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Kshitiz & Kritika 2023-24
Kshitiz & Kritika 2023-24
निम्िलिखित गद्ाांश को पढ़कर िीचे ठिए गए प्रश्िों के उत्तर के विकल्प में से सही छाांिकर लिखिए-
1. गाड़ी छूि रह र्ी। सेकण्ड तिास के एक छोिे ड़डब्बे को िाि सिझकर जरा दौड़कर उसिें चढ़ गए। अनुिान
के प्रनतकूि ड़डब्बा ननजथन नह ीं र्ा। एक बर्थ पर ििनऊ की नवाबी नस्ि के एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुववधा
से पािर्ी िारे बैिे र्े। सािने दो ताजे -र्चकने िीरे तौलिए पर रिे र्े। ड़डब्बे िें हिारे सहसा कूद जाने से सज्जन
की आाँिों िें एकाींत र्चन्तन िें ववघ्न का असींतोष ठदिाई ठदया। सोचा, हो सकता है , यह भी कहानी के लिए सूझ
की र्चन्ता िें हों या िीरे -जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते दे िे जाने के सींकोच िें हों। नवाब साहब ने सींगनत
के लिए उत्साह नह ीं ठदिाया। हिने भी उनके सािने की बर्थ पर बैिकर आत्ि-सम्िान िें आाँिें चुरा ि ीं। िाि
बैिे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है । नवाब साहब की असुववधा और सींकोच के कारण का अनुिान करने
िगे। सम्भव है , नवाब साहब ने बबिकुि अकेिे यात्रा कर सकने के अनुिान िें क्रकफ़ायत के ववचार से सेकण्ड
तिास का ठिकि िर द लिया हो और अब गवारा न हो क्रक शहर का कोई सफ़ेदपोश उन्हें िाँझिे दजे िें सफ़र
करता दे िे।
i- िेिक सेकण्ड क्िास के एक छोिे डडब्बे िौड़कर क््ों चढ़े ?
(क) िेिक अपनी सािथ्यथ ठदिा रहे र्े
(ि) सभी दौड़कर ड़डब्बे िें चढ़ रहे र्े
(ग) गाड़ी छूि रह र्ी
(घ) इनिें से कोई नह ीं
ii- सामिे िो ताजे-धचकिे िीरे कहाँ रिे र्े?
(क) बर्थ पर
(ि) तौलिए पर
(ग) िोिे पर
(घ) अख़बार पर
iii- ककसिे सांगनत के लिए उत्साह िहीां ठििा्ा?
(क) िेिक ने
(ि) िोगों ने
(ग) नवाब साहब ने
(घ) बच्चों ने
iv- आत्म-सम्माि में ककसिे आँिें चुरा िीां?
(क) िेिक ने
(ि) नवाब साहब ने
(ग) िोगों ने
(घ) इनिें से कोई नह ीं
v- िेिक के अिम
ु ाि से ििाब साहब िे सेकण्ड क्िास का ठिकि क््ों िरीिा होगा?
(क) बबिकुि अकेिे यात्रा कर सकने के अनुिान िें ।
(ि) िेिक के सार् यात्रा कर सकने के अनुिान से।
(ग) िोगों के सार् यात्रा कर सकने के अनुिान से।
(घ) इनिें से कोई नह ीं
उत्तर- i- (ग) गाड़ी छूि रह र्ी ii- (ि) तौलिए पर iii- (ग) नवाब साहब ने iv- (क) िेिक ने v- (क) बबिकुि
अकेिे यात्रा कर सकने के अनुिान िें ।
2. नवाब साहब िीरे की तैयार और इस्तेिाि से र्ककर िेि गए। हिें तसि ि िें लसर िि कर िेना पड़ा-यह है
िानदानी तहजीब, नफ़ासत और नजाकत! हि गौर कर रहे र्े, िीरा इस्तेिाि करने के इस तर के को िीरे की
सुगींध और स्वाद की कल्पना से सींतुटि होने का सूक्ष्ि, नफीस या एब्स्रै ति तर का जरूर कहा जा सकता है , परन्तु
तया ऐसे तर के से उदर की तजृ प्त भी हो सकती ै ह? नवाब साहब की ओर से भरे पेि के ऊाँ चे डकार का शब्द
सुनाई ठदया और नवाब साहब ने हिार ओर दे िकर कह ठदया, ‘िीरा िजीज होता है , िेक्रकन होता है सकीि,
नािुराद िेदे पर बोझ डाि दे ता है ’ ज्ञान-चिु िुि गए। पहचाना ये हैं नई कहानी के िेिक!
i- ििाब साहब क््ों िेि गए?
(क) उदर तजृ प्त हो जाने के कारण
(ि) िेिक से सींगनत न ठदिाने के कारण
(ग) िीरे की तैयार और इस्तेिाि से र्कने के कारण
(घ) िीरे िा िेने के कारण
ii- िीरे के इस्तेमाि करिे का एब्स्रै क्ि तरीका क््ा र्ा?
(क) िीरे की सुगींध और स्वाद की कल्पना से सींतुटि होना
(ि) िीरे की फााँकें बनाना
(ग) िीरे धोकर इस्तेिाि करना
(घ) िीरे धोकर तौलिए से पोंछना
iii- भरे पेि के ऊँचे डकार का शब्ि ककसे सुिाई ठि्ा?
(क) िेिक को
(ि) िोगों को
(ग) नवाब साहब को
(घ) इनिें से कोई नह ीं
iv- ‘िीरा िजीज होता है - ्ह कर्ि -----?
(क) सत्य है
(ि) असत्य है
(ग) न सत्य, न असत्य
(घ) इनिें से कोई नह ीं
v- पहचािा ्े हैं िई कहािी के िेिक! - इस कर्ि में क््ा व््ांग्् है ?
(क) नवाब साहब नई कहानी के िेिक हैं ।
(ि) बबना घिना और पात्र के कहानी लििी जा सकती है ।
(ग) कहानी के लिए पात्र और घिना की जरुरत होती है ।
(घ) इनिें से कोई नह ीं
उत्तर- i- (ग) िीरे की तैयार और इस्तेिाि से र्कने के कारण ii- (क) िीरे की सुगींध और स्वाद की कल्पना से
सींतुटि होना iii- (क) िेिक को iv- (क) सत्य है v- (ग) कहानी के लिए पात्र और घिना की जरुरत होती है ।
निम्िलिखित गद्ाांश को पढ़कर िीचे ठिए गए प्रश्िों के उत्तर के विकल्प में से सही छाांिकर लिखिए-
1- पर यह वपत ृ गार्ा िैं इसलिए नह ीं गा रह क्रक िझ
ु े उनका गौरव गान करना है बजल्क िैं तो यह दे िना चाहती हूाँ
क्रक उनके व्यजततत्व की कौन सी िूबी और िालियााँ िेरे व्यजततत्व के ताने-बाने िें गुर्ीीं हुई है या क्रक अनजाने
अनचाहे क्रकए उनके व्यहार ने िेरे भीतर क्रकन कृनतयों को जन्ि दे ठदया। िैं काि हूाँ बचपन िें दब
ु ि और िररयि
भी र्ी। गोरा रीं ग वपताजी की किजोर र्ी सो बचपन िें िझ ु से दो साि बड़ी िब ू गोर स्वस्र् और हाँसिि
ु बठहन
सुशीिा से हर बात िें तुिना और क्रफर उसकी प्रसींशा ने ह तया िेरे भीतर ऐसे गहरे ह न भाव की ग्रींर्र् पैदा नह ीं
कर द क्रक नाि सम्िान और प्रनतटिा पाने के बावजद
ू आज तक िैं उससे उबर नह ीं पाई? आज भी पररचय करवाते
सिय जब कोई कुछ ववशेषता िगाकर िेरे िेिकीय उपिजब्धयों का जजि करने िगता है तो िैं सींकोच िें लसिि ह
नह ीं जाती बजल्क गड़ने-गड़ने को हो जाती हूाँ।
i- िेखिका िे इस अिुच्छे ि में ककसके व््ल्क्तत्ि की चचाथ की है ?
(क) स्वयीं के व्यजततत्व की
(ि) अपने वपता के व्यजततत्व की
(ग) अपने बठहन के व्यजततत्व की
(घ) इनिें से कोई नह ीं िन ,
ii- िेखिका बचपि में कैसी र्ी?
(क) गोर , दब
ु ि और िररयि
(ि) गोर , िोि और स्वस्र्
(ग) काि , दब
ु ि और िररयि
(घ) इनिें से कोई नह ीं
iii- गोरी, स्िस्र् और हँसमि
ु कौि र्ी?
क) िेखिका
(ि) िेखिका की बठहन
(ग) िेखिका की िााँ
(घ) इनिें से कोई नह ीं
iv- िेखिका आज तक ककस बात से उबर िहीां पाई?
(क) बठहन सुशीिा के व्यजततत्व से
(ि) वपता के व्यजततत्व से
(ग) िान-सम्िान और प्रनतटिा से
(घ) गहरे ह न भाव की ग्रींर्र् से
v- विशेषता िगाकर पररच् करिाते सम् िेखिका पर क््ा असर होता है ?
(क) िेखिका सींकोच िें लसिि जाती है ।
(ि) िेखिका पर कोई असर नह ीं होता है ।
(ग) िेखिका प्रसन्नता िें डूब जाती है ।
(घ) इनिें से कोई नह ीं
उत्तर- i- (क) स्वयीं के व्यजततत्व की ii- (ग) काि , दब
ु ि और िररयि iii- (ि) िेखिका की बठहन iv- (घ) गहरे ह न
भाव की ग्रींर्र् से v- (क) िेखिका सींकोच िें लसिि जाती है ।
2- वपता जी के जजस शतकी स्वभाव पर िैं कभी भन्ना-भन्ना जाती र्ी, आज एकाएक अपने िींड़डत ववश्वासों की
व्यर्ा के नीचे िझ
ु े उनके शतकी स्वभाव की झिक ह ठदिाई दे ती है .....बहुत ‘अपनों’ के हार्ों ववश्वासघात की गहर
व्यर्ा से उपजा शक। होश साँभािने के बाद से ह जजन वपता जी से क्रकसी -न-क्रकसी बात पर हिेशा िेर ितकर ह
चिती रह , वे तो न जाने क्रकतने रूपों िें िुझिें हैं...........कह ीं कींु िाओीं के रूप िें , कह ीं प्रनतक्रिया के रूप िें तो कह
प्रनतच्छाया के रूप िें । केवि बाहर लभन्नता के आधार पर अपनी परीं परा और पीठढ़यों को नकारने वािों को तया
सचिुच इस बात का बबल्कुि अहसास नह ीं होता क्रक उनका आसन्न अतीत क्रकस कदर उनके भीतर जड़ जिाए बैिा
रहता है । सिय का प्रवाह भिे ह हिें दस
ू र ठदशाओीं िें बहाकर िे जाए..........जस्र्नतयों का दबाव भिे ह हिारा रूप
बदि दे , हिें पूर तरह उससे िुतत तो नह ीं ह कर सकता।
i- िेखिका को वपताजी के ककस व््िहार की झिक ठििाई िे ती र्ी?
