प्रयाग प्रशस्ति

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प्रयाग प्रशस्ति

नाम :- समद्रु गप्तु का प्रयाग प्रशस्ति ( Prayag Prashasti of Samudragupta )

या समुद्रगुप्त का प्रयाग तिम्भलेख ( Prayag Pillar Inscription of Samudragupta या समुद्रगुप्त


का इलाहाबाद तिम्भलेख ( Allahabad Pillar Inscription of Samudragupta )

हरिषेण का अस्भलेख ( Inscription of Harishena )

तथान :- गंगा-यमनु ा-सितविी के संगम पि स्तिि सम्राट अकबि के दगु ग में, प्रयागिाज। मौस्लक
रूप से यह कौशाम्बी में िा।

भाषा :- सतं कृ ि

स्िस्ि :- ब्राह्मी

समय :- समद्रु गप्तु का शासनकाल ( ३५० – ३७५ ई० )

स्िषय :- समुद्रगुप्त का प्रशस्ति गायन, स्जसमें उसके स्दस्ववजय, व्यस्ित्व, िाजनीस्िक अवतिा
आस्द की जानकािी स्मलिी है।

िेखक :- सस्ं िस्वग्रस्हक सस्िव हरिषेण

इस अस्भलेख को सवगप्रिम १८३४ ई० में बंगाल एस्शयास्टक सोसाइटी के जनगल में कप्तान ए०
ट्रायि ने प्रकास्शि स्कया िा। उसके बाद डब्ल०ू एि० स्मल, जेम्स स्प्रसं ेप, भाउ दाजी ने समय
समय पि अपने पाठ प्रतििु स्कये। अन्ििोगत्वा जे०एफ० फ्लीट ( John Faithfull Fleet ) ने
व्यवस्तिि रूप से इसका सम्पादन स्कया जो उनके गप्तु कालीन लेख सग्रं ह ( Corpus
Inscriptionum Indicarum Vol. III ) में प्रकास्शि है।

तिम्भ िर अंस्कि अन्य अस्भिेख


भाििीय अस्भलेख के संदभों में कुछ तिान ऐसे हैं जहााँ पि एक साि कई शासकों के लेख
स्मलिे हैं; उदाहिणािग – स्गरिनाि की पहाडी पि अशोक महान, शक क्षत्रप रुद्रदामन व गुप्त
सम्राट तकंदगप्तु के अस्भलेख एक ही तिान पि स्मलिे हैं। उसी ििह यह तिम्भ भी हैं स्जसपि
एक साि कई अस्भलेख अंस्कि हैं।

प्रयाग तिम्भ पि अंस्कि लेख :

• अशोक के छः मख्ु य लेखों का एक सतं किण,


• समद्रु गप्तु का प्रयाग प्रशस्ति,
• िानी का अस्भलेख,
• कौशाम्बी के महापात्रों को सघं भेद िोकने सबं िं ी आदेश,
• जहााँगीि का एक लेख ििा
• पिविी काल का एक देवनागिी लेख भी उत्कीणग स्मलिा है।

प्रयाग प्रशस्ति के प्रािम्भ में अशोक का लेख स्मलिा है। इसमें बौद्ध संघ के स्वभेद को िोकने के
स्लये कौशाम्बी के महामात्रों को स्दया गया आदेश है। ित्पश्चाि् समुद्रगुप्त का लेख अंस्कि है।

समद्रु गप्तु का स्िजय अस्भयान


सािवें श्लोक से समद्रु गप्तु के स्वजय अस्भयान की ििाग शरू
ु होिी है जो इस ििह है-
• आयााििा का प्रथम युद्ध

• दस्िणािथ का यद्ध ु
• आयााििा का स्ििीय यद्ध ु
• आटस्िक राज्यों की स्िजय

• प्रत्यन्ि ( सीमाििी ) राज्यों की स्िजय


• स्िदेशी शस्ियााँ
• समुद्रिारीय शस्ियााँ

आयााििा का प्रथम युद्ध

सािवें श्लोक ( १३वीं-१४वीं पंस्ि ) से समुद्रगुप्त की सामरिक सफलिा की ििाग आिम्भ होिी
है। इस श्लोक का भी कुछ अशं नष्ट है। प्रसगं औि आगे के गद्ाश ं से ऐसा प्रकट होिा है स्क
समद्रु गप्तु ने अच्यिु , नागसेन, गणिस्ि औि कोि कुि के स्कसी िाजा पि पणू ग स्वजय प्राप्त
की।

समझा जािा है स्क स्जन स्दनों समुद्रगुप्त उत्तिास्िकाि के स्ववाद में व्यति िा, इन िाजाओ ं ने
स्मलकि उसके गृह कलह का लाभ उठाना िाहा अिवा उनके िाज्यािोहण को िनु ौिी दी।

