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देवरानी जेठानी
देवरानी जेठानी
जब मझ
ु को यह न चय हुआ क ी, ि य क बोल , और पु ष, पु ष क बोल पस द करते ह जो कोई ी
पु ष क बोल , वा पु ष ि य क बोल बोलता है उसको नाम धरते ह। इस कारण मने पु तक म ि य ह क बोल-
चाल और वह श द जहॉ ं जैसा आशय है , लखे ह और यह वह बोल है जो इस िजले के ब नय के कुटु ब म ी-पु ष वा
लड़के-बाले बोलते-चालते ह। सं कृत के बहुत श द और पु तक - जैसे इस लए नह ं लखे क न कोई चत से पढ़ता है , और
न सन
ु ता है ।
दया उनक मझ
ु पर अ धक व त से
रह भल
ू मझ
ु से जो इसम कह ं,
- प. गौर द त शमा
मेरठ म सवसख ू ान थी। आसपास के गॉवं से लोग सौदा
ु नाम का एक अ वाल ब नया था। मंडी म आड़त क दक
लाते। इसक दक
ु ान पर बेच जाते। पैसा- पया तल
ु ाई का इसके हाथ भी लग जाता। और कभी भाव चढ़ा दे खता तो हजार
का नाज-पात लेकर दक
ू ान म डाल दे ता और फ़ायदा दे ख उसे बेच डालता।
याज-ब े और गव -पाते क भी उसे बहुतरे
आमदनी थी। हाट-हवेल , धन-दौलत, दध
ू -पत
ू परमे वर का दया उसके सबकुछ था। और यह इसने अपने ह पु षाथ से
कया था।
ं
मॉ-बाप तो पछले है जे म पॉचं वष का छोड़कर मर गये थे। चाचा ने पाला था। थोड़े ह दन हुए ह गे जब तो
़ ं बेचा करे था। चना-चबेना करता। खॉचा
कूक डयॉ ं सर पै लये ग लय म फरा करे था।
फर इसने परचन
ू क दक ु ी टकत नारायण और हरसहाय काबल शहर के अमीर क इसके यहॉ ं
ु ान कर ल । मंश
उचापत उठने लगी। इसम परमे वर ने ऐसी क सन
ु ी क आड़त क दक ं
ू ान हो गई। जहॉ-तहॉ ं से माल आने लगा। बढ़
इ जत बढ़ गई। लोग पचास हज़ार पये का भरम करने लगे। स च है िजसे परमे वर दे ता है छ पर फाड़ के ऐसे ह दे ता
है ।
बड़ा भला मानस था। अड़ौसी-पड़ौसी सब इससे राजी थे। पु न-दान म बहुत तो नह ं परं तु छठे -छमाहे कुछ-न-कुछ
करता रहे था। बड़ी अव था म आप ह अपना बवाह कया था। प हले दो लड़ कयॉ ं हु , बड़ी का नाम पावती छोट का
यार का नाम सख
ु दे ई र खा। फर ई वर ने उपरातल दो लड़के दये। बड़े का नाम दौलत राम छोटे का नाम छोटे -छोटे
पक
ु ारने लगे। इन सब ब हन भाइय क कोई दो-दो तीन-तीन वष क छुटाई-बड़ाई होगी। बड़ी लड़क द ल बवाह गयी।
छोट लड़क क मंगनी बंशीधर कबाड़ी के यहॉ ं हापड़
ु हुई।
ु दे ई क मॉ,ं लाला बल
एक दन रात को अपने घर म कहने लगा क सख ु ाक दास हमार बरादर म जो मदस म
नौकर है य कहते थे क अपने छोटे बेटे को तम
ु अं ेजी पढ़ाओ। इसम तेर या सलाह है और दौलत राम को तो मै अपने
कार म गे ं गा।
उसने कहा अ छा तो है । सारे दन ग लय म कूदता फरे है । परस कसी ल डे के कुछ मार आया था। उसक मॉ ं
लड़ती हुई यहॉ ं आई। और म तम ु से कहना भलू गई। आज चौथा दन है क द ला पॉडें हमारे परु ो हत क बहू मसरानी
आई थी और कहे थी क सख ु दे ई को मेरे साथ नागर पढ़ने भेज दया करो और भी मह ं
ु ले क पॉच-सात ल डय उसके घर
जाया करे ह और वह सीना- परोना भी सखलाया करे है । और वह बड़ी-बड़ी बात कहै थी क जब सख
ु दे ई पढ़ जायगी च ी-
प ी लखनी आ जायगी। घर का हसाब लख लया करे गी। और उसके घर कभी-कभी एक मेम आया करे है । ल डय को
दे ख हर हो जा है और उनका पढ़ना सन
ु कर कसी को छ ला और कसी को अंगठ
ू दे जा है ।
एक दन कोई चार घड़ी दन होगा। छोटे लाल बाहर खेल रहा था। घर म भाग गया और कहने लगा क मॉ ं लाला
आवे ह।
इतने म वह भी आन पहुँचे और खाट पर बैठ गये। इसने छोटे लाल को पंखा दया और कहा लाला को हवा कर।
ु दे ई क मॉ,ं ले बोल
यह बोले सख या कर? जहॉ ं दौलत राम को टे वा गया था, तनी गॉठं करने को नाई आया है । और
झ लामल जो कल खरु जे से आये थे य कह थे क लड़क का बाप डूँगर बचारा गर ब ब नयॉ ं है । सरा के नु कड़ पर
परचन ू ान खोल र खी है । पर लड़क क मॉ ं बड़ी लड़ाका है । तु हारे समधी के पास ह हमारा घर है और छोटे लाल
ू क दक
क पीठ ठोक कर कहने लगा क भाई छोटे लाल हमारा नसीबेवर है । गुड़गॉवं के तहसीलदार ने इसका टे वा मॉगा
ं है । अभी
तो रा ते म लाला द नदयाल, करपी के ताऊ, गाड़ी म बैठे आवे थे। मझ
ु े पक
ु ार कर कहने लगे क म मामाजी से मलने
गुड़गॉवं गया था सो वह पछ
ू थे क सबसख
ु आड़ती का छोटा बेटा या कया करे ह? मने कहा साहब, मदस म अं ेजी पढ़े
है और हो शयार है । सो उ ह ने उसका टे वा मागा है । तम
ु मझ
ु े दे दे ना म भेज दँ ग
ू ा। लाला साहब, लड़क बड़ी सघ
ु ड़ है । वह
अपनी लड़क को आप नागर पढ़ाया करे ह।
ु दे ई क मॉ ं बोल
सख क तमु दौलत राम क सगाई रख लो। आई हुई ल मी घर से कोई नह ं फेरता। और पया-पैसा
हाथ-पैर का मैल है । आगे ल डया ल डे का भाग है ।
सो नाई तनी गॉठं करके चला गया। और उसी साल म ववाह क च ी ले के आया। इ ह ने कहला भेजा क अब के
वष तो हमार लड़क ववाह क ठहर गयी है । अगले वष ववाह रख लगे।
छोटे लाल क प ी गुड़गॉवें मल ह गयी थी। लाला द नदयाल के मारफत वहॉ ं से कहलावत आई क सवसख ु जी से
