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भारत का भूगोल PCS Mantra 2024
भारत का भूगोल PCS Mantra 2024
भारत का भूगोल PCS Mantra 2024
भारत का भूगोल
Raj Holkar
PCS Mantra
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PCS Mantra भारत का भगू ोल राज होल्कर (+919650697922)
भारत की अवलथिलत : भारत की आकृ तत चतुष्कोणीय है। भारत, अक्ाांशीय दृति से उत्तरी गोलार्द्ध में तथित है तिा
देशान्तरीय दृति से पूर्वी गोलार्द्ध में तथित है। भारत का उत्तर-दतक्ण तर्वथतार 3,214 तकमी. तिा पूर्वध-पतिम की
चौड़ाई 2,933 तकमी. है। दोनों के बीच का अांतर 281 तकमी. है। भारत की जलर्वायु मानसूनी है इसका तर्वथतार उष्ण
तिा उपोष्ण दोनों कतिबांधों में है।
क्षेत्रफल : भारत का क्ेत्रफल 32,87,263 र्वगध तकमी. (तर्वश्व के क्ेत्रफल का 2.42 प्रततशत) है। क्ेत्रफल की दृति
से भारत का तर्वश्व में थिान सातर्वााँ है (रूस, कनाडा, चीन, अमेररका, ब्राजील एर्वां ऑथरेतलया के बाद) । भारत का
क्ेत्रफल रूस को छोड़कर यरू ोप के लगभग बराबर, कनाडा का एक ततहाई, रूस का पाचां र्वाां अश ां तिा जापान का
आठ गनु ा है।
भौगोललक लवथतार : भारत के मख्ु य थिलीय भू-भाग का अक्ाांशीय तर्वथतार 8°4’ से 37°6’ उत्तरी अक्ाश ां एर्वां
68°7’ से 97°25’ पूर्वी देशातां र के मध्य है। भारत भमू ध्य रे खा के उत्तर में 6°4’ से 37°6’ उत्तरी अक्ाांश एर्वां 68°7
से 97°25’ पर्वू ी देशातां र के मध्य तथित है। भारत का दतक्णतम तबदां ु इतां दरा पॉइिां (6°4’) पर अर्वतथित है।
मानक समय रेखा : 82°1/2 पूर्वी देशातां र भारत के लगभग मध्य से इलाहबाद के नैनी से होकर गजु रती है। इसे
भारत का मानक समय माना जाता है। भारत का मानक समय ग्रीनतर्वच समय से 5 घिां ा 30 तमनि आगे है। मानक
समय रे खा तजन राज्यों से होकर गजु रती है र्वे राज्य – उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओतडशा एर्वां आन्रप्रदेश।
ककक रेखा : ककध रे खा भारत के मध्य से होकर गुजरती है। ककध रे खा भारत के आठ राज्यों से होकर गुजरती है। र्वे
राज्य तजनसे ककध रे खा गुजरती है – गुजरात, राजथिान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखांड, पतिम बांगाल, तत्रपुरा एर्वां
तमजोरम
थिलीय सीमा : भारत की थिलीय सीमा की लांबाई 15,200 तकमी. है तिा भारत की मुख्य भूतम की तिीय सीमा
की लांबाई 6100 तकमी है। द्वीपों सतहत भारत की कुल तिीय सीमा की लांबाई 7,516.6 तकमी. है। भारत की कुल
सीमा की लांबाई 22,716.6 तकमी. {15,200 (थिलीय सीमा) + 7,516.6 (तिीय सीमा)}है।
जलीय सीमा :
1. प्रादेतशक समुद्री सीमा (Maritime Belt) : भारत की आधार रे खा से 12 समुद्री मील तक तर्वथतृत है। इस
क्ेत्र के सम्पूणध उपयोग करने के अतधकार भारत को प्राप्त हैं।
2. सांलग्न क्ेत्र (Contiguous Zone): भारत की आधार रे खा से 24 समुद्री मील तक तर्वथतृत है। इस क्ेत्र में
भारत को साफ़-सफाई, सीमा शुल्क की र्वसूली एर्वां तर्वत्तीय अतधकार प्राप्त हैं।
3. अनन्य आतिधक क्ेत्र (Exclusive Economic Zone) : भारत की आधार रे खा से 200 समुद्री मील तक
तर्वथतृत है। इस क्ेत्र में भारत को र्वैज्ञातनक अनुसांधान एर्वां नए द्वीपों के तनमाधण तिा प्राकृ ततक सांसाधनों के
तर्वदोहन के अतधकार प्राप्त हैं।
भारत के चतुलदकक सीमा के अंलतम ल ंदु :
दतक्णतम तबांदु : इतां दरा पॉइिां (ग्रेि तनकोबार द्वीप) उत्तरतम तबांदु : इांतदरा कॉल (जमू-कश्मीर)
पतिमोत्तर तबांदु : गौरमोता (गुजरात) पूर्वोत्तम तबांदु : तकतबिू (अरुणाचल प्रदेश)
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• भारत- ांग्लादेश सीमा (4096.7 लकमी.) [सवाकलिक] : भारत के पााँच राज्य – असम, मेघालय,
तत्रपुरा, तमजोरम तिा पतिम बांगाल की सीमा बाांग्लादेश को थपशध करती है। बाांग्लादेश से थपशध करती हुई
सर्वाधतधक लांबी सीमा रे खा प. बांगाल (2217 तकमी.) की है।
• भारत-चीन सीमा (3,488 लकमी.) : भारत के पाांच राज्य / कें द्र शातसत प्रदेश – तहमाचल प्रदेश, लद्दाख,
उत्तराखांड, तसतककम एर्वां अरुणाचल प्रदेश की सीमा चीन से लगती है। इस सीमा रे खा की सर्वाधतधक लांबाई
अरुणाचल प्रदेश में है।
• भारत-पाक सीमा (3,323 लकमी.) : भारत के पाांच राज्य / कें द्र शातसत प्रदेशों की सीमा पातकथतान को
थपशध करती है ये राज्य / कें द्र शातसत प्रदेश जम्मू-कश्मीर, राजथिान, लद्दाख, पांजाब एर्वां गुजरात हैं।
पातकथतान के साि सर्वाधतधक लांबी सीमा रे खा जम्मू-कश्मीर (1225 तकमी.) की है।
• भारत-नेपाल सीमा (1,751 लकमी.) : भारत के पाांच राज्य – उत्तराखांड, उत्तर प्रदेश, तबहार, प. बांगाल
एर्वां तसतककम नेपाल की सीमा को थपशध करते हैं। इन राज्यों में तबहार, नेपाल के साि सर्वाधतधक लम्बी
(729 तकमी.) सीमा बनाता है।
• भारत-मयामं ार सीमा (1,643 लकमी.) : भारत के चार राज्यों – अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मतणपुर तिा
तमजोरम की सीमा म्याांमार की सीमा रे खा को थपशध करती है। इस सीमा की सर्वाधतधक लम्बाई अरुणाचल
प्रदेश (520 तकमी.) में है।
• भारत-भूटान सीमा (699 लकमी.) : भारत के चार राज्यों – तसतककम, प. बांगाल, असम एर्वां अरुणाचल
प्रदेश की सीमा भूिान की सीमा रे खा को थपशध करती है। सर्वाधतधक लम्बाई असम (267 तकमी.) के साि
• भारत-अफगालनथतान सीमा (106 लकमी.)
लवलभन्न देशों के साि अंतराकष्ट्रीय सीमा नाने वाले राज्य / कें द्र शालसत प्रदेश :
• पूर्वी ति पर तथित तिीय राज्य : पतिम बांगाल, ओतडशा, आांर प्रदेश एर्वां ततमलनाडु (कुल 4 राज्य)
• पतिमी ति पर तथित राज्य : गुजरात, महाराष्र, गोर्वा, कनाधिक एर्वां के रल (कुल 5 राज्य)
• सर्वाधतधक लांबी तिरे खा र्वाले शीर्ध राज्य क्रमशः : गुजरात > आन्र प्रदेश > ततमलनाडु
भारत के भू-आवेलित राज्य (Landlocked States) : जम्मू-कश्मीर (अब कें द्र शातसत प्रदेश), तहमाचल प्रदेश,
पांजाब, हररयाणा, उत्तराखांड, राजथिान, उत्तर प्रदेश, तबहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखांड, तेलांगाना, तसतककम,
मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, असम, नागालैंड, मतणपुर, तत्रपुरा एर्वां तमजोरम
भारत के भूआवेलित प्रदेश / राज्य जो कोई अंतराकष्ट्रीय सीमा नहीं नाते :
1 मध्य प्रदेश 2. छत्तीसगढ़ 3. हररयाणा 4. झारखण्ड 5. तेलांगाना
भारत के राज्य क्षेत्रफल के अनुसार (घटते क्रम में) : राजथिान > मध्य प्रदेश > महाराष्र > उत्तर प्रदेश
भू-गभीय सांरचना की दृति से भारतीय उपमहाद्वीप को चार भौततक तर्वभागों में बाांिा जा सकता है –
मध्य जीर्वकल्प (Mesozoic) के अतां में गोंडर्वाना भतू म तिा अगां ारा भतू म के बीच तथित िेतिस सागर का
तल प्रदेश भूगभध की हलचलों के कारण ऊपर उठने लगा। उठते-उठते उसके जल ने गोंडर्वाना भूतम के कुछ तनचले
प्रदेशों को आर्वृत कर तलया। इसी के साि गोंडर्वाना महाद्वीप तर्वथिापन के प्रभार्व से िूि गया और उसके थिान पर
तहन्द महासागर की सृति हुई, परन्तु िेतिस सागर के तल प्रदेश का उत्िान इतने पर भी समाप्त नहीं हुआ। तर्वथिापन
के कारण एर्वां र्वलन के कारण भारतीय प्लेि यूरेतशयन प्लेि के साि तनरांतर र्वतलत होती रही और िेतिस सागर का
तल प्रदेश अतधकातधक ऊांचा उठता गया। पररणामथर्वरूप कुछ ऐसी पर्वधत श्रेतणयाां बनी तजन्हें हम चीन से लेकर
यूरोप तक फै ली हुई पाते हैं। इन्हें अल्पाइन समूह की पर्वधत श्रेतणयाां भी कहते हैं तजसका तहमालय पर्वधत एक भाग है।
तहमालय की उत्पतत्त ितशधयरी काल में हुई।
तहमालय तर्वश्व की नर्वीनतम मोडदार या र्वतलत पर्वधतमाला है। कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक तहमालय
पर्वधत श्रृांखला 2500 तकमी. लम्बाई में फै ली हुई है। पूर्वध में इसकी चौड़ाई 150 तकमी. तिा पतिम में 500 तकमी. है।
तहमालय पर्वधत श्रृांखला की औसत ऊाँचाई 6000 मीिर है। तहमालय पूर्वध की अपेक्ा पतिम में अतधक चौड़े होने का
कारण पतिम की अपेक्ा पूर्वध में दबार्व बल का अतधक होना है। दबार्व बल अतधक होने के कारण ही पूर्वी तहमालय
पतिमी तहमालय की अपेक्ा अतधक ऊांचा है।
उत्तरी पर्वधतीय प्रदेश को तीन भागों में बााँिा जा सकता है –
1. रासां तहमालय या ततब्बत तहमालय प्रदेश
2. तहमालय पर्वधतीय प्रदेश
3. पर्वू ाांचल की पहातड़याां
1. रांस लहमालय या लतब् त लहमालय प्रदेश : राांस तहमालय मूलतः यूरेतशयन प्लेि का एक खांड है।
इसका तनमाधण तहमालय से पूर्वध हो चक ु ा िा। पतिम में यह श्रेणी पामीर की गााँठ से तमल जाती है। इसका
मुख्य तर्वथतार जम्मू-कश्मीर राज्य में तिा ततब्बत में है। ततब्बत में तथित होने के कारण इसे ततब्बत तहमालय
प्रदेश भी कहा जाता है। यह अर्वसादी चट्टानों से बना है। इसमें ितशधयरी से लेकर कै तम्ब्रयन युग तक की
चट्टानें पायी जाती हैं। राांस तहमालय र्वृहद तहमालय से शचर जोन या तहन्ज लाइन के द्वारा अलग होता है।
इसकी लांबाई लगभग 965 तकमी. है। इस भाग में र्वनथपतत का अभार्व है।
B. लद्दाख श्रेणी : यह काराकोरम के दतक्ण में तथित है। लद्दाख श्रेणी का पूर्वी भाग कै लाश श्रेणी
(ततब्बत, चीन) है। तर्वश्व की सबसे खड़ी ढाल र्वाली चोिी ‘राकापोशी’ इस श्रेणी की सर्वोच्च पर्वधत
चोिी है।
C. जांथकर श्रेणी : यह लद्दाख के दतक्ण एर्वां महान तहमालय के उत्तर में तथित है। लद्दाख श्रेणी एर्वां
जाथां कर श्रेणी के बीच तसन्धु नदी घािी तथित है। इसका तर्वथतार जम्मू-कश्मीर एर्वां उत्तराखडां राज्यों में
है। ‘नगां ा पर्वधत’ इस पर्वधत श्रेणी की सबसे ऊांची चोिी है।
2. लहमालय पवकतीय प्रदेश : तहमालय पर्वधतीय प्रदेश तीन समानाांतर श्रृांखलाओ ां के रूप में है जो उत्तर से
दतक्ण क्रमशः तनम्नतलतखत प्रकार हैं –
A. र्वृहत तहमालय या आांतररक तहमालय या तहमातद्र
B. लघु तहमालय या तहमाचल श्रेणी
C. उप तहमालय या बाह्य तहमालय या तशर्वातलक श्रेणी
A. वृहत लहमालय या लहमालद्र : इसे तहमातद्र या सर्वोच्च या महान अिर्वा आांतररक तहमालय भी कहते हैं।
इसका आांतररक भाग आतकध यन शैलों जैसे – ग्रेनाइि, नीस तिा तशि शैलों से बना हुआ है तिा इसके तसरे
एर्वां पि भागों में कायाांतररत अर्वसादी शैल पायी जाती हैं। यह पतिम में नांगा पर्वधत से पूर्वध में नामचा बरर्वा
पर्वधत तक एक चाप की भााँती फै ला हुआ है। यह तसन्धु नदी के गॉजध से अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी के
मोड़ तक फै ली है। तर्वश्व की सर्वाधतधक ऊांची चोतियााँ जैसे – माउांि एर्वरे थि, कांचनजांगा, धौलातगरी,
अन्नपूणाध, मकालू, नांदा देर्वी, तत्रशूल, बद्रीनाि, नीलकांठ एर्वां के दारनाि आतद इसी श्रेणी में पायी जाती हैं।
माउांि एर्वरे थि (चोमो लुन्गमा) या सागरमािा इसकी सबसे ऊांची चोिी है। इस श्रेणी का ढाल उत्तर की ओर
मांद है जबतक दतक्ण की ओर तीव्र है। इस श्रेणी के मध्य भाग से गांगा, यमुना और उसकी सहायक नतदयााँ
आतद का उद्गम है। इसी श्रेणीको कािकर तसन्धु, ब्रह्मपुत्र एर्वां अलकनांदा ने पूर्वधर्वती घातियों (Antecedent
Valley) का तनमाधण तकया है। र्वृहद तहमालय , मध्य तहमालय से मेन सेन्रल थ्रथि के द्वारा अलग होता है।
पूर्वधर्वती नदी (Antecedent River) : ये र्वे नतदयााँ हैं तजनका तनमाधण थिल खांड में उत्िान से पहले हो
चक ु ा है। यतद नदी के मागध में थिल खडां का उत्िान होता है तो पर्वू धर्वती नदी ऊांचे उठे हुए थिल खडां को
कािकर अपने पुराने मागध एर्वां घािी को सुरतक्त रखती है।
अन्य तथ्य :
o तहमालय का सर्वोच्च तशखर : माउांि एर्वरे थि (इसे ततब्बत में चोमोलांगमा एर्वां नेपाल में सागरमािा
कहा जाता है) इसकी र्वतधमान ऊाँचाई 8,848.86 मीिर (तदसांबर, 2020 तक) है।
o भारत का सर्वोच्च तशखर : गॉडतर्वन ऑतथिन (माउांि K-2) है। र्वतधमान में यह पाक अतधकृ त
कश्मीर में तथित है।
o भारत में तथित तहमालय की सबसे ऊांची चोिी : कांचनजांघा (तसतककम और नेपाल की सीमा पर
तथित) है।
o महान तहमालय या र्वृहत तहमालय में पूर्वध की तुलना में पतिमी भाग में तहमरे खा की ऊाँचाई अतधक
