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प्रयाग प्रशस्ति
प्रयाग प्रशस्ति
प्रयाग प्रशस्ति
तथान :- गंगा-यमनु ा-सितविी के संगम पि स्तिि सम्राट अकबि के दगु ग में, प्रयागिाज। मौस्लक
रूप से यह कौशाम्बी में िा।
भाषा :- सतं कृ ि
स्िस्ि :- ब्राह्मी
स्िषय :- समुद्रगुप्त का प्रशस्ति गायन, स्जसमें उसके स्दस्ववजय, व्यस्ित्व, िाजनीस्िक अवतिा
आस्द की जानकािी स्मलिी है।
इस अस्भलेख को सवगप्रिम १८३४ ई० में बंगाल एस्शयास्टक सोसाइटी के जनगल में कप्तान ए०
ट्रायि ने प्रकास्शि स्कया िा। उसके बाद डब्ल०ू एि० स्मल, जेम्स स्प्रसं ेप, भाउ दाजी ने समय
समय पि अपने पाठ प्रतििु स्कये। अन्ििोगत्वा जे०एफ० फ्लीट ( John Faithfull Fleet ) ने
व्यवस्तिि रूप से इसका सम्पादन स्कया जो उनके गप्तु कालीन लेख सग्रं ह ( Corpus
Inscriptionum Indicarum Vol. III ) में प्रकास्शि है।
प्रयाग प्रशस्ति के प्रािम्भ में अशोक का लेख स्मलिा है। इसमें बौद्ध संघ के स्वभेद को िोकने के
स्लये कौशाम्बी के महामात्रों को स्दया गया आदेश है। ित्पश्चाि् समुद्रगुप्त का लेख अंस्कि है।
• दस्िणािथ का यद्ध ु
• आयााििा का स्ििीय यद्ध ु
• आटस्िक राज्यों की स्िजय
सािवें श्लोक ( १३वीं-१४वीं पंस्ि ) से समुद्रगुप्त की सामरिक सफलिा की ििाग आिम्भ होिी
है। इस श्लोक का भी कुछ अशं नष्ट है। प्रसगं औि आगे के गद्ाश ं से ऐसा प्रकट होिा है स्क
समद्रु गप्तु ने अच्यिु , नागसेन, गणिस्ि औि कोि कुि के स्कसी िाजा पि पणू ग स्वजय प्राप्त
की।
समझा जािा है स्क स्जन स्दनों समुद्रगुप्त उत्तिास्िकाि के स्ववाद में व्यति िा, इन िाजाओ ं ने
स्मलकि उसके गृह कलह का लाभ उठाना िाहा अिवा उनके िाज्यािोहण को िनु ौिी दी।
अस्भलेख की १९वीं औि २०वीं पस्ं ि में समद्रु गप्तु द्वािा सवग-दस्क्षणापि-िाज को पिास्जि किने
की ििाग है।
यहााँ दस्क्षणापि के बािह िाजाओ ं औि िाज्यों का नाम स्गनाया गया औि कहा गया है स्क उन्हें
पिास्जि कि बन्दी बना स्लया औि स्फि अनग्रु हपवू गक मिु कि स्दया गया। ये नाम अस्भलेख में
क्रमश: इस प्रकाि हैं :
• कोसल का िाजा महेन्द्र
• कौिाल का मडटिाज
• स्पष्टपुि का िाजा महेन्द्रस्गरि
• कोट्टूि का िाजा तवामीदत्त
• एिडडपल्ल का िाजा दमन
• काञ्िी का िाजा स्वष्णगु ोप
• अवमि ु का िाजा नीलिाज
• वेङ्गी का िाजा हस्तिवमाग
• पालक्क का िाजा उग्रसेन
• देविाष्ट्र का िाजा कुबेि
• कुतिलपिु का िाजा िनञ्जय।
स्कन्िु कुछ स्वद्वानों की िािणा है स्क इस प्रशस्ति में समुद्रगुप्त के स्वजयों का वणगन काल-क्रम से
नहीं हुआ है। उनकी िािणा है स्क इन िाजाओ ं का उन्मूलन कि उत्ति में अपनी सत्ता तिास्पि
किने के बाद ही उसने दस्क्षण अस्भयान स्कया होगा। ऐसा न किना समद्रु गप्तु की बहुि बडी भल ू
होिी। स्कन्िु इस प्रकाि के अनुमान का कोई कािण नहीं जान पडिा। यस्द ऐसा होिा िो इसकी
ििाग अलग से किने की आवश्यकिा हरिषेण को न होिी।
आयागविग के इस स्द्विीय अस्भयान में समुद्रगुप्त ने ९ िाजाओ ं को हिाया। पिास्जि िाजाओ ं की
सूिी में िीन अच्यिु , नागसेन औि गणपस्ि िो वहीं हैं स्जनका उल्लेख पहले हो िक
ु ा है। शेष
छः — रुद्रदेव, मस्त्तल, नागदत्त, िन्द्रवमगन, नस्न्द औि बलवमगन।