कहना क मरती जीती द ु नया है । आगे म सरकार नौकर हूँ। आज यहॉ,ं कल जाने कहॉ ं को बदल हो जाय। सो लड़क का
ववाह हम इसी साल म करगे।
इ ह ने यहॉ ं से कहला भेजा क हमार इ जत उनके हाथ है । अभी तो दो ववाह से नपटे ह और इस साल म न
केवल सझ
ू ता भी नह ं है । अगले साल जैसा मु शी जी कहगे वैसा करगे।
ू आती है बहु कहती पॉवं पडूँ जी। वह कहती बहुत शील सपत
जो कोई बड़ी-बढ़ ू ी हो। बढ़
ू सह
ु ागन रह।
सख
ु दे ई का अभी गौना नह ं हुआ था। बाप ह के घर थी। ननद-भावज का बड़ा यार हो गया। दोन पढ़ -पढ़ मल
गयीं।
सख
ु दे ई इतनी पढ़ हुई न थी पर तु च ी-प ी तो अ छ तरह से लख लया करे थी। इसने अपनी सब पढ़ हुई
भने लय को बल ु ाया और उनका लखना-पढ़ना अपनी भावज को दखलाया।
जब दौलतराम बवाह के लाये थे तो प ा फेर करते लाये थे। इसका कारण यह था क लड़क के बाप घर म प हले ह
कुछ नह ं था। ववाह ह म उघड़ गया। गौना या करे गा? सो तबसे दौलत राम क बहु ानो ससरु ाल ह म थी। जब कोई
बैअर-बानी बाहर क आती, न तो बैठने को पीढ़ा दे ती और न उसक बात पछ ू ती। और जो कुछ कहती भी, तो ऐसी बोलती
जैसे कोई लड़े है । सास से तो रात दन खटपट र खे थी और जब कोई दे वरानी को इसके सामने सराहती तो कहती हॉ ं जी,
वह तो अमीर क बेट है । म तो गर ब ब नये क बेट हूँ। मँह
ु से कुछ नह ं कहती पर दे वरानी को दे ख-दे ख फँु क जाती।
और जभी से छोट ननद से भी जलने लगी। बड़ी ननद पारबती से बड़ा यार था। (और वह ववाह म बल
ु ाई हुई आयी थी)
और यार होने का कारण यह था क वह भी लगावा-बझावा थी। उधर क इधर और इधर क उधर।
अब बहु को आये आठ-दस दन हुए ह गे क उसका भाई राम साद मझोल लेके वदा कराने को आया। लाल सवसख ु
जी ने भी जैसे ब नय म र म होती है , दे -ले कर बहु को बदा कर दया और बहु के भाई से चलते-चलते यह कह दया क
भाई, पहुँचते ह राजी-खश
ु ी क च ी लख भेजना।
जब सख
ु दे ई के ववाह को तीन वष हो चक
ु े , हापड़
ु से गौने क च ी आयी। लाला ने घर म आके सलाह क । सख
ु दे ई
क मॉ ं ने कहा म तो पॉचव
ं वष क ँ गी। लाला ने समझा दया क िजस काम से नबटे , उससे नबटे । यह काम भी तो
ु दे ई भी अपने घर गई और वहॉ ं
करना ह है और यह भी कहा है क धी-बेट अपने घर ह रहना अ छा है । अथात ् सख
अपने कुनबे क ल डय को नागर पढ़ाने लगी।
ु का माल रे ल पै लदने जाया करे था। वहॉ ं के बाबू से इसक जान प हचान हो गई थी।
लाला सवसख
एक दन कहने लगा क बाबू जी हमारा छोटा लड़का मदस म अं ेजी पढ़ने जाया करे है । वह कहे था जो तम
ु कहो
तो तु हारे पास काम सीखने आ जाया करे । बाबू ने कहा कल तम
ु उसे हमारे पास द तर म भेजना। छोटे लाल अगले दन
वहॉ ं गया। बाबू को अपना लखना दखलाया। उसक पसंद आया। इससे कहा तम ु रोज-रोज आया करो। यह जाने लगा।
थोड़े दन पीछे उसी द तर म पंदरह पये मह ने का नौकर भी हो गया।
इसे नौकर हुए कोई एक वष बीता होगा क बाबू क बदल अ बाले क हो गयी। यह बाबू का काम कया ह करे था।
और साहब भी रोज दे खा करे था। बाबू क जगह इसे कर दया, और यह कह दया क अब तो तमु को चाल स पये मह ना
मलेगा फर काम दे ख के साठ पये मह ना कर दगे।
जब छोटे लाल पंदरह ह पये का नौकर था क इसके लाला गौना कर लाये थे और अब गौनयायी अपने घर ह थी।
छोटे लाल इस बात से अपने मन म बड़ा मगन था क मेर बहु पढ़ हुई है और बड़ी चतरु है ।
उनका घर तो ऐसा ह था जैसा और ब नय का हुआ करता है । पर इसने अपना चौबारा सोने और उठने-बैठने को सजा
र खा था। चादर लग रह थी। कलई क जगह नीला रं ग फरवा र खा था। बो रय के फश पर दर बछा र खी थी।
तसबीर और फानस
ू भी लग रहे थे। दो कुस बड़ी और दो कुस छोट िजनको आरामकुस कहते ह, एक तफ पड़ी हुई थीं।
कताब क एक आलमार मेज के पास लगी हुई थी। दो पलंग पर रे शम क डो रय से चह चादर खंची हुई थी। अपना
सादा कमरा अ छा बना र खा था।
जो कोई बाहर क लग
ु ाई आती, छोटे लाल क बहु अपना चौबारा दखाने ले जाती। एक दन अपनी जेठानी से बोल क
आओ जी, तम
ु भी आओ। उसने कहा अब ले म ना आती। और लग ु ाइय ने कहा नगोड़ी अपने दे वर का चौबारा दे ख ले
ना। शमा-शम उठ चल गयी। और चौबारे को दे ख अ क-ध क रह गयी।
इसक अटार म दो परु ानी-धरु ानी खाट पड़ी हुई थीं। पंडोल का पोता और गोबर का चौका भी न था। एक कोने म
उपल का ढे र। दस
ू रे म कुछ चीथड़े। और एक तफ नाज के मटके लग रहे थे।
इसका कारण यह था क बचारा दौलत राम तो नरा ब नयॉ ं ह था। पढ़ा- लखा कुछ था ह नह ं। आगे उसक बहु
गॉवं क बेट थी और उसने दे खा ह या था? छोटे लाल क बहु क सी सथ
ु राई और सफाई और कहॉ?ं आटा पीसना और
गोबर पाथना इसकू खब
ू आवे था। वाये दन भर लड़ा लो।
छोटे लाल क बहु सारे दन कुछ न कुछ करती रहे थी। सबेरे उठते ह बह
ु ार दे ती। चौका-बासन करके दध
ू बलोती।
फर हा-धोके दो घड़ी भगवान का नाम लेती। रोट चढ़ाती। जब लाला छोटे लाल रोट खा के द तर चले जाते, थोड़ी दे र
