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वे दका, अ द त और
वं दता के लए

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चेतावनी

यह उप यास, क पना और क स पर आधा रत है, जसे महज मनोरंजन के


कोण से लखा गया है। य प वषय के साथ व वध धम , इ तहास, सं ान,
आ ा और मथक का संदभ दया गया है, ले कन इसका उ े य सफ कहानी
को अ धक समृ और दलच बनाना था। लेखक सवधम म व ास रखता है,
और सभी को बराबर मान और स मान दे ता है। कहानी म इ तेमाल कए गए
कसी ऐ तहा सक या पौरा णक त य क पु का वो दावा नह करता।

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लेखक क ओर से

दलाई लामा ने एक बार कहा था, ‘उदा ेम और महान उपल य म बड़ा


जो खम भी शा मल रहता है।’ उपल य के बारे म तो नह कह सकता, ले कन
उदा यार के लए कही गई उनक बात अब मुझे समझ आने लगी है। और वो
भी हड़ पा के हजार पाठक के यार क वजह से।

मने अपनी रचना मक चुरता के अधीन होकर, अपने दल क बात को हड़ पा के


प म लेखनीब कया। जब क म उससे पहले तीन बजनेस बुक लख चुका
था, ले कन हड़ पा मेरा पहला उप यास था। म समझ नह पा रहा था क उससे
या उ मीद क ं इस लए मने पूरे जोश, साहस और आजाद से उसे लख दया।
ान क दे वी, मां सर वती के आशीवाद से, उस कताब ने पाठक के दल म
जगह बना ली।

हड़ पा तुरंत ही लोक य होकर, सबसे यादा बकने वाली कताब म शा मल हो


गई। मेरे पास पाठक क ब त सी मेल आ , फेसबुक और ट् वटर पर मैसेज
मले, और लटरेचर फे टवल म लोग ने मुझ पर अपना यार लुटाया—हजार
पाठक ने कताब, इसके करदार और इसक घटना के त अपना नेह
दशाया। उनका नेह और स मान मेरे जीवन क पूंजी बन गई।

हालां क, जैसा क ूस ग ट न ने एक बार कहा था, ‘ ोता को बरक़रार


रख पाना ब त मु कल है। इसके लए वचार , उ े य और काय क नरंतरता
ज री है...’ जब मने इसके अगले भाग लय को लखना शु कया, तो यार
क उस ृंखला ने मुझे बांधे रखा। मेरे पाठक ने मुझ पर अपने नेह क बरसात
क । तब मुझे हो गया क लय को भी उन लोग क उ मीद पर खरा उतरना
ही होगा। यही मेरा ल य है, यही वो एवरे ट है, जसक चोट तक मुझे प ंचना
होगा।

य पाठक, जो कताब आपने अपने हाथ म पकड़ी है, वो आपके त ेम और


ज मेदारी क भावना से लखी गई है। मुझे पूरी उ मीद है क इसम भी आपको

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हड़ पा जैसा रोमांच मलेगा, और आप इसे भी वैसे ही सराहगे।

और कृपया अपने ईमेल, ट् वीट, ऑनलाइन र ू, फेसबुक मैसेज भेजते र हएगा।


उससे मुझे ऊजा मलती है।

उ ा!

उदय हो!

वनीत बाजपेयी

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अब तक क कहानी...

हड़ पा, 1700 ईसापूव—हड़ पा के दे वता, श शाली ववा वन पुजारी, जसे


दशक तक हड़ पा के सूय के तौर पर पूजा जाता रहा, पर एक नमम छल से घात
लगाया गया। उसका व त म और उसक प नी का भाई, बु मान पं डत
चं धर, अपनी प नी य वदा क ई यालु मह वाकां ा के आगे घुटने टे क दे ता है।
चं धर क पवान प नी मोहन जोदड़ो क राजकुमारी थी। तीन अंधे, काले
जा गर , गुन, शा और अप को य वदा और उसके सेना य , रंगा के
नमं ण पर हड़ पा बुलाया जाता है। काले जा गर नगर के जल ोत को अपने
जहर से षत कर, वहां के सम त नाग रक को पागल और हसक बना दे ते ह।

इस सब गहमागहमी म, ववा वन पुजारी को नयनतारा, हड़ पा क आकषक


नृ यांगना क ह या के झूठे आरोप म फंसाया जाता है। हड़ पा के दे वता को मृत
कारावास क सजा सुनाई जाती है। उसका शूरवीर पु , युवा मनु, ववा वन
पुजारी के अं तम म और हड़ पा के मु य अ भयंता, पं डत सोमद के साथ
मलकर श ु का सामना करता है। उस जंग म मनु बड़ी ही वीरता से रंगा का
वध कर दे ता है। इसी बीच, ान क दे वी सर वती, एक असामा य और अशुभ वेग
से हलचल उ प करती है, जससे सम त हड़ पा स यता के अ त व पर संकट
खड़ा हो उठता है। यो तषी भीषण लय क भ व यवाणी करते ह। दे वता क
व पवान प नी और मनु क मां, संजना हड़ पा के पागल सै नक के तीर का
नशाना बन, यु भू म म ही अं तम सांस लेते ए, अपने बेटे क बांह म दम तोड़
दे ती है। सोमद और अपनी करीबी म , सुंदर तारा के आदे श पर मनु घोड़े पर
सवार हो, अपनी मां के मृत शरीर को गोद म लए, वहां से नकलता है। ले कन
जैसे ही वो मूसलाधार बरसात के बीच आगे बढ़ता है, तो जहर बुझे बाण मनु क
कमर और गले म आ धंसते ह।

हड़ पा के दे वता को वहां के वशाल नानागार म पशु क तरह ख चकर,


ता ड़त कया जाता है। व त सै नक के वार, हसक भीड़ के प र और थूक
से उसक खाल उतार द जाती है। दे वता, हड़ पा का सूय— ववा वन पुजारी—
तशोध क शपथ लेता है। वो आदमी जो कभी अपने तेज म वयं ई र के

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समान दखता था, अब कसी ेत या शैतान से कम नह दखाई दे रहा था। वो
ऊपर आसमान को दे खता है और खून को जमा दे ने वाली भीषण ची कार म
घोषणा करता है—

‘पहले से ही मृत लोग सुनो। मुद क सभा, मेरी बात सुनो। मूख सुन लो।

म आधा-मनु य, आधा-भगवान ं!’

बनारस, 2017 (वतमान)— ाचीन नगरी बनारस म त, दे व-रा स मठ के 108


वष य वृ , रह यमयी धान, ारका शा ी अपनी मृत श या पर ह। वो अपने
बेहद कामयाब, आकषक और तभाशाली परपोते, व ुत को बुलवाते ह।
गुड़गांव से नकलने से पहले, व ुत अपनी यारी साथी दा मनी और व त म
बाला को बताता है क वो ाचीन और रह यमयी, दे वता के वंश से है। बनारस
प ंचने पर व ुत पाता है क वहां स दय से उसक ती ा क जा रही थी।
पुरो हत जी, बलवंत (मठ का यु मुख) और गोवधन (उसके वंश के
च क सक) से मलने के साथ ही वो अपने बचपन क दो त नैना से भी मलता
है। नैना एक ब त ही आकषक युवती बन चुक है और व ुत उसके त एक
चुंबक य आकषण महसूस करता है।

महान मठाधीश ारका शा ी व ुत को बताते ह क उनका वंश एक घातक ाप


ढो रहा है। और क व ुत आखरी दे वता था, जसका ज भ व यवाणी म कया
गया था— सफ अपने वंश का ही नह , न ही सफ मठ या बनारस का—ब क वो
पूरी मानवजा त का आखरी दे वता था। जैसे ही व ुत ने बनारस म अपने कदम
रखे, एक रह यमयी इंसान रेग मा रअनी पे रस म एक आदमी से मलता है, जसे
उसके नाम नह , ब क ओहदे क वजह से जाना जाता है—मा केरा बआंका।
रेग अपने बॉस, बग मैन का लेटर मा केरा को दे ता है। उस लेटर म लखा था
—‘उस कमब त आय-पु को मार दो।’ मा केरा बआंका या हाइट मा क यूरोप
का सबसे खूंखार सरगना था। एक मासूम सा दखने वाला, ले कन श त
ह यारा, रोमी परेरा बनारस प ंचता है।

महान ारका शा ी व ुत को हड़ पा क भयानक कहानी सुनाते ह और बताते


ह कस याह ष ं के तहत महानगर का सच हमेशा के लए भारतीय से
छपाया गया। वो बताते ह क कैसे ई ट इं डया कंपनी ने ाचीन स यता के सबसे
मू यवान अवशेष को जला दया और उपमहा प को उसके पुराने वैभव के सच

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से वं चत कर दया। ले कन इससे भी अ धक अनपे त था क वो व ुत को
बताते ह, वो और कोई नह ब क वयं ववा वन पुजारी था—3700 बाद आ
उसका पुनज म... जो इस नय त को पूरा करने आया था।

घटनाएं बड़ी तेजी से आगे बढ़ती ह, जसम व ुत क जदगी लेने का एक


साहसपूण ले कन असफल यास; नैना और व ुत के बीच बीता एक जा ई पल,
जब पल भर के लए वो अपने ह ठ व ुत के ह ठ पर रख दे ती है; मठ म दा मनी
का खु शय भरा आगमन; रोमी दे वता को खुला नमं ण दे ते ए उसे दशा मेध
घाट आने क चुनौती दे ता है। नैना के त कसी संदेह के साथ व ुत उन कराए
के ह यार का मुकाबला करता है, ज ह उसी ने भेजा था, जसने रोमी को नयु
कया था। व ुत सारे हमलावर का अकेले ही सामना करता है, ले कन अपने
सबसे व त म , बाला क गोली का शकार बनता है। बाला पकड़ा जा चुका
था, और दे वता रात के अंधेरे म घाट पर रोमी का पीछा करता है। वो शा तर ह यारा
व ुत क पकड़ म आ जाता है और पोटे शयम सायनाईट का कै सूल खाकर
अपनी जान दे दे ता है। अपने आखरी समय म वो व ुत को बताता है क एक
ताकत, जसे यू व ऑडर के नाम से जाना जाता है, उसके... और सम त
मानवजा त के वनाश के लए आ रही थी।

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दशावतार

दशावतार भगवान व णु के दस अवतार का त न ध व करता है। ह पौरा णक


कथा के अनुसार, भगवान व णु ने कई बार, अनेक प म इस धरती पर
अवतार लया, जससे बुराई पर अ ाई क वजय के साथ, सृ का संतुलन
बना रह सके।

म य

(श शाली मछली जसने सृ क र ाक)

कूम

(कछु आ जसने सागर मंथन म अमृत बाहर लाने म सहायता क )

वराह

(जंगली सूअर जसने धरती को डू बने से बचाया)

नर स हा

(आधा-मनु य, आधा- सह जसने एक अपराजेय शैतान का अंत कया)

वामन

(बौना जसने दोन संसार पर अ धकार जताया)

परशुराम

(अन र मु न)

राम

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(अयो या के राजकुमार, आदश पु ष)

कृ ण

(यो ा, ेमी, संगीत , राजनेता, रच यता, संर क व वनाशक)

बु

(सव ानी)

क क

(आखरी अवतार, चमकती तलवार धारण करने वाला, जसका इंतजार अभी
बाक है...

जो सबसे वकराल है ...)

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आमुख

‘वो सब मरने वाले ह...’ मनु वयं से बुदबुदाया। ‘और म भी उनके साथ मर
जाऊंगा।’

ये बेचैन आ माएं, ये युवा पु ष और म हलाएं, शशु, वृ और नरा त, ये


सम त जा त जनक सुर ा का मने वचन लया था, च टय क तरह मसल
जाएंगे।

मनु को अब पहली बार उस कठोर वा त वकता का अहसास आ था, जसका


उसके कंधे पर भार था। सच के इस भयानक पल से पहले तक, वो समु - जा त
के रह यमयी मुख के व च कतु भा यपूण आदे श को पूरा करने म डू ब गया
था।

इस अ व त, जुगा श पका रता का तेज वी युवा नेता वशाल जहाज को


एक तरफ झुकता दे ख जड़ रह गया। उसे जूट और वृ क लता से न मत
बीस हजार मजबूत र सय से बांधा गया था, ले कन ये भी उसे पकड़ पाने म
स म नह थ । समु पी नद क हसक, दानवीय लहर मानवजा त के बनाए
सबसे बड़े जहाज पर भारी पड़ रही थ । और भयानक बाढ़ इसे भी डु बोने वाली
थी।

या यह घातक बाढ़ जानती है क इस अं तम नाव म या मह वपूण साम ी रखी


है?

यह कोई छपी ई बात नह थी क ांड को ख म कर दे ने वाली, वनाशकारी


बाढ़ आने वाली थी। धरती पर छाए याह, लाल-बगनी बादल ऐसे लग रहे थे मानो
कसी उ माद द च कार ने पुराने र से आसमान को रंग दया हो। इं के
बादल क पागल कर दे ने वाली दहाड़ और हसक बरसात ने लय, नया के

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अंत क घोषणा कर द थी। बाघ के दांत क तरह नुक ली बूंद आसमान से गर
रही थ , जो मनु और उसके सम पत अनुया यय पर बाण क वषा के समान
बरस रही थ । मनु- श य या मनु य क वचा पर पड़ती येक बूंद अ य भाले
क तरह उ ह भेद रही थी। वीर पु ष और म हला क यह सेना कोलाहल भरे
जल म जस चीज पर संतुलन बनाने क को शश कर रही थी, वो कोई सामा य
नाव नह थी।

यह अं तम नाव थी। कसी बंदरगाह क अं तम नाव नह । न ही कसी सेना क


अं तम नाव। न ही उस वशेष ऋतु म तट से नकलने वाला अं तम जहाज और न
ही उस रात कसी जहाज का अं तम फेरा।

यह वयं सृ क अं तम नाव थी । यह वो नौका थी, जहां वयं पृ वी शरण लेने


जा रही थी। अपने साथ अपने समुदाय के बीज लए।

यह महान यो ा, पुजारी, मु न, दाश नक और राजा मनु का परा म था।

यह उसक नाव थी।

मनु क नाव।

एक जहाज के व सौ हजार पु ष और म हला का यह नभ क संघष


इतना ब मू य था क ई र तक इसक क पना नह कर सकता था। यह ऐसा
य था जो इससे पहले कभी इस ह पर नह दे खा गया था। और न ही फर
कभी दे खा जाएगा, समय के अंत तक भी नह । मनु क वशाल नौका का आकार
कसी भ नगर के समान था। ले कन इसका उ े य इतना महान था क
मानवजा त कभी इसक थाह भी नह ले पाएगी।

यह एक वेश माग था। नरंतरता का इकलौता पुल। एक पतनशील पुराने संसार


से... पुन नमाण के नए सवेरे म। यह महायु कृ त के साहस और मनु य के
अ त व बचा पाने क को शश के बीच था। मानवता बना संघष कए हार नह
मानने वाली थी—ऐसा संघष जसे वग भी याद रखेगा। ले कन इस साह सक
यास के बावजूद ब त कुछ तबाह हो जाने वाला था। मानवजा त ारा युग म

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ा त कया गया ब मू य और अचल ान इस नौका के मा यम से आगे नह जाने
वाला था। ाचीन रसायन, औष ध, वमानन, तं - व ान, श प, औजार और
आ या मकता, सब हमेशा के लए लु त हो जाने वाले थे, महान बाढ़ के
प रणाम व प, वो सब समु क तली म दब जाने वाले थे।

और फर भी यह नाव, जैसा क आयवत इसे जानता था, जीवन क अं तम आशा


थी। मनु य चाहे जतना ही भगवान के बनाए ए अ त तार , आकाशगंगा और
यो तपुंज को दे खकर हैरान हो ले, ले कन वा तव म भगवान क बनाई सव े
कृ त जदगी ही है। शानदार, लचीली... जदगी। जीव जो दद महसूस करते ह,
ज म दे ते ह, आंसू बहाते ह और असी मत ेम करते ह। जीव जो वयं ई र का
त बब होते ह। और इस कृ त को बचाया जाना आव यक था।

सबसे बढ़कर ।

मोट , गुथी ई, भीगी र सयां और लताएं अब मनु क सेना क बांह, गले और


मांस काट रही थ । नगर जैसी बड़ी नाव को संतु लत रखने के लए बांधी गई
मजबूत र सय का बल अब उनक उं ग लय को काट रहा था, कंधे तोड़ रहा था
और बांह क मांसपे शयां फट रही थ । पु ष, म हलाएं और ब े सब मलकर
अपने अ य, अक पनीय, अपरा जत श ु से संघष कर रहे थे। वे सब न र हाड़-
मांस के बने थे, जब क नौका भारी लकड़ी, ब लत कांसे और च ानी प र क
बनी थी—यह इतनी वशाल थी क र सी ख चने वाले लोग भी इस वशाल
जहाज क पूरी झलक नह दे ख पाए थे, भले ही वो अपना सर उठाकर आसमान
म कतना ही दे खने का यास य न कर।

नौका सुमे पवत से ऊंची और उस मैदान से भी अ धक चौड़ी थी, जहां दसराजन


का ाचीन यु आ था।

मनु लगातार अधीर हो रहा था। उसने शंख बजाकर खतरे का संकेत दया। यह
शंख तभी बजाया जाना था, जब कोई भीषण आपदा हो। और वो समय आ
प ंचा था। अपने सम पत अनुया यय क मौत से अ धक पीड़ादायक और कुछ
नह हो सकता था। मनु ने अपना चेहरा, अपनी कलाई पर बंधे चमड़े से प छा,

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गहरी सांस ली और फर से शंख बजाया, जसक तेज आवाज तूफानी आसमान
म दबकर रह गई।

एक सुनसान और डरावनी च ान, जो लाल आसमान के स मुख कोयले सी याह


दख रही थी, पर खड़ा मनु अपनी आंख पर खुली हथे लय से ओट बनाते ए र
तज म दे खने क को शश कर रहा था। उसे कुछ दखाई नह दया। हर गुजरते
पल के साथ उसक हताशा बढ़ती जा रही थी। वह पराजय के अपने आंसू रोकने
क ब त को शश कर रहा था, और एक बार फर से, अपना पूरा दम लगाते ए
उसने शंख बजा दया। चीखते शंख क व न ो धत अजगर का ं दन सुनाई पड़
रही थी, और मनु के द सय हजार सा थय को लगा मानो उनके कान म पघलता
आ लोहा उतर गया हो।

मनु आंख सकोड़कर, ऊंची लहर के पार, तज म दे खने का यास कर रहा


था। उसे उ मीद थी क उसे उसक परछा दखाई दे गी, जसे उसने स ा मसीहा
माना था।

उसे कुछ नह दखाई दया।

‘म य!’ आगे को नकली ई च ान पर बेचैनी से च कर लगाते ए मनु


च लाया। यह च ान उसका नयं ण ल थी, जहां से वो वशाल नौका के
नमाण का नरी ण करता था। उसके लांत, भयभीत और आशावान ने भीषण
लय के परे तज पर टके थे। बा रश उसके मनोहर कतु यु - च से
सुशो भत चेहरे पर वार कर रही थी। अपने मह वाकां ी यास पर मंडराते खतरे
को दे खकर वो संभवत: रोने वाला था। हताशा का एक भाव इस अ ाकृ तक
तूफान से लड़ने के उसके ज बे को तोड़ रहा था।

या उस इकलौते इंसान ने उसे धोखा दया था, जस पर वो अपने य पता—


महान ववा वन पुजारी, जतना ही भरोसा करता था? या उसके म ,
मागदशक, सलाहकार, उपचारक... ने उसका साथ छोड़ दया था?

या उसके यारे म य ने उसके साथ छल कया था?

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‘म य...!’ ऊपर कड़कती बजली को दे खते ए मनु च लाया, उसक बांह फैली
ई थ और फेफड़े फटने को तैयार थे, मानो वो आसमान तक अपनी अधीर
वनती प ंचाना चाहता था!

और फर उसे वो दखाई दया। सब ख म कर दे ने वाली बाढ़ म, समु को चलाता


आ, वो उसे दखाई दया।

लोक-नास, सबसे बड़ा समु दै य, जसका ज कभी श शाली ा ने कया


था, र लहर के साथ अपना सर आगे नकाले बढ़ रहा था। मनु ने पहली बार उस
वकराल पशु क धुंधली सी छ व दे खी थी।

और वो वह था, अनेक फण वाले सप क चमकती आंख के बीच, नभ कता से


खड़ा आ।

म य।

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Contents

चेतावनी
लेखक क ओर से
अब तक क कहानी...
दशावतार
पआमुख

कह रोम के करीब, 2017: ‘ या तु ह भरोसा है, वो सच म वही है?’


हड़ पा , 1700 ईसापूव: र -वषा्षा
बनारस, 2017: मृ युंजय
हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव: ‘पा नी क ये बूंद... उधार ह मुझ पर’
बनारस, 2017: तं -मं क जंग
सधु का क नारा, हड़ पा के पश् चम म, 1700 ईसापूव: अ-सुरा
बनारस 2017: रा स
ब थ नया ई नगर(वत तमान का तुर् क ),325 ई वी: नाइ सया क प रष द
हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव: मां...
बनारस, 2017: सफेद पोशाक वाले आदमी
सधु का कनारा,पश् चमी हड़ पा , 1700 ईसापूव: येक पु क मौत
बनारस 2017: जट कपा लक
हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव: महान राजा
बनारस, 2017: कपा ल अप पण
हड़ पा, 1700 ईसापूव: पहाड़ पर कोहराम
बनारस, 2017: ‘हमने उसे दानव बना दया दया ’
हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव: काला मं दर
बनारस, 2017: कां टटाइन
हड़ पा, 1700 ईसापूव: उसका जघ य पाप

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बनारस 2017: यू व ऑड डर
हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव: लय
बनारस, 2017: याह ातृ-संघ
मैनहटन, यूयॉक क सट , 2017: ‘मौत भी हा इट मा क से भय खाती है’
हड़ पा , 1700 ईसापूव: नीली अ न का अनु ान
बनारस, 2017: वधुत
हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव: ऋण
बनारस, 2017: याह ातृसंघ – भाग 2
हड़ पा , 1700 ईसापूव: र -धारा का ाप
बनारस, 2017: तशोध
हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव: ‘इसक कहानी स दय तक या या द क
जाएगी’
बनारस, 2017: लु त स यता
हड़ पा , 1700 ईसापूव: पु दर पु , पीढ़ दर पीढ़
बनारस, 2017: याह ा तृसंघ – भाग III
हड़ पा , 1700 ईसापूव: मोहन जोदड़ो क अं तम राजकुमारी
बनारस, 2017: ‘ जट मृतक को जगा दे गा’
हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव: सत पा
बनारस, 2017: र बीज अनु ान
हड़ पा , 1700 ईसापूव: वीराने का स ाट
बनारस, 2017: महान रका शा ी
हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव: ‘तुमने परी ा उ ीण तीण क ’
बनारस, 2017: ‘वो उनके अनुयायी थे’
हड़ पा , 1700 ईसापूव: अं त त म स तऋ ष
बनारस क बा सीमा, 2017: कालच
हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव: स य त मनु
बनारस क बा सीमा, 2017: सैकड़ हवन कुंड
हड़ पा , 1700 ईसापूव: हड़ पा का दे वता
बनारस क बा सीमा, 2017: पाताल
हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव: मनु क नाव
ई ी

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हड़ पा , 1700 ईसापूव: ववा वन पुजारी
बनारस क बाहरी सीमा, 2017: दे व-ब ल

मश:...
लेखक के बारे म

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कह रोम के करीब, 2017
‘ या तु ह भरोसा है, वो सच म वही है?’

उसे अपनी औपचा रक जनसभा के लए दे र हो रही थी। रोम म ही कह रहने


वाला बग मैन आज सुबह असामा य प से ो धत था। ज द सुबह आए एक
फोन ने उसक नस म तनाव उ प कर दया था। चाय के याले को अपने प व
ह ठ तक लाते ए उसके हाथ कांप रहे थे।

पृ वी के सबसे बड़े पुजारी के प म लाख लोग के लए पूजनीय, वह आदमी


नया क सबसे बड़ी धन-संप का वामी था। इस ह के सबसे ताकतवर
पु ष और म हला के लए वो आ या मक दे व-पु ष था। वो न सफ कसी
एक आदमी या समुदाय क , ब क पूरे महा प क क मत बदल सकता था।
उसके ारा दया गया एक संदेश परमाणु यु छड़वा सकता था, तो दशक से
चले आ रहे र -संघष को बंद भी करवा सकता था। बग मैन कसी भी प म
सामा य इंसान नह था। वह पूण स ा, न ववा दत सा ा य, े ता और वै क
नयं ण का चमकता आ तीक था। ले कन फर भी धुर पूव के एक 34 वष य
युवक ने इस बग मैन को परेशान कर दया था।

सच म परेशान ।

इस बेचैनी क बग मैन को आदत नह थी। उसने ोध से क न पादरी को घूरा,


जो वन ता से बग मैन को याद दलाने अंदर आया था क उसके सावजा नक
दशन का समय नकला जा रहा था, क हजार लोग उसक बालकनी के नीचे
उसक एक झलक पाने के लए खड़े थे। बग मैन को इस तनाव से बचने के लए
कुछ तंबाकू क तलब महसूस ई।

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उस ाचीन और भयानक भ व यवाणी के 1,600 साल बाद, वो पावन दे वता
शायद आ प ंचा था। और बग मैन क कुस के लए यह सबसे भयानक खबर
थी।

मुझे रेग को फोन करना चा हए।

‘गुड मॉ नग, योर होलीनेस,’ सरी तरफ से कसी स य इतालवी आवाज ने


कहा। ‘आपको मुझे फोन करने क ज रत नह थी, सर। म आप ही के पास आ
रहा था।’ रेग मा रअनी पसीने से तर हो रहा था।

ब त कम लोग बग मैन को उतने करीब से जानते थे, जतना रेग। इस लए वो


जानता था क वो नया के सबसे ताकतवर और सबसे खतरनाक धा मक नेता से
बात कर रहा था।

‘ या तु हारा काम हो गया, रेग?’ बग मैन ने शां त से पूछा।

‘नह ... नह , योर होलीनेस, अभी नह आ।’

‘तो तुम यहां य आना चाहते हो, माय सन?’

वहां कुछ पल खामोशी रही।

‘जैसा आप कह, सर,’ रेग ने अपना गला साफ करते ए कहा। अभी के लए, वो
उसके सा ा य म ‘ बन बुलाया मेहमान’ था।

‘मेरे आशीवाद के लए तभी उप त होना, रेग, जब पहले तुम दया आ काम


पूरा कर लो।’

‘जी, योर होलीनेस।’

बग मैन अब उस लहजे म बात कर रहा था, जससे रेग प र चत भी था और


डरता भी था। वो ऐसे लहजे म दए आदे श के ू र और हसक प रणाम का
सा ी रहा था।

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‘मेरी तरफ से मा केरा बआंका को याद दला दोगे न, रेग? उसे याद दला दे ना क
वो उसके लए क गई मेरी ाथना क वजह से ही जी वत है।’

‘म उसे बता ं गा, योर होलीनेस।’

‘उसे याद दला दे ना क उसके बुरे काम को ई र इसी लए माफ करता रहा है
य क उसने बड़े उ े य के लए काम आने का वादा कया था। अगर वो उस
द ल य म असफल रहता है, तो नया म उसके रहने के लए कोई जगह नह
बचेगी।’

रेग जड़ हो गया। केवल बग मैन ही यूरोप के ू र मा फया सरगना को ऐसी


भयानक धमक दे सकता था।

फोन कटने क आवाज सुनकर रेग को राहत महसूस ई। वो ब त से श शाली


आद मय का भयानक अंजाम दे ख चुका था, जो बग मैन के काय म असफल रहे
थे। हालां क वह वयं बग मैन क सेवा म साल लगा चुका था, ले कन रेग आज
भी वहां उतना ही असुर त महसूस करता था, जतना वो पहले दन था।

इससे पहले क वो राहत क सांस ले पाता, उसके फोन क घंट दोबारा से बजी।
दोबारा से बग मैन क आवाज सुनकर रेग तनाव म आ गया। ले कन इस बार
आवाज खी नह थी, ब क बग मैन कुछ हसाब लगा रहा था। उसक आवाज
म अ न तता और कंपन था।

‘बताओ मुझे रेग, या तु ह सच म लगता है, वो वही है? या तु ह सच म लगता


है क यह लड़का वही भ व यवाणी वाला दे वता है?’

वहां कुछ पल फर से खामोशी रही। रेग जानता था क बग मैन से कम से कम


श द म बात क जानी चा हए।

‘जी, योर होलीनेस। म मानता ं क यह वही है।’

रेग वो सच बोलने से पहले का, जो बग मैन का सबसे बड़ा डर था।

‘दे वता वापस आ चुका है।’

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हड़ पा, 1700 ईसापूव
र -वषा

हड़ पा सेना के दो सौ घुड़सवार तेज चाल से चल रहे थे। बरछ लए पचास


सै नक आगे थे। पचास तलवारबाज बाहरी घेरे म थे और सौ धनुधर दोन तरफ से
सुर ा दान करते ए चल रहे थे। उनके म य म एक भारी, प हय वाला लोहे का
पजरा सरक रहा था, जसे सोलह घोड़े ख च रहे थे। मजबूत लकड़ी और मोटे
कांसे क छड़ वाला यह पजरा वशेष प से शेर को रखने के लए बनाया गया
था। ले कन आज उसम कोई बड़ी ब ली कैद नह थी। अपने वतमान प म, वो
कैद शेर से भी अ धक बबर था।

उस उ माद सेना को दे खकर ही डर लग रहा था। हड़ पा के ये यो ा अब व त


और अ नयं त प से र - पपासु थे। उनक आंख लाल और चौड़ी थ , और वो
लगभग बलकुल भी पलक नह झपका रहे थे। उनके मुंह से मतांध भे ड़य क
तरह लार टपक रही थी। वो अपने घोड़ के समान ही गुरा रहे थे, उनका स म लत
वर लाल आसमान क हसक गरज क त या लग रहा था।

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भारी श से सुस त, येक हड़ पा घुड़सवार क कमर म, ह य को काट
दे ने वाली भारी तलवार बंधी थी। आगे चलने वाले हरी अपने सर के ऊपर बड़ा
भाला गोल-गोल घुमा रहे थे, उनका भाला र पूव म रहने वाले एक-स ग के गडे
क खाल तक चीर सकता था। धनुधर के बाण हड़ पा के रसायन-शा य ारा
बनाए नीले जहर म डू बे थे। यह हड़ पा सपा हय क चय नत टु कड़ी थी, जनका
चयन वयं नई रानी ने कया था। मृत-कारावास म जाने वाले ताकतवर कैद क
सुर ा म वो कोई ढ ल नह छोड़ना चाहती थी। अं तम बार। वो वहां अं तम बार
जा रहा था, दोबारा न लौटने के लए।

ले कन य वदा भी पागलपन के ऐसे ही उ माद म थी, जैसा अ धकांश


मह वाकां ी स ाट को होता है। जब भगवान तक सूय को नह पकड़ पाए, तो
वो कैसे उसे बंद बनाकर रख सकती थी?

उसका सर उसके बदन से कटकर, ब त र आगे लाल म पर जाकर गरा। वो


बाण न जाने कहां से आया था, जसने इतनी सफाई से अपना काम कया था।
आगे चलने वाले द ते के नेता का सरर हत धड़ लड़खड़ाकर गरा। उसके कटे
सर से र का छोटा सा फ वारा फूट पड़ा।

पल भर म ही सरा सर भी कट गया। और फर एक और। और फर एक और।


घबराए और डरे ए सपाही अपनी ृंखला तोड़ने लगे, उनक आंख अ य
हमलावर को खोज रही थ । एक का बल धनुधर इस सश दल पर यूं टू ट रहा
था, मानो मु गय के समूह म ब ली घुस आई हो।

भले ही वो हड़ पा क फौज के े सपाही ह , ले कन उनका पुजारी प रवार के


अपने श त यो ा से कोई मुकाबला नह था।

उनक अपनी श या। मनु क करीबी म और उसक महान सै य अ य ।

सुंदर। शूरवीर।

तारा।

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गुन, शा और अप के दए नशे से धु होने के बावजूद हड़ पा क सेना कसी छपे
ए धनुधर से बना संघष कए भागने को तैयार नह थी, भले ही वो धनुधर
कतना ही द य न हो, या इस मामले म कह तो, कतनी ही द य न हो।
एक श त और उ ं ड टु कड़ी, सौ घुड़सवार धनुधर, सब उस दशा म दे ख रहे
थे, जहां से छपे ए हमलावर ने उनके दल पर वार कया था। अपने चलते घोड़
को रोके बना ही, इन समथ धनुधर ने अपने रकाब पर खड़े होकर हमलावर क
दशा म बाण क वषा कर द । तारा के पास अब च ान के पीछे शरण लेने के
अलावा कोई वक प नह था।

ले कन हमला शु हो चुका था। महान ववा वन पुजारी को बचाने का साह सक


उप म।

‘जैसे क हमने योजना बनाई थी, हमारा पहला ल य होगा दे वता को आजाद
कराना,’ सोमद ने अपने मु भर सा थय को आगे बढ़कर आ मण करने से
पल भर पहले याद दलाया। ‘एक बार उनके आजाद होने पर, इनम से कोई भी
सपाही टक नह पाएगा। दे वता वयं इन सबका सफाया कर दगे।’

‘ले कन वामी, मेरी धृ ता के लए मा कर... दे वता मांस के एक टु कड़े से


अ धक कुछ नह लग रहे ह!’ एक युवा यो ा ने कहा।

वो लोग कांसे और लकड़ी क मजबूत सलाख के पीछे दे ख पा रहे थे। दे वता का


बेजान शरीर पजरे क तली पर पड़ा था, और वो रा ते म आने वाले हर ग े पर
उछल जाता। उसके प रत त बदन पर नाममा को भी खाल नह थी। उसके
पजरे क लकड़ी क द वार उसी के र से सनी थी। वह सफ क े मांस का ढे र
था।

‘मेरा भरोसा करो, मेरे साहसी म । मने ताकतवर ववा वन पुजारी को बुरे से बुरे
हालात म दे खा है,’ सोमद ने जवाब दया। ‘म मानता ं क उनक वतमान
त शायद मनु य क पीड़ा सहने या उसक क पना तक करने से परे ह,

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ले कन फर भी मुझे उनके अद य बल पर भरोसा है। उ ह तब तक नह हराया जा
सकता, जब तक वो वयं न चाह। उ ह तब तक नह मारा जा सकता, जब तक वो
वयं मरने का नणय न कर ल। उ ह तब तक यु म नह हराया जा सकता, जब
तक क श ु उनका ने हल न हो।’

उसके मु भर अनुयायी सुन रहे थे। वह जानता था क उसके पास अ धक समय


नह था। और सोमद जानता था क उ ह यहां तलवार से लड़ने का ब त कम
समय मलेगा।

‘हड़ पा के सबसे शूरवीर सपा हय से मेरा यही कहना है क दे वता के पजरे का


ताला तोड़ दो। उनक जंजीर काट दो। और हमारा मसीहा वयं उ दत हो जाएगा।
वो हम सबको आजाद करवाएगा। और हड़ पा को भी इसके अ भशाप से मु
करवाएगा।’

हड़ पा के सै नक अब ववा वन पुजारी के भारी पजरे के आसपास फैले ए थे।


तारा क टु कड़ी के सु नयो जत ान पर बैठे धनुधर भी अब उसके पास आ गए
थे और वो सब मलकर हड़ पा के घुड़सवार को ततर- बतर कर रहे थे। तारा के
शु आती हमले के पल भर बाद ही, दो दजन से अ धक घुड़सवार धराशायी हो
चुके थे—बेरहम बाण ने या तो उनका सर धड़ से अलग कर दया था या उनका
सीना ही चीर दया था। उनक पाश वक उ ेजना बढ़ रही थी। हालां क उनक
भावका रता कम होती जा रही थी।

दशा और ल य भटककर, अ य श ु से घबराए वो चार तरफ से मनु य और


घोड़ के बहते र के म य घरे थे। पगलाए ए वो घुड़सवार अब आपस म ही
एक- सरे से टकरा रहे थे। एक घुड़सवार ने अपना संतुलन खोया, वो सरे के
रकाब म उछलकर, गुलेल से नकले प र क तरह र जाकर गरा। और पीछे से
आते घुड़सवार के नीचे कुचला गया। एक ो धत सपाही अपना बचा-खुचा होश
भी खोकर, अपना भाला अपने ही साथी को मार बैठा, जो उसके अ धक करीब
आ गया था। असाधारण नशानेबाज ने अपना ल य हा सल कर लया था।
हड़ पा क सेना म भय और कोलाहल था।

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और इस अपरा जत दखती सेना का बड़ा भाग अब भागने क तैयारी करता
दखाई दे रहा था।

ये जानते ए क यह उनका एकमा अवसर था, सोमद क टु कड़ी के पं ह


घुड़सवार ने हड़ पा क फौज पर सामने से हमला बोल दया। उ ह दे खकर ऐसा
लग रहा था मानो भेड़ के झुंड म भे ड़या घुस आया हो। अपनी तलवार भांजते
ए, सोमद के युवा यो ा अपने रा ते म आने वाले मन सपा हय को मारते
काटते ए आगे बढ़ रहे थे। उ ह अपने नेही दे वता के पजरे तक प ंचना था।

तारा के धनुधर भी अब अपना ान छोड़कर, अपने साथी यो ा क सहायता


के लए घोड़ पर सवार होकर यु े क तरफ बढ़ रहे थे।

ले कन यह आसान नह होने वाला था। साहसी और धृ बचाव अ भयान के एक-


तरफा आ मण के बीच भी, हड़ पा का एक व र सेना य वापस से अपने बल
को एक कर रहा था। एक वशाल आदमी, जसका चेहरा लाल और काले रंग से
पुता आ था, उसक आंख म पागलपन और ू रता क चमक थी।

‘वापस लड़ो...!’ अपनी बखरती सेना को उसने च लाकर आदे श दया। वो


अपने बड़े से भाले को तेजी से घुमा रहा था, जससे कोई भी हमलावर उस तक न
प ंच सके। ‘वापस लड़ो, कायर ...!’ वो प हये वाले पजरे क तरफ बढ़ रहा था।
उसके ब त से जुझा यो ा ने अब अपने घोड़े वापस मोड़ लए थे, और वो
नए जोश के साथ अपने सेना य के पीछे दौड़ रहे थे।

अभी के लए, हार-जीत का अनुमान लगाना मु कल था।

सोमद ने र से इस अपराजेय और गंभीर खतरे को दे खा। उसके दो युवा यो ा


पजरे के काफ करीब थे, और वो कसी भी पल प तत दे वता को आजाद कराने
ही वाले थे। ले कन हड़ पा का भीमकाय सेना य क क तरफ ही बढ़ रहा था,
और सोमद जानता था क उसके वीर यो ा इस अनुभवी दै य और इसके

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श त दल का सामना नह कर पाएंगे। वो उनसे ब त र था, और चाहकर भी
कुछ नह कर सकता था। वो अपने े दांव क ओर मुड़ा।

‘तारा...!’ सोमद च लाया।

तारा ने अपने घोड़े क काठ पर पीठ के बल गरते ए आते ए भाले से वयं को


बचाया, और उसी मु ा से उसने अपने बाएं हाथ से अपने हमलावर के पेट म
कृपाण भी घ प द । उसके दा हने हाथ म फरसा था। तारा उभयह त थी और दोन
हाथ से एक ही साथ लड़ाई कर सकती थी। वो सोमद क तरफ मुड़ी और यु
के कोलाहल के बीच भी, उसक नजर ने वो दे ख लया, जसे दखाने क को शश
सोमद कर रहा था। तारा को तुरंत ही हालात क गंभीरता का अहसास हो गया।
दानवीय सेना य और उसके आद मय को रोका जाना ज री था!

पागल सेना य तक प ंचने के लए तारा ने छोटा रा ता लया, हालां क फर भी


उसे श ु , र और संघष के भारी माग से गुजरना पड़ा। एक शानदार घुड़सवार
और वयं ववा वन पुजारी क स म श या, तारा यु -दे वी थी। उसने श ु के
कंध पर से यूं अपना रा ता बनाया जैसे पानी म से शाक नकलती है।

‘ईईइययययआआअ...’ तारा अपने घोड़े क जीन पर खड़ी होती ई च लाई


और फर वो हड़ पा के भीमकाय सेना य पर लपक । कुछ पल के लए तारा
हवा म ही थी, उसका लंबा फरसा श ु के गले पर नशाना लेने के लए तैयार था,
उसके सुंदर, र म भीगे केश हवा म उड़ रहे थे।

ले कन यह श ु बाक सबक अपे ा अ धक मजबूत और द था। भीमकाय


सेना य अपने घोड़े से उछला और तारा के म यपट पर अपनी ब ल लात से
वार कया। तारा बीच रा ते म ही जमीन पर गर गई, वो हांफ रही थी।

लाल और काले रंग से पुता आ दानव ोध से कांप रहा था। हवा म र क


गध और मरते आद मय क कराह उसक पाश वकता को और हवा दे रही थ ।
उसने अपने सर का मुकुट उतार फका और अपना कवच फाड़ कर अपना ब ल
शरीर दखाया। वो वा तव म एक पशाच था। वो वयं अपने चेहरे पर हसक
तरीके से थ पड़ मारने लगा। वो शैतान क तरह गुरा रहा था और उसने जंजीर से
बंधी न कदार छड़ नकाली। वो हसक तरह से उसे हलाते ए तारा का सर
फोड़ने क को शश करने लगा।

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छड़ क जंजीर तारा क कनपट से बाल भर क री पर आकर लगी, जब वो
म पर पलट मारकर वार से बचने क को शश कर रही थी। छड़ र से गीली
म म गढ़ गई, और उसे वहां से नकालने म पल भर लगा। इतना समय शेरनी
के पलटवार के लए पया त था। उसने अपने बाल म से दो घातक जहर बुझी
सुइयां नकाल । वो ना गन क तरह अपने शकार पर लपक , ले कन उस दै य ने
तारा का गला पकड़ लया। उसक बांह ब त लंबी थी और उसने पूरी बांह पर
तांबे का मोटा कवच पहना आ था, और तारा ब त यास करके भी उसक न न
वचा तक नह प ंच पा रही थी। उसक पकड़ मजबूत होती जा रही थी और तारा
को महसूस आ क उसक जदगी ख म होने वाली थी।

तभी कुछ ऐसा घटा जसक तारा ने क पना तक नह क थी।

दानव का मुंह दम घुटने क पीड़ा से खुल गया। अ व ास से, तारा को र म


भीगा आ इंसानी पंजा दखाई दया और फर दे खते-दे खते ही पूरी बांह भीमकाय
सेना य के पेट से नकल आई। कसी ने उस दानव को अपने हाथ से भेदकर,
चीर दया था।

मरते ए दानव क पकड़ तारा के गले से ढ ली ई, और वो उस जीव क झलक


दे ख पाई जसने ऐसी वीभ स ह या को अंजाम दया था। उसक आधी बांह अभी
भी मृत हड़ पा सेना य के उदर म धंसी ई थी। यह सवा धक अमानवीय ह या
थी, जो तारा या कसी अ य ने दे खी थी।

र म डू बा आ एक आदमी, उसक खाल इस तरह उतरी ई थी क वो पहचान


म भी नह आ रहा था, उसक एक आंख पघल गई थी और सरी आ दकालीन
-रा स क तरह चमक रही थी। वह सेना य क लाश के पीछे खड़ा था।
उस आदमी को पहचानने म तारा को कुछ पल लगे।

उसक आंख प हये वाले पजरे क तरफ मुड़ ।

उसका भारी-भरकम दरवाजा खुला आ था। उसके बड़े ताले टू ट चुके थे।

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ववा वन पुजारी अब दे वता नह था। वो ाचीन ंथ म व णत कसी घनौने और
याह रा स से भी अ धक बुरा दखाई दे रहा था।

अपने सेना य क जघ य ह या से भयभीत, एक और सपाही ने अपनी तलवार


से ववा वन पर वार कया। कसी मा हर यो ा क तरह, ववा वन वार से बचा,
और हमलावर क कलाई पकड़कर उसक कोहनी, उसी के चेहरे म घुसाते ए
तोड़ द । हड़ पा का सपाही तड़पकर जमीन पर गर गया। ले कन संहार अभी
का नह था। ववा वन पुजारी ने धीरे से अपना घुटना गरे ए सपाही क कमर
पर रखा, उसक तलवार उठाई और कसी मंजे ए श य च क सक क तरह उस
आदमी का माथा उसक एक कनपट से सरी कनपट तक चीर दया। वो आदमी
दद से च लाया और उसके माथे से उबलता र उसक भव से होते ए चेहरे
पर गरने लगा। और फर, सबको अ व ास और सदमे म डालते ए, ववा वन
पुजारी ने सपाही के बाल पकड़कर उसक खोपड़ी को, उसके कंध तक उतार
दया। सपाही मरने से पहले बदहवासी से च लाया—वो अपने घाव से नह
ब क उस दद से च ला रहा था, जसे सहन करने क उसके शरीर को आदत
नह थी।

पल भर म ही तारा को अपने कए पर पछतावा आ। उसने ज द से सोमद से


नजर मलाई, और वो भी शायद यही सोच रहा था।

वो, जसे आजाद नह होना था, आजाद हो गया था।

हड़ पा का सूय हमेशा के लए अ त हो चुका था।

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बनारस, 2017
मृ युंजय

दे व-रा स मठ क सफेद म ह ा एसयूवी, रात के समय, बनारस क तंग ग लय


से कुलांचे मारते ए, तेज ग त से भागे जा रही थी। वयं मठ का सै य- मुख,
बलवंत ही गाड़ी दौड़ा रहा था। वह जानता था क समय तेजी से भाग रहा था।

रात के इस पहर म भी ग लय और सड़क पर बनी कान म चहल-पहल थी।


इन तंग ग लय म साइ कल भी बमु कल ही अपना रा ता ढूं ढ़ पाती थ । यही तो
बनारस था, सु त और अपने म खोया आ। ले कन इस नगर और इसके वा सय
को कसी ता का लकता म भागती गाड़ी या ए बुलस को रा ता दे ने म कोई
परेशानी नह होती थी। जब क कोई नह जानता था क उस आलीशान गाड़ी म
कौन था, ले कन उसे आसानी से रा ता मल गया।

उस गाड़ी म व ुत था।

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उसका सर घबराई ई नैना क गोद म था, व ुत के मुंह से जब-तब, खांसी के
साथ खून नकल रहा था। दो गो लयां, एक गहरा घाव जसने उसके छाती का
मांस चीर दया था, और घंट के संघष के बाद, अब ये घाव इस वैभवशाली मनु य
के लए भी घातक जान पड़ रहे थे।

व ुत, भ व यवाणी म संर क, आखरी दे वता... मर रहा था।

‘तेज चलाओ...!’ व ुत क उखड़ती सांस को दे खकर नैना च लाई। जब तक


वो उ ह घाट पर मला, तब तक मठ म कोई नह जानता था क वो ह यारे रोमी
क गोली का शकार बन चुका था। मठ के च क सक गोवधन आ म म ही
घायल सोनू और सरे यो ा का इलाज कर रहे थे। यह एक बड़ी गलती थी।
व ुत अब हर सांस के लए तड़प रहा था, वो जी वत रहने के लए संघष कर रहा
था। अपनी बांह म उसका सर भरे नैना, आंसू और तड़प भरी नजर से उसे दे ख
रही थी। वो उसे खो नह सकती थी। वो उसे फर से खोना नह चाहती थी।

‘वो हमारा साथ छोड़ रहे ह,’ जीप म नैना और बलवंत के साथ बैठा, मठ का एक
अ य यो ा बुदबुदाया।

‘नह , ऐसा नह हो सकता!’ नैना गु से और बेचैनी से च लाई। ‘ये व ुत है!


या तु ह याद नह ? यह मर नह सकता!’

गाड़ी म बैठे ए जानते थे क नैना गलत थी।

व ुत अपनी अं तम सांस ले रहा था।

नैना ने अपना मोबाइल फोन नकाला और दे व-रा स मठ के चम कारी


च क सक, गोवधन का नंबर मलाया।

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‘गोवधन दादा, हम अभी भी मठ से कुछ मनट र ह। ले कन शायद व ुत के
पास इतना समय नह है। वो जा रहा है, दादा... वो हमेशा के लए जा रहा है...!’
फोन पर इन श द को कहते ए नैना फूट-फूटकर रोने लगी।

‘तु ह उ ह मेरे पास लाना ही होगा, नैना। शांत रहो और उ ह ज द से ज द यहां


लाने क को शश करो,’ गोवधन ने शांत ले कन गंभीर आवाज म कहा। वो जानते
थे क या दांव पर लगा था।

‘ले कन वो बच नह पाएंग,े दादा!’ नैना फोन पर च लाई। दद से वो पागल होने


वाली थी।

गोवधन शांत रहे।

‘मुझे बताओ क उनक हालत या है, नैना।’

बलवंत नैना क तरफ मुड़ा, आगे भीड़ क वजह से जीप क ग त कुछ धीमी ई
थी।

‘हम सभी उ ह उतना ही यार करते ह, नैना जतना तुम करती हो। हम सब
जानते ह क व ुत क नय त या है। वो न सफ इस मठ के लए ह, न ही सफ
बनारस के लए... ब क पूरी मानवजा त के लए ह।’

नैना सुन रही थी। कोई व ुत से उतना यार नह कर सकता, जतना म करती ं।

बलवंत ने आगे कहा, ‘सुनो क गोवधन या कह रहे ह, और अपना े दो मेरी


ब ी।’

सुंदर और साहसी नैना ने हां म सर हलाया। वो जानती थी क वो हार नह मान


सकती थी। इस समय तो ब कुल भी नह ।

गोवधन ने अपना सवाल दोहराया, ‘मुझे बताओ क उनके ल ण या ह, नैना।’

नैना ने अपने आंसू प छे और व ुत को यान से दे खा।

‘दादा, वो ठ क से सांस नह ले पा रहे ह और उनका पूरा बदन तेज बुखार से तप


रहा है।’

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‘उनके माथे पर पानी छड़कती रहो, नैना,’ गोवधन ने जवाब दया। ‘उ ह
ाने सा मक ए सड का एक और इंजे न ठ क उसी तरह दो, जैसे मने तु ह
बताया था। उ ह पूरी तरह बेहोश मत होने दे ना। उनसे कुछ भी बात करती रहो।
और या...?’

‘उनके ह ठ पपड़ा गए ह और वो...’

एक पल को खामोशी रही।

‘हां नैना, या? आगे बोलो...’ गोवधन ने जोर डाला।

‘वो... वो कुछ बुदबुदा रहे ह, गोवधन दादा,’ नैना ने कुछ पल बाद घबराते ए
कहा।

‘ या बुदबुदा रहे ह? तु ह सुनना होगा क वो या कहने क को शश कर रहे ह!’

नैना आगे क तरफ झुक और अपने कान व ुत के फड़फड़ाते ह ठ पर लगाए।


वो नह समझ पाई क वो या कह रहा था।

‘मुझे... मुझे कुछ समझ नह आ रहा...’ उसने कहा, इतनी तेज क जीप म बैठे
दोन उसक आवाज साफ सुन पाएं।

‘वो या कह रहे ह, नैना?’ बलवंत ने घबराकर पूछा। वो लोग मठ से महज पांच


मनट क री पर थे। ले कन ये री भी अभी अंतहीन लग रही थी।

नैना फर से झुक और अपने कान पर जोर डाला। व ुत क बात म से वो


कुछे क श द पकड़ पाई।

‘... यंबकं ...पु ष् टवधनः... मामृतात...’

कुछ पल क वधा के बाद, उसने बलवंत को दे खा। उसके चेहरे पर अ व ास


था। कोई कैसे ऐसी तकलीफ और आधी बेहोशी क हालत म ये कर सकता है?

‘नैना, तु ह हम बताना होगा... व ुत ऐसी हालत म या बुदबुदा रहे ह?’ गोवधन


ने पूछा।

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‘दादा...’ नैना ने कहा।

बलवंत, फोन पर गोवधन, और जीप म बैठा मठ का सरा यो ा, सभी के कान


पूरी तरह से नैना क बात पर थे।

‘गोवधन दादा... आप व ास नह करगे,’ नैना ने बताया। ‘ व ुत लगातार, सबसे


श शाली महा मृ युंजय मं का उ ारण कर रहा है।’

बात सुनकर हर कोई जम गया। अपनी मृ यु श या पर बैठे, यूं बेहोशी क अव ा


म कोई कैसे ऐसे श शाली मं का उ ारण कर सकता था?

महा मृ युंजय को मृ यु से लड़ने वाला अं तम संर क माना गया था। यह यम के


खलाफ सा ात भगवान शव का आ ान था।

मौत से कुछ पल क री पर भी, दे वता संघष कर रहा था। ाचीन शहर क तंग
ग लय म, इस नया से सरी नया म जाने वाले पुल के कनारे खड़ा हो,
व ुत सा ात काशी के ई र का आ ान कर रहा था। वो मदद के लए भगवान
शव को बुला रहा था।

व ुत ने ठान लया था क वो मरेगा नह ।

आज तो ब कुल नह ।

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हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव
‘पानी क ये बूंद... उधार ह मुझ पर’

ग शोर मचाते ए लगातार अपने शकार के गद मंडरा रहे थे। उ ह अहसास


था क शी ही उ ह दावत मलने वाली थी।

पछले अ ाईस घंट से, बुरी तरह से घायल, बना खाने और थोड़े से पानी के
साथ वह युवक, अपने माग पर आगे बढ़ रहा था। उसके गहरे घाव से मवाद बह
रहा था। ब त खून बह जाने क वजह से वो कसी भी पल बेहोश हो सकता था।
उसका मुंह सूख चुका था और ह ठ पपड़ा गए थे। उसे तो शायद पहले ही मर
जाना चा हए था।

ले कन कुछ था जो उसे जी वत रखे ए था।

अपनी मां का अं तम सं कार कए बना, मनु अपना शरीर नह याग सकता था।
वो मां जसका शव, पूरे रा ते वो अपनी गोद म लए आ रहा था।

ये मनु का अपनी मां के त फज था। ये उस पर संजना का ऋण था।

‘पूव क तरफ जाओ... काले मं दर क तलाश करो...’

ये वो आखरी श द थे जो मनु ने अपने पता के वफादार म , सोमद के मुंह से


सुने थे। तब से, पूरा दन और पूरी रात वो पूव क तरफ बढ़ता रहा था। ले कन वो
कसी गांव या झोपड़ी म कने का जो खम नह ले सकता था। वो कसी से मदद

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नह मांग सकता था, न ही कसी से दशा पूछ सकता था। वह जानता था क
हड़ पा क नई रानी, य वदा हर क मत पर उसे ढूं ढ़ने म जुट होगी।

ले कन अब वो सफ़र आशाहीन लगने लगा था। मनु जानता था क न तो वो वयं


और न ही उसका घोड़ा, और अ धक दे र तक टक पाएंगे। उसक सुंदर मां के शव
पर भी अब न र, ाकृ तक रण के नशान दखने लगे थे। ‘पू व क तरफ जाओ
...’ ब त ही अ सलाह थी। फर भी मनु को भरोसा था क बु मान सोमद
बना कसी येय के उसे यह सलाह नह दे ते। ले कन अभी तक कुछ दखाई
नह पड़ा था। न तो काला मं दर। न ही कोई मदद। न ही कोई उ मीद।

र और धूल से सने मनु क हालत अब ब त दयनीय हो चली थी। उसने चमड़े


क थैली नकाली। पानी क अं तम कुछ बूंद बची थ , बस आखरी बार उसके
ह ठ को गीला करने लायक। उसने उ मीद क क शायद इन कुछ बूंद के सहारे
वो कुछ और घंटे नकाल पाए।

ग को अभी और इंतजार करना होगा।

जहां तक नजर जाती वो जगह बंजर नजर आ रही थी। मील र तक मनु शायद
अकेला ही या ी था। वहां लगातार गम और धूल भरी हवा चल रही थी। मनु ने
अपनी उं ग लय के पोर गले कए और अपनी मां क आंख , ह ठ और माथे पर
उसी नेह से लगाए, जैसे कोई मां अपने नवजात को यार से सहलाती है। जैसे
ही वो उस थैली क बूंद को अपने यासे मुंह म खाली करने वाला था, उसे र
तज म कुछ दखाई दया। वो छोटे से लेट ध बे जैसा दखाई पड़ रहा था,
ले कन मनु को लगा क वो कोई इंसानी आकृ त थी। उस सूखी धरती पर बेजान
पड़ी ई।

युवा यो ा-मु न ने अपना घोड़ा उसी बेजान शरीर क तरफ हांक दया। एक दन
पहले, हड़ पा क बाहरी सीमा पर हो रही लड़ाई म उसने अपनी मां को नराश
कया था। वो अब कसी और को नराश नह करने वाला था।

मनु को अब भरोसा हो चला था क अपने गहरे घाव और पानी क कमी क वजह


से उसे म हो चला था। जतना वो उस आकृ त के करीब आ रहा था, उतना ही

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वो अपनी आंख मल रहा था। जो वो दे ख रहा था, वो कसी इंसान सा कम, ब क
एक बड़ी मछली जैसा अ धक नजर आ रहा था! अपने तीस घंटे के सफर म,
जतना मनु दे ख पाया था, उससे साफ था क यहां आस पास कोई जलाशय नह
था। तो फर इतनी बड़ी मछली ऐसे सूखे दे श म कैसे आ सकती थी?

ले कन जब मनु मछली के समीप आया, वो हैरान रह गया। वो वा तव म इंसान


था, जो बेहोश पड़ा था। उसने अजीब से व पहने ए थे, जनसे वो मछली क
तरह लग रहा था, उसके शरीर पर मछली क सूखी खाल लपट ई थी। उसने
कुछ अप र चत से आभूषण पहने ए थे, जो शंख और मछली क ह य से बने
थे। और अपने कपड़ और आभूषण क वजह से, कुछ री पर होने के बावजूद
भी, उसम से सागर क गंध आ रही थी!

मछलीनुमा आदमी मुंह के बल जमीन पर पड़ा था। वो ब कुल बेजान लग रहा


था। मनु ने यान दया क उसक वचा म कुछ नीली सी रंगत थी। इसका मतलब
हो सकता था क या तो उसे जहर दया गया था, या उसे मरे ए कुछ समय बीत
चुका था।

मनु को वहां से तुरंत नकलने का याल आया। उसके पास पहले ही कम


परेशानी नह थ । वो पहले ही एक अमू य शव को लेकर जा रहा था, जसका
दाह सं कार ब त ज री था। अगले कुछ घंट म, वो शायद वयं भी शव हो जाने
वाला था। ऐसे म एक तीसरे शव का भार वो नह उठा सकता था।

ले कन फर, वो मनु था। महान ववा वन पुजारी का पु । वो कसी को भी


अनादर से यूं पीछे नह छोड़ सकता था, फर वो चाहे इंसान हो या शव।

जब मनु अपने वक प को तलाश रहा था, तो मछली के लबादे म वो इंसान कुछ


हला। वो जी वत था! अपनी मां को नरमाई से घोड़े क काठ पर रखते ए, मनु
तुरंत अपने घोड़े से उतरा। उसने झुककर, धीमे से उस आदमी को सीधा कया।
जैसे ही मनु ने उस आदमी के धूल से सने और सूय क गम से झुलसाए चेहरे को
दे खा, वो अपनी नजर उससे हटा नह पाया। इस मृत ाय अव ा म भी, वो मनु
क जदगी का सबसे भ चेहरा था। इस आदमी म कुछ असाधारण था, जसे

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मनु भांप नह पा रहा था। पल भर म ही, उसे अहसास आ क उसके घाव क
तकलीफ कम हो चली थी। उसे वयं म एक राहत महसूस ई और उसे वैसी ही
शां त का अनुभव आ, जो उसे स तऋ ष के चरण छू ते ए होता था। ब क यह
अहसास कुछ अ धक गहरा था। अ धक द ।

मनु अभी भी अचंभे म था, ले कन वो जानता था क इस मनु य क जदगी बचाने


के लए उसे ज द ही कुछ करना होगा। म य-मनु य क नीली वचा पर चोट का
कोई नशान नह था। वो यक नन सूखे का शकार हो गया था। मनु ने अपनी थैली
के पानी म अपने कपड़े का एक सरा गीला कया। उसने फर वो गीला कपड़ा
उस आदमी के पपड़ाए ह ठ से लगा दया।

‘जल...’ म य-मनु य कुछ होश म आते ए बुदबुदाया।

‘जल... कृपया जल...!’ मनु के जवाब दे ने से पहले ही उसने दोहराया।

अब मनु के सामने दो रा ते थे। अपनी थैली म बचे नाम-मा के पानी को पीकर वो


कुछ घंट क अपनी जदगी बचा सकता था। और शायद उस काले मं दर तक भी
प ंच सकता था। या वो ये पानी इस आदमी को दे कर इसक जान बचा सकता
था। ले कन ऐसा करने से यक नन मनु तो मर जाता।

बना हच कचाए, संजना और ववा वन पुजारी के बेटे ने उस आदमी का सर


उठाया और अपनी थैली क आखरी कुछ बूंद उसके मुंह म उं डेल द ।

नीली रंगत वाले उस आदमी ने संजना का माथा छु आ और उसे नेही पता क


तरह थपथपाया।

मनु अपने घोड़े के पास जड़ खड़ा था। जैसे उस म य-मनु य ने अपनी आंख
खोल और मु कुराया, मनु का सारा जीवन उसक आंख के सामने घूम गया।
अपने यारे पता के साथ बचपन क वो हंसी, ममतामयी मां से जुड़ी वो खुशनुमा
याद, तारा के साथ गुजारे कुछ सुनहरी पल, बदमाश रंगा के साथ उसक साहसी
जंग... सबकुछ। और उससे अ धक भी। उसे उन जगह और समय क भी बात
याद आ रही थ , ज ह वो पहचानता भी नह था। वो शायद इससे पहले के ज म

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क बात थ । मनु को अपना सारा दद, यास, भूख, गु सा... सब कुछ उस नीली
रंगत वाले इंसान के सामने, उसक एक नजर पड़ते ही, पघलता आ महसूस
आ।

वो कौन है?

म य-मनु य उस थोड़े से पानी से ही पूरी तरह तरोताजा हो उठा था। बना कुछ
कहे वो उठा और संजना के शरीर क तरफ बढ़ा। उसने संजना को इतने यार से
दे खा क मनु क अब तक क रोक ई लाई फूट पड़ी। उसने कोमलता से
संजना का माथा छु आ और यार से उसे थपथपाया। मनु समझ नह पा रहा था
क यह सपना था या वा तव म घ टत हो रहा था, ले कन उसक हर थपथपाहट
से संजना का शरीर वापस से वैसा ही हो गया, जैसे अपनी मृ यु के समय था।
उसके चेहरे क कोमल मु कान, वचा का तेज और म म महक वापस आ गई
थी। ये मां क वो छ व थी, जसे मनु पहचानता था।

‘अब यह अपने अं तम सं कार के लए तैयार है,’ म य-मनु य ने मनु को दे खते


ए, गहरी, नेही आवाज म कहा।

मनु अ भभूत था। उसे अब व ास हो चला था क यह कोई साधारण मनु य नह


था। उसने अपनी एक ही ी से मनु को शारी रक और मान सक प से व
कर दया था। अपनी हथेली क एक हरकत से उसक यारी मां के न र शरीर को
तरोताजा कर दया था। या कम से कम मनु को तो यही लग रहा था। या ये सब
सफ एक थके ए आदमी का म था, कौन जाने?

‘आप कौन ह?’ मनु ने म य-मनु य से पूछा, जसके सुंदर, लंब,े भूरे बाल द ता
का अहसास करा रहे थे।

वो मनु य मु कुराया। तभी मनु को अहसास आ क वहां चल रही गम हवा, ठं डे


झ के म बदल गयी थी। उसके आसपास क बंजर जमीन बादल से भर गई थी।
इससे पहले क मनु मौसम म आए बदलाव पर कुछ कह पाता, उसे अपने चेहरे
पर ह क -ह क बूंद गरती महसूस ।

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वो जान गया था क ये सब उस नीली रंगत वाले इंसान का ही कया धरा था। मनु
उसक तरफ मुड़ा, तो दे खा क वो र बादल क तरफ बढ़े चला जा रहा था।

‘हे रह यमयी, आप कौन ह?’ मनु ने जोर से च लाकर पूछा।

बना के ही वो मनु क तरफ मुड़कर हंसा।

‘याद रखना, महान दे वता, तु ह काले मं दर तक प ंचना है। उगते सूरज क दशा
म बढ़ते जाओ, तु ह वो मं दर वह मलेगा,’ उस आदमी ने नम आवाज म कहा।

उसे काले मं दर के बारे म कैसे पता? मने तो उसे कुछ नह बताया।

‘ले कन आप ह कौन, आय?’

‘मुझे आय मत कहो, राजन। म आपका ऋणी ं। पानी क ये बूंद... उधार ह मुझ


पर। अब से लेकर समय ख म होने तक, म आपका म र ग ं ा। और मेरा एक
नाम भी है।’

‘और वो नाम या है, य म ?’ मनु ने तेज आवाज म पूछा, य क वो आदमी


लगातार चलता जा रहा था।

नीली रंगत वाला इंसान धीमे से मुड़ा, मु कुराया और हाथ हलाते ए मनु क बात
का जवाब दया।

‘तुम मुझे वही पुकारना, जो इस धरती के बाक लोग पुकारते ह।

तुम मुझे म य बुला सकते हो।’

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बनारस, 2017
तं -मं क जंग

व ुत के ब तर के पास रखी कुस पर ही बैठे-बैठे दा मनी क आंख लग गई थी।

व ुत को दो रात पहले मठ म बेहोश हालत म लाया गया था। गोवधन ने अपने


दे वता क जान बचाने म कोई कसर नह छोड़ी। उ ह ने तो जाने-माने सजन और
मठ के म डॉ टर श श द त तक को बुलवा लया था। ये आयुवद, आधु नक
च क सा, ाथना और स म य का भावशाली असर था, जसने दे वता क
जान बचा ली थी।

डॉ टर द त और महान ारका शा ी क धीमी बातचीत से दा मनी क आंख


खुल गई थी।

‘ ारका शा ी जी, ये बड़ी राहत क बात है। व ुत उस जानलेवा हमले के खतरे


से बाहर आ गए ह,’ डॉ टर द त ने कहा। ‘दरअसल... दरअसल... म थोड़ा
हैरान ं।’

दा मनी ने अपनी सुंदर आंख बंद कर भगवान का आभार जताया। उसका व ुत


उसे छोड़कर नह जाने वाला था।

‘ या बात आपको परेशान कर रही है, डॉ टर साहब?’ ारका शा ी ने जानना


चाहा। वो शायद जानते थे क डॉ टर के मन म या चल रहा था। ले कन हमेशा
क तरह, वो चुप लगा गए।

‘गु जी, व ुत असामा य प से व हो रहे ह। च क सा म गुजारे अपने


प ीस साल म, मने कसी को भी इतना ज द व होते नह दे खा है।’

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ारका शा ी सुन रहे थे, उनके चेहरे पर म म मु कान थी।

‘उनक को शकाएं उ लेखनीय ग त से सही हो रही ह। हबल और एलोपै थक,


दोन दवाइय का उन पर तेजी से असर हो रहा है। म समझ सकता ं क वो पूरी
तरह से व नौजवान ह, ले कन फर भी उनक रोग तरोधक मता इतनी
तेज है, जो मने कभी नह दे खी। मानो वो कोई दै वीय मनु य हो!’

‘वो है,’ ारका शा ी ने सहजता से जवाब दया।

डमा टर ने आभार करते ए डॉ टर के सामने हाथ जोड़े और वहां से चले


गए। सजन कुछ और पल उसी अचंभे म वहां खड़े रह गए।

‘वो है,’ दा मनी ने मन ही मन फुसफुसाते ए कहा।

‘मेरा व ुत दै वीय मनु य है।’

‘ या आप जानते ह व ुत क आपके परदादा य और कैसे इस तरह बीमार


ए?’ पुरो हत जी ने अपने चहेते दे वता के लए संतरा छ लते ए पूछा।

पुरो हत जी का बेटा, सोनू भी अब व हो रहा था। वो न सफ तन से व हो


रहा था, ब क उसक शरारत भरी मासू मयत भी वापस लौट आई थी। इससे
पुरो हत जी अब वापस से अपना पूरा यान शा ी वंश पर लगा पा रहे थे।

‘नह , पुरो हत जी,’ व ुत ने जवाब दया। ‘मुझे लगा ये वृ ाव ा के कारण है।


ई र उ ह और भी द घ आयु दान कर, ले कन वो अब अपनी उ के सौ साल
पार कर चुके ह।’

व तु क हालत म तेजी से सुधार हो रहा था। हालां क वो अभी भी ब तर से उठ


नह पाया था, ले कन वो अपने आप म पूरी तरह सजग था।

‘ व ुत आपको ज द से व होकर, हमारे डमा टर, महान ारका शा ी जी


के साथ अ धक से अ धक समय बताना चा हए। अभी आप दोन को, एक- सरे
से, ब त सी बात करनी ह।’

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‘पुरो हत जी, म भी बाबा के साथ समय बताने के अलावा और अ धक कुछ नह
चाहता,’ व ुत ने जवाब दया। ‘ले कन या आप नह जानते क उनसे कुछ भी
बुलवा पाना ब त क ठन है? वो अपनी इ ा से ही बात करते ह। वो उतना ही
बताते ह, जतना बताना चाहते ह। कोई भी उनसे ज दबाजी नह कर सकता।
कम से कम म तो नह !’

‘आप ही हो व ुत, जो उनसे जद कर सकते हो,’ पुरो हत जी ने थक मु कान से


कहा। ‘कम से कम उनसे उस तां क संघष के बारे म तो पूछो, जो उ ह ने
आपक जान बचाने के लए कया था।’

व ुत ने जो सुना, उसे समझने म उसे कुछ पल लगे।

‘ मा क जए... पुरो हत जी, आपने या कहा, तां क संघष?’

पुरो हत जी ने संतरे क फांक को सफाई से लेट पर रख दया।

‘हां, व ुत। आपके परदादा कसी ाकृ तक बीमारी या उ संबंधी कमजोरी के


शकार नह ए ह,’ पुरो हत जी ने सचाई बताते ए कहा।

‘ नया के सबसे बड़े काले जा गर से लड़ते ए उनक जान जाने वाली थी।’

‘एक ब त ही खतरनाक और स म साधक ने आधी नया र से, तुम पर हमले


के लए दो काली श यां भेजी थ , जब तुम गुड़गांव म ही थे। ये श यां तु ह
मारकर, तु हारी आ मा को काले सा ा य म कैद कर दे त अगर हमारे डमा टर
ने उनका सामना नह कया होता तो। ारका शा ी जी ने तु ह र-दे श के तां क
हार से बचाया। तु हारी र ा म उ ह ने अपनी जान क भी बाजी लगा द थी।’

व ुत यह सुनकर जतना ो धत था, उतना ही सकते म भी। वो जानता था क


उसके परदादा उसे ब त यार करते थे, ऊपर से भले ही वो वयं को कतना ही
अनास य न दखा ल। ले कन अभी तक, व ुत नह जानता था क दे व-
रा स मठ के डमा टर ने उसे बचाने के लए अपनी जान तक दांव पर लगा द
थी।

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‘ये सब कौन कर रहा है, पुरो हत जी?’ व ुत ने ोध से पूछा। ‘कौन मुझे मारने
क को शश कर रहा है? उस दन मेरे दशा मेध घाट पर जाने से पहले, बाबा ने
कसी यू व ऑडर का ज तो कया था। वो या है और वो हमारे मन य
ह?’

‘ य तो ब त ही ज टल सवाल है, व त ु । इसका जवाब सफ तु हारे परदादा ही


दे सकते ह, और उ ह ही दे ना चा हए। ले कन म तु ह बता सकता ं क तं के
इस भीषण संघष के पीछे कौन था।’

‘ठ क है...?’ व ुत चाहता था क पुरो हत जी अपनी बात आगे बढ़ाते रह।

पुरो हत जी ने व ुत क आंख म झांका और सपाट लहजे म कहा।

‘ ारका शा ी इस धरती पर आए सबसे स म तां क म से एक ह। तो क पना


करो क उ ह लगभग परा जत कर दे ने वाली वो श कस तर क रही होगी।
यह कोई साधारण आ मा नह है। वह अ या मक प से स म है और हमारे
मठाधीश क द ता और अलौ कक श से सरे ान पर है।’

व ुत यान से सुन रहा था। पुरो हत जी ने अपनी बात आगे बढ़ाई।

‘वह भयानक रात थी। हमारे गु दे व ारका शा ी जी शाम से ही बेचैन दखाई दे


रहे थे, जब मठ म हसक हवाएं चलने लगी थ । हमम से कसी को भी अशुभ का
अहसास नह आ ले कन जैसे हवा का वेग बढ़ा, हमारे मठाधीश ने भांप लया
क यह सामा य नह था। उ ह ने मुझे बताया क तार क गणना के हसाब से यह
व ुत के लए संकट का समय है। कोई इंसान जसे पा ा य और पूव के यो तष
का पूण ान था, उसने तु ह जदा कठपुतली बनाने के लए इस समय का चयन
कया था।’

उस अशुभ रात क घटना के बारे म बताते ए, पुरो हत जी अब मानो शू य म


प ंच गए थे।

‘जब उन हवा ने तूफान का प अपना लया तो धीरे-धीरे चं मा भी भू तया


लाल रंग का होने लगा। द सय हजार प ी उस र -रं जत आसमान म च लाते
ए इधर-उधर उड़ने लगे। जैस-े जैसे रात गहराने लगी, कु े भी गु साए भड़मानस
क तरह भ कने लगे। और फर, हमने वो सुना। बनारस के सारे मं दर के घंटे एक

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साथ बजने लगे। ाचीन मं दर के रह यमयी साधु ने इस खतरे को वैसे ही
भांप लया था, जैसे ारका शा ी ने। उन लोग ने मं दर के घंटे बजाकर, अपने
संर क को बचाने क गुहार लगाई। उन सबने प व आ मा क फौज का
आ ान कया। वो अं धयारा समय, जसके लए बनारस और दे व-रा स मठ क
आ या मक प से संरचना क गई थी, आ प ंचा था। तब तक इस ाचीन नगरी
का आसमान नया क सबसे बड़ी तां क जंग के लए तैयार हो चुका था।

वो पल जसका स दय से इंतजार था, आ प ंचा था।’

व ुत को अपनी रीढ़ म सहरन महसूस ई। ले कन वो कसी भी तुरंत या से


पुरो हत जी को बीच म टोकना नह चाहता था। उसने अभी के लए अपने सवाल
वयं तक रखे, और चुपचाप सुनता रहा।

‘पलभर म महान मठाधीश अपनी कुट क तरफ बढ़ गए। वो लगातार अथववेद


म शा मल, काली आ मा से लड़ने वाले मं का उ ारण कर रहे थे। संभवतः
वो अपनी अलौ कक सेना को बुला रहे थे। डमा टर क कुट र म उनके सबसे
श शाली साथी रहते ह, और वो अपनी जदगी क सबसे बड़ी लड़ाई म उनक
मदद मांग रहे थे। ले कन उ ह ने दे र कर द थी। इससे पहले क वो अपनी
आ या मक शरण म प ंच पाते, बजली क एक तेज धार सीधा आसमान से
हमारे डमा टर पर आकर गरी। मानो सा ात आसमान से आग बरसी हो। एक
पल के लए हम सब जड़ रह गए, हम लगा था क हम अपने यारे नेता के अंत के
सा ी हो गए थे। ले कन, हमने या दे खा... जैसे ही धुआं छटा हमने दे खा क
ताकतवर ारका शा ी अपनी जगह पर डटे खड़े थे, उनक टांगे मजबूत तंभ
क तरह जमीन पर जमी ई थ और लंबे सफेद बाल हवा म लहरा रहे थे। उनका
वशाल शूल अलौ कक श के कोप से जलकर लाल पड़ चुका था।

महान यु छड़ चुका था।’

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सधु का कनारा, हड़ पा के प म म, 1700 ईसापूव
अ-सुरा

रात के अंधेरे म, उसका घोड़ा तूफान क मार झेलते ए आगे बढ़ रहा था। वो सर
से पैर तक तुलसी, लोबान और सरी आयुव दक बू टय के हरे लेप से पुता आ
था। सफ उसक इकलौती आंख ही काले अंधेरे म चमक रही थी।

उसके कमरबंद पर एक बड़ा सा कृपाण लटका आ था। उसक अपनी, भयावह


तलवार—र न-मा । उसके घोड़े क काठ पर अनेक तीर लगे थे और धड़ पर
एक श शाली धनुष लटका आ था। उसक एक ख म को चुक आंख पर
चमड़े का प ला लगा था, जससे उस खाली घेरे को रा ते क तेज हवा और धूल
से बचाया जा सके।

ववा वन पुजारी अपने पुराने मन के दल म आया था। वो शैतान-राजा, सुरा के


दल म आया था।

उसे अपने कान पर भरोसा नह आ। जो नाम उसके दरबान ने लया था, उस


नाम क सुरा जहां सराहना करता था, वह वो उससे डरता भी था।

ऐसा कैसे हो सकता है?

‘तु ह पूरा व ास है...? या तु ह यक न है क आने वाले ने अपना यही नाम


बताया था?’ सुरा ने फर से पूछा।

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सपाही अब घबरा गया। इस वशाल सेना का एक कड़ा नयम यह था क महान
सुरा को कसी भी हालत म नाराज नह कया जाना चा हए। कभी भी नह ।

सुरा से मलकर लोग व ास नह कर पाते थे क इतने छोटे कद का आदमी,


इतना भयानक कैसे हो सकता था। सुरा क रंगत गोरी थी ले कन वो उस पर
अपने मन क अ य क राख मलकर उसे काला बनाए रखता था। वो कभी
भी ह थयार के बना नह सोता था, वो नय मत प से त ए क खोपड़ी म शराब
पीता था, जसे उसने बना ह थयार के सफ अपने हाथ से ही मारा था। वो
हमेशा खूबसूरत म हला क संग त म रहता, खासकर अपने मन क
वधवा के साथ, ले कन वो कभी भी जबरन उ ह अपना नह बनाता था। वो
उनक हां का इंतजार करता, या दखावे क हां का। जो उसे वयं हां नह करती
थ , उ ह वो सावजा नक प से अपने पालतू भे ड़य के सामने डाल दे ता था। इस
वजह से सरी वधवाएं वयं उसके चरण म आ गरती थ । वो हर सुबह एक
वशालकाय पशु का सर काट कर, उसका ताजा गो त अपने वफादार सपा हय
को खलाया करता। उनम से कोई भी तब तक सुबह खाना नह खाता था, जब
तक क उनका आहार, उनके वामी क तलवार क ब ल न हो। उसके दरबार के
नयम बड़े साधारण थे। कोई भी अपराधी, जसे मौत क सजा मली हो वो उसे
चुनौती दे सकता था। ले कन उसे वयं राजा को चुनौती दे कर उससे तब तक
लड़ना होता था, जब तक क वो राजा को मौत के घाट न उतार दे । ले कन अगर
वो इसम हार गया तो उसे इतनी बेरहम मौत द जाती थी क आने वाली कई
पी ढ़य म उसक चचा होती।

सुरा क नजर को इतना तेज माना जाता था क जस पर पड़ उसम छे द कर द।


सुरा को उसके अपने लोग ई र क तरह पूजते थे।

ले कन पूव के लोग के लए वो शैतान था।

इस कु यात शैतान-राजा ने अपने जीवन क शु आत मोहन जोदड़ो के महान


नगर म चमकार के बेटे के प म क थी। उसने बचपन म एक उ वग य आदमी
का पैर इसी लए काट दया था, य क उस आदमी ने जूता गलत सलने क
वजह से सुरा के पता के मुंह पर लात मारी थी। इस वजह से सुरा को नगर

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छोड़कर जाना पड़ा था, उसके साथ उसके सात वफादार दो त भी चले गए थे।
उसने सोचा था क उसके जाने के बाद मामला ठं डा पड़ जाएगा। ले कन जब
उसने सुना क उसके माता- पता को मृत-कारावास म डाल दया गया था, तभी वो
जान गया था क अब वो वहां से जी वत बाहर नह आएंगे। और उस समय उसके
पास इतनी ताकत नह थी क अपने मां-बाप को उस खौफनाक सजा से बचा
पाता।

उसने तशोध क कसम खाई। सफ उस नगर के खलाफ ही नह जसने उसके


मां-बाप के साथ ऐसा कया था, ब क पूरे आयवत से। सुरा ने त ा क क वो
बलता क इस व ा को हमेशा के लए ख म कर दे गा। उसके सात
अनुया यय ने उसका साथ दया। महीने और साल गुजरने के साथ, सुरा सड़क
छाप गुंडे से बढ़कर पहाड़ का कु यात यो ा बन गया था। उसका समूह धीरे-धीरे
दल और फर कबीले म बदल गया। उसक सेना नया म सबसे बेरहम और
असा य मानी जाने लगी। और हड़ पा क त त जीवन शैली से वपरीत, सुरा
क सेना जंगली थी। वो पु ष कै दय को अपने साथ सफ इस लए ही ले जाते थे
ता क हर दन उ ह जदा जलाकर उनक राख को अपने बदन पर मल सक।
सम ह कुश म, सुरा एक अकेली जी वत कवदं ती था।

आयवत क जीवन शैली के वरोध व प, सुरा ने अपने वशाल कबीले को शपथ


दलाई थी क उनम से कोई भी आयवत वा सय और उनक व तु के नाम
उनके वा त वक व प म नह पुकारेगा। उनके ारा बोले गए हर श द म वो घृणा
दखती। वो भाषा को अ-भाषा कहते। वो सृ के रच यता ा को अ- ा
कहते। य प वो भी आयवत के लोग क तरह ही ा को े मानकर पूजते,
ले कन वो उ ह कभी उस नाम से नह पुकारते, जस नाम से हड़ पा वासी पुकारते
थे। उनका भगवान अब अ ा था।

एक ही नाम अब दो भ सं कृ तय म, भ नाम से पूजा जा रहा था। ले कन वो


था एक ही। हमेशा से था। हमेशा रहेगा।

और अब उस अ-भाषा म, साल गुजरने के बाद, सुरा और उसके अनुयायी अब


वयं को भी अलग नाम से पुकारने लगे थे। उनके अपने लोग उ ह भगवान क
तरह पूजते थे जब क उनके पड़ोसी नगर शैतान क तरह उ ह नफरत से दे खते
थे...

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वो अब अ-सुरा बन चुके थे!

‘जी, वामी। उ ह ने मुझसे यही नाम आपको बताने के लए कहा था,’ दरबान ने
कहा, उसने एक बार भी अपनी आंख उठाकर उस ताकतवर राजा को दे खने का
साहस नह कया था। ‘और महाराज, मुझे आपको ये भी बताना चा हए क... वो
बुरी तरह से वकृत है।’

सुरा क चमकदार आंख अब जमीन पर, एक ब से सरे पर घूम रही थ । उसने


शराब वाली वो खोपड़ी, अपने अ ायी सहासन के साथ लगी चौक पर रखी
और अपने म व सेनाप त, चंड क तरफ मुड़ा। चंड ने आगंतुक का नाम
सुनते ही ऊंट क भुनी टांग को चबाना बंद कर दया था।

‘ बना एक पल गंवाए, उसे मार दो सुरा,’ चंड ने सलाह द । ‘आपको याद है न


क उसने पछली बार हमारे साथ या कया था...’

सफ चंड ही वकराल राजा को उसके नाम से पुकार सकता था। और सफ


चंड ही सुरा को उस अपमा नत हार क याद दला सकता था।

‘मुझे अ तरह याद है, चंड...’ सुरा ने कड़कते ए कहा। ‘मुझे याद है क
उसने अपने मु भर यो ा के साथ हमारी सेना को धूल चटा द थी। मुझे याद
है क वो पहाड़ से मेरे े घोड़ को ले गया था। मुझे याद है क उसने अपनी
तलवार से तु ह और मुझे बुरी तरह पछाड़ दया था!’

सुरा ने अपनी खोपड़ी से नशीले पराग का बड़ा सा घूंट भरा।

‘ले कन मुझे ये भी याद है... क उसने मेरे बेटे क जान ब द थी,’ सुरा ने फर
से कहा। ‘मुझे ये भी याद है क उसने हमारी कसी भी म हला को हाथ तक नह
लगाया था और उनसे स मानपूवक वहार कया था।’

चंड सुन रहा था। वो इससे असहमत नह हो सकता था। वो जानता था क सुरा
सही कह रहा था।

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‘मुझे याद है क हमारे युगल सं ाम म जब भी मेरी तलवार गर जाती तो वो
दोबारा उसे उठाने का मुझे मौका दे ता। म ये नह भूल सकता क जब उसके पास
मेरा सर कलम करने का मौका था, तब वो चुपचाप मुझे मेरे हाल पर छोड़कर
चला गया।’

सुरा अपने बचपन के म और अपनी सेना के अ य क तरफ मुड़ा।

‘वो साधारण मनु य नह है, चंड। कोई भी साधारण मनु य तु ह और मुझे इतनी
आसानी से नह हरा सकता है। वो दे वता है! ये मने उसक आंख म दे खा है।
उनम नेह क एक चमक है, और वो नेह उसके श ु के लए भी है।’

‘आप सही कह रहे ह, राजन,’ चंड ने वो सब याद करते ए कहा। ‘ले कन फर


भी वो हमारा श ु है, सुरा। व पर शासन करने क आपक राह म वो इकलौता
रोड़ा है!’

‘हां वो है। हां वो है...’ सुरा बुदबुदाया। वो अचानक दरबान क तरफ मुड़ा और
आदे श दया।

‘मेहमान को अंदर ले आओ। और यान रहे उनके स मान म कोई कमी न रहे।’

‘जी, वामी,’ सपाही सर झुकाकर उस रह यमयी और घृणा द अ त थ को


लाने के लए चला गया।

सुरा और चंड को अपनी आंख पर भरोसा नह हो पा रहा था। उनके सामने जो


खड़ा था वो, वही दे वता नह था जसे वो भय और आकषण से याद करते थे। हरे
लेप से ढं का, जो उसके खून क वजह से अब तक भूरा हो गया था, वो आदमी
कसी भी तरह उस वैभवशाली यो ा-मु न जैसा नह था, जसे उ ह ने पछली
बार यु -भू म म दे खा था।

सुरा ने मेहमान क आंख म नजद क से झांका। वो आंख उसे बेचैन करने वाली
नदयता से घूर रही थी। ये आदमी वही था। ले कन कुछ तो बदल गया था। वो
बदलाव भयानक था।

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उसे या हो गया था?

‘ओ महान अ-दे वता, मेरे तु नवास पर आपका वागत है,’ अपने आ य और


सदमे पर काबू पाकर, सुरा ने उसके वागत म कहा।

‘ वागत है, महान अ ववा वन पुजारी।’

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बनारस 2017
रा स

‘ व ुत, या आप जानते ह क रा स या है?’ पुरो हत जी ने पूछा।

‘पूरा तो नह पता पुरो हत जी, ले कन म मानता ं क वह वकृत ाणी है, जो


कसी शाप वश स दय तक पीड़ा झेलता है,’ व ुत ने जवाब दया।

‘काफ सही है। रा स एक वकराल ाणी है जो न तो इधर है, न उधर।


रा स न तो पूरी तरह से मृत है और न जी वत। वो न इस लोक का वासी है, न
उस लोक का। यह एक शा पत आ मा क चलायमान त है, जो अपने सारे
ान और समझ के बावजूद जीवन भर पीड़ा भोगती है। अ य प म रहते ए
उसे स दय तक तकलीफ झेलनी पड़ती है।’

ये श द बोलते ए, पुरो हत जी क नजर खड़क से बाहर कसी चीज पर टक


गई थ । व ुत को अहसास आ क वो महान मठाधीश क कुट र को दे ख रहे
थे।

उस रह यमयी कुट र से नजर हटाए बना, पुरो हत जी ने कहा।

‘आप जानते हो व ुत, हमारे डमा टर क कुट र म सच म रा स रहता है।


उस रात मने उसे दे खा था। साल से हमने उसक उप त को महसूस कया है।
ले कन उस रात, ारका शा ी ने अपने अलौ कक म को मदद के लए बुलाया
था। मने... दे खा उसे...’ अब तक पुरो हत जी आं शक प से जड़ हो चले थे।

व ुत ने अपना हाथ पुरो हत जी के कंधे पर रखा और उस बुजुग पुजारी को शांत


करने क को शश क । पुरो हत जी को इससे कुछ राहत महसूस ई और वो तुरंत
व ुत के हाथ को थपथपाते ए म म से मु कुराए।

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उ ह ने अपना गला साफ करते ए एक गलास पानी पया और फर वापस
अपनी बात कहनी शु क । व ुत के लए वो जानना ज री था।

‘उनके कुट र से आती सैकड़ ओझा के मं ो ार क आवाज खून को जमा


दे ने वाली थी। वो जमा दे ने वाला समय था, मठ म मौजूद, हमम से हर कसी ने
गु दे व को उनके कुट र म अपने आप जाते ए दे खा था,’ पुरो हत जी ने कहा।

‘हमने ारका शा ी जी को अकेले कुट र म जाते ए दे खा, ले कन पल भर म ही


वो जगह एक खास, व च काश से जगमगा उठ । ऐसा लग रहा था मानो
सैकड़ अ नयां एक साथ व लत हो उठ ह । और फर एक ही झटके से, पूरे
बनारस म अंधेरा छा गया। हर ब ब, गली क लाइट, ट वी... और तो और खाना
पकाने क आग भी तुरंत बुझ गई। मानो कसी शैतान, ज ने द सय मील तक
क रौशनी को एक फूंक मारकर बुझा दया हो। उसके बाद सफ दो ही चीज
दखाई दे रही थ — डमा टर के कुट र से उठती तां क अ न क दल दहला दे ने
वाली च ध, और आसमान म कड़कती बजली का लाल वार।’

मठ के उस शांत से च क सा क म कुछ दे र के लए स ाटा छा गया। व ुत


त था। पुरो हत जी उस भयानक रात क वीभ स याद म खो गए थे। मठ क
एक उपचा रका ने व ुत के खाने के साथ च क सीय क म वेश कया, ले कन
दे वता के वन ले कन ढ़ इंकार से तुरंत वो वापस चली गई।

‘ले कन पुरो हत जी, अगर वो मेरे पीछे पड़े थे, तो ये सब, यहां बनारस म य
शु आ? म तो यहां से सैकड़ मील र था!’

‘ र से क जाने वाली तां क या ब त ाचीन और वीकृत अ यास है,


व ुत। कुछ लोग का मानना है क प मी पादरी, पोप पायस XII ने, तीय
व यु के दौरान, वयं अडो फ हटलर पर इसे आजमाया था। उनका मानना
था क हटलर शैतान का अवतार था, और उसे ख म करने के लए उ ह ने गहन
तं का सहारा लया। कोई नह कह सकता क उसका प रणाम या रहा था;
सवाय इस कहावत के क उस अनु ान के दौरान वै टकन का एक उ पुजारी

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तुरंत मर गया था। उनका मानना था, हटलर के अंदर का शैतान इतना ताकतवर
था क उसे हटाया नह जा सकता था।’

‘वाह! हटलर? कौन इसक क पना करेगा?’ व ुत ने अ व ास से कहा।

‘ हटलर, व यु और चच से संबं धत अनेक पाठ म इसे दज कया गया है।


बाद म वै टकन के ओझा , जनम गै यल अमोथ भी शा मल थे, ने कहा था क
र तं इस लए असफल रहा य क शकार पायस XII के स मुख मौजूद
नह था। ये, यक नन प मी मा यता है। हमारी ाचीन काली-कला म ऐसी कोई
बा यता नह है।’

‘ये सब ब त हैरानी भरा और भयानक है, पुरो हत जी। ले कन मेरा सवाल अभी
भी बरकरार है। अगर आप कह रहे ह क वो हमला मेरे लए था, तो वो सब
बनारस म य आ? वहां य नह , जहां म था? और य क अपने परदादा क
तुलना म म सामा य ,ं तो म तो आसानी से उनका शकार बन गया होता।’

पुरो हत जी ने व ुत क आखरी बात पर सहमत होते ए, तेजी से सर हलाया।

‘हां, आप उनसे बराबर क ट कर लेत,े व ुत। ले कन आप उ ह हरा नह पाते।


याद रख क ारका शा ी जी कौन ह। नसंदेह आप एक समथ तां क हो,
ले कन अपने परदादा क तुलना म नह । और वैसे भी, हमारे मठाधीश ने वो
सं ाम अकेले नह लड़ा था। उ ह ने बनारस के सैकड़ गहन तां क और ऋ षय
से मदद ली थी, ज ह ने अपने मं दर , घर , घाट और मशान भू म से ही उनका
साथ दया था। वो अ ाई और बुराई के बीच क जंग का अ त य था। वो
अपने जीवन भर क तप या से ारका शा ी जी को बल दे रहे थे। वे सब जानते
थे क मानवजा त इस हार को बदा त नह कर सकती थी।’

व ुत अब उस जो खम भरी रात क क पना कर सकता था। दे व-रा स मठ और


डमा टर ारका शा ी क कुट र उस अ या मक हमले के जवाब का क थी,
जब क इस ाचीन नगर के ब त से तप वी, पी ढ़य से ा त मं के सहारे ढाल
बना रहे थे।

बनारस के पुजा रय क अनेक पी ढ़यां, जाने कब से इस काली रात के लए


तैयारी कर रही थ । वो जानते थे क इस न ु र संघष म उनके ाण भी जा सकते

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थे। और फर भी वो नडरता से लड़ते रहे। सैकड़ साल म वो अपनी सामा जक
चमक खो चुके थे। ज ह एक समय म जीवन का नै तक आदश समझा जाता था,
इस प व गु के स मान म राजा तक अपना सहासन छोड़ दे ते थे, वो साधू
और ऋ ष तृतीय ेणी के नाग रक क तरह, दया पर जीने के लए मजबूर थे।
भौ तकतावाद, प मीवाद से भा वत असंगत समाज इन मागदशक को अब
महज गृह- वेश, ज म और मृ यु संबंधी समारोह तक सी मत कर चुका था।
महानगरीय ह प रवार इ ह एक अवां छत ज रत क तरह महज रवाज पू त के
लए बुलाता है। वो नह जानते क आज भी यही हा शये पर बैठे भगवान के
आदमी, काली ताकत के खलाफ हमारी सबसे बड़ी सुर ा बनते ह। वो लोग उस
दन अपनी जान तक गंवाने को तैयार थे।

वो या बचाने क को शश कर रहे थे?

‘ जस समय गु दे व अपनी कुट र से बाहर आए, वो वयं एक दै य लग रहे थे। वो


अपने वा त वक आकार से ब त बड़े लग रहे थे और कसी ेत के जैसे चल रहे
थे। उनके बाल क लट हवा म सफेद सांप के जैसे उड़ रही थ । ले कन सबसे
अ धक... सबसे अ धक हम जस चीज ने डराया, वो थी उनक आंख से
नकलती नीली रौशनी। हम जानते थे क हम अपने डमा टर को नह दे ख रहे
थे। उनके अंदर कोई और था।’

‘वो कौन था, पुरो हत जी?’ व ुत ने सीधे-सीधे पूछा। उसका मुंह सूख रहा था।

‘वो हमारे डमा टर म रा स था, व ुत। और वो वयं गु दे व के शरीर म


नह घुस आया था। ारका शा ी जी ने उसे अपने शरीर म बुलाया था, जससे
वो उन दो काली श य का मुकाबला कर सक।’

कमरे म कुछ पल स ाटा रहा। फर पुरो हत जी ने अपनी बात कही।

‘आसमान के अचानक से साफ होने और ारका शा ी जी के बेजान होकर


जमीन पर गरने से पहले, हमने उ ह अपना शूल उठाकर, अपनी नीली आंख
से सुख चांद को दे खकर, ये कहते ए सुना...’

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पुरो हत जी अब जोश से लय के उन पल को फर से साकार करने क को शश
कर रहे थे। आंख से झलकते डर के साथ, उ ह ने अपने दोन हाथ ऊपर क तरफ
उठाए, अपना सर पीछे फका और कसी ऐसी भाषा म बोला, जो व ुत ने कभी
उनके मुंह से नह सुनी थी।

‘इउ ओ बानी दा सदादे स ादा, अगो त हो!’

‘इउ ओ बानो दे सा तेर स ादा, तोवा!’

व ुत इन पं य का मतलब नह जानता था, ले कन वो जानता था क इसका


मतलब कुछ अशुभ है। और वो समझ सकता था क ये भाषा पुतगाली थी।

‘पुरो हत जी, इन लाइन का या मतलब है?’ व ुत ने बेचैनी से पूछा।

पुरो हत जी ने सहजता से कहा। ‘इसका ये मतलब है, व ुत—

‘इस प व नगरी से म तु ह न का सत करता ं, अगो त हो!

इस पावन नगरी से म तु ह बाहर नकालता ं, तावो!’

16व सद के गोवा के पुतगाली का तल वापस आए थे। वो ही नमम ह यारे,


ज ह व ुत और ारका शा ी के पूवज, महान माकडे य शा ी ने मारा था। उ ह
ही इस काम के लए वापस बुलाया गया था।

वा तव म, वो कभी पूरी तरह गए ही नह थे।

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ब थ नयाई नगर (वतमान का तुक ), 325 ई वी
नाइ सया क प रषद

‘नॉन लासारे के कुए तो ए कादा, इ ेरातोर!’ नकाबपोश महंत फुसफुसाया।

‘ऐसा मत होने दो, स ाट!’

धरती के सबसे श शाली राजा के सुस त घोड़े के साथ चलते ए, अ ै त


शा ी ने स ाट से वनती क । वो जानता था क तीन सौ से अ धक ईसाई बशप
क मु य प रषद के बाद आयो जत गु त सभा म जो नणय लया गया था, उसके
लंबे अरसे म पड़ने वाले भाव को सारे श शाली राजा नह समझ पाए ह गे।

‘चले जाओ, इससे पहले क म तु ह गर तार कर लू,ं ’ स ाट ने उपहास करते


ए कहा, वो हाथ हलाकर उस भीड़ का अ भवादन कर रहा था, जस पर उसने
अभी कुछ समय पहले ही वजय हा सल क थी। वो इंसान क ढु लमुल और
समूह म रहने वाली मान सकता पर हंसने से वयं को रोक नह पा रहा था।

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ये बने ही कसी एक शासक के अंतगत शा सत होने के लए ह। एक ही कानून के
तहत। एक ही आदे श के तहत। अ ै त एक म था, और ऐसा इंसान जसक
स ाट ब त शंसा करता था। ‘मेरे श वर म आकर मुझसे मलना, ढ ठ बालक,’
उसने ह कुश क पहाड़ी से परे, समतल से आए अपने युवा म क तरफ ं य
से मु कुराते ए कहा। स ाट दे खने म अपराजेय था।

महान कां टटाइन अपने समय से आगे का था।

यक नन वो ऐसा दखता था मानो उसे इस धरती पर शासन करने के लए ही


भेजा गया हो। कां टटाइन अपने सुस त आसन पर पालथी मारकर बैठा था,
उसने अभी भी अपना सुनहरा कवच पहन रखा था। अपने मजबूत जबड़े , तीखी
नाक और घुंघराले बाल क वजह से वो मेसेडो नया के सकंदर का ही पुनज म
तीत होता था।

वो शायद था भी।

अ ै त ने शाही मंडप म वेश कया। कां टटाइन के अ ायी शाही नवास क


समृ क पना से परे थे। मा णक, हीरे और प ज ड़त, स ाट का श वर
संप ता का तीक था। कां टटाइन वहां अपने ताकतवर हाथ म म दरा का
सुनहरा याला उठाए बैठा था। उसम कृ त का ओज था।

स ाट ने खड़े होकर अ ै त का वागत कया और उसके साथ ही सम शाही


प रषद भी खड़ी हो गई। स ाट ने उ ह अपनी दो उं ग लयां हलाकर बैठने का
संकेत दया। उसके प रषद सद य जानते थे क कां टटाइन अपने वशाल
सा ा य के सभी कोन से आए रह यवा दय , पुजा रय , यो ा , ना वक और
बु जी वय से नय मत संपक रखता था। और सफ अपने सा ा य से ही नह ,
उससे भी आगे से। ले कन वो सभी च कत रह गए जब उ ह ने दे खा क वो महान
वजेता उस रह यमयी युवा को कसी पुराने म क तरह अपनी बांह म भर रहा
था।

स ाट और नकाबपोश आगंतुक म नेही संबंध दे खकर, शाही साक ने मेहमान के


लए भी सुनहरे याले म वही े म दरा तुत क , जो कां टटाइन और उसक

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प रषद सद य पी रहे थे।

‘मेरे श शाली कतु उदासीन म म दरा का सेवन नह करते,’ स ाट ने साक


को र रहने का संकेत करते ए, शरारती मु कान और एक भ ह उठाकर घोषणा
क । स ाट क हर मु ा म एक न ववा दत अ धकार भाव था।

‘और यह मांस भी नह खाते ह!’ स ाट ने अपनी प रषद सद य क तरफ मुड़ते


ए कहा। ‘ले कन म आपको भरोसा दलाता ,ं ये एक ो धत बैल को उसके
स ग पकड़कर ध कया सकते ह और दो मील के ल य पर भी तीर से नशाना लगा
सकते ह।’

वह वापस अ ै त क तरफ मुड़ा। अपने दोन हाथ अपने म के कंधे पर रखकर,


कां टटाइन ने कहा, ‘एक और बात। यह हमम से कसी क भी अपे ा ई र के
अ धक करीब ह।’ राजा क आवाज शंसा और नेह से नम हो गई थी।

‘आप महान और दयालु ह, श शाली कां टटाइन,’ आगंतुक ने महान शासक के


स मान म अपना नकाब उतारकर कहा। श वर म उप त येक दो बात
से हैरान रह गया—युवा आगंतुक का खास मनोहर चेहरा, और उसने महान
कां टटाइन को उसके नाम से पुकारने क ह मत क थी!

अब वो राजा के नजी क म थे। जस बारे म वो बात कर रहे थे, उससे नया


क क मत हमेशा के लए बदल जाने वाली थी।

कां टटाइन ने नाइ सया क प रषद म अपने वशाल सा ा य के ईसाई बशप को


बुलाया था। पछले तीन सौ साल से रोमन सा ा य म धा मक दरार और हसा
का बोलबाला था। सं दाय के नमम उ पीड़न और शासक ारा नयं त दे व त
ने ईसाइयत को और मजबूत ही कया था। अपने उप नवेश को मलाने के लए
स ाट ने अनेक यु लड़े थे, और अब वो धा मक मतभेद को ख म करना चाहता
था— जसक शु आत उसने ईसाइयत म ही वप ी समूह के साथ क थी।
आ ा और दशन म वो सबको समान तर पर लाना चाहता था।

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ले कन कां टटाइन क एक गहरी योजना भी थी। मु य प रषद के बाद ही, बंद
दरवाज के पीछे एक गु त सभा का आयोजन कया गया था। यहां कां टटाइन ने
अपने वचार उ पुजा रय , अ य , खजांची और सलाहकार के साथ साझा
कया। ऐसा नज रया जो उसके जाने के बाद भी कायम रहेगा।

वो अपने जाने के बाद भी इस धरती को सुर त करना चाहता था, अनंतकाल


तक शासन और सामा जक व ा के मा यम से। उसका मानना था क
आ ा और स ांत म व भ ता ही मानवजा त के लए सबसे बड़ा खतरा थे।
दशक के यु , र पात और वजय, व भ सं कृ तय और स यता के लोग
पर शासन करके, लोग क हसक वृ त का नजद क से नरी ण करके,
कां टटाइन ने ढ़ वचार बना लया था। नया को एक ही ताकत के मा यम से
नयं त करने क आव यकता है, एक सव श —जो झगड़ालू समुदाय
और मह वाकां ी य ारा बनाई सीमा और ई र को एक म मला दे गी।
उन सबका शासन एक अनूठे और सावका लक ऑडर के मा यम से कया
जाएगा।

एक यू व ऑडर के मा यम से।

‘ले कन यह इस सभा का ल य नह था, ओ राजन!’ अ ै त ने जोर दया। ‘आपने


मुझे यह संदेश दे कर बुलवाया था क आप पुजा रय के आपसी मतभेद ख म
करके, उ ह एक साथ लाना चाहते ह।’

‘तो तुम या सोचते हो क म इस मह वाकां ी योजना को एक संदेश के मा यम


से भेज दे ता, अ ै त?’ कां टटाइन ने जवाब दया। वो हाथी दांत और वण से बनी
मेज से टककर खड़ा था, और अपनी उं ग लय म पकड़े ए, हीरे-ज ड़त खाली
याले को उलट-पलट रहा था।

अ ै त ने आह भरी। ‘मुझे फर से बताइए स ाट, आपक महान योजना से


हा सल या होगा?’

कां टटाइन एक-दो पल शांत रहा, ले कन उसके चेहरे पर आशा क लहर दे खी


जा सकती थी। उसने याला एक तरफ रख दया और शानदार चौक ख चकर,

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अ ै त के सामने बैठ गया।

‘तुम समझ नह रहे, म ... मानवजा त अब पहले से अ धक नमम तरीके से


एक- सरे को मार रही है। हर सरे दन इंसान एक- सरे से नफरत करने या उसे
मारने का कोई नया कारण तलाश लेता है। वो भगवान के नाम पर, आ ा के नाम
पर, दे शभ के नाम पर, सं दाय के नाम पर, जमीन के लए, वण के लए एक-
सरे को मार रहे ह... ये र - पपासु अपनी मह वाकां ा के लए कोई भी वजह
ढूं ढ़ लेते ह। कसी एक इंसान के वण आसन पर बैठने के लए लाख मासूम का
र बहा दया जाता है।’

‘ या आपने साल तक यु नह कया है, हजार लोग को मारकर, परा जत कर


या आज आप स ाट नह बने हो?’ अ ै त ने बेबाक से पूछा। वह कां टटाइन
का स मान करता था। ले कन वो ऐसे राजा को, जो वयं तलवार के दम पर
शासन करता है, मानव क ू रता पर शां त का उपदे श दे ने नह दे सकता था।

‘म जानता था क तुम ये बात उठाओगे,’ कां टटाइन ने बना कसी खीझ के


कहा। ‘हां, मने साल तक यु करके, श ु को परा त कया है। इसी लए हसा
और वजय क णभंगुरता मुझसे अ धक और कोई नह समझ सकता। और म
ऐसी व ा करना चाहता ,ं जससे यह नया पहले से बेहतर बन पाए। अगर
हमने हर चीज को ऐसे ही चलने दया जैसी वो है, तो वो दन र नह जब हम
अपने ही हाथ अपना वनाश कर लगे। और म, कां टटाइन थम, ऐसा नह होने
ं गा।’

‘आपका उ े य महान है, स ाट। ले कन जो अ यादे श आप पा रत कर रहे ह,


उनसे यह ल य हा सल नह होगा। मानवजा त कोई भेड़-बकरी नह है। उनक
आजाद छ न लेना संभव नह होगा। आप उनक नबाध इ ा को बा धत नह
कर सकते। आप उनके अंतमन क भावना को नह दबा सकते।’

‘ बलकुल म कर सकता !ं ’ कां टटाइन ने अपने अवा त वक आ म व ास को


दशाते ए कहा। ‘ या तुमने उन हजार लोग को मुझ पर फूल बरसाते नह
दे खा? ये वह लोग ह जनके घर और नगर मने कुछ ही दन पहले जलाये थे। और
आज, वो मेरे सामने सर झुका रहे ह। वो मेरे आने का उ सव मना रहे ह। या
तु ह नह लगता अ ै त, क इंसान को प र त के अनुसार ढाला जा सकता है?
उन पर शासन कया जा सकता है?’

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राजा उठकर अपने श वर म, कुछ सोचते ए च कर लगाने लगा। अ ै त ने
कां टटाइन क ताकतवर मु को तलवार के ह े पर कसते ए दे खा। वजेता का
दमाग उ े जत हो चुका था। कुछ पल बाद, स ाट फर से आयवत से आए युवा
यो ा-पुजारी के स मुख बैठ गया।

‘क पना करो अ ै त... बना यु क एक नया। बना हसा क नया। एक


भूमंडलीय, एक कृत सं दाय, जो धम क सीमा से आजाद होगा, रा के
भेदभाव से परे होगा...’

स ाट क नजर अब अ ै त से परे दे ख रही थ । वो एक व ा क आंख थ , जो


मानता था क वो ये नया बदल सकता था।

ले कन इस बार, राजा बड़ी गलती करने जा रहा था। ब त बड़ी गलती।

शाही श वर म पड़ती सूय क पहली रौशनी ने अ ै त को उसके घर वापसी के लंबे


सफर क याद दलाई।

पूरी रात चली बहस के बाद, अ ै त मान गया था क कसी भी तरह कां टटाइन
को मानवजा त के लए बनाई गई उसक वशाल योजना लागू करने से नह रोका
जा सकता। ऐसे आदमी को रोक पाना असंभव है, जो वयं को ई र के समान ही
सवश मान मानता हो।

‘आपक योजना ब त खतरनाक है, स ाट। ये कुछ लोग के हाथ म अभूतपूव


श दे दे गी, और अगर वो लोग नकले, तो यह धरती क सबसे हसक बुराई
बनकर उभरेगी।’

कां टटाइन ने सहम त म सर हलाया। वो अपने म के पास गया और उसके


कंधे पर अपना हाथ रखा।

‘इसी लए मने तु ह यहां बुलाया है, मेरे भले म । अगर यू व ऑडर अपने
महान उ े य से भटकता है, तो सफ तु हारा वंश ही उसे रोक पाएगा। तुम स दय

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तक नया के सबसे ब मू य रह य के संर क रहोगे। म जानता ं क तुम
व ा को पुन ा पत कर दोगे।’

अ ै त ने महान स ाट से वदा ली। जैसे ही वह स ाट के श वर से बाहर कदम


रखने को आ, उसने वापस मुड़कर दे खा।

‘आप उन कुछ चु नदा लोग म से हो जो काले मं दर के रह य को जानते ह गे,


स ाट। आप जानते ह क वहां या संर त है। फर य ...?’

‘हां, म जानता ,ं ’ कां टटाइन ने जवाब दया। ‘इसी लए म वही कर रहा ं जो


कसी भी सम पत सेवक को करना चा हए।’

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हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव
मां...

वयं को म य कहने वाले आदमी के नदश के अनुसार, मनु अपनी मां के शरीर
को यार और सावधानी से लए, पूव दशा क ओर सफर करता रहा। वीराने म
उस द पु ष के संपक म आने पर मनु वयं को ताजा दम महसूस कर रहा था।
इससे मनु को एक बात का अहसास तो हो गया था।

वो आज तो नह मरने वाला था।

और इसका मतलब था क उसे बदला लेने का मौका मलेगा। अपने वतमान


कत को भुलाए बना, मनु के मन म बदला लेने क इ ा घर कए ए थी।

म पं डत चं धर और य वदा का अ त व उसी तरह मटा ं गा जैसे मने उस


रंगा को ख म कया था।

वो दोबारा से घंट का सफर तय कर चुका था, ले कन इस रेतीली जमीन पर उसे


र तक कुछ दखाई नह पड़ा था। ले कन इस बार वो बलकुल भी नराश नह

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था। उसे अहसास था क अगर म य ने उसे दशा दखाई थी, तो वो सही ही
होगी।

एक और घंटा गुजरा और मनु को र तज पर लेट पहाड़ क धुंधली से रेखा


दखाई द । वो कुछ मील के फासले से अ धक र नह थे। पहाड़ का मतलब था
आहार, पानी और इससे भी बढ़कर... मं दर।

पहाड़ के समीप प ंचने पर, मनु को अहसास आ क वो पहाड़ उससे कह ऊंचा


था, जतना ऐसी जगह म पाया जाता है। इस पहाड़ क ऊंचाई इतनी थी क ये
उससे कही अ धक र से दखाई पड़ती होगी, जतनी र से मनु ने इसे दे खा था।
मनु को समझ आया क ताजा गरी बरसात से साफ ए वातावरण म ही इस
पहाड़ को र से दे खा जा सकता था। और सामा य दन म ये पहाड़, रेतीली हवा
के बीच अ य ही बने रहते ह। मानो कृ त के पद म छपे ए ह ।

वो उसी क दशा म दौड़े आ रहे थे। री से ही मनु ने अपनी तरफ आते ए


आदमी और औरत को दे ख लया था। समीप आने पर मनु ने दे खा क उनम से
चार आदमी एक पालना लए आ रहे थे, जो यक नन शव के लए था।

उन सबके पास ह थयार थे। म हला और पु ष, दोन ही पूरी तरह से चु त और


यु म श त जान पड़ रहे थे। मनु उनक कद-काठ से ये भांप सकता था।
ले कन उन सबके सांवले-सलोने चेहरे पर एक सादगी और ेम था।

ये लोग कौन थे?

मनु को सरपट भागते अपने घोड़े क एक जगह पर आकर चाल धीमी करनी पड़ी,
जब उसने दे खा क काले प रधान पहने इन लोग ने धीरे-धीरे उसे घेरना शु कर
दया था। उसे उनसे कसी तरह के खतरे का अनुभव नह आ। वयं एक स म
यो ा होने क वजह से, मनु म सपाही का सा सहज- ान भी था। वो र से ही
वरोध को भांप सकता था। यहां, उसे ऐसा कुछ अनुभव नह आ था।

एक वृ म हला, जसका चेहरा उसक अपनी मां के चेहरे क तरह ही सुंदर था,
उसक तरफ आई। उसके बाल पूरी तरह सफेद थे, आंख नीली, तीखी नाक और

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एक असामा य आ म व ास था। उसके काले कपड़े नम हवा म लहरा रहे थे,
उसक उ अ सी या उससे कुछ अ धक ही रही होगी। ले कन वो अपने से आधी
उ क म हला क तरह चल और बोल रही थी।

‘आपका वागत है, मनु,’ उसने सुकून भरी आवाज म कहा। ‘अब संजना क
दे खभाल हम करने द।’

मनु कसी ऐसे इंसान से मलकर ब त भावुक हो गया था, जस पर वो भरोसा


कर सकता था। वो थका आ था, घायल था, भावना मक प से हल चुका था
और अंदर ही अंदर नफरत लए घूम रहा था। उसने आभार म सर हला दया,
और फूट-फूटकर रोने लगा। वो तब तक रोता रहा, जब तक उन लोग ने उसक मां
को उठाकर पालने पर नह सुला दया।

घोड़े से उतरकर, उसने झुककर बार-बार संजना के चेहरे को चूमा। ‘मां... मेरी
मां... मेरी यारी, मां... म आपसे ज द मलूंगा, मां... आप डरना मत, मां... म
ज द आपके पास आऊंगा, मां... मां... मेरी मां...’ वो बस यही कहता रहा।

जब उ ह ने उसे उठाया, तो उसे अहसास आ क वो आखरी बार अपनी मां का


चेहरा दे ख रहा था। ‘मांआआ...!’ मनु च लाते ए अपने घुटन पर ढह गया,
उसने अपना माथा नीचे क स त जमीन पर टका दया। खी पु बार-बार अपने
दोन हाथ से जमीन पीट रहा था। वो लोग संजना को अं तम सं कार के लए र
ले गए।

मरते समय भी संजना ने अपने बेटे का साथ नह छोड़ा था।

ले कन अब वो हमेशा के लए जा रही थी।

दो दन पहले, सोमद के दल के साथ चावल का नवाला खाने के बाद से, अब


पहली बार उसके मुंह म अनाज का दाना गया था। उस समय जब मुंह म नवाला
लेते ही उसने अपने सामने बैठे सपाही के सर म तीर धंसते दे खा था। अब मनु
धीरे से अपनी उं ग लय म चावल और स जी का नवाला लए उसे अपने मुंह क
ओर ले जा रहा था। वो बस जी वत रहने के लए खा रहा था।

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उस दयालु और सफेद बाल वाली म हला ने लेट पहाड़ वाली उस गुफा म
वेश कया, जसम मनु ठहरा आ था। इस रेतीले दे श म रात ब त ठं डी आ
करती थ , जब क दन खासे गम थे। मनु को गम दे ने के लए वहां थोड़ी सी आग
जली ई थी। इस रह यमयी जगह के च क सक ने पूरे दन उसक दे खभाल क
थी।

मनु का जी वत बचना कसी चम कार से कम नह था। जस रणभू म से वो


नकला था, वहां कोई क पना नह कर सकता था क तीन तीर और तलवार के
घातक वार से कोई बच सकता था। ऐसा तीत होता था मानो कोई अनजानी
श ववा वन और संजना के पु को जी वत रखे ए थी।

वो उसे बलकुल वैसे ही अपने हाथ से खाना खला रही थी, जैसे उसक मां
खलाया करती थी। उसके अठारह वष का होने तक उसक मां ने उसे अपने हाथ
से खाना खलाया था। उसने उसके सर को थपथपाया, जस पर अब थोड़े बाल
उग आए थे। उस म हला क आंख म वही कोमलता थी, जो उसक मां क आंख
म आ करती थी। जब मनु ने धीरे से इशारा कया क अभी के लए वो पया त ले
चुका था, तो उस म हला ने धीरे से चावल का कटोरा पीछे सरका दया।

‘अब आपको आराम करना चा हए, पु ,’ उस वृ म हला ने जाने के लए उठते


ए, यार से कहा। ‘कल म आपको काले मं दर ले जाऊंगी।’

‘ब त ध यवाद, दे वी... आपक द हर सहायता के लए...’ मनु ने कहा। उसने


अपने जीवन म कभी कसी का इतना आभार महसूस नह कया था। उसक मां
का अं तम सं कार सनातन धम के पूरे री त- रवाज से कर दया गया था। अभी
तो यही उसके लए सब कुछ था।

म हला मु कुराई। ‘अब आराम कर, मनु,’ ये कहकर वो गुफा के दरवाजे से बाहर
जाने को मुड़ी।

‘दे वी...’ मनु ने पुकारा।

वो मुड़ी। ‘हां, पु ...?’

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‘आप मेरा नाम कैसे जानती ह? और आपको ये कैसे पता क मेरी मां का नाम
संजना था? मने तो आपको नह बताया...’ मनु ने जानना चाहा।

म हला सौ यता से मु कुराई।

‘हमारे म म य ने हम बताया,’ उसने सादगी से कहा।

मनु वधा म था। ‘हां, म उनसे मला था। ले कन कैसे... वो यहां मुझसे पहले
कैसे प ंच?े ’ उसने पूछा। ‘म घोड़े पर था और वो पैदल। म सीधा इन धूसर पवत
क तरफ आया ं। वो कसी भी तरह यहां मुझसे पहले नह प ंच सकते थे!’

म हला मु कुराकर मनु क तरफ आई और नेह से उसके गाल को छु आ।

‘म य को कह भी प ंचने क ज रत नह है, मनु।’

‘ मा क जएगा, म समझा नह दे वी...’ मनु ने उसके पावन मुख को दे खते ए


कहा।

वो नरमी से मु कुराई और वापस से जाने के लए मुड़ी। गुफा के दरवाजे के पास


प ंचकर उसने मुड़कर मनु को दे खा।

‘म य को कह जाने क ज रत नह है, य क वो हर जगह ह, मनु।’

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𝐈𝐍𝐃𝐈𝐀𝐍 𝐁𝐄𝐒𝐓 𝐓𝐄𝐋𝐄𝐆𝐑𝐀𝐌 𝐄-𝐁𝐎𝐎𝐊𝐒 𝐂𝐇𝐀𝐍𝐍𝐄𝐋
(𝑪𝒍𝒊𝒄𝒌 𝑯𝒆𝒓𝒆 𝑻𝒐 𝑱𝒐𝒊𝒏)

सा ह य उप यास सं ह
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚𝐧 𝐒𝐭𝐮𝐝𝐲 𝐌𝐚𝐭𝐞𝐫𝐢𝐚𝐥

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐀𝐮𝐝𝐢𝐨 𝐁𝐨𝐨𝐤𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚𝐧 𝐂𝐨𝐦𝐢𝐜𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐆𝐥𝐨𝐛𝐚𝐥 𝐂𝐨𝐦𝐢𝐜𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐆𝐥𝐨𝐛𝐚𝐥 𝐄-𝐁𝐨𝐨𝐤𝐬 𝐌𝐚𝐠𝐚𝐳𝐢𝐧𝐞𝐬

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
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बनारस, 2017
सफेद पोशाक वाले आदमी

‘म उसे मार डालूंगा,’ सोनू ने गु से से कहा।

इस पल का व ुत कब से इंतजार कर रहा था। पहले अपनी मौत से लड़ते ए


और फर उपचार के लए ब तर पर लेटे ए, हर समय उसके दमाग म यही घूम
रहा था क उसके भरोसे के दो त ने उसे धोखा य दया। वो जानना चाहता था
क बाला ने उसक पीठ म छु रा य घ पा। वो जानना चाहता था क बाला उसके
आसपास क ग त व धय से कैसे जुड़ा था।

इन सवाल का जवाब नह मल पाने से वो अंदर ही अंदर घुट रहा था और वो


बाला से सब कुछ जानना चाहता था। धोखे का दद उस गोली से भी यादा था,
जसने व ुत को चीर दया था।

बलवंत ने मठ क जेल के भारी दरवाजे को लात मारकर खोला।

व ुत अभी भी अपने गहरे ज म से जूझ रहा था, इस लए उसने धीरे-धीरे


कोठरी म कदम रखा।

सोनू ने सर के ऊपर लटकने वाले लप का वच ऑन कया। झटके के साथ उस


अं धयारी कोठरी का कुछ खास ह सा तेज रौशनी से जगमगा उठा। च धया दे ने
वाली उस रौशनी के नीचे एक ब ल आदमी, मैटल क कुस से बंधा बैठा था।
इस कोठरी म, बंधे होने के बावजूद वो गहरे यान क अव ा म मालूम पड़ रहा

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था। योगी क प र चत मु ा म नह , ब क ऐसे मानो वो वेद पर खड़ा हो, उसक
उं ग लयां आपस म गुथी ई थ । उसका सर स मान म झुका आ था।

व ुत ने पहले कभी ऐसा नह दे खा था। साल तक वे एक- सरे के साथ भाइय


क तरह हंसते और रहते आए थे, ले कन व ुत ने पहले कभी बाला को यान
लगाते ए नह दे खा था।

ये आदमी कौन है?

‘म इसका चेहरा कुचल ं गा!’ सोनू कहते ए, बंधे ए आदमी पर वार करने के
लए बढ़ा। ले कन वो बीच म ही क गया। बाला ने अपनी आंख खोलकर सोनू
को घूरा। उसक आंख से चगा रयां बरस रही थ । ये उस युवक का जोश ठं डा
करने के लए काफ था। उस बंधे शेर क आंख म म-तु ह-दे ख-लूंगा से अ धक
कुछ भयावह था।

व ुत बाला क तरफ बढ़ा और उस ट ल क मेज के सामने रखी कुस पर बैठ


गया। अब बाला और व ुत के बीच वो मेज ही थी। दोन भाई समान दो त, आज
यूं आमने-सामने थे मानो वो नया के दो सर से एक- सरे को घूर रहे ह ।

‘ य , बाला?’ व ुत ने पूछा।

बाला ने कुछ पल व ुत क ईमानदार आंख म दे खा, और फर जोर से हंसने


लगा। ये वही प र चत, मोहक हंसी थी, जसे व ुत साल तक चाहता रहा था।
ले कन इस बार, वो हंसी दल तक नह प ंच पा रही थी।

वयं को शांत करने म बाला को एक मनट लगा। वह उ माद क सीमा पर था,


इस लए वो यूं पागल सा वहार कर रहा था, बेवजह ही। या शायद यही उसका
वा त वक प था।

‘ य , बाला? तुमने मुझे मारने क को शश य क ?’ व ुत ने फर से पूछा, उस


पर उसके पागलपन का कोई असर नह आ था।

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‘सॉरी...? तुमने या कहा, मारने क को शश ?’ बाला ने दोहराया, उसक भंव
हैरानी से चढ़ ई थ ।

व ुत शांत रहा। वो जानता था क उसे इस आदमी को बात करने का मौका दे ना


था।

‘कौन हो तुम, व ुत? या तुम भगवान हो? या तुम दे वता हो? या तुम कोई
भोले ब े हो या कोई चालाक जा गर?’ बाला नाटक य अंदाज म अपना सर
एक तरफ को झुकाते ए फुफकारा। नैना के उस पर हावी हो जाने पर जो बेरहम
नफरत व ुत ने उसक आंख म दे खी थी, वो वापस लौट आई थी।

‘मने तु ह मारने क को शश क , व ुत? मने तु ह मारने क को शश क ? एक


शा तर नशानेबाज जो दो सौ मीटर क री से एक कबूतर पर नशाना लगा
सकता है; जो एक मील क री से मन सपाही का सर कलम कर सकता है;
जो आंख बंद करके भी अपना ल य नह छोड़ता... वो 8 फुट क री से तु हारे
दल पर गोली नह चला पाया? और तुम कह रहे हो, मने तु ह मारने क को शश
क ?’

वो सही था। और व ुत ये बात जानता था। बाला उनम से नह था, जो इतने पास
का नशाना चूक जाता। वो एक श त कमांडो था, एक सट क नशानेबाज।
तुरंत ही, एक भयानक अहसास व ुत पर हावी हो गया। बाला ने कसी उ े य से
व ुत को जी वत रखा था!

‘और सफ म ही नह , व ुत,’ बाला दहाड़ा। ‘यहां तक क रोमी भी तु ह न त


समय से पहले मारने नह वाला था। उसने उस ज पो लाइटर म उतना ही पारा
भरा था, जससे तुम घायल हो पाते। वो कराए के ह यारे, जो तु ह मारने आए थे
और मार नह पाए, उ ह भी तु ह जदा छोड़ने के स त नदश दए गए थे, दे वता!’

‘मुझे थोड़ी रम दो, व डयो...’

अंधेरी कोठरी म मौजूद, मठ के सद य, उस वा हयात मांग को सुन थोड़ा


अचकचा गए।

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‘मुझे थोड़ी रम दो, और मेरे हाथ को खोल दो,’ बाला ने जोर दया। ‘तुम जानते
हो क तु हारे सामने मेरा कोई मुकाबला नह है, भले ही तुम अभी पूरी तरह व
नह हो।’

व ुत धीमे से मु कुराया। बाला फर से हंसा। ‘छोड़ो न, यार। तुम जानते हो क


मुझे मेरे क क ज रत है!’

व ुत ने सोनू क तरफ सर हलाया। युवक ने वरोध म थोड़ा गुराकर, असहम त


से कैद को घूरा। ले कन अपने दे वता का आदे श मानने के लए चला गया।

एक मनट से भी कम समय म, उसने रम के दो डबल शॉट गटक लए। राहत क


सांस लेते ए, बाला ने अपने लए तीसरा डाला।

‘म उ ह तु ह मारने नह दे ने वाला था, व डयो,’ बाला ने कहा। ‘ये मने पहले से


ही तय कर रखा था।’ वो सीधे व ुत क आंख म दे ख रहा था, उसी ईमानदारी से
जस पर व ुत हमेशा भरोसा करता आया था। ले कन अब इसक कोई जगह
नह थी।

‘ओ, चुप करो, बाला!’ व ुत भड़का।

‘तुम जानते थे क वो सब या चल रहा था! तुम जानते थे क एक कु यात


ह यारा मेरी जान के पीछे पड़ा था। तुम जानते थे क घाट पर श त ह यारे
घात लगाए बैठे थे। तुम जानते थे क वो लोग कसी क मत पर मुझे बनारस से
जदा नह नकलने दे ने वाले थे!’

‘नह , म नह जानता था!’ बाला भी वापस से च लाया। ‘यक नन रोमी को तु ह


मारने के लए भेजा गया था, ले कन वो सही समय से पहले तु ह नह मारता।
मुझे बताया गया था क श त ह यारे तु ह काबू करने के लए थे। उ ह ने मुझे
भरोसा दलाया था क उस सारी घटना के बाद भी तुम जदा रहोगे। तु हारा उस
न त समय तक जदा रहना ज री है!’

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व ुत सर पर लटकती उस तेज, गम रौशनी म, बाला क नम आंख दे ख सकता
था।

‘मने तुम पर गोली चलाई, व ुत, य क और कोई रा ता ही नह बचा था। तुम


क ही नह रहे थे, और तुम ये बात जानते हो। तुमने मनट भर म ही दजन भर
श त ह यार को धूल चटा द थी। मेरे पास और या वक प था? वो दे ख रहे
थे...’

म म रौशनी वाली उस कोठरी म अब स ाटा था। वहां सफ रम क तेज गंध


फैली ई थी।

आ खरकार व ुत बोला। ‘वो लोग कौन ह, जनका अभी तुमने ज कया,


बाला? तुम कसके लए काम करते हो?’

बाला ने व ुत को दे खा। दे वता को अपने व त म क आंख म जहां हैरानी


दखी, वह न रता का भय भी।

‘ या तुम सच म कुछ नह जानते हो, व ुत?’ बाला ने पूछा। उसक साहसी


आंख अब डर से फैल रही थ ।

‘तुम मेरे बारे म कुछ नह जानते हो, व ुत,’ बाला ने कहा, अपना पांचवां क
ख म करते ए। व ुत बाला को इतनी शराब इस लए पीने दे रहा था, य क वह
चाहता था क बाला सब बता दे ।

‘म साल से तु ह जानता ,ं बाला। तुम मेरे लए प रवार क तरह थे,’ दे वता ने


जवाब दया।

‘बकवास! तुम तो यह भी नह जानते क म कहां से आया ं। म तु हारे जैसे


कसी ताकतवर प रवार से नह था, जनका तबा समाज म ई र के समान है,
व ुत। मेरा ज म ऐसे प रवार म आ था, जो कसी के लए कोई मायने नह
रखता!’

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व ुत सुन रहा था। बलवंत और गोवधन भी।

‘ना रयल के पेड़ पर चढ़ने वाले। मेरे पता ये थे—गरीब, भूख से बेजार, केरल के
र गांव म, ना रयल के पेड़ पर चढ़कर, ना रयल तोड़ने वाले। हम कबायली थे,
व ुत। जमीन पर जीने वाले। या मुझे कहना चा हए, जमीन पर मरने वाले...’

बाला ने अपने गलास से बड़ा घूंट भरा और फर आगे बोला।

‘ब त सी रात को हम भूखा ही सोना पड़ता। या रात भर पानी म भीगे बीज का


वा हयात सा मांड पीकर काम चलाना पड़ता। हमारे पास ऐसे कपड़े आ करते
थे, जनम बड़ी मु कल से मेरी मां का तन ढं क पाता था। रहने के नाम पर टपकती
छत वाली झोपड़ी थी और मीट वो ही मलता था, जो हम मरे ए जानवर के शव
से चुरा पाते थे। वो गरीबी क पना से बाहर थी। वो हालात इंसान जैसे नह थे।
हम पूजा करने के लए कसी मं दर म नह जा सकते थे। हम तो दाह सं कार के
भोजन से भी भगा दया जाता था। बीमार पड़ने पर हमारे लए कोई दवा नह थी।
मेरी छोट बहन ने मेरे सामने ही, ड थी रया से तड़प-तड़प कर जान दे द । और
कोई भी हमारी मदद के लए नह आया। हम जानवर से भी बदतर हालात म जी
और मर रहे थे।’

कोठरी म स ाटा था। बाला क नजर कह गहराई से उसके गलास पर थ , मानो


वो उस भयानक समय के पल-पल को जी रहा था। भीषण गरीबी और अपन के
खोने के घाव को छपाया ही जा सकता है। वो कभी भी पूरी तरह भरे नह जा
सकते।

‘और फर एक दन, वो आए। सफेद कपड़ वाले वो आदमी, सीधे हमारी दयनीय
झोपड़ी म चले आए और हम इस तरह गले लगाया, जैसे पहले कभी कसी ने
नह लगाया था। उ ह ने हम खाना खलाया, हम कपड़े दए, हमारी शु क ।
तुम जानते हो व ुत क जब पूरी नया तु हारा अपमान करे, तु ह भूखा मरने के
लए छोड़ दे , ऐसे समय म कसी क द ई उ मीद और वीकृ त का या मतलब
होता है? यक नन तुम नह जानते! तुम तो यह भी नह जानते क तीन दन तक
भूखे रहने का या मतलब होता है। तुम इसे या समझोगे?!’

व ुत नह जानता था क वो या त या दे । बाला सही कह रहा था। व ुत


बाला के बचपन के बारे म कुछ नह जानता था, सवाय यहां-वहां क उन कुछ

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घटना के, जनके बारे म वयं बाला ने बताया था। न ही व ुत को अंदाजा था
क उसके मन बन चुके दो त क पृ भू म इतनी खौफनाक थी।

‘म ये सब नह जानता था, बाला। और म तु हारे दद क सफ क पना ही कर


सकता ं। ले कन फर भी इससे तु हारे का तल और ष ं का रय के साथ
मल जाने क वजह नह पता चलती।’

‘ य क जदगी म एक बार म जीत क तरफ होना चाहता था!’ अपनी मु जोर


से मेज पर मारते ए, बाला च लाया।

‘तु ह अभी तक समझ नह आया, द आ मा—एक बार म जीतना चाहता था!’

भूतपूव सै नक अब गु से और भावना से बफर रहा था।

‘ जस दन वो मुझे और मेरे पेरट् स को अपनी पूजा क जगह ले गए, जस दन


उ ह ने मुझे बताया क भगवान मुझे भी यार करता है, जस पल उ ह ने हमारे
नाम बदलकर, हमारा अपने समुदाय म वागत कया, मने कसम खाई क म
उनके लए कुछ भी क ं गा। उनके लए ही जऊंगा और म ं गा। पूरी तरह से।
अकेले वही थे, ज ह ने मुझम तभा दे खी थी। उ ह ने ही पहली बार मुझ पर
भरोसा कया था, मुझे अपने रह य म शा मल कया था, फर भले ही वो मेरा
इ तेमाल अपने हसक उ े य के लए करते। उनके बीच बढ़ते ए मुझे महसूस
हो रहा था क उनका कोई अक पनीय ल य था, ले कन फर भी मने अपनी
कसम नह तोड़ी।’

अचानक सोनू दौड़ता आ कोठरी म आया। वो हांफ रहा था। और वो घबराया


आ भी दख रहा था।

‘ व ुत दादा, हम चलना होगा। अभी। डमा टर ने हम सब को, पूरे दल बल के


साथ, मठ के बाहरी घेरे म बुलाया है।’

बलवंत, जो अभी तक एक कोने म खड़ा था, ने सोनू क तरफ मुड़कर पूछा। ‘ या


बात है, बेटा?’

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सोनू को दे खकर ऐसा लग रहा था मानो उसे कभी भी घबराहट का दौरा पड़ने
वाला था। वो अब बुरी तरह हकला रहा था।

‘वो यहां आ प ंचा है, बलवंत दादा...’ सोनू बड़ी मु कल से कह पाया।

बलवंत और गोवधन ने एक- सरे से नजर मलाई थी क उ ह अपने पैर के नीचे


क जमीन म एक कंपन महसूस आ। यह र से आती, आसमान को दहलाने
वाली कोई आवाज थी।

ढाआआकक! ढाआआकक!

वाआआनंग! वाआआनंग!

ढाआआकक! ढाआआकक!

वाआआनंग! वाआआनंग!

व ुत पूरी तरह वधा म था। उसने जवाब जानने के लए बलवंत और सोनू को


दे खा। ठ क इसी समय, बाला पागल क तरह हंसने लगा। ‘वो यहां आ गया है!
वो यहां आ गया है!’ उसने पागल क तरह मं ो ार शु कर दया।

ढाआआकक! ढाआआकक! वाआआनंग! वाआआनंग!

ढाआआकक! ढाआआकक! वाआआनंग! वाआआनंग!

आवाज और तेज होती जा रही थी, व ुत ने दे खा क भय और ोध से बलवंत


और सोनू के चेहरे वकृत हो रहे थे। वो जानता था क कुछ तो गड़बड़ थी। अगर
उसके परदादा ने सारे आ या मक और शारी रक बल को, मठ क बाहरी प र ध म
एक होने को कहा था, तो यक नन कोई तो बड़ी सम या थी।

‘ये या है, बलवंत दादा?’ जोर से आती आवाज के बीच व ुत ने च लाकर


पूछा।

बलवंत तेजी से आगे व ुत क मदद के लए बढ़ा। व ुत अपने पैर पर खड़ा


होने का संघष कर रहा था, व ुत ने दे खा क बाला फर से यानाव ा म चला
गया था। आंख च धया दे ने वाली रौशनी म उसका गंजा सर पसीने से तर हो गया

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था और आंख पूरी तरह से ऊपर चढ़ गई थ । वह साधना म बैठा शैतान लग रहा
था।

‘ये वो है, व ुत। बनारस का सबसे खतरनाक ाणी। वा तव म सबसे खतरनाक


शैतान।’

जब सोनू ने दोबारा से बाला के हाथ बांध दए, और वो लोग महान मठाधीश के


पास जाने को तैयार हो गए, तो व ुत ने फर से पलटकर बलवंत से पूछा।

‘वो कौन है, बलवंत दादा? आप इतने भय और स मोहन से कसके बारे म बात
कर रहे ह?’

बलवंत ने व ुत को दे खा और एक वा य म अपनी बात पूरी क ।

‘ये वो है, जसे ारका शा ी जी धरती का आखरी रा स मानते ह।’

व ुत बलवंत का कहा आ हर श द समझने क को शश कर रहा था। उसने


वयं के लए आखरी दे वता सुना था। ले कन आखरी रा स??

‘वह अपने छह सौ छयासठ उ माद अनुया यय के साथ आ प ंचा है,’ बलवंत


ने आगे बताया।

‘वह मशान का राजा है; मृतक का नाथ; महा-तां क— जट कपा लक!’

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सधु का कनारा, प मी हड़ पा, 1700 ईसापूव
येक पु क मौत

‘ फर से सोच लो, ओ महान अ-दे वता,’ सुरा ने दोबारा पूछा। ‘ या आप सच म


यही चाहते हो?’

‘हां, म न त ,ं ’ खी, बेरहम आवाज ने जवाब दया। ‘मने ट और कांसे के


उस पवत का मान च वयं अपने हाथ से बनाया था। संरचना म ह के से
बदलाव से सर वती के वाह को पूरी तरह मोड़ा जा सकता है। और हड़ पा का
वैभवशाली नगर हमेशा-हमेशा के लए बह जाएगा, और धरती से उसके नीच
नवा सय का खा मा हो जाएगा।’

चंड ने जो सुना, उसे लेकर वो संदेह म था। वो उनका सबसे बड़ा त ं था,
हड़ पा क फौज का सबसे ताकतवर सेना य , भगवान का व प, जसने यु
म उ ह परा जत कया था—वो आज उनके प रसर म बैठा आ, अपने ही लोग
के खा मे के लए, उनक मदद मांग रहा था। उसक बात पर यक न कर पाने क
सफ एक ही वजह थी, और वो थी ववा वन पुजारी क अमानवीय त। कोई
भी साधारण मनु य अपने शरीर पर इतने दं ड नह झेल सकता था।

‘एक पल को मान ली जए हम आपक मदद को तैयार ह, और अपनी सेना और


पशु आपके काम म झ क द। फर या? इससे हम या मलेगा?’ चंड ने पूछा।
‘इतना बड़ा मशान हमारे कस काम आएगा?’

ववा वन पुजारी ने अपनी नाराजगी छपाए बना चंड को दे खा। वो आदमी जसे
हड़ पा का सूय माना जाता था, उसे अपने से कमतर लोग से बहस पसंद नह
थी। सुरा ने इस तनाव को भांप लया। बना एक पल गंवाए उसने बीच-बचाव
कया।

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‘ चंड बस यही जानना चाहता है, ओ महान अ ववा वन पुजारी क जब आयवत
का अ धकांश भाग बाढ़ म बह जाएगा, तो मेरे पास शासन के लए या बचेगा?
जब वहां जा ही नह होगी तो ऐसे म सा ा य का या लाभ?’

प तत दे वता एक पल के लए शांत रहा। फर उसने व त ढं ग और ता से


जवाब दया। वह जानता था क असुरा या सुनना चाहता था।

‘तुम उसे बना जा का सा ा य कह सकते हो, या तुम इस तरह भी समझ


सकते हो क तुम नया क सबसे उवर जमीन के बेताज बादशाह होगे। ऐसी
जमीन, जस पर तुम अपने पसंद क जनसं या बसा सकते हो, मनचाहा नगर
बना सकते हो और अपने नयम क ापना से शासन कर सकते हो। या
हमेशा से तु ह यही नह चा हए था, सुरा?’

शैतान राजा ये सुनकर खुश आ। यही तो उसे वा तव म चा हए था।

वो ह ी पकड़कर, भुनी ई बकरी का मांस खा रहा था और कई नरकंकाल


खोप ड़यां-भर सुरा क नशीली म दरा पी चुका था। ववा वन पुजारी ने इससे
पहले कभी जीवन म मांस और म दरा का सेवन नह कया था। अब वह अपने
पुराने व प को भूलने क को शश कर रहा था। धीरे-धीरे वो अपने अंदर के
दे वता को मार रहा था। और अंदर के जानवर का पोषण कर रहा था।

‘हम आपसे एक और भट चा हए, ओ अ-दे वता,’ चंड ने संभलते ए कहा। वो


लोग साथ म बैठकर मांस-म दरा क दावत उड़ा रहे थे।

ववा वन ने अपनी लाल आंख उठाकर, सुरा और उसके सै य मुख को दे खा।

‘वैसे भी तो तु ह सब कुछ मल रहा है। जमीन, नद , अवशेष, संप ... और तु ह


या चा हए?’ उसने पूछा।

‘अ-स तऋ ष,’ सुरा ने अचानक से, प व सात मु नय का संदभ छे ड़ते ए


कहा।

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और फर उसने कुछ ऐसा कहा, जसे सुनने क कभी ववा वन पुजारी ने उ मीद
तक नह क थी।

‘हम अ-स तऋ षय के सर चा हए।’

‘हमारी जीत तब तक पूरी नह होगी, जब तक अ-स तऋ षय क भी वही नय त


न हो, जो सम त हड़ पावा सय क होने वाली है,’ सुरा ने ववा वन को सकते म
डालते ए कहा।

‘यह नह हो सकता,’ घायल दे वता ने जवाब दया। ‘तु हारे पास तु हारा सा ा य
होगा। तु हारा राज पूरे आयवत म होगा। लगभग पूरी नया पर तु हारा राज
होगा, सुरा। स तऋ ष को अकेला छोड़ दो।’

‘हम दोन जानते ह क जब तक वो चालबाज जदा रहगे, हड़ पा पर मेरा शासन


कभी सु न त नह हो पाएगा। इन मु नय का नद पर शासन है, वो हवा को
नदश दे ते ह, वो पशु से बात करते ह और यहां तक क पवत भी उनक इ ा
से अपना आकार बदल लेते ह। नह , अ ववा वन, हम उ ह मारना ही होगा।’

‘ब त हो गया, सुरा! म इस बारे म कोई बात नह करना चाहता। स तऋ ष यो ा


नह ह। वो तु हारी वशाल सेना को परा जत नह कर सकते। वो बस साधारण
मु न ह, जनक लौ कक संप म कोई भी दलच ी नह है। और इस सबसे
बढ़कर, वो सर वती के सव- व दत पु ह। अगर हमने उ ह नुकसान प ंचाने क
को शश भी क तो सम आयवत को दै वीय कोप झेलना पड़े गा,’ ववा वन
पुजारी ने उसे स ती और ता कक प से समझाया। सच यह था क वो दल से
स तऋ ष को ेम करता था। उस सजक से उसे जोड़ने क वो आखरी कड़ी थे।

चंड सुरा को अ तरह जानता था, वो भांप गया था क इस समय उसका


राजा उससे स त म य क भू मका चाह रहा था। उसने कमान अपने हाथ म
लेने का नणय लया।

‘और आप इन मु नय का इतना संर ण य कर रहे ह, ओ महान अ-दे वता?


उ ह ने आपके लए कया ही या है?’ असुर सेना के अ य ने ं य कया।

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‘संभलकर, चंड,’ ववा वन ने अपनी थाली से नजर हटाए बना कहा।

‘नह सच म, आपके मन म उनके लए कौन सा नेह है? अगर वो आपका साथ


दे ते तो या आज आप ऐसी दयनीय त म होते? अगर स तऋ ष ने जरा भी
परवाह दखाई होती, तो आपका प रवार यूं कु े क मौत...’

इससे पहले क चंड अपनी बात पूरी कर पाता, दे वता भोजन क उस शाही मेज
से लपककर उठ गया, और अपनी खूंखार कटार नकालकर सुरा के सेना य के
गले पर रख द । उसक कटार का नीले रंग का ह ा, वयं उसके र से तर हो
रहा था।

‘स तऋ ष के बारे म एक भी श द नह ! मेरे प रवार के बारे म नह !’ ववा वन


पुजारी ने चंड के कान म फुफकारते ए कहा।

‘ मा क जए, ओ ताकतवर अ-दे वता। चंड तो मूख है,’ सुरा ने वन ता से


कहा, और उसने धीरे से ववा वन पुजारी क बांह थामकर, उसे चंड क गदन से
र हटाया।

यह कोई साधारण मनु य नह है, जैसा क म हमेशा से जानता था। मेरे हजार
सै नक से घरे होने के बावजूद, वो एक सह क तरह नडर है।

आदमी वापस से अपने आसन पर बैठ गए और ववा वन पुजारी ने अपनी मजबूत


कटार वापस यान म डाल ली। चंड ने अपने सतार का आभार जताया। वो
जानता था क वो अपनी मौत से बस जरा री पर रह गया था।

‘हमारी सलाह का गलत मतलब मत नकालो, हड़ पा के अ-सूय,’ सुरा ने कहा,


उसने अपने मेहमान के लए खोपड़ी म और म दरा डाल द ।

जब उसने दे खा क ववा वन पुजारी का ोध शांत हो गया था, तब सुरा ने अपना


अगला दांव चला। वो जानता था क इस समय दे वता अ तसंवेदनशील था। यह
संसार टू टे ए दल से छल और परा जत इंसान को और तोड़ने से बाज नह
आता। यह टू टे ए इंसान क जदगी और उ मीद क आखरी बूंद तक नचोड़कर,

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अपनी मह वाकां ा के कले म सजा लेता है। ले कन सुरा गलती कर रहा था। हां,
ववा वन पुजारी का दल टू ट गया था। ले कन वो कह से भी परा जत नह आ
था।

‘जैसा क हमने सुना था, अ-स तऋ ष तो न दय का वाह भी बदल सकते ह।


वो बादल को बरसने का आदे श दे सकते ह और इंसान का मन पढ़ सकते ह,’
सुरा ने सावधानी से कहा। अब तक उसने सु न त कर लया था क दे वता तादाद
से अ धक उस नशीली म दरा का सेवन कर चुका था।

‘तो बस हम कह रहे ह क हम मदद नह कर सकते ले कन हम हैरानी है क वो


आपके बचाव के लए य नह आए, ओ ताकतवर अ-दे वता...’

ऐसा नह था क यह सवाल पहली बार ववा वन के मन म आया था। उसने हर


बार वयं को यह कहकर समझा लया था क स तऋ ष के पास इसक ज र
कोई सही वजह होगी। ले कन बार-बार यह कड़वा सवाल उसके मन म सर उठा
लेता था। और अब सुरा भी यही सवाल कर रहा था।

‘वो आपक मदद के लए नह आए जब ह या का झूठा आरोप आप पर लगाया


गया था। उ ह ने तब भी दखल नह दया, जब आपको मृत कारावास क सजा द
गई। उ ह ने तब भी आना ज री नह समझा, जब भरी अदालत म आपको
अपमा नत कया गया,’ सुरा बोलता रहा, अब यह धीमा जहर अपना असर दखा
रहा था।

आयवत के आखरी दे वता ने खाना बंद कर दया। खाने क उस मेज पर उसने


गु से से सर झुका लया था और उसक मु यां स ती से भच रही थ । सुरा क
जुबान का जहर अब असर दखाने लगा था।

‘च लए इसे रहने द, ले कन वो आपके य प रवार को बचाने के लए य नह


आए, जब क वो जानते थे क आप अपने प रवार के साथ नह ह? मने सुना है क
वो समय के ाता ह। उनसे तो कुछ भी छपा नह है,’ चंड ने इस बार बड़ा ही
संभलकर अपनी बात रखी।

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‘और आपक प नी, ओ अ-दे वता... उनक दयालुता के बारे म हमने इतना सुना
था क वो अकेली ऐसी थ , जनके लए हमने कभी अपनी अ-भाषा का इ तेमाल
नह कया। उ ह को हम उनके वा त वक नाम से पुकारते थे—संजना।’

शैतान राजा के लए झूठ बोलना आसान था।

‘उनक मौत जहरीले तीर के घाव से ई। ऐसी प व और सम पत म हला का


अंत ऐसा नह होना चा हए था!’ सुरा ने सुबकते ए दे वता के कान म
फुसफुसाया।

ववा वन पुजारी को न चाहते ए भी सुरा और चंड क बात से सहमत होना


पड़ा। वो भी अब सात मु नय के त अपना ोध और असंतोष दबा नह पा रहा
था, उसे लगा था क वो उसक सहायता के लए आएंगे। उसक मु अब मेज
पर एक के ऊपर एक रखी थ , दे वता ने उन पर अपना सर टका रखा था। वो
बेतहाशा रो रहा था। उसने मान लया था क उसे धोखा दया गया था। उसे उन
लोग ने धोखा दया था, ज ह वो सबसे अ धक यार करता था। जन पर उसे
सबसे अ धक भरोसा था।

‘और हमने सुना क आपका पु , सुदशन युवक मनु, ब त बहा री से लड़ा,’


चंड ने कहा, अब वो बड़े नाटक य ढं ग से, मेज के गद च कर लगा रहा था।
उसक आंख म शैतानी चमक थी। वो जानता था क उसने अपने शकार को
झांसे म ले लया था।

‘उसे तीन तीर मारे गए, आपने कहा... तीन तीर!’ सुरा ने कहा। ‘ कतना साहसी
युवक था! उसने ज र अपने आखरी पल म आपको याद कया होगा, जब वो
मरता आ अपने घोड़े से गरा था। उसक मौत का बदला, हड़ पा के येक बेटे
क मौत से लया जाना चा हए!’

ववा वन पुजारी अब नफरत से कांप रहा था। उसक जीवनसाथी, उसक यारी
प नी यु म मर गई थी, उसके साथ कभी ऐसा नह होना चा हए था। उसका पु
बुरी तरह से घायल होकर वहां से नकला था, इतनी बुरी हालत म क ववा वन

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के म सोमद अ ुपूण सां वना ही दे सका। कुछ ही घंट म उसक पूरी जदगी
बखर गई थी।

जब मेरी नया ख म हो रही थी, तब स तऋ ष कहां थे?

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बनारस 2017
जट कपा लक

वो अपने आप म शैतान क फौज नजर आ रही थी। जो दे व-रा स मठ म इसके


धनुषाकार ार से होते ए, सीधे रा स खंड तक घुस आई थी। वहां के च पे-च पे
पर जट कपा लक के अघोरी तां क ने क जा कर लया था। जहां से भी
जट और उसका हसक दल गुजरता था, वहां से ानीय शासन, पु लस और
जनता, सब जगह खाली कर दे ते थे। नया के न े म ऐसे ब त से नगर और
ब तयां थ , जहां का कानून इन धा मक और अ या मक सं दाय के मु खया से
सामने से भड़ने से बचता था। अ सर यह बड़ी राजनै तक ह तय के इशारे पर
होता था। ले कन कभी-कभी, ये वा त वक स मान का भी प रणाम होता था।

व के नाम पर उ ह ने पशु क खाल लपेट ई थी, उनके लंबे बाल मोट


चो टय म गुथे थे, जो वष के र -पात और अ व ता से रहने क वजह से
नारंगी और भूरे रंग के हो चले थे। भयावह महा-तां क के सभी 666 अनुया यय

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क आंख चढ़ ई थ , जो साल से अफ म और चरस लेने का प रणाम था। उनके
बदन और चेहर पर, मशान म जलती चता क सफेद राख मली ई थी। उनके
मुंह ऐसे लग रहे थे मानो वो अभी र पीकर आए ह । तंबाकू और पान चबाने क
वजह से उनके ह ठ लाल हो गए थे। उनम से काफ लोग के पास भारी भाले,
शूल और स त चमड़े क बनी ढाल थ । उनके आभूषण इंसान और पशु क
ह य से बने थे। ले कन इससे भी खतरनाक था, उनम से हरेक का अ त और
अकथनीय स मोहन।

जट क फौज को एक नजर दे खने भर से, साहसी लोग का र भी जम जाया


करता था।

अघोर तं का एक अ म और स मा नत प है। इसक ाचीन जड़ भु क


उपासना म मलती ह। इसके साधक इसे अ नयं त आ या मक श और ान
का सं त माग मानते रहे ह, इसी वजह से ये हजार साल से भारतीय
आ या मक े म गहराई से अपनी जड़ जमाए ए है। ज टल धा मक अनु ान ,
कम-कांड और ेत-आ मा से संवाद के साथ ही, इसम मरणोपरांत सं कार क
वजह से कोई भी साधारण इनक रह यमयी नया म वेश नह कर
सकता। अपने ल य को हा सल करने के लए अघोरी नर मांस का सेवन करते ह
और यहां तक क मुद के साथ भी शारी रक संबंध बनाते ह। फर भी लाख
भारतीय अ य प से इस रह यमयी सं दाय का स मान करते ह।

हालां क, श के सरे प क तरह, अघोरा ने भी अपने सबसे मेधावी रह य


को कर दया है। कोई अघोरी तां क एक बार अपनी सव स य को
हा सल करने के बाद, आ मा और अलौ कक श य पर असी मत नयं ण
हा सल कर, उ ह अपना सेवक बना लेता है। पशाच, चुड़ैल और डा कनी के प
म ो धत आ माएं बड़ी आसानी और बेरहमी से श ु का वनाश कर सकती ह।
इसी वजह से ये अघोरी अनै तक नेता , उ मय , फ मी सतार और सरे
ताकतवर लोग के लए ब त मायने रखते ह।

जट कपा लक न ववा दत प से अघोरी तां क का बादशाह था, जसने


भौ तक सुख और सा ा य के लए ई र का माग याग दया था। वो इतना

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श शाली माना जाता था क मशान म उसका एक कदम पड़ने भर से मुद जाग
जाते थे। अपनी कड़ी साधना के बल पर वो हमालय क ठं डी गुफा से लेकर
बंगाल और असम क सबसे याह तां क मठ तक म धुनी रमा चुका था। वह
मशान घाट म महीन बताकर, रह यमयी मं के उ ारण से मृतक का आ ान
करता था। दशक बीतने के साथ, जट या ‘तीन जटा वाला’ जट कपा लक
बन गया। उसके नाम म बाद का श द, उसके शूल पर छड़ी के सहारे बंधे
कपाल या इंसानी खोपड़ी क वजह से जुड़ा। उसके वकराल अनुयायी भारतीय
न दय के कनारे ब त बड़ी धा मक सभा का आयोजन कया करते। और
साल पहले, ऐसे ही कसी मेले म एक इटली वासी जट से मला था।

तां क , पुजा रय और साधारण लोग म खतरनाक माने जाने वाले, जट


कपा लक ने ज द ही मसान-राजा क उपा ध ा त कर ली। उसके अनुया यय ने
बात फैला द क जट के पास अलौ कक श य क सेना थी, और उसक
पूजा तो मृतक भी करते थे। इसी से वह मृतक-नाथ कहलाया जाने लगा।

और फर भी ये मसान-राजा, मृतक-नाथ, महा-तां क जट कपा लक, धरती


पर एक ही आदमी से डरता था।

वो धरती के सबसे बड़े तां क से डरता था। वो महान मठाधीश, ारका शा ी से


डरता था।

व ुत ने अपने परदादा को रा स खंड के क म खड़े दे खा। उनके लहराते सफेद


और केस रया कपड़े , घने लंबे बाल और राजसी तेज से मेल खाता ही ताकतवर
शूल, उ ह ने अपने दा हने हाथ म पकड़ा आ था। इस अ तयथाथवाद य म,
मठाधीश अपनी वजेता सेना के मुख क तरह खड़े , अपने जय श ु क आंख
म दे ख रहे थे।

बैसा खय के साथ व ुत जतना तेज चल सकता था, चल रहा था। वो ज द से


ज द अपने बाबा तक प ंच जाना चाहता था। वहां सामा य बातचीत से भी
हालात बगड़ सकते थे। र से ही, जब उसने डमा टर के साथ खड़ी नैना को
दे खा, तो उसे कुछ राहत महसूस ई। अब तक मठ के ह थयारब यो ा ने

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रणनी त के तहत, चतु कोणीय खंड को घेर रखा था और राइफलमेन प व
प रसर क ऊंची मीनार पर खड़े थे। अब तक मठ के शीष पुजारी भी, अपने
कमंडल लए प रसर म आ गए थे। बलवंत व ुत से कंधे से कंधा मलाकर चल
रहा था, उसक सदमे क शु आती त या अब पूरी तरह से यु त म बदल
चुक थी।

ढाआआकक! ढाआआकक!

वाआआनंग! वाआआनंग!

भयानक, धरती को हला दे ने और कान को बहरा कर दे ने वाली उनक गजना


जारी थी। व ुत ने दे खा क ये आवाज कहां से आ रही थी। जट के सैकड़
उ माद अनुयायी अपने शूल क लाठ को एक साथ जमीन पर मार रहे थे, और
साथ ही अपने कवच पर शूल के सरे के धातु वाले भाग क थाप दे रहे थे।
इसका भाव कसी तरह क रणभेद से कम नह था।

‘ णाम, बाबा,’ तनाव भरे माहौल म, क के बीच प ंचकर, व ुत ने अपने


परदादा के पैर छू ते ए कहा।

‘ जट...’ ारका शा ी च लाए, उनक आवाज शुल और ढाल के


कोलाहल के परे गूंजी।

‘बस, ब त हो गया!’ वो बोले।

पल भर म ही, पूरी सभा म स ाटा छा गया। यहां तक क मसान-राजा के सै नक


भी वृ मठाधीश के आदे श क अवहेलना नह कर सके।

कुछ पल बाद, खामोशी भरी सभा म, सफ कसी के ढ़ कदम क आहट सुनाई


द । उन कदम के साथ भारी घुंघ क छमछम और ह ी के आभूषण क रगड़
भी सुनाई द । राख मले ए अघोरी अब अपने इ के लए रा ता बनाने लगे।

और फर वो सामने आया। अपने पूरे वैभव के साथ।

मसान-राजा!

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हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव
महान राजा

भोर क पहली करण के साथ ही, उसका घोड़ा अपनी काठ और उन नए


ह थयार के साथ तैयार था, जो उसने काले कपड़ वाले उन म हला-पु ष से
लए थे, जो इस रह यमयी पवत पर रहते थे। ह थयार म कृपाण, छु री, दो सौ
तीर, कु हाड़ी और दो भाले, जो खास री से मारने के लए तैयार कए गए थे।
नफरत से झुलसता आ, वो हैरान था क कस कार तीन र रं जत दन ने
उससे उसका सबकुछ छ न लया था। अब मनु आखरी हमले के लए तैयार था।
वो हड़ पा जा रहा था। अकेला।

वो अपने य पता को बचाने जा रहा था। और वो मोहन जोदड़ो क राजकुमारी


को ख म करने जा रहा था। और उसके साथ उसके प त और अपने इकलौते मामा
को भी।

जो भाले उसने लए थे, उन पर, र से दो नाम लखे थे।

पहला नाम था, मह वाकां ी य वदा का—हड़ पा क पहली रानी— जसक


नय त हमेशा के लए अंधेर म खो जाने क थी। यही उसक अं तम प रण त होने
वाली थी।

और सरा नाम था, बु मान पं डत चं धर का—वो आदमी, जसे इ तहास म


ऐसे मूख के प म याद कया जाएगा, जसने एक बुरी औरत क चाल के सामने
ववेक और अ ाई को ताक पर रख दया... और जसने पूरी स यता को असमय
मौत के लए छोड़ दया।

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मनु पुजारी क युवा बांह जन भाल को थामती थ , वो अपने नशाने तक प ंचते
थे।

‘और, या म पूछ सकता ,ं आप कहां जा रहे ह?’

इस आवाज को सुनकर मनु क गया। वो अपने घोड़े को ड़ लगाने ही वाला था


क इन श द ने उसे रोक लया। वो तुरंत जान गया था क यह मोहक आवाज
कसक थी। ये वो आवाज थी, जसे दोबारा सुनने का वो कब से इंतजार कर रहा
था।

उसने धीरे-धीरे अपना घोड़ा मोड़ा, वो कसी यो ा-राजकुमार क तरह ही


वैभवशाली लग रहा था। उसक आंख उसके समपण से नम थ , जसे दे खने क
उ मीद म वो मुड़ा था।

और उसका अनुमान सही था। यह आवाज उसी क थी।

म य।

उसने मनु क थैली से पूरा पानी पी लया।

हड़ पा के सूय का पु वहां त खड़ा था; उसक नजर उस आदमी पर टक


थ , जो उसे उसक मां, पता और ई र क अनुभू त दे ता था—एक ही बार म
तीन प क । म य से सरी मुलाकात म ही, मनु को लग रहा था क उसे एक
म , भाई, श क, हमराज, आलोचक, दे वता, जा गर, यो ा, उपदे शक,
मसीहा... सबकुछ मल गया था!

जो आज मनु ने म य के लए महसूस कया, उसक सा ी यह पृ वी पहली बार


नह बनने जा रही थी। भ और भगवान के इस सम पत ेम क अनेक
कहा नयां नया भर के मथक और लोककथा म सुनाई जाएंगी—एक जंगल
म रहने वाला, सवश संप ‘वानर’ क ऐसे राजकुमार से मुलाकात, जसे

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मानवजा त ने मयादा पु षो म के प म याद कया; एक व यात धनुधर, जो
रण े म अपने ही प रजन को दे खकर वच लत हो गया था, उसे उसके
आ या मक मागदशक ने ऐसा उपदे श दया, जससे स दय तक लोग ान लगे;
एक दे व त, जसने अमानवीय यातना को सहा, जसने ेम का संदेश दे ने के
लए अपने ाण तक को याग दया; और एक आ तक, जसने अपने इ के
लए अपने पु क ब ल दे द ।

भ और भगवान के बीच ऐसा ही अलौ कक संबंध रहा है; इंसान और द के


बीच; पूजक और नमाता के बीच—समय क शु आत के साथ, इसी से ये संसार
चला है।

मनु धीरे-धीरे घोड़े से उतरा, वो खुश था क आज सरी बार म य ने उसका पानी


पया था। वो अपने हाथ जोड़कर, स मान से इस द म य-पु ष के सामने
झुका।

‘ओ महान राजा, आप कहां कूच करने वाले थे?’ म य ने फर से पूछा।

म य के संबोधन पर, मनु एक बार फर से च क गया।

‘म य, शायद आप मुझे कोई और समझ रहे ह,’ मनु ने जवाब दया। ‘म राजा
नह ं।’

‘ओह, ले कन आप तो ह! बस अभी तक आपको ये पता नह है।’ म य फर से


अपने रह यमयी अंदाज म मु कुरा रहा था। उसने आगे अपनी बात कही, ‘हम
वही होते ह, जो हमारी नय त म लखा होता है—हर समय, सम ांड म,
इंसानी समझ और क पना क सीमा से परे। आप पहले से ही इस पृ वी के
महान राजा ह, मनु।’

मनु खीझ से मु कुरा दया। शायद म य उतना दै वीय नह था।

‘आप जो कह रहे ह, वो कभी सच नह होगा, म य। म अपने पता को बचाने जा


रहा ,ं अपने प रवार का बदला लेन.े .. और फर तप वी प म, हमेशा के लए

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इस भू म को छोड़ ं गा।’

‘ह म... चकर। और आप कसे खोजगे, जब आप वो... वो या कहा था


आपने... तप वी बन जाएंग?े ’

‘यक नन, म उस सवश मान, उस ई र क ही खोज क ं गा...’

‘अभी भी तो आप उसे ही खोज रहे ह, मनु?’ म य क आंख म जहां ब क


सी शरारत थी, तो वह अपार श भी। ‘शायद वो भी आपको ही खोज रहा हो!’

मनु नीली रंगत वाले, इस रह यमयी के गूढ़ श द का अथ समझने क को शश


कर रहा था। सुबह क ठं डी हवा ने आसपास के माहौल म ताजगी ला द थी। मनु
के पीछे का पवत ऐसा लग रहा था, मानो धरती से ही उ दत आ हो, मानो ात:
के गुलाबी आसमान म काला दै य।

‘ओ संजना पु , जो चीज हमारे समीप होती है, हम उसका मू य य नह


समझते? कभी-कभी हम जसक तलाश म होते ह, वो हमसे र नह होता।’

‘हड़ पा का सूय हमेशा के लए अ त हो चुका है।’

म य के मुंह से ये श द सुनकर मनु का मुंह सूख गया। ले कन कोई बात थी, जो


उसे इस पर यक न करने से रोक रही थी।

‘ऐसा नह हो सकता। मेरे महान पता... श शाली ववा वन पुजारी, मारे नह


जा सकते। कसी साधारण श ु के ारा नह ... कसी भी श ु से नह !’ मनु ने
वरोध कया।

अंदर से, हालां क वो जानता था क उसके पता के खलाफ कौन-कौन सी ताकत


खड़ी थ । ववा वन पुजारी को बचाना मनु क आखरी उ मीद थी। ले कन अपने
सा थय के आ ह पर, वयं रण े से उसके बच नकलने के बाद, सोमद , तारा
और उसके बचे-खुचे साथी भी नह बच पाए ह गे। तो फर ववा वन पुजारी को
बचाने के लए कोई नह बचा होगा।

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मरते समय, मेरे पता के साथ, पूरे हड़ पा म एक भी म नह था।

‘कैसे... मेरे पता, महान ववा वन पुजारी ने अपनी अं तम सांस कैसे ली?’ मनु ने
पूछा। अब तक उसके आंसू सूख चुके थे। पछले कुछ दन म वो इतनी शारी रक
और मान सक पीड़ा झेल चुका था क अब दद उसे और स त ही बना रहा था।

‘हड़ पा के सूय ने अपने घाव ... और नफरत के आगे दम तोड़ दया,’ म य ने


जवाब दया।

मनु अपने बाएं घुटने पर बैठ गया, अपनी बांह अपने दा हने पैर पर रख, सर नीचे
झुकाए, अपने पता क दवंगत आ मा के लए शां त ाथना म।

उसने यान नह दया था क म य ने एक बार भी ववा वन पुजारी का नाम नह


लया था। उसने कभी नह कहा था क ववा वन पुजारी मर गया था। उसने मनु
को सफ यह बताया था क ‘हड़ पा का सूय’ अ त हो गया था।

और वो सही था।

सफ म य जानता था क वो या कर रहा था। और अधम पर धम, बुराई पर


अ ाई क वजय के लए, वो बार-बार ये करने वाला था। इस दन के स दय
बाद, वो एक यु रत पता को बताएगा क उसका इकलौता पु यु े म मारा
गया था, जब क वा तव म वो एक हाथी था, जसक मौत ई थी। और आज वो
एक च तत पु को बता रहा था क उसका पता मर गया था, जब क, वा तव म,
ववा वन पुजारी क अ ाई थी, जो हमेशा के लए ख म हो गई थी।

सफ म य ही समय क सीमा से पार दे ख सकता था। वो इस ांड क


महान कृ त—मनु य के संर ण का अ भयंता था।

मनु क ज रत अ धक बड़े काय के लए थी, बजाय उसके गत तशोध


के।

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बनारस, 2017
कपाल अपण

‘भ जट का णाम वीकार कर, गु दे व!’

ये श द कहते ए, जट कपा लक ने अपनी बांह से अधगोला बनाते ए, हाथ


को मठाधीश के स मान म नम कार क मु ा म जोड़ा। नाटक यता जट का
अ भ साथी थी, ले कन उससे उसके अ त व का भय कुछ कम नह होता था।

‘तु हारा यहां आना कैसे आ, मसान-राजा?’ ारका शा ी ने पूछा।

‘आपके दशन क चाह ख च लाई, गु दे व,’ जट ने कु टलता से जवाब दया।


‘ले कन कृपया मुझे इस नाम से मत पुका रए। कम से कम, जब तक आप काशी
म ह, तब तक आपके सवाय कौन पाताल का वामी हो सकता है?’

अचानक जट क नजर व ुत पर जा टक । उसने गहराई से व ुत क आंख


म झांका, उसका सर कु टलता से एक ओर झुक गया। इसी समय दे वता को पूरी
तरह महा-तां क को दे खने का मौका मला।

जट दे खने म भयावह था। वो उतना लंबा नह था, जतना भ दखाई दे ता


था। उसके कद म लगभग 10 इंच तो उसके मोटे -भूरे बाल का जुड़ा जुड़ जाता
था, जो उसके सर पर बना था—अ धकांश तां क के बाल इसी अंदाज म सर
पर बंधे होते थे। उसके बाक के बाल, दो मोट जटा म बंधे थे, वो इतने लंबे थे
क आसानी से उसक कमर तक प ंच जाते थे। उसक आंख पर गहरे स री रंग
का लेप लगा था, जो उसके राख से सफेद ए चेहरे पर र से नजर आती थ ।
उसक लंबी दाढ़ म सफेद बाल दखाई दे रहे थे, जो उसक बढ़ती उ के अकेले
सूचक थे। उसने इंसानी दांत , ह य और नाखून क अनेक मालाएं पहनी ई

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थ , जनम जानवर क ह यां और यो तषीय र न जड़े ए थे। उसने अपने
हाथ के अंगूठ और उं ग लय म बीस से अ धक अंगू ठयां पहनी ई थ , जनम
उसने अपना लंबा और काला शूल थामा आ था। ले कन जट के वकराल
व का सबसे भयावह पहलू वो इंसानी खोपड़ी थी, जो उसने अपनी छड़ी
पर बांध रखी थी। उस खोपड़ी के पूरे दांत थे, और उसका मुंह यूं खुला आ था
मानो वो वकरालता से ठहाका लगा रही हो।

‘अपने पर-पोते को वह भेज द जए गु दे व, जहां से वो आया है,’ जट ने


नरमाई से कहा। उसक तेज आंख से उसक इस झूठ वन ता का पता चल रहा
था।

ारका शा ी इन श द को सुनकर त रह गए। उ ह ने उ मीद नह क थी क


जट कपा लक व ुत का नाम लेने क ह मत करेगा। इससे पहले क मठाधीश
कोई त या दे पाते, बलवंत महा-तां क क तरफ, अपना ह थयार नकालते
ए लपका। व ुत ने उसक बांह पकड़कर उसे रोका, ले कन इससे पहले क वो
ऐसा कर पाता, जट क सेना ने अनपे त प से त या द । दो भयानक सी
दखने वाली म हलाएं, जनके बड़े बाल उलझे ए मालूम पड़ रहे थे, तुरंत आगे
आकर, मृतक-नाथ के इद- गद खड़ी हो ग । चेतना शू य कर दे ने वाली, जुड़वां
दखती उन म हला के चेहरे लाश क तरह पथराए ए थे, ले कन खून से भरी
उनक आंख बलवंत को सामने से ललकार रही थ ।

व ुत कसम खा सकता था क इनसे भयानक जीव उसने अपने वा त वक


जीवन म नह दे खा था। जब क जट का पूरा समूह पशाच क तरह दखता था,
जो अपनी झलक मा से कसी को भी जमा द, ले कन इन दोन के सामने तो वो
भी कुछ नह थे। ऐसा लग रहा था क इस भू तया अवतार म प रव तत होने से
पहले वो कभी सुंदर लड़ कयां रही ह गी। उ ह दे खकर व ुत, नैना, पुरो हत जी
और ारका शा ी को ंथ म पढ़ा आ, पशाचनी का वणन याद हो आया।
उनक सांस भारी थ , मानो कसी श शाली काली ताकत के बस म ह । उनक
आंख चढ़ और मुंह खुले ए थे। उनके तन और टांग चमड़े के गंदे टु कड़े से ढं के
थे, जब क बाक बदन पर मशान क राख लपट ई थी। पल भर म ही व ुत
जान गया था क उनक बांह और गदन पर जो मुड़ा-तुड़ा सा गोदना दखाई दे

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रहा था, वो कुछ और नह ब क ‘ग ड़ पुराण’ क सबसे भयावह पं यां थ ।
ग ड़ पुराण वो ाचीन ंथ है, जसम उन भयानक यातना का वणन है, जो
मृतक को नक म द जाती ह। दोन भयानक ा णय क कमर पर बंधी दरा तय
के दांत अभी भी खून से सने ए थे।

‘कपा लक तुमने अपने नीच मुख से मेरे पर-पोते व ुत का नाम लेकर, अपनी
सारी सीमाएं पार कर द ह। अगर तुम के भ नह होते तो, आज तुम भी
अपनी मृत सेना का ह सा बन गए होते।’

ारका शा ी ोध से उबल रहे थे।

‘ मा क जए, गु दे व। म तो उनक सुर ा के बारे म बोल रहा था। व ुत ही तो


मसीहा है न? उसे यूं मठ म बुलाकर उसक जान खतरे म नह डालनी चा हए।’

जट एक बार फर से सीधे व ुत को दे ख रहा था। मानो वो आंक रहा था क


यह वा तव म वही है क नह । अपनी याह और बुरी ताकत से, मसान-राजा ने
ऐसी ताकत को गुलाम बना रखा था जनके बारे म कोई आम जन जान भी नह
सकता। कुछ पल बाद, उसने अपनी नजर हटा ल । व ुत के चेहरे का अभूतपूव
तेज और ईमानदारी उसे बेचैन कर रही थी। वो सहमत हो चुका था।

यह वही है।

‘चले जाओ, जट,’ बलवंत गुराया।

जट बलवंत को दे खने के लए मुड़ा, और फर पागल क तरह हंसने लगा।


उसके आदमी भी अपने तरीके से गु सा दखाने लगे।

ढाआआकक! ढाआआकक!

वाआआनंग! वाआआनंग!

अचानक से जट ने हंसना बंद करके, अपना हाथ उठाया। उसके अनुया यय ने


तुरंत अपने वामी के आदे श का पालन कया। पागल कर दे ने वाला वो शोर

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एकदम बंद हो गया।

जट ारका शा ी क ओर मुड़ा, उसने अपना काला शूल अपने और महान


मठाधीश के बीच रखकर, उस अशुभ खोपड़ी को ख चा। उसने खोपड़ी को
ारका शा ी क आंख के तर पर उठाकर, सर झुकाकर, उसे डमा टर क
तरफ बढ़ाया।

‘कपाल अपण वीकार कर, गु दे व,’ उसने कहा।

ारका शा ी ने पलक नह झपका ।

‘ नकल जाओ, जट,’ उ ह ने कहा।

जट कपा लक ने मासू मयत से दे खा, वो खी लग रहा था। यह महा-तां क


क नाटक यता का सरा प था।

‘आपने मेरा साद ठु करा दया, गु दे व?’ उसने ऐसे पूछा, मानो वो कतना नराश
था। ‘आपने मेरा कपाल-अपण ठु करा दया?’

‘चले जाओ!’ मठाधीश दहाड़े । व ुत ने अपने बाबा के कंधे पर अपनी बांह


रखकर, उ ह शांत कराने क को शश क । उसने यान दया क दोन शैतान बहन,
चुपचाप नकलकर अघोरी क भीड़ म खो गई थ । इससे उसने राहत क सांस
ली।

जट ने ारका शा ी को घूरा, उसके चेहरे पर घृणा और अवमानना पसरी ई


थी। दे व-रा स मठ म घुसने के बाद, अब उसने अपना वा त वक चेहरा दखाया
था।

‘कपाल अपण तो होगा आज, भु,’ जट फुंफकारा। ‘कपाल अपण तो होगा...’

व ुत जट क बात का मतलब नह समझ पा रहा था। यहां तक क महान


ारका शा ी भी हैरान थे। ले कन वो जानते थे क इस बात को ह के म नह
लया जा सकता था। जट को कभी भी ह के म नह लया जा सकता था।

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मसान-राजा, मृतक-नाथ, महा-तां क, जट कपा लक ने स मान से ारका
शा ी के सामने सर झुकाया और जाने के लए मुड़ गया।

‘हम बात करनी होगी,’ अघो रय के प रसर से बाहर जाते ही, ारका शा ी ने
व ुत से कहा।

‘जी बाबा, म भी इस पल का बेस ी से इंतजार कर रहा था। मुझे आपसे ब त


कुछ जानना है।’

मठाधीश ने हां म सर हलाया। ‘शाम के बाद, मेरी कुट र म आकर मुझसे मलो,
पु ।’

‘जी बाबा, म प ंच जाऊंगा,’ व ुत ने जवाब दया। ‘ले कन अभी के लए मुझे


एक सवाल पूछना है...’

ारका शा ी सुनने के लए खड़े रहे।

‘ये जट या कह रहा था क कपाल अपण होकर रहेगा? इसका या मतलब


था?’

जवाब दे ते ए, मठाधीश कुछ च तत नजर आए, ‘इसका मतलब है, व ुत क


कुछ भयानक घ टत होने वाला है। जट कपा लक ब त खतरनाक इंसान है।
हम सावधान रहना चा हए।’

व ुत और बलवंत ने बाला के साथ अपनी बात जारी रखने का नणय लया।


सोनू को पहले कोठरी क तरफ भेजकर, वो शां त से उस ओर जा रहे थे। जट
कपा लक से ई मुलाकात हर कसी को परेशान कर रही थी। इस समय बस
व ुत एक ही चीज से राहत म था क बाला खुलकर बात कर रहा था। इतना कुछ
हो जाने के बाद भी, उसे कह न कह अहसास था क वो अपने पुराने म को
बुराई के रा ते से नकालकर, अ ाई के माग तक ले आएगा।

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जैसे ही वो कोठरी के सामने के बरामदे म प ंचे, तो उनक नजर कांपते ए सोनू
पर पड़ी। ऐसा लग रहा था मानो उसने भूत दे ख लया हो! इससे पहले क व ुत
और बलवंत उससे कुछ पूछ पाते, सोनू कोने म जाकर उ टयां करने लगा।

कोठरी का दरवाजा आधा खुला आ था, ऊपर लटकते ब ब क रौशनी बरामदे के


एक ह से तक प ंच रही थी। व ुत चता से सोनू को दे ख रहा था, तभी उसे
अपने कंधे पर बलवंत के हाथ का अहसास आ। व ुत के मुड़ने पर, बलवंत ने
खामोशी से दरवाजे के ताले क तरफ इशारा कया। वो चाबी से खुला नह था। वो
टू टा आ था।

या बाला भाग गया था?

अब व ुत और बलवंत दोन कोठरी क तरफ भागे और बलवंत ने उस भारी


मैटल के दरवाजे को लात मारकर खोला। उसने हमले के लए अपना छु रा भी
नकाल लया था।

उ ह ने जो दे खा, उसने उनक सांस रोक द ।

कोठरी के फश और द वार पर खून फैला था, जो वहां ए र पात का माण था।

ऊपर लटकते ए ब ब के नीचे रखी, ट ल क मेज से खून टपक रहा था, जहां
कुछ दे र पहले बाला ने रम का गलास रखा आ था। उसी मेज पर, दराती के
कए गए काम का नमूना भी रखा था।

बाला का कटा आ सर।

उसक आंख पूरी तरह चढ़ ई थ और उसका मुंह वैसे ही खुला आ था, जैसे
जट के शूल पर लगी खोपड़ी का मुंह था।

व ुत अब समझ गया था। वो श द उसके दमाग म गूंज रहे थे।

‘कपाल अपण तो होगा आज, भु...’

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हड़ पा, 1700 ईसापूव
पहाड़ पर कोहराम

वह ट और कांसे के सबसे ऊंचे ट ले पर खड़ा, हड़ पा के सपा हय और क मय


को कसी भूखे ग क तरह दे ख रहा था। रात अं धयारी थी, और ववा वन
पुजारी अपने तशोध का पहला पासा चलने वाला था—र रं जत पासा।

सम हड़ पा म मौसम तेजी से बद से बदतर होता जा रहा था। मौसम म यह


बदलाव तब से ही था जब धरती के पहले कंपन और सर वती क पहली हसक
लहर ने हड़ पा वा सय को अपने दशन दए थे। दन का उ जयारा कुछ ही समय
के लए होता था, और नय मत च म रात के अंधेरे ने अ धक ान घेर लया
था। हर गुजरते हर के साथ, सर वती का आकार अवणनीय प से बढ़ रहा था,
इसके समु जैसे वकराल जल ने, कई कनार को तोड़कर गांव म घुसकर,
हजार कसान और मवे शय को डु बो दया था। अब शायद ही कोई ान क
नद , सर वती को उसके वा त वक नाम से पुकार पा रहा था। उसका नाम अब
बदल गया था। अब वह र -धारा थी! गरजते बादल, मूसलाधार वषा और धूल

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क अटू ट आंधी ने सम आयवत के जनजीवन को अपंग बना दया था। येक
को यक न था क उ ह म से कसी के जघ य अपराध क वजह से, सबको ई र
के ोध का भागी बनना पड़ रहा था। ले कन वो नह जानते थे क दे वता क
यातना के सा ी और सहभागी बनकर वो सभी अ य अपराध के साझेदार बन
चुके थे।

मैसोपोटा मया के काले जा गर , गुन, अप और शा के ारा मलाए गए नशे का


असर अब उतरने लगा था। य प वे पूरी तरह अपने शांत और स य वहार म
नह आ पाए थे, ले कन फर भी हड़ पा वा सय को पछले तीन दन क ू रता
का कुछ-कुछ अहसास था। कई कोन से अब अपने सूय के त ए अ याय क
बात भी सुनाई पड़ रही थ । कुछ आंख से तो पछतावे के आंसू भी बहे थे। ले कन
अब ब त दे र हो चुक थी। संजना अब जी वत नह थी। मनु भी संभवतया मर
चुका था। और सूय भी अब वनाश और मौत का घनौना त बन चुका था।

बेबस हड़ पा वा सय क हालत अब ददनाक थी। एक तरफ तो उ ह अपना अंत


आता दखाई दे रहा था, और सरी तरफ उनके पास जाने को कोई रा ता नह
था। वो जानते थे क कृ ष, म य पालन और पीने के पानी के लए उपल ,
जीवनदा यनी नद के बना, वो कह भी नई ब ती नह बसा सकते थे। जो या ी
पूव म, कई योजन का सफर तय करने गए थे, उ ह ने आकर बताया था क वहां
हर जगह सूखा और धूल ही है। अपनी वकराल नय त से बचकर वो कह नह
जा सकते थे। ची कार भरी रात म मा ने अपने ब को सीने से लगा लया
था। पता पागल क तरह अपने यजन को बचाने का रा ता ढूं ढ़ने नकलते,
ले कन हताश होकर वापस लौट आते। हड़ पा के येक घर और येक मं दर म
अब ाथना और य के मा यम से, ई र से दया और रहम क भीख मांगी जा
रही थी।

ले कन भगवान उनक सुनने वाला नह था। इन पा पय ने अपने सामू हक


पागलपन म, अपने ही सूय को तबाह करने क को शश क थी।

और वही काला सूय अब ऊंची च ान से उ ह घूर रहा था, वो अपने ोध क अ न


म इन सबको झुलसा दे ने वाला था।

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‘वो सं या म कम से कम हजार ह,’ चंड ने ववा वन से, तेज हवा के बीच
च लाते ए कहा। ‘और यह रात क पारी है। दन के समय तो ये इससे भी
दोगुनी सं या म काम करते ह।’

ववा वन ने हां म सर हलाया। उसे चंड के ारा बताई गई सं या क कोई


परवाह नह थी। उसक नजर अपने शकार पर टक थी—हड़ पा के सपाही,
जो नमाणाधीन ढांचे क सु नयो जत जगह पर, दो सौ मीटर से अ धक क गहराई
पर थे। वो जगह, तेज तूफान म भी, मशाल और अलाव से रौशन थी। पछले तीन
दन से उसने जानलेवा आघात क अपनी े ता को रोके रख बड़ी गलती क थी,
और अ धक समय मोलतोल म गंवा दया था। अब वो अपनी यह गलती नह
दोहराने वाला था। हड़ पा को अब दे वता के यु के ऐलान का वार झेलना ही
पड़े गा।

‘म ऊपर से सीधा नीचे भंजी छलांग लगाऊंगा,’ ववा वन ने कहा।

चंड और उसके मु भर आदमी, एक पल को यह सुनकर त रह गए। उनक


योजना थी क हड़ पा के नए राजा, पं डत चं धर के आदे श के तहत बनने वाले,
ट और कांसे के पवत का सामान, उपकरण और क मय को क जे म ले लगे। वो
बदनसीब राजा उसी योजना पर काम कर रहा था, जो मूल प से ववा वन
पुजारी ने बनाई थी। इसी के मा यम से वो रौ सर वती के वाह को बदलने का
यास कर रहा था। ले कन एक कुशल वा तु वद के बना उसक प रयोजना कस
काम क ?

‘तु हारे पास जानवर क खाल से बनी जो सबसे लंबी र सी है, वो मुझे दो। हमारे
पास समय ब त कम है,’ ववा वन ने अपने नए सा थय के चेहरे पर आए
अ व ास क अनदे खी करते ए कहा।

‘ले कन अ ववा वन, यह ढलान बलकुल खड़ी है। कसी ने भी कभी इतनी
ऊंचाई से छलांग नह लगाई है। या तो र सी साथ छोड़ दे गी या तुम तीर क तेजी
से सीधे जमीन पर जाकर गरोगे!’

भंजी या र सी बांधकर लगाई जाने वाली छलांग हड़ पा म, और असुर के


सा ा य म भी, एक जाना-माना अ यास था। इसका मुखता से इ तेमाल
छपकर क जाने वाली ह या म कया जाता था। ले कन जस ऊंचाई से

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हमलावर यह छलांग, कमर पर चमड़े क र सी बांधकर, लगाता था वो कसी ऊंचे
पेड़ या तीन मं जला इमारत से अ धक ऊंची नह होती थी। जो ववा वन पुजारी
कह रहा था, वो कभी सुना नह गया था, और ब त जो खम भरा था।

वह तैयार था। वो र सी जसे वयं उसने सावधानी से जांचकर, फर वयं ही


अपनी कमर म बांधा था, उसे ट और कांसे क एक वकराल च ान म अटकाया
गया था। उसक बा जांघ पर तरकश था, जसम घातक तीर रखे थे, येक तीर
के सरे को, सावधानी से तरकश म चपकाया गया था— जससे वो अपने आप ही
न गर जाएं और दे वता के नकालने पर ही नकल।

‘जैसे ही म अपने तीसरे या चौथे तघात के बाद जमीन पर उत ं गा, तभी अपने
पैदल सपा हय को नदश दे ना क वो पूरे े को चार तरफ से घेर ल। जो
वरोध कर उ ह मार दे ना और बा कय को बंद बना लेना। बं दय से इस वकराल
प रयोजना म काम लया जाएगा।’

चंड और उसके आद मय ने सहमती म सर हलाया।

हड़ पा के दल के बीचोबीच, च ान से छलांग लगाने से पहले, ववा वन पुजारी ने


नणय लया क मन दल म कुछ खलबली मचाई जाए। अपने साथ खड़े असुर
सै नक को हैरानी म डालते ए, ववा वन ने एक ही बार म चार तीर ख चे। उसने
हो शयारी से उ ह धनुष पर रखा, नशाना लगाया और एक साथ चार तीर चला
दए। अभी जब तीर क पहली खेप हवा म ही थी, दे वता ने और चार तीर
नकालकर, चला दए। और फर एक बार और चार। तीर क तेज ग त और
उसक धनुधर का सट क नशाना असुर सपा हय और उनके सेनाप त, चंड के
लए आ यजनक था। एक ही झटके म दे वता के तीर अपने नशान पर जा लगे,
और हड़ पा दल के बारह सपाही जमीन पर ढे र हो गए। वो एक साथ अपने
ान से गरे।

दे वता ने कुछ कदम पीछे लए और फर तेजी से भागते ए, च ान से छलांग लगा


द , उतनी ही शान से, मानो कसी बाज ने आसमान म अपने पंख खोल दए ह ।
धरती के गु वाकषण और अपनी ग त से, तेजी से नीचे जाते ए भी उसने तीर

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के दो समूह और नशाने पर प ंचा दए। अपने सपा हय को जमीन पर गरता
दे ख, हड़ पा के दल म अचानक से अफरा-तफरी मच गई। और तभी, उनम से
कुछ ने एक आंख वाले ेत को, आसमान से अपने ऊपर गरता दे खा, जो तुरंत ही
जाने कहां गायब हो गया! अब तो वहां हडकंप मच गया था। ट लेकर जाते और
प र क च ान ख चने वाले मज र, तुरंत ही सब छोड़कर भागने लगे। जाने कहां
से तीर क वषा होने लगी और उस समय म काम पर मौजूद हड़ पा के सपा हय
के छ के छू ट गए।

चंड इस पूरी या को उस भय और शंसा से दे ख रहा था, जो उसने कभी


कसी के लए नह महसूस कया था। यहां तक क अपने शूरवीर राजा सुरा के
लए भी नह ।

‘वो अकेला हजार के मुकाबले खड़ा है, और फर भी वो जीत रहा है!’ उसने
वयं से कहा।

‘वो वा तव म आधा-मनु य, आधा-भगवान है...’

सूय-घड़ी के एक च कर से भी कम समय म सब ख म हो गया। ववा वन पुजारी


जमीन पर उतरकर, अपनी र सी काटने से पहले लगभग सौ सपा हय को
धराशायी कर चुका था। अब वह बीस या उससे अ धक हड़ पा सपा हय से घरा
आ था, ज ह उसने पल भर म छतरा दया। जस तेजी से दे वता अपनी तलवार
घुमा रहा था, वो मन को धुंधली ही नजर आ रही होगी—उनके ारा दे खी गई
आखरी धुंधली चीज।

सुरा अपने सपा हय के साथ, घुड़सवारी करता आ वहां प ंचा और अब वो


लोग हड़ पा सपा हय को मारने और बंद बनाने का काम कर रहे थे। छोट और
सहज लड़ाई जीती जा चुक थी।

असुर राज अपने घोड़े से उतरा और ववा वन पुजारी क ओर बढ़ा। ववा वन


एक च ान से टका खड़ा था, उसके हाथ उसक तलवार पर टके थे, जो सगव
उसके सामने खड़ी थी। र न-मा से ल टपक रहा था।

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‘आप अतुलनीय ह, ओ महान अ-दे वता!’ सुरा ने ववा वन पुजारी के स मुख
झुकते ए कहा। नया म ऐसा कोई नह था, जसके सामने सुरा पहले झुका
हो। ‘इ तहास कभी आपको भुला नह पाएगा।’

‘इ तहास को ही तो म अभी मटाने जा रहा ,ं सुरा,’ ववा वन ने जवाब दया।

सुरा जानता था क ववा वन क बात का या अथ था। उसने दे वता को अपनी


बात पूरी करने द ।

‘कोई मुझे याद नह रखेगा। ले कन सबसे मह वपूण...

कोई नह जान पाएगा क हड़ पा म या आ था।’

‘तो अब या योजना है?’ चंड ने पूछा। वो दहकती अ न के गद इक ा ए थे।

‘इस े के मु य अ भयंता को मेरे पास लाओ,’ ववा वन ने कहा।

कुछ ही पल म एक म य-आयु के, डरे ए इंसान को दे वता के सामने लाया गया।


वो जानता था क ववा वन पुजारी कौन था। हड़ पा म हरेक ववा वन
पुजारी को जानता था। मु य अ भयंता को धुंधला सा याद पड़ रहा था क अभी
दो दन पहले ही, वशाल नानागार म, हड़ पा के सूय को स त सजा द गई थी।
कसी र के सपने क तरह, वो वयं को भी उसे प र मारते ए दे ख रहा था।
उसे याद आ रहा था क ववा वन पुजारी को जानवर क तरह मरता दे ख, वो
पागल क तरह हंस रहा था। और यहां वो, सूय के स मुख पूरे स मान और
पछतावे के साथ खड़ा था। इसम उस बेचारे क कोई गलती नह थी। ांड के
अ य हाथ, जब मानवता क नय त पर बद क मती क याही फेरते ह, तो
प व मनु य भी अमरता का वष पी लेते ह।

ववा वन ने आदमी को डर से कांपते ए दे खा और नरमाई से पूछा, ‘इस वशाल


काय का या उ े य है, म ?’

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अ भयंता ने हकलाते ए जवाब दया, ‘वो... वो... वो र -धारा के वाह को
हड़ पा से र करना, भु।’

‘सही है,’ ववा वन ने कहा। ‘बस योजना म छोटा सा बदलाव है।’

मु य अ भयंता के साथ, हरेक यान से सुन रहा था।

‘इस पल से, सर वती को हड़ पा से र भेजने के बजाय, हम सु न त करगे क


वो इस अधम नगर क ओर ही बढ़े !’

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बनारस, 2017
‘हमने उसे दानव बना दया’

सारनाथ के धामेक तूप का सुंदर, तंभ जैसा गुंबद उनके सामने खड़ा था। शां त
और अ या म का तीक होने के बावजूद, ये कसी तरह से अपने सामने बैठे दो
थत मन और आहत आ मा को सां वना नह दे पा रहा था।

दा मनी शोकाकुल, डरी और घबराई ई थी। व ुत जड़ बैठा था, उसका चेहरा


मानो पथरा गया था।

‘व तु , मुझसे वादा करो क गु से म तुम कोई बेवकूफ नह करोगे,’ दा मनी ने


जोर दया। वो दे ख सकती थी क व ुत गु से से उबल रहा था।

व ुत ने कोई जवाब नह दया। दा मनी ने दे खा क गु से से व ुत क दांती भच


रही थी। वो जानती थी क दे व-रा स मठ म घुस, यूं बेरहमी से ह या करके,
जट ने व ुत को खुली चुनौती दे डाली थी।

और जतना वो व ुत को जानती थी, वो कह सकती थी क व ुत इसे ह के म


नह लेने वाला था।

बोध गया, कुशीनगर और लु बनी के साथ ही सारनाथ उन मुख चार तीथ ल


म से एक है, ज ह वयं बु ने वीकृ त द थी। वाराणसी से लगभग 13
कलोमीटर क री पर त ये वो जगह थी, जहां गौतम बु ने अपना पहला
उपदे श दया था। व ुत ने दा मनी से वादा कया था क वो उसे इस प व ल

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पर ले जाएगा। ले कन उसने कभी सपने म भी क पना नह क थी क वो इतने
भयावह हालात म यहां आएंगे।

प रसर के वशाल बगीचे म, वो घास पर पालथी मारकर, खोए-खोए और बे यानी


से बैठे थे। व ुत मन से अपने भटके ए दो त का कटा सर और सफेद आंख
नकाल ही नह पा रहा था।

हमने उसे बांधा ही य ? कम से कम बाला वयं को बचा तो पाता! हमने उसे


बांधा य ?

उस घटना ने पूरे दे व-रा स मठ को हला दया था। मठ के सैकड़ साल के


इ तहास म, कभी भी वहां क सुर ा म, यूं सरसरी तौर पर और इतने हसक
तरीके से सध नह लगी थी। इस वजह से मठवा सय के दल म एक डर घर कर
गया था, और महान ारका शा ी के मन म असीम पछतावा। वह हतो सा हत थे
क उ ह ने न सफ अपने उन अभूतपूव पूवज के स मान को ठे स प ंचाई थी,
ज ह ने नदयी लूटेर , धमाध सु तान के वकराल हमल से मठ क र ा क थी,
ब क वो अपने उस कत नवाह म भी असफल रहे थे, जसके लए नय त ने
उनका चयन कया था। व ुत को हर क मत पर बचाया जाना था! और अगर मठ
के नेतृ व क नाक तले बाला का सर धड़ से अलग कया जा सकता था, तो फर
व ुत यहां कैसे सुर त था??

दे व-रा स मठ अब त-हमले क तैयारी कर रहा था। मठाधीश क तरफ से


पहला और सबसे तुरंत आदे श यही था क ज द से ज द दा मनी को उसके
गुड़गांव वाले जीवन क सुर ा म भेज दया जाए। दा मनी के वरोध को इस लए
भी नजरंदाज कर दया गया, य क व ुत भी ढ़ता से मठाधीश के नणय के
प म था। दा मनी क जानकारी के बना, मठ का एक श त यो ा उसके
साथ गुड़गांव जा रहा था। वो दा मनी क सुर ा के लए हर समय वह मौजूद
रहेगा, ले कन बना कसी के सामने आए।

सारनाथ का उनका सफर, वाराणसी म दा मनी का आखरी दन होने वाला था।

अभी के लए तो।

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व ुत के परेशान, मनोहर चेहरे को नेह से दे खते ए, दा मनी ने अपने हाथ म
व ुत का हाथ लया। कुछ ही दन म उनक नया या से या हो गई थी। कुछ
स ताह पहले तक जोशीले, सफल और स के प म व यात व ुत
अब कोई मसीहा बन गया था, जसे कसी ऐसे रह य क र ा करनी थी जो पूरी
मानवजा त के लए आव यक था! वो क़ ल, जा -टोने, तां क , गो लय ,
ह या , आ मा और छपे ए श ु के क म था। ये सब जतनी तेजी से
सामने आया था, उसे दा मनी पूरी तरह पचा नह पा रही थी। वो सबकुछ क मत
पर छोड़ चुक थी। उसका असीम, अनंत, अवणनीय व ास सफ एक ही आदमी
पर था। वो आदमी जो उसका था।

व ुत।

‘कुछ तो बोलो, व ुत... कुछ तो कहो न...’ उसने कहा।

व ुत जानता था क दा मनी को एयरपोट छोड़ने से पहले, अब उसके पास एक


ही घंटा बचा था। उसे दा मनी को ब त कुछ बताना था। उसका दल ख, पछतावे
और हताशा से भरा था, और वो जानता था क सफ दा मनी ही थी, जो उसके
हालात को समझ सकती थी। सफ वही थी जो उसक बात सुनने के साथ-साथ
समझती भी थी।

‘हमने उसे दानव बना दया,’ व ुत ने सारनाथ के व तार म, कह र दे खते ए


कहा।

‘तुम कहना या चाहते हो...’ दा मनी ने पूछा।

‘दा मनी, हमने उसे दानव बनाया। मने उसक कहानी सुनी थी। उसके बचपन
और उसके प रवार क यातना क सड़ी ई सचाई...’

दा मनी वधा म थी। उसे व ुत और बाला के बीच ई आखरी बात का नह पता


था, तो इस लए वो समझ नह पा रही थी क व ुत कसके बारे म, या बात कर
रहा था।

व त
ु बोलता रहा। दा मनी ने उसे बोलने दया। वो जानती थी क इस समय
व तु को दल ह का करने क ज रत थी।

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‘हमारा धम व का सबसे ाचीन धम है। वा तव म तो ये धम भी नह है। ये तो
इस महान रा , इस सुंदर उपमहा प के जीवन क शैली है। हमने जीरो क खोज
क , ग णतीय पाई का मान नकाला, माशल आट, श य च क सा, औष ध,
शतरंज, राजनी त, योग... हम उस दौर म गूढ़ वेद लख रहे थे, जब प मी लोग
गुफा म रहते ए, क ा मांस खाते थे! हमने वण व ा या जा त था क
रचना क जससे म को भावशाली तरीके से बांटा जा सके—अथ व ा म
वकास के लए। ले कन दे खो हमने अपनी सबसे प व अवधारणा को कतनी
बुरी तरह से कर दया।’

‘सॉरी व ुत, म समझती ं क तुम ह व और समाज म जा त वभेद क बात


कर रहे हो। ले कन यह भावशाली या प व ढांचा कैसे आ? या यह
असमानता का सबसे वकृत प नह है?’

‘ बलकुल ये है! बलकुल है, दा मनी...’ व ुत ने बेचैनी से कहा। ‘ले कन इसक


शु आत ऐसे नह ई थी। अगर तुमने हमारे ंथ पढ़े ह , चार मुख जा तय म
से येक ा ण (पुजारी व श क), य (यो ा व संर क), वै य ( ापारी व
वसायी) और शु (कारीगर व कलाकार) भु व णु के शरीर के भ - भ
भाग से उ प ए थे! तो कोई भी जा त, पंथ या समुदाय जसक उ प वयं
भु व णु से ई हो, वो सरे से हीन कैसे हो सकती है?’

‘इसे और कहो, व ुत। जो तुम कह रहे हो, वो शायद म जानती ,ं ले कन


लीज इसे थोड़ा और व तार से बताओ। और मुझे बलकुल समझ नह आ रहा
क बाला इस सबसे कैसे जुड़ा था।’

व ुत ने आह भरी। वो दा मनी क तरफ मुड़ा और उसके माथे को चूमा। ये


अनायास ही था, ले कन वो उसके त अपने ेम को रोक नह पा रहा था।
दा मनी ने उसके हाथ पर अपनी पकड़ और मजबूत कर द , और अपनी यारी भंव
उठाकर, उसे बात जारी रखने का संकेत दया।

वो अब लोक य मठाई क कान क तरफ बढ़ रहे थे, जो सारनाथ के बाहर ही


कुछ री पर थी। कुछ दन पहले ही व ुत यहां के वा द गुलाब जामुन क

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तारीफ कर रहा था, और दा मनी ने जोर दया था क वो भी यह मठाई खाना
चाहती थी। दा मनी को मीठा अ धक पसंद नह था, ले कन वो कुछ भी करके
व ुत का मन पछली शाम क भयावह घटना से हटाना चाहती थी।

‘वण व ा या जा त था कसी भी कार के म का तपादन या समथन


नह करता था। समाज का हर वग समान था और उसका वग करण बस लोग के
संतुलन और वकास के लए कया गया था,’ चमकती दोपहर म चलते ए व ुत
ने कहा।

‘ह म, ये तो मेरे लए एक खबर है,’ दा मनी ने कहा। ‘म तो हमेशा सोचती थी क


ा ण को सव माना गया था और फर य और फर इसी म म...’

व ुत हंसा और हैरानी से अपना सर हलाया।

यहां तक क दा मनी जैसे सु व लोग म ये गलत अवधारणा है!

‘नह , दा मनी, ऐसा कोई भेदभाव नह था। वग करण सफ म के आधार पर


कया गया था, जससे समाज के ापक हत के लए वशेष ता और तभा को
ो सा हत कया जा सके। ऐसे समझो—मेरे जैसी कसी कंपनी का कौन सा
वभाग अ धक मह वपूण होगा? माक टग? सॉ टवेयर ो ा मग? मन रसोस?
या फाइनस?’

‘ओके बाबा, म समझ गई...’ दा मनी ने व ुत क बात को समझते ए कहा।


‘ले कन फर समानता और आ थक वशेषीकरण पर आधा रत यह व ा इतनी
व ोटक त म कैसे प ंच गई?’

व ुत दा मनी क तरफ मुड़ा, उसके भोले सवाल पर अ व ास से व ुत क


आंख फैल ग ।

‘वैसे ही जैसे एक धम क ापना करने वाले गड़ रये को अपने ाण का ब लदान


सव ापी ेम के संदेश के लए दे ना पड़ा। उसी महान धम का इ तेमाल बेरहमी
और अमानवीय धमयु के लए कया गया। वैसे ही जैसे एक पैगंबर के ेम और
मानवता के श द को कुछ लोग ने हसा और नफरत फैलाने के लए तोड़-मरोड़
दया, दा मनी। या तुम समझ नह पा रह ? धन और स ा के लालच म महान
ाचीन अवधारणा को खोखले वाथ के दलदल म धकेल दया गया?’

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दा मनी व ुत के हर श द को यान से सुनते ए, उसक बात का अथ हण कर
रही थी।

‘बाला ने जो कया, म उसक वकालत नह कर रहा। ले कन सफ उसे ही दोष


य दया जाए जब क वो तो वयं समाज के पतन का शकार था? जा त था का
अंध या वयन, जसम एक समुदाय को सरे समुदाय का शोषण करने का
अ धकार मल जाए, यह ह व नह है। ह व म ऐसा कभी था भी नह । कसी
जा त या समुदाय पर बेरहमी से यूं आ धप य सफ और सफ नै तक और
सामा जक ता ही है! और इसने न सफ हमारी महान जीवन शैली का नाम
खराब कया, ब क ब त से इंसान का जीना भर कर दया। बाला बस इस
वकृ त के सरे छोर पर था, और इससे बाहर नकलने का जो इकलौता रा ता
उसे दखाई दया, वो उस पर चल दया।’

‘म समझती ,ं व ुत,’ दा मनी ने कुछ पल ठहरकर कहा। वो शां त से चल रहे


थे। ‘ले कन या तुम ये पूरा करण अपने दमाग से नकालने क को शश करोगे?
म जानती ं क यह आसान नह होगा। ले कन तु हारे लए इसे भुला दे ना ब त
ज री है।’

व ुत का और दा मनी क तरफ मुड़ा।

‘बात मेरी नह है, दा मनी। और बात तो यहां बाला क भी नह है। ये एक बड़ा


मु ा है, जसे हम दे श और गत तर पर झेल रहे ह। इ तहास म लंबे समय
तक ा ण और य मलकर शू या द लत को दबाते रहे ह। वो याह व
नदनीय दौर था। ले कन अब दे खो या हो रहा है। राजनेता उ ह पुराने ज म को
कुरेद कर, उन पर नमक छड़कते रहते ह। प रणाम व प उन तथाक थत न न
जा तय का काफ बड़ा वग अब वोट बक के प म तैयार है, और वो कसी
न त जा त के नाम पर, कसी भी को स ा म ले आते ह! लोकतं ,
जो हमारे महान दे श का दल और आ मा है, वो अब जा त क इन सीमा
के सामने घुटने टे क रहा है। आज भी जा त के नाम पर बस जला द जाती ह और
वशाल रै लयां जुटाई जाती ह, जब क हम सभी भारतीय को मलकर गरीबी,
असा रता, कुपोषण जैसे मु पर यान क त करना चा हए। ले कन नह !

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ले कन हम सब जा त, धम, भाषा, रा य इ या द के नाम पर एक- सरे से लड़ने म
त ह। और अगर यही होता रहा तो इसके प रणाम व प बाला जैसे और भी
उपे त लोग को ह थयार क तरह पाला जाता रहेगा।’

दोपहर के चमकते आसमान के नीचे, री पर सारनाथ का मनोरम तीथ दखाई दे


रहा था। व ुत ने दा मनी का यान उस ओर आक षत कया।

‘हम वह खड़े ह, जहां हजार साल पहले, कसी दन बु खड़े थे, दा मनी। बौ
धम के मानने वाल ने उ ह अपना मानकर अपनाया। सरी तरफ, ह ने उ ह
भगवान व णु का नौवां अवतार माना। दोन समुदाय बु को चाहते ह। दोन
समुदाय ने उ ह अपने द वरासत मानकर साझा कया। उनके बीच कसी
तरह का कोई संघष नह है। यही समावेश, यही संयु ता हम व श बनाकर,
हमारी वरासत को अमर करती है।

यही जीवन क वो शैली है, दा मनी, जसक हम र ा करनी है।’

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हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव
काला मं दर

वह सवा धक भ य था।

धूसर-काले पहाड़ के संक ण क े और ग े वाले रा ते पर, कई घंट का सफर


तय करके, उनका दल एक खुली जगह पर प ंचा था। जो स पला रा ता उ ह ने
लया था, उससे मनु समझ गया था क न तो इस भ इमारत के महान वा तुकार
और न ही काले कपड़े वाले इसके संर क चाहते थे क कोई भी इस तक प ंच
सके।

जैसे ही मनु का घोड़ा पहाड़ के तंग दर से बाहर नकला, तो उसक आंख एक


य पर ठठककर रह ग । सामने मौजूद ढांचे क रौबदार उप त ने एक पल
को उसक सांस थमा द । वशाल काले पवत म, सवा धक भीमकाय ार को,
बड़ी ही ज टलता से काटकर बनाया गया था। वहां वो शानदार ढं ग से, आसमान
को छू ते ए खड़ा था।

काला मं दर।

वशाल पवत क स त, काली च ान म आकषक न काशी से तैयार कया गया


वह ार, मनु क अब तक दे खी गई हर कलाकृ त से अ धक सुंदर था। उसका
घोड़ा ल यहीनता से, काले मं दर क तरफ लक चाल म चल रहा था, और मनु
भी ार के वैभव के स मुख स मो हत सा हो गया था।

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‘मेरे साथ आओ, मनु,’ पवत संर क क अ ेता, रमणीय म हला ने कहा। ‘म
आपको सबसे प व मं दर म ले चलती ं।’

मनु घोड़े से उतरकर, म हला के पीछे चलने लगा। कुछ था जो उसे प व मं दर के


क से अपनी तरफ ख च रहा था।

जब मनु ने ार के अंदर वेश कया, तो उसे अहसास आ क जो उसने बाहर


दे खा था वो तो इस स मोहक मं दर क सुंदरता के आगे कुछ भी नह था। कुछ
कदम अंदर चलकर ही मनु, अपनी आंख के आगे उप त वा त वक वा तु श प
क े ता को समझ पाया। मं दर बनाने क कारीगरी को दे ख वो त रह गया
था क वा तुकार ने इसे—पवत को अंदर ही अंदर काटकर बनाया था! मनु एक
दरबार के ार पर खड़ा था, इतने बड़े भवन म उसने इससे पहले कभी कदम नह
रखा था। और यह काले पवत का वकराल उदर था।

मनु को मं दर क ऊंची द वार को दे खते ए, अपना सर और फर पूरा बदन भी


घुमाना पड़ रहा था, तब भी वो इस वशाल ढांचे को पूरी तरह से नजर म भर नह
पा रहा था। उसक छत इतनी ऊंची थी क वो कह अंधेरे म गुम होती मालूम पड़
रही थी। सैकड़ मशाल से व लत होते उसे मं दर म अनेक आकषक तंभ,
वृत-खंड, तमाएं और ाथना क बने थे। च ान काटकर बनाई गई, सी ढ़य क
ृंखला, जो मत कर दे ने वाली ऊंचाई तक जाती थी, वो दरबार के एक छोर को
सरे से जोड़ती थी।

ले कन मं दर क सबसे भावशाली और व मयकारी आकृ त दरबार के क म


ा पत थी। मनु ने तुरंत, भ और स मोहन म, घुटन के बल गरकर अपने हाथ
जोड़ लए।

या भगवान शव क एक वशाल तमा, यानाव ा म, प र के मं दर म


वराजमान थी।

इतने भ तर के वा तु श प को न तो मनु ने पहले कभी दे खा था, न ही कुछ


ऐसा सुना था। क जैसी वशाल तमा उसके सामने थी, उसक कभी उसने
क पना तक नह क थी। उसके लए यह सब कसी अ त और वल ण सपने

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से कम नह था। अपने कंधे पर कसी के हाथ को महसूस करके, वो तकरीबन
घबरा ही गया था।

‘ऐसा तीत होता है मानो आप सा ात सृ को ही दे ख रहे ह!’ जब मनु ने पीछे


मुड़कर दे खा तो म य ने प रहास से कहा।

अकथनीय ेम और भ के वशीभूत हो, मनु तुरंत म य के गले लग गया। अपने


आसपास क वैभवता से वो अ भभूत हो गया था, और म य के कंधे उसे नम
त कए का अहसास करा रहे थे। रह यमयी म य उसके इस भाव से हैरान रह
गया, ले कन खुशी से हंसते ए, उसने ववा वन और संजना के पु को मजबूती
से बांह म भर लया। कहना मु कल था क कसे कसक अ धक ज रत थी।
शायद द ता अपने भ से अ धक महान नह होती है। एक के बना सरे का
अ त व ही नह होता।

‘ये कौन सी जगह है, ओ म य?’ मनु ने वयं को नयं त कर पूछा।

वहां क जबरद त, रह यमयी सुंदरता को सराहते ए, म य ने कुछ कदम बढ़ाए।

‘ये इस ह के सवा धक ब मू य रह य का संर ण-गृह है, मनु,’ उसने कहा।


‘ पछले हजार साल म बना ये अपनी तरह का सातवां मं दर है। आने वाली
स दय म ऐसे और भी ब त से बनगे। जो रह य यहां छपाया गया है, उसे समय-
समय पर ानांत रत करना ज री है। जससे भ व यवाणी म व णत दन तक
उसक र ा क जा सके।’

मनु यान से सुन रहा था, तभी उसने गौर कया क म य क तरह ही, मछली क
खाल जैसे कपड़े पहने और भी म हला व पु ष उनके आसपास इक ा होने लगे
थे। जस तरह से वो म य के सामने सर झुका रहे थे, उससे साफ था क वो सब
उसके अनुयायी थे। वो सभी दे खने म सौ य और दयालु थे, और उनसे समु क
गंध आ रही थी। मनु हैरान था।

सैकड़ मील तक वहां कोई समु नह था!

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‘युग के येक च क समा त पर, सृ अपने और धरती क एकमा जा त
—जो वधाता का त न ध व करती है—के स म लत काय का मू यांकन करती
है। इसके बाद ही उस या का नधारण होता है, जसे हम द घायु कहते ह।
कभी-कभी पूण शु करण क आव यकता होती है, जसे कृ त क अवणनीय
श अंजाम दे ती है। और कभी आं शक शु क ही आव यकता होती है।
अ ाई क वजय के साथ बुराई का अंत। इसके लए कसी अवतार का ज म
होता है।’

अब वो के चरण म घेरा बनाकर बैठे थे—म य, म य के अनुयायी, पवत-


संर क क धम-माता और मनु। काले मं दर और इसक मह ा के बारे म मनु के
सवाल का जवाब म य दे रहा था। हालां क मनु का यान म य क बात क
तरफ ही था, ले कन फर भी वह दे ख पा रहा था क मं दर म र के ाथना क
से एक तरह का नम नीला काश नकल रहा था। ये उस पीले-नारंगी रंग के
नय मत काश से भ था जो सरी कोठ रय म जलती अनु ा नक अ न से
नकलता था। एक, दो... तीन... उसने ज द से गना। वहां सात ाथना गुफा
से नीला काश नकल रहा था, जो मं दर क द वार और च ान से बनी सी ढ़य
पर पड़ रहा था।

‘ले कन वधाता के पास इस संसार और इसके नवा सय क नय त नधा रत


करने का या अ धकार है? कसने वधाता को अ धकार दया क वो इस ह के
जीवन को उखाड़ फके? और इसका नणय भी वधाता के ही हाथ म होगा? जस
शु करण क आप बात कर रहे ह, या वो उस श शाली ई र, जसे हम
पूजते ह, के लए अशोभनीय नह है?’ मनु ने पूछा।

म य मु कुराए और मनु को नेह से दे खा। उनक मु कान से मनु को अपने पता,


श शाली ववा वन पुजारी क नेहभरी मु कान क याद हो आई।

‘तो आप बहस करके इस पहेली के पीछे छपा - ान खोजना चाहते हो,


मनु?’ म य ने कहा। ‘ या आपको नह लगता क इस ांड क ज टलता,
अ ाई और बुराई का कानून, कम-बंधन का तानाबाना, सृजन और वनाश क
ताकत को एक ही बार म जान पाना असंभव है?’

‘हां, ब कुल म य। म समझता ं क मु न और सं यासी ांडीय काय व ध को


समझने के लए, अपना पूरा जीवन तप या म बता दे ते ह, और हम अभी यह ,

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इस बारे म चचा से नह जान सकते। म बस यह कह रहा ं क म इन गहन वेद
और सरे ंथ का व ाथ रहा ं। उनक वल णता और तभा के चलते, मेरे
लए यह वीकार कर पाना हमेशा मु कल रहा क जसे हम सवश मान मानते
ह, वो ही मानवता क नय त का नधारण करे। या यह अनु चत नह है?’

मनु के इन श द के बाद सभा म खामोशी छा गई। उनम अ धकांश क नगाह


अब म य क ओर जवाब के लए लगी थ ।

‘तो तुम अपनी जा त के नय त नधारण म भू मका अदा करना चाहते हो, मनु?’
कुछ पल के वचार- वमश के बाद म य ने कहा। वो अब मु कुरा नह रहा था।

मनु ने यान दया क म य ने अपनी जा त कहा था, न क हमारी । उसने इसे


जाने दया। उसने ये भी महसूस कया क म य क वचा चमक रही थी, उसका
नीलापन थोड़ा अ धक गहरा रहा था। उसने इस याल को भी झटक दया।

‘हां... हां, मुझे लगता है क मेरे और मेरे लोग के बारे म नणय लेने के लए, म
मददगार बनना चा ंगा।’

म य अब मनु क आंख म घूर रहा था, गंभीरता से, ले कन वो स था। मनु को


लगा क मानो इस रह यमयी म य क नजर उसके सर को भेदते ए, कह
अनंत तज म खो रही थ ।

‘तो तैयार हो जाओ, ववा वन पुजारी के पु !’ अचानक म य गरजा। ‘तु हारा


मौका आने को है!’

उसक आंख चमक रही थ और उसने अपना दा हना हाथ फैलाया, उसक उं गली
मनु क तरफ इशारा कर रही थी, जब उसने ये र जमा दे ने वाले श द कहे।

‘ लय... महा लय...!

महा लय... आने वाली है...!’

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बनारस, 2017
कां टटाइन

व ुत शकायत कर रहा था। उसके पास इसक वजह भी थी। और उसके


परदादा शायद नया के इकलौते ऐसे इंसान थे जनसे वो बे झझक अपनी शंका
कह सकता था।

‘आप कालदश ह, बाबा, तीन काल के बारे म जानने वाले,’ व ुत ने कहा।


‘म नह मान सकता क आप ऐसी अनहोनी को पहले से नह भांप पाए। पहली
तो क बाला मुझे धोखा दे रहा था। और सरी, क वो जट कपा लक बस यूं ही
हमारा हाल-चाल जानने यहां नह आया था!’

व ुत महान ारका शा ी के कमरे म बेचैनी से इधर-उधर च कर लगा रहा था,


वो साफ तौर पर मठाधीश के स मुख अपनी नाराजगी कर रहा था।

‘दा मनी सकुशल द ली प ंच गई?’ ारका शा ी ने पूछा।

व ुत खीझते ए डमा टर क तरफ मुड़ा।

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‘हां। हां, वो प ंच गई है!’

‘ह म...’

व ुत का स अब छू ट रहा था। उसे अपने परदादा से जवाब चा हए था। उसे कई


सवाल के तुरंत जवाब चा हए थे।

‘बाबा, आपको बताना ही होगा... आपको मुझसे बात करनी ही होगी!’ व ुत ने


अपने यारे परदादा को बेचैनी से दे खते ए कहा।

ारका शा ी अपनी उं ग लय म ा माला के मोती फरा रहे थे। वो अपने


नय मत और श शाली मं हनुमाना क का जाप कर रहे थे। भु हनुमान क
आराधना, जो वो पहले भी कई बार मु कल प र तय म करते रहे थे।

वो जानते थे क अब कुछ रह य से पदा उठाने और कुछ सवाल का जवाब दे ने


का समय आ गया था।

‘भगवान राम कौन थे, व ुत?’

शा ी वंश का वंशज, भ व यवाणी म मसीहा, भावशाली व ुत अब


पहले से शांत था, वो तुलसी क चाय पी रहा था। मठ म रहते ए अब उसे कुछ
दन बीत चुके थे, और अब अपने एकमा जी वत अ भभावक क यह
आडं बरहीन ले कन दबंग कुट र उसे अपना घर लगने लगी थी।

‘बाबा, सच म? यहां से आप अपनी बात शु करना चाहते ह?’

मठाधीश मु कुराए। व ुत भी ह के से खल खलाया और अपनी चाय को


छलकने से बचाया। मठ म पछले चौबीस घंटे काफ तनावभरे गुजरे थे। शा ी
पु ष के लए ऐसा कोई ह का पल इस समय एक बड़ी राहत थी।

‘नह , ले कन मुझे बताओ, व ुत,’ ारका शा ी ने जोर दया, ‘राम कौन थे?’

व ुत ने अपना चाय का कप कुछ र रखा।

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‘बाबा, आप सच म मुझसे पूछ रहे ह क भगवान राम कौन थे? आप मुझसे
मयादा-पु षो म के बारे म पूछ रहे ह, न रता का मूत प, मानवजा त का
आदश, वयं ई र-राजा, राम के बारे म?’

‘म तुमसे उनका वणन करने या उनका चार करने को नह कह रहा। म बस


जानना चाहता ं क राम इंसान थे या भगवान।’

‘वो अवतार थे, बाबा—भगवान व णु का मानव शरीर म अवतार। आप उनके बारे


म मुझसे कह यादा जानते ह।’

ारका शा ी ने सर हलाकर अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘अब मुझे बताओ व ुत,
या राम ने अपने जीवनकाल म कुछ गल तयां क थ ? वो स र थे, अपने म
प रपूण थे... ले कन या उनके फैसल म कोई गलती नह थी?’

‘हां, उनसे कुछ गल तयां ई थ बाबा। संभवत: धरती के सबसे आदश


होने के बावजूद, उनसे भी कुछ गल तयां ई थ । ले कन या कसी अवतार के
लए वो सामा य नह है? इस धरती से बुराई का नाश करने के लए उस
सवश मान को मानव के प म अवतार लेने क कोई ज रत नह है। अगर
हम ई र के पारंप रक या लोक य प क बात कर तो, ई र महज बजली क
कड़क से का सफाया कर सकते ह! ले कन ापक ल य से, अवतार क
श ा दे ने और उसके मानवीय संघष का पाठ पढ़ाने के लए उ ह इस न र जगत
म अवतार के प म उतरना पड़ता है। फर वो चाहे राम ह , कृ ण ह या फर
कसी भी अ य धम, आ ा के पैगंबर, गु या फर मसीहा ही य न ह । उन
सभी ने एक इंसान क तरह ही जीवन जया, ले कन फर भी सम त मानवजा त
पर अपनी वशेष पहचान छोड़कर गए। यहां पूरी चचा और ज टल बन जाती है,
य क कुछ लोग मानते ह क ये अवतार यही दशाने के लए आए थे क कैसे
नेक काम करते ए ई र बना जा सकता है! ले कन जैसा क मने कहा, अभी के
लए यह ब त ही गहन चचा का वषय है।’

‘इतने व तृत जवाब के लए ध यवाद, व ुत। तुम बलकुल सही कह रहे हो।
द ता या अ या म होने से ही कोई पूरी तरह सव प र, या सवश मान नह बन
जाता। राम जानते थे क वण मृग का कोई अ त व ही नह होता। ले कन फर
भी उ ह ने उसका पीछा कया। या राम नह दे ख सकते थे क हरन क उस
सुनहरी खाल के नीचे शैतान छपा था?’

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व ुत सुन रहा था। अब वह समझ गया था क उसके बाबा या कहने क
को शश कर रहे थे। ‘ नय त के रा ते म कोई नह आ सकता। पूव- नधा रत कम
के बल पर कुछ घटना का घटना म सु न त होता है, ज ह कोई भी घटने से
नह रोक सकता। अगर भु राम से फैसले लेने म गलती हो सकती थी, तो यह
न र ारका शा ी कौन है? मुझे खेद है क म इस सबको भांप नह सका,
व ुत। मुझे बुरी ताकत के होने का आभास तो था, ले कन वो सब कसी गहन
पद के पीछे थ ,’ मठाधीश ने कहा, वो ब त थत दख रहे थे।

व ुत को अचानक ही अहसास आ क उसने पहले से पछतावे के बोझ तले दबे


अपने परदादा को दे व-रा स मठ म घ टत होने वाली घटना को न भांप पाने का
दोषी ठहरा दया था, और उ ह कैसे अपनी सफाई दे नी पड़ी थी।

‘कां ट टनोपल म या आ था, बाबा?’ व ुत ने पूछा।

उ ह ने मठ के बगीचे म घुमने का नणय लया। यह एक महान मठाधीश क तरफ


से, आ मवा सय को यह दखाने का यास भी था क ज द ही सब सामा य हो
जाएगा। डमा टर बीच-बीच म अपने अनुया यय और उनके प रवार से इस तरह
मलते रहते थे, मु कुराकर उनक तरफ आशीवाद व प हाथ उठा दया करते।
व ुत चलते ए खेल-खेल म कुछ ब को गोद म उठा लेता था।

‘ व ुत, कां ट टनोपल म जो आ उसने हमेशा के लए नया को बदल दया।


और यह ठ क कां ट टनोपल म नह आ था। यह वहां से लगभग सौ मील र,
नाइ सया नगर म आ था।’

‘नाइ सया...?’ व ुत फुसफुसाया। ‘मने नाइ सया के बारे म सुना है, बाबा। वह
तो ईसाई पाद रय क महान प रषद ई थी, कोई चौथी शता द म। वह ब त ही
मह वपूण घटना थी, य क इसम धम को मानने वाल के बीच क कई बड़ी
बहस को हमेशा के लए ख म कर लया गया था।’

ारका शा ी हमेशा क तरह भा वत थे।

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‘तुमने ब त अ तरह पढ़ाई क है, व ुत,’ डमा टर ने कहा। ‘का तकेय और
पूजा को तुम पर ब त गव होता।’

मठाधीश और उनके परपोते ने एक पल के लए नम आंख से एक- सरे को


दे खा। पहली बार व ुत ने अपने परदादा के मुंह से अपने दवंगत माता- पता का
नाम सुना था।

‘ध यवाद, बाबा। आप आगे बताइए...’ व ुत ने कहा।

‘ब त से लोग नाइ सया क प रषद के बारे म जानते ह और क यह ईसाई


पाद रय क कां ेस थी। ले कन ब त ही कम लोग को पता है क कां टटाइन म
अगले ही दन एक और गु त सभा आयो जत क गई थी। गु त और ऊंचे तर के
लोग उस दन जुटे थे, कुछ ऐसी चचा के लए जसे शां त य, समृ और
ववाद-मु नया का भ व य नधा रत करना था।’

व ुत यान से सुन रहा था, वो सोच रहा था क उसके परदादा को नाइ सया
प रषद के इस छपे ए अ याय के बारे म कैसे पता था। उसे इसके लए यादा
इंतजार नह करना पड़ा।

‘और उससे भी कम लोग को पता था क उनके सै य मुख , उ -पाद रय , रोम


और म के कुछ रह यमयी य और धनी ापा रय के अलावा वहां एक
खास नमं त भी मौजूद था। वो जस पर कां टटाइन सबसे यादा
भरोसा करता था।’

व ुत के लए मठाधीश क कही हर बात समझ पाना मु कल हो रहा था।


नाइ सया? कां टटाइन? एक स ाट का गु त रह य?

ये सब कहां जा रहा है? कां टटाइन और नया के त उसके नज रये से मेरा


या लेना-दे ना?

ारका शा ी व ुत के चेहरे पर वधा साफ दे ख पा रहे थे। वो जानते थे क


अब समय आ गया था, जब आखरी दे वता को सब बता दया जाना चा हए।

‘जो बात लगभग कोई नह जानता था वो थी क नाइ सया म कां टटाइन का


खास मेहमान, हजार मील र पूव से या ा करके आया था।’

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व ुत क आंख हैरानी से फैल गई थ ।

‘वो और कोई नह ब क हमारे तेज वी पूवज, यो ा-मु न, अ ै त शा ी थे।’

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हड़ पा, 1700 ईसापूव
उसका जघ य पाप

वचन पूरा करने का समय आ गया था। सुरा ने अपनी बात रखते ए, ट और
कांसे के पवत को ह थयाने म, ववा वन पुजारी क मदद क थी। उसक सेना ने
नमाण ल पर अपने हजार खर यो ा के साथ घेराबंद भी कर ली थी,
जससे पं डत चं धर और य वदा उसे दोबारा से हा सल न कर पाएं। इस लए
अब वचन पूरा करने क बारी ववा वन क थी। अब वो अपना जघ य पाप करने
जा रहा था।

हड़ पा का भूतपूव सूय अब सुरा को उन स तऋ षय का जीवन भट करने वाला


था, ज ह वो वयं कभी ई र क तरह पूजता था।

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अपने शूरवीर पु मनु के जी वत होने से अनजान, ववा वन पुजारी असीम ोध
म जल रहा था। वो इस नया को वैसी नदयता और घृणा दखाने वाला था, जो
पहले कभी नह दे खी गई थी। और शायद भ व य म भी कभी न दे खी जाए।

वो सर वती पु को मारने क इजाजत दे ने वाला था। इसके बाद जो तबाही आने


वाली थी उसका अनुमान तो ववा वन जैसा बु मान भी नह लगा सकता
था।

या शायद उस तबाही के बारे म वो जानता था।

वो अंधेरे म अपना रा ता बनाते ए, ठं डी नद म कमर तक डू बकर, खामोशी से


स तऋ ष के गु त नवास तक प ंच रहे थे। वो छोटा सा दल था, जसम सुरा के
पचास सव कृ , नशाचर सै नक थे। ये रा स-राजा का वचार था क स तऋ ष
के वन और गुफा तक दबे पांव प ंचा जाए। ववा वन जानता था क ये थ
यास था। स तऋ ष पहला कदम उठाने से पहले ही उनक योजना के बारे म
जान जाएंगे। ले कन ववा वन पुजारी यह भी जानता था क स तऋ ष भागने
वाल म से नह थे। प व सात या तो वशाल वृ को सप म बदलकर अंधेरे म
ही अपने हमलावर को ख म कर दगे, या सैकड़ भे ड़य को आदे श दे कर उनका
मांस नुचवा दगे। ववा वन को परवाह नह थी। उसक असुर सेना तेजी से वो
वशाल ट ला बनाने म लगी थी, जो सर वती के वाह को मोड़कर, हड़ पा का
वनाश कर दे गा।

उसका काम पहले ही हो चुका था। वो तो अपने साथी को दया, अपना वचन पूरा
करने आया था, और फर अंत म अपने शरीर क य म आ त दे दे ने वाला था।

अभी-अभी, पछले कुछ दन म इतना कुछ हो जाने के बावजूद भी, महान दे वता
सबसे अ धक मह वपूण सबक नह सीख पाया था। अभी भी वो योजना बना रहा
था, जो उसके मुता बक पूरी होने वाली थी।

कैसे एक घृणा से भरा दल और बदले के जहर से षत मन यह सोच सकता था


क ांड उसका साथ दे गा? कैसे वो याह आ माएं, जो नर और मासूम पर

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हसक हमले करती ह, उस वधाता का समथन चाह सकती ह? हसा को सबसे
पहले सजा मलती है। सबसे अ धक सजा भी।

वे अब वह खड़े थे, जहां ववा वन पुजारी पछली बार स तऋ षय से मला था।


ये ठं डी रात थी और पछली बार क तरह कोई भी जा ई घटनाएं वहां नह घट
रही थ —न तो धारा का मधुर संगीत था और न ही प ी चहचहा रहे थे। न तो वहां
नद म पड़े प र खल खला रहे थे और न ही घोड़े हन हना कर आपस म बात
कर रहे थे। वहां बस ठं डा, काला झुटपुटा था।

‘ढूं ढ़ो उ ह!’ सुरा ने आदे श दया।

रा स-राजा के पचास यो ा अब अपनी घातक तलवार नकालकर येक झाड़ी


और येक झुरमुट को काटने लगे। सुरा वयं अपने आप स तऋ ष क उप त
के कसी भी र माण क खोज म लग गया। ले कन कोई प रणाम न
नकला। वो कह नह थे।

जैसे ही सुरा, चंड और उनके आदमी अपनी तलाश रोककर, गु से से ववा वन


पुजारी क तरफ मुड़े, तो उ ह ने दे खा क दे वता एक ही दशा म ताक रहा था।
जब उ ह ने उसक नजर का पीछा कया, तो उ ह भी दखाई दया। वो जो जाने
कहां से कट हो गए थे।

स तऋ ष!

‘वो अपने शरीर म नह ह,’ हड़ पा के सूय ने कहा, उसक आंख अभी भी र से


स तऋ ष का नरी ण कर रही थ ।

सुरा, चंड और उसके आद मय को समझ नह आया, जो ववा वन ने अभी


कहा था। उ ह सफ इसी बात से मतलब था क स तऋ ष उनके सामने थे। वो
सावधानी से आगे बढ़े , उनक कृपाण द मु नय पर हमले के लए तैयार थी।

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सुरा क सांस पूवानुमान से भारी हो रही थ । वो अपने और अपने महान सा ा य
के बीच क आखरी बाधा को आज ख म कर दे ने वाला था!

स तऋ ष अब कुछ ही कदम र थे। एक मु न ठं डी नद के कनारे पर पालथी


लगाए बैठा था। सरा उससे आगे क च ान पर समा ध म था। एक और नचली
च ान पर गहरे चतन म दखाई पड़ रहा था, जब क सरा घने पेड़ के नीचे
साधना कर रहा था। सभी सात मु न एक- सरे से अ धक र नह बैठे थे। वो
सभी शांत और बढ़ते ह यार से अनजान मालूम पड़ रहे थे।

‘इसका कोई फायदा नह है...!’ ववा वन ने सुरा और चंड से च लाकर कहा।


वो अभी भी वह खड़ा था, जहां आज रात उसक नजर पहली बार मु नय पर
पड़ी थी।

जब ववा वन पुजारी धीरे-धीरे उनक तरफ बढ़ने लगा, तो सुरा अधीरता से


उसक तरफ मुड़ा।

‘सुरा, उनके शरीर को नुकसान प ंचाकर कोई फायदा नह होगा। वो अब अपने


शरीर म नह ह।’

‘तुम या बात कर रहे हो, ओ अ-दे वता,’ असुर के राजा ने ोध से कहा। ‘वो
सब यहां ह! वो जी वत ह... ले कन कसम से, अ धक समय तक जी वत नह
रहगे!’

रा स-राजा अपने आद मय क तरफ मुड़ा और च लाकर उ ह वो आदे श दया,


जो उसके लए तो सामा य था, ले कन उसे सुनकर ववा वन पुजारी त रह
गया। इसका तो हड़ पा के दे वता ने अनुमान तक नह लगाया था।

‘कल सुबह म इनक राख अपने शरीर पर लगाऊंगा,’ सुरा ने कठोर आवाज म,
अ धकारपूवक आदे श दया।

‘उ ह जदा जला दो!’

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बनारस 2017
यू व ऑडर

‘जब कोई स ाट अ य धक श शाली और शायद अ य धक आ मकामी हो


जाता है, तो वो वयं को ई र का हाथ मानने लगता है। वो मानता है क वो
सवश मान हर काम उसके मा यम से ही कराना चाहता है, क वो ही भगवान
का मा यम है। अपनी असमय मृ यु से पहले तक, एले जडर को यही लगता था
क वो द है। म के राजा रामेसेस तीय ने अपनी वशाल तमा बनवाई
थी, जससे उसे ई र के समान पूजा जा सके। उसका मानना था क उसका
संबंध रा, सूय दे वता से था। बाद के मुगल बादशाह म भी हम यह द वानगी दे खते
ह। उ ह ने वयं को जहांपनाह, मतलब नया को शरण दे ने वाले क उपा ध द !’
ारका शा ी ने आ म म घूमते ए समझाया।

व ुत शां त से, यान लगाकर सुन रहा था... बीच-बीच म वो समथन म अपना
सर हला दे ता था। वो ारका शा ी के वाह को बा धत नह करना चाहता था।

‘कां टटाइन भी इससे भ नह था। उसने यु के बाद यु करके वशाल


सीमा पर क जा कर लया। वो वयं को साधारण मनु य से ऊपर समझने
लगा। उसका मानना था क सामा जक और राजनै तक आचरण क एक
पूवानुमेय प त होनी चा हए। य क वह अपने आ धप य म अनेक छोटे रा य
को समा हत कर सकता था, इस लए उसने एक संग ठत नया क क पना
करनी शु कर द ।

उसने लोग के बीच मतभेद के लए धम को मुख कारण माना। उसने समझा क


जब क सीमा और ांत को आपस म मलाया और बलपूवक उ ह संग ठत भी
कया जा सकता है, ले कन आ ा और धम के मामले म ये संभव नह था।
कां टटाइन रोमन सा ा य क श और न ु रता के बावजूद, ईसाइयत के उदय

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को लेकर सजग था। तो संग ठत नया के अपने सपने को पूरा करने के लए,
उसने धम के साथ ही शु आत करने का नणय लया।’

‘इससे मुझे मुगल बादशाह अकबर क याद आई, बाबा,’ व ुत ने जवाब दया।
‘यहां तक क अकबर ने भी अपने वशाल सा ा य म शां त और पर र सोहाद
लाने के लए, कसी भी एक धम क े ता से इंकार कर दया था और सभी धम
को बराबरी का दजा दया था। उसने तो एक नए धम क भी शु आत क थी,
जसे द न-ए-इलाही कहा गया।’

‘तुम सही कह रहे हो। ले कन दोन म एक मु य अंतर है। अकबर ने कसी पर भी


अपना नया ा पत धम मानने के लए दबाव नह डाला था। उसने कभी बल का
योग नह कया था। न ही कसी सा जश का। ले कन कां टटाइन के मामले म
ऐसा नह था। पहले तो वो नाइ सया क पहली औपचा रक प रषद म ईसाइयत
के दो धड़ को एक साथ ले आया। यह उसके लए आसान काय था। उस प रषद
क आड़ म उसने हमारी जा त के इ तहास के सबसे मह वाकां ी राजनै तक-
धा मक अ भयान को मा णत कया। उसने यू व ऑडर को ा पत करने के
लए एक खतरनाक और अवा त वक अ भयान शु कर दया।’

अब वो वापस डमा टर क कुट र म लौट आए थे। य प 108 वष य बुजुग और


दे व-रा स मठ के सवसवा क सेहत म उ लेखनीय प से सुधार आ था,
ले कन उनम अभी भी कमजोरी थी। अपनी चचा फर से शु करने से पहले,
उ ह ने अपने शाही ब तर पर कुछ दे र आराम कया।

‘कां टटाइन म बेशक र ी थी, और उसका उ े य भी भला था। सबसे


मह वपूण, वो पछले सैकड़ साल के, उन कुछ चु नदा लोग म से था जो काले
मं दर के रह य म शा मल था। अपनी समझ से वो ‘ई र का काय’ करना चाहता
था, और उसने वयं को भगवान का त न ध घो षत कर लया था!’

व ुत ने ारका शा ी क पूरी बात नह सुनी। काले मं दर के नाम ने उसे दोबारा


च का दया था।

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‘बाबा, इससे पहले क आप आगे बढ़, आपको मुझे बताना होगा क ये काला
मं दर या है! उस दन घाट पर बलवंत दादा ने भी इसका ज कया था। उ ह ने
कहा था क नैना काले मं दर के संपक म रहने के लए सेटेलाईट फोन रखती है।
फर रोमी भी पोटे शयम साइनाइड खाने से पहले, इसके बारे म कुछ बड़बड़ा रहा
था। अब आप भी इससे जुड़े कसी रह य का ज कर रहे ह, जो सैकड़ साल
से रह य बना रहा है। बाबा, काला मं दर या है? यह हमसे कैसे जुड़ा है? इसम
कस रह य को छपाया गया है?’

‘काले मं दर ने अपने दल म मानवजा त क आखरी उ मीद छपाई ई है। ले कन


धैय रखो, व ुत। अगर मने अब तक तु ह इसके बारे म कुछ नह बताया है, तो
इसका एक कारण है। अबसे सात दन बाद तुम न सफ काले मं दर के रह य के
बारे म जान जाओगे, ब क तुम ही वो हो, जसे इसक र ा के लए चुना गया है।
तुम ही हम सबक मु तक इसक र ा करोगे। और यहां बात सफ मठवा सय
क ही नह है। न ही सफ प व नगरी काशी के लोग क । ब क वो राज इस ह
के सभी ा णय से जुड़ा है, व ुत।’

‘अपने अनु चत आ म व ास या शायद घमंड क वजह से, कां टटाइन ये नह


समझ सका क जस भी अवधारणा को म हला व पु ष अपने कंध का बोझ न
मानकर, उसे मू यवान मान, वही अवधारणा महान हो सकती थी। वयं धन, स ा
और वजय से तृ त होने के बाद, वो ऐसा ढांचा तैयार करने क को शश कर रहा
था, जो शायद कुछ ही साल तक टक पाता अगर कोई भी उसक महान
योजना का ह सा नह बनता। कोई शासक इतना भोला कैसे हो सकता था,
जसने इतने लंबे समय तक शासन कया हो!’ ारका शा ी ने कहा।

‘यक नन वो बेवकूफ भरा यास होगा, बाबा। ले कन उसक महान योजना


आ खर थी या? यू व ऑडर आ खर था या?’ व ुत ने पूछा वो अब
मठाधीश के ब तर के सामने ही बैठा था।

‘था ? या तुमने ‘था’ कहा, व ुत?’ ारका शा ी ने पूछा, उनक भंव हैरानी से
चढ़ गई थ और उनके श द म अपने परपोते के लए ह क सी झड़क थी। ‘ यू
व ऑडर पूरी नया म भूत क परछा क तरह फैल रहा है, और अब ये पहले

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से भी कह अ धक ताकतवर है। या सारे संकेत इसी तरफ नह इशारा कर रहे
ह, व ुत? या इसी के बारे म मने तु ह उस बद क मत दन नह बताया था, जब
तुम घाट पर रोमी परेरा से मले थे?’

व ुत समझ गया था क उससे कोई गलती हो गई थी। ले कन इससे अ धक वो


जान गया था क यू व ऑडर का नाम लेते समय उसके बाबा कतने
संवेदनशील हो जाते थे, और वो बड़ी सावधानी से इस नाम को लेते थे।

‘ मा चाहता ,ं बाबा। मेरा वो मतलब नह था। चूं क हम कां टटाइन के समय


क बात कर रहे थे, तो म जानना चाह रहा था क उसका भ नज रया या था?
वो इस ऑडर के मा यम से या हा सल करने क को शश कर रहा था?’

ारका शा ी ने हां म सर हलाया और अपनी बात आगे बढ़ाई।

‘वो एक व च , आदशवाद सपना था। यू व ऑडर के मा यम से कां टटाइन


नया का पुन नमाण करना चाहता था, जसम कोई सीमा नह हो, नफरत नह
हो, भेदभाव नह हो और मनु य के बीच म न ल, दे श, आ ा, वण या व को
लेकर असंतुलन न हो। अपने जीवन के महान और वजयी पल म जो कुछ वष
उसने शां त म गुजारे, उनम उसके वशाल सा ा य के लोग एक ही कानून, एक
स ाट, एक सं कृ त, एक अथ व ा और सबसे मह वपूण एक धम के अधीन
जए थे। भगवान का काम करने और अपने जाने के बाद नया को बेहतर जगह
बनाने क अपनी चाह म, कां टटाइन ने नया के सबसे बड़े भू मगत संगठन क
न व रखी। एक ताकतवर ातृ-संघ जो कां टटाइन के एक नया के सपने को
पूरा करने के लए मानवता को चूर-चूर कर दे गा—एक सरकार, एक अथ व ा,
एक मु ा, एक सेना, एक सं कृ त और एक भगवान!’

नया का सबसे बे दा नज रया था, जो व त


ु ने सुना था। कसी और ने अगर
ऐसी चीज करने क को शश भी क होती, तो वो या तो पागल कहलाता या
सुपरमैन।

महान कां टटाइन म इन दोन का थोड़ा-थोड़ा अंश मलता था।

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‘कोई इतनी असंगत चीज कैसे सोच सकता था, बाबा? ये तो भारत जैसे महान
दे श के लए भी सा य काय है क इसके सारे नवा सय को एक रंग से रंग दया
जाए, जैसा क कई राजनै तक अलगाववाद करने क को शश भी करते ह।
ले कन अगर हम राजनी त को हटा भी द, तो कैसे इंसान को कृ म एक पता म
बांधा जा सकता है, जब क वो नैस गक प से एक- सरे से अलग ह? कैसे
वतं इ ा, आजाद , वक प , ाथ मकता, मह वाकां ा और वफादारी के साथ
ाई प से समझौता कया जा सकता है? लोग को भेड़ क तरह कैसे हांका
जा सकता है?’ व ुत ने खीझते ए पूछा। उसे यह ब त ही वा हयात लग रहा
था क कैसे एक स ाट ने न सफ अपने समय के लोग क क मत को नयं त
करने क धृ ता क , ब क उसने आगे क पी ढ़य के लए यही एक पता
ा पत करने क योजना बनाई!

ारका शा ी बना व ुत को दे खे, उदासीनता से मु कुरा रहे थे। वो खुश थे क


उनका परपोता भी म ययुगीन पागलपन पर उतना ही नाराज है, जतना वो आज
तक भी ह।

‘ ातृ-संघ के पहले समूह को, जसे कां टटाइन ने नाइ सया म संग ठत कया था,
उसने नदश दए थे। उसके चुने ए पहले बीस ‘भाइय ’ को एक- नया,
एक-सरकार के उसके ल य को पूरा करने के लए लगातार, बना के और
बेरहमी से काम करना था।’

‘अब ये या है, बाबा? एक- नया, एक-सरकार...? इस तरह के पागलपन को


पूरा करने के लए उन उ मा दय ने कस चीज क क पना क होगी?’

डमा टर व त
ु को दे खने के लए मुड़े और मु कुराए। ले कन व ुत दे ख सकता
था क उनक आंख म कोई खुशी नह थी।

ारका शा ी ने अब व ुत से कुछ ऐसा पूछा, जो वो लंबे समय से पूछना चाह


रहे थे।

‘ या तुमने ने टो रयन यन के बारे म सुना है, व ुत?

और नाइट् स टे लर के बारे म?’

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हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव
लय

‘आपके पता सफ काले मं दर के अ त व और इसक जगह के बारे म जानते ही


नह थे, मनु। वो तो इसके मुख संर क म से एक थे।’

मनु अब म य के साथ उस वशाल मं दर म घूम रहा था। नीली रंगत वाला


मछली-पु ष, जसे ब त कम समय म मनु ब त नेह करने लगा था, उसने
ववा वन पुजारी के पु , मनु के साथ घूमने का नवेदन कया था। अब जब क वो
वशाल मं दर के ऊंचे ग लयार म से गुजर रहे थे, ज टलता से बने ए ाथना
मंडप म साधना म लीन बैठे ए यो गय को दे ख रहे थे, ले कन फर भी मनु के
मन से दो बात नकल नह पा रही थ । पहली, जो अभी कुछ दे र पहले, म य ने
अनजान और भयानक लहजे म, आने वाली लय के बारे म बताया था। सरी,
सात ाथना क , जो काले पवत क सीधी ढलान पर खोद कर बनाए गए थे,
उनसे नकलता नीला काश।

‘उ ह ने कभी इस मं दर के बारे म कुछ नह कहा, ओ म य,’ मनु ने जवाब दया।


‘न कभी मां ने कुछ बताया।’

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माता- पता का ज आने पर, एक पल को मनु का गला भर आया, ले कन फर
उसने वयं को संभाल लया।

‘ले कन जब म रण े से मां को लेकर नकल रहा था, तो सोमद काका ने


इसके बारे म च लाकर कुछ कहा था, और बेहोश हालत म भी, घुड़सवारी करते
व , यही बात मेरे मन म अटक गई थी। उ ह ने मुझसे कहा था क पूव दशा क
तरफ चला जाऊं, वह मुझे काला मं दर मलेगा।’

म य ने कुछ पल के लए ककर, मनु को दे खा।

‘आपको पता है न क इस मं दर को तलाशना आपक नय त थी, है न मनु? उसी


तरह इस मं दर को भी आपका ही इंतजार था! और अब से, आप ही इसके मु य
पुजारी, वामी और संर क ह गे।’

ये सुन मनु भावुक हो गया। काला मं दर, इसम रखी भ , चम कृत शव क


तमा, आकषक न काशी, वशाल गुफा-मं दर, भीषण बाढ़ क भ व यवाणी,
व लत नीली गुफाएं... और अब म य क यह घोषणा।

उसने गहरी सांस ली, अपना कमरबंद खोला और अपनी तलवार बाहर ख च ली।
उसे अपने पास म रखकर वो च ान से बनी एक सीढ़ पर बैठ गया।

उसने बैठकर ऊपर दे खा, तो पाया म य उसे शरारती, स ता भरी नजर से दे ख


रहा था! मछली जा त का अनोखा नेता अब नरमाई से हंस रहा था।

‘ याआअ...?’ मनु ने कुछ श मदा होते ए पूछा। वो वयं भी अब हंसने लगा था,
ले कन नह समझ पा रहा था क म य को कौन सी बात इतनी हा या द लगी
थी।

‘आप ब त नाटक य ह... अपनी तलवार बाहर नकालना, फर सी ढ़य पर ढह


जाना... हाहाहा’ म य ने ठहाका लगाते ए कहा। ‘और... और... तु हारी आह
भरना तो... हे भगवान!’ म य अब इतनी जोर से हंस रहा था क उसक हंसी से
पूरा पवत गूंज रहा था।

इससे पहले क मनु वरोध म कुछ कह पाता, उसने जो दे खा, उससे उसके र गटे
खड़े हो गए। म य क हंसी क गूंज वशाल मं दर के येक वृ -खंड और ऊंची

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द वार से सुनाई पड़कर चार ओर फैल रही थी। पल भर म ही मनु को लगा मानो
वो पूरा पवत हंस रहा था। ना... सफ सम पवत ही नह , ब क पूरा ांड हंस
रहा था। गरता आ येक प ा, येक प र, येक प ी, येक पशु,
लता का येक गु , हवा का येक कण, रौशनी क येक करण, येक
नवजात शशु... सम सृ ही मानो म य क खल खलाहट म शा मल हो गई
थी।

बस इतना ही।

मनु धीरे से उठकर म य क तरफ बढ़ा, जो अब खुशी से नम हो आई अपनी


आंख को प छ रहा था। मनु उसके चरण म गर पड़ा।

‘आप व णु ह, ह न? आप वयं भगवान व णु के अ त र कोई और हो ही नह


सकते, ओ म य...!’ मनु ने एक वर म कहा।

म य मु कुराया, ले कन उसक आंख से कभी भी आंसू बह सकते थे। उसने


झुककर मनु को उठाया।

‘आप व णु ह...’ मनु फुसफुसाया, आंख म असीम भ लए वो म य क


आंख म दे ख रहा था। इस बार वो सवाल नह पूछ रहा था।

‘ओ महान राजा, म व णु नह ,ं ’ म य ने जवाब दया।

वो नह था।

वैसे ही जैसे राम और कृ ण भी यथाथत: व णु नह थे।

‘ ववा वन पुजारी, सोमद और यहां तक क पं डत चं धर भी उन कुछ लोग म


से थे, ज ह काले मं दर के अ त व के बारे म पता था,’ म य ने कहा। ‘वो सब
जानते थे क इस प व मं दर म एक ऐसा रह य छपा है, जो मानव जा त के
भ व य के लए ब त मह वपूण है। ले कन सफ आपके पता, श शाली

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ववा वन पुजारी और उनक प नी संजना, ही इसके वा त वक रह य को जानते
थे।’

मनु को म य का हमेशा मानवता को तु हारी जा त या मानव जा त कहना


खटकता था। उसके लहजे म कभी घमंड या पूवधारणा नह होती थी। उसक
आवाज म कभी री का भी अहसास नह होता था। ले कन उसक बात से
अहसास होता था क वो इस नया से बाहर का था।

‘ओ महान म य, इस मं दर म कौन सा रह य छपा है? सोमद जी ने मुझे इस


तरफ य भेजा था? या वो जानते थे क यहां आप मलगे? या वो जानते थे
क काले प रधान वाले इसे पवत के संर क मुझे बचा लगे? और आपका या
मतलब था जब आपने अचानक भीषण बाढ़ आने क घोषणा कर द थी? हम सब
दे ख सकते ह क हड़ पा के आसपास भारी वषा हो रही है। सर वती भी उठान पर
है। ले कन हम हमेशा से मानते आए ह क द स तऋ ष उनक संतान ह और
वो ऐसा कुछ नह करगी, जससे उ ह नुकसान प ंचे। इतने सवाल पूछने के लए
मा चाहता ं म य, ले कन अपने श द से मुझे ान द जए।’ मनु जानता था
क उसने एक साथ ही मछली-पु ष पर सवाल क झड़ी लगा द थी, ले कन
उसके पास कोई वक प नह था।

म य क आंख गहराई से मनु को दे ख रही थ । ले कन इससे पहले क वो जवाब


दे ता, उसने झुककर, सी पय से बना घड़ा उठाया।

‘मनु, या आप मेरे लए थोड़ा पानी लाएंग?े ’ म य ने मं दर के कोने पर बनी नद


क तरफ इशारा करते ए कहा। ‘मेरे लोग यासे ह।’

मनु ने तुरंत आदे श का पालन कया। म य क सेवा का छोटा सा अवसर भी, उसे
ब त खुशी दे ता था।

अब वे काले पवत के बाहर, धूल भरे समतल पर टहल रहे थे। आसमान म घने
बादल घर आए थे। कृ त का वकराल प, जो हड़ पा और उसके आसपास
क जगह पर छाया आ था, अब र-दराज इलाक म भी अपने पांव पसारने
लगा था। मनु और म य ने ककर, ऊपर आसमान म दे खा। ब त से वासी

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प ी, आसमान म गरजते बादल और चमकती बजली के बीच, व भ संरचनाएं
बनाते ए उड़ रहे थे।

‘सोमद इस रह यमयी मं दर का उ े य नह जानता था, ले कन वह जानता था


क पवत-संर क याय के लए लड़ने वाले यो ा थे, और वो शव और हड़ पा के
सूय—आपके महान पता के वफादार थे। उसने आपको इस दशा म भेजा
य क वो जानता था क यह आपके बचने क इकलौती उ मीद थी,’ म य ने
असमय आते वासी प य को दे खते ए कहा।

‘ये लोग मेरे पता के वफादार थे? र तक फैला उनका भाव मेरे लए नया नह
था। ले कन फर भी वो बना कसी दो त के यूं मरे क उनके अं तम सफर म कोई
उ ह कंधा तक दे ने वाला न था,’ मनु ने कड़वाहट से कहा।

म य मनु क तरफ मुड़ा और उसके कंधे पर अपनी बांह रखी।

‘आपके पता का भाव आपक क पना से भी अ धक होगा, मनु। क मत का


प हया तो अभी बस घूमना शु आ है। ले कन अभी हम सरे मह वपूण मु
पर यान दे ना होगा।’

‘और वो मु े या ह, ओ महान म य?’

इस बार मछली-पु ष ने आह भरी। उसक नजर दो खड़ी च ान के बीच से


दखते तज पर टक थ ।

‘भीषण बाढ़ सच म आने वाली है, मनु। इतनी वनाशकारी बाढ़ जसके बारे म न
तो मनु य ने कभी सुना है, और न ही उसक क पना क है। ऐसी बाढ़ ज द ही
आने वाली है।’

मनु ने यान दया क म य क यो रयां चढ़ गई थ । पहली बार उसने इस


रह यमयी इंसान के उ वल नीले चेहरे पर उदासी और नराशा दे खी थी।

‘म नह जानता था क आप भ व यव ा भी ह, म य,’ मनु ने कहा।

म य ने उसे हैरानी से दे खा।

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‘ले कन म भ व यव ा नह ,ं मनु।’

‘आप नह ह? तो अगर आप यो तषी नह ह तो आने वाली बाढ़ के बारे म


आपको कैसे पता है?’

‘वह मह वपूण नह है, मनु। ज री है क आपको मुझ पर भरोसा है या नह ,’


म य ने कहा। वह सीधा मनु को दे ख रहा था।

मनु ने मु कुराकर कहा, ‘आप पर भरोसा न करने का कोई कारण ही नह , ओ


म य। हम इन सब लोग को एक करके ऊंचे इलाक क ओर बढ़ जाएंगे। इस
तरह हम इस बाढ़ को परा जत कर दगे।’

म य ने असहम त से सर हलाया। मनु के भोले जवाब से वो कुछ परेशान हो


गया था।

‘ या आप सुन नह रहे ह, मनु? धरती का कोई पवत इतना बड़ा नह है जो इस


भीषण बाढ़ से बच सके। इस बाढ़ से बचा नह जा सकता है!’

मनु अब वयं से थोड़ा चढ़ गया था। हालां क कृ त का वाह ब त स त,


बेरहम हो सकता था, ले कन ऐसी या वजह थी क मनु य एक और बाढ़ का
सामना नह कर सकता था, इससे पहले भी तो अनेक वनाशकारी बाढ़ का
सामना कया गया था न? मानवजा त ने हमेशा ही कोई न कोई रा ता नकाल
लया है!

‘ले कन आप ऐसा य कह रहे ह, म य? हम इस बाढ़ का सामना य नह कर


सकते?’

इस पल म म य ने अपना नयं ण खो दया, और वो मनु पर च लाया, जससे


उसे त क गंभीरता समझ आ सके।

‘ य क यह कोई साधारण बाढ़ नह है, ओ संजना पु । यह पृ वी और इसके


वा सय को समा त कर दे गी। मनु य, पशु, वन त, क ट कोई भी इससे नह
बच पाएगा।

य क जो आने वाला है वो हमारे ाचीन ंथ म लखा वो अं तम वा य है।

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जो आने वाला है वो और कुछ नह ब क वयं लय है— नया क समा त! ’

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बनारस, 2017
याह ातृ-संघ

दे र रात हो चुक थी। घड़ी म साढ़े यारह बज रहे थे, और डमा टर के सोने का
समय भी काफ पहले नकल चुका था। ले कन ारका शा ी और व ुत बात
ख म करने के मूड म नह थे। उनक बात इस समय नया क कसी भी चीज से
अ धक मह वपूण थ ।

‘कां टटाइन ने रह यमयी ातृ-संघ को सश कया और नणय लया क


ईसाइयत ही नए संसार का धम बनेगा। मुझे नह लगता क उसने इस बारे म
अ धक परवाह क थी कस धम को सव प र माना जाए। उसका योजन तो सफ
यह सु न त करना था क बस एक धम को माना जाए। ये भी माना जा सकता है
क उस समय तक वो ईसाइयत म रम गया और य क वो उस समय का सबसे
तेजी से बढ़ता आ धम भी था, उसने उसे अपना लया। ले कन इस अवधारणा
को लागू करने के तरीके वनाशकारी थे। उसने अपने नए ातृ-संघ को मा इस
नए धम को समथन दे ने का आदे श ही नह दया, ब क उ ह आदे श था क कसी
भी मा यम से उ ह इसे फैलाना था। फर इसके लए यु करना होता, तो उ ह
यु क अनुम त मल जाती। अगर इसके लए धम प रवतन करवाना होता, तो
उसके लए भी मशन रय क फौज इक ा कर द गई। अपने का प नक
कोण को लागू करने के लए, धम ही उनका मुख दांव था। राजनी त और
अथ व ा उसके पीछे थे।’

‘तो या ईसाइयत एक आ या मक आदश होने के बजाय, हमेशा से ही एक


राजनी तक ह थयार था, बाबा?’ व ुत ने पूछा।

‘ बलकुल नह , व ुत। ईसाइयत हमेशा से एक वन और उदार धम रहा है। मने


पुराने और नए टे टामट को पढ़ा है, और इसके पीछे क महान कहानी, ईसा

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मसीह क कहानी को भी समझा है। इसके आधार म ेम, समानता, मा, भ
और आ म- याग के अलावा और कुछ नह है। जीसस ने तो वयं जगत क पीड़ा
को अपने ऊपर ले लया था। तो ऐसा धम कैसे राजनी त या सा ा यवाद उ े य
लए हो सकता है? इससे भी अ धक, ईसाइयत क उदारता और क णा तो इसके
ारा चलाई जाने वाली अनेक परोपकारी संगठन म दे खी जा सकती है। र य
जाना? भारत म ही अनेक ऐसे ईसाई सं ान ह जो बना थके गरीब के वा य,
श ा, सफाई इ या द के लए काम कर रहे ह। तो अगर कोई भी धम क तरफ
उं गली उठाता है, तो ये गलत होगा।’

व ुत ने पूण सहम त म सर हलाया। ये उसके लए ब त संतोषजनक था क


उसके ढ़वाद ा ण परदादा, सरे धम और आ ा के अ त व के त भी
इतने जाग क और सचेत ह।

‘ले कन फर संतुलन कहां गड़बड़ा गया, बाबा? हम सब 11व और 13व सद के


म य म, लै टन चच ारा कराए गए हसक हमल के बारे म जानते ह। उस समय
के धमयु कहे जाने वाले अ त मण के बाद, ‘ वध मय ’ को ढूं ढ़कर, उ ह जदा
जला दे ना एक सामा य सजा थी। इन धम चार अ भयान के साथ होने वाली
हसा और ू रता के बारे म पढ़कर, कसी क भी रीढ़ म सहरन हो जाती है।
अगर ईसाइयत सफ ेम का संदेश दे ता है, तो ये सब आ खर य आ?’

‘ये ठ क उसी जगह गलत आ, व ुत। इंसान के लालच के सामने। धन और


स ा के लालच के सामने सब धरा रह जाता है।’

दरवाजे पर ई द तक से उनक बातचीत क ।

‘ह म...’ ारका शा ी ने अपनी व श शैली म जवाब दया।

दरवाजा खुला और नैना अंदर आई। व ुत ने यान दया क रात के इस समय भी


वो फूल क तरह तरोताजा नजर आ रही थी। जब वो व ुत के पास से गुजरकर
डमा टर के ब तर क तरफ बढ़ , तो उसम से घास क भीनी महक आई।

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नैना ने मठाधीश के ब तर के पास रखी मेज पर, ह द वाले गम ध का गलास
रखा।

‘ध यवाद, बेटा,’ ारका शा ी ने कहा। ‘ले कन तुमने य परेशानी उठाई?’

‘सारे सेवक आराम करने चले गए ह, बाबा। आपने इतने समय से कुछ खाया नह
था,’ नैना ने मु कुराते ए कहा। वो नेही बेट के लाड़ से बुजुग से बात कर रही
थी। ारका शा ी ने ही उसका पालन-पोषण कया था।

व ुत नैना से नजर नह मला पा रहा था। उसने उस पर सफ वयं से ही नह ,


ब क पूरे दे व-रा स मठ से धोखा करने का आरोप लगाया था... उसके अपने घर
से धोखा करने का। और अभी तक उसे माफ मांगने का भी समय नह मल पाया
था।

‘शुभ रा , बाबा,’ नैना ने कहा।

नैना ने कमरे से नकलकर, दरवाजा बंद कर दया। व ुत ने दे खा था क नैना ने


एक बार भी उसक तरफ नजर नह उठाई थी।

मुझे उससे मलकर, अपने कए क माफ मांगनी होगी।

हे भगवान, वो कतनी सुंदर है!

‘22 मई, 337 ई वी को, उसक मौत के तुरंत बाद ही, उसका गु त ातृ-संघ एक
भयानक दानव म बदल गया। इसम इस समय के कुछ धनी और सबसे
श शाली भी जुड़े थे, और इस वजह से ातृ-संघ का भाव ब त ही
तेजी से बढ़ा। साथ ही अपने आदश और ल य म भी यह वकृत होता चला गया।
मानवजा त के क याण के लए संग ठत होने वाला यू व ऑडर ज द ही
मानवजा त को नयं त करने वाला बन गया— ातृ-संघ क नजर म यह उनके
ाचीन ल य से जरा ही भ था।

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ातृ-संघ ने सबसे पहले अपने ही धम म उठने वाले असंतोष और वरोध के वर
को दबाया। 431 ई वी म, बाइजटाइन के स ाट थयोडॉ सयस तीय ने इफेसस
(वतमान तुक म से कुक के करीब) म एक और प व प रषद बुलाई, जसने
ने टो रयन यन के मह वपूण सं दाय को वधम घो षत कर दया। प रषद
म कोई नह जानता था क थयोडॉ सयस गु त ातृ-संघ का ही सद य था।
ब क वह संघ का मुख कमांडर था,’ ारका शा ी ने बताया।

व ुत अपने परदादा क ऐ तहा सक जानकारी से च कत था। इससे भी अ धक,


अब ातृ-संघ का सच जानने क उसक ज ासा क नह पा रही थी।

‘आप बताते र हए, बाबा। उसके बाद या आ?’

ारका शा ी ने गम ध से कुछ घूंट भरे, अपनी आंख बंद करके कुछ पल सोचा
और फर बोलना शु कया। वो जानते थे क उ ह तकरीबन पं ह सौ साल के
र म संघष, कपट, ष ं , यु , आ थक अपराध और नरसंहार का वणन कुछ
ही घंट म करना था। इसका अनु म ब त ज टल था।

‘जैसा क मने कहा, व ुत, ातृ-संघ के मूल आदश म य ब त तेजी से आ


था। उसने ज द ही धम को एक पता के मु य ल य से हटा दया, हालां क फर
भी वो उसके नकाब के पीछे से ही मानवजा त के इ तहास के सबसे जघ य पाप
करते रहे। फर वो अ धक बु , अ धक मह वाकां ी और कई अ धक बेरहम
बन गए।’

‘इस ातृ-संघ को कस नाम से पुकारा जाता था, बाबा? या मुझे अपनी भूल
सुधारते ए कहना चा हए, कस नाम से पुकारा जाता है , बाबा?’

व ुत तेजी से चीज सीखता था।

‘अ ा सवाल है, व ुत। जब ये सब शु आ, कोई नह जानता था क ातृ-


संघ का या नाम था। अ ै त शा ी ने भी मठ के कसी द तावेज म इसे दज नह
कया। ले कन ज द ही यह गु त सोसाइट व तृत होने लगी और अ धक दे श
और प म अपना अ त व ा पत करने लगी। इसके बाद जो आ, उसके
प रणाम व प यह धा मक संगठन, अपने सं ापक के बना अपने पैमाने और
आकार से बढ़ने लगा।’

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‘उनका वभाजन हो गया...’ व ुत बुदबुदाया। ‘वो आपस म बंट गए, है न
बाबा?’

‘हां भी और नह भी,’ ारका शा ी ने जवाब दया। ‘सट क म का पता


लगाना तो ब त मु कल है, ले कन सबसे पहले उ ह ने भारी सै यीकरण कया।
वो इतने ताकतवर थे क नया म कोई भी उनसे सवाल नह कर सकता था क
ईसा का धम वशाल सेना को आदे श कैसे दे सकता था—उ ह ने शु आत
नाइट् स टे लर के साथ क !’

‘वाह...’ हैरानी से व ुत के मुंह से नकला। उसे नाइट् स टे लर के बारे म पता


था।

‘तु हारी तरह, ब त से लोग नाइट् स टे लर के बारे म जानते ह, व ुत। ले कन


ब त कम लोग को इसक उ प और इसके तथाक थत अंत के इ तहास के बारे
म पता है।’

‘म उनके बारे म सब कुछ जानना चाहता ,ं बाबा। वशेषकर तब जब वो इस


स दय से चले आ रहे ष ं का ह सा जान पड़ रहे ह।’

व ुत ने यान दया था क ारका शा ी ने नाइट् स टे लर के अंत को


तथाक थत बताया था।

या टे लर अभी भी कसी अनजान और खतरनाक प म अ त व म ह?

‘उ ह कई नाम से जाना जाता था जैसे टे ल ऑफ सोलोमन और ईसा के


सपाही। और टे ल ऑफ सोलोमन का ऑडर। ले कन अ धकांशत: उ ह नाइट् स
टे लर या फर टे लर के नाम से ही जाना जाता था। इसक शु आत म यह
कैथो लक सै य अनुशासन था, जसे 1139 ई वी म चच का औपचा रक
आशीवाद ा त हो गया था।

दल दहला दे ने वाली जुझा वृ त से मन के पसीने छु ड़ा दे ने वाले, टे लर


ज द ही एक जीती जागती कवदं ती बन गए। सफेद अंगरखे और उस पर लाल

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रंग से बने बड़े से ॉस, और उस पर बंधे कवच क वजह से वो मील र से
दखाई दे ते, टे लर इ तहास म पहली बार सफ धम क ापना करने वाली सेना
के प म नजर आए थे। भारी ह थयार से सुस त यह सेना कसी राजा या
रानी को जवाबदे ह नह थी। आम भाषा म कहा जाए तो ये सेना उ पुजारी के
आदे श का पालन करती थी!

पाद रय और सपा हय ने साथ म हाथ मला लया था। फर, धा मक


सा ा यवाद कैसे पीछे रह सकता था?

कां टटाइन क वशाल योजना अब आकार ले रही थी।’

व ुत ने सर हलाकर अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘आप बलकुल सही कह रहे ह,


बाबा। नाइट् स टे लर ने उस धमयु म नणायक भू मका नभाई थी, जसे उस
समय के पाद रय ने प व यु माना था! आज के समय म अगर इन धमयु
को सफ धम चार के प म दे ख तो इनका वणन अकथनीय और अजीब होगा।
शां त और ब लदान का एक धम, जसका उपदे श वयं ईसा मसीह ने दया था,
य ऐसे र संघष म प रव तत आ। ईसाई, जो वयं, लंबे समय तक, रोमन
सा ा य के शोषण और हसा का शकार रहे, वो कैसे ऐसे हसक दमनकता बन
गए!’

ारका शा ी ने असहम त म अपना सर हलाया।

‘अपनी भूल सुधारो, व ुत। ईसाइयत या ईसाइय ने यह यु नह छे ड़ा था। ये


कुछ मु भर सर फरे होते ह, जो आम जन को भटकाते ह। येक युग के
पुजा रय ने धम यु का बगुल बजाया है। एक नयम याद रखो व ुत। कोई भी
दे व त जो हसा क बात करे, वो ई र का त न ध हो ही नह सकता! उस ई र
के स े भ , चाहे वो कसी भी धम के ह , वही ह जो शां त, ेम और सह-
अ त व का संदेश प ंचाएं। वही स े पुजारी ह।’

महान मठाधीश क मा यताएं और स ांत लगातार उनके परपोते को े रत कर


रहे थे। व ुत ये याद करने से वयं को रोक नह पा रहा था क इस मनु य और
उसके पूवज ने कतनी लड़ाइयां लड़ी थ । और फर भी, वो बता रहे थे क मा
यार और भाईचारा ही भगवान तक प ंचने का स ा माग है। आखरी दे वता को

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याद था क मठ और इसके नेता ारा लड़ी गई सारी लड़ाइयां इस प व
आ म क र ा, या बुरी ताकत को रोकने क ही थ ।

‘ फर या आ, बाबा? टे लर के इ तहास का अगला अ याय या था? और यू


व ऑडर का?’ व ुत ने ारका शा ी को वापस से मु य वषय पर लाते ए,
जानने क को शश क ।

‘तो अब हमारे पास धम के ऐसे नेता थे जो टे लर क तलवार के दम पर ड ग


हांकते थे। ऐसे अधम बंध क प रण त और या हो सकती थी— सवाय पैसे
के!’ वृ डमा टर ने कहा।

‘पैसा?!’ व ुत च का।

ारका शा ी ने मु कुराकर अपनी बात आगे बढ़ाई।

‘ या तुम यक न करोगे, अगर म तु ह बताऊं क सोलोमन टे ल के अनुयायी या


नाइट् स टे लर ने ही नया का सबसे पहला म ट नेशनल बक कॉप रेशन शु
कया था?’

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𝐈𝐍𝐃𝐈𝐀𝐍 𝐁𝐄𝐒𝐓 𝐓𝐄𝐋𝐄𝐆𝐑𝐀𝐌 𝐄-𝐁𝐎𝐎𝐊𝐒 𝐂𝐇𝐀𝐍𝐍𝐄𝐋
(𝑪𝒍𝒊𝒄𝒌 𝑯𝒆𝒓𝒆 𝑻𝒐 𝑱𝒐𝒊𝒏)

सा ह य उप यास सं ह
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚𝐧 𝐒𝐭𝐮𝐝𝐲 𝐌𝐚𝐭𝐞𝐫𝐢𝐚𝐥

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐀𝐮𝐝𝐢𝐨 𝐁𝐨𝐨𝐤𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚𝐧 𝐂𝐨𝐦𝐢𝐜𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐆𝐥𝐨𝐛𝐚𝐥 𝐂𝐨𝐦𝐢𝐜𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐆𝐥𝐨𝐛𝐚𝐥 𝐄-𝐁𝐨𝐨𝐤𝐬 𝐌𝐚𝐠𝐚𝐳𝐢𝐧𝐞𝐬

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
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मैनहटन, यूयॉक सट , 2017
‘मौत भी हाइट मा क से भय खाती है’

वो उन कुछ चु नदा य म से था जो यूयॉक के स वा ोफ ए टो रया


होटल म कई ह त के लए ेसीड शयल सुइट म रहने का खच उठा सकता था।
उसके लोर का लगभग येक कमरा उसी के लए बुक था। पूरा कॉ रडोर, जो
होटल के ऐ तहा सक प से मह वपूण मेहमान क लैक एंड हाइट त वीर से
भरा था— जनम अमे रक रा प तय से लेकर भारतीय ां तका रय तक क
त वीर शा मल थ —उनके सामने उसके ह थयारब अंगर क खड़े थे।

अपने आलीशान सुइट क खड़क के पास खड़ा होकर, मा केरा बआंका


मैनहटन के भ आसमान को दे खते ए, अपनी पसंद दा भारतीय सगरेट पी रहा
था।

बस आज वो इसका मजा नह ले पा रहा था।

‘दे खने म वो भगवान का नेही त नजर आता है, है न? ले कन ये सब उस पद


क वजह से है, जस पर वो आसीन है। उसी पद से मानवजा त के लगभग हजार

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साल के इ तहास के सबसे बदतर वनाश के आदे श दए गए।’

रेग मा रनी अपनी कॉच से घूंट भरते ए सोच रहा था क मा केरा कसे वो सब
सुना रहा था। सफ वो ही बग मैन क वा त वकता जानता था। वो ही उसके
काय का सा ी और असल म कई खूंखार काय का साझेदार भी था।

‘तो अब या, मा केरा? वो जानना चाहते ह। और आप जानते ह क वो


असफलता को ह के म नह लगे। न मेरी। न ही आपक ।’

मा केरा के जबड़े भच गए। उसने जलती ई सगरेट अपनी हथेली म मसल ली


और रेग क तरफ मुड़ा। जलते तंबाकू के वचा से लगने पर वो जरा भी ठठका
नह था। मा केरा जस सफर से गुजर कर यहां तक प ंचा था, उसके सामने तो
यह जलन कुछ भी नह थी। मलान क ग लय म मारे गए मछु आरे के अनाथ
ब े से, यूरो पयन मा फया के अ ववा दत सरताज बनने तक का सफर उसने पूरा
कया था।

एक लंबे पेचकस को उसने एक आदमी म स ह बार घ प दया था। पहले दस


वार तो पेट और अंत ड़य पर कए, बाक के सात से आंख , कनपट और उ मूल
को गोद दया था। फर उसने उस पर थूकते ए, उसे पैर से ठोकर मारकर गटर म
गरा दया।

उसने यारह साल क उ म ही अपनी मां का बदला ले लया था।

उदासीन नजर और लड़क जैसे नैन-न वाला वो लड़का, सोलह साल का


होते-होते ही, अपने कु यात ह थयार के आतंक से, मलान और उसके आसपास
क जगह पर राज करने लगा था। य प मु कल से मु कल हालात म भी वो
अकेले ही लड़ना पसंद करता था, ले कन फर भी उसके ब त से अनुयायी बन
गए थे। उसका गग बड़ा होने लगा था। उसका नाम और अ धक भयावह बन गया
था।

और फर एक सद रात म, पूरे मलान को अ व ास और सदमे म डालते ए,


उसने दो पु लसवाल क , उ ह क गाड़ी म बेरहमी से ह या कर द । उनम से एक

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के मुंह म लंबा पेचकस घुसाकर, उसक खोपड़ी से पार करते ए, उसे कार सीट
के हेडरे ट से ब ध दया था। इन खौफनाक ह या ने पूरे शहर और शासन को
भयभीत कर दया था।

हरी आंख वाले उस लड़के को मलान छोड़ना पड़ा था। ले कन उससे पहले वो
उस संगठन क नजर म आ चुका था, जसके लए पैसा, र और नयं ण ही
सबकुछ था।

उस पर कोसा नो ा — स स लयाई मा फया का भयानक चेहरा—क नजर पड़


चुक थी।

तीन मा फया भाइय ने उसे, जेनेवा से बाहर, अपना कोक न नेटवक चलाने के
लए नयु कया था। ले कन उ ह ने बड़ी गलती कर द थी। पं ह साल म, वो
हरी आंख वाला लड़का आदमी बन चुका था—एक ब त खतरनाक आदमी।
उसने बड़े आराम से अपने तीन मा लक को ठकाने लगा दया था, जनक लाश
तक कभी जेनेवा झील क तली से नह मली थी। 35 क उ तक, वो न सफ
स स लयाई मा फया का अ ववा दत राजा था, ब क वो पूरे यूरोप म अपराध को
बं धत करने लगा था।

जब क उसक नदयी तभा पर कसी को शक नह था, ले कन फर भी उसके


यूं तेजी से उबरने को लेकर कुछ फुसफुसाहट थी। कोई ब त ताकतवर श , पद
के पीछे से उसे मदद कर रही थी। कोई ऐसा जो सरकार से भी अ धक ताकतवर
था, जो सीआईए और एमआई6 से साथ म लोहा ले सकता था। इसी तरह,
अनेक कहा नयां इस बारे म भी थ क य उसे मा केरा बआंका या हाइट
मा क कहा जाने लगा था। कुछ लोग उसके अजीब और डरावने नाम को उसके
कोक न के बजनेस से जोड़ते थे। तो कुछ सरे इसक वजह उसके चेहरे क सद
रंगत को मानते थे, जो हर शकार के बाद और सफेद हो जाता था।

सफ कुछ ही लोग को कुछ और भयावह का अंदाजा था। वो सच म एक मा क


था, एक नकाब, जसके पीछे कोई ब त भयानक चीज छपने क को शश कर
रही थी। वो नया के सबसे याह संगठन का सफेद नकाब था।

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मा केरा बआंका क हरी आंख नडरता से चमक रही थ , जब वो रेग क तरफ
चलकर आया, और अपने आलीशान सोफे पर बैठ गया।

‘ या तुम जानते हो, रेग, मुझ पर कतनी बार जानलेवा हमला कया गया है?’

रेग ने कंधे उचकाए। वो जानता था क मा केरा क नया म, सफ बं क का ही


राज चलता था।

‘एक सौ चार बार,’ मा केरा ने अपनी शालीन आवाज म कहा, उसक मु कान
उसके चेहरे पर वापस आ गई थी। ले कन उसक आंख रेग क आ मा को भेद
रही थ , जो वयं मौत या हसा से अनजान नह था।

‘ या तुम जानते हो क मुझे कतनी बार चाकू मारा गया, गोली लगी या गला
घ टने क को शश ई?’

‘हम इस सबके बारे म य बात कर रहे ह, मा केरा?’ रेग ने कहा। यक नन


मा केरा क बात से उसे घबराहट हो रही थी, ले कन रेग मा रअनी ने ब त समय
पहले ही ऐसी घबराहट से उबरना सीख लया था।

‘स ावन बार,’ मा केरा ने भाव शू यता से कहा। ‘तो सोचना भी मत क नया


क कोई ताकत मुझे डरा सकती है।’

वो एक-दो पल का और फर आगे झुककर, डरावनी फुसफुसाहट म कहा।

‘यहां तक क मौत भी हाइट मा क से डरती है, रेग।’

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हड़ पा, 1700 ईसापूव
नीली अ न का अनु ान

ववा वन पुजारी ने स तऋ षय के चेहरे और शरीर म भयावह प रवतन दे खे। वो


अचानक ही अपनी उ से अ धक वृ दखाई दे रहे थे। जैसे ही सुरा के नीच और
र पपासु सपाही द मु नय के करीब प ंचे, तो वो सात दल दहला दे ने
वाली ग त से जीण होने लगे। उनके माथ और गाल पर झु रयां पड़ने लग ,
उनका हमेशा शांत और पावन रहने वाला चेहरा अब भयानक भाव म बदल रहा
था। उनके बाल अचानक ही सफेद हो गए, और सात मु नय क उ अचानक ही
सौ साल बढ़ गई!

या यह वा तव म हो रहा है या मुझे म हो रहा है?

अपनी सारी नदयता और बहा री के बाद भी, सुरा, मु नय म आए इस भीषण


प रवतन को दे खकर, ठं डे पसीने से तर हो गया।

उसके बबर सपा हय ने भी स तऋ षय के पघलते ए मांस को दे खा और वो


भी डर से सहम गए। चंड ने सवा लया नजर से अपने मा लक को दे खा। या
वो संहार को रोकना चाहता था?

सुरा को अपने गले म गांठ सी महसूस ई। वो डर को ब त पहले ही भुला चुका


था। तुरंत ही उसने वयं को ध कारा और नए पागलपन से अपने सा थय को
आदे श दया। पूरी नया का शासक बनने क उसक मह वाकां ा उसे अंदर ही
अंदर खाए जा रही थी। अब उसके रा ते म कोई नह आ सकता था। कुछ भी
नह !

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‘ओ साहसी असुर , कौन तु ह रोक रहा है? इ ह जला दो! इन मायावी जीव को
जलाकर, अपने स ाट सुरा को स करो!’

अपने रा स-राजा के उ े जत आदे श से आवेश म आ, सुरा के सपाही अपना डर


नगलकर, ऋ षय पर हमला करने के लए बढ़े ।

अब लकड़ी का बड़ा सा अ न-कुंड जला दया गया था। स तऋ ष ज द ही आग


म जलकर भ म हो जाने वाले थे।

या कम से कम ये मूख तो यही मान रहे थे।

‘ये पागलपन बंद करो, सुरा!’ ववा वन पुजारी ने कहा। ‘यहां कुछ गड़बड़ है। ये
स तऋ ष नह ह। म उनक प व उप त यहां महसूस नह कर पा रहा। द
सात ने पहले ही समा ध ले ली है, और उनक आ मा कह और चली गई है। तु ह
दखाई नह दे रहा क उनका शरीर य इतनी ज द य होकर पृ वी म मल
रहा है? उन द मु नय क आ मा के बना ये न र शरीर कसी खाली बतन से
अ धक कुछ नह ह!’

‘हारघ!’ सुरा अपनी तलवार हलाते ए गुराया। ‘वो मेरे सामने ह! और म उ ह


इस धरती से मटाने का सुनहरा मौका नह छोड़ने वाला, जहां मुझे शासन करना
है। वो सब सुरा के ोध क अ न म भ म हो जाएंग!े ’

चंड क मु तैद टु कड़ी के सपाही ने, एक मु न के बाल पकड़े । जैसे ही उसके


हाथ ने य होते ऋ ष क लट को अपने हाथ म पकड़ा, र से एक धमाके क
आवाज आई। ठं डी हवा का एक तेज झ का उस जगह से गुजरा और असुर दल
डर से मानो जम गया।

उप त जन को त करते ए, सारे मु नय ने एक साथ अपनी आंख खोल


द । ले कन उनक पलक के पीछे मनु य क आंख नह थ । वहां सफ बेरंग से
सफेद प र थे। या तो ऋ षय क पुत लयां ऊपर चढ़ गई थ , या फर अब उन
हजार साल पुराने ऋ षय के चेहर के पीछे से कोई भयावह श उन सफेद
प र के प म झांक रही थी।

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सुरा के सपाही अब प र क तमा क तरह जड़ हो गए। उनम से कोई भी
हलने क ह मत नह कर सका। रात के उस अंधेरे म, सफ स तऋ षय के मुड़े
ए शरीर ही दखाई दे रहे थे, जो अब पांच हजार साल पुरानी तवचा के कु हलाए
ए ढे ले तीत हो रहे थे। उनके सभी अंग पर झु रयां पड़ रही थ , खाल मुड़ गई
थी, ले कन उनक आंख क पर चढ़ाई सफेद चादर के समान चमक रही थ ।

अपने अ य चंड के आदे श पर, टु कड़ी ने फर से अपनी ह मत इक ा कर,


पहले मु न को वकराल अ न क तरफ घसीटा। उसने ऋ ष के बाल ख चे, उसके
करीब गया और जलती अ न क तरफ उसे लात मार द । जैसे ही मु न का शरीर
अ न क लपट म गरा, कुछ ऐसा आ जो कोई सोच भी नह सकता था।

नदयी पीली अ न अचानक से चमकदार, नीली अ न म बदल गई, जसम


जलता आ मु न बमु कल दखाई पड़ रहा था।

र से आती धमाके क आवाज अब नजद क जान पड़ रही थी।

‘सावधान... ओ हड़ पा के दे वता...’ नीली अ न के क से, एक भयंकर आवाज


ने भ व यवाणी क । ले कन उसक गूंज ऐसी थी मानो पूरा पवत दद से कराह रहा
हो।

‘सावधान ववा वन पुजारी... जसक आ मा नफरत और बदले क आग म


अपना माग भटक गई है। सावधान...’

पहले स तऋ ष के अं तम श द को सुन, उसक धुंधली आकृ त को राख बनता


दे ख हड़ पा का दे वता त खड़ा था, अपने ख से सकुड़ा आ।

इससे पहले क वो कुछ कह पाता, असुर सपाही ने सरे मु न को नीली अ न म


धकेल दया।

‘ ववा वन... ओ बद क मत दे वता, मुझे तुम पर दया आ रही है। दे खो, तुम या
बन गए हो! हम जल रहे ह और तुम कुछ नह कर रहे हो। तो ऐसा ही सही...
तु हारी लयकारी नय त तु हारी ती ा कर रही है...’

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इन भयानक श द के साथ, सरे स तऋ ष का अप र चत शरीर नीली अ न म
जलकर भ म हो गया।

पल भर म ही एक वनाशकारी गजना से मानो आसमान फट गया, बजली क


तेज चमक और बादल क बहरा कर दे ने वाली गड़गड़ाहट से सम आयवत
दहल गया। मानो मां सर वती वयं ही अपने य पु क नृशंस ह या पर वरोध
कर रही थी।

र पपासु नद , अब हड़ पा और सम मानवजा त से सबसे न ु र और कठोर


बदला लेने के लए तैयार हो रही थी।

ववा वन पुजारी ने चंड क टु कड़ी के अ णी सै नक का छपा आ ह थयार


नकालकर, उस भारी-भरकम सपाही को प रीली जमीन पर गरा दया। इस
नरसंहार को वो अब और नह चलने दे सकता था।

‘ओ रा स राजा, इस र -संहार को बंद करो!’ दे वता च लाया।

‘माग से हट जाओ अ-दे वता,’ सुरा ने जवाब दया, उसक आंख नीली अ न के
अलौ कक काश पर लगी थ । उस पर अब तक वहशीपन और मह वाकां ा
सवार हो चुक थी। ऊंचे पहाड़ क गजना, तूफानी ठं डी हवा, रंग बदलता
आसमान और कोड़े मारते बादल... कुछ भी अब असुर राजा का माग नह रोक
सकते थे। यह उसका दन था, और वो जंग छे ड़ने के लए तैयार था— फर भले
ही उसे अपने रा ते म आने वाले परमे र से ही य न लड़ना पड़े ।

इससे पहले क ववा वन कुछ बोल पाता, उसे अपने कंधे पर चंड का हाथ
महसूस आ।

‘आपने हम जबान द थी, ओ महान अ-दे वता,’ चंड ने कहा। ‘आपने हम अपनी
जबान द थी!’

अब तक सपाही ने उठकर दो और मु नय को आग क तरफ धकेल दया था।


बचे ए स तऋ ष अब और भी भयानक तरीके से जीण होते जा रहे थे, वो इतने

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ह के हो चुके थे क अभी ख चे गए मु नय का भार कसी नवजात शशु क भां त
मालूम पड़ रहा था। पागल क तरह हंसते ए, सपा हय ने उन मु नय को गदन
पकड़कर उठाया और उ ह बना यास के ही अ न क तरफ उछाल दया।

जलती अ न क लपट अब और ऊंची उठ रही थ , मानो वो कोई तेजी से बढ़ता


आ दानव ह जो सबको लपकने को तैयार हो। तभी अचानक अ य ज क
ठं डी आह क तरह, मूसलाधार बा रश मानो स तऋ षय का गृह बहाने आई।
बौछार इतनी तेज थी क उसने रा स-राजा के साथ प तत दे वता को भी अपनी
आंख बंद करने के लए मजबूर कर दया। ववा वन पुजारी भांप रहा था क
अचानक आई ये बरसात कुछ और नह , ब क सर वती के अ ु थे। बरसात का
वेग इतना अ धक था क उन लोग को अपने पैर पर खड़े रहने के लए संघष
करना पड़ रहा था। अपने चेहरे को अपनी बांह और कोहनी से बचाते ए, हड़ पा
का सूय अ न म झांकने क को शश कर रहा था।

अ न म जलती दो वकृत आकृ तय ने अपना और ोध नह कया। पाप


का घड़ा अब भर चुका था।

अब समय आ गया था।

उस ाप का समय, जससे सम मानवजा त क क मत हमेशा के लए बदल


जाने वाली थी।

अब समय आ गया था।

लय अब बस आने ही वाली थी।

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बनारस, 2017
व ुत

व ुत ने मठ के खूबसूरत बगीचे म घूमने का नणय लया। गदे के फूल और


अगरब ी क सुगंध से भरी ठं डी हवा, वातावरण म गूंजता मं ो ार और र मं दर
से आती घं टय क आवाज, सब दे व-रा स मठ क उस छोट सी सैर को
अतुलनीय बना रहे थे। बीच-बीच म ककर व ुत, मठ के व र के पैर छू ता,
वृ माता के हाथ चूमता, शमाती लड़ कय क तरफ मु कुरा दे ता या केट
खेलते युवा क गद कैच कर लेता। मठ के हर कोने से व ुत अपने लए ज री
ाण-वायु ले रहा था।

अब तक, सब जान गए थे क वो मोक करता था। सफ उसे ही यूं सबके सामने


मोक करने क आ ा थी। उसने काले रंग क साधारण लीव-लेस ट -शट और
लेट रंग क ै क पट पहनी ई थी। इन साधारण कपड़ म भी वो आकषक दख
रहा था। उसक असामा य प से चमकती वचा और बादामी आंख और
नखरकर आ रही थ । हवा उसके चेहरे पर आते लंबे भूरे बाल को सहला रही
थी, ज ह वो अपने दा हने हाथ क उं ग लय से पीछे कर रहा था।

या व ुत प रपूण था? शायद। या उसम कुछ ु टयां भी थ ? संभवत: थ । बस


उन क मय को ढूं ढ़ पाना मु कल था, और वो दे वता पर महज कुछ ही पल तक

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हावी रह पाती थ ।

व ुत को अपने आसपास के लोग से हमेशा अ य धक ती भावना मक और


सामा जक त या मलती। जो उसे समझते थे, उसे यार करते थे। और वो
उसे पूण समपण से चाहते थे। जो उसे करीब से नह जानते थे, वो भी उसके
ईमानदार आकषण और लड़कपन भरे सौ व को सराहते थे। जो उस पर र से
नजर रखते थे, वो उससे ई या करते थे। उनक ई या का कारण यह नह था क
व ुत ने उ ह कभी कसी कार क त प ंचाई हो। वो तो अपने आप म ही
इतना त रहता था क उसके पास उनके बारे म सोचने का समय नह था।
शायद वो लोग व ुत को इसी लए नापसंद करते थे क वो उनसे भ था। वो
भीड़ म से एक नह था। वो कसी औसत ढांचे म नह ढला था। वो असाधारण
प से तभाशाली था, और कभी-कभी उ ेजना क हद तक व ं द। वो वन
था, ले कन अस य लोग को जवाब दे ना उसे आता था। वो संप और वयं अपने
पैर पर खड़ा आ था, ले कन वहार और आचरण से वो कॉलेज के कसी
युवक क तरह लगता था, जो अपनी जेब म सौ पए का नोट लेकर नकला हो।
वो जतना समय शारी रक अ यास म लगाता था, उतनी ही लगन से कनाटक
संगीत का अ यास करता था। ले कन उसके आलोचक को उसक जो बात सबसे
अ धक अखरती थी, वो उसका आकषण, उसक सफलता, उसक संप ता,
तभा या व नह थी, ब क उसक वन ता थी। उसके इस गुण का उनके
पास कोई जवाब नह था।

व ुत क अपनी कुछ क मयां भी थ । या यह गलत था क वो मोक करता था,


जब क वो एक बेहतरीन खलाड़ी और माशल आट का अ य त था? या कभी-
कभी ो धत हो जाना गलत था? या कभी संदेह करना? या आखरी दे वता के
लए यह सब अ य था?

या ये सब आधे-मनु य के लए भी इतना ही गलत होता?

तंबाकू से ई खु क को र करने के लए जब उसने म के कु हड़ या पूवा से


मसालेदार चाय का घूंट भरा, तभी उसके कान म तबले और पायल क जुगलबंद
सुनाई पड़ी। साथ ही शा ीय संगीत का अ यास करते, कसी पु ष का मखमली

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वर भी सुनाई दया। वयं श त गायक और गटा र ट, व ुत इन सुरीली
तान को सुनकर मु ध हो गया। वह उठकर इस वरलहरी के पीछे चल दया।

वो जानता था क यह या था।

बस वो ये नह जानता था क ये अ यास कर कौन रहा था।

व ुत अपनी बची ई सगरेट के ठूं ठ को कूड़े दान म फककर, सी ढ़यां चढ़ते ए,


माबल के वशाल बरामदे म प ंचा, तो उसे एक कमरे का आधा खुला दरवाजा
दखा। वह से वो मधुर संगीत सुनाई पड़ रहा था। वो दबे कदम से उस दरवाजे
क ओर बढ़ा, य क वो कलाकार के अ यास म व न डाले बना, बस एक
नजर उ ह दे खना चाहता था।

जो उसने दे खा, उससे उसका दल एक पल को धड़कना भूल गया।

नैना ने पारंप रक उ र भारतीय प रधान, सफेद रंग का चूड़ीदार और कुता पहन


रखा था। वो मनोहर ढं ग से तबले क ताल पर थरक रही थी, और वृ , सफेद
बाल वाले उ ताद मनमोहक आवाज म गा रहे थे। व ुत दे खते ही समझ गया था
क ये आकषक नृ य या था।

कथक!

कथक क उ प वै दक सं कृत के कथा श द से ई है। 400 ईसापूव से भी


पहले और यहां तक क महाभारत म भी इस नृ य शैली का वणन आ है, कथक
को भारत क सबसे मुख पारंप रक नृ य शैली माना गया है। इसक लोक यता
बढ़ाने का ेय बाहर से आए आयवत के ाचीन भाट समूह को दया जा सकता
है, जो महा आ यान का वणन कला क इस आकषक शैली के साथ करते थे।
कथक वशेष प से भ आंदोलन के दौरान उभरकर आया, जहां भगवान
कृ ण क कथा को इस नाटक य शैली के साथ तुत कया गया। कथक के
बनारस घराने का ान इस व णम सं कृ त म सबसे ऊपर आता है।

व ुत नैना से अपनी नजर नह हटा पा रहा था। वो कसी दे वी क भां त भं गमाएं


कर रही थी, अपनी भ सुंदरता और कोमलता का दशन करते ए। व ुत
उसके व लत म तक पर पसीने क बूंदे दे ख पा रहा था, और उसके बाल क
रेशमी लट नृ य करते ए उसके आकषक चेहरे को चूम रही थी। भारतीय

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शा ीय संगीत पर नृ य करते ए, वो पूणतया अलौ कक लग रही थी और नृ य
क थकान के बावजूद भी उसके चेहरे क मोहक मु कान फ क नह ई थी।
उसक आंख ुव तारे क तरह चमक रही थ ।

या एक बार ऐसे सम पत यार के आगे घुटने टे कना दे वता के लए भी गलत


होता?

व ुत ने वहां से चले जाने का नणय लया।

‘ व डयो!’

व ुत जम गया।

जट कपा लक के भा यपूण आगमन के बाद से अब पहली बार कसी ने व ुत


को इस बचकाने, ले कन यारे नाम से पुकारा था। व डयो! उसके सबसे यारे
म , बाला के आलावा कोई भी उसे इस नाम से नह पुकारता था। यह नाम
सुनकर व ुत भावना मक प से हल गया।

वो मुड़ा, तो कुछ कदम र नैना को खड़े पाया। कुछ पल पहले के गहन अ यास
क वजह से वो अभी भी हांफ रही थी। व ुत को लगा क वो इस अतुलनीय
स दय के सामने ढह जाएगा। ले कन शारी रक आकषण से अ धक, नैना क
न काम परवाह थी, जसके सामने व ुत बेबस हो गया था। उसे उ मीद थी क
नैना कुछ दन मुंह फुला कर रखेगी, जब तक क व ुत गड़ गड़ाकर उससे माफ
न मांग ले। व ुत ने उसे समझने म भूल क थी, और ये वाकई म अ य अपराध
था। ले कन अभी वो सामने खड़ी थी—उसके मन को पढ़ते ए, उसक ला न को
समझते ए। एक तरफ तो वो यु म दे वी काली का प धारण कर लेती थी,
ले कन अपने वन प म वो इतनी मनोहर लगती थी, जतना व ुत ने कभी
कसी को नह दे खा था।

वो जाने के लए मुड़ा। वो भावुक हो गया था। एक तरफ तो, उसे अ ा लगा था


क नैना अपना सघन अ यास छोड़कर उसके पीछे दौड़ी चली आई थी। सरी
तरफ उसे बुरा लग रहा था क नैना ने उसे व डयो कहकर पुकारा था। वो नाम
अब उसके लए मर चुका था। जो आदमी उसे इस नाम से पुकारता था, वो भी मर
गया था। वो हर चीज, जसके लए युवा, लापरवाह व डयो जाना जाता था, वो

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सब मठ क उस कोठरी म, खून से भरी मेज पर मर चुक थी। जस दन व ुत ने
अपना पहला कदम काशी म रखा था, तब से उसक जदगी हमेशा के लए बदल
गई थी।

‘ को, व ुत...’ नैना च लाई।

व ुत क गया। वो जानता था क अब नैना का सामना करने का समय आ गया


था। इससे भी अ धक, वो जानता था क अब समय आ गया था, जब वो इस
कथक नृ यांगना के त अपनी स ी भावना को करे।

तुलसी घाट क तरफ बढ़ते ए, उसने अपनी कला मक और कोमल उं ग लय से


व ुत क कलाई और बांह पकड़ रखी थी। दन काफ चढ़ आया था और बनारस
म यह सामा य बात नह थी क कोई लड़क अपनी बांह कसी मद क बांह म
डालकर, यूं खुलेआम चले। ले कन नैना कोई सामा य लड़क नह थी। और
व ुत भी महज मनु य नह था।

व ुत अपनी कलाई पर नैना क सुनहरी वचा क छु अन महसूस कर रहा था। वो


बस इस उस बात पर खल खलाए जा रही थी, जैसा क अ धकतर मजबूत
लड़ कयां तब करती ह, जब वो वयं को कसी सुर त पनाह म पाती ह। उसक
हंसी मं दर क घंट क तरह सुनाई पड़ रही थी, यक नन उसक आंख भी चमक
रही ह गी, ले कन वो व ुत को तब दखाई पड़त , जब व ुत नैना को मुड़कर
दे खने क ह मत करता।

‘तुम कहां थे अब तक, व ुत?’ नैना ने अपना सर झुकाकर पूछा। ‘तुम कहां
थे?’

उसक नजर दे वता क नजर पर टक थ । वो ऐसे बोल रही थी मानो वो व ुत


क वा मनी थी।

ले कन दे वता का वामी कौन हो सकता है?

सवाय उसके जसे उसने वयं अ धकार दया हो।

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‘मुझे माफ कर दो नैना...’ व ुत ने अचानक कहा।

नैना ने उसक बात पर यान भी नह दया। वो उसके साथ घाट क चमकदार


सी ढ़यां उतरती रही, बना के बात करती ई।

‘मुझे माफ कर दो, यार, नैना... म ब त श मदा ं। म बेवकूफ था जो मने तुम पर


यूं शक कया। मुझे वयं से नफरत हो रही है!’

अब वह क । उसने गहरी सांस ली और दे वता क तरफ मुड़ी। उसने अपनी भंव


उठाकर दे वता को यूं दे खा, मानो उसे याद दला रही हो क वो उसका ऋणी है।

वो सफल रही।

‘मुझे माफ कर दो, नैनू...’

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हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव
ऋण

मनु बादल क तेज गरज के साथ उठा था, जो हर बीतते समय के साथ और
वकराल होती जा रही थी। वो पछली रात को काले मं दर से वापस आ गया था
और उसने काले प रधान वाले सपा हय के साथ आराम करने का नणय लया
था। उ ह क तरह, मनु ने उठकर अपनी चटाई मोड़कर रख द थी।

जब वो अपने खुर रे ब तर से उठा, तो उसने यान दया क उसके साथी भी


जाग चुके थे। आसमान म होती इतनी गरज के बीच कोई भी नह सो सकता था।
कुछ समय बाद ही वो जान पाए क सूरज नकलने का समय तो कब का बीत
चुका था। ले कन अभी भी वकराल अंधेरे ने उ ह चार तरफ से घेर रखा था।

लय क अशुभ भ व यवाणी सच होती जान पड़ रही थी। दानवीय बादल ने


सुबह के सूरज को नगल लया था।

आयवत अपने बचे-खुचे दन अंधकार म ही बताने वाला था।

म य अपने लगभग सौ सै नक के साथ आ रहा था। मूसलाधार बा रश के बीच


से मनु र से आते ए म य दल को मु कल से दे ख पा रहा था। म य का यान
उस दल म एक वशेष बात पर गया। मनु और उसके आदमी एक ताल, एक ग त
और एक लय से चल रहे थे, मानो वो एक ही शरीर के अंग ह । वो नडर और
अपरा जत लग रहे थे। उनम से कुछ ने वशाल गोलाकार ढाल भी ले रखी थी, जो
कसी वशेष म त धातु से बनी थी। बजली क चमक पड़ने पर ढाल अजगर

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क आंख क तरह चमक रही थी। म य अपनी टु कड़ी के बीच म चल रहा था,
जो चमकती बजली के बीच ही दखाई पड़ रहा था।

समीप आने पर, मनु और उसके आदमी एक ही लय से अपने घोड़ से उतरे। एक


ताल से उतरते ए, उन सबका दा हना पैर एक ही साथ, हवा म उनके घोड़ के
सर पर था।

इस तर का तालमेल बठाने के लए उ ह ने ज र साल तक श ण लया


होगा!

‘ णाम, म य,’ मनु ने अ भवादन कया।

‘ णाम, राजन,’ म य ने अपने आकषक चेहरे से, लंबे बाल को हटाते ए


जवाब दया। ‘ या आप मेरे सा थय और घोड़ के लए थोड़ा गम पानी ला सकते
ह? वो सब ठं डी और गीली रात म सफर करके आए ह।’

‘ बलकुल, म य,’ म य क हरसंभव सहायता को त पर, मनु ने कहा।

हालां क, एक अजीब से संयोग ने उसका यान आक षत कया। जतनी बार वो


म य से मला था, उतनी बार उसने उसे पानी दया था। पहली बार मलने पर
कुछ बूंद, उसके बाद एक थैली पानी, फर एक सुराही और शायद अब कुछ बड़े
बतन। हर बार मलने पर, म य ने मनु से पहले से अ धक पानी क मांग क थी।

मनु वयं पर मु कुराया और इस अजीब से संयोग को अपने मन से छटक दया।

यह संयोग नह था। ये वो ऋण था, जसक भरपाई म य एक दन करने वाला


था।

मनु और काले प रधान वाले संर क के दए गुनगुने पानी से जब म य और


उसके आद मय ने वयं को साफ कर लया, तो वो सब अ न के गद जलपान
करने के लए बैठ गए।

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हर बार क तरह, इस बार भी म य के पास मनु को बताने के लए एक हैरानी
भरी बात थी। ले कन इस बार वो बात हैरानी के साथ सुखद भी थी।

‘आपको अपने साथ सोमद क आव यकता होगी,’ म य ने अपने मुंह म


मसालेदार पोहे का नवाला रखते ए कहा।

मनु ने खाना बंद करके, आ य से ऊपर दे खा।

‘ मा क जए... या आपने अभी सोमद का नाम लया, म य? या सोमद


जी जी वत ह??’

म य ने पल भर को उसे दे खा, फर मु कुराकर, हां म सर हला दया और वापस


से अपना भोजन शु कर दया।

मनु ने अपनी थाली एक तरफ सरकाकर, हाथ को जोड़ एक छोट से ाथना


बुदबुदाई। तुरंत ही वो खुशी से खल खलाने लगा।

‘ई र ब त कृपालु ह! ई र ब त कृपालु ह! इतना शुभ समाचार लाने के लए,


आपका हा दक आभार म य! आपने मुझे यह पहले य नह बताया?’

म य ने उसके का जवाब नह दया। अब उसने अपनी थाली एक ओर


सरका द ।

‘ओ सूय पु , आपको एक और म क भी आव यकता होगी,’ उसने कहा। वो


शरारत से मु कुरा रहा था। ले कन वो जानता था क जो बात अब वो मनु को
बताने जा रहा था, उससे मनु क जदगी हमेशा के लए बदल जाएगी।

‘कौन सा म , म य?’ मनु ने सावधानी से पूछा। उसका दल आशा और उ मीद


से धड़क रहा था। वो जानता था क उस भयानक रात म सोमद के साथ कौन
था। अगर सोमद जी उस रात बच नकले थे, तो शायद वो भी बच नकली हो।

‘वो बच नकली थी, मनु,’ म य ने नेह से कहा। ‘तारा भी जी वत है...’

मनु जम गया। उसने अपनी आंख बंद कर ल और खुशी के आंसू उसके गाल पर
लुढ़क आए।

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कुछ पल बाद उसने म य को दे खा और फर से हंसने लगा। म य ने भी बड़ी सी
मु कान से उसका जवाब दया। मनु एक झटके से उठा और म य क तरफ
लपका। वो म य के हाथ पकड़कर उ ह बार-बार चूमने लगा।

‘तारा जी वत है! तारा जी वत है! मेरी तारा जी वत है, म य!’ वो इतना ही कह


पा रहा था।

‘ओह अब समझा... आपक तारा, ह?’ म य ने शरारत से कहा। ‘ये तो म नह


जानता था!’

नया म ऐसा कुछ नह था, जो म य नह जानता था।

मनु शरमाया।

म य ने उसक तरफ आंख मारी और वो दोन उस ेम भरे पल म डू ब गए।

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बनारस, 2017
याह ातृसंघ – भाग 2

उनका समूह अब थोड़ा बड़ा हो गया था। महान ारका शा ी अपने क से


बाहर नकलकर कुछ ताजी हवा खाना चाहते थे। व ुत और नैना स
तुलसीघाट क अपनी सुहानी सैर से वापस आ चुके थे। ये वही घाट था, जहां
पूजनीय संत-क व तुलसीदास 16व सद म रहे थे, और वह उ ह ने भु राम के
जीवन पर महाका ‘रामच रतमानस’ क रचना क थी।

नैना ने व ुत को माफ कर दया था। वो कैसे माफ नह करती? वो उसे ब त यार


करती थी, और उन प र तय को समझती थी, जनम व ुत ने ऐसी त या
द थी। गो लय और र के बीच, कसी से भी ऐसी गलती हो सकती थी। उन
दोन को ही लग रहा था मानो उनके सीने से कोई भारी बोझ हट गया था।

पछले दन, मठ के व र ने बाला का अं तम सं कार भी कर दया था। उसका


दाह सं कार सनातन धम के हसाब से, ह र ं घाट पर कया गया था। मठ का
येक यह समझता था क उसक ह या क कोई भी रपोट पु लस म नह

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लखवानी थी। दे व-रा स मठ ने सदै व अपनी लड़ाइयां वयं ही लड़ी थ । और
याय भी सदै व ही आ था।

और अब तो उनके साथ वो संर क भी था, जसका वणन भ व यवाणी म कया


गया था।

उनके पास व ुत था।

वशाल बागीचे के एक का शत कोने म कु सयां बछाकर, चाय परोस द गई थी।


व ुत अपने परदादा के ठ क सामने बैठा था, जब क बलवंत, पुरो हत जी और
नैना भी अपनी कु सयां उसी घेरे म लगाए बैठे थे।

बातचीत शु हो गई थी। व ुत को समझ आया क बातचीत म शा मल होने


वाले तीन नए वेशक, वा तव म नए नह थे। वो इस तरह बात सुन रहे थे मानो
वो पहले से ही वो बात जानते थे, जसे ारका शा ी बताने वाले थे। वहां व ुत
ही नया था।

य पा, महान का तकेय शा ी, और फर बाबा ने मुझे इतने साल तक काशी से


र रखा?

‘नाइट् स टे लर नसंदेह यु रत बल था। ले कन ऑडर म येक यो ा


नह था। वा तव म, टे लर म गैर-यो ा का अनुपात अ धक था। जब ऑडर
तेजी से ताकत और सद यता म बढ़ा, तो यह सम ईसाई जगत म सवा धक
वरीयता ा त परोपकारी सं ान बन गया। ऑडर का येक सपाही यह शपथ
लेता था क वो अपने लए कोई जमीन या संप नह बनाएगा, और अपना पूरा
जीवन ल य के लए सम पत करेगा। टे लर क शु आती छ वय म एक घोड़े
पर दो टे लर बैठे दखाई पड़ते थे, जो ऑडर क तंगहाली का तीक था।

हालां क, ज द ही टे लर के सतारे बुलंद होने लगे। 1099 ई वी म ए पहले


धमयु म ये शलम क जीत के बाद, ऑडर ने वयं को ईसाई तीथ पर आने
वाले ालु का संर क घो षत कर दया। वो प व समा ध स हत सरी
जगह पर आने वाले तीथया य क र ा करने लगे। जफा के समु तट से

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ये शलम क तरफ बढ़ते इन द न तीथया य को माग म डाकू और लुटेरे लूट लेते
थे। इ ह बचाते ए पहली बार नाइट् स टे लर नया क नजर म आने लगे।’

व ुत हर श द को सुनकर सकते म था। कां टटाइन, यू व ऑडर, लबादा


पहने उसका रह यमयी पूवज अ ै त शा ी, थयोडो सयस तीय और नाइट् स
टे लर...

ये सब कहां जा रहा था?

‘ज द ही सब एक सूत म आ जाएगा, व ुत,’ ारका शा ी ने मानो व ुत का


मन पढ़ते ए कहा।

वो शायद मन पढ़ सकते थे।

‘ लैरवॉ के सट बनाड चच के श शाली नेता और ां ससी मठाधीश ने नाइट् स


टे लर क मदद करने का नणय लया। उसने उनके प म ब त लखा और
ज द ही ईसाई तीथ ल के संर क के प म उ ह औपचा रक मदद दलवा द ।
यह से सारी बाजी पलट गई। संप प रवार ने ऑडर को ब त सा दान, वण,
संप और यहां तक क मानव म भी उपल कराया। ऑडर को इतना धन
मला क ज द ही वो ईसाई व संभालने लगे और तीथया य को पैसे दे ने
लगे। जैसा क ब त से लोग ये नह जानते ह क ज द ही नाइट् स टे लर म गैर-
यो ा तेजी से बढ़ने लगे।’

व ुत अब थोड़े संदेह म था।

‘बाबा नाइट् स टे लर के बारे म ये सारी सूचनाएं आंख खोलने वाली ह। ले कन


म यह नह समझ पा रहा ं क यह सब यू व ऑडर से कैसे जुड़ा आ है...’
हैरान व ुत ने पूछा।

इससे पहले क ारका शा ी कुछ जवाब दे पाते, नैना बोल पड़ी।

‘तुम समझ नह पा रहे व ुत क या हो रहा था? पहले तो, वीकृत ल य के


हसाब से एक धम क े ता का चार कया गया। फर उनक उस योजना को
भारी सै यबल से समृ कया गया। फर तीथया य क हालत को आखरी कड़ी

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के प म इ तेमाल कया गया—चच क संप , राजा और सम जनसं या को
नयं त करने के लए।’

व ुत यान से सुन रहा था, ले कन वो पूरी तरह सहमत नह हो पा रहा था।

‘तुम समझ नह पा रहे हो, व ुत... एक धम, एक सेना, एक बक... एक सरकार!


नाइट् स टे लर जानते ए या न जानते ए यू व ऑडर का सबसे बड़ा
ह थयार बन गए थे!’ नैना ने कहा।

‘ यू व ऑडर के खतरनाक आद मय और औरत के बारे म यह समझना ब त


मह वपूण है क वो महीन या साल क योजना नह बनाते ह। अपनी र से
वो ऐसी रणनी तयां बनाते ह, जो स दय म जाकर लागू ह , और ातृसंघ क कई
पी ढ़यां उसे पूरा करने म लगी रह। तो नाइट् स टे लर इस गु त ऑडर का
शु आती दौर था,’ इस बार पुरो हत जी ने समझाया।

‘एक मनट कए, पुरो हत जी। मा चाहता ,ं ले कन यह सब ब त ही गूढ़


रह य लग रहा है। नाइट् स टे लर का इ तहास तो दज है। अगर वो कसी गु त
ातृसंघ के लए काम कर रहे थे, तो फर वो नया के सामने उजागर य ह?’

कुछ पल खामोशी रही। व ुत अपने पास बैठे चार लोग के चेहरे दे ख रहा था,
ज ह दे ख मालूम पड़ रहा था क उ ह ने सूचना का समु दबा रखा था।
आ खरकार, मठाधीश ने बोलने का नणय लया।

‘जबसे कां टटाइन ने इसे नयु कया, यू व ऑडर म नया के कुछ


ताकतवर लोग शा मल थे—श शाली उ ोगप त, अरबप त उ मी, दे श के
अ य , तानाशाह, बकर, ग-मा फया, वै ा नक और सरे लोग। अपनी
सामा जक, व ीय और राजनी तक ताकत के अलावा भी इनके पास बु म ा
और तभा क का ब लयत थी। ातृसंघ का ह सा बनने क यह सबसे बड़ी
यो यता थी। या तु ह उ मीद है क इतने श शाली और ू र लोग खुले म
आएंगे? वो हमेशा कमजोर, लाचार आद मय के व मजबूत, असं द ध लोग
का इ तेमाल करते ह। तुम नह जानते क इस ातृसंघ का ह सा कौन है। वो
कसी बड़े दे श का अगला े जडट भी हो सकता है! वो स लकोन वैली का कोई

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इंटरनेट टायकून भी हो सकता है। वो वस ऐ स क कसी गु त लेबोरेटरी म
जीनोम और लो नग पर शोध करने वाला कोई वै ा नक भी हो सकता है। वो हर
जगह ह, व ुत। और फर भी वो अ य ह।’

व ुत को खबर समझने का समय दे ते ए, मठाधीश ने अपनी हबल चाय का घूंट


भरा और फर बात आगे शु क ।

‘अगर नाइट् स टे लर यो ा मु नय क एक साधारण टु कड़ी थी, तो उनका द ा


सं कार इतना गु त और भयावह य होता है? और फर य उ ह बाद म ढूं ढ़-
ढूं ढ़कर, लोग के सामने जला दया गया?’

व ुत को ये सब परेशान कर दे ने वाले वणन नह पता थे।

‘उ ह जला दया गया... जदा?’ उसने पूछा।

ारका शा ी ने एक पल ककर, फर शां त से कहा।

‘हां उ ह जला दया था। 13 तारीख के शु वार को।’

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हड़ पा, 1700 ईसापूव
र -धारा का ाप

वो आवाज, स तऋ षय क आवाज क तरह सौ य नह थ , जनसे ववा वन


पुजारी प र चत था। दो भयानक आवाज अब नीली अ न के क से आ रही थ ।
दे वता नज व सा खड़ा, अ न क उन लपट को, डर से फैली अपनी एकमा
आंख से दे ख रहा था। अगर कोई वा तव म स तऋ षय के ोध को समझ
सकता था, तो वो हड़ पा का सूय ही था।

भयावह आवाज अब ऊंचे पहाड़ के घषण से गूंज रही थ , और ऐसी तीत हो


रही थ मानो पवत ख से कराह रहा हो। ववा वन पुजारी को व ास हो चला
था क तड़पते मु नय का दन अब सौ मील र तक सुनाई पड़ रहा होगा।

‘सुन लो प तत दे वता... तु हारे पाप माफ नह कए जाएंगे! तुम... और इस पाप म


तु हारे भागीदार... ज द ही तु हारे काले दल क करनी भोगगे! अगली बार चांद
नकलने से पहले, तुम सब तबाह हो जाओगे!

तुम सब मारे जाओगे!’

बा रश क बौछार ववा वन पुजारी के चेहरे और बदन पर यूं पड़ रही थ मानो


कृ त वयं उस प तत आ मा को ता ड़त कर रही हो। मौत के डर ने कभी दे वता
को नह सताया था। उसे अपने जीने या मरने क परवाह नह थी। संजना और
मनु के बना, उसके जीवन का वैसे भी कोई अथ नह था। वो वह खड़ा रहकर,
शू य म घूरते ए तूफान और बा रश के वार को सह रहा था। वह जानता था क
मरने के बाद उसक आ मा अंधेरे म खोकर बार-बार ज म मरण के बंधन म झूलती
रहेगी। इस अं तम हर के कम को उतारने के लए उसे हजार जीवन जीना
होगा।

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बदले क उसक यास अब और बढ़ गई थी। ज ह ने उसे नक क इस अ न म
झुलसने को मजबूर कया था, उ ह अपनी करनी का फल भुगतना होगा।

हड़ पा को तबाह होना होगा... उसके हर को मरना होगा!

हसक व वंस य का य जारी रहा। पांचव स तऋ ष को अ न म फकने से


पहले, ऊबड़-खाबड़ जमीन पर, बाल पकड़कर घसीटा गया। इस बार वयं
रा स-राजा ह यारे का काम कर रहा था। य प इससे पूव के दो स तऋ षय
ारा क गई वनाश क भ व यवाणी ने सुरा को भी थत कर दया था, ले कन
उसे अपने आद मय के सामने अपनी नडरता का दशन करना था।

जलते ऋ ष क ची कार पछले दो ऋ षय से भी अ धक भयानक थी। ववा वन


को यक न नह आ रहा था क यह आवाज कसी म हला क थी। ये एक खी
और ो धत मां क ची कार थी, जो अपने ब के वध पर शोक जता रही थी।
जब क सरे लोग इस अनपे त घटना से त और भयभीत थे, वह हड़ पा का
सूय तुरंत ही इस अलौ कक आवाज को पहचान गया था। उसने पहले कभी इस
आवाज को नह सुना था। ले कन फर भी वो न त था क यह आवाज कसक
थी।

सारा मां...

रा स-राजा और उसके वहशी ह यार तक का र उस आवाज को सुनकर जम


गया, जसक गजना आसमान के बादल से भी अ धक थी। यह भय, भा य
और वनाश क आवाज थी। यह उस अ भशाप क आवाज थी जो हमेशा के लए
मानवजा त को मलने वाला था!

‘स तऋ षय ने तु ह अपने भाई क तरह नेह कया। मने तु ह अपना पु ही


माना। ई र ने तु ह द ता दान क और तुमने भी हमेशा उसका मान रखा—
जब तक क घृणा ने तु हारे सारे सुकम पर पानी नह फेर दया, ओ दे वता! और
तु हारी प ततता तु ह शू य पर ले आई! असुर ने अन गनत पाप कए। सम
हड़ पा ने पाप कए। राजा ने पाप कए और पुजा रय ने भी पाप कए। दानव
ने पाप कए और दे वता ने भी पाप कए। मानवजा त ने ांड को ववश कर

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दया क अब वो इस पाप का सफाया कर दे ! म पाप क इस नगरी को हमेशा के
लए यागकर, वापस मां पृ वी क पावन कोक म समा जाऊंगी। सर वती, ान
क नद अब से सफ कहा नय का ह सा बनकर रह जाएगी। ले कन उससे
पहले म अपने अपरा धय को उनके कए क सजा दे कर जाऊंगी।

यान रहे... लय... आ रही है...!

वकराल लय... अव यंभावी है...!’

ववा वन पुजारी अब अपने घुटन पर था, उसक आंख बंद थ और उसने हाथ
जोड़कर, समपण म सर झुका रखा था। उसने लय के वषय म ाचीन ंथ म
पढ़ा था और जानता था क यह कोई ऐसी चीज थी जो येक युग क समा त
पर होती थी—सृ के पुन ार के लए। वो नह जानता था क यह इतनी ज द
आ जाएगी, या वो वयं इस वकराल व वंस के क म होगा। ले कन फर, उसे
इसक चता नह थी। जहां तक उसका मामला था, उसके जीवन म तो लय
पहले ही आ चुक थी— जसने उसका सबकुछ ख म कर दया था।

र -धारा क बात अभी पूरी नह ई थी। वो श शाली आवाज फर से गूंजी।

‘ येक के दल म त मानवता म उसे ई र बनाने क मता होती है।


ले कन फर भी, अ या म से नवाण क राह तलाशने के बजाय, मानवजा त धोखे,
वध, लूटपाट और बदले को अपनाती है। ये वो नय त है जसका चुनाव तु हारी
जा त ने वयं कया है! तो यही सही! ई र कभी तु ह तु हारी नफरत भरी
नय त से मु नह करगे। हसा और र -संघष का सांप कभी भी मानवजा त
को अपनी पकड़ से नकलने नह दे गा, जो उसी ई र के नाम पर ही एक- सरे का
वध करते रहगे, जसे उ ह ने आज धोखा दया है! कभी भी व वंस और मार-काट
तु हारा साथ नह छोड़े गी। यह मेरा अ भशाप है, ओ प तत दे वता! मानवजा त
अपने अंत तक असी मत वेदना को झेलेगी!

म तु ह अ भशाप दे ती ं! म तुम सबको अ भशाप दे ती ं!’

ववा वन पुजारी क आंख से आंसू बह रहे थे। उसक नया को अचानक यह


या हो गया था? कैसे सबकुछ, जो अभी कुछ दन तक सही था, अब अचानक
यूं गलत हो गया था? वो सूय जसे हड़ पा के मु य पुजारी के पद पर बैठना था,

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अब वो एक-आंख वाला दानव बन गया था। उसका घर जो कभी उसक य
प नी और पु क व त हंसी से गूंजा करता था, वो अब भ म हो गया था।
स तऋ ष, ज ह वो मागदशक और भाईय का सा नेह करता था, उनका वयं
उसक सु वधा के लए संहार कर दया गया था। हड़ पा क सुनहरी नगरी ज द
ही वकराल लय म डू बने वाली थी। और ान क नद , जसे वो एक मां क तरह
पूजता था, वो अब र -धारा बन सम त मानवजा त को अ भशाप दे रही थी।

उसके मौन अ ु ज द ही भारी सस कय म बदल गए, और वो फूट-फूटकर रोने


लगा, उसके आंसू मृत मु नय के ल पर गर रहे थे।

तब दे वता नह जानता था क अपनी जदगी का आखरी भयावह अ याय पूरा


करने म ये आंसू भी कम पड़ जाने वाले थे।

और अब जब वो मरकर अपने सजक से मलने को ाकुल था, वो नह जानता


था क उसक नय त म वापस आना लखा था... स दय बाद।

उस समय वा तव म वो इस धरती पर आने वाला आखरी दे वता होगा।

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बनारस, 2017
तशोध

‘म उसे ढूं ढ़कर मारने जा रहा ं।’

व ुत ने तय कर लया था क जट कपा लक के साथ या कया जाना चा हए


था। इससे कोई फक नह पड़ता था क मसान राजा के पीछे कौन था। उस
कठपुतली के पीछे छपे मा लक का चेहरा बाद म सामने आता रहेगा। अभी के
लए दे वता ने ठान लया था। उसने कभी कसी मनु य का वध करने क क पना
तक नह क थी। यहां तक क दशा मेध घाट पर कुछ दन पहले ई चुनौतीपूण
लड़ाई के समय भी, उसने कसी के ाण नह लए थे।

ले कन वो तब क बात थी। मठ के प व प रसर म ए, बाला क अमानवीय


ह या ने व ुत को मानने के लए ववश कर दया था क उनका सामना सबसे
बेरहम और ू र सेना से था। और यह मनी कभी ख म नह होने वाली थी। रोमी
परेरा और कराए के ह यार क असफलता ने उसके मन के हौसले प त नह
कए थे। इस लए एक चीज तो साफ थी। इस श ुता को आधी-अधूरी प रण त पर
नह छोड़ा जा सकता था।

इस लड़ाई का अंत ज री था। ऐसी लड़ाई जसम जट कपा लक और इस


खेल के पीछे छपी भयावह परछाइय का अंत होना था।

‘अजीब बात है क जट कह छपा भी नह है। हमारी गु तचर सेना ने खबर द


है क वो शहर के बाहर अपनी तां क य शाला म ही है। वो ऐसी जगह है, जहां
नाममा के लए री त- रवाज होते ह। वा तव म तो वो एक गढ़ है। वो मसान-

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राजा क अ या मक और सै य ताकत का ठकाना है। वो जानता है क आप
उसके पीछे जाएंगे। वो चाहता भी है क आप उसके पीछे जाएं,’ मठ के यु -
मुख, बलवंत ने चेतावनी द ।

‘हम उसे पकड़ना ही होगा, बलवंत दादा, फर भले ही उसके लए हम उसे नक


क गहराइय से ही य न बाहर नकालना पड़े !’

‘हां व ुत। हम उसे पकड़ना होगा। ले कन इसके लए हम बेहतर योजना बनानी


होगी। हम काशी के सबसे खतरनाक आदमी का सामना कर रहे ह। हम उसे
ह के म नह ले सकते। इस जवाबी हमले के लए साहस और बहा री दोन क
आव यकता होगी। ले कन उससे भी बढ़कर, इसके लए सट क योजना बनानी
होगी।’

व ुत ने सहम त म सर हलाया। सर क तुलना म, बलवंत के पास यु का


अ धक अनुभव था।

‘ य न हम अपने सारे आद मय को लेकर उसक नकली य शाला पर चढ़ाई


कर द, बलवंत दादा?’ अधीर सोनू ने कया। ‘हमारे सौ आदमी ही उसके नशे
म धु 666 अनुया यय को पकड़ने के लए पया त रहगे।’

‘नह , सोनू। एक खुले आ मण से अ य धक र बहेगा और इससे अ धक लोग


का यान भी आक षत होगा। हालां क, यह न त है क इस संघष म र तो
बहेगा, और हमारे प से भी यो ा ब लदान दगे, ले कन फर भी हम कम से कम
र -संघष को वरीयता दे नी चा हए। अंत म, याद रखना क जब हमारा सामना
वयं महा-तां क से होगा, तो उसक तरफ से लड़ाई म सफ मनु य ही नह
आएंगे,’ बलवंत ने कहा।

व ुत के बोलने से पहले वहां एक मनट तक स ाटा रहा।

‘तो हम या करना चा हए, दादा? अगर हम उस पर खुला आ मण नह कर


सकते, तो हमारे पास सरा वक प या है?’

बलवंत वचार-म न था।

‘पूरे बनारस म एक ही आदमी है, जो हमारी मदद कर सकता है,’ उसने कहा।

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वो त त बनारस ह व व ालय (बी.एच.यू.) के वशाल प रसर म चल रहे
थे। 1916 म पं डत मदन मोहन मालवीय ारा ा पत बी.एच.यू. को ए शया क
सबसे बड़ी रे जड शयल यू नव सट माना जाता है, जहां 75 से अ धक छा ावास
म 12,000 से अ धक छा रहते ह। 1,300 एकड़ के सघन े म फैले इस
अकाद मक क म 40 से अ धक दे श के 35,000 छा श ा हण करते ह।

बलवंत ने आ ह कया था क व ुत उसके साथ कसी ऐसे से मलने


चले, जो जट कपा लक के अभे कले को भेद सकता था।

‘ ोफेसर भात पाठ सं कृत के व ान ह, जो इस व व ालय म पछले


एक दशक से अ धक समय से पढ़ा रहे ह। वो वेद , उप नषद और सरे ाचीन
भारतीय ंथ के समथ ाता ह। उनके पास हमेशा एक दजन से अ धक छा
पीएच.डी. क तैयारी कर रहे होते ह। ब त ही नेक मनु य ह, जो ारका शा ी
जी को पूजते ह। भा य से उनक एक आंख खराब है, इस लए आप उ ह हमेशा
काला च मा लगाए दे खगे,’ बलवंत ने बताया।

‘इस सब जानकारी के लए ध यवाद, दादा। ले कन हमारी वतमान सम या म वो


हमारे लए कैसे मददगार हो सकते ह?’

बलवंत ने सपाट जवाब दया।

‘ य क अकाद मक का शांत जीवन जीने से पहले, ोफेसर पाठ जट


कपा लक के साथी व उसके काय म साझेदार थे।’

व व ालय के मु य प रसर के बगीचे म वो कट न क चाय के छोटे कप पकड़े


बैठे थे। सादगी य ोफेसर पाठ घास पर ही पालथी मारकर बैठा था। अपने
अ त थय को भी, अपने सामने घास पर बैठने का नमं ण दे ने म उसे कोई
झझक नह ई थी। शु आती अ भवादन के बाद, बलवंत ने बड़ी सतकता से
मु य वषय उठाया।

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‘ पाठ जी, हम यहां आपक सहायता और आशीवाद लेने आए ह। सफ आप
ही हमारे अ भयान म हमारा मागदशन कर सकते ह।’

ोफेसर ने उदारता से मु कुराते ए कहा, ‘आपके जैसे यो ा के लए या


मु कल है, बलवंत? और कताब और क ा म खोया रहने वाला भला आपक
या सहायता कर सकता है?’

व ुत को ोफेसर पाठ वाभा वक, जमीनी और दयालु लगा था। व ुत के


लए यह क पना तक कर पाना मु कल था क कभी वो एक नदयी महा-तां क
का सहयोगी रहा था!

झझक के साथ अपने अगले श द कहने से पहले, बलवंत कुछ पल के लए


का।

‘हम जट कपा लक क य शाला पर चढ़ाई करने के लए आपक मदद


चा हए...’

ोफेसर का चेहरा पथरा गया। पल भर म व ुत ने उसे ोध से कांपते ए दे खा।


वो अपना ोध भड़ककर नह दखा सकता था, ले कन वन ोफेसर ने नम ते
म अपने हाथ जोड़े और वहां से उठने लगा।

‘ पाठ जी... म वनती करता .ं .. कृपया क जाइए...’ बलवंत ने आ ह कया।

वो ोफेसर क बांह पकड़कर उ ह बठाने का य न कर रहा था। जब ोफेसर ने


उसक वनती मान ली, तो उसे बड़ी राहत महसूस ई।

‘मेरी उप त म उस शैतान का नाम लेकर आपने मेरा अपमान कया है। वो


जीवन म ब त पहले ही पीछे छोड़ चुका ं। उसने मेरा सब कुछ छ न लया था।
सबकुछ...

और ये मत सोचना क आपके यहां आने क खबर उसे नह लगेगी। उसक नजर


हर चीज पर है। वो सबकुछ जानता है!’ ोफेसर क आवाज म डर था।

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‘मने अघोरी तां क के प म नौ साल बताए ह। जट मेरे भाई सामान था। या
कम से कम म तो यही मानता था। यह उसके मसान-राजा और महा-तां क बनने
से ब त पहले क बात थी। हम युवा थे। हमारी साधना रंग ला रही थी और स
हम ताकत का नशा करा रही थी। हम कसी भी राह चलते पर, भयावह ाचीन
जा , जैसे बगलामुखी इ या द कर सकते थे। ले कन जैसे महीने और साल गुजरे,
जट कुछ बदलने लगा।’

ोफेसर अब अपने पुराने भयावह दन को याद कर रहा था।

‘हर दन वो पहले से और अ धक ू र होने लगा। अब उसक साधना क पूजा


तक नह , ब क डा कनी, पशाच और चुड़ैल पर नयं ण ा पत करने के लए
थी। वो क पर जाकर अकेले, सघन साधना करने लगा, और अपने काले
कारनाम के लए मृत आ मा का सहारा लेने लगा। कोई नह जानता था क वो
या हा सल करने क को शश कर रहा था। ले कन हम समझ सकते थे क वो
कुछ ऐसा करने क को शश कर रहा था, जो कभी नह करना चा हए था।’

ोफेसर अब परेशान दखाई दे रहा था। इन पुरानी याद क वजह से वो पसीने से


तर हो गया। व ुत ने उसे पीने के लए पानी क बोतल द , जसे उसने साभार ले
लया।

‘ले कन अपने सारे यास के बावजूद, वो कभी मशान तारा का आ ान नह कर


पाया। मां उसे अपने दशन दे ही नह रही थ । इससे मुझे हैरानी ई। उससे कम
समथ तां क भी मशान तारा को दे खने का दावा करते ह। इससे मुझे कुछ संदेह
आ। और पहली बार, मने जट क कुंडली तैयार क ।’

भात पाठ अब डर से पीला पड़ रहा था। त: वो समय म पीछे जा रहा


था।

‘आपने उसक कुंडली म या पढ़ा, पाठ जी?’ व ुत ने पूछा। ‘मुझे यक न है


क आपने दे खा होगा क वो कतना बुरा इंसान है और आगे या बन जाने वाला
था...’

ोफेसर ने न म अपना सर हलाया।

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‘उसक कुंडली ने यह नह बताया क वो अ ा इंसान है या बुरा। वो ऐसा
भ व यफल था जसे हजार साल म कसी तां क ने नह दे खा होगा। मने उसे
बार-बार पढ़ा, और म अपनी आंख पर भरोसा नह कर पा रहा था। अ े और
बुरे क बात तो जाने द जए, वो कुंडली कसी मनु य क थी ही नह !’

बलवंत और व ुत हैरान थे। वो ोफेसर क बात को पूरी तरह नह समझ पा रहे


थे।

‘ मा क जए पाठ जी... मुझे आपक बात समझ नह आई,’ व ुत ने न ता


से कहा।

ोफेसर अब बेचैनी से, पसीने से तर हो गया था। वो घबराहट से फुसफुसाया।

‘शायद मां तारा उसे इस लए दशन नह दे रही थ ... य क...

जट का ज म रा स यो न म आ था।

वह वो रा स था जो स दय बाद धरती पर उतरा था।’

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हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव
‘इसक कहानी स दय तक याद क
जाएगी’

‘आप एक वशाल नाव बनाओगे, मनु। ऐसी क ती जो ब त वशाल होगी,


जसका प रमाण मानव के साम य क सीमा से बाहर होगा। ऐसा जहाज जो
इतना भ होगा क उसका शीष बादल के ऊपर उदय होगा। कोई भी, समय के
अंत तक, उस नाव क चौड़ाई का अनुमान भी न लगा सके। यह पोत अपनी
नय त को पूण करेगी और समय के साथ वाभा वक प से न हो जाएगी।
ले कन इसक कहानी स दय तक याद क जाएगी।

और आपका नाम भी, स य त मनु।’

मनु म य क कही हर बात सुनकर त था।

अगर उस नाव का प रमाण मनु य क क पना से परे होगा, तो म उसे कैसे बना
पाऊंगा? कोई ऐसी चीज कैसे बना सकता है, जसके लए वो वयं ही व त न
हो? और म ही उसे य बनाऊंगा? इस क ती को नय त का कौन सा ल य पूण
करना था? और म य मुझे स य त मनु य कह रहे ह?

म य मनु के चेहरे पर हैरानी के भाव दे ख सकता था। वो मु कुराया और मनु को


अपने साथ चलने का संकेत दया। जैसे ही वो काले पवत क ऊंची गुफा से बाहर
नकले, वो फर से तेज हवा और धुआंधार बरसात से तर हो गए। आसमान
उतना ही अ य दख रहा था, जतना वो पछले कुछ दन से था। वो अब हमेशा
के लए याह हो चुका था।

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इससे पहले क मनु म य से पूछ पाता क वो इस तूफान म बाहर य नकले थे,
उसने दे खा क कुछ थके ए घोड़े , हवा से संघष करते ए, उनक गुफा क ओर
बढ़ रहे थे। सूय पु को उन घुड़सवार म से एक को पहचानने म अ धक समय
नह लगा, जब वो कपास के धागे से बनी एक पारभासी मशाल को, हवा से बचाते
ए ला रहा था।

वो पं डत सोमद था, हड़ पा का मु य अ भयंता और उसके पता का अं तम


म ।

पं डत सोमद के आंसू अभी भी बह रहे थे। वो ववा वन पुजारी के पु को


जी वत, व और स दे खकर खुश था। उसने अब य स य को वीकार
लया था।

अपने पता क ही तरह, मनु भी कोई साधारण न र ाणी नह है। सफ एक


दे वता ही उन घाव को सह सकता है, जो मनु को लगे थे।

मनु सोमद क तरफ दौड़ा और उसे घोड़े क काठ से लगभग ख चते ए, उसके
गले लग गया। उसने हड़ पा के बु मान नमाता के पैर छु ए और उसे एक बार
फर से बांह म भर लया। उसक आंख अपने अ भभावक क मृ त म नम हो
गई थ । सोमद बार-बार मनु को आशीवाद दे रहा था, और दे ख सकता था क
संजना जहां भी होगी, उसे आज अपने पु पर गव होगा।

हालां क, वो न त नह था क आज वो अपने प त के बारे म या कहती।

ले कन अभी सोमद को इसक चता नह थी। ववा वन और संजना क आ मा


समय क शु आत के साथ एक- सरे से जुड़ी थ , और सृ के अंत तक एक
साथ ही रहने वाली थ । वो अपने दे वता को दे ख रही थी। और वो जानती थी क
वो अभी भी वही मनु य था जसे वो ेम करती थी, अपने समय का महानतम
मनु य। वो जानती थी क नय त ने ववा वन पुजारी क ऐसी परी ा ली थी,
जससे कसी भी मनु य को नह गुजरना चा हए। वो ये भी जानती थी क अब
उसक आ मा को नवाण ा त के लए अनेक जीवन से गुजरना होगा।

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वो भी उसके साथ बार-बार पृ वी पर आएगी। वो हर ज म म उसका साथ
नभाएगी।

वो अगली नया म साथ ही जाएंगे।

‘म आपका ऋण कभी उतार नह पाऊंगा, सोमद जी,’ मनु ने हाथ जोड़कर


कहा। ‘मेरे पता के अं तम पल म आप ही उनके साथ थे।’

सोमद को समझ नह आया क मनु या कह रहा था।

मनु य अपने पता के अं तम पल क बात कर रहा है, जब क ववा वन पुजारी


तो अभी जी वत ह?

जैसे ही वो कुछ कहने को आ, म य बीच म आ गया। उसके ने ने सोमद


को कुछ पल के लए शांत रहने का संकेत दया।

‘कृपया हमारी वन कुट म आइए, सोमद ,’ उसने कहा। ‘आपको और आपके


सा थय को कुछ गम भोजन और आराम क आव यकता है।’

सोमद ने हां म सर हलाया, और मनु क तरफ मु कुराकर, ऊंची गुफा के ार


क ओर बढ़ गया।

मनु सोमद को जाते ए दे ख रहा था क तभी म य ने उसके कंधे को


थपथपाया। मनु म य क तरफ मुड़ा, जसने अपनी भव हलाकर, मनु को अपने
पीछे कुछ दे खने का संकेत दया।

कुछ नह ।

कोई।

तारा।

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बनारस, 2017
लु त स यता

व ुत कुछ समय तक गहरी चता म बैठा रहा, और फर वो पूछा जो उसे


अब तक खाए जा रहा था।

‘बाबा, वो हमसे इतना य डरे ए ह? उ ह ऐसा य लगता है क हम उनके


वशाल और संग ठत अंतरा ीय नेटवक को परा जत कर दगे? सबसे मह वपूण,
उ ह शु से ही हम से या डर था? कां टटाइन को महान अ ै त शा ी पर इतना
व ास य था?’

ारका शा ी मु कुराए।

‘वो हमसे भयभीत नह ह, व ुत। वो उससे भयभीत ह, जो काले मं दर म छपा


है।’

व ुत ने आह भरी, और अपना सर हलाकर, हंसने लगा।

‘म जानता ं क आप मुझे काले मं दर के रह य के बारे म तभी बताएंगे, जब


आपको लगेगा क सही समय आ गया है, बाबा। तो म अपनी उ सुकता को
बचाकर रखूंगा और आपसे उसके बारे म नह पूछूंगा!’

ारका शा ी ने यु र म जोरदार ठहाका लगाया। व ुत अपने परदादा को यूं


खुलकर हंसता दे ख खुश आ।

‘ये दे खकर अ ा लगा क तुम मुझे इतनी अ तरह समझने लगे, व ुत,’
उ ह ने कहा।

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‘ले कन बाबा फर भी, हम य ? बनारस म, भारतीय यो गय का आ म इतना
अहम कैसे हो गया? एक गु त सं ा का दै य, जो नया के सबसे ताकतवर लोग
के नयं ण म है, उसे हम इतना बड़ा खतरा य लग रहे ह?’

‘ य क हम सबसे ाचीन ान के ा तकता और संर क ह, व ुत,’ डमा टर


ने सपाट कहा।

व ुत ने मु कुराकर, संदेह से अपने परदादा को दे खा। वो मठाधीश क बात से


पूरी तरह सहमत नह था।

‘ या तु ह मनु क नाव क कहानी या मथक पर भरोसा है, व ुत?’ ारका


शा ी ने पूछा।

वो अभी व ुत को मनु और उसक नाव से वयं उसके गहरे संबंध क


वा त वकता के बारे म नह बताने वाले थे।

कम से कम अभी तो नह ।

‘हमारे आसपास हजार उदाहरण ह, व ुत, जो लु त स यता का संकेत दे ते ह।


उस ाचीन ान का, जो समय क रेत म गुम हो गया... या मुझे कहना चा हए क
वशाल सागर क गहराई म डू ब गया,’ ारका शा ी ने कहा।

व ुत यान से सुन रहा था।

‘इस पर सोचो और सावधानी से नरी ण करो, पु । तु ह उस लु त स यता के


च हर जगह दखाई दगे। म कुछ सव ापक मथक और कहा नय से शु
करता ं। तुमने काफ अ ययन कया है। तु ह तु हारे आ यान और ंथ क
गहन जानकारी है। तो मुझे बताओ, वो कौन से लोग या च र थे जो रामायण और
महाभारत दोन म उप त थे, जब क ये दोन आ यान दो अलग युग म घ टत
ए थे?’

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महान आ यान पर कुछ पल दमाग दौड़ाने के बाद, व ुत ने जवाब दया,
‘ न त प से, भु हनुमान—हम उ ह रामायण और महाभारत, दोन आ यान
म उप त पाते ह। वो भु राम के परम भ थे और उनके साहस और चातुय
क कहानी के बना रामायण अधूरी ही रहती। फर वो चाहे वण नगरी लंका को
जलाने क बात हो या वशाल समु को छलांग लगाकर पार करना, हनुमान
रामायण म पूरी तरह से छाए रहे। बाद म महाभारत म भी, उनका ज अनेक
बार आया, जहां उ ह ने एक छोटे से वानर के प म महान भीम का गव
चकनाचूर कया। बाद म वो कु े के महान यु के दौरान, अजुन के रथ क
पताका पर भी शो भत थे।’

‘सही, ले कन ये सबसे आसान था। और कौन था?’ ारका शा ी ने इस चचा


का आनंद लेते ए पूछा।

‘ फर श शाली प ी ग ड़— वयं भगवान व णु का वाहन। ग ड़ रामायण म


राम और ल मण क सहायता के लए आया, जब रा स राजकुमार मेघनाद या
इं जीत ने उन पर अपने जहरीले ह थयार, नागपाश से वार कया था। ग ड़ को
तुरंत ह थयार म से साप का जहर र करने के लए बुलाया गया था। फर
महाभारत, या कृ णावतार म ग ड़ फर से कट होते ह, जब कृ ण रा स राजा
नरकासुर के साथ यु रत थे।’

मठाधीश मु कुरा रहे थे। ‘म भा वत आ, व ुत। अब मुझे एक अं तम


उदाहरण और दो।’

‘बाबा, फर महान यो ा-संत परशुराम थे। भगवान व णु के दसव अवतार माने


गए, परशुराम सीता के वयंवर म उप त थे, जहां वो भगवान शव का धनुष
पनाका टू टने के बाद, राम पर ो धत होकर आए थे। बाद म, वो महाभारत म
वकट यो ा —भी म, ोणाचाय और कण को यु कौशल सखा रहे थे।’

‘ब त ब ढ़या!’ ारका शा ी चहके। ‘अब मुझे ये बताओ व ुत—जो तीन नाम


तुमने लए, उनक एक साझी वशेषता या है? ऐसी या वशेषता है जो हनुमान,
ग ड़ और परशुराम तीन म मौजूद है?’

व ुत को इसक सही जानकारी नह थी। उसने कुछ पल सोचा, ले कन फर भी


भु हनुमान, श शाली प ी ग ड़ और बुराई के वनाशक, परशुराम को आपस

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म जोड़ने वाली कड़ी नह ढूं ढ़ पाया।

‘ मा कर बाबा, ले कन म इन महान व म कोई साझा वशेषता नह खोज


पाया। वो सब तो आपस म ब त भ ह!’

‘हां, वो अलग ह। ले कन एक खूबी है, जो उ ह आपस म जोड़ती है। और वो


खूबी है ग त। अगर तु ह तु हारे आ यान अ तरह याद ह , व ुत, तो ये तीन
व अपनी ग त के लए जाने जाते थे, और ये तो मन क ग त से भी कह
ती थे। हनुमान यूं बजली क सी तेजी से चले थे क उ ह ने सूरज को नगल
लया था। ग ड़ को भगवान व णु ने अपना वाहन इसी लए चुना था, य क
ग ड़ क र तार सबसे तेज थी। परशुराम को वरदान था क वो कह भी बस
सोचने भर से प ंच सकते थे!’

बुजुग ने कुछ पल ककर अपने परपोते को अपनी कही बात समझने का अवसर
दया। कुछ दे र ककर, उ ह ने अपनी बात आगे बढ़ाई।

‘अब तुम इसे अजीब संयोग कह सकते हो क जो तीन करदार युग क सीमा के
पार भी उप त रहे, वो वही तीन थे जो काश क ग त के बराबर या शायद
उससे भी तेज चल सकते थे।’

‘हे भगवान!’ व ुत झटके से च का। ‘ या आप कह रहे ह क वो सैकड़ और


हजार साल तक भी अपनी काश से तेज ग त क वजह से ही चर युवा रह
सके?! और आइं टाइन के सापे ता स ांत के प रणाम व प, कोई भी जो
काश क ग त से तेज सफर कर सके, उसके लए समय उसके समक य क
तुलना म धीमी ग त से बीतता है?’

‘ बलकुल सही, व ुत!’ डमा टर ने जवाब दया। ‘ले कन वा त वक है—


अगर आइं टाइन ने 20व सद म सापे कता स ांत दया था, तो फर ाचीन
ऋ षय ने कैसे हजार साल पहले आ यान और ंथ म आधु नक वै ा नक
वचार को लख दया? वो कैसे जानते थे क सफ द व ही काश क
ग त से युग युगांतर म सफर कर सकते थे?’

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अब तक परदादा और परपोते क जोड़ी ाचीन ंथ के उन अनेक संकेत , इशार
और घटना पर चचा कर चुक थी, जनम आधु नक वै ा नकता के च थे, जो
बता रहे थे क वो पीढ़ वतमान मानवजा त से कह अ धक आधु नक थी।

‘जब तक टे ली कोप का अ व कार नह कया गया था, तब तक तार और ह के


बीच अंतर बता पाना असंभव था। फर कैसे ाचीन मु न जानते थे क सौर
णाली म नौ ह या नव ह थे? रामायण म, राजा जनक के यह कहने पर क
आयवत म कोई वीर नह है, ल मण ब त ो धत हो गए थे और उ ह ने कहा था
क कैसे वो इस धरती को एक गद के समान उछाल सकते थे। भगवान व णु के
वाराह अवतार ने भीषण बाढ़ के बीच धरती को अपने दांत के बीच कसी लोब
क तरह दबाकर नकाला था। सबसे पहले छठ सद ईसापूव म, ीक पाठ म
धरती के गोल होने का ज आ था। और तीसरी सद ईसापूव के अंत तक भी
यह सवमा य नह था, जब तक क 500 ईसापूव म पाइथागोरस ने इस वषय म
द ता हा सल नह क । फर कैसे ाचीन भारतीय को हजार वष पूव पता था
और उ ह ने अपने ंथ म व णत कया क पृ वी गोल थी?’ व ुत ने भी अपने
परदादा क बात म भारतीय मथक से कुछ सट क उदाहरण जोड़े ।

ारका शा ी स थे क उनका य व ुत भी उस बात को वीकार कर रहा


था और उसम योगदान दे रहा था, जो वो उसे बताने क को शश कर रहे थे। वो
कताब क अलमारी तक गए और कोई लाख साल पुराना सं ह नकालने लगे।
मठाधीश ने इस ागै तहा सक काल क सी लगने वाली कताब को खोला और
कसी संदभ के लए उसके प े पलटे ।

‘आयुवद, या आ दकालीन भारतीय ‘जीवन का व ान’ तु ह और च कत कर


दे गा, व ुत। दो ाचीन ऋ षय , सु ुत और चरक, ने औष ध और श य
च क सा पर खासा लखा है। वो लोग, जनक तकनीक उपकरण तक कोई
प ंच नह थी, च क सा के व वध तर और श य च क सा पर इतनी बारीक से
कैसे लख सकते थे? सु ुत सं हता म 700 से अ धक च क सीय पौध का वणन
है। ले कन शानदार लेबोरे और या आधारभूत माइ ो कोप के बना, उ ह कैसे
पता चला क इन पौध म उपचारा मक गुण थे? कैसे वो ज टल सजरी तक कर
पाते थे, जनम सी से न, पुर ं थ को हटाना, कृ म जोड़ लगाना... शा मल
थे। ये सब आधु नक बेहोश करने वाली दवाइय के बना वो कैसे कर पाते थे?’

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‘ये सच है, बाबा। और या आप जानते ह क ंथ म ा के घातक भाव
का जो वणन कया गया है, वो हरो शमा और नागासाक के परमाणु बम व ोट
के भाव से कतना मलता है?’

‘हां, मने वो पढ़ा था, व ुत। हमारे आ दकालीन पूवज के पास न त प से


ान और व ान का बा य था, जो स दयां गुजरने पर कह लु त हो गया। एक
तारा, जसे अब एंट रज कहा जाता है, और रा कालीन आकाश क 15व सबसे
चमकती ई चीज घो षत कया गया। ले कन ाचीन मु नय ने इसे ये कहा।
वो ऐसा य करते, अगर वो नह जानते क एंट रज वा तव म सबसे बड़ा तारा
है, जो सूय से आकार म लगभग, 40,000 गुणा बड़ा है? हबल जैसे वशाल
टे ली कोप के बना यह जानकारी संभव ही नह थी!’

बुजुग और उसका अ त अनुयायी, दोन मठाधीश के बड़े से क म बैठे थे।


ाचीन ान के साथ उनका गहन और रह यमयी संबंध था, जसे वो अब परत दर
परत उतार रहे थे।

जैसा क ीक दाश नक हेरा लट् स ने कहा था, ांड म मा एक ही चीज


नयत है, और वो है प रवतन। भारत या आयवत का वैभव, जो कभी ांड के
अपूव ान का ोत क आ करता था, समय के साथ ीण होता गया और यह
वदे शी ताकत क मलीभगत का भी ह सा था।

अ तीय भारत ने हमेशा से अपने ही लोग से धोखा खाया है। फर वो चाहे


आ ी हो, जसने सकंदर का महान उप-महा प क सीमा पर वागत कया
या जयचंद, जसने राजपूत राजा पृ वीराज के व ष ं कया; या फर
लासी का मीर जाफर, या 1857 के व ोह का इलाही ब ; या फर वो जम दार,
जो अं ेज के वफादार रहे या वो जसने प मी सा ा यवाद, गैर-रा वाद मसले
को बढ़ावा दया—यह शानदार दे श, असी मत ान का क , हद से अ धक
बद क मत रहा है।

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हड़ पा, 1700 ईसापूव
पु दर पु , पीढ़ दर पीढ़

सुरा ने छठे स तऋ ष के जीण अवशेष को आग क तरफ धकेला। बफ ली हवा


और ता ड़त ओला वृ असुर क ह मत पर हार कर रही थी। अ भशाप और
लय के आगमन क भ व यवाणी ने उ ह और उनके राजा को अंदर तक हला
दया था। अब सफ वो अपने पागलपन भरे हठ क वजह से ही इस बेतुके संहार
को अंजाम दे रहे थे। ऊंचे पवत के ढहने क आवाज अब तेज ग त से समीप आ
रही थी।

‘ क जाओ, सुरा! या तुमने सारा मां क लय क भ व यवाणी नह सुनी?’


ववा वन पुजारी नीली अ न क तरफ इशारा करके च लाया, जो पांच मु नय
को नगल चुक थी।

‘ या तु हारे कान को अ भशाप सुनाई नह दया? अब और तुम या चाह रहे हो,


ओ असुर ?’

सुरा उतना ही ो धत था, जतना वो डरा आ था। जस पल से वो स तऋ ष क


शरण ली पर प ंचे थे, कुछ भी उसक योजना के अनुसार नह आ था।
असी मत आकां ा और जीत क कगार तक प ंचने के नशे म, उसने उ मीद
क थी क वो बना कसी क ठनाई के मु नय को मार दे गा, और सम आयवत
का न ववा दत शासक बन जाएगा। ले कन रात तो कसी क क पना से भी
अ धक भयानक होती जा रही थी। तेजी से वृ और जीण होते स तऋ ष, उनक
मृत सफेद आंख, लपकती नीली अ न, दल दहला दे ने वाली धमक और अब यह
भयानक अ भशाप!

या धरती के सहासन पर मेरे बैठने के रा ते म वयं ांड ष ं रच रहा था?

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‘पीछे हट जाओ, ओ अ-दे वता!’ रा स राजा च लाया।

वो ववा वन पुजारी क तरफ बढ़ा, अथपूण ढं ग से पथरीली जमीन पर पैर पटकते


ए, जससे अपनी आ ा उ लंघन क चेतावनी दे सके।

‘तुम जानते थे, है न?’ उसने अ धकार पूवक दे वता से पूछा।

‘मने तु ह बताया था सुरा, ये बस स तऋ ष के अवशेष थे। और तु ह या लगता


है क ये इतनी तेजी से जीण य हो रहे ह? य क उनक अन र आ मा जा
चुक है। वे यो गक व ान के ाता ह। अपनी स य का इ तेमाल करके
उ ह ने पहले ही अपने शरीर को छोड़ दया। जब हम बात कर रहे थे, तभी उनक
आ मा कह और जा चुक थी... और शायद म जानता ं कहां...’ ववा वन
पुजारी ने तक दे ने क को शश क ।

सुरा ने दे वता क कही हर बात को अनसुना कर दया।

‘तुम जानते थे क ये मायावी अ-ऋ ष हम पर कोई काला जा कर दगे...’ वो


वयं से बुदबुदाया, उसक आंख म तेज और पागलपन था।

अचानक ही सुरा अपने असुर क तरफ मुड़ा और ढटाई से कहा, ऐसे घोषणा
करते ए मानो वो अभी से हर चीज और हर कसी का वामी था।

‘इन जा गर क चाल म मत आना, मेरे साहसी यो ा ! कोई अ भशाप-


व भशाप नह है! ये चालाक मु न ब त मायावी ह। यह सब इन जा गर के माया
जाल के अ त र कुछ और नह है!’

रा स राजा ने अपनी वकराल तलवार नकालकर, उसे भयानक आसमान म


ऊंचा उठाया।

‘असुर सा ा य क जय हो!’ वो च लाया।

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उसके वकराल सपा हय ने भी अपनी प र चत बहा री से त या द । येक
अपने वकराल ह थयार के साथ, ई र को चुनौती दे ने वाले अपने राजा के समथन
म आ गया!

‘असुर सा ा य क जय हो!’

वो सभी एक लय से च लाए।

सुरा अपनी टु कड़ी के नदयी सेना य क तरफ मुड़ा, जो तुरंत समझ गया क
उसका र पपासु राजा या चाहता था। उसने अब छठे ऋ ष क कमर म अपना
वशाल भाला घ प दया और उसे यूं उठा लया मानो कोई शकारी अपने मृत
शकार को उठाता है। कु हलाया आ ऋ ष दद से कराहा, उसे अ न म फकने से
पहले उसे आग के ऊपर लटकाकर, मांस क तरह भूना गया। वो तब भी जी वत
था।

सेना य और पचास सै नक जंग लय क तरह हंसने लगे।

सर वती के पांच पु क तरह, झुलसते ए मु न ने, आग के नीले अंगार के बीच


से कहा।

‘तुमने महज अपने श द से इन कसाइय को रोकने का सतही यास कया, ओ


दे वता! और वो भी तब जब तु हारे पास ई र का दया, ांड का सबसे
श शाली ह थयार है! तब जब तु हारे पास वशाल र न-मा है! तो ये ही सही।

जस तरह से, इस अभागी रात म, तुमने द मु नय को एक-एक कर जलता


दे खा, नय त भी तु हारे वंश को ऐसी ही हसा म ख म होते दे खेगी। पु दर पु ,
पीढ़ दर पीढ़ । म तु ह और तु हारे सम वंश को अ भशाप दे ता ं, ओ प तत
दे वता...

तु हारे वंश का येक पु वही हसक मौत मरेगा, जो आज भयानक रात म तुमने
दे खी है!

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म तु ह अ भशाप दे ता ं! और तु हारे सम वंश को!

यह अ भशाप समय के अंत तक रहेगा!’

पहले क तरह ही, ववा वन पुजारी बलकुल भी नह हचका। ले कन दद म भी


वो हैरान था।

ऐसा कैसे हो सकता है क काल-दश स तऋ ष न जानते ह ?

उसने अपने हाथ जोड़े , और पहले से ही श मदा और ख हो, उस जलते ऋ ष


के स मुख अपना समपण कया।

‘म आपका अ भशाप वीकार करता ,ं वैसे ही जैसे मने आपका आशीवाद


वीकारा था। मेरा अंत हसक और यातना भरा ही होना चा हए। ले कन शायद
आप भूल गए ह, ओ महान ऋ ष... मेरा कोई वंश होगा ही नह । मेरा एकमा पु ,
नया का े पु ... मेरा मनु तो पहले ही मर चुका है।’

आह भरकर वो एक पल को का, और अपने आंसू और दद को पीने लगा।

‘और हां, वो शायद ब त ही नममता से मरा था... आपके अ भशाप क तरह ही,
ओ ऋ ष... मेरे मनु को जहरीले बाण से भेद दया गया था!’

इससे पहले क छठा स तऋ ष राख म भ म हो जाता, उसक आवाज एक


आखरी बार सुनाई द ... इस बार उसम ोध से अ धक दया थी।

‘तुम सच म अंधे हो गए हो, ववा वन। एक े मनु य, जो एक समय म


आद मय क आ मा और समय क धुरी के अंदर झांक सकता था, आज उसे
अपने पु के वषय म ही ात नह है।

ओ म लन सूय, तु हारा पु जी वत है! और वो ही भीषण बाढ़ के बाद, सुबह क


पहली करण दे खेगा।

मनु पुजारी... सम त सृ का संर क होगा!

और स य त मनु के नाम से अमर हो जाएगा... परम स य का संर क!

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हम तुम पर दया आ रही है, बद क मत पता, प तत आधे-भगवान!’

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बनारस, 2017
याह ातृसंघ – भाग III

‘यूएस ेजीडट वू ो व सन ने ही सबसे पहले सावजा नक प से यू व


ऑडर श द का इ तेमाल कया था,’ ारका शा ी ने कहा। ‘य प वो पहले
व यु के बाद ा पत रा संघ के संदभ म था, ले कन ब त से लोग का
मानना था क उसी दन से ऑडर ने धीरे-धीरे अपनी उप त और ापना
नया के सामने दखाने का नणय लया था।’

‘बाबा, इससे पहले क हम आगे बढ़, या आप नाइट् स टे लर के समय से


ऑडर के सफर के बारे म बता सकते ह?’ व त
ु ने पूछा।

मठाधीश ने हां म सर हलाया और अपनी कमर बड़ी से आराम कुस पर


टकाकर, एक पल इसके बारे म सोचा।

‘नाइट् स टे लर के पास इतनी संप थी क ये कहा जाता था क उ ह ने पूरा


साय स प खरीद लया था। उनके ह थयार और यु साम ी ब त महंगी थी।
और सफ उनक सेना ही, ब क वयं नाइट् स टे लर को कानून से ऊपर सा बत
कर दया गया था, जैसा क वयं पोप इनोसट II ने आदे श दया था।’

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‘इसका या मतलब है, बाबा? सारे कानून से ऊपर...?’

‘इसका आधारभूत मतलब यह था क टे लर को कसी ानीय कानून का


पालन नह करना था, वो बना रोके या बना कसी के सा ा य म सफर कर
सकते थे, उ ह कोई कर नह दे ना था और वो जसे चाहते मार सकते थे।’

‘तो यह राजा और चच का संग ठत यास था क नाइट् स टे लर को नया के


सबसे ताकतवर ातृसंघ म बदल दया जाए...’ व त
ु ने सोचते ए कहा।

‘ बलकुल। ले कन टे लर का उदय इतना नाटक य नह था, जतना उनका


ददनाक अंत। 1307 ई वी म, 13 अ टू बर, शु वार क सुबह, ांस के राजा
फ लप चतुथ ने सैकड़ टे लर को बंद बनाने, पी ड़त करने और फांसी दे ने का
म दे दया। उन पर झूठे आरोप लगा दए गए, अमानवीय तरीक से उनसे
वीकार करा लया गया और फर बड़ी सहजता से उनक ह या कर द गई। एक
ातृसंघ जो स दय से यूरोप और म य पूव पर राज कर रहा था, उसे कुछ ही
दन म कुचल दया गया।’

‘वाह... यह वा तव म ब त नाटक य रहा होगा! और घनौना भी। यह जानना


दलच है क य आज भी कुछ लोग 13 तारीख के शु वार को अशुभ मानते
ह।’

‘वो कहते ह क राजा फ लप ने नाइट् स टे लर से अ य धक पैसा ले लया था,


इस लए उसने झूठे आरोप लगवाकर टे लर को ख म करवा दया, और इस तरह
वो उस बड़े ऋण से बच गया, जो उस पर इं लड से ए यु के दौरान चढ़ा।
ले कन बात मा इतनी नह थी। एक बार फर से मामला चच से जुड़ा था, और
जो आरोप लगाए गए थे वो पूरी तरह धा मक थे। तो इस बार राजा और पादरी उस
ातृसंघ पर आरोप लगाने के लए संग ठत हो गए, जसने सैकड़ साल तक
ईसाइयत क र ा क ! है, एक समय तक टे लर मू यवान थे। फर नया
के नज रये या गु त सोसाइट क मु य योजना म कुछ बदलाव आया, और
टे लर भार बन गए। इसके पीछे ताकत वही थ । टे लर को बनाने और ख म
करने वाले पद के पीछे छपे वही खलाड़ी थे, और उ ह ने अपना काम पूण हो
जाने के बाद एक ही झटके म उ ह समा त भी कर दया।’

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‘आपको या लगता है, इस नमम संहार के पीछे कारण या हो सकता है,
बाबा?’

‘ व ास से कौन कह सकता है, व ुत? जैसा क मने समझाया, गु त ातृसंघ


क योजना सैकड़ साल तक के व तार म फैली है। नया के एक ह से म आए
छोटे से सामा जक-राजनी तक बदलाव क वजह से उ ह अपनी मु य योजना म
भी बड़े बदलाव करने पड़ते ह, जससे वो अपने कोण पर टके रह सक। या
तुम जानते हो क नाइट् स टे लर को आ मसमपण तक क आ ा नह थी? कोई
केस नह चला। कोई जन सुनवाई नह । जस तेजी से उस सारी घटना को अंजाम
दया गया, वो एक ही सचाई क तरफ इशारा करती है—

क टे लर कुछ ऐसा सच जान गए थे, जसे गु त समाज सामने नह आने दे


सकता था।’

‘तो नाइट् स टे लर के अंत के साथ, गु त ातृसंघ का या आ, बाबा?’

‘ कसी श शाली मथक य दै य क तरह, नया के सबसे श शाली म हला-


पु ष का गु त समाज अपना रंग बदलता रहा। वो समय के साथ अपनी पहचान
बदल लेता। वो धीरे-धीरे, ले कन न त प से, नया के कुछ बड़े उ ोग और
बक सं ान ा पत कर रहे थे। वो नया क अथ व ा को नयं त करने
लगे, जसम सभी ज री चीज शा मल थ —दवाइयां, तेल, शेयर बाजार,
ह थयार, तकनीक और राजनी त।

उनक योजना अब सामने आने लगी थी। दशक दर दशक, सद दर सद वो


ां तय और नाग रक अशां त को हवा दे ते रहे। नया के कुछ बड़े यु म तो
दोन प को गु त ऑडर ने ही पैसे दए थे। मानव जीवन का उनक नजर म
कोई मोल नह है। उ ह लगता है क वो े जा त से ह, जो मानवता पर शासन
करने के लए ही बने ह।’

व ुत ब त यान से सुन रहा था। वो इस रह यमयी और नमम श के बारे म


कहे हर श द, हर त य और हर बारीक को हण कर लेना चाहता था। उसे धीरे-
धीरे इसका अहसास हो रहा था।

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यू व ऑडर को रोका जाना चा हए था।

‘और कन- कन चेहर और पहचान के पीछे ऑडर ने वयं को छपाया था, बाबा?
आपने कहा था क वो हमेशा अपनी पहचान बदलते रहते थे।’

‘हां व ुत। टे लर के बाद ऑडर क सबसे श शाली पहचान इ यु मनाती


थी।’

इ यु मनाती... मने इस बारे म सुना है।

‘और इ यु मनाती अकेले नह थे—और भी ब त से थे। रोजी ु शयन ुप, कल


एंड ब स सोसाइट , मेसंस... ातृसंघ क कुछ मु य पहचान थी।’

ारका शा ी ने आह भरी। वो थके ए लग रहे थे।

‘उन सबके बारे म म तु ह और कसी दन बताऊंगा, व ुत,’ उ ह ने कहा। ‘इसम


ब त ऊजा लगेगी।’

व ुत समझ गया। अपने परदादा पर इतना दबाव डालने के लए उसने वयं को


कारा। उसे याद आया क ारका शा ी अभी गंभीर बीमारी से उठे थे।

‘ बलकुल, बाबा। बस एक अं तम ... फर से,’ उसने जोर दया।

ारका शा ी ने मु कुराकर, सहम त म सर हलाकर व ुत को पूछने क


अनुम त द ।

‘अगर यह ऑडर इतना ताकतवर है जो नया के यु को भा वत कर सके,


अगर ये नया क अथ व ा नयं त कर सकता है, अगर इसके सद य म
े जडट और करोड़प त शा मल ह, तो उ ह हमारे होने या न होने से या फक
पड़ता है? वो मेरे जैसे मह वहीन मनु य को य मारना चाहते ह? अगर वो स दय
से नया को नयं त कर रहे ह और भ व य म शासन करने के लए पूण
अ धकारवाद स ा ा पत करने जा रहे ह, तो फर हम उनके लए कौन ह?’

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‘यह एक नह है, व ुत। इसम ब त से ह। इतने सवाल के व तृत
जवाब दे ने म ब त समय लगेगा। अभी के लए बस इतना जान लो—ये खासतौर
पर तभाशाली और भटके ए बु जी वय के पास इस धरती पर द ता के
भाव को समझने क श है। वो ाचीन रह य के ाता ह और साधारण
मनु य से भ , वो जानते ह क नया पर राज करने वाली एक द ताकत
भ है। जैसा क मने पहले भी कहा, उ ह हमारा भय नह है। वो उस रह य से
डरते ह, जो काले मं दर म छपा है।’

मठाधीश व ुत के चेहरे पर ह क सी खीझ दे ख सकते थे। काले मं दर का रह य


व ुत को नह बताया गया था, और ये उसके साथ अ याय था। ले कन अभी
सही समय नह आया था। इस पल अपने परपोते को शांत करने के लए, ारका
शा ी ने उसे एक और जानकारी दे ने का फैसला कया।

‘ व ुत, एक ाचीन भ व यवाणी तु ह काले मं दर से जोड़ती है। वहां स दय से


जो राज दबा है, वो मानवजा त के लए ब त मू यवान है। उसके बारे म सुना तो
ब त से लोग ने है, ले कन वा तव म उसके होने का कसी को भी भरोसा नह है।
ले कन वो सच है। और ऑडर को यह पता है।

अगर वो तु ह मार दगे, तो वो भ व य बदल सकते ह।’

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हड़ पा, 1700 ईसापूव
मोहन जोदड़ो क अं तम राजकुमारी

वो अपने भ झरोखे पर खड़ी, ं दन करती, भयावह रात को दे ख रही थी।


उसक बड़ी, आकषक आंख उदासी क पीड़ा, ला न और भय से नम थ । जब से
सूय को ता ड़त कया गया था, जब हड़ पा क म संजना के प व र से
कलं कत ई थी, जब एक शूरवीर पु को जहरीले तीर से मार दया गया था—
तब से मानो ांड भी ोध से जल रहा था। पूरी सृ ही मानो रोते ए, आयवत
को अपने कोप का भागी बना रही थी। आसमान दै वीय दै य क तरह दहाड़
मारते ए, पृ वी को नगलने को तैयार था। प ी हड़ पा के आसमान से उड़ गए
थे और कु े पूरी रात भे ड़य क तरह रो रहे थे। न द र हत, भयभीत ब के रोने
और उनके लाचार अ भभावक क ाथना क आवाज येक घर से आ रही थ ।

बा रश क फुहार से उसका चेहरा पूरी तरह तर था। उसके स मोहक लाल ह ठ


और आकषक तीखे नैन-न पर जब भी चमकती बजली क च ध पड़ती, तो वो
कसी सफेद तमा सी जान पड़ती। ले कन उसे ऐसा नह लग रहा था। हर बार

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बजली चमकने पर, वो अपने चेहरे को कसी भयानक डा कनी के समान मान
रही थी। उसक आ म ला न का यह म और कुछ नह अ पतु उसके कए काय
का त बब था।

यही तो म बन गई ं। एक डा कनी।

ट और कांसे के पवत पर असुर के क जे क खबर उसके कान तक प ंच गई


थी। वह जानती थी क भूत जैसे दखने वाले दे वता ने ही वो आ मण कया था।
उसे र -वषा म होने वाली घटना क खबर भी मल गई थी।

मुझे मेरे पाप क सजा मल रही है। मेरे स न प त भी मेरी करनी का प रणाम
भोगगे। हड़ पा के लोग भी मेरे कृ य तले दब जाएंगे। जस सा ा य क मुझे
चाह थी, वो इस बवंडर म बह जाएगा।

म हड़ पा क अं तम दयनीय रानी बनकर रह जाऊंगी।

म ही मोहन जोदड़ो क अं तम राजकुमारी र ंगी।

‘मुझे मत छू ना, मेरे वामी!’ य वदा ने त या द , जब उसके प त पं डत


चं धर ने उसे झरोखे से परे ख चने क को शश क । वो घंट से वहां खड़ी बरसात
म भीग रही थी, बरसात को पूरी तरह नकारते ए। उसके लंब,े रेशमी बाल भीग
चुके थे, जो पीछे उसक कमर से भी नीचे जा रहे थे। उसके हाथ लगातार कांप
रहे थे।

‘अंदर चलो, य वदा। तुम बीमार पड़ जाओगी। वहां कुछ नह है...’ चं धर ने


कहा।

वो जड़ खड़ी थी, मानो उसने चं धर क कही बात सुनी ही नह थी। फर वो धीरे


से उसे दे खने के लए मुड़ी।

‘वो हम मारने आएगा, है न वामी? मने सुना क अब वो एक भूत बन गया है।


ववा वन पुजारी हम दोन को मारने आएगा...’

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अपने भय से लड़ते ए, चं धर ने अपने दांत भ च लए। य वदा सही कह रही
थी।

‘वो नह आएगा, य। उसक एक आंख चली गई है, वो गंभीर प से घायल है


और हमारे घर क सुर ा पांच सौ सै नक कर रहे ह।’

य वदा कु टलता से मु कुराई और फर भयानक प से हंसने लगी। वो


लगातार कई पल तक हंसती रही, मानो कोई आकषक ले कन पागल चुड़ैल हंस
रही हो। उसक हंसी बार-बार कड़कती बजली तले दब कर रह जाती, और
अपना सर पीछे करके हंसते ए वो भयानक नजर आ रही थी।

‘तुम जानते हो पं डत चं धर क हम दोन मारे जाएंग!े तुम जानते हो क ये


सै नक उसका पल भर भी सामना नह कर पाएंगे। हम तो पहले ही मर चुके ह,
चं धर!’ पागलपन क हंसी के बीच वो च लाई।

चं धर जानता था क य वदा गलत नह कह रही थी। उसक सेना का कोई भी


सपाही ववा वन पुजारी को नह रोक सकता था।

सवाय एक के।

वयं चं धर।

जब क वो जानता था क उसक दे वता से कोई तुलना नह थी, तब भी उसे पता


था क वो उसे इतनी दे र तो रोक ही सकता था क अपनी प नी को सुर त जगह
पर प ंचा सके। पूरी नया म उसक य प नी के सवाय अब उसका कोई नह
था।

ले कन पं डत चं धर नह जानता था क ववा वन पुजारी उसके और उसक रानी


के पीछे नह आने वाला था। महान नानागार म यातना के दौरान कहे गए अपने
श द को पूरा करने के लए वो हड़ पा के येक आदमी, औरत, ब ,े पशु, प ी
और क ट के ाण लेने वाला था।

और ये लड़ाई तलवार से नह लड़ी जानी थी।

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बनारस, 2017
‘ जट मृतक को जगा दे गा’

एक दन बाद बलवंत और व ुत ोफेसर पाठ को मनाकर दे व-रा स मठ म


लाने म सफल हो गए। य प शु म ोफेसर ने वरोध कया था, ले कन महान
ारका शा ी से मलने के लभ लोभन ने उसे आने पर मजबूर कर दया।

उसके तर का कोई भी तां क इस अवसर को हाथ से नह जाने दे ने वाला था।


ारका शा ी क उप त म मौजूद होना ही अपने आप म एक साधना थी।
मठाधीश का तेज कसी भी योगी क ऊजा बढ़ाने के लए पया त था, उससे
कसी तां क या नागा साधू या अघोरी तक का आ या मक कमंडल भर सकता
था।

भात पाठ डमा टर के चरण म गर पड़ा। असामा य नेह का दशन करते


ए, मठाधीश ने भी ोफेसर को उठाकर, नेह से बांह म भर लया। व ुत दे ख
सकता था क वो दोन लोग एक- सरे को यार और स मान दे रहे थे। यक नन
ोफेसर का आचरण ऐसा था मानो मं दर म कसी दे वता के सामने भ खड़ा हो।

‘मने उ ह इसके व सलाह द , गु जी,’ बी.एच.यू. के अकाद मक ने कहा।

ारका शा ी ने सहम त म सर हलाया, और नैना को ोफेसर पाठ के लए


चवड़ा-मटर परोसने का संकेत दया।

‘तो तु हारे मत से हम या करना चा हए, ानंद?’ ारका शा ी ने पूछा।

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व ुत, नैना और सोनू ने एक- सरे को दे खा। उनम से कसी को भी समझ नह
आया क मठाधीश ने ोफेसर को ानंद य कहा था। और उससे भी खराब,
ोफेसर को इस नाम से कोई आप नह ई थी और वो ऐसे जवाब दे रहा था
मानो सबकुछ सामा य हो।

‘गु जी, जट को आपसे बेहतर कौन जान सकता है? आप जानते ह क वो


समथ है। और आप ये भी जानते ह क वो हर चीज म समथ है। हालां क, इससे
पहले म क पना भी नह कर सकता था क वो आपक उप त म दे व-रा स
मठ म घुसकर, ऐसा अनु ा नक शर छे दन कर सकता है! यक नन, उसके पीछे
कसी का हाथ है। कोई इतना ताकतवर क मसान-राजा को लगने लगा है क
अब वो आपका भी सामना कर सकता है। यह सामा य नह है, गु जी। यहां कुछ
तो गड़बड़ है!’

व ुत हर श द और हर वा य पर गौर कर रहा था।

गु जी, जट को आपसे बेहतर कौन जान सकता है?

वह या था? बाबा जट को सर से बेहतर य जानगे?

अनु ा नक शर छे दन?

ानंद?

‘उसक कोई तो कमजोरी होगी, पाठ जी,’ बलवंत ने पूछा। ‘सबक कोई न
कोई होती है! आपको बस वो हम बतानी है और बाक काम हम कर लगे। हम उन
पशाच के गढ़ पर हमला कर दगे!’

व ुत ने यान दया क वन ोफेसर, भूतपूव अघोरी तां क, क इस


झड़ी से तनाव म दखाई दे रहा था। उसने बातचीत के मा यम से, इस एक-आंख
वाले आदमी को सहज करने का नणय लया।

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वो अपने परदादा से जुड़ी पहेली के लए भी परेशान था। इस ाचीन आ म के
कोने-कोने से जुड़े हर रह य और राज से पदा उठने म जाने और कतना समय
लगेगा?

‘ पाठ जी, आप ट .के. से अलग य ए?’

ोफेसर के चेहरे पर नफरत दखाई द , ले कन उसने कोई जवाब नह दया। धूप


से भरे उस बरामदे म एक अजीब सी खामोशी थी। डमा टर के आंगन म बैठे
आधे लोग को तो समझ ही नह आया क व ुत या पूछ रहा था। जो आधे
लोग समझ पाए, वो यक न नह कर पा रहे थे क व ुत कैसे उस भयानक
आदमी, जट कपा लक के लए ट .के. जैसे नाम का इ तेमाल कर सकता था।

उनम से कसी को भी व ुत के सीने म जलती बदले के आग का अनुमान नह


था।

सफ ारका शा ी ये बात जानते थे।

और ानंद।

डमा टर क अधूरी इ ा के साथ, ोफेसर के लए भांग ठं डाई तुत क गई,


जससे ोफेसर लाइ ेरी म रखी कताब क तरह सब बता दे ।

दे व-रा स मठ के डमा टर, ारका शा ी आम चलन के व लौ कक


आनंद जैसे चरस, भांग या शराब के त कोई आकषण नह रखते। वो जानते थे
क कसी भी समथ योगी क आ मा ऐसे णभंगुर सार से परे थी। स ा मु न तो
हमेशा एक नयत आनंद म रहता था।

‘आप जानते ह गे क जट क य शाला एक ाचीन क तान पर बनी थी?


यह एक बड़ा सा मशान और क तान था, जो इस ागै तहा सक नगर पर
नयं ण ा पत करने वाली लड़ाइय म बना था। यह अजीब ही बात है क य
ाचीन राजा अजातश ु से लेकर म यकालीन स ाट कुतुब-उद- दन ऐबक
और र जया सु तान तक, सबका बनारस के त एक आकषण था। कुछ इसे

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संर त कर, इसका व तार करना चाहते थे। तो सरे जमीन से इसका
नामो नशान तक मटा दे ना चाहते थे।’

इस शहर के बारे म ऐसा या था?

‘जो कुछ भी हो,’ ोफेसर ने अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘ जट ने इस जगह का


चुनाव इस लए कया क यहां पशाच और डायन का क जा था—वो ो धत
आ माएं जो असमय मृ यु को ा त हो जाती थ या यु के दौरान गहन दद से
मरी ह । वो उ ह बुलाकर, उनके मा यम से पाताल क असी मत काली श को
ा त करता। तो जब आप उसके प रसर पर हमला करने क सोचगे, तो याद
र खए क यह इंसान के बीच होने वाले यु से अ धक होगा।

जट मृतक को जगाएगा!’

व ुत और उसके वफादार अनुयायी शांत थे। एक ही साथ उन लोग ने उस


इंसान को दे खा जो यक नन इस धरती क सभी ताकत से े था। नया का
इकलौता आदमी जो अपनी मदद के लए रा स तक को बुला सकता था।
ऐसा गंभीर योगी जो अं धयारी रात म सैकड़ प व आ मा क फौज खड़ी कर
सकता था।

एकमा परम-तां क, जो महा-तां क जट कपा लक को मटा सकता था।

वो सब बुजुग— ारका शा ी क तरफ मुड़े।

मठाधीश ने अपनी आंख बंद कर रखी थ । वो गहन यान म थे। एक समथ योगी
तुरंत ही गहन यान म जा सकता था। तां क व ा का आधु नक साधक, वयं
व ुत दे ख सकता था क उसके परदादा या करने क को शश कर रहे थे।

वो मन ही मन न और तार क गणना कर रहे थे।

वो अपने आ मण के लए सही समय का चुनाव कर रहे थे।

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हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव
सत पा

‘इस बारे म मने वेद म पढ़ा है, ओ म य— वशेषकर ाचीन शतपथ ा ण म,’
मनु ने कहा।

‘और अभी भी आपको लगता है क लय कोई का प नक अवधारणा है, बताओ


स य त?’ म य ने पूछा।

मनु म य के दए इस नए नाम से थोड़ा परेशान था, जो जाने कहां से उसके मुंह


पर आ गया था।

‘म य, मेरे म , मेरे भाई, मेरे मागदशक... जब से इस अं धयारी रात म नीली


रौशनी चमक रही है, तब से आपने मुझे स य त कहना य शु कर दया?’

म य ने मनु क आंख म गहराई से दे खा।

य क अ भशाप क शु आत हो चुक है। छठे स तऋ ष ने नीली अ न के क


से भ व यवाणी कर द है। व ध का वधान लखा जा चुका है।

‘यह मह वपूण नह है, मनु। या आपको वाकई लगता है क लय मथक है?’

‘ बलकुल नह , म य। शतपथ ा ण जैसा वेद कैसे गलत हो सकता है?’

अपने मनु को दे ख तारा त खड़ी रह गई। उसने अभी भी भारी यु श पहने


ए थे। उसके घाव से अभी भी र वा हत हो रहा था। वो मछली क तरह

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गीली थी, और ठं डी, तूफानी रात म ठठु र रही थी। ले कन उसके ने हमेशा क
तरह चमक रहे थे—मानो आकषक, तराशे ए चेहरे म कोई चमकते ए र न
लगा दए गए ह । यक नन वो रो रही थी, ले कन फूट-फूटकर नह ।

तारा एक मजबूत इंसान थी।

बचपन म मनु और तारा त ध थे। वो एक- सरे के साथ हर चीज के लए


धा करते थे—धनु व ा, घुड़सवारी, वै दक ग णत, म लयु , ंथ... और यहां
तक क उन बाहरी ड़ा के लए भी जो वो पड़ोस के सरे ब के साथ
खेलते थे। तारा हमेशा जीतती थी। सरे आठ अनाथ ब के साथ, उसका भी
चयन वयं संजना ने कया था, और उन सबको शा ी गृह म ही छा ावास क
तरह पाला था। उसका लालन-पालन प रवार क तरह ही कया गया, और उनका
अ ययन और श ण वयं महान ववा वन पुजारी ने कया था। वो सब ज द ही
तभाशाली युवक और युवती बने, और उन सबम दे वता क सखाई तभा
ल त ई।

आपस म लड़ते ब से बढ़कर, जब वो शम ले कशोर बने, तो मनु और तारा ने


एक- सरे को चुन लया। उ ह ने कभी ये कहा नह , ले कन फर भी कभी पल दो
पल के लए उनक नजर मल जात । उ ह ने कभी एक- सरे को छु आ नह था।
ले कन फर भी वो जानते थे। और ववा वन व संजना भी। वो भी उन दो युवा
म एक मधुर सा आकषण महसूस करते थे, और क पना करते थे क एक दन
तारा आकषक हन बनकर, उनके प व गृह म वेश करके, चावल का
पारंप रक बतन गराएगी। मनु क प नी के प म वो उसक साथी और आ मीय
बनेगी।

‘तुमने कर दखाया, मनु...’ उसने अपने जीवन के यार से कहा। ‘तुमने कर


दखाया!’

पहले पहल मनु, धीरे-धीरे उसक ओर बढ़ा... और फर उमंग से दौड़ पड़ा। उसने
भागकर उसे बांह म उठा लया। उसने उसे कसकर गले से लगा लया, और मन
ही मन कसम ली क अब वो उसे वयं से र नह जाने दे गा। कभी भी नह !

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‘मेरी तारा...’ वो इतना ही फुसफुसा पाया।

तारा भी अब अपने आंसू और नह रोक पाई। अपने साथी को जी वत दे ख, उसक


बांह म समां और उसके मुंह से इतने यार से अपना नाम सुनकर, जो उसने पहले
कभी नह सुना था, वो भी वयं को संभाल नह पाई। उसने अपना चेहरा मनु के
सीने म छपा लया और उसके गद बांह लपेटकर, रोने लगी।

और रोने लगी।

तारा एक मजबूत इंसान थी।

ले कन वो थी तो महज उ ीस साल क युवती ही, जसे वही चा हए था, जो


नया के हर इंसान को चा हए। यार।

तारा और मनु एक याह और सुनसान च ान पर खड़े थे, और ऊपर से नदयी


आसमान बरसात पी तलवार चला रहा था। वो बस वहां खड़े थे, एक- सरे क
उप त को महसूस करते ए।

म य के लए यह एक व च य था, जो गुफा क एक दरार से उ ह दे ख रहा


था। वो पहले भी इसका सा ी रहा था, कसी सरे युग म, कसी सरे ह पर,
जो इस सामानांतर ांड का ही मलता आ सा ह था। सारे ांड म मनु
और तारा ह। और सब जगह व णु उ ह दे ख रहे ह।

ांड म ेम सबसे स म और अथक ताकत के प म उप त है। सारे वनाश


और आसपास खड़ी मौत के म य वो खड़े ह। भले ही कतनी नफरत हो, हसा
हो, दे वता का पतन हो या शहर का वनाश हो, ले कन ेम खड़ा है। एक- सरे
के यार म खोए ए।

तब म य को याद आया क कैसे और य सृ ा ने मानवजा त क रचना क थी।


य वो भगवान क े कृ त थे, और य उसे वयं ई र का ही व तार कहा
गया था। वो इस े कृ त पर मु कुराया, जो वयं म ई र क द ता के अंश
संजोए ए थी। इस लए तुम उनसे उनके घर ले सकते हो, उनक जमीन ले सकते
हो, उनके य ले सकते हो, उनका धन, उनका सबकुछ ले सकते हो। ले कन
आप इंसान से उनक एक चीज नह ले सकते।

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आशा।

म य जलती अ न के गद जुट सभा के शीष पर बैठा था। तारा और उनके सरे


बहा र साथी, अब तक खा-पीकर आराम कर चुके थे।

अब समय आ गया था क उ ह आने वाली सचाई से अवगत कराया जाए।

और उस भू मका से जो उ ह नभानी है।

क पूरा भरा आ था। पवत-संर क और उनके नेता, म य के समूह से अनेक


म य- जा त के लोग, सोमद , तारा और उनके यो ा—सभी तुत थे। म य
चाहता था क सभी उप त ह । और तेज वी नीले पु ष क उ मीद के अनुसार
ही, उसक घोषणा क त या व प ब त से अ व ास और भय क आवाज
सुनाई द ।

‘इसे टाला नह जा सकता, सोमद । जैसा क हम जानते ह लय सबकुछ ख म


कर दे गी। अपने मन म कोई संदेह न रखो।’

म य ने सपाट कहा। वह जानता था क यह समय चकनी-चुपड़ी बात करने का


नह था।

सोमद ने खड़े होकर, सभा से शांत होने क वनती क । जब क वो इस म य


नाम के से, अपने जीवन के सबसे अशुभ श द सुन चुका था, ले कन फर
भी महान अ भयंता म य क मछली क खाल के प रधान के नीचे से चमकती
दै द यमान वचा से अपनी नजर नह हटा पा रहा था। सोमद ने नया दे खी
थी। वो हड़ पा, मोहन जोदड़ो और लोथल से लेकर काशी, मैसोपोटा मया और
यहां तक क म के भी े य से मला था और उसने उनके साथ काम
भी कया था। खुश क मती से वो हड़ पा के दे वता का भी नजद क म रहा था।
ले कन फर भी इस रह यमयी के तेज क तुलना ववा वन पुजारी से नह
क जा सकती थी। उसम कुछ तो वशेष था। म य उसके अब तक के दे खे गए
सभी य से े था। नह ... वो तो दे वता से भी महान था!

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‘मेरी बात सु नए, ओ म य, म इस गुफा म मौजूद सभी लोग क तरफ से बोल
रहा ं।’

म य ने सोमद को बोलने के लए े रत करके, न ता से उसक तरफ सर


हलाया।

‘इससे पहले क म कुछ क ं म य, म अपने हाथ जोड़कर, आपके स मुख सर


झुकाता ं। आप कोई साधारण मनु य नह ह। मेरी वृ आंख ये दे ख सकती ह।
और अगर म सही ,ं तो मुझे मादान द जए क म आपसे सवाल पूछ सकूं।’

म य तुरंत ही उस बेहतरीन अ भयंता और यो ा के त शंसा से भर गया, जो


अं तम समय तक ववा वन और संजना के साथ खड़ा था। उसे यक न हो चला
था क उसने सही चयन कया था।

नया का सबसे बड़ा जहाज बनाने म अ भयां तक य और श पीय वशेषता से


अ धक क ज रत पड़ने वाली थी। इसके लए उ च र क भी आव यकता
थी।

इससे पहले क म य कुछ कह पाता, एक और हाथ उठा।

‘मेरा भी एक सवाल है!’ एक नारी वर ने व ास से कहा।

म य ने क म मुड़कर उसे दे खने क को शश क , ले कन वो नह दे ख पाया।

‘कौन बोल रहा है?’ उसने पूछा।

‘म, म तारा,’ उसने धीरे से उठते ए कहा।

म य ने यान दया क वो क म बलकुल पीछे क तरफ बैठ थी, उसके य


अनुयायी... स य त मनु के पास।

‘तारा... कतना सुंदर नाम है,’ म य ने कहा। ‘ये तु हारी तरह ही सुंदर ह, य।’

मनु गव से भर उठा। उसक तारा क शंसा कसी और ने नह , ब क म य ने


क थी!

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‘इस नाम से तो हम इसे घर पर पुकारते ह, म य। इसका वा त वक नाम कुछ
और है,’ कुछ शमाते ए, मनु ने पीछे से ही कहा।

‘सच म?’ म य ने ऐसे पूछा, मानो वा तव म ही वो कुछ नह जानता था। ‘तो


इनका वा त वक नाम या है?’

मनु ने तारा को दे खा। वो चाहता था क तारा वयं अपना नाम म य को बताए।

तारा मनु का संकेत समझ गई। उसक तरफ ह का सा मु कुराकर, वो म य क


तरफ मुड़ी।

‘सत पा।’

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𝐈𝐍𝐃𝐈𝐀𝐍 𝐁𝐄𝐒𝐓 𝐓𝐄𝐋𝐄𝐆𝐑𝐀𝐌 𝐄-𝐁𝐎𝐎𝐊𝐒 𝐂𝐇𝐀𝐍𝐍𝐄𝐋
(𝑪𝒍𝒊𝒄𝒌 𝑯𝒆𝒓𝒆 𝑻𝒐 𝑱𝒐𝒊𝒏)

सा ह य उप यास सं ह
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚𝐧 𝐒𝐭𝐮𝐝𝐲 𝐌𝐚𝐭𝐞𝐫𝐢𝐚𝐥

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐀𝐮𝐝𝐢𝐨 𝐁𝐨𝐨𝐤𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚𝐧 𝐂𝐨𝐦𝐢𝐜𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐆𝐥𝐨𝐛𝐚𝐥 𝐂𝐨𝐦𝐢𝐜𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐆𝐥𝐨𝐛𝐚𝐥 𝐄-𝐁𝐨𝐨𝐤𝐬 𝐌𝐚𝐠𝐚𝐳𝐢𝐧𝐞𝐬

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
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बनारस, 2017
र बीज अनु ान

‘एक रा ता है... एक रा ता जो शायद हमारे प म सा बत हो, गु दे व,’ ोफेसर


पाठ ने कहा।

ये तय हो गया था क बलवंत सश आ मण का नेतृ व करेगा। यक नन ारका


शा ी जी अलौ कक और काली श य का सामना करने के लए जाने वाले थे।

अपने परदादा के आशीवाद और आ ा से, व ुत वयं मसान राजा और उसक


दो पशाच नय से लोहा लेने वाला था। जो दरांती उस दन मठ म आने के समय
उनक कमर से बंधी थी, वो अभी भी व ुत को भयभीत कर रही थी। वो जानता
था क कस ह थयार से बाला का सर कलम कया गया था। श के प म
म हला का स मान करने के बावजूद, व ुत इन ह या रन के साथ कोई नरमी
नह बरतने वाला था।

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वो नारी थ ही नह । वो ऐसी जघ य पा पन थ , जनक नया म कोई जगह नह
थी। व ुत उ ह वैसे ही सजा दे ने वाला था, जैसे वो कसी नमम ह यारे को दे ता।

बुराई और नममता का कोई लग नह होता।

‘वो रा ता या है, पाठ जी?’ सोनू ने जानना चाहा। युवक एकदम से बस जंग
के मैदान म कूद जाना चाहता था। दशा मेध घाट पर मले घाव का वो उनसे
बदला लेना चाहता था। वो उनके गढ़ म वैसे ही घुस जाना चाहता था, जैसे वो
उसके मठ म, उसके घर म घुस आए थे। ले कन इससे भी अ धक, वो अपनी पूरी
जान लगाकर अपने य दे वता, अपने व ुत दादा को बचाना चाहता था!

अब भी, जब वो जट क य शाला के संर क को भेदकर अंदर जाने क


योजना बना रहे थे, वो अपनी तरफ से कम से कम नुकसान को सु न त करना
चाहते थे। वो ोफेसर पाठ , या ानंद पर भरोसा कर रहे थे क वो उ ह कोई
माग सुझाएगा। वो साल तक अंदर का आदमी रहा था।

‘ये सफ अमाव या क रात को ही कया जा सकता है...’ ोफेसर पाठ ने


अचानक उछलते ए कहा।

सरे लोग सुन रहे थे।

इससे पहले क ानंद अपनी बात पूरी कर पाता, ारका शा ी ने असहम त म


अपना सर हलाया।

कोई तो कारण था जस वजह से बुरी ताकत को नशाचर कहा जाता था।

अमाव या क रात ही वो समय था, जब मृतक को परा जत नह कया जा सकता


था।

‘इसका एक कारण है, गु दे व। येक अमाव या को, जट एक वशेष य


करता था, जसम वो इस काम के लए बनाए गए ग े म अ न व लत करता
था। ताजी लाश को इस ग े म लटाकर, मानव और पशु का र चढ़ाया जाता

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था, ाचीन समय क तरह और सरी चीज जैसे कफन, सड़े ए मांस और
केतक के फूल के साथ, एक श शाली तां क का कपाल भी अ पत कया
जाता है। ले कन इससे भी मह वपूण, येक अमाव या को जट उस
आनु ा नक अ न म अपना भी र अ पत करता था...’

व ुत बरामदे म इधर-उधर च कर लगा रहा था। वो अथववेद, ग ड़ पुराण और


साधना और तं के सरे ाचीन ंथ का सम पत छा रहा था। ले कन उसने
कभी उस घनौने अनु ान के बारे म नह सुना था, जसका वणन अभी ोफेसर
पाठ ने कया था।

जट हा सल या करना चाहता था?

वो अपने परदादा क तरफ मुड़ा। वो जानता था क उसके बाबा इस अजीब और


घनौने अनु ान के बारे म जानते ह गे।

‘बाबा, यह आदमी या कर रहा है? मने कभी ऐसी तां क या के बारे म नह


सुना। कृपया हम बताएं...’

‘र बीज अनु ान,’ इससे पहले क व ुत अपनी बात ख म कर पाता, डमा टर


ने उदासी से कहा।

व ुत जानता था क र बीज कौन था। ारका शा ी के कहे अगले श द को


सुनकर वो जड़ रह गया।

‘वो धरती पर रा स क सेना बुलाने क को शश कर रहा है।’

‘र बीज एक श शाली दानव था, जसे मां गा और मां काली ने रा स-राजा


म हषासुर से ए भीषण सं ाम के दौरान मारा था। र बीज म हषासुर का यु
मुख था। र बीज को एक वशेष वरदान मला था क वो धरती पर गरी अपने
र क हर बूंद से, अपने अनेक सम प बना सकता था। जब भी उसके कसी
सम प क ह या होती, और उसका र धरती पर गरता, तो और भी ब त से
र बीज उ प हो जाते। यह अंतहीन लड़ाई थी—और र बीज को परा जत नह

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कया जा सकता था!’ नैना ने सोनू को समझाया, य क वही था, जसे यह
मथक य कहानी नह पता थी।

‘ फर या आ, नैना द ?’ सोनू ने पूछा। ‘जो आपने बताया, उससे तो इस रा स


को मारना असंभव लग रहा है। वा तव म, उसे मारने का कोई भी यास सफ
उसक सं या को और बढ़ा ही दे ता था!’

‘ बलकुल। इसी लए मां गा ने मां काली को बुलाया, जो वयं म भयंकर दे वी ह।


वो र बीज से एक ट म बनाकर लड़े , जहां गा दानव और उसके सम प का
सर कलम करत , वह काली धरती पर गरने से पहले ही सारा र पी जात ।
इसी लए तुमने मां काली को खून से सनी, अपनी जीभ बाहर नकाले दे खा होगा?
धीरे-धीरे सारे सम प को मां गा ने समा त कर दया और अकेला र बीज रह
गया, वयं ही वयं को मारने के लए।’

सोनू हैरानी से सुन रहा था।

‘म हमेशा सोचा करता था क मां काली को अपनी लाल जीभ बाहर नकाले य
दखाया गया है। अब पता चला!’ उसने गव से कहा।

जब तक नैना ने अपना वणन पूरा कया, व ुत खामोश रहा। वो वा तव म च तत


था।

‘बाबा, ये र बीज अनु ान या है? सुनने म कुछ सही नह लग रहा।’

‘र बीज अनु ान एक लभतम साधना है, जसम सफल साधक को काली


ताकत , वशेषकर आ दकालीन रा स क आ मा पर असी मत नयं ण ा त
होता है। सभी ाचीन मु नय , जैसे भृगु, भार ाज, अग य, वासा और यहां तक
क प व शा के रच यता, स य त मनु ने भी स दय पहले इस स को,
सफ एक वजह से, पूरी तरह ठु करा दया था।’

पुरो हत जी, नैना, सोनू, बलवंत, ोफेसर पाठ और व ुत ारका शा ी के


कहे हर श द को ब त यान से सुन रहे थे।

‘ कस कारण से... बाबा?’ नैना ने घबराते ए पूछा।

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ारका शा ी समय बबाद करने के मूड म नह थे।

‘कोई भी तां क, भले ही वो कतना ही समथ य न हो, इस अनु ान से बच


नह पाया है। वो सब न सफ मरे, ब क इतनी भयानक मौत मरे क इस साधना
को हमेशा के लए दफना दया गया।

अगर जट इस तबं धत साधना को करने जा रहा था, तो यक नन वो कुछ ऐसा


जानता है, जो हम नह जानते।’

व तु क रीढ़ म सहरन दौड़ गई। अगर उसके परदादा इस वषय म जानते ही


नह थे, तो वो इसका सामना कैसे करगे? वो इस पर वजय हा सल कैसे करगे?

‘म यहां और अभी र बीज अनु ान के बारे म और कुछ नह बता सकता,


व ुत। बस हम इतना ही जानना है क अगर जट ऐसा करने जा रहा है, तो हम
हर हाल म उसे रोकना होगा। फर भले ही इसके लए हम अमाव या को ही य
न जाना पड़े ।’

जब से व ुत महान मठाधीश से मला था, उसने उ ह एक बार ही यूं घबराते ए


दे खा था। तब जब मठाधीश को व ुत क जेब से, रोमी का दया आ ज पो
लाइटर मला था। वो व ुत को मारने के लए था। और अगर अब बाबा दोबारा
परेशान हो रहे थे, तो यक नन कुछ बुरा होने वाला था।

व ुत एक-दो पल शांत रहा। उसका दमाग फाइटर जेट से भी तेज चल रहा था।
नैना ने यान दया क उसने अपना सर ह का सा द वार से टका लया था;
उसक आंख बंद थ , मु यां भची ई थ और जबड़े स त। वो नह जानती थी
क व ुत के यार म पड़ने से वयं को कैसे रोके। वो जतना ही भ था, उतना
ही आधारभूत भी। नैना ने अपना यान वहां से हटाया।

यह समय उसक नजी आकां ा का नह था।

‘ पाठ जी, आप हम बताने वाले थे न क अमाव या का समय ही हार के लए


य सही है। कृपया इस पर कुछ काश डा लए,’ व ुत ने वापस से मोचा

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संभालते ए पूछा।

‘ य क अनु ान पूण होने के बाद, जट अगले सूय दय तक पूरी तरह थक गया


होगा। हालां क यह अनु ान असी मत श दे ता है, ले कन साधना के बाद कुछ
समय के लए साधक क सारी श ीण हो जाती है। और इतना ही नह , इसके
बाद वो अपने अघोरी साधु को चरस भी साद म दे ता है।’

ोफेसर पाठ ये दे खने के लए का क उसके ोता उसक बात समझ भी पा


रहे ह या नह ।

‘अमाव या क काली रात को, जट कपा लक सबसे कमजोर होगा।’

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हड़ पा, 1700 ईसापूव
वीराने का स ाट

हड़ पा का अं तम दे वता शायद पूरी तरह व त हो गया था। वो एक ही साथ


हंस और रो रहा था। वो जमीन पर अपनी मु पटककर, आसमान क तरफ
च ला रहा था... सब एक ही साथ। मानो उसके अंदर का दे वता और रा स
आपस म भी भड़ गए थे, अं तम संघष के लए।

उसके पु , मनु के जी वत रहने के वषय म क गई, छठे ऋ ष क घोषणा ने अब


ववा वन पुजारी के लए सबकुछ बदल दया था। पछले कुछ र म दन म वो
अपनी द ता भुलाकर ह या कर रहा था, दानव से हाथ मला रहा था, और
भयानक हसा को अंजाम दे रहा था—ये सब उसक मा यता और नेक नयत
के व था। उसने उ े यपूण ढं ग से अपने अंदर के दे वता का गला घ टकर,
पशाच का पोषण कया था। काश तब वो जान पाता क उसका य पु मनु
जी वत था!

काश वो जान पाता!

यहां तक क ई र ने भी मुझसे यह छपाया!

ववा वन पुजारी अब और नह संभाल सकता था। बदले क उसक आग ने


हड़ पा के हजार सपा हय को मार डाला था। उनम से अ धकांश को तो, इस
शा पत नगरी के अ े दन म, वयं दे वता ने श त कया था। ले कन उसके
बचाव क लड़ाई म और पवत पर कए गए अ या शत हमले म, अनेक लोग
मृ यु को ा त ए थे। उसने अपनी य प नी और अपने सुख- ख क साथी,

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संजना को खो दया था। उसके मनोहर, आ ाकारी और वीर पु ने जस दन
पृ वी पर अपनी आंख खोली थ , तभी से ये तय हो गया था क उसका ज म
कसी महान ल य हेतु आ था। ले कन इसके बजाय उसे अपनी मां क मृ यु क
पीड़ा और अपने पता का अपमान सहना पड़ा, और भरी जवानी म जहरीले बाण
से घायल हो, दर-दर भटकने को मजबूर होना पड़ा। अलौ कक नीली अ न उसके
य स तऋ षय म से छह को नगल चुक थी। सारा मां, य सर वती, ान क
नद नमम र -धारा म बदल चुक थी, और वयं सम त मानवजा त को शा त
पीड़ा और तकलीफ का ाप दे चुक थी।

अब तशोध के लए कुछ बचा ही नह था।

लय येक चीज, और येक मनु य को नगलने के लए आने वाली थी...

नीले अंधेरे म, र न-मा पर आ ाचीन गोदना चमका। दे वता ने अपनी भयानक


तलवार नकाल ली थी और अब सुरा और धधकती अ न के म य म खड़ा था।
उसने अपने सम त हाड़-मांस के ढांचे को एक घुटने पर टका लया, जब क सरे
घुटने को उठाकर, अपने दोन हाथ से, अपनी व यात तलवार के ह े को पकड़
लया। उसका सर झुका, उसके आधे मुंडे सर पर अ न त ब बत ई। वो एक
नीले ेत क तरह दखाई पड़ रहा था।

असुर क इस चु नदा टु कड़ी का सेना य अब तक इस एक-तरफा संहार और


ू रता के दं भ म चूर हो चुका था। अपने राजा को स करने के यास म, उसने
दखल दे ने का नणय लया।

ताकत के नशे म अ सर छोटे आदमी बड़ी गल तयां कर बैठते ह।

‘तुमने रा स-राजा सुरा क बात सुनी न, ओ अ ववा व...’

इससे पहले क वो अपनी बात पूरी कर पाता, र न-मा ने उसका सर धड़ से


अलग कर दया। उसका सर रात के अंधेरे म उड़ा और बाक का शरीर घुटन पर
ढह गया, उसक गदन से र वा हत होकर नीली अ न म जा रहा था—मानो
पछतावे क पहली क त चुकाई गई हो।

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यह ब ल चढ़ाने म ववा वन को एक पल से अ धक का समय नह लगा। और यह
तो अनुभवी, उ माद सेना य था! बाक असुर को हो चुका था क अगर
दे वता ने मौत के इस तांडव को आगे बढ़ाने का नणय लया, तो उनका या
अंजाम होगा।

ले कन सुरा वीराने का स ाट बस यूं ही नह बन गया था। उसने बना एक श द


कहे, धीरे से अपनी तलवार नकाली। तुरंत ही पचास और तलवार भी यान से
बाहर आ ग । सुरा क सेना एक आ मघाती द ता आ करती थी। ऐसे अ भयान
म मृ यु को ा त होने पर, उनक भयंकर जा त उ ह शहीद का दजा दान करती
थी। उ ह यह कहकर मूख बनाया जाता था क अपनी जा त के लए जान दे ने
पर उ ह ज त नसीब होगी। उ ह कसी और ने नह , ब क रा स-राजा सुरा ने ही
मूख बनाया था, जसने आयवत के सहासन पर बैठने के र -रं जत सफर म,
उ ह अपना ब लदान दे ने के लए तैयार कया था।

सुरा के नेतृ व म, जुझा यो ा ववा वन पुजारी के समीप आने लगे। दे वता जरा
भी नह हचका, और अपनी उसी मु ा म बैठा रहा। ये वो शांत मु ा थी, जसम
एक त आ अपने शकार पर मौत क भां त झपटने से पहले बैठता है।

जब सुरा वार करने क री तक प ंचा, तो कोई उस पर च लाया।

‘राजन, अब हम क जाना चा हए!’

वो चंड था।

चंड भी कोई सुरा से कम दानवीय नह था। वो कम नदयी नह था और उसने


अपने राजा के साथ, कंधे से कंधा मलाकर, सारे यु लड़े थे। र- र तक श ु
उसके नाम से कांपता था। वो बना कसी झझक या अफसोस के पूरे गांव के
गांव जला दे ता था। वो ष ं रचता और मार डालता। वो वा तव म दल से असुर
था।

ले कन आज कुछ बदल गया था। उसने आज मौन रहकर दे वता क परी ा दे खी


थी। उसने जब मु नय क आंख और तेजी से जीण होती उनक काया दे खी, तो

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उसके दल म क उठ । लपकती नीली अ न ने तो उसे लगभग स मो हत कर
दया था और उसने सारा और छह स तऋ षय का अ भशाप भी सुना था।
कड़कती बजली, काटती हवा, धुआंधार बरसात को वो दे ख सकता था... वो
समझ सकता था क ये सब बेमौसम और अ ाकृ तक थे।

कुछ ऐसा जो कभी सुना नह गया था, कुछ ऐसा जो पूरी तरह से व वंसकारी
था... वा तव म आ रहा था। उन सबके लए।

सुरा एक बार फर, धीरे से चंड को दे खने के लए मुड़ा, उसके ने ोध से दहक


रहे थे।

‘तु हारा दमाग खराब हो गया है, चंड? तुम सुरा क तलवार के ोध को रोकने
क को शश कर रहे हो?!’

‘ मा कर, वामी। ले कन या हमने पया त नह कर लया है? हमने इन छह


मायावी अ-ऋ षय को राख बना दया। ले कन इनम से कोई भी मनु य क तरह
नह जला। और क... क नीली अ न कोई जा का ह सा नह है। हमने वो
आवाज सुन जो व ोटक सूय से भी ती थ । कोई भी काला जा गर या
मायावी ये सब नह कर सकता... ये तो मनु य क क पना से भी परे है!’

‘अपना मुंह बंद रखो, चंड!’ गु से से उबलता आ, सुरा च लाया।

चंड पीछे हटने वाला नह था।

‘चलो, चलते ह, राजन। हमारे पास सम प मी आयवत है। ऐसी जगह पर य


रहना जो शायद मनु य और कृ त के ोध से समा त हो जाने वाली है? च लए,
वापस चलते ह! हम इसक आव यकता नह है! हम प मी ह कुश के
न ववा दत शासक ह...’

‘हम ? हम... न ववा दत शासक ह, चंड?’

‘ मा कर, ओ महान सुरा। आप न ववा दत शासक ह।’

‘पीछे खड़े रहो, चंड, इससे पहले क म तु हारा ही वध कर ं ,’ रा स-राजा ने


कहा।

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ये ंथ म लखा है। जब ई र कसी को न करने क ठान लेता है, तो वो सबसे
पहले उसके नणय लेने क मता छ न लेता है।

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बनारस, 2017
महान ारका शा ी

व ुत ने अपने परदादा को उस कताब म डू बे ए दे खा, जो दे व-रा स मठ के


800 वष पुराने ार से भी अ धक पुरानी जान पड़ रही थी। वो तेजी से प े पलट
रहे थे, एक पाठ से सरे पर जाते ए। अ धकतर कताब सं कृत म लखी थ ,
और कुछ ाचीन म क भाषा, अवधी, लै टन, अं ेजी और हद म।

‘आप या ढूं ढ़ रहे ह, बाबा?’ व ुत ने वन ता से पूछा। ‘ या म आपक मदद


कर सकता ?ं ’

‘म र बीज अनु ान का संदभ तलाश रहा ,ं व ुत। मुझे तो उसका कोई ज


कह दखाई नह पड़ रहा।’

‘ले कन बाबा, आप तो पहले ही उसके बारे म सब जानते ह, है न?’

मठाधीश ने नजर उठा , पढ़ने के भारी च मे उतारे और वापस से अपनी पीठ


कुस पर टका ली।

‘नह , म नह जानता, व ुत। एक बार जब अनु ान को तबं धत कर दया गया,


तो उससे जुड़े हर पाठ को सावधानी से हटा दया गया। इसके बारे म मुझे और
सरे लोग को जो जानकारी है, वो मौ खक प से ा त है।’

‘ले कन आप इसके बारे म या पढ़ना चाहते ह, बाबा?’

ारका शा ी ने गहरी सांस ली।

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‘कुछ वशेष नह । बस इस ाचीन, यागे गए अनु ान के बारे म पूण जानकारी के
बना, म अमाव या को जाने के प म नह ं। यक नन अगर ानंद इसक
सलाह दे रहा है, तो वो सही कह रहा होगा। उसे ाचीन ंथ के साथ ही काले
व ान का भी अ ा ान है।’

इससे व ुत को वचार आया।

‘बाबा, य न हम ोफेसर पाठ से ही अपने साथ मसान-राजा क गुफा म


चलने क वनती कर? उनका ान और अंदर क खबर, हमारे काम आएगी।’

डमा टर ने सहम त म सर हलाया, इस सलाह के बारे म सोचते ए उनक


आंख सकुड़ ग ।

‘हां, वो काम आ सकता है। ले कन वो हमारे साथ उस जह ुम म य आना


चाहेगा? और जब क वो वयं महा-तां क से कुछ कम नह है, ले कन अब वो
इस सबसे आगे नकल गया है। वैसे भी यह उसक लड़ाई नह है,’ ारका शा ी
ने कहा।

आधे पल क खामोशी के बाद, मठाधीश ने अपनी सकुड़ी ई आंख अचानक


खोल द ।

‘या शायद उसक हो,’ वो बुदबुदाए।

‘आप या बात कर रहे ह, बाबा?’ व ुत ने पूछा।

‘शायद यह उसक लड़ाई हो!’

व ुत वधा म था।

‘आप ऐसा य कह रहे ह, बाबा? ोफेसर पाठ तो जट और उसके साथ


बीते समय तक के बारे म बताने को तैयार नह थे। वो कसी क मत पर हमारे साथ
नह चलगे। मुझे समझ नह आ रहा क आप इसे उनक लड़ाई य कह रहे ह।’

ारका शा ी व ुत क तरफ मुड़े।

‘तु ह या लगता है, ानंद क आंख कैसे गई, व ुत?’

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व ुत जवाब सुनना नह चाहता था।

‘जब ानंद दया और रहम क भीख मांग रहा था, तब बड़ी ही बेरहमी से दरांती
से उसक आंख नकाल ली गई।’

आखरी दे वता ब त परेशान दखाई दे रहा था। वो अपनी आंख बंद कए और


अपना माथा अपने हाथ पर टकाए बैठा था।

पुरो हत जी और ारका शा ी समझ सकते थे क व ुत अपने आसपास क


घटना के साथ सहज नह था। यक नन र और हसा क कभी ख म न होने
वाली सचाई उस पर हावी हो रही थी।

‘ या आ, बेटा?’ पुरो हत जी ने व ुत के मजबूत कंधे पर अपना हाथ रखते ए


पूछा।

व ुत न म अपना सर हलाकर, पुरो हत जी को दे खकर मु कुराया। भले ही वो


कतना ही तनाव म य न हो, व त
ु अपने यजन को, अपनी वजह से परेशान
नह दे ख सकता था।

‘कुछ नह , पुरो हत जी। बस इतने सारे कपट, सा जश और हसा से परेशान था।


बचपन से ही म जानता था क हमारा मठ और हमारा प रवार कोई साधारण नह
था, ले कन मुझे कोई अनुमान नह था क इसके हर मोड़ पर इतना धोखा, ष ं
और र पात था।’

पुरो हत जी सहानुभू त से मु कुराकर बोले, ‘अजुन को महाभारत के यु क


शु आत म ऐसी ही वधा ई थी, व ुत। इसम कुछ गलत नह है।’

व ुत ने मु कुराकर, व ास से पुरो हत जी का हाथ थपथपाया।

ारका शा ी अ भा वत थे। वो अपने परपोते को मजबूत, और आगे आने वाली


लड़ाइय के लए तैयार दे खना चाहते थे। उसे तब तक खड़े रहना था, जब तक क
भ व यवाणी म व णत समय न आ जाए।

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सफ छह दन और रह गए थे। दद, संघष और याग क स दयां बीत गई थ ।
सफ इस दन के इंतजार म।

सब सफ इस सुनहरे दन के लए।

‘इसी वजह से मने तु ह और पुरो हत, दोन को एक साथ बुलाया है, व ुत,’
डमा टर ने कहना शु कया।

‘जी, बाबा...?’ व ुत ने अपने अनुशा सत वर म कहा।

‘मेरा समय आ गया है, व ुत। पुरो हत और म, साल से मेरी कुंडली पढ़ रहे ह
और हम दोन ही इस पर सहमत ह। मेरा अंत नजद क है, पु । ब त नजद क।’

व ुत ने जो अभी सुना, वो उस पर भरोसा नह करना चाहता था। वो पुरो हत जी


को दे खने के लए मुड़ा, इस उ मीद से क यह कोई बड़ा मजाक होगा। ले कन
पुरो हत जी उसे उदास नजर से दे ख रहे थे।

‘ले कन बाबा, आप ऐसा य कह रहे ह? आप इतनी तेजी से व हो रहे ह।


आप एकदम -पु ह। मने आपको जट के आने वाले दन दे खा था। आप
एक यो ा क तरह खड़े थे! आपको अचानक कैसे कुछ हो सकता है? म आपके
पास ,ं बाबा। म आपके और मृ यु के बीच म द वार बनकर खड़ा र ंगा। पापा भी
इसी तरह मुझे छोड़कर चले गए! अब आप मुझे ऐसे छोड़कर नह जा सकते,
बाबा...’ व ुत कसी ब े क तरह सुबकने को तैयार था। बताए गए सच से मुंह
मोड़ने के लए, वो बार-बार अपना सर हला रहा था।

महान मठाधीश के ने से अ ु बह आए। वो थोड़ा यास करके अपनी कुस से


उठे , और कुछ कदम चलकर वहां प ंचे, जहां व ुत बैठा था। बुजुग ने अपने
ती त वंशज को उसके कंधे पकड़कर उठाया, और मजबूती से पकड़ा।

व ुत फूट-फूटकर रोने लगा। उसने लगभग अपनी पूरी जदगी अकेले बतायी
थी, बना प रवार के यार और साथ के। वो बाला जैसे म के भरोसे रहा था।
भाई जैसा वो यार भी उससे उसी नय त के हाथ छ न लया गया, जो उसके

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नसीब म बद थी। पछले कुछ दन म, उसे अपने बाबा से वो सारा यार मला
था, जसक उसने इ ा क थी। वो भी अब खोने वाला था!

‘बाबा, आप समथ ह। आप कुछ भी कर सकते ह। आप ान और समय क ग त


नयं त कर सकते ह। वयं को बचा ल, बाबा। आप एक दे वता ह!’

ारका शा ी ने अपने वशाल हाथ म व ुत का चेहरा यूं लया, जैसे नेही


अ भभावक अपने छोटे ब को लेते ह।

‘म दे वता नह ,ं व ुत। जब क स दय तक लोग मानते रहे ह क हमारे वंश का


हर पु और पु ी दे वता या दे वी थी, ले कन सच कुछ और है। हमारे प रवार म,
इतनी पी ढ़य म सफ दो वा त वक दे वता ए ह। एक था महान ववा वन
पुजारी, जसक कहानी मने तु ह सुनाई थी।’

मठाधीश ने एक पल ककर, व त ु के ई रीय चेहरे को दे खा। उनक आंख नम


थ और उनम वो तड़प थी, जो ज द ही अपने य से जुदा होने पर होती है।

‘और सरे तुम हो, व ुत। तुम ही आखरी दे वता हो।

तु हारे बाद, ये नया कसी और दे वता को फर नह दे ख पाएगी।’

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हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव
‘तुमने परी ा उ ीण क ’

सभा ने चचा से कुछ वराम लया, येक समूह को म य क कही बात का अथ


समझना था।

मनु और तारा, या स य त मनु और सत पा, पवत-संर क क दयामयी दे वी के


साथ चल रहे थे।

‘दे वी, म य कौन ह? और आप उ ह कैसे जानती ह?’ मनु ने पूछा।

वो मु कुराई ले कन मनु क तरफ नह मुड़ी। मानो वो मनु से इसी सवाल क


उ मीद कर रही थी, और इसे सुनकर वो हैरान नह थी।

‘तुम जानना या चाहते हो, मनु?’ उसने चलते-चलते ही पूछा।

‘वो असाधारण ह, दे वी। उनक उप त मा से ही तन-मन को एक राहत


मलती है। एक तरफ तो वो शूरवीर यो ा तीत होते ह। और सरी तरफ वो एक
वन पता लगते ह। उनका एक रौब है, जब क सरी तरफ वो उतने ही नेही भी
ह। जब वो मुझे दे खते ह, तो ऐसा लगता है मानो वो मेरी आ मा के ही साथ, इस
ज म और पूव ज म को भी दे ख रहे ह । वा तव म... मुझे संदेह होता है क वो
भु व णु के ही अवतार ह।’

‘ये ज द ही भा वत हो जाते ह,’ तारा ने तुरंत कहा। वो अपने मनु को जानती


थी, और जानती थी क उसका यो ा-राजकुमार कतना भावुक और सीधा था।

वन म हला तारा के कहे श द पर हंस द । वो मनु और तारा के बीच ेम और


दो ती के संबंध से आनं दत थी।

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‘तुमने उ ह बस एक ही बार दे खा है... वो भी भीड़ म, र से, तारा,’ उसने कहा।
‘उनसे आमने-सामने मलने क ती ा करो। वैसे भी यह म य का ही नणय
होता है क कसे वो द लग और कसे साधारण। वो वयं उसके लए समय
चुनते ह। उनक योजना के अनुकूल हो, तो वो आपको वयं से घृणा करने के लए
ववश कर सकते ह। कोई नह जान सकता क उनके मन म या चल रहा है। म
तु ह बस इतना ही बता सकती ं क वो इतने ही समीप ह, जतने धरती पर चलते
ई र।’

मनु उसक बात से हैरान नह था। उसने यह सब वयं अनुभव कया था। तारा
थोड़ी शंकालु थी, उसे यह सब अ तशयो पूण वणन लग रहा था।

‘कृपया मुझे इस वषय म बताइए,’ मनु ने पूछा, ‘अगर वो वही ह, जो आपने


बताया, और मुझे भी ऐसा ही लगता है, तो वो उस दन मुझे मू त य मले थे,
पानी क कुछ बूंद के लए तड़पते? उनके जैसा समथ व ऐसे बेबस हालात
म कैसे हो सकता था?’

‘उस दन वो नह मर रहे थे, मनु। तुम मर रहे थे! वो समयातीत ह, जीवन और


मृ यु क प र ध से परे। वो उनक तु हारे लए अं तम परी ा थी। वो दे खना चाहते
थे क या वा तव म धरती को बचाने के लए उ ह ने सही मनु य का चुनाव कया
था। अपनी जगह पर कसी सरे मनु य के ाण बचाकर, तुमने उ ह सही सा बत
कर दया। तुमने परी ा उ ीण क ।’

‘ले कन फर भी, दे वी, आपका उनसे प रचय कैसे आ? वो यहां नह रहते ह,


ले कन फर भी येक जगह पर उनका शासन दखाई दे ता है। वो राजा नह ह,
ले कन फर भी उनम अनेक स ाट का तेज है। जब वो हंसते ह, तो पूरा ांड
उनके साथ हंसता है। जब वो नाराज होते ह, तो आसमान भी उदास होकर, उनके
साथ रोता है। वो कौन ह?’

दे वी ने कुछ पल सोचा और फर बोली।

‘कोई नह जानता, मनु, क म य कहां से आते ह। कोई नह जानता क उनके


अनुयायी कौन ह। कहा जाता है क उनके पास हजार अनुयायी ह, सब जल के

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नवासी ह। कुछ कहते ह क मथक य समु -दै य, लोक-नास, जो सैकड़
जहाज से भी बड़ा अजगर है, वो भी उनका पालतू सेवक है। म य ने एक बार
इस पवत क वशाल सेना से र ा क थी। जब अनेक घुड़सवार उनक तरफ
लपके, तो वे यु े म अकेले खड़े रहे थे, उनके लंबे बाल और मछली सा
प रधान हवा म फड़फड़ा रहे थे। म य ने बस मु कुराकर अपने दोन हाथ हवा म
उठा दए थे। मने यह अपनी आंख से दे खा था। सैकड़ घोड़े हन हना कर क
गए, अपने सवार को हवा म फकते ए, जो रण े म जमीन पर जाकर गरे।
वापस लौटने से पहले, घोड़ ने अपना सर म य के सामने झुका दया।’

मनु और तारा वहां त और हैरान खड़े थे। दयालु दे वी कभी अस य नह


बोलेगी। उसके जैसे आ या मक व पर कसी जा गर का कोई जा काम
नह कर सकता था।

‘मुझे यह बताने के लए आपका हा दक आभार दे वी। मुझे म य के प म और


कुछ नह जानना है। मुझे लगता है क म उ ह जानता ,ं ’ मनु ने म म मु कान
से कहा।

दे वी ने सहम त म सर हला दया। वो भी ये जानती थी।

‘बस अं तम , दे वी... म य म से हमेशा समु क गंध य आती है? यहां तो


मील तक कोई समु नह है।’

‘तुम समझ नह पाए, मनु...’ उसने जवाब दया।

‘म य ही समु ह।’

उनक आवाज तेज हो रही थ ।

तारा समझ नह पा रही थी क सबकुछ हो जाने के बाद भी, अव यंभावी लय


क चेतावनी के बावजूद भी मनु वापस हड़ पा जाकर अपना बदला लेना चाहता
था।

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म य के समझाने के बाद, सोमद ने तारा को सलाह द थी क वो मनु को न
बताए क दे वता जी वत था, और क अब या बन गया था। तारा ने इसका कड़ा
वरोध कया था। वो अपने मनु से कुछ नह छपाने वाली थी—उसके पता के
जी वत होने क खबर तो बलकुल भी नह । वो बस मनु क सुर ा क वजह से
बेमन से इस बात के लए सहमत हो पाई थी। वो जानती थी क अगर मनु को
ववा वन पुजारी के जी वत होने क खबर मलेगी, तो वो तुरंत अपने पता क
सहायता के लए दौड़ पड़े गा— जनक अब कोई सहायता नह क जा सकती
थी। वो बस इतना जानती थी क हड़ पा का सूय हमेशा के लए मृत हो चुका था।
जो बचा था वो का तल रा स था... और अगर मनु भी अपने सीने म बदले क
आग लए घूमेगा, तो वो भी वही बन जाएगा। मनु से यह सच छपाने के लए
उसने वयं को ता ड़त कया, ले कन उसके पास कोई वक प नह था।

‘तु ह या तो एक या सरी बात पर भरोसा करना ही होगा, मनु,’ तारा ने तनावपूण


आवाज म कहा। वो उसे काफ दे र से समझाने क को शश कर रही थी। ‘तुम
मानते हो क लय आने वाली है। तो ऐसे म य वदा, चं धर, गुन, शा, अप, और
वो सब लोग ज ह ने दे वता पर प र फके, और वो नीच ज ह ने उन पर थूका...
वो सब तो वैसे भी मारे जाएंगे न! और अगर तु ह नह लगता क लय आने वाली
है, तो हम इस काले पवत पर या कर रहे ह?’

उसक बात म तक था। उसक बात म हमेशा तक होता था।

‘अगर लय ने उन लोग को मारा, ज ह ने मेरे प रवार को न कया, मेरी मां को


मारा और मेरे पता से सबकुछ छ न लया, तो मनु पुजारी के अ त व पर ही
श मदगी होगी! इस नया से जाते समय य वदा, चं धर और उन काले
जा गर को मेरी तलवार के वार से मली पीड़ा को झेलना होगा,’ मनु ने ोध से
कहा।

‘और आपको लगता है क इससे आपक सौ य मां, संजना को आप पर गव


होगा, स य त?’

मनु और तारा ने यान दया क म य उनक तरफ ही आ रहा था। नीले मछली
पी आदमी ने तारा को दे खा और मु कुराया। तारा क सांस वह क गई, जहां
थी और वो वैसे ही स मोहन म खड़ी रही, जैसे म य को पहली बार दे खकर मनु
को आ था। उसे वैसी शां त का अनुभव आ जो द मं दर के ांगन म होता

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है। वैसी शां त जो बचपन म उसने संजना क बांह म महसूस क थी। वो खुशी
जो मनु के लए उसका यार उसे दे ता था। उसे महसूस आ क उसने पहले भी
कह म य को दे खा था। या शायद हर जगह।

मनु सही कह रहा था... वो भगवान व णु था।

मनु ने सर झुकाकर और हाथ जोड़कर स मान से म य का अ भवादन कया, जो


अब उसके लए सबकुछ था। उसने म य के पूछे सवाल को अनसुना कया।

‘मेरे का जवाब दो, मनु। तो या आपको लगता है क आपके अपने सगे मामा
और तीन अंधे आद मय के साथ, एक म हला को मारने से, आपके अ भभावक
और पूवज आप पर और आपक बहा री पर ब त गव करगे?’

‘वो सब म नह जानता, म य। उ ह मेरे पता और माता को सताने क सजा


भुगतनी ही होगी। म आपसे वनती करता ,ं कृपया मुझे मत रो कएगा।’

म य ने आह भरी और मनु के पास गया। तारा अभी भी म य क द ता म बुत


बनी खड़ी थी।

‘मैसोपोटा मयाई जा गर क चता मत करो, मनु। मोहन जोदड़ो क राजकुमारी


ने पहले ही उ ह मृत-कारावास म सड़कर मरने के लए छोड़ दया है। वो लय से
नह बच पाएंगे। ले कन उनके बुरे नाम याद रखे जाएंगे। म तु ह भरोसा दलाता ं
क उन पा पय क काली आ मा को कभी शां त नह मलेगी और उनके काले
कारनाम के लए, बाढ़ से बचने वाले लोग और उनक पी ढ़यां हमेशा उ ह याद
रखगी। अप-शा-गुन से लोग स दय तक नफरत करगे।’

मनु सहमत नह लग रहा था।

‘मुझे बताएं स य त, आपक मां आपसे या करने को कहत ... जदगी बचाने को
या जदगी लेने को?’ म य ने पूछा।

‘ बलकुल जदगी बचाने के लए, म य, ले कन बात यह नह है...’

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‘और अगर आपके तशोध या सृ को बचाने के आपके दा य व के बीच
होता... तो वो या सुझाव दे त ?’

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बनारस, 2017
‘वो उनके अनुयायी थे’

लगभग एक घंटा बीत गया था और अभी तक भी व ुत वयं को संभाल नह


पाया था। उसने जीवन-र क य से लेकर डमा टर को लॉस एंजे स के े
अ ताल म भत कराने तक, सब चीज का सुझाव दया था। वो कसी भी क मत
पर अपने प रवार के अं तम सद य को बचा लेना चाहता था।

ले कन जैसे समय गुजरा और व ुत ने वयं अपने बाबा का भ व य पढ़ा, तो


उसने भी वा त वकता को वीकार कर लया। उसके परदादा क कुंडली म गंभीर
मारकेश प से अपनी काली परछा दखा रहा था।

अगर यो तष पर भरोसा कया जाए, तो कोई भी ारका शा ी को बचा नह


सकता था।

कुंडली पढ़ने म व ुत क यो यता उससे कह बेहतर थी, जतना क मठाधीश


और ारका शा ी उ मीद कर रहे थे। दे वता का यान कसी ऐसी चीज पर भी
गया था, जसने उसके दल क धड़कन रोक द थी।

ारका शा ी क कुंडली सफ यही नह बता रही थी क उनका अंत नजद क


था।

ब क वो उनके लए तकलीफदे ह और ू रतापूण मौत क भी भ व यवाणी कर


रही थी।

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‘मुझे तु ह और भी कुछ बताना है। मेरी स यां भी शायद उस समय से
भावहीन हो गई थ , जब मने प म के तां क से यु कया था। रा स ने
न त प से मेरी सहायता क थी, य क इसका वचन उसने मुझे आधी सद
पहले ही दया था, ले कन उस अ या मक प र म ने अपना भाव डाला। म
बाला क काली आ मा को नह दे ख सका, जब क वो मेरे सामने ही था। मेरी
काल-श तब कहां चली गई थी, जब जट क पशाचनी ने हमारा यान
भटकाकर, बाला का वध कर दया? और अब, जब शायद हम मेरे जीवन का
आखरी यु लड़ने जा रहे ह, तो म भ व य दे ख ही नह पा रहा ं। म र बीज
अनु ान क व तृत जानकारी याद ही नह कर पा रहा ं। म नह जानता क म
तु हारे कसी काम आ भी पाऊंगा या नह , व ुत।’

व ुत उठा, और ारका शा ी क कुस तक चलकर गया और वह जमीन पर


बैठ गया। उसने मठाधीश का एक पैर अपने हाथ म लया और उसे नरमाई से
दबाने लगा—वो अपने बाबा के त अपने असीम ेम और समपण को दशा रहा
था।

‘आपके होने भर से ही वो बुरी श यां सहम जाएंगी, बाबा। आपका तेज ही


उनक काली ताकत को काटकर आधा कर दे गा। हम नह जानते क जट हम
पर या वार करने वाला है। वो कुछ भी हो सकता है। अगर कोई हम उसके
अनपे त हमले से बचा सकता है, तो वो आप हो बाबा। ले कन यह कहकर भी,
म आपसे वनती क ं गा क आप हमारे साथ मत आइएगा, बाबा। आप कृपया
यह कएगा।’

ऐसा कभी नह होने वाला था। ारका शा ी अपने य व ुत को कभी अकेले


नह जाने दे सकते थे।

फर भले ही इसका मतलब उनक शानदार, ले कन ू र कुंडली म लखे अं तम


अ याय का पूण होना ही य न हो।

‘ बलकुल नह , नैना!’ व ुत च लाया, जब वो नैना को अमाव या क रात को


होने वाले खतरे के बारे म समझाने क को शश कर रहा था।

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‘दे खो, नैना, इस बार हम सीधे उस रा स क गुफा पर हमला करने जा रहे ह।
उनक सं या अ धक होगी, और इस बार यह जंग सफ हाथ या ह थयार से नह
लड़ी जाएगी। ये ऐसी लड़ाई होगी, जो न तो तुमने, न मने ही कभी पहले लड़ी है।’

‘तो फर तुम य जा रहे हो?’ उसने पूछा।

‘ य क म एक तां क ,ं नैना। मेरे इन आधु नक कपड़ और महंगी घड़ी के


नीचे, म एक समथ साधक ही तो ं। मने बीस साल श ण लया है... पहले
पापा ने मुझे सखाया, फर हमालय के आ म के मेरे सं यासी म , गोपाल ने।
भले ही म जट को परा जत न कर पाऊं, ले कन म कम से कम कुछ समय तक
उसके वार को सह तो पाऊंगा।’

नैना ने न म सर हलाया। वो सुनने नह वाली थी।

‘तुम मुझसे मजाक कर रहे हो, व ुत!’ उसने ख ता से जवाब दया। ‘यह मठ
मेरा घर है! म कसी भी ऐसी लड़ाई से बाहर नह रही ,ं जो मेरे प रवार, मेरे
बाबा... और तुमसे जुड़ी हो। तुम से... व ुत।’

व ुत सीधे उसक बड़ी-बड़ी और बोलती सी आंख म दे ख रहा था।

‘नैना, तुम नह ...’ उसने बोलना शु कया।

‘तुम अब भी नह समझ पा रहे, है न?’ नैना ने बीच म टोका।

वो व ुत क आंख म ढूं ढ़ रही थी... जवाब, पहचान, कोई ऐसी बात जो वो


दे खना चाहती थी।

‘म तुमसे यार करती ,ं ’ उसने नरमाई से कहा।

व ुत सु हो गया। वो नह जानता था क उस पर कस चीज का असर आ


था। वो कभी इतनी कोमल, जुनूनी, अवणनीय मनोहर नह लगी थी।

‘ य...?’ वो इतना ही कह पाया।

‘हां, हां, हजार बार हां... म तुमसे यार करती ं व ुत,’ उसने फर से कहा,
मानो वो उससे अपने दल क कहानी सुनने के लए वनती कर रही हो। मानो वो

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उससे वो कहलवाना चाहती थी, जो वो पछले दो दशक से सुनना चाह रही थी।

उनके बीच एक खामोशी भरा पल गुजरा—वो पल, जसम एक लड़का और एक


लड़क एक सरे क उप त को इतनी सघनता से अनुभव करते ह क कोई
उसे संभव न समझ सके। एक जो यार म डू बा आ और बेबस हो। और सरा,
जो कसी भी तरह सीमा से पार न जाने के लए ढ़ हो।

वो नह कह सकता था क वो भी उसे यार करता था। ले कन वो उसका दल भी


नह तोड़ सकता था। इतना सबकुछ हो जाने के बाद तो बलकुल नह । वो कौन
थी यह जानने के बाद तो बलकुल नह ।

पल भर म, व ुत के हाथ नैना क छरहरी कमर को पकड़कर अपनी तरफ ख च


रहे थे। जैसे ही उनके बदन करीब आए और नैना को अहसास आ क या होने
जा रहा था, उसने अपनी आंख बंद करके, वयं को दे वता को सम पत कर दया।

व ुत ने अपने ह ठ उसके ह ठ से सटाए, ज ह नैना ने ब त यार से अपनाया।


और पल भर म ही वो दोन एक लंबे और जुनूनी चुंबन म खो गए।

जब वो मठ के भोज-क से बाहर आए, तो व ुत को एक पल पुरो हत जी से


अकेले बात करने का मौका मला। वो अभी भी हैरान था क अभी कुछ घंटे पहले
ही उसके और नैना के बीच या हो गया था।

म कभी उस चुंबन को नह भूल पाऊंगा। कभी नह ।

‘पुरो हत जी, मुझे एक बात समझ नह आई। जब जट और बाबा बात कर रहे


थे, ऐसा लग रहा था क वो एक- सरे को पहले से जानते थे। ऐसा ही ोफेसर
पाठ के साथ भी लगा, जसे बाबा ानंद कहकर पुकार रहे थे। ये सब या
है?’

‘तुम अभी तक नह समझ पाए, व ुत?’ पुरो हत जी ने अं तम दे वता के से


कुछ हैरान होकर पूछा।

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व ुत ने ह के से कंधे उचकाकर, भावहीन त या द ।

‘नादान ब े, जट और ानंद, दोन महान ारका शा ी के अनुयायी थे। वो


मठ म ही रहते थे, और यह उ ह ने श ण लया था। और कैसे उसक
पशाचनी को आ म क कोठरी का रा ता पता था?

इस नया म कोई भी उन तां क ताकत को, जो उन दोन के पास ह, परम


तां क के मागदशन के बना ा त नह कर सकता।’

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हड़ पा, 1700 ईसापूव
अं तम स तऋ ष

ववा वन पुजारी ने पहले असुर को, र न-मा से उसके उदर से लेकर सीने तक
तरछा चीर दया। फर बजली क सी तेजी से वो मुड़ा और सरे असुर का सर
धड़ से अलग कर दया, जब क तीसरे के सीने म पैर से जोरदार हार करते ए,
उसे कई फुट र पथरीली जमीन पर फक दया।

ये सपाही दे वता के रणकौशल के स मुख कुछ नह थे। उनम से कोई भी उसका


मुकाबला नह कर सकता था।

ले कन वो पचास थे, और उनके साथ उनका श शाली यो ा-राजा सुरा भी था।

अगले कुछ मनट और चलने वाली लड़ाई म, दे वता ने वयं पर हमला करते दस
और सै नक को मौत के घाट उतार दया, ले कन यु म दे वता भी उनके वार से
घायल हो रहा था। पहले से ही घायल और खाल उतरे शरीर के साथ, दे वता और
घाव सहन नह कर सकता था।

और फर सुरा ने अपने े यो ा म से सात के नाम पुकारकर, वयं भी अपनी


वशाल तलवार नकाल ली।

सुरा कोई सामा य अ रोही नह था। अतीत म दे वता के हाथ परा जत हो चुका
था, ले कन वो आपस म ए संघष क बात थी। न ही उस समय दे वता शारी रक
प से इतना घायल था। ये दोन बात ववा वन पुजारी के व जा रही थ और
उसे हर दशा से वयं पर ए तलवार और भाल के वार को झेलना था।

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दे वता अचानक अपने आसपास मौजूद क ठनाइय के घेरे को तोड़ते ए पास क
च ान क तरफ दौड़ा। एक बेहतरीन और कुशल चाल के साथ, उसने एक पैर से
बड़े से प र पर छलांग लगाई, वहां से मुड़ा और च ान का उपयोग वयं को
उछालने के लए करते ए, उसने आकाशीय वार कया। वो छलांग काम आई
और र न-मा ने एक और असुर का सर फाड़ दया, जो दद से च लाता आ
तुरंत मृ यु को ा त हो गया।

ले कन दे वता के पास समय कम था। सुरा अब उस पर अपनी भारी तलवार से


बार-बार, पागल क तरह, जंगली पशु के समान गुराते ए वार कर रहा था।

जब दे वता सुरा के घातक वार और सरी ब त सी तलवार और भाल के वार से


बचने क को शश कर रहा था, तो उसने एक तेज, लंबी तलवार को अपनी तरफ
आते दे खा। उसके पास उस तलवार क न क पकड़ने के अलावा कोई वक प
नह था, नह तो वो उसक पस लय के पार हो चुक होती।

जब दे वता ने उस तेज तलवार को अपने हाथ म पकड़ा, तो उसने उसक हथेली


और उं ग लय को बड़े से घाव के साथ चीर दया। ववा वन पुजारी दद से
च लाया। अपनी शूरवीरता और आसपास पड़े चौदह असुर क लाश के
बावजूद भी, यह साफ हो रहा था क वो जंग दे वता क पकड़ से फसलती जा
रही थी।

फर अचानक, भारी ओलावृ के बीच, ढहते पवत क गजना तले और दे वता व


असुर के म य हो रहे सं ाम से ऊपर, सातव स तऋ ष क कड़क और तेज
आवाज सुनाई द । ऐसी आवाज जसक उ मीद उसके ीण होते शरीर से नह
क जा सकती थी।

सबको भयभीत करते ए, उसने एक बार फर से अपनी आंख खोल , इस बार


आंख से वैसी ही नीली चमक नकल रही थी, जैसी वकराल अ न म थी।

‘र न-मा को नीली अ न म प र कृत कर लाओ, ओ दे वता—और बुराई के इन


अपरा धय का सफाया कर दो।

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इसे उस अ न क भ म तपा लाओ, जो स तऋ षय के प व अवशेष से ध य
ई है—

और फर इस ताकतवर तलवार को इसक अं तम नय त के लए तैयार करो!’

ववा वन पुजारी ने अभी भी अपने र -रं जत बाएं हाथ से उस तलवार क धार


को पकड़ रोक रखा था और दा हने हाथ म वयं अपनी तलवार थामे वो जवाबी
कायवाही कर रहा था, जब उसने अं तम स तऋ ष क घोषणा सुनी। तेज गरजती
और दहाड़ती आवाज के बीच म आए दखल से उसे वो अवसर मल गया था,
जसक उसे आव यकता थी। वो उस अलौ कक अ न से मा बीस फुट क री
पर था।

असुर कसी भी तरह से दे वता को यह छोट सी री पार करने से नह रोक सकते


थे।

वो ऐसा य था, जसे शायद धरती मां भी कभी भुला नह पाएंगी। पृ वी मनु य
और द ता का समागम कैसे भूल सकती थी? नय त को उसके अंजाम तक
प ंचाने म ई रीय सहायता को कोई कैसे भुला सकता था?

जैसे ही दे वता ने अपनी तलवार अ न म घुसाई, तो लपट पहले तो बुझती सी


तीत । अगले ही पल, च काने वाली ती ता के साथ वो नीली लपट आसमान
क ओर लपक ! सुरा और उसके आद मय के ू र दय म, वो य दे खकर भय
का अहसास आ। पहले उ ह ने ठं डी नजर से एक- सरे को दे खा और फर
अपनी आंख और सर उठाकर उन लपट का वकराल आकार दे खा—ऐसा लग
रहा था मानो उन नीली लपट का उ म ल वग ही था।

कोई अलौ कक श बीच म दखल दे रही थी।

कोई था, जो आसमान से इस अ त ाकृ तक घटना म घी डाल रहा था।

ववा वन पुजारी उन लपट के सामने आ दम यो ा क तरह खड़ा था, अपने सर


को पीछे झटका दए ए, पैर को खोले और अपनी ब ल बांह को अ न तंभ म

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घुसाए ए। उसक आंख बंद थ और ह ठ ाथना बुदबुदा रहे थे, श का
आ ान करते ए। तूफानी रात के अंधेरे म, वो वयं अ न क भां त नीला दखाई
पड़ रहा था।

धीरे-धीरे उस अ न तंभ का आकार घटने लगा। पहले तