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MAINS WALLAH (STATIC + CURRENT)

स वल सेवा मु परी ा-2024 पर अं तम ‘ हार’

भारतीय राजनी त
और सं वधान

वशेषताएँ
सम एवं सिं नोटस ्
ामािणक ोत से अ ितत आकड़ ँ े एवं त य
गणव
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िवगत वष म पछेू गए के साथ समायोिजत
पारपं रक टॉिप स का समसामियक घटनाओ ं के साथ जोड़कर ततीकरण

िवषय सूची
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 1 8. अनुसूचित एवं जनजातीय क्षेत्र
(भाग X, अनुच्छेद 244 -244 ए ) 29
‰ भारत के संविधान का विकासक्रम: प्रमुख अधिनियम और सुधार............................ 1
‰ भारत की संविधान सभा..............................................................................2 ‰ पाँचवीीं अनुसूची.......................................................................................29
‰ भारत के संविधान की आलोचना....................................................................2 ‰ अनुसूचित क्षेत्र प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ.................................................... 29
‰ छठी अनुसूची..........................................................................................30
2. भारत मेें संवैधानिक संशोधन 4
9. भारत की संघीय संरचना 32
‰ संशोधन के प्रकार......................................................................................4
‰ अनौपचारिक संशोधन.................................................................................4 ‰ भारतीय संघवाद: एक अनूठा मॉडल............................................................. 32
‰ संविधान मेें संशोधनोों की आवश््यकता..............................................................4 ‰ भारतीय संविधान की एकात््मक विशेषताएँ...................................................... 32
‰ संविधान मेें संशोधनोों से संबंधित मुद्दे...............................................................5 ‰ भारतीय संघवाद की विशेषताएँ....................................................................32
‰ संशोधन प्रक्रिया की आलोचना......................................................................5 ‰ भारतीय संघवाद के लिए चुनौतियाँ...............................................................33
‰ 106वाँ संविधान संशोधन, 2023...................................................................5 ‰ भारत मेें असममित संघवाद........................................................................33
‰ संसदीय संविधान की मूल संरचना..................................................................6 ‰ केेंद्र-राज््य संबंध......................................................................................34
‰ केेंद्र-राज््य संबंधोों को बेहतर ढं ग से प्रबंधित करने के तरीके और साधन.................. 34
3. भारतीय संविधान मेें महत्त्वपूर््ण प्रावधान 8
‰ अंतर-राज््ययीय नदी जल विवाद....................................................................35
‰ महत्तत्वपूर््ण प्रावधान: एक गहन विश्लेषण.............................................................8 ‰ नीति आयोग - सहकारी संघवाद को बढ़़ावा देने का एक साधन............................ 35
‰ उद्देशिका.................................................................................................9 ‰ छोटे राज््योों के लिए माँग............................................................................36
‰ उद्देशिका का महत्तत्व.....................................................................................9 ‰ समाचार मेें मुद्दे........................................................................................37
‰ उद्देशिका मेें संशोधन...................................................................................9 ‰ दिल््लली राष्ट्रीय राजधानी राज््य-क्षेत्र
शासन (संशोधन) अधिनियम 2023.............................................................. 37
4. मौलिक अधिकार (भाग III, अनुच्छेद 12-35) 11
10. शक्तियोों का पृथक्करण 39
‰ मूल अधिकारोों का वर्गीकरण........................................................................11
‰ मूल अधिकारोों की विशेषताएँ.......................................................................11 ‰ संवैधानिक प्रावधान और शक्तियोों का पृथक््करण.............................................. 39
‰ अनुच््छछेद 12...........................................................................................11 ‰ शक्तियोों के पृथक््करण के विभिन््न मॉडल........................................................ 39
‰ अनुच््छछेद 13...........................................................................................11 ‰ कार््यपालिका और विधायिका के बीच कार््ययात््मक अतिव््ययाप्ति................................ 39
‰ समता का अधिकार (अनुच््छछेद 14-18).......................................................... 12 ‰ न््ययायपालिका और विधायिका के बीच कार््ययात््मक अतिव््ययाप्ति............................... 40
‰ स््वतंत्रता का अधिकार (अनुच््छछेद 19 – 22)................................................... 14 ‰ न््ययायपालिका और कार््यपालिका के बीच कार््ययात््मक अतिव््ययाप्ति............................ 40
‰ शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच््छछेद 23-24).................................................. 16 ‰ नियंत्रण और संतुलन का सिद््धाांत.................................................................42
‰ धर््म की स््वतंत्रता का अधिकार (अनुच््छछेद 25 – 28) ........................................ 16
11. संसद और राज्य विधानमंडल 43
‰ संस््ककृ ति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच््छछेद 29-30)..................................... 17
‰ अधिकारोों के प्रवर््तन के लिए उपचार (अनुच््छछेद 32).......................................... 17 ‰ संसद के कार््य.........................................................................................43
‰ रिट (WRITS)........................................................................................18 ‰ लोकसभा की उत््पपादकता...........................................................................44
‰ सशस्त्र बल और मूल अधिकार.....................................................................18 ‰ संसदीय सुधार........................................................................................44
‰ मार््शल कानून और मूल अधिकार.................................................................19 ‰ संसदीय विशेषाधिकार...............................................................................44
‰ संपत्ति का अधिकार..................................................................................19 ‰ विपक्ष की भूमिका.....................................................................................45
‰ मूल अधिकारोों के अपवाद...........................................................................19 ‰ राजनीति मेें महिलाओं की कम भागीदारी........................................................ 46
‰ मूल अधिकारोों से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ.................................................. 20 ‰ दल-बदल विरोधी क़़ानून............................................................................47
‰ समाचार मेें मुद्दे........................................................................................20 ‰ पीठासीन अधिकारी की भूमिका...................................................................48
‰ संसदीय जाँच..........................................................................................49
5. राज्य नीति के निदेशक सिद्धधांत (DPSP)
(भाग IV, अनुच्छेद 36-51) 22 12. भारत मेें न्यायिक व्यवस्था 51
‰ नीति-निदेशक तत्तत्ववों और मूल अधिकारोों के बीच टकराव.................................... 22 ‰ भारतीय और अन््य न््ययायिक प्रणालियोों की तुलना............................................. 51
‰ समान नागरिक संहिता (UCC)...................................................................23 ‰ न््ययायपालिका द्वारा निभाई जाने वाली महत्तत्वपूर््ण भूमिकाएँ.................................... 52
‰ नीति निदेशक तत्तत्ववों के तहत स््ववास््थ््य का अधिकार.......................................... 24 ‰ महत्तत्वपूर््ण न््ययायिक अवधारणाएँ....................................................................53
‰ न््ययायिक विलंब........................................................................................53
6. मौलिक कर््तव्य (भाग IV-क, अनुच्छेद 51-क ) 25
‰ न््ययायिक नियुक्तियाँ...................................................................................54
‰ अधिकार और कर््तव््य................................................................................25 ‰ न््ययायाधीशोों की अपदस््थता.........................................................................55
‰ न््ययायिक जवाबदेही...................................................................................55
7. नागरिकता (भाग II, अनुच्छेद 5-11) 27
‰ न््ययायिक सक्रियता और न््ययायिक अतिरेक....................................................... 56
‰ नागरिकता अधिनियम, 1955.....................................................................27 ‰ अदालत की अवमानना..............................................................................57

I
‰ न््ययायपालिका मेें महिलाएँ............................................................................58
22. केेंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोग 98
‰ फास््ट ट्रैक न््ययायालय................................................................................59
‰ सर्वोच््च न््ययायालय की क्षेत्रीय पीठ.................................................................60 23. केेंद्रीय सतर््कता आयोग (CVC) 99
‰ नालसा/NALSA.....................................................................................61
‰ भारत मेें न््ययायिक अवसंरचना......................................................................62 ‰ केेंद्रीय सतर््क ता आयोग (CVC) से संबंधित प्रावधान ........................................ 99
13. विवाद निवारण तंत्र 63 24. संघ कार््यकारिणी एवं राज्य कार््यकारिणी 100
‰ वैकल््पपिक विवाद निवारण ..........................................................................63 ‰ भारत का राष्टट्रपति................................................................................. 100
‰ लोक अदालत.........................................................................................64 ‰ राष्टट्रपति कार््ययालय की आलोचना............................................................... 101
‰ ग्राम न््ययायालय........................................................................................64 ‰ भारत के उपराष्टट्रपति.............................................................................. 101
‰ न््ययायाधिकरण (भाग XIV-A; अनुच््छछेद 323A, 323B)...................................... 65 ‰ संवैधानिक प्रावधान................................................................................ 101
‰ न््ययायाधिकरण सुधार अधिनियम (2021)....................................................... 66 ‰ उपराष्टट्रपति की शक्तियाँ एवं कार््य............................................................... 101
‰ अंतर - राज््ययीय जल विवाद........................................................................66 ‰ राष्टट्रपति और उपराष्टट्रपति के चुनाव........................................................... 102
‰ ऑनलाइन विवाद समाधान.........................................................................66 ‰ राष्टट्रपति और उपराष्टट्रपति का कार््यकाल, अर््हताएँँ और निष््ककासन...................... 102
‰ राज््य के राज््यपाल................................................................................. 102
14. स्थानीय स्वशासन (भाग IX, भाग IX-ए ) 68 ‰ राज््यपाल का कार््यकाल (अनुच््छछे द 156)..................................................... 102
‰ पंचायती राज व््यवस््थथा..............................................................................68 ‰ अर््हताएँ (अनुच््छछे द 157)]......................................................................... 103
‰ पंचायती राज सरकार के समक्ष आने वाले मुद्दे और चुनौतियाँ............................... 68 ‰ मनोनीत बनाम निर््ववाचित राज््यपाल के संबंध मेें तर््क ....................................... 103
‰ पंचायती राज संस््थथाओं को सशक्त बनाने के लिए सरकारी प्रयास.......................... 69 ‰ राष्टट्रपति एवं राज््यपाल की शक्तियाँ............................................................. 103
‰ महत्तत्वपूर््ण प्रयास ......................................................................................69 ‰ राष्टट्रपति और राज््यपाल को प्राप्त विशेषाधिकार और उन््ममुक्तियाँ (अनुच््छछे द 361).... 105
‰ पंचायती राज संस््थथाओं मेें महिलाओं की भूमिका.............................................. 69 ‰ राष्टट्रपति और राज््यपाल की वीटो शक्ति की तुलना.......................................... 105
‰ नगर पालिकाएँ........................................................................................70 ‰ राष्टट्रपति एवं राज््यपाल की अध््ययादेश जारी करने की शक्ति............................... 105
‰ राष्टट्रपति एवं राज््यपाल की क्षमादान शक्तियाँ ................................................ 107
15. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक 72 ‰ राज््यपाल से संबंधित मुद्दे......................................................................... 108
‰ नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के कर््तव््य और शक्तियां............................ 72 ‰ सरकारिया आयोग की सिफारिशेें................................................................ 109
16. राष्ट् रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) / राष्ट् रीय अनुसूचित 25. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री  110
जनजाति आयोग (NCST) / राष्ट् रीय पिछड़ा वर््ग आयोग (NCBC) 74 ‰ संवैधानिक प्रावधान................................................................................ 110
‰ प्रधानमंत्री एवं मुख््यमंत्री की शक्तियाँ एवं कार््य................................................ 110
17. संघ और राज्य लोक सेवा आयोग 76
26. मंत्रिपरिषद 112
‰ संवैधानिक प्रावधान..................................................................................76
‰ संघ और राज््य लोक सेवा आयोग................................................................76 ‰ संवैधानिक प्रावधान................................................................................ 112
‰ आयोग की स््वतंत्रता.................................................................................76 ‰ मंत्रियोों की जिम््ममेदारी.............................................................................. 113
‰ कार््य और सीमाएँ.....................................................................................76
27. भारत मेें कैबिनेट प्रणाली 114
18. भारतीय चुनाव आयोग (ECI) 78 ‰ मंत्रिमंडल की भूमिका.............................................................................. 114
‰ शक्तियाँ और कार््य....................................................................................78 ‰ कै बिनेट समितियाँ.................................................................................. 114
‰ पद की सुरक्षा एवं स््वतंत्रता.........................................................................79
28. मंत्रालय 116
‰ चुनाव आयुक्ततों की चिंताएँ...........................................................................79
‰ एक साथ चुनाव - एक राष्टट्र, एक चुनाव.......................................................... 80 ‰ संवैधानिक प्रावधान................................................................................ 116
‰ राजनीतिक दल और भारतीय चुनाव आयोग................................................... 80 ‰ संसदीय सचिव...................................................................................... 116
‰ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और संबंधित मुद्दे......................................... 82 29. संसदीय समिति 117
‰ नोटा (NONE OF THE ABOVE : NOTA)................................................ 83
‰ आदर््श आचार संहिता (MCC)....................................................................84 30. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (1951)  118
‰ चुनावी वित्तपोषण.....................................................................................85
‰ राजनीतिक दलोों मेें आंतरिक लोकतंत्र........................................................... 89 ‰ राजनीतिक दलोों का पंजीकरण.................................................................. 119
‰ मुफ््तखोरी की राजनीति.............................................................................89 ‰ जानने का अधिकार (Right to know)....................................................... 120
‰ कृत्रिम बुद्धिमत्ता और चुनाव........................................................................90 ‰ भ्रष्ट आचरण......................................................................................... 120
‰ चुनावी अपराध...................................................................................... 121
19. परिसीमन आयोग 93 ‰ पेड न््ययूज़............................................................................................. 121
‰ संवैधानिक प्रावधान..................................................................................93 31. अन्य राष्टट्ररों के साथ भारतीय संवैधानिक प्रणाली की तुलना 124
‰ परिसीमन आयोग.....................................................................................93
‰ परिसीमन आयोग की आलोचना...................................................................94 ‰ भारत और अमेरिका............................................................................... 124
‰ भारत और ब्रिटेन.............................................................................................126
20. भारत के महान्यायवादी (AGI) 95 ‰ भारत और ब्रिटेन................................................................................... 126
‰ महान््ययायवादी के बारे मेें.............................................................................95 ‰ भारत और फ््राांस.................................................................................... 127
‰ भारत और जापान.................................................................................. 128
21. राष्ट् रीय एवं राज्य मानवाधिकार आयोग 96 ‰ भारत और दक्षिण अफ्रीका....................................................................... 128

 II
1 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत का संविधान भारत के उपनिवेश से सफलतापर्ू ्वक संप्रभु गणराज््य बनने z अधिनियम की मुख््य विशेषताएँ
का स््थथायी प्रमाण है। यह जीवंत दस््ततावेज़ दनिय
ु ा के सबसे अधिक आबादी  अखिल भारतीय सघ ं (All-India Federation): शक्तियोों के
वाले देश के लोकतांत्रिक संचालन का मार््गदर््शन करता है। यह एक समावेशी विभाजन के साथ एक संघीय प्रणाली के ढाँचे की स््थथापना की गई, लेकिन
दृष्टिकोण को दर््शशाता है जिसने भारत की अपार विविधता को एकीकृ त राष्ट्रीय रियासतेें इसमेें शामिल नहीीं हुई,ं जिस कारण इसका गठन नहीीं हुआ।
पहचान की ओर अग्रसर किया है।  प््राांतीय स््ववायत्तता (Provincial Autonomy) (1937-1939): प््राांतोों

भारत के संविधान का विकासक्रम: को सीमित स््वशासन प्रदान किया गया, जिसमेें मत्री ं गवर््नर को सलाह
देते थे।
प्रमुख अधिनियम और सुधार
 केें द्र मेें द्वै ध शासन (Dyarchy at Center) (लागू नहीीं किया गया):

भारत सरकार अधिनियम, 1919 / मोोंटेग्यू-चेम्सफोर््ड सुधार केें द्रीय विषयोों को आरक्षित और हस््तताांतरणीय श्रेणियोों मेें विभाजित किया
z कार््यकारी परिषद मेें भारतीय सदस््य: इस अधिनियम द्वारा वायसराय की गया, लेकिन इसे कभी लागू नहीीं किया गया।
 द्विसदनीय विधायिका (Bicameral Legislatures) (सीमित): कुछ
कार््यकारी परिषद मेें तीन भारतीयोों को शामिल करने का प्रावधान किया गया।
z द्विसदनीय विधानमंडल: दो सदनोों वाले विधानमडं ल की स््थथापना की प््राांतोों मेें प्रतिबंधोों के साथ उच््च सदन की शरुु आत की गई।
 विस््ततारित प्रतिनिधित््व (Expanded Representation): मताधिकार
गई - विधानसभा (The Legislative Assembly) और राज््यसभा (The
Council of State)। मेें वृद्धि की गई (जनसंख््यया का लगभग 10%) तथा विशिष्ट समहोू ों के लिए
पृथक निर््ववाचक मडं ल का प्रावधान किया गया।
z विके न्द्रीकरण: इस अधिनियम ने केें द्रीय और प््राांतीय विषयोों का सीमांकन
 पुनर््गठित प्रशासन (Restructured Administration): भारतीय
और पृथक््करण करके प््राांतोों पर केें द्रीय नियंत्रण को शिथिल कर दिया।
परिषद (Council of India) को समाप्त कर दिया गया, राज््य सचिव
z प््राांतोों मेें द्वैध शासन व््यवस््थथा: प््राांतीय स््तर पर द्वैध शासन व््यवस््थथा लागू
के लिए सलाहकारोों का प्रावधान किया गया तथा लोक सेवा आयोगोों
की गई, जिसके तहत प््राांतीय विषयोों को हस््तताांतरित और आरक्षित विषयोों मेें (संघीय, प््राांतीय तथा संयक्त ु ) का गठन किया गया।
विभाजित किया गया।
 सघ ं ीय न््ययायालय (Federal Court): अधिनियम मेें मल ू और
z केें द्रीय लोक सेवा आयोग: इस अधिनियम मेें एक लोक सेवा आयोग की अपीलीय दोनोों क्षेत्राधिकारोों के साथ एक संघीय न््ययायालय की स््थथापना
स््थथापना का प्रावधान किया गया, जिसके परिणामस््वरूप 1926 मेें केें द्रीय लोक का प्रावधान किया गया।
सेवा आयोग की स््थथापना हुई।
z अधिनियम का महत्तत्व: यह अधिनियम भारत के शासन के लिए ब्रिटिश संसद
z महत्तत्व: द्वारा पारित किया गया सबसे व््ययापक और विस््ततृत काननू था। अपनी सीमाओ ं
 भारतीयोों की भागीदारी मेें वद्ृ धि: इसका उद्देश््य देश के शासन मेें भारतीयोों के बावजदू यह भारत मेें परू ी तरह से उत्तरदायी सरकार की दिशा मेें एक मील
की भागीदारी बढ़़ाना था। यह अतं तः स््वशासन की ओर एक बदलाव था। का पत््थर साबित हुआ और भारतीयोों को सरकार चलाने का व््ययावहारिक
 विधायी सध ु ार: इसने द्विसदनीय विधायिका की शरुु आत की और अनभु व प्रदान किया।
मताधिकार का विस््ततार किया, जिससे राजनीतिक जागरूकता और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947
सहभागिता बढ़़ी। (INDIAN INDEPENDENCE ACT OF 1947)
 द्वै ध शासन की भूमिका: इस अधिनियम ने प््राांतोों मेें आशि ं क स््वशासन z अधिनियम की मुख््य विशेषताएँ:
प्रणाली लागू की, जिससे भारतीयोों को कुछ प्रशासनिक नियंत्रण प्राप्त हुआ।  ब्रिटिश शासन का अंत: इस अधिनियम ने 15 अगस््त, 1947 से भारत

भारत शासन अधिनियम, 1935 और पाकिस््ततान को दो स््वतंत्र अधिराज््य (Independent Dominions)


(GOVERNMENT OF INDIA ACT OF 1935) घोषित कर दिया।
 सवं िधान सभाओ ं को शक्तियाँ: इस अधिनियम ने भारत और पाकिस््ततान
z भारत शासन अधिनियम, 1935 भारत मेें संवैधानिक तंत्र स््थथापित करने की
दिशा मेें एक महत्तत्वपर््णू कदम था। यह मख्ु ्य रूप से उस समय के महत्तत्वपर््णू की संविधान सभाओ ं को अपने-अपने संविधान बनाने की शक्ति प्रदान की।
राजनीतिक घटनाक्रमोों जैसे साइमन कमीशन रिपोर््ट, नेहरू रिपोर््ट, गोलमेज  भारत का विभाजन: इस अधिनियम मेें ब्रिटिश भारत को भारत और

सम््ममेलन आदि से प्रभावित था। पाकिस््ततान मेें विभाजित करने का प्रावधान किया गया।
z महत्तत्व:
भारत के संविधान की आलोचना
 1947 के भारतीय स््वतंत्रता अधिनियम ने भारत मेें ब्रिटिश शासन का
z 1935 के अधिनियम की कार््बन कॉपी (Carbon Copy of the 1935
अतं कर दिया तथा भारत और पाकिस््ततान को दो अलग-अलग अधिराज््य Act):
घोषित कर दिया।  आलोचना: ब्रिटिश संवैधानिक विशेषज्ञ सर आइवर जेनिंग््स ने तर््क दिया

कि भारत के संविधान मेें भारत शासन अधिनियम, 1935 से बहुत कुछ


उधार लिया गया है तथा इसके कई प्रावधान सीधे तौर पर नकल किये गए हैैं।
मुख्य शब्द
 जवाबी तर््क : डॉ. बी.आर. अब ं ेडकर ने इस दावे का प्रतिवाद करते हुए
द्वैध शासन, सत्ता का केेंद्रीकरण, सीमित शासन, अप्रत््यक्ष स््पष्ट किया कि उधार लिए गए तत्तत्व मख्ु ्य रूप से प्रशासनिक विवरणोों से
प्रतिनिधित््व, सांप्रदायिक निर््ववा चन मंडल, अखिल भारतीय संघ, संबंधित थे। संविधान मेें स््वतंत्र भारत की परिकल््पना को शामिल किया
द्वैध शासन, प््राांतीय स््ववायत्तता गया है, जिसमेें मल ू अधिकार, निदेशक तत्तत्व और 1935 के अधिनियम
से भिन््न अन््य विशेषताएँ भी शामिल हैैं।
भारत की संविधान सभा z उधार का थैला (Bag of Borrowings):
(CONSTITUENT ASSEMBLY OF INDIA)  आलोचना: आलोचक अक््सर भारत के सवं िधान को ‘उधार लिया गया

संविधान’ या ‘उधार का थैला’ कहते हैैं, जिसमेें मौलिकता का अभाव है।


z ब्रिटिश सरकार की 1946 की कै बिनेट मिशन योजना ने संविधान सभा को  जवाबी तर््क : संविधान मेें विश्व के विभिन््न देशोों के संविधानोों की
सैद््धाांतिक रूप से स््ववीकृ ति प्रदान की। अवधारणाओ ं और प्रावधानोों को शामिल किया गया है, लेकिन
z संविधान सभा मेें अप्रत््यक्ष रूप से निर््ववाचित प्रतिनिधि तथा रियासतोों से मनोनीत इसके निर््ममाताओ ं ने बड़़ी चतरु ाई से उन््हेें भारत के विशिष्ट सदं र््भ और
सदस््य शामिल थे। आवश््यकताओ ं के अनसु ार अनक ु ू लित किया है। जैसा कि डॉ. बी.आर.
z संविधान सभा की लगभग तीन साल तक बैठकेें हुई ं और यह स््वतंत्र भारत के अबं ेडकर का कहना था कि यह आलोचना संविधान के सार को ठीक से
संविधान पर विचार-विमर््श और बहस करती रही। इस दस््ततावेज को आकार न समझ पाने के कारण की गई है।
देने मेें बी.आर. अबं ेडकर जैसे प्रमख ु लोगोों ने अहम भमि ू का निभाई। z वकीलोों का स््वर््ग (Lawyer's Paradise):
z अतं तः 26 नवम््बर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अगं ीकृ त कर  आलोचना: सर आइवर जेनिंग््स ने संविधान की कानन ू ी भाषा और
लिया, जिससे 26 जनवरी, 1950 को भारत के गणतंत्र बनने का मार््ग प्रशस््त पदावली को जटिल बताते हुए इसकी आलोचना की तथा इसे ‘वकीलोों
हो गया। का स््वर््ग’ कहा।
 जवाबी तर््क : गलत व््ययाख््यया और दरु ु पयोग को रोकने के लिए सटीक
संविधान सभा की आलोचना
काननू ी भाषा आवश््यक है। संविधान लोगोों की सेवा करता है, लेकिन इसे
z प्रतिनिधित््व की कमी: आलोचकोों का तर््क है कि संविधान सभा वास््तव काननू ी प्रणाली के भीतर भी प्रभावी ढंग से काम करना चाहिए।
मेें प्रतिनिधित््वपर््णू नहीीं थी, क््योोंकि इसके सदस््योों को सार््वभौमिक वयस््क z अत््यधिक लंबा और विवरण (Excessive Length and Detail):
मताधिकार के माध््यम से लोगोों द्वारा सीधे तौर पर नहीीं चनु ा गया था।
 आलोचना: आलोचकोों का तर््क है कि भारतीय संविधान अत््यधिक लंबा
z सप्र ं भु निकाय नहीीं: कुछ लोग दावा करते हैैं कि सवं िधान सभा परू ी तरह से और विस््ततृत है, जिससे यह बोझिल हो गया है।
संप्रभु नहीीं थी, क््योोंकि इसकी स््थथापना ब्रिटिश प्रस््ततावोों द्वारा की गई थी और  जवाबी तर््क : विस््ततृत विवरण जानबझ ू कर दिया गया है, ताकि एक व््ययापक
यह उनकी अनमु ति से कार््य करती थी। दस््ततावेज़ बनाया जा सके , जो शासन के हर पहलू का मार््गदर््शन करे और
z वकीलोों की प्रधानता: आलोचकोों का कहना है कि संविधान सभा मेें वकीलोों अस््पष्टता को कम करे । यह लंबाई संविधान की समावेशिता और संपर््णू ता
की संख््यया बहुत अधिक थी, जिसने संभवतः संविधान को जटिल बना दिया को दर््शशाती है।
और काननू ी भाषा का उपयोग किया गया। z एकात््मकता की ओर झुका हुआ सघं वाद (Federalism with a
z हिंदू बहुसख् ं ्यकोों का प्रभुत््व: विंस््टन चर््चचिल जैसे कुछ आलोचकोों का तर््क Unitarian Bias):
था कि यह सभा मख्ु ्य रूप से हिदं ू बहुसख्ं ्यकोों का प्रतिनिधित््व करती थी तथा  आलोचना: आलोचकोों का तर््क है कि भारतीय संविधान एकात््मक
अन््य समदु ायोों की उपेक्षा की गई। प्रणाली की ओर झक ु ा हुआ है, जो केें द्र सरकार को राज््योों की तलु ना मेें
z समय ले ने वाली प्रक्रिया: प्रारूपण प्रक्रिया मेें लगभग तीन वर््ष लग गए, अधिक शक्ति देता है। यह सघं वाद की सच््चची भावना को कमजोर करता है।
जिसके कारण कुछ लोगोों ने इतना अधिक समय लगने की आलोचना की।  जवाबी तर््क : समर््थकोों का तर््क है कि राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय सरु क्षा

हालाँकि, इन आलोचनाओ ं का जवाब इस तथ््य से दिया गया कि सभा ने तथा आर््थथिक विकास जैसे मद्ददों
ु को संबोधित करने के लिए एक मजबतू
विभिन््न सामाजिक, राजनीतिक और आर््थथिक दृष्टिकोणोों का प्रतिनिधित््व किया केें द्र सरकार आवश््यक है। इसके अतिरिक्त, संविधान सहकारी संघवाद
और इसके लंबे विचार-विमर््श इन भिन््न विचारोों को समायोजित करने और के लिए तंत्र प्रदान करता है, जहाँ केें द्र और राज््य मिलकर काम करते हैैं।
सामंजस््य स््थथापित करने के प्रयासोों का एक आवश््यक परिणाम थे। z बहुत कठोर या बहुत लचीला (Too Rigid or Too Flexible):

2  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीित और संिवधान


 आलोचना: कुछ लोगोों का तर््क है कि संविधान बहुत कठोर है, जिससे नए घटनाक्रम
इसे बदलती सामाजिक और आर््थथिक वास््तविकताओ ं के अनक ु ू ल बनाना
z 106वेें सश ं ोधन (2023) के द्वारा लोकसभा, राज््य विधानसभाओ ं और
कठिन हो जाता है। इसमेें संशोधन करना एक जटिल प्रक्रिया है।
दिल््लली विधानसभा मेें महिलाओ ं के लिये आरक्षण का प्रावधान किया
 जवाबी: अन््य लोगोों का मानना है कि संविधान का लचीलापन संशोधनोों
के माध््यम से आवश््यक संशोधनोों की अनमु ति देता है। यह स््थथिरता और गया है। सभी सीटोों मेें से एक तिहाई महिलाओ ं के लिए आरक्षित होोंगी,
परिवर््तन के प्रति सवं ेदनशीलता के बीच सतं ल
ु न बनाता है। जिसमेें अनसु चि
ू त जाति और अनसु चि ू त जनजाति की महिलाओ ं के लिए
आरक्षित सीटेें भी शामिल हैैं।
z 105वेें सश
ं ोधन (2021) के द्वारा सकारात््मक कार््रवाई के कार््यक्रमोों के लिए
मुख्य शब्द
सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़़े वर्गगों (SEBCs) की पहचान करने
कार््ब न कॉपी, वकीलोों का स््वर््ग , उधार का थैला, अत््यधिक लंबा और उन््हेें वर्गीकृ त करने की राज््य सरकारोों की शक्ति को बहाल कर दिया
गया है।

ऐतिहासिक पृष्ठभू 3
2 भारत मेें संवैधानिक संशोधन
भारत का संविधान, भारत के एक उपनिवेश से सफलतापर्ू ्वक एक संप्रभगु णराज््य z सवैं धानिक परंपराएँ: ये असहि ं ताबद्ध प्रथाएँ हैैं, जो सवं िधान का हिस््ससा नहीीं
बनने का स््थथायी प्रमाण है। हैैं, लेकिन परंपरा या मिसाल के तौर पर इनका पालन किया जाता है। इसका
z पडिं त जवाहरलाल नेहरू ने एक बार सवं िधान की जीवतं प्रकृ ति पर प्रकाश एक उदाहरण है- प्रधानमत्रीं का लोकसभा (संसद का निम््न सदन) मेें बहुमत
डालते हुए कहा था कि हम अपने सवं िधान को यथासभं व स््थथायी और ठोस वाली पार्टी का नेता होना। ये परंपराएँ समय के साथ विकसित हो सकती हैैं,
जिनसे सरकार के कामकाज का तरीका तय होता है।
बनाने का प्रयास कर रहे हैैं, लेकिन इसमेें राष्टट्र के विकास और बदलती
परिस््थथितियोों के अनकु ू ल लचीलापन भी होना चाहिए।
z भारत का संविधान एक मजबत ू ढाँचा है, जो संशोधन प्रक्रिया के माध््यम से मुख्य शब्द
आवश््यक बदलावोों की अनमु ति देता है। यह सनिश् ु चित करता है कि संविधान न््ययायिक व््ययाख््यया, परंपराएँ, मूल संरचना
बदलती जरूरतोों और परिस््थथितियोों के अनक ु ू ल हो।
z अब तक सवं िधान मेें 106 बार सश ं ोधन हो चक ु ा है। सश
ं ोधन की प्रक्रिया संविधान मेें संशोधनोों की आवश्यकता
सवं िधान के अनच्ु ्छछेद 368 मेें परिभाषित की गई है।
z बदलती सामाजिक व््यवस््थथा: समाज मेें बदलाव के साथ-साथ मजबतू
संशोधन के प्रकार सामाजिक व््यवस््थथा बनाए रखने के लिए कमजोर वर्गगों को पर््ययाप्त सरु क्षा उपायोों
के साथ संरक्षित करने की आवश््यकता होती है। उदाहरण के लिए-
भारत के संविधान मेें तीन प्रकार से संशोधन किया जा सकता है:
 106वेें संशोधन (2023) ने लोकसभा, राज््य विधानसभाओ ं और दिल््लली
z सस ं द के साधारण बहुमत द्वारा सश ं ोधन: इसमेें नए राज््योों के प्रवेश या विधानसभा मेें महिलाओ ं के लिए आरक्षण का प्रावधान किया।
निर््ममाण, मौजदू ा राज््योों की सीमाओ ं मेें परिवर््तन, राज््योों मेें विधान परिषदोों का
z सस्ं ्थथाओ ं को मजबूत बनाना: संशोधनोों से सरकार के कामकाज मेें सधु ार
उन््ममूलन या निर््ममाण आदि से संबंधित संशोधन शामिल हैैं।
हो सकता है:
z सस ं द के विशेष बहुमत द्वारा सश ं ोधन (अनुच््छछे द 368 के अधीन): इसमेें  दलबदल-रोधी कानून (Anti-Defection Law): 52वेें संशोधन
मल ू अधिकारोों, राज््य के नीति निदेशक तत्तत्ववों तथा प्रथम और तृतीय श्रेणी के द्वारा दलबदल के कारण उत््पन््न राजनीतिक अस््थथिरता को रोकने के लिए
अतं र््गत न आने वाले सभी अन््य प्रावधानोों मेें संशोधन शामिल हैैं। दलबदल रोधी काननू पेश किया गया।
z सस ं द के विशेष बहुमत और राज््य विधानसभाओ ं के अनुसमर््थन द्वारा z तकनीकी उन््नति: नई प्रौद्योगिकियोों के लिए काननू ी ढाँचे की आवश््यकता
सश ं ोधन (अनुच््छछे द 368 के अधीन): इसमेें राष्टट्रपति के निर््ववाचन, संघ और हो सकती है। उदाहरण के लिए-
राज््योों की कार््यकारी शक्ति की सीमा, उच््चतम न््ययायालय और उच््च न््ययायालय,  डिजिटल युग मेें निजता: डेटा संग्रहण और निगरानी मेें वृद्धि को देखते
संघ और राज््योों के बीच विधायी शक्तियोों का वितरण, संसद मेें राज््योों का हुए, डिजिटल यगु मेें निजता के अधिकार को स््पष्ट रूप से शामिल करने
प्रतिनिधित््व, संविधान मेें संशोधन करने की संसद की शक्ति और इसकी प्रक्रिया के लिए सवं िधान मेें सश ं ोधन करने पर बहस चल रही है।
से संबंधित संशोधन शामिल हैैं। z सामाजिक अनुबंधोों को पूरा करना: उदाहरण के लिए- 73वाँ और 74वाँ
सश ं ोधन, जो महात््ममा गांधी द्वारा परिकल््पपित 'ग्राम स््वराज' के सपने को साकार
अनौपचारिक संशोधन
करने के लिए पेश किए गए थे।
(INFORMAL AMENDMENTS)
z सरं चनात््मक समायोजन: मल ू अधिकारोों से सपं त्ति के अधिकार को समाप्त
z न््ययायिक व््ययाख््यया: भारत का उच््चतम न््ययायालय संविधान की व््ययाख््यया करने करने जैसे संशोधन आर््थथिक कारणोों से आवश््यक थे।
मेें महत्तत्वपर््णू भमि
ू का निभाता है। समय के साथ, उसके निर््णय संविधान को z व््ययावहारिक कठिनाइयोों का समाधान: कभी-कभी, सश ं ोधन प्रक्रियाओ ं
लागू करने के तरीके को प्रभावी ढंग से बदल सकते हैैं, भले ही लिखित पाठ को सव्ु ्यवस््थथित करते हैैं:
वही रहे। उदाहरण के लिए- संविधान की ‘मल ू संरचना’ (Basic Structure)  वस््ततु एवं सेवा कर (GST): 101वेें सश ं ोधन द्वारा जीएसटी का प्रावधान
की अवधारणा, जिसे संशोधित नहीीं किया जा सकता, न््ययायिक व््ययाख््यया के किया गया, जो एक एकीकृ त कर प्रणाली है जिसका उद्देश््य परू े भारत मेें
माध््यम से स््थथापित की गई थी। अप्रत््यक्ष कराधान को सरल बनाना है।
z राज््योों द्वारा अपनी सहमति वापस लेने के बारे मेें कोई स््पष्टता नहीीं है: इस
संविधान मेें संशोधनोों से संबधं ित मुद्दे बात पर कोई स््पष्टता नहीीं है कि राज््य किसी सश
ं ोधन का पहले अनसु मर््थन करने
z सश ं ोधनोों की आवत्ति ृ (Frequency of Amendments): भारत के के बाद अपनी सहमति वापस ले सकते हैैं या नहीीं।
संविधान मेें अन््य लोकतंत्ररों की तल ु ना मेें बार-बार संशोधन किए गए हैैं, जिससे z गतिरोध का कोई समाधान नहीीं है: यदि संसद के दोनोों सदन किसी संशोधन
मल ू दस््ततावे ज़ की स््थथिरता और सम््ममान पर सवाल उठते हैैं। कुछ लोगोों का तर््क पर असहमत होों तो इस प्रक्रिया मेें गतिरोध को हल करने के लिए कोई तत्रं नहीीं है।
है कि लगातार संशोधन प्रारंभिक प्रारूपण मेें दरू दर््शशिता की कमी या दीर््घकालिक
आगे की राह
विजन की तल ु ना मेें राजनीतिक सवु िधा की प्रवृत्ति को दर््शशाते हैैं।
z सत्ता का परिवर््तन (Shift of Power): अत््यधिक संशोधनोों से संसद और z अलग समिति/निकाय: संविधान मेें प्रस््ततावित संशोधनोों का विश्ले षण करने के
न््ययायपालिका, केें द्र और राज््योों जैसी विभिन््न सस्ं ्थथाओ ं के बीच शक्ति सतं ल
ु न मेें लिए विशेष रूप से कार््य करने वाली एक अलग समिति या निकाय की स््थथापना
परिवर््तन हो सकता है, जिससे अस््थथिरता पैदा हो सकती है। की जानी चाहिए। इससे अधिक कठोर समीक्षा प्रक्रिया उपलब््ध हो सकती है
और जल््दबाजी मेें किए जाने वाले सश ं ोधन को रोका जा सकता है।
z सार््वजनिक विचार-विमर््श का अभाव (Lack of Public
z सय ं ुक्त सस
ं दीय समिति का गठन: प्रस््ततावित सश ं ोधनोों पर गहन विचार-विमर््श
Deliberation): वर््तमान प्रक्रिया संसद और राज््य विधानसभाओ ं पर निर््भर
है, जिसमेें जनता की भागीदारी सीमित है। हाल के संशोधनोों पर हितधारकोों के के लिए एक संयक्त ु संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया जाना चाहिए। इस
साथ व््ययापक सार््वजनिक चर््चचा या परामर््श नहीीं हुआ है, जिससे लोकतांत्रिक सयं क्त ु ं स स दीय समिति मेें ससं द के दोनोों सदनोों और विभिन््न राजनीतिक दलोों के
प्रतिनिधि शामिल होने चाहिए, जिससे आम सहमति बनाने मेें मदद मिलेगी और
वैधता को लेकर चितं ाएँ बढ़ रही हैैं।
प्रस््ततावित सश ं ोधनोों पर व््ययापक विचार-विमर््श सनिश् ु चित होगा।
z बहुमतवाद की सभ ं ावना (Potential for Majoritarianism): एक
z गतिरोध समाधान तंत्र: सश ं ोधनोों पर ससं द के सदनोों के बीच मतभेदोों को हल
मजबतू केें द्रीय सरकार जिसके पास बहुत अधिक बहुमत है, वह अल््पमत
करने के लिए एक रूपरे खा तैयार करेें। इसमेें मध््यस््थता, संयक्त ु समितियाँ या
वालोों के दृष्टिकोण पर विचार किए बिना संशोधनोों को पारित कर सकती
अस््थथायी विशेष बहुमत की आवश््यकता शामिल हो सकती है।
है। इस बात की चितं ा है कि सघं ीय सतं ल ु न या मल ू अधिकारोों को प्रभावित
z राज््य विधानमंडलोों को शामिल करना: सश ं ोधन प्रक्रिया मेें राज््य
करने वाले संशोधन के वल सत्तारूढ़ पार्टी के बहुमत के आधार पर पारित हो
विधानमडं लोों की सक्रिय भागीदारी से संतलि ु त संघीय ढाँचे को बनाए रखना
सकते हैैं।
सनिश्
ु चित किया जा सकता है ।
z ‘मूल सरं चना के सिद््धाांत’ पर बहस (The Basic Structure Doctrine
z सश ं ोधन प्रक्रिया को परिभाषित करना: स््पष्ट प्रक्रियात््मक दिशा-निर्देश
Debate): इस बात पर बहस जारी है कि ससं द किस हद तक सवं िधान की संशोधन के प्रावधान के संबंध मेें भ्रम और संभावित दरुु पयोग को कम करने मेें
‘मल ू संरचना’ (अपरिवर््तनीय सिद््धाांतोों) मेें संशोधन कर सकती है। उच््चतम मदद कर सकते हैैं।
न््ययायालय के ऐतिहासिक निर््णयोों ने ‘मल ू संरचना’ सिद््धाांत की स््थथापना की, z समयबद्ध अनुसमर््थन: राज््य विधानसभाओ ं के लिए संशोधनोों के अनस ु मर््थन
लेकिन इसकी मानक सीमा पर बहस जारी है, जिससे संशोधन प्रक्रिया के बारे
हेतु समय-सीमा निर््धधारित की जानी चाहिए, ताकि अनिश्चितकालीन विलंब को
मेें अनिश्चितता बनी हुई है। रोका जा सके ।
संशोधन प्रक्रिया की आलोचना संविधान संशोधन, गतिशील दनिय ु ा मेें संविधान को प्रासंगिक और अनुकूल बनाए
रखने के लिए एक महत्तत्वपूर््ण तंत्र है। हालाँकि, इस शक्ति का विवेकपूर््ण और
z केें द्रीकृत नियंत्रण: आलोचकोों का तर््क है कि सवं िधान मेें सश ं ोधन करने की
संयमित तरीके से प्रयोग करना हमारे मल ू कानून की अखंडता और स््थथिरता की
शक्ति मख्ु ्य रूप से संसद के पास है, जो अलग-अलग राज््योों की आवाज को
रक्षा के लिए आवश््यक है।
कम महत्तत्व देकर संघीय संतल ु न की उपेक्षा कर रही है।
z जनता की सीमित भागीदारी: वर््तमान संशोधन प्रक्रिया मेें जनमत संग्रह जैसे
प्रत््यक्ष जन-भागीदारी के प्रावधान नहीीं हैैं। जनमत को शामिल करके संशोधनोों मुख्य शब्द
की लोकतांत्रिक वैधता को बढ़़ाया जा सकता है।
बहुमतवाद, सार््वजनिक विचार-विमर््श, अलग समिति, गतिरोध
z समर््पपित निकाय का अभाव: कुछ देशोों के विपरीत, भारत मेें संवैधानिक समाधान तंत्र
कन््वेेंशन जैसी कोई नामित संस््थथा नहीीं है जिसे विशेष रूप से संशोधन
प्रस््ततावित करने का काम सौौंपा गया हो। इससे संभावित रूप से प्रक्रिया को 106वााँ संविधान संशोधन, 2023
सव्ु ्यवस््थथित किया जा सकता है और अधिक व््ययापक समीक्षा सनिश् ु चित की जा
सकती है। प्रावधान
z साधारण विधेयकोों के समान: सश ं ोधन प्रक्रिया विशेष बहुमत की z 106वाँ संशोधन, जिसे महिला आरक्षण अधिनियम, 2023 (नारी शक्ति वंदन
आवश््यकता को छोड़कर, साधारण विधेयकोों को पारित करने के समान ही है। अधिनियम, 2023) के रूप मेें भी जाना जाता है, लोकसभा (ससं द के निम््न
आलोचक मौलिक परिवर््तनोों के लिए अधिक कठोर प्रक्रिया की माँग करते हैैं। सदन), राज््य विधानसभाओ ं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल््लली विधानसभा मेें
z राज््योों के अनुसमर््थन की अस््पष्टता: संविधान मेें राज््य विधानसभाओ ं द्वारा महिलाओ ं के लिए सभी सीटोों की एक तिहाई सीटेें आरक्षित करता है।
सश ं ोधनोों के अनसु मर््थन हेतु कोई समय-सीमा निर््ददिष्ट नहीीं की गई है, जिसके z इस आरक्षण मेें अनसु चि
ू त जाति (एससी) और अनसु चि ू त जनजाति (एसटी) के
कारण सभं ावित विलंब और अनिश्चितताएँ उत््पन््न हो सकती हैैं। लिए पहले से आरक्षित सीटेें भी शामिल हैैं।

भारत में संवैधानिक संशोध 5


महत्त्व: मूल संरचना के तत्त्व
z इसका उद्देश््य महिलाओ ं की राजनीतिक भागीदारी बढ़़ाना तथा सरकार मेें z पिछले कुछ वर्षषों मेें उच््चतम न््ययायालय ने विभिन््न निर््णयोों के माध््यम से अनेक
लैैंगिक समानता को बढ़़ावा देना है। विशेषताओ ं को संविधान की मल ू संरचना के भाग के रूप मेें मान््यता दी है।
z नीति निर््ममाण मेें महिलाओ ं के मुद्ददों और परिप्रेक्षष्ययों का बेहतर प्रतिनिधित््व
z इनमेें से कुछ उदाहरण इस प्रकार हैैं:
हो सके गा।
 संविधान की सर्वोच््चता;
z इससे पारंपरिक लैैंगिक बाधाओ ं को तोड़ते हुए अधिक महिलाओ ं को
राजनीति मेें प्रवेश करने के लिए प्रेरणा मिलेगी।  सवं िधान का धर््मनिरपेक्ष और सघं ीय चरित्र;
आलोचनाएँ :  भारत की संप्रभतु ा;
z रोटे शन प्रणाली से सबं ंधित चिंताएँ: अधिनियम मेें आरक्षित सीटोों के रोटेशन  राष्टट्र की एकता और अखडं ता
को अनिवार््य किया गया है, जिसके बारे मेें कुछ लोगोों का तर््क है कि इससे  न््ययायिक समीक्षा;
दीर््घकालिक राजनीतिक आकांक्षा रखने वाली महिलाओ ं को नक ु सान हो
सकता है।  मल
ू अधिकारोों और निदेशक तत्तत्ववों के बीच संतल
ु न आदि।
z मौजूदा आरक्षण पर प्रभाव: आलोचकोों का तर््क है कि इससे अनस ु चि
ू त संप्रभु, धर््मनिरपेक्ष,
स््वतंत्र न््ययायपालिका संविधान की
जातियोों और अनसु चि ू त जनजातियोों के लिए मौजदू ा आरक्षण कमजोर हो
सकता है। लोकतांत्रिक और
सर्वोच््चता
z कोटा के भीतर कोटा: अनस ु चि
ू त जाति/अनसु चि ू त जनजाति की महिलाओ ं गणतांत्रिक
मूल अधिकारोों और
के लिए आरक्षण के भीतर आरक्षण का कार््ययान््वयन आगे की जटिलताओ ं कल््ययाणकारी मूल संरचना निदेशक तत्तत्ववों के
और संभावित चनु ौतियोों के बारे मेें प्रश्न उठाता है। राज््य
z सख्
बीच संतुलन
ं ्यया पर ध््ययान बनाम क्षमता: कुछ लोग तर््क देते हैैं कि अके ले आरक्षण
से सक्षम महिला प्रतिनिधियोों की गारंटी नहीीं मिल सकती। न््ययायिक समीक्षा शक्तियोों का
यह संशोधन भारत मेें महिला सशक्तीकरण की दिशा मेें एक महत्तत्वपूर््ण कदम समानता पृथक््करण
था। हालाँकि, आरक्षण की प्रभावशीलता और राजनीति मेें वास््तविक लैैंगिक
समानता हासिल करने के लिए व््ययापक सामाजिक बदलावोों की आवश््यकता मूल संरचना का महत्त्व
पर बहस जारी है।
z मूल पहचान की रक्षा: मल ू संरचना सिद््धाांत संविधान निर््ममाताओ ं द्वारा
संसदीय संविधान की मूल संरचना परिकल््पपित मल ू सिद््धाांतोों की रक्षा करता है तथा यह सनिश् ु चित करता है कि
z मलू संरचना का सिद््धाांत भारतीय न््ययायपालिका द्वारा स््थथापित यह सिद््धाांत है भारत एक लोकतांत्रिक, समाजवादी, धर््मनिरपेक्ष और गणतांत्रिक राष्टट्र बना रहे।
कि संविधान की कुछ मल ू विशेषताएँ आवश््यक और अपरिवर््तनीय हैैं, यहाँ z मनमाने सश ं ोधनोों को सीमित करता है: यह संसद को ऐसे आमल ू चल

तक कि अनच्ु ्छछेद 368 के तहत संसद की संशोधन शक्ति के माध््यम से भी परिवर््तन करने से रोकता है जो संविधान के सार को नष्ट या कमज़ोर कर सकते
इन््हेें नहीीं बदला जा सकता है। हैैं। उदाहरण के लिए- संसद न््ययायिक समीक्षा शक्ति को समाप्त नहीीं कर सकती
z यह अवधारणा लिखित संविधान मेें स््पष्ट रूप से मौजदू नहीीं थी। यह 1960 है या एक धर््मशासित राज््य की शरुु आत नहीीं कर सकती है।
और 1970 के दशक मेें कई ऐतिहासिक अदालती मामलोों के माध््यम से
सामने आई, जिसकी परिणति ऐतिहासिक के शवानंद भारती बनाम के रल राज््य z सवं िधान की सर्वोपरिता को बनाए रखना: मल ू संरचना सिद््धाांत संशोधनोों
(1973) के मामले मेें हुई। पर सीमाएँ लगाकर संविधान को सर्वोपरि काननू के रूप मेें कायम रखता है
z उच््चतम न््ययायालय ने अभी तक यह परिभाषित या स््पष्ट नहीीं किया है कि तथा ससं द मेें अस््थथायी बहुमत द्वारा इसके क्षरण को रोकता है।
संविधान की 'मल ू संरचना' क््यया है। z न््ययायिक समीक्षा को बढ़़ावा देता है: यह न््ययायपालिका को संशोधनोों की
समीक्षा करने और मल ू सरं चना का उल््ललंघन करने वाले सश ं ोधनोों को रद्द
केशवानंद भारती के मामले मेें निर््णय
करने का अधिकार देता है। के शवानंद भारती वाद (1973) मेें यह महत्तत्वपर््णू
z उच््चतम न््ययायालय ने ‘के शवानंद भारती बनाम के रल राज््य’ मामले मेें
था, जिसमेें उच््चतम न््ययायालय ने मल ू अधिकारोों को पर््णू संसदीय नियंत्रण से
फै सला सनु ाया कि संविधान की मल ू संरचना अनल्ु ्ललंघनीय है और संसद
द्वारा उसमेें सश ोधन नहीीं किया जा सकता। संरक्षित किया।

z यह उच््चतम न््ययायालय के इतिहास मेें अब तक की सबसे बड़़ी पीठ थी, z न््ययायपालिका की स््वतंत्रता: मल ू सरं चना सिद््धाांत न््ययायिक क्षेत्र मेें ससं द के
जिसमेें 13 सदस््य थे। अतिक्रमण को रोककर न््ययायपालिका की स््वतंत्रता सनिश् ु चित करता है।
z के शवानंद भारती का 2020 मेें निधन हो गया, वह उच््चतम न््ययायालय मेें  उदाहरण के लिए- 99वेें सवं िधान सश ं ोधन अधिनियम, 2014
उस मामले मेें याचिकाकर््तता थे जिसके परिणामस््वरूप 1973 का ऐतिहासिक जिसमेें राष्ट्रीय न््ययायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) का प्रस््तताव था,
फै सला आया, जिसमेें संविधान के मल ू संरचना सिद््धाांत को रे खांकित किया को संविधान की मल ू संरचना का उल््ललंघन करने के कारण रद्द कर दिया
गया था। गया था।

6  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीित और संिवधान


मूल संरचना की आलोचना z न््ययायिक समीक्षा को बरकरार रखा गया: इस मामले ने न््ययायिक समीक्षा
z न््ययायिक सक्रियता (Judicial Activism): आलोचकोों का तर््क है कि यह को मल ू सरं चना के एक मौलिक पहलू के रूप मेें पष्टु किया तथा यह सनिश्
ु चित
न््ययायपालिका को अत््यधिक शक्ति प्रदान करता है, जिससे उसे ‘मल ू संरचना’ किया कि सभी काननोू ों, यहाँ तक कि 9वीीं अनसु चू ी मेें शामिल काननोू ों की
को व््यक्तिपरक रूप से परिभाषित करने और संभावित रूप से अपनी भमि ू का
भी संवैधानिकता के लिए समीक्षा की जा सकती है।
का अतिक्रमण करने की अनमु ति मिलती है।
z अतिक्रमण के विरुद्ध सरु क्षा: इस निर््णय ने इस सिद््धाांत को मजबतू किया
z अस््पष्टता (Vagueness): ‘मल ू संरचना’ की अवधारणा स््वयं अस््पष्ट है,
इसकी स््पष्ट परिभाषा नहीीं है जिससे इसे असगं त रूप से लागू किए जाने की कि सश
ं ोधन शक्ति सहित कोई भी शक्ति न््ययायिक समीक्षा से परे नहीीं है।
संभावना रहती है। यह विधायिका या कार््यपालिका की मनमानी कार््रवाइयोों से सरु क्षा प्रदान
z विधायी सर्वोच््चता को चुनौती (Legislative Supremacy करता है।
Challenged): यह सिद््धाांत विधि निर््ममाण मेें संसद की सर्वोच््चता के सिद््धाांत z मूल मूल््योों का सरं क्षण: न््ययायालय ने दोहराया कि संविधान के मल ू
को कमजोर करता है। सिद््धाांतोों का उल््ललंघन करने वाले सश
ं ोधन अमान््य होोंगे तथा इससे इसके
z सश ं ोधन की शक्ति सीमित करना (Amending Power Curtailed): आवश््यक मल्ू ्योों की रक्षा होगी।
आलोचकोों का तर््क है कि यह संसद की संविधान मेें संशोधन करने की शक्ति को
सीमित करता है, यहाँ तक कि सभं ावित रूप से लाभकारी परिवर््तनोों के लिए भी।
z कोई पाठगत आधार नहीीं (No Textual Basis): सवं िधान मेें इस सिद््धाांत
मुख्य शब्द
का स््पष्ट उल््ललेख नहीीं है, जिससे इसकी काननू ी वैधता पर सवाल उठते हैैं।
मल
ू संरचना के सिद््धाांत की व््यक्तिपरकता से जुड़़े इन मद्ददों
ु को संभवतः न््ययायिक संवैधानिक तंत्र; संवैधानिकता; बहुमतवाद; अधिनायकवाद; तृतीय
और संसदीय सहयोग द्वारा मल ू विशेषताओ ं के संहिताकरण के माध््यम से चैम््बर; न््ययायिक अतिक्रमण; अधिनायकवाद।
संबोधित किया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सिद््धाांत
वास््तव मेें बहुमतवाद और अधिनायकवाद के खिलाफ सुरक्षा के रूप मेें कार््य िवगत वर्षषों के प्रश्न
करता है और इस प्रकार भारत मेें संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करता है।
z "संविधान का संशोधन करने की संसद की शक्ति एक परिसीमित शक्ति है और
आई.आर. कोएल्हो वाद: मूल संरचना सिद्धधांत को मजबूत इसे आत््ययंतिक शक्ति के रूप मेें विस््ततृत नहीीं किया जा सकता है।" इस कथन
करना के आलोक मेें व््ययाख््यया कीजिए कि क््यया संसद संविधान के अनच्ु ्छछेद 368 के
आई.आर. कोएल््हहो वाद एक ऐतिहासिक निर््णय है, जिसने भारतीय संवैधानिक अतं र््गत अपनी संशोधन की शक्ति का विशदीकरण करके संविधान के मल ू
कानून मेें मल ू संरचना सिद््धाांत की अवधारणा को और मजबूत किया। इस ढाँचे को नष्ट कर सकती है? 
मामले के मख्ु ्य पहलू इस प्रकार हैैं:  (2019)
z 9वीीं अनुसच ू ी को सीमित किया: न््ययायालय ने निर््णय दिया कि 1973 z कोहिलो के स मेें क््यया अभिनिर््धधारित किया गया था? इस संदर््भ मेें, क््यया आप
के बाद 9वीीं अनसु चू ी मेें जोड़़े गए काननू (जो चनु ौती से अतिरिक्त संरक्षण कह सकते हैैं कि न््ययायिक पनु र््वविलोकन संविधान के बनियु ादी अभिलक्षणोों मेें
प्रदान करते हैैं) यदि सवं िधान की मल ू सरं चना का उल््ललंघन करते हैैं, तो प्रमख
ु महत्तत्व का है? 
उन््हेें रद्द किया जा सकता है।
 (2016)

भारत में संवैधानिक संशोध 7


भारतीय संविधान मेें महत्त्वपूर््ण
3 प्रावधान
z इडिय
ं ा, जिसे भारत के नाम से भी जाना जाता है, एक सप्रं भ,ु समाजवादी, z सार््वभौमिक वयस््क मताधिकार (Universal Adult Franchise):
धर््मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज््य है, तथा संसदीय शासन प्रणाली अपनायी  यह ‘एक व््यक्ति, एक वोट’ के लोकतांत्रिक सिद््धाांत को मर््त ू रूप देता है
गयी हैैं। यह राज््योों का एक संघ है, जो संविधान के अनसु ार शासित होता है। तथा राजनीतिक समानता सनिश् ु चित करता है।
z भारत के सवं िधान के महत्तत्वपूर््ण प्रावधान: प्रावधान संविधान के मल ू तत्तत्ववों z एकल नागरिकता (Single Citizenship):
को समाहित करते हैैं, जिनमेें - उद्देशिका; मलू अधिकार; मल ू कर्तत्तव््य; राज््य  यह अनठ ू ी विशेषता सभी नागरिकोों को उनके निवास स््थथान की परवाह
के नीति निदेशक तत्तत्व; सार््वभौमिक वयस््क मताधिकार; एकल नागरिकता; किए बिना समान अधिकार और विशेषाधिकार प्रदान करती है।
शक्तियोों का पृथक््करण शामिल हैैं।  बढ़ते अत ं र-राज््ययीय प्रवास और राष्ट्रीय नागरिक रजिस््टर (एनआरसी) से
गोल. अधिनियम सबं ंधित चर््चचाओ ं के सदं र््भ मेें, यह प्रावधान महत्तत्वपर््णू प्रासगि
ं कता रखता है।
ब्रिटिश संविधान 1935 z मूल अधिकार (Fundamental Rights):
 भारत के सवं िधान मेें मल ू अधिकारोों का एक समहू निहित है, जिन््हेें
राजनीतिक संरचनात््मक न््ययायालयोों द्वारा काननू ी रूप से लागू किया जा सकता है, जिसमेें नागरिक
भारतीय संविधान स््वतंत्रता, राजनीतिक अधिकार और निष््पक्ष सनु वाई सबं ंधी प्रक्रियाएँ
की विशेषताएँ शामिल हैैं।
दार््शनिक  ये अधिकार राज््य की मनमानी शक्ति के विरुद्ध एक ढाल के रूप मेें कार््य

करते हैैं तथा नागरिकोों को सरकारी अतिक्रमण से बचाते हैैं।


अमेरिकी और आयरिश संविधान  हाल ही मेें नागरिकता संशोधन अधिनियम (Citizenship Amendment

Act, CAA) को लेकर यह बहस छिड़ गई है कि यह समानता के अधिकार


महत्त्वपूर््ण प्रावधान: एक गहन विश्लेषण और धर््मनिरपेक्षता के सिद््धाांत को किस प्रकार प्रभावित करे गा।
z उद्देशिका (Preamble) z राज््य की नीति के निदेशक तत्तत्व (Directive Principles of State
Policy):
 यह शब््द किसी दस््ततावेज़ के परिचयात््मक भाग को संदर््भभित करता है। भारत
 ये सरकार के लिए दिशा-निर्देश हैैं जिन््हेें न््ययायालयोों द्वारा लागू नहीीं किया
के संविधान की उद्देशिका इसके मल ू सिद््धाांतोों का सार प्रस््ततुत करती है।
जा सकता है, जिनका उद्देश््य एक न््ययायसंगत और समतापर््णू समाज की
 पंडित नेहरू के ‘उद्देश््य प्रस््तताव’ के आधार पर उद्देशिका मेें संविधान के
स््थथापना करना है।
आधारभतू मल्ू ्योों - राजनीतिक, नैतिक और धार््ममिक - को रे खांकित किया
 यद्यपि ये न््ययायालय द्वारा प्रत््यक्ष रूप से लागू नहीीं किये जा सकते हैैं, फिर
गया है। यह संविधान सभा की दरू दर््शशिता और संविधान निर््ममाताओ ं की
भी ये सामाजिक कल््ययाण को बढ़़ावा देने वाले काननू बनाने मेें राज््य का
आकांक्षाओ ं को दर््शशाती है।
मार््गदर््शन करते हैैं।
 यह विभिन््न पक्षषों की ओर से जाँच के दायरे मेें आ गई है तथा इस बात
 अनच् ु ्छछेद 44 मेें परिकल््पपित समान नागरिक सहि ं ता के क्रियान््वयन के बारे
पर बहस चल रही है कि क््यया 'समाजवादी' और 'धर््मनिरपेक्ष' शब््दोों को मेें चल रहा विमर््श, नीति निदेशक तत्तत्ववों की जीवंत व््ययाख््यया का उदाहरण है।
हटाया जाना चाहिए या बरकरार रखा जाना चाहिए।
z मूल कर्तत्तव््य:
स््वतंत्रता एकता और  मल ू कर्तत्तव््य सोवियत संघ से प्रेरित अवधारणा है, जो भारतीय नागरिकता
लोकतांत्रिक अखंडता का एक अनिवार््य पहलू है।
 वे अधिकारोों के साथ-साथ कर्तत्तव््योों पर भी जोर देते हैैं, यह नागरिकोों के

उद्देशिका के मध््य नैतिकता और सामाजिक सामजं स््य को बढ़़ावा देते हैैं। हालाँकि, वे
गणराज््य न््ययाय
मूल मूल््य न््ययायालय द्वारा प्रवर््तनीय नहीीं है, इसलिए उनका प्रवर््तन व््यक्तिगत विवेक
पर निर््भर करता है।
समाजवादी संप्रभुता  अनिवार््य मतदान के बारे मेें चर््चचाओ ं मेें अक््सर नागरिकोों द्वारा अपने मल ू
समानता और बंधुत््व
कर्तत्तव््योों को परू ा करने के महत्तत्व पर प्रकाश डाला जाता है।
z शक्तियोों का पथ ृ क््करण उद्देशिका मेें ‘समाजवादी’ और ‘धर््मनिरपेक्ष’ शब््दोों को बरकरार रखने
 शक्तियोों का पृथक््करण एक मल ू सिद््धाांत है जो सरकारी प्राधिकार को के खिलाफ तर््क :
विधायिका, कार््यपालिका और न््ययायपालिका के बीच विभाजित करता है। z ऐतिहासिक अधिरोपण (Historical Imposition): आलोचकोों का

 शक्ति का यह वितरण सनिश् ु चित करता है कि कोई भी शाखा अत््यधिक तर््क है कि ये शब््द आपातकाल (1975) के दौरान डाले गए थे, जो सत्तावादी
शक्तिशाली न बन जाए तथा प्राधिकार का दरुु पयोग रोका जा सके । शासन का दौर था और ये मल ू लोकतांत्रिक भावना को प्रतिबिंबित नहीीं
 संविधान के संरक्षक के रूप मेें न््ययायपालिका की भमि
करते हैैं।
ू का, विशेषकर
z अनावश््यकता (Redundancy): न््ययाय, समानता और स््वतंत्रता के मल ू
न््ययायिक सक्रियता पर बहस के दौरान, इस सिद््धाांत के महत्तत्व को दर््शशाती है।
सिद््धाांत पहले से ही उद्देशिका मेें निहित हैैं। इन शब््दोों को अनावश््यक दोहराव
उद्देशिका के रूप मेें देखा जा सकता है।
z आर््थथि क मॉडल पर बहस (Economic Model Debate): ‘समाजवादी’
संविधान की उद्देशिका मेें इसके मल ू सिद््धाांतोों और उद्देश््योों को रे खांकित किया
शब््द को वैश्वीकृ त दनिय
ु ा मेें परु ाना या आर््थथिक विकास मेें बाधा डालने वाला
गया है। वेेंगलिल कृ ष््णन कृ ष््ण मेनन द्वारा तैयार की गई यह उद्देशिका ‘हम भारत
माना जा सकता है।
के लोग’ को सत्ता का स्रोत बनाती है और संविधान के उद्देश््योों के साथ-साथ
z धर््मनिरपे क्षता की गलत व््ययाख््यया (Secular Misinterpretation):
भारत के चरित्र को भी परिभाषित करती है।
कुछ लोग तर््क देते हैैं कि इससे धर््मनिरपेक्षता की गलत भावना पैदा होती
उद्देशिका से समाजवादी और धर््मनिरपेक्ष शब््दोों को हटाया जाना है, जबकि भारत स््ववाभाविक रूप से एक बहु-धार््ममिक समाज है।
z सद ं र््भ: उच््चतम न््ययायालय दो याचिकाओ ं पर सनु वाई कर रहा था, जिनमेें z राजनीतिक एजेें डा (Political Agenda): इन शब््दोों को हटाने का

उद्देशिका से ‘धर््मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब््दोों को हटाने की माँग प्रयास भारतीय राज््य के चरित्र को बदलने के राजनीतिक एजेेंडे से प्रेरित
की गई थी। हो सकता है।
z हाल ही मेें, उच््चतम न््ययायालय इस बात की जाँच करने के लिए सहमत संविधान की धर््मनिरपेक्ष प्रकृ ति और कानून के शासन के माध््यम से समतावादी
हो गया कि क््यया 1976 मेें भारतीय संविधान की उद्देशिका मेें ‘समाजवादी’ सामाजिक व््यवस््थथा की स््थथापना भारत के संविधान की मल ू संरचना का
और ‘धर््मनिरपेक्ष’ शब््द डाले जा सकते थे, भले ही संविधान को अगं ीकृ त हिस््ससा हैैं। इसलिए, जैसा कि के शवानंद भारती मामले मेें कहा गया है, संसद
किए जाने की तारीख अपरिवर््ततित रही, अर््थथात् 26 नवंबर, 1949। संविधान की मल ू संरचना और संवैधानिक मल्ू ्योों से समझौता किए बिना
उद्देशिका सहित संविधान के किसी भी भाग मेें संशोधन कर सकती है।
उद्देशिका मेें ‘समाजवादी’ और ‘धर््मनिरपेक्ष’ शब््दोों को बरकरार रखने
के पक्ष मेें तर््क : उद्देशिका का महत्त्व
z मूल मूल््योों को सदृ ु ढ़ करना (Reinforces Core Values): ये शब््द
z प्राधिकार का स्रोत: यह संविधान के प्राधिकार का स्रोत ‘हम भारत के लोग’
स््पष्ट रूप से सामाजिक और आर््थथिक न््ययाय, असमानता को कम करने और
को घोषित करती है तथा एक लोकतांत्रिक आधार स््थथापित करती है।
सभी नागरिकोों के अधिकारोों की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता पर जोर देते हैैं।
z राष्टट्र को परिभाषित करना: यह भारत को एक संप्रभ,ु समाजवादी, धर््मनिरपेक्ष,
z निरंतरता और स््थथिरता (Continuity and Stability): इन््हेें हटाना
लोकतांत्रिक गणराज््य के रूप मेें परिभाषित करती है तथा राष्टट्र के मल ू सिद््धाांतोों
संविधान के मल ू उद्देश््य के साथ छे ड़छाड़ माना जा सकता है और इससे को रे खांकित करती है।
अनिश्चितता पैदा हो सकती है। z लक्षष्य निर््धधारण: यह सभी नागरिकोों के लिए न््ययाय (सामाजिक, आर््थथिक
z ऐतिहासिक सद ं र््भ को सबं ोधित करना (Addresses Historical और राजनीतिक), स््वतंत्रता और समानता सनिश् ु चित करने के मल ू भतू लक्षष्य
Context): ये शब््द स््वतंत्रता के बाद अल््पसंख््यकोों और आर््थथिक निर््धधारित करती है।
असमानता से संबंधित चितं ाओ ं को दरू करने के लिए जोड़़े गए थे, जो z व््ययाख््यया के लिए मार््गदर््शक: न््ययायालय काननू ी विवादोों के दौरान संविधान
भारत की विशिष्ट स््थथिति को दर््शशाते हैैं। के प्रावधानोों की व््ययाख््यया करने के लिए उद्देशिका का उपयोग करते हैैं।
z व््ययाख््यया मेें लचीलापन (Flexibility in Interpretation): z आदर्शशों का प्रतिबिंब: यह एक न््ययायपर््णू और समतापर््णू समाज के लिए
‘समाजवादी’ और ‘धर््मनिरपेक्ष’ शब््द किसी कठोर आर््थथिक मॉडल या संविधान निर््ममाताओ ं के आदर््शवादी दृष्टिकोण को दर््शशाती है।
धार््ममिक नीति की व््ययाख््यया नहीीं करते हैैं। बदलती जरूरतोों के आधार पर उद्देशिका मेें संशोधन (AMENDABILITY OF
उनका अनक ु ू लन और व््ययाख््यया की जा सकती है। PREAMBLE)
z धर््मनिरपे क्ष पहचान (Secular Identity): ‘धर््मनिरपेक्ष’ शब््द को
z यह प्रश्न कि क््यया उद्देशिका मेें संशोधन किया जा सकता है, कई महत्तत्वपर््णू
हटाने से भारत की धार््ममिक सहिष््णणुता और सभी धर्ममों के लिए समान
मामलोों मेें चर््चचा मेें आया है।
व््यवहार की प्रतिबद्धता के बारे मेें चितं ाएँ पैदा हो सकती हैैं। इससे धार््ममिक
z सीमित सश ं ोधन दृष्टिकोण (बेरुबारी वाद, 1960): प्रारंभ मेें, उच््चतम
राष्टट्रवाद को बढ़़ावा मिल सकता है और अल््पसख्ं ्यक समदु ायोों मेें चितं ाएँ
न््ययायालय ने बेरुबारी वाद (1960) मेें माना था कि उद्देशिका सवं िधान का
पैदा हो सकती हैैं।
हिस््ससा नहीीं है, इसलिए इसमेें संशोधन नहीीं किया जा सकता।

भारतीय संविधान में महत्त्व पूर्ण 9


z उद्देशिका मेें सश ं ोधन किया जा सकता है (के शवानंद भारती वाद, भारतीय और फ्ररांसीसी धर््मनिरपेक्षता के बीच अंतर
1973): हालाँकि, के शवानंद भारती वाद (1973) मेें एक ऐतिहासिक बदलाव
हुआ। न््ययायालय ने अपने पर्ू ्व निर््णय को पलटते हुए उद्देशिका को संविधान का आधार भारत फ््राांस
हिस््ससा घोषित किया और कहा कि इसमेें संशोधन किया जा सकता है, बशर्ते मूल सिद््धाांत ‘सर््व धर््म समभाव’ - सभी लाईसाइट - राज््य और
कि सश ं ोधन सवं िधान की ‘मल ू सरं चना’ का उल््ललंघन न करे । धर्ममों के लिए समान सम््ममान। सार््वजनिक क्षेत्र से धर््म को
z हाल के प्रस््तताव: इसके मद्देनजर, हाल के प्रस््ततावोों मेें उद्देशिका मेें ‘समाजवादी’
यह सार््वजनिक जीवन मेें धर््म सख््तती से अलग रखने पर
शब््द के स््थथान पर ‘समतावादी’ शब््द रखने का प्रस््तताव शामिल है, जिससे इस के प्रति अधिक समावेशी जोर देता है।
संशोधन के संभावित प्रयोग के बारे मेें बहस छिड़ गई है । दृष्टिकोण को बढ़़ावा देता है।
उद्देशिका मेें वे मल्ू ्य समाहित हैैं, जिन््होोंने भारत के स््वतंत्रता संग्राम को दिशा दी धार््ममिक आम तौर पर, सार््वजनिक धार््ममिक प्रतीकोों के संबंध मेें
और देश के लोकतांत्रिक ढाँचे की नीींव रखी। ये मल्ू ्य राष्टट्र की प्रगति और न््ययाय, अभिव््यक्ति स््थथानोों पर धार््ममिक प्रतीकोों सख््त नीतियाँ हैैं, जैसे कि
स््वतंत्रता, समानता और बंधत्ु ्व के प्रयास के लिए महत्तत्वपूर््ण हैैं। की अनुमति है। उदाहरण पब््ललिक स््ककूलोों मेें विशिष्ट
के लिए- सिखोों को उनकी प्रतीकोों पर प्रतिबंध लगाना,
पगड़़ी के कारण दोपहिया जिससे विवाद उत््पन््न हो
मुख्य शब्द वाहन चलाते समय हेलमेट रहा है।
पहनने से छूट दी गई है।
प्राधिकार का स्रोत, पहचान पत्र, मार््ग दर््शक, आदर्शशों का प्रतिबिंब।
राज््य यह धार््ममिक संस््थथाओ ं के लाईसाइट के भाग के रूप मेें
वित्तपोषण लिए राज््य द्वारा वित्त पोषण धार््ममिक संस््थथानोों का राज््य
समाचार मेें मुद्दे
की अनुमति देता है द्वारा वित्त पोषण किए जाने
लाईसाइट: धर््मनिरपेक्षता का फ््राांसीसी सिद््धाांत (Laicite: French पर प्रतिबंध लगाया गया है।
Principle of Secularism) पर््सनल लॉ विवाह, तलाक और एक एकीकृ त नागरिक संहिता
संदर््भ
उत्तराधिकार को नियंत्रित बनाए रखता है, जो सभी
z फ््राांस ने हाल ही मेें अपने धर््मनिरपेक्षता सिद््धाांत के उल््ललंघन का हवाला देते
करने वाले विभिन््न धार््ममिक नागरिकोों पर लागू होती है,
हुए राज््य के स््ककूलोों मेें अबाया (बर्केु के समान) पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया।
समदु ायोों के लिए अलग- चाहे उनका धर््म कुछ भी हो।
z फ््राांस धर््मनिरपेक्षता की व््ययाख््यया ‘विद्यालय के माध््यम से स््वयं को मक्त
ु करने अलग पर््सनल लॉ को
की स््वतंत्रता’ के रूप मेें करता है, जहाँ धर््म की पहचान के वल दिखावे से मान््यता देता है। (जैसे- हिदं ू
नहीीं होनी चाहिए। उत्तराधिकार अधिनियम)।
लाईसाइट के बारे मेें राज््य की राज््य अक््सर विभिन््न सार््वजनिक संस््थथाएँ पूरी तरह
z 19वीीं शताब््ददी मेें स््थथापित लाईसाइट, राज््य और चर््च के बीच सख््त पृथक््करण भागीदारी धार््ममिक समदु ायोों और उनकी धर््मनिरपेक्ष रहती हैैं तथा
का प्रतीक है। संस््थथाओ ं के साथ संपर््क किसी भी धार््ममिक समर््थन या
z यह फ््राांसीसी संविधान मेें निहित है, जो धार््ममिक प्रभाव से मक्तु सार््वजनिक रखता है तथा उन््हेें समर््थन भागीदारी से बचती हैैं।
क्षेत्र को बढ़़ावा देता है तथा स््वतंत्रता, समानता और बंधत्ु ्व जैसे धर््मनिरपेक्ष देता है।
मल्ू ्योों पर जोर देता है। यह ध््ययान रखना महत्तत्वपूर््ण है कि प्रत््ययेक देश की धर््मनिरपेक्षता उसके अद्वितीय
भारतीय और फ्ररांसीसी धर््मनिरपेक्षता के बीच अंतर ऐतिहासिक, सांस््ककृतिक और सामाजिक संदर््भ से आकार लेती है और ऐसा कोई
एक तरीका नहीीं है, जो सभी के लिए उपयुक्त हो। फ््राांस भारत की धर््मनिरपेक्षता
भारत और फ््राांस दोनोों ही एक धर््मनिरपेक्ष राज््य को बढ़़ावा देते हैैं, जिसके कई
से ऐसे तत्तत्ववों को अपना सकता है और शामिल कर सकता है, जो उसके अपने
प्रमख
ु सिद््धाांत समान हैैं:
z धार््ममिक स््वतंत्रता: नागरिकोों को बिना किसी भेदभाव के अपने धर््म का पालन
मल्ू ्योों और उद्देश््योों के अनुरूप होों और साथ ही उसके ऐतिहासिक और कानूनी
करने का अधिकार है। ढाँचे का सम््ममान करेें।
z सभी के लिए समानता: धर््म कानन ू ी भेदभाव का आधार नहीीं हो सकता। िवगत वर्षषों के प्रश्न
z राज््य तटस््थता: सरकार किसी विशेष धर््म का पक्ष लेने से बचती है। z प्रासगि
ं क सवं ैधानिक प्रावधानोों और निर््णय विधियोों की मदद से लैैंगिक न््ययाय
z अल््पसख् ं ्यक अधिकार: दोनोों राष्टट्र धार््ममिक अल््पसंख््यकोों के अधिकारोों की के संवैधानिक परिप्रेक्षष्य की व््ययाख््यया कीजिए। (2023)
रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैैं। z धर््मनिरपेक्षता के भारतीय दृष्टिकोण से फ््राांस क््यया सीख सकता है? (2019)
z अभिव््यक्ति की स््वतंत्रता: धार््ममिक मान््यताओ ं की आलोचना और चर््चचा z ‘उद्देशिका (प्रस््ततावना)’ मेें शब््द 'गणराज््य' के साथ जड़ु ़े प्रत््ययेक विशेषण पर
की अनमु ति है। चर््चचा कीजिए। क््यया वर््तमान परिस््थथितियोों मेें वे प्रतिरक्षणीय हैैं?  (2016)

10  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीित और संिवधान


मौलिक अधिकार
4 (भाग III, अनुच्छेद 12-35)
मलू अधिकार भारत के संविधान के भाग III (अनुच््छछेद 12-35) मेें निहित हैैं। अनुच्छेद 12
ये सभी भारतीय नागरिकोों को दिए जाने वाले बुनियादी मानवाधिकार हैैं, जो
z राज््य की परिभाषा: अनच्ु ्छछेद 12 मेें ‘राज््य’ को व््ययापक रूप से परिभाषित
गरिमापूर््ण और स््वतंत्रत जीवन के लिए आवश््यक हैैं। ये सरकार की शक्ति पर
किया गया है, जिसमेें निम््नलिखित शामिल हैैं:
सीमाएँ लगाते हैैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि वह मनमाने ढंग से व््यक्तियोों
 केें द्र सरकार (संसद और कार््यपालिका)
को इन अधिकारोों से वंचित नहीीं कर सकती है। ये अधिकार सभी भारतीय
नागरिकोों को दिए गए हैैं, चाहे उनकी जाति, धर््म, लिंग या सामाजिक स््थथिति  राज््य सरकारेें (विधानमड ं ल और कार््यपालिका)
कुछ भी हो।  सभी स््थथानीय प्राधिकरण (जैसे- नगर पालिकाएँ)

मूल अधिकारोों का वर्गीकरण  अन््य सभी प्राधिकरण (कानन ू द्वारा स््थथापित तथा वे जिनके लिए औपचारिक
संविधि की आवश््यकता नहीीं है)
z भारत का संविधान 6 मल ू अधिकार प्रदान करता है, जो इस प्रकार हैैं:
z न््ययायपालिका और राज््य की परिभाषा: परिभाषा न््ययायपालिका को तब
I. समता का अधिकार (अनुच््छछेद 14 – 18)
II. स््वतंत्रता का अधिकार (अनुच््छछेद 19 – 22) बाहर रखती है जब वह अपनी न््ययायिक क्षमता मेें कार््य करती है (जैसे- काननोू ों
III. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच््छछेद 23 – 24) की व््ययाख््यया करना)। हालाँकि, न््ययायपालिका की प्रशासनिक कार््रवाइयाँ (जैसे-
IV. धर््म की स््वतंत्रता का अधिकार (अनुच््छछेद 25 – 28) कर््मचारियोों की भर्ती) रिट (अनच्ु ्छछेद 226) के माध््यम से काननू ी चनु ौतियोों
V. संस््ककृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच््छछेद 29 – 30) के अधीन हैैं।
VI. संवैधानिक उपचारोों का अधिकार (अनुच््छछेद 32) z अपवाद: राज््य की यह परिभाषा अतं रराष्ट्रीय संगठनोों पर लागू नहीीं होती।
उदाहरण के लिए- संयक्त ु राष्टट्र को अनच्ु ्छछेद 12 के तहत ‘राज््य’ नहीीं माना जाता
मूल अधिकारोों की विशेषताएँ
है। अनच्ु ्छछेद 226 का उपयोग करके इसके कार्ययों को चनु ौती नहीीं दी जा सकती।
z न््ययायालय मेें विचार योग््य (Justiciable): निदेशक तत्तत्ववों (भाग IV) के
विपरीत, मल ू अधिकार न््ययायालयोों द्वारा लागू किए जा सकते हैैं। नागरिक अपने अनुच्छेद 13
उल््ललंघन किए गए अधिकारोों की रक्षा के लिए रिट (काननू ी उपचार) के माध््यम z अनुच््छछे द 13: अनच्ु ्छछेद 13 यह स््थथापित करता है कि मल ू अधिकारोों का
से उच््चतम न््ययायालय या उच््च न््ययायालयोों का दरवाजा खटखटा सकते हैैं। खडं न करने वाला या उन््हेें कमज़़ोर करने वाला कोई भी काननू अमान््य है।
z निरपेक्ष नहीीं (Not Absolute): इन अधिकारोों को राज््य, लोक व््यवस््थथा, यह स््पष्ट रूप से न््ययायिक समीक्षा की नीींव रखता है।
नैतिकता आदि के हित मेें सरकार द्वारा उचित रूप से सीमित किया जा सकता z न््ययायिक समीक्षा की शक्ति: उच््चतम न््ययायालय (अनच्ु ्छछेद 32) और उच््च
है। यह संतल ु न न््ययायिक समीक्षा के माध््यम से प्राप्त किया जाता है। न््ययायालय (अनच्ु ्छछेद 226) के पास न््ययायिक समीक्षा की शक्ति है। यदि कोई
z विस््ततारित किए जा सकते हैैं (Can be Expanded): अधिकारोों की काननू मल ू अधिकारोों का उल््ललंघन करता है तो वे उसे असवं ैधानिक और
एक निश्चित सचू ी वाले कुछ संविधानोों के विपरीत, भारत का संविधान
शन्ू ्य घोषित कर सकते हैैं।
न््ययायपालिका को व््ययाख््ययाओ ं और घोषणाओ ं के माध््यम से मल ू अधिकारोों
z क््यया चुनौती दी जा सकती है?: ‘काननू ’ शब््द की व््ययापक व््ययाख््यया है। नीचे
के दायरे का विस््ततार करने की अनमु ति देता है। यह उभरती जरूरतोों के लिए
अनक बताया गया है कि मल ू अधिकारोों के उल््ललंघन के लिए न््ययायालय मेें किसे चनु ौती
ु ू लनशीलता सनिश्ु चित करता है।
दी जा सकती है और उसे संभावित रूप से अमान््य घोषित किया जा सकता है:
z सकारात््मक अधिकार (Positive Rights): भारत के सवं िधान मेें पारंपरिक
 संसद या राज््य विधानमड ं लोों द्वारा पारित स््थथायी काननू ।
नकारात््मक अधिकारोों (राज््य के हस््तक्षेप से मक्ु ति) के अतिरिक्त, शिक्षा का
अधिकार (अनच्ु ्छछेद 21क) जैसे कुछ सकारात््मक अधिकार भी शामिल हैैं।  राष्टट्रपति या राज््य के राज््यपालोों द्वारा जारी अध््ययादेश जैसे अस््थथायी कानन
ू।
z आपातकाल के दौरान निलंबन (Suspension during Emergencies):  कार््यपालिका द्वारा द्वितीयक विधान (प्रत््ययायोजित विधान), जिसमेें आदेश,

राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान, राष्टट्रपति द्वारा कुछ अधिकारोों को निलंबित उपनियम, नियम, विनियम या अधिसचू नाएँँ शामिल हैैं।
किया जा सकता है (अनच्ु ्छछेद 20 और 21 को छोड़कर)। हालाँकि, यह शक्ति  कानन ू के गैर-विधायी स्रोत, जैसे- काननू ी रूप से स््थथापित रीति-रिवाज
न््ययायिक समीक्षा के अधीन है। या प्रथाएँ।
z न््ययायिक समीक्षा के अपवाद: संवैधानिक संशोधनोों को ‘काननू ’ नहीीं माना
जाता है और उन््हेें सीधे चनु ौती नहीीं दी जा सकती। हालाँकि, के शवानंद भारती
मामले (1973) मेें उच््चतम न््ययायालय के एक ऐतिहासिक फै सले ने इस बात मुख्य शब्द
को पख्ु ्तता किया है कि यदि कोई संवैधानिक संशोधन संविधान की ‘मल ू भारत का मैग््ननाकार््टटा , राजनीतिक लोकतंत्र, सीमित अधिकार,
संरचना’ का भाग माने जाने वाले मल ू अधिकार का उल््ललंघन करता है तो निरपेक्ष नहीीं लेकिन अर््हहित (Not Absolute but Qualified),
उसे चनु ौती दी जा सकती है। उचित प्रतिबंध, न््ययायालय मेें वाद योग््य (Justiciable), न््ययायिक
समीक्षा का सिद््धाांत
अनुच्छेद 13 के अंतर््गत पर््सनल लॉ को शामिल किया जाना
यह प्रश्न भारत मेें एक जटिल और बहस का मद्ु दा है कि क््यया पर््सनल लॉ समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
(personal laws) अनुच््छछेद 13 के दायरे मेें आते हैैं, जो मल ू अधिकारोों z भारत के संविधान मेें अनच्ु ्छछेद 14 से 18 तक निहित समता का अधिकार हमारे
से असंगत कानूनोों को प्रतिबंधित करता है। यहाँ तर्ककों को रे खांकित करने लोकतांत्रिक राष्टट्र की आधारशिला है, जो सभी नागरिकोों के बीच समानता के
वाले कुछ मख्ु ्य बिंदु दिए गए हैैं: सिद््धाांत का समर््थन करता है।
शामिल किए जाने के विरुद्ध तर््क :
z यह मल ू अधिकार काननू के समक्ष समान व््यवहार की गारंटी देता है, धर््म,
z ‘प्रवत्त ृ कानून’ नहीीं (Not ‘Law in Force’): बॉम््बबे राज््य बनाम नरसू
जाति या लिंग जैसे कारकोों के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है तथा
अप््पपा माली के मामले (1952) मेें एक ऐतिहासिक निर््णय मेें कहा गया था
सार््वजनिक स््थथानोों और सरकारी नौकरियोों तक समान पहुचँ सनिश्
ु चित करता है।
कि धार््ममिक ग्रंथोों और रीति-रिवाजोों पर आधारित पर््सनल लॉ अनच्ु ्छछेद
13 मेें यथा परिकल््पपित ‘प्रवृत्त काननू ’ नहीीं हैैं। उन््होोंने तर््क दिया कि ये अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता
एक विधायिका द्वारा अधिनियमित नहीीं किए गए हैैं। z अनच्ु ्छछेद 14 मेें कहा गया है कि किसी भी व््यक्ति को काननू के समक्ष समानता
z धार््ममिक पहचान का सरं क्षण: इस दृष्टिकोण के समर््थकोों का तर््क है कि या भारतीय राज््यक्षेत्र के भीतर काननू के समान संरक्षण से वंचित नहीीं किया
अनच्ु ्छछेद 13 के अतं र््गत पर््सनल लॉ को शामिल करने से अनच्ु ्छछेद 25 और जाएगा।
26 मेें निहित धर््म की स््वतंत्रता और सांस््ककृतिक प्रथाओ ं का उल््ललंघन होगा। कानून के समक्ष समानता बनाम कानूनोों का समान संरक्षण
शामिल किए जाने के पक्ष मेें तर््क : कानून के समक्ष समानता: यह ब्रिटिश मल
z ू का विचार है, जो किसी भी
z भे दभाव और असमानता: आलोचकोों का तर््क है कि पर््सनल लॉ, विशेष
व््यक्ति के पक्ष मेें किसी भी विशेष विशेषाधिकार को नकारता है, सभी व््यक्तियोों
रूप से विरासत, विवाह और गोद लेने से संबंधित काननू महिलाओ ं के को साधारण काननू के अधीन करता है तथा यह पष्ु टि करता है कि कोई भी
प्रति भेदभावपर््णू हो सकते हैैं। उदाहरण के लिए- कुछ धार््ममिक पर््सनल व््यक्ति काननू से ऊपर नहीीं है।
लॉ के वल परुु षोों के लिए बहुविवाह की अनमु ति देते हैैं और कुछ के वल
 उदाहरण: चोरी के खिलाफ कानन ू सभी पर लागू होता है, चाहे उनकी
महिलाओ ं के लिए बहुविवाह की अनमु ति देते हैैं। यह कथित तौर पर
सपं त्ति या सामाजिक स््थथिति कुछ भी हो। यदि कोई राजनेता और कोई
समानता के अधिकार (अनच्ु ्छछेद 14) का उल््ललंघन है।
आम आदमी चोरी करते हुए पकड़़ा जाता है, तो दोनोों को एक ही काननू ी
z मूल अधिकारोों की सर्वोपरिता: समर््थकोों का मानना है कि मल ू अधिकार प्रक्रिया से गजु रना पड़ता है।
सर्वोपरि होने चाहिए तथा उनका उल््ललंघन करने वाले पर््सनल लॉ, जैसे कि
z कानूनोों का समान सरं क्षण: यह एक अमेरिकी अवधारणा है, जो समान
भेदभावपर््णू उत्तराधिकार अधिकारोों को अमान््य कर दिया जाना चाहिए।
परिस््थथितियोों मेें समान व््यवहार तथा समान परिस््थथितियोों मेें सभी व््यक्तियोों पर
न््ययायालय के निर््णय: समान काननोू ों के ससु ंगत अनप्रु योग की बात करती है।
z उच््चतम न््ययायालय ने दोहराया है कि पर््सनल लॉ अनच् ु ्छछेद 13 के दायरे
 उदाहरण: छोटे व््यवसायोों को कर लाभ प्रदान करने वाला कानन ू सभी
से बाहर हैैं। इसने समाधान के रूप मेें विधायी सधु ार (समान नागरिक
योग््य व््यवसायोों के लिए उपलब््ध होना चाहिए, न कि के वल किसी विशिष्ट
संहिता) पर जोर दिया।
उद्योग या स््थथान के लिए। अप्रासंगिक कारकोों के आधार पर विशिष्ट समहोू ों
z कुछ उच््च न््ययायालयोों ने अपने निर््णयोों मेें पर््सनल लॉ को अनच् ु ्छछेद 13 को कर लाभ देने से मना करना समान संरक्षण का उल््ललंघन होगा
के अतं र््गत लाने का प्रयास किया, लेकिन इन््हेें उच््चतम न््ययायालय ने
खारिज कर दिया। अनुच्छेद 14 के अधीन अपवाद
भारत की संसद ने समान नागरिक संहिता (UCC) पारित नहीीं की है, जो z सकारात््मक कार््रवाई (Affirmative Action): संविधान राज््य को
सभी धर्ममों के नागरिकोों पर समान कानून लागू करे गी। इस निष्क्रियता को सार््वजनिक शैक्षणिक संस््थथानोों मेें महिलाओ,ं बच््चोों, अनसु चि
ू त जातियोों (SC),
कुछ लोग समानता सुनिश्चित करने के लिए एक चक ू े हुए अवसर के रूप अनसु चिू त जनजातियोों (ST) तथा सामाजिक और आर््थथिक रूप से पिछड़़े वर्गगों
मेें देखते हैैं। (SEBCs) जैसे वंचित समहोू ों के लिए विशेष प्रावधान करने की अनमु ति देता
है (पहला संविधान संशोधन अधिनियम, 1951)।

12  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीित और संिवधान


z शिक्षा मेें आरक्षण (Reservations in Education): राज््य पिछड़़े वर्गगों,  आर््थथिक रूप से कमजोर वर्गगों के लिए आरक्षण: हाल ही मेें एक
अनसु चिू त जातियोों और अनसु चि ू त जनजातियोों की शैक्षिक उन््नति को बढ़़ावा संशोधन के माध््यम से समाज के आर््थथिक रूप से कमजोर वर्गगों के लिए
देने के लिए उनके लिए निजी संस््थथानोों (अल््पसंख््यक संस््थथानोों को छोड़कर) 10% आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
सहित शैक्षणिक संस््थथानोों मेें सीटेें आरक्षित कर सकता है (93वाँ संविधान z महत्तत्व: अनच्ु ्छछेद 16 प्रतिभा को बढ़़ावा देता है और इसका उद्देश््य सरकारी
संशोधन अधिनियम, 2005)। रोजगार मेें सामाजिक असमानताओ ं को समाप्त करना है।
z आर््थथिक रूप से कमजोर वर््ग (Economically Weaker Sections, z चुनौतियाँ: इस अनच्ु ्छछे के बावजदू भर्ती मेें जाति-आधारित भेदभाव जैसे
EWS): राज््य समान अवसर सनिश् ु चित करने के लिए समाज के आर््थथिक मद्ु दे बने हुए हैैं।
रूप से कमजोर वर्गगों (EWS) के लिए शैक्षणिक संस््थथानोों मेें आरक्षण सहित
विशेष प्रावधान कर सकता है (103वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2019)। निजी क्षेत्र की नौकरियोों मेें स््थथानीय आरक्षण की माँग
z उच््च पदधारकोों को उन््ममुक्ति (Immunities of High Offices): अनच्ु ्छछेद निजी नौकरियोों मेें स््थथानीय आरक्षण की माँग ने भारत मेें बहस छे ड़ दी
361 राष्टट्रपति और राज््यपालोों को काननू ी कार््यवाही से कुछ उन््ममुक्ति प्रदान है। समर््थकोों का तर््क है कि यह स््थथानीय लोगोों को सशक्त बनाएगा और
बेरोज़गारी को दरू करे गा, जबकि इसके विरोधी संवैधानिकता और प्रतिभा मेें
करता है ताकि यह सनिश् ु चित किया जा सके कि वे बिना किसी अनचि ु त दबाव
बाधा डालने के बारे मेें चिंता जताते हैैं।
के अपने कर्तत्तव््योों का निर््वहन कर सकेें ।
पक्ष मेें :
z ससं दीय विशेषाधिकार (Parliamentary Privileges): संसद सदस््योों z स््थथानीय लोगोों को सशक्त बनाना: स््थथानीय यव ु ाओ ं को अक््सर क्षेत्र
(MPs) और राज््य विधानसभाओ ं को कुछ विशेषाधिकार और उन््ममुक्तियाँ की आवश््यकताओ ं की बेहतर समझ होती है और वे अधिक प्रभावी ढंग
(क्रमशः अनच्ु ्छछेद 105 और 194) प्राप्त हैैं, जिससे वे अपने विधायी से योगदान दे सकते हैैं।
उत्तरदायित््वोों का स््वतंत्र और निष््पक्ष तरीके से निर््वहन कर सकते हैैं।
z बेरोजगारी की समस््यया का समाधान: आरक्षण उच््च बेरोजगारी दर का
अनुच्छेद 15: भेदभाव का प्रतिषेध सामना कर रहे स््थथानीय लोगोों के लिए अवसर पैदा कर सकता है।
z भेदभाव का प्रतिषेध: अनच्ु ्छछेद 15 राज््य (सरकार) को धर््म, मल ू वश ं , जाति, z सामाजिक सामंजस््य: यह स््ववामित््व की भावना को बढ़़ावा दे सकता है

लिंग या जन््म स््थथान के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव करने और बाहरी लोगोों के प्रति नाराजगी को कम कर सकता है।
से रोकता है। विपक्ष मेें :
z सार््वजनिक स््थथानोों और सवु िधाओ ं तक पहुच ँ : यह सनिश् ु चित करता है z सवै ं धानिकता: अनच्ु ्छछेद 19(1)(छ) परू े भारत मेें किसी भी पेशे को
कि नागरिकोों की बिना किसी भेदभाव के दक ु ानोों, रे स् ्तरां , होटलोों, सार््वजनिक अपनाने के अधिकार की गारंटी देता है। के वल निवास के आधार पर
मनोरंजन के स््थथानोों, कुओ,ं तालाबोों, स््ननान घाटोों, सड़कोों और सार््वजनिक आरक्षण देने से इसका उल््ललंघन हो सकता है।
रिसॉर््ट के स््थथानोों तक पहुचँ हो। z योग््यता-आधारित: यदि कंपनियोों को स््थथानीय स््तर तक ही सीमित

z महिलाओ ं और बच््चोों के लिए अपवाद: यह अनच्ु ्छछेद राज््य को महिलाओ ं रखा जाए तो उन््हेें सर््ववाधिक योग््य उम््ममीदवार ढूँढ़ने मेें कठिनाई हो
और बच््चोों के कल््ययाण और उत््थथान को बढ़़ावा देने के लिए विशेष प्रावधान सकती है।
करने की अनमु ति देता है। ऐसा इसलिए है क््योोंकि उन््हेें विशिष्ट समस््ययायोों का z निवेश के लिए हतोत््ससाह: सख््त आरक्षण नीतियाँ व््यवसायोों को कुछ

सामना करना पड़ सकता है जिसके लिए सकारात््मक कार््रवाई की आवश््यकता क्षेत्ररों मेें निवेश करने के लिए हतोत््ससाहित कर सकती हैैं।
होती है। उदाहरण:
z हरियाणा: राज््य ने 2020 मेें एक कानन ू पारित किया, जिसमेें स््थथानीय
अनुच्छेद 16: सार््वजनिक रोजगार मेें अवसर की समानता
लोगोों के लिए 75% निजी नौकरियाँ आरक्षित की गई,ं लेकिन संवैधानिक
z सार््वजनिक रोजगार मेें अवसर की समानता: यह सरकारी नौकरियोों और चितं ाओ ं के कारण इसे उच््च न््ययायालय ने रद्द कर दिया।
नियक्ु तियोों से संबंधित मामलोों मेें सभी नागरिकोों के लिए समान अवसर की
z महाराष्टट्र: निजी नौकरियोों मेें 80% आरक्षण की इसी प्रकार की नीति
गारंटी देता है।
प्रस््ततावित की गई, जिससे हरियाणा के समान काननू ी प्रश्न उठे ।
z भेदभाव न करना: सरकारी नौकरियोों के लिए धर््म, मल ू वश
ं , जाति, लिंग, स््थथानीय आकांक्षाओ ं और राष्ट्रीय आर््थथिक स््वतंत्रता के बीच संतुलन बनाना
वंश, जन््म स््थथान, निवास या इनमेें से किसी के आधार पर किसी भी नागरिक महत्तत्वपर््णू है। कौशल विकास कार््यक्रम और साथ ही निवास संबंधी शर्ततों मेें
के साथ भेदभाव नहीीं किया जा सकता है। ढील देना अधिक प्रभावी तरीका हो सकता है।
z अपवाद: इस अनच्ु ्छछेद मेें कुछ अपवादोों की अनमु ति दी गई है:
 आवासीय आवश््यकताएँ: संसद ऐसे कानन ू बना सकती है, जिसके अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का उन्मूलन
तहत नागरिकोों को सरकारी नौकरियोों के लिए किसी राज््य मेें कुछ समय z अस््पपृश््यता का उन््ममूलन: अनच्ु ्छछेद 17 किसी भी रूप मेें अस््पपृश््यता की प्रथा
तक निवास करना अनिवार््य होगा। को स््पष्ट रूप से गैरकाननू ी घोषित करता है।
 आरक्षण नीति: सरकार सामाजिक समानता को बढ़़ावा देने के लिए पिछड़़े z भेदभाव वर््जजित: यह अस््पपृश््यता से उत््पन््न होने वाले किसी भी भेदभाव को
वर्गगों (अनसु चि
ू त जाति, अनसु चि ू त जनजाति) और अन््य पिछड़़े वर्गगों के रोकता है। इसमेें जाति के आधार पर सार््वजनिक स््थथानोों, मदिरो ं ों या पेशोों मेें
लिए नियक्ु तियोों मेें आरक्षण प्रदान कर सकती है। प्रवेश से इनकार करना भी शामिल है।

मौलिक अधिकार (भाग III, अनुच्छेद 12-3 13


z दडं नीय अपराध: अस््पपृश््यता को लागू करना एक दांडिक अपराध है। सिविल  भारत के राज््यक्षेत्र मेें सर््वत्र अबाध सच ं रण का अधिकार (Right to
अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 (जिसे बाद मेें यह नाम दिया गया) मेें Move Freely throughout the Territory of India): नागरिकोों
विशिष्ट दडं का प्रावधान किया गया है। को भारत के राज््यक्षेत्र मेें अबाध सरं चण की अनमु ति देता है - हालाँकि इस
z महत्तत्व: अनच्ु ्छछेद 17 भारत मेें सामाजिक न््ययाय और समान अधिकारोों को अधिकार को आम जनता या अनसु चि ू त जनजातियोों के हितोों मेें सीमित
बढ़़ावा देने के लिए महत्तत्वपर््णू है। किया जा सकता है।
z वर््तमान चुनौती: अनच्ु ्छछेद 17 के बावजदू भारत मेें अस््पपृश््यता एक सामाजिक  भारत के राज््यक्षेत्र के किसी भी भाग मेें निवास करने और बस जाने

बरु ाई बनी हुई है। हालाँकि, यह अनच्ु ्छछेद इस प्रथा से निपटने के लिए एक का अधिकार (Right to Reside and Settle in any Part of
महत्तत्वपर््णू काननू ी साधन बना हुआ है। the Territory of India): भारत के राज््यक्षेत्र के किसी भी भाग मेें
निवास करने और बस जाने का अधिकार।
अनुच्छेद 18: उपाधियोों का अंत (ABOLITION OF TITLES)
 कोई भी पे शा, उपजीविका, व््ययापार या कारबार करने का अधिकार
z राज््य को सैन््य और शैक्षणिक सम््ममान (जैसे पद्म परु स््ककार, परमवीर चक्र
(Right to Practice any Profession, or to Carry on any
परु स््ककार) के अलावा कोई भी उपाधि प्रदान करने पर प्रतिबंध है। इसका
Occupation, Trade or Business): कोई भी वैध पेशा अपनाने, या
उद्देश््य विरासत मेें मिली उपाधियोों पर नहीीं, बल््ककि समानता और योग््यता पर
कोई भी उपजीविका, व््ययापार या कारोबार करने का अधिकार।
आधारित समाज का निर््ममाण करना था।
z अनुच््छछे द 19(2) राज््य को संप्रभतु ा, भारत की अखडं ता, लोक व््यवस््थथा या
z औपनिवेशिक सरकारोों द्वारा प्रदान की गई वंशानगु त कुलीन उपाधियोों का अतं ।
नैतिकता आदि जैसे आधारोों पर इन अधिकारोों पर 'उचित प्रतिबंध' लगाने
की अनमु ति देता है, जैसा कि अनच्ु ्छछेद मेें उल््ललेख किया गया है।
मुख्य शब्द z अनच्ु ्छछेद 19 व््यक्तिगत स््वतंत्रता और सचु ारू रूप से कार््य करने वाले समाज
की आवश््यकता के बीच संतल ु न स््थथापित करने का प्रयास करता है।
कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण, भेदभाव
का प्रतिषेध, अवसर की समानता, अस््पपृश््यता, सिविल अधिकार भारत मेें उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक निर््णय और
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 – 22) z श्रेया सिघं ल के स (2015): इस मामले मेें सचू ना प्रौद्योगिकी अधिनियम,
2000 की धारा 66क को चनु ौती दी गई थी। इस धारा मेें ऑनलाइन
अनुच्छेद 19: वाक् -स्वातंत्र्य
‘अत््यधिक आक्रामक’ (Grossly Offensive) या ‘धमकाने वाली प्रकृ ति’
आदि से संबंधित कुछ अधिकारोों का संरक्षण
की जानकारी भेजने पर दडं का प्रावधान था। उच््चतम न््ययायालय ने धारा
z भारत के सवं िधान का अनच्ु ्छछेद 19 सभी नागरिकोों को छह मल ू स््वतंत्रताओ ं 66क को रद्द कर दिया और इसे भारत मेें ऑनलाइन वाक्-स््ववातंत्रर्य के लिए
की गारंटी देता है। ये स््वतंत्रताएँ एक कार््यशील लोकतंत्र के लिए महत्तत्वपर््णू हैैं। एक महत्तत्वपर््णू जीत माना।
z ये राज््य की कार््रवाई के विरुद्ध सरं क्षित हैैं तथा नागरिकोों और कंपनी के z के दार नाथ सिहं के स (1962): इस मामले मेें भारतीय काननू के तहत
शेयरधारकोों के लिए उपलब््ध हैैं, लेकिन विदेशियोों या कंपनियोों या निगमोों राजद्रोह की व््ययाख््यया की गई थी। उच््चतम न््ययायालय ने राजद्रोह काननू की
जैसे काननू ी व््यक्तियोों के लिए उपलब््ध नहीीं हैैं। संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा और यह स््पष्ट किया कि सरकार की
z अनच्ु ्छछेद 19 के अतं र््गत ये स््वतंत्रताएँ निरपेक्ष नहीीं हैैं। लोक व््यवस््थथा, राष्ट्रीय आलोचना तब तक राजद्रोह नहीीं मानी जाएगी जब तक कि वह हिसं ा को
सरु क्षा और अन््य वैध चितं ाओ ं के हित मेें इन पर उचित प्रतिबंध लगाए जा भड़काने या उसकी हिमायत करने वाली न हो।
सकते हैैं। अनुच्छेद 20 - अपराधोों के लिए दोषसिद्धि के संबंध मेें संरक्षण
z अनुच््छछे द 19(1) के अधीन अधिकार: भारत के संविधान का अनुच््छछेद 20 मनमाने दंड और अनुचित सुनवाई के
 वाक् एवं अभिव््यक्ति की स््वतंत्रता: प्रतिशोध, सेेंसरशिप या कानन ूी विरुद्ध एक महत्तत्वपूर््ण सुरक्षा कवच है। यह अपराध के आरोपी व््यक्तियोों को कुछ
मजं रू ी के भय के बिना अपनी राय और विचार व््यक्त करने का मल ू अधिकारोों की गारंटी देता है।
अधिकार। z पूर््वव््ययापी दण््ड से सरं क्षण (Protection from Retrospective
 शांतिपूर््वक और निरायुध सम््ममेलन का अधिकार: एक साथ आने और Punishment): यह सिद््धाांत सनिश् ु चित करता है कि किसी व््यक्ति को उस
सामहि ू क रूप से सामान््य हितोों को अभिव््यक्त करने, बढ़़ावा देने, आगे कार््य के लिए दोषी नहीीं ठहराया जा सकता, जो उस समय अवैध नहीीं था जब
बढ़़ाने और बचाव करने का अधिकार। उसने वह अपराध किया था। काननोू ों को पर्ू ्वव््ययापी रूप से लागू नहीीं किया
 सग ं म या सघं [या सहकारी समिति] बनाने का अधिकार (Right जा सकता।
to Form Associations or Unions [or Co-operative z एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार दड ं का प्रतिषेध (Double
Societies]): सामहि ू क रूप से सामान््य हितोों को अभिव््यक्त करने, Jeopardy Prohibition): किसी व््यक्ति पर एक ही अपराध के लिए एक
बढ़़ावा देने, आगे बढ़़ाने और बचाव करने के लिए दसू रोों के साथ जड़ु ने से अधिक बार मक ु दमा नहीीं चलाया जा सकता और उसे दडि ं त नहीीं किया
का अधिकार। जा सकता।

14  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीित और संिवधान


z कोई आत््म-दोषारोपण नहीीं (No Self-Incrimination): किसी भी
z वाक्-स््ववातंत्रर्य के साथ सतं ुलन: इस अधिकार को मान््यता देने के लिए
व््यक्ति को किसी अपराध के लिए स््वयं अपने विरुद्ध साक्षी होने के लिए
सावधानीपर्ू ्वक सतं ल ु न बनाने की आवश््यकता है, ताकि यह सनिश् ु चित
बाध््य नहीीं किया जाएगा। यह व््यक्तियोों को ऐसे साक्षष्य देने के लिए मजबरू होने
किया जा सके कि यह वाक् और अभिव््यक्ति की स््वतंत्रता के मल ू अधिकार
से बचाता है, जो उन््हेें दोषी ठहरा सकते हैैं।
या अन््य नागरिकोों के सचू ना के अधिकार को सीमित न करे ।
अनुच््छछेद 20 इन सुरक्षा उपायोों को सुनिश्चित करके निष््पक्ष सुनवाई की नीींव z डिजिटल परिदृश््य की चुनौतियाँ: इटं रनेट की वैश्विक प्रकृ ति और
रखता है। यह नागरिकोों को मनमाने ढंग से दोषी ठहराने या दंडित करने की विभिन््न देशोों मेें काननू ी ढाँचोों मेें भिन््नताएँ इस संतल
ु न को प्राप्त करने मेें
सरकार की क्षमता को निर्बंधित करता है। ये अधिकार कानूनी प्रणाली के भीतर चनु ौतियाँ उत््पन््न करती हैैं।
निष््पक्ष व््यवहार सनिश्
ु चित करते हैैं और व््यक्तियोों को सत्ता के संभावित दरुु पयोग
से बचाते हैैं अनुच्छेद 21क (शिक्षा का अधिकार )

अनुच्छेद 21 - प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार शिक्षा व््यक्तिगत विकास और सामाजिक विकास के लिए एक बुनियादी आधार
(RIGHT TO LIFE AND PERSONAL LIBERTY) है। इस महत्तत्व को पहचानते हुए, भारत के संविधान मेें 2002 मेें संशोधन किया
गया (86वाँ संशोधन) ताकि अनुच््छछेद 21क को मल ू अधिकारोों के भाग के रूप
z भारत के संविधान के अनच्ु ्छछेद 21 को मल
ू अधिकारोों की आधारशिला माना मेें शामिल किया जा सके ।
जाता है। यह सबसे बनिय ु ादी मानव अधिकार की गारंटी देता है।
अनुच्छेद 21क के मुख्य बिंद :ु
z यह इस बात का समर््थन करता है कि किसी भी व््यक्ति को काननू द्वारा
स््थथापित प्रक्रिया के अलावा उसके प्राण या दैहिक स््वतंत्रता से वंचित z निःशुल््क और अनिवार््य शिक्षा: राज््य (सरकार) का दायित््व है कि वह 6 से
नहीीं किया जाएगा। 14 वर््ष की आयु के सभी बच््चोों को निःशल्ु ्क और अनिवार््य शिक्षा प्रदान करे ।
z यह अनेक मानवाधिकारोों का आधार है, जिसमेें निजता का अधिकार और z कार््ययान््वयन का तरीका: यद्यपि इसकी जिम््ममेदारी राज््य पर है, फिर भी
अनच्ु ्छछेद उन््हेें यह अधिकार प्रदान करने के लिए प्रायः काननू के माध््यम से
गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है।
विशिष्ट तरीका निर््धधारित करने की अनमु ति देता है।
महत्त्वपूर््ण मामले: z गुणवत्तापूर््ण शिक्षा का अधिकार: यद्यपि अनच्ु ्छछेद 21क मेें इसका स््पष्ट
z ए.के . गोपालन के स (1950) मेें ‘काननू द्वारा स््थथापित प्रक्रिया’ (Procedure उल््ललेख नहीीं है, फिर भी शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई अधिनियम),
Established by Law) की सक ं ीर््ण व््ययाख््यया की गई तथा निर््णय दिया गया 2009 जैसे बाद के काननू गणु वत्तापर््णू शिक्षा पर जोर देते हैैं।
कि अनच्ु ्छछेद 21 के तहत संरक्षण के वल मनमानी कार््यकारी कार््रवाई के विरुद्ध z प्रभाव: इस अनच्ु ्छछेद के परिणामस््वरूप भारत मेें स््ककू ल नामांकन दरोों मेें
है, न कि मनमानी विधायी कार््रवाई के विरुद्ध। उल््ललेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे शिक्षा तक पहुचँ को बढ़़ावा मिला है।
z मे नका गांधी मामले (1978) मेें उच््चतम न््ययायालय ने ‘कानन ू द्वारा स््थथापित z हाल के घटनाक्रम: राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 ने अनिवार््य शिक्षा
प्रक्रिया’ की व््ययाख््यया को व््ययापक बनाते हुए इसमेें मनमानी विधायी कार््रवाई के के लिए आयु सीमा को 3-18 वर््ष तक बढ़़ा दिया है, जिससे प्रारंभिक
विरुद्ध सरं क्षण को भी शामिल कर लिया, जो कि ‘काननू की उचित प्रक्रिया’ बाल््ययावस््थथा शिक्षा की आवश््यकता को संबोधित किया गया है और उच््चतर
(Due Process of Law) की अमेरिकी अवधारणा के समान है। माध््यमिक विद्यालय तक शिक्षा का प्रावधान बढ़़ाया गया है।
z पुट्टस््ववामी मामले (2017) मेें एक ऐतिहासिक निर््णय मेें उच््चतम न््ययायालय अनुच्छेद 22 (कुछ दशाओ ं मेें गिरफ्तारी और हिरासत से संरक्षण )
ने माना कि निजता, प्राण और दैहिक स््वतंत्रता का अभिन््न अगं है। इसने भारत के संविधान का अनुच््छछेद 22 मनमाने ढंग से गिरफ़़्ततारी और हिरासत के
समलैैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने और व््यभिचार से संबंधित खिलाफ़ एक महत्तत्वपर््णू सरु क्षा कवच है। यह गिरफ़़्ततार किए गए किसी भी व््यक्ति
प्रावधानोों को समाप्त करने मेें महत्तत्वपर््णू भमि ू का निभाई। को कुछ अधिकारोों की गारंटी देता है, जिससे उसे अधिकारियोों द्वारा सत्ता के
ये व््ययाख््ययाएँ यह सुनिश्चित करती हैैं कि अनुच््छछेद 21 न के वल बुनियादी जीवन दरुु पयोग से संरक्षण मिलता है।
की रक्षा करता है, बल््ककि गरिमापूर््ण जीवन और आवश््यक जीवन स््थथितियोों की z साधारण कानून की शर्ततें (Ordinary Law Conditions):

