार कर दिया:
माध््यम से दमन
z पुलिस जाँच: सविनय अवज्ञा आदं ोलन के दौरान हुई गिरफ््ततारियोों और
परिणाम/ राष्टट्रवाद को मजबूत बढ़़ी हुई राजनीतिक सक्रियता,
प्रभाव किया, जन आंदोलनोों महत्तत्वपूर््ण अंतरराष्ट्रीय आकर््षण, अत््ययाचारोों की पलि ु स जाँच के लिए कांग्रेस के अनरु ोध को अस््ववीकार कर
की शक्ति का प्रदर््शन, अधिक से अधिक स््व-शासन के दिया गया।
गांधी की गिरफ््ततारी का लिए अंतिम बातचीत z कम््ययुटे शन स््ववीकार नहीीं: ब्रिटिश ने भगत सिंह और उनके साथियोों की सजा
कारण बना कम करना स््ववीकार नहीीं किया।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन - द्वितीय चरण (1918 77


समझौते का परिणाम z वीरोों के बलिदानोों को मान््यता: इसने भगत सिंह और अन््य लोगोों के
वीरतापर््णू बलिदान को मान््यता दी।
z गोलमेज सम््ममेलन मेें भाग लेना: गांधी जी, गांधी-इरविन संधि के हिस््ससे के
z कांग्रेस के राजनीतिक और आर््थथिक एजेेंडे की नीींव: कराची प्रस््तताव
रूप मेें लंदन मेें द्वितीय गोलमेज सम््ममेलन मेें भाग लेने के लिए सहमत हुए और महत्तत्वपर््णू है क््योोंकि यह बाद के वर्षषों मेें कांग्रेस के राजनीतिक और आर््थथिक
सरकार राजनीतिक कै दियोों को रिहा करने के लिए प्रतिबद्ध थी। एजेेंडे की नीींव बन गया
z चरमपंथियोों द्वारा आलोचना: सरकार से स््पष्ट लाभ हासिल करने मेें विफल
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन, इसका महत्त्व एवं प्रभाव
रहने और गोलमेज सम््ममेलन मेें भाग लेने के लिए सहमत होकर स््वराज की माँग
पर आत््मसमर््पण करने के लिए चरमपंथियोों द्वारा इस समझौते की आलोचना z प्रथम गोलमेज का बहिष््ककार: कांग्रेस ने प्रथम गोलमेज सम््ममेलन (1930)
का बहिष््ककार किया, जिसमेें रियासतोों, अबं ेडकर और अन््य गैर-कांग्रेसी दलोों
की गई।
ने भाग लिया था। अबं ेडकर ने दलितोों के लिए एक अलग निर््ववाचन क्षेत्र की
z अवसर का लाभ उठाना: गांधी जी को शायद पता था कि बड़़े आदं ोलन धारणा भी रखी, जबकि जिन््नना ने मसु लमानोों के लिए मजबतू सरु क्षा उपायोों का
मलू तः क्षणभगं रु होते हैैं, और उन््होोंने ब्रिटिश प्रशासन से कुछ लाभ प्राप्त करके अनरु ोध किया (इन दोनोों अनरु ोधोों का प्रतिनिधित््व 1932 के सांप्रदायिक पंचाट
इस अवसर का लाभ उठाने का प्रयास किया। मेें किया गया था)।
क्या गाांधी-इरविन समझौता एक उलटफेर था? z गांधी-इरविन समझौता: गांधी-इरविन समझौते के बाद, गांधीजी को द्वितीय
z पीछे हटना नहीीं: गांधी-इरविन समझौते मेें सहमति के अनसु ार सविनय गोलमेज सम््ममेलन मेें कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप मेें भेजा गया।
अवज्ञा को रोकने का गांधी का निर््णय पीछे हटना नहीीं था। द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के संबंध मेें:
z जनसमूह की बलिदान देने की सीमित क्षमता: कार््यकर््तताओ ं के विपरीत, z सवं ैधानिक विकास की परिकल््पना: गोलमेज सम््ममेलन अग्रेजो ं ों द्वारा
जनता की बलिदान देने की क्षमता सीमित थी और सितंबर, 1930 के बाद परिकल््पपित संवैधानिक विकास के अनरू ु प था, जिसे साइमन कमीशन द्वारा
थकावट के लक्षण दिखाई देने लगे, खासकर दक ु ानदारोों और व््ययापारियोों मेें भारत की राजनीतिक व््यवस््थथा के लिए भविष््य की कार््ययोजना तैयार करने के
जो इतनी ऊर््जजा से लगे हुए थे। लिए भी व््यक्त किया गया था।
कराची अधिवेशन (मार््च, 1931) z एक एकल सम््ममेलन के तीन सत्र: हालाँकि, गोलमेज सम््ममेलनोों को प्रथम,
द्वितीय और तृतीय का नाम दिया गया था। इसे ऐसा कहना गलत होगा क््योोंकि
z गांधी-इरविन सधं ि को स््ववीकृति: उग्र राष्टट्रवादियोों द्वारा गांधी-इरविन समझौते
यह मल ू तः एक एकल सम््ममेलन था जो तीन सत्ररों मेें विभाजित था।
की आलोचना की गई क््योोंकि यह वायसराय से भारतीयोों के लिए राजनीतिक
z नया वायसराय विलिंगडन की नियुक्ति: दसू रे गोलमेज सम््ममेलन से ठीक
स््वतंत्रता की प्रतिबद्धता प्राप्त करने मेें असमर््थ रहा था; और यह समझौता इस
पहले अप्रैल मेें इरविन की जगह नये वायसराय विलिंग््डन को नियक्त ु किया गया
माँग पर भी सहमत नहीीं हुआ था कि भगत सिंह और उनके दो साथियोों की मौत
और वह इरविन के उदार रुख को अपनाने के लिए तैयार नहीीं थे।
की सजा को आजीवन कारावास मेें बदल दिया जाए। इसे बर््जजुु आ संधि करार
z गैर-कांग्रेसी दल: द्वितीय गोलमेज सम््ममेलन मेें अग्रेजो
ं ों ने गैर-कांग्रेसी दलोों को
दिया गया क््योोंकि इसमेें लोगोों की अनदेखी की गई थी। हालाँकि, सत्र का लक्षष्य भी अत््यधिक मात्रा मेें शामिल किया।
गांधी-इरविन समझौते को मजं रू ी देना था। अल््पसख्
z ं ्यक मुद्दे पर वार््तता की असमय समाप्ति: दिसंबर, 1931 मेें गांधीजी
z समझौते के समर््थन हेतु बैठक: गांधी जी ने बैठक को समझौते का समर््थन शिखर सम््ममेलन के लिए लंदन गए, लेकिन अल््पसख्ं ्यक मद्ु दे पर बातचीत बीच
करने के अनक ु ू ल बनाया। नाराज प्रदर््शनकारियोों ने काले झडं े और फूलोों से उनका मेें ही खत््म हो गई। न के वल मसु लमानोों ने अपने लिए अलग निर््ववाचन क्षेत्र को
स््ववागत किया। इसके अलावा, गांधीजी और कांग्रेस को गोलमेज सम््ममेलन मेें बनाए रखने का अनरु ोध किया बल््ककि इस बार अबं ेडकर के नेतत्ृ ्व मेें दलितो के
राष्ट्रीय प्रतिनिधि के रूप मेें तीन समहोू ों द्वारा चनु ौती दी गई थी: मुस््ललिम लीग, लिए भी अलग निर््ववाचन क्षेत्र की माँग रखी गई।
प््राांतीय रियासतोों और बी. आर. अंबेडकर (जिन््होोंने कांग्रेस पर निचली जातियोों परिणाम
के कल््ययाण की उपेक्षा करने का आरोप लगाया था)। z NWFP और सिध ु -बहुल प््राांतोों, NWFP और
ं का गठन: दो नए मस््ललिम
अधिवेशन का महत्त्व सिंध का गठन हुआ।
z गांधी-इरविन समझौते का समर््थन: इसने दिल््लली समझौते या गांधी-इरविन z भारतीय सलाहकार समिति: भारतीय सलाहकार समिति का गठन किया गया।
समझौते का समर््थन किया। z सांप्रदायिक पंचाट: एकतरफा सांप्रदायिक पंचाट की संभावना प्रबल
होने लगी।
z मौलिक अधिकारोों पर प्रस््तताव: इसने पहली बार मौलिक अधिकारोों पर एक
प्रस््तताव पेश किया, जिसका मसौदा प्रस््तताव जवाहर लाल नेहरू द्वारा लिखा गया z रूढ़़िवादी सरकार: चर््चचिल की नई दक्षिणपंथी/ रूढ़़िवादी सरकार ने कांग्रेस
को बराबरी के पायदान पर रखने से इनकार कर दिया और कड़़ा रुख अपनाया;
था (सत्र की अध््यक्षता वल््लभभाई पटेल ने की थी)।
जिसके परिणामस््वरूप, नए वायसराय ने गांधी जी से मिलने से इनकार कर दिया।
z पूर््ण स््वराज के लक्षष्य के रूप मेें रेखांकित: इसने पहली बार पर््णू स््वराज की
z कांग्रेस को अवैध घोषित कर दिया गया: अब््ददुल गफ््फफार खान और
अवधारणा को स््पष्ट किया और इसे एक लक्षष्य के रूप मेें रे खांकित किया। जवाहरलाल नेहरू दोनोों को जेल मेें डाल दिया गया, कांग्रेस को अवैध घोषित
z अल््पसख् ं ्यकोों के हितोों की रक्षा का प्रावधान: इसमेें यह भी कहा गया कि कर दिया गया, और सभाओ,ं रै लियोों और बहिष््ककार को रोकने के लिए कई
अल््पसख्ं ्यकोों के हितोों के साथ-साथ उनकी सस्ं ्ककृति की भी रक्षा की जाएगी। प्रतिबंध लगाए गए।

78  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


z गांधी जी के विरुद्ध कठोर रुख: प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और साांप्रदायिक पंचाट और उसके परिणाम
कांग्रेस अभी भी प्रतिबंध का सामना कर रही थी। नए वायसराय विलिंगडन और
z पथ ृ क निर््ववाचक मंडल: 4 अगस््त, 1932 को, ब्रिटिश प्रधानमत्री ं रामसे
राज््य सचिव ने अब और आगे गांधी जी से बातचीत न करने का फै सला किया।
मैकडोनाल््ड ने भारत मेें मसु लमानोों, सिखोों और दलितोों सहित अल््पसंख््यक
z सविनय अवज्ञा आंदोलन पुनः शुरू किया गया: महात््ममा गांधी ने अत््ययंत
समदु ायोों को अलग निर््ववाचन क्षेत्र देने के लिए सांप्रदायिक पंचाट जारी किया।
सक्रिय प्रतिक्रिया के साथ सविनय अवज्ञा आदं ोलन को फिर से शरू ु किया।
यह आदं ोलन एक वर््ष से अधिक समय तक चला, लेकिन 1934 तक, सरकारी z दलितोों हेतु विशेष निर््ववाचन क्षेत्र: दलित वर्गगों को विशेष निर््ववाचन क्षेत्ररों
उत््पपीड़न के कारण इसकी प्रबलता क्षीण हो गई थी। द्वारा भरी जाने वाली कई सीटेें आवंटित की गई,ं जिनमेें के वल दलित वर्गगों के
मतदाता ही मतदान कर सकते थे।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के दस
ू रे चरण की असफलता के
z कांग्रेस द्वारा सांप्रदायिक पंचाट का विरोध: इस पचं ाट का कांग्रेस और
कारण
अन््य राष्टट्रवादी समहोू ों ने विरोध किया था क््योोंकि यह एक अलग निर््ववाचन क्षेत्र
z प्रमख
ु नेताओ ं को कारावास मेें डाल दिया गया।
का प्रावधान करता था और इसे ब्रिटेन के 'फूट डालो और राज करो' कार््यक्रम
z किसानोों के समर््थन का अभाव।
के हिस््ससे के रूप मेें देखा गया था।
z गांधीवादी राजनीति मेें निष्क्रियता और स््पष्ट निराशा।
z हिंदू-मुस््ललिम एकता पर अंग्रेजोों का हमला: महात््ममा गांधी इस पंचाट से
राष्टट्रवादियोों की अगली कार््यवाही नाराज थे और उन््होोंने इसका कड़़ा विरोध किया। विशेषकर दलितोों को अलग
z काउंसिल मेें प्रवेश: सत््यमर््तति
ू ने गतिविधियोों मेें शन्ू ्यता को तोड़ने के लिए निर््ववाचन क्षेत्र को गांधीजी ने हिदं ू धर््म की एकता पर खतरा माना साथ ही इसे
स््वराजवादी सिद््धाांत पर एक परिषद प्रवेश का प्रस््तताव रखा, जिसे बाद मेें दलितोों को हमेशा के लिए हिदं ू समाज से अलग करने के खतरे के रूप मेें देखा
भल ू ाभाई देसाई और एम. ए. असं ारी ने मजं रू ी दे दी। परिणामस््वरूप, कांग्रेस ने इसीलिए गांधी जी ने इसका कड़ा विरोध किया।
1934 के केें द्रीय विधान सभा चनु ावोों मेें भाग लिया और भारी बहुमत से जीत
गाांधीजी की चिंताएँ
हासिल की।
z कांग्रेस समाजवादी पार्टी: कांग्रेस के भीतर एक वैकल््पपिक वैचारिक विकास z पथ ृ क््करण के बजाय छुआछूत और भेदभाव की समाप्ति को प्राथमिकता
हुआ और कांग्रेस सोशलिस््ट पार्टी एक वामपथं ी झक ु ाव वाली पार्टी के रूप मेें : गांधी जी ने तर््क दिया कि दलितोों के साथ की जा रही अस््पपृश््यता और
उभरी। भेदभाव को समाप्त करने की जरूरत है, न कि अधिक पृथक््करण की। उन््होोंने
z अहिंसक प्रतिरोध की नीति उचित नहीीं: इसी बीच, कई राष्टट्रवादियोों का मसु लमानोों को पृथक निर््ववाचिका देने और अतं तः पृथक राष्टट्र की माँग करने
मानना था कि अग्रेजो ं ों के प्रति अहिसं क प्रतिरोध से जीत हासिल नहीीं की जा के निर््णय मेें भी इसी प्रकार के निहितार्थथों की परिकल््पना की।
सकती। z भूख हड़ताल: इस परु स््ककार का विरोध करने के लिए, गांधी जी 20 सितंबर,
z हिन््ददुस््ततान सोशलिस््ट रिपब््ललिकन आर्मी (1928): हिदं स्ु ्ततान सोशलिस््ट 1932 को यरवदा सेेंट्रल जेल मेें अनिश्चितकालीन भख ू हड़ताल पर चले गए।
रिपब््ललिकन आर्मी (एचएसआरए) की स््थथापना 1928 मेें दिल््लली के फिरोजशाह z सांप्रदायिक पंचाट का समर््थन: अल््पसंख््यक समदु ायोों के कई सदस््योों,
कोटला मैदान मेें एक सम््ममेलन मेें समाजवादी सिद््धाांतोों से प्रभावित होकर की विशेष रूप से दलित नेता डॉ. बी.आर. अबं ेडकर ने सांप्रदायिक पंचाट का
गई थी। समर््थन किया।
z हिंदुस््ततान सोशलिस््ट रिपब््ललिकन आर्मी (एचएसआरए) ने ब्रिटिश सत्ता z पूना पैक््ट व आरक्षित सीटेें : मदन मोहन मालवीय ने गांधी और अबं ेडकर के
के प्रतीकोों को निशाना बनाया: भगत सिंह, जतिन दास और अजॉय घोष बीच मध््यस््थ के रूप मेें काम किया और लंबी चर््चचा के बाद, गांधी तथा डॉ.
इसके प्रमख ु नेताओ ं मेें शामिल थे। एचएसआरए ने परू े भारत मेें क््राांतिकारी अबं ेडकर एक एकल हिदं ू निर््ववाचन क्षेत्र स््थथापित करने पर सहमत हुए, जिसमेें
गतिविधियोों की एक श््रृृंखला मेें ब्रिटिश शक्ति के कुछ प्रतीकोों को निशाना दलितोों के लिए सीटेें आरक्षित थीीं (वास््तव मेें, समझौते के बाद दलित सीटेें
बनाया। बढ़ गई)।ं इसे पनू ा पैक््ट के नाम से जाना जाता है।
z विधानसभा मेें बम कांड: भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने अप्रैल, 1929 मेें z धार््ममिक निर््ववाचन क्षेत्र: अन््य धार््ममिक निर््ववाचन क्षेत्र, जैसे मस््ललिम
ु और सिख,
विधान सभा मेें एक बम विस््फफोट किया। उसी वर््ष उस ट्रेन को उड़़ाने का प्रयास अलग रहे।
किया गया जिसमेें लॉर््ड इरविन यात्रा कर रहे थे।
z गांधी जी के दलित उत््थथान के प्रयास: इस समझौते के बाद, गांधीजी ने
साांप्रदायिक पंचाट (1932) और पूना समझौता (1933) दलितोों की मदद के लिए अपने प्रयास दोगनु े कर दिए। उन््होोंने हरिजन पत्रिका
गोलमेज वार््तता की विफलता के बाद, ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि यदि की स््थथापना की और एक वर््ष तक दलितोों के लिए सामदु ायिक कार््य किया
अल््पसंख््यकोों के अलग प्रतिनिधित््व पर आम सहमति स््थथापित नहीीं की जा सकी, और अस््पपृश््यता के विचार का प्रसार किया।
तो एकतरफा सांप्रदायिक निर््णय दिया जाएगा। सरकार ने 1932 के सांप्रदायिक z विरोध का सामना: हालाँकि, गांधीजी के इन प्रयासोों को पारंपरिक हिदं ओ ु ं
पंचाट के रूप मेें अपना वादा पूरा किया। के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन - द्वितीय चरण (1918 79


z विषय की गंभीरता हेतु उपवास: उन््होोंने अपने समर््थकोों को अपने काम की
साांप्रदायिक पंचाट पर अंबेडकर के विचार गंभीरता और विषय की गंभीरता के बारे मेें समझाने के लिए 8 मई और 16
z समर््थन: उन््होोंने सांप्रदायिक पंचाट का समर््थन किया। अगस््त, 1934 को दो बार उपवास किया।
z गांधी पर विचार: अबं ेडकर के अनसु ार, गांधी मसु लमानोों और सिखोों को z पारंपरिक और रूढ़़िवादी तत्तत्ववों द्वारा लक्षित: गांधी जी अपने परू े अभियान
अलग निर््ववाचन क्षेत्र प्रदान करने के इच््छछु क थे। हालाँकि, गांधी अनसु चि
ू त के दौरान पारंपरिक और रूढ़़िवादी तत्तत्ववों के निशाने पर रहे। इन समहोू ों ने उनकी
जातियोों को अलग निर््ववाचन क्षेत्र देने मेें झिझक रहे थे। बैठकोों को बाधित किया, उनके खिलाफ काले झडं े दिखाकर विरोध प्रदर््शन
किया और उन पर हिदं ू विरोधी होने का आरोप लगाया।
पूना पैक्ट का दलितोों पर प्रभाव
z कांग्रेस के विरुद्ध आधिकारिक समर््थन का वचन दिया: उन््होोंने कांग्रेस
z अंतिम लक्षष्य प्राप्त करने मेें विफलता: उत््पपीड़़ित वर्गगों को महत्तत्वपर््णू और सविनय अवज्ञा आदं ोलन के खिलाफ आधिकारिक समर््थन का भी वादा
राजनीतिक अधिकार प्रदान करने के बावजदू , पनू ा पैक््ट दलित वर््ग की मक्ु ति किया। अगस््त 1934 मेें, सरकार ने मदि ं र प्रवेश विधेयक को निष््फल कर
के अतिम ं लक्षष्य को प्राप्त करने मेें विफल रहा। इसने उसी परु ानी हिदं ू सामाजिक इसका अनपु ालन किया।
संरचना को कायम रहने दिया और साथ ही कई मद्ददों ु को भी जन््म दिया। z अस््पपृश््यता का सपं ूर््ण उन््ममूलन: उन््होोंने अस््पपृश््यता के संपर््णू उन््ममूलन की
z समझौते ने दलितोों को राजनीतिक उपकरण मेें बदल दिया: इस समझौते वकालत की, जैसा कि अस््पपृश््योों के लिए मदि ं र के दरवाजे खोलने की उनकी
ने दलितोों को राजनीतिक उपकरणोों मेें बदल दिया जिनका उपयोग बहुसंख््यक याचिका मेें देखा जा सकता है।
जातीय हिदं ू संगठनोों द्वारा किया जा सकता था।
z हरिजनोों पर हुए अनकहे कष्टटों के लिए 'प्रायश्चित' करना: उन््होोंने हरिजनोों
z उत््पपीड़़ित वर्गगों को नेतृत््वविहीन किया: इसने उत््पपीड़़ित वर्गगों को नेतत्ृ ्वहीन को दी गई अनकही कठिनाइयोों के लिए 'तपस््यया' करने वाले जातिगत हिदं ओ ु ं
बना दिया क््योोंकि वर्गगों के प्रामाणिक प्रतिनिधि जातिवादी हिदं ू संगठनोों द्वारा के महत्तत्व पर जोर दिया। इससे स््पष्ट होता है कि, वह अबं ेडकर जैसे अपने
चनु े गए और प्रायोजित कठपतु लियोों को हराने मेें असमर््थ थे। आलोचकोों के प्रति कठोर नहीीं थे। उन््होोंने कहा, "यदि अस््पपृश््यता जीवित है
z हिंदू सामाजिक व््यवस््थथा: इसने दलित वर्गगों को एक विशिष्ट और पृथक तो हिदं ू धर््म मर जाएगा; यदि हिदं ू धर््म को जीवित रखना है तो अस््पपृश््यता को
जीवन से वंचित करके , उन््हेें हिदं ू सामाजिक व््यवस््थथा के अधीन कर दिया। समाप्त होना होगा।"
z आदर््श समाज के विकास मेें बाधक: पनू ा पैक््ट ने समानता, स््वतंत्रता, बंधत्ु ्व z मानवतावादी एवं तार््ककि क अवधारणाएँ: उनका संपर््णू प्रयास मानवतावादी
और न््ययाय पर आधारित एक आदर््श समाज के विकास मेें बाधा उत््पन््न की। एवं तर््क संगत अवधारणाओ ं पर आधारित था। उन््होोंने कहा कि शास्त्र अस््पपृश््यता
z दलितोों के अधिकार एवं स््वतंत्रता: इसने स््वतंत्र भारत के संविधान मेें दलितोों को मजं रू ी नहीीं देते हैैं और यदि वे ऐसा करते हैैं, तो उन््हेें नजरअदं ाज किया
के लिए सम््ममानित जीवन और राष्ट्रीय सरु क्षा उपायोों के एक अलग और विशिष्ट जाना चाहिए क््योोंकि यह मानवीय गरिमा का उल््ललंघन करता है।
तत्तत्व के रूप मेें पहचान करने से इनकार करके दलितोों के अधिकारोों और उनकी z अंतर-जातीय विवाह और अंतर-भोज का समर््थन नहीीं: गांधी अस््पपृश््यता
स््वतंत्रता को महत्तत्वहीन बनाने का प्रयास किया। उन््ममूलन के विषय को अतं र-जातीय विवाह और अतं र-भोज के साथ जोड़ने
गाांधी जी का हरिजन आंदोलन और जाति विषयक विचार के विरोध मेें थे क््योोंकि उनका मानना था कि ऐसी सीमाएँ जातीय हिदं ओ ु ं और
अंग्रेजी सरकार के ‘फूट डालो और राज करो’ कार््यक्रम के विनाशकारी उद्देश््योों स््वयं हरिजनोों के बीच मौजदू थीीं।
को कमजोर करने के लिए दृढ़ संकल््पपित होकर, गांधी ने अन््य सभी हितोों को z अंबेडकर से मतभेद: इसी तरह, उन््होोंने अस््पपृश््यता को दरू करने और जाति
त््ययाग दिया और अस््पपृश््यता के खिलाफ पहले जेल से और फिर, अगस््त 1933 व््यवस््थथा के समग्र उन््ममूलन के बीच अतं र किया। इस विचार पर, वह अबं ेडकर
मेें अपनी रिहाई के बाद, जेल के बाहर से एक व््ययापक आंदोलन शरू
ु किया। से भिन््न थे, जिन््होोंने अस््पपृश््यता को खत््म करने के लिए जाति व््यवस््थथा के
उन््ममूलन का आग्रह किया था।
अस्पृश्यता के विरुद्ध गाांधी जी का अभियान
z वर््णणाश्रम व््यवस््थथा: वर््णणाश्रम व््यवस््थथा की जो भी सीमाएँ और खामियाँ थीीं,
z अखिल भारतीय अस््पपृश््यता विरोधी लीग की स््थथापना: जेल मेें रहते गांधी का मानना था कि वह उतनी बरु ी नहीीं थी जितनी कि अस््पपृश््यता थी।
हुए, गांधीजी ने सितंबर, 1932 मेें अखिल भारतीय अस््पपृश््यता विरोधी लीग z हरिजन अभियान की विशेषताएँ: गांधी के हरिजन अभियान मेें हरिजनोों के
(इसका नाम बाद मेें हरिजन सेवक संघ कर दिया) और 1933 मेें हरिजन लिए एक आतं रिक सधु ार का दृष्टिकोण भी शामिल था जिसमेें शिक्षा, स््वच््छता,
पत्रिका की स््थथापना की। साफ-सफाई, गोमांस और मांस के सेवन से परहेज और आपस मेें छुआछूत
z वर््धधा के सत््ययाग्रह आश्रम मेें शरण: अपनी रिहाई के बाद, वे वर््धधा के सत््ययाग्रह को कम करना शामिल था।
आश्रम मेें चले गए और स््वराज प्राप्त होने तक साबरमती आश्रम मेें वापस न
लौटने की शपथ ली। अभियान का प्रभाव
z देशभर मेें हरिजन यात्रा का नेतृत््व किया: वर््धधा से, उन््होोंने नवंबर 1933 से z राजनीतिक आंदोलन बनाने का इरादा नहीीं: गांधी ने लगातार कहा कि
जलु ाई 1934 तक परू े देश मेें हरिजन यात्रा का नेतत्ृ ्व किया, अपने नवगठित अभियान का उद्देश््य राजनीतिक आदं ोलन नहीीं था, बल््ककि हिदं ू धर््म और हिदं ू
हरिजन सेवक संघ के लिए धन इकट्ठा करते हुए और इसके सभी रूपोों मेें संस््ककृति को शद्ध
ु करना था।
अस््पपृश््यता के उन््ममूलन को बढ़़ावा देते हुए 20,000 किलोमीटर की यात्रा की। z हरिजन तक राष्टट्रवाद का सदं ेश फैलाएँ: अभियान ने धीरे -धीरे हरिजन,
z हरिजनोों के पक्षधर: उन््होोंने राजनीतिक कार््यकर््तताओ ं से समदु ायोों का दौरा करने जो देश के अधिकांश क्षेत्ररों मेें खेतिहर मजदरू भी थे, तक राष्टट्रवाद का संदश

और हरिजनोों की सामाजिक, आर््थथिक, राजनीतिक और सांस््ककृतिक उन््नति की फै लाया, जिसके परिणामस््वरूप राष्ट्रीय गतिविधियोों मेें मजदरोू ों और किसानोों
वकालत करने का आग्रह किया। की भागीदारी बढ़ गई।

80  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


गाांधी और अंबेडकर के बीच वैचारिक मतभेद और समानताएँ  अस््पपृश््योों के प्रति धारणा: गांधी जी अछूतोों या अस््पपृश््योों को हिदं ू समदु ाय
का अभिन््न अगं मानते थे, जबकि अबं ेडकर उन््हेें एक अलग धार््ममिक और
z समानताएँ:
राजनीतिक अल््पसंख््यक मानते थे।
 विरोध के प्रतीकात््मक कार््य: दोनोों उत््पपीड़न के खिलाफ प्रतीकात््मक

