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अनुच्छेद लेखन
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आत्मनिर्भर शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है , ‘आत्म’ और ‘निर्भर’, यह संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है ।
‘आत्म’ शब्द का आशय स्वंय से हैं और ‘निर्भर’ शब्द से आशय उन सभी कामों से हैं जो आप खद ु करते हैं या
दसू रों से करवाते हैं । आत्मनिर्भरता आपको दस ू रों की परवाह किए बिना, वो करने की आज़ादी दे ती है जो आप
चाहते हैं। साथ ही, अध्ययनों से ज्ञात होता है कि अधिक आत्मनिर्भर लोग ख़द ु को ज़्यादा ख़शु महसस ू करते हैं,
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब हम अपनी ज़िन्दगी को अपने हाथों में लेने के काबिल हो जाते हैं, तब ज़्यादा
राहत और संतष्टिु का अनभु व करते हैं। दनि
ु या में सभी एक दस ू रे पर निर्भर हैं फिर चाहें वो व्यक्ति, समाज,
शहर हो या राज्य, दे श, महाद्वीप आदि ये सब एक दस ू रे पर ही निर्भर हैं, और होना भी चाहिए लेकिन किस हद
तक? क्योंकि निर्भरता जब अत्यधिक हो जाती हैं तब ये कमजोर बना दे ती हैं। और इसलिए इस कमजोरी को दरू
करने के लिए दस ू रों पर निर्भरता को कम करते हुए आत्मनिर्भर बनना चाहिए।आत्मनिर्भरता से नेतत्ृ व के
गण
ु में वद्
ृ धि होती है ।आत्मनिर्भरता समाज में व्यक्ति को मान और सम्मान दिलाती हैं, यानि समाज
उसकी इज्ज़त करता हैं, जो समाज पर कम अवलंबित होते हैं।आत्मनिर्भरता का गुण व्यक्ति को श्रेष्ठ
पद का अधिकारी तो बनाता हैं, परन्तु इसके साथ ही द्वेष भावना मन में आ जाती हैं। इसकी वजह से
फिर व्यक्ति, अपने आगे और बड़ा किसी को नहीं समझता। ऐसे में वो किसी को नक ु सान पहुंचाने की
भी सोच सकता है ।
मेरा दे श महान
मेरा भारत महान हैं, और हमें अपने भारतीय होने पर गर्व है । जहां अलग- अलग धर्म, जाति, भाषा, रं ग, रुप के
लोग बहुत प्रेम से साथ रहते है । जहां मंदिर में पज ू ा पाठ होती घंटी और शंख की मीठी धवनी आपको पवित्रता
एहसास दिलाएगी, मस्जिदों में आजन, चर्च में गॉड की प्रेयर ये सब मेरे भारत परू े विश्व के दे शों से अलग बनाता
हैं। भारत ने हमेशा हर संस्कृति का सम्मान किया है । जहाँ दीवाली, होली, क्रिसमस, ईद हर त्योहार को प्रेम से
मनाया जाता हैं। भारत में मग़ ु ल शासकों और अग्रेजों का साशन हमारी संसकृति का हिस्सा रहा हैं ।भारत में हमेशा
अतिथि दे वो भव: की संस्कृति रही है । मग ु लों और अंग्रेजो ने हमारे ऊपर कई साल शासन किया लेकिन हम
भारतीयों ने उनका भी दिल खोल कर स्वागत किया ।उन्होंने कई बार भारत में फूट डालने की नीति अपनाई लेकिन
भारत ने विविधता में एकता के रहते उन्हें यहाँ से भाग जाने के लिए मजबरू कर दिया। इतना कुछ होने के बावजद ू
भी हमारी संस्कृति, संस्कार और अपनेपन में कोई बदलाव नहीं आया।भारत की संस्कृति सच में अद्भत ु है लोग
दरू -दरू से लोग भारत की संस्कृति और सभ्यता का अध्ययन भी करते हैं। अपने से बड़ो का आदर सत्कार करना,
छोटो के साथ विनम्रता से व्यहवार करना हमें बचपन से ही परिवार का महत्त्व बताया जाता है और कैसे परिवार को
