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अपराजिता स्तोत्र

• िैसा नाम वैसा ही इस स्तोत्र का काम अर्ाात िैसा नाम है


वैसा ही फल दे ता है |

त्रैलोक्य अर्ाात तीनो लोको में िो पराजित ना हो ने दे तीनो


लोको में िो वविय प्रदान करे ऐसा स्तोत्र त्रैलोक्य वविय
अपराजिता स्तोत्र |

इस स्तोत्र के पाठ से नवग्रह दोष समाप्त हो िाते है, भूत-प्रेत


आदद की बाधाओं से मजु क्त ममलती है, नकारात्मक शजक्तयों का
ववनाश हो िाता है,

मनुष्य की सभी मनोकामना मसद्ध हो िाती है, िाने अनिाने


ककये गए या हुए पापो का ववनाश हो िाता है, ववद्यार्ो को
ववद्या प्रदान करता है,

ननिःसंतान को संतान प्राजप्त के द्वार खल


ु िाते है, सरकारी
कामो में सफलता प्राप्त होती है, ककसी भी प्रकार का कोई भय
नहीं रहता,
सभी प्रकार के उपद्रव शांत हो िाते है, शत्रु के द्वारा ककये हुए
मारण, मोहन, उच्चाटन आदद कियाओ का नाश कर दे ने में
समर्ा है यह उत्तम स्तोत्र,

सभी प्रकार के ववघ्न शांत हो िाते है इस स्तोत्र पाठ से,दिःु स्वप्न


शांत हो िाते है, सामाजिक मान सन्मान दे ने में समर्ा है यह
स्तोत्र,

रािनीनतक सफलता प्राजप्त के मलये इस स्तोत्र का पाठ करना


चादहए |

स्तोत्र करने की ववधी

इस स्तोत्र का पाठ करने के मलये सवाप्रर्म ववननयोग करे |

इस स्तोत्र को ननरन्तर एक महीने तक प्रनतददन

तीनो काल िपने से काया सफल होता है |

या इस स्तोत्र का १२०० पाठ का अनष्ु ठान करे |


प्रनतददन इस स्तोत्र का १२० पाठ करे |

िो दश ददन में समाप्त हो िायेगा पश्चात ् प्रनतददन तीन पाठ


करे |

खासकर रात्रत्र के १० बिे से लेकर १ बिे तक इस का पाठ


करना चादहए |

मााँ दग
ु ाा की मूनता के आगे या श्रीयंत्र के आगे एक घी का दीपक
प्रज्वमलत करे और पाठ का आरम्भ करे |

|| अपराजिता स्तोत्र ||

ववननयोगिः ॐ अस्या: वैष्णवयािः पराया: अजिताया: महाववद्यायािः


वामदे व-बह
ृ स्पनत-माकाण्डेया ऋषयिः | गायत्र्यजु ष्णगनष्ु टुब्बह
ृ नत
छन्दांमस | लक्ष्मी नमृ संहो दे वता | ॐ क्लीं श्रीं ह्ीं बीिं हुं शजक्तिः
| सकलकामना मसद््यर्ं अपराजित ववद्यामन्त्र पाठे

ववननयोगिः |
इस पाठ के वामदे व, बह
ृ स्पनत, माकाण्डेय ऋवष है, गायत्री
अनुष्टुप बह
ृ नत छन्द है,