पीछे दौलतराम और उसका बाप दक
ू ान से रोट खाने को आते। जब वह खा लेता और सास-िजठानी भी खा चक
ु तीं तब
सबसे पीछे आप रोट खाती।
और िजस दन दौलत राम क बहु रोट करती, दाल म पानी बहुत डाल दे ती। और कभी नन ू िजयादह कर दे ती और
ू जाती। गॉवं के सी मोट -मोट रो टय करती। कसी को बहुत सेक दे ती और कोई क ची रह जाती। इस लये
कभी डालना भल
बेचार दे वरानी को दोन व त चल
ू ा फँू कना पड़े था।
ं
रात को परू -परॉवठा और तरकार कर लया करे थी। दो पहर को रोट खाने से पीछे घ टा डेढ़ घ टा आराम करती।
फर सीना- परोना, मोजे बन
ु ना, फुलकार काढ़ना, टो पय पै कलाब तू क बेल लगाना आ द म िजस काम को जी चाहता,
ले बैठती।
इस समय मह
ु ले और बरादर क लौ डय दो घड़ी को इसके पास आ बैठा करे थीं। कसी को मोजे बन
ु ना बतलाती,
और कसी को लखना-पढ़ना सखलाती और आप भी अपना काम कये जाती।
रात को जब सब यालू कर चक ं
ु ते यह अपने चौबारे म चल जाती और रात को दस बजे तक जहॉ-तहॉ ं क बातचीत
करके हँसती और बोलती रहती।
लाला ने नौकर के हाथ घर च ी भेज द । छोटे लाल क बहु ने पहले आप पढ़ फर सास को पढ़कर इस तरह सन
ु ा
द-
ु दे ई क मॉ ं ने च ी सन
सख ु के कहा क कल पॉचं सेर आटे के ल डू कर ल जो। ल डया को कोथल भेजनी है और जो
म कहूँ च ी म लख द जो सो सख
ु दे ई को यह च ी लखी गयी-
यह च ी और च ी म लखी हुई चीज सख ु दे ई के भानजे के हाथ भेजी गयीं और जबानी भी कहलावत गई क लाला
बंसीधर से कह दे ना क माघ के मह ने म ल डया को लेने बहल आवेगी। ऐसा न हो क उलट फर आवे। एक च ी लख
भेज।
यहॉ ं दौलत राम क बहु बड़ी भोर उठके गौ क धार काढ़ती। गोबर पाथती। हाती न धोती। चखा लेकर बैठ जाती और
कभी-कभी दाल दलती नाज फटकती आटा छानती। दस-दस और बीस-बीस मन नाज दक ू ान से इख ा आ जाय था। उसे
अकेल बो रय और क म भर दे ती। काम तो बहुतरे ा करे थी। पर वैर- वषवाद बहुत र खे थी।
और यह सास ने दोन दे वरानी जेठा नय को जैसा िजस जोग दे खा काम बॉटं दया था। पीसना-खोटना, चखापन
ू ी ऐसी
मेहनत के काम दे वरानी से नह ं हो सके थे, इस लये क उसने बाप के घर कये नह ं थे। परं तु वह उससे दसगन
ु े अ छे
काम कलाब तू और गोटा- कनार के जाने थी। पीसने-खोटने म या र खा है । घड़ी भर पीसा, दो पैसा का हुआ। वह आठ
आने रोज का कढ़ावट का काम कर ले थी।
जेठानी रोट खा के फर चखा ले बैठती। इस जैसी इसक भी दो एक भने लयॉ ं थीं। सो कोई न कोई इसके पास आ
बैठ करे थी। यह उससे दे वरानी का ह झींकना झींकती। सासू का खोट बतलाती क मेर सास बड़ी दोजगन है । छोट बहु
को जो कोई आधी बात कहे है तो लड़ने को उठे है । ससरु जी से मेर रात दन कटनी करे है । य कहे है यह तो क ची
रोट करे है । ब हन िजस पै जैसी आती होगी वैसी करे गी। और यह मेर दे वरानी बड़ी खोट और चप
ु चो ी है । मेरा दे वर
स तर चीज लावे है । दोन खसम-जो खावे ह। कसी को एक चीज़ नह ं दखलाते। छ डय के मेले के दन जरा सा मँग
ू का
ं भर प का घी
दाना मेरे बा ते लेके आई थी, सो मने तो फेर दया। हम तो जैसा मल गया खा लया। मेर दे वरानी छटॉक
दाल म डाल के खावे है । इस कार से नत चग
ु ल करती और अपनी दे वरानी को सन
ु ा-सन
ु ा चखा कातती जाती, ताने-मेहने
और बोल -ठोल मारती जाती क ले पीसे कोई और खावे कोई। कोई ऐसी लग
ु ाई भी होती होगी और पीसना नह ं जानती
होगी? य कहो मेहनत नह ं होती।
दे वरानी चप
ु क सन
ु ा करती। कभी कुछ न कहती। एक दन उसने इतना कहा था क जेठानी जी, तु हारा कैसा वभाव
है बाहर क लग
ु ाइय के सामने तो बोल -ठाल क बात मत कहा करो। इसम घर क बदनामी है ।
वह बेचार चप
ु क होके चल आई।
दौलत राम क बहु जहॉ ं तक होता अपने मा लक से रात को न य त सास और दे वरानी क बरु ाई करती। तम
ु जानो,
आदमी ह तो है और बेपढ़ा। रोज-रोज के सखलाने और बहकाने से दौलतराम भी अपनी बहु क हमायत करने लगा और
मॉ ं से लड़ने लगा।
ऊँच-नीच सोच के बड़ी दे र म यह जवाब दया क अ छा तो म बड़ी बहु म रोट खा लया क ं गा। अपना सर पकड़
कर बैठ गया और कहने लगा क बरादर के लोग हॅसगे और ठ े मारगे क फलाने के घर लग ु ाइय म लड़ाई हुई थी तो
उसने अपने बड़े बेटे को जद
ु ा कर दया। दे खो यह कैसी बहु आई इसने हमार बात म ब ा लगाया और घर तीन तेरह कर
दया।
घरवाल बोल अजी जब अपना ह पैसा खोटा हो परखन वाले को या दोष है ? जग तो आरसी है जैसा लोग दे खगे
वैसा कहगे।
वि त ी सव पमायो य बीबी आन द जी यहॉ ं से राम साद आ द सम त बाल गोपाल क राम-राम बंचना। यहॉ ं
ेम-कुशल है तु हार ेम-कुशल चाहते ह। तु हार मॉ ं तम
ु को बहुत याद करे है । सो म तम
ु को बहुत ज द ह बल
ु ाऊँगा।
तु हारे छोटे भाई गंगाराम को मदस म बठा दया है और बड़े भाई राम साद को तु हारे ताऊ के पास आगरे इस कारण
भेज दया है क वहॉ ं का लज म पढ़कर वकालत का इ तहान दे । तु हार छोट ब हन भगवान दे ई एक म हने से मॉदं है
