जाति, मज़हब तथा जातीयता

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जाित, मज़हब तथा जातीयता CASTE, RELIGION AND ETHNICITY

जातीयता जाित, मज़हब तथा भाषा पर आधा रत सामू िहक पहचान की ओर संकेत करता है । जातीयता म
जाित तथा मज़हब िनिहत ह। अतु ल कोहली ने भारतीय समाज की िवशेषता पर काश डाला है । उनका
कहना है िक समाज पारं प रक है , हालाँ िक राजनै ितक व था आधु िनक है । समाज धािमक है िक ु
संिवधान पं थिनरपे है । समाज म सं दाय ाथिमक है िक ु सं िवधान के अं तगत गत ग रमा का
मह सवािधक है । त ता के प ात, पॉल ास के अनु सार, भाषा भारतीय राजनीित का सबसे बड़ा
मु ा बन गई। रा की आिधका रक भाषा का मु ा, रा ों का भाषाई पुनगठन तथा अ सं कों की
भाषा भारतीय लोकत हे तु चु नौती बन गए। यह एक जातीय मु ा है । भारतीय लोकत के अं तगत धीरे
धीरे इस सम ा का िनवारण कर िलया गया। माटी के सपूत आं दोलन [Sons of Soil Movement] का
आरं भ भी भाषा के आधार पर ही िकया गया। यह एक े ीय आं दोलन था िजसके अं तगत एक िवशेष
समूह के भाषा तथा सं ृ ित के सं र ण हे तु िवशे ष ावधान की माँ ग रखी गई।
परं परा तथा आधुिनकता Tradition and Modernity
रजनी कोठारी का कहना है िक भारतीय समाज पारं प रक है । जाित तथा मज़हब पारं प रक समाज से जुड़े
ए ह। िक ु राजनै ितक व था आधुिनक तथा लोकतां ि क है । रजनी कोठारी का मत है िक पारं प रकता
तथा आधु िनकता एक दू सरे के िवरोधी नही ं ह। आधु िनकता का अथ परं पराओं का खं डन नही ं है। अिपतु
आधुिनकता का अथ है परं परा का आधु िनकीकरण। अतः उनका कहना है िक जाित जैसी पर राओं का
अं त नही ं होगा। ब जाित अब एक आधु िनक अवतार ले रही है । जाित का राजनीितकरण जाित की नई
पहचान है ।
जाित का राजनीितकरण Politicization of Caste
रजनी कोठारी का कहना है िक भारत म जाितवाद जैसा कुछ भी नही ं है । जाितवाद को लोकत हेतु
अिभशाप माना जाता है । जाितवाद का अथ है की जाित आधा रत पहचान की ाथिमकता िजसके
अं तगत जाित की सद ता तथा पहचान नाग रकता से अिधक मह पू ण होती है । जाित समूहों के बीच
श ु ता को ो ािहत करना जाितवाद का उदाहरण है ।
रजनी कोठारी का कहना है िक िजसने भी भारत म जाितवाद की आलोचना की है , वह न तो समाज को
समझता है न तो राजनै ितक व था को। राजनीित सामािजक व था के अं तगत सं चािलत होती है , और
जाित भारत की मूलभूत सामािजक इकाई है । राजनै ितक व थाओं को िनवात म नही ं समझा जा सकता।
अतः जाित का राजनीितकरण त है । यहाँ जाितयाँ िहत समूहों के समान संचािलत होती ह। पि मी
समाज म आधु िनकीकरण तथा औ ोिगकीकरण के कारण िहत समूहों का उ व आ। िक ु भारतीय
समाज औ ोगीकृत नही ं है अतः जाित सं थाएँ िहत समूहों का प ले लेती ह। जाित सदा से ही एक
सामािजक पहलू रहा है िक ु जाित की राजनै ितक पहचान लोकतां ि क राजनैितक व था का प रणाम
है । पारं प रक प से जाित को िववाह तथा भोजन से जोड़कर दे खा जाता है िक ु जाित राजनितक
संघटन का मा म बन जाता है ।
लोकतां ि क अवतार
डॉ तथा डॉ का कहना है िक भारतीय लोकत के िव ार हे तु जाित की भूिमका सकारा क
है । भारत की तं ता के प ात, राजनीित तथा शासन म उ जाितयाँ बल थी ं। हालाँ िक, उ जाितयाँ
सां क बल म अ सं क ह। सां क बल म िपछड़ी जाितयाँ तथा अनु सूिचत जाितयाँ एवं जनजाितयाँ
ब सं क ह। अब उ ोंने अपने सां क बल को अनु भव कर िलया है । अतः लोकसभा तथा रा
िवधानसभाओं की जनसां की म प रवतन आ गया है । वतमान म अनु सूिचत जाितयाँ तथा जनजाितयाँ
संसद म ब सं क ह। आं दे श म क ा तथा रे ी जाितयों का वच है । महारा की राजनै ितक
व था म मराठों की भूिमका बल है । िह ी के ों के चुनावों म िपछड़ी जाितयाँ तथा अनु सूिचत जाितयाँ
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एवं जनजाितयाँ िनणय िनधा रत करने म अहम भूिमका िनभा रही ं ह। लोकत का अथ है ब सं कों का
शासन। पारं प रक प से, जाित को अलोकतां ि क माना जाता है ोंिक यह असमानता तथा शु ता एवं
अशु की संक नाओं पर आधा रत है ।
लोकतांि क उभार
योग यादव ने लोकत हे तु जाित के सकारा क प रणाम पर काश डाला है । उनका कहना है िक
आर ण की माँग िपछड़ी जाितयों की बढ़ती जाग कता का प रणाम है । म ल आं दोलन भारत की
दू सरी लोकतांि क लहर का उदाहरण है । िपछड़ी जाितयों तथा अनु सूिचत जाितयों एवं जनजाितयों ने
श म अंश की माँ ग की है । जाित का भाव राजनीित पर पड़ा है तथा राजनीित और भी अिधक
लोकतां ि क हो गई है ।
हािशये पर थत जाितयों का सश करण
हािशये पर थत जाितयों का अथ है िपछड़ी जाितयाँ , अनु सूिचत जाितयाँ तथा जनजाितयाँ। पू व म,
राजनै ितक तथा शासिनक े ों म उ जाितयों का वच था िक ु अब िपछड़ी जाितयाँ तथा एससी एवं
एसटी उ जाित का थान ले रही ं ह। उ ोंने सरकार के गठन हे तु जाित गठबंधनों का िनमाण िकया है ।
हािशये पर थत जाितयों के सश करण हे तु जाित राजनीित सहायक िस हो रही है । राजनीित के
कारण जाित व था लोकतांि क हो रही है ।
Fragmentation
म ल आं दोलन के दौरान, श ा करने हेतु सभी िपछड़ी जाितयाँ एक हो गईं। जाित गठबंधनों का
ने तृ िपछड़ी जाितयाँ कर रही ं थी ं। अब िपछड़ी जाितयों म िवखं डन प से दे खा जा सकता है ।
उ र दे श तथा िबहार म स ा ा करने हे तु भाजपा के नेतृ म सभी गै र-यादव िपछड़ी जाितयाँ एक
हो गईं। मायावती ने भी पूव म यही रणनीित अपनाई थी। िनतीश कुमार ने दिलत वग के ि भाजन के
अं तगत महादिलतों पर ज़ोर िदया तथा िबहार म लालू यादव का िसं हासन छीन िलया।
जाित पर लोकत का भाव
रजनी कोठारी का कहना है िक जाित भारतीय समाज की मूल संरचना है । उनका मत है िक लोकत के
आचार के कारण जाित सं थाओं का गठन िकया गया। सामािजक प से, जाित का अथ है समाज म
अनु मिणकता तथा िवघटन उप थत ह। AJGAR जै से राजनै ितक गठबं धन जाित के राजनै ितक योग के
प रणाम ह। इसका अथ है अहीर, जाट, गु र तथा राजपू त। जाित सं थान िन िल खत िस ांतों पर
आधा रत होते ह:
a. चे तना Consciousness
b. भौितक िवकास Material Progress
c. समाज म ित ा
रजनी कोठारी का कहना है िक सामािजक संरचना का पराभव कभी भी नही ं होता। ब वह अपना
प प रवितत कर लेती है अतः जाितयाँ अब सरकार की नीितयों को भािवत करने हे तु दबाव गुटों की
भूिमका िनभा रही ं ह। जाितयाँ समाज म श को यथाथ बनाने का मा म बन गईं ह। लोकत
ब सं क सरकार के िस ा पर आधा रत है तथा जो भी जाित ब सं क होगी, वही लोकत का
िनमाण करे गी।
लोकत पर जाित का भाव
डॉ तथा डॉ एवं रजनी कोठारी जैसे अ यनकताओं ने लोकत के िवकास हे तु जाित को एक
सकारा क पहलू बताया है । लोकत को अिधक सश करने म जाित सहायक िस हो सकती है
ोंिक िपछड़ी जाितयाँ , अनु सूिचत जनजाितयाँ तथा जाितयाँ जाित सं थानों के कारण ही लोकत का अथ
यथाथ हण कर पा रही ं ह। पू व म 1967 के बाद से केरला म उ जाितयाँ स ा म थी ं। िपछड़ी जाितयों

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की चे तना तथा एकता ने उ जाितयों के वच की जगह ले ली है । महारा म भी यही आ जहाँ मराठों
ने उ जाितयों से श छीन ली। राजनीित के मंडलीकरण के बाद, उ र भारत की श सं रचना म
अ िपछड़े वग , एससी तथा एसटी का वच हो गया। लोकत का अथ है ब सं क शासन जो भारत
म जितयों के सं घटन के कारण ही संभव हो पाया है। एमएन ीिनवास की वच -यु जाित की
प रक ना उन जाितयों की ओर संकेत करती है जो श ा करने हे तु सां कीय तथा आिथक प
से स म ह।
Development
यह कहा जा रहा है िक िवकास की राजनीित ने जाित आधा रत राजनीित की जगह ले ली है । िनतीश कुमार
िबहार के िवकास पर ान दे रहे ह। िबहार के िवधानसभा चु नावों म (2020) तेज ी यादव ने रोजगार,
ा तथा िश ा पर ज़ोर िदया था। िक ु भारत म िवकास तथा जाित की राजनीित साथ साथ उप थत
ह। अतः िवकास की राजनीित ने जाित की राजनीित का थान नही ं िलया है। जाित सं योजनों के कारण ही
िनतीश कुमार चुनावों म िवजयी ए थे । भाजपा ने िवकास पर ान के त िकया था िक ु साथ ही साथ
िह दु तथा राम मं िदर के मु ों को भी हवा दी थी।
जाित तथा वग Caste and Class
वग समाज के र-िव ास हे तु एक आधु िनक साधन है । िक ु जाितयाँ समाज के र-िव ास की
पारं प रक मापदं ड ह। ाथिमक तौर पर, वग समाज के िवभाजन के आिथक मापदं ड ह अतः इनकी कृित
प रवतनशील है । जाितयाँ समाज के िव े षण हे तु िनधा रत पारं प रक मापदं ड ह, जो ज पर आधा रत
होती ह।
संिवधान सरकार के सं चालन हे तु िनिमत एक आधु िनक द ावेज़ है । अनु े द 15(4) तथा 340 के अंतगत
संिवधान म “वग” श को स िलत िकया गया है । इसके अित र , सं िवधान म जाित का उ ेख भी
िकया गया है , मशः अनुसूिचत जाितयाँ तथा जनजाितयाँ। प रक ना के आधार पर, वग तथा जाितयाँ
पर र प से िवरोधा क ह, िक ु ावहा रक प से भारतीय प रवे श म वग तथा जाित अंतर-
प रवतनीय ह।
इं िदरा साहनी मामले (1992) म सव ायालय ने कहा था िक वग तथा जाित समान ह। िपछड़ी जाितयाँ
िपछड़े वग से ह तथा उ जाितयाँ उ वग का भाग ह। मा वादी िव ेषण वग पर के त है ।
माओवािदयों ने भी भारतीय पृ भूिम म वग को जाित से जोड़ने का यास िकया है । राम मनोहर लोिहया
का कहना था िक जाितयाँ वग म प रवितत हो जाती ं ह तथा वग जाितयों म।
राजनीित तथा मज़हब RELIGION AND POLITICS
राजनीित भौितक िव से जुड़ी ई है । मज़हब िव ास तथा आ ा क िव से जु ड़ा आ है । भारतीय
संिवधान पं थिनरपे ता के िस ा का अनुमोदन करता है िजसके अं तगत रा यों के राजनै ितक,
तथा आिथक जीवन का ान रखता है । हालाँ िक, मज़हब मनु की िव ास तथा अ ः करण से जुड़ा आ
है ।
सं िवधान म मज़हब की त ता Right to Freedom of Religion in Constitution
यह सं िवधान सभा म एक एक िववािदत िवषय था। सं िवधान सभा के एक िति त सद राजकुमारी
अमृत कौर ने मौिलक अिधकार के तौर पर मज़हबी अिधकारों को स िलत करने पर आपि कट की
थी। कौर का कहना था िक मज़हबी अिधकार सामािजक सु धार के माग म बाधा बन सकते ह। िक ु
मज़हबी अिधकारों को तृतीय भाग म स िलत िकया गया जो यह मािणत करता है भारतीय रा
पं थिनरपे है । अनु े द 25 से 28 के बीच म मज़हबी अिधकारों की ा ा की गई है ।

अनु े द 25 का थम वा ां श कहता है िक सभी यों को अ ः करण की त ता ा है । उ


अिधकार है तं प से यं ारा चु नाव िकए गए धम को -

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1. आचरण म लाने का Profess
2. मानने का/अनु करण करने का Practice
3. चार/ सार करने का Propagate religion

आचरण म लाना धािमक आ था से संबंिधत है । ेक को अपनी आ था का चु नाव करने का


अिधकार होगा ोंिक यह के अ ः करण से संबंिधत है । अनुकरण करने का अथ है थाओं तथा
पर राओं का पालन [जैसे िक जनेऊ धारण करना]। चार सार करने का अथ है अ यों को
धािमक उपदे श दान करना। धम की त ता रा तथा धम के बीच अं तर सुिनि त करती है । रा
धािमक आचरण अथवा थाओं का िनधारण नही ं करे गा।

धािमक अिधकार पर ितबंध Restrictions over Religious Right

1. सावजिनक व था, िश ाचार तथा ा Public Order, Morality and Health

धािमक अिधकार असीिमत नही ं ह। अनु े द 25(1) कहता है िक अ ः करण की त ता


को सावजिनक व था, िश ाचार तथा ा के आधार पर सीिमत िकया जा सकता है ।
रा को इन आधारों पर धािमक अिधकारों का अित मण करने का अिधकार है जो रा का
मूलभू त उ रदािय है । धािमक अिधकार के नाम पर अ ील आचरण करने का अिधकार
िकसी को नही ं है।

2. पं थिनरपे गितिविध Secular Activity

अनु े द 25(2) धािमक अिधकारों पर अित र सीमाएँ लगाता है । रा को आिथक, िव ीय,


राजनै ितक अथवा अ पं थिनरपे गितिविधयों के िविनयमन हेतु कानून बनाने की अनु मित है। यह
गितिविधयाँ धािमक थाओं से संबंिधत हो सकती ह। अतः रा को धािमक मामलों म ह ेप
करने का अिधकार है िक ु धािमक सं थाओं, धािमक ितिनिधयों इ ािद को रा ारा सं चािलत
पंथिनरपे गितिविधयों म ह ेप करने की अनुमित नही ं है ।

3. सामािजक सु धार Social Reform

रा को सामािजक क ाण हे तु कानू न बनाने का अिधकार है । इस अिधकार को धािमक


अिधकार के नाम पर ायालय म चु नौती नही ं दी जा सकती। रा समाज को सु धारने हे तु कानून
िनिमत करने हे तु तं है। अतः बाल िववाह तथा रत तीन तलाक को असं वैधािनक घोिषत कर
िदया गया है । रा धम थलों म सभी वग के यों का तं वे श सु िनि त करे गा। िक ु
िह दू धािमक सं थान सावजिनक कृित के होने चािहए।
भारत के भूतपू व मु ायाधीश पीबी गज गाडकर ने पं थिनरपे ता की ा ा इस कार की
है:
a. रा िकसी एक धम के ित िन ा रखने हेतु बा नही ं है ;
b. रा न तो अधािमक है न ही मज़हब-िवरोधी;
c. रा सभी मजहबों को समान त ता दान करता है तथा
d. के मज़हब का सामािजक-आिथक सम ाओं के िचंतन म कोई औिच नही ं होता।
इस ा ा के प ात ही पं थिनरपे ता पर सबसे िव ृ त बहस िछड़ी। डीई थ (1963) ने सु झाया िक
पं थिनरपे ता के उदार लोकतांि क िस ा म तीन सार िनिहत ह;
a. मज़हब की त ता तथा ाधीनता Liberty and freedom of religion,
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b. नाग रकता तथा समानता का अिधकार, भेदभाव नही ं, िन ता तथा
c. रा एवं मज़हब का िवभाजन The separation of state and religion.
समान दू री का िस ा Principle of Equal Distance
राजीव भागव का कहना है िक भारतीय पं थिनरपे ता पि मी िव की पं थिनरपे ता से िभ है। उ ोंने यह
भी कहा है िक पि मी िव म पं थिनरपे ता के दो मॉडल ह;
1. ांसीसी मॉडल
2. अमरीकी मॉडल
पं थिनरपे ता के ां सीसी मॉडल के तहत, मज़हब को रा तथा शासन के मामलों म ह ेप करने की
अनु मित नही ं है। िक ु रा तथा शासन मज़हब-सं बंधी गितिविधयों को िविनयिमत कर सकते ह।
प रणाम प, ां सीसी व था म एकप ीय पृ थ रण उप थत है । नाग रकों के साथ समान वहार
ां स का पं थिनरपे िस ा है । अमरीकी पं थिनरपे ता मज़हब तथा रा के म स ू ण पृ थ रण पर
आधा रत है । न तो रा को मज़हबी गितिविधयों म ह ेप करने का अिधकार है और न ही मज़हब को
रा -संबंधी गितिविधयों के िविनयमन का।
भारतीय पं थिनरपे ता अमरीकी तथा ां सीसी मॉडल से िभ है । राजीव भागव का कहना है िक भारतीय
मॉडल अिधक िविभ तापू ण तथा ब लवादी समुदायों हे तु अिधक उपयु है । भारतीय पं थिनरपे ता सभी
मज़हबों के समान आदर का ितिनिध करती है । मज़हब तथा रा का पृ थ रण पंथिनरपे ता का
नकारा क अथ है। पं थिनरपे ता के सकारा क अथ से ता य सभी मज़हबों के ित समान आदर से है ।
पं थिनरपे ता तथा लोकतां ि क आदश Democratic Ideals and Secularism
नीरा चं दोक का कहना है िक पंथिनरपे रा समानता, त ता तथा बंधुता के िस ांतों के अनु मोदन
का प रणाम है । समानता का अथ है िक रा मज़हबी अ सं कों के साथ भेदभाव नही ं करे गा। रा
मज़हबी ब सं कों को ाथिमकता नही ं दे गा। यिद भारत एक मज़हबी रा होता तो समानता के
िस ा का उ ंघन होता। मज़हबी रा मज़हबी ब सं कों को ाथिमकता दे ते ह। त ता
लोकत की क ीय िवशे षता है । रा नाग रकों की आ था का िनधारण नही ं कर सकता ोंिक रा
सभी मज़हबी िव ासों के ित िन है । अलोकतांि क दे श मज़हबी अ सं कों के शोषण हे तु
कु ात ह।
पं थिनरपे ता पर आपि Objection over Secular State
टीएन मदन ने पंथिनरपे रा पर आपि जताई है । उनका कहना है िक पं थिनरपे रा की
प रक ना यू रोप से ली गई एक पि मी सं क ना है । भारतीय सं िवधान हे तु यह एक अ ात तथा पर ही
संक ना है ोंिक भारतीय समाज धािमक है । मदन िन िल खत कारण ु त करते ह:
i. िक े म िनवास करने वाले अिधकांश लोग िकसी न िकसी धािमक आ था के अनु यायी ह;
ii. कुछ दे शों म बौ धम तथा इ ाम को रा मज़हब घोिषत िकया गया है ;
iii. पं थिनरपे ता मज़हबी क रपं थ का िवरोध करने म अ म है ।
उ ोंने भारत म पंथिनरपे ता अपनाने के िवरोध म चार मुख तक ितपािदत िकए थे :
a. पि म म ईसाई मज़हब के आं त रक प रवतनों जैसे िक सुधार [reformation] के कारण मज़हब
को िनजीकृत करना सं भव हो पाया।
b. े के िनवािसयों हे तु, ापक तथा आवृ कारक सा ों [overarching ends] के िस ा के
तौर पर मज़हब की उप थित िकसी भी अ सामािजक अथवा सां ृ ितक आयाम से अिधक
मह पू ण है ।
c. सामािजक तथा राजनै ितक जीवन म मज़हब की ीकारो का खं डन मज़हब के ित िन ा
रखने वालों म क रपं थ तथा दु रा ह को बढ़ावा दे ने म सहायक िस हो सकता है ।

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d. मज़हबी ब लता की पर राएँ अं तर-धािमक सामंज को िव ार दे ने म हमारी सहायक हो
सकती ं ह। इस हे तु, मदन का सुझाव है िक हम दे खना चािहए िक गाँधी ने कैसे मज़हबी समझ को
ो ािहत करने हे तु धािमक सिह ुता के संसाधनों का योग िकया था।
आशीष नं दी भी पं थिनरपे रा की क ीय संक ना से सहमत नही ं ह जो रा तथा मज़हब के म
पृ थ रण पर आधा रत है । वे पं थिनरपे रा के आधार पर ही उठाते ह ोंिक रा तथा मज़हब
के म िवभाजन वहाय नही ं है। वे महा ा गाँधी का उदाहरण दे ते ह जो सावजिनक तथा िनजी जीवन म
धािमक थे । वही ं दू सरी ओर नेह दोनों ही आयामों म धािमक प से े रत नही ं थे । यह उदाहरण यह
िस करते ह िक जीवन के िनजी तथा सावजिनक आयामों म िवभाजन ीकाय नही ं है। आशीष नंदी का
कहना है िक धािमक होना पंथिनरपे होने से बे हतर है । िक ु धम का योग राजनै ितक िवचारधारा के
तौर पर नही ं िकया जाना चािहए।
िह दु
सव ायालय का कहना है िक िह दू धम जीने का तरीका है । यह अ मज़हबों की भाँित नही ं है ।
िह दु एक सां ृ ितक संक ना है जो एक िवशे ष भौगोिलक े की सं ृ ित को इं िगत करती है ।
सं ृ ित पू जा प ित से िभ है । अतः योग को ो ािहत करना तथा कु का आयोजन करना िकसी
िवशे ष मज़हब को ाथिमकता दे ना नही ं है । िह दू , िसखों तथा जैनों की पू जा प ितयाँ िभ ह िक ु
सं ृ ित समान है । आशुतोष वा य का कहना है िक मु म िह दू सं ृ ित को ीकार करने हे तु तै यार
नही ं ह जो िववाद का कारण बनता है । उनका मानना है िक भारत सलाद बाउल जैसा है , न िक मेलिटं ग
पॉट जैसा। िह दु एक समावेशी प रक ना है । आलोचकों का मत है िक िह दु का अथ िववादा द है
ोंिक गाँधी भी धािमक सिह ु ता पर आधा रत िह दु म िव ास रखते थे। गाँधी का िह दु राजनै ितक
उ े ों की ितपू ित का मा म नही ं था।
तु ीकरण Appeasement
पं थिनरपे रा को िकसी िवशे ष मज़हब को िकसी कार की छूट नही ं दे नी चािहए। तु ीकरण तथा
सां दाियकता पं थिनरपे रा हेतु सबसे बड़ी चु नौितयाँ ह। सां दाियकता का अथ है मज़हब का
राजनै ितक योग। हालाँ िक, तु ीकरण से ता य िकसी िवशे ष धािमक सं दाय को आिथक अथवा कानू नी
छूट दे ना है । समान नाग रक सं िहता को लागू न करना तु ीकरण का उदाहरण है । सरकार ब सं क
मज़हबी समूह का तु ीकरण कर सकती है । अ ण शौ र का कहना है िक रा को रा नीितयों के
िनमाण हे तु मज़हबी समूह अथवा जाितयों को ईकाई नही ं मानना चािहए। ऐसा कुछ भी िकसी समूह को
नही ं ा होना चािहए जो अ को उपल नही ं है ।
जाित तथा मज़हब CASTE AND RELIGION
जाित को भारत म लोकत के सश करण हे तु उप थत एक सकारा क पहलू के प म दे खा जा
रहा है हालाँ िक, मज़हब को राजनै ितक व था हे तु एक नकारा क आयाम माना जाता है ोंिक मज़हब
का राजनै ितक योग सां दाियकता का प ले लेता है । सुदी ो किवराज का कहना है िक सां दाियकता
भारत की एकता एवं अखं डता हे तु सबसे बड़ा खतरा है । भाषा, जाित तथा े वाद की सम ाएँ भारत के
िवशे ष े ों तक सीिमत ह िक ु सां दाियकता स ू ण भारत पर भाव डाल रही है ।

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