Professional Documents
Culture Documents
HASRAT
HASRAT
HASRAT
Contact Us
ये ख़राबाितयान-ए-िख़रद-बाख़्ता
सुब्ह होते ही सब काम पर जाएँ गे
है ग़नीमत िक असरार-ए-हस्ती से हम
बे-ख़बर आए हैं बे-ख़बर जाएँ गे
रंग-ए-मौसम है और बाद-ए-सबा
शहर कूचों में ख़ाक उड़ाती है
था दरबार-ए-कलाँ भी उस का नौबत-ख़ाना उस का था
थी मेरे िदल की जो रानी अमरोहे की रानी थी
आप अपना ग़ुबार थे हम तो
आप अपना ग़ुबार थे हम तो
याद थे यादगार थे हम तो
घर से हम घर तलक गए होंगे
घर से हम घर तलक गए होंगे
अपने ही आप तक गए होंगे
वो भी अब हम से थक गया होगा
हम भी अब उस से थक गए होंगे
ये मत भूलो िक ये लम्हात हम को
िबछड़ने के िलए िमलवा रहे हैं
तअ'ज्जुब है िक इश्क़-ओ-आिशक़ी से
अभी कुछ लोग धोका खा रहे हैं
ये जज़्ब-ए-इश्क़ है या जज़्बा-ए-रहम
ितरे आँ सू मुझे रुलवा रहे हैं
बूदश इक रू है एक रू या'नी
इस की िफ़तरत में इं क़लाब नहीं
हो न पाया ये फ़ैसला अब तक
आप कीजे तो क्या िकया कीजे
है तो बारे ये आलम-ए-असबाब
बे-सबब चीख़ने लगा कीजे
हज़रत-ए-ज़ुल्फ़-ए-ग़ािलया-अफ़्शाँ
नाम अपना सबा सबा कीजे
शुमाल-ए-जावेदान-ए-सब्ज़-ए-जाँ से
तमन्ना की अमारी जा रही है
फ़ुग़ाँ ऐ दुश्मन-ए-दार-ए-िदल-ओ-जाँ
िमरी हालत सुधारी जा रही है
िनकहत-ए-पैरहन से उस गुल की
िसलिसला बे-सबा रहा मेरा
िदल जो है आग लगा दू ँ उस को
िदल जो है आग लगा दू ँ उस को
और िफर ख़ुद ही हवा दू ँ उस को
जो भी है उस को गँवा बैठा है
मैं भला कैसे गँवा दू ँ उस को
शफ़क़-ए-शाम-ए-िहज्र के हाथों
अपनी उतरी हुई क़बा भेजो
वो इक बाद-ए-शुमाली-रंग जो थी
शमीम उस की सवारी हो गई है
ऐश-ए-उम्मीद ही से ख़तरा है
ऐश-ए-उम्मीद ही से ख़तरा है
िदल को अब िदल-दही से ख़तरा है
ज़ख़्म-ए-उम्मीद भर गया कब का
क़ैस तो अपने घर गया कब का
आप अब पूछने को आए हैं
िदल िमरी जान मर गया कब का
आप इक और नींद ले लीजे
क़ािफ़ला कूच कर गया कब का
उस से हर दम मोआ'मला है मगर
दरिमयाँ कोई िसलिसला ही नहीं
बे-िमले ही िबछड़ गए हम तो
सौ िगले हैं कोई िगला ही नहीं
तू जो है जान तू जो है जानाँ
तू हमें आज तक िमला ही नहीं
तू है इक उम्र से फ़ुग़ाँ-पेशा
अभी सीना ितरा िछला ही नहीं
आसमाँ है ख़मोशी-ए-जावेद
मैं भी अब लब नहीं िहलाने का
शौक़ है इस िदल-ए-दिरं दा को
आप के होंट काट खाने का
सुरूद-ए-आितश-ए-ज़रीर्न-ए-सहन-ए-ख़ामोशी
वो दाग़ है िजसे हर शब जलाने लगते हो
है जहन्नुम जो याद अब उस की
वो बिहश्त-ए-वजूद थी कब तक
वो सबा उस के िबन जो आई थी
वो उसे पूछती रही कब तक
हाल-ए-सहन-ए-वजूद ठहरेगा