और जब ह से उसका लखना-पढ़ना छूटा हुआ है । और तम ु तो आप बु मान हो पर तु तौ भी जो पता का धम है , दो
ु से उसी दन स न हूँगा जब म यह सन
चार बात लखना आव यक है । बेट , जो म तम ु ँग
ू ा क तु हार ससरु ाल वाले तम
ु से
स न ह। तु हारा लखना-पढ़ना उसी दन काम आवेगा जब तम
ु अपनी सास क आ ा म रहोगी। सास को माता के तु य
जानना। ननद और जेठानी को अपनी ब हन से अ धक मानना। और यह म जानता हूँ क सब लड़ कय को ससरु ाल म
जाकर थम क ठनता मालम ू हुआ करती है और इसका कारण यह है क बाप के घर तो कुछ और ह चाल-चलन होता है
और ससरु ाल म जाकर नये-नये तौर दे खती है । जी घबराया करता है । पर तु जो ानवान लड़ कय ह घबराती नह ं सब काम
ं
कये जाती ह। यह भी जानना उ चत है क मॉ-बाप का घर तो थोड़े ह दन के लए है । सार अव था ससरु ाल म ह
काटनी है । अपने धम-कम पर चलना ई वर को याद रखना। आए-गए का आदर स मान करना, सबसे मीठा बोलना, संतोष
से अपने कुटु ब म गुजरान करना, आपको तछ
ु जानना, यह अ छे कुल क बे टय के धम ह। ान चाल सी क पोथी म
तम
ु ने पढ़ा है क अ छ से सबको लाभ होता है । मेरा इस कहने से योजन यह है क जो कोई ी तु हारे कुटु ब क
तम
ु को सीने- परोने का काम दे , जो अवसर मले तो उसे कर दे ना उ चत है । दे खो व यादान का शा म कैसा महा मा
लखा है । अथात जो बात तम
ु को आती ह, और को भी सखलाना चा हए। च ी लखी म त पौष शु द 6 संबत ् 1925 ।
दौलत राम के जद
ु े होने से छह मह ने पीछे एक लड़क हुई। इधर उसी दन हापड़
ु से च ी आई क लाला सवसख
ु जी,
अन त चौदस के दन चार घड़ी दन चढ़े तु हारे धेवती हुई है ।
दोपहर को दक
ु ान से एक प लेदार च ी ले के आया और बोला क लालाजी यह च ी तु हारे नाम द ल से आई है ।
मन
ु ीम जी ने खोल नह ं तु हारे पास भेज द है और एक आना महसल
ू का दया है ।
लाला ने च ी पढ़ के कहा क पाबती क बड़ी ल डया का वस त पंचमी का बवाह है । पंदरह दन प हले वह भात
नौतने आवेगी सो अब भात का फकर भी करना चा हए।
घरवाल बोल क सख
ु दे ई को छूछक भेजना है । फर ऐसी ह दो चार गह
ृ त क बात करके कहा क छोटे लाल के घर
म भी लड़क -बाला होने वाला है । बहु के बाप को एक खत गरवा दे ना क वह साध भेज दे ।
जब पावती भात नौतने आयी तो अपनी दे वरानी को साथ लायी। गुड़ क भेल दे के बोल क बवाह म सबको आना
होगा। लाला जी ने कहा बीबी, छोटे लाल क तो छु ी नह है । दौलतराम भात ले के आवेगा।
उस दन सार बरादर म बल
ु ावा फर गया क आज भात लया जायगा। 51 पये नगद, नथ, बछुआ, छन, पछे ल ,
सोने मँग
ू े क माला, पायजेब, सोने क है कल, सोने का बाजू पचलड़ा और नौ नगे, पाबती के सारे कुटु ब को कपड़े 21
तीयल भर -भर , यारह बरतन, एक दोशाला और एक माल आ द सबको दखलाके पावती के ससरु के हवाले कये। और
जब भात ले के डौढ़ पर पहुँचे थे पावती दस-बीस तो ि य को साथ लये गीत गाती हुई भाई का आता करने आई थी।
इन दन छोटे लाल क बहु गम चीज न खाती। बहुत करके कोठे पै न जाती और न बोझ उठाती। जब कसी चीज को
खाने को जी चाहता तो अपनी सास वा और कसी बड़ी-बढ़ से पछू के मँगा लेती। ऐसी-वैसी चीज न खाती। ख ी चीज को
बहुत जी चाहा करे था सो कभी-कभी नीबू का आचार वा कैर खा ले थी।
जेठ शु द 3 जम
ु ेरात के दन छोटे लाल के घर लड़के का ज म हुआ। बड़ी खश
ु ी हुई न कारखाना रखा गया। ज म प ी
लखी गई बरादर बाल को एक-एक पान का बीड़ा दया।
बाहर जो नाई ा मण घर गये थे उन सबको पैसा-पैसा बॉटं दया। दाई को एक पया दया, वह पॉचं ं
पये मॉगती
रह ।
ज चा के खाने को गँूद क पँजीर हुई। अब जो भाई बरादर और नाते- र ते म से औरत आतीं ल डे क दाद का
मब
ु ा रक वा बधाई कहके बैठ जातीं।
ु ाहजे वाल के यहॉ ं से कु ता, टोपी, हँसल , कडूले आने लगे। धी- यान के यहॉ ं से जो आये थे
नातेदार और यार-मल
उनम से कसी को फेर दया और कसी का रख लया और दो-दो चार-चार पये जैसा नाता दे खा उन पर रख दये।
वह आप चतरु थी। दोन व त बँधा खाना खाती। लाल मच, गुड़, श कर, सीताफल क तरकार , तेल का अचार, खीरे
और अम द आ द से परहे ज करती। पर होनी या करे ? जब लड़का छह मह ने का था, एक दन सर से हाई थी। भीगे
बाल ब चे को दध
ू ं का ठसका हो गया। अगले दन करवा चौथ थी। बत रह और परू
पला दया। सद से उसे खॉसी
ं होई आया। बड़ा फकर हुआ। सास उठावने उठाने लगी और बोल कबल
कचौर खाने म आई। ल डे को सॉस ू करने लगी।
ध ना क मॉ ं प नहार को ननवा चमार को बल
ु ाने भेजा। उसने आते ह झाड़ दया और अपने पास से ल डे को गोल खला
द।
लाला घर म बड़े गु सा हुए क अब तो भगवान ने दया क , कोई याना-वाना घर म नह ं बड़ने पावे। यह नदयी इसी
तरह से ब च को मार डालते है और कुछ नह ं जानते। और बहु से कह द जो क फर भीगे बाल दधू न पलावे। और भला
वह तो बालक है , उसने दे खा ह या है ? तू तो बड़ी-बढ़
ू थी। प हले से य नह ं समझा दया था?
