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Prahhar Polity Book
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भारतीय राजनी त
और सं वधान
वशेषताएँ
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िवषय सूची
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 1 8. अनुसूचित एवं जनजातीय क्षेत्र
(भाग X, अनुच्छेद 244 -244 ए ) 29
भारत के संविधान का विकासक्रम: प्रमुख अधिनियम और सुधार............................ 1
भारत की संविधान सभा..............................................................................2 पाँचवीीं अनुसूची.......................................................................................29
भारत के संविधान की आलोचना....................................................................2 अनुसूचित क्षेत्र प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ.................................................... 29
छठी अनुसूची..........................................................................................30
2. भारत मेें संवैधानिक संशोधन 4
9. भारत की संघीय संरचना 32
संशोधन के प्रकार......................................................................................4
अनौपचारिक संशोधन.................................................................................4 भारतीय संघवाद: एक अनूठा मॉडल............................................................. 32
संविधान मेें संशोधनोों की आवश््यकता..............................................................4 भारतीय संविधान की एकात््मक विशेषताएँ...................................................... 32
संविधान मेें संशोधनोों से संबंधित मुद्दे...............................................................5 भारतीय संघवाद की विशेषताएँ....................................................................32
संशोधन प्रक्रिया की आलोचना......................................................................5 भारतीय संघवाद के लिए चुनौतियाँ...............................................................33
106वाँ संविधान संशोधन, 2023...................................................................5 भारत मेें असममित संघवाद........................................................................33
संसदीय संविधान की मूल संरचना..................................................................6 केेंद्र-राज््य संबंध......................................................................................34
केेंद्र-राज््य संबंधोों को बेहतर ढं ग से प्रबंधित करने के तरीके और साधन.................. 34
3. भारतीय संविधान मेें महत्त्वपूर््ण प्रावधान 8
अंतर-राज््ययीय नदी जल विवाद....................................................................35
महत्तत्वपूर््ण प्रावधान: एक गहन विश्लेषण.............................................................8 नीति आयोग - सहकारी संघवाद को बढ़़ावा देने का एक साधन............................ 35
उद्देशिका.................................................................................................9 छोटे राज््योों के लिए माँग............................................................................36
उद्देशिका का महत्तत्व.....................................................................................9 समाचार मेें मुद्दे........................................................................................37
उद्देशिका मेें संशोधन...................................................................................9 दिल््लली राष्ट्रीय राजधानी राज््य-क्षेत्र
शासन (संशोधन) अधिनियम 2023.............................................................. 37
4. मौलिक अधिकार (भाग III, अनुच्छेद 12-35) 11
10. शक्तियोों का पृथक्करण 39
मूल अधिकारोों का वर्गीकरण........................................................................11
मूल अधिकारोों की विशेषताएँ.......................................................................11 संवैधानिक प्रावधान और शक्तियोों का पृथक््करण.............................................. 39
अनुच््छछेद 12...........................................................................................11 शक्तियोों के पृथक््करण के विभिन््न मॉडल........................................................ 39
अनुच््छछेद 13...........................................................................................11 कार््यपालिका और विधायिका के बीच कार््ययात््मक अतिव््ययाप्ति................................ 39
समता का अधिकार (अनुच््छछेद 14-18).......................................................... 12 न््ययायपालिका और विधायिका के बीच कार््ययात््मक अतिव््ययाप्ति............................... 40
स््वतंत्रता का अधिकार (अनुच््छछेद 19 – 22)................................................... 14 न््ययायपालिका और कार््यपालिका के बीच कार््ययात््मक अतिव््ययाप्ति............................ 40
शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच््छछेद 23-24).................................................. 16 नियंत्रण और संतुलन का सिद््धाांत.................................................................42
धर््म की स््वतंत्रता का अधिकार (अनुच््छछेद 25 – 28) ........................................ 16
11. संसद और राज्य विधानमंडल 43
संस््ककृ ति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच््छछेद 29-30)..................................... 17
अधिकारोों के प्रवर््तन के लिए उपचार (अनुच््छछेद 32).......................................... 17 संसद के कार््य.........................................................................................43
रिट (WRITS)........................................................................................18 लोकसभा की उत््पपादकता...........................................................................44
सशस्त्र बल और मूल अधिकार.....................................................................18 संसदीय सुधार........................................................................................44
मार््शल कानून और मूल अधिकार.................................................................19 संसदीय विशेषाधिकार...............................................................................44
संपत्ति का अधिकार..................................................................................19 विपक्ष की भूमिका.....................................................................................45
मूल अधिकारोों के अपवाद...........................................................................19 राजनीति मेें महिलाओं की कम भागीदारी........................................................ 46
मूल अधिकारोों से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ.................................................. 20 दल-बदल विरोधी क़़ानून............................................................................47
समाचार मेें मुद्दे........................................................................................20 पीठासीन अधिकारी की भूमिका...................................................................48
संसदीय जाँच..........................................................................................49
5. राज्य नीति के निदेशक सिद्धधांत (DPSP)
(भाग IV, अनुच्छेद 36-51) 22 12. भारत मेें न्यायिक व्यवस्था 51
नीति-निदेशक तत्तत्ववों और मूल अधिकारोों के बीच टकराव.................................... 22 भारतीय और अन््य न््ययायिक प्रणालियोों की तुलना............................................. 51
समान नागरिक संहिता (UCC)...................................................................23 न््ययायपालिका द्वारा निभाई जाने वाली महत्तत्वपूर््ण भूमिकाएँ.................................... 52
नीति निदेशक तत्तत्ववों के तहत स््ववास््थ््य का अधिकार.......................................... 24 महत्तत्वपूर््ण न््ययायिक अवधारणाएँ....................................................................53
न््ययायिक विलंब........................................................................................53
6. मौलिक कर््तव्य (भाग IV-क, अनुच्छेद 51-क ) 25
न््ययायिक नियुक्तियाँ...................................................................................54
अधिकार और कर््तव््य................................................................................25 न््ययायाधीशोों की अपदस््थता.........................................................................55
न््ययायिक जवाबदेही...................................................................................55
7. नागरिकता (भाग II, अनुच्छेद 5-11) 27
न््ययायिक सक्रियता और न््ययायिक अतिरेक....................................................... 56
नागरिकता अधिनियम, 1955.....................................................................27 अदालत की अवमानना..............................................................................57
I
न््ययायपालिका मेें महिलाएँ............................................................................58
22. केेंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोग 98
फास््ट ट्रैक न््ययायालय................................................................................59
सर्वोच््च न््ययायालय की क्षेत्रीय पीठ.................................................................60 23. केेंद्रीय सतर््कता आयोग (CVC) 99
नालसा/NALSA.....................................................................................61
भारत मेें न््ययायिक अवसंरचना......................................................................62 केेंद्रीय सतर््क ता आयोग (CVC) से संबंधित प्रावधान ........................................ 99
13. विवाद निवारण तंत्र 63 24. संघ कार््यकारिणी एवं राज्य कार््यकारिणी 100
वैकल््पपिक विवाद निवारण ..........................................................................63 भारत का राष्टट्रपति................................................................................. 100
लोक अदालत.........................................................................................64 राष्टट्रपति कार््ययालय की आलोचना............................................................... 101
ग्राम न््ययायालय........................................................................................64 भारत के उपराष्टट्रपति.............................................................................. 101
न््ययायाधिकरण (भाग XIV-A; अनुच््छछेद 323A, 323B)...................................... 65 संवैधानिक प्रावधान................................................................................ 101
न््ययायाधिकरण सुधार अधिनियम (2021)....................................................... 66 उपराष्टट्रपति की शक्तियाँ एवं कार््य............................................................... 101
अंतर - राज््ययीय जल विवाद........................................................................66 राष्टट्रपति और उपराष्टट्रपति के चुनाव........................................................... 102
ऑनलाइन विवाद समाधान.........................................................................66 राष्टट्रपति और उपराष्टट्रपति का कार््यकाल, अर््हताएँँ और निष््ककासन...................... 102
राज््य के राज््यपाल................................................................................. 102
14. स्थानीय स्वशासन (भाग IX, भाग IX-ए ) 68 राज््यपाल का कार््यकाल (अनुच््छछे द 156)..................................................... 102
पंचायती राज व््यवस््थथा..............................................................................68 अर््हताएँ (अनुच््छछे द 157)]......................................................................... 103
पंचायती राज सरकार के समक्ष आने वाले मुद्दे और चुनौतियाँ............................... 68 मनोनीत बनाम निर््ववाचित राज््यपाल के संबंध मेें तर््क ....................................... 103
पंचायती राज संस््थथाओं को सशक्त बनाने के लिए सरकारी प्रयास.......................... 69 राष्टट्रपति एवं राज््यपाल की शक्तियाँ............................................................. 103
महत्तत्वपूर््ण प्रयास ......................................................................................69 राष्टट्रपति और राज््यपाल को प्राप्त विशेषाधिकार और उन््ममुक्तियाँ (अनुच््छछे द 361).... 105
पंचायती राज संस््थथाओं मेें महिलाओं की भूमिका.............................................. 69 राष्टट्रपति और राज््यपाल की वीटो शक्ति की तुलना.......................................... 105
नगर पालिकाएँ........................................................................................70 राष्टट्रपति एवं राज््यपाल की अध््ययादेश जारी करने की शक्ति............................... 105
राष्टट्रपति एवं राज््यपाल की क्षमादान शक्तियाँ ................................................ 107
15. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक 72 राज््यपाल से संबंधित मुद्दे......................................................................... 108
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के कर््तव््य और शक्तियां............................ 72 सरकारिया आयोग की सिफारिशेें................................................................ 109
16. राष्ट् रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) / राष्ट् रीय अनुसूचित 25. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री 110
जनजाति आयोग (NCST) / राष्ट् रीय पिछड़ा वर््ग आयोग (NCBC) 74 संवैधानिक प्रावधान................................................................................ 110
प्रधानमंत्री एवं मुख््यमंत्री की शक्तियाँ एवं कार््य................................................ 110
17. संघ और राज्य लोक सेवा आयोग 76
26. मंत्रिपरिषद 112
संवैधानिक प्रावधान..................................................................................76
संघ और राज््य लोक सेवा आयोग................................................................76 संवैधानिक प्रावधान................................................................................ 112
आयोग की स््वतंत्रता.................................................................................76 मंत्रियोों की जिम््ममेदारी.............................................................................. 113
कार््य और सीमाएँ.....................................................................................76
27. भारत मेें कैबिनेट प्रणाली 114
18. भारतीय चुनाव आयोग (ECI) 78 मंत्रिमंडल की भूमिका.............................................................................. 114
शक्तियाँ और कार््य....................................................................................78 कै बिनेट समितियाँ.................................................................................. 114
पद की सुरक्षा एवं स््वतंत्रता.........................................................................79
28. मंत्रालय 116
चुनाव आयुक्ततों की चिंताएँ...........................................................................79
एक साथ चुनाव - एक राष्टट्र, एक चुनाव.......................................................... 80 संवैधानिक प्रावधान................................................................................ 116
राजनीतिक दल और भारतीय चुनाव आयोग................................................... 80 संसदीय सचिव...................................................................................... 116
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और संबंधित मुद्दे......................................... 82 29. संसदीय समिति 117
नोटा (NONE OF THE ABOVE : NOTA)................................................ 83
आदर््श आचार संहिता (MCC)....................................................................84 30. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (1951) 118
चुनावी वित्तपोषण.....................................................................................85
राजनीतिक दलोों मेें आंतरिक लोकतंत्र........................................................... 89 राजनीतिक दलोों का पंजीकरण.................................................................. 119
मुफ््तखोरी की राजनीति.............................................................................89 जानने का अधिकार (Right to know)....................................................... 120
कृत्रिम बुद्धिमत्ता और चुनाव........................................................................90 भ्रष्ट आचरण......................................................................................... 120
चुनावी अपराध...................................................................................... 121
19. परिसीमन आयोग 93 पेड न््ययूज़............................................................................................. 121
संवैधानिक प्रावधान..................................................................................93 31. अन्य राष्टट्ररों के साथ भारतीय संवैधानिक प्रणाली की तुलना 124
परिसीमन आयोग.....................................................................................93
परिसीमन आयोग की आलोचना...................................................................94 भारत और अमेरिका............................................................................... 124
भारत और ब्रिटेन.............................................................................................126
20. भारत के महान्यायवादी (AGI) 95 भारत और ब्रिटेन................................................................................... 126
महान््ययायवादी के बारे मेें.............................................................................95 भारत और फ््राांस.................................................................................... 127
भारत और जापान.................................................................................. 128
21. राष्ट् रीय एवं राज्य मानवाधिकार आयोग 96 भारत और दक्षिण अफ्रीका....................................................................... 128
II
1 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत का संविधान भारत के उपनिवेश से सफलतापर्ू ्वक संप्रभु गणराज््य बनने z अधिनियम की मुख््य विशेषताएँ
का स््थथायी प्रमाण है। यह जीवंत दस््ततावेज़ दनिय
ु ा के सबसे अधिक आबादी अखिल भारतीय सघ ं (All-India Federation): शक्तियोों के
वाले देश के लोकतांत्रिक संचालन का मार््गदर््शन करता है। यह एक समावेशी विभाजन के साथ एक संघीय प्रणाली के ढाँचे की स््थथापना की गई, लेकिन
दृष्टिकोण को दर््शशाता है जिसने भारत की अपार विविधता को एकीकृ त राष्ट्रीय रियासतेें इसमेें शामिल नहीीं हुई,ं जिस कारण इसका गठन नहीीं हुआ।
पहचान की ओर अग्रसर किया है। प््राांतीय स््ववायत्तता (Provincial Autonomy) (1937-1939): प््राांतोों
भारत के संविधान का विकासक्रम: को सीमित स््वशासन प्रदान किया गया, जिसमेें मत्री ं गवर््नर को सलाह
देते थे।
प्रमुख अधिनियम और सुधार
केें द्र मेें द्वै ध शासन (Dyarchy at Center) (लागू नहीीं किया गया):
भारत सरकार अधिनियम, 1919 / मोोंटेग्यू-चेम्सफोर््ड सुधार केें द्रीय विषयोों को आरक्षित और हस््तताांतरणीय श्रेणियोों मेें विभाजित किया
z कार््यकारी परिषद मेें भारतीय सदस््य: इस अधिनियम द्वारा वायसराय की गया, लेकिन इसे कभी लागू नहीीं किया गया।
द्विसदनीय विधायिका (Bicameral Legislatures) (सीमित): कुछ
कार््यकारी परिषद मेें तीन भारतीयोों को शामिल करने का प्रावधान किया गया।
z द्विसदनीय विधानमंडल: दो सदनोों वाले विधानमडं ल की स््थथापना की प््राांतोों मेें प्रतिबंधोों के साथ उच््च सदन की शरुु आत की गई।
विस््ततारित प्रतिनिधित््व (Expanded Representation): मताधिकार
गई - विधानसभा (The Legislative Assembly) और राज््यसभा (The
Council of State)। मेें वृद्धि की गई (जनसंख््यया का लगभग 10%) तथा विशिष्ट समहोू ों के लिए
पृथक निर््ववाचक मडं ल का प्रावधान किया गया।
z विके न्द्रीकरण: इस अधिनियम ने केें द्रीय और प््राांतीय विषयोों का सीमांकन
पुनर््गठित प्रशासन (Restructured Administration): भारतीय
और पृथक््करण करके प््राांतोों पर केें द्रीय नियंत्रण को शिथिल कर दिया।
परिषद (Council of India) को समाप्त कर दिया गया, राज््य सचिव
z प््राांतोों मेें द्वैध शासन व््यवस््थथा: प््राांतीय स््तर पर द्वैध शासन व््यवस््थथा लागू
के लिए सलाहकारोों का प्रावधान किया गया तथा लोक सेवा आयोगोों
की गई, जिसके तहत प््राांतीय विषयोों को हस््तताांतरित और आरक्षित विषयोों मेें (संघीय, प््राांतीय तथा संयक्त ु ) का गठन किया गया।
विभाजित किया गया।
सघ ं ीय न््ययायालय (Federal Court): अधिनियम मेें मल ू और
z केें द्रीय लोक सेवा आयोग: इस अधिनियम मेें एक लोक सेवा आयोग की अपीलीय दोनोों क्षेत्राधिकारोों के साथ एक संघीय न््ययायालय की स््थथापना
स््थथापना का प्रावधान किया गया, जिसके परिणामस््वरूप 1926 मेें केें द्रीय लोक का प्रावधान किया गया।
सेवा आयोग की स््थथापना हुई।
z अधिनियम का महत्तत्व: यह अधिनियम भारत के शासन के लिए ब्रिटिश संसद
z महत्तत्व: द्वारा पारित किया गया सबसे व््ययापक और विस््ततृत काननू था। अपनी सीमाओ ं
भारतीयोों की भागीदारी मेें वद्ृ धि: इसका उद्देश््य देश के शासन मेें भारतीयोों के बावजदू यह भारत मेें परू ी तरह से उत्तरदायी सरकार की दिशा मेें एक मील
की भागीदारी बढ़़ाना था। यह अतं तः स््वशासन की ओर एक बदलाव था। का पत््थर साबित हुआ और भारतीयोों को सरकार चलाने का व््ययावहारिक
विधायी सध ु ार: इसने द्विसदनीय विधायिका की शरुु आत की और अनभु व प्रदान किया।
मताधिकार का विस््ततार किया, जिससे राजनीतिक जागरूकता और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947
सहभागिता बढ़़ी। (INDIAN INDEPENDENCE ACT OF 1947)
द्वै ध शासन की भूमिका: इस अधिनियम ने प््राांतोों मेें आशि ं क स््वशासन z अधिनियम की मुख््य विशेषताएँ:
प्रणाली लागू की, जिससे भारतीयोों को कुछ प्रशासनिक नियंत्रण प्राप्त हुआ। ब्रिटिश शासन का अंत: इस अधिनियम ने 15 अगस््त, 1947 से भारत
सम््ममेलन आदि से प्रभावित था। पाकिस््ततान मेें विभाजित करने का प्रावधान किया गया।
z महत्तत्व:
भारत के संविधान की आलोचना
1947 के भारतीय स््वतंत्रता अधिनियम ने भारत मेें ब्रिटिश शासन का
z 1935 के अधिनियम की कार््बन कॉपी (Carbon Copy of the 1935
अतं कर दिया तथा भारत और पाकिस््ततान को दो अलग-अलग अधिराज््य Act):
घोषित कर दिया। आलोचना: ब्रिटिश संवैधानिक विशेषज्ञ सर आइवर जेनिंग््स ने तर््क दिया
हालाँकि, इन आलोचनाओ ं का जवाब इस तथ््य से दिया गया कि सभा ने तथा आर््थथिक विकास जैसे मद्ददों
ु को संबोधित करने के लिए एक मजबतू
विभिन््न सामाजिक, राजनीतिक और आर््थथिक दृष्टिकोणोों का प्रतिनिधित््व किया केें द्र सरकार आवश््यक है। इसके अतिरिक्त, संविधान सहकारी संघवाद
और इसके लंबे विचार-विमर््श इन भिन््न विचारोों को समायोजित करने और के लिए तंत्र प्रदान करता है, जहाँ केें द्र और राज््य मिलकर काम करते हैैं।
सामंजस््य स््थथापित करने के प्रयासोों का एक आवश््यक परिणाम थे। z बहुत कठोर या बहुत लचीला (Too Rigid or Too Flexible):
ऐतिहासिक पृष्ठभू 3
2 भारत मेें संवैधानिक संशोधन
भारत का संविधान, भारत के एक उपनिवेश से सफलतापर्ू ्वक एक संप्रभगु णराज््य z सवैं धानिक परंपराएँ: ये असहि ं ताबद्ध प्रथाएँ हैैं, जो सवं िधान का हिस््ससा नहीीं
बनने का स््थथायी प्रमाण है। हैैं, लेकिन परंपरा या मिसाल के तौर पर इनका पालन किया जाता है। इसका
z पडिं त जवाहरलाल नेहरू ने एक बार सवं िधान की जीवतं प्रकृ ति पर प्रकाश एक उदाहरण है- प्रधानमत्रीं का लोकसभा (संसद का निम््न सदन) मेें बहुमत
डालते हुए कहा था कि हम अपने सवं िधान को यथासभं व स््थथायी और ठोस वाली पार्टी का नेता होना। ये परंपराएँ समय के साथ विकसित हो सकती हैैं,
जिनसे सरकार के कामकाज का तरीका तय होता है।
बनाने का प्रयास कर रहे हैैं, लेकिन इसमेें राष्टट्र के विकास और बदलती
परिस््थथितियोों के अनकु ू ल लचीलापन भी होना चाहिए।
z भारत का संविधान एक मजबत ू ढाँचा है, जो संशोधन प्रक्रिया के माध््यम से मुख्य शब्द
आवश््यक बदलावोों की अनमु ति देता है। यह सनिश् ु चित करता है कि संविधान न््ययायिक व््ययाख््यया, परंपराएँ, मूल संरचना
बदलती जरूरतोों और परिस््थथितियोों के अनक ु ू ल हो।
z अब तक सवं िधान मेें 106 बार सश ं ोधन हो चक ु ा है। सश
ं ोधन की प्रक्रिया संविधान मेें संशोधनोों की आवश्यकता
सवं िधान के अनच्ु ्छछेद 368 मेें परिभाषित की गई है।
z बदलती सामाजिक व््यवस््थथा: समाज मेें बदलाव के साथ-साथ मजबतू
संशोधन के प्रकार सामाजिक व््यवस््थथा बनाए रखने के लिए कमजोर वर्गगों को पर््ययाप्त सरु क्षा उपायोों
के साथ संरक्षित करने की आवश््यकता होती है। उदाहरण के लिए-
भारत के संविधान मेें तीन प्रकार से संशोधन किया जा सकता है:
106वेें संशोधन (2023) ने लोकसभा, राज््य विधानसभाओ ं और दिल््लली
z सस ं द के साधारण बहुमत द्वारा सश ं ोधन: इसमेें नए राज््योों के प्रवेश या विधानसभा मेें महिलाओ ं के लिए आरक्षण का प्रावधान किया।
निर््ममाण, मौजदू ा राज््योों की सीमाओ ं मेें परिवर््तन, राज््योों मेें विधान परिषदोों का
z सस्ं ्थथाओ ं को मजबूत बनाना: संशोधनोों से सरकार के कामकाज मेें सधु ार
उन््ममूलन या निर््ममाण आदि से संबंधित संशोधन शामिल हैैं।
हो सकता है:
z सस ं द के विशेष बहुमत द्वारा सश ं ोधन (अनुच््छछे द 368 के अधीन): इसमेें दलबदल-रोधी कानून (Anti-Defection Law): 52वेें संशोधन
मल ू अधिकारोों, राज््य के नीति निदेशक तत्तत्ववों तथा प्रथम और तृतीय श्रेणी के द्वारा दलबदल के कारण उत््पन््न राजनीतिक अस््थथिरता को रोकने के लिए
अतं र््गत न आने वाले सभी अन््य प्रावधानोों मेें संशोधन शामिल हैैं। दलबदल रोधी काननू पेश किया गया।
z सस ं द के विशेष बहुमत और राज््य विधानसभाओ ं के अनुसमर््थन द्वारा z तकनीकी उन््नति: नई प्रौद्योगिकियोों के लिए काननू ी ढाँचे की आवश््यकता
सश ं ोधन (अनुच््छछे द 368 के अधीन): इसमेें राष्टट्रपति के निर््ववाचन, संघ और हो सकती है। उदाहरण के लिए-
राज््योों की कार््यकारी शक्ति की सीमा, उच््चतम न््ययायालय और उच््च न््ययायालय, डिजिटल युग मेें निजता: डेटा संग्रहण और निगरानी मेें वृद्धि को देखते
संघ और राज््योों के बीच विधायी शक्तियोों का वितरण, संसद मेें राज््योों का हुए, डिजिटल यगु मेें निजता के अधिकार को स््पष्ट रूप से शामिल करने
प्रतिनिधित््व, संविधान मेें संशोधन करने की संसद की शक्ति और इसकी प्रक्रिया के लिए सवं िधान मेें सश ं ोधन करने पर बहस चल रही है।
से संबंधित संशोधन शामिल हैैं। z सामाजिक अनुबंधोों को पूरा करना: उदाहरण के लिए- 73वाँ और 74वाँ
सश ं ोधन, जो महात््ममा गांधी द्वारा परिकल््पपित 'ग्राम स््वराज' के सपने को साकार
अनौपचारिक संशोधन
करने के लिए पेश किए गए थे।
(INFORMAL AMENDMENTS)
z सरं चनात््मक समायोजन: मल ू अधिकारोों से सपं त्ति के अधिकार को समाप्त
z न््ययायिक व््ययाख््यया: भारत का उच््चतम न््ययायालय संविधान की व््ययाख््यया करने करने जैसे संशोधन आर््थथिक कारणोों से आवश््यक थे।
मेें महत्तत्वपर््णू भमि
ू का निभाता है। समय के साथ, उसके निर््णय संविधान को z व््ययावहारिक कठिनाइयोों का समाधान: कभी-कभी, सश ं ोधन प्रक्रियाओ ं
लागू करने के तरीके को प्रभावी ढंग से बदल सकते हैैं, भले ही लिखित पाठ को सव्ु ्यवस््थथित करते हैैं:
