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1/16/22, 11:56 AM Hindi Sermons | www.hindisermons.

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मसीही परिवार के
प्रमुख स्तम्भ

सन्दर्भ : कु लु स्सियों ३:१८-२१

परिचय :- किसी भी समाज या देश की इकाई परिवार होता है, किसी भी कलीसिया की इकाई भी परिवार ही होता है। इससे पहले कि
परमेश्वर कलीसिया को बनाता उसने परिवार की स्थापना की। परमेश्वर ने सबसे पहले एक परिवार को ही स्थापित किया।
परन्तु परमेश्वर द्वारा रचित इस इकाई पर शैतान का आक्रमण आज हर तरफ से हो रहा है। पाश्चात्य देशों में देखें तो तलाक की दर
निरन्तर बढ़ती ही जा रही है, वहां हुए हर 3 में से 2 विवाह शादी के कु छ ही समय पश्चात टू ट जाते हैं। भारत जैसे संस्कृ ति एवं संस्कारों की

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प्रधानता वाले देश में भी विगत पांच वर्षों में तलाक की दर 1% से बढ़कर 8% हो गई है। आज हमारे इस समाज में जो समस्याएं हैं; उनका
मूलभूत कारण पारिवारिक विघटन है। मानो आज हम जैसे अस्थायी सम्बन्धों के युग में जी रहे हैं।
न सिर्फ़ दूसरे लोगों में वरन् मसीही परिवारों में समस्याएं हैं, पति-पत्नी के सम्बन्ध अस्थायी हैं, बच्चे माता-पिता के प्रति उद्दण्डता करते
हैं।
आज सारा संसार तकनीकी के क्षेत्र में जितना आगे बढ़ रहा है, मानवीय मूल्यों में उतना ही पीछे होता जा रहा है। परिवार टू ट रहे हैं,
व्यक्ति के मूल्य बदल रहे हैं, अच्छे-बुरे की परिभाषाएं बदल रही हैं, मापदण्ड और समीकरण बदल रहे हैं।
यूरोप और अमेरिका जैसे देशों में जहां ज़्यादा स्वतंत्रता है, स्वच्छन्दता है, वहां परिवारों में समस्याएं होती हैं तो तुरन्त तलाक हो जाता है।
जिन देशों में उतनी अधिक स्वतंत्रता और स्वछन्दता नहीं है, जहां महिलाओं का दर्जा पुरुषों की अपेक्षा कु छ नीचा है वहां मानसिक
समस्याएं हैं, आत्महत्या की घटनाएं हैं, जलाकर मार देने के समाचारों से समाचार रंगे हुए हैं। परन्तु एक बात तो निश्चित है कि चाहे पूर्व
हो या पश्चिम, विकसित देश हो या अविकसित, समृद्ध राष्ट्र हों या निर्धन; ये सारी समस्याएं निरन्तर सब जगह बढ़ रही हैं।
काफी समय पूर्व छत्तीसगढ़ क्षेत्र के एक पासबान से मेरी चर्चा हो रही थी, वे अपने बच्चों के बारे में बतलाने लगे कि किस तरह वे प्रभु
की नज़दीकी में आगे बढ़े, कलीसिया के कार्यों में सक्रिय हुए। इन बातों के साथ-साथ उन्होंने जो प्रमुख बात कही वह ये कि “यदि कोई
अपने घर की देखरेख न कर सके तो खुदा के घर की क्या रखवाली करेगा।”
चार वर्ष पूर्व अपने अमेरिका प्रवास के दौरान मैं एक पासबान की पत्नी से बात कर रहा था जो पिछले 30 वर्षों से सेवकाई में हैं, वह
कहने लगीं “लोगों को पहचानना बहुत कठिन होता है। विशेषकर वे जो पास्टर्स, मिशनरीज़ इत्यादि होते हैं कि उनका जीवन कै सा है?
परन्तु इन गुज़रे हुए सालों में हमने सीखा है कि परिवार और माता-पिता की सही पहचान बच्चों के व्यवहार से होती है।”
मैं आपसे जो कहना चाहता हूं वह यह कि हमारे ऊपर अपने परिवार की बहुत गम्भीर ज़िम्मेदारी है। ऐसे समय में जब शैतानी ताकतों का
ज़ोर बढ़ रहा है, नये-नये आकर्षणों और प्रलोभनों का दौर है; शैतान ने नये-नये तरीके इस नये युग में हमारे परिवारों को तोड़ने के
लिए बना लिये हैं। ऐसे कठिन समय में हमें अपने परिवारों को परमेश्वर के वचन के अनुसार, उनकी शिक्षाओं के अनुरूप, उसकी
व्यवस्था पर आधारित बनाना है। यह इस समय की सबसे बड़ी चुनौती है, जो हमारे सामने है।
हमें स्मरण रखना है कि एक दिन परमेश्वर के सामने हमें अपने समस्त कार्यों का ले खा देना होगा। हम कितने भी बड़े पद क्यों न प्राप्त
कर लें , कितनी भी डिग्रियां, उपाधियां हमारे पास हों; देश-विदेश में हमारा गुणगान हो, बड़े-बड़े कार्य हम कर लें ; परन्तु यदि हमने अपने
परिवार को खो दिया तो हमारी ये सारी उपलब्धियां निरर्थक हो जाएं गी।
मेरे पिता के एक पत्र की पंक्ति मुझे याद आती है- “परमेश्वर हमसे यह नहीं चाहता कि हम सारे विश्व को जीत लें और अपने परिवार को
खो दें।”
आप और हम अपने बच्चों को क्या देकर जा रहे हैं? कौन सी चीज़ उन्हें विरासत में मिल रही है? मैं और मेरी पत्नी चर्चा करते रहते थे कि
हमें अपने बच्चों को क्या-क्या बनाना है। परन्तु उन सारी चर्चाओं का निष्कर्ष हमने यह पाया कि हमारी प्रमुख ज़िम्मेदारी यह है कि हम
सर्वप्रथम उन्हें अच्छे और सच्चे मसीही बनाएं ।
एक आशीषित और मज़बूत मसीही परिवार को बनाने के लिये जिन चार बातों (तत्वों) की आवश्यकता होती है, आइये परमेश्वर के
वचन के अनुसार हम उन्हें देखें :-