वह चप
ु हो रह ।
दौलत राम क बहु सब कुछ खाती-पीती रहे थी। जब सास वा ससरु उसके भले क बात कहते, उसका उलटा करती।
ल डया भी उसक सख ं हो रह थी और आप भी नत मॉदं रहे थी।
ू के कॉटा
ु ं म रोट क । दोन मॉ ं बे टय क ऑ ंख दख
एक समय गम के दन थे। दो-तीन धऍ ु ने आ गयीं। परहे ज कया नह ं
और बीमार बढ़ गई। कसी ने बहका दया क तु हार ऑ ंख घर के दे वता ने पकड़ी ह। उस दन से दवाई भी डालनी छोड़
द । बेचारे दौलत राम को आप चल
ू ा फँू कना पड़ा।
जब लाला को यह खबर हुई वह एक दन आके बहुत लड़े क दवा नह ं डालेगी तो अंधी हो जायेगी। तब कोई पंदरह
दन म रसौत क पौटल से आराम हुआ।
ल डया क ऑ ंख को प हले ह आराम हो गया था य क दौलत राम हक मजी के यहॉ ं दवाई गरवा लाया करे थे।
छोटे लाल के लड़के का ज म का नाम तो कुछ और ह था पर तु लाड़ से उसको न ह पक ु ारने लगे थे। जब वष ह
दन को होगा क इसक ऑ ंख दख ु ने आयीं। गम-गम याह डाल । ज त ऑ ंजा। मलाई के फोहे बॉधें । नह ं आराम हुआ।
तब इसक मॉ ं ने अपनी सास से कहा क मेर मॉ ं मेरे भाई क ऑ ंख के वा ते एक रगड़ा बनाया करे थी। जो तम
ु
कहो तो न ह क ऑ ंख के वा ते म भी बना लँ ।ू
1 तोला ज त, 1तोला रसौत, 6 मासे फटक , 2 तोले छोट हड़ बाजार से मँगा के 1 तोले गौ के घी को एक सौ एक
बार धोकर उसम रसौत और फटक पीस के मला द और समच ं क
ू ी हड़ समेत कॉसी याल पर रगड़ लया। न ह क
ऑ ंख को इसी से आराम हो गया।
इस रगड़े क मह
ु ले भर म धम ु ने आतीं, मॉगं के ले जाती और इसे
ू पड़ गई। िजस कसी के ब चे क ऑ ंख दख
डालते आराम हो जाता। खरु जेवाल क ल डया क ऑ ंख फर दख
ु ने आई थीं। इसी रगड़े से आराम हुआ।
एक दन छोटे लाल क बहु बोल क सासू जी, जब मेरे लाला द ल म स र तेदार थे तो मेरे बड़े भाई को माता रानी
का ट का लगवा दया था। वह भी कहे थे और मने भी लखा दे खा है क िजस ब चे को ट का लग जाता है उसके फर
माता नह ं नकलती और जो नकले भी है तो जोर नह ं होता। सो न ह का चाचा (अथात बाप) कहे था क जो मॉ ं और
लाला क मज हो तो न हे के ट का हम भी लगवा द।
ं
सो मॉ-बाप क आ ा से छोटे लाल ने शफाखाने के बड़े बाबू से न हे के ट का लगवा दया।
छोटे लाल ने अपने नौकर को हु म दया क जब तक गडूलना बने, न हे को गोद म ले के गोलक बाबू के बाग तक
रोज हवा खला लाया कर।
और न हे जब दो वष का हुआ गडूलने म बैठा कर सू य कु ड तक भेजने लगे और बहुत करके लाला छोटे लाल आप
भी गडूलने के साथ जाया कर थे। इससे न ह का सब रोग जाता रहा और शर र म बल आया।
रात को दोन ी-पु ष उसे खलाते और बड़े मगन होते। जब छोटे लाल कहता आओ न हे मेरे पास आओ। वह चट
चला जाता और जब उसक मॉ ं कहती आओ हमारे पास आओ हम चीजी दगे वह न आता। तब दोन हँस पड़ते। और कभी
मॉ ं क खाट पै से बाप क खाट पै चला जाता और कभी रोके फर चला आता। यह दोन उसका तमाशा दे खा कर थे। जब
छोटे लाल कसी कार के संदेह म होता यह चाचा-चाचा कह के उससे लपट जाता उसका स दे ह जाता रहता। और उसे गोद
म उठा के खलाने लगता। और कभी कहता क न ह को अँ ेजी पढ़ाके ड़क कालेज म भेजगे और इंिज नयर बनावगे।
उसक घरवाल कहती क नह ं इ कू तो तम
ु वक ल बनाना। मेरा ताऊ आगरे म वक ल है । हजार पये मह ने क आमदनी
है और घर के घर है कसी का नौकर नह ं।
उ ह ने कहा सखु ी रहो लाला और फर बोले, सबसखु जी, यह लड़का बड़ा बु मान और भा यवाला होगा य क इसके
छ दे दॉतं ह, चौड़ा माथा है और हँसमख
ु है । इसक सगाई बड़े घर क लेना।
एक ब रयॉ ं ऐसा ह और हुआ था क यह अपनी ल डया को खशखश बराबर नत अफयन ू दया करे थी। वह इस लए
क वह अपने काम धंधे म लगी रह थी, वा चख-पन ू ी कया करती। ल डया नशे म खटोले पर पड़ी हुई खेला करती। एक
दन ल डया का जी अ छा नह ं था। रोवे बहुत थी। उसने जाना क इसका नशा उतर गया है , चने बराबर और दे द । थोड़ी
दे र पीछे मँह ु दे ई क मॉ ं ने दौलत राम को दक
ु म झाग-झाग हो गए। हुचक भरने लगी। यह हाल दे ख सख ु ान से बल
ु वाया।
वह हक म जी को लाया। तब उ ह ने र करने क दवा द । उससे कुछ आराम पड़ा और ल डया मरती-मरती बची।
दौलत राम क बहु क भनेल िजसका नाम न थया था, कोट पर रहे थी और कभी-कभी इसके पास आया करे थी।
उसका मा लक साहब लोग म कपड़े क फेर - फरा करे था। (द नानाथ कपड़े वाले क दक
ू ान पर नौकर था।) जब सायंकाल
को सारे दन का हारा-थका घर आता, नन
ू -तेल का झीकना ले बैठती। कभी कहती मझ
ु े गहना बना दे , रोती-झींकती, लड़ती-
भड़ती, उसे रोट न करके दे ती। कहती क फलाने क बहु को दे ख, गहने म लद रह है । उसका मा लक नत नयी चीज
लावै है । मेरे तो तेरे घर म आके भाग फूट गए। वह कहता, अर भागवान, जाने भगवान रो टय क य कर गज
ु ारा करे
है । तझ
ु े गहने-पाते क सझ
ू रह है ?
एक न सन
ु ती। रात- दन लेश रखती। वह द:ु खी होकर नकल गया और अपनी च ी भी नह ं भेजी।
एक दन वह अपनी भनेल से मलने आई थी। वह तो घर नह ं थी, छोटे लाल क बहु के पास चल गई। उसने बड़े
आदर स मान से उसे बठाया और पछ
ू ा क तु हारा या हाल है ? उसने सार वपता अपनी कह और यह भी कहा क मने
सन
ु ा है क बस ती का चाचा (बाप) जैपरु म ल मीच द सेठ क दक
ू ान पर मन
ु ीम है । तम
ु मेर तफ से एक ऐसी च ी
लख दो क वह हमको वहॉ ं बल
ु ा ले, वा आप यहॉ ं चला आए और जैसा मेरा हाल है उसके लखने म कुछ संदेह मत करो।
म जीते जी तु हारा गुण नह ं भल
ू ँग
ू ी। छोटे लाल क बहु ने यह च ी लखी-
वि त ी सव प र वराजमान सकल गण
ु नधान बसंती के लालाजी बस ती क चाची क राम-राम बंचना। िजस दन
ु यहॉ ं से गए हो बाल-ब चे मारे -मारे फरे ह। तन पै कपड़ा नह ं। पेट क रोट नह ं। कोई बात नह ं पछ
से तम ू ता क तम
ु
कौन हो। लोग अपने ब चे को मेले-ठे ले, सैर-तमाशे दखलाते फरे ह और तु हारे ब चे ग लय म डकराते फरे ह। मेर
ू ो। पॉचं वष तो इतने क ठन मालम
वपता का कुछ हाल मत पछ ू नह ं दये, पर तु इस काल म जो कुछ था सब बेच खाया।
और यह मझ
ु से खोट म त ि य के पास बैठने से ऐसा हुआ। जैसा मने कया, वैसा मने पाया। अब मेर प हल सी बु
नह ं रह । मेरा अपराध मा करो और हमको वहॉ ं बल ु यहॉ ं चले आओ। आगे और या लख?