है इसका कारण पतिमी भाग का अतधक शुष्क होना है।
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o इस पर्वधत श्रेणी में तथित दरे : बुतजधल दराध (कश्मीर), जोतजला दराध (लद्दाख), बारा लाप्चा ला
(तहमाचल प्रदेश), तशपकी ला (तहमाचल प्रदेश), िाांगला (उत्तराखांड), नािुला एर्वां जेलेप ला
(तसतककम)
B. लघु लहमालय या लहमाचल श्रेणी : इसका तर्वथतार मुख्य तहमालय के दतक्ण में है। ये पर्वधत प्री-कै तम्ब्रयन
तिा पैतलयोजोइक चट्टानों से बने हुए हैं। पीरपांजाल श्रेणी इसका पतिमी तर्वथतार है। इसकी चौड़ाई 80 से
100 तकमी. के बीच है। इसकी ऊांचाई 3700 से 4500 मीिर के बीच है। इस श्रेणी में पीरपांजाल तिा
बतनहाल दो प्रमुख दरे हैं। इसके ढालों पर कोंणधारी र्वन तिा छोिे-छोिे घास के मैदान पाए जाते हैं तजन्हें
कश्मीर में मगध (जैसे- गुलमगध, सोनमगध) एर्वां उत्तराखांड में बुग्याल और पयार कहते हैं तिा मध्यर्वती भागों
में दआ
ु र एर्वां दनू कहते हैं (जैसे – हररद्वार एर्वां देहरादनू )। तर्वर्वतधतनकी दृति से यह तहमालय प्रायः शाांत है।
भारत के प्रतसर्द् थर्वाथथ्यर्वधधक थिान जैसे – तशमला (धौलाधार श्रेणी में तथित) , मसूरी, नैनीताल, रानीखेत,
दातजधतलांग आतद लघु तहमालय के तनचले भाग में अिाधत लघु तहमालय और तशर्वातलक श्रेणी के बीच में
तथित हैं। मध्य तहमालय तिा तशर्वातलक तहमालय के बीच मेन बाउांड्री फॉल्ि पायी जाती है।
लघु तहमालय के अांतगधत कई छोिी-छोिी श्रेतणयाां हैं जो तनम्नतलतखत हैं –
1. पीरपांजाल श्रेणी
2. धौलाधार श्रेणी
3. नागतिब्बा श्रेणी
4. महाभारत श्रेणी
C. लशवाललक श्रेणी या ाह्य लहमालय : यह तहमालय की सबसे बाहरी एर्वां नर्वीनतम श्रेणी है। इसका
तनमाधण काल मध्य मायोसीन से तनम्न प्लीथिोसीन अिाधत सेनेजोइक युग में माना जाता है। तशर्वातलक श्रेणी
लघु तहमालय के दतक्ण में अर्वतथित है। इसका तर्वथतार पतिम में पांजाब के पोतर्वार बेतसन से प्रारांभ होकर
पर्वू ध में कोसी नदी तक है। तहमाचल प्रदेश एर्वां पजां ाब में यह अतधक चौड़ा है जबतक पूर्वध में यह क्रमशः
सक ां रा होता जाता है। यह तहमालय पर्वधत श्रृख ां ला का नर्वीनतम भाग है। इसे गोरखपरु के समीप ‘हडां र्वा
श्रेणी’ तिा पर्वू ध में ‘चरू रया मरू रया श्रेणी’ कहा जाता है। तशर्वातलक को अरुणाचल प्रदेश में डफला, तमरी,
अबोर और तमशमी पहातड़यों के नाम से जाना जाता है। तशर्वातलक को लघु तहमालय से अलग करने र्वाली
घातियों को पतिम में दनू एर्वां परू ब में द्वार कहते हैं।
3. पवू ाांचल की पहालियां : ये भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में फै ली हैं। इनमें से कई भारत एर्वां म्याांमार की
सीमा रे खा के साि फै ली हैं तिा कई देश के आांतररक तहथसे में हैं। जैसे – पिकई बुम, नागा पहातड़याां तिा
तमजो पहातड़याां आतद।
• लसन्िु का मैदान : भारत में इसका सतलज बेतसन ही आता है अतः भारत में इसे सतलज का मैदान भी
कहते हैं। तसन्धु नदी के पतिम का मैदान बाांगर से बना है जबतक पूर्वध में तथित मैदान डेल्िाई है।
• पंजा -हररयाणा का मैदान : यह पतिम में तथित मैदानी भाग है जो पांजाब एर्वां हररयाणा में फै ला हुआ
है। इसमें सतलज, व्यास एर्वां रार्वी नतदयााँ बहती हैं। यह मुखतः बाांगर से तनतमधत है लेतकन नतदयों के तकनारे
एक सांकरी पट्टी में खादर भूतम भी पायी जाती है तजसे थिानीय भार्ा में ‘बेि’ कहा जाता है।
• गगं ा का मैदान : इस मैदान का तर्वथतार उत्तर प्रदेश, तबहार एर्वां पतिम बगां ाल राज्यों में है। इस मैदान की
गहराई अतधक है। गगां ा के मैदान को धरातल के तर्वचार से दो भागों में बाांिा गया है –
o बाांगर : यह प्राचीन जलोढ़ तमट्टी से तनतमधत मैदान है। खादर की तुलना में यह अतधक ऊांचा होता
है। इस प्रदेश में बाढ़ का पानी सामान्यतः नहीं पहुचाँ पाता। बाांगर तमट्टी के कुछ क्ेत्रों में अत्यतधक
तसांचाई के कारण कहीं-कहीं भूतम पर नमक की सफ़े द परत जम जाती है तजसे ‘रे ह’ या ‘कल्लर’
कहते हैं। बाांगर भूतम को दो क्ेत्रीय तर्वभेद कर सकते हैं –
▪ बाररांद मैदान : बगां ाल के डेल्िाई क्ेत्रों में तथित यह र्वाथततर्वक रूप से गगां ा का प्राचीन
डेल्िा है।
▪ भूर (Bhur) क्ेत्र : इसका तनमाधण हर्वा द्वारा तनक्ेपण से हुआ है। यह आज बाांगर उच्च
भूतम पर एक लगातार किक के रूप में पाया जाता है। इसमें बालू की मात्रा अतधक पायी
जाती है।
o खादर : यह नर्वीन जलोढ़ के जमा होने से बना है। यह अपेक्ाकृ त नीचा प्रदेश होता है। यहााँ नतदयों
की बाढ़ का पानी लगभग प्रततर्वर्ध पहुचाँ ता है तजससे यह उपजाऊ बना रहता है। तबहार, पर्वू ी उत्तर
प्रदेश एर्वां पतिम बांगाल के र्वैसे प्रदेश जो नदी घातियों से सिे हैं, खादर के अांतगधत आते हैं। पांजाब
में यह ‘बेि’ कहलाता है।
• ब्रह्मपुत्र का मैदान : इसको असम घािी भी कहते हैं। यह मेघालय पठार और तहमालय पर्वधत के बीच में
एक लम्बा और पतला मैदान है। यह के र्वल 80 तकमी. चौड़ा है ब्रह्मपुत्र नदी ने इस घािी को बनाने में यहााँ
पर भारी मात्रा में तमट्टी का तर्वसजधन तकया है तमट्टी के इस जमार्व के कारण कहीं कहीं द्वीप भी तनतमधत हो गए
हैं। माजुली द्वीप इसी प्रकार का द्वीप है जो तर्वश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप है। ब्रह्मपुत्र नदी सातदया के तनकि
मैदान में प्रर्वेश करती है और 720 तकमी. बहने के पर धुबरी के तनकि दतक्ण की ओर मुड़कर बाांग्लादेश
में प्रर्वेश कर जाती है।
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o कनाधिक का पठार
4. पूर्वी पठार
o बघेलखडां का पठार
o छत्तीसगढ़ का पठार
o दांडकारण्य
o छोिा नागपरु का पठार
o मेघालय का पठार
5. पूर्वी घाि पर्वधत
6. पतिमी घाि पर्वधत
अरावली पवकत : यह एक अर्वतशि पर्वधत है। यह तर्वश्व के प्राचीनतम मोडदार पर्वधतों में से एक है। अरार्वली की
लबां ाई 1100 तकमी. है। यह तदल्ली से अहमदाबाद तक फै ला हुआ है। यह मालर्वा के पठार के उत्तर पतिम में तथित
है। अरार्वली पर्वधत का सर्वोच्च तशखर ‘गुरुतशखर’ है।
दलकन का पठार : यह पठार ताप्ती नदी के पतिम में फै ला हुआ है। यह उत्तर पतिम में सतपुड़ा तिा तर्वन्ध्याचल,
उत्तर में महादेर्व और मैकाल, पूर्वध में पूर्वी घािी तिा पतिम में पतिमी घािी से तघरा हुआ है।
तक्रिेतशयस तिा पूर्वध ितशधयरी काल में होने र्वाले ज्र्वालामुखी उद्गार से तनकले बेतसक लार्वा से इसका
तनमाधण हुआ है। इसका सामन्य ढाल उत्तर तिा उत्तर पतिम से दतक्ण तिा दतक्ण पूर्वध की ओर है इसी कारण इस
पठार से तनकलने र्वाली नतदयााँ पूर्वधर्वातहनी हैं। ताप्ती नदी इसकी उत्तरी सीमा बनाती है। यह पठार मध्य प्रदेश, महाराष्र,
आांरप्रदेश, कनाधिक तिा गुजरात राज्यों के भागों में फै ला हुआ है। इस पठार को तीन उप-तर्वभागों में तर्वभातजत
तकया जा सकता है जो तनम्नतलतखत हैं –
• दलकन का लावा पठार (महाराष्ट्र) : मूलतः यह लार्वा तनतमधत बेसाल्ि से बना है। लार्वा की गहराई
2000 तकमी. तक है। इसकी औसत ऊांचाई 300-900 मीिर है।
• तेलंगाना का पठार : इसका फै लार्व आांरप्रदेश के आांतररक भागों में है। इसका उत्तरी तहथसा पठारी है एर्वां
दतक्णी तहथसा मैदान के रूप में है। यह तालाब तनमाधण के तलए अनुकूल थिलाकृ तत है। इसी कारण इस क्ेत्र
में तालाब अतधक पाए जाते हैं। गोदार्वरी नदी इस पठार को दो भागों में तर्वभातजत करती है।
• मैसूर (कनाकटक) का पठार : यह मुख्यतः आतकध यन ग्रेनाइि तिा नीस चट्टानों से बना है लेतकन बांगलुरु
से मैसूर के मध्य लार्वा पठार भी पाए जाते हैं। दतक्ण की ओर यह नीलतगरी पर्वधत द्वारा सीमाबर्द् है।
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बाबाबूदन की पहातड़यााँ इस पठार का तहथसा हैं अतः लौह अयथक की दृति से यह धनी है। कार्वेरी मैसूर के
पठार पर बहने र्वाली मुख्य नदी है। कनाधिक में शरार्वती नदी पर जोग या गााँधी या गरसोप्पा जल प्रपात
तथित है।
पवू क के पठार :
• घेलखंड का पठार : यह मैकाल श्रृांखला के पूर्वध में तथित है। इसके उत्तर में सोनपुर की पहातड़याां एर्वां
दतक्ण में रामगढ़ की पहातड़याां तथित हैं। मध्य भाग पूर्वध से पतिम की ओर ऊांचा है।
• छत्तीसगढ़ का पठार : यह बघेलखांड पठार के दतक्ण में तथित है। यहााँ कुडप्पा सांरचना की चट्टानें तमलती
हैं। इस पठार में र्वेनगांगा की घािी तिा महानदी का ऊपरी बेतसन सतम्मतलत है। इस पठार की ऊाँचाई दतक्ण
की ओर बढती जाती है।
• दंडकारण्य पठार : यह छत्तीसगढ़ तिा आांरप्रदेश के सीमार्वती क्ेत्र में तथित है। यह आतकध यन चट्टानों से
बना ऊबड़-खाबड़ पठार है।
• छोटानागपरु का पठार : यह उत्तरी-पूर्वी सीमार्वती पठार है। पारसनाि की पहातड़याां इसी पर तथित हैं। इस
पठार पर बहने र्वाली प्रमुख नतदयों में महानदी, सोन, दामोदर एर्वां थर्वणधरेखा नदी प्रमुख हैं। यह खतनज
पदािों की दृति से अत्यतधक धनी पठार है।
• मेघालय का पठार : इसे तशलॉांग का पठार भी कहते हैं। यह छोिानागपुर पठार का समकालीन पठार है।
यह अत्यांत किा-छांिा एर्वां र्वनों से भरा पठार है। इसमें गारो पहातड़याां, खासी, जयतन्तया एर्वां तमतकर पहातड़याां
भी शातमल हैं। इस पठार पर बहने र्वाली प्रमुख नतदयााँ ददु नई एर्वां कै सनई हैं।
पूवी घाट पवकत : ये पर्वधत पूर्वी समुद्र तिीय मैदान के समानाांतर महानदी की घािी से दतक्ण में नीलतगरी तक
उत्तर-पर्वू ध से दतक्ण-पतिम तदशा में फै ले हुए हैं। इनकी लबां ाई 1800 तकमी. है। ये अर्वतशि पर्वधत हैं एर्वां इनका तर्वकास
कुडप्पा सरां चना से हुआ है। ये श्रृखां ला ओतडशा से ततमलनाडु तक है। पतिमी घाि पर्वधत की तल ु ना में इसका अपरदन
अतधक हुआ है अतः उसकी तल ु ना में यह कम ऊाँचा है। नदी अपरदन के कारण इसकी क्रमबर्द्ता भी लगभग समाप्त
हो चक ु ी है। पर्वू ी घाि पर्वधत का सर्वोच्च तशखर तर्वशाखापत्तनम चोिी है इसका दसू रा सर्वोच्च तशखर महेंद्रतगरर है।
पलिमी घाट पवकत : इन पर्वधतों का फै लार्व नमधदा घािी से लेकर कन्याकुमारी तक है। इसे सह्यातद्र भी कहते हैं।
यह तहमालय के बाद भारत की दसू री सबसे लांबी पर्वधत श्रेणी है। इसे दो भागों में बाांिा जा सकता है –
• उत्तरी सह्यालद्र : उत्तरी सह्यातद्र की ऊपरी सतह पर लार्वा तनक्ेप है। उत्तरी सह्यातद्र का सर्वोच्च तशखर
‘कालसुर्वाई’ है। उत्तरी सह्यातद्र में दो दरे तथित हैं –
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नीलतगरर पहाड़ी : नीलतगरी की पहाड़ी एक थिलाकृ ततक गााँठ है जहााँ पूर्वीघाि पर्वधत एर्वां पतिमी घाि पर्वधत आकर
तमलते हैं। नीलतगरर का सर्वोच्च तशखर दोदाबेट्टा है जो दतक्ण भारत का दसू रा सर्वोच्च तशखर है। दतक्ण भारत का
सर्वोच्च तशखर अनाईमुड़ी है यह अन्नामलाई पर्वधत की चोिी है।
तटीय मैदान एवं द्वीप : तिीय मैदानों को दो भागों में तर्वभातजत तकया जाता है –
• पतिमी तिीय मैदान
o गुजरात का मैदान
o कोंकण ति मैदान
o कनाधिक तिीय मैदान
o मालाबार तिीय मैदान
• पर्वू ी तिीय मैदान
o उत्कल मैदान
o आांर या काकीनाडा मैदान
o ततमलनाडु या कोरोमडां ल तिीय मैदान
पलिमी तटीय मैदान : इस मैदान का तर्वथतार सरू त से कन्याकुमारी या खम्भात की खाड़ी से कुमारी अतां रीप
तक अरब सागर के ति और पतिमी घाि के बीच है। पतिमी तिीय मैदान की अतधकतम चौड़ाई गुजरात में नमधदा
एर्वां तापी के मुहाने के करीब (80 तकमी.) है। पतिमी तिीय मैदान में बहने र्वाली नतदयााँ छोिी एर्वां तीव्रगामी होती
हैं। अतधकतर नतदयााँ मुहाने पर डेल्िा न बनाकर ज्र्वारनदमुख (एिुअरी) का तनमाधण करती हैं। पतिम ति पर पिजल
(Backwaters) पाए जाते हैं तजन्हें के रल में ‘कयाल’ कहते हैं। उदाहरण – बेम्बनाद एर्वां अिामुड़ी।
पिजल (Backwaters) : यह एक प्रकार का लैगून होता है तजसका तनमाधण नतदयों के मुहाने पर बालू के जमार्व
के कारण बनता है।
पतिम मैदान को चार भागों में बााँिा जा सकता है –
A. गजु रात का मैदान : गजु रात का तिर्वती क्ेत्र
B. कोंकण का मैदान : दमन से गोर्वा के बीच का तिर्वती क्ेत्र