(क) उनके शतकी स्वभाव की
(ि) स्वयीं के शतकी स्वाभाव की
(ग) अपनों के ववश्वासघात की
(घ) इनिें से कोई नह ीं
ii- वपता जी से ककसी-ि-ककसी बात पर हमेशा िेखिका की िक्कर ही चिती रही, ऐसा कब से?
(क) वपताजी के सिझाने के बाद
(ि) िेखिका के होश साँभािने के पहिे से
(ग) िेखिका के होश साँभािने के बाद से
(घ) वपताजी के शतकी हो जाने के बाद
iii- िे तो ि जािे ककतिे रूपों में मुझमें हैं- िेखिका िे ऐसा क््ों कहा?
(क) तयोंक्रक िेखिका पर वपताजी के व्यजततत्व का असर है
(ि) तयोंक्रक िेखिका पर उसकी बठहन सश
ु ीिा के व्यजततत्व का असर है
(ग) तयोंक्रक िेखिका पर उसकी िााँ के व्यजततत्व का असर है
(घ) इनिें से कोई नह ीं
iv- सम् का प्रिाह भिे ही हमें िस
ू री ठिशाओां में बहाकर िे जाए- पर ...?
(क) जीवन के अतीत से व्यजतत पूर तरह ित
ु त नह ीं को पाता है
(ि) व्यजतत बीती बातों को परू तरह से भि
ू जाता है
(ग) व्यजतत भववटय की योजनाओीं से िुतत हो जाता है
(घ) जीवन िें गहरे ह न भाव जन्ि िे िेते हैं
v- िेखिका मन्िू भांडारी दिारा लिखित पाि का िाम है ...?
(क) एक कहानी ऐसी भी
(ि) िेरे जीवन की कहानी।
(ग) एक कहानी यह भी
(घ) इनिें से कोई नह ीं
उत्तर- i- (क) उनके शतकी स्वभाव की ii- (ग) िेखिका के होश साँभािने के बाद से iii- (क) तयोंक्रक िेखिका पर
वपताजी के व्यजततत्व का असर है iv- (क) जीवन के अतीत से व्यजतत पूर तरह िुतत नह ीं को पाता है v- (ग) एक
कहानी यह भी
निम्िलिखित गद्ाांश को पढ़कर िीचे ठिए गए प्रश्िों के उत्तर के विकल्प में से सही छाांिकर लिखिए-
1-सचिच ु है रान करती है काशी - पकड्ढा िहि से जैसे ििाई बरफ गया, सींगीत, साठहत्य और अदब की बहुत सार
परीं पराएाँ िुप्त हो गई। एक सच्चे सुर साधक और सािाजजक की शाींनत बबजस्िल्िा िााँ साहब को इन सबकी किी
ििती है । काशी िें जजस तरह बाबा ववश्वनार् और बबजस्िल्िा िााँ एक-दस
ू रे के पूरक रहे हैं, उसी तरह िुहरथ ि-
ताजजया और होि -अबीर, गुिाि की गींगा-जिुनी सींस्कृनत भी एक-दस
ू रे के पूरक रहे हैं। अभी जल्द ह बहुत कुछ
इनतहास बन चक
ु ा है । अभी आगे बहुत कुछ इनतहास बन जाएगा। क्रफर भी कुछ बचा है जो लसफथ काशी िें हैं। काशी
आज भी सींगीत के स्वर पर जागती और उसी की र्ापों पर सोती है । काशी िें िरण भी िींगि िाना गया है । काशी
आनींदकानन है । सबसे बड़ी बात है क्रक काशी के पास उस्ताद बबजस्िल्िा िााँ जैसा िय और सुर की तिीज लसिाने
वािा नायाब ह रा रहा है जो हिेशा से दो कौिों को एक होने व आपस िें भाईचारे के सार् रहने की प्रेरणा दे ता रहा।
i- सचमच
ु है राि करती है काशी- ऐसा क््ों कहा ग्ा है ?
(क) तयोंक्रक सींगीत, साठहत्य और अदब की बहुत सार परीं पराएाँ िप्ु त हो गई हैं
(ि) तयोंक्रक अब वहााँ शहनाई नह ीं बजती है
(ग) तयोंक्रक अब वहााँ िोग लििजुिकर नह ीं रहते हैं
(घ) इनिें से कोई नह ीं
ii- गांगा-जमुिी सांस्कृनत का क््ा अर्थ है ?
(क) बाबा ववश्वनार् और बबजस्िल्िा िााँ एक-दस
ू रे के पूरक रहे हैं
(ि) िुहरथ ि-ताजजया और होि -अबीर एक-दस
ू रे के पूरक रहे हैं
(ग) ठहन्द ू और िुजस्िि के त्योहार, सींस्कृनत और परम्पराएाँ एक-दस
ू रे की पूरक रह हैं
(घ) ये सभी
iii- कौि सी शहर आज भी सांगीत के स्िर पर जागता और उसी की र्ापों पर सोता है ?
(क) िर्ुरा
(ि) काशी
(ग) अयोध्या
(घ) प्रयागराज
iv- काशी आिांिकािि है - इसका क््ा मतिब है ?
(क) काशी िें हर तरफ शोर-शराबा है
(ि) काशी िें हर तरफ िहि ह िहि हैं
(ग) काशी िें हर तरफ प्रसन्नता रूपी जींगि है
(घ) वहााँ हर तरफ सींन्यासी ह सींन्यासी हैं
v- िो कौमों को एक होिे ि भाईचारे के सार् रहिे की प्रेरणा कौि िे ता रहा?
(क) िेिक
(ि) उस्ताद बबजस्िल्िा िााँ
(ग) बबजस्िल्िा िााँ की शहनाई
(घ) इनिें से कोई नह ीं
उत्तर- i- (क) तयोंक्रक सींगीत, साठहत्य और अदब की बहुत सार परीं पराएाँ िुप्त हो गई हैं ii- (घ) ये सभी iii- (ि)
काशी iv- (ग) काशी िें हर तरफ प्रसन्नता रूपी जींगि है v- (ि) उस्ताद बबजस्िल्िा िााँ
2- अिीरुद्द न की उम्र अभी 14 साि है । िसिन बबजस्िल्िा िााँ की उम्र अभी 14 साि है । वह काशी है । वह
पुराना बािा जी का िींठदर जहााँ बबजस्िल्िा िााँ को नौबतिाने ररयाज के लिए जाना पड़ता है । िगर एक रास्ता है
बािाजी िींठदर तक जाने का। यह रास्ता रसूिन बाई और बतूिन बाई के यहााँ से होकर जाता है । इस रास्ते से
अिीरुद्द न को जाना अच्छा िगता है । इस रास्ते न जाने क्रकतने तरह के बोि-बनाव कभी िुिर , कभी िप्पे, कभी
दादरा के िाफ़थत ड्योढ़ तक पहुाँचते रहते हैं। रसूिन बाई और बतूिन बाई जब गाती है तब अिीरुद्द न को िश
ु ी
लििती है । अपने ढे रों सािात्कारों िें बबजस्िल्िा िााँ साहब ने स्वीकार क्रकया है क्रक उन्हें अपने जीवन के आरीं लभक
ठदनों िें सींगीत के प्रनत आसजतत इन्ह ीं गानयका बठहनों को सुनकर लिि है । एक प्रकार से उनकी अबोध उम्र िें
अनभ
ु व की स्िेि पर सींगीत- प्रेरणा की वणथिािा रसि
ू न बाई और बति
ू न बाई ने उकेर है ।
i- बबल्स्मल्िा िाँ का बचपि का िाम क््ा र्ा?
(क) यतीींद्र लिश्र
(ि) अिीरुद्द न
(ग) रसूिन बाई
(घ) बािाजी
ii- बबल्स्मल्िा िाँ को रर्ाज के लिए कहाँ जािा पड़ता र्ा?
(क) रसूिन बाई के घर
(ि) बति
ू न बाई के घर
(ग) काशी
(घ) नौबतिाने
iii- बािाजी मांठिर तक जािे का रास्ता बबल्स्मल्िा िाँ को क््ों अच्छा िगता र्ा?
(क) तयोंक्रक यह रास्ता नौबतिाने तक जाता र्ा
(ि) तयोंक्रक यह रास्ता बहुत पुराना र्ा
(ग) तयोंक्रक यह रास्ता एकदि नया र्ा
(घ) तयोंक्रक यह रास्ता रसि
ू न बाई और बतूिन बाई के यहााँ से होकर जाता र्ा
iv- बबल्स्मल्िा िाँ को जीिि के आरां लभक ठििों में सांगीत के प्रनत आसल्क्त ककिसे लमिी?
(क) बाबा ववश्वनार् से
(ि) काशी की ड्योढ़ से
(ग) रसि
ू न बाई और बति
ू न बाई से
(घ) इनिें से कोई नह ीं
v- ‘िौबतिािे में इबाित’ पाि के िेिक हैं?
(क) उस्ताद बबजस्िल्िा िााँ
(ि) रसूिन बाई और बतूिन बाई
(ग) यतीींद्र लिश्र
(घ) इनिें से कोई नह ीं
उत्तर- i- (ि) अिीरुद्द न ii- (घ) नौबतिाने iii- (घ) तयोंक्रक यह रास्ता रसूिन बाई और बतूिन बाई के यहााँ से
होकर जाता र्ा iv- (ग) रसि
ू न बाई और बति
ू न बाई से v- (ग) यतीींद्र लिश्र
निम्िलिखित गद्ाांश से पछ
ू े गए प्रश्िों के उत्तर सही विकल्प छाँिकर िील्जए-
1- एक सींस्कृत व्यजतत क्रकसी नयी चीज की िोज करता है क्रकीं तु उसकी सींतान को वह अपने पूवज
थ से अनायास ह
प्राप्त हो जाती है । जजस व्यजतत की बुद्र्ध ने अर्वा उसके वववेक ने क्रकसी भी नए तथ्य का दशथन क्रकया, वह व्यजतत
ह वास्तववक सींस्कृत व्यजतत है और उसकी सींतान जजसे अपने पूवज
थ से अनायास ह प्राप्त हो गई है, वह अपने
पव
ू ज
थ की भााँनत सभ्य भिे ह बन जाए, सींस्कृत नह ीं कहिा सकता। एक आधनु नक उदाहरण िें। न्यि
ू न ने
गुरुत्वाकषथण के लसद्धाींत का आववटकार क्रकया। वह सींस्कृत िानव र्ा। आज के युग का भौनतक ववज्ञान का ववद्यार्ी
न्यूिन के गुरुत्वाकषथण से तो पररर्चत है िेक्रकन उसके सार् उसे और भी अनेक बातों का ज्ञान प्राप्त है जजनसे शायद
न्यि
ू न अपररर्चत ह रहा। ऐसा होने पर भी हि आज के भौनतक ववज्ञान के ववद्यार्ी को न्यि
ू न की अपेिा अजध्क
सभ्य भिे ह कह सकें पर न्यूिन जजतना सींस्कृत नह ीं कह सकते।
i- िेिक िे सांस्कृत व््ल्क्त ककसे मािा है ?