वही रहे। उदाहरण के लिए- संविधान की ‘मल ू संरचना’ (Basic Structure) वस््ततु एवं सेवा कर (GST): 101वेें सश ं ोधन द्वारा जीएसटी का प्रावधान
की अवधारणा, जिसे संशोधित नहीीं किया जा सकता, न््ययायिक व््ययाख््यया के किया गया, जो एक एकीकृ त कर प्रणाली है जिसका उद्देश््य परू े भारत मेें
माध््यम से स््थथापित की गई थी। अप्रत््यक्ष कराधान को सरल बनाना है।
z राज््योों द्वारा अपनी सहमति वापस लेने के बारे मेें कोई स््पष्टता नहीीं है: इस
संविधान मेें संशोधनोों से संबधं ित मुद्दे बात पर कोई स््पष्टता नहीीं है कि राज््य किसी सश
ं ोधन का पहले अनसु मर््थन करने
z सश ं ोधनोों की आवत्ति ृ (Frequency of Amendments): भारत के के बाद अपनी सहमति वापस ले सकते हैैं या नहीीं।
संविधान मेें अन््य लोकतंत्ररों की तल ु ना मेें बार-बार संशोधन किए गए हैैं, जिससे z गतिरोध का कोई समाधान नहीीं है: यदि संसद के दोनोों सदन किसी संशोधन
मल ू दस््ततावे ज़ की स््थथिरता और सम््ममान पर सवाल उठते हैैं। कुछ लोगोों का तर््क पर असहमत होों तो इस प्रक्रिया मेें गतिरोध को हल करने के लिए कोई तत्रं नहीीं है।
है कि लगातार संशोधन प्रारंभिक प्रारूपण मेें दरू दर््शशिता की कमी या दीर््घकालिक
आगे की राह
विजन की तल ु ना मेें राजनीतिक सवु िधा की प्रवृत्ति को दर््शशाते हैैं।
z सत्ता का परिवर््तन (Shift of Power): अत््यधिक संशोधनोों से संसद और z अलग समिति/निकाय: संविधान मेें प्रस््ततावित संशोधनोों का विश्ले षण करने के
न््ययायपालिका, केें द्र और राज््योों जैसी विभिन््न सस्ं ्थथाओ ं के बीच शक्ति सतं ल
ु न मेें लिए विशेष रूप से कार््य करने वाली एक अलग समिति या निकाय की स््थथापना
परिवर््तन हो सकता है, जिससे अस््थथिरता पैदा हो सकती है। की जानी चाहिए। इससे अधिक कठोर समीक्षा प्रक्रिया उपलब््ध हो सकती है
और जल््दबाजी मेें किए जाने वाले सश ं ोधन को रोका जा सकता है।
z सार््वजनिक विचार-विमर््श का अभाव (Lack of Public
z सय ं ुक्त सस
ं दीय समिति का गठन: प्रस््ततावित सश ं ोधनोों पर गहन विचार-विमर््श
Deliberation): वर््तमान प्रक्रिया संसद और राज््य विधानसभाओ ं पर निर््भर
है, जिसमेें जनता की भागीदारी सीमित है। हाल के संशोधनोों पर हितधारकोों के के लिए एक संयक्त ु संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया जाना चाहिए। इस
साथ व््ययापक सार््वजनिक चर््चचा या परामर््श नहीीं हुआ है, जिससे लोकतांत्रिक सयं क्त ु ं स स दीय समिति मेें ससं द के दोनोों सदनोों और विभिन््न राजनीतिक दलोों के
प्रतिनिधि शामिल होने चाहिए, जिससे आम सहमति बनाने मेें मदद मिलेगी और
वैधता को लेकर चितं ाएँ बढ़ रही हैैं।
प्रस््ततावित सश ं ोधनोों पर व््ययापक विचार-विमर््श सनिश् ु चित होगा।
z बहुमतवाद की सभ ं ावना (Potential for Majoritarianism): एक
z गतिरोध समाधान तंत्र: सश ं ोधनोों पर ससं द के सदनोों के बीच मतभेदोों को हल
मजबतू केें द्रीय सरकार जिसके पास बहुत अधिक बहुमत है, वह अल््पमत
करने के लिए एक रूपरे खा तैयार करेें। इसमेें मध््यस््थता, संयक्त ु समितियाँ या
वालोों के दृष्टिकोण पर विचार किए बिना संशोधनोों को पारित कर सकती
अस््थथायी विशेष बहुमत की आवश््यकता शामिल हो सकती है।
है। इस बात की चितं ा है कि सघं ीय सतं ल ु न या मल ू अधिकारोों को प्रभावित
z राज््य विधानमंडलोों को शामिल करना: सश ं ोधन प्रक्रिया मेें राज््य
करने वाले संशोधन के वल सत्तारूढ़ पार्टी के बहुमत के आधार पर पारित हो
विधानमडं लोों की सक्रिय भागीदारी से संतलि ु त संघीय ढाँचे को बनाए रखना
सकते हैैं।
सनिश्
ु चित किया जा सकता है ।
z ‘मूल सरं चना के सिद््धाांत’ पर बहस (The Basic Structure Doctrine
z सश ं ोधन प्रक्रिया को परिभाषित करना: स््पष्ट प्रक्रियात््मक दिशा-निर्देश
Debate): इस बात पर बहस जारी है कि ससं द किस हद तक सवं िधान की संशोधन के प्रावधान के संबंध मेें भ्रम और संभावित दरुु पयोग को कम करने मेें
‘मल ू संरचना’ (अपरिवर््तनीय सिद््धाांतोों) मेें संशोधन कर सकती है। उच््चतम मदद कर सकते हैैं।
न््ययायालय के ऐतिहासिक निर््णयोों ने ‘मल ू संरचना’ सिद््धाांत की स््थथापना की, z समयबद्ध अनुसमर््थन: राज््य विधानसभाओ ं के लिए संशोधनोों के अनस ु मर््थन
लेकिन इसकी मानक सीमा पर बहस जारी है, जिससे संशोधन प्रक्रिया के बारे
हेतु समय-सीमा निर््धधारित की जानी चाहिए, ताकि अनिश्चितकालीन विलंब को
मेें अनिश्चितता बनी हुई है। रोका जा सके ।
संशोधन प्रक्रिया की आलोचना संविधान संशोधन, गतिशील दनिय ु ा मेें संविधान को प्रासंगिक और अनुकूल बनाए
रखने के लिए एक महत्तत्वपूर््ण तंत्र है। हालाँकि, इस शक्ति का विवेकपूर््ण और
z केें द्रीकृत नियंत्रण: आलोचकोों का तर््क है कि सवं िधान मेें सश ं ोधन करने की
संयमित तरीके से प्रयोग करना हमारे मल ू कानून की अखंडता और स््थथिरता की
शक्ति मख्ु ्य रूप से संसद के पास है, जो अलग-अलग राज््योों की आवाज को
रक्षा के लिए आवश््यक है।
कम महत्तत्व देकर संघीय संतल ु न की उपेक्षा कर रही है।
z जनता की सीमित भागीदारी: वर््तमान संशोधन प्रक्रिया मेें जनमत संग्रह जैसे
प्रत््यक्ष जन-भागीदारी के प्रावधान नहीीं हैैं। जनमत को शामिल करके संशोधनोों मुख्य शब्द
की लोकतांत्रिक वैधता को बढ़़ाया जा सकता है।
बहुमतवाद, सार््वजनिक विचार-विमर््श, अलग समिति, गतिरोध
z समर््पपित निकाय का अभाव: कुछ देशोों के विपरीत, भारत मेें संवैधानिक समाधान तंत्र
कन््वेेंशन जैसी कोई नामित संस््थथा नहीीं है जिसे विशेष रूप से संशोधन
प्रस््ततावित करने का काम सौौंपा गया हो। इससे संभावित रूप से प्रक्रिया को 106वााँ संविधान संशोधन, 2023
सव्ु ्यवस््थथित किया जा सकता है और अधिक व््ययापक समीक्षा सनिश् ु चित की जा
सकती है। प्रावधान
z साधारण विधेयकोों के समान: सश ं ोधन प्रक्रिया विशेष बहुमत की z 106वाँ संशोधन, जिसे महिला आरक्षण अधिनियम, 2023 (नारी शक्ति वंदन
आवश््यकता को छोड़कर, साधारण विधेयकोों को पारित करने के समान ही है। अधिनियम, 2023) के रूप मेें भी जाना जाता है, लोकसभा (ससं द के निम््न
आलोचक मौलिक परिवर््तनोों के लिए अधिक कठोर प्रक्रिया की माँग करते हैैं। सदन), राज््य विधानसभाओ ं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल््लली विधानसभा मेें
z राज््योों के अनुसमर््थन की अस््पष्टता: संविधान मेें राज््य विधानसभाओ ं द्वारा महिलाओ ं के लिए सभी सीटोों की एक तिहाई सीटेें आरक्षित करता है।
सश ं ोधनोों के अनसु मर््थन हेतु कोई समय-सीमा निर््ददिष्ट नहीीं की गई है, जिसके z इस आरक्षण मेें अनसु चि
ू त जाति (एससी) और अनसु चि ू त जनजाति (एसटी) के
कारण सभं ावित विलंब और अनिश्चितताएँ उत््पन््न हो सकती हैैं। लिए पहले से आरक्षित सीटेें भी शामिल हैैं।
उद्देशिका के मध््य नैतिकता और सामाजिक सामजं स््य को बढ़़ावा देते हैैं। हालाँकि, वे
गणराज््य न््ययाय
मूल मूल््य न््ययायालय द्वारा प्रवर््तनीय नहीीं है, इसलिए उनका प्रवर््तन व््यक्तिगत विवेक
पर निर््भर करता है।
समाजवादी संप्रभुता अनिवार््य मतदान के बारे मेें चर््चचाओ ं मेें अक््सर नागरिकोों द्वारा अपने मल ू
समानता और बंधुत््व
कर्तत्तव््योों को परू ा करने के महत्तत्व पर प्रकाश डाला जाता है।
z शक्तियोों का पथ ृ क््करण उद्देशिका मेें ‘समाजवादी’ और ‘धर््मनिरपेक्ष’ शब््दोों को बरकरार रखने
शक्तियोों का पृथक््करण एक मल ू सिद््धाांत है जो सरकारी प्राधिकार को के खिलाफ तर््क :
विधायिका, कार््यपालिका और न््ययायपालिका के बीच विभाजित करता है। z ऐतिहासिक अधिरोपण (Historical Imposition): आलोचकोों का
शक्ति का यह वितरण सनिश् ु चित करता है कि कोई भी शाखा अत््यधिक तर््क है कि ये शब््द आपातकाल (1975) के दौरान डाले गए थे, जो सत्तावादी
शक्तिशाली न बन जाए तथा प्राधिकार का दरुु पयोग रोका जा सके । शासन का दौर था और ये मल ू लोकतांत्रिक भावना को प्रतिबिंबित नहीीं
संविधान के संरक्षक के रूप मेें न््ययायपालिका की भमि
करते हैैं।
ू का, विशेषकर
z अनावश््यकता (Redundancy): न््ययाय, समानता और स््वतंत्रता के मल ू
न््ययायिक सक्रियता पर बहस के दौरान, इस सिद््धाांत के महत्तत्व को दर््शशाती है।
सिद््धाांत पहले से ही उद्देशिका मेें निहित हैैं। इन शब््दोों को अनावश््यक दोहराव
उद्देशिका के रूप मेें देखा जा सकता है।
z आर््थथि क मॉडल पर बहस (Economic Model Debate): ‘समाजवादी’
संविधान की उद्देशिका मेें इसके मल ू सिद््धाांतोों और उद्देश््योों को रे खांकित किया
शब््द को वैश्वीकृ त दनिय
ु ा मेें परु ाना या आर््थथिक विकास मेें बाधा डालने वाला
गया है। वेेंगलिल कृ ष््णन कृ ष््ण मेनन द्वारा तैयार की गई यह उद्देशिका ‘हम भारत
माना जा सकता है।
के लोग’ को सत्ता का स्रोत बनाती है और संविधान के उद्देश््योों के साथ-साथ
z धर््मनिरपे क्षता की गलत व््ययाख््यया (Secular Misinterpretation):
भारत के चरित्र को भी परिभाषित करती है।
कुछ लोग तर््क देते हैैं कि इससे धर््मनिरपेक्षता की गलत भावना पैदा होती
उद्देशिका से समाजवादी और धर््मनिरपेक्ष शब््दोों को हटाया जाना है, जबकि भारत स््ववाभाविक रूप से एक बहु-धार््ममिक समाज है।
z सद ं र््भ: उच््चतम न््ययायालय दो याचिकाओ ं पर सनु वाई कर रहा था, जिनमेें z राजनीतिक एजेें डा (Political Agenda): इन शब््दोों को हटाने का
उद्देशिका से ‘धर््मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब््दोों को हटाने की माँग प्रयास भारतीय राज््य के चरित्र को बदलने के राजनीतिक एजेेंडे से प्रेरित
की गई थी। हो सकता है।
z हाल ही मेें, उच््चतम न््ययायालय इस बात की जाँच करने के लिए सहमत संविधान की धर््मनिरपेक्ष प्रकृ ति और कानून के शासन के माध््यम से समतावादी
हो गया कि क््यया 1976 मेें भारतीय संविधान की उद्देशिका मेें ‘समाजवादी’ सामाजिक व््यवस््थथा की स््थथापना भारत के संविधान की मल ू संरचना का
और ‘धर््मनिरपेक्ष’ शब््द डाले जा सकते थे, भले ही संविधान को अगं ीकृ त हिस््ससा हैैं। इसलिए, जैसा कि के शवानंद भारती मामले मेें कहा गया है, संसद
किए जाने की तारीख अपरिवर््ततित रही, अर््थथात् 26 नवंबर, 1949। संविधान की मल ू संरचना और संवैधानिक मल्ू ्योों से समझौता किए बिना
उद्देशिका सहित संविधान के किसी भी भाग मेें संशोधन कर सकती है।
उद्देशिका मेें ‘समाजवादी’ और ‘धर््मनिरपेक्ष’ शब््दोों को बरकरार रखने
के पक्ष मेें तर््क : उद्देशिका का महत्त्व
z मूल मूल््योों को सदृ ु ढ़ करना (Reinforces Core Values): ये शब््द
z प्राधिकार का स्रोत: यह संविधान के प्राधिकार का स्रोत ‘हम भारत के लोग’
स््पष्ट रूप से सामाजिक और आर््थथिक न््ययाय, असमानता को कम करने और
को घोषित करती है तथा एक लोकतांत्रिक आधार स््थथापित करती है।
सभी नागरिकोों के अधिकारोों की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता पर जोर देते हैैं।
z राष्टट्र को परिभाषित करना: यह भारत को एक संप्रभ,ु समाजवादी, धर््मनिरपेक्ष,
z निरंतरता और स््थथिरता (Continuity and Stability): इन््हेें हटाना
लोकतांत्रिक गणराज््य के रूप मेें परिभाषित करती है तथा राष्टट्र के मल ू सिद््धाांतोों
संविधान के मल ू उद्देश््य के साथ छे ड़छाड़ माना जा सकता है और इससे को रे खांकित करती है।
अनिश्चितता पैदा हो सकती है। z लक्षष्य निर््धधारण: यह सभी नागरिकोों के लिए न््ययाय (सामाजिक, आर््थथिक
z ऐतिहासिक सद ं र््भ को सबं ोधित करना (Addresses Historical और राजनीतिक), स््वतंत्रता और समानता सनिश् ु चित करने के मल ू भतू लक्षष्य
Context): ये शब््द स््वतंत्रता के बाद अल््पसंख््यकोों और आर््थथिक निर््धधारित करती है।
असमानता से संबंधित चितं ाओ ं को दरू करने के लिए जोड़़े गए थे, जो z व््ययाख््यया के लिए मार््गदर््शक: न््ययायालय काननू ी विवादोों के दौरान संविधान
भारत की विशिष्ट स््थथिति को दर््शशाते हैैं। के प्रावधानोों की व््ययाख््यया करने के लिए उद्देशिका का उपयोग करते हैैं।
z व््ययाख््यया मेें लचीलापन (Flexibility in Interpretation): z आदर्शशों का प्रतिबिंब: यह एक न््ययायपर््णू और समतापर््णू समाज के लिए
‘समाजवादी’ और ‘धर््मनिरपेक्ष’ शब््द किसी कठोर आर््थथिक मॉडल या संविधान निर््ममाताओ ं के आदर््शवादी दृष्टिकोण को दर््शशाती है।
धार््ममिक नीति की व््ययाख््यया नहीीं करते हैैं। बदलती जरूरतोों के आधार पर उद्देशिका मेें संशोधन (AMENDABILITY OF
उनका अनक ु ू लन और व््ययाख््यया की जा सकती है। PREAMBLE)
z धर््मनिरपे क्ष पहचान (Secular Identity): ‘धर््मनिरपेक्ष’ शब््द को
z यह प्रश्न कि क््यया उद्देशिका मेें संशोधन किया जा सकता है, कई महत्तत्वपर््णू
हटाने से भारत की धार््ममिक सहिष््णणुता और सभी धर्ममों के लिए समान
मामलोों मेें चर््चचा मेें आया है।
व््यवहार की प्रतिबद्धता के बारे मेें चितं ाएँ पैदा हो सकती हैैं। इससे धार््ममिक
z सीमित सश ं ोधन दृष्टिकोण (बेरुबारी वाद, 1960): प्रारंभ मेें, उच््चतम
राष्टट्रवाद को बढ़़ावा मिल सकता है और अल््पसख्ं ्यक समदु ायोों मेें चितं ाएँ
न््ययायालय ने बेरुबारी वाद (1960) मेें माना था कि उद्देशिका सवं िधान का
पैदा हो सकती हैैं।
हिस््ससा नहीीं है, इसलिए इसमेें संशोधन नहीीं किया जा सकता।
मूल अधिकारोों का वर्गीकरण अन््य सभी प्राधिकरण (कानन ू द्वारा स््थथापित तथा वे जिनके लिए औपचारिक
संविधि की आवश््यकता नहीीं है)
z भारत का संविधान 6 मल ू अधिकार प्रदान करता है, जो इस प्रकार हैैं:
z न््ययायपालिका और राज््य की परिभाषा: परिभाषा न््ययायपालिका को तब
I. समता का अधिकार (अनुच््छछेद 14 – 18)
II. स््वतंत्रता का अधिकार (अनुच््छछेद 19 – 22) बाहर रखती है जब वह अपनी न््ययायिक क्षमता मेें कार््य करती है (जैसे- काननोू ों
III. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच््छछेद 23 – 24) की व््ययाख््यया करना)। हालाँकि, न््ययायपालिका की प्रशासनिक कार््रवाइयाँ (जैसे-
IV. धर््म की स््वतंत्रता का अधिकार (अनुच््छछेद 25 – 28) कर््मचारियोों की भर्ती) रिट (अनच्ु ्छछेद 226) के माध््यम से काननू ी चनु ौतियोों
V. संस््ककृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच््छछेद 29 – 30) के अधीन हैैं।
VI. संवैधानिक उपचारोों का अधिकार (अनुच््छछेद 32) z अपवाद: राज््य की यह परिभाषा अतं रराष्ट्रीय संगठनोों पर लागू नहीीं होती।
उदाहरण के लिए- संयक्त ु राष्टट्र को अनच्ु ्छछेद 12 के तहत ‘राज््य’ नहीीं माना जाता
मूल अधिकारोों की विशेषताएँ
है। अनच्ु ्छछेद 226 का उपयोग करके इसके कार्ययों को चनु ौती नहीीं दी जा सकती।
z न््ययायालय मेें विचार योग््य (Justiciable): निदेशक तत्तत्ववों (भाग IV) के
विपरीत, मल ू अधिकार न््ययायालयोों द्वारा लागू किए जा सकते हैैं। नागरिक अपने अनुच्छेद 13
उल््ललंघन किए गए अधिकारोों की रक्षा के लिए रिट (काननू ी उपचार) के माध््यम z अनुच््छछे द 13: अनच्ु ्छछेद 13 यह स््थथापित करता है कि मल ू अधिकारोों का
से उच््चतम न््ययायालय या उच््च न््ययायालयोों का दरवाजा खटखटा सकते हैैं। खडं न करने वाला या उन््हेें कमज़़ोर करने वाला कोई भी काननू अमान््य है।
z निरपेक्ष नहीीं (Not Absolute): इन अधिकारोों को राज््य, लोक व््यवस््थथा, यह स््पष्ट रूप से न््ययायिक समीक्षा की नीींव रखता है।
नैतिकता आदि के हित मेें सरकार द्वारा उचित रूप से सीमित किया जा सकता z न््ययायिक समीक्षा की शक्ति: उच््चतम न््ययायालय (अनच्ु ्छछेद 32) और उच््च
है। यह संतल ु न न््ययायिक समीक्षा के माध््यम से प्राप्त किया जाता है। न््ययायालय (अनच्ु ्छछेद 226) के पास न््ययायिक समीक्षा की शक्ति है। यदि कोई
z विस््ततारित किए जा सकते हैैं (Can be Expanded): अधिकारोों की काननू मल ू अधिकारोों का उल््ललंघन करता है तो वे उसे असवं ैधानिक और
एक निश्चित सचू ी वाले कुछ संविधानोों के विपरीत, भारत का संविधान
शन्ू ्य घोषित कर सकते हैैं।
न््ययायपालिका को व््ययाख््ययाओ ं और घोषणाओ ं के माध््यम से मल ू अधिकारोों
z क््यया चुनौती दी जा सकती है?: ‘काननू ’ शब््द की व््ययापक व््ययाख््यया है। नीचे
के दायरे का विस््ततार करने की अनमु ति देता है। यह उभरती जरूरतोों के लिए
अनक बताया गया है कि मल ू अधिकारोों के उल््ललंघन के लिए न््ययायालय मेें किसे चनु ौती
ु ू लनशीलता सनिश्ु चित करता है।
दी जा सकती है और उसे संभावित रूप से अमान््य घोषित किया जा सकता है:
z सकारात््मक अधिकार (Positive Rights): भारत के सवं िधान मेें पारंपरिक
संसद या राज््य विधानमड ं लोों द्वारा पारित स््थथायी काननू ।
नकारात््मक अधिकारोों (राज््य के हस््तक्षेप से मक्ु ति) के अतिरिक्त, शिक्षा का
अधिकार (अनच्ु ्छछेद 21क) जैसे कुछ सकारात््मक अधिकार भी शामिल हैैं। राष्टट्रपति या राज््य के राज््यपालोों द्वारा जारी अध््ययादेश जैसे अस््थथायी कानन
ू।
z आपातकाल के दौरान निलंबन (Suspension during Emergencies): कार््यपालिका द्वारा द्वितीयक विधान (प्रत््ययायोजित विधान), जिसमेें आदेश,
राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान, राष्टट्रपति द्वारा कुछ अधिकारोों को निलंबित उपनियम, नियम, विनियम या अधिसचू नाएँँ शामिल हैैं।
किया जा सकता है (अनच्ु ्छछेद 20 और 21 को छोड़कर)। हालाँकि, यह शक्ति कानन ू के गैर-विधायी स्रोत, जैसे- काननू ी रूप से स््थथापित रीति-रिवाज
न््ययायिक समीक्षा के अधीन है। या प्रथाएँ।
z न््ययायिक समीक्षा के अपवाद: संवैधानिक संशोधनोों को ‘काननू ’ नहीीं माना
जाता है और उन््हेें सीधे चनु ौती नहीीं दी जा सकती। हालाँकि, के शवानंद भारती
मामले (1973) मेें उच््चतम न््ययायालय के एक ऐतिहासिक फै सले ने इस बात मुख्य शब्द
को पख्ु ्तता किया है कि यदि कोई संवैधानिक संशोधन संविधान की ‘मल ू भारत का मैग््ननाकार््टटा , राजनीतिक लोकतंत्र, सीमित अधिकार,
संरचना’ का भाग माने जाने वाले मल ू अधिकार का उल््ललंघन करता है तो निरपेक्ष नहीीं लेकिन अर््हहित (Not Absolute but Qualified),
उसे चनु ौती दी जा सकती है। उचित प्रतिबंध, न््ययायालय मेें वाद योग््य (Justiciable), न््ययायिक
समीक्षा का सिद््धाांत
अनुच्छेद 13 के अंतर््गत पर््सनल लॉ को शामिल किया जाना
यह प्रश्न भारत मेें एक जटिल और बहस का मद्ु दा है कि क््यया पर््सनल लॉ समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
(personal laws) अनुच््छछेद 13 के दायरे मेें आते हैैं, जो मल ू अधिकारोों z भारत के संविधान मेें अनच्ु ्छछेद 14 से 18 तक निहित समता का अधिकार हमारे
से असंगत कानूनोों को प्रतिबंधित करता है। यहाँ तर्ककों को रे खांकित करने लोकतांत्रिक राष्टट्र की आधारशिला है, जो सभी नागरिकोों के बीच समानता के
वाले कुछ मख्ु ्य बिंदु दिए गए हैैं: सिद््धाांत का समर््थन करता है।
शामिल किए जाने के विरुद्ध तर््क :
z यह मल ू अधिकार काननू के समक्ष समान व््यवहार की गारंटी देता है, धर््म,
z ‘प्रवत्त ृ कानून’ नहीीं (Not ‘Law in Force’): बॉम््बबे राज््य बनाम नरसू
जाति या लिंग जैसे कारकोों के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है तथा
अप््पपा माली के मामले (1952) मेें एक ऐतिहासिक निर््णय मेें कहा गया था
सार््वजनिक स््थथानोों और सरकारी नौकरियोों तक समान पहुचँ सनिश्
ु चित करता है।
कि धार््ममिक ग्रंथोों और रीति-रिवाजोों पर आधारित पर््सनल लॉ अनच्ु ्छछेद
13 मेें यथा परिकल््पपित ‘प्रवृत्त काननू ’ नहीीं हैैं। उन््होोंने तर््क दिया कि ये अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता
एक विधायिका द्वारा अधिनियमित नहीीं किए गए हैैं। z अनच्ु ्छछेद 14 मेें कहा गया है कि किसी भी व््यक्ति को काननू के समक्ष समानता
z धार््ममिक पहचान का सरं क्षण: इस दृष्टिकोण के समर््थकोों का तर््क है कि या भारतीय राज््यक्षेत्र के भीतर काननू के समान संरक्षण से वंचित नहीीं किया
अनच्ु ्छछेद 13 के अतं र््गत पर््सनल लॉ को शामिल करने से अनच्ु ्छछेद 25 और जाएगा।
26 मेें निहित धर््म की स््वतंत्रता और सांस््ककृतिक प्रथाओ ं का उल््ललंघन होगा। कानून के समक्ष समानता बनाम कानूनोों का समान संरक्षण
शामिल किए जाने के पक्ष मेें तर््क : कानून के समक्ष समानता: यह ब्रिटिश मल
z ू का विचार है, जो किसी भी
z भे दभाव और असमानता: आलोचकोों का तर््क है कि पर््सनल लॉ, विशेष
व््यक्ति के पक्ष मेें किसी भी विशेष विशेषाधिकार को नकारता है, सभी व््यक्तियोों
रूप से विरासत, विवाह और गोद लेने से संबंधित काननू महिलाओ ं के को साधारण काननू के अधीन करता है तथा यह पष्ु टि करता है कि कोई भी
प्रति भेदभावपर््णू हो सकते हैैं। उदाहरण के लिए- कुछ धार््ममिक पर््सनल व््यक्ति काननू से ऊपर नहीीं है।
लॉ के वल परुु षोों के लिए बहुविवाह की अनमु ति देते हैैं और कुछ के वल
उदाहरण: चोरी के खिलाफ कानन ू सभी पर लागू होता है, चाहे उनकी
महिलाओ ं के लिए बहुविवाह की अनमु ति देते हैैं। यह कथित तौर पर
सपं त्ति या सामाजिक स््थथिति कुछ भी हो। यदि कोई राजनेता और कोई
समानता के अधिकार (अनच्ु ्छछेद 14) का उल््ललंघन है।
आम आदमी चोरी करते हुए पकड़़ा जाता है, तो दोनोों को एक ही काननू ी
z मूल अधिकारोों की सर्वोपरिता: समर््थकोों का मानना है कि मल ू अधिकार प्रक्रिया से गजु रना पड़ता है।
सर्वोपरि होने चाहिए तथा उनका उल््ललंघन करने वाले पर््सनल लॉ, जैसे कि
z कानूनोों का समान सरं क्षण: यह एक अमेरिकी अवधारणा है, जो समान
भेदभावपर््णू उत्तराधिकार अधिकारोों को अमान््य कर दिया जाना चाहिए।
परिस््थथितियोों मेें समान व््यवहार तथा समान परिस््थथितियोों मेें सभी व््यक्तियोों पर
न््ययायालय के निर््णय: समान काननोू ों के ससु ंगत अनप्रु योग की बात करती है।
z उच््चतम न््ययायालय ने दोहराया है कि पर््सनल लॉ अनच् ु ्छछेद 13 के दायरे
उदाहरण: छोटे व््यवसायोों को कर लाभ प्रदान करने वाला कानन ू सभी
से बाहर हैैं। इसने समाधान के रूप मेें विधायी सधु ार (समान नागरिक
योग््य व््यवसायोों के लिए उपलब््ध होना चाहिए, न कि के वल किसी विशिष्ट
संहिता) पर जोर दिया।
उद्योग या स््थथान के लिए। अप्रासंगिक कारकोों के आधार पर विशिष्ट समहोू ों
z कुछ उच््च न््ययायालयोों ने अपने निर््णयोों मेें पर््सनल लॉ को अनच् ु ्छछेद 13 को कर लाभ देने से मना करना समान संरक्षण का उल््ललंघन होगा
के अतं र््गत लाने का प्रयास किया, लेकिन इन््हेें उच््चतम न््ययायालय ने
खारिज कर दिया। अनुच्छेद 14 के अधीन अपवाद
भारत की संसद ने समान नागरिक संहिता (UCC) पारित नहीीं की है, जो z सकारात््मक कार््रवाई (Affirmative Action): संविधान राज््य को
सभी धर्ममों के नागरिकोों पर समान कानून लागू करे गी। इस निष्क्रियता को सार््वजनिक शैक्षणिक संस््थथानोों मेें महिलाओ,ं बच््चोों, अनसु चि
ू त जातियोों (SC),
कुछ लोग समानता सुनिश्चित करने के लिए एक चक ू े हुए अवसर के रूप अनसु चिू त जनजातियोों (ST) तथा सामाजिक और आर््थथिक रूप से पिछड़़े वर्गगों
मेें देखते हैैं। (SEBCs) जैसे वंचित समहोू ों के लिए विशेष प्रावधान करने की अनमु ति देता
है (पहला संविधान संशोधन अधिनियम, 1951)।
लिंग या जन््म स््थथान के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव करने और बाहरी लोगोों के प्रति नाराजगी को कम कर सकता है।
से रोकता है। विपक्ष मेें :
z सार््वजनिक स््थथानोों और सवु िधाओ ं तक पहुच ँ : यह सनिश् ु चित करता है z सवै ं धानिकता: अनच्ु ्छछेद 19(1)(छ) परू े भारत मेें किसी भी पेशे को
कि नागरिकोों की बिना किसी भेदभाव के दक ु ानोों, रे स् ्तरां , होटलोों, सार््वजनिक अपनाने के अधिकार की गारंटी देता है। के वल निवास के आधार पर
मनोरंजन के स््थथानोों, कुओ,ं तालाबोों, स््ननान घाटोों, सड़कोों और सार््वजनिक आरक्षण देने से इसका उल््ललंघन हो सकता है।
रिसॉर््ट के स््थथानोों तक पहुचँ हो। z योग््यता-आधारित: यदि कंपनियोों को स््थथानीय स््तर तक ही सीमित
z महिलाओ ं और बच््चोों के लिए अपवाद: यह अनच्ु ्छछेद राज््य को महिलाओ ं रखा जाए तो उन््हेें सर््ववाधिक योग््य उम््ममीदवार ढूँढ़ने मेें कठिनाई हो
और बच््चोों के कल््ययाण और उत््थथान को बढ़़ावा देने के लिए विशेष प्रावधान सकती है।
करने की अनमु ति देता है। ऐसा इसलिए है क््योोंकि उन््हेें विशिष्ट समस््ययायोों का z निवेश के लिए हतोत््ससाह: सख््त आरक्षण नीतियाँ व््यवसायोों को कुछ
सामना करना पड़ सकता है जिसके लिए सकारात््मक कार््रवाई की आवश््यकता क्षेत्ररों मेें निवेश करने के लिए हतोत््ससाहित कर सकती हैैं।
होती है। उदाहरण:
z हरियाणा: राज््य ने 2020 मेें एक कानन ू पारित किया, जिसमेें स््थथानीय
अनुच्छेद 16: सार््वजनिक रोजगार मेें अवसर की समानता
लोगोों के लिए 75% निजी नौकरियाँ आरक्षित की गई,ं लेकिन संवैधानिक
z सार््वजनिक रोजगार मेें अवसर की समानता: यह सरकारी नौकरियोों और चितं ाओ ं के कारण इसे उच््च न््ययायालय ने रद्द कर दिया।
नियक्ु तियोों से संबंधित मामलोों मेें सभी नागरिकोों के लिए समान अवसर की
z महाराष्टट्र: निजी नौकरियोों मेें 80% आरक्षण की इसी प्रकार की नीति
गारंटी देता है।
प्रस््ततावित की गई, जिससे हरियाणा के समान काननू ी प्रश्न उठे ।
z भेदभाव न करना: सरकारी नौकरियोों के लिए धर््म, मल ू वश
ं , जाति, लिंग, स््थथानीय आकांक्षाओ ं और राष्ट्रीय आर््थथिक स््वतंत्रता के बीच संतुलन बनाना
वंश, जन््म स््थथान, निवास या इनमेें से किसी के आधार पर किसी भी नागरिक महत्तत्वपर््णू है। कौशल विकास कार््यक्रम और साथ ही निवास संबंधी शर्ततों मेें
के साथ भेदभाव नहीीं किया जा सकता है। ढील देना अधिक प्रभावी तरीका हो सकता है।
z अपवाद: इस अनच्ु ्छछेद मेें कुछ अपवादोों की अनमु ति दी गई है:
आवासीय आवश््यकताएँ: संसद ऐसे कानन ू बना सकती है, जिसके अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का उन्मूलन
तहत नागरिकोों को सरकारी नौकरियोों के लिए किसी राज््य मेें कुछ समय z अस््पपृश््यता का उन््ममूलन: अनच्ु ्छछेद 17 किसी भी रूप मेें अस््पपृश््यता की प्रथा
तक निवास करना अनिवार््य होगा। को स््पष्ट रूप से गैरकाननू ी घोषित करता है।
आरक्षण नीति: सरकार सामाजिक समानता को बढ़़ावा देने के लिए पिछड़़े z भेदभाव वर््जजित: यह अस््पपृश््यता से उत््पन््न होने वाले किसी भी भेदभाव को
वर्गगों (अनसु चि
ू त जाति, अनसु चि ू त जनजाति) और अन््य पिछड़़े वर्गगों के रोकता है। इसमेें जाति के आधार पर सार््वजनिक स््थथानोों, मदिरो ं ों या पेशोों मेें
लिए नियक्ु तियोों मेें आरक्षण प्रदान कर सकती है। प्रवेश से इनकार करना भी शामिल है।
बरु ाई बनी हुई है। हालाँकि, यह अनच्ु ्छछेद इस प्रथा से निपटने के लिए एक का अधिकार (Right to Reside and Settle in any Part of
महत्तत्वपर््णू काननू ी साधन बना हुआ है। the Territory of India): भारत के राज््यक्षेत्र के किसी भी भाग मेें
निवास करने और बस जाने का अधिकार।
अनुच्छेद 18: उपाधियोों का अंत (ABOLITION OF TITLES)
कोई भी पे शा, उपजीविका, व््ययापार या कारबार करने का अधिकार
z राज््य को सैन््य और शैक्षणिक सम््ममान (जैसे पद्म परु स््ककार, परमवीर चक्र
(Right to Practice any Profession, or to Carry on any
परु स््ककार) के अलावा कोई भी उपाधि प्रदान करने पर प्रतिबंध है। इसका
Occupation, Trade or Business): कोई भी वैध पेशा अपनाने, या
उद्देश््य विरासत मेें मिली उपाधियोों पर नहीीं, बल््ककि समानता और योग््यता पर
कोई भी उपजीविका, व््ययापार या कारोबार करने का अधिकार।
आधारित समाज का निर््ममाण करना था।
z अनुच््छछे द 19(2) राज््य को संप्रभतु ा, भारत की अखडं ता, लोक व््यवस््थथा या
z औपनिवेशिक सरकारोों द्वारा प्रदान की गई वंशानगु त कुलीन उपाधियोों का अतं ।
नैतिकता आदि जैसे आधारोों पर इन अधिकारोों पर 'उचित प्रतिबंध' लगाने
की अनमु ति देता है, जैसा कि अनच्ु ्छछेद मेें उल््ललेख किया गया है।
मुख्य शब्द z अनच्ु ्छछेद 19 व््यक्तिगत स््वतंत्रता और सचु ारू रूप से कार््य करने वाले समाज
की आवश््यकता के बीच संतल ु न स््थथापित करने का प्रयास करता है।
कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण, भेदभाव
का प्रतिषेध, अवसर की समानता, अस््पपृश््यता, सिविल अधिकार भारत मेें उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक निर््णय और
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 – 22) z श्रेया सिघं ल के स (2015): इस मामले मेें सचू ना प्रौद्योगिकी अधिनियम,
2000 की धारा 66क को चनु ौती दी गई थी। इस धारा मेें ऑनलाइन
अनुच्छेद 19: वाक् -स्वातंत्र्य
‘अत््यधिक आक्रामक’ (Grossly Offensive) या ‘धमकाने वाली प्रकृ ति’
आदि से संबंधित कुछ अधिकारोों का संरक्षण
की जानकारी भेजने पर दडं का प्रावधान था। उच््चतम न््ययायालय ने धारा
z भारत के सवं िधान का अनच्ु ्छछेद 19 सभी नागरिकोों को छह मल ू स््वतंत्रताओ ं 66क को रद्द कर दिया और इसे भारत मेें ऑनलाइन वाक्-स््ववातंत्रर्य के लिए
की गारंटी देता है। ये स््वतंत्रताएँ एक कार््यशील लोकतंत्र के लिए महत्तत्वपर््णू हैैं। एक महत्तत्वपर््णू जीत माना।
z ये राज््य की कार््रवाई के विरुद्ध सरं क्षित हैैं तथा नागरिकोों और कंपनी के z के दार नाथ सिहं के स (1962): इस मामले मेें भारतीय काननू के तहत
शेयरधारकोों के लिए उपलब््ध हैैं, लेकिन विदेशियोों या कंपनियोों या निगमोों राजद्रोह की व््ययाख््यया की गई थी। उच््चतम न््ययायालय ने राजद्रोह काननू की
जैसे काननू ी व््यक्तियोों के लिए उपलब््ध नहीीं हैैं। संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा और यह स््पष्ट किया कि सरकार की
z अनच्ु ्छछेद 19 के अतं र््गत ये स््वतंत्रताएँ निरपेक्ष नहीीं हैैं। लोक व््यवस््थथा, राष्ट्रीय आलोचना तब तक राजद्रोह नहीीं मानी जाएगी जब तक कि वह हिसं ा को
सरु क्षा और अन््य वैध चितं ाओ ं के हित मेें इन पर उचित प्रतिबंध लगाए जा भड़काने या उसकी हिमायत करने वाली न हो।
