Professional Documents
Culture Documents
2 मौलिक अधिकार
2 मौलिक अधिकार
चूँ िक भारत एक लोकता क रा है, अतः अिधकार लोकता क राजनैितक व था के अिभ अंग ह।
यह मौिलक ह ोंिक यह नाग रकों के के िवकास हेतु आधारभूत ह। नाग रकों ारा रा के ित
संबोिधत िकए गए दावे को अिधकार की सं ा दी गई है । अिधकार रा अथवा शासन का उपहार नहीं
अिपतु सं िवधान ारा द ावधान ह िजसका िनमाण भारत के नाग रकों के ारा िकया गया है। मौिलक
अिधकार रा अथवा शासन की श को प रसीिमत करने का काय करते ह। मौिलक अिधकार सव प र
ह तथा रा ारा इनका हनन नही ं िकया जा सकता। मौिलक अिधकारों के अं तगत रा की तुलना म
नाग रकों की ाथिमकता की संक ना की गई है । यह सं वैधािनकता तथा कानून का शासन सुिनि त करते
ह। भारतीय संिवधान के तृतीय भाग म मौिलक अिधकारों को स िलत िकया गया है। संिवधान सभा म
सवािधक वाद िववाद इसी भाग के सं दभ म आ था। संिवधान सभा म मौिलक अिधकारों पर चचा हे तु जेबी
कृपलानी सिमित का गठन िकया गया था।
रा का अथ
संिवधान के तृतीय भाग का आरं भ अनु े द 12 के साथ होता है िजसम रा की प रभाषा ुत की गई है ।
मौिलक अिधकार रा के िव उपल ह। अनु े द 12 के अनु सार रा िन िल खत से यु होता है -
1. भारतीय सरकार तथा संसद
2. ेक रा की सरकार तथा िवधाियका
3. भारत के भूभाग म थत अथवा भारत सरकार ारा िनयंि त सभी थानीय तथा अ ािधकरण
िविभ मामलों म सव ायालय ने रा के अथ की ा ा की है । िद ी िव िव ालय तथा अ खल
भारतीय िचिक कीय िव ान सं थान रा की ही अ सं थाएँ ह। रा ारा िव -पोिषत ािधकरण रा
के े ािधकार का भाग ह। एयर इं िडया भी रा सं था का ही उदाहरण है ोंिक एयर इं िडया के
कमचा रयों की िनयु सरकार ारा की जाती है । काय की कृित के ारा ही रा की प रभाषा िनधा रत
की जाती है । अतः भारतीय ि केट िनयं ण बोड भी रा की ा ा के दायरे म आता है ।
वष 1991 म भारत म िनजीकरण तथा उदारीकरण-संबंधी नीितयों की पहल की गई। प रणाम प, रा
के काय ून हो गए। िश ा, ा , प रवहन, बिकंग इ ािद े ों म िनजी उ मों का वेश आ। िनजी
उ मों के िव मौिलक अिधकार उपल नही ं ह। िनजी कंपिनयों म आर ण का कोई ावधान नही ं है ।
इसका अथ यह है िक िनजीकरण के कारण मौिलक अिधकारों का दायरा घट रहा है ।
मौिलक अिधकारो ं का िवशे ष सं र ण Special Protection of Fundamental Rights
अनु े द 13 के अंतगत मौिलक अिधकारों के सं र ण का ावधान िकया गया है। अनु े द 13 के अंतगत
िविध/कानू न के िन िल खत कारों का उ ेख िकया गया है -
1. पूव-सं वैधािनक कानून Pre-constitutional laws
संिवधान के अिधिनयिमत होने से पूव िनिमत तथा भाव म लाए गए कानू न। सरल भाषा म, इसका
अथ है 26 जनवरी, 1950 से पू व उप थत कानून। पू व संवैधािनक क़ानू नों तथा मौिलक अिधकारों के
बीच िववाद की थित म, मौिलक अिधकार पू व-संवैधािनक क़ानू नों पर हण लगाने यो माने
जाएँ गे । इसे आ ादन के िस ा [doctrine of eclipse] की सं ा भी दी गई है । अनु े द 13 (1)
के अनु सार, पू व-सं वैधािनक कानू न शू नही ं होंगे, ब यह असंचालनीय [inoperative] हो
जाएँ गे ।
2. मौिलक अिधकारो ं की ाथिमकता Priority of Fundamental Rights
रा ऐसे िकसी कानू न का िनमाण नहीं कर सकता जो तृतीय भाग म स िलत मौिलक अिधकारों
का शमन अथवा उ ंघन करता हो। यिद वे मौिलक अिधकारों का उ ंघन करते ए पाए जाएँ गे,
1 A -20,102, Indraprasth Tower (Behind Batra Cinema),Commercial Complex,
Dr. Mukherjee Nagar, Delhi - 09 Ph : 011 - 40535897, 09899156495
E – mail - saraswati.ias@gmail.com, Visit us : www.saraswatiias.com
तो रा ारा अिधिनयिमत क़ानूनों को शू घोिषत कर िदया जाएगा। एक कानून के कई भाग हो
सकते ह और यिद कानू न का कोई भी भाग मौिलक अिधकारों का उ ंघन करता आ पाया जाता
है तो स ू ण कानून को असं वैधािनक घोिषत कर िदया जाएगा। इसे ्थ रणीयता के िस ा