कृ त््योों मेें लगे हुए थे, गांधी ने विदेशी वस्त््रों को जलाया, अबं ेडकर ने  जन सवं ाद व सच ं ार के तरीके : गांधी ने स््थथानीय भाषा मेें सवं ाद किया,
मनस्ु ्ममृति को जलाया, दोनोों (विदेशी वस्त्र और मनस्ु ्ममृति) गल ु ामी का जबकि अबं ेडकर ने अग्रें जी मेें संवाद स््थथापित किया। गांधीजी ने असहयोग,
प्रतीक थे। हड़ताल, सत््ययाग्रह का सहारा लिया, अबं ेडकर काननू और संवैधानिक
 बदलाव मेें साझा विश्वास: मजबरू ी के बजाय शिक्षा के जरिए सामाजिक
तरीकोों के पालन की ओर झक ु े रहे।
और राजनीतिक बदलाव मेें साझा विश्वास किया। भारत सरकार अधिनियम, 1935
 सामाजिक परिवर््तन के लिए धर््म के उपयोग की वकालत की।
इस अधिनियम के माध््यम से प्रमख ु राज््योों और प््राांतोों से मिलाकर एक अखिल
 राज््य की सीमित सप्रभ ं ुता: व््यक्तिगत स््वतंत्रता की सरु क्षा के लिए राज््य
भारतीय संघीय ढाँचे की स््थथापना की जानी थी। रियासतोों के समावेश की कल््पना
की सीमित संप्रभु शक्ति का समर््थन किया।
प््राांतोों के बढ़ते राष्टट्रवाद के प्रतिसंतुलन के रूप मेें की गई थी।
 शांतिपूर््ण विरोध का समर््थन: सामाजिक परिवर््तन के लिए, शांतिपर््ण ू
तरीकोों से विरोध करने की वकालत की। अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ
 लोकतांत्रिक और शांतिपर््ण ू तरीकोों के माध््यम से सामाजिक सद्भाव z सघं वाद की स््थथापना: इसने भारत मेें संघवाद की स््थथापना की, जिसके घटक
और परिवर््तन पर जोर दिया गया। प्रमख ु राज््योों और प््राांतोों के साथ-साथ संघ सचू ी, राज््य सचू ी और समवर्ती सचू ी
z मतभेद या असमानताएँ थे। हालाँकि, रियासतोों ने इसे मजं रू ी नहीीं दी।
 स््वतंत्रता और लोकतंत्र: गांधी जी जनसमर््थन के माध््यम से सत्ता से z प््राांतीय स््ववायत्तता: प््राांतोों मेें जिम््ममेदार सरकार की शरुु आत करते हुए प््राांतीय
आजादी छीनने और स््वशासन मेें विश्वास करते थे, जबकि अबं ेडकर शाही स््ववायत्तता से प््राांतीय द्वैध शासन को प्रतिस््थथापित कर दिया। राज््यपाल अब उन
शासकोों द्वारा दी जाने वाली आजादी की उम््ममीद करते थे। मत्रियो
ं ों की सलाह पर कार््य करने लगे थे जो प््राांतीय विधानमडं ल को रिपोर््ट
 सस ं दीय प्रणाली पर विरोधाभासी दृष्टिकोण: अबं ेडकर ने संसदीय करते हैैं।
प्रणाली की वकालत की, जबकि गांधी के मन मेें इसके प्रति बहुत कम z द्विसदनीयवाद: ग््ययारह मेें से छह प््राांतोों मेें द्विसदनीयवाद लागू किया गया।
सम््ममान था, क््योोंकि उन््हेें नेताओ ं के प्रभत्ु ्व की सभं ावना का अदं ाजा था। z द्विसदनीय सघं ीय विधानमंडल: इसके तहत एक द्विसदनीय संघीय विधायिका
 सामाजिक मुद्ददों के प्रति दृष्टिकोण: गांधी ने नैतिक कृ त््योों और प्रायश्चित का प्रावधान किया गया था जिसमेें (रियासतोों) राज््योों को असंगत महत्तत्व दिया
के माध््यम से अस््पपृश््यता को खत््म करने पर ध््ययान केें द्रित किया, जबकि गया था। इसके अलावा, राज््योों के प्रतिनिधियोों को लोगोों द्वारा चनु े जाने के
अबं ेडकर के लिए अस््पपृश््यता की समाप्ति का माध््यम काननू ी और बजाय सीधे शासकोों द्वारा नियक्त ु किया जाना था।
संवैधानिक उपचार से था। z बर््ममा को भारत से अलग किया गया: बर््ममा को भारत से अलग कर एक प््राांत
 अब ं ेडकर छुआछूत को एक प्रमख ु सामाजिक समस््यया मानते थे, का दर््जजा दे दिया गया।
जबकि गांधी इसे कई चनु ौतियोों मेें से एक मानते थे। z सघं ीय स््तर पर द्वैध शासन की शुरुआत: संघीय/के न्द्रीय स््तर पर द्वैध शासन
 जाति और हिंदू धर््म पर विचार: गांधी ने जाति और वर््ण के बीच अत ं र लागू किया गया और प््राांतीय स््तर पर समाप्त कर दिया गया।
किया, जाति को एक पतन के रूप मेें देखा, अबं ेडकर ने हिदं ू धर््मग्रंथोों और z गवर््नर-जनरल एवं प््राांतीय गवर््नरोों को आपातकालीन शक्तियाँ दी गई:ं
जाति व््यवस््थथा की निंदा की।
ब्रिटिश सरकार को गवर््नर-जनरल तथा गवर््नरोों की नियक्ु ति करनी थी। हालाँकि,
 अब ं ेडकर ने हिदं ू एकता के विचार का विरोध किया, जबकि गांधी ने प््राांतीय गवर््नरोों को विशेष शक्तियाँ दी गई थीीं। उनके पास काननू पर वीटो करने
भारतीय एकता पर जोर दिया और इसके विभाजन के लिए ब्रिटिश की शक्ति थी, इसके अलावा, उन््होोंने सिविल सेवा और पलि ु स पर परू ा नियंत्रण
शासन को जिम््ममेदार ठहराया।
बनाए रखा।
 साधन और साध््य: अब ं ेडकर ने उचित लक्षष्य के लिए उचित साधनोों का z पथ ृ क निर््ववाचन क्षेत्र: 1909 और 1919 के अधिनियमोों के तहत हिदं ओ ु ं और
समर््थन किया, जबकि गांधी ने लक्षष्य निर््धधारित करने के लिए साधनोों की
मसु लमानोों के लिए अलग-अलग निर््ववाचन क्षेत्ररों की स््थथापना की गई थी।
शद्धु ता पर जोर दिया।
z सीमित मताधिकार: ब्रिटिश भारत की कुल आबादी के के वल 14% (1/6)
 मशीनीकरण के प्रति दृष्टिकोण: गांधीजी ने मशीनीकरण के
को वोट देने का अधिकार दिया गया था।
अमानवीय प्रभाव का विरोध किया, जबकि अबं ेडकर का मानना
था कि मशीनरी समाज को लाभ पहुचँ ा सकती है। z प्रमुख विभाग ब्रिटिश नियंत्रण मेें रहे: रक्षा और विदेशी मामले जैसे प्रमख ु
विभाग ब्रिटिश नियंत्रण मेें रहे, जबकि गवर््नर-जनरल को शेष विषयोों पर विशेष
 कानून और सविध ं ान के प्रति दृष्टिकोण: गांधी जी ने न््ययाय के लिए
अन््ययायपर््णू काननोू ों की अवज्ञा का समर््थन किया और अबं ेडकर का झक अधिकार था।
ु ाव
काननू और संवैधानिकता के पालन की ओर था। z बजट पर मतदान: बजट पर मतदान करने की भी अनमति ु दी गई थी।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन - द्वितीय चरण (1918 81


z 'सामूहिक प्रतिनिधित््व का विचार': 'वोट ऑफ नो कॉन््फफिडेेंस' और z अल््पकालिक रणनीति: अन््य लोगोों ने तर््क दिया कि, जबकि कांग्रेस का
'आइडिया ऑफ कलेक््टटिव रिप्रेजेेंटेशन' शब््द गढ़़े गए। ध््ययान विधायिका के बाहर की गतिविधियोों पर रहता है, विधायिका मेें प्रवेश
z अन््य प्रावधान: इस अधिनियम के तहत एक संघीय न््ययायालय, एक संघीय करना 1935 के अधिनियम को भीतर से समाप्त करने और अधिनियम के
बैैंक (आरबीआई), एक सघं ीय लोक सेवा आयोग, आदि की स््थथापना का खोखलेपन को प्रदर््शशित करने की एक अल््पकालिक रणनीति है। इसे स््वतंत्रता
प्रावधान किया गया था। के अतिम ं लक्षष्य के साथ एक समग्र रणनीति का हिस््ससा भी कहा गया था।
z इस आश्वासन के साथ, जवाहरलाल नेहरू ने 1936 मेें एक व््ययापक अभियान
भारत सरकार अधिनियम, 1935 का मूल्ययांक न चलाया, और अपने चनु ाव घोषणापत्र मेें तीन बिंदु स््पष्ट किए:
z 'पूर््णतः निराशाजनक': कांग्रेस ने इस अधिनियम को 'परू ी तरह से 1. कांग्रेस का लक्षष्य अभी भी स््वतंत्रता प्राप्त करना है।
निराशाजनक' माना। इस अधिनियम की सर््वव््ययापी निंदा की गई। जवाहरलाल 2. कांग्रेस 1935 के अधिनियम का विरोध करती रहेगी।
नेहरू के अनसु ार, “यह एक ऐसी कार है जिसमेें ब्रेक तो हैैं परंतु इजं न नहीीं है" के 3. संविधान सभा का गठन कांग्रेस के लिए सर्वोच््च प्राथमिकता बनी
रूप मेें वर््णणित किया गया। हुई है।
z डोमिनियन स््टटेटस का कोई उल््ललेख नहीीं: इसमेें साइमन कमीशन द्वारा
(1936 मेें, कांग्रेस ने भारतीय संविधान बनाने के लिए संविधान सभा के गठन
प्रतिबद्ध, डोमिनियन स््टटेटस का कोई उल््ललेख नहीीं किया गया। का प्रस््तताव रखा था।)
z कांग्रे स का प्रदर््शन: बंगाल, सिंध, पंजाब, असम और एनडब््ल्ययूएफपी के
z पथ ृ क निर््ववाचन क्षेत्ररों का प्रावधान: इसने पृथक निर््ववाचन क्षेत्ररों के प्रावधान को अपवाद के साथ, कांग्रेस ने अधिकांश प््राांतोों मेें जीत हासिल की और उनमेें
भी बनाए रखा, जो समदु ाय को और अधिक विभाजित करने के लिए उत्तरदायी से कई मेें मत्रिमं डलो
ं ों का गठन किया। अपने कार्ययों को अपने चनु ावी वादोों के
था क््योोंकि कांग्रेस लंबे समय से पृथक निर््ववाचन क्षेत्र का विरोध करती रही। साथ मिलाने के लिए, नेताओ ं ने अपना वेतन कम कर दिया और ट्रेनोों मेें दसू रे
z प्रथम 'प््राांतीय चुनाव’: अधिनियम के आधार पर प्रथम 'प््राांतीय चन ु ाव' और तीसरे दर्जे मेें यात्रा की। उन््होोंने अनेक सधु ार किए, अनेक काननू बनाए
फरवरी, 1937 मेें आयोजित किए गए थे और इन चनु ावोों ने निर््णणायक रूप से और राजनीतिक कै दियोों को रिहा किया।
प्रदर््शशित किया कि भारतीय लोगोों के एक बड़़े बहुमत ने कांग्रेस का समर््थन किया, 1937 के चुनाव परिणाम
जिसने 11 प््राांतोों मेें से 8 मेें बहुमत दर््ज किया।
z कांग्रेस और लीग के बीच दूरियाँ बढ़ीं: इसने कांग्रेस और लीग के बीच
z सरु क्षा उपाय और विशे ष जिम््ममे दारियाँ: गवर््नर-जनरल को प्रदत्त सरु क्षा
विभाजन को बढ़़ा दिया परिणामस््वरूप, लीग एक अलग राष्टट्र की अपनी माँग
उपायोों और विशेष जिम््ममेदारियोों ने अधिनियम के उचित संचालन पर ब्रेक के मेें अधिक सांप्रदायिक और कठोर हो गया।
रूप मेें काम किया। z लीग ने अपना सामाजिक समर््थन बढ़़ाया: 1930 के दशक मेें, मस््ललिम ु
z कठोर सविध ं ान: अधिनियम ने एक कठोर संविधान की स््थथापना की जिसमेें जनता को एकजटु करने मेें कांग्रेस की विफलता ने लीग को अपना सामाजिक
आतं रिक विकास के लिए कोई जगह नहीीं थी। साथ ही संविधान संशोधन का समर््थन बढ़़ाने की अनमति ु दी।
अधिकार ब्रिटिश ससं द के पास सरु क्षित था। z कांग्रेसी प्रदर््शन के बाधक तत्तत्व: हालाँकि, कांग्रेस का प्रदर््शन कई कारकोों से
तत््ककालीन अनेक आलोचनाओ ं के बावजदू , अधिनियम के कई प्रावधानोों बाधित हुआ, जिनमेें शामिल हैैं:
को स््वतंत्रता के बाद भारत सरकार द्वारा स््ववीकार कर लिया गया था और यह  केें द्र का अधिक शक्तिशाली स््वरूप: अत ं र््ननिहित शक्ति केें द्र के पास रही,
अधिनियम भारतीयोों को दी जाने वाली रियायतोों और शासन प्रणाली मेें प्रस््ततावित और वायसराय और गवर््नरोों को प्रस््ततावोों पर वीटो करने का अधिकार था।
सुधारोों के संदर््भ मेें एक मील का पत््थर था। 1935 के अपने सत्र मेें कांग्रेस ने पहली  सीमित वित्तीय सस ं ाधन: प््राांतोों (कांग्रेस) के पास सीमित वित्तीय संसाधन
बार स््वतंत्र रुप से संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए वयस््क मताधिकार पर थे, जबकि केें द्र को संसाधनोों का एक बड़़ा हिस््ससा मिलता था।
आधारित एक संवैधानिक सभा की स््थथापना की माँग की। z विधान परिषदोों मेें कुलीन वर््ग: प््राांतोों मेें द्विसदनीय व््यवस््थथा के अनसु ार,
अधिकांश प््राांतोों मेें 'विधान परिषदेें' थीीं जो सीमित मताधिकार के आधार पर
1937 का चुनाव चनु ी जाती थीीं और उन पर जमीींदारोों और अन््य अभिजात वर्गगों का कब््जजा
जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, कांग्रेस सोशलिस््ट और कम््ययुनिस््ट पार्टी होता था।
सहित सभी 1937 मेें प््राांतीय चनु ाव कराने के विरोध मेें थे, जैसा कि 1935 के z कांग्रेसी सध ु ार योजनाओ ं की विफलता: कांग्रेस की सधु ार योजनाएँ भी
अधिनियम के अनुसार आवश््यक था। इनके चनु ाव मेें प्रतिभाग न करने के पीछे निहित स््ववार्थथों के कारण विफल हो गई।ं
निम््न तर््क थे- काांग्रेस शासन का मूल्ययांकन
z स््वतंत्रता सग्राम
ं को कमजोर करना: चनु ाव मेें भाग लेने से लोगोों मेें यह z परिषद के कार्ययों का उपयोग अपने लाभ के लिए: हालाँकि, 1939 तक
धारणा बनेगी कि कांग्रेस अग्रेजो ं ों के दमनकारी शासन का समर््थन करती है, कांग्रेसियोों के बीच आतं रिक कलह, अवसरवादिता और सत्ता की इच््छछा उभरने
जिससे स््वतंत्रता सग्राम
ं मेें अब तक हुई प्रगति कमजोर होगी। लगी थी, वे काफी हद तक अपने लाभ के लिए परिषद के काम का उपयोग
z सत्ताविहीन जिम््ममे दारी: चन ु ाव के बाद पद संभालने का मतलब है सत्ता के करने मेें सक्षम थे।
बिना जिम््ममेदारी निभाना' क््योोंकि सत्तारूढ़ ढाँचे मेें ज््ययादा बदलाव नहीीं हुआ z राज््य सत्ता को अपने लक्षष्ययों को आगे बढ़़ाने के लिए: कांग्रेस के सदस््योों
है। पद ग्रहण करने से 1919 से आदं ोलन मेें मौजदू क््राांतिकारी भावना समाप्त ने प्रदर््शशित किया कि एक आदं ोलन बिना सहयोजित हुए अपने लक्षष्ययों को आगे
हो जाएगी। बढ़़ाने के लिए राज््य की शक्ति का उपयोग कर सकता है।

82  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


z सांप्रदायिक दगों ों पर नियंत्रण करने मेें सक्षम: मत्रा ं लय सांप्रदायिक दगों ों 2. गांधीवादी प्रावस््थथा के दौरान विभिन््न स््वरोों ने राष्टट्रवादी आंदोलन को
को नियंत्रित करने मेें सक्षम थे, और परिषद के काम ने कई पर््वू प्रतिकूल तत्तत्ववों सुदृढ़ एवं समृद्ध बनाया था। विस््ततारपूर््वक स््पष्ट कीजिए। (2019)
(उदाहरण के लिए जमीींदारोों) को बेअसर करने मेें सहायता की। 3. वर््तमान समय मेें महात््ममा गांधी के विचारोों के महत्तत्व पर प्रकाश
z मिथक को तोड़ने मेें सफल: भारतीय प्रशासनिक कार्ययों ने इस मिथक को डालिए। (2018)
कमजोर कर दिया कि भारतीय शासन करने के लिए अयोग््य थे।
4. स््वतंत्रता संग्राम मेें, विशेष तौर पर गांधीवादी चरण के दौरान,
z औद्योगिक मजदूर वर््ग की उम््ममीदेें बढ़ीं: चनु ावोों मेें कांग्रेस की बहुमत से जीत
ने औद्योगिक श्रमिक वर््ग की आशाएँ बढ़़ा दी थीीं; उस समय बंबई, गजु रात, महिलाओ ं की भमि ू का का विवेचन कीजिए। (2016)
संयक्त
ु प््राांत और बंगाल मेें उग्रवाद और औद्योगिक असंतोष बढ़ गया, जब 5. स््वतंत्रता के लिए संघर््ष मेें सुभाषचंद्र बोस एवं महात््ममा गांधी के मध््य
कांग्रेस को भारतीय पंजू ीपतियोों के करीब लाया गया था। दृष्टिकोण की भिन््नताओ ं पर प्रकाश डालिए। (2016)
6. अपसारी उपागमोों और रणनीतियोों के होने के बावजूद, महात््ममा गांधी
प्रमुख शब्दावलियाँ और डॉ. बी.आर. अंबेडकर का दलितोों की बेहतरी का एक समान
गांधीवादी यगु , सत््ययाग्रह, चंपारण, खेड़़ा, असहयोग, सविनय अवज्ञा, लक्षष्य था। स््पष्ट कीजिए। (2015)
नमक मार््च, भारत छोड़़ो, स््वराज, ट्रस््टटीशिप, हरिजन अभियान, 7. स््वतंत्र भारत के लिए संविधान का मसौदा के वल तीन साल मेें तैयार
पूर््ण स््वराज, गोलमेज सम््ममेलन, सांप्रदायिकता, पूना पैक््ट, भारत करने के ऐतिहासिक कार््य को पूर््ण करना संविधान सभा के लिए कठिन
सरकार अधिनियम (1935), द्वैध शासन आदि। होता यदि उनके पास भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्राप्त अनुभव
विगत वर्षषों के प्रश्न नहीीं होता। चर््चचा कीजिए। (2015)
1. असहयोग आंदोलन एवं सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान महात््ममा 8. महात््ममा गाँधी के बिना भारत की स््वतंत्रता की उपलब््धधि कितनी भिन््न
गांधी के रचनात््मक कार््यक्रमोों को स््पष्ट कीजिए। (2021) हुई होती? चर््चचा कीजिए। (2015)

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन - द्वितीय चरण (1918 83


भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन
9 तृतीय चरण (1939-1947)
z आर््थथिक:
द्वितीय विश्व युद्ध और भारत: प्रभाव
 अर््थ व््यवस््थथा: 1939 से 1945 के बीच संकट ने अर््थव््यवस््थथा के व््ययापक
द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान, वायसराय लिनलिथगो ने भारतीय हिस््ससे को प्रभावित किया जिससे भारतीय अर््थव््यवस््थथा पर विनाशकारी
राजनेताओ ं से परामर््श किए बिना ही जर््मनी के साथ भारत के युद्ध की घोषणा प्रभाव पड़े।
कर दी।  बढ़ती मुद्रास््फफीति: भारी यद्ध ु व््यय के वित्तपोषण के परिणामस््वरूप, भारत
युद्ध के प्रति भारतीयोों का रवैया का स््टर््लििंग सचं य मद्ु दा देश की मद्ु रास््फफीति को बढ़ाने मेें मख्ु ्य योगदानकर््तता
z स््वतंत्रता की सभ ं ावना: अग्ं रेजोों के विरुद्ध एक शक्तिशाली आदं ोलन शरू ु साबित हुआ।
किया गया और यद्ध ु के लिए भारत के संसाधनोों का प्रयोग करने के ब्रिटिश  आर््थथिक असत ं ुलन: मद्ु रा विनिमय से संबंधित मद्ददों ु और विनिमय
प्रयासोों का विरोध किया गया। विनियमन के विकास के कारण आर््थथिक असंतल ु न की स््थथिति उत््पन््न हुई।
z ब्रिटिश युद्ध प्रयासोों का समर््थन: हालाँकि, हिदं ू महासभा और मस्ु ्ललिम लीग
अगस्त प्रस्ताव (1940)
जैसे राजनीतिक संगठनोों ने ब्रिटिश यद्ध ु प्रयासोों का समर््थन किया।
z फासीवाद मानवता के लिए एक बड़़ा खतरा: फासीवाद को मानवता युद्ध के प्रयासोों मेें भारतीयोों का दीर््घकालिक, स््थथिर और निरंतर समर््थन सुनिश्चित
के लिए एक बड़़ा खतरा माना गया, जिसके कारण यद्ध ु मेें ब्रिटेन को सशर््त करने के लिए प्रमख ु राजनीतिक संगठनोों को एकजुट होना पड़़ा। 8 अगस््त, 1940
सहायता देने की इच््छछा उत््पन््न हुई। को भारत के वायसराय लॉर््ड लिनलिथगो ने ब्रिटिश संसद की ओर से एक वक्तव््य
जारी किया, इस वक्तव््य मेें निहित प्रस््ततावोों को ‘अगस््त प्रस््तताव’ के रूप मेें जाना
द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव
जाता है।
z राजनीतिक:
उद्देश्य:
 भारतीय स््वतंत्रता हेतु प्रक्रिया: 1947 मेें सत्ता सभ ं ालने के कुछ समय
z डोमिनियन स््टटेटस: इसमेें भारत के अति ं म लक्षष्य के रूप मेें डोमिनियन स््टटेटस
बाद ही लेबर पार्टी के प्रधानमत्ं री क््ललीमेेंट एटली ने भारत को स््वतंत्रता
का प्रस््तताव रखा गया।
दिलाने की प्रक्रिया शरू ु कर दी।
z लोकतांत्रिक सरकार: राजनीति और धर््म मेें अल््पसंख््यकोों के समर््थन के बिना
 भारत छोड़़ो आंदोलन का दमन: 1942 मेें, ब्रिटेन ने महात््ममा गांधी और
सरकार का कोई भी नया स््वरूप लागू नहीीं किया जाएगा।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ‘भारत छोड़़ो अभियान’ का दमन किया
और ब्रिटेन ने भारत और उसकी सेना की ब्रिटेन के साथ एकता को z सवि
ं धान सभा: यद्ध ु के पश्चात, भारत के सवं ैधानिक भविष््य को तय करने के
बनाए रखने के लिए जी-जान से लड़़ाई लड़़ी। लिए एक संविधान सभा की स््थथापना की जाएगी।
 औपनिवेशिक शासन का वैश्विक विरोध: द्वितीय विश्व यद्ध
z वायसराय की परिषद का विस््ततार: वायसराय की कार््यकारी परिषद का
ु के बाद,
विश्व भर के लोगोों ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का विरोध करने वालोों विस््ततार कर इसमेें एक निश्चित संख््यया मेें भारतीय राजनीतिक प्रतिनिधियोों को
का समर््थन करना शरू ु कर दिया। शामिल किया जाएगा।
z सामाजिक: विभिन्न वर्गगों की प्रतिक्रिया:
 खाद्यान््न की कमी: अनेक फसलोों की विफलता के परिणामस््वरूप भारत z कांग्रेस: कांग्रेस ने इस प्रस््तताव को ठुकरा दिया क््योोंकि उसका तर््क था कि यह
मेें खाद्यान््न की गंभीर रूप से कमी हो गई। "भारत को पर््णू राष्ट्रीय स््वतंत्रता के उसके प्राकृ तिक अधिकार से वंचित करने"
 बंगाल अकाल (1943): ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत मेें अकाल से पीड़ित का एक और ब्रिटिश प्रयास था।
जरूरतमदों ों के पक्ष मेें भारत से यद्ध ु आपर््तति ू (अनाज और अन््य सामान) z मुस््ललिम लीग: यद्यपि, इसने प्रस््तताव को ‘प्रगतिशील’ बताया, लेकिन इसने
रोकने से इक ं ार करने से राष्टट्रवादियोों मेें स््वतंत्रता के लिए संघर््ष करने का वायसराय की परिषद के प्रस््ततावित विस््ततार पर भारतीय राजनीतिक दलोों से
दृढ़ संकल््प और अधिक बढ़ गया। परामर््श न करने के लिए ब्रिटिशोों के साथ मद्ु दा उठाया।
 अंतरराष्ट्रीयता और नस््ललीय समानता: जब 1945 मेें लेबर पार्टी ब्रिटेन z हिंदू महासभा: हिदं ू हितोों की वकालत करने वाली महासभा ने इस प्रस््तताव को
मेें सत्ता मेें आई, तो वह अन््य उदार विचारोों के साथ-साथ अतं रराष्ट्रीयता स््ववीकार कर लिया और यहाँ तक ​​कि त््वरित प्रतिक्रिया जताते हुए, वायसराय
और नस््ललीय समानता के प्रति प्रतिबद्ध थी। की परिषद के लिए अपने कुछ सदस््योों का नाम भी प्रस््ततावित कर दिया।
व्यक्तिगत सत्याग्रह (1940) और इसका महत्त्व प्रस्ताव:
गांधी जी और कांग्रेस युद्ध प्रयास मेें बाधा उत््पन््न करने से बचना चाहते थे, जो एक z डोमिनियन स््टटेटस: यद्ध ु समाप्त होने के बाद भारत को पर््णू आतं रिक और
जन आंदोलन के माध््यम से किया जा सकता था। इसलिए, उन््होोंने आंदोलन को बाह्य स््ववायत्तता के साथ डोमिनियन स््टटेट का दर््जजा दिया जाएगा।
व््यक्तिगत भागीदारी तक सीमित रखा। विनोबा भावे सत््ययाग्रह की पेशकश करने z नवीन सवि ं धान हेतु एक सवि ं धान सभा: यद्ध ु के बाद एक सवं िधान सभा
वाले पहले व््यक्ति थे तथा जवाहरलाल नेहरू दसू रे सत््ययाग्रही बने। मई, 1941 तक की स््थथापना की जाएगी और उसे भारत का नया संविधान लिखने का अधिकार
सत््ययाग्रह मेें भाग लेने के लिए लगभग 25,000 लोगोों को गिरफ््ततार किया गया, जो दिया जाएगा। प््राांतीय विधानसभाओ ं को आनपु ातिक प्रतिनिधित््व प्रणाली के
अंग्रेजोों पर दबाव बनाए रखते हुए अहिसं ा और सविनय अवज्ञा के लिए व््यक्तिगत आधार पर विधानसभा सदस््योों का चनु ाव करने का अधिकार दिया जाएगा।
प्रतिबद्धता का प्रदर््शन कर रहे थे। z सघं से पथ ृ क रहने का विकल््प: यदि प््राांत नए संविधान से असहमत होों तो
उद्देश्य: उनके पास प्रस््ततावित संघ से पृथक रहने का विकल््प होगा।
z यह प्रदर््शशित करना कि राष्टट्रवादियोों का धैर््य कमजोरी का परिणाम नहीीं था। z युद्ध के दौरान अंतरिम सरकार: यद्ध ु के दौरान विभिन््न भारतीय राजनीतिक
z यह भावना व््यक्त करना कि लोगोों को यद्ध ु की परवाह नहीीं है और उन््होोंने दलोों को मिलाकर एक अतं रिम सरकार स््थथापित की जाएगी।
नाजीवाद और भारत पर शासन करने वाली दोहरी निरंकुशता के बीच अतं र महत्त्व:
किया है। z सवि ं धान निर््ममाण: संविधान का मसौदा तैयार करने की जिम््ममेदारी परू ी तरह
z सरकार को कांग्रेस की माँगोों को शांतिपर््वू क स््ववीकार करने का दसू रा मौका देना। से भारतीयोों को सौौंपी जानी थी।
z सत््ययाग्रही दिल््लली की ओर मार््च करेेंगे और अगर सरकार उन््हेें हिरासत मेें नहीीं z सवि ं धान सभा के लिए विस््ततृत प्रस््तताव: सवं िधान सभा की स््थथापना और
लेती है तो गाँवोों मेें भी यही कार््रवाई दोहराई जाएगी (दिल््लली चलो अभियान)। कार््यप्रणाली के संबंध मेें एक व््ययापक प्रस््तताव प्रस््ततुत किया गया।
महत्त्व z प््राांतीय स््ववायत्तता: प्रत््ययेक प््राांत को अपना संविधान बनाने का अधिकार था,
z मानसिकता को परिभाषित करना: इसने भारत के स््वतंत्रता संघर््ष के पीछे की जिसने भारत के सभं ावित विभाजन की नीींव रखी।
मानसिकता को परिभाषित करने मेें योगदान दिया। z भारतीय प्रशासन मेें वद्धि ृ : इस अवधि के दौरान प्रशासनिक नियंत्रण का एक
z वैधता: व््यक्ति सम््ममानपर््वू क और अहिसं क तरीके से स््वतंत्रता की माँग करके महत्तत्वपर््णू हिस््ससा भारतीय अधिकारियोों को सौौंप दिया गया।
अपने उद्देश््य की वैधता और अपनी प्रतिबद्धता की तीव्रता को साबित करने मेें z राष्टट्रमंडल से बाहर निकलने की स््वतंत्रता: भारत को स््वतंत्रता मिलने पर
सक्षम थे। राष्टट्रमडं ल से बाहर निकलने की स््वतंत्रता दी गई थी।
z उद्देश््य की भावना: इसने उन््हेें सशक्त बनाया और उद्देश््य पर््तति
ू की भावना हेतु असफलता के कारण:
आत््मविश्वास से भर दिया, जिससे वे अपने भाग््य का निर््ममाण स््वयं कर सकेें और z क्रिप््स की अक्षमता: मसौदा घोषणा से अलग हटने मेें क्रिप््स की असमर््थता
आजादी के लिए बड़़े सघं र््ष मेें भाग ले सकेें । और उनके कठोर रुख "इसे स््ववीकार करेें या छोड़ देें" के कारण गतिरोध और
परिणाम अधिक बढ़ गया।
z गांधी जी की प्रतिबद्धताएँ: गांधी जी की प्रतिबद्धता के कारण आदं ोलन को z के वल कार््यकारी परिषद का विस््ततार: क्रिप््स ने पहले "कै बिनेट" और
सीमाओ ं का सामना करना पड़़ा, जिसके परिणामस््वरूप सीमित उपलब््धधियाँ "राष्ट्रीय सरकार" शब््दोों का प्रयोग किया था, लेकिन बाद मेें उन््होोंने स््पष्ट किया
ही प्राप्त हुई।ं कि उनका आशय के वल कार््यकारी परिषद मेें वृद्धि का उल््ललेख करना था।
z बिहार मेें अनिच््छछा: बिहार मेें सत््ययाग्रह मेें भाग लेने के लिए चनु े गए व््यक्तियोों ने z विलय प्रक्रिया मेें स््पष्टता का अभाव: पृथक््करण का निर््णय विधानमडं ल
नगर निकायोों मेें अपने पदोों से इस््ततीफा देने मेें हिचकिचाहट दिखाई। द्वारा 60% बहुमत से पारित प्रस््तताव द्वारा किया जाना था।
z क्रिप््स प्रस््तताव पर प्रभाव: इस सत््ययाग्रह के परिणामस््वरूप क्रिप््स प्रस््तताव z सत्ता हस््तताांतरण सधि ं : इसके अलावा, यह भी स््पष्ट नहीीं था कि सत्ता
प्रस््ततुत किया गया, जो संविधान सभा के लिए प्रावधान और किसी भी प््राांत को हस््तताांतरण सधि
ं का क्रियान््वयन और उसकी व््ययाख््यया कौन करे गा।
बाहर निकलने का विकल््प शामिल करके अगस््त प्रस््तताव से अलग था, जिसने चर््चचिल की नकारात््मकता क्रिप््स की रचनात््मकता
अतं तः भारत के विभाजन की दिशा मेें प्रक्षेपवक्र को प्रभावित किया।
z चर््चचिल ने अतं तः भारत को z सर स््टटैफोर््ड क्रिप््स लंबे समय से
क्रिप्स मिशन (1942): महत्त्व और परिणाम स््वशासन की अनमु ति देने की भारतीय स््वतंत्रता के समर््थक थे
कांग्रेस ने स््वतंत्रता प्राप्ति के लिए अपने प्रयासोों को तीव्र करके इस परिस््थथिति आवश््यकता को स््ववीकार किया, और लेबर पार्टी की यद्ध ु परिषद
का फायदा उठाने का प्रयास किया। कांग्रेस और मुस््ललिम लीग से एक साझा लेकिन इसे यथासंभव लंबे समय के सदस््य थे ।
उद्देश््य हेतु एकजुट होने की उम््ममीद बहुत कम थी क््योोंकि उनके बीच मतभेद तेजी तक टालने का प्रयास किया। z क््ललिमेेंट एटली और नेहरू ने
से बढ़ रहे थे। z चर््चचिल ने सार््वजनिक रूप से 1938 की अपनी बैठक के दौरान
उद्देश्य: कहा, "मैैं ब्रिटिश साम्राज््य के सार््वभौमिक वयस््क मताधिकार
z एक सवं ैधानिक व््यवस््थथा पर हिंदू-मुस््ललिम समझौते को साकार करना परिसमापन की अध््यक्षता करने का उपयोग करके भारतीय
और भारतीयोों को द्वितीय विश्व यद्ध
ु के अतं तक अपने सघं र््ष को स््थगित करने के लिए राजा का प्रथम मत्ं री नहीीं सवं िधान सभा का चनु ाव करने की
के लिए राजी करना। बना हू।ँ " धारणा पर सहमति व््यक्त की थी।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनतृ तीय चरण (1939-1 85