सकते हैैं। अनुच्छेद 20 - अपराधोों के लिए दोषसिद्धि के संबंध मेें संरक्षण
z अनुच््छछे द 19(1) के अधीन अधिकार: भारत के संविधान का अनुच््छछेद 20 मनमाने दंड और अनुचित सुनवाई के
वाक् एवं अभिव््यक्ति की स््वतंत्रता: प्रतिशोध, सेेंसरशिप या कानन ूी विरुद्ध एक महत्तत्वपूर््ण सुरक्षा कवच है। यह अपराध के आरोपी व््यक्तियोों को कुछ
मजं रू ी के भय के बिना अपनी राय और विचार व््यक्त करने का मल ू अधिकारोों की गारंटी देता है।
अधिकार। z पूर््वव््ययापी दण््ड से सरं क्षण (Protection from Retrospective
शांतिपूर््वक और निरायुध सम््ममेलन का अधिकार: एक साथ आने और Punishment): यह सिद््धाांत सनिश् ु चित करता है कि किसी व््यक्ति को उस
सामहि ू क रूप से सामान््य हितोों को अभिव््यक्त करने, बढ़़ावा देने, आगे कार््य के लिए दोषी नहीीं ठहराया जा सकता, जो उस समय अवैध नहीीं था जब
बढ़़ाने और बचाव करने का अधिकार। उसने वह अपराध किया था। काननोू ों को पर्ू ्वव््ययापी रूप से लागू नहीीं किया
सग ं म या सघं [या सहकारी समिति] बनाने का अधिकार (Right जा सकता।
to Form Associations or Unions [or Co-operative z एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार दड ं का प्रतिषेध (Double
Societies]): सामहि ू क रूप से सामान््य हितोों को अभिव््यक्त करने, Jeopardy Prohibition): किसी व््यक्ति पर एक ही अपराध के लिए एक
बढ़़ावा देने, आगे बढ़़ाने और बचाव करने के लिए दसू रोों के साथ जड़ु ने से अधिक बार मक ु दमा नहीीं चलाया जा सकता और उसे दडि ं त नहीीं किया
का अधिकार। जा सकता।
अनुच्छेद 21 - प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार शिक्षा व््यक्तिगत विकास और सामाजिक विकास के लिए एक बुनियादी आधार
(RIGHT TO LIFE AND PERSONAL LIBERTY) है। इस महत्तत्व को पहचानते हुए, भारत के संविधान मेें 2002 मेें संशोधन किया
गया (86वाँ संशोधन) ताकि अनुच््छछेद 21क को मल ू अधिकारोों के भाग के रूप
z भारत के संविधान के अनच्ु ्छछेद 21 को मल
ू अधिकारोों की आधारशिला माना मेें शामिल किया जा सके ।
जाता है। यह सबसे बनिय ु ादी मानव अधिकार की गारंटी देता है।
अनुच्छेद 21क के मुख्य बिंद :ु
z यह इस बात का समर््थन करता है कि किसी भी व््यक्ति को काननू द्वारा
स््थथापित प्रक्रिया के अलावा उसके प्राण या दैहिक स््वतंत्रता से वंचित z निःशुल््क और अनिवार््य शिक्षा: राज््य (सरकार) का दायित््व है कि वह 6 से
नहीीं किया जाएगा। 14 वर््ष की आयु के सभी बच््चोों को निःशल्ु ्क और अनिवार््य शिक्षा प्रदान करे ।
z यह अनेक मानवाधिकारोों का आधार है, जिसमेें निजता का अधिकार और z कार््ययान््वयन का तरीका: यद्यपि इसकी जिम््ममेदारी राज््य पर है, फिर भी
अनच्ु ्छछेद उन््हेें यह अधिकार प्रदान करने के लिए प्रायः काननू के माध््यम से
गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है।
विशिष्ट तरीका निर््धधारित करने की अनमु ति देता है।
महत्त्वपूर््ण मामले: z गुणवत्तापूर््ण शिक्षा का अधिकार: यद्यपि अनच्ु ्छछेद 21क मेें इसका स््पष्ट
z ए.के . गोपालन के स (1950) मेें ‘काननू द्वारा स््थथापित प्रक्रिया’ (Procedure उल््ललेख नहीीं है, फिर भी शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई अधिनियम),
Established by Law) की सक ं ीर््ण व््ययाख््यया की गई तथा निर््णय दिया गया 2009 जैसे बाद के काननू गणु वत्तापर््णू शिक्षा पर जोर देते हैैं।
कि अनच्ु ्छछेद 21 के तहत संरक्षण के वल मनमानी कार््यकारी कार््रवाई के विरुद्ध z प्रभाव: इस अनच्ु ्छछेद के परिणामस््वरूप भारत मेें स््ककू ल नामांकन दरोों मेें
है, न कि मनमानी विधायी कार््रवाई के विरुद्ध। उल््ललेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे शिक्षा तक पहुचँ को बढ़़ावा मिला है।
z मे नका गांधी मामले (1978) मेें उच््चतम न््ययायालय ने ‘कानन ू द्वारा स््थथापित z हाल के घटनाक्रम: राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 ने अनिवार््य शिक्षा
प्रक्रिया’ की व््ययाख््यया को व््ययापक बनाते हुए इसमेें मनमानी विधायी कार््रवाई के के लिए आयु सीमा को 3-18 वर््ष तक बढ़़ा दिया है, जिससे प्रारंभिक
विरुद्ध सरं क्षण को भी शामिल कर लिया, जो कि ‘काननू की उचित प्रक्रिया’ बाल््ययावस््थथा शिक्षा की आवश््यकता को संबोधित किया गया है और उच््चतर
(Due Process of Law) की अमेरिकी अवधारणा के समान है। माध््यमिक विद्यालय तक शिक्षा का प्रावधान बढ़़ाया गया है।
z पुट्टस््ववामी मामले (2017) मेें एक ऐतिहासिक निर््णय मेें उच््चतम न््ययायालय अनुच्छेद 22 (कुछ दशाओ ं मेें गिरफ्तारी और हिरासत से संरक्षण )
ने माना कि निजता, प्राण और दैहिक स््वतंत्रता का अभिन््न अगं है। इसने भारत के संविधान का अनुच््छछेद 22 मनमाने ढंग से गिरफ़़्ततारी और हिरासत के
समलैैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने और व््यभिचार से संबंधित खिलाफ़ एक महत्तत्वपर््णू सरु क्षा कवच है। यह गिरफ़़्ततार किए गए किसी भी व््यक्ति
प्रावधानोों को समाप्त करने मेें महत्तत्वपर््णू भमि ू का निभाई। को कुछ अधिकारोों की गारंटी देता है, जिससे उसे अधिकारियोों द्वारा सत्ता के
ये व््ययाख््ययाएँ यह सुनिश्चित करती हैैं कि अनुच््छछेद 21 न के वल बुनियादी जीवन दरुु पयोग से संरक्षण मिलता है।
की रक्षा करता है, बल््ककि गरिमापूर््ण जीवन और आवश््यक जीवन स््थथितियोों की z साधारण कानून की शर्ततें (Ordinary Law Conditions):
भी रक्षा करता है। बिना सच ू ना के हिरासत से सरं क्षण: किसी भी व््यक्ति को गिरफ््ततारी
के कारणोों के बारे मेें तरु ं त सचि
ू त किए बिना गिरफ््ततार या हिरासत मेें नहीीं
अनुच्छेद 21: निजता का अधिकार बनाम भूल जाने का
रखा जा सकता।
अधिकार
कानूनी परामर््श का अधिकार: गिरफ््ततार व््यक्ति को अपनी पसंद के
z डेटा गोपनीयता मेें एक नया आयाम: भल ू जाने का अधिकार, व््यक्तियोों वकील से परामर््श लेने तथा अपना बचाव कराने का मल ू अधिकार है।
को अपनी व््यक्तिगत जानकारी के ऑनलाइन प्रकटीकरण को नियंत्रित
मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस््ततुत किया जाना: गिरफ््ततार व््यक्ति को गिरफ््ततारी
करने (सीमित करने, डी-लिंक करने, हटाने या सही करने) की अनमु ति
के 24 घटं े के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस््ततुत किया जाना चाहिए (यात्रा
देता है, जो भारतीय काननू मेें एक हाल का घटनाक्रम है।
समय को छोड़कर)।
z डेटा सरं क्षण का महत्तत्व: बी.एन. श्रीकृ ष््ण समिति ने डिजिटल यगु मेें डेटा
मजिस्ट्रेट द्वारा अधिकृत न किए जाने पर 24 घंटे के बाद रिहा किए
संरक्षण और व््यक्तिगत निजता के महत्तत्वपर््णू पहलू के रूप मेें भल
ू जाने के
जाने का अधिकार: यह मनमाने ढंग से हिरासत मेें लिए जाने के विरुद्ध
अधिकार पर प्रकाश डाला।
सरु क्षा प्रदान करता है।
बलात श्रम के अन््य समान रूप: कोई भी स््थथिति जहाँ किसी व््यक्ति
से लागू होती हैैं, चाहे उनकी नागरिकता कुछ भी हो।
को उसकी इच््छछा के विरुद्ध, धमकी या जबरदस््तती से काम करने के लिए z उचित सीमाएँ: ये स््वतंत्रताएँ ‘लोक व््यवस््थथा, नैतिकता और स््ववास््थ््य’ तथा
मजबरू किया जाता है। संविधान के अन््य प्रावधानोों के अधीन हैैं। यह सरकार को सामाजिक सद्भाव
z अपराध और सजा: इस अनच् ु ्छछेद का उल््ललंघन काननू द्वारा दडं नीय है, जिससे और कल््ययाण के हित मेें कुछ सीमाएँ लगाने की अनमु ति देता है।
पीड़़ितोों को काननू ी सहायता सनिश् ु चित होती है। z राज््य और धर््म: सरकार किसी विशेष धर््म को बढ़़ावा नहीीं दे सकती या
z राज््य की शक्ति: यह अनच् ु ्छछेद राज््य को सार््वजनिक उद्देश््योों (जैसे कुछ देशोों धार््ममिक आधार पर भेदभाव नहीीं कर सकती।
मेें राष्ट्रीय सेवा) के लिए अनिवार््य सेवा लागू करने से नहीीं रोकता है। हालाँकि z महत्तत्व: अनच् ु ्छछेद 25 भारत मेें धार््ममिक सहिष््णणुता, बहुलवाद और विविध धर्ममों
ऐसी सेवा धर््म, नस््ल, जाति या वर््ग के आधार पर भेदभाव नहीीं कर सकती है। के शांतिपर््णू सह-अस््ततित््व को बढ़़ावा देता है।
z पीयूडीआर बनाम भारत सघ ं : बलात श्रम के विरुद्ध अधिकार को मजबतू अनुच्छेद 26:
करने वाले एक ऐतिहासिक निर््णय मेें कहा गया कि आर््थथिक मजबरू ी जो किसी z प्रदत्त अधिकार: यह अनच्ु ्छछेद प्रत््ययेक धार््ममिक संप्रदाय को अपने धार््ममिक
व््यक्ति के पास कोई विकल््प नहीीं छोड़ती और उसे श्रम या सेवा प्रदान करने के मामलोों का प्रबंधन करने, चल और अचल संपत्ति का स््ववामित््व रखने और
लिए मजबरू करती है, वह भी बलात श्रम की श्रेणी मेें आती है। उसे अर््जजित करने तथा काननू के अनसु ार उसका प्रशासन करने की स््वतंत्रता
यह अनुच््छछेद मानवीय गरिमा को बनाए रखने और कमजोर व््यक्तियोों का शोषण प्रदान करता है।
रोकने के लिए अत््ययंत महत्तत्वपूर््ण है। z अनुच््छछे द 25 से भिन््न: अनच्ु ्छछेद 25 और 26 के बीच अतं र उल््ललेखनीय
अनुच्छेद 24 - कारखानोों आदि मेें बच्चचों के नियोजन का प्रतिषेध है: जहाँ अनच्ु ्छछेद 25 व््यक्तिगत धार््ममिक अधिकारोों की रक्षा करता है, वहीीं
अनुच््छछेद 24 विशेष रूप से बच््चोों को खतरनाक काम से सुरक्षा प्रदान करता है। अनच्ु ्छछेद 26 सामहि ू क धार््ममिक स््वतंत्रता की रक्षा करता है।
z बाल श्रम पर प्रतिषे ध: यह अधिनियम कारखानोों, खदानोों या किसी अन््य z निरपेक्ष नहीीं: ये अधिकार लोक व््यवस््थथा, नैतिकता और स््ववास््थ््य के अधीन
खतरनाक कार््य मेें 14 वर््ष से कम आयु के बच््चोों के नियोजन का प्रतिषेध हैैं। राज््य यह सनिश्
ु चित करने के लिए गतिविधियोों को विनियमित कर सकता
करता है। है कि इनसे समझौता न हो।
धार््ममिक समहो ू ों को अपनी संस््थथाओ,ं वित्त और प्रथाओ ं का स््वतंत्र रूप से धर््म, नस््ल, जाति, भाषा या इनमेें से किसी के आधार पर प्रवेश से वंचित
प्रबंधन करने की अनमु ति देता है। नहीीं किया जा सकता।
z उदाहरण: यह अधिकार मदिरो ं ों को पजु ारी नियक्त ु करने, चर्चचों को धार््ममिक इससे पृष्ठभमि ू की परवाह किए बिना शिक्षा तक समान पहुचँ सनिश् ु चित
सेवाएँ सचं ालित करने तथा धार््ममिक ट्रस््टोों को अपनी सपं त्तियोों का प्रबंधन होती है तथा समावेशिता को बढ़़ावा मिलता है।
करने की अनमु ति देता है। अनुच््छछेद 29 विविधता का सम््ममान करके और अल््पसंख््यक समहोू ों के लिए
अनुच्छेद 27: सांस््ककृतिक सुरक्षा की गारंटी देकर राष्ट्रीय एकता को बढ़़ावा देता है।
z प्रदत्त अधिकार: अनच्ु ्छछेद 27 किसी व््यक्ति को किसी विशेष धर््म के प्रचार अनुच्छेद 30:
या अनरु क्षण के लिए करोों का भगु तान करने के लिए बाध््य करने से रोकता है। अनुच््छछेद 30 अल््पसंख््यकोों के शिक्षा संबंधी अधिकारोों की रक्षा करता है,
z कोई पक्षपात नहीीं: यह प्रावधान सनिश् ु चित करता है कि राज््य किसी एक जिसमेें निम््नलिखित शामिल हैैं।
धर््म को दसू रे धर््म पर वरीयता या संरक्षण नहीीं देगा, जिससे उसका धर््मनिरपेक्ष z स््थथापना और प्रशासन: धार््ममिक और भाषाई अल््पसख् ं ्यकोों को अपनी पसदं
चरित्र बना रहे। के शैक्षणिक संस््थथानोों की स््थथापना और प्रबंधन का अधिकार है।
उदाहरण: यदि सरकार विशेष रूप से मदिरो ं ों के जीर्णोद्धार के लिए कर z मातृभाषा मेें शिक्षा: इस अधिकार मेें अपने बच््चोों को अपनी भाषा मेें शिक्षा
लगाने का प्रस््तताव करती है, तो यह अनच्ु ्छछेद 27 का उल््ललंघन होगा, प्रदान करने का अधिकार भी शामिल है।
क््योोंकि यह एक विशेष धर््म को लक्षष्य बनाता है। z गुणवत्ता के लिए विनियमन: यह अधिकार असीमित नहीीं है। सरकार इन
उसके पास लंबित किसी मामले को अपने पास स््थथानांतरित करने के लिए
कानूनी रूप से सशक्त करता है: यह व््यक्तियोों को अपने अधिकारोों के
या किसी मामले मेें उसके आदेश को रद्द करने के लिए जारी की जाती है।
लिए लड़ने और न््ययाय पाने के लिए सशक्त बनाता है।
यह क्षेत्राधिकार के अतिक्रमण या क्षेत्राधिकार के अभाव या कानन ू की
कमजोर नागरिकोों को सरं क्षण प्रदान करता है: यह राज््य की मनमानी
त्रुटि के आधार पर जारी की जाती है।
कार््रवाइयोों के विरुद्ध सरु क्षा कवच के रूप मेें कार््य करता है। z अधिकार-पच्ृ ्छछा (Quo-Warranto):
अनुच््छछे द 32 संविधान की एक मूल विशेषता है। अंबेडकर ने अनुच््छछेद 32 यह रिट किसी व््यक्ति के सार््वजनिक पद पर दावे की वैधता की जाँच करने
को संविधान का सबसे महत्तत्वपूर््ण अनुच््छछेद बताया था ऐसा अनुच््छछे द जिसके के लिए न््ययायालय द्वारा जारी की जाती है।
बिना यह संविधान निरर््थक होगा। यह संविधान की ‘आत््ममा और हृदय’ है।' इसलिए, यह किसी व््यक्ति द्वारा सार््वजनिक पद के अवैध उपयोग को
रोकती है।
रिट (WRITS)
रिट का महत्त्व
मलू अधिकारोों के प्रवर््तन के मामले मेें उच््चतम न््ययायालय का क्षेत्राधिकार
z मूल अधिकारोों का सरं क्षण: रिट व््यक्तियोों को संविधान के भाग-III मेें निहित
मौलिक है, लेकिन अनन््य नहीीं है। यह अनुच््छछेद 226 के तहत उच््च न््ययायालय
उनके मल ू अधिकारोों के उल््ललंघन को चनु ौती देने के लिए एक शक्तिशाली
के क्षेत्राधिकार के साथ समवर्ती है। उपकरण हैैं।
अधिकार-पृच््छछा (Quo-Warranto) z न््ययायिक समीक्षा: रिट उच््चतम न््ययायालय को न््ययायिक समीक्षा करने
का अधिकार देती हैैं, ताकि यह सनिश् ु चित हो सके कि सरकार और अन््य
बंदी प्रत््यक्षीकरण प्राधिकारियोों की कार््रवाई वैध और सवं ैधानिक सीमाओ ं के भीतर हो।
(Habeas Corpus) z शीघ्र एवं प्रभावी उपचार: रिट, लम््बबी अदालती प्रक्रियाओ ं की तल ु ना मेें
उत्प्रेषण
न््ययायिक हस््तक्षेप करने का एक त््वरित एवं प्रभावी तरीका है।
(Certiorari) अनुच््छछेद 32 z जवाबदेही सनिश् ु चित करना: रिट का खतरा प्राधिकारियोों को उनके कार्ययों के
के तहत रिट प्रति जवाबदेह बनाता है तथा शक्ति के मनमाने प्रयोग को रोकता है।
प्रतिषेध
परमादेश (Mandamus) z कानून का शासन बनाए रखना: रिट काननू के शासन को बनाए रखने के
(Prohibition)
लिए महत्तत्वपर््णू हैैं, क््योोंकि ये सनिश्
ु चित करती हैैं कि सरकार सहित सभी लोग
z बंदी प्रत््यक्षीकरण (Habeas Corpus): काननू ी मापदडों ों के भीतर काम करेें।
यह न््ययायालय द्वारा किसी व््यक्ति को जारी किया गया आदेश है, जिसने सशस्त्र बल और मूल अधिकार (ARMED FORCES
किसी अन््य व््यक्ति को हिरासत मेें लिया है, कि वह उस व््यक्ति को न््ययायालय AND FUNDAMENTAL RIGHTS)
के समक्ष प्रस््ततुत करे । z उद्देश््य: अनच्ु ्छछेद 33 ससं द को सशस्त्र बलोों, अर््धसैनिक बलोों और सभं ावित
इसके बाद न््ययायालय हिरासत के कारण और वैधता की जाँच करता है। रूप से खफिय ु ा एजेेंसियोों के सदस््योों के कुछ मल
ू अधिकारोों को सीमित करने
यह लोक प्राधिकरणोों के साथ-साथ निजी व््यक्तियोों के विरुद्ध भी जारी का अधिकार देता है (हालाँकि स््पष्ट रूप से उल््ललेख नहीीं किया गया है)।
किया जा सकता है। z औचित््य: इन सीमाओ ं का उद्देश््य कर्तत्तव््योों का उचित निर््वहन सनिश्
ु चित करना
तथा सैन््य बलोों आदि मेें अनश ु ासन बनाए रखना है।
z परमादेश (Mandamus):
z सभं ावित रूप से प्रभावित होने वाले अधिकार: हालाँकि स््पष्ट रूप से नहीीं
यह न््ययायालय द्वारा किसी लोक सेवक को जारी किया गया आदेश है
कहा गया है, लेकिन स््थथिति के आधार पर अनच्ु ्छछेद 33 के तहत किसी भी मल ू
जिसमेें उसे अपने आधिकारिक कर्तत्तव््योों का पालन करने के लिए कहा अधिकार को सीमित किया जा सकता है। हालाँकि, यह शक्ति निरपेक्ष नहीीं है
जाता है, जिनका पालन करने मेें वह विफल रहा है या उसने पालन करने और यदि निर्बंधन अत््यधिक माने जाते हैैं तो न््ययायालय हस््तक्षेप कर सकते हैैं।
से इनकार कर दिया है। उदाहरण: परिचालन गोपनीयता बनाए रखने या अवज्ञा को रोकने के
इसे किसी सार््वजनिक निकाय, निगम, अधीनस््थ न््ययायालय, अधिकरण लिए सैनिकोों के लिए वाक् और अभिव््यक्ति की स््वतंत्रता के अधिकार
या सरकार के विरुद्ध भी इसी उद्देश््य के लिए जारी किया जा सकता है। (अनच्ु ्छछेद 19) को सीमित किया जा सकता है।
z सार््वभौमिक सिद््धाांतोों की स््थथापना (Establishing Universal स््ववास््थ््य नीति (एनएचपी), 2017 मेें स््ववास््थ््य, जल और स््वच््छता के बीच
Principles): सार््वभौमिक सिद््धाांतोों के आधार पर समान नागरिक संहिता घनिष्ठ संबंधोों पर प्रकाश डाला गया है।
(यसू ीसी) तैयार की जानी चाहिए जो सभी व््यक्तियोों के लिए निष््पक्षता और न््ययूमोकोकल वैक््ससीन (Pneumococcal vaccine): 2021 के बजट
समानता सनिश् ु चित करने मेें सक्षम हो। मेें सरकार ने देश भर मेें न््ययूमोकोकल वैक््ससीन के कवरे ज का विस््ततार करने
का निर््णय लिया था।
समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का क्रियान््वयन अधिक समावेशी, समान और
न््ययूमोकोकल निमोनिया पाँच साल से कम उम्र के बच््चोों की मौत का एक
भारतीय धर््मनिरपेक्षता के आदर््श की दिशा मेें एक महत्तत्वपर््णू कदम हो सकता
बड़़ा कारण है। एक बार सभी को टीका लग जाने पर, यह स््वदेशी रूप से
है। हालाँकि,, इस लक्षष्य को प्राप्त करने के लिए एक संवेदनशील दृष्टिकोण की
विकसित टीका सालाना 50,000 लोगोों की जान बचा सकता है।
आवश््यकता है। व््ययापक परामर््श और भारत की समृद्ध सांस््ककृ तिक विविधता
का सम््ममान करने की प्रतिबद्धता महत्तत्वपूर््ण है। इस प्रक्रिया मेें एकरूपता के लिए विगत वर्षषों के प्रश्न
प्रयास करते समय राष्टट्र की बहुलता की रक्षा करनी चाहिए और यह सुनिश्चित z उन संभावित कारकोों पर चर््चचा करेें जो भारत को अपने नागरिकोों के लिए राज््य
करना चाहिए कि प्रत््ययेक नागरिक के हितोों और विचारोों को स््ववीकार किया जाए, की नीति के निदेशक तत्तत्ववों मेें यथा-उपबंधित समान नागरिक सहि
ं ता लागू करने
सुना जाए और सम््ममानित किया जाए। से रोकते हैैं। (2015)
दार््शनिक और संवैधानिक आधार करने से राज््य को जन कल््ययाण के अपने लक्षष्ययों को प्राप्त करने मेें मदद मिलती
z महात््ममा गांधी की दूरदर््शशिता: महात््ममा गांधी ने अपनी कृति "हिदं स््वराज" है। इसके अतिरिक्त, कर््तव््य स््ववैच््छछिक सेवा को प्रेरित कर सकते हैैं, नागरिक
मेें इस बात पर जोर दिया है कि "वास््तविक अधिकार कर््तव््योों के पालन का जड़ु ़ाव की भावना को बढ़़ावा दे सकते हैैं।
परिणाम हैैं।" यह शक्तिशाली कथन अधिकारोों और कर््तव््योों के बीच अतं र््ननिहित z शांति और सद्भाव सनिश् ु चित करना: ऐसे समाज मेें शांति और सद्भाव की
सबं ंध को रे खांकित करता है, और यह सझु ाव देता है कि वे एक ही सिक््कके अधिक संभावना होती है जहाँ व््यक्ति जिम््ममेदारी से अपने अधिकारोों का प्रयोग
के दो पहलू हैैं। करते हैैं और कर््तव््योों के माध््यम से योगदान करते हैैं।
अधिकारोों और कर््तव्ययों के बीच संतल
ु न बनाने की चुनौतियााँ z राष्टट्रगौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 (Prevention of
यद्यपि अधिकारोों और कर््तव््योों के बीच घनिष्ट संबंध है, लेकिन सही संतुलन Insults to National Honour Act, 1971): यह काननू भारत की
बनाना चनु ौतीपूर््ण हो सकता है: संप्रभतु ा और अखडं ता को बनाए रखने और उसकी रक्षा करने के कर््तव््य
z न््ययायालय मेें विचार किए जाने की योग््यता बनाम प्रवर््तन के अनरू ु प है।
(Justiciability vs. Enforcement): अधिकार आमतौर पर न््ययायालयोों z नागरिक अधिकार सरं क्षण अधिनियम, 1955 (The Protection of
मेें प्रवर््तनीय (न््ययायालय के विचार के योग््य) होते हैैं, जबकि कर््तव््य प्रायः नहीीं Civil Rights Act, 1955): यह अधिनियम धर््म, नस््ल, जाति, लिंग या
होते। काननू ी स््थथिति मेें इस अतं र से यह धारणा बन सकती है कि अधिकार जन््म स््थथान के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है तथा सभी भारतीयोों के
अधिक महत्तत्वपर््णू हैैं। बीच सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़़ावा देने के कर््तव््य को
z अधिकारोों और कर््तव््योों की प्रकृति (Nature of Rights and Duties): कायम रखता है।
अधिकारोों और कर््तव््योों की प्रकृति और दायरा काफी भिन््न हो सकता है। कुछ z भारतीय दड ं सहित
ं ा (1860) (Indian Penal Code, 1860): भारतीय
मामलोों मेें, वे परस््पर विरोधी भी लग सकते हैैं। दडं सहि ं ता की कई धाराएँ, जैसे चोरी या गडंु ागर्दी के विरुद्ध धाराएँ, अप्रत््यक्ष
z अस््पष्टता और व््यक्तिपरकता (Vagueness and Subjectivity): कुछ रूप से दसू रोों के अधिकारोों और सार््वजनिक संपत्ति का सम््ममान करने के कर््तव््य
कर््तव््य अस््पष्ट रूप से परिभाषित या व््यक्तिपरक हो सकते हैैं, जिससे धार््ममिक पर बल देती हैैं।
मान््यताओ ं या स््थथापित सामाजिक मानदडों ों के साथ टकराव हो सकता है। z वन््यजीव सरं क्षण अधिनियम, 1972: यह अधिनियम वन््यजीवोों को संरक्षण
z अधिकार पूर््व शर््त के रूप मेें : कुछ अधिकारोों को परू ा करना कर््तव््योों को परू ा प्रदान करता है, जो पर््ययावरण का सरं क्षण और सवर्दद्ध ं न करने तथा सभी जीवित
करने के लिए एक शर््त हो सकती है। उदाहरण के लिए, किसी व््यक्ति का शिक्षा प्राणियोों के प्रति दया रखने के कर््तव््य के अनरू ु प है।
का अधिकार उसे अपने नागरिक कर््तव््योों को परू ा करने के लिए आवश््यक z वन सरं क्षण अधिनियम, 1980: यह अधिनियम प्राकृतिक पर््ययावरण के
ज्ञान और कौशल हासिल करने की अनमति ु देता है। संरक्षण और सधु ार के कर््तव््य के अनरू ु प होकर वनोों का संरक्षण करता है।
मूल कर््तव्ययों की आलोचनाएँ भारत के संविधान मेें निहित मल ू कर््तव््य सभी नागरिकोों के लिए एक नैतिक
z अधूरी सच ू ी (Incomplete List): आलोचकोों का तर््क है कि मल ू कर््तव््योों उत्तरदायित््व के रूप मेें काम करते हैैं, भले ही उन््हेें कानून द्वारा प्रत््यक्ष रूप से
की सचू ी सपं र््णू नहीीं है। इसमेें एक जिम््ममेदार नागरिक से अपेक्षित सभी महत्तत्वपर््णू लागू नहीीं किया जा सकता है। ये कर््तव््य हमेें याद दिलाते हैैं कि हमेें प्राप्त मल ू
कर््तव््योों को शामिल नहीीं किया जा सकता है। अधिकार सभी मल ू कर््तव््योों की संगत जिम््ममेदारियोों के साथ आते हैैं। कोविड-19
महामारी जैसी भविष््य की चनु ौतियोों का सामना करने के लिए हमारे अधिकारोों
z अस््पष्ट शब््ददावली (Unclear Wording): कुछ कर््तव््योों को अस््पष्ट रूप से
के साथ-साथ इन कर््तव््योों को बनाए रखना पहले से कहीीं अधिक महत्तत्वपूर््ण है।
वर््णणित किया गया है, जिससे भ्रम या गलत व््ययाख््यया की संभावना हो सकती है।
z सदिं ग््ध समावेश (Questionable Inclusion): कुछ आलोचक इन
कर््तव््योों को सवं िधान मेें शामिल करने की आवश््यकता पर सवाल उठाते हैैं, प्रमुख शब्दावलियाँ
उनका तर््क है कि ये नैतिक सिद््धाांत हैैं जिन््हेें अधिकांश नागरिक समझते हैैं।
सामाजिक और राजनीतिक जीवन; सद्भावपूर््ण समाज; न््ययायिक
z सीमित महत्तत्व (Limited Weight): चकि ँू मलू कर््तव््योों को संविधान के व््ययाख््ययाएँ; लोकतांत्रिक समाज, नागरिक अधिकार, प्रवर््त नीय, मूल
भाग IV (अनच्ु ्छछे द 51 क) के अन््तर््गत एक परिशिष्ट के रूप मेें रखा गया है, कर््त व््य, वन््यजीव संरक्षण अधिनियम, वन संरक्षण अधिनियम आदि।
इसलिए उन््हेें मल ू अधिकारोों की तरह काननू द्वारा लागू नहीीं किया जा सकता
है, जिससे उनका कथित महत्तत्व कम हो सकता है। विगत वर्षषों के प्रश्न
विधानोों के माध्यम से प्रवर््तन z भारत का सवं िधान राष्टट्र की एकता और अखडं ता को बनाए रखने के लिए
मलू कर््तव््य, हालाँकि, कानून द्वारा सीधे लागू नहीीं किए जा सकते, लेकिन केें द्रीकरण की प्रवृत्ति प्रदर््शशित करता है। महामारी रोग अधिनियम, 1897;
विभिन््न मौजूदा विधानोों मेें उनकी प्रतिध््वनि मिलती है। इससे संबंधित कुछ आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 और हाल ही मेें पारित कृषि अधिनियमोों
महत्तत्वपूर््ण उदाहरण इस प्रकार हैैं: के परिप्रेक्षष्य मेें स््पष्ट करेें। (2020)
z यह आदेश अफगानिस््ततान, बांग््ललादेश और पाकिस््ततान के अल््पसंख््यक भारत से ऐतिहासिक सब ं ंध रखने वाले व््यक्ति
समदु ायोों के आवेदनोों पर लागू होगा। z अतिरिक्त शर्ततें: देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने के इच््छछुक आवेदकोों
भारतीय नागरिकता प्राप्ति के आधार को निम््नलिखित शर्ततें परू ी करनी होोंगी:
अपने आवेदन विवरण और उत्तम चरित्र संदर्भभों की पष्ु टि करने वाले विवरण
भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के चार मख्ु ्य तरीके हैैं:
z जन््म से (By Birth): यह तभी लागू होता है जब व््यक्ति का जन््म भारत मेें प्रस््ततुत करना।
26 जनवरी 1950 के बाद हुआ हो, तथा इसमेें विशिष्ट तिथि और व््यक्ति के 8वीीं अनस ु चू ी मेें उल््ललिखित किसी भारतीय भाषा मेें दक्षता प्रदर््शशित करना।
माता-पिता की नागरिकता की स््थथिति के आधार पर कुछ भिन््नताएँ हो सकती हैैं। z सरलीकृत प्रमाण: नए नियमोों से राष्ट्रीयता साबित करने का बोझ कम हो गया
z वंशक्रम द्वारा (By Descent): यदि किसी व््यक्ति का जन््म 26 जनवरी, 1950 है। आवेदक अब प्रवेश प्रमाण (Entry proof) के रूप मेें विभिन््न दस््ततावेजोों
को या उसके बाद भारत से बाहर हुआ है और उसके माता-पिता मेें से कोई का उपयोग कर सकते हैैं, जिनमेें वीज़़ा, निवास परमिट और यहां तक कि
एक उस समय भारतीय नागरिक था, तो यह विकल््प उसके लिए उपलब््ध है। आधार कार््ड भी शामिल हैैं।
z पूर््व नागरिकता का त््ययाग: यदि भारतीय नागरिकता प्रदान की जाती है, तो चिंताएँ और आलोचनाएँ :
आवेदकोों को अपनी वर््तमान नागरिकता का त््ययाग करना होगा। z प्रवेश की तिथि: पात्रता हेतु आवेदन की अतिम ं (कट-ऑफ) तिथि (31
z आवेदन प्रक्रिया: आवेदन पत्र एक निर््ददिष्ट जिला स््तरीय समिति के दिसंबर, 2014) मनमानी प्रतीत होती है।
माध््यम से एक अधिकार प्राप्त समिति को इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रस््ततुत किए z सभ ं ावित भेदभाव: अधिनियम का धर््म पर के न्द्रित होना भारत की समानता
जाते हैैं। और धर््मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्धता का उल््ललंघन हो सकता है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए ), 2019 z उत््पपीड़न का प्रमाण: धार््ममिक उत््पपीड़न के दावोों को सत््ययापित करने के लिए
स््पष्ट प्रणाली की कमी के संबंध मेें चितं ाएँ मौजदू हैैं।
z उद्देश््य: नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) भारत के नागरिकता
अधिनियम (1955) मेें संशोधन करके विशिष्ट धार््ममिक अल््पसंख््यकोों को z असमान व््यवहार: अन््य देशोों और धर्ममों के उत््पपीड़़ित अल््पसंख््यकोों को इसके
दायरे से बाहर रखे जाने से निष््पक्षता पर सवाल उठते हैैं।
नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करता है।
z अंतरराष्ट्रीय सबं ंधोों पर प्रभाव: यह अधिनियम पड़़ोसी देशोों के साथ संबंधोों
z लाभार्थी: इस काननू ने 31 दिसंबर, 2014 से पहले पाकिस््ततान, बांग््ललादेश या
मेें तनाव पैदा कर सकता है।
अफगानिस््ततान से भारत मेें प्रवेश करने वाले हिदं ओ ु ,ं सिखोों, बौद्धधों, जैनियोों,
पारसियोों और ईसाइयोों को नागरिकता प्रदान करने मेें तेजी ला दी है, बशर्ते आगे की राह
उन््हेें अपने देश मेें धार््ममिक उत््पपीड़न का सामना करना पड़़ा हो। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का उद्देश््य शरणार््थथियोों की मदद करना है,
z प्रावधानोों मेें रियायतेें: इन अल््पसंख््यकोों को विदेशियोों विषयक अधिनियम लेकिन उठाई गई चिंताओ ं को संबोधित करना न््ययायपर््णू और समावेशी दृष्टिकोण
(Foreigners Act) और पासपोर््ट अधिनियम के कुछ प्रावधानोों से छूट या के लिए महत्तत्वपूर््ण है। चँकि
ू , यह अधिनियम धर््म के आधार पर भेदभाव करता
रियायत दी गई है, बशर्ते वे निर््धधारित तिथि से पहले भारत मेें प्रवेश कर चक ु े होों। है, इसलिए यह धर््मनिरपेक्षता की अवधारणा की जड़ पर प्रहार करता है, जो
z निवास की अवधि को कम किया जाना: नागरिकता संशोधन अधिनियम संविधान की मल ू संरचना का अहम भाग है। इसलिए, सभी उत््पपीड़़ित व््यक्तियोों
को नागरिकता प्रदान करके नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को धर््म-
(सीएए) मेें इन समहोू ों के लिए देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने के लिए
तटस््थ बनाया जा सकता है। हालाँकि, राष्ट्रीय सरु क्षा की चिंताओ ं को ध््ययान
निवास की अवधि को 11 वर््ष से घटाकर 5 वर््ष कर दिया गया है।
मेें रखते हुए, इस तरह की प्रक्रिया को सावधानीपूर््वक और धीरे -धीरे अपनाया
अधिनियम के पक्ष मेें तर््क जाना चाहिए।
z मानवीय राहत: नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पाकिस््ततान,
अफगानिस््ततान और बांग््ललादेश मेें धार््ममिक भेदभाव का सामना कर रहे उत््पपीड़़ित
प्रमुख शब्दावलियाँ
अल््पसख्ं ्यकोों के लिए नागरिकता का प्रावधान करता है।
z आप्रवासियोों मेें अंतर करना: इस अधिनियम का उद्देश््य अवैध आप्रवासन नागरिकता, विदेशी नागरिक, देशीयकरण द्वारा नागरिकता, एकल
का प्रबंधन करते हुए शरणार््थथियोों की पहचान करना और उनके लिए काननू ी नागरिकता, नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), उत््पपीड़़ित
मार््ग उपलब््ध कराना है। अल््पसंख््यक, आप्रवासन आदि।
जैसे कि जिला, ब््ललॉक या लघु जनजातीय इकाई। पेसा के कार्यान्वयन मेें चुनौतियााँ
आर््थथि क असमानता: यह क्षेत्र आसपास के क्षेत्ररों की तल ु ना मेें आर््थथिक z सीमित ससं ाधन: "3F" - निधि, कार््य और तंत्र (Funds, Functions, and
रूप से वंचित होना चाहिए। Functionaries) की कमी पेसा के प्रभावी कार््ययान््वयन मेें बाधा डालती है।
z नौकरशाही सबं ंधी बाधाएँ: अतिम ं निर््णय अक््सर अधिकारियोों के हाथ मेें असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के लिए विशेष व्यवस्था क्ययों?