(क) जो व्यजतत हिेशा सींघषथ करता है
(ि) जो व्यजतत कोई नयी चुनौती स्वीकार करता है
(ग) जो व्यजतत कोई नया काि नह ीं करता है
(घ) जो व्यजतत क्रकसी नयी चीज की िोज करता है
ii- कोई ऐसी चीज ल्जसे अपिे पूिज
थ से अिा्ास ही प्राप्त हो गई है ? िह कहिाता है -
(क) सींस्कृत व्यजतत
(ि) असींस्कृत व्यजतत
(ग) सभ्य व्यजतत
(घ) असभ्य व्यजतत
iii- न््ूिि िे ककस लसदधाांत का आविष्कार कक्ा?
(क) गनत के लसद्धाींत का
(ि) गुरुत्वाकषथण के लसद्धाींत का
(ग) दाब के लसद्धाींत का
(घ) इनिें से कोई नह ीं
iv- आज के ्ुग का भौनतक विज्ञाि का विद्ार्ी न््ि
ू ि की तरह सांस्कृत है ? ्ह कर्ि ...?
(क) असत्य है
(ि) सत्य है
(ग) दोनों है
(घ) इनिें से कोई नह ीं
v- ‘सभ््ता और सांस्कृनत’ पाि के िेिक हैं?
(क) न्यि
ू न
(ि) भदीं त आनींद कौसल्यायन
(ग) यतीींद्र लिश्र
(घ) इनिें से कोई नह ीं
उत्तर- i- (घ) जो व्यजतत क्रकसी नयी चीज की िोज करता है ii- (ग) सभ्य व्यजतत iii- (ि) गरु
ु त्वाकषथण के लसद्धाींत
का iv- (क) असत्य है v- (ि) भदीं त आनींद कौसल्यायन
2- ‘‘भौनतक प्रेरणा, ज्ञानेप्सा’’-तया ये दो ह िानव सींस्कृनत के िाता-वपता हैं? दस
ू रे के िुाँह िें कौर डािने के लिए जो
अपने िह
ाँु का कौर छोड़ दे ता है , उसको यह बात तयों और कैसे सझ
ू ती है ? रोगी बच्चे को सार रात गोद िें लिए जो
िाता बैिी रहती है , वह आखिर ऐसा तयों करती है ? सन ु ते हैं क्रक रूस का भाग्यववधाता िेननन अपनी डैस्क िें रिे हुए
डबि रोि के सि ू े िुकड़े स्वयीं न िाकर दस
ू रों को खििा ठदया करता र्ा। वह आखिर ऐसा तयों करता र्ा? सींसार के
िजदरू ों को सि
ु ी दे िने का स्वप्न दे िते हुए कािथ िातसथ ने अपना सारा जीवन दि ु िें बबता ठदया। और इन सबसे
बढ़कर आज नह ीं, आज से ढाई हजार वषथ पव ू थ लसद्दार्थ ने अपना घर केवि इसलिए त्याग ठदया क्रक क्रकसी तरह तटृ णा
के वशीभत
ू िड़ती-किती िानवता सि
ु से रह सके।
i- ‘‘भौनतक प्रेरणा, ज्ञािेप्सा’’-क््ा ्े िो ही मािि सांस्कृनत के माता-वपता हैं?
(क) हााँ
(ि) नह ीं
(ग) कह नह ीं सकते
(घ) इनिें से कोई नह ीं
ii- िस
ू रे के मुँह में कौर डाििे के लिए जो अपिे मुँह का कौर छोड़ िे ता है , - उसे कहें गे
(क) परिार्ी
(ि) स्वार्ी
(ग) ववनम्र
(घ) असभ्य
iii- रूस का भाग््विधाता ककसे कहा ग्ा है ?
(क) कािथ िातसथ को
(ि) न्यि
ू न को
(ग) िेननन को
(घ) इनिें से कोई नह ीं
iv- सांसार के मजिरू ों को सि
ु ी िे ििे का स्िप्ि ककसिे िे िा?
(क) कािथ िातसथ ने
(ि) िेननन ने
(ग) न्यि
ू न ने
(घ) इनिें से कोई नह ीं
v- आज से ढाई हजार िषथ पूिथ लसदिार्थ िे अपिा घर क््ों छोड़ ठि्ा र्ा?
(क) ताक्रक उन्हें जीवन दुःु ि लिि सके।
(ि) ताक्रक िनटु य का िािच घि सके।
(ग) ताक्रक िोगों की दररद्रता लिि सके।
(घ) ताक्रक तटृ णा के वशीभत
ू िड़ती-किती िानवता सि
ु से रह सके।
उत्तर- i- (ि) नह ीं ii- (क) परिार्ी iii- (ग) िेननन को iv- (क) कािथ िातसथ ने v- (घ) ताक्रक तटृ णा के वशीभूत
िड़ती-किती िानवता सि
ु से रह सके।
पद् भाग
पि - सूरिास
कवि पररच्- भजततकाि की सगुण काव्यधारा के कृटणाश्रयी भजतत शािा के प्रनतननर्ध एवीं भतत कवव सूरदास का
जन्ि सन ् 1478 ई. िें िर्ुरा के ननकि रुनकता या रे णुका िेत्र िें हुआ र्ा। िहाप्रभु वल्िभाचायथ के लशटय सूरदास
अटि छाप के कववयों िें सवाथर्धक प्रलसद्ध हैं। वे िर्रु ा और वद
ीं ृ ावन के बीच गऊघाि पर रहते र्े और श्रीनार् जी के
िींठदर िें भजन-कीतथन क्रकया करते र्े। सन ् 1583 ई. िें परसौि िें उनका ननधन हो गया।
रचिाएँ- सूरदास की प्रिुि रचनाएाँ ननम्नलिखित हैं- सूरसागर, साठहत्य िहर और सूर सारावि । इनिें सूरसागर ह
सवाथर्धक िोकवप्रय हुआ।
काव््गत विशेषताएँ- िेती और पशुपािन वािे भारतीय सिाज का अींतरीं ग र्चत्र और िनुटय की स्वाभाववक ववृ त्तयों
का िनोरि र्चत्रण उनकी रचनाओीं िें लििता है । सरू दास ‘वात्सल्य’ और ‘श्रग
ीं ृ ार’ रस के श्रेटि कवव िाने जाते हैं।
कृटण और गोवपयों का प्रेि सहज िानवीय प्रेि की प्रनतटिा करता है । उनके काव्य िें ब्रजभाषा का ननिरा हुआ रूप है
जजसिें सठदयों से चि आ रह िोकगीतों की िधुरता का रसास्वादन लिया जा सकता है ।
पि
प्रनतपाि्- यहााँ सूरसागर के भ्रिरगीत से चार पदों का सींकिन क्रकया गया है । िर्ुरा जाने के बाद श्रीकृटण ने उद्धव
के जररए गोवपयों को अपने शीघ्र ह िौि आने का सींदेश भेजा। िौका पाकर उद्धव ने गोवपयों को ननगुण
थ ब्रह्ि और
योग का उपदे श दे कर उनकी ववरह वेदना को शाींत करने का प्रयास क्रकया क्रकन्तु गोवपयााँ नीरस ज्ञान िागथ के बजाए
प्रेि िागथ को अपनाना उर्चत सिझा। गोवपयों को शुटक ज्ञान पसींद नह ीं आया। उसी सिय एक भौंरा आ पहुाँचा जजसे
िक्ष्य करके गोवपयों ने उद्धव और उनके ज्ञान पर तीक्ष्ण व्यींग्य बाण छोड़े। यह ीं से ‘भ्रिरगीत’ का प्रारम्भ होता है ।
सार- पहिे पद िें गोवपयों ने उद्धव पर व्यींग्य करते हुए कहा क्रक आप बड़े भाग्यशाि हैं जो श्रीकृटण के सार् रहकर
भी उनके प्रेि रूपी धागे से नह ीं बींधे हैं अन्यर्ा हिार ह तरह आपको भी ववरह वेदना की अनुभूनत होती। दस ू रे पद
िें श्रीकृटण के प्रनत गोवपयों के प्रेि की गहराई व्यतत हुई है । गोवपयााँ स्वीकार करती हैं क्रक उनके िन की अलभिाषाएाँ
िन िें ह रह गईं। तीसरे पद िें वे उद्धव की योग साधना को कड़वी ककड़ी की तरह बताकर उसे स्वीकार करने से
िना कर दे ती हैं और अपने एकननटि प्रेि िें दृढ़ ववश्वास प्रकि करती हैं। चौर्े पद िें गोवपयााँ उद्धव को ताना
िारती हैं और बताती हैं क्रक श्रीकृटण ने अब राजनीनत पढ़ ि है । गोवपयााँ कहती हैं क्रक राजा का धिथ यह है क्रक प्रजा
को सताया नह ीं जाना चाठहए।
विशेष-
बहुविकल्पी प्रश्ि
राम-िक्ष्मण-परशरु ाम सांिाि - ति
ु सीिास
बहुविकल्पी प्रश्ि
कवि पररच्- जयशींकर प्रसाद का जन्ि सन 1889 ईस्वी िें वाराणसी िें हुआ। काशी के प्रलसद्ध तवीींस कॉिेज िें वे
पढ़ने गए परीं तु जस्र्नतयाीं अनक
ु ू ि न होने के कारण आिवीीं से आगे नह ीं पढ़ पाए। बाद िें घर पर ह सींस्कृत, ठहींद ,