C. कन्नड़ (कनाधिक) का मैदान : गोर्वा से मांगलोर के बीच का तिर्वती क्ेत्र
D. मालाबार का मैदान : मांगलोर से कन्याकुमारी के बीच का तिर्वती क्ेत्र
• गजु रात का मैदान : यह सौराष्र से सरू त तक तर्वथतृत है। इसका ढाल पतिम तिा दतक्ण-पतिम की ओर
है। इसका भीतरी क्ेत्र कााँप तमट्टी के कारण उपजाऊ है तकन्तु तिीय क्ेत्रों में ज्र्वार का जल भरते रहने से
नमकीन दलदल अतधक पाए जाते हैं। ति पर सरक्रीक, कोरीक्रीक, कच्छ की खाड़ी एर्वां खांभात की खाड़ी
है, तजसके कारण यह ति काफी कांिा-फिा है।
• कोंकण का तटीय मैदान : यह दमन से लेकर गोर्वा तक फै ला हुआ है। इस मैदान में र्वर्ाध अतधक होती
है। यह काफी उपजाऊ है। अतः यहााँ आम, नाररयल, चार्वल आतद अतधक पैदा होते हैं। िालघाि एर्वां
भोरघाि के दरे क्रमशः मुांबई एर्वां गोर्वा के दतक्ण-पूर्वध में तथित हैं। इस मैदान में बहने र्वाली नतदयों का उत्तर
से दतक्ण की ओर क्रम – तपांजल, बसाक, भोगरार्वाां तिा जुआरी है।
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• कनाकटक (मैसूर) का तटीय मैदान : यह मैदान गोर्वा से मांगलोर तक फै ला हुआ है। इसका उत्तरी भाग
सांकरा जबतक दतक्णी भाग अतधक चौड़ा है। र्वर्ाध की अतधकता एर्वां ताप अनुकूलता के कारण सुपारी,
गरम मसाले, के ला, आम-नाररयल एर्वां चार्वल अतधक पैदा तकए जाते हैं। यहााँ पर पूर्वध की ओर ढाल पाया
जाता है तिा सीढीनुमा ढालों पर काजू, के ला, आम, सुपारी, कहर्वा एर्वां कालीतमचध की बागाती कृ तर् की
जाती है। नतदयों का उत्तर से दतक्ण क्रम – कातलांदी, शरार्वती एर्वां नेत्रार्वती है।
• माला ार का तटीय मैदान : यह मांगलोर से कुमारी अांतरीप तक फै ला हुआ है। इसमें लांबे और सांकरे
अनूप (Lagoon या कयाल पाए जाते हैं। पेररयार इस मैदान में बहने र्वाली सबसे लांबी नदी है। यह ति कााँप
एर्वां महीन लैिराइि तमट्टी से तनतमधत है। यहााँ की जलर्वायु उष्ण एर्वां आद्रध है। यहााँ पर रबर, नाररयल, तसनकोना,
पान, कहर्वा, गरम मसाला, लेमन एर्वां अन्य फल तिा रोशाघास आतद के फामध पाए जाते हैं। चाय उभरे हुए
ढालों पर पैदा की जाती है। धान एर्वां गन्ना की कृ तर् तनचले मैदानों में अतधक की जाती है। ति पर कई
आतण्र्वक खतनज (मोनोजाइि, तजरकॉन) पाए जाते हैं।
पूवी तटीय मैदान : यह मैदान पूर्वी घाि एर्वां समुद्री ति के बीच थर्वणधरेखा नदी से कन्याकुमारी तक फै ला है।
यह मैदान पतिमी तिीय मैदान की तुलना में अतधक चौड़ा है इसका मुख्य कारण गोदार्वरी, कृ ष्णा एर्वां कार्वेरी जैसी
नतदयों द्वारा डेल्िा का तनमाधण करना है। पूर्वी तिीय मैदान में बांदरगाहों की सांख्या पतिमी तिीय मैदान की अपेक्ा
कम है।
इसे महानदी एर्वां गोदार्वरी नतदयों के बीच ‘उत्तरी सरकार ति’ तिा कृ ष्णा एर्वां कार्वेरी नतदयों के बीच
‘कोरोमांडल ति’ कहा जाता है। पूर्वी तिीय मैदान में गोदार्वरी और कृ ष्णा नतदयों के डेल्िाई भाग में ‘कोलेरू झील
(आांरप्रदेश)’ अर्वतथित है यह एक डेल्िाई झील है। पूर्वी तिीय मैदान में ही अन्य दो झीलें तचल्का (ओतडशा) एर्वां
पुतलकि झील (आांरप्रदेश एर्वां ततमलनाडु की सीमा पर) अर्वतथित हैं। ये दोनों अनूप झील (Lagoon Lake) हैं।
तचल्का झील भारत की सबसे बड़ी लैगून नमकीन झील है।
पर्वू ी तिीय मैदान को सामान्यतः 3 उप-भागों में तर्वभक्त करते हैं –
• उत्कल का तटीय मैदान : यह गांगा के डेल्िा से कृ ष्णा के डेल्िा तक लगभग 400 तकमी. तक तर्वथतृत
है। महानदी के डेल्िा में यह अतधक चौड़ा है यहााँ ज्र्वारीय र्वन फै ले हैं। तमट्टी उपजाऊ होने के कारण चार्वल
एर्वां जूि की खेती की जाती है।
• आंध्र या काकीनाडा का तटीय मैदान : यह बेहरामपुर (आांर प्रदेश) से तिीय भाग में पुतलकि झील
तक फै ला हुआ है। यह पूणधतः समतल एर्वां उपजाऊ अर्वसादों के जमार्व के कारण सुप्रर्वातहत एर्वां तसांतचत
भाग है। यहााँ नाररयल, के ला, चार्वल, गन्ना, जूि, तम्बाकू, कपास, ततलहन, दलहन आतद अतधक पैदा
तकए जाते हैं। इस ति पर तर्वशाखापत्तनम, काकीनाडा एर्वां मसु लीपत्तनम प्रमख
ु बदां रगाह हैं।
• तलमलनाडु या कोरोमंडल का तटीय मैदान : यह मैदान पुतलकि झील से लेकर कुमारी अांतरीप तक
लगभग 675 तकमी. तक फै ला हुआ है। सम्पूणध तिीय भाग में कार्वेरी, पेन्नार, पालर, र्वैगई आतद नतदयााँ
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सम्पणू ध मैदानी भाग को हरा-भरा, समतल एर्वां तर्वशेर् उपजाऊ बना देती हैं। यहााँ पर धान, के ला, गन्ना,
नाररयल, ततलहन, फल एर्वां सतब्जयाां खूब पैदा की जाती हैं। चेन्नई, तूतीकोरन एर्वां नागपत्तनम यहााँ के मुख्य
बांदरगाह हैं। मन्नार की खाड़ी मोततयों के तलए प्रतसर्द् है।
पलिमी एवं पूवी तटीय मैदानों की तुलना :
पलिमी तटीय मैदान पवू ी तटीय मैदान
यह सांकरा तिा अतधक आद्रध है। यह चौड़ा तिा अपेक्ाकृ त शुष्क है।
यहााँ छोिी एर्वां तीव्रगामी नतदयााँ बहती हैं जो डेल्िा यहााँ बड़ी-बड़ी नतदयााँ (कृ ष्णा, कार्वेरी, गोदार्वरी,
बनाने में असमिध होती हैं तिा ज्र्वारनदमखु (एिअ ु री) महानदी) बहती हैं तिा बड़े बड़े डेल्िा का तनमाधण
का तनमाधण करती हैं। करती हैं।
इस मैदान के दतक्णी भाग में अनेक लैगून हैं। इस मैदान में लैगून की सांख्या कम है।
पतिमी ति अतधक किा-फिा है इस कारण यहााँ पर पर्वू ी ति कम किा-फिा है और इसी कारण यहााँ
अतधक बांदरगाह हैं। बांदरगाह भी अपेक्ाकृ त कम हैं।
• अडां मान एर्वां तनकोबार द्वीप समहू मलू तः ितशधयरी यगु में बने सागरीय र्वतलत पर्वधतों के समद्रु में उभरे भाग
हैं। यहााँ लगभग 350 द्वीप हैं तजनमें के र्वल 38 द्वीपों पर मानर्व अतधर्वास है। अडां मान-तनकोबार द्वीप समहू
की सर्वोच्च चोिी सैडल पीक (उत्तरी अडां मान में 738 मी.) है। इस द्वीप समहू में से एक ‘बैरन द्वीप’ भारत
का एक मात्र सतक्रय ज्र्वालामुखी है।
• क्ेत्रफल एर्वां आबादी की दृति से अडां मान-तनकोबार द्वीप समहू लक्द्वीप की तल
ु ना में बड़ा है।
• भारत का सबसे दतक्णतम तबदां ु ‘इतां दरा पॉइिां ’ ग्रेि तनकोबार में तथित है।
• 10° चैनल अडां मान को तनकोबार से अलग करता है।
• ‘डांकन दराध (डांकन पास)’ दतक्णी अडां मान और लघु अडां मान के बीच है।
• अांडमान का दसू रा ज्र्वालामुखी नारकोंडम है जो सुप्त अर्वथिा में है।
• अांडमान की राजधानी पोिध ब्लेयर दतक्णी अांडमान में तथित है।
• अांडमान-तनकोबार द्वीप समूह का सबसे उत्तरी द्वीप लैंडफॉल द्वीप है।
• अांडमान-तनकोबार द्वीप समूह पर पाया जाने र्वाला नृजातीय समूह –
o ओजां ेस (तनग्रोइड प्रजातत)
o सेंिीनेलीज (तनग्रोइड प्रजातत)
o जारर्वा (तनग्रोइड प्रजातत)
o शोम्पेन (मांगोलॉइड प्रजातत)
o अांडमानी (तनग्रोइड प्रजातत)
o तनकोबारी (मांगोलॉइड प्रजातत)
( ) अर सागर के द्वीप : इसके अांतगधत लक्द्वीप समूह के 36 द्वीप (10 आर्वातसत) को सतम्मतलत तकया जाता
है। ये मुख्यतः तभतत्तयों के जमार्वों से बने हैं। इनमें सबसे दतक्ण में तमतनकॉय तथित है जो मालदीर्व से आठ तडग्री
चैनल द्वारा पृिक तकया जाता है।
लक्द्वीप समूह : यह द्वीप अरब सागर में तथित है। इस द्वीप समूह का तनमाधण लक्द्वीप-चैगोस अन्तः सागरीय किक
के ऊपर प्रर्वाल के तनक्ेप से हुआ है। भारत के समुद्री भाग में पाए जाने र्वाले एिॉल मुख्यतः लक्द्वीप में पाए जाते
हैं। ‘एिॉल’ प्रर्वाल तभतत्त का एक प्रकार है जो अांगूठी या घोड़े की नाल की आकृ तत का होता है। एिॉल उच्च जैर्व-
तर्वतर्वधता के क्ेत्र हैं। द्वीपों के चारों ओर प्रर्वाल तभतत्तयाां पायी जाती हैं तजन पर नाररयल के र्वृक् हैं। लक्द्वीप समूह
के अांतगधत 36 द्वीप हैं तजनमें 10 पर मानर्व अतधर्वास है।
• कार्वारत्ती लक्द्वीप की राजधानी है। आगाती यहााँ का एकमात्र द्वीप है जहााँ हर्वाई अड्डा है।
• एांड्रोि लक्द्वीप समूह का सबसे बड़ा द्वीप है।
• नाररयल यहााँ का एकमात्र कृ तर् उत्पाद है। मत्थयन यहााँ का मुख्य पेशा है। ‘िूना मछली’ यहााँ पकड़ी जाने
र्वाली प्रमुख मछली है।
• यहााँ तथित ‘तपट्टी द्वीप’ को पक्ी अभ्यारण्य घोतर्त तकया गया है।
• यहााँ की लगभग 94 प्रततशत जनसाँख्या मतु थलम धमाधर्वलबां ी है जो सन्ु नी सम्प्रदाय से सबां धां रखती है।
• यहााँ तमतनकॉय द्वीप को छोड़कर सभी द्वीपों पर ‘मलयालम’ भार्ा बोली जाती है। तमतनकॉय में ‘महल
भार्ा’ बोली जाती है। महल भार्ा मल
ू तः मालदीर्व की भार्ा है।
• लक्द्वीप का दतक्णतम द्वीप तमतनकॉय है जो 9° चैनल जलधारा द्वारा शेर् द्वीपों से अलग होता है।
• लक्द्वीप एर्वां मालदीर्व 8° चैनल जलधारा द्वारा परथपर अलग होते हैं।
• 11° अक्ाश ां के सहारे लक्द्वीप को दो भागों में तर्वभक्त तकया जाता है। उत्तरी भाग को ‘अमीनीदीर्वी’ कहते
हैं एर्वां दतक्णी भाग को ‘कन्नानोर’ कहते हैं।
(स) अपतटीय द्वीप : लक्द्वीप और अडां मान समहू के द्वीपों के अततररक्त भारत के पतिमी ति, पूर्वी ति, गगां ा
डेल्िा एर्वां मन्नार की खाड़ी में कई द्वीप तथित हैं। जैसे- पम्बन (मन्नार की खाड़ी), श्री हररकोिा (पुतलकि झील),
व्हीलर (महानदी-ब्राह्मणी मुहाना), न्यूमूर (गांगा डेल्िा) द्वीप।
• श्रीहररकोिा द्वीप : यह पुतलकि झील के अग्र भाग में अर्वतथित है। यह प्रर्वाल तनतमधत द्वीप है।
• पम्बन द्वीप : यह मन्नार की खाड़ी में भारत और श्री लांका के बीच तथित है। यह आदम तब्रज का भाग है।
• न्यू मूर द्वीप : यह द्वीप बांगाल की खाड़ी में बाांग्लादेश तिा भारत की सीमा पर अर्वतथित है। दोनों देशों के
बीच इस पर अतधकार को लेकर तर्वर्वाद बना हुआ है। गांगा के मुहाने पर मलबों के तनक्ेप से बना यह अतत
नर्वीन द्वीप है।
एक तनधाधररत जलमागध द्वारा जल के प्रर्वाह को अपर्वाह कहा जाता है। इस प्रकार कई जलमागों के जाल को अपर्वाह
तत्रां कहते हैं। नतदयों और उनकी सहायक नतदयों के द्वारा प्राकृ ततक अपर्वाह तांत्र का तर्वकास होता है।
अपर्वाह प्रततरूप को प्रभातर्वत करने र्वाले कारक :
तहमालयी नतदयााँ मैदानी भागों में लम्बी दरू ी तय करती प्रायद्वीपीय नतदयााँ मागध में जलप्रपात बनने तिा जल की
हैं तिा नाव्य (नौकायन योग्य) होती हैं। मात्रा घिने-बढ़ने के कारण नौकायन के अनक ु ू ल नहीं
होती ये नतदयााँ डेल्िाई भागों में नौकायन योग्य होती हैं।
मैदानी भागों में बहने के कारण तिा भू-भाग के भुरभुरे प्रायद्वीपीय नतदयााँ कठोर चट्टानी भू-भाग से होकर
होने के कारण नतदयााँ तर्वसपध का तनमाधण करती हैं। बहती हैं। कई नतदयााँ भ्रांश घातियों से होकर बहती हैं।
इनका मागध सीधा एर्वां रे खीय होता है। नमधदा, तापी आतद
भ्रश
ां घातियों में बहने के कारण रे खीय प्रर्वाह तर्वकतसत
करती हैं।
तहमालयी नतदयााँ प्रायः मुहाने पर डेल्िा का तनमाधण प्रायद्वीपीय नतदयााँ मुहाने पर प्रायः ज्र्वारनदमुख
करती हैं। (एिअ ु री) या छोिे डेल्िा का तनमाधण करती हैं।
तसन्धु नदी के बाएाँ एर्वां दाएां दोनों ओर से कई तहमालयी सहायक नतदयााँ आकर तमलती हैं। तसन्धु नदी की
बायीं ओर से तमलने र्वाली नतदयों में सतलज, व्यास, रार्वी, तचनाब, झेलम, जाथकर, सोहन, थयाांग, तशगार प्रमुख है
तिा तसन्धु नदी में दायीं ओर से तमलने र्वाली नतदयााँ श्योक, काबुल, कुरध म, तोची, गोमल एर्वां तगलतगत हैं। अिक
के पास काबुल नदी इससे तमलती है तजससे आगे यह कुरध म, तोच, झोब-गोमल, तर्वबोआ के जल को एकतत्रत करते
हुए पजां ाब के उपजाऊ मैदान में प्रर्वेश करती है। यह तचल्लास के तनकि पातकथतान में प्रर्वेश करती है। पातकथतान में
मीठनकोि के तनकि इसमें पचां नद (सतलज, व्यास, तचनाब, रार्वी एर्वां झेलम) की सयां क्तु धारा तमलती है और अतां
में यह कराची (पातकथतान) के पर्वू ध में अरब सागर में तमल जाती है।
लसन्िु नदी की सहायक नलदयााँ :
झेलम नदी : झेलम तसन्धु नदी की सहायक नदी है यह र्वेरीनाग (कश्मीर) के तनकि शेर्नाग झील से तनकलती है।
श्रीनगर के तनकि र्वल
ु र झील से प्रर्वातहत होने के बाद यह सांकरे गॉजध से होकर पातकथतान में पहुचाँ ती है। पातकथतान
में यह तचनाब नदी में तमल जाती है अतः यह तचनाब नदी की भी सहायक नदी है। झेलम नदी लगभग 170 तकमी.