ु ा लो या तम ूँ च ी लखी
आि वन ब द 4, सं 1926 ।
ं रहे है । दध
अ छे - ब छे को कहती क नत मॉदा ू नह ं पीता।
कसी के सामने दध
ू नह ं पलाती, न उसको दखलाती। गोद म ढँ क के बैठ जाती इस लए क कभी नजर न लग
जाय। नत टोने-टोटके, गंड-े तावीज करती रहे थी। जो कोई याना- दवाना आता, इससे पया-धेल मार ले जाता अथात ् जो
मख
ू ि य के काम ह, और उनसे कसी कार का लाभ नह ं है , क तु बड़ी हा न है , सब करती और अपनी दे वरानी को
सन
ु ा-सन
ु ा और ि य से कहती क ब हन, बेटा तो हुआ है जो वैर जीने दगे।
जब छोटे लाल क बहु मॉदं ह थी क एक लड़का और हुआ। उसका नाम मोहन र खा और उसको धा को इस कारण
दे दया क बीमार म ब चे क मॉ ं का दध
ू सख
ु गया था। इधर उसका इलाज होने लगा, उधर मोहन धा के पलने लगा।
धा का दो पये मह ना कर दया और यह कह दया क जब लड़के को तझ
ु से लगे राजी कर दगे।
वह म याने गॉवं म शहर से दो कोस अ तर से रहे थी। तीज- यौहार के दन आती, यौहार ले जाती और जब कभी
छोटे लाल वा उसका लाला घर होते, चौअ नी वा अठ नी धा को दे दे ते और उसक ल लो-प तो कर दे ते क घबराइयो मत,
इस घर से तझ
ु े बहुत कुछ मलेगा।
ं
छोटे लाल क बहु को तो जब ह आराम हो गया था। पॉचवे वष लड़के को धा से लेने क सलाह ठहर ।
बहु क गोद म लड़का रोने लगा ओर कहने लगा क म तो अपनी मॉ ं के पास जाऊँगा।
सबने कहा यह तेर मॉ ं है वह न माना और जाटनी क गोद म आ गया और कहने लगा क मॉ ं घर को चल।
यह सब जानते है क छोटे बेटे पर बहुत यार होता है , और पु से यारा या है ? िजसके घर म इतना धन-दौलत हो
उसके लाड़- यार का या ठकाना है ?
वह भी घर म से भाग जाता और बाप के हाथ म से माल छ न कर ले आता। उसम कभी दालसवी और कभी
ू ाह और इमत पाता और मॉ ं को दे दे ता। मॉ ं बड़े को तो दाद का लाडला बतलाती और छोटे को आप ऐसा चाहती क
बालश
आठ पहर अपनी ऑ ंखो के सामने रखती। कसी का भरोसा न करती। जहॉ ं आप जाती उसे साथ ले जाती। थोड़े ह दन म
उसे सौ तक गनती सखला द । नागर के सारे अ र बतला दये।
लाचार इनको बल
ु द शहर क सगाई रखनी पड़ी और िजस दन सगाई ल गई और न हे ट का करवा के उठा
दौलतराम क बहु उसी समय बाहर से आग लायी। च क पीसने बैठ । सर धोया और अपनी मर मॉ ं को याद कर बहुत
रोई।
छोटे लाल क बहु क मामा क बेट द ल से मेरठ म बवाह हुई आई थी। उसक बेट जब नौ वष क थी कोयल म
शवलाल ब नये के बेटे से बवाह गई थी और उसके भी एक ह बेटा था।
एक दन कोठे पर खड़ा पतंग उड़ा रहा था और पेच लड़ा रहा था। ऊपर को ि ट थी, आगे जो बढ़ा, धड़ाम दे
तमंिजले पर से नीचे आ रहा और प थर पर गरा। ह डय का चकनाचरू हो गया। सर म बहुत चोट लगी। दो दन िजया
तीसरे दन मर गया।
सो द ल वाल क ल डया दस वष क अव था म वधवा हो गई थी। करपी नाम था। बड़ी भोल -भोल ल डया थी।
ऊपर को नगाह उठा के नह ं दे खी थी। अपनी मासी से व णु सह नाम पढ़ लया था। नत पाठ कया करे थी और जाप
करे थी। कथा-वा ता सन
ु ती रहे थी। का तक और माघ त करती। मॉ ं ने तल
हाती। च ायण के ु सी का बवाह और
अन त चौदस का उ ापन करवा दया था। जग नाथ और ब नाथ के दशन भी कर आई थी। कभी-कभी अपनी मॉ ं के पास
मासी से मलने आया करे थी।
वह सन
ु के कहने लगी फर या क िजये, ब हन। लौ कक के ब भी तो नह ं कया जाता।
ं बनाई, द वे बले मह
दौलतराम क ल डया मु लया ने कनागत म गोबर क सॉझी ु ले क ल डये इख ी हो जातीं और
यह गीत गातीं।
ं र
सॉझी या ओढ़े या प हनेगी।
जब गीत गा लेतीं ल डय को चौले बाटे जाते। न हे और मोहन भी कभी-कभी ल डय के पास चले जाते और उनके
साथ गीत गाते।
एक दन बड़ा भाई तो चला आया था छोटा भाई वह ं बैठा रहा। नींद जो आयी, पड़के सो गया। जब ल डये गीत गा
के चल गयीं और मोहन घर नह ं गया तो उसक मॉ ं आई। दे खे तो धरती पर पड़ा सोवे है । गोद म उठा के ले गई। घर
जाकर दे खा तो एक हाथ म कड़ा नह ं और चोट के बाल कतरे हुए ह।
उसने अपनी सास से कहा। बहुतरे कोस-कटाई हुई। भगवान जाने कसने लया और यह काम कसने कया य क
बाहर से बड़ी ल डय भी तो आई थीं। पर तु दौलतराम क बहु का नाम हुआ और न स दे ह यह थी भी खोट ।
जब कभी ल डे ल डया के साथ खेलते हुई ताई-ताई करते इसके घर जाते, मँह
ु से न बोलती। माथे म तील बल डाल
लेती। भला बालक म या बैर वषवाद है ? यह तो भगवान के जीव ह। इनसे तो सबको मीठा बोलना चा हए।
सब ल डी-लार को दक ु ान से पैसा-पैसा रोज मला करे था। दौलत राम क बहु ने एक गु लक बना र खी थी सो
क है या और मु लया के पैसे उसी म गेरती जाती। वष दन पीछे जो गु लक को तोड़ा तो उसम यारह पये ।=)।। के पैसे
ं बना द ं। इन बात म तो बड़ी चतरु थी। और भी इसने इसी
नकले। सो मु लया क झॉवर कार से सौ पये जोड़ लये थे
और वह याजू दे र खे थे।
छोटे लाल क बहु ने एक पैसा भी नह ं जोड़ा था। जो ल डे लाये, सब खच करा दये। इस कारण केवल जोड़ने और
जमा करने के वषय म दौलत राम क बहु सराहने यो य थी।
एक दन मोहन सं या समय खेलते-खेलते घर म से बाहर चला आया। दवाल के दन थे। एक जआ ु र ने (जो दे खने
ु े खॉड़ं के खलौने दे ने को
म भला आदमी द ख पड़े था) आते ह मोहन को गोद म उठा लया और कहा क तेरे बाबा ने तझ
बल
ु ाया है और आज बाजार म बड़ा तमाशा होगा।
तम
ु जानो अपनी जान सबको यार है । बेचारा बालक डर गया और चप
ु हो रहा। उसने इसके कड़े, बाल और तगड़ी
उतार ल और बाय हाथ क उँ गल म जो सोने क अँगूठ थी उसकू ऐसा दॉतों से कच कचा कर खचा क उँ गल म लहू
नकलने लगा। फर इस नदयी ने उस बालक से पछ
ू ा क तू मझ
ु े प हचाने भी है ?
