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ा णधम आचरण सं ह

ा णका मह

ा ण, ाके मुखसे ज लेनेस,े सम वण से पूव उ होनेसे, वेदको धारण करनेसे


और जगत् को धमक श ा देनसे े सबका भु है । ं ोह क
ाने देव और पतरोक
प ंचाने के लये और जगत् क र ाके न म तप करके अपने मुखसे ा णको उ
ं े मुख ारा
िकया। जन ा णोक गवासी देवगण ह और पतरगण क को सदा
भोजन करते ह उनसे अ धक े कौन होसकता है उ ए पदाथ म ाणधारी,
ाणधा रयो ं म बु वाले जीव, बु वालोमं मनु , सब मनु ोमं ा ण ा णोमं
व ान्, व ानो ं म कृ तबु , कृ तबु वालो ं म कत काय करनेवाले और कत काय
करनेवालो ं म ानी े ह ॥1

ं े कोपसे अ सवभ ी आ, समु का जल खारा होगया और च मा


जन ा णोक
यरोगयु होकर िफर अ ा आ उनको ो धत करके कौन न नही ं होगा जो
ं सृ कर सकते ह और ोध करके देवताओक
ा ण गािद-लोक और लोकपालोक ं ो
अदेवता बना सकते ह, कौन पु ष उनको पीड़ा देकर अपनी वृ कर सकता है। जनके
1 उ मा ो वा ै ाद् ण ैव धारणात् । सव ैवा सग धमतो ा णः भुः ॥

तं िह य ूः ादा ा प ा दतो सृजत् । ह क ा भवा ाय सव ा च गु ये ॥

य ा ेन सदा ह ान दवौकसः । क ा न चैव पतरः िक तू म धकं ततः ॥

भूतानां ा णनः े ाः ा णनां बु जी वन | बु म ु नरा: े ा नरेषु ा णाः तृ ाः॥

ा णेषु तु व ांसो व ु कृ तबु यः । कृ तबु षु क ार: कतृषु वे दनः ॥ मनु-१.९३-९७

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

दू रभाष: 9044016661
आ य अथात् य ािद करानेसे लोक और देवगण सदा त ह और ही जनका धन
है उनक िहसं ा करके कौन जी वत रहैगा। जैसे सं ार यु अथवा सं ाररिहत अ
महान् देवता है वैसे व ान् होवे चाहे अ व ान् हो ा ण महान् देवता है अथात्
ा ण यु अ व ान् ा ण भी पूजने यो है। जैसे महातेज ी अ शान म
रहनेपर भी दू षत नही ं होता; य म होम होनेपर वृ को ा होता है, वैसे कु तकमोसं े
वृ होनेपर भी ा ण पू है; ोिं क वह महान् देवता है। 2अ म हवन करनेक
अपे ा ा ण पी अ म हवन करना े है ।3 तीनो ं लोक, तीनो ं वेद, चारो ं आ म
और तीनो ं अ क र ा के लये पूवकालम वधाताने ा णको रचा था।4 ा णका मुख
जल और कांटेसे रिहत खेत है, उसीम सब वीज बोना चािहये; यही खेती सब कामना
देनेवाली है ।5 जो गृह अपने घरम ा णके आनेपर पग धोने के लये जल, पादक
ु ा,
दीप, अ और रहनेका ान देता है उसके पास यमराज नही ं आता है। जबतक

2 कृ तः सवभ ोऽ रपेय महोद धः । यी चा ा यतः सोमः को न न े को तान् ॥

लोकान ा ृजेययु लोकपालां को पताः । देवा ु युरदेवां कः ं ां मृ ुयात् ||

यानुपा त लोका देवा सवदा । चैव धनं येषां को िहं ा ा जी वषुः ॥

अ व ां ैव व ां ा णो देवतं महत् । णीतचा णीत यथा दैवतं महत् ॥

शाने ाप तेज ी पावको नैव दु ाते | यमान य ेषु भूय एवा भवधते ॥

एवं य न ेषु वत े सवकमसु । सवथा ा णाः पू ाः परमं दैवतं िह तत् ॥ मनु- १/३१४-३१९ ॥

3 अ ेः सकाशाि मानौ तं े महो ते ॥ या० ृ त - १/३१६ ॥

4 यो लोका यो वेदाआ मा योऽ यः । एतेषां र णाथाय सं सृ ा ा णाः पुरा ॥ अ ृ त | २५ ॥

5 ा ण मुखं े ं न दकमक कम् । वापये वबीजा न सा कृ षः सवका मका ॥पाराशर ृ त-१/ ६४ ॥

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

दू रभाष: 9044016661
ं े चरणोक
ा णोक ं े जलसे पृ ी भीगी ई रहती है तबतक उस गृह के पतर कमलके
प ो ं म अमृत पीते ह ।6 ं तृ
ाने वेद धारण करनेके लये, पतर और देवताओक के
न म और धमक र ा के लये तप करके ा णको उ िकया। सबसे ा ण े
ह, उनम यद पढ़नेवाले, वेद पढ़नेवालो ं म वेद विहतकम करनेवाले और वेद विहत-कम
करनेवालो ं म भी आ -त ानी े ह । 7

जो फल का तक क पू णमाको े पु रतीथ म क पलागौ दान करनेसे होता है वही


ं े चरण धोनेसे मलता है । ा णके
फल ा णोक ागत करनेसे अ , आराम देनेसे
इ , चरण-धोनेसे पतर और अ आिद देनसे ा स होते ह। माता और पतासे
परम तीथ ग ा और गौ ह; िक ु ा णोसं े े तीथ न आ है, न होगा। ा ण
देवताओ ं के देवता ह; जगत् का कारण तेज ही है।8 जपका छ , तपका
छ तथा य के कम का छ ं े सफल कह देनसे े न होजाता है । ा णोक
ा णोक ंे
ं ो देवता मानते ह, ा ण सब देवताओ ं के प ह, इससे उनका वचन झठू ा नही ं
वचनोक
ं े कहनेसे सफल होता है। जस
होता। उपवास, त, ान और तीथका फल ा णोक
6 पादोदकं पादधृतं दीपम ं त यम् । यो ददा त ा णे ो नोपसप त तं यमः ॥

व पादोदक लना याव त मं दनी । तावत् पु रपा ेषु पब पतरोऽमृतम् ॥ ास ृ त - ४/ ८-९

7 या व ृ त - १/१९८-१९९ ॥

8 य लं क पलादाने का त ां े पु रे । त लं ऋषय: े ा व ाणां पादशोधने ॥

ागतेना यः ीता आसनेन शत तुः । पतरः पादशौचेन अ ा ेन जाप तः ॥

माता प ोः परं तीथ ग ा गावो वशेषतः । ा णा रमं तीथ न भूतं न भ व त ॥

ा णः स भवे ैव देवानाम प दे वतम् । ं चैव लोक तेजो िह कारणम् ॥ ास ृ त४/१०-२२, ४७

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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कमको ा ण कहदेता है िक यह पूण आ उसके उस वचनको नम ार करके शरपर
धारण करनेवाले अ ं ा देनेवाला, जलसे रिहत
ोम य का फल पाते ह। सब कामनाओक
चलनेवाला तीथ ा ण है, उनके वचन पी जलसे मलीन मनु शु होजाते ह।9 सब
वण म ा ण उ म ह इस लये ं ो उनका उनक आ ाका पालन करना चािहये
योक
ं ो यथारी त उनक सेवा करनी चािहये; और वेद - ा ण तो न य ही
और शू ोक
सबके माननीय ह।10

ा ण आदरणीय एवं अव

श क होने के कारण ा ण आदरणीय है। वह सबका गु है। महाभारत म भी


धमशा ो ं के समान ा ण को आदरणीय और अव माना गया है साथ ही ा ण
सबका उ ारक है। माक ेय जी ने यु ध र से कहा िक " ा ण जप, म , पाठ, होम
ा ाय और वेदा यन के ारा ही वेदमयी नौका का नमाण करके दूसरो ं को भी तारते

9 जप ं तप रछ ं य ं य कम ण । सव भव त न ं य चे ा णाः ॥

ा णा या न भाष े म े ता न देवताः । सवदे वमया व ा न त चनम था ॥

उपवासो तं चैव ानं तीथफलं तपः । व ै ा दतं सव स ं त त लम् ॥

स म त य ा ं वद तदेवताः । ण शरसा धायम ोमफलं लभेत् ॥

ा णा ज मं तीथ नजलं सावका मकम् । तेषां वा ोदके नैव शु य म लना जनाः ॥ शतातप १/२६-३०

10 सवषां चैव वणानामु मो ा णो यतः । ु पालयेि मं व ा ा तपालकः ॥

सेवां चैव तु व शू ः कु या थो दतम् । सवषां चा प वै मा ो वेद व ् वज एव िह ॥

लघुआ ालायन ृ त२२/१-२

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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ह और यं भी तरते ह।" आिदपव म लखा है िक- ग ड़ जब अमृत लेने के लये जाने
11

लगे तब उनक माता वनता ने ा णो ं के मह को बताते ए कहा िक " ा ण सम


ा णयो ं का अ ज, सब वग म े , पता और गु ह। 12महाभारत म वनता ने ग ड़
से कहा है िक "स ु षो ं के लये ा ण आदरणीय माना गया है। तु ोध आ भी जाय
तो भी ा ण क ह ा से सवथा दूर रहना चािहये।13 गु होने के कारण ही ा ण क
ह ा करना धमधा ो ं म व जत है। महाभारत म वनता ने ग ड़ से कहा िक अमृत लेने
14

के लए जाते समय तु जो रा े म मले उसका तुम भ ण कर लेना िक ु ा ण को


नही ं मारना ोिं क " ा ण सम ा णयो ं के लए अव है। वह अ के समान
दाहक होता है।"15 ा ण क े ता बताते ए अणीमा ने धमराज से कहा िक
" ा ण का वध स ूण ा णयो ं के वध से भी अ धक भयं कर है।"16

ा ण के ादश त

महाभारत म धृतरा ने सन ुजात से ा णो ं के त के वषय म पूछा िक ा णो ं के


त िकतने कार के होते ह तब स कु मार ने धृतरा से कहा िक धम, स , इ य-

11 जपमं ं च होमै ा ाया यनेन च । नावं वेदमयीं कृ ा तारय तर च ।महाभारत वन प० २००.१३

12 तदेतं व वधं ल ं व ा ं ि जो मम् । भूतानाम भू व ो वण े पता गु ः ॥महाभारत आ०प० २८.७३

13 एवमा द प ु सतां वै ा णो मतः । स ते तात न ह ः सं ं ना प सवथा ॥ महाभारत,आ०प०२८.५

14 अव ो वै ा णः सवापराधेषुः । बौधायन धमसू - १-१०-१८,१६

15 न च ते ा णं ह ु काया बु ः कथं चन । अव ः सवभूतानां ा णो नलोपमः || महाभारत,आ०प० २८.३

16 अ ेऽपरावेऽ प महान् ममद या कृ तः ॥ गरीयान् ा णवधः सवभूतवधाद प ॥ महाभारत,आ०प०१०७.१५

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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न ह, तप, म रता का अभाव, ल ा, सहनशीलता, िकसी के दोष को न देखना, य
करना, दान देना, धैय और शा ान- ये ा ण के बारह त ह।17

ा ाय ा ण का परम धम और देव

अ ापन और अ यन ा ण के मु कत ह। वेद के अ यन को ही ' ा ाय'


कहते थे। ' ा ायोऽ ेत ः' क ु त म ' ा ाय' का अथ अपनी शाखा का वेद है।
ा ाय के ारा ही वेद क र ा हो सकती थी। इसी लये ' ा ाय' अथात् वेद का
अ यन ा ण का मु कत है ।18

महाभारत म यु ध र ने ा णो ं के कम के वषय म भी से पूछा िक सबके वषय म


तो मुझ को ान हो गया िक सम ा णयो ं के ा- ा धम ह। अब आप मुझे के वल
ा णो ं के धम बताने क कृ पा कर। तब भी जी बोले िक "इ य सं यम ा णो ं का
ाचीन धम है िक ु वेदशा ो ं का ा ाय भी उनका मु कम है, इससे उनके सब
कम क पू त होती है।"19

ा ाय ही ा णो ं के देव का मु आधार है। व ा यन म रत रहने के कारण ही


ा ण सबसे े ह। य ने यु ध र से पूछा िक ा णो ं म देव ा है तथा पु षो ं का

17 धम स ं च दम प अमा व ी त ानसूया ।

य दानं च धृ तः ुतं च ता न वै ादश ा ण ।। महाभारत, उ०प० ४३.२०

18 ा णेन न ारणो धमः षड ो वेदोऽ ेयो ेय: इ त ।महाभा

19 दममेव महाराज धममा पुरातनम् । ा ा सनं चैव त कम समा ते।। महाभारत,शां त प०६०.०९

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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सा धम ा है ? तब यु ध र ने कहा िक "वेदो ं का ा ाय ही ा णो ं म देव है,
किठन तप ा करना ा णो का धम है ,मृ ु को ा होना नय त है तथा दूसरो क
न ा करना ा णो मे दु ो ं के समान कम है ।20

ा ण के भाव और कत

ि ज े और उदार बने, वेदो ं का अ यन करे , सतत सावधान रहकर ा ाय म ही


लगा रहे, देवता लोग उसे ा ण मानते ह।"21 भर ाज ने भृगुजी से ा ण के कम के
वषय म पूछा िक िकन कम से ा ण कहलाता है।भृगुजी बोले िक "कम आिद सं ारो ं
से स , प व एवम् वेदो ं के ा ाय म सं ल ा णो चत छः कम म त,
सदाचार का पालन तथा उ म य , श अ का भोजन करने वाला गु के त मे
रखने वाला मनु ा ण कहलाता है।"22महाभारत म ा ण धम क दूसरी प रभाषा भी
बताई िक "जो जते य, धमपरायण, ा ाय त र और प व ह तथा काम और
ोध जनके वश म ह देवतालोग ा ण उसे ही मानते ह23यु ध र के ारा ा णो ं के
कत पूछे जाने पर भो जी ने कहा िक "मन इ यो ं का सं यम रखने वाला, सोमयाग

20 ा ाय एषां देव ं तप एषां सता मव । मरणं मानुषो भावः प रवादोऽसता मव।। । वही वनपव ३१३.५०

21 चारीवदा ो योऽधोयीत् ि ज पु वः । ा ायवान् म ो ये तं देवा ा ण वदःु ॥ वही , वनपव २०६.३७३

22 जातकमा द भ य ु सं ार सं ृ तः शु चः | वेदा यनस ः षट्सु कम व तः ।।

शौचाचार तः स धसाशी गु यः । न ती स परः स वै ा ण उ ते । म०भा०शा पव १८६.२,३०

23 जते यो धमपर: ा ाय नरतः शु चः | काम ोधो वशो य तं देवा ा णं वदःु ।। म०भा०वनपव २०७.३४५

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

दू रभाष: 9044016661
कराके सोमरस पीने वाला, सदाचारी, दयालु, न ाम, सरल, मृदु, ू रता रिहत,
माशील हो वही ा ण कहलाने यो है।24 ौपदी ने ा ण का धम बताते ए यु ध र
से कहा िक "सम ा णयो ं म मै ीभाव, दान लेना, दान देना अ यन और तप ा
करना ये ा णो ं के ही क है।25डु ुभ ने को अिहसं ा का उपदेश देते समय
ा ण के धम के वषय म कहा िक "अिहसं ा, स , मा और वेदो ं का ा ाय न य
ही ये ा ण के उ म धम ह।26

व ान् ा ण (प त) के ल ण

वदुर ने धृतरा को पं िडत के ल ण बताते ये कहा है िक "अपने प का


ान, उ ोग, दःु ख सहने क श और धम म रता ये गुण जस मनु को
पु षाथ से ुत नही ं करते वही प त कहलाता है।27 महाभारत म ासजी ने
शुकदेवजी को ा ण के कत बताते ए कहा िक ा ण को वेदो ं म बताई ई
यी व ा- ॐ (अ, ऊ, म्) इन तीन अ रो ं से स रखने वाली णव व ा
का च न एवं वचार करने चािहये। वेद को छहो ं अंगो ं सिहत ऋक् , साम, यजुष

24 य: ाद् दा ः सोमप ायशीलः सानु ोश: सवसहो नराशीः ।

ऋजुमदृ रु नृशंसः मावान् स वै व ो नेतरः पापकमा ॥ म०भा०शा पव ६३.८

25 म ता सवभूतेषु दानम यनं तपः। ा ण ैव धमः ा रा ो राजस म । म०भा०शा पव १४.१५

26 अिहंसा स वचनं मा चे त व न तम् । ा ण परो धम वेदानां धारणा प च । म०भा०आ दपव ११.१५

27 आ ानं समार त ा धम न ता । यमथानापकष स वं पं डत उ ते ॥ म०भा०उ ोग पव ३३.१५

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

दू रभाष: 9044016661
एवं अथव के मं ो ं का र ं जन के सिहत अ यन करे। ा ण सदा सदाचार
का वताव करे । िकसी जीव को क न दे। स त बने। सं तो ं क सेवा म रह
कर त ान ा करे । स ु ष बने और शा ो ं क ा ा करने म कु शल
बने। ा ण को अपने तेज क वृ करने के लये ा करना चािहये ऐसा पूछा
जाने पर ासजी बोले िक "हष, मद और ोध से रिहत जो ा ण है, वह दःु ख
से दूर रहता है। दान, वेदा ायन, य , तप, ल ा, सरलता और इ यसं यम-
इन स ु णो ं से ा ण अपने तेज क वृ और पाप का नाश करता है।"28
मा ा ण और प पावन ा ण

जो ा ण सं ारआिद कम से ि ज बनाता है और वेदािदके ा ानोसं े धम उपदेश


ं े लये भी पताके समान माननीय
करता है वह ा ण बालक होनेपर भी धमपूवक वूढोक
है। वड़ी अव ा, ेत- के श, धन और ब त स ी के रहनेपर कोई बड़ा नही ं
होसकता; मह षयोनं े न य िकया है िक जो लोग अ ोक
ं े सिहत वेदो ं को जानते ह वही
लोग े ह ।29 जन पं ं े ारा पं
पावन ा णोक
हीन ा णोसे दू षत पं भी
प व होजाती है उनका वृ ा मै पूरी री तसे कहता ं। जो ा ण सब वेदोकं े जाननेम

28 वीतहषमद ोधो ा णो नावसीद त । दानम यनं य पो ीराजं वं दमः ।।

दानम यनं य पो ीराजवं दमः। एतै ववधते तेजः पा ानं चापकष त।।म०भा०शा पव २४१.७

29 ा ज नः क ा धम च शा सता। बालोऽ प व ो वृ पता भव त धमतः ॥

न हायनैन प लतैन व ेन न ब ु भः । ऋषय ि रे धम योऽनूचानः स नो महान् ॥ मनु २/१५३,१५४

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

दू रभाष: 9044016661
ं े जानने म े है और जनके पता आिद सब ो य है उनको
नपुण है, वेदा ोक
पं पावन कहते है। णा चके त, प ा , सुपण, छहो ं वेदा जाननेवाले,
ा ववाहसे ववािहत प ी के पु , े सामग अथात् सामवेदका आर क भाग -
गानेवाले, वेदका अथ जाननेवाले, वेदका व ा, चारी, ब त दान करनेवाले और
एकसौ वष क अव ावाले ा ण पं पावन कहेजाते है ।30 विहत कम के करनेवाले,
श आिदको श ा देनेवाले, धमके ा ान करनेवाले और सब ा णयोसे म भाव
रखनेवाले ा ण यथाथ म ा ण कहने यो है; कोई उनको बुरा अथवा खा वचन न
कहे।31 जैसे च अ ं ो भी जला देता है वैसेही वेद
ह रतवृ ोक ा ण अपने
ं ो न करदेता है । वेद और शा ो ं के त ोक
कमज नत दोषोक ं ो जाननेवाला ा ण
िकसी आ म म रहे, इसी लोकम पताको ा होता है ।32 ा ण ा णके घरमे
ज लेनेसे ा ण कहाजाता है, सं ार होनेसे ि ज कहलाता है, व ा पढ़नेसे व
ं े होनेसे ो य कहाजाता है। जो ा ण वेद और शा को
होता है और इन तीनोक
पढ़ाता है और शा के अथका ान रखता है वह वेद वद् कहलाता है, उसका वचन

30 अपा चोपहता पङ् ः पा ते यै जो मैः । ता वोधत का नै ि जा ा ङ् पावनान ।।

अ ाः सवषु वेदेषु सव वचनेषु च । ो या यजा ैव व ेयाः प पावनाः ॥

णा चके तः प ा सुपणः षड वत् । दे या स ानो े सामग एव च ॥

वेदाथ वत् व ा च चारी सह दः । शतायु ैव व ेया ा णा: प षावनाः ॥ मनु २/१८३-१८६

31 वधाता शा सता व ा मै ो ा ण उ ते । त ै नाकु शलं यू ा शु ां गरमीरयेत् ॥ मनु ११/३५

32 यथा जातबलो विहदह ा ान प मान् । तथा दह त वेद ः कमजं दोषमा नः ॥

वेदशा ाथत ो य त ा मे वसन् । इहैव लोके त भूयाय क ते ॥ मनु- १२/१०१-२ ॥

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

दू रभाष: 9044016661
प व है एक भी वेद वद् ा ण जस धमका जो न य करदे उसीको परमधम मानना
चािहये; िक ु सौहजार मूख ा ण कहै उसको नही।ं 33 जो ा ण व ारसिहत स ूण
वेद, ६ वेदा इ तहास तथा पुराणका वचार करता है उसको वेदपारग कहते है ।34 जो
ं ो जानता है; वाकोवा
ा ण लोक वहार और वेद तथा वेदा ोक ( ो र प
वैिदक ), इ तहास और पुराण जानने म वीण है, इ ीकं अपे ा करनेवाला और
इ ीसे जी वका करनेवाला, ४० सं ारोसं े शु , ॐ ३ कम (वेद पढ़ना, य करना और
दान देना) अथवा ६ कम ( पढ़ना, पढ़ाना, य करना, य कराना, दान देना और
दानलेना ) म त र और समयके अनुकूल न ताके सिहत आचार वचारम वहार
ं ा सं यम, दान, स ,
करनेवाला है उसको ब ुत कहतेह ॥35 योग, तप ा, इ योक
शौच, दया, वेद, व ान, आ कता; ये सब ा णके च ह। जो ा ण सब कारसे
इ योक ं े दमन करनेवाले ह; जनके कान वेदोसं े प रपूण ह, जो जते य और
जीविहसं ा से रिहत ह और दान लेनमे सं कोच करते ह, ऐसे ा ण मनु ो ं के तारनेके

33 -----------------------------------------------------। ज ना ा णो ेयः सं ारै ज उ ते ॥

व या या त वम ं ो य भरेव च । वेदशा ा धीते यः शा ाथ च नबोधयेत् ॥

तदासौ वेद व ो ो वचनं त पावनम् । एको प वेद व म यं व दे ् ि जो मः ॥

स ेयः परमो धम ना ानामयुतायुतैः ॥ अ ृ त १३८-१४१

34 मीमांसते च यो वेदान् पड् भरः स व रैः । इ तहासपुराणा न स भवे ेदपारगः ॥ ास ृ त ४/४५

35स एष ब ुतो भव त लोकवेदवेदा वद् वाकोवा े तहासपुराणकु शल दपे वृ ा रंशता सं ारै : सं ृ त षु कम भरतः
षट्सु वा समयाचा रके भ वनीतः ॥ गौतम ृ त-८/२ ॥

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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लये समथ ह।36 मनु वेद और शा - पढ़े ए तथा शा के अथको बतानेवाले
ा णके हाथसे अपनी सेवा करवाताहै उसके धमक वृ नही ं होती और उसक ल ी
तथा आयु ीण होजातीहै। जो ा ण ाधीन और स ु रहकर सदाचार म त र
रहता है वह सं सार - समु से पार होता है।37

ा ण आचार

ा णको उ चत है िक वषके समान सदा स ानसे डरे और अमृतके समान सदा


अपमानक आकां ा करे ; अ से अपमान िकया आ पु ष सुखसे सोता है, सुखसे
जागता है और सुखसे लोकम वचरता है और अपमान करनेवालेका नाश होता है।38

ा णको उ चत है िक अपनी आयुका पिहला चौथाई भाग गु के घर म बतावे और


दूसरे चौथाई भाग म ववाह करके नज गृहम नवास करे । जस वृ से िकसी जीवसे
कु छ ोह नही होवे अथवा अ ोह होवे बना आप ालके अ समयम ऐसीही वृ

36 योग पो दमो दानं स ं शौचं दया ुतम् । व ा व ानमा मेतद् ा णल णम् ॥

ये शा दा ाः ु तपूणकणा जते याः मा णवधा वृ ाः ।

त हे स चता ह ा े ा णा ार यतुं समथाः ॥ व श ृ त - ६/२१-२२

37 वेद व जह ेन सेवा सं गृ ते य द । न त वधते धमः ीरायुः ीयते ुवम् ॥

सं तु ो येन के ना प सदाचारपरायणः । पराधीनो ि जो न ा तरे वसागरम् ॥ लघुआ ालायन ृ त२२/१७,२४

38 सम्माना ा णो न मुि जेत वषा दव । अमृत ेव चाकाड ेदवमान सवदा ॥

सुखं वमतः शेते सुखं च तबु ते । सुखं चर त लोके ऽ वम ा वन त ॥ मनु २/१६२- १६३ ॥

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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अवल न करे । के वल गृह ी धम के नवाहके लये नज वण विहत उ म कायसे,
शरीरको ेश नही ं देकर धनका स य करे।

ऋत, अमृत, मृत, मृत अथवा स ानृत वृ से अपना नवाह करे, िक ु वृ से कभी
नही।ं उ वृ और शल वृ को ऋत वृ , बना मांगे ए भ ा आ द ा को
अमृतवृ , मांगो ई भ ाको मृतवृ , कृ षकमको मृतवृ और वा ण को
स ानृत वृ कहते है; इससे भी जीवन तीत करे , िक ु सेवा करना कु ेक वृ
कहलाती है इस लये सेवाका काम कभी नही करे।

गृह ा ण कोिठले भर अ , अथवा ऊंटनी भर अ , तीन िदन खासे यो अ के वल


एक िदन के भोजन यो अ स य करे।39 इन ४ कारके गृह ा णोमं े मसे
पिहलेसे पीछे वाले े और गािद लोकको जीतने वाले होते है। इनम कोई एक ६
कामोसं े अथात् उ वृ , शल वृ , अया चत भ ा, या चत भ ा, कृ ष और
वा ण से, कोई तीन काम से अथात् याजन, अ ापन और त हसे, कोई दो कामोसं े

39 चतुथमायुषो भागमु ष ा ं गुरौ ि जः । ि तीयमायुषो भागं कृ तदारो गृहे वसेत् ॥

अ ोहेणैव भूतानाम ोहेण वा पुनः । या वृ ां समा ाय व ो जीवेदनाप द ॥

या ामा स यथ ैः कम भरग हतैः । अ ेशेन शरीर कु व त धनस यम् ॥

ऋतामृता ां जीवे ु मृतेन मृतेन वा | स ानृता ाम प वा न वृ ा कदाचन ।।

ऋतमु शलं ेयममृतं ादया चतम् । मृतं तु या चतं भै ं मृतं कपणं तृ म् ॥

स ानृतं तु वा ण ं तेन चैवा प जी ते । सेवा वृ रा ाता त ा ां प रवजयेत् ॥

कु शूलधा को वा ा ु ीधा क एव वा । हैिहको वा प भवेद नक एव वा ॥ मनु ४/१-७

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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अथात् याजन और अ ापनसे और कोई के वल एक कामसे अथात् अ ापनसे ही
अपना नवाह करता है। शलो ं ो उ चत है िक अ हो करै और के वल
वृ वालोक
पव तथा अयना ं ो सदा करते रहै।40सुखक
अथात् दश पौणमासािद य ोक
इ ावाले गृह ा ण स ोषका अवल न करके ब त धनक चे ा नही करे ोिं क
स ोषही सुखका मूल है और अस ोष दःु खका कारण है।41दान लेने म समथ होनेपर भी
सदा दान नही लयाकरे; ोिं क दान लेनसे ा णका तेज न होताहै। बु मान्
ा णको उ चत है िक बना वशेष प से त हके वधानको जाने ए धु ासे पीिड़त
होनेपर भी आिद दान नही लेव।े 42 यो नम रत और अपने कम से यु ा णो ं
को व धपूवक अ यन आिद षट्कम म त र रहना चािहये । वेदपढ़ाना, वेदपढ़ना,
य करना, य कराना, दान देना और दान लेना; ये ६ कम ा णके है। इनम य कराना,
वेद पढ़ाना और शु दान लेना, ये तीन कम उनक जी वका है।43 ा णके कम मे

40 चतुणाम प चैतेषां ि जानां गृहमे धनाम् । ाया रः परो ेयो धमतो लोक ज मः ॥

षट्कमको भव ेषां भर ः वतते । ा ामेक तुथ ु स ेण जीव त ॥ ९ ॥

वतयं शलो ा ाम हो परायणः । इ ीपावायना ीयाः के वला नवपे दा ॥ मनु ४/८-१० ॥

41 स ोषं परमा ाय सुखाथ सं यतो भवेत् । स ोषमूलं िह सुखं दःु खमूलं वपययः ॥ मनु ४/ १२

42 त हसमथ ऽ प स ं त वजयेत् । त हेण ांशु ा ं तेजः शा त ॥

न ाणाम व ाय व धं ध त हे । ा ः त हं कु यादवसीद प ध
ु ा ॥ मनु ४/१८६ -८७॥

43 ा णा यो न ा ये कम व ताः । तं स गुपजीयुः षट्कमा ण यथा मम् ॥

अ ापनम यनं यजनं याजनं तथा । दानं त ह ैव षट्कमा ज नः ॥

ष ां तु कमणाम ी ण कमा ण जी वका । याजना ापने चैव वशु ा त हः ॥ मनु४/७४-७६ ॥

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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वेदका अ ासकरना, यके कम मे जाक र ाकरना और वै के कमो ं म कृ ष,
गोर ा और वा ण े है। ा णके त ह, याजन और अ ापन कमम त ह
ब त हीन है और परलोकके लये न त है।44जो ा ण य के लये दातासे धन लेकर
उसको य काय म नही लगाताहै वह मरनेपर उस पापसे १०० वष तक गीध अथवा
काकप ी होता है।45जो ा ण अनाप ालमे न दोनो समय अ हो नही करता
उसको पु ह ा के समान पाप लगता है; वह उस पापको छोड़ाने के लये एकमास
चा ायण त करे। जो ा ण शू के से अ हो करता है वह अ ानी है; वह शू
उसके शरपर पांव रखकर नरकसे पार होताहै।46तप ा और आ ान ा णका उ ृ
मो साधन है तपसे पाप न होता है और आ ानसे मु होती है ॥47 ातक
ा णको उ चत है िक वेद पाठके वरोधी वना वचारे जहां तहांसे तथा नाच अथवा
गानवृ से धन स य नही ं करे , सदा स ोषसे रहे।48जो ा ण दानलेने म समथ होकर
भी दान नही ं लेता है उसको दानशीलोक
ं े समान लोक मलता है ।49 शौच, म ल अथात्

44 वेदा ासो ा ण य च र णम् । वा ाकमव वै व श ा न कमसु ॥

त हा ाजना ा तथै वा ापनाद प । त हः वरः े व ग हतः । मनु १०/८०,१०९

45 य ाथमथ भ ा यो न सव य त । स या त भासतां व ः काकतां वा शतं समाः ॥ मनु/११.२५ ॥

46 अ हो प व ा ी ा णः कामकारतः | चा ायणं चरे ासं वीरह ासमं िह तत् ॥

तेषां सततम ानां वृषला ुपसे वनाम् । पदाम कमा दाता दगु ा ण सं तरे त् ॥ मनु ११/ ४२-४३

47 तपो व ा च व नः ये सकरं परम् | तपसा िक षं ह व याऽमृतम ुते ॥मनु १२/१०४ ॥

48 न ा ाय वरो थमीहत न यत तः । न व े न स ोषी च सदा भवेत् ॥ या व ृ त२/ १२९ ॥

49 त हसमथ प नाद े यः त हम् | ये लोका दानशीलानां स ता◌ं ना ो त पु लान् ॥ या व ृ त २१३ ॥

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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ं ा नही ं देखना, कामना रिहत होना,
उ म आचरण, प र म करना, परके गुणोम दोपोक
ं ो वश म रखना, दान देना और दयाकरना, ये सब ा णके ल ण है।50 ा ण
इ योक
तप और अ हो करनेसे अ के समान का शत होते है, पर ु दान लेनसे े ऐसे तेज-
हीन होजाते ह जैसे जलसे अ , िक ु े ा ण ाणायाम ारा त हज नत दोषको
ं ो उड़ा देता है।51 ा णको उ चत है िक वना ( कु ल
ऐसे नाश करदेते ह जैसे वायु मेघोक
शील आिद ) जाने ए िकसी मनु को य नही ं करावे, व ा नही पढावे तथा जनेऊ नही
देवे ।52 ा ण बना णाम िकये ए शु को आशीवाद देता है वह उस शू के सिहत
नरकम जाता है।53 मह ष पराशर जे अनुसार क लयुगके गृह का कम आचार और
चारो ं वण चारो आ मोक
ं ा साधारण धम, इस कार है - अपने ६ कम म नरत ा ण
ं ो
खेती करावे भूखे, ासे, थके , अ हीन, रोगी और नपुंसक ( ब धया िकये ) बैलोक
हलमे नही लगावे । सब अ ासे यु , रोग रिहत, तृ , बलद पत और बना ब धया
ं ो आधे िदन तक हलम जोतकर ान करै। इसके प ात् जप, देवपूजा,
िकये ए बैलोक
ं ो
होम और वेदपाठका अ ास करे और एक, दो, तीन अथवा चार ातक ा णोक

50 शौचं म लमायास अनसूया ृहा दमः | ल णा न च व तथा दानं दया प च ॥ अ ृ त ३३ ॥

51................................................. पावका इव दी े तपोहोमै जो माः ॥

त हेण न वा रणा इव पावकः । तान् ते त हजा ोषा ाणायामैर्ि जो माः ॥

.................................................। नाशय िह व ांसो वायुमघा नवा रे ॥ अ ृ त१४१-४३ ॥

52 नापरी तं याजयेत् ।ना ापयेत्। नोपनयेत।् बृहि ु ृ त ४-६

53.............गते शू े कु व ये ि जाः ॥...... शू ो प नरकं या त ा णो प तथै व च ॥ आं गरस ृ त ४९,५०

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ं ो
भोजन करावे।54अपने जोते खेतके उपा जत अ से प य करे और य ािदकोक
ं ो नही वेचे, अ , तृण और का को बेचे, ा ण क ऐसी वृ
करावे। तल और रसोक
ं ा हल धमका, ६ बैलो ं का हल
है। खेतीकरनेवाले ा णको महादोष लगता है; ८ बैलोक
ं ा हल नदयीका और २ बैलोक
जी वका करनेवालोका, ४ बैलोक ं ा हल गोह ारेका है। दो
बैलवाले हलको चौथा िदन, ४ बैलवाले हलको आधा िदन, ६ बैलवाले हलको ३ पहर
और ८ बैलवाले हलको िदनभर जोतनेसे ि ज नरकमे नही जाते है। इन ा णो ं को ग
देनेवाला उ म दान देना चािहये । जो पाप एक वष मछली मारनेवालेको होता है वही
पाप एक िदन हल जोतनेवालेको लगता है। फांसी देनवे ाला, म धाती, मृगािदकका
िहसक ाधा, प ीका घातक और अदाता, हलचलानेवाला; ये पांचो ं एकसमान पापी
ं े मरनेसे
है।55खेतके अ को काटने, भू मको जोतने कोड़ने और कृ म तथा क ड़ोक

54 अतः परं गृह कमाचारं कलौ युगे | धम साधारण श ा चातुव ा मागतम् ॥

तं व ा हं पूव पाराशरवचो यथा । षट्कम नरतो व ः कृ षकमा ण कारयेत् ॥

ु धतं तृ षतं ा ं बलीव न योजयेत् । हीना ं ा धतं ीवं वृषं व ो न वाहयेत् ॥

रा ं नी जं तृ ं सुन ष व जतम् । वाहये वस ा ◌ं प ात् ानं समाचरेत् ॥

जपं देवाचनं होमं ा ायं चैवम सेत् ॥ एकि चतु व ा ोजये ातका जः ॥पराशर ृ त २/१-५

55 यं कृ े तथा े े धा ै यम जतैः । नवपे य ां तुदी ां च कारयेत् ॥

तला रसा न व े या व े या धा तःसमाः । वम ैवं वधा वृ ृणका ा द वै यः ॥

ा ण े ृ षं कु या हादोषमा ुयात् । अ ागवं धमहलं प वं वृ ल णम् ॥

चतुगवं नृशंसानां ि गवं गो जघांसुवत् । ि गवं वाहये ादं मयाह ु चतुगवम् ॥

षड्गवं तु यामाहेऽ भः पूण तु वाहयेत् । न या त नरके ेवं व मान ु वै ि जः ॥

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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खे तहरको जो पाप लगता है वह खलय अथात् ख लहानका य करनेसे छू ट जाता
ं ो और ३० वां भाग ा णोक
है।56 अ का छठा भाग राजाको, २१ वां भाग देवताओक ं ो
देनसे े वह सब पापोसं े छू टता है।57 जो ा ण अ हो , स ोपासना और वेद व ासे
ं ो नही ं
हीन ह वे शू कहे जाते ह इस लये ा णको उ चत है िक यिद स ूण वेदोक
पढ़सके तो वेदका एक भाग अव पढ़लेवे।58जो ा ण द णाके लये शू क ह वका

दानं द ा वै तेपां श ं गसाधनम् । सं व रेण य ापं म घाती समा ुयात् ॥

जयोमुखेन का ेन तदेकाहेन ला ली । पाशको म घाती च ावः शाकु नक था ॥

अदाता कषक ैव प ते समभा गन: ॥ पराशर ृ त २/६-१२

56 खलय को करनेसे ि जा त सब पापोंसे मु हो गको ा करते ह । ख लहान म चारों दशासे सघन घेरा बनावै, वह चारोंओरसे ढँ पा
रहे, उसम एक ार रहे । उसम वेश करते ए गदहे, ऊँ ट, बकरे तथा भेड़को नहीं रोके । कु े, सूअर, सयार, काक, उलूक, तथा कबूतरको
तीनों कालम ो णजलसे ो ण करे और भ तथा ' जलधारासे र ा करे । मह ष पराशरको रण करते ए तीनों कालम हलके फारक
पूजा करे । ख लहान म रहकर ेत, भूता दकोंका नाम नहीं लेवे । सू तकागृह के समान वहां चारोंओरसे र ा करे; ोंिक र ा नहीं करनेसे
रा स सब हरलेते ह । अ े दनके पूवा अथवा पराहके स म हलके फारक पूजा करके अ को तौले । वहां रौिहणकाल म ( दो पहर दनसे
थोड़ बाद ) भ ासे य करे । वहां जो कु छ भ से दया जाता है वह सब अ य होता है । उस समय ऐसा कहे िक पूवकालम ाने
खलय का द णा बनाया था, इस मेरे द णाको भागधेय पकर हण करो। इ ा दकदेवता, सोमपा दक पतर, सनका दक, मनु और जो
कोई द णाशी ह उनके उ ेशसे थम णको, उसके प ात् अ याचकको और उसके बाद श ीको और दीन, अनाथ, कोढी, कु शरीरी,
नपुंसक, अ , ब धर आ दको दे वे । प ततवण को देकर भूतोंको तपण करे । च ाल, पाक आ द सभी को यथाश दे कर मीठे वचनसे
उनको वसजन करे उसके प ात् अ को घरम लेजाकर वहां आ ुद यक ा करे। बृह ाराशरधमशा - ३/१०९-१२३

57 वृ ं छ ा महीं भ ा ह ा च कृ मक टकान् ॥ कषकः खलय ेन सवपापैः मु ते ॥

द ा तु षड्भागं देवानां चैक वंशकम् ॥ व ाणां ंशकं भागं सवपापैः मु ते ॥ प० ृ त २/१५-१८

58 अ काया र ाः स ोपासनव जताः । वेदं चैवानधीयानाः सव ते वृषलाः तृ ाः ॥

त ाद् वृषलभीतेन ा णेन वशेषतः । अ ेत ो ेकदे शो य द सव न श ते ॥

पराशर ृ त १२/२९-३०

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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हवन करता है; वह शू हो जाता है और वह शू ा ण होता है।59 ा णको उ चत है
ं ो य करावे और ऐसे ही लोगोसं े दान
िक धमपूवक धन उपाजन करनेवालोक
लेवे।60 ा णो ं को उ चत है िक िदनके थम भाग म स ा आिद स ूण काय करके
दूसरे भागम वेदका अ ास कर। उनके लये वेदका अ ास परम तप ा और
षड सिहत वेदका अ ास य है। वेदका अ ास ५ कारका है, १ वेदका
ीकार, २ वेदका वचार, ३ वेदका अ ास, ४ वेदका जप और ५ वेदका दात॥61
ं ो पढावे और पो वग के लये यथा उ चत अ
ा ण वेदका अ ास करे; श ोक
आिद . याचना करै। माता, पता, गु , भाया, पु , श , अ ागत और अ त थ, ये सब
पो वग कहे जाते ह।62

ा णके लये यो दान/ त ह


दान लेना मा ा णो ं का धम है। अ ि जो ं को दान लेने का अ धकार नही ं है। दान
देने का अ धकार तो सब ि जो ं को है, िक ु दान लेना के वल ा ण को बताया है यया त
59 द णाथ तु यो व ः शू जु या वः । ा ण ु भवे ू ः शू ु ा णो भवेत् ॥

पराशर ृ त १२/३६

60 एतैरेव गुणयै ु ं धमा जतधनं तथा । याजयीत सदा व ो ा ा त हः ॥ शं ख ृ त१२/१९

61 दवस ा भागे तु सवमेति धीयते । ि तीये चैव भागे तु वेदा ासो वधीयते ॥

वेदा ासो िह व ाणां परमं तप उ ते । य ः स व ेयः षड सिहत ु यः ॥

वेद ीकरणं पूव वचारोऽ सनं जपः | दानं चैव श े ो वेदा ासो िह प धा ॥ द ृ त२/२८-३०

62 तत ैवा से ेदं श ान ापयेदय | पो वगाथम ा द याचयेत यथो चतम् ॥

माता पता गु भाया पु ः श थैव च । अ ागतोऽ त थ ैव पो वग इ त तृ ः ॥ लघु आ लायन १/७३-७४

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और अ क म जब सं वाद आ तो अ क ने यया त से कहा िक ग लोक म जो लोक
व मान ह, वे सब आपको देता ँ तथा अ र या ुलोक म मेरे लये जो ान ह,
उनम आप शी ही मोह रिहत चले जाँय। तब यया त ने कहा िक " वे ा ा ण ही
त ह लेता है। मेरे जैसा य कदा प नही।ं यो ं को दान करना चािहये, लेना
नही।ं "63 यया त ने अ क से कहा िक जो ा ण नही ं है उसे दीन याचक बनकर कभी
जीवन नही ं बताना चािहये। याचना तो व ा से िद जय करने वाले व ान ा ण क
प ी है। अथात् वे ा ा ण को ही याचना करने का अ धकार है।64
वश ायन जी ने माक ेय जी से दान देने से ा सुख तथा ग के वषय म पूछा िक
िकन अब ाओ ं म दान देकर मनु इ लोक का सुख भोगता है। माक ेय जी ने कहा
िक सोलह कार के दान थ ह। ( १ ) सं ास आ म से िफर गृह आ म आये ए
प तत को िदया आ दान थ है। ( २ ) अ ाय से कमाये ए धन का दान थ है।
( ३ ) प तत ा ण ( ४ ) चोर को िदया आ दान थ है । ( ५ ) आिद गु जनो ं को
िदया आ दान थ है ोिं क इनक सेवा करना मनु का कत है। (६) म ावादी
(७ ) पापी । (८) कृ त ( ६ ) ाम पुरोिहत ( १० ) वेद व य करने वाले । ( ११ )
शू से य कराने वाले । (१२) नीच ा ण । ( १३ ) शू ा के प त ा ण ( १४ ) साँप
को पकड़ कर वसाय करने वाले । ( १५ ) सेवको ं को। ( १६ ) ी समूह को िदया

63 ना ि धो ा णो व त हे वतते राजमु ।

यथा देयं सततं ि जे याददं पूवमहं नरे ।। म०भा० आ दपव ६२.१२

64 ना ा णः कृ पणो जातु जीवेद् या ा प ाद् ा णी वीरप ी ।

सोऽहं नवाकृ तपूव चरेयं व ध मानः िकमु त साधु ॥ म०भा० आ दपव ९२.१२

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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आ दान थ है । इस कार ये सोलह दान न ल बताये ह। इसी कार सेवको ं और
यो ं का पालन-पोषण करना तो मनु का कत है ही। इस लये वह उनको देना दान
क ेणी म नही ं है।

ा णको उ चत है िक यिद कोई मनु काठ, जल, मूल, फल, अ , मधु अथवा
अभयदान बना मांगे ए यं लाकर रख देवे तो उसको लेलेव।े ाने कहा है िक
दु ृ त कम करनेवाले भी यिद बना पिहले कु छ कहे ए तथा बना मांगे ए अपनी
इ ासे भ ा लाकर रखदेव तो उसे अव लेलेवे; ोिं क जो ा ण ऐसी भ ाको
नही ं लेता है १५ वष तक उसके पतरगण उसके िदये ए क को नही ं भोजन करते और
अ उसके ह को नही ं हण करते ह ।65 गु जन ( पता माता आिद ) और भृ गण
( ी, पु , सेवक आिद ) के भरण पोषण के लये और देवताओ ं तथा अ त थयो ं के
पूजनके न म ा ण सबसे दान लेसकता है िक ु अपने भोजन के लये नही।ं जो
ा ण माता पताके मरनेपर अथवा उनके जीते ए पृथक् भावसे बसते ह, उनको अपनी
जी वका के लये उ म लोगोसं े ही दान लेना चािहये।66 ा ण नजकम म त र
ि जा तयो ं के घर भोजन कर और उ ीसं े दान लेव; िक ु पतर, देवता और गु के काय

65 एधोदकं मूलफलम म ु त च यत् । सवतः तगृ ीया थाभयद णाम् ॥

आ ता ु तां भ ां पुर ादमचो दताम् । मेने जा प त ाम प दु ृ तकमणः ॥

नाश्न पतर दश वषा ण प च । न च ह ं वह य ाम वम ते ॥ मनु/२४७-२४९

66 गु ृ ां ो हीष च ेवता तथीन् । सवतः तगृ ीया तु तृ े यं ततः ॥

गु षु तीतेषु वना वागृहे वसन् । आ नो वृ म गृ ीया ाधुतः सदा ॥ मनु ४/२५१-५२

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

दू रभाष: 9044016661
ं े भरणपोषणके न म का , जल, भूसा, मूल, फल, मधु,
के लये तथा नज-भृ ोक
अभयदान, नयी श ा, आसन, घर, सवारी, दूध, दही, भुना अ , यव, ककु नी, फू लक
माला, माग और शाक सबसे लेलेव; िक ु यिद अ कोई जी वका हो तो शू ोसं े ले;
वणस रसे न लेवे ॥67 ा णको उ चत है िक क ाके ववाह और इतर धमकाय के लये
शू से भी धन लेवे और अ काय के लये ब त पशुवाले शू से, सौ गौवाले हीनकम
करनेवालेसे, हजार गौवाले अ हो से हीन ि जसे अथवा सोमपान करनेवालेसे
लेवे।68 ाने कहा है िक यिद दु ृ तकम करनेवाले भी बना सूचनाके अक ात्
भोजनक व ु लाकर रखदेव तो उसके लेनेम कु छ दोष नही ं है। जो ऐसा अया चत-
भ ा हण नही ं करता है उसके घर १५ वष तक पतरगण नही ं खाते और उसका ह
अ हण नही ं करते; िक ु चिक क, ाध, शूल हाथ म लये ए ह ारा नपुंसक
और भचा रणी- ीका अया चत अ भी नही ं लेना चािहये।69
ा णका आप ालीन धम

व ान् ा णको उ चत है िक ा आिद प य ो ं से हीन शू का पकाया आ अ


भोजन नही ं करे ; िक ु धु ासे पीिड़त होनेपर एक रातके नवाहके यो उससे क ा
67 श ानां कमसु ि जातीनां ा णो भु ीत, तगृ ीया ैधोदयवसमूलफलम भया ु त- तश ासनावसथयानपयोद ध-
धानाशफ र य ु कु मागशाका णो ा न सवषां पतृदेवगु भृ भरणे चा वृ े ा रेण शू ान् ॥ गौतम ृ त १७/१

68 ादानं ववाह स थ धमत सं गे चशू ाद ा प, शू ादब् पशोह नकमण: शतगोरनािहता ेः सह गोवा सोमपात्।गौतम ृ त १७/१

69 उ तामाहतां भ ां पुर ादमचो दताम् । भो ां जाप तमैने अ प दु ृ तका रणः ॥

नत पतरोऽ दशवषा ण प च । न च ह ं वह य ाम वम ते ॥

चिक क मृगयोः श ह पा पनः । ष कु लटाया उ ता प न गृ ते ॥ व श ृ त१४/२३-१६

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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अ लेलेव70े ा ण यिद अपने कम से अपनी जी वका न चलासके तो यके कमसे
जी वका करे; ो ं िक यही उसक नकट वृ है। जब नजवृ और यक वृ से
भी ा णक जी वका नही ं चलसके तो खेती पशुर ा आिद वै के कमसे वह अपना
नवाह करे। ा ण अथवा य यिद वै वृ अवल न कर तो वै क वृ योमं से
कृ षकमको, जो अ त िहसं ा यु और बैल, आिद पशुओक ं े आधीन है, य पूवक
छोड़द। कोई कोई खेतीको े कहते ह; िक ु यह वृ स नो ं ारा नं त है; ोिं क
उसके करनेम हल, कु दाल आिदसे भू मको खोदने म भू मके जीवोकं िहसं ा होती
है।71 नज वृ का अभाव तथा नज धम पालन म असमथ होनेपर ा ण और य
ं ा य व य छोडकर वै
नीचे लखी ई व ुओक वृ के ापारसे अपनी जी वका
कर। सब कारके रस पका आ अ , तल, प र, वण, पशु, मनु , सूतसे बने ए
लालव , वना लाल रंगके भी सणके बने व तीसी(अ सी) क छालके व और
क ल, फल, मूल, औषधी, जल, श , वष, मांस, सोमरस, सब कारक सुग त
व ु, दूध, मोम, दही, घी, तैल, मधु, गुड, कु श, सब कारके बनैले पशु, दांतवाले
जानवर, प ी, म , नील लाह और घोडे आिद १ खुरवाले पशुका य व य नही ं करे।72
70 ना ा प ा ं व ान ा नो ि जः । आददीताममेवा ादवृ ावेकरा कम् ॥मनु ४/२२

71 अजीवं ु यथो ेन ा णः ेन कमणा | जीवे यधमण स न रः ॥

उभा ाम जीवं ु कथं ा द त चे वेत् । कृ षगोर मा ाय जीवे ै जी वकाम् ॥

वै वृ ा प जीवं ु ा णः योऽ प वा । िहंसा ायां पराधीनां कृ षं य ेन वजयेत् ॥

कृ ष सा तम े सा वृ ः सि गहता । भू मं भू मशयां ैव ह का मयोमुखम् ॥ मनु १०/८१-८४

72 इद ु वृ वैक ा जतो धमनैपुणम् । वट्प मु तो ारं व े यं व व नम् ॥

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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कृ षक अपने खेत म उ प व तलको धमकाय के न म इ ानुसार बच सकता है;
िक ु लाभक इ ासे ब त िदनोतं क रखके नही ं बचे। जो मनु भोजन, उबटना और
दानके सवाय तलको अ ं े सिहत कु क
वहारम लाता है वह पतरोक े व ाका क ड़ा
होता है। ा ण मांस, लाह, और नमक बचनेसे उसी ण प तत होजाता है; तीनिदन
तक दूध बेचनेसे शू बन जाता है तथा इ ा पूवक ७ िदनतक ऊपर कहे ए रस आिद
ं ो बेचनेसे वै
न ष व ुओक होजाता है।73 जो ा ण ा णक वृ से नवाह न
होनेपर भी वै क वृ का अवल न नही ं करके अपनी नजवृ म त रहता है वह
नीचे कहे ए धमको करे ।। १०१ ॥ ऐसा वप ा ण सब लोगोसं े दान लेलेवे; जो
यं प व है वह दोषसे दू पत होगा ऐसा धमशा ानुसार स नही ं हो सकता ॥ १०२
ंे
॥ ा ण भावसे ही जल और अ के समान प व ह; आप ालम न तपु पोक
पढ़ाने, य कराने तथा उनसे दान लेनसे े उनको पाप नही ं लगता ॥ १०३ ॥ यिद
ाणस टक स ावनाम ा ण िकसीका अ लेवे तो जैसे आकाशम क च नही ं श

सवा सानपोहेत कृ ता तलैः : सह । अ नो लवण ैव पशवो ये च मानुषाः ॥

सव ता वं र ं शाण ौमा वका न च | अ प चे ुरर ा न फलमूले तथौषधीः ॥

अपः श ं वषं मांसं सोमं ग ां सवशः । ीरं ौ ं द ध घृतं तैलं मधु गुडं कु शान् ॥

आर ां पशू वा ण वयां स च । म ं नीलीं च ला ां च सवा ैकशफां था ॥ मनु १०/८५-८९

73 काममु ा कृ ां तु यमेव कृ षीवल: । व णीत तला ु ा माथम चर तान् ॥

भोजना ना ाना द कु ते तलैः । कृ मभूतः व ायां पतृ भः सह मज्ज त ॥

स ः पत त मांसेन ला या लवणेन च । हेण शू ो भव त ा ण ीर व यात् ॥

इतरे षां तु प ानां व या दह कामतः । ा णः स रा ेण वै भावं नय त ॥मनु १०/८५-८९

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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करता है वैसे उसको पाप नही ं लगता है ॥ १०४ ॥ भूखसे पीिड़त होकर अजीग ऋ ष
अपने पु को मारनेको उ त ए थे; िक ु धु ा नवृ करनेके कारण ऐसा करनेसे वह
पापसे ल नही ं ए ॥ १०५ ॥ धम अधमको जाननेवाले वामदेवऋ ष ाणर ाके लये
कु ेका मांस खानेके अ भलाषो एथे तब भी उनको पाप नही ं लगा ॥ १०६ ॥
महातप ी भर ाज मु नने पु के सिहत नजनवन म धु ासे पीिड़त होकर वृधु नामक
बढ़ईसे ब तसी गौदान प ली थी ॥ १०७ ।। धम अधमके जाननेवाले व ा म ने
भूखसे पीिड़त होकर च ालसे कु ेका मांस लेकर खानेक इ ा क थी , तब भी वे दोषी
नही ं ए ॥ १०८ ॥74 ा ण उपनयन सं ारसे यु ं े याजन और अ ापन
ि जा तयोक
काय सदा करावे पर ु आप ालम नकृ जा त शू का भी त ह ले लेवे।75यिद
ा णको ६बेला अथात् ३िदन उपवास होजावे तो ७वी ं बेलाम हीनकमकरनेवाले
मनु के ख लहान, खेत अथवा घरसे चोरी करके एकबार भोजन करनेयो व ु लेलेवे;

74 वै वृ मना त ा णः पथ तः । अवृ क षतः सीद मं धम समाचरेत् ॥

सवतः तगृ ीया ा ण नयं गतः । प व ं दु ती ेत मतो नोपप ते ॥

ना ापना ाजना ा ग हता ा त हात् । दोषो भव त व ाणां लना स


ु मा िह ते ॥

जी वता यमाप ो योऽ म यत तः । आकाश मव प े न न स पापेन ल ते ॥

अजीगर्तः सुतं ह मु पु ासपभु तः । न चा ल त पापेन ु तीकारमाचरन् ॥

मांस म ा ऽ ं ु धमाधम वच णः । ाणानां प रर ाथ वामदेवो न ल वान् ॥

भर ाजः ुधात ु सपु ो वजने वने । ब गाः तज ाह वृधो णो महातपाः ॥


ु ा ा मु ागाि ा म : जाघनीम् । च ालह ादादाय धमाधम वच णः ॥मनु १०/१०१-१०८

75 याजना ापने न ं ि येते सं ृ ता नाम् । त ह ु ि यते शू ाद ज नः ॥ मनु १०/११०

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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िक ु धनके ामीके पूछने पर चुरानेका स ा कारण बता देवे ।76जो ि ज़
अनाप ालम भी आप ालका धम करता है उसको परलोक म उस धमका कु छ फल
नही ं मलता है।77 ा ण आप ाल म य अथवा वै का कम करके अपना नवाह
करे ; िक ु आप े पार होनेपर ाय से प व होकर िफर अपनी वृ हण कर
लेवे।78यिद ा ण आप ालम शू के घर भोजन १०० पदा दव म जपनेसे शु
होजाता है। 79 ाणजाने का सं शय होनेपर ा ण श धारण अथात् यका कम और
ं ो बचाने
य वै का कम करे। 80 अपनी र ाके लये अथवा वणसं कर होनेसे लोगोक
के लये ा ण वै को भी श हण करना चािहये।81 य अपने बा बलसे, वै
और शू धनसे और ा ण जप और होमके बलसे आप ाल पार होव।82
ा णके लये भ ाभऽ

76 तथैव स मे भ े भ ा न षडन ता । अ न वधानेन ह ं हीनकमणः ॥

खला े ादगारा ा यतो वा पु ल ते । आ ात ं तु त ै पृ ते य द पृ त ॥ मनु ११/१६-१७

77 आप ेन यो धम कु तेऽनाप द ि जः । स ना ो त फलं त पर े त वचा रतम् ॥ मनु ११/२८

78 ा ेण कमणा जीवेि शां वा ाप द ि जः । न ीय तामथा ानं पाव य ा से थ॥या व ३/३५

79 ..................................................। आप ाल तु व ेण भु ं शू गृहे य द ॥

मन ापेन शु ेत् पदां वा शतं जपेत।् आप ृ त ८/१९-२०

80 ाणसं शये ा णोऽ प श माददीत् राज ो वै कम ॥ गौतम ृ त ७/ ३

81 आ ाणे वणस रे वा ा णवै ौ श माददीयाताम् ॥ व श ृ त३/२६

82 यो बा वीयण तरेदापदमा नः । धनेन वै शु ौ तु जपैहोमैि जो मः ॥ व श ृ त २६/१७

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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ं ोय
ा णको उ चत है िक जस य का करानेवाला अ ो य है, तथा ब तोक
करानेवाला है, ी अथवा नपुंसक है उस य म कभी नही ं भोजन करे ।
मतवाले, ोधी और रोगीका अ ; के श अथवा क टसे दू पत अ ; पैरसे आ
आ अ ; ूणघातीका देखा आ, रज ला ीका छु आ आ, प ीका खाया
आ, कु ेका श िकया आ और गौका सूँघा आ अ खानेवाला हो, सो आवै
ं ा, वे ाका और
ऐसा पुकार के िदया आ, समूह स ासी और भ ुक लोगोक
प तो ं ारा न त अ चोर, गवैया, बढई, ाज लेनेवाले ा ण, दी त,
कृ पण और बेडीसे बँ धा आ मनु का अ कभी नही ं खावे ।83दोषी, नपुंसक,
भचा रणी ी और छलधम का अ ; ादरिहत, बासी और जूठा अ ; शु ा
वै , ाध, ू रपु ष, जूठा खानेवाले, उ और दशिदनतक सू तकाका अ ;
पं से िकसीके उठजानेपर उस पं का अ , वृथामांस, अव ापूवक िदया
अ , प त और पु से हीन ीका अ , ेषीका अ , नगरक प ायतका अ ,

83 ना ो यतते य े ामया जकृ ते तथा । या ीवेन च ते भु ीत ा णः चत् ॥

म ु ातुराणा न भु ीत कदाचन । के शक टावप पदा ृ कामतः ॥

भूण ावे त ैव सं ृ ा दु या | पत णावलीढ शुना सं ृ मेव च ॥

गवां चा मुपघातं घु ा वशेषतः । गणा ं ग णका वदुषा च जुगु तम् ॥

ेनगायकयो ा ं त णो वाधु पक च । दी त कदय ब नगडैरथ ॥

मनु ४/२०५-१०

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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प ततका अ और छ कं पड़ा आ अ कभी नही ं भोजन करे । झूठा और
य का फल बेचनेवालेका अ , नट, दरजी, कृ त , लोहार, नषाद,
तमासाकरनेवाले, सोनार, वेण, शा बेचनेवाले, कु ापालनेवाले, सुरा
बेचनेवाले, धोबी, र रेज, नठु र, जसके घरम जारपु ष रहता हो, जो
जारपु षको घरम रहते जानकर उसको सह लेता है, उसको और ीके यशम
रहनेवाले पु षका अ ; दसिदनके भीतर मृतसूतकका अ और अतु कर अ
कभी नही ं खावे।84राजाके अ खानेसे तेज, शू के अ से तेज, सोनारके अ
खानेसे आयु, चमारके अ से यश, च कार आिद का कके अ से स ान और
धोबीके अ खानेसे बल न होता है, समाजके एक त अ , और वे ाके अ
खानेसे स त पु न होजाते ह।85जो ा ण अ ानसे इनका अ खाता है वह

84 अ भश ष पुं च ा दा क च । शु ं पयु षत ैव शू ो मेव च ।।

चिक क मृगयोः ू र ो भो जनः । उ ा ं सु तका े पयाचा म नदशम् ॥

अन चतं वृथा मांसमवीराया यो षणः । ि षद ं नगय ं प तता मव तु म् ॥

पशुनानृ तनो ा ं तु व यण था । शैलषू तु वाया ं कृ त ा मेव च ॥

कमार नषाद र ावतारक च । सुवणकतुवण श व यण था ॥

वतां शौ काना चैल नणजक च । रजक नृशंस य चोपप तगृहे ॥

मृ ये चोपप तं ी जतानां च सवशः । अ नदशं च ेता मतु करमेव च ॥ मनु ४/२११-२१७

85 राजा ं तेज आद े शू ानं वचसम् | आयुः सुवणकारा ं यश मावक तनः ॥

का का ं जां ह वलं नणजक च | गणा ं ग णका ं च लोके ः प रकृ त ॥ मनु ४/२१८-२१९

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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३ रात उपवास करे और जो ा ण जानकर खाता है वह कृ त करे । ऐसे ही
वीय, व ा तथा मू भ ण करनेम ाय करे। व ान् ा णको उ चत है िक
ा कमसे हीन शू का पका आ अ नही ं खावे; िक ु अ नही ं मलनेपर
एकरात नवाह यो उससे क ा अ ले लेवे।86अपने साझीदार, कु लके म ,
ं ाअ
गोपालक, दास, नाई और अपनेको समपण कर देनेवाले; इतने शू ोक
खाना चािहये।87म , मांस और सुराका आसव ( स ः खीचं ा आ म अक ) ये
ंे अ हइ
सब य , रा स और पशाचोक ा ण कदा प नही ं भ ण कर;
ो ं िक वे लोग देवताओक
ं े ह व भोजन करने वाले ह।88शू दो कारके होते ह,
एक ा का अ धकारी और दूसरा अन धकारी; इनम से ा के अ धकारी
शू का अ खाना चािहये; िक ु अन धकारीका नही।ं जो शू अपना ाण धन
तथा ीको ा णक सेवाम समपण कर देवे उसका अ ा ण भोजन करे;
अ शू का नही।ं 89जो ा ण नर र एक महीने तक शू का अ खाता है वह

86 भु ातो तम ा मम ा पणं हम् | म ा भु ा चरे ृ ं रे तो वण्मू मेव च ॥

ना ा ू प ा ं व ान ा नो ि जः । आददीताममेवा ादवृ ावेकरा कम्॥ मनु ४/२२२-२२३ ॥

87 आ थकः कु ल म ं च गोपालो दासना पतौ । एते शु ेषु भो ा ा य ा ानं नवेदयेत् ॥ मनु ४/२५३ ॥

88 य र ः पशाचा ं म ं मांसं सुरासवम् । त ा णेन ना ं देवानाम ता ह वः ॥ मनु११/९६ ॥

89 शू ो प ि वधो ेयः ा ी चैवेतर था । ा ी भो यो ो भो तरो मतः ॥

ाणानथ था दारा ा णाथ नवेदयेत् । स शू जा तभ ः ादभो ः शेष उ ते ॥ व ु ृ त ५/१०,११

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इसी ज म शू होजाता है और मरनेपर कु ा होता है ।90क ा या युवा ा णी
और थोड़ा पढ़ा आ, मूख, रोगी अथवा सं ारहीन ा ण होम करनेका
अ धकारी नही ं है। इनमसे जो होम करता है अथवा जो इनसे होम करवाते ह वे
नरकम जाते ह, इस लये वैिदक कमम नपुण वेदपारग ा णसे होम कराना
चािहये। वेद और धमशा
91 ये ा णके दो ने ह; जो ा ण इनमसे एकको
नही ं जानता वह काना और जो दोनोक
ं ो नही ं जानता वह अ ा कहा जाता है।
ा णका ा ण वेद और धम शा से है, के वल वेदसे ही नही ं है; ऐसा
भगवान् अ ने कहा है।92१० कारके ा ण कहे जाते ह; - देव, मु न, ि ज,
य, वै , शू , नषाद, पशु, े और चा ाल। 93

(१) जो ा ण न स ा, ान, जप, होम, देवपूजन, अ त थस ार और


ब लवै देव करताहै उसको देव कहतेह94

90 योऽनधी ि जो वेदम कु ते मम् । स जीव ेव शू माशु ग त सा यः ॥ मनु २.१६८

91 न वै क ा न युव तना व ो न बा लश: | होता ाद हो नात नासं ृ त था ॥३६॥

नरके िह पत ेते जु ः स च य तत् । त ा ैतानकु शलो होता ा ेदपारगः॥ मनु ११.१६८

92 ु तः ृ त व ाणां नयने े क तते । काणः ादेकहीनो प ा ाम ः क ततः॥

त ा े देन शा ेण ा ं ा ण तु । न चैकेनैव वेदेन भगवान र वीत् ॥ अ ३४९,४५१

93 देवो मु न जो राजा वै ः शू ो नषादकः । पशु े ोऽ प चा ालो व ा दश वधाः तृ ाः।।

94 स ा ानं जपं होमं दे वता न पूजनम् । अ त थव देव देव ा ण उ ते ॥ अ ३७२

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(२) जो ा ण शाक, प , फल और मूल भ ण करके न ा करता आ
वनम नवास करता है वह मु न कहलाता है।95

(३) जो ा ण सवका स ागकर न वेदा पाठ करता है और सां


तथा योगके वचार म त रहता है वह ि ज कहाजाताहै ।96
ं ो अ ोसं े मारनेवाला
(४) जो ा ण सं ाम म सबके स ुख धनुषधा रयोक
और आर म ही जीतनेवाला है उसको य कहते ह।97

(५) जो ा ण खेती, गोपालन और वा ण करता है वह वै कहलाता है।98

(६) जो ा ण लाह, नोन, कु सुम दूध, घी, मधु और मांस बचता है उसको शु
कहते ह।99

(७) जो ा ण चोर, डाकू , चुगुल, कटुभापी और मछली और मांसका सदा


लोभी है वह नषाद कहा जाता है।100

95 शाके प े फले मूले वनवासे सदा रतः । नरतोऽहरहः ा े स व ो मु न ते ॥ अ ३७३ ॥

96 वेदा ं पठते न ं सव स ं प र जेत् । सां योग वचार ः स व ो ि ज उ ते ॥ ३७४ ॥

97 अ ाहता ध ानः सं ामे सवस ख


ु े | आर न जता येन स व ः उ ते ॥ ३७५ ॥

98 कृ षकमरतौ य गवां च तपालकः । वा ण वसाय स व ो वै उ ते ॥ ३७६ ||

99 ला ालवणसं म ं कु सु ीरस पषाम् । व े ता मधुमांसानां स व ः शू उ ते ॥ ३७७

100 चौर त र ैव सूचको दशक था । म मांसे सदा लु ो व ो नषाद उ ते ॥ ३७८

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(८) जो ा ण त को नही ं जानता और जनेऊका गव करता है वह उसी
पापसे पशु कहलाताहै ॥ 101

(९) जो ा ण नःशं क होकर बावली, कू प, तड़ाग, बाग तथा सरोवर को रोकता


है उसको े कहते ह।102

(१०) जो ा ण ि याहीन, मूख, सब धम से रिहत तथा सन ा णयो ं के लये


नदयी है वह चा ाल कहाजाता है।103

स ोपासनासे हीन ा ण मलभोजन करनेवाले के तु और ानकमसे हीन


ा ण ूणह ारे के समान है ।104

जो ा ण सदा शू क आ ा तपालन करता है उसके खानेके लये भू मपर


अ दे ना चािहये; ोिं क वह कु ेके समान है ।105

इससे आगे स ाव नक व ध कहता ँ ; स ासे हीन ा ण सब कम के


अयो कहा गयाहै। ातःकालक स ा सूय दयसे पिहले खड़े होकर,
101 त ं न जाना त सू ेण ग वतः । तेनवै स च पापेन व : पशु दा तः ॥ ३७९ ॥

102 वापीकू पतडागानामाराम सरःसु च । नःश रोधक ैव स वमो े उ ते ॥ ३८०

103 ि याहीन सूख सवधम वव जतः । नदयः सवभूतेषु व चा ाल उ ते ॥ ३८१ अ ृत

104 स ाहीनो िह यो व : ानहीन थैव च। ानहीनो मलाशी ा ाहीनो िह ण


ू हा ॥ बृह म ४.५१,५२

105 ा ण सदा कालं शू े ेषणका रणः ॥ भूमाव ं दात ं यथैव ा तथैव सः ॥आप ९.३४, ३५

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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म ा क स ा म ा म या कु छ इधरउधर और सायं कालक स ा सूया
होनेके पूव बैठकर सूयका म जपते ए करना चािहये। इ ी ं तीनो ं स ाओ ं म
ं ो नही ं करता वह ा ण नही कहा जा
ा ण है, जो ा ण इन स ाओक
सकता है। 106 पं म दो कारसे भोजनक व ु परोसनेवाला, वना
ब लवै देवके उ े के अपने भोजनके लये रसोई बनानेवाला, सदा ा णक
न ा करनेवाला, दासका काम करनेवाला और लेकर वेद पढ़ानेवाला, ये ५
ा ण घातीके समान है।107 न ष कम करनेवाले, वडाल ती कमअ वाले,
अ धक अ वाले, गु जनोसं े बमुख रहनेवाले, वेद तथा अ भको ागनेवाले,
ं ो ागनेवाले, अन ायोमं वेद पढ़नेवाले, शौच-आचारसे रिहत और
गु जनोक
शू के अ से पालन होनेवाले ा ण पं दूषक है।108जो ा ण वशेषकरके
स ोपासना नही ं करता है वह जी वत अव ा म ही शू होजाता है और
मरनेपर कु ा होता है। स ासे हीन ा ण सदा अप व रहता है और सब
106 अत ऊ व ा म स ोपासनकं व धम् अनहः कमणां व ः स ाहीनो यतः तृ ः ॥

