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मौिलक अिधकार FUNDAMENTAL RIGHTS

चूँ िक भारत एक लोकता क रा है, अतः अिधकार लोकता क राजनैितक व था के अिभ अंग ह।
यह मौिलक ह ोंिक यह नाग रकों के के िवकास हेतु आधारभूत ह। नाग रकों ारा रा के ित
संबोिधत िकए गए दावे को अिधकार की सं ा दी गई है । अिधकार रा अथवा शासन का उपहार नहीं
अिपतु सं िवधान ारा द ावधान ह िजसका िनमाण भारत के नाग रकों के ारा िकया गया है। मौिलक
अिधकार रा अथवा शासन की श को प रसीिमत करने का काय करते ह। मौिलक अिधकार सव प र
ह तथा रा ारा इनका हनन नही ं िकया जा सकता। मौिलक अिधकारों के अं तगत रा की तुलना म
नाग रकों की ाथिमकता की संक ना की गई है । यह सं वैधािनकता तथा कानून का शासन सुिनि त करते
ह। भारतीय संिवधान के तृतीय भाग म मौिलक अिधकारों को स िलत िकया गया है। संिवधान सभा म
सवािधक वाद िववाद इसी भाग के सं दभ म आ था। संिवधान सभा म मौिलक अिधकारों पर चचा हे तु जेबी
कृपलानी सिमित का गठन िकया गया था।
रा का अथ
संिवधान के तृतीय भाग का आरं भ अनु े द 12 के साथ होता है िजसम रा की प रभाषा ुत की गई है ।
मौिलक अिधकार रा के िव उपल ह। अनु े द 12 के अनु सार रा िन िल खत से यु होता है -
1. भारतीय सरकार तथा संसद
2. ेक रा की सरकार तथा िवधाियका
3. भारत के भूभाग म थत अथवा भारत सरकार ारा िनयंि त सभी थानीय तथा अ ािधकरण
िविभ मामलों म सव ायालय ने रा के अथ की ा ा की है । िद ी िव िव ालय तथा अ खल
भारतीय िचिक कीय िव ान सं थान रा की ही अ सं थाएँ ह। रा ारा िव -पोिषत ािधकरण रा
के े ािधकार का भाग ह। एयर इं िडया भी रा सं था का ही उदाहरण है ोंिक एयर इं िडया के
कमचा रयों की िनयु सरकार ारा की जाती है । काय की कृित के ारा ही रा की प रभाषा िनधा रत
की जाती है । अतः भारतीय ि केट िनयं ण बोड भी रा की ा ा के दायरे म आता है ।
वष 1991 म भारत म िनजीकरण तथा उदारीकरण-संबंधी नीितयों की पहल की गई। प रणाम प, रा
के काय ून हो गए। िश ा, ा , प रवहन, बिकंग इ ािद े ों म िनजी उ मों का वेश आ। िनजी
उ मों के िव मौिलक अिधकार उपल नही ं ह। िनजी कंपिनयों म आर ण का कोई ावधान नही ं है ।
इसका अथ यह है िक िनजीकरण के कारण मौिलक अिधकारों का दायरा घट रहा है ।
मौिलक अिधकारो ं का िवशे ष सं र ण Special Protection of Fundamental Rights
अनु े द 13 के अंतगत मौिलक अिधकारों के सं र ण का ावधान िकया गया है। अनु े द 13 के अंतगत
िविध/कानू न के िन िल खत कारों का उ ेख िकया गया है -
1. पूव-सं वैधािनक कानून Pre-constitutional laws
संिवधान के अिधिनयिमत होने से पूव िनिमत तथा भाव म लाए गए कानू न। सरल भाषा म, इसका
अथ है 26 जनवरी, 1950 से पू व उप थत कानून। पू व संवैधािनक क़ानू नों तथा मौिलक अिधकारों के
बीच िववाद की थित म, मौिलक अिधकार पू व-संवैधािनक क़ानू नों पर हण लगाने यो माने
जाएँ गे । इसे आ ादन के िस ा [doctrine of eclipse] की सं ा भी दी गई है । अनु े द 13 (1)
के अनु सार, पू व-सं वैधािनक कानू न शू नही ं होंगे, ब यह असंचालनीय [inoperative] हो
जाएँ गे ।
2. मौिलक अिधकारो ं की ाथिमकता Priority of Fundamental Rights
रा ऐसे िकसी कानू न का िनमाण नहीं कर सकता जो तृतीय भाग म स िलत मौिलक अिधकारों
का शमन अथवा उ ंघन करता हो। यिद वे मौिलक अिधकारों का उ ंघन करते ए पाए जाएँ गे,
1 A -20,102, Indraprasth Tower (Behind Batra Cinema),Commercial Complex,
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तो रा ारा अिधिनयिमत क़ानूनों को शू घोिषत कर िदया जाएगा। एक कानून के कई भाग हो
सकते ह और यिद कानू न का कोई भी भाग मौिलक अिधकारों का उ ंघन करता आ पाया जाता
है तो स ू ण कानून को असं वैधािनक घोिषत कर िदया जाएगा। इसे ्थ रणीयता के िस ा
[principle of severability] की सं ा दी गई है। सव ायालय ने कानून के कानू नी तथा
गैरकानूनी भागों के बीच अंतर करके यह कहा है िक मा गैरकानूनी भाग को ही शू घोिषत
िकया जाएगा। [अनु े द 13 (2)]
3. कानून की प रभाषा Definition of Law
अनु े द 13 (3) के अं तगत "कानू न"/"िविध" को प रभािषत िकया गया है। िविध के अंतगत, भारत
के रा े म िविध का बल रखने वाला कोई अ ादे श, आदे श, उपिविध, िनयम, िविनयम,
अिधसूचना, िढ़ या था ह। शासिनक कायालयों को संपूरक कानू न का िनमाण करने का
अिधकार है । इसे ायोिजत िवधान के नाम से भी जाना जाता है। उपिविध कायपािलका के ारा
िनिमत मा िमक िवधान होते ह। अ ादे श [Ordinance] रा पित के ारा िनिमत कानू न होते ह।
उपिनयम [By laws] संपूरक कानू न होते ह। िविनयम [regulation] कानून लागू करने हेतु
अ ाव क मा म होते ह। अिधसू चना [notification] का अथ है सरकारी गैजेट म क़ानूनों का
काशन तथा िढ़ एवं थाएँ जनजातीय समाज म चिलत कानू न का प होती ह।
4. साधारण कानून तथा संवैधािनक कानून के बीच अंतर
अनु े द 246 के अं तगत, सं सद को क ीय सूची तथा रा सरकार को रा सूची म उ खत
िवषयों पर िविध-िनमाण करने का अिधकार है । कानू न बनाने हेतु संसद को सरल ब मत की
आव कता होती है । िक ु अनु े द 368 के अंतगत, सं वैधािनक श [constituent power] का
योग करते ए सं सद को सं िवधान को सं शोिधत करने का अिधकार भी ा है । सं वैधािनक
संशोधन हे तु िवशे ष ब मत की आव कता होती है । अपनी सं वैधािनक श को भाव म लाते ए
संसद मौिलक अिधकारों को भी संशोिधत कर सकती है । 24व संवैधािनक संशोधन के ारा वष
1971 म अनु े द 13 (4) को सं िवधान म स िलत िकया गया। यह संिवधान को मौिलक अिधकारों
को संशोिधत करने का अिधकार दान करता है। अतः अनु े द 13 (2) ारा द गितरोध
संवैधािनक संशोधन के ावधान पर लागू नही ं होते। मौिलक अिधकार सं सद के सं शोधन की श
के दायरे के बाहर नही ं ह।
मौिलक अिधकारो ं के कार Types of Fundamental Rights
1. समानता का अिधकार Right to Equality
मौिलक अिधकार समानता के अिधकार के ावधान के साथ आरं भ होते ह। अनु े द 14 म कहा
गया है िक िकसी भी को िविध के सम समानता के वहार या भारत के भूभाग के भीतर
िविध के समान संर ण से वंिचत नही ं िकया जाएगा। अनु े द 14 म दो कार की समानता का
उ ेख िकया गया है -
a. िविध के सम समानता Equality before law
b. िविध का समान सं र ण Equal protection of law
(i) िविध के सम समानता: िविध के सम समानता की अवधारणा ि िटश िविध से ली गई है। इसका
ितपादन ि िटश अ यनकता डाइसी ने िकया था। इसका अथ है सभी के ित समान आचार-
वहार। सभी पर िविध के समान समूह लागू होते ह। यह िविध के शासन अथवा िविध की सव ता
का आधार बनता है । कोई भी िविध से ऊपर नही ं है । िविध की ि म िनजी पद, ित ा, संपि का
कोई मह नही ं होता। सभी हे तु समान दं ड सं िहता का ावधान िकया गया है । िविध के अिधिनयमन
के दौरान यों के बीच भेदभाव नही ं िकया जा सकता।

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सभी के ित समान आचार- वहार [equal treatment] एक नकारा क संक ना तीत होती है ।
सभी यों की सामािजक प र थितयाँ समान नही ं होती ं। अतः िविध के समान समूहों के ारा
समानता को बरकरार नही ं रखा जा सकता। इस हे तु समाज के हािशये पर थत िवप वग को रा
की सहायता दान करना आव क है । अनु े द 14 म अमरीकी संिवधान से िलए गए समानता के
सकारा क अथ को भी स िलत िकया गया है ।
(ii) कानून का समान संर ण: इसका अथ है िक कानून समाज के िवप वग का सं र ण करे गा।
िविभ वग हे तु िविभ क़ानूनों की आव कता होती है । अनुसूिचत जाित तथा अनुसूिचत जनजाित
समुदायों के संर ण हे तु सं सद ने पृ थक कानून अिधिनयिमत िकए ह। सकारा क कानून ारा
मिहलाओं एवं ब ों को भी सं र ण ा है । पु षों तथा मिहलाओं पर समान कानू न लागू नही ं िकए
जा सकते ोंिक मिहलाओं को ितकूल सामािजक प र थितयों का सामना करना पड़ता है । सं सद
िविध-िनमाण म भेदभाव कर सकती है िक ु इस भेदभाव का आधार तािकक तथा तकसंगत होना
चािहए। अनु े द 14 म भेदभाव के आधार का उ ेख नही ं िकया गया है । सव ायालय ने
िविभ मामलों म भेदभाव के आधार िकए ह।
S. No. कानून के सम समानता कानून का समान संर ण
1. समान आचार/ वहार Equal िविभ तापूण आचार/ वहार Differential treatment
treatment
2. नकारा क Negative सकारा क Positive
3. इं ड के सं िवधान से े रत Derived अमरीकी सं िवधान से े रत Taken from U.S.A.
constitution.
4. सभी हे तु समान िविध Same law for िवप वग हे तु संर क िविध Protective law for
everyone deprived section
भेदभाव के आधार The base of Discrimination
यिद संसद अथवा रा िवधाियका ारा िनिमत कोई भी कानू न अनु े द 14 का उ ंघन करता पाया जाता
है , तो उसे शू घोिषत िकया जा सकता है । सव ायालय ने कहा है िक िन िल खत आधार तकसंगत
माने जा सकते ह-
1. भौगोिलक आधार [Geographical Ground] भेदभाव हे तु यो माना जा सकता है। उदाहरण के
तौर पर, कानून के समान समूह िद ी तथा उ रपू व के नाग रकों पर लागू नही ं िकए जा सकते ।
2. वसाय [Profession] भी भेदभाव हे तु एक तकसंगत आधार हो सकता है। उदाहरण- ूटी पर
तैनात होने के दौरान सै अिधका रयों को म पान की अनु मित होती है , िक ु यह अिधकार
िचिक कों हेतु उपल नही ं है ।
3. सामािजक-शै िणक पृ भूिम [Social Educational Background] को भी अंतर करने का आधार
माना गया है । समाज के हािशये पर थत वग हे तु आर ण की अनुमित दान की गई है । यह ावधान
स वग हेतु उपल नही ं है। भेदभाव का उ खत आधार असीिमत नही ं है तथा सव
ायालय समय समय पर अ आधार ितपािदत कर सकता है । यह मािणत करता है िक सव
ायालय मौिलक अिधकारों का संर क है ।
रा के ारा कोई भेदभाव नही ं No Discrimination by State
रा िकसी नाग रक के िव केवल धम, मूलवं श, जाित, िलंग ज थान या इनम से िकसी के आधार पर
कोई भेदभाव नही ं करे गा। "केवल" का अथ है िक अ आधार पर [जैसे िक शारी रक यो ता अथवा
शै िणक यो ताओं] के आधार पर भेदभाव करना संभव है । "नाग रक" का अथ है िक यह अिधकार

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िवदे िशयों हे तु उपल नही ं है। "समानता" का अथ सभी कार के भेदभाव की अनुप थित नही ं है , अिपतु
अनु े द 15(1) के अंतगत, इसका अथ है गै र-तकसं गत भेदभाव का शमन।
सावजिनक थानों पर समानता Equality in Public Places
कोई भी नाग रक केवल धम, मूलवं श, जाित, िलंग ज थान या इनम से िकसी के भी आधार पर-
a. दु कानों, सावजिनक भोजनालयों, होटलों और सावजिनक मनोरं जन के थानों म वेश, या
b. पू ण प से अथवा आं िशक प से रा -िनिध से पोिषत या साधारण जनता के उपयोग हेतु समिपत
कुओं, तालाबों, ान घाटोन, सड़कों और सावजिनक समागम के थानों के उपयोग,
के संबंध म िकसी भी िनय षयता [disability], दािय [liability], िनबधन [restriction] या शत के अधीन
नही ं होगा।
ेक श एक िव ृत अथ की ओर इं िगत करता है , जै से िक "दु कानों" म नाई की दु कान के साथ ही
िचिक ालयों को भी स िलत िकया गया है । "सावजिनक उपयोग हे तु समिपत तथा रा िनिध से पोिषत"
मह पू ण ावधान है ोंिक इसका अथ यह है िक िनजी े म यह अिधकार उपल नही ं है । िनजी िमंग
पूल के संदभ म कोई समानता की माँ ग नही ं कर सकता। ि िटश सरकार ने कुछ होटल मा ि िटश
नाग रकों हेतु खु ले रखे थे। मौिलक अिधकार सावजिनक थानों पर िकसी भी कार का भेदभाव करने से
रा को ितबं िधत करते ह। सावजिनक े म िकसी नाग रक को भी भेदभाव सं चािलत करने का अिधकार
नही ं है । "मूलवंश" [race] का िनधारण यों की शारी रक िवशे षताओं के आधार पर िकया जाता है जैसे
िक बालों का रं ग अथवा नाक का आकार। भारत िव के कई मूलवं शों का िनवास थान है िजनके बीच
भेदभाव नही ं िकया जा सकता।
अिधकारों तथा ाय के म सं तुलन Balance between Rights and Justice
मौिलक अिधकार असीिमत नही ं ह अिपतु इ कई सीमाओं म रखा गया है। अनु े द 15(3) समानता के
अिधकार के अंतगत अपवादों का उ ेख करता है तथा मिहलाओं एवं ब ों हेतु िवशे ष सं र ण का ावधान
करता है। यह सामािजक ाय की अवधारणा के समान है । िवशेष सं र ण म बेहतर शैि क व थाओं,
क ाणकारी नीितयों, आर ण इ ािद को स िलत िकया गया है ।
सामािजक तथा शै ि क प से िपछड़े वग हे तु िवशेष ावधान Special Provision for Socially and
Educationally Backward Class
अनु े द 15(4) म कहा गया है िक रा िन िल खत समुदायों के िवकास हेतु िवशेष ावधान करे गा-
a. नाग रकों के सामािजक तथा शै िणक तौर पर िपछड़े वग
b. अनु सूिचत जाित तथा अनु सूिचत जनजाित
चं पकम दोराई राजन मामले म सव ायालय के िनणय को ान म रखते ए वष 1951 म लाए गए पहले
संवैधािनक संशोधन के ारा अनु े द 15(4) को संिवधान म स िलत िकया गया। सव ायालय ने
म ास सरकार ारा मे िडकल कॉलेज हे तु द आर ण को शू घोिषत कर िदया था। संिवधान म
"सामािजक तथा शै ि क प से िपछड़े वग" के अथ की ा ा नही ं की गई है । अनु े द 340 के अनुसार,
रा पित िपछड़े वग आयोग का गठन करगे । वष 1953 म काका कालेलकर आयोग का गठन िकया गया।
जनता पाट सरकार ारा वष 1979 म िबंदे री साद म ल आयोग का गठन िकया गया। म ल आयोग
ने कहा िक सामािजक तथा शै ि क प से िपछड़े वग का अथ है िपछड़ी जाितयाँ [backward caste]। अतः
भारत म जाित तथा वग आं त रक प से संबंिधत ह। वग समाज के आिथक तथा आधुिनक र-िव ास
[stratification] की ओर सं केत करता है । हालाँिक, जाित समाज के र-िव ास हे तु द एक पारं प रक
मापदं ड ह। तकनीकी प से जाित तथा वग िभ संक नाएँ ह िक ु भारतीय पृ भूिम म वष 1935 के

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भारत सरकार अिधिनयम [Govt. of India Act, 1935] म पहली बार "अनुसूिचत जाित" तथा "अनु सूिचत
जनजाित" श ों का योग िकया गया है ।
शै िणक सं थानों म आर ण Reservation in Educational Institution
वष 2006 म त ालीन मानव सं साधन िवकास मं ी अजुन िसं ह ने शै िणक सं थानों म आर ण की घोषणा
की। प रणाम प, 93व संवैधािनक संशोधन के अंतगत तृतीय भाग म अनु े द 15(5) को स िलत िकया
गया। अनु े द 15(5) के अनु सार, अनु सूिचत जाित तथा अनु सूिचत जनजाितयों एवं सामािजक तथा शै िणक
प से िपछड़े वग को िन िल खत सं थानों म आर ण दान िकया गया है -
1. क ीय शै िणक सं थानों म
2. िनजी शै िणक सं थानों म, पोिषत अथवा अपोिषत
3. अ सं कों ारा थािपत शै िणक सं थानों हे तु आर ण का ावधान उपल नही ं है।
क ीय शै िणक सं थानों म क ीय िव िव ालयों, आईआईटी तथा आईआईएम को स िलत िकया गया है।
िनजी शै िणक सं थानों म एिमटी िव िव ालय इ ािद को स िलत िकया जा सकता है , भले वो रा -िनिध
के ारा पोिषत हों या न हों। अ सं क शै िणक सं थानों म अनु े द 30 के अंतगत अ सं क
समुदायों के ारा थािपत सं थानों को स िलत िकया गया है ।
आिथक प से िपछड़ा वग Economically Backward Class
वष 2019 के 103व संवैधािनक सं शोधन के ारा आिथक िपछड़े पन को स िलत िकया गया है जो रा को
िन िल खत के िनमाण की अनु मित दान करता है-
a. नाग रकों के िकसी भी आिथक तौर पर िपछड़े वग के उ ान हे तु िवशे ष ावधान। समाज के आिथक
प से िपछड़े वग को आर ण दान िकया गया है ।
b. िवशेष ावधानों म शै िणक सं थानों म वेश को स िलत िकया गया है ।
c. िनजी शै िणक सं थानों म वेश, िफर चाहे वो रा -िनिध ारा पोिषत हों या न हों।
d. अ सं क शै िणक सं थानों पर िवशे ष ावधान लागू नही ं होता।
e. शै िणक सं थानों म 10% से अिधक आर ण दान नहीं िकया जाएगा।
संिवधान आिथक िपछड़े पन को प रभािषत नही ं करता। अनु े द 15(6) के अं तगत सरकार को आिथक
िपछड़े पन को प रभािषत करने की अनु मित दान नही ं की गई है ।
सावजिनक वसाय/रोज़गार तथा िनयु म समानता Equality in Public Employment and
Appointment
रा के अं तगत द सभी कार के वसायों अथवा िनयु यों से संबंिधत मामलों म सभी नाग रकों को
अवसर की समानता दान की गई है । नौकरी की शत तथा प र थितयों को वसाय की सं ा दी गई है ।
िनयु का अथ है नौकरी म वेश। पदो ित नौकरी से संबंिधत होती है। रा के अं तगत पदों का अथ है
िक िनजी नौक रयों म अवसर की समानता उपल नही ं है । समानता समान आचार/ वहार की प रचायक
है िक ु अवसर की समानता असमान हो जाने हे तु भी समान अवसर दान करती है । उदाहरण: सभी
नाग रकों को िसिवल सेवा परी ाओं म बै ठने के समान अवसर दान िकए गए ह, िक ु सभी के परी ाफल
समान नही ं हो सकते। यह अिधकार भी मा नाग रकों हेतु उपल है , िवदे िशयों हे तु नही ं। [अनु े द 16(1)]
कोई भेदभाव नही ं No Discrimination
रा के अंतगत वसाय अथवा िनयु की ि या म केवल धम, मूलवं श, जाित, िलंग, आनुवंिशकी,
ज थान, िनवास थान अथवा इनम से िकसी के आधार पर भी भेदभाव नही ं िकया जा सकता। अनु े द 16
म नए आधारों [अवजनन (descent) तथा िनवास थान] को स िलत िकया गया है िजनका उ ेख
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अनु े द 15 म नही ं िकया गया है । आनुवंिशकी का अथ है प रवार अथवा रा ीयता के संदभ म की
पृ भूिम। िनवास थान के घर अथवा आवास की ओर सं केत करता है । "केवल" श के योग का
अथ है िक अ आधारों पर [परी ाफल के प रणाम अथवा शारी रक मता] के आधार पर भेदभाव करना
संभव है ।
आवास थान के आधार पर भेदभाव Discrimination on the Bases of Residence
रा , क शािसत दे श अथवा थानीय स ा के अंतगत आवास थान वसाय अथवा िनयु का मापदं ड
हो सकता है । आवास थान के आधार पर िनयु के सं दभ म, सं सदीय कानून की आव कता होती है ।
रा िवधाियका को कानू न िनिमत करने का अिधकार नही ं है । आवास थान के आधार पर िकसी भी वग के
वसाय हेतु िनयु की जा सकती है । इसका िनधारण संसदीय कानून ारा िकया जाता है। [अनु े द
16(3)] यह अनु े द भारत म े वाद का आधार है । यह िम ी के सपूत आं दोलन [sons of soil
movement] का आधार बना। भारत म े ीय असमानताएँ उप थत ह अतः आधार के तौर पर
आवास थान िपछड़े रा ों के िहतों के संर ण का मा म बन सकता है ।
िनयु यो ं म आर ण Reservation in Appointment
रा नाग रकों के िकसी भी िपछड़े वग हे तु िनयु यों अथवा पदों के आर ण का ावधान कर सकता है ।
आर ण की अनुमित तब होती है जब रा को यह तीत हो िक नाग रकों के िपछड़े वग को रा से वाओं
म पया ितिनिध ा नही ं है । अनु े द 16(4) के अं तगत आर ण का ावधान िकया गया है जो
सावजिनक े म एक िववािदत मु ा है । वष 1955 म अनुसूिचत जाितयों तथा जनजाितयों हे तु आर ण के
प म िनयु यों म आर ण का ार िकया गया। उ रा के अंतगत िनयु यों म 225 आर ण
दान िकया गया। वष 1990 म वीपी िसं ह सरकार ने क ीय तथा अ खल भारतीय सेवाओं म अ िपछड़े
वग हेतु 27% आर ण की पहल की। अतः आर ण का अनु पात बढ़कर 49.5% हो चु का है । 103व
संवैधािनक संशोधन के ारा आिथक प से िपछड़े वग हे तु 10% आर ण का ावधान िकया गया है।
आर ण का अनुपात अब बढ़कर 59.5% हो गया है । आर ण का अनु पात सभी रा ों हे तु िभ है । हालाँिक,
तिमलनाडु म आर ण की ऊपरी सीमा 69% तथा महारा म 78% है । अतः िववाद का उठना लािजमी है ।
आर ण से जुड़े अ मु े इस कार ह-
1. िपछड़े पन का अथ Meaning of Backwardness
िबं दे री साद म ल आयोग (1979) म िपछड़े पन की पहचान हे तु तीन मापदं डों का ावधान िकया
गया है -
1. सामािजक Social
2. आिथक Economic
3. शै िणक educational
म ल आयोग ने कहा था िक िपछड़ी जाितयाँ ही िपछड़े वग ह। इ रा साहनी मामले म सव
ायालय ने कहा है िक िपछड़े पन का अथ है सामािजक तथा शै िणक िपछड़ापन िजसे चिलत तौर
पर म ल मामले के नाम से जाना जाता है । अनु सूिचत जाितयाँ भी िपछड़ी ह। अतः िपछड़े वग ओ
"अ िपछड़े वग " की सं ा दी गई है । "अ " का अथ है अनुसूिचत जाितयों तथा जनजाितयों के
अित र अ िपछड़े वग। वष 1992 के इ रा साहनी मामले म सव ायालय ने कहा था िक
िपछड़ा वग एक सजातीय [homogeneous] वग नही ं है , अतः उ ोंने मलाईदार तबके [creamy
layer] की अवधारणा का ितपादन िकया। मलाईदार तबके की अवधारणा का योग मा ओबीसी
पर लागू होता है , एससी अथवा एसटी के आर ण पर नही ं। मलाईदार तबके म थत नाग रक
आर ण हे तु यो नही ं माने जाते । 103व संवैधािनक संशोधन के ारा आिथक िपछड़े पन की
अवधारणा को सं िवधान म स िलत िकया गया है ।

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2. आर ण की ऊपरी सीमा Upper Limit of Reservation
म ल मामले म सव ायालय ने कहा था िक आर ण की ऊपरी सीमा 50% से अिधक नहीं
होनी चािहए। ायालय का कहना था िक 50% से अिधक आर ण अवसर की समानता की
संक ना हे तु हािनकारक िस होगा। यह से वाओं म कायकुशलता के आदश हेतु भी ितकूल
होगा। सं िवधान का अनु े द 335 कहता है िक अनुसूिचत जाित तथा अनु सूिचत जनजाितयों हे तु
आर ण का ावधान करने के दौरान, सेवाओं की कायकुशलता के साथ समझौता नही ं िकया जाना
चािहए। 103व संवैधािनक संशोधन के ारा सं िवधान म अनु े द 16(6) को स िलत िकया गया है ।
यह आिथक प से िपछड़े वग हे तु 10% आर ण का ावधान करता है। अतः इसके ारा तः ही
संसद ने म ल मामले म सव ायालय ारा िदए गए िनणय को खा रज कर िदया। अ खल
भारतीय सेवाओं तथा क ीय सेवाओं म आर ण की ऊपरी सीमा बढ़ कर 59.5% तक जा प ँ ची है ।
हालाँिक, 103व संवैधािनक सं शोधन को Youth for Equality ारा सव ायालय म चुनौती दी
गई है, िजस पर सव ायालय का िनणय आना अभी शे ष है।
3. पदो ित म आर ण Reservation in Promotion
अनु सूिचत जाित तथा अनु सूिचत जनजाित समुदाय के उ ीदवारों को पदो ित म भी आर ण दान
िकया गया है । म ल मामले म सव ायालय ने कहा था िक आर ण मा ार क िनयु
ि या म लागू होना चािहए। म ल मामले म सव ायालय ने कहा था िक पदो ित म आर ण
अिधकारातीत है। यह अवसर की समानता तथा कायकुशलता का हनन है। हालाँ िक, वष 1995 म
सरकार ने 77वाँ संवैधािनक सं शोधन लाया। इस संशोधन के अंतगत संिवधान म अनु े द 16(4)(a)
को स िलत िकया गया जो नौक रयों म अनुसूिचत जाितयों तथा अनु सूिचत जनजाितयों को आर ण
के लाभ दान करता है । उ प रणामगत व र ता [Consequential Seniority] का लाभ ा
होगा। वष 2006 के नागराजन मामले म सव ायालय ने पदो ित म आर ण के ावधान को
बािधत कर िदया। सव ायालय ने कहा था िक पदो ित म आर ण को मा िन िल खत आधारों
पर ही अनु मित दान की जा सकती है -
a. अनु सूिचत जाित तथा जनजाित के सद अब भी िपछड़े ए ह
b. रा के अंतगत सेवाओं म उनका ितिनिध अब भी अपया है
c. सेवाओं की कायकुशलता के साथ समझौता नही ं िकया जाना चािहए
इस मु े पर वाद िववाद अब भी जारी है । अनु सूिचत जाित तथा जनजाित के आर ण पर भी मलाईदार तबके
के िस ा के योग की माँग म ते ज़ी आती जा रही है ोंिक आर ण का लाभ अनुसूिचत जाित तथा
जनजाितयों के स वग को ा हो रहा है।
4. बकाया र यों हे तु आर ण Reservation for Backlog Vacancies
सव ायालय ने कहा था िक carry forward िनयम सं वैधािनक प से वैध है । ायालय ने
सरकार को आरि त वग की अपू ण र यों को carry forward करने की अनु मित दान कर दी
है । अपू ण र यों को बकाया र यों की सं ा दी गई है िज अगले वष की र यों म जोड़ िदया
जाएगा। िक ु म ल मामले म ायालय ने कहा था िक आर ण की ऊपरी सीमा 50% से अिधक
नही ं होनी चािहए। इसका अथ यह है िक 50% की सीमा बकाया र यों पर भी लागू होती है ।
अंततः , यह आर ण के लाभ का उपभोग कर रहा था अतः बकाया र यों को स ूण प से
आरि त वग हे तु आरि त कर िदया जाना चािहए। अतः वष 2000 के 81व संशोधन के ारा
संिवधान म अनु े द 16 (4)(b) को स िलत िकया गया। यह संशोधन बकाया र यों हेतु 1005
आर ण का ावधान करता है । 50% की ऊपरी सीमा बकाया र यों पर लागू नही ं होती।
धािमक सं थानों म समानता Equality in Religious Institution

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अनु े द 16(5) के अंतगत, इस अनु े द का कोई ावधान िकसी ऐसी िविध के वतन पर भाव नही ं
डालेगी जो यह उपबं ध करती है िक िकसी धािमक या सां दाियक सं था के ि याकलाप से संबंिधत कोई
पदधारक या उसके शासी िनकाय का कोई सद िकसी िविश का मानने वाला या िविश सं दाय का ही
हो। धािमक सं थानों के बंधन म मा उस सं दाय के सद ों को स िलत करने की अनु मित है।
अछूत था का शमन Abolition of Untouchability
समानता का सकारा क अथ अवसर की समानता की ओर सं केत करता है । समानता का िस ा गैर-
तकसंगत भेदभाव की अनु प थित की ओर संकेत करता है । अछूत था भेदभाव का सवािधक घृिणत प है
जो यह ितपािदत करता है िक मानव अशु अथवा दू िषत ह। अनु े द 17 के अंतगत अछूत था का अंत
कर िदया गया है । कानू न के अनु सार, अछूत था एक दं डनीय अपराध है । आम तौर पर, मौिलक अिधकार
रा के िव उपल ह। िक ु अनु े द 17 यों के िव भी लागू होता है।
संिवधान म अछूत था को प रभािषत नही ं िकया गया है । भारतीय सं िवधान ारा द मौिलक अिधकार
असीिमत नही ं ह। अिधकारों पर कई सीमाएँ लागू की गईं ह िक ु अनु े द 17 असीिमत अिधकार है । िकसी
भी थित म अथवा िकसी भी आधार पर अछूत था के अनुपालन की अनु मित दान नही ं की गई है । यह
अिधकार रा तथा यों के िव उपल है । मौिलक अिधकारों को िन िल खत आधारों पर वग कृत
िकया जा सकता है -
a. -सं चालनीय Self-operative: -सं चालनीय का अथ है िक इन मौिलक अिधकारों को
अिधिनयिमत करने हे तु संसदीय कानू न की आव कता नही ं होती। अनु े द 14, 15 -संचालनीय
मौिलक अिधकार ह।
b. अनु े द 17 के अंतगत द अछूत था के िव अिधकार को अिधिनयमन हेतु संसदीय कानून
की आव कता है , ोंिक अनु े द 17 के अंतगत इस था की संक ना एक दं डनीय अपराध के
तौर पर की गई है । सं सद ने वष 1955 म अनु े द 17 के अिधिनयमन हेतु अ ृ ता िनषे ध
अिधिनयम 1955 का िनमाण िकया। इस अिधिनयम को अब नाग रक अिधकार संर ण अिधिनयम
1976 म प रवितत कर िदया गया है । यह अिधिनयम अ ृ ता की प रभाषा की ा ा नहीं करता
िक ु इसके अंतगत इससे जुड़ी िविभ कु थाओं/मा ताओं/ उदाहरणों का उ ेख िकया गया है -
1. िकसी को भी सावजिनक पूजन थान/ मंिदर म वे श से िनिष करना
2. दु काओं और भोजनालय जै से सावजिनक थानों म वे श पर िकसी कार के ितबंध लगाना
3. अ तालों म वेश िनिष नही ं िकया जा सकता
4. तालाब, सड़क अथवा पे यजल आपूित के उपयोग से संबंिधत भेदभाव
5. अ ृ ता को दाशिनक आधार पर तकसंगत ठहराना
6. जाित के आधार पर िकसी का अपमान करना भी अ ृ ता के समान माना जाएगा
अनुसूिचत जाित/अनुसूिचत जनजाित [अ ाचार िनरोधक/िनवारण] अिधिनयम 1989 SC/ST
(Prevention of Atrocities) Act 1989
इस अिधिनयम का िनमाण संसद के ारा एससी/एसटी की िचंताओं के सं र ण हे तु िकया गया है। सुभाष
कैलाशनाथ महाजन बनाम महारा सरकार मामले म सव ायालय के िनणय के कारण यह
अिधिनयम पुनः रोशनी म आया है । ार म, ायालय ने कथन िदया था िक मुकदमे म अिधिनयम का
दु पयोग आ है िक ु त ात सव ायालय ने अपने ही िनणय को पलट कर यह ीकार िकया िक
अनु सूिचत जाित तथा अनु सूिचत जनजाित समुदायों के सद ों को िवशे ष सं र ण की आव कता है।
पृ थक िविधक ि या Separate Legal Procedure

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आपरािधक िविध िनद षता की पू वधारणा/पू वानु मान [presumption of innocence] पर आधा रत है ।
ायालय यह पूवानु मान लेकर आगे कायवाही करता है िक िजस के िव पुिलस ारा आरोप प
दा खल िकया गया है , वह िनद ष है । उस को अपराधी िस करना पुिलस का उ रदािय है ।
एससी/एसटी [अ ाचार िनरोधक]अिधिनयम के अंतगत, ायपािलका िनद षता के पूवानुमान के िस ा
का अनु सरण नहीं करती। अिधिनयम के अं तगत अि म जमानत की अनु मित दान नही ं की जा सकती।
एफ़आईआर दा खल होते ही आरोपी को िगर ार कर िलया जाता है । ाथिमक जाँच की आव कता भी
नही ं होती। हालाँ िक, अ मामलों म िगर ारी से पू व ाथिमक जाँच की आव कता होती है ।
उपािधयों का अंत Abolition of Titles
उपािधयाँ गैर-लोकता क समाजों म लागू िकए गए िवशे षािधकारों का प ह। ि िटश सरकार समाज म
अनु म थािपत करने हे तु उपािधयों को पुर ार के प म दान करती थी। उपािधयाँ िवशेषािधकार
अथवा भ जनों के समान ित ा दान करती थी ं। उपािधयाँ समता की अवधारणा के िवरोधा क तीत
होती ह। सं िवधान सभा ने उपािधयों के अं त का िनणय िलया था। जेबी कृपलानी ने कहा था िक उपािधयाँ
समाजवादी समाज के आदश के िवपरीत ह। अनु े द 18 के अंतगत उपािधयों का शमन िकया गया है ।
ि िटश सरकार ने राय बहादु र, राय सािहब, तालुकदार जैसी उपािधयाँ दान कर अिभजात वग
[aristocracy] का िनमाण करना चाहा। इस अनु े द के अं तगत िन िल खत मु ों को संबोिधत िकया गया है :
1. रा के ऊपर ितबं ध Restriction over State
अनु े द 18 (1) के अनु सार रा सेना या िव ा संबंधी स ान के िसवा और कोई उपािध दान नही ं
करे गा। भारत सरकार ने वष 1954 म भारत र , प िवभू षण, प भूषण तथा प ी जैसे पुर ारों
को दान करने की पहल की। वष 1996 के बालाजी राघवन मामले म सव ायालय ने िनणय
िदया था िक सरकार को यह पु र ार दान करने का अिधकार है। ायालय का मत है िक समानता
का अथ आचार की समानता नही ं है । समानता तथा कायकुशलता एक दू सरे के िवरोधाभासी नही ं ह।
सव ायालय ने यह भी िनदिशत िकया िक भारत र जै से पुर ारों का योग यों के नाम
के पू व उपपद/उपनाम या अनु ल क नाम के तौर पर नही ं िकया जा सकता। हालाँ िक इस संबंध म
िकसी िवशेष कानून का िनमाण नही ं िकया गया है ।
2. िवदे शी उपािधयों पर ितबं ध Restriction over Foreign Title
भारतीय नाग रक िवदे शी रा ों से उपािधयाँ ीकार नही ं करगे। हालाँ िक, अनु े द 18(2) के
अंतगत, कलाकारों ारा पु र ार ीकार करने पर कोई ितबंध नही ं लगाया गया है ।
3. रा पित की सहमित Consent of President
कोई , जो भारत का नाग रक नही ं है , रा के अधीन लाभ या िव ास के िकसी पद को धारण
करते ए िकसी िवदे शी रा से कोई उपािध रा पित की अनु मित के िबना ीकार नही ं करे गा।
4. भट, उपल अथवा पद ीकार करने पर ितबं ध Restriction of accepting present,
emolument or office
रा के अधीन लाभ या िव ास का पद धारण करने वाला कोई भी िकसी िवदे शी रा से या
उसके अधीन िकसी प म कोई भट, उपल या पद रा पित की सहमित के िबना ीकार नही ं
करे गा।
बोलने और अिभ की त ता Freedom of Speech and Expression
अनु े द 19 बोलने तथा अिभ की त ता से संबंिधत कई अिधकारों का सं र ण करता है । यह मा
नाग रकों हेतु उपल है । अनु े द 19 के अं तगत िन िल खत अिधकारों का उ ेख िकया गया है -
a. बोलने तथा अिभ की त ता to freedom of speech and expression

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b. शांितपू वक और िनरायुध स ेलन का to Assemble peaceably and without arms
c. सं था या सं घ िनमाण का [97व संवैधािनक संशोधन के ारा सहकारी समाजों को भी स िलत
िकया गया है ]
d. भारत के रा े म सवथा िनबाध संचरण का to move freely throughout the territory of India.
e. भारत के रा े के िकसी भाग म िनवास करने और बस जाने का
f. संपि के अिध हण तथा िनपटारे का। 44व संवैधािनक संशोधन के ारा इस ावधान को हटा िदया
है ।
g. कोई वृ ी, उपजीिवका, ापार या कारोबार करने का अिधकार होगा।
बोलने तथा अिभ की त ता से सं बंिधत मु े Issues Related to Freedom of Speech and
Expression
1. ैस की त ता Freedom of press
ै स की त ता बोलने तथा अिभ की त ता म िनिहत है। इसका उ ेख संिवधान म
तौर पर नही ं िकया गया है । ैस की त ता म काशन मीिडया तथा एले ोिनक मीिडया
दोनों स िलत ह। वाद-िववाद, सं वाद, असहमित तथा िवरोध लोकता क शासन की िवशेषताएँ ह।
ै स जनता के मत की प रचायक है । िबना ैस की त ता के वाद-िववाद अपूण है। ैस िवप की
भूिमका िनभाती है तथा िवप को मंच दान करती है । अतः ै स को लोकत का चौथा माना
गया है । ै स सरकार की गितिविधयों पर जाँ च और संतुलन बरकरार रखती है ।
भारत म बोलने और अिभ की त ता का अिधकार असीिमत नही ं है । यह त ता भारत
की सं भुता एवं अखं डता, रा की सुर ा, िवदे शी रा ों के साथ मै ीपूण संबंध, लोक व था,
िश ाचार या सदाचार, ायलय की अवमानना, मानहािन अथवा अपराध-उ ीपन के संबंध म
प रसीिमत की जा सकती है । इन ितबंधों का उ ेख अनु े द 19(2) म िकया गया है। अतः ै स की
त ता असीिमत नही ं है । वतमान म, ावसाियक िनगम ै स को संचािलत कर रहे ह तथा वे अपने
ावसाियक िहतों की ितपू ित करना चाहते ह। मीिडया ाय भारत म उभरता आ चलन बन चु का
है । ायालय के िनणय के पू व ही मीिडया यों को आरोपी घोिषत कर दे रहा है । ै स की
त ता तथा दे श की एकता एवं अखं डता के बीच सं तुलन बनाना ही समय की माँग है ।
2. िफ बनाने की त ता Freedom to make movies
बोलने का अथ है मा मुख से वाचन िक ु अिभ के अगिणत मा म ह। ै स, िफ , लेखन,
पु क, सोशल मीिडया इ ािद अिभ के कई आयाम ह। िफ बंद, अँधेरे िसनेमाघर म
दिशत की जाती ह अतः जनमानस पर िफ ों का गहरा भाव पड़ता है। हर मा म का भाव
िभ होता है । पु कों से अिधक भाव उ करते ह। िफ बनाने की त ता भी एक
असीिमत अिधकार नही ं है । अनु े द 19(2) के अंतगत उ खत ितबंध िफ ों पर भी लागू होते
ह। सं सद ने क ीय िफ माणन बोड का गठन कर रखा है जो रलीज़ से पूव िफ ों की समी ा
हे तु उ रदायी है ।
वतमान म लोग अ र िनजी नापसं दगी के कारण िफ ों के दशन का िवरोध करते ह। वे नैितक
िनगरानी के नाम पर िफ ों के दशन म बाधा उ करते ह। िफ मा इस िलए ितबंिधत नही ं
की जा सकती ं ोंिक जनता म ब त लोग उनके िवषय से असहमत ह। लोकत को भीड़तं बनने
दे ने की अनु मित नही ं दी जानी चािहए।
दे श ोह तथा अिभ की त ता Sedition and Freedom of Speech

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संिवधान के अंतगत द मौिलक अिधकार असीिमत नही ं ह। अनु े द 19(2) के अंतगत अिभ की
त ता के अिधकार पर सीमाएँ लागू की गईं ह। इसके अित र , भारतीय दं ड संिहता भी बोलने तथा
अिभ की त ता के िव ार को सीिमत करती है। आईपीसी भाग 124(ए) के अनुसार जो भी रा
के िव घृणा अथवा अवमानना सा रत करने का यास करे गा अथवा दे श के ित ोह अथवा श ुता की
भावना का दशन करे गा, उसे दे श ोह माना जाएगा। सरकार कई बार दे श ोह के ावधान का दु पयोग
कर चु की है । यह िवपि यों को कुचलने हे तु सरकार के हाथों म एक साधन बन चुका है। सरकार की
आलोचना करने को भी दे श ोह की सं ा दे दी गई है । यह अिभ की त ता को हतो ािहत कर रहा
है । यह असहमित की अनु मित नही ं दान करता।
नारे लगाने, रा गान न गाने को भी दे श ोह की सं ा दे दी गई है । दे श की एकता एवं अखं डता सव प र ह।
िक ु लोकत म त ता का भी समान मह है । दे श ोह और सरकार की आलोचना म अंतर है ।
मानवािधकार कायकता और िवप के नेता 1860 म अिधिनयिमत दे श ोह कानून का िवरोध करते रहे ह।
इं ड, ू ज़ीलड, अमरीका, ऑ े िलया इ ािद लोकता क दे शों म पहले ही इसका अंत िकया जा चुका है ।
आईपीसी के अंतगत भारत के िव यु आरं भ करने के िव ावधान भी िकया गया है जो भारत की
एकता तथा अखं डता के संर ण हे तु पया है। अतः दे श ोह के िव पृ थक ावधान की आव कता नहीं
है ।
मानहािन तथा त ता Defamation and Freedom
आईपीसी के भाग 499 के अं तगत मानहािन एक दं डनीय अपराध है । इसके अित र , मानहािन के मामले म
िव ीय मुआवज़े की माँ ग भी की जा सकती है । मानहािन एक िसिवल तथा आपरािधक अपराध है । प कार
मानहािन क़ानू नों का िवरोध करते आए ह जो अिभ की त ता का हनन करते ह। इं ड, ीलंका,
अमरीका जैसे कई दे शों ने मानहािन का गै र-अपरािधकरण करके इसे एक िसिवल अपराध की सं ा दे दी है ।
प कारों का कहना है िक मानहािन के आधार पर कोई भी उनका उ ीड़न करने हेतु तं है । प कारों की
अिधकां श रपोट इसी पूवानु मान से होती ह।
सव ायालय ने कहा है िक मानहािन अनु े द 21 के ारा द जीवन के अिधकार का उ ंघन है,
िजसम ग रमा से जीवन जीने का अिधकार िनिहत है । िकसी की मानहािन करना उसे शारी रक ित प ँ चाने
से अिधक हािनकारक होता है । वतमान सोशल मीिडया के काल म, िकसी की भी ापक र पर मानहािन
की जा सकती है । मान- ित ा दीघकाल तक प र म करने के बाद ा होती है िक ु उसे एक रात म ही
न िकया जा सकता है। अिभ की त ता सिह ुता को ो ािहत करती है । यह असहमित का
अिधकार भी दान करती है । हालाँ िक, इसके अंतगत िकसी को अ की मान- ित ा पर घात करने की
अनु मित नहीं दान की गई है । यिद इसे िसिवल अपराध करार दे िदया जाएगा तो इसका प रणाम यह होगा
िक स यों को अ का अपमान करने की छूट ा हो जाएगी, ोंिक वे िव ीय मुआवज़ा दे ने म
स म ह। यह उ े खनीय है िक बंधुता भी त ता िजतना ही मह पू ण तथा अनु करणीय आदश है।
त ता के अ त
a. शां ितपूण तथा िनरायु ध ढं ग से स िलत होने की To Assemble Peaceably without Arms
भारत जैसे लोकता क दे श हे तु यह सवािधक मह पू ण अिधकार है। नाग रकों को साझे योजनों
की ितपूित हे तु सं गिठत तथा स िलत होने का अिधकार है । उ शासन के िव संगिठत प
से दशन करने का अिधकार भी है । सव ायालय ने कहा है िक हड़ताल पर जाने हेतु िकसी
मौिलक अिधकार का ावधान नही ं िकया गया है । श -यु होकर स िलत होने की अनुमित भी
नही ं दान की गई है । बंद का आ ान करना भी मौिलक अिधकार नही ं है । बंद का अथ होता
दु कानों, प रवहन, िव ालयों इ ािद की गितिविधयों की स ूण बंदी। इसके कारण अ यों के
त ता से संचरण करने के अिधकार का हनन होता है । िवरोध दशन के कारण भी अ

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यों की गितिविधयों म बाधा नही ं आनी चािहए। िवरोध दशन के थान की सूचना दे ना
अिनवाय है ।
b. संघ तथा सं थाएँ बनाने की Form Union are Association
ेक नाग रक को सं घ अथवा सं थाएँ गिठत करने का अिधकार है । भारत म छा संघ, िमक सं घ,
िकसान संघ इ ािद कई कार के सं घ ह। चुनावों म भाग लेने हे तु राजनै ितक दलों का गठन भी
िकया जा सकता है । संघ तथा सं थाओं की अनुप थित म, लोकत सुचा प से काय नही ं कर
पाएगा। यह असीिमत अिधकार नही ं है । 16व संवैधािनक संशोधन (1963) के ारा भारत की सं भुता
तथा अखं डता के आधार पर इसे सीिमत कर िदया गया है ।
c. तं संचरण करने की To Move Freely
ेक नाग रक को भारतीय रा े म त ता से घूमने का अिधकार है। संचरण की त ता
का अथ है भारतीय रा े के भीतर आं त रक संचरण। बा संचरण भी संचरण की त ता का
िह ा है । अतः नाग रकों को िवदे श जाने का भी अिधकार है। भारत की सं भुता तथा अखंडता,
सावजिनक व था तथा िश ाचार के आधार पर इसे सीिमत िकया गया है। उदाहरण- सां दाियक
िहं सा के दौरान, संचरण की त ता पर रोक लगाई जा सकती है ।
d. िनवास तथा बस जाने की Freedom of Residence and Settlement
िनवास का अथ है अ काल हे तु कही ं रहना। बस जाने का अथ है थायी आवास का चु नाव करना।
इसे आम जनता तथा अनु सूिचत जनजाितयों के िहतों के संर ण हेतु सीिमत िकया जा सकता है।
अनु सूिचत े ों म बस जाने की अनु मित िकसी को भी नही ं दी जा सकती।
e. वृि , वसाय, कारोबार, ापार करने की
ेक नाग रक को अपनी वृ ि का चु नाव करने का अिधकार है। वृि का अथ है वह काय िजसम
की िवशे ष ता प रलि त होती हो। वसाय/उपजीिवका आजीिवका की ा से संबंिधत है।
कारोबार लाभ की ा हे तु िकया जाता है । व ुओं के आदान दान को ापार की सं ा दी गई
है । वृ ि तथा उपजीिवका पर तकनीकी तथा ावसाियक यो ता जैसी सीमाएँ लगाना आव क है।
कुछ वसायों से आं िशक अथवा पू ण प से नाग रकों को बाहर रखा जा सकता है ।
f. तकसंगत ितबंध Reasonable Restrictions
अनु े द 19(1)(a)(g) के अं तगत उ खत िविभ तं ताएँ असीिमत नही ं ह। अनु े द 19(2)
तथा (6) के अंतगत कई सीमाएँ अिधिनयिमत की गईं ह। संिवधान म ितबंध लगाने के आधारों का
उ ेख िकया गया है । सरकार मौिलक अिधकारों को ितबंिधत करने हेतु कई कानू न अिधिनयिमत
कर सकती है। सव ायालय को इन ितबंधों की तकसंगतता की समी ा करने का अिधकार है
िजसका अथ है -
1. यह व ु िन है , यह अिभ के मा म तथा ितबंध के समय तथा काल पर िनभर करता है ।
उदाहरण के तौर पर िफ ों की तकसंगतता पु कों से ब त िभ होती है ोंिक िफ
पु कों की तुलना म जनमानस को अिधक भािवत करती ह। 1960 म जो गै र-तकसंगत था वह
आज तकसंगत माना जा सकता है । अब िफ ों के ऊपर की जाने वाली ससरिशप अतीत की
तु लना म अिधक उदार तौर पर की जाती है ।
2. ितबंध लागू करने की ि या िन होनी चािहए। िबना िफ के दशन के िफ को रलीज़
करने से रोका नही ं जा सकता। िबना वण िकए िकसी को भी वाचन से रोका नही ं जा सकता।

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3. ितबंध लगाने का योजन है त ता के दु पयोग से ितरोध। अतः ितबंधों की मा ा इस
आव कता से अिधक नही ं होनी चािहए। बोलने तथा अिभ की त ता को अ
यों की िनजी दु भावनाओं के आधार पर सीिमत नही ं िकया जा सकता।
4. िश ाचार तथा सदाचार के आधार पर ितबंधों के संदभ म सव ायालय ने अिधक उदार
रवैया अपनाया है । अतः िफ ों को इन आधारों पर चुनौती नही ं दी जा सकती। हालाँ िक,
ायालय ने दे श की सं भुता, एकता तथा अखं डता से सं बंिधत मु ों म कड़ा ख अपनाया है।
5. अतः ेक कानू न तथा नीित को सव ायालय के सम चुनौती दी जा सकती है । और
ायालय हर नई प र थित म तकसं गतता की समी ा करता है।
अपराधो ं म आरोपण के िव सं र ण Protection Against Conviction of Offences
अनु े द 20 के अनु सार कोई िकसी अपराध के िलए तब तक िस दोष नही ं ठहराया जाएगा, जब
तक िक उसने ऐसा कोई काय करने के समय, जो अपराध के प म आरोिपत है , िकसी वृ िविध का
अित मण नहीं िकया है या उससे अिधक शा का भागी नही ं होगा जो उस अपराध के िकए िकए जाने ए
समय वृ िविध के अधीन अिधरोिपत की जा सकती थी। इसका अथ यह है िक िबना कानून का उ ंघन
िकए िकसी को दं िडत नही ं िकया जा सकता। यह िन िल खत भी ितबंिधत करता है -
a. Ex-Post-Facto Law
यह लैिटन भाषा का श है जो पू व ितिथ से िकसी आपरािधक कानू न को वतमान म लागू करने
करने से िनषेध करता है । िकसी भी आपरािधक कानून को पू व भावी तरीके से लागू नही ं िकया जा
सकता। हालाँ िक, िसिवल कानू न को पू व भावी तरीके से अिधिनयिमत िकया जा सकता है । इसका
अथ यह है िक जनवरी 2019 म िनिमत आपरािधक कानू न को जनवरी 2018 से अिधिनयिमत नही ं
िकया जा सकता।
b. दोहरा दं ड कानून Double Jeopardy Law
यह ावधान अमरीका से भारतीय सं िवधान म स िलत िकया गया है । िकसी को एक ही
अपराध के िलए एक बार से अिधक अिभयोिजत और दं िडत नहीं िकया जाएगा। हालाँ िक, अने क
अपराध करने वाले यों को अने क बार अिभयोिजत िकया जा सकता है । दोहरे दं ड के अं तगत
शासिनक दं ड की गणना नही ं की जा सकती। यह ावधान मा ायालय म आपरािधक अिभयोग
पर लागू िकया जाएगा। िवभाग से िनलंिबत िकए गए तथा त ात ायालय म दं िडत िकए गए
शासिनक अिधकारी के मामले को दोहरे दं ड के ावधान के ि कोण से नही ं दे खा जा सकता।
c. यं के िव सा ी बनने के िव त ता Freedom from Being Witness Against
Himself
िकसी अपराध के िलए अिभयु िकसी व ी को यं अपने िव सा ी होने के िलए बा नही ं
िकया जाएगा। िकसी को भी अपराध का आरोप ीकार करने हे तु बा नही ं िकया जा सकता।
अपराध के िव सा दिशत करना पु िलस का उ रदािय है। खून का नमूना, उँ गिलयों के
िनशान तथा वाणी के नमूने को यं के िव सा करार नहीं िदया जा सकता। अतः मौिलक
अिधकार ायालय म तथा दं ड ा होने के बाद भी उपल रहते ह।
जीवन तथा िनजी त ता के सं र ण का अिधकार Protection of Life and Personal Liberty
अनु े द 21 जीवन तथा िनजी त ता का अिधकार सुिनि त करता है । हालाँिक, यह भी एक असीिमत
अिधकार नही ं है िजसका उ ंघन कानू न के ारा थािपत ि या [procedure established by law] के
अं तगत िकया जा सकता है । 1950 से लेकर अब तक जीवन तथा िनजी त ता का अिधकार िववािदत रहा
है । जीवन के अिधकार की ा ा प रवतनशील है अतः यह समय समय पर बदलती रही है । जीवन तथा
िनजी त ता के अिधकार से संबंिधत पहले ऐितहािसक मुकदमे पर 1950 म िनणय सु नाया गया था।
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S. N. िविध ारा थािपत ि या Procedure िविध की उिचत ि या Due process of law
established by law
1. इसका उ ेख अनु े द 21 म िकया गया इसका िवकास ायपािलका ारा िकया गया है।
है इसका उ ेख संिवधान म नही ं है।
2. जीवन तथा िनजी त ता के अिधकार ि या िन , ायपूण तथा तकसंगत होनी
का अित मण करने के दौरान िविध म चािहए।
उ खत ि या का अनुपालन करना
आव क है ।
3. सं सद की श का अिधक मह है । ायपािलका की श अिधक मह पूण है।
4. संसद ारा ि या अिधिनयिमत की जाती ि या ाकृितक ाय के िस ां तों की ितपूित
है। ायपािलका सं सद के ान पर करने वाली होनी चािहए। अतः ायपािलका संसद
नही ं उठा सकती। के तक पर उठा सकती है।
गोपालन मामला Gopalan Case (1950)
क ू िन पाट के नेता एके गोपालन को िनवारक िनरोध अिधिनयम [preventive detention act] के
अं तगत िगर ार करके िहरासत म िलया गया था। इसे सव ायालय म चुनौती दी गई । सव ायालय
ने अनु े द 21 की ा ा की-
1. जीवन तथा िनजी त ता का अिधकार Right to Life and Personal Liberty
सव ायालय ने कहा है िक जीवन तथा िनजी त ता के अिधकार का अथ है के अंगों
तथा शरीर की सुर ा। यह को मनमानी िगर ारी से संरि त करता है । अनु े द 21 के
अंतगत द जीवन तथा त ता का अिधकार तथा अनु े द 19 के अं तगत द तं ताएँ एक
दू सरे से िभ ह। यह जीवन तथा िनजी त ता के अिधकार की संकुिचत ा ा थी।
2. िविध ारा थािपत ि या Procedure Establish by Law
ायालय ने कहा था िक जीवन तथा िनजी त ता का अिधकार कायपािलका तथा पु िलस के
िव उपल है। यह संसद ारा बनाए गए क़ानू नों के िव उपल नही ं है। संसद ि या-यु
क़ानूनों का िनमाण करती है । गोपालन की िगर ारी हेतु संसदीय कानून तथा ि या का अनुपालन
िकया गया था। अतः उ कानू नी तौर पर िहरासत म िलया गया था। ायालय ने कहा था िक वह तब
ही यों के अिधकारों का सं र ण कर सकता है जब िविध ारा थािपत ि या का उ ंघन
आ हो।
3. एडीएम जबलपु र बनाम िशवका शु ा ADM Jabalpur vs Shivkant Shukla Case (1976)
इसे चिलत तौर पर habeas corpus मामले के नाम से जाना जाता है । 1976 के आपातकाल के
दौरान, मौिलक अिधकारों को थिगत कर िदया गया था। यह थगन िविध ारा थािपत ि या के
ारा आ था। सव ायालय िविध ारा थािपत ि या के िस ा का कड़ा अनुपालन कर रहा
था तथा उसने मौिलक अिधकारों का सं र ण करने से इं कार कर िदया। इसे सव ायालय के
इितहास म काले िदन की सं ा दी गई है ।
4. मेनका गाँ धी मामला Maneka Gandhi Case (1978)
a. जीवन के अिधकार की उदार ा ा Liberal Interpretation of Right to Life
सव ायालय ने जीवन के अिधकार के अथ का िव ार िकया है। ायालय ने कहा है िक
जीवन के अिधकार का मा पशुवत जीवन जीना नहीं है । जीवन के अिधकार का अथ है
ग रमामय जीवन जीना। मेनका गाँधी को िवदे श या ा करने से रोक िदया गया तथा सरकार ने
उनसे पासपोट भी छीन िलया। सरकार ने 1967 के पासपोट अिधिनयम का अनुपालन िकया था।
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सव ायालय ने एके गोपालन मामले म िदए अपने िनणय को पलट िदया। ायालय ने कहा
था िक जीवन तथा िनजी त ता के अिधकार को अनु े द 19 के साथ समायोिजत करने की
आव कता है। शरीर के दो अंगों के समान अनु े द 19 तथा 21 संपूरक ह। अतः जीवन के
अिधकार म भारत के बाहर जाने का अिधकार भी स िलत है। 7 ायाधीशों की बच ने यह
ऐितहािसक िनणय सु नाया था। सव ायालय ने कहा था िक जीवन तथा िनजी त ता के
अिधकार म िविभ अिधकार िनिहत ह। ायालय ने कहा था िक संिवधान के मूलपाठ अथवा
श ों की ा ा करने के दौरान संिवधान की आ ा को ान म रखना आव क है।
b. िविध की उिचत ि या Due Process of Law
सव ायालय ने कहा िक संसद के पास िविध को अिधिनयिमत करने तथा िविध ारा थािपत
ि या िनधा रत करने की श है । िक ु यह ि या तकसंगत, िन तथा ायपू ण होनी
चािहए। ि या प पाती तथा गैर-तकसंगत नही ं हो सकती। इसे िविध की उिचत ि या की
सं ा दी गई है । यह अमरीकी सं िवधान की िवशेषता है । ायालय ने कहा था िक पासपोट
अिधिनयम 1967 के अंतगत द ि या गैर-तकसं गत है । अतः इसे शू घोिषत कर िदया
गया। सव ायालय ने अनु े द 21 के अं तगत तकसंगतता के िस ा का योग िकया। यह
यथाथ बन सका ोंिक अनु े द 19 तथा 21 एक दू सरे के पूरक ह। इसका अथ यह है िक
तकसंगतता के िस ा का योग अनु े द 21 की ा ा हे तु भी िकया जा सकता है ।
जीवन के अिधकार का िव ृत अथ Extended Meaning of Right to Life
मेनका गाँ धी मामले के बाद सव ायालय ने कह िदया था िक संिवधान एक थर द ावेज़ नहीं है । यह
एक जीिवत द ावेज़ है। अतः संिवधान की ा ा बदलती पृ भूिम के साथ बदलती रहती है। जीवन के
अिधकार के िव ार को जनिहत यािचकाओं के उ व की पृ भूिम म दे खा जा सकता है । सव ायालय
ने 1980 के दशक म जनिहत यािचका की अवधारणा का ितपादन िकया था। जीवन के अिधकार के िव ृत
अथ म िन िल खत को स िलत िकया गया है -
a. आजीिवका का अिधकार Right to livelihood
b. िश ा का अिधकार Right to education
c. यौन शोषण के िव अिधकार Right against sexual harassment
d. दू षणमु पयावरण का अिधकार Pollution free environment
e. मनमानी िगर ारी तथा बंदी के िव अिधकार Right against arbitrary arrest and detention
f. एकाकी बं दी के िव अिधकार Right against solitary confinement
g. िनजता का अिधकार Right to privacy
h. ग रमा का अिधकार Right of reputation
i. रत ाियक ि या का अिधकार Right of speedy trail
मौिलक अिधकारो ं की िवजय Triumph of Fundamental Right
मौिलक अिधकार सुचा लोकत के तीक ह। केएस पु ा ामी मामले (2018) म सव ायालय ने
ऐितहािसक िनणय का ितपादन िकया था और कहा था िक िनजता का अिधकार जीवन तथा िनजी त ता
के अिधकार का अिभ अंग ह। ायालय ने यह िनणय आधार के अिनवाय योग के मु े से जुड़े मुकदमे के
संदभ म िदया। ायपािलका ने िनजता को प रभािषत नही ं िकया है िक ु कहा है िक िनजता म िन िल खत
स िलत ह-
1. यौन सं बंधों के चु नाव की त ता Choice of sexual relation

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2. िववाह Marriage
3. व ों Dressing
4. िनजता का अिधकार सावजिनक े म भी उपल है
5. सावजिनक तरीके से िकसी की तलाशी नही ं ली जा सकती
6. ायालय ने यह भी कहा है िक िनजता का अिधकार भी असीिमत नही ं है।
7. दे श की सुर ा तथा सामािजक ाय के आधार पर िनजता के अिधकार को सीिमत िकया जा सकता
है ।
सोशल मीिडया के काल म िनजता के अिधकार का मह बढ़ जाता है । पु ा ामी मामले म नौ ायाधीशों ने
एकमत से िनजता के मु े पर अपना िनणय सुनाया। िनजता के अित मण के आधार पर िकसी भी कानून
अथवा नीित को चुनौती दी जा सकती है । सव ायालय ने सरकार को डाटा का संर ण सुिनि त करने
के िनदश िदए ह। िनजता के अिधकार का अथ गत जीवन के एक िनजी दायरे से है िजसम ह ेप
करने का अिधकार िकसी को नही ं िदया जा सकता।
जीवन का अिधकार असीिमत नही ं है Right to Life is not Absolute
जीवन का अिधकार असीिमत नही ं है । अतः िकसी को भी आ ह ा करने का अिधकार नही ं है । प र ाग के
िस ा [principle of waiver] के अनुसार कोई भी मौिलक अिधकारों का प र ाग नही ं कर सकता। गै न
कौर मामले (1996) म सव ायालय ने कहा था िक अनु े द 21 के अंतगत यों को यं को मरने
का अिधकार है। अब सव ायालय ने अपने िनणय को पलट कर कहा है िक िकसी को भी मरने का
अिधकार नही ं है । वष 2018 म सव ायालय ने अ णा रामच शानबाग मामले म ऐितहािसक िनणय
िदया। ायालय ने कहा िक िन य इ ामृ ु की अनुमित दी जा सकती है। इसे चिलत तौर पर दया मृ ु
की सं ा दी गई है । अब िचिक कीय उपचार के अंतगत एक जीवन र ा तं का ाग करने का
िनणय ले सकता है। ायालय ने कहा है िक यों को ग रमा के साथ मरने का अिधकार दान करना
चािहए। िन य इ ामृ ु का अथ है रोगी का िचिक कीय उपचार बंद कर दे ना। जीवन का अिधकार
िविध ारा थािपत ि या के अधीन है । अतः संसद िविध ारा थािपत ि या के अंतगत िकसी भी
को दं िडत कर सकती है ।
S. N. Procedure established by law Due process of law
1. Term mentioned in article 21 of the Evolved by judiciary not written in
fundamental rights constitution.
2. Procedure written in law should be Procedure should be just, fair and reasonable it
followed, while encroaching the right should not be arbitrary.
to life and personal liberty under
article 21.
3. Power of parliament is more Power of Judiciary becomes vital.
important
4. Procedure is enacted by parliament, Procedure should fulfill the norms of natural
Judiciary cannot raised the question justice. Thus judiciary can raise the question
over wisdom of parliament over reason of parliament
िगर ारी तथा िहरासत/नज़रबं दी के िव सं र ण Protecting Against Arrest and Detention
a. मनमानी िगर ारी के िव अिधकार Right Against Arbitrary Detention
अनु े द 22(1) म कहा गया है िक िकसी को जो िगर ार िकया गया है , ऐसी िगर ारी के
कारणों से यथाशी अवगत कराए िबना अिभर ा म िन नही ं रखा जाएगा। को िगर ारी
के आधार से अवगत कराना आव क है । यों को कानू न के उ ंघन के आधार पर िगर ार

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िकया जा सकता है । िक ु मनमानी िगर ारी का अथ है िबना सूचना अथवा वैध कारण के िकसी
को िगर ार करना। मनमानी िगर ारी को जीवन तथा िनजी त ता के अिधकार
से वंिचत कर दे ती है ।
b. िविध वसायी के साथ परामश Consultation with Legal Practitioner
िकसी भी को अपने चु ने ए िविध वसायी से परामश करने और ितर ा कराने के
अिधकार से वं िचत नही ं रखा जाएगा। इसका अथ यह है िक संिवधान ने िन ाियक ि या का
ावधान िकया है ोंिक पुिलस िनद ष यों के िव भी अिभयोग का िनमाण कर सकती है।
c. मैिज े ट की अनुमित Permission of Magistrate
अनु े द 22(2) के अनु सार, ेक को, िजसे िगर ार िकया गया है और अिभर ा म िन
रखा गया है , िगर ारी के थान से मैिज े ट के ायालय तक या ा के िलए आव क समय के
अलावा ऐसी िगर ारी से चौबीस घंटे की अविध म िनकटतम मैिज े ट के सम पेश िकया जाएगा
और ऐसे िकसी को मैिज े ट के ािधकार के िबना उ अविध से अिधक अविध के िलए
अिभर ा म िन नही ं रखा जाएगा।
िनवारक िनरोध Preventive Detention
अनु े द 22(3) के अं तगत िनवारक िनरोध का ावधान िकया गया है । िनवारक िनरोध का अथ है िबना
अपराध िकए िकसी को अिभर ा म रखना। यह को भिव म अपराध करने से िन करता
है । अतः यह मनमानी िगर ारी के िव िकए गए ावधान का अपवाद है। मनमानी िगर ारी के िव
िकए गए ावधान से श ु िवदे िशयों को भी वंिचत रखा गया है । हालाँ िक, संिवधान म “श ु िवदे शी” श को
प रभािषत नही ं िकया गया है । सं सद ने श ु संपि अिधिनयम 1968 अिधिनयिमत िकया। यह अिधिनयम
भारत तथा उसके नाग रकों के िव िहं सापूण कृ करने वाले दे शों तथा उनके नाग रकों को “श ु ” के तौर
पर प रभािषत करता है । अतः , चीन तथा पािक ान श ु रा ह।
S. N. िनवारक िनरोध Preventive Detention दं डा क िनरोध Punitive detention
1. कानू न के अित मण से पूव को कानून के उ ंघन के प ात को िन
िन करना करना
2. पु िलस ारा िनरोध ायालय के आदे श ारा िनरोध
3. मा शं का के आधार पर िनरोध अपराध करने के बाद अिभयोग के आधार पर
िनरोध
4. पु िलस रा को ो ािहत करता है यह कानू न के शासन के अनुसार है
5. िबना मैिज े ट की अनु मित के 24 घंटे से मैिज े ट की अनु मित के िबना 24 घंटों से अिधक
अिधक अिभर ा म रखा जा सकता है अिभर ा म नही ं रखा जा सकता
1. िनरोध म रह रहे यों के अिधकार Rights for Detune
अनु े द 22(4)(7) के अंतगत िनवारक िनरोध म िन यों के अिधकारों का ावधान िकया
गया है । सलाहकार बोड के िनणय के िबना िकसी भी को तीन माह से अिधक अविध हे तु
अिभर ा म नही ं रखा जा सकता। सलाहकार बोड उ ायालय के ायाधीश अथवा उ ायालय
के ायाधीश िनयु होने यो से यु होता है । आमतौर पर, िबना पया कारण के िकसी
भी को तीन माह से अिधक समय हेतु अिभर ा म नही ं रखा जा सकता।
2. िनरोध के िव ितिनिध Representation Against Detention

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ािधकरण िन को िनरोध के आधार से अवगत कराएगा। िन को आदे श के
िव अपना प रखने का रत अवसर दान िकया जाएगा। सावजिनक िहत म, िनरोध के आधार
को कट करने से इं कार भी िकया जा सकता है।
3. तीन माह से अिधक िनरोध Detention for More than Three Months
अनु े द 22 के अंतगत तीन कार के िनरोध का ावधान िकया गया है -
a. तीन माह से कम
b. तीन माह से अिधक िजस हे तु सलाहकार बोड की अनुमित की आव कता होती है
c. संसद कानू न के ारा तीन माह से अिधक अिभर ा के काल का िनधारण करे गी।
िनवारक िनरोध कानून का आधार Ground of Preventive Detention Law
सातवी ं अनुसूची के अंतगत, संयु सूची की मां क सं ा 3 पर िनवारक िनरोध का उ ेख िकया गया है ।
िनवारक िनरोध के पीछे के कारण रा की सुर ा से संबंिधत हो सकते ह। सावजिनक व था को बनाए
रखना तथा समु दाय तक आपूित और सेवाओं की प ँ च सु िनि त करना भी िनवारक िनरोध कानून के योग
का कारण हो सकता है। क सरकार तथा रा सरकार को िनवारक िनरोध से संबंिधत कानू न िनिमत करने
का अिधकार है । िनवारक िनरोध कानू न का ोत 1818 के बं गाल अिधिनयम को माना जा सकता है। ि िटश
सरकार ने भारतीय र ा अिधिनयम 1939 को अिधिनयिमत िकया था।
तं भारत म िनवारक िनरोध कानून Preventive Detention Law in Independent India
26 फरवरी 1950 को संसद ारा थम िनवारक िनरोध कानू न अिधिनयिमत िकया गया।
आं त रक सु र ा व था अिधिनयम Maintenance of Internal Security Act (MISA) 1971
संसद ने इ रा गाँधी के शासनकाल के दौरान वष 1971 म मीसा को अिधिनयिमत िकया। आपातकाल के
दौरान इ रा गाँधी सरकार ने इसका भरपू र दु पयोग िकया। िवप के नेताओं को कारावास म डाल िदया
गया। रा ीय सु र ा के नाम पर, िवप को कुचल िदया गया।
िवदे शी मु ा का संर ण तथा त री गितिविधयों का िनरोध Conservation of foreign exchange
and prevention of smuggling activities (1974)
यह अिधिनयम काले धन को वैध बनाने की ि या को िनिष करने पर के त है । यह त री के िव
भी है । यह भारत म अब भी योग म है ।
रा ीय सुर ा अिधिनयम National Security Act (NSA) (1980)
इं िदरा गाँधी सरकार ने रा ीय सु र ा अिधिनयम को लागू िकया था। एनएसए को मीसा का पु नज वन माना जा
सकता है। यह भारतीय िविध सं िहता म अब भी उप थत है।
आतंकवादी और िवघटनकारी गितिविधयाँ (िनरोध) अिधिनयम Terrorist and Disruptive activities
(Prevention) Act (TADA) 1985
मश र अिभने ता संजय द को भी इस अिधिनयम के तहत िगर ार िकया गया था। पं जाब म आतं कवाद
को िनयंि त करने हे तु राजीव गाँ धी सरकार ने टाडा अिधिनयिमत िकया था। भारत म आतंकवाद को
प रभािषत करने वाला यह पहला अिधिनयम है। रा ीय मानवािधकार आयोग ने टाडा की आलोचना की है
िजसके अं तगत को एक वष तक िहरासत म रखा जा सकता है । आयोग ने इसे िनदयतापू ण कानून की
सं ा दी अतः वष 1995 म इसे र कर िदया गया।
आतंकवाद िनरोध अिधिनयम (पोटा) Prevention of Terrorism Act (POTA) 2002

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िदसंबर 2001 म संसद पर हमला आ था। त ात, रा ीय लोकता क गठबंधन (एनडीए) सरकार ने
2002 म पोटा अिधिनयिमत िकया। वष 2004 म सं यु गितशील गठबंधन (यूपीए) ने स ा म आने के बाद
इसे र कर िदया।
गै रकानूनी गितिविधयाँ (िनरोध) अिधिनयम Unlawful activities (Prevention) Act (UAPA) 2008
भारत सीमा पार के आतं कवाद के खतरे का सामना कर रहा है । अतः आतंकवाद के िनरोध हे तु कड़े कानू न
आव क ह। यू एपीए 1967 म अिधिनयिमत िकया गया था। त ात अिधिनयम म िविभ संशोधन िकए
गए। इस अिधिनयम म सबसे हािलया संशोधन वष 2019 म िकया गया। पहली बार सरकार को िकसी
को आतंकवादी करार दे ने का अिधकार दान िकया गया है । आतं की गितिविधयों से जुड़े िकसी भी
को आतं कवादी करार िदया जा सकता है । संगठन की पहचान आव क नही ं है ोंिक ऐसे संगठन अपने
नाम प रवितत करते रहते ह। यह रा ीय जाँ च सं था (एनआईए) को भी सश करता है िजसे आतं की करार
िदए गए की संपि ज़ करने का अिधकार दान िकया गया है ।
िनवारक िनरोध अिधिनयम के अभाव Drawback of Preventive Detention Act
आलोचकों का मत है िक िनवारक िनरोध अिधिनयम अनु े द 19 के अं तगत द तं ताओं तथा अनु े द
21 के अंतगत द जीवन के अिधकार का हनन करता है । यह लोकत के िव है ोंिक त ता
तथा अिधकार लोकत के आधारभूत त ह। यह िविध के शासन की अवधारणा को ून कर दे ता है और
भारत म पु िलस रा के गठन को ो ािहत कर रहा है । यह एक कार का थायी आपातकाल है िजसके
अं तगत मौिलक अिधकारों को थिगत कर िदया गया है । यह स है िक िनवारक िनरोध एक कु था है ।
िक ु रा ीय एकता एवं अखं डता के अभाव म कोई भी त ता का लाभ नही ं उठा सकता। भारत सीमा
पार के आतंकवाद से पीिड़त है । अब अपराध भी सं गिठत होते जा रहे ह। अतः यह एक अप रहाय िववशता
[necessary evil] है । अप रहाय इसिलए ोंिक यह दे श की एकता एवं अखं डता सु िनि त करने हेतु
आव क है ।
शोषण के िव अिधकार Right Against Exploitation
जीवन के अिधकार का अथ है ग रमा सिहत जीवन जीने का अिधकार। के साम तथा श का
योग अ यों के क ाण हे तु िकया जाना चािहए। अनु े द 23 शोषण के िन िल खत पों का
उ ेख करता है -
a. मानव त री Traffic in human being
b. भीख मँगवाना Beggar
c. बँधुआ मजदू री के अ कार Similar forms of forced labour
मानव त री की अनु मित नही ं दी गई है । इसका अथ यह है िक वे ावृि तथा मानव अंगों का ापार
ितबं िधत ह। ब ों की त री मानव त री का ही भाग है । अनु े द 23 म कहा गया है िक इन ावधानों
का उ ंघन एक दं डनीय अपराध है िक ु संसद ने अब तक वे ावृ ि को ितबंिधत करने हे तु िकसी
कानू न का िनमाण नही ं िकया है ।
1. शोषण का ापक अथ Broader Meaning of Exploitation
वष 1982 के PUDR मामले म सव ायालय ने कहा था िक कमचा रयों को कम वेतन दे ना भी
शोषण के समान है ।
2. यौन शोषण Sexual Harassment
वष 1997 के चिचत िवशाखा मामले म सव ायालय ने “शोषण” के अथ की ा ा की थी।
ायालय ने कहा था िक यौन शोषण शारी रक आ मण से अिधक हािनकारक था है। यौन शोषण

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ग रमा सिहत जीवन जीने के अिधकार का उ ंघन है। ायालय ने काय थान पर यौन शोषण के
िनरोध हेतु िदशािनदश जारी िकए ह।
3. अिनवाय सेवा Compulsory Service
रा सावजिनक योजन से अिनवाय सेवा का ावधान कर सकता है । इसे बँधुआ म नही ं माना जा
सकता। अनु े द 23(2) के अनु सार, अिनवाय सेवा का ावधान करने के दौरान रा केवल धम,
मूलवंश, जाित अथवा वग अथवा इनम से िकसी के भी आधार पर भेदभाव नही ं करे गा।
शोषण के िव ब ों के अिधकार Right of Child Against Exploitation
अनु े द 24 के अंतगत िन िल खत म ब ों को नौकरी पर रखना ितबंिधत िकया गया है -
a. उ ोग Factories
b. खदान Mines
c. खतरनाक उ ोग Hazardous employment
अनु े द 23 तथा 24 -सं चालनीय नही ं ह। इ अिधिनयिमत करने हे तु संसदीय अिधिनयम का होना
आव क है । सं सद ने बाल म िनरोध हे तु कई कानू न अिधिनयिमत िकए ह। संसद ने वष 1986 म एक
कानू न अिधिनयिमत िकया िजसे वष 2016 म सं शोिधत िकया गया। यह अिधिनयम उ खत अनु े द 24
के अभावों को सं बोिधत करता है । इसका अभाव यह है िक उ खत काय थानों के अलावा ब ों को अ
थानों पर कायरत िकया जा सकता है । नए अिधिनयम के अं तगत 14 वष से कम आयु के ब ों को िकसी भी
कार के वसाय म लगाना ितबं िधत कर िदया गया है । अिधिनयम के अंतगत मा यह अपवाद दान
िकया गया है िक 14 वष से कम आयु के ब ों को अपने प रवार ारा संचािलत वसाय म कायरत िकया
जा सकता है । िक ु ब ों की िश ा म बाधा नहीं आनी चािहए।
अनु े द 24 14 वष से कम आयु के ब ों का िनयोजन ितबंिधत िकया गया है , िजसका अथ यह है िक 14
से 18 वष की आयु के म के ब ों को िकसी भी वसाय म िनयोिजत िकया जा सकता है। नया अिधिनयम
“िकशोर” नामक एक नए वग को प रभािषत करता है । और उ खतरनाक वसाय म िनयोिजत नही ं िकया
जा सकता। हालाँ िक, खतरनाक उ मों की सं ा 83 से घटा कर 3 कर दी गई है।
अनु े द 24 तथा अनु े द 21 (ए) के बीच संबंध Relation Between Article 24 and Article 21 (A)
अनु े द 24 4 वष से कम आयु के ब ों का िनयोजन ितबं िधत करता है अतः यह नकारा क कृित का
ावधान है । वष 2002 म 86व संशोधन के ारा अनु े द 21(ए) को संिवधान म जोड़ा गया था। अनु े द 21
(ए) के अनु सार रा 6 से 14 वष तक की आयु के ब ों हेतु अिनवाय िश ा का ावधान करे गा। रा मु
तथा अिनवाय िश ा हे तु कानू न अिधिनयिमत करे गा। अतः वष 2009 म संसद ने िश ा का अिधकार
अिधिनयम िनिमत िकया था।
धम की त ता का अिधकार Right to Freedom of Religion
संिवधान सभा म यह एक िववािदत िवषय था। सं िवधान सभा की एक मुख सद , राजकुमारी अमृत कौर ने
धािमक अिधकार के मौिलक अिधकार के प म स िलत िकए जाने पर आपि कट की। उ ोंने कहा
िक यह समाज सुधार म बाधा उ कर सकता है । िक ु तृतीय भाग म धािमक त ता के अिधकार को
स िलत िकया गया जो यह मािणत करता है िक भारत एक पं थिनरपे दे श है । हालाँिक, अिधकांश जनता
िह दू है। अनु े द 25 से अनु े द 28 के बीच धािमक अिधकारों का उ ेख िकया गया है।
a. अ ः करण/ अ ः चेतना की त ता Freedom of Conscience
अनु े द 25 का थम वा ां श कहता है िक सभी यों को अ ः करण की त ता ा है ।
उ अिधकार है तं प से यं ारा चु नाव िकए गए धम को -

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1. आचरण म लाने का Profess
2. मानने का/अनु करण करने का Practice
3. चार/ सार करने का Propagate religion
आचरण म लाना धािमक आ था से सं बंिधत है । ेक को अपनी आ था का चुनाव करने का
अिधकार होगा ोंिक यह के अ ः करण से सं बंिधत है । अनुकरण करने का अथ है थाओं तथा
पर राओं का पालन [जैसे िक जने ऊ धारण करना]। चार सार करने का अथ है अ यों को
धािमक उपदे श दान करना। धम की त ता रा तथा धम के बीच अंतर सु िनि त करती है। रा
धािमक आचरण अथवा थाओं का िनधारण नही ं करे गा।
b. धािमक अिधकार पर ितबं ध Restrictions over Religious Right
1. सावजिनक व था, िश ाचार तथा ा Public Order, Morality and Health
धािमक अिधकार असीिमत नहीं ह। अनु े द 25(1) कहता है िक अ ः करण की त ता को
सावजिनक व था, िश ाचार तथा ा के आधार पर सीिमत िकया जा सकता है । रा को
इन आधारों पर धािमक अिधकारों का अित मण करने का अिधकार है जो रा का मूलभूत
उ रदािय है । धािमक अिधकार के नाम पर अ ील आचरण करने का अिधकार िकसी को
नही ं है ।
2. पं थिनरपे गितिविध Secular Activity
अनु े द 25(2) धािमक अिधकारों पर अित र सीमाएँ लगाता है । रा को आिथक, िव ीय,
राजनैितक अथवा अ पंथिनरपे गितिविधयों के िविनयमन हे तु कानून बनाने की अनु मित है।
यह गितिविधयाँ धािमक थाओं से संबंिधत हो सकती ह। अतः रा को धािमक मामलों म
ह ेप करने का अिधकार है िक ु धािमक सं थाओं, धािमक ितिनिधयों इ ािद को रा
ारा संचािलत पं थिनरपे गितिविधयों म ह ेप करने की अनु मित नही ं है ।
3. सामािजक सु धार Social Reform
रा को सामािजक क ाण हे तु कानू न बनाने का अिधकार है। इस अिधकार को धािमक
अिधकार के नाम पर ायालय म चुनौती नही ं दी जा सकती। रा समाज को सुधारने हे तु
कानू न िनिमत करने हे तु तं है । अतः बाल िववाह तथा रत तीन तलाक को असंवैधािनक
घोिषत कर िदया गया है । रा धम थलों म सभी वग के यों का तं वेश सुिनि त
करे गा। िक ु िह दू धािमक सं थान सावजिनक कृित के होने चािहए।
धम प रवतन Religious Conversation
संिवधान म न तो धम प रवतन का उ ेख िकया गया है और न ही इसे ितबंिधत िकया गया है। अ िधक
धम प रवतन के कारण, वष 1967 म ओिडशा धम प रवतन को िनयंि त करने हे तु कानून अिधिनयिमत
िकया गया। वष 1968 म म दे श ने भी धम प रवतन िनरोध हे तु कानून िनिमत िकया। इसके प ात
अ णाचल दे श (1978), छ ीसगढ़ (2000), गु जरात (2003), िहमाचल दे श (2007), झारखंड (2017),
तथा उ राखं ड (2018) ने भी समान कानू न पा रत िकए। तिमलनाडु ने भी वष 2002 म ऐसा ही कानू न
बनाया िक ु वष 2004 म इसे र कर िदया गया।
धािमक अिधकारों की अिभ िवशे षताएँ Essential Features of Religious
सव ायालय ने कहा है िक पशुओं की बिल दे ना, धम थलों म मिहलाओं का वेश विजत करना,
लाउड ीकर का योग, पटाखे चलाना इ ािद थाएँ धम के अिभ /आव क अंग नही ं ह। अनाव क
थाएँ रा ारा िविनयिमत तथा प रवितत की जा सकती ह।
जीवन तथा िनजी त ता का अिधकार एवं धािमक त ता
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कुछ मौिलक अिधकार अ की तु लना म अिधक आधारभूत ह। जीवन तथा िनजी त ता का अिधकार,
जो िविभ तं ताओं से संबंिधत है , मौिलक अिधकारों का क है । अतः जीवन का अिधकार धािमक
अिधकारों से अिधक मह पू ण है । जैन धम के अनुयायी सं थारा था का पालन करते ह। संथारा का अथ है
े ा से जीवन का ाग। आलोचक इसे आ ह ा का ही प मानते ह। इसके बावजूद, जन धम के
अं तगत संथारा को आ क अनु भव के प म मा ता दान की गई है। धािमक अिधकारों के समथकों का
मानना है िक उ ोहारों म पटाखे चलाने का अिधकार है । हालाँ िक, जीवन के अिधकार म दू षण-मु
पयावरण का अिधकार भी िनिहत है । जीवन के अिधकार तथा धािमक अिधकारों के बीच िववाद उ होने
की थित म, जीवन के अिधकार को ाथिमकता दी जानी चािहए।
धािमक मामलो ं के बं धन की त ता Freedom to Manage Religious Affairs
धािमक अिधकार मा यों के िलए ही नहीं अिपतु धािमक सं थानों हेतु भी उपल ह। अनु े द 26 म
धािमक सं थानों हेतु धािमक त ता के ावधानों को स िलत िकया गया है। धािमक सं थानों के मौिलक
अिधकार इस कार ह-
a. धािमक तथा धमाथ काय हे तु सं थान थािपत करने तथा उनका पोषण करने के
b. अपने धम-संबंधी काय का बंध करने का
c. चल तथा अचल संपि के अजन तथा ािम का
d. ऐसी संपि का िविध के अनु सार शासन करने का
यह एक असीिमत अिधकार नही ं है । सावजिनक व था, िश ाचार तथा ा के आधार पर इसे सीिमत
िकया जा सकता है । यह उ ेखनीय है िक नाग रकों हेतु मौिलक अिधकार के तौर पर संपि का अिधकार
अब उपल नही ं रह गया है ोंिक 44व संशोधन के ारा उसे तृ तीय भाग से हटा िदया गया था। अनु े द
26 अब भी धािमक सं थानों को मौिलक अिधकार के प म संपि का अिधकार दान करता है ।
पं थिनरपे रा Secular State
a. कर दे ने से मु Freedom from Payment of Taxes
संिवधान रा े का सव कानून है िजसे मानवों ारा अिधिनयिमत िकया गया है । भारत धािमक
अथवा दै वीय िविध के शासन के अं तगत नही ं है। रा स ा के संचालन हेतु तथा यों के
क ाण हेतु कर लगाता है । अनु े द 27 के अं तगत रा िकसी िवशे ष धम अथवा धािमक सं थान
को ो ािहत करने हेतु कर नही ं लगाएगा। नाग रक कर दे ने हे तु बा हहइन। िकसी िवशे ष
धम थल के पोषण हे तु कर नही ं लगाए जाएँ गे ।
b. धािमक उपदे श अथवा पूजन से त ता Freedoms from Religious Instructions or
Worship
भारत पंथिनरपे रा है । रा शै िणक सं थानों के ारा िकसी धम को ो ािहत नही ं करे गा।
अनु े द 28 म ऐसे शै िणक सं थानों के कार का उ ेख िकया गया है -
1. स ूण प से रा ारा पोिषत Wholly Maintained by State
क ीय िव िव ालय तथा क ीय िव ालय स ूण प से रा ारा पोिषत शै िणक सं थानों के
उदाहरण ह। इन सं थानों म िकसी भी कार का धािमक उपदे श दे ने की अनु मित नही ं है ।
अ यन के योजन से बौ िश ा दे ना धािमक उपदे श नही ं माना जा सकता।
2. ास ारा थािपत सं थान Institution Establish by Trust
डीएवी िव ालय, सर ती िशशु मंिदर इ ािद ास ारा थािपत शै िणक सं थानों के
उदाहरण ह। वे धािमक उपदे श दे ने हे तु तं ह ोंिक धािमक अिधकार एक मौिलक
अिधकार है । रा ास को धािमक उपदे श दान करने से ितबं िधत नही ं कर सकता।
3. रा ारा मा ता ा थान Institutions Recognized by State

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रा ारा मा ता ा थान का अथ है क ीय अनुदान आयोग तथा क ीय मा िमक िश ा
बोड ारा मा ता- ा सं थान। रा -िनिध से सहायता पाने वाले शै िणक सं थानों म िनजी
शै िणक सं थान भी हो सकते ह। यह आं िशक प से रा से तथा आं िशक तौर पर िनजी
यों से स होते ह। अतः िव ािथयों की अनु मित से इन सं थानों म धािमक उपदे श
दान िकया जा सकता है । यिद िव ाथ बा ाव था म ह तो संर कों की अनुमित आव क है।
अ सं कों के िहतों का सं र ण Protection of Interest of Minorities
अनु े द 29 के अनु सार भारतीय रा - े म अथवा इसके अं तगत िकसी भी भाग म िनवास करने वाले
नाग रकों के िकसी भी वग को िजसकी अपनी िवशेष-
a. भाषा
b. िलिप
c. अथवा सं ृ ित
है , उ अपनी भाषा, िलिप अथवा सं ृ ित का संर ण करने का अिधकार होगा।
a. शै िणक सं थानों म कोई भेदभाव नही ं No Discrimination in Educational Institutions
अनु े द 29 मा नाग रकों हे तु उपल है । रा ारा पोिषत अथवा रा -िनिध से सहायता ा
शै िणक सं थानों म िकसी नाग रक का वेश विजत नही ं होगा। अनु े द 29(2) के अनुसार रा
केवल धम, मूलवं श, जाित, भाषा अथवा इनम से िकसी के भी आधार पर भेदभाव नही ं करे गा।
संिवधान म अ सं कों के अिधकार मह पू ण ह ोंिक लोकत तः ही ब सं कों के शासन
को ो ािहत करता है । अ सं कों के अिधकार ब सं कों के गैर-लोकता क िनणयों से
उनका संर ण करगे । ब सं क अ सं कों पर अपनी भाषा अथवा सं ृ ित को थोप नही ं
सकते ।
शै िणक सं थान थािपत करने के अ सं कों के अिधकार Minorities Rights to Establish
Education Institution
सभी अ सं कों को अपने चुने ए शै िणक सं थान थािपत करने तथा उनका शासन संभालने का
अिधकार होगा। अनु े द 30(1) दो कार के अ सं कों का उ ेख करता है -
a. धािमक
b. भाषाई
िक ु अनु े द 30 अ सं कों को प रभािषत नही ं करता।
a. अ सं कों की प रभाषा Definition of Minorities
वष 1993 का संसदीय अिधिनयम प रभािषत करता है िक मु म, ईसाई, िसख, बौ , जैन तथा
पारिसयों को अ सं कों के तौर पर मा ता दान की गई है। िक ु इस संसदीय अिधिनयम म
अ सं क के तौर पर मा ता दान करने के आधार का उ ेख नहीं िकया गया है । रा पित
अिधसूचना के ारा अ समु दायों को अ सं कों के तौर पर मा ता दान कर सकते ह। सव
ायालय का कहना है िक अ सं कों की पहचान रा के आधार पर होनी चािहए। टीएमए पाई
फ़ाउं डेशन मामले (2002) म ायालय ने कहा था िक भारतीय रा ों का िवभाजन भाषाई तौर पर
िकया गया है । अतः अ खल-भारतीय आधार पर अ सं कों की पहचान नही ं की जा सकती।
हालाँिक, सव ायालय ने कभी भी अ सं कों की पहचान हे तु आधारों का ितपादन
नही ं िकया है ।

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2011 की जनगणना के अनु सार, जनसं ा म मु म 14.2%, बौ 0.7%, िसख 1.7%, ईसाई
2.3% तथा जैन 0.5% ह। हालाँ िक, ल ीप, ज ू क ीर तथा ल ाख के क शािसत दे शों म
मु म ब सं क ह। हालाँ िक, ईसाई नागालड, िमज़ोरम तथा मेघालय म ब सं क ह। पंजाब म
िसख ब सं क ह। यह तीत होता है िक रा के आधार पर अ सं कों का िनधारण अिधक
तकसंगत होगा। िह दू स ूण भारत म ब सं क ह िक ु कुछ रा ों तथा के ् शािसत दे शों म वे
अ सं क ह। सम ा अब भी बनी ई है िक सव ायालय ने भी अ सं कों के िनधारण
हे तु कोई मापदं ड तय नही ं िकए ह।
अ सं कों को सं ा क आधार पर प रभािषत िकया जा सकता है । िजसका भी अनुपात 50%
से कम हो, वह अ सं क है । इसका अथ है िक अ सं कों के िनधारण हे तु तलिच ों को 5%,
10% तथा 15% जैसी पू ण सं ाओं पर तय िकया जा सकता है । सं ा क श के अित र ,
आिथक पृ भूिम भी अ सं कों की पहचान करने का आधार बन सकती है । उदाहरण प,
जैन धम के अनु यािययों की सं ा कम है िक ु वे आिथक प से स ह।
b. अ सं क शै िणक सं थान Minorities Educational Institution
संिवधान अ सं क शै िणक सं थानों को प रभािषत नही ं करता। वष 2002 म सव ायालय ने
कहा था िक अ सं क शै िणक सं थान का अथ है वे सं थान िजनकी थापना अ सं क समुदाय
ारा की गई है । ऐसे सं थान सरकार से गै र-सहायता ा सं थान भी हो सकते ह। सं थान रा ारा
पोिषत भी हो सकते ह िक ु इससे वे अपनी अ सं क पहचान नही ं खोएँगे। अनु े द 30(2) कहता है
िक रा अ सं कों के ारा बं िधत िकसी शै िणक सं थान के साथ अनुदान दे ने के दौरान भेदभाव
नही ं करे गा।
c. थापना तथा बं धन का अिधकार Right to Establish and Management
टीएमए फ़ाउं डे शन मामले म सव ायालय ने ऐितहािसक िनणय सुनाया। ायालय ने कहा था
िक थापना तथा बंधन के अिधकार के अिधकार म िन िल खत अिधकार िनिहत ह-
1. िनधा रत शु सं रचना, सरकार शु सं रचना का िनधारण नही ं करे गी।
2. अपने समुदाय के िश कों तथा कमचा रयों की िनयु का अिधकार
3. गै र-अ सं क समुदाय के सद ों के वे श के अनु पात का िनधारण
चूँ िक शै िणक सं थानों की गु णव ा बनाए रखना रा का उ रदािय है , अतः रा को िन िल खत
आधार पर शै िणक सं थानों को िविनयिमत करने का अिधकार होगा-
a. दान की अनु मित नही ं है ोंिक शै िणक सं थान लाभ के सं थान नही ं ह
b. यह सं थान भी शै िणक मापद ों तथा िश क बनने हे तु आव क शै िणक यो ताओं का पालन
करगे
c. शै िणक स सरकार के िविनयमन पर आधा रत होंगे
अ सं क शै िणक सं थानों से जुड़े कई मामलों का िन ारण सव ायालय ारा िकया गया है ।
उ ीकृ न मामला, सट ीफन मामला इ ािद मुख ह।
d. संपि का अिधकार तथा शै िणक सं थान थािपत करने का अिधकार
अ सं कों ारा थािपत तथा शािसत शै िणक सं थानों के पास संपि के अिधकार अब भी ह।
अ सं क शै िणक सं थान के ािम वाली िकसी भी कार की संपि के अिनवाय अिध हण
पर रा ारा िनिमत कानू न के ारा ितबंध लगाया जा सकता है ।
मूल सं िवधान म संपि का अिधकार Right to Property in Original Constitution

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अनु े द 19(1)(f) के अं तगत संपि के अिधकार को मौिलक अिधकार के तौर पर स िलत िकया गया
िजसके अनुसार सभी नाग रकों को संपि अिजत करने तथा िवसिजत करने का अिधकार होगा। अनु े द
31(1) भी संपि का अिधकार दान करे गा। िविध ारा थािपत ि या के अनुसार िकसी भी को
उसकी सं पि से वंिचत िकया जा सकता है । रा को िकसी भी की संपि अिधगृहीत करने हे तु
सश िकया गया। इस हेतु आव क है िक -
1. संपि का अिध हण सावजिनक योजन से हो
2. रा पया मुआवज़ा/िव ीय ितपू ित दान करे
रा नीित के िनदशा क िस ां तों [डीपीएसपी] को अिधिनयिमत करने हे तु, सरकार ने संपि के अिधकार
को सीिमत करना चाहा। भारतीय रा एक क ाण रा [welfare state] है , अतः वष 1950 के प ात
भारत म भूिम सुधार काय म का आरं भ िकया गया। भारत एक संघीय रा है अतः भूिम रा सूची के
अं तगत थत िवषय है । िविभ रा सरकारों ने भूिम सु धार-सं बंधी कई कानून अिधिनयिमत िकए। भूिम
सुधार-संबंधी अिधिनयमों म सव ायालय म संपि के अिधकार के उ ंघन के नाम पर चु नौती दी गई।
a. थम सं शोधन First Amendment
िबहार सरकार भारत म भूिम सु धार अिधिनयम लागू करने वाली पहली रा सरकार बन गई। िबहार
सरकार के इस कदम को कामे र िसंह मामले म चुनौती दी गई। सव ायालय ने भूिम सुधार
अिधिनयम को ून कर िदया। भूिम सुधार अिधिनयम को र होने से बचाने हे तु संसद ने थम
संवैधािनक सं शोधन पा रत िकया। सं िवधान म अनु े द 31 (ए) को जोड़ा गया िजसके ारा संपि के
अिधकार को सीिमत कर िदया गया। अतः -
1. रा को िकसी भी भू े को अिधगृहीत करने का अिधकार दान िकया गया है अथवा ऐसे
अिधकार का प रवतन अथवा ऐसे िकसी अिधकार का शमन।
2. रा िकसी भी सं पि के बं धन का अिधकार हण कर सकता है।
3. दो या दो से अिधक ावसाियक िनगमों का सं योजन तथा ावसाियक िनगमों का बंधन।
4. ावसाियक िनगमों म ािम तथा मतािधकार प रवितत करना अथवा इनका शमन करना।
5. खदानों से सं बंिधत Modifying is abolishing agreement, lease or licence related to mines.
संि म, अनु े द 31(ए) ने क ाण रा के आधार की थापना की। यह भारत म समाजवाद को
ो ाहन दे ने का यास था। त ता से पू व, भारत म आिथक िवकास का मॉडल पूँजीवादी था। जागीर,
र तवाड़ी तथा इनाम िविभ कार के भू े ह। इ थम संवैधािनक संशोधन ारा िविनयिमत िकया गया।
b. नौवी ं अनुसूची Ninth Schedule
अनु े द के िव ार हे तु सू ची आव क है । संिवधान म अनु े द 31(बी) के स िलत होने के
प रणाम प नौवी ं अनु सूची को भी जोड़ा गया। मू ल संिवधान म मा 8 अनु सूिचयाँ थी ं। इसे िविश
प से भूिम सु धार अिधनयम के संर ण हे तु िनिमत िकया गया था। भूिम सुधार अिधिनयम को
ाियक समी ा के दायरे से बाहर रखा गया। नौवी ं अनुसूची म स िलत िकसी भी अिधिनयम को
तृतीय भाग के मौिलक अिधकारों के हनन के आधार पर चु नौती नही ं दी जा सकती।
c. ितपू ित का मु ा Issue of Compensation
थम संशोधन के प ात अनु े द 31(ए) तथा (बी) के ारा संपि के अिधकार को सीिमत िकया
गया। बेला बनज मामले म सव ायालय ने कहा िक िव ीय ितपूित पया होनी चािहए। 1955
के चौथे संवैधािनक संशोधन के अंतगत ायपािलका को ितपू ित की पया ता की समी ा करने से
ितबं िधत कर िदया गया।

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d. ितपू ित का शमन Repealing of Compensation
इ रा गाँधी सरकार ने 26व संवैधािनक संशोधन के ारा शाही भ े का अंत कर िदया। आरसी
कूपर मामले ( चिलत नाम: बक रा ीयकरण मामला) म सव ायालय ने कहा था िक ितपू ित
का अथ है बाज़ार दर पर ितपू ित। त ात संसद ने 25वाँ सं वैधािनक संशोधन पा रत िकया और
अनु े द 31(2) म “मा ा” श को जोड़ा गया। अनु े द 31 से “ ितपू ित” श को हटा िदया गया।
ितपू ित सरकार ारा को की गई हािन के बदले िकए गए भुगतान की ओर संकेत करता है।
िक ु “मा ा” को की गई हािन की संभावना को अनदे खा कर दे ता है । इस “मा ा” का
िनधारण सरकार पर िनभर करता है ।
e. संपि के अिधकार का शमन Abolishing of Right to Property
वष 1978 म जनता पाट सरकार ने 44वाँ संवैधािनक सं शोधन पा रत िकया। अतः संिवधान के तृ तीय
भाग से अनु े द 19(1)(f) तथा अनु े द 31(1) तथा (2) को हटा िदया गया। इसका अथ है िक
नाग रकों हेतु संपि का अिधकार अब उपल नही ं है । प रणाम प, संपि के अिधकार के
संर ण हे तु अनु े द 32 का योग नही ं िकया जा सकता। आज संपि का अिधकार अनु े द
300(ए) के अं तगत एक कानूनी अिधकार है , जो कहता है िक िकसी भी को उसकी संपि से
कानू न के ािधकार के अलावा िकसी और आधार पर वंिचत नही ं िकया जा सकता। अनु े द 226 के
अंतगत कोई भी संपि के अिधकार के सं र ण हे तु उ ायालय जा सकता है।
f. संपि के अिधकार का अपवाद Left out Element of Right to Property
हालाँिक, 44व संवैधािनक सं शोधन के ारा सं पि के अिधकार को तृतीय भाग से हटा िदया गया है ,
िक ु संिवधान के तृतीय भाग म 31(ए) तथा 31(बी) अब भी उप थत ह। अतः संपि के अिधकार
के कुछ अपवाद अब भी तृ तीय भाग म उप थत ह-
1. यिद सरकार अ सं क शै िणक सं थानों की संपि अिध िहत करना चाहती है तो उसे
सं थान को संपि का बाज़ार मू चु काना होगा।
2. यिद सरकार ऊपरी सीमा [ceiling] के अं तगत भूिम अिध िहत करती है तो वह उसका बाज़ार
मू चुकाने पर बा होगी।
सं वैधािनक उपचारों का अिधकार Right of Constitutional Remedies
अनु े द 32 यं म एक मौिलक अिधकार है , इसके अित र यह अ मौिलक अिधकारों को भावी
करता है । अनु े द 32 के अभाव म, अ मौिलक अिधकार िनरथक हो जाएँ गे। अनु े द 32 सव
ायालय को मौिलक अिधकारों के वतन [enforcement] हे तु िनदश आदे श अथवा रट जारी करने का
ावधान करता है । सव ायालय िन िल खत रट जारी कर सकता है -
1. Habeas corpus
2. Mandamus
3. Prohibition
4. Quo Warrantor
5. Certiorari
संसद कानू न के ारा िकसी अ ायालय को उ खत रट का योग करने हे तु सश कर सकती है ।
अनु े द म द अिधकार थिगत नही ं िकए जा सकते।
a. Habeas Corpus
यह लैिटन भाषा का श है , िजसका शा क अथ है “अपना शरीर होना”। अनु े द 21 जीवन तथा िनजी
त ता का अिधकार दान करता है । मनमानी िगर ारी अथवा अिभर ा को चुनौती दे ने हे तु
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सव ायालय जा सकते ह। ायालय िगर ारी के पीछे के कारण की समी ा करे गा। यह रट रा के
िव उपल है तथा इसका योग यों के िव भी िकया जा सकता है । गुमशुदा यों की खोज
हे तु सव ायालय का ख िकया जा सकता है । गु मशु दा की तलाश करना पुिलस का उ रदािय
है । िन िल खत मामलों म यह रट उपल नहीं है -
1. ायपािलका म अिभयु िस होने के प ात िहरासत म हो।
2. ायालय की अवमानना के कारण को िहरासत म रखा गया हो।
3. को िनवारक िनरोध अिधिनयम के तहत िहरासत म रखा गया हो।
b. Mandamus
यह भी लैिटन भाषा का श है िजसका शा क अथ है “आदे श”। यह िकसी अधीन थ ािधकरण
को सव ायालय ारा जारी िकया गया आदे श होता है । मौिलक अिधकार रा के िव
उपल ह। अतः सावजिनक पद की अ ता करने वाला अपने कत की ितपूित हे तु
बा होता है । पुिलस किम र सावजिनक व था बनाए रखने हेतु उ रदायी होते ह। पु िलस
अफसरों के िव कोई भी सव ायालय जा सकता है । इस रट का योग िनजी
यों के िव नही ं िकया जा सकता। मा दो सावजिनक पद ह िज इस रट से ितर ा ा
है -
1. रा पित
2. रा पाल
रा पित तथा रा पाल मंि प रषद के सुझाव तथा सलाह के आधार पर काय करते ह। अतः उ इस
रट के दायरे से बाहर रखा गया है ।
c. Prohibition
इसका अथ है िक यह अधीन थ ायालय के सम लंिबत िकसी मुकदमे पर सुनवाई करने से
अधीन थ ायालय को ितबं िधत करता है । अनु े द 21 कहता है िक कानू न ारा थािपत ि या
के ारा ही िकसी को जीवन तथा िनजी त ता से वंिचत िकया जा सकता है। िकसी भी
मुकदमे म ाियक ह ेप करने के दौरान, िज़ला अदालत ि या का अनुपालन करने हे तु बा
होती है । इसे चिलत तौर पर िनलंबन आदे श [stay order] के नाम से जाना जाता है। इस रट का
योग मुकदमे के थम चरण म िकया जाता है । तािकक प से, यह िनजी यों के िव
उपल नही ं है।
d. Quo Warranto
यह भी लैिटन भाषा का श है िजसका अथ है “िकस ािधकार के ारा”। समानता के अिधकार
तथा रा के अं तगत वृि तथा िनयु का अिधकार मौिलक अिधकार ह। अतः सावजिनक पद पर
िकसी अ ािधकृत को िनयु यो नही ं माना जा सकता। उदाहरण- जूिनयर पुिलस अफसर
पु िलस के महािनदे शक िनयु िकए जाने यो नही ं ह। यह रट िकसी िनजी पद पर लागू नही ं होती।
उदाहरण-टाटा कंपनी के कायकारी अ के िव इस रट का योग नही ं िकया जा सकता। A
e. Certiorari
यह भी लैिटन भाषा का श है िजसका अथ है “ माणन”। आपरािधक तथा िसिवल मामले िज़ला
अदालत अथवा अधीन थ ायालयों से आरं भ होते ह। िक ु अधीन थ ायालय िविध ारा थािपत
ि या के अनु सार काय करगे । ि या के उ ंघन के मामले म सव ायालय यह रट जारी
करे गा। सव ायालय यह समी ा भी करे गा िक अधीन थ ायालय ने अपने े ािधकार का

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उ ंघन िकया है या नही ं। यह रट मुकदमे के अंितम चरण म जारी की जाती है जब अधीन थ
ायालय ने अपना िनणय सु ना िदया हो।
मौिलक अिधकारो ं पर ितबं ध Restriction over Fundamental Rights
संिवधान म मौिलक अिधकार असीिमत नही ं ह। ेक अनु े द म कुछ सीमाएँ िनिहत की गईं ह। इसके
अित र , अनु े द 33 तथा 34 मौिलक अिधकारों पर और िनयं ण थािपत करते ह। अनु े द 33 मौिलक
अिधकारों तथा सेवाओं के िविभ वग के सद ों के अनुशासनों के बीच संतुलन बनाए रखता है । अनु े द
33 संसद को रा के अं तगत सेवारत िन िल खत यों के मौिलक अिधकार सीिमत करने हे तु कानू न
अिधिनयिमत करने का अिधकार दान करता है-
a. सेना, नौसे ना तथा वायुसेना जै से सश सै बलों के सद
b. सावजिनक व था के संर ण हे तु िनयु बलों के सद जैसे िक पुिलस, तथा बीएसएफ़ एवं
सीआईएसएफ़ जै से क ीय सश सै बल।
c. खु िफ़या जानकारी अथवा गु चर-िवरोधी योजनों से रा ारा थािपत ूरो अथवा संगठन म
वृ । उदाहरण- intelligence bureau (IB), research and analysis wing (RAW), and
Military intelligence.
d. उ खत िकसी सश बल, ूरो अथवा संगठन हेतु टे ली-संचार तं ों की थापना के योजन से
वृ ।
इसका अथ यह है िक सश सै बलों के सद ों हे तु बोलने तथा अिभ की त ता को सीिमत कर
िदया गया है । धािमक त ता को भी सीिमत कर िदया गया है । संसद ने सेना अिधिनयम (1950), वायुसेना
अिधिनयम (1950) तथा नौसेना अिधिनयम (1950) अिधिनयिमत िकए ह। संसद ने पुिलस बल श
प रसीमन अिधिनयम 1966 तथा सीमा सु र ा बल अिधिनयम 1968 भी पा रत िकए ह।
सै कानून Martial Law
अनु े द 34 के अंतगत एक िवशे ष भौगोिलक े म मौिलक अिधकारों के थगन का ावधान िकया गया है।
सै कानू न से संबंिधत कानू न सं सद ारा अिधिनयिमत िकए जाते ह। भारत के रा े म व था बनाए
रखने अथवा व था पुनः थािपत करने हे तु सै कानू न लगाया जा सकता है। सै कानून बनाए रखने हेतु
उ रदायी यों को इससे छूट दान की गई है । सं सद कानून तथा व था बनाए रखने हेतु वृ िकए
गए यों ारा द िकसी भी दं ड को वै ध करार दे सकती है ।
संसद ने सश सै बल (िवशे ष श ) अिधिनयम 1958 पा रत िकया है िजसे अफ ा के नाम से भी जाना
जाता है । इसे पहली बार वष 1958 म असम तथा मिणपुर म अिधिनयिमत िकया गया। इसे वष 1988 म ज ू
व क ीर म लागू िकया गया। यह अ णाचल दे श, मेघालय, िमज़ोरम तथा नागालड म भी लागू िकया गया
है । गृह मं ालय की अिधसूचना के ारा अफ ा लागू िकया जा सकता है। मं ालय अशांत े म अिधसू चना
जारी कर सकता है । अशांत े [disturbed area] का अथ है िक नाग रक शासन सावजिनक व था
बनाए रखने म अ म है अतः सै बलों अथवा क ीय सै बलों को व था पु नः थािपत करने हेतु तै नात
िकया जा सकता है । अफ ा के अं तगत सश सै बलों को िवशे ष श याँ दान की गईं ह -
1. वे िकसी भी की जाँच कर सकते ह तथा िकसी भी का संचरण बािधत कर सकते ह।
2. सश बल िकसी को भी गोली मार सकते ह।
3. वे िकसी भी इमारत को कर सकते ह।
4. वे िबना वॉरट के िकसी को भी िगर ार कर सकते ह तथा िकसी भी घर म िकसी भी समय वेश
कर सकते ह।
5. इन कृ ों हेतु उ ायालय के सम उ रदायी नही ं ठहराया जा सकता।
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AFSPA तथा मानवािधकार
मानवािधकार कायकताओं का कहना है िक अफ ा रा -पोिषत आतंकवाद की िमसाल है । यह अनु े द
19 तथा 21 के अंतगत द मौिलक अिधकारों को ून कर दे ता है । यह कानू न के शासन की अवधारणा के
िव है तथा पु िलस रा की सं क ना को ो ािहत करता है। लोकत के अंतगत रा की बजाय
नाग रकों का सश करण करना आव क है । यह एक ू रतापू ण तथा अलोकतां ि क कानू न है िजसका
सश बलों ारा दु पयोग िकया जा रहा है ।
सरकार का ि कोण View point of Government
दे श की एकता एवं अखंडता अब भी खतरे म है। अ ै ल 2019 म अ णाचल दे श के नौ िजलों से अफ ा
को आं िशक तौर पर र कर िदया गया। मेघालय तथा ि पुरा से अफ ा को हटा िदया गया है। दे श की
सुर ा के संर ण के अभाव म कोई भी त ता का लाभ नही ं उठा सकता। क ीर अब भी सीमा पार के
आतं कवाद की सम ा से जूझ रहा है । अतः अफ ा एक आव क बुराई है।
सै बलों का ि कोण The Approach of Arm Forces
सै बलों का कहना है िक अशां त े ों म थित अब भी गं भीर है । िबना छूट के, सै बलों के सद अपने
कत का िनवाह करने म अ म हो जाएँ गे । वे यु -समान प र थितयों म काय कर रहे ह। वे परो यु का
सामना कर रहे । भारतीय सश सै बल िव म कम समपाि क हािन [less collateral damage] करने
हे तु ात है। सै बलों को िविभ मानव-िहताथ कृ ों के स ादन म भी स िलत िकया जाता है। वे
शैि क तथा ीड़ा गितिविधयों का संचालन भी कर रहे ह।
अफ ा पर सव ायालय Supreme Court in AFSPA
सव ायालय ने कहा है िक अफ ा के अंतगत सश सै बलों को द छूट असीिमत नही ं है ।
ायालय ने कहा है िक मानवािधकारों के उ ंघन के मामले म ितर ा उपल नही ं है। अफ ा के
अं तगत वृ सश सै बलों के सद ों के िव एफ़आईआर दा खल की जा सकती है । ायालय ने
यह भी कहा है िक 30 वष हे तु अफ ा लागू नही ं िकया जा सकता।
िन ष
अफ ा शॉक थेरेपी के समान है िजसका योग िविश मामलों म िकया जाना चािहए। अफ ा का
दीघकािलक अिधिनयमन ायसंगत नही ं है । भारत जैसे लोकता क दे श म सम ाओं का समाधान बुलेट
ारा नही ं बैलेट ारा िकया जाना चािहए। राजनैितक सम ाओं का समाधान िहं सा ारा नही ं, राजनैितक
तरीकों से होना चािहए।
मौिलक अिधकारो ं म सं शोधन
a. संसद की ाथिमकता
भारत म शासन का संसदीय प अपनाया गया है और सं सद को सामािजक ाय संपािदत करने
का अिधकार दान िकया गया है । ने ह सरकार ने सामािजक ाय की ितपू ित हे तु मौिलक
अिधकारों को संशोिधत करने का यास िकया। मौिलक अिधकार संिवधान का एकमा वह भाग ह
जो िवशेष वा ां श ारा संरि त ह। अनु े द 13(2) कहता है िक रा के ारा अिधिनयिमत कोई
भी कानून जो मौिलक अिधकारों का उ ंघन करता पाया जाता है , उसे ून तथा शू घोिषत कर
िदया जाएगा। संसद ने वष 1951 म थम संवैधािनक सं शोधन पा रत िकया। सं सद ने मौिलक
अिधकारों को सं शोिधत िकया और अनु े द 15(4), तथा 31(ए) एवं (बी) को जोड़ा। संसद ने मौिलक
अिधकारों का अित मण िकया िजसे शंकरी साद मामले म सव ायालय म चुनौती दी गई।
1. शं करी साद मामला Shankari Prasad Case(1951)

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संसद ने मौिलक अिधकारों तथा सं वैधािनक सं शोधन अिधिनयम के बीच िववाद का िन ारण िकया।
सव ायालय ने कहा था िक पहला सं शोधन अिधिनयम वैध है ोंिक-
1. अनु े द 13(2) म स िलत कानून श संवैधािनक कानू न की ओर संकेत नही ं करता।
2. अनु े द 13(2) म “कानू न” श संसद अथवा रा िवधाियका ारा िनिमत आम कानून की
ओर सं केत करता है ।
3. अनु े द 13(2) म उ खत सीमा संवैधािनक संशोधन अिधिनयम पर लागू नही ं होती। यह
आम कानू न पर लागू होती है ।
4. अतः तृ तीय भाग म स िलत मौिलक अिधकार आम कानू न ारा संशोिधत नहीं िकए जा सकते।
संवैधािनक संशोधन अिधिनयम के ारा मौिलक अिधकारों को संशोिधत िकया जा सकता है ।
5. सव ायालय ने ीकार िकया था िक अनु े द 246 के अंतगत संसद ारा पा रत आम
कानू न तथा अनु े द 368 के अं तगत अिधिनयिमत संवैधािनक संशोधन के बीच अंतर ह।
6. संसद दोहरी भूिमका िनभाती है । यह आम ब मत के ारा आम कानून को अिधिनयिमत करती
है तथा िवशे ष ब मत के मा म से सं िवधान को सं शोिधत कर सकती है ।
b. मौिलक अिधकारो ं की िवजय
1. गोलकनाथ बनाम पंजाब रा Golaknath vs State of Punjab (1967)
सव ायालय ने शं करी साद मामले म िदए िनणय को खा रज कर िदया। ायालय ने पुनः
अनु े द 13(2) की ा ा की।
1. ायालय ने कहा िक अनु े द 13(2) म उ खत “कानू न” श म संवैधािनक संशोधन
अिधिनयम स िलत है ।
2. इसका अथ यह है िक मौिलक अिधकार आम कानून अथवा संवैधािनक संशोधन के मा म से
संशोिधत नही ं िकए जा सकते।
3. इसका अथ यह है िक मौिलक अिधकार संसद के सं शोधन अिधकार के दायरे से बाहर ह।
4. सव ायालय ने कहा था िक आम कानू न तथा सं वैधािनक संशोधन अिधिनयम के बीच
कोई अंतर नही ं है ।
5. ायालय ने कहा था िक अनु े द 246 आम िविध िनमाण तथा संवैधािनक संशोधन अिधिनयम
के िनमाण हे तु श का ोत है ।
6. ायालय ने कहा था िक अनु े द 368 मा संवैधािनक सं शोधन अिधिनयम की ि याओं का
उ ेख करता है , उसकी श का नही ं।
7. सव ायालय हे तु मौिलक अिधकार अनु ं घनीय ह तथा संिवधान के सवािधक मह पूण
अं ग ह। अतः इ सं शोिधत नही ं िकया जा सकता।
गोलकनाथ मामले ने इ रा गाँ धी सरकार के सम कई सम ाएँ उ कर दी ं। गाँधी सरकार ने
डीपीएसपी के अिधिनयमन हे तु मौिलक अिधकारों को सं शोिधत करने का यास िकया। अतः संसद ने
गोलकनाथ मामले म सव ायालय के िनणय को ून करने हेतु 24वाँ संवैधािनक संशोधन पा रत िकया।
संसद सं सद की पू व भुता पु नः थािपत करने हे तु ितब थी जब संसद को मौिलक अिधकारों को संशोिधत
करने का अिधकार था। संिवधान म अनु े द 13(4) को जोड़ा गया िजसके अं तगत संसद को संवैधािनक
संशोधन ारा मौिलक अिधकारों को सं शोिधत करने का अिधकार दान िकया गया। इस संशोधन के अंतगत
पुनः आम कानू न तथा सं वैधािनक सं शोधन अिधिनयम के म अं तर का शमन कर िदया गया। इस संशोधन
को केशवान भारती मामले म सव ायालय म चुनौती दी गई।
सामं ज पूण सं बंध
1. केशवान भारती मामला Keshavanand Bharti Case (1973)
30 A -20,102, Indraprasth Tower (Behind Batra Cinema),Commercial Complex,
Dr. Mukherjee Nagar, Delhi - 09 Ph : 011 - 40535897, 09899156495
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सव ायालय ने गोलकनाथ मामले म िदये अपने िनणय को पलट िदया और 24व संशोधन को वैध करार
दे िदया। ायालय ने कहा -
1. अनु े द 13(2) म स िलत “कानू न” श संवैधािनक कानू न की ओर सं केत नही ं करता।
2. अनु े द 13(2) म उ खत “कानू न” श सं सद अथवा रा िवधाियका ारा िनिमत एक
आम कानू न की ओर सं केत करता है ।
3. अनु े द 13(2) म उ खत “सीमा” संवैधािनक संशोधन अिधिनयम पर लागू नही ं होती। यह
आम कानून पर लागू नही ं होता।
4. अतः तृतीय भाग म स िलत िकए गए मौिलक अिधकार आम कानून ारा संशोिधत नही ं िकए
जा सकते । िक ु सं वैधािनक संशोधन अिधिनयम के ारा मौिलक अिधकारों को संशोिधत िकया
जा सकता है ।
5. सव ायालय ने ीकार िकया था िक अनु े द 246 के अंतगत संसद ारा पा रत आम
कानू न तथा अनु े द 368 के अं तगत अिधिनयिमत संवैधािनक संशोधन के बीच अंतर ह।

2. मूल सं रचना तथा मौिलक अिधकार Basic Structure and Fundamental Rights
संसद दोहरी भूिमका िनभाती है । यह आम ब मत के ारा आम कानू न को अिधिनयिमत करती है तथा
िवशेष ब मत के मा म से सं िवधान को संशोिधत कर सकती है । सव ायालय ने कहा था िक मौिलक
अिधकारों को संशोिधत िकया जा सकता है िक ु संिवधान की मू ल सं रचना संशोिधत नही ं की जा सकती।
हालाँिक, सं िवधान की मूल संरचना का िनधारण सव ायालय ारा िकया जाएगा। ायालय ने कहा था
िक िनजता का अिधकार संिवधान की मूल सं रचना का भाग है । अतः अनु े द 19 तथा 21, जो एक दू सरे के
संपूरक ह, वे सं िवधान की मूल संरचना का भाग ह। सव ायालय हे तु पंथिनरपे ता भी संिवधान की मूल
संरचना का भाग है अतः अनु े द 25 भी मूल सं रचना का भाग है। अनु े द 14 (समानता का अिधकार) तथा
िविध का शासन भी मूल सं रचना के भाग ह। अनु े द 32 भी मूल संरचना का भाग है ोंिक यह ाियक
समी ा का आधार है ।

31 A -20,102, Indraprasth Tower (Behind Batra Cinema),Commercial Complex,


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