1. मसीही परिवार को मज़बूत बनाने के लिए अनुशासन आवश्यक है :- हमारे सामने जीवन जीने के दो तरीके हैं-
(1) परमेश्वर के निर्देशों के अनुसार - ये निर्देश हमें उसके द्वारा प्रदान पवित्र वचन के अध्ययन द्वारा ज्ञात हो सकते हैं।
(2) आत्मानुशासन या स्वयं की इच्छा अनुसार जीना - पौलु स कु रिन्थियों की कलीसिया के नाम अपनी पत्री में इसका उल्ले ख करता
है;
“क्या तुम नहीं जानते, कि दौड़ में तो दौड़ते सब ही हैं, परन्तु इनाम एक ही ले जाता है? तुम वैसे ही दौड़ो कि जीतो। और हर एक
पहलवान सब प्रकार का संयम करता है, वे तो एक मुरझाने वाले मुकु ट को पाने के लिये यह सब करते हैं, परन्तु हम तो उस मुकु ट के
लिए करते हैं, जो मुरझाने का नहीं। इसलिए मैं तो इसी रीति से दौड़ता हूं, परन्तु बेठिकाने नहीं, मैं भी इसी रीति से मुक्कों से लड़ता हूं
परन्तु उस की नाईं नहीं जो हवा पीटता हुआ लड़ता है, परन्तु मैं अपनी देह को मारता कू टता और वश में लाता हूं ऐसा न हो कि औरों को
प्रचार करके , मैं आप ही किसी रीति से निकम्मा ठहरूं ।” (1 कु रिन्थियों 9:24-27)
एक भारतीय धाविका एशियाड में दौड़ी, सबसे आगे पहुंची परन्तु वह पदक न हासिल कर सकी क्योंकि उसने अपना दौड़-पथ बदल
दिया था। वह अपने खेल में अनुशासित नहीं रह पायी थी। विश्व प्रसिद्ध मुक्के बाज़ मुहम्मद अली द्वारा मुक्के बाज़ी का हैवीवेट
चैम्पियनशिप का खिताब हासिल करने के बाद जब उससे पूछा गया कि उसकी इस सफलता का राज़ क्या है? उसका जवाब था “मैं
स्वयं को इतना संयमित कर सका कि कल शाम जब मेरे मित्र ने एक प्याला कॉफी दी तो मैं उसे मना कर सका, इसी कारण मैं जीता।”