भी रक्षा करता है।  बिना सच ू ना के हिरासत से सरं क्षण: किसी भी व््यक्ति को गिरफ््ततारी
के कारणोों के बारे मेें तरु ं त सचि
ू त किए बिना गिरफ््ततार या हिरासत मेें नहीीं
अनुच्छेद 21: निजता का अधिकार बनाम भूल जाने का
रखा जा सकता।
अधिकार
 कानूनी परामर््श का अधिकार: गिरफ््ततार व््यक्ति को अपनी पसंद के
z डेटा गोपनीयता मेें एक नया आयाम: भल ू जाने का अधिकार, व््यक्तियोों वकील से परामर््श लेने तथा अपना बचाव कराने का मल ू अधिकार है।
को अपनी व््यक्तिगत जानकारी के ऑनलाइन प्रकटीकरण को नियंत्रित
 मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस््ततुत किया जाना: गिरफ््ततार व््यक्ति को गिरफ््ततारी
करने (सीमित करने, डी-लिंक करने, हटाने या सही करने) की अनमु ति
के 24 घटं े के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस््ततुत किया जाना चाहिए (यात्रा
देता है, जो भारतीय काननू मेें एक हाल का घटनाक्रम है।
समय को छोड़कर)।
z डेटा सरं क्षण का महत्तत्व: बी.एन. श्रीकृ ष््ण समिति ने डिजिटल यगु मेें डेटा
 मजिस्ट्रेट द्वारा अधिकृत न किए जाने पर 24 घंटे के बाद रिहा किए
संरक्षण और व््यक्तिगत निजता के महत्तत्वपर््णू पहलू के रूप मेें भल
ू जाने के
जाने का अधिकार: यह मनमाने ढंग से हिरासत मेें लिए जाने के विरुद्ध
अधिकार पर प्रकाश डाला।
सरु क्षा प्रदान करता है।

मौलिक अधिकार (भाग III, अनुच्छेद 12-3 15


z निवारक हिरासत की शर्ततें: z सभी कामोों पर प्रतिबंध नहीीं: यह ध््ययान रखना महत्तत्वपर््णू है कि अनच्ु ्छछेद 24
 सलाहकार बोर््ड की रिपोर््ट के बिना किसी व््यक्ति को तीन महीने से बच््चोों को सभी प्रकार के काम करने से प्रतिबंधित नहीीं करता है। गैर-खतरनाक
अधिक समय तक हिरासत मेें नहीीं रखा जा सकता: यह उचित कारण या उम्र के हिसाब से उचित काम करने की अनमु ति दी जा सकती है।
के बिना लंबे समय तक हिरासत मेें रखने से रोकता है। z पूरक कानून: इस प्रावधान को लागू करने के लिए संसद द्वारा कई कानन ू
 व््यक्ति को हिरासत के आधारोों के बारे मेें सचि
ू त किया जाना चाहिए: बनाए गए हैैं, जैसे बाल श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 ।
इससे पारदर््शशिता सनिश्
ु चित होती है और हिरासत मेें लिए गए व््यक्ति को अनुच््छछेद 24 शोषण मक्त ु बचपन सुनिश्चित करने और शिक्षा को बढ़़ावा देने की
अपनी हिरासत के आधारोों का विरोध करने का अवसर मिलता है। दिशा मेें एक महत्तत्वपूर््ण कदम है। यह बच््चोों को सुरक्षित वातावरण मेें अपनी पूरी
क्षमता विकसित करने का अधिकार देता है।

मुख्य शब्द धर््म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 – 28)


वाक् -स््ववातंत्रर्य, राजद्रोह, प्राण और दैहिक स््वतंत्रता का संरक्षण, अनुच्छेद 25:
निजता का अधिकार, भूल जाने का अधिकार। अनुच््छछेद 25 भारत के धर््मनिरपेक्ष लोकतंत्र की आधारशिला है, जो सभी
व््यक्तियोों को धार््ममिक स््वतंत्रता की गारंटी देता है।
शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24) z स््वतंत्रता की गारंटी: इसमेें चार स््वतंत्रताएँ सनिश् ु चित की गई हैैं:
 अंतःकरण की स््वतंत्रता: बिना किसी बाहरी दबाव के अपनी मान््यताओ ं
अनुच्छेद 23 - मानव के दर्व
ु ्यापार और बलातश्रम का प्रतिषेध
को बनाए रखने का अधिकार।
भारत के संविधान का अनुच््छछेद 23 एक मल ू अधिकार है, जो व््यक्तियोों को
 खुले तौर पर स््ववीकार करने की स््वतंत्रता: अपने धर््म को खल ु े तौर पर
शोषण के दो प्रमख ु रूपोों: मानव के द र््व्यया
ु पार और बलात श्रम से संरक्षण प्रदान
करता है: घोषित करने का अधिकार।
z प्रतिषे ध: यह अनच् ु ्छछेद स््पष्ट रूप से निम््नलिखित प्रथाओ ं पर प्रतिबंध लगाता  पालन करने की स््वतंत्रता - धार््ममिक अनष् ु ठान करने और धार््ममिक प्रथाओ ं
है: का पालन करने का अधिकार।
 मानव का दुर््व्यया पार: लोगोों को वस््ततुओ ं के समान खरीदना और बेचना।  प्रचार-प्रसार की स््वतंत्रता: अपने धर््म को दस ू रोों के साथ साझा करने
 बेगार: अवैतनिक बलात श्रम, जो प्रायः ऋण न चक ु ाने के लिए बंधआ ु का अधिकार, यद्यपि उन््हेें बलपर्ू ्वक धर््माांतरित करने का अधिकार नहीीं है।
मजदरू ी जैसी ऐतिहासिक प्रथाओ ं से जड़ु ़ा होता है। z सभी के लिए समानता: ये स््वतंत्रताएँ भारत मेें सभी व््यक्तियोों पर समान रूप

 बलात श्रम के अन््य समान रूप: कोई भी स््थथिति जहाँ किसी व््यक्ति
से लागू होती हैैं, चाहे उनकी नागरिकता कुछ भी हो।
को उसकी इच््छछा के विरुद्ध, धमकी या जबरदस््तती से काम करने के लिए z उचित सीमाएँ: ये स््वतंत्रताएँ ‘लोक व््यवस््थथा, नैतिकता और स््ववास््थ््य’ तथा

मजबरू किया जाता है। संविधान के अन््य प्रावधानोों के अधीन हैैं। यह सरकार को सामाजिक सद्भाव
z अपराध और सजा: इस अनच् ु ्छछेद का उल््ललंघन काननू द्वारा दडं नीय है, जिससे और कल््ययाण के हित मेें कुछ सीमाएँ लगाने की अनमु ति देता है।
पीड़़ितोों को काननू ी सहायता सनिश् ु चित होती है। z राज््य और धर््म: सरकार किसी विशेष धर््म को बढ़़ावा नहीीं दे सकती या

z राज््य की शक्ति: यह अनच् ु ्छछेद राज््य को सार््वजनिक उद्देश््योों (जैसे कुछ देशोों धार््ममिक आधार पर भेदभाव नहीीं कर सकती।
मेें राष्ट्रीय सेवा) के लिए अनिवार््य सेवा लागू करने से नहीीं रोकता है। हालाँकि z महत्तत्व: अनच् ु ्छछेद 25 भारत मेें धार््ममिक सहिष््णणुता, बहुलवाद और विविध धर्ममों
ऐसी सेवा धर््म, नस््ल, जाति या वर््ग के आधार पर भेदभाव नहीीं कर सकती है। के शांतिपर््णू सह-अस््ततित््व को बढ़़ावा देता है।
z पीयूडीआर बनाम भारत सघ ं : बलात श्रम के विरुद्ध अधिकार को मजबतू अनुच्छेद 26:
करने वाले एक ऐतिहासिक निर््णय मेें कहा गया कि आर््थथिक मजबरू ी जो किसी z प्रदत्त अधिकार: यह अनच्ु ्छछेद प्रत््ययेक धार््ममिक संप्रदाय को अपने धार््ममिक
व््यक्ति के पास कोई विकल््प नहीीं छोड़ती और उसे श्रम या सेवा प्रदान करने के मामलोों का प्रबंधन करने, चल और अचल संपत्ति का स््ववामित््व रखने और
लिए मजबरू करती है, वह भी बलात श्रम की श्रेणी मेें आती है। उसे अर््जजित करने तथा काननू के अनसु ार उसका प्रशासन करने की स््वतंत्रता
यह अनुच््छछेद मानवीय गरिमा को बनाए रखने और कमजोर व््यक्तियोों का शोषण प्रदान करता है।
रोकने के लिए अत््ययंत महत्तत्वपूर््ण है। z अनुच््छछे द 25 से भिन््न: अनच्ु ्छछेद 25 और 26 के बीच अतं र उल््ललेखनीय
अनुच्छेद 24 - कारखानोों आदि मेें बच्चचों के नियोजन का प्रतिषेध है: जहाँ अनच्ु ्छछेद 25 व््यक्तिगत धार््ममिक अधिकारोों की रक्षा करता है, वहीीं
अनुच््छछेद 24 विशेष रूप से बच््चोों को खतरनाक काम से सुरक्षा प्रदान करता है। अनच्ु ्छछेद 26 सामहि ू क धार््ममिक स््वतंत्रता की रक्षा करता है।
z बाल श्रम पर प्रतिषे ध: यह अधिनियम कारखानोों, खदानोों या किसी अन््य z निरपेक्ष नहीीं: ये अधिकार लोक व््यवस््थथा, नैतिकता और स््ववास््थ््य के अधीन
खतरनाक कार््य मेें 14 वर््ष से कम आयु के बच््चोों के नियोजन का प्रतिषेध हैैं। राज््य यह सनिश्
ु चित करने के लिए गतिविधियोों को विनियमित कर सकता
करता है। है कि इनसे समझौता न हो।

16  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीित और संिवधान


z महत्तत्व: z गैर-भेदभावपूर््ण शिक्षा:
 धार््ममिक सप्र
ं दायोों को उनके आतं रिक मामलोों मेें सरकारी हस््तक्षेप से बचाता है।  राज््य द्वारा संचालित या राज््य द्वारा वित्तपोषित शैक्षणिक संस््थथान मेें के वल

 धार््ममिक समहो ू ों को अपनी संस््थथाओ,ं वित्त और प्रथाओ ं का स््वतंत्र रूप से धर््म, नस््ल, जाति, भाषा या इनमेें से किसी के आधार पर प्रवेश से वंचित
प्रबंधन करने की अनमु ति देता है। नहीीं किया जा सकता।
z उदाहरण: यह अधिकार मदिरो ं ों को पजु ारी नियक्त ु करने, चर्चचों को धार््ममिक  इससे पृष्ठभमि ू की परवाह किए बिना शिक्षा तक समान पहुचँ सनिश् ु चित
सेवाएँ सचं ालित करने तथा धार््ममिक ट्रस््टोों को अपनी सपं त्तियोों का प्रबंधन होती है तथा समावेशिता को बढ़़ावा मिलता है।
करने की अनमु ति देता है। अनुच््छछेद 29 विविधता का सम््ममान करके और अल््पसंख््यक समहोू ों के लिए
अनुच्छेद 27: सांस््ककृतिक सुरक्षा की गारंटी देकर राष्ट्रीय एकता को बढ़़ावा देता है।
z प्रदत्त अधिकार: अनच्ु ्छछेद 27 किसी व््यक्ति को किसी विशेष धर््म के प्रचार अनुच्छेद 30:
या अनरु क्षण के लिए करोों का भगु तान करने के लिए बाध््य करने से रोकता है। अनुच््छछेद 30 अल््पसंख््यकोों के शिक्षा संबंधी अधिकारोों की रक्षा करता है,
z कोई पक्षपात नहीीं: यह प्रावधान सनिश् ु चित करता है कि राज््य किसी एक जिसमेें निम््नलिखित शामिल हैैं।
धर््म को दसू रे धर््म पर वरीयता या संरक्षण नहीीं देगा, जिससे उसका धर््मनिरपेक्ष z स््थथापना और प्रशासन: धार््ममिक और भाषाई अल््पसख् ं ्यकोों को अपनी पसदं
चरित्र बना रहे। के शैक्षणिक संस््थथानोों की स््थथापना और प्रबंधन का अधिकार है।
 उदाहरण: यदि सरकार विशेष रूप से मदिरो ं ों के जीर्णोद्धार के लिए कर z मातृभाषा मेें शिक्षा: इस अधिकार मेें अपने बच््चोों को अपनी भाषा मेें शिक्षा

लगाने का प्रस््तताव करती है, तो यह अनच्ु ्छछेद 27 का उल््ललंघन होगा, प्रदान करने का अधिकार भी शामिल है।
क््योोंकि यह एक विशेष धर््म को लक्षष्य बनाता है। z गुणवत्ता के लिए विनियमन: यह अधिकार असीमित नहीीं है। सरकार इन

संस््थथानोों की शैक्षिक गणु वत्ता और अकादमिक उत््ककृष्टता सनिश् ु चित करने के


अनुच्छेद 28:
लिए विनियमन लागू कर सकती है।
 प्रदत्त अधिकार: यह किसी भी ऐसे शैक्षणिक सस्ं ्थथान मेें धार््ममिक शिक्षा z वित्तपोषण मेें भे दभाव न करना: राज््य वित्तीय सहायता प्रदान करते समय
पर प्रतिबंध लगाता है, जो पर््णू तः राज््य द्वारा वित्तपोषित है। अल््पसंख््यक-संचालित शैक्षणिक संस््थथानोों के विरुद्ध भेदभाव नहीीं कर सकता।
 अपवाद: यह ऐसे शैक्षणिक संस््थथानोों पर लागू नहीीं होता है, जो राज््य z सप ं त्ति का उचित अधिग्रहण: अनच्ु ्छछेद 30(1क) अल््पसंख््यक शैक्षणिक
द्वारा प्रशासित हैैं लेकिन धार््ममिक शिक्षा प्रदान करने के लिए दान या ट्रस््टोों संस््थथान से संबंधित संपत्ति का अधिग्रहण करते समय उचित मआ ु वजे का
के तहत स््थथापित किए गए हैैं। प्रावधान करता है।
 यह अनच्ु ्छछेद धार््ममिक पक्षपात से मक्त
ु शिक्षा के अधिकार की रक्षा करता
है, साथ ही कुछ सस्ं ्थथानोों को पर््णू पारदर््शशिता और छात्ररों की पसदं की
स््वतंत्रता के साथ अपने धार््ममिक चरित्र को बनाए रखने की अनमु ति देता है। मुख्य शब्द

संस्कृति और शिक्षा संबध


ं ी अधिकार धर््मनिरपेक्षता, राज््य का धर््म, अल््पसंख््यक अधिकार, धार््ममिक और
भाषाई अल््पसंख््यक
(अनुच्छेद 29-30)
संविधान भारत की विशाल सांस््ककृतिक विविधता की सराहना करते हुए अनुच््छछेद अधिकारोों के प्रवर््तन के लिए उपचार (अनुच्छेद 32)
29 और 30 के तहत संस््ककृति और शिक्षा संबंधी अधिकारोों को भी संरक्षण प्रदान
अनुच््छछेद 32 संविधान के भाग III मेें निहित भारत के मल ू अधिकारोों की
करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी अल््पसंख््यक समहू अलग- आधारशिला है। यह इन मल ू अधिकारोों के न््ययायिक प्रवर््तन की माँग करने के
थलग या हाशिये पर न रहे। महत्तत्वपूर््ण अधिकार की गारंटी देता है। अनुच््छछेद 32 के बारे मेें कुछ मख्ु ्य बिंदओ
ु ं
अनुच्छेद 29: पर नज़र डालतेें हैैं:
z नागरिकोों को सशक्त बनाना: यह प्रत््ययेक नागरिक को यह अधिकार देता
भारत के संविधान का अनुच््छछेद 29 देश की समृद्ध विविधता के लिए एक
महत्तत्वपूर््ण सुरक्षा कवच है। यह अल््पसंख््यकोों को संस््ककृति और शिक्षा संबधी है कि यदि उन््हेें लगता है कि सरकार या किसी अन््य प्राधिकारी द्वारा उनके
मल ू अधिकारोों का उल््ललंघन किया गया है, तो वे सीधे भारत के उच््चतम
अधिकारोों की गारंटी देता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि भारत की अनूठी
न््ययायालय मेें जा सकते हैैं।
भाषाएँ, लिपियाँ और परंपराएँ फल-फूल सकेें ।
z मूल अधिकारोों का प्रवर््तन: यह अनच् ु ्छछेद यह सनिश्
ु चित करने के लिए एक
z सस् ं ्ककृति के सरं क्षण का अधिकार:
तंत्र का प्रावधान करता है कि ये मल ू अधिकार के वल लिखित शब््द न होों,
 किसी भी नागरिक समह ू को अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस््ककृति को बल््ककि प्रवर््तनीय काननू ी गारंटी होों।
संरक्षित करने और बढ़़ावा देने का अधिकार है। z प्रवर््तन हेतु रिट: उच््चतम न््ययायालय के पास मल ू अधिकारोों के उल््ललंघन को
 इससे अल््पसंख््यक समद ु ायोों को अपनी विरासत और रीति-रिवाजोों को सधु ारने के लिए बंदी प्रत््यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण तथा अधिकार
बनाए रखने का अधिकार मिलता है। पृच््छछा जैसे रिट जारी करने की शक्ति है।

मौलिक अधिकार (भाग III, अनुच्छेद 12-3 17


z सस ं दीय शक्ति: संसद अनच्ु ्छछेद 226 के तहत अन््य न््ययायालयोों (जैसे उच््च z प्रतिषेध (Prohibition):
न््ययायालय) को समान रिट जारी करने के लिए अधिकृ त कर सकती है। हालाँकि,  यह उच््चतर न््ययायालय द्वारा निचले न््ययायालय या अधिकरण को जारी किया
रिट जारी करने की उच््चतम न््ययायालय की शक्ति सर्वोपरि बनी हुई है। जाता है, ताकि निचले न््ययायालय या अधिकरण को अपने क्षेत्राधिकार का
z महत्तत्व: अतिक्रमण करने या किसी ऐसे क्षेत्राधिकार का उपयोग करने से रोका जा
 कानून के शासन को मजबूत करता है: यह सनिश् ु चित करता है कि सके , जो उसके पास नहीीं है।
सरकार मल ू अधिकारोों का सम््ममान करे और अपनी काननू ी सीमाओ ं के z उत्प्रेषण:
भीतर कार््य करे ।  यह रिट उच््चतर न््ययायालय द्वारा निचले न््ययायालय या अधिकरण को या तो

उसके पास लंबित किसी मामले को अपने पास स््थथानांतरित करने के लिए
 कानूनी रूप से सशक्त करता है: यह व््यक्तियोों को अपने अधिकारोों के
या किसी मामले मेें उसके आदेश को रद्द करने के लिए जारी की जाती है।
लिए लड़ने और न््ययाय पाने के लिए सशक्त बनाता है।
 यह क्षेत्राधिकार के अतिक्रमण या क्षेत्राधिकार के अभाव या कानन ू की
 कमजोर नागरिकोों को सरं क्षण प्रदान करता है: यह राज््य की मनमानी
त्रुटि के आधार पर जारी की जाती है।
कार््रवाइयोों के विरुद्ध सरु क्षा कवच के रूप मेें कार््य करता है। z अधिकार-पच्ृ ्छछा (Quo-Warranto):
अनुच््छछे द 32 संविधान की एक मूल विशेषता है। अंबेडकर ने अनुच््छछेद 32  यह रिट किसी व््यक्ति के सार््वजनिक पद पर दावे की वैधता की जाँच करने
को संविधान का सबसे महत्तत्वपूर््ण अनुच््छछेद बताया था ऐसा अनुच््छछे द जिसके के लिए न््ययायालय द्वारा जारी की जाती है।
बिना यह संविधान निरर््थक होगा। यह संविधान की ‘आत््ममा और हृदय’ है।'  इसलिए, यह किसी व््यक्ति द्वारा सार््वजनिक पद के अवैध उपयोग को

रोकती है।
रिट (WRITS)
रिट का महत्त्व
मलू अधिकारोों के प्रवर््तन के मामले मेें उच््चतम न््ययायालय का क्षेत्राधिकार
z मूल अधिकारोों का सरं क्षण: रिट व््यक्तियोों को संविधान के भाग-III मेें निहित
मौलिक है, लेकिन अनन््य नहीीं है। यह अनुच््छछेद 226 के तहत उच््च न््ययायालय
उनके मल ू अधिकारोों के उल््ललंघन को चनु ौती देने के लिए एक शक्तिशाली
के क्षेत्राधिकार के साथ समवर्ती है। उपकरण हैैं।
अधिकार-पृच््छछा (Quo-Warranto) z न््ययायिक समीक्षा: रिट उच््चतम न््ययायालय को न््ययायिक समीक्षा करने
का अधिकार देती हैैं, ताकि यह सनिश् ु चित हो सके कि सरकार और अन््य
बंदी प्रत््यक्षीकरण प्राधिकारियोों की कार््रवाई वैध और सवं ैधानिक सीमाओ ं के भीतर हो।
(Habeas Corpus) z शीघ्र एवं प्रभावी उपचार: रिट, लम््बबी अदालती प्रक्रियाओ ं की तल ु ना मेें
उत्प्रेषण
न््ययायिक हस््तक्षेप करने का एक त््वरित एवं प्रभावी तरीका है।
(Certiorari) अनुच््छछेद 32 z जवाबदेही सनिश् ु चित करना: रिट का खतरा प्राधिकारियोों को उनके कार्ययों के
के तहत रिट प्रति जवाबदेह बनाता है तथा शक्ति के मनमाने प्रयोग को रोकता है।
प्रतिषेध
परमादेश (Mandamus) z कानून का शासन बनाए रखना: रिट काननू के शासन को बनाए रखने के
(Prohibition)
लिए महत्तत्वपर््णू हैैं, क््योोंकि ये सनिश्
ु चित करती हैैं कि सरकार सहित सभी लोग
z बंदी प्रत््यक्षीकरण (Habeas Corpus): काननू ी मापदडों ों के भीतर काम करेें।
 यह न््ययायालय द्वारा किसी व््यक्ति को जारी किया गया आदेश है, जिसने सशस्त्र बल और मूल अधिकार (ARMED FORCES
किसी अन््य व््यक्ति को हिरासत मेें लिया है, कि वह उस व््यक्ति को न््ययायालय AND FUNDAMENTAL RIGHTS)
के समक्ष प्रस््ततुत करे । z उद्देश््य: अनच्ु ्छछेद 33 ससं द को सशस्त्र बलोों, अर््धसैनिक बलोों और सभं ावित
 इसके बाद न््ययायालय हिरासत के कारण और वैधता की जाँच करता है। रूप से खफिय ु ा एजेेंसियोों के सदस््योों के कुछ मल
ू अधिकारोों को सीमित करने
 यह लोक प्राधिकरणोों के साथ-साथ निजी व््यक्तियोों के विरुद्ध भी जारी का अधिकार देता है (हालाँकि स््पष्ट रूप से उल््ललेख नहीीं किया गया है)।
किया जा सकता है। z औचित््य: इन सीमाओ ं का उद्देश््य कर्तत्तव््योों का उचित निर््वहन सनिश्
ु चित करना
तथा सैन््य बलोों आदि मेें अनश ु ासन बनाए रखना है।
z परमादेश (Mandamus):
z सभं ावित रूप से प्रभावित होने वाले अधिकार: हालाँकि स््पष्ट रूप से नहीीं
 यह न््ययायालय द्वारा किसी लोक सेवक को जारी किया गया आदेश है
कहा गया है, लेकिन स््थथिति के आधार पर अनच्ु ्छछेद 33 के तहत किसी भी मल ू
जिसमेें उसे अपने आधिकारिक कर्तत्तव््योों का पालन करने के लिए कहा अधिकार को सीमित किया जा सकता है। हालाँकि, यह शक्ति निरपेक्ष नहीीं है
जाता है, जिनका पालन करने मेें वह विफल रहा है या उसने पालन करने और यदि निर्बंधन अत््यधिक माने जाते हैैं तो न््ययायालय हस््तक्षेप कर सकते हैैं।
से इनकार कर दिया है।  उदाहरण: परिचालन गोपनीयता बनाए रखने या अवज्ञा को रोकने के

 इसे किसी सार््वजनिक निकाय, निगम, अधीनस््थ न््ययायालय, अधिकरण लिए सैनिकोों के लिए वाक् और अभिव््यक्ति की स््वतंत्रता के अधिकार
या सरकार के विरुद्ध भी इसी उद्देश््य के लिए जारी किया जा सकता है। (अनच्ु ्छछेद 19) को सीमित किया जा सकता है।

18  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीित और संिवधान


z मुआवजे का अधिकार: इसमेें मआ ु वजे के अधिकार की गारंटी दी गई है-
मार््शल कानून और मूल अधिकार (MARTIAL
 जब राज््य किसी अल््पसंख््यक शैक्षणिक संस््थथान की संपत्ति का अधिग्रहण
LAWS AND FUNDAMENTAL RIGHTS)
करता है (अनच्ु ्छछेद 30)।
z मार््शल लॉ: अनच्ु ्छछेद 34 तब लागू होता है जब भारत के किसी भी हिस््ससे  जब राज््य किसी व््यक्ति की निजी कृ षि भमि
ू का अधिग्रहण करता है और
मेें मार््शल लॉ लगाया जाता है। मार््शल लॉ वह स््थथिति है जब सेना व््यवस््थथा वह भमि
ू वैधानिक अधिकतम सीमा के भीतर है (अनच्ु ्छछेद 31क)।
बनाए रखने के लिए असैन््य प्राधिकरण पर नियंत्रण कर लेती है। कुल मिलाकर, 44वेें संशोधन का उद्देश््य व््यक्तिगत संपत्ति अधिकारोों और
z अधिकारोों पर प्रतिबंध: मार््शल लॉ के दौरान, संसद ऐसे काननू पारित कर सरकार के द्वारा विकास की आवश््यकता के मध््य संतुलन स््थथापित करना था।
सकती है जो संविधान के भाग III द्वारा गारंटीकृ त मल ू अधिकारोों को सीमित हालाँकि यह तेजी से भमि ू अधिग्रहण की अनुमति देता है, लेकिन संभावित
करते हैैं। दरुु पयोग और उचित मआ ु वज़़ा सुनिश्चित करने के बारे मेें चिंताएँ बनी हुई हैैं।
z कार््रवाइयोों के लिए सरं क्षण: यह अनच्ु ्छछेद संसद को ऐसे सरकारी
अधिकारियोों या किसी अन््य व््यक्ति को संरक्षण (काननू ी कार््रवाई से संरक्षण) मुख्य शब्द
देने की अनमु ति देता है, जो मार््शल लॉ लागू रहने के दौरान ‘व््यवस््थथा बनाए
रखने या बहाल करने के संबंध मेें’ कार््रवाई करता है। रिट, बंदी प्रत््यक्षीकरण, परमादेश, उत्प्रेषण, अधिकार पृच््छछा,
प्रतिषेध, मार््शल लॉ, मुआवजे का अधिकार।
z महत्तत्व: अनच्ु ्छछेद 34 राष्ट्रीय सरु क्षा और व््यक्तिगत अधिकारोों के बीच संतल
ु न
बनाता है। विशेष परिस््थथितियोों मेें, व््यवस््थथा बहाल करने के लिए कुछ अधिकारोों
पर सीमाएँ लगानी पड़ सकती हैैं। मूल अधिकारोों के अपवाद
उपर््ययुक्त प्रावधानोों का महत्त्व z अनुच््छछे द 31क: यह अनच्ु ्छछेद कृ षि भमि ू सधु ार और उद्योग/वाणिज््य से
संबंधित पांच श्रेणियोों के काननोू ों को समानता (अनच्ु ्छछेद 14) और स््वतंत्रता
z अनश ु ासन और कर्तत्तव््योों का प्रभावी निर््वहन सनिश्
ु चित करना, जो राष्ट्रीय सरु क्षा
(अनच्ु ्छछेद 19) के अधिकारोों का उल््ललंघन करने के कारण चनु ौती दिए जाने
के लिए महत्तत्वपर््णू है।
से बचाता है।
z ऐसी स््थथितियोों मेें व््यवस््थथा बनाए रखने के लिए कार््रवाई करने वाले सरकारी
z अनुच््छछे द 31ख: नौवीीं अनसु चू ी मेें सचू ीबद्ध काननू और विनियमनोों को मल ू
अधिकारियोों को संरक्षण प्रदान करता है।
अधिकारोों के उल््ललंघन के आधार पर चनु ौती दिए जाने से सरं क्षण प्राप्त है।
z ये अनच्ु ्छछेद राष्ट्रीय सरु क्षा और लोक व््यवस््थथा के व््ययापक हित के लिए कुछ हालाँकि, आईआर कोएल््हहो मामले मेें उच््चतम न््ययायालय के 2007 के फै सले
अधिकारोों को अस््थथायी रूप से सीमित करने की आवश््यकता को स््ववीकार ने स््पष्ट किया कि यह संरक्षण निरपेक्ष नहीीं है। 24 अप्रैल, 1973 के बाद नौवीीं
करते हैैं। अनसु चू ी मेें जोड़़े गए काननोू ों को चनु ौती दी जा सकती है, यदि वे मल
ू अधिकारोों
संपत्ति का अधिकार (RIGHT TO PROPERTY) या मल ू संवैधानिक सिद््धाांतोों का उल््ललंघन करते हैैं।
z अनुच््छछे द 31ग (25वेें सश ं ोधन द्वारा जोड़़ा गया): इस अनच्ु ्छछेद के
44वेें संशोधन, 1978 ने भारत मेें संपत्ति के अधिकार की स््थथिति को काफी
निम््नलिखित उद्देश््य थे:
बदल दिया।
z मूल अधिकार से कानूनी अधिकार तक: संशोधन से पहले, संपत्ति का
a. समाजवादी निदेशक तत्तत्ववों (अनुच््छछेद 39(ख) और (ग)) को लागू
अधिकार अनच्ु ्छछेद 31 के तहत एक मल ू अधिकार था। इसका मतलब था करने वाले कानूनोों को अनुच््छछेद 14 (समानता) और 19 (स््वतंत्रता)
कि इसे उच््चतम काननू ी संरक्षण प्राप्त था और किसी भी सरकारी अधिग्रहण पर आधारित चनु ौतियोों से बचाना।
के लिए सख््त प्रक्रियाओ ं और उचित मआ ु वजे की आवश््यकता थी। सश ं ोधन b. न््ययायालयोों को यह प्रश्न करने से रोकना कि क््यया समाजवादी नीतियोों
ने इसे अनच्ु ्छछेद 300क के तहत एक काननू ी अधिकार मेें बदल दिया। को लागू करने का दावा करने वाली विधियाँ वास््तव मेें उस लक्षष्य को
z भूमि अधिग्रहण मेें आसानी: सरकार के पास अब सार््वजनिक उद्देश््योों के
प्राप्त करती हैैं।
लिए भमि z ऐतिहासिक के शवानंद भारती मामले (1973) मेें उच््चतम न््ययायालय ने अनच्ु ्छछेद
ू अधिग्रहण मेें अधिक लचीलापन है। इससे बनियु ादी ढाँचे के विकास
और सामाजिक कल््ययाण परियोजनाओ ं मेें तेजी आ सकती है। 31ग के दसू रे प्रावधान को असंवैधानिक घोषित कर दिया। न््ययायिक समीक्षा
सवं िधान का एक मल ू भतू पहलू है और ससं द इसे खत््म नहीीं कर सकती।
z न््ययायिक समीक्षा के दायरे मेें बना हुआ है: हालाँकि यह मल ू अधिकार
हालाँकि समाजवादी निदेशक तत्तत्ववों को लागू करने वाली विधियोों की रक्षा करने
नहीीं है, लेकिन अनच्ु ्छछेद 300क अभी भी संपत्ति का अधिग्रहण करते समय
वाले अनच्ु ्छछेद 31ग के पहले प्रावधान को बरकरार रखा गया था।
‘उचित प्रक्रिया’ और निष््पक्ष व््यवहार का पालन करने का आदेश देता है।
यदि इन सिद््धाांतोों का उल््ललंघन किया जाता है तो न््ययायालय हस््तक्षेप कर मूल अधिकारोों का महत्त्व
सकते हैैं। इसके अलावा, न््ययायालय अभी भी अनच्ु ्छछेद 300क के तहत z राज््य की मनमानी शक्ति से सरं क्षण: मल ू अधिकार सरकार की मनमानी
‘उचित’ व््यवहार की व््ययाख््यया उचित मआु वजे को शामिल करने के लिए कर कार््रवाइयोों के खिलाफ एक ढाल के रूप मेें कार््य करते हैैं। वे सनिश्
ु चित करते हैैं
सकते हैैं। कि राज््य बनियु ादी मानव अधिकारोों और स््वतंत्रता का सम््ममान करेें।

मौलिक अधिकार (भाग III, अनुच्छेद 12-3 19


z समानता और गैर-भेदभाव: मल ू अधिकार धर््म, नस््ल, जाति, लिंग या जन््म z निजता सबं ंधी कानून: ऑनलाइन निजता अधिकारोों के संरक्षण और सरकारी
स््थथान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करके समानता पर आधारित समाज निगरानी प्रथाओ ं को विनियमित करने के लिए व््ययापक काननू बनाना, दैहिक
को बढ़़ावा देते हैैं। इससे सामाजिक समावेशन और न््ययाय को बढ़़ावा मिलता है। स््वतंत्रता और सरु क्षा की आवश््यकता के बीच सतं ल ु न करना।
z गरिमा और वैयक्तिक स््वतंत्रता: मल ू अधिकार भाषण, एकत्र होने और z न््ययायिक प्रशिक्षण और क्षमता निर््ममाण: न््ययायाधीशोों और काननू ी पेशवरोे ों
आवागमन जैसी बनिय ु ादी स््वतं त्र ताओ ं की गारंटी देते हैैं, जिससे व््यक्तियोों को के लिए मल ू अधिकारोों की समझ बढ़़ाने और उनकी व््ययाख््यया एवं अनप्रु योग मेें
अपने व््यक्तित््व का विकास करने और गरिमा के साथ संतष्टु जीवन जीने का स््थथिरता लाने के लिए प्रशिक्षण और क्षमता निर््ममाण कार््यक्रम आयोजित करना।
अवसर मिलता है। z सामुदायिक सहभागिता: विशिष्ट चनु ौतियोों का समाधान करने तथा मल ू
z बहुमत आधारित शासन पर नियंत्रण: भारत का लोकतंत्र बहुमत के अधिकारोों की रक्षा के लिए अनक ु ू लित समाधान विकसित करने हेतु समदु ायोों,
शासन पर आधारित है, लेकिन मल ू अधिकार अल््पसंख््यकोों और व््यक्तियोों सिविल सोसायटी सगं ठनोों और हितधारकोों के साथ सवं ाद और सहभागिता को
के अधिकारोों की रक्षा करके बहुसख्ं ्यकोों के अत््ययाचार को रोकता है। बढ़़ावा देना।
z न््ययायिक समीक्षा के लिए तंत्र: मल ू अधिकार व््यक्तियोों को न््ययायपालिका
के माध््यम से अपने अधिकारोों का उल््ललंघन करने वाले काननोू ों या सरकारी मुख्य शब्द
कार््रवाइयोों को चनु ौती देने का अधिकार देते हैैं। इससे काननू का शासन सनिश् ु चित
राज््य की मनमानी शक्ति, बहुमत का शासन, ऑनलाइन निजता,
होता है और कार््यपालिका एवं विधायिका पर नियंत्रण रहता है।
गरिमा और दैहिक स््वतंत्रता
मूल अधिकारोों से संबधं ित मुद्दे और चुनौतियााँ
समाचार मेें मुद्दे
z कार््ययान््वयन मेें कमी: संवैधानिक गारंटी के बावजदू , ऐसे उदाहरण देखने को
मिलते हैैं जब मल ू अधिकारोों को प्रभावी ढंग से लागू नहीीं किया जाता है, महाराष्टट्र का मराठा आरक्षण विधेयक
जिसके परिणामस््वरूप उल््ललंघन और अन््ययाय होता है। संदर््भ: महाराष्टट्र विधानसभा ने सरकारी नौकरियोों और शैक्षणिक संस््थथानोों मेें
z भेदभाव और असमानता: हाशिये पर पड़़े समहोू ों को अक््सर अपने मल ू मराठोों के लिए 10% आरक्षण देने वाला विधेयक पारित किया। यह आरक्षण
अधिकारोों, जैसे समता का अधिकार और जाति, लिंग, धर््म या जातीयता मराठा समदु ाय के भीतर सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़़े वर्गगों (SEBCs)
के आधार पर भेदभाव के विरुद्ध अधिकार प्राप्त करने मेें भेदभाव का सामना के लिए है, जिसमेें आर््थथिक रूप से संपन््न (‘क्रीमी लेयर’) माने जाने वाले लोग
करना पड़ता है। शामिल नहीीं हैैं।
z व््ययाख््यया सबं ंधी चुनौतियाँ: न््ययायपालिका द्वारा मल
ू अधिकारोों की व््ययाख््यया आरक्षण की मााँग के कारण
कभी-कभी विवादास््पद हो सकती है, जिससे उन््हेें लागू किए जाने मेें अस््पष्टता z सरं चनात््मक चुनौतियाँ (Structural Challenges): मराठोों को कृ षि
और असगं ति उत््पन््न हो सकती है। आय मेें गिरावट का सामना करना पड़ रहा है और उन््हेें नए रोजगार बाजार के
z आपातकाल के दौरान उल््ललंघन: आपातकाल के दौरान ऐसे कई उदाहरण अनक ु ू ल ढलने मेें सघं र््ष करना पड़ रहा है।
सामने आए, जहाँ मल ू अधिकारोों, विशेष रूप से दैहिक स््वतंत्रता और z निजी क्षेत्र की विसगं तियाँ (Job Market Discrepancies): निजी क्षेत्र
अभिव््यक्ति की स््वतंत्रता से संबंधित अधिकारोों पर अक मेें कम वेतन और अस््थथिरता के कारण आरक्षण वाली सार््वजनिक क्षेत्र की
ं ु श लगाया गया, जिससे
नौकरियाँ अधिक वाँछनीय हो जाती हैैं।
सरकार के अतिक्रमण की चितं ा बढ़ गई है।
z राजनीतिक लामबंदी (Political Mobilization): मराठोों जैसे जाति-
z ऑनलाइन निजता और निगरानी: डिजिटल प्रौद्योगिकियोों के बढ़ते उपयोग
आधारित राजनीतिक आदं ोलनोों मेें आरक्षण की वकालत एक बढ़ती हुई प्रवृत्ति है।
के साथ, निजता संबंधी अधिकारोों के संरक्षण और दैहिक स््वतंत्रता का
z सापेक्षिक वंचना (Relative Deprivation): मराठा मानते हैैं कि अन््य
उल््ललंघन करने वाली सरकारी निगरानी की सभं ावना के सबं ंध मेें चितं ाएँ उत््पन््न
समदु ायोों को समान आर््थथिक वास््तविकताओ ं का सामना करने के बावजदू
हुई हैैं। आरक्षण का लाभ मिल रहा है।
आगे की राह z समुदाय के भीतर असमानता (Intra-Community Disparity): कुछ
z जागरूकता और शिक्षा: नागरिकोों को उनके मल ू अधिकारोों और उन््हेें प्रभावी मराठा आर््थथिक रूप से प्रभावशाली हैैं, जबकि अन््य वंचित हैैं, जिसके कारण
ढंग से प्रयोग करने के बारे मेें जानकारी देने के लिए जागरूकता अभियान और आरक्षण की माँग उठ रही है।
शैक्षिक कार््यक्रमोों को बढ़़ावा देना। जाति-आधारित आरक्षण के पक्ष मेें तर््क
z कानूनी सध ु ार: न््ययायिक प्रक्रिया को सव्ु ्यवस््थथित करने, लंबित मामलोों को कम z सामाजिक न््ययाय: इसका उद्देश््य अतीत मेें हुए अन््ययाय को ठीक करना और
करने तथा मल ू अधिकारोों से संबंधित मामलोों का समय पर निर््णय सनिश् ु चित वंचित जातियोों के लिए समान अवसर उपलब््ध कराना है।
करने के लिए सधु ार लागू करना। z प्रतिनिधित््व: इसका उद्देश््य सरकारी नौकरियोों मेें हाशिये पर पड़़े समदु ायोों का
z आपातकाल के दौरान सरु क्षा: आपातकाल के दौरान मल ू अधिकारोों के उचित प्रतिनिधित््व सनिश्
ु चित करना है।
मनमाने निलंबन को रोकने के लिए काननू ी सरु क्षा उपायोों को मजबतू करना, z वास््तविक समानता: जाति के आधार पर व््ययाप्त सामाजिक-आर््थथिक
यह सनिश्
ु चित करना कि लगाई गई सीमाएँ आनपु ातिक और आवश््यक होों। असमानताओ ं को दरू करके सच््चची समानता को बढ़़ावा देना।

20  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीित और संिवधान


जाति आधारित आरक्षण की आलोचना z शोषण से सरु क्षा: व््यक्तिगत लाभ के लिए किसी की पहचान के अनधिकृ त
z अन््य कारकोों की अनदेखी: पिछड़़ापन के वल जाति-आधारित नहीीं हो व््ययावसायिक उपयोग को रोकता है।
सकता; निवास, आजीविका और आर््थथिक स््थथिति जैसे कारकोों पर भी विचार z प्रतिष्ठा की सरु क्षा: व््यक्तियोों को उनसे जड़ु ़ी जानकारी को नियंत्रित करने की
किया जाना चाहिए। अनमु ति देता है।
z विशेषाधिकार को शाश्वत बनाना: के वल जाति पर ध््ययान केें द्रित करने से उन z उपलब््धधियोों को प्रोत््ससाहित करना: व््यक्तियोों द्वारा अपने नाम और छवि से
लोगोों को निरन््तर लाभ मिलता रहेगा, जो पहले से ही लाभान््ववित हो रहे हैैं। निर््ममित मल्ू ्योों को संरक्षण प्रदान करना।
z जातिविहीन समाज मेें बाधा: आरक्षण प्रणाली जाति व््यवस््थथा को मजबतू
आगे की राह:
कर सकती है।
z व््ययापक विधान: व््यक्तित््व अधिकारोों को स््पष्ट रूप से परिभाषित करने और
z बढ़ती माँगेें: प्रमख
ु जातियाँ आरक्षण के लाभ की माँग कर सकती हैैं, जिससे
माँगोों का चक्र बन सकता है। उनकी रक्षा करने के लिए एक अलग काननू होना चाहिए।
z हितोों मेें सतं ुलन: काननू को व््यक्तिगत अधिकारोों और अभिव््यक्ति की स््वतंत्रता
z जातियोों के अंतर््गत असमानता की अनदेखी: के वल जाति के आधार पर
आरक्षण, समदु ायोों के भीतर आर््थथिक असमानताओ ं की अनदेखी करता है। के बीच सतं ल ु न बनाना चाहिए।
z जन जागरूकता: व््यक्तियोों को उनके व््यक्तिगत अधिकारोों और उपलब््ध
आगे की राह
उपचारोों के बारे मेें शिक्षित करना।
z व््ययापक सर्वेक्षण: संविधान के आधार पर आरक्षण के लिए कौन पात्र है,
z अंतरराष्ट्रीय सद्भाव: ऑनलाइन शोषण और डीपफे क को संबोधित करने के
इसका सटीक आकलन करने के लिए एक सामाजिक-आर््थथिक सर्वेक्षण की
लिए अन््य देशोों के साथ सहयोग करना।
आवश््यकता है।
भारत इन मद्ददों
ु पर ध््ययान देकर डिजिटल युग मेें व््यक्तित््व अधिकारोों के संरक्षण
z आर््थथि क विकास: ग्रामीण संकट का समाधान, रोजगार सृजन और क्षेत्रीय
के लिए अधिक मजबूत प्रणाली बना सकता है।
विकास से आरक्षण की माँग के मल ू कारणोों को कम किया जा सकता है।
z क्रीमी ले यर को बाहर करना: क्रीमी लेयर मानदड ं को लागू करने से यह निष्कर््ष
सनिश्
ु चित होता है कि आरक्षण से वास््तविक रूप से वंचित लोगोों को लाभ मिले। राज््य के साथ-साथ सामाजिक बहुमत के खिलाफ व््यक्तियोों की गरिमा और
मराठा आरक्षण विधेयक भारत मेें जाति-आधारित आरक्षण के जटिल मद्ु दे को समानता सुनिश्चित किए बिना सच््चचा लोकतंत्र अस््ततित््व मेें नहीीं आ सकता।
उजागर करता है। सामाजिक न््ययाय के लक्षष्य को प्राप्त करने के लिए ऐसी नीतियोों के वल मल ू अधिकारोों के द्वारा ही एक व््यक्ति अधीनता से 'नागरिक' की स््थथिति
पर सावधानीपूर््वक विचार करने की आवश््यकता है, ताकि वास््तव मेें समानता तक उठ सकता है।
और समावेशी विकास का लक्षष्य प्राप्त किया जा सके ।
िवगत वर्षषों के प्रश्न
व्यक्तित्व अधिकार (PERSONALITY RIGHTS)
z "भारत का संविधान अत््यधिक गतिशीलता की क्षमताओ ं के साथ एक जीवंत
संदर््भ तंत्र है। यह प्रगतिशील समाज के लिये बनाया गया एक संविधान है।" जीवन
z हाल ही मेें दिल््लली उच््च न््ययायालय के एक फै सले मेें एक सप्रु सिद्ध बॉलीवडु का अधिकार तथा व््यक्तिगत स््वतंत्रता के अधिकार मेें हो रहे निरंतर विस््ततार
अभिनेता को तीसरे पक्ष द्वारा उनके व््यक्तित््व अधिकारोों के अनाधिकृ त उपयोग के विशेष संदर््भ मेें उदाहरण सहित व््ययाख््यया कीजिए।  (2023)
से संरक्षण प्रदान किया गया। z "भारत के सम््पपूर््ण क्षेत्र मेें निवास करने और विचरण करने का अधिकार स््वतंत्र
z यह निर््णय किसी व््यक्ति की सार््वजनिक छवि और पहचान की सरु क्षा के महत्तत्व रूप से सभी भारतीय नागरिकोों को उपलब््ध है, किन््ततु ये अधिकार असीम नहीीं
की बढ़ती काननू ी मान््यता को दर््शशाता है। हैैं।" टिप््पणी कीजिए।  (2022)
व्यक्तित्व अधिकार क्या है ? z निजता के अधिकार पर उच््चतम न््ययायालय के नवीनतम निर््णय के आलोक
z व््यक्तित््व अधिकार किसी व््यक्ति को अपनी पहचान और उसकी प्रस््ततुति पर मेें, मौलिक अधिकारोों के विस््ततार का परीक्षण कीजिए।  (2017)
नियंत्रण प्रदान करते हैैं। z क््यया स््वच््छ पर््ययावरण के अधिकार मेें दीवाली के दौरान पटाखे जलाने के
z इसमेें अपने नाम, छवि (Image), सदृशता (Likeness) या अन््य विशिष्ट विधिक विनियम भी शामिल हैैं? इस पर भारतीय संविधान के अनच्ु ्छछेद 21
अभिज्ञापकोों (Identifiers) के व््ययावसायिक उपयोग को नियंत्रित करने का के , और इस सबं ंध मेें शीर््ष न््ययायालय के निर््णय/निर््णयोों के , प्रकाश मेें चर््चचा
अधिकार शामिल है। (उदाहरण: किसी सेलिब्रिटी द्वारा किसी विज्ञापन मेें बिना कीजिए।  (2015)
अनमु ति के उनकी छवि का उपयोग करने के लिए किसी कंपनी पर मक ु दमा z आप 'वाक् और अभिव््यक्ति स््ववातंत्रर्य' संकल््पना से क््यया समझते हैैं? क््यया इसकी
करना)। परिधि मेें घृणा वाक् भी आता है? भारत मेें फिल््मेें अभिव््यक्ति के अन््य रूपोों
व्यक्तित्व अधिकारोों का महत्त्व: से तनिक भिन््न स््तर पर क््योों हैैं? चर््चचा कीजिये।  (2014)
z पहचान पर नियंत्रण: यह सनिश्ु चित करता है कि व््यक्ति स््वयं निर््णय ले कि z सचू ना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A की इससे कथित संविधान के
उसे सार््वजनिक रूप से किस प्रकार चित्रित किया जाए। अनच्ु ्छछेद 19 के उल््ललंघन के सदं र््भ मेें विवेचना कीजिए। (2013)

मौलिक अधिकार (भाग III, अनुच्छेद 12-3 21


राज्य नीति के निदेशक सिद््धाांत
5 (DPSP) (भाग IV, अनुच्छेद 36-51)
भारतीय संविधान के भाग IV मेें अनुच््छछे द 36-51 तक राज््य के नीति-निदेशक लिए दिशा-निर्देश हैैं अर््थथात ये न््ययायालयोों द्वारा लागू नहीीं किए जा सकते हैैं।
तत्तत्व (Directive Principles of State Policy, DPSPs) अर््थथात राज््योों इस टकराव को उच््चतम न््ययायालय के निम््नलिखित प्रमख ु निर््णयोों से समझा
के लिए कुछ दिशा-निर्देशोों का एक समूह है जो सभी नागरिकोों के लिए जा सकता है:
सामाजिक और आर््थथि क न््ययाय को बढ़़ावा देने के लिए सरकार के दृष्टिकोण z न््ययायालय का निर््णय: उच््चतम न््ययायालय ने अनच्ु ्छछे द
को रे खांकित करते हैैं। ये सिद््धाांत आयरलैैंड के संविधान से प्रेरित हैैं। जहाँ मल
ू 37 को सही माना, जिसमेें कहा गया है कि निदेशक तत्तत्ववों
अधिकार न््ययायालय के विचार योग््य (Justiciable) अर््थथात न््ययायालय द्वारा को न््ययायालय द्वारा लागू नहीीं किया जा सकता।
प्रवर््तनीय हैैं, वहाँ राज््य के नीति-निदेशक तत्तत्व (DPSP) उनके विपरीत कानूनी z मूल अधिकारोों को प्राथमिकता दी गई: न््ययायालय ने
रूप से प्रवर््तनीय नहीीं हैैं। हालाँकि, वे सरकारी नीतियोों और कानून को आकार चम््पकम
घोषणा की कि मल ू अधिकार सर्वोपरि हैैं। निदेशक तत्तत्व
देने मेें महत्तत्वपूर््ण भमि
ू का निभाते हैैं। दोराईराजन
मल ू अधिकारोों के संगत और अधीनस््थ होने चाहिए।
के स (1951)
राज्य के नीति-निदेशक तत्त््वों की विशेषताएँ /महत्त्व z वरीयता स््थथापित की गई: इस ऐतिहासिक निर््णय ने
z सामाजिक, आर््थथिक और राजनीतिक न््ययाय (Social, Economic, and यह सिद््धाांत स््थथापित किया कि टकराव के मामलोों मेें मल ू
Political Justice): इनका उद्देश््य एक ऐसी सामाजिक व््यवस््थथा स््थथापित अधिकार राज््य की नीति के निदेशक तत्तत्ववों (डीपीएसपी)
करना है जहाँ सामाजिक, आर््थथिक और राजनीतिक सभी क्षेत्ररों मेें न््ययाय व पर वरीयता प्राप्त करते हैैं।
कल््ययाण सनिश्
ु चित हो सके । गोलक नाथ z इस मामले मेें न््ययायालय ने यह निर््णय दिया कि नीति
मामला निदेशक तत्तत्ववों को लागू करने के लिए मूल अधिकारोों
z न््ययायालय मेें प्रवर््तनीय नहीीं (Non-Justiciable): मल ू अधिकारोों के
(1967) को कम/कमजोर नहीीं किया जा सकता।
विपरीत, इन््हेें न््ययायालयोों के माध््यम से सीधे लागू नहीीं किया जा सकता।
z मूल सरं चना सिद््धाांत: उच््चतम न््ययायालय ने निर््णय दिया
z प्रकृति मेें निर्देशात््मक (Directive in Nature): ये निर््धधारित लक्षष्ययों को के शवानंद कि संसद राज््य की नीति के निदेशक तत्तत्ववों को लागू करने
प्राप्त करने के लिए नीतियां तैयार करने मेें सरकार को दिशा और मार््गदर््शन भारती के स के लिए संविधान (मल ू अधिकारोों सहित) मेें संशोधन
प्रदान करते हैैं। (1973) कर सकती है, लेकिन सवं िधान की "मल ू सरं चना" (मल ू
z समाजवादी आदर्शशों पर आधारित (Grounded in Socialist Ideals): अधिकारोों सहित) को नष्ट नहीीं किया जा सकता।
ये धन के समान वितरण, उचित और मानवीय कार््य वातावरण सनिश् ु चित करने z मूल अधिकारोों और राज््य की नीति के निदेशक
तथा सभी के लिए अवसर प्रदान करने जैसे विचारोों को बढ़़ावा देते हैैं। तत्तत्ववों के बीच सतं ुलन: उच््चतम न््ययायालय ने माना कि
z शासन के लिए फ्रे मवर््क (Framework for Governance): राज््य की संविधान की आधारशिला भाग III और भाग IV के
मिनर््ववा मिल््स
नीति के निदेशक तत्तत्व (डीपीएसपी) राज््य के लिए एक दीर््घकालिक दृष्टिकोण सतं ुलन पर टिकी हुई है। एक को दसू रे पर पर््णू प्राथमिकता
मामला
प्रदान करते हैैं, तथा समतावादी समाज की स््थथापना की दिशा मेें उसके प्रयासोों देने से संविधान का सामजं स््य बिगड़ जाएगा। संविधान
(1980)
को निदेशित करते हैैं। पीठ ने माना था कि मल ू अधिकार और निदेशक तत्तत्व
z समतामूलक समाज की स््थथापना (Establishment of an egalitarian समतावादी सामाजिक व््यवस््थथा स््थथापित करने वाले एक
society): राज््य की नीति के निदेशक तत्तत्व मल ू अधिकारोों और उनके ही के रथ के दो पहिए हैैं।
व््ययावहारिक कार््ययान््वयन के बीच अतं र को दरू करते हैैं। वे इन अधिकारोों को z मिनर््ववा मिल््स मामला (1980) के बाद निर््णय: उच््चतम न््ययायालय ने
परू ा करने के लिए राज््य की जिम््ममेदारी को रे खांकित करके अधिक समतामल ू क माना कि मल ू अधिकारोों और राज््य की नीति के निदेशक तत्तत्ववों के बीच कोई
समाज की स््थथापना पर बल देते हैैं। टकराव नहीीं है और वे एक दसू रे के परू क हैैं। एक के लिए दसू रे का त््ययाग करने
की कोई ज़रूरत नहीीं है।
नीति-निदेशक तत्त््वों और
न््ययायपालिका ने व््यक्तिगत अधिकारोों और राज््य के कल््ययाणकारी लक्षष्ययों के बीच
मूल अधिकारोों के बीच टकराव
संतल ु न बनाए रखने का प्रयास किया है। हालाँकि, मल ू अधिकार अधिभावी होते
भारत का संविधान मल ू अधिकारोों (FRs) और राज््य की नीति के निदेशक तत्तत्ववों हैैं, लेकिन राज््य की नीति के निदेशक तत्तत्व तब तक काननू का मार््गदर््शन कर सकते
(DPSPs) के बीच संभावित टकराव पैदा करता है। मल ू अधिकार न््ययायालयोों हैैं जब तक कि वे मल ू अधिकारोों को अनचि ु त रूप से सीमित नहीीं करते हैैं। यह
द्वारा लागू किए जा सकते हैैं, जबकि राज््य की नीति के निदेशक तत्तत्व राज््य के निरंतर सवं ाद सनिश्ु चित करता है कि सव
ं िधान प्रासगि
ं क और अनक ु ू लनीय बना रहे।
समान नागरिक संहिता (UCC) समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू है। इस कानून का उद्देश््य आदिवासी
समदु ायोों को छोड़कर सभी निवासियोों के लिए विवाह, विरासत और संपत्ति
समान नागरिक संहिता के लिए प्रयास : के अधिकार जैसे व््यक्तिगत मामलोों को शासित करने वाले कानूनोों का एक
एकीकृत राष्टट्र की ओर बढ़ते कदम सामान््य सेट स््थथापित करना है।
z समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code, UCC) भारत के संविधान मेें समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक (2024) के प्रमुख प्रावधान
अनच्ु ्छछे द- 44 के तहत एक नीति निदेशक तत्तत्व है, जो सभी भारतीय नागरिकोों z प्रयोज््यता: यह कानन ू जनजातीय काननोू ों के तहत संरक्षित लोगोों को
के लिए, चाहे उनका धर््म कुछ भी हो, व््यक्तिगत मामलोों को शासित करने छोड़कर सभी निवासियोों पर लागू होता है।
वाले समान कानूनोों के निर््ममाण का आह्वान करता है। z पंजीकरण: विवाहोों का 60 दिनोों के भीतर तथा लिव-इन संबंधोों का
z समान नागरिक संहिता आम तौर पर व््यक्तिगत जीवन के मामलोों पर लागू होगी एक महीने के भीतर पंजीकरण अनिवार््य किया गया है। (LGBTQIA+
जैसे: विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेना आदि। पार््ट नरशिप को छोड़कर)
z वर््तमान मेें, विभिन््न धार््ममिक समदु ायोों के पास धार््ममिक ग्रंथोों और रीति-रिवाजोों z विवाह प्रथाएँ: यह कानन ू बहुविवाह, निकाह-हलाला और तीन तलाक
के आधार पर अपने स््वयं के व््यक्तिगत काननू (पर््सनल लॉ) हैैं। समान नागरिक पर प्रतिबंध लगाता है।
संहिता इन धर््म आधारित विसंगतियोों को दरू करके काननू के समक्ष समानता z बाल अधिकार: यह कानन ू अमान््यकरणीय विवाहोों और लिव-इन संबंधोों
और राष्ट्रीय एकता को बढ़़ावा देगी। से पैदा हुए बच््चोों को काननू ी मान््यता प्रदान करता है।
प्रमुख घटनाक्रम और विधान z उत्तराधिकार: यह कानन ू बेटोों और बेटियोों के लिए समान संपत्ति अधिकार
(KEY DEVELOPMENTS AND LEGISLATION) सनिश्
ु चित करता है
, सहदायिक प्रणाली (Coparcenary system) को समाप्त
स्वतंत्रता से पहले: करता है और समान उत्तराधिकार अधिकार प्रदान करता है।
z लेक््स लोकी रिपोर््ट (Lex Loci Report) (1840): इस रिपोर््ट मेें काननोू ों समान नागरिक संहिता की आवश्यकता
के एकसमान संहिताकरण की आवश््यकता पर बल दिया गया, लेकिन पर््सनल z सभी के लिए समानता: समान नागरिक संहिता पर््सनल लॉ मेें धर््म के आधार
लॉ को इससे बाहर रखने का सझु ाव दिया गया। पर विद्यमान भेदभावपर््णू प्रथाओ ं को समाप्त करे गी तथा सभी नागरिकोों के लिए
z महारानी की घोषणा (1859) (Queen's 1859 Proclamation): समान अधिकारोों और अवसरोों की गारंटी देगी।
धार््ममिक मामलोों मेें हस््तक्षेप न करने का वचन दिया गया। z लैैंगिक समानता को बढ़़ावा देना: समान नागरिक संहिता मौजदू ा पर््सनल
z बी.एन. राव समिति (BN Rau Committee) (1941): व््यक्तिगत मामलोों पर लॉ को दरकिनार करके लैैंगिक आधारित पर््ववाग्रहो
ू ों को दरू कर सकती है, तथा
बढ़ते विधानोों के कारण हिदं ू काननू को सहि ं ताबद्ध करने के लिए स््थथापित की गई। अधिक न््ययायपर््णू समाज को बढ़़ावा दे सकती है।
स्वतंत्रता के बाद z धर््मनिरपेक्षता को मजबूत करना: समान नागरिक संहिता भारत के धर््मनिरपेक्ष
z राज््य की नीति के निदेशक तत्तत्ववों (डीपीएसपी) मेें शामिल: यह समान सिद््धाांतोों के अनरू
ु प है, जो धर््म की परवाह किए बिना सभी नागरिकोों पर लागू
नागरिक सहि ं ता के लिए आकांक्षा को इगि
ं त करता है। होने वाले काननोू ों का एक समान सेट स््थथापित करती है।
z हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956): हिदं ओ ु ,ं बौद्धधों, जैनियोों और सिखोों z जीवनसाथी चयन की स््वतंत्रता: सिविल काननू के सिद््धाांतोों पर आधारित
मेें बिना वसीयत के उत्तराधिकार के लिए संहिताबद्ध काननू हैैं। समान नागरिक संहिता व््यक्तियोों को धार््ममिक या जातिगत प्रतिबंधोों के बिना
z विशेष विवाह अधिनियम (1954): धार््ममिक पर््सनल लॉ के दायरे से बाहर अपने जीवनसाथी को चनु ने की अधिक स््वतंत्रता प्रदान करे गी।
सिविल विवाह के लिए काननू ी ढांचा प्रदान किया गया। z कमजोर समूहोों को सरं क्षण: समान नागरिक संहिता महिलाओ ं और धार््ममिक
अल््पसंख््यकोों के अधिकारोों के लिए अधिक मजबतू सरु क्षा प्रदान कर सकती
उच्चतम न्यायालय के निर््णय
है जिनके मौजदू ा पर््सनल लॉ से वचि ं त होने की सभं ावना है।
z शाहबानो मामला (1985): ससं द से समान नागरिक सहि ं ता की रूपरे खा z प्रगतिशील समाज की पहचान: समान नागरिक संहिता (यसू ीसी) को
तैयार करने का आह्वान किया गया। लागू करना, धार््ममिक और जातिगत विभाजन से परे , अधिक प्रगतिशील और
z सरला मुदगल मामला (1995): इस मामले मेें द्विविवाह और विवाह के समावेशी समाज की ओर एक कदम के रूप मेें देखा जा सकता है।
मामलोों मेें विभिन््न पर््सनल लॉ के बीच टकराव के मद्ु दे को संबोधित किया गया।
चुनौतियााँ और मुद्दे
z शायरा बनो बनाम भारत सघं मामला (2017): तीन तलाक (ट्रिपल तलाक)
की प्रथा को चनु ौती दी गई और इसे असवं ैधानिक घोषित किया गया। z धार््ममिक हस््तक्षेप: यसू ीसी को धार््ममिक स््वतंत्रता के उल््ललंघन के रूप मेें देखा
जा सकता है, जो पारंपरिक रूप से धार््ममिक सहि ं ताओ ं द्वारा शासित व््यक्तिगत
उत्तराखंड ने समान नागरिक संहिता लागू कर रचा इतिहास मामलोों को सीमित करती है।
स््वतंत्रता के बाद, समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक (2024) z अल््पसख् ं ्यकोों की आशंकाएँ: अल््पसंख््यक समदु ायोों को बहुसंख््यक-प्रेरित
पारित करने वाला भारत का पहला राज््य उत्तराखंड बन गया है। हालाँकि, संहिता लागू होने का भय हो सकता है, जिससे उनकी विशिष्ट सांस््ककृ तिक और
गोवा भारत का एकमात्र ऐसा राज््य है जहाँ स््वतंत्रता पूर््व से ही (1867) काननू ी परंपराओ ं का क्षरण हो सकता है।

राज्य नीतिके निदेशक सिद्ध ांत (DPSP) (भाग IV, अ नुच्छेद 23


z विविधता के लिए खतरा: समान नागरिक संहिता के माध््यम से एकरूपता
लागू करने से भारत की सांस््ककृ तिक और धार््ममिक प्रथाओ ं की विविधता भरी
समृद्ध परंपरा को नक
प्रमुख शब्दावलियाँ
ु सान पहुचँ सकता है।
z प्रारूपण सबं ंधी कठिनाइयां: सभी धार््ममिक समदु ायोों के लिए सार््वभौमिक अनुदेशोों का दस््ततावेज, न््ययायालय मेें प्रवर््त नीय नहीीं, शासन के लिए
रूप से स््ववीकार््य समान नागरिक संहिता (यसू ीसी) का निर््ममाण करना एक बड़़ी फ्रेमवर््क , कल््ययाणकारी राज््य, सामाजिक और आर््थथि क लोकतंत्र,
प्रारूपण चनु ौती हो सकती है। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) आदि।
z विधि आयोग की सिफारिश: 2018 की विधि आयोग की रिपोर््ट मेें संपर््णू
समान नागरिक संहिता लागू करने के बजाय मौजदू ा पर््सनल लॉ को संहिताबद्ध नीति निदेशक तत्त््वों के तहत स्वास्थ्य का अधिकार
करने की सिफारिश की गई थी। z भारतीय संविधान के अनच्ु ्छछे द 38, 39, 42, 43, और 47 स््ववास््थ््य के अधिकार
z सभ ं ावित सवं ैधानिक टकराव: समान नागरिक संहिता समानता के अधिकार की प्रभावी प्राप्ति सनिश्
ु चित करने के लिए राज््य पर दायित््व डालते हैैं।
(अनच्ु ्छछे द 14) और किसी भी धर््म का पालन करने और प्रचार करने की हाल के दिनोों मेें स्वास्थ्य के अधिकार की दिशा मेें प्रयास:
स््वतंत्रता का अधिकार (अनच्ु ्छछे द 25) के बीच सतं ल
ु न स््थथापित करने के सबं ंध z हाल ही मेें, राजस््थथान के मख्ु ्यमत्री ं ने सार््वजनिक स््ववास््थ््य के राजस््थथान मॉडल
मेें चितं ाएँ उत््पन््न कर सकती है। के कार््ययान््वयन की घोषणा की, जिसमेें स््ववास््थ््य के अधिकार के साथ-साथ विश्व
आगे की राह स््ववास््थ््य संगठन (डब््ल्ययूएचओ) की परिकल््पना के अनसु ार निवारक, प्राथमिक
और उपचारात््मक देखभाल के उपाय भी शामिल किए गए हैैं।
z चरणबद्ध दृष्टिकोण (Piecemeal Approach): सचु ारू अनक ु ू लन के लिए
z स््ववास््थ््य का अधिकार सनिश् ु चित करने के लिए सरकार के प्रयास:
तथा व््यवधान को न््ययूनतम करने के लिए समान नागरिक संहिता (यसू ीसी) को
 आत््मनिर््भर भारत अभियान: वर््ष 2021-22 के बजट मेें भारत सरकार
चरणबद्ध तरीके से धीरे -धीरे लागू करने पर विचार किया जाना चाहिए।
द्वारा विभिन््न आत््मनिर््भर भारत अभियान पैकेजोों की घोषणा की गई,
z समानता को प्राथमिकता (Equality at the Forefront): संहिताकरण
जिसमेें स््ववास््थ््य क्षेत्र को मजबतू करने के लिए कई अल््पकालिक और
प्रक्रिया के दौरान, इस काननू के अतं र््गत सभी नागरिकोों के लिए समता और दीर््घकालिक उपाय भी शामिल हैैं।
समान व््यवहार को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
 घरे लू विनिर््ममाण को प्रोत््ससाहन: फार््ममास््ययूटिकल््स और चिकित््ससा
z खुली चर््चचा (Open Discussion): पारदर््शशिता सनिश् ु चित करने और चितं ाओ ं उपकरणोों के घरे लू विनिर््ममाण को बढ़़ावा देने के लिए उत््पपादन-लिंक््ड
को दरू करने के लिए प्रस््ततावित संहिताबद्ध पर््सनल लॉ पर सार््वजनिक बहस प्रोत््ससाहन योजनाओ ं की घोषणा की गई है।
और खल ु ी चर््चचा को प्रोत््ससाहित किया जाना चाहिए।  'एक राष्टट्र एक राशन कार््ड’ योजना: देश भर मेें सब््ससिडी वाले अनाज
z विशे षज्ञञों को शामिल करना (Involving Experts): यह सनिश् ु चित किया तक पहुचँ को आसान बनाने के लिए, 32 राज््योों/केें द्र शासित प्रदेशोों मेें 'एक
जाना चाहिए कि प्रारूप तैयार करने की प्रक्रिया मेें विभिन््न समदु ायोों के विविध राष्टट्र एक राशन कार््ड (One Nation One Ration Card)' योजना लागू
दृष्टिकोणोों का प्रतिनिधित््व करने के लिए काननू ी और सामाजिक विशेषज्ञञों को की गई है, जिसके अतं र््गत 690 मिलियन लाभार्थी शामिल हैैं।
शामिल कर उनसे परामर््श लिया जाये।  जल, स््वच््छता, पोषण और स््वच््छ वायु के लिए आवंटन: राष्ट्रीय

z सार््वभौमिक सिद््धाांतोों की स््थथापना (Establishing Universal स््ववास््थ््य नीति (एनएचपी), 2017 मेें स््ववास््थ््य, जल और स््वच््छता के बीच
Principles): सार््वभौमिक सिद््धाांतोों के आधार पर समान नागरिक संहिता घनिष्ठ संबंधोों पर प्रकाश डाला गया है।
(यसू ीसी) तैयार की जानी चाहिए जो सभी व््यक्तियोों के लिए निष््पक्षता और  न््ययूमोकोकल वैक््ससीन (Pneumococcal vaccine): 2021 के बजट

समानता सनिश् ु चित करने मेें सक्षम हो। मेें सरकार ने देश भर मेें न््ययूमोकोकल वैक््ससीन के कवरे ज का विस््ततार करने
का निर््णय लिया था।
समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का क्रियान््वयन अधिक समावेशी, समान और
 न््ययूमोकोकल निमोनिया पाँच साल से कम उम्र के बच््चोों की मौत का एक
भारतीय धर््मनिरपेक्षता के आदर््श की दिशा मेें एक महत्तत्वपर््णू कदम हो सकता
बड़़ा कारण है। एक बार सभी को टीका लग जाने पर, यह स््वदेशी रूप से
है। हालाँकि,, इस लक्षष्य को प्राप्त करने के लिए एक संवेदनशील दृष्टिकोण की
विकसित टीका सालाना 50,000 लोगोों की जान बचा सकता है।
आवश््यकता है। व््ययापक परामर््श और भारत की समृद्ध सांस््ककृ तिक विविधता
का सम््ममान करने की प्रतिबद्धता महत्तत्वपूर््ण है। इस प्रक्रिया मेें एकरूपता के लिए विगत वर्षषों के प्रश्न
प्रयास करते समय राष्टट्र की बहुलता की रक्षा करनी चाहिए और यह सुनिश्चित z उन संभावित कारकोों पर चर््चचा करेें जो भारत को अपने नागरिकोों के लिए राज््य
करना चाहिए कि प्रत््ययेक नागरिक के हितोों और विचारोों को स््ववीकार किया जाए, की नीति के निदेशक तत्तत्ववों मेें यथा-उपबंधित समान नागरिक सहि
ं ता लागू करने
सुना जाए और सम््ममानित किया जाए। से रोकते हैैं। (2015)

24  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीित और संिवधान


मौलिक कर््तव्य (भाग IV-क,
6 अनुच्छेद 51-क)
भारत का संविधान नागरिकोों के लिए मल ू अधिकारोों को रे खांकित करते हुए z हेरोल््ड लास््ककी का दृष्टिकोण: राजनीतिक सिद््धाांतकार हेरोल््ड लास््ककी ने
उनके अनुरूप कर््तव््योों पर भी जोर देता है। संविधान के भाग IV-क (अनुच््छछे द इस भावना को दोहराया, उन््होोंने सझु ाव दिया कि "किसी व््यक्ति का अधिकार
51क) मेें निहित ये कर््तव््य कानून द्वारा लागू नहीीं किए जा सकते हैैं, लेकिन उसका कर््तव््य भी है।" यह इस बात पर जोर देता है कि हमारे द्वारा प्राप्त प्रत््ययेक
जिम््ममेदार नागरिकोों के लिए नैतिक दिशा-निर्देशोों के रूप मेें कार््य करते हैैं। अधिकार के साथ एक संगत जिम््ममेदारी भी जड़ु ़ी होती है।
मूल कर््तव्ययों की विशेषताएँ मूल कर््तव्ययों से संबंधित उच्चतम न्यायालय के निर््णय
z 1976 मेें जोड़़े गए: ये कर््तव््य मल ू रूप से संविधान का हिस््ससा नहीीं थे, इन््हेें एम््स छात्र सघं बनाम एम््स मामला: इसमेें यह पष्ु टि की गई कि मल
z ू कर््तव््य
1976 मेें 42वेें सश ं ोधन अधिनियम के माध््यम से जोड़़ा गया।
मलू अधिकारोों के समान ही महत्तत्वपर््णू हैैं।
z देशभक्ति और सामाजिक मूल््योों को बढ़़ावा देना: इनका उद्देश््य नागरिकोों
z ग्रामीण मुकदमेबाजी एवं अधिकार (केें द्र बनाम उत्तर प्रदेश राज््य
मेें देशभक्ति, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक जिम््ममेदारी की भावना को बढ़़ावा
देना है। मामला): इसमेें कर््तव््योों की अवधारणा का विस््ततार करते हुए इसमेें सरकार
और व््यक्ति दोनोों के लिए पर््ययावरण से संबंधित जिम््ममेदारियोों को शामिल किया
z सस्ं ्थथाओ ं का सम््ममान करना: कर््तव््योों मेें संविधान की रक्षा करना, राष्ट्रीय
ध््वज और राष्टट्रगान का सम््ममान करना तथा भारत की समृद्ध सामासिक संस््ककृ ति गया है।
को महत्तत्व देना शामिल है। z उच््चतम न््ययायालय के रंगनाथ मिश्रा निर््णय (2003) मेें काननू ी और
z सामाजिक सद्भाव और पर््ययावरण सरं क्षण: इनके माध््यम से सभी समदु ायोों के सामाजिक दोनोों तरह के प्रतिबंधोों के माध््यम से मल ू कर््तव््योों के प्रवर््तन का
बीच सद्भाव को बढ़़ावा देने और पर््ययावरण के सरं क्षण पर भी जोर दिया गया है। तर््क दिया गया।
z व््यक्तिगत और सामूहिक प्रयास: सभी मल ू कर््तव््य नागरिकोों को अपने अधिकारोों और कर््तव्ययों को समन्वित करने के लाभ
प्रयासोों मेें उत््ककृ ष्टता के लिए प्रयास करने के लिए प्रोत््ससाहित करते हैैं, जिससे
एक स््वस््थ समाज अधिकारोों और कर््तव््योों के बीच एक मजबतू सबं धं पर निर््भर करता
राष्टट्र की प्रगति मेें योगदान मिल सके ।
है। वे एक सतं लु ित सामाजिक अनबु धं के परू क पहलओ ु ं के रूप मेें कार््य करते हैैं।
z कर््तव््य उत्तरदायित््व की याद दिलाते हैैं: कर््तव््य अधिकारोों का उपयोग करने
मूल कर््तव्ययों और अधिकारोों के बीच टकराव
के साथ आने वाली जिम््ममेदारियोों के लिए एक महत्तत्वपर््णू अनस्ु ्ममारक के रूप
z के शवानंद भारती मामले मेें दिए गए फै सले के बाद उच््चतम न््ययायालय ने
मेें कार््य करते हैैं। ये उत्तरदायित््व की भावना को बढ़़ावा देते हैैं और व््यक्तियोों
मलू कर््तव््योों और मल
ू अधिकारोों के बीच सबं ंधोों को विस््ततार से समझाया।
को अपने अधिकारोों का रचनात््मक उपयोग करने के लिए प्रोत््ससाहित करते हैैं।
z उच््चतम न््ययायालय ने कहा कि मल ू अधिकार और राज््य की नीति के
z व््यक्तिगत स््वतंत्रता की रक्षा करना: अपने कर््तव््योों को परू ा करना वास््तव
निदेशक तत्तत्व एक-दसू रे के परू क हैैं तथा कल््ययाणकारी राज््य की स््थथापना मेें
एक-दसू रे की भमि मेें व््यक्तिगत स््वतंत्रता को मजबतू कर सकता है। व््यक्ति समाज मेें जिम््ममेदारी से
ू का को परू ा करते हैैं।
भाग लेकर ऐसा वातावरण बनाने मेें योगदान देता है जहाँ सभी के अधिकारोों
अधिकार और कर््तव्य का सम््ममान किया जाता है।
z सामाजिक पूज ँ ी को बढ़़ावा देना: कर््तव््य आपसी सम््ममान और सहयोग को
परस््पर जुड़़े नागरिकोों के मल ू अधिकार और मल ू कर््तव््योों की अवधारणा एक
स््वस््थ समाज और राजनीतिक व््यवस््थथा की आधारशिला है। यह सिद््धाांत भारत प्रोत््ससाहित करके एक मजबतू सामाजिक ताने-बाने (सामाजिक पँजू ी) मेें योगदान
के संविधान मेें निहित है, जो मल ू अधिकारोों - नागरिक राज््य से क््यया उम््ममीद करते हैैं। जब समाज का प्रत््ययेक नागरिक अपनी ज़़िम््ममेदारियोों को परू ा करता
कर सकते हैैं - और मल ू कर््तव््योों - नागरिकोों की राज््य और समाज के प्रति है, तो परू े समाज को लाभ होता है।
ज़़िम््ममेदारियोों - दोनोों को रे खांकित करता है। z राज््य के लक्षष्ययों और स््ववैच््छछिक सेवा का समर््थन करना: कर््तव््योों को परू ा

दार््शनिक और संवैधानिक आधार करने से राज््य को जन कल््ययाण के अपने लक्षष्ययों को प्राप्त करने मेें मदद मिलती
z महात््ममा गांधी की दूरदर््शशिता: महात््ममा गांधी ने अपनी कृति "हिदं स््वराज" है। इसके अतिरिक्त, कर््तव््य स््ववैच््छछिक सेवा को प्रेरित कर सकते हैैं, नागरिक
मेें इस बात पर जोर दिया है कि "वास््तविक अधिकार कर््तव््योों के पालन का जड़ु ़ाव की भावना को बढ़़ावा दे सकते हैैं।
परिणाम हैैं।" यह शक्तिशाली कथन अधिकारोों और कर््तव््योों के बीच अतं र््ननिहित z शांति और सद्भाव सनिश् ु चित करना: ऐसे समाज मेें शांति और सद्भाव की
सबं ंध को रे खांकित करता है, और यह सझु ाव देता है कि वे एक ही सिक््कके अधिक संभावना होती है जहाँ व््यक्ति जिम््ममेदारी से अपने अधिकारोों का प्रयोग
के दो पहलू हैैं। करते हैैं और कर््तव््योों के माध््यम से योगदान करते हैैं।
अधिकारोों और कर््तव्ययों के बीच संतल
ु न बनाने की चुनौतियााँ z राष्टट्रगौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 (Prevention of
यद्यपि अधिकारोों और कर््तव््योों के बीच घनिष्ट संबंध है, लेकिन सही संतुलन Insults to National Honour Act, 1971): यह काननू भारत की
बनाना चनु ौतीपूर््ण हो सकता है: संप्रभतु ा और अखडं ता को बनाए रखने और उसकी रक्षा करने के कर््तव््य
z न््ययायालय मेें विचार किए जाने की योग््यता बनाम प्रवर््तन के अनरू ु प है।
(Justiciability vs. Enforcement): अधिकार आमतौर पर न््ययायालयोों z नागरिक अधिकार सरं क्षण अधिनियम, 1955 (The Protection of

मेें प्रवर््तनीय (न््ययायालय के विचार के योग््य) होते हैैं, जबकि कर््तव््य प्रायः नहीीं Civil Rights Act, 1955): यह अधिनियम धर््म, नस््ल, जाति, लिंग या
होते। काननू ी स््थथिति मेें इस अतं र से यह धारणा बन सकती है कि अधिकार जन््म स््थथान के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है तथा सभी भारतीयोों के
अधिक महत्तत्वपर््णू हैैं। बीच सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़़ावा देने के कर््तव््य को
z अधिकारोों और कर््तव््योों की प्रकृति (Nature of Rights and Duties): कायम रखता है।
अधिकारोों और कर््तव््योों की प्रकृति और दायरा काफी भिन््न हो सकता है। कुछ z भारतीय दड ं सहित
ं ा (1860) (Indian Penal Code, 1860): भारतीय
मामलोों मेें, वे परस््पर विरोधी भी लग सकते हैैं। दडं सहि ं ता की कई धाराएँ, जैसे चोरी या गडंु ागर्दी के विरुद्ध धाराएँ, अप्रत््यक्ष
z अस््पष्टता और व््यक्तिपरकता (Vagueness and Subjectivity): कुछ रूप से दसू रोों के अधिकारोों और सार््वजनिक संपत्ति का सम््ममान करने के कर््तव््य
कर््तव््य अस््पष्ट रूप से परिभाषित या व््यक्तिपरक हो सकते हैैं, जिससे धार््ममिक पर बल देती हैैं।
मान््यताओ ं या स््थथापित सामाजिक मानदडों ों के साथ टकराव हो सकता है। z वन््यजीव सरं क्षण अधिनियम, 1972: यह अधिनियम वन््यजीवोों को संरक्षण

z अधिकार पूर््व शर््त के रूप मेें : कुछ अधिकारोों को परू ा करना कर््तव््योों को परू ा प्रदान करता है, जो पर््ययावरण का सरं क्षण और सवर्दद्ध ं न करने तथा सभी जीवित
करने के लिए एक शर््त हो सकती है। उदाहरण के लिए, किसी व््यक्ति का शिक्षा प्राणियोों के प्रति दया रखने के कर््तव््य के अनरू ु प है।
का अधिकार उसे अपने नागरिक कर््तव््योों को परू ा करने के लिए आवश््यक z वन सरं क्षण अधिनियम, 1980: यह अधिनियम प्राकृतिक पर््ययावरण के
ज्ञान और कौशल हासिल करने की अनमति ु देता है। संरक्षण और सधु ार के कर््तव््य के अनरू ु प होकर वनोों का संरक्षण करता है।
मूल कर््तव्ययों की आलोचनाएँ भारत के संविधान मेें निहित मल ू कर््तव््य सभी नागरिकोों के लिए एक नैतिक
z अधूरी सच ू ी (Incomplete List): आलोचकोों का तर््क है कि मल ू कर््तव््योों उत्तरदायित््व के रूप मेें काम करते हैैं, भले ही उन््हेें कानून द्वारा प्रत््यक्ष रूप से
की सचू ी सपं र््णू नहीीं है। इसमेें एक जिम््ममेदार नागरिक से अपेक्षित सभी महत्तत्वपर््णू लागू नहीीं किया जा सकता है। ये कर््तव््य हमेें याद दिलाते हैैं कि हमेें प्राप्त मल ू
कर््तव््योों को शामिल नहीीं किया जा सकता है। अधिकार सभी मल ू कर््तव््योों की संगत जिम््ममेदारियोों के साथ आते हैैं। कोविड-19
महामारी जैसी भविष््य की चनु ौतियोों का सामना करने के लिए हमारे अधिकारोों
z अस््पष्ट शब््ददावली (Unclear Wording): कुछ कर््तव््योों को अस््पष्ट रूप से
के साथ-साथ इन कर््तव््योों को बनाए रखना पहले से कहीीं अधिक महत्तत्वपूर््ण है।
वर््णणित किया गया है, जिससे भ्रम या गलत व््ययाख््यया की संभावना हो सकती है।
z सदिं ग््ध समावेश (Questionable Inclusion): कुछ आलोचक इन
कर््तव््योों को सवं िधान मेें शामिल करने की आवश््यकता पर सवाल उठाते हैैं, प्रमुख शब्दावलियाँ
उनका तर््क है कि ये नैतिक सिद््धाांत हैैं जिन््हेें अधिकांश नागरिक समझते हैैं।
सामाजिक और राजनीतिक जीवन; सद्भावपूर््ण समाज; न््ययायिक
z सीमित महत्तत्व (Limited Weight): चकि ँू मलू कर््तव््योों को संविधान के व््ययाख््ययाएँ; लोकतांत्रिक समाज, नागरिक अधिकार, प्रवर््त नीय, मूल
भाग IV (अनच्ु ्छछे द 51 क) के अन््तर््गत एक परिशिष्ट के रूप मेें रखा गया है, कर््त व््य, वन््यजीव संरक्षण अधिनियम, वन संरक्षण अधिनियम आदि।
इसलिए उन््हेें मल ू अधिकारोों की तरह काननू द्वारा लागू नहीीं किया जा सकता
है, जिससे उनका कथित महत्तत्व कम हो सकता है। विगत वर्षषों के प्रश्न
विधानोों के माध्यम से प्रवर््तन z भारत का सवं िधान राष्टट्र की एकता और अखडं ता को बनाए रखने के लिए
मलू कर््तव््य, हालाँकि, कानून द्वारा सीधे लागू नहीीं किए जा सकते, लेकिन केें द्रीकरण की प्रवृत्ति प्रदर््शशित करता है। महामारी रोग अधिनियम, 1897;
विभिन््न मौजूदा विधानोों मेें उनकी प्रतिध््वनि मिलती है। इससे संबंधित कुछ आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 और हाल ही मेें पारित कृषि अधिनियमोों
महत्तत्वपूर््ण उदाहरण इस प्रकार हैैं: के परिप्रेक्षष्य मेें स््पष्ट करेें। (2020)

26  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीित और संिवधान


नागरिकता
7 (भाग II, अनुच्छेद 5-11)
नागरिकता की अवधारणा एक लोकतांत्रिक राष्टट्र का आधार होती है। यह z पंजीकरण द्वारा (By Registration): यह तरीका भारतीय मल ू के उन लोगोों
एक व््यक्ति और राज््य के बीच संबंधोों को परिभाषित करती है, उन अधिकारोों, के लिए है जो भारत मेें सात वर्षषों से रह रहे हैैं या किसी भारतीय नागरिक
विशेषाधिकारोों और कर््तव््योों को रे खांकित करती है जो उन््हेें संगठित करते हैैं। से विवाहित हैैं और आवेदन दाखिल करने से पहले सात वर्षषों तक भारत मेें
भारत के संविधान मेें भाग II के अन््तर््गत अनुच््छछे द 5-11 मेें नागरिकता के रह चकु े हैैं।
संबंध मेें विस््ततृत प्रावधान किए गए हैैं। इन प्रावधानोों ने शरू
ु मेें सहज नागरिकता z देशीयकरण द्वारा (By Naturalisation): यह उन लोगोों के लिए एक
अधिकार स््थथापित किए, उन््हेें प्राप्त करने और त््ययागने के तरीकोों की रूपरे खा अधिक सामान््य श्रेणी है जो उपरोक्त के अतं र््गत नहीीं आते हैैं और भारतीय
तैयार की, और संसद को इस विषय पर आगे कानून बनाने का अधिकार दिया। नागरिक बनना चाहते हैैं। इसके लिए निवास, अच््छछा चरित्र, भारत मेें स््थथायी
नागरिकता अधिनियम, 1955 रूप से रहने का इरादा आदि और नागरिकता अधिनियम, 1955 की तीसरी
अनसु चू ी मेें उल््ललिखित अन््य अर््हताएँ आवश््यक हैैं।
z इस अधिनियम ने भारत मेें नागरिकता से संबंधित काननू को समेकित किया और
नागरिकता प्राप्त करने के पाँच तरीके बताए जिनमेें जन््म, वंशक्रम, पंजीकरण, नागरिकता (संशोधन ) नियम, 2024
देशीयकरण और राज््यक्षेत्र का समावेश शामिल हैैं। इस अधिनियम मेें अब संदर््भ
तक छः बार 1986, 1992, 2003, 2005, 2015 और 2019 मेें संशोधन गृह मत्राल
z ं य (एमएचए) ने नागरिकता सश ं ोधन अधिनियम (सीएए) 2019 को
किया जा चकु ा है। लागू करने की दिशा मेें एक महत्तत्वपर््णू कदम उठाया है। हाल ही मेें, उन््होोंने
भारतीय विदेशी नागरिकता नागरिकता नियम, 2009 मेें संशोधन किया और नागरिकता (संशोधन) नियम,
z यह व््यवस््थथा नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2005 द्वारा पेश की गई। 2024 को अधिसचि ू त किया।
z यह अधिनियम भारतीय मल ू के विदेशियोों और भारतीय नागरिकोों या ओसीआई z दिसंबर 2019 मेें संसद ने संविधान के अनच्ु ्छछे द 11 के तहत नागरिकता
कार््डधारकोों के जीवनसाथियोों को अनिश्चित काल तक भारत मेें काम करने संशोधन अधिनियम (सीएए) को पारित किया था, जिसके बाद राष्टट्रपति ने भी
और रहने की अनमति ु देता है। इसे मजं रू ी दे दी थी। हालाँकि,, गृह मत्राल
ं य द्वारा क्रियान््वयन संबंधी नियम न
बनाए जाने के कारण यह काननू लागू नहीीं हो सका।
समाचार मेें मुद्दे
गुजरात मेें पाकिस््ततान से आए 108 प्रवासियोों को भारतीय नागरिकता 2024 के नियमोों की मुख्य विशेषताएँ
प्रदान की गई। z आवेदन हेतु पात्रता: नागरिकता (संशोधन) नियम, 2024 कई श्रेणियोों
संदर््भ के लोगोों के लिए नागरिकता का मार््ग प्रशस््त करते हैैं, जिनमेें निम््नलिखित
z गहृ मंत्रालय के 2021 के आदेश द्वारा गजु रात, छत्तीसगढ़, राजस््थथान, शामिल हैैं:
 भारतीय वंश वाले व््यक्ति
हरियाणा और पंजाब के कुछ जिलोों के जिला कलेक््टरोों को नागरिकता आवेदनोों
पर विचार करने का अधिकार दिया गया है। इसके तहत हाल ही मेें पाकिस््ततान  भारतीय नागरिकोों के जीवन-साथी

से आए कुछ प्रवासियोों को नागरिकता प्रदान की गई है।  भारतीय नागरिकोों के बच््चचे

z यह आदेश अफगानिस््ततान, बांग््ललादेश और पाकिस््ततान के अल््पसंख््यक  भारत से ऐतिहासिक सब ं ंध रखने वाले व््यक्ति
समदु ायोों के आवेदनोों पर लागू होगा। z अतिरिक्त शर्ततें: देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने के इच््छछुक आवेदकोों
भारतीय नागरिकता प्राप्ति के आधार को निम््नलिखित शर्ततें परू ी करनी होोंगी:
 अपने आवेदन विवरण और उत्तम चरित्र संदर्भभों की पष्ु टि करने वाले विवरण
भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के चार मख्ु ्य तरीके हैैं:
z जन््म से (By Birth): यह तभी लागू होता है जब व््यक्ति का जन््म भारत मेें प्रस््ततुत करना।
26 जनवरी 1950 के बाद हुआ हो, तथा इसमेें विशिष्ट तिथि और व््यक्ति के  8वीीं अनस ु चू ी मेें उल््ललिखित किसी भारतीय भाषा मेें दक्षता प्रदर््शशित करना।
माता-पिता की नागरिकता की स््थथिति के आधार पर कुछ भिन््नताएँ हो सकती हैैं। z सरलीकृत प्रमाण: नए नियमोों से राष्ट्रीयता साबित करने का बोझ कम हो गया
z वंशक्रम द्वारा (By Descent): यदि किसी व््यक्ति का जन््म 26 जनवरी, 1950 है। आवेदक अब प्रवेश प्रमाण (Entry proof) के रूप मेें विभिन््न दस््ततावेजोों
को या उसके बाद भारत से बाहर हुआ है और उसके माता-पिता मेें से कोई का उपयोग कर सकते हैैं, जिनमेें वीज़़ा, निवास परमिट और यहां तक कि
एक उस समय भारतीय नागरिक था, तो यह विकल््प उसके लिए उपलब््ध है। आधार कार््ड भी शामिल हैैं।
z पूर््व नागरिकता का त््ययाग: यदि भारतीय नागरिकता प्रदान की जाती है, तो चिंताएँ और आलोचनाएँ :
आवेदकोों को अपनी वर््तमान नागरिकता का त््ययाग करना होगा। z प्रवेश की तिथि: पात्रता हेतु आवेदन की अतिम ं (कट-ऑफ) तिथि (31
z आवेदन प्रक्रिया: आवेदन पत्र एक निर््ददिष्ट जिला स््तरीय समिति के दिसंबर, 2014) मनमानी प्रतीत होती है।
माध््यम से एक अधिकार प्राप्त समिति को इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रस््ततुत किए z सभ ं ावित भेदभाव: अधिनियम का धर््म पर के न्द्रित होना भारत की समानता
जाते हैैं। और धर््मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्धता का उल््ललंघन हो सकता है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए ), 2019 z उत््पपीड़न का प्रमाण: धार््ममिक उत््पपीड़न के दावोों को सत््ययापित करने के लिए
स््पष्ट प्रणाली की कमी के संबंध मेें चितं ाएँ मौजदू हैैं।
z उद्देश््य: नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) भारत के नागरिकता
अधिनियम (1955) मेें संशोधन करके विशिष्ट धार््ममिक अल््पसंख््यकोों को z असमान व््यवहार: अन््य देशोों और धर्ममों के उत््पपीड़़ित अल््पसंख््यकोों को इसके
दायरे से बाहर रखे जाने से निष््पक्षता पर सवाल उठते हैैं।
नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करता है।
z अंतरराष्ट्रीय सबं ंधोों पर प्रभाव: यह अधिनियम पड़़ोसी देशोों के साथ संबंधोों
z लाभार्थी: इस काननू ने 31 दिसंबर, 2014 से पहले पाकिस््ततान, बांग््ललादेश या
मेें तनाव पैदा कर सकता है।
अफगानिस््ततान से भारत मेें प्रवेश करने वाले हिदं ओ ु ,ं सिखोों, बौद्धधों, जैनियोों,
पारसियोों और ईसाइयोों को नागरिकता प्रदान करने मेें तेजी ला दी है, बशर्ते आगे की राह
उन््हेें अपने देश मेें धार््ममिक उत््पपीड़न का सामना करना पड़़ा हो। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का उद्देश््य शरणार््थथियोों की मदद करना है,
z प्रावधानोों मेें रियायतेें: इन अल््पसंख््यकोों को विदेशियोों विषयक अधिनियम लेकिन उठाई गई चिंताओ ं को संबोधित करना न््ययायपर््णू और समावेशी दृष्टिकोण
(Foreigners Act) और पासपोर््ट अधिनियम के कुछ प्रावधानोों से छूट या के लिए महत्तत्वपूर््ण है। चँकि
ू , यह अधिनियम धर््म के आधार पर भेदभाव करता
रियायत दी गई है, बशर्ते वे निर््धधारित तिथि से पहले भारत मेें प्रवेश कर चक ु े होों। है, इसलिए यह धर््मनिरपेक्षता की अवधारणा की जड़ पर प्रहार करता है, जो
z निवास की अवधि को कम किया जाना: नागरिकता संशोधन अधिनियम संविधान की मल ू संरचना का अहम भाग है। इसलिए, सभी उत््पपीड़़ित व््यक्तियोों
को नागरिकता प्रदान करके नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को धर््म-
(सीएए) मेें इन समहोू ों के लिए देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने के लिए
तटस््थ बनाया जा सकता है। हालाँकि, राष्ट्रीय सरु क्षा की चिंताओ ं को ध््ययान
निवास की अवधि को 11 वर््ष से घटाकर 5 वर््ष कर दिया गया है।
मेें रखते हुए, इस तरह की प्रक्रिया को सावधानीपूर््वक और धीरे -धीरे अपनाया
अधिनियम के पक्ष मेें तर््क जाना चाहिए।
z मानवीय राहत: नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पाकिस््ततान,
अफगानिस््ततान और बांग््ललादेश मेें धार््ममिक भेदभाव का सामना कर रहे उत््पपीड़़ित
प्रमुख शब्दावलियाँ
अल््पसख्ं ्यकोों के लिए नागरिकता का प्रावधान करता है।
z आप्रवासियोों मेें अंतर करना: इस अधिनियम का उद्देश््य अवैध आप्रवासन नागरिकता, विदेशी नागरिक, देशीयकरण द्वारा नागरिकता, एकल
का प्रबंधन करते हुए शरणार््थथियोों की पहचान करना और उनके लिए काननू ी नागरिकता, नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), उत््पपीड़़ित
मार््ग उपलब््ध कराना है। अल््पसंख््यक, आप्रवासन आदि।

28  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीित और संिवधान


अनुसूचित एवं जनजातीय क्षेत्र
8 (भाग X, अनुच्छेद 244 -244 ए)
भारत के संविधान के भाग X, विशेष रूप से अनुच््छछे द 244 मेें "अनुसचि ू त z साझा शासन:
क्षेत्ररों (Scheduled areas)" और "जनजातीय क्षेत्ररों (Tribal areas)" के रूप  राज््य प्रशासन: राज््य सरकारोों के पास अपनी सीमाओ ं के भीतर स््थथित
मेें जाने जाने वाले निर््ददिष्ट क्षेत्ररों के लिए एक विशेष प्रशासनिक प्रणाली की अनसु चिू त क्षेत्ररों पर कार््यकारी शक्ति होती है।
रूपरे खा प्रस््ततुत की गई है। इन क्षेत्ररों मेें बड़़ी संख््यया मेें जनजातीय आबादी रहती  केें द्रीय निगरानी: राज््य का राज््यपाल प्रशासन के लिए राष्टट्रपति के प्रति
है तथा उनका कल््ययाण और विकास सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन के लिए जवाबदेह होता है और उसे वार््षषिक रिपोर््ट प्रस््ततुत करनी होती है। केें द्र सरकार
एक अद्वितीय दृष्टिकोण की आवश््यकता होती है: इन क्षेत्ररों के प्रबंधन के संबंध मेें राज््य को निर्देश भी जारी कर सकती है।
1. अनुसूचित क्षेत्र: ये वे क्षेत्र हैैं जहाँ जनजातीय आबादी अधिक है। इनके
z जनजाति सलाहकार परिषद: अनसु चि ू त क्षेत्ररों वाले राज््योों को एक जनजाति
संबंध मेें संविधान की पाँचवीीं अनुसूची के तहत स््वशासन और सांस््ककृ तिक
सलाहकार परिषद की स््थथापना करनी होती है। राज््य विधानमडं ल के जनजातीय
संरक्षण के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैैं।
प्रतिनिधियोों के बहुमत वाली यह परिषद राज््यपाल को अनसु चि ू त जनजातियोों
2. जनजातीय क्षेत्र: असम, मेघालय, त्रिपरु ा और मिजोरम राज््योों मेें स््थथित इन
के कल््ययाण और विकास से संबंधित मामलोों पर सलाह देती है।
क्षेत्ररों का प्रशासन केें द्र या राज््य सरकार द्वारा जनजातीय कल््ययाण पर केें द्रित है।
सवं िधान की छठी अनसु चू ी इन जनजातीय क्षेत्ररों के प्रशासन से सबं ंधित है। z कानूनी ढाँचा
 विद्यमान कानूनोों को अनुकूलित करना: राज््यपाल अनस ु चि
ू त क्षेत्र
पााँचवीीं अनुसूची के भीतर विशिष्ट केें द्रीय या राज््य काननोू ों के अनप्रु योग को संशोधित या
z भारत के सवं िधान की पाँचवीीं अनसु चू ी मेें शामिल अनसु चि ू त क्षेत्ररों को उनके समाप्त कर सकता है।
निवासियोों की विशिष्ट आवश््यकताओ ं के कारण विशेष दर््जजा प्राप्त है। इन क्षेत्ररों  सीमा शुल््क विनियम बनाना: राज््यपाल जनजाति सलाहकार परिषद
मेें ऐसे देशी समदु ाय रहते हैैं, जिन््हेें अक््सर सामाजिक और आर््थथिक चनु ौतियोों के परामर््श से अनसु चि ू त क्षेत्र मेें शांति और सश ु ासन बनाए रखने के लिए
का सामना करना पड़ता है। विनियम बना सकते हैैं। ये विनियम निम््नलिखित से संबंधित हो सकते हैैं:
z सरकार इन क्षेत्ररों मेें अतिरिक्त सहायता की आवश््यकता को स््ववीकार करती है।  जनजातीय सदस््योों के बीच भमि ू हस््तताांतरण को नियंत्रित करना;
इसके परिणामस््वरूप, मानक प्रशासनिक प्रणाली को इन समदु ायोों के विकास जनजातीय समदु ायोों के भमि ू आवंटन को विनियमित करना; क्षेत्र
के लिए आवश््यक संसाधन प्रदान करने के लिए अनक ु ू लित किया जाता मेें संचालित धन उधार देने वाले व््यवसायोों की निगरानी करना;
है। इसमेें उनका कल््ययाण सनिश् ु चित करने मेें केें द्र सरकार की बड़़ी भमि ू का मौजदू ा केें द्रीय या राज््य काननोू ों का अधिक्रमण करना (राष्टट्रपति के
शामिल है। अनमु ोदन के अधीन)
अनुसूचित क्षेत्र प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ z पेसा, 1996 (PESA, 1996): पचं ायत उपबंध (अनसु चि ू त क्षेत्ररों पर विस््ततार)
अधिनियम, 1996 (The Provisions of Panchayat Extension to
z अनुसचित ू क्षेत्ररों की पहचान करना (Identifying Scheduled Areas):
Scheduled Areas Act, 1996 ) पाँचवीीं अनसु चू ी के क्षेत्ररों मेें लागू है।
राष्टट्रपति के पास कई कारकोों के आधार पर विशिष्ट क्षेत्ररों को "अनसु चि ू त क्षेत्ररों"
के रूप मेें निर््ददिष्ट करने का अधिकार है: z आयोग की नियुक्ति: राष्टट्रपति किसी भी समय और इस संविधान के प्रारंभ
से दस वर््ष की समाप्ति पर, आदेश द्वारा, राज््योों मेें अनसु चि ू त क्षेत्ररों के प्रशासन
 अधिक जनजातीय जनसख् ं ्यया: इन क्षेत्ररों मेें जनजातीय समदु ायोों का
और अनसु चि ू त जनजातियोों के कल््ययाण पर रिपोर््ट देने के लिए एक आयोग
अधिक सके ं ें द्रण होना चाहिए।
की नियक्ु ति कर सके गा (अनच्ु ्छछे द 339)
 भौगोलिक विचार: क् इन क्षेत्ररों को भौगोलिक दृष्टि से सघन और उचित
z पाँचवीीं और छठी अनुसच ू ी मेें सश
ं ोधन: पाँचवीीं और छठी अनसु चू ी दोनोों के
आकार का होना चाहिए।
लिए अनच्ु ्छछे द 368 को लागू किए बिना कोई भी संशोधन किया जा सकता है।
 प्रशासनिक इकाई: क्षेत्र एक व््यवहार््य प्रशासनिक इकाई होना चाहिए

जैसे कि जिला, ब््ललॉक या लघु जनजातीय इकाई। पेसा के कार्यान्वयन मेें चुनौतियााँ
 आर््थथि क असमानता: यह क्षेत्र आसपास के क्षेत्ररों की तल ु ना मेें आर््थथिक z सीमित ससं ाधन: "3F" - निधि, कार््य और तंत्र (Funds, Functions, and
रूप से वंचित होना चाहिए। Functionaries) की कमी पेसा के प्रभावी कार््ययान््वयन मेें बाधा डालती है।
z नौकरशाही सबं ंधी बाधाएँ: अतिम ं निर््णय अक््सर अधिकारियोों के हाथ मेें असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के लिए विशेष व्यवस्था क्ययों?
होता है, जिससे ग्राम सभा कि निर््णय लेने की प्रक्रिया प्रभावित होती है। z विशिष्ट सांस््ककृ तिक पहचान: सवं िधान इन चार पर्ू वोत्तर राज््योों (असम,
z जन जागरूकता की कमी: पेसा और ग्राम सभा के कार्ययों के बारे मेें आम मेघालय, त्रिपरु ा और मिजोरम) को उनकी विशिष्ट सांस््ककृ तिक पहचान के
लोगोों मेें सीमित जानकारी के कारण उनकी भागीदारी कम होती है। कारण विशेष स््ववायत्तता प्रदान करता है।
z जनजातीय अधिकारोों की अनदेखी: भमि ू अधिग्रहण ग्राम सभा की सहमति z अन््य जनजातियोों से भिन््न: भारत के अन््य भागोों के जनजातीय समदु ायोों ने
के बिना होता है, जो पेसा सिद््धाांतोों का उल््ललंघन है। मख्ु ्यधारा की संस््ककृ ति को आत््मसात कर लिया है, इसके विपरीत इन राज््योों
z राज््य कानूनोों मेें टकराव: अनसु चिू त क्षेत्ररों के लिए राज््य काननू अक््सर केें द्रीय की जनजातियोों ने बड़़े पैमाने पर अपनी पारंपरिक जीवन शैली, रीति-रिवाजोों
पेसा अधिनियम की भावना के विपरीत होते हैैं। और सभ््यता को सरं क्षित रखा है।
z प्रयासोों का दोहराव: भमि ू अधिग्रहण अधिनियम, 2013 जैसे बाद के काननू , z सांस््ककृ तिक जड़ों की रक्षा: इस विशिष्ट सांस््ककृ तिक पहचान के लिए स््वशासन
पेसा प्रावधानोों को दोहराते हैैं, जिससे भ्रम की स््थथिति पैदा होती है। और स््ववायत्तता सनिश्
ु चित करने हेतु विशेष व््यवस््थथा की आवश््यकता होती
है, जिससे इन जनजातियोों को अपनी विरासत को संरक्षित करने मेें सहायता
आगे की राह मिलती है।
z प्रतिनिधियोों को सशक्त बनाना: निर््ववाचित पदाधिकारियोों के लिए प्रशिक्षण
छठी अनुसूची के क्षेत्ररों मेें प्रशासन की विशेषताएँ :
कार््यक्रम ग्राम सभाओ ं का प्रभावी ढंग से नेतत्ृ ्व करने की उनकी क्षमता को
बढ़़ाएगा। z राज््यपाल का प्राधिकार (Governor's Authority): राज््यपाल के पास
स््वशासी जिलोों की सीमाओ ं को निर््धधारित और संशोधित करने तथा विविध
z जागरूकता पैदा करना: समदु ाय के सदस््योों और अधिकारियोों सहित सभी
जनजातियोों वाले जिलोों को अलग क्षेत्र मेें विभाजित करने की शक्ति है।
हितधारकोों के लिए काननू ी जानकारी ग्राम सभा के सचु ारू संचालन के लिए
महत्तत्वपर््णू है। z स््वशासी जिले (Autonomous districts): इन राज््योों मेें जनजातीय क्षेत्ररों
को स््वशासी जिलोों के रूप मेें गठित किया गया है, जिनमेें से प्रत््ययेक मेें एक
z जनजातीय अधिकारोों का समर््थन करना: सिविल सोसायटी को जनजातीय
स््वशासी जिला परिषद है और प्रत््ययेक स््वशासी प्रदेश मेें 30 सदस््योों वाली एक
समदु ायोों के अधिकारोों की रक्षा के लिए अधिकार-आधारित दृष्टिकोण को
अलग प्रादेशिक परिषद है (26 सदस््य 5 साल के कार््यकाल के लिए निर््ववाचित
सक्रिय रूप से बढ़़ावा देना चाहिए। किए जाते हैैं और 4 राज््यपाल द्वारा नामनिर््ददिष्ट किए जाते हैैं)। ये जिले इन
z पेसा का कार््ययान््वयन: केें द्र सरकार को राज््योों से आग्रह करना चाहिए कि वे राज््योों के भीतर मौजदू हैैं, उनके पास कुछ स््व-शासी शक्तियाँ हैैं।
पंचायत उपबंध (अनसु चि ू त क्षेत्ररों पर विस््ततार) अधिनियम (पेसा) के प्रावधानोों z जिला एवं प्रादेशिक परिषदेें (District and Regional Councils):
का पर््णू अनपु ालन करने के लिए मौजदू ा काननोू ों मेें तेजी से सश ं ोधन करेें। निर््ववाचित प्रतिनिधि अपने-अपने क्षेत्ररों का प्रबंधन करने के लिए इन परिषदोों
z सस ं ाधन प्रबंधन: पेसा क्षेत्ररों मेें लघु वन उपज, जल निकायोों और भमि ू का गठन करते हैैं ।
ससं ाधनोों का स््ववामित््व ग्राम सभाओ ं को हस््तताांतरित करने के लिए भारतीय z विधायी शक्तियां (Legislative Powers): ये परिषदेें भमि ू प्रबंधन,
वन अधिनियम और भमि ू अधिग्रहण अधिनियम जैसे प्रासंगिक अधिनियमोों सामाजिक रीति-रिवाजोों और ग्राम प्रशासन जैसे विशिष्ट मामलोों पर काननू
मेें संशोधन आवश््यक है। बना सकती हैैं। हालाँकि, इन काननोू ों को राज््यपाल की मज़ं ऱू ी की आवश््यकता
सरकारी पहलेें (Government Initiatives) होती है।
z न््ययायिक शक्तियां (Judicial Powers): परिषदेें अपने क्षेत्राधिकार मेें
z वन अधिकार अधिनियम, 2006: इस अधिनियम का उद्देश््य वन मेें रहने
जनजातीय विवादोों को निपटाने के लिए न््ययायालयोों की स््थथापना कर सकती
वाली अनसु चि
ू त जनजातियोों के वन अधिकारोों को मान््यता देना और उन््हेें वन
हैैं, हालाँकि, उच््च न््ययायालय तक पहुचँ ने वाली अपीलोों पर राज््यपाल द्वारा
अधिकार प्रदान करना है।
सीमाएँ निर््धधारित की जा सकती हैैं।
z वनबंधु कल््ययाण योजना: इस कल््ययाणकारी योजना का उद्देश््य जनजातीय
z विकास सबं ंधी पहलेें (Development Initiatives): परिषदेें अपने जिलोों
लोगोों का उत््थथान करना तथा जनजातीय छात्ररों की शिक्षा की गणु वत्ता मेें मेें स््ककूल, स््ववास््थ््य सवु िधाएँ और बनि
ु यादी ढाँचे के निर््ममाण जैसी गतिविधियाँ
सधु ार करना है। कर सकती हैैं। वे गैर-जनजातीय लोगोों द्वारा की जाने वाली व््ययावसायिक
गतिविधियोों को भी विनियमित कर सकती हैैं।
प्रमुख शब्दावलियाँ z वित्तीय स््ववायत्तता (Financial Autonomy): परिषदोों को कर संग्रहण
करने का अधिकार है।
अनुसूचित क्षेत्र, जनजाति सलाहकार परिषद, पेसा, स््वशासन z कानूनोों का सीमित अनुप्रयोग (Limited Application of Laws):
अधिकार, भूमि अधिग्रहण आदि।
केें द्रीय और राज््य काननू स््वशासी जिलोों पर स््वतः लागू नहीीं हो सकते हैैं या
उनमेें संशोधन की आवश््यकता हो सकती है।
छठी अनुसूची z राज््यपाल द्वारा निगरानी: राज््यपाल प्रशासन का मल्ू ्ययाांकन करने के लिए
छठी अनुसूची मेें चार पूर्वोत्तर राज््योों असम, मे घालय, त्रिपुरा और मिजोरम आयोगोों की नियक्ु ति कर सकते हैैं और सिफारिशोों के आधार पर परिषदोों को
के जनजातीय क्षेत्ररों के प्रशासन के लिए विशेष प्रावधान हैैं। भगं कर सकते हैैं

30  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीित और संिवधान


छठी अनुसूची के क्षेत्ररों से संबंधित मुद्दे और चुनौतियााँ z समय पर निर््ववाचन: शासन संबंधी खामियोों से बचने के लिए एडीसी के
z सीमित वित्तीय स््ववायत्तता: परिषदोों के पास अपनी विधायी और विकास विघटन के छह महीने के भीतर उनका समय पर पनु र््गठन सनिश् ु चित किया जाना
योजनाओ ं को प्रभावी ढंग से क्रियान््ववित करने के लिए वित्तीय संसाधनोों का चाहिए।
अभाव है। z पारंपरिक सस् ं ्थथाओ ं को मान््यता प्रदान करना: समावेशी निर््णय प्रक्रिया
z राज््यपाल की व््ययापक शक्तियां: राज््यपाल मेें निहित व््ययापक शक्तियां के लिए गांव और बस््तती स््तर की जनजातीय राजनीतिक संरचनाओ ं को
स््वशासी जिला परिषदोों (Autonomous District Councils, ADCs) के औपचारिक रूप से मान््यता प्रदान करना।
स््ववायत्त कामकाज मेें बाधा डाल सकती हैैं। z महिला सशक्तीकरण: जनजातीय राजनीति मेें लैैंगिक बाधाओ ं को तोड़ने के
z शक्तियोों का असमान वितरण: विभिन््न परिषदोों को आवंटित शक्ति और लिए स््वशासी जिला परिषदोों मेें महिला प्रतिनिधियोों के लिए सीटोों का आरक्षण
विभागोों के स््तर मेें अत््यधिक भिन््नता मौजदू है, जिसके कारण कुछ लोगोों मेें अनिवार््य किया जाना चाहिए।
असंतोष पैदा होता है।
z समान प्रतिनिधित््व: छोटे जनजातीय समद ु ायोों के लिए स््वशासी जिला
z अनिश्चित शासन: जिन स््वशासी जिला परिषदोों को भगं कर दिया जाता है
परिषदोों और अन््य निकायोों मेें सीटेें आवंटित की जानी चाहिए ताकि यह
उनके पनु र््गठन के लिए कोई निर््धधारित समय-सीमा न होने से अनिश्चितता पैदा
सनिश्
ु चित किया जा सके कि उनकी आवाज सनु ी जाए।
होती है और चनु ावोों मेें देरी होती है।
ये उपाय संवैधानिक संरक्षण और जनजातीय समदु ायोों की वास््तविक जीवन की
z विभागीय हस््तताांतरण सबं ंधी मुद्दे: प्रासंगिक विभागोों को स््वशासी जिला
परिषदोों (एडीसी) के नियंत्रण मेें हस््तताांतरित करने मेें विलंब या प्रतिरोध देखने वास््तविकताओ ं के बीच की खाई को पाटने के लिए महत्तत्वपूर््ण हैैं। अतः इस
को मिलता है। प्रकार ये उपाय जनजातीय स््वशासन को मजबूत करेेंगे, सांस््ककृ तिक पहचान को
z असमान प्रतिनिधित््व: सरं चना मेें परिषदोों के भीतर महिलाओ ं और छोटे संरक्षित करेेंगे और भारत की समृद्ध पहचान मेें योगदान देेंगे।
जनजातीय समहोू ों की पर््ययाप्त भागीदारी सनिश्
ु चित करने के प्रावधानोों का अभाव है।
आगे की राह प्रमुख शब्दावलियाँ
z वित्तपोषण: स््वशासी जिला परिषदोों (एडीसी) को राज््य सरकार के मनमाने जनजातीय क्षेत्र, जनजातीय अधिकार, स््वशासी जिले, प्रादेशिक
निर््णयोों पर निर््भरता समाप्त करने के लिए राज््य वित्त आयोग से गारंटीकृ त और जिला परिषदेें, पाँचवी अनुसूची, छठी अनुसूची आदि।
वित्तपोषण की आवश््यकता है।