तक भारत-पाक सीमा बनाती है। झेलम नदी पर जम्मू-कश्मीर में तुलबुल पररयोजना एर्वां उरी पररयोजना चलायी जा
रही हैं।
लचना नदी : तचनाब, चन्द्र और भागा नाम की दो सररताओ ां के तमलने से बनी है। ये दोनों सररताएां के लाांग के
तनकि तांडी में तमलती हैं। यह सतम्मतलत धारा चन्द्रभागा के नाम से तहमाचल प्रदेश से उत्तर पतिम तदशा में बहती है
और जम्मू-कश्मीर में तचनाब नाम से प्रर्वेश करती है। तचनाब नदी को झेलम और रार्वी नतदयों से जल प्राप्त होता है।
तचनाब, तसन्धु नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है। तचनाब नदी पर तनतमधत प्रमुख जल पररयोजनाएां – सलाल
पररयोजना, बगतलहार पररयोजना एर्वां दल ु हथती पररयोजना हैं।
रावी नदी : इस नदी की उत्पतत्त तहमाचल प्रदेश में रोहताांग दरे के पास कुल्लू पर्वधत से होती है। माधोपुर के तनकि
यह पांजाब में प्रर्वेश करती है और अमृतसर से 26 तकमी. नीचे पातकथतान में प्रर्वेश करती है। रांगपुर के तनकि यह
तचनाब में तमल जाती है। यह तचनाब की सहायक नदी है। रार्वी नदी पर तनतमधत प्रमुख पररयोजनाएां – चमेरा पररयोजना
(तहमाचल प्रदेश) एर्वां िीन पररयोजना (पांजाब एर्वां तहमाचल प्रदेश की सांयुक्त पररयोजना) हैं।
व्यास नदी : इस नदी की उत्पतत्त रोहताांग दरे के पास से हुई है। पोंग के तनकि व्यास नदी मैदानी भाग में प्रर्वेश करती
है। हररके नामक थिान (व्यास एर्वां सतलज का सांगम) पर ‘हररके बैराज’ से भारत की सबसे लांबी नहर ‘इतां दरा गाांधी’
नहर तनकाली गयी है। पोंग पररयोजना व्यास नदी पर ही तनतमधत है।
सतलज नदी : सतलज नदी मानसरोर्वर के नजदीक राकस ताल (ततब्बत) से तनकलती है। यह एक पूर्वधर्वती नदी है
जो तहमालय को कािकर तशपकी ला दराध से होकर भारत में प्रर्वेश करती है। व्यास नदी हररके में सतलज से तमलती
है। सतलज नदी रोपड़ नामक थिान पर मैदानी भाग में प्रर्वेश करती है। सतलज नदी 120 तकमी. लम्बी भारत-पाक
सीमा बनाती है। सतलज नदी मीठनकोि से िोडा ऊपर तसन्धु नदी से जा तमलती है।
गांगा प्रारांभ में दतक्ण तदशा में तफर दतक्ण-पूर्वध तदशा में पुनः पूर्वध तदशा में बहती हुई जब पतिम बांगाल में
पहुचाँ ती है तो भागीरिी और हुगली नाम की दो प्रमुख तर्वतररकाओ ां में बांि जाती है।मुख्य नदी बाांग्लादेश में चली
जाती है जहााँ र्वह पहले पद्मा और बाद में मेघना नाम से बहती हुई बांगाल की खाड़ी में तगर जाती है।
गगं ा की सहायक नलदयों का सगं म :
नदी संगम थिल नदी संगम थिल
अलकनदां ा देर्व प्रयाग सोन पिना
रामगांगा कन्नौज गांडक हाजीपुर
यमुना प्रयागराज कोसी भागलपुर
गोमती गाजीपरु महानदां ा मालदा
घाघरा छपरा
पंचप्रयाग :
प्रयाग संगम
देर्वप्रयाग भागीरिी – अलकनांदा
रूद्र प्रयाग अलकनदां ा – मांदातकनी
कणध प्रयाग अलकनांदा – तपांडार
नन्द प्रयाग अलकनांदा – मांदातकनी
तर्वष्णु प्रयाग धौलीगांगा – तर्वष्णु गांगा
चम ल नदी : चम्बल मध्य प्रदेश के मालर्वा पठार पर तथित ‘मह’ के तनकि जानापार्व की पहातड़यों से तनकलती
है। यह पहले उत्तर तदशा में राजथिान के कोिा तजले तक एक गॉजध से होकर गुजरती है बाद में यह बूांदी, सर्वाईमाधोपुर
और धौलपुर से होती हुई अांत में उत्तर प्रदेश के इिार्वा तजले में यमुना नदी में तमल जाती है। चम्बल नदी अपनी
‘उत्खात भूतम (Badland Topography) या अर्वनातलका अपरदन’ के तलए प्रतसर्द् है। उत्खात भूतम को यहााँ
‘बीहड़’ कहा जाता है। चम्बल नदी की प्रमुख सहायक नतदयााँ – बनास, तक्प्रा, कालीतसांध एर्वां पार्वधती नदी हैं।
के न नदी : यह मध्य प्रदेश के सतना तजले में तथित कै मरू की पहातड़यों से तनकलती है एर्वां बाांदा तजले के तनकि
यमुना नदी में तमल जाती है।
ेतवा नदी : इसका उद्गम कुमरा गााँर्व (तजला-रायसेन) में तर्वन्ध्य पर्वधत श्रृांखला से होता है। प्राचीन काल में इसे
‘नेत्रर्वती’ के नाम से जाना जाता िा। यह मध्य प्रदेश में बहती हुई ओरछा के तनकि उत्तर प्रदेश में प्रर्वेश करती है।
बेतर्वा मध्यप्रदेश एर्वां उत्तर प्रदेश की सीमा बनाती है। उत्तर प्रदेश के हमीरपुर तजले में यह यमुना नदी में तमल जाती
है। इस नदी पर बनी सबसे प्रमुख पररयोजना मातािीला है।
टोंस नदी : परु ाणों में इसका उल्लेख ‘तमसा’ नाम से प्राप्त होता है। यह गगां ा की सहायक नदी है। इसका उद्गम
सतना तजले में कै मूर की पहातड़यों से होता है। यह उत्तर प्रदेश में तसरसा के पास गांगा नदी में तमल जाती है।
सोन नदी : इसका नाम सोण, सुर्वणध या शोणभद्रा भी िा। यह गांगा नदी की सहायक नदी है। इसका उद्गम अमरकांिक
(तजला-अनपू परु ) में तर्वन्ध्य पर्वधत श्रृख
ां ला की मैकाल पहातड़यों से सोनभद्र नामक थिान से होता है। यह उत्तर प्रदेश
में प्रर्वेश कर तफर झारखण्ड में प्रर्वेश कर तबहार में प्रर्वेश करती है तिा अतां में पिना के तनकि गगां ा नदी में तमल
जाती है। इस पर तनतमधत सबसे प्रमख ु पररयोजना बाणसागर पररयोजना (मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एर्वां तबहार की सयां क्त
ु
पररयोजना) है।
ूढी गंगा : यह नदी भारत-नेपाल सीमा के तनकि सुमेर पहातड़यों के पतिम ढलानों से तनकलकर गांगा से तमलती
है।
कोसी नदी : कोसी नदी सात जलधाराओ ां से तमलकर बनी है। इसकी मख्ु य धारा अरुण नदी है जो तहमालय के
उत्तर में ततब्बत के ‘गोसाईिान
ां चोिी’ से तनकलती है। यह तबहार के काढ़ागोला (कुरसेला) नामक थिान पर गांगा
नदी से तमलती है। यह नदी अपना मागध बदलने के तलए प्रतसर्द् है। इस नदी में पतिम तखसकार्व की प्रर्वृतत्त है। नदी
के कारण उत्पन्न बाढ़ की तर्वभीतर्का के कारण इस नदी को तबहार का शोक कहा जाता है।
महानंदा नदी : यह दातजधतलांग की पहातड़यों से तनकलती है। भारत में यह गांगा के बाएाँ ति पर तमलने र्वाली अांततम
सहायक नदी है।
चम ल पररयोजना : यह राजथिान और मध्य प्रदेश की सतम्मतलत पररयोजना है। इस योजना के तहत चम्बल
नदी पर तीन जगह बााँध बनाया गया है। मध्य प्रदेश में चौरासीगढ़ नामक थिान पर बााँध बनाया गया है तजसके पीछे
तथित जलागार का नाम ‘गाांधी सागर’ रखा गया है। राजथिान में रार्वतभािा एर्वां कोिा में बााँध बनाया गया है।
रार्वतभािा में तथित जलागार का नाम ‘महाराणा प्रताप सागर’ तिा कोिा में तथित जलागार का नाम ‘जर्वाहर सागर’
रखा गया है।
दामोदर घाटी पररयोजना : यह अतर्वभातजत तबहार (र्वतधमान झारखडां ) की और पतिम बगां ाल की सतम्मतलत
पररयोजना है। यह भारत की पहली (र्वर्ध 1948) बहुउद्देश्यीय पररयोजना है। इस पररयोजना का मॉडल सांयुक्त राज्य
अमेररका की िेनेसी नदी घािी की योजना पर आधाररत है। यह एक बहुउद्देश्यीय नदी घािी पररयोजना है तजसमें जल
तर्वद्युत से अतधक ताप तर्वद्युत उत्पादन होता है। बोकारो, दगु ाधपुर तिा चन्द्रपुरा में ताप तर्वद्युत कें द्र हैं। इसमें मैिन,
ततलैया एर्वां बाल पहाड़ी नामक जगह पर जल तर्वद्युत उत्पन्न की जा रही है।
दामोदर नदी पर दगु ाधपुर में बैराज बना कर नहर तनकाली गयी है तजसका प्रयोग तसांचाई के तलए होता है।
बाढ़ की तर्वभीतर्का के कारण दामोदर नदी को ‘बांगाल का शोक’ कहा जाता है। इस पररयोजना का मूल उद्देश्य बाढ़
तनयांत्रण िा।
मयूराक्षी पररयोजना : यह अतर्वभातजत तबहार (र्वतधमान झारखांड) एर्वां पतिम बांगाल की सांयुक्त पररयोजना है।
झारखांड के दमु का तजले में मयूराक्ी नदी पर बााँध बनाया गया है। इसे ‘कनाडा बााँध’ भी कहते हैं।
प्रर्वाह की तदशा के आधार पर प्रायद्वीपीय नतदयों को दो भागों में तर्वभातजत तकया जा सकता है –
1. पूर्वधर्वातहनी नतदयााँ : महानदी, गोदार्वरी, कृ ष्णा, पेन्नार एर्वां कार्वेरी
2. पतिम बातहनी नतदयााँ : साबरमती, माही, नमधदा, तापी एर्व पेररयार
पूवकवालहनी नलदयााँ :
महानदी : महानदी अमरकांिक के दतक्ण में तसांहार्वा (छत्तीसगढ़) के तनकि से तनकलती है। यह नदी ओतडशा में
बहती हुई बगां ाल की खाड़ी में तगरती है। हीराकांु ड बााँध इसी पर तनतमधत है।
गोदावरी : गोदार्वरी, प्रायद्वीपीय भारत की सबसे लांबी नदी है। आयु, आकार और लांबाई के कारण इसे ‘दतक्ण
गांगा’ या ‘र्वृर्द् गगां ा’ कहते हैं। यह महाराष्र के नातसक तजले में पतिमी घाि पर तथित त्र्यांबक नामक जगह से
तनकलती है। इन्द्रार्वती, प्राणतहता, पूणाध एर्वां दधु र्वा आतद गोदार्वरी की प्रमुख सहायक नतदयााँ हैं।
कृष्ट्णा : पूर्वध की ओर बहने र्वाली यह नदी प्रायद्वीपीय भारत की दसू री सबसे लांबी नदी है। यह महाबलेश्वर के
तनकि पतिमी घाि से तनकलती है। तुांगभद्रा एर्वां भीमा इसकी प्रमुख सहायक नतदयााँ हैं। कोयना, पांचगांगा, घािप्रभा,
मालप्रभा, दधू गांगा एर्वां मूसी इसकी अन्य सहायक नतदयााँ हैं। यह चापाकार डेल्िा बनाते हुए बांगाल की खाड़ी में
तगरती है। आांरप्रदेश में नागाजुधन सागर बााँध एर्वां कनाधिक में अल्मािी बााँध कृ ष्णा नदी पर ही है।
पेन्नार (उत्तरी) : यह कनाधिक के नांदीदगु ध पहाड़ी से तनकलती है। आांरप्रदेश में बहती हुई यह बांगाल की खाड़ी में
तगरती है।
पेन्नार (दलक्षणी) : यह के शर्व की पहाड़ी (कनाधिक) से तनकलती है और उत्तरी पेन्नार के दतक्ण में बहते हुए
बांगाल की खाड़ी में तगरती है।
कावेरी : यह कनाधिक राज्य के कुगध तजले की ब्रह्मतगरी की पहातड़यों से तनकलती है। इसके ऊपरी जलग्रहण क्ेत्र
(कनाधिक) में दतक्ण-पतिम मानसनू से तिा तनचले जलग्रहण क्ेत्र (ततमलनाडु) में उत्तरी-पूर्वी मानसनू से र्वर्ाध होने
के कारण इस नदी में र्वर्ध भर जल प्रर्वाह बना रहता है। कार्वेरी नदी की द्रोणी का 56 प्रततशत भाग ततमलनाडु में 41
प्रततशत भाग कनाधिक में एर्वां 3 प्रततशत भाग के रल में है। कार्वेरी नदी एक चतभु धजु ाकार डेल्िा का तनमाधण करती है।
इस नदी के मागध में कई प्राकृ ततक जल प्रपात हैं तजनमें तशर्वसमद्रु म (कनाधिक) एर्वां होगेनकल (ततमलनाडु)
प्रतसर्द् हैं। कार्वेरी नदी जब कनाधिक के कोडागू पहाड़ी से आगे बढती है तो उच्चार्वच में अांतर के कारण जुड़र्वााँ
जलप्रपातों गगनचकु की (पतिमी) एर्वां भाराचकु की (पूर्वी) का तनमाधण करती है जो सतम्मतलत रूप से तशर्वसमुद्रम
जलप्रपात के नाम से जाने जाते हैं।
महाराष्र एर्वां गुजरात से होकर बहती है। सरदार सरोर्वर, महेश्वर, नमधदा सागर एर्वां ओकां ारे श्वर बाांधों के साि नमधदाघािी
पररयोजना इसी नदी पर तथित है।
ताप्ती / तापी नदी : यह मध्य प्रदेश के बैतूल तजले में मुल्ताई से तनकलती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी पूणाध है।
यह नदी भ्रांश घािी में बहती है और सूरत के आगे खांभात की खाड़ी में तगरती है।
पेररयार नदी : यह के रल की प्रमुख नदी है। यह अन्नामलाई की पहातड़यों से तनकलती है तिा बेम्बनाद झील के
उत्तर में अरब सागर में तगरती है।
शरावती जल-लवद्युत पररयोजना : यह पररयोजना कनाधिक के तशमोगा तजले में शरार्वती नदी पर तक्रयातन्र्वत की
गयी है। इसके अांतगधत भारत के सबसे ऊांचे जल प्रपात जोग (महात्मा गाांधी) पर जल तर्वद्युत उत्पादन कें द्र थिातपत
तकया गया है। इसके जलागार का नाम ‘तलांगनमककी जलागार’ है।
इडुलकी पररयोजना : यह के रल के इडुककी तजले में पेररयार नदी पर तथित के रल की सबसे बड़ी जल तर्वद्युत
पररयोजना है।
पररम कुलम अललयार योजना : यह के रल एर्वां ततमलनाडु की सयां क्तु योजना है। इसके अतां गधत अन्नामलाई पर्वधत
की छः नतदयों तिा मैदानी क्ेत्र की दो नतदयों के जल का उपयोग तकया गया है।
भारत की झीलें
लववतकलनक झील : इन झीलों का तनमाधण भूकांप तक्रया द्वारा या पृथ्र्वी की आांतररक हलचलों द्वारा होता है। जैसे
– र्वल
ु र झील (कश्मीर) । यह भारत में मीठे पानी की सबसे बड़ी झील है।
क्रेटर झील (ज्वालामुखी लक्रया द्वारा लनलमकत) : इस प्रकार की झीलों का तनमाधण ज्र्वालामुखी तक्रया द्वारा
होता है। ज्र्वालामख
ु ी तक्रया द्वारा तनतमधत क्रेिर में पानी भरने से इन झीलों का तनमाधण होता है जैसे - महाराष्र की
लोनार झील
लैगून झील / अनूप झील : इनका तनमाधण समुद्र तिीय भागों में होता है। जैसे – तचल्का झील ओतडशा। यह
भारत की सबसे बड़ी लैगून झील है। अन्य लैगून झील : पुलीकि झील (आांर प्रदेश एर्वां ततमलनाडु), अिमुडी
झील (के रल), कोलेरू झील (आांर प्रदेश)
लहमानी लनलमकत झील : इनका तनमाधण तहमातनयों डी द्वारा होता है जैसे – राकसताल, नैनी ताल, सातताल,
भीम ताल आतद।
प्लाया झील : इनका तनमाधण र्वायु के तनक्ेपों द्वारा होता है। इसके प्रमुख उदाहरण – राजथिान की साांभर,
डीडर्वाना, पांचपदरा एर्वां लूणकरणांसर आतद झीलें।
राज्यवार भारत की प्रमुख झीलें
झील सं लं ित राज्य झील सं लं ित राज्य
र्वल
ू र झील, डल झील, जम्मू-कश्मीर राकसताल, नैनीताल, उत्तराखडां
शेर्नाग, अनांत नाग, सातताल, भीमताल,
बैरीनाग, नातगन झील, खरु पाताल, समताल, पनू ाताल,
मानसबल, गांधारबल नौकुतछयाताल, देर्वताल, रूप
कांु ड
लोनार झील, पोर्वई झील, महाराष्र लोकिक झील मतणपरु
गोरे र्वाडा झील, सलीम अली
सरोर्वर
तचल्का झील ओतडशा सरू जकुण्ड झील हररयाणा
पुतलकि झील आरां प्रदेश एर्वां फुल्हर झील उत्तर प्रदेश
ततमलनाडु
अष्ठमड़ु ी झील, बेम्बनाद, के रल उतमयम झील मेघालय
पेररयार झील
कोलेरू झील आांर प्रदेश नल सरोर्वर, नारायण सरोर्वर गुजरात
साभां र झील, डीडर्वाना, राजथिान चपनाला झील असम
पांचपदरा, लूनकरणसर,
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भारत की प्रमख
ु घालटयााँ
घािी राज्य / अर्वतथितत तर्वशेर्
मुखाध घािी लद्दाख
कश्मीर घािी जम्मू-कश्मीर
नुब्रा घािी लद्दाख तसयातचन ग्लेतशयर से तनकलने र्वाली नुब्रा नदी द्वारा तनतमधत
सरुु घािी लद्दाख
पार्वधती घािी तहमाचल प्रदेश
तकन्नौर घािी तहमाचल प्रदेश सेर्व उत्पादन के तलए प्रतसर्द्
पाांगी घािी तहमाचल प्रदेश
कुल्लू घािी तहमाचल प्रदेश धौलाधार एर्वां पीरपजां ाल श्रेतणयों के बीच अर्वतथित
साांगला घािी तहमाचल प्रदेश इसका अन्य नाम बाथपा घािी भी है
चम्बा घािी तहमाचल प्रदेश चम्बा, भारमौर, डलहौजी एर्वां खतज्जयर पयधिक थिल इसी में
काांगड़ा घािी तहमाचल प्रदेश
