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भारत के मैदान

उत्तरी मैदवनी प्रदे श  सतलज-यमुनव के मैदवन


 गंगव के मैदवन
• उत्तरी मैदानी प्रदे श का ननमाा ण ननदय ों  ब्रह्मपुत्र के मैदवन
द्वारा जमा नकए गए अवसाद से ह ता
है । यह नवश्व के सबसे नवस्तृत जल ढ
मैदान है । भारत का नवीनतम प्रदे श
है नजसका ननमाा ण चतुर्ा युग में हुआ
र्ा। इस अत्यनिक उपजाऊ मैदान का
उपय ग कृनि के नलए नकया जाता है
तर्ा यहाों सर्वाधिक जनसं ख्यव घनत्व
पवयव जवतव है ।
• यह प्रदे श 7 लाख वगा km क्षे त्र मे
नवस्तृत है । इस मैदानी प्रदे श की 1. रवजस्थवन के मैदवन
चौडाई लगभग 240-320 km पाई
जाती है । इन मैदान ों में जल ढ़ • यह अरावली पवात के पनिम में स्थर्त
अवसाद का जमाव 2000 मी. की मैदान है , नजसका ढाल उत्तर-पू वा से
गहराई तक पाया जाता है । यह समतल दनक्षण - पनिम की ओर है । इन
मैदान हैं , नजनका ढाल मोंद है । इस मैदान ों की प्रमुख नदी लूनी है । यहााँ
मैदानी क्षे त्र क चार भाग में नवभानजत अर्द्ा शु ष्क तर्ा शु ष्क पररस्थर्नतया पाई
नकया जा सकता है । जाती है । इस मैदानी क्षे त्र में बहुत सी
लवणीय झीलें हैं ।
भारत के उत्तरी मैदान ों में राज्य/सों घ राज्य क्षेत्र- • विाा के आिार पर इस मैदानी प्रदे श
पोंजाब, हररयाणा, ददल्ली, उत्तर प्रदे श, दबहार, के 2 भाग है -
झारखोंड, पदिम बों गाल और असम। (i) रवजस्थवन बवंगर
(ii) मरुस्थली
भारत के उत्तरी मैदान ों में उगाई जाने वाली
फसलें
• इस क्षे त्र में उपजाऊ नमट्टी के कारण, उत्तरी
मैदान कृनि के नलए सबसे उपयुक्त हैं ।
• यहाों लगाई गई कुछ फसलें मक्का, बाजरा,
जू ट, गन्ना, चावल और गेहों हैं ।

 इस मैदवनी क्षेत्र को चवर भवगो में


धर्भवधजत धकयव जव सकतव है ।
 रवजस्थवन के मैदवनी इलवके
2. सतलज के मैदवन-
• इस मैदान का ननमाा ण रावी, व्यास तर्ा
सतलज नदी द्वारा ह ता है ।
• इस मैदान का ढाल उत्तर-पू वा से दनक्षण -
पनिम की ओर है । यह मैदान मुख्य रूप से
पों जाब तर्ा हररयाणा में स्थर्त है । इस मैदानी
प्रदे श मे 'द आब' पाये जाते हैं । द आब : द
नदीय के बीच पाया जाने वाला उपजाऊ
मैदान जै से- बारी, नबस्त |
• सतलज तर्ा घग्घर नदी के बीच मालवा के
मैदान स्थर्त है । घग्घर तर्ा यमुना के बीच
हररयाणा नभवानी बागर स्थर्त है । इस मैदानी
प्रदे श में सवाा निक उत्पादकता पाई जाती है ।
नशवानलक पहानिय के सार् लगते मैदानी
1. रवजस्थवन बवंगर : भाग ों में छ टी - छ टी िाराओों द्वारा अपरदन
• यह भाग अरावली पवात तर्ा 25 cm विाा रे खा के कारण कई खड्ड बन गये है नजन्हें थर्ानीय
के बीच है । भािा में च कहते हैं । ऐसे च ह नशयारपु र नजले
• इस क्षे त्र में लगभग 25 से 50 cm विाा प्राप्त (पों जाब) मे अनिक नमलते हैं ।
ह ती है ।
• यहाों अर्द्ा शु ष्क पररस्थर्नतयाों पाई जाती है ।