होता है, जिससे ग्राम सभा कि निर््णय लेने की प्रक्रिया प्रभावित होती है। z विशिष्ट सांस््ककृ तिक पहचान: सवं िधान इन चार पर्ू वोत्तर राज््योों (असम,
z जन जागरूकता की कमी: पेसा और ग्राम सभा के कार्ययों के बारे मेें आम मेघालय, त्रिपरु ा और मिजोरम) को उनकी विशिष्ट सांस््ककृ तिक पहचान के
लोगोों मेें सीमित जानकारी के कारण उनकी भागीदारी कम होती है। कारण विशेष स््ववायत्तता प्रदान करता है।
z जनजातीय अधिकारोों की अनदेखी: भमि ू अधिग्रहण ग्राम सभा की सहमति z अन््य जनजातियोों से भिन््न: भारत के अन््य भागोों के जनजातीय समदु ायोों ने
के बिना होता है, जो पेसा सिद््धाांतोों का उल््ललंघन है। मख्ु ्यधारा की संस््ककृ ति को आत््मसात कर लिया है, इसके विपरीत इन राज््योों
z राज््य कानूनोों मेें टकराव: अनसु चिू त क्षेत्ररों के लिए राज््य काननू अक््सर केें द्रीय की जनजातियोों ने बड़़े पैमाने पर अपनी पारंपरिक जीवन शैली, रीति-रिवाजोों
पेसा अधिनियम की भावना के विपरीत होते हैैं। और सभ््यता को सरं क्षित रखा है।
z प्रयासोों का दोहराव: भमि ू अधिग्रहण अधिनियम, 2013 जैसे बाद के काननू , z सांस््ककृ तिक जड़ों की रक्षा: इस विशिष्ट सांस््ककृ तिक पहचान के लिए स््वशासन
पेसा प्रावधानोों को दोहराते हैैं, जिससे भ्रम की स््थथिति पैदा होती है। और स््ववायत्तता सनिश्
ु चित करने हेतु विशेष व््यवस््थथा की आवश््यकता होती
है, जिससे इन जनजातियोों को अपनी विरासत को संरक्षित करने मेें सहायता
आगे की राह मिलती है।
z प्रतिनिधियोों को सशक्त बनाना: निर््ववाचित पदाधिकारियोों के लिए प्रशिक्षण
छठी अनुसूची के क्षेत्ररों मेें प्रशासन की विशेषताएँ :
कार््यक्रम ग्राम सभाओ ं का प्रभावी ढंग से नेतत्ृ ्व करने की उनकी क्षमता को
बढ़़ाएगा। z राज््यपाल का प्राधिकार (Governor's Authority): राज््यपाल के पास
स््वशासी जिलोों की सीमाओ ं को निर््धधारित और संशोधित करने तथा विविध
z जागरूकता पैदा करना: समदु ाय के सदस््योों और अधिकारियोों सहित सभी
जनजातियोों वाले जिलोों को अलग क्षेत्र मेें विभाजित करने की शक्ति है।
हितधारकोों के लिए काननू ी जानकारी ग्राम सभा के सचु ारू संचालन के लिए
महत्तत्वपर््णू है। z स््वशासी जिले (Autonomous districts): इन राज््योों मेें जनजातीय क्षेत्ररों
को स््वशासी जिलोों के रूप मेें गठित किया गया है, जिनमेें से प्रत््ययेक मेें एक
z जनजातीय अधिकारोों का समर््थन करना: सिविल सोसायटी को जनजातीय
स््वशासी जिला परिषद है और प्रत््ययेक स््वशासी प्रदेश मेें 30 सदस््योों वाली एक
समदु ायोों के अधिकारोों की रक्षा के लिए अधिकार-आधारित दृष्टिकोण को
अलग प्रादेशिक परिषद है (26 सदस््य 5 साल के कार््यकाल के लिए निर््ववाचित
सक्रिय रूप से बढ़़ावा देना चाहिए। किए जाते हैैं और 4 राज््यपाल द्वारा नामनिर््ददिष्ट किए जाते हैैं)। ये जिले इन
z पेसा का कार््ययान््वयन: केें द्र सरकार को राज््योों से आग्रह करना चाहिए कि वे राज््योों के भीतर मौजदू हैैं, उनके पास कुछ स््व-शासी शक्तियाँ हैैं।
पंचायत उपबंध (अनसु चि ू त क्षेत्ररों पर विस््ततार) अधिनियम (पेसा) के प्रावधानोों z जिला एवं प्रादेशिक परिषदेें (District and Regional Councils):
का पर््णू अनपु ालन करने के लिए मौजदू ा काननोू ों मेें तेजी से सश ं ोधन करेें। निर््ववाचित प्रतिनिधि अपने-अपने क्षेत्ररों का प्रबंधन करने के लिए इन परिषदोों
z सस ं ाधन प्रबंधन: पेसा क्षेत्ररों मेें लघु वन उपज, जल निकायोों और भमि ू का गठन करते हैैं ।
ससं ाधनोों का स््ववामित््व ग्राम सभाओ ं को हस््तताांतरित करने के लिए भारतीय z विधायी शक्तियां (Legislative Powers): ये परिषदेें भमि ू प्रबंधन,
वन अधिनियम और भमि ू अधिग्रहण अधिनियम जैसे प्रासंगिक अधिनियमोों सामाजिक रीति-रिवाजोों और ग्राम प्रशासन जैसे विशिष्ट मामलोों पर काननू
मेें संशोधन आवश््यक है। बना सकती हैैं। हालाँकि, इन काननोू ों को राज््यपाल की मज़ं ऱू ी की आवश््यकता
सरकारी पहलेें (Government Initiatives) होती है।
z न््ययायिक शक्तियां (Judicial Powers): परिषदेें अपने क्षेत्राधिकार मेें
z वन अधिकार अधिनियम, 2006: इस अधिनियम का उद्देश््य वन मेें रहने
जनजातीय विवादोों को निपटाने के लिए न््ययायालयोों की स््थथापना कर सकती
वाली अनसु चि
ू त जनजातियोों के वन अधिकारोों को मान््यता देना और उन््हेें वन
हैैं, हालाँकि, उच््च न््ययायालय तक पहुचँ ने वाली अपीलोों पर राज््यपाल द्वारा
अधिकार प्रदान करना है।
सीमाएँ निर््धधारित की जा सकती हैैं।
z वनबंधु कल््ययाण योजना: इस कल््ययाणकारी योजना का उद्देश््य जनजातीय
z विकास सबं ंधी पहलेें (Development Initiatives): परिषदेें अपने जिलोों
लोगोों का उत््थथान करना तथा जनजातीय छात्ररों की शिक्षा की गणु वत्ता मेें मेें स््ककूल, स््ववास््थ््य सवु िधाएँ और बनि
ु यादी ढाँचे के निर््ममाण जैसी गतिविधियाँ
सधु ार करना है। कर सकती हैैं। वे गैर-जनजातीय लोगोों द्वारा की जाने वाली व््ययावसायिक
गतिविधियोों को भी विनियमित कर सकती हैैं।
प्रमुख शब्दावलियाँ z वित्तीय स््ववायत्तता (Financial Autonomy): परिषदोों को कर संग्रहण
करने का अधिकार है।
अनुसूचित क्षेत्र, जनजाति सलाहकार परिषद, पेसा, स््वशासन z कानूनोों का सीमित अनुप्रयोग (Limited Application of Laws):
अधिकार, भूमि अधिग्रहण आदि।
केें द्रीय और राज््य काननू स््वशासी जिलोों पर स््वतः लागू नहीीं हो सकते हैैं या
उनमेें संशोधन की आवश््यकता हो सकती है।
छठी अनुसूची z राज््यपाल द्वारा निगरानी: राज््यपाल प्रशासन का मल्ू ्ययाांकन करने के लिए
छठी अनुसूची मेें चार पूर्वोत्तर राज््योों असम, मे घालय, त्रिपुरा और मिजोरम आयोगोों की नियक्ु ति कर सकते हैैं और सिफारिशोों के आधार पर परिषदोों को
के जनजातीय क्षेत्ररों के प्रशासन के लिए विशेष प्रावधान हैैं। भगं कर सकते हैैं
के राज््योों को एक एकीकृ त राज््यक्षेत्र को विभाजित करके बनाया गया था, प्राप्त हो जाती हैैं, जिसमेें राज््य के विषयोों पर काननू बनाना और राज््य प्रशासन
जिसमेें कुशल प्रशासन और शासन सनिश् ु चित करने के लिए बाद मेें शक्तियोों को अपने हाथ मेें लेना शामिल है।
का वितरण किया गया था। z अखिल भारतीय सेवाएँ: आईएएस, आईपीएस आदि की भर्ती केें द्र द्वारा
की जाती है, लेकिन वे राज््योों मेें कार््य करते हैैं, जिससे एकरूपता और केें द्रीय
भारतीय संघवाद की विशेषताएँ प्रभाव बना रहता है।
z राज््यपाल की भूमिका: केें द्र द्वारा नियक्त ु राज््यपाल राज््य के कुछ
भारत की संघीय प्रणाली की निम््नलिखित प्रमख ु विशेषताएँ हैैं:
z द्वै ध शासन: इस प्रणाली मेें सरकार के दो स््तर होते हैैं: केें द्र सरकार और
विधेयकोों को रोक सकते हैैं, जिससे केें द्रीय पक्षपात के बारे मेें चितं ाएँ उत््पन््न
राज््य सरकारेें। होती हैैं।
z राज््य के क्षेत्ररों पर सस ं द की शक्ति: केें द्र राज््य की सहमति के बिना राज््य
z शक्तियोों का विभाजन: सवं िधान की सातवीीं अनस ु चू ी मेें केें द्र और राज््योों के
की सीमाओ ं मेें परिवर््तन कर सकता है या नए राज््योों का निर््ममाण कर सकता है।
बीच विधायी शक्तियोों का स््पष्ट विभाजन किया गया है।
z केें द्रीकृत राजकोषीय सरं चना: वित्तीय संसाधनोों पर अधिकांशतः केें द्र सरकार
z लिखित सवि ं धान: लिखित संविधान सर्वोच््च काननू के रूप मेें कार््य करता का नियंत्रण होता है, तथा कुछ हिस््ससा राज््योों को हस््तताांतरित होता है।
है, जिसमेें सरकार के दोनोों स््तरोों की सरं चना और शक्तियोों को निर््धधारित किया
हालाँकि, ये विशेषताएँ एक मज़बूत केें द्र की ओर झक ु ाव रखती हैैं, लेकिन
गया है।
यह भी सच है कि भारत का संविधान सहकारी संघवाद का प्रावधान करता
z सवि ं धान की सर्वोपरिता: संविधान अतिम ं प्राधिकार है, तथा सभी काननू है, जो केें द्र और राज््योों को राष्ट्रीय प्रगति के लिए मिलकर काम करने के लिए
और कार््रवाइयां इसके प्रावधानोों के अनरू ु प होनी चाहिए। प्रोत््ससाहित करता है। सहकारी संघवाद का एक उदाहरण जीएसटी परिषद है जो
z कठोर सवि ं धान: संविधान मेें संशोधन किया जा सकता है, लेकिन यह प्रक्रिया एक संवैधानिक निकाय है जो जीएसटी दरोों पर सिफारिशेें करता है तथा इसमेें
अपेक्षाकृ त जटिल है, जिससे इसकी स््थथिरता सनिश् ु चित होती है। केें द्र और सभी राज््योों के प्रतिनिधि शामिल होते हैैं।
भारतीय संघवाद के लिए चुनौतियााँ भारत मेें असममित संघवाद
(ASYMMETRIC FEDERALISM IN INDIA)
z नए राज््य का गठन: राज््य की सीमाओ ं और नामोों मेें परिवर््तन करने की केें द्र
सरकार की शक्ति राज््य की स््ववायत्तता के बारे मेें चितं ाएँ उत््पन््न करती है। समवर्ती सूची राज््यपाल की नियुक्ति
z राज््यपाल की भूमिका: राज््यपाल केें द्र सरकार का प्रतिनिधि होता है जो
राज््य के हितोों के विरुद्ध कार््य कर सकता है। विधेयक राष्टट्रपति की संविधान की केें द्रीकरण विधेयक राष्टट्रपति की
z राज््य सभा मेें प्रतिनिधित््व: राज््य सभा मेें जनसंख््यया आधारित प्रतिनिधित््व सहमति के लिए आरक्षित विशेषताएँ सहमति के लिए आरक्षित
एक सच््चचे संघ मेें राज््योों के एक समान प्रतिनिधित््व की तल ु ना मेें असंतल
ु न
पैदा करता है। आपातकालीन प्रावधान अखिल भारतीय सेवा
z अखिल भारतीय सेवाएँ: यद्यपि ये सेवाएँ प्रशासनिक एकरूपता प्रदान करती
हैैं, लेकिन ये राज््य के अधिकारियोों (आईएएस, आईपीएस आदि) पर उसके भारत के विशाल और विविधतापूर््ण समाज के संदर््भ मेें, असममित संघवाद एक
ऐसी अवधारणा के रूप मेें उभरा है जो केें द्र और राज््योों के बीच और यहाँ तक
नियंत्रण को सीमित कर सकती हैैं। कि अलग-अलग राज््योों के बीच शक्तियोों के असमान विभाजन की आवश््यकता
z आपातकालीन शक्तियां: केें द्र की आपातकाल लागू करने की क्षमता, उस को स््ववीकार करता है। यह दृष्टिकोण एकरूपता के पारंपरिक संघीय मॉडल से
अवधि के दौरान राज््य की स््ववायत्तता को कमजोर करती है। अलग है, जो विभिन््न क्षेत्ररों की अलग-अलग ज़रूरतोों और ऐतिहासिक पृष्ठभमि ू
z केें द्रीय नियंत्रण तंत्र: निर््ववाचनोों का एकीकृ त नियंत्रण, लेखा परीक्षा, तथा राज््य को पहचानता है।
विधेयकोों पर वीटो लगाने की शक्ति राज््य की स््ववायत्तता को सीमित करती है। भारत को असममित संघवाद की आवश्यकता क्ययों है ?
z राष्ट्रीय एकता की मजबूती हेतु: स््ववायत्तता स््ववामित््व की भावना को बढ़़ावा
मौजूदा संरचना मेें खामियाां: देती है और अलगाववादी आदं ोलनोों को कम करती है, जिससे राष्ट्रीय एकता
उपर््ययुक्त चनु ौतियोों के अलावा मौजूदा संघीय ढाँचे मेें कुछ खामियां भी हैैं। को बढ़़ावा मिलता है।
z अकुशल समन््वय: केें द्र और राज््य सरकारोों के बीच खराब सहयोग के कारण z विविधता के सम््ममान हेतु: यह विशेष अधिकारोों वाले कमजोर समहो ू ों की
प्रयासोों मेें दोहराव होता है और संसाधनोों का दरुु पयोग होता है। रक्षा करके "विविधता मेें एकता" को कायम रखता है।
z सामाजिक न््ययाय को बढ़़ावा देने के लिए: विशेष प्रावधान अतीत की
z परस््पर विरोधी क्षेत्राधिकार: शिक्षा और वानिकी जैसे क्षेत्ररों मेें ओवरलैप के
असवु िधाओ ं को दरू करके सामाजिक न््ययाय का लक्षष्य प्राप्त करने मेें मदद करते हैैं।
कारण केें द्र और राज््य सरकारोों के बीच विवाद उत््पन््न होता है।
z लोकतंत्र और प्रतिनिधित््व की मजबूती के लिए: असममित संघवाद
z केें द्रीकृत योजना: योजना बनाने की पिछली विधियोों ने राज््योों की विशिष्ट अल््पसंख््यक क्षेत्ररों का प्रतिनिधित््व सनिश्
ु चित करता है, जिससे लोकतंत्र मजबतू
आवश््यकताओ ं की उपेक्षा की है, जिससे उनके विकास मेें बाधा उत््पन््न हुई है। होता है।
z वित्तीय असत ं ुलन: केें द्र सरकार अधिकांश वित्तीय संसाधनोों को नियंत्रित z सस् ं ्ककृ ति के सरं क्षण के लिए: अनच्ु ्छछे द 371 जैसे प्रावधान पर्ू वोत्तर राज््योों
करती है, जिससे अनदु ान पर निर््भरता बढ़ती है और राज््योों मेें असमान विकास को अपने विशिष्ट रीति-रिवाजोों, काननोू ों और परंपराओ ं को बनाए रखने का
अधिकार देते हैैं।
होता है।
z अल््पसख् ं ्यकोों के सशक्तीकरण के लिए: असममित संघवाद विविध
z राजनीतिक गतिरोध: राजनीतिक मतभेद सहयोग को अवरुद्ध कर सकते हैैं
अल््पसख्ं ्यक क्षेत्ररों का प्रतिनिधित््व सनिश्
ु चित करता है, जिससे लोकतंत्र मजबतू
और नीतियोों के प्रभावी कार््ययान््वयन मेें बाधा डाल सकते हैैं। होता है।
भारत का संघीय ढांचा असमान प्रतिनिधित््व और सीमित स््ववायत्तता जैसे मद्ददों ु के z कट्टरपंथ का मुकाबला करने के लिए: क्षेत्रीय नियंत्रण मेें वृद्धि से कट्टरपथ ं
बावजूद, संघीय और एकात््मक तत्तत्ववों को संतुलित करते हुए अनुकूलनीय साबित का मक ु ाबला करने और समदु ायोों को राष्ट्रीय विकास मेें एकीकृ त करने मेें
हुआ है। वर््तमान प्रवृत्तियां सहकारी संघवाद की ओर बदलाव का संकेत देती हैैं, मदद मिलती है।
जिसके लिए केें द्र-राज््य सहयोग की आवश््यकता है। इसे वास््तव मेें प्रभावी बनाने असममित संघवाद भारत के जटिल और स््तरित संघीय ढाँचे का एक अभिन््न
अंग है। यह भारत की अद्वितीय विविधता और विभिन््न क्षेत्रीय आवश््यकताओ ं
के लिए, शक्ति असंतुलन को संबोधित करना और समान शक्ति वितरण की माँग से निपटने के लिए एक अनूठा ढाँचा प्रदान करता है। हालाँकि, इससे उत््पन््न
करना महत्तत्वपर््णू है। राजनीतिक स््थथिरता और जीवंत लोकतंत्र को बनाए रखने के चनु ौतियोों का समाधान करना तथा अधिक पारदर्शी और नियम-आधारित
लिए एक मजबूत और उत्तरदायी संघीय प्रणाली आवश््यक है। विषमता के लिए प्रयास करना महत्तत्वपर््णू है।
और विधायी कार््यवाहियोों पर प्रश्न उठाने से रोकते हैैं, तथा न््ययायिक और को काननोू ों के प्रभावी कार््ययान््वयन के लिए नियम बनाने की शक्ति प्रदान करती है।
विधायी क्षेत्ररों को प्रभावी रूप से पृथक कर देते हैैं। z दलीय प्रणाली (Party System): विधायिका और कार््यपालिका के बीच
शक्तियोों के पृथक्करण के विभिन्न मॉडल साझा दलीय संबद्धता के कारण विधायिका, कार््यपालिका के निर््णयोों पर अपनी
महु र लगा सकती है।
शक्तियोों के पृथक््करण का सिद््धाांत अर््थथात् सरकारी कार्ययों को विभिन््न अगों ों के
z अविश्वास प्रस््तताव (No-confidence Motion): सत्ताधारी दल अविश्वास
बीच विभाजित करने का सिद््धाांत विभिन््न देशोों मेें अलग-अलग तरीके से लागू
किया जाता है। प्रस््तताव से बचने के लिए विधायिका को प्रभावित कर सकता है।
z सशक्त पथ ृ क््करण: संयक्त
ु राज््य अमेरिका एक कठोर मॉडल का उदाहरण z व््हहिप प्रणाली (Whip System): राजनीतिक दल विधायकोों के बीच
है जिसमेें विधायी, कार््यकारी और न््ययायिक शाखाओ ं को पृथक करने वाली अनश ु ासन लागू करने के लिए पार्टी व््हहिप का उपयोग कर सकते हैैं, जिससे वे
स््पष्ट रे खाएँ हैैं। स््वतंत्र रूप से मतदान नहीीं कर सकते हैैं।
z लचीला मॉडल: य.ू के . और भारत जैसे देशोों मेें सरकार के अगो ं ों के कार्ययों और आगे की राह
कार््ममिकोों मेें अधिक ओवरलैप दिखाई पड़ता है, जिससे अधिक सहयोगात््मक
दृष्टिकोण को बढ़़ावा मिलता है। यद्यपि भारत की शासन प्रणाली मेें शक्तियोों का पूर््ण पृथक््करण व््ययावहारिक नहीीं
है, फिर भी अतिव््ययाप्ति (ओवरलैपिंग) को न््ययूनतम करने तथा अधिक जवाबदेही
अन््य निकायोों के तानाशाही प्रवृत्तियोों सुनिश्चित करने के लिए निम््नलिखित कदम उठाए जा सकते हैैं:
कार्ययों पर नियंत्रण के खिलाफ सरु क्षा z स््वतंत्र सस् ं ्थथाओ ं को मजबूत बनाना: लोक सभा सचिवालय और नियंत्रक
एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) जैसी संस््थथाओ ं को सशक्त बनाकर कार््यपालिका
शक्तियोों के की स््वतंत्र जाँच का प्रावधान किया जा सकता है।
प्रशासन मेें दक्षता
बनाए रखना पृ थ क््करण का महत्तत्व z सस ं दीय समितियाँ: काननू और कार््यपालिका के कार्ययों की गहन जाँच के
लिए संसदीय समितियोों को अधिक सशक्त बनाया जाना चाहिए।
मनमानेपन के
z प्रत््ययायोजित विधान पर निर््भरता मेें कमी: विधायिका को प्रत््ययायोजित
खिलाफ सरु क्षा
निरंकुशता के विधान के दायरे को स््पष्ट रूप से परिभाषित करना चाहिए तथा इसके कार््ययान््वयन
खिलाफ सरु क्षा की निगरानी बनाए रखनी चाहिए।
z चुनावी सध ु ार: पार्टी के भीतर लोकतंत्र को बढ़़ावा देने और स््वतंत्र उम््ममीदवारोों न्यायपालिका और विधायिका के बीच अतिव्याप्ति को न्यूनतम
को प्रोत््ससाहित करने से मतदान व््यवहार पर पार्टी व््हहिप के प्रभाव को कम करना
किया जा सकता है। कुछ अतिव््ययाप्ति (ओवरलैपिंग) नियंत्रण और संतुलन को बढ़़ावा देती हैैं,
z जनहित समूह (पीआईजी): मजबतू जनहित समहोू ों के विकास को प्रोत््ससाहित अत््यधिक अतिव््ययाप्ति (ओवरलैपिंग) भ्रम पैदा कर सकती है और दोनोों अंगोों
किया जाना चाहिए जो सरकार को जवाबदेह बनाकर, विधायिका को वैकल््पपिक की स््वतंत्रता को कमजोर कर सकती है। इसे कम करने के तरीके यहाँ दिए गए हैैं:
z न््ययायिक मर््ययादा (Judicial Deference): न््ययायपालिका को विधायिका
दृष्टिकोण प्रदान कर सकेें ।
की काननू बनाने की शक्ति को उचित सम््ममान देते हुए काननोू ों को रद्द करने मेें
z न््ययायिक समीक्षा: विधायिका और कार््यपालिका दोनोों पर प्रभावी नियंत्रण
संयम बरतना चाहिए।
सनिश्
ु चित करने के लिए न््ययायिक स््वतंत्रता को कायम रखना।
z जनहित याचिकाओ ं के लिए मानक निर््धधारित करना: जनहित याचिकाओ ं
z सवं ैधानिक उद्देश््यपरकता का सिद््धाांत: एनसीटी बनाम भारत सघं के मामले के लिए स््पष्ट दिशानिर्देश तैयार किए जा सकते हैैं, जिससे यह सनिश् ु चित हो
मेें, न््ययायमर््तति
ू चद्रं चड़ू ने विधायिका और कार््यपालिका के बीच संबंधोों को सके कि वे विधायी कार्ययों का अतिक्रमण किए बिना वास््तविक जनहित को
संतलु ित करने के लिए मल ू सिद््धाांत के रूप मेें "संवैधानिक उद्देश््यपरकता" संबोधित कर सकेें ।
पर जोर दिया। इससे यह सनिश् ु चित करने मेें मदद मिलती है कि प्रत््ययेक अगं z स््वतंत्र न््ययायिक नियुक्तियाँ: न््ययायाधीशोों की नियक्ु ति के लिए अधिक पारदर्शी
अपने निर््ददिष्ट क्षेत्र के भीतर काम करता है, जिससे निरपेक्ष शक्ति संचय को और स््वतंत्र प्रक्रिया न््ययायिक वैधता को मजबतू कर सकती है।
रोका जा सकता है। z न््ययायिक समीक्षा के प्रति सम््ममान: विधायिका को संविधान को कायम रखने
z विधायी अतिव््ययाप्ति (Legislative Overreach): विधायिका न््ययायिक प्रणाली के माध््यम से न््ययायाधीशोों की नियक्ु ति मेें कार््यपालिका की भमि ू का
सीमाओ ं का अतिक्रमण करने वाली "न््ययायिक सक्रियता" पर अक ं ु श लगाने होती है, जिससे संभावित पर््ववाग्र
ू ह के बारे मेें प्रश्न उठते हैैं।
z अधिकरण (Tribunals): सरकार अर्दद्ध-न््ययायिक शक्तियोों वाले अधिकरणोों
के उद्देश््य से काननू पारित कर सकती है। (उदाहरण: जनहित याचिकाओ ं को
प्रतिबंधित करने या काननोू ों की समीक्षा करने की न््ययायपालिका की शक्ति को की स््थथापना करती है, जिससे न््ययायिक व््ययाख््यया और कार््यपालिका की कार््रवाई
के बीच की रे खाएँ अस््पष्ट हो जाती हैैं।
सीमित करने का प्रयास)।
z राष्टट्रपति/राज््यपाल को उन््ममुक्ति (Presidential/Gubernatorial
z न््ययायिक अतिव््ययाप्ति (Judicial overreach): कुछ महत्तत्वपर््ण ू मामलोों मेें Immunity): राष्टट्रपति और राज््यपालोों को आधिकारिक कार्ययों के लिए
न््ययायपालिका को प्रासंगिक काननोू ों के अभाव मेें दिशा-निर्देश बनाने के लिए अदालती कार््यवाही से उन््ममुक्ति प्राप्त होती है, जिससे न््ययायिक निगरानी सीमित
आगे आना पड़़ा है, जिससे विधायी और न््ययायपालिका के कार्ययों के बीच हो जाती है।
स््वतंत्र कार््य करने की रे खाएँ और अधिक धधंु ली हो गई हैैं। z दया सब ं ंधी शक्तियां (Mercy Powers): कार््यपालिका के सदस््योों के रूप
उदाहरण: 2जी स््पपेक्टट्रम मामला, जिसमेें न््ययायपालिका द्वारा लाइसेेंस रद्द मेें राष्टट्रपति और राज््यपाल के पास दया प्रदान करने की शक्ति है, जो कि
करने के परिणामस््वरूप कार््यपालिका द्वारा नीतिगत परिवर््तन किए गए, जो एक विशिष्ट न््ययायिक कार््य है। यह कार््ययात््मक अतिव््ययाप्ति (ओवरलैपिंग) को
सरकार के अगों ों के बीच परस््पर जटिल संबंध का उदाहरण है। रे खांकित करता है।
z सस ं दीय विशेषाधिकार (Parliamentary Privileges): विधायिका के z न््ययायालय की अवमानना (Contempt of Court): न््ययायालयोों के पास
पास अवमानना के लिए दडि ं त करने की शक्ति है, जो न््ययायपालिका के अधिकार अवमानना के लिए दडि ं त करने की शक्ति है जिसका दरुु पयोग आलोचना या
के साथ टकराव पैदा कर सकती है। असहमति को दबाने के लिए किया जा सकता है।
समय त््वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया के लिए सभी अगों ों के बीच समन््ववित लिए सद्भावनापर््णू प्रयास करना चाहिए।
कार््रवाई आवश््यक है। (उदाहरण: महामारी के दौरान, न््ययायपालिका लॉकडाउन भारतीय शासन प्रणाली मेें उपर््ययुक्त उपायोों को लागू करके शासन के विभिन््न अंगोों
उपायोों के लिए काननू ी चनु ौतियोों को तेज़़ी से आगे बढ़़ा सकती है जबकि के बीच आपसी सम््ममान और समझ की संस््ककृ ति को बढ़़ावा दिया जा सकता है।
कार््यपालिका उन््हेें लागू कर सकती है, जिससे सार््वजनिक स््ववास््थ््य और उचित जिससे शासन के प्रति अधिक सहयोगात््मक दृष्टिकोण को बढ़़ावा मिलेगा और
प्रक्रिया दोनोों सनिश्
ु चित हो सकते हैैं)। अंततः देश की प्रगति और उसके नागरिकोों का कल््ययाण सनिश् ु चित होगा।
शक्तियों का पृथ 41
z के शवानंद भारती मामला (1973): न््ययायालय ने "मल ू संरचना सिद््धाांत" की
नियंत्रण और संतल
ु न का सिद्धधांत
स््थथापना की, जिसने संसद की संशोधन शक्ति को सीमित कर दिया।
नियंत्रण और संतुलन के सिद््धाांत का उद्देश््य सरकार के किसी भी अंग को बहुत z इदि ं रा गांधी बनाम राज नारायण मामला (1975): प्रधानमत्री ं को निर््ववाचन
शक्तिशाली बनने से रोकना है। यह नागरिकोों को राज््य की शक्ति के मनमाने या संबंधी चनु ौतियोों से बचाने वाले संशोधन को रद्द कर दिया गया।
निरंकुश उपयोग से बचाता है। भारतीय शासन प्रणाली मेें नियंत्रण और संतुलन का सिद््धाांत लोकतांत्रिक
भारत के संविधान मेें प्रावधान: पृथक््करण और समन््वय के आदर््श को व््यवस््थथित करता है। लोकतंत्र मेें शासन
भारत के संविधान मेें विभिन््न प्रावधानोों के माध््यम से नियंत्रण और संतुलन के के प्रत््ययेक अंग की एक विशेष भमि ू का होती है, जो कुशल शासन मेें योगदान
सिद््धाांत को शामिल किया गया है जो इस प्रकार वर््णणित हैैं: देता है। यह प्रणाली एक स््वस््थ लोकतंत्र के लिए महत्तत्वपर््णू है, जो यह सनिश्
ु चित
z न््ययायिक समीक्षा (अनुच््छछेद 13): न््ययायपालिका विधायिका द्वारा पारित
करता है कि किसी एक इकाई के पास पूर््ण शक्ति या एकाधिकार न हो और
काननोू ों की समीक्षा कर सकती है और असंवैधानिक पाए जाने पर उन््हेें रद्द या नागरिकोों के अधिकार सुरक्षित रह सकेें ।
शन्ू ्य घोषित कर सकती है।
z न््ययायिक सीमाएँ (अनुच््छछेद 21): न््ययायपालिका स््वयं सस् ु ्थथापित काननू ी प्रमुख शब्दावलियाँ
प्रक्रियाओ ं से बंधी हुई है। नियंत्रण और संतुलन; संवैधानिक उद्देश््यपरकता; कार््यकारी,
z कार््यपालिका द्वारा नियुक्तियाँ: कार््यपालिका न््ययायाधीशोों की नियक्ु ति करती विधायी और न््ययायिक अतिव््ययाप्ति; सद्भावपूर््ण समन््वय; भविष््यलक्षी
है, जिसमेें राष्टट्रपति की भमि
ू का होती है। ओवररूलिंग का सिद््धाांत; अधिकारातीत (शक्तियोों से परे); कानून
z सस ं दीय प्रणाली: भारत मेें संसदीय शासन प्रणाली अपनाई गयी है, जहाँ और समानता का शासन आदि।
कार््यपालिका विधायिका से ली जाती है। इसके अनसु ार कार््यपालिका और
विगत वर्षषों के प्रश्न
विधायिका के मध््य समन््वय और सहयोग आवश््यक है।
z न््ययायिक विधान भारत के सवं िधान मेें वर््णणित शक्तियोों के पृथक््करण के सिद््धाांत
नियंत्रण और संतल
ु न के उदाहरण: के विपरीत है। इस संदर््भ मेें कार््यकारी अधिकारियोों को दिशा-निर्देश जारी करने
z विधायिका बनाम कार््यपालिका: राष्टट्रपति संसद का अधिवेशन आमत्रि ं त की प्रार््थना करते हुए बड़़ी संख््यया मेें जनहित याचिकाएँ दायर करने का औचित््य
कर सकता है, स््थगित कर सकता है (एक निश्चित समय सीमा तक स््थगित बताएँ। (2020)
कर सकता है) या लोक सभा का विघटन कर सकता है (अनच्ु ्छछे द 85)। दसू री z क््यया आपको लगता है कि भारत का संविधान शक्तियोों के सख््त पृथक््करण
ओर, ससं द सवं िधान का उल््ललंघन करने के लिए राष्टट्रपति पर महाभियोग चला के सिद््धाांत को स््ववीकार नहीीं करता है, बल््ककि यह 'नियंत्रण और संतल ु न' के
सकती है (अनच्ु ्छछे द 61)। सिद््धाांत पर आधारित है? समझाइए। (2019)
z कार््यपालिका बनाम न््ययायपालिका: कार््यपालिका न््ययायाधीशोों की नियक्ु ति z अध््ययादेशोों का सहारा लेने से हमेशा शक्तियोों के पृथक््करण सिद््धाांत की भावना
करती है, लेकिन न््ययायपालिका न््ययायिक समीक्षा के माध््यम से कार््यपालिका के उल््ललंघन के बारे मेें चितं ा उत््पन््न हुई है। अध््ययादेश जारी करने की शक्ति को
के कार्ययों की समीक्षा कर सकती है (उदाहरण के लिए, के शवानंद भारती बनाम उचित ठहराने वाले तर्ककों पर ध््ययान देते हुए यह विश्ले षण करेें कि क््यया इस मद्ु दे
के रल राज््य और मिनर््ववा मिल््स बनाम भारत सघं )। पर उच््चतम न््ययायालय के निर््णयोों ने इस शक्ति का सहारा लेने को और अधिक
z विधायिका बनाम न््ययायपालिका: संसद महाभियोग के माध््यम से सवु िधाजनक बनाया है। क््यया अध््ययादेश जारी करने की शक्ति को निरस््त कर
न््ययायाधीशोों को हटा सकती है, लेकिन न््ययायपालिका उन काननोू ों को अमान््य दिया जाना चाहिए? (2015)
कर सकती है जिन््हेें वह असंवैधानिक मानती है (उदाहरण के लिए, के शवानंद z 'मल ू संरचना' सिद््धाांत के आविष््ककार से लेकर न््ययायपालिका ने यह सनिश् ु चित
भारती मामला)। करने मेें अत््यधिक सक्रिय भमि ू का निभाई है कि भारत एक सदृु ढ़ लोकतंत्र के
रूप मेें विकसित हो। इस कथन के आलोक मेें, लोकतंत्र के आदर्शशों को प्राप्त
प्रमुख उदाहरण:
करने मेें न््ययायिक सक्रियता द्वारा निभाई गई भमि ू का का मल्ू ्ययाांकन करेें।(2014)
z गोलकनाथ मामला (1967): न््ययायालय ने मलू अधिकारोों को सीमित करने z भारत का उच््चतम न््ययायालय सवं िधान मेें सश ं ोधन करने की ससं द की मनमानी
वाले सश
ं ोधन को असवं ैधानिक घोषित कर दिया। शक्ति पर नियंत्रण रखता है। समालोचनात््मक रूप से चर््चचा करेें। (2013)
अपेक्षाएँ अक््सर उनकी राजनीतिक आकांक्षाओ ं को बाधित करती हैैं। और स््वच््छता जैसे महिला केें द्रित मद्दु दों पर अधिक ध््ययान केें द्रित किया है।
चाहिए, लेकिन वे आम तौर पर एक राजनीतिक दल के टिकट पर सदन के सहायता के लिए दो वरिष्ठ सदन के सदस््योों की एक समिति नियक्त ु करने