लक्ष्मी नरमसम्हा ( नमृ संह ) दे वता है, क्लीं, श्रीं, ह्ीं, हुं शजक्त है,

और सकलकामना मसद्धध अर्ा के मलये इसका पाठ करने का


ववननयोग है |

ॐ नीलोत्पलदलश्यामां भुिङ्गाभरणाजन्वतं |

शद्
ु धस्फदटकसंकाशां चन्द्रकोदटननभाननां || १ ||

शङ्खचिधरां दे वीं वैष्णवीं अपराजितं |

बालेन्दश
ु ेखरां दे वीं वरदाभयदानयनीं || २ ||

नमस्कृत्य पपाठै नां माकाण्डेयो महातपािः || ३ ||

श्री माकाण्डेय उवाच


शृणुष्वं मुनयिः सवे सवाकामार्ामसद्धधदाम |

अमसद्धसाधनीं दे वीं वैष्णवीं अपराजितं || ४ ||

ॐ नमो नारायणाय, नमो भगवते वासद


ु े वाय, नमोऽस्त्वनन्ताय
सहस्त्रशीषाायणे, क्षीरोदाणावशानयने, शेषभोगपर्ययाङ्काय,
गरुड़वाहनाय, अमोघाय अिाय अजिताय पीतवाससे,

ॐ वासुदेव सङ्कषाण प्रद्युम्न, अननरुद्ध, हयग्रीव, मत्स्य,कूमा,


वाराह नमृ संह, अच्यत
ु , वामन, त्रत्रवविम, श्रीधर राम राम राम |

वरद वरद वरदो भव, नमोस्तत


ु े, नमोस्तत
ु े स्वाहा,

ॐ असुर-दै त्य-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत-वपशाच-कूष्माण्ड-मसद्ध-
योधगनी-डाककनी-शाककनी-स्कन्द्गह
ृ ान

उपग्रहान्नक्षत्रग्रहांंंश्चान्या हन हन पच पच मर् मर् वव्वंसय


ववं्वंसय ववद्रावय ववद्रावय चण
ू य
ा चण
ू य
ा शंखेन चिेण वज्रेण
शूलेन गदया मस
ु लेन हलेन भस्मीकुरु कुरु स्वाहा |
ॐ सहस्त्रबाहो सहस्त्रप्रहरणायुध, िय िय, वविय वविय,
अजित, अममत, अपराजित, अप्रनतहत, सहस्त्रनेत्र, ज्वल ज्वल,
प्रज्वल प्रज्वल, ववश्वरूप बहुरूप, मधस
ु द
ू न, महावराह, महापरु
ु ष,
वैकुण्ठ, नारायण, पद्मनाभ, गोववन्द, दामोदर, हृवषकेश, केशव,
सवाासुरोत्सादन, सवाभूतवशङ्कर, सवादिःु स्वप्नप्रभेदन,
सवायन्त्रप्रभञ्िन, सवानागववमदान, सवादेवमहे श्वर,
सवाबंधववमोक्षण, सवाादहतप्रमदान, सविावरप्रणाशन,
सवाग्रहननवारण, सवापापप्रशमन, िनादान, नमोस्तत
ु े स्वाहा |

ॐ ववष्णोररयमानुपप्रोक्ता सवाकामफलप्रदा |

सवासौभाग्यिननी सवाभीनतववनामशनी || ५ ||

सवैंश्च पदठतां मसद्धैववाष्णोिः परमवल्लभा |

नानया सदृशं ककजञ्चदष्ु टानां नाशनं परं || ६ ||


ववद्या रहस्या कधर्ता वैष्णवयेषापराजिता |

पठनीया प्रशस्ता वा साक्षात्सत्वगुणाश्रया || ७ ||

ॐ शक्
ु लाम्बरधरं ववष्णंु शमशवणं चतभ
ु ि
ुा ं |

प्रसन्नवदनं ्यायेत्सवाववघ्नोपशान्तये || ८ ||

अर्ातिः संप्रवक्ष्यामम ह्यभयामपराजितम |

याशजक्तमाामकी वत्स रिोगण


ु मयी मता || ९ ||

सवासत्वमयी साक्षात्सवामंत्रमयी च या |

या स्मत
ृ ा पूजिता िप्ता न्यस्ता कमाणण योजिता |

सवाकामदघ
ु ा वत्स शृणष्ु वैतां ब्रवीमम ते || १० ||
य इमां पराजितां परमवैष्णवीं प्रनतहतां

