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1/16/22, 11:54 AM Hindi Sermons | www.hindisermons.

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परमेश्वर का भय

लू का 12:1-5

परिचय :- ``मैं तुम से जो मेरे मित्र हो कहता हूं, कि जो शरीर को घात करते हैं परन्तु उसके पीछे और कु छ नहीं कर सकते, उन से मत
डरो । मैं तुम्हें चिताता हूं कि तुम्हें किस से डरना चाहिए, घात करने के बाद जिस को नरक में डालने का अधिकार है, उसी से डरो:वरन मैं
तुम से कहता हूं, उसी से डरो'' । (लू का 12:4-5)

आज का युग विकास का युग है । आज का युग बदलता हुआ युग है । यह टेलीविजन का युग है । यह सेटेलाइट का युग है । यह
कम्प्यूटर्स का युग है। हमारा देश एक बड़े परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है । जो बातें शायद पिछले वर्षों में हमारे चित्त में भी नहीं चढ़ीं अब
उनको हम अपने आसपास देखते हैं । साइं स ने बहुत तरक्की की है । विकास के आधार पर बहुत सी नयी बातें हमारे सामने आती जा
रही हैं । हम कहते हैं कि साइं स के द्वारा सभ्यता और संस्कृ ति का विकास हो रहा है । परन्तु इस विकास के युग में एक त्रासदी जो हुई है
वह यह कि जैसे-जैसे विज्ञान का विकास हुआ है, जैसे-जैसे तकनीकी का विकास हुआ है; वैसे-वैसे ही मनुष्य का पतन भी प्रारम्भ हुआ
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है ।

मनुष्य निरन्तर परमेश्वर से दूर होता जा रहा है । लोगों का कहना है, लोगों की मान्यता है, कि सब कु छ पैसा है और पैसे के आधार पर
हम सब कु छ प्राप्त कर सकते हैं । जो कु छ है वह सांसारिकता है । उससे बढ़कर और कु छ नहीं है । जो कु छ है यह संसार है । यदि हमारे
पास सब कु छ है, तो हमें किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं । इस प्रकार की मानसिकता न सिर्फ्र यूरोप और अमेरिका में है परन्तु बहुत तेज़ी से
भारत जैसे देशों में भी आ रही है ।

जैसे-जैसे संसार का विकास हुआ है, वैसे-वैसे मनुष्य का पतन हुआ है। जैसे-जैसे विज्ञान का विकास हुआ है, वैसे-वैसे नैतिकता और
मूल्यों का अवमूल्यन हुआ है । इस भ्रष्टाचार और पाप के बढ़ने का जो प्रमुख कारण है वह यह है कि लोगों के हृदय में परमेश्वर का भय
जाता रहा। आज व्यक्ति को युद्ध का भय तो है, परन्तु परमेश्वर का भय नहीं है। आज व्यक्ति को एटम बम का भय तो है, परन्तु परमेश्वर
का भय नहीं है । आज व्यक्ति को राजनैतिक शक्तियों का भय तो है, परन्तु परमेश्वर का भय नहीं है । यहां तक कि आज लोगों को लोगों
से भय है, परन्तु परमेश्वर से कोई भय नहीं है। आज व्यक्तियों को बीमारियों का भय है परन्तु परमेश्वर का भय मनुष्य के हृदय में से
समाप्त हो गया है । जहां मनुष्य के हृदय में परमेश्वर का भय समाप्त होता है वहीं से मनुष्य का पतन प्रारम्भ होता है । वहीं से मनुष्य के
चरित्र के पतन की बात प्रारम्भ होती है । हमारी पिछली पीढ़ी के बुज़ुर्ग और सम्माननीय लोग, इस बात को बखूबी समझ सकते हैं कि
किस प्रकार से नई पीढ़ी में, और आज के लोगों में, और जो लोग नई नैतिकता की बात कर रहे हैं उनमें, परमेश्वर का भय कहीं दिखाई
नहीं देता । ऐसी स्थिति में जो दर्द और भय की बात है वह नकारात्मक नहीं परन्तु बड़ी सकारात्मक है ।

अक्सर जब हम भय और दर्द की बात करते हैं तो ऐसा लगता है कि ये बड़ी बुरी बातें हैं । ये ऐसी चीज़ें हैं जिनसे हमको बचना है। परन्तु
क्या आप जानते हैं कि यदि हमारे शरीर में दर्द का अहसास न हो तो क्या होगा? जो डॉक्टर्स हैं, और जो हॉस्पिटल्स में काम करते हैं, वे
जानते हैं कि जो कु ष्ठ रोगी होते हैं उनकी संवेदनशीलता समाप्त हो जाती है । चोट लगती है और उनको पता नहीं चलता। धीरे-धीरे इस
प्रकार से उनका अंग-भंग होता जाता है । यदि मनुष्य के शरीर में दर्द न हो तो हम को बीमारी का पता नहीं चले गा । अक्सर जब हमें दर्द
होता है, और बहुत बुखार भी चढ़ता है, तब हम पता लगा सकते हैं कि क्या बात है, ऐसा क्यों हो रहा है ? और तब हमको कभी-कभी यह
पता चलता है और डॉक्टर कहता है कि बहुत अच्छा हुआ कि आप पहले आ गए, कु छ समय बाद आते तो शायद इस बीमारी का इलाज
करना सम्भव नहीं होता ।