लिए चनु े जाते हैैं। ब्रिटेन मेें, स््पपीकर परू ी तरह से एक गैर-राजनीतिक व््यक्ति है। का मॉडल विचार करने योग््य मामला है। ब्रिटेन मेें, एक ससं दीय परंपरा
हमारे संवैधानिक निर््ममाताओ ं ने स््पपीकर कार््ययालय से सत््यनिष्ठा और निष््पक्षता विकसित हुई है, जिसमेें अध््यक्ष के रूप मेें निर््ववाचित एक सांसद संबंधित
की परिकल््पना की। लेकिन इसे राजनीतिक हितोों द्वारा उत्तरोत्तर ग्रहण कर लिया पार्टी से इस््ततीफा दे देता है। इससे उनकी निष््पक्षता पर विश्वास बढ़ता है।
z सरकार और विपक्ष के बीच सहयोगः सरकार और विपक्ष दोनोों को सहयोग
गया है और सत्तारूढ़ दल की जरूरतोों के अधीन कर दिया गया है।
के शम मे घचंद्र सिंह बनाम भारत संघ करने की आवश््यकता है ताकि ससं द सचु ारू रूप से काम कर सके और अध््यक्ष
z कानूनी स््थथितिः दल-बदल विरोधी निर््णय स््वतंत्र रूप से संचालित होता है
को अक््सर कठिन परिस््थथितियोों मेें न डाला जाए।
और लोकसभा या राज््य विधानसभा के अनमु ोदन के अधीन नहीीं होता है। z लोकतांत्रिक लोकाचारः इसके अलावा, माननीय पद की अध््यक्षता करते
ई-प््ललेटफॉर््म के उपयोग और अधिक अदालतोों की स््थथापना के माध््यम से से परामर््श करने के बाद राष्टट्रपति द्वारा जो वह आवश््यक समझता है।
न््ययायिक बनि ु यादी ढाँचे मेें सधु ार z अनुच््छछेद 217: उच््च न््ययायालय के न््ययायाधीशोों की नियुक्ति
परामर््श के माध््यम से मक ु दमेबाजी से पहले के चरण मेें विवाद निपटान। उच््च न््ययायालय के मुख््य न््ययायाधीशः सीजेआई और संबंधित राज््य
मौजद ू ा वैकल््पपिक विवाद समाधान (ADR) तंत्र को मजबतू करना। के राज््यपाल के परामर््श के बाद राष्टट्रपति द्वारा।
z मामलोों का समूहः अधिक लंबित मामलोों वाले विशिष्ट प्रकार के मामलोों की अन््य न््ययायाधीशः सीजेआई और सब ं ंधित राज््य के राज््यपाल और
पहचान की जाएगी और इसके लिए एक विशेष समिति नियक्त ु की जाएगी। संबंधित उच््च न््ययायालय के मख्ु ्य न््ययायाधीश के परामर््श के बाद राष्टट्रपति
उदाहरणार््थ, हाल ही मेें अदालत ने पैनल को चेक बाउंस मामलोों को क््ललियर द्वारा।
करने की सिफारिश की, जो ट्रायल कोर््ट मेें लगभग 30% से 40% मामलोों कॉलेजियम प्रणाली
का गठन करता है। भारत के मख्ु ्य न््ययायाधीश, सर्वोच््च न््ययायालय के चार वरिष्ठ न््ययायाधीशोों की एक
z विधि सच ू ना प्रबंधन और ब्रीफिंग सिस््टम (LIMBS): काननू और न््ययाय समिति सर्वोच््च न््ययायालय और उच््च न््ययायालय मेें न््ययायाधीशोों की नियुक्तियोों
मत्रा
ं लय के तहत काननू ी मामलोों के विभाग द्वारा बनाया गया एक वेब-आधारित और स््थथानांतरण से संबंधित निर््णय लेती है।
एप््ललिके शन है, जो एक ही स््थथान पर काननू ी डेटा उपलब््ध कराने और भारत
तीन न्यायाधीशोों के मामले
संघ की ओर से आयोजित मक ु दमेबाजी के मामलोों की प्रक्रिया को सव्ु ्यवस््थथित
करने के लिए है। z प्रथम न््ययायाधीश मामला (एस पी गुप्ता मामला) 1981 : सीजेआई से
परामर््श का मतलब सहमति नहीीं है और इसका मतलब के वल विचारोों का
z न््ययायाधीशोों द्वारा मध््यस््थता, सल ु ह, लोक अदालत आदि जैसे वैकल््पपिक
आदान-प्रदान है। कार््यपालिका को अधिक अधिकार मिलना चाहिए।
विवाद समाधान तंत्ररों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके अलावा,
एनएएलएसए (NALSA), एसएएलएसए (SALSA) और डीएएलएसए z द्वितीय न््ययायाधीश मामला, 1993: सीजेआई से परामर््श का मतलब सहमति
(DALSA) जैसे काननू ी सेवा प्राधिकरण जागरूकता पैदा कर सकते हैैं। है यानी सीजेआई द्वारा दी गई सलाह राष्टट्रपति के लिए बाध््यकारी है। हालांकि,
सीजेआई को दो वरिष्ठतम न््ययायाधीशोों से परामर््श करने की आवश््यकता है।
z मीडिया की भूमिकाः लोकतंत्र के चौथे स््ततंभ के रूप मेें मीडिया को लंबित
z तृतीय न््ययायाधीश मामला, 1998: मख्ु ्य न््ययायाधीश को अपनी राय बनाने
मामलोों पर समय-समय पर और रचनात््मक रिपोर््टििंग करनी चाहिए। इससे दोहरे
के लिए सप्रीम
ु कोर््ट के चार वरिष्ठतम न््ययायाधीशोों से परामर््श करना चाहिए।
लाभ होोंगे। एक न््ययायाधीशोों पर बेहतर जवाबदेही स््थथापित होगी दसू रा न््ययायिक
मामलोों की लंबितता पर सार््वजनिक क्षेत्र मेें चर््चचा होगी। कॉलेजियम प्रणाली मेें कमी
विधि के शासन की संस््ककृति प्रबल होनी चाहिए क््योोंकि शक्तिशाली z निरंकुशः यह एक संवैधानिक निकाय नहीीं है। कॉलेजियम के गठन को
सरकारोों पर अन््य तरीकोों से नियंत्रण मुश््ककिल है। सव्ु ्यवस््थथित, सल ु भ, न््ययायपालिका मेें नियक्तियो
ु ों और स््थथानांतरण को नियंत्रित करने के लिए
किफायती और त््वरित न््ययाय वितरण एक आर््थथिक और सामाजिक गुणक के रूप न््ययायपालिका के एक कार््य के रूप मेें माना जा सकता है
मेें कार््य करता है। निष््पक्ष और त््वरित सुनवाई के अधिकार को सभी परिस््थथितियोों z अपारदर््शशिताः कामकाज मेें पारदर््शशिता की कमी > अलोकतांत्रिक
मेें बरकरार रखा जाना चाहिए क््योोंकि यह भारतीय संविधान के अनुच््छछे द 21 के z विधि आयोग (230वीीं रिपोर््ट)
कॉलेजियम प्रणाली (अक ं ल जज सिंड्रोम) के कामकाज मेें भाई-भतीजावाद,
तहत गरिमापूर््ण जीवन का एक महत्तत्वपूर््ण घटक है।
भ्रष्टाचार और व््यक्तिगत संरक्षण प्रचलित हैैं।
z अनुच््छछेद 74 का उल््ललंघनः राष्टट्रपति मत्रि ं परिषद की सहायता और सलाह
प्रमुख शब्दावलियाँ पर कार््य करेेंगे
z योग््यता बनाम वरिष्ठताः वरिष्ठता नियम के कारण बेहतर योग््यता और बेहतर
कार््यवाही प्रक्रिया की पनु र््रचना, विधि सूचना प्रबंधन और ब्रीफिंग ट्रैक रिकॉर््ड वाले जजोों को किसी तल ु नात््मक रूप से कम योग््य जज के लिए
सिस््टम, लोक अदालतेें, रास््तता बनाने के लिए दरकिनार किये जाने की सभं ावना होती है।
z विचारोों मेें विविधताः अलग-अलग जीवन के अनभु वोों के कारण मेें से, 411 विशिष्ट POCSO अदालतोों सहित 764 FTSCS, जनवरी
न््ययायपालिका मेें विभिन््न हाशिये पर रहने वालोों का प्रतिनिधित््व होना निश्चित 2023 तक 28 राज््योों / केेंद्रशासित प्रदेशोों मेें कार््यरत हैैं।
रूप से मल्ू ्यवान है। पीठ पर विविधता वैधानिक व््ययाख््ययाओ ं के लिए वैकल््पपिक (इन एफएसटीसी मेें 1.98 लाख मामले लंबित हैैं)
और समावेशी दृष्टिकोण लाएगी।
z 14वाँ वित्त आयोगः 1800 एफटीसी (4144.00 करोड़ रुपये) की स््थथापना
z महिला सशक्तीकरण की ओर मुड़नाः न््ययायाधीशोों के रूप मेें अधिक महिलाएँ
और राज््य से इस प्रयास को निधि देने के लिए केें द्रीय करोों (42%) के बढ़़े
अन््य महिलाओ ं के लिए आदर््श होोंगी और इस प्रकार महिला सशक्तीकरण को
हुए हस््तताांतरण का उपयोग करने का आग्रह किया।
समग्र रूप से बढ़़ावा मिलेगा।
z विधि और न््ययाय मंत्रालय: महिलाओ ं की सरु क्षा के लिए राष्ट्रीय मिशन
आगे का राह (NMSW) के एक हिस््ससे के रूप मेें बलात््ककार और पॉस््कको अधिनियम के
z प्रभावी दीर््घकालिक योजनाः निचली न््ययायपालिका मेें सभं ावित महिला मामलोों के लिए 1023 एफटीएससी स््थथापित करने की योजना।
उम््ममीदवारोों के आक ं ड़ों का संग्रह, हाशिये पर रहने वाली महिलाओ ं का z निपटाये गये महत्तत्वपूर््ण मामले: 26/11 हमला मामला, बेस््ट बेकरी मामला।
प्रतिनिधित््व सनिश्
ु चित करने के लिए नियक्ति
ु मानदडों ों पर फिर से विचार करना। एफटीसी के लाभ
z लिंग सवं ेदीकरणः"रूढ़़िवादी" और "पितृसत्तात््मक" दृष्टिकोण के
z लंबित मामलोों को कम करनाः एफटीसी ने अन््य अदालतोों पर बोझ को
न््ययायाधीशोों को संवेदनशील मामलोों मेें महिलाओ ं को वस््ततु मानने वाले कम करने के लिए लाखोों मामलोों को हल किया है।
आपत्तिजनक आदेश पारित करने से रोकने के लिए संवेदनशील बनाया जाना
z न््ययायिक प्रभावकारिताः सरलीकृ त प्रक्रिया-> उच््च मामला निपटान दर और
चाहिए।
त््वरित परीक्षण दर-> न््ययायिक प्रभावकारिता को बढ़़ाती है।
z महिलाओ ं को पेशे मेें बनाए रखना: सरकारोों को निचली न््ययायपालिका के
z विशेषज्ञता को बढ़़ावा देनाः विशिष्ट प्रकार के मामलोों को संभालने के लिए
वेतन और भत्ततों को तर््क संगत बनाना चाहिए और अनिश्चितता को कम करने
एफटीसी की स््थथापना की जाती है। यह उस क्षेत्र के विशेषज्ञञों को न््ययायाधीशोों
के लिए महिला वकीलोों को आय की सरु क्षा प्रदान करनी चाहिए।
के रूप मेें नियक्त
ु करने मेें सक्षम बनाता है।
z सामाजिक मानसिकता: न््ययायाधीशोों और वकीलोों को योग््यता के आधार
z निरंतरता और पूर््ववानुमानः एफटीसी मेें उच््च प्रदर््शन दर होती है और वे
पर आक ं ा जाएगा न कि लिंग के आधार पर। स््थथिर और नियमित होते हैैं। यह उच््च सटीकता के साथ न््ययाय प्रदान करता है।
z आरक्षणः उच््च न््ययायपालिका मेें भी योग््यता को कम किए बिना अधीनस््थ
z निवारक के रूप मेें कार््य करेेंः त््वरित न््ययाय समाज मेें अपराध को कम करने
न््ययायपालिका जैसी महिलाओ ं के लिए क्षैतिज आरक्षण होना चाहिए।
मेें एक प्रभावी निवारक के रूप मेें कार््य करता है।
फास्ट ट््र क
रै न्यायालय z प्रभावशीलता मेें वद््धििः
ृ त््वरित न््ययाय के परिणामस््वरूप हमारी न््ययायिक
प्रणाली की दक्षता और प्रभावशीलता मेें वृद्धि होती है, जिससे भारत मेें न््ययाय
z हाल ही मेें, काननू मत्री
ं ने फास््ट-ट्रैक अदालतोों (FTC) और फास््ट-ट्रैक विशेष
वितरण तंत्र मेें लोगोों का विश्वास बढ़ता है।
अदालतोों (FTSCs) की स््थथापना मेें तेजी लाने पर जोर दिया.
z फास््ट-ट्रैक अदालत और फास््ट-ट्रैक विशेष अदालत समर््पपित अदालतेें हैैं जिनसे संबंधित मुद्दे
न््ययाय का त््वरित वितरण सनिश् ु चित करने की उम््ममीद की जाती है। z प्रणालीगत मुद््देेः
z अनुच््छछेद 247: संसद द्वारा बनाए गए काननोू ों या संघ सचू ी के संबंध मेें किसी भी निपटाए जाने वाले मामलोों की तल ु ना मेें एफटीसी और न््ययायाधीशोों
मौजदू ा काननोू ों के बेहतर प्रशासन के लिए कुछ अतिरिक्त अदालतोों की स््थथापना। की अपर््ययाप्त सख्ं ्यया। उदाहरणार््थ, दिल््लली एफटीसी मेें के वल एक या दो
ऐतिहासिक विकास न््ययायाधीश हैैं।
z 11वाँ वित्त आयोग 1734 फास््ट ट्रैक अदालतोों की स््थथापना: > निचली तदर््थवाद (Ad-Hocism): लंबित मामलोों को निपटाने के लिए स््थथापित
न््ययायपालिका मेें लंबित मामलोों, विशेष रूप से विचाराधीन मामलोों का त््वरित करने के बजाय, विशिष्ट घटनाओ ं के आधार पर स््थथापित किया गया।
निपटान।
z भारी कार््यभारः न््ययायाधीशोों की बढ़ती संख््यया के बिना सौौंपे गए मामलोों मेें
z उच््च न््ययायालय ने उच््च न््ययायालय के सेवानिवृत्त न््ययायाधीशोों, योग््य बार सदस््योों
वृद्धि-> एफटीसी मेें लंबित मामलोों मेें वृद्धि
आदि से तदर््थ आधार पर न््ययायाधीशोों की नियक्ति ु की।
z 2005: 1562 एफटीसी कार््ययात््मक: > योजना 2011-> 2011 तक बढ़़ाई z कोई विशेष या तेज प्रक्रिया नहीींः नियमित अदालतोों की तरह सामान््य
गईः 1192 एफटीसी कार््य कर रहे है। देरी। एनसीआरबी (2018) के अनसु ार एफटीसी मेें किए गए 28,000 परीक्षणोों
z 2011 के बाद: कोई केें द्रीय फंडिंग नहीीं और राज््य अपने फंड से एफटीसी (trials) मेें से 78% को परू ा होने मेें एक वर््ष से अधिक का समय लगा।
स््थथापित करेेंगे।
आगे का मार््ग मेें कोलकाता मेें और पश्चिमी क्षेत्र मेें मुंबई मेें चार कै सेशन बेेंच
क्षमता निर््ममाण और बुनियादी ढाँचे मेें सध (अपीलीय पीठ) हैैं।
z ु ारः अतिरिक्त न््ययायाधीशोों की
नियक्ति
ु , एफटीसी को स््थथायी बनाना, समर््पपित अदालत कक्ष, तकनीकी सवु िधाएँ क्षेत्रीय पीठोों की आवश्यकता
आदि प्राथमिकताएँ होनी चाहिए z समावेशी न््ययाय वितरणः अनच्ु ्छछे द 39ए राज््य को यह सनिश् ु चित करने के लिए
उच््चतम न््ययायालय द्वारा सझ ु ाव दिया गया है कि तदर््थ न््ययायाधीशोों और प्रावधान करने का निर्देश देता है कि कोई भी व््यक्ति न््ययाय पाने से वंचित न रहे।
सहायक कर््मचारियोों को स््थथायी नियक्तिु यां प्राथमिकता के आधार पर दी z सल ु भताः गरीबोों और उत्तर-पर््वू जैसे दरू -दराज के स््थथानोों मेें रहने वाले लोगोों
जानी चाहिए। के लिए दिल््लली मेें सप्रीम
ु कोर््ट तक पहुचं कम है।
z आधुनिक तकनीकः बिग डेटा एनालिसिस, एआई जैसे उपकरणोों का उपयोग z उच््च विचाराधीनताः एनजेडीजी के अनसु ार एससी मेें लगभग 83,000
मामलोों के बेहतर समहू को सनिश् ु चित करने और प्राथमिकता तय करने के लिए मामले लंबित हैैं और अपीलोों के निपटान मेें कई साल लगते हैैं।
किया जाएगा। z सवं ैधानिक न््ययायालयः संविधान पीठोों (यानी 5+ न््ययायाधीशोों) द्वारा तय किए
गए मामलोों की संख््यया लगभग 15% (1950 के दशक) से घटकर 0.12%
z राज््य सरकारोों को सवं ेदनशील बनानाः राज््य के मख्ु ्यमत्रियो ं ों और मख्ु ्य (पिछले दशक) हो गई है। क्षेत्रीय पीठोों के साथ, दिल््लली मेें सप्रीम ु कोर््ट के वल
न््ययायाधीशोों का सम््ममेलन-> राज््य, उच््च न््ययायालय के मख्ु ्य न््ययायाधीशोों के संवैधानिक काननू के मामलोों की सनु वाई कर सकता है।
परामर््श से -> उपयक्त ु संख््यया मेें एफटीसी स््थथापित करना और पर््ययाप्त धन z आर््थथिक विकासः अधिक समृद्ध राज््योों मेें नागरिक मक ु दमेबाजी की दर
उपलब््ध कराना। अधिक है। लेकिन न््ययायिक बैकलॉग ने दीवानी मामले दायर करने को
z समन््वयः एफटीसी और विशेष अदालतेें-> कम समन््वय के साथ विभिन््न हतोत््ससाहित किया-> क्षेत्रीय पीठ सही दिशा मेें एक कदम है।
न््ययायिक निकायोों के तहत-> अदालतोों के कामकाज को व््यवस््थथित रूप से z विभिन््न समितियोों द्वारा अनुशंसित
सव्ु ्यवस््थथित करने के लिए केें द्र और राज््य सरकारोों द्वारा एक प्रमख ु एजेेंसी 2004, 2006 और 2008 मेें संसदीय स््थथायी समितियोों ने इसकी सिफारिश
न्यायिक अवसंरचना क्या है? मोड की ओर बदलाव की पृष्ठभमि ू मेें, देश मेें न््ययायिक बनि ु यादी ढाँचे का
आधनि ु कीकरण स निश्
ु चित करना अधिक महत्त त्व प र्
ू ्ण है
। वर््तमान मेें, 73%
z एक कुशल "न््ययायिक बुनियादी ढाँचे" का अर््थ है न््ययाय तक समान और अदालतोों मेें वीडियो कॉन्फफ्ररेंसिंग की सवु िधा नहीीं है।
स््वतंत्र पहुचं प्रदान करना। इसे "बाधा मक्त
ु और नागरिक अनक ु ू ल वातावरण" z जवाबदेही की कमीः न््ययायिक बनि ु यादी ढाँचे को बढ़़ाने के उद्देश््य से एक
के माध््यम से प्राप्त किया जा सकता है। समर््पपित विशेष प्रयोजन माध््यम संस््थथा (special purpose vehicle) या
z इसमेें अदालतोों, न््ययायाधिकरणोों, वकीलोों के कक्ष, डिजिटल और मानव निकाय के अभाव मेें, कोई भी बनि ु यादी ढांचा परियोजनाओ ं को निष््पपादित
ससं ाधन अवसरं चना आदि के भौतिक परिसर शामिल हैैं। जो समय पर न््ययाय करने की जिम््ममेदारी लेने को तैयार नहीीं है।
सनिश्
ु चित करने के लिए आवश््यक हैैं। z निधियोों का कम उपयोगः कुछ राज््य निधियोों का कुछ हिस््ससा गैर-न््ययायिक
भारत मेें खराब न्यायिक बुनियादी ढााँचे के कारण उद्देश््योों के लिए हस््तताांतरित करते हैैं। केें द्र प्रायोजित योजना(CSS) के तहत
z कम बजटीय आवंटनः भारत न््ययायिक बनि ु यादी ढाँचे को बनाए रखने के 2019-20 मेें स््ववीकृ त कुल 981.98 करोड़ रुपये मेें से के वल 84.9 करोड़ रुपये
लिए अपने सकल घरे लू उत््पपाद का के वल 0.09% खर््च करता है। का उपयोग संयक्त ु रूप से पांच राज््योों द्वारा किया गया, जिससे शेष 91.36%
धनराशि का उपयोग नहीीं किया गया।
उच््चतम न््ययायालय द्वारा प्रकाशित 2023 की एक रिपोर््ट से पता चला है
कि मौजदू ा बनि ु यादी ढाँचे मेें 25,081 की अखिल भारतीय वर््तमान स््ववीकृ त अत््ययाधनि ु क न््ययायिक बुनियादी ढाँचे को बढ़़ाने और बनाने के लिए तंत्र को
संख््यया के मक ु ाबले जिला न््ययायपालिका मेें न््ययायाधीशोों की के वल 20,831 संस््थथागत बनाने से मात्रात््मक और गुणात््मक न््ययाय देने मेें मदद मिलेगी और
स््ववीकृ त सख्ं ्यया को समायोजित किया जा सकता है। न््ययाय तक वंचित और अभावग्रस््त लोगोों की पहुचँ सनिश् ु चित होगी।
z योजना की कमीः बनि ु यादी ढाँचे पर अधिक बोझ है क््योोंकि निर््ममाण के दौरान
ही भविष््य की जरूरतोों को पर््ययाप्त रूप से ध््ययान मेें नहीीं रखा गया है। प्रमुख शब्दावलियाँ
z जटिल वित्तपोषणः न््ययायिक बनि ु यादी ढाँचे के वित्तपोषण के लिए जिला भारतीय राष्ट्रीय न््ययायिक अवसंरचना प्राधिकरण, सरकारिया आयोग
कलेक््टर, लोक निर््ममाण विभाग और वित्त मत्रा ं लय सहित राज््य सरकार के की रिपोर््ट, राष्टट्रपति शासन, निधियोों का अल््प उपयोग, संवैधानिक
विभिन््न विभागोों के बीच समन््वय की आवश््यकता होती है। आपातकाल, न््ययायपालिका का डिजिटलीकरण,
z सस ं ाधनोों का विलंब और अल््प उपयोगः अधीनस््थ न््ययायपालिका के लिए
बनि
ु यादी ढाँचे के विकास की प्राथमिक जिम््ममेदारी राज््य सरकारोों की होती है। विगत वर्षषों के प्रश्न
कुछ राज््य या तो प्रक्रिया मेें देरी कर रहे हैैं या योगदान के हिस््ससे के रूप मेें z हाल के समय मेें भारत और य.ू के . की न््ययायिक व््यवस््थथाएँ अभिसरणीय एवं
अपने हिस््ससे का धन नहीीं दे रहे हैैं। अपसरणीय होती प्रतीत हो रही हैैं। दोनोों राष्टट्ररों की न््ययायिक कार््यप्रणालियोों के
z कार््यपालिका पर न््ययायपालिका की निर््भरता: परियोजना का डिजाइन, आलोक मेें अभिसरण और अपसरण के मख्ु ्यया बिंदओ ु ं को आलोकित कीजिए।
निगरानी और बनि ु यादी ढाँचे का निष््पपादन, मख्ु ्य रूप से भवन बनि
ु यादी ढांचा, (2020)
लोक निर््ममाण विभागोों (PWD) का एकमात्र विशेषाधिकार है। z न््ययायिक विधायन भारतीय संविधान मेें परिकल््पपित शक्ति पृथक््करण सिद््धाांत
न्यायिक बुनियादी ढााँचे मेें सुधार की आवश्यकताः का प्रतिरक्षी है। इस संदर््भ मेें कार््यपालक अधिकरणोों को दिशा-निर्देश देने की
प्रार््थना करने संबंधी, बड़़ी संख््यया मेें दायर होने वाली, लोक हित याचिकाओ ं
z उच््च लंबितताः 4.4 करोड़ से अधिक लंबित मामलोों का एक बड़़ा बैकलॉग
का न््ययाय औचित््य सिद्ध कीजिये। (2020)
है। वित्त मत्रा
ं लय के एक अध््ययन मेें पाया गया कि संपत्ति से संबंधित विवाद z भारत मेें उच््चतर न््ययायपालिका मेें न््ययायाधीशोों की नियक्ति
ु के सदं र््भ मेें ‘राष्ट्रीय
को हल करने मेें औसतन लगभग 20 साल लगते हैैं और निपटान की वर््तमान न््ययायिक नियक्ति
ु आयोग अधिनियम, 2014’ पर सर्वोच््च न््ययायालय के निर््णय
दर पर वर््तमान बैकलॉग को दरू करने मेें 324 साल लगेेंगे। का समालोचनात््मक परीक्षण कीजिए। (2017)
सल ु ह जैसे उपकरण शामिल होते हैैं। शक्तियां: आपराधिक और दीवानी दोनोों न््ययायालयोों की शक्तियां और
स््वतंत्रता के बाद प्रथम लोक अदालत शिविर 1982 मेें गज ु रात मेें उनकी ‘न््ययायिक क्षमता’ अधिनियम की पहली तीन अनसु चियो ू ों मेें निर््ददिष्ट
आयोजित किया गया था। विवादोों तक सीमित हैैं।
z अधिकार क्षेत्र: ऐसे मामले (या विवाद) जो न््ययायालय मेें लंबित हैैं या जो उद्देश््य: सल ु ह-समझौते के माध््यम से विवादोों का निपटारा करना।
मक ु दमे-पर््वू चरण मेें हैैं (अभी न््ययायालय के समक्ष नहीीं लाए गए हैैं)। साक्षष्य के नियमोों से बाध््य नहीीं: भारतीय साक्षष्य अधिनियम, 1872 के
लोक अदालतोों मेें वैवाहिक/पारिवारिक विवाद, आपराधिक (समझौता
तहत, लेकिन संबंधित उच््च न््ययायालयोों द्वारा तैयार नियमोों के अधीन और
योग््य अपराध) मामले, भमि ू अधिग्रहण मामले आदि निपटाए जाते हैैं।
प्राकृ तिक न््ययाय के सिद््धाांतोों द्वारा निर्देशित।
ऐसे अपराध जो किसी भी कानन ू के अतं र््गत गैर-समझौता योग््य (गभं ीर
अपील: सिविल मामलोों मेें जिला न््ययायालय मेें तथा आपराधिक मामलोों
प्रकृ ति के ) हैैं, लोक अदालत के दायरे से बाहर हैैं।
z वर््तमान स््थथिति: विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम,1987 के तहत लोक मेें सत्र न््ययायालय मेें।
अदालत संस््थथाओ ं को सांविधिक दर््जजा दिया गया है। अवस््थथापना: मध््यवर्ती स््तर पर प्रत््ययेक पंचायत के मख् ु ्ययालय पर या
z आयोजक प्राधिकरण: राज््य/जिला विधिक सेवा प्राधिकरण या सर्वोच््च किसी जिले मेें सन््ननिहित पंचायतोों के समहू पर जहाँ मध््यवर्ती स््तर पर
न््ययायालय/उच््च न््ययायालय/तालक ु ा विधिक सेवा समिति लोक अदालतोों का कोई पंचायत नहीीं है।
आयोजन कर सकती हैैं।
ग्राम न्यायालय के खराब कामकाज के कारण
z सदस््य: लोक अदालत के सदस््योों मेें एक न््ययायिक अधिकारी (अध््यक्ष), एक
वकील (अधिवक्ता) और एक सामाजिक कार््यकर््तता शामिल होते हैैं। z क्षेत्राधिकार का अतिव््ययापन: पिछले कुछ वर्षषों मेें कई राज््योों ने तालक ु ा
z लोक अदालत की शक्तियाँ: लोक अदालतोों को वही शक्तियां प्राप्त हैैं जो स््तर पर नियमित न््ययायालयोों की स््थथापना की है, जिससे ग्राम न््ययायालय जैसी
सिविल (दीवानी) प्रक्रिया संहिता (1908) और दडं प्रक्रिया संहिता (1973) अतिरिक्त संस््थथा की आवश््यकता कम हो गई है।
के तहत सिविल (दीवानी) न््ययायालयोों को प्राप्त हैैं। z राज््योों की सक्रियता का अभाव: के न्दद्र सरकार द्वारा 1400 करोड़ रुपये के
लोक अदालत के निर््णयोों के विरुद्ध किसी भी न््ययायालय मेें कोई अपील आवंटन के बावजदू अधिकांश राज््य सरकारोों ने अपनी नीतिगत प्राथमिकताओ ं
नहीीं की जा सके गी। मेें ग्राम न््ययायालयोों को दरकिनार कर दिया है।
लोक अदालत का एक लाभ यह है कि विभिन््न पक्षषों के बीच अनेक विवादोों
ग्राम न््ययायालयोों की स््थथापना के लिए राज््योों से प्रस््ततावोों की कमी के कारण
को बिना अधिक समय बर््बबाद किये एक ही बार मेें निपटाया जा सकता है। योजना के अतं र््गत धन उपयोग की गति धीमी है।
z मोबाइल लोक अदालत प्रणाली: जरूरतमदों ों और गरीबोों के दरवाजे तक
z मानव सस ं ाधनोों की कमी: ग्राम न््ययायाधिकरियोों के पद के लिए न््ययायिक
न््ययाय की पहुचँ सनिश् ु चित करने हेत,ु गतिशील (मोबाइल) लोक अदालत
अधिकारियोों की कमी, नोटरी, स््टटाम््प विक्रे ताओ ं आदि की अनपु लब््धता ने
प्रणालियोों की शरू ु आत के साथ लोक अदालतोों के प्रशासन मेें भी क््राांतिकारी
प्रगति मेें बाधा उत््पन््न की है।
बदलाव हो रहे हैैं।
z स््पष्टता का अभाव: ग्राम न््ययायालय त््वरित विवाद समाधान के लिए अतिरिक्त
ग्राम न्यायालय विकल््प प्रदान करता है या नहीीं, यह संदिग््ध है, क््योोंकि श्रम न््ययायालय और
पारिवारिक न््ययायालय जैसे वैकल््पपिक मचं पहले से ही उपलब््ध हैैं।
ग्राम न्यायालयोों का विकास z जागरूकता का अभाव: सामान््य तौर पर सभी हितधारकोों, अर््थथात् मक ु दमे
विधि आयोग ने अपनी 114 वीीं रिपोर््ट मेें निम््नलिखित उद्देश््योों से ग्राम के समाधान मेें शामिल वादियोों, वकीलोों और पलि ु स अधिकारियोों के बीच
न््ययायालयोों की स््थथापना की सिफारिश की थी: जागरूकता का दायरा अत््ययंत सीमित है।
लिंग, सामाजिक-आर््थथिक स््थथिति, नृजातीयता, नस््ल और अन््य कारकोों से से जड़ु ़े कर््मचारियोों का समय-समय पर कौशल उन््नयन।
संबंधित ऑडियो-विज़अ ़ु ल संकेतोों को अलग करते हैैं, और विवादित पक्षषों z पुराने कानूनोों को सदृ ु ढ़ करना और ODR तंत्र का विनियमन करना:
द्वारा प्रदान किए गए दावोों और सचू नाओ ं के आधार पर संघर्षषों के समाधान यह महत्तत्वपर्ू ्ण है कि नियामक दृष्टिकोण अतिम
ं उपयोगकर््तताओ ं के अधिकारोों
मेें सहायता करते हैैं। की रक्षा करे , साथ ही अत््यधिक विनियमन से बचना चाहिए जोकि नवाचार
को बाधित करता है।
विश्व के प्रमुख उदाहरण
सरकारी एजेेंसियोों को शिकायतोों के समाधान के साधन के रूप मेें ODR की
z जब भारत वैश्विक निवेश को आमत्रि ं त कर रहा था, सिंगापरु जैसे छोटे देश ने जाँच करनी चाहिए। सरकारी संस््थथाओ ं द्वारा ODR को सक्रिय रूप से अपनाने
1990 के दशक मेें सिंगापरु अतं रर््रराष्ट्रीय मध््यस््थता केें द्र की स््थथापना की थी। से न के वल इस प्रक्रिया मेें विश्वास पैदा होगा, बल््ककि नागरिकोों को सरकार के
z तब से, यह एक वैश्विक मध््यस््थता शक्ति के रूप मेें उभरा है, जैसा कि साथ विवादोों को सुलझाने का एक सुविधाजनक और लागत प्रभावी तरीका
'अनबु ंधोों के प्रवर््तन' मेें इसकी प्रथम स््थथान की रैैंकिंग से स््पष्ट है। भी मिलेगा।
z विडंबना यह है कि भारतीय कंपनियां इसके सबसे महत्तत्वपर्ू ्ण ग्राहकोों मेें
से एक हैैं। प्रमुख शब्दावलियाँ
ऑनलाइन विवाद समाधान (ODR) से जुड़़ी चुनौतियााँ डिजिटल इंडिया मिशन, भारत नेट मिशन, नदी बोर््ड, समवर्ती सूची,
z पुरानी कानूनी प्रक्रियाएँ: परु ानी प्रक्रिया, एन््ड-टू- एन््ड (End -to- End) अंतर््रराज््ययीय परिषद, मिहिर शाह की रिपोर््ट, नदियोों को जोड़ना,
ऑनलाइन विवाद समाधान प्रक्रिया के साथ अच््छछी तरह से काम नहीीं करती सहकारी संघवाद, श्रीकृ ष््ण समिति आदि।
है और ODR के लिए बाधाएँ उत््पन््न करती है।
विगत वर्षषों के प्रश्न
इसके अलावा, दस््ततावेजोों का नोटरीकरण, 1956 के नोटरी नियम के तहत
z “केें द्रीय प्रशासनिक अधिकरण, जिसकी स््थथापना केें द्रीय सरकार के कर््मचारियोों
के वल व््यक्तिगत रूप से ही संभव है, इसलिए ऑनलाइन सहायता प्राप्त
द्वारा या उनके विरुद्ध शिकायतोों एवं परिवादोों के निवारण हेतु की गई थी,
करना समस््ययाग्रस््त होगा।
आजकल एक स््वतंत्र न््ययायिक प्राधिकरण के रूप मेें अपनी शक्तियोों का प्रयोग
z डिजिटल अवसरं चना: ODR को अपनाने के लिए देश भर मेें उच््च बैैंडविड्थ कर रहा है।” व््ययाख््यया कीजिए। (2019)
इटं रनेट कनेक््शन के साथ महत्तत्वपर्ू ्ण तकनीकी अवसंरचना की आवश््यकता z आप इस मत से कहाँ तक सहमत हैैं कि अधिकरण सामान््य न््ययायालयोों की
होगी। अधिकारिता को कम करते हैैं? उपर््ययुक्त को दृष्टिगत रखते हुए भारत मेें अधिकरणोों
डिजिटल इडि ं या मिशन और भारतनेट मिशन, निर््बबाध डिजिटल कनेक््टटिविटी की संवैधानिक वैधता तथा सक्षमता की विवेचना कीजिए। (2018)
हासिल करने मेें सहायक हो सकते हैैं। z अर््ध-न््ययायिक (न््ययायिकवत)् निकाय से क््यया तात््पर््य है? ठोस उदाहरणोों की
z ODR के बारे मेें जागरूकता की कमी : ODR के बारे मेें समझ व जागरूकता सहायता से स््पष्ट कीजिए। (2016)
की कमी के कारण, वादी और उनके वकील मक ु दमा दायर करने को प्राथमिकता z राष्टट्रपति द्वारा हाल मेें प्रख््ययापित अध््ययादेश के द्वारा माध््यस््थम और सल
ु ह
देते हैैं। ODR मेें कम स््तर के भरोसे वाले व््यवसाय ODR का कम उपयोग अधिनियम, 1996 मेें क््यया प्रमख ु परिवर््तन किए गए हैैं? यह भारत के विवाद
करेेंगे। समाधान यांत्रिकत््व को किस सीमा तक सधु ारे गा? चर््चचा कीजिए। (2015)
z गोपनीयता सबं ंधी मुद्दे: ऑनलाइन छद्मवेश, ODR प्रक्रियाओ ं के दौरान z अतं र-राज््य जल विवादोों का समाधान करने मेें सवं िधानिक प्रक्रियाएँ समस््ययाओ ं
दिए गए कागजात और डेटा के प्रसार के माध््यम से गोपनीयता का उल््ललंघन, को संबोधित करने व हल करने मेें असफल रही हैैं। क््यया यह असफलता
और डिजिटल साक्षष्य या डिजिटल रूप से प्रेषित परु स््ककारोों/समझौतोों के साथ संरचनात््मक अथवा प्रक्रियात््मक अपर््ययाप्तता अथवा दोनोों के कारण हुई है?