अनुसूचित एवं जनजातीय क्षेत्र (भाग X, अ नुच्छेद 244 - 31


9 भारत की संघीय संरचना
भारतीय संघवाद को प्रायः सहकारी संघवाद (Cooperative federalism) z स््वतंत्र न््ययायपालिका: एक स््वतंत्र न््ययायपालिका सवं िधान की व््ययाख््यया करती
या अर्दद्ध-संघवाद (Quasi-federalism) के रूप मेें वर््णणित किया जाता है। है तथा केें द्र और राज््योों के बीच विवादोों का समाधान करती है।
संविधान केें द्र सरकार और राज््योों के मध््य शक्तियोों का बंटवारा करता है, लेकिन z द्विसदनीयता: ससं द मेें दो सदन होते हैैं - लोक सभा (निचला सदन) और राज््य
केें द्र के पास कुछ अधिक शक्तियाँ हैैं। यह अनूठी प्रणाली राष्ट्रीय एकता और सभा सभा (उच््च सदन) – जो राष्ट्रीय और राज््य दोनोों हितोों का प्रतिनिधित््व
क्षेत्रीय विविधता के मध््य संतुलन स््थथापित करती है। भारत के संघीय ढाँचे से करते हैैं।
संबंधित मद्ददों
ु और चनु ौतियोों का विश्ले षण करने के लिए भारतीय संघवाद की
गहन समीक्षा करना, वैश्विक मॉडलोों के साथ इसकी तुलना करना तथा इसकी
भारतीय संविधान की एकात्मक विशेषताएँ
चनु ौतियोों और समकालीन निहितार्थथों पर विचार करना आवश््यक है। z एकल सवि ं धान: एक ही सवं िधान सघं और सभी राज््योों पर लागू होता है,
जो राष्ट्रीय एकता की भावना उत््पन््न करता है।
भारतीय संघवाद: एक अनूठा मॉडल
z एकल नागरिकता: भारतीय नागरिकता एकल प्रकृति की है, जो राष्ट्रीय
z सघं वाद की परिभाषा: सघव ं ाद सरकार की एक प्रणाली है जहाँ सत्ता एक पहचान की भावना को बढ़़ावा देती है।
केें द्रीय प्राधिकरण और उसकी घटक राजनीतिक इकाइयोों, जैसे कि राज््योों या z एकीकृत न््ययायपालिका: भारतीय न््ययायपालिका कुछ संघीय तत्तत्ववों के साथ
प््राांतोों के बीच साझा की जाती है। भारत की संघीय प्रणाली अद्वितीय है, जिसे एक एकीकृ त प्रणाली के रूप मेें कार््य करती है।
अक््सर "अर्दद्ध-संघीय (Quasi-federal)" या "संघ सईु जेनेरिस (Federation z शक्तियोों का विभाजन: संविधान केें द्र सरकार और राज््योों के बीच शक्तियोों
sui generis)" (जिसका अर््थ है "अपनी तरह का एक संघ") के रूप मेें वर््णणित का वितरण तीन सचियो ू ों के माध््यम से करता है: संघ सचू ी (राष्ट्रीय मामले),
किया जाता है। राज््य सचू ी (स््थथानीय मामले) और समवर्ती सचू ी (साझा मामले)। हालाँकि,
z भारतीय बनाम अमेरिकी सघं वाद: भारतीय और अमेरिकी संघवाद के इन विषयोों की द्वन्दद्व की स््थथिति मेें केें द्र के पास अधिक नियंत्रण होता है अतः
बीच एक महत्तत्वपर््णू अतं र यह है कि संयक्तु राज््य अमेरिका मेें, संघीय सरकार केें द्र का निर््णय अतिम
ं माना जाता है।
स््वतंत्र राज््योों के बीच एक समझौते से उत््पन््न हुई है। इसके विपरीत, भारत z आपातकालीन शक्तियां: आपातकाल के दौरान, केें द्र को अधिक शक्तियां

के राज््योों को एक एकीकृ त राज््यक्षेत्र को विभाजित करके बनाया गया था, प्राप्त हो जाती हैैं, जिसमेें राज््य के विषयोों पर काननू बनाना और राज््य प्रशासन
जिसमेें कुशल प्रशासन और शासन सनिश् ु चित करने के लिए बाद मेें शक्तियोों को अपने हाथ मेें लेना शामिल है।
का वितरण किया गया था। z अखिल भारतीय सेवाएँ: आईएएस, आईपीएस आदि की भर्ती केें द्र द्वारा

की जाती है, लेकिन वे राज््योों मेें कार््य करते हैैं, जिससे एकरूपता और केें द्रीय
भारतीय संघवाद की विशेषताएँ प्रभाव बना रहता है।
z राज््यपाल की भूमिका: केें द्र द्वारा नियक्त ु राज््यपाल राज््य के कुछ
भारत की संघीय प्रणाली की निम््नलिखित प्रमख ु विशेषताएँ हैैं:
z द्वै ध शासन: इस प्रणाली मेें सरकार के दो स््तर होते हैैं: केें द्र सरकार और
विधेयकोों को रोक सकते हैैं, जिससे केें द्रीय पक्षपात के बारे मेें चितं ाएँ उत््पन््न
राज््य सरकारेें। होती हैैं।
z राज््य के क्षेत्ररों पर सस ं द की शक्ति: केें द्र राज््य की सहमति के बिना राज््य
z शक्तियोों का विभाजन: सवं िधान की सातवीीं अनस ु चू ी मेें केें द्र और राज््योों के
की सीमाओ ं मेें परिवर््तन कर सकता है या नए राज््योों का निर््ममाण कर सकता है।
बीच विधायी शक्तियोों का स््पष्ट विभाजन किया गया है।
z केें द्रीकृत राजकोषीय सरं चना: वित्तीय संसाधनोों पर अधिकांशतः केें द्र सरकार
z लिखित सवि ं धान: लिखित संविधान सर्वोच््च काननू के रूप मेें कार््य करता का नियंत्रण होता है, तथा कुछ हिस््ससा राज््योों को हस््तताांतरित होता है।
है, जिसमेें सरकार के दोनोों स््तरोों की सरं चना और शक्तियोों को निर््धधारित किया
हालाँकि, ये विशेषताएँ एक मज़बूत केें द्र की ओर झक ु ाव रखती हैैं, लेकिन
गया है।
यह भी सच है कि भारत का संविधान सहकारी संघवाद का प्रावधान करता
z सवि ं धान की सर्वोपरिता: संविधान अतिम ं प्राधिकार है, तथा सभी काननू है, जो केें द्र और राज््योों को राष्ट्रीय प्रगति के लिए मिलकर काम करने के लिए
और कार््रवाइयां इसके प्रावधानोों के अनरू ु प होनी चाहिए। प्रोत््ससाहित करता है। सहकारी संघवाद का एक उदाहरण जीएसटी परिषद है जो
z कठोर सवि ं धान: संविधान मेें संशोधन किया जा सकता है, लेकिन यह प्रक्रिया एक संवैधानिक निकाय है जो जीएसटी दरोों पर सिफारिशेें करता है तथा इसमेें
अपेक्षाकृ त जटिल है, जिससे इसकी स््थथिरता सनिश् ु चित होती है। केें द्र और सभी राज््योों के प्रतिनिधि शामिल होते हैैं।
भारतीय संघवाद के लिए चुनौतियााँ भारत मेें असममित संघवाद
(ASYMMETRIC FEDERALISM IN INDIA)
z नए राज््य का गठन: राज््य की सीमाओ ं और नामोों मेें परिवर््तन करने की केें द्र
सरकार की शक्ति राज््य की स््ववायत्तता के बारे मेें चितं ाएँ उत््पन््न करती है। समवर्ती सूची राज््यपाल की नियुक्ति
z राज््यपाल की भूमिका: राज््यपाल केें द्र सरकार का प्रतिनिधि होता है जो
राज््य के हितोों के विरुद्ध कार््य कर सकता है। विधेयक राष्टट्रपति की संविधान की केें द्रीकरण विधेयक राष्टट्रपति की
z राज््य सभा मेें प्रतिनिधित््व: राज््य सभा मेें जनसंख््यया आधारित प्रतिनिधित््व सहमति के लिए आरक्षित विशेषताएँ सहमति के लिए आरक्षित
एक सच््चचे संघ मेें राज््योों के एक समान प्रतिनिधित््व की तल ु ना मेें असंतल
ु न
पैदा करता है। आपातकालीन प्रावधान अखिल भारतीय सेवा
z अखिल भारतीय सेवाएँ: यद्यपि ये सेवाएँ प्रशासनिक एकरूपता प्रदान करती
हैैं, लेकिन ये राज््य के अधिकारियोों (आईएएस, आईपीएस आदि) पर उसके भारत के विशाल और विविधतापूर््ण समाज के संदर््भ मेें, असममित संघवाद एक
ऐसी अवधारणा के रूप मेें उभरा है जो केें द्र और राज््योों के बीच और यहाँ तक
नियंत्रण को सीमित कर सकती हैैं। कि अलग-अलग राज््योों के बीच शक्तियोों के असमान विभाजन की आवश््यकता
z आपातकालीन शक्तियां: केें द्र की आपातकाल लागू करने की क्षमता, उस को स््ववीकार करता है। यह दृष्टिकोण एकरूपता के पारंपरिक संघीय मॉडल से
अवधि के दौरान राज््य की स््ववायत्तता को कमजोर करती है। अलग है, जो विभिन््न क्षेत्ररों की अलग-अलग ज़रूरतोों और ऐतिहासिक पृष्ठभमि ू
z केें द्रीय नियंत्रण तंत्र: निर््ववाचनोों का एकीकृ त नियंत्रण, लेखा परीक्षा, तथा राज््य को पहचानता है।
विधेयकोों पर वीटो लगाने की शक्ति राज््य की स््ववायत्तता को सीमित करती है। भारत को असममित संघवाद की आवश्यकता क्ययों है ?
z राष्ट्रीय एकता की मजबूती हेतु: स््ववायत्तता स््ववामित््व की भावना को बढ़़ावा
मौजूदा संरचना मेें खामियाां: देती है और अलगाववादी आदं ोलनोों को कम करती है, जिससे राष्ट्रीय एकता
उपर््ययुक्त चनु ौतियोों के अलावा मौजूदा संघीय ढाँचे मेें कुछ खामियां भी हैैं। को बढ़़ावा मिलता है।
z अकुशल समन््वय: केें द्र और राज््य सरकारोों के बीच खराब सहयोग के कारण z विविधता के सम््ममान हेतु: यह विशेष अधिकारोों वाले कमजोर समहो ू ों की
प्रयासोों मेें दोहराव होता है और संसाधनोों का दरुु पयोग होता है। रक्षा करके "विविधता मेें एकता" को कायम रखता है।
z सामाजिक न््ययाय को बढ़़ावा देने के लिए: विशेष प्रावधान अतीत की
z परस््पर विरोधी क्षेत्राधिकार: शिक्षा और वानिकी जैसे क्षेत्ररों मेें ओवरलैप के
असवु िधाओ ं को दरू करके सामाजिक न््ययाय का लक्षष्य प्राप्त करने मेें मदद करते हैैं।
कारण केें द्र और राज््य सरकारोों के बीच विवाद उत््पन््न होता है।
z लोकतंत्र और प्रतिनिधित््व की मजबूती के लिए: असममित संघवाद
z केें द्रीकृत योजना: योजना बनाने की पिछली विधियोों ने राज््योों की विशिष्ट अल््पसंख््यक क्षेत्ररों का प्रतिनिधित््व सनिश्
ु चित करता है, जिससे लोकतंत्र मजबतू
आवश््यकताओ ं की उपेक्षा की है, जिससे उनके विकास मेें बाधा उत््पन््न हुई है। होता है।
z वित्तीय असत ं ुलन: केें द्र सरकार अधिकांश वित्तीय संसाधनोों को नियंत्रित z सस् ं ्ककृ ति के सरं क्षण के लिए: अनच्ु ्छछे द 371 जैसे प्रावधान पर्ू वोत्तर राज््योों
करती है, जिससे अनदु ान पर निर््भरता बढ़ती है और राज््योों मेें असमान विकास को अपने विशिष्ट रीति-रिवाजोों, काननोू ों और परंपराओ ं को बनाए रखने का
अधिकार देते हैैं।
होता है।
z अल््पसख् ं ्यकोों के सशक्तीकरण के लिए: असममित संघवाद विविध
z राजनीतिक गतिरोध: राजनीतिक मतभेद सहयोग को अवरुद्ध कर सकते हैैं
अल््पसख्ं ्यक क्षेत्ररों का प्रतिनिधित््व सनिश्
ु चित करता है, जिससे लोकतंत्र मजबतू
और नीतियोों के प्रभावी कार््ययान््वयन मेें बाधा डाल सकते हैैं। होता है।
भारत का संघीय ढांचा असमान प्रतिनिधित््व और सीमित स््ववायत्तता जैसे मद्ददों ु के z कट्टरपंथ का मुकाबला करने के लिए: क्षेत्रीय नियंत्रण मेें वृद्धि से कट्टरपथ ं
बावजूद, संघीय और एकात््मक तत्तत्ववों को संतुलित करते हुए अनुकूलनीय साबित का मक ु ाबला करने और समदु ायोों को राष्ट्रीय विकास मेें एकीकृ त करने मेें
हुआ है। वर््तमान प्रवृत्तियां सहकारी संघवाद की ओर बदलाव का संकेत देती हैैं, मदद मिलती है।
जिसके लिए केें द्र-राज््य सहयोग की आवश््यकता है। इसे वास््तव मेें प्रभावी बनाने असममित संघवाद भारत के जटिल और स््तरित संघीय ढाँचे का एक अभिन््न
अंग है। यह भारत की अद्वितीय विविधता और विभिन््न क्षेत्रीय आवश््यकताओ ं
के लिए, शक्ति असंतुलन को संबोधित करना और समान शक्ति वितरण की माँग से निपटने के लिए एक अनूठा ढाँचा प्रदान करता है। हालाँकि, इससे उत््पन््न
करना महत्तत्वपर््णू है। राजनीतिक स््थथिरता और जीवंत लोकतंत्र को बनाए रखने के चनु ौतियोों का समाधान करना तथा अधिक पारदर्शी और नियम-आधारित
लिए एक मजबूत और उत्तरदायी संघीय प्रणाली आवश््यक है। विषमता के लिए प्रयास करना महत्तत्वपर््णू है।

प्रमुख शब्दावलियाँ प्रमुख शब्दावलियाँ


सहकारी संघवाद; भारतीय संघ बनाम अमेरिकी संघ; सातवीीं असममित संघवाद; घटक इकाइयाँ; अधिकारोों की रक्षा; जातीयता
अनुसूची; शक्तियोों का विभाजन; सहकारी संघवाद; राज््य सभा मेें और संस््ककृ ति संरक्षण; सामाजिक ताना-बाना; लोकतंत्र और
प्रतिनिधित््व; राज््य स््ववायत्तता; वित्तीय हस््तताांतरण; अंतर-राज््ययीय प्रतिनिधित््व; विविधता मेें एकता; सामाजिक न््ययाय; केेंद्र-राज््य
विवाद आदि। टकराव; समता-विरोधी प्रकृति; संवैधानिक प्रावधान आदि।

भारत की संघीय संरचना 33


केेंद्र-राज्य संबध

भारत राज््योों का एक संघ होने के नाते केें द्र और राज््योों के बीच शक्ति के वितरण प्रमुख शब्दावलियाँ
के सिद््धाांत पर काम करता है। यह संबंध भारत के संविधान मेें निहित है और ऐतिहासिक विकासक्रम; सहकारी संघवाद; प्रतिस््पर्द्धी संघवाद;
एक बहु-स््तरीय शासन संरचना का प्रतिनिधित््व करते हैैं, जो भारत की स््थथिरता, असममित संघवाद; वित्तीय संसाधनोों का आवंटन, सातवीीं अनसु ूची
सुरक्षा और आर््थथिक विकास के लिए आवश््यक है। आदि।
उच्चतम न्यायालय के प्रमुख मामले केेंद्र-राज्य संबधोों
ं को बेहतर
z एस.आर. बोम््मई बनाम भारत संघ (1994); बी.पी. सिंघल बनाम भारत ढं ग से प्रबंधित करने के तरीके और साधन
सघं (2010); कुलदीप नायर बनाम भारत सघं (2006) z संविधान मेें निहित भारत की संघीय प्रणाली, केें द्र सरकार और राज््योों के बीच
शक्ति का संतल ु न बनाती है।
केें द्र-राज्य संबंधोों मेें वर््तमान तनाव
z भारत एकात््मक प्रणाली की ओर झक ु ाव रखता है, जबकि केें द्र-राज््य संबंधोों
z केें द्रीय अतिक्रमण सबं ंधी चिंताएँ (Central Overreach Concerns): मेें समय के साथ बदलाव आया है, जो सामाजिक, राजनीतिक और आर््थथिक
 अनुच््छछेद 356 का दुरुपयोग: केें द्र सरकार द्वारा अनच् ु ्छछे द 356 के परिवर््तनोों के साथ-साथ संविधान की व््ययाख््ययाओ ं से प्रभावित हैैं। नतीजतन,
संभावित दरुु पयोग के संबंध मेें चितं ाएँ मौजदू हैैं, जो उन््हेें राज््योों मेें राष्टट्रपति इन संबंधोों का प्रभावी प्रबंधन सश
ु ासन के लिए महत्तत्वपर््णू है।
शासन लगाने की अनमति ु देता है। z देश की बदलती जरूरतोों के अनरू ु प केें द्र-राज््य संबंधोों को बेहतर बनाने के
 राज््यपाल की नियुक्ति और पद से हटाना: राज््यपालोों की नियक्ु ति और लिए अनेक आयोगोों ने सिफारिशेें पेश की हैैं।
उन््हेें पद से हटाने मेें के न्दद्र सरकार के कथित प्रभाव को लेकर असंतोष है, महत्त्वपूर््ण आयोग और उनकी सिफारिशेें:
जिससे उनकी तटस््थता प्रभावित होती है।
z प्रथम प्रशासनिक सध ु ार आयोग (1966):
 राज््य के विषयोों पर अतिक्रमण: राज््य संविधान की सातवीीं अनस ु चू ी  अत ं र-राज््ययीय परिषद की स््थथापना की जाए। (अनच्ु ्छछे द 263)।
के अन््तर््गत राज््य सचू ी के विषयोों मेें केें द्र सरकार के हस््तक्षेप के बारे मेें
 अधिक सार््वजनिक अनभ ु व वाले राज््यपालोों की नियक्ु ति की जाए।
चितं ाएँ व््यक्त करते हैैं।
 राज््योों को शक्तियोों का अधिकतम हस््तताांतरण किया जाए।
z सस ं ाधन साझाकरण और शक्ति सबं ंध (Resource Sharing and  राज््योों के लिए वित्तीय संसाधन बढ़़ाए जाए।
Power Dynamics):
z सरकारिया आयोग (1983):
 असमान वित्तीय आवंटन: केें द्र सरकार और राज््योों के बीच वित्तीय
 अत ं र-राज््ययीय परिषद को स््थथायी बनाया जाए।
संसाधनोों के आवंटन को लेकर मतभेद उत््पन््न होते हैैं।
 राष्टट्रपति शासन (अनच् ु ्छछे द 356) के उपयोग को सीमित किया जाए ।
 अखिल भारतीय सेवाओ ं का प्रबंधन: प्रशासन के लिए महत्तत्वपर््ण ू  अखिल भारतीय सेवाओ ं को सदृ ु ढ़ किया जाए तथा और अधिक सेवाएँ
अखिल भारतीय सेवाओ ं का केें द्र और राज््योों द्वारा संयक्त ु रूप से प्रबंधन सृजित करने पर विचार किया जाए।
करने के तरीके को लेकर समस््ययाएँ बनी हुई हैैं।  राज््य विधेयकोों पर रोकी गई स््ववीकृति के संबंध मेें सच ू ना देने मेें सधु ार
 असममित सघ ं वाद: असममित संघीय ढाँचे की धारणा तनाव पैदा करती किया जाए।
है, जहाँ केें द्र सरकार के पास अधिक शक्ति होती है।  क्षेत्रीय परिषदोों का पन ु रुद्धार किया जाए।
z नीतियोों के कार््ययान््वयन मेें चुनौतियाँ (Policy Implementation  सरु क्षा तैनाती बढाकर, समवर्ती सच ू ी के विषयोों और राज््यपालोों की
Challenges): नियक्ु तियोों पर राज््योों से परामर््श किया जाए।
 राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर असहमति: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के z एम.एम. पुंछी आयोग (2007):
कार््ययान््वयन के सबं धं मेें केें द्र और राज््योों के बीच दृष्टिकोण मेें मतभेद मौजदू हैैं।  लबि ं त विधेयकोों पर राष्टट्रपति और राज््योों के बीच सचं ार मेें सधु ार किया जाए।
 केें द्रीय कानूनोों के प्रवर््तन सब ं ंधी चुनौती: स््थथानीय सदं र्भभों या  राज््य सच ू ी के विषयोों और समवर्ती सचू ी के विषयोों पर राज््योों को अधिक
प्राथमिकताओ ं के साथ संभावित टकरावोों के कारण राज््योों को नागरिकता अधिकार दिया जाए।
संशोधन अधिनियम जैसे कुछ केें द्रीय काननोू ों को लागू करना चनु ौतीपर््णू  अनच् ु ्छछे द 163 के तहत राज््यपालोों की विवेकाधीन शक्तियोों को सीमित
लग सकता है। किया जाए।
हालाँकि, भारत का संघीय ढांचा अपनी बाधाओ ं से रहित नहीीं है, लेकिन वह  त्रिशक ं ु विधानसभाओ ं मेें मख्ु ्यमत्री ं की नियक्ु ति के लिए दिशानिर्देश तैयार
लगातार अनुकूलन और प्रगति कर रहा है। यह निरंतर चर््चचाओ,ं संविधान के किये जाए।
पालन और साझा लक्षष्ययों की मान््यता पर विकसित होता है। अंततः, इसका  वित्त आयोग को स््थथायी बनाया जाए तथा चक्रानक्रम ु मेें सदस््य बनाए जाए।
उद्देश््य एक मजबूत, सहयोगी और यहां तक कि मामल ू ी प्रतिस््पर्द्धी संघीय प्रणाली  बजट तैयार करने और साझा करने के लिए न््ययायिक परिषदोों का गठन

का पोषण करना है जो संविधान के सार को दर््शशाती है और अपने नागरिकोों की किया जाए।


इच््छछाओ ं को पूरा करती है।  राज््य सभा मेें सभी राज््योों के लिए समान सीटेें प्रदान की जाए।

34  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीित और संिवधान


z राष्ट्रीय सविं धान कार््यकरण समीक्षा आयोग: z राज््योों का विभाजन: राज््योों को विभाजित करने से नदियोों के जल-बंटवारे को
 अत ं र-राज््ययीय व््ययापार और वाणिज््य आयोग की स््थथापना की जाए लेकर नए विवाद पैदा होते हैैं। (उदाहरण के लिए, आध्रं प्रदेश और तेलंगाना
(अनच्ु ्छछे द 307)। के विभाजन के कारण गोदावरी जल विवाद)।
 अनच् ु ्छछे द 356 (राष्टट्रपति शासन) लागू करने से पहले राज््योों को राजनीतिक z जल की कमी: भारत को जल की गंभीर कमी का सामना करना पड़ रहा
मतभेदोों को दरू करने का अवसर दिया जाना चाहिए। है, जहाँ विश्व की 18% जनसंख््यया निवास करती है, जबकि यहाँ वैश्विक जल
निष््कर््ष के तौर पर, राष्टट्र के समग्र विकास और प्रगति के लिए केें द्र-राज््य संबंधोों ससं ाधनोों का मात्र 4% ही उपलब््ध है।
को बेहतर ढंग से प्रबंधित करना अनिवार््य है। जैसा कि डॉ. बी.आर. अंबेडकर z प्रतिस््पर्द्धी हित: विवाद तब उत््पन््न होता है जब एक राज््य की गतिविधियां,
ने सही कहा था, "भले ही देश और लोगोों को प्रशासन की सुविधा के लिए जैसे जल का उपयोग, दसू रे राज््य पर नकारात््मक प्रभाव डालती हैैं।
अलग-अलग राज््योों मेें विभाजित किया जा सकता है, लेकिन देश अभिन््न है, z घटती गुणवत्ता: बढ़ती माँग और प्रदषू ण के कारण स््वच््छ जल के लिए
इसके लोग एक ही स्रोत से प्राप्त एक ही साम्राज््य के अंतर््गत रहते हैैं।" प्रतिस््पर्द्धा बढ़ने से जल बंटवारे के विवाद बढ़ने की सभं ावना है।
नीति आयोग - सहकारी संघवाद को बढ़़ावा देने का अंतर-राज्यीय जल विवादोों के समाधान मेें चुनौतियााँ
एक साधन z ऐतिहासिक और भौगोलिक भ्रम: राज््योों की पनु ः निर््धधारित सीमाएँ अक््सर
2015 मेें स््थथापित, नेशनल इस्ं ्टटीट्यूशन फॉर ट््राांसफॉर््मििं ग इडिय
ं ा (नीति प्राकृतिक जल प्रवाह पैटर््न की उपेक्षा करती हैैं, जिसके परिणामस््वरूप
आयोग) भारत के विकास मेें महत्तत्वपूर््ण भूमिका निभाता है। यह सहकारी ऐतिहासिक उपयोग या भगू ोल के आधार पर जल अधिकारोों को लेकर विवाद
संघवाद को बढ़़ावा देता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि राज््योों को राष्ट्रीय उत््पन््न होते हैैं।
नीति-निर््ममाण मेें अपनी बात कहने का अवसर मिले। यह पूरे देश मेें संतुलित z सवं ैधानिक-कानूनी अस््पष्टता: शक्तियोों का विभाजन अस््पष्टता पैदा करता
आर््थथिक और सामाजिक प्रगति को बढ़़ावा देता है। है। राज््य जल उपयोग का प्रबंधन करते हैैं, जबकि केें द्र सरकार अतं र-राज््ययीय
नोट: यह विषय प्रहार गवर्ननेंस पुस््ततिका मेें शामिल है। कृ पया इसका संदर््भ लेें। नदी जल का विनियमन करती है। यह अतिव््ययापी अधिकार विवाद समाधान
अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद को जटिल बनाता है।
भारत के विविध भ-ू भागोों मेें बहने वाली अनेक नदियाँ करोड़ों लोगोों के लिए z सस्ं ्थथागत अनिश्चितता: अनच्ु ्छछे द 262 जल विवादोों मेें उच््चतम न््ययायालय
महत्तत्वपूर््ण संसाधन हैैं। हालाँकि, ये साझा जलमार््ग, जो अक््सर राज््य की सीमाओ ं की भागीदारी को सीमित करता है, लेकिन अनच्ु ्छछे द 136 उसे अधिकरण के
को पार करते हैैं, बढ़ते तनाव का एक स्रोत बन गए हैैं। साझा जलमार््ग संबंधी निर््णयोों की समीक्षा करने की अनमति ु देता है। यह असंगति अतिम ं काननू ी
अनेक विवाद सामने आए हैैं, जिनमेें कावेरी, महानदी, महादायी, कृ ष््णणा, प्राधिकरण के बारे मेें अनिश्चितता पैदा करती है।
गोदावरी, रावी-व््ययास नदियोों और वंशधारा से संबंधित विवाद शामिल हैैं, जिससे z कार््ययान््वयन मेें बाधाएँ: कार््यपालिका द्वारा अधिकरण के निर््णयोों को लागू
अंतर-राज््ययीय तनाव और बढ़ गया है। करने मेें विफलता विवादोों के समाधान मेें महत्तत्वपर््णू बाधा उत््पन््न करती है,
अंतर-राज्यीय जल विवादोों से संबंधित जिससे विवाद अनसल ु झे रह जाते हैैं।
संवैधानिक और साांविधिक प्रावधान z परु ाना दृष्टिकोण: तकनीकी प्रगति, परिवर््तनशील वर््षषा और अन््य कारकोों पर
z अनुच््छछेद 262 (1): यह अनच्ु ्छछे द ससं द को अतं र-राज््ययीय नदी जल विवादोों विचार किए बिना पारंपरिक इजं ीनियरिंग समाधानोों पर अत््यधिक निर््भरता जल
के समाधान के लिए काननू बनाने का अधिकार देता है। ससं ाधनोों के प्रभावी प्रबधं न मेें बाधा उत््पन््न करती है।
z अनुच््छछेद 262 (2): यह अनच्ु ्छछे द संसद को अतं र-राज््ययीय नदी जल विवादोों z अंतर-राज््ययीय जल विवाद अधिनियम, 1956 की चुनौतियाँ
पर क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने से उच््चतम न््ययायालय या किसी अन््य न््ययायालय  विवाद समाधान मेें अकुशलता: प्रत््ययेक विवाद के लिए नए अधिकरण
को बाहर करने का अधिकार देता है। के गठन से अतिरे क पैदा होता है तथा अनिर््धधारित समय-सीमा के कारण
z नदी बोर््ड अधिनियम (1956): यह अधिनियम इस आशय से पारित किया विलंब होता है।
गया था कि केें द्र सरकार जन हित मेें अतं रराज््ययीय नदियोों और घाटियोों को  कमजोर प्रवर््तन: अधिकरण के निर््णयोों के कार््ययान््वयन के लिए तंत्र का
विनियमित और विकसित करे गी।
अभाव है।
z अंतर-राज््ययीय नदी जल विवाद अधिनियम (1956): यह अधिनियम ससं द
 लंबित अपीलेें : निर््णयोों के विरुद्ध अपीलेें समाधान मेें और अधिक विलंब
को अतं र-राज््ययीय नदी जल विवादोों को निपटाने के लिए अधिकरण स््थथापित
कर सकती हैैं।
करने की अनमति ु देता है। यह ऐसे मामलोों पर उच््चतम न््ययायालय के क्षेत्राधिकार
को भी बाहर रखता है। आगे की राह
अंतर-राज्यीय नदी जल विवादोों मेें वृद्धि के कारण z मजबूत तंत्र: अधिकरण के निर््णयोों को लागू करने के लिए एक मजबतू तंत्र
z राजनीतिक हस््तक्षेप: राजनेता कभी-कभी नदी विवादोों के दौरान जनता की स््थथापित किया जाना चाहिए।
भावनाओ ं को भड़काते हैैं, तथा समाधान मेें बाधाएँ उत््पन््न करते हैैं (उदाहरण z कानूनी स््पष्टता: उच््चतम न््ययायालय को अधिकरण के निर््णयोों के कार््ययान््वयन
के लिए कावेरी जल विवाद)। के लिए तंत्र के बारे मेें स््पष्ट काननू ी मार््गदर््शन प्रदान करना चाहिए।

भारत की संघीय संरचना 35


z समग्र बेसिन प्रबंधन: दीर््घकालिक स््थथिरता सहित नदी बेसिन संबंधी मद्ददों
ु के z क्षेत्रीय आवश््यकताओ ं पर ध््ययान देना: छोटे राज््य विशिष्ट क्षेत्रीय मद्ददों
ु पर
लिए व््ययापक रणनीति विकसित की जानी चाहिए। ध््ययान देने के लिए नीतियां बना सकते हैैं।
z कमी के दौरान जल साझा करना: उच््चतम न््ययायालय को राज््योों को पानी z सस ं ाधनोों का इष्टतम उपयोग: प्रशासनिक लागत मेें कमी से विकास
की कमी के समय जल साझा करने के लिए एक व््ययावहारिक नीति बनाने के परियोजनाओ ं के लिए ससं ाधन उपलब््ध हो सकते हैैं और उन ससं ाधनोों का
लिए मार््गदर््शन करना चाहिए। इष्टतम उपयोग संभव हो सकता है।
z राजनीति से आगे बढ़ना: जल विवादोों के स््थथायी समाधान के लिए राजनीतिक z समावेशी विकास: छोटे राज््य विभिन््न क्षेत्ररों मेें सतं लु ित विकास को बढ़़ावा दे
बातचीत का विकल््प ढूंढना चाहिए। सकते हैैं और अल््पसंख््यकोों को सशक्त बना सकते हैैं (जैसी कि डॉ. बी.आर.
z आवश््यकताओ ं मेें सत ं ुलन: पारिस््थथितिकीय पनु रुद्धार, जलीय जैवविविधता अबं ेडकर ने कल््पना की थी)।
संरक्षण, तथा स््थथायी जल प्रबंधन प्रथाओ ं को बेसिन योजनाओ ं मेें एकीकृ त
छोटे राज्ययों के निर्माण मेें चुनौतियााँ
किया जाना चाहिए।
z लंबित विधे यक का अधिनियमन: अत ं र-राज््ययीय नदी जल विवाद (संशोधन) z मिला-जुला कार््यनिष््पपादन: कुछ नवगठित राज््योों के विकास मेें कोई
विधेयक, 2019 का उद्देश््य मौजदू ा काननोू ों और विनियमोों के मद्ददों
ु को संबोधित महत्तत्वपर््णू सधु ार नहीीं हुआ है।
करना है। इसके अधिनियमन से भारत मेें नदी जल विवादोों को हल करने के z नेतृत््व सबं ंधी मुद्दे: अनभु वी नेतत्ृ ्व की कमी नए राज््योों के शासन मेें बाधा
लिए एक मजबतू तंत्र तैयार होगा। उत््पन््न कर सकती है।
जल एक महत्तत्वपर््णू संसाधन है। यह अंतर-राज््ययीय विवादोों को काफी प्रभावित z वित्तीय तनाव: नए प्रशासनिक ढाँचे की स््थथापना से वित्तीय ससं ाधनोों पर
कर सकता है इसलिए स््थथायी समाधान प्राप्त करने के लिए एक बहुआयामी दबाव पड़ सकता है।
दृष्टिकोण की आवश््यकता है। जल को समवर्ती सूची मेें शामिल करने से अधिक z केें द्रीय निर््भरता: छोटे राज््य केें द्रीय वित्तीय सहायता पर बहुत अधिक निर््भर
स््पष्टता मिल सकती है, जबकि नदी बेसिन संगठनोों की स््थथापना से नदी प्रबंधन हो सकते हैैं।
मेें सुधार हो सकता है। अंततः जल प्रशासन के लिए एक सहकारी दृष्टिकोण बुनियादी ढाँचे की कमी: नए राज््योों मेें आवश््यक बनि
z ु यादी ढाँचे का विकास
आवश््यक है।
करना अधिक समय लेने वाला और महगं ा हो सकता है।
छोटे राज्ययों के लिए मााँग आगे की राह
भारत मेें संघवाद के बारे मेें चर््चचा मेें अक््सर एकीकृ त राष्टट्र को बनाए रखने की z वस््ततुनिष्ठ मानदडं : राज््य की माँग पर निर््णय लेने के लिए जनसंख््यया आकार,
तुलना मेें राज््य की स््वतंत्र शक्ति की आवश््यकता पर ज़़ोर दिया जाता है। इसके आर््थथिक व््यवहार््यता और प्रशासनिक दक्षता जैसे वस््ततुनिष्ठ मानदडं निर््धधारित
कारण विदर््भ और पूर््ववााँचल जैसे छोटे राज््योों के निर््ममाण की माँग बढ़ रही है। ये किए जाने चाहिए। इससे प्रक्रिया को परू ी तरह से राजनीतिक विचारोों से प्रेरित
माँगेें क्षेत्रीय मामलोों पर अधिक नियंत्रण रखने, सांस््ककृ तिक पहचान को संरक्षित होने से रोकने मेें मदद मिल सकती है।
करने, प्रशासनिक प्रभावशीलता मेें सुधार करने और पूरे देश मेें अधिक न््ययायपूर््ण
z आवश््यकताओ ं का व््ययापक मूल््ययाांकन: आवश््यकतोों का संपर््ण ू मल्ू ्ययाांकन
विकास का लक्षष्य प्राप्त करने की इच््छछा से प्रेरित हैैं।
किया जाना चाहिए, जिसमेें राज््य का दर््जजा चाहने वाले क्षेत्र के विकास संबंधी
छोटे राज्ययों की मााँग क्ययों की जा रही है ? लक्षष्ययों, सांस््ककृ तिक पहचान और आर््थथिक वास््तविकताओ ं पर विचार किया
z कुछ क्षेत्ररों का कम प्रतिनिधित््व: राजनीतिक प्रभाव की कमी वाले क्षेत्र जाना चाहिए।
अक््सर अधिक प्रतिनिधित््व के लिए राज््य का दर््जजा चाहते हैैं। z विकेें द्रीकरण पर ध््ययान देना: विकेें द्रीकरण के माध््यम से मौजद ू ा स््थथानीय
z सांस््ककृ तिक पहचान: विशिष्ट सांस््ककृ तिक विशेषताओ ं वाले क्षेत्र अपनी शासन सरं चनाओ ं को मजबतू करने जैसे वैकल््पपिक समाधान तलाशे जाने
विरासत को संरक्षित करने के लिए स््ववायत्तता की माँग कर सकते हैैं (उदाहरण चाहिए। इससे पर््णू राज््य का दर््जजा प्रदान किए बिना क्षेत्ररों को सशक्त बनाया
के लिए, गोरखालैैंड)। जा सकता है।
z प्रशासनिक उपेक्षा: यदि कोई क्षेत्र केें द्रीय प्रशासन द्वारा उपेक्षित महससू करता z वित्तीय उत्तरदायित््व: यह सनिश् ु चित किया जाना चाहिए कि किसी भी नए राज््य
है, तो अलग राज््य की माँग उठ सकती है।
के पास एक ठोस वित्तीय योजना हो जो आत््मनिर््भर होने और अपने संसाधनोों
z राजनीतिक हेरफेर: राजनेता चनु ावी लाभ के लिए क्षेत्रीय भावनाओ ं को का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने की उसकी क्षमता को प्रदर््शशित कर सके ।
भड़का सकते हैैं।
z अंतर-राज््ययीय सहयोग: राज््योों के बीच विशेष रूप से साझा संसाधनोों या
z असमान विकास: किसी राज््य के भीतर आर््थथिक असमानता अलग राज््योों
क्षेत्रीय विकास सबं ंधी चनु ौतियोों से निपटने के दौरान सहयोग को प्रोत््ससाहित
की माँग को बढ़़ावा दे सकती है (उदाहरण के लिए, बंदु ल े खडं , पर््ववााँ
ू चल)।
किया जाना चाहिए।
छोटे राज्ययों के संभावित लाभ अतः जैसे-जैसे भारत की संघीय व््यवस््थथा नई परिस््थथितियोों के अनुकूल ढलती जा
z कुशल प्रशासन: छोटे आकार के राज््योों मेें प्रशासन और संसाधन आवंटन रही है, उसे क्षेत्रीय आकांक्षाओ ं को संबोधित करने और प्रशासन को सुव््यवस््थथित
को सव्ु ्यवस््थथित किया जा सकता है। करने के तरीके खोजने होोंगे, साथ ही आर््थथिक स््थथिति को भी ध््ययान मेें रखना
z मजबूत राजकोषीय प्रबंधन: केें द्रित शासन (Focused governance) से होगा। नए, छोटे राज््योों के निर््ममाण की बढ़ती माँग भारत के संघीय ढाँचे पर नए
बेहतर वित्तीय प्रबंधन हो सकता है। सिरे से विचार करने की आवश््यकता को उजागर करती है।

36  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीित और संिवधान


सांस््ककृ तिक पहचान का सम््ममान करना, हितधारकोों के साथ बातचीत शरू ु करना
समाचार मेें मुद्दे और विकास को आगे बढ़़ाना एक शांतिपूर््ण और समृद्ध जम््ममू-कश््ममीर के निर््ममाण
अनुच्छेद 370 मेें मदद कर सकता है, जो अटल बिहारी वाजपेयी के 'कश््ममीरियत, इसं ानियत
और जम््हहूरियत' के आदर््श को दर््शशाता है।
संदर््भ: उच््चतम न््ययायालय के सर्वोच््च पैनल ने हाल ही मेें संविधान के अनुच््छछे द
370 के तहत जम््ममू-कश््ममीर के विशेष दर्जे को रद्द करने के लिए केें द्र सरकार की दिल्ली राष्ट् रीय राजधानी राज्य-क्षेत्र शासन
2019 की कार््रवाई की पुष्टि की है। (संशोधन ) अधिनियम 2023
उच्चतम न्यायालय की प्रमुख टिप्पणियाां और निर्देश संदर््भ: भारत की संसद ने हाल ही मेें जीएनसीटीडी (संशोधन) अधिनियम,
z कोई आंतरिक सप्रं भुता नहीीं: 1947 मेें भारत मेें विलय के बाद जम््ममू-कश््ममीर 2023 पारित किया। इससे दिल््लली मेें शासन के बारे मेें लंबे समय से चली आ
के पास कोई आतं रिक संप्रभतु ा नहीीं थी। यह निष््कर््ष ऐतिहासिक दस््ततावेजोों रही बहस शरू ु हो गई है।
और स््वयं जम््ममू-कश््ममीर के संविधान पर आधारित था। z विशिष्ट दर््जजा: दिल््लली एक राष्ट्रीय राजधानी राज््यक्षेत्र (एनसीटी) है, जिसमेें
z अस््थथायी प्रावधान: अनच्ु ्छछे द 370 को उसके ऐतिहासिक संदर््भ और संविधान विधान सभा है, लेकिन पर््णू राज््योों की तल
ु ना मेें इसकी शक्तियां सीमित हैैं।
मेें उसकी स््थथिति के आधार पर एक अस््थथायी और सक्रम ं णकालीन प्रावधान z उच््चतम न््ययायालय का दृष्टिकोण: 2023 के उच््चतम न््ययायालय के फै सले
माना गया।
ने दिल््लली को पलु िस, भमि
ू और लोक व््यवस््थथा को छोड़कर अधिकांश सेवाओ ं
z राष्टट्रपति के प्राधिकार को बरकरार रखा गया: न््ययायालय ने अनच्ु ्छछे द
पर नियंत्रण प्रदान किया।
370 को संशोधित करने और राज््य की संविधान सभा को भगं करने संबंधी
राष्टट्रपति की 2019 की घोषणाओ ं को वैध ठहराया। यह उल््ललेखनीय है कि अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
इन कार््रवाइयोों के लिए राज््य सरकार से परामर््श करना अनावश््यक माना गया। z राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए): केें द्र सरकार
z विधानसभा के लिए निर््ववाचन: न््ययायालय ने निर््ववाचन आयोग को 30 सितंबर, द्वारा नियक्त
ु यह निकाय सेवा मामलोों पर उपराज््यपाल को सलाह देता है।
2024 तक जम््ममू-कश््ममीर विधानसभा के लिए चनु ाव कराने का आदेश दिया। z उपराज््यपाल का विवेकाधिकार: यह अधिनियम राष्ट्रीय राजधानी सिविल
z राज््य का दर््जजा बहाल करना: न््ययायालय ने सरकार से जम््ममू-कश््ममीर का राज््य सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) की सिफारिशोों को स््ववीकृ त या अस््ववीकृ त
का दर््जजा बहाल करने मेें तेजी लाने का आग्रह किया।
करने तथा कुछ मद्ददों ु पर स््वतंत्र रूप से कार््य करने के लिए उपराज््यपाल की
z सत््य और सल ु ह आयोग का गठन: न््ययायालय ने जम््ममू-कश््ममीर मेें शक्ति का विस््ततार करता है।
मानवाधिकार उल््ललंघन की जाँच करने और सल ु ह को बढ़़ावा देने के लिए
z केें द्रीय नियंत्रण मेें वद्धि
ृ : केें द्र सरकार को अधिकारियोों के स््थथानांतरण और
सत््य और सल ु ह आयोग (Truth and reconciliation commission) की
स््थथापना की सिफारिश की। नियक्ु ति पर नियंत्रण प्राप्त हो गया है, जिससे संभावित रूप से "जवाबदेही की
त्रिस््तरीय शृख
ं ला (Triple chain of accountability)" (मत्री ं -विधानमडं ल-
अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण निर््ववाचक मडं ल) पर प्रभाव पड़़ा है।
भारत के संविधान ने पहले अनुच््छछे द 370 के माध््यम से जम््ममू-कश््ममीर को विशेष z रिपोर््टििंग सबं ंधी शर्ततें: निर््णय लेने से पहले कुछ मामलोों को उपराज््यपाल के
दर््जजा दिया था। इसमेें अलग कानून, अलग ध््वज और भारत के अन््य क्षेत्ररों की माध््यम से भेजा जाना चाहिए।
तुलना मेें व््ययापक स््ववायत्तता शामिल थी। भारत सरकार ने 5 अगस््त, 2019 को
अनुच््छछे द 370 को निरस््त कर दिया, जिससे जम््ममू-कश््ममीर का विशेष राज््य का उभरती चिंताएँ
दर््जजा समाप्त हो गया। इसके बाद इस क्षेत्र को दो संघ राज््य क्षेत्ररों: जम््ममू-कश््ममीर z केें द्र सरकार की अतिव््ययापी शक्ति: आलोचकोों का तर््क है कि यह अधिनियम
और लद्दाख मेें विभाजित कर दिया गया। उच््चतम न््ययायालय के निर््णय को कमजोर करता है तथा केें द्र सरकार को
अत््यधिक नियंत्रण देता है।
शासन मेें परिवर््तन:
z जवाबदेही मेें कमी: यह अधिनियम दिल््लली के शासन मेें "जवाबदेही की
z लोकसभा मेें प्रतिनिधित््व: जम््ममू-कश््ममीर को पाँच लोकसभा सीटेें मिलीीं,
त्रिस््तरीय शृख
ं ला" को काफी कमजोर करता है।
जबकि लद्दाख को एक सीट मिली है।
z अस््पष्ट परिभाषाएँ: अधिनियम मेें उन "विवादास््पद मामलोों" को परिभाषित
z प्रशासन: जम््ममू-कश््ममीर मेें राज््यपाल के स््थथान पर उपराज््यपाल की नियक्ु ति
नहीीं किया गया है जिनके लिए उपराज््यपाल की अधिसचू ना की आवश््यकता
की गयी। होती है।
z विधायी शक्ति: जम््ममू-कश््ममीर मेें विधान सभा बनी हुई है, लेकिन कानन ू
बनाने पर सीमाएँ हैैं। आगे की राह
अनुच््छछे द 370 का निरसन जम््ममू-कश््ममीर और लद्दाख के लिए एक महत्तत्वपूर््ण z दूसरोों से सीखना: अन््य देशोों के राजधानी शहर प्रशासन के मॉडल (संघीय
बदलाव है। यह कदम एकीकृ त विकास का वादा करता है, लेकिन कानूनी जिला, नगर-राज््य, आदि) का अध््ययन करने से समाधान मिल सकता है।
चिंताओ ं और स््थथानीय चिंताओ ं को संबोधित करना एक स््थथिर और समृद्ध z विकेें द्रीकरण: निर््ववाचित नगर परिषदोों और क्षेत्रीय शासन वाली दो-स््तरीय
भविष््य के लिए महत्तत्वपूर््ण है। लोकतांत्रिक सिद््धाांतोों को बनाए रखना, क्षेत्र की प्रणाली स््थथानीय निर््णय लेने की प्रक्रिया मेें सधु ार ला सकती है।

भारत की संघीय संरचना 37


z क्षेत्ररों का निर््धधारण: केें द्रीय सरकार के क्षेत्र केें द्रीय प्रशासन के अधीन हो सकते z “भारत मेें राष्ट्रीय राजनीतिक दल केें द्रीकरण के पक्ष मेें हैैं, जबकि क्षेत्रीय दल
हैैं, जबकि शेष क्षेत्र राज््य के रूप मेें कार््य कर सकते हैैं। राज््य स््ववायत्तता के पक्ष मेें हैैं।” टिप््पणी लिखिए। (2022)
z प्रवर््तन शक्तियां: नगर पालिकाएँ सामद ु ायिक पलु िस के साथ सिविल मामलोों z आपके विचार मेें सहयोग, प्रतिस््पर्द्धा और टकराव ने भारत मेें संघ का स््वरूप
को सभं ाल सकती हैैं, जबकि दिल््लली पलु िस आपराधिक मामलोों पर ध््ययान किस हद तक निर््धधारित किया है? अपने उत्तर को पष्टु करने के लिए कुछ
केें द्रित कर सकती है। हालिया उदाहरण दीजिए। (2020)
जीएनसीटीडी अधिनियम, 2023 ने राष्ट्रीय राजधानी मेें एक मजबूत केें द्रीय z न््ययायालयोों द्वारा विधायी शक्तियोों के वितरण से संबंधित विवादास््पद मद्ददों ु के
सरकार की आवश््यकता और दिल््लली को अधिक स््ववायत्तता प्रदान करने के बीच समाधान से 'सघं ीय सर्वोपरिता' और 'सद्भावपर््णू निर््ममाण' के सिद््धाांत उभर कर
संतुलन बनाने के बारे मेें बहस छे ड़ दी है। वैकल््पपिक शासन मॉडल की खोज सामने आए हैैं। व््ययाख््यया कीजिए। (2019)
और सहयोग को बढ़़ावा देने से दिल््लली मेें अधिक स््थथिर और कुशल प्रशासनिक z हाल के वर्षषों मेें सहकारी संघवाद की अवधारणा पर अधिक जोर दिया गया है।
व््यवस््थथा का मार््ग प्रशस््त हो सकता है। मौजदू ा ढाँचे की कमियोों पर प्रकाश डालिए और बताइए कि सहकारी संघवाद
किस हद तक इन कमियोों को दरू कर सकता है। (2015)
z यद्यपि हमारे संविधान मेें संघीय सिद््धाांत प्रमख ु है और यह सिद््धाांत इसकी
प्रमुख शब्दावलियाँ मल ू भतू विशेषताओ ं मेें से एक है, लेकिन यह भी उतना ही सत््य है कि भारत
एकात््मवादी संविधान, संघवाद, सहकारी संघवाद, वित्तीय के सवं िधान के तहत सघव ं ाद एक मजबतू केें द्र के पक्ष मेें झक ु ता है, जो एक
विकेें द्रीकरण, क्षेत्रीय स््ववायत्तता, राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा ऐसी विशेषता है जो मजबतू संघवाद की अवधारणा के विरुद्ध है। चर््चचा कीजिए।
प्राधिकरण (एनसीसीएसए), अनुच््छछेद 370 का निरसन आदि।  (2014)
z अतं र-राज््ययीय जल विवादोों को हल करने के लिए संवैधानिक तंत्र समस््ययाओ ं को
विगत वर्षषों के प्रश्न संबोधित करने और हल करने मेें विफल रहे हैैं। क््यया यह विफलता संरचनागत
z 101वेें सवं िधान सश
ं ोधन अधिनियम का महत्तत्व बताइए। यह किस हद तक या प्रक्रियागत अपर््ययाप्तता के कारण है या दोनोों के कारण है? चर््चचा कीजिए।
सघव
ं ाद की समायोजनात््मक भावना को दर््शशाता है? (2023)  (2013)

38  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीित और संिवधान


10 शक्तियोों का पृथक्करण
भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली शक्तियोों के पृथक््करण के विचार को दर््शशाती कार््यपालिका और
है, भले ही इसका स््पष्ट उल््ललेख न किया गया हो। मोोंटेस््क्ययू द्वारा समर््थथित यह विधायिका के बीच कार्यात्मक अतिव्याप्ति
सिद््धाांत सरकार को विधायिका, कार््यपालिका और न््ययायपालिका मेें विभाजित
करता है ताकि किसी एक समहू को बहुत अधिक शक्ति रखने से रोका जा सके । चँकि
ू , भारत के संविधान मेें शक्तियोों के सशक्त पृथक््करण का पालन नहीीं किया
भारत का संविधान इन अंगोों के बीच कुछ अतिव््ययाप्ति (Overlap) की अनुमति गया है, इसलिए ऐसे कई उदाहरण हैैं जहाँ कार््यपालिका और विधायिका के बीच
देता है, यह जाँच और संतुलन के बीच एक जटिल परस््पर क्रिया भी सुनिश्चित कार््ययात््मक अतिव््ययाप्ति (ओवरलैपिंग) होती है।
करता है। z राष्टट्रपति की भूमिका: राष्टट्रपति कार््यपालिका और विधायिका दोनोों के प्रमख ु
संवैधानिक प्रावधान और शक्तियोों का पृथक्करण के रूप मेें कार््य करता है।
z अध््ययादेश का प्रख््ययापन (Ordinance Promulgation): अध््ययादेश
z अंतर््ननिहित सिद््धाांत (Inherent Doctrine): भारत के संविधान मेें शक्तियोों
प्रख््ययापित करने का राष्टट्रपति का अधिकार हालाँकि, मख्ु ्य रूप से एक विधायी
के पृथक््करण के सिद््धाांत को अतं र््ननिहित रूप से एकीकृ त किया गया है। अनच्ु ्छछे द
कार््य है, लेकिन यह अगों ों के बीच कार््ययात््मक अतिव््ययाप्ति (ओवरलैपिंग) को
50, 122 और 212 जैसे अनच्ु ्छछे द तीनोों अगों ों के बीच एक संवेदनशील संतल ु न
बनाए रखने मेें योगदान करते हैैं। इगिं त करता है।
z मंत्रिपरिषद: मत्रि ं परिषद मेें कुछ मत्री ं , सांसद/विधायक होते हैैं जो कार््यकारी
z अनुच््छछेद 50: यह राज््य से न््ययायपालिका और कार््यपालिका के बीच स््पष्ट
पृथक््करण के लिए प्रयास करने का आग्रह करता है। विभागोों के प्रमख ु भी होते हैैं, जिससे उनके मध््य बहुत कम अतं र स््पष्ट होता है।
z अनुच््छछेद 122 और 212: अनच्ु ्छछे द 122 और 212 न््ययायालयोों को संसदीय z प्रत््ययायोजित विधान (Delegated Legislation): विधायिका कार््यपालिका

और विधायी कार््यवाहियोों पर प्रश्न उठाने से रोकते हैैं, तथा न््ययायिक और को काननोू ों के प्रभावी कार््ययान््वयन के लिए नियम बनाने की शक्ति प्रदान करती है।
विधायी क्षेत्ररों को प्रभावी रूप से पृथक कर देते हैैं। z दलीय प्रणाली (Party System): विधायिका और कार््यपालिका के बीच

शक्तियोों के पृथक्करण के विभिन्न मॉडल साझा दलीय संबद्धता के कारण विधायिका, कार््यपालिका के निर््णयोों पर अपनी
महु र लगा सकती है।
शक्तियोों के पृथक््करण का सिद््धाांत अर््थथात् सरकारी कार्ययों को विभिन््न अगों ों के
z अविश्वास प्रस््तताव (No-confidence Motion): सत्ताधारी दल अविश्वास
बीच विभाजित करने का सिद््धाांत विभिन््न देशोों मेें अलग-अलग तरीके से लागू
किया जाता है। प्रस््तताव से बचने के लिए विधायिका को प्रभावित कर सकता है।
z सशक्त पथ ृ क््करण: संयक्त
ु राज््य अमेरिका एक कठोर मॉडल का उदाहरण z व््हहिप प्रणाली (Whip System): राजनीतिक दल विधायकोों के बीच

है जिसमेें विधायी, कार््यकारी और न््ययायिक शाखाओ ं को पृथक करने वाली अनश ु ासन लागू करने के लिए पार्टी व््हहिप का उपयोग कर सकते हैैं, जिससे वे
स््पष्ट रे खाएँ हैैं। स््वतंत्र रूप से मतदान नहीीं कर सकते हैैं।
z लचीला मॉडल: य.ू के . और भारत जैसे देशोों मेें सरकार के अगो ं ों के कार्ययों और आगे की राह
कार््ममिकोों मेें अधिक ओवरलैप दिखाई पड़ता है, जिससे अधिक सहयोगात््मक
दृष्टिकोण को बढ़़ावा मिलता है। यद्यपि भारत की शासन प्रणाली मेें शक्तियोों का पूर््ण पृथक््करण व््ययावहारिक नहीीं
है, फिर भी अतिव््ययाप्ति (ओवरलैपिंग) को न््ययूनतम करने तथा अधिक जवाबदेही
अन््य निकायोों के तानाशाही प्रवृत्तियोों सुनिश्चित करने के लिए निम््नलिखित कदम उठाए जा सकते हैैं:
कार्ययों पर नियंत्रण के खिलाफ सरु क्षा z स््वतंत्र सस् ं ्थथाओ ं को मजबूत बनाना: लोक सभा सचिवालय और नियंत्रक
एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) जैसी संस््थथाओ ं को सशक्त बनाकर कार््यपालिका
शक्तियोों के की स््वतंत्र जाँच का प्रावधान किया जा सकता है।
प्रशासन मेें दक्षता
बनाए रखना पृ थ क््करण का महत्तत्व z सस ं दीय समितियाँ: काननू और कार््यपालिका के कार्ययों की गहन जाँच के
लिए संसदीय समितियोों को अधिक सशक्त बनाया जाना चाहिए।
मनमानेपन के
z प्रत््ययायोजित विधान पर निर््भरता मेें कमी: विधायिका को प्रत््ययायोजित
खिलाफ सरु क्षा
निरंकुशता के विधान के दायरे को स््पष्ट रूप से परिभाषित करना चाहिए तथा इसके कार््ययान््वयन
खिलाफ सरु क्षा की निगरानी बनाए रखनी चाहिए।
z चुनावी सध ु ार: पार्टी के भीतर लोकतंत्र को बढ़़ावा देने और स््वतंत्र उम््ममीदवारोों न्यायपालिका और विधायिका के बीच अतिव्याप्ति को न्यूनतम
को प्रोत््ससाहित करने से मतदान व््यवहार पर पार्टी व््हहिप के प्रभाव को कम करना
किया जा सकता है। कुछ अतिव््ययाप्ति (ओवरलैपिंग) नियंत्रण और संतुलन को बढ़़ावा देती हैैं,
z जनहित समूह (पीआईजी): मजबतू जनहित समहोू ों के विकास को प्रोत््ससाहित अत््यधिक अतिव््ययाप्ति (ओवरलैपिंग) भ्रम पैदा कर सकती है और दोनोों अंगोों
किया जाना चाहिए जो सरकार को जवाबदेह बनाकर, विधायिका को वैकल््पपिक की स््वतंत्रता को कमजोर कर सकती है। इसे कम करने के तरीके यहाँ दिए गए हैैं:
z न््ययायिक मर््ययादा (Judicial Deference): न््ययायपालिका को विधायिका
दृष्टिकोण प्रदान कर सकेें ।
की काननू बनाने की शक्ति को उचित सम््ममान देते हुए काननोू ों को रद्द करने मेें
z न््ययायिक समीक्षा: विधायिका और कार््यपालिका दोनोों पर प्रभावी नियंत्रण
संयम बरतना चाहिए।
सनिश्
ु चित करने के लिए न््ययायिक स््वतंत्रता को कायम रखना।
z जनहित याचिकाओ ं के लिए मानक निर््धधारित करना: जनहित याचिकाओ ं
z सवं ैधानिक उद्देश््यपरकता का सिद््धाांत: एनसीटी बनाम भारत सघं के मामले के लिए स््पष्ट दिशानिर्देश तैयार किए जा सकते हैैं, जिससे यह सनिश् ु चित हो
मेें, न््ययायमर््तति
ू चद्रं चड़ू ने विधायिका और कार््यपालिका के बीच संबंधोों को सके कि वे विधायी कार्ययों का अतिक्रमण किए बिना वास््तविक जनहित को
संतलु ित करने के लिए मल ू सिद््धाांत के रूप मेें "संवैधानिक उद्देश््यपरकता" संबोधित कर सकेें ।
पर जोर दिया। इससे यह सनिश् ु चित करने मेें मदद मिलती है कि प्रत््ययेक अगं z स््वतंत्र न््ययायिक नियुक्तियाँ: न््ययायाधीशोों की नियक्ु ति के लिए अधिक पारदर्शी
अपने निर््ददिष्ट क्षेत्र के भीतर काम करता है, जिससे निरपेक्ष शक्ति संचय को और स््वतंत्र प्रक्रिया न््ययायिक वैधता को मजबतू कर सकती है।
रोका जा सकता है। z न््ययायिक समीक्षा के प्रति सम््ममान: विधायिका को संविधान को कायम रखने

मेें न््ययायपालिका की भमि ू का को स््ववीकार करना चाहिए तथा न््ययायिक समीक्षा


न्यायपालिका और विधायिका के
को कमजोर करने के प्रयासोों से बचना चाहिए।
बीच कार्यात्मक अतिव्याप्ति z सस ं दीय विशेषाधिकारोों को परिभाषित करना: ससं दीय विशेषाधिकारोों की
भारत के संविधान का उद्देश््य शक्तियोों का पृथक््करण करना है, लेकिन कुछ क्षेत्ररों स््पष्ट परिभाषा न््ययायपालिका के अधिकार के साथ टकराव को कम कर सकती है।
मेें न््ययायपालिका और विधायिका के बीच अतिव््ययाप्ति (ओवरलैपिंग) दिखाई देती भारत इन उपायोों को लागू करके न््ययायपालिका और विधायिका के बीच नियंत्रण
है। ऐसी अतिव््ययाप्ति (ओवरलैपिंग) के कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैैं: और संतुलन की अधिक संतुलित और प्रभावी प्रणाली के लिए प्रयास कर
z न््ययायिक समीक्षा बनाम विधायी शक्ति: न््ययायपालिका असंवैधानिक माने सकता है। इससे प्रत््ययेक अंग की स््पष्ट सीमाओ ं और उनकी भमि ू का के प्रति
जाने वाले काननोू ों को रद्द कर सकती है, इस प्रकार विधायिका की काननू बनाने सम््ममान के साथ एक स््वस््थ लोकतंत्र सुनिश्चित होगा।
की शक्ति को सीमित कर सकती है। (उदाहरण: 2015 मेें उच््चतम न््ययायालय न्यायपालिका और कार््यपालिका के
ने राष्ट्रीय न््ययायिक नियक्ु ति आयोग अधिनियम को रद्द कर दिया)। बीच कार्यात्मक अतिव्याप्ति
z जनहित याचिका (पीआईएल): जनहित याचिका न््ययायपालिका को
न््ययायपालिका कानूनोों की व््ययाख््यया करती है और कार््यपालिका उन््हेें लागू
सामाजिक न््ययाय के मद्ददोंु पर विचार करने की अनमति ु देती है, कभी-कभी करती है लेकिन अनेक ऐसे क्षेत्र हैैं जहाँ उनके कार््य एक दसू रे से अतिव््ययाप्ति
न््ययायपालिका पारंपरिक रूप से विधायिका के लिए आरक्षित नीतिगत क्षेत्ररों मेें (ओवरलैपिंग) होते हैैं, जिससे संभावित प्रभाव के बारे मेें चिंताएँ पैदा होती हैैं।
भी हस््तक्षेप करती है। (उदाहरण: जनहित याचिका के परिणास््वरूप शिक्षा का इससे संबंधित पाँच उदाहरण इस प्रकार दिए गए हैैं:
अधिकार अधिनियम बना।)। z न््ययायाधीशोों की नियुक्ति (Appointment of Judges): कॉलेजियम

z विधायी अतिव््ययाप्ति (Legislative Overreach): विधायिका न््ययायिक प्रणाली के माध््यम से न््ययायाधीशोों की नियक्ु ति मेें कार््यपालिका की भमि ू का
सीमाओ ं का अतिक्रमण करने वाली "न््ययायिक सक्रियता" पर अक ं ु श लगाने होती है, जिससे संभावित पर््ववाग्र
ू ह के बारे मेें प्रश्न उठते हैैं।
z अधिकरण (Tribunals): सरकार अर्दद्ध-न््ययायिक शक्तियोों वाले अधिकरणोों
के उद्देश््य से काननू पारित कर सकती है। (उदाहरण: जनहित याचिकाओ ं को
प्रतिबंधित करने या काननोू ों की समीक्षा करने की न््ययायपालिका की शक्ति को की स््थथापना करती है, जिससे न््ययायिक व््ययाख््यया और कार््यपालिका की कार््रवाई
के बीच की रे खाएँ अस््पष्ट हो जाती हैैं।
सीमित करने का प्रयास)।
z राष्टट्रपति/राज््यपाल को उन््ममुक्ति (Presidential/Gubernatorial
z न््ययायिक अतिव््ययाप्ति (Judicial overreach): कुछ महत्तत्वपर््ण ू मामलोों मेें Immunity): राष्टट्रपति और राज््यपालोों को आधिकारिक कार्ययों के लिए
न््ययायपालिका को प्रासंगिक काननोू ों के अभाव मेें दिशा-निर्देश बनाने के लिए अदालती कार््यवाही से उन््ममुक्ति प्राप्त होती है, जिससे न््ययायिक निगरानी सीमित
आगे आना पड़़ा है, जिससे विधायी और न््ययायपालिका के कार्ययों के बीच हो जाती है।
स््वतंत्र कार््य करने की रे खाएँ और अधिक धधंु ली हो गई हैैं। z दया सब ं ंधी शक्तियां (Mercy Powers): कार््यपालिका के सदस््योों के रूप
 उदाहरण: 2जी स््पपेक्टट्रम मामला, जिसमेें न््ययायपालिका द्वारा लाइसेेंस रद्द मेें राष्टट्रपति और राज््यपाल के पास दया प्रदान करने की शक्ति है, जो कि
करने के परिणामस््वरूप कार््यपालिका द्वारा नीतिगत परिवर््तन किए गए, जो एक विशिष्ट न््ययायिक कार््य है। यह कार््ययात््मक अतिव््ययाप्ति (ओवरलैपिंग) को
सरकार के अगों ों के बीच परस््पर जटिल संबंध का उदाहरण है। रे खांकित करता है।
z सस ं दीय विशेषाधिकार (Parliamentary Privileges): विधायिका के z न््ययायालय की अवमानना (Contempt of Court): न््ययायालयोों के पास

पास अवमानना के लिए दडि ं त करने की शक्ति है, जो न््ययायपालिका के अधिकार अवमानना के लिए दडि ं त करने की शक्ति है जिसका दरुु पयोग आलोचना या
के साथ टकराव पैदा कर सकती है। असहमति को दबाने के लिए किया जा सकता है।

40  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीित और संिवधान


न्यायपालिका और कार््यपालिका के z जनता का विश्वास बनाए रखना: एक सव्ु ्यवस््थथित शासन, जिसमेें प्रत््ययेक
बीच अतिव्याप्ति को न्यूनतम करना अगं दसू रे के क्षेत्राधिकार का सम््ममान करता है, व््यवस््थथा और काननू के शासन
बेहतर संतुलन सुनिश्चित करने के लिए अतिव््ययाप्ति (ओवरलैपिंग) को न््ययूनतम मेें जनता का विश्वास बढ़़ाता है। (उदाहरण: न््ययायिक रिक्तियोों का समाधान करने
करने के कुछ तरीके यहाँ दिए गए हैैं: या भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सहयोगात््मक प्रयास न््ययाय प्रणाली मेें जनता
z न््ययायपालिका मेें स््वतंत्र नियुक्तियाँ: न््ययायाधीशोों की नियक्ु ति के लिए अधिक का विश्वास बढ़़ा सकते हैैं)।
पारदर्शी और स््वतंत्र प्रक्रिया की तलाश करना, जिसमेें नागरिकोों के पैनल को z वैश्वीकृत विश्व: तेजी से आपस मेें जड़ ु ती दनि
ु या मेें साइबर अपराध या पर््ययावरण
भी शामिल किया जाना चाहिए। क्षरण जैसे अतं रराष्ट्रीय मद्ददोंु को संबोधित करने के लिए सरकार के विभिन््न अगों ों
z अधिकरणोों की विशे षज्ञता: अधिकरणोों के दायरे को स््पष्ट रूप से परिभाषित के बीच समन््ववित कार््रवाई आवश््यक है। (उदाहरण: प्रभावी प्रत््यर््पण संधियोों
करना और यह सनिश् ु चित करना कि उनमेें योग््य न््ययायिक सदस््य कार््यरत होों। को तैयार करने और अतं रराष्ट्रीय पर््ययावरण समझौतोों को लागू करने के लिए
z न््ययायिक मर््ययादा: न््ययायपालिका को नीतिगत निर््णयोों मेें हस््तक्षेप करने मेें तब विधायिका, कार््यपालिका और न््ययायपालिका के बीच सहयोग महत्तत्वपर््णू है।)
तक सयं म बरतना चाहिए, जब तक कि मल ू अधिकारोों का स््पष्ट उल््ललंघन न हो। उपर््ययुक्त उदाहरण इस बात पर प्रकाश डालते हैैं कि यद्यपि नियंत्रण और संतुलन
z उन््ममुक्ति प्रावधानोों की समीक्षा: नागरिकोों के अधिकारोों को प्रभावित करने आवश््यक हैैं परंतु विभिन््न अंगोों के बीच बेहतर समन््वय वर््तमान जटिल
वाले कार्ययों की जवाबदेही सनिश् ु चित करने के लिए राष्टट्रपति/राज््यपाल की प्रशासनिक दनि ु या मेें प्रभावी शासन के लिए महत्तत्वपर््णू है।
उन््ममुक्ति की अवधारणा पर पनु र््वविचार किया जाना चाहिए। विधायिका, कार््यपालिका और न््ययायपालिका के बीच समन््वय को बढ़़ावा देना
z अवमानना के सब ं ंध मेें स््पष्ट दिशा-निर्देश: न््ययायालय की अवमानना के भारत के संविधान मेें शक्तियोों के पृथक््करण की अवधारणा को शामिल
दरुु पयोग को रोकने के लिए स््पष्ट और वस््ततुनिष्ठ दिशानिर्देश तैयार किए जाने किया गया है, लेकिन प्रभावी शासन के लिए दोनोों अंगोों के बीच समन््वय की
चाहिए। आवश््यकता होती है। इसे प्राप्त करने के कुछ तरीके इस प्रकार हैैं:
भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली मेें उपर््ययुक्त उपायोों को शामिल करके एक अधिक z विभिन््न अंगोों के बीच सच ं ार चैनल (Inter-Branch Communication
संतुलित प्रणाली के लिए प्रयास किया जा सकता है, जहाँ न््ययायपालिका और Channels): प्रत््ययेक अगं के प्रतिनिधियोों के बीच नियमित परामर््श बैठकोों
कार््यपालिका दोनोों अपनी निर््धधारित भमि ू काओ ं के अंतर््गत प्रभावी ढंग से कार््य जैसे संचार के औपचारिक चैनल स््थथापित करने से बेहतर समझ और सहयोग
कर सकेें ताकि संविधान के लोकतांत्रिक सिद््धाांत मजबूत हो सकेें । को बढ़़ावा मिल सकता है।
विधायिका, कार््यपालिका और z प्रतिनियुक्ति कार््यक्रम (Secondment Programs): विभिन््न अगो ं ों के
न्यायपालिका के बीच समन्वय क्ययों आवश्यक है ? बीच कार््ममिकोों का अस््थथायी आदान-प्रदान एक-दसू रे की कार््यप्रणाली और
शक्तियोों का पृथक््करण नियंत्रण और संतुलन सुनिश्चित करता है, जबकि प्रभावी चनु ौतियोों के बारे मेें बहुमल्ू ्य जानकारी प्रदान कर सकता है।
शासन के लिए विधायिका, कार््यपालिका और न््ययायपालिका के बीच समन््वय z समझौता ज्ञापन (एमओयू): विशिष्ट मद्ददों ु पर सहयोग के लिए प्रोटोकॉल की
की आवश््यकता होती है। इसके निम््नलिखित कारण हैैं: रूपरे खा तैयार करने वाले समझौता ज्ञापन करने से सिविल सेवकोों के लिए
z प्रभावी कानून बनाना: विधायिका अस््पष्टताओ ं या अप्रत््ययाशित परिणामोों को
न््ययायिक प्रशिक्षण या विशिष्ट प्रकार के मामलोों के लिए फास््ट-ट्रैक न््ययायालयोों
संबोधित करने के लिए नए काननू बनाते समय मौजदू ा काननोू ों की न््ययायपालिका जैसे क्षेत्ररों मेें समन््ववित कार््रवाई को बढ़़ावा मिल सकता है।
की व््ययाख््यया को ध््ययान मेें रख सकती है। (उदाहरण: अनच्ु ्छछे द 21 के तहत निजता
z सय ं ुक्त सम््ममेलन: राष्ट्रीय महत्तत्व के मामलोों मेें, समय-समय पर सयं क्त
ु सम््ममेलनोों
संबंधी अधिकारोों पर उच््चतम न््ययायालय के ऐतिहासिक फै सले विधायिका को
का आयोजन खल ु े सवं ाद और सहयोगात््मक समस््यया समाधान को प्रोत््ससाहित
एक मजबतू डेटा सरु क्षा काननू बनाने मेें मार््गदर््शन कर सकते हैैं)।
कर सकता है।
z सच ु ारू कार््ययान््वयन: काननू ी व््ययाख््ययाओ ं पर न््ययायपालिका और कार््यपालिका
z सस ं दीय समितियोों को मजबूत बनाना: संसदीय समितियोों को अधिक
के बीच स््पष्ट संचार काननोू ों के सचु ारू कार््ययान््वयन को सनिश् ु चित करता है
निगरानी प्राधिकार देकर उन््हेें सशक्त बनाने से कार््यपालिका के साथ रचनात््मक
और विवादोों को कम करता है। (उदाहरण: नए अधिनियमित श्रम काननोू ों पर
जाँच और बातचीत के लिए एक मचं तैयार हो सकता है।
न््ययायाधीशोों और नौकरशाहोों के लिए सहयोगात््मक कार््यशालाएँ बेहतर प्रवर््तन
z न््ययायिक समीक्षा के प्रति सम््ममान: कार््यपालिका को न््ययायिक निर््णयोों का
के लिए एक सामान््य समझ को बढ़़ावा दे सकती हैैं)।
सम््ममान करना चाहिए तथा काननू ी ढाँचे के भीतर उन््हेें क्रियान््ववित करने के
z महत्तत्वपूर््ण मुद्ददों पर त््वरित कार््रवाई: संकट या राष्ट्रीय आपात स््थथितियोों के

समय त््वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया के लिए सभी अगों ों के बीच समन््ववित लिए सद्भावनापर््णू प्रयास करना चाहिए।
कार््रवाई आवश््यक है। (उदाहरण: महामारी के दौरान, न््ययायपालिका लॉकडाउन भारतीय शासन प्रणाली मेें उपर््ययुक्त उपायोों को लागू करके शासन के विभिन््न अंगोों
उपायोों के लिए काननू ी चनु ौतियोों को तेज़़ी से आगे बढ़़ा सकती है जबकि के बीच आपसी सम््ममान और समझ की संस््ककृ ति को बढ़़ावा दिया जा सकता है।
कार््यपालिका उन््हेें लागू कर सकती है, जिससे सार््वजनिक स््ववास््थ््य और उचित जिससे शासन के प्रति अधिक सहयोगात््मक दृष्टिकोण को बढ़़ावा मिलेगा और
प्रक्रिया दोनोों सनिश्
ु चित हो सकते हैैं)। अंततः देश की प्रगति और उसके नागरिकोों का कल््ययाण सनिश् ु चित होगा।

शक्तियों का पृथ 41
z के शवानंद भारती मामला (1973): न््ययायालय ने "मल ू संरचना सिद््धाांत" की
नियंत्रण और संतल
ु न का सिद्धधांत
स््थथापना की, जिसने संसद की संशोधन शक्ति को सीमित कर दिया।
नियंत्रण और संतुलन के सिद््धाांत का उद्देश््य सरकार के किसी भी अंग को बहुत z इदि ं रा गांधी बनाम राज नारायण मामला (1975): प्रधानमत्री ं को निर््ववाचन
शक्तिशाली बनने से रोकना है। यह नागरिकोों को राज््य की शक्ति के मनमाने या संबंधी चनु ौतियोों से बचाने वाले संशोधन को रद्द कर दिया गया।
निरंकुश उपयोग से बचाता है। भारतीय शासन प्रणाली मेें नियंत्रण और संतुलन का सिद््धाांत लोकतांत्रिक
भारत के संविधान मेें प्रावधान: पृथक््करण और समन््वय के आदर््श को व््यवस््थथित करता है। लोकतंत्र मेें शासन
भारत के संविधान मेें विभिन््न प्रावधानोों के माध््यम से नियंत्रण और संतुलन के के प्रत््ययेक अंग की एक विशेष भमि ू का होती है, जो कुशल शासन मेें योगदान
सिद््धाांत को शामिल किया गया है जो इस प्रकार वर््णणित हैैं: देता है। यह प्रणाली एक स््वस््थ लोकतंत्र के लिए महत्तत्वपर््णू है, जो यह सनिश्
ु चित
z न््ययायिक समीक्षा (अनुच््छछेद 13): न््ययायपालिका विधायिका द्वारा पारित
करता है कि किसी एक इकाई के पास पूर््ण शक्ति या एकाधिकार न हो और
काननोू ों की समीक्षा कर सकती है और असंवैधानिक पाए जाने पर उन््हेें रद्द या नागरिकोों के अधिकार सुरक्षित रह सकेें ।
शन्ू ्य घोषित कर सकती है।
z न््ययायिक सीमाएँ (अनुच््छछेद 21): न््ययायपालिका स््वयं सस् ु ्थथापित काननू ी प्रमुख शब्दावलियाँ
प्रक्रियाओ ं से बंधी हुई है। नियंत्रण और संतुलन; संवैधानिक उद्देश््यपरकता; कार््यकारी,
z कार््यपालिका द्वारा नियुक्तियाँ: कार््यपालिका न््ययायाधीशोों की नियक्ु ति करती विधायी और न््ययायिक अतिव््ययाप्ति; सद्भावपूर््ण समन््वय; भविष््यलक्षी
है, जिसमेें राष्टट्रपति की भमि
ू का होती है। ओवररूलिंग का सिद््धाांत; अधिकारातीत (शक्तियोों से परे); कानून
z सस ं दीय प्रणाली: भारत मेें संसदीय शासन प्रणाली अपनाई गयी है, जहाँ और समानता का शासन आदि।
कार््यपालिका विधायिका से ली जाती है। इसके अनसु ार कार््यपालिका और
विगत वर्षषों के प्रश्न
विधायिका के मध््य समन््वय और सहयोग आवश््यक है।
z न््ययायिक विधान भारत के सवं िधान मेें वर््णणित शक्तियोों के पृथक््करण के सिद््धाांत
नियंत्रण और संतल
ु न के उदाहरण: के विपरीत है। इस संदर््भ मेें कार््यकारी अधिकारियोों को दिशा-निर्देश जारी करने
z विधायिका बनाम कार््यपालिका: राष्टट्रपति संसद का अधिवेशन आमत्रि ं त की प्रार््थना करते हुए बड़़ी संख््यया मेें जनहित याचिकाएँ दायर करने का औचित््य
कर सकता है, स््थगित कर सकता है (एक निश्चित समय सीमा तक स््थगित बताएँ। (2020)
कर सकता है) या लोक सभा का विघटन कर सकता है (अनच्ु ्छछे द 85)। दसू री z क््यया आपको लगता है कि भारत का संविधान शक्तियोों के सख््त पृथक््करण
ओर, ससं द सवं िधान का उल््ललंघन करने के लिए राष्टट्रपति पर महाभियोग चला के सिद््धाांत को स््ववीकार नहीीं करता है, बल््ककि यह 'नियंत्रण और संतल ु न' के
सकती है (अनच्ु ्छछे द 61)। सिद््धाांत पर आधारित है? समझाइए। (2019)
z कार््यपालिका बनाम न््ययायपालिका: कार््यपालिका न््ययायाधीशोों की नियक्ु ति z अध््ययादेशोों का सहारा लेने से हमेशा शक्तियोों के पृथक््करण सिद््धाांत की भावना
करती है, लेकिन न््ययायपालिका न््ययायिक समीक्षा के माध््यम से कार््यपालिका के उल््ललंघन के बारे मेें चितं ा उत््पन््न हुई है। अध््ययादेश जारी करने की शक्ति को
के कार्ययों की समीक्षा कर सकती है (उदाहरण के लिए, के शवानंद भारती बनाम उचित ठहराने वाले तर्ककों पर ध््ययान देते हुए यह विश्ले षण करेें कि क््यया इस मद्ु दे
के रल राज््य और मिनर््ववा मिल््स बनाम भारत सघं )। पर उच््चतम न््ययायालय के निर््णयोों ने इस शक्ति का सहारा लेने को और अधिक
z विधायिका बनाम न््ययायपालिका: संसद महाभियोग के माध््यम से सवु िधाजनक बनाया है। क््यया अध््ययादेश जारी करने की शक्ति को निरस््त कर
न््ययायाधीशोों को हटा सकती है, लेकिन न््ययायपालिका उन काननोू ों को अमान््य दिया जाना चाहिए? (2015)
कर सकती है जिन््हेें वह असंवैधानिक मानती है (उदाहरण के लिए, के शवानंद z 'मल ू संरचना' सिद््धाांत के आविष््ककार से लेकर न््ययायपालिका ने यह सनिश् ु चित
भारती मामला)। करने मेें अत््यधिक सक्रिय भमि ू का निभाई है कि भारत एक सदृु ढ़ लोकतंत्र के
रूप मेें विकसित हो। इस कथन के आलोक मेें, लोकतंत्र के आदर्शशों को प्राप्त
प्रमुख उदाहरण:
करने मेें न््ययायिक सक्रियता द्वारा निभाई गई भमि ू का का मल्ू ्ययाांकन करेें।(2014)
z गोलकनाथ मामला (1967): न््ययायालय ने मलू अधिकारोों को सीमित करने z भारत का उच््चतम न््ययायालय सवं िधान मेें सश ं ोधन करने की ससं द की मनमानी
वाले सश
ं ोधन को असवं ैधानिक घोषित कर दिया। शक्ति पर नियंत्रण रखता है। समालोचनात््मक रूप से चर््चचा करेें। (2013)

42  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीित और संिवधान


11 संसद और राज्य विधानमंडल

परिचय संसद के कार््य


भारत मेें लोकतंत्र के मल
ू तत्तत्व को हमारी संसद और विधानमंडलोों द्वारा नियुक्त z कानून बनानाः संसद नए काननू बनाने, मौजदू ा काननोू ों मेें संशोधन करने और
किया जाता है। दनि ु या के सबसे बड़़े लोकतंत्र के स््ततंभोों के रूप मेें, वे संविधान यहां तक कि संविधान मेें संशोधन करने के लिए जिम््ममेदार है।
को बनाए रखते हैैं, कानून बनाते हैैं, कार््यपालिका को उत्तर देते हैैं और लोगोों z कार््यपालिका पर नियंत्रणः ससं द अविश्वास प्रस््तताव, निंदा प्रस््तताव और
की इच््छछा का प्रतिनिधित््व करने मेें महत्तत्वपूर््ण भमि
ू का निभाते हैैं। प्रश्नकाल जैसे विभिन््न तंत्ररों का उपयोग करके कार््यपालिका को जवाबदेह
संसदीय शासन प्रणाली की विशेषताएँ
बनाती है।
z निर््ववाचन कार््य: संसद राष्टट्रपति और उपराष्टट्रपति के निर््ववाचन मेें भाग लेती है।
z नाममात्र और वास््तविक कार््यपालक: राष्टट्रपति सवं ैधानिक कार््यपालक
आतं रिक रूप से, यह प्रत््ययेक सदन के अध््यक्ष और विभिन््न संसदीय समितियोों
के रूप मेें कार््य करता है जबकि प्रधानमत्रीं वास््तविक कार््यपालक के रूप मेें के प्रमखो
ु ों का भी चनु ाव करती है।
कार््य करता है।
z वित्त का प्रबंधनः कार््यपालिका संसद की अनमति ु के बिना भारत की संचित
z सामूहिक उत्तरदायित््ववः मत्री ं परिषद सामहिू क रूप से लोकसभा (अनच्ु ्छछे द निधि से धन नहीीं निकाल सकती या उसका उपयोग नहीीं कर सकती है। बजट
75) के प्रति उत्तरदायी होती हैैं। संसद के समक्ष प्रस््ततुत किया जाता है और लोक लेखा समिति और प्राक््कलन
z बहुमत दल का शासनः लोकसभा मेें बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल या समिति जैसी समितियोों द्वारा इसकी जाँच की जाती है।
राजनीतिक दलोों का गठबंधन सरकार बनाता है। z अर््ध-न््ययायिक कार््ययः संसद अर््ध-न््ययायिक शक्तियोों का प्रयोग करती है। इसमेें
z दोहरी सदस््यताः मत्री ं विधायिका और कार््यपालिका दोनोों के सदस््य होते हैैं। जाँच समितियोों का गठन, राष्टट्रपति के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया, उच््च
z प्रधानमंत्री का नेतृत््ववः प्रधानमत्री
ं ससं दीय प्रणाली मेें केें द्रीय व््यक्ति हैैं। न््ययायालय और सर्वोच््च न््ययायालय के न््ययायाधीशोों को हटाना और ससं दीय
z राजनीतिक एकरूपता: मत्रि ं परिषद के सदस््य आम तौर पर एक ही राजनीतिक विशेषाधिकारोों को बरकरार रखना शामिल है।
दल के होते हैैं, जो वैचारिक स््थथिरता सनिश्
ु चित करते हैैं। हालांकि गठबंधन भारतीय विधायिका के समक्ष आने वाली समस्याएँ
सरकारोों के दौर मेें ये विशेषता कुछ कमजोर हुई है। z बैठकोों की सख् ं ्यया मेें कमीः 17वीीं लोकसभा की बैठक कुल 1,354 घटं े
z निम््न सदन का विघटनः प्रधानमत्री ं की सिफारिश पर राष्टट्रपति द्वारा लोकसभा चली, जो सभी पर्ू क ्ण ालिक लोकसभा के औसत से काफी कम है।
को भगं किया जा सकता है। z अनुशासन और शिष्टाचारः सदस््योों के बीच व््यवधान और अनश ु ासनहीनता
z गोपनीयताः मत्री ं प्रक्रिया की गोपनीयता के सिद््धाांत से बंधे होते हैैं, और अपनी के कारण संसद का मल्ू ्यवान समय बर््बबाद होता है।
कार््यवाही, नीतियोों और निर््णयोों के बारे मेें जानकारी का खल ु ासा नहीीं कर z महिलाओ ं का कम प्रतिनिधित््ववः पिछले कुछ वर्षषों मेें लोकसभा मेें
सकते। महिलाओ ं के प्रतिशत मेें वृद्धि के बावजदू , यह अभी भी अन््य लोकतंत्ररों की
भारत मेें संसदीय प्रणाली अंगीकार करने के कारण तल ु ना मेें कम है।
z धन विधेयक मार््ग का सहारा: कई विधेयक जो धन विधेयकोों की श्रेणी मेें
z विधायी कार््यकारी सघं र्षषों से बचावः संसदीय प्रणाली कार््यपालिका और
परू ी तरह से फिट नहीीं होते हैैं, उन््हेें भी राज््यसभा मेें जाँच और बहस से बचने
विधायी शाखाओ ं के बीच संघर्षषों को कम करती है।
के लिए धन विधेयक के रूप मेें पारित किया गया है।
z प्रणाली से परिचित होना: ब्रिटिश प्रभाव के कारण भारतीय राजनीतिक
z अपर््ययाप्त चर््चचााः विधेयकोों को अक््सर न््ययूनतम चर््चचा के साथ और अक््सर ध््वनि
परंपरा संसदीय प्रणाली से परिचित थी।
मत से पारित किया जाता है, जिससे पारदर््शशिता और बहस की कमी होती है।
z प्रतिनिधित््ववः एक संसदीय प्रणाली सरकार मेें विभिन््न वर्गगों, हितोों और क्षेत्ररों सस
z ं दीय समितियोों द्वारा जाँच मेें कमीः कम विधेयकोों को विस््ततृत जाँच
के प्रतिनिधित््व को नियत करती है। के लिए संसदीय समितियोों को भेजा जा रहा है। जबकि 14वीीं लोकसभा मेें
z उत्तरदायित््व को प्राथमिकता: डॉ. बी.आर. अम््बबेडकर ने स््थथिरता और 60% और 15वीीं लोकसभा मेें 71% विधेयकोों को संबंधित विभाग-संबंधित
जिम््ममेदारी दोनोों का प्रदर््शन करने के लिए एक लोकतांत्रिक कार््यपालिका की स््थथायी समितियोों (DRSCs) को संदर््भभित किया गया था, यह अनपु ात 16वीीं
आवश््यकता पर प्रकाश डाला। लोकसभा मेें घटकर 25% हो गया।
z असक ं लित सस ं दीय विशेषाधिकारः संसदीय विशेषाधिकारोों पर संहिताबद्ध
नियमोों की कमी ने उनके दरुु पयोग पर चितं ा पैदा कर दी है।
संसदीय सुधार
z अध््ययादेशोों के माध््यम से विधानः सामान््य विधायी प्रक्रिया को दरकिनार z बैठकोों की न््ययूनतम सख् ं ्यया तय करनाः लोकसभा के लिए 120 और
करते हुए अध््ययादेशोों के माध््यम से पारित किए जाने वाले काननोू ों की संख््यया राज््यसभा के लिए 100 जैसे सत्ररों की न््ययूनतम संख््यया सनिश् ु चित करने से संसद
मेें वृद्धि हुई है। की उत््पपादकता और कामकाज मेें वृद्धि हो सकती है।
z सस ं दीय विशेषाधिकारोों को सहं िताबद्ध करनाः ससं दीय विशेषाधिकारोों के
लोकसभा की उत्पादकता
स््पष्ट संहिताकरण से उनके दरुु पयोग और अस््पष्टता को रोका जा सकता है।
संसद एक देश मेें सर्वोपरि लोकतांत्रिक मंच के रूप मेें कार््य करती है, जो बहस, z दल-बदल विरोधी कानून की समीक््षााः ससं द मेें बहस और विचार-विमर््श
विचार-विमर््श और निर््णय लेने के माध््यम से देश के भाग््य को आकार देती है। को पनु र्जीवित करने के लिए, व््हहिप का उपयोग के वल अविश्वास प्रस््तताव तक
हालाँकि, भारतीय संसद की घटती उत््पपादकता, जो हाल के सत्ररों मेें स््पष्ट है, इस ही सीमित किया जा सकता है।
महत्तत्वपूर््ण लोकतांत्रिक संस््थथान की प्रभावशीलता के बारे मेें चिंता पैदा करती है।
z विभागीय समितियोों और जवाबदेही को मजबूत करनाः विभागीय
कम उत्पादकता के कारणः समितियोों की कार््यक्षमता मेें सधु ार करना जैसे कि लंबे कार््यकाल (वर््तमान
z सस्ं ्थथागत गिरावटः लोकसभा के उपाध््यक्ष और विपक्ष के नेता जैसे प्रमख ु एक वर््ष के बजाय), विशेषज्ञता को बढ़़ावा देना ।
पदोों को सवं ैधानिक आवश््यकताओ ं के बावजदू नहीीं भरा गया है। z क़़ानून की गुणवत्ता मेें सध ु ारः विधि आयोग के बेहतर उपयोग के साथ-साथ
z बढ़ते व््यवधानः पेगासस विवाद, कृ षि विधेयकोों, मद्ु रास््फफीति की चितं ाओ ं विधायी कार्ययों को सव्ु ्यवस््थथित करने से क़़ाननू की गणवत्ता मेें वृद्धि हो सकती है।

और विभिन््न विधेयकोों पर असहमति जैसे विवादास््पद मद्दु दों ने हाल के सत्ररों
z सदस््योों के लिए सच ू ना आपूर््तति मेें वद्धि
ृ : ससं द के सदस््योों को ससं दीय
को बाधित किया है।
z विपक्ष के लिए अपर््ययाप्त समय: विपक्षी सदस््य शिकायतोों को व््यक्त करने सरोकार के क्षेत्ररों मेें विकास के साथ अद्यतन रखने से बहस और निर््णय लेने
के लिए अपर््ययाप्त समय पर असंतोष व््यक्त करते हैैं। की गणवत्ता
ु मेें सधु ार हो सकता है।
z सस ं दीय मानदडों ों का उल््ललंघनः सदस््योों के बीच अनश ु ासनहीनता, जैसे कि z राजनीति के अपराधीकरण पर अक ं ु श लगाने से और सख््त आचार संहिता
आध्रं प्रदेश के विभाजन के दौरान अनियंत्रित व््यवहार, चितं ा का विषय है। लागू करने से संसद सदस््योों की गणवत्ता ु मेें सधु ार होगा।
z गैर-सच ू ीबद्ध चर््चचा के लिए अपर््ययाप्त समयः गैर-सचू ीबद्ध प्रश्ननों और z सस ं द की सार््वजनिक छवि मेें सध ु ारः जनमत तक पहुचं और जनता के
आपत्तियोों के लिए सीमित समय भी व््यवधान पैदा करता है। साथ बेहतर संबंधोों को बढ़़ावा देने से संसद की छवि मेें सधु ार हो सकता है।
z सरकार और विपक्ष का गैर-उत्तरदायी रवैया: 2G घोटाले पर संयक्त ु संसदीय z वर््चचुअल बैठकोों के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोगः वर््चचुअल बैठकोों के
समिति के गठन के मामले मेें सरकार और विपक्ष की हठधर््ममिता संसद के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना यह सनिश् ु चित कर सकता है कि कोविड-19
बहुमल्ू ्य समय के प्रति दोनोों के गैर-उत्तरदायी रवैया को दर््शशाता है। महामारी जैसे संकटोों के दौरान विधायी कार््य जारी रहे।
z त््वरित अनुशासनात््मक कार््रवाई की अनुपस््थथितिः स््पष्ट नियमोों और
z विधायी प्रभाव आकलन का परिचयः विधायी प्रभाव आकलन पेश करने
व््यवधान पैदा करने वालोों के खिलाफ कार््रवाई की कमी अव््यवस््थथित आचरण
को प्रोत््ससाहित करती है। से प्रस््ततावित काननोू ों के बारे मेें जागरूकता और काननू ी मल्ू ्ययाांकन मेें सधु ार
हो सकता है।
17वीीं लोकसभा के कामकाज पर महत्तत्वपूर््ण आँकड़े
पी. आर. एस. विधायी अनुसंधान रिपोर््ट का निष्कर््ष
17वीीं लोकसभा (LS) ने जून 2019 और फरवरी 2024 के बीच अपना प्रमुख शब्दावलियाँ
सत्र आयोजित किया। लोक लेखा समिति, प्राक््कलन समिति, अर््ध -न््ययायिक, प्रश्नकाल,
z इस अवधि के दौरान, इसने 274 बैठकेें कीीं और 179 विधेयकोों (वित्त एवं दलबदल विरोधी कानून, व््हहिप आदेश, राजनीति का अपराधीकरण,
विनियोग विधेयक को छोड़कर) को पारित किया। विधायी प्रभाव आकलन
z प्रश्नकाल लोकसभा मेें निर््धधारित समय के 60% और राज््यसभा मेें 52%
के लिए चला। संसदीय विशेषाधिकार
z संसद सदस््योों के निलंबन के 206 उदाहरणोों के साथ सभी पर् ू क
्ण ालिक सीता सोरे न बनाम भारत संघ (2024) मेें सर्वोच््च न््ययायालय की सात-न््ययायाधीशोों
लोकसभाओ ं मेें सबसे कम बैठकेें । की संविधान पीठ ने पी. वी. नरसिम््हहा राव मामले मेें अपने 1998 के फै सले को
 प्रथम लोक सभा की तल ु ना मेें औसत वार््षषिक बैठक के दिन 135 से खारिज कर दिया। वर््तमान फै सले मेें सुप्रीम कोर््ट ने कहा कि विधायक सदन मेें
घटकर 55 हो गए। भाषण/वोट के लिए रिश्वत लेने के लिए अभियोजन से छूट का दावा नहीीं कर
z पहली बार, लोकसभा ने परू ी अवधि के लिए उपाध््यक्ष का चन ु ाव नहीीं किया। सकते हैैंः
z संविधान के अनुच््छछेद 93 मेें कहा गया है कि लोकसभा 'जितनी जल््ददी हो निर््णय की मुख्य बातेेंः
सके ' एक अध््यक्ष और एक उपाध््यक्ष का चनु ाव करे ।
z रिश्वतखोरी इससे अछूती नहीीं: रिश्वत लेने के आरोपी सांसद/विधायक
z बजट चर््चचा पर खर््च किया गया समय कम हो गया है और औसतन 80%
संविधान के अनुच््छछेद 105 और 194 के तहत अभियोजन से किसी भी तरह
बजट बिना चर््चचा के पारित किया है।
की छूट का दावा नहीीं कर सकते हैैं।

44  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


z दोहरा परीक्षण: एक व््यक्तिगत सांसद/विधायक द्वारा विशेषाधिकार के दावे प्रावधान जो साांसदोों/विधायकोों
को दोहरा परीक्षण द्वारा नियंत्रित किया जाएगाः को अभियोजन से प्रतिरक्षा प्रदान करते हैैं
 दावा किए गए विशेषाधिकार को सदन के सामहि ू क कामकाज से जड़ु ा z अनच्ु ्छछे द 105 संसद के दोनोों सदनोों और इसके सदस््योों और समितियोों
होना चाहिए, और (अनच्ु ्छछे द 194-राज््य विधानमडं ल के लिए) की शक्तियोों और विशेषाधिकारोों
 इसकी आवश््यकता का एक सांसद/विधायक के आवश््यक कर््तव््योों के से सबं ंधित है।
निर््वहन के साथ एक कार््ययात््मक संबंध होना चाहिए। z कार््यवाही के प्रकाशन को निषिद्ध करने का अधिकारः अनच्ु ्छछे द 105
z आपराधिक न््ययायालय का अधिकार क्षेत्रः आपराधिक न््ययायालयोों (2) मेें कहा गया है कि कोई भी व््यक्ति संसद के किसी भी सदन द्वारा या उसके
को सांसदोों/विधायकोों के खिलाफ रिश्वत के मामलोों की सनु वाई से के वल अधिकार के तहत किसी भी रिपोर््ट, पेपर, वोट या कार््यवाही (अनच्ु ्छछे द 194
इसलिए बाहर नहीीं रखा गया है क््योोंकि इसे सदन द्वारा अवमानना या अपने (2)-राज््य विधानमडं ल के लिए) के प्रकाशन के संबंध मेें उत्तरदायी नहीीं होगा।
विशेषाधिकार के उल््ललंघन के रूप मेें भी माना जा सकता है। z गिरफ््ततारी से मुक््तििः सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 मेें यह प्रावधान है कि
सदस््य सदन के स््थगन से 40 दिन पहले और बाद मेें और जब सदन का सत्र
z सस ं दीय विशेषाधिकारोों का क्षेत्रः संसदीय विशेषाधिकार का उद्देश््य सांसदोों चल रहा हो, किसी भी दीवानी मामले मेें गिरफ््ततारी से स््वतंत्रता की छूट प्राप्त हैैं।
/विधायकोों को बिना किसी भय के “बोलने” और “मतदान” करने का मचं
 हालाँकि, यह विशेषाधिकार दीवानी मामलोों तक ही सीमित है। एक सांसद
प्रदान करना है, जो निम््नलिखित पर भी समान रूप से लागू होता है:
को आपराधिक मामले मेें, सत्र के दौरान या अन््यथा कार््रवाई के खिलाफ
 राज््यसभा के चन ु ाव और कोई छूट नहीीं है।
 राष्टट्रपति और उपराष्टट्रपति के चन ु ाव। z सस ं द मेें बोलने की स््वतंत्रताः अनच्ु ्छछे द 105 (2) मेें कहा गया है कि कोई
संसदीय विशेषाधिकार और उनका विकास भी सदस््य संसद या इसकी समितियोों मेें उसके द्वारा कही गई किसी भी बात
z संसदीय विशेषाधिकार विधायिकाओ ं के सदस््योों को प्राप्त एक काननू ी प्रतिरक्षा या दिए गए किसी भी वोट के लिए किसी भी अदालत मेें किसी भी कार््यवाही
है, जिसमेें विधायकोों को उनके विधायी कर््तव््योों के दौरान किए गए कुछ कार्ययों के लिए उत्तरदायी नहीीं है। यह स््वतंत्रता संविधान के प्रावधानोों और संसद के
या दिए गए बयानोों के लिए नागरिक या आपराधिक दायित््व के खिलाफ नियमोों और प्रक्रियाओ ं के अधीन है, जैसा कि संविधान के अनच्ु ्छछे द 118 के
सरु क्षा प्रदान की जाती है। तहत कहा गया है। हालांकि, अनच्ु ्छछे द 121 सदस््योों को सर्वोच््च न््ययायालय
और उच््च न््ययायालय के न््ययायाधीशोों के आचरण पर चर््चचा करने से रोकता है।
z ब्रिटिश सस ं द मेें उत््पत््तििः हाउस ऑफ कॉमन््स मेें विधायिका सदस््योों को
z प्रक्रिया के नियमोों और उदाहरणोों के आधार पर विशेषाधिकारः
गिरफ््ततारी और उत््पपीड़न से बचाने के लिए पेश किया गया जब उन््होोंने राजशाही
संसद के पास किसी सदस््य की गिरफ््ततारी, हिरासत, दोषसिद्धि, कारावास
की आलोचना की। और आपराधिक आरोप या आपराधिक अपराध के लिए रिहाई की तत््ककाल
z भारतीय सदं र््भ मेें अंगीकार: भारत के संविधान निर््ममाताओ ं ने सदन के भीतर जानकारी प्राप्त करने का अधिकार सरु क्षित है।
सांसदोों/विधायकोों को बोलने की पर्ू ्ण स््वतंत्रता प्रदान की, भले ही नागरिकोों z ग़़ैर-सदस््योों को बाहर करने का अधिकारः सदन के सदस््योों के पास उन
की स््वतंत्रता कुछ यक्तिु यक्त ु निर्बंधनोों के अधीन प्रतिबंधित रही हो। इस फै सले ग़़ैर-सदस््योों (Strangers) को बाहर करने की शक्ति और अधिकार है जो सदन
को सप्रीम
ु कोर््ट ने बरकरार रखा था। के सदस््य नहीीं हैैं। यह अधिकार सदन मेें स््वतंत्र और निष््पक्ष चर््चचा सनिश्
ु चित
z सहं िताकरण की शक््तििः संविधान निर््ममाताओ ं ने विशेषाधिकारोों को संहिताबद्ध करने के लिए आवश््यक है। इसके अलावा, अनच्ु ्छछे द 122 के प्रावधानोों के
करने की शक्ति संसद को सौौंपी थी। हालाँकि, अब तक संसद संसदीय संप्रभतु ा अनसु ार, संसद की किसी भी कार््यवाही की वैधता की जाँच प्रक्रिया की कथित
के नकु सान के डर से संहिताबद्ध करने का विरोध करती रही है। पी वी नरसिम््हहा अनियमितता के आधार पर अदालत द्वारा नहीीं की जा सकती है।
राव मामले मेें इस पर प्रकाश डाला गया था। विपक्ष की भूमिका
संसदीय विशेषाधिकारोों का महत्त्व एक जीवंत लोकतंत्र का मल ू तत्तत्व विभिन््न दृष्टिकोण के निरंतर मंथन मेें निहित
z कार््ययात््मकता सनिश्
ु चित करनाः गिरफ््ततारी से स््वतंत्रता और अभिव््यक्ति की है, जिसमेें विपक्ष एक महत्तत्वपूर््ण भमि
ू का निभाता है। एक मजबूत विपक्ष सत्तारूढ़
स््वतंत्रता जैसे विशेषाधिकार मख्ु ्य रूप से यह सनिश्
ु चित करने के लिए मौजदू दल के लिए एक आवश््यक प्रतिसंतुलन के रूप मेें कार््य करता है, जो आवाजोों
की बहुलता सुनिश्चित करता है और लोकतांत्रिक सिद््धाांतोों को बनाए रखता है।
हैैं कि सदन बिना किसी बाधा के अपने कार्ययों को कर सके ।
संसदीय सत्र मेें सांसद की उपस््थथिति सनिश् भारतीय लोकतंत्र मेें विपक्ष की भूमिका
z ु चित हो।
सदस््योों का सरं क्षणः अवमानना के लिए दडि z बेजुबानोों की आवाज के रूप मेें कार््य करेेंः लोगोों के विचारोों को बनाए
z ं त करने और अपने स््वयं के
रखते हुए, विपक्ष अनसनु े लोगोों की आवाज के रूप मेें कार््य करता है, जैसा
कार््य को विनियमित करने की शक्ति सदस््योों की सरु क्षा, सदन के अधिकार
कि राष्ट्रीय लॉकडाउन के दौरान पीएम-गरीब कल््ययाण अन््न योजना के विस््ततार
और गरिमा को बनाए रखने के लिए मौजदू है। के दौरान देखा गया था।
z बाहरी हस््तक्षेप की रोकथामः विधायिका सदस््योों को बिना किसी डर या z जवाबदेही सनिश् ु चित करनाः विपक्ष सरकार को अपने कार्ययों और अपने
पक्षपात के अपने कर््तव््योों का पालन करने और बाहरी हस््तक्षेप को रोकने के घोषणापत्र के पालन के लिए जवाबदेह ठहराता है, जैसे कि 2012 मेें भ्रष्टाचार
लिए विशेषाधिकार दिए जाते हैैं। के खिलाफ विपक्षी दलोों के संयक्त
ु प्रयास से लोकपाल का गठन हुआ था।

संसद और राज्य विधानमं 45


भारत मेें विपक्ष से संबंधित मुद््देेः z वित्तीय बाधाएँः आर््थथिक निर््भरता और संसाधनोों तक सीमित पहुचं महिलाओ ं
की राजनीतिक भागीदारी मेें पर््ययाप्त बाधाओ ं के रूप मेें कार््य करती है।
z चुनावी ताकतः विपक्षी दलोों, विशेष रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC)
z पहचान छिपानाः महिला उम््ममीदवार अक््सर अपनी राजनीतिक पार्टी की
मेें अक््सर सत्तारूढ़ दल को प्रभावी ढंग से चनु ौती देने के लिए सख्ं ्ययात््मक
संबद्धता या पारिवारिक पृष्ठभमि ू के आधार पर चनु ाव जीतती हैैं, जिससे उनकी
ताकत की कमी विगत दशक मेें देखी गयी है।
व््यक्तिगत पहचान अस््पष्ट हो जाती है।
z सयं ुक्त प्रयासः विपक्ष दल और क्षेत्रीय हितोों के बीच विभाजित हो जाता है,
z व््यवहारगत बाधाएँ: प्रचलित लैैंगिक मान््यताएँ महिलाओ ं की क्षमताओ ं को
तथा कई क्षेत्रीय दल अपने क्षेत्र से बाहर के मद्दु दों पर चपु रहते हैैं।
कमज़़ोर करती हैैं, उदाहरणोों से पता चलता है जहाँ महिला विधायकोों को अपने
z दलबदलः राष्ट्रीय हित पर स््ववार््थ को प्राथमिकता देने से राजनीतिक दलबदल कर््तव््योों को परू ा करने मेें अपमानित किया गया है।
होता है, जिससे विपक्ष की भमिू का कमजोर होती है, जैसा कि 2019 के राष्ट्रीय
चनु ावोों मेें देखा गया था। निर््णय लेने वाले निकायोों मेें महिलाओ ं का महत्त्व
z लिंग-सवं ेदनशील दृष्टिकोणः महिला विधायक अक््सर महिला-केें द्रित मद्दु दों
आवश्यक सुधार
पर अधिक ध््ययान केें द्रित करती हैैं, जो भारत मेें स््वच््छता, स््वयं सहायता
z कानूनी सध ु ारः ऐसी स््थथिति मेें जहाँ विपक्ष मेें कोई भी दल 55 या उससे समहोू ों आदि जैसे मामलोों को संबोधित करने वाली महिला प्रधानोों के काम
अधिक सीटेें हासिल नहीीं करता है, विपक्ष मेें सबसे बड़़ी पार्टी को अध््यक्ष से स््पष्ट होता है।
द्वारा विपक्ष के नेता के रूप मेें मान््यता दी जानी चाहिए। z शासन मेें दक्षताः जर््मनी और न््ययूजीलैैंड जैसे महिलाओ ं के नेतत्ृ ्व वाले देशोों
z स््थथिति मेें सध ु ारः 10% सत्रीू करण ‘संसद मेें विपक्ष के नेता के वेतन और ने प्रभावी महामारी प्रबंधन सहित सराहनीय दक्षता का प्रदर््शन किया है।
भत्ते अधिनियम 1977’ के साथ असंगत है, जो सझु ाव देता है कि सबसे बड़़े z दृष्टिकोण की विविधताः चकि ँू महिलाएँ अक््सर विभिन््न प्रकार के भेदभाव
विपक्षी दल को पद मिलना चाहिए। और सामाजिक चनु ौतियोों का अनभु व करती हैैं, इसलिए उनकी उपस््थथिति लिंग
z राष्ट्रीय हितःराष्ट्रीय या संवैधानिक महत्तत्व के मद्दु दों पर विपक्ष को दलीय संबंधी मामलोों के प्रति बेहतर संवेदनशीलता और सामाजिक मद्दु दों की व््ययापक
सीमाओ ं से ऊपर उठकर एकजटु होना चाहिए। समझ मेें योगदान कर सकती है।
z दल-बदल विरोधी कानून को मजबूत करनाः दल-बदल विरोधी काननोू ों z बढ़़ी हुई प्रतिक्रियाः महिला नेता महिलाओ ं के खिलाफ अपराधोों पर त््वरित
पर पनु र््वविचार करने से राजनीतिक दल-बदल को रोकने और विपक्ष की भमि ू का कार््रवाई सहित वंचित समहोू ों की जरूरतोों के प्रति अधिक उत्तरदायी साबित
को मजबतू करने मेें मदद मिल सकती है। हुई हैैं।
z अंतरर््रराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ और सर्वोत्तम प्रथाएँ: महिलाओ ं के अधिक
प्रमुख शब्दावलियाँ प्रतिनिधित््व को प्राप्त करना अतं रर््रराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओ ं के साथ संरेखित होता
है, जैसे कि संयक्त ु राष्टट्र सतत विकास लक्षष्य 5, जिसका उद्देश््य लैैंगिक समानता
संसदीय व््यवधान सूचकांक, निष््ककासन, पर््ययाप्त अवैधता, मानहानि, प्राप्त करना और सभी महिलाओ ं और लड़कियोों को सशक्त बनाना है।
विपक्ष के नेता
सुधार के लिए सुझाए गए उपाय
राजनीति मेें महिलाओं की कम भागीदारी z जिपर (Zipper) प्रणाली लागू करेेंः रवाँडा द्वारा अपनाई जाने वाली एक
प्रथा जहाँ एक पार्टी मेें हर तीसरी सीट महिलाओ ं के लिए आरक्षित है।
महिलाओ ं की भागीदारी और प्रासंगिक डेटा की स्थिति
z रूढ़़िवादिता को चुनौती देें: महिलाओ ं को अपनी पारंपरिक भमि ू काओ ं से
z अतं र-संसदीय संघ (IPU) के अनसु ार 185 देशोों मेें राजनीति मेें महिलाओ ं बाहर निकलने और नेतत्ृ ्व के पदोों को लेने के लिए प्रोत््ससाहित करना।
की भागीदारी के मामले मेें भारत की रैैंकिंग चितं ाजनक है, जिसमेें संसद के
z आंतरिक दलीय लोकतंत्र को बढ़़ावा देना: राजनीतिक दलोों के भीतर
निम््न सदन मेें महिलाओ ं की सख्ं ्यया 74 है जो कुल सदस््य सख्ं ्यया का के वल
विभिन््न पदोों के लिए आतं रिक चनु ावोों को प्रोत््ससाहित करना।
13.63% है।
z स््थथानीय निकायोों मेें महिलाओ ं को बढ़़ानाः स््थथानीय शासन मेें महिलाओ ं
z राज््य विधायिकाएँ समान रूप से निराशाजनक तस््ववीर पेश करती हैैं, जिसमेें को राज््य विधानसभाओ ं और संसद मेें उच््च स््तर पर सेवा करने के अवसर
औसतन के वल 8% महिला प्रतिनिधित््व होता है। बिहार और राजस््थथान प्रदान करना।
लगभग 11% से 12% प्रतिनिधित््व के साथ अन््य राज््योों से थोड़़ा बेहतर
स््थथानीय स््वशासन के संस््थथानोों मेें महिलाओ ं के लिए सीटोों के आरक्षण
प्रदर््शन करते हैैं।
का कई मायनोों मेें सकारात््मक प्रभाव पड़़ा हैः
संसद मेें महिलाओ ं की भागीदारी मेें बाधा डालने वाली चुनौतियाां z प्रतिनिधित््व मेें वद््धििः
ृ इस नीति ने स््थथानीय शासन मेें महिलाओ ं की संख््यया मेें
z पितृसत्तात््मक प्रभावः निर््णय लेने मेें परुु ष सदस््योों का व््ययापक प्रभाव उल््ललेखनीय वृद्धि की है, निर््णय लेने मेें लैैंगिक विविधता को बढ़़ावा दिया है।
महिलाओ ं द्वारा धारण की गई शक्ति पर हावी हो जाता है, जो 'सरपंच पति' की z सशक्तीकरणः जिन महिलाओ ं ने स््थथानीय स््वशासन सस् ं ्थथानोों मेें भाग लिया
घटना के माध््यम से पचं ायती राज प्रणाली मेें महत्तत्वपर्ू ्ण रूप से दिखाई देता है। है, उन््होोंने आत््मविश्वास प्राप्त किया है और नेतत्ृ ्व कौशल विकसित किया है।
z कार््य-जीवन सतं ुलनः महिलाओ ं की घरे लू जिम््ममेदारियां और सामाजिक z निर््णय ले नाः स््थथानीय शासन मेें महिलाओ ं की उपस््थथिति ने स््ववास््थ््य, शिक्षा