पठनत मसद्धां स्मरनत मसद्धां महाववद्यां

िपनत पठनत श्रुणोनत स्मरनत धारयनत कीतायनत वा

न तस्याजग्नवायव
ु ज्रोपलाशननवषाभयं

न समुद्रभयं न ग्रहभयं न चौरभयं

न शत्रुभयं न शापभयाँ वा भवेत ् |

क्वधचद्रात्र्यंधकारस्त्रीरािकुलववद्वेवष ववषगरगरदवशीकरण

ववद्वेषोच्चाटनवध बन्धनंभयं वा न भवेत ् | एतैमन्


ा त्रैरुदाह्यतैिः
मसद्धैिः संमसद्धपूजितैिः |

ॐ नमोस्तत
ु े | अभये, अनघे, अजिते, अममते, अमत
ृ े, अपरे ,
अपराजिते, पठनत, मसद्धे, ियनत मसद्धे, स्मरनत मसद्धे,
ऐकोनाशीनततमे, एकाककनन, ननश्चेतमस, सुद्रम
ु े, सुगन्धे,
एकान्नशे, उमे ध्रुवे, अरुं धनत, गायत्री, साववत्री,
िातवेदमस,मानस्तोके,सरस्वती, धरणण, धरणण, सौदामनन, अददनत,
ददनत, ववनते, गौरर, गान्धारी, मातङ्गी,कृष्णे, यशोदे ,
सत्यवाददनन, ब्रह्मवाददनी, कामल, कपामलनी,करालनेत्रे, भद्रे ,ननद्रे ,
सत्योपयाचनकरर, स्र्लगतं, िलगतं, अंतररक्षगतं वा मां रक्ष
सवोपद्रवेभ्यिः स्वाहा |

यस्यािः प्रणश्यते पष्ु पं गभो वा पतते यदद |

मियते बालको यस्यािः काकवन््या च या भवेत ् || ११ ||

धारयेद्या इमां ववद्यामेतैदोषैना मलप्यते |

गमभाणी िीववत्सा स्यात्पत्रु त्रणी स्यान्न संशयिः || १२ ||

भूिप
ा त्रे जत्वमां ववद्यां मलणखत्वा गन्धचन्दनैिः |

एतैदोषैना मलप्येत सुभगा पुत्रत्रणी भवेत ् || १३ ||


रणे रािकुले द्यूते ननत्यं तस्य ियो भवेत ् |

शस्त्रं वारयते ह्येषा समरे काण्ड़दारुणे || १४ ||

गुल्मशूलाक्षक्षरोगाणां क्षक्षप्रं नाश्यनत च वयर्ाम |

मशरोरोगज्वराणां न नामशनी सवादेदहनां || १५ ||

इत्येषा कधर्ता ववद्या अभयाख्या अपराजिता |

एतस्यािः स्मनृ तमात्रेण भयं क्वावप न िायते || १६ ||

नोपसगाा न रोगाश्च न योधा नावप तस्करािः |

न रािानो न सपााश्च न द्वेष्टारो न शत्रविः || १७ ||

यक्षराक्षसवेताला न शाककन्यो न च ग्रहािः |

अग्नेभय
ा ं न वाताच्च न स्मुद्रान्न वै ववषात || १८ ||
कामाणं वा शत्रुकृतं वशीकरणमेव च |

उच्चाटनं स्तम्भनं च ववद्वेषणमर्ावप वा || १९ ||

न ककजञ्चत्प्रभवेत्तत्र यत्रैषा वतातेऽभया |

पठे द वा यदद वा धचत्रे पुस्तके वा मुखेऽर्वा || २० ||

हृदद वा द्वारदे शे वा वताते ह्यभयिः पुमान |

हृदये ववन्यसेदेतां ्यायेद्दे वीं चतुभि


ुा ां || २१ ||

रक्तमाल्याम्बरधरां पद्मरागसम्प्रभां |

पाशांकुशाभयवरै रलंकॄतसुववग्रहां || २२ ||
साधकेभ्यिः प्रयच्छन्तीं मंत्रवणाामत
ृ ान्यवप |