प्रेम के धागे में पीरो कर रखना चाहिए साथ ही भाईचारे से सबके साथ कैसे रहना चाहिए। भारत अपनी विभिन्न
नत्ृ य कलाओं ये लिए भी प्रसिद्ध है । हमारा भारत परू े दे श में अद्वितीय है ।
विद्यार्थी और अनश ु ासन
अथवा
अनश ु ासन का महत्त्व
● अनश ु ासन का अर्थ
● अनश ु ासन की आवश्यकता
● प्रकृति में अनश ु ासन
● अनश ु ासन सफलता की कंु जी।
‘शासन’ शब्द में ‘अन’ु उपसर्ग जोड़ने से अनश ु ासन शब्द बना है , जिसका अर्थ है शासन के पीछे चलना अर्थात ्
समाज द्वारा बनाए नियमों का पालन करते हुए मर्यादित जीवन जीना। जीवन के हर क्षेत्र और हर काल में
अनश ु ासन की महत्ता होती है पर विद्यार्थी काल जीवन की नींव के समान होता है । इस काल में अनश ु ासन की
आवश्यकता और महत्ता और भी बढ़ जाती है ।इस काल में विद्यार्थी जो कुछ सीखता है वही उसके जीवन में काम
आता है । इस काल में एक बार अनश ु ासनबद्ध जीवन की आदत पड़ जाने पर आजीवन यही आदत बनी रहती है ।
मानव मन अत्यंत चंचल होता है । वह स्वच्छं द आचरण करना चाहता है । इसके लिए अनश ु ासन बहुत आवश्यक है ।
प्रकृति अपने कार्य व्यवहार से मनष्ु य तथा अन्य प्राणियों को अनश ु ासन का पाठ पढ़ाती है ।
सर्यू समय पर निकलता है । चाँद और तारे रात होने पर चमकना नहीं भल ू ते हैं। ऋतु आने पर फूल खिलना नहीं
भल ू ते हैं। वर्षा ऋतु में बादल बरसना और समयानस ु ार वक्ष
ृ फल नहीं भलू ते हैं। ऋतए
ु ँ समय पर आती जाती हैं और
मर्गा ु समय पर बाँग दे ता है । ये हमें अनश ु ासन का पाठ पढ़ाते हैं।जीवन में जितने भी लोगों ने सफलता प्राप्त की है
उसके मल ू में अनश ु ासन रहा है । गांधी जी, नेहरू जी, टै गोर, तिलक, विवेकानंद आदि की सफलता का मल ू मंत्र
अनश ु ासन रहा है । विद्यार्थियों को कदम-कदम पर अनश ु ासन का पालन करना चाहिए और सफलता के सोपान
चढ़ना चाहिए।
विज्ञापन की दनि ु या
हम जिस यग ु में जी रहे है , उसमे विज्ञापन की बेहद अहमियत है । आम आदमी अगर किसी भी वस्तु को खरीदने से
पर्व
ू , उनके विज्ञापन दे खते है । विज्ञापन अक्सर हमे टीवी, अखबार, रे डियो इत्यादि पर दे खने को मिल जाता है ।
विज्ञापन का तात्पर्य है , किसी भी सामग्री उत्पाद, और सेवाओं को ग्राहकों तक पहुंचाना। विज्ञापन किसी भी
साधारण वस्तु का इतना अच्छा प्रसार करती है , कि दर्शक उससे सम्मोहित हो जाते है । अगले ही दिन उस वस्तु को
मार्कि ट से खरीद लेते है । किसी भी व्यापार को उं चाईयों तक पहुंचाने में विज्ञापन का बहुत बड़ा हाथ होता है । आये
दिन टीवी, रे डियो और सड़को के दीवारों में कपड़ो से लेकर घर बनाने के सीमें ट तक हर प्रकार के विज्ञापन हमे
दे खने को मिलते है ।हम जहां भी जाए हमे विज्ञापन दे खने को मिलते है । जैसे ही घर से बाहर कदम बढ़ाया, दीवारों,
बसों के पीछे और मोबाइल में भी, हर तरफ विज्ञापनों ने हमे घेर रखा है । सोशल मीडिया जैसे फेसबक ु , इंस्टाग्राम,
इंटरनेट के विभिन्न ब्लोग्स इत्यादि पर विज्ञापन के वीडियो छाए रहते है । आकर्षक तरीके से, लोगो की मांग को
ध्यान में रखकर विज्ञापनों को बनाया जाता है । विभिन्न प्रकार के विज्ञापन में आकर्षक और तक ु बंदी वाले पंक्तियों