छे ड़छाड़ गोपनीयता से संबंधित कुछ मद्देु हैैं। विवेचना कीजिए। (2013)
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) / राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) / राष्ट्रीय पिछड़ा वर् 75
17 संघ और राज्य लोक सेवा आयोग
व््यय: वेतन, भत्ते और पेेंशन भारत की सचं ित निधि द्वारा प्रदान किये जाते हैैं
संवैधानिक प्रावधान
z
और इन पर संसद मेें मतदान नहीीं किया जाता है।
अनुच््छछेद z संसद एक या एक से अधिक अखिल भारतीय सेवाओ ं z कार््यकाल की सरु क्षा: अध््यक्ष और सदस््योों को के वल सवि ं धान मेें निर््ददिष्ट
312 (अखिल भारतीय न््ययायिक सेवाओ ं सहित) का सृजन कर आधारोों पर राष्टट्रपति के आदेश द्वारा हटाया/निलंबित जा सकता है।
सकती है; जो सघं और राज््योों के लिए समान होों। z सेवानिवत्ृ ति के बाद: सघं लोक सेवा आयोग का अध््यक्ष, भारत सरकार
अनुच््छछेद z संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) और राज््य लोक सेवा या किसी राज््य सरकार के अधीन सेवानिवृत्ति पश्चात किसी अन््य नियोजन के
315 से आयोग (SPSC) की नियक्ति ु , संरचना, निलंबन तथा लिए पात्र नहीीं होता है।
323 शक्तियोों और कार्ययों से सबं ंधित प्रावधान। ‘राज््य लोक सेवा आयोग’ के अध््यक्ष को ‘संघ लोक सेवा आयोग’ का
अध््यक्ष/सदस््य नियक्त
ु किया जा सकता है। लेकिन वह किसी अन््य रोजगार
संघ और राज्य लोक सेवा आयोग के लिए पात्र नहीीं होता है।
संघ लोक सेवा आयोग राज््य लोक सेवा आयोग संघ लोक सेवा आयोग का सदस््य (अध््यक्ष के अलावा); किसी भी ‘राज््य
(UPSC) (SPSC) लोक सेवा आयोग’ या ‘सघं लोक सेवा आयोग’ का अध््यक्ष नियक्त ु होने
z सरं चना: इसमेें भारत के राष्टट्रपति z सरं चना: इसमेें राज््य के राज््यपाल
के लिए पात्र होता है।
‘राज््य लोक सेवा आयोग’ का सदस््य; ‘राज््य लोक सेवा आयोग’ या
द्वारा नियक्त
ु एक अध््यक्ष और द्वारा नियक्त
ु एक अध््यक्ष और अन््य
अन््य सदस््य होते हैैं। सदस््य होते हैैं। ‘संघ लोक सेवा आयोग’ का अध््यक्ष या ‘संघ लोक सेवा आयोग’ का
z सदस््य सख् ं ्यया: राष्टट्रपति के z सदस््य सख् ं ्यया: संबंधित राज््य के सदस््य नियक्त
ु होने के लिए पात्र होता है।
विवेकानसु ार। आमतौर पर 9 से राज््यपाल के विवेकानसु ार।
कार््य और सीमाएँ
11 सदस््य होते हैैं।
z योग््यता: कोई योग््यता निर््धधारित z योग््यता: कोई योग््यता निर््धधारित संघ लोक सेवा आयोग के कार््य सीमाएँ
नहीीं है, सिवाय इसके कि 50% नहीीं है, सिवाय इसके कि 50% z योग््यता प्रणाली का प्रहरी: यह z सर्वोच््च न््ययायालय के निर््णय:
सदस््य भारत सरकार या राज््य सदस््योों ने भारत सरकार या राज््य अखिल भारतीय सेवाओ ं और चकिँू उनमेें विधिक मान््यता होती
सरकार के अधीन कम से कम सरकार के अधीन कम से कम दस केें द्रीय सेवाओ ं मेें नियक्तियो
ु ों के है; वे संघ लोक सेवा आयोग
दस वर्षषों तक पद पर रहे होों। वर्षषों तक पद पर रहे होों। लिए परीक्षा आयोजित करता है। या राज््य लोक सेवा आयोग को
z अवधि: छह वर््ष/ 65 वर््ष की z अवधि: छह वर््ष/62 वर््ष की आय;ु सीमित कर सकते हैैं।
आय;ु जो भी पहले हो। जो भी पहले हो। z सयुं क्त भर्ती की योजना: ऐसी z गैर-बाध््यकारी प्रावधान:
z निलंबन: राष्टट्रपति द्वारा किसी z निलंबन: राष्टट्रपति सदस््योों और किसी भी सेवा के लिए सयं क्त ु सरकार सघं लोक सेवा आयोग के
व््यक्ति को दिवालिया घोषित अध््यक्ष को उन््हीीं आधारोों और भर्ती की योजना तैयार करना और परामर््श के बिना कार््य कर सकती
होने, पदावधि मेें कर््तव््योों के बाहर उसी प्रक्रिया से हटा सकते हैैं जिस संचालन मेें राज््योों की सहायता है और पीड़़ित लोक सेवक के
सवैतनिक रूप से नियोजित होने, तरह से वह संघ लोक सेवा आयोग करना, जिसके लिए विशेष पास अदालत जाने का विकल््प
मानसिक या शारीरिक दर््बलत ु ा के के अध््यक्ष या सदस््य को हटा योग््यता रखने वाले उम््ममीदवारोों नहीीं होता है।
कारण अयोग््य ठहराने के आधार सकते या निलंबित कर सकते हैैं। की आवश््यकता होती है।
पर पद से हटाया या निलंबित z राज््य की आवश््यकताओ ं की z संघ लोक सेवा आयोग द्वारा
किया जा सकता है। पूर््तति: राज््यपाल के अनरु ोध पर चयनित उम््ममीदवार का पद पर कोई
दर््व््य
ु वहार की स््थथिति मेें - सर्वोच््च न््ययायालय की जाँच के आधार पर राष्टट्रपति तथा राष्टट्रपति के अनमु ोदन से। अधिकार नहीीं होता है। उम््ममीदवार
द्वारा। का अनश ु सित
ं नाम के वल एक
आयोग की स्वतंत्रता सिफारिश होती है।
z कार््ममिक प्रबंधन के निम््नलिखित z निम््नलिखित मामलोों पर संघ लोक
z सेवा की शर्ततें: राष्टट्रपति द्वारा निर््धधारित (राज््य लोक सेवा आयोग के लिए मामलोों के लिए इससे परामर््श सेवा आयोग से परामर््श नहीीं लिया
राज््यपाल द्वारा निर््धधारित) तथा नियक्ति
ु के बाद सदस््योों के लिए इनमेें अलाभकारी किया जाता है: जाता है:
परिवर््तन नहीीं किया जा सकता।
सिविल सेवा और सिविल पदोों के नियुक्तियोों मेें किसी भी पिछड़़े वर््ग के राज््य की न््ययायिक सेवा (जिला
लिए भर्ती, पदोन््नति और स््थथानांतरण लिए आरक्षण करना । न््ययायाधीशोों के पदोों के अलावा) मेें
के तरीके । नियुक्ति के लिए नियम बनाते समय
भारत सरकार के अधीन सिविल सेवाओ ं और पदोों पर नियुक्तियोों मेें राज््यपाल द्वारा राज््य लोक सेवा
क्षमता मेें सेवारत किसी व््यक्ति अनुसचू ित जाति/अनुसचू ित जनजाति आयोग से परामर््श किया जाता है।
को प्रभावित करने वाले सभी के दावोों पर विचार करना।
अनुशासनात््मक मामले। अब तक सं घ लोक से व ा आयोग (UPSC) और राज््य लोक से व ा आयोग
किसी सिविल सेवक द्वारा अपने आयोगोों या न््ययायाधिकरणोों की (SPSC) ने सत््यनिष्ठा के साथ अपने कर््तव््योों का निर््वहन किया है जिस पर
कर््तव््योों के निष््पपादन मेें किए गए अध््यक्षता या सदस््यता, उच््चतम प्रत््यये क वर््ष लाखोों उम््ममीदवारोों का विश्वास टिका होता है। ले किन बदलते
कार्ययों के संबंध मेें उसके विरुद्ध राजनयिक प्रकृ ति के पदोों तथा समहू समय के अनुस ार, सं घ लोक से व ा आयोग (UPSC) और राज््य लोक से व ा
संस््थथित कानूनी कार््यवाहियोों का ‘ग’ व समहू ‘घ’ सेवाओ ं के लिए आयोग (SPSC) को अपनी मूल् ्ययाां क न प्रणाली हेतु साइकोमे ट्रि क टे स् ्ट
बचाव करने मेें किए गए कानूनी उम््ममीदवारोों; के चयन हेतु। जै से नवाचारी तरीकोों को शामिल करने की आवश््यकता है ताकि बे ह तर
व््ययोों की प्रतिपूर््तति का दावा । गुण वत्ता, सत््यनिष्ठा और योग््यता वाले उम््ममीदवारोों की नियुक्ति सुन िश्चित
1 वर््ष से अधिक की अस््थथायी यदि किसी व््यक्ति के एक वर््ष से की जा सके ।
नियुक्तियाँ और नियुक्तियोों का अधिक समय तक पद पर बने रहने
नियमितीकरण। की संभावना नहीीं है तो अस््थथायी
नियुक्ति के लिए। प्रमुख शब्दावलियाँ
कुछ सेवानिवृत्त सिविल सेवकोों को सेवाओ ं के वर्गीकरण, वेतन और सेवा
अखिल भारतीय सेवाएँ, मानसिक या शारीरिक दर्ु ्ब लता, भारत की
सेवा विस््ततार और पुनर््ननियुक्ति प्रदान शर्ततें, संवर््ग प्रबंधन, प्रशिक्षण आदि।
समेकित निधि, योग््यता प्रणाली का प्रहरी, संवर््ग प्रबंधन आदि।
करना ।
नगरपालिकाओ ं के चनु ावोों को सम््पन््न कराना नहीीं है क््योोंकि इन चनु ावोों के अधिनियम से संबंधित प्रमुख मुद्दे और चुनौतियाँ:
लिए, भारत के संविधान मेें एक अलग राज््य चनु ाव आयोग का प्रावधान किया z चयन मानदड ं : इसमेें कार््यपालिका का प्रभत्ु ्व हो सकता है, जिसका इसकी
गया है। स््वतंत्रता पर प्रभाव पड़ता है।
भारतीय निर््ववाचन आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया पर लगने वाले प्रश्नचिन््ह : z सवं िधान मेें रिक्तता या दोष के बावजूद चयन समिति की सिफारिशेें
z चुनाव आयोग: नियक्ति ु प्रक्रिया मेें विकास और इसकी स््ववायत्तता को सशक्त वैध होोंगी: इससे उम््ममीदवारोों के चयन मेें सरकारी सदस््योों का एकाधिकार हो
करने की आवश््यकता। सकता है, विशेष रूप से जब लोक सभा भगं हो।
z फैसले की पष्ठ ृ भूमि: 2015 मेें, अनपू बरनवाल द्वारा दायर एक जनहित z कमतर दर््जजा: मख् ु ्य चनु ाव आयक्त ु और अन््य चनु ाव आयक्त ु (CEC और
याचिका मेें, ‘चनु ाव आयोग के सदस््योों की नियक्ति ु केें द्र द्वारा करने की प्रथा’ EC) का वेतन कै बिनेट सचिव के बराबर करने से सरकारी प्रभाव बढ़ सकता
की संवैधानिक वैधता को चनु ौती दी गई थी। चनु ौती का सार यह है कि इस
है क््योोंकि यह सरकार द्वारा तय किया जाता है। इसके अलावा, मख्ु ्य चनु ाव
मद्देु पर संसद द्वारा कोई काननू नहीीं बनाया गया है, इसलिए न््ययायालय को
आयक्त ु और अन््य चनु ाव आयक्त ु (CEC और EC) अर््ध-न््ययायिक कार््य भी
“सवं ैधानिक रिक्तता” को भरने के लिए कदम उठाना चाहिए।
करते हैैं और इन पदोों को सीमित करने से वरिष्ठ नौकरशाह अन््य उपयक्त ु
चुनाव आयुक्ततों की नियुक्ति पर सर्वोच्च न्यायालय (SC) का निर््णय उम््ममीदवारोों को बाहर कर सकते हैैं।
z निर््णय: मार््च 2023 मेें सर्वोच््च न््ययायालय की पाँच न््ययायाधीशोों की पीठ ने
सर््वसम््मति से फै सला सनु ाया कि भारतीय चनु ाव आयोग (ECI) के सदस््योों का शक्तियााँ और कार््य
चनु ाव एक उच््च-स््तरीय समिति द्वारा किया जाना चाहिए, जिसमेें निम््नलिखित z प्रशासनिक:
शामिल होों: परिसीमन: सस ं द के परिसीमन आयोग अधिनियम के आधार पर परू े देश
प्रधानमत्रीं , मेें प्रादेशिक निर््ववाचन क्षेत्ररों का निर््धधारण करना।
लोक सभा मेें विपक्ष के नेता, तथा
राजनीतिक दलोों
भारत के मख् ु ्य न््ययायाधीश को मान््यता चुनाव का स््वतंत्र एवं
z मुख््य चुनाव आयुक्त और अन््य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्ततें नामांकन पत्ररों
की जाँच निष््पक्ष संचालन
और पदावधि) अधिनियम, 2023: इसने चनु ाव आयोग (चनु ाव आयक्त ु तों
की सेवा की शर्ततें और कार््य-संचालन) अधिनियम, 1991 का स््थथान लिया है। चुनावी विवादोों भारतीय चुनाव चुनाव की अनुसूची
अधिनियम की नवीन विशेषताएँ का समाधान आयोग (ECI) के अधिसूचित करेें
z सदस््योों की नियक्ति
ु , राष्टट्रपति द्वारा चयन समिति की सिफारिशोों पर की जाएगी, चुनाव परिणामोों कार््य मतदाता सूची
जिसमेें प्रधानमत्री
ं , कै बिनेट मत्री
ं और लोकसभा मेें विपक्ष के नेता (या सबसे की घोषणा तै यार करना
बड़़े विपक्षी दल के नेता) शामिल होोंगे। आचार संहिता निर््ववाचन क्षेत्ररों
z कै बिनेट सचिव की अध््यक्षता वाली एक खोज समिति, चयन समिति को पाँच तै यार करना का परिसीमन
नाम सझु ाती है। चयन समिति सझु ाए गए नामोों के अलावा अन््य नामोों पर भी मतदाता सचिय
ू ाँ: सभी पात्र मतदाताओ ं की मतदाता सचू ियाँ तैयार करना
विचार कर सकती है। तथा समय-समय पर उनमेें संशोधन करना।
चुनावोों का आयोजन: चनु ावोों की तारीखोों और कार््यक्रमोों की अधिसचन ू ा z सवं ैधानिक सरं क्षण: चनु ाव आयोग के के वल एक सदस््य के बजाय सभी
जारी करना तथा नामांकन पत्ररों की जाँच करना। तीन सदस््योों को सवं ैधानिक सरं क्षण प्रदान करने के लिए सवि
ं धान मेें सश
ं ोधन
पंजीकरण: राजनीतिक दलोों का पंजीकरण तथा उन््हेें राष्ट्रीय या राज््य किया जाए, ताकि उनकी स््वतंत्रता और सरु क्षा सनु िश्चित हो सके ।
स््तरीय दल का दर््जजा प्रदान करना तथा उन््हेें चनु ाव चिन््ह आवंटित करना। z निष््पक्ष पदोन््नति: काननू मेें ऐसे प्रावधान शामिल किए जाएँ, जहाँ वरिष्ठतम
आचार सहित ं ा: चनु ाव के समय दलोों (पार््टटियोों) और उम््ममीदवारोों द्वारा चनु ाव आयक्त ु स््वतः ही मख्ु ्य चनु ाव आयक्त
ु बन जाए, जिससे उसकी नियक्तिु
इसका पालन किया जाना चाहिए। को कार््यपालिका हस््तक्षेप से बचाया जा सके ।
z सलाहकारी भूमिका: संसद और राज््य विधानमडल ं के सदस््योों की अयोग््यता चुनाव आयोग के समक्ष मुद्दे
से संबंधित मामलोों पर क्रमशः राष्टट्रपति और राज््यपाल को सलाह देना। z पक्षपातपूर््ण भूमिका का आरोप: निष््पक्षता पर चितं ा उत््पन््न करने वाली
z अर््ध-न््ययायिक: राजनीतिक दलोों को मान््यता प्रदान करने और उन््हेें चनु ाव कार््र वाइयाँ, जैसे कि उच््च लोकछवि वाले व््यक्तियोों द्वारा आदर््श आचार
चिन््ह आवंटित करने से संबंधित विवादोों को निपटाने के लिए न््ययायालय के संहिता (MCC) के उल््ललंघन के लिए क््ललीन चिट देना।
रूप मेें कार््य करना। z शक्तियोों का अभाव: अनच्ु ्छछेद 324 के तहत पर््णू शक्तियाँ प्राप्त होने के
बावजदू , भारत के निर््ववाचन आयोग के पास राजनीतिक दलोों का पंजीकरण
पद की सुरक्षा एवं स्वतंत्रता रद्द करने और अवमानना शक्तियोों का प्रयोग करने जैसे मामलोों मेें अधिकारोों
का अभाव है।
z कार््यकाल की सरु क्षा: मख्ु ्य चनु ाव आयक्त ु को, उसके पद से उसी प्रक्रिया
और उन््हीीं आधारोों पर हटाया जा सकता है, जिस प्रक्रिया से सर्वोच््च न््ययायालय z प्राधिकार के सक्रिय उपयोग का अभाव: जाति या धर््म के आधार पर वोट
माँगने वाले राजनेताओ ं के खिलाफ कार््र वाई करने की सीमित शक्ति, प्रभावी
के न््ययायाधीश को हटाया जाता है।
प्रवर््तन मेें बाधा डालती है।
अन््य चन ु ाव आयक्त ु तों को मख्ु ्य चनु ाव आयक्तु की सिफारिश के बिना z राजनीतिकरण: चनु ाव आयक्त ु तों के लिए सेवानिवृत्ति के बाद रोजगार संबंधी
नहीीं हटाया जा सकता। प्रतिबंधोों का अभाव, स््वतंत्र कार््यप्रणाली मेें बाधा उत््पन््न करता है।
z सेवा की शर्ततें: मख्ु ्य चनु ाव आयक्त ु की सेवा शर्ततों मेें उनकी नियक्ति
ु के बाद z गैर-पारदर््शशिता: मख्ु ्य चनु ाव आयक्त ु और आयक्त ु तों की चयन प्रक्रिया मेें
उनके लिए अलाभकारी परिवर््तन नहीीं किया जा सकता। पारदर््शशिता का अभाव, सत्तारूढ़ सरकार से प्रभावित होने के कारण पारदर््शशिता
संबंधी प्रश्न खड़े करता है।
चुनाव आयुक्ततों की चिंताएँ
z राजनीति का अपराधीकरण: राजनीति मेें धन के बढ़ते उपयोग और
z निश्चित कार््यकाल का अभाव: निर््ददिष्ट कार््यकाल के अभाव से राजनीतिक आपराधिक तत्तत्ववों की भागीदारी को प्रभावी ढगं से सबं ोधित करने मेें असमर््थता।
हस््तक्षेप और अस््थथिरता की चितं ा उत््पन््न हो सकती है। भारतीय चुनाव आयोग (ECI) के समक्ष अन्य चुनौतियााँ:
z सेवानिवत्ृ ति के बाद नियुक्तियोों की सभ ं ावना: सेवानिवृत्त चनु ाव आयक्त ु तों z इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर वेरिफ़़िएबल पेपर ऑडिट
को, बाद मेें अन््य सरकारी पदोों पर नियक्त ु किए जाने से हितोों के टकराव और ट्रे ल (VVPAT) का उपयोग, पारदर््शशिता का मुद्दा: इन प्रौद्योगिकियोों का
निष््पक्षता के बारे मेें चितं ाएँ पैदा होती हैैं। उपयोग भारतीय चनु ाव आयोग (ECI) मेें विश्वासनीयता के बारे मेें लंबे समय
z जवाबदेही और पारदर््शशिता: चनु ाव आयक्त ु तों की निर््णय लेने की प्रक्रिया की से चितं ा का विषय बना हुआ है। हालाँकि, भारतीय चनु ाव आयोग (ECI) ने
पारदर््शशिता और जवाबदेही के संबंध मेें चितं ाएँ मौजदू हैैं। अपनी जवाबदेही सनु िश्चित करने के लिए इसकी पारदर््शशिता बनाए रखने के
z हित सघं र््ष: चनु ाव आयक्त ु तों के बीच हितोों का टकराव या संभावित टकराव प्रयास किये हैैं, लेकिन नियमित जाँच और परीक्षण करके इसे त्रुटि रहित और
उनकी निष््पक्षता मेें जनता के विश्वास को कमजोर कर सकता है। सदं हे मक्त
ु बनाने की आवश््यकता है।
z अंतर-दलीय लोकतंत्र सुनिश्चित करने मेें चुनौतियाँ: जन प्रतिनिधि
z निर््धधारित योग््यताओ ं का अभाव: नियक्ति ु मेें विशिष्ट अर््हताओ ं का अभाव,
अधिनियम की धारा 29 A के तहत राजनीतिक दलोों को उनके संगठनात््मक
भमिू का के लिए आवश््यक विशेषज्ञता और अनभु व पर प्रश्न उठाता है। ढाँच,े उनके पदाधिकारियोों और उनकी नियक्ति ु , उनके पदाधिकारियोों की
z अपर््ययाप्त प्रवर््तन शक्तियाँ: चर््चचाओ ं मेें निर्देशोों को प्रभावी ढंग से लागू करने सेवा शर्ततों और शक्तियोों एवं कर््तव््योों, संगठनात््मक चनु ावोों आदि के बारे मेें
और चनु ावी कदाचारोों से निपटने के लिए प्रवर््तन शक्तियोों को बढ़़ाने की दस््ततावेज प्रस््ततुत करने की आवश््यकता होती है। हालाँकि, राजनीतिक दलोों के
आवश््यकता पर प्रकाश डाला गया है। आतं रिक लोकतांत्रिक कामकाज को लागू करने के लिए स््पष्ट प्रावधानोों की
कमी और दलोों का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति की कमी के कारण राजनीति
नियुक्ति मेें समस्याओ ं के समाधान हेतु अपेक्षित प्रयास
के अपराधीकरण, धन और बाहुबल प्रयोग का मद्दा ु उठता है।
z द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग: मख्ु ्य चनु ाव आयक्त ु और चनु ाव आयक्त
ु तों z मुख््य चुनाव आयुक्त और अन््य चुनाव आयुक्त (CEC और EC) को
की पारदर्शी नियक्ति ु के लिए प्रधानमत्री ं की अध््यक्षता मेें एक कॉलेजियम की हटाने मेें समानता का अभाव: के वल मख्ु ्य चनु ाव आयक्त ु को हटाने मेें उस
स््थथापना की जानी चाहिए, जिसमेें लोकसभा अध््यक्ष, विपक्ष के नेता, काननू प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है जो सर्वोच््च न््ययायालय (SC) के न््ययायाधीशोों
मत्री
ं और राज््यसभा के उपसभापति शामिल होोंगे। को प्राप्त है जबकि मख्ु ्य चनु ाव आयक्तु की सिफारिश पर चनु ाव आयक्त ु (EC)
z सर्वोच््च न््ययायालय: चनु ाव आयक्त ु तों के लिए निष््पक्ष और पारदर्शी चयन को हटाया जा सकता है। अतः चनु ाव आयक्त ु तों को भी मख्
ु ्य च न
ु ाव आय क्त
ु के
प्रक्रिया सनु िश्चित करने हेतु काननू ी रिक्तता को भरना। समान कार््यकाल सरु क्षा प्रदान करने के लिए प्रभावी कदम उठाये जाने चाहिए।
के बीच अस््पष्ट अतं र। दौरान विधानसभा मेें गतिरोध को रोकने के लिए अपवादात््मक नियम
z वेस््टमिंस््टर लोकतंत्र और सघं वाद के साथ असगं त: बनाए जाने चाहिए।
सरकारोों के विघटन और राजनीतिक बदलावोों पर प्रभाव। द्वि-चरणीय चुनाव: लोकसभा चन ु ाव और मध््ययावधि अतं राल के साथ
z क्षेत्रीय दलोों का प्रभाव समाप्त: राष्ट्रीय दलोों का प्रभत्ु ्व तालमेल बिठाते हुए दो चरणोों मेें समकालिक चनु ाव आयोजित करना।
बढ़ने से क्षेत्रीय दलोों के प्रभाव व प्रतिष्ठा को नक ु सान। अनुसचित ू उप-चुनाव: पर््वू निर््धधारित समयावधि के दौरान सभी रिक्त
z वैकल््पपिक सुधार: व््यय सीमा, राज््य वित्त पोषण, मतदान सीटोों पर चनु ाव कराना।
की छोटी अवधि, तथा सरु क्षा उपाय बढ़़ाना। चुनाव आयोग की सिफारिशेें:
समिति की सिफारिशेें z लोकसभा के लिए:
z रामनाथ कोविंद समिति ने सझु ाव दिया है कि राष्टट्रपति आम चनु ावोों के बाद अविश्वास प्रस््तताव मेें, भावी प्रधानमत्री
ं के रूप मेें नामित व््यक्ति के लिए
लोकसभा की पहली बैठक पर अधिसचन ू ा जारी करके एक 'नियत तिथि' विश्वास प्रस््तताव शामिल होना चाहिए।
निर््धधारित की जानी चाहिए। यह तिथि नए चनु ावी चक्र की शरुु आत का प्रतीक अपरिहार््य विघटन की स््थथिति मेें, राष्टट्रपति अगले सदन के गठन होने
होगी। तक नियक्त ु मत्ं रिपरिषद के साथ देश का प्रशासन चला सकते हैैं, या शेष
z ‘नियत तिथि’ के बाद और लोकसभा का कार््यकाल परू ा होने से पहले गठित कार््यकाल के लिए नए चनु ाव करा सकते हैैं।
होने वाली राज््य विधानसभाएँ आगामी आम चनु ावोों से पहले पर््णू हो जाएँगी। z विधान सभा के लिए:
इसके बाद लोकसभा और सभी राज््य विधानसभाओ ं के चनु ाव एक साथ वैकल््पपिक सरकार बनाने के लिए अविश्वास प्रस््तताव के साथ-साथ विश्वास
कराए जाएँगे। प्रस््तताव को अनिवार््य बनाना, जिससे समय से पर््वू विघटन को रोका जा
z सदन मेें बहुमत न होने या अविश्वास प्रस््तताव शरू
ु होने या ऐसी किसी अन््य सके ।
घटना की स््थथिति मेें नई लोकसभा के गठन के लिए नए चनु ाव कराए जा सकते राज््यपाल द्वारा नियक्त ु मत्ं रिपरिषद के साथ राज््य का प्रशासन चलाने
हैैं, लेकिन सदन का कार््यकाल "के वल सदन के तत््ककाल पर््वू वर्ती पर््णू कार््यकाल का प्रावधान, या यदि विधानसभा को समय से पहले भगं करना पड़़े तो
की शेष अवधि के लिए होगा"। कार््यकाल समाप्त होने तक राष्टट्रपति शासन लागू करना।
EVM की चिंताएँ
z
सतत विकास आदि।
कार््र वाई की कमी होती है, जिससे मतदान प्रक्रिया की सटीकता
इलेक्ट्रॉनिक वोटिं ग मशीन (EVM) और संबधि
ं त मुद्दे को सत््ययापित करना मश््ककिल
ु हो जाता है। भौतिक रिकॉर््ड के बिना,
विश्वसनीय पनु र््गणना या ऑडिट करना चनु ौतीपर््णू हो जाता है।
z कानूनी प्रावधान: जन प्रतिनिधित््व अधिनियम (RPA), 1951 की ‘धारा z तकनीकी विफलताएँ: EVM इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैैं जो
61 A’ के तहत आयोग को वोटिंग मशीन के इस््ततेमाल का अधिकार दिया
तकनीकी खराबी, जैसे कि सॉफ़्टवेयर त्रुटियोों या हार््डवेयर त्रुटियोों,
गया। (यह संशोधन 1988 मेें किया गया था)।
के आने की सभं ावना रहती है। ये विफलताएँ सभं ावित रूप से
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के लाभ एवं चिंताएँ
मतदान प्रक्रिया को बाधित कर सकती हैैं और परिणामोों की
z सटीकता: EVM सटीक और त्रुटिरहित मतगणना सनु िश्चित अखडत ं ा के बारे मेें संदहे पैदा कर सकती हैैं।
करती हैैं, जिससे मानवीय गणना मेें त्रुटियोों और विसंगतियोों की z परिवहन के दौरान छे ड़छाड़: EVM को भडं ारण स््थथानोों से
संभावना कम हो जाती है।
मतदान केें द्ररों तक ले जाया जाता है, जिससे छे ड़छाड़ या अनधिकृ त
z दक्षता: EVM वोट डालने और गिनती के लिए आवश््यक समय
को कम करके निर््ववाचन प्रक्रिया को तेज करती हैैं, जिससे परिणामोों पहुचँ के अवसर पैदा होते हैैं। परिवहन के दौरान EVM की सरु क्षा
की शीघ्र घोषणा संभव हो पाती है। चितं ा का विषय रही है।
z पारदर््शशिता: EVM चनु ाव प्रक्रिया मेें पारदर््शशिता प्रदान करती चिंताओ ं का समाधान करने के लिए ECIS की पहल:
हैैं क््योोंकि वे कुल डाले गए वोटोों और व््यक्तिगत पार्टी-वार वोटोों
z EVM के साथ VVPAT: सभी मतदान केें द्ररों मेें वोटर वेरिफ़़िएबल पेपर
की गिनती प्रदर््शशित करती हैैं, जिससे चनु ाव प्रणाली की अखडत ं ा
सनु िश्चित होती है। ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीनोों को लागू करने से चनु ावी प्रक्रिया की
EVM के लाभ
z चुनाव की अखंडता: EVM मतदाता की पसंद की गोपनीयता पारदर््शशिता और विश्वसनीयता बढ़ती है।
बनाए रखती हैैं, क््योोंकि मतदान एक निजी कक्ष मेें किया जाता है, z VVPAT पर््चचियोों की गणना: भारत का निर््ववाचन आयोग राजनीतिक दलोों
जिससे किसी भी प्रकार का प्रभाव या दबाव नहीीं पड़ता। से प्राप्त सझु ावोों पर विचार करता है तथा निर््ददिष्ट प्रतिशत तक वोटर वेरिफ़़िएबल
z लागत प्रभावी: EVM बड़़ी मात्रा मेें कागजी मतपत्ररों की पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) पर््चचियोों की गणना करता है, जिससे आगे का
आवश््यकता को समाप्त कर देती हैैं, जिससे मद्रु ण और परिवहन सत््ययापन सनु िश्चित होता है।
से जड़ु ़ी लागत और पर््ययावरणीय प्रभाव कम हो जाता है।
z बूथ कै प््चरिंग पर रोक: EVM अपने छे ड़छाड़-रोधी डिजाइन z EVM चुनौती: भारतीय चनु ाव आयोग ने एक चनु ौती आयोजित की, जिसमेें
और तकनीकी सरु क्षा उपायोों के कारण बथू कै प््चरिंग और फर्जी राजनीतिक दलोों को EVM के साथ किसी भी प्रकार की छे ड़छाड़ को प्रदर््शशित
मतदान को अधिक कठिन बना देती हैैं। करने का अवसर दिया गया, जिससे चितं ाओ ं को दरू करने के प्रति उनकी
z मानवीय भूल मेें कमी: EVM के कारण मानवीय भलो ू ों, जैसे प्रतिबद्धता प्रदर््शशित हुई।
कि अमान््य या गलत तरीके से चिह्नित मतपत्र, की संभावना z समावेशी भागीदारी: चनु ाव आयोग; प्रथम स््तरीय जाँच, EVM/VVPAT
काफी कम हो जाती है, जिससे अधिक सटीक निर््ववाचन प्रक्रिया का यादृच््छछिकीकरण, मॉक पोल, तथा EVM सीलिंग एवं भडं ारण जैसे
सनु िश्चित होती है।
महत्तत्वपर््णू चरणोों मेें सभी राजनीतिक दलोों की सक्रिय भागीदारी सनु िश्चित करता
z वैश्विक मिसाल: जर््मनी, नीदरलैैंड और आयरलैैंड ने चितं ाओ ं
है, जिससे संपर््णू चनु ाव प्रक्रिया मेें पारदर््शशिता को बढ़़ावा मिलता है।
और काननू ी फै सलोों के बाद EVM को छोड़ दिया है और पेपर
बैलटे सिस््टम को अपना लिया है। ADR ने सझु ाव दिया (और z प्रवासियोों के लिए EVM प्रोटोटाइप: भारतीय चनु ाव आयोग ने घरे लू
बाद मेें सझु ाव वापस ले लिया) कि भारत को जर््मनी जैसे देशोों का प्रवासियोों के लिए एक रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (RVM) विकसित
उदाहरण देते हुए कागजी मतपत्र व््यवस््थथा (पेपर बैलटे सिस््टम) को की है, जिससे उन््हेें अपने गृह जिलोों की यात्रा किए बिना मतदान करने मेें सक्षम
अपनाना चाहिए। बनाया जा सके , जिससे मतदाता भागीदारी को बढ़़ावा मिल सके ।