उसने कहा नह ं।
यह सन
ु और उसे एक गढ़े म ध का दे चंपत हुआ।
दाद मह
ु ले के ल ड के घर पछ
ू ने गई। उ ह ने कहा वह एक आदमी के साथ तमाशा दे खने दक
ु ान गया है ।
मह
ु ले और सारे शहर म ढूँढ़ फरे । कह ं कुछ पता न लगा। फर यह सलाह ठहर क कोतवाल म लखवाओ और
ढँ ढोरा पटवाओ। इसम पहर भर रात जाती रह । ि य रोव और च लाय। कभी गंगाजी का शाद और कभी हनम
ू ान के
बा यण बोले। मद के मँह
ु फ क पड़ रहे । औरत पर गु से ह क ल डे को इ ह ने खोया क य गहना पहनाया था?
मोहन के जान इनके गहने ने ल ।
दे खा तो एक ओर बालक सब
ु क रहा है उसी समय हुसन
ै ी प लेदार कूद पड़ा और मोहन-मोहन कह उसे उठा लया और
ऊपर ले आया।
दे खा तो सारा शर र लहुलह
ु ान हो रहा है । इसका कारण यह था क उस गढ़े म एक क कड़ का पेड़ था। जब उस
नदयी ने ध का दया था तो वह कॉटं पर जाकर गरा था फर उसे घर ले आये। बाबा ने दे खते ह छाती से लगा लया।
मॉ ं दाद गले लगाके बहुत रोयी। इतने म छोटे लाल भी जो मशाल ले के ढूँढ़ने गया था आन पहुँचा और मोहन को दे ख
बड़ा आन द हुआ। दौलतराम क बहु सबके सामने कहने लगी क अब मेरे जी म जी आया है । भगवान ने बड़ी दया क ।
पर तु मन क बात परमे वर ह जाने।
लाला ने सब लड़क -बाल के कड़े-बाल उतरवा दये और कह दया क फर कोई नह ं पहनाने पावे।
उ ह ने यह उ तर दया था क भाई मने तो घर-वर दोन अ छे दे ख लए ह। उनका बड़ा कुटु ब है । सादा चलन है ।
लड़का लखा-पढ़ा है । दक
ू ान का कारबार अपने हाथ से करे है और बड़ा चतरु है । पया-पैसा कसी क जा त नह ं। ऊपर क
ट प-टाप अ छ नह ं होती। मनु य को चा हए क िजतनी चादर दे खे उतने पॉवं पसारे । मझ
ु े यह बात अ छ नह ं लगती।
जैसे और हमारे ब नये हाट-हवेल गव रखके वा दक
ू ान म से हजार दो हजार पये जो बड़ी क ठनाई से पैदा कये ह,
बवाह म लगाकर बगड़ जाते ह।
जब बरात जीमने को आयी तो नौशा इस लए नह ं आया क वारे नाते नह ं िजमाते ह। सत पकवानी हुई थी। सबने
स न होकर खाया और जब जीम चक
ु े , मँढे के नीचे फेर को बैठ गए।
दलाराम पॉडें और एक ा मण ने जो सम धय क ओर था, मलकर बवाह करा दया। फेर पर से उठ के भरू बॉटं
और फर समधी जनवासे म चले गए।
जब कोई पहर भर दन चढ़ा, बरात म से लड़क को बल
ु ा भेजा क ब यावल जीम जाओ। दोपहर पीछे बेट वाले के
यहॉ ं से नौतनी गई। रात को बराती ताशे बजवाते जाज कय से गवाते, अनार और माहताबी छोड़ते जीमने आए।
वह बोले लाला तम
ु ने हमारा घर भर के बाहर भर दया।
फर दल
ु हा और दल
ु हन को पलंग पर बठा के धान बोये। ल डया रोने लगी क म तो सासू के नह ं जाऊँगी। उस
समय उसक मॉ,ं दाद और चाची समेत और जो ि य खड़ी थीं सब आँसू भर लायीं उन सबको रोते दे ख दौलतराम क
ऑ ंख म से भी ऑ ंसू नकल पड़े और कहने लगा बेट रोवे मत, तझ
ु े ज द बल
ु ा लगे। फर लड़क और लड़के को पालक
म बठा दया और बढ़ ु ाने दरवाजे तक सब बरादर के आदमी बारात को पहुँचाने आए। सम धय से राम-राम कर अपने-
अपने घर चले गए।
न हे क सगाई बल ु द शहर म झु नी-मु नी के यहॉ ं हुई थी। वह ख ती भरा कर थे। नाज का भाव जो गरा उ ह ने
अपनी चार ख ती बेच द ं। इसम उनकू दो हजार पये बन रहे । सो उ ह ने यह सलाह क क भाई ल डया का बवाह कर
दो। यह इसी के भाग के ह।
बवाह सझ
ु वा के सवसखु जी को एक च ी भेजी क सतवा तीज का बवाह न केवल सझ
ू े है बहुत शभ
ु भी है सो
तम
ु को रखना होगा और पीछे से नाई साहे च ी लेके आवेगा।
छोटे लाल ने कहा क प हले सवार लखी जायँ क कतनी ब हल जायँगी। तब दो जगह पछ
ू कर कराये कर लगे।
अगले दन यहॉ ं से बल
ु द शहर क च ी का उ तर लख दया गया है और थोड़े दन पीछे वहॉ ं से नाई साहे च ी ले
के आया। उसम सात बान ल डे के और पॉचं बान ल डया के लखे थे। तवास के दन सार बरादर को जेवनहार हुई। जो
जीवने नह ं आया, उसका परोसा घर बैठे गया। जब ल डा घोड़ी चढ़ लया रात को बारात चल द और हापड़ु जा ठहर । वहॉ ं
लाला ने प हले ह आदमी भेज दये थे क वहॉ ं जाकर ब शीधर से कह के बाग म कढ़ाई चढ़वा द। सो वहॉ ं सब सामान
तैयार था।
यह सन
ु कर सब ि यॉ ं हँस पड़ी और कहा तीन हुए। एक और कह दो।
यहॉ ं खो डये
़ म अथात ववाहवाल रात को अड़ौसन और बरादर क ि य इ
ी हुई। सबने गाया-बजाया। पैसा-पैसा
बेल का दया नाच-कूद हो रहा था क चौधर क बहु ने कहा-अर दौलतराम क बहु कहॉ ं है ?