मालना घािी तहमाचल प्रदेश तहमाचल प्रदेश का छोिा यनू ान के रूप में प्रतसर्द्
सोर घािी उत्तराखांड
नेलाांग घािी उत्तराखांड गांगोत्री नेशनल पाकध में तथित
जोहार घािी उत्तराखांड इसके अन्य नाम तमलाम घािी एर्वां गोरी गांगा घािी भी हैं
फूलों की घािी उत्तराखांड
जुकु घािी नागालैंड
यूिाांग घािी तसतककम हॉि तथप्रांग्स के तलए प्रतसर्द्
अराकू घािी आरां प्रदेश
नेओरा घािी दातजधतलांग (प. बांगाल)
कम्बम घािी ततमलनाडु
शाांत घािी के रल जैर्व तर्वतर्वधता के तलए प्रतसर्द्
जलवायु : तकसी थिान अिर्वा देश में लम्बे समय के तापमान, र्वर्ाध, र्वायुमांडलीय दबार्व तिा पर्वनों की तदशा र्व
र्वेग का अध्ययन र्व तर्वश्लेर्ण जलर्वायु कहलाता है। सम्पूणध भारत को जलर्वायु की दृति से उष्णकतिबांधीय मानसूनी
जलर्वायु र्वाला देश माना जाता है।
भारत में उष्णकतिबांधीय मानसूनी जलर्वायु पायी जाती है। मानसून शब्द की उत्पतत्त अरबी भार्ा के
‘मौतसम’ शब्द से हुई है। मौतसम शब्द का अिध ‘पर्वनों की तदशा का मौसम के अनुसार उलि जाना’ होता है। भारत
में अरब सागर एर्वां बांगाल की खाड़ी से चलने र्वाली हर्वाओ ां की तदशा में ऋतुर्वत पररर्वतधन हो जाता है इसी सन्दभध
में भारतीय जलर्वायु को मानसूनी जलर्वायु कहा जाता है।
भारतीय जलवायु को प्रभालवत करने वाले कारक :
• तथितत एर्वां अक्ाांशीय तर्वथतार : भारत उत्तरी गोलार्द्ध में तथित है एर्वां ककध रे खा भारत के लगभग मध्य से
होकर गुजरती है अतः यहााँ का तापमान उच्च रहता है। ये भारत को उष्णकतिबांधीय जलर्वायु र्वाला क्ेत्र
बनाती है।
• समुद्र से दरू ी : भारत तीन ओर से समुद्र से तघरा हुआ है भारत के पतिमी ति, पूर्वी ति एर्वां दतक्ण भारतीय
क्ेत्र पर सामुतद्रक जलर्वायु का प्रभार्व पड़ता है तकन्तु उत्तरी भारत, उत्तर-पतिमी भारत एर्वां उत्तरी-पूर्वी भारत
पर सामुतद्रक जलर्वायु का प्रभार्व नगण्य है।
• उत्तरी पर्वधतीय श्रेतणयाां : तहमालयी क्ेत्र भारत की जलर्वायु को प्रभातर्वत करता है यह मानसून की अर्वतध
में भारतीय क्ेत्र में र्वर्ाध का कारण भी बनता है तिा शीत ऋतु में ततब्बत्तीय क्ेत्र से आने र्वाली अत्यांत शीत
लहरों में रुकार्वि पैदा कर भारत को शीत लहर के प्रभार्वों से बचाने के तलए एक आर्वरण या दीर्वार की
भूतमका तनभाता है।
• भ-ू आकृ तत : भारत की भू-आकृ ततक सांरचना पहाड़, पठार, मैदान एर्वां रे तगथतान भी भारत की जलर्वायु को
प्रभातर्वत करते हैं। अरार्वली पर्वधत माला का पतिमी भाग एर्वां पतिमी घाि का पूर्वी भाग आतद र्वर्ाध की कम
मात्रा प्राप्त करने र्वाले क्ेत्र हैं।
• मानसूनी हर्वाएां : मानसूनी हर्वाएां भी भारतीय जलर्वायु को प्रभातर्वत करती हैं। हर्वाओ ां में आद्रधता की मात्रा,
हर्वाओ ां की तदशा एर्वां गतत आतद भारतीय जलर्वायु को प्रभातर्वत करती हैं।
• ऊध्र्वध र्वायु सांचरण (जेि थरीम) : जेि थरीम ऊपरी क्ोभमण्डल में आमतौर पर मध्य अक्ाांश में भूतम से 12
तकमी. ऊपर पतिम से पूर्वध तीव्र गतत से चलने र्वाली एक र्वायु धारा का नाम है। इसकी गतत सामान्यतः
150-300 तकमी. प्रतत घांिा होती है।
• उष्णकतिबांधीय चक्रर्वात और पतिमी तर्वक्ोभ : उष्णकतिबांधीय चक्रर्वात का तनमाधण बांगाल की खाड़ी
और अरब सागर में होता है और यह प्रायद्वीपीय भारत के बड़े भू-भाग को प्रभातर्वत करता है।
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C तक बढ़ जाता है तिा शीत काल में तापमान 27° C तक रहता है। इन जलर्वायु प्रदेशों में र्वर्ाध मुख्यतः
ग्रीष्मकाल में होती है शीतकाल शुष्क होता है।
7. लघु ग्रीष्मकाल युक्त आद्रध जलर्वायु (DFc प्रकार) : इस प्रकार की जलर्वायु तसतककम, अरुणाचल प्रदेश
और असम (तहमालय का पूर्वी भाग) के तहथसों में पायी जाती है। शीतकाल ठांडा, आद्रध एर्वां लम्बी अर्वतध
का होता है। शीतकाल में तापमान 10° C तक होता है।
8. िुन्ड्रा तल्ु य जलर्वायु (ET प्रकार) : यहााँ तापमान सालभर 10° C से कम रहता है। शीतकाल में तहमपात
के रूप में र्वर्ाध होती है। इसके अतां गधत – उत्तराखडां के पर्वधतीय क्ेत्र, कश्मीर, लद्दाख, तहमाचल प्रदेश के
3000 मी. से 5000 मी. ऊांचाई र्वाले क्ेत्र शातमल हैं।
9. रर्वु ीय तल्ु य जलर्वायु (E प्रकार) : यहााँ तापमान सालभर 0° C से कम (तहमाच्छातदत प्रदेश) होता है।
इसके अतां गधत तहमालय के पतिमी और मध्यर्वती भाग में (जम्मू-कश्मीर एर्वां तहमाचल प्रदेश के ) 5000
मी. से अतधक ऊांचाई र्वाले क्ेत्र शातमल हैं।
बांगाल की खाड़ी शाखा उत्तर-पतिम भारत के तनम्न दाब क्ेत्र की ओर अतभसररत होती है। पूर्वध से पतिम
की ओर जलर्वाष्प की कमी के साि ही र्वर्ाध की मात्रा में कमी होती जाती है।
व्यापाररक पवनें : व्यापाररक पर्वनें 5° से 30° उत्तरी एर्वां दतक्णी अक्ाांशों के बीच चलने र्वाली पर्वनें हैं जो 35°
उत्तरी एर्वां दतक्णी अक्ाांश (उच्च दाब) से 0° अक्ाांश (तनम्न दाब) के बीच चलती हैं।
शीत ऋतु में सूयध की तकरणें मकर रे खा पर सीधी पड़ती हैं। इससे भारत के उत्तर-पतिमी भाग में अरब सागर र्व बांगाल
की खाड़ी के तुलना में अतधक ठण्ड होने के कारण उच्च दाब (H.P.) क्ेत्र का तनमाधण एर्वां अरब सागर तिा बांगाल
की खाड़ी में तनम्न दाब (L.P.) क्ेत्र का तनमाधण (कम ठण्डा होने के कारण) होता है। इस कारण मानसूनी पर्वनें
तर्वपरीत तदशा में बहने लगती हैं।
शीत ऋतु में उत्तर-पर्वू ी व्यापाररक पर्वनें पनु ः चलने लगती हैं। यह उत्तर-पर्वू ी मानसनू लेकर आती हैं तिा
बगां ाल की खाड़ी से जलर्वाष्प ग्रहण कर ततमलनाडु के ति पर र्वर्ाध करती हैं।
लवषुवतीय पछुआ पवन लसद्ांत या प्रलत लवषुवतीय पछुआ पवन लसद्ांत: इस तसर्द्ाांत का प्रततपादन
फ्लोन के द्वारा तकया गया है। इसके अनुसार, तर्वर्ुर्वतीय पछुआ पर्वन ही दतक्ण-पतिम मानसूनी हर्वा है। इसकी
उत्पतत्त अन्तः उष्ण अतभसरण के कारण होती है।
फ्लोन ने मानसून की उत्पतत्त हेतु तापीय प्रभार्व को प्रमुख माना है। ग्रीष्म काल में तापीय तर्वर्ुर्वत रे खा के
उत्तरी तखसकार्व के कारण अन्तः उष्ण अतभसरण (ITCZ) तर्वर्ुर्वत रे खा के उत्तर में होता है। तर्वर्ुर्वतीय पछुआ पर्वनें
अपनी तदशा सांशोतधत कर भारतीय उपमहाद्वीप पर बने तनम्न दाब की ओर प्रर्वातहत होने लगती हैं तिा यह प्रतक्रया
ही दतक्ण-पतिम मानसून को जन्म देती है।
शीत ऋतु में सूयध के दतक्णायन होने पर तनम्न दाब क्ेत्र, उच्च दाब क्ेत्र में बदल जाता है तिा उत्तरी-पूर्वी
व्यापाररक पर्वनें पुनः गततशील हो जाती हैं।
भारतीय मानसून की उत्पलत्त का जेट थरीम लसद्ांत : इस तसर्द्ाांत का प्रततपादन येथि (Yest) द्वारा तकया
गया है। जेि थरीम ऊपरी र्वायुमांडल (9-18 तकमी.) के बीच अतत तीव्रगामी र्वायु प्रर्वाह प्रणाली है। मध्य भाग में
इसकी गतत अतधकतम (340 तकमी. प्रतत घांिा) होती है। ये हर्वाएां पृथ्र्वी के ऊपर एक आर्वरण का कायध करती हैं जो
तनम्न र्वायुमांडल के मौसम को प्रभातर्वत करती हैं।
भारत में आने र्वाले दतक्ण-पतिम मानसून का सांबांध उष्ण पूर्वी जेि थरीम से है। यह 8° उत्तरी से 35° उत्तरी
अक्ाांशों के मध्य चलती हैं। उत्तरी-पूर्वी मानसून का सांबांध उपोष्ण पतिमी जेि थरीम से है। यह 20° से 35° उत्तरी
एर्वां दतक्णी दोनों अक्ाांशों के मध्य चलती हैं।
उपोष्ण पतिमी (पछुआ) जेि थरीम द्वारा उत्तर-पूर्वी मानसून की उत्पतत्त : शीतकाल में उपोष्ण पतिमी जेि थरीम
सांपूणध पतिमी तिा मध्य एतशया में पतिम से पूर्वध तदशा में प्रर्वातहत होती हैं। ततब्बत का पठार इसके मागध में अर्वरोधक
का कायध करता है एर्वां इसे दो भागों में बााँि देता है। एक शाखा ततब्बत के पठार के उत्तर से उसके समानाांतर बहने
लगती है तिा दसू री शाखा तहमालय के दतक्ण में पूर्वध की ओर बहती है।
दतक्णी शाखा की माध्य तथितत फरर्वरी में लगभग 25° उत्तरी अक्ाांश के ऊपर होती है। इसका दाब थतर
200 से 300 तमलीबार होता है। पतिमी तर्वक्ोभ जो भारत में शीत ऋतु में आता है इसी जेि पर्वन द्वारा लाया जाता
है। रात के तापमान में र्वृतर्द् इन तर्वक्ोभों के आने का सूचक है।
पतिमी जेि थरीम ठांडी हर्वा का थतांभ होता है जो सतह पर हर्वाओ ां को धके लता है। इससे सतह पर उच्च
दाब का तनमाधण होता है (भारत के उत्तरी-पतिमी भागों में) ये हर्वाएां बांगाल की खाड़ी (तुलनात्मक रूप से अतधक
तापमान के कारण तनम्न र्वायु दाब क्ेत्र) की ओर प्रर्वातहत होती हैं। इन हर्वाओ ां के द्वारा ही शीत ऋतु में उत्तर प्रदेश
एर्वां तबहार में शीत लहर चलती हैं। बांगाल की खाड़ी में पहुचाँ ने के बाद ये हर्वाएां अपने दातहने ओर (Right Hand
Side) मुड जाती हैं और मानसून का रूप धारण कर लेती हैं। जब ये पर्वन ततमलनाडु के ति पर पहुचाँ ती है तो बांगाल
की खाड़ी से ग्रहण तकये गए जलर्वाष्प की र्वर्ाध ततमलनाडु के तिीय भागों में करती है।
उष्ण पूर्वी जेि थरीम द्वारा दतक्ण-पतिमी मानसून की उत्पतत्त : गमी में पतिमी जेि थरीम भारतीय उपमहाद्वीप पर नहीं
बहती है इसका तखसकार्व ततब्बत के पठार के उत्तर की ओर हो जाता है। इस समय भारत के ऊपरी र्वायुमांडल में
उष्ण पूर्वी जेि थरीम चलती है। उष्ण पूर्वी जेि थरीम की उत्पतत्त का कारण मध्य एतशया एर्वां ततब्बत के पठारी भागों
के अत्यतधक गमध होने को माना जाता है।
ततब्बत के पठार से गमध होकर ऊपर उठने र्वाली हर्वाओ ां में क्ोभमडां ल के मध्य भाग में घडी की सईु की
तदशा में चक्रीय पररसचां रण प्रारांभ हो जाता है। यह ऊपर उठती र्वायु क्ोभ सीमा के पास दो अलग अलग धाराओ ां में
बिां जाती है। इनमें से एक तर्वर्र्वु त र्वृत्त की ओर पर्वू ी जेि थरीम के रूप में चलती है तिा दसू री रर्वु की ओर पतिमी
जेि थरीम के रूप में चलती है।
पर्वू ी जेि थरीम भारत के ऊपरी र्वायमु डां ल में दतक्ण पतिम तदशा की ओर बहती हुई अरब सागर में नीचे
बैठने लगती है। इससे र्वहाां र्वृहत उच्च दाब का तनमाधण होता है। इसके तर्वपरीत भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर जब ये
गमध जेि थरीम चलती है तो सतह की हर्वा को ऊपर की ओर खींच लेती है तिा यहााँ र्वृहत तनम्न दाब का तनमाधण
करती है। इस तनम्न दाब को भरने के तलए अरब सागर के उच्च दाब क्ेत्र से हर्वाएां उत्तर-पर्वू ध की ओर चलने लगती
हैं। यही दतक्ण-पतिम मानसनू पर्वन कहलाती हैं।
उष्ण पूर्वी जेि थरीम के कारण ही भारत में मानसून पूर्वध ‘उष्ण कतिबांधीय चक्रर्वात’ आते हैं। इससे भारी
र्वर्ाध होती है। पूर्वी जेि थरीम न के र्वल मौसमी है र्वरन अतनयतमत भी है। जब यह भारत के र्वृहत क्ेत्र के ऊपर लम्बी
अर्वतध तक चलती है तो बाढ़ की तथितत बनती है। जब ये हर्वाएां कमजोर होती हैं तो सूखा आता है।
भारतीय मानसून की उत्पलत्त का एलनीनो लसद्ांत : लगभग 3 से 8 र्वर्ों के अांतराल पर महासागरों तिा
र्वायुमांडल में एक तर्वतशि उिल-पुिल होती है। इसकी शुरुआत पूर्वी प्रशाांत महासागर के पेरू ति से होती है। पेरू
के ति पर हम्बोल्ि या पेरू की जलधारा (ठांडी जलधारा) प्रर्वातहत होती है। यह जलधारा दतक्ण अमेररकी ति से दरू
उत्तर की ओर प्रर्वातहत होती है। हम्बोल्ि जलधारा की तर्वशेर्ता शीतल जल का गहराई से ऊपर की ओर आना
(Upwelling) है। तर्वर्ुर्वत रे खा के पास यह दतक्ण तर्वर्ुर्वत रे खा जलधारा के रूप में प्रशाांत महासागर के आर-पार
पतिम की ओर मुड जाती है।
एलनीनो के आने के साि ही ठन्डे पानी का गहराई से ऊपर आना बांद हो जाता है एर्वां ठन्डे पानी का
प्रततथिापन पतिम से आने र्वाले गमध पानी से हो जाता है। अब पेरू की ठांडी जलधारा का तापमान बढ़ जाता है।
इसके गमध जल के प्रभार्व से प्रिमतः दतक्णी तर्वर्ुर्वतीय गमध जलधारा का तापमान बढ़ जाता है चांतू क दतक्णी
तर्वर्ुर्वतीय गमध जलधारा पूर्वध से पतिम की ओर जाती है अतः सम्पूणध मध्य प्रशाांत महासागर का जल गमध हो जाता
है तिा र्वहाां तनम्न र्वायु दाब का तनमाधण होता है। जब कभी इस तनम्न दाब का तर्वथतार तहन्द महासागर के पूर्वी-
मध्यर्वती क्ेत्र तक होता है तो यह भारतीय मानसून की तदशा को सांशोतधत कर देता है। इस तनम्न दाब की तुलना में
भारतीय उपमहाद्वीप के थिलीय भाग पर बना तनम्न दाब (ग्रीष्म ऋतु में) तुलनात्मक रूप से कम होता है। अतः अरब
सागर के उच्च दाब क्ेत्र से हर्वाओ ां का प्रर्वाह दतक्ण-पूर्वी तहन्द महासागर की ओर होने लगता है। इससे भारतीय
उपमहाद्वीप में सूखे की तथितत बनती है। इसके तर्वपरीत जब एलनीनो धारा का प्रर्वाह मध्यर्वती प्रशाांत तक सीतमत
रहता है तो दतक्ण-पतिम मानसूनी पर्वनों का मागध बातधत नहीं होता तिा भारत में भरपूर र्वर्ाध होती है।
भारतीय मानसून
दलक्षण-पलिम मानसून :
सामान्यतः भारत में मानसून का समय जनू से तसतांबर तक रहता है। इस समय उत्तरी-पतिमी भारत तिा पातकथतान
में तनम्न र्वायुदाब का क्ेत्र बन जाता है। अन्तः उष्ण कतिबांधीय अतभसरण क्ेत्र (ITCZ) उत्तर की ओर तखसकता
हुआ तशर्वातलक के पर्वधतपाद तक चला जाता है। इसके कारण भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर तसन्धु-गांगा मैदान में
एक लम्बाकार तनम्न दाबीय मेखला का तनमाधण होता है, तजसे मानसून गतध (Trough) कहते हैं। इस तनम्नदाब को
भरने के तलए दतक्णी गोलार्द्ध में चलने र्वाली द.पू. र्वातणतज्यक पर्वन (Trade Winds) तर्वर्ुर्वत रे खा को पार कर
पूर्वध की ओर मुड जाती है (फे रे ल के तनयमानुसार) तिा दतक्णी-पतिमी मानसूनी पर्वन का रूप ले लेती है।
भारत में दतक्णी-पतिमी मानसून की उत्पतत्त का सम्बन्ध ‘उष्ण पूर्वी जेि थरीम’ से है। दतक्ण पतिमी मानसून
भारत में सर्वधप्रिम अांडमान एर्वां तनकोबार ति पर 25 मई को पहुचाँ ता है। तफर 1 जनू को चेन्नई एर्वां ततरुर्वनांतपुरम तक
पहुचाँ ता है। 5 से 10 जून के बीच कोलकाता एर्वां मुांबई को छूता है। 10 से 15 जून के बीच पिना, अहमदाबाद,
नागपुर तक पहुचाँ ता है तिा 15 जून के बाद लखनऊ, तदल्ली, जयपुर जैसे शहरों में पहुचाँ ता है।
प्रायद्वीपीय भारत में दथतक देने के बाद दतक्ण-पतिम मानसून दो शाखाओ ां में बांि जाता है –