जीवन में भय भी बहुत आवश्यक है । आप कल्पना कर सकते हैं कि भय के बिना क्या परिस्थिति होगी । यदि परिवार के बालकों में
माता-पिता का भय न हो तो बच्चों की क्या स्थिति होगी? हमारे परिवारों की क्या स्थिति होगी ? आने वाली पीढ़ी की क्या स्थिति होगी ?
यदि स्कू ल और कॉले जेस में, शिक्षण संस्थाओं में प्राचार्यों और अध्यापकों का कोई भय न हो तो स्टू डेन्ट्स का क्या हाल होगा ? खेल के
मैदान में यदि कोई नियम न लागू हो तो क्या परिस्थिति होगी ? खेल का क्या होगा, कौन सी विजय और कौन सी पराजय की बात
होगी ? यदि आज हमारे देश में कोई कानून व्यवस्था न हो, किसी कानून व्यवस्था का भय न हो, शासन का भय न हो तो क्या हाल
होगा ? आज जबकि सब तरफ कानून व्यवस्था है, पुलिस स्टेशन हैं, उसके बाद भी हम पाते हैं कि क्रिमनल्स, गैंगस्टर्स बढ़ रहे हैं । सब
प्रकार का भ्रष्टाचार न सिर्फ्र पनप रहा है बल्कि तेज़ी से बढ़ता भी जा रहा है । क्या हाल होगा अगर शासन व्यवस्था न हो ? क्या हाल
होगा यदि न्याय व्यवस्था न हो ? क्या परिस्थिति होगी यदि संविधान न हो? हमारा देश कै सा होगा ? हमारे नागरिक कै से होंगे ?

हम जानते हैं कि चाहे संस्था हो, चाहे परिवार, चाहे खेल का मैदान और चाहे व्यक्तिगत जीवन; सबके लिये एक व्यवस्था होती है, कु छ
नियम होते हैं, कु छ सीमाएं होती हैं, कु छ अनुशासन होते हैं जिससे हम उचित दिशा में बढ़ सकते हैं । हमारे मसीही समाज में भी यदि
परमेश्वर का भय समाप्त हो जाए तो आने वाली पीढ़ी में मसीहियत भी समाप्त हो जाएगी । मसीहियत का नामोनिशान नहीं बचेगा ।
आज इस संसार में, जिन परिस्थितियों से, जिस दौर से हम गुज़र रहे हैं, जिस समय के चक्र से हम निकल रहे हैं, जिस परिप्रेक्ष्य से हम
गुज़र रहे हैं, उसमें हमारे लिए यह सबसे प्रमुख बात है कि हम अपने जीवन में परमेश्वर का भय मानना सीखें। हम अपने चाल-चलन को
परमेश्वर के भय के अनुसार सुधारें । हम अपने बच्चों को परमेश्वर के भय के अनुसार ही चलना सिखाएं । हम अपनी कलीसियाओं में
लोगों से कहें - अरे ! परमेश्वर से तो डरो ।

सम्पूर्ण बाइबिल में प्रारम्भ से ले कर अन्त तक परमेश्वर ने बार-बार मनुष्य जाति को चिताया है कि परमेश्वर के भय में हमको आगे
बढ़ना है । परमेश्वर से हमें भय खाना है और अहसास करना है कि हम उस महान परमेश्वर के सामने एक दिन खड़े होंगे । हमें हर एक

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बात का ले खा देना है ।

व्यवस्थाविवरण 6:13-15 में लिखा है - ``अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानना; उसी की सेवा करना, और उसी के नाम की शपथ खाना
। तुम पराए देवताओं के , अर्थात् अपने चारों ओर के देशों के लोगों के देवताओं के पीछे न हो ले ना; क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा जो तेरे
बीच में है वह जल उठनेवाला ईश्वर है; कहीं ऐसा न हो कि तेरे परमेश्वर यहोवा का कोप तुझ पर भड़के , और वह तुझ को पृथ्वी पर से नष्ट
कर डाले '' ।