2. मरुस्थली :
• यह भाग 25 cm समविाा रे खा के पनिम में है

• यहा 25 cm से कम विाा प्राप्त ह ती है । अतः
यहा मरुथर्लीय पररस्थर्नतयाों पाई जाती है ।
3. गंगव के मैदवन
 इस मैदान का ननमाा ण गोंगा तर्ा इसकी
सहायक ननदय ों द्वारा ह ता है । इस 4. ब्रह्मवपुत्र के मैदवन
मैदान का ढाल उत्तरी-पनिमी से
 इस मैदान का ननमाा ण बहापु त्र तर्ा उसकी
दनक्षण-पू वा की ओर है । यह मैदान
सहायक ननदय द्वारा ह ता है । इस मैदान
मुख्य रुप में UP, नबहार तर्ा पनिम
का ढाल उत्तर-पू वा से दनक्षण- पनिम की
बोंगाल में स्थर्त है । इस मैदान में
ओर है । यह मैदान मु ख्य रूप से असम मे
नवनभन्न प्रादे नशक नाम है .
स्थर्त है ।
 UP के पदिमी भाग में - र दहलखोंड
 ये सोंकरे मैदान है । यह मैदान सानदया से
 लखनऊ के पास= अवध के मैदान
िु बरी तक 150 नकमी की दू री में नवस्तृत है
 दबहार में गोंगा के उत्तर में - दमदिला
एवों यह 100 नकमी. चौडा है । इन मैदान ों
 दबहार में गोंगा के द. में- मगध
का उपय ग चावल तर्ा पटसन(Jute) की
 क सी तिा महानोंदा के बीच- बाररों द
खेती के नलए नकया जाता है ।
 यह भारत का सबसे दवस्तृत मैदान है
तिा यहााँ सवाादधक उत्पादन पाया जाता
है ।

अन्य दोआब
सं रचनव के आिवर पर मैदवनों कव मैदान अत्यनिक उपजाऊ है तर्ा यहााँ
धर्भवजन- सवाा निक उत्पादकता पाई जाती है ।
पों जाब मे खादर के मैदान क बेट
(Bat) कहते है ।
4. बवंगर :
• यह खादर के पास ऊाँचाई पर स्थर्त मैदान
हैं ज पु राने जल द अवसाद से नननमात है ।
पों जाब मे बाों गर क्षे त्र क िाया कहते हैं । यहााँ
सवाा निक उत्पादन पाया जाता है । बाों गर
क्षे त्र में कैस्ियम के नपण्ड पाये जाते हैं ।
1. भवबर:
नजन्हें कोंकर कहते है ।
• यह मैदान पवात के पदे न क्षे त्र में
• बाों गर क्षे त्र में अनिक अपरदन के कारण
ननदय ों द्वारा लाए गए जाने वाले बडे
ऊपर की मुलायम नमट्टी नष्ट ह जाती है
(नहमालय) अवसाद से नननमात ह ता
तर्ा पीछे कोंकर युक्त भू नम रह जाती है ,
है । यह एक पट्टी के रूप मे पवात ों
नजसे 'भू ि' कहते है । बाों गर प्रदे श के कुछ
के पदे न क्षे त्र ों में पाए जाते हैं तर्ा
शु ष्क भाग मे पाये जाने वाले छ टे टील
मैदान 8-15 km चौिाई मे स्थर्त है ।
क थर्ानीय भािा मे झुोंि कहते हैं ।
इस मैदानी क्षे त्र मे ननदया बडे
5. डे ल्टव :
अवसाद के नीचे बहती है अत: सतह
• इनका ननमाा ण नदी के समुद्र में नगरने से
पर अदृश्य ह जाती है ।
पहले जमा नकये गये अवसाद ों से ह ता है
2. तरवई :
गोंगा- ब्रहापु त्र िे ल्टा क्षे त्र में ज्वार का जल
• यह भाबर के दनक्षण में 15-30 KM फैल जाता है । अतः यह भाग दलदली
चौिाई में नवस्तृत मैदान है । तराई क्षे त्र रहता है । ज्वारीय जल की पहुों च मे ना आने
मे नदी पु न: सतह पर नदखने लगती वाले उच्च भू नम क चर कहते हैं तर्ा
है । इस क्षे त्र मे नदी क जल का ज्वारीय जल मे िूब जाने वाली ननम्नभू नम
प्रवाह अननयनमत ह ता है । अतः यहा क बील कहते है । चर में बस्स्तया है तर्ा
दलदली पररस्थर्नतयाों पाई जाती है । इस बील में जू ट ि ने के नलए पयाा प्त जल नमल
क्षे त्र मे गहन वनस्पनत- तर्ा नवनभन्न जाता है ।
वन्य जीव पाये जाते है । पोंजाब तर्ा
UP में तराई क्षे त्र में कृनि की जाती
है । भारत में अब तराई क्षे त्र मुख्य रूप
से उत्तर-पू वी राज् ों में पाया जाता है ।
3. खवदर :
• नदी के द न ओर बाढ के मैदान में
पाए जाने वाले नए अवसाद से नननमात
मैदान क 'खादर' कहते है । नदी हर
विा मानसून के दौरान यहााँ नए
अवसाद क जमा करती है । यह
उत्तर पधिमी मरुस्थलीय
प्रदे श