नातिः परतरं ककजञ्चद्वशीकरणमनुत्तमं || २३ ||

रक्षणं पावनं चावप नात्र कायाा ववचारणा |

प्रातिः कुमाररकािः पूज्यािः खाद्यैराभरणैरवप |

तदददं वाचनीयं स्यात्तजत्प्रया वप्रयते तु मां || २४ ||

ॐ अर्ातिः संप्रवक्ष्यामम ववद्यामवप महाबलां |

सवादष्ु टप्रशमनीं सवाशत्रक्ष


ु यङ्करीं || २५ ||

दाररद्रदख
ु शमनीं दौभााग्यवयाधधनामशननं |

भत
ू प्रेतवपशाचानां यक्षगन्धवारक्षसां || २६ ||

डाककनी शाककनी स्कन्द कूष्माण्डानां च नामशननं |

महारौदद्रं महाशजक्तं सद्यिः प्रत्ययकाररणीं || २७ ||


गोपनीयं प्रयत्नेन सवास्वं पावातीपतेिः |

तामहं ते प्रवक्ष्यामम सावधानमनािः श्रुणु || २८ ||

एकाजह्नकं ्वजह्नकं च चातुधर्ाकाद्ाधमामसकं |

द्वैमामसकं त्रैमामसकं तर्ा चातुर्म


ा ामसकं || २९ ||

पााँचमामसकं षाङ्गमााँमसकं वानतक पैवत्तकज्वरं |

श्लैजष्पकं सात्रत्रपानतकं तर्ैव सततिवरं || ३० ||

मौहूनताकं पैवत्तकं शीतज्वरं ववषमज्वरं |

द्वदहन्कं त्र्यजह्नकं चैव ज्वरमेकाजह्नकं तर्ा |

क्षक्षप्रं नाशयेते ननत्यं स्मरणादपराजिता || ३१ ||


ॐ ह्ं हन हन कामल शर शर गौरर धम धम

ववद्ये आले ताले माले गन्धे बन्धे पच पच ववद्ये

नाशय नाशय पापं हर हर संहारय वा दिःु स्वप्नववनामशनी


कमलजस्र्ते ववनायकमातिः

रिनन सं्ये दन्ु दमु भनादे मानसवेगे शङ्णखनी चकिणी गददनी


वजज्रणी शमू लनी अपमत्ृ युववनामशनी

ववश्वेश्वरी द्रववड़ी द्राववड़ी द्रववणण द्राववणी केशवदनयते


पशप
ु नतसदहते दन्ु दमु भदमनी दम्
ु माददमनी

शबरर ककराती मातङ्गी ॐ द्रं द्रं ज्रं ज्रं िं िं तुरु तुरु ॐ द्रं कुरु
कुरु |

ये मां द्ववषजन्त प्रत्यक्षं परोक्षं वा तान सवाान दम दम मदाय


मदाय तापय तापय गोपय गोपय पातय पातय शोषय शोषय
उत्सादय उत्सादय ब्रह्माणण ब्रह्माणण माहे श्वरर कौमारर वारादह
नारमसंही ऐजन्द्र चामण्
ु डे महालक्ष्मी वैनानयकी औपेन्द्री आग्नेयी
चण्डी नैऋनत वायवये सौम्ये ऐशानन ऊ्वामधोरक्ष प्रचण्डववद्ये
इंद्रोपेन्द्रभधगनन |