का इस्तेमाल किया जाता है ताकि ग्राहक जल्द उनसे प्रभावित हो जाए।विज्ञापन को बेहतर और लोकप्रिय
बनाने के लिए प्रसिद्ध फिल्म स्टार और जाने माने चेहरों का इस्तेमाल किया जाता है । इसका कारण है
कि आम जनता उन सितारों को अपना रोल मॉडल मानती है और उन पर विश्वास करती है । इसी का
फायदा कंपनियां उठाती है और अपने प्रोडक्ट्स के विज्ञापनों के वीडियोस और तस्वीरों में उन्हें शामिल
करती है । जिसे दे खकर अधिकतर लोग प्रभावित हो जाते है । हमे विदे शो के विभिन्न वस्तओ ु ं के लोकप्रिय
ब्रांडो के बारें में भी मालम
ू है । यह सब विज्ञापन की वजह से संभव हो पाया है ।
प्रदष
ू ण की समस्या
अथवा
जीवन खतरे में डालता प्रदष ू ण
● प्रदषू ण का अर्थ
● प्रदष ू ण के कारण
● प्रदष ू ण के प्रभाव
● प्रदष ू ण से बचाव के उपाय।
स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक है कि हम जिन वस्तओ ु ं का सेवन करें , जिस वातावरण में रहें वह साफ़-सथ ु रा हो।
जब हमारे पर्यावरण और वायम ु ड
ं ल में ऐसे तत्व मिल जाते हैं जो उसे दषि
ू त करते हैं तथा इनका स्तर इतना बढ़
जाता है कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाते हैं तब यह स्थिति प्रदष ू ण कहलाती है । आज सभ्यता और
विकास की इस दौड़ में मनष्ु य के कार्य व्यवहार ने प्रदष ू ण को खब ू बढ़ाया है ।बढ़ती आवश्यकता के कारण एक ओर
वनों को काटकर नई बस्तियाँ बसाई गईं तो दस ू री ओर अंधाधध ंु कल-कारखानों की स्थापना की गई। इन बस्तियों
तक पहुँचने के लिए सड़कें बनाई गईं। इसके लिए भी वनों की कटाई की गई। सभ्यता की ऊँचाई छूने के लिए
मनष्ु य ने नित नए आविष्कार किए।मोटर-गाड़ियाँ वातानक ु ू लित उपकरणों से सजी गाड़ियाँ और मकानों के कार्य
आदि के कारण पर्यावरण इतना प्रदषि ू त हआ कि आदमी को साँस लेने के लिए शदध हवा मिलना कठिन हो गया
है । प्रदष
ू ण के दष्ु प्रभाव के कारण प्राकृतिक असंतल ु न उत्पन्न हो गया है । वायम ु ड
ं ल में कार्बनडाई ऑक्साइड,
सल्फर डाई आक्साइड की मात्रा बढ़ गई है । इससे अम्लीय वर्षा का खतरा पैदा हो गया है ।मोटर-गाड़ियों और
फैक्ट्रियों के शोर के कारण स्वास्थ्य बरु ी तरह प्रभावित हुआ है । अति वष्टि ृ , अनावष्टि
ृ और असमय वर्षा प्रदष ू ण
का ही दष्ु परिणाम है । इस प्रदष ू ण से बचने का सर्वोत्तम उपाय है अधिकाधिक वन लगाना। पेड़ लगाकर प्रकृति में
संतल ु न लाया जा सकता है । इसक े अलावा हमें सादा जीवन उच्च विचार वाली जीवन शैली अपनाते हुए प्रकृति के
करीब लौटना चाहिए।
वन रहें गे-हम रहें गे
अथवा
वनों की महत्ता
● वन प्रकृति के अनप ु म उपहार
● वनों के लाभ
● मनष्ु य का स्वार्थपर्ण ू व्यवहार
● वन बचाएँ जीवन बचाएँ।
प्रकृति ने मनष्ु य को जो नाना प्रकार के उपहार दिए हैं, वन उनमें सबसे अधिक उपयोगी और महत्त्वपर्ण ू हैं। मनष्ु य
और प्रकृति का साथ अनादिकाल से रहा है । पथ् ृ वी पर जीवन योग्य जो परिस्थितियाँ हैं उन्हें बनाए रखने में वनों का
विशेष योगदान है । मनष्ु य अन्य जीव-जंतओ ु के साथ इन्हीं वनों में पैदा हुआ, पला, बढ़ा और सभ्य होना
ं
सीखा।वनों ने मनष्ु य की हर जरूरत को परू ा किया है । वन हमें लकड़ी, छाया, फल-फूल, कोयला, गोंद, कागज,