• यह उत्तर पनिमी भारत का शु ष्क क्षे त्र है ।


र्ार मरूथर्ल का कुल क्षे त्रफल 2 लाख
वगा नकमी है । 85% र्ार मरुथर्ल भारत
में है तर्ा 15% पानकस्तान मे है । 60%
मरुथर्ल राजथर्ान मे है तर्ा बाकी
गुजरात, पोंजाब, हररयाणा में है । यहााँ शुष्क
व अर्द्ा शु ष्क पररस्थर्नतयााँ पायी जाती है ।  थवर के मरुस्थल की उत्पधत्त -
लूनी यहााँ की प्रमुख नदी है । यहााँ बहुत • र्ार के मरुथर्ल की उत्पनत्त के सोंबोंि में मत
सी लवणीय झीले पायी जाती है । नभन्नताएाँ है । कुछ नवद्वान यहााँ बालू की
• थवर कव मरूस्थल पधिमी रवजस्थवन मे उपस्थर्नत थर्ानीय चट्टान ों के नवघटन से मानते
धर्स्तृत है । कुछ भू ग लवेत्ता इसे प्रायद्वीपीय है ।
भारत के अध्ययन मे सस्िनलत करते हैं , • नकन्तु िरातलीय चट्टान ों के प्रार्नमक अपरदन
क्य नक इस क्षे त्र की आिारभू त चट्टाने के लक्षण जलीय प्रभाव का प्रदशा न करते है ।
दनक्षण के पठार का ही नवस्तार हैं । अन्य अतः कुछ नवद्वान का मत है नक, इस क्षे त्र की
भू ग लवेत्ता नवशाल मैदान के सार् इसकी जलवायु पहले आई र्ी नकन्तु कालान्तर में यहााँ
ननरन्तरता के कारण इसे गोंगा- सतलज शु ष्कता बढ़ती गई तर्ा यह क्षे त्र एक शु ष्क,
मरुथर्ल बन गया।
के मैदान के अोंग के रूप मे अध्ययन
• जै सलमेर के ननकट मे Wood Fossil Park
करते हैं । भौनतक दृनष्ट से इस क्षे त्र की
इसका प्रमाण है , जहााँ बडी-बडी ननदयााँ बहती
अपनी नवनशष्टता व समस्याएाँ हैं , अत: यहााँ
र्ी। नकन्तु भू गनभा क हलचल द्वारा इस क्षे त्र के
इसे एक अलग प्रदे श के रूप मे सस्िनलत
ऊपर उठ जाने से इस क्षे त्र का जल प्रवाह गोंगा
नकया गया है ।
या नसोंिु नदी मे नमल गया र्ा। यहााँ शु ष्कता
बढ़ती गई। ला टू श (La Touche) नामक
नवद्वान ने पनिमी राजथर्ान मे बालू की उपलस्ि
के नविय मे बताया नक यह नमट्टी यहााँ प्रचनलत
दनक्षण पनिमी झों झावात द्वारा लाई गई और
पनिमी राजथर्ान के अनिकाों श भाग मे जमा
ह गई है । वैसे जलवायु की शु ष्कता इस क्षेत्र
क मरूथर्ली रूप दे ने मे सबसे प्रभावशाली
कारक है ।
पत्थर, रॉक फास्फेट, फेिपार, खननज
तेल, प्राकृनतक गैस आनद।
• नमनट्टयााँ उपजाऊ ह ने के कारण, जल
उपलि ह जाए त कृनि नवकास की
सम्भावनाएाँ है । भौनतक नवनविता के
कारण यह पयाटक आकिाण का क्षे त्र
है । जै सलमेर में भरने वाला वानिा क
मरू मेला इसकी पु नष्ट करता है ।

• थवर के मरुस्थल कव महत्व :

• ग्रीष्म ऋतु में अत्यनिक गमा ह जाने


से यहााँ पर गहन ननम्न दाब बन जाता
है , ज दनक्षणी - पनिमी मानसून मे
तीव्रता से आकनिात करता है ।
• यहााँ के कम विाा वाले क्षे त्र ों के
चारागाह मे पशु पालन महत्त्वपूणा
व्यवसाय है ।
• यहााँ कई प्रकार के खननज पाए जाते
है । अभ्रक, नजप्सम, ऐसबैस्ट स, क यला,
ताों बा, घीया पत्थर, सोंगमरमर, इमारती

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