राजनीति के अपराधीकरण के परिणाम पब््ललिक इटं रे स््ट फाउंडेशन सांसदोों और विधायकोों के मामलोों की लंबित
z सस ं द की कमज़़ोर विश्वसनीयता: आपराधिक पृष्ठभमि ू के काननू निर््ममाता बनाम भारत संघ, 2014। सुनवाई एक वर््ष के भीतर पूरी की जाए।
विधायी गणु वत्ता को कमजोर करते हैैं और सस्ं ्थथाओ ं मेें जनता का विश्वास लोकप्रहरी बनाम भारत राजनीतिक उम््ममीदवारोों के साथ-साथ उनके
खत््म करते हैैं। संघ मामला, 2018 आश्रितोों और सहयोगियोों की आय के स्रोत का
z भ्रष्टाचार का प्रजनन क्षेत्र: धन का प्रवाह एक भ्रष्ट लोकतंत्र को बढ़़ावा देता खलु ासा अनिवार््य है।
है, जिसमेें वित्तीय प्रभावोों और बाहुबल का बोलबाला होता है। जनहित फाउंडेशन के स चनु ाव आयोग एवं राजनीतिक दलोों के माध््यम से
z मतदाताओ ं के सीमित विकल््प: आपराधिक उम््ममीदवार विकल््पोों को सीमित 2018 उम््ममीदवारोों के विरुद्ध लंबित आपराधिक मामलोों
कर देते हैैं, जिससे स््वतंत्र और निष््पक्ष चनु ाव बाधित होते हैैं। का खल ु ासा करना तथा विभिन््न मीडिया के
z खराब शासन प्रभाव: कमजोर काननू , बहिष््ककारी नीतियाँ और भ्रष्टाचार; माध््यम से उसका प्रचार करना।
सार््वजनिक सेवा वितरण मेें बाधा डालते हैैं। पब््ललिक इटं रे स््ट फाउंडेशन राजनीतिक दलोों के लिए उम््ममीदवारोों के खिलाफ
z न््ययायिक आस््थथा पर प्रश्नचिह्न: राजनीतिक हेरफे र से निष््पक्ष न््ययायपालिका एवं अन््य बनाम भारत लंबित आपराधिक मामलोों का विवरण और उन््हेें
की स््वतंत्रता पर सदं हे उत््पन््न होता है। संघ एवं अन््य (2020) दसू रोों के मक ु ाबले चनन ु े के कारणोों को अनिवार््य
रूप से प्रकाशित करना।
z सामाजिक सद्भाव को बाधित करना: अपराधी राजनेता नकारात््मक आदर््श
मॉडल स््थथापित करते हैैं परिणामस््वरूप हिसं ा की संस््ककृ ति को बढ़़ावा देते हैैं। ‘रिश्वत के बदले वोट’ मामले पर सर्वोच््च न््ययायलय का हालिया
फैसला:
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उठाए गए कदम
सर्वोच््च न््ययायालय ने फै सला सुनाया कि रिश्वतखोरी के मामलोों मेें सांसदोों
निर््णय महत्तत्व और विधायकोों को अभियोजन से छूट नहीीं मिल सकती। कोर््ट ने स््पष्ट किया
1997 का निर््णय यदि किसी व््यक्ति को PoCA, 1988 के अंतर््गत कि संविधान के अनुच््छछेद 105 और 194 के तहत सांसदोों और विधायकोों
दोषी ठहराया गया है और कारावास की सजा दी को दी गई कानूनी सुरक्षा उन््हेें वोट के लिए रिश्वत लेने या सदन मेें भाषण देने
गई है, तो अपील पर उसकी सजा को निलंबित
के मामलोों मेें सुरक्षा प्रदान नहीीं करती है। इस फै सले के साथ, सुप्रीम कोर््ट ने
न किया जाए।
1998 के पीवी नरसिम््हहा फै सले को खारिज कर दिया, जिसमेें कहा गया था
ADR बनाम भारत संघ, चनु ाव लड़ने वाले उम््ममीदवार को लंबित
कि वोटिंग और सदन मेें सवाल पूछने के लिए रिश्वत लेने वाले सांसदोों और
2002 आपराधिक मामलोों की जानकारी देनी होगी।
विधायकोों को संविधान के अनुसार छूट प्राप्त है।
लिली थॉमस बनाम भारत दोषसिद्ध होने पर सांसद और विधायक स््वतः
संघ, 2013 अयोग््य हो जाएँगे और उन््हेें दो वर््ष की जेल चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए कदम
होगी। z 1997: निर््ववाचन अधिकारी उन उम््ममीदवारोों का नामांकन खारिज कर देेंगे जो
पीपुल््स यूनियन फॉर नकारात््मक वोट और नोटा का अधिकार नामांकन पत्र दाखिल करने के दिन ही दोषी पाए गए होों, भले ही उनकी सजा
सिविल लिबर्टीज बनाम राजनीतिक दलोों पर नैतिक दबाव डालेगा। निलंबित हो।
भारत संघ मामला, 2014 z चनु ाव के दौरान काला धन जब््त करने के लिए उड़न दस््तोों का गठन किया गया।
परिसीमन आयोग की आलोचना के लिए 250) तथा बढ़ती जनसंख््यया का प्रतिनिधित््व एक ही प्रतिनिधि द्वारा
किया जा रहा है।
z जनसख् ं ्यया नियंत्रण पूर््ववाग्रहः परिवार नियोजन को बढ़़ावा देने वाले राज््योों को
z असमान प्रतिनिधित््ववः निश्चित सीट आवंटन और जनसंख््यया वृद्धि असमान
अपनी सीटेें कम होने का जोखिम है, जबकि जिन राज््योों मेें जनसंख््यया नियंत्रण
प्रतिनिधित््व की ओर ले जाती है, जिससे बढ़ती आबादी की आवाज और
पर कम जोर दिया जाता है, उन््हेें अधिक सीटेें मिल सकती हैैं।
प्रभाव प्रभावित होता है।
z जनगणना आधारित प्रतिनिधित््व: 2008 मेें किया गया परिसीमन 2001
की जनगणना पर आधारित था, लेकिन 1971 के बाद से सीटोों की कुल
संख््यया अपरिवर््ततित रही, जिससे जनसंख््यया वृद्धि और प्रतिनिधित््व के बीच प्रमुख शब्दावलियाँ
असमानता पैदा हुई।
असमान प्रतिनिधित््व, जनसंख््यया नियंत्रण पूर््ववा ग्रह, क्षेत्रीय वितरण,
z सवं ैधानिक सीट सीमाएँः देश की कुल आबादी की तलन ु ा मेें ससं दीय
मताधिकार,परिसीमन आयोग आदि।
प्रतिनिधित््व मेें कम सीटेें उपलब््ध हैैं (लोकसभा के लिए 550 और राज््यसभा
z केें द्र शासित प्रदेशः केें द्र सरकार निकटवर्ती 'राज््य मानवाधिकार आयोग'
को केें द्र शासित प्रदेश के मानवाधिकार मामलोों से संबंधित कार््य प्रदान प्रमुख शब्दावलियाँ
कर सकती है।
प्रवर््त नीय शक्तियाँ, समन््वय तंत्र, जाँच तंत्र, राजनीतिक हस््तक्षेप,
महत्त्वः
अपर््ययाप्त कार््रवाई, राष्ट्रीय मानवाधिकार संस््थथानोों का वैश्विक
z पेरिस सिद््धाांतोों के साथ प्रभावी अनप ु ालन; मानव अधिकारोों की प्रभावी ढंग
गठबंधन (GANHRI), संयक्त ु राष्टट्र संघ आदि।
से रक्षा करने और बढ़़ावा देने के लिए स््ववायत्तता, स््वतंत्रता और बहुलवाद।
z नागरिक समाज मेें प्रतिनिधित््व बढ़़ाने की सविध ु ा प्रदान करना। विगत वर्षषों के प्रश्न
z केें द्र शासित प्रदेशोों के नागरिकोों के लिए मानवाधिकार न््ययायालयोों तक
पहुचँ मेें वृद्धि। z यद्यपि मानवाधिकार आयोगोों ने भारत मेें मानव अधिकारोों के सरं क्षण मेें काफी
हद तक योगदान दिया है, फिर भी वे ताकतवर और प्रभावशालियोों के विरुद्ध
z कार््यकाल सीमा कम करने से रिक्तियोों पर समय पर नियक्ु ति सनिश् ु चित हो
सके गी। अधिकार जताने मेें असफल रहे हैैं। इनकी सरं चनात््मक और व््ययावहारिक
सीमाओ ं का विश्लेषण करते हुए सधु ारात््मक उपायोों के सझु ाव दीजिए।(2021)
हाल की खबरेें ः
z हाल ही मेें, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने बालासोर ट्रेन दर््घट ु ना z समाज के कमजोर वर्गगों के लिए विभिन््न आयोगोों की बहुलता, अतिव््ययापी
के संबंध मेें ओडिशा सरकार से कार््र वाई रिपोर््ट माँगी है। अधिकारिता और प्रकार्ययों के दोहरे पन की समस््ययाओ ं की ओर ले जाती है। क््यया
z GANHRI की प्रत््ययायन पर उप-समिति (SCA) NHRC की प्रत््ययायन यह अच््छछा होगा कि सभी आयोगोों को एक व््ययापक मानव अधिकार आयोग
स््थथिति का मल्ू ्ययाांकन कर रही है, जो यह तय करे गी कि क््यया यह संयक्त ु के छत्र मेें विलय कर दिया जाए? अपने उत्तर के पक्ष मेें तर््क दीजिए।(2018)
राष्टट्र मानवाधिकार निकायोों मेें भागीदारी के लिए अपना "A दर््जजा" बरकरार z भारत मेें राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग सर््ववाधिक प्रभावी तभी हो सकता
रखेगी या नहीीं। है, जब इसके कार्ययों को सरकार की जवाबदेही को सनिश् ु चित करने वाले अन््य
आगे की राह नागरिकोों का पर््ययाप्त समर््थन प्राप्त हो। उपरोक्त टिप््पणी मेें प्रकाश मेें, मानव
अधिकार मानकोों को प्रोन््नति करने और उनकी रक्षा करने मेें, न््ययायपालिका
z प्रवर््तनीय शक्तियाँः राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) के निर््णयोों
और अन््य संस््थथाओ ं के प्रभावी परू क के तौर पर, एन.एच.आर.सी. की भमि ू का
को प्रवर््तनीय बनाया जाना चाहिए।
का आकलन कीजिए। (2014)
सरु क्षित रख सकता है। राज््यपाल को अध््ययादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई है।
z जब राज््यपाल द्वारा किसी राज््य z जब राज््यपाल किसी विधेयक यह कार््यपालिका को ऐसी स््थथिति से निपटने मेें सक्षम बनाता है जो संसद
विधेयक को राष्टट्रपति के विचारार््थ को राष्टट्रपति के विचारार््थ के सत्र मेें न होने पर अचानक और तत््ककाल उत््पन््न हो सकती है।
सरु क्षित रखा जाता है, तो वह उस सरु क्षित रखता है, तो विधेयक के अध्यादेश की विशेषताएँ :
पर अपनी स््ववीकृ ति दे सकता है/ अधिनियमन मेें उसकी कोई और
z अध््ययादेश किसी भी मौलिक अधिकार को कम या छीन नहीीं सकता।
अपनी स््ववीकृ ति रोक सकता है/ भमिू का नहीीं रहती।
z किसी भी अन््य कानन ू की तरह अध््ययादेश भी पर््वू व््ययापी हो सकता है, अर््थथात
विधेयक को सदनोों के पनु र््वविचार z यदि विधेयक को राष्टट्रपति द्वारा
यह पिछली तिथि से लागू हो सकता है।
के लिए लौटा सकता है। सदन या सदनोों के पनु र््वविचार के
z इन अध््ययादेशोों का बल और प्रभाव संसद/राज््य के अधिनियम के समान ही
z पनु र््वविचार के लिए लौटाए जाने लिए लौटा दिया जाता है और
होता है, लेकिन ये अस््थथायी काननोू ों की प्रकृ ति के होते हैैं।
की स््थथिति मेें, यदि विधेयक राज््य पनु ः पारित कर दिया जाता है,
z ससं द/राज््य विधानमडं ल द्वारा अनमु ोदन न मिलने की स््थथिति मेें अध््ययादेश की
द्वारा पारित कर दिया जाता है तो विधेयक को पनु ः राष्टट्रपति की
अधिकतम अवधि छह माह और छह सप्ताह हो सकती है, क््योोंकि संसद/राज््य
और राष्टट्रपति के समक्ष स््ववीकृ ति स््ववीकृ ति के लिए ही प्रस््ततुत किया
विधानमडं ल के दो सत्ररों के बीच अधिकतम अतं राल छह माह का होता है।
के लिए प्रस््ततुत किया जाता है, तो जाना चाहिए, अर््थथात् राज््यपाल
z अध््ययादेश कर कानन ू मेें परिवर््तन या संशोधन भी कर सकता है। हालाँकि, इसे
राष्टट्रपति विधेयक पर स््ववीकृ ति देने की स््ववीकृ ति की आवश््यकता
संविधान मेें संशोधन करने के लिए जारी नहीीं किया जा सकता।
के लिए बाध््य नहीीं है। नहीीं होती।
z धन विधेयक के सबं ंध मेें, वह z धन विधेयक के सबं ंध मेें, वह राष्टट्रपति राज््यपाल
z वह अध््ययादेश तभी जारी कर z वह अध््ययादेश तभी जारी कर
विधेयक पर अपनी सहमति दे विधेयक पर अपनी सहमति दे
सकता है/अपनी सहमति रोक सकता है/अपनी सहमति रोक सकता है जब ससं द के दोनोों सदन सकता है जब विधानसभा (एक
सकता है, लेकिन संसद के सकता है/ विधेयक को राष्टट्रपति सत्र मेें न होों या संसद के दोनोों सदनीय विधायिका के मामले
पनु र््वविचार के लिए धन विधेयक के विचारार््थ सरु क्षित रख सकता सदनोों मेें से कोई एक सत्र मेें न हो। मेें) सत्र मेें न हो या (द्वि-सदनीय
को वापस नहीीं लौटा सकता। है, लेकिन वह धन विधेयक को विधायिका के मामले मेें) जब राज््य
संसद के पनु र््वविचार के लिए वापस विधानमडं ल के दोनोों सदन/दोनोों मेें
नहीीं कर सकता। से कोई एक सदन सत्र मेें न हो।
राज्यपाल से संबधं ित मुद्दे को छोड़कर उसमेें कोई व््यवधान नहीीं डाला जाना चाहिए।
z मनमाने ढंग से हटाना: राज््यपाल को उनके कार््यकाल की समाप्ति से पहले राज्यपाल के चयन के मानदं ड:
मनमाने ढंग से हटाना भी हाल के दिनोों मेें एक महत्तत्वपर््णू मद्दा
ु रहा है। (i) उसे जीवन के किसी न किसी क्षेत्र मेें प्रतिष्ठित होना चाहिए।
z पुनर््ववास नियुक्तियाँ: वर््तमान सरकार के प्रति राजनीतिक रूप से वफादार रहने (ii) वह राज््य से बाहर का व््यक्ति होना चाहिए।
के कारण राजनेताओ ं के लिए यह पद सेवानिवृत्ति पैकेज बनकर रह गया है। (iii) वह एक पृथक व््यक्ति होना चाहिए तथा राज््य की स््थथानीय राजनीति
z पद का दुरुपयोग: आमतौर पर केें द्र की सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा राज््यपाल के पद से बहुत अधिक जुड़़ा हुआ नहीीं होना चाहिए।
का दरुु पयोग करने के कई उदाहरण आते रहे हैैं। (iv) वह ऐसा व््यक्ति होना चाहिए जिसने सामान््यतः और विशेषकर हाल
z विवेकाधीन शक्तियोों का दुरुपयोग: सबसे बड़़ी पार्टी/गठबंधन के नेता को के दिनोों मेें राजनीति मेें बहुत अधिक भाग नहीीं लिया हो।
z मुख््यमंत्री की नियुक्ति से सब ं ंधित:
सरकार बनाने के लिए आमत्रि ं त करने की राज््यपाल की विवेकाधीन शक्तियोों
का अक््सर दरुु पयोग किया गया है। यदि विधानसभा मेें किसी एक पार्टी को पर््ण ू बहुमत प्राप्त है तो उस पार्टी के
z पक्षपातपूर््ण भूमिका: हाल ही मेें राजस््थथान के राज््यपाल पर आदर््श आचार नेता को स््वतः ही मख्ु ्यमत्ं री बनने के लिए आमत्रि ं त किया जाना चाहिए।
संहिता के उल््ललंघन का आरोप लगाया गया है। उनका सत्तारूढ़ दल का समर््थन ऐसे किसी पार्टी की अनप ु स््थथिति मेें, राज््यपाल नीचे सचू ीबद्ध वरीयता क्रम
करना उस गैर-पक्षपातपर््णू भावना के विरुद्ध है जिसकी संवैधानिक पदोों पर बैठे मेें निम््नलिखित पार्टी या पार््टटियोों के समहोू ों मेें से प्रत््ययेक के साथ सनु वाई
व््यक्ति से अपेक्षा की जाती है। करके एक मख्ु ्यमत्ं री का चयन करेेंगे:
z चन ु ावोों से पहले गठित पार््टटियोों का गठबंधन।
z अनुच््छछे द 356 की शक्ति का दुरुपयोग: किसी राज््य मेें संवैधानिक तंत्र के
विफल होने की स््थथिति मेें राष्टट्रपति शासन (अनच्ु ्छछेद 356) लागू करने का z सबसे बड़़ी पार्टी ने निर््दलीयोों सहित अन््य के समर््थन से सरकार बनाने का
केें द्र सरकार द्वारा अक््सर दरुु पयोग किया गया है। दावा पेश किया हो।
सरकार को इसका कारण बताया जाना चाहिए। मंत्रिपरिषद, पूर््ण बहुमत, संवैधानिक अधिकार, विवेकाधीन शक्तियाँ,
राज््य के राज््यपाल की नियक्ु ति मेें मख्
ु ्यमत्ं री से परामर््श की प्रक्रिया संविधान पनु र््ववास नियक्ु तियाँ, पद का दरुु पयोग, क्षमादान शक्तियाँ , अध््ययादेश
मेें ही निर््धधारित की जानी चाहिए। प्रख््ययापित करना, राष्टट्रपति, उपराष्टट्रपति, राज््यपाल आदि।
77 भारत सरकार की सभी 166 राज््य सरकार की सभी z समिति के सभी निर््णयोों (अनच् ु ्छछेद z राज््यपाल को समिति के सभी
कार््यकारी कार््यवाही कार््यकारी कार््यवाही 78) से राष्टट्रपति को अवगत निर््णयोों (अनच्ु ्छछेद 167) से
राष्टट्रपति के नाम पर राज््यपाल के नाम पर की कराना। अवगत कराना।
की जाएँगी जाएँगी z प्रशासन से सब ं धं ित ऐसी जानकारी z प्रशासन से सबं धं ित ऐसी जानकारी
78 राष्टट्रपति को सूचना 167 राज््यपाल को सूचना उपलब््ध कराना जिसे राष्टट्रपति माँगे।ें उपलब््ध कराना जिसे राज््यपाल माँगेें
उपलब््ध करने आदि उपलब््ध कराने आदि z यदि राष्टट्रपति चाहेें तो ऐसे मामले z यदि राज््यपाल ऐसा चाहेें तो ऐसे
के संबंध मेें प्रधानमंत्री के संबंध मेें मख्ु ्यमंत्री के को मत्रि
ं परिषद के विचारार््थ प्रस््ततुत मामले को कंपनी के विचारार््थ
के कर््तव््य कर््तव््य। करना जिस पर मत्ं री द्वारा निर््णय प्रस््ततुत करना जिस पर मत्ं री द्वारा
महत्तत्वपूर््ण निर््णय: लिया जा चक ु ा हो, किन््ततु परिषद निर््णय लिया जा चक ु ा हो, किन््ततु
z दिल््लली उच््च न््ययायालय (1980): प्रधानमत् ं री पद के लिए उम््ममीदवार को द्वारा उस पर विचार नहीीं किया परिषद द्वारा उस पर विचार नहीीं
लोकसभा मेें बहुमत साबित करना संविधान द्वारा अनिवार््य नहीीं है। राष्टट्रपति गया हो। किया गया हो।
पहले उसे प्रधानमत्ं री के रूप मेें नामित कर सकते हैैं, उसके बाद उनसे उचित z संघ लोक सेवा आयोग z महाधिवक्ता, राज््य लोक सेवा
समय के भीतर लोकसभा मेें बहुमत साबित करने का अनरु ोध कर सकते हैैं। (यपू ीएससी) के अध््यक्ष और आयोग के अध््यक्ष एवं सदस््य,
सदस््योों, भारत के महान््ययायवादी, राज््य चनु ाव आयक्त ु तथा अन््य
(यही बात राज््योों मेें मख्ु ्यमत्ं री के लिए भी लागू होती है)।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा महत्तत्वपर््णू प्राधिकारियोों की नियक्ु ति
z सर्वोच््च न््ययायालय (1997): एक व््यक्ति जो संसद के किसी भी सदन
परीक्षक आदि जैसे महत्तत्वपर््णू के सबं ंध मेें मख्ु ्यमत्ं री, राज््यपाल
का सदस््य नहीीं है, उसे छह महीने की अवधि के लिए प्रधानमत्ं री चनु ा जा प्राधिकारियोों की नियक्ु ति के को सलाह देते हैैं।
सकता है, इस दौरान उसे अपना पद बनाए रखने के लिए संसद के किसी भी संबंध मेें प्रधानमत्ं री, राष्टट्रपति को
सदन मेें शामिल होना होगा। (यह बात मख्ु ्यमत्ं री के संबंध मेें भी लागू है)। सिफारिश करते हैैं।
110
मंत्रिपरिषद के संदर््भ मेें:
z प्रधानमत्ं री/मख्ु ्यमत्ं री ऐसे व््यक्तियोों की सिफारिश करते हैैं जिन््हेें राष्टट्रपति/राज््यपाल द्वारा मत्ं री नियक्त
ु किया जा सकता है।
z राष्टट्रपति/राज््यपाल के वल उन््हीीं व््यक्तियोों को मत्ं री नियक्त
ु कर सकते हैैं जिनकी सिफारिश प्रधानमत्ं री/मख्ु ्यमत्ं री द्वारा की गई हो।
z वे मत्रियो
ं ों के बीच विभिन््न विभागोों का आवंटन और फे रबदल करते हैैं।
z वे किसी मत्ं री को इस््ततीफा देने के लिए कह सकते है या मतभेद की स््थथिति मेें राष्टट्रपति/राज््यपाल को उसे बर््खखास््त करने की सलाह दे सकते हैैं।
z वे समिति की बैठक की अध््यक्षता करते हैैं और उसके निर््णयोों को प्रभावित करते हैैं।
z वे सभी मत्रियो
ं ों की गतिविधियोों का मार््गदर््शन, निर्देशन, नियंत्रण और समन््वय करते हैैं।
z उनकी मृत््ययु या पद से इस््ततीफा देने से मत्रि ं परिषद समाप्त हो सकती है।
प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री की अन्य शक्तियााँ एवं कार््य
प्रधानमंत्री की अन्य शक्तियााँ एवं कार््य: मुख्यमंत्री की अन्य शक्तियााँ एवं कार््य:
z मत्रि
ं मडं ल के सदं र््भ मेें प्रधानमत्ं री की शक्तियाँ एवं कार््य: z मत्रि
ं मडं ल के सदं र््भ मेें मख्ु ्यमत्ं री की
z प्रधानमत्ं री मत्रि
ं मडं ल का गठन करता है और विभागोों का आवटं न करता है। शक्तियाँ एवं कार््य:
z वह कै बिनेट की बैठकेें बल ु ाता है और बैठक की रूपरे खा भी तय करता है। z मख्ु ्यमत्ं री मत्रि
ं मडं ल का गठन करता है और
z किसी भी मामले पर किसी भी व््यक्ति से परामर््श करना प्रधानमत्ं री का विशेषाधिकार है तथा कभी-कभी बिना किसी विभागोों का आवंटन करता है।
परामर््श के भी कार््य करना उसका विवेकाधिकार है। z वह कै बिनेट की बैठकेें बल ु ाता है और
z प्रधानमत्ं री की अन््य शक्तियाँ और कार््य बैठक की रूपरे खा भी तय करता है।
z वह अतं र-राज््य परिषद और नीति आयोग की शासी परिषद दोनोों का अध््यक्ष होता है। z मख्ु ्यमत्ं री की अन््य शक्तियाँ और कार््य
z प्रधानमत्ं री नीति आयोग का अध््यक्ष होता है।
z प्रधानमत्ं री राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) का अध््यक्ष होता है।
z योजना के संबंध मेें प्रधानमत्ं री की शक्तियाँ एवं कार््य:
z आपातकाल के दौरान वह राजनीतिक स््तर पर मख्ु ्य संकट प्रबंधक होता है। z वह अतं र-राज््य परिषद और नीति आयोग
z वह राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का अध््यक्ष होता है। की शासी परिषद (दोनोों का अध््यक्ष
z कै बिनेट समितियोों के संबंध मेें प्रधानमत्ं री की शक्तियाँ और कार््य: प्रधानमत्ं री होता है) का सदस््य होता हैैं।
प्रधानमत् ं री, कै बिनेट समितियोों का गठन करता है और जब वह इन कै बिनेट समितियोों का सदस््य होता है तो z मख्ु ्यमत्ं री राज््य योजना बोर््ड का अध््यक्ष
उनकी अध््यक्षता भी करता है जो इस प्रकार हैैं: होता हैैं।
राजनीतिक मामलोों की कै बिनेट समिति (जिसे 'सप ु र-कै बिनेट' के नाम से जाना जाता है) – अध््यक्षता प्रधानमत्ं री z मख्ु ्यमत्ं री, संबंधित क्षेत्रीय परिषद का
आर््थथिक मामलोों की कै बिनेट समिति – अध््यक्षता प्रधानमत्
उपाध््यक्ष होता है तथा एक बार मेें एक वर््ष
ं री
की अवधि के लिए पद पर बना रहता है।
नियक्ु तियोों पर कै बिनेट समिति – अध््यक्षता प्रधानमत् ं री
z आपातकाल के दौरान वह राजनीतिक स््तर
विदेश मामलोों के संबंध मेें प्रधानमत् ं री की शक्तियाँ एवं कार््य: पर मख्ु ्य संकट प्रबंधक होता है
इस क्षेत्र को प्रधानमत् ं री द्वारा व््यक्तिगत रूप से निर्देशित किया जाता है। z मख्ु ्यमत्ं री, राज््य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण
यदि प्रधानमत् ं री को अतं रराष्ट्रीय समदु ाय द्वारा सम््ममान दिया जाता है, तो इससे उन््हेें घरे लू स््तर पर भी अधिक (SDMA) का अध््यक्ष होता है।
सम््ममान मिलता है।
वह देश की विदेश नीति को आकार देने मेें महत्तत्वपर््ण ू भमि
ू का निभाता है।
प्रमुख शब्दावलियाँ
पद की शपथ, कार््य संचालन, वास््तविक कार््यकारी प्राधिकारी, विश्वास की हानि, गठबंधन, राज््य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA), कै बिनेट
समितियाँ, सपु र-कै बिनेट, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) आदि।
प्रमुख शब्दावलियाँ
सामूहिक उत्तरदायित््व, संसदीय प्रणाली, हिंदू कोड बिल (1953), 91वाँ संशोधन अधिनियम (2003)।
मंत्रिपरि 113
27 भारत मेें कैबिनेट प्रणाली
कै बिनेट नामक एक छोटा निकाय, मंत्रिपरिषद का केें द्र होता है। इसमेें सरकार के
कैबिनेट समितियााँ
महत्तत्वपूर््ण विभागोों के उच््चस््तरीय मंत्री अर््थथात के वल कै बिनेट मंत्री होते हैैं। यह
केें द्र/राज््य सरकार मेें अधिकार का वास््तविक केें द्र होता है। z कै बिनेट विभिन््न समितियोों के माध््यम से काम करती है जिन््हेें कै बिनेट समितियाँ
मंत्रिमंडल की भूमिका कहा जाता है। इनका गठन प्रधानमत्ं री/मख्ु ्यमत्ं री द्वारा समय की आवश््यकताओ ं
z यह हमारी राजनीतिक-प्रशासनिक प्रणाली मेें सर्वोच््च निर््णय लेने वाली सस्ं ्थथा है। और परिस््थथिति के अनसु ार किया जाता है। इसलिए उनकी संख््यया, नामकरण
z यह के न्दद्र/राज््य सरकार का मख्ु ्य नीति निर््धधारण निकाय है। और संरचना समय-समय पर बदलती रहती है।
z यह के न्दद्र/राज््य सरकार का सर्वोच््च कार््यकारी प्राधिकारी है। z ये समितियाँ न के वल महत्तत्वपर््णू मद्दु दों को सल
ु झाते हैैं और कै बिनेट के विचार
z यह केें द्रीय/राज््य प्रशासन का मख्ु ्य समन््वयक है। के लिए प्रस््तताव तैयार करते हैैं, बल््ककि आवश््यकता पड़ने पर निर््णय भी लेते
z यह राष्टट्रपति/राज््यपाल के लिए एक सलाहकारी निकाय है और इसकी सलाह हैैं। हालाँकि, कै बिनेट उनके निर््णयोों की समीक्षा कर सकती है।
उन पर बाध््यकारी है।
कैबिनेट समितियोों की विशेषताएँ :
z यह मख्ु ्य संकट प्रबंधक है और इस प्रकार सभी आपातकालीन स््थथितियोों से
निपटने के लिए उत्तरदायी है। z इनका संविधान मेें उल््ललेख नहीीं है। कार््य नियम (Rules of Business) उनकी
z यह सभी प्रमख ु विधायी और वित्तीय मामलोों की स््थथितियोों से निपटने के लिए स््थथापना का प्रावधान करते हैैं।
उत्तरदायी है। z ये समितियाँ दो प्रकार की होती हैैं: स््थथायी और तदर््थ (पहली स््थथायी प्रकृ ति
z यह संवैधानिक प्राधिकारियोों और वरिष्ठ सचिवालय प्रशासकोों जैसी उच््च की होती है जबकि दसू री अस््थथायी प्रकृ ति की होती है।)
नियक्ु तियोों पर नियंत्रण रखता है। लाभ हानि
z यह विदेश नीतियोों और विदेशी मामलोों (केें द्रीय मत्रि ं मडं ल) के निर््धधारण से
संबंधित है। z वे मत्रि
ं मडं ल के भारी कार््यभार को z वे सरकारी कामकाज के सभी
कम करने के लिए एक संगठनात््मक महत्तत्वपर््णू क्षेत्ररों तक पहुचँ
किचन कैबिनेट : साधन हैैं। स््थथापित नहीीं करते हैैं।
z यह एक अनौपचारिक निकाय है। भारतीय सविध ं ान मेें इसका उल््ललेख नहीीं है। z वे नीतिगत मद्दु दों की गहन जाँच और
z वे किसी मामले पर तभी
इसमेें प्रधानमत्ं री और दो से चार प्रभावशाली सहयोगी शामिल होते हैैं जिन प्रभावी समन््वय मेें भी सहायता करते
हैैं। विचार कर सकते हैैं जब उसे
पर उनका भरोसा होता है और जिनके साथ वे सहजता से हर समस््यया पर
चर््चचा कर सकते हैैं। यह प्रधानमत्ं री को महत्तत्वपर््णू राजनीतिक और प्रशासनिक z समितियाँ समय और मानव संसाधनोों संबंधित मत्ं री या मत्रि ं मडं ल
मद्दु दों पर सलाह देता है और महत्तत्वपर््णू निर््णय लेने मेें उनकी सहायता करता है। के कुशल उपयोग को सगु म बनाती हैैं। द्वारा संदर््भभित किया जाए।
z इसमेें न के वल कै बिनेट मत्ं री शामिल होते हैैं, बल््ककि प्रधानमत्ं री के मित्र और z कै बिनेट का बहुमल्ू ्य समय बचता है। z यदि जटिल समस््ययाओ ं पर
छोटे आकार के कारण अधिक प्रभावी सतत ध््ययान देना है तथा
परिवार के सदस््य जैसे बाहरी लोग भी शामिल होते हैैं।
विचार-विमर््श होता है। महत्तत्वपर््णू नीतियोों और
किचन कै बिनेट के लाभ किचन कै बिनेट की हानियाँ z यह मत्रियो
ं ों की मनमानी कार््र वाइयोों
छोटी इकाई के कारण, यह एक बड़़ी सर्वोच््च निर््णय लेने वाली संस््थथा के कार््यक्रमोों के कार््ययान््वयन मेें
पर अक ं ु श लगाने मेें मदद करती हैैं। वे
कै बिनेट की तुलना मेें अधिक कुशल रूप मेें मंत्रिमंडल के अधिकार और सामहि ू क उत्तरदायित््व के सिद््धाांत की प्रगति की निरंतर समीक्षा करनी
निर््णय लेने वाली संस््थथा है। दर्जे को कम करता है। रक्षा करने मेें मदद करते हैैं। है, तो नियमित रूप से बैठकेें