यहां पर व्यवस्था देते हुए वह कहता है कि यहोवा का भय मानना। उसी की सेवा करना । उसी के पीछे चलना । यदि तू ऐसा नहीं करेगा
तो इस बात को स्मरण कर कि परमेश्वर यहोवा सर्व-सामर्र्थी है । वह जलन रखने वाला परमेश्वर है । ऐसा न हो कि उसका कोप तुझ पर
भड़के और वह तुझको नष्ट कर डाले । इस पृथ्वी पर से तेरा विनाश कर डाले । यदि तू चाहता है कि तेरा विनाश न हो तो परमेश्वर का
भय मानना । क्योंकि वह जलन रखने वाला परमेश्वर है । कितनी बार हम यह भूल जाते हैं कि हमारा परमेश्वर जलन रखने वाला
परमेश्वर है । उसने हमको बनाया है। वह चाहता है कि हम उसके भय में चलें । हम उसकी शिक्षाओं में बने रहें । हम उसके बताए हुए मार्गों
पर चलें । हम उसके प्रकाश में चलें । जब हम ऐसा नहीं करते और संसार से समझौता कर ले ते हैं, हम शैतान के शिकं जे में आ जाते हैं,
उसका माध्यम बन जाते हैं, तब हमें स्मरण रखना है कि परमेश्वर जलन रखने वाला परमेश्वर है ।

व्यवस्थाविवरण 10:12 में लिखा है - ``और अब, हे इस्राएल, तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ से इसके सिवाय और क्या चाहता है, कि तू अपने
परमेश्वर यहोवा का भय माने, और उसके सारे मार्गों पर चले , उस से प्रेम रखे, और अपने पूरे मन और अपने सारे प्राण से उसकी सेवा
करे'' । इस वचन का जो सार है, वह यह कि परमेश्वर यहोवा हम से मात्र इतना ही तो चाहता है कि हम उसका भय मानें, उसके मार्गों पर
चलें , उससे प्रेम करें और सारे मन और सारे प्राण से उसकी सेवा करें।

व्यवस्थाविवरण 31:9-13 - ``फिर मूसा ने यही व्यवस्था लिखकर ले वीय याजकों को, जो यहोवा की वाचा के सन्दूक उठानेवाले थे, और
इस्राएल के सब वृद्ध लोगों को सौंप दी । तब मूसा ने उनको आज्ञा दी, कि सात सात वर्ष के बीतने पर, अर्थात् उगाही न होने के वर्ष के
झोपड़ीवाले पर्ब्ब में, जब सब इस्राएली तेरे परमेश्वर यहोवा के उस स्थान पर जिसे वह चुन ले गा आकर इकट्ठे हों, तब यह व्यवस्था सब
इस्राएलियों को पढ़कर सुनाना। क्या पुरुष, क्या स्त्री, क्या बालक, क्या तुम्हारे फाटकों के भीतर के परदेसी, सब लोगों को इकट्ठा
करना कि वे सुनकर सीखें, और तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का भय मानकर, इस व्यवस्था के सारे वचनों के पालन करने में चौकसी करें,
और उनके लड़के बाले जिन्हों ने ये बातें नहीं सुनीं वे भी सुनकर सीखें, कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का भय उस समय तक मानते रहें,
जब तक तुम उस देश में जीवित रहो जिसके अधिकारी होने को तुम यरदन पार जा रहे हो'' । आज जब कहीं बड़ी आत्मिक सभाएं होती हैं
तो लगता है कि हम झोपड़ियों का पर्व मना रहे हैं । यह पर्व मनाने के लिए बड़ी दूर-दूर से लोग एकत्रित होते हैं । वचन में भी ऐसा ही
लिखा हुआ है कि क्या पुरुष, क्या स्त्री, क्या बालक, क्या तुम्हारे फाटकों के भीतर के परदेशी; सब लोगों को इकट्ठा करना । ऐसा करने
का उद्देश्य यह होगा कि वे सुन कर सीखें और तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का भय मानकर उसके वचनों का पालन करें।

यह प्रमुख बात है कि हम परमेश्वर का भय मानना सीखें और उसके वचनों का पालन करें । जो छोटे-छोटे बच्चे हैं उनके लिये भी लिखा
हुआ है कि वे भी सुनकर सीखें । तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का भय वे उस समय तक मानते रहें, जब तक तुम उस देश में जीवित रहो,
जिसके अधिकारी होने को तुम यरदन पार जा रहे हो। अपनी ज़िन्दगी के अन्तिम समय तक बच्चों को यह सिखाओ कि वे परमेश्वर
यहोवा का भय मानें । जो व्यवस्था दी गई, परमेश्वर के द्वारा जो आश्चर्य कर्म किया गया, इस्राएलियों को जो छु ड़ाया गया, मूसा को जो
दर्शन दिया गया; सब बातों का एक ही उद्देश्य है कि लोग परमेश्वर का भय मानना सीखें ।

यहोशू की पुस्तक के 3 और 4 अध्यायों में एक घटना का वर्णन है । वहां हम पाते हैं कि यहोशू की अगुवाई में याजक वाचा का सन्दूक
लिए जाते थे । वे यरदन के पास आए और नदी पार करने के लिये उसमें उतरे, उनके पैरों ने पानी को छु आ तो यरदन का पानी दो भागों
में बंट गया । तब इस्राएल के 12 गोत्रों में से एक-एक पुरुष चुने गए । उस नदी में जहां-जहां उन याजकों ने पैर रखा था और नदी
विभाजित हो गई थी; वहां से एक-एक गोत्र के एक-एक याजक ने उन पत्थरों को उठा लिया । इस प्रकार से बारह पत्थर उठाकर
गिलगाल नामक स्थान में खड़े कर दिए । उनके ऐसा करने का जो उद्देश्य था वह अगले सन्दर्भ में पाया जाता है ।

``इसलिये कि पृथ्वी के सब देशों के लोग जान लें कि यहोवा का हाथ बलवन्त है; और तुम सर्वदा अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानते

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रहो'' । (यहोशू 4:24)

उसी सन्दर्भ में लिखा हुआ है कि ये जो गिलगाल के बारह पत्थर हैं, ये परमेश्वर की गवाही के पत्थर हैं । ये बारह गोत्रों का ही प्रतिनिधित्व
नहीं करते, ये मात्र बारह गोत्रों के चिन्ह नहीं हैं, परन्तु ये जो पत्थर हैं, वे गवाही हैं । वे इस बात के पत्थर हैं कि तुम्हें स्मरण रहे, कि तुम्हें
अपने बच्चों को, अपने पीछे आने वाली पीढ़ी को सिखाना है कि परमेश्वर यहोवा कै सा बलवन्त है । उसके आश्चर्यकर्म से यरदन का पानी
दो भागों में बंट गया । उसके आश्चर्यकर्म से लाल समुद्र दो भागों में बंट गया। बच्चे सीख सकें कि वे परमेश्वर यहोवा का भय मानें ।
गिलगाल के बारह पत्थर, जो गवाही के पत्थर हैं, उनका उद्देश्य यह स्मरण दिलाना है कि अपने बच्चों को सिखाओ कि परमेश्वर यहोवा
कै सा पराक्रमी परमेश्वर है ।

राजा सुलै मान ने बहुत बड़े-बड़े कार्य किए । वह बहुत बड़े ओहदे पर था । उसके पास इतना धन था, जितना कि शायद और किसी के
पास न हो । उसके पास बुद्धिमत्ता थी । परन्तु जब राजा सुलै मान अपने जीवन की अन्तिम अवस्था में आता है और पीछे मुड़कर अपने
जीवन का विश्ले षण करता है तो कहता है कि सारा पैसा जो है, वह व्यर्थ है। सारी बुद्धि जो है, वह व्यर्थ है । भोग-विलास की सारी वस्तुएं
जो हैं, वे व्यर्थ हैं। जो सारे कार्य हैं, वे सब कु छ व्यर्थ हैं और जो अन्त की बात है, जो निष्कर्ष की बात है, जो अनुभव की बात है; वह यह कि
परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर । क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्तव्य यही है । सुलै मान राजा के जीवन का जो
निचोड़ था, उसकी बुद्धिमत्ता की जो चर्मोत्कृ ष्ट सीमा थी उसके आधार पर, अपने अनुभव से उसने जो कु छ पाया था वह यह था कि सब
कु छ व्यर्थ है । यह ऐसा है जैसे हवा को पकड़ना । जहां प्रयास तो है परन्तु हाथ में कु छ आता नहीं । सारे जीवन का जो निष्कर्ष है वह यही
है कि यहोवा का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्तव्य यही है ।

नये नियम में लू का रचित सुसमाचार के 11 वें और 12 वें अध्याय में प्रभु यीशु मसीह शास्त्रियों, फरीसियों, व्यवस्थापकों और समाज के
अगुवों के विषय में कहता है । वह उनके भ्रष्ट जीवन को उजागर करता है । वह उनके छिपे हुए पापों का खुलासा करता है और सारे
समाज के सामने इन बातों का वर्णन करता है । वह कहता है - हे कपटी शास्त्रियों, फरीसियों तुम पर हाय !