तेरा हंगाम-ए-रुख़्सती कब तक
कब उस का िवसाल चािहए था
कब उस का िवसाल चािहए था
बस एक ख़याल चािहए था
इक चेहरा-ए-सादा था जो हम को
बे-िमस्ल-ओ-िमसाल चािहए था
था वो जो कमाल-ए-शौक़-ए-वसलत
ख़्वािहश को ज़वाल चािहए था
अब तुम भी तो जी के थक रहे हो
अब मैं भी तो मर के थक गया हूँ
है अजब उस का हाल-ए-िहज्र िक हम
गाहे गाहे सँवरते रहते हैं
मेरे नक़्श-ए-सानी को
मुझ में ही से उभरना है
जो नहीं गुज़रा है अब तक
वो लम्हा तो गुज़रना है
हम न थे एक आन के भी मगर
जावेदाँ जािवदािनयाँ थे हम
नार-ए-िपस्तान थी वो क़त्ताला
और हवस-दरिमयािनयाँ थे हम
ना-गहाँ थी इक आन आन िक थी
हम जो थे नागहािनयाँ थे हम
हम ने पैहम क़ुबूल-ओ-रद कर के
उस को एक इिम्तहान में रक्खा
हम ने िलक्खा िनसाब-ए-तीरा-शबी
और ब-सद आब-ओ-ताब ही िलक्खा
मुंिशयान-ए-शुहूद ने ता-हाल
िज़क्र-ए-ग़ैब-ओ-िहजाब ही िलक्खा
हम ने इस शहर-ए-दीन-ओ-दौलत में
मस्ख़रों को जनाब ही िलक्खा
ख़ुद में भी बे-अमाँ हूँ मैं तुझ में भी बे-अमाँ हूँ मैं
कौन सहेगा उस का ग़म वो जो िमरी अमाँ में है
है यहाँ िज़क्र-ए-हाल-ए-मौजूदाँ
तू है अब अज़-गुिज़श्तगाँ चुप रह
इक िकताब-ए-वजूद है तो सही
शायद इस में दुआ का बाब नहीं
बे-शमीम-ओ-मलाल-ओ-हैराँ है
ख़ेमा-गाह-ए-सबा कई िदन से
वो जो ख़ुश्बू है उस के क़ािसद को
मैं नहीं िमल सका कई िदन से
उस से भी और अपने आप से भी
हम हैं बे-वासता कई िदन से
जहल-ए-वाइ'ज़ का इस को रास आए
सािहबो मेरी आगही है शराब
पस-ए-िनगाह-ए-तग़ाफ़ुल थी इक िनगाह िक थी
जो िदल के चेहरा-ए-हसरत की ताज़गी ही रही
अजीब आईना-ए-परतव-ए-तमन्ना था
थी उस में एक उदासी िक जो सजी ही रही
बूद पल पल की बे-िहसाबी है
िक मुहािसब नहीं िहसाब नहीं
महिफ़ल-ए-रुख़्सत-ए-हमेशा है
आओ इक हश्र-ए-हा-ओ-हू ठहरे
वो ख़याल-ए-मुहाल िकस का था
वो ख़याल-ए-मुहाल िकस का था
आइना बे-िमसाल िकस का था
सफ़री अपने आप से था मैं
िहज्र िकस का िवसाल िकस का था
बस इक गुबार-ए-वहम है इक कूचा-गदर् का
दीवार-ए-बूद कुछ नहीं और दर भी कुछ नहीं
ये शहर-दार-ओ-मुहतिसब-ओ-मौलवी ही क्या
पीर-ए-मुग़ान-ओ-िरन्द-ओ-क़लंदर भी कुछ नहीं
है अब तो एक जाल सुकून-ए-हमेशगी
पवार्ज़ का तो िज़क्र ही क्या पर भी कुछ नहीं
सामेआ-ए-सदा-ए-जाँ बे-सरोकार था िक था
एक गुमाँ की दास्ताँ बर-लब नीम-वा भी थी
शुऊ'र एक शुऊ'र-ए-फ़रेब है सो तो है
ग़रज़ िक आगही ना-आगही को छोड़ िदया
मुनिकरान-ए-ख़ुदा-ए-बख़िशं दा
उस से तो और इक ख़ुदा माँगो
उस िशकम-रक़्स-गर के साइल हो
नाफ़-प्याले की तुम अता माँगो