छोटे लाल क बहु ने कहा नह ं जी, यहॉ ं तो उसे कसी ने आधी बात भी नह ं कह ।
ढोलक के बजते ह सब लग
ु ाई हँस पड़ीं।
जब कभी वह बढ़ ं
ू ा दौलतराम क बहु से पानी मॉगता वा और काम को कहता तो काम तो या करती, परं तु कहती
क उ ता मरता भी तो ना है । रात- दन कान खा है ।
वह कहता हॉ ं बहु सच है , हमार वह कहावत है -दॉतं घसे और खरु घसे, पीठ बोझ ना ले। ऐसे बढ़
ू े बैल को कौन बॉधं
भस
ु दे ।
बु ढया
़ उतनी नह ं थक गई थी। अपना काम अपने हाथ से कर ले थी। छोटे लाल क बहु से कहा करे थी अरे तेल के
बैल क तरह दन-भर इतना मत पले। मॉदं पड़ जायगी तो हम पानी कौन पकड़ावेगा? और बहु हमारे प के पात ह। आज
मरे कल दस
ू रा दन। तेरा क चा कुनबा है ।
वह बोले हक मजी कोई ऐसी औषधी दो क अबक ब रयॉ ं म बच जाऊँ और दौलतराम और छोटे लाल का साझा बाँट
दँ ।ू म जानू हूँ क मेरे पीछे फ़जीता होगा।
हक म जी तो चले गये। लाला बेटे-पोत क ओर दे ख ऑ ंसू भर लाये। उन दोन का जी भर आया। बेचार बु ढया
़ रोने
लगी।
छोटे लाल ने कहा क लाला जी, घबराओ मत। भगवान ने चाहा तो अ छे हो जाओगे।
ं
पॉचव दन लाला का हाल बेहाल हो गया। जब नाड़ी बहुत मंद पड़ गयी गंगाजल मँह
ु म डालने लगे और फर जमीन
पर उतार कर पंचर न मँह
ु म डाला।
जब लाला काल कर गये, बेटे हाय लालाजी-लालाजी कहते हुए बाहर आन बैठे। मरु दे के चार ओर ि यॉ ं घर आयीं
और रोने-पीटने लगीं। बाहर जब मह
ु ले और बरादर के लोग इक े हो गए, बमान बनाने क ठहर । ताशेवाले और जाजक
बल
ु ाये गये।
जब कोई मह
ु ले वा बरादर म से आता, यह कहता क लाला सवसख
ु जी बड़े भा यवान थे िजनके बेटे-पोते मौजद
ू ह।
उनका आज तो खश
ु ी का दन है ।
कोई कहता क सा हब जहॉ ं मल जाय थे प हले से प हले ह राम-राम कर ल थे। अ छा वभाव था।
परु ो हत जी बोले क महाराज, उ ह ने अपने जीते जी एक काम अ छा कया इस काल म िजतने कँगले आये सबको
पाव-पाव भर दाने दये।
जब दोन भाई भ हो चक
ु े , पंजर को उठा अ दर ले गए और मद
ु को हाला-धल
ु ा त त पर रख दया और एक
दोशाला ऊपर डाल दया और जर क झालर ऊपर लगायी चार ओर झं डयॉ ं लगायी गयीं।
एक पोते को घ डयाल
़ बजाने को द । शेष दोन म से एक को शंख, दस
ू रे को घ टा दया। सख
ु दे ई का बेटा शवदयाल
यहॉ ं म डी म मँज
ू बेचने आया था। नाना का मरना सन
ु ते ह भागा आया।
ु को मरघट म ले पहुँचे।
फर राम-राम स य कहते मद
औरत भी पीछे से सय
ू कु ड ं तमाशे रहे तीसरे दन जब उठावनी हो चक
हाने गयीं। तीन दन तक बड़े हॉसे ु , दसव
दन हान धोवन हुआ। यारव दन एकादशा म अचारज को बहुत माल दया और लाला के हुलास सँघ ू ने क चॉदं क
ड बया भी दे द । तेरहवीं के दन सार बरादर क जेवनार हुई। प का परोसा कया और मह ं
ु ले म भी बॉटा।
अगले दन से छोटे लाल नौकर पर जाने लगा। दौलतराम दक
ू ान के धंधे म लग गया। बु ढया
़ अब सु त रहने लगी।
दौलतराम क बहु के अ भमान का कुछ ठकाना नह ं रहा। ऐसी बढ़कर बात मारती और कहती क जो कुछ करे है , मेरा ह
मा लक करे है । और यह सार मेर ह मा लक क कमाई है ।
ं
छोटे लाल ने एक दन अपने घर म सलाह क क भाई तो सारा माल-मता दबा बैठा। साझा बॉटने के नाम से बात
नह ं करता। अब या कर? उसने कहा सन
ु ो जी हम या छाती पर रख कर ले जाऍगें और आगे कौन ले गया है ? बरादर
वाले कहगे क बाप के मरते ह फजीता हुआ। जब तक बु ढया
़ बैठ है , चप
ु ह रहो। आगे जो होगा दे खी जायगी। भगवान
का दया हमारे यहॉ ं भी सब कुछ है ।
दौलत राम क बहु बोल बाप का मरना तो बड़े बेटे ने कया मॉ ं का मरना छोटा बेटा करे गा।
बाहर मद म भी यह चचा फैल । दौलतराम ने एक न मानी। छोटे लाल का ह खच उठा। मॉ ं को बड़े गाजे बाजे के
साथ नकाला। प हले से अ छ बरादर क जेवनहार कर द ।
हा कम ने इस मक
ु दमे को पंचायत म भेज दया। पंच ने याय क र त से आधा बॉटं दया। दौलतराम को पंच का
कहा अंगीकार करना पड़ा य क उ ह ने समझा दया क जो तम
ु इसके न मानोगे और आगरे क सध
ु धरोगे तो बगड़
जाओगे।
म डी क दकू ान दौलत राम के पास रह । तसपर भी दौलत राम क बहु कहने लगी क हमक पंच ने लट
ु वा दया।
िजस हवेल म दोन भाई रह थे छोटे लाल के ह से म आई।
इस कारण दौलतराम को दस
ू र हवेल म जाना पड़ा। िजस दन दौलतराम क बहु उठ के गई चलती-चलती दो
खड कय के कवाड़ और चौखट उतार के ले चल । जँू ह दोवार पहुँची चौखट से ठोकर खा के गर ।