z सर््ववाधिक गैर-गांधीवादी आंदोलन का दर््जजा: राष्टट्र के लिए स््ववेच््छछा
भारत छोड़़ो आंदोलन (1942) या अगस्त क्ररांति
से बलिदान देने के लिए नागरिकोों की इच््छछा मेें गांधी जी का विश्वास, भारत
पृष्ठभूमि: छोड़़ो आदं ोलन की टकरावपर््णू प्रकृ ति के विपरीत था, जिसके कारण इसे सभी
z क्रिप््स मिशन की विफलता। आदं ोलनोों मेें सर््ववाधिक गैर-गांधीवादी होने का दर््जजा मिला।
z भारतीय सीमा के निकट जापानी सेना की तैनाती। विद्वानोों का दृष्टिकोण: फ््राांसिस हचिन््स ने कहा कि गांधी जी आखिरकार एक
z खाद्य आपर््ततिू की समस््ययाएँ और बढ़ती कीमतेें। राजनीतिज्ञ थे। वे एक सहज बुद्धि के संचालक थे। अगर वे बड़़ी संख््यया मेें लोगोों को
z कांग्रेस मेें आतं रिक मतभेद व विविध दृष्टिकोण। संगठित कर सकते थे तो अहिसं ा की अब कोई आवश््यकता नहीीं थी।
पूर््ण स्वतंत्रता के लिए संकल्प (भारत छोड़़ो संकल्प ): क्या भारत छोड़़ो आंदोलन एक स्वतःस्फूर््त आंदोलन था या एक
14 जुलाई, 1942 को वर््धधा मेें आयोजित कांग्रेस कार््यसमिति की बैठक मेें संघर््ष संगठित विद्रोह?
की धारणा का समर््थन किया गया और ब्रिटिश सरकार से पर््णू स््वतंत्रता की माँग स््वतःस््फफूर््त संगठित
करते हुए एक मसौदा प्रस््तताव पारित किया गया। मसौदे मेें यह सुझाव दिया गया
z शीर््ष नेतत्ृ ्व की गिरफ््ततारी के बाद z भारत छोड़़ो अभियान के
था कि अंग्रेज माँगोों पर सहमति नहीीं देेंगे।
आदं ोलनकर््तताओ ं मेें अत््यधिक इतिहास से पता चलता है
महत्त्व: आक्रोश देखा गया, जिसे राष्टट्रवादी कि यह आदं ोलन महज एक
z गांधीजी की केें द्रीयता: गांधी जी के इक््ककीस दिन के उपवास ने उन््हेें आदं ोलन किंवदति ं याँ ‘अगस््त क््राांति’ के रूप असंगठित जनता की तीव्र
के प्रतीकात््मक नेता के रूप मेें अपना स््थथान पनु ः प्राप्त करने मेें मदद की। मेें संदर््भभित करती हैैं। प्रतिक्रिया से कहीीं अधिक था।
z स््वतंत्रता एक प्राथमिकता: इसने स््वतंत्रता की माँग को राष्ट्रीय आदं ोलन z चकि ँू , कांग्रेस नेतत्ृ ्व का संपर््णू शीर््ष z पिछले दो दशकोों से चल रहा
की तत््ककाल प्राथमिकता सचू ी मेें सबसे ऊपर रखा।
स््तरीय वर््ग इसके शरू ु होने से पहले जन आदं ोलन , जिसका नेतत्ृ ्व
z हस््तताांतरण का तरीका: ब्रिटिश सरकार के साथ सत्ता हस््तताांतरण के तरीके पर ही जेल मेें था, इसलिए यह शरू ु से हाल ही मेें कांग्रेस से जड़ु ़े और
भविष््य मेें विशेष रूप से चर््चचा की अनमु ति दी गई।
ही हिसं क और परू ी तरह से नियंत्रण संबद्ध अनेक संगठनोों द्वारा
z सस्ु ्पष्ट आजादी: आजादी अब किसी सौदेबाजी का विषय नहीीं रही और यद्ध ु से बाहर हो गया। किया गया था, कहीीं अधिक
के बाद, यह स््थथिति परू ी तरह से स््पष्ट हो गई।
z आदं ोलन की असामान््य रूप से उग्र अवस््थथा मेें चलाया गया
z रचनात््मक कार््य: विधायी शाखा के पनु र््गठन पर ध््ययान देने के साथ, कांग्रेस था और उनके द्वारा पहले ही
अत््यधिक तीव्रता से हर कोई हैरान
गतिविधि का प्राथमिक ध््ययान रचनात््मक कार््य पर केें द्रित हो गया।
था। वायसराय लिनलिथगो के इस स््तर के संघर््ष की नीींव रख
भारत छोड़़ो आंदोलन अन्य गाांधीवादी आंदोलनोों से किस प्रकार भिन्न अनसु ार, यह "1857 के बाद से अब दी गई थी।
था?
तक का सबसे गंभीर विद्रोह था।" z 9 अगस््त से पहले, कांग्रेस
z ऐतिहासिक व््ययाख््ययाएँ: आधिकारिक और अनाधिकारिक दोनोों ऐतिहासिक नेताओ ं ने एक बारह सत्ू रीय
z एफ.जी. हचिन््स जैसे इतिहासकारोों
आख््ययान भारत छोड़़ो आदं ोलन मेें सहजता बनाम संगठन तथा हिसं ा और
के अनसु ार, भारत छोड़़ो अभियान कार््यक्रम तैयार किया था
अहिसं ा के स््तर पर वाद-विवाद के मद्ु दे बने।
एक "स््वतःस््फफूर््त क््राांति" थी, जो जिसमेें अतिरिक्त योजनाएँ
z अहिंसा से विचलन: इस आदं ोलन मेें अहिसं क प्रतिरोध के गांधीवादी सिद््धाांतोों
कांग्रेस द्वारा जनता से "अतं तक और विशिष्ट गांधीवादी
से विचलन देखा गया तथा व््यक्तियोों ने प्रतिरोध के लिए अपनी स््वयं की
लड़ने" के आह्वान का परिणाम थी। सत््ययाग्रह तकनीकेें शामिल
रणनीतियाँ तैयार कीीं।
थीीं।
z प्रमुख हस््ततियोों की भागीदारी: राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण,
अरुणा आसफ अली, उषा मेहता, बीजू पटनायक, छोटूभाई परु ाणिक, अच््ययुत भारत छोड़़ो आंदोलन के माध््यम से, भारत मेें ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ कर फेें का
पटवर््धन, सचु ते ा कृ पलानी और आर.पी. गोयनका जैसी प्रमख ु हस््ततियोों की न जा सका। हालाँकि, यह एक ऐसा आंदोलन था जिसने साम्राज््यवादी सत्ता के
सक्रिय भागीदारी थी। अहकं ार और भारतीय राजनीतिक वर््ग के अभिजात््यवाद से लड़ने के लिए विभिन््न
z ग्रामीणोों का समर््थन: इस आदं ोलन को बंबई, आध्रं , उत्तर प्रदेश, बिहार, भारतीय समहोू ों की शक्ति और दृढ़ता को प्रतिबिंबित किया।
गजु रात, उड़़ीसा, कर््ननाटक और बंगाल जैसे क्षेत्ररों के ग्रामीण जनता से महत्तत्वपर््णू
समर््थन प्राप्त हुआ। सी. आर. फार््ममूला या राजाजी फार््ममूला और गाांधी-
z समानांतर सरकारोों का उदय: उत्तर प्रदेश मेें बलिया, ओडिशा मेें तालचेर, जिन्ना वार्ता (1944)
बंगाल मेें तामलक ु जातीय सरकार और महाराष्टट्र के सतारा मेें आदं ोलन के सी. राजगोपालाचारी ने ब्रिटिश भारत की स््वतंत्रता पर अखिल भारतीय मस्ु ्ललिम
दौरान समानांतर शासन संरचनाओ ं की स््थथापना देखी गई।
लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच राजनीतिक गतिरोध को खत््म करने के
z राज््य प्राधिकरण को चुनौती: पारंपरिक सत््ययाग्रह के विपरीत, इस आदं ोलन
लिए राजगोपालाचारी फॉर््ममूला (जिसे सी. आर. फॉर््ममूला या राजाजी फॉर््ममूला भी
मेें ‘अतं तक संघर््ष’ के दृष्टिकोण पर जोर दिया गया, जिससे सरकारी मशीनरी
के लिए एक महत्तत्वपर््णू चनु ौती उत््पन््न हुई। कहा जाता है) प्रस््ततुत किया।

86  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


सी. आर. फॉर््ममूला के मुख्य बिंद :ु z गवर््नर-जनरल की वीटो शक्ति यथावत रही: ऐसा प्रावधान किया गया कि
z मस्ु ्ललिम लीग, कांग्रेस द्वारा की गई स््वतंत्रता की माँग का समर््थन करे गी। गवर््नर-जनरल की वीटो शक्ति बरकरार रहेगी, लेकिन उस शक्ति का संयम से
z लीग एक अस््थथायी राष्ट्रीय सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के साथ मिलकर उपयोग किया जाएगा।
काम करे गी। z विदेशी मामलोों का प्रतिनिधिमंडल: विदेशी मामलोों पर नियंत्रण गवर््नर-
यद्ध जनरल से भारतीय परिषद के सदस््य को हस््तताांतरित किया जाना था।
z ु के बाद, यह निर््धधारित करने के लिए एक सर्वेक्षण आयोजित किया जाएगा
कि क््यया उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पर््वू भारत के मस्ु ्ललिम-बहुल क्षेत्ररों के निवासी z कार््यकारी परिषद का गठन: वायसराय द्वारा नियक्त ु प्रतिनिधियोों का एक
अपना स््वयं का संप्रभु राज््य स््थथापित करना चाहते हैैं या नहीीं। सम््ममेलन नई कार््यकारी परिषद के लिए विभिन््न पार्टी नेताओ ं से योग््य व््यक्तियोों
z यदि विभाजन स््ववीकार कर लिया जाता है तो संचार, व््ययापार और रक्षा की सरु क्षा की सयं क्तु या अलग-अलग सचि ू याँ सरु क्षित करने के लिए बल ु ाया जाना था।
के लिए एक साझा समझौता किया जाएगा। z प््राांतीय मंत्री के पदभार ग्रहण सबं ंधी पूर््ववानुमान: यह अनमु ान लगाया गया
z उपर््ययुक्त समस््त शर्ततें तभी लागू होोंगी जब इग्ं ्लैैंड भारत को पर््णू स््वतंत्रता का था कि प््राांतीय मत्ं री अपने कार््ययालयोों को फिर से शरूु करेेंगे और प््राांतोों के भीतर
अधिकार प्रदान करे गा। एक गठबंधन बनाएगं े।
गाांधी-जिन्ना वार्ता और जिन्ना की आपत्ति: शिमला सम्मेलन
z गांधीजी ने जेल से रिहा होने के बाद जिन््नना के साथ उनके द्विराष्टट्र के विचार z वेवेल योजना पर चर््चचा: वेवेल योजना के प्रावधानोों पर चर््चचा करने के लिए 21
पर बातचीत का प्रस््तताव दिया। जिसमेें सी.आर. फॉर््ममूला ने बातचीत के लिए भारतीय राजनीतिक हस््ततियोों का एक सम््ममेलन ब्रिटिश सरकार की ग्रीष््मकालीन
रूपरे खा के रूप मेें योगदान दिया। राजधानी शिमला मेें बल ु ाया गया था।
z गांधी ने जिन््नना को सझु ाव के तौर पर सी.आर. फॉर््ममूला दिया। फिर भी, दो सप्ताह z कोई आम सहमति न बन सकी: हालाँकि, मस्ु ्ललिम प्रतिनिधियोों को चनु ने की
की चर््चचा के बाद, गांधी-जिन््नना की बैठक विफल हो गई। बात पर गतिरोध उत््पन््न हो गया।
 जिन््नना द्वारा यह दावा किया गया कि कांग्रेस के पास कार््यकारी परिषद मेें
z गांधीजी का दृष्टिकोण: उनका मानना था कि वार््तता मौलिक रूप से भिन््न-
किसी भी मसु लमान को नियक्त ु करने का अधिकार नहीीं है।
भिन््न वैश्विक दृष्टिकोणोों के कारण विफल हुई।
 जिन््नना ने इस बात पर भी जोर दिया कि एक ऐसा खड ं होना चाहिए जिसमेें
z जिन््नना की आपत्ति:
कहा गया हो कि मत विभाजन की स््थथिति मेें और मस्ु ्ललिम सदस््य द्वारा
 जिन््नना चाहते थे कि कांग्रेस द्विराष्टट्र सिद््धाांत को स््ववीकार कर ले।
आपत्ति जताए जाने की स््थथिति मेें के वल दो-तिहाई सदस््योों द्वारा ही मतदान
 उन््होोंने माँग की कि जनमत सग्र ं ह मेें के वल उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर््व को मजं रू ी दी जा सकती है। इसके लिए जिन््नना ने सांप्रदायिक वीटो की माँग
के मुसलमानोों को ही वोट देने की अनुमति दी जाए, परू ी आबादी को की।
नहीीं।  मस्ु ्ललिम लीग ने आम सहमति हेतु कोई नरम रुख नहीीं अपनाया और वेवेल
 जिन््नना का मानना था कि लीग सभी मस ु लमानोों की आवाज के रूप मेें द्वारा योजना समाप्त कर दी गई।
काम करती है और फार््ममूले द्वारा माँगा गया वयस््क मताधिकार अनावश््यक है। z वार््तता विफल: लॉर््ड वेवेल ने सम््ममेलन का समापन यह दावा करके किया कि
z जिन््नना ने उत्तर-पश्चिम मेें सिध
ं , बलूचिस््ततान, उत्तर-पश्चिम सीमांत प््राांत और वार््तता विफल हो गई है। परिणामस््वरूप, शिखर सम््ममेलन रद्द हो गया, सभं वतः
पंजाब तथा उत्तर-पर््वू मेें असम और बंगाल जैसे ब्रिटिश भारतीय प््राांतोों पर भारत के एक एकीकृ त, स््वतंत्र राष्टट्र बनने की संभावना भी समाप्त हो गई।
दावा किया था, जिन््हेें उस समय मस्ु ्ललिम बहुल आबादी वाला माना जाता था।
इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए ) या
शिमला सम्मेलन और वेवेल योजना (1945) आजाद हिंद फौज और आईएनए मुकदमे: महत्त्व
पृष्ठभूमि: कै प््टन मोहन सिंह ने 1942 मेें पहली बार इडं ियन नेशनल आर्मी (INA) की
लॉर््ड लिनलिथगो के उत्तराधिकारी व नव नियक्त स््थथापना की, जिसे आजाद हिदं फौज के नाम से भी जाना जाता है। 21 अक््टटूबर,
z ु गवर््नर-जनरल लॉर््ड वेवेल ने
भारत मेें गतिरोध को समाप्त करने का प्रयास किया। 1943 को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश राज से
भारत की पूर््ण स््वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए इसे पुनर्जीवित किया।
z वेवेल ने दावा किया कि कांग्रेस और उसके सहयोगियोों को चाहिए कि वे अपने
समर््थकोों को आदं ोलन से हटाकर "कुछ अधिक लाभदायक कार्ययों अर््थथात् भारत नेताजी सुभाष चंद्र बोस
की प्रशासनिक समस््ययाओ ं से निपटने और संवैधानिक समस््ययाओ ं को हल करने
का प्रयास करने" की ओर अग्रसर करेें। z फॉरवर््ड ब््ललॉक की स््थथापना (1939): जैसा कि हमने पिछले अध््ययाय मेें
देखा, सभु ाष बोस ने ‘त्रिपुरी सक ं ट’ (1938-1939) के बाद साम््यवादी
योजना के अंतर््गत कार््य: और समाजवादी गतिविधियोों को बढ़़ावा देने के लिए कांग्रेस के भीतर
z गवर््नर-जनरल की कार््यकारी परिषद का पुनर््गठन: नए संविधान के निर््ममाण फॉरवर््ड ब््ललॉक की स््थथापना की।
के दौरान गवर््नर-जनरल की कार््यकारी परिषद का नवीनीकरण किया जाना था। z साहसी पलायन: जल ु ाई, 1940 मेें "भारत रक्षा अधिनियम" के तहत
z सतं ुलित प्रतिनिधित््व: परिषद मेें मसु लमानोों और हिदं ओ
ु ं को समान सख्ं ्यया मेें हिरासत मेें लिया गया और घर मेें नजरबंद रखा गया। कलकत्ता से
शामिल किया जाना था, जिससे प्रमख ु जातीय समहोू ों का संतलि
ु त प्रतिनिधित््व "चनु ौतीपर््णू पलायन" मेें भारत को पर््वू से उत्तर-पश्चिम की ओर पार करते
सनिश्
ु चित हो सके । हुए काबल ु से होते हुए सोवियत संघ और अतं तः बर््ललिन पहुचँ ।े

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनतृ तीय चरण (1939-1 87


z स््वतंत्र भारत की अनंतिम सरकार: इसकी स््थथापना अक््टटूबर, 1943 मेें आरआईएन रेटिं ग विद्रोह
सभु ाष चद्रं बोस द्वारा की गई थी, और अतं तः इसे जापान और आठ अन््य (रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह ) (1946)
देशोों द्वारा स््ववीकार कर लिया गया था।
1946 का नौसेना विद्रोह, जिसे रॉयल इडि ं यन नेवी विद्रोह के नाम से भी जाना
z दिल््लली चलो अभियान: सभु ाष चद्रं बोस द्वारा अपने प्रसिद्ध आह्वान
"दिल््लली चलो" के बाद अनंतिम सरकार ने ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ यद्ध जाता है, भारत मेें ब्रिटिश प्रशासन के विरुद्ध भारतीय नाविकोों, सैनिकोों, पुलिस

की घोषणा कर दी। अधिकारियोों और नागरिकोों द्वारा किया गया विद्रोह था।
z परमाणु हमले के बाद आत््मसमर््पण: अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा महत्त्व:
और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने के बाद (अगस््त, 1945 मेें), z विद्रोह को लोगोों के निर्भीक व््यवहार के रूप मेें व््यक्त किया गया।
जापान को आत््मसमर््पण करने के लिए मजबरू होना पड़़ा और आई.एन.ए. z सैन््य तख््ततापलट ने लोगोों की मानसिकता पर मख्ु ्य रूप से मक्त ु प्रभाव डाला।
को कठिन परिस््थथितियोों मेें लड़ने के लिए छोड़ दिया गया। z आरआईएन विद्रोह को ब्रिटिश शासन के अतं का संकेत माना गया।
आई.एन.ए. के आत्मसमर््पण के बाद: z इस प्रकार, विद्रोही समहोू ों की वृद्धि के कारण अग्ं रेजोों को कुछ रियायतेें देनी पड़ीं।
z आत््मसमर््पण करने वाले 20,000 आई.एन.ए. सैनिकोों से भारत लौटने से
सीमाएँ :
पहले पछू ताछ की गई।
z हिंसक प्रकृति: राष्ट्रीय एकता के पहले के शांतिपर््णू प्रदर््शनोों के विपरीत, ये
 "ग्रे ज" और "व््हहाइट्स": उनमेें से वे लोग जो जापानी और आईएनए
विद्रोह सत्ता के लिए हिसं क चनु ौतियोों का प्रतिनिधित््व करते थे।
प्रचार द्वारा "गमु राह" किए गए थे, उन््हेें या तो रिहा कर दिया गया या सेना
z भागीदारी: भागीदारी मख्ु ्य रूप से रैैंकोों के भीतर अधिक विद्रोही समहोू ों तक
मेें फिर से भर्ती कर लिया गया।
सीमित थी।
 "अश्वेत": अन््य लोग, जो इस मद् ु दे के प्रति अधिक समर््पपित थे, उन््हेें
"अश्वेत" के रूप मेें वर्गीकृ त किया गया तथा उन््हेें कोर््ट मार््शल के अधीन z सीमित भौगोलिक विस््ततार: जबकि व््ययापक आई.एन.ए. आदं ोलन सदु रू
किया गया। ग्रामीण क्षेत्ररों तक फै ल गया, ये विद्रोह अल््पकालिक थे और चनि ु ंदा शहरी
केें द्ररों तक ही सीमित थे।
z सैनिकोों पर कुल ग््ययारह मुकदमे चले: सबसे प्रसिद्ध मक ु दमा दिल््लली के
लाल किले मेें चलाया गया, जिसमेें तीन आईएनए कमांडर पी.के . सहगल, z सगं ठनात््मक सांप्रदायिक सद्भाव: सांप्रदायिक सद्भाव, वास््तविक मानवीय
जी.एस. ढिल््लोों और शाहनवाज खान शामिल थे। सहगल, ढिल््लोों और खान एकता के बजाय काफी हद तक संगठनात््मक था, जिसमेें लीग मस्ु ्ललिम
के खिलाफ राजद्रोह, हत््यया और हत््यया मेें सहयोग करने के आरोप लगाए गए। सैनिकोों का मार््गदर््शन माँग रही थी और बाकी अपना मार््गदर््शन कांग्रेस और
सार््वजनिक मुकदमे के पीछे मूल विचार: सरकार के सार््वजनिक मक समाजवादियोों से प्राप्त कर रहे थे।
z ु दमे
का उद्देश््य देशद्रोह के लिए सेना के अधिकारियोों को क्रू रतापर््वू क दडिं त करना z ब्रिटिश प्राधिकरण का जारी रहना: नौकरशाही के मनोबल मेें गिरावट
और लोगोों को आई.एन.ए. द्वारा लाई गई "विभीषिका" के बारे मेें बताना था। के बावजदू , ब्रिटिशोों ने असंतोष को दबाने के लिए मजबतू अवसंरचनात््मक
क्षमताएँ बनाए रखीीं।
महत्त्व:
z भारतीय भूमि पर तिरंगा: 14 अप्रैल, 1944 भारतीय स््वतंत्रता सग्ं राम भारतीय नेताओ ं की प्रतिक्रिया:
के इतिहास मेें एक महत्तत्वपूर््ण तारीख है। इस दिन, भारतीय राष्ट्रीय सेना z गांधी जी: पटेल और नेहरू के विपरीत, जिन््होोंने पहले समाजवादी नेता अरुणा
(INA) ने मणिपुर के बिष््णणुपुर जिले के मोइरांग मेें झंडा फहराया था। आसफ अली के बॉम््बबे आने के प्रस््तताव को स््ववीकार किया, लेकिन जल््ददी ही
इस दिन का महत्तत्व इस तथ््य मेें निहित है कि यह पहली बार था जब "हिसं ा के जंगली प्रकोप को रोकने की आवश््यकता" को महससू किया, गांधी
भारतीय राष्ट्रीय ध््वज अपनी मातृभूमि मेें फहराया गया था। जी द्वारा विद्रोही नौसैनिकोों को अनश ु ासन मेें रहने की हिदायत दी और उनके
z राजनीतिक प्रभाव: उस अवधि के दौरान, आई.एन.ए. की गतिविधियोों का प्रति उतने ही प्रतिरोधी बने रहे।
भारत के राजनीतिक परिदृश््य पर गहरा प्रभाव पड़़ा। z नेहरू: नेहरू जैसे नेताओ ं ने ब्रिटिशोों से भारतीयोों के हाथोों मेें शांतिपर््णू "सत्ता
z क््राांति की लहर: यद्ध
ु के बाद जब आजाद हिदं फौज की असाधारण बहादरु ी हस््तताांतरण" पर विचार करना शरू ु कर दिया, जिसे दो से पाँच वर्षषों मेें परू ा
और बलिदान की कहानियाँ भारतीय जनता के बीच फै ली तो राष्टट्र मेें क््राांतिकारी किया जाना था।
जोश की लहर दौड़ गई। z कांग्रेस: ​​इन विद्रोहोों के दौरान और अपनी रणनीति के कारण, कांग्रेस ने
z देशभक्ति मेें वद्धि
ृ : ब्रिटिश सरकार ने भारतीयोों की देशभक्ति मेें उल््ललेखनीय औपचारिक रूप से उनका समर््थन नहीीं किया। बड़़े पैमाने पर आदं ोलन शरू ु
वृद्धि देखी, जो औपनिवेशिक शासकोों के प्रति उनकी निष्ठा से भी अधिक थी। होने से पहले, कांग्रेस की रणनीति का एक महत्तत्वपर््णू घटक बातचीत थी।
z स््वतंत्रता का प्रेरणादायक दृष्टिकोण: हिसं क साधनोों को अपनाने के z कम््ययुनिस््ट: उन््होोंने श्रमिकोों और विद्रोहियोों का समर््थन किया। गरीब किसानोों
बावजदू , भारत की आजादी के लिए सभु ाष चद्रं बोस के महान दृष्टिकोण और बटाईदारोों के बीच अपने प्रयासोों का विस््ततार करने के अलावा, वे बॉम््बबे
और आई.एन.ए. के आदर््शवादी संगठन ने भारतीय जनता के बीच अभतू पर््वू और कलकत्ता मेें दगों ों मेें सक्रिय रूप से शामिल थे, जहाँ उन््हेें औद्योगिक
प्रेरणा जगाई। श्रमिकोों के बीच मजबतू समर््थन प्राप्त था।