अपेक्षाएँ अक््सर उनकी राजनीतिक आकांक्षाओ ं को बाधित करती हैैं। और स््वच््छता जैसे महिला केें द्रित मद्दु दों पर अधिक ध््ययान केें द्रित किया है।

46  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


z सयं ुक्त राष्टट्र महिला (2012) रिपोर््टटः यह रिपोर््ट परू े भारत मेें पंचायती राज मनोनीत सदस््य यदि वह सदन मेें अपना स््थथान ग्रहण करने की तारीख
संस््थथानोों मेें महिला नेताओ ं की सफलता की कहानियोों पर प्रकाश डालती है। से छह महीने की समाप्ति के बाद किसी राजनीतिक दल
यह दर््शशाता है कि कै से आरक्षण नीति ने महिलाओ ं को नेतत्ृ ्व की भमि ू का मेें शामिल होता है।
निभाने और शिक्षा, स््ववास््थ््य और महिलाओ ं की सरु क्षा जैसे मद्दु दों पर ध््ययान
दल-बदल विरोधी कानून का महत्त्व
केें द्रित करके अपने समदु ायोों को सकारात््मक रूप से प्रभावित करने के लिए
सशक्त किया है। हालाँकि, भारतीय राजनीतिक प्रक्रिया के पितृसत्तात््मक चरित्र z इसे काननू के शासन को बनाए रखने, राजनीतिक भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी
को संबोधित करने मेें आरक्षण नीति को सीमाओ ं का सामना करना पड़़ा हैः को कम करने के लिए पेश किया गया था।
z प्रॉक््ससी उम््ममीदवारः कुछ मामलोों मेें, जो महिलाएँ निर््ववाचित होती हैैं, वे अपने
z विश्वास बढ़़ाता हैः दल-बदल विरोधी यह सनिश् ु चित करता है कि पार्टी के
समर््थन से और पार्टी के घोषणापत्ररों के आधार पर चनु े गए उम््ममीदवार पार्टी
परुु ष रिश््ततेदारोों के लिए प्रॉक््ससी उम््ममीदवार के रूप मेें काम करती हैैं, जो आरक्षण
की नीतियोों के प्रति वफादार रहेें।
नीतियोों के उद्देश््योों को बाधित करती हैैं।
z खरीद-फरोख््त मेें कमीः सदन के भीतर चनु ाव के बाद धन बल पर अक ं ुश
z सस ं ाधनोों और प्रशिक्षण की कमीः कई निर््ववाचित महिला प्रतिनिधियोों के लगाने के लिए दल-बदल विरोधी काननू लाया गया था। क्रॉस वोटिंग मेें
पास राजनीतिक प्रक्रिया मेें प्रभावी ढंग से भाग लेने के लिए आवश््यक संसाधनोों,
खरीद-फरोख््त और धनबल तथा रिश्वतखोरी के कारण सरकार के अस््थथिर
प्रशिक्षण और सहयोग की कमी है, जिससे शासन पर उनका प्रभाव सीमित
होने का खतरा होता था।
हो जाता है।
z धन बल को कम करनाः यह काननू पारित करने और सरकार के अस््ततित््व के
z अंतर््ननिहित लैैं गिग रूढ़़िवादिताः पितृसत्तात््मक मानदड ं और लैैंगिग
रूढ़़िवादिता राजनीति मेें महिलाओ ं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण को प्रभावित लिए सदन के भीतर मतदान के लिए धन बल को कम करने मेें सफल रहा है।
करना जारी रखते हैैं, जो अक््सर नेताओ ं के रूप मेें उनके अधिकार और z स््थथिरता सनिश्
ु चित करना: दल-बदल विरोधी काननू पार्टी निष्ठा के परिवर््तन
प्रभावशीलता को कम करते हैैं। को रोककर सरकार को स््थथिरता प्रदान करता है।
यह ध््ययान देने योग््य है कि 17वीीं लोकसभा मेें पिछली बार की तुलना मेें महिला z दलीय अनुशासन बढ़ाना: दल-बदल विरोधी काननू दलीय अनश ु ासन को
सांसदोों का अनुपात सबसे अधिक था। इसके अलावा, 2024 के आम चनु ावोों बढ़़ावा देता है।
से कुछ महीने पहले, राष्टट्रपति ने 106वेें संविधान संशोधन अधिनियम को अपनी दल-बदल विरोधी कानून से संबंधित चुनौतियााँ
मंजरू ी दे दी, जिससे केें द्रीय और राज््य विधानमंडल मेें महिलाओ ं के लिए सीटोों
z सांसदोों की स््वतंत्रता को प्रभावित करता हैः यह उनकी अभिव््यक्ति की
के आरक्षण का मार््ग प्रशस््त हुआ। कानून के जल््द से जल््द कार््ययान््वयन के लिए
महिलाओ ं द्वारा सामने लाए जाने वाले अनूठे दृष्टिकोण और नेतत्ृ ्व का लाभ स््वतंत्रता का उल््ललंघन करता है और वे किसी मद्देु पर कोई स््वतंत्र रुख नहीीं
उठाने की आवश््यकता है। अपना सकते।
z निर््ववाचन क्षेत्ररों के साथ अन््ययायः जिन््होोंने उन््हेें चनु ाव मेें चनु ा है। जन प्रतिनिधि
प्रमुख शब्दावलियाँ होने के नाते उन््हेें साहसपर््वू क अपनी शिकायतेें रखने और अपने निर््ववाचन क्षेत्ररों
की आवश््यकताओ ं के लिए बोलने की अनमति ु दी जानी चाहिए।
चनु ावोों के लिए राज््य द्वारा वित्त पोषण, अंतर-संसदीय संघ (IPU), z जवाबदेही बनाम कार््यकुशलताः डॉ. बी. आर. अम््बबेडकर ने संविधान
सरपंच पति, लिंग-संवेदनशील दृष्टिकोण, संयक्त ु राष्टट्र महिला,
मसौदा तैयार करते समय दक्षता पर स््थथिरता और जवाबदेही का समर््थन किया
प्रॉक््ससी उम््ममीदवार
और इस प्रकार सरकार के संसदीय रूप को अपनाया। दल-बदल विरोधी काननू
दल-बदल विरोधी क़़ानून के कमजोर होने से न तो दक्षता मिलती है और न ही स््थथिरता।
सवं िधान मेें 1985 के 52वेें सश z सीमित विचार-विमर््शशः दल-बदल विरोधी काननू ने वास््तव मेें संसदीय बहस/
z ं ोधन मेें दसवीीं अनसु चू ी को जोड़़ा गया जिसने
उस प्रक्रिया को निर््धधारित किया जिसके द्वारा विधायकोों को दलबदल के आधार विचार-विमर््श की गणवत्ता ु को कम कर दिया है। यह लंबे समय मेें विभिन््न
पर अयोग््य ठहराया जा सकता है। इस काननू का मख्ु ्य उद्देश््य "राजनीतिक खामियोों के साथ दोषपर्ू ्ण काननू बन सकता है। यह प्रत््ययायोजित काननू के लिए
दलबदल की ख़़ामियोों" का मक रास््तता भी प्रशस््त कर सकता है जो लंबे समय मेें संसद को अप्रभावी बना देगा।
ु ाबला करना था
z स््पपीकर द्वारा कानून का दुरुपयोगः स््पपीकरोों को काननू के दरू ु पयोग से बचना
z दसवीीं अनुसच ू ी मेें निम््नलिखित प्रावधान हैैंः चाहिए जैसा कि अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखडं के मामलोों मेें देखा गया है।
राजनीतिक दलोों यदि वह स््ववेच््छछा से ऐसे राजनीतिक दल की सदस््यता z सांसद और विधायक की भूमिका को कम किया जाता हैः विधायकोों
के सदस््य त््ययाग देता है। को लोगोों के एजेेंट के रूप मेें कार््य करने और महत्तत्वपर्ू ्ण काननोू ों मेें भाग लेने
अपने राजनीतिक दल द्वारा जारी किसी निर्देश के का काम सौौंपा जाता है। लेकिन जब वे के वल दल के आधार पर मतदान करते
विपरीत, उस दल की पूर््व अनुमति प्राप्त किए बिना, हैैं तो यह प्राथमिक लक्षष्ययों मेें बाधा डालता है।
ऐसे सदन मेें मतदान करने से परहेज करना। z थोक दलबदल के लिए कोई बाधा नहीींः काननू खदु रा दलबदल को
स््वतंत्र सदस््य यदि वह ऐसे चनु ाव के बाद किसी राजनीतिक दल मेें प्रतिबंधित करता है लेकिन विधानसभाओ ं के थोक दलबदल के मामले मेें
शामिल हो जाता है। इतना प्रभावी नहीीं है।

संसद और राज्य विधानमं 47


z विलय प्रावधानोों के साथ मुद््देेः त्रुटि यह प्रतीत होती है कि विलय अपवाद पीठासीन अधिकारी द्वारा किए गए कार््य
दलबदल के पीछे के कारण के बजाय सदस््योों की सख्ं ्यया (यदि सबं ंधित सदन के कामकाज के सच
z ं ालन और कार््यवाही को विनियमित करने के
विधायक दल के कम से कम दो-तिहाई सदस््य सहमत हैैं) पर आधारित है।
लिए सदन मेें व््यवस््थथा और शिष्टाचार बनाए रखता है। कार््ययालय की निष््पक्षता
आगे की राह बनाए रखते हुए, वह यह सनिश् ु चित करते हैैं कि समग्र रूप से ससं द और विशेष
z सप्रीम
ु कोर््ट ने सझु ाव दिया है कि संसद को दलबदल के मामलोों को तेजी से रूप से विपक्ष को जवाबदेही सनिश् ु चित करने के लिए पर््ययाप्त समय दिया जाए।
और निष््पक्ष रूप से तय करने के लिए उच््च न््ययायपालिका के एक सेवानिवृत्त z सयं ुक्त बैठक की अध््यक्षता करता हैः वह दो सदनोों के बीच गतिरोध को
न््ययायाधीश की अध््यक्षता मेें एक स््वतंत्र न््ययायाधिकरण का गठन करना हल करने के लिए बल ु ाई गई ससं द की सयं क्तु बैठक की अध््यक्षता करता है।
चाहिए।
वह एक ऐसे सदन की गप्तु बैठक भी बल ु ा सकते हैैं जहाँ स््पपीकर की अनमति

z स््पपीकर द्वारा निर््णय लेने की समय सीमा तय की जानी चाहिए।
के बिना कोई भी सदन की दीर््घघाओ ं मेें मौजदू नहीीं हो सकता है।
z दसवीीं अनस ु चू ी के तहत निर््णय राष्टट्रपति/राज््यपाल द्वारा चनु ाव आयोग की
z सदन को स््थगित करता है और कोरम के अभाव मेें बैठक को स््थगित कर देता है।
बाध््यकारी सलाह पर किए जाने चाहिए।
z अपनी सीट से इस््ततीफा देने वाले दलबदलओ ु ं या सांसदोों/विधायकोों को एक z यह तय करता है कि कोई बिल मनी बिल है या नहीीं और इस पर उसका
निश्चित समय के लिए चनु ाव लड़ने से रोकने जैसे परिवर््तन। निर््णय अतिम
ं है।
z चन ु ावी बॉन््ड के प्रावधानोों को असवं ैधानिक मानकर सप्रीम ु कोर््ट ने इस पर z दलबदल के आधार पर उत््पन््न होने वाले सदस््य की अयोग््यता (यद्यपि न््ययायिक
रोक लगा दी है अब सभी पक्षषों जैसे राजनैतिक दल, चनु ाव आयोग आदि को समीक्षा के दायरे से बाहर नहीीं है - किहोतो होलोहन के स 1992) के प्रश्न पर
मिलकर एक निष््पक्ष और पारदर्शी चनु ावी फण््ड तंत्र के निर््ममाण की दिशा मेें निर््णय लेता है।
प्रयास करना चाहिए। z लोकसभा की सभी संसदीय समितियोों के अध््यक्ष की नियक्ति ु करता है और
दल-बदल पर दिनेश गोस््ववामी समिति (चुनावी सुधार) का मत उनके कामकाज की निगरानी करता है। वे कार््य मत्रं णा समिति, नियम समिति
z अयोग््यता उन मामलोों तक सीमित होनी चाहिए जहाँ कोई सदस््य स््ववेच््छछा और सामान््य प्रयोजन समिति के अध््यक्ष हैैं।
से अपने राजनीतिक दल की सदस््यता छोड़ देता है, z पीठासीन अधिकारी सदन के सदस््योों के अधिकारोों और विशेषाधिकारोों की
z अयोग््यता का मद्दा ु राष्टट्रपति/राज््यपाल द्वारा चनु ाव आयक्त ु की सलाह पर रक्षा करता है।
तय किया जाना चाहिए।
z सदन का एजेेंडा तय करना: अध््यक्ष, सदन की कार््य समिति के अन््य सदस््योों
z अंतरर््रराष्ट्रीय प्रथाएँ: बांग््ललादेश के संविधान के अनच् ु ्छछे द 70 मेें कहा गया है
और प्रधानमत्रीं के परामर््श से सदन की बैठकोों का एजेेंडा तय करता है। इससे
कि यदि कोई सदस््य अपनी पार्टी द्वारा दिए गए निर्देशोों के खिलाफ इस््ततीफा
देता है या मतदान करता है तो वह अपनी सीट खाली कर देगा। विवाद को देश के महत्तत्वपर्ू ्ण मद्दु दों पर समय पर बहस और चर््चचा सनिश्ु चित होती है।
अध््यक्ष द्वारा चनु ाव आयोग को भेजा जाता है। z प्रक्रिया के नियमोों की व््ययाख््ययााः सदन का कार््य प्रक्रिया के निश्चित और
z सिग ं ापुर के सवं िधान के अनुच््छछेद 46 मेें कहा गया है कि यदि कोई सदस््य तय नियमोों के अनसु ार किया जाता है। सदन के नियमोों के संबंध मेें किसी
इस््ततीफा देता है या उसे अपनी पार्टी से निष््ककासित कर दिया जाता है तो उसे भी विवाद के मामले मेें, अध््यक्ष इन नियमोों की व््ययाख््यया करता है और उन््हेें
अपनी सीट खाली करनी होगी। अनच्ु ्छछे द 48 मेें कहा गया है कि संसद किसी लागू करता है। अध््यक्ष द्वारा बनाए गए नियमोों की व््ययाख््यया अतिम ं है और इसे
सदस््य की अयोग््यता से सबं ंधित किसी भी प्रश्न पर निर््णय लेती है। चनु ौती नहीीं दी जा सकती है।
पीठासीन अधिकारी से संबंधित चिंताएँ
प्रमुख शब्दावलियाँ मानक सच
z ं ालन प्रक्रिया (SOP) का पालन न करना: उत्तराखडं विधानसभा
दसवीीं अनुसूची, मनोनीत सदस््य, स््वतंत्र सदस््य, खरीद-फरोख््त, के अध््यक्ष ने दलबदल के एक मामले पर फै सला किया, जबकि उन््हेें पद से
चनु ावी लोकतंत्र, दिनेश गोस््ववामी समिति, चनु ाव आयोग हटाने के लिए प्रस््तताव का नोटिस लंबित था। उच््चतम न््ययायालय को हस््तक्षेप
करना पड़़ा और कहा कि अध््यक्ष को ऐसे मामलोों से बचना चाहिए।
पीठासीन अधिकारी की भूमिका
z धन विधेयक प्रावधानोों का अनुचित उपयोगः उच््चतम न््ययायालय ने धन
z लोकसभा या राज््य विधानसभा का अध््यक्ष इसके सदस््योों मेें से चनु ा जाता है विधेयक के रूप मेें आधार विधेयक, 2016 को लोकसभा अध््यक्ष की मजं रू ी के
और इसका उल््ललेख संविधान के अनच्ु ्छछे द 93 और अनच्ु ्छछे द 178 मेें किया
संबंध मेें एक याचिका को स््ववीकार किया। याचिकाकर््तता ने मांग कि गोपनीयता,
गया है। वह सदस््योों, समग्र रूप से सदन और इसकी समितियोों की शक्तियोों
डेटा सरु क्षा आदि जैसी बड़़ी चितं ाओ ं को शामिल करने वाले विधेयक को धन
और विशेषाधिकारोों का संरक्षक होता है।
विधेयक के रूप मेें घोषित करने के बजाय सार््थक बहस के लिए राज््यसभा को
z भारत मेें अध््यक्ष (स््पपीकर) की सस्ं ्थथाओ ं की उत््पत्ति 1921 मेें भारत सरकार
अधिनियम 1919 (मोोंटे ग््ययू-चेम््सफोर््ड सध भी शामिल किया जाना चाहिए।
ु ार) के प्रावधानोों के तहत हुई थी
और उस समय अध््यक्ष को राष्टट्रपति कहा जाता था। 1935 के भारत सरकार z शिष्टाचार बनाए रखने मेें विफलताः संसद के पटल पर गतिरोध एक निरंतर
अधिनियम ने केें द्रीय विधान सभा के अध््यक्ष के नामकरण को बदलकर अध््यक्ष दृश््य रहा है जिसमेें अध््यक्ष या स््पपीकर सचु ारू रूप से अपने दायित््वोों का
(स््पपीकर) कर दिया। निर््ववाह करने मेें असमर््थ रहे हैैं और उन पर पक्षपात का आरोप लगाया गया है।

48  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


z अध््यक्ष के निर््णयोों की समीक््षााः नियमोों के तहत, अध््यक्ष उसे सौौंपी गई भमि ू काओ ं आगे की राह
के पालन मेें किसी भी व््यक्ति के प्रति जवाबदेह नहीीं है। पीठासीन अधिकारियोों के z न््ययायिक समीक्षा का उपयोग असाधारण परिस््थथितियोों मेें भी किया जाता है।
निर््णय अतिम ं होते हैैं और अपील या समीक्षा के लिए खल ु े नहीीं होते हैैं। हमेें एक स््थथायी संस््थथागत समाधान की आवश््यकता है।
z निष््पक्षताः संसदीय लोकतंत्र मेें अध््यक्ष का पद निष््पक्ष और तटस््थ होना  सर्वोत्तम पद्धतियाँः ब्रिटेन का धन विधेयक के प्रश्न पर स््पपीकर की

चाहिए, लेकिन वे आम तौर पर एक राजनीतिक दल के टिकट पर सदन के सहायता के लिए दो वरिष्ठ सदन के सदस््योों की एक समिति नियक्त ु करने
लिए चनु े जाते हैैं। ब्रिटेन मेें, स््पपीकर परू ी तरह से एक गैर-राजनीतिक व््यक्ति है। का मॉडल विचार करने योग््य मामला है। ब्रिटेन मेें, एक ससं दीय परंपरा
हमारे संवैधानिक निर््ममाताओ ं ने स््पपीकर कार््ययालय से सत््यनिष्ठा और निष््पक्षता विकसित हुई है, जिसमेें अध््यक्ष के रूप मेें निर््ववाचित एक सांसद संबंधित
की परिकल््पना की। लेकिन इसे राजनीतिक हितोों द्वारा उत्तरोत्तर ग्रहण कर लिया पार्टी से इस््ततीफा दे देता है। इससे उनकी निष््पक्षता पर विश्वास बढ़ता है।
z सरकार और विपक्ष के बीच सहयोगः सरकार और विपक्ष दोनोों को सहयोग
गया है और सत्तारूढ़ दल की जरूरतोों के अधीन कर दिया गया है।
के शम मे घचंद्र सिंह बनाम भारत संघ करने की आवश््यकता है ताकि ससं द सचु ारू रूप से काम कर सके और अध््यक्ष
z कानूनी स््थथितिः दल-बदल विरोधी निर््णय स््वतंत्र रूप से संचालित होता है
को अक््सर कठिन परिस््थथितियोों मेें न डाला जाए।
और लोकसभा या राज््य विधानसभा के अनमु ोदन के अधीन नहीीं होता है। z लोकतांत्रिक लोकाचारः इसके अलावा, माननीय पद की अध््यक्षता करते

z स््पपीकर की शक्तियाँः दलबदल विरोध पर स््पपीकर के निर््णय की न््ययायिक


समय अध््यक्ष को लोकतांत्रिक लोकाचार को ध््ययान मेें रखने की आवश््यकता
रूप से समीक्षा की जा सकती है और प्रतिरक्षा के वल अपनाई जाने वाली है और उनके कार्ययों को वस््ततुनिष्ठ और तटस््थ प्रतीत होना चाहिए क््योोंकि
प्रक्रियाओ ं पर है। "न््ययाय न के वल किया जाना चाहिए, बल््ककि न््ययाय होते हुए दिखना भी चाहिए"
z प्रावधानः संवैधानिक प्रावधानोों के उल््ललंघन, दर््भभाव z अयोग््यता का प्रश्नः अयोग््यता के प्रश्न पर निर््णय लेने की शक्ति अध््यक्ष से
ु ना, प्राकृ तिक न््ययाय
के नियमोों का पालन न करने और विकृ ति के आधार पर न््ययायिक समीक्षा छीनी जा सकती है और भारत के चनु ाव आयोग जैसे किसी स््वतंत्र संवैधानिक
की अनमति ु है प्राधिकरण को सौौंपी जा सकती है।
z भूमिकाएँः संविधान की दसवीीं अनस z सश ं ोधन की आवश््यकताः काननू मेें सश ं ोधन की आवश््यकता है ताकि इसे
ु चू ी के तहत दल-बदल विरोधी मामलोों
का फै सला करते समय चेयरमैन/अध््यक्ष अर््ध-न््ययायिक प्राधिकरण के रूप प्रतिनिधि लोकतंत्र के साथ जोड़़ा जा सके और यह पार्टी नेतत्ृ ्व के निर्देशोों का
मेें कार््य करते हैैं। आख ं मदंू कर पालन करने की प्रणाली न बन जाए इस प्रकार सांसदोों/विधायकोों
z समय अवधिः निर््णय उचित समय अवधि के भीतर लिया जाना चाहिए
को असहमति जताने और स््वतंत्र सोच को बढ़़ावा देने का अधिकार मिल
-किहोतो होलोहन के फै सले के अनसु ार 3 महीने के भीतर। जाएगा जैसा कि अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया आदि जैसे दनि ु या के अन््य
z फैसले का कार््यया न््वयनः ऐसे व््यक्ति जिन््हेें अयोग््य ठहराया गया है, वे एक
लोकतंत्ररों मेें अनमतिु दी गई है।
दिन (जैसा कि राजेेंद्र सिहं राणा मामले मेें देखा गया) के लिए भी सांसद/ आंध्र प्रदेश और ते लंगाना के मामले का अध््ययन
z हाल के वर्षषों मेें, आध्र ं प्रदेश और तेलंगाना जैसे कुछ राज््योों मेें विपक्षी
विधायक होने के लायक नहीीं हैैं।
विधायक सत्तारूढ़ दल मेें शामिल होने के लिए धीरे -धीरे छोटे समहोू ों मेें टूट
किहोतो होलोहन बनाम ज़चिल्लू और अन्य गए हैैं। इनमेें से कुछ मामलोों मेें 2/3 से अधिक विपक्षी दल सत्तारूढ़
z बहुमत निर््णय (3:2) ने माना कि स््पपीकर/अध््यक्ष संसदीय लोकतंत्र की योजना दल मेें शामिल हो गए हैैं।
मेें एक महत्तत्वपर्ू ्ण स््थथान रखते हैैं और सदन के अधिकारोों और विशेषाधिकारोों z इन परिदृश््योों मेें, छोटे समहो ू ों मेें सत्तारूढ़ दल मेें शामिल होने के दौरान
के सरं क्षक हैैं। विधायक अयोग््यता के अधीन थे। हालांकि, यह स््पष्ट नहीीं है कि क््यया उन््हेें
z न््ययायालय ने फै सला सनु ाया कि दल-बदल विरोधी मामलोों का निर््णय करते अभी भी अयोग््यता का सामना करना पड़़ेगा यदि पीठासीन अधिकारी 2/3
समय स््पपीकर/सभापति एक न््ययायाधिकरण के रूप मेें कार््य करते हैैं और तदनसु ार से अधिक विपक्ष के सत्तारूढ़ दल मेें शामिल होने के बाद निर््णय लेता है।
स््पपीकर/सभापति का निर््णय न््ययायिक समीक्षा के अधीन है संसदीय जााँच
पीठासीन अधिकारी की भूमिका और संसदीय जाँच सरकारी नीतियोों, कार्ययों और खर््च की बारीकी से जाँच और
दल-बदल विरोधी कानून पर विभिन्न समितियोों की सिफारिशेें अन््ववेषण है जो संसद के निचले और ऊपरी सदनोों और उनकी समितियोों द्वारा
z दिनेश गोस््ववामी चुनाव सध ु ारोों पर समिति (1990): अयोग््यता के मद्देु पर की जाती है।
चनु ाव आयोग की सलाह पर राष्टट्रपति/राज््यपाल द्वारा निर््णय लिया जाना चाहिए सरकार की संसदीय जााँच/संवीक्षा के विभिन्न तरीके
z विधि आयोग (170वीीं रिपोर््ट, 1999): राजनीतिक दलोों को व््हहिप जारी करने z चर््चचा/वाद-विवादः विधेयकोों पर चर््चचा/बहस के दौरान, विधायिका मेें
को के वल उन उदाहरणोों तक सीमित रखना चाहिए जब सरकार खतरे मेें हो। सार््वजनिक या राष्ट्रीय हित के मामलोों को इगि
ं त किया जा सकता है।
z सवं िधान समीक्षा आयोग (2002): दसवीीं अनसु चू ी के तहत निर््णय राष्टट्रपति/ z प्रश्नकालः प्रश्नकाल के दौरान सदस््य प्रशासन और सरकारी गतिविधि के हर
राज््यपाल द्वारा निर््ववाचन आयोग की बाध््यकारी सलाह पर लिए जाने चाहिए। पहलू पर प्रश्न पछू सकते हैैं।
z एनसीआरडब््ल्ययूसीः दलबदल के आधार पर विधायकोों को अयोग््य ठहराने z सस ं दीय समितियाँः संसद ने सरकार द्वारा अपने समक्ष लाए जाने वाले
की शक्ति चनु ाव आयोग के पास होनी चाहिए न कि स््पपीकर के पास। विधेयकोों की जाँच के लिए समितियोों की बड़़ी मशीनरी स््थथापित की है।

संसद और राज्य विधानमं 49


z वित्त समितियाँः प्राक््कलन समिति बजटीय अनमु ानोों की समीक्षा करती है। z विपक्ष को सरकार से सवाल पछू ने मेें सक्रिय होना चाहिए
वार््षषिक लेखा परीक्षा रिपोर््ट संसद के समक्ष पेश की जाती है और लोक लेखा z नई सस
ं दीय समितियाँः चकिँू अर््थव््यवस््थथा और तकनीकी प्रगति के मामलोों मेें
समिति (PAC) द्वारा इसकी जाँच की जाती है। जटिलता बढ़ रही है, इसलिए नई संसदीय समितियोों के गठन की आवश््यकता
z तदर््थ समितियाँः तदर््थ समितियाँ किसी विशेष प्रयोजन के लिए स््थथापित
है।
की जाती है और उद्देश््य परू ा होने के बाद इनका अस््ततित््व समाप्त हो जाता है।
z सभी समितियोों की प्रमख ु रिपोर्टटों पर ससं द मेें चर््चचा की जानी चाहिए, विशेष
अप्रभावी संसदीय जााँच/संवीक्षा के कारण
रूप से ऐसे मामलोों मेें जहाँ समिति और सरकार के बीच असहमति हो।
z सस ं द की समितियोों को विधेयकोों को नहीीं भेजनाः 14वीीं लोकसभा मेें z सांसदोों को विशेषज्ञ सहायता प्रदान की जानी चाहिए क््योोंकि प्रभावी जाँच
60% और 15वीीं लोकसभा मेें 71% विधेयकोों की संसदीय समितियोों द्वारा
जाँच की गई थी, लेकिन 16वीीं लोकसभा मेें यह अनपु ात घटकर 26% रह उनके कौशल और ससं ाधनोों पर निर््भर करती है।
गया। और 17 वीीं लोकसभा मेें यह और घटकर लगभग 17% रह गया।
z बैठकोों की सख् ं ्यया मेें कमीः 17वीीं लोकसभा कुल 1,354 घटं े चली, जो प्रमुख शब्दावलियाँ
सभी पर्ू क ्ण ालिक लोकसभा के औसत से काफी कम है।
धारा 124A, स््वतंत्र भाषण, फासीवाद के साथ छे ड़खानी, जीवंत
z प्रश्नकाल के दौरान व््यवधानः 16 वीीं लोकसभा मेें, लोकसभा मेें प्रश्नकाल लोकतंत्र, तदर््थ समितियां, शून््यकाल, संविधान के कामकाज की
निर््धधारित समय के 77% के लिए काम कर रहा है, जबकि राज््यसभा मेें यह समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग,
47% के लिए काम कर रहा है जबकि 17 वीीं लोकसभा मेें प्रश्नकाल लोकसभा
मेें निर््धधारित समय के 60% और राज््यसभा मेें 52% के लिए चला। विगत वर्षषों के प्रश्न
z विपक्ष का एकजटु और प्रभावी नहीीं होना।
z राज््यपाल द्वारा विधायी शक्तियोों के प्रयोग की आवश््यक शर्ततों का विवेचन
प्रश्नकाल का महत्त्व कीजिए। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज््यपाल द्वारा अध््ययादेशोों के पनु ः
संसदीय कार््यवाही का पहला घंटा प्रश्नकाल के लिए आरक्षित होता है। इस समय प्रख््ययापन की वैधता की विवेचना कीजिए। (2022)
के दौरान, सदस््य सवाल पूछते हैैं और मंत्री आमतौर पर जवाब देते हैैं। प्रश्न तीन विविधता, समता और समावेशिता सनिश्
z ु चित करने के लिए उच््चतर न््ययायपालिका
प्रकार के होते हैैं, तारांकित, अतारांकित और लघु सूचना।
मेें महिलाओ ं के प्रतिनिधित््व को बढ़ाने की वाँछनीयता पर चर््चचा कीजिए।
z जवाबदेही और पारदर््शशिता सनिश् ु चित करता हैः प्रश्नकाल संसद को पारदर्शी
और जवाबदेह बनाता है क््योोंकि इसमेें घरे लू और विदेशी सरकारी गतिविधियोों  (2021)
के हर पहलू को शामिल किया जाता है। z विगत कुछ दशकोों मेें राज््य सभा एक 'उपयोगहीन स््टटेपनी टायर' से सर््ववाधिक
उपयोगी सहायक अगं मेें रूपांतरित हुआ है। उन कारकोों तथा क्षेत्ररों को
z जवाबदेह सरकार: प्रश्नकाल के समय सरकार को राष्टट्र की नब््ज का पता
आलोकित कीजिए जहाँ यह रूपांतरण दृष्टिगत हो सकता है।
चलता है और सरकार जनता को अपने कामकाज के बारे मेें जानकारी देती है।
z प्रश्ननों का समाधान: दिए गए उत्तरोों की विश्वसनीयता अत््ययंत महत्तत्वपर्
 (2020)
ू ्ण है और
z "स््थथानीय स््वशासन की संस््थथाओ ं मेें महिलाओ ं के लिए सीटोों के आरक्षण
नियम संबंधित मत्री ं द्वारा गलतियोों को सधु ारने की अनमति ु देते हैैं।
का भारत के राजनीतिक प्रक्रम के पितृसत्तात््मक अभिलक्षण पर एक सीमित
z व््ययापक बहस का अंश: प्रश्नकाल के दौरान पछ ू े जाने वाले प्रश्न सामान््य रूप
प्रभाव पड़़ा है।" टिप््पणी कीजिए। (2019)
से मद्देु के लिए बहुत सटीक होते हैैं। कभी-कभी दिए गए उत्तरोों ने सरकार के
प्रदर््शन पर व््ययापक बहस और पछू ताछ की है। z राष्ट्रीय विधि निर््ममाता के रूप मेें अके ले एक संसद-सदस््य की भमि ू का अवनति
की ओर है, जिसके फलस््वरूप वादविवादोों की गणु ता और उनके परिणामोों
z सरकार को अपना रुख स््पष्ट करने मेें सहायता: प्रश्नकाल सरकार को
पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ भी चक ु ा है। चर््चचा कीजिए। (2019)
किसी भी मद्देु पर संबंधित सदस््य और आम जनता दोनोों को अपनी स््थथिति
बताने मेें मदद करता है। z राष्टट्रपति द्वारा हाल मेें प्रख््ययापित अध््ययादेश के द्वारा माध््यस््थम् और सल
ु ह
अधिनियम, 1996 मेें क््यया प्रमख ु परिवर््तन किए गए हैैं? यह भारत के विवाद
आगे का रास्ता समाधान यांत्रिकत््व को किस सीमा तक सधु ारे गा? चर््चचा कीजिए।
z दूसरा प्रशासनिक सध ु ार आयोग यह भी सिफारिश करता है कि नियामकोों  (2015)
द्वारा संसद मेें प्रस््ततुत वार््षषिक रिपोर््ट मेें पर््वू -सहमत मल्ू ्ययाांकन मापदडों ों पर प्रगति z ससं द और उसके सदस््योों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन््ममुक्तियां
शामिल होनी चाहिए और ससं दीय समिति मेें चर््चचा की जानी चाहिए (इम््ययुनिटीज) जैसे कि वे संविधान की धारा 105 मेें अभिकल््पपित है, अनेकोों
z समय-समय पर जाँच: संविधान के कामकाज की समीक्षा करने वाले राष्ट्रीय असहितं ाबद्ध(अन-कोडिफाइड) और अ-परिगणित विशेषाधिकारोों के जारी रहने
आयोग (NCRWC) के अनसु ार विभाग-सबं ंधित स््थथायी समितियां की समय- का स््थथान खाली छोड़ देती हैैं। संसदीय विशेषाधिकारोों के विधिक संहिताकरण
समय पर जाँच की जानी चाहिए ताकि जिन समितियोों ने अपनी उपयोगिता की अनपु स््थथिति के कारणोों का आकलन कीजिए। इस समस््यया का क््यया समाधान
समाप्त हो गई है, उनके स््थथान पर नई समितियां गठित की जा सकेें । निकाला जा सकता है? (2014)

50  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


12 भारत मेें न्यायिक व्यवस्था
न््ययायपालिका, जो सरकार का एक महत्तत्वपर्ू ्ण अंग है, स््वतंत्र विवाद समाधान सप्री
ु म कोर््ट हाँ नहीीं
की भमि ू का निभाती है। भारतीय न््ययायपालिका, जो दनि ु या की सबसे शक्तिशाली का सलाहकार
न््ययायपालिकाओ ं मेें से एक है, वह राष्टट्र की नैतिक अंतरात््ममा रही है, जिसने क्षेत्राधिकार
राजनीतिक शक्ति के सामने सत््य और न््ययाय का समर््थन किया है, नागरिकोों के क्षेत्राधिकार मेें ससं द द्वारा इसका विस््ततार सवं िधान द्वारा प्रदत्त शक्तियोों
अधिकारोों को बनाए रखती है, केें द्र-राज््य संघर्षषों मेें मध््यस््थता करती है, अमीर परिवर््तन किया जा सकता है। तक ही सीमित हैैं।
और गरीब दोनोों को समान रूप से न््ययाय प्रदान करती है, और कई महत्तत्वपर्ू ्ण अधीनस््थ एकीकृत न््ययायिक प्रणाली: दोहरी (या पृथक) न््ययायिक
अवसरोों पर लोकतंत्र को बचाती है। न््ययायालयोों पर उच््च न््ययायालयोों पर न््ययायिक प्रणाली-> ऐसी कोई शक्ति
भारतीय और अन्य न्यायिक प्रणालियोों की तुलना नियंत्रण अधीक्षण की शक्ति। नहीीं।
भारत- सयुंक्त राज्य अमेरिका भारत -ब्रिटेन
न््ययायपालिका भारत अमे रिका विचलन भारत ब्रिटे न
न््ययायिक एकीकृत प्रणाली: सर्वोच््च न््ययायालयोों की दोहरी जूरी मौजदू नहीीं उपस््थथित
प्रणाली न््ययायालय, उच््च न््ययायालय प्रणाली: संघीय काननोू ों के प्रणाली
और अधीनस््थ न््ययायालयोों मेें लिए संघीय न््ययायपालिका न््ययायिक मल ू रूप से यह प्रक्रिया काननू द्वारा काननू की उचित
न््ययायालयोों का पदानक्रम
ु । और राज््य काननोू ों के लिए समीक्षा स््थथापित की गई थी। मेनका गांधी प्रक्रिया-> संसद सर्वोच््च
राज््य न््ययायपालिका। मामले के बाद: 'काननू की उचित है और न््ययायालय काननू
जूरी प्रणाली मौजूद नहीीं है। अनुमति है। प्रक्रिया'। इस प्रकार, न््ययायिक समीक्षा की निष््पक्षता की जाँच
न््ययायाधीशोों कॉलेजियम प्रणाली। नियक्तिु न््ययायाधीशोों को राष्टट्रपति का दायरा व््ययापक हो गया है। नहीीं करता है।
की नियुक्ति मेें न््ययायपालिका की भमि न््ययायिक कॉलेजियम प्रणाली: न््ययायपालिका न््ययायिक नियक्ति
ु आयोग-
ू का द्वारा नामित किया जाता
अधिक है। है और सीनेट द्वारा उनकी नियुक्ति की भमि ू का अधिक होने से पारदर््शशिता > ससं द को प्राथमिकता->
कम होती है। अधिक पारदर््शशिता।
पष्टि
ु की जाती है, अर््थथात
निर््ववाचित प्रतिनिधियोों को अभिसरण
अधिक भमि ू का दी जाती है। z न््ययायपालिका की स््वतंत्रताः दोनोों देशोों मेें शक्ति के पृथक््करण के सिद््धाांत
न््ययायाधीशोोंसर्वोच््च न््ययायालय: 65 वर््ष न््ययायाधीश जीवन भर सेवा के माध््यम से सनिश् ु चित किया गया।
की उच््च न््ययायालय और अन््य करते हैैं  उदाहरण के लिए, ब्रिटेन ने 1973 के के शवानंद भारती मामले के समान
सेवानिवत्तिृ अधीनस््थ न््ययायालय: 62 लॉर््ड चांसलर के कार््ययालय से न््ययायिक कार््य को हटा दिया।
आयु वर््ष z वैकल््पपिक विवाद समाधानः दोनोों देश न््ययाय वितरण मेें सधु ार के लिए
सप्री
ु म कोर््ट संघीय मामलोों तक सीमित संघीय मामले + नौसेना एडीआर तंत्र की खोज कर रहे हैैं।
का मूल बलोों, समद्ु री गतिविधियोों,  उदाहरण के लिए, ब्रिटेन ने 2007 मेें न््ययाय मत्रा ं लय की स््थथापना की।
क्षेत्राधिकार राजदतोू ों, आदि से संबंधित इसी तरह, भारत ने न््ययाय वितरण और काननू ी सधु ार के लिए एक राष्ट्रीय
मामले। मिशन शरू ु किया है।
सप्री
ु म कोर््ट संवैधानिक, सिविल और के वल संवैधानिक मामले z उत्तरदायित््ववः भारत एनजेएसी जैसे कदमोों के माध््यम से न््ययायिक नियक्तियो
ु ों
का अपीलीय आपराधिक मामले। मेें पारदर््शशिता सनिश्
ु चित करने के तरीके तलाश रहा है।
क्षेत्राधिकार
मामलोों का भारतीय न््ययायाधीश 3 से 5 सभी अमेरिकी न््ययायाधीश
प्रमुख शब्दावलियाँ
निर््णय न््ययायाधीशोों की कई बेेंचोों पर निर््णय लेने के लिए एक
बैठते हैैं और यदि आवश््यक साथ बैठते हैैं केेंद्र-राज््य विवादोों मेें मध््यस््थता, न््ययायपालिका की स््वतंत्रता,
हो तो अधिक संख््यया मेें मूल अधिकार क्षेत्र, विशेष अनुमति, एकीकृ त न््ययायिक प्रणाली,
न््ययायाधीश भी बैठते हैैं। कॉलेजियम प्रणाली, कानून की उचित प्रक्रिया।
भारतीय के सर्वोच्च न्यायालय के 75 वर््ष आगे का रास्ता
हाल ही मेें, प्रधानमंत्री ने दिल््लली के सुप्रीम कोर््ट ऑडिटोरियम मेें 28 जनवरी z के स प्रबंधन और प्रौद्योगिकीः के स प्रबंधन प्रणालियोों को लागू करना और
2024 को भारत के सुप्रीम कोर््ट के हीरक जयंती समारोह का उद्घाटन किया। ई-फाइलिंग, वीडियो कॉन्फफ्ररेंसिगं और वर््चचुअल सनु वाई के लिए प्रौद्योगिकी
सुप्रीम कोर््ट के बारे मेें का लाभ उठाना के स बैकलॉग को कम करने और दक्षता मेें सधु ार करने मेें
भारत मेें सर्वोच्च
z भारतीय सवं िधान के अनुच््छछेद 124 (1)
न्यायालय का िवकास
मदद कर सकता है।
के अनसु ार, भारत के सर्वोच््च न््ययायालय 1774 1774 का रेगलु ेिटंग एक््ट z पारदर््शशिता और जवाबदेही बढ़़ानाः न््ययायाधीशोों की नियक्ति ु मेें पारदर््शशिता
मेें भारत के मख्ु ्य न््ययायाधीश (CJI) और और जनता के लिए निर््णयोों को अधिक सल ु भ बनाने से न््ययायपालिका मेें जनता
1861 भारत उच््च न््ययायालय
अधिकतम सात अतिरिक्त न््ययायाधीश होने    अधिनियम 1861 का विश्वास बढ़़ाने मेें मदद मिल सकती है
चाहिए, जब तक कि संसद एक क़़ाननू z न््ययायिक स््वतंत्रता को मजबूत करनाः यह सनिश् ु चित करना कि न््ययायपालिका
1935 भारत सरकार अधिनियम,
के माध््यम से अधिक संख््यया निर््ददिष्ट नहीीं    1935 अनचि ु त प्रभाव से मक्त ु है और कार््यपालिका या सरकार की अन््य शाखाओ ं
करती है। वर््तमान मेें, सर्वोच््च न््ययायालय मेें के हस््तक्षेप से न््ययायिक प्रणाली की अखडं ता को बनाए रखने मेें मदद मिल
1950 SC अस््ततित््व मेें आया
मख्ु ्य न््ययायाधीश और 33 अन््य न््ययायाधीश सकती है।
शामिल हैैं।
न्यायपालिका द्वारा निभाई
z सव ं ैधानिक प्रावधानः भारतीय संविधान के अनच्ु ्छछे द 124 से 147 मेें
जाने वाली महत्त्वपूर््ण भूमिकाएँ
उल््ललिखित।
भारतीय के सर्वोच्च न्यायालय की मुख्य विशेषताएँ मौलिक अधिकारोों के रक्षक के रूप मेें न्यायपालिका
z उच््चतम अपील न््ययायालयः सर्वोच््च न््ययायालय सर्वोच््च अपील न््ययायालय z न््ययायपालिका को मल ू अधिकारोों की रक्षा करने का कार््य सौौंपा गया है। संविधान
है जिसे भारत के शीर््ष न््ययायालय के रूप मेें भी जाना जाता है और यहां तक दो तरीके प्रदान करता है जिसमेें सर्वोच््च न््ययायालय अधिकारोों के उल््ललंघन
कि अतिम ं उपाय भी है, जहाँ भारत के नागरिक उच््च न््ययायालय के फै सले से को ठीक कर सकता है।
संतष्टु नहीीं होने पर न््ययाय की मांग कर सकते हैैं।
 सबसे पहले, यह बंदी प्रत््यक्षीकरण, परमादेश (अनच् ु ्छछे द-32) आदि
z सलाहकार अधिकार क्षेत्रः संविधान के अनच्ु ्छछे द 143 के अनसु ार, सप्रीम ु
प्रकार के रिट जारी करके मौलिक अधिकारोों को बहाल कर सकता है।
कोर््ट भारत के राष्टट्रपति को सलाह दे सकता है जो काननू के प्रश्न से सबं ंधित
है, और मामले की प्रकृ ति सार््वजनिक महत्तत्व से जड़ु ़ी है। उच््च न््ययायालयोों के पास भी इस तरह के रिट जारी (अनच्ु ्छछे द 226) करने
z सघं ीय विवादोों का न््ययायनिर््णयः उच््चतम न््ययायालय संघ और राज््योों के बीच की शक्ति है।
और विभिन््न राज््योों (अनच्ु ्छछे द 131) के बीच विवादोों का समाधान करता है।  दूसरा, सर्वोच््च न््ययायालय संबंधित कानन ू को असंवैधानिक (अनच्ु ्छछे द
z न््ययायिक समीक््षााः सर्वोच््च न््ययायालय कार््यपालिका के काननोू ों और कार्ययों 13) घोषित कर सकता (संविधान के व््ययाख््ययाता के रूप मेें कार््य) है।
की समीक्षा करता है ताकि यह सनिश् ु चित किया जा सके कि वे संविधान का संविधान के रक्षक और सरकार/
पालन करते हैैं।
राज्य के मनमानेपन से रक्षक के रूप मेें न्यायपालिकाः
z मौलिक अधिकारोों का सरं क्षणः न््ययायालय रिट और आदेश (अनच्ु ्छछे द 32)
न््ययायिक संवैधानिक संशोधनोों, संसद और राज््य विधानमडं लोों के
जारी करके नागरिकोों के मौलिक अधिकारोों की रक्षा करता है।
समीक्षा विधान, अधीनस््थ विधान और संघ और राज््य प्राधिकरणोों
सुप्रीम कोर््ट के सामने चुनौतियाां की प्रशासनिक कार््रवाई की समीक्षा।
z व््ययापक के स बैकलॉगः 2023 तक, अके ले सप्रीम ु कोर््ट मेें 80,439 से अनुच््छछेद 142 सर्वोच््च न््ययायालय को अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते
अधिक मामले लंबित थे। हुए ऐसी डिक्री पारित करने या ऐसा आदेश देने की अनमति ु
देता है जो पर्ू ्ण न््ययाय करने के लिए आवश््यक हो। उदाहरणार््थ,
z न््ययायिक सक्रियता बनाम न््ययायिक प्रतिबंधः यह बहस नीति निर््ममाण और
भोपाल गैस त्रासदी मामले मेें अदालत ने "पर्ू ्ण न््ययाय" करने
शासन मेें न््ययायपालिका की उचित भमि ू का के इर््द-गिर््द घमू ती है।
के लिए पीड़़ितोों को 470 मिलियन डॉलर का मआ ु वजा देने
z अंकल जज सिड्ं रोमः भारत के विधि आयोग की 230वीीं रिपोर््ट ने उच््च का आदेश दिया था।
न््ययायालय और सर्वोच््च न््ययायालय मेें न््ययायाधीशोों की नियक्ति ु मेें संभावित सवं िधान की अपने मल ू अधिकार क्षेत्र के तहत, सर्वोच््च न््ययायालय
पक्षपात के बारे मेें चितं ा पर प्रकाश डाला, जो न््ययायिक प्रणाली की निष््पक्षता व््ययाख््यया न््ययायिक व््ययाख््ययाओ ं द्वारा सरकार को उसकी सवं ैधानिक
और निष््पक्षता को प्रभावित करता है। सीमा के भीतर रखता है।
z न््ययायिक-कार््यपालिका सघं र््ष: न््ययायपालिका और कार््यपालिका को बढ़ते इसलिए, संविधान निर््ममाताओ ं ने स््वयं संविधान मेें न््ययायिक समीक्षा के प्रावधानोों
संघर्षषों का सामना करना पड़़ा है, जो न््ययायिक नियक्तियोु ों मेें देरी, न््ययाय का को शामिल किया। यह न््ययायपालिका को संघवाद का संतुलन बनाए रखने,
न््ययायाधिकरण और कोविड-19 के दौरान कार््यपालिका की सार््वजनिक नागरिकोों के मौलिक अधिकारोों और मौलिक स््वतंत्रताओ ं की रक्षा करने मेें
आलोचना से चिह्नित है। सक्षम बनाता है।

52  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


z विधि आयोग: वर््तमान न््ययायाधीशोों की संख््यया के साथ लंबित मामलोों को
महत्त्वपूर््ण न्यायिक अवधारणाएँ निपटाने मेें 464 वर््ष लगेेंगे।
कानून द्वारा स््थथापित कानून की उचित न््ययायालय लंबित मामलोों की संख््यया (जून 2024)
प्रक्रिया प्रक्रिया सर्वोच््च न््ययायालय 83,173
पहलू ब्रिटिश अमे रिका उच््च न््ययायालय 6190651
किसी कानून z क््यया कोई ऐसा काननू मौजदू काननू द्वारा स््थथापित निचली अदालतेें 44869607
की वैधता की है जो कार््यकारी कार््रवाई को प्रक्रिया के साथ-साथ कारण
जाँच के लिए अधिकृ त करता है; प्राकृ तिक न््ययाय के
परीक्षण सिद््धाांतोों का उपयोग करके z 1 अप्रैल को 25 उच््च न््ययायालयोों मेें 1114 स््ववीकृ त
z क््यया विधायिका के पास उस
न््ययायाधीशोों के पदोों मेें से 327 पद खाली हैैं। (2024)
काननू को पारित करने की काननू की अतं र््ननिहित कार््ममिक
अच््छछाई की भी जाँच की z 10.5 न््ययायाधीश/मिलियन जनसंख््यया (विधि आयोग 50
क्षमता थी; न््ययायाधीश/मिलियन की सिफारिश करता है)
z क््यया विधायिका ने उस जाती है।
z 50% से अधिक मामलोों मेें प्रति मामले 3 स््थगन के नियम
काननू को लागू करने के का उल््ललंघन होता हैैं।
लिए स््थथापित प्रक्रिया का z सप्रीम
ु कोर््ट न््ययूनतम 225 दिनोों के नियम के बावजदू
पालन किया। औसतन 222 दिनोों पर काम करता है। न््ययायाधीशोों के लिए
निर््भरता विधायिका की अच््छछी समझ साथ ही, न््ययायिक विवेक ग्रीष््मकालीन अवकाश औपनिवेशिक हैैंगओवर को दर््शशाता
और जनमत की ताकत। पर भी। प्रशासनिक है।
न््ययायिक सीमित। के वल प्रक्रियात््मक मौलिक और प्रक्रियात््मक z विशेष अनुमति याचिका (अनुच््छछेद 136) मेें न््ययायालय
शक्ति आधार पर ही काननोू ों को दोनोों आधारोों पर नागरिकोों की लंबितता का 40% शामिल है।
नागरिकोों के अधिकारोों का के अधिकारोों का उल््ललंघन z मामले को खीींचने के लिए वकील, विशेष रूप से अधीनस््थ
उल््ललंघन करने वाले घोषित करने वाले काननोू ों की स््तरोों पर सांठगांठ वाले भ्रष्टाचार करते हैैं।
किया जा सकता हैैं। घोषणा कर सकते हैैं। z मौजदू ा बनि ु यादी ढाँचे मेें स््ववीकृ त 20,558 न््ययायिक
किसके एकमात्र कार््यपालिका की कार््यपालिका और अधिकारियोों मेें से के वल 15,540 को समायोजित किया
खिलाफ मनमाना कार््रवाई, न कि विधायिका दोनोों की जा सका।
बुनियादी
सरं क्षण विधायिका की। मनमाना कार््रवाई। z न््ययायालय के बनि ु यादी ढाँचे पर सकल घरे लू उत््पपाद का
ढांचा
0.09% खर््च किया गया।
प्राकृतिक न्याय का सिद्धधांत z प्रशासन मेें उपयोग की जाने वाली परु ानी तकनीकोों से
z एक प्राधिकरण बिना किसी पर््ववाग्र
ू ह के ईमानदारी से (सद्भावना से) कार््य मक ु दमेबाजी का समय बढ़ जाता है।
करे गा। z विलंबित जाँचः आधनि ु क और वैज्ञानिक उपकरणोों के
z किसी भी व््यक्ति को बिना सनु े दडिं त नहीीं किया जाना चाहिए। अभाव के कारण पलि ु स जाँच मेें बाधा उत््पन््न होती है।
कोई भी व््यक्ति अपने मामले का स््वयं न््ययायाधीश नहीीं होगा। अन््य
z z केें द्र और राज््य 46% से अधिक लंबित मामलोों के लिए
z मेनका गांधी बनाम भारत सरकार, 1978: अनच्ु ्छछे द 21 प्राकृ तिक न््ययाय के जिम््ममेदार थे।
सिद््धाांतोों को शामिल करता है।
लंबित मामलोों को कम करने के लिए उपाय
z केें द्रीय अतं र्देशीय जल परिवहन निगम लिमिटेड बनाम ब्रोजो नाथ गांगल ु ी,
1986: प्राकृ तिक न््ययाय का सिद््धाांत, अनच्ु ्छछे द 14 के तहत समानता के z 120वाँ विधि आयोगः कुशल और अनभु वी न््ययायाधीशोों को तदर््थ न््ययायाधीशोों
अधिकार मेें अतं र््ननिहित है। (अनच्ु ्छछे द 128 और अनच्ु ्छछे द 224ए) के रूप मेें नियक्त ु करना।
z विधि आयोग और वसतं मामले मेें उच््चतम न््ययायालयः अलग-अलग
सर्वोच््च न््ययायालय, अपील न््ययायालय और संवैधानिक न््ययायालय के रूप मेें
प्रमुख शब्दावलियाँ कार््य करेें।
उच््चतम अपील न््ययायालय, न््ययायिक सक्रियता, न््ययायिक संयम, z आवश््यकता और कारकोों को ध््ययान मेें रखते हुए न््ययायाधीशोों का
अंकल जज सिंड्रोम, मौलिक अधिकारोों का रक्षक, बंदी प्रत््यक्षीकरण, आवंटन:
परमादेश, न््ययायिक समीक्षा, संविधान की व््ययाख््यया, शक्ति पृथक््करण  आपराधिक मामलोों मेें 2.5 गन ु ा अधिक बैकलॉग होता है।
का सिद््धाांत, न््ययायिक विवेक,  देरी के कारण के लिए विशिष्ट चरण की पहचान करने के लिए जीवन

चक्र विश्ले षण अर््थथात, प्रक्रियात््मक अक्षमता/मानव संसाधन की कमी।


न्यायिक विलंब उदाहरणार््थ, दिल््लली हाईकोर््ट का जीरो पेेंडेेंसी मामला
z औसत निपटान समय (यूरोप की तुलना मेें): सिविल मामलोों मेें 4.4 गनु ा  राज््यवार मामला निपटान दरः गज ु रात मेें 100% और बिहार मेें 55.8%
और आपराधिक मामलोों मेें 6 गनु ा। मामला निपटान दर (case clearance rate) है

भारत में न्यायिक व 53


z न््ययायालय की उत््पपादकता मेें वद््धििः
ृ न्यायिक नियुक्तियााँ
 कार््य दिवसोों की संख््यया मेें वृद्धि करना। हाल ही मेें, राष्टट्रपति ने सप्रीम
ु कोर््ट कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिशोों को
 कर््तव््योों का पर््ययाप्त प्रदर््शन सनिश् ु चित करने के लिए न््ययायिक अधिकारियोों स््ववीकार करते हुए सुप्रीम कोर््ट (सुप्रीम कोर््ट मेें जजोों की संख््यया बढ़कर 32
के लिए सख््त आचार संहिता। हो गई, सुप्रीम कोर््ट मेें स््ववीकृत जजोों की कुल संख््यया 34 हैैं।) मेें 5 नए
 कार््यवाही प्रक्रिया की पन ु र््र चना न््ययायाधीशोों की नियुक्ति की।
 आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग: ई-कोर््ट के तहत राष्ट्रीय न््ययायिक नियुक्ति से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
डेटा ग्रिड (National Judicial Data Grid); मामलोों का बिग डेटा z अनुच््छछेद 124 (2): उच््चतम न््ययायालय के न््ययायाधीशोों की नियुक्ति
विश्ले षण।  सीजे आई: राष्टट्रपति द्वारा उच््चतम न््ययायालय और उच््च न््ययायालय के
 मामलोों की ऑनलाइन फाइलिंग। ऐसे न््ययायाधीशोों से परामर््श करने के बाद जिन््हेें राष्टट्रपति आवश््यक समझे।
z न््ययायमूर््तति रमन््नना द्वारा अनुशंसित त्रि-आयामी दृष्टिकोणः  अन््य न््ययायाधीश: सीजेआई और अन््य एससी और एचसी न््ययायाधीशोों

 ई-प््ललेटफॉर््म के उपयोग और अधिक अदालतोों की स््थथापना के माध््यम से से परामर््श करने के बाद राष्टट्रपति द्वारा जो वह आवश््यक समझता है।
न््ययायिक बनि ु यादी ढाँचे मेें सधु ार z अनुच््छछेद 217: उच््च न््ययायालय के न््ययायाधीशोों की नियुक्ति
 परामर््श के माध््यम से मक ु दमेबाजी से पहले के चरण मेें विवाद निपटान।  उच््च न््ययायालय के मुख््य न््ययायाधीशः सीजेआई और संबंधित राज््य

 मौजद ू ा वैकल््पपिक विवाद समाधान (ADR) तंत्र को मजबतू करना। के राज््यपाल के परामर््श के बाद राष्टट्रपति द्वारा।
z मामलोों का समूहः अधिक लंबित मामलोों वाले विशिष्ट प्रकार के मामलोों की  अन््य न््ययायाधीशः सीजेआई और सब ं ंधित राज््य के राज््यपाल और
पहचान की जाएगी और इसके लिए एक विशेष समिति नियक्त ु की जाएगी। संबंधित उच््च न््ययायालय के मख्ु ्य न््ययायाधीश के परामर््श के बाद राष्टट्रपति
उदाहरणार््थ, हाल ही मेें अदालत ने पैनल को चेक बाउंस मामलोों को क््ललियर द्वारा।
करने की सिफारिश की, जो ट्रायल कोर््ट मेें लगभग 30% से 40% मामलोों कॉलेजियम प्रणाली
का गठन करता है। भारत के मख्ु ्य न््ययायाधीश, सर्वोच््च न््ययायालय के चार वरिष्ठ न््ययायाधीशोों की एक
z विधि सच ू ना प्रबंधन और ब्रीफिंग सिस््टम (LIMBS): काननू और न््ययाय समिति सर्वोच््च न््ययायालय और उच््च न््ययायालय मेें न््ययायाधीशोों की नियुक्तियोों
मत्रा
ं लय के तहत काननू ी मामलोों के विभाग द्वारा बनाया गया एक वेब-आधारित और स््थथानांतरण से संबंधित निर््णय लेती है।
एप््ललिके शन है, जो एक ही स््थथान पर काननू ी डेटा उपलब््ध कराने और भारत
तीन न्यायाधीशोों के मामले
संघ की ओर से आयोजित मक ु दमेबाजी के मामलोों की प्रक्रिया को सव्ु ्यवस््थथित
करने के लिए है। z प्रथम न््ययायाधीश मामला (एस पी गुप्ता मामला) 1981 : सीजेआई से
परामर््श का मतलब सहमति नहीीं है और इसका मतलब के वल विचारोों का
z न््ययायाधीशोों द्वारा मध््यस््थता, सल ु ह, लोक अदालत आदि जैसे वैकल््पपिक
आदान-प्रदान है। कार््यपालिका को अधिक अधिकार मिलना चाहिए।
विवाद समाधान तंत्ररों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके अलावा,
एनएएलएसए (NALSA), एसएएलएसए (SALSA) और डीएएलएसए z द्वितीय न््ययायाधीश मामला, 1993: सीजेआई से परामर््श का मतलब सहमति
(DALSA) जैसे काननू ी सेवा प्राधिकरण जागरूकता पैदा कर सकते हैैं। है यानी सीजेआई द्वारा दी गई सलाह राष्टट्रपति के लिए बाध््यकारी है। हालांकि,
सीजेआई को दो वरिष्ठतम न््ययायाधीशोों से परामर््श करने की आवश््यकता है।
z मीडिया की भूमिकाः लोकतंत्र के चौथे स््ततंभ के रूप मेें मीडिया को लंबित
z तृतीय न््ययायाधीश मामला, 1998: मख्ु ्य न््ययायाधीश को अपनी राय बनाने
मामलोों पर समय-समय पर और रचनात््मक रिपोर््टििंग करनी चाहिए। इससे दोहरे
के लिए सप्रीम
ु कोर््ट के चार वरिष्ठतम न््ययायाधीशोों से परामर््श करना चाहिए।
लाभ होोंगे। एक न््ययायाधीशोों पर बेहतर जवाबदेही स््थथापित होगी दसू रा न््ययायिक
मामलोों की लंबितता पर सार््वजनिक क्षेत्र मेें चर््चचा होगी। कॉलेजियम प्रणाली मेें कमी
विधि के शासन की संस््ककृति प्रबल होनी चाहिए क््योोंकि शक्तिशाली z निरंकुशः यह एक संवैधानिक निकाय नहीीं है। कॉलेजियम के गठन को
सरकारोों पर अन््य तरीकोों से नियंत्रण मुश््ककिल है। सव्ु ्यवस््थथित, सल ु भ, न््ययायपालिका मेें नियक्तियो
ु ों और स््थथानांतरण को नियंत्रित करने के लिए
किफायती और त््वरित न््ययाय वितरण एक आर््थथिक और सामाजिक गुणक के रूप न््ययायपालिका के एक कार््य के रूप मेें माना जा सकता है
मेें कार््य करता है। निष््पक्ष और त््वरित सुनवाई के अधिकार को सभी परिस््थथितियोों z अपारदर््शशिताः कामकाज मेें पारदर््शशिता की कमी > अलोकतांत्रिक
मेें बरकरार रखा जाना चाहिए क््योोंकि यह भारतीय संविधान के अनुच््छछे द 21 के z विधि आयोग (230वीीं रिपोर््ट)
 कॉलेजियम प्रणाली (अक ं ल जज सिंड्रोम) के कामकाज मेें भाई-भतीजावाद,
तहत गरिमापूर््ण जीवन का एक महत्तत्वपूर््ण घटक है।
भ्रष्टाचार और व््यक्तिगत संरक्षण प्रचलित हैैं।
z अनुच््छछेद 74 का उल््ललंघनः राष्टट्रपति मत्रि ं परिषद की सहायता और सलाह
प्रमुख शब्दावलियाँ पर कार््य करेेंगे
z योग््यता बनाम वरिष्ठताः वरिष्ठता नियम के कारण बेहतर योग््यता और बेहतर
कार््यवाही प्रक्रिया की पनु र््रचना, विधि सूचना प्रबंधन और ब्रीफिंग ट्रैक रिकॉर््ड वाले जजोों को किसी तल ु नात््मक रूप से कम योग््य जज के लिए
सिस््टम, लोक अदालतेें, रास््तता बनाने के लिए दरकिनार किये जाने की सभं ावना होती है।

54  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


z नियुक्तियोों की विफलताः कॉलेजियम रिक्तियोों के अनसु ार न््ययायाधीशोों की z राजनीतिकरणः उदाहरणार््थ, न््ययायमर््तति ू वी. रामास््ववामी को हटाने के प्रस््तताव पर
नियक्ति
ु करने मेें विफल रहा है कांग्रेस ने मतदान मेें भाग नहीीं लिया, जिसके परिणामस््वरूप प्रक्रिया विफल रही।
z नियंत्रण और सतं ुलन की कोई प्रणाली नहीींः दसू रे न््ययायाधीशोों के मामले आगे का रास्ता
ने सीजेआई की सिफारिश को राष्टट्रपति के लिए बाध््यकारी बना दिया, वस््ततुतः
z नियुक्ति मेें पारदर््शशिता: जैसा कि एमओपी मेें सचू ीबद्ध है, सत््यनिष्ठा प्राथमिक
न््ययायाधीशोों की नियक्ति
ु मेें कार््यपालिका की कोई भमि
ू का नहीीं रह गई । मानदडं होगा। उच््चतम और उच््च न््ययायालयोों मेें के वल उच््च क्षमता और
आगे का रास्ता त्रुटिहीन सत््यनिष्ठा वाले न््ययायाधीशोों की नियक्ति
ु की जाती है।
z प्रक्रिया ज्ञापन (MoP) को जल््द अंतिम रूप देना z न््ययायाधीश (जाँच) विधेयक, 2006: लोगोों द्वारा उच््च न््ययायालय और
z स््थथायी स््वतंत्र निकायः न््ययायपालिका की स््वतंत्रता, न््ययायिक प्रधानता को उच््चतम न््ययायालय के न््ययायाधीशोों द्वारा असमर््थता या दर््व्
ु ्यवहार के आरोपोों
बनाए रखने के लिए पर््ययाप्त सरु क्षा उपाय, लेकिन न््ययायिक विशिष्टता को नहीीं। की जाँच करने के लिए राष्ट्रीय न््ययायिक परिषद (NJC) का प्रस््तताव।
z सहयोगात््मक प्रक्रियाः रिक्तियोों को भरना एक सतत प्रक्रिया है जिसमेें z वहृ त्तर आंतरिक विनियमनः कदाचार पर त््वरित अनश ु ासनात््मक कार््रवाई;
शिकायतोों की जाँच और जाँच के लिए ससं द द्वारा राष्ट्रीय न््ययायिक निगरानी
कार््यपालिका और न््ययायपालिका शामिल हैैं, इसलिए एक समय सीमा निर््धधारित
समिति का गठन किया जाना चाहिए।
करना मश््ककिु ल है। रिक्तियोों को भरने की प्रक्रिया से स््वतंत्रता, विविधता,
व््ययावसायिक क्षमता और सत््यनिष्ठा सनिश्ु चित होनी चाहिए।
z वस््ततुनिष्ठ पात्रता मानदडः
ं किसी नियक्ति ु या गैर-नियक्तिु के कारणोों को प्रमुख शब्दावलियाँ
समझना। हाल ही मेें एस. सी. कॉलेजियम ने अपनी सभी सिफारिशोों को
तीन न््ययायाधीशोों के मामले, प्रक्रिया ज्ञापन, राष्ट्रीय न््ययायिक नियक्ति

सार््वजनिक डोमेन मेें रखने का फै सला किया है, जो एक सकारात््मक कदम है।
आयोग, न््ययायाधीश (जाँच) अधिनियम 1968,
z कॉलेजियम को राष्टट्रपति को वरीयता और अन््य वैध मानदडों ों के क्रम मेें नियक्त

करने के लिए सभं ावित नामोों का एक पैनल प्रदान करना चाहिए।
न्यायिक जवाबदे ही
z विधि आयोगः संसद एक काननू पारित करे गी जो मख्ु ्य न््ययायाधीश की
प्रधानता को बहाल करे गा, साथ ही यह सनिश् ु चित करे गा कि न््ययायिक नियक्तियो
ु ों न््ययायिक जवाबदेही इस दृष्टिकोण की व््ययाख््यया करती है कि न््ययायाधीशोों को उनके
मेें कार््यपालिका की भमि
ू का हो शक्ति संतल ु न सनिश्
ु चित करता है। काम के लिए किसी तरह से जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। यह सार््वजनिक
जवाबदेही हो सकती है, यानी चनु ावोों मेें मतदाताओ ं से अनुमोदन प्राप्त करना या
न्यायाधीशोों की अपदस्थता राज््यपाल या विधायिका जैसे किसी अन््य राजनीतिक निकाय के प्रति जवाबदेही।
हटाने की प्रक्रिया मेें चुनौतियााँ न्यायिक जवाबदे ही की आवश्यकता

अस््पष्टताः दर््व् z जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिएः बलात््ककार पीड़़ित को


z ु ्यवहार जैसे शब््दोों के रूप मेें स््पष्टता की कमी परिभाषित नहीीं
बलात््ककारी से शादी करने के लिए कहने, सनु वाई के लिए कुछ लोगोों के
है और व््ययाख््यया के लिए खल ु ी है।
मामलोों को प्राथमिकता देने और दसू रोों मेें देरी करने जैसी हालिया टिप््पणियां
z लंबी प्रक्रियाः बोझिल और थकाऊ महाभियोग प्रक्रिया > वस््ततुतः न््ययायाधीशोों
न््ययायपालिका मेें विश्वास को कम करती हैैं।
की कोई जवाबदेही नहीीं। z न््ययायिक नियुक््तििः कॉलेजियम प्रणाली के परिणामस््वरूप न््ययायाधीशोों की
z शक्ति के पथ ृ क््करण के खिलाफः जाँच के लिए तीन सदस््ययीय समिति की नियक्तिु होती है जिसमेें वस््ततुतः कार््यपालिका और विधायिका की कोई भमि ू का
अध््यक्षता सीजेआई या सप्रीम ु कोर््ट के न््ययायाधीश करते हैैं। इससे न््ययायाधीश नहीीं होती है।
ही न््ययायाधीश के खिलाफ जाँच करते है जो की शक्ति पृथक््करण सिद््धाांत का z हितोों का टकरावः सीजेआई एक मामले मेें एक पक्ष होने के बावजदू मास््टर
उल््ललंघन है। ऑफ रोल का फै सला करते हैैं। उदाहरणार््थ, वर््ष 2018 मेें सीजेआई के
हटाने के लिए संवैधानिक प्रावधानः खिलाफ चार वरिष्ठतम न््ययायाधीशोों द्वारा की गई प्रेस कॉन्फफ्ररेंस का मामला
z उच््चतम न््ययायालय के अनुच््छछेद 124 (4) न््ययायाधीश को के वल राष्टट्रपति z न््ययायाधीशोों का आचरणः न््ययायमर््तति ू रामास््ववामी पर भ्रष्टाचार के हालिया
(महाभियोग प्रक्रिया) द्वारा हटाया जा सकता है। आरोप, न््ययायमर््तति
ू रंजन गोगोई पर यौन उत््पपीड़न के आरोप सीजेआई के चरित्र
z आधारः इस आशय का प्रस््तताव संसद के दोनोों सदनोों द्वारा विशेष बहुमत
पर सवाल उठाते हैैं।
z सच ं ालन मेें अस््पष्टताः न््ययायिक स््वतंत्रता के तहत न््ययायपालिका भ्रष्टाचार के
से पारित किए जाने के बाद ही 'साबित दर््व् ु ्यवहार' या 'असमर््थता'।
मामलोों की जाँच मेें बाहरी निकाय की भागीदारी को प्रतिबंधित करती है और
z पारदर््शशिता की कमीः समिति की प्रक्रिया मेें गोपनीयता।
आतं रिक तंत्र स््थथापित करती है।
z न््ययायाधीश इस पद पर बने रहते हैैं।
z सच ू ना विषमताः उच््चतम न््ययायालय के नियम सचू ना देने मेें देरी के लिए
 सवं िधान और 1968 का न््ययायाधीश (जाँच) अधिनियम दोनोों इस बात समय सीमा, अपील तंत्र, जर््ममा ु ना प्रदान नहीीं करते हैैं।
पर चपु हैैं कि क््यया महाभियोग प्रस््तताव का सामना कर रहे न््ययायाधीश को z अदालत की अवमाननाः सही आलोचना के लिए भी इस शक्ति का दरू ु पयोग
न््ययायिक कार््य से अलग होना चाहिए या नहीीं। किया जा रहा है ऐसा कुछ आलोचकोों का मानना है । कुछ आलोचकोों ने
 जाँच के दौरान न््ययायाधीश को अदालत मेें कर््तव््योों का निर््वहन करने से कुणाल कामरा और प्रशांत भषू ण के खिलाफ अवमानना की कार््यवाही को
प्रतिबंधित नहीीं किया जाता है। इस शक्ति का दरू ु पयोग माना है।

भारत में न्यायिक व 55


z न््ययायिक अतिक्रमणः नागरिकोों की शिकायतोों के प्रति सक्रियता न््ययायिक न्यायिक सक्रियता के तरीके
अतिक्रमण की रे खा (न््ययायपालिका का विधायिका, कार््यपालिका के क्षेत्राधिकार
संवैधानिक व्याख्या
मेें हस््तक्षेप) पर पहुचं गई है। उदाहरणार््थ, राष्टट्रगान मामला, राजमार््ग शराबबंदी।
z न््ययायिक स््वतंत्रताः जवाबदेही के बिना, न््ययायिक स््वतंत्रता का उपयोग z न््ययायिक समीक््षााः संविधान की व््ययाख््यया करने और विधायिका और
न््ययायाधीशोों के व््यक्तिगत लाभ के लिए किया जा सकता है, न कि काननू के कार््यपालिका के किसी भी ऐसे काननू या आदेश को अमान््य घोषित करने
शासन और नागरिकोों के अधिकारोों की सरु क्षा के लिए। की न््ययायपालिका की शक्ति, यदि वह उन््हेें संविधान के साथ संघर््ष मेें पाती है।
न्यायिक जवाबदे ही सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदमः z जनहित याचिका: याचिका दायर करने वाले व््यक्ति का मक ु दमे मेें कोई
व््यक्तिगत हित नहीीं होना चाहिए, इस याचिका को अदालत द्वारा के वल तभी
z 1997 मेें सर्वोच््च न््ययायालय द्वारा 'न््ययायिक जीवन के मूल््योों का पुनर््क थन'
स््ववीकार किया जाता है जब इसमेें व््ययापक जनता का हित शामिल हो।
चार््टर और 2002 मेें बैैंगलोर न््ययायिक आचरण के सिद््धाांतोों को अपनाया गया।
z न््ययायिक मानक और जवाबदेही विधेयक, 2010: राष्ट्रीय न््ययायिक निगरानी z निचली अदालतोों पर उच््च न््ययायालयोों की पर््यवेक्षी शक्ति
समिति की स््थथापना करता है जो न््ययायाधीशोों को सलाह या चेतावनी जारी z संवैधानिक अधिकारोों को सनिश्
ु चित करने के लिए अतं रर््रराष्ट्रीय क़़ाननू तक पहुचँ
कर सकती है, और राष्टट्रपति को उन््हेें हटाने की सिफारिश भी कर सकती है। न्यायिक सक्रियता के लाभ
z उच््चतम न््ययायालय (SC) अदालती कार््यवाही के लाइव-स्ट्रीमिगं को मजं रू ी z जाँच और सतं ुलनः समाधान के रूप मेें नवाचार लाने के लिए रचनात््मकता,
देता है। जैसे ताजमहल के आसपास के क्षेत्र मेें प्रदषू णकारी उद्योग पर प्रतिबंध लगाने
z प्रक्रिया ज्ञापन, 2016 का मसौदाः न््ययायाधीशोों की नियक्तिु के लिए "योग््यता का आदेश देना, जिसके परिणामस््वरूप विरासत का संरक्षण हुआ है।
और सत््यनिष्ठा" को "प्रमख ु मानदडं " के रूप मेें शामिल करेें। उच््च न््ययायालय z न््ययायाधीशोों का ज्ञानः उदाहरणार््थ, कार््यस््थल पर यौन उत््पपीड़न रोकने के
के न््ययायाधीशोों के अभिलेखोों को बनाए रखने के लिए उच््चतम न््ययायालय मेें
लिए विशाखा दिशानिर्देश।
स््थथायी सचिवालय
z लोकस स््टैैं डी से जनहित याचिका मेें बदलाव ने न््ययायिक प्रक्रिया को अधिक
z सप्री
ु म कोर््ट बनाम सभ ु ाष चंद्र अग्रवाल मामलाः सीजेआई को आरटीआई
अधिनियम के तहत एक सार््वजनिक प्राधिकरण के रूप मेें घोषित किया गया है। सहभागी और लोकतांत्रिक बना दिया।
z न््ययाय का पूर््ण वितरणः विचाराधीन कै दियोों को रिहा करने और भोपाल गैस
आवश्यक कदम त्रासदी के पीड़़ितोों को 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर का मआ ु वजा देने के
z मीडिया को न््ययायिक निर््णयोों का अध््ययन करना चाहिए। इस पर अकादमिक लिए अनच्ु ्छछे द 142 का प्रयोग
रूप से टिप््पणी करेें ताकि न््ययायाधीशोों को पता चले कि उन पर नजर रखी जा z त््वरित समाधानः कई बार विधायिका आवश््यक बहुमत के मद्देु मेें फंस जाती
रही है। यही जवाबदेही सनिश् ु चित करने का तरीका है - अरुण शौरी है जबकि न््ययायपालिका त््वरित समाधान दे देती है। उदाहरणार््थ, दिल््लली मेें
z न््ययायाधीशोों के खिलाफ शिकायत के लिए स््वतंत्र न््ययायिक लोकपाल। परु ाने वाहनोों पर प्रतिबंध।
z न््ययायाधीशोों के लिए व््ययापक आचार संहिता
न्यायिक सक्रियता से संबंधित मुद्दे
z दो-स््तरीय न््ययायिक अनुशासन मॉडल- पहला स््तरः जर््ममा ु ना/निलंबन; दसू रा
स््तरः निष््ककासन। z शक्ति का अतिक्रमण: न््ययायाधीशोों से संविधान के अनसु ार काननू की व््ययाख््यया
z देश की विविधता के प्रति नियक्त ु होने वाले व््यक्तियोों की जागरूकता और कर निर््णय लेने की अपेक्षा की जाती है। लेकिन कभी-कभी वे न््ययायालय के
सवं ेदनशीलता- नियक्ति ु मेें मानदडं । समक्ष मामलोों पर निर््णय करते समय अपनी शक्ति का अतिक्रमण कर जाते हैैं।
z सवं िधान की भावना को बाधित करना: यह संविधान की भावना को नष्ट
न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिरेक कर देता है क््योोंकि लोकतंत्र, शासन अगों ों के बीच शक्तियोों के पृथक््करण
न्यायिक सक्रियता
पर आधारित है।
z अनिर््ववाचित लोगोों का अत््ययाचार: इसके परिणामस््वरूप अनिर््ववाचित लोगोों
z यह नागरिकोों के अधिकारोों को बनाए रखने के लिए कार््यपालिका और
का अत््ययाचार बढ़ता है, क््योोंकि न््ययायाधीश दिन-प्रतिदिन के निर््णय लेने मेें
विधायिका को अपने सवं ैधानिक कर््तव््योों का पालन करने के लिए मजबरू
करने के लिए न््ययायपालिका द्वारा निभाई गई सक्रिय और मख केें द्रीय भमि
ू का निभाते हैैं।
ु र भमि
ू का है।
z जैसे - के शवानंद भारती मामला, विशाखा दिशानिर्देश, कश््ममीर मेें इटं रनेट z व््यक्तिगत एजेेंडाः न््ययायिक सक्रियता मौजदू ा काननू के बजाय व््यक्तिगत या
बहाल करने का आदेश देना आदि। राजनीतिक विचारोों पर आधारित होने के संदहे वाले न््ययायिक फै सलोों का
वर््णन करती है।
न्यायिक अतिरेक
z किसी भी मामले के लिए एक बार ली गई न््ययायाधीशोों की न््ययायिक राय अन््य
z न््ययायिक सक्रियता का चरम रूप जहाँ न््ययायपालिका द्वारा विधायिका या मामलोों के निर््णय के लिए मानक बन जाती है।
कार््यपालिका के क्षेत्राधिकार मेें मनमाना और अनचि ु त हस््तक्षेप किया जाता है।
z विशेषज्ञता की कमीः न््ययायपालिका के पास नियम लागू करने के लिए समय
z उदाहरण के लिए, सर्वोच््च न््ययायालय ने सड़क सरु क्षा से संबंधित एक जनहित
और ससं ाधन दोनोों की कमी है। कभी-कभी इस तरह के फै सलोों की व््ययावहारिक
याचिका पर निर््णय देते हुए, किसी भी राष्ट्रीय या राज््य राजमार््ग के 500
कठिनाइयोों के बारे मेें अदालतोों को पता नहीीं होता है। उदाहरण के लिएः
मीटर के भीतर खदु रा दक ु ानोों, होटलोों, रे स््तरां और बार मेें शराब की बिक्री
पर प्रतिबंध लगा दिया है। अप्रैल 2020 से बीएस-IV वाहनोों पर प्रतिबंध जिसे कई बार बढ़़ाना पड़़ा।

56  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


न्यायिक अतिक्रमण पर चिंताएँ उदाहरण न््ययायालयोों द्वारा स््वतः संज्ञान दलबदल विरोधी काननू तय
z शक्ति पथ ृ क््करण के सिद््धाांत को कमजोर करनाः अनच्ु ्छछे द 142 मेें सप्रीम ु लेकर मामले उठाना, राजमार्गगों करने मेें स््पपीकर की कार््रवाई मेें
कोर््ट मेें निहित शक्ति असाधारण है। इस शक्ति का बार-बार उपयोग, शक्ति के पर शराब की बिक्री पर प्रतिबंध शामिल न होने से संयम व््यक्त
पृथक््करण के सिद््धाांत का उल््ललंघन है।
लगाना। करना।
z विधायिका और कार््यपालिका के सामने आने वाली चुनौतियोों
की लापरवाहीः विधायिका और कार््यपालिका का काम 4F यानी फंड प्रसिद्ध 2जी घोटाले मेें दरू सचं ार लाइसेेंस एसआर बोम््मई बनाम भारत
(Fund), फंक््शन (Function), फ्रेमवर््क (Framework) और फंक््शनरी मामला रद्द करने का फै सला संघ 1994, अलमित्रा एच पटेल
(Functionary) पर निर््भर करता है। इन 4F पर समग्र प्रभाव पर विचार बनाम भारत संघ 1998
किए बिना न््ययायिक आदेश अर््थव््यवस््थथा को नक ु सान पहुचँ ा सकता है, जैसे
कोयला ब््ललॉक आवंटन और स््पपेक्टट्रम आवंटन रद्द करने से वित्तीय संस््थथानोों
की स््थथिति खराब हो गई। प्रमुख शब्दावलियाँ
z न््ययायपालिका की जवाबदेही का अभावः न््ययायपालिका लोगोों के प्रति
जवाबदेह नहीीं है। 'अदालत की अवमानना' की शक्ति का दरुु पयोग इसके कई सार््वजनिक विश्वास, न््ययायालय की अवमानना, न््ययायिक अतिक्रमण,
कार्ययों के लिए सार््वजनिक आलोचना से बचने के लिए किया जा सकता है। न््ययायिक जीवन के मूल््योों का पनु र््क थन, लोकस स््टैैंडी, जनहित
z न््ययायाधीशोों के स््ववार्थी उद्देश््य जो सार््वजनिक हित को नक ु सान पहुचं ा सकते याचिका
हैैं। उदाहरणार््थ, जॉली एल. एल. बी. II मेें सक्रिय सेेंसरशिप
z कानूनोों मेें अनिश्चितता: उदाहरणार््थ, दरू संचार लाइसेेंस रद्द
z घुटने टे कने की प्रतिक्रिया: पर्ू ्ण न््ययाय करने की चितं ा मेें, लेकिन व््ययापक
अदालत की अवमानना
परिणामोों पर शोध पर विचार किए बिना दिए गए निर््णय अधिक नक ु सान अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 अदालत की अवमानना को
पहुचं ाते हैैं। उदाहरणार््थ, राष्ट्रीय और राज््य राजमार्गगों से 500 मीटर की दरू ी पर सिविल अवमानना के रूप मेें परिभाषित करता हैः किसी भी निर््णय, डिक्री,
राजमार्गगों पर शराबबंदी के परिणामस््वरूप लाखोों लोग बेरोजगार हुए। हालांकि,
निर्देश, आदेश, रिट या अदालत की अन््य प्रक्रियाओ ं की जानबूझकर अवज्ञा या
शराब पीकर गाड़़ी चलाने के कारण होने वाली आकस््ममिक मौतेें के वल 4.2%
थीीं, जबकि 44.2% ओवर-स््पपीडिंग के कारण हुई थीीं। अदालत को दिए गए वचन का जानबूझकर उल््ललंघन।
z अनुच््छछेद 129 और 215: सप्रीम ु कोर््ट और हाई कोर््ट को रिकॉर््ड की अदालत
आगे का राह के रूप मेें शक्ति देता है, जिसमेें खदु की अवमानना के लिए दडि ं त करने की
z काननू की गणवत्ता ु मेें सधु ार। शक्ति भी शामिल है।
z न््ययायपालिका को आत््मसयं म का प्रयोग करना चाहिए और सपु र विधायिका
z अनुच््छछेद 142 (2) सर्वोच््च न््ययायालय को अपनी अवमानना के लिए जाँच
(super-legislature) के रूप मेें कार््य करने के प्रलोभन से बचना चाहिए
z अनच्
करने और दडि ं त करने मेें सक्षम बनाता है।
ु ्छछे द 142 के मामलोों को कम से कम पांच न््ययायाधीशोों की संविधान पीठ
को भेजा जाना चाहिए। यह लोगोों के जीवन पर इस तरह के दरू गामी प्रभाव अवमानना की शक्ति की आवश्यकता
वाले मामलोों पर काम करने वाले पांच स््वतंत्र न््ययायिक दिमागोों के परिणाम के
रूप मेें निर््णय सनिश्
ु चित करे गा। z न््ययायालय का सम््ममान बरकरार रखना: न््ययायपालिका लोगोों के विश्वास
z न््ययायिक सक्रियता उचित है, जब यह वैध न््ययायिक समीक्षा के दायरे मेें हो।
पर टिकी है। प्रीतम लाल बनाम मध््य प्रदेश उच््च न््ययायालय ने माना कि
हालाँकि, यह एक आदर््श नहीीं होना चाहिए और न ही इसके परिणामस््वरूप न््ययायालय का यह कर््तव््य है कि वह अपनी गरिमा को बनाए रखने के लिए
न््ययायिक अतिक्रमण होना चाहिए। अवमानना के कृ त््य को दडि ं त करे ।
कानून बनाना विधायिका का काम है और कार््यपालिका को इसे ठीक से लागू z कानून का शासनः अदालत के आदेश की अवज्ञा काननू के शासन के
करना होता है। ताकि न््ययायपालिका के लिए के वल व््ययाख््यया ही एक काम बना सिद््धाांत का उल््ललंघन करती है। इसलिए अवमानना की शक्ति संविधान की
रहे। सरकार के इन अंगोों के बीच के वल अच््छछा संतुलन ही संवैधानिक मल्ू ्योों
मल ू सरं चना के अनरू ु प है।
को बनाए रख सकता है।
z कानून के समक्ष समानताः अदालत के आदेशोों का अनपु ालन करने के लिए
न्यायिक सक्रियता और न्यायिक संयम के बीच अंतर
मजबरू करके अमीरोों और शक्तिशाली लोगोों के खिलाफ उपकरण।
मापदंड न््ययायिक सक्रियता न््ययायिक संयम z न््ययायपालिका की स््वतंत्रताः जनता और मीडिया परीक्षणोों की राय से सरं क्षण।
परिभाषा यह काननू की वैधता की जाँच न््ययायिक दर््शन किसी काननू को
z युक्तियुक्त निर्बंधन: संविधान का अनच्ु ्छछे द 19(2) भाषण और अभिव््यक्ति की
करने की पारंपरिक भमि ू का से रद्द करने या सरकार के अन््य स््वतंत्रता पर अक ं ु श लगाने के लिए अदालत की अवमानना को एक यक्ति ु यक्तु
आगे जाने का न््ययायिक दर््शन है। अगों ों के कामकाज मेें हस््तक्षेप
निर्बंधन के रूप मेें उल््ललेखित करता है।
करने से रोकने का सयं म
z विधि आयोग (274वीीं रिपोर््ट) इसके दरुु पयोग से बचाव के लिए कई
दिखाता है।
अतं र््ननिहित सरु क्षा उपाय करता है। उदाहरणार््थ, अदालत की अवमानना
उपयोग जब चीजोों को सही करने के जब शक्तियोों के पृथक््करण को अधिनियम, 1971 की धारा 13: यदि नक ु सान की डिग्री मामल ू ी और नोटिस
लिए न््ययायिक हस््तक्षेप की बनाए रखने की गजंु ाइश हो के तहत है, तो अदालत अवमानना के लिए दडि ं त नहीीं करे ग ी।
गंजु ाइश हो। और अन््य शिकायत निवारण z न््ययाय प्रशासन मेें हस््तक्षेपः न््ययायालय ने ब्रह्म प्रकाश शर््ममा बनाम उत्तर प्रदेश
तंत्र उपलब््ध होों राज््य के मामले मेें कहा कि यह विशेष रूप से साबित करना आवश््यक नहीीं

भारत में न्यायिक व 57


है कि न््ययायालय की अवमानना के मामले मेें न््ययाय प्रशासन मेें वास््तविक
महिलाओ ं के कम प्रतिनिधित्व के कारण
हस््तक्षेप किया गया है।
z सामाजिक कारकः काननू मेें लंबे और लचीले काम के घटं े, पारिवारिक
विपक्ष मेें तर््क जिम््ममेदारियोों के साथ मिलकर, कई महिलाओ ं को अभ््ययास छोड़ने के लिए
z भाषण और अभिव््यक्ति की स््वतंत्रता के विरुद्ध मजबरू करते हैैं और वे निरंतर अभ््ययास की आवश््यकता को परू ा करने मेें
z न््ययायिक उत्तरदायित््ववः स््वतत्रं लोकतात्रि ं क समाज मेें न््ययायपालिका को विफल रहती हैैं।
जवाबदेह ठहराने के लिए उसकी आलोचना अपरिहार््य है। यह तब तक चितं ा का z वरिष्ठता सिद््धाांतः उच््च न््ययायपालिका मेें नियक्तियो
ु ों के मामले मेें इस सिद््धाांत
विषय नहीीं होना चाहिए जब तक कि यह न््ययाय वितरण मेें बाधा नहीीं डालता है। का पालन किया जाता है। हालांकि, इसका कड़़ाई से पालन अधिक महिला
z अस््पष्ट आधारः अदालत को बदनाम करने जैसे आधार खल ु े हैैं और दरुु पयोग नियक्तियो
ु ों को भी हतोत््ससाहित करता है।
के लिए प्रवण हैैं। महत्तत्वपूर््ण डेटा (दिसंबर 2023)
z प्राकृतिक न््ययाय के सिद््धाांत के खिलाफः किसी भी व््यक्ति को अपने मामले z न््ययायाधीशोों की कामकाजी संख््यया मेें महिलाएँ उच््चतम न््ययायालय मेें 9.3%,
मेें न््ययायाधीश नहीीं होना चाहिए। लेकिन अवमानना के मामलोों मेें, न््ययायाधीश उच््च न््ययायालयोों मेें 13.4% और अधीनस््थ न््ययायालयोों मेें 36.3% हैैं।
अपने स््वयं के मामले मेें न््ययायाधीश होते हैैं। z SC के इतिहास मेें सिर््फ तीन बार (2013, 2018, 2022) सभी महिला
z अंतरर््रराष्ट्रीय अभ््ययासः यू. एस. ए. यदि न््ययायालय के कर््तव््य को सरं क्षित जज बेेंच बनीीं
करने के बहाने उसके बारे मेें स््वतंत्र चर््चचाओ ं पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा तो z SC मेें फिलहाल के वल 3 महिला जज हैैं और देश को पहली महिला मख् ु ्य
न््ययायालय की गरिमा स््थथापित नहीीं होगी और उसका सम््ममान नहीीं किया जाएगा। न््ययायाधीश 2027 मेें मिलने की संभावना है।
z अवमानना क्षेत्राधिकार का उद्देश््य न््ययायाधीशोों की व््यक्तिगत गरिमा को बनाए
z न््ययायिक बुनियादी ढाँचे की कमीः शौचालयोों, शिशु देखभाल सवु िधाओ ं
रखना नहीीं है।
आदि की कमी। 6000 ट्रायल कोर््ट रूम के एक सर्वेक्षण मेें यह पाया गया कि
z सीमा की अवधिः अवमानना की कार््यवाही शरू ु करने के लिए अधिकतम उनमेें से लगभग 22% मेें महिलाओ ं के लिए वॉशरूम की सवु िधा नहीीं है।
अवधि एक वर््ष है, लेकिन अवमानना के कई मामले दस साल से अधिक
z कोई महिला आरक्षण नहीींः कई राज््योों मेें निचली न््ययायपालिका मेें महिलाओ ं
समय से लंबित हैैं।
के लिए आरक्षण नीति है, जो उच््च न््ययायालयोों और सर्वोच््च न््ययायालय मेें
आगे का राह नहीीं है।
z विवेकाधिकार कम करेें: अवमानना की शक्ति को अधिक निर््धधारित और z प्रवेश परीक्षाओ ं के लिए पात्रता मानदडः ं जिला न््ययायाधीशोों के रूप मेें
सैद््धाांतिक बनाया जाएगा। महिलाओ ं की भर्ती मेें एक बड़़ी बाधा प्रवेश परीक्षा देने के लिए पात्रता
z न््ययायालय की अवमानना और न््ययायाधीश की अवमानना के बीच अत ं र की मानदडं है।
पहचान करेें। z मुकदमे मेें महिलाओ ं का कम प्रतिनिधित््ववः महिला अधिवक्ताओ ं की
z आनुपातिक सजाः अवमानना के लिए सजा अपर््ययाप्त है और पर््ययाप्त निवारक सख्ं ्यया अभी भी कम है, जिससे महिला न््ययायाधीशोों का चयन कम होता है।
नहीीं है। न््ययाय वितरण मेें हस््तक्षेप से निपटने के लिए इसे पर््ययाप्त रूप से बढ़़ाया z बार-बार स््थथानांतरणः मजिस्ट्रेटोों का हर तीन साल मेें स््थथानांतरण किया जाता
जाना चाहिए। है। इसे न््ययायिक प्रणाली मेें लैैंगिक अतं र को भरने के लिए एक और चनु ौती के
z एनसीआरडब््ल्ययूसीः अवमानना की शक्ति और न््ययायिक समीक्षा के वल एससी रूप मेें देखा जा सकता है क््योोंकि भारतीय समाज मेें परिभाषित लिंग भमि ू काओ ं
और एचसी तक ही सीमित है। के कारण महिलाओ ं के लिए अपने करियर के लिए अपने घरोों से दरू रहना
z मनःस््थथिति: (आपराधिक इरादे या बरु े दिमाग को दर््शशाने वाली कानन ूी मश््ककि
ु ल हो जाता है।
अवधारणा) के तत्तत्ववों को अधिनियम मेें शामिल किया जा सकता है। z पितृसत्तात््मक समाजः अतं रर््रराष्ट्रीय न््ययायविदोों के आयोग (ICJ) के एक
एक स््वतंत्र समाज मेें सार््वजनिक संस््थथानोों को अपने गणोु ों पर खड़़ा होना चाहिए। अध््ययन के अनसु ार न््ययायपालिका मेें महिलाओ ं का कम प्रतिनिधित््व अक््सर
यदि उनके आचरण से समदु ाय का विश्वास नहीीं बढ़ता है तो वे इसका सामना लिंग रूढ़़िवादिता के कारण होता है
नहीीं कर सकते। यदि उनका आचरण किसी समदु ाय के सम््ममान को उचित
ठहराता है तो उन््हेें अवमानना नियमोों के तहत सुरक्षा की आवश््यकता नहीीं है। महिला प्रतिनिधित्व का महत्त्व
z मामलोों की रिपोर््ट करने के लिए अधिक महिलाओ ं को प्रोत््ससाहित करेें:
प्रमुख शब्दावलियाँ महिला अधिवक्ताओ ं की आसान उपलब््धता > यौन हिसं ा जैसी समस््ययाओ ं से
पीड़़ित महिलाओ ं को संवाद करने मेें अधिक सहज बनाता है।
कानून का शासन, कानून के समक्ष समानता, यक्तिय
ु क्त ु निर्बं धन, z न््ययाय की गुणवत््तााः सहानभु ति ू और संवेदनशीलता महिलाओ ं से जड़ु ़े गणु हैैं
आनुपातिक सजा, आपराधिक मनःस््थथिति जो निर््णय की गणवत्ता
ु मेें सधु ार कर सकते हैैं।
सार््वजनिक विश्वासः लैैंगिग विविधता वाली पीठ के परिणामस््वरूप
न्यायपालिका मेें महिलाएँ
z

न््ययायपालिकाओ ं को अधिक पारदर्शी, समावेशी और उन लोगोों के प्रतिनिधि


हाल ही मेें, सर्वोच््च न््ययायालय मेें एक सर््व-महिला पीठ थी जो अपने इतिहास के रूप मेें माना जाएगा जिनके जीवन को वे प्रभावित करते हैैं।
मेें के वल तीसरी बार थी।

58  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


z महिलाओ ं को मक ु दमेबाजी की नौकरियोों के लिए असमर््थ कहने की महत्त्वपूर््ण डेटा
पितृसत्तात््मक बाधा को तोड़ना।
z वैश्विक प्रतिबद्धताः एसडीजी 5 और एसडीजी 16 का उद्देश््य न््ययायपालिका z स््ववीकृत 1800 एफटीसीएस मेें से 843 जनवरी तक कार््यया त््मक थे (2020
जैसे सार््वजनिक संस््थथानोों मेें लैैंगिक समानता और महिलाओ ं के प्रतिनिधित््व से लंबित मामलोों मेें 40% की वृद्धि हो रही है।)
को प्राप्त करना है। z 1023 फास््ट ट्रैक स््पपेशल ट्रेनेें स््थथापित करने के लिए केेंद्र प्रायोजित योजना

z विचारोों मेें विविधताः अलग-अलग जीवन के अनभु वोों के कारण मेें से, 411 विशिष्ट POCSO अदालतोों सहित 764 FTSCS, जनवरी
न््ययायपालिका मेें विभिन््न हाशिये पर रहने वालोों का प्रतिनिधित््व होना निश्चित 2023 तक 28 राज््योों / केेंद्रशासित प्रदेशोों मेें कार््यरत हैैं।
रूप से मल्ू ्यवान है। पीठ पर विविधता वैधानिक व््ययाख््ययाओ ं के लिए वैकल््पपिक  (इन एफएसटीसी मेें 1.98 लाख मामले लंबित हैैं)
और समावेशी दृष्टिकोण लाएगी।
z 14वाँ वित्त आयोगः 1800 एफटीसी (4144.00 करोड़ रुपये) की स््थथापना
z महिला सशक्तीकरण की ओर मुड़नाः न््ययायाधीशोों के रूप मेें अधिक महिलाएँ
और राज््य से इस प्रयास को निधि देने के लिए केें द्रीय करोों (42%) के बढ़़े
अन््य महिलाओ ं के लिए आदर््श होोंगी और इस प्रकार महिला सशक्तीकरण को
हुए हस््तताांतरण का उपयोग करने का आग्रह किया।
समग्र रूप से बढ़़ावा मिलेगा।
z विधि और न््ययाय मंत्रालय: महिलाओ ं की सरु क्षा के लिए राष्ट्रीय मिशन
आगे का राह (NMSW) के एक हिस््ससे के रूप मेें बलात््ककार और पॉस््कको अधिनियम के
z प्रभावी दीर््घकालिक योजनाः निचली न््ययायपालिका मेें सभं ावित महिला मामलोों के लिए 1023 एफटीएससी स््थथापित करने की योजना।
उम््ममीदवारोों के आक ं ड़ों का संग्रह, हाशिये पर रहने वाली महिलाओ ं का z निपटाये गये महत्तत्वपूर््ण मामले: 26/11 हमला मामला, बेस््ट बेकरी मामला।
प्रतिनिधित््व सनिश्
ु चित करने के लिए नियक्ति
ु मानदडों ों पर फिर से विचार करना। एफटीसी के लाभ
z लिंग सवं ेदीकरणः"रूढ़़िवादी" और "पितृसत्तात््मक" दृष्टिकोण के
z लंबित मामलोों को कम करनाः एफटीसी ने अन््य अदालतोों पर बोझ को
न््ययायाधीशोों को संवेदनशील मामलोों मेें महिलाओ ं को वस््ततु मानने वाले कम करने के लिए लाखोों मामलोों को हल किया है।
आपत्तिजनक आदेश पारित करने से रोकने के लिए संवेदनशील बनाया जाना
z न््ययायिक प्रभावकारिताः सरलीकृ त प्रक्रिया-> उच््च मामला निपटान दर और
चाहिए।
त््वरित परीक्षण दर-> न््ययायिक प्रभावकारिता को बढ़़ाती है।
z महिलाओ ं को पेशे मेें बनाए रखना: सरकारोों को निचली न््ययायपालिका के
z विशेषज्ञता को बढ़़ावा देनाः विशिष्ट प्रकार के मामलोों को संभालने के लिए
वेतन और भत्ततों को तर््क संगत बनाना चाहिए और अनिश्चितता को कम करने
एफटीसी की स््थथापना की जाती है। यह उस क्षेत्र के विशेषज्ञञों को न््ययायाधीशोों
के लिए महिला वकीलोों को आय की सरु क्षा प्रदान करनी चाहिए।
के रूप मेें नियक्त
ु करने मेें सक्षम बनाता है।
z सामाजिक मानसिकता: न््ययायाधीशोों और वकीलोों को योग््यता के आधार
z निरंतरता और पूर््ववानुमानः एफटीसी मेें उच््च प्रदर््शन दर होती है और वे
पर आक ं ा जाएगा न कि लिंग के आधार पर। स््थथिर और नियमित होते हैैं। यह उच््च सटीकता के साथ न््ययाय प्रदान करता है।
z आरक्षणः उच््च न््ययायपालिका मेें भी योग््यता को कम किए बिना अधीनस््थ
z निवारक के रूप मेें कार््य करेेंः त््वरित न््ययाय समाज मेें अपराध को कम करने
न््ययायपालिका जैसी महिलाओ ं के लिए क्षैतिज आरक्षण होना चाहिए।
मेें एक प्रभावी निवारक के रूप मेें कार््य करता है।
फास्ट ट््र क
रै न्यायालय z प्रभावशीलता मेें वद््धििः
ृ त््वरित न््ययाय के परिणामस््वरूप हमारी न््ययायिक
प्रणाली की दक्षता और प्रभावशीलता मेें वृद्धि होती है, जिससे भारत मेें न््ययाय
z हाल ही मेें, काननू मत्री
ं ने फास््ट-ट्रैक अदालतोों (FTC) और फास््ट-ट्रैक विशेष
वितरण तंत्र मेें लोगोों का विश्वास बढ़ता है।
अदालतोों (FTSCs) की स््थथापना मेें तेजी लाने पर जोर दिया.
z फास््ट-ट्रैक अदालत और फास््ट-ट्रैक विशेष अदालत समर््पपित अदालतेें हैैं जिनसे संबंधित मुद्दे
न््ययाय का त््वरित वितरण सनिश् ु चित करने की उम््ममीद की जाती है। z प्रणालीगत मुद््देेः
z अनुच््छछेद 247: संसद द्वारा बनाए गए काननोू ों या संघ सचू ी के संबंध मेें किसी भी  निपटाए जाने वाले मामलोों की तल ु ना मेें एफटीसी और न््ययायाधीशोों
मौजदू ा काननोू ों के बेहतर प्रशासन के लिए कुछ अतिरिक्त अदालतोों की स््थथापना। की अपर््ययाप्त सख्ं ्यया। उदाहरणार््थ, दिल््लली एफटीसी मेें के वल एक या दो
ऐतिहासिक विकास न््ययायाधीश हैैं।
z 11वाँ वित्त आयोग 1734 फास््ट ट्रैक अदालतोों की स््थथापना: > निचली  तदर््थवाद (Ad-Hocism): लंबित मामलोों को निपटाने के लिए स््थथापित
न््ययायपालिका मेें लंबित मामलोों, विशेष रूप से विचाराधीन मामलोों का त््वरित करने के बजाय, विशिष्ट घटनाओ ं के आधार पर स््थथापित किया गया।
निपटान।
z भारी कार््यभारः न््ययायाधीशोों की बढ़ती संख््यया के बिना सौौंपे गए मामलोों मेें
z उच््च न््ययायालय ने उच््च न््ययायालय के सेवानिवृत्त न््ययायाधीशोों, योग््य बार सदस््योों
वृद्धि-> एफटीसी मेें लंबित मामलोों मेें वृद्धि
आदि से तदर््थ आधार पर न््ययायाधीशोों की नियक्ति ु की।
z 2005: 1562 एफटीसी कार््ययात््मक: > योजना 2011-> 2011 तक बढ़़ाई z कोई विशेष या तेज प्रक्रिया नहीींः नियमित अदालतोों की तरह सामान््य
गईः 1192 एफटीसी कार््य कर रहे है। देरी। एनसीआरबी (2018) के अनसु ार एफटीसी मेें किए गए 28,000 परीक्षणोों
z 2011 के बाद: कोई केें द्रीय फंडिंग नहीीं और राज््य अपने फंड से एफटीसी (trials) मेें से 78% को परू ा होने मेें एक वर््ष से अधिक का समय लगा।
स््थथापित करेेंगे।

भारत में न्यायिक व 59


z बुनियादी ढाँचे की कमीः अक््सर एक मौजदू ा अदालत मेें स््थथापित किया z संविधान और संवैधानिक मामलोों की व््ययाख््यया दिल््लली मेें की जा सकती है और
जाता है और पीड़़ितोों की वीडियो और ऑडियो रिकॉर््डििंग करने के लिए क्षेत्रीय पीठ अपीलीय मामलोों का फै सला कर सकती हैैं।
आवश््यक विभिन््न उपकरण की कमी -> प्रभावशीलता को कम करता है। z अपीलीय पीठोों के निर््णयोों को अतिम ं माना जाना चाहिए, और इसे न््ययायपालिका
z वित्तीय बाधाएँः बृज मोहन लाल मामले मेें सप्रीम ु कोर््ट-एफटीसी की निरंतरता की दसू री परत के रूप मेें नहीीं माना जाना चाहिए।
उनके धन के साथ राज््य के अधिकार क्षेत्र मेें है। उदाहरणार््थ, पीआरएस तिथि सुप्रीम कोर््ट की क्षेत्रीय पीठोों पर विधि आयोग की सिफारिशेें
(मार््च 2019) के अनसु ार 56% राज््योों और केें द्र शासित प्रदेशोों मेें कोई एफटीसी z विधि आयोग की 95वीीं रिपोर््ट (1984) सप्रीम ु कोर््ट मेें दो प्रभाग होने
नहीीं था। चाहिए, अर््थथात,् संवैधानिक प्रभाग और काननू ी प्रभाग।
z समन््वय की कमीः न््ययायाधिकरण-> विभिन््न मत्रा ं लयोों द्वारा प्रबंधित। त््वरित z विधि आयोग की 229वीीं रिपोर््ट (2009)
अदालतेें और विशेष अदालतेें-> विभिन््न न््ययायिक निकायोों के तहत, उनके  दिल््लली मेें संविधान पीठ की स््थथापना की सिफारिश
बीच बहुत कम समन््वय या एकरूपता के साथ।  उत्तरी क्षेत्र मेें दिल््लली मेें, दक्षिणी क्षेत्र मेें चे न््नई/हैदराबाद मेें , पूर्वी क्षेत्र

आगे का मार््ग मेें कोलकाता मेें और पश्चिमी क्षेत्र मेें मुंबई मेें चार कै सेशन बेेंच
क्षमता निर््ममाण और बुनियादी ढाँचे मेें सध (अपीलीय पीठ) हैैं।
z ु ारः अतिरिक्त न््ययायाधीशोों की
नियक्ति
ु , एफटीसी को स््थथायी बनाना, समर््पपित अदालत कक्ष, तकनीकी सवु िधाएँ क्षेत्रीय पीठोों की आवश्यकता
आदि प्राथमिकताएँ होनी चाहिए z समावेशी न््ययाय वितरणः अनच्ु ्छछे द 39ए राज््य को यह सनिश् ु चित करने के लिए
 उच््चतम न््ययायालय द्वारा सझ ु ाव दिया गया है कि तदर््थ न््ययायाधीशोों और प्रावधान करने का निर्देश देता है कि कोई भी व््यक्ति न््ययाय पाने से वंचित न रहे।
सहायक कर््मचारियोों को स््थथायी नियक्तिु यां प्राथमिकता के आधार पर दी z सल ु भताः गरीबोों और उत्तर-पर््वू जैसे दरू -दराज के स््थथानोों मेें रहने वाले लोगोों
जानी चाहिए। के लिए दिल््लली मेें सप्रीम
ु कोर््ट तक पहुचं कम है।
z आधुनिक तकनीकः बिग डेटा एनालिसिस, एआई जैसे उपकरणोों का उपयोग z उच््च विचाराधीनताः एनजेडीजी के अनसु ार एससी मेें लगभग 83,000
मामलोों के बेहतर समहू को सनिश् ु चित करने और प्राथमिकता तय करने के लिए मामले लंबित हैैं और अपीलोों के निपटान मेें कई साल लगते हैैं।
किया जाएगा। z सवं ैधानिक न््ययायालयः संविधान पीठोों (यानी 5+ न््ययायाधीशोों) द्वारा तय किए
गए मामलोों की संख््यया लगभग 15% (1950 के दशक) से घटकर 0.12%
z राज््य सरकारोों को सवं ेदनशील बनानाः राज््य के मख्ु ्यमत्रियो ं ों और मख्ु ्य (पिछले दशक) हो गई है। क्षेत्रीय पीठोों के साथ, दिल््लली मेें सप्रीम ु कोर््ट के वल
न््ययायाधीशोों का सम््ममेलन-> राज््य, उच््च न््ययायालय के मख्ु ्य न््ययायाधीशोों के संवैधानिक काननू के मामलोों की सनु वाई कर सकता है।
परामर््श से -> उपयक्त ु संख््यया मेें एफटीसी स््थथापित करना और पर््ययाप्त धन z आर््थथिक विकासः अधिक समृद्ध राज््योों मेें नागरिक मक ु दमेबाजी की दर
उपलब््ध कराना। अधिक है। लेकिन न््ययायिक बैकलॉग ने दीवानी मामले दायर करने को
z समन््वयः एफटीसी और विशेष अदालतेें-> कम समन््वय के साथ विभिन््न हतोत््ससाहित किया-> क्षेत्रीय पीठ सही दिशा मेें एक कदम है।
न््ययायिक निकायोों के तहत-> अदालतोों के कामकाज को व््यवस््थथित रूप से z विभिन््न समितियोों द्वारा अनुशंसित
सव्ु ्यवस््थथित करने के लिए केें द्र और राज््य सरकारोों द्वारा एक प्रमख ु एजेेंसी  2004, 2006 और 2008 मेें संसदीय स््थथायी समितियोों ने इसकी सिफारिश

स््थथापित की जाए। की थी।


 विधि आयोगः 229वीीं रिपोर््टटः संवैधानिक और संबद्ध मद्द ु दों के लिए
z समग्र दृष्टिकोणः जाँच मेें सधु ार के लिए पलि ु स सधु ार, मामलोों के त््वरित
दिल््लली मेें सवं िधान पीठ और सभी अपीलीय कार्ययों के लिए दिल््लली, चेन््नई/
निपटान के लिए विशेष प्रक्रिया।
हैदराबाद, कोलकाता और मबंु ई मेें चार कै सेशन बेेंच।
 सर्वोच््च न््ययायालय (1986): सप्रीम ु कोर््ट ने स््वयं ही 1986 मेें चेन््नई,
प्रमुख शब्दावलियाँ मबंु ई और कोलकाता मेें क्षेत्रीय पीठोों के साथ राष्ट्रीय अपील न््ययायालय की
स््थथापना की सिफारिश की लेकिन बाद मेें इस मामले मेें प्रगति नहीीं हो सकी।
न््ययायिक बनिय
ु ादी ढाँचा, महिलाओं की सरु क्षा के लिए राष्ट्रीय
 वी. वसत ं कुमार मामला, 2016: उच््चतम न््ययायालय ने राष्ट्रीय अपील
मिशन, के स लिस््टटििंग, डिजिटल डिवाइड, डेटा प्रबंधन।
न््ययायालय पर निर््णय के लिए मामले को एक संवैधानिक पीठ को भेज दिया।
सर्वोच्च न्यायालय की क्षेत्रीय पीठ चिंताएँ ः
हाल ही मेें, कार््ममिक, लोक शिकायत, कानून और न््ययाय पर संसदीय स््थथायी z सप्री
ु म कोर््ट के फैसलोों की श्रेष्ठता को कम कर सकता हैः सर्वोच््च
समिति ने संसद को सूचित किया कि सरकार ने सर्वोच््च न््ययायालय (SC) की न््ययायालय के चरित्र और सर्वोच््च न््ययायालय के रूप मेें इसकी आभा मनं
क्षेत्रीय पीठोों की स््थथापना की उसकी सिफारिश को स््ववीकार कर लिया है। मौलिक परिवर््तन। इसके लिए अनच्ु ्छछे द 130 मेें संशोधन की आवश््यकता होगी।
z ये सिफारिशेें संसदीय स््थथायी समिति की 133वीीं रिपोर््ट 'न््ययायिक प्रक्रियाएँ
z एकीकृत न््ययायपालिका प्रणाली को प्रभावित करनाः 2010 मेें सीजेआई
और उनके सध ु ार' मेें की गई थीीं।
और 27 न््ययायाधीशोों ने इसी कारण का हवाला देते हुए क्षेत्रीय पीठोों के लिए
z भारत का सर्वोच््च न््ययायालय देश मेें चार या पांच स््थथानोों पर अपनी क्षेत्रीय
विधि आयोग की सिफारिशोों को खारिज कर दिया था
पीठोों की स््थथापना के लिए सवं िधान के अनच्ु ्छछे द 130 को लागू कर सकता है।

60  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


z मानव सस ं ाधनः काननू ी सेवा प्राधिकरणोों द्वारा मफ्ु ्त काननू ी सहायता प्रदान
नालसा/NALSA करने के लिए पर््ययाप्त वकीलोों की कमी है।
संसदीय स््थथायी समिति ने "कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के z अभिप्रेरणा की कमीः हालांकि वकीलोों को काननू ी सहायता प्रदान करने के
तहत कानूनी सहायता के कामकाज की समीक्षा" पर अपनी रिपोर््ट प्रस््ततुत लिए नियक्तु किया जाता है और सार््वजनिक धन से भगु तान किया जाता है,
की। लेकिन उनकी इन ग्राहकोों मेें कम रुचि होती है। इससे वकीलोों की दलीलोों की
z कानन ू ी सहायता कार््यक्रमोों के कार््ययान््वयन की निगरानी और मल्ू ्ययाांकन करने गणवत्ता
ु मेें बाधा आती है।
और अधिनियम के तहत काननू ी सेवाओ ं को उपलब््ध कराने के लिए नीतियोों z पैसे की मांगः नियक्त ु वकील कई सीधे-साधे ग्राहकोों को अतिरिक्त राशि का
और सिद््धाांतोों को निर््धधारित करने के लिए काननू ी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, भगु तान करने के लिए मजबरू करते हैैं, भले ही सेवाएँ मफ्ु ्त होों।
1987 के तहत राष्ट्रीय काननू ी सेवा प्राधिकरण (NALSA) का गठन किया z अक्षमताः मफ्ु ्त काननू ी सहायता की प्रणाली बहुत सव्ु ्यवस््थथित और
गया है। मानकीकृ त नहीीं है। इसके परिणामस््वरूप मफ्ु ्त काननू ी सहायता का अक्षम
z सव ं ैधानिक आधारः अनुच््छछेद 39ए समाज के गरीब और कमजोर वर्गगों को वितरण हुआ है।
मफ्ु ्त काननू ी सहायता प्रदान करता है और सभी के लिए न््ययाय सनिश् ु चित करता आगे का मार््ग
है। अनुच््छछेद 14 और 22 (1) राज््य के लिए काननू के समक्ष समानता और लोगोों को मफ्ु ्त काननू ी सहायता के बारे मेें सचि
z ू त करने के लिए एक जागरूकता
सभी को समान अवसर के आधार पर न््ययाय को बढ़़ावा देने वाली काननू ी अभियान के साथ मफ्ु ्त काननू ी परू क देने के लिए अधिक वकीलोों को प्रोत््ससाहित
प्रणाली सनिश्ु चित करना अनिवार््य बनाता है। करेें।
z मुख््य कार््य यः राज््य कानन ू ी सेवा प्राधिकरण, जिला काननू ी सेवा प्राधिकरण, z आई. सी. टी., बिग डेटा एनालिटिक््स आदि का उपयोग काननू ी सहायता के
तालक ु ा काननू ी सेवा समितियाँ नियमित आधार पर निम््नलिखित मख्ु ्य कार्ययों लिए आवेदन और वकील को मामला सौौंपने के बीच के औसत समय को
का निर््वहन करती हैैं- कम कर सकता है जो वर््तमान मेें राष्ट्रीय स््तर पर 11 दिन है।
भारत मेें कानूनी सहायता आंदोलन का इतिहास z उचित वेतन और नियक्ति ु प्रक्रिया मेें प्राथमिकता जैसे अन््य अतिरिक्त सवु िधाओ ं
z 1960- कानन ू ी सहायता योजना के लिए दिशानिर्देशोों का परिचय के साथ मफ्ु ्त काननू ी सहायता के लिए वकील को प्रोत््ससाहित करना।
z 1976- अनच् ु ्छछे द 39 ए (42वाँ सीएए, 1976) z अंतरर््रराष्ट्रीय अनुभवः दक्षिण अफ्रीका, के न््यया आदि जैसे देशोों मेें मफ्ु ्त काननू ी
z 1980 न््ययायमर््तति ू भगवती के तहत सीआईएलएएस (काननू ी सहायता सहायता के निर््बबाध वितरण के लिए। इसे "आवश््यक सेवाओ"ं के रूप मेें
योजनाओ ं को लागू करने के लिए समिति) का गठन वर्गीकृ त किया गया।
z 1987 कानन ू ी सेवा प्राधिकरण अधिनियम का अधिनियमन z एसडीजी-16 का उद्देश््य सतत विकास के लिए शांतिपर्ू ्ण और समावेशी
z 1995 नालसा की स््थथापना
समाजोों को बढ़़ावा देना, सभी के लिए न््ययाय तक पहुचं प्रदान करना और
सभी स््तरोों पर प्रभावी, जवाबदेह और समावेशी संस््थथानोों का निर््ममाण करना
z 1998 नालसा समचि ु त रूप से कार््यशील हुआ है। नालसा (NALSA) और उसके नेटवर््क द्वारा निभाई गई भमि ू का इसे प्राप्त
z 2000 साक्षरता कार््यक्रम, परामर््श केें द्र आदि जैसी कई अन््य पहलेें।
करने मेें सहायता करती है।
 पात्र व््यक्तियोों को मफ् ु ्त और सक्षम काननू ी सेवाएँ प्रदान करना।
कानूनी सहायता के लिए सरकारी पहल
 विवादोों के सौहार््दपर् ू ्ण समाधान के लिए लोक अदालतोों का आयोजन
z भारत मेें “न््ययाय तक समग्र पहुचं के लिए अभिनव समाधान तैयार करना
करना।
(दिशा)” योजना लागू की है।
 ग्रामीण क्षेत्ररों मेें कानन ू ी जागरूकता शिविर आयोजित करना। z न््ययाय बंधु मंचः प्रो बोनो अधिवक्ताओ ं और पंजीकृ त लाभार््थथियोों के बीच
 अपराध के पीड़़ितोों को मआ ु वजा प्रदान करना संपर््क की सवु िधा प्रदान करना, काननू के छात्ररों, अधिवक्ताओ ं और लॉ
 विवाद निपटान को बढ़़ावा देना स््ककूलोों के बीच प्रो बोनो सस्ं ्ककृति को प्रोत््ससाहित करना।
z मुफ््त कानूनी सेवाएँ प्राप्त करने के लिए पात्र व््यक्तियोों मेें शामिल हैैंः z टे ली-लॉ सेवाः टेली/वीडियो कॉन्फफ्ररेंसिगं के माध््यम से लाभार््थथियोों को
महिलाएँ और बच््चचे, एससी/एसटी के सदस््य; औद्योगिक कर््मचारी; सामहि ू क वकीलोों से जोड़ना, 766 जिलोों की 2.5 लाख ग्राम पंचायतोों मेें उपलब््ध।
आपदा, हिसं ा, बाढ़, सख ू ा, भ क
ूं प, औद्योगिक आपदा के पीड़़ित; विकला ंग z नालसा द्वारा शरू ु की गई काननू ी सहायता रक्षा परामर््श प्रणाली (LDCS),
व््यक्ति; हिरासत मेें व््यक्ति; व््यक्ति जिनकी वार््षषिक आय 1 लाख रुपये (सप्रीम ु विकसित देशोों मेें सार््वजनिक बचाव प्रणालियोों को प्रतिबिंबित करते हुए, देश
कोर््ट काननू ी सेवा समिति मेें सीमा 5,00,000/- रुपये है) से अधिक नहीीं है। भर के 676 जिलोों मेें पर्ू क्ण ालिक वकीलोों को शामिल करके आपराधिक
मामलोों मेें कुशल काननू ी सहायता सनिश् ु चित करती है।
मानव तस््करी का शिकार या भिखारी।
मुफ्त कानूनी सहायता सुनिश्चित करने मेें चुनौतियाांः
प्रमुख शब्दावलियाँ
z मफ्ु ्त काननू ी सहायता के अपने बनि
ु यादी अधिकारोों के बारे मेें लोगोों मेें
जागरूकता का अभाव। कै सेशन बेेंच, आवश््यक सेवाएँ, राज््य विधिक सेवा प्राधिकरण, जिला
विधिक सेवा प्राधिकरण, भाषा अवरोध, राष्ट्रीय अपील न््ययायालय,
z मुफ््त सहायता बनाम गुणवत््तााः एक धारणा है कि मफ्ु ्त सेवा गणवत्ता
ु पर्ू ्ण
सिविल मुकदमेबाजी दरेें, समावेशी न््ययाय वितरण।
सेवाएँ प्रदान नहीीं करती है।

भारत में न्यायिक व 61


z अनुबंधोों को लागू करने के मुद््देेः भारत मेें व््ययापार करने की सगम ु ता, अनबु ंधोों
भारत मेें न्यायिक अवसंरचना
या काननोू ों को लागू करने मेें असमर््थता, लंबी और महगं ी मक ु दमेबाजी और
भारत के मख्ु ्य न््ययायाधीश ने भारतीय राष्ट्रीय न््ययायिक अवसंरचना प्राधिकरण मध््यस््थता प्रक्रियाओ ं और परु ातन विधानोों से गंभीर रूप से बाधित है।
(NJIAI) के निर््ममाण का प्रस््तताव रखा। z न््ययायपालिका का डिजिटलीकरणः कोविड-19 महामारी और डिजिटल

न्यायिक अवसंरचना क्या है? मोड की ओर बदलाव की पृष्ठभमि ू मेें, देश मेें न््ययायिक बनि ु यादी ढाँचे का
आधनि ु कीकरण स निश्
ु चित करना अधिक महत्त त्व प र्
ू ्ण है
। वर््तमान मेें, 73%
z एक कुशल "न््ययायिक बुनियादी ढाँचे" का अर््थ है न््ययाय तक समान और अदालतोों मेें वीडियो कॉन्फफ्ररेंसिंग की सवु िधा नहीीं है।
स््वतंत्र पहुचं प्रदान करना। इसे "बाधा मक्त
ु और नागरिक अनक ु ू ल वातावरण" z जवाबदेही की कमीः न््ययायिक बनि ु यादी ढाँचे को बढ़़ाने के उद्देश््य से एक
के माध््यम से प्राप्त किया जा सकता है। समर््पपित विशेष प्रयोजन माध््यम संस््थथा (special purpose vehicle) या
z इसमेें अदालतोों, न््ययायाधिकरणोों, वकीलोों के कक्ष, डिजिटल और मानव निकाय के अभाव मेें, कोई भी बनि ु यादी ढांचा परियोजनाओ ं को निष््पपादित
ससं ाधन अवसरं चना आदि के भौतिक परिसर शामिल हैैं। जो समय पर न््ययाय करने की जिम््ममेदारी लेने को तैयार नहीीं है।
सनिश्
ु चित करने के लिए आवश््यक हैैं। z निधियोों का कम उपयोगः कुछ राज््य निधियोों का कुछ हिस््ससा गैर-न््ययायिक

भारत मेें खराब न्यायिक बुनियादी ढााँचे के कारण उद्देश््योों के लिए हस््तताांतरित करते हैैं। केें द्र प्रायोजित योजना(CSS) के तहत
z कम बजटीय आवंटनः भारत न््ययायिक बनि ु यादी ढाँचे को बनाए रखने के 2019-20 मेें स््ववीकृ त कुल 981.98 करोड़ रुपये मेें से के वल 84.9 करोड़ रुपये
लिए अपने सकल घरे लू उत््पपाद का के वल 0.09% खर््च करता है। का उपयोग संयक्त ु रूप से पांच राज््योों द्वारा किया गया, जिससे शेष 91.36%
धनराशि का उपयोग नहीीं किया गया।
 उच््चतम न््ययायालय द्वारा प्रकाशित 2023 की एक रिपोर््ट से पता चला है

कि मौजदू ा बनि ु यादी ढाँचे मेें 25,081 की अखिल भारतीय वर््तमान स््ववीकृ त अत््ययाधनि ु क न््ययायिक बुनियादी ढाँचे को बढ़़ाने और बनाने के लिए तंत्र को
संख््यया के मक ु ाबले जिला न््ययायपालिका मेें न््ययायाधीशोों की के वल 20,831 संस््थथागत बनाने से मात्रात््मक और गुणात््मक न््ययाय देने मेें मदद मिलेगी और
स््ववीकृ त सख्ं ्यया को समायोजित किया जा सकता है। न््ययाय तक वंचित और अभावग्रस््त लोगोों की पहुचँ सनिश् ु चित होगी।
z योजना की कमीः बनि ु यादी ढाँचे पर अधिक बोझ है क््योोंकि निर््ममाण के दौरान
ही भविष््य की जरूरतोों को पर््ययाप्त रूप से ध््ययान मेें नहीीं रखा गया है। प्रमुख शब्दावलियाँ
z जटिल वित्तपोषणः न््ययायिक बनि ु यादी ढाँचे के वित्तपोषण के लिए जिला भारतीय राष्ट्रीय न््ययायिक अवसंरचना प्राधिकरण, सरकारिया आयोग
कलेक््टर, लोक निर््ममाण विभाग और वित्त मत्रा ं लय सहित राज््य सरकार के की रिपोर््ट, राष्टट्रपति शासन, निधियोों का अल््प उपयोग, संवैधानिक
विभिन््न विभागोों के बीच समन््वय की आवश््यकता होती है। आपातकाल, न््ययायपालिका का डिजिटलीकरण,
z सस ं ाधनोों का विलंब और अल््प उपयोगः अधीनस््थ न््ययायपालिका के लिए
बनि
ु यादी ढाँचे के विकास की प्राथमिक जिम््ममेदारी राज््य सरकारोों की होती है। विगत वर्षषों के प्रश्न
कुछ राज््य या तो प्रक्रिया मेें देरी कर रहे हैैं या योगदान के हिस््ससे के रूप मेें z हाल के समय मेें भारत और य.ू के . की न््ययायिक व््यवस््थथाएँ अभिसरणीय एवं
अपने हिस््ससे का धन नहीीं दे रहे हैैं। अपसरणीय होती प्रतीत हो रही हैैं। दोनोों राष्टट्ररों की न््ययायिक कार््यप्रणालियोों के
z कार््यपालिका पर न््ययायपालिका की निर््भरता: परियोजना का डिजाइन, आलोक मेें अभिसरण और अपसरण के मख्ु ्यया बिंदओ ु ं को आलोकित कीजिए।
निगरानी और बनि ु यादी ढाँचे का निष््पपादन, मख्ु ्य रूप से भवन बनि
ु यादी ढांचा,  (2020)
लोक निर््ममाण विभागोों (PWD) का एकमात्र विशेषाधिकार है। z न््ययायिक विधायन भारतीय संविधान मेें परिकल््पपित शक्ति पृथक््करण सिद््धाांत
न्यायिक बुनियादी ढााँचे मेें सुधार की आवश्यकताः का प्रतिरक्षी है। इस संदर््भ मेें कार््यपालक अधिकरणोों को दिशा-निर्देश देने की
प्रार््थना करने संबंधी, बड़़ी संख््यया मेें दायर होने वाली, लोक हित याचिकाओ ं
z उच््च लंबितताः 4.4 करोड़ से अधिक लंबित मामलोों का एक बड़़ा बैकलॉग
का न््ययाय औचित््य सिद्ध कीजिये। (2020)
है। वित्त मत्रा
ं लय के एक अध््ययन मेें पाया गया कि संपत्ति से संबंधित विवाद z भारत मेें उच््चतर न््ययायपालिका मेें न््ययायाधीशोों की नियक्ति
ु के सदं र््भ मेें ‘राष्ट्रीय
को हल करने मेें औसतन लगभग 20 साल लगते हैैं और निपटान की वर््तमान न््ययायिक नियक्ति
ु आयोग अधिनियम, 2014’ पर सर्वोच््च न््ययायालय के निर््णय
दर पर वर््तमान बैकलॉग को दरू करने मेें 324 साल लगेेंगे। का समालोचनात््मक परीक्षण कीजिए। (2017)

62  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


13 विवाद निवारण तंत्र
z विवाद निवारण तंत्र एक सरं चित प्रक्रिया है, जो व््यवसाय, काननू ी या z व््ययापक अनुपालन: प्रक्रिया मेें पक्षषों की भागीदारी से परिणाम के प्रति अधिक
सामाजिक संबंधोों मेें संलग््न दो या अधिक पक्षषों के बीच उत््पन््न विवादोों या प्रतिबद्धता पैदा होती है, जिससे अनपु ालन की संभावना अधिक होती है।
शिकायतोों का समाधान करती है। z विदेशी मुद्रा भंडार की बचत: सिंगापरु जैसे विदेशी देशोों मेें मध््यस््थता पर
z विवाद निवारण तंत्र आमतौर पर गैर-न््ययायिक प्रकृति के होते हैैं, जिसका काफी मात्रा मेें विदेशी मद्ु रा की हानि होती है।
अर््थ है कि उनका समाधान विधिक न््ययायालयोों मेें नहीीं किया जाता है। वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्र (ADR) की कमियाां
z भारत मेें गठित विभिन््न विवाद निवारण तंत्र: ग्राम सभा, न््ययाय
z जागरूकता का अभाव: लोग, वकील और न््ययायिक अधिकारी; मामलोों को
पंचायत, लोक अदालत, पारिवारिक न््ययायालय, परामर््श केें द्र, जाँच आयोग,
मध््यस््थता और सल ु ह के लिए स््थथानांतरित करने के आदेश से अनभिज्ञ हैैं।
न््ययायाधिकरण, उपभोक्ता न््ययायालय, वैकल््पपिक विवाद निवारण (ADR) पर
भारतीय काननू , आदि। z पक्षषों मेें सद्भावना: यह वैकल््पपिक विवाद निवारण की सफलता के लिए
आवश््यक है। बिना जानकारी वाले पक्ष वैकल््पपिक विवाद निवारण के सफल
z मुख््य उद्देश््य: संक्षेप मेें, इस प्रणाली का मख्ु ्य उद्देश््य विजयी पक्ष द्वारा सब
होने मेें नक ु सान मेें रहते हैैं।
कुछ ले लेने के बजाय मध््यस््थता पर ध््ययान केें द्रित करना है; साथ ही न््ययाय
तक पहुचं मेें वृद्धि, दक्षता मेें सधु ार करना और अदालती कार््यवाहियोों मेें z प्रक्रिया और परिणाम के बारे मेें सदं ेह: कई वादी इसके निर््णयोों से संतष्टु
विलंबता को कम करना है। नहीीं होते और हमेशा खदु को इससे अलग कर लेते हैैं तथा औपचारिक
अदालतोों मेें चले जाते हैैं।
वैकल्पिक विवाद निवारण z स््ववैच््छछिक प्रक्रिया: पारस््परिक रूप से हस््तताक्षरित समझौते के बिना पक्षषों
को ADR द्वारा अपने विवादोों को हल करने के लिए मजबरू नहीीं किया जा
वैकल््पपिक विवाद निवारण (ADR) का अर््थ है, किसी विवाद के पक्षकारोों द्वारा
सकता है।
सहमत कोई भी प्रक्रिया, जिसमेें वे किसी समझौते पर पहुचं ने और मक
ु दमेबाजी
से बचने मेें सहायता के लिए किसी तटस््थ पक्ष की सेवाओ ं का उपयोग करते हैैं। z तटस््थ मध््यस््थ: असंतष्टु पक्ष हमेशा मध््यस््थ पर पक्षपात और गैर-निष््पक्षता
का आरोप लगाते हैैं।
संवैधानिक आधार z विवादोों का समाधान न होना: मध््यस््थता (बाध््यकारी निर््णय) को छोड़कर,
z अनुच््छछेद 14 : विधि के समक्ष समानता। वैकल््पपिक विवाद निवारण प्रक्रिया से हमेशा समाधान नहीीं निकल सकता।
z अनुच््छछेद 32 : संवैधानिक उपचारोों का अधिकार; लोगोों का न््ययाय पाने का इसका इस््ततेमाल सिर्फ़ टालमटोल की रणनीति के तौर पर किया जा सकता है।
अधिकार। z सीमित दायरा: वैकल््पपिक विवाद निवारण तंत्र के वल धन या दीवानी विवादोों
z अनुच््छछेद 39A: समान न््ययाय और निःशल्ु ्क विधिक सहायता। के मद्दु दों को हल करता है और इसकी कार््यवाही के परिणामस््वरूप निषेधाज्ञा
आदेश (पक्षषों को कुछ करने या न करने का आदेश देना) नहीीं दिया जाता है।
वैकल्पिक विवाद निवारण (ADR) के लाभ
z कोई अपील नहीीं: अन््य न््ययायालयोों के विपरीत, जहाँ उच््चतर न््ययायालय मेें
z विधि आयोग: विधि आयोग की 222 वीीं रिपोर््ट (न््ययाय वितरण की अपील की सवु िधा उपलब््ध है, तटस््थ मध््यस््थ के निर््णय के विरुद्ध अपील
आवश््यकता) के अनसु ार, ADR के निम््नलिखित लाभ हैैं- नहीीं की जा सकती।
 कम खर्चीला।
आगे की राह
 कम समय ले ने वाला: कोई अपील नहीीं और शीघ्र विवाद समाधान।
z त््वरित और सफल वैकल््पपिक विवाद निवारण तंत्र: ई-लोक अदालत जैसे
 तकनीकी जटिलताओ ं से मुक्त: यह अधिक लचीला है तथा इसमेें
उपकरणोों को शामिल करना, प्री-लिटिगेशन (मक ु दमे-पर््वू चरण) के दायरे का
शामिल लोगोों की व््यक्तिगत आवश््यकताओ ं के प्रति उत्तरदायी है। विस््ततार करना तथा वादियोों मेें विश्वास पैदा करना और उन््हेें वैकल््पपिक विवाद
 स््वतंत्र पक्षकारिता: न््ययायालय के समक्ष प्रकटीकरण के भय के बिना निवारण तंत्र का विकल््प चनु ने के लिए प्रेरित करना।
अपने मतभेदोों पर चर््चचा करने के लिए पक्षकार स््वतंत्र होते हैैं। z पेशे के रूप मेें बढ़़ावा देना: प्रशिक्षित मध््यस््थोों को तैयार करके ; गणवत्ता

z सबं ंधोों की निरंतरता: शामिल पक्षषों के बीच जीत-हार की भावना नहीीं रहती नियंत्रण, नैतिक मानकोों और मध््यस््थोों की जवाबदेही के लिए प्रक्रियाएँ निर््धधारित
तथा शिकायतोों का निवारण होता रहता है। इससे सद्भावना बनाए रखने की करना।
अधिक संभावना रहती है। z दायरा बढ़़ाना: गैर-वाणिज््ययिक विवादोों के लिए मध््यस््थता एवं विवाद निवारण
z बेहतर प्रवर््तन: विश्व बैैंक की ईज ऑफ डूइगं बिजनेस रिपोर््ट के अनसु ार, भारत केें द्र स््थथापित करना।
मेें अनबु ंधोों के प्रवर््तन के लिए औसत दिन, अन््य उभरती अर््थव््यवस््थथाओ ं की z दृष्टिकोण मेें परिवर््तन: लोगोों को आत््मविश्वास और भरोसे के साथ वैकल््पपिक
तलु ना मेें अधिक हैैं। ADR इसे बेहतर बनाने मेें मदद कर सकता है। विवाद निवारण तंत्र चनु ने के लिए प्रेरित करने की आवश््यकता है।
z अन््य उपाय: ADR के लिए बनि ु यादी ढांचा, वकीलोों को वैकल््पपिक विवाद z सबसे अतिम ं पंक्ति पर या उपेक्षित वर्गगों को अधिक मानवीय और सल ु भ
निवारण मेें कुशल बनाना, आवश््यक जनशक्ति उपलब््ध कराना। न््ययाय प्रदान करना।
z मध््यस््थता और सल ु ह (सशं ोधन) विधेयक: विधायी खामियोों को दरू करने z अधीनस््थ न््ययायालयोों मेें लंबित मामलोों मेें लगभग 50% की कमी लाना।
के लिए मध््यस््थता और सल ु ह (संशोधन) अधिनियम, 2021 को अधिनियमित z न््ययायपालिका के उच््च स््तरोों पर कार््यभार कम करना।
किया गया।
z ग्राम न््ययायालय अधिनियम (2008): इसके अतं र््गत 5000 ग्राम न््ययायालय
z भारतीय मध््यस््थता परिषद: सर्वोच््च न््ययायालय/उच््च न््ययायालय द्वारा मध््यस््थ स््थथापित किए जाने की अपेक्षा की गयी थी और इसके लिए के न्दद्र सरकार
की नियक्ति
ु ; मध््यस््थता निर््णयोों की इलेक्ट्रॉनिक डिपॉजिटरी। सद्भावना पर््वू क ने राज््योों/संघ राज््य क्षेत्ररों को सहायता के रूप मेें लगभग 1400 करोड़ रुपए
किये गए कार्ययों के लिए मध््यस््थ को काननू ी कार््यवाही से बचाना।
आवंटित किए।
लोक अदालत z ग्राम न््ययायालयोों की विशिष्टता:
 गतिशील (मोबाइल) न््ययायालय: न््ययायाधिकारियोों (प्रथम श्रेणी के
z दर््शन: लोक अदालत भारत मेें विकसित एक अनठू ी प्रणाली है। इसका तात््पर््य
जनता की अदालत से है और यह गांधीवादी सिद््धाांतोों पर आधारित है। न््ययायिक मजिस्ट्रेट के समकक्ष न््ययायिक अधिकारी) की अध््यक्षता मेें।
 इसमेें पक्षषों के बीच विवादोों को निपटाने के लिए बातचीत, मध््यस््थता और  नियुक्ति: राज््य सरकारोों द्वारा अपने उच््च न््ययायालय के परामर््श से।

सल ु ह जैसे उपकरण शामिल होते हैैं।  शक्तियां: आपराधिक और दीवानी दोनोों न््ययायालयोों की शक्तियां और

 स््वतंत्रता के बाद प्रथम लोक अदालत शिविर 1982 मेें गज ु रात मेें उनकी ‘न््ययायिक क्षमता’ अधिनियम की पहली तीन अनसु चियो ू ों मेें निर््ददिष्ट
आयोजित किया गया था। विवादोों तक सीमित हैैं।
z अधिकार क्षेत्र: ऐसे मामले (या विवाद) जो न््ययायालय मेें लंबित हैैं या जो  उद्देश््य: सल ु ह-समझौते के माध््यम से विवादोों का निपटारा करना।
मक ु दमे-पर््वू चरण मेें हैैं (अभी न््ययायालय के समक्ष नहीीं लाए गए हैैं)।  साक्षष्य के नियमोों से बाध््य नहीीं: भारतीय साक्षष्य अधिनियम, 1872 के
 लोक अदालतोों मेें वैवाहिक/पारिवारिक विवाद, आपराधिक (समझौता
तहत, लेकिन संबंधित उच््च न््ययायालयोों द्वारा तैयार नियमोों के अधीन और
योग््य अपराध) मामले, भमि ू अधिग्रहण मामले आदि निपटाए जाते हैैं।
प्राकृ तिक न््ययाय के सिद््धाांतोों द्वारा निर्देशित।
 ऐसे अपराध जो किसी भी कानन ू के अतं र््गत गैर-समझौता योग््य (गभं ीर
 अपील: सिविल मामलोों मेें जिला न््ययायालय मेें तथा आपराधिक मामलोों
प्रकृ ति के ) हैैं, लोक अदालत के दायरे से बाहर हैैं।
z वर््तमान स््थथिति: विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम,1987 के तहत लोक मेें सत्र न््ययायालय मेें।
अदालत संस््थथाओ ं को सांविधिक दर््जजा दिया गया है।  अवस््थथापना: मध््यवर्ती स््तर पर प्रत््ययेक पंचायत के मख् ु ्ययालय पर या
z आयोजक प्राधिकरण: राज््य/जिला विधिक सेवा प्राधिकरण या सर्वोच््च किसी जिले मेें सन््ननिहित पंचायतोों के समहू पर जहाँ मध््यवर्ती स््तर पर
न््ययायालय/उच््च न््ययायालय/तालक ु ा विधिक सेवा समिति लोक अदालतोों का कोई पंचायत नहीीं है।
आयोजन कर सकती हैैं।
ग्राम न्यायालय के खराब कामकाज के कारण
z सदस््य: लोक अदालत के सदस््योों मेें एक न््ययायिक अधिकारी (अध््यक्ष), एक
वकील (अधिवक्ता) और एक सामाजिक कार््यकर््तता शामिल होते हैैं। z क्षेत्राधिकार का अतिव््ययापन: पिछले कुछ वर्षषों मेें कई राज््योों ने तालक ु ा
z लोक अदालत की शक्तियाँ: लोक अदालतोों को वही शक्तियां प्राप्त हैैं जो स््तर पर नियमित न््ययायालयोों की स््थथापना की है, जिससे ग्राम न््ययायालय जैसी
सिविल (दीवानी) प्रक्रिया संहिता (1908) और दडं प्रक्रिया संहिता (1973) अतिरिक्त संस््थथा की आवश््यकता कम हो गई है।
के तहत सिविल (दीवानी) न््ययायालयोों को प्राप्त हैैं। z राज््योों की सक्रियता का अभाव: के न्दद्र सरकार द्वारा 1400 करोड़ रुपये के
 लोक अदालत के निर््णयोों के विरुद्ध किसी भी न््ययायालय मेें कोई अपील आवंटन के बावजदू अधिकांश राज््य सरकारोों ने अपनी नीतिगत प्राथमिकताओ ं
नहीीं की जा सके गी। मेें ग्राम न््ययायालयोों को दरकिनार कर दिया है।
 लोक अदालत का एक लाभ यह है कि विभिन््न पक्षषों के बीच अनेक विवादोों
 ग्राम न््ययायालयोों की स््थथापना के लिए राज््योों से प्रस््ततावोों की कमी के कारण
को बिना अधिक समय बर््बबाद किये एक ही बार मेें निपटाया जा सकता है। योजना के अतं र््गत धन उपयोग की गति धीमी है।
z मोबाइल लोक अदालत प्रणाली: जरूरतमदों ों और गरीबोों के दरवाजे तक
z मानव सस ं ाधनोों की कमी: ग्राम न््ययायाधिकरियोों के पद के लिए न््ययायिक
न््ययाय की पहुचँ सनिश् ु चित करने हेत,ु गतिशील (मोबाइल) लोक अदालत
अधिकारियोों की कमी, नोटरी, स््टटाम््प विक्रे ताओ ं आदि की अनपु लब््धता ने
प्रणालियोों की शरू ु आत के साथ लोक अदालतोों के प्रशासन मेें भी क््राांतिकारी
प्रगति मेें बाधा उत््पन््न की है।
बदलाव हो रहे हैैं।
z स््पष्टता का अभाव: ग्राम न््ययायालय त््वरित विवाद समाधान के लिए अतिरिक्त
ग्राम न्यायालय विकल््प प्रदान करता है या नहीीं, यह संदिग््ध है, क््योोंकि श्रम न््ययायालय और
पारिवारिक न््ययायालय जैसे वैकल््पपिक मचं पहले से ही उपलब््ध हैैं।
ग्राम न्यायालयोों का विकास z जागरूकता का अभाव: सामान््य तौर पर सभी हितधारकोों, अर््थथात् मक ु दमे
विधि आयोग ने अपनी 114 वीीं रिपोर््ट मेें निम््नलिखित उद्देश््योों से ग्राम के समाधान मेें शामिल वादियोों, वकीलोों और पलि ु स अधिकारियोों के बीच
न््ययायालयोों की स््थथापना की सिफारिश की थी: जागरूकता का दायरा अत््ययंत सीमित है।

64  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


आगे की राह z कानूनी रूप से बाध््यकारी निर््णय: सिविल (दीवानी) न््ययायालय के समान
z जन जागरूकता अभियान: न््ययाय प्राप्त करने के लिए ऐसे मचं की उपयोगिता शक्तियाँ, जैसे - समन जारी करना और गवाहोों को साक्षष्य देने की अनमति ु
और लाभ के बारे मेें हितधारकोों के मध््य जागरूकता फै लाना। देना। इसके निर््णय काननू ी रूप से पक्षषों पर बाध््यकारी होते हैैं, जो अपील के
z स््थथायी ग्राम न््ययायालयोों की स््थथापना करना: प्रत््ययेक पंचायत मेें स््थथायी ग्राम अधीन होते हैैं।
न््ययायालयोों की स््थथापना करना, नये न््ययायिक अधिकारियोों को वहाँ अनिवार््य z तकनीकी विशेषज्ञता: ऐसे विशेषज्ञ सदस््योों की नियक्ति ु का प्रावधान जो
रूप से नियक्त ु करना और ग्राम न््ययायाधिकारियोों को प्रशिक्षित करना। तकनीकी विशेषज्ञता की मांग वाले मामलोों के निर््णय मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का
निभाते हैैं।
z ग्राम न््ययायाधिकारी का एक सवं र््ग: काननू (Law) के साथ-साथ समाज कार््य
(Social Work) मेें स््ननातक व््यक्तियोों को इस सेवा मेें भर्ती किया जाएगा। न्यायाधिकरणोों से संबंधित चिंताएँ
z कार््यप्रणाली मेें बदलाव: ग्राम न््ययायालयोों की स््थथापना से न््ययायपालिका, z शक्तियोों के पथ ृ क््करण के विरुद्ध: इसमेें प्रशासनिक और न््ययायिक दोनोों
राजनीतिक और कार््यपालिका की भमि ू का परू ी तरह से खत््म हो जाएगी। सबसे सदस््य होते हैैं।
पहले इसमेें बदलाव की जरूरत है। z हित सघं र््ष: 'कार््यपालिका द्वारा नियक्ति ु यां' और 'कार््यपालिका देश मेें सबसे
z अन््य उपाय: आवश््यक बनि ु यादी ढाँचे का निर््ममाण जैसे अलग भवन, बड़़ा मक ु दमाकर््तता भी है'।
न््ययायाधिकारियोों की भर्ती के लिए स््थथानीय भाषा प्रशिक्षण आदि। z न््ययायिक प्राधिकार को कमजोर करना: विभिन््न अधिनियमोों के तहत विवादोों
ने बड़़े पैमाने पर उच््च न््ययायालय की जगह ले ली। अपीलीय न््ययायाधिकरण
के खिलाफ अपील, सीधे उच््चतम न््ययायालय मेें जाती है जो उच््च न््ययायालय
प्रमुख शब्दावलियाँ को दरकिनार कर देती है। (एल. चंद्रकुमार का मामला: उच््च न््ययायालय मेें
गांधीवादी सिद््धाांत, गैर-समझौता योग््य, विधिक सेवा प्राधिकरण पहली अपील)
अधिनियम (1987), विधिक सेवा समिति, न््ययायाधिकारी, ग्राम z स््ववायत्तता का अभाव: मल ू प्रशासनिक मत्रां लयोों के अधीन कार््य करना,
न््ययायालय, लोक अदालत, वैकल््पपिक विवाद निवारण (ADR), सवु िधाओ,ं बनि ु यादी ढाँचे और नियम-निर््ममाण के लिए उनकी दया पर निर््भर
मोबाइल न््ययायालय आदि। रहना।
z कम पारदर््शशिता: कार््यप्रणाली के बारे मेें जानकारी का अभाव, वेबसाइटेें
न्यायाधिकरण (भाग XIV-A; अनुच्छेद 323A, 323B) अक््सर कार््य नहीीं करती हैैं, अनत्तु रदायी होती हैैं या अद्यतन नहीीं होती हैैं।
हाल ही मेें, सर्वोच््च न््ययायालय के निर््णय के अनुसार, ‘न््ययायाधिकरण सरकार को z लंबित मामलोों की बढ़ती सख् ं ्यया: लंबित मामलोों की औसत अवधि 3.8
नीति बनाने का निर्देश नहीीं दे सकते।’ वर््ष है (उच््च न््ययायालयोों मेें लंबित मामलोों की औसत अवधि 4.3 वर््ष है)
z इसके अलावा, सर्वोच््च न््ययायालय ने कहा कि, ‘नीति निर््ममाण, न््ययायपालिका z क्षेत्राधिकार का अतिव््ययापी होना: न््ययायाधिकरण विभिन््न मत्रा ं लयोों और
के अधिकार क्षेत्र मेें नहीीं है।’ विभागोों के अधीन काम करते हैैं, जिससे न््ययायाधिकरणोों के प्रबंधन को लेकर
z परिभाषा: न््ययायाधिकरण एक अर््ध-न््ययायिक संस््थथा है जिसका गठन प्रशासनिक
भ्रम की स््थथिति पैदा होती है। साथ ही, कई न््ययायाधिकरण समान कार््य करते हैैं।
या कर-संबंधी विवादोों जैसे विभिन््न मामलोों मेें त््वरित, किफायती और विके न्द्रित z अत््यधिक विलंबित फैसले: कावेरी अतं रराज््ययीय जल विवाद न््ययायाधिकरण
विवाद समाधान के उद्देश््य से किया गया है। की स््थथापना 1990 मेें हुई थी और इसे वर््ष 2007 मेें अपना फै सला सनु ाने मेें
z सव ं ैधानिक प्रावधान: 42वेें सश ं ोधन अधिनियम, 1976 द्वारा इसे सवं िधान 17 साल लग गए। इसे सर्वोच््च न््ययायालय मेें चनु ौती दी गई। यह न््ययायाधिकरण
मेें स््वर््ण सिंह समिति की सिफारिश के आधार पर जोड़़ा गया। के त््वरित विवाद-समाधान तंत्र के उद्देश््य से भटकाव को दर््शशाता है।
आयाम अनुच््छछेद 323-A अनुच््छछेद 323-B आगे की राह
उद्देश््य प्रशासनिक अन््य मामलोों के लिए z विधि आयोग: न््ययायाधिकरण प्रणाली के कामकाज मेें सधु ार की प्रक्रिया।
न््ययायाधिकरण न््ययायाधिकरण z न््ययायाधीशोों की योग््यता: उच््च न््ययायालय के अधिकार क्षेत्र का हस््तताांतरण,
किसके द्वारा के वल संसद द्वारा संसद और राज््य दोनोों द्वारा उच््च न््ययायालय के न््ययायाधीश बनने के लिए योग््य।
स््थथापित z नियुक्ति: न््ययायाधिकरणोों मेें नियक्त
ु सभी सदस््योों की नियक्ति
ु , कार््यकाल और
पदानुक्रम नहीीं बनाया जा सकता है सेवा शर्ततों मेें एकरूपता सनिश्ु चित करने के लिए विधि मत्रा ं लय के अधीन
नोडल एजेेंसी।
न्यायाधिकरणोों के लाभ
z रिक्ति: अधिमानतः समय पर प्रक्रिया शरू ु करके छह महीने के भीतर रिक्तियोों
z लचीलापन: सिविल प्रक्रिया सहि ं ता और भारतीय साक्षष्य अधिनियम के तहत को भरना चाहिए।
कठोर नियमोों से बाधित नहीीं होना तथा प्राकृ तिक न््ययाय के सिद््धाांतोों का पालन z सदस््योों का चयन: सदस््योों का चयन निष््पक्ष होना तथा उसमेें सरकारी
करना। एजेेंसियोों की न््ययूनतम भागीदारी होना चाहिए। न््ययायिक तथा प्रशासनिक दोनोों
z न््ययायालयोों को राहत: अत््यधिक बोझ से दबी साधारण अदालतोों को राहत। सदस््योों के लिए अलग-अलग चयन समिति होना चाहिए।
z कम खर्चीला: पारंपरिक अदालतोों की तल ु ना मेें विवादोों को सल
ु झाने का यह z कार््यकाल: अध््यक्ष का कार््यकाल 3 वर््ष / 70 वर््ष और उपाध््यक्ष और सदस््योों
कम औपचारिक और तीव्र विकल््प है। का कार््यकाल 3 वर््ष / 67 वर््ष।

विवाद निवारण तंत 65


z अवस््थथापना एवं सल ु भता: देश के विभिन््न भागोों मेें खडं पीठ (बेेंच), संवैधानिक प्रावधान
अधिमानतः जहाँ उच््च न््ययायालय स््थथित हैैं। z अनुच््छछेद 262: इस अनच्ु ्छछे द के अनसु ार, जल से संबंधित विवादोों के मामले
z मूल सरं चना के साथ सरं ेखित करना: न््ययायाधिकरण के आदेश को उच््च मेें:
न््ययायालय की उस खडं पीठ के समक्ष चनु ौती दी जा सकती है, जिसका  संसद विधि द्वारा किसी अत ं र-राज््ययीय नदी या नदी घाटी के जल के उपयोग,
न््ययायाधिकरण पर क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र हो।
वितरण या नियंत्रण के सबं ंध मेें किसी विवाद या शिकायत के न््ययायनिर््णयन
न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम (2021) के लिए उपबंध कर सके गी।
 संसद कानन ू द्वारा यह प्रावधान कर सकती है कि न तो सर्वोच््च न््ययायालय
वित्त मंत्री निर््मला सीतारमण ने 2 अगस््त, 2021 को लोकसभा मेें न््ययायाधिकरण
और न ही कोई अन््य न््ययायालय ऊपर वर््णणित किसी विवाद या शिकायत
सुधार विधेयक, 2021 पेश किया। राष्टट्रपति की मंजूरी के बाद अब यह
अधिनियम बन गया है। के संबंध मेें अधिकारिता का प्रयोग करे गा।
z अनुच््छछेद 246: सवं िधान की 7वीीं अनसु चू ी मेें उल््ललिखित है-
विशेषताएँ
 राज््य के भीतर जल का उपयोग [राज््य सच ू ी] और
z न््ययायाधिकरण के सदस््योों की अहर््तताएँ:
 अत ं रराज््ययीय जल विनियमन का उद्देश््य [संघ सचू ी]
 उनकी सेवा शर्ततें (जैसे अहर््तताएँ, निष््ककासन और वेतन) के न्दद्र सरकार द्वारा

तय की जाएगं ी। z सस ं द ने दो कानून पारित किये हैैं -


z खोज एवं चयन समितियां:  नदी बोर््ड अधिनियम (1956): संबंधित राज््य सरकारोों के अनरु ोध पर

 न््ययायाधिकरणोों के अध््यक्ष और सदस््योों का चयन केें द्र सरकार द्वारा खोज-


उन््हेें सलाह देने के लिए केें द्र सरकार द्वारा एक नदी बोर््ड की स््थथापना
सह-चयन समिति की सिफारिशोों के आधार पर किया जाएगा। की जाती है।
 राज््य प्रशासनिक न््ययायाधिकरणोों के अपने स््वयं के खोज और चयन पैनल  अंतर््ररा ज््ययीय जल विवाद अधिनियम (1956): अत ं र््रराज््ययीय नदियोों और
होोंगे। नदी घाटियोों के जल से सबं ंधित विवादोों के न््ययायनिर््णयन के लिए एक
 के न्दद्र सरकार चयन समितियोों की सिफारिशोों पर यथाशीघ्र, अधिमानतः अधिनियम।
सिफारिश की तारीख से तीन महीने के भीतर कार््रवाई करे गी।
ऑनलाइन विवाद समाधान
z पात्रता और कार््यकाल: अधिनियम न््ययायाधिकरण के सदस््योों के लिए चार
वर््ष का कार््यकाल स््थथापित करता है। यह अध््यक्ष के लिए अधिकतम आयु परिभाषा: ऑनलाइन विवाद समाधान; डिजिटल प्रौद्योगिकी और वैकल््पपिक
70 वर््ष और अन््य सदस््योों के लिए 67 वर््ष निर््धधारित करता है। विवाद समाधान (ADR) की तकनीकोों, जैसे बातचीत, मध््यस््थता और सल ु ह
 नियक्तियो ु ों के लिए न््ययूनतम आयु 50 वर््ष है। का उपयोग करके विवादोों, विशेष रूप से लघु और मध््यम मूल््य के मामलोों
z एक समान वेतन और नियम: यह काननू न््ययायाधिकरणोों मेें खोज और चयन का समाधान है।
समितियोों के लिए एक समान वेतन और नियम स््थथापित करता है। वर््तमान स्थिति
z अधिकरण के सदस््योों को हटाने की भी अनुमति देना: इसमेें प्रावधान है z निम््न रैैंकिंग: ईज ऑफ डूइगं इडं ेक््स के अनसु ार, अनबु ंध प्रवर््तन मेें भारत
कि केें द्र सरकार खोज-सह-चयन समिति के सझु ाव पर किसी भी अध््यक्ष या 163 वेें स््थथान पर हैैं, जो 2015 के 186वेें तथा 2016 के 173वेें स््थथान से
सदस््य को पद से हटा सकती है। थोड़़ा सधु ार है।
z वेतन और भत्ते: काननू मेें यह निर््ददिष्ट किया गया है कि बर््खखास््त किए जाने z उच््च परियोजना लागत: इन आवश््यकताओ ं के लिए भारत का, समय
वाले न््ययायाधिकरण के अध््यक्ष और सदस््य अपने पद पर बने नहीीं रहेेंगे और (औसत 4 वर््ष) और लागत (परियोजना लागत के 30% से अधिक) के सदं र््भ
अपनी असामयिक समाप्ति के लिए तीन महीने के वेतन और भत्ते के बराबर मेें भी खराब प्रदर््शन रहा है।
मआ ु वजे के हकदार होोंगे। z श्रीकृष््ण समिति: श्रीकृ ष््ण समिति (2017) की रिपोर््ट के अनसु ार, हमने
मध््यस््थता के विरोधी होने की स््थथिति भी अर््जजित की है।
प्रमुख शब्दावलियाँ ऑनलाइन विवाद समाधान के लाभ
z न््ययाय तक पहुंच मेें वद्धि
ृ : ऑनलाइन समझौता बातचीत और मध््यस््थता
सशस्त्र बल न््ययायाधिकरण, स््वर््ण सिंह समिति, हित संघर््ष , एल.
जैसे ODR साधन, पक्षषों के बीच सहमति पर आधारित होते हैैं, जिससे विवाद
चंद्रकुमार मामला आदि।
समाधान प्रक्रिया पक्षषों के लिए कम संघर््षपर्ू ्ण और कम जटिल हो जाती है,
जिससे न््ययाय तक पहुचं बढ़ जाती है।
अंतर - राज्यीय जल विवाद
z समाज के कानूनी स््ववास््थ््य मेें सधु ार: विवाद समाधान प्रक्रियाओ ं तक
हाल ही मेें, केें द्रीय मंत्रिमंडल ने अंतर््रराज््ययीय नदी जल विवाद (ISRWD) आसान पहुचं से समाज के न््ययायिक स््ववास््थ््य मेें सधु ार होगा, क््योोंकि इससे यह
अधिनियम, 1956 के तहत कृ ष््णणा जल विवाद न््ययायाधिकरण-II (KWDT-II) सनिश्
ु चित होगा कि व््यक्ति और व््यवसाय अपने अधिकारोों के प्रति जागरूक हैैं
के संदर््भ की शर्ततों को मंजरू ी दी। तथा उनके पास उन््हेें लागू करने के लिए साधन हैैं।

66  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


z सवु िधाजनक और त््वरित विवाद समाधान: इससे यात्रा का समय और आगे की राह
उससे जड़ु ़ी लागत कम होगी। विवादोों को हल करने के लिए एक तेज़ और z डिजिटल कनेक््टटिविटी और डिजिटल साक्षरता मेें सध ु ार: डिजिटल इडि
ं या
अधिक सवु िधाजनक तंत्र प्रदान करके , ODR देरी को कम करने मेें मदद कर मिशन और भारतनेट मिशन निर््बबाध डिजिटल कनेक््टटिविटी हासिल करने मेें
सकता है। सहायक हो सकते हैैं। पीएमजीदिशा (PMGDISHA) का लक्षष्य ग्रामीण क्षेत्ररों
z लागत प्रभावी: ODR मेें विवादोों को सल ु झाने मेें लगने वाले समय को कम मेें डिजिटल साक्षरता मेें सधु ार करना है।
करके और काननू ी परामर््श की आवश््यकता को समाप्त करके , काननू ी लागत z सरकारी मुकदमे बाजी तंत्र के लिए ODR को अपनाना: विधि एवं न््ययाय

को कम करने की क्षमता है। मत्रा


ं लय के अनसु ार, सरकारी विभाग लगभग '46 प्रतिशत' अदालती मामलोों
z बेइरादा पूर््ववाग्रहोों को दूर करना: विवादोों को हल करते समय, ODR मेें पक्षकार हैैं।
तकनीक तटस््थ के अतं र््ननिहित पर््ववाग्र
ू ह को कम करती है। ODR प््ललेटफ़़ॉर््म z क्षमता निर््ममाण: प्रौद्योगिकी अपनाने को आसान बनाने के लिए ODR तंत्र

लिंग, सामाजिक-आर््थथिक स््थथिति, नृजातीयता, नस््ल और अन््य कारकोों से से जड़ु ़े कर््मचारियोों का समय-समय पर कौशल उन््नयन।
संबंधित ऑडियो-विज़अ ़ु ल संकेतोों को अलग करते हैैं, और विवादित पक्षषों z पुराने कानूनोों को सदृ ु ढ़ करना और ODR तंत्र का विनियमन करना:
द्वारा प्रदान किए गए दावोों और सचू नाओ ं के आधार पर संघर्षषों के समाधान यह महत्तत्वपर्ू ्ण है कि नियामक दृष्टिकोण अतिम
ं उपयोगकर््तताओ ं के अधिकारोों
मेें सहायता करते हैैं। की रक्षा करे , साथ ही अत््यधिक विनियमन से बचना चाहिए जोकि नवाचार
को बाधित करता है।
विश्व के प्रमुख उदाहरण
सरकारी एजेेंसियोों को शिकायतोों के समाधान के साधन के रूप मेें ODR की
z जब भारत वैश्विक निवेश को आमत्रि ं त कर रहा था, सिंगापरु जैसे छोटे देश ने जाँच करनी चाहिए। सरकारी संस््थथाओ ं द्वारा ODR को सक्रिय रूप से अपनाने
1990 के दशक मेें सिंगापरु अतं रर््रराष्ट्रीय मध््यस््थता केें द्र की स््थथापना की थी। से न के वल इस प्रक्रिया मेें विश्वास पैदा होगा, बल््ककि नागरिकोों को सरकार के
z तब से, यह एक वैश्विक मध््यस््थता शक्ति के रूप मेें उभरा है, जैसा कि साथ विवादोों को सुलझाने का एक सुविधाजनक और लागत प्रभावी तरीका
'अनबु ंधोों के प्रवर््तन' मेें इसकी प्रथम स््थथान की रैैंकिंग से स््पष्ट है। भी मिलेगा।
z विडंबना यह है कि भारतीय कंपनियां इसके सबसे महत्तत्वपर्ू ्ण ग्राहकोों मेें
से एक हैैं। प्रमुख शब्दावलियाँ
ऑनलाइन विवाद समाधान (ODR) से जुड़़ी चुनौतियााँ डिजिटल इंडिया मिशन, भारत नेट मिशन, नदी बोर््ड, समवर्ती सूची,
z पुरानी कानूनी प्रक्रियाएँ: परु ानी प्रक्रिया, एन््ड-टू- एन््ड (End -to- End) अंतर््रराज््ययीय परिषद, मिहिर शाह की रिपोर््ट, नदियोों को जोड़ना,
ऑनलाइन विवाद समाधान प्रक्रिया के साथ अच््छछी तरह से काम नहीीं करती सहकारी संघवाद, श्रीकृ ष््ण समिति आदि।
है और ODR के लिए बाधाएँ उत््पन््न करती है।
विगत वर्षषों के प्रश्न
 इसके अलावा, दस््ततावेजोों का नोटरीकरण, 1956 के नोटरी नियम के तहत
z “केें द्रीय प्रशासनिक अधिकरण, जिसकी स््थथापना केें द्रीय सरकार के कर््मचारियोों
के वल व््यक्तिगत रूप से ही संभव है, इसलिए ऑनलाइन सहायता प्राप्त
द्वारा या उनके विरुद्ध शिकायतोों एवं परिवादोों के निवारण हेतु की गई थी,
करना समस््ययाग्रस््त होगा।
आजकल एक स््वतंत्र न््ययायिक प्राधिकरण के रूप मेें अपनी शक्तियोों का प्रयोग
z डिजिटल अवसरं चना: ODR को अपनाने के लिए देश भर मेें उच््च बैैंडविड्थ कर रहा है।” व््ययाख््यया कीजिए। (2019)
इटं रनेट कनेक््शन के साथ महत्तत्वपर्ू ्ण तकनीकी अवसंरचना की आवश््यकता z आप इस मत से कहाँ तक सहमत हैैं कि अधिकरण सामान््य न््ययायालयोों की
होगी। अधिकारिता को कम करते हैैं? उपर््ययुक्त को दृष्टिगत रखते हुए भारत मेें अधिकरणोों
 डिजिटल इडि ं या मिशन और भारतनेट मिशन, निर््बबाध डिजिटल कनेक््टटिविटी की संवैधानिक वैधता तथा सक्षमता की विवेचना कीजिए।  (2018)
हासिल करने मेें सहायक हो सकते हैैं। z अर््ध-न््ययायिक (न््ययायिकवत)् निकाय से क््यया तात््पर््य है? ठोस उदाहरणोों की
z ODR के बारे मेें जागरूकता की कमी : ODR के बारे मेें समझ व जागरूकता सहायता से स््पष्ट कीजिए।  (2016)
की कमी के कारण, वादी और उनके वकील मक ु दमा दायर करने को प्राथमिकता z राष्टट्रपति द्वारा हाल मेें प्रख््ययापित अध््ययादेश के द्वारा माध््यस््थम और सल
ु ह
देते हैैं। ODR मेें कम स््तर के भरोसे वाले व््यवसाय ODR का कम उपयोग अधिनियम, 1996 मेें क््यया प्रमख ु परिवर््तन किए गए हैैं? यह भारत के विवाद
करेेंगे। समाधान यांत्रिकत््व को किस सीमा तक सधु ारे गा? चर््चचा कीजिए। (2015)
z गोपनीयता सबं ंधी मुद्दे: ऑनलाइन छद्मवेश, ODR प्रक्रियाओ ं के दौरान z अतं र-राज््य जल विवादोों का समाधान करने मेें सवं िधानिक प्रक्रियाएँ समस््ययाओ ं
दिए गए कागजात और डेटा के प्रसार के माध््यम से गोपनीयता का उल््ललंघन, को संबोधित करने व हल करने मेें असफल रही हैैं। क््यया यह असफलता
और डिजिटल साक्षष्य या डिजिटल रूप से प्रेषित परु स््ककारोों/समझौतोों के साथ संरचनात््मक अथवा प्रक्रियात््मक अपर््ययाप्तता अथवा दोनोों के कारण हुई है?
छे ड़छाड़ गोपनीयता से संबंधित कुछ मद्देु हैैं। विवेचना कीजिए।  (2013)

विवाद निवारण तंत 67


स्थानीय स्वशासन
14 (भाग IX, भाग IX-ए)
कार््य
पंचायती राज व्यवस्था
z स््थथानीय निकायोों को कार्ययों का अपर््ययाप्त हस््तताांतरण: अनच्ु ्छछे द 243 G
भारत मेें स््थथानीय स््वशासन, स््थथानीय निकायोों को अपने अधिकार क्षेत्र पर शासन
राज््य विधानसभाओ ं को कार्ययों का हस््तताांतरण करने के लिए कहता है।
करने, लोकतांत्रिक मल्ू ्योों और जमीनी स््तर पर विकास को बढ़़ावा देने का
 उदाहरण: जलापर््तति ू , स््वच््छता, लिंक रोड, सड़कोों मेें प्रकाश व््यवस््थथा,
अधिकार देता है। यह स््थथानीय स््तर पर प्रभावी शासन, नागरिक भागीदारी और
आवश््यक सेवाओ ं का वितरण सुनिश्चित करता है। सामदु ायिक परिसंपत्तियोों का रखरखाव आदि जैसे प्रमख ु कार््य अभी भी
राज््य सरकारोों के अधीन हैैं।
पंचायती राज सरकार के समक्ष आने वाले मुद्दे और सहायक का सिद््धाांत लोकतांत्रिक संरचना के लिए फाउंडेशन
चुनौतियााँ
स््थथानीय नेतृत््व पीआरआईएस का महत्तत्व महिला सशक्तीकरण
हाल ही मेें, भारतीय रिज़र््व बैैंक (RBI) ने “पंचायती राज संस््थथाओ ं का वित्त”
शीर््षक से अपनी रिपोर््ट जारी की। रिपोर््ट मेें वर््ष 2020-21 से 2022-23 के लिए सहायक का सिद््धाांत लोकतांत्रिक संरचना के लिए फाउंडेशन
पंचायती राज संस््थथाओ ं की राजकोषीय स््थथिति पर चर््चचा की गई है।
द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग मेें पंचायतोों की प्रभावहीनता के लिए 3Fs z अक्रियाशील जिला योजना समितियां: ग्रामीण और शहरी क्षेत्ररों की
(कार््य (Functions), निधि (Funds) और पदाधिकारी (Functionaries) का एकीकृ त योजना के लिए संवैधानिक तंत्र के रूप मेें जिला योजना समितियोों
उल््ललेख किया गया है। की उपलब््धता के बावजदू , अधिकांश राज््योों ने उन््हेें कार््ययात््मक रूप से सशक्त
निधि (Funds)
नहीीं बनाया है।
z महिलाओ ं को नाममात्र का प्रतिनिधित््व: अधिकांश राज््योों मेें अब पचं ायतोों
z अपर््ययाप्त निधि: अपनी स््वयं की अल््प निधि तथा राज््योों से अपर््ययाप्त हस््तताांतरण
मेें 50% सीटेें महिलाओ ं के लिए आरक्षित कर दी गयी हैैं, लेकिन अभी भी
के कारण, कई राज््योों मेें पचं ायती राज सस्ं ्थथाएँ उच््च स््तरीय सरकारोों की एजेेंट
यह समस््यया बनी हुई है कि महिलाएँ नाममात्र के पदोों पर बनी हुई हैैं और उन
मात्र बनकर रह गई हैैं।
पदोों पर भी उनके पति ही नेतत्ृ ्व संभाल रहे हैैं।
z राजस््व जुटाने के लिए अपर््यया प्त शक्तियाँ: उपकर और कर लगाने के मामले
मेें पंचायती राज संस््थथाओ ं के पास सीमित शक्तियाँ हैैं। इसके अलावा, वे पदाधिकारी
आम तौर पर जनता का समर््थन खोने के डर से आवश््यक धन इकट्ठा करने z अपर््ययाप्त जनशक्ति: नगरपालिका प्रशासन के पास सबसे बनि ु यादी कर््तव््योों को
मेें हिचकिचाते हैैं। संभालने के लिए भी पर््ययाप्त लोग नहीीं हैैं। इसके अतिरिक्त, अधिकांश कर््ममियोों
z राज््य वित्त आयोग: कई राज््य सरकारेें अनच् ु ्छछे द 243 (I) के तहत समय पर को उच््च स््तरीय विभागोों द्वारा काम पर रखा जाता है और स््थथानीय सरकारोों
राज््य वित्त आयोग की नियक्ति ु करने मेें विफल रही हैैं। को प्रतिनियक्त ु किया जाता है, वे प्रतिनियक्ति ु के लिए उत्तरदायी महससू नहीीं
 15वेें वित्त आयोग ने स््थथानीय निकायोों के लिए अनद ु ान प्राप्त करने हेतु करते हैैं; इसके बजाय, वे एक विभागीय प्रणाली के एक भाग के रूप मेें काम
मार््च 2024 से पहले राज््योों मेें राज््य वित्त आयोगोों की स््थथापना करना करते हैैं जो ऊर््ध्ववाधर रूप से एकीकृ त है।
अनिवार््य कर दिया है। z जवाबदेही तंत्र का अभाव: सार््वजनिक निधियोों के प्रति जवाबदेही, सार््थक
z स््थथानीय लोगोों पर कर लगाने मेें अनिच््छछु क: ग्राम पंचायतेें न तो स््थथानीय सार््वजनिक वित्त का मल ू है। इस क्षेत्र मेें पर््ययाप्त प्रगति नहीीं हुई है।
लोगोों पर कर लगाने मेें सक्रियता दिखाती हैैं और न ही समय-समय पर मौजदू ा  15वेें वित्त आयोग ने स््थथानीय निकायोों को अनद ु ान प्राप्त करने के लिए प्रवेश
कर को संशोधित करती हैैं, परिणामस््वरूप, वे स््थथायी रूप से धन हस््तताांतरण स््तर की शर्ततों मेें से एक के रूप मेें अनंतिम और लेखापरीक्षित दोनोों खातोों
पर निर््भर रहती हैैं। को सार््वजनिक डोमेन मेें ऑनलाइन उपलब््ध कराना शामिल किया है।
पंचायतोों और नगर पालिकाओ ं के वित्तीय तंत्र z विलंबित चुनाव प्रक्रिया: पंचायती राज संस््थथाओ ं के चनु ावोों मेें देरी एक
z अनुदान: केें द्र सरकार (अनच् ु ्छछे द 280) और राज््य सरकार द्वारा आम बात होती जा रही है, जिससे पंचायती राज संस््थथाओ ं की प्रभावशीलता
z राज््य वित्त आयोग के आधार पर राज््य सरकार से हस््तताांतरण। कम होती जा रही है। उदाहरण के लिए, मध््य प्रदेश, हरियाणा और तमिलनाडु
z ऋण: राज््य सरकार से मेें पचं ायती राज सस्ं ्थथाओ ं के चनु ाव मेें देरी हुई है।
z आत ं रिक संसाधन सृजन (कर और गैर-कर) z पंचायती राज सस्ं ्थथाओ ं का राजनीतिकरण: अब पचं ायती राज सस्ं ्थथाओ ं
z कार््य क्रम-विशिष्ट आवंटन: के न्दद्र प्रायोजित योजनाओ ं और अतिरिक्त को के वल राजनीतिक दलोों, विशेषकर राज््य मेें सत्तारूढ़ दल की संगठनात््मक
के न्द्रीय सहायता के अतं र््गत। शाखा के रूप मेें देखा जाता है।
पंचायती राज संस्थाओं को डिजिटल पंचायतेें : ई-ग्रामस््वराज PFMS इटं रफेस
पंचायती राज संस््थथाओ ं (PRIs) मेें ई-गवर्ननेंस को मजबतू करने के लिए
सशक्त बनाने के लिए सरकारी प्रयास
z

ई-ग्राम स््वराज विकसित किया गया है। यह पंचायती राज के लिए एक


z सपं त्ति अधिकार सनिश् ु चित करना: मत्रां लय ने ड्रोन सर्वेक्षण तकनीक का सरलीकृ त कार््य-आधारित लेखा अनप्रु योग है।
उपयोग करके ग्रामीण लोगोों के घरोों की संपत्ति का रिकॉर््ड तैयार करने के लिए z ई-ग्राम स््वराज-PFMS इटं रफे स (eGSPI) - पारदर््शशिता और जवाबदेही
'स््ववामित््व'(SVAMITVA) नामक एक योजना शरू ु की है। बढ़़ाने के लिए इसे 2018 मेें लॉन््च किया गया था। केें द्रीय वित्त आयोग द्वारा
z पंचायती राज सस्ं ्थथाओ ं का क्षमता निर््ममाण: पंचायती राज संस््थथाओ ं की किए गए व््ययोों के लिए पंचायतोों द्वारा ऑनलाइन भगु तान को सवु िधाजनक
क्षमता विकसित करने और उन््हेें मजबतू बनाने के लिए 1 अप्रैल 2018 को बनाने के लिए eGS और सार््वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली के लेखा
राष्ट्रीय ग्राम स््वराज अभियान (RGSA) की एक नई योजना शरू ु की गई। मॉड्यल ू को एकीकृ त किया गया है।
z ई-ग्राम स््वराज: यह पंचायतोों की विश्वसनीयता बढ़़ाने मेें सहायता करे गा,
जिससे पंचायती राज संस््थथाओ ं को अधिक धनराशि का हस््तताांतरण होगा प्रमुख शब्दावलियाँ
और साथ ही उच््च अधिकारियोों द्वारा प्रभावी निगरानी के लिए एक मचं
प्रदान किया जाएगा। मोोंटेग््ययू-चेम््सफोर््ड सधु ार, 3Fs (कार््य (Function), निधि (Fund)
और पदाधिकारी (Functionaries)), केेंद्र प्रायोजित योजनाएँ,
z ग्राम पंचायत विकास योजना (GPDP): यह पंचायती राज मत्रा ं लय
राष्ट्रीय ग्राम स््वराज अभियान आदि।
(MoPR) द्वारा सभी ग्राम पचं ायतोों और अन््य स््थथानीय स््वशासन निकायोों
मेें किया जाने वाला एक वार््षषिक अभ््ययास है जिसके अतं र््गत लोक योजना पंचायती राज संस्थाओं मेें महिलाओं की भूमिका
अभियान के तहत भागीदारीपर्ू ्ण तरीके से ग्राम पंचायत स््तर पर विकास योजनाएँ
तैयार की जाती हैैं। पंचायती राज संस््थथाओ ं मेें, महिलाओ ं के लिए, लगभग एक तिहाई (1/3)
z क्षमता निर््ममाण - पंचायत सशक्तीकरण अभियान (CB-PSA): इसने निर््ववाचन क्षेत्र आरक्षित किये गये हैैं। इसके अतिरिक्त, यह सार््वजनिक जीवन
राज््योों/संघ राज््य क्षेत्ररों को पंचायत के निर््ववाचित प्रतिनिधियोों के क्षमता मेें महिलाओ ं की भागीदारी को बढ़़ावा देने की गारंटी देता है। इसका उद्देश््य
निर््ममाण और प्रशिक्षण के लिए सहायता प्रदान की, ताकि वे विकास कार््यक्रमोों महिलाओ ं के लिए एक मौलिक रूप से ठोस राष्ट्रीय नीति विकसित करना है।
की योजना और कार््ययान््वयन सहित अपने कार्ययों को प्रभावी ढंग से और सकारात्मक परिणाम और सशक्तीकरण:
कुशलतापर््वू क निष््पपादित कर सकेें । z पंचायती राज संस््थथाओ ं मेें आरक्षण प्रणाली के कार््ययान््वयन से महिलाएँ अधिक
महत्त्वपूर््ण प्रयास शक्तिशाली होोंगी तथा समाज मेें उनकी आर््थथिक, सामाजिक और राजनीतिक
स््थथिति बेहतर होगी।
z वास््तविक भावना मेें राजकोषीय सघं वाद: द्वितीय प्रशासनिक सधु ार यह पारंपरिक रूप से परुु ष-प्रधान संस््ककृति के भीतर उदारीकरण की अनमति
z ु
आयोग ने सिफारिश की थी कि सरकार के प्रत््ययेक स््तर के कार्ययों का स््पष्ट देता है और लैैंगिक समानता के साथ सदृु ढ़ शासन पर एक नया दृष्टिकोण
सीमांकन होना चाहिए। पंद्रहवेें वित्त आयोग (XV FC) ने 2020-21 के लिए प्रस््ततुत करता है।
अपनी अतं रिम रिपोर््ट और 2021-2026 के लिए अतिम ं रिपोर््ट मेें पचं ायतोों के
z आरक्षण प्रणाली के कारण महिलाओ ं को राजनीति मेें भाग लेने के लिए
सभी तीन स््तरोों के लिए क्रमशः 60,750 करोड़ रुपये और 2,36,805 करोड़
प्रोत््ससाहित किया जाता है।
रुपये की राशि की सिफारिश की।
z इससे स््ववास््थ््य, शिक्षा, पारिवारिक आय तथा अन््य क्षेत्ररों मेें समग्र रूप से
z जिला स््तरीय योजना: ग्राम और वार््ड सभाओ ं मेें लोगोों की भागीदारी के
सधु ार हुआ है।
माध््यम से गांव, मध््यवर्ती और जिला स््तर से प्राप्त जमीनी स््तर के इनपटु के
z इस संशोधन के पारित होने के परिणामस््वरूप पंचायती राज प्रणाली ने अब
आधार पर जिला योजना बनानी चाहिए।
महिलाओ ं के अधिकारोों को मान््यता दे दी है, जो सरकार मेें योगदान देने के
z लेखा परीक्षा समितियां: वित्तीय आक ं ड़ों की सटीकता, आतं रिक नियंत्रण
लिए महिलाओ ं की क्षमता को साकार करने की दिशा मेें एक महत्तत्वपर्ू ्ण कदम है।
की प्रभावशीलता, प्रासंगिक काननू के अनपु ालन और स््थथानीय निकायोों के
z इससे ग्रामीण स््तर पर पंचायतोों मेें योजना बनाने, निर््णय लेने और प्रणाली के
प्रत््ययेक सदस््य के नैतिक चरित्र की निगरानी के लिए राज््य सरकारोों द्वारा जिला
क्रियान््वयन मेें महिलाओ ं की भागीदारी संभव हो जाती है।
स््तर पर इनकी स््थथापना की जा सकती है।
z वित्तीय सशक्तीकरण: पंचायतोों को अपने राजस््व के स्रोत को बढ़़ाने के लिए चुनौतियााँ और मुद्:दे
अन््य गतिविधियोों के साथ-साथ; कर, पथकर, उपयोगकर््तता शल्ु ्क, फीस आदि z पंचायत पति राज व््यवस््थथा: छद्म राजनीति और लिंग आधारित भेदभाव के
लगाने और एकत्र करने के लिए सशक्त बनाने की आवश््यकता है। कारण यह समस््यया देखी जा रही है।
z पथ ृ क कै डर: पचं ायत अधिकारियोों का एक पृथक कै डर स््थथापित किया जाना z महिला हिंसा: चरम हिसं ा एक बाधा थी जिसे महिला सरपंचोों को अपने
चाहिए जो निर््ववाचित प्राधिकारी के अधीन हो, न कि उन पर प्रभत्ु ्व जमाने समदु ायोों मेें स््थथापित सत्ता संरचनाओ ं को चनु ौती देने के लिए पार करना
वाला हो। पड़़ा।

स्थानीय स्वशासन (भाग IX, भाग I 69


z अवसर का लाभ उठाना: इसके अतिरिक्त, यह भी देखा गया है कि परिवार नगर पालिकाओ ं से संबंधित मुद्दे
के परुु ष सदस््य चनु ाव लड़ते समय अपने परिवार की महिलाओ ं की स््थथिति z शहरी स््थथानीय निकायोों की कम कार््ययात््मक स््ववायत्तता: 74वेें सवं िधान
का लाभ उठाते हैैं, जिससे परुु षोों को पंचायती राज संस््थथाओ ं पर हावी होने संशोधन द्वारा शहरी स््थथानीय निकायोों के लिए 12वीीं अनसु चू ी मेें 18 कार््य
के लिए महिलाओ ं का उपयोग करने का मौका मिल जाता है। सचू ीबद्ध किये गये हैैं जिन््हेें शहरी स््थथानीय निकायोों द्वारा निष््पपादित किया
z जातीय भेदभाव: दलित महिला पंचायत नेताओ ं के लिए ग्राम पंचायत जाना आवश््यक है, लेकिन कई राज््योों ने शहरी स््थथानीय निकायोों को सभी
कार््ययालय जाना और ग्राम सभा का प्रबंधन और नियंत्रण करना प्रतिबंधित कार््य आवंटित नहीीं किए हैैं।
था। प्रतिनिधि के रूप मेें उनके पति कार््ययालय के प्रभारी थे।  कर््ननाटक और के रल जैसे कई राज््योों मेें अभी भी जलापर््तति ू का प्रबंधन
नगर पालिकाएँ संबंधित राज््य सरकारोों द्वारा किया जाता है।
z अपर््ययाप्त राजस््व: संपत्ति कर, शहरी स््थथानीय निकायोों (ULBs) के लिए
हाल ही मेें, क्षमता निर््ममाण आयोग (CBC) ने आवास और शहरी मामलोों के
राजस््व का सबसे बड़़ा स्रोत है। हालांकि, व््ययापक छूट, संपत्ति के कम मल्ू ्ययाांकन
मंत्रालय (MoHUA) के सहयोग से भारत मेें शहरी स््थनीय निकायोों (ULBs)
और अधरू े भमि ू रजिस््टरोों के कारण कर संग्रह कम है।
की क्षमता निर््ममाण के लिए एक एकीकृ त दृष्टिकोण को बढ़़ावा देने हेतु “शहरी
z सत्ता का सके ं ें द्रण: शहरी निकायोों मेें सत्ता एक ही नगर निकाय (चाहे वह नगर
स््थनीय निकायोों (ULBs) की क्षमता निर््ममाण पर राष्ट्रीय कार््यशाला” का
निगम, नगर परिषद या नगर पचं ायत हो) मेें समेकित होती है।
आयोजन किया। इस कार््यशाला मेें निम््न प्रमख ु पहलोों का शभु ारंभ किया गया:
z आवास और शहरी मामलोों के मत्रा ं लय (MoHUA) की क्षमताओ ं को बढ़़ाने z शहरी नागरिकोों के साथ सपं र््क का अभाव: शहरी क्षेत्ररों मेें नागरिकोों को
के लिए वार््षषिक क्षमता निर््ममाण योजना (ACBP)। निर््णयन प्रक्रिया मेें शायद ही कभी शामिल किया जाता है, विशेष रूप से समाज
के उपेक्षित और सभु द्ये (असरु क्षित) वर्गगों को, जो वास््तव मेें शहरीकरण के
z 6 पायलट शहरी स््थथानीय निकायोों (ULBs) अर््थथात अहमदाबाद, भव ु नेश्वर,
उभरते संकट से सबसे अधिक प्रभावित हैैं।
मैसरू , राजकोट, नागपरु और पणु े के लिए वार््षषिक क्षमता निर््ममाण योजना
(ACBP)। शहरी स्थानीय निकायोों के क्षमता निर्माण हेतु उठाए गए कदम
शहरी स्थानीय निकायोों के लिए क्षमता निर्माण की आवश्यकता z राष्ट्रीय शहरी डिजिटल मिशन: इसका उद्देश््य देश मेें डिजिटल शासन के
z भारत की बढ़ती शहरी आबादी की आवश््यकताओ ं को पूरा करना, लिए एक ढांचा प्रदान करने हेतु 'पीपल ु , प्रोसेसेज एडं प््ललेटफॉर््म' के तीन स््ततंभोों
जिसके वर््ष 2018 के 460 मिलियन से वर््ष 2050 तक लगभग दोगनु ा होकर पर काम करते हुए एक साझा डिजिटल बनि ु यादी ढाँचे का निर््ममाण करना है।
876 मिलियन हो जाने की उम््ममीद है। z जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (JNNURM):
z बॉटम-अप योजना के माध््यम से सामाजिक और आर््थथिक विकास सनिश् ु चित शहरी बनि ु यादी ढाँचे और सेवा वितरण तंत्र मेें दक्षता, सामदु ायिक भागीदारी
करके क्षेत्रीय आकांक्षाओ ं से निपटना । और नागरिकोों के प्रति शहरी स््थथानीय निकाय/अर््ध-सरकारी एजेेंसियोों की
z स््ममार््ट सिटी मिशन, अमृत मिशन आदि योजनाओ ं के सफल एवं प्रभावी जवाबदेही पर ध््ययान केें द्रित करता है।
क्रियान््वयन हेतु। z म््ययूनिसिपल बांड: यह एक प्रकार के वित्तीय साधन हैैं जो भारत मेें नगर
निगम और अन््य संबद्ध निकाय धन जटु ाने के लिए जारी करते हैैं।
स्थानीय स्वशासन का प्रभाव
आगे की राह
z सत्ता का विकेें द्रीकरण: स््थथानीय स््वशासन ने स््थथानीय समदु ायोों को निर््णय
लेने और नीतियोों को लागू करने का अधिकार दिया है जो सीधे उनके क्षेत्ररों z शहरी अर््थव््यवस््थथा को बढ़़ावा देना: प्रत््ययेक शहर को अर््थव््यवस््थथा की
को प्रभावित करते हैैं। एक अलग इकाई के रूप मेें मान््यता दी जानी चाहिए। बड़़े शहरोों मेें, नगरीय
आर््थथिक परिषद् (सिटी इकोनॉमिक काउंसिल), विशिष्ट परियोजनाओ ं की
z सामुदायिक भागीदारी: उदाहरण के लिए, शहरी क्षेत्ररों मेें वार््ड समितियां प्रगति मेें तेजी लाने, व््यवसाय करने मेें आसानी बढ़़ाने तथा शहर मेें निवेश
निवासियोों को अपनी चितं ाओ ं को व््यक्त करने तथा सधु ार सझु ाने के लिए को बढ़़ावा देने के लिए व््यवसायोों और सरकारोों के बीच समाशोधन गृह के
एक मचं प्रदान करती हैैं। रूप मेें कार््य कर सकती हैैं।
z प्रभावी सेवा वितरण: उदाहरण के लिए, जलापर््तति ू , स््वच््छता आदि z निधि, कार््य और पदाधिकारी (F-3) के हस््तताांतरण को प्रोत््ससाहित
जैसी आवश््यक सेवाएँ प्रदान करने हेतु उत्तरदायी ग्राम पंचायतेें स््थथानीय करना: राज््य सरकारोों को 12वीीं अनसु चू ी के कार्ययों (Function), निधियोों
आवश््यकताओ ं के प्रति बेहतर जवाबदेही सनिश् ु चित करती हैैं। (Fund) और पदाधिकारियोों (Functionaries) को शहरी स््थथानीय निकायोों
z जमीनी स््तर पर विकास: उदाहरण के लिए, जिला योजना समितियां जिला मेें स््थथानांतरित करने के लिए प्रोत््ससाहित किया जा सकता है।
स््तरीय विकास योजनाएँ तैयार करने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का निभाती हैैं, जो z शहरी स््थथानीय निकायोों और नागरिक एजेेंसियोों के वित्त को मजबूत
स््थथानीय आबादी की विशिष्ट आवश््यकताओ ं और प्राथमिकताओ ं को संबोधित करना: इसमेें बाजार-उन््ममुख राजस््व मॉडल, मल्ू ्य अधिग्रहण तकनीक,
राजकोषीय विकेें द्रीकरण, मध््यम अवधि की राजकोषीय योजनाएँ, शहरी
करती हैैं।
बनि ु यादी ढाँचे और सेवाओ ं मेें सार््वजनिक-निजी सहयोग और ऑडिटेड बैलेेंस
z उपेक्षित समुदायोों का सशक्तीकरण: उदाहरण के लिए, स््थथानीय निकायोों मेें शीट और प्रदर््शन MIS रिपोर््ट के माध््यम से वित्तीय जवाबदेही शामिल है।
अनसु चिू त जातियोों, अनसु चि
ू त जनजातियोों और महिलाओ ं के लिए सीटोों का इसमेें परिसंपत्तियोों, विशेष रूप से भमि ू और भवनोों पर रिटर््न को अनक
ु ू लित
आरक्षण उनकी सक्रिय भागीदारी सनिश् ु चित करता है। करना भी शामिल है।

70  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


z नागरिक भागीदारी: नागरिकोों और सरकारोों के बीच अधिक विश्वास, बेहतर z असगं त महापौर कार््यकाल: भारत मेें, आठ सबसे बड़़े शहरोों मेें से पांच
स््थथिरता, बेहतर सेवा वितरण और जवाबदेही के लिए नागरिक भागीदारी को सहित 17% शहरोों मेें महापौर का कार््यकाल पांच वर््ष से कम है।
बढ़़ाने की आवश््यकता है।  महापौर, उप महापौर और स््थथायी समितियोों का कार््यकाल पांच वर््ष से
 वार््ड समितियोों और क्षेत्र सभाओ ं को प्रौद्योगिकी-सक्षम 'ओपन सिटीज
कम होने के कारण बार-बार चनु ाव होते हैैं।
फ्रेमवर््क ' के साथ सक्रिय किया जाना चाहिए तथा फीडबैक और रिपोर््टििंग
z राज््य निर््ववाचन आयोग के पास पर््ययाप्त शक्ति का अभाव: राज््य निर््ववाचन
के लिए डिजिटल उपकरणोों का उपयोग किया जाना चाहिए।
आयोग के पास पर््ययाप्त शक्ति का अभाव है यही कारण है कि वह वार््ड सीमाओ ं
भारत मेें नगर पालिकाएँ स््थथानीय शासन की महत्तत्वपूर््ण इकाइयोों के रूप मेें काम का परिसीमन परू ा करने तथा महिलाओ ं के साथ-साथ उपेक्षित समदु ायोों के लिए
करती हैैं, जो शहरी क्षेत्ररों के प्रशासन और विकास के लिए जिम््ममेदार हैैं। भारत आरक्षण अधिसचि ू त करने के लिए राज््य सरकारोों पर निर््भर हैैं।
मेें सतत और समावेशी शहरी विकास सुनिश्चित करने के लिए नगरपालिका
शासन की प्रभावशीलता और दक्षता को बढ़़ाने के लिए निरंतर प्रयासोों की आगे की राह
आवश््यकता है। z परिसीमन की शक्ति: परिसीमन और आरक्षण प्रक्रिया के संचालन की शक्ति
प्रत््ययेक राज््य मेें राज््य चनु ाव आयोग या एक स््वतंत्र परिसीमन आयोग मेें
निहित होनी चाहिए।
प्रमुख शब्दावलियाँ
z राज््य चुनाव आयोग को सशक्त बनाना: राज््य चनु ाव आयोग को मजबतू
पंचायत पति राज व््यवस््थथा, क्षमता निर््ममाण आयोग, राज््य वित्त बनाना तथा उन््हेें सम््पपूर््ण चनु ाव प्रक्रिया मेें अधिक महत्तत्वपर्ू ्ण भमि
ू का प्रदान
आयोग, शक्ति का विके न्द्रीकरण, सामुदायिक भागीदारी, वार््ड करना, समय पर, स््वतंत्र तथा निष््पक्ष नगरपालिका चनु ाव सनिश् ु चित करने मेें
समितियां, जिला योजना समितियां, कार््यया त््मक स््ववायत्तता, नगर मदद कर सकता है।
आर््थथिक परिषदेें, मूल््य अधिग्रहण तकनीक, मध््यम अवधि राजकोषीय
 एकल मतदाता सच ू ी: एक साथ चनु ावोों पर उच््च स््तरीय समिति के सझु ाव
योजनाएँ, ओपेन सिटीज फ्रे मवर््क आदि।
के अनसु ार सरकार के सभी तीन स््तरोों के लिए एकल मतदाता सचू ी कई
नगरपालिका चुनाव एजेेंसियोों मेें अतिरे क और दोहराव को कम करे गी।
z निष््पक्ष एवं समयबद्ध नगरपालिका चुनाव की आवश््यकता: सर्वोच््च विगत वर्षषों के प्रश्न
न््ययायालय ने चडं ीगढ़ नगर निगम के लिए हुए महापौर चनु ाव के परिणाम को z आपके राय मेें, भारत मेें शक्ति के विके न्द्रीकरण ने जमीनी-स््तर पर शासन-
निष््पक्षता व पारदर््शशिता के अभाव के कारण अवैध घोषित करते हुए निरस््त परिदृश््य को किस सीमा तक परिवर््ततित किया है? (2022)
कर दिया था। अतः विश्वसनीयता सनिश् ु चित करने हेतु इनका निष््पक्ष व पारदर्शी
z भारत मेें स््थथानीय निकायोों की सदृु ढ़ता एवं संपोषणीयता ‘प्रकार््य, कार््यकर््तता व
होना आवश््यक है।
कोष’ रचनात््मक प्रावस््थथा से ‘प्रकार््ययात््मकता’ समकालिक अवस््थथा की और
z 'फर््स््ट माइल’ सपं र््क : नगर पालिकाएँ महत्तत्वपर्ू ्ण हैैं, क््योोंकि पार््षद ‘फर््स््ट
स््थथानांतरित हुई है। हाल के समय मेें प्रकार््ययात््मकता की दृष्टि से स््थथानीय निकायोों
माइल’ निर््ववाचित नागरिक प्रतिनिधियोों के रूप मेें कार््य करते हैैं।
द्वारा सामना की जा रही अहम चनु ौतियोों को आलोकित कीजिए। (2020)
z जमीनी स््तर के मुद्ददों से निपटना: समय पर चनु ाव कराने से स््थथानीय स््तर पर
z “स््थथानीय स््वशासन की संस््थथाओ ं मेें महिलाओ ं के लिए सीटोों के आरक्षण
कार््रवाई सनिश्
ु चित होगी, जो 21वीीं सदी की मानव विकास प्राथमिकताओ ं से का भारत के राजनीतिक प्रक्रम के पितृतंत्रात््मक अभिलक्षण पर एक सीमित
निपटने के लिए आवश््यक है, जिसमेें पर््ययावरणीय स््थथिरता, प्राथमिक स््ववास््थ््य
प्रभाव पड़़ा है।” टिप््पणी कीजिए। (2019)
देखभाल, लैैंगिक समानता और नौकरियां, और आजीविका शामिल हैैं।
z भारत मेें स््थथानीय शासन के एक भाग के रूप मेें पचं ायत प्रणाली के महत्तत्व का
नगर निगम चुनावोों के समक्ष चुनौतियााँ आकलन कीजिए। विकास परियोजनाओ ं के वित्तीयन के लिए पंचायतेें सरकारी
z असामयिक चुनाव: सरु े श महाजन बनाम मध््य प्रदेश राज््य (2022) मेें अनदु ानोों के अलावा, और किन स्रोतोों को खोज सकती हैैं? (2018)
सर्वोच््च न््ययायालय के विशिष्ट निर्देश के बावजदू राज््य सरकारेें शहरी स््थथानीय z “भारत मेें स््थथानीय स््वशासन पद्धति, शासन का प्रभावी साधन साबित नहीीं हुई
सरकारोों के लिए समय पर चनु ाव नहीीं कराती हैैं। है।” इस कथन की समालोचनात््मक परीक्षण कीजिए तथा स््थथिति मेें सधु ार के
 विभिन््न राज््योों मेें 2015 से 2021 तक 1,500 से अधिक नगर पालिकाओ ं लिए अपने विचार प्रस््ततुत कीजिए। (2017)
मेें निर््ववाचित परिषदेें नहीीं थीीं। z सशिक्षि
ु त और व््यवस््थथित स््थथानीय स््तर शासन व््यवस््थथा की अनपु स््थथिति मेें,
z परिषद गठन मेें विलंब: अनेक बार यह देखा गया है कि चनु ाव सम््पन््न होने 'पंचायतेें' और 'समितियाँ' मख्ु ्यतः राजनीतिक संस््थथाएँ बनी रही हैैं न कि शासन
के बावजदू भी परिषदोों का गठन नहीीं हो पाता है तथा महापौर, उप महापौर के प्रभावी उपकरण। समालोचनापर््वू क चर््चचा कीजिए।
और स््थथायी समितियोों के चनु ाव मेें विलंब होता है। z “भारत के राज््य शहरी स््थथानीय निकायोों को कार््ययात््मक एवं वित्तीय दोनोों ही
z परिसीमन और आरक्षण: अधिकांश राज््योों की परिसीमन प्रक्रिया विलम््बबित रूप से सशक्त बनाने के प्रति अनिच््छछुक प्रतीत होते हैैं।” टिपण््णणी कीजिए।
रही, जिसके कारण परिषद चनु ावोों मेें देरी हुई।  (2023)

स्थानीय स्वशासन (भाग IX, भाग I 71


भारत के नियंत्रक
15 एवं महाले खा परीक्षक
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) को सार््वजनिक खजाने या धन का z संसद की लोक लेखा समिति के
संरक्षक माना जाता है और यह भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग का मार््गदर््शक, मित्र और दार््शनिक
प्रमख
ु होता है। यह वित्तीय प्रशासन के क्षेत्र मेें भारत के संविधान और संसद के के रूप मेें कार््य करता है।
कानूनोों की मर््ययादा बनाये रखता है। इन कारणोों से, डॉ. भीमराव अंबेडकर ने
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) को भारत मेें "सरकार की लोकतांत्रिक नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक और लोक लेखा समिति:
प्रणाली के स््ततंभोों मेें से एक" कहा था। z भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत एक संसदीय स््थथायी समिति बनाई
गई।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के कर््तव्य z यह के न्दद्र और राज््य दोनोों स््तरोों पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की लेखा
और शक्तियाां परीक्षा रिपोर््ट प्राप्त करता है।
इन््हेें संसद द्वारा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) (कर््तव््य, शक्तियां और विनियोग आदि पर लेखापरीक्षा रिपोर््ट
सेवा की शर्ततें) अधिनियम, 1971 के तहत निर््धधारित किया गया है।
CAG निम््नलिखित सरकारी CAG के लिए संवैधानिक
खातोों का ऑडिट करता है प्रावधान पीएसयू पर लेखापरीक्षा सीएजी पीएसयू पर लेखापरीक्षा
z भारत की संचित निधि, भारत की z अनुच््छछेद 148: नियंत्रक एवं रिपोर््ट रिपोर््ट रिपोर््ट
आकस््ममिकता निधि और भारत के महालेखा परीक्षक की नियक्ति ु ,
सार््वजनिक खाते से के न्दद्र सरकार शपथ और सेवा की शर्ततों से z नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक कई भमि ू काएँ निभाने मेें लोक लेखा समिति
का व््यय। संबंधित प्रावधान। की सहायता करता है। उदाहरण के लिए, यदि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
z राज््य सरकार और संघ राज््य क्षेत्र z अनुच््छछेद 149: नियंत्रक एवं द्वारा सझु ाई गई सधु ारात््मक कार््रवाई नहीीं की जाती है, तो इसकी रिपोर््ट लोक
(विधानसभा सहित) की राज््य महालेखा परीक्षक ऐसे कर््तव््योों का लेखा समिति को दी जाती है; जो इसे सरकार के समक्ष उठाती है।
की समेकित निधि, राज््य की पालन करे गा तथा ऐसी शक्तियोों
भारत एवं ब्रिटेन के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की भूमिका
आकस््ममिकता निधि और राज््य के का प्रयोग करे गा जैसा कि संसद मेें अंतर
सार््वजनिक खाते से व््यय। द्वारा या उसके काननू के अधीन
भारत मेें ब्रिटे न मेें
निर््धधारित किया जा सकता है।
z भारतीय नियंत्रक एवं महालेखा z ब्रिटिश नियंत्रक एवं महालेखा
z के न्दद्र एवं राज््य सरकार के विभाग: z अनुच््छछेद 150: वह राष्टट्रपति को
परीक्षक के वल नाममात्र का परीक्षक, ‘लेखा परीक्षक’ और
सभी व््ययापार, विनिर््ममाण, लाभ एवं संघ और राज््योों के लेखाओ ं के
"महालेखा परीक्षक" है क््योोंकि यह ‘नियंत्रक’ दोनोों की भमिू का
हानि खाते, बैलेेंस शीट और अन््य प्रारूप के बारे मेें सलाह देता है।
के वल लेखा परीक्षा की भमि ू का निभाता है।
सहायक खाते। निभाता है।
z वे निकाय जो मख् ु ्यतः के न्द्रीय या z अनुच््छछेद 151: संघ के लेखाओ ं
z लेखा-परीक्षण, व््यय किए जाने के z नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की
राज््योों के राजस््व से वित्तपोषित से संबंधित नियंत्रक एवं महालेखा
बाद ही किया जाता है। यानी के वल मजं रू ी के बिना सरकारी खजाने से
होते हैैं। परीक्षक की रिपोर््ट राष्टट्रपति को
पर््वू व््ययापी लेखा-परीक्षण ही किया कोई पैसा नहीीं निकाला जा सकता
प्रस््ततुत की जाएगी, जो उन््हेें संसद जाता है। है।
के प्रत््ययेक सदन के समक्ष रखेेंगे।
z नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक z नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक,
z सरकारी कम््पनियां।  इसी प्रकार, राज््योों से सब ं ंधित संसद का सदस््य नहीीं है। हाउस ऑफ कॉमन््स का सदस््य है।
नियंत्रक एवं महालेखा
परीक्षक (CAG) की रिपोर्टटें नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की स्वतंत्रता
राज््य के राज््यपाल को प्रस््ततुत z कार््यकाल की सरु क्षा: CAG, राष्टट्रपति द्वारा अपने हस््तताक्षर और महु र सहित
की जाएगं ी, जो उन््हेें राज््य वारंट द्वारा नियक्त
ु किया जाता है। उसका कार््यकाल 65 वर््ष की उम्र या 6 वर््ष
विधानमडं ल के समक्ष रखेेंगे। की अवधि जो भी पहले हो, तक होता है।
z पदच््ययुति की प्रक्रिया: राष्टट्रपति द्वारा उसी प्रक्रिया के तहत हटाया जा सकता z कम कार््यकाल: 65 वर््ष की z लेखापरीक्षा मेें जानबूझकर
है जिस प्रक्रिया के तहत सर्वोच््च न््ययायालय के न््ययायाधीश को हटाया जा आयु सीमा, संस््थथा के समचि
ु त बाधा डालना: लेखापरीक्षकोों को
सकता है। कामकाज को प्रभावित करती है। महत्तत्वपर्ू ्ण दस््ततावेजोों की आपर््तति
ू मेें
z सेवानिवत्ति
ृ के बाद का पद: केें द्र या राज््य सरकार के अधीन किसी भी देरी करना तथा कभी-कभी उन््हेें
अन््य पद के लिए पात्र नहीीं होता है। ऐसा करने से मना कर दिया जाता
z वेतन और अन््य सेवा शर्ततें: संसद द्वारा निर््धधारित की जाती हैैं और नियक्ति ु है।
के बाद नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के लिए इनमेें कोई प्रतिकूल परिवर््तन z जनादेश का अतिक्रमण: कभी- z नियुक्ति के लिए कोई मानदडं
नहीीं किया जा सकता। कभी जनादेश का अतिक्रमण नहीीं: संविधान या किसी भी
z व््यय: कार््ययालय के प्रशासनिक व््यय, वेतन, भत्ते और पेेंशन का भार भारत करने के लिए इसकी आलोचना काननू मेें, CAG की नियक्ति ु के
की जाती है। उदाहरण के लिए 2जी लिए कोई मानदडं का प्रावधान
की संचित निधि (CFI) पर भारित है।
और कोयला ब््ललॉक आवंटन पर नहीीं किया गया है।
z प्रशासनिक शक्तियाँ: भारतीय लेखापरीक्षा एवं लेखा विभाग (जिसका प्रमख ु इसकी रिपोर््ट मेें घाटे या भ्रष्टाचार
CAG है) मेें सेवारत लोगोों की सेवा की शर्ततें तथा नियंत्रक एवं महालेखा के अजीबोगरीब या सनसनीखेज
परीक्षक की प्रशासनिक शक्तियाँ, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के परामर््श आक ं ड़़े सामने आए थे।
के बाद राष्टट्रपति द्वारा निर््धधारित की जाती हैैं। z सीमित सस ं ाधन: जनशक्ति की z वैधानिक मान््यता का अभाव:
z कोई भी मत्री ं संसद (दोनोों सदनोों) मेें नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक कमी और उत्तरदायित््व मेें वृद्धि भारतीय लेखापरीक्षा एवं लेखा
का प्रतिनिधित््व नहीीं कर सकता है और किसी भी मत्री ं को उसके द्वारा के परिणामस््वरूप बहुत कम विभाग के अधिकारियोों एवं
किए गए किसी भी कार््य के लिए जिम््ममेदारी लेने के लिए नहीीं कहा जा खातोों का वार््षषिक लेखा-परीक्षण कर््मचारियोों के लिए वैधनिक
सकता है। हो पाता है। मान््यता का अभाव है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के पास सार््वजनिक जवाबदेही, पारदर््शशिता,
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कार्यालय की सीमाएँ
प्रभावी सेवा वितरण और सुशासन सुनिश्चित करने का संवैधानिक और वैधानिक
z नियुक्ति: नियंत्रक एवं महालेखा z जोखिम लेने को हतोत््ससाहित दायित््व हैैं। इसके द्वारा हाल ही मेें संयुक्त राष्टट्र मख्ु ्ययालय का लेखा परीक्षण
परीक्षक की नियक्ति ु पर्ू त्ण ः करना: नियंत्रक एवं महालेखा (ऑडिट) किया गया, जो संस््थथा की विश्वसनीयता को दर््शशाता है।
कार््यपालिका के विवेक पर निर््भर परीक्षक नीति की 'बद्धिमत्ता ु ,
है, जो कार््यपालिका को जवाबदेह विश्वसनीयता, मितव््ययिता' पर
प्रमुख शब्दावलियाँ
ठहराने की उसकी भमि ू का को विचार करते समय, प्रशासन की
सीमित करती है। व््ययावहारिक समस््ययाओ ं पर विचार फर््स््ट माइल कनेक््ट, परिसीमन आयोग, सरकार की लोकतांत्रिक
नहीीं कर सकता है। प्रणाली की दीवारेें, भारत की आकस््ममिकता निधि, लोक लेखा
z महालेखा परीक्षक, नियंत्रक z स््वतंत्रता: हित संघर््ष उत््पन््न होता समिति का दार््शनिक, हस््तताक्षर और मुहर सहित वारंट, भारतीय
नहीीं: इसकी रिपोर््ट कार्योत्तर होती है क््योोंकि पर््वू सचिवोों (आमतौर पर लेखा परीक्षा और लेखा विभाग, बद्ु धिमत्ता, निष्ठा, नीति की
है, अर््थथात् यह व््यय का लेखा IAS) को नियंत्रक एवं महालेखा अर््थव््यवस््थथा, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक आदि।
परीक्षण तभी कर सकता है जब परीक्षक के रूप मेें नियक्त ु किया विगत वर्षषों के प्रश्न
व््यय परू ा हो चक
ु ा हो। जाता है, जो सस्ं ्थथा की स््वतंत्रता z “नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सी.ए.जी.) को एक अत््ययावश््यक भमि ू का
से समझौता करता है। निभानी होती है।” व््ययाख््यया कीजिए कि यह किस प्रकार उसकी नियक्ति ु की
z सीमित उपयोगिता: लेखा z गुप्त व््यय: नियंत्रक एवं महालेखा विधि और शर्ततों और साथ ही साथ उन अधिकारोों के विस््ततार से परिलक्षित
परीक्षकोों को पता है कि परीक्षक कुछ मामलोों मेें व््यय का होती है, जिनका प्रयोग वह कर सकता है। (2018)
लेखापरीक्षा क््यया है, प्रशासन क््यया विवरण नहीीं मांग सकता है तथा z संघ और राज््योों के लेखाओ ं के संबंध मेें, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की
है; यह एक अत््ययंत साधारण कार््य उसे सक्षम प्रशासनिक प्राधिकारी शक्तियोों का प्रयोग भारतीय सवं िधान के अनच्ु ्छछे द 149 से व््ययुत््पन््न है। चर््चचा
है, जिसका दृष्टिकोण संकीर््ण है से प्रमाण पत्र स््ववीकार करना होता कीजिए कि क््यया सरकार की नीति कार््ययान््वयन की लेखापरीक्षा करना अपने
तथा उपयोगिता भी बहुत सीमित है। स््वयं (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) की अधिकारिता का अतिक्रमण करना
है। होगा या कि नहीीं। (2016)

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परी 73


राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) / राष्ट्रीय
16 अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) / राष्ट्रीय
पिछड़ा वर््ग आयोग (NCBC)
z वनोों के सरं क्षण और सामाजिक वनरोपण मेें आदिवासियोों का सहयोग और
संरचना
भागीदारी प्राप्त करना।
सामान््य संरचना: अध््यक्ष + उपाध््यक्ष + 3 सदस््य = राष्टट्रपति द्वारा नियुक्त। z पेसा (PESA) के पर््णू कार््ययान््वयन को सनु िश्चित करने के लिए कदम उठाना।
राष्ट् रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) / राष्ट् रीय अनुसूचित z काननू के अनसु ार विभिन््न संसाधनोों जैसे- जल संसाधन, खनिज संसाधन आदि
जनजाति आयोग (NCST) / राष्ट् रीय पिछड़ा वर््ग आयोग (NCBC) पर जनजातीय समदु ायोों के अधिकारोों की रक्षा करना।
के सामान्य कार््य विकास परियोजनाओ ं से विस््थथापित आदिवासियोों के लिए किए गए पनर््ववा
z ु स
z अनसु चू ित जाति, अनसु चू ित जनजाति और अन््य पिछड़़ा वर््ग समदु ायोों के लिए उपायोों की प्रभावशीलता मेें सधु ार करना।
संवैधानिक और अन््य काननू ी सरु क्षा उपायोों से संबंधित सभी मामलोों की जाँच z आदिवासियोों द्वारा की जाने वाली स््थथानांतरित कृ षि की प्रथा को कम करने
और निगरानी करना । तथा अतत ं ः समाप्त करने के लिए उपाय करना।
z अनसु चू ित जाति, अनसु चू ित जनजाति और अन््य पिछड़़ा वर््ग के अधिकारोों के
सुभेद्य (असुरक्षित ) वर्गगों की सुरक्षा
हनन से संबंधित विशिष्ट शिकायतोों की जाँच करना ।
करने मेें संवैधानिक निकायोों की कमियााँ
z सामाजिक-आर््थथिक विकास से सबं ंधित योजना निर््ममाण पहलू मेें सहभागिता
और सलाह देना तथा संघ या राज््य के अतं र््गत प्रगति का मल्ू ्ययाांकन करना। z अवसरं चना, जनशक्ति और संसाधनोों की कमी।
z अनसु चू ित जाति, अनसु चू ित जनजाति और अन््य पिछड़़ा वर््ग के समदु ायोों z इन समदु ायोों के प्रति संस््थथाओ ं की क्षमता मेें कमी और असंवेदनशीलता।
के लिए सरु क्षा उपायोों के कामकाज पर राष्टट्रपति को वार््षषिक रिपोर््ट भेजना। z आयोग की सिफारिशेें बाध््यकारी नहीीं हैैं।
z इन वर्गगों के संरक्षण, कल््ययाण और सामाजिक-आर््थथिक विकास के लिए सरु क्षा z इन समदु ायोों के पिछड़़ेपन को देखते हुए नियक्ति ु की शर्ततें बहुत उच््च श्रेणी की
उपाय करना और उन उपायोों के प्रभावी कार््ययान््वयन के लिए संघ और राज््योों होने के कारण इनकी कार््यप्रणाली अकुशल है।
को महत्तत्वपर््णू सझु ाव देना। z अस््पष्ट चयन एवं नियक्तिु प्रक्रिया, अत््यधिक बजटीय।
z ऑनलाइन शिकायतेें: अनसु चू ित जाति के विरुद्ध अत््ययाचार की शिकायतेें 102वााँ संविधान संशोधन अधिनियम (2018)
राष्ट्रीय अनसु चू ित जाति आयोग (NCSC) के ऑनलाइन पोर््टल के माध््यम z इसके तहत एक नया अनच्ु ्छछेद 338-B जोड़़ा गया, जिसने राष्ट्रीय पिछड़ा वर््ग
से दर््ज की जा सकती हैैं। आयोग (NCBC) को संवैधानिक दर््जजा प्रदान किया।
z विशेष न््ययायालय: आयोग द्वारा की जाने वाली एक प्रमख ु निगरानी गतिविधि, z इसने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़़े वर्गगों के हितोों की अधिक प्रभावी
नागरिक अधिकार अधिनियम और अत््ययाचार निवारण अधिनियम, 1989
ढंग से रक्षा करने के लिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर््ग आयोग (NCBC) के कार्ययों
के तहत किए गए अपराधोों की शीघ्र सनु वाई के लिए विशेष न््ययायालयोों की
का विस््ततार किया।
स््थथापना से संबंधित है।
z आँकड़े एकत्रित करना: 1955 के नागरिक अधिकार अधिनियम और 1989 राष्ट् रीय पिछड़ा वर््ग आयोग (NCBC) को
के अत््ययाचार निवारण अधिनियम के अतं र््गत मामलोों से संबंधित आँकड़े संवैधानिक दर्जा देने के सकारात्मक पहलू एवं चिंताएँ
एकत्रित कर उन पर आवश््यक कार््यवाही करना। सकारात््मक पहलू विद्यमान चिंताएँ
z कानूनी कार््ययान््वयन की निगरानी: ये आयोग अनसु चू ित जाति, अनसु चू ित z अधिक अधिकार देना: z गैर-बाध््यकारी सिफारिश:
जनजाति और अन््य पिछड़़ा वर््ग समदु ायोों के कल््ययाण और सरं क्षण के लिए संवैधानिक दर््जजा मिलने से राष्ट्रीय इससे राष्ट्रीय पिछड़ा वर््ग आयोग
लागू विभिन््न काननू ी प्रावधानोों के कार््ययान््वयन की निगरानी करते हैैं। पिछड़ा वर््ग आयोग (NCBC) (NCBC) की रिपोर््ट और उसके
राष्ट् रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) के विशिष्ट कार््य: का कद बढ़ जाएगा क््योोंकि बजट आवटन ं के प्रति प्राथमिकता
एक सवं ैधानिक निकाय के रूप कम हो सकती है।
z वन क्षेत्ररों मेें रहने वाले अनसु चू ित जनजातियोों को, लघु वन उपज (MFP) का
स््ववामित््व अधिकार प्रदान करना । मेें पिछड़़े वर्गगों के कल््ययाण को
सनु िश्चित करने के लिए यह बेहतर
z आदिवासियोों के विकास के लिए उपाय करना तथा अधिक व््यवहार््य
आजीविका रणनीतियोों पर काम करना। स््थथिति मेें होगा।
z अधिक वस््ततुनिष्ठता: अनच्ु ्छछेद z परिभाषित करने का कोई z शिकायत दर््ज करने मेें आसानी: राष्ट्रीय अनसु चू ित जाति आयोग (NCSC)
अधिकार नहीीं: राष्ट्रीय पिछड़ा की तरह ऑनलाइन पोर््टल के माध््यम से शिकायत दर््ज करने जैसे कदम
342 A किसी भी समदु ाय को
वर््ग आयोग (NCBC) के पास उठाना।
पिछड़ा वर््ग सचू ी मेें जोड़ने या
हटाने के लिए संसद की सहमति "पिछड़़ेपन" को परिभाषित z क्षेत्रीय स््तर पर बैठकेें आयोजित करना: राष्ट्रीय अनसु चू ित जाति आयोग
करने का कोई अधिकार नहीीं है। (NCSC) की तरह ही राष्ट्रीय पिछड़ा वर््ग आयोग (NCBC) द्वारा आयोग
लेना अनिवार््य बनाता है।
इसलिए, यह विभिन््न जातियोों की तक पहुचँ बढ़़ाने के लिए क्षेत्रीय स््तर पर बैठकेें आयोजित करना।
पिछड़़े वर्गगों मेें शामिल किए जाने z समय पर चर््चचा: वार््षषिक रिपोर््ट के महत्तत्व को आमतौर पर नजरअदं ाज कर
की माँग को सबं ोधित नहीीं कर दिया जाता है। राष्टट्रपति को संसद मेें रिपोर््ट पर चर््चचा के लिए समय तय करने
सकता। का अधिकार होना चाहिए।
z क्रीमी मानदडों ों के दुरुपयोग z सरं चना: निकाय मेें विशेषज्ञञों
समुदायोों के समक्ष आने वाली समस्याएँ
मेें कमी: कुछ वर्गगों द्वारा क्रीमी की नियक्ति ु के लिए कोई विशेष
मानदडों ों के दरुु पयोग को कम प्रावधान नहीीं है तथा अर््हता का z अत््ययाचारोों मेें वद्ृ धि: राष्ट्रीय अनसु चू ित जाति आयोग (NCSC) को प्राप्त
कोई उल््ललेख किए बिना इसे 16000 शिकायतोों मेें से 60% सार््वजनिक स््थथानोों पर अत््ययाचार से संबंधित
किया जाएगा।
कार््यपालिका के विवेक पर छोड़ थीीं। (NCRB आँकड़ोों के अनसु ार)। उदाहरण के लिए हरियाणा मेें जाति-संबंधी
दिया गया है। सम््ममान-हत््ययाएँ (ऑनर किलिंग)।
z वार््षषिक रिपोर््ट : सवि
ं धान के z पिछड़ा वर््ग सच ू ी का सश
ं ोधन: z जनजातीय बेदखली: विकास परियोजनाओ ं के कारण अनस ु चू ित जनजातियोों
अनसु ार केें द्र और राज््य सरकारेें अनच्ु ्छछेद 338 B (5), पिछड़ा की बेदखली को रोकने मेें राष्ट्रीय अनसु चू ित जनजाति आयोग (NCST)
समिति की रिपोर््ट पर कार््र वाई न वर््ग सचू ी के आवधिक सश ं ोधन अप्रभावी रहा है।
करने के लिए वैध कारण बताने और राष्ट्रीय पिछड़ा वर््ग आयोग  उदाहरण के लिए, 5 लाख से अधिक आदिवासियोों के दावे को खारिज

के लिए बाध््य हैैं। (NCBC) द्वारा निभाई गई भमि ू का कर दिया गया।


पर मौन है।
z आर््थथि क वंचना: वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 की भावना को
z शिकायत निवारण: राष्ट्रीय z बहुआयामी चुनौतियाँ: के वल बनाए रखने मेें विफलता और “संरक्षित वनोों” के नाम पर लघु वन उपज
पिछड़ा वर््ग आयोग (NCBC) के संवैधानिक दर््जजा देने से विभिन््न (MFP) तक पहुचँ से वचं ित करना इसका प्रमाण है।
पास दीवानी न््ययायालयोों की सभी मद्दु दों का समाधान नहीीं हो सकता,
z लुप्त होती सांस््ककृतिक पहचान: लगभग 250 जनजातीय भाषाएँ लप्त ु हो गई
शक्तियाँ होोंगी, जिससे वह पिछड़़े जैसे कि विषम प्रतिनिधित््व और
वर्गगों के लिए न््ययाय सनु िश्चित करने कुछ पिछड़़ी जातियोों को अधिक हैैं (पीपल्ु ्स लिंग््वविस््टटिक सर्वे ऑफ इडिय
ं ा की रिपोर््ट के अन स
ु ार)।
मेें सक्षम होोंगे। लाभ मिलना। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) / राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति
z व््ययापक जिम््ममेदारी: अतिरिक्त z अनुच््छछेद 340 से कोई सबं ंध आयोग (NCST) / राष्ट्रीय पिछड़ा वर््ग आयोग (NCBC) समाज के कमजोर
कार््यक्षेत्र के साथ राष्ट्रीय पिछड़ा नहीीं: अनच्ु ्छछेद 340 पिछड़़ी वर््ग के अधिकारोों और उनके उत््थथान के लिए महत्तत्वपूर््ण हैैं। उनके पास कमजोर
वर््ग आयोग (NCBC) समग्र जातियोों के कल््ययाण और संरक्षण वर्गगों के उत््थथान हेतु बड़़ी जिम््ममेदारी है, उन््हेें उत्तरदायी बनाने के लिए और सशक्त
विकास और उन््नति सनु िश्चित को सनु िश्चित करता है, लेकिन इसे करने की आवश््यकता है।
करने के लिए आरक्षण से परे अनच्ु ्छछेद 338 B से नहीीं जोड़़ा
जाकर कार््य कर सकता है। गया है।
प्रमुख शब्दावलियाँ
आवश्यक महत्त्वपूर््ण प्रयास
सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़़े वर््ग , क्रीमी लेयर, अत््ययाचार,
z सरं चना: इसमेें अनिवार््य रूप से विशेषज्ञञों और लिंग संवेदनशीलता सनु िश्चित संरक्षित वन, उपश्रेणियाँ अनुसूचित जाती (SC), अनुसूचित
करने के लिए महिलाओ ं को शामिल किया जाना चाहिए। जनजाति (ST), अन््य पिछड़ा वर््ग (OBC) आदि।
z क्षमता निर््ममाण: पिछड़़े वर््ग के सदस््योों के प्रति उचित और सहानभु तू िपर््णू
व््यवहार तथा समय पर शिकायत निवारण सनु िश्चित करने के लिए वकीलोों, विगत वर््ष का प्रश्न
न््ययायाधीशोों और पलु िसकर््ममियोों की क्षमता निर््ममाण और संवेदनशीलता बढ़़ाना ।
z राष्ट्रीय पिछड़ा वर््ग आयोग के सांविधिक निकाय से सवं ैधानिक निकाय
z मूल््ययाांकन करना: मौजदू ा सरकारी नीतियोों का प्रभावी कार््ययान््वयन और समय मेें रूपांतरण को ध््ययान मेें रखते हुए इसकी भमि
ू का की विवेचना कीजिये।
पर सधु ार के लिए उनके प्रभावोों का मल्ू ्ययाांकन करना।  (2022)

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) / राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) / राष्ट्रीय पिछड़ा वर् 75
17 संघ और राज्य लोक सेवा आयोग
व््यय: वेतन, भत्ते और पेेंशन भारत की सचं ित निधि द्वारा प्रदान किये जाते हैैं
संवैधानिक प्रावधान
z
और इन पर संसद मेें मतदान नहीीं किया जाता है।
अनुच््छछेद z संसद एक या एक से अधिक अखिल भारतीय सेवाओ ं z कार््यकाल की सरु क्षा: अध््यक्ष और सदस््योों को के वल सवि ं धान मेें निर््ददिष्ट
312 (अखिल भारतीय न््ययायिक सेवाओ ं सहित) का सृजन कर आधारोों पर राष्टट्रपति के आदेश द्वारा हटाया/निलंबित जा सकता है।
सकती है; जो सघं और राज््योों के लिए समान होों। z सेवानिवत्ृ ति के बाद: सघं लोक सेवा आयोग का अध््यक्ष, भारत सरकार
अनुच््छछेद z संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) और राज््य लोक सेवा या किसी राज््य सरकार के अधीन सेवानिवृत्ति पश्चात किसी अन््य नियोजन के
315 से आयोग (SPSC) की नियक्ति ु , संरचना, निलंबन तथा लिए पात्र नहीीं होता है।
323 शक्तियोों और कार्ययों से सबं ंधित प्रावधान।  ‘राज््य लोक सेवा आयोग’ के अध््यक्ष को ‘संघ लोक सेवा आयोग’ का
अध््यक्ष/सदस््य नियक्त
ु किया जा सकता है। लेकिन वह किसी अन््य रोजगार
संघ और राज्य लोक सेवा आयोग के लिए पात्र नहीीं होता है।
संघ लोक सेवा आयोग राज््य लोक सेवा आयोग  संघ लोक सेवा आयोग का सदस््य (अध््यक्ष के अलावा); किसी भी ‘राज््य

(UPSC) (SPSC) लोक सेवा आयोग’ या ‘सघं लोक सेवा आयोग’ का अध््यक्ष नियक्त ु होने
z सरं चना: इसमेें भारत के राष्टट्रपति z सरं चना: इसमेें राज््य के राज््यपाल
के लिए पात्र होता है।
 ‘राज््य लोक सेवा आयोग’ का सदस््य; ‘राज््य लोक सेवा आयोग’ या
द्वारा नियक्त
ु एक अध््यक्ष और द्वारा नियक्त
ु एक अध््यक्ष और अन््य
अन््य सदस््य होते हैैं। सदस््य होते हैैं। ‘संघ लोक सेवा आयोग’ का अध््यक्ष या ‘संघ लोक सेवा आयोग’ का
z सदस््य सख् ं ्यया: राष्टट्रपति के z सदस््य सख् ं ्यया: संबंधित राज््य के सदस््य नियक्त
ु होने के लिए पात्र होता है।
विवेकानसु ार। आमतौर पर 9 से राज््यपाल के विवेकानसु ार।
कार््य और सीमाएँ
11 सदस््य होते हैैं।
z योग््यता: कोई योग््यता निर््धधारित z योग््यता: कोई योग््यता निर््धधारित संघ लोक सेवा आयोग के कार््य सीमाएँ
नहीीं है, सिवाय इसके कि 50% नहीीं है, सिवाय इसके कि 50% z योग््यता प्रणाली का प्रहरी: यह z सर्वोच््च न््ययायालय के निर््णय:
सदस््य भारत सरकार या राज््य सदस््योों ने भारत सरकार या राज््य अखिल भारतीय सेवाओ ं और चकिँू उनमेें विधिक मान््यता होती
सरकार के अधीन कम से कम सरकार के अधीन कम से कम दस केें द्रीय सेवाओ ं मेें नियक्तियो
ु ों के है; वे संघ लोक सेवा आयोग
दस वर्षषों तक पद पर रहे होों। वर्षषों तक पद पर रहे होों। लिए परीक्षा आयोजित करता है। या राज््य लोक सेवा आयोग को
z अवधि: छह वर््ष/ 65 वर््ष की z अवधि: छह वर््ष/62 वर््ष की आय;ु सीमित कर सकते हैैं।
आय;ु जो भी पहले हो। जो भी पहले हो। z सयुं क्त भर्ती की योजना: ऐसी z गैर-बाध््यकारी प्रावधान:
z निलंबन: राष्टट्रपति द्वारा किसी z निलंबन: राष्टट्रपति सदस््योों और किसी भी सेवा के लिए सयं क्त ु सरकार सघं लोक सेवा आयोग के
व््यक्ति को दिवालिया घोषित अध््यक्ष को उन््हीीं आधारोों और भर्ती की योजना तैयार करना और परामर््श के बिना कार््य कर सकती
होने, पदावधि मेें कर््तव््योों के बाहर उसी प्रक्रिया से हटा सकते हैैं जिस संचालन मेें राज््योों की सहायता है और पीड़़ित लोक सेवक के
सवैतनिक रूप से नियोजित होने, तरह से वह संघ लोक सेवा आयोग करना, जिसके लिए विशेष पास अदालत जाने का विकल््प
मानसिक या शारीरिक दर््बलत ु ा के के अध््यक्ष या सदस््य को हटा योग््यता रखने वाले उम््ममीदवारोों नहीीं होता है।
कारण अयोग््य ठहराने के आधार सकते या निलंबित कर सकते हैैं। की आवश््यकता होती है।
पर पद से हटाया या निलंबित z राज््य की आवश््यकताओ ं की z संघ लोक सेवा आयोग द्वारा
किया जा सकता है। पूर््तति: राज््यपाल के अनरु ोध पर चयनित उम््ममीदवार का पद पर कोई
दर््व््य
ु वहार की स््थथिति मेें - सर्वोच््च न््ययायालय की जाँच के आधार पर राष्टट्रपति तथा राष्टट्रपति के अनमु ोदन से। अधिकार नहीीं होता है। उम््ममीदवार
द्वारा। का अनश ु सित
ं नाम के वल एक
आयोग की स्वतंत्रता सिफारिश होती है।
z कार््ममिक प्रबंधन के निम््नलिखित z निम््नलिखित मामलोों पर संघ लोक
z सेवा की शर्ततें: राष्टट्रपति द्वारा निर््धधारित (राज््य लोक सेवा आयोग के लिए मामलोों के लिए इससे परामर््श सेवा आयोग से परामर््श नहीीं लिया
राज््यपाल द्वारा निर््धधारित) तथा नियक्ति
ु के बाद सदस््योों के लिए इनमेें अलाभकारी किया जाता है: जाता है:
परिवर््तन नहीीं किया जा सकता।
सिविल सेवा और सिविल पदोों के नियुक्तियोों मेें किसी भी पिछड़़े वर््ग के राज््य की न््ययायिक सेवा (जिला
लिए भर्ती, पदोन््नति और स््थथानांतरण लिए आरक्षण करना । न््ययायाधीशोों के पदोों के अलावा) मेें
के तरीके । नियुक्ति के लिए नियम बनाते समय
भारत सरकार के अधीन सिविल सेवाओ ं और पदोों पर नियुक्तियोों मेें राज््यपाल द्वारा राज््य लोक सेवा
क्षमता मेें सेवारत किसी व््यक्ति अनुसचू ित जाति/अनुसचू ित जनजाति आयोग से परामर््श किया जाता है।
को प्रभावित करने वाले सभी के दावोों पर विचार करना।
अनुशासनात््मक मामले। अब तक सं घ लोक से व ा आयोग (UPSC) और राज््य लोक से व ा आयोग
किसी सिविल सेवक द्वारा अपने आयोगोों या न््ययायाधिकरणोों की (SPSC) ने सत््यनिष्ठा के साथ अपने कर््तव््योों का निर््वहन किया है जिस पर
कर््तव््योों के निष््पपादन मेें किए गए अध््यक्षता या सदस््यता, उच््चतम प्रत््यये क वर््ष लाखोों उम््ममीदवारोों का विश्वास टिका होता है। ले किन बदलते
कार्ययों के संबंध मेें उसके विरुद्ध राजनयिक प्रकृ ति के पदोों तथा समहू समय के अनुस ार, सं घ लोक से व ा आयोग (UPSC) और राज््य लोक से व ा
संस््थथित कानूनी कार््यवाहियोों का ‘ग’ व समहू ‘घ’ सेवाओ ं के लिए आयोग (SPSC) को अपनी मूल् ्ययाां क न प्रणाली हेतु साइकोमे ट्रि क टे स् ्ट
बचाव करने मेें किए गए कानूनी उम््ममीदवारोों; के चयन हेतु। जै से नवाचारी तरीकोों को शामिल करने की आवश््यकता है ताकि बे ह तर
व््ययोों की प्रतिपूर््तति का दावा । गुण वत्ता, सत््यनिष्ठा और योग््यता वाले उम््ममीदवारोों की नियुक्ति सुन िश्चित
1 वर््ष से अधिक की अस््थथायी यदि किसी व््यक्ति के एक वर््ष से की जा सके ।
नियुक्तियाँ और नियुक्तियोों का अधिक समय तक पद पर बने रहने
नियमितीकरण। की संभावना नहीीं है तो अस््थथायी
नियुक्ति के लिए। प्रमुख शब्दावलियाँ
कुछ सेवानिवृत्त सिविल सेवकोों को सेवाओ ं के वर्गीकरण, वेतन और सेवा
अखिल भारतीय सेवाएँ, मानसिक या शारीरिक दर्ु ्ब लता, भारत की
सेवा विस््ततार और पुनर््ननियुक्ति प्रदान शर्ततें, संवर््ग प्रबंधन, प्रशिक्षण आदि।
समेकित निधि, योग््यता प्रणाली का प्रहरी, संवर््ग प्रबंधन आदि।
करना ।

संघ और राज्य लोकसेवा आय 77


18 भारतीय चुनाव आयोग (ECI)
पात्रता हेतु मानदडं : मख्ु ्य चनु ाव आयक्त
ु और अन््य चनु ाव आयक्त ु तों को:
परिचय
z

(i) सत््यनिष्ठ व््यक्ति होना चाहिए,


भारतीय चनु ाव आयोग (ECI), संविधान के अनुच््छछेद 324 के तहत स््थथापित (ii) चनु ाव के प्रबंधन और संचालन मेें ज्ञान और अनुभव होना चाहिए,
एक स््थथायी और स््वतंत्र संवैधानिक निकाय है। भारतीय चनु ाव आयोग (ECI) और
को लोकसभा, राज््यसभा, राज््य विधानसभाओ,ं राज््य विधान परिषदोों और देश (iii) सरकार मेें सचिव (या समकक्ष) पद पर होना चाहिए या रह चक ु ा होना
के राष्टट्रपति एवं उपराष्टट्रपति के कार््ययालयोों के चनु ावोों के ; अधीक्षण, निर्देशन चाहिए।
और नियंत्रण की शक्ति प्रदान की गई है। इसका कार््य राज््योों मेें पंचायतोों और z वेतन और पेें शन: यह कै बिनेट सचिव के बराबर होगी।

नगरपालिकाओ ं के चनु ावोों को सम््पन््न कराना नहीीं है क््योोंकि इन चनु ावोों के अधिनियम से संबंधित प्रमुख मुद्दे और चुनौतियाँ:
लिए, भारत के संविधान मेें एक अलग राज््य चनु ाव आयोग का प्रावधान किया z चयन मानदड ं : इसमेें कार््यपालिका का प्रभत्ु ्व हो सकता है, जिसका इसकी
गया है। स््वतंत्रता पर प्रभाव पड़ता है।
भारतीय निर््ववाचन आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया पर लगने वाले प्रश्नचिन््ह : z सवं िधान मेें रिक्तता या दोष के बावजूद चयन समिति की सिफारिशेें
z चुनाव आयोग: नियक्ति ु प्रक्रिया मेें विकास और इसकी स््ववायत्तता को सशक्त वैध होोंगी: इससे उम््ममीदवारोों के चयन मेें सरकारी सदस््योों का एकाधिकार हो
करने की आवश््यकता। सकता है, विशेष रूप से जब लोक सभा भगं हो।
z फैसले की पष्ठ ृ भूमि: 2015 मेें, अनपू बरनवाल द्वारा दायर एक जनहित z कमतर दर््जजा: मख् ु ्य चनु ाव आयक्त ु और अन््य चनु ाव आयक्त ु (CEC और
याचिका मेें, ‘चनु ाव आयोग के सदस््योों की नियक्ति ु केें द्र द्वारा करने की प्रथा’ EC) का वेतन कै बिनेट सचिव के बराबर करने से सरकारी प्रभाव बढ़ सकता
की संवैधानिक वैधता को चनु ौती दी गई थी। चनु ौती का सार यह है कि इस
है क््योोंकि यह सरकार द्वारा तय किया जाता है। इसके अलावा, मख्ु ्य चनु ाव
मद्देु पर संसद द्वारा कोई काननू नहीीं बनाया गया है, इसलिए न््ययायालय को
आयक्त ु और अन््य चनु ाव आयक्त ु (CEC और EC) अर््ध-न््ययायिक कार््य भी
“सवं ैधानिक रिक्तता” को भरने के लिए कदम उठाना चाहिए।
करते हैैं और इन पदोों को सीमित करने से वरिष्ठ नौकरशाह अन््य उपयक्त ु
चुनाव आयुक्ततों की नियुक्ति पर सर्वोच्च न्यायालय (SC) का निर््णय उम््ममीदवारोों को बाहर कर सकते हैैं।
z निर््णय: मार््च 2023 मेें सर्वोच््च न््ययायालय की पाँच न््ययायाधीशोों की पीठ ने
सर््वसम््मति से फै सला सनु ाया कि भारतीय चनु ाव आयोग (ECI) के सदस््योों का शक्तियााँ और कार््य
चनु ाव एक उच््च-स््तरीय समिति द्वारा किया जाना चाहिए, जिसमेें निम््नलिखित z प्रशासनिक:
शामिल होों:  परिसीमन: सस ं द के परिसीमन आयोग अधिनियम के आधार पर परू े देश
 प्रधानमत्रीं , मेें प्रादेशिक निर््ववाचन क्षेत्ररों का निर््धधारण करना।
 लोक सभा मेें विपक्ष के नेता, तथा
राजनीतिक दलोों
 भारत के मख् ु ्य न््ययायाधीश को मान््यता चुनाव का स््वतंत्र एवं
z मुख््य चुनाव आयुक्त और अन््य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्ततें नामांकन पत्ररों
की जाँच निष््पक्ष संचालन
और पदावधि) अधिनियम, 2023: इसने चनु ाव आयोग (चनु ाव आयक्त ु तों
की सेवा की शर्ततें और कार््य-संचालन) अधिनियम, 1991 का स््थथान लिया है। चुनावी विवादोों भारतीय चुनाव चुनाव की अनुसूची
अधिनियम की नवीन विशेषताएँ का समाधान आयोग (ECI) के अधिसूचित करेें
z सदस््योों की नियक्ति
ु , राष्टट्रपति द्वारा चयन समिति की सिफारिशोों पर की जाएगी, चुनाव परिणामोों कार््य मतदाता सूची
जिसमेें प्रधानमत्री
ं , कै बिनेट मत्री
ं और लोकसभा मेें विपक्ष के नेता (या सबसे की घोषणा तै यार करना
बड़़े विपक्षी दल के नेता) शामिल होोंगे। आचार संहिता निर््ववाचन क्षेत्ररों
z कै बिनेट सचिव की अध््यक्षता वाली एक खोज समिति, चयन समिति को पाँच तै यार करना का परिसीमन
नाम सझु ाती है। चयन समिति सझु ाए गए नामोों के अलावा अन््य नामोों पर भी  मतदाता सचिय
ू ाँ: सभी पात्र मतदाताओ ं की मतदाता सचू ियाँ तैयार करना
विचार कर सकती है। तथा समय-समय पर उनमेें संशोधन करना।
 चुनावोों का आयोजन: चनु ावोों की तारीखोों और कार््यक्रमोों की अधिसचन ू ा z सवं ैधानिक सरं क्षण: चनु ाव आयोग के के वल एक सदस््य के बजाय सभी
जारी करना तथा नामांकन पत्ररों की जाँच करना। तीन सदस््योों को सवं ैधानिक सरं क्षण प्रदान करने के लिए सवि
ं धान मेें सश
ं ोधन
 पंजीकरण: राजनीतिक दलोों का पंजीकरण तथा उन््हेें राष्ट्रीय या राज््य किया जाए, ताकि उनकी स््वतंत्रता और सरु क्षा सनु िश्चित हो सके ।
स््तरीय दल का दर््जजा प्रदान करना तथा उन््हेें चनु ाव चिन््ह आवंटित करना। z निष््पक्ष पदोन््नति: काननू मेें ऐसे प्रावधान शामिल किए जाएँ, जहाँ वरिष्ठतम
 आचार सहित ं ा: चनु ाव के समय दलोों (पार््टटियोों) और उम््ममीदवारोों द्वारा चनु ाव आयक्त ु स््वतः ही मख्ु ्य चनु ाव आयक्त
ु बन जाए, जिससे उसकी नियक्तिु
इसका पालन किया जाना चाहिए। को कार््यपालिका हस््तक्षेप से बचाया जा सके ।
z सलाहकारी भूमिका: संसद और राज््य विधानमडल ं के सदस््योों की अयोग््यता चुनाव आयोग के समक्ष मुद्दे
से संबंधित मामलोों पर क्रमशः राष्टट्रपति और राज््यपाल को सलाह देना। z पक्षपातपूर््ण भूमिका का आरोप: निष््पक्षता पर चितं ा उत््पन््न करने वाली
z अर््ध-न््ययायिक: राजनीतिक दलोों को मान््यता प्रदान करने और उन््हेें चनु ाव कार््र वाइयाँ, जैसे कि उच््च लोकछवि वाले व््यक्तियोों द्वारा आदर््श आचार
चिन््ह आवंटित करने से संबंधित विवादोों को निपटाने के लिए न््ययायालय के संहिता (MCC) के उल््ललंघन के लिए क््ललीन चिट देना।
रूप मेें कार््य करना। z शक्तियोों का अभाव: अनच्ु ्छछेद 324 के तहत पर््णू शक्तियाँ प्राप्त होने के
बावजदू , भारत के निर््ववाचन आयोग के पास राजनीतिक दलोों का पंजीकरण
पद की सुरक्षा एवं स्वतंत्रता रद्द करने और अवमानना शक्तियोों का प्रयोग करने जैसे मामलोों मेें अधिकारोों
का अभाव है।
z कार््यकाल की सरु क्षा: मख्ु ्य चनु ाव आयक्त ु को, उसके पद से उसी प्रक्रिया
और उन््हीीं आधारोों पर हटाया जा सकता है, जिस प्रक्रिया से सर्वोच््च न््ययायालय z प्राधिकार के सक्रिय उपयोग का अभाव: जाति या धर््म के आधार पर वोट
माँगने वाले राजनेताओ ं के खिलाफ कार््र वाई करने की सीमित शक्ति, प्रभावी
के न््ययायाधीश को हटाया जाता है।
प्रवर््तन मेें बाधा डालती है।
 अन््य चन ु ाव आयक्त ु तों को मख्ु ्य चनु ाव आयक्तु की सिफारिश के बिना z राजनीतिकरण: चनु ाव आयक्त ु तों के लिए सेवानिवृत्ति के बाद रोजगार संबंधी
नहीीं हटाया जा सकता। प्रतिबंधोों का अभाव, स््वतंत्र कार््यप्रणाली मेें बाधा उत््पन््न करता है।
z सेवा की शर्ततें: मख्ु ्य चनु ाव आयक्त ु की सेवा शर्ततों मेें उनकी नियक्ति
ु के बाद z गैर-पारदर््शशिता: मख्ु ्य चनु ाव आयक्त ु और आयक्त ु तों की चयन प्रक्रिया मेें
उनके लिए अलाभकारी परिवर््तन नहीीं किया जा सकता। पारदर््शशिता का अभाव, सत्तारूढ़ सरकार से प्रभावित होने के कारण पारदर््शशिता
संबंधी प्रश्न खड़े करता है।
चुनाव आयुक्ततों की चिंताएँ
z राजनीति का अपराधीकरण: राजनीति मेें धन के बढ़ते उपयोग और
z निश्चित कार््यकाल का अभाव: निर््ददिष्ट कार््यकाल के अभाव से राजनीतिक आपराधिक तत्तत्ववों की भागीदारी को प्रभावी ढगं से सबं ोधित करने मेें असमर््थता।
हस््तक्षेप और अस््थथिरता की चितं ा उत््पन््न हो सकती है। भारतीय चुनाव आयोग (ECI) के समक्ष अन्य चुनौतियााँ:
z सेवानिवत्ृ ति के बाद नियुक्तियोों की सभ ं ावना: सेवानिवृत्त चनु ाव आयक्त ु तों z इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर वेरिफ़़िएबल पेपर ऑडिट
को, बाद मेें अन््य सरकारी पदोों पर नियक्त ु किए जाने से हितोों के टकराव और ट्रे ल (VVPAT) का उपयोग, पारदर््शशिता का मुद्दा: इन प्रौद्योगिकियोों का
निष््पक्षता के बारे मेें चितं ाएँ पैदा होती हैैं। उपयोग भारतीय चनु ाव आयोग (ECI) मेें विश्वासनीयता के बारे मेें लंबे समय
z जवाबदेही और पारदर््शशिता: चनु ाव आयक्त ु तों की निर््णय लेने की प्रक्रिया की से चितं ा का विषय बना हुआ है। हालाँकि, भारतीय चनु ाव आयोग (ECI) ने
पारदर््शशिता और जवाबदेही के संबंध मेें चितं ाएँ मौजदू हैैं। अपनी जवाबदेही सनु िश्चित करने के लिए इसकी पारदर््शशिता बनाए रखने के
z हित सघं र््ष: चनु ाव आयक्त ु तों के बीच हितोों का टकराव या संभावित टकराव प्रयास किये हैैं, लेकिन नियमित जाँच और परीक्षण करके इसे त्रुटि रहित और
उनकी निष््पक्षता मेें जनता के विश्वास को कमजोर कर सकता है। सदं हे मक्त
ु बनाने की आवश््यकता है।
z अंतर-दलीय लोकतंत्र सुनिश्चित करने मेें चुनौतियाँ: जन प्रतिनिधि
z निर््धधारित योग््यताओ ं का अभाव: नियक्ति ु मेें विशिष्ट अर््हताओ ं का अभाव,
अधिनियम की धारा 29 A के तहत राजनीतिक दलोों को उनके संगठनात््मक
भमिू का के लिए आवश््यक विशेषज्ञता और अनभु व पर प्रश्न उठाता है। ढाँच,े उनके पदाधिकारियोों और उनकी नियक्ति ु , उनके पदाधिकारियोों की
z अपर््ययाप्त प्रवर््तन शक्तियाँ: चर््चचाओ ं मेें निर्देशोों को प्रभावी ढंग से लागू करने सेवा शर्ततों और शक्तियोों एवं कर््तव््योों, संगठनात््मक चनु ावोों आदि के बारे मेें
और चनु ावी कदाचारोों से निपटने के लिए प्रवर््तन शक्तियोों को बढ़़ाने की दस््ततावेज प्रस््ततुत करने की आवश््यकता होती है। हालाँकि, राजनीतिक दलोों के
आवश््यकता पर प्रकाश डाला गया है। आतं रिक लोकतांत्रिक कामकाज को लागू करने के लिए स््पष्ट प्रावधानोों की
कमी और दलोों का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति की कमी के कारण राजनीति
नियुक्ति मेें समस्याओ ं के समाधान हेतु अपेक्षित प्रयास
के अपराधीकरण, धन और बाहुबल प्रयोग का मद्दा ु उठता है।
z द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग: मख्ु ्य चनु ाव आयक्त ु और चनु ाव आयक्त
ु तों z मुख््य चुनाव आयुक्त और अन््य चुनाव आयुक्त (CEC और EC) को
की पारदर्शी नियक्ति ु के लिए प्रधानमत्री ं की अध््यक्षता मेें एक कॉलेजियम की हटाने मेें समानता का अभाव: के वल मख्ु ्य चनु ाव आयक्त ु को हटाने मेें उस
स््थथापना की जानी चाहिए, जिसमेें लोकसभा अध््यक्ष, विपक्ष के नेता, काननू प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है जो सर्वोच््च न््ययायालय (SC) के न््ययायाधीशोों
मत्री
ं और राज््यसभा के उपसभापति शामिल होोंगे। को प्राप्त है जबकि मख्ु ्य चनु ाव आयक्तु की सिफारिश पर चनु ाव आयक्त ु (EC)
z सर्वोच््च न््ययायालय: चनु ाव आयक्त ु तों के लिए निष््पक्ष और पारदर्शी चयन को हटाया जा सकता है। अतः चनु ाव आयक्त ु तों को भी मख्
ु ्य च न
ु ाव आय क्त
ु के
प्रक्रिया सनु िश्चित करने हेतु काननू ी रिक्तता को भरना। समान कार््यकाल सरु क्षा प्रदान करने के लिए प्रभावी कदम उठाये जाने चाहिए।

भारतीय चुनाव आयोग (ECI) 79


आगे की राह z वित्तीय पारदर््शशिता: पंजीकृ त दलोों द्वारा कर-मक्तु दान के दरुु पयोग को रोकने
z स््वतंत्रता और निष््पक्षता मेें वद्ृ धि: चनु ाव आयक्त
ु तों के लिए पारदर्शी और के लिए, जन प्रतिनिधित््व अधिनियम (RPA), 1951 की धारा 29 C के तहत
निष््पक्ष चयन प्रक्रिया सनु िश्चित करना, जिससे सरकारी प्रभाव कम हो। उन््हेें चनु ाव आयोग को लेखा-परीक्षा रिपोर््ट प्रस््ततुत करनी होती है।
z शक्तियोों को मजबूत करना: चनु ाव आयोग को अतिरिक्त अधिकार प्रदान z पर््यवेक्षकोों की नियुक्ति: स््वतंत्र एवं निष््पक्ष निर््ववाचन प्रक्रिया सनु िश्चित करने के
करना, जिसमेें राजनीतिक दलोों का पंजीकरण रद्द करने की शक्तियाँ और आदर््श लिए भारत निर््ववाचन आयोग सामान््य एवं व््यय पर््यवेक्षकोों की नियक्ति ु करता है।
आचार संहिता के उल््ललंघन के खिलाफ सक्रिय कार््र वाई शामिल होों।
z सक्रिय प्रवर््तन: जाति और धर््म आधारित प्रचार के विरुद्ध सक्रिय कार््र वाई प्रभावशीलता मेें सुधार के लिए आवश्यक कदम:
करने के लिए चनु ाव आयोग को सशक्त बनाना। z राजनीतिक दलोों का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति: निर््ववाचन आयोग को
z आंतरिक-दलीय लोकतंत्र और वित्तीय विनियमन: राजनीतिक दलोों के जनप्रतिनिधित््व अधिनियम (RPA), 1951 के तहत दलोों का पंजीकरण रद्द
भीतर पारदर््शशिता और जवाबदेही लागू करने के लिए सधु ारोों को बढ़़ावा देना। करने का अधिकार देने से निवारक प्रभाव पैदा हो सकता है।
z सेवानिवत्ृ ति के बाद रोजगार पर प्रतिबंध: हित संघर््ष को रोकने के लिए z राजनीतिक वित्तपोषण मेें पारदर््शशिता: चनु ावी बॉण््ड जैसे साधनोों की
सेवानिवृत्ति के बाद, मख्ु ्य एवं अन््य चनु ाव आयक्त
ु तों के नियोजन पर प्रतिबंध प्रभावशीलता, जिसके परिणामस््वरूप राजनीतिक दलोों को प्राप्त चदं े मेें
लागू करना। असमानता आती है, का पनर््ममू ु ल््ययाांकन आवश््यक है।
z EVM सरु क्षा और विश्वास निर््ममाण: EVM सरु क्षा उपायोों मेें सधु ार करना z वरीयता का सिद््धाांत: समान चनु ावी अपराधोों के लिए भारत निर््ववाचन आयोग
और विश्वास निर््ममाण के लिए हितधारकोों को शामिल करना। द्वारा ससु ंगत कार््र वाई सनु िश्चित करना, चाहे इसमेें कोई भी दल शामिल हो।
z द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिश: मख्ु ्य चनु ाव आयक्त ु और
अन््य चनु ाव आयक्त ु तों की नियक्ति
ु संबंधी सिफारिशोों के लिए प्रमख
ु हितधारकोों
प्रमुख शब्दावलियाँ को शामिल करते हुए एक कॉलेजियम की स््थथापना करना।
विवाद समाधान, कानूनी जटिलताएँ, स््वतंत्रता और निष््पक्षता, z भारतीय चुनाव आयोग (ECI) की स््वतंत्रता: भारतीय चनु ाव आयोग
अंतर-दलीय लोकतंत्र, अर््ध-न््ययायिक, मतदाता जागरूकता, (ECI) मेें कार््यपालिका हस््तक्षेप को कम करने के लिए तीनोों चनु ाव आयक्त ु तों
राजनीतिक हस््तक्षेप आदि। के कार््यकाल की सवं ैधानिक सरु क्षा सनु िश्चित करना और सेवानिवृत्ति के बाद
के पदोों पर नियक्ति
ु पर प्रतिबन््ध लगाना।
राजनीतिक दल और भारतीय चुनाव आयोग z प्रभावी विनियमन: भारत के बहुदलीय लोकतंत्र मेें, निष््पक्ष प्रतिस््पर््धधा
सनु िश्चित करने, रियायतोों के दरुु पयोग को रोकने और चनु ावी अखडत ं ा को
भारत का चनु ाव आयोग (ECI) लोकतंत्र के संरक्षक के रूप मेें कार््य करता है बनाए रखने के लिए चनु ाव आयोग द्वारा राजनीतिक दलोों का प्रभावी विनियमन
और देश मेें राजनीतिक दलोों को विनियमित करने मेें महत्तत्वपूर््ण भमि ू का निभाता
आवश््यक है।
है। यह एक निगरानी संस््थथा के रूप मेें कार््य करता है, पार्टी के वित्त की निगरानी
करता है, चनु ावोों की देखरे ख करता है और सभी राजनीतिक संस््थथाओ ं के लिए एक साथ चुनाव - एक राष्टट्र , एक चुनाव
समान अवसर बनाए रखने के उपाय करता है।
भारत के पर््वू राष्टट्रपति रामनाथ कोविंद की अध््यक्षता मेें सितंबर, 2023 मेें
राजनीतिक दलोों को विनियमित करने मेें भारत के चुनाव आयोग
एक उच््च स््तरीय समिति (HLC) का गठन किया गया था, जिसका उद्देश््य
की भूमिका:
लोकसभा, सभी राज््योों की राज््य विधानसभाओ ं और स््थथानीय निकायोों के लिए
z पंजीकरण और मान््यता: राजनीतिक दलोों को पंजीकृ त करने का भारतीय
चनु ाव आयोग (ECI) का अधिकार, चनु ाव संहिता नियमोों के समान अनपु ालन एक साथ चनु ाव कराने के मद्देु की जाँच करना था। इस उच््च स््तरीय समिति ने
को सनु िश्चित करता है। एक साथ चनु ाव कराने के प्रस््तताव पर राजनीतिक दलोों, विधि आयोग और अन््य
z चुनाव-चिन््होों का आवंटन: भारतीय चनु ाव आयोग (ECI) मान््यता प्राप्त दलोों समहोू ों से प्रतिक्रियाएँ आमंत्रित की हैैं।
को विशिष्ट चनु ाव-चिन््होों की अनमु ति देता है तथा गैर-मान््यता प्राप्त दलोों के एक साथ चुनाव कराने के पक्ष और विपक्ष मेें तर््क
लिए मफ्ु ्त चनु ाव-चिन््होों की सचू ी प्रदान करता है। z व््यय: व््यय सीमा का अभाव चनु ावोों मेें अत््यधिक व््यय का
z आदर््श आचार सहित ं ा: आदर््श आचार संहिता, सत्तारूढ़ दल को चनु ाव के कारण बनता है।
दौरान अनचु ित लाभ प्राप्त करने से रोकती है, तथा चनु ाव तिथि की घोषणा z नीतिगत पक्षाघात: आदर््श आचार संहिता के बार-बार लागू
से लागू हो जाती है। पक्ष मेें
होने से सरकारी कार््य और नागरिक जीवन बाधित होता है।
z चुनाव व््यय की अधिकतम सीमा: निर््ववाचन आयोग अनचु ित प्रभाव को तर््क
z ससं ाधनोों की बचत: दोनोों चनु ावोों के लिए एक ही मतदाता
रोकने के लिए व््यय की सीमा निर््धधारित करता है, पृथक खातोों का प्रावधान
और बथू का उपयोग करने से ससं ाधनोों का कम अपव््यय
करता है, तथा इसकी सचन ू ा न देने पर उम््ममीदवार को अयोग््य घोषित कर हो सकता है।
सकता है।

80  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


z सामाजिक सद्भाव: चनु ाव के दौरान सांप्रदायिकता और z जब विधान सभाओ ं के लिए नए चनु ाव आयोजित किए जाते हैैं, तो ऐसी नई
जातिवाद मेें वृद्धि। विधानसभाएँ - जब तक कि उन््हेें पहले ही भगं न कर दिया जाए - लोक सभा
z सतत विकास: चनु ावोों की आवृत्ति के कारण अल््पकालिक के पर््णू कार््यकाल के अतं तक जारी रहेेंगी।
z इन बदलावोों को लागू करने के लिए, पैनल ने सवि ं धान के अनच्ु ्छछेद 83 (ससं द
सधु ारोों पर ध््ययान के न्द्रित करना।
z वैश्विक अनुभव: दक्षिण अफ्रीका और स््ववीडन जैसे देशोों मेें के सदनोों की अवधि) और अनच्ु ्छछेद 172 (राज््य विधानसभाओ ं की अवधि) मेें
पक्ष मेें संशोधन की सिफारिश की है। समिति ने अपनी रिपोर््ट मेें कहा, "इस संवैधानिक
एक साथ चनु ावोों का कार््ययान््वयन।
तर््क संशोधन को राज््योों द्वारा अनसु मर््थन की आवश््यकता नहीीं होगी।"
z अदृश््य सामाजिक-आर््थथिक लागत: चनु ाव कर््तव््योों के
दौरान शिक्षा, कल््ययाणकारी योजनाओ ं और संसाधन आवंटन पैनल ने संविधान के अनुच््छछेद 324 A मेें उपयुक्त संशोधन की सिफारिश की
पर अनिर््धधारित प्रभाव। है ताकि पंचायतोों और नगर पालिकाओ ं मेें एक साथ चनु ाव कराए जा सकेें ;
z सरु क्षा बलोों की नियुक्ति: सशस्त्र पलु िस बलोों को अन््य अनुच््छछेद 325 मेें भारतीय चनु ाव आयोग (ECI) को राज््य चनु ाव अधिकारियोों
आतं रिक सरु क्षा जिम््ममेदारियोों से हटाना। के परामर््श से एक समान मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र तैयार करने
z व््ययावहारिक कठिनाइयाँ: अलग-अलग विधानसभा की अनुमति दी गई है। रिपोर््ट मेें कहा गया है कि इन दोनोों संवैधानिक संशोधनोों
को राज््योों द्वारा अनुसमर््थन की आवश््यकता होगी। वर््तमान मेें, ECI लोकसभा
कार््यकाल मेें समायोजन के कारण राजनीतिक दलोों का
और विधानसभा चनु ावोों के लिए जिम््ममेदार है, जबकि नगर पालिकाओ ं और
प्रतिरोध।
पंचायतोों के लिए स््थथानीय निकाय चनु ाव, राज््य चनु ाव आयोगोों द्वारा प्रबंधित
z सवं ैधानिक बाधाएँ: लोकसभा और राज््य विधानसभाओ ं
किए जाते हैैं।
के लिए निश्चित कार््यकाल का अभाव।
z सघं वाद-विरोध: ‘राष्ट्रीय मद्दु दों का राज््य चनु ावोों पर’ हुए आगे की राह
‘राज््य के मद्दु दों का राष्ट्रीय चनु ावोों पर’ प्रभाव। z बाधाओ ं को दूर करने के लिए विधि आयोग की सिफारिशेें:
z उत्तरदायित््व मेें कमी: बार-बार चनु ाव होने से राजनेता  सवं िधान और जन प्रतिनिधित््व अधिनियम, 1951 मेें सश ं ोधन:
मतदाताओ ं से जड़ु ़े रहते हैैं। मध््ययावधि चनु ावोों के बाद शेष कार््यकाल के लिए नई लोकसभा और
z जमीनी स््तर की अर््थव््यवस््थथा: चनु ाव के दौरान रोजगार विधानसभा का गठन किया जाए तथा अविश्वास प्रस््तताव के स््थथान पर
विपक्ष मेें रचनात््मक अविश्वास प्रस््तताव लाया जाये।
सृजन और आर््थथिक वृद्धि बाधित होती है।
तर््क  प्रधानमंत्री/मुख््यमंत्री का पूर््ण सदन चुनाव: लोकसभा अध््यक्ष के
z आदर््श आचार सहित ं ा (MCC) से सबं ंधित झूठे तर््क : नई
योजनाओ ं पर प्रतिबंधोों के बारे मेें गलत धारणाएँ। समान उनका चनु ाव करके स््थथिरता प्रदान करना।
z बहुदलीय लोकतंत्र के विरुद्ध: राज््य और राष्ट्रीय चनु ावोों  दलबदल विरोधी कानून को कमजोर करना: संसद मेें अस््थथिरता के

के बीच अस््पष्ट अतं र। दौरान विधानसभा मेें गतिरोध को रोकने के लिए अपवादात््मक नियम
z वेस््टमिंस््टर लोकतंत्र और सघं वाद के साथ असगं त: बनाए जाने चाहिए।
सरकारोों के विघटन और राजनीतिक बदलावोों पर प्रभाव।  द्वि-चरणीय चुनाव: लोकसभा चन ु ाव और मध््ययावधि अतं राल के साथ
z क्षेत्रीय दलोों का प्रभाव समाप्त: राष्ट्रीय दलोों का प्रभत्ु ्व तालमेल बिठाते हुए दो चरणोों मेें समकालिक चनु ाव आयोजित करना।
बढ़ने से क्षेत्रीय दलोों के प्रभाव व प्रतिष्ठा को नक ु सान।  अनुसचित ू उप-चुनाव: पर््वू निर््धधारित समयावधि के दौरान सभी रिक्त
z वैकल््पपिक सुधार: व््यय सीमा, राज््य वित्त पोषण, मतदान सीटोों पर चनु ाव कराना।
की छोटी अवधि, तथा सरु क्षा उपाय बढ़़ाना। चुनाव आयोग की सिफारिशेें:
समिति की सिफारिशेें z लोकसभा के लिए:
z रामनाथ कोविंद समिति ने सझु ाव दिया है कि राष्टट्रपति आम चनु ावोों के बाद  अविश्वास प्रस््तताव मेें, भावी प्रधानमत्री
ं के रूप मेें नामित व््यक्ति के लिए
लोकसभा की पहली बैठक पर अधिसचन ू ा जारी करके एक 'नियत तिथि' विश्वास प्रस््तताव शामिल होना चाहिए।
निर््धधारित की जानी चाहिए। यह तिथि नए चनु ावी चक्र की शरुु आत का प्रतीक  अपरिहार््य विघटन की स््थथिति मेें, राष्टट्रपति अगले सदन के गठन होने
होगी। तक नियक्त ु मत्ं रिपरिषद के साथ देश का प्रशासन चला सकते हैैं, या शेष
z ‘नियत तिथि’ के बाद और लोकसभा का कार््यकाल परू ा होने से पहले गठित कार््यकाल के लिए नए चनु ाव करा सकते हैैं।
होने वाली राज््य विधानसभाएँ आगामी आम चनु ावोों से पहले पर््णू हो जाएँगी। z विधान सभा के लिए:
इसके बाद लोकसभा और सभी राज््य विधानसभाओ ं के चनु ाव एक साथ  वैकल््पपिक सरकार बनाने के लिए अविश्वास प्रस््तताव के साथ-साथ विश्वास
कराए जाएँगे। प्रस््तताव को अनिवार््य बनाना, जिससे समय से पर््वू विघटन को रोका जा
z सदन मेें बहुमत न होने या अविश्वास प्रस््तताव शरू
ु होने या ऐसी किसी अन््य सके ।
घटना की स््थथिति मेें नई लोकसभा के गठन के लिए नए चनु ाव कराए जा सकते  राज््यपाल द्वारा नियक्त ु मत्ं रिपरिषद के साथ राज््य का प्रशासन चलाने
हैैं, लेकिन सदन का कार््यकाल "के वल सदन के तत््ककाल पर््वू वर्ती पर््णू कार््यकाल का प्रावधान, या यदि विधानसभा को समय से पहले भगं करना पड़़े तो
की शेष अवधि के लिए होगा"। कार््यकाल समाप्त होने तक राष्टट्रपति शासन लागू करना।

भारतीय चुनाव आयोग (ECI) 81


एक साथ चनु ाव कराने की प्रक्रिया जिसे 'एक राष्टट्र एक चनु ाव' के नाम से z गोपनीयता का अभाव: EVM मतदाता गोपनीयता से
जाना जाता है, पर उठते विवाद, को हल करने के लिए सावधानीपर््वू क विचार
समझौता कर सकती है, क््योोंकि उम््ममीदवार यह निर््धधारित
और आम सहमति की आवश््यकता है। क्षेत्रीय गतिशीलता और लोकतांत्रिक
सिद््धाांतोों के साथ शासन दक्षता जैसे लाभोों को संतुलित करना महत्तत्वपर््णू है। कर सकते हैैं कि प्रत््यक ये बथू पर किस प्रकार मतदान हुआ
विचारशील सुधारोों के साथ, एक साथ चनु ाव कराने से चनु ावी प्रक्रिया और है, जिससे इस जानकारी का दरुु पयोग होने की सभं ावना बढ़
नागरिक सहभागिता बढ़ सकती है। जाती है।
z भडं ारण और गणना सबं धं ी चितं ाएँ: EVM को विके न्द्रीकृ त स््थथानोों
प्रमुख शब्दावलियाँ पर सगं हृ ीत किया जाता है, और विशेषज्ञ उनकी अखडत ं ा सनु िश्चित
करने के लिए उनके परू े जीवन चक्र के दौरान सरु क्षित भडं ारण की
एक राष्टट्र एक चनु ाव, अविश्वास प्रस््तताव, दलबदल विरोधी कानून,
आवश््यकता पर बल देते हैैं।
उपचनु ाव, अपरिहार््य विघटन, संसाधन बचत, नीतिगत पक्षाघात,
सत््ययापन की कमी: आलोचकोों का तर््क है कि EVM मेें कागजी

EVM की चिंताएँ
z
सतत विकास आदि।
कार््र वाई की कमी होती है, जिससे मतदान प्रक्रिया की सटीकता
इलेक्ट्रॉनिक वोटिं ग मशीन (EVM) और संबधि
ं त मुद्दे को सत््ययापित करना मश््ककिल
ु हो जाता है। भौतिक रिकॉर््ड के बिना,
विश्वसनीय पनु र््गणना या ऑडिट करना चनु ौतीपर््णू हो जाता है।
z कानूनी प्रावधान: जन प्रतिनिधित््व अधिनियम (RPA), 1951 की ‘धारा z तकनीकी विफलताएँ: EVM इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैैं जो
61 A’ के तहत आयोग को वोटिंग मशीन के इस््ततेमाल का अधिकार दिया
तकनीकी खराबी, जैसे कि सॉफ़्टवेयर त्रुटियोों या हार््डवेयर त्रुटियोों,
गया। (यह संशोधन 1988 मेें किया गया था)।
के आने की सभं ावना रहती है। ये विफलताएँ सभं ावित रूप से
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के लाभ एवं चिंताएँ
मतदान प्रक्रिया को बाधित कर सकती हैैं और परिणामोों की
z सटीकता: EVM सटीक और त्रुटिरहित मतगणना सनु िश्चित अखडत ं ा के बारे मेें संदहे पैदा कर सकती हैैं।
करती हैैं, जिससे मानवीय गणना मेें त्रुटियोों और विसंगतियोों की z परिवहन के दौरान छे ड़छाड़: EVM को भडं ारण स््थथानोों से
संभावना कम हो जाती है।
मतदान केें द्ररों तक ले जाया जाता है, जिससे छे ड़छाड़ या अनधिकृ त
z दक्षता: EVM वोट डालने और गिनती के लिए आवश््यक समय
को कम करके निर््ववाचन प्रक्रिया को तेज करती हैैं, जिससे परिणामोों पहुचँ के अवसर पैदा होते हैैं। परिवहन के दौरान EVM की सरु क्षा
की शीघ्र घोषणा संभव हो पाती है। चितं ा का विषय रही है।
z पारदर््शशिता: EVM चनु ाव प्रक्रिया मेें पारदर््शशिता प्रदान करती चिंताओ ं का समाधान करने के लिए ECIS की पहल:
हैैं क््योोंकि वे कुल डाले गए वोटोों और व््यक्तिगत पार्टी-वार वोटोों
z EVM के साथ VVPAT: सभी मतदान केें द्ररों मेें वोटर वेरिफ़़िएबल पेपर
की गिनती प्रदर््शशित करती हैैं, जिससे चनु ाव प्रणाली की अखडत ं ा
सनु िश्चित होती है। ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीनोों को लागू करने से चनु ावी प्रक्रिया की
EVM के लाभ

z चुनाव की अखंडता: EVM मतदाता की पसंद की गोपनीयता पारदर््शशिता और विश्वसनीयता बढ़ती है।
बनाए रखती हैैं, क््योोंकि मतदान एक निजी कक्ष मेें किया जाता है, z VVPAT पर््चचियोों की गणना: भारत का निर््ववाचन आयोग राजनीतिक दलोों
जिससे किसी भी प्रकार का प्रभाव या दबाव नहीीं पड़ता। से प्राप्त सझु ावोों पर विचार करता है तथा निर््ददिष्ट प्रतिशत तक वोटर वेरिफ़़िएबल
z लागत प्रभावी: EVM बड़़ी मात्रा मेें कागजी मतपत्ररों की पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) पर््चचियोों की गणना करता है, जिससे आगे का
आवश््यकता को समाप्त कर देती हैैं, जिससे मद्रु ण और परिवहन सत््ययापन सनु िश्चित होता है।
से जड़ु ़ी लागत और पर््ययावरणीय प्रभाव कम हो जाता है।
z बूथ कै प््चरिंग पर रोक: EVM अपने छे ड़छाड़-रोधी डिजाइन z EVM चुनौती: भारतीय चनु ाव आयोग ने एक चनु ौती आयोजित की, जिसमेें
और तकनीकी सरु क्षा उपायोों के कारण बथू कै प््चरिंग और फर्जी राजनीतिक दलोों को EVM के साथ किसी भी प्रकार की छे ड़छाड़ को प्रदर््शशित
मतदान को अधिक कठिन बना देती हैैं। करने का अवसर दिया गया, जिससे चितं ाओ ं को दरू करने के प्रति उनकी
z मानवीय भूल मेें कमी: EVM के कारण मानवीय भलो ू ों, जैसे प्रतिबद्धता प्रदर््शशित हुई।
कि अमान््य या गलत तरीके से चिह्नित मतपत्र, की संभावना z समावेशी भागीदारी: चनु ाव आयोग; प्रथम स््तरीय जाँच, EVM/VVPAT
काफी कम हो जाती है, जिससे अधिक सटीक निर््ववाचन प्रक्रिया का यादृच््छछिकीकरण, मॉक पोल, तथा EVM सीलिंग एवं भडं ारण जैसे
सनु िश्चित होती है।
महत्तत्वपर््णू चरणोों मेें सभी राजनीतिक दलोों की सक्रिय भागीदारी सनु िश्चित करता
z वैश्विक मिसाल: जर््मनी, नीदरलैैंड और आयरलैैंड ने चितं ाओ ं
है, जिससे संपर््णू चनु ाव प्रक्रिया मेें पारदर््शशिता को बढ़़ावा मिलता है।
और काननू ी फै सलोों के बाद EVM को छोड़ दिया है और पेपर
बैलटे सिस््टम को अपना लिया है। ADR ने सझु ाव दिया (और z प्रवासियोों के लिए EVM प्रोटोटाइप: भारतीय चनु ाव आयोग ने घरे लू
बाद मेें सझु ाव वापस ले लिया) कि भारत को जर््मनी जैसे देशोों का प्रवासियोों के लिए एक रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (RVM) विकसित
उदाहरण देते हुए कागजी मतपत्र व््यवस््थथा (पेपर बैलटे सिस््टम) को की है, जिससे उन््हेें अपने गृह जिलोों की यात्रा किए बिना मतदान करने मेें सक्षम
अपनाना चाहिए। बनाया जा सके , जिससे मतदाता भागीदारी को बढ़़ावा मिल सके ।

82  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


z मतदाता शिक्षा: निर््ववाचन आयोग मतदाताओ ं को EVM के उपयोग और
मतदान के महत्तत्व के बारे मेें शिक्षित करने के लिए ‘व््यवस््थथित मतदाता शिक्षा
और निर््ववाचन भागीदारी’ (SVEEP) के माध््यम से मतदाता शिक्षा कार््यक्रम प्रमुख शब्दावलियाँ
आयोजित करता है, जिसका उद्देश््य मजबतू लोकतंत्र के लिए मतदाता भागीदारी मानव संसाधन, प्रक्रियागत परिवर््तन, समावेशी भागीदारी, तकनीकी
को बढ़़ाना है। विफलताएँ, लागत प्रभावी, बूथ कै प््चरिंग पर रोक।
सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर््णय
z सब्रु मण््यम स््ववामी बनाम भारत के चनु ाव आयोग के मामले मेें अपने 2013 के
नोटा (NONE OF THE ABOVE : NOTA)
फै सले मेें, न््ययायालय ने माना कि "स््वतंत्र और निष््पक्ष चनु ावोों के लिए पेपर पृष्ठभूमि
ट्रेल एक अनिवार््य आवश््यकता है।" बाद मेें, 2019 मेें, प्रत््ययेक विधानसभा
भारत मेें 2013 मेें, ‘उपरोक्त मेें से कोई’ नहीीं अर््थथात ‘नोटा (NOTA)’ विकल््प
क्षेत्र मेें VVPAT पर््चचियोों के साथ EVM वोटोों का 50% क्रॉस-सत््ययापन करने
की माँग करने वाली याचिका पर विचार करते हुए, न््ययायालय ने उन मतदान की शरुु आत पीपल्ु ्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) बनाम भारत संघ
केें द्ररों की संख््यया मेें वृद्धि का समर््थन किया, जिनमेें VVPAT सत््ययापन ‘प्रत््ययेक मामले मेें सर्वोच््च न््ययायालय के फै सले के परिणामस््वरूप हुई। सर्वोच््च न््ययायालय
विधानसभा क्षेत्र’ मेें या ‘खडं मेें एक से बढ़़ाकर पाँच’ मेें किया जाना चाहिए। ने लोकसभा और राज््य विधानसभाओ ं के प्रत््यक्ष चनु ावोों मेें नोटा(NOTA) के
VVPAT पर सप्री ु म कोर््ट का हालिया फै सला: इस््ततेमाल को अनिवार््य बना दिया।
z कागज़ी मतपत्र (पेपर बैलेट) को फिर से शरू ु करने से इनकार करते हुए, 26 इसके कार््ययान््वयन के बाद से, नोटा ने भारतीय मतदाताओ ं के बीच काफी
अप्रैल, 2024 को सर्वोच््च न््ययायालय ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) लोकप्रियता हासिल की है और कुछ चनु ावोों मेें तो इसे जीत के अंतर से भी
मतदान प्रणाली को बरकरार रखा और चनु ावी प्रक्रिया की अखडत ं ा पर सवाल अधिक वोट मिले हैैं।
उठाते समय "सावधानी और सतर््कता बरतने" की आवश््यकता पर जोर दिया।
नोटा के पक्ष और विपक्ष मेें तर््क
z सर्वोच््च न््ययायालय ने याचिकाकर््तताओ ं की उस माँग को भी अस््ववीकार कर
दिया जिसमेें EVM पर डाले गए वोटोों का, वोटर वेरिफ़़िएबल पेपर ऑडिट पक्ष मेें तर््क विपक्ष मेें तर््क
ट्रेल (VVPAT) पेपर स््ललिप के साथ 100% क्रॉस-सत््ययापन करने का निर्देश z असतं ोष की अभिव््यक्ति: नोटा z चनु ावी प्रभाव के बिना
देने की माँग की गई थी। वर््तमान मेें किसी भी विधानसभा क्षेत्र मेें के वल 5% मतदाताओ ं को अपने असंतोष को प्रतीकात््मक इशारा: नोटा को
EVM सह VVPAT गणना को यादृच््छछिक रूप से सत््ययापित किया जाता है। व््यक्त करने की अनमु ति देता है, चनु ावी मल्ू ्य के बिना एक प्रतीकात््मक
आगे की राह यदि वे किसी उम््ममीदवार को पद इशारा माना जाता है, क््योोंकि सबसे
z प्रक्रियागत परिवर््तन: एक ऐसी प्रणाली लागू करना जिसमेें मतदाता मतदान के लिए अनपु यक्त ु पाते हैैं तो वे अधिक वोट पाने वाले उम््ममीदवार
पश्चात एक मद्रित ु पत्र प्राप्त करेें और उसे मतपेटी मेें डालेें। सभी उम््ममीदवारोों को अस््ववीकार को नोटा वोटोों की परवाह किए बिना
z मैनुअल गणना: यदि जीत का अतं र 10% से कम है तो अदालती मामलोों कर देते हैैं। विजेता घोषित किया जाता है।
का सहारा लेने के बजाय मैनअ ु ल सत््ययापन अनिवार््य कर दिया जाना चाहिए। z बेहतर उम््ममीदवारोों को z मतदाता असतं ोष का सीमित
z सर्वोच््च न््ययायालय: प्रत््ययेक निर््ववाचन क्षेत्र मेें यादृच््छछिक EVM की VVPAT प्रोत््ससाहित करना: नोटा समाधान: नोटा, अच््छछे
सत््ययापन दर को एक से बढ़़ाकर पाँच किया जाए। राजनीतिक दलोों के लिए बेहतर उम््ममीदवारोों की कमी मेें निहित
z टोटलाइजर मशीनेें: बथू -वार परिणामोों के बजाय कई मतदान केें द्ररों के मतोों उम््ममीदवारोों को मैदान मेें उतारने मतदाताओ ं के असंतोष के मल ू
की एक साथ गणना, मतदान की गोपनीयता मेें सधु ार करती है। के लिए उत्प्रेरक का काम करता कारण को संबोधित करने मेें विफल
z सरु क्षा प्रदर््शन: 2017 की तरह एक हैकथॉन का आयोजन किया जाना चाहिए, है, जो अधिक सक्षम और स््वच््छ रहता है, तथा समस््यया का समाधान
जिसमेें व््यक्तियोों को EVM की हैकिंग का प्रदर््शन करने के लिए चनु ौती दी जाए। छवि वाले होते हैैं, क््योोंकि पार््टटियोों किए बिना के वल अस््ववीकृ ति का
z मानव सस ं ाधन: मतदान केें द्ररों पर EVM से संबंधित किसी भी समस््यया का उद्देश््य असतं ष्टु मतदाताओ ं के विकल््प प्रदान करता है।
से निपटने के लिए भारतीय चनु ाव आयोग के सभी कर््मचारियोों को व््ययापक
वोट खोने से बचना होता है।
प्रशिक्षण प्रदान करना।
z मतदाता भागीदारी मेें वद्ृ धि: z मतदाता उदासीनता की
निष्कर््ष: नोटा उन मतदाताओ ं के लिए सभ ं ावना: नोटा मतदाताओ ं की
z लोकतांत्रिक व््यवस््थथाओ ं मेें, स््वतंत्र और निष््पक्ष चनु ावोों के माध््यम से एक विकल््प प्रदान करके मतदाता उदासीनता को बढ़़ा सकता है,
मतदाताओ ं की प्राथमिकताओ ं को राजनीतिक जनादेश मेें बदलना, प्रभावी भागीदारी को बढ़़ावा दे सकता है, क््योोंकि यह मतदाताओ ं को उपयक्त

नीति-निर््ममाण के लिए महत्तत्वपर््णू है। मतदान प्रक्रियाओ ं की सटीकता और जो पहले उदासीन थे या अयोग््य उम््ममीदवार न मिलने पर मतदान
दक्षता को बढ़़ाने से लोकतांत्रिक संस््थथाएँ मज़बतू होती हैैं। चनु ाव आयोग को
उम््ममीदवारोों को वोट देने के लिए से दरू रहने का अवसर देता है,
विभिन््न हितधारकोों द्वारा उठाई गई चितं ाओ ं को सक्रिय रूप से स््ववीकार करना
चाहिए और उनका समाधान करना चाहिए, पारदर््शशिता को बढ़़ावा देना चाहिए मजबरू महससू करते थे। जिससे मतदाता भागीदारी कम हो
और निष््पक्ष और पारदर्शी चनु ावोों के संचालन मेें इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनोों सकती है और लोकतत्रं कमजोर हो
(EVM) की विश्वसनीयता सनु िश्चित करनी चाहिए। सकता है।

भारतीय चुनाव आयोग (ECI) 83


z मौलिक अधिकार: नोटा लोगोों z दुरुपयोग की सभ ं ावना: z 2019: भारत के निर््ववाचन आयोग ने लोकसभा चनु ाव के दौरान राजनीतिक
को उम््ममीदवारोों के प्रति सहमति राजनीतिक दल चनु ाव परिणामोों दलोों और उम््ममीदवारोों के लिए आदर््श आचार संहिता के संबंध मेें नए
या असंतोष व््यक्त करके अपनी को प्रभावित करने के लिए नोटा का दिशानिर्देश जारी किए।
अभिव््यक्ति की स््वतंत्रता के दरुु पयोग कर सकते हैैं। इसके लिए
आदर््श आचार संहिता (MCC) की चुनौतियााँ:
अधिकार का प्रयोग करने की वे कमजोर उम््ममीदवार उतार सकते
अनमु ति देता है। हैैं और समर््थकोों को नोटा के पक्ष z डिजिटल युग की चुनौतियाँ: आदर््श आचार संहिता डिजिटल प््ललेटफार्ममों
द्वारा उत््पन््न चनु ौतियोों का पर््ययाप्त रूप से समाधान करने मेें विफल रहती है,
मेें मतदान करने के लिए प्रोत््ससाहित
जिससे फर्जी समाचार और घृणास््पद भाषण को फै लने का मौका मिलता है।
कर सकते हैैं, जिससे विपक्षी वोटोों
z सीमित प्रवर््तन शक्ति: आदर््श आचार संहिता मेें काननू ी प्रवर््तनीयता का
मेें विभाजन हो सकता है।
अभाव है, जिसके कारण राजनीतिक दल और उम््ममीदवार बिना किसी कठोर
z नैतिक दबाव: नोटा मतदाताओ ं z सस ं ाधनोों की बर््बबादी: नोटा के परिणाम का सामना किए इसका उल््ललंघन करते हैैं।
को अनपु यक्तु उम््ममीदवारोों के प्रति कारण मतपत्ररों और मतगणना
z स््पष्टता का अभाव: आदर््श आचार सहित ं ा मेें सरकारी ससं ाधनोों के उपयोग
अपना असंतोष व््यक्त करने का प्रक्रियाओ ं के लिए अतिरिक्त जैसे मद्दु दों पर स््पष्टता का अभाव है, जिसके कारण भ्रम और असंगत प्रवर््तन
अवसर देता है, जिससे राजनीतिक ससं ाधनोों की आवश््यकता पड़ती की स््थथिति पैदा होती है।
दलोों पर बेहतर उम््ममीदवारोों को है, जिससे चनु ावोों के लिए z समयबद्ध प्रभावशीलता: आदर््श आचार सहित ं ा समयबद्ध है, चनु ाव समाप्त
मैदान मेें उतारने का नैतिक दबाव आवश््यक लागत और समय मेें होने के बाद इसकी प्रभावशीलता समाप्त हो जाती है, तथा चनु ाव पर््वू और
पड़ता है। वृद्धि हो सकती है। चनु ाव पश्चात इसके उल््ललंघन की कोई प्रतिक्रिया नहीीं होती।
नोटा (NOTA) विकल््प को 2013 मेें सुप्रीम कोर््ट के निर्देश पर मतदाताओ ं को z सीमित दायरा: आदर््श आचार सहित ं ा के वल चनु ाव के दौरान राजनीतिक
अपनी पसंद व््यक्त करने मेें सशक्त बनाने के लिए पेश किया गया था। हालाँकि दलोों और उम््ममीदवारोों के आचरण को विनियमित करती है, तथा चनु ाव प्रचार
इसे अस््ववीकृ ति के प्रतीकात््मक संकेत और नकारात््मक वोट के रूप मेें देखा गया के वित्तीय विनियमन जैसे महत्तत्वपर््णू मामलोों को नजरअदं ाज कर देती है।
है, लेकिन यह चनु ाव प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए एक उपयोगी उपकरण z खामियाँ: आदर््श आचार सहित ं ा मेें कई खामियाँ हैैं जिनका राजनीतिक दल
के बजाय एक शक्तिहीन सुविधा रही है। और उम््ममीदवार फायदा उठा सकते हैैं। उदाहरण के लिए, आचार संहिता चनु ाव
प्रचार मेें धर््म या जाति के इस््ततेमाल पर रोक नहीीं लगाती है, जिससे सांप्रदायिक
आदर््श आचार संहिता (MCC) और विभाजनकारी राजनीति को बढ़़ावा मिलने की संभावना बनी रहती है।
आदर््श आचार संहिता (MCC), भारत के चनु ाव आयोग (ECI) द्वारा चनु ावोों आदर््श आचार संहिता को कानूनी रूप से लागू करना
के दौरान राजनीतिक दलोों और उम््ममीदवारोों के व््यवहार को विनियमित करने
कार््ममिक, लोक शिकायत, विधि एवं न््ययाय संबंधी स््थथायी समिति ने,
के लिए जारी दिशा-निर्देशोों का एक समहू है। आदर््श आचार संहिता को पहली
आदर््श आचार संहिता (MCC) को कानूनी रूप से बाध््यकारी बनाने की
बार चनु ाव आयोग ने 1960 मेें के रल मेें विधानसभा चनु ाव मेें पेश किया था।
सिफारिश की तथा आदर््श आचार संहिता (MCC) को जन प्रतिनिधित््व
1962 मेें, चनु ाव आयोग ने आम चनु ावोों के लिए आदर््श आचार संहिता पेश
अधिनियम(RPA), 1951 का हिस््ससा बनाने की भी अनुशंसा की।
की। राजनीतिक दलोों द्वारा मानदडों ों का बार-बार उल््ललंघन करने के बाद 1991
मेें चनु ाव आयोग द्वारा आदर््श आचार संहिता के दिशा-निर्देशोों को और सख््त z जवाबदेही सुनिश्चित करना: आदर््श आचार सहित ं ा की काननू ी प्रवर््तनीयता
बना दिया गया था। जवाबदेही स््थथापित करे गी तथा राजनीतिक दलोों और उम््ममीदवारोों के बीच
अनैतिक प्रथाओ ं को हतोत््ससाहित करे गी।
विकास z लोकतंत्र को मजबूत बनाना: संहिता को काननू ी रूप से लागू करने योग््य
z 1960: के रल मेें राज््य विधान सभा के आम चनु ाव के दौरान पहली बार बनाने से निष््पक्ष और पारदर्शी चनु ाव सनु िश्चित करके लोकतंत्र को मजबतू ी
आदर््श आचार सहित ं ा लागू की गई। मिलेगी।
z विधि के शासन को कायम रखना: संहिता को काननू ी रूप से लागू करने
z 1962: लोकसभा चनु ावोों और राज््य विधानसभा चनु ावोों के दौरान सहित ं ा
योग््य बनाने से विधि के शासन को कायम रखा जा सके गा तथा राजनीतिक
को राष्ट्रीय स््तर पर संज्ञान मेें लिया गया।
दलोों और उम््ममीदवारोों द्वारा सत्ता के दरुु पयोग को रोका जा सके गा।
z 1991: भारतीय चनु ाव आयोग (ECI) ने राजनीतिक दलोों और उम््ममीदवारोों z व््यवहार््यता: चनु ाव आयोग ने इसका विरोध इस कारण किया है कि चनु ाव
के लिए आदर््श आचार संहिता हेतु दिशानिर्देश जारी किये। कम समय मेें परू े होने चाहिए और न््ययायिक कार््यवाही मेें अधिक समय लगता
z 1993: भारत निर््ववाचन आयोग ने आदर््श आचार सहित ं ा के लिए सश ं ोधित है, इसलिए इसे काननू द्वारा लागू करना व््यवहार््य नहीीं है।
दिशानिर्देश जारी किये। z सस ु गं तता: काननू ी प्रवर््तनीयता संहिता के ससु ंगत प्रवर््तन को बढ़़ावा देगी,
z 2013: भारत के सर्वोच््च न््ययायालय ने चनु ाव आयोग को इलेक्ट्रॉनिक तथा इसके अनप्रु योग मेें असमानताओ ं को दरू करे गी।
वोटिंग मशीनोों (EVM) और मतपत्ररों मेें "इनमेें से कोई नहीीं" (नोटा) का z स््पष्टता: काननू ी प्रवर््तनीयता से यह स््पष्टता आएगी कि सहित
ं ा का उल््ललंघन
विकल््प शामिल करने का निर्देश दिया। क््यया है, जिससे उसका प्रवर््तन आसान हो जाएगा।

84  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


आगे की राह चुनावी वित्तपोषण से संबंधित चुनौतियााँ:
z दडं को कठोर बनाना: भारतीय चनु ाव आयोग (ECI) आदर््श आचार संहिता z चुनावी बॉण््डोों से जुड़़ी गुमनामी की चिंताएँ: 2017 मेें चनु ावी बॉण््डोों की
के उल््ललंघन के लिए दडं को कठोर करने पर विचार कर सकता है। उदाहरण शरुु आत से, राजनीतिक चदों ों की गमु नामी के बारे मेें चितं ाएँ बढ़ गई हैैं, जिससे
के लिए , 2019 के लोकसभा चनु ावोों मेें, भारतीय चनु ाव आयोग (ECI) ने कंपनियोों से असीमित गमु नाम चदं े की अनमु ति मिल गई है और चनु ावोों को
धर््म के नाम पर वोट माँगकर आचार संहिता का उल््ललंघन करने के लिए एक प्रभावित करने वाले अवैध वित्तपोषण का जोखिम बढ़ गया है।
उम््ममीदवार को तीन साल के लिए अयोग््य घोषित कर दिया था। z वित्तीयन (फंडिगं ) स्रोतोों मेें अस््पष्टता: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर््म््स
(ADR) की एक रिपोर््ट के अनसु ार, भारत मेें राजनीतिक दलोों को अपनी
z बेहतर निगरानी: चन ु ाव आयोग आदर््श आचार संहिता के उल््ललंघन का पता आय का एक बड़़ा हिस््ससा अज्ञात स्रोतोों से प्राप्त होता है, जो चनु ावी वित्तीयन
लगाने के लिए अपने निगरानी तंत्र मेें सधु ार कर सकता है। उदाहरण के लिए, (फंडिंग) की समस््यया को दर््शशाता है। पारदर््शशिता की इस कमी के कारण धन
2019 के लोकसभा चनु ावोों मेें, चनु ाव आयोग ने चनु ाव अभियानोों की निगरानी के प्रवाह को पता लगाना और भ्रष्टाचार के संभावित स्रोतोों की पहचान करना
और आचार सहित ं ा के उल््ललंघन का पता लगाने के लिए मोबाइल ऐप का मश््ककिल
ु हो जाता है।
इस््ततेमाल किया। z चुनाव प्रचार खर््च मेें वद्ृ धि: भारतीय लोकतांत्रिक व््यवस््थथा मेें चनु ाव बहुत
z खामियोों को दूर करना: चन ु ाव आयोग आदर््श आचार संहिता मेें खामियोों महगं े होते जा रहे हैैं, जिसके लिए राजनीतिक दलोों और उम््ममीदवारोों को
को दरू करने के लिए इसके प्रावधानोों का अद्यतन कर सकता है, जिसमेें चनु ाव प्रचार के लिए पर््ययाप्त धन इकट्ठा करना पड़ता है। इसके परिणामस््वरूप
चनु ाव प्रचार मेें धर््म या जाति के इस््ततेमाल पर प्रतिबंध शामिल है। उदाहरण धनी दानदाताओ ं का प्रभाव बढ़ सकता है और राजनीतिक गतिविधियोों को
के लिए , 2019 के लोकसभा चनु ावोों मेें, चनु ाव आयोग ने राजनीतिक दलोों वित्तपोषित करने के लिए गैरकाननू ी तरीके अपनाए जा सकते हैैं।
को, राजनीतिक प्रचार के लिए सशस्त्र बलोों का उपयोग करने से परहेज करने z पारदर््शशिता सबं ंधी चुनौतियाँ: भारतीय राजनीतिक फंडिंग प्रणाली मेें
के लिए दिशा-निर्देश जारी किए। पारदर््शशिता का अभाव है, जिससे पार््टटियोों और उम््ममीदवारोों को जवाबदेह ठहराना
z जागरूकता अभियान: चन ु ाव आयोग मतदाताओ ं और राजनीतिक दलोों चनु ौतीपर््णू हो जाता है। फंड की उत््पत्ति के बारे मेें अनिश्चितता बनी रहती है,
को आदर््श आचार संहिता और उसके प्रावधानोों के बारे मेें शिक्षित करने क््योोंकि वित्त का गमु नाम रूप से लेन-देन सम््पन््न किया जाता हैैं।
के लिए जागरूकता अभियान चला सकता है। उदाहरण के लिए , 2019 z सीमित सार््वजनिक निधि: हालाँकि, सरकार चनु ाव से संबंधित खर्चचों के लिए
के लोकसभा चनु ावोों मेें, चनु ाव आयोग ने मतदाता भागीदारी को प्रोत््ससाहित कुछ निधि उपलब््ध कराती है, लेकिन उपलब््ध सार््वजनिक निधि की मात्रा
करने और नैतिक मतदान को बढ़़ावा देने के लिए "SVEEP" नामक मतदाता सीमित है। नतीजतन, राजनीतिक दल और उम््ममीदवार निजी फंड पर निर््भर
जागरूकता अभियान चलाया। रहते हैैं, जिससे संभावित रूप से मजबतू व धनी वर््ग का प्रभाव बढ़ जाता है।
आदर््श आचार संहिता स््ववाभाविक रूप से एक अनिवार््य दिशानिर्देश है परंतु इसे चुनावी बॉण्ड असंवैधानिक घोषित
न््ययायालय के समक्ष एक संपूर््ण नियम पुस््ततिका के रूप मेें इस््ततेमाल नहीीं किया 15 फरवरी, 2024 को एक ऐतिहासिक फै सले मेें भारत के सर्वोच््च न््ययायालय
जा सकता है। आदर््श आचार संहिता के उल््ललंघन के मामले मेें चनु ाव आयोग की पाँच न््ययायाधीशोों की पीठ ने चनु ावी बॉण््ड योजना को असंवैधानिक घोषित
द्वारा दी गई चेतावनियाँ सामान््य कार््रवाई का तरीका हैैं। हालाँकि, यदि उल््ललंघन कर दिया । यह एक ऐसी योजना थी जिसने राजनीतिक दलोों के लिए असीमित
भारतीय दडं संहिता, 1860 और जनप्रतिनिधित््व अधिनियम, 1951 के अंतर््गत गुमनाम फंडिंग के द्वार खोल दिए और भारतीय राजनीतिक व््यवस््थथा मेें वित्त
आता है, तो इसके कई गंभीर परिणाम हो सकते हैैं और उल््ललंघनकर््तता को जेल पोषण की भमि ू का को मजबूत किया।
भी जाना पड़ सकता है। चुनावी बॉण्ड को असंवैधानिक घोषित करने के लाभ एवं चिंताएँ
चिंतायेें लाभ
प्रमुख शब्दावलियाँ z सर्वोच््च न््ययायालय ने कहा कि z बढ़़ी हुई पारदर््शशिता: चनु ाव
गमु नाम चनु ावी बॉण््ड, सचन
ू ा के अधिकारियोों और जनता के
चनु ाव आयोग, विधि का शासन, डिजिटल यगु , समयबद्ध अधिकार और धारा 19(1)(A) साथ सहभागिता के माध््यम से
प्रभावशीलता, भारतीय दंड संहिता, जनप्रतिनिधित््व अधिनियम, का उल््ललंघन करते हैैं। पारदर््शशिता को बढ़़ावा देता है।
आदर््श आचार संहिता, सीमित प्रवर््तन शक्तियाँ, नोटा (NOTA) z चयनात््मक गुमनामी और z दानकर््तता की गुमनामी का
आदि। गोपनीयता: न््ययायालय ने कहा कि सरं क्षण: व््यक्तियोों और संगठनोों
यह योजना “चयनात््मक गमु नामी” द्वारा गोपनीय दान की अनमु ति
चुनावी वित्तपोषण और “चयनात््मक गोपनीयता” का देता है।
वह प्रक्रिया जिसके द्वारा राजनीतिक दल अपने अभियान और गतिविधियोों के प्रावधान करती है क््योोंकि चनु ावी
लिए धन जुटाते हैैं, उसे चनु ावी वित्तीयन (फंडिंग) या चनु ावी वित्तपोषण के रूप बॉण््ड का विवरण भारतीय स््टटेट
मेें जाना जाता है। सर्वोच््च न््ययायालय ने चनु ावी बॉण््ड के माध््यम से प्राप्त धन के बैैंक (SBI) के पास उपलब््ध है
आतंकवाद का समर््थन करने या हिसं क विरोध प्रदर््शन भड़काने जैसे उद्देश््योों के और काननू प्रवर््तन एजेेंसियोों द्वारा
लिए संभावित दरुु पयोग के बारे मेें चिंता जताई है। भी इसे प्राप्त किया जा सकता है।

भारतीय चुनाव आयोग (ECI) 85


z धन के स्रोत जानने का z उत्तरदायित््व आश्वासन: दान को नीतियोों पर प्रभाव: दानकर््तता और गैर-राजनीतिक कारणोों के प्रति
अधिकार: न््ययायालय ने सरकार पार्टी के घोषित बैैंक खातोों मेें जमा निगम उन पार््टटियोों की नीतियोों को अनुचित: राज््य वित्तपोषण अन््य
के इस तर््क की आलोचना की किया जाता है, जिससे निधि के प्रभावित कर सकते हैैं जिन््हेें वे धन आवश््यक सार््वजनिक सेवाओ ं जैसे
कि मतदाताओ ं को राजनीतिक उपयोग का स््पष्टीकरण सनु िश्चित देते हैैं। इससे भाई-भतीजावाद और शिक्षा, स््ववास््थ््य और बुनियादी ढाँचे
दलोों के धन के स्रोत जानने का होता है। नीति पर प्रभाव हो सकता है। से संसाधनोों की कमी कर सकता है,
अधिकार नहीीं है। जिन पर ध््ययान देने और वित्तपोषण की
z एक नई सतुलित ं प्रणाली की z नकद लेनदेन को हतोत््ससाहित आवश््यकता होती है।
आवश््यकता: न््ययायालय ने कहा करना: निर््ददिष्ट बैैंकोों के माध््यम से असमान अवसर: जिनके पास निष््पक्षता की कोई गारंटी नहीीं:
कि केें द्र सरकार को एक नई भगत
ु ान की आवश््यकता होती है, अधिक वित्तीय संसाधनोों तक पहुचँ आवंटन मानदंडोों और वितरण तंत्ररों
होती है, उनके पास प्रतिस््पर््धधात््मक मेें हेरफे र किया जा सकता है या
प्रणाली तैयार करने पर विचार जिससे नकदी का उपयोग कम हो
लाभ होता है, जो दसू रोों (कम वित्तीय उन््हेें पक्षपातपूर््ण बनाया जा सकता
करना चाहिए जो आनपु ातिकता जाता है।
संसाधनोों वाले) की भागीदारी मेें है, जिससे संभावित रूप से कुछ
को सतं लु ित करे और समान बाधा उत््पन््न कर सकता है। राजनीतिक दलोों या उम््ममीदवारोों को
अवसर का मार््ग प्रशस््त करे ।
लाभ हो सकता है।
आगे की राह काला धन और अवैध वित्तपोषण: अभिव््यक्ति की स््वतंत्रता से
z संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग (2001) : यदि यह चनु ावी प्रक्रिया की अखंडता संबंधित चिंताएँ: निजी वित्तपोषण
पारदर््शशिता की कुछ शर्ततें परू ी होती हैैं तो भ्रष्टाचार विरोधी उपाय के रूप मेें से समझौता कर सकता है और पर प्रतिबंध, व््यक्तियोों और संगठनोों की
चनु ावोों के लिए राज््य द्वारा वित्त पोषण की सिफारिश की गई। राजनीतिक प्रणाली मेें जनता का क्षमता को सीमित कर सकते हैैं तथा
विश्वास खत््म कर सकता है। उनकी राजनीतिक प्राथमिकताओ ं को
 चन ु ावोों के लिए राज््य वित्तपोषण का तात््पर््य राजनीतिक दलोों और
व््यक्त करने के अधिकार का उल््ललंघन
उम््ममीदवारोों के चनु ावी खर्चचों को समर््थन देने के लिए सार््वजनिक धन का
कर सकते हैैं।
उपयोग करना है।
फिजूलखर्ची: खर््च की सीमा के सरकारी प्रभाव: राजनीतिक दल
z चिली का प्रयोग - आरक्षित अश ं दान: इसके तहत, दानकर््तता पार््टटियोों को दान अभाव मेें, पार््टटियाँ रै लियोों, विज्ञापन वित्त पोषण के लिए सरकार पर
देने के लिए इच््छछित धन को चिली की चनु ाव सेवा को हस््तताांतरित कर सकते आदि पर खर््च की होड़ मेें शामिल अत््यधिक निर््भर हो सकते हैैं, जिससे
थे। चनु ाव सेवा तब दानकर््तता की पहचान बताए बिना उस राशि को पार्टी को हो जाती हैैं, जिससे फिजूलखर्ची हो उनकी स््वतंत्रता और सरकार पर
भेज देती थी। सकती है। नियंत्रण रखने की क्षमता पर असर
चुनावोों का राज्य वित्तपोषण पड़ सकता है।
मतदाता हेरफेर: मतदाता उपहार, समग्र रुप से एक समान
चनु ावोों के राज््य वित्तपोषण मेें, पार््टटियोों और उम््ममीदवारोों को स््वयं से पूरी तरह कै श फॉर वोट आदि पर अनियंत्रित दृष्टिकोण: विभिन््न क्षेत्ररों, पार््टटियोों
धन जुटाने के बजाय, सार््वजनिक खजाने/राज््य बजट से धन प्राप्त होता है। खर््च और धन शक्ति के माध््यम से और उम््ममीदवारोों की आवश््यकताएँ
चनु ावी वित्तपोषण की आवश््यकता और चनु ौतियाँ चनु ावी परिणामोों मेें हेरफे र हो सकता अलग-अलग हो सकती हैैं, और
आवश््यकता चुनौतियाँ है। सभी के लिए एक जैसा दृष्टिकोण इन
राजनीतिक वित्तपोषण मेें करदाताओ ं पर बोझ: राजनीतिक मतभेदोों को प्रभावी ढंग से संबोधित
पारदर््शशिता का अभाव: राजनीतिक अभियानोों के लिए सार््वजनिक धन नहीीं कर सकता है।
दलोों और उम््ममीदवारोों के लिए प्रचार का उपयोग करने से अतिरिक्त बोझ आपराधिक गठजोड़: बेहिसाब
अभियान के व््यय या धन के स्रोतोों के पड़ता है। धनराशि; अपराधियोों, धनी व््ययापारियोों
अनिवार््य प्रकटीकरण पर कोई सीमा और राजनेताओ ं के बीच गठजोड़ को
नहीीं है। सुगम बनाती है।
भ्रष्टाचार की संभावना: निजी सार््वजनिक धन का संभावित महत्त्वपूर््ण समितियााँ
वित्तपोषण से धनी व््यक्तियोों, दुरुपयोग: उचित निगरानी और
z चुनावोों के राज््य वित्तपोषण पर इद्रं जीत गुप्ता समिति (1998): उम््ममीदवारोों
व््यवसायोों या हित समहोू ों का जवाबदेही तंत्र के बिना, यह जोखिम और मान््यता प्राप्त दलोों के लिए सीमित अप्रत््यक्ष सब््ससिडी के रूप मेें आशं िक
राजनीतिक निर््णयोों पर प्रभाव पड़ बना रहता है कि सार््वजनिक धन राज््य वित्तपोषण की सिफारिश की गई थी।
सकता है। बर््बबाद हो सकता है या उसका उपयोग z चुनाव सुधारोों पर विधि आयोग की रिपोर््ट (1999): भ्रष्टाचार को कम
अनपेक्षित उद्देश््योों के लिए किया जा करने के लिए मान््यता प्राप्त दलोों और उम््ममीदवारोों को चनु ाव व््यय की आशं िक
सकता है। राज््य प्रतिपर््तति
ू की वकालत की गई।

86  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


z द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर््ट (2008): राजनीति मेें भ्रष्टाचार
और अपराधीकरण से निपटने के लिए सधु ारोों के हिस््ससे के रूप मेें चनु ावोों के
लिए राज््य द्वारा वित्त पोषण का समर््थन किया गया। प्रमुख शब्दावलियाँ
z सवं िधान के कामकाज की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग (2001): व््यय सीमा, चनु ावोों का राज््य वित्त पोषण, डिजिटल लेनदेन, गमु नाम
यदि पारदर््शशिता की कुछ शर्तं् परू ी होती हैैं तो भ्रष्टाचार विरोधी उपाय के रूप दान, नीति पर नियंत्रण, फिजूलखर्ची, आपराधिक गठजोड़, आदि।
मेें चनु ावोों के लिए राज््य द्वारा वित्त पोषण की सिफारिश की गई।
आगे की राह राजनीति का अपराधीकरण
z डिजिटल लेनदेन: पारदर््शशिता बढ़़ाने और अवैध वित्तपोषण के प्रभाव को सर्वोच््च न््ययायालय ने हाल ही मेें आपराधिक मामलोों के शीघ्र निपटान की
कम करने के लिए राजनीतिक दान के लिए पर््णू रूप से डिजिटल लेनदेन को निगरानी के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैैं, जिसमेें संसद सदस््योों (सांसदोों)
अपनाया जाना चाहिये। और विधानसभा सदस््योों (विधायकोों) के खिलाफ राजनीति के अपराधीकरण
z गुमनाम दान को सीमित करना: संभावित कॉर्पोरे ट-राजनीतिक गठजोड़ पर के चिंताजनक मद्देु पर ध््ययान दिया गया है।
अक ं ु श लगाने के लिए गमु नाम दान को अधिकतम 20% तक सीमित करना z 2024 के लोकसभा चन ु ावोों के बाद, नव-निर््ववाचित 543 सांसदोों मेें 46% सांसदोों
चाहिये। के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैैं , जो राजनीति के अपराधीकरण के मद्देु
z सच ू ना का अधिकार (RTI) के माध््यम से पारदर््शशिता: राजनीतिक दलोों को को उजागर करता है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर््म््स (ADR) चनु ावी
सचन
ू ा का अधिकार (RTI) अधिनियम के दायरे मेें लाना, जैसा कि भटू ान और सधु ारोों पर केें द्रित एक समहू है।
जर््मनी मेें किया जाता है, ताकि उनके कामकाज मेें पारदर््शशिता सनु िश्चित हो सके ।
z फरवरी 2022 की मीडिया रिपोर्टटों के अनस ु ार, दिसंबर 2021 के अतं तक
z राष्ट्रीय चुनावी कोष: एक राष्ट्रीय चनु ावी कोष की स््थथापना करना, जिसमेें मौजदू ा और पर््वू विधायकोों और सांसदोों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलोों
दानकर््तता योगदान करते हैैं, तथा पिछले चनु ावोों मेें उनके प्रदर््शन के आधार पर
की संख््यया बढ़कर 5,000 के करीब पहुचँ गई थी।
दलोों के बीच कोष वितरित किया जाता है।
z ADR के अनस ु ार जलु ाई 2023 के मध््य तक विश्लेषित 28 राज््योों और 2 केें द्रशासित
z चुनावोों का राज््य द्वारा वित्तपोषण: उच््च लागत को ध््ययान मेें रखते हुए,
चनु ावोों के राज््य द्वारा वित्तपोषण के लिए द्वितीय प्रशासनिक सधु ार आयोग प्रदेशोों के कुल विधायकोों मेें से 44% के विरुद्ध आपराधिक मामले लबित ं हैैं।
(द्वितीय ARC) की सिफारिश की जाँच करना। परिभाषा
z राजनीतिक दलोों पर व््यय की सीमा: राजनीतिक दलोों के व््यय पर एक सीमा z ‘राजनीति के अपराधीकरण’ का तात््पर््य आपराधिक पृष्ठभमि ू वाले व््यक्तियोों
लगाना, जिसकी गणना व््यक्तिगत उम््ममीदवारोों के लिए निर््धधारित अधिकतम की राजनीतिक क्षेत्र मेें घसु पैठ से है, जिसमेें चनु ावोों मेें उनकी भागीदारी और
सीमा और मैदान मेें उतारे गए कुल उम््ममीदवारोों की संख््यया के आधे के गणु नफल
तत््पश्चात संसद सदस््य (MP) या विधान सभा सदस््य (MLA) के रूप मेें
के रूप मेें व््यवस््थथित की जानी चाहिये।
उनका निर््ववाचन शामिल है।
राजनीति के अपराधीकरण के कारण
राजनीतिक और प्रशासनिक कानूनी एवं मतदाता संबंधी चुनाव आयोग
राजनेताओ ं और नौकरशाही के बीच गठजोड़: दोषसिद्धि के बाद अयोग््यता: जनप्रतिनिधित््व विश्वास की कमी: सत्तारूढ़ पार्टी के उम््ममीदवारोों के
यह अवांछनीय और खतरनाक अपराधियोों, कानून अधिनियम, 1951 दोषसिद्धि के बाद किसी व््यक्ति खिलाफ देरी से की गई कार््रवाई और आदर््श आचार
तोड़ने वालोों और भ्रष्ट व््यक्तियोों को राजनीतिक को सांसद/विधायक बनने से अयोग््य ठहराता है, संहिता का खल ु ा उल््ललंघन, चनु ाव आयोग मेें जनता
व््यवस््थथा मेें हस््तक्षेप करने के लिए प्रेरित करता है। लेकिन यह उसे पार्टी के भीतर पद धारण करने से के विश्वास को कम करता है।
उदाहरण के लिए, 2जी स््पपेक्टट्रम घोटाला, जिसमेें नहीीं रोकता है। उदाहरण: किसी दंडनीय अपराध
राजनेता और नौकरशाह शामिल थे, भारत के के लिए दोषी ठहराए गए राजनेता को निर््ववाचित
इतिहास मेें सबसे बड़़े भ्रष्टाचार घोटालोों मेें से एक था। प्रतिनिधि बनने से अयोग््य ठहराया जा सकता है,
लेकिन फिर भी वह प्रभावशाली पार्टी पदोों पर रह
सकता है या पार्टी के मामलोों पर महत्तत्वपूर््ण नियंत्रण
रख सकता है।
भ्रष्टाचार: हर चनु ाव मेें राजनीतिक दल आपराधिक संकीर््ण हित: उम््ममीदवारोों के आपराधिक इतिहास बुनियादी ढाँचे का अभाव: उदाहरण: सीमित
पृष्ठभमिू वाले उम््ममीदवारोों को खड़़ा करते हैैं, और के बारे मेें जानकारी होने के बावजूद, मतदाता अक््सर जनशक्ति, तकनीकी संसाधन और तार््ककि क चनु ौतियाँ;
आपराधिकता और जीतने की संभावना के बीच एक वोट डालते समय जाति या धर््म जैसे संकीर््ण हितोों को भारतीय चनु ाव आयोग (ECI) के लिए चनु ाव प्रचार
स््पष्ट संबंध बन जाता है। उदाहरण के लिए, 2019 प्राथमिकता देते हैैं। गतिविधियोों की व््ययापक निगरानी और चनु ाव नियमोों
के लोकसभा चनु ाव मेें जीतने वाले 43% उम््ममीदवारोों को लागू करना मश््ककिल
ु बना सकती हैैं।
के खिलाफ आपराधिक मामले थे एवं 2024 के
चनु ावोों के बाद यह बढ़कर 46% हो गया है।

भारतीय चुनाव आयोग (ECI) 87


वोटोों की खरीद-फरोख््त: मतदाताओ ं के साथ सीमित शक्तियाँ: जनप्रतिनिधित््व अधिनियम की
छे ड़छाड़ और वोट खरीदने की प्रथा लोकतांत्रिक धारा 8 के तहत चनु ाव आयोग के पास दोषसिद्धि से
प्रक्रिया को कमजोर करती है। उदाहरण: ऐसे उदाहरण पहले उम््ममीदवारोों को अयोग््य ठहराने का अधिकार
सामने आए हैैं जहाँ राजनेता मतदाताओ ं की पसंद नहीीं है। उदाहरण: चनु ाव आयोग के पास दोषसिद्धि
को प्रभावित करने के लिए पैसे, उपहार या अन््य होने तक उन््हेें चनु ाव लड़ने से अयोग््य ठहराने का
प्रोत््ससाहन वितरित करते हैैं, जिससे चनु ावोों की अधिकार नहीीं हो सकता है।
अखंडता से समझौता होता है।
दंड एवं सजा की असमान दर: सांसदोों और
विधायकोों के खिलाफ आपराधिक मामलोों मेें कम
सजा दर, दडं से मक्तिु की धारणा बनाती है और
आपराधिक पृष्ठभमि ू वाले व््यक्तियोों को राजनीति मेें
प्रवेश करने के लिए प्रोत््ससाहित करती है। उदाहरण:
सांसदोों और विधायकोों के खिलाफ आपराधिक
मामलोों मेें सजा दर के वल 6% है, जो भारतीय दंड
संहिता के तहत राष्ट्रीय औसत सजा दर 46% से
काफी कम है।

राजनीति के अपराधीकरण के परिणाम पब््ललिक इटं रे स््ट फाउंडेशन सांसदोों और विधायकोों के मामलोों की लंबित
z सस ं द की कमज़़ोर विश्वसनीयता: आपराधिक पृष्ठभमि ू के काननू निर््ममाता बनाम भारत संघ, 2014। सुनवाई एक वर््ष के भीतर पूरी की जाए।
विधायी गणु वत्ता को कमजोर करते हैैं और सस्ं ्थथाओ ं मेें जनता का विश्वास लोकप्रहरी बनाम भारत राजनीतिक उम््ममीदवारोों के साथ-साथ उनके
खत््म करते हैैं। संघ मामला, 2018 आश्रितोों और सहयोगियोों की आय के स्रोत का
z भ्रष्टाचार का प्रजनन क्षेत्र: धन का प्रवाह एक भ्रष्ट लोकतंत्र को बढ़़ावा देता खलु ासा अनिवार््य है।
है, जिसमेें वित्तीय प्रभावोों और बाहुबल का बोलबाला होता है। जनहित फाउंडेशन के स चनु ाव आयोग एवं राजनीतिक दलोों के माध््यम से
z मतदाताओ ं के सीमित विकल््प: आपराधिक उम््ममीदवार विकल््पोों को सीमित 2018 उम््ममीदवारोों के विरुद्ध लंबित आपराधिक मामलोों
कर देते हैैं, जिससे स््वतंत्र और निष््पक्ष चनु ाव बाधित होते हैैं। का खल ु ासा करना तथा विभिन््न मीडिया के
z खराब शासन प्रभाव: कमजोर काननू , बहिष््ककारी नीतियाँ और भ्रष्टाचार; माध््यम से उसका प्रचार करना।
सार््वजनिक सेवा वितरण मेें बाधा डालते हैैं। पब््ललिक इटं रे स््ट फाउंडेशन राजनीतिक दलोों के लिए उम््ममीदवारोों के खिलाफ
z न््ययायिक आस््थथा पर प्रश्नचिह्न: राजनीतिक हेरफे र से निष््पक्ष न््ययायपालिका एवं अन््य बनाम भारत लंबित आपराधिक मामलोों का विवरण और उन््हेें
की स््वतंत्रता पर सदं हे उत््पन््न होता है। संघ एवं अन््य (2020) दसू रोों के मक ु ाबले चनन ु े के कारणोों को अनिवार््य
रूप से प्रकाशित करना।
z सामाजिक सद्भाव को बाधित करना: अपराधी राजनेता नकारात््मक आदर््श
मॉडल स््थथापित करते हैैं परिणामस््वरूप हिसं ा की संस््ककृ ति को बढ़़ावा देते हैैं। ‘रिश्वत के बदले वोट’ मामले पर सर्वोच््च न््ययायलय का हालिया
फैसला:
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उठाए गए कदम
सर्वोच््च न््ययायालय ने फै सला सुनाया कि रिश्वतखोरी के मामलोों मेें सांसदोों
निर््णय महत्तत्व और विधायकोों को अभियोजन से छूट नहीीं मिल सकती। कोर््ट ने स््पष्ट किया
1997 का निर््णय यदि किसी व््यक्ति को PoCA, 1988 के अंतर््गत कि संविधान के अनुच््छछेद 105 और 194 के तहत सांसदोों और विधायकोों
दोषी ठहराया गया है और कारावास की सजा दी को दी गई कानूनी सुरक्षा उन््हेें वोट के लिए रिश्वत लेने या सदन मेें भाषण देने
गई है, तो अपील पर उसकी सजा को निलंबित
के मामलोों मेें सुरक्षा प्रदान नहीीं करती है। इस फै सले के साथ, सुप्रीम कोर््ट ने
न किया जाए।
1998 के पीवी नरसिम््हहा फै सले को खारिज कर दिया, जिसमेें कहा गया था
ADR बनाम भारत संघ, चनु ाव लड़ने वाले उम््ममीदवार को लंबित
कि वोटिंग और सदन मेें सवाल पूछने के लिए रिश्वत लेने वाले सांसदोों और
2002 आपराधिक मामलोों की जानकारी देनी होगी।
विधायकोों को संविधान के अनुसार छूट प्राप्त है।
लिली थॉमस बनाम भारत दोषसिद्ध होने पर सांसद और विधायक स््वतः
संघ, 2013 अयोग््य हो जाएँगे और उन््हेें दो वर््ष की जेल चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए कदम
होगी। z 1997: निर््ववाचन अधिकारी उन उम््ममीदवारोों का नामांकन खारिज कर देेंगे जो
पीपुल््स यूनियन फॉर नकारात््मक वोट और नोटा का अधिकार नामांकन पत्र दाखिल करने के दिन ही दोषी पाए गए होों, भले ही उनकी सजा
सिविल लिबर्टीज बनाम राजनीतिक दलोों पर नैतिक दबाव डालेगा। निलंबित हो।
भारत संघ मामला, 2014 z चनु ाव के दौरान काला धन जब््त करने के लिए उड़न दस््तोों का गठन किया गया।

88  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


z उम््ममीदवारोों को आपराधिक पृष्ठभमिू , उनकी संपत्ति, देनदारियोों और शैक्षिक राजनीतिक दलोों मेें लोकताांत्रिक कार््यप्रणाली का अभाव मुख्यतः
योग््यता के बारे मेें जानकारी वाला एक हलफनामा प्रस््ततुत करना होगा। दो बुनियादी पहलुओ ं मेें प्रकट होता है:
z मतदाता जागरूकता अभियान मेें SVEEP जैसे साधनोों का उपयोग किया z खुली और समावेशी प्रक्रिया नहीीं होना: पार््टटियोों के नेतत्ृ ्व और संरचना
जाता है तथा मशहूर हस््ततियोों के माध््यम से यह संदश े फै लाया जाता है कि को निर््धधारित करने की प्रक्रिया परू ी तरह से खल
ु ी और समावेशी नहीीं है। यह
वे अपना वोट न बेचे।ें सभी नागरिकोों के राजनीति मेें भाग लेने और चनु ाव लड़ने के समान राजनीतिक
आगे की राह अवसर के संवैधानिक अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
z कार््य करने का के न्द्रीकृत तरीका: राजनीतिक दलोों के कार््य करने का के न्द्रीकृ त
z कानूनी ढाँचे को मजबूत करना: जिन उम््ममीदवारोों के खिलाफ गंभीर
तरीका और 1985 का कठोर दलबदल विरोधी काननू , पार्टी विधायकोों को
अपराधोों के लिए अदालत मेें आरोप तय किए गए हैैं, उन््हेें जन प्रतिनिधित््व
अधिनियम(RPA), 1951 मेें संशोधन करके चनु ाव मेें भाग लेने से रोक दिया राष्ट्रीय और राज््य विधानसभाओ ं मेें अपनी व््यक्तिगत प्राथमिकताओ ं के
जाना चाहिए। अपनी 244 वीीं रिपोर््ट मेें विधि आयोग ने आरोप तय करने के अनसु ार मतदान करने से रोकता है।
चरण मेें अयोग््यता की सिफारिश की है, साथ ही अन््य काननू ी सरु क्षा उपायोों मुफ्तखोरी की राजनीति
की भी अनश ु सं ा की है।
z राजनीतिक दलोों मेें आंतरिक लोकतंत्र: दोषी ठहराए गए राजनेता, पार्टी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर््म््स (ADR) द्वारा मफ्ु ्त उपहारोों को चनु ौती
को नियंत्रित करके और विधायिका मेें छद्म (प्रॉक््ससी) उम््ममीदवारोों को मैदान मेें देने वाली एक जनहित याचिका (PIL) के मद्देनजर 'मफ्ु ्त उपहार संस््ककृ ति और
उतारकर काननू बनाने को प्रभावित करना जारी रख सकते हैैं। हालाँकि, जन भारतीय राजनीति और लोकतंत्र पर इसका प्रभाव' शीर््षक से एक वेबिनार का
प्रतिनिधित््व अधिनियम (1951) किसी मौजदू ा विधायक या उम््ममीदवार को आयोजन किया गया।
कुछ आधारोों पर अयोग््य ठहराता है, लेकिन पार्टी के भीतर पदोों की नियक्तियो ु ों मुफ्त उपहार (Freebies):
पर कोई विनियमन नहीीं है। भारतीय रिज़र््व बैैंक (RBI) ने जून 2022 मेें अपनी नियमावली मेें, मफ्ु ्त उपहारोों
z राज््य वित्तपोषण: दिनेश गोस््ववामी और इद्रं जीत समिति की सिफारिश के (Freebies) को "एक सार््वजनिक कल््ययाण उपाय’ के रूप मेें परिभाषित किया
अनसु ार चनु ावोों के लिए राज््य वित्तपोषण का कार््ययान््वयन करना। है जो निःशल्ु ्क प्रदान किया जाता है। इसमेें मफ़ु ्त बिजली, पानी, सार््वजनिक
z वापस बुलाने का अधिकार: मतदाताओ ं को काम न करने वाले निर््ववाचित परिवहन, बकाया उपयोगिता बिलोों की माफ़़ी और कृ षि ऋण माफ़़ी जैसे
प्रतिनिधियोों को वापस बल ु ाने का अधिकार प्रदान करना। प्रावधान शामिल हैैं।
z चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध: पाँच वर््ष से अधिक की सजा वाले अपराधोों के मुफ्त उपहारोों (Freebies) के अत्यधिक उपयोग से जुड़़ी चिंताएँ :
आरोपी उम््ममीदवारोों को चनु ाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
z राज््योों पर भारी कर बोझ: कई राज््य भारी कर््ज के बोझ तले दबे हुए हैैं,
z समय पर परीक्षण और अयोग््यता: एक वर््ष के भीतर मक ु दमोों को परू ा करना जिससे अधिक महत्तत्वपर््णू कल््ययाणकारी कार््यक्रमोों मेें निवेश करने की उनकी
और एक वर््ष के बाद स््वतः अयोग््य घोषित करना। क्षमता सीमित हो गई है। पंजाब की बिजली सब््ससिडी उसके कुल राजस््व के
z विधि आयोग: जनप्रतिनिधित््व अधिनियम, 1951 की निम््नलिखित धाराओ ं 16 प्रतिशत से अधिक है।
मेें संशोधन z सवं ैधानिक सिद््धाांतोों के विरुद्ध: जब राज््योों के पास मौलिक अधिकारोों की
 अयोग््यता का आधार: धारा 125 A - धारा 8(1) के तहत अयोग््यता
गारंटी देने और नीति निर्देशक सिद््धाांतोों को लागू करने के लिए धन की कमी
के लिए दोषसिद्धि एक आधार है। हो, तो वादे करना संवैधानिक सिद््धाांतोों के विरुद्ध है।
 झूठे हलफनामे : धारा 125 A - झठ ू े हलफनामे दाखिल करने के लिए z राजकोषीय गुंजाइशोों मेें कमी: सब््ससिडी के बोझ को ऋण के माध््यम से
न््ययूनतम दो साल की सजा। वित्तपोषित करने की आवश््यकता है, जिसके परिणामस््वरूप घाटा बढ़़ेगा। इससे
 भ्रष्ट आचरण: धारा 123 - झठ ू े हलफनामे दाखिल करने को भ्रष्ट आचरण राजकोषीय उत्तरदायित््व और बजट प्रबंधन (FRBM) नियमोों का उल््ललंघन
के रूप मेें शामिल करना। होगा और राज््य कर््ज के जाल मेें फंस जाएँगे।
z समान अवसर के सिद््धाांत का उल््ललंघन: मफ्ु ्त उपहारोों से राजनीतिक दलोों
को अनचु ित लाभ मिलता है क््योोंकि वे मतदाताओ ं के के वल एक वर््ग को
प्रमुख शब्दावलियाँ निजी वस््ततुएँ प्रदान करने का वादा करते हैैं। उदाहरण के लिए, छात्राओ ं को
विधि आयोग, मतदाताओ ं के सीमित विकल््प, सक ं ीर््ण हित, वोट साइकिल या कॉलेज के छात्ररों को लैपटॉप या गृहणियोों को ग्राइडं र और सिलाई
खरीदना, जनप्रतिनिधित््व अधिनियम, राजनीति का अपराधीकरण आदि। मशीन आदि देने का वादा करना।
z सामाजिक प्रभाव: अधिक संसाधन प्राप्त करने के बावजदू , भारतीय रिज़र््व
राजनीतिक दलोों मेें आंतरिक लोकतंत्र बैैंक (RBI) के अध््ययन से पता चलता है कि राज््योों द्वारा सामाजिक क्षेत्र मेें,
भारतीय राजनीतिक दलोों मेें आंतरिक लोकतंत्र; आंतरिक जवाबदेही, समावेशी विशेष रूप से स््ववास््थ््य और शिक्षा जैसे महत्तत्वपर््णू क्षेत्ररों के व््यय मेें कमी आई है।
निर््णय लेने और राजनीतिक संगठनोों के भीतर लोकतांत्रिक प्रक्रिया के समग्र z पर््यया वरण संबंधी चिंताएँ: राज््य किसानोों को मफ़ु ्त बिजली देते हैैं, जिससे
स््ववास््थ््य को बढ़़ावा देने के लिए आवश््यक तत्तत्व है। राजनीतिक दलोों मेें आंतरिक भजू ल का अत््यधिक दोहन होता है और पारंपरिक फ़सल प्रतिरूप जारी
लोकतंत्र का अर््थ है दल के अधिकांश सदस््योों के निर््णय को उनके संबंधित रहता है। पंजाब और हरियाणा मेें, अत््यधिक सब््ससिडी वाली बिजली के
संविधान के अनुसार बनाए रखना। कारण भजू ल दोहन राष्ट्रीय औसत 61% के मक ु ाबले 161% और 134% है।

भारतीय चुनाव आयोग (ECI) 89


मुफ्त उपहारोों (Freebies) की संस्कृति पर अंकुश लगाने मेें अर््थशास्त्री और भारत के पूर््व मुख््य सांख््ययिकीविद् प्रणव सेन के अनुसार,
चुनौतियााँ: कुछ राज््योों की वित्तीय स््थथिति और भी ज़़्ययादा ख़राब हो सकती थी अगर
z चुनाव आयोग के पास विनियामक शक्तियोों का अभाव: भारतीय राजनीतिक दलोों ने सत्ता मेें आने पर अपने पूर््व मेें किए गए हर वादे को पूरा
चनु ाव आयोग (ECI) ने कहा है कि उसके पास चनु ावी वादे करने के लिए किया होता।
राजनीतिक दलोों को विनियमित करने या दडित ं करने का अधिकार नहीीं है। "भारतीय अर््थव््यवस््थथा पर मफ्ु ्त उपहारोों (Freebies) का वास््तविक प्रभाव
भारतीय चनु ाव आयोग (ECI) के अनसु ार, चनु ाव से पहले या बाद मेें मफ्ु ्त अभी भी सीमित है क््योोंकि कुछ वादे अधरू े रह गए हैैं," विरासत मेें मिली
उपहारोों की पेशकश या वितरण, संबंधित राजनीतिक दल के अधिकार क्षेत्र मेें सब््ससिडी असली समस््यया है। "कभी-कभी मतदाताओ ं को कोई फ़र््क नहीीं पड़ता
आता है।
अगर कोई वादा पूरी तरह से लागू नहीीं होता। लेकिन एक बार मफ़ु ्त चीज़ें दिए
z लोकलुभावन नीतियोों की वित्तीय व््यवहार््यता का कोई आकलन नहीीं:
जाने के बाद, कोई भी राजनीतिक दल विरोध के डर से इसे वापस लेने की
राजनीतिक दल अक््सर मफ्ु ्त उपहारोों के रूप मेें किए गए वादोों के लिए धन
के स्रोतोों को स््पष्ट करने मेें विफल रहते हैैं। हिम््मत नहीीं करे गा," (इकोनॉमिक टाइम््स )
z मतदाताओ ं को जानकारी का अभाव: अधिकांश मतदाताओ ं को वास््तविक कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ARTIFICIAL INTELLIGENCE :
इरादे की जानकारी नहीीं होती है अतः ऐसे मेें वह मफ्ु ्त सवि ु धाओ ं के वित्तीय AI) और चुनाव
पहलओ ु ं पर ध््ययान नहीीं देते, जिससे राजनीतिक दलोों मेें मफ्ु ्त सवि
ु धाएँ देने का
वादा करने की होड़ लग जाती है। कृ त्रिम बुद्धिमता (AI) का मतलब है, मशीनोों मेें मानव बुद्धि का अनुकरण करना,
जिन््हेें मनुष््योों की तरह सोचने और उनके कार्ययों की नकल करने के लिए प्रोग्राम
मुफ्त उपहारोों (Freebies) पर सर्वोच्च न्यायालय की प्रतिक्रिया:
किया जाता है। इसमेें मशीन लर््नििंग, पैटर््न पहचान, बिग डेटा, सेल््फ-एल््गगोरिदम
z सर्वोच््च न््ययायालय की पीठ ने हाल ही मेें एक फै सले मेें मफ्ु ्त सवि
ु धाओ ं
और चनु ावी वादोों के मद्देु से निपटने के लिए एक शीर््ष निकाय के गठन का आदि जैसी तकनीकेें शामिल हैैं।
प्रस््तताव रखा। चुनावोों मेें कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की क्षमता
z इसका गठन; नीति आयोग, विधि आयोग, वित्त आयोग, भारतीय रिजर््व बैैंक z मतदाता सहभागिता मेें वद्ृ धि और प्रभावी: शिक्षा अभियानोों मेें सामाजिक
जैसे कई हितधारकोों और सत्तारूढ़ दल एवं विपक्षी दलोों के सदस््योों से मिलकर प््ललेटफार्ममों के माध््यम से जागरूकता फै लाने से, आर््टटिफिशियल इटं ेलिजेेंस (AI)
होगा। मतदाताओ ं के महत्तत्वपर््णू क्षेत्रीय मद्दु दों और उम््ममीदवारोों को समझने मेें मदद
z यह संदर््भ 2013 के एस. सब्रु मण््यम बालाजी बनाम तमिलनाडु वाद के निर््णय कर सकता है, जिसके परिणामस््वरूप सहभागिता मेें वृद्धि हो सकती है और
मेें न््ययायालय के अपने पिछले रुख से बदलाव है।
मतदाताओ ं को अधिक प्रभावी ढंग से सचू ित किया जा सकता है।
z एस. सब्रु मण््यम बालाजी बनाम तमिलनाडु मामले मेें 2013 का निर््णय:
न््ययायालय ने माना था कि चनु ाव घोषणा पत्र मेें वादे करना जनप्रतिनिधित््व z समावेशिता को बढ़़ावा देना: भाषिनी जैसे AI-आधारित ऐप की मदद से
(RPA) अधिनियम, 1951 की धारा 123 के अतं र््गत 'भ्रष्ट आचरण' नहीीं है। जानकारी को कई भारतीय भाषाओ ं मेें उपलब््ध कराया जा सकता है। यह समाज
के वंचित वर्गगों के लिए मददगार होगा। AI तकनीकेें विकलांग मतदाताओ,ं
आगे की राह :
जैसे कि दृष्टिबाधित मतदाताओ ं की मदद कर सकती हैैं, जिससे मतदान प्रक्रिया
z मतदाताओ ं की जिम््ममेदारी: मतदाताओ ं को सतर््क रहने और लोकलभु ावन
अधिक सल ु भ और समावेशी बन सकती है।
नीतियोों के वित्तीय प्रभावोों के बारे मेें पछू ताछ करने की आवश््यकता है।
z चुनाव पारदर््शशिता और सरु क्षा: आर््टटिफिशियल इटं ेलिजेेंस (AI) पारदर्शी
z चुनाव आयोग को अधिक अधिकार देकर सशक्त बनाना: धन के
उपयोग पर बैकअप या चेतावनी के रूप मेें सांविधिक प्रावधानोों की विज्ञापन नीतियोों के कार््ययान््वयन, कंटेेंट लेबल को लागू करने और गलत सचन ू ा
आवश््यकता है। की समस््यया से निपटने के लिए चनु ाव संबंधी प्रश्ननों को प्रतिबंधित करने मेें
z आदर््श घोषणा पत्र: चनु ाव आयोग आदर््श आचार संहिता के तहत कुछ मदद कर सकता है।
उपाय सझु ा सकता है, ताकि जनता से वादे करने का एक जिम््ममेदार तरीका z शिकायतोों का समाधान: शिकायतोों के समाधान के लिए चनु ाव आयोग की
अपनाया जा सके । मतदाताओ ं को यह तय करना होगा कि चनु ाव अभियान वेबसाइट पर AI-आधारित चैटबॉट पेश किया जा सकता है। आर््टटिफिशियल
विश्वसनीय है या नहीीं और क््यया वादे और मफ्ु ्त सवि ु धाएँ उनके हित मेें हैैं इटं ेलिजेेंस (AI) उपकरण मतदान प्रक्रियाओ ं की निगरानी करेेंगे, डेटा का
या नहीीं। विश्लेषण करेेंगे और मशीन लर््नििंग एल््गगोरिदम और निवारक उपायोों के माध््यम
z कल््ययाणकारी योजनाओ ं की सीमा तय करना: GSDP का 1% या राज््य से चनु ाव की अखडत ं ा सनु िश्चित करेेंगे।
के स््वयं के कर संग्रह या राज््य राजस््व व््यय का 1% खर््च तय करने से
z लोकतंत्र को मजबूत करना: चनु ाव आयोग ऑनलाइन मतदाता पंजीकरण
कल््ययाणकारी योजनाओ ं को ठीक से लागू करने मेें मदद मिलेगी।
और वेबसाइट पर मतदाता सचू ी जारी करने जैसे विकल््पोों के साथ प्रौद्योगिकी
z सामाजिक क्षेत्र के बजटीय आवंटन पर नज़र रखना: कल््ययाणकारी
योजनाओ ं के लिए उच््च संसाधन आवंटन को प्राथमिकता देना ज़रूरी है। का अधिकतम उपयोग कर रहा है। वे जागरूकता और व््ययापक पहुचँ बनाने
भारत का स््ववास््थ््य और शिक्षा पर व््यय 4.7% है, जो अन््य विकासशील देशोों, और शिकायतोों का समाधान करने के लिए आर््टटिफिशियल इटं ेलिजेेंस (AI)
जैसे कि उप-सहारा अफ्रीका, जो 7% खर््च करता है, से पीछे है। और सोशल मीडिया का उपयोग कर सकते हैैं।