सदस््य अधिक बार मिल सकेें गे और बाहरी व््यक्तियोों को प्रभावशाली भमि
ू का z इससे मत्रिं स््तरीय विशेषज्ञता के उपयोग आयोजित करनी चाहिए जो
अधिक तेजी से कार््य निपटा सकेें गे। निभाने की अनमु ति देकर काननू ी को सगु म बनाने मेें मदद मिलती है। कि वो नहीीं करती हैैं।
प्रक्रिया को दरकिनार किया जाता है।
महत्तत्वपूर््ण राजनीतिक मद्दु दों पर निर््णय इससे मत्रिं मडं ल के अन््य सदस््योों मेें विगत वर््ष के प्रश्न
लेने मेें गोपनीयता बनाए रखने मेें अविश्वास की भावना पैदा हो सकती है। z राज््य सभा के सभापति के रूप मेें भारत के उप-राष्टट्रपति की भमि
ू का की
सहायता करता है। विवेचना कीजिए। (2022)
z राज््यपाल द्वारा विधायी शक्तियोों के प्रयोग की आवश््यक शर्ततों का विवेचन टीम के रूप मेें संचालन कर सकता हो। उसके बाद सरकार की दक्षता किस
कीजिए। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज््यपाल द्वारा अध््ययादेशोों के पनु ः सीमा तक मत्रि
ं मडं ल के आकार से प्रतिलोमतः सबं ंधित है? चर््चचा कीजिये।
प्रख््ययापन की वैधता की विवेचना कीजिए। (2022) (2014)
z मृत््ययु दडं ादेशोों के लघक
ू रण मेें राष्टट्रपति के विलंब के उदाहरण न््ययाय प्रत््ययाख््ययान
(डिनायल) के रूप मेें लोक वाद-विवाद के अधीन आए हैैं। क््यया राष्टट्रपति द्वारा
ऐसी याचिकाओ ं को स््ववीकार करने/अस््ववीकार करने के लिये एक समय सीमा प्रमुख शब्दावलियाँ
का विशेष रूप से उल््ललेख किया जाना चाहिये? विश्ले षण कीजिये। (2014) किचन कै बिनेट, सर्वोच््च कार््यकारी प्राधिकारी, मुख््य समन््वयक,
z मत्रि
ं मडं ल का आकार उतना होना चाहिये कि जितना सरकारी कार््य सही सरकारी कामकाज, प्रभावी विचार-विमर््श, राजनीतिक-प्रशासनिक
ठहराता हो और उसको उतना बड़़ा होना चाहिये कि जितने को प्रधानमत्ं री एक प्रणाली, स््थथायी और तदर््थ समितियाँ आदि।
विधेयक मेें महत्तत्वपर््णू मद्दु दों का समाधान किया गया। और उनका बचाव करने के लिए सबं ंधित मत्ं री का समिति के समक्ष उपस््थथित
z आम सहमति बनाने के लिए मंच: इन समितियोों पर दलबदल विरोधी काननू होना, विधेयकोों को समिति को संदर््भभित करने के लिए वस््ततुनिष्ठ मानदडं आदि
लागू नहीीं होता। इससे महत्तत्वपर््णू मद्दु दों पर आम सहमति बनाने के लिए पार्टी जैसी प्रथाओ ं को अपनाना।
लाइन से परे निष््पक्ष तरीके से काम करने मेें मदद मिलती है। z सस््थथा
ं गत अनुसध ं ान सहायता: इससे समितियोों को तकनीकी और जटिल
समितियोों के समक्ष आने वाली समस्याएँ नीतिगत मद्दु दों की समग्र रूप से जाँच करने की सविध
ु ा मिलेगी।
z सदं र््भभित विधेयकोों की सख् ं ्यया मेें कमीीं: आरटीआई संशोधन अधिनियम z आवधिक समीक्षा: समिति के प्रदर््शन के नियमित मल् ू ्ययाांकन और आवश््यक
(2019) और यएू पीए संशोधन अधिनियम (2019) को संसदीय समिति को सधु ार के लिए वस््ततुनिष्ठ मानदडं ।
संदर््भभित किए बिना पारित कर दिया गया।
z सदस््योों की अनुपस््थथिति: समिति की बैठकोों मेें 2014-15 से लगभग 50%
निष्कर््ष
की उपस््थथिति चितं ा का कारण है। संसद की बैठकोों की संख््यया, जो 1950 के दशक मेें 100-150 थी, 2021-22 मेें
z विशेषज्ञता का अभाव : समिति के सदस््योों मेें लेखांकन और प्रशासनिक घटकर 60-70 हो गई है अतः इन बैठकोों मेें लगातार कमी को देखते हुए, समिति
सिद््धाांतोों जैसे विषयोों के विस््ततृत विश्ले षण के लिए आवश््यक तकनीकी प्रणाली को मजबूत कर, कानूनोों की गुणवत्ता मेें सुधार लाने और संभावित
विशेषज्ञता का अभाव है। कार््ययान््वयन चनु ौतियोों को कम करने मेें काफी मदद मिल सकती है।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम
30 (1951)
परिचय महत्तत्व चुनौतियाँ
z गैर-अपराधीकरण: संसद और z सोशल मीडिया : सोशल मीडिया
z जन प्रतिनिधित््व अधिनियम, 1950 को संविधान के अनच्ु ्छछेद 327 के तहत
देश मेें पहले आम चनु ावोों से पहले भारत की अनंतिम संसद द्वारा अधिनियमित राज््य विधानमडं ल की सदस््यता ने चनु ाव प्रचार की खामोशी को
किया गया था। यह लोकसभा और राज््य विधानमडं ल चनु ावोों के लिए सीटोों से अयोग््यता सबं ंधी प्रावधान धधल
ंु ा कर दिया है और मतदाताओ ं
के आवटं न और निर््ववाचन क्षेत्ररों के परिसीमन, मतदाताओ ं की योग््यता, मतदाता राजनीति के गैर-अपराधीकरण को सक्षू ष्म स््तर पर लक्षित करने मेें
सचू ी और केें द्र शासित प्रदेशोों के प्रतिनिधियोों द्वारा राज््यसभा मेें सीटेें भरने का को सनिश् ु चित करते हैैं। भी सक्षम बना दिया है।
प्रावधान करता है। z पारदर््शशिता: संपत्ति और z दलोों का पंजीकरण रद्द करने
z जन प्रतिनिधित््व अधिनियम (1951) संसद के दोनोों सदनोों तथा प्रत््ययेक राज््य देनदारियोों की घोषणा, की शक्ति: भारत निर््ववाचन आयोग
के विधानमडं ल के सदन या सदनोों के लिए वास््तविक निर््ववाचनोों के सचं ालन मतदाताओ ं की सचू ना का के पास उन राजनीतिक दलोों का
का प्रावधान करता है। अधिकार आदि से संबंधित पंजीकरण रद्द करने की शक्ति नहीीं है
अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ प्रावधान चनु ावोों मेें उम््ममीदवारोों जो चनु ाव नहीीं लड़ते हैैं तथा के वल
z यह चनु ाव और उप-चनु ावोों के आयोजन को विनियमित करता है। के संबंध मेें पारदर््शशिता सनिश्
ु चित धन प्राप्त करने के लिए काम करते हैैं।
z यह चन ु ाव कराने के लिए प्रशासनिक बनि ु यादी ढाँचा उपलब््ध कराता है। करते हैैं।
z यह राजनीतिक दल के पजी ं करण से सब
ं ंधित है। z स््वतंत्र एवं निष््पक्ष चुनाव: भ्रष्ट z राजनीति का नौकरशाहीकरण:
z यह सदन की सदस््यता के लिए आवश््यकताओ ं और अयोग््यताओ ं को आचरण और आपराधिक प्रवृति भारत निर््ववाचन आयोग के
परिभाषित करता है। संबंधी प्रावधान और निर््ववाचन पास अपनी स््वयं की स््वतंत्र
z इसमेें भ्रष्टाचार और अन््य अपराधोों से निपटने के लिए कानन ू शामिल हैैं। अधिकारियोों से संबंधित प्रावधान आधिकारिक मशीनरी नहीीं है और
z इसमेें चन ु ावोों से उत््पन््न समस््ययाओ ं और विवादोों को हल करने की प्रक्रिया का राजनीति को अपराध मक्त ु कर उसे अनेक कार्ययों की संपन््नता के
उल््ललेख किया गया है। स््वतंत्र और निष््पक्ष चनु ाव लिए सरकार पर निर््भर रहना पड़ता
z इसमेें रिक्त सीटोों पर उपचन ु ाव का भी प्रावधान है। सनिश्
ु चित करते हैैं। है, जो स््वतंत्र और निष््पक्ष चनु ाव के
जन प्रतिनिधित््व अधिनियम (1951) का महत्तत्व एवं चुनौतियाँ लिए अनक ु ू ल नहीीं है।
महत्तत्व चुनौतियाँ
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (1951) मेें अयोग्यता के संबध
ं मेें प्रावधान
z लोकतंत्र का कार््ययान््वयन: यह z सत्ताधारी पार्टी को लाभ: इस
अधिनियम सविध ं ान के प्रावधानोों अधिनियम मेें सरकारी मशीनरी धारा 8 विशिष्ट अपराधोों के लिए अन््य अपराध:
के कार््ययान््वयन का प्रावधान करता के दरुु पयोग और चनु ावी फंडिंग प्रतिनिधियोों की अयोग््यता को यदि किसी व््यक्ति को किसी
है तथा यह सनिश् ु चित करता है कि के मामले मेें सत्ताधारी पार्टी को संबोधित करती है। विभिन््न उप- अपराध के लिए दोषी ठहराया
देश मेें लोकतंत्र कायम रहे तथा होने वाले लाभ को कम करने के धाराएँ इस प्रकार हैैं: जाता है और दो या अधिक वर््ष
राज््यसभा सदस््योों के कार््यकाल लिए स््पष्ट प्रावधान और दिशा- धारा 8 (1): भारतीय दडं संहिता की जेल की सजा सुनाई जाती है,
आदि जैसे रिक्त स््थथानोों को भरा निर्देश नहीीं हैैं। उदाहरण के लिए, (1860), नागरिक अधिकार संरक्षण तो वह अयोग््य हो जाता है।
जाए। भाजपा को चनु ावी बॉण््ड के माध््यम अधिनियम (1955), गैरकानूनी यदि कोई व््यक्ति भ्रष्ट आचरण मेें
से लगभग 95% फंडिंग मिली है। गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम लिप्त है।
z समानता सनिश् ु चित करना: z लंबित आपराधिक मामले: (1967), भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम यदि किसी व््यक्ति को भ्रष्टाचार या
लोकसभा और विधानसभा जनप्रतिनिधित््व अधिनियम मेें (1988), आतंकवाद निवारण बेईमानी के कारण सरकारी पद से
चनु ावोों के लिए एक मतदाता प्रावधान होने के बाद भी वर््तमान अधिनियम (2002) आदि के कुछ बर््खखास््त कर दिया जाता है।
सचू ी का प्रावधान, एक से अधिक लोकसभा मेें लगभग 43% सांसदोों प्रावधानोों के तहत दडं नीय अपराध का यदि कोई व््यक्ति वाणिज््य या
निर््ववाचन क्षेत्ररों मेें पंजीकरण पर के विरुद्ध आपराधिक मामले दोषी पाए गए व््यक्ति को अयोग््य घोषित व््यवसाय के दौरान सरकार के साथ
रोक लगाता है, जिससे नागरिकोों लंबित हैैं। कर दिया जाएगा यदि उसे निम््नलिखित अनुबंध करता है या सरकार को
की समानता सनिश् ु चित होती है। सजा सुनाई जाती है: माल की आपूर््तति करता है।
ऐसी सजा की तारीख से छह वर््ष की यदि कोई व््यक्ति किसी कंपनी निर््णय
अवधि के लिए के वल जुर््ममाना लगाया या निगम (सहकारी समिति के विधि आयोग की 244वीीं रिपोर््ट राजनीति के अपराधीकरण पर
जाएगा। अलावा) का प्रबंध एजेेंट, प्रबंधक अंकुश संबंधी सिफारिशोों को लागू किया जाना चाहिए, अर््थथात राजनीति
ऐसी दोषसिद्धि की तारीख से छह वर््ष या सचिव है, जिसमेें सरकार की के अपराधीकरण पर अंकुश लगाने के लिए आरोप तय करने के चरण मेें ही
की अवधि के लिए कारावास की सजा कम से कम 25% हिस््ससेदारी है। अयोग््यता के साथ-साथ अन््य कानूनी सरु क्षा उपाय किए जाने चाहिए।
दी जाएगी और जारी रहेगी। यदि कोई व््यक्ति समय पर अपने राजनीतिक दलोों का पंजीकरण
धारा 8 (2): उल््ललंघन करने का दोषी चनु ाव व््यय का लेखा-जोखा
व््यक्ति: दाखिल करने मेें असफल रहता है। भारत के निर्वाचन आयोग के साथ राजनीतिक दलोों का पंजीकरण:
भंडारण या मनु ाफाखोरी पर रोक लगाने मतदान के लिए अयोग््यताएँ: z चनु ाव आयोग राजनीतिक दलोों को इस प्रकार सचू ीबद्ध करता है-
वाला कोई कानून; या किसी व््यक्ति को छह वर््ष की
राष्ट्रीय पार्टी,
भोजन या दवाओ ं मेें मिलावट को अवधि के लिए किसी भी चुनाव
राज््य पार्टी या
प्रतिबंधित करने वाला कोई कानून; या मेें मतदान करने से अयोग््य
घोषित किया जाता है यदि वह पजी ं कृ त गैर मान््यता प्राप्त पार्टी
दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के
किसी भी प्रावधान। निम््नलिखित अपराधोों मेें दोषी z आवश््यक शर्ततें : चन ु ाव चिह्न (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश, 1968 राष्ट्रीय
धारा 8 (3): किसी अपराध के लिए पाया जाता है: या राज््य स््तरीय पार्टी के रूप मेें वर्गीकृ त होने के लिए आवश््यक शर्ततें निर््ददिष्ट
दोषी ठहराए गए और दो वर््ष से अन््ययून भारतीय दंड संहिता (1860): करता है।
कारावास की सजा पाए व््यक्ति [उपधारा चनु ाव मेें रिश्वतखोरी और अनुचित z राष्ट्रीय या राज््य स््तरीय पार्टी के रूप मेें मान््यता प्राप्त करने के लिए किसी
(1) या (2) मेें निर््ददिष्ट किसी अपराध को प्रभाव या प्रतिरूपण का अपराध। राजनीतिक दल को निम््नलिखित मेें से कोई एक शर््त परू ी करनी होगी:
छोड़कर] को ऐसी दोषसिद्धि की तारीख जन प्रतिनिधित््व अधिनियम
राष्ट्रीय पार्टी राज््ययीय पार्टी
से अयोग््य घोषित कर दिया जाता है (1951) : चनु ाव के संबंध मेें वर्गगों
4 या अधिक राज््योों मेें लोकसभा या संबंधित राज््य विधानसभा चनु ाव
के बीच दश्ु ्मनी को बढ़़ावा देने का
और वह अपनी रिहाई के पश्चात छह वर््ष विधानसभा चनु ाव मेें डाले गये कुल वैध मेें डाले गये कुल वैध मतोों का 6%
अपराध; मतदान केें द्ररों से मतपत्ररों को
की अवधि तक अयोग््य बना रहता है। मतोों का 6% वैध मत + 4 लोकसभा वैध मत + 2 विधानसभा सीटेें प्राप्त
हटाना; किसी नामांकन पत्र को धोखे
अयोग््य व््यक्तियोों के लिए उपलब््ध सीटेें प्राप्त की होों की होों ।
से विकृ त करना या नष्ट करना।
उपचार: राज््य मेें लोकसभा के आम चनु ाव
धारा 11 के अंतर््गत चुनाव आयोग मेें डाले गये कुल वैध मतोों का 6%
से संपर््क : अयोग््य व््यक्ति अधिनियम वैध मत + 1 लोकसभा सीट प्राप्त
की धारा 11 के अंतर््गत अयोग््यता को की होों ।
हटाने के लिए चनु ाव आयोग से संपर््क 3 राज््योों से 2% लोकसभा सीटेें प्राप्त संबंधित राज््य विधानसभा मेें 3%
कर सकता है (भ्रष्ट आचरण के आधार की होों । सीटेें या 3 विधानसभा सीटेें, जो
पर अयोग््यता को छोड़कर)। भी अधिक हो प्राप्त की होों ।
धारा 116 A के तहत सर्वोच््च संबंधित राज््य को आवंटित 1/25
न््ययायालय मेें अपील: यदि अयोग््यता लोकसभा सीटेें प्राप्त की होों।
उच््च न््ययायालय मेें दायर चनु ाव याचिका 4 राज््योों मेें राज््य स््तरीय पार्टी का दर््जजा किसी राज््य मेें लोकसभा या
के कारण हुई है, तो व््यक्ति धारा 116 प्राप्त किया हो। विधानसभा चनु ाव मेें डाले गये
A के तहत अपील के लिए सर्वोच््च कुल वैध मतोों का 8% वैध मत
न््ययायालय मेें अपील कर सकता है। प्राप्त किया हो।
निर््णय चुनाव आयोग के साथ पंजीकृत निम्नलिखित राजनीतिक दलोों को
सर्वोच््च न््ययायालय ने 2013 मेें (लिली थॉमस मामले मेें ) चौथी उपधारा पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त दल माना जाता है:
8 (4) को पलट दिया था: यह धारा दोषी विधायकोों को अपनी सीट z गैर-मान््यता प्राप्त दल नव पजी ं कृ त दल हैैं,
बरकरार रखने की अनुमति देती थी, बशर्ते कि वे अपनी सजा के तीन महीने z वे पार््टटियाँ जिन््हेें विधानसभा या आम चनु ावोों मेें राज््य स््तरीय पार्टी बनने के
के भीतर अपील दायर करेें। लिए पर््ययाप्त प्रतिशत वोट नहीीं मिले हैैं, और
लिली थॉमस बनाम भारत संघ मामले, 2013 मेें सर्वोच््च न््ययायालय ने
z ऐसी पार््टटियाँ जिन््होोंने पंजीकृ त होने के बाद से कभी चनु ाव नहीीं लड़़ा।
यह प्रावधान असंवैधानिक माना था कि संसद और राज््य विधानमंडल
के सदस््य की अयोग््यता दोषसिद्धि की तारीख से तीन महीने तक नहीीं होगी, मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलोों को लाभ:
तथा दोषसिद्धि पर तत््ककाल अयोग््यता का प्रावधान किया था। z प्रस््ततावकोों से छूट: मान््यता प्राप्त राजनीतिक दलोों के उम््ममीदवारोों को नामांकन
2013 मेें पटना उच््च न््ययायालय ने न््ययायिक या पुलिस हिरासत मेें किसी दाखिल करते समय दस प्रस््ततावकोों की सदस््यता की आवश््यकता नहीीं होती है।
भी व््यक्ति के चनु ाव लड़ने पर रोक लगा दी थी।
अधिक के कारावास की सजा सनु ाई जाती है। z अध््यक्ष एवं सभापति को नियम बनाने का अधिकार है: अध््यक्ष/अध््यक्ष
इस सबं ंध मेें नियम बना सकते हैैं और नियमोों का जानबझू कर उल््ललंघन
मतदाताओ ं के सूचना के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय का विशेषाधिकार का उल््ललंघन माना जा सकता है।
फैसला
z चुनाव व््यय का लेखा: जनप्रतिनिधित््व अधिनियम, 1951 की धारा 77 के
मामला सर्वोच््च न््ययायालय का निर््णय अनसु ार प्रत््ययेक उम््ममीदवार को नामांकन की तिथि से लेकर परिणाम घोषित होने
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक अभ््यर्थी को अपने आपराधिक इतिहास, की तिथि तक चनु ाव के संबंध मेें किए गए सभी व््ययोों का अलग और सही
रिफॉर््म््स बनाम भारत संघ शैक्षिक योग््यता और सम््पत्ति के संबंध मेें लेखा रखना आवश््यक है। यह लेखा किसी भी उम््ममीदवार के चनु ाव जीतने
(2002) जानकारी देनी होगी। के तीस दिनोों (30) के भीतर जिला चनु ाव अधिकारी को देना होगा। किसी
पीपुल््स यूनियन फॉर मतदाताओ ं को पद के लिए उम््ममीदवारोों राजनीतिक दल के स््टटार प्रचारकोों द्वारा हवाई या अन््य तरीकोों से किए गए यात्रा
सिविल लिबर्टीज बनाम की प्रासंगिक योग््यताएँ जानने का मौलिक व््यय को इस सबं ंध मेें उम््ममीदवार द्वारा किया गया व््यय नहीीं माना जाता है।
भारत संघ (2003) अधिकार है, जिसमेें उनकी आय और संपत्ति
के बारे मेें जानकारी भी शामिल है।
भ्रष्ट आचरण
तदनुसार, जन प्रतिनिधि कानून, 1951 की जन प्रतिनिधि कानून (1951) मेें भ्रष्ट आचरण से संबंधित प्रावधान:
धारा 33B को असंवैधानिक माना गया, अधिनियम की धारा 123 भ्रष्ट आचरण को परिभाषित करती है -
जिसमेें कहा गया था कि उम््ममीदवारोों को z शत्रुता या घृणा को बढ़़ावा देना: धर््म, मल
ू वंश, जाति, समदु ाय या भाषा
उनके आपराधिक रिकॉर््ड के अलावा अपने के आधार पर भारतीय नागरिकोों के विभिन््न वर्गगों के बीच शत्रुता या घृणा
बारे मेें कोई अन््य जानकारी बताने के लिए को बढ़़ावा देना।
बाध््य नहीीं किया जा सकता। z सती प्रथा या उसका महिमामंडन: सती प्रथा या उसके महिमामड ं न का
प्रचार-प्रसार।
के सदस््योों या उसके एजेेंट के अलावा अन््य किसी को मतदान के न्दद्र तक या पेड न्यूज़
वहाँ से किसी को लाने-ले जाने के लिए किसी वाहन या जलयान का उपयोग z किसी भी मीडिया (प््रििंट और इलेक्ट्रॉनिक) मेें प्रकाशित होने वाला कोई भी
नहीीं किया जा सके गा । समाचार या विश्ले षण जिसका मल्ू ्य धन या किसी प्रतिफल के रूप मेें नकद
सर्वोच््च न््ययायालय ने 2017 मेें अभिराम सिंह मामले मेें माना था कि चनु ाव एक या अन््य समकक्ष रूप मेें प्राप्त किया जाता है। पेड न््ययूज कहलाता है। (प्रेस
धर््मनिरपेक्ष प्रक्रिया है और चनु ाव के दौरान धर््म, जाति, नस््ल, समदु ाय या भाषा काउंसिल ऑफ इडि ं या)।
के आधार पर वोट की अपील करना 'भ्रष्ट आचरण' है। पेड न्यूज़ के नकारात्मक प्रभाव:
z धन-शक्ति का प्रतिबिम््ब: भगु तान अधिकांशतः नकद या वस््ततु के रूप मेें
प्रमुख शब्दावलियाँ किया जाता है तथा यह आयकर और चनु ाव व््यय काननोू ों का उल््ललंघन करता है।
बूथ कै प््चरिंग, मिथ््यया प्रकाशन, धार््ममिक अपील, अनुचित प्रभाव, z लोकतंत्र की नीींव पर आघात : ऐसी खबरेें मतदाताओ ं के मतदान व््यवहार
चनु ाव खर््च आदि। पर बहुत बरु ा असर डालती हैैं क््योोंकि दर््शकोों या मतदाताओ ं को उम््ममीदवार
के व््यक्तित््व या प्रदर््शन के बारे मेें स््पष्ट जानकारी नहीीं मिलती और इसलिए
चुनावी अपराध वह यह तय नहीीं कर पाता कि उसे किसे वोट देना है। अतः यह लोकतंत्र की
बनिु यादी नीींव को कमजोर करता है।
जनप्रतिनिधित््व अधिनियम (आरपीए), 1951 मेें सूचीबद्ध चुनावी अपराध
z मतदाता सोच और राय को प्रभावित करना : यह मतदाताओ ं को यह
: आरपीए, 1951 के अध््ययाय III मेें निम््नलिखित चुनावी अपराधोों का
स््पष्ट नहीीं बताता कि समाचार वास््तव मेें एक विज्ञापन है उससे प्रभावित
प्रावधान है -
होने की आवश््यकता नहीीं है अतः इस प्रकार यह उन््हेें सचू ना के अधिकार
z सार््वजनिक बै ठकोों मेें व््यवधान: व््यवसाय के लेन-देन को रोकने के उद्देश््य से।
से वचि ं त करता है।
z एग््जजिट पोल के परिणामोों का प्रकाशन: चन ु ाव शरू
ु होने से लेकर मतदान z स््वतंत्र एवं निष््पक्ष चुनावोों पर प्रभाव: राजनीतिक एजेेंडा फै लाकर तथा
के आधे घटं े बाद तक एग््जजिट पोल आदि के परिणामोों का प्रकाशन और प्रसार। समाचार चैनलोों से संपर््क रखने वाले लोगोों को लाभ पहुचँ ाकर स््वतंत्र एवं
z मुद्रण सामग्री: मद्र ु क और प्रकाशक के नाम और पते के बिना पैम््फलेट, निष््पक्ष चनु ावोों को प्रभावित करता है ।
पोस््टर आदि का मद्रु ण। z मीडिया स््वतंत्रता प्रभावित: मीडिया लोकतंत्र का चौथा स््ततंभ है इसे स््वतंत्र
z सामुदायिक घृणा को बढ़़ावा देना: धर््म, नस््ल, जाति, समद ु ाय या भाषा के व निष््पक्ष होना चाहिए। अतः नियमोों का दरुु पयोग करने से लोगोों का मीडिया
आधार पर चनु ावोों के संबंध मेें सामदु ायिक भेदभाव या शत्रुता को बढ़़ावा देना। पर से विश्वास खत््म होता है।
करने वाले सदस््योों का 50%) द्वारा पारित, परिवर््ततित या निरस््त का प्रयोग किया जाता है तथा राज््य उसके सहायक के रूप मेें
किया जा सकता है। कार््य करते हैैं।
संघीय संविधान, राज््योों और केें द्र सरकार के बीच अधिकारोों
भारत और फ्ररांस
विशेषताएँ फ््राांस भारत
प्रकृति z इसमेें एकात््मक शासन प्रणाली तथा अर्दद्ध-अध््यक्षात््मक शासन z भारत एक संसदीय लोकतंत्र है जिसका नाममात्र का प्रमख ु राष्टट्रपति
प्रणाली है। होता है।
विधि निर््ममाण की z फ््राांसीसी ससं द मेें प्रभावी विधि निर््ममाण का अभाव है। z सातवीीं अनसु चू ी के अनसु ार केें द्रीय सचू ी पर काननू बनाने के सबं ंध
शक्ति z विधायिका के पास विषयोों की एक सचू ी होती है जिन पर उसे मेें राष्टट्रपति के पास के वल अध््ययादेश पारित करने की शक्ति है।
काननू पारित करना होता है, जबकि राष्टट्रपति बाकी मद्दु दों पर काननू
बनाता है।
सं स द z फ््राांसीसी संसद द्विसदनीय है, जिसमेें दो सदन हैैं: नेशनल असेेंबली z लोकसभा की तल ु ना मेें राज््यसभा की शक्ति सीमित है।
और सीनेट। z के वल संविधान संशोधन के मामले मेें ही भारत मेें राज््यसभा,
z नेशनल असेेंबली की सीनेट से तल ु ना मेें काफी अधिक शक्तियाँ लोकसभा के बराबर है।
फ््राांसीसी द्विसदनीय प्रणाली को असमान बनाती हैैं।
z सीनेट को भगं नहीीं किया जा सकता।
धर््मनिरपेक्षता z धर््मनिरपेक्षता के कठोर सिद््धाांत का पालन किया जाता है: राज््य z सकारात््मक धर््मनिरपेक्षता का सर्वोत्तम उदाहरण है ।
धार््ममिक गतिविधियोों का समर््थन नहीीं करता है, लेकिन निजी धार््ममिक
प्रथाओ ं मेें भी हस््तक्षेप नहीीं करता है।
z यह सार््वजनिक स््थथानोों पर किसी भी प्रकार के धार््ममिक प्रतीकोों को
प्रतिबंधित करता है। यह मॉडल राज््य समर््थथित धार््ममिक सधु ारोों के
विचार के लिए कोई गंजु ाइश नहीीं छोड़ता।
संशोधन z संसद के दोनोों सदनोों को 3/5 बहुमत से प्रस््तताव पारित करना होगा। z लचीलेपन और कठोरता का मिश्रण। जनमत संग्रह आदि जैसे कोई
z संशोधन की प्रकृ ति अत््ययंत कठोर है, इसलिए राष्टट्रपति जनमत संग्रह प्रावधान नहीीं।
के माध््यम से संशोधन को लोगोों के पास भेजने का विकल््प भी
चनु सकते हैैं।
राष्टट्रपति z राष्टट्रपति का चनु ाव एक निश्चित अवधि (5 वर््ष) के लिए होता है। z भारत मेें ऐसा कोई भी निकाय नहीीं है। राष्टट्रपति के महाभियोग से
राष्टट्रपति का चनु ाव पर््णू बहुमत (द्वितीय मतपत्र प्रणाली) द्वारा संबंधित कार््यवाही संसद मेें होती है।
किया जाएगा।
z उच््चतम न््ययायालय राष्टट्रपति के महाभियोग के बारे मेें जाँच करे गा।
प्रधानमंत्री z फ््राांसीसी प्रधानमत्ं री, राष्टट्रपति के सलाहकार होते हैैं (सह-अस््ततित््व z सरकार का वास््तविक मखि
ु या प्रधानमत्ं री होता है।
की अवधारणा)।
z दोनोों पदोों के बीच शक्ति का विभाजन नहीीं बल््ककि कार्ययों का विभाजन
होता है।
भारत और जापान
विशेषताएँ जापान भारत
प्रकृति z संविधान संसदीय शासन प्रणाली और अनेक बनि ु यादी z दोनोों के पास लिखित संविधान है।
स््वतंत्रताएँ सनिश्
ु चित करता है। z जापान के कठोर संविधान की तल ु ना मेें भारत का संविधान लचीला और
z इसके प्रावधानोों के अनसु ार, जापान का सम्राट ‘राज््य कठोर दोनोों है।
और लोगोों की एकता का प्रतीक’ होता है तथा बिना z जापानी संविधान मेें एकात््मक राज््य का प्रावधान किया गया है।
किसी औपचारिक प्राधिकार के के वल औपचारिक
कर््तव््योों का पालन करता है।
विधान मंडल z डायट (Diet) , जिसमेें प्रतिनिधि सभा और पार््षद सभा z ससं द दोनोों देशोों मेें सर्वोच््च विधायी निकाय है।
शामिल हैैं, के पास विधायी प्राधिकार है। z अविश्वास प्रस््तताव के कारण सदन को भगं कर दिया जाता है, भारत के समान।
z जापान के उच््च सदन के सदस््य छह वर््ष का कार््यकाल परू ा करते हैैं तथा प्रत््ययेक
वर््ष आधे सदस््य सदन छोड़ देते हैैं।
कार््यकारिणी z डायट के निर्देशन मेें, सम्राट प्रधानमत्ं री की नियक्ु ति करता z जापान मेें मत्रियो
ं ों की नियक्ु ति प्रधानमत्ं री द्वारा की जाती है, लेकिन भारत मेें
है, जो कार््यकारी शाखा के प्रमख ु के रूप मेें कार््य करता है। प्रधानमत्ं री की सलाह पर राष्टट्रपति द्वारा उनकी नियक्ु ति की जाती है।
z उसे नागरिक होने के साथ-साथ डायट के किसी सदन
का सदस््य भी होना चाहिए।
न््ययायतंत्र z सर्वोच््च न््ययायालय और निचली अदालतोों को न््ययायिक z न््ययायाधीशोों की नियक्ु ति, निष््ककासन और निश्चित सेवानिवृत्ति आयु के संबंध
अधिकार दिए गए हैैं। अकादमिक अध््ययनोों मेें जापान मेें समान काननू हैैं ।
को आम तौर पर एक सवं ैधानिक राजतंत्र के रूप मेें देखा z डायट, न््ययायाधीशोों की नियक्ु ति करते है; तथापि भारत मेें संसद का ऐसा कोई
जाता है, जिसमेें नागरिक काननू प्रणाली है। कार््य नहीीं है।
प्रमुख शब्दावलियाँ
अविनाशी राज््योों का अविनाशी संघ, विनाशी राज््योों का अविनाशी संघ, संवैधानिक उल््ललंघन, शैडो कै बिनेट, संवैधानिक राजतंत्र, सकारात््मक
धर््मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक संघवाद, डायट, नागरिक कानून प्रणाली के साथ संवैधानिक राजतंत्र।