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1713978781
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2. मरुस्थली :
• यह भाग 25 cm समविाा रे खा के पनिम में है
।
• यहा 25 cm से कम विाा प्राप्त ह ती है । अतः
यहा मरुथर्लीय पररस्थर्नतयाों पाई जाती है ।
3. गंगव के मैदवन
इस मैदान का ननमाा ण गोंगा तर्ा इसकी
सहायक ननदय ों द्वारा ह ता है । इस 4. ब्रह्मवपुत्र के मैदवन
मैदान का ढाल उत्तरी-पनिमी से
इस मैदान का ननमाा ण बहापु त्र तर्ा उसकी
दनक्षण-पू वा की ओर है । यह मैदान
सहायक ननदय द्वारा ह ता है । इस मैदान
मुख्य रुप में UP, नबहार तर्ा पनिम
का ढाल उत्तर-पू वा से दनक्षण- पनिम की
बोंगाल में स्थर्त है । इस मैदान में
ओर है । यह मैदान मु ख्य रूप से असम मे
नवनभन्न प्रादे नशक नाम है .
स्थर्त है ।
UP के पदिमी भाग में - र दहलखोंड
ये सोंकरे मैदान है । यह मैदान सानदया से
लखनऊ के पास= अवध के मैदान
िु बरी तक 150 नकमी की दू री में नवस्तृत है
दबहार में गोंगा के उत्तर में - दमदिला
एवों यह 100 नकमी. चौडा है । इन मैदान ों
दबहार में गोंगा के द. में- मगध
का उपय ग चावल तर्ा पटसन(Jute) की
क सी तिा महानोंदा के बीच- बाररों द
खेती के नलए नकया जाता है ।
यह भारत का सबसे दवस्तृत मैदान है
तिा यहााँ सवाादधक उत्पादन पाया जाता
है ।
अन्य दोआब
सं रचनव के आिवर पर मैदवनों कव मैदान अत्यनिक उपजाऊ है तर्ा यहााँ
धर्भवजन- सवाा निक उत्पादकता पाई जाती है ।
पों जाब मे खादर के मैदान क बेट
(Bat) कहते है ।
4. बवंगर :
• यह खादर के पास ऊाँचाई पर स्थर्त मैदान
हैं ज पु राने जल द अवसाद से नननमात है ।
पों जाब मे बाों गर क्षे त्र क िाया कहते हैं । यहााँ
सवाा निक उत्पादन पाया जाता है । बाों गर
क्षे त्र में कैस्ियम के नपण्ड पाये जाते हैं ।
1. भवबर:
नजन्हें कोंकर कहते है ।
• यह मैदान पवात के पदे न क्षे त्र में
• बाों गर क्षे त्र में अनिक अपरदन के कारण
ननदय ों द्वारा लाए गए जाने वाले बडे
ऊपर की मुलायम नमट्टी नष्ट ह जाती है
(नहमालय) अवसाद से नननमात ह ता
तर्ा पीछे कोंकर युक्त भू नम रह जाती है ,
है । यह एक पट्टी के रूप मे पवात ों
नजसे 'भू ि' कहते है । बाों गर प्रदे श के कुछ
के पदे न क्षे त्र ों में पाए जाते हैं तर्ा
शु ष्क भाग मे पाये जाने वाले छ टे टील
मैदान 8-15 km चौिाई मे स्थर्त है ।
क थर्ानीय भािा मे झुोंि कहते हैं ।
इस मैदानी क्षे त्र मे ननदया बडे
5. डे ल्टव :
अवसाद के नीचे बहती है अत: सतह
• इनका ननमाा ण नदी के समुद्र में नगरने से
पर अदृश्य ह जाती है ।
पहले जमा नकये गये अवसाद ों से ह ता है
2. तरवई :
गोंगा- ब्रहापु त्र िे ल्टा क्षे त्र में ज्वार का जल
• यह भाबर के दनक्षण में 15-30 KM फैल जाता है । अतः यह भाग दलदली
चौिाई में नवस्तृत मैदान है । तराई क्षे त्र रहता है । ज्वारीय जल की पहुों च मे ना आने
मे नदी पु न: सतह पर नदखने लगती वाले उच्च भू नम क चर कहते हैं तर्ा
है । इस क्षे त्र मे नदी क जल का ज्वारीय जल मे िूब जाने वाली ननम्नभू नम
प्रवाह अननयनमत ह ता है । अतः यहा क बील कहते है । चर में बस्स्तया है तर्ा
दलदली पररस्थर्नतयाों पाई जाती है । इस बील में जू ट ि ने के नलए पयाा प्त जल नमल
क्षे त्र मे गहन वनस्पनत- तर्ा नवनभन्न जाता है ।
वन्य जीव पाये जाते है । पोंजाब तर्ा
UP में तराई क्षे त्र में कृनि की जाती
है । भारत में अब तराई क्षे त्र मुख्य रूप
से उत्तर-पू वी राज् ों में पाया जाता है ।
3. खवदर :
• नदी के द न ओर बाढ के मैदान में
पाए जाने वाले नए अवसाद से नननमात
मैदान क 'खादर' कहते है । नदी हर
विा मानसून के दौरान यहााँ नए
अवसाद क जमा करती है । यह
उत्तर पधिमी मरुस्थलीय
प्रदे श