समाज के जो बड़े ताकतवर लोग थे, जो बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ थे, जो बड़े-बड़े पदों पर थे, वे प्रभु यीशु मसीह को घात करना चाहते थे । वे
इस बात की ताक में थे कि कब उसको घात कर दें, कब उसको मार डालें । लिखा हुआ है कि जो चेले थे वे घबरा गए, वे डर गए, भयभीत
हो गए । तब प्रभु यीशु मसीह अपने चेलों से कहता है कि तुम जो मेरे मित्र हो, मैं तुमसे कहता हूं कि इनसे क्या डरना जो शरीर को हानि
पहुंचा सकते हैं । अगर डरना है तो मैं बताता हूं कि किससे डरो । डरो के वल परमेश्वर से जिसको नरक में डालने का अधिकार है। इन
व्यक्तियों से डरने की ज़रूरत नहीं है । इन अधिकारियों से डरने की ज़रूरत नहीं है । इन बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों से डरने की ज़रूरत नहीं है ।
जाकर उस लोमड़ी से कह दो कि मुझे आज, कल और परसों और सर्वदा चलते जाना है। मुझे किसी का भय नहीं है । इनका भय नहीं है ।
भय करना है तो मैं बताता हूं कि किसका भय मानो । अपने चेलों से प्रभु यीशु मसीह कहता है कि तुम जो मेरे मित्र हो, तुम जो मेरे
अन्तरंग हो, मेरे निकटतम हो; मैं तुमसे कहता हूं, डरो तो उससे, जिसे नरक में डालने का अधिकार है ।

पौलु स प्रेरित ने जब प्रभु यीशु को स्वीकार कर लिया तो उसके जीवन में किसी का भय नहीं रहा । उसके जीवन में बहुत सी समस्याएं
आईं । लोगों ने उसका उपहास किया । लोगों ने उसको मार डालने की योजना बनाई । वह बहुत से ख़तरों से गुज़रा था । परन्तु वह 2
कु रिन्थियों 5:1 में लिखता है - ``जब हमारा पृथ्वी पर का डेरा सरीखा घर गिराया जाएगा'' । फिर 2 कु रिन्थियों 5:11 में लिखता है- ``सो
प्रभु का भय मान कर हम लोगों को समझाते हैं'' । अर्थात् हमारे हृदयों में मनुष्यों के प्रति भय नहीं है वरन् हम प्रभु का भय मानकर
लोगों को समझाते हैं ।

प्रकाशित वाक्य 14:6-7 में लिखा है - ``फिर मैं ने एक और स्वर्गदूत को आकाश के बीच में उड़ते देखा, जिस के पास पृथ्वी पर के
रहनेवालों की हर एक जाति, और कु ल, और भाषा, और लोगों को सुनाने के लिये सुसमाचार था। और उस ने बड़े शब्द से कहा; परमेश्वर
से डरो; और उस की महिमा करो; क्योंकि उसके न्याय का समय आ पहुंचा है, और उसका भजन करो, जिस ने स्वर्ग और पृथ्वी और
समुद्र और जल के स्रोत बनाए''।

वचन कहता है कि तुम परमेश्वर का भय मानो, परमेश्वर से डरो, उसकी महिमा करो क्योंकि उसके न्याय का समय आ पहुंचा है । हमारे
जीवनों में न्याय का समय आ पहुंचा है । अब वह दरवाज़े पर खड़ा खटखटा रहा है । वह बहुत निकट है । किसी भी समय उसका आगमन

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हो सकता है । किसी भी समय हमारे जीवन का समापन हो सकता है । यूहन्ना ने दर्शन में स्वर्गदूत को देखा और कहा कि उसके पास
सुसमाचार था । क्या सुसमाचार था उस स्वर्गदूत के पास ? यही कि परमेश्वर से डरो, उसकी महिमा करो क्योंकि उसके न्याय का समय
आ पहुंचा है । हमारी ज़िन्दगियों के लिए आज परमेश्वर का यही सन्देश है। वचन कहता है - उसका भजन करो, जिसने स्वर्ग, पृथ्वी, समुद्र
और जल के सोते बनाए हैं । जिस समय व्यक्ति के हृदय में परमेश्वर का भय समाप्त हो जाता है, उसी समय व्यक्ति का पतन भी आरम्भ
हो जाता है । वह अपनी आत्मा को भी खो देता है । बाइबिल में उत्पत्ति से ले कर प्रकाशित वाक्य तक ऐसे सैकड़ों उदाहरण पाए जाते हैं।

जब हम परमेश्वर का भय मानते हैं तो उसका क्या परिणाम होता है; इस सम्बन्ध में तीन बातें सामने आती हैं ।

1. परमेश्वर का भय मानने से वह हमें सांसारिक रूप से आशीषित करता है:- हम सब चाहते हैं कि परमेश्वर हमें सांसारिक रूप से
आशीषित करे । भजन संहिता ३४:९ में लिखा है - ``हे यहोवा के पवित्र लोगो, उसका भय मानो, क्योंकि उसके डरवैयों को किसी बात की
घटी नहीं होती'' । यहां पर इस बात की प्रतिज्ञा है कि जो परमेश्वर के भय में चलते हैं, उनको किसी भली वस्तु की घटी नहीं होती ।