88  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


सरकार के रवैये मेें बदलाव
ब्रिटिश औपनिवेशिक
आकाांक्षाओ ं पर नौसेना विद्रोह का प्रभाव z वैश्विक शक्ति गतिशीलता मेें बदलाव: यद्ध ु की समाप्ति के बाद वैश्विक शक्ति
z उद्देश््य का एकीकरण: इस विद्रोह ने उस महत्तत्वपर््णू क्षण को चिह्नित किया, गतिशीलता मेें महत्तत्वपर््णू बदलाव आया, जिसमेें ब्रिटेन ने एक प्रमख ु देश के
जिसमेें सेवाओ ं के भीतर और सड़कोों पर विविध पृष्ठभमि ू के व््यक्तियोों ने रूप मेें अपनी स््थथिति खो दी, जबकि संयक्त ु राज््य अमेरिका और सोवियत संघ
एक साझा उद्देश््य के लिए एक साथ खनू बहाया था। महाशक्तियोों के रूप मेें उभरे , दोनोों ने भारत की स््वतंत्रता का समर््थन किया।
z प्रस््थथान की पुष्टि: नौसेना विद्रोह की घटना ने स््पष्ट संकेत दिया कि भारत z भारतीय आवश््यकताओ ं की समझ: नए लेबर प्रशासन ने भारत की
छोड़ने के ब्रिटिश इरादे निकट व स््पष्ट थे। आकांक्षाओ ं और आवश््यकताओ ं के प्रति बेहतर समझ प्रदर््शशित की।
z मुख््य विद्रोह: यह विद्रोह ब्रिटिश सरकार की सशस्त्र सेनाओ ं के मध््य z समाजवादी-कट्टरपंथी प्रशासन का उदय: इस अवधि के दौरान परू े यरू ोप मेें
उत््पन््न हुआ, जो परंपरागत रूप से ब्रिटिश साम्राज््य को बनाए रखने और समाजवादी-कट्टरपंथी सरकारोों की लहर चली, जिसने अपने उपनिवेशोों के प्रति
असंतोष को दबाने के लिए एक केें द्र के रूप मेें कार््य करती थी। ब्रिटिश नीतियोों को प्रभावित किया।
z जन उत््ससाह की लहर: आईएनए मक ु दमा और रॉयल एयर फोर््स विद्रोह के z ब्रिटे न पर आर््थथिक दबाव: ब्रिटिश अर््थव््यवस््थथा को गंभीर झटका लगा तथा
बाद, आरआईएन विद्रोह ने बढ़ते असंतोष की परिणति का प्रतिनिधित््व ब्रिटिश सैनिकोों के सतत संघर््षरत रहने की ऊब ने औपनिवेशिक शक्ति के
किया। इन पर््ववर्ती
ू घटनाओ ं ने पहले से ही भारतीय जनता मेें जोश व सक ं ल््प को और कमजोर कर दिया।
उत््ससाह भर दिया था। z दक्षिण-पूर््व एशिया मेें साम्राज््यवाद-विरोधी भावनाएँ: दक्षिण-पर््वू एशिया
z विचारोों की मुक्ति: विद्रोह की घटना ने सार््वजनिक विमर््श को मुक्त मेें फ््राांसीसी और डच प्रभत्ु ्व को पनु ः स््थथापित करने के प्रयासोों को वियतनाम
करने पर गहरा प्रभाव डाला। एचएमआईएस तलवार पर "भारत छोड़़ो" और इडं ोनेशिया मेें साम्राज््यवाद-विरोधी भावनाओ ं से प्रेरित होकर कड़़े प्रतिरोध
लिखने के कारण एक जहाजी की गिरफ््ततारी ने विद्रोह को भड़काने के लिए का सामना करना पड़़ा।
उत्प्रेरक का काम किया।
z विद्रोह का भय: ब्रिटिश नेतत्ृ ्व को 1942 के भारत छोड़ो विद्रोह के फिर से
z व््ययापक समर््थन: इस विद्रोह को उन व््यक्तियोों से पर््ययाप्त समर््थन प्राप्त हुआ उभरने की आशक ं ा थी, क््योोंकि उन््हेें संचार पर हमले, कृ षि-संबंधी अशांति,
जो पहले से ही ब्रिटिश सरकार के विरोधी थे, जिससे औपनिवेशिक सत्ता
श्रमिक हड़ताल और सैन््य असतं ोष सहित व््ययापक अशांति की सभं ावना थी।
को चनु ौती देने मेें इसका महत्तत्व और अधिक मजबतू हो गया।
z चुनावोों की अपरिहार््यता: 1934 और 1937 मेें क्रमशः केें द्र और प््राांतोों के
द्वितीय विश्व युद्ध और उसके बाद लिए हाल ही मेें हुए चनु ावोों की समाप्ति को देखते हुए, यद्ध ु के बाद नए चनु ाव
कराना एक अपरिहार््य आवश््यकता बन गई।
z राष्ट्रीय विद्रोह के पहलू: ब्रिटिश प्रशासन के अति ं म दो वर्षषों के दौरान, राष्ट्रीय
विद्रोह के दो मख्ु ्य पहलू थे जिन््हेें पहचाना जा सकता है: 1945 के चुनाव
 त्रिपक्षीय जटिल वार््तता: सरकार, कांग्रेस और मस्ु ्ललिम लीग के बीच
काांग्रेस का प्रदर््शन
विकट समझौता, जो क्रमशः अतं र-समहू हिसं ा से प्रभावित हुआ और
जिसके परिणामस््वरूप स््वतंत्रता और विभाजन हुआ। z कांग्रेस को गैर-मस्ु ्ललिम वोटोों का 91 प्रतिशत मिला।
 छिटपुट और स््थथानीय लहर: राष्टट्रव््ययापी हड़तालोों की प्रासंगिक लहर,
z कांग्रेस ने केें द्रीय विधानसभा मेें 102 मेें से 57 सीटेें हासिल कीीं।
स््थथानीय, स््तर पर प्रायः काफी उग्र थी तथा इसका नेतत्ृ ्व मजदरोू ों, किसानोों z प््राांतीय चनु ावोों मेें बंगाल, सिंध और पंजाब को छोड़कर अधिकांश प््राांतोों मेें उसे
और राज््य के लोगोों द्वारा किया गया। बहुमत मिला।
z कांग्रेस के बहुमत वाले प््राांतोों मेें उत्तर-पश्चिमी सीमांत प््राांत और असम शामिल
युद्ध के बाद भारत के प्रति ब्रिटिश नीति
थे, जिन पर पाकिस््ततान का दावा किया जा रहा था।
z ब्रिटिश नीति का उद्देश््य भारतीयोों का ध््ययान उपमहाद्वीपीय स््वतंत्रता के उनके
मुस्लिम लीग का प्रदर््शन
लक्षष्य से हटाना और यदि संभव हो तो उन््हेें विभाजित और विघटित करना था।
z मस्ु ्ललिम लीग को भारतीय मसु लमानोों की एकमात्र आवाज के रूप मेें मान््यता z मस्ु ्ललिम लीग को 86.6 प्रतिशत मुस््ललिम वोट मिले। इसने केें द्रीय असेेंबली
देकर और मस्ु ्ललिम लीग की पाकिस््ततान की माँग का उपयोग करके वे हिदं ू और की 30 आरक्षित सीटोों पर कब््जजा कर लिया था।
मस्ु ्ललिम समदु ायोों को विभाजित करने मेें सफल रहे। z प््राांतीय चनु ावोों मेें उसे बंगाल और सिधं मेें बहुमत मिला।
z वी.पी. मेनन के अनसु ार, सत्ता के शीघ्र हस््तताांतरण के लिए लेबर पार्टी की जीत z 1937 के विपरीत, अब लीग ने स््पष्ट रूप से मसु लमानोों के बीच प्रमख ु पार्टी के
मख्ु ्य उत्तरदायी कारक थी। रूप मेें अपनी स््थथिति स््थथापित कर ली थी।
z द्वितीय विश्व यद्ध
ु के बाद किसी उपनिवेश पर सीधे शासन करना ताकि उससे महत्त्व
आर््थथिक लाभ प्राप्त किए जा सकेें असवु िधाजनक और काफी कम लाभदायक z भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सबसे बड़़ी पार्टी के रूप मेें उभरी।
था। विश्व यद्ध ु ने साम्राज््यवाद को समाप्त नहीीं किया बल््ककि नए तरीकोों से z लीग ने सभी मस्ु ्ललिम निर््ववाचन क्षेत्ररों मेें जीत हासिल की और इस प्रकार, ये
साम्राज््यवाद पनु र्जीवित किया उदाहरण के लिए, नव-उपनिवेशवाद। चनु ाव जिन््नना के लिए एक रणनीतिक जीत साबित हुई।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनतृ तीय चरण (1939-1 89


z चनु ावोों मेें विभिन््न उभारोों मेें दिखाई गई प्रबल ब्रिटिश विरोधी एकता के विपरीत z सवि ं धान सभा का चुनाव: नव गठित प््राांतीय विधानसभाओ ं को परू े भारत के
सांप्रदायिक मतदान देखा गया, जिसके कारण: लिए संविधान लिखने के लिए एक संविधान सभा का चनु ाव करना था। प्रावधान
 पथ ृ क निर््ववाचन क्षेत्र: के वल मसु लमानोों द्वारा मस्ु ्ललिम उम््ममीदवारोों के किया गया कि यह प्रारंभ मेें, संघ स््तर पर आयोजित होगी और फिर तीन समूहोों
लिए और हिदं ओ ु ं द्वारा हिदं ू उम््ममीदवारोों के लिए मतदान सनिश्
ु चित करके मेें विभाजित होगी:
सांप्रदायिक विभाजन को मजबतू किया गया।  समूह ‘ए’: हिद ं ू बहुल प््राांतोों से मिलकर बनेगा।
 सीमित मताधिकार: प््राांतोों के लिए, जनसंख््यया के 10 प्रतिशत से कम  समूह ‘बी’: उत्तर-पश्चिम मेें मस्ु ्ललिम बहुल प््राांतोों से मिलकर बनेगा।

लोग मतदान कर सकते थे और केें द्रीय विधानसभा के लिए, जनसंख््यया के 1  समूह ‘सी’: बंगाल और असम को शामिल करे गा।

प्रतिशत से भी कम लोग मतदान के पात्र थे।  मुख््य आयुक्त का प््राांत: तीन (दिल््लली, अजमेर- मारवाड़़ा और कूर््ग) समह ू
‘ए’ मेें शामिल होोंगे और एक (बलचिस््तता ू न) सम ह
ू ‘बी’ मेें शामिल होगा।
कैबिनेट मिशन (1946): महत्त्व और परिणाम
z रियासतेें: उन््हेें चर््चचा के माध््यम से केें द्रीय संविधान सभा मेें पर््ययाप्त प्रतिनिधित््व
परिचय: दिया जाएगा।
z कै बिनेट मिशन योजना भारतीय राजनीतिक दलोों और प्रतिनिधियोों के बीच z वापस लेने की शक्ति: तीन स््तरोों (सघं , समूह और प््राांत) पर सवि ं धान
किसी समझौते पर पहुच ँ ने मेें विफल रहने की प्रतिक्रिया मेें, कै बिनेट मिशन को अति ं म रूप दिए जाने के बाद प््राांतोों को किसी भी समहू से वापस लेने का
अधिकार होगा, लेकिन सघं से नहीीं। दस साल बाद, वे सभं ावित रूप से सवं िधान
और वायसराय लॉर््ड वेवेल ने 16 मई, 1946 को एक वक्तव््य जारी किया,
के प्रावधानोों पर फिर से विचार कर सकते हैैं।
जिसमेें देश के संवैधानिक भविष््य के लिए सिफारिशेें शामिल थीीं।
z स््वतंत्रता ही अंतिम उद्देश््य: चाहे ब्रिटिश राष्टट्रमडं ल के भीतर हो या बाहर,
z सदस््य: भारत के राज््य सचिव लॉर््ड पेथिक लॉरेेंस, व््ययापार बोर््ड के अध््यक्ष
स््वतंत्रता ही अति ं म उद्देश््य होगा।
सर स््टटैफोर््ड क्रिप््स और एडमिरल लॉर््ड या नौसेना प्रमख ु ए.वी. अलेक््जेेंडर
शामिल थे। महत्त्व:
z सवि ं धान सभा पर प्रभाव: "राज््य पत्र" के रूप मेें संदर््भभित इस योजना ने,
S.W.ER विशेष रूप से सघं वाद और नेहरू के उद्देश््य प्रस््तताव के सबं ंध मेें, सवं िधान सभा
पंजाब की प्रारंभिक बहसोों को महत्तत्वपर््णू रूप से प्रभावित किया।
बलूचिस््ततान z वैधता का स्रोत: योजना ने विधानसभा के लिए काननू ी वैधता के स्रोत के रूप
मेें कार््य किया, साथ ही मस्ु ्ललिम लीग को शामिल करने की संभावना के लिए भी
बंगाल असम
िसंध स््थथान आरक्षित किया। इसके अतिरिक्त विधानसभा ने अपनी वैधता को के वल
िबहार बंगाल
योजना से नहीीं बल््ककि भारतीय जनता से प्राप्त होने के रूप मेें पेश किया।
मध्य प्रदेश z अकादमिक महत्तत्व: कै बिनेट मिशन योजना भारतीय संविधानवाद, काननू ,
बंबई
राजनीति और इतिहास के विभिन््न पहलओ ु ,ं विशेष रूप से संघवाद और
विभाजन से संबंधित पहलओ ु ं की खोज करने वाले अकादमिक शोध के लिए
आवश््यक पठनीय सामग्री है।
z लॉर््ड वेवेल का दृष्टिकोण: लॉर््ड वेवेल के विचार भारत मेें घटते ब्रिटिश प्रभाव
को रे खांकित करते हैैं। वहीीं ब्रिटिश प्रतिष्ठा और अतीत की गति पर निर््भरता को
उजागर करते हैैं, जो दोनोों ही कम होते जा रहे थे।
मिशन की योजना:
स्वीकृति और अस्वीकृति
z त्रिस््तरीय सरं चना: भारत संघ के लिए कै बिनेट मिशन ने प््राांतोों और रियासतोों z 6 जनू और 24 जनू , 1946 को क्रमशः मस्ु ्ललिम लीग और कांग्रेस ने
के साथ त्रिस््तरीय लचीले सघं ीय ढाँचे की सिफारिश की। कै बिनेट मिशन द्वारा प्रस््ततावित दीर््घकालिक रणनीति का समर््थन किया।
z केें द्रीय शक्ति: सघं सरकार के वल विदेशी मामलोों, रक्षा और संचार के z जल ु ाई, 1946 मेें प््राांतीय विधानसभाओ ं मेें सवं िधान सभा के लिए
लिए प्रभारी होगी तथा उसके पास इन क्षेत्ररों के लिए आवश््यक धन जटु ाने का चनु ाव हुए।
अधिकार होगा। z 10 जल ु ाई, 1946 को नेहरू ने घोषणा की, "संविधान सभा मेें भाग लेने
z अवशिष्ट शक्ति: शेष सभी शक्तियाँ प््राांतीय सरकारोों को प्रदान की जाएगी, के हमारे निर््णय के अलावा हम किसी अन््य चर््चचा के लिए बाध््य नहीीं हैैं।”
जिनमेें से प्रत््ययेक को समहोू ों मेें संगठित होने की स््वतंत्रता होगी, उनकी अपनी z 29 जल ु ाई, 1946 को नेहरू की टिप््पणी के जवाब मेें लीग ने दीर््घकालिक
विधायिकाएँ और कार््यकारी शाखाएँ होोंगी तथा वे यह चनु सकेें गे कि किन रणनीति के प्रति अपनी स््ववीकृ ति वापस ले ली तथा पाकिस््ततान के निर््ममाण
प््राांतीय विषयोों का समाधान संयक्त ु रूप से किया जा सकता है। के लिए 16 अगस््त से "प्रत््यक्ष कार््रवाई" का आह्वान किया।

90  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


प्रतिक्रिया विशेषताएँ :
z मुस््ललिम लीग: इस धारणा पर इसे स््ववीकार किया कि पाकिस््ततान का z दो स््वतंत्र डोमिनियन का निर््ममाण: भारत और पाकिस््ततान 15 अगस््त, 1947
आधार और नीींव इस योजना मेें शामिल थे और अतं तः इसका परिणाम को दो स््वतंत्र डोमिनियन के रूप मेें उभरेेंगे।
पाकिस््ततान की स््थथापना के रूप मेें होगा। z सीमांकन सीमा आयोग: दोनोों डोमिनियन के क्षेत्ररों का सीमांकन सीमा
z कांग्रेस: इस आधार पर आपत्ति जताई- आयोग की नियक्ु ति के बाद किया जाएगा। पाकिस््ततान का गठन करने वाले
 स््वतंत्रता सर्वोच््च प्राथमिकता थी, लेकिन कै बिनेट मिशन ने कहा कि प््राांतोों को छोड़कर सभी भारतीय प््राांत भारतीय डोमिनियन का हिस््ससा होोंगे।
संविधान तैयार होने के बाद स््वतंत्रता प्रदान की जाएगी। z कॉमन गवर््नर जनरल: यदि दोनोों डोमिनियन स््टटेट्स की सहमति हो तो एक
 इसने असम और एनडब््ल्ययूएफपी, जहाँ बहुसंख््यक आबादी मस्ु ्ललिम ही गवर््नर जनरल का प्रावधान किया गया था। प्रत््ययेक डोमिनियन मेें महामहिम
है, को अन््य मस्ु ्ललिम बहुल राज््योों के साथ मिलाने पर आपत्ति जताई। द्वारा नियक्त ु एक गवर््नर जनरल होगा जो उनकी संबंधित सरकारोों मेें उनका
 इसने माँग की कि केें द्र को और अधिक अधिकार दिए जाएँ ताकि वह प्रतिनिधित््व करे गा।
सक ं ट आने या काननू के परू ी तरह ध््वस््त हो जाने पर हस््तक्षेप कर सके । z विधायी प्राधिकार: प्रत््ययेक डोमिनियन की विधायिका को अपने क्षेत्र पर
शासन करने के लिए काननू बनाने की शक्ति होगी।
कैबिनेट मिशन की असफलता के कारण:
z कांग्रेस की अस््ववीकृति: कांग्रेस पार्टी ने कै बिनेट मिशन की सिफारिशोों को z शक्तियोों का प्रयोग: प्रत््ययेक डोमिनियन की संविधान सभा, डोमिनियन
स््ववीकार करने से इनकार कर दिया, विशेष रूप से धार््ममिक आधार पर प््राांतोों को विधानमडं ल मेें निहित सभी शक्तियोों का प्रयोग करने के लिए स््वतंत्र होोंगी।
विभाजित करने के विचार का विरोध किया और एक मजबतू केें द्रीय सरकार z राष्टट्रमंडल सबं ंधी सचिव: यह कार््ययालय भारत और पाकिस््ततान डोमिनियन
की वकालत की। से संबंधित मामलोों की देखरे ख करे गा तथा राष्टट्रमडं ल के भीतर समन््वय और
z नई योजना का परिचय: प्रस््तताव मेें अलग-अलग हिदं -ू बहुल और मस्ु ्ललिम- संचार सनिश् ु चित करे गा।
बहुल क्षेत्ररों के निर््ममाण का सझु ाव दिया गया था, साथ ही रियासतोों की एक प्रतिक्रियाएँ :
सचू ी भी दी गई थी, जिन््हेें सघं मेें शामिल होने या स््वतंत्र रहने का विकल््प z गांधी जी और मौलाना आजाद: उन््होोंने भारत के विभाजन के लिए
दिया गया था। माउंटबेटन योजना के खिलाफ आवाज उठाई। गांधी जी इस योजना के निर््णयोों
z कांग्रेस द्वारा द्वितीय प्रस््तताव को खारिज करना: कांग्रेस ने दसू रे प्रस््तताव से बेहद नाराज थे और उन््होोंने जनता से आग्रह किया कि वे विभाजन को
को खारिज कर दिया तथा संविधान सभा मेें भाग लेने को प्राथमिकता दी। बिना सोचे-समझे स््ववीकार न करेें। उन््होोंने इसका विरोध करने के लिए लोगोों
z मुस््ललिम लीग की आपत्ति: मुस््ललिम लीग ने कांग्रेस से जाकिर हुसैन के को एकजटु किया।
नामांकन पर आपत्ति जताई तथा मसु लमानोों ने प्रतिनिधित््व के लिए अपने z कांग्रेस की स््थथिति: कांग्रेस ने कई केें द्ररों को अधिकार हस््तताांतरित करने वाले
एकाधिकार का दावा किया तथा आगे की कार््यवाही से परहेज किया। प्रावधान को स््ववीकार कर लिया, क््योोंकि इससे मौजदू ा विधायिका को अपने
z प्रत््यक्ष कार््रवाई दिवस: 16 अगस््त, 1946 को जिन््नना ने "प्रत््यक्ष कार््रवाई प्रतिनिधित््व वाले क्षेत्ररों के लिए संविधान का मसौदा तैयार करने की अनमु ति
दिवस" का आह्वान किया तथा मसु लमानोों से प्रदर््शन करने और पाकिस््ततान की मिल गई तथा इस समय मौजदू गतिरोध से बाहर निकलने का मार््ग मिल गया।
माँग करने का आग्रह किया, जिससे तनाव बढ़ गया और वार््तता जटिल हो गई। z मुस््ललिम लीग की आपत्तियाँ: जिन््नना की सख््त माँगेें कि लीग को सभी
मस्ु ्ललिम सदस््योों को चनु ने का पर््णू अधिकार होना चाहिए और कार््यकारिणी मेें
अंतरिम सरकार
सांप्रदायिक वीटो का एक रूप होना चाहिए, जिसमेें मसु लमानोों द्वारा विरोध किए
z 2 सितंबर, 1946 को नेहरू के नेतत्ृ ्व मेें कांग्रेस के प्रभत्ु ्व वाली अतं रिम जाने वाले कार्ययों के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश््यकता होगी, सम््ममेलन
सरकार को शपथ दिलाई गई, क््योोंकि उन््हेें डर था कि कांग्रेस व््ययापक के टूटने के मख्ु ्य कारण थे।
कार््रवाई करे गी। नेहरू लगातार इस बात पर जोर देते रहे कि उनकी पार्टी z ‘डिकी बर््ड’ योजना: इस योजना को बाल््कन योजना के नाम से भी जाना
अनिवार््य समहू ीकरण का विरोध करती है। जाता है। इसके तहत सभी प््राांतोों को स््वतंत्र उत्तराधिकारी राज््य बनाने का
z अपने नाम के बावजदू , अतं रिम सरकार वायसराय की परु ानी कार््यकारिणी प्रावधान किया गया था। सरदार पटेल और वी.पी. मेनन द्वारा दो केें द्रीय सरकारोों,
की निरंतरता से अधिक कुछ नहीीं थी। भारत और पाकिस््ततान को डोमिनियन स््टटेटस के अनदु ान के आधार पर सत्ता
z 26 अक््टटूबर, 1946 को वेवेल ने शांतिपर््वू क मस्ु ्ललिम लीग को अतं रिम हस््तताांतरण का प्रस््तताव रखा गया, जिसके कारण नेहरू ने इस योजना का विरोध
सरकार मेें शामिल कर लिया। किया और इसे छोड़ दिया।
माउं टबेटन योजना (1947) या 3 जून योजना और 1940 के दशक मेें सत्ता हस्ततांतरण की प्रक्रिया को
विभिन्न हितधारकोों की प्रतिक्रियाएँ जटिल बनाने मेें ब्रिटिश साम्राज्यवादी शक्ति की भूमिका
यह कानून भारत मेें दो स््वतंत्र डोमिनियन स््टटेटस की स््थथापना के लिए प्रावधान 1940 का दशक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का सबसे कठिन दशक था। ब्रिटिश
करने हेतु पारित किया गया था, जो 1935 के भारत सरकार अधिनियम के कुछ साम्राज््यवादी शक्तियोों ने द्वितीय विश्व युद्ध मेें भारत की भागीदारी सुनिश्चित करने
प्रावधानोों को प्रतिस््थथापित करता था। इस कार््रवाई को ‘माउंटबेटन योजना’ या के लिए सत्ता हस््तताांतरण की प्रक्रिया को सुचारू बनाने के लिए अपने नियम एवं
‘3 जून योजना’ के रूप मेें जाना जाता है। शर्ततों मेें बदलाव कर दिए थे।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनतृ तीय चरण (1939-1 91


1. अगस््त z इसका उद्देश््य द्वितीय विश्व यद्ध
ु के लिए भारत का z परिणाम: माँग से असहमति जताते हुए, कांग्रेस
प्रस््तताव समर््थन प्राप्त करना था, इसके लिए निम््नलिखित ने परिषद मेें मसु लमानोों सहित किसी भी समदु ाय
(1940): अनश ु सं ाएँ की गई:ं के प्रतिनिधियोों को नामित करने के अपने
z वायसराय की कार््यकारी परिषद का विस््ततार कर अधिकार का बचाव किया।
उसमेें अधिकांश भारतीयोों को शामिल किया 4. कै बिनेट z इसमेें एक संविधान सभा और एक अतं रिम
जाएगा। मिशन प्रशासन स््थथापित करने की माँग की गई।
z यद्ध
ु के बाद भारतीय बहुमत वाली संविधान सभा (1946): z प््राांतोों का अनिवार््य समहू ीकरण मिशन के सझु ाव
का चनु ाव किया जाएगा। का विवादास््पद पहलू था।
z परिणाम: प्रस््तताव के प्रावधानोों को भारतीयोों z मस्ु ्ललिम लीग चाहती थी कि यह अनिवार््य हो,
द्वारा अस््ववीकार कर दिया गया क््योोंकि इससे उन््हेें लेकिन कांग्रेस इसे वैकल््पपिक मानती थी।
अपनी सरकार पर पर््णू नियंत्रण नहीीं मिलना था
z परिणाम: परिणामस््वरूप कांग्रेस ने इस प्रस््तताव
और भविष््य के सवं िधानोों के लिए अल््पसख्ं ्यकोों
को अस््ववीकार कर दिया और मस्ु ्ललिम लीग ने
की स््ववीकृ ति की आवश््यकता थी।
"प्रत््यक्ष कार््रवाई" की घोषणा करके मामले
2. क्रिप््स z क्रिप््स मिशन ने कठोर प्रस््तताव प्रस््ततावित किए को और जटिल बना दिया।
मिशन जो एक बार फिर भारतीयोों के लिए अत््ययंत
(1942) असंतोषजनक थे और ये प्रस््तताव ब्रिटेन मेें निष्कर््ष:
रूढ़़िवादी और उदारवादियोों की अस््थथिर गठबंधन इन सभी मद्ददों
ु के माध््यम से अग्ं रेजोों ने अतं तः सांप्रदायिक भावनाओ ं को भड़काया,
सरकार द्वारा दिए गए थे। जिसके परिणामस््वरूप अतं तः भारत का विभाजन हुआ। इस प्रकार, 1940 का
z परिणाम: क्रिप््स मिशन की विफलता ने के वल दशक अस््थथिरता का दशक साबित हुआ, जिसने एक नई दनि ु या को जन््म दिया
यह प्रदर््शशित किया कि अग्ं रेजोों ने यह मिशन और जिसमेें अग्ं रेजोों ने अपनी महानता को हमेशा के लिए खो दिया।
के वल भारतीय स््वतंत्रता मेें रुचि दिखाने के
लिए भेजा था।
3. वेवेल z भारतीय गतिरोध की स््थथिति को तोड़ने का प्रयास
प्रमुख शब्दावलियाँ
योजना और किया गया। द्वितीय विश्व यद्ध
ु , वायसराय लिनलिथगो, भारतीय स््वतंत्रता, भारत
शिमला z एक नई कार््यकारी परिषद के गठन का प्रावधान छोड़़ो आंदोलन, अगस््त प्रस््तताव, व््यक्तिगत सत््ययाग्रह, क्रिप््स मिशन,
सम््ममेलन किया गया जिसके सदस््योों मेें अधिकांश भारतीय आईएनए, आजाद हिंद फौज, शिमला सम््ममेलन, वेवेल योजना,
(1945) होोंगे, जिसमेें वायसराय और कमांडर इन चीफ कै बिनेट मिशन, माउंटबेटन योजना, भारत विभाजन आदि।
एकमात्र अपवाद होोंगे।
z रक्षा विभाग को छोड़कर प्रत््ययेक विभाग का विगत वर्षषों के प्रश्न
प्रभार भारतीय प्रतिनिधियोों के पास होगा। 1. 1940 के दशक के दौरान सत्ता हस््तताांतरण की प्रक्रिया को जटिल
z मसु लमानोों, जिनकी कुल जनसंख््यया लगभग बनाने मेें ब्रिटिश साम्राज््ययिक सत्ता की भमि
ू का का आकलन कीजिए।
25% थी, को 14 सदस््ययीय प्रस््ततावित कार््यकारी  (2029)
परिषद मेें छह प्रतिनिधियोों को चनु कर अधिक 2. किन प्रकारोों से नौसेना विद्रोह भारत मेें अंग्रेजोों की औपनिवेशिक
प्रतिनिधित््व का विशेषाधिकार दिया गया। महत्त्वाकांक्षाओ ं की शव-पेटिका मेें लगी अंतिम कील साबित हुआ?
 (2014)