ॐ नमो दे वव िये वविये शाजन्त स्वजस्त तुजष्ट पुजष्ट वववद्ाधधनन


कामांकुशे कामदघ
ु े सवाकामवरप्रदे |

सवाभूतेषु मां वप्रयं कुरु कुरु स्वाहा |

आकषाणण आवेशनन ज्वालामामलनी रमणण रमणण धरणी धाररणी


तपनन तावपनी मदनन माददनी शोषणी सम्मोदहनन |

नीलपताके महानीले महागौरर महाधश्रये |

महाचान्द्री महासौरर महामायरू ी आददत्यरजश्म िाह्नवव |

यमघण्टे ककणी ककणी धचंतामणण |

सुगन्धे सरु भे सरु ासरु ोत्पन्ने सवाकामदघ


ु े |

यद्यर्ा मनीवषतं कायं तन्मम मसद्धतु स्वाहा |

ॐ स्वाहा | ॐ भिःू स्वाहा | ॐ भव


ु िः स्वाहा | ॐ स्विः स्वाहा |
ॐ महिः स्वाहा | ॐ िन: स्वाहा | ॐ तपिः स्वाहा |

ॐ सत्यं स्वाहा | ॐ भूभव


ुा िः स्वाहा |
यत एवागतं पापं तत्रैव प्रनतगच्छतु स्वाहे त्यों |

अमोघैषा महाववद्या वैष्णवी चापराजिता || ३२ ||

स्वयं ववष्णुप्रणीता च मसद्धेयं पाठतिः सदा |

एषा महाबला नाम कधर्ता तेऽपराजिता || ३३ ||

नानया सदृशी रक्षा त्रत्रषु लोकेषु ववद्यते |

तमोगुणमयी साक्षद्रौद्री शजक्तररयं मता || ३४ ||

कृतान्तोवप यतो भीतिः पादमल


ू े वयवजस्र्तिः |

मल
ू ाधारे न्यसेदेतां रात्रावेन च संस्मरे त || ३५ ||

नीलिीतमूतसङ्काशां तडडत्कवपलकेमशकां |
उद्यदाददत्यसंकाशां नेत्रत्रयववराजिताम || ३६ ||

शजक्तं त्रत्रशूलं शङ्खं च पानपात्रं च त्रबितीं |

वयाघ्रचमापररधानां ककङ्ककणीिालमजण्डतं || ३७ ||

धावंतीं गगनस्यान्तिः पादक


ु ादहतपादकां |

दं ष्राकरालवदनां वयालकुण्डलभूवषतां || ३८ ||

वयात्तविां ललजिह्वां भक
ु ु टीकुदटलालकां |

स्वभक्तद्वेवषणां रक्तं वपबन्तीं पानपात्रतिः || ३९ ||

सप्तधातन
ू शोषयन्तीं िूरदृष्टया ववलोकनात |

त्रत्रशल
ू ेन च तजज्िह्वां कीलयंतीं मह
ु ु मह
ुा ु िः || ४० ||
पाशेन बद्धा तं साधमानवंतीं तदजन्तके |

अद्ाधरात्रस्य समये दे वीं धायेन्महाबलां || ४१ ||

यस्य यस्य वदे न्नाम िपेन्मंत्रं ननशांतके |

तस्य तस्य तर्ावस्र्ं कुरुते सावपयोधगनी || ४२ ||

ॐ बले महाबले अमसद्धसाधनी स्वाहे नत |

अमोघां पठनत मसद्धां श्रीवैष्णवीं || ४३ ||

श्रीमद्पाराजिताववद्यां ्यायेत |

दिःु स्वप्ने दरु ाररष्टे च दनु नाममत्ते तर्ैव च |

वयवहारे भवेजत्सद्धधिः पठे द्ववघ्नोपशान्तये || ४४ ||

यदत्र पाठे िगदजम्बके मया

ववसगात्रबन्द्वऽक्षरहीनमीडड़तं |
तदस्तु सम्पूणत
ा मं प्रयान्तु में

सङ्कल्पमसद्धधस्तु सदै व िायतां || ४५ ||

ॐ तव तत्त्वं न िानामम कीदृशामस महे श्वरर |

यादृशामस महादे वी तादृशायै नमो नमिः || ४६ ||

|| श्री दग
ु ाापण
ा ं अस्तु ||

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