पारसी का अध्ययन क्रकया। छायावाद काव्य प्रववृ त्त के प्रिुि कववयों िें से एक जयशींकर प्रसाद का सन 1937 ईस्वी
िें ननधन हो गया।
कृनत्ाँ- उनकी प्रिि
ु काव्य कृनतयााँ हैं- र्चत्राधार, कानन-कुसि
ु , झरना, आाँस,ू िहर और कािायनी। आधनु नक ठहींद
की श्रेटिति काव्य-कृनत िानी जाने वाि कािायनी पर उन्हें िींगिाप्रसाद पाररतोवषक ठदया गया। वे कवव के सार्-
सार् सफि गद्यकार भी र्े। अजातशत्रु, चन्द्रगप्ु त, स्कींदगुप्त और ध्रुवस्वालिनी उनके नािक हैं तो कींकाि, नतति
और इरावती उपन्यास। आकाशद प, आाँधी और इींद्रजाि उनके कहानी सींग्रह हैं।
काव््गत विशेषताएँ- प्रसाद का साठहत्य जीवन की कोििता, िाधुय,थ शजतत और ओज का साठहत्य िाना जाता है ।
छायावाद कववता क्रक अनतशय काल्पननकता, सौंदयथ का सक्ष्
ू ि र्चत्रण, प्रकृनत-प्रेि, दे श-प्रेि और शैि की िािखणकता
उनकी कववता की प्रिि
ु ववशेषताएाँ हैं। इनतहास और दशथन िें उनकी गहर रुर्च र्ी जो उनके साठहत्य िें स्पटि
ठदिाई दे ती है ।
प्रनतपाद्- प्रेिचींद के सींपादन िें ‘हीं स’ पबत्रका का एक आत्िकर्ा ववशेषाींक ननकिना तय हुआ र्ा। प्रसाद जी के लित्रों
ने आग्रह क्रकया क्रक वे भी आत्िकर्ा लििें। प्रसाद जी इससे सहित न र्े। इसी असहिनत के तकथ से पैदा हुई कववता
है - आत्िकथ्य। यह कववता पहि बार 1932 िें ‘हीं स’ के ‘आत्िकर्ा ववशेषाींक’ िें प्रकालशत हुई र्ी। छायावाद शैि
िें लििी गई इस कववता िें जयशींकर प्रसाद ने जीवन के यर्ार्थ एवीं अभाव पि की िालिथक अलभव्यजतत की है ।
छायावाद सूक्ष्िता के अनुरूप ह अपने िनोभावों को अलभव्यतत करने के लिए जयशींकर प्रसाद ने िलित, सुींदर एवीं
नवीन शब्दों और बबम्बों का प्रयोग क्रकया है । इन्ह ीं शब्दों एवीं बबम्बों के सहारे उन्होंने बताया है क्रक उनके जीवन की
कर्ा एक सािान्य व्यजतत के जीवन की कर्ा है । इसिें ऐसा कुछ भी नह ीं है जजसे िहान और रोचक िान कर िोग
वाह-वाह करें गे। कुि लििाकर इस कववता िें एक तरफ कवव द्वारा यर्ार्थ की स्वीकृनत है तो दस
ू र तरफ एक िहान
कवव की ववनम्रता भी।
सार- ‘आत्िकथ्य’ कववता िें प्रसाद जी ने आत्िकर्ा िेिन के ववषय िें अपनी िनोभावनाएाँ व्यतत की हैं । प्रसाद
जी के लित्रों और प्रशीं स कों ने उनसे आत्िकर्ा लििने का अनुरोध क्रक या र्ा। इस अनुरोध के उत्तर िें प्रसाद जी
ने इस कववता की रचना की। यह रचना ’हीं स ’ पबत्रका के आत्िकर्ा ववशेषाींक िें प्रकालशत हुई र्ी। कवव के
अनुसार आत्िकर्ा लििने की कोई उपयोर्गता नह ीं है । जीवन केवि एक व्यर्ा-कर्ा है । फूि से फूि पर भिकते
भौंरे की गुीं जार तया है ? कभी तप्ृ त न होने वाि प्यास की करुण कहानी है । डािों से िुरझाकर र्गरने वाि
पवत्तयााँ जीवन की नश्वरता की कर्ा सुन रह है । एक अनीं त आकाश के तिे धरती पर असीं ख्य जीवन पि रहे है ।
इन सभी की अपनी-अपनी आत्िकर्ाएाँ है । इन आत्िकर्ाओीं को सावथज ननक करने से तया लििता है ? हि इन
कर्ाओीं को सुनाकर अपने ह ऊपर व्यीं ग्य करते हैं । स्वयीं को उपहास का पात्र बनाते हैं ।
यह सब जानते हुए भी िैं अपनी आत्िकर्ा कै से लििाँू ? िे रा जीवन दब
ु थि ताओीं एवीं असफिताओीं की कहानी है ।
यह एक िाि गगर के सिान है । उसिें ऐसा कुछ भी उल्िेि नीय नह ीं है जजसे िैं लित्रों और प्रशीं स कों से साझा
कर सकूाँ । कह ीं ऐसा न हो क्रक िे र आत्िकर्ा सािने आने पर िे रे लित्र िे र दयनीय दशा के लिए स्वयीं को दोषी
सिझने िगें । अपनी भू िों और अपने सार् हुए धोिों की कहानी सुनाकर िैं अपनी सरिता की हाँ सी करना नह ीं
चाहता।
कवव कहता है क्रक वह अपने जीवन के िधुर िणों की कहानी नह ीं सुनना चाहता। उसके सुि के सपने कभी
साकार नह ीं हुए । सुि उसकी बााँ हों िें आते- आते द रू हो गया। आज वह उन िधुर स्िनृ तयों के सहारे ह अपने
जीवन को बबता रहा है । लित्र िोग आत्िकर्ा लििवाकर उसकी किु स्िृनतयों को तयों उधे ङ ना चाहते हैं ?अपनी
कर्ा सुनाने से तो यह अच्छा हैं क्रक वह औरों के जीवन की कर्ाएाँ िौन होकर सुनता रहे । उसकी भोि
आत्िकर्ा सुनकर कोई तया करे गा। वह नह ीं चाहता है क्रक आत्िकर्ा लििकर वह अपनी भू ि हुई पीड़ाओीं को
क्रफर से जगाएाँ ।
विशे ष:
1) कवव ने जीवन की नश्वरता का यर्ार्थ उल्िेि क्रक या है ।
2) क्रकसी व्यजतत के जीवन की किजोररयों एवीं असफिताओीं को दस
ू रे िोग हाँ सी-िजाक बना दे ते हैं ।
3) कवव ने व्यजततगत जीवन के िधुर पिों की छुअन का िालिथक र्चत्रण क्रक या है ।
4) अनुप्रास, उत्प्रेिा, अन्योजतत, रूपक अिींकार की छिा ववद्यिान है ।
5) छायावाद काव्य-शैि का िनोरि प्रयोग हुआ है ।
6) तत्सि शब्दावि से यत ु त सहज िड़ीबोि का प्रयोग हुआ है ।
7) काव्य-पींजततयों िें िाधुयथ गण
ु ववद्यिान है ।
8) प्रेि की िधुर भावनाओीं की अलभव्यजतत के कारण ववयोग श्रीं ग
ृ ार रस दशथनीय है ।
बहुविकल्पी प्रश्ि
प्रश्ि-i कवि िे मरु झाकर धगरिे िािी पवत्त्ों के माध््म से क््ा सांकेत कक्ा है?
(क) जीवन अिर है
(ि) जीवन िणभींगुर है
(ग) पेड़ से पवत्तयााँ र्गर जाती हैं
(घ) इनिें से कोई नह ीं
प्रश्ि-ii कवि अपिे जीिि की स्मनृ त्ों को क््ों िहीां बतािा चाहता है ?
(क) कवव ननराशा िें डूबा हुआ है इसलिए
(ि) उसके जीवन की बहुत सी यादें हैं
(ग) उसका जीवन िाि घड़ा है
(घ) इनिें से कोई नह ीं
प्रश्ि-iii कवि के लिए मधुर चाँििी रातों की क््ा विशेषता र्ी?
(क) रात िें चााँदनी चारों ओर फैि हुई र्ी
(ि) कवव को अपने जीवन से प्रेि नह ीं र्ा
(ग) कवव को अपने लित्रों से बहुत प्रेि करता र्ा
(घ) कवव ने अपनी प्रेलिका के सार् चााँदनी रातों िें हाँस-हाँसकर बातें की र्ी
प्रश्ि-iv अरुण-कपोिों की मतिािी सुांिर छा्ा – इस पांल्क्त में ककसका िणथि कक्ा ग्ा है ?
(क) कवव ने अपनी प्रेलिका की सुींदरता का वणथन क्रकया है
(ि) छाया की सुींदरता का र्चत्रण हुआ है
(ग) लित्रों की प्रसन्नता का वणथन क्रकया गया है
(घ) दनु नया के िोगों की चािाकी का वणथन हुआ है
प्रश्ि-v आत्मकथ्् कविता में ककस रस की प्रमुिता है ?