नाना प्रकार की औषधियाँ दे ते हैं। वे पशओ ु ं तथा पश-ु पक्षियों के लिए आश्रय-स्थल उपलब्ध करते हैं। इससे जैव
विविधता और प्राकृतिक संतल ु न बना रहता है । वन वर्षा लाने में सहायक हैं जिससे प्राणी नवजीवन पाते हैं। वन
बाढ़ रोकते हैं और भक्ष ू रण कम करते हैं तथा धरती का उपजाऊपन बनाए रखते हैं।वास्तव में वन मानवजीवन का
संरक्षण करते हैं। वन परोपकारी शिव के समान हैं जो विषाक्त वायु का स्वयं सेवन करते हैं और बदले में प्राणदायी
शद्ु ध ऑक सीजन दे ते हैं। दर्भा ु ग्य से मनष्ु य की जब ज़रूरतें बढ़ने लगी तो उसने वनों की अंधाधध ंु कटाई शरू ु कर
दी। नई बस्तियाँ बनाने, कृषि योग्य भमि ू पाने, सड़कें बनाने आदि के लिए पेड़ों की कटाई की गई, जिससे पर्यावरण
असंतल ु न बढ़ा और वैश्विक ऊष्मीकरण में वद्
ृ धि हुई।इससे असमय वर्षा, बाढ़, सख ू ा आदि का खतरा उत्पन्न हो
गया। धरती पर जीवन बचाने के लिए पेड़ों को बचाना आवश्यक है । आओ हम जीवन बचाने के लिए अधिकाधिक
पेड़ लगाने और बचाने की प्रतिज्ञा करते हैं।
हमारे दे श के राष्ट्रीय पर्व
अथवा
दे श की अखंडता में सहायक राष्ट्रीय पर्व
● राष्ट्रीय पर्व का अर्थ एवं उनकी महत्ता
● हमारे राष्ट्रीय पर्व और मनाने का ढं ग
● दे श की एकता अखंडता बनाने में सहायक
● राष्ट्रीय पर्यों का संदेश।
पर्व मानव जीवन को मनोरं जन और ऊर्जा से भरकर मनष्ु य की नीरसता दरू करते हैं। इन पर्यों को सांस्कृतिक,
सामाजिक और राष्ट्रीय पर्यों के रूप में बाँटा जा सकता है । राष्ट्रीय पर्व वे पर्व हैं जिन्हें राष्ट्र के सारे लोग बिना
किसी भेदभाव के एकजट ु होकर मनाते हैं। इनका सीधा संबध ं दे श की एकता और अखंडता से होता है ।राष्ट्रीय पर्व
व्यक्तिगत न होकर राष्ट्रीय होते हैं, इसलिए दे शवासियों के अलावा विभिन्न प्रशासनिक और सरकारी कार्यालय,
विभिन्न संस्थाएँ मिल-जल ु कर मनाती हैं। इस दिन दे श में सरकारी अवकाश रहता है । यहाँ तक कि दक ु ानें और
फैक्ट्रियाँ भी बंद रहती हैं ताकि दे शवासी इन्हें मनाने में अपना योगदान दें । हमारे राष्ट्रीय पर्व हैं-स्वतंत्रता दिवस
(15 अगस्त), गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) और गांधी जयंती (02 अक्टूबर)।स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के
अवसर पर प्रातःकाल सरकारी कार्यालयों एवं भवनों पर झंडा फहराया जाता है और रं गारं ग सांस्कृतिक कार्यक्रम
प्रस्ततु किया जाता है । इस दिन दे शभक्तों और शहीदों के योगदान को याद करते हुए स्वतंत्रता बनाए रखने की
प्रतिबद्धता दोहराई जाती है । गांधी जयंती के अवसर पर कृतज्ञ दे शवासी गांधी जी के योगदान को याद करते हैं
और उनके बताए रास्ते पर चलने की प्रतिज्ञा करते हैं।दे श की एकता अखंडता बनाए रखने में राष्ट्रीय त्योहार
महत्त्वपर्ण
ू भमि ू का निभाते हैं। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दे शवासियों से एकता बनाए रखने का आह्वान करते हैं। ये
पर्व हमें एकजट ु रहकर दे श की स्वतंत्रता की रक्षा करने तथा दे श के लिए तन-मन और धन न्योछावर करने का
संदेश दे ते हैं। हमें इस संदेश को सदा याद रखना चाहिए।
मेरी अविस्मरणीय यात्रा
अथवा
पर्वतीय स्थल की यात्रा का रोमांच
● यात्रा की तैयारी