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अभिभावकों के रूप में हमें स्वयं का आदर्श परिवार के बच्चों के सामने रखना है। यदि हम स्वयं अनुशासित नहीं हैं तो हमारा परिवार भी
कभी अनुशासित नहीं हो सकता। हमें समय पर हर एक कार्य संपन्न करना है, नियमित रूप से चर्च जाना है। एक उदाहरण आपके
सामने रखना चाहता हूं;
दो मित्र आपस में बात कर रहे थे। एक ने कहा हर रविवार मैं बड़े पेशोपेश में रहता हूं कि चर्च जाऊं अथवा नहीं, बहुत ही कठिन होता है
हर रविवार मेरे लिए यह निर्णय करना। दूसरे ने जवाब दिया कि मैं इस परेशानी से बच गया हूं कि हर रविवार यह निर्णय करूं , मैंने
सिर्फ़ एक बार निर्णय कर लिया है कि हर रविवार मुझे चर्च जाना है, और जाना है।
अत: हमें न सिर्फ़ स्वयं को अनुशासित करना है अपितु अपने बच्चों को अनुशासन में रखना है।
वचन में लिखा है; “प्रभु जिससे प्रेम करता है, उसकी ताड़ना भी करता है, और जिसे पुत्र बना ले ता है, उस को कोड़े भी लगाता है। तुम दुख
को ताड़ना समझकर सह लो। परमेश्वर तुम्हें पुत्र जानकर तुम्हारे साथ बर्ताव करता है, वह कौन सा पुत्र है, जिस की ताड़ना पिता नहीं
करता? यदि वह ताड़ना जिसके भागी सब होते हैं, तुम्हारी नहीं हुई, तो तुम पुत्र नहीं, पर व्यभिचार की सन्तान ठहरे। फिर जब कि हमारे
शारीरिक पिता भी हमारी ताड़ना किया करते थे, तो क्या आत्माओं के पिता के और भी अधीन न रहें जिससे जीवित रहें। वे तो अपनी
अपनी समझ के अनुसार थोड़े दिनों के लिये ताड़ना करते थे, पर यह तो हमारे लाभ के लिये करता है, कि हम भी उस की पवित्रता के
भागी हो जाएं । और वर्तमान में हर प्रकार की ताड़ना आनन्द की नहीं, पर शोक ही की बात दिखाई पड़ती है, तौभी जो उस को सहते सहते
पक्के हो गए हैं, पीछे उन्हें चैन के साथ धर्म का प्रतिफल मिलता है। इसलिए ढीले हाथों और निर्बल घुटनों को सीधे करो।” (इब्रानियों
12:6-12)
“लड़के की ताड़ना न छोड़ना; क्योंकि यदि तू उसको छड़ी से मारे, तो वह न मरेगा। तू उसको छड़ी से मारकर उसका प्राण अधोलोक से
बचाएगा।” (नीतिवचन 23:13,14)
परन्तु इस अनुशासन में एक बात पर सावधानी बरतना ज़रूरी है कि हमें अपने बच्चों पर अपना गुस्सा नहीं उतारना है, जबकि अक्सर
ऐसा ही हो जाता है। कु लु स्सियों 3:21 में पौलु स लिखता है; “हे बच्चे वालों, अपने बालकों को तंग न करो, न हो कि उनका साहस टू ट
जाए।”