• अच्युि सम्भविः नागवंशी शासक िा। वह उत्तिी-पंिाल पि शासन कििा िा।


उिि-पि ं ाल की िाजिानी अस्हच्छत्र से ‘अच्यु’ नामांस्कि वाले कुछ स्सक्के
स्मले हैं।
• नागसेन की पहिान पद्माविी के नागवंशी िाजा से की जािी है। पद्माविी की
पहिान मध्य प्रदेश के ववास्लयि जनपद में स्तिि पद्मपवैया से की जािी है।
• गणिस्िनाग को मििु ा अिवा स्वस्दशा-निे श अनमु ान स्कया जािा है।
अस्भलेख में मात्र ‘ग’ अक्षि ही उपलब्ि है। अच्युि औि नागसेन के साि
गणपस्ि नाम आगे इसी अस्भलेख में प्राप्त होिा है।
• कोिकुिज के साि पष्ु पपिु का उल्लेख है, पि अस्भलेख खस्डडि होने के
कािण अस्भप्रायः तपष्ट नहीं होिा। कुछ लोगों की िािणा है स्क इस अंश में
सफल सैस्नक अस्भयान के पश्चाि् समुद्रगुप्त के िाजिानी पाटस्लपुत्र ( पुष्पपुि ) में
प्रवेश किने का स्नणगय िा। कुछ स्वद्वानों की िािणा है स्क उन स्दनों कोि वंशी
लोग पाटस्लपुत्र में िाज्य कििे िे, उन्हें पिाति कि समद्रु गुप्त ने पाटस्लपुत्र पि
अस्िकाि स्कया। कुछ अन्य स्वद्वान कोिों का िाज्य गगं ा के ऊपिवाले भूभाग
अिवा कोसल में माने हैं। ‘कोि’ शब्द अंस्कि िााँबे के स्सक्के हरियाणा औि
स्दल्ली प्रदेश से प्राप्त होिे हैं। हो सकिा है यहााँ अस्भप्राय इस स्सक्कों के प्रिलन
किने वाले िाजवश ं से हो जोस्क अस्िक सम्भावना लगिी है।
• इन िाजाओ ं पि स्वजय को स्वद्वानों ने आयागविग के प्रिम अस्भयान की संज्ञा दी
है।
दस्िणािथ का युद्ध

अस्भलेख की १९वीं औि २०वीं पस्ं ि में समद्रु गप्तु द्वािा सवग-दस्क्षणापि-िाज को पिास्जि किने
की ििाग है।

यहााँ दस्क्षणापि के बािह िाजाओ ं औि िाज्यों का नाम स्गनाया गया औि कहा गया है स्क उन्हें
पिास्जि कि बन्दी बना स्लया औि स्फि अनग्रु हपवू गक मिु कि स्दया गया। ये नाम अस्भलेख में
क्रमश: इस प्रकाि हैं :
• कोसल का िाजा महेन्द्र

• महाकान्िाि का िाजा व्याघ्रिाज

• कौिाल का मडटिाज
• स्पष्टपुि का िाजा महेन्द्रस्गरि
• कोट्टूि का िाजा तवामीदत्त
• एिडडपल्ल का िाजा दमन
• काञ्िी का िाजा स्वष्णगु ोप
• अवमि ु का िाजा नीलिाज
• वेङ्गी का िाजा हस्तिवमाग
• पालक्क का िाजा उग्रसेन
• देविाष्ट्र का िाजा कुबेि
• कुतिलपिु का िाजा िनञ्जय।

आयााििा का स्ििीय यद्ध



दस्क्षण स्वजय के उल्लेख के बाद अस्भलेख में आयागविग के नौ िाजाओ ं के उन्मूलन का उल्लेख
२१वीं पंस्ि में स्मलिा है। इससे सामान्य िािणा यह उभििी है स्क जब समुद्रगुप्त दस्क्षण के
अस्भयान से लौटा िो उसने अपने को उत्ति की ओि नौ शत्रओ ु ं से स्घिा पाया औि उसने उनका
उच्छे दन स्कया। इस प्रकाि उत्ति में आयागविग में समद्रु गप्तु ने दो सामरिक अस्भयान स्कये।

स्कन्िु कुछ स्वद्वानों की िािणा है स्क इस प्रशस्ति में समुद्रगुप्त के स्वजयों का वणगन काल-क्रम से
नहीं हुआ है। उनकी िािणा है स्क इन िाजाओ ं का उन्मूलन कि उत्ति में अपनी सत्ता तिास्पि
किने के बाद ही उसने दस्क्षण अस्भयान स्कया होगा। ऐसा न किना समद्रु गप्तु की बहुि बडी भल ू
होिी। स्कन्िु इस प्रकाि के अनुमान का कोई कािण नहीं जान पडिा। यस्द ऐसा होिा िो इसकी
ििाग अलग से किने की आवश्यकिा हरिषेण को न होिी।
आयागविग के इस स्द्विीय अस्भयान में समुद्रगुप्त ने ९ िाजाओ ं को हिाया। पिास्जि िाजाओ ं की
सूिी में िीन अच्यिु , नागसेन औि गणपस्ि िो वहीं हैं स्जनका उल्लेख पहले हो िक
ु ा है। शेष
छः — रुद्रदेव, मस्त्तल, नागदत्त, िन्द्रवमगन, नस्न्द औि बलवमगन।

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