● रास्ते का सौंदर्य
● पर्वतीय सौंदर्य
● यादगार पल।
मनष्ु य के मन में यात्रा करने का विचार ज़ोर मारता रहता है । उसे बस मौके की तलाश रहती है । मझ ु े भी यात्रा
करना बहुत अच्छा लगता है । आखिर मझ ु े अक्टूबर के महीने में यह मौका मिल ही गया जब पिता जी ने बताया कि
हम सभी वैष्णो दे वी जाएँगे। वैष्णो दे वी का नाम सन ु ते ही मन बल्लियों उछलने लगा और मैं तैयारी में जट ु गया।
उधर माँ भी आवश्यक तैयारियाँ करने के क्रम में कपड़े, चादर और खाने के लिए नमकीन बिस्कुट आदि पैक करने
लगी।आखिर नियत समय पर हम प्रात: तीन बजे नई दिल्ली स्टे शन पर पहुँचे और स्वराज एक्सप्रेस से जम्मू के
लिए चल पड़े। लगभग आधे घंटे बाद हम दिल्ली की सीमा पार करते हुए सोनीपत पहुँचे। अब तक सवेरा हो चक ु ा
था। दोनों ओर दरू तक हरे -भरे खेत दिखाई दे ने लगे। इसी बीच परू ब से भगवान भास्कर का उदय हुआ। उनका यह
रूप मैं दिल्ली में नहीं दे ख सका था।दस बजे तक तो मैं जागता रहा पर उसके बाद चक्की बैंक पहुँचने पर मेरी नींद
खल ु ी। उससे आगे जाने पर हमें एक ओर पहाड़ नज़र आ रहे थे। वहाँ से कटरा जाकर हमने पैदल चढ़ाई की। पर्वतों
को इतने निकट से दे खने का यह मेरा पहला अवसर था। इनकी ऊँचाई और महानता दे खकर अपनी लघत ु ा का
अहसास हो रहा था।अब मझ ु े समझ में आया कि ‘अब आया ऊँ ट पहाड़ के नीचे ’ महु ावरा क्यों कहा गया होगा। वैष्णो
दे वी पहुँचकर वहाँ का पर्वतीय सौंदर्य हमारे दिलो-दिमाग पर अंकित हो गया। वहाँ से भैरव मंदिर पहुँचकर जिस
सौंदर्य के दर्शन हुए वह आजीवन भल ु ाए नहीं भल ू ेगा।
जीवन में व्यायाम का महत्त्व
अथवा
स्वास्थ्य के लिए हितकारी : व्यायाम
● स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन
● उत्तम स्वास्थ्य की औषधि-व्यायाम
● व्यायाम का सर्वोत्तम समय
● व्यायाम एक-लाभ अनेक।
स्वास्थ्य और मानवजीवन का घनिष्ठ संबध ं है । यूँ तो स्वास्थ्य की महत्ता हर प्राणी के लिए होती है पर मनष्ु य
इसके प्रति कुछ अधिक ही सजग रहता है और स्वस्थ रहने के नाना उपाय करता है । मनष्ु य जानता है कि धन को
तरु ं त दब
ु ारा कमाया जा सकता है परं तु स्वास्थ्य इतनी सरलता से नहीं पाया जा सकता है । एक स्वस्थ व्यक्ति ही
सांसारिक सख ु ों का लाभ उठा सकता है ।यदि शरीर स्वस्थ नहीं है तो दनि ु या का कोई सख ु व्यक्ति को रुचिकर नहीं
लगता है , तभी स्वास्थ्य को सबसे बड़ा धन कहा गया है । स्वास्थ्य पाने का एक साधन सात्विक भोजन, स्वस्थ
आदतें , उचित दिनचर्या और दवाईयाँ हैं, पर ये सभी स्वस्थ रहने के साधन मात्र हैं। स्वास्थ्य का अर्थ केवल
शारीरिक नहीं बल्कि इस परिधि में मानसिक स्वास्थ्य भी आता है ।इसे पाने की मफ् ु त की औषधि है -व्यायाम, जिसे
पाने के लिए धन खर्च करने की आवश्यकता नहीं होती है । व्यायाम करने का सर्वोत्तम समय भोर की बेला है जब
वातावरण में शांति, हवा में शीतलता और सग ु ध
ं होती है । ऐसे वातावरण में मन व्यायाम में लगता है । व्यायाम से
हमारे शरीर का रक्त प्रवाह तेज़ होता है , हड्डियाँ मज़बत ू और मांसपेशियाँ लचीली बनती हैं। इससे तन-मन दोनों
स्वस्थ होता है । हमें भी समय निकालकर व्यायाम अवश्य करना चाहिए।