2. मसीही परिवार को मज़बूत बनाने का दूसरा प्रमुख तत्व आत्मीयता है :- हर एक बात में एक दूसरे के प्रति प्रेम, समर्पण, आदर हो।
वचन में लिखा है;
“हे पत्नियों, जैसा प्रभु में उचित है, वैसा ही अपने अपने पति के आधीन रहो। हे पतियों, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, और उन से
कठोरता न करो। हे बालकों, सब बातों में अपने-अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करो, क्योंकि प्रभु इससे प्रसन्न होता है।”
(कु लु स्सियों 3:18-20)
“हे पत्नियों, अपने-अपने पति के ऐसे आधीन रहो, जैसे प्रभु के । क्योंकि पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है; और
आप ही देह का उद्धारकर्ता है। पर जैसे कलीसिया मसीह के आधीन है, वैसे ही पत्नियां भी हर बात में अपने-अपने पति के आधीन रहें। हे
पतियों, अपनी-अपनी पत्नी से प्रेम रखो,जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आपको उसके लिये दे दिया ।” (इफिसियों
5:22-25)
किसी ने कहा है “परिवार वह स्थान है जहां हर सदस्य एक दूसरे के लिए जीता है और सब मिलकर परमेश्वर के लिए जीते हैं।” अत: हमें
आत्मीयता बनाए रखनी है, एक दूसरे के प्रति और परमेश्वर के प्रति भी; क्योंकि हमारा एक छोटा परिवार है, जो हमारे साथ रहता है और
एक वृहद परिवार है, जो हमारी कलीसिया है।

3. मज़बूत और अच्छे मसीही परिवार के लिए तीसरा तत्व है, संवाद :- आजकल हर कोई व्यस्त है। हमारे पास बातचीत करने का समय
नहीं है। बच्चे, माता-पिता आपस में बात नहीं कर पाते। जब हम एक दूसरे से अपने विचार, भावनाएं , दु:ख, इच्छाएं नहीं बांट पाते, तो
परिवार में एक तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है और ये संवादहीनता ही हमारे आपसी सम्बन्धों को टू टने के कगार पर पहुंचा देती है।
परिवार को विघटन की स्थिति में ले आती है। अत: यह बहुत ज़रूरी है कि हम आपस में बातचीत करें, एक दूसरे के विचारों को आपस में
बांटें।
“यदि तेरा भाई तेरा अपराध करे, तो जा और अके ले में बातचीत करके उसे समझा। यदि वह तेरी सुने तो तू ने अपने भाई को पा लिया।
और यदि वह न सुने, तो और एक दो जन को अपने साथ ले जा कि हर एक बात दो या तीन गवाहों के मुंह से ठहराई जाए। यदि वह उन
की भी न माने, तो कलीसिया से कह दे। परन्तु यदि वह कलीसिया की भी न माने, तो तू उसे अन्य जाति और महसूल ले ने वाले के
समान जान।” (मत्ती 18:15-17)
इस प्रकार हम पाते हैं कि संवादहीनता की स्थिति में उत्पन्न हुए पारिवारिक कलह को चर्च काउन्सिल अथवा अगुवों के समक्ष रखकर

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उसके निदान का रास्ता भी वचन हमें बताता है;