A. अरब सागरीय शाखा
B. बगां ाल की खाड़ी शाखा
दतक्ण-पतिमी मानसूनी की अरब सागरीय शाखा: दतक्ण-पतिम मानसून की यह शाखा पतिमी घाि की उच्च भूतम
में लगभग समकोण पर दथतक देती है। अरब सागर शाखा द्वारा भारत के पतिमी ति, पतिमी घाि पर्वधत, महाराष्र,
गुजरात एर्वां मध्य प्रदेश के कुछ तहथसों में र्वर्ाध होती है।
अरब सागर शाखा द्वारा भारत के पतिमी घाि पर्वधत के पतिमी ढाल पर तिीय भाग की तुलना में अतधक
र्वर्ाध होती है। उदाहरणथर्वरुप – महाबलेश्वर में 650 सेमी. र्वर्ाध होती है जबतक मुांबई में मात्र 190 सेमी. र्वर्ाध होती है।
पतिमी घाि पर्वधत के पूर्वी भाग में र्वर्ाध की मात्रा काफी कम होती है कयोंतक यह र्वृतिछाया प्रदेश (Rain Shadow
Area) है। पुणे में मात्र 60 सेमी. र्वर्ाध होती है।
अरब सागर शाखा राजथिान से गुजरती हुई तहमालय से िकराती है तिा जम्मू-कश्मीर एर्वां तहमाचल प्रदेश
के पर्वधतीय ढालों पर र्वर्ाध करती है। राजथिान से गुजरने के बार्वजूद इस मानसूनी शाखा द्वारा यहााँ र्वर्ाध नहीं हो पाती
इसके दो प्रमुख कारण हैं –
इसके फलथर्वरूप र्वृति छाया क्ेत्र (Rain Shadow Area) का तनमाधण होता है। पहाड़ की ऊांचाई तजतनी अतधक
होगी उतने ही तर्वथतृत र्वृतिछाया क्ेत्र का तनमाधण होगा।
दतक्ण-पतिम मानसून की बांगाल की खाड़ी शाखा : मानसून की यह शाखा श्रीलांका से इडां ोनेतशया द्वीप समूहों के
सुमात्रा द्वीप तक सतक्रय रहती है। बांगाल की खाड़ी शाखा दो धाराओ ां में आगे बढती है। इस शाखा की उत्तरी धारा
मेघालय में तथित खासी पहातड़यों में दथतक देती है तिा इसकी दसू री धारा तनम्न दबार्व द्रोणी के पूर्वी छोर पर बायीं
ओर मुड जाती है। यहााँ से यह हर्वा की धारा तहमालय की तदशा के साि-साि दतक्ण-पूर्वध से उत्तर-पतिम तदशा में
बहती है। यह धारा उत्तर भारत के मैदानी क्ेत्रों में र्वर्ाध करती है।
- उत्तरी मैदानी क्ेत्रों में मानसूनी र्वर्ाध को पतिम से बहने र्वाले चक्रर्वाती गतध या पतिमी हर्वाओ ां से और
अतधक बल तमलता है।
- मैदानी इलाकों में पूर्वध से पतिम और उत्तर से दतक्ण में र्वर्ाध की तीव्रता में कमी आती है। पतिम में र्वर्ाध में
कमी का कारण नमी के स्रोत से दरू ी का बढ़ना है। दसू री, ओर उत्तर से दतक्ण में र्वर्ाध की तीव्रता में कमी
की र्वजह नमी के स्रोत का पर्वधतों से दरू ी का बढ़ना है।
- अरब सागरीय शाखा एर्वां बांगाल की खाड़ी शाखा दोनों शाखाएाँ छोिानागपुर के पठार में तमलती हैं।
- अरब सागरीय मानसून शाखा, बांगाल की खाड़ी शाखा से अतधक शतक्तशाली है इसके दो प्रमुख कारण हैं
–
o अरब सागर, बांगाल की खाड़ी से आकार में बड़ा है।
o अरब सागर की अतधकााँश शाखा भारत में पड़ती है जबतक बगां ाल की खाड़ी शाखा से म्यामां ार,
मलेतशया और िाईलैंड तक चली जाती है।
- दतक्ण पतिम मानसनू अर्वतध के दौरान भारत का पूर्वी तिीय मैदान (तर्वशेर् रूप से ततमलनाडु) तल ु नात्मक
रूप से शष्ु क रहता है। कयोंतक यह मानसनू ी पर्वनों के सामानातां र तथित है और साि ही यह अरब सागरीय
शाखा के र्वृति छाया क्ेत्र में पड़ता है।
बांगाल की खाड़ी के ऊपर से र्वापस जा रहा मानसून मागध में आद्रधता ग्रहण कर लेता है तजससे अकिूबर-
नर्वांबर में पूर्वी या तिीय ओतडशा, ततमलनाडु और कनाधिक के कुछ तहथसों में र्वर्ाध होती है। अकिूबर में बांगाल की
खाड़ी में तनम्न दबार्व बनता है, जो दतक्ण की ओर बढ़ जाता है और नर्वांबर में ओतडशा और ततमलनाडु ति के बीच
फांस जाने से भारी र्वर्ाध होती है।
मानसनू में रुकावट : र्वर्ाध ऋतु में जुलाई और अगथत महीने में कुछ ऐसा समय होता है जब मानसनू कमजोर
पड़ जाता है। बादलों का बनना कम हो जाता है और तर्वशेर् रूप से तहमालयी पट्टी और दतक्ण पूर्वी प्रायद्वीप के
ऊपर र्वर्ाध होनी बांद हो जाती है। इसे मानसून में रुकार्वि के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है तक ये
रुकार्विें ततब्बत के पठार की कम ऊांचाई की र्वजह से आती हैं इससे मानसनू गतध उत्तर की ओर मडु जाता है। इस
अर्वतध में जहााँ पूरे देश को तबना र्वर्ाध के ही सांतोर् करना पड़ता है तब उपतहमालयी प्रदेशों एर्वां तहमालय के
दतक्णी ढलानों में भारी र्वर्ाध होती है।
पलिमी लवक्षोभ (Western Disturbance) : आमतौर पर जब आकाश साफ़ रहता है परन्तु पतिम तदशा
से हर्वाओ ां के आने से अच्छे मौसम के दौर में तर्वघ्न पड़ जाता है। ये पतिमी हर्वाएां भूमध्य सागर से आती हैं और
इराक, ईरान, अफगातनथतान और पातकथतान को पार करने के पिात भारत में प्रर्वेश करती हैं। ये हर्वाएां राजथिान,
पांजाब और हररयाणा में तीव्र गतत से बहती हैं। ये उपतहमालयी पट्टी के आसपास पूर्वध की ओर मुड जाती हैं और सीधे
अरुणाचल प्रदेश तक पहुचाँ जाती हैं तजससे गांगा के मैदानी इलाकों में हल्की र्वर्ाध और तहमालयी पट्टी में तहमर्वर्ाध
होती है।
यह घिना मुख्य रूप से शीत ऋतु में होती है कयोंतक इस समय उत्तर पतिम भारत में एक क्ीण उच्च दाब
का तनमाधण होता है। इसी समय भारत पर ‘पतिमी जेि थरीम’ का प्रभार्व होता है जो भूमध्य सागर से उठने र्वाले
शीतोष्ण चक्रर्वात को भारत में लाती है। इसे ही पतिमी तर्वक्ोभ कहते हैं। इससे मुख्य रूप से प्रभातर्वत राज्य पांजाब,
हररयाणा, पतिमी उत्तर प्रदेश, राजथिान, तहमाचल प्रदेश एर्वां जम्मू-कश्मीर हैं। इससे होने र्वाली र्वर्ाध रबी की फसल
तर्वशेर्कर गेहां की फसल के तलए बहुत उपयोगी होती है। यह र्वर्ाध ‘मार्वठ’ नाम से जानी जाती है।
भारत की ऋतएु ाँ
भारतीय मौसम तर्वभाग द्वारा भारत की जलर्वायु को चार ऋतुओ ां में तर्वभातजत तकया गया है –
1. शीत ऋतु
2. ग्रीष्म ऋतु
3. र्वर्ाध ऋतु
4. शरद ऋतु
शीत ऋतु : इसका काल मध्य तदसांबर से फरर्वरी तक माना जाता है। इस समय सूयध की तथितत दतक्णायन हो जाती
है। अतः उत्तरी गोलार्द्ध में तथित भारत का तापमान कम हो जाता है। इस ऋतु में समताप रे खाएां पूर्वध से पतिम की
ओर प्रायः सीधी रहती हैं। 20° की समताप रे खा भारत के मध्य भाग से गजु रती है। इस ऋतु में भमू ध्य सागर से उठने
र्वाला शीतोष्ण चक्रर्वात पतिमी जेि थरीम के सहारे भारत में प्रर्वेश करता है। इसे पतिमी तर्वक्ोभ कहते हैं। यह
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पजां ाब, हररयाणा, राजथिान, पतिमी उत्तर प्रदेश, तहमाचल प्रदेश एर्वां जम्मू-कश्मीर में र्वर्ाध करर्वाता है। शीतकाल में
होने र्वाली यह र्वर्ाध मार्वठ कहलाती है। यह र्वर्ाध रबी की फसल के तलए उपयोगी होती है।
ग्रीष्ट्म ऋतु : यह ऋतु माचध से मई तक रहती है। सूयध के उत्तरायण होने से सारे भारत में तापमान बढ़ जाता है। इस
ऋतु में उत्तर और उत्तर-पतिमी भारत में तदन के समय तेज गमध एर्वां शुष्क हर्वाएां चलती हैं जो लू नाम से जानी जाती
हैं। इस ऋतु में सूयध के क्रमशः उत्तरायण होते जाने के कारण अांतर उष्णकतिबांधीय अतभसरण क्ेत्र (ITCZ) उत्तर की
ओर तखसकने लगता है एर्वां जुलाई में 25° अक्ाांश रे खा को पार कर जाता है।
इस ऋतु में थिलीय शुष्क एर्वां गमध पर्वन जब समुद्री आद्रध पर्वनों से तमलती है तो उन जगहों पर प्रचांड तूफ़ान
की उत्पतत्त होती है। इसे मानसून पूर्वध चक्रर्वात (Pre Monsoon Cyclone) के नाम से जाना जाता है। भारत में
मानसून पूर्वध चक्रर्वात के थिानीय नाम तनम्नतलतखत हैं –
• नावेथटर : पूर्वी भारत (पतिम बांगाल, तबहार, झारखण्ड, ओतडशा) यह चाय, जूि और चार्वल की खेती
के तलए लाभदायक है।
• कालवैशाखी : पतिम बांगाल में नार्वेथिर का थिानीय नाम
• चेरी ब्लॉसम : कनाधिक एर्वां के रल (कॉफ़ी के फूलों के तखलने में सहायक)
• आम्रवृलि / आम्र ौछार / आम्र वषाक : दतक्ण भारत (आम के जल्दी पकने में सहायक)
• ोडोलचल्ला : नार्वेथिर का असम में थिानीय नाम
वषाक ऋतु : इस ऋतु का समय जून से तसतांबर तक रहता है। इस समय उत्तर पतिमी भारत तिा पातकथतान में
तापमान अतधक रहने के कारण तनम्न र्वायुदाब का क्ेत्र बन जाता है। अतः अांतर उष्णकतिबांधीय अतभसरण क्ेत्र
(ITCZ) उत्त की ओर तखसकता हुआ तशर्वातलक के पर्वधत पाद तक चला जाता है एर्वां गगां ा के मैदानी क्ेत्र में तनम्न
दाब बन जाता है इस दाब को भरने के तलए द. पू. व्यापाररक पर्वने तर्वर्ुर्वत रे खा को पार कर द.प. मानसूनी पर्वनों के
रूप में भारत में प्रर्वेश करती हैं। ये द. प. मानसूनी पर्वनें दो शाखाओ ां में तर्वभातजत हो जाती हैं। पहली शाखा, अरब
सागरीय शाखा भारत के पतिमी घाि, पतिमी घाि पर्वधत, महाराष्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, तहमाचल प्रदेश एर्वां जम्मू-
कश्मीर में र्वर्ाध करती है। दसू री शाखा, बांगाल की खाड़ी शाखा भारत में उत्तर-पूर्वी भारत, पूर्वी भारत, उत्तर प्रदेश,
राजथिान एर्वां उत्तराखांड आतद भागों में र्वर्ाध करती है।
गारो, खासी एर्वां जयांततया पहातड़याां कीपाकार में फै ली हुई हैं, एर्वां समुद्र की ओर खुलती हैं अतः बांगाल
की खाड़ी से आने र्वाली हर्वाएां यहााँ फांस जाती हैं और अत्यतधक र्वर्ाध करती हैं। खासी पहाड़ी के दतक्णी भाग में
तथित मातसनराम सांसार का सर्वाधतधक र्वर्ाध प्राप्त करने र्वाला थिान है।
शरद ऋतु : इस ऋतु का समय तसतांबर से मध्य तदसांबर तक माना जाता है। इस समय का मौसम सहु ार्वना होता है
तिा न अतधक गमध होता है और न ही अतधक ठांडा होता है। यह भारत में मानसून के लौिने का समय होता है।
लवथतार : इन चट्टानों का तर्वथतार महानदी घािी, गोदार्वरी घािी, कच्छ, कातठयार्वाड़, पतिम राजथिान, मद्रास,
गुांिूर, किक, राजमहेंद्री, तर्वजयर्वाडा, ततरुतचरापल्ली, रामनािपुरम, सोन घािी, दामोदर घािी, र्वधाध घािी आतद में
है।
दलकन रै प :
• मेसोजोइक युग में अांततम काल (तक्रिेतशयस काल) में प्रायद्वीपीय भारत में ज्र्वालामुखी तक्रया प्रारांभ हुई।
इस प्रकार दरारों के माध्यम से लार्वा के उदगार के फलथर्वरूप दककन रैप चट्टानों का तनमाधण हुआ।
• यह सांरचना बेसाल्ि एर्वां डोलोमाइि से तनतमधत है।
• इन कठोर चट्टानों के तर्वखांडन से काली तमट्टी (रे गुर तमट्टी) का तनमाधण हुआ।
लवथतार : ये चट्टानें महाराष्र के अतधकााँश भाग, गुजरात, मध्य प्रदेश, तबहार, ततमलनाडु एर्वां आांरप्रदेश के कुछ
भागों में पायी जाती हैं।
भारत में पायी जाने र्वाली र्वनथपततयों को तनम्नतलतखत र्वगों में तर्वभातजत तकया गया है –
1. उष्णकतिबांधीय सदाहररत र्वन (Tropical Evergreen Forest)
2. उष्णकतिबांधीय आद्रध मानसूनी / पणधपाती र्वन (Tropical Moist Deciduous Forest)
3. उष्णकतिबांधीय शुष्क मानसूनी / पणधपाती र्वन (Tropical Dry Deciduous Forest)
4. मरुथिलीय / काँ िीली झातड़यााँ (Tropical Thorn Forest)
5. आद्रध उपोष्ण पहाड़ी र्वन (Mountain Sub-Tropical Moist Forest)
6. ज्र्वारीय र्वनथपतत (Mangroves)
अतधक नहीं रहती है। यहााँ तापमान लगभग 27° C रहता है। यहााँ औसत सापेतक्क आद्रधता लगभग 60%
के आसपास होती है।
• लवशेषताएं : इन र्वनों में शुष्क गमी की ऋतु में आद्रधता में कमी के कारण र्वृक् अपनी पतत्तयाां तगरा देते हैं,
तातक उनकी नमी नि न हो सके । यहााँ के र्वृक्ों की औसत ऊाँचाई 20-45 मीिर होती है। मानसनू ी र्वन
आतिधक दृति से बहुत महत्र्वपूणध होते हैं। इनकी लकतड़यों का उपयोग फनीचर बनाने एर्वां रे लर्वे थलीपर
बनाने के काम में तकया जाता है।
• मख्
ु य वृक्ष या वनथपलत : सागर्वान, साल (सखुआ), चन्दन, शहतूत, महुआ, आांर्वला, शीशम, आम,
बााँस, खैर, तत्रफला, िीक आतद इस प्रकार के र्वनों में पाए जाने र्वाले प्रमुख र्वृक् हैं। साल, सागर्वान एर्वां
शीशम की लकड़ी फनीचर बनाने के काम आती है। साल की लकड़ी का उपयोग रे लर्वे थलीपर बनाने में
तकया जाता है।
• लवतरण : पतिमी घाि पर्वधत के पूर्वी ढाल, तहमालय का तराई क्ेत्र, तबहार, उत्तर प्रदेश, ओतडशा, पतिम
बांगाल, महाराष्र, आांरप्रदेश, कनाधिक, मध्य प्रदेश, तशर्वातलक श्रेणी के सहारे भार्वर एर्वां तराई क्ेत्र, प्रायद्वीप
का उत्तर पूर्वी पठारी भाग, छत्तीसगढ़ एर्वां छोिानागपुर आतद क्ेत्रों में इस प्रकार के र्वन पाए जाते हैं।
• मख्ु य वृक्ष या वनथपलत : इन र्वनों में बबूल, खैर, खेजड़ा, नागफनी, खजूर कै किस एर्वां अन्य कांिीली
झातड़याां पाई जाती हैं।
• लवतरण : इस प्रकार के र्वन पतिमी राजथिान, उत्तरी गुजरात, पतिमी घाि पर्वधत का र्वृति छाया प्रदेश,
पांजाब हररयाणा एर्वां मध्य प्रदेश के इदां ौर से आांर प्रदेश के कुनूधल तक के पठार के मध्य भाग में अर्द्धचांद्राकर
पेिी में तमलते हैं।
लवशेषताएं :
• उच्च ज्र्वार के र्वक्त ये जल में डूबी रहती हैं एर्वां तनम्न ज्र्वार के र्वक्त ये शुष्क होती हैं अतः ये र्वनथपततयाां
क्रतमक बाढ़ एर्वां शुष्कता के तलए सहनशील होते हैं।
• ये र्वनथपततयाां समुद्री खारे जल के प्रतत सहनशील होती हैं।
• तिर्वती क्ेत्रों में तथित होने के कारण ये र्वनथपततयाां तिों की सुनामी एर्वां चक्रर्वात से रक्ा करती हैं कयोंतक
इनकी जड़ें बहुत लांबी एर्वां तर्वथतृत होती हैं।
• इनसे ईधन
ां के तलए लकड़ी एर्वां मजबूत तिकाऊ लकड़ी प्राप्त होती है तजससे नार्व बनाई जाती हैं।
• ये तिों के अपक्रण को रोक तिा तथिरता प्रदान करते हैं एर्वां समुद्री लहरों से ति को सुरक्ा प्रदान करते
हैं।
• ये र्वृक् प्रदर्ू ण को कम करने में भी उपयोगी होते हैं।
मख्ु य वृक्ष या वनथपलत : मैंग्रोर्व, नाररयल, सुांदरी, ताड़, बेंत, बाांस सोनेररिा, फॉतनकस आतद इस प्रकार के र्वनों की
प्रमुख र्वनथपततयाां हैं। सुांदरी र्वृक्ों की अतधकता के कारण गांगा डेल्िा के मैंग्रोर्व र्वनों को सुांदरर्वन भी कहा जाता है।
ये र्वन अपनी जैर्व तर्वतर्वधता के तलए प्रतसर्द् हैं।
भारतीय कृ तर् अनुसांधान पररर्द ने भारत की तमरट्टयों को आठ र्वगों में तर्वभातजत तकया है –
1. जलोढ़ तमट्टी 2. काली तमट्टी 3. पीली तमट्टी
4. लैिराइि तमट्टी 5. पर्वधतीय तमट्टी 6. मरुथिलीय तमट्टी
7. लर्वणीय या क्ारीय तमट्टी 8. पीि या जैतर्वक तमट्टी
जलोढ़ लमट्टी :