92  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन मेें
10 विभिन्न वर्गगों की भूमिका
भारतीय स््वतंत्रता संग्राम मेें विभिन््न वर्गगों ने भाग लिया, जिसमेें महिलाओ ं ने गाांधीवादी चरण के दौरान महिलाओ ं की भूमिका
महत्तत्वपूर््ण भमि
ू का निभाई, लेकिन अक््सर उनकी अनदेखी की गई। जब पुरुष z असहयोग आंदोलन (1920 का दशक)
नेताओ ं को जेल मेें डाल दिया गया, तो महिलाओ ं ने बहादरु ी से आंदोलन का
 महिलाओ ं ने एक साथ दो प्रक्रियाओ ं मेें भाग लिया:
नेतत्ृ ्व संभाला और आंदोलन की निरंतरता सनिश् ु चित की। शोषण और कठिनाई
 सार््वजनिक क्षेत्र का घरे लक ू रण किया, जिसके तहत उन््होोंने अपने घरे लू
का सामना करने के बावजूद, उन््होोंने साम्राज््यवाद विरोधी आंदोलन मेें सक्रिय
रूप से भाग लिया और उल््ललेखनीय साहस का परिचय दिया। उनका बलिदान मल्ू ्योों से समझौता किए बिना सड़कोों पर प्रतिभाग किया।
भारतीय आज़ादी का अभिन््न अंग था, जिसने इतिहास को आकार देने मेें  घरे लू क्षेत्र का राजनीतिकरण किया, जिसके तहत वे अपने परिवारोों मेें ऐसी

महिलाओ ं की अपरिहार््य भमि ू का को उजागर किया। परिस््थथितियोों से निपटती थी, जहाँ उनके पतियोों और बेटोों के कार्ययों के
कारण राष्टट्रवाद का संचार घरोों तक हो गया था।
राष्ट् रीय आंदोलन मेें महिलाओं
z सविनय अवज्ञा और दांडी नमक मार््च (1930 का दशक):
द्वारा निभाई गई भूमिका
 जन-जागरूकता: सविनय अवज्ञा आद ं ोलन के दौरान महिला स््वयंसेवकोों
गाांधीवादी चरण से पहले महिलाओ ं की भूमिका ने प्रदर््शनोों, रै लियोों, विरोध प्रदर््शनोों और प्रभात फे रियोों मेें भाग लेकर
z प्रारंभिक चरण: जन-जागरूकता बढ़ाने मेें योगदान दिया।
 ने तृत््व सभा ं ला: परुु षोों की गिरफ््ततारी के बाद, महिला संगठनोों ने सविनय
 ब्रिटिश कर््नल मै ल््कम को गरु िल््लला यद्ध ु मेें भीमा बाई होल््कर ने हराया
था। उन््होोंने 1817 मेें अग्ं रेजोों के खिलाफ यद्धु का नेतत्ृ ्व किया था। अवज्ञा जारी रखने और बैठकेें आयोजित करने की जिम््ममेदारी संभाली।
 रचनात््मक गतिविधियाँ: उन््होोंने गांधीवादी रचनात््मक कार््यक्रम को भी
 कित्तूर की रानी चे न््नम््ममा और अवध की रानी बे गम हजरत महल

सहित कई महिलाओ ं ने 1857 के विद्रोह से बहुत पहले 19वीीं सदी मेें जारी रखा, जिसमेें निष्क्रिय प्रतिरोध के रूप मेें कपड़़ा बनन ु ा और उपवास
ब्रिटिश ईस््ट इडि करना शामिल था। उनमेें से कुछ को सेविका या स््ककाउट के रूप मेें जाना
ं या कंपनी के खिलाफ लड़़ाई लड़़ी थी।
जाता था।
 महारानी वेलु नचियार (1730-1796) ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ

बहादरु ी से लड़़ाई लड़़ी और उन््हेें निर््णणायक रूप से पराजित किया। z नमक सत््ययाग्रह:
 1930 के दशक मेें, नमक सत््ययाग्रह के दौरान कमलादेवी चट्टोपाध््ययाय
 त्रावणकोर की रानी गौरी पार््वती बाई ने लड़कियोों की शिक्षा के महत्तत्व

पर ध््ययान केें द्रित किया, जिससे महिलाओ ं को सामाजिक और शैक्षणिक का नाम एक प्रमख ु चेहरे के रूप मेें सामने आया।
कलंक से उबरने मेें मदद मिली।  सरोजिनी नायडू ने धरसाना नमक सत््ययाग्रह का ने तृत््व किया।

z प्रथम स््वतंत्रता सग्ं राम (1857-58): z महिलाओ ं की लामबंदी: आध्रं प्रदेश मेें करिश््ममाई नेता दर््गगा ु बाई ने गांधी जी
 1857 के स््वतंत्रता संग्राम (महान विद्रोह) मेें महिलाओ ं ने सराहनीय
का भाषण सनन ु े के लिए एक हजार से अधिक देवदासियोों को एकत्र किया
भमिू का निभाई। हालांकि मथु ल ु क्ष्मी रे ड्डी, मार््गरे ट कजिन््स और सरोजिनी नायडू को जेल मेें
डाल दिया गया।
 चौहान रानी, तपस््वविनी महारानी, रामगढ़ की रानी, रानी जिंदन कौर,

रानी तासे बाई, बैजा बाई जैसी महिलाओ ं ने अपनी साहसी सेनाओ ं z भारत छोड़़ो आंदोलन (1942)
 उपनिवेशवादियोों ने उस समय के लगभग सभी प्रमख ु राष्ट्रीय नेताओ ं को
के साथ यद्ध ु का नेतत्ृ ्व किया।
 झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी बहादरु ी और उत््ककृ ष्ट नेतत्ृ ्व के
एक के बाद एक गिरफ््ततार कर लिया।
 महिलाओ ं ने 1942 मेें विरोध मार््च, हड़ताल और प्रदर््शन आयोजित करके ,
माध््यम से सच््चची देशभक्ति का उल््ललेखनीय उदाहरण पेश किया।
स््वदेशी आंदोलन: महिलाओ ं को हस््तशिल््प की ओर जैसे कपड़़े बनन गिरफ््ततारी का जोखिम उठाकर और उपनिवेशवाद विरोधी साहित््य वितरित
z ु े के
लिए प्रोत््ससाहित किया गया, आयातित वस््ततुओ ं के उपयोग से हतोत््ससाहित करके आदं ोलन को आगे बढ़़ाया।
 सच ु ते ा कृ पलानी ने फै जाबाद मेें व््यक्तिगत सत््ययाग्रह की शरुु आत की और
किया गया, तथा शराब की दक ु ानोों को बंद कराने के लिए धरना अभियानोों मेें
भाग लिया गया। उन््हेें दो साल के लिए जेल मेें डाल दिया गया।
स्वतंत्रता आन्दोलनोों के दौरान महिलाओ ं का योगदान राष्ट् रीय आंदोलन के दौरान महिलाओ ं
के योगदान मेें गाांधीजी की भूमिका
z सामाजिक और महिला लामबंदी: कस््ततूरबा गांधी और सावित्री बाई फुले
जैसी महिला नेत्रियाँ सामाजिक ताने-बाने को बदलने के लिए आगे आई ं । z गांधी जी ने असहयोग आन््ददोलन के दौरान कहा था, " कोई भी यज्ञ
महिलाओ ं की भागीदारी के बिना अधरू ा रह जाता है।"
z क््राांतिकारी आंदोलन: भारतीय महिलाओ ं ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ
क््राांतिकारी आदं ोलनोों मेें भी भाग लिया, जैसे - कल््पना दत्ता ने चटगाँव z लक्ष्मीबाई से लेकर भीमा होल््कर तक, महिलाओ ं ने गांधी-पर््वू भारत के
स््वतंत्रता संग्राम के दौरान अदम््य साहस का परिचय दिया।
शस्त्रागार पर छापे मेें भाग लिया।
z बाद मेें, महिलाएँ नैतिकता और मातृत््व का आदर््श प्रतिनिधित््व बन गई।ं लेकिन
 रानी गाइदिन््ल्ययू , जिन््हेें “नागा की रानी” के नाम से भी जाना जाता
गांधीजी के आगमन के बाद राष्टट्रवादी आदं ोलन मेें महिलाओ ं की भागीदारी
है, ने अग्ं रेजोों के खिलाफ नागा राष्टट्रवादी आदं ोलन का नेतत्ृ ्व किया।
मेें महत्तत्वपर्ू ्ण बदलाव आया।
 प्रीतिलता वाद्देदार ने 1932 मेें पहाड़ताली यरू ोपीय क््लब पर सशस्त्र

हमले मेें पद्रह गाांधी जी के साथ महिलाओं की भूमिका:


ं क््राांतिकारियोों का नेतत्ृ ्व किया।
z अंतरराष्ट्रीय मंचोों पर स््वतंत्रता की आवाज़ बुलंद करना : भीकाजी कामा z सामाजिक कुरीतियोों का विरोध किया: उन््होोंने पर््ददा प्रथा, बाल विवाह जैसी
सामाजिक कुरीतियोों का विरोध किया और शिक्षा को बढ़़ावा दिया।
ने यनू ाइटेड किंगडम मेें फ्री इडि ं या सोसाइटी की स््थथापना की और उन््हेें सयं क्त ु
राज््य अमेरिका मेें मदर इडि ं या की पहली सांस््ककृतिक प्रतिनिधि के रूप मेें z सक्रिय भागीदारी मेें वद्ृ धि: गांधी के अहिसं ा पर जोर देने और महिला
संदर््भभित किया गया। सत््ययाग्रहियोों की गरिमा को बनाए रखने पर उनके प्रयास के कारण अधिक
महिलाओ ं ने भाग लिया।
 विजय लक्ष्मी पंडित ने सैन फ््राांसिस््कको मेें संयक्त ु राष्टट्र की बैठक मेें भारत
z असहयोग आंदोलन : असहयोग आन््ददोलन के दौरान, कई महिलाओ ं को
के लिए आवाज उठाई।
पहली बार जेल की सजा सनु ाई गई थी।
z सामाजिक सस्ं ्थथाओ ं की स््थथापना : जिला कांग्रेस समितियोों और राष्ट्रीय
z सविनय अवज्ञा आंदोलन: धरसाना नमक सत््ययाग्रह का नेतत्ृ ्व सरोजिनी
स्त्री सघं जैसे स््वतंत्र महिला सगठनो
ं ों का आपस मेें विलय कर दिया गया। इसके नायडू ने किया। कमला देवी ने सभाओ ं को संबोधित किया और नमक तैयार
अतिरिक्त, विधवाओ,ं अनसु चि ू त/हाशिये पर उपस््थथित वर्गगों, हिदं /ू मस््ललि
ु म और किया । नारी सत््ययाग्रह समिति की स््थथापना की गई।
मस््ललि
ु म महिलाओ ं को भी इसमेें शामिल किया गया।
z भारत छोड़़ो आंदोलन : जब गांधीजी ने कहा, "करो या मरो", तब उषा मेहता
राष्ट् रीय आंदोलन मेें महिलाओं ने इस नारे का तब तक प्रसारण जारी रखा, जब तक वो गिरफ््ततार नहीीं हो गयी।
के योगदान की सीमाएँ स्वतंत्रता आंदोलन मेें सरोजिनी नायडू की भूमिका
z नेतृत््वकारी भूमिकाओ ं का अभाव: राष्टट्रवादी आदं ोलन मेें महिलाएँ z बंगाल विभाजन के दौरान : 1905 मेें बंगाल विभाजन के विरोध मेें वह
नेतत्ृ ्वकारी पदोों से काफी हद तक अनपु स््थथित थीीं, अक््सर परुु ष नेताओ ं को राष्ट्रीय आदं ोलन मेें शामिल हुई।ं
समर््थन प्रदान करती थीीं और आईएनसी जैसे संगठनोों द्वारा तैयार की गई z कांग्रेस सदस््य के रूप मेें भूमिका : सरोजिनी नायडू की छवि 1917 मेें एक
योजनाओ ं को लागू करती थी। उदाहरण: अपने महत्तत्वपर्ू ्ण योगदान के बावजदू , राष्टट्रवादी नेतत्ृ ्व के रूप मेें प्रसिद्ध होने लगी थी। उन््हेें 1925 मेें कांग्रेस की
प्रीतिलता वादेदार और कल््पना दत्त जैसी हस््ततियाँ अक््सर सर््यू सेन जैसे परुु ष दसू री महिला अध््यक्ष (प्रथम भारतीय) नियक्त ु किया गया।
हस््ततियोों के नेतत्ृ ्व मेें काम करती थीीं, जो महिलाओ ं के लिए उपलब््ध सीमित z सामाजिक सेवा: भारतीय प््ललेग महामारी के दौरान उनकी सेवाओ ं के लिए
नेतत्ृ ्व भमि
ू काओ ं को व््यक्त करता है। उन््हेें ब्रिटिश सरकार से कै सर- ए -हिदं परु स््ककार प्रदान किया गया, और उन््होोंने
z वैज्ञानिक शिक्षा का अभाव: उच््च-मध््यम वर््ग की महिलाओ ं के बीच पश्चिमी दक्षिण अफ्रीका मेें पर्ू वी अफ्रीकी भारतीय कांग्रेस के अध््यक्ष के रूप मेें कार््य
शिक्षा तक सीमित पहुचँ ने समकालीन, धर््मनिरपेक्ष, उदार और वैज्ञानिक किया।
दृष्टिकोण के विकास मेें बाधा उत््पन््न की। z महिला अधिकारोों के लिए आवाज उठाई : उन््होोंने महिला भारतीय संघ
z पितृसत्तात््मक समाज का प्रभाव: पितृसत्तात््मक समाज के प्रभत्ु ्व ने अवसरोों के निर््ममाण मेें व््ययापक रूप से भाग लिया और महिलाओ ं के मताधिकार को
को परुु षोों की ओर मोड़ दिया, जिससे राष्टट्र निर््ममाण के प्रयासोों मेें महिलाओ ं बढ़़ावा देने के लिए एक प्रतिनिधिमडं ल के साथ लंदन की यात्रा की।
की प्रगति बाधित हुई। इसके अतिरिक्त, सामाजिक अपेक्षाओ ं ने महिलाओ ं को z नमक सत््ययाग्रह: वह सविनय अवज्ञा आदं ोलन की प्रमख ु नेत्रियोों मेें से एक
घरे लू भमि थी और नमक सत््ययाग्रह के दौरान भी धरसना नमक संयंत्र मेें महिला
ू काओ ं तक ही सीमित कर दिया।
प्रदर््शनकारियोों मेें से एक थी।
z सामाजिक कलंक: महिलाओ ं को अक््सर कमजोर और ब्रिटिश अधिकारियोों
z भारत छोड़़ो आंदोलन: उन््हेें 1942 मेें भारत छोड़़ो आदं ोलन के दौरान हिरासत
के कठोर दमन को झेलने मेें असमर््थ माना जाता था, जिसके कारण प्रतिरोधी
मेें रखा गया था।
गतिविधियोों मेें उनकी भागीदारी सीमित हो गई।
z अल््प प्रतिनिधित््व: कांग्रेस और श्रमिक संघोों जैसी प्रमख ु संस््थथाओ ं मेें महिलाओ ं की क्ररांतिकारी गतिविधियााँ
महिलाओ ं को हाशिए पर रखा गया था, तथा नेतत्ृ ्व की भमि ू का के लिए उनके z प्रीतिलता वादेदार:
पास बहुत कम अवसर थे। उदाहरण: कांग्रेस की सदस््यता और श्रमिक संघ  वह एक प्रमख ु राष्टट्रवादी क््राांतिकारी थीीं और सर््यू सेन के नेतत्ृ ्व वाले समहू
सगठनो
ं ों मेें सीमित प्रतिनिधित््व। मेें शामिल थी।

94  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


 उन््हेें 1932 मेें पहाड़ताली यरू ोपीय क््लब पर सशस्त्र हमले मेें पंद्रह  इसलिए, भारतीय उद्योगोों के प्रति राष्टट्रवादियोों के भारी समर््थन के बावजदू ,
क््राांतिकारियोों का नेतत्ृ ्व करने के लिए जाना जाता है। उन््होोंने राष्ट्रीय आदं ोलन का समर््थन नहीीं किया।
 इन क््राांतिकारियोों ने क््लब मेें आग लगा दी और बाद मेें ब्रिटिश पलु िस ने  20वीीं शताब््ददी मेें राष्टट्रवादी भावनाएँ और गतिविधियाँ काफी बढ़ गई,ं

उन््हेें पकड़ लिया। जिससे जन आदं ोलन का स््तर व््ययापक हो गया।


z कल््पना दत्त:
z स््वदेशी और असहयोग आंदोलन के दौरान उद्योगपतियोों की भूमिका;
 स््वदेशी आद ं ोलन (1905-08) के दौरान पजंू ीपति बहिष््ककार आदं ोलन के
 वह भारतीय रिपब््ललिकन आर्मी मेें शामिल हो गयी थी। उन््होोंने 1931 मेें
विरोधी रहे थे।
प्रीतिलता वादेदार के साथ मिलकर चटगाँव मेें यरू ोपीय क््लब पर हमला किया।
 कुछ उद्यमियोों ने असहयोग आद ं ोलन का समर््थन किया। जीडी बिड़ला
 बाद मेें उन पर चटगांव शस्त्रागार छापा मामले के तहत मक ु दमा चलाया और पुरुषोत्तम दास उन पंजू ीपतियोों मेें शामिल थे जिन््होोंने आदं ोलन का
गया और उन््हेें आजीवन कारावास की सजा सनु ाई गई। विरोध किया।
भारतीय स््वतंत्रता संग्राम मेें महिलाओ ं का योगदान महत्तत्वपूर््ण था और इसे मापा z सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान उद्योगपतियोों की भूमिका:
या प्रमाणित नहीीं किया जा सकता। वे आम लोगोों से लेकर जन आंदोलन का  पज ंू ीपति वर््ग ने सविनय अवज्ञा आदं ोलन का बड़़े पैमाने पर समर््थन किया।
नेतत्ृ ्व करने तक की भमि ू का मेें थीीं। लेखिका कै थरीन मे यो ने अपनी पुस््तक हालाँकि, इस आदं ोलन मेें उनकी भागीदारी राष्ट्रीय आदं ोलन को कोई
मदर इडि ं या मेें हिदं ू पुरुषोों और परिवारोों के भीतर महिलाओ ं को संपत्ति के रूप वास््तविक गति देने के लिए अपर््ययाप्त थी।
मेें मानने की आलोचना की। राष्टट्रवादियोों और सधु ारकोों को परिवारोों पर ध््ययान  हालाँकि, हिस ं क जनक््राांति का पंजू ीपतियोों द्वारा विरोध किया गया क््योोंकि
केें द्रित करने और अहिसं क घरे लू माहौल स््थथापित करने के लिए मजबूर होना इससे समाजवाद के मार््ग खल ु सकते थे जिससे भारत मेें पजंू ीवाद की
पड़़ा। इसके अतिरिक्त, इस आलोचना ने भारतीय परुु षोों और महिलाओ ं को राष्टट्र व््यवहार््यता के लिए संकट पैदा हो सकता था।
की एकता अखंडता और सम््ममान के लिए एकजुट किया। z आंदोलन का समर््थन करने के कारण:
 भारतीय रुपये को मजबूत करना: हिल््टन यंग कमीशन की सलाह पर,
स्वतंत्रता संग्राम मेें पूज
ं ीपति वर््ग की भूमिका
1926 मेें ब्रिटिश पाउंड के मक ु ाबले भारतीय रुपये को मजबतू किया गया।
z यद्ध
ु कालीन आयात प्रतिस््थथापन और अतं रराष्ट्रीय व््ययापार मेें परिवर््तन के कारण
यह माल के निर््ययात के लिए अनक ु ू ल नहीीं था।
उत््पन््न हुए निर््ववात के परिणामस््वरूप भारतीय पजंू ीवाद का उदय हुआ ।
 ब्रिटिश माल को आयात शुल््क से छूट: 1929-30 की आर््थथिक मद ं ी के
z उन््ननीसवीीं सदी मेें उद्योगपति अपेक्षाकृत कमजोर थे और वे औपनिवेशिक बाद भारतीय उद्योगोों की रक्षा के लिए आयात शल्ु ्क को 5% से बढ़़ाकर
अधिकारियोों पर ब्रिटेन से उपकरण और श्रमिकोों का आयात आसान बनाने के 11% कर दिया गया, लेकिन ब्रिटिश वस््ततुओ ं को अधिक वरीयता दी गई
लिए दबाव डालने मेें असमर््थ थे। और उन््हेें इस शल्ु ्क वृद्धि से छूट दी गई।

भारतीय संविधान के निर्माण मेें योगदान देने वाली प्रमुख महिलाएं


महिला नेतृत््व उपलब््धधियां/विवरण
सरोजिनी नायडू z सरोजिनी नायडू एक प्रसिद्ध कवयित्री, नारीवादी और राजनीतिक कार््यकर्ती थीीं, जिन््होोंने महिला हिसं ा से मक्ु ति, साम्राज््यवाद-
(1879-1949) विरोध और नागरिक अधिकारोों की मुखर होकर वकालत की।
z उल््ललेखनीय रूप से, उन््होोंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध््यक्ष चनु ी जाने वाली पहली भारतीय महिला बनने की ऐतिहासिक
उपलब््धधि हासिल की।
z भारत के स््वतंत्रता संग्राम मेें भी उनका महत्तत्वपर्ू ्ण योगदान रहा और उन््होोंने 1912 मेें प्रकाशित अपनी सबसे प्रशसि
ं त पस्ु ्तक
"इन द बाज़़ार््स ऑफ़ हैदराबाद" के माध््यम से अपने आदर्शशों को अमर बनाया।
दक्षिणायनी वेलायुधन z 1912 मेें जन््ममी, दक्षिणायणी वेलायधु न पल ु ायार समदु ाय से थी और सवि
ं धान के मसौदे के विकेें द्रीकरण के प्रमख
ु समर््थक
(1912-1978) के रूप मेें उभरी।
z उन््होोंने गैर-भेदभावपर्ू ्ण प्रावधानोों के कार््ययान््वयन की डटकर वकालत की और जातिगत भेदभाव की मुखर निंदा की।
z वेलायधु न ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान की प्रभावशीलता के वल उसके काननू ी क्रियान््वयन पर नहीीं बल््ककि लोगोों के
भावी आचरण पर निर््भर करती है।
बेगम ऐज़़ाज़ रसूल z भारत की संविधान सभा मेें एकमात्र मस््ललि
ु म महिला के रूप मेें, बेगम ऐजाज़ रसल ू ने राष्टट्र के आधारभतू दस््ततावेज़ को आकार
(1909-2001) देने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाई।
z 1969 से 1971 तक समाज कल््ययाण और अल््पसंख््यक मत्री ं के रूप मेें उनके कार््यकाल के दौरान सामाजिक कल््ययाण और
अल््पसंख््यक अधिकारोों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और भी स््पष्ट हुई।
z उनके उल््ललेखनीय योगदान के सम््ममान मेें, उन््हेें 2000 मेें प्रतिष्ठित पद्म भषू ण परु स््ककार से सम््ममानित किया गया।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में विभिन्न वर्गों 95


हंसा जीवराज मे हता z बहुमख ु ी व््यक्तित््व वाली हसं ा जीवराज मेहता एक उत््ससाही नारीवादी, सामाजिक कार््यकर््तता, सधु ारवादी और शिक्षिका थीीं।
(1897-1995) z उन््होोंने मौलिक अधिकारोों का मसौदा तैयार करने मेें सक्रिय रूप से भाग लिया और लैैंगिक समानता के लिए अथक वकालत
की, जिससे भारत के संवैधानिक ढांचे पर उनकी अमिट छाप पड़़ी।
z उल््ललेखनीय रूप से, मेहता ने लैैंगिक समानता की अनिवार््यता को रे खांकित करते हुए मानवाधिकारोों की सार््वभौमिक घोषणा
की भाषा को संशोधित करने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि ू का निभाई थी।
लीला रॉय z लीला रॉय, एक कट्टरपंथी वामपंथी राजनीतिज्ञ और समर््पपित सामाजिक कार््यकर््तता थीीं, ने महिलाओ ं के अधिकारोों और शिक्षा
(1900-1970) को आगे बढ़़ाने के उद्देश््य से कई पहलोों का नेतत्ृ ्व किया।
z उनके अग्रणी प्रयासोों मेें 1931 मेें "जयश्री" पत्रिका की स््थथापना शामिल थी , जो भारत की पहली पत्रिका थी जिसका प्रबंधन
परू ी तरह से महिलाओ ं द्वारा किया जाता था।
z रॉय की वकालत मेें न के वल लड़कियोों के लिए शैक्षिक सशक्तिकरण शामिल था, बल््ककि व््ययावसायिक प्रशिक्षण को
बढ़़ावा देना भी शामिल था, जो सामाजिक उत््थथान के प्रति उनके समग्र दृष्टिकोण को दर््शशाता है ।
दुर््गगा बाई देशमुख z गांधीवादी सिद््धाांतोों के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता के लिए सम््ममानित दर््गगा ु बाई देशमख ु ने महिला शिक्षा और सामाजिक कल््ययाण
(1909-1981) के क्षेत्र मेें महत्तत्वपर्ू ्ण प्रगति की।
z संविधान सभा मेें अपनी महत्तत्वपर्ू ्ण भमि ू का के अलावा, राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद की अध््यक्ष के रूप मेें देशमख ु का कार््यकाल
शैक्षिक क्षेत्ररों मेें लैैंगिक समावेशिता को बढ़़ावा देने के प्रति उनके समर््पण को रे खांकित करता है।
z उनकी विरासत महात््ममा गांधी के न््ययायपर्ू ्ण और समतामल ू क समाज के सपने को साकार करने की दिशा मेें उनके अथक प्रयासोों
के प्रमाण के रूप मेें कायम है।
अम््ममू स््ववामीनाथन z अम््ममू स््ववामीनाथन, एक प्रखर राजनीतिक कार््यकर््तता और सामाजिक कार््यकर्ती थी, ने कई चनु ौतियोों का सामना किया और
(1894-1978) लचीला रुख और सशक्तिकरण के मध््य सामजं स््य की एक मिसाल बनकर उभरीीं।
z तेरह वर््ष की आयु मेें बाल विवाह का सामना करने के बावजदू , स््ववामीनाथन ने अपने पति के मार््गदर््शन मेें स््व-शिक्षा की यात्रा
शरू ु की तथा विभिन््न विषयोों, विशेषकर अग्ं रेजी मेें महारत हासिल की।
z सामाजिक उद्देश््योों के प्रति उनके अटूट समर््पण ने उन््हेें 1975 मेें अतं रराष्ट्रीय महिला वर््ष के उद्घाटन के दौरान 'मदर ऑफ द
ईयर' का प्रतिष्ठित खिताब दिलाया, जो समाज पर उनके स््थथायी प्रभाव का प्रतीक है।
रे णुका रे z अखिल भारतीय महिला सम््ममेलन की सदस््य के रूप मेें रे णक ु ा रे का विशिष्ट कार््यकाल और उसके बाद 1988 मेें पद्म भूषण
(1904-1997) की प्राप्ति , भारतीय समाज मेें उनके गहन योगदान को रे खांकित करता है।
z समाज कल््ययाण संबंधी नीतियोों को आकार देने मेें उनकी महत्तत्वपर्ू ्ण भमि ू का, विशेष रूप से 1959 मेें सामाजिक कल््ययाण और
पिछड़़ा वर््ग कल््ययाण समिति के उनके नेतत्ृ ्व के माध््यम से, सामाजिक प्रगति के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को दर््शशाता है।
z अपनी मौलिक कृ ति , "माई रिमिनिसेेंस: सोशल डेवलपमेेंट ड्यूरिंग द गांधीयन एरा एडं आफ््टर" के माध््यम से रे णक ु ा
रे ने निर््णणायक ऐतिहासिक यगु के दौरान भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश््य को अपनी अमल्ू ्य अतं र्दृष्टि प्रदान की।
कमला चौधरी z भारत के स््वतंत्रता संग्राम मेें एक दर्ु जेय व््यक्तित््व रहीीं कमला चौधरी ने राष्टट्र की स््वतंत्रता के प्रति अडिग संकल््प और समर््पण
(1908-1970) का उदाहरण प्रस््ततुत किया।
z सवं िधान सभा मेें उनकी सक्रिय भागीदारी और उसके बाद प््राांतीय सरकार मेें उनकी नियक्ु ति, स््वतंत्रता के बाद राष्टट्र निर््ममाण के
प्रयासोों मेें उनके महत्तत्वपर्ू ्ण योगदान को रे खांकित करती है।
z चौधरी के अतलन ु ीय योगदान भारत के लोकतांत्रिक ताने-बाने और सामाजिक-राजनीतिक परिदृश््य को आकार देने मेें महिलाओ ं
द्वारा निभाई गई महत्तत्वपर्ू ्ण भमि ू का की मार््ममिक याद दिलाती है।
पूर््णणि मा बनर्जी z 1946 से 1950 के बीच संविधान सभा मेें पर््णणि ू मा बनर्जी का संक्षिप्त किन््ततु प्रभावशाली कार््यकाल जमीनी स््तर पर सक्रियता
(1911-1951) और ग्रामीण विकास के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता का उदाहरण है।
z सीमांत समदु ायोों, विशेषकर किसानोों और ग्रामीणोों के उत््थथान के लिए उनके ठोस प्रयास, सामाजिक बेहतरी के प्रति उनकी
गहरी सहानभु तिू और समर््पण को दर््शशाते हैैं।
z बनर्जी की स््थथायी विरासत भावी पीढ़़ियोों को जमीनी स््तर पर सक्रियता से जड़ु ने और अपने समदु ायोों मेें सकारात््मक बदलाव
लाने के लिए प्रेरित करती है।

96  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


राजकुमारी अमृत कौर z राजकुमारी अमृत कौर का व््यक्तित््व भारतीय स््वतंत्रता आदं ोलन मेें उनकी सक्रिय भागीदारी से लेकर मत्री
ं पद के उनके कार््यकाल
(1887-1964) तक विभिन््न क्षेत्ररों मेें उनके व््ययापक प्रभाव से आँका जा सकता है।
z समान नागरिक सहि ं ता के लिए उनकी अटूट वकालत और धार््ममिक अधिकारोों और सार््वभौमिक मताधिकार के प्रति दृढ़
समर््थन, समावेशिता और सामाजिक न््ययाय को बढ़़ावा देने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को रे खांकित करता है।
z राजकुमारी अमृत कौर की स््थथायी विरासत उनकी अदम््य भावना और बहुलवादी और समतावादी समाज के आदर्शशों को साकार
करने की दिशा मेें उनके अथक प्रयासोों का प्रमाण है।
विजया लक्ष्मी पंडित z 1947 से 1949 तक सोवियत सघं मेें भारत की राजदूत के रूप मेें विजया लक्ष्मी पंडित का अग्रणी कार््यकाल भारत की
(1900-1990) विदेश नीति और कूटनीतिक संबंधोों को आकार देने मेें उनकी महत्तत्वपर्ू ्ण भमि ू का को रे खांकित करता है।
z स््वतंत्रता-पर््वू यगु मेें कै बिनेट पद संभालने वाली पहली महिला के रूप मेें, विजया पंडित ने लैैंगिक बाधाओ ं को तोड़कर, महिला
नेताओ ं की भावी पीढ़़ियोों के लिए मार््ग प्रशस््त किया।
z उनकी कूटनीतिक कुशलता और राष्ट्रीय हितोों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता दनि ु या भर के महत्त्वाकांक्षी राजनयिकोों और नीति
निर््ममाताओ ं को प्रेरित करती रहती है।
एनी मै स््करीन z एक वकील और संसद सदस््य के रूप मेें एनी मैस््करीन की अभतू पर््वू उपलब््धधियाँ लैैंगिक समानता और राजनीतिक प्रतिनिधित््व
(1902-1963) की दिशा मेें उनकी अग्रणी यात्रा को रे खांकित करती हैैं।
z संविधान निर््ममाण के दौरान हिंदू कोड बिल के प्रारूपण मेें उनकी महत्तत्वपर्ू ्ण भमि ू का काननू ी सधु ारोों और महिला अधिकारोों को
आगे बढ़़ाने के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को दर््शशाती है।
z एनी मैस््करीन की स््थथायी विरासत विधायी ढांचे के भीतर सकारात््मक परिवर््तन लाने मेें महिला नेतत्ृ ्व की परिवर््तनकारी शक्ति
की मार््ममिक याद दिलाती है।
सुचेता कृपलानी z संविधान सभा के स््वतंत्रता सत्र के दौरान सचु ते ा कृ पलानी द्वारा "वंदे मातरम" का मार््ममिक गायन उनकी अटूट देशभक्ति और
(1908-1974) भारत के स््वतंत्रता संग्राम के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
z 1949 मेें अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की स््थथापना मेें उनकी महत्तत्वपर्ू ्ण भमि ू का, महिला अधिकारोों और राजनीतिक
सशक्तिकरण के प्रति उनके समर््पण को रे खांकित करती है।
z सचु ते ा कृ पलानी का अदम््य साहस और नेतत्ृ ्व महिलाओ ं की पीढ़़ियोों को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओ ं मेें सक्रिय रूप से भाग लेने
और परिवर््तनकारी बदलाव लाने के लिए प्रेरित करता है।
z बाद मेें उन््हेें उत्तर प्रदेश की पहली महिला मख्ु ्यमत्री
ं बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
मालती चौधरी (1904- z भारतीय संविधान की पंद्रह संस््थथापक महिलाओ ं मेें से एक के रूप मेें मालती चौधरी का अग्रणी योगदान जमीनी स््तर पर
1998) सक्रियता और सामाजिक सधु ार के प्रति उनकी स््थथायी प्रतिबद्धता को रे खांकित करता है।
z साथी सदस््योों के साथ वैचारिक मतभेदोों के बावजदू , मालती चौधरी ने सामाजिक प्रगति को बढ़़ावा देने मेें, विशेष रूप से
वयस््कोों और ग्रामीण समदु ायोों के लिए शिक्षा की महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का पर जोर दिया।
z मालती चौधरी की विरासत जमीनी स््तर पर सक्रियता की परिवर््तनकारी शक्ति और सामाजिक परिवर््तन लाने मेें शिक्षा के स््थथायी
महत्तत्व की मार््ममिक याद दिलाती है।

राष्ट् रीय आंदोलन के दौरान उद्योगपतियोों का योगदान


z राष्टट्रहित के लिए सस्ं ्थथा का निर््ममाण:
 जी.डी. बिड़ला और परु ु षोत्तमदास ठाकुरदास जैसे पंजू ीपतियोों ने भारत मेें अधिक संगठित यरू ोपीय हितोों के विपरीत वित्त और वाणिज््य मेें एक राष्ट्रीय स््तर का
सगठन
ं स््थथापित करने का प्रयास किया।
 इसका उद्देश््य औपनिवेशिक सरकार के साथ प्रभावी ढंग से पैरवी करने मेें सक्षम होना भी था।

 फिक््ककी का गठन : इस प्रयास की परिणति 1927 मेें भारतीय वाणिज््य एवं उद्योग महासघ ं (फिक््ककी) के गठन के रूप मेें हुई, जिसमेें भारत के सभी भागोों
से बड़़ी संख््यया मेें तथा अधिकतम प्रतिनिधित््व शामिल था।
 स््वतंत्रता आंदोलन के लिए वित्तपोषण: मद्रास राज््य की कांग्रेस शाखा को चिदब ं रम पिल््लई द्वारा वित्त पोषित किया गया था।
 स््वदेशी हस््तशिल््प का विकास: आयातित वस््ततुओ ं का बहिष््ककार करने के बाद, पंज ू ीपति वर््ग ने कंपनियोों का विकास किया और विकल््प के रूप मेें स््वदेशी
वस््ततुओ ं का निर््ममाण किया।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में विभिन्न वर्गों 97


 उदाहरण के लिए, स््वदेशी कपड़़ा मिलेें, साबनु और माचिस बनाने वाली साम्यवादी वर््ग से जुड़ी षडयंत्रकारी घटनाएं
फै क्ट्रियां, चमड़़े के कारखाने, बैैंक, बीमा कंपनियाँ आदि।
षड्यंत्रकारी
z सघं र््ष के सवं ैधानिक रूपोों का समर््थन: उद्योगपतियोों ने निम््नलिखित कारणोों कारण
के स/मामले
से सामहू िक विरोध के बजाय संवैधानिक भागीदारी का समर््थन किया -
 यह भय बना रहा कि व््ययापक सविनय अवज्ञा आद ं ोलन से ऐसी ताकतेें पेशावर षड्यंत्र z तर्की
ु के सल्ु ्ततान के साथ ब्रिटिश सरकार के व््यवहार
पैदा होोंगी जो आदं ोलन को सामाजिक रूप से क््राांतिकारी बना देेंगी। के स से नाराज होकर कई मस््ललिु म मजु ाहिर ताशकंद मेें
 चकि ंू , सामहू िक विरोध से पंजू ीपति वर््ग का अस््ततित््व ही खतरे मेें पड़ (1922-1927) रॉय की सैन््य अकादमी मेें शामिल हो गए ।
सकता था और दिन-प्रतिदिन की गतिविधियाँ बाधित हो सकती थी, z उन््हेें पेशावर लौटते समय पलु िस ने गिरफ््ततार कर
इसलिए पूंजीपतियोों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लंबे समय तक लिया।
व््ययापक सघं र््ष का समर््थन नहीीं किया। कानपुर z प्रमखु कम््ययुनिस््ट एस.ए. डांगे, नलिनी गुप्ता,
स्वतंत्रता संग्राम मेें श्रमिक और साम्यवादी वर््ग की भूमिका बोल््शशेविक मुजफ््फर अहमद और शौकत उस््ममानी वे एक
षड्यंत्र मामला षड्यंत्र के स के निशाने पर थे, जिसमेें दावा किया
z 1917 की रूसी क््राांति ने भारतीय क््राांतिकारी राष्टट्रवादियोों को प्रेरित किया और
उन््हेें समाजवाद की ओर अग्रसर किया। (1924) गया था कि उन््होोंने भारत मेें ब्रिटिश शासन को
z असहयोग आदं ोलन की विफलता ने उन््हेें यह विश्वास दिला दिया कि स््वतंत्रता उखाड़ फेें कने के इरादे से एक क््राांतिकारी समहू की
के वल असहयोग के माध््यम से प्राप्त नहीीं की जा सकती। स््थथापना की थी।
z प्रथम विश्व यद्ध
ु के बाद, भारतीय मजदरू वर््ग अगस््त 1947 तक लोकतांत्रिक लाहौर षड्यंत्र z सार््वजनिक सरु क्षा विधेयक और व््ययापार विवाद
स््वतंत्रता का दृढ़ रक्षक बना रहा। के स (1928- विधेयक के प्रति विरोध व््यक्त करना, जो सामान््य
z यद्ध
ु के दौरान समाजवादी विचारोों के विकास के लिए परिस््थथितियाँ अनक ु ूल 1929) रूप से लोगोों और विशेष रूप से श्रमिकोों की नागरिक
हो गयी। जनता विभिन््न वर््ग सघं र्षषों, आर््थथिक असमानता, वित्तीय शोषण स््वतंत्रता को प्रतिबंधित करने का प्रयास कर रहे थे।
के खिलाफ सघं र््ष आदि से परिचित हुई । z 8 अप्रैल 1929 को भगत सिहं और अन््य लोगोों
z 17 अक््टटूबर 1920 को ताशकंद मेें भारतीय कम््ययुनिस््ट पार्टी की स््थथापना हुई। ने के न्द्रीय विधान सभा मेें बम विस््फफोट किया।
श्रमिक और साम्यवादी वर््ग की भूमिका z उन पर जिस षड्यंत्र मामले के तहत मक ु दमा चलाया
गया उसे लाहौर षड्यंत्र के स के नाम से जाना
z एकता को बढ़़ावा देना: साम््यवादियोों ने बंगाल के किसानोों और श्रमिकोों
जाता है।
की पार्टी से प्रेरित होकर 1928 मेें श्रमिक और किसान पार्टी (WPP) की
स््थथापना की, जिससे श्रमिक वर््ग के बीच एकता को बढ़़ावा मिला। मे रठ षड्यंत्र z लॉर््ड इरविन ने 14 मार््च 1929 को 31
z श्रमिकोों के अधिकारोों की वकालत: 1928 की हड़ताल जैसे महत्तत्वपर्ू ्ण के स (1929- साम््यवादियोों को गिरफ््ततार करके कठोर कम््ययुनिस््ट
हड़तालोों ने, जिसमेें कुल 31 मिलियन कार््य दिवस शामिल थे, जिसमेें छह 1933) विरोधी कार््रवाई लागू की ।
महीने तक लगभग 150,000 श्रमिकोों को शामिल करने वाली बॉम््बबे टेक््सटाइल z साम््यवादियोों पर ब्रिटिश भारत के खिलाफ हड़ताल
हड़ताल भी शामिल थी। उसके द्वारा श्रमिक अधिकारोों के लिए विरोध को और सशस्त्र विद्रोह की साजिश रचने का आरोप
उजागर किया गया। लगाया गया। इसके लिए उन पर मेरठ मेें मक ु दमा
z यूनियनोों का गठन: अखिल भारतीय ट्रेड यनि ू यन कांग्रेस (एआईटीयसू ी) और चलाया गया।
भारतीय ट्रेड यनि ू यन महासंघ (आईएफटीय)ू की स््थथापना ने श्रमिक आदं ोलन
के लिए मील के पत््थर के रूप मेें योगदान किया, जिससे संगठनात््मक ताकत
स्वतंत्रता संग्राम मेें रियासतोों की भूमिका
मिली। z ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स््वतंत्रता के लिए भारतीय सघं र््ष भारतीय
z बुनियादी ढांचे मेें योगदान: श्रमिकोों ने रे लवे और बागानोों के निर््ममाण मेें रियासतोों के स््वतंत्रता संघर््ष से अविभाज््य रूप से जड़ु ़ा हुआ था।
महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाई, जो भारत के बनि ु यादी ढांचे के विकास के लिए z राजाओ ं ने भारतीय उपमहाद्वीप के लगभग 2/5 भाग पर शासन किया, जिसकी
महत्तत्वपर्ू ्ण था, जिसके परिणामस््वरूप स््वतंत्रता आदं ोलनोों के विकेें द्रीकरण मेें जनसंख््यया भारत मेें ब्रिटिश साम्राज््य की लगभग 1/3 थी।
सहायता मिली। z अग्ं रेजोों ने 'ब्रिटिश भारत' और 'रियासती भारत' के बीच एक अदृश््य दीवार
z जनसच ं ार का विकास: साम््यवादी वर््ग के नेताओ ं ने श्रमिकोों के बीच खड़़ी कर दी, क््योोंकि वे अप्रत््यक्ष रूप से वंशानगु त राजाओ ं के माध््यम से
जागरूकता बढ़़ाने और कल््ययाणकारी पहल को बढ़़ावा देने के लिए सगठनो ं ों भारत पर शासन करते थे, जो कथित रूप से पर्ू ्ण स््ववायत्त थे, लेकिन ब्रिटिश
और प्रकाशनोों की शरुु आत की।
'सर्वोच््चता' के अधीन थे।
 उदाहरण के लिए, शशिपाद बनर्जी का "वर््कििंग मे न््स क््लब" और

बंगाली भाषा मेें भारत श्रमजीवी का प्रकाशन , साथ ही एनएम लोखडं े राष्ट् रीय आंदोलन के दौरान रियासतोों का योगदान
द्वारा "बॉम््बबे मिलहैैंड्स एसोसिएशन" की स््थथापना और मराठी पत्रिका z 1857 के विद्रोह के लिए समर््थन: झांसी, बरेली और जगदीशपुर जैसी
“दीनबंध”ु का प्रकाशन किया था। रियासतोों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ 1857 के विद्रोह मेें भाग लिया।

98  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


z राजनीतिक लामबंदी : रियासतेें राष्ट्रीय आंदोलन से प्रभावित हुई,ं जिसमेें z नारीवाद:
प्रजा मडं ल या राज््य जन सम््ममेलन जैसे राजनीतिक संगठन उभरे ।  गांधीवादी तरीकोों से महिलाओ ं की भागीदारी मेें सध ु ार हुआ है, और
z अनुकरणीय नेतृत््व : कोल््हहापरु राज््य जैसे कुछ शासकोों ने आधनि ु क विचारोों, अखिल भारतीय महिला सघं जैसे समूह सार््वजनिक रूप से अस््ततित््व
लोक कल््ययाण और भारतीय राष्ट्रीय संघर््ष का सक्रिय रूप से समर््थन किया। मेें आये।
z लोकतांत्रिक सध ु ारोों को बढ़़ावा देना: लोकतंत्र और नागरिक स््वतंत्रता के  सविनय अवज्ञा आद ं ोलन और असहयोग आन््ददोलन सहित सभी प्रमख ु
विचार धीरे -धीरे रियासतोों मेें भी व््ययाप्त हो गए, जिन््हेें शरू
ु मेें व््यक्तिगत आदं ोलनोों मेें महिलाओ ं की सक्रिय भागीदारी थी।
राष्टट्रवादियोों और क््राांतिकारियोों ने शरण लेने के लिए पेश किया । z समाजवाद का उदय:
z भारत छोड़़ो आंदोलन के साथ एकीकरण (1942): कांग्रेस के आह्वान पर  1920 के दशक के बाद समाजवाद ने जोर पकड़ना शरू ु किया और यह
देशी राज््योों के निवासी भारत छोड़़ो आदं ोलन मेें शामिल हो गए, तथा राष्ट्रीय आदं ोलन का एक महत्तत्वपर्ू ्ण घटक बन गया।
औपचारिक रूप से उनके सघं र््ष ब्रिटिश भारत मेें व््ययापक प्रयासोों के साथ  यह कांग्रेस के प्रस््तताव और प्रसिद्ध हस््ततियोों की सक्रियता मेें स््पष्ट रूप से

एकीकृ त हो गये। परिलक्षित हुआ। जवाहरलाल नेहरू, सभु ाष चन्दद्र बोस और अन््य
आन््ददोलनकर््तताओ ं ने सक्रिय रूप से मजदरोू ों और किसानोों को प्रभावित
राष्ट् रीय आंदोलन का विभिन्न
करने वाले मद्ददों
ु को उठाया।
विचारधाराओ ं के साथ सामाजिक विस्तार
 मार््क््सवादी और साम््यवादी विचारधाराओ ं का प्रसार करते हुए परू े देश मेें
z राष्टट्रवादी क््राांति:
मजदरोू ों और किसानोों की पार््टटियाँ स््थथापित की गई।ं
 क््राांतिकारियोों ने वैसे राष्टट्र की परिकल््पना की जैसा कि पर् ू ्ण स््वतंत्रता प्राप्ति
z सांप्रदायिकता:
के बाद होता।
 असहयोग आद ं ोलन के वापस लिए जाने के बाद आन््ददोलनकर््तताओ ं को
 उन््होोंने विशेष लक्षष्य के साथ व््ययापक संघर््ष के उत्प्रेरक के रूप मेें कार््य
निराशा और मोहभगं का अनभु व हुआ।
करने के लिए श्रमिकोों, छात्ररों और किसानोों को संगठित करने के लिए
 इस दौरान हिद ं ू महासभा और लीग दोनोों ने फिर से उभार का अनभु व
लगन से काम किया।
किया। राष्टट्रवादियोों को देशद्रोही करार दिया गया क््योोंकि भय का मनोविज्ञान
 काकोरी मेें ट्रेन डकै ती जैसी विभिन््न गतिविधियोों का उपयोग धन जट ु ाने धीरे -धीरे हावी होने लगा था।
के लिए किया गया।
 कांग्रेस के नेता दबाव का विरोध करने मेें असफल रहे और उन््होोंने
 यव ु ाओ ं को जोगेश चद्रं चटर्जी, सचिन सान््ययाल और भगत सिहं के नेतत्ृ ्व सांप्रदायिक या अर््ध-सांप्रदायिक रवैया अपना लिया।
वाली पंजाब नौजवान सभा द्वारा जागृत किया गया ।  सांप्रदायिकता के दो प्रमख ु सगठन
ं मुस््ललिम लीग और हिंदू महासभा
z गांधीवाद: थे।
 गांधीवाद, सत््ययाग्रह और रचनात््मक कार््यक्रम के माध््यम से राष्ट्रीय संघर््ष z जाति आधारित आंदोलन:
के लिए जन आधार का विस््ततार किया गया ।  ये जाति आधारित अत््ययाचारोों की प्रतिक्रिया के रूप मेें उभरे । जस््टटिस पार्टी,

 गांधीजी के नेतत्ृ ्व मेें कांग्रेस संघर््ष-विराम-संघर््ष के फार््ममूले के कारण भारत आत््मसम््ममान आदं ोलन और वायकोम सत््ययाग्रह जैसे आदं ोलनोों ने क्रू र
की ग्रामीण आबादी से जड़ु ने मेें सक्षम थी। जाति-आधारित प्रथाओ ं के बारे मेें जागरूकता पैदा की।
 अत ं तः हाशिये पर पड़़े समाज के लोग भारतीय संघर््ष मेें शामिल हो गये।  उन््होोंने अपनी राय व््यक्त करने और अपने अधिकारोों की मांग करने के

 उदाहरण: मदि ं र प्रवेश के लिए आदं ोलन, हरिजन कल््ययाण, चपं ारण और लिए गोलमेज सम््ममेलनोों मेें भाग लिया।
खेड़़ा मेें किसानोों का विरोध, अहमदाबाद मिल मजदरोू ों का आदं ोलन आदि। z किसान:
z साम््यवाद:  उत्तर प्रदेश, आध्र ं प्रदेश के रम््पपा क्षेत्र, राजस््थथान और बम््बई तथा मद्रास
 श्रमिक वर््ग सामाजिक समानता प्राप्त करने के स््पष्ट उद्देश््य के साथ इस
के रै यतवाड़़ी क्षेत्ररों मेें काश््तकारी काननोू ों मेें सश
ं ोधन, कम किराया, बेदखली
आदं ोलन मेें शामिल हुआ। से सरु क्षा और कर््ज से राहत के लिए किसान आदं ोलन हुए । वल््लभभाई
पटेल (1928) ने गजु रात मेें बारदोली सत््ययाग्रह का नेतत्ृ ्व किया।
 एमएन रॉय उस विचारधारा के प्रेरणास्रोत थे जिसने अनेक भारतीय
z श्रमिक वर््ग:
बद्धिज
ु ीवियोों को आकर््षषित किया, जिसके परिणामस््वरूप 1925 मेें भारतीय
 बॉम््बबे मेें कपास मिल मजदरोू ों की हड़ताल (1919 और 1920) के माध््यम
कम््ययुनिस््ट पार्टी की स््थथापना हुई।
से, उन््होोंने असहयोग आदं ोलन मेें भाग लिया।
 उन््होोंने मजदरू वर््ग को संगठित करने के बाद बम््बई, टिस््कको और दक्षिणी
 1926 के ट्रेड यनि ू यन अधिनियम के काननू बनने के बाद उनकी सक्रियता
रे लवे मेें हड़तालेें आयोजित की।
बढ़ गई। सविनय अवज्ञा आदं ोलन के दौरान हुई श्रमिक हड़तालोों से अग्ं रेजोों
 निसद ं हे स््वतंत्रता के सघं र््ष को इसने वैश्विक मचं तक पहुचँ ाया और को गंभीर झटका लगा और 1946 के भारतीय नौसेना विद्रोह मेें उनकी
अतं रराष्ट्रीय संगठनोों का समर््थन प्राप्त किया। व््ययापक भागीदारी से लाभ हुआ ।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में विभिन्न वर्गों 99


z चरमपंथी विचारधारा: z प्रेस की स््वतंत्रता को प्रोत््ससाहित किया : प्रेस को सरकार के विचारोों,
 चरमपंथियोों ने उदारवादियोों की याचिका और प्रार््थना प्रथाओ ं की तलन ु ा रीति-रिवाजोों और संस््ककृतियोों को बढ़़ावा देने के लिए प्रोत््ससाहित किया गया।
मेें सशक्त सामहू िक प्रदर््शनोों और स््वराज की अवधारणा को प्राथमिकता हालाँकि, सरकार की नीतियोों की आलोचना करने और उनके खिलाफ लोगोों
दी। को सगठं ित करने के कारण कुछ प्रेस गतिविधियोों पर रोक लगा दी गई थी।
 राजनीतिक आद ं ोलनोों की स््थथापना करके उन््होोंने विदेशी शासन के विरुद्ध z मानवाधिकारोों के मूल््योों को बढ़़ावा दिया : भारत मेें ब्रिटिश शासन के
लोगोों को संगठित करने की आवश््यकता पर बल दिया। माध््यम से भमि
ू काननू की अवधारणा के साथ-साथ मानव अधिकारोों के मल्ू ्योों
स्वतंत्रता आंदोलन मेें विदेशियोों की भागीदारी
को बढ़़ावा दिया गया।
z भारतीय स््वतंत्रता संग्राम मेें अनेक विदेशियोों का योगदान अतलन ु ीय है। प््ललासी एनी बेसेेंट और उनका योगदान
के यद्ध
ु के बाद अग्ं रेजोों ने भारत के राजनीतिक, आर््थथिक और सामाजिक क्षेत्ररों z भारत के स््वतंत्रता संग्राम मेें शामिल सबसे प्रसिद्ध विदेशियोों मेें से एनी बेसेेंट
पर अधिकार करना प्रारंभ किया। उपनिवेशीकरण की इस नीति के साथ स््वदेशी नाम सर््ववाधिक प्रसिद्ध है। उन््होोंने थियोसोफिकल सोसाइटी के विचारोों को
परंपराएँ और रीति-रिवाज़ अपने मल ू अस््ततित््व से विचलित हो गये। बढ़़ावा देने के लिए 1893 मेें भारत का दौरा किया था।
z देश के कोने-कोने से जनता ने अपनी आज़़ादी हासिल करने के लिए साम्राज््यवाद z बाद मेें, वह ब्रिटिश शासन से स््वतंत्रता के लिए चल रहे संघर््ष से प्रेरित हुई ं
के खिलाफ बहादरु ी से लड़़ाई लड़़ी। कई विदेशियोों ने भी लगभग 150 साल और धीरे -धीरे इस आदं ोलन की सक्रिय भागीदार बन गई।ं
के संघर््ष के दौरान भारत के स््वतंत्रता संग्राम मेें महत्तत्वपर्ू ्ण योगदान दिया। z उनके द्वारा होमरूल लीग की स््थथापना की गयी जो भारतीय स््वतंत्रता आदं ोलन
"एक विदेशी का स््ववागत तभी किया जाना चाहिए जब वह स््वदेशी लोगोों मेें सबसे महत्तत्वपर्ू ्ण योगदान था।
के साथ घलमिल
ु जाए जैसे चीनी दधू के साथ घलमिल
ु जाती है।" महात््ममा z एनी बेसेेंट और लोकमान््य बाल गंगाधर तिलक ने स््वतंत्रता आदं ोलन को आगे
गांधी बढ़़ाने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाई, जो भारतीय स््वतंत्रता के लिए लंबे संघर््ष
स्वतंत्रता आंदोलन मेें विदेशियोों का योगदान मेें एक महत्तत्वपर्ू ्ण मोड़ था।
z बौद्धिक जागति ृ : विदेशियोों ने लोगोों को ब्रिटिश सरकार की दमनकारी आर््थथिक z आयरिश स््थथानीय सरकार आंदोलन की तरह सगं ठित इस धर््मयद्ध ु का
गतिविधियोों और अन््य नीतियोों व रणनीतियोों को समझने मेें मदद की। उन््होोंने उद्देश््य ऑस्ट्रेलिया और कनाडा को भारत के अधीन लाना था। इसने स््वतंत्रता
लोगोों को स््वतंत्रता आदं ोलन मेें भाग लेने के लिए भी प्रेरित किया। सग्ं राम को तीव्र करने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाई।
 राष्टट्रवाद के उदय, नई आर््थथिक शक्तियोों के उदय, शिक्षा के विस््ततार,

समकालीन पश्चिमी संस््ककृति के प्रभाव और वैश्विक समदु ाय की व््ययापक प्रमुख शब्दावलियाँ


समझ जैसे कारकोों ने इसे और मजबतू किया ।
बाल गंगाधर तिलक, स््वदेशी आंदोलन, होमरूल लीग, सरदार
z राष्टट्रवाद और लोकतांत्रिक व््यवस््थथा: राष्टट्रवाद और लोकतंत्र की व््ययापक वल््लभ भाई पटेल, एकता और एकीकरण, जवाहरलाल नेहरू,
लहर ने उन््ननीसवीीं सदी के अति ं म दशकोों के दौरान भारतीय लोगोों की सामाजिक पूर््ण स््वराज , सभु ाष चंद्र बोस, आजाद हिंद फौज, डॉ. बी.आर.
सरं चनाओ ं और वैश्विक दृष्टिकोण को लोकतांत्रिक बनाने के आदं ोलनोों मेें भी अंबेडकर, दलित अधिकार, संविधान, विनायक दामोदर सावरकर ,
हिंदत्ु ्व, हिंदू महासभा, एनी बेसेेंट, समाजवाद, साम््यवाद, गांधीवाद,
महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाई। गोपाल कृष््ण गोखले, शिक्षा सधु ार, सरोजिनी नायडू, महिला
z वैज्ञानिक शिक्षा को प्रोत््ससाहित किया : 1854 के वडु ् स डिस््पपैच और उसके सशक्तिकरण आदि।
बाद की नीतियोों ने वैज्ञानिक अध््ययन और पश्चिमी पाठ्यक्रम पर जोर दिया।
इससे यरू ोपीय शैक्षणिक मॉडल पर आधारित कॉलेजोों की स््थथापना हुई, जिससे विगत वर््ष के प्रश्न
भारत मेें शिक्षा के प्रति अधिक आधनि ु क और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़़ावा z 1920 के दशक से राष्ट्रीय आदं ोलन ने कई वैचारिक धाराओ ं को ग्रहण किया
मिला। और अपना सामाजिक आधार बढ़ाया। विवेचना कीजिए। (2020)

100  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख
11 व्यक्तित्व और उनका योगदान
भारतीय स््वतंत्रता संग्राम एक लंबी और कठिन यात्रा थी जिसमेें कई व््यक्तियोों z पत्रकारिता और जन-आंदोलन:
का योगदान और बलिदान शामिल है। यहाँ कुछ महत्तत्वपूर््ण व््यक्तित््वोों का विवरण  तिलक ने पत्रकारिता की शक्ति को जन-जन तक पहुच ँ ाने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण
दिया गया है जिन््होोंने भारतीय स््वतंत्रता संग्राम मेें महत्तत्वपूर््ण भमि
ू का निभाई। भमिू का निभाई।
बाल गंगाधर तिलक – द लॉयन ऑफ महाराष्टट्र  उन््होोंने दो प्रभावशाली समाचार-पत्ररों, के सरी (मराठी मेें) और मराठा

(अग्ं रेजी मेें) का सम््पपादन किया, जो राष्टट्रवादी विचारोों और जन- आदं ोलन
z प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: के लिए मचं के रूप मेें कार््य करते थे।
 जन््म: बाल गंगाधर तिलक का जन््म 23 जल ु ाई 1856 को महाराष्टट्र के  तिलक की प्रभावशाली वाक् दक्षता तथा लेखन के माध््यम से आम लोगोों
रत््ननागिरी मेें एक मध््यम वर्गीय ब्राह्मण परिवार मेें हुआ था। से जड़ु ने की क्षमता ने स््वतंत्रता आदं ोलन के लिए जन-समर््थन जटु ाने मेें
 शिक्षा: तिलक ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पण ु े के डेक््कन कॉलेज मेें प्राप्त मदद की।
की, जहाँ वे शिक्षा मेें उत््ककृ ष्ट थे और सामाजिक और राजनीतिक मद्दु दों मेें z सांस््ककृतिक और शैक्षिक पुनरुत््थथान मेें योगदान:
गहरी रुचि दिखाते थे।  तिलक के अनस ु ार राष्टट्रवादी भावनाओ ं को बढ़़ावा देने के लिए भारतीय
 ब्रह्म समाज का प्रभाव: अपने कॉले ज के दिनोों मेें वे ब्रह्म समाज द्वारा संस््ककृ ति और शिक्षा का अत््यधिक महत्तत्वपर्ू ्ण साधन थे।
प्रचारित सामाजिक सधु ार के विचारोों से बहुत प्रभावित हुए। वे समाज से  तिलक ने गणेश चतर्थी ु के उत््सव को एक सार््वजनिक त््ययोहार के रूप मेें
जड़ु गए और सामाजिक एवं शैक्षिक गतिविधियोों मेें सक्रिय रूप से शामिल पनु र्जीवित करने और लोकप्रिय बनाने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि ू का निभाई और
हो गए। इसे राष्टट्रवादी उत््ससाह व््यक्त करने के एक मचं मेें बदल दिया ।
z भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मेें भूमिका:  तिलक ने भारतीय संस््ककृ ति, साहित््य, संगीत और इतिहास के महत्तत्व पर

 कांग्रेस मेें शामिल होना: तिलक 1890 मेें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मेें भी जोर दिया तथा भारतीय जनता मेें इसके प्रति गर््व और आत््मविश्वास
शामिल हुए और एक मुखर राष्टट्रवादी नेता के रूप मेें उभरे। की भावना को बढ़़ावा दिया।
z स््वदेशी और बहिष््ककार आंदोलनोों को बढ़़ावा देना:  स््वशासन, आर््थथिक राष्टट्रवाद और सांस््ककृ तिक पन ु रुत््थथान पर उनके प्रयासोों
 तिलक ने स््वदेशी आद ं ोलन को बढ़़ावा देने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाई, ने राष्ट्रीय आदं ोलन पर स््थथायी प्रभाव छोड़़ा।
जिसमेें उन््होोंने विशेष रूप से स््वदेशी उद्योगोों के समर््थन और ब्रिटिश  1884 मेें उन््होोंने डेक््कन एजक ु े शन सोसाइटी की स््थथापना की जिसका उद्देश््य
वस््ततुओ ं के बहिष््ककार का आह्वान किया गया था। भारतीयोों मेें शिक्षा और सांस््ककृ तिक जागरूकता को बढ़़ावा देना था।
 उनका मानना था कि आर््थथिक राष्टट्रवाद और आत््मनिर््भरता भारत की ब्रिटिश शासन और कारावास का विरोध
प्रगति और स््वतंत्रता के लिए आवश््यक थे। z तिलक ने खल ु े तौर पर ब्रिटिश नीतियोों और प्रशासन की आलोचना की तथा
 तिलक की नेतत्ृ ्व शक्ति और प्रेरक क्षमताओ ं ने जनता को संगठित करने ब्रिटिश शोषण को समाप्त कर भारतीय स््वशासन की स््थथापना का आह्वान किया।
मेें मदद की, जिससे स््वदेशी और बहिष््ककार आदं ोलनोों मेें व््ययापक भागीदारी z ब्रिटिश अधिकारियोों ने उन््हेें कई बार गिरफ््ततार किया, उन पर मक ु दमे चलाए
हुई, जिसका भारतीय अर््थव््यवस््थथा पर महत्तत्वपर्ू ्ण प्रभाव पड़़ा और ब्रिटिश और उन््हेें कारावास की सज़़ा दी, क््योोंकि वे उन््हेें अपने औपनिवेशिक शासन
सत्ता को चनु ौती मिली। के लिए एक बड़़ा ख़तरा मानते थे।
z होमरूल और स््वशासन की वकालत: z कारावास के बावजदू तिलक भारतीय स््वतंत्रता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर
 1916 मेें तिलक ने भारत के लिए स््वशासन की मांग करते हुए अखिल अडिग रहे तथा राष्टट्रवाद और स््वतंत्रता के सिद््धाांतोों की रक्षा करते रहे।
भारतीय होमरूल लीग की स््थथापना की। तिलक की विचारधारा:
 उनका उद्देश््य स््वशासन प्राप्त करने के साझा लक्षष्य के तहत विभिन््न क्षेत्ररों z तिलक की विचारधारा स््वशासन, सांस््ककृ तिक पनु रुत््थथान और राष्टट्रवादी उत््ससाह
और समदु ायोों के भारतीयोों को एकजटु करना था। के सिद््धाांतोों के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता से आकार लेती थी। उनके विचारोों
 तिलक के प्रयासोों ने बाद के होमरूल आद ं ोलन की नीींव रखी, जो स््वतंत्रता और कार्ययों ने जनता को प्रेरित करने मेें मदद की और भिन््न-भिन््न माध््यमोों से
संग्राम का एक अभिन््न अगं बन गया। स््वतंत्रता आदं ोलन की गति मेें योगदान दिया।

102  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


1. स््वराज और स््वशासन: तिलक की सबसे प्रमख ु विचारधारा स््वराज की z मजबूत नेतृत््व और सगं ठनात््मक कौशल:
अवधारणा के इर््द-गिर््द घमू ती थी, जो भारत के लिए स््वशासन और स््वतंत्रता  भारत के प्रथम उप-प्रधानमत्री ं और गृह मत्रीं पटेल ने राष्टट्र को एकजटु
की वकालत करती थी। स््वराज के लिए तिलक की मांग ने भारतीयोों को करने और एक मजबतू प्रशासन बनाने मेें मदद की।
स््वतंत्रता और आत््म निर््णय के लिए प्रयास करने हेतु प्रेरित किया।  सग ं ठित करने की उनकी क्षमता, स््वतंत्रता के साझा लक्षष्य की दिशा मेें
2. सांस््ककृतिक राष्टट्रवाद: तिलक का मानना था कि भारतीय गौरव और एकता विभिन््न स््वतंत्रता सेनानियोों और राजनीतिक दलोों के प्रयासोों मेें समन््वय
के लिए सांस््ककृ तिक पुनरुत््थथान आवश््यक है। उन््होोंने भारतीय त््ययोहारोों, संगीत, स््थथापित करने मेें सहायक थी।
साहित््य और परंपराओ ं को बढ़़ावा दिया। उदाहरण के लिये: तिलक ने z किसानोों और खे तिहरोों का सशक्तिकरण:

राष्टट्रवादी भावनाओ ं को व््यक्त करने और भारतीय सांस््ककृ तिक पहचान की  उन््होोंने भमि
ू पनु र््ववितरण और किसानोों के अधिकारोों के सरं क्षण सहित कृषि
मजबूत भावना पैदा करने के लिए गणेश चतुर्थी को एक सार््वजनिक त््ययोहार सधु ारोों की वकालत की।
के रूप मेें पुनर्जीवित किया।  पटेल के प्रयासोों का उद्देश््य किसानोों को सशक्त बनाना, उनकी सामाजिक-

3. जन आंदोलन: तिलक स््वतंत्रता के लिए जनता को संगठित करने मेें आर््थथिक शिकायतोों का समाधान करना और स््वतंत्रता आदं ोलन मेें उनकी
विश्वास करते थे । तिलक ने राष्टट्रवादी विचारोों का प्रसार किया और अपने सक्रिय भागीदारी सनिश् ु चित करना था।
समाचार पत्ररों के सरी और मराठा के माध््यम से आम जनता को ब्रिटिश शासन z धर््म निरपे क्षता और सामाजिक सद्भाव:

से लड़ने के लिए प्रोत््ससाहित किया।  पटेल के समावेशी दृष्टिकोण ने भारतीय स््वतंत्रता आद ं ोलन की शक्ति और
4. स््वदेशी और बहिष््ककार आंदोलन: उन््होोंने आर््थथिक राष्टट्रवाद की वकालत विविधता मेें योगदान दिया तथा एक धर््मनिरपेक्ष और बहुलवादी स््वतंत्र
की और भारतीयोों से ब्रिटिश वस््ततुओ ं का बहिष््ककार करने और स््वदेशी उद्योगोों भारत की नीींव रखी।
का समर््थन करने का आग्रह किया। z सविं धानवाद और लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता:
5. औपनिवेशिक दमन के खिलाफ़ प्रतिरोध: तिलक ने ब्रिटिश नीतियोों और  पटेल संविधानवाद और लोकतंत्र के सिद््धाांतोों मेें दृढ़ विश्वास रखते थे।

उनके प्रशासन की खल ु कर आलोचना की , भारतीय संसाधनोों के शोषण  उन््होोंने भारतीय संविधान के प्रारूपण मेें महत्तत्वपर्
ू ्ण भमि
ू का निभाई तथा यह
और भारतीय लोगोों को बुनियादी अधिकारोों से वंचित किये जाने का प्रतिरोध सनिश्
ु चित किया कि यह लोगोों की आकांक्षाओ ं को प्रतिबिंबित करे तथा
किया। उन््होोंने बंगाल विभाजन और भारी कर लगाने जैसे दमनकारी उपायोों एक लोकतांत्रिक और समावेशी राष्टट्र के लिए मजबतू आधार प्रदान करे ।
का सक्रिय रूप से विरोध किया। सरदार वल््लभभाई पटेल की विचारधारा एकता, अहिसं ा, मजबूत नेतत्ृ ्व और
तिलक की विचारधारा ने भारतीय स््वतंत्रता आंदोलन को राष्टट्रवाद, सांस््ककृ तिक सामाजिक सद्भाव पर केें द्रित थी। एकजुट और एकीकृ त भारत के उनके दृष्टिकोण
पनु रुत््थथान और जन- आंदोलन की भावना से भरकर उसे आकार देने मेें मदद ने, उनके रणनीतिक और संगठनात््मक कौशल के साथ मिलकर स््वतंत्रता
की। स््वराज और स््वशासन के सिद््धाांतोों के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता , साथ आंदोलन की सफलता मेें महत्तत्वपूर््ण भमि ू का निभाई।
ही सांस््ककृ तिक पहचान और आर््थथिक स््वतंत्रता पर उनके जोर ने ब्रिटिश जवाहरलाल नेहरू का योगदान -
औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर््ष के लिए एक मजबूत वैचारिक आधार आधुनिक भारत के निर्माता
प्रदान किया। z भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मेें नेतृत््व:
सरदार वल्लभ भाई पटेल की विचारधारा -  नेहरू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मेें एक प्रमख ु नेता के रूप मेें उभरे और इसकी
भारत के लौह पुरुष नीतियोों और रणनीतियोों को आकार देने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि ू का निभाई।
 उन््होोंने कई अवसरोों पर भारतीय राष्ट्रीय काग् ं सरे के अध््यक्ष के रूप मेें कार््य
z एकता और एकीकरण:
किया तथा स््वतत्रं ता सग्ं राम के लिए गतिशील नेतत्ृ ्व और स््पष्ट दृष्टि प्रदान की।
 पटेल की विचारधारा विभिन््न रियासतोों की एकता और एकीकरण के
z आधुनिक भारत का दृष्टिकोण:
महत्तत्व पर आधारित थी।  नेहरू ने एक ऐसे स््वतंत्र भारत की कल््पना की थी जिसमेें आधनि ु कता,
 उदाहरण: पटेल ने स््वतंत्रता के बाद 500 से अधिक रियासतोों को भारतीय वैज्ञानिक सोच और औद्योगीकरण शामिल हो।
संघ मेें एकीकृ त करने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाई, जिससे भारत की क्षेत्रीय  उन््होोंने राष्ट्रीय विकास के उत्प्रेरक के रूप मेें शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी
अखडं ता सनिश् ु चित हुई। के महत्तत्व पर बल दिया।
z अहिंसक प्रतिरोध और सत््ययाग्रह:  नेहरू के दृष्टिकोण ने भारत के स््वतंत्रता-पश्चात औद्योगिकीकरण और

 महात््ममा गांधी के अहिस ं ा के दर््शन से प्रेरित होकर, पटेल ने ब्रिटिश शासन भारतीय प्रौद्योगिकी संस््थथान (आईआईटी) जैसे वैज्ञानिक अनसु ंधान
को चनु ौती देने के साधन के रूप मेें सत््ययाग्रह (अहिंसक प्रतिरोध) के सस्ं ्थथानोों की स््थथापना की नीींव रखी।
सिद््धाांत को अपनाया। z पूर््ण स््वराज की वकालत:
 उन््होोंने नमक सत््ययाग्रह और भारत छोड़़ो आद ं ोलन सहित विभिन््न अहिसं क  नेहरू ने पर् ू ्ण स््वराज की मांग की। उन््होोंने 1929 मेें ऐतिहासिक लाहौर
आदं ोलनोों मेें सक्रिय रूप से भाग लिया और ब्रिटिश उत््पपीड़न के खिलाफ प्रस््तताव को अपनाने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाई, जिसमेें भारत मेें पर्ू ्ण
सविनय अवज्ञा को बढ़़ावा दिया। स््वतंत्रता और एक संप्रभु गणराज््य की स््थथापना की मांग की गई थी।

राष्ट्रीय आंदोल न के प्रमुख व्यक्तित्व और 103


 उनके द्वारा प्रस््ततुत लाहौर प्रस््तताव ब्रिटिश शासन से पर्ू ्ण स््वतंत्रता की मांग  वो स््वतंत्रता प्राप्ति के लिए अधिक उग्रवादी दृष्टिकोण मेें विश्वास
मेें एक महत्तत्वपर्ू ्ण कदम था। करते थे और ब्रिटिश साम्राज््यवाद के विरुद्ध सशस्त्र प्रतिरोध की वकालत
z असहयोग आंदोलन मेें भूमिका: करते थे।
 नेहरू ने महात््ममा गांधी के असहयोग आद ं ोलन मेें सक्रिय रूप से भाग लिया, z भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मेें नेतृत््व:
जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिसं क प्रतिरोध का एक राष्टट्रव््ययापी  बोस ने दो बार क्रमशः हरिपरु ा (1938) और त्रिपरु ी (1939) मेें भारतीय

अभियान था। राष्ट्रीय कांग्रेस के अध््यक्ष के रूप मेें कार््य किया।


 उन््होोंने यव  उन््होोंने स््वतंत्रता संग्राम के प्रति कांग्रेस के दृष्टिकोण को आकार देने तथा
ु ाओ ं को संगठित किया और विरोध प्रदर््शन, बहिष््ककार और
सविनय अवज्ञा आदं ोलनोों के आयोजन मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि ू का निभाई । ब्रिटिश शासन के विरुद्ध अधिक सशक्त कार््रवाई के लिए प्रेरित करने मेें
सवि महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाई।
z ं धान निर््ममाण मेें योगदान:
z फॉरवर््ड ब््ललॉक का गठन (1939):
 भारतीय संविधान के निर््ममाण मेें नेहरू का महत्तत्वपर् ू ्ण योगदान था।
 कांग्रेस के उदारवादी दृष्टिकोण से असंतष्ट ु होकर बोस ने 1939 मेें फॉरवर््ड
 उन््होोंने सवि
ं धान सभा की मौलिक अधिकारोों सबं ंधी समिति के अध््यक्ष
ब््ललॉक का गठन किया।
के रूप मेें कार््य किया तथा संविधान मेें निहित मौलिक अधिकारोों और
 फॉरवर््ड ब््ललॉक का उद्देश््य पर् ू ्ण स््वतंत्रता के लक्षष्य के लिए प्रतिबद्ध समान
स््वतंत्रताओ ं को आकार दिया।
विचारधारा वाले व््यक्तियोों को एकजटु करना और संगठित करना था।
 धर््मनिरपेक्षता, सामाजिक न््ययाय और लोकतांत्रिक सिद््धाांतोों पर नेहरू के
 फॉरवर््ड ब््ललॉक मेें बोस के नेतत्ृ ्व ने उन लोगोों के लिए एक मच ं प्रदान किया
प्रयासोों ने संविधान का प्रारूप तैयार करने की प्रक्रिया को निर्देशित किया।
जो स््वतंत्रता आदं ोलन के लिए अधिक क््राांतिकारी दृष्टिकोण चाहते थे।
z विदेश नीति और गुटनिरपेक्ष आंदोलन:
z भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) की स््थथापना (1942):
 नेहरू ने शीत यद्ध ु के दौरान भारत की विदेश नीति और एक तटस््थ एवं
 बोस का सबसे महत्तत्वपर् ू ्ण योगदान 1942 मेें भारतीय राष्ट्रीय सेना
गटनिु रपेक्ष राष्टट्र के रूप मेें इसके रुख को आकार देने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का (आईएनए) की स््थथापना थी।
निभाई।
 बोस के नेतत्ृ ्व और उनके नारे "तम ु मझु े खनू दो, मैैं तम्ु ्हेें आजादी दगंू ा"
 उन््होोंने शांतिपर् ू ्ण सह-अस््ततित््व, निरस्त्रीकरण और वैश्विक सहयोग को ने कई भारतीयोों को अग्ं रेजोों के खिलाफ सशस्त्र सघं र््ष मेें शामिल होने के
बढ़़ावा देने की वकालत की। लिए प्रेरित किया।
 गटनि ु रपेक्षता के सिद््धाांतोों को आगे बढ़़ाने मेें नेहरू के नेतत्ृ ्व ने भारत को z धुरी शक्तियाँ और आज़़ाद हिंद सरकार:
अतं रराष्ट्रीय मचं पर एक महत्तत्वपर्ू ्ण व््यक्तित््व के रूप मेें स््थथापित किया।  भारत के स््वतंत्रता संग्राम के लिए अत ं रराष्ट्रीय समर््थन की मांग करते हुए,
z सामाजिक कल््ययाण और आर््थथिक विकास मेें योगदान: बोस ने द्वितीय विश्व यद्ध ु के दौरान धरु ी शक्तियोों से सहायता मांगी।
 नेहरू ने राष्टट्र निर््ममाण के महत्तत्वपर्
ू ्ण घटकोों के रूप मेें सामाजिक कल््ययाण  उन््होोंने निर््ववासन मेें आज़़ाद हिद ं सरकार की स््थथापना की और इसे भारत
और आर््थथिक विकास को प्राथमिकता दी। की वैध सरकार के रूप मेें मान््यता देने की मांग की।
 गरीबी उन््ममूलन, भमि ू सधु ार को बढ़़ावा देने और औद्योगीकरण को आगे  आज़़ाद हिद ं सरकार ने भारतीय राष्टट्रवादियोों का मनोबल बढ़़ाने और
बढ़़ाने के उद्देश््य से विभिन््न नीतियाँ और कार््यक्रम पेश किए। अतं रराष्ट्रीय ध््ययान आकर््षषित करने मेें एक प्रतीकात््मक और प्रभावशाली
 नेहरू की पहलोों मेें योजना आयोग के तहत पंचवर्षीय योजनाए,ं सार््वजनिक भमिू का निभाई।
क्षेत्र के उद्यमोों की स््थथापना तथा वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति पर ध््ययान z अंतरराष्ट्रीय जागरूकता बढ़़ाना:
केें द्रित करना शामिल था।  बोस ने भारत की स््वतंत्रता के लिए अत ं रराष्ट्रीय समर््थन प्राप्त करने और
z भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप मेें योगदान: गठबंधन बनाने के लिए व््ययापक यात्राएँ की।
 भारत के प्रथम प्रधानमत्री ं के रूप मेें नेहरू का योगदान एक मजबतू और  उन््होोंने भारतीय स््वतंत्रता के समर््थन के लिए जर््मनी, जापान और इटली

लोकतांत्रिक राष्टट्र के निर््ममाण के उनके प्रयासोों से चिह्नित है। जैसे देशोों से सहायता मांगी।
 उनके नेतत्ृ ्व ने भारत की लोकतांत्रिक संस््थथाओ,ं धर््मनिरपेक्ष पहचान और  बोस के प्रयासोों से भारतीय स््वतंत्रता संग्राम के बारे मेें वैश्विक जागरूकता

सामाजिक न््ययाय के प्रति प्रतिबद्धता की नीींव रखी। बढ़़ाने मेें मदद मिली और विभिन््न क्षेत्ररों से समर््थन प्राप्त हुआ।
 नेहरू की दरू दृष्टि और राष्ट्रीय व अत ं रराष्ट्रीय एकीकरण व विकास संबंधी z राष्ट्रीय नायक के रूप मेें योगदान:
नीतियाँ आधनि ु क भारत के विकास और शासन को आकार दे रही हैैं।  “जय हिंद” के नारे के साथ सभ ु ाष चद्रं बोस की अटूट प्रतिबद्धता और
उनके उग्रवादी दृष्टिकोण ने उन््हेें राष्ट्रीय नायक और आने वाली पीढ़़ियोों
सुभाष चंद्र बोस का योगदान - नेताजी के लिए प्रेरणा बना दिया।
z ब्रिटिश शासन के विरुद्ध अवज्ञा:  स््वतंत्रता आंदोलन मेें बोस का योगदान हमेें ब्रिटिश शासन को चन ु ौती
 सभ ु ाष चद्रं बोस ने भारत मेें ब्रिटिश शासन का कड़़ा विरोध किया और देने के लिए भारतीय नेताओ ं द्वारा अपनाई गई विविध रणनीतियोों की
स््वतंत्रता संग्राम मेें सक्रिय रूप से भाग लिया। याद दिलाता है।

104  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


विचारधाराओं की तुलना: जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस
विचारधारा जवाहरलाल नेहरू सुभाष चंद्र बोस
स््वतंत्रता के प्रति z स््वतंत्रता प्राप्ति के लिए अहिसं ा और शांतिपर्ू ्ण तरीकोों की वकालत की। z अधिक उग्रवादी दृष्टिकोण और सशस्त्र प्रतिरोध
दृष्टिकोण मेें विश्वास किया।
कांग्रेस मेें भूमिका z भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध््यक्ष के रूप मेें कार््य किया। z भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध््यक्ष के रूप मेें कार््य
किया और बाद मेें फॉरवर््ड ब््ललॉक का गठन किया।
सशस्त्र संघर््ष z अग्ं रेजोों के खिलाफ सशस्त्र संघर््ष का सक्रिय समर््थन नहीीं किया। z भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) की स््थथापना की
और सशस्त्र आदं ोलनोों का नेतत्ृ ्व किया।
अंतरराष्ट्रीय z वैश्विक मामलोों मेें गटनि
ु रपेक्षता और शांतिपर्ू ्ण सह-अस््ततित््व की वकालत की। z द्वितीय विश्व यद्ध
ु के दौरान धरु ी शक्तियोों से समर््थन
समर््थन मांगा।
नेतृत््व शैली z लोकतांत्रिक सिद््धाांतोों और सामाजिक कल््ययाण और औद्योगीकरण पर जोर दिया। z नेतत्ृ ्व की सत्तावादी शैली अपनाई।
परंपरा z आधनि ु क भारत के निर््ममाता माने जाते हैैं, धर््मनिरपेक्षता और लोकतंत्र पर ध््ययान z राष्ट्रीय नायक और प्रतिरोध के प्रतीक के रूप
केें द्रित करते हैैं। मेें जाने जाते हैैं।

विचारधाराओं की तुलना: जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गाांधी


विचारधारा जवाहरलाल नेहरू महात््ममा गांधी
स््वतंत्रता के प्रति दृष्टिकोण z अहिसं ा और शांतिपर्ू ्ण तरीकोों की वकालत की। z नैतिक और राजनीतिक साधन के रूप मेें अहिसं ा पर जोर दिया।
कांग्रेस मेें भमि
ू का z भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध््यक्ष के रूप मेें कार््य किया। z कांग्रेस के अग्रणी नेता के रूप मेें उभरे , और अधिवेशन मेें
प्रतिभाग किया।
सामाजिक-आर््थथिक दृष्टिकोण z औद्योगीकरण और आधनि
ु कीकरण पर ध््ययान केें द्रित z कुटीर उद्योगोों, आत््मनिर््भरता और ग्रामीण विकास पर जोर
किया। दिया गया।
पश्चिम के साथ संबंध z मिश्रित अर््थव््यवस््थथा और तकनीकी दृष्टिकोण की वकालत की। z आत््मनिर््भरता और स््वदेशी उद्योगोों की वकालत की।
जाति व््यवस््थथा के प्रति z सामाजिक सधु ार और समानता की आवश््यकता को z दलितोों के उत््थथान और अस््पपृश््यता उन््ममूलन पर ध््ययान केें द्रित
दृष्टिकोण स््ववीकार किया गया। किया गया।
नेतत्ृ ्व शैली z अधिक व््ययावहारिक, बौद्धिक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण z सत््य, अहिसं ा, समानता, नैतिक अधिकार और व््यक्तिगत
अपनाया। उदाहरणोों का दृष्टिकोण अपनाया।
प्रसिद्धि z आधनि
ु क भारत के निर््ममाता माने जाते हैैं। z राष्टट्रपिता, बापू और एक आदर््श व््यक्तित््व के रूप मेें याद
किये जाते हैैं।

उदाहरण: z नेहरू की मिश्रित अर््थव््यवस््थथा की वकालत:


z नेहरू का अहिंसावादी नेतृत््व:  1956 की औद्योगिक नीति का उद्देश््य सार््वजनिक नियंत्रण और निजी

 अहिस ं क सविनय अवज्ञा आदं ोलन मेें सक्रिय भागीदारी। उद्यम के बीच संतल ु न स््थथापित करना था।
 भारत की विदेश नीति मेें गटनि ु रपेक्ष सिद््धाांतोों की वकालत।  मिश्रित अर््थव््यवस््थथा के दृष्टिकोण के माध््यम से आर््थथिक वृद्धि और विकास

z गांधीजी का अहिंसावादी नेतृत््व: को बढ़़ावा दिया गया।


 ब्रिटिश नमक एकाधिकार के खिलाफ नमक मार््च मेें नेतत्ृ ्व। z गांधीजी की आत््मनिर््भरता नीति:

 स््वतंत्रता संग्राम मेें अहिस  स््वतंत्रता आद ं ोलन के दौरान स््वदेशी का आह्वान।


ं क प्रतिरोध की शक्ति का प्रतीक।
z नेहरू का औद्योगीकरण दृष्टिकोण:  ब्रिटिश वस््ततुओ ं के बहिष््ककार और स््वदेशी उद्योगोों के समर््थन को प्रोत््ससाहित

 एचएएल और इसरो जैसे सार््वजनिक क्षेत्र के उद्यमोों की स््थथापना। किया।


 भारत की तकनीकी प्रगति और आधनि ु कीकरण मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का। उपरोक्त तालिका मेें दिए गए ये उदाहरण दोनोों की विचारधाराओ ं का विशिष्ट
z गांधीजी का ग्रामीण विकास पर ध््ययान: अध््ययन प्रस््ततुत करते हैैं जहाँ नेहरू और गांधी की विचारधाराएँ ठोस कार्ययों और
 खादी एवं ग्रामोद्योग को बढ़़ावा देना। उपलब््धधियोों मेें परिवर््ततित हुई,ं तथा भारतीय स््वतंत्रता संग्राम मेें उनके योगदान
 ग्रामीण समद ु ायोों मेें आत््मनिर््भरता और आर््थथिक सशक्तिकरण को प्रोत््ससाहन। को प्रमाणित किया।

राष्ट्रीय आंदोल न के प्रमुख व्यक्तित्व और 105


विचारधाराओं की तुलना : सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गाांधी
विचारधारा महात््ममा गांधी सुभाष चंद्र बोस
स््वतंत्रता के प्रति स््वतंत्रता प्राप्ति के साधन के रूप मेें अहिसं ा पर जोर दिया। ब्रिटिश शासन के खिलाफ अधिक उग्र और सशस्त्र प्रतिरोध की
दृष्टिकोण वकालत की।
कांग्रेस मेें भमि
ू का कांग्रेस के अग्रणी व््यक्तित््व और आध््ययात््ममिक नेतत्ृ ्वकर््तता के रूप शरूु मेें कांग्रेस से जड़ु ़े लेकिन बाद मेें फॉरवर््ड ब््ललॉक का गठन
मेें उभरे । किया।
नेतत्ृ ्व शैली नैतिक अधिकार और व््यक्तिगत उदाहरण के माध््यम से नेतत्ृ ्व नेतत्ृ ्व की अधिक सत्तावादी शैली अपनाई।
किया।
ब्रिटिशोों के साथ संबंध ब्रिटिश सरकार के साथ संवाद और बातचीत की वकालत की। ब्रिटिशोों के साथ बातचीत के विचार को अस््ववीकार कर दिया।
अंतरराष्ट्रीय समर््थन वैश्विक मामलोों मेें गुटनिरपेक्षता और शांतिपूर््ण सह-अस््ततित््व की द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान धरु ी शक्तियोों से समर््थन मांगा।
वकालत की।
प्रसिद्धि राष्टट्रपिता, बापू और एक आदर््श व््यक्तित््व के रूप मेें याद किये नेताजी, राष्ट्रीय नायक और प्रतिरोध के प्रतीक के रूप मेें जाने
जाते हैैं। जाते हैैं।

z गांधीजी की नेतृत््व शैली:


भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मेें डॉ. बी.आर. अंबड
े कर
 उनकी विशेषता थी नैतिक अधिकार और व््यक्तिगत उदाहरण ।
का योगदान
 सादगी और त््ययाग पर जोर दिया तथा लाखोों लोगोों को सत््य, अहिस ं ा और
आत््ममानश ु ासन के सिद््धाांतोों से प्रेरित किया। परिचय:
 स््वतंत्रता के लिए अग् ं रेजोों के साथ बातचीत और समझौते पर जोर दिया, z डॉ. बी.आर. अबं ेडकर ने स््वतंत्रता संग्राम मेें महत्तत्वपर्ू ्ण योगदान दिया।
शांतिपर्ू ्ण समाधान के लिए गोलमेज सम््ममेलनोों मेें भाग लिया। z सामाजिक भेदभाव के खिलाफ अपने मख ु र संघर््ष के साथ-साथ उन््होोंने ब्रिटिश
z बोस की ने तृत््व शै ली: औपनिवेशिक शासन का भी सक्रिय रूप से विरोध किया।
 एक सत्तावादी दृष्टिकोण अपनाया, मजबत ू नेतत्ृ ्व और केें द्रीय सत्ता मेें दलित अधिकारोों की वकालत:
विश्वास किया।
z अम््बबेडकर दलित समदु ाय के एक अग्रणी नेतत्ृ ्वकर््तता के रूप मेें उभरे , उन््होोंने
 निर््ववासित आज़़ाद हिद ं सरकार की स््थथापना की, जिससे केें द्रीकृ त नेतत्ृ ्व जाति-आधारित भेदभाव का मक ु ाबला किया और उनके अधिकारोों और
का प्रदर््शन हुआ। सामाजिक उत््थथान की वकालत की ।
z सव ं ाद का दृष्टिकोण: z उन््होोंने राजनीतिक प्रतिनिधित््व और समान अवसरोों के लिए लड़़ाई लड़़ी, जो
 गांधीजी ने गोलमेज सम््ममेलनोों मेें भाग लेकर अग् ं रेजोों के साथ संवाद और व््ययापक स््वतंत्रता सघं र््ष का अभिन््न अगं था।
समझौते की वकालत की। z उदाहरण: 1927 मेें महाड़ सत््ययाग्रह का आयोजन किया , जिसमेें दलितोों
 बोस ने द्वितीय विश्व यद्ध ु के दौरान संवाद के सिद््धाांत को अस््ववीकार कर के लिए सार््वजनिक जल स्रोतोों का उपयोग करने की मांग की गई तथा
दिया और धरु ी शक्तियोों से समर््थन मांगा। भेदभावपर्ू ्ण प्रथाओ ं को चनु ौती दी गई।
z अंतरराष्ट्रीय सब ं ंध: भारतीय संविधान के प्रारूपण मेें भूमिका:
 गांधीजी ने गटनि ु रपेक्षता और शांतिपर्ू ्ण सह-अस््ततित््व को बढ़़ावा दिया z अम््बबेडकर ने संविधान सभा की प्रारूप समिति की अध््यक्षता की तथा देश की
तथा शीत यद्ध ु के दौरान गटनि ु रपेक्ष आदं ोलन को आकार दिया। विविधता को प्रतिबिंबित करते हुए एक प्रगतिशील और समावेशी सवि ं धान
 बोस ने भारत के स््वतंत्रता संग्राम मेें सहायता के लिए जर््मनी, जापान और का निर््ममाण किया।
इटली के साथ राजनयिक संबंध स््थथापित करते हुए धरु ी शक्तियोों से सहायता z सामाजिक न््ययाय के प्रति उनके दृष्टिकोण ने प्रमख
ु प्रावधानोों को प्रभावित किया,
मांगी। जैसे कि अस््पपृश््यता को समाप्त करने वाला अनच्ु ्छछेद 17।
यद्यपि, गांधी और बोस दोनोों ने भारतीय स््वतंत्रता संग्राम मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि ू का z उदाहरण: अम््बबेडकर द्वारा अनच्ु ्छछेद 17 का प्रारूप तैयार करना, जिसके तहत
निभाई, लेकिन उनके दृष्टिकोण और विचारधाराएँ एक दसू रे से भिन््न थी। गांधी अस््पपृश््यता को समाप्त किया गया, जाति-आधारित भेदभाव को समाप्त करने
के अहिसं ा और सविनय अवज्ञा के दर््शन ने आम जनता को आकर््षषित किया, और समानता को बढ़़ावा देने के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता का उदाहरण है।
जबकि बोस के उग्रवादी दृष्टिकोण ने उन लोगोों को प्रभावित किया जो अंग्रेजोों
के खिलाफ़ अधिक आक्रामक प्रतिरोध चाहते थे। उनकी अलग-अलग महिला अधिकारोों की वकालत:
विचारधाराओ ं और नेतत्ृ ्व शैलियोों ने भारत के इतिहास मेें अलग-अलग छाप z अम््बबेडकर ने महिला अधिकारोों और लैैंगिक समानता की वकालत की तथा
छोड़़ी, जिसमेें गांधी को राष्टट्रपिता और बोस को राष्ट्रीय नायक और प्रतिरोध के भारतीय समाज मेें महिलाओ ं के सामने आने वाली चनु ौतियोों को पहचाना
प्रतीक के रूप मेें सम््ममानित किया गया। और उनका समाधान किया।

106  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


z उनके प्रगतिशील विचारोों ने महिला अधिकारोों के लिए व््ययापक आदं ोलन मेें z भारतीय साहित््य मेें योगदान: सावरकर एक महान लेखक और कवि थे
योगदान दिया। जिन््होोंने अपने राष्टट्रवादी और क््राांतिकारी विचारोों को प्रचारित करने के लिए
z उदाहरण: विवाह, उत्तराधिकार आदि से संबंधित काननोू ों मेें सधु ार के लिए साहित््य को एक माध््यम के रूप मेें इस््ततेमाल किया। उनके लेखन ने तत््ककालीन
हिदं ू कोड बिल का समर््थन किया, जिससे महिला अधिकार सधु ारोों की नीींव भारतीय समाज द्वारा सामना किए गए ऐतिहासिक संघर्षषों पर प्रकाश डाला और
रखी गई। औपनिवेशिक उत््पपीड़न के खिलाफ एकजटु मोर्चे का आह्वान किया। सावरकर
की साहित््ययिक कृतियाँ भारत मेें राष्टट्रवादी विमर््श को आकार देने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण
शिक्षा और आर््थथिक सशक्तीकरण के लिए प्रयास:
भमि
ू का निभाती हैैं।
z अम््बबेडकर ने सामाजिक गतिशीलता के उद्देश््य से हाशिए पर पड़़े समदु ायोों के  उदाहरण: सावरकर की महान कृति "काला पानी" (ब््ललैक वॉटर), जो
लिए शिक्षा और आर््थथिक सशक्तिकरण के महत्तत्व पर बल दिया। 1907 मेें प्रकाशित हुई थी, एक ऐतिहासिक उपन््ययास है जो अडं मान और
z दलितोों के लिए शैक्षणिक सस्ं ्थथाओ ं की स््थथापना की तथा रोजगार के अवसरोों निकोबार द्वीप समहू की कुख््ययात सेलल ु र जेल मेें निर््ववासित भारतीय
की वकालत की । स््वतंत्रता सेनानियोों के अनभु वोों को दर््शशाता है। यह पस्ु ्तक राजनीतिक
z उदाहरण: 1945 मेें पीपल्ु ्स एजक ु े शन सोसाइटी की स््थथापना की, जिसका कै दियोों द्वारा झेली गई कठिनाइयोों और विपरीत परिस््थथितियोों मेें उनके
उद्देश््य दलितोों और वंचित समहोू ों को शिक्षित करना था। अडिग साहस को दर््शशाती है। अन््य उदाहरणोों मेें, हिदं त्ु ्व, हिन््ददू पद पादशाही,
निष्कर््ष: कमला और गोमांतक हैैं।
z महासभा के गठन मेें योगदान: सावरकर ने 1915 मेें हिद ं ू राष्टट्रवादी राजनीतिक
z सवि ं धान निर््ममाण, दलित अधिकारोों, महिला सशक्तिकरण और शिक्षा के क्षेत्र
मेें अबं ेडकर के बहुआयामी योगदान ने भारत के स््वतंत्रता संग्राम को महत्तत्वपर्ू ्ण संगठन हिदं ू महासभा की स््थथापना मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि ू का निभाई। उनका उद्देश््य
रूप से प्रभावित किया। सामाजिक न््ययाय के निर््ममाता के रूप मेें उनका योगदान हिदं ओ
ु ं को एकज ट
ु करने और उनके राजनीतिक हितोों को बढ़़ावा देने के लिए
,पीढ़़ियोों को प्रेरित करता रहा है। एक मचं प्रदान करना था। हिदं ू महासभा हिदं ू अधिकारोों और राष्टट्रवादी सिद््धाांतोों
की वकालत करने वाली एक प्रमख ु राजनीतिक शक्ति बन गई।
विनायक दामोदर सावरकर- स्वतंत्रता सेनानी
 उदाहरण : सावरकर 1937 से 1943 तक हिद ं ू महासभा के अध््यक्ष रहे।
z परिचय : विनायक दामोदर सावरकर , जिन््हेें आमतौर पर वीर सावरकर के अपने कार््यकाल के दौरान उन््होोंने संगठन को मजबतू करने और इसके
नाम से जाना जाता है, भारतीय स््वतंत्रता आदं ोलन मेें एक प्रमख ु स््वतंत्रता प्रभाव का विस््ततार करने के लिए काम किया, विशेष रूप से राजनीतिक
सेनानी, राजनीतिक नेता और दार््शनिक थे। उन््होोंने राष्टट्रवादी विमर््श को आकार क्षेत्र मेें हिदं ू हितोों की सरु क्षा की वकालत की।
देने और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से भारत की स््वतंत्रता की वकालत
भारतीय स््वतंत्रता संग्राम और राष्टट्रवादी विमर््श मेें विनायक दामोदर
करने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि ू का निभाई। सावरकर की विचारधारा और कार््यशैली सावरकर का योगदान महत्तत्वपूर््ण है। उनकी हिंदुत््व की वकालत, क््राांतिकारी
भारतीय राजनीति और समाज को प्रभावित करते हैैं।
गतिविधियां, साहित््ययिक कार््य और हिंदू महासभा की स््थथापना ने भारतीय
z हिंदुत््व की वकालत: सावरकर को हिदं त्ु ्व की अवधारणा को लोकप्रिय राजनीति और समाज को आकार दिया। सावरकर के विचार आज भी भारतीय
बनाने के लिए जाना जाता है , जो हिदं ू पहचान के सांस््ककृ तिक और राष्टट्रवादी राजनीति मेें वाद- विवाद को जन््म देते हैैं।
पहलओ ु ं पर जोर देता है । उन््होोंने एक एकजटु राजनीतिक और सामाजिक
गोपाल कृष्ण गोखले और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मेें उनका योगदान
शक्ति के रूप मेें हिदं ओ ु ं की एकता और एकीकरण पर जोर दिया। सावरकर
की हिदं त्ु ्व की वकालत का उद्देश््य हिदं ओ ु ं मेें गर््व और राष्टट्रवाद की भावना गोपाल कृष््ण गोखले एक प्रमख ु भारतीय सामाजिक और राजनीतिक सुधारक थे
को बढ़़ावा देना और धार््ममिक धर््माांतरण का मक ु ाबला करना था। जिन््होोंने भारत के स््वतंत्रता संग्राम मेें महत्तत्वपूर््ण भमि
ू का निभाई थी। 9 मई, 1866
को जन््ममे गोखले स््वतंत्रता आंदोलन के शरुु आती चरण मेें एक अग्रणी व््यक्ति थे
z उदाहरण: 1923 मेें प्रकाशित सावरकर की पस्ु ्तक "एसेेंशियल््स ऑफ
और उन््होोंने भारतीय समाज के विभिन््न पहलुओ ं मेें योगदान दिया।
हिंदुत््व" मेें हिदं ू राष्टट्र के लिए उनके दृष्टिकोण को रे खांकित किया गया है और
z शिक्षा और सामाजिक सध ु ार के पक्षधर: गोखले ने सामाजिक व शैक्षिक
हिदं ू समदु ाय के भीतर सांस््ककृ तिक एकता और आत््म-प्रतिपादन की आवश््यकता
सशक्तिकरण के लिए शिक्षा पर जोर देते हुए फर््ग्ययुसन कॉलेज की स््थथापना की।
पर बल दिया गया है ।
z उदाहरण: फर््ग्ययुसन कॉलेज ने भावी स््वतंत्रता सेनानियोों और भारतीय स््वतंत्रता
z क््राांतिकारी गतिविधियाँ: सावरकर ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ क््राांतिकारी
आदं ोलन के नेताओ ं को तैयार किया।
गतिविधियोों मेें सक्रिय रूप से भाग लिया। वे स््वतंत्रता प्राप्त करने के साधन के
z राजनीतिक ने तृत््व और सध ु ार: गोखले के प्रयासोों से 1909 मेें मॉर्ले- मिटं ो
रूप मेें सशस्त्र प्रतिरोध मेें विश्वास करते थे और उन््होोंने क््राांतिकारी आदर्शशों से
राष्टट्रवादियोों की एक पीढ़़ी को प्रेरित किया। सावरकर के साहसी कार््य और सधु ार हुए, जिससे भारतीय राजनीतिक भागीदारी का विस््ततार हुआ।
लेखन कई स््वतंत्रता सेनानियोों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गए। z उदाहरण: ये सध ु ार भारतीयोों के राजनीतिक सशक्तिकरण की दिशा मेें एक
 उदाहरण : सावरकर ने 1904 मेें ‘अभिनव भारत सोसाइटी’ की स््थथापना
महत्तत्वपर्ू ्ण कदम थे।
की , जो एक गप्तु क््राांतिकारी संगठन था जिसका उद्देश््य भारत से ब्रिटिश z आर््थथि क और औद्योगिक विकास की वकालत: गोखले ने स््वदेशी उद्योगोों

शासन को उखाड़ फेें कना था। वो ब्रिटिश प्रतिष्ठानोों के खिलाफ क््राांतिकारी को बढ़़ावा देने के लिए भारतीय औद्योगिक आयोग का समर््थन किया।
कृ त््योों की योजना बनाने और उन््हेें अजं ाम देने सहित विभिन््न गतिविधियोों  उदाहरण : इस पहल का उद्देश््य ब्रिटिश आयात पर निर््भरता को कम करना

मेें शामिल थे। और घरे लू उद्योगोों को विकसित करना था।

राष्ट्रीय आंदोल न के प्रमुख व्यक्तित्व और 107


z अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और जागरूकता: गोखले की अतं रराष्ट्रीय यात्राओ ं  उदाहरण: नायडू की कविता "भारत भाग््य विधाता” स््वतंत्रता आदं ोलन
ने भारत के स््वतंत्रता संघर््ष के बारे मेें जागरूकता बढ़़ाई। के लिए एक नारा बन गया, जिसने राष्ट्रीय गौरव की भावना पैदा की और
 उदाहरण: इग््लै ं ैंड मेें उनके भाषणोों ने ब्रिटिश शासन की दमनकारी प्रकृति भारतीयोों को स््वतंत्रता के लिए प्रयास करने हेतु प्रेरित किया।
पर प्रकाश डाला, जिससे भारत के लिए वैश्विक समर््थन प्राप्त हुआ। z अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और वकालत: नायडू ने वैश्विक मच ं पर भारत का
z जमीनी स््तर पर सग ं ठन और सशक्तीकरण: गोखले स््वतंत्रता संग्राम मेें प्रतिनिधित््व किया, भारत की स््वतंत्रता की वकालत की और स््वतंत्रता संग्राम
सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए जनता को संगठित करने और उन््हेें सशक्त के लिए अतं रराष्ट्रीय समर््थन मांगा।
बनाने के महत्तत्व मेें विश्वास करते थे। उन््होोंने जमीनी स््तर पर आदं ोलनोों को  उदाहरण: नायडू 1929 मेें पर्वी ू अफ्रीकी भारतीय कांग्रेस की प्रतिनिधि
सगं ठित करने और भारतीयोों मेें एकता की भावना पैदा करने की दिशा मेें काम थी, जहाँ उन््होोंने ब्रिटिश शासन के तहत भारतीयोों की दर््दु शा पर प्रकाश
किया। डाला।
 उदाहरण: गोखले ने स््थथानीय संघोों और समितियोों के गठन को सक्रिय सरोजिनी नायडू ने एक प्रमख ु नेत्री, महिला अधिकारोों की पैरोकार और कवयित्री
रूप से प्रोत््ससाहित किया जिसका उद्देश््य स््व-शासन, आत््मनिर््भरता और के रूप मेें भारतीय स््वतंत्रता संग्राम मेें उल््ललेखनीय योगदान दिया। महिलाओ ं को
सामाजिक उत््थथान को बढ़़ावा देना था। सशक्त बनाने, प्रभावशाली भाषण देने, भारतीय संस््ककृ ति को बढ़़ावा देने और
इस प्रकार, गोपाल कृष््ण गोखले का योगदान बहुआयामी और प्रभावशाली था। अंतरराष्ट्रीय समर््थन की वकालत करने के अपने प्रयासोों के माध््यम से नायडू ने
शिक्षा, राजनीतिक सुधार, आर््थथिक विकास, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और जमीनी स््वतंत्रता आंदोलन मेें एक अहम योगदान दिया।
स््तर पर लोगोों को संगठित करके गोखले ने भारत की स््वतंत्रता की नीींव रखने अन्य व्यक्तित्ववों के बारे मेें संक्षिप्त विवरण
मेें महत्तत्वपूर््ण भमि
ू का निभाई। z अब््ददुल गफ््फफार खान (1890-1988):
सरोजिनी नायडू और भारतीय  पाकिस््ततान के उत्तमान जई मेें जन््ममे अब््ददुल गफ््फफार खान ,रौलट सत््ययाग्रह
स्वतंत्रता संग्राम मेें उनका योगदान के दौरान राष्टट्रवादी आदं ोलन मेें शामिल हुए।
सरोजिनी नायडू भारत के स््वतंत्रता संग्राम की एक प्रमख ु नेतत्ृ ्वकर््तता थी और  गांधीजी के साथ जड़ ु कर उन््होोंने खिलाफत , सविनय अवज्ञा, असहयोग,
अपने समय की एक प्रमख ु कवयित्री थी। उन््होोंने विभिन््न आंदोलनोों मेें सक्रिय भारत छोड़़ो आदं ोलन और सत््ययाग्रह जैसे आदं ोलनोों मेें भाग लिया।
रूप से भाग लिया और महिलाओ ं को संगठित करने और स््वतंत्रता का संदेश  उन््हेें "फ्रंटियर गांधी" के नाम से भी जाना जाता है।
फै लाने मेें महत्तत्वपूर््ण भमि
ू का निभाई।
 1929 मेें खद ु ाई खिदमतगार आदं ोलन की शरुु आत की, जिसे "रेड शर््ट
z महिला सशक्तिकरण और भागीदारी: नायडू ने महिलाओ ं के अधिकारोों की
आंदोलन" के रूप मेें जाना जाता है। उन््होोंने स््थथानीय उद्योगोों को बढ़़ावा
वकालत की और भारतीय महिलाओ ं को स््वतंत्रता आदं ोलन मेें शामिल होने
दिया और पश््ततो महिलाओ ं को सशक्त बनाया।
के लिए सशक्त बनाने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाई। उन््होोंने सार््वजनिक जीवन
 विभाजन का विरोध किया, पख््ततूनिस््ततान की मांग की और 1987 मेें उन््हेें
मेें उनकी भागीदारी को सक्रिय रूप से प्रोत््ससाहित किया और स््वतंत्रता संग्राम
मेें उनके महत्तत्व पर प्रकाश डाला। भारत रत््न से सम््ममानित किया गया।
 उदाहरण : नायडू ने 1917 मेें स््थथापित महिला भारत संघ (WIA) का
z अबुल कलाम आज़़ाद (1888-1958):
 रौलट सत््ययाग्रह के दौरान राष्टट्रवादी आद ं ोलन मेें शामिल हुए।
नेतत्ृ ्व किया, जिसका उद्देश््य महिला शिक्षा, सामाजिक सधु ार और
राष्टट्रवादी आदं ोलन मेें उनकी सक्रिय भागीदारी को बढ़़ावा देना था।  अल हिलाल और अल बिलाल जैसी देशभक्ति पत्रिकाएँ प्रकाशित की,

z सार््वजनिक भाषण और राष्टट्रवाद: नायडू अपनी वाकपटुता और वाक्


“इडि ं या विन््स फ्रीडम” और “गुबार -ए- खातिर” जैसी पस्ु ्तकेें लिखी।
कौशल के लिए प्रसिद्ध थीीं। उन््होोंने अपने भाषणोों के माध््यम से राष्टट्रवाद और  मस््ललिु म आदं ोलनोों मेें शामिल रहे, कांग्रेस अध््यक्ष (1940-45) के रूप मेें
स््वतंत्रता का सदं श े फै लाते हुए भारतीयोों को प्रेरित करने और सगं ठित करने कार््य किया, स््वतंत्रता वार््तता मेें मध््यस््थता की और भारत के पहले शिक्षा
के लिए अपनी विचारधारा का इस््ततेमाल किया। मत्री
ं बने।
 उदाहरण: 1925 मेें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध््यक्ष  विश्वविद्यालय अनद ु ान आयोग जैसे शैक्षिक संस््थथानोों और संगठनोों की
के रूप मेें, नायडू ने कानपरु अधिवेशन मेें एक भावक ु भाषण दिया, जिसमेें स््थथापना की।
उन््होोंने एकता, आत््मनिर््णय और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के उन््ममूलन z भीकाजी कामा (1861-1936):
का आह्वान किया।  यरू ोप मेें रहने वाली एक महिला क््राांतिकारी ने भगवा, लाल और हरे रंग

z साहित््ययिक योगदान और सांस््ककृतिक पुनरुत््थथान: नायडू की कविताओ ं की पट्टियोों, चाँद, सितारोों और " वंदे मातरम " के साथ भारतीय ध््वज
और साहित््ययिक कृतियोों ने स््वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्टट्रवादी भावना जागृत को डिजाइन किया था।
करने और भारतीय संस््ककृ ति और विरासत को संरक्षित करने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि ू का  1907 मेें जर््मनी के स््टटुटगार््ड मेें समाजवादी बैठकोों के दौरान झड ं ा फहराया
निभाई। और फ्री इडि ं या सोसाइटी की स््थथापना की।

108  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास


 सावरकर और श््ययामजी कृष््ण वर््ममा आदं ोलनोों से जड़ु ़े , समाचार पत्र वंदे और भीकाजी जैसे नेताओ ं के क््राांतिकारी उत््ससाह ने भारतीय स््वतंत्रता संग्राम मेें
मातरम का संपादन किया, और लंदन मेें भारतीय यवको ु ों को संगठित किया। अहम योगदान दिया। भीकाजी कामा से लेकर अबुल कलाम आजाद जैसे लोगोों
z मदन मोहन मालवीय (1861-1946): की राजनीतिक सझू बूझ ने इस संघर््ष मेें अद्भुत योगदान दिया। इन सभी व््यक्तित््वोों
 वो एक वकील और हिद ं ू महासभा और कांग्रेस के सदस््य थे, उन््होोंने ने साथ मिलकर राष्ट्रीय एकता और प्रतिरोध का ऐसा ताना-बाना बनाया जिसने
इलाहाबाद मेें यपू ी औद्योगिक एसोसिएशन और भारतीय औद्योगिक भारत को औपनिवेशिक शासन से अंततः मक्ु ति की ओर अग्रसर किया। उनके
सम््ममेलन की सह-स््थथापना की।विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप मेें कार््य सामहि ू क प्रयास स््वतंत्रता और आत््म निर््णय की खोज मेें, भारतीय लोगोों की
किया, हिदं स्ु ्ततान और इडि ं यन यनि ू यन जैसे प्रकाशनोों का सपं ादन किया समृद्ध विविधता और साझा आकांक्षाओ ं को रे खांकित करते हैैं।
और नेशनलिस््ट पार्टी की स््थथापना की। मुख््य शब््ददावली: बाल गंगाधर तिलक, स््वदेशी आंदोलन, होमरूल लीग,
अतः भारत के स््वतंत्रता संग्राम मेें विभिन््न नेताओ ं का योगदान न के वल महत्तत्वपर्ू ्ण सरदार वल््लभभाई पटेल, एकता और अखंडता, जवाहरलाल नेहरू, पूर््ण
था, बल््ककि बहुआयामी भी था, प्रत््ययेक ने देश की स््वतंत्रता के मार््ग पर एक स््वराज, सभु ाष चंद्र बोस, भारतीय राष्ट्रीय सेना, डॉ. बी.आर. अम््बबेडकर,
अमिट छाप छोड़़ी। महात््ममा गांधी द्वारा प्रदर््शशित अहिसं ा के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता दलित अधिकार, संविधान, विनायक दामोदर सावरकर, हिदं त्ु ्व, गोपाल
से लेकर डॉ. बीआर अंबेडकर द्वारा सामाजिक न््ययाय के लिए अथक वकालत कृष््ण गोखले, शिक्षा सुधार, सरोजिनी नायडू, महिला सशक्तिकरण आदि।

राष्ट्रीय आंदोल न के प्रमुख व्यक्तित्व और 109


110  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास

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