त ेददु यना ूवा म मामापे श तः । आसीन उ मा ा ां स ां पूव कं जपन् ॥

एत ा यं ो ं ा ं य त त । य ना ादर न स ा ण उ ते ॥ का ायन११.१३-१५

107 प तभेदी वृथा पाक न ं ा ण न कः । आदेशी वेद व े ता प े घातकाः ॥ ास४.७०

108 ा णा ये वकम ा (लन तका था । ऊना ा अ त र ा ा ा णाः प दू षकाः ॥

गु णां तकू ला वेदा ु ा दन ये । गु णां ा गन ैव ा णाः पदू षकाः॥ शं ख १४.२-४

अन ाये धीयानाः शौचाचार वव जताः । शू ा रससं पु ा ा णाः प तदू षकाः ॥शं ख ११.२-४

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कम के अयो है, उसके सब िकये ए कम न ल होते ह ।109 जो ा ण बना
ान िकये भोजन करता है और प य नही ं करता वह " व क ण" होजाता तब
वह न तो दाताको तारता है और न आपही तरता है।110 वाधु षक ा ण और
वाधु षक यका अ नही ं खाना चािहये। इसपर माण इस कार ह- जो
स ा अ लेकर उसको मं हगा करके देता है वह वाधु षक कहाजाता है वह
हावािदयोमं न त है। वाधु षक और ूणघाती तराजू म तोला गया तो
ूणघातीका पलड़ा उठगया; िक ु वाधु षक िहला भी नही।ं 111 जो स ूण वेद
अथवा वेदका भाग भी नही ं पढ़ा है और अ हो से हीन है वह शू के समान है ।
ऋ दे नही ं पढ़नेवाला, व णक् वृ वाला, शीलरिहत काम करनेवाला, शू क
आ ा म रहने वाला, चोरी करनेवाला और चिक ाकरनेवाला ा ण, ा ण
नही ं है।112ना क, चुगुल, कृ त और अ त ोधी ये चार ा ण कमचा ाल ह
109 स ां नोपासते य ु ा णो िह वशेषतः । स जीव ेव शू ः ा ृतः वा चैव जायते ॥

स ाहीनोऽशु च नं मनः सवकमसु । यद कु ते कम न त फलभा वेत् ॥ द २.२१,२२

110 अ ाताशी अयाजी च व क ण भवेद् ि जः । न तारय त दातारं ना ानं सप र हम् ॥ शातातप १७

111 ा णराज ौ वाधुषा ं ना ाताम् ॥ अथा ुदाहर ॥

समथ धा मुदधृ महाघ यः य त । स वै वाधु षको नाम वा दषु ग हतः ॥

वृ ण
ू ह ा तुलया समतोलयत् । अ त द् ूणहाको ां वाधु पन क त ॥ व श २.४७

112 अ ो या अननुवा ा अन यो वा शू धमाणो भव ॥

नानृग् ा णो भव त न वाणेङ् न कु शीलवः । न शू ेषणं कु व ेनो न चिक कः ॥ व श २.१,४

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और पाचवां चा ाल चा ालके घर ज लेनेवाला है। 113 जो ा ण
विहतकमको ाग देता है और पराधीन रहता है वह व ान् होनेपर भी शू के
समान है।114 गोर ा, वा ण और च कार आिदका कम करनेवाले; नाचने
गानेवाले; दूतका काम करनेवाले और स ा अ लेकर मं हगा बचनेवाले
ा णोसं े शू के समान आचरण करना चािहये।115जो ा ण सूयके उदयसे
पिहले ातःकालक स ाक और सूया से पिहले सायं कालक स ाक
उपासना नही करता है वह ा ण कै से कहा जायगा। धा मक राजाको उ चत है
िक जो ा ण न ातःकाल और सायं कालक स ाक उपासना नही ं करते ह
ं े काम म नयु
उनको इ ानुसार शू ोक करे ।116
मूख ा ण

काठके हाथी और चामके ह रणके समान मूख ा ण है; - ये तीनो ं के वल नाम


धारण करनेवाले होते ह जैसे ीसे नपुंसक का और गौसे गौका सहवास और
मूखको िदया आ दान न ल होताहै वैसे ही वेदा यनसे हीन ा ण न ल
113 ना कः पशुन ैव कृ त ो दीघरोषकः । च ारः कमचा ाला ज त ा प प मः ॥ २३ ॥ व श ६.२३

114 य कमप र ागी पराधीन थैव च । अधीतोऽ प ि ज ैव स च शू समो भवेत् ॥ लघु आ लायन २२.२२

115 गोर का ा णजकां था का कु शीलवान् । े ा ाधु षकां ैव व ा ू वदाचरेत् ॥ बौधायन१.५.९५

116 जनागतां तु ये पूवामनतीतां तु प माम् । स ां नोपासते व ाः कथं ते ा णाः तृ ाः।।

सायं ातः सदा स ां ये व ा न उपासते । कामं ता ा मको राजा शू कमसु योजयेत् ॥ बौधायन २.४.१९-२०

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है।117 ान म े ं े न म भोजन कराना
ा णको ही देवता और पतरोक
चािहये; मूखको नही;ं ोिं क धरसे लपा आ हाथ धरसे धोनेपर शु नही
होताहै। हीन मूख ा ण देव तथा पतर नायम जतने ास खाताहै मरनेपर
उसको उतनेही लोहेकै त प भोजन करना पड़ता है।118 व ासे हीन ा ण
सोना, भू म, घोड़ा, गौ, अ , व , तल अथवा घृत दान लेनेसे काठके समान
भ होजाताहै। जव व ाहीन ा ण सोना अथवा अ दान लेताहै तो उसक
आयुक भू म वा गौदान लेता है तो उसके शरीरक , घोड़ा दान लेता है तो उसक
आँखक , व दान लेता है तो उसक चाक , घीदान लेता है तो उसके तेजक
और तलदान लेता है तो उसक स ानक हा न होती है। जैसे प रक नाव
उसपर चढ़नेवाले के साथ जलम खूब जाती है वैसेही तप ासे हीन और
वेदा यनसे रिहत ा ण दानलेने पर दाताके सिहत नरकम डू बताहै। जैसे गौ
क चड़ म धसती है वैसेही मूख ा ण थोडे भी दान लेनेसे नरक म फँ सा रहता है,
ं ो दानलेने से डरना चािहये।119वेद जाननेवाला एक ा ण जो
इस लये सूखलोगोक
117 यथा का मयो ह ी यथा चममयो मृगः | य वमोऽनधीयान य े नाम व त ॥

यथा ष ोऽफलः ीषु यथा गौग व चाफला । यथा चा ेऽफलं दानं तथा व ोऽनृचोऽफलः ॥ मनु २.१५७-५८

118 ानो ृ ाय देया न क ा न च हवीं षच । न िह ह ावसृ ौ धरे णैव शु तः ॥

यावतो सते ासा क े म वत् | तावतो सते े दी गूल योगुडान् ॥ मनु ३.१३२-३३

119 िहर ं भू मम ं गाम ं वास ला म् । तगृ व ां ु भ ीभव त दा वत् ॥

िहर मायुर ं च भूग ा ोपत नुम् । अ ु चं वासो घृतं तेज लाः जाः ॥
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ाय ंे
वतावे उसको परमधम मानना चािहये; िक ु दस हजार मूख ा णोक
दी ई व ाको नही।ं त और वेद व ासे हीन नामधारी एक हजार ा णोक
ंे
इक े होनेपर भी धमसभा नही वनसकती है। मूख और धमशा को नही ं
जाननेवाले ा ण जस मनु को पापका ाय बताता है उसका पाप सौगुना
होकर उसको लगजाता है ।120राजाको उ चत है िक त और वेद व ासे हीन
ं ो भात देनेवालो ं अथात् चोरोक
ा ण जस गांवम भ ा मांगते ह, चोरोक ं ो
ं े समान उस गांव के लोगोक
पालनेवालोक ं ोद ंे
देवे। जस देश म व ानोक
भोगनेयो व ुको मूख भोगते ह उस देशम अनावृ होती है अथवा कोई बड़ा
भय उप त होता है।121जैसे क े म ीके पा म रखनेसे दूध, दही, घी और
मधु पा क दुबलतासे न होजाते ह और वह पा भी न होता है वैसे ही गौ,
सोना, व , अ , भू म और तलदान लेनेसे मूख ा ण और दानका फल ये
दोनो ं काठके समान भ होजाते ह।122जैसे बना ाणीका गांव, बना जलका
अतपा नधीयानः त ह चि जः । अ वेनेव सह तेनैव म त ॥ मनु ४.१८८-१९०

120 एकोऽ प वेद व म यं व े ् वजो मः । स व ेयः परो धम ना ानामु दतोऽयुतैः ॥

अ ताना मम ाणां जा तमा ोपजी वनाम् । सह शः समेतानां प रष ं न व ते ॥

यं वद तमोभूता मूखा धममति दः । त ापं शतथा भू ा त ृननुग त ॥ मनु १२.११३-११५

121 अ ता ानधीयाना य भै चरा ि जाः । तं ामं द ये ाजा चौरभ दद वत् ॥

व ो म व ांसो येषु रा ेषु भु ते । ते नावृ म महदा जायते भयम् ॥ अ २२,२३

122 आमपा े ं ीरं द ध घृतं मधु ॥

आिद शं कर वैिदक व ा सं ान

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कू प तथा बना अ क आ त थ है वैसहे ी वेदहीन ा ण वृथा है।
गाय ीहीन ा ण शू से भी अ धक अशु है; गाय ी और वेदके त को
ं े उदरम वेदो ं के प व
जाननेवाले ा णको सब लोग पूजते ह।123 जन ा णोक
मं है वही ा ण पूजनेयो है के वल ा णका शरीर धारण करनेवाले
नही।ं 124 ा णका लं घन करनेसे कु लका नाश होजाता है; िक ु वेदहीन मूख
ा णका उ ं घन करना उ ं घन नही कहा जाता; ोंिक लत अ को
छोड़कर राखम कोई होम नही करता।125

ॐ शम्

वन े ा दौब ा पा ं वन त । एवं गां च िहर ं च व म ं महीं तलान् ॥

अ व ा तगृ ा त भ ीभव त का वत् ॥

123 ाम ानं यथा शू ं यथा कू प ु नजलः । यथा तमनग् चनै अम ो ा ण था ॥

गाय ीरिहतो व : शू ाद शु चभवेत् । गाय ी त ाः सं पू े जनै जाः ॥ पराशर८.२५,३२

124 या न य प व ा ण कु ौ त भारत । ता न त ैव पू ा न नशरीरा ण दे िहनाम् ॥ लघुशंख ृ त २३

125 कु ला कु लतां यां ते ा णा त मेण च ॥

ा णा त मो ना मूख म वव जते । ल म मु ृ निह भ न यते ॥ बौधायन ृ त - १.५.९७-९८

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