(क) वीर रस
(ि) हास्य रस
(ग) शाींत रस
(घ) श्रींग
ृ ार रस
उत्तर- i- (ि) जीवन िणभींगुर है ii-(ग) उसका जीवन िाि घड़ा है iii- (घ) कवव ने अपनी प्रेलिका के सार् चााँदनी रातों
िें हाँस-हाँसकर बातें की र्ी iv- (क) कवव ने अपनी प्रेलिका की सुींदरता का वणथन क्रकया है v- (घ) श्रग
ीं ृ ार रस
जीिि पररच्- सय ू कथ ाींत बत्रपािी ‘ननरािा’ का जन्ि बींगाि के िठहषादि िें सन 1899 िें हुआ। वह िि
ू त: गढ़ाकोिा
(जजिा उन्नाव) उत्तर प्रदे श के ननवासी र्े। ननरािा की औपचाररक लशिा नौवीीं तक िठहषादि िें ह हुई। उन्होंने
स्वाध्याय से सींस्कृत, बाींग्िा और अींग्रेजी का ज्ञान अजजथत क्रकया। वह सींगीत और दशथनशास्त्र के भी गहरे अध्येता र्े।
रािकृटण परिहीं स और वववेकानन्द की ववचारधारा ने उन पर ववशेष प्रभाव डािा। ननरािा का पाररवाररक जीवन दि
ु ों
और सींघषों से भरा र्ा। आत्िीय जनों के असािनयक ननधन ने उन्हें भीतर तक तोड़ ठदया। साठहजत्यक िोचे पर भी
उन्होंने अनवरत सींघषथ क्रकया। सन 1961 िें उनका दे हाींत हो गया।
प्रमुि काव्् रचिाएँ- अनालिका, पररिि, गीनतका, कुकुरिुत्ता और नए पत्ते। उपन्यास, कहानी, आिोचना और ननबींध
िेिन िें भी उनकी ख्यानत अववस्िरणीय है । ननरािा रत्नावि के आि िींडों िें उनका सींपण
ू थ साठहत्य प्रकालशत है ।
काव््गत विशेषताएँ- ननरािा ववस्तत
ृ सरोकारों के कवव हैं। दाशथननकता, ववद्रोह, िाींनत, प्रेि की तरिता और प्रकृनत का
ववराि तर्ा उदात्त र्चत्र उनकी रचनाओीं िें उपजस्र्त है । उनके ववद्रोह स्वभाव ने कववता के भाव-जगत और लशल्प-
जगत िें नए प्रयोगों को सींभव क्रकया। छायावाद रचनाकारों िें उन्होंने सबसे पहिे िुतत छीं द का प्रयोग क्रकया।
शोवषत, उपेक्षित, पीड़ड़त और प्रताड़ड़त जन के प्रनत उनकी कववता िें जहााँ गहर सहानुभूनत का भाव लििता है , वह ीं
शोषक वगथ और सत्ता के प्रनत प्रचींड प्रनतकार का भाव भी।
प्रनतपाद्- ‘उत्साह’ कववता एक आह्वान गीत है जो बादि को सींबोर्धत है । बादि ननरािा का वप्रय ववषय है । कववता
िें बादि एक तरफ पीड़ड़त-प्यासे जन की आकाींिा को पूरा करने वािा है , तो दस
ू र तरफ वह बादि नई कल्पना
और नए अींकुर के लिए ववध्वींस, ववप्िव और िाींनत चेतना को सींभव करने वािा भी। कवव जीवन को व्यापक और
सिग्र दृजटि से दे िता है । कववता िें िलित कल्पना और िाींनत चेतना दोनों हैं। सािाजजक िाींनत या बदिाव िें
साठहत्य की भूलिका िहत्वपूणथ होती है । ननरािा इसे ‘नवजीवन’ और ‘नूतन कववता’ के सींदभों िें दे िते हैं।
साराांश- इस कववता िें कवव बादि से घोर गजथना के सार् भयींकर बाररश करने की कािना करता है । बादि बच्चों के
कािे घुींघरािे बािों की तरह हैं। कवव बादि से धरती की प्यास बझ
ु ाने और सभी को सुिी बनाने का आग्रह करता
है । कवव बादि िें नवजीवन दे ने वाि बाररश और तहस-नहस कर दे ने वािा वज्रपात दोनों रूप दे िता है । वह अनुरोध
करता है क्रक बादि किोर वज्रशजतत को अपने भीतर छुपा कर सभी िें नई स्फूनतथ और नया जीवन डािने के लिए
िस
ू िाधार बाररश करे । आकाश िें उिड़ते-घि
ु ड़ते बादि को दे िकर कवव को िगता है क्रक सिस्त धरती भीषण गिी
से परे शान है इसलिए अनजान ठदशाओीं आकर कािे उसे शीतिता प्रदान करना चाहते हैं।
प्रनतपाद्- ‘अि नह ीं रह है’ कववता फागुन की िादकता को प्रकि करती है । कवव फागुन की सवथव्यापक सद
ुीं रता को
अनेक सींदभों िें दे िता है । जब िन प्रसन्न हो तो हर तरफ फागन
ु का ह सौंदयथ और उल्िास ठदिाई पड़ता है । सींद
ु र
शब्दों के चयन एवीं िय ने कववता को भी फागुन की तरह सुींदर एवीं िलित बना ठदया है ।
साराांश- इस कववता िें कवव ने फागुन िह ने का िनोरि र्चत्र प्रस्तुत क्रकया है । फरवर -िाचथ के िह ने िें वसींत ऋतु
का आगिन होता है । पेड़ से पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और उन पर नए पत्ते भर जाते हैं। चारों तरफ रीं ग-बबरीं गे फूिों की
बहार छा जाती है । उनकी सुगींध से सारा वातावरण िहक उिता है । इस अनोिी प्राकृनतक सद
ुीं रता से कवव अपनी
आींिें हिा नह ीं पा रहा है । इस िौसि िें बाग-बगीचों और वनों के सभी पेड़-पौधे नए पत्तों से िद गए हैं। कह ीं िाि
रीं ग से, तो कह ीं हरे रीं ग से पेड़ की डालियााँ अनर्गनत फूिों से भर गई हैं जजससे कवव को ऐसा िगता है जैसे प्रकृनत
दे वी ने अपने गिे िें रीं ग-बबरीं गे और सुगींर्धत फूिों की िािा पहन रिी हो। इस सवथव्यापी सुींदरता का कवव को कह ीं
ओर-छोर नजर नह ीं आ रहा है । इसलिए कवव कहता है क्रक फागन
ु की सींुदरता अि नह ीं रह है ।
विशे ष:
1) उत्साह कववता िें कवव ने बादिों का िानवीकरण क्रक या है ।
2) बादि का नवजीवन दे ने वािे के रूप िें ह्रदयस्पशी र्चत्रण हुआ है ।
3) ध्वन्यात्िक बबम्ब की छिा ववद्यिान है ।
4) अनुप्रास, उत्प्रेिा, िानवीकरण, रूपक अिींकारों का प्रयोग हुआ है ।
5) ओज गुण और वीर भाव का प्रवाह ठदिाई पड़ता है ।
6) तत्सि शब्दावि से यत
ु त सहज िड़ीबोि का प्रयोग हुआ है ।
7) दस
ू र कववता िें प्रकृनत के िनोहार रूप को िनोरि ढीं ग से दशाथया गया है ।
8) इसिें िाधय
ु थ गण
ु ववद्यिान है ।
9) प्रकृनत के अनोिे र्चत्रण के कारण यहााँ अद्भुत रस ववद्यिान है ।
बहुविकल्पी प्रश्ि
33
(ि) शीत ऋतु का
(ग) बसींत ऋतु का
(घ) ग्रीटि ऋतु का
प्रश्ि-iv ‘बाि कल्पिा के-से पािे’- इस पांल्क्त में कौि-सा अिांकार है ?
(क) अनप्र
ु ास अिींकार
(ि) उपिा अिींकार
(ग) रूपक अिींकार
(घ) अनतशयोजतत अिींकार
प्रश्ि-v ‘अि िहीां रही है ’ कविता की ‘पाि पाि शोभा श्री’ पांल्क्त में - पाि-पाि का क््ा अर्थ है ?
(क) जगह-जगह
(ि) घर-घर
(ग) द्वार-द्वार
(घ) बार-बार
उत्तर- i- (घ) बादि का ii- (क) बादि वषाथ करके धरती को तप्ृ त करते हैं iii- (ग) बसींत ऋतु का iv- (ि) उपिा अिींकार
v- (क) जगह-जगह
जीिि पररच्- नागाजन ुथ का जन्ि बबहार के दरभींगा जजिे के सतििा गााँव िें सन 1911 िें हुआ। उनका िूि नाि
वैद्यनार् लिश्र र्ा। प्रारीं लभक लशिा सींस्कृत पािशािा िें हुई क्रफर अध्ययन के लिए बनारस और कोिकाता गए। सन
1936 िें वे श्रीिींका गए और वह ीं बौद्ध धिथ िें द क्षित हुए। दो साि प्रवास के बाद स्वदे श िौि आए। घि ु तकड़ी
और अतिड़ स्वभाव के धनी नागाजुन थ ने अनेक बार सींपूणथ भारत की यात्रा की। सन 1998 िें उनका दे हाींत हो गया।
कृनत्ाँ- नागाजन
ुथ की प्रिि
ु काव्य कृनतयााँ हैं- युगधारा, सतरीं गे पींिों वाि , हजार-हजार बाहों वाि , तुिने कहा र्ा,
पुरानी जूनतयों का कोरस, आखिर ऐसा तया कह ठदया िैंने, िैं लिलिर का बढ़
ू ा घोड़ा। नागाजन
ुथ ने कववता के सार्-
सार् उपन्यास और अन्य गद्य ववधाओीं िें भी िेिन क्रकया है । उनका सींपूणथ कृनतत्व नागाजन
ुथ प्रश्नावि के सात
िींडों िें प्रकालशत है । राजनैनतक सक्रियता के कारण उन्हें अनेक बार जेि जाना पड़ा। ठहींद और िैर्र्ि िें सिान रूप
से िेिन करने वािे नागाजन
ुथ ने बाींग्िा और सींस्कृत िें भी कववताएाँ लििीीं। िातभ
ृ ाषा िैर्र्ि िें वे ‘यात्री’ नाि से
प्रनतजटित हैं।
साठहजत्यक योगदान के लिए उन्हें अनेक परु स्कारों से सम्िाननत क्रकया गया जजनिें प्रिि
ु हैं- ठहींद अकादिी, ठदल्ि
का लशिर सम्िान, उत्तर प्रदे श का भारत भारती पुरस्कार एवीं बबहार का राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार। िैर्र्ि भाषा िें
कववता के लिए उन्हें साठहत्य अकादिी पुरस्कार प्रदान क्रकया गया।
काव््गत विशेषताएँ- िोक जीवन से गहरा सरोकार रिने वािे नागाजन
ुथ भ्रटिाचार, राजनीनतक स्वार्थ और सिाज की
पतनशीि जस्र्नतयों प्रनत अपने साठहत्य िें ववशेष सजग रहे । वे व्यींग्य िें िाठहर हैं, इसलिए उन्हें आधनु नक कबीर भी
कहा जाता है । छायावादोत्तर दौर के वे ऐसे अकेिे कवव हैं, जजनकी कववता गााँव की चौपािों और साठहजत्यक दनु नया िें
सिान रूप से िोकवप्रय रह । वे वास्तववक अर्ों िें जनकवव हैं। सािनयक बोध से गहराई से जुड़े नागाजन
ुथ की
आींदोिनधिी कववताओीं को व्यापक िोकवप्रयता लिि । नागाजन
ुथ ने छीं दों िें काव्य रचना की और ित
ु त छीं द िें भी।
प्रनतपाद्- ‘यह दीं तुररत िुस्कान’ कववता िें छोिे बच्चे की िनोहार िुस्कान दे िकर कवव के िन िें जो भाव उिड़ते
हैं उन्हें कववता िें अनेक बबम्बों के िाध्यि से प्रकि क्रकया गया है । कवव का िानना है क्रक इस सद