उत्पलत्त : इस तमट्टी का तनमाधण तहमालय से तनकलने र्वाली मुख्य रूप से तीन बड़ी नतदयों – सतलज, गांगा एर्वां
ब्रह्मपत्रु और उनकी सहायक नतदयों द्वारा कााँप तमट्टी लाए जाने और उत्तरी मैदान में जमा तकए जाने से हुआ है। यह
एक अक्ेत्रीय तमट्टी (जो तमट्टी दरू प्रदेश से बहाकर लायी गयी महीन कणों से बनी हो जैसे – जलोढ़ एर्वां लोएस तमट्टी)
है।
लवशेषताएाँ :
• कणों के आकार एर्वां आयु के आधार पर इस तमट्टी को दो भागों में तर्वभातजत तकया जाता है –
o खादर : नर्वीन जलोढ़क (यह प्रततर्वर्ध जमा होने र्वाली, नदी के अतधक नजदीक तमट्टी है तिा
सर्वाधतधक उपजाऊ होती है)
o बाांगर : प्राचीन जलोढ़क (यह पहले से जमा की गयी तमट्टी है जो खादर से कम उपजाऊ होती है)
• इसमें पोिाश, फॉथफोरस एर्वां चनू ा पयाधप्त मात्रा में पाया जाता है।
• इसमें नाइरोजनी तत्र्व एर्वां जैतर्वक पदािों की कमी होती है।
• शष्ु क प्रदेशों में इसमें क्ारीय अश
ां अतधक होता है।
क्षेत्रफल एवं लवतरण :
• यह भारत के सर्वाधतधक क्ेत्रफल पर तर्वथतृत है।
• इसका तर्वथतार : उत्तर के तर्वशाल मैदान, पर्वू ी तिा पतिमी तिीय मैदान, तिा राजथिान में एक सक
ां री पट्टी
एर्वां इसके अलार्वा नतदयों की घातियों एर्वां डेल्िाई भाग में भी यही तमट्टी पायी जाती है।
काली लमट्टी :
उत्पलत्त : ये तमरट्टयााँ ज्र्वालामुखी के दरारी उद्भेदन से तनकले पैतठक लार्वा के जम जाने से बनती है। इसका तनमाधण
बेसातल्िक लार्वा पदािों के तर्वखांडन से हुआ है। अतः ये तचकनी, लार्वा प्रधान एर्वां उपजाऊ तमट्टी है।
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लवशेषताएं :
• इसका रांग गहरा काला और कणों की बनार्वि घनी एर्वां महीन होती है।
• इसकी जलधारण क्मता अतधक होती है। तचकनी होने के कारण जल के सूख जाने से इसमें दरारें पड़ जाती
हैं।
• इसमें चनू ा, पोिाश, एल्युतमतनयम, मैग्नीतशयम एर्वां लोहा पयाधप्त मात्रा में होता है।
• इसमें फॉथफोरस, जीर्वाश्म (ह्यूमस) तिा नाइरोजन का अभार्व पाया जाता है।
• पठारी ढालों पर यह कम उपजाऊ होती है र्वहाां इसमें गेह,ां कपास, गन्ना, के ला, ज्र्वार, चार्वल, तम्बाकू,
अरण्डी, मूांगफली, सोयाबीन, फल, सतब्जयाां आतद पैदा तकए जाते हैं।
• यह एक क्ेत्रीय तमट्टी है।
• यह ‘काली कपास तमट्टी’ या ‘रे गुर’ तमट्टी के नाम से भी जानी जाती है। यह तमट्टी कपास की खेती के तलए
सर्वाधतधक उपयुक्त होती है।
क्षेत्रफल एवं लवतरण :
• इस तमट्टी का तर्वथतार मुख्यतः महाराष्र, दतक्ण-पूर्वी गुजरात, पतिमी मध्य प्रदेश, उत्तरी कनाधिक, उत्तरी
आांरप्रदेश, उत्तर-पतिम ततमलनाडु एर्वां दतक्णी-पूर्वी राजथिान में है।
• महाराष्र में इस तमट्टी का सर्वाधतधक तर्वथतार पाया जाता है।
• नमधदा, तापी, गोदार्वरी और कृ ष्णा नतदयों की घातियों में यह 60 मीिर से भी अतधक गहरी पायी जाती है।
• कनाधिक की काली तमट्टी में नमक के कण भी तमले रहते हैं।
लाल-पीली लमट्टी :
उत्पलत्त : ये तमरट्टयााँ अपक्य के प्रभार्व से ग्रेनाइि (आग्नेय) एर्वां नीस (रूपाांतररत) चट्टानों के िूि-फूि के कारण बनी
है। लोहे के ऑकसाइड तमले होने के कारण इस तमट्टी का रांग लाल होता है तिा जलयोतजत रूप में यह पीली तदखाई
पड़ती है। इनमें मूल चट्टान से चोकलेिी रांग के खतनज तत्र्व जैसे – फे ल्ड्सपार, ऑतलतर्वन के महीन कण पाए जाते
हैं। इसी कारण इसका रांग पीला तदखाई पड़ता है।
लवशेषताएाँ :
• अनेक प्रकार की चट्टानों से बनी होने के कारण इनमें गहराई, कणों की सांरचना और उर्वधराशतक्त में तभन्नता
पायी जाती है।
• ये तमरट्टयााँ अत्यांत रांरयुक्त होती हैं। अतः शुष्क एर्वां ऊांचे मैदानों में यह उपजाऊ नहीं होती है।
• इस तमट्टी में लोहा, एल्युतमतनयम और चनू ा प्रचरु मात्रा में पाया जाता है।
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लैटराइट लमट्टी :
उत्पलत्त : इन तमरट्टयों का तनमाधण शष्ु क एर्वां नम क्रतमक मौसम र्वाले क्ेत्रों में होता है जहााँ र्वर्ाध सामान्यतः 200 CM
र्वातर्धक से अतधक होती है। ये तमरट्टयााँ चट्टानों की िूि फूि एर्वां रासायतनक तक्रया से बनती है। अतधक र्वर्ाध के कारण
लैिराइि चट्टानों का अपक्ालन होता है। तजसके फलथर्वरूप बालू एर्वां चनू े के अश ां ररसकर नीचे चले जाते हैं एर्वां
मृदा के रूप में लोहा एर्वां एल्यतु मतनयम के यौतगक बन जाते हैं।
लवशेषताएाँ :
• यह तमट्टी मुख्य रूप से पूर्वी एर्वां पतिमी घाि पर्वधत, राजमहल की पहातड़यााँ, के रल, कनाधिक, ओतडशा के
पठारी क्ेत्र, छोिानागपुर पठार एर्वां मेघालय पठार, ततमलनाडु, महाराष्र (रत्नातगरी, कोलार्वा, सतारा
तजला), पतिम बांगाल आतद थिानों पर पायी जाती है।
• इस तमट्टी का सर्वाधतधक तर्वथतार के रल राज्य में है।
पवकतीय लमट्टी :
• ये तमरट्टयााँ पतली, दलदली एर्वां रांरयुक्त होती हैं।
• पहाड़ी ढालों की तलहिी में तछद्रमय बलईु एर्वां कम उपजाऊ ितशधयरी तमट्टी पायी जाती है।
• इस तमट्टी में अच्छी तकथम की चाय, चार्वल एर्वां फल पैदा होते हैं।
• पतिम तहमालय के ढालों पर सामान्य उपजाऊ श्रेणी की तमट्टी तमलती है।
• मध्य तहमालय के क्ेत्र में पायी जाने र्वाली तमट्टी में र्वनथपतत के अश
ां ों की अतधकता के कारण यह उपजाऊ
होती है।
• इसमें ह्यूमस की अतधकता के कारण ये अम्लीय प्रकृ तत की होती है।
• इस तमट्टी में पोिाश, फॉथफोरस एर्वां चनू े की कमी होती है।
• ये तमट्टी अपरदन की समथया से प्रभातर्वत रहती है।
मरुथिलीय लमट्टी :
• यह र्वाथतर्व में बलुई तमट्टी होती है। इसमें लोहा एर्वां फॉथफोरस पयाधप्त मात्रा में होता है।
• इसमें नाइरोजन एर्वां ह्यमू स की कमी होती है।
• यह एक क्ारीय गणु र्वाली मृदा है।
• तसचां ाई ससां ाधन उपलब्ध करर्वाकर इसे उर्वधर बनाया जा सकता है।
• इस तमट्टी में मोिे अनाज जैसे ज्र्वार, बाजरा एर्वां रागी पैदा तकया जाता है।
• ये मृदा पतिमी राजथिान, दतक्णी हररयाणा, दतक्णी पांजाब तिा पतिमी उत्तर प्रदेश में पायी जाती है।
o इस पर्द्तत में अपनाए जाने र्वाले तरीके पुराने तिा उपकरण साधारण होते हैं।
o इसमें मख्ु य रूप से खाद्य फसलों के उत्पादन पर बल तदया जाता है।
• रोपण कृलष (Plantation Farming) :
o भारत में रोपण कृ तर्, तब्रतिश सरकार द्वारा 19र्वीं शताब्दी में शुरू की गयी िी।
o इस प्रकार की कृ तर् में नकदी फसलों को उगाया जाता है।
o इस कृ तर् की प्रमखु तर्वशेर्ताएाँ – ज्यादा पाँजू ी लागत, तर्वशाल भूतम, प्रबधां न कौशल, तकनीकी
ज्ञान, अत्याधतु नक कृ तर् मशीनरी, उर्वधरक, अच्छी पररर्वहन सतु र्वधा एर्वां खाद्य प्रसथां करण
कारखाना आतद हैं।
o इस प्रकार की कृ तर् के तहत उगाई जाने र्वाली प्रमुख फसलें – रबर, चाय, कहर्वा, कोको, के ला,
नाररयल एर्वां मसाले हैं।
• थिानातं ररक कृलष या झूम कृलष :
o इस प्रकार की कृ तर् में आतदर्वासी लोगों द्वारा जमीन के एक िुकड़े को कृ तर् के तलए साफ़ तकया
जाता है। 2-3 र्वर्ों के बाद जब जमीन की उर्वधरता कम हो जाती है तब उस भूतम को त्याग तदया
जाता है और तफर र्वे आतदर्वासी दसू री जमीन की तलाश में आगे बढ़ जाते हैं।
o यह कृ तर् की अततप्राचीन पर्द्तत है पररणामथर्वरूप पर्वधतीय तहथसों पर बड़ी सांख्या में र्वनोन्मूलन
एर्वां मृदा अपरदन होता है।
o यह कृ तर् मुख्यतः असम, मेघालय, नागालैंड, मतणपुर, तत्रपुरा, तमजोरम, ओतडशा, अरुणाचल
प्रदेश, मध्य प्रदेश एर्वां आांर प्रदेश में रहने र्वाली जनजाततयों द्वारा अपनायी जाती है।
o इस कृ तर् के अांतगधत धान, मकका, बाजरा, तम्बाकू, गन्ना इत्यातद की खेती की जाती है।
हररत क्रालन्त :
• भारत में हररत क्रातन्त की शुरुआत सन 1966-67 में हुई। भारत में हररत क्रातन्त लाने का श्रेय एम. एस.
थर्वामीनािन को जाता है।
• तर्वश्व में हररत क्रातन्त लाने का श्रेय नोबल पुरथकार तर्वजेता प्रोफ़े सर नॉमधन बोरलॉग को जाता है।
• हररत क्रातन्त का अतभप्राय देश में तसांतचत एर्वां अतसांतचत कृ तर् क्ेत्रों में अतधक उपज देने र्वाले सांकर तिा
बौने बीजों के उपयोग से फसल उत्पादन में र्वृतर्द् करना है।
हररत क्रालन्त के घटक : हररत क्रातन्त के कुल 12 घिक हैं –
1. उच्च उपज तकथम के बीज 2. तसांचाई 3 रासायतनक उर्वधरकों का प्रयोग
4. कीिनाशक दर्वाओ ां का प्रयोग 5. कमाांड एररया तर्वकास 6. जोतों का सुदृढीकरण
7. भूतम सुधार 8. कृ तर् ऋण की आपूततध 9. ग्रामीण तर्वद्युतीकरण
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10. ग्रामीण सड़कें एर्वां तर्वपणन 11. कृ तर् का मशीनीकरण 12. कृ तर् तर्वश्वतर्वद्यालय
हररत क्रालन्त के प्रभाव :
सकारात्मक प्रभाव नकारात्मक प्रभाव
कृ तर् उत्पादन में र्वृतर्द् अतां फध सल असतां ल ु न
तकसानों की उन्नतत क्ेत्रीय असांतुलन में र्वृतर्द्
खाद्यान्नो के आयात में किौती बड़े तकसानों को ही लाभ प्राप्त
पूाँजी खेती बेरोजगारी
कृ तर् से लाभ की पनु प्राधतप्त अन्तः क्ेत्रीय प्रर्वास में र्वृतर्द्
औद्योतगक तर्वकास पाररतथिततकी समथयाएाँ
ग्रामीण रोजगार
फसलों का वगीकरण :
• चार्वल उष्णकतिबांधीय फसल है। इसके तलए उष्णाद्रध जलर्वायु एर्वां औसत ताप 24° C की आर्वश्यकता
होती है।
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• चार्वल की फसल के तलए 150 सेमी. से अतधक र्वर्ाध की आर्वश्यकता होती है।
• चार्वल की फसल के तलए गहरी उर्वधर तचकनी या दोमि तमट्टी की आर्वश्यकता होती है।
गेहं (Triticum) :
• गेह,ां भारत में चार्वल के बाद अन्य प्रमख
ु खाद्यान्न फसल है। देश की कुल लगभग 14 प्रततशत भाग पर
गेहां की खेती की जाती है।
• गेहां के प्रमख
ु उत्पादक क्ेत्रों में उत्तर प्रदेश, पजां ाब, हररयाणा, मध्य प्रदेश एर्वां राजथिान शातमल हैं।
• भारत में तर्वश्व का 12 प्रततशत गेहां का उत्पादन होता है।
• उत्तरी भारत में गेहां की बआ
ु ई अकिूबर-नर्वबां र में एर्वां किाई माचध-अप्रैल में होती है जबतक दतक्णी भारत
में गेहां की बआ
ु ई तसतबां र-अकिूबर में एर्वां किाई तदसबां र-जनर्वरी में होती है।
• गेहां रबी की फसल है तिा शीतोष्ण जलर्वायु की फसल है।
• शीतकालीन र्वर्ाध (मार्वठ) गेहां की फसल के तलए अत्यतधक लाभदायक होती है।
आवश्यक दशाएं :
ज्वार :
• यह रबी एर्वां खरीफ दोनों ऋतओ
ु ां में होती है। यह अफ्रीकी मल
ू का पौधा है।
• भारत में यह महाराष्र (38%), कनाधिक (13%), मध्य प्रदेश (13%) उत्पातदत होती है।
• ज्र्वार की सर्वाधतधक उत्पादकता आरां प्रदेश में पायी जाती है।
आवश्यक दशाएं :
ाजरा :
• यह अफ्रीकी मूल का पौधा है। भारत में यह खरीफ की फसल है।
• भारत में बाजरा का सर्वाधतधक उत्पादन राजथिान (27%), गुजरात (19%), महाराष्र (15%) एर्वां
हररयाणा में होता है।
• बाजरा की सर्वाधतधक उत्पादकता हररयाणा में पायी जाती है।
• बाजरा एक उष्णकतिबांधीय फसल है।
• इसके तलए आर्वश्यक र्वर्ाध : 40-50 सेमी. र्वातर्धक, तापमान : 25°-31° C एर्वां तमििी : बलुई, दोमि या
रे तीली मृदा की आर्वश्यकता होती है।
मलका :
• यह खरीफ की फसल है। इसके तलए अर्द्ध शष्ु क जलर्वायु की आर्वश्यकता होती है।
• मकका का उत्पादन आरां प्रदेश, कनाधिक, तबहार एर्वां राजथिान आतद राज्यों में होता है।
• मकका की फसल के तलए 50-100 सेमी. र्वातर्धक र्वर्ाध, 25°-30° C तापमान एर्वां गहरी दोमि तचकनी या
कााँप तमट्टी की आर्वश्यकता होती है।
मूंगफली :
• मूांगफली का सर्वाधतधक उत्पादन गुजरात, मध्य प्रदेश एर्वां ततमलनाडु में होता है।
• मूांगफली की फसल के तलए 50-75 सेमी. र्वातर्धक र्वर्ाध, 20°-30° C के बीच तापमान एर्वां हल्की दोमि
या बलुई तमट्टी की आर्वश्यकता होती है।
चना :
• चना एक रबी की फसल है। यह उष्णकतिबांधीय फसल है।
• भारत में चना उत्पादक राज्यों में पांजाब, हररयाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्र एर्वां राजथिान प्रमुख
हैं।
• चना का सर्वाधतधक क्ेत्र मध्य प्रदेश में तिा सर्वाधतधक उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है।
• चना की फसल के तलए 40-50 सेमी. र्वातर्धक र्वर्ाध, 20°-25° C तापमान एर्वां दोमि तमट्टी की
आर्वश्यकता होती है।
कपास :
• कपास उष्णकतिबांधीय एर्वां उपोष्ण कतिबांधीय फसल है।
• कपास खरीफ की फसल है। भारत में कपास उत्पादन में अमेररका एर्वां चीन के बाद तृतीय थिान पर है।
• भारत में कपास की सर्वाधतधक उत्पादकता पांजाब राज्य में है।
• कपास उत्पादन करने र्वाले प्रमुख राज्य महाराष्र, गुजरात, आांरप्रदेश एर्वां पांजाब राज्य हैं।
• कपास की फसल के तलए 50-75 सेमी. र्वातर्धक र्वर्ाध, 21°-30° C तापमान एर्वां गहरी काली दककनी
पठारी मृदा की आर्वश्यकता होती है।
जूट :
• यह उष्णाद्रध जलर्वायु की फसल है। जिू खरीफ की फसल है।
• तर्वश्व के कुल जिू उत्पादन का 66% उत्पादन अके ला भारत करता है।
• भारत में जिू उत्पादन करने र्वाले शीर्ध राज्य पतिम बगां ाल, तबहार, असम एर्वां झारखडां हैं।
• जूि की फसल के तलए 100-200 सेमी. र्वातर्धक र्वर्ाध, 24°-35° C तापमान एर्वां जलोढ़ या कााँप मृदा की
आर्वश्यकता होती है।
गन्ना :
• यह उष्णकतिबांधीय फसल है। इसके तलए अतधक ताप एर्वां अतधक आद्रधता की आर्वश्यकता होती है।
• भारत में गन्ना उत्पादन करने र्वाले प्रमुख राज्य उत्तर प्रदेश, महाराष्र, ततमलनाडु, कनाधिक आतद राज्य हैं।
• दतक्ण भारत में आद्रधता अतधक होने के कारण प्रतत हेकिेयर उपज उत्तर भारत से अतधक होती है।
• भारत में सर्वाधतधक तसांचाई का उपयोग गन्ना की फसल के तलए तकया जाता है।
• गन्ना की फसल के तलए 150 सेमी. र्वातर्धक र्वर्ाध से अतधक र्वर्ाध की आर्वश्यकता होती है, इसके तलए
20°-26° C तापमान एर्वां उपजाऊ दोमि मृदा की आर्वश्यकता होती है।
तम ाकू :
• भारत में दो प्रकार की तम्बाकू का उत्पादन होता है –
o तनकोतिना िोबेकम : उपयोग – तसगरे ि, तसगार एर्वां चेरुत में
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लौंग ततमलनाडु
कीर्वी अरुणाचल प्रदेश
धतनया मध्य प्रदेश
चीकू कनाधिक