भजन संहिता 34:7 में लिखा है - ``यहोवा के डरवैयों के चारों ओर उसका दूत छावनी किए हुए उनको बचाता है'' ।

स्वर्गदूतों के विषय में बहुत सी पुस्तकें लिखी गइं र् हैं । डॉ. बिली ग्राहम ने भी स्वर्गदूतों के विषय में एक पुस्तक लिखी जिसका नाम
``एं जिल्स'' है । इसमें उन्होंने लिखा है कि परमेश्वर आज के संसार में अपना काम, अपने वचन का प्रचार स्वर्गदूतों के द्वारा नहीं करता ।
वह अपने वचन का प्रचार मनुष्यों से करवाता है । जो मनुष्य उसके वचन का प्रचार करते हैं; स्वर्गदूत उनकी सेवा करते हैं, स्वर्गदूत
उनकी चौकसी करते हैं । स्वर्गदूत उनकी रक्षा करते हैं । यहां पर यह एक ऐसी सांसारिक आशीष है जो हमको दिखाई नहीं देती अर्थात्
परमेश्वर के दूत हमारी रक्षा करते हैं ।

नीतिवचन 10:27 में लिखा है - ``यहोवा के भय मानने से आयु बढ़ती है''।

नीतिवचन 14:27 में लिखा है - ``यहोवा का भय मानना, जीवन का सोता है, और उसके द्वारा लोग मृत्यु के फन्दों से बच जाते हैं''।

नीतिवचन 19:23 में लिखा है - ``यहोवा का भय मानने से जीवन बढ़ता है''।

नीतिवचन 22:4 में लिखा है - ``नम्रता और यहोवा के भय मानने का फल धन, महिमा और जीवन होता है'' ।

यह सन्दर्भ हमें बताता है कि यहोवा का भय मानने और नम्रता का क्या प्रतिफल मिलता है । वह हमें धन, महिमा और जीवन देता है ।
जब हम अपने जीवनों से परमेश्वर को महिमा देने लगेंगे तो परमेश्वर भी जितनी महिमा हमें मिलनी चाहिए, देगा । वह जानता है कि
हमारी क्या आवश्यकता है । धन, महिमा और जीवन हमें कहां से प्राप्त होते हैं ? इनका मूल स्त्रोत क्या है ? हम सब को धन चाहिए। हम
सब महिमा चाहते हैं । हम सब को जीवन चाहिए । परन्तु जब परमेश्वर का भय नहीं है तो ये कहां से आएं गे ? जब बीज ही नकली है तो
फल कहां से आएगा ?

यदि परमेश्वर का भय हृदय में हो तो यह परमेश्वर के वचन की प्रतिज्ञा है कि धन, महिमा और जीवन उन्हें प्राप्त होगा जो परमेश्वर का
भय मानेंगे । उसका वचन बार-बार इस बात को दुहराता है । जब हम परमेश्वर का भय मानते हैं तो वह हमें सांसारिक रूप से आशीषित
करता है ।

2. परमेश्वर का भय मानने से वह हमें आत्मिक रूप से आशीषित करता है :- भजन संहिता 147:11 में लिखा है - ``यहोवा अपने डरवैयों ही
से प्रसन्न होता है'' । हम यदि सोचें कि अपने अच्छे कामों के द्वारा परमेश्वर को प्रसन्न कर लें गे। अच्छे कार्यक्रम करेंगे, बड़ी मेहनत
करेंगे, चर्च की सफाई करेंगे तो परमेश्वर प्रसन्न हो जाएगा । ये सब चीज़ें अच्छी तो हैं परन्तु यदि परमेश्वर का भय हमारे हृदय में नहीं है
तो हम परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते । हम उसकी सेवा कर रहे हैं परन्तु हमारी सेवा का कोई अर्थ नहीं । हम उसके लिए लिख रहे
हैं परन्तु हमारे लिखने का कोई अर्थ नहीं । हम उसके लिए गा रहे हैं परन्तु हमारे गीत निरर्थक हैं यदि वे गीत हमारे हृदय में प्रभु यहोवा
के भय के प्रतिस्वरूप नहीं आ रहे हैं । यदि परमेश्वर को प्रसन्न करना है तो उसकी पहली सीढ़ी यही है कि हम परमेश्वर का भय मानें ।

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भजन संहिता 145:19 में लिखा है ``वह अपने डरवैयों की इच्छा पूरी करता है, और उनकी दोहाई सुन कर उनका उद्धार करता है'' । यदि
हम परमेश्वर का भय मानते हैं तो वह हमारी उचित इच्छा पूरी करता है, प्रार्थना सुनता है । दोहाई सुनता है और उद्धार करता है। हम कई
सन्दर्भ देख सकते हैं कि किस प्रकार परमेश्वर अपना भय मानने वालों को न सिर्फ्र सांसारिक रूप से आशीषित करता है बल्कि
आत्मिक रूप से भी आशीषित करता है ।

3. परमेश्वर का भय मानने से वह हमको बुद्धिमान बनाता है :- भजन संहिता 111:10 में लिखा है - ``बुद्धि का मूल यहोवा का भय है''।

यदि बुद्धिमान होना है तो उसकी बुनियाद है, परमेश्वर का भय मानना ।

नीतिवचन 1:7 में लिखा है - ``यहोवा का भय मानना बुद्धि का मूल है'' ।

नीतिवचन 9:10 में लिखा है - ``यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है''।

बुद्धिमान कौन है ? क्या वह; जिसके पास बड़ी-बड़ी डिग्रियां हों? जो बहुत सूझ-बूझ से चलने वाला हो ? जिसको नोबेल पुरस्कार मिला
हो ? कोई वैज्ञानिक हो ? कोई डॉक्टर या कोई वकील हो ? कोई ले खक हो जिसने बड़ी पुस्तक लिखी? जी नहीं ! वरन् बुद्धिमान वह है
जो परमेश्वर यहोवा का भय मानता है । क्योंकि बुद्धिमत्ता का प्रारम्भ यहीं से होता है । जब हम परमेश्वर का भय मानते हैं तो बाकी सारी
चीज़ें अपने आप व्यवस्थित रूप में आ जाती हैं । उदाहरण के लिए यदि हम दूरबीन लें और उससे नदी के पार किसी चीज़ को देखना चाहें
तो जब तक वह चीज़ फोकस नहीं होगी, हमें नहीं दिखाई देगी । सब कु छ धुंधलानज़र आएगा । इसी प्रकार जब हम परमेश्वर का भय
मानते हैं उसकी ओर अपना फोकस करते हैं तो वहीं से हमारी बुद्धि का प्रारम्भ होता है ।

4. यहोवा का भय हमें निर्भय बनाता है :- बड़ी अजीब सी बात लगती है कि यहोवा का भय हमें निर्भय बनाता है । जबकि भय से तो हम
और भयभीत होंगे, कायर होंगे, डरपोक होंगे । परन्तु यह तो यहोवा के भय की बात है । यह कु छ फ्रर्क बात है । क्योंकि यहोवा का भय
हमें निर्भय बनाता है, साहसी बनाता है और निडर बनाता है ।

प्रकाशित वाक्य 21:8 में लिखा है - ``पर डरपोकों, और अविश्वासियों, और घिनौनों, और हत्यारों और व्यभिचारियों, और टोन्हों, और
मूर्ति पूजकों, और सब झूठों का भाग उस झील में मिले गा, जो आग और गन्धक से जलती रहती है : यह दूसरी मृत्यु है'' । उस झील में जहां
आग और गन्धक जलती है वहां कौन लोग होंगे? वहां डरपोकलोग होंगे । डरपोक कौन हैं ? वे जो मनुष्यों से डरते हैं । वे नहीं जो यहोवा
से डरते हैं ।

न्यायियों के 7 वें अध्याय में उस घटना का वर्णन है जब इस्राएलियों और मिद्यानियों में लड़ाई हो रही थी और गिदोन उनकी अगुवाई कर
रहा था । परमेश्वर ने गिदोन से कहा - जाकर लोगों में यह प्रचार करके सुना दे कि जो कोई डर के मारे थरथराता हो वह गिलाद पहाड़ से
लौटकर चला जाए। जो लोगों से डरता हो, डर के मारे थरथराता हो, जो विरोधियों से डरता हो, जो संसार की शक्तियों से डरता हो; वह
लौट जाए । वह यहोवा के योग्य नहीं है। तब बाईस हज़ार लोग लौट गए और के वल दस हज़ार रह गए ।

1 शमूएल 17:24 में गोलियत का वर्णन है । इस्राएली गोलियत से डरते थे । मनुष्यों से डरना परमेश्वर की दृष्टि में ग़लत बात है ।

मत्ती 26:56 में लिखा है - ``तब सब चेले उसे छोड़कर भाग गए''....... क्योंकि उन्हें मनुष्यों का डर था, उन्हें अस्त्रों-शस्त्रों का भय था ।

भजन संहिता 27:1 में लिखा है - ``यहोवा परमेश्वर मेरी ज्योति और मेरा उद्धार है; मैं किससे डरूं ? यहोवा मेरे जीवन का दृढ़ गढ़ ठहरा है,
मैं किस का भय खाऊं ''। चाहे पहाड़ भी मेरे सामने आकर गिर पड़े , और सारी सेनाएं भी मेरे सामने आकर खड़ी हो जाएं तौभी मैं किसी से
न डरूं गा, तौभी मैं आगे बढ़ता रहूंगा ।

भजन संहिता 46:1-3 में लिखा है - ``परमेश्वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलने वाला सहायक। इस कारण

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हम को कोई भय नहीं चाहे पृथ्वी उलट जाए, और पहाड़ समुद्र के बीच में डाल दिए जाएं ; चाहे समुद्र गरजे और फे न उठाए, और पहाड़
उसकी बाढ़ से कांप उठे '' । हमें किसी का भय नहीं क्योंकि परमेश्वर यहोवा हमारा शरण स्थान और हमारा बल है । हमारी जो शक्ति है,
वह परमेश्वर यहोवा है । हमारी जो सामर्थ्य है वह परमेश्वर है । संकट में वह अति सहजता से मिलता है । इसलिए चाहे आंधी आए, चाहे
तूफान आए, चाहे ज्वालामुखी फटे, चाहे पर्वत उलट जाए, चाहे पहाड़ समुद्र में डाल दिया जाए, चाहे समुद्र गरजे और फे न उठाए और पहाड़
उसकी बाढ़ से कांप जाए । परन्तु हमारे हृदय में कोई डर नहीं क्योंकि परमेश्वर यहोवा हमारा दृढ़ गढ़ है।

नीतिवचन 29:25 में लिखा है - ``मनुष्य का भय खाना फन्दा हो जाता है, परन्तु जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह ऊं चे स्थान पर चढ़ाया
जाता है'' ।

परमेश्वर नहीं चाहता कि हम मनुष्यों से डरें । परमेश्वर नहीं चाहता कि हम सांसारिक शक्तियों से डरें । वह चाहता है कि हम उसका भय
मानें । मनुष्य का भय खाना फन्दा हो जाता है । उसी में वह आप फं स जाता है । परन्तु जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह ऊं चे स्थान पर
चढ़ाया जाता है । परमेश्वर हमें कायर नहीं बनाना चाहता। परमेश्वर चाहता है कि हम ऐसे लोग हों, जो डरपोक न हों, जो थरथराते और
कांपते रहने वाले न हों, जिनके घुटनों में बल हो, जिनकी बाज़ुओं में ताकत हो, जिनके हृदय में ताकत हो, जिनके मन में दर्शन हो । जो
परमेश्वर यहोवा के लिए आगे बढ़ने संसार और शैतान की ताकतों का मुकाबला करने को निडरता से उसके पीछे-पीछे, उसके प्रकाशन
में चलें ।

निष्कर्ष :- क्या हमारे जीवनों में परमेश्वर का भय है ? जब परमेश्वर का भय हमारे जीवन में होगा तो वह हमारे जीवन को संचालित
करेगा । वह हमको सही दिशा में बढ़ाएगा। वह हमको सही मार्ग पर ले जाएगा । जो हमारे लाभ की वस्तु होंगी, उन्हें वह हमारे लिए
उपलब्ध कराएगा । वह सब प्रकार की सांसारिक और आत्मिक आशीषों से हमें तृप्त करेगा। वह हमें बुद्धिमान बनाएगा और इस संसार
में निर्भय होकर जीना सिखाएगा । निडरता का जीवन, साहस का जीवन हमको वह देगा ।

बाइबिल में मत डरो शब्द 365 बार आया है । एक वर्ष में 365 दिन होते हैं और ऐसा लगता है मानो परमेश्वर अपने वचन में 365 बार
कहता है, मत डरो। जैसे हर दिन, हर नई सुबह परमेश्वर का सन्देश है, मत डरो...... क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूं ।

इस संसार से हमारा भय तब समाप्त होगा जब हम परमेश्वर के भय को मानेंगे। विज्ञान के विकास से हमारा विकास नहीं होगा ।
टेलीविजन और सेटेलाइट और नई-नई तकनीकों के आ जाने से हमारे चरित्र का उत्थान नहीं होगा । हम आगे बढ़ेंगे, हमारे जीवन
समृद्ध होंगे, हमारे जीवन सामर्र्थी होंगे, हमारे जीवन उसकी प्रबल गवाही बनेंगे; जब हमारे हृदयों में परमेश्वर का भय होगा । काश !
परमेश्वर हम सभों को ऐसा आत्मा दे और ऐसा मन दे कि हम परमेश्वर के भय में अपने जीवन का हर एक दिन गुज़ारने वाले हो सकें
और निर्भयता से इस संसार में जी सकें । परमेश्वर आपको आशीष दे ।

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