90  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


चुनावोों मेें आर््टटिफिशियल इंटलिजे
े ेंस (AI) के उपयोग से जुड़़ी आगे की राह
चुनौतियााँ z विनियमन ढाँचा: चनु ावोों मेें आर््टटिफिशियल इटं ेलिजेेंस (AI) के उपयोग
z गलत सच ू ना और भ्रामक सच ू ना: डीपफे क और अन््य AI - जनित सामग्री के लिए एक सटीक काननू ी ढाँचा तंत्र स््थथापित करने की आवश््यकता है,
अति-यथार््थवादी डिजिटल मिथ््ययाकरण पैदा कर सकती है और इसका उपयोग जैसे डेटा संरक्षण पर विनियमन, AI - संचालित विज्ञापनोों मेें पारदर््शशिता और
प्रतिष्ठा को नकु सान पहुचँ ाने, सबतू गढ़ने और लोकतांत्रिक सस्ं ्थथानोों मेें विश्वास आर््टटिफिशियल इटं ेलिजेेंस (AI) के नैतिक उपयोग के लिए मानक तय करना
को कम करने के लिए किया जा सकता है। आदि।
z सोशल मीडिया प्रवर््धन: फे सबक ु और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया कम््पनियाँ z सहयोग: सरकारोों और चनु ावी निकायोों को गलत सचन ू ा से निपटने और
प्रभाव और गलत सचन ू ा के जोखिम को बढ़़ाती हैैं, जिससे उनकी तथ््य-जाँच चनु ावी प्रक्रियाओ ं को सरु क्षित करने के लिए प्रौद्योगिकी कंपनियोों के साथ
और चनु ाव निष्ठा टीमोों मेें काफी कमी आती है। सहयोग करना चाहिए।
z माइक्रो टार्गेटिंग: माइक्रो टार्गेटिंग तकनीकोों के माध््यम से, आर््टटिफिशियल z जन जागरूकता: AI - जनित गलत सचन ू ा की चनु ौतियोों के बारे मेें जनता
इटं ेलिजेेंस (AI) एल््गगोरिदम का उपयोग मतदाताओ ं की प्राथमिकताओ ं मेें हेरफे र को शिक्षित करने से मतदाताओ ं को सचन ू ा का गंभीरतापर््वू क मल्ू ्ययाांकन करने
करने और मतदाताओ ं को प्रभावित करके चनु ावोों की निष््पक्षता को कमजोर मेें सशक्त बनाया जा सकता है।
करने के लिए किया जा सकता है। z तकनीकी समाधान: अब समय आ गया है कि ऐसी आर््टटिफिशियल इटं ेलिजेेंस
z गोपनीयता सबं ंधी चिंताएँ: आर््टटिफिशियल इटं ेलिजेेंस (AI) से जड़ु ़ी मख्ु ्य (AI) प्रणालियाँ विकसित की जानी चाहिए जो गलत सचन ू ाओ ं और डीप फे क
गोपनीयता संबंधी चितं ाएँ, ‘डेटा उल््ललंघन’ और ‘व््यक्तिगत जानकारी तक का पता लगाने और उन््हेें चिन््हहित करने मेें सक्षम होों।
अनधिकृ त पहुचँ की संभावना’ हैैं। इतना अधिक डेटा एकत्र और संसाधित निष्कर््ष
किए जाने के कारण, यह जोखिम है कि यह हैकिंग या अन््य सरु क्षा उल््ललंघनोों यह एक ऐसा युग है जहाँ तकनीकी विकास अपरिहार््य है। उन््नत प्रौद्योगिकी का
के माध््यम से गलत हाथोों मेें पड़ सकता है। उपयोग करते हुए लोकतांत्रिक सिद््धाांतोों को बनाए रखना, महत्तत्वपर््णू विचार और
z विश्वास का क्षरण: आर््टटिफिशियल इटं ेलिजेेंस (AI) द्वारा जनित सामग्री का निरंतर नैतिक जाँच की माँग करता है। सोशल मीडिया और आर््टटिफिशियल
अस््ततित््व ही अविश्वास का एक सामान््य माहौल पैदा कर सकता है, जहाँ लोग इटं ेलिजेेंस (AI) का उचित एकीकरण अमृत काल की ओर बढ़ रहे भारतीय
सभी सचन ू ाओ ं की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हैैं। लोकतंत्र के राजनीतिक विमर््श और निर््णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित
z कोई विशिष्ट कानून नहीीं: भारत मेें डीपफे क और AI - संबंधी अपराधोों से करे गा।
निपटने के लिए विशिष्ट काननोू ों का अभाव है, लेकिन कई काननोू ों के तहत चुनावी साक्षरता: चुनाव आयोग की पहल
प्रावधान नागरिक और आपराधिक राहत प्रदान कर सकते हैैं।
चुनावी साक्षरता क््लब (ELC) स््ककूली छात्ररों को रोचक गतिविधियोों और
 उदाहरण: सचन ू ा प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT एक््ट) की धारा 66
व््ययावहारिक अनुभव के माध््यम से जोड़ने का एक मंच है, ताकि उन््हेें उनके
E डीपफे क अपराधोों के मामलोों मेें लागू होती है, जिसमेें किसी व््यक्ति की
चनु ावी अधिकारोों के बारे मेें जागरूक किया जा सके और उन््हेें पंजीकरण
छवियोों को मास मीडिया मेें कै प््चर कर, प्रकाशित या प्रसारित करना शामिल
एवं मतदान की चनु ावी प्रक्रिया से परिचित कराया जा सके । चनु ावी साक्षरता
होता है, जिससे उनकी गोपनीयता का उल््ललंघन होता है।
क््लब (ELC) कॉलेजोों और ग्रामीण समदु ायोों मेें भी मौजदू हैैं। चनु ावी
 ऐसा अपराध करने पर 3 वर््ष तक की कै द या 2 लाख रुपए तक का
साक्षरता क््लब (ELC) को, गतिविधियोों और खेलोों के माध््यम से छात्ररों को
जर््ममान
ु ा हो सकता है।
प्रेरित करने और उन््हेें सोचने और सवाल पूछने के लिए प्रेरित करने के लिए
भारत द्वारा की गई कार््रवाई तैयार किया गया है। चनु ावी साक्षरता क््लब (ELC) के माध््यम से, भारत
z डिजिटल प््ललेटफॉर््म््स को परामर््श जारी करना: भारत सरकार ने डिजिटल के चनु ाव आयोग का उद्देश््य युवा और भावी मतदाताओ ं के बीच चनु ावी
प््ललेटफॉर््म््स से समाज और लोकतंत्र को नक ु सान पहुचँ ाने वाली गलत सचन ू ाओ ं भागीदारी की संस््ककृ ति को मजबूत करना है।
को रोकने और उन््हेें दरू करने के लिए तकनीकी और व््ययावसायिक प्रक्रिया व््यवस््थथित मतदाता शिक्षा और निर््ववाचक सहभागिता (SVEEP)
समाधान उपलब््ध कराने को कहा है। कार््यक्रम मतदाताओ ं को मतदाता सचू ी मेें नाम पंजीकृ त करने, मतदाता
z चुनावी प्रक्रिया की अखंडता बनाए रखना: सरकार ने कहा कि डीपफे क सूची मेें उनके मौजूदा विवरण को सही करने और स््थथानांतरित करने तथा मृत
और गलत सचन ू ाओ ं के खिलाफ काननू ी रूपरे खा को चनु ावोों के बाद अतं िम परिवार के सदस््योों के नाम हटाने से संबंधित प्रक्रिया के बारे मेें शिक्षित करने
रूप दिया जाएगा। सरकार ने यह भी कहा कि कंपनियोों को भारतीय काननोू ों के लिए चलाया जाता है।
के तहत अवैध प्रतिक्रियाएँ उत््पन््न नहीीं करनी चाहिए या चनु ावी प्रक्रिया की इनकोर (ENCORE)
अखडत ं ा को खतरा नहीीं पहुचँ ाना चाहिए।
भारतीय निर््ववाचन आयोग (ECI) ने 'एनकोर' (इनेबलिंग कम््ययुनिके शंस ऑन
z गूगल और चुनाव आयोग की साझेदारी: आम चनु ावोों के दौरान गलत
रियल टाइम एनवायरमेेंट) नामक एक सॉफ््टवेयर समाधान प्रस््ततुत किया है,
सचनू ाओ ं के प्रसार को रोकने के लिए गगल ू ने भारतीय चनु ाव आयोग (ECI)
जिसे उम््ममीदवारोों और चनु ाव कार््यवाही के प्रबंधन को बढ़़ाने के लिए बनाया
के साथ साझेदारी की है। गगल ू विश्वसनीय जानकारी प्रदान करने और AI द्वारा
गया है।
निर््ममित भ्रामक सामग्री को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है।

भारतीय चुनाव आयोग (ECI) 91


यह अभिनव डिजिटल प््ललेटफ़़ॉर््म उम््ममीदवारोों को ऑनलाइन फॉर््म भरने की विगत वर््ष के प्रश्न
अनुमति देकर नामांकन प्रक्रिया को सरल बनाता है, जिसे बाद मेें प््रििंट करके z इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनोों (ई.वी.एम.) के इस््ततेमाल संबंधी मेें हाल के विवाद
आवश््यक दस््ततावेज़ों के साथ ऑफ़लाइन जमा किया जा सकता है। इसमेें के आलोक मेें , भारत मेें चनु ावोों की विश्वास््यता सनु िश्चित करने के लिए भारत
उम््ममीदवारोों को भारतीय निर््ववाचन आयोग के ऑनलाइन पोर््टल पर खाते के निर््ववाचन आयोग के समक्ष क््यया-क््यया चनु ौतियाँ हैैं?  (2018)
पंजीकृ त करने, नामांकन फ़़ॉर््म तक पहुचँ प्रदान करने, जमानत राशि जमा करने z “लोकसभा और राज््य विधानसभाओ ं के एक ही समय मेें चनु ाव, चनु ाव-प्रचार
की सुविधा और रिटर््नििंग अधिकारी के साथ अपॉइटमे ं ेंट की व््यवस््थथा करने का की अवधि और व््यय को तो सीमित कर देेंगे, परन््ततु ऐसा करने से लोगोों के
विकल््प प्रदान किया जाता है। इनकोर (ENCORE) उम््ममीदवारोों के नामांकन
प्रति सरकार की जवाबदेही कम हो जाएगी। चर््चचा कीजिए। (2017)
और हलफनामे के प्रमाणीकरण की सहज प्रक्रिया की सवि ु धा प्रदान करता है,
जिससे रिटर््नििंग अधिकारियोों को नामांकन प्रस््ततुतियाँ और हलफनामे सत््ययापन z भारत मेें लोकतंत्र की गणु ता को बढ़़ाने के लिए भारत के चनु ाव आयोग ने
को कुशलतापूर््वक प्रबंधित करने मेें मदद मिलती है। 2016 मेें चनु ावी सधु ारोों का प्रस््तताव दिया है। सझु ाए गए सधु ार क््यया हैैं और
लोकतंत्र को सफल बनाने मेें वे किस सीमा तक महत्तत्वपर््णू हैैं? (2017)
z लोक प्रतिनिधित््व अधिनियम, 1951 के अतं र््गत संसद अथवा राज््य विधायिका
प्रमुख शब्दावलियाँ के सदस््योों के चनु ाव से उभरे विवादोों के निर््णय की प्रक्रिया का विवेचन कीजिये।
विश्वास का क्षरण, मुफ््त उपहारोों (Freebies) की संस््ककृ ति, एनकोर किन आधारोों पर किसी निर््ववाचित घोषित प्रत््ययाशी निर््ववाचन को शन्ू ्य घोषित
(ENCORE),चनु ावी साक्षरता क््लब (ELC), आंतरिक पार्टी किया जा सकता है ? इस निर््णय के विरुद्ध पीड़ित पक्ष को कौन सा उपलब््ध
लोकतंत्र, वंशवादी राजनीति, राजनीति का अपराधीकरण, द्वितीय है ? वाद विधियोों का संदर््भ दीजिये। (2022)
प्रशासनिक सधु ार आयोग, भ्रामक सूचना, सूक्षष्म लक्ष्यीकरण, z “लोक प्रतिनिधित््व अधिनियम के अतं र््गत भ्रष्ट आचरण के दोषी व््यक्तियोों
व््यवस््थथित मतदाता शिक्षा और चनु ावी भागीदारी (SVEEP), ठहरने की प्रक्रिया के सरलीकरण की आवश््यकता है।” टिपण््णणी कीजिये।
डीपफे क आदि।
 (2020)

92  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


19 परिसीमन आयोग
z SC/ST के लिए सीट आवंटन: महत्तत्वपर््णू SC/ST आबादी वाले क्षेत्ररों
पृष्ठभूमि
मेें अनसु चू ित जाति (SC) और अनसु चू ित जनजाति (ST) के लिए सीटोों के
भारत मेें परिसीमन आयोग एक उच््चचाधिकार निकाय है जो चनु ाव के उद्देश््य आवंटन पर निर््णय (अनच्ु ्छछेद 330 और 332 के अनसु ार)।
से देश मेें विभिन््न निर््ववाचन क्षेत्ररों की सीमाओ ं को निर््धधारित करने के लिए z क्षेत्रीय निर््ववाचन क्षेत्ररों के प्रतिनिधित््व को पनु ः समायोजित करनाः नवीनतम
जिम््ममेदार है। जनसख्ं ्यया जनगणना आक ं ड़ों के आधार पर लोकसभा और विधानसभाओ ं मेें
संवैधानिक प्रावधान क्षेत्रीय निर््ववाचन क्षेत्ररों के प्रतिनिधित््व को पनु ः समायोजित करना।
z सिफारिशेें और सार््वजनिक भागीदारीः सिफारिशेें और सार््वजनिक
z अनुच््छछेद 81: प्रत््ययेक राज््य और केें द्र शासित प्रदेश को लोकसभा मेें इस भागीदारी से संबंधित मसौदा भारत के राजपत्र, राज््य राजपत्र और क्षेत्रीय
तरह से सीटेें आवंटित की जाएँगी कि सीटोों के लिए जनसंख््यया का अनपु ात मीडिया मेें प्रकाशित करता है। आवश््यकतानुसार संशोधनोों को शामिल
राज््योों मेें यथासंभव समान हो। करते हुए, जनमत पर विचार करने के लिए सार््वजनिक सुनवाई आयोजित
z अनुच््छछेद 82: परिसीमन आयोग अधिनियम के तहत भारत सरकार द्वारा करता है।
स््थथापित परिसीमन आयोग द्वारा प्रत््ययेक जनगणना के बाद संसदीय निर््ववाचन z बहुमत का निर््णयः आयोग के सदस््योों के बीच असहमति के मामले मेें बहुमत
क्षेत्ररों का परिसीमन। के निर््णय को अपनाता है।
z अनुच््छछेद 170: प्रत््ययेक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनसु ार
84 वााँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम (2002)
राज््योों को क्षेत्रीय निर््ववाचन क्षेत्ररों मेें विभाजित किया जाता है।
84वाँ सवं िधान सश z परिसीमन स््थथिर करना: 84वेें संवैधानिक संशोधन अधिनियम ने 2026 के
z ं ोधन अधिनियम (2002): 2026 तक परिसीमन
को स््थथिर करना। बाद पहली जनगणना तक लोकसभा और राज््य विधानसभा सीटोों के परिसीमन
को रोक दिया।
 कारणः परिवार नियोजन और जनसंख््यया स््थथिरीकरण।
z उद्देश््य और कारण
 प्रभावः निर््ववाचन क्षेत्ररों मेें असमान प्रतिनिधित््व के कारण अनच् ु ्छछेद 81
 जनसख् ं ्यया स््थथिरीकरण के लिएः देश के विभिन््न हिस््सोों मेें परिवार
का उल््ललंघन।
नियोजन कार््यक्रमोों की प्रगति को ध््ययान मेें रखते हुए, सरकार ने राष्ट्रीय
परिसीमन आयोग जनसंख््यया नीति रणनीति के हिस््ससे के रूप मेें, जनसंख््यया स््थथिरीकरण के
एजेेंडे को आगे बढ़़ाने मेें राज््य सरकार को सक्षम बनाने के लिए एक प्रेरक
z नियुक््तििः भारत मेें परिसीमन आयोग की नियक्ति ु राष्टट्रपति द्वारा की जाती है उपाय के रूप मेें नए परिसीमन के उपक्रम पर रोक को वर््ष 2026 तक
और यह भारत के चनु ाव आयोग (ECI) के सहयोग से काम करता है।
बढ़़ाने का निर््णय लिया।
z सरं चनाः इसमेें सर्वोच््च न््ययायालय के एक सेवानिवृत्त न््ययायाधीश, मख्ु ्य चनु ाव
अंतरराष्ट्रीय अभ््ययासः
आयक्त ु और संबंधित राज््य चनु ाव आयक्त ु शामिल होते हैैं। z U.S. जैसे संघ मेें, प्रतिनिधि सभा (हमारी लोकसभा के बराबर) मेें सीटोों
z प्राधिकरणः यह एक उच््च शक्ति वाला निकाय है जिसके आदेशोों मेें काननू की सख्ं ्यया 1913 से 435 तक सीमित कर दी गई है। राज््योों के बीच सीटोों
की शक्ति होती है और इसे अदालत मेें चनु ौती नहीीं दी जा सकती है। को प्रत््ययेक जनगणना के बाद 'समान अनपु ात की विधि' के माध््यम से
z रिपोर््टििंगः आयोग के आदेशोों को लोकसभा और राज््य विधानसभाओ ं के पनर््ववित
ु रित किया जाता है। इससे किसी भी राज््य को कोई महत्तत्वपर््णू लाभ
समक्ष प्रस््ततुत किया जाता है, लेकिन संशोधनोों की अनमु ति नहीीं है। या हानि नहीीं होती है।
परिसीमन आयोग के कार््य z यरू ोपीय सघ ं (EU) की ससं द मेें, जिसमेें 720 सदस््य होते हैैं, सीटोों की
z सीमा निर््धधारणः परिसीमन आयोग लोकसभा और राज््य/के न्दद्रशासित प्रदेशो सख्ं ्यया 27 सदस््य देशोों के बीच 'अधोगामी आनपु ातिकता' के सिद््धाांत के
के विधानसभा क्षेत्ररों की सीमाएँ और निर््ववाचन क्षेत्ररों की संख््यया निर््धधारित करता आधार पर विभाजित की जाती है। इस सिद््धाांत के तहत, जनसख्ं ्यया के बढ़ने
है, उनके बीच जनसंख््यया समानता सनु िश्चित करता है। के साथ सीटोों की संख््यया के अनपु ात मेें भी वृद्धि होगी।
परिसीमन आयोग का महत्तत्व चुनौतियाँ
z सर्वोच््च प्राधिकरणः परिसीमन आयोग के निर््णय और निर्देश अतं िम होते z दक्षिणी राज््योों की चिंताएँः सफल जनसंख््यया नियंत्रण उपायोों और उच््च प्रति
हैैं और काननू या अदालतोों द्वारा अप्रतिरोध््य होते हैैं। व््यक्ति राजस््व सृजन के साथ दक्षिणी राज््योों को उत्तरी राज््योों की तलन
ु ा मेें सार््थक
z समान प्रतिनिधित््व के लिए उत्तरदायीः आयोग लगभग समान जनसंख््यया राजनीतिक प्रतिनिधित््व खोने का डर है।
वितरण सनु िश्चित करने के लिए निर््ववाचन क्षेत्र की सीमाएँ और संख््ययाएँ z समान प्रतिनिधित््व का अभाव और आर््थथिक योगदानः परू ी तरह से जनसंख््यया
निर््धधारित करता है। यह निष््पक्ष प्रतिनिधित््व सनु िश्चित करता है। यह "एक पर आधारित परिसीमन ने राजनीतिक और आर््थथिक रूप से विकसित दक्षिणी
वोट, एक मल्ू ्य" के सिद््धाांत को बरकरार रखता है। राज््योों को समान प्रतिनिधित््व से वंचित कर दिया, जबकि केें द्र सरकार को उनके
z उचित क्षेत्रीय वितरणः यह एक राजनीतिक दल को चनु ाव मेें दसू रोों से आर््थथिक योगदान से लाभ होता रहा।
बेहतर प्रदर््शन करने से रोकने के लिए निष््पक्ष क्षेत्रीय वितरण सनु िश्चित करता z सश ं ोधन और स््थगनः इन चितं ाओ ं को दरू करने के लिए, 1976 मेें आपातकाल
है। के दौरान सवि ं धान मेें सश
ं ोधन किया गया था, 2001 तक परिसीमन को निलंबित
z आरक्षित सीटोों की पहचान करना: परिसीमन आयोग उन सीटोों की कर दिया गया था। इसके बाद, 84वेें संवैधानिक संशोधन अधिनियम (2002) के
पहचान करता है जो उन क्षेत्ररों मेें अनसु चू ित जातियोों (SC) और अनसु चू ित तहत वर््ष 2026 के बाद पहली जनगणना तक लोकसभा और राज््य विधानसभा
जनजातियोों (ST) के लिए आरक्षित हैैं जहाँ इन समदु ायोों की महत्तत्वपर््णू सीटोों के परिसीमन को रोक दिया ताकि एक समान जनसंख््यया वृद्धि दर सनु िश्चित
आबादी है। इससे उनका पर््ययाप्त राजनीतिक प्रतिनिधित््व सनु िश्चित होता है। हो सके ।

परिसीमन आयोग की आलोचना के लिए 250) तथा बढ़ती जनसंख््यया का प्रतिनिधित््व एक ही प्रतिनिधि द्वारा
किया जा रहा है।
z जनसख् ं ्यया नियंत्रण पूर््ववाग्रहः परिवार नियोजन को बढ़़ावा देने वाले राज््योों को
z असमान प्रतिनिधित््ववः निश्चित सीट आवंटन और जनसंख््यया वृद्धि असमान
अपनी सीटेें कम होने का जोखिम है, जबकि जिन राज््योों मेें जनसंख््यया नियंत्रण
प्रतिनिधित््व की ओर ले जाती है, जिससे बढ़ती आबादी की आवाज और
पर कम जोर दिया जाता है, उन््हेें अधिक सीटेें मिल सकती हैैं।
प्रभाव प्रभावित होता है।
z जनगणना आधारित प्रतिनिधित््व: 2008 मेें किया गया परिसीमन 2001
की जनगणना पर आधारित था, लेकिन 1971 के बाद से सीटोों की कुल
संख््यया अपरिवर््ततित रही, जिससे जनसंख््यया वृद्धि और प्रतिनिधित््व के बीच प्रमुख शब्दावलियाँ
असमानता पैदा हुई।
असमान प्रतिनिधित््व, जनसंख््यया नियंत्रण पूर््ववा ग्रह, क्षेत्रीय वितरण,
z सवं ैधानिक सीट सीमाएँः देश की कुल आबादी की तलन ु ा मेें ससं दीय
मताधिकार,परिसीमन आयोग आदि।
प्रतिनिधित््व मेें कम सीटेें उपलब््ध हैैं (लोकसभा के लिए 550 और राज््यसभा

94  प्रहार २०२४: पर््ययावरण एवं पारिस्थितिकी


20 भारत के महान्यायवादी (AGI)

है जहाँ राष्टट्रपति कुछ सवं ैधानिक या काननू ी मामलोों पर सर्वोच््च न््ययायालय


परिचय
की राय माँगता है।
भारत के महान््ययायवादी (AGI) भारत सरकार के सर्वोच््च कानूनी अधिकारी और z उच््चतम न््ययायालय मेें प्रतिनिधित््ववः महान््ययायवादी उच््चतम न््ययायालय के
मख्ु ्य कानूनी सलाहकार हैैं। संविधान के अनुच््छछेद 76 मेें भारत के महान््ययायवादी समक्ष सभी मामलोों मेें, सरकार के एक पक्ष के रुप मेें भारत सरकार का
के पद का प्रावधान है। भारत के राष्टट्रपति द्वारा नियुक्त, महान््ययायवादी कानूनी प्रतिनिधित््व करता है। सरकार की स््थथिति की से संबंधित तर््क और वकालत
मामलोों मेें सरकार का प्रतिनिधित््व करता है, कानूनी सलाह प्रदान करता है करता है।
और भारत के सर्वोच््च न््ययायालय मेें सरकार का प्रतिनिधित््व करता है । भारत z उच््च न््ययायालयोों मेें प्रतिनिधित््ववः भारत सरकार की आवश््यकतानसु ार
के महान््ययायवादी के पद पर नियुक्ति के लिए वही योग््यता आवश््यक है जो महान््ययायवादी उन मामलोों मेें सरकार का प्रतिनिधित््व करने के लिए उच््च
सुप्रीम कोर््ट के न््ययायाधीश पद पर नियुक्त होने के लिए आवश््यक है। भारत के न््ययायालयोों मेें उपस््थथित होता है जहाँ सरकार शामिल होती है।
महान््ययायवादी को संसद की कार््यवाही मेें भाग लेने का अधिकार है लेकिन मत
देने का नहीीं। सीमाएँ
z भारत सरकार के विरुद्ध कोई सलाह या सचन ू ा न देना।
महान्यायवादी के बारे मेें
z जिन मामलोों मेें उन््हेें सलाह देने या भारत सरकार की ओर से पेश होने के लिए
कर््तव्य न कहा जाये, उनमेें सलाह या संक्षिप्त विवरण न देना।
z सरकार को सलाह देनाः राष्टट्रपति द्वारा भेजे गए मामलोों पर महान््ययायवादी z भारत सरकार की अनमु ति के बिना आपराधिक अभियोजन मेें अभियक्त ु
भारत सरकार को काननू ी सलाह प्रदान करता है, साथ ही विभिन््न काननू ी मद्दु दों व््यक्तियोों का बचाव नहीीं करना।
पर अपनी विशेषज्ञता और मार््गदर््शन प्रदान करते हैैं। z भारत सरकार की अनमु ति के बिना किसी भी कंपनी मेें निदेशक के रूप मेें
z प्रदत्त कानूनी कर््तव््योों का पालन करनाः महान््ययायवादी उन काननू ी कर््तव््योों नियक्ति
ु स््ववीकार नहीीं करना।
का पालन करता है जो राष्टट्रपति द्वारा उसे सौौंपे जाते हैैं। ये कर््तव््य अलग-अलग z भारत सरकार के किसी भी मत्रालय ं /विभाग/किसी भी वैधानिक संगठन/PSU
प्रकृ ति के हो सकते हैैं जैसे इनमेें काननू ी राय प्रदान करना, काननू ी दस््ततावेजोों को तब तक सलाह नहीीं देना जब तक कि इसके लिए काननू ी मामलोों के
का मसौदा तैयार करना और काननू ी मामलोों मेें सरकार का प्रतिनिधित््व करना विभाग के माध््यम से प्रस््तताव या सदं र््भ प्राप्त न हो जाए।
आदि शामिल हो सकते हैैं।
z सवं ैधानिक और कानूनी कार्ययों का निर््वहनः महान््ययायवादी सवि ं धान या
किसी अन््य काननू द्वारा प्रदान किए गए कार्ययों को परू ा करता है। इसमेें देश के प्रमुख शब्दावलियाँ
काननू ी ढाँचे को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना शामिल है।
कानूनी कर््तव््य, संवैधानिक और कानूनी कार्ययों का निर््वहन, शिकायत
z राष्टट्रपति के सदं र्भभों मेें प्रतिनिधित््ववः महान््ययायवादी संविधान के अनच्ु ्छछेद निवारण, जागरूकता फै लाना, संवैधानिक सरु क्षा, महान््ययायवादी
143 के तहत राष्टट्रपति द्वारा सर्वोच््च न््ययायालय को दिए गए किसी भी संदर््भ आदि
मेें भारत सरकार का प्रतिनिधित््व करता है। यह उन मामलोों को संदर््भभित करता
राष्ट्रीय एवं राज्य मानवाधिकार
21 आयोग
परिचय कार््य चुनौतियाँ
z मानवाधिकारोों के क्षेत्र मेें अनसु ंधान z कर््मचारियोों से सबं ंधित मुद््दााः
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) एक सांविधिक निकाय है जिसकी को बढ़़ावा देना और लोगोों के बीच इसके अधिकांश कर््मचारी
स््थथापना 1993 मेें मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत की मानवाधिकार साक्षरता का प्रसार प्रतिनियक्ु ति पर हैैं। कई बार
गई थी। यह देश मेें मानवाधिकारोों का प्रहरी है। इसकी स््थथापना मानवाधिकारोों के करना। जाँच अधिकारी अभियक्त ु सेवा
संवर््धन और संरक्षण के लिए अपनाए गए पेरिस सिद््धाांतोों (1991) के अनुरूप से संबंधित होते हैैं जिसके
की गई थी। परिणामस््वरूप हितोों का टकराव
राष्ट् रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) के
होता है।
z कै दियोों की जीवन स््थथितियोों का z आपत्तियाँ: U.N.-मान््यता प्राप्त
कार््य एवं चुनौतियााँ
अध््ययन करने के लिए जेलोों और राष्ट्रीय मानवाधिकार संस््थथानोों के
कार््य चुनौतियाँ
निरोध स््थलोों पर जाना। वैश्विक गठबंधन (GANHRI)
z लोक सेवक द्वारा मानवाधिकारोों के z जाँच तंत्र की अनुपस््थथितिः
ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग,
किसी भी उल््ललंघन/लापरवाही की यह मानवाधिकारोों के उल््ललंघन
भारत (NHRC-India) की
जाँच, या तो स््वतः या उसे प्रस््ततुत के मामलोों की जाँच के लिए केें द्र मान््यता को निम््न आपत्तियोों का
याचिका पर या अदालत के आदेश और संबंधित राज््य सरकारोों पर हवाला देते हुए स््थगित कर दियाः
पर करना । निर््भर है। z आतंकवाद के कार््य सहित z नियक्ु तियोों मेें राजनीतिक हस््तक्षेप।
z अदालत के समक्ष लंबित z गैर-बाध््यकारी आदेशः NHRC मानवाधिकारोों के उपभोग को z मानवाधिकार उल््ललंघनोों की जाँच
मानवाधिकारोों के उल््ललंघन के के पास अपने निर््णयोों को लागू बाधित करने वाले कारकोों की मेें पलु िस को शामिल करना।
आरोप से जड़ु ़ी किसी भी कार््यवाही करने की कोई शक्ति नहीीं है। समीक्षा करना और उपचारात््मक z नागरिक समाज के साथ खराब
मेें हस््तक्षेप करना। सरकार अक््सर राष्ट्रीय मानव उपायोों की सिफारिश करना। सहयोग।
अधिकार आयोग (NHRC) की z कर््मचारियोों और नेतत्ृ ्व मेें
सिफारिशोों को सीधे खारिज कर विविधता का अभाव।
देती है। z हाशिये पर पड़़े समहोू ों की रक्षा के
z मानवाधिकारोों के सरं क्षण के लिए z बुनियादी ढाँचे की कमीः लिए अपर््ययाप्त कार््र वाई।
z मानवाधिकारोों के क्षेत्र मेें काम
संवैधानिक और अन््य काननू ी सप्ु रीम कोर््ट मेें आयोग ने माना
करने वाले गैर सरकारी संगठनोों
सरु क्षा उपायोों की समीक्षा करना कि 1995-2005 के बीच मामलोों
के प्रयासोों को प्रोत््ससाहित करना।
और उनके प्रभावी कार््ययान््वयन के मेें 1450% की वृद्धि के बावजदू ,
z राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग z मामलोों को सभ
ं ालने की
लिए उपायोों की सिफारिश करना। इसके कर््मचारियोों की संख््यया मेें द्वारा निभाई गई भूमिकाः सीमाएँः
16% की कमी आई है।
z आयोग द्वारा निम््नलिखित दिशा- z राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग
z मानवाधिकारोों पर संधियोों और z विचाराधीनता और विलम््बबः
निर्देश जारी किये गये हैैंः जेल (NHRC) घटना के एक साल
अन््य अतं रराष्ट्रीय उपकरणोों का यह मामलोों के बोझ से दबा हुआ है सधु ार, 48 घटों ों के भीतर हिरासत मेें बाद दर््ज शिकायतोों की जाँच नहीीं
अध््ययन करना और उनके प्रभावी और वर््तमान मेें इसके पास 6224 मौत की रिपोर््ट, और हाथ से मैला कर सकता है।
कार््ययान््वयन के लिए सिफारिशेें (जनू 2024) से अधिक मामले ढोने से निपटने के लिए सार््वजनिक
करना। लंबित हैैं। अधिकारियोों को सिफारिश।
कार््य चुनौतियाँ z आयोग की सरं चनाः नागरिक समाज, मानवाधिकार कार््यकर््तताओ ं आदि के
z मानवाधिकारोों के उल््ललंघन के लिए z सशस्त्र बलोों और अर््धसैनिक बलोों लिए अधिक प्रतिनिधित््व सनिश् ु चित किया जाये बजाय पर््वू नौकरशाहोों के ।
दरुु पयोग की संभावित गंजु ाइश के को इसके दायरे से बाहर करना। इससे आयोग की स््वतंत्र कार््यप्रणाली सनिश्
ु चित होगी।
साथ पोटा और टाडा जैसे काननोू ों z अहमदी आयोग की सिफारिशेेंः राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC)
की आलोचना की। द्वारा मामलोों को लेने के लिए एक साल की सीमा को हटा दिया जाना चाहिये।
z ओडिशा के कालाहांडी मेें गरीबी z राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग इसके अलावा, सशस्त्र बल की परिभाषा मेें अर््धसैनिक बल शामिल नहीीं होोंगे।
और भख ु मरी जैसे लोगोों के (NHRC) मामलोों को परू ी तरह z स््वतंत्र कर््मचारीः राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) द्वारा मामलोों
सामाजिक-आर््थथिक अधिकारोों की से मीडिया रिपोर्टटों पर लेता है न
का समय पर निपटान सनिश् ु चित करने के लिए एक समर््पपित जाँच दल का गठन
रक्षा के लिए भौतिक मानवाधिकारोों कि अपने ऑन-फील््ड काम के
किया जाना चाहिए।
के उल््ललंघन से परे जाना। माध््यम से।
z सोली सोराबजी की टिप््पणीः z समन््वय तंत्रः NHRC और SHRC के बीच समन््वय तंत्र स््थथापित करने
"पीड़़ित पक्ष को कोई व््ययावहारिक की आवश््यकता है।
राहत देने मेें असमर््थता के कारण z आयोग की भूमिका मेें विविधता लानाः LGBTQIA+ के अधिकारोों,
भारत का चिढ़़ाने वाला भ्रम।" उद्योगोों और मानवाधिकारोों, मानवाधिकारोों पर पर््ययावरणीय प्रभाव आदि जैसी
z सप्ु रीम कोर््ट की टिप््पणीः यह एक नई उभरती चितं ाओ ं की ओर भी ध््ययान आकर््षषित करना चाहिए।
"दांत रहित बाघ" है।
निष्कर््ष
मानव अधिकारोों का संरक्षण (संशोधन ) अधिनियम (2019) राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) ने अपनी स््थथापना के बाद से कई
संरचनाः सप्ु रीम कोर््ट के न््ययायाधीश को भी अध््यक्ष के रूप मेें नियक्त
ु किया मामलोों मेें महत्तत्वपूर््ण भमि
ू का निभाई है। 22 लाख से अधिक मामलोों का निपटान
जा सकता है। कम से कम एक महिला के साथ मानवाधिकारोों की विशेषज्ञता और पीड़़ितोों को मआ ु वजे के रूप मेें लगभग 250 करोड़ से अधिक की राशि
रखने वाले लोगोों की संख््यया बढ़़ाकर तीन कर दी गई। इसकी सफलता को दर््शशाता है। कमजोर वर्गगों के खिलाफ बढ़ते मामलोों को
z राष्ट्रीय पिछड़ा वर््ग आयोग, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और
ध््ययान मेें रखते हुए भारतीय संविधान मेें निहित मौलिक अधिकारोों का सभी को
विकलांग व््यक्तियोों के मख्ु ्य आयक्तु के अध््यक्षषों को पदेन सदस््योों के रूप लाभ सुनिश्चित करने के लिए सभी क्षेत्ररों मेें आयोग को मजबूत करने का यह
मेें शामिल किया गया है।
सही समय है।
z कार््य कालः कार््यकाल को 5 वर््ष से घटाकर 3 वर््ष कर दिया गया।

z केें द्र शासित प्रदेशः केें द्र सरकार निकटवर्ती 'राज््य मानवाधिकार आयोग'
को केें द्र शासित प्रदेश के मानवाधिकार मामलोों से संबंधित कार््य प्रदान प्रमुख शब्दावलियाँ
कर सकती है।
प्रवर््त नीय शक्तियाँ, समन््वय तंत्र, जाँच तंत्र, राजनीतिक हस््तक्षेप,
महत्त्वः
अपर््ययाप्त कार््रवाई, राष्ट्रीय मानवाधिकार संस््थथानोों का वैश्विक
z पेरिस सिद््धाांतोों के साथ प्रभावी अनप ु ालन; मानव अधिकारोों की प्रभावी ढंग
गठबंधन (GANHRI), संयक्त ु राष्टट्र संघ आदि।
से रक्षा करने और बढ़़ावा देने के लिए स््ववायत्तता, स््वतंत्रता और बहुलवाद।
z नागरिक समाज मेें प्रतिनिधित््व बढ़़ाने की सविध ु ा प्रदान करना। विगत वर्षषों के प्रश्न
z केें द्र शासित प्रदेशोों के नागरिकोों के लिए मानवाधिकार न््ययायालयोों तक
पहुचँ मेें वृद्धि। z यद्यपि मानवाधिकार आयोगोों ने भारत मेें मानव अधिकारोों के सरं क्षण मेें काफी
हद तक योगदान दिया है, फिर भी वे ताकतवर और प्रभावशालियोों के विरुद्ध
z कार््यकाल सीमा कम करने से रिक्तियोों पर समय पर नियक्ु ति सनिश् ु चित हो
सके गी। अधिकार जताने मेें असफल रहे हैैं। इनकी सरं चनात््मक और व््ययावहारिक
सीमाओ ं का विश्लेषण करते हुए सधु ारात््मक उपायोों के सझु ाव दीजिए।(2021)
हाल की खबरेें ः
z हाल ही मेें, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने बालासोर ट्रेन दर््घट ु ना z समाज के कमजोर वर्गगों के लिए विभिन््न आयोगोों की बहुलता, अतिव््ययापी
के संबंध मेें ओडिशा सरकार से कार््र वाई रिपोर््ट माँगी है। अधिकारिता और प्रकार्ययों के दोहरे पन की समस््ययाओ ं की ओर ले जाती है। क््यया
z GANHRI की प्रत््ययायन पर उप-समिति (SCA) NHRC की प्रत््ययायन यह अच््छछा होगा कि सभी आयोगोों को एक व््ययापक मानव अधिकार आयोग
स््थथिति का मल्ू ्ययाांकन कर रही है, जो यह तय करे गी कि क््यया यह संयक्त ु के छत्र मेें विलय कर दिया जाए? अपने उत्तर के पक्ष मेें तर््क दीजिए।(2018)
राष्टट्र मानवाधिकार निकायोों मेें भागीदारी के लिए अपना "A दर््जजा" बरकरार z भारत मेें राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग सर््ववाधिक प्रभावी तभी हो सकता
रखेगी या नहीीं। है, जब इसके कार्ययों को सरकार की जवाबदेही को सनिश् ु चित करने वाले अन््य
आगे की राह नागरिकोों का पर््ययाप्त समर््थन प्राप्त हो। उपरोक्त टिप््पणी मेें प्रकाश मेें, मानव
अधिकार मानकोों को प्रोन््नति करने और उनकी रक्षा करने मेें, न््ययायपालिका
z प्रवर््तनीय शक्तियाँः राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) के निर््णयोों
और अन््य संस््थथाओ ं के प्रभावी परू क के तौर पर, एन.एच.आर.सी. की भमि ू का
को प्रवर््तनीय बनाया जाना चाहिए।
का आकलन कीजिए। (2014)

राष्ट्रीय एवं राज्य मानवाधिका 97


22 केेंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोग
परिचय कार््य चुनौतियाँ
z सार््वजनिक प्राधिकरण से अपने z विलंबित मामले का निपटानः
केें द्रीय सूचना आयोग (CIC) निर््णयोों का अनपु ालन सनिश्
ु चित सतर््क नागरिक संगठन की रिपोर््ट
करना। के अनसु ार केें द्रीय सचू ना आयोग
यह केें द्र सरकार के अधीन विभिन््न कार््ययालयोों, वित्तीय संस््थथानोों, सार््वजनिक (CIC) को आयोग के समक्ष दायर
उपक्रमोों आदि के बारे मेें की गई शिकायतोों को देखने के लिए एक उच््चचाधिकार किए जाने की तारीख से एक मामले
प्राप्त स््वतंत्र और वैधानिक निकाय है। आर.टी.आई. अधिनियम, 2005 की का निपटान करने मेें औसतन 388
धारा 12 के प्रावधानोों के अंतर््गत केें द्र सरकार ने केें द्रीय सूचना आयोग का दिन लगते हैैं।
गठन किया है। z सश ु ासन को बढ़़ावा देनाः केें द्रीय z कमजोर निर््णयः के वल 2.2%
सचू ना आयोग (CIC) शासन मेें मामलोों मेें ही सरकारी अधिकारियोों
केें द्रीय सूचना आयोग (CIC) के कार््य एवं चुनौतियााँ नागरिकोों की भागीदारी को बढ़़ावा को काननू का उल््ललंघन करने के
कार््य चुनौतियाँ देता है और शासन मेें पारदर््शशिता लिए सजा का सामना करना पड़ता
z शिकायतोों की जाँच और z सश ु ासन सनिश्
ु चित करना: केें द्रीय और जवाबदेही को बढ़़ावा देता है। है, जबकि विभिन््न विश्ले षणोों से पता
सचू ना अधिकारियोों के खिलाफ सचू ना आयोग (CIC) को शासन मेें चलता है कि उल््ललंघन की दर लगभग
अनशु ासनात््मक कार््रवाई करना यदि: नागरिकोों की भागीदारी को बढ़़ावा 59% है।
z लोक सचू ना अधिकारी की नियक्ु ति देकर शासन मेें पारदर््शशिता और सतर््क नागरिक संगठन की रिपोर््ट के महत्त्वपूर््ण
न होने के कारण सचू ना अनरु ोध जवाबदेही सनिश्ु चित करने मेें अनेक
z कोविड-19 महामारी के दौरान कुल 29 अध््ययन किए गए ICs मेें से 21
प्रस््ततुत करने मेें असमर््थ हो। समस््ययाओ ं का सामना करना पड़ता है।
कोविड-19 महामारी के दौरान अध््ययन किए गए कुल 29 ICs मेें से 21
z अस््ववीकृ त अनरु ोधित जानकारी को IC कोई सनु वाई नहीीं कर रहे थे।
निर््ददिष्ट समय सीमा के भीतर सचू ना
z केें द्र या राज््य स््तर पर RTI आवेदकोों के केें द्रीकृ त डेटाबेस की अनपु स््थथिति
अनरु ोध का जवाब न मिला हो।
गलत वार््षषिक RTI रिपोर््ट और विश्ले षण की ओर ले जाती है।
z प्रभारित शल्ु ्क अनचि ु त हो।
z पर््ययाप्त अधिकार का अभाव: अधिनियम ने आईसी को अपने निर््णयोों को
z ऐसा महससू हो कि दी गई जानकारी लागू करने के लिए पर््ययाप्त अधिकार नहीीं दिया।
अधरू ी, भ्रामक या झठू ी है।
z अपर््ययाप्त प्रशिक्षित पी. आई. ओ. और प्रथम अपीलीय प्राधिकरणः
z विवेकाधीन शक्ति: यदि उचित z मख्ु ्य चनु ाव आयक्त
ु (CIC) और इसके परिणामस््वरूप जानकारी प्रदान करने के लिए 30 दिनोों की समयसीमा
आधार हैैं तो यह किसी भी मामले चनु ाव आयक्त ु (ICs) के साथ टूट जाती है क््योोंकि उचित प्रशिक्षण की कमी के कारण PIOs समयबद्ध
मेें जाँच का आदेश दे सकता है। समानता की स््थथिति के बजाय केें द्र तरीके से जानकारी प्रदान करने मेें सक्षम नहीीं होते हैैं।
सरकार द्वारा वेतन का निर््धधारण
z दडं का अभाव: सरकारी अधिकारियोों को अपने कर््तव््य का पालन ना करने
समानता के विचार पर प्रश्नचिन््ह
या अनचि ु त व््यवहार के लिए सामान््यतः दडं का सामना नहीीं करना पड़ता है।
लगाता है।
z पछू ताछ करते समय दीवानी z विलंबित नियुक्तियाँः RTI के निष्कर््ष
अदालत के समान की शक्तियाँ। अनसु ार, 2014 से केें द्रीय सचू ना सूचना के अधिकार (RTI) को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास मेें ऐतिहासिक
आयोग (CIC) 400 दिनोों से अधिक कानून कहा गया है। सचू ना के अधिकार (RTI) को बल देने के लिए हमेें
समय से मख्ु ्य सचू ना आयक्त ु के मजबूत CIC और SICs की आवश््यकता है। इसलिए सरकार के कामकाज मेें
बिना काम कर रहा था और 4 साल पारदर््शशिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश््यक सुधार किए
से अधिक समय से पर््णू सदस््य सख्ं ्यया जाने चाहिए।
के अभाव से जझू रहा है ।
z किसी भी अभिलेख की जाँच z विचाराधीनताः सतर््क नागरिक
करना: जाँच के दौरान सभी संगठन की रिपोर््ट के अनसु ार देश प्रमुख शब्दावलियाँ
सार््वजनिक अभिलेख केें द्रीय भर मेें 27 राज््य सचू ना आयोगोों
सचू ना आयोग (CIC) को दिए के समक्ष 3.2 लाख से अधिक सशु ासन, विवेकाधीन शक्ति या सओ ु -मोटो पावर, नौकरशाही,
जाने चाहिए। याचिकाएँ लंबित हैैं। सतर््कता आयोग, केेंद्रीय सूचना आयोग, राज््य सूचना आयोग।
23 केेंद्रीय सतर््कता आयोग (CVC)
केें द्रीय सतर््क ता आयोग (CVC) भारत मेें एक शीर््ष सरकारी निकाय है जो भ्रष्टाचार z मत्रालयो
ं ों और सरकारी सगं ठनोों के लिए सलाहकार और गैर-बाध््यकारी
से संबंधित मद्दु दों को संबोधित करने और लोक प्रशासन मेें पारदर््शशिता और अखडं ता सिफारिशेें।
को बढ़़ावा देने के लिए जिम््ममेदार है। केें द्रीय सतर््क ता आयोग (CVC) की स््थथापना z के स हैैंडलिंग मेें विलम््बबः केें द्रीय सतर््क ता आयोग द्वारा हैैंडल किए जाने
1964 मेें सथ ं ानम समिति की सिफारिश पर एक कार््यकारी प्रस््तताव द्वारा की गई वाले मामलोों मेें भारी विलम््ब होता है, इसलिए यह एक प्रभावी निवारक के
थी। 2003 मेें, संसद ने केें द्रीय सतर््क ता आयोग (CVC) को वैधानिक दर््जजा प्रदान
रूप मेें कार््य नहीीं करता है।
किया। यह केें द्र सरकार मेें भ्रष्टाचार को रोकने के लिए मख्ु ्य एजेेंसी है।
z प्रयासोों का दोहरावः CBI, CVC और लोकपाल के अतिव््ययापी अधिकार
केेंद्रीय सतर््कता आयोग (CVC) से संबधं ित प्रावधान क्षेत्र के कारण।
z नियुक््तििः तीन सदस््ययीय समिति (प्रधानमत्ं री + गृह मत्ं री + लोकसभा मेें विपक्ष z केें द्रीय सतर््कता आयोग की सीमाएँ: आयोग का जाँच दायरा के वल केें द्रीय
के नेता) की सिफारिश पर राष्टट्रपति द्वारा| कर््मचारियोों और कुछ संस््थथानोों तक सीमित होना और निजी व््यक्तियोों को छूट
z निष््ककासनः राष्टट्रपति द्वारा के वल काननू मेें उल््ललिखित आधार पर। भ्रष्टाचार की चनु ौती से समग्र रूप से निपटने मेें इसकी भमि ू का को सीमित
z सरं चनाः केें द्रीय सतर््क ता आयक्त ु + अधिकतम दो सतर््क ता आयक्तु । करती है।
z कार््यकालः 4 वर््ष/65 वर््ष जो भी पहले हो और केें द्र या राज््य सरकार के z लंबित मामलेः धन और मानव ससं ाधन की कमी के परिणामस््वरूप भारी
अतं र््गत भावी रोजगार के लिए अयोग््य । संख््यया मेें मामले लंबित रहते है।
z वेतन-भत्ते और सेवा-शर््तेेः मख्ु ्य सतर््क ता आयक्त ु के मामले मेें वेतन-भत्ते आगे की राह
और सेवा-शर्ततें संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के अध््यक्ष के समान हैैं और
सतर््क ता आयक्त ु के मामले मेें वेतन-भत्ते और सेवा-शर्ततें संघ लोक सेवा आयोग z आयोग की स््वतंत्रता सनिश् ु चित की जानी चाहिए।
(UPSC) के सदस््य के समान हैैं। z CVC और VC की समय पर नियक्ु ति और आयोग संरचना मेें विविधता
z स््वतंत्र कर््मचारीः केें द्रीय सतर््क ता आयोग (CVC) के पास अपना सचिवालय, सनिश्
ु चित करना।
मख्ु ्य तकनीकी परीक्षकोों की शाखा और विभागीय जाँच के लिए आयक्ततों ु z कुशलता से काम करने के लिए आधनि ु क बनि
ु यादी ढाँचे को सनिश्
ु चित करने
की एक शाखा है। के लिए पर््ययाप्त वित्तपोषण होना चाहिए।
z एआई, बिग डेटा जैसी आधनि ु क तकनीक को अपनाना और कामकाज का
केें द्रीय सतर््कता आयोग (CVC) के कार््य एवं चुनौतियााँ
डिजिटलीकरण करना चाहिए।
कार््य z भमिू का की स््पष्टता सनिश् ु चित करके लोकपाल और CBI जैसी विभिन््न
z भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PoCA), 1988 के तहत अपराध के लिए केें द्र एजेेंसियोों के अतिव््ययापी अधिकार क्षेत्र से बचना।
सरकार के एक कथित कर््मचारी के खिलाफ जाँच करना| निष्कर््ष
z CBI के कामकाज पर निगरानी और PoCA के तहत अपराधोों की जाँच से
z भ्रष्टाचार समावेशी विकास के लिए सबसे बड़़ा खतरा है, इसलिए CVC, CBI
संबंधित CBI को निर्देश देना।
और लोकपाल जैसे निकायोों को मजबतू करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए
z के न्दद्र सरकार के मत्रालयो
ं ों मेें सतर््क ता प्रशासन पर अधीक्षण।
ताकि यह सनिश् ु चित किया जा सके कि PoCA को अक्षरशः लागू किया जाए।
z समहू ए, बी, सी और डी के अधिकारियोों के संबंध मेें लोकपाल द्वारा निर््ददिष्ट
z CVC जैसे निकायोों के लिए संवैधानिक स््थथिति का तात््पर््य है कि देश
शिकायतोों की प्रारंभिक जाँच करना।
की लोकतांत्रिक स््थथिति मेें उनकी अधिक भमि ू का और जिम््ममेदारी है, और
z सक्षम प्राधिकारी के रूप मेें कार््य करनाः व््हहिसल-ब््ललोअर संरक्षण
संवैधानिक सरु क्षा यह सनिश्ु चित करती है कि वे सरकार के प्रसाद पर्यंत न होकर
अधिनियम, 2014 के तहत किसी व््यक्ति के लिए भ्रष्टाचार पर सार््वजनिक
स््वतंत्र रुप से कार््य कर सकेें ।
हित मेें खल ु ासा करने के लिए सक्षम प्राधिकारी के रुप मेें कार््य करना।
z नागरिकोों का सवं ेदीकरणः सतर््क ता सप्ताह और सत््यनिष्ठा प्रतिज्ञा जैसे कदम
भ्रष्टाचार के दष्पु प्रभावोों के बारे मेें जागरूकता पैदा करने मेें मदद करते हैैं। प्रमुख शब्दावलियाँ
चुनौतियााँ केेंद्रीय सतर््कता आयोग (CVC) , सूचना का अधिकार (RTI), पर््ययाप्त
z कार््यकारी निर््भरता: CEC की नियक्ु ति अप्रत््यक्ष रूप से के वल कार््यपालिका वित्तपोषण, अतिव््ययापी अधिकार क्षेत्र, नागरिकोों का संवेदीकरण
के अधीन होती है, जिससे इसके स््वतंत्र कामकाज मेें बाधा आती है। आदि।
संघ कार््यकारिणी एवं राज्य
24 कार््यकारिणी
परिचय z महाभियोग प्रस््तताव: इसे सस ं द के किसी भी सदन द्वारा शुरू किया जा
सकता है। इन आरोपोों पर सदन (जिसने आरोप तय किए हैैं) के एक-चौथाई
सरकार का वह अंग जो मख्ु ्य रूप से कार््ययान््वयन और प्रशासन के कार््य को सदस््योों द्वारा हस््तताक्षर किए जाने चाहिए और राष्टट्रपति को 14 दिन पर््वू का
संभालता है, उसे कार््यपालिका कहा जाता है। सरकार के प्रमख ु और उनके नोटिस दिया जाना चाहिए।
मंत्री, जो सरकारी नीति की समग्र जिम््ममेदारी निभाते हैैं, को सामहि
ू क रूप से z प्रथम सदन (जहाँ प्रक्रिया आरंभ की गई है) मेें कुल सदस््यता के 2/3
राजनीतिक कार््यपालिका के रूप मेें जाना जाता है और दिन-प्रतिदिन के प्रशासन बहुमत से: उस सदन की कुल सदस््यता के दो-तिहाई बहुमत से महाभियोग
के लिए उत्तरदायी लोगोों को स््थथायी कार््यपालिका कहा जाता है। प्रस््तताव पारित होने के बाद इसे दसू रे सदन मेें भेजा जाता है, जिसे आरोपोों की
संघीय कार््यपालिका और राज्य कार््यपालिका की तुलना: जाँच करनी चाहिए।
संघीय कार््यपालिका राज््य कार््यपालिका z दूसरे सदन मेें कुल सदस््यता का 2/3 बहुमत: यदि दसू रा सदन भी आरोपोों
संविधान के भाग V मेें अनुच््छछेद 52 संविधान के भाग VI मेें अनुच््छछेद को सही मानता है तथा अपने दो-तिहाई सदस््योों के बहुमत से इसके पक्ष मेें
से 78 तक संघीय कार््यपालिका से 153 से 167 तक राज््य कार््यपालिका मतदान करता है, तो महाभियोग प्रस््तताव पारित होने की तिथि से ही राष्टट्रपति
संबंधित प्रावधान हैैं। से संबंधित प्रावधान हैैं। को पद से अपदस््थ माना जाएगा।
सघं ीय कार््यपालिका के अतं र््गत राज््य कार््यपालिका के अंतर््गत महाभियोग से संबंधित मुद्दे
राष्टट्रपति, उपराष्टट्रपति, प्रधानमत्ं री, राज््यपाल, मख्ु ्यमंत्री, मंत्रिपरिषद z 'सविध
ं ान का उल््ललंघन' शब््द बहुत अस््पष्ट है और संविधान मेें कहीीं भी इसकी
मत्रि
ं परिषद और भारत के महान््ययायवादी और राज््य के महाधिवक्ता (एडवोके ट स््पष्ट परिभाषा नहीीं दी गई है।
(अटॉर्नी जनरल) आते हैैं। जनरल) आते हैैं। z विधानसभाओ ं के निर््ववाचित सदस््योों की महाभियोग कार््यवाही मेें कोई भमि ू का
राष्टट्रपति नाममात्र का कार््यकारी राज््यपाल राज््य का मख्ु ्य कार््यकारी नहीीं होती, जबकि राष्टट्रपति के चनु ाव मेें उनकी भमि ू का होती है।
प्रमख ु होता है जबकि प्रधानमंत्री प्रमख
ु होता है। लेकिन राष्टट्रपति की z संसद के मनोनीत सदस््योों को महाभियोग के मामले मेें वोट देने का अधिकार
वास््तविक कार््यकारी प्रमख ु होता है। तरह, वह नाममात्र का कार््यकारी है, जबकि राष्टट्रपति के चनु ाव मेें उन््हेें वोट देने का अधिकार नहीीं है।
प्रमखु नाममात्र या संवैधानिक z राष्टट्रपति के विरुद्ध आरोपोों की जाँच करने की प्रक्रिया एवं प्राधिकार निर््ददिष्ट
प्रमख ु होता है। मख्ु ्यमंत्री वास््तविक नहीीं किया गया है, न ही कोई निश्चित समयावधि निर््ददिष्ट की गई है।
कार््यकारी प्रमखु होता है। संयुक्त राज््य अमे रिका मेें
सघं की कार््यपालिका शक्ति राष्टट्रपति राज््य की कार््यकारी शक्ति राज््यपाल मेें भारत मेें महाभियोग
महाभियोग
मेें निहित होती है और संविधान के निहित होती है और इसका प्रयोग वह कारण राजद्रोह, रिश्वतखोरी या अन््य गंभीर संविधान का उल््ललंघन,
अनसु ार वह इसका प्रयोग प्रत््यक्ष तौर संविधान के अनसु ार प्रत््यक्ष तौर पर अपराध और दष्ु ्कर््म। कदाचार और अक्षमता
पर या अपने अधीनस््थ अधिकारियोों या अपने अधीनस््थ अधिकारियोों के मतदान प्रतिनिधि सभा मेें साधारण बहुमत की प्रत््ययेक सदन की कुल
के माध््यम से करता है (अनच्ु ्छछेद 53)। माध््यम से करता है (अनच्ु ्छछेद 154)। आवश््यकता होती है। सीनेट मेें विशेष सदस््यता का 2/3
राष्टट्रपति को प्रधानमंत्री की अध््यक्षता राज््यपाल को अपने विवेकाधीन बहुमत की आवश््यकता होती है। बहुमत।
वाली मंत्रिपरिषद की सहायता और कार्ययों को छोड़कर, मख्ु ्यमंत्री की सम््ममिलित प्रतिनिधि सभा और सीनेट लोकसभा और
सदन राज््यसभा
सलाह के अनुसार कार््य करना होता अध््यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की
प्रक्रिया प्रतिनिधि सभा का कोई भी सदस््य महाभियोग का आरोप
है (अनुच््छछेद 74)। सहायता और सलाह के अनुसार की महाभियोग का प्रस््तताव पेश कर संसद के किसी भी
कार््य करना होता है (अनुच््छछेद 163)। शुरुआत सकता है। सदन द्वारा शरू
ु किया
भारत का राष्टट्र पति जा सकता है।
प्रयोग अब तक तीन अमेरिकी राष्टट्रपतियोों भारत मेें अब तक प्रयोग
राष्टट्रपति, भारतीय राज््य का मखि
ु या होता है। वह भारत का प्रथम नागरिक होता पर इसका प्रयोग किया जा चक ु ा है नहीीं किया गया है ।
है और राष्टट्र की एकता और अखंडता का प्रतीक है। - 1868 मेें एंड्रयू जॉनसन, 1998 मेें
बिल क््ललििंटन और 2019 मेें डोनाल््ड
महाभियोग ट्रम््प पर पहले सदन द्वारा महाभियोग
महाभियोग प्रकिया के आधार: राष्टट्रपति को 'संविधान के उल््ललंघन' करने के लगाया गया था, लेकिन सीनेट द्वारा
आधार पर हटाया जा सकता है। उन््हेें बरी कर दिया गया था।
राष्टट्र पति कार्यालय की आलोचना z सदन के पीठासीन अधिकारी z जहाँ तक सदन के विषयोों या उससे
z राष्टट्रपति, मत्रिं परिषद की सहायता और सलाह से बाध््य है। के रूप मेें: पीठासीन अधिकारी संबंधित मामलोों का संबंध है,
z संविधान के अनच् ु ्छछेद 352, 356 और 360 राष्टट्रपति को आपातकाल घोषित के रूप मेें, राज््यसभा का सभापति संविधान और नियमोों की व््ययाख््यया
करने की शक्ति प्रदान करते हैैं और आपातकाल घोषित करने या लागू करने सदन की प्रतिष्ठा और गरिमा का करना सभापति का अधिकार है
की यह तथाकथित शक्ति व््ययापक रूप से दरुु पयोग या उल््ललंघन किए जाने सरं क्षक होता है। और कोई भी व््यक्ति ऐसी व््ययाख््यया
वाले प्रावधानोों मेें से एक है।
के संबंध मेें सभापति के साथ
z अध््ययादेश प्रख््ययापित करने की शक्ति का दुरुपयोग:
किसी प्रकार का वाद-विवाद नहीीं
 अध््ययादेश से संबंधित एक बड़़ा मद्दा ु यह है कि राष्टट्रपति आम तौर पर
विधायी विवेक का प्रयोग नहीीं करते हैैं, राष्टट्रपति के वल उन््हेें लागू करते कर सकता।
हैैं, वास््तव मेें यह परिषद के मत्ं री ही तय करते हैैं कि अध््ययादेश आवश््यक z वह सनिश्
ु चित करता है कि सदन की z सदन मेें व््यवस््थथा बनाए रखना:
है या नहीीं। मत्रियो
ं ों के इस प्रभाव के कारण कई बार मनमानी हो सकती है। कार््यवाही प्रासगि
ं क सवं ैधानिक सदन मेें व््यवस््थथा बनाए रखना
 संविधान के अनच् ु ्छछेदोों मेें किसी समयावधि मेें राष्टट्रपति द्वारा पारित किए प्रावधानोों, नियमोों, प्रथाओ ं और सभापति का मौलिक कर््तव््य है
जा सकने वाले अध््ययादेशोों की कोई अधिकतम सीमा निर््ददिष्ट नहीीं की गई परंपराओ ं के अनसु ार संचालित और इस प्रयोजन के लिए नियमोों
है। इस विशिष्टता की कमी के कारण राष्टट्रपति संसद के सत्र मेें न होने और हो तथा सदन मेें शिष्टाचार बनाए के अतं र््गत उन््हेें सभी आवश््यक
तत््ककाल कार््र वाई की आवश््यकता परू ी होने की स््थथिति मेें अपनी इच््छछानसु ार
अध््ययादेश पारित कर सकते हैैं। रखा जाए। सदन के प्रधान प्रवक्ता अनश ु ासनात््मक शक्तियाँ प्रदान
 अध््ययादेशोों का मख्
के रूप मेें: अध््यक्ष सदन का की गई हैैं।
ु ्य मद्दा ु या समस््यया अध््ययादेशोों के पनु ः प्रवर््तन से संबंधित
है, यह प्रश्न कि उन््हेें वैधानिक होना चाहिए या असंवैधानिक, इसकी चर््चचा प्रधान प्रवक्ता भी होता है तथा
काफी लंबे समय से चल रही है। बाहरी दनि ु या के समक्ष सदन की
कृष््ण कुमार सिंह बनाम बिहार राज््य (2017) - इस मामले मेें, सर्वोच््च सामहिू क आवाज का प्रतिनिधित््व
न््ययायालय ने माना कि अध््ययादेश को पुनः प्रख््ययापित करना, संविधान के साथ करता है।
धोखाधड़़ी है और यह भी फै सला सुनाया कि अध््ययादेश जारी करते समय z अध््यक्ष द्वारा मतदान: संविधान z सभापति द्वारा उल््ललेख: यह प्रथा
राष्टट्रपति और राज््यपाल की संतुष्टि न््ययायिक समीक्षा के अधीन है। के तहत, अध््यक्ष के वल मतोों की है कि सभापति सयं क्त ु राष्टट्र द्वारा
आर.सी. कूपर मामला (1970): आर.सी. कूपर बनाम भारत संघ (1970) बराबरी की स््थथिति मेें ही मतदान मानव अधिकारोों की सार््वभौमिक
मेें सर्वोच््च न््ययायालय ने माना कि अध््ययादेश जारी करने के राष्टट्रपति के का प्रयोग करता है। घोषणा की वर््षगाँठ, शहीद दिवस,
निर््णय को इस आधार पर चनु ौती दी जा सकती है कि 'तत््ककाल कार््रवाई' की भारत छोड़़ो दिवस, हिरोशिमा,
आवश््यकता नहीीं थी और अध््ययादेश मख्ु ्य रूप से विधायिका मेें बहस और नागासाकी पर बमबारी की वर््षगाँठ
चर््चचा को दरकिनार करने के लिए जारी किया गया था। आदि जैसे गंभीर अवसरोों पर सदन
डीसी वाधवा बनाम बिहार राज््य (1987): न््ययायालय ने माना था कि मेें उचित उल््ललेख करते हैैं।
समान पाठ वाले अध््ययादेशोों को बार-बार पुनः जारी करना तथा विधेयक z भारत के सविधं ान द्वारा निर््धधारित z राज््यसभा मेें पारित विधेयकोों
पारित करने का प्रयास किए बिना, भारत के संविधान का उल््ललंघन होगा। सभापति की शक्तियाँ और से सबं ंधित शक्तियाँ: नियमोों
भारत के उपराष्टट्र पति कर््तव््य: उन््हेें सदन को स््थगित के तहत सभापति को सदन द्वारा
उपराष्टट्रपति देश का दसू रा सबसे बड़़ा पद है। यह पद अमेरिकी उपराष्टट्रपति की करने या गणपर््तति ू के अभाव विधेयक पारित किए जाने के बाद
तर््ज पर बनाया गया है। की स््थथिति मेें इसकी बैठक को उसमेें स््पष्ट त्रुटियोों को सधु ारने
संवैधानिक प्रावधान निलंबित करने का अधिकार है। तथा सदन द्वारा स््ववीकार किए
गए संशोधनोों के परिणामस््वरूप
अनुच््छछे द प्रावधान विधेयक मेें अन््य परिवर््तन करने
63 भारत का एक उपराष्टट्रपति होगा। का अधिकार है।
64 उपराष्टट्रपति राज््यसभा का पदेन सभापति होगा और कोई अन््य z सदन के विचार-विमर््श मेें z राज््यसभा सचिवालय और
लाभ का पद धारण नहीीं करे गा।
भूमिका: राज््यसभा परिसर से सबं ंधित
उपराष्टट्र पति की शक्तियााँ एवं कार््य शक्तियाँ: राज््यसभा सचिवालय
z राज््यसभा के पदेन सभापति: z सविध
ं ान और नियमोों की सभापति के नियंत्रण और निर्देशन
वह राज््यसभा के पदेन सभापति व््ययाख््यया करने का सभापति मेें कार््य करता है। प्रेस गैलरी
के रूप मेें कार््य करते हैैं। सभापति का अधिकार: सहित विभिन््न दीर््घघाओ ं मेें प्रवेश,
के रूप मेें उनकी भमि ू काएँ इस सभापति के निर्देशन मेें विनियमित
प्रकार हैैं: किया जाता है।

संघ कार्यकारिणी एवं राज्य कार्यका 101


z सभापति, पीठासीन अधिकारी के z अध््यक्ष को सौौंपे गए कर््तव््य: राष्टट्रपति का चुनाव उपराष्टट्रपति का चुनाव
रूप मेें अपने कर््तव््योों के निर््वहन के कुछ क़़ाननू , सभापति को कर््तव््य राज््य विधानसभाओ ं के निर््ववाचित राज््य विधानसभाओ ं के सदस््य, इसमेें
अलावा सदन के विचार-विमर््श मेें भी प्रदत्त करते हैैं। उदाहरण के सदस््य इसमेें शामिल हैैं। शामिल नहीीं होते।
भाग नहीीं लेता है। लिए, संसद सदस््योों के वेतन, भत्ते
और पेेंशन अधिनियम, 1954 के राष्टट्र पति और उपराष्टट्र पति
तहत बनाए गए नियम तब तक का कार््यकाल, अर््हताएँँ और निष्कासन
प्रभावी नहीीं होते जब तक कि
राष्टट्रपति उपराष्टट्रपति
उन््हेें अध््यक्ष और स््पपीकर द्वारा
अनमु ोदित और उनकी पष्टि ु नहीीं अर््हता वह भारत का नागरिक हो, 35 वह भारत का नागरिक हो,
कर दी जाती। वर््ष की आयु पूरी कर चकु ा हो, 35 वर््ष की आयु पूरी कर
z तथापि, किसी विधि-प्रश्न पर z कार््यवाहक अध््यक्ष: तथा लोकसभा का सदस््य चनु े चकु ा हो, तथा राज््यसभा
या स््वयं वह किसी भी समय जाने के लिए योग््य हो। का सदस््य चनु े जाने के
विचाराधीन विषय पर सदन को लिए योग््य हो।
संबोधित कर सकते हैैं, ताकि पद की शर्ततें संसद के किसी भी सदन या संसद के किसी भी सदन
सदस््योों को विचार-विमर््श मेें राज््य विधानमंडल के किसी या राज््य विधानमंडल के
सहायता मिल सके । भी सदन का सदस््य नहीीं होना किसी भी सदन का सदस््य
z राज््यसभा के प्रक्रिया नियमोों z वे कार््यवाहक राष्टट्रपति के रूप मेें
चाहिए। सरकार के अधीन नहीीं होना चाहिए। सरकार
के अंतर््गत सभापति को प्रदत्त तब कार््य करते हैैं जब राष्टट्रपति के
शक्तियाँ: राज््यसभा के प्रक्रिया त््ययागपत्र, पद से हटाए जाने, मृत््ययु किसी लाभ के पद पर नहीीं के अधीन किसी लाभ के
नियमोों के अतं र््गत सभापति को या अन््य किसी कारण से उनका होना चाहिए। पद पर नहीीं होना चाहिए।
सदन की कार््यवाही, समितियोों पद रिक्त हो जाता है। अवधि 5 वर््ष 5 वर््ष
तथा अन््य मामलोों जैसे प्रश्न, इस््ततीफा/ उपराष्टट्रपति को राष्टट्रपति को
ध््ययानाकर््षण प्रस््तताव, संकल््प, त््ययागपत्र
विधेयकोों मेें संशोधन, विधेयकोों, निष््ककासन 'संविधान के उल््ललंघन' के लिए उन््हेें राज््यसभा मेें प्रभावी
याचिकाओ,ं सभा पटल पर रखे महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा। बहुमत से तथा लोकसभा मेें
जाने वाले पत्ररों का प्रमाणीकरण, साधारण बहुमत से प्रस््तताव
व््यक्तिगत स््पष्टीकरण आदि के
सबं ंध मेें विभिन््न शक्तियाँ प्रदान प्रस््ततुत कर पारित करके
की गई हैैं। हटाया जा सकता है।
z वे अधिकतम छह महीने तक ही पुनर््ननिर््ववाचन पुनर््ननिर््ववाचन के लिए पात्र
कार््यवाहक राष्टट्रपति के रूप मेें (कितनी भी बार पुनः निर््ववाचित
कार््य कर सकते हैैं। अतः छः महीने हो सकते हैैं)
के भीतर नए राष्टट्रपति का चनु ाव
किया जाना आवश््यक है। राज्य के राज्यपाल
z इस अवधि के दौरान, उपराष्टट्रपति z राज््य का प्रमख ु राज््यपाल होता है और राज््य की कार््यकारी शक्तियाँ उसमेें
को राष्टट्रपति की सभी शक्तियाँ, निहित होती हैैं।
उन््ममुक्तियाँ और विशेषाधिकार z उसकी नियक्ु ति भारत के राष्टट्रपति द्वारा की जाती है, जो राष्टट्रपति के प्रसाद
प्राप्त होते हैैं तथा वह राष्टट्रपति को पर््यन््त पद पर बने रहते हैैं।
देय परिलब््धधियाँ और भत्ते प्राप्त
करता है। z नियुक्ति (अनुच््छछे द 155): राष्टट्रपति द्वारा अपने हस््तताक्षर और महु र सहित
वारंट द्वारा राज््यपाल की नियक्ु ति की जाती है। एक तरह से वह केें द्र सरकार
राष्टट्र पति और उपराष्टट्र पति के चुनाव का नामित व््यक्ति होता है।
राष्टट्रपति और उपराष्टट्रपति के चुनाव की तुलना राज्यपाल का कार््यकाल (अनुच्छेद 156)
राष्टट्रपति का चुनाव उपराष्टट्रपति का चुनाव z राज््यपाल पाँच वर््ष की अवधि के लिए पद पर रहता है; हालाँकि, पाँच वर््ष
निर््ववाचक मंडल मेें के वल लोकसभा + निर््ववाचक मंडल मेें के वल लोकसभा की यह अवधि राष्टट्रपति की इच््छछा पर निर््भर है।
राज््यसभा + राज््य विधानसभाओ ं + और राज््यसभा से निर््ववाचित और z वे किसी भी समय राष्टट्रपति को त््ययागपत्र देकर इस््ततीफा दे सकते हैैं।
केें द्र शासित प्रदेशोों की विधानसभाओ ं मनोनीत दोनोों सदस््य शामिल होते हैैं।
z राज््यपाल के लिए कोई कार््यकाल सीमा और कोई कार््यकाल सरु क्षा नहीीं है।
(के वल दिल््लली और पुडुचेरी) के
z संविधान मेें ऐसा कोई आधार नहीीं बताया गया है जिसके आधार पर राष्टट्रपति
निर््ववाचित सदस््य शामिल होते हैैं।
राज््यपाल को हटा सके ।

102  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीति और संविधान


अर््हताएँ (अनुच्छेद 157)] राष्टट्र पति एवं राज्यपाल की शक्तियााँ
संवैधानिक प्रावधानोों के अनुसार, वह भारत का नागरिक होना चाहिए तथा वह कार््यकारी शक्तियााँ
35 वर््ष की आयु पूर््ण कर चक ु ा हो। राष्टट्रपति राज््यपाल
z राज््यपाल की नियुक्ति के सब ं ंध मेें दो परंपराएँ विकसित हुई:ं भारत सरकार की सभी कार््यकारी किसी राज््य की सरकार की सभी
 वह बाहरी व््यक्ति होना चाहिए, अर््थथात वह उस राज््य का नहीीं होना चाहिए कार््रवाइयाँ औपचारिक रूप से कार््यकारी कार््रवाइयाँ औपचारिक
जहाँ उसकी नियक्ु ति की गई है, ताकि वह स््थथानीय राजनीति से तटस््थ रहे। राष्टट्रपति के नाम पर की जाती हैैं। रूप से राज््यपाल के नाम पर की
 राज््य के संवैधानिक तंत्र के कुशल संचालन को सनिश् ु चित करने के लिए, जाती हैैं
राष्टट्रपति को राज््यपाल चनु ने से पहले उस राज््य के मख्ु ्यमत्ं री से परामर््श वह प्रधानमंत्री और अन््य मंत्रियोों की वह मख्ु ्यमंत्री और अन््य मंत्रियोों
नियुक्ति करता है। वे उनके प्रसादपर्यंत की नियुक्ति करता है। वे भी उनके
करना अनिवार््य है। पद पर बने रहते हैैं। प्रसादपर्यंत पद पर बने रहते हैैं। वह
z अन््य शर्ततें (राष्टट्रपति के समान): छत्तीसगढ़, झारखंड, मध््य प्रदेश
 वह संसद के किसी भी सदन या राज््य विधानमड ं ल के किसी भी सदन और ओडिशा राज््योों मेें आदिवासी
कल््ययाण मंत्रियोों की नियुक्ति भी
का सदस््य नहीीं होना चाहिए।
करता है।
 उसे सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर नहीीं होना चाहिए।
वह भारत के अटॉर्नी जनरल की वह राज््य के महाधिवक्ता की नियुक्ति
मनोनीत बनाम निर्वाचित राज्यपाल नियुक्ति करता है और उसका करता है तथा उसका पारिश्रमिक
पारिश्रमिक निर््धधारित करता है। निर््धधारित करता है। महाधिवक्ता
के संबध
ं मेें तर््क अटॉर्नी जनरल राष्टट्रपति की इच््छछा राज््यपाल के प्रसादपर्यंत पद धारण
मनोनीत राज््यपाल के निर््ववाचित राज््यपाल के पर््यन््त पद पर बना रहता है। करता है।
पक्ष मेें तर््क पक्ष मेें तर््क वह नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक वह राज््य चनु ाव आयुक्त की नियुक्ति
z राज््यपाल का प्रत््यक्ष चनु ाव z बाहरी व््यक्ति होने के कारण उन््हेें (CAG), मख्ु ्य चनु ाव आयुक्त और करता है और उसकी सेवा की शर्ततें
राज््योों मेें स््थथापित ससं दीय प्रणाली राज््य की सस्ं ्ककृति, भाषा और अन््य चनु ाव आयुक्ततों, संघ लोक तथा कार््यकाल निर््धधारित करता है।
के साथ असंगत है। विकास संबंधी जरूरतोों के बारे मेें सेवा आयोग (UPSC) के अध््यक्ष वह राज््य लोक सेवा आयोग के
और सदस््योों, राज््योों के राज््यपालोों, अध््यक्ष और सदस््योों की नियुक्ति
जानकारी नहीीं होगी। वित्त आयोग के अध््यक्ष और सदस््योों करता है।
z प्रत््यक्ष चनु ाव की पद्धति से z मनोनीत राज््यपालोों के मामले मेें आदि की नियुक्ति करता है।
राज््यपाल और मख्ु ्यमत्ं री के बीच भी टकराव की समान संभावना वह अनुसूचित जातियोों, अनुसूचित वह सवं धै ानिक प्रावधान लागू करने की
टकराव उत््पन््न होने की अधिक होती है। जनजातियोों और अन््य पिछड़़े वर्गगों सिफारिश कर सकते हैैं। किसी राज््य
सभं ावना है। की स््थथिति की जाँच के लिए एक मेें आपातकाल लागू करने के लिए
z राज््यपाल के वल एक संवैधानिक z मनोनीत राज््यपाल संघवाद की आयोग नियुक्त कर सकते हैैं। राष्टट्रपति को सिफारिश कर सकते हैैं।
(नाममात्र) प्रमख ु है, इसलिए सच््चची भावना का उल््ललंघन करते वह केें द्र-राज््य और अंतरराज््ययीय वह राज््य के विश्वविद्यालयोों के
उसके चनु ाव के लिए व््ययापक हैैं। सहयोग को बढ़़ावा देने के लिए एक कुलाधिपति के रूप मेें कार््य करते
व््यवस््थथा करने और भारी मात्रा मेें अंतर-राज््य परिषद की नियुक्ति कर हैैं। वह राज््य के विश्वविद्यालयोों के
धन खर््च करना व््यर््थ है। सकता है। वह अपने द्वारा नियुक्त कुलपतियोों की नियुक्ति भी करते हैैं।
प्रशासकोों के माध््यम से सीधे केें द्र
z एक निर््ववाचित राज््यपाल z बड़़े पैमाने पर निष््ककासन से बचा शासित प्रदेशोों का प्रशासन करता है।
स््ववाभाविक रूप से किसी पार्टी जा सकता है। उसके पास किसी भी स््थथान को पाँचवीीं अनुसूची के अंतर््गत
से संबंधित होगा तथा वह तटस््थ अनुसूचित क्षेत्र के रूप मेें नामित करने अनुसूचित क्षेत्र मेें जनजातीय आबादी
व््यक्ति और निष््पक्ष प्रमख ु नहीीं तथा अनुसूचित और जनजातीय दोनोों के संबंध मेें राज््य के राज््यपाल की
होगा। क्षेत्ररों के प्रशासन की देखरे ख करने का विशेष जिम््ममेदारियाँ होती हैैं।
z राष्टट्रपति के नामांकन की प्रणाली z नियक्त
ु राज््यपाल केें द्र के निर्देश पर अधिकार है।
केें द्र को राज््योों पर अपना नियंत्रण राज््य सरकारोों को अस््थथिर करने का विधायी शक्तियााँ
बनाए रखने मेें सक्षम बनाती है। प्रयास कर सकते हैैं। राष्टट्रपति राज््यपाल
z मख्ु ्यमत्ं री चाहते हैैं कि उनका z राजभवन एक पनु र््ववास केें द्र बन वह संसद की बैठक बुला सकता वह राज््य विधानमंडल को बुला
उम््ममीदवार राज््यपाल पद के लिए गया है और अक््सर इसका उपयोग है या स््थगित कर सकता है और सकता है या स््थगित कर सकता है
चनु ाव लड़़े। इसलिए सत्तारूढ़ राजनीतिक आवास के लिए किया लोकसभा को भंग कर सकता है। वह तथा राज््य विधानसभा को भंग कर
पार्टी का एक दोयम दर्जे का व््यक्ति जाता है। संसद के दोनोों सदनोों की संयुक्त बैठक सकता है।
राज््यपाल चनु ा जाता है। भी बुला सकता है।

संघ कार्यकारिणी एवं राज्य कार्यका 103


राष्टट्रपति राज््यपाल राष्टट्रपति राज््यपाल
वह प्रत््ययेक आम चनु ाव के बाद प्रथम वह प्रत््ययेक आम चनु ाव के बाद प्रथम राष्टट्रपति संसद के समक्ष वार््षषिक वह यह सुनिश्चित करता है कि वार््षषिक
सत्र के आरंभ मेें तथा प्रत््ययेक वर््ष के सत्र के आरंभ मेें तथा प्रत््ययेक वर््ष के वित्तीय विवरण (केें द्रीय बजट) प्रस््ततुत वित्तीय विवरण (राज््य बजट) राज््य
प्रथम सत्र मेें संसद को संबोधित कर प्रथम सत्र मेें राज््य विधानमंडल को करवाता है। विधानमंडल के समक्ष रखा जाए।
सकते हैैं। संबोधित कर सकते हैैं। उनकी सिफारिश के बिना लोकसभा उसकी सिफारिश के बिना विधानसभा
वह साहित््य, विज्ञान, कला और वह राज््य विधान परिषद के सदस््योों मेें अनुदान की कोई माँग नहीीं की जा मेें अनुदान की कोई माँग नहीीं की जा
सामाजिक सेवा मेें विशेष ज्ञान या के 1/6वाँ, विज्ञान, कला, सहकारी सकती। सकती।
व््ययावहारिक अनुभव रखने वाले आंदोलन और सामाजिक सेवा मेें वह किसी भी अप्रत््ययाशित व््यय वह किसी भी अप्रत््ययाशित व््यय
व््यक्तियोों मेें से राज््यसभा के लिए 12 विशेष ज्ञान या व््ययावहारिक अनुभव को पूरा करने के लिए भारत की को पूरा करने के लिए राज््य की
सदस््योों को मनोनीत करता है। रखने वाले व््यक्तियोों मेें से मनोनीत आकस््ममिकता निधि से अग्रिम राशि आकस््ममिकता निधि से अग्रिम राशि
करता है। दे सकता है। दे सकता है।
वह एंग््ललो-इडि ं यन समदु ाय से वह राज््य विधानसभा के लिए वह केें द्र और राज््योों के बीच राजस््व वह पंचायतोों और नगर पालिकाओ ं
लोकसभा मेें दो सदस््योों को मनोनीत एक एंग््ललो-इडि ं यन उम््ममीदवार को के वितरण की सिफारिश करने के की वित्तीय स््थथिति की समीक्षा के
कर सकता है (वर््तमान समय मेें यह नामांकित कर सकता है। (वर््तमान लिए हर पाँच साल बाद एक वित्त लिए हर पाँच साल बाद एक वित्त
व््यवस््थथा निरस््त कर दी गई है, इसके समय मेें यह व््यवस््थथा निरस््त कर दी आयोग का गठन करते हैैं। आयोग का गठन करते हैैं।
लिए कृ पया तालिका के नीचे दी गई गई है, इसके लिए कृ पया तालिका के राष्टट्रपति और राज्यपाल की न्यायिक शक्तियााँ
टिप््पणी देखेें)। नीचे दी गई टिप््पणी देखेें) राष्टट्रपति राज््यपाल
वह चनु ाव आयोग के परामर््श से वह चनु ाव आयोग के परामर््श से वह मख्ु ्य न््ययायाधीश तथा सर्वोच््च संबंधित राज््य उच््च न््ययायालय के
संसद सदस््योों की अयोग््यता से राज््य विधानमंडल के सदस््योों की न््ययायालय और उच््च न््ययायालयोों के न््ययायाधीशोों की नियुक्ति करते समय
संबंधित प्रश्ननों पर निर््णय लेता है। अयोग््यता के प्रश्न पर निर््णय लेता है। न््ययायाधीशोों की नियुक्ति करता है। राष्टट्रपति राज््यपाल से परामर््श करते हैैं।
संसद मेें कुछ प्रकार के विधेयक पेश वह विधानमंडल मेें लंबित किसी वह किसी भी अपराध के लिए वह राज््य कानून के विरुद्ध किसी
करने के लिए उनकी पूर््व सिफारिश विधेयक के संबंध मेें या अन््यथा दोषी ठहराए गए किसी भी व््यक्ति अपराध के लिए दोषी ठहराए गए
या अनुमति आवश््यक होती है। राज््य विधानमंडल के सदन या सदनोों को क्षमादान, प्रविलंबन, विराम, किसी भी व््यक्ति की सजा/दंड को माफ
को संदेश भेज सकता है (संसदीय लघक ु रण,परिहार के माध््यम से क्षमा कर सकता है, स््थगित कर सकता है,
विधेयक के संबंध मेें राष्टट्रपति की प्रदान कर सकता है। राहत दे सकता है, स््थगित कर सकता
समान शक्ति)। है या कम कर सकता है।
वह अंडमान और निकोबार द्वीप जब राज््य विधानमंडल सत्र मेें न हो,
समहू , लक्षद्वीप, दादरा और नगर तो वह अध््ययादेश जारी कर सकता है। राष्टट्रपति की अन्य शक्तियााँ:
हवेली तथा दमन और दीव की शांति, (जब संसद सत्र मेें न हो, तो राष्टट्रपति कूटनीतिक शक्तियाँ सैन््य शक्तियाँ आपातकालीन शक्तियाँ
प्रगति और अच््छछी सरकार के लिए भी अध््ययादेश जारी कर सकता है)। z अं त र र ा ष् ट् री य z वे भारत की तीनोों z सविध ं ान राष्टट्रपति
नियम बना सकते हैैं। संधियोों और रक्षा सेनाओ ं (जल, को निम््नलिखित तीन
राज््य और केें द्रीय विधानोों के संबंध मेें राज््य विधानोों के संबंध मेें वीटो शक्ति। समझौतोों पर थल और वायु ) के प्रकार की आपात
वीटो शक्तियाँ। राष्टट्रपति की ओर सर्वोच््च कमांडर स््थथितियाँ लागू करने
वह नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, वह राज््य वित्त आयोग, राज््य लोक से बातचीत की होते हैैं। इस पद पर की असाधारण शक्तियाँ
संघ लोक सेवा आयोग, वित्त आयोग सेवा आयोग और नियंत्रक एवं जाती है और उन््हेें रहते हुए वे थल देता है:
अति ं म रूप दिया सेना, नौसेना और z राष्ट्रीय आपातकाल
तथा अन््य की रिपोर्टटें संसद के समक्ष
महालेखा परीक्षक की राज््य के खातोों
जाता है। हालाँकि, वायु सेना के प्रमखो
ु ों (अनच्ु ्छछेद 352);
रखता है से संबंधित रिपोर्टटें राज््य विधानमंडल
वे संसद की मज़ं ऱू ी की नियक्ु ति करते हैैं। z राष्टट्रपति
के समक्ष रखता है। शासन
के अधीन होते हैैं। वे ससं द की
नोट: जनवरी, 2020 मेें भारत की संसद और राज््य विधानसभाओ ं मेें एंग््ललो- z (अनच्ु ्छछेद 356 और
z वे अतं रराष्ट्रीय
इडि
ं यन आरक्षित सीटेें 2019 के 126वेें संविधान संशोधन विधेयक द्वारा समाप्त स््ववीकृ ति के अधीन 365);
मचों ों और मामलोों यद्ध
ु की घोषणा z वित्तीय आपातकाल
कर दी गई,ं जिसे 104वेें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 के रूप मेें मेें भारत का
अधिनियमित किया गया। कर सकते हैैं या (अनच्ु ्छछेद 360)।
प्रतिनिधित््व करते शांति स््थथापित कर
राष्टट्रपति और राज्यपाल की वित्तीय शक्तियााँ हैैं तथा राजदतोू ों,
सकते हैैं।
उच््चचायक्ततों
ु आदि
राष्टट्रपति राज््यपाल जैसे राजनयिकोों
संसद मेें धन विधेयक के वल राष्टट्रपति राज््य विधानमंडल मेें धन विधेयक को भेजते और
की पूर््व सिफारिश से ही प्रस््ततुत किया के वल राज््यपाल की पूर््व सिफारिश उनका स््ववागत
जा सकता है। से ही प्रस््ततुत किया जा सकता है। करते हैैं।

104  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीति और संविधान


राष्टट्र पति और राज्यपाल को प्राप्त विशेषाधिकार राष्टट्रपति राज््यपाल
और उन्मुक्तियााँ (अनुच्छेद 361) z जब राज््यपाल द्वारा कोई धन z जब राज््यपाल किसी धन विधेयक
विधेयक राष्टट्रपति के विचारार््थ को राष्टट्रपति के विचारार््थ सरु क्षित
z अनुच््छछे द 361 (1): राष्टट्रपति या किसी राज््य का राज््यपाल अपने पद की सरु क्षित रखा जाता है, तो वह रखता है, तो विधेयक के
शक्तियोों और कर््तव््योों के प्रयोग और पालन के लिए किसी न््ययायालय के प्रति उस पर अपनी स््ववीकृ ति दे सकता अधिनियमन मेें उसकी कोई भमि ू का
उत्तरदायी नहीीं होगा, सिवाय इसके कि संसद ने अनच्ु ्छछेद 61 के तहत आरोप है, लेकिन राज््य विधानमडं ल के नहीीं रह जाती। यदि राष्टट्रपति
की जाँच के लिए किसी न््ययायाधिकरण, न््ययायालय या निकाय को अधिकृ त पनु र््वविचार के लिए धन विधेयक को विधेयक पर अपनी सहमति दे देता
किया हो। वापस नहीीं कर सकता। है, तो वह अधिनियम बन जाता है।
z अनुच््छछे द 361 (2): राष्टट्रपति या राज््यपाल के खिलाफ पद पर रहते हुए कोई
z सविध ं ान सश ं ोधन विधेयक के सबं धं z संविधान संशोधन विधेयक राज््य
आपराधिक कार््यवाही शरू ु या जारी नहीीं रखी जा सकती है।
मेें वह के वल अनमु ोदन कर सकते विधानमडं ल मेें प्रस््ततुत नहीीं किये
z अनुच््छछे द 361 (3): राष्टट्रपति या राज््यपाल की गिरफ््ततारी या कारावास की कोई
हैैं। वह विधेयक को अस््ववीकार या जा सकते।
कार््यवाही उनके पद पर रहते हुए किसी भी न््ययायालय द्वारा नहीीं की जाएगी।
वापस नहीीं कर सकते।
z अनुच््छछे द 361 (4): राज््यपाल या राष्टट्रपति द्वारा व््यक्तिगत क्षमता के अतं र््गत
किए गए कार्ययों के विरुद्ध सिविल कार््यवाही के वल दो महीने पर््वू सचू ना देकर राष्टट्र पति एवं राज्यपाल
ही की जा सकती है। की अध्यादेश जारी करने की शक्ति
राष्टट्र पति और राज्यपाल की वीटो शक्ति की तुलना z अध््ययादेश जारी करने की शक्ति राष्टट्रपति और राज््यपाल की सबसे महत्तत्वपर््णू
राष्टट्रपति राज््यपाल विधायी शक्ति है।
z संसद के साधारण विधेयकोों के z साधारण विधेयक के संबंध मेें z अनच्ु ्छछेद 123 राष्टट्रपति को संसद के अवकाश के दौरान अध््ययादेश जारी करने
संबंध मेें वह अपनी अनमु ति दे वह अपनी अनमु ति दे सकता है/ का अधिकार देता है।
सकता है/अपनी अनमु ति रोक अपनी अनमु ति रोक सकता है/ z अनच्ु ्छछेद 213 के तहत राज््यपाल को दी गई अध््ययादेश जारी करने की शक्ति,
सकता है/विधेयक को सदनोों के विधेयक को सदनोों के पनु र््वविचार अनच्ु ्छछेद 123 के तहत राष्टट्रपति को दी गई शक्ति के समान है।
पनु र््वविचार के लिए लौटा सकता है। के लिए लौटा सकता है/विधेयक z अध््ययादेश शक्ति क््योों प्रदान की गई है?
को राष्टट्रपति के विचार के लिए  अप्रत््ययाशित या अति आवश््यक मामलोों से निपटने के लिए राष्टट्रपति और

सरु क्षित रख सकता है। राज््यपाल को अध््ययादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई है।
z जब राज््यपाल द्वारा किसी राज््य z जब राज््यपाल किसी विधेयक  यह कार््यपालिका को ऐसी स््थथिति से निपटने मेें सक्षम बनाता है जो संसद

विधेयक को राष्टट्रपति के विचारार््थ को राष्टट्रपति के विचारार््थ के सत्र मेें न होने पर अचानक और तत््ककाल उत््पन््न हो सकती है।
सरु क्षित रखा जाता है, तो वह उस सरु क्षित रखता है, तो विधेयक के अध्यादेश की विशेषताएँ :
पर अपनी स््ववीकृ ति दे सकता है/ अधिनियमन मेें उसकी कोई और
z अध््ययादेश किसी भी मौलिक अधिकार को कम या छीन नहीीं सकता।
अपनी स््ववीकृ ति रोक सकता है/ भमिू का नहीीं रहती।
z किसी भी अन््य कानन ू की तरह अध््ययादेश भी पर््वू व््ययापी हो सकता है, अर््थथात
विधेयक को सदनोों के पनु र््वविचार z यदि विधेयक को राष्टट्रपति द्वारा
यह पिछली तिथि से लागू हो सकता है।
के लिए लौटा सकता है। सदन या सदनोों के पनु र््वविचार के
z इन अध््ययादेशोों का बल और प्रभाव संसद/राज््य के अधिनियम के समान ही
z पनु र््वविचार के लिए लौटाए जाने लिए लौटा दिया जाता है और
होता है, लेकिन ये अस््थथायी काननोू ों की प्रकृ ति के होते हैैं।
की स््थथिति मेें, यदि विधेयक राज््य पनु ः पारित कर दिया जाता है,
z ससं द/राज््य विधानमडं ल द्वारा अनमु ोदन न मिलने की स््थथिति मेें अध््ययादेश की
द्वारा पारित कर दिया जाता है तो विधेयक को पनु ः राष्टट्रपति की
अधिकतम अवधि छह माह और छह सप्ताह हो सकती है, क््योोंकि संसद/राज््य
और राष्टट्रपति के समक्ष स््ववीकृ ति स््ववीकृ ति के लिए ही प्रस््ततुत किया
विधानमडं ल के दो सत्ररों के बीच अधिकतम अतं राल छह माह का होता है।
के लिए प्रस््ततुत किया जाता है, तो जाना चाहिए, अर््थथात् राज््यपाल
z अध््ययादेश कर कानन ू मेें परिवर््तन या संशोधन भी कर सकता है। हालाँकि, इसे
राष्टट्रपति विधेयक पर स््ववीकृ ति देने की स््ववीकृ ति की आवश््यकता
संविधान मेें संशोधन करने के लिए जारी नहीीं किया जा सकता।
के लिए बाध््य नहीीं है। नहीीं होती।
z धन विधेयक के सबं ंध मेें, वह z धन विधेयक के सबं ंध मेें, वह राष्टट्रपति राज््यपाल
z वह अध््ययादेश तभी जारी कर z वह अध््ययादेश तभी जारी कर
विधेयक पर अपनी सहमति दे विधेयक पर अपनी सहमति दे
सकता है/अपनी सहमति रोक सकता है/अपनी सहमति रोक सकता है जब ससं द के दोनोों सदन सकता है जब विधानसभा (एक
सकता है, लेकिन संसद के सकता है/ विधेयक को राष्टट्रपति सत्र मेें न होों या संसद के दोनोों सदनीय विधायिका के मामले
पनु र््वविचार के लिए धन विधेयक के विचारार््थ सरु क्षित रख सकता सदनोों मेें से कोई एक सत्र मेें न हो। मेें) सत्र मेें न हो या (द्वि-सदनीय
को वापस नहीीं लौटा सकता। है, लेकिन वह धन विधेयक को विधायिका के मामले मेें) जब राज््य
संसद के पनु र््वविचार के लिए वापस विधानमडं ल के दोनोों सदन/दोनोों मेें
नहीीं कर सकता। से कोई एक सदन सत्र मेें न हो।

संघ कार्यकारिणी एवं राज्य कार्यका 105


राष्टट्रपति राज््यपाल राष्टट्रपति राज््यपाल
z वह अध््ययादेश तभी जारी कर z वह अध््ययादेश तभी जारी कर z अध््ययादेश जारी करने के लिए z वे तीन मामलोों मेें राष्टट्रपति के
सकता है जब वह इस बात से संतष्टु सकता है जब वह इस बात से संतष्टु राष्टट्रपति को किसी निर्देश की निर्देश के बिना अध््ययादेश जारी
हो जाए कि ऐसी परिस््थथितियाँ हो जाए कि ऐसी परिस््थथितियाँ आवश््यकता नहीीं है। नहीीं कर सकते:
विद्यमान हैैं जिनके कारण तत््ककाल विद्यमान हैैं जिनके कारण तत््ककाल 1) यदि समान प्रावधान
कार््र वाई करना आवश््यक है। कार््र वाई करना आवश््यक है। वाले विधेयक को राज््य
z उसकी अध््ययादेश बनाने की शक्ति z उसकी अध््ययादेश जारी करने विधानमंडल मेें प्रस््ततुत करने
संसद की विधायी शक्ति के साथ- की शक्ति राज््य विधानमडं ल के लिए राष्टट्रपति की पूर््व
साथ व््ययापक है। इसका मतलब यह की विधायी शक्ति के साथ-साथ मंजूरी की आवश््यकता होती
है कि वह के वल उन््हीीं विषयोों पर व््ययापक है। इसका मतलब यह है है।
अध््ययादेश जारी कर सकता है जिन कि वह के वल उन््हीीं विषयोों पर 2) यदि वो समान प्रावधानोों
पर संसद काननू बना सकती है। अध््ययादेश जारी कर सकता है जिन वाले विधेयक को राष्टट्रपति
पर राज््य विधानमडं ल काननू बना के विचारार््थ सुरक्षित रखना
सकता है। आवश््यक समझते हैैं।
z उनके द्वारा जारी अध््ययादेश का z उनके द्वारा जारी अध््ययादेश का 3) यदि राज््य विधानमंडल
संसद के अधिनियम के समान ही संसद के अधिनियम के समान ही का कोई अधिनियम समान
बल और प्रभाव होता है। बल और प्रभाव होता है। प्रावधानोों से युक्त होता है तो
z वह किसी भी समय अध््ययादेश z वह किसी भी समय अध््ययादेश वह राष्टट्रपति की स््ववीकृ ति के
वापस ले सकते हैैं। वापस ले सकते हैैं। बिना अवैध हो जाता।
z अध््ययादेश बनाने की शक्ति z अध््ययादेश जारी करने की शक्ति z उनके द्वारा जारी किया गया z उनके द्वारा जारी किया गया
विवेकाधीन नहीीं है और वह विवेकाधीन नहीीं है और वह अध््ययादेश संसद के अधिनियम के अध््ययादेश राज््य विधानमडं ल के
के वल प्रधानमत्ं री की अध््यक्षता के वल मख्ु ्यमत्ं री की अध््यक्षता समान ही सीमाओ ं के अधीन होता अधिनियम के समान ही सीमाओ ं
वाली मत्रिं परिषद की सलाह पर वाली मत्रि ं परिषद की सलाह पर है। इसका मतलब यह है कि उनके के अधीन होता है। इसका मतलब
ही अध््ययादेश जारी या वापस ले ही अध््ययादेश जारी या वापस ले द्वारा जारी किया गया अध््ययादेश यह है कि उनके द्वारा जारी किया
सकते हैैं। सकते हैैं। उस सीमा तक अमान््य होगा, जब गया अध््ययादेश उस सीमा तक
z उनके द्वारा जारी अध््ययादेश को z उनके द्वारा जारी अध््ययादेश को तक कि उसमेें कोई ऐसा प्रावधान अमान््य होगा, जब तक कि उसमेें
संसद के पनु ः समवेत होने पर दोनोों सदन के समक्ष रखा जाना चाहिए। न हो जिसे ससं द नहीीं बना सकती। ऐसा कोई प्रावधान न हो जिसे राज््य
सदनोों के समक्ष रखा जाना चाहिए। z विधानसभा या राज््य विधानमडं ल विधानमडं ल नहीीं बना सकता।
के दोनोों सदनोों (द्विसदनीय
अध्यादेशोों का पुनः प्रवर््तन:
विधानमडं ल के मामले मेें) के पनु ः क्या यह संविधान की भावना का उल्लंघन है ?
समवेत होने पर, विधानमडं ल के
दोनोों सदनोों के बीच विचार-विमर््श z वायु गणु वत्ता प्रबंधन आयोग अध््ययादेश (2020) : राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और
किया जाएगा। आसपास के क्षेत्ररों मेें वायु गणु वत्ता प्रबंधन आयोग अध््ययादेश, 2020 को फिर
z उनके द्वारा जारी अध््ययादेश संसद z उनके द्वारा जारी अध््ययादेश राज््य से जारी करने के केें द्र सरकार के फै सले से अध््ययादेश जारी करने की प्रक्रिया
के पनु ः समवेत होने के छह सप्ताह विधानमडं ल के पनु ः समवेत होने के साथ-साथ फिर से जारी किए जा रहे अध््ययादेशोों की संवैधानिकता के बारे
बाद प्रभावी नहीीं रह जाता। से छह सप्ताह की समाप्ति पर लागू मेें कई सवाल उठाए जा रहे हैैं।
z यदि संसद के दोनोों सदन इसे नहीीं होता। z अध््ययादेशोों के पुनः प्रख््ययापन से सबं ंधित महत्तत्वपूर््ण मामले:
अस््ववीकृ त करने का प्रस््तताव पारित z यदि इसे अस््ववीकृ त करने वाला  डीसी वाधवा बनाम बिहार राज््य (1987): न््ययायालय ने माना था कि
कर देते हैैं तो यह निर््धधारित छह प्रस््तताव पारित हो जाता है तो यह समान पाठ वाले अध््ययादेशोों को बार-बार पनु ः जारी करना और विधेयक
सप्ताह से पहले भी कार््य करना बंद निर््धधारित छह सप्ताह से पहले भी पारित करने का प्रयास किए बिना भारत के संविधान का उल््ललंघन होगा।
कर सकता है। कार््य करना बंद कर सकता है।
 कृष््ण कुमार सिह ं एवं अन््य बनाम बिहार राज््य (2017): यह
z विधानसभा द्वारा पारित किया ऐतिहासिक निर््णय है जिसमेें यह माना गया कि अध््ययादेशोों का पनु ः प्रवर््तन
जाता है और विधान परिषद द्वारा
संविधान के साथ धोखाधड़़ी है। इस मामले मेें सात न््ययायाधीशोों की पीठ
उस पर सहमति व््यक्त की जाती है
ने माना कि कार््यपालिका को दी गई शक्ति उसे समानांतर काननू बनाने
(द्विसदनीय विधायिका के मामले मेें)
वाली संस््थथा नहीीं बनाती है।

106  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीति और संविधान


z सर्वोच््च न््ययायालय का निर््णय (1986): सर्वोच््च न््ययायालय ने 1986 मेें z इसे बिना विवेक और तर््क के पारित कर दिया गया है।
निर््णय दिया था कि अध््ययादेशोों को पनु ः जारी करना सविध
ं ान के मलू सिद््धाांतोों z यह दर््भभा
ु वनापर््णू है।
के विपरीत है तथा लोकतांत्रिक विधायी प्रक्रियाओ ं को नक ु सान पहुचँ ाता है, z इसे असगं त या पूर््णतः अप्रासंगिक विचारोों के आधार पर पारित किया गया है।
तथा इस तंत्र का उपयोग संभवतः सरकार द्वारा विधायिका की अनदेखी करने z इसे प्रासंगिक सामग्रियोों को विचार से बाहर रखा गया है।
के लिए शक्ति के प्रयोग के रूप मेें किया जा सकता है।
z यह मनमानी से बनाया गया है।
z समस््ययाएँ:
 विधायी शक्ति का हनन। राष्टट्रपति की क्षमादान शक्ति के प्रकार एवं प्रावधान
 शक्तियोों के पृथक््करण सिद््धाांत का कमजोर पड़ना। प्रकार प्रावधान
 संविधान के मल ू ढाँचे का उल््ललंघन। क्षमादान जब भी किसी दोषी को भारत के राष्टट्रपति द्वारा अनुच््छछेद 72
के तहत क्षमा प्रदान की जाती है, तो वह उस पर लगाए गए दंड
अध्यादेश को गैर लोकताांत्रिक क्ययों माना जाता है ? से पूरी तरह से मक्त ु हो जाता है और सभी दंडात््मक परिणामोों
z सर्वोच््च न््ययायालय ने 2017 मेें फैसला दिया था कि अध््ययादेशोों को से भी मक्त ु हो जाता है।
पुनः जारी करना संविधान के साथ धोखाधड़़ी है और लोकतांत्रिक विधायी लघुकरण राष्टट्रपति किसी दण््ड को न््ययायालय द्वारा मल ू तः दिए गए दण््ड
प्रक्रिया का उल््ललंघन है। से भिन््न प्रकार का दण््ड दे सकता है।
z काननू बनाने की प्राथमिक शक्ति विधायिका के पास है, कार््यपालिका के परिहार इसका अर््थ है न््ययायालय द्वारा दी गई सजा की प्रकृ ति या स््वरूप
पास नहीीं। अध््ययादेश काननू बनाने का एक गैर लोकतांत्रिक तरीका है, जो मेें परिवर््तन किए बिना सजा को कम करना।
विधायिका का काम है। विराम इस आदेश के तहत विशेष परिस््थथितियोों मेें सजा को अस््थथायी
z कार््यपालिका को के वल आपातकालीन स््थथिति से निपटने के लिए अध््ययादेश तौर पर रोक दिया जाता है, जैसे कि मौत की सजा पाने वाली
जारी करने की विधायी शक्ति दी गई है, इसलिए इसका बार-बार प्रयोग नहीीं महिला का गर््भवती होना या दोषी का पागल हो जाना। दसू रे
शब््दोों मेें कहेें तो यह सजा के निष््पपादन को भविष््य के लिए
किया जाएगा।
स््थगित कर देता है।
z पनु ः प्रख््ययापन विधायी प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास है, जो संसदीय
प्रविलंबन यह के वल कुछ समय के लिए फाँसी पर रोक लगाता है या
लोकतंत्र मेें काननू बनाने का प्राथमिक स्रोत है। मृत््ययुदंड की सजा को स््थगित कर देता है या कुछ समय के लिए
z अध््ययादेश ससं दीय जाँच, बहस, चर््चचा आदि से बचने का एक छिपा हुआ रास््तता है। सजा को वापस ले लेता है।
आगे की राह : राष्टट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्तियोों मेें अंतर:
z चकिँू केें द्र और राज््य दोनोों ही सरकारेें इस सिद््धाांत का उल््ललंघन कर रही हैैं, राष्टट्रपति राज््यपाल
इसलिए विधायिका और न््ययायालयोों को इस प्रथा पर लगाम लगानी चाहिए। वह किसी केें द्रीय कानून के विरुद्ध वह राज््य कानून के विरुद्ध किसी
शक्तियोों के पृथक््करण और नियंत्रण एवं संतल ु न की अवधारणा का यही अर््थ अपराध के लिए दोषी ठहराए गए अपराध के लिए दोषी ठहराए गए
है। इस प्रथा पर रोक न लगाकर, अन््य दो अगं भी संविधान के प्रति अपनी किसी भी व््यक्ति की सजा/दडं को किसी भी व््यक्ति की सजा/दडं को
जिम््ममेदारी से विमखु हो रहे हैैं। माफ कर सकता है, स््थगित कर माफ कर सकता है, स््थगित कर
राष्टट्र पति एवं राज्यपाल की क्षमादान शक्तियााँ सकता है, टाल सकता है, राहत दे सकता है, राहत दे सकता है, स््थगित
सविध सकता है, निलंबित कर सकता है या कर सकता है या कम कर सकता है।
z ं ान के अनच्ु ्छछेद 72 और 161 भारत के राष्टट्रपति और राज््योों के राज््यपालोों
को कुछ मामलोों मेें क्षमादान देने, सजा को निलंबित करने, माफ करने या कम कम कर सकता है।
करने का अधिकार देते हैैं। वह मृत््ययुदंड के मामले मेें क्षमा, राज््यपाल भी राष्टट्रपति के समान इन
लघक ु रण, परिहार,विराम या शक्तियोों का उपयोग कर सकते हैैं,
z राष्टट्रपति/राज््यपाल की क्षमादान शक्ति न््ययायपालिका से स््वतंत्र है; यह एक
कार््यकारी शक्ति है जो काननू के संचालन मेें किसी भी न््ययायिक त्रुटि को सधु ारने प्रविलंबन की शक्तियोों का प्रयोग कर लेकिन वे मृत््ययुदडं को माफ नहीीं कर
के लिए दरवाजा खल सकता है। सकते।
ु ा रखने और उस सजा से राहत देने के लिए दी गई है,
जिसे राष्टट्रपति/राज््यपाल अत््यधिक कठोर मानते हैैं। राष्टट्रपति के पास सैन््य न््ययायालय द्वारा राज््यपाल के पास ऐसी कोई शक्ति
दी गई सजा या दण््ड के संबंध मेें क्षमा नहीीं है।
z 1980 मेें मारू राम बनाम भारत संघ तथा 1994 मेें धनंजय चटर्जी बनाम
करने की शक्ति है।
पश्चिम बंगाल राज््य मामले मेें सर्वोच््च न््ययायालय ने फै सला दिया था कि दया
याचिकाओ ं पर निर््णय करते समय राष्टट्रपति को मत्रि ं परिषद की सलाह पर राष्टट्रपति और राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियााँ
कार््य करना होगा। z राज््यपाल के पास परिस््थथितिजन््य और संवैधानिक दोनोों प्रकार के विवेकाधिकार
z ईपरुु सधु ाकर एवं अन््य बनाम आध्रं प्रदेश (2006) होते हैैं, लेकिन राष्टट्रपति के पास के वल परिस््थथितिजन््य विवेकाधिकार होता है।
 अनच् ु ्छछेद 72 और 161 के तहत राष्टट्रपति या राज््यपाल की शक्तियाँ z 42वेें संविधान संशोधन (1976) के बाद मत्रि ं स््तरीय सलाह राष्टट्रपति के लिए
न््ययायिक समीक्षा के अधीन हैैं। बाध््यकारी बना दी गई है, लेकिन राज््यपाल के संबंध मेें ऐसा कोई प्रावधान
 उनके निर््णय को इस आधार पर चन ु ौती दी जा सकती है कि: नहीीं किया गया है।

संघ कार्यकारिणी एवं राज्य कार्यका 107


राष्टट्रपति राज््यपाल z मात्र रबर स््टटाम््प या कठपुतली: राज््यपाल अपने मत्रि ं परिषद की सहायता
और सलाह को मानने के लिए बाध््य होता है।
प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है जब ऐसी स््थथिति मेें मख्ु ्यमंत्री की नियुक्ति
हाल के उदाहरण:
लोकसभा मेें किसी भी पार्टी को स््पष्ट करता है जब राज््य विधानसभा मेें
z तमिलनाडु सरकार द्वारा तैयार किये गये अभिभाषण के कुछ हिस््सोों को
बहुमत न हो या जब पद पर आसीन किसी भी पार्टी को स््पष्ट बहुमत न
प्रधानमंत्री की अचानक मृत््ययु हो जाए हो या जब किसी वर््तमान मख्ु ्यमंत्री राज््यपाल ने पढ़ने से इनकार कर दिया।
और उसका कोई स््पष्ट उत्तराधिकारी का अप्रत््ययाशित रूप से निधन हो z महाराष्टट्र के राज््यपाल ने राज््यपाल शासन हटा दिया और ऐसे मख् ु ्यमत्ं री को
न हो। जाए और उनकी जगह कोई स््पष्ट शपथ दिला दी, जिसके पास सदन मेें बहुमत का समर््थन नहीीं था।
उम््ममीदवार न ले पाये। z पश्चिम बंगाल विधानसभा ने राज््यपाल को पद से हटाने तथा मख् ु ्यमत्ं री को
मंत्रिपरिषद को बर््खखास््त कर सकता है, मंत्रिपरिषद को बर््खखास््त कर सकता है, राज््य विश्वविद्यालयोों का कुलाधिपति बनाने संबंधी विधेयक पारित किया।
जब वह लोकसभा मेें विश्वास साबित जब वह राज््य विधानसभा मेें विश्वास z के रल मेें विभिन््न विधेयकोों के अनम ु ोदन को लेकर राज््य सरकार के साथ
न कर सके । साबित न कर सके । विवाद।
यदि मंत्रिपरिषद अपना बहुमत खो दे यदि मंत्रिपरिषद अपना बहुमत खो दे z तेलंगाना मेें भी मेें विभिन््न विधेयकोों के अनम
ु ोदन को लेकर राज््य सरकार
तो लोकसभा को भंग कर सकता है। तो राज््य विधानसभा को भंग किया के साथ विवाद।
जा सकता है।
सरकारिया आयोग की सिफारिशेें
राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियााँ:
z राज््यपाल को निम््नलिखित मामलोों मेें सवं ैधानिक विवेकाधिकार प्राप्त है: z अनुच््छछे द 356 से सबं ंधित:
 अनच् ु ्छछेद 356 का इस््ततेमाल बहुत ही दर््ल
ु भ मामलोों मेें किया जाना चाहिए
 किसी विधेयक को राष्टट्रपति के विचारार््थ सरु क्षित रखना।
जब राज््य मेें सवं ैधानिक तंत्र की टूट-फूट को बहाल करना अपरिहार््य हो
 राज््य मेें राष्टट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश करना।
जाए। इसका इस््ततेमाल अति ं म उपाय के रूप मेें किया जाना चाहिए।
 किसी समीपवर्ती संघ राज््य क्षेत्र के प्रशासक के रूप मेें अपने कार्ययों का
 अनच् ु ्छछेद 356 के तहत कार््र वाई करने से पहले राज््य सरकार को चेतावनी
निर््वहन करते समय (अतिरिक्त प्रभार के मामले मेें)।
जारी की जानी चाहिए कि वह संविधान के अनसु ार काम नहीीं कर रही है।
 असम, मेघालय, त्रिपरु ा और मिजोरम सरकार द्वारा स््ववायत्त जनजातीय
z राज््यपाल से सबं ंधित:
जिला परिषद के लिए देय राशि का निर््धधारण करना।
 राज््यपालोों की नियक्ु ति राज््य के मख् ु ्यमत्ं री, भारत के उपराष्टट्रपति और
 राज््य के प्रशासनिक एवं विधायी मामलोों के संबंध मेें मख्
ु ्यमत्ं री से जानकारी लोकसभा अध््यक्ष के परामर््श से की जानी चाहिए।
माँगना।
 उनके कार््यकाल की गारंटी होनी चाहिए तथा अत््ययंत आवश््यक कारणोों