इलाइची (छोिी) के रल
इलाइची (बड़ी) तसतककम
जीरा गुजरात
चाय असम
कॉफ़ी कनाधिक
लोहा :
• भारत में लोहा प्रमुख रूप से धारर्वाड़ की चट्टानों में पाया जाता है।
• लौहाांश के अनुसार लौह अयथक का क्रम तनम्नतलतखत है –
मैग्नेिाइि (72% लौहाांश) > हेमेिाइि (60-70% लौहाांश) > तलमोनाइि (50-60% लौहाांश) >
तसडेराइि (40-45% लौहाांश)
• सर्वोत्तम प्रकार का लौह अयथक मैग्नेिाइि है।
• भारत में उपलब्धता के अनसु ार लौह अयथकों का क्रम : हेमेिाइि > मैग्नेिाइि > अन्य
• भारत में लौह अयथक के क्ेत्र :
छत्तीसगढ़ : डल्ली राजहरा, बैलाडीला
कनाधिक : बाबा बदु न की पहाड़ी, कुद्रेमख ु एर्वां बेल्लारी
झारखडां : नोआमडां ी, जामदा, तसहां भमू तजला
ओतडशा : बादाम पहाड़ी, कयोंझर, बोनाई
आरां प्रदेश : कुनधल
ू , कुडप्पा
अन्य थिान : गोर्वा, महाराष्र, ततमलनाडु, के रल, राजथिान, हररयाणा, तेलगां ाना आतद
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मैंगनीज :
• उपयोग : अपघर्धण एर्वां जांगरोधी इथपात बनाने में, लोहे की तमश्रधातु बनाने में, शुष्क बैिरी, रांग एर्वां काांच
उद्योग में
• मैंगनीज मुख्य रूप से धारर्वाड़ शैल समूह में पाया जाता है।
• उत्पादन के क्ेत्र :
ओतडशा : कयोंझर, कालाहाांडी, सुांदरगढ़
मध्य प्रदेश : बालाघाि, तछांदर्वाड़ा
महाराष्र : नागपुर, भण्डारा, रत्नातगरी
झारखण्ड : पतिमी तसांहभूम
अन्य क्ेत्र : बेल्लारी एर्वां तशमोगा तजला (कनाधिक), आांर प्रदेश, राजथिान एर्वां गुजरात।
ॉलसाइट :
• बॉकसाइि अयथक का प्रयोग एल्युतमतनयम बनाने, चमड़ा रांगने, पेरोल एर्वां नमक साफ़ करने में तकया जाता
है।
• उत्पादन के क्ेत्र :
ओतडशा : कालाहाांडी, रायगढ़, पांचपत्तमल्ली, गांधमदधन
मध्य प्रदेश : किनी, जबलपुर, शहडोल, माांडला
झारखांड : पलामू, लोहदरगा
छत्तीसगढ़ : बथतर, तबलासपुर, सरगुजा
तााँ ा :
• तााँबा भारत की कुडप्पा एर्वां अरार्वली सरां चना में पाया जाता है।
• उत्पादन के क्ेत्र :
राजथिान : खेतड़ी, खो दरीबा
मध्य प्रदेश : मलाजखडां (बालाघाि तजला)
झारखडां : मोसाबानी, राखा, सोनामाखी
चााँदी :
• चााँदी, जथता, शीशा एर्वां तााँबा के साि तमतश्रत रूप से तमलता है।
• उत्पादन क्ेत्र :
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o बॉम्बे हाई : इसे B-19 सांरचना भी कहा जाता है। यह मुांबई से 110 समुद्री मील दरू पतिम में
तथित है।
o गजु रात : अक ां लेश्वर, लनु ेज, कलोल एर्वां खम्भात की खाड़ी
o असम घािी क्ेत्र : तडगबोई (भारत का सबसे प्राचीन उत्पादक क्ेत्र), नहरकतिया, सुरमा नदी घािी
o कृ ष्णा-गोदार्वरी बेतसन : यह आांर प्रदेश में कृ ष्णा एर्वां गोदार्वरी नतदयों के बीच तथित है।
o अन्य क्ेत्र : पतिम बगां ाल का सदुां रर्वन क्ेत्र, राजथिान का जैसलमेर, बीकानेर एर्वां बाड़मेर क्ेत्र
• तक्रयान्र्वयन में देरी से समय और लागत दोनों में र्वृतर्द् होती है।
• कच्चे माल की कमी औद्योतगक तर्वकास में रुकार्वि उत्पन्न करती है।
• ऊजाध की उपलब्धता में कमी।
• पररर्वहन एर्वां यातायात असुतर्वधा के कारण औद्योतगक तर्वकास धीमा पड़ जाता है।
• राजनीततक कारणों से सांतुतलत क्ेत्रीय तर्वकास प्रभातर्वत
• थिानीय कौशल तर्वकास पर समुतचत ध्यान न तदया जाना।
थवतंत्रता पूवक भारत में थिालपत उद्योग :
• लौह – इथपात उद्योग : 1874 ई. में कुल्िी (प. बांगाल) में भारत का पहला व्यर्वतथित लौह-इथपात उद्योग
कें द्र थिातपत तकया गया िा।
• एल्युतमतनयम उद्योग : 1837 ई. में जे.के . नगर (प. बांगाल) में पहला एल्युतमतनयम उद्योग थिातपत तकया
गया।
• सीमेंि उद्योग : सीमेंि का पहला कारखाना 1904 ई. में चेन्नई में लगाया गया िा।
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• रासायतनक-उर्वधरक उद्योग : भारत में रासायतनक उर्वधरक उद्योग की शुरुआत 1906 ई. में रानीपेि
(ततमलनाडु) में सुपर फॉथफे ि सांयांत्र लगाकर हुई िी।
• जहाजरानी उद्योग : 1941 ई. में तर्वशाखापत्तनम में पहला जहाजरानी उद्योग लगाया गया िा। इसका नाम
तहन्दथु तान तशपयाडध िा।
• सूती र्वि उद्योग : 1818 ई. में कोलकाता में प्रिम सूती तमल की थिापना की गयी जो असफल रही। 1854
ई. में मुांबई में प्रिम सफल सूती तमल की थिापना डाबर ने की िी।
• जूि उद्योग : जूि उद्योग की थिापना 1955 ई. में ररसड़ा (कोलकाता) में की गयी िी।
• ऊनी र्वि उद्योग : भारत में पहली ऊन तमल की थिापना 1876 ई. में कानपुर में हुई िी।
भारत के प्रमख
ु उद्योग :
लौह – इथपात उद्योग :
एल्युलमलनयम उद्योग :
• यह एक ऐसा उद्योग है तजसमें बड़े पैमाने पर तबजली की उपलब्धता का होना आर्वश्यक है। अतः इसका
थिानीयकरण र्वैसी जगहों पर हुआ है जहााँ सथता तर्वद्युत उपलब्ध होता है।
• भारत में एल्युतमतनयम का पहला कारखाना जे.के . नगर (पतिम बांगाल) में लगाया गया िा।
• दसू री पांचर्वर्ीय योजना में थिातपत एल्युतमतनयम सांयांत्र :
o हीराकांु ड (ओतडशा)
o रे णक ु ू ि (उत्तर प्रदेश)
• भारत में एल्यतु मतनयम के सयां त्रां :
1. तहन्दथु तान एल्यतु मतनयम कांपनी (HINDALCO) :
o कारखाना : रे णुकूि (उत्तर प्रदेश) में
o बॉकसाइि आपूततध : राांची (झारखण्ड), पलामू एर्वां लोहदरगा (झारखण्ड)
o तर्वद्युत आपूततध : ररहदां जल तर्वद्युत पररयोजना (उत्तर प्रदेश)
2. इतां डयन एल्युतमतनयम कांपनी तलतमिेड (INDALCO) : भारत में इसके कारखाने तनम्नतलतखत थिानों
पर थिातपत तकए गए हैं –
o मुरी (झारखांड)
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सीमेंट उद्योग :
• सीमेंि उद्योग एक आधारभूत उद्योग है।
• यह एक र्वजन ह्रास उद्योग है। अतः इस उद्योग का थिानीयकरण कच्चे माल के क्ेत्र में होता है।
• सीमेंि उद्योग में कच्चा माल कोयला, चनू ा पत्िर एर्वां तजप्सम होता है।
• चांतू क मध्य प्रदेश में चनू ा पत्िर के सर्वाधतधक भण्डार हैं इसतलए इस उद्योग का सर्वाधतधक तर्वकास मध्यप्रदेश
में ही हुआ है।
• सीमेंि उद्योग के कारखानों के प्रकार :
o थलज आधाररत कारखाना : इन कारखानों में रासायतनक उर्वधरकों से प्राप्त अपतशि का उपयोग
कच्चे माल के रूप में होता है उदाहरण – तसदां री कारखाना
o थलैग आधाररत कारखाना : इन कारखानों में लौह – इथपात उद्योग से प्राप्त अपतशि का उपयोग
कच्चे माल के रूप में होता है उदाहरण : सींकपानी (झारखांड), भद्रार्वती, राउरके ला, दगु ाधपुर,
तर्वशाखापत्तनम एर्वां दगु ध (छत्तीसगढ़) के कारखाने आतद।
o समुद्री जीर्वों के कर्वच आधाररत कारखाना : इन कारखानों में मृत समुद्री जीर्वों के कर्वचों से चनू ा
पत्िर प्राप्त कर कच्चे माल के रूप में उपयोग तकया जाता है जैसे – द्वाररका, चेन्नई, ततरुर्वनांतपुरम
एर्वां पोरबांदर आतद के कारखाने।
• प्रमुख सीमेंि उत्पादक राज्य एर्वां कें द्र :
o मध्यप्रदेश : सतना, किनी, जबलपरु , रतलाम, नीमच, मैहर, बनमोर आतद।
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• फतिधलाइजर कॉपोरे शन ऑफ इांतडया तलतमिेड (FCI) : तसांदरी, गोरखपुर, तालचेर, रामगुांडम (आांर प्रदेश)
• राष्रीय के तमकल एांड फतिधलाइजसध तलतमिेड (RCF) : राांबे एर्वां िाल (महाराष्र)
• इतां डयन फामधसध फतिधलाइजर कोआपरे तिर्व तलतमिेड (IFFCO) : कलोल (गुजरात), काांडला (गुजरात),
फूलपुर (उत्तर प्रदेश) एर्वां आाँर्वला (उत्तर प्रदेश)
• कृ र्क भारती कोआपरे तिर्व तलतमिेड (KRIBHCO) : हजीरा
पेरो-रसायन उद्योग :
• पेरो रसायन उद्योग को चार भागों में तर्वभातजत तकया जा सकता है –
1. पॉलीमर
2. कृ तत्रम रे शा
3. इलेकरोमशध
4. Surfactant Intermediate
पॉलीमर :
• पॉलीमर का तनमाधण एतिलीन एर्वां प्रोपीलीन से होता है जो तेल शोधन के दौरान प्राप्त होते हैं।
• नेशनल आमेतनक के तमकल तलतमिेड (NOCIL) देश का पहला नेफ्िा आधाररत रसायन कारखाना है।
इसकी थिापना र्वर्ध 1961 में मुांबई में हुई िी।
• पॉलीमसध से प्लातथिक तैयार की जाती है। भारत में प्लातथिक उत्पादन के प्रमुख कें द्र मुांबई, बरौनी (तबहार),
मैिूर (ततमलनाडु), तपम्परी (पुणे) एर्वां ररसरा (प. बांगाल) हैं।
कृ तत्रम रे शा :
• कृ तत्रम रे शों का इथतेमाल र्वि उद्योग में होता है। नायलॉन एर्वां पॉलीएथिर प्रमुख कृ तत्रम रे शे हैं।
• नायलॉन एर्वां पॉलीएथिर कारखाने : कोिा, तपम्परी, मुांबई, पुणे, उज्जैन एर्वां नागपुर आतद थिानों पर।
• एक्रेतलक थिेपल रे शे कारखाने : कोिा एर्वां र्वड़ोदरा में।
• पॉलीएथिर थिेपल रे शे कारखाना : कोिा, र्वड़ोदरा, िाणे, गातियाबाद एर्वां मनाली में।
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चीनी उद्योग :
• भारत में चीनी का उत्पादन गन्ने से तकया जाता है। (यूरोप में चक
ु ां दर से तकया जाता है)
• र्वर्ध 1903 में अांग्रेजों द्वारा तबहार के मढौरा (सारण तजला) में प्रिम सफल चीनी तमल की थिापना की गयी।
इसके बाद उत्तर प्रदेश के इलाकों और तबहार में अन्य चीनी तमलें लगाई गयीं।
• र्वर्ध 1932 में चीनी उद्योग को सरकारी सांरक्ण तमला।
• चीनी उद्योग एक र्वजन ह्रास उद्योग है। चीनी की तुलना में गन्ने का पररर्वहन कतठन होता है अतः चीनी
मीलों की थिापना गन्ना उत्पादक क्ेत्रों के आसपास की जाती है।
• भारत के प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य – उत्तर प्रदेश, महाराष्र, ततमलनाडु, कनाधिक, गुजरात, आांर प्रदेश
एर्वां तबहार आतद राज्य हैं।
• उत्तर प्रदेश :
o यहााँ गन्ना उत्पादन एर्वां चीनी तमल के दो प्रमुख क्ेत्र हैं –
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• दककन के पठार की काली मृदा गन्ने की फसल के तलए अनुकूल होती है। नमी धारण क्मता अतधक होने
के कारण यहााँ तसांचाई की आर्वश्यकता कम होती है।
• समुद्री आद्रध जलर्वायु गन्ने में शकध रा की मात्रा में पेराई की अर्वतध में र्वृतर्द् करता है तजससे शकध रा की मात्रा
में कमी अतधक नहीं हो पाती।
• दतक्ण भारत की चीनी तमलों की थिापना सहकाररता के माध्यम से हुई है।
• दतक्ण भारत के गन्ने में रस की मात्रा अतधक होती है।
• दतक्ण भारत में तर्वद्यतु ससां ाधनों की उपलब्धता सुगम है।
चीनी उद्योग की समथयाएाँ :
• भारत में गन्ने का आधा भाग गडु एर्वां खाडां सारी बनाने में प्रयक्त
ु होता है अतः चीनी तमलों को गन्ने की
प्रातप्त कम होती है।
• भारत में प्रतत हेकिेयर गन्ने की उपज कम है।
• रुग्ण चीनी तमलें भी चीनी उद्योग की एक प्रमुख समथया है।
• छोिा पेराई काल
• चीनी की कम ररकर्वरी रे ि : 100 तकग्रा. गन्ने में मात्र 10 तकग्रा चीनी की प्रातप्त (ररकर्वरी रे ि-10%)
• सरकार की मूल्य नीतत का चीनी तमल मातलकों के तहत में न होना।
जटू उद्योग :
• यह कृ तर् आधाररत एर्वां र्वजन ह्रास उद्योग है अतः उद्योग का थिानीयकरण कच्चे माल के क्ेत्र में होता है।
• भारत तर्वभाजन से पूर्वध जूि उद्योग पर भारत का एकातधकार िा। तर्वभाजन के बाद जूि उद्योग पर प्रततकूल
प्रभार्व पडा। कयोंतक तर्वभाजन के बाद भारत में अतधकतर जूि कारखाने रह गए जबतक जूि उत्पादन का
अतधकतर क्ेत्र पूर्वी पातकथतान (र्वतधमान बाांग्लादेश) में चला गया िा।
• र्वतधमान में भारत में इस उद्योग का के न्द्रीकरण पतिम बांगाल राज्य में है।
पतिम बांगाल में जूि उद्योग के के न्द्रीकरण के कारण :
कागज़ उद्योग :
• आजादी के समय देश में अखबारी कागि की पहली तमल नेपानगर (शहडोल, मध्य प्रदेश) में लगाई गयी
िी।
• कागि बनाने का सफल कारखाना लखनऊ में र्वर्ध 1879 में थिातपत तकया गया तिा पुनः 1881 में
िीिागढ़ (प. बांगाल) में कारखाने लगाए गए। यहीं से आधुतनक कागि उद्योग की शुरुआत मानी जाती है।
• कागि उद्योग एक र्वजन ह्रास उद्योग है। अतः इस उद्योग का थिानीयकरण मुख्यतः कच्चे माल के क्ेत्रों में
ही हुआ है।
• मलु ायम लकिी : यह तहमालय के कोणधारी र्वनों से प्राप्त होती है। कागि उद्योग के कुल कच्चे माल के
7 प्रततशत मुलायम लकड़ी का उपयोग तकया जाता है।
• ााँस : भारत में कागि उद्योग का 70 प्रततशत कच्चा माल बााँस से प्राप्त होता है। भारत में कनाधिक में बााँस
के सर्वाधतधक र्वृक् हैं।
• सवाई घास : सर्वाई घास से कागि उद्योग का 15 प्रततशत कच्चा माल प्राप्त होता है। मध्य प्रदेश में सर्वाई
घास का सर्वाधतधक उत्पादन होता है।
• गासी : यह गन्ने की खोई से प्राप्त तकया जाता है। कागि उद्योग के कच्चे माल के रूप में 7 प्रततशत
कच्चा माल इसी से प्राप्त तकया जाता है।
• रैलस : कागि के िुकड़ों एर्वां कपडा के िुकड़ों से तैयार की गयी लुगदी रै कस कहलाती है। इसका प्रयोग
हथत तनतमधत कागि बनाने में तकया जाता है। भारत हथत तनतमधत कागि उत्पादन में तर्वश्व में प्रिम थिान पर
है। एतशया का सबसे बड़ा हथत तनतमधत कागि का कारखाना पुदचु ेरी में है।
प्रमुख कागज़ उत्पादक क्षेत्र :
• प. बांगाल कागि उद्योग का परांपरागत क्ेत्र है।
• महाराष्र के बल्लारपुर में देश की सबसे बड़ी कागि तमल है।
• कनाधिक (बाांस का प्रयोग), आांर प्रदेश (बाांस एर्वां सर्वाई घास का प्रयोग), ओतडशा एर्वां मध्य प्रदेश (सर्वाई
घास का प्रयोग), हररयाणा, तबहार, के रल एर्वां ततमलनाडु आतद।
• अखबारी कागि का उत्पादन : नेपानगर (मध्य प्रदेश), बल्लारपुर (महाराष्र), साांगली (महाराष्र), भद्रार्वती
(कनाधिक), र्वेलोर (ततमलनाडु) एर्वां पुगालुर (ततमलनाडु)
• होशांगाबाद (मध्य प्रदेश) में बैंक नोिों के तलए कागि तैयार तकया जाता है।
रेशम उद्योग :
• रे शम उद्योग 2 अर्वथिाओ ां में पूणध होता है। पहली अर्वथिा में रे शम का रे शा प्राप्त करने के तलए रे शम कीि
का पालन तकया जाता है। दसू री अर्वथिा में प्राप्त रे शे का उपयोग कर रे शम के र्विों का उत्पादन तकया
जाता है।
• रे शम कीि पालन :
o रे शम कीि पालन को सेरीकल्चर कहते हैं।
o रे शम कीि पालन मुख्य रूप से शहतूत के पेड़ पर तकया जाता है।
एर्वां पूर्वोत्तर के पहाड़ी राज्यों सतहत भारत के दो बांदरगाह तर्वहीन पडोसी देशों नेपाल एर्वां भूिान को सेर्वा
प्रदान करता है। इस बांदरगाह की सहायता के तलए हतल्दया बांदरगाह है।