“और ये आज्ञाएं जो मैं तुझको सुनाता हूं वे तेरे मन में बनी रहें; और तू उन्हें अपने बाल बच्चों को समझाकर सिखाया करना, और घर में
बैठे , मार्ग पर चलते-ले टते-उठते इनकी चर्चा किया करना।” (व्यवस्था विवरण 6:6-7)
हमें संवाद (बातचीत) न सिर्फ़ एक दूसरे के साथ करना है बल्कि प्रार्थना के माध्यम से परमेश्वर से भी संवाद करना है। प्रार्थना के द्वारा
हम अपनी कठिनाइयों, कमियों, ज़रूरतों को पूरा करने के लिए निवेदन और अपनी उपलब्धियों के लिए परमेश्वर को धन्यवाद कर
सकते हैं। यदि हम ऐसा करेंगे तो यह एक पारिवारिक परम्परा बन जाएगी। बच्चे अपने माता-पिता का अनुकरण करते हैं क्योंकि वे
उन्हें देख सकते हैं। वे परमेश्वर को नहीं देख सकते, परन्तु परमेश्वर का स्वरूप वे अपने अभिभावकों में पा सकते हैं।
तो इस प्रकार हम पाते हैं कि मसीही परिवार को मज़बूत बनाने के लिए जिन प्रमुख तत्वों या स्तम्भों की ज़रूरत होती है, वे ये हैं;
- परिवार में अनुशासन हो
- परिवार के सदस्यों में आत्मीयता हो
- परिवार के सदस्यों के बीच संवाद की स्थिति बनी रहे।

4. एक दृढ़ मसीही परिवार का चौथा और प्रमुख तत्व है, साहस :- पवित्र वचन में साहस का सबसे अच्छा उदाहरण यूसुफ के रूप में दिया
जा सकता है। उसके भाइयों ने उसे धोखा दिया, स्वामी की पत्नी ने अपनी कामेच्छा पूरी न होने पर उस पर झूठा आरोप लगाया परन्तु
सब विपरीत परिस्थितियों का साहस से सामना करते हुए अन्तत: यूसुफ मिस्र का प्रधानमंत्री बना और परमेश्वर की एक महानतम
योजना का सबसे प्रमुख पात्र बना। हम में भी साहस होना चाहिए-
- निरन्तर आगे बढ़ने का।
- निरन्तर शैतान से जूझने का (मूसा के समान)
- निरन्तर कठिनाइयों/त्रासदियों का मुकाबला करने का। जीवन में कठिनाइयां, परीक्षाएं , त्रासदियां, धोखा, भ्रष्टाचार, छल कपट, मृत्यु,
अनिश्चितता है। विपत्ति आना निश्चित है परन्तु इनसे जूझने के लिए हम में साहस का होना बहुत ज़रूरी है। नीतिवचन का ले खक लिखता
है;
“यदि तू विपत्ति के समय साहस छोड़ दे, तो तेरी शक्ति बहुत कम है।” (नीतिवचन 24:10)
हमें साहस मिलता है, परमेश्वर पर दृढ़ विश्वास करने से। हमें परमेश्वर की ओर निरन्तर दृष्टि लगाये रखना है और वह हमें इस सांसारिक
जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने के लिए साहस देगा। यदि हमें अपने परिवारिक जीवन को सुदृढ़, संगठित बनाये
रखना है तो हम में साहस का होना नितान्त आवश्यक है।
निष्कर्ष :- चुनौती बड़ी है, संसार की परिस्थितियों से समझौता कर ले ना बहुत आसान है; परन्तु यदि हमें अपने परिवार को एक
आशीषित और आनन्दित मसीही परिवार के रूप में ढालना है तो इन चारों स्तम्भों का अपने परिवार में संचार करना होगा।
- हम अपने परिवार में अनुशासन बनाए रखें,
- परिवार के सभी सदस्यों में आत्मीयता का भाव हो।
- परिवार में निरन्तर संवाद की स्थिति बनी रहे। और;
- हम परमेश्वर पर भरोसा रखते हुए, कठिनाइयों का सामना करने के लिए अपने परिवार को साहसी बनावें।

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