राज्यपाल से संबधं ित मुद्दे को छोड़कर उसमेें कोई व््यवधान नहीीं डाला जाना चाहिए।
z मनमाने ढंग से हटाना: राज््यपाल को उनके कार््यकाल की समाप्ति से पहले राज्यपाल के चयन के मानदं ड:
मनमाने ढंग से हटाना भी हाल के दिनोों मेें एक महत्तत्वपर््णू मद्दा
ु रहा है। (i) उसे जीवन के किसी न किसी क्षेत्र मेें प्रतिष्ठित होना चाहिए।
z पुनर््ववास नियुक्तियाँ: वर््तमान सरकार के प्रति राजनीतिक रूप से वफादार रहने (ii) वह राज््य से बाहर का व््यक्ति होना चाहिए।
के कारण राजनेताओ ं के लिए यह पद सेवानिवृत्ति पैकेज बनकर रह गया है। (iii) वह एक पृथक व््यक्ति होना चाहिए तथा राज््य की स््थथानीय राजनीति
z पद का दुरुपयोग: आमतौर पर केें द्र की सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा राज््यपाल के पद से बहुत अधिक जुड़़ा हुआ नहीीं होना चाहिए।
का दरुु पयोग करने के कई उदाहरण आते रहे हैैं। (iv) वह ऐसा व््यक्ति होना चाहिए जिसने सामान््यतः और विशेषकर हाल
z विवेकाधीन शक्तियोों का दुरुपयोग: सबसे बड़़ी पार्टी/गठबंधन के नेता को के दिनोों मेें राजनीति मेें बहुत अधिक भाग नहीीं लिया हो।
z मुख््यमंत्री की नियुक्ति से सब ं ंधित:
सरकार बनाने के लिए आमत्रि ं त करने की राज््यपाल की विवेकाधीन शक्तियोों
का अक््सर दरुु पयोग किया गया है।  यदि विधानसभा मेें किसी एक पार्टी को पर््ण ू बहुमत प्राप्त है तो उस पार्टी के
z पक्षपातपूर््ण भूमिका: हाल ही मेें राजस््थथान के राज््यपाल पर आदर््श आचार नेता को स््वतः ही मख्ु ्यमत्ं री बनने के लिए आमत्रि ं त किया जाना चाहिए।
संहिता के उल््ललंघन का आरोप लगाया गया है। उनका सत्तारूढ़ दल का समर््थन  ऐसे किसी पार्टी की अनप ु स््थथिति मेें, राज््यपाल नीचे सचू ीबद्ध वरीयता क्रम
करना उस गैर-पक्षपातपर््णू भावना के विरुद्ध है जिसकी संवैधानिक पदोों पर बैठे मेें निम््नलिखित पार्टी या पार््टटियोों के समहोू ों मेें से प्रत््ययेक के साथ सनु वाई
व््यक्ति से अपेक्षा की जाती है। करके एक मख्ु ्यमत्ं री का चयन करेेंगे:
z चन ु ावोों से पहले गठित पार््टटियोों का गठबंधन।
z अनुच््छछे द 356 की शक्ति का दुरुपयोग: किसी राज््य मेें संवैधानिक तंत्र के
विफल होने की स््थथिति मेें राष्टट्रपति शासन (अनच्ु ्छछेद 356) लागू करने का z सबसे बड़़ी पार्टी ने निर््दलीयोों सहित अन््य के समर््थन से सरकार बनाने का

केें द्र सरकार द्वारा अक््सर दरुु पयोग किया गया है। दावा पेश किया हो।

108  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीति और संविधान


z चनु ाव के बाद का गठबंधन जिसमेें सभी सहयोगी सरकार मेें शामिल होोंगे।  राज््यपाल मत्रि
ं परिषद को तब तक बर््खखास््त नहीीं कर सकते जब तक कि
z चनु ाव के बाद गठबंधन जिसमेें कुछ दल सरकार मेें शामिल होोंगे और शेष विधानसभा मेें उसका बहुमत बना रहे।
बाहर से समर््थन देेंगे।
z अन््य:
प्रमुख शब्दावलियाँ
 जब राष्टट्रपति राज््य विधेयकोों पर अपनी स््ववीकृ ति रोक लेते हैैं, तो राज््य

सरकार को इसका कारण बताया जाना चाहिए। मंत्रिपरिषद, पूर््ण बहुमत, संवैधानिक अधिकार, विवेकाधीन शक्तियाँ,
 राज््य के राज््यपाल की नियक्ु ति मेें मख्
ु ्यमत्ं री से परामर््श की प्रक्रिया संविधान पनु र््ववास नियक्ु तियाँ, पद का दरुु पयोग, क्षमादान शक्तियाँ , अध््ययादेश
मेें ही निर््धधारित की जानी चाहिए। प्रख््ययापित करना, राष्टट्रपति, उपराष्टट्रपति, राज््यपाल आदि।

संघ कार्यकारिणी एवं राज्य कार्यका 109


25 प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री
केें द्र मेें राष्टट्रपति और राज््य मेें राज््यपाल नाममात्र के कार््यकारी प्राधिकारी प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री की शक्तियााँ एवं कार््य
(De Jure Executive) हैैं और केें द्र मेें प्रधानमंत्री और राज््य मेें मख्ु ्यमंत्री
संसद के संबंध मेें प्रधानमंत्री की राज््य विधानमंडल के संबंध मेें
वास््तविक कार््यकारी प्राधिकारी (De Factor Executive) हैैं। दसू रे शब््दोों मेें,
शक्तियाँ एवं कार््य मुख््यमंत्री की शक्तियाँ एवं कार््य
राष्टट्रपति/राज््यपाल राज््य के मखि ु या हैैं जबकि प्रधानमंत्री/मख्ु ्यमंत्री सरकार के
प्रधानमंत्री निचले सदन (लोकसभा) मख्ु ्यमंत्री राज््य विधानसभा के बहुमत
मखि ु या हैैं।
के बहुमत दल का नेता होता हैैं। दल का नेता होता है
संवैधानिक प्रावधान वह संसद के सत्र बुलाने और स््थगित वह राज््य विधानमंडल के सत्र बुलाने
प्रधानमंत्री: विषय मुख््यमंत्री : विषय करने के संबंध मेें राष्टट्रपति को सलाह और स््थगित करने के संबंध मेें
अनुच््छछे द अनुच््छछे द देता है। राज््यपाल को सलाह देता है।
वस््ततु वस््ततु
74 राष्टट्रपति को सहायता 163 राज््यपाल को सहायता वह किसी भी समय राष्टट्रपति से वह किसी भी समय राज््यपाल
और सलाह देने के एवं सलाह देने के लिए लोकसभा को भंग करने की सिफारिश से विधानसभा को भंग करने की
लिए एक मंत्रिपरिषद एक मंत्रिपरिषद का कर सकता है। सिफारिश कर सकता है।
का प्रावधान प्रावधान वह सदन मेें सरकारी नीतियोों की वह सदन मेें सरकारी नीतियोों की
75 प्रधानमंत्री की नियक्ु ति 164 मख्ु ्यमंत्री की नियुक्ति घोषणा करता है। घोषणा करता है।
राष्टट्रपति द्वारा की राज््यपाल द्वारा की राष्टट्रपति के संबंध मेें प्रधानमंत्री राज््यपाल के संबंध मेें मुख््यमंत्री
जायेगी और अन््य जायेगी और अन््य मंत्रियोों की शक्तियाँ एवं कार््य की शक्तियाँ एवं कार््य
मंत्रियोों की नियक्ु ति की नियुक्ति मख्ु ्यमंत्री की z प्रधानमत् ं री राष्टट्र प ति और म त्रि
ं परिषद z म ख्
ु ्यमत्ं री राज््यपाल और
प्रधानमंत्री की सलाह सलाह पर राज््यपाल के बीच संचार का मख्ु ्य माध््यम है मत्रि
ं परिषद के बीच संचार का
पर राष्टट्रपति द्वारा की द्वारा की जायेगी संबंधी (अनच्ु ्छछेद 78) मख्ु ्य माध््यम है (अनच्ु ्छछेद 167)।
जायेगी संबंधी प्रावधान प्रावधान z प्रधानमंत्री का यह कर््तव््य है: z मुख््यमंत्री का यह कर््तव््य है:

77 भारत सरकार की सभी 166 राज््य सरकार की सभी z समिति के सभी निर््णयोों (अनच् ु ्छछेद z राज््यपाल को समिति के सभी
कार््यकारी कार््यवाही कार््यकारी कार््यवाही 78) से राष्टट्रपति को अवगत निर््णयोों (अनच्ु ्छछेद 167) से
राष्टट्रपति के नाम पर राज््यपाल के नाम पर की कराना। अवगत कराना।
की जाएँगी जाएँगी z प्रशासन से सब ं धं ित ऐसी जानकारी z प्रशासन से सबं धं ित ऐसी जानकारी
78 राष्टट्रपति को सूचना 167 राज््यपाल को सूचना उपलब््ध कराना जिसे राष्टट्रपति माँगे।ें उपलब््ध कराना जिसे राज््यपाल माँगेें
उपलब््ध करने आदि उपलब््ध कराने आदि z यदि राष्टट्रपति चाहेें तो ऐसे मामले z यदि राज््यपाल ऐसा चाहेें तो ऐसे
के संबंध मेें प्रधानमंत्री के संबंध मेें मख्ु ्यमंत्री के को मत्रि
ं परिषद के विचारार््थ प्रस््ततुत मामले को कंपनी के विचारार््थ
के कर््तव््य कर््तव््य। करना जिस पर मत्ं री द्वारा निर््णय प्रस््ततुत करना जिस पर मत्ं री द्वारा
महत्तत्वपूर््ण निर््णय: लिया जा चक ु ा हो, किन््ततु परिषद निर््णय लिया जा चक ु ा हो, किन््ततु
z दिल््लली उच््च न््ययायालय (1980): प्रधानमत् ं री पद के लिए उम््ममीदवार को द्वारा उस पर विचार नहीीं किया परिषद द्वारा उस पर विचार नहीीं
लोकसभा मेें बहुमत साबित करना संविधान द्वारा अनिवार््य नहीीं है। राष्टट्रपति गया हो। किया गया हो।
पहले उसे प्रधानमत्ं री के रूप मेें नामित कर सकते हैैं, उसके बाद उनसे उचित z संघ लोक सेवा आयोग z महाधिवक्ता, राज््य लोक सेवा
समय के भीतर लोकसभा मेें बहुमत साबित करने का अनरु ोध कर सकते हैैं। (यपू ीएससी) के अध््यक्ष और आयोग के अध््यक्ष एवं सदस््य,
सदस््योों, भारत के महान््ययायवादी, राज््य चनु ाव आयक्त ु तथा अन््य
(यही बात राज््योों मेें मख्ु ्यमत्ं री के लिए भी लागू होती है)।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा महत्तत्वपर््णू प्राधिकारियोों की नियक्ु ति
z सर्वोच््च न््ययायालय (1997): एक व््यक्ति जो संसद के किसी भी सदन
परीक्षक आदि जैसे महत्तत्वपर््णू के सबं ंध मेें मख्ु ्यमत्ं री, राज््यपाल
का सदस््य नहीीं है, उसे छह महीने की अवधि के लिए प्रधानमत्ं री चनु ा जा प्राधिकारियोों की नियक्ु ति के को सलाह देते हैैं।
सकता है, इस दौरान उसे अपना पद बनाए रखने के लिए संसद के किसी भी संबंध मेें प्रधानमत्ं री, राष्टट्रपति को
सदन मेें शामिल होना होगा। (यह बात मख्ु ्यमत्ं री के संबंध मेें भी लागू है)। सिफारिश करते हैैं।

110
मंत्रिपरिषद के संदर््भ मेें:
z प्रधानमत्ं री/मख्ु ्यमत्ं री ऐसे व््यक्तियोों की सिफारिश करते हैैं जिन््हेें राष्टट्रपति/राज््यपाल द्वारा मत्ं री नियक्त
ु किया जा सकता है।
z राष्टट्रपति/राज््यपाल के वल उन््हीीं व््यक्तियोों को मत्ं री नियक्त
ु कर सकते हैैं जिनकी सिफारिश प्रधानमत्ं री/मख्ु ्यमत्ं री द्वारा की गई हो।
z वे मत्रियो
ं ों के बीच विभिन््न विभागोों का आवंटन और फे रबदल करते हैैं।
z वे किसी मत्ं री को इस््ततीफा देने के लिए कह सकते है या मतभेद की स््थथिति मेें राष्टट्रपति/राज््यपाल को उसे बर््खखास््त करने की सलाह दे सकते हैैं।
z वे समिति की बैठक की अध््यक्षता करते हैैं और उसके निर््णयोों को प्रभावित करते हैैं।
z वे सभी मत्रियो
ं ों की गतिविधियोों का मार््गदर््शन, निर्देशन, नियंत्रण और समन््वय करते हैैं।
z उनकी मृत््ययु या पद से इस््ततीफा देने से मत्रि ं परिषद समाप्त हो सकती है।
प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री की अन्य शक्तियााँ एवं कार््य
प्रधानमंत्री की अन्य शक्तियााँ एवं कार््य: मुख्यमंत्री की अन्य शक्तियााँ एवं कार््य:
z मत्रि
ं मडं ल के सदं र््भ मेें प्रधानमत्ं री की शक्तियाँ एवं कार््य: z मत्रि
ं मडं ल के सदं र््भ मेें मख्ु ्यमत्ं री की
z प्रधानमत्ं री मत्रि
ं मडं ल का गठन करता है और विभागोों का आवटं न करता है। शक्तियाँ एवं कार््य:
z वह कै बिनेट की बैठकेें बल ु ाता है और बैठक की रूपरे खा भी तय करता है। z मख्ु ्यमत्ं री मत्रि
ं मडं ल का गठन करता है और
z किसी भी मामले पर किसी भी व््यक्ति से परामर््श करना प्रधानमत्ं री का विशेषाधिकार है तथा कभी-कभी बिना किसी विभागोों का आवंटन करता है।
परामर््श के भी कार््य करना उसका विवेकाधिकार है। z वह कै बिनेट की बैठकेें बल ु ाता है और
z प्रधानमत्ं री की अन््य शक्तियाँ और कार््य बैठक की रूपरे खा भी तय करता है।
z वह अतं र-राज््य परिषद और नीति आयोग की शासी परिषद दोनोों का अध््यक्ष होता है। z मख्ु ्यमत्ं री की अन््य शक्तियाँ और कार््य
z प्रधानमत्ं री नीति आयोग का अध््यक्ष होता है।
z प्रधानमत्ं री राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) का अध््यक्ष होता है।
z योजना के संबंध मेें प्रधानमत्ं री की शक्तियाँ एवं कार््य:
z आपातकाल के दौरान वह राजनीतिक स््तर पर मख्ु ्य संकट प्रबंधक होता है। z वह अतं र-राज््य परिषद और नीति आयोग
z वह राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का अध््यक्ष होता है। की शासी परिषद (दोनोों का अध््यक्ष
z कै बिनेट समितियोों के संबंध मेें प्रधानमत्ं री की शक्तियाँ और कार््य: प्रधानमत्ं री होता है) का सदस््य होता हैैं।
 प्रधानमत् ं री, कै बिनेट समितियोों का गठन करता है और जब वह इन कै बिनेट समितियोों का सदस््य होता है तो z मख्ु ्यमत्ं री राज््य योजना बोर््ड का अध््यक्ष
उनकी अध््यक्षता भी करता है जो इस प्रकार हैैं: होता हैैं।
 राजनीतिक मामलोों की कै बिनेट समिति (जिसे 'सप ु र-कै बिनेट' के नाम से जाना जाता है) – अध््यक्षता प्रधानमत्ं री z मख्ु ्यमत्ं री, संबंधित क्षेत्रीय परिषद का
 आर््थथिक मामलोों की कै बिनेट समिति – अध््यक्षता प्रधानमत्
उपाध््यक्ष होता है तथा एक बार मेें एक वर््ष
ं री
की अवधि के लिए पद पर बना रहता है।
 नियक्ु तियोों पर कै बिनेट समिति – अध््यक्षता प्रधानमत् ं री
z आपातकाल के दौरान वह राजनीतिक स््तर
 विदेश मामलोों के संबंध मेें प्रधानमत् ं री की शक्तियाँ एवं कार््य: पर मख्ु ्य संकट प्रबंधक होता है
 इस क्षेत्र को प्रधानमत् ं री द्वारा व््यक्तिगत रूप से निर्देशित किया जाता है। z मख्ु ्यमत्ं री, राज््य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण
 यदि प्रधानमत् ं री को अतं रराष्ट्रीय समदु ाय द्वारा सम््ममान दिया जाता है, तो इससे उन््हेें घरे लू स््तर पर भी अधिक (SDMA) का अध््यक्ष होता है।
सम््ममान मिलता है।
 वह देश की विदेश नीति को आकार देने मेें महत्तत्वपर््ण ू भमि
ू का निभाता है।

प्रमुख शब्दावलियाँ
पद की शपथ, कार््य संचालन, वास््तविक कार््यकारी प्राधिकारी, विश्वास की हानि, गठबंधन, राज््य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA), कै बिनेट
समितियाँ, सपु र-कै बिनेट, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) आदि।

प्रधानमंत्री और मुख 111


26 मंत्रिपरिषद
z सविध
ं ान मेें ससं दीय प्रणाली के सिद््धाांतोों का विस््ततार से उल््ललेख नहीीं किया गया है।
z हालाँकि, अनच्ु ्छछेद 74 और 75 केें द्रीय मत्रि
ं परिषद से सबं ंधित हैैं तथा अनच्ु ्छछेद 163 और 164 राज््य मत्रि
ं परिषद से सबं ंधित हैैं।
संवैधानिक प्रावधान
केें द्रीय मंत्रिपरिषद राज््य मंत्रिपरिषद
z अनुच््छछे द 74: राष्टट्रपति को उनके कार्ययों के निष््पपादन मेें सहायता और z अनुच््छछे द 163: राज््यपाल की विवेकाधीन शक्ति को छोड़कर, अपने कार्ययों के निर््वहन
सलाह देने के लिए प्रधानमत्ं री की अध््यक्षता मेें एक समिति होगी। 42वेें मेें राज््यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए एक समिति होगी जिसका प्रमख ु
और 44वेें संविधान संशोधन अधिनियमोों ने राष्टट्रपति के लिए मत्रि ं परिषद मख्ु ्यमत्ं री होगा।
की सलाह को बाध््यकारी बना दिया है। z सर्वोच््च न््ययायालय का फैसला (1971): राज््यपाल को सलाह देने के लिए मत्रि ं परिषद
z सर्वोच््च न््ययायालय का निर््णय (1971): लोकसभा के भगं होने के हमेशा मौजदू होनी चाहिए, भले ही राज््य विधानसभा भगं हो जाए या मत्रि ं परिषद इस््ततीफा
बाद भी मत्रि ं परिषद का पद समाप्त नहीीं होता। दे दे। इसलिए, मौजदू ा मत्रि ं मडं ल तब तक पद पर बना रह सकता है जब तक कि नई
z सर्वोच््च न््ययायालय का निर््णय (1974): जहाँ भी संविधान मेें राष्टट्रपति मत्रि
ं परिषद कार््यभार नहीीं सभं ाल लेती।
की संतष्टि
ु की अपेक्षा की गई है, वह संतष्टि ु राष्टट्रपति की व््यक्तिगत संतष्टि
ु z सर्वोच््च न््ययायालय का निर््णय (1974): जहाँ भी संविधान मेें राज््यपाल की संतष्टि ु
नहीीं बल््ककि वह मत्रि
ं परिषद की संतष्टि ु है। की अपेक्षा की गई है, वहाँ यह संतष्टि ु राज््यपाल की व््यक्तिगत संतष्टि ु नहीीं बल््ककि
z अनुच््छछे द 75: राष्टट्रपति, प्रधानमत्ं री और अन््य मत्रियो ं ों की नियक्ु ति मत्रिं परिषद की संतष्टिु होती है।
प्रधानमत्ं री की सलाह पर करे गा। z अनुच््छछे द 164: राज््यपाल, मख्ु ्यमत्ं री तथा अन््य मत्रियो ं ों की नियक्ु ति मख्ु ्यमत्ं री की
z 91वाँ सश ं ोधन अधिनियम (2003)- प्रधानमत्ं री सहित मत्रि ं परिषद सलाह पर करे गा।
की कुल सदस््य संख््यया, लोकसभा की कुल सदस््य संख््यया के 15% से z 91वाँ सश ं ोधन अधिनियम (2003): मख्ु ्यमत्ं री सहित मत्रि ं परिषद की कुल सदस््य
अधिक नहीीं होगी। संख््यया विधानसभा की कुल सदस््य संख््यया के 15% से अधिक नहीीं होगी तथा 12
z 91वाँ सश ं ोधन अधिनियम (2003) - दल बदल के आधार पर अयोग््य से कम नहीीं होगी।
घोषित किया गया लोकसभा/राज््यसभा का सदस््य मत्ं री बनने के लिए z 91वाँ सश ं ोधन अधिनियम (2003): राज््य विधानमडं ल के किसी भी सदन का
भी अयोग््य माना जाएगा। कोई सदस््य दल-बदल के आधार पर अयोग््य घोषित होने पर मत्ं री बनने के लिए भी
z कार््यकाल - मत्ं रीगण राष्टट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करेेंगे। अयोग््य घोषित किया जाएगा।
z सामूहिक उत्तरदायित््व - मत्रि ं परिषद सामहि ू क रूप से लोकसभा के z कार््यकाल: मत्ं रीगण, राज््यपाल के प्रसादपर्यंत पद धारण करेेंगे।
प्रति उत्तरदायी होगी। z सामहि ू क उत्तरदायित््व:
z शपथ - राष्टट्रपति प्रधानमत्ं री सहित मत्रि ं परिषद को पद एवं गोपनीयता z मत्रि ं परिषद सामहि ू क रूप से राज््य विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होगी।
की शपथ दिलायेेंगे । z शपथ: राज््यपाल मख्ु ्यमत्ं री सहित मत्रि ं परिषद को पद एवं गोपनीयता की शपथ
z अयोग््यता - कोई मत्ं री जो लगातार छह महीने की अवधि तक संसद दिलायेेंगे ।
(किसी भी सदन) का सदस््य नहीीं रहता है, वह मत्ं री नहीीं रह जाएगा। z अयोग््यता: कोई मत्ं री जो लगातार छह महीने की अवधि तक राज््य विधानमडं ल
z मत्रियो
ं ों के वेतन और भत्ते संसद द्वारा निर््धधारित किये जायेेंगे। का सदस््य नहीीं रहता है, वह मत्ं री नहीीं रह जाएगा।
z अनच्ु ्छछेद 88: प्रत््ययेक मत्ं री को किसी भी सदन, सदनोों की किसी सयं क्त ु z मत्रियों ों के वेतन और भत्ते राज््य विधानमडं ल द्वारा निर््धधारित किये जायेेंग।े
बैठक और ससं द की किसी भी समिति, जिसका वह सदस््य है, की z अनुच््छछे द 177: प्रत््ययेक मत्ं री को विधानसभा/परिषद और राज््य विधानमडं ल की किसी
कार््यवाही मेें बोलने और भाग लेने का अधिकार है। लेकिन वह के वल समिति की कार््यवाही मेें बोलने और भाग लेने का अधिकार है, जिसका वह सदस््य
उसी सदन मेें मतदान कर सकता है जिसका वह सदस््य होगा। हो। लेकिन वह के वल उसी सदन मेें मतदान कर सकता है, जिसका वह सदस््य होगा।
मंत्रियोों की जिम्मेदारी
व््यक्तिगत सामूहिक
z अनच्ु ्छछेद 75 और अनच्ु ्छछेद 164 मेें व््यक्तिगत z सामहि ू क उत्तरदायित््व का सिद््धाांत संसदीय शासन प्रणाली के कामकाज का मल ू सिद््धाांत है।
जिम््ममेदारी का सिद््धाांत भी शामिल है। इसमेें कहा गया z साधारणतः सभी एक टीम के रूप मेें काम करते हैैं और एक साथ पद धारण करते हैैं या पद का त््ययाग
है कि मत्ं री राष्टट्रपति के प्रसादपर्यंत पद पर बने रहते हैैं। करते हैैं। जब विधानसभा मत्रि ं परिषद के खिलाफ अविश्वास प्रस््तताव पारित करती है, तो सभी मत्रियो ं ों
z हालाँकि, राष्टट्रपति/राज््यपाल किसी मत्ं री को के वल को इस््ततीफा देना पड़ता है, जिसमेें विधान परिषद के मत्ं री भी शामिल होते हैैं।
प्रधानमत्ं री/मख्ु ्यमत्ं री की सलाह पर ही हटा सकते हैैं। z अनच्ु ्छछेद 75 मेें स््पष्ट रूप से कहा गया है कि मत्रि ं परिषद सामहि
ू क रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती
है, जबकि अनच्ु ्छछेद 164 मेें स््पष्ट रूप से कहा गया है कि मत्रि ं परिषद सामहिू क रूप से राज््य की विधानसभा
z किसी मत्ं री के कामकाज से मतभेद या असंतोष की
के प्रति उत्तरदायी होती है।
स््थथिति मेें, प्रधानमत्ं री/मख्ु ्यमत्ं री उससे इस््ततीफा देने के
z वैकल््पपिक रूप से, मत्रि ं परिषद राष्टट्रपति/राज््यपाल को इस आधार पर लोकसभा/विधानसभा को भगं
लिए कह सकते हैैं या राष्टट्रपति को उसे बर््खखास््त करने करने की सलाह दे सकती है कि सदन मतदाताओ ं के विचारोों का ईमानदारी से प्रतिनिधित््व नहीीं करता
की सलाह दे सकते हैैं। है और नए चनु ावोों की घोषणा कर सकती है।

प्रमुख शब्दावलियाँ
सामूहिक उत्तरदायित््व, संसदीय प्रणाली, हिंदू कोड बिल (1953), 91वाँ संशोधन अधिनियम (2003)।

मंत्रिपरि 113
27 भारत मेें कैबिनेट प्रणाली
कै बिनेट नामक एक छोटा निकाय, मंत्रिपरिषद का केें द्र होता है। इसमेें सरकार के
कैबिनेट समितियााँ
महत्तत्वपूर््ण विभागोों के उच््चस््तरीय मंत्री अर््थथात के वल कै बिनेट मंत्री होते हैैं। यह
केें द्र/राज््य सरकार मेें अधिकार का वास््तविक केें द्र होता है। z कै बिनेट विभिन््न समितियोों के माध््यम से काम करती है जिन््हेें कै बिनेट समितियाँ
मंत्रिमंडल की भूमिका कहा जाता है। इनका गठन प्रधानमत्ं री/मख्ु ्यमत्ं री द्वारा समय की आवश््यकताओ ं
z यह हमारी राजनीतिक-प्रशासनिक प्रणाली मेें सर्वोच््च निर््णय लेने वाली सस्ं ्थथा है। और परिस््थथिति के अनसु ार किया जाता है। इसलिए उनकी संख््यया, नामकरण
z यह के न्दद्र/राज््य सरकार का मख्ु ्य नीति निर््धधारण निकाय है। और संरचना समय-समय पर बदलती रहती है।
z यह के न्दद्र/राज््य सरकार का सर्वोच््च कार््यकारी प्राधिकारी है। z ये समितियाँ न के वल महत्तत्वपर््णू मद्दु दों को सल
ु झाते हैैं और कै बिनेट के विचार
z यह केें द्रीय/राज््य प्रशासन का मख्ु ्य समन््वयक है। के लिए प्रस््तताव तैयार करते हैैं, बल््ककि आवश््यकता पड़ने पर निर््णय भी लेते
z यह राष्टट्रपति/राज््यपाल के लिए एक सलाहकारी निकाय है और इसकी सलाह हैैं। हालाँकि, कै बिनेट उनके निर््णयोों की समीक्षा कर सकती है।
उन पर बाध््यकारी है।
कैबिनेट समितियोों की विशेषताएँ :
z यह मख्ु ्य संकट प्रबंधक है और इस प्रकार सभी आपातकालीन स््थथितियोों से
निपटने के लिए उत्तरदायी है। z इनका संविधान मेें उल््ललेख नहीीं है। कार््य नियम (Rules of Business) उनकी
z यह सभी प्रमख ु विधायी और वित्तीय मामलोों की स््थथितियोों से निपटने के लिए स््थथापना का प्रावधान करते हैैं।
उत्तरदायी है। z ये समितियाँ दो प्रकार की होती हैैं: स््थथायी और तदर््थ (पहली स््थथायी प्रकृ ति
z यह संवैधानिक प्राधिकारियोों और वरिष्ठ सचिवालय प्रशासकोों जैसी उच््च की होती है जबकि दसू री अस््थथायी प्रकृ ति की होती है।)
नियक्ु तियोों पर नियंत्रण रखता है। लाभ हानि
z यह विदेश नीतियोों और विदेशी मामलोों (केें द्रीय मत्रि ं मडं ल) के निर््धधारण से
संबंधित है। z वे मत्रि
ं मडं ल के भारी कार््यभार को z वे सरकारी कामकाज के सभी
कम करने के लिए एक संगठनात््मक महत्तत्वपर््णू क्षेत्ररों तक पहुचँ
किचन कैबिनेट : साधन हैैं। स््थथापित नहीीं करते हैैं।
z यह एक अनौपचारिक निकाय है। भारतीय सविध ं ान मेें इसका उल््ललेख नहीीं है। z वे नीतिगत मद्दु दों की गहन जाँच और
z वे किसी मामले पर तभी
इसमेें प्रधानमत्ं री और दो से चार प्रभावशाली सहयोगी शामिल होते हैैं जिन प्रभावी समन््वय मेें भी सहायता करते
हैैं। विचार कर सकते हैैं जब उसे
पर उनका भरोसा होता है और जिनके साथ वे सहजता से हर समस््यया पर
चर््चचा कर सकते हैैं। यह प्रधानमत्ं री को महत्तत्वपर््णू राजनीतिक और प्रशासनिक z समितियाँ समय और मानव संसाधनोों संबंधित मत्ं री या मत्रि ं मडं ल
मद्दु दों पर सलाह देता है और महत्तत्वपर््णू निर््णय लेने मेें उनकी सहायता करता है। के कुशल उपयोग को सगु म बनाती हैैं। द्वारा संदर््भभित किया जाए।
z इसमेें न के वल कै बिनेट मत्ं री शामिल होते हैैं, बल््ककि प्रधानमत्ं री के मित्र और z कै बिनेट का बहुमल्ू ्य समय बचता है। z यदि जटिल समस््ययाओ ं पर
छोटे आकार के कारण अधिक प्रभावी सतत ध््ययान देना है तथा
परिवार के सदस््य जैसे बाहरी लोग भी शामिल होते हैैं।
विचार-विमर््श होता है। महत्तत्वपर््णू नीतियोों और
किचन कै बिनेट के लाभ किचन कै बिनेट की हानियाँ z यह मत्रियो
ं ों की मनमानी कार््र वाइयोों
छोटी इकाई के कारण, यह एक बड़़ी सर्वोच््च निर््णय लेने वाली संस््थथा के कार््यक्रमोों के कार््ययान््वयन मेें
पर अक ं ु श लगाने मेें मदद करती हैैं। वे
कै बिनेट की तुलना मेें अधिक कुशल रूप मेें मंत्रिमंडल के अधिकार और सामहि ू क उत्तरदायित््व के सिद््धाांत की प्रगति की निरंतर समीक्षा करनी
निर््णय लेने वाली संस््थथा है। दर्जे को कम करता है। रक्षा करने मेें मदद करते हैैं। है, तो नियमित रूप से बैठकेें
सदस््य अधिक बार मिल सकेें गे और बाहरी व््यक्तियोों को प्रभावशाली भमि
ू का z इससे मत्रिं स््तरीय विशेषज्ञता के उपयोग आयोजित करनी चाहिए जो
अधिक तेजी से कार््य निपटा सकेें गे। निभाने की अनमु ति देकर काननू ी को सगु म बनाने मेें मदद मिलती है। कि वो नहीीं करती हैैं।
प्रक्रिया को दरकिनार किया जाता है।
महत्तत्वपूर््ण राजनीतिक मद्दु दों पर निर््णय इससे मत्रिं मडं ल के अन््य सदस््योों मेें विगत वर््ष के प्रश्न
लेने मेें गोपनीयता बनाए रखने मेें अविश्वास की भावना पैदा हो सकती है। z राज््य सभा के सभापति के रूप मेें भारत के उप-राष्टट्रपति की भमि
ू का की
सहायता करता है। विवेचना कीजिए। (2022)
z राज््यपाल द्वारा विधायी शक्तियोों के प्रयोग की आवश््यक शर्ततों का विवेचन टीम के रूप मेें संचालन कर सकता हो। उसके बाद सरकार की दक्षता किस
कीजिए। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज््यपाल द्वारा अध््ययादेशोों के पनु ः सीमा तक मत्रि
ं मडं ल के आकार से प्रतिलोमतः सबं ंधित है? चर््चचा कीजिये।
प्रख््ययापन की वैधता की विवेचना कीजिए। (2022)  (2014)
z मृत््ययु दडं ादेशोों के लघक
ू रण मेें राष्टट्रपति के विलंब के उदाहरण न््ययाय प्रत््ययाख््ययान
(डिनायल) के रूप मेें लोक वाद-विवाद के अधीन आए हैैं। क््यया राष्टट्रपति द्वारा
ऐसी याचिकाओ ं को स््ववीकार करने/अस््ववीकार करने के लिये एक समय सीमा प्रमुख शब्दावलियाँ
का विशेष रूप से उल््ललेख किया जाना चाहिये? विश्ले षण कीजिये। (2014) किचन कै बिनेट, सर्वोच््च कार््यकारी प्राधिकारी, मुख््य समन््वयक,
z मत्रि
ं मडं ल का आकार उतना होना चाहिये कि जितना सरकारी कार््य सही सरकारी कामकाज, प्रभावी विचार-विमर््श, राजनीतिक-प्रशासनिक
ठहराता हो और उसको उतना बड़़ा होना चाहिये कि जितने को प्रधानमत्ं री एक प्रणाली, स््थथायी और तदर््थ समितियाँ आदि।

भारत में कैबिनेट प्रण 115


28 मंत्रालय
संविधान मेें ब्रिटिश मॉडल पर आधारित संसदीय शासन प्रणाली का प्रावधान नियुक्ति के कारण आलोचना
है। प्रधानमंत्री की अध््यक्षता वाली मंत्रिपरिषद ही हमारी राजनीतिक-प्रशासनिक z अनुच््छछे द 75 और 164: z शक्तियोों के पथ ृ क््करण के विरुद्ध
प्रणाली मेें वास््तविक कार््यकारी प्राधिकारी है। अनच्ु ्छछेद 75 और 164 के : यदि कोई विधायिका कार््यपालिका
संवैधानिक प्रावधान अनसु ार संसदीय सचिव मत्ं री बन जाती है तो वह स््वतंत्र रूप से
नहीीं होते क््योोंकि उन््हेें राष्टट्रपति कार््य नहीीं कर सकती।
अनुच््छछे द 74 राष्टट्रपति को सहायता और परामर््श देने के लिए एक
मंत्रिपरिषद होगी। इस सहायता और परामर््श की किसी भी या राज््यपाल द्वारा नियक्त ु नहीीं z अनुच््छछे द 102 का दुरुपयोग: यह
अदालत मेें जाँच नहीीं की जाएगी। किया जाता और न ही उन््हेें संसद को लाभ के पद के प्रावधान
अनुच््छछे द 75 मंत्रिपरिषद सामहि ू क रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी पद और गोपनीयता की शपथ से कार््ययालयोों को बाहर रखने की
होगी। दिलाई जाती है। अनमु ति देता है। संसदीय सचिवोों
मंत्रियोों की कुल संख््यया: लोकसभा की कुल सदस््य z कार््यभार मेें वद्धि ृ : वे मत्रियो ं ों को बाहर रखने से बड़़े आकार के
संख््यया का अधिकतम 15% (2003 का 91वाँ संशोधन को कार््यभार मेें वृद्धि के मत्रि
ं मडं ल के कारण सार््वजनिक धन
अधिनियम)। मंत्री व््यक्तिगत रूप से राष्टट्रपति के प्रति बावजदू सफलतापर््वू क कार््य की बर््बबादी होती है, और संसाधनोों के
उत्तरदायी होोंगे। करने मेें सहायता करते हैैं, ऐसा मनमाने उपयोग के कारण राजनीतिक
अनुच््छछे द 77 भारत सरकार के कामकाज की सभी कार््यकारी कार््यवाहियोों कई राज््योों और केें द्र मेें किया अवसरवादिता होती है।
का संचालन राष्टट्रपति के नाम से किया जायेगा। गया है तथा सर्वोच््च न््ययायालय z सवं ैधानिक भावना का उल््ललंघन:
भारत मेें मंत्रियोों का पदानुक्र म ने यसू ी रमन मामले मेें इसका संसदीय सचिव के कार््ययालय को
मत्रि समर््थन किया था। मत्रियो
ं ों की परिभाषा से बाहर करके ,
z ं परिषद मेें तीन प्रकार के मत्ं री होते हैैं: कै बिनेट मत्ं री, राज््य मत्ं री और उप
मत्ं री। उनके बीच पदानक्र ु म का अतं र उनके संबंधित पद या रैैंक, वेतन और z सवं ैधानिक शक्ति: विधायिका मत्रि
ं परिषद की 15% अधिकतम
राजनीतिक महत्तत्व मेें निहित होता है। के पास किसी भी पदाधिकारी क्षमता (दिल््लली के मामले मेें 10%)
कै बिनेट मंत्री अन््य मंत्री को छूट देने सबं ंधी काननू बनाने को दरकिनार करने के लिए इसका
z वे कै बिनेट के सदस््य होते हैैं, उसकी बैठकोों मेें z ये कै बिनेट का अधिकार है। दरुु पयोग किया गया है।
भाग लेते हैैं और नीतियाँ तय करने मेें महत्तत्वपर््णू मत्रालयो
ं ों के z कोई स््वतंत्र प्रभार नहीीं: वे z राजनीतिक उद्देश््य : इनका
भमि ू का निभाते हैैं
। इस प्रकार, उनकी ज़़िम््ममेदारियाँ अलावा अन््य के वल कर््तव््योों का पालन करने दरुु पयोग उन सांसदोों की राजनीतिक
केें द्र सरकार के परू े दायरे तक फै ली हुई हैैं। मत्ं री होते हैैं।
के संदर््भ मेें मत्रियो
ं ों की सहायता आकांक्षाओ ं को परू ा करने के लिए
z उनके पास गृह मत्राल ं य जैसे महत्तत्वपर््णू विभागोों की z इन मत्रालयो ं ों का
जिम््ममेदारी होती है। नेतत्ृ ्व राज््य मत्ं री करते हैैं; उन््हेें कोई अतिरिक्त किया जाता है, जिन््हेें मत्ं री पद नहीीं
करते हैैं। अधिकार नहीीं दिया जाता। मिल पाता।
निष्कर््ष
संसदीय सचिव
अक््सर संसदीय सचिवोों की बहस लाभ के पद के मद्देु पर केें द्रित होती है। प्रत््ययेक
z यह एक संसदीय सदस््य होता है जो वरिष्ठ मत्रियो ं ों की उनके कर््तव््योों को परू ा राज््य द्वारा अलग-अलग प्रावधान लागू करने के बजाय, अब समय आ गया है
करने मेें मदद करता है। उन््हेें आमतौर पर राज््य मत्ं री का दर््जजा प्राप्त होता है।
कि सर्वोच््च न््ययायालय एक ऐसा एकीकृ त निर््णय दे जो सभी राज््योों और केें द्र
उन््हेें कुछ विशेषाधिकार प्राप्त होते हैैं और उन््हेें सरकारी एजेेंसियोों से सबं ंधित
कामकाज सौौंपा जाता है। सरकार पर एक समान रूप से लागू हो।
29 संसदीय समिति
z बैठकोों का राजनीतिकरण: सदस््योों ने उन मद्दु दों पर बैठकोों मेें सख््त राजनैतिक
परिचय
रुख अपनाना शरू ु कर दिया है जो जनता का ध््ययान आकर््षषित कर रहे हैैं।
संसदीय समिति का अर््थ है एक ऐसी समिति जो सदन द्वारा निर््ववाचित होती है z छोटा कार््यकाल : इन समितियोों का एक वर््ष का कार््यकाल विशेषज्ञता के
या अध््यक्ष/सभापति द्वारा नामित होती है, अध््यक्ष/सभापति के अधीन कार््य
साथ-साथ जटिल विषयोों की विस््ततृत समीक्षा करने के लिए बहुत कम समय
करती है तथा उन््हेें रिपोर््ट प्रस््ततुत करती है, तथा जिसका सचिवालय लोकसभा/
है। उदाहरण के लिए , आईटी पैनल 'नागरिकोों के अधिकारोों की सरु क्षा' और
राज््यसभा द्वारा प्रदान किया जाता है।
डिजिटल स््पपेस मेें महिलाओ ं की सरु क्षा पर विशेष जोर देने सहित सामाजिक/
संसदीय समितियोों की भूमिका ऑनलाइन समाचार मीडिया प््ललेटफार्ममों के दरुु पयोग की रोकथाम पर विचार-
z विशिष्ट कार््य: स््थथायी समिति विशिष्ट कार््य करती है तथा तदर््थ समितियाँ विमर््श परू ा नहीीं कर सका।
विशिष्ट कार्ययों को करने के लिए गठित की जाती हैैं तथा उनके परू ा हो जाने
z गैर-बाध््यकारी सिफारिशेें: के वल कुछ बहसोों मेें ही कुछ रिपोर्टटों का सदं र््भ
पर उनका अस््ततित््व समाप्त हो जाता है।
दिया जाता है और इनमेें से अधिकांश रिपोर्टटों पर ससं द सत्र मेें चर््चचा नहीीं की
z वित्तीय विवेकशीलता: बजटीय आवटं न की समीक्षा से सार््वजनिक व््यय मेें
जाती है।
मितव््ययिता और दक्षता सनिश् ु चित करने मेें सहायता मिलती है।
z हितधारकोों को शामिल करना: विषयोों की समीक्षा के दौरान ये समितियाँ गैर आगे की राह
सरकारी संगठनोों, विशेषज्ञञों, नागरिकोों आदि से फीडबैक माँगती हैैं। उदाहरण
संविधान की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग (एनसीआरडब््ल्ययूसी) ने संसदीय
के लिए, वित्त समिति ने विमद्ु रीकरण विषय पर आरबीआई गवर््नर को समन‌
किया था। समितियोों की प्रभावशीलता मेें सुधार के लिए अनेक महत्तत्वपूर््ण कदम उठाने की
z गहन जाँच: संसदीय सत्ररों के बाद भी काम करने से विधेयकोों की गहन जाँच सिफारिश की थी जिसके तहत :
z कार््य काल मेें वद्धिृ : हाल ही मेें राज््यसभा सचिवालय डीआरएससी के लिए
सभं व हो पाती है, जो सांसद अधिक कार््यभार के कारण नहीीं कर पाते।
z विधेयकोों की बहुस््तरीय जाँच : बहुस््तरीय पर््वू -विधायी जाँच के 2 वर््ष का कार््यकाल बढ़़ाने पर विचार कर रहा है ताकि पैनल को उनके द्वारा
परिणामस््वरूप विधेयक मेें महत्तत्वपर््णू मद्दु दों का समाधान हो जाता है। उदाहरण चनु े गए विषयोों पर काम करने के लिए पर््ययाप्त समय मिल सके ।
के लिए, दो संसदीय समितियोों द्वारा जाँच के बाद भ्रष्टाचार निवारण संशोधन z सर्वोत्तम प्रथाओ ं को अपनाना : सरकार की नीतियोों को विस््ततार से बताने

विधेयक मेें महत्तत्वपर््णू मद्दु दों का समाधान किया गया। और उनका बचाव करने के लिए सबं ंधित मत्ं री का समिति के समक्ष उपस््थथित
z आम सहमति बनाने के लिए मंच: इन समितियोों पर दलबदल विरोधी काननू होना, विधेयकोों को समिति को संदर््भभित करने के लिए वस््ततुनिष्ठ मानदडं आदि
लागू नहीीं होता। इससे महत्तत्वपर््णू मद्दु दों पर आम सहमति बनाने के लिए पार्टी जैसी प्रथाओ ं को अपनाना।
लाइन से परे निष््पक्ष तरीके से काम करने मेें मदद मिलती है। z सस््थथा
ं गत अनुसध ं ान सहायता: इससे समितियोों को तकनीकी और जटिल
समितियोों के समक्ष आने वाली समस्याएँ नीतिगत मद्दु दों की समग्र रूप से जाँच करने की सविध
ु ा मिलेगी।
z सदं र््भभित विधेयकोों की सख् ं ्यया मेें कमीीं: आरटीआई संशोधन अधिनियम z आवधिक समीक्षा: समिति के प्रदर््शन के नियमित मल् ू ्ययाांकन और आवश््यक
(2019) और यएू पीए संशोधन अधिनियम (2019) को संसदीय समिति को सधु ार के लिए वस््ततुनिष्ठ मानदडं ।
संदर््भभित किए बिना पारित कर दिया गया।
z सदस््योों की अनुपस््थथिति: समिति की बैठकोों मेें 2014-15 से लगभग 50%
निष्कर््ष
की उपस््थथिति चितं ा का कारण है। संसद की बैठकोों की संख््यया, जो 1950 के दशक मेें 100-150 थी, 2021-22 मेें
z विशेषज्ञता का अभाव : समिति के सदस््योों मेें लेखांकन और प्रशासनिक घटकर 60-70 हो गई है अतः इन बैठकोों मेें लगातार कमी को देखते हुए, समिति
सिद््धाांतोों जैसे विषयोों के विस््ततृत विश्ले षण के लिए आवश््यक तकनीकी प्रणाली को मजबूत कर, कानूनोों की गुणवत्ता मेें सुधार लाने और संभावित
विशेषज्ञता का अभाव है। कार््ययान््वयन चनु ौतियोों को कम करने मेें काफी मदद मिल सकती है।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम
30 (1951)
परिचय महत्तत्व चुनौतियाँ
z गैर-अपराधीकरण: संसद और z सोशल मीडिया : सोशल मीडिया
z जन प्रतिनिधित््व अधिनियम, 1950 को संविधान के अनच्ु ्छछेद 327 के तहत
देश मेें पहले आम चनु ावोों से पहले भारत की अनंतिम संसद द्वारा अधिनियमित राज््य विधानमडं ल की सदस््यता ने चनु ाव प्रचार की खामोशी को
किया गया था। यह लोकसभा और राज््य विधानमडं ल चनु ावोों के लिए सीटोों से अयोग््यता सबं ंधी प्रावधान धधल
ंु ा कर दिया है और मतदाताओ ं
के आवटं न और निर््ववाचन क्षेत्ररों के परिसीमन, मतदाताओ ं की योग््यता, मतदाता राजनीति के गैर-अपराधीकरण को सक्षू ष्म स््तर पर लक्षित करने मेें
सचू ी और केें द्र शासित प्रदेशोों के प्रतिनिधियोों द्वारा राज््यसभा मेें सीटेें भरने का को सनिश् ु चित करते हैैं। भी सक्षम बना दिया है।
प्रावधान करता है। z पारदर््शशिता: संपत्ति और z दलोों का पंजीकरण रद्द करने
z जन प्रतिनिधित््व अधिनियम (1951) संसद के दोनोों सदनोों तथा प्रत््ययेक राज््य देनदारियोों की घोषणा, की शक्ति: भारत निर््ववाचन आयोग
के विधानमडं ल के सदन या सदनोों के लिए वास््तविक निर््ववाचनोों के सचं ालन मतदाताओ ं की सचू ना का के पास उन राजनीतिक दलोों का
का प्रावधान करता है। अधिकार आदि से संबंधित पंजीकरण रद्द करने की शक्ति नहीीं है
अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ प्रावधान चनु ावोों मेें उम््ममीदवारोों जो चनु ाव नहीीं लड़ते हैैं तथा के वल
z यह चनु ाव और उप-चनु ावोों के आयोजन को विनियमित करता है। के संबंध मेें पारदर््शशिता सनिश्
ु चित धन प्राप्त करने के लिए काम करते हैैं।
z यह चन ु ाव कराने के लिए प्रशासनिक बनि ु यादी ढाँचा उपलब््ध कराता है। करते हैैं।
z यह राजनीतिक दल के पजी ं करण से सब
ं ंधित है। z स््वतंत्र एवं निष््पक्ष चुनाव: भ्रष्ट z राजनीति का नौकरशाहीकरण:
z यह सदन की सदस््यता के लिए आवश््यकताओ ं और अयोग््यताओ ं को आचरण और आपराधिक प्रवृति भारत निर््ववाचन आयोग के
परिभाषित करता है। संबंधी प्रावधान और निर््ववाचन पास अपनी स््वयं की स््वतंत्र
z इसमेें भ्रष्टाचार और अन््य अपराधोों से निपटने के लिए कानन ू शामिल हैैं। अधिकारियोों से संबंधित प्रावधान आधिकारिक मशीनरी नहीीं है और
z इसमेें चन ु ावोों से उत््पन््न समस््ययाओ ं और विवादोों को हल करने की प्रक्रिया का राजनीति को अपराध मक्त ु कर उसे अनेक कार्ययों की संपन््नता के
उल््ललेख किया गया है। स््वतंत्र और निष््पक्ष चनु ाव लिए सरकार पर निर््भर रहना पड़ता
z इसमेें रिक्त सीटोों पर उपचन ु ाव का भी प्रावधान है। सनिश्
ु चित करते हैैं। है, जो स््वतंत्र और निष््पक्ष चनु ाव के
जन प्रतिनिधित््व अधिनियम (1951) का महत्तत्व एवं चुनौतियाँ लिए अनक ु ू ल नहीीं है।
महत्तत्व चुनौतियाँ
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (1951) मेें अयोग्यता के संबध
ं मेें प्रावधान
z लोकतंत्र का कार््ययान््वयन: यह z सत्ताधारी पार्टी को लाभ: इस
अधिनियम सविध ं ान के प्रावधानोों अधिनियम मेें सरकारी मशीनरी धारा 8 विशिष्ट अपराधोों के लिए अन््य अपराध:
के कार््ययान््वयन का प्रावधान करता के दरुु पयोग और चनु ावी फंडिंग प्रतिनिधियोों की अयोग््यता को यदि किसी व््यक्ति को किसी
है तथा यह सनिश् ु चित करता है कि के मामले मेें सत्ताधारी पार्टी को संबोधित करती है। विभिन््न उप- अपराध के लिए दोषी ठहराया
देश मेें लोकतंत्र कायम रहे तथा होने वाले लाभ को कम करने के धाराएँ इस प्रकार हैैं: जाता है और दो या अधिक वर््ष
राज््यसभा सदस््योों के कार््यकाल लिए स््पष्ट प्रावधान और दिशा- धारा 8 (1): भारतीय दडं संहिता की जेल की सजा सुनाई जाती है,
आदि जैसे रिक्त स््थथानोों को भरा निर्देश नहीीं हैैं। उदाहरण के लिए, (1860), नागरिक अधिकार संरक्षण तो वह अयोग््य हो जाता है।
जाए। भाजपा को चनु ावी बॉण््ड के माध््यम अधिनियम (1955), गैरकानूनी यदि कोई व््यक्ति भ्रष्ट आचरण मेें
से लगभग 95% फंडिंग मिली है। गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम लिप्त है।
z समानता सनिश् ु चित करना: z लंबित आपराधिक मामले: (1967), भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम यदि किसी व््यक्ति को भ्रष्टाचार या
लोकसभा और विधानसभा जनप्रतिनिधित््व अधिनियम मेें (1988), आतंकवाद निवारण बेईमानी के कारण सरकारी पद से
चनु ावोों के लिए एक मतदाता प्रावधान होने के बाद भी वर््तमान अधिनियम (2002) आदि के कुछ बर््खखास््त कर दिया जाता है।
सचू ी का प्रावधान, एक से अधिक लोकसभा मेें लगभग 43% सांसदोों प्रावधानोों के तहत दडं नीय अपराध का यदि कोई व््यक्ति वाणिज््य या
निर््ववाचन क्षेत्ररों मेें पंजीकरण पर के विरुद्ध आपराधिक मामले दोषी पाए गए व््यक्ति को अयोग््य घोषित व््यवसाय के दौरान सरकार के साथ
रोक लगाता है, जिससे नागरिकोों लंबित हैैं। कर दिया जाएगा यदि उसे निम््नलिखित अनुबंध करता है या सरकार को
की समानता सनिश् ु चित होती है। सजा सुनाई जाती है: माल की आपूर््तति करता है।
ऐसी सजा की तारीख से छह वर््ष की यदि कोई व््यक्ति किसी कंपनी निर््णय
अवधि के लिए के वल जुर््ममाना लगाया या निगम (सहकारी समिति के विधि आयोग की 244वीीं रिपोर््ट राजनीति के अपराधीकरण पर
जाएगा। अलावा) का प्रबंध एजेेंट, प्रबंधक अंकुश संबंधी सिफारिशोों को लागू किया जाना चाहिए, अर््थथात राजनीति
ऐसी दोषसिद्धि की तारीख से छह वर््ष या सचिव है, जिसमेें सरकार की के अपराधीकरण पर अंकुश लगाने के लिए आरोप तय करने के चरण मेें ही
की अवधि के लिए कारावास की सजा कम से कम 25% हिस््ससेदारी है। अयोग््यता के साथ-साथ अन््य कानूनी सरु क्षा उपाय किए जाने चाहिए।
दी जाएगी और जारी रहेगी। यदि कोई व््यक्ति समय पर अपने राजनीतिक दलोों का पंजीकरण
धारा 8 (2): उल््ललंघन करने का दोषी चनु ाव व््यय का लेखा-जोखा
व््यक्ति: दाखिल करने मेें असफल रहता है। भारत के निर्वाचन आयोग के साथ राजनीतिक दलोों का पंजीकरण:
भंडारण या मनु ाफाखोरी पर रोक लगाने मतदान के लिए अयोग््यताएँ: z चनु ाव आयोग राजनीतिक दलोों को इस प्रकार सचू ीबद्ध करता है-
वाला कोई कानून; या किसी व््यक्ति को छह वर््ष की
 राष्ट्रीय पार्टी,
भोजन या दवाओ ं मेें मिलावट को अवधि के लिए किसी भी चुनाव
 राज््य पार्टी या
प्रतिबंधित करने वाला कोई कानून; या मेें मतदान करने से अयोग््य
घोषित किया जाता है यदि वह  पजी ं कृ त गैर मान््यता प्राप्त पार्टी
दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के
किसी भी प्रावधान। निम््नलिखित अपराधोों मेें दोषी z आवश््यक शर्ततें : चन ु ाव चिह्न (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश, 1968 राष्ट्रीय
धारा 8 (3): किसी अपराध के लिए पाया जाता है: या राज््य स््तरीय पार्टी के रूप मेें वर्गीकृ त होने के लिए आवश््यक शर्ततें निर््ददिष्ट
दोषी ठहराए गए और दो वर््ष से अन््ययून भारतीय दंड संहिता (1860): करता है।
कारावास की सजा पाए व््यक्ति [उपधारा चनु ाव मेें रिश्वतखोरी और अनुचित z राष्ट्रीय या राज््य स््तरीय पार्टी के रूप मेें मान््यता प्राप्त करने के लिए किसी

(1) या (2) मेें निर््ददिष्ट किसी अपराध को प्रभाव या प्रतिरूपण का अपराध। राजनीतिक दल को निम््नलिखित मेें से कोई एक शर््त परू ी करनी होगी:
छोड़कर] को ऐसी दोषसिद्धि की तारीख जन प्रतिनिधित््व अधिनियम
राष्ट्रीय पार्टी राज््ययीय पार्टी
से अयोग््य घोषित कर दिया जाता है (1951) : चनु ाव के संबंध मेें वर्गगों
4 या अधिक राज््योों मेें लोकसभा या संबंधित राज््य विधानसभा चनु ाव
के बीच दश्ु ्मनी को बढ़़ावा देने का
और वह अपनी रिहाई के पश्चात छह वर््ष विधानसभा चनु ाव मेें डाले गये कुल वैध मेें डाले गये कुल वैध मतोों का 6%
अपराध; मतदान केें द्ररों से मतपत्ररों को
की अवधि तक अयोग््य बना रहता है। मतोों का 6% वैध मत + 4 लोकसभा वैध मत + 2 विधानसभा सीटेें प्राप्त
हटाना; किसी नामांकन पत्र को धोखे
अयोग््य व््यक्तियोों के लिए उपलब््ध सीटेें प्राप्त की होों की होों ।
से विकृ त करना या नष्ट करना।
उपचार: राज््य मेें लोकसभा के आम चनु ाव
धारा 11 के अंतर््गत चुनाव आयोग मेें डाले गये कुल वैध मतोों का 6%
से संपर््क : अयोग््य व््यक्ति अधिनियम वैध मत + 1 लोकसभा सीट प्राप्त
की धारा 11 के अंतर््गत अयोग््यता को की होों ।
हटाने के लिए चनु ाव आयोग से संपर््क 3 राज््योों से 2% लोकसभा सीटेें प्राप्त संबंधित राज््य विधानसभा मेें 3%
कर सकता है (भ्रष्ट आचरण के आधार की होों । सीटेें या 3 विधानसभा सीटेें, जो
पर अयोग््यता को छोड़कर)। भी अधिक हो प्राप्त की होों ।
धारा 116 A के तहत सर्वोच््च संबंधित राज््य को आवंटित 1/25
न््ययायालय मेें अपील: यदि अयोग््यता लोकसभा सीटेें प्राप्त की होों।
उच््च न््ययायालय मेें दायर चनु ाव याचिका 4 राज््योों मेें राज््य स््तरीय पार्टी का दर््जजा किसी राज््य मेें लोकसभा या
के कारण हुई है, तो व््यक्ति धारा 116 प्राप्त किया हो। विधानसभा चनु ाव मेें डाले गये
A के तहत अपील के लिए सर्वोच््च कुल वैध मतोों का 8% वैध मत
न््ययायालय मेें अपील कर सकता है। प्राप्त किया हो।
निर््णय चुनाव आयोग के साथ पंजीकृत निम्नलिखित राजनीतिक दलोों को
सर्वोच््च न््ययायालय ने 2013 मेें (लिली थॉमस मामले मेें ) चौथी उपधारा पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त दल माना जाता है:
8 (4) को पलट दिया था: यह धारा दोषी विधायकोों को अपनी सीट z गैर-मान््यता प्राप्त दल नव पजी ं कृ त दल हैैं,
बरकरार रखने की अनुमति देती थी, बशर्ते कि वे अपनी सजा के तीन महीने z वे पार््टटियाँ जिन््हेें विधानसभा या आम चनु ावोों मेें राज््य स््तरीय पार्टी बनने के
के भीतर अपील दायर करेें। लिए पर््ययाप्त प्रतिशत वोट नहीीं मिले हैैं, और
लिली थॉमस बनाम भारत संघ मामले, 2013 मेें सर्वोच््च न््ययायालय ने
z ऐसी पार््टटियाँ जिन््होोंने पंजीकृ त होने के बाद से कभी चनु ाव नहीीं लड़़ा।
यह प्रावधान असंवैधानिक माना था कि संसद और राज््य विधानमंडल
के सदस््य की अयोग््यता दोषसिद्धि की तारीख से तीन महीने तक नहीीं होगी, मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलोों को लाभ:
तथा दोषसिद्धि पर तत््ककाल अयोग््यता का प्रावधान किया था। z प्रस््ततावकोों से छूट: मान््यता प्राप्त राजनीतिक दलोों के उम््ममीदवारोों को नामांकन
2013 मेें पटना उच््च न््ययायालय ने न््ययायिक या पुलिस हिरासत मेें किसी दाखिल करते समय दस प्रस््ततावकोों की सदस््यता की आवश््यकता नहीीं होती है।
भी व््यक्ति के चनु ाव लड़ने पर रोक लगा दी थी।

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (1 119


z समय के न््ययायसगं त हिस््ससे का आवंटन : पिछले प्रदर््शन के आधार पर, मामला सर्वोच््च न््ययायालय का निर््णय
पंजीकृ त मान््यता प्राप्त राजनीतिक दलोों को आम चनु ावोों के दौरान आकाशवाणी/ रिसर्जजेंस इडि
ं या बनाम रिटर््नििंग अधिकारियोों के लिए यह अनिवार््य
दरू दर््शन पर प्रसारण/टेलीकास््ट सविध ु ाएँ मिलती हैैं। भारतीय चुनाव आयोग कर दिया गया कि वे उन नामांकन पत्ररों को
z स््टटार प्रचारकोों का यात्रा व््यय: स््टटार प्रचारकोों के यात्रा व््यय का हिसाब एवं अन््य (2013) अस््ववीकार कर देें जिनके साथ अपूर््ण/रिक्त
उनकी पार्टी के उम््ममीदवारोों के चनु ाव व््यय रिकार््ड मेें नहीीं लगाया जाता है। शपथ पत्र संलग््न होों।
z मतदाता सच ू ी प्रतियोों की निःशुल््क आपूर््तति: मान््यता प्राप्त राजनीतिक दलोों कृष््णमूर््तति बनाम सर्वोच््च न््ययायालय ने फै सला दिया कि
के उम््ममीदवारोों को मतदाता सचू ी की प्रतियोों की निःशल्ु ्क आपर््तति ू की जाती है। शिवकुमार एवं अन््य कानून के अनुसार, नामांकन पत्र दाखिल
z आरक्षित प्रतीक: पंजीकृ त मान््यता प्राप्त राजनीतिक दलोों के उम््ममीदवारोों को (2015) करते समय उम््ममीदवार के आपराधिक
आरक्षित प्रतीक प्रदान किये जाते हैैं। इतिहास (विशेष रूप से गंभीर अपराध) का
z मतदान का स््थगन: पंजीकृ त मान््यता प्राप्त राजनीतिक दलोों के किसी खल ु ासा किया जाना चाहिए।
लोक प्रहरी बनाम चुनाव सर्वोच््च न््ययायालय ने केें द्र को निर्देश दिया कि
उम््ममीदवार की मृत््ययु होने पर, निर््ववाचन अधिकारी मतदान को बाद की तिथि
आयोग (2018) वह दिशा-निर्देशोों के साथ-साथ उम््ममीदवारोों
तक स््थगित कर देता है।
द्वारा अपने नामांकन पत्र के साथ प्रस््ततुत किए
जाने वाले प्रकटीकरण फॉर््म मेें भी बदलाव
प्रमुख शब्दावलियाँ करे , ताकि उम््ममीदवारोों को स््वयं के साथ-
साथ अपने जीवनसाथी और आश्रितोों के
समय का न््ययायसंगत बंटवारा, जनप्रतिनिधित््व अधिनियम, 1951
लिए आय के स्रोत के बारे मेें भी जानकारी
की धारा 62, विधि आयोग, समानता सनिश् ु चित करना, गैर-
देनी पड़़े।
अपराधीकरण, स््वतंत्र और निष््पक्ष चनु ाव, राष्ट्रीय या राज््य स््तरीय
पार्टी आदि। z परिसपं त्तियोों और देनदारियोों की घोषणा: आरपीए 1951 की धारा 75Aके
अनसु ार संसद के किसी सदन के लिए निर््ववाचित प्रत््ययेक उम््ममीदवार को शपथ
जानने का अधिकार (RIGHT TO KNOW) लेने के नब््बबे दिनोों (90) के भीतर अध््यक्ष/स््पपीकर को निम््नलिखित जानकारी
प्रदान करनी होती है:
सूचना का अधिकार: किसी उम््ममीदवार को अपने नामांकन पत्र मेें निम््नलिखित
 चल और अचल संपत्ति जिसके वह, उसका पति या पत््ननी तथा उसके
के बारे मेें जानकारी देनी होगी जब:
आश्रित बच््चचे सयं क्तु रूप से या अलग-अलग मालिक या लाभार्थी हैैं;
z उस पर दो वर््ष या उससे अधिक के कारावास से दड ं नीय किसी अपराध का
 किसी भी सार््वजनिक वित्तीय संस््थथान, के न्दद्र या राज््य सरकार के प्रति
आरोप हो, जहाँ आरोप सक्षम न््ययायालय द्वारा तय किए गए होों;
उसकी देनदारियाँ।
z यदि उसे किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है और एक वर््ष या उससे

अधिक के कारावास की सजा सनु ाई जाती है। z अध््यक्ष एवं सभापति को नियम बनाने का अधिकार है: अध््यक्ष/अध््यक्ष
इस सबं ंध मेें नियम बना सकते हैैं और नियमोों का जानबझू कर उल््ललंघन
मतदाताओ ं के सूचना के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय का विशेषाधिकार का उल््ललंघन माना जा सकता है।
फैसला
z चुनाव व््यय का लेखा: जनप्रतिनिधित््व अधिनियम, 1951 की धारा 77 के
मामला सर्वोच््च न््ययायालय का निर््णय अनसु ार प्रत््ययेक उम््ममीदवार को नामांकन की तिथि से लेकर परिणाम घोषित होने
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक अभ््यर्थी को अपने आपराधिक इतिहास, की तिथि तक चनु ाव के संबंध मेें किए गए सभी व््ययोों का अलग और सही
रिफॉर््म््स बनाम भारत संघ शैक्षिक योग््यता और सम््पत्ति के संबंध मेें लेखा रखना आवश््यक है। यह लेखा किसी भी उम््ममीदवार के चनु ाव जीतने
(2002) जानकारी देनी होगी। के तीस दिनोों (30) के भीतर जिला चनु ाव अधिकारी को देना होगा। किसी
पीपुल््स यूनियन फॉर मतदाताओ ं को पद के लिए उम््ममीदवारोों राजनीतिक दल के स््टटार प्रचारकोों द्वारा हवाई या अन््य तरीकोों से किए गए यात्रा
सिविल लिबर्टीज बनाम की प्रासंगिक योग््यताएँ जानने का मौलिक व््यय को इस सबं ंध मेें उम््ममीदवार द्वारा किया गया व््यय नहीीं माना जाता है।
भारत संघ (2003) अधिकार है, जिसमेें उनकी आय और संपत्ति
के बारे मेें जानकारी भी शामिल है।
भ्रष्ट आचरण
तदनुसार, जन प्रतिनिधि कानून, 1951 की जन प्रतिनिधि कानून (1951) मेें भ्रष्ट आचरण से संबंधित प्रावधान:
धारा 33B को असंवैधानिक माना गया, अधिनियम की धारा 123 भ्रष्ट आचरण को परिभाषित करती है -
जिसमेें कहा गया था कि उम््ममीदवारोों को z शत्रुता या घृणा को बढ़़ावा देना: धर््म, मल
ू वंश, जाति, समदु ाय या भाषा
उनके आपराधिक रिकॉर््ड के अलावा अपने के आधार पर भारतीय नागरिकोों के विभिन््न वर्गगों के बीच शत्रुता या घृणा
बारे मेें कोई अन््य जानकारी बताने के लिए को बढ़़ावा देना।
बाध््य नहीीं किया जा सकता। z सती प्रथा या उसका महिमामंडन: सती प्रथा या उसके महिमामड ं न का
प्रचार-प्रसार।

120  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीति और संविधान


z रिश्वत : किसी उम््ममीदवार या उसके एजेेंट द्वारा किसी व््यक्ति को चनु ाव लड़ने z झूठी जानकारी देना: अपने नामांकन पत्र या हलफनामे मेें जानकारी छिपाना
या न लड़ने, उम््ममीदवार बनने से पीछे हटने या न हटने या वोट देने या वोट न या झठू ी जानकारी पेश करना।
देने के लिए दिया गया कोई उपहार, प्रस््तताव या वादा। z बथू कै प््चरिंग एक अपराध है।
z अनुचित गतिविधि या हस््तक्षेप : किसी भी चन ु ावी अधिकार के स््वतंत्र z रिटर््नििंग अधिकारी द्वारा या उसके प्राधिकार के तहत लगाई गई किसी सचू ी,
प्रयोग मेें प्रत््यक्ष या अप्रत््यक्ष हस््तक्षेप। इसमेें किसी भी चनु ाव उम््ममीदवार या नोटिस या अन््य दस््ततावेज को विकृ त करना, क्षति पहुचँ ाना या हटाना।
मतदाता को धमकाना भी शामिल है। z मतदान की गोपनीयता बनाये रखने मेें विफलता।
z धार््ममिक अपील : धर््म, मल ू वंश, जाति, समदु ाय या भाषा पर आधारित अपील z अधिकारियोों आदि को उम््ममीदवारोों के लिए प्रचार करने या वोटोों को प्रभावित
या धार््ममिक या राष्ट्रीय प्रतीकोों, जैसे राष्ट्रीय ध््वज या राष्ट्रीय प्रतीक की अपील। करने की अनमु ति नहीीं है।
z किसी भी सरकारी अधिकारी से सहायता प्राप्त करना: राजपत्रित z मतदान स््थलोों से मतपत्ररों को हटाना।
अधिकारियोों, वेतन भोगी न््ययायाधीशोों और मजिस्ट्रेटोों, सशस्त्र बलोों के सदस््योों, z अन््य अपराध :
आबकारी अधिकारियोों, राजस््व अधिकारियोों आदि से सहायता (मतदान के  चन ु ाव के दिन मतदान स््थल पर या उसके आसपास प्रचार करना।
अलावा) प्राप्त करना।  चन ु ाव के दिन मतदान स््थलोों पर या उसके आस-पास अव््यवस््थथित आचरण।
z बूथ कै प््चरिंग: 2019 के आम चन ु ावोों मेें फरीदाबाद मेें एक पोलिंग एजेेंट को  मतदान के न्दद्र पर दर््व््यु वहार।
‘बथू कै प््चर’ के वीडियो के चलते गिरफ््ततार किया गया था।  मतदान प्रक्रिया के नियमोों का पालन न करना।
z मिथ््यया प्रकाशन : किसी भी उम््ममीदवार के व््यक्तिगत चरित्र या आचरण के  चन ु ाव के संबंध मेें आधिकारिक कर््तव््य का उल््ललंघन करना।
संबंध मेें किसी भी झठू े तथ््य का प्रकाशन।  मतदान स््थल पर या उसके निकट आग््ननेयास्त्र आदि लाना।
z व््यय प्राधिकृत करने का उल््ललंघन: जनप्रतिनिधित््व कानन ू (1951) की  चन ु ाव के दिन कर््मचारियोों को वेतन सहित अवकाश नहीीं दिया जाता।
धारा 77 के तहत निर््धधारित 'चनु ाव व््यय का लेखा और अधिकतम सीमा' के  चन ु ाव के दिन कोई भी व््यक्ति न तो शराब बेच सकता है और न ही
उल््ललंघन मेें व््यय करना या प्राधिकृ त करना। वितरित कर सकता है।
z मतदान के न्दद्र हेतु वाहन का उपयोग वर््जजित : स््वयं उम््ममीदवार, उसके परिवार

के सदस््योों या उसके एजेेंट के अलावा अन््य किसी को मतदान के न्दद्र तक या पेड न्यूज़
वहाँ से किसी को लाने-ले जाने के लिए किसी वाहन या जलयान का उपयोग z किसी भी मीडिया (प््रििंट और इलेक्ट्रॉनिक) मेें प्रकाशित होने वाला कोई भी
नहीीं किया जा सके गा । समाचार या विश्ले षण जिसका मल्ू ्य धन या किसी प्रतिफल के रूप मेें नकद
सर्वोच््च न््ययायालय ने 2017 मेें अभिराम सिंह मामले मेें माना था कि चनु ाव एक या अन््य समकक्ष रूप मेें प्राप्त किया जाता है। पेड न््ययूज कहलाता है। (प्रेस
धर््मनिरपेक्ष प्रक्रिया है और चनु ाव के दौरान धर््म, जाति, नस््ल, समदु ाय या भाषा काउंसिल ऑफ इडि ं या)।
के आधार पर वोट की अपील करना 'भ्रष्ट आचरण' है। पेड न्यूज़ के नकारात्मक प्रभाव:
z धन-शक्ति का प्रतिबिम््ब: भगु तान अधिकांशतः नकद या वस््ततु के रूप मेें
प्रमुख शब्दावलियाँ किया जाता है तथा यह आयकर और चनु ाव व््यय काननोू ों का उल््ललंघन करता है।
बूथ कै प््चरिंग, मिथ््यया प्रकाशन, धार््ममिक अपील, अनुचित प्रभाव, z लोकतंत्र की नीींव पर आघात : ऐसी खबरेें मतदाताओ ं के मतदान व््यवहार
चनु ाव खर््च आदि। पर बहुत बरु ा असर डालती हैैं क््योोंकि दर््शकोों या मतदाताओ ं को उम््ममीदवार
के व््यक्तित््व या प्रदर््शन के बारे मेें स््पष्ट जानकारी नहीीं मिलती और इसलिए
चुनावी अपराध वह यह तय नहीीं कर पाता कि उसे किसे वोट देना है। अतः यह लोकतंत्र की
बनिु यादी नीींव को कमजोर करता है।
जनप्रतिनिधित््व अधिनियम (आरपीए), 1951 मेें सूचीबद्ध चुनावी अपराध
z मतदाता सोच और राय को प्रभावित करना : यह मतदाताओ ं को यह
: आरपीए, 1951 के अध््ययाय III मेें निम््नलिखित चुनावी अपराधोों का
स््पष्ट नहीीं बताता कि समाचार वास््तव मेें एक विज्ञापन है उससे प्रभावित
प्रावधान है -
होने की आवश््यकता नहीीं है अतः इस प्रकार यह उन््हेें सचू ना के अधिकार
z सार््वजनिक बै ठकोों मेें व््यवधान: व््यवसाय के लेन-देन को रोकने के उद्देश््य से।
से वचि ं त करता है।
z एग््जजिट पोल के परिणामोों का प्रकाशन: चन ु ाव शरू
ु होने से लेकर मतदान z स््वतंत्र एवं निष््पक्ष चुनावोों पर प्रभाव: राजनीतिक एजेेंडा फै लाकर तथा
के आधे घटं े बाद तक एग््जजिट पोल आदि के परिणामोों का प्रकाशन और प्रसार। समाचार चैनलोों से संपर््क रखने वाले लोगोों को लाभ पहुचँ ाकर स््वतंत्र एवं
z मुद्रण सामग्री: मद्र ु क और प्रकाशक के नाम और पते के बिना पैम््फलेट, निष््पक्ष चनु ावोों को प्रभावित करता है ।
पोस््टर आदि का मद्रु ण। z मीडिया स््वतंत्रता प्रभावित: मीडिया लोकतंत्र का चौथा स््ततंभ है इसे स््वतंत्र
z सामुदायिक घृणा को बढ़़ावा देना: धर््म, नस््ल, जाति, समद ु ाय या भाषा के व निष््पक्ष होना चाहिए। अतः नियमोों का दरुु पयोग करने से लोगोों का मीडिया
आधार पर चनु ावोों के संबंध मेें सामदु ायिक भेदभाव या शत्रुता को बढ़़ावा देना। पर से विश्वास खत््म होता है।

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (1 121


पेड न्यूज़ को चुनावी अपराध न मानने के निहितार््थ : डाक मतपत्र के माध्यम से
z पेड न््ययूज के लिए मुकदमा : पेड न््ययूज का उपयोग करने वाले उम््ममीदवारोों अनिवासी भारतीयोों को मतदान का अधिकार
पर के वल अपने अभियान खातोों मेें शामिल खर्चचों को शामिल न करने के लिए z ईटीपीबीएस (इलेक्ट्रॉनिकली ट््राांसमिटेड पोस््टल बैलट सिस््टम (ETPBS)
मक
ु दमा चलाया जा सकता है। भारत के चनु ाव आयोग का प्रमख ु आईटी कार््यक्रम है। यह एक प्रकार का
z पेड न््ययूज से दूरी: उम््ममीदवारोों को पेड न््ययूज से स््वयं को दरू रखने की डाक मतदान है, जिसमेें मतपत्र इलेक्ट्रॉनिक रूप से मतदाताओ ं को वितरित
आवश््यकता नहीीं है, न ही प्रासंगिक समय पर और न ही बाद मेें। किए जाते हैैं और डाक द्वारा वापस कर दिए जाते हैैं। इन पंजीकृ त मतदाताओ ं
z पक्षपातपूर््ण एवं झूठी खबरेें: जनता को राजनीतिक दल या उम््ममीदवार की को सेवा मतदाता कहा जाता है।
सही तस््ववीर नहीीं मिल पाती, क््योोंकि उनके कार्ययों के बारे मेें प्रकाशित खबरेें z एक समर््पपित पोर््टल के माध््यम से ऑनलाइन सेवा मतदाता के रूप मेें इस
पक्षपातपर््णू एवं झठू ी होती हैैं। प्रणाली के लिए पंजीकरण करना संभव है। यह दो सरु क्षा परतोों के साथ एक
परू ी तरह से सरु क्षित प्रणाली है।
आगे की राह
 इसमेें ओटीपी और पिन का उपयोग मतदान की गोपनीयता सनिश् ु चित
सूचना प्रौद्योगिकी पर विभाग-संबधं ित करता है। पोर््टल मेें एक क््ययूआर कोड होता है जो डाले गए ईटीपीबी के
संसदीय स्थायी समिति के अनुसार: दोहराव को रोकता है।
z मीडिया घरानोों के वित्तीय खातोों, विशेषकर संदिग््ध पेड न््ययूज के राजस््व स्रोतोों z 2014 के लोकसभा चनु ावोों के बाद, तीन चैनलोों के माध््यम से एनआरआई
की जाँच करना। मतदान की जाँच करने के लिए 12-सदस््ययीय समिति का गठन किया गया था
z प््रििंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनोों के लिए एक एकल नियामक प्राधिकरण जिसने डाक द्वारा मतदान, विदेश मेें भारतीय मिशन मेें मतदान और इटं रनेट
की स््थथापना करना। मतदान की जाँच की।
z भारतीय प्रेस परिषद द्वारा चन  अत ं मेें, 2015 मेें पैनल ने सझु ाव दिया कि एनआरआई को व््यक्तिगत रूप
ु ाव कवरे ज पर समाचार मीडिया के लिए कड़़े
दिशा-निर्देश तैयार करना। से मतदान के अलावा 'ई-पोस््टल बैलट और प्रॉक््ससी वोटिंग के अतिरिक्त
z पेड न््ययूज मेें शामिल मीडिया घरानोों का नाम उजागर करना और उन््हेें दडि ं त वैकल््पपिक विकल््प' की पेशकश की जानी चाहिए।
व प्रतिबंधित करना। अनिवासी भारतीयोों के लिए मौजूदा प्रक्रिया
z पेड न््ययूज को परिभाषित करना ताकि भारतीय प्रेस परिषद उपयक्त ु दिशा-निर्देश z मताधिकार का अधिकार (2011) : अनिवासी भारतीयोों के लिए मताधिकार
जारी कर सके । 2011 मेें जनप्रतिनिधित््व अधिनियम, 1950 मेें संशोधन के माध््यम से शरू ु
z पेड न््ययूज को चन ु ावी अपराध बनाने के लिए जनप्रतिनिधित््व अधिनियम किया गया था।
(1951) मेें संशोधन करना आवश््यक है। z अपने निर््ववाचन क्षेत्र मेें मतदान : एक एनआरआई अपने निवास स््थथान मेें
z राजनीतिक दलोों और उम््ममीदवारोों को चन ु ाव आयोग की व््यय सीमा संबंधी स््थथित निर््ववाचन क्षेत्र मेें मतदान कर सकता है, जैसा कि पासपोर््ट मेें उल््ललिखित
नियमोों का सख््तती से पालन करने हेतु प्रेरित करना चाहिए। है।
z लोगोों मेें जागरूकता पैदा करके तथा राजनीतिक दलोों और मीडिया सहित सभी z के वल व््यक्तिगत मतदान : एनआरआई के वल व््यक्तिगत रूप से मतदान कर
हितधारकोों के साथ साझेदारी करके उन््हेें सवं दे नशील बनाया जाना चाहिए। सकते हैैं और उन््हेें पहचान स््थथापित करने के लिए मतदान केें द्र पर अपना मल ू
z विधि आयोग द्वारा मार््च, 2015 मेें सरकार को सौौंपी गयी अपनी अपनी 255 पासपोर््ट प्रस््ततुत करना होगा।
वीीं रिपोर््ट मेें, 'चनु ाव सधु ार' पर जो सिफारिशेें प्रस््ततुत की थी कि पेड न््ययूज को चुनौतियााँ
चनु ावी अपराध बनाया जाना चाहिए, उन पर अमल करना।
z मतदाताओ ं की पहचान: मतदाताओ ं की पहचान के संबंध मेें प्रश्न उठाए
यद्यपि, पेड न््ययूज़ का मद्दा ु खास तौर पर डिजिटल युग मेें, प्रभावी लोकतंत्र के लिए जा सकते हैैं, क््योोंकि राजनीतिक दलोों के प्रतिनिधि मतदान स््थल पर उपस््थथित
एक नई चनु ौती बनता जा रहा है। इसलिए, स््वतंत्र और निष््पक्ष चनु ाव प्रणाली
नहीीं हो सकते हैैं।
सुनिश्चित करने के लिए यह जरूरी है कि पेड न््ययूज़ के मद्देु से सावधानीपूर््वक
z पुलिस व््यवस््थथा और सरु क्षा: चनु ाव आयोग को यह सनिश् ु चित करने के
निपटा जाए।
तरीके ढूँढ़ने होोंगे कि इन स््थलोों पर पलु िस व््यवस््थथा और सरु क्षा कै से सनिश्
ु चित
की जा सके ।
प्रमुख शब्दावलियाँ
z आदर््श आचार सहित ं ा: विदेशी सरकारेें मतदान से पहले ‘साइलेेंस पीरियड’
कड़़े दिशा-निर्देश, पेड न््ययूज मेें खामियाँ, लोकतंत्र , धनबल, गलत बनाए रखने के लिए बाध््य नहीीं हैैं, इसलिए इस बात पर चर््चचा करनी होगी
सूचना, एग््जजिट पोल, पूर््ववा ग्रह, मीडिया चौथा स््ततंभ, एग््जजिट पोल आदि। ताकि आदर््श आचार संहिता का उल््ललंघन न हो।

122  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीति और संविधान


आगे की राह z "लोक प्रतिनिधित््व अधिनियम के अन््तर््गत भ्रष्ट आचरण के दोषी व््यक्तियोों
को अयोग््य ठहराने की प्रक्रिया के सरलीकरण की आवश््यकता है।" टिप््पणी
z रसद चुनौतियोों का समाधान करने की आवश््यकता: विदेश मत्राल ं य के
कीजिए। (2020)
अनसु ार, प्रस््तताव को लागू करने से पहले 'बड़़ी रसद चनु ौतियोों' का समाधान
करने और 'आवश््यकताओ ं का यथार््थवादी मल्ू ्ययाांकन' करने की आवश््यकता है। z किन आधारोों पर किसी लोक प्रतिनिधि को, लोक प्रतिनिधित््व अधिनियम,
1951 के अधीन निरर््हहित किया जा सकता है? उन उपचारोों का भी उल््ललेख
z दूतावासोों मेें मतदान की पर््ययाप्त सविध
ु ा: वास््तविक मतदान सविध ु ा,
कीजिए जो ऐसे निरर््हहित व््यक्ति को अपनी निरर््हता के विरुद्ध उपलब््ध हैैं।
मतदाता पहचान तथा मतदान स््थथान की व््यवस््थथा करना ताकि सभी दतू ावासोों
 (2019)
और वाणिज््य दतू ावासोों मेें सभी मतदाताओ ं को मतदान की पर््ययाप्त सविधु ा
सनिश्
ु चित हो सके ।
विगत वर््ष के प्रश्न प्रमुख शब्दावलियाँ
z लोक प्रतिनिधित््व अधिनियम, 1951 के अन््तर््गत संसद अथवा राज््य
स््थथानीय भाषाएँ, फीडबैक तंत्र, इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित डाक
विधायिका के सदस््योों के चनु ाव चिह्न से उभरे विवादोों के निर््णय की प्रक्रिया
मतपत्र प्रणाली, मिथ््यया प्रकाशन, बूथ कै प््चरिंग, राजनीति का
का विवेचन कीजिए। किन आधारोों पर किसी निर््ववाचित घोषित प्रत््ययाशी के नौकरशाहीकरण, स््वतंत्र और निष््पक्ष चनु ाव, दूतावास, रसद,
निर््ववाचन को शन्ू ्य घोषित किया जा सकता है? इस निर््णय के विरुद्ध पीड़़ित पक्ष अनिवासी भारतीय (एनआरआई) आदि।
को कौन-सा उपचार उपलब््ध है? वाद विधियोों का सन््दर््भ दीजिए। (2022)

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (1 123


अन्य राष्ट््रों के साथ भारतीय
31 संवैधानिक प्रणाली की तुलना
भारत और अमेरिका

विशेषताएँ अमे रिका भारत


संविधान की z संयक्त
ु राज््य अमेरिका का संविधान इतिहास का पहला प्रारूपित एवं सबसे z भारत का संविधान, विश्व का सबसे लम््बबा लिखित संविधान
प्रकृति छोटा संविधान है। है।
z के वल सात अनच्ु ्छछेदोों और सत्ताईस सश ं ोधनोों के साथ सयं क्त
ु राज््य अमेरिका z इसमेें 25 भागोों मेें 470 अनच्ु ्छछेद, 12 अनसु चि ू याँ और 5
का संविधान एक अत््यधिक प्रतिबंधात््मक साधन है। परिशिष्ट हैैं।
संघवाद की z सयं क्त
ु राज््य अमेरिका अविनाशी राज््योों का एक अविनाशी सघं है क््योोंकि z भारत विनाशी राज््योों का अविनाशी सघं है।
प्रकृति संघीय सरकार और राज््योों के अपने-अपने संविधान होते हैैं और वे एक-दसू रे z भारत मेें के वल एक ही संविधान है और यह के न्दद्र सरकार को
के कामकाज मेें हस््तक्षेप नहीीं करते हैैं। राज््य सरकार के कार्ययों मेें हस््तक्षेप करने से रोकता है।
z सममित सघं वाद: सममित संघवाद के अतं र््गत सीनेट मेें सभी राज््योों का z उदाहरण के लिए: राज््य के विधेयकोों को राष्टट्रपति की मजं रू ी
समान प्रतिनिधित््व। के लिए आरक्षित रखना, राज््यपालोों की नियक्ु ति करना और
z विधायी सघं पर राज््योों का बहुत अधिक प्रभाव होता है। अवशिष्ट विषयोों के राज््योों मेें राष्टट्रपति शासन लागू करना।
लिए कोई विस््ततृत तंत्र उपलब््ध नहीीं है। z असममित सघं वाद: राज््योों को उनकी जनसख्ं ्यया के अनसु ार,
राज््यसभा मेें प्रतिनिधित््व दिया गया है।
z भारतीय संविधान की सातवीीं अनसु चू ी विधायी शक्तियोों को
के न्दद्र और राज््य सरकारोों के बीच विभाजित करती है। अवशिष्ट
शक्तियाँ के न्दद्र सरकार के पास हैैं।
सरकारी z एक राष्टट्रपति प्रणाली वाली शासन प्रणाली जिसमेें मतदाता राज््य के प्रमख
ु z भारत मेें संसदीय शासन प्रणाली है।
संरचना का चनु ाव करते हैैं। z भारत सरकार की कार््यकारी शाखा का नेतत्ृ ्व भारत के
z अमेरिका मेें राष्टट्रपति के पास बहुत अधिक अधिकार होते हैैं और वो हाउस राष्टट्रपति द्वारा किया जाता है। उन््हेें अप्रत््यक्ष रूप से राज््य
ऑफ कांग्रेस के अधीन नहीीं है। विधायिकाओ ं और संसद द्वारा चनु ा जाता है और वे संसद के
z अमेरिकी राष्टट्रपति का कार््यकाल चार साल का होता है और उन््हेें इस पद पर प्रति उत्तरदायी नहीीं होते हैैं। भारतीय राष्टट्रपति का कार््यकाल
के वल दो बार ही रह सकते हैैं। राष्टट्रपति के पास वैध वीटो होता है। पाँच वर््ष का होता है।
z वह कितनी बार भी निर््ववाचित होने के पात्र हैैं। राष्टट्रपति के
पास कोई वैध वीटो उपलब््ध नहीीं होता है।
z अमेरिका के विपरीत, भारतीय संविधान मेें राष्टट्रपति को किसी
विधेयक पर हस््तताक्षर करने के लिए कोई समय सीमा निर््धधारित
नहीीं की गई है।
राष्टट्रपति पर z अमेरिकी संविधान मेें देशद्रोह, रिश्वतखोरी और गंभीर अपराध के लिए z भारतीय संविधान मेें संवैधानिक उल््ललंघनोों के लिए महाभियोग
महाभियोग महाभियोग की व््यवस््थथा है। की व््यवस््थथा है।
उपराष्टट्रपति z राष्टट्रपति के पद की रिक्ति होने पर उपराष्टट्रपति, राष्टट्रपति बन सकता है। z भारतीय उपराष्टट्रपति का कार््ययालय कुछ अतं रोों के साथ
का कार््ययालय z वह सीनेट का पदेन अध््यक्ष होता है और उनके पास निर््णणायक मत का अमेरिकी कार््ययालय के अनरू ु प ही बनाया गया है।
अधिकार होता है। z उदाहरण के लिए- वह राष्टट्रपति पद रिक्त होने की स््थथिति मेें
तभी तक पद पर बना रह सकता है जब तक कि नया राष्टट्रपति
निर््ववाचित नहीीं हो जाता।
विशेषताएँ अमे रिका भारत
नागरिकता z सयं क्त
ु राज््य अमेरिका मेें लोगोों के पास दो नागरिकताएँ होती हैैं: एक सयं क्त
ु राज््य z दसू री ओर, भारत मेें सभी लोगोों के लिए एकल नागरिकता
अमेरिका के नागरिक के रूप मेें और दसू री सबं धं ित राज््य के नागरिक के रूप मेें। का प्रावधान है।
विधान मंडल z इसमेें दो सदन होते हैैं: हाउस ऑफ रिप्रेजेेंटेटिव और सीनेट। z हाउस ऑफ रिप्रेजेेंटेटिव और सीनेट क्रमशः भारत की
z हाउस ऑफ रिप्रेजेेंटेटिव: लोकसभा और राज््यसभा के समान हैैं।
 दनि ु या के सबसे कमजोर निम््न सदनोों मेें से एक। z भारत मेें कार््यपालिका, विधायिका के अधीन होती है और
 इसमेें 435 सदस््य हैैं।
विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है।
 विभिन््न राज््योों के लोगोों का प्रतिनिधित््व संख््यया के हिसाब से भिन््न हो
z राष्टट्रपति, संघीय कार््यपालिका का सदस््य होता है। चकि ँू
सकता है। राष्टट्रपति को मत्रि
ं परिषद के समर््थन और परामर््श से कार््य करना
होता है, इसलिए प्रधानमत्ं री और मत्रि
ं परिषद ही वास््तविक
z सीनेट:
कार््यपालिका का गठन करते हैैं।
 स््थथायी निकाय होता है।

 विश्व का सबसे शक्तिशाली उच््च सदन।

 साधारण विधेयक, संशोधन विधेयक और धन विधेयक सभी इसके

अधिकार क्षेत्र मेें आते हैैं।


 सीनेटर छह साल का कार््यकाल परू ा करते हैैं। हर दो साल मेें एक तिहाई

सदस््य/सीनेटर पद छोड़ देते हैैं।


 विधायिका और कार््यपालिका दोनोों का कार््यकाल निश्चित और एक दस ू रे
से स््वतंत्र है।
 कार््यपालिका का सदस््य विधानमड ं ल का सदस््य नहीीं हो सकता।
मौलिक z संयक्त ु राज््य अमेरिका मेें 'विधि की उचित प्रक्रिया' के बिना किसी का जीवन z भारत मेें किसी व््यक्ति का जीवन और स््वतंत्रता 'विधि द्वारा
अधिकार या स््वतंत्रता नहीीं छीनी जा सकती। स््थथापित प्रक्रिया' के अनसु ार छीनी जा सकती है।
z उचित प्रक्रिया का तात््पर््य उस आवश््यकता से है कि काननू का सार और z 'विधि द्वारा स््थथापित प्रक्रिया' वाक््ययाांश विधायिका को स््वतंत्रता
व््यवहार न््ययायसंगत, समान और समतामल ू क हो, जैसा कि न््ययायपालिका द्वारा को सीमित करने के लिए व््ययापक विवेकाधीन शक्ति प्रदान
निर््धधारित किया जाता है। करता है।
z किसी व््यक्ति की स््वतंत्रता छीनने की विधायिका की शक्ति प्रतिबंधित है तथा
न््ययायपालिका इसकी जाँच और मल्ू ्ययाांकन कर सकती है।
नियंत्रण और z शक्तियोों के पृथक््करण का सिद््धाांत अमेरिकी संविधान मेें निहित है। z भारत मेें कार््यपालिका और विधायिका एक दसू रे से घनिष्ठ रूप
संतुलन z कार््यपालिका और विधायी कार्ययों पर न््ययायिक निगरानी के माध््यम से से जड़ु ़ी हुई हैैं तथा न््ययायपालिका स््वतंत्र रूप से कार््य करती है।
न््ययायपालिका सरकार की अन््य शाखाओ ं पर भी नजर रखती है।
आपातकाल z अमेरिकी संविधान मेें ‘आपातकाल’ शब््द का प्रयोग नहीीं किया गया है, लेकिन z भारत मेें यद्ध
ु या सशस्त्र विद्रोह होने पर आपातकाल घोषित
इसमेें कहा गया है कि विद्रोह और सार््वजनिक सरु क्षा पर आक्रमण की स््थथिति किया जा सकता है।
मेें बंदी प्रत््यक्षीकरण रिट को निलंबित किया जा सकता है। z जीवन के अधिकार (अनच्ु ्छछेद 21) को छोड़कर सभी मौलिक
अधिकार आपातकाल मेें निलंबित किये जा सकते हैैं।
न््ययायपालिका z न््ययायाधीशोों की नियक्ु ति राष्टट्रपति द्वारा की जाती है और सीनेट द्वारा उनकी z दसू री ओर, भारत उच््चतम न््ययायपालिका मेें न््ययायाधीशोों की
पष्टि
ु की जाती है तथा उन््हेें कांग्रेस और राष्टट्रपति द्वारा महाभियोग के माध््यम नियक्ु ति के लिए कॉलेजियम पद्धति का उपयोग करता है।
से हटाया जा सकता है।
z राष्टट्रपति उनके वेतन और परिलब््धधियोों को नियंत्रित करते हैैं।

z सर्वोच््च न््ययायालय के न््ययायाधीशोों की नियक्ु ति किसी योग््यता की परवाह

किए बिना की जाती है।


संविधान z सविध ं ान मेें सश ं ोधन करने के दो तरीके हैैं: z भारत मेें सश
ं ोधन प्रक्रिया सरल एवं लचीली है।
संशोधन 1. कांग्रेस द्वारा प्रस््ततावित और राज््योों द्वारा अनुसमर््थथित: z भारत मेें सवं ैधानिक सश ं ोधनोों की सिफारिश करने का
 संशोधन दोनोों सदनोों मेें दो तिहाई बहुमत से पारित किया जाएगा। अधिकार के वल संसद को है तथा राज््योों को इस मामले मेें
 कम से कम तीन-चौथाई राज््योों के विधानमड ं लोों द्वारा इसका अनसु मर््थन कोई अधिकार नहीीं है।
किया जाना चाहिए।

अन्य राष्ट ्रों के साथ भारतीय संवैधानिक प्रणाली 125


विशेषताएँ अमे रिका भारत
2. राज््योों द्वारा प्रस््ततावित और राज््योों द्वारा अनुसमर््थथित:  यद्यपि कुछ अनच्ु ्छछेदोों मेें साधारण बहुमत से संशोधन
 दो तिहाई राज््योों को इस आशय का प्रस््तताव पारित करना चाहिए। किया जा सकता है, अन््य के लिए विशेष बहुमत की
 वे कांग्रेस से संवाद करेेंगे। कांग्रेस अधिवेशन बल ु ाएगी। आवश््यकता होती है तथा कुछ अनच्ु ्छछेदोों के लिए आधे
 सम््ममेलन मेें इसे तीन-चौथाई राज््योों द्वारा अनम
ु ोदित किया जाना आवश््यक है। से अधिक राज््योों के अनमु ोदन की आवश््यकता होती है।

भारत और ब्रिटेन भारत और ब्रिटेन


विशेषताएँ ब्रिटे न भारत
प्रकृति z ब्रिटेन मेें कोई औपचारिक लिखित सविध ं ान नहीीं है। ब्रिटिश सविध
ं ान z भारतीय सविध ं ान को विभिन््न भागोों और अनसु चियो
ू ों मेें सहि
ं ताबद्ध
का कोई औपचारिक या संहिताबद्ध संस््करण नहीीं है। किया गया है।
z इसे कभी भी संविधानसभा द्वारा तैयार नहीीं किया गया। z इसके विपरीत, भारतीय संविधान लचीला होने के साथ-साथ कठोर
z ब्रिटिश संविधान एक लचीली संवैधानिक संरचना है। भी है।
z चकिँू संवैधानिक काननू और साधारण काननू के बीच कोई अतं र z भारतीय संविधान दो प्रकार से व््यवहार करता है: संघीय या एकात््मक
नहीीं है, इसलिए इसे संसद के साधारण बहुमत (उपस््थथित और मतदान  एकात््मक प्रणाली मेें, केें द्र सरकार द्वारा सत्ता की सारी शक्तियोों

करने वाले सदस््योों का 50%) द्वारा पारित, परिवर््ततित या निरस््त का प्रयोग किया जाता है तथा राज््य उसके सहायक के रूप मेें
किया जा सकता है। कार््य करते हैैं।
 संघीय संविधान, राज््योों और केें द्र सरकार के बीच अधिकारोों

का विभाजन स््थथापित करता है, जिसमेें से प्रत््ययेक अपने क्षेत्र


मेें संप्रभु होता है।
z इस प्रकार भारतीय संविधान एकात््मक पहलओ ु ं के साथ संघीय,
संघीय तत्तत्ववों के साथ एकात््मक तथा प्रकृ ति मेें अर्दद्ध-संघीय है।
राज््य की प्रकृति z ब्रिटिश ससं द, एक सप्रं भु निकाय है, जिसके पास सरकार की सभी z राज््य की सघं ीय प्रकृ ति है। शक्तियोों को राष्ट्रीय और राज््य सरकारोों
शक्तियाँ हैैं। द्वारा साझा किया जाता है।
संसद की z एकमात्र विधायी निकाय जिसके पास असीमित विधायी अधिकार z इस तथ््य के बावजदू कि राज््य विधायिकाएँ मौजदू हैैं, भारतीय संसद
संप्रभुता हैैं, वह है ब्रिटिश ससं द। इसके द्वारा कोई भी काननू पारित, सश
ं ोधित की विधायी शक्ति लगभग ब्रिटिश ससं द के बराबर है।
या निरस््त किया जा सकता है। z न््ययायपालिका ससं द को प्रभावी रूप से नियंत्रित करती है और भारत
z ब्रिटिश संसद द्वारा पारित काननू की वैधता का निर््णय न््ययायालय मेें शक्ति पृथक््करण की एक पर््णू व््यवस््थथा मौजदू है।
द्वारा नहीीं किया जा सकता।
कार््यकारिणी z यह सिविल सेवकोों की प्रिवी काउंसिल, मत्रि ं परिषद की स््थथायी z कार््यकारी समान ही होते हैैं सिवाय इसके कि भारत मेें कोई व््यक्तिगत
कार््यकारी समिति (CoM), सम्राट और प्रधानमत्ं री से मिलकर बना काननू ी जिम््ममेदारी नहीीं होती है।
है। z कार््यपालिका मत्रियो
ं ों और नौकरशाहोों से बनी होती है।
z कार््यपालिका की व््यक्तिगत काननू ी जिम््ममेदारी होती है।
राज््य प्रमुख का z एक संवैधानिक राजतंत्र, जो लोकतंत्र के साथ असंगत नहीीं है। z राष्टट्रपति राज््य का औपचारिक प्रमखु होता है और मत्रि
ं परिषद की
स््वभाव z सम्राट के पास कोई विवेकाधीन अधिकार नहीीं होता। उसे ‘गोल््डन सहायता और सलाह के अनसु ार कार््य करता है।
जीरो’ कहा जाता है। z यदि राष्टट्रपति संविधान का उल््ललंघन करता है तो उसके खिलाफ
z कहा जाता है कि सम्राट को पर््णू छूट प्राप्त है और वह कोई भी गलत महाभियोग चलाया जा सकता है।
कार््य करने मेें असमर््थ है।
न््ययायपालिका z गंभीर कदाचार के कारण ही पद से हटाया जा सकता है और एक z ‘मूल सरं चना’ के विचार ने न््ययायपालिका को एक शक्तिशाली
प्रोटोकॉल के अनसु ार विकसित किया गया है। साधन प्रदान किया है, जिसके माध््यम से वह किसी भी कार््यकारी
z हटाने के लिए ससं द के दोनोों सदनोों की मजं रू ी लेना आवश््यक है। या विधायी गतिविधि का दमन कर सकती है, जिसे वह संविधान
की मल ू भावना के विपरीत मानती है।
z अन््य प्रावधान ब्रिटेन के मॉडल के बहुत समान हैैं।
विधान मंडल z ब्रिटिश संसद दो सदनोों मेें विभाजित है: हाउस ऑफ लॉर््डड््स, जिसका z दोनोों सदनोों मेें निश्चित सीटोों वाली द्विसदनीय विधायिका।
अधिकार अनिश्चित है और हाउस ऑफ कॉमन््स, जिसकी सदस््य z हाउस ऑफ लॉर््डड््स, राज््यसभा के समान है और हाउस ऑफ कॉमन््स
सख्ं ्यया 650 निर््धधारित है। लोकसभा के समान है।

126  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीति और संविधान


विशेषताएँ ब्रिटे न भारत
विधान मंडल z संशोधन: इसे हाउस ऑफ लॉर््डड््स द्वारा प्रस््ततावित किया जा सकता
है और उनके द्वारा अनमु ोदित किया जा सकता है। लेकिन इसका
अधिकार सीमित होता है; यदि यह किसी काननू को अस््ववीकार
करता है, तो यह के वल एक वर््ष तक के लिए ही पारित करने मेें
देरी कर सकता है।
स््पपीकर z यनू ाइटेड किंगडम मेें एक बार स््पपीकर बनने के बाद उसे हटाया नहीीं z भारत मेें ऐसा कोई प्रावधान/परम््परा नहीीं है। स््पपीकर के लिए अपनी
जाता है। यह नियम दर््शशाता है कि स््पपीकर का स््थथानीय निर््ववाचन पार्टी से इस््ततीफा देना आवश््यक नहीीं है।
क्षेत्र निर््वविरोध है।
z जब किसी व््यक्ति को स््पपीकर नियक्त ु किया जाता है, तो वह
औपचारिक रूप से अपने राजनीतिक दल से इस््ततीफा दे देता है।
प्रधानमंत्री z ब्रिटेन मेें यह प्रथा है कि प्रधानमत्ं री के वल हाउस ऑफ कॉमन््स का z प्रधानमत्ं री संसद के किसी भी सदन का सदस््य हो सकता है।
सदस््य ही हो सकता है।
शैडो कै बिनेट z शैडो कै बिनेट के सदस््योों का पद मत्ं री के समान होता है। z शैडो कै बिनेट का कोई प्रावधान नहीीं है।

भारत और फ्ररांस
विशेषताएँ फ््राांस भारत
प्रकृति z इसमेें एकात््मक शासन प्रणाली तथा अर्दद्ध-अध््यक्षात््मक शासन z भारत एक संसदीय लोकतंत्र है जिसका नाममात्र का प्रमख ु राष्टट्रपति
प्रणाली है। होता है।
विधि निर््ममाण की z फ््राांसीसी ससं द मेें प्रभावी विधि निर््ममाण का अभाव है। z सातवीीं अनसु चू ी के अनसु ार केें द्रीय सचू ी पर काननू बनाने के सबं ंध
शक्ति z विधायिका के पास विषयोों की एक सचू ी होती है जिन पर उसे मेें राष्टट्रपति के पास के वल अध््ययादेश पारित करने की शक्ति है।
काननू पारित करना होता है, जबकि राष्टट्रपति बाकी मद्दु दों पर काननू
बनाता है।
सं स द z फ््राांसीसी संसद द्विसदनीय है, जिसमेें दो सदन हैैं: नेशनल असेेंबली z लोकसभा की तल ु ना मेें राज््यसभा की शक्ति सीमित है।
और सीनेट। z के वल संविधान संशोधन के मामले मेें ही भारत मेें राज््यसभा,
z नेशनल असेेंबली की सीनेट से तल ु ना मेें काफी अधिक शक्तियाँ लोकसभा के बराबर है।
फ््राांसीसी द्विसदनीय प्रणाली को असमान बनाती हैैं।
z सीनेट को भगं नहीीं किया जा सकता।
धर््मनिरपेक्षता z धर््मनिरपेक्षता के कठोर सिद््धाांत का पालन किया जाता है: राज््य z सकारात््मक धर््मनिरपेक्षता का सर्वोत्तम उदाहरण है ।
धार््ममिक गतिविधियोों का समर््थन नहीीं करता है, लेकिन निजी धार््ममिक
प्रथाओ ं मेें भी हस््तक्षेप नहीीं करता है।
z यह सार््वजनिक स््थथानोों पर किसी भी प्रकार के धार््ममिक प्रतीकोों को
प्रतिबंधित करता है। यह मॉडल राज््य समर््थथित धार््ममिक सधु ारोों के
विचार के लिए कोई गंजु ाइश नहीीं छोड़ता।
संशोधन z संसद के दोनोों सदनोों को 3/5 बहुमत से प्रस््तताव पारित करना होगा। z लचीलेपन और कठोरता का मिश्रण। जनमत संग्रह आदि जैसे कोई
z संशोधन की प्रकृ ति अत््ययंत कठोर है, इसलिए राष्टट्रपति जनमत संग्रह प्रावधान नहीीं।
के माध््यम से संशोधन को लोगोों के पास भेजने का विकल््प भी
चनु सकते हैैं।
राष्टट्रपति z राष्टट्रपति का चनु ाव एक निश्चित अवधि (5 वर््ष) के लिए होता है। z भारत मेें ऐसा कोई भी निकाय नहीीं है। राष्टट्रपति के महाभियोग से
राष्टट्रपति का चनु ाव पर््णू बहुमत (द्वितीय मतपत्र प्रणाली) द्वारा संबंधित कार््यवाही संसद मेें होती है।
किया जाएगा।
z उच््चतम न््ययायालय राष्टट्रपति के महाभियोग के बारे मेें जाँच करे गा।
प्रधानमंत्री z फ््राांसीसी प्रधानमत्ं री, राष्टट्रपति के सलाहकार होते हैैं (सह-अस््ततित््व z सरकार का वास््तविक मखि
ु या प्रधानमत्ं री होता है।
की अवधारणा)।
z दोनोों पदोों के बीच शक्ति का विभाजन नहीीं बल््ककि कार्ययों का विभाजन
होता है।

अन्य राष्ट ्रों के साथ भारतीय संवैधानिक प्रणाली 127


विशेषताएँ फ््राांस भारत
प्रधानमंत्री z फ््राांसीसी राष्टट्रपति विदेशी मामलोों और घरे लू मद्दु दों के प्रभारी होते हैैं।
z दसू री ओर, प्रधानमत्ं री कंपनी के दिन-प्रतिदिन के कार्ययों का प्रभारी
होता है।
z स््थथानीय सरकार और घरे लू मामले
न््ययायपालिका z उच््च न््ययाय परिषद न््ययायाधीशोों को नामित करती है। z उच््चतम न््ययायपालिका मेें न््ययायाधीशोों की नियक्ु ति के लिए
z राष्टट्रपति और न््ययायपालिका के सदस््य इस निकाय के प्रभारी हैैं। कॉलेजियम पद्धति का उपयोग किया जाता है ।
z राष्टट्रपति को ‘न््ययायपालिका का सरं क्षक’ भी कहा जाता है। z शपथ राष्टट्रपति द्वारा दिलाई जाती है और महाभियोग की प्रक्रिया
संसद की देखरे ख मेें परू ी होती है।

भारत और जापान
विशेषताएँ जापान भारत
प्रकृति z संविधान संसदीय शासन प्रणाली और अनेक बनि ु यादी z दोनोों के पास लिखित संविधान है।
स््वतंत्रताएँ सनिश्
ु चित करता है। z जापान के कठोर संविधान की तल ु ना मेें भारत का संविधान लचीला और
z इसके प्रावधानोों के अनसु ार, जापान का सम्राट ‘राज््य कठोर दोनोों है।
और लोगोों की एकता का प्रतीक’ होता है तथा बिना z जापानी संविधान मेें एकात््मक राज््य का प्रावधान किया गया है।
किसी औपचारिक प्राधिकार के के वल औपचारिक
कर््तव््योों का पालन करता है।
विधान मंडल z डायट (Diet) , जिसमेें प्रतिनिधि सभा और पार््षद सभा z ससं द दोनोों देशोों मेें सर्वोच््च विधायी निकाय है।
शामिल हैैं, के पास विधायी प्राधिकार है। z अविश्वास प्रस््तताव के कारण सदन को भगं कर दिया जाता है, भारत के समान।
z जापान के उच््च सदन के सदस््य छह वर््ष का कार््यकाल परू ा करते हैैं तथा प्रत््ययेक
वर््ष आधे सदस््य सदन छोड़ देते हैैं।
कार््यकारिणी z डायट के निर्देशन मेें, सम्राट प्रधानमत्ं री की नियक्ु ति करता z जापान मेें मत्रियो
ं ों की नियक्ु ति प्रधानमत्ं री द्वारा की जाती है, लेकिन भारत मेें
है, जो कार््यकारी शाखा के प्रमख ु के रूप मेें कार््य करता है। प्रधानमत्ं री की सलाह पर राष्टट्रपति द्वारा उनकी नियक्ु ति की जाती है।
z उसे नागरिक होने के साथ-साथ डायट के किसी सदन
का सदस््य भी होना चाहिए।
न््ययायतंत्र z सर्वोच््च न््ययायालय और निचली अदालतोों को न््ययायिक z न््ययायाधीशोों की नियक्ु ति, निष््ककासन और निश्चित सेवानिवृत्ति आयु के संबंध
अधिकार दिए गए हैैं। अकादमिक अध््ययनोों मेें जापान मेें समान काननू हैैं ।
को आम तौर पर एक सवं ैधानिक राजतंत्र के रूप मेें देखा z डायट, न््ययायाधीशोों की नियक्ु ति करते है; तथापि भारत मेें संसद का ऐसा कोई
जाता है, जिसमेें नागरिक काननू प्रणाली है। कार््य नहीीं है।

भारत और दक्षिण अफ्रीका


विशेषताएँ दक्षिण अफ्रीका
दक्षिण अफ़््रीकी z दक्षिण अफ़््रीकी संविधान की धारा 1 मेें दक्षिण अफ़््रीका गणराज््य को एक लोकतांत्रिक और स््वतंत्र राष्टट्र के रूप मेें वर््णणित किया
संविधान की प्रकृति गया है।
z यह अपने नैतिक सिद््धाांतोों को सार््वभौमिक वयस््क मताधिकार, मानव समानता, गरिमा, नस््लवाद-विरोधी, मानवाधिकारोों की उन््नति और
लैैंगिक भेदभाव-विरोधी, पर आधारित करता है। यह बहुदलीय प्रणाली, काननू के शासन और निष््पक्ष चनु ावोों का भी समर््थन करता है।
दक्षिण अफ्रीका के z वह प्रक्रिया जिसके माध््यम से संसद मेें दो-तिहाई मत प्राप्त करने के बाद संशोधनोों को लागू किया जाता है।
संविधान से उधार z राज््य विधानसभाओ ं द्वारा राज््यसभा के सदस््योों को चनु ने के लिए तर््क सगं त प्रतिनिधित््व का उपयोग किया जाता है।
लिया गया
समानताएँ z ‘हम लोग’ (We The People) शब््द दोनोों देशोों के संविधानोों की ‘प्रस््ततावना’ के पहले शब््द हैैं, जो यह दर््शशाते हैैं कि लोग संप्रभु हैैं
और संविधान को उनसे ही शक्ति प्राप्त होती है।
z भारतीय और दक्षिण अफ्रीकी संविधानोों के तहत, मल ू अधिकार और अधिकार विधेयक क्रमशः काननू ी प्रणाली और लोकतंत्र की
आधारशिला के रूप मेें कार््य करते हैैं।
z दोनोों ही राज््य को कमजोर और हाशिये पर पड़़े लोगोों की स््थथिति सधु ारने के प्रयासोों मेें कुछ छूट देते हैैं।
z दक्षिण अफ्रीकी सविध ं ान की तरह, भारतीय सविध ं ान के कुछ प्रावधानोों को सश ं ोधित करने के लिए ससं द मेें दो-तिहाई बहुमत की
आवश््यकता होती है।

128  प्रहार २०२४: भारतीय राजनीति और संविधान


विशेषताएँ दक्षिण अफ्रीका
मतभेद z भारत मेें, मताधिकार, जिसका उल््ललेख बिल ऑफ राइट्स मेें किया गया है, को के वल वैधानिक/काननू ी अधिकार का दर््जजा प्राप्त है; इसे
मौलिक अधिकारोों मेें से एक नहीीं माना जाता है।
z 44वेें संविधान संशोधन ने संपत्ति के अधिकार को, जो कि अधिकार विधेयक मेें शामिल था, संविधान के भाग III से अनच्ु ्छछेद 300A
मेें स््थथानांतरित कर दिया, जिससे यह काननू ी अधिकार का दर््जजा प्राप्त कर लेता है।
z अधिकार विधेयक मेें सचू ना के अधिकार को शामिल करना, भारत मेें विशेष रूप से एक विधायी अधिकार है।
विगत वर््ष के प्रश्न
z संयक्त
ु राज््य अमेरिका और भारत के संविधानोों मेें, समता के अधिकार की धारणा की विशिष्ट विशेषताओ ं का विश्ले षण कीजिए। (2021)
z धर््मनिरपेक्षता को भारत के सविध ं ान के उपागम से फ््राांस क््यया सीख सकता है? (2019)
z संसदीय संप्रभतु ा के प्रति ब्रिटिश और भारतीय दृष्टिकोण की तल ु ना करेें और अतं र बताएँ। (2023)

प्रमुख शब्दावलियाँ
अविनाशी राज््योों का अविनाशी संघ, विनाशी राज््योों का अविनाशी संघ, संवैधानिक उल््ललंघन, शैडो कै बिनेट, संवैधानिक राजतंत्र, सकारात््मक
धर््मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक संघवाद, डायट, नागरिक कानून प्रणाली के साथ संवैधानिक राजतंत्र।

अन्य राष्ट ्रों के साथ भारतीय संवैधानिक प्रणाली 129

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