ींु रता िें ह जीवन
का सींदेश है । इस सींद
ु रता की व्याजप्त ऐसी है क्रक किोर से किोर िन भी वपघि जाए। इस दीं तरु रत िस्
ु कान की िहत्ता
तब और बढ़ जाती है जब उसके सार् नजरों का बााँकपन भी जुड़ जाता है ।
साराांश- इस कववता िें कवव ने छोिे बच्चे की अनुपि िुस्कान का बहुत ह िनोहार वणथन क्रकया है । धि
ू से सने
बच्चे के शर र की शोभा झोपड़ी िें खििे हुए किि के सिान है । कवव बताता है क्रक उस छवव को दे िकर उसका
किोर हृदय भी वपघि गया। अगर कवव पहि बार अपररर्चत-सा होकर बच्चे को छूता है तो वह उसे अनर्ु चत िानता
है । अपररर्चत व्यजतत से बच्चा असहज हो उिता है । कवव िााँ के िाध्यि से ह बच्चे की दीं तरु रत िुस्कान दे ि पाया,
इसलिए वह बच्चे और उसकी िााँ दोनों को धन्य िानता है । प्रवास िें रहने के कारण कवव का सींपकथ बच्चे से नह ीं हो
पाया। िााँ की उीं गलियााँ ह उसे िधुपकथ कराती रह हैं इसी बीच जब कवव की आींिें बच्चे से लििती हैं तो उस छवव
से कवव प्रसन्नता से भर उिता है ।
प्रनतपाद्- फसि शब्द सन
ु ते ह िेतों िें िहिहाती फसि आाँिों के सािने आ जाती है । परीं तु फसि है तया और उसे
पैदा करने िें क्रकन-क्रकन तत्वों का योगदान होता है , इसे बताया है नागाजन
ुथ ने अपनी कववता फसि िें । कववता यह
भी रे िाींक्रकत करती है क्रक प्रकृनत और िनुटय के सहयोग से ह सज
ृ न सींभव है । बोिचाि की भाषा की गनत और िय
कववता को प्रभावशाि बनाती है । कहना न होगा क्रक यह कववता हिें उपभोतता-सींस्कृनत के दौर िें कृवष- सींस्कृनत के
ननकि िे जाती है ।
साराांश- ‘फसि’ कववता के िाध्यि से कवव ने प्रकृनत और िनटु य के सहयोग से सज
ृ नशीिता को स्पटि क्रकया है ।
ननिाथण िें क्रकसी एक तत्व की भलू िका नह ीं होती बजल्क कई तत्वों का सींयोजन होता है । फसि के तैयार होने िें
नठदयों के पानी का योगदान होता है । उसिें एक दो नह ीं बजल्क िािों-करोड़ों िोगों का श्रि िगा होता है । इसी तरह
कई प्रकार की लिट्ि की ववशेषताएाँ फ़सि िें सिायी होती हैं। सरू ज की क्रकरणों की ऊटिा और िचिती हवा की
फसि तैयार होने िें िहत्त्वपूणथ भूलिका होती है ।
विशे ष:
1) ‘यह दीं तुररत िुस्कान’ कववता िें छोिे बच्चे की िुस्कान के सौन्दयथ का िनोहार र्चत्रण हुआ है ।
2) बबम्बों के प्रभावशाि प्रयोग से यह कववता जीवींत बन पड़ी है ।
3) अपररर्चत के सार् बच्चे के व्यवहार का वणथन हृदयस्पशी है ।
4) िााँ के िित्व और स्नेहपूणथ दे ि भाि को बड़े ह सहज ढीं ग से दशाथ या गया है ।
5) अनुप्रास, उत्प्रेिा, रूपक अिींकारों का प्रयोग हुआ है।
6) िाधुयथ गुण और िदृ ि ु भाव के उल्िेि से कववता िें सरसता ववद्यिान है ।
7) तत्सि शब्दावि से यत ु त सहज िड़ीबोि का प्रयोग हुआ है ।
8) दस
ू र कववता िें प्रकृनत और िनुटय के योगदान से सज ृ न को िनोरि ढीं ग से दशाथया गया है ।
9) इस कववता िें प्राकृनतक तत्वों एवीं िानवीय श्रि को िहत्त्व ठदया गया है।
10) इसिें प्राकृनतक तत्वों को सुरक्षित रिने का सींदेश भी ननठहत है ।
बहुविकल्पी प्रश्ि
जीिि पररच्- सिकाि न ठहन्द कववयों िें िींगिेश डबराि का नाि सबसे चर्चथत है । इनका जन्ि 16 िई 1948 को
ठिहर गढ़वाि, उत्तरािण्ड के काफिपानी गााँव िें हुआ र्ा। इनकी लशिा-द िा दे हरादन
ू िें हुई। कववता के अनतररतत वे
साठहत्य, लसनेिा, सींचार िाध्यि और सींस्कृनत के ववषयों पर भी िेिन करते हैं।
कृनत्ाँ- िींगिेश डबराि के पााँच काव्य-सींग्रह प्रकालशत हुए हैं। पहाड़ पर िाििे न, घर का रास्ता, हि जो दे िते हैं,
आवाज भी एक जगह है और नये युग िें शत्रु।
इनकी रचनाओीं के लिए इन्हें कई पुरस्कारों से सम्िाननत क्रकया गया है । जजनिें िुख्य रूप से साठहत्य अकादिी
परु स्कार, कुिार ववकि स्िनृ त परु स्कार एवीं ठदल्ि ठहन्द अकादिी का साठहत्यकार सम्िान है ।
काव््गत विशेषताएँ- िींगिेश जी की कववताओीं िें सािींती बोध एव पाँूजीवाद छि-छद्ि दोनों का प्रनतकार है । वे यह
प्रनतकार क्रकसी शोर-शराबे के सार् नह ीं बजल्क प्रनतपि िें एक सुींदर सपना रचकर करते हैं। उनका सौंदयथबोध सूक्ष्ि है
और भाषा पारदशी।
प्रनतपाद्- प्रस्तत
ु कववता िें कवव ने उन िोगों की चचाथ की है , जो कभी प्रलसद्र्ध का स्वाद नह ीं चिते।
क्रफर भी ननरीं तर कायथ करते चिे जाते हैं। उन्हें कभी उनके काि के लिए तार फ़ सुनने को नह ीं लििती। वे
हिेशा अींधकार िें जीते हैं, क्रफर भी वे बबना क्रकसी स्वार्थ के ननरीं तर अपना काि करते चिे जाते हैं। जजस
तरह क्रकसी गायक के सार् गाने वािे सींगतकार होते हैं। सभी िोग गायक को जानते हैं , उसी की तार फ़
करते हैं, परन्तु कोई यह नह ीं जानता क्रक उसके सार् क्रकतने सींगतकार हैं। जो बबना क्रकसी स्वार्थ के उसकी
आवाज को दब
ु ि
थ नह ीं होने दे ते।
जब-जब गायक की आवाज िड़िड़ाने िगती है , तब-तब सींगतकार अपनी आवाज से गायक की आवाज को
बााँध िेते हैं और उसे बबिरने नह ीं दे ते। कभी-कभी तो उन्हें जान-बझ
ू ख़राब गाना पड़ता है क्रक कह ीं उनकी
आवाज गायक से अच्छी न हो जाए। वह ऐसा लसफथ इसलिए करता है तयोंक्रक िुख्य गायक की प्रलसद्र्ध िें
कोई किी ना आए। उसे कोई नह ीं पहचानता। न ह उसे िान-सम्िान लििता है। क्रफर भी वह ननरीं तर बबना
क्रकसी स्वार्थ के अपना काि करता रहता है।
साराांश- कवव बताता है क्रक जब िख्
ु य गायक अपने चट्िान जैसे भार स्वर िें गाता है , तब सींगतकार हिेशा
उसका सार् दे ता है। सींगतकार की आवाज बहुत ह किजोर, कापींती हुई प्रतीत होती है। िेक्रकन क्रफर भी वह
बहुत ह िधरु र्ी, जो िुख्य गायक की आवाज के सार् लििकर उसकी प्रभावशीिता को और बढ़ा दे ती है ।
कवव को ऐसा िगता है क्रक यह सींगतकार गायक का कोई बहुत ह कर ब का ररश्तेदार या जान-पहचान
वािा है , या क्रफर ये उसका कोई लशटय है , जो क्रक उससे गायकी सीि रहा है। इस प्रकार, वह बबना क्रकसी की
नजर िें आए ननरीं तर अपना कायथ करता रहता है।
जब कोई िहान सींगीतकार अपने गाने की िय िें डूब जाता है , तो उसे गाने के सुर-ताि की भनक नह ीं
पड़ती और वह कभी-कभी अपने गाने िें कह ीं भिक-सा जाता है । आगे सुर कैसे पकड़ना है , यह उसे सिझ
नह ीं आता और वह उिझ-सा जाता है। तब वह िुख्य गायक को कह ीं भिकने नह ीं दे ता और सींगीत के सुर-
ताि को वापस पकड़ने िें उसकी सहायता करता है। इस दौरान ऐसा िगता है , िानो िुख्य गायक अपना
कुछ सािान पीछे छोड़ते हुए चिा जाता है और सींगतकार उसे सिेिते हुए उसके सार् आगे बढ़ता है ।
विशेष-
1) कवव ने सीं गतकार की वास्तववक जस्र्नत का सहज र्चत्रण क्रक या है ।
2) िु ख्य गायक की सफिता िें सीं गतकार की भू लिका का उल्िेि क्रक या गया है ।
3) सीं गतकार के लिए सािाजजक ररश्तों के बींध न को बािू बी ढीं ग से प्रस्तुत क्रकया गया है ।
4) अनुप्रास, उपिा, उदाहरण,एवीं पुनरुजतत अिींकारों का स्वाभाववक प्रयोग हुआ है ।
5) ियपूण,थ अतुकाींत, छीं दिुतत काव्य-शैि का िनोरि प्रयोग हुआ है ।
6) तत्सि-तद्भव शब्दावि से यत ु त सहज िड़ीबोि का प्रयोग हुआ है ।
7) बबम्ब प्रधान काव्य-पींजततयों िें प्रसाद गण
ु ववद्यिान है ।
8) शाीं त रस रस से युतत पींजततयों िें पूणथ अर्थवत्ता दशथनीय है ।
बहुविकल्पी प्रश्ि
उत्तर- शहनाई को सवु षर वाद्यों िें शाह की उपार्ध दे ने के कारण ननम्नलिखित रहे होंगे -
1. फाँू ककर बजाए जाने वािे वाद्यों िें शहनाई सबसे अर्धक सुर ि है ।
2. िाींगलिक ववर्ध-ववधानों िें इसका उपयोग होता है।
प्रश्ि 9. बबल्स्मल्िा िाँ को शहिाई की मांगि ध्िनि का िा्क क््ों कहा ग्ा है ?
उत्तर- बबजस्िल्िा िााँ को शहनाई की िींगि ध्वनन का नायक ननम्नलिखित कारणों से कहा गया है -
1. अपना सानी न रिने के कारण।
2. िींगि का पररवेश प्रनतजटित करवाने वािे होने के कारण।
प्रश्ि 10. काशी में हो रहे कौि-कौि से पररितथि बबल्स्मल्िा िाँ को व््धर्त करते र्े?
उत्तर- काशी िें हो रहे ननम्नलिखित पररवतथन बबजस्िल्िा िााँ को व्यर्र्त करते र्े -
1. सींगीत साठहत्य और अदब की बहुत-सी परम्पराओीं का िुप्त होना।
2. िान-पान सींबध
ीं ी पुरानी चीजें न लििना।
3. गायकों के िन िें सींगनतयों के प्रनत आदर न रहना।
4. गायक द्वारा ररयाज करने िें किी।
5. साींप्रदानयक सद्भाव का कि होना।
प्रश्ि 1. सांसार में ककसी भी चीज को पकड़कर िहीां बैिा जा सकता क््ों?
उत्तर- प्रनतिण बदिते सींसार िें कोई भी वस्तु स्र्ायी अर्वा अिुण्ण नह ीं है । सिय पररवतथन के सार्-सार् उनिें
बदिाव आता रहता है और आना भी चाठहए। इसलिए सींसार िें क्रकसी भी चीज को पकड़कर नह ीं बैिा जा सकता।
प्रश्ि 2. आश् स्पष्ि कील्जए- ल्जि साधिों के बि पर िह ठिि-रात आत्म-वििाश में जि
ु ा हुआ है , उन्हें हम उसकी
सभ््ता समझें ्ा असभ््ता।
उत्तर- आशय िनुटय ने अपनी योग्यता, प्रववृ त्त अर्वा प्रेरणा के द्वारा अपने आत्ि-ववनाश के अनेक साधन जुिा लिए
हैं और वह ऐसे अन्य साधनों को जुिाने के लिए ठदन-रात िगा हुआ है । िेिक-प्रश्न करता है क्रक उन्हें हि उसकी
सभ्यता सिझें या असभ्यता? वास्तव िें हिें यह उनकी असभ्यता ह सिझनी चाठहए तयोंक्रक उनिें िानव कल्याण
की अपेिा िानव के अठहत की भावना है ।
प्रश्ि 3. िेिक के अिुसार सभ््ता और सांस्कृनत में क््ा अन्तर है ?
उत्तर- िेिक के अनुसार व्यजतत की वह योग्यता, प्रववृ त्त अर्वा प्रेरणा सींस्कृनत है जजसके बि पर वह आववटकार करता
है जबक्रक उसके द्वारा अपने लिए तर्ा दस
ू रों के लिए क्रकया गया आववटकार सभ्यता है ।
प्रश्ि 4. ककस सांस्कृनत को कूड़े-करकि का ढे र कहा ग्ा है ? और क््ों?
उत्तर- उस सींस्कृनत को कूडे-करकि का ढे र कहा गया है जजसिें जानतवाद ऊाँच-नीच, छुआछूत, अिीर-गर ब, अनेक
रूठढ़यााँ, अींधववश्वास, धलिथक किथकाींड, परम्पराएाँ आदशथ और जीवन िूल्य, कुर नतयााँ सजम्िलित हैं। तयोंक्रक पररवनतथत
सिय िें इनका कोई अर्थ नह ीं रह गया है ।
प्रश्ि 5. लसदिार्थ िे अपिा घर क््ों त््ाग ठि्ा?
उत्तर- आज से ढाई हजार वषथ पूवथ लसद्दार्थ ने अपने घर का त्याग इसीलिए क्रकया ताक्रक तटृ णा के वशीभूत िड़ती-
किती िानवता सि
ु से रह सके। इसके लिए उन्होंने किोर तपस्या की और सत्य की िोज भी की।
प्रश्ि 6. सांस्कृनत निबांध ् का प्रनतपाद् / उदिे श्् स्पष्ि कील्जए।
उत्तर- सींस्कृनत ननबींध ् का उद्दे श्य सभ्यता और सींस्कृनत शब्दों की व्याख्या करना है । सभ्यता और सींस्कृनत शब्दों का
अर्थ स्पटि करना तर्ा िानव सींस्कृनत को अववभाज्य बताकर उसे िनटु य के लिए कल्याणकार बताना है ।
प्रश्ि 7. िास्तविक अर्ों में ‘सांस्कृत व््ल्क्त’ ककसे कहते है ?
उत्तर- अपनी बुद्र्ध अर्वा वववेक के आधर पर क्रकसी भी नए तथ्य का दशथन करने वािा व्यजतत वास्तववक अर्ो िें
‘सींस्कृत व्यजतत’ है । उदाहरणतया न्यि
ू न सींस्कृत िनटु य है , तयोंक्रक उसने अपनी बद्
ु र्ध के बि पर गरु
ु त्वाकषथण
लसद्धाींत िोजा।
प्रश्ि 8. ककि महत्िपूणथ आिश््कताओां की पूनतथ के लिए सुई-धागों का आविष्कार हुआ होगा?
उत्तर- ननम्नलिखित िहत्वपणू थ आवश्यकताओीं की पूनतथ के लिए सुई-धागों का आववटकार हुआ होगा- 1. तन ढकने के
लिए 2. शीत तर्ा उटणता से बचने के लिए 3. शर र सजाने की प्रववृ त्त के कारण। आज कि यह तकनीक बहुत
उपयोगी लसद्ध हो रह है । जूते लसिने से िेकर शल्य र्चक्रकत्सा तक िें इसका उपयोग हो रहा है ।
प्रश्ि 9. िेिक िे सिथस्ि त््ाग करिे िािी सांस्कृनत को स्पष्ि करिे के लिए ककि-ककि महामाििों के उिाहरण ठिए
हैं?
उत्तर- ननम्नलिखित िहािानवों के उदाहरण ठदए हैं -
1- रूस के भाग्य ववधता िेननन द्वारा डैस्क िें रिे हुए डबिरोि के सि
ू े िुकड़ों को स्वयीं न िाकर दस
ू रों को
खििा दे ने का उदाहरण।
2- सींसार भर के िजदरू ों को सुिी दे िने की इच्छा िें स्वयीं के जीवन को कटि पूणथ बनाने वािे कािथ िातसथ का
उदाहरण।
3- दि
ु ी िानवता को सुिी करने की इच्छा से लसद्दार्थ द्वारा गह
ृ त्याग दे ने का उदाहरण।
प्रश्ि 10. िेिक की दृल्ष्ि में सभ््ता और सांस्कृनत की सही समझ अब तक क््ों िहीां बि पाई है ?
उत्तर- सभ्यता और सींस्कृनत की सह सिझ इसलिए नह ीं बन पाई तयोंक्रक हि इन दोनों बातों को एक ह सिझते हैं।
यह जानना जरूर है क्रक दोनों एक नह ीं हैं, क्रफर भी इनिें इतनी नजद की है क्रक इनिें स्पटि अींतर सािान्य िोगों को
नह ीं सिझ आते हैं।
प्रश्ि 11. िेिक के अिुसार सभ््ता क््ा है?
उत्तर- िेिक के अनुसार सभ्यता सींस्कृनत का पररणाि है । िनुटय के िाने-पीने के तर के पहनने ओढ़ने के तर के
हिारे यातायात के साधनों का उपयोग जीवन जीने का तर के ह सभ्यता है ।
(काव््-िांड)
पि – सूरिास
प्रश्ि 1-परशुराम के िोध करिे पर िक्ष्मण िे धिुष िूि जािे के लिए कौि-कौि से तकथ ठिए?
उत्तर- परशुराि के िोध करने पर िक्ष्िण ने धनुष िूि जाने के लिए ननम्नलिखित तकथ ठदए-
1. सभी धनष
ु तो एक सिान होते हैं, क्रफर इस धनष
ु पर इतना िोह िीक नह ीं है ।
2. यह धनुष बहुत पुराना है , इस पर िोध करना व्यर्थ है ।
3. राि के छूने भर से ह वह धनुष िूि गया, इसिें राि का तया दोष नह ीं है ।
प्रश्ि 2- इस पाि के आधार पर परशुराम के स्िभाि की विशेषताएां लिखिए।
उत्तर- पाि को पढ़कर हिें परशुराि के स्वभाव की ननम्नलिखित ववशेषताएीं पता िगती हैं-
1. वे िहािोधी र्े ।
2. वे बड़बोिे तर्ा अपनी वीरता की डीींग हाींकने वािे र्े ।
3. वे जल्द ह उत्तेजजत हो जाते र्े ।
4. उन्हें अपने पव
ू थ के कृत्यों का बड़ा घिींड र्ा ।
प्रश्ि 3-‘‘सेिक सो जो करे सेिकाई’’ का आश् स्पष्ि कील्जए।
उत्तर- इस पींजतत का तात्पयथ है क्रक सेवक वह है जो सेवा करता है । प्रस्तुत पद िें इस पींजतत को व्यींग्य रूप िें प्रस्तुत
क्रकया गया है । परशुराि कहते हैं क्रक लशव धनुष तोड़कर तुिने काि तो शत्रुओीं जैसा क्रकया है उन पर अपने आपको
तुि िेरा दास कहते हो यह दोहरा व्यवहार नह ीं चिेगा।
प्रश्ि 4-िक्ष्मण िे िीर ्ोदधा की कौि-कौि सी विशेषताओां का उल्िेि कक्ा है ?
उत्तर- िक्ष्िण द्वारा वीर योद्धा की ननम्नलिखित ववशेषताओीं पर प्रकाश डािा क्रक शूरवीर युद्धभलू ि िें अपनी वीरता
का प्रदशथन करता है । वह आत्ि-प्रशींसा नह ीं करता, वह किथ को िहत्त्व दे ता है और अपनी वीरता का पररचय दे ता है ।
प्रश्ि 5-पठित कविता के आधार पर तुिसीिास की भाषा-शैिी पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- तुिसीदास श्रीराि के परि भतत र्े। उनकी भाषा अवधी है । इसिें दोहा-चौपाई शैि को अपनाया गया है ।
उन्होंने आि जन की भाषा िें काव्य को कोिि और सींगीतात्िक बनाने का प्रयास क्रकया है । कोिि ध्वननयों के
प्रयोग से उनकी कववता िें गेयता का गुण ववद्यिान है ।
प्रश्ि 6-पिों के आधार पर िक्ष्मण ि राम के स्िभाि की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- काव्याींश के आधार पर राि ववनयशीि, कोिि, गरू
ु जनों का आदर करने वािे, वीर, साहसी हैं। िक्ष्िण- उग्र,
उद्दण्ड, वीर, साहसी, भाषा िें व्यींग्य का भाव, स्वभाव से ननडर हैं।
प्रश्ि 7-ककस कारण िक्ष्मण िोध को रोककर परशुराम के िचिों को सहि कर रहे र्े?
उत्तर- िक्ष्िण िोध को रोककर परशुराि के वचनों को इसलिए सह रहे र्े तयोंक्रक उनके कुि की परम्परा है । उनके
यहाीं गाय, ब्राह्िण, हररभतत और दे वताओीं पर वीरता नह ीं ठदिाई जाती ।
प्रश्ि 8- िक्ष्मण की बढ़ती हुई उच्छां िि
ृ ता पर अब तक मौि रहे राम िे अांत में िक्ष्मण को क््ों रोक लि्ा?
उत्तर- यद्यवप िक्ष्िण की उच्छीं िि
ृ ता रघवु ींश के अनक
ु ू ि नह ीं र्ी क्रफर भी राि सिझ रहे र्े क्रक िनु नवर को हिार
वास्तववकता का ज्ञान हो जाए। परन्तु उपजस्र्त िोगों की पुकार से जस्र्नत बबगड़ती दे ि उन्होंने िक्ष्िण को आाँिों के
सींकेत से रोका।
प्रश्ि 1- सांगतकार के माध््म से कवि ककस तरह के व््ल्क्त्ों की ओर सांकेत करिा चाह रहा है ?
उत्तर- सींगतकार के िाध्यि से कवव सहायक किाकारों के िहत्त्व की ओर सींकेत कर रहा है । ये सहायक किाकार िद
ु
को पीछे रिकर िुख्य किाकार को आगे बढ़ने िें योगदान दे ते है । यह बात जीवन के हर िेत्रा िें िागू होती है ।
प्रश्ि 2- सांगतकार की आिाज में एक ठहचक क््ों सि
ु ाई िे ती है ?
उत्तर- सींगतकार की आवाज िें एक ठहचक साफ सन
ु ाई दे ती है तयोंक्रक वह जान बूझकर अपनी आवाज को िुख्य
गायक से ऊपर नह ीं उिने दे ता। तयोंक्रक उसका कत्तथव्य िुख्य किाकार को सहारा प्रदान करना है , अपनी किा का
प्रदशथन करना नह ीं।
प्रश्ि 3- सफिता के चरम-लशिर पर पहुँचिे के िौराि ्ठि व््ल्क्त िड़िड़ाता है , तब उसे सह्ोगी ककस तरह
सांभािते हैं?
उत्तर- सफिता के चरि-लशिर पर पहुाँचने के दौरान िड़िड़ाते व्यजतत को उसके सहयोगी ववषि पररजस्र्नतयों िें
उसके सार् रहने का ववश्वास दे कर उसका आत्िबि बनाए रिने का भरसक प्रयास करते हैं। स्वयीं आगे आकर
सरु िा-कवच बनकर उसके पौरुष की प्रशींसा करते हैं। उसके िड़िड़ाने का कारण ढूाँढ़ते हैं और उन कारणों का सिाधन
करने के लिए सहयोगी अपनी पूर शजतत िगा दे ते हैं। आत्िीयता से पूणरु
थ पेण सहयोग करते हैं।
प्रश्ि 4- ‘सांगतकार’ कविता के आधर पर स्पष्ि कील्जए कक सांगतकार जैसे व््ल्क्त सिथगुणसम्पन्ि होकर भी समाज
में अधिम ि आकर प्रा्ः पीछे ही क््ों रहते हैं?
उत्तर- ‘सींगतकार’ प्रववृ त्त के िोग छि-प्रपींच से दरू होते हैं। वे िुख्य किाकार के सहयोगी होते हैं।
अपने प्रनत ववश्वास को ित्ि नह ीं करना चाहते हैं। दस
ू रे की ववशेषताओीं को तराशने और सुधारने िें िगे रहते हैं और
इसे ह अपना कतथव्य सिझते हैं।
प्रश्ि 5- ‘सांगतकार’ कविता में कवि क््ा सन्िे श िे िा चाहता है ?
उत्तर- कवव की सींगतकार के प्रनत सहानुभूनत है । उसकी दृजटि िें सींगतकार िुख्य गायक के सिान ह सराहनीय है ।
िुख्य-गायक की सफिता िें सींगतकार का श्रेय कि करके नह ीं दे िना चाठहए। यद्यवप िुख्य गायक के बबना
सींगतकार का अजस्तत्व नह ीं है । क्रकन्तु िख्
ु य गायक की सफिता अर्धकाींशत: सींगतकार के सफि सहयोग पर ननभथर
है । िुख्य गायक के ननराश होने पर, ववश्वास िड़िड़ाने पर, स्वर बबगड़ने पर, उसके तारसप्तक िें िो जाने पर
सींगतकार ह उसे सींभािता है । सींगतकार के बबना िुख्य-गायक की सफिता सींठदग्ध ् रहती है ।
4
माता का आँचि - लशिपज
ू ि सहा्
प्रश्ि 1- माँ के प्रनत अधधक िगाि ि होते हुए भी विपवत्त के सम् भोिािार् माँ के आँचि में ही प्रेम और शाांनत पाता
है ? इसका आप क््ा कारण मािते हैं?
उत्तर- यह बात सच है क्रक बच्चे (िेिक) को अपने वपता से अर्धक िगाव र्ा। उसके वपता उसका िािन-पािन ह
नह ीं करते र्े बजल्क उसके सींग दोस्तों जैसा व्यवहार भी करते र्े। परीं तु ववपदा के सिय उसे िाड़ की जरूरत र्ी।
उसे अत्यर्धक ििता और िााँ की गोद की जरूरत र्ी। उसे अपनी िााँ से जजतनी कोििता लिि सकती है , वपता से
नह ीं। यह कारण है क्रक सींकि िें बच्चे को िााँ या नानी की याद आती है , बाप या नाना की नह ीं। िााँ का िित्व घाव
भर दे ने वािे िरहि का काि करता है ।
प्रश्ि 2- भोिािार् और अपिे साधर््ों के िेि और िेििे की सामिी आपके िेि और िेििे की सामिी से ककस
प्रकार लभन्ि है?
उत्तर- आज जिाना बदि चुका है । आज िाता-वपता अपने बच्चों का बहुत ध्यान रिते हैं वे उसे गि िोहल्िे िें
बेक्रफि िेिने घूिने की अनुिनत नह ीं दे ते। जब से ननिार जैसे काींड होने िगे हैं, तब से बच्चे भी डरे -डरे रहने िगे
हैं। न तो हुल्िड़बाजी, शरारतें और तक
ु बींठदयााँ रह हैं न ह नींग-धड़ींग घि
ू ते रहने की आजाद । अब तो बच्चे प्िाजस्िक
और इिेतरोननतस के िहीं गे खििौनों से िेिते हैं। बरसात िें बच्चे बाहर रह जाएीं तो िााँ-बाप की जान ननकि जाती
है । आज न कुएाँ रहे , न रहि, न िेती का शौक। इसलिए आज का युग पहिे की तुिना िें आधुननक, बनावि , रसह न
हो गया है ।
प्रश्ि 3- बच्चे माता-वपता के प्रनत अपिे प्रेम को कैसे अलभव््क्त करते हैं? अपिे जीिि की कोई बात बताइए ल्जसमें
आपिे अपिे माता-वपता के प्रनत प्रेम अलभव््क्त कक्ा हो?
उत्तर- बच्चे िाता-वपता के प्रनत अपने प्रेि को उनके सार् रहकर, उनकी लसिाई हुई बातों िें रुर्च िेकर, उनके सार्
िेि करके, उन्हें चूिकर और उनकी गोद िें या कींधे पर बैिकर प्रकि करते हैं।
िेरे िाता-वपता की बीसवीीं वषथगााँि र्ी। िैंने बीस वषथ परु ाने यग
ु ि र्चत्र को सन्
ु दर से फ्रेि िें सजाया और उन्हें भेंि
क्रकया उसी ठदन िैं उनके लिए अपने हार्ों से सजब्जयों का सूप बनाकर िाई और उन्हें आदर पूवक
थ ठदया। िाता-वपता
िेरा वह प्रेि दे िकर बहुत प्रसन्न हुए।
प्रश्ि 4- आपके विचार से भोिािार् अपिे साधर््ों को िे िकर लससकिा क््ों भूि जाता है ?
उत्तर- घर िें िाि िना करने पर भी भोिानार् की िााँ लसर िें कड़वा तेि िगाकर ह छोड़ती है । िार्े पर काजि की
बबींद िगाकर फूिदार िट्िू बााँधकर कुताथ-िोपी पहना दे ती है । इस प्रकार िााँ के हि से तींग आकर भोिानार् लससकने
िगता है । घर से बाहर आने पर जब बािकों का झड ुीं लिि जाता है तब वह सार्र्यों की हुल्िड़बाजी, शरारतें और
िस्ती दे िकर सब कुछ भि
ू जाता है । हिारे ववचार से भोिानार् िेिने का अवसर पाकर लससकना भूि जाता है ।
प्रश्ि 5- ‘माता का आँचि’ पाि में बच्चों की जो िनु ि्ा रची गई है िह आपके बचपि की िनु ि्ा से ककस तरह लभन्ि
है ?
उत्तर- इस पाि िें बच्चों की जो दनु नया रची गई, वह 1930 के आसपास की है , तब बच्चे घर के सािान से और
साधारण सी चीजों से िेिने का काि चिा िेते र्े। वे प्रकृनत की गोद िें रह कर िुश र्े। आज हिार दनु नया पूर
तरह से लभन्न है । हिें ढे र सार चीजें चाठहए। िेि सािग्री िें भी बदिाव आ गया है । िाने-पीने की चीजों िें भी
काफी बदिाव आया है । हिार दनु नया ि .वी., कोल्डड़ड्रींग, पीजा, चॉकिेि के इदथ-र्गदथ घि
ू ती है ।
प्रश्ि-6 ्हाँ माता-वपता का बच्चे के प्रनत जो िात्सल्् व््क्त हुआ है उसे अपिे शब्िों में लिखिए।
उत्तर- वपताजी का अपने सार् लशशु को भी नहिा-धुिाकर पूजा िें बैिा िेना, िार्े पर भभूत िगाना क्रफर कागज िें
राि-राि लिि कर आिे की गोलियााँ बनाना, उसके बाद िेिक को कन्धे पर बैिा कर गींगाजी तक िे जाना और
वापस आते सिय पेड़ पर बैिा कर झूिा झुिाना, यह सब क्रकतना सद
ींु र दृश्य उत्पन्न करता है । िेिक का अपने वपता
जी के सार् कुश्ती िड़ना, वपताजी का बच्चे के गािों िें चम्
ु िा िेना, बच्चे के द्वारा िछ
ूाँ े पकड़ने पर वपताजी का
बनावि रोना रोने का नािक करना और लशशु का उस पर हाँस पड़ना, यह सब अत्यींत जीवींत िगता है। िााँ के द्वारा
गोरस-भात, तोता-िैना आठद के नाि पर खििाना, उबिना, लशशु का शींग
ृ ार करना और लशशु का लससक-लससक कर
रोना, बच्चों की िोि को िेिते दे िकर लससकना बन्द कर तरह-तरह के िेि िेिना और िूसन नतवार को र्चढ़ाना
आठद। ये सभी अद्भुत दृश्य पाि िें उभारे गए हैं। ये सभी दृश्य अपने शैशव अवस्र्ा की याद ठदिाते हैं।