[principle of severability] की सं ा दी गई है। सव ायालय ने कानून के कानू नी तथा
गैरकानूनी भागों के बीच अंतर करके यह कहा है िक मा गैरकानूनी भाग को ही शू घोिषत
िकया जाएगा। [अनु े द 13 (2)]
3. कानून की प रभाषा Definition of Law
अनु े द 13 (3) के अं तगत "कानू न"/"िविध" को प रभािषत िकया गया है। िविध के अंतगत, भारत
के रा े म िविध का बल रखने वाला कोई अ ादे श, आदे श, उपिविध, िनयम, िविनयम,
अिधसूचना, िढ़ या था ह। शासिनक कायालयों को संपूरक कानू न का िनमाण करने का
अिधकार है । इसे ायोिजत िवधान के नाम से भी जाना जाता है। उपिविध कायपािलका के ारा
िनिमत मा िमक िवधान होते ह। अ ादे श [Ordinance] रा पित के ारा िनिमत कानू न होते ह।
उपिनयम [By laws] संपूरक कानू न होते ह। िविनयम [regulation] कानून लागू करने हेतु
अ ाव क मा म होते ह। अिधसू चना [notification] का अथ है सरकारी गैजेट म क़ानूनों का
काशन तथा िढ़ एवं थाएँ जनजातीय समाज म चिलत कानू न का प होती ह।
4. साधारण कानून तथा संवैधािनक कानून के बीच अंतर
अनु े द 246 के अं तगत, सं सद को क ीय सूची तथा रा सरकार को रा सूची म उ खत
िवषयों पर िविध-िनमाण करने का अिधकार है । कानू न बनाने हेतु संसद को सरल ब मत की
आव कता होती है । िक ु अनु े द 368 के अंतगत, सं वैधािनक श [constituent power] का
योग करते ए सं सद को सं िवधान को सं शोिधत करने का अिधकार भी ा है । सं वैधािनक
संशोधन हे तु िवशे ष ब मत की आव कता होती है । अपनी सं वैधािनक श को भाव म लाते ए
संसद मौिलक अिधकारों को भी संशोिधत कर सकती है । 24व संवैधािनक संशोधन के ारा वष
1971 म अनु े द 13 (4) को सं िवधान म स िलत िकया गया। यह संिवधान को मौिलक अिधकारों
को संशोिधत करने का अिधकार दान करता है। अतः अनु े द 13 (2) ारा द गितरोध
संवैधािनक संशोधन के ावधान पर लागू नही ं होते। मौिलक अिधकार सं सद के सं शोधन की श
के दायरे के बाहर नही ं ह।
मौिलक अिधकारो ं के कार Types of Fundamental Rights
1. समानता का अिधकार Right to Equality
मौिलक अिधकार समानता के अिधकार के ावधान के साथ आरं भ होते ह। अनु े द 14 म कहा
गया है िक िकसी भी को िविध के सम समानता के वहार या भारत के भूभाग के भीतर
िविध के समान संर ण से वंिचत नही ं िकया जाएगा। अनु े द 14 म दो कार की समानता का
उ ेख िकया गया है -
a. िविध के सम समानता Equality before law
b. िविध का समान सं र ण Equal protection of law
(i) िविध के सम समानता: िविध के सम समानता की अवधारणा ि िटश िविध से ली गई है। इसका
ितपादन ि िटश अ यनकता डाइसी ने िकया था। इसका अथ है सभी के ित समान आचार-
वहार। सभी पर िविध के समान समूह लागू होते ह। यह िविध के शासन अथवा िविध की सव ता
का आधार बनता है । कोई भी िविध से ऊपर नही ं है । िविध की ि म िनजी पद, ित ा, संपि का
कोई मह नही ं होता। सभी हे तु समान दं ड सं िहता का ावधान िकया गया है । िविध के अिधिनयमन
के दौरान यों के बीच भेदभाव नही ं िकया जा सकता।
2. मूल सं रचना तथा मौिलक अिधकार Basic Structure and Fundamental Rights
संसद दोहरी भूिमका िनभाती है । यह आम ब मत के ारा आम कानू न को अिधिनयिमत करती है तथा
िवशेष ब मत के मा म से सं िवधान को संशोिधत कर सकती है । सव ायालय ने कहा था िक मौिलक
अिधकारों को संशोिधत िकया जा सकता है िक ु संिवधान की मू ल सं रचना संशोिधत नही ं की जा सकती।
हालाँिक, सं िवधान की मूल संरचना का िनधारण सव ायालय ारा िकया जाएगा। ायालय ने कहा था
िक िनजता का अिधकार संिवधान की मूल सं रचना का भाग है । अतः अनु े द 19 तथा 21, जो एक दू सरे के
संपूरक ह, वे सं िवधान की मूल संरचना का भाग ह। सव ायालय हे तु पंथिनरपे ता भी संिवधान की मूल
संरचना का भाग है अतः अनु े द 25 भी मूल सं रचना का भाग है। अनु े द 14 (समानता का अिधकार) तथा
िविध का शासन भी मूल सं रचना के भाग ह। अनु े द 32 भी मूल संरचना का भाग है ोंिक यह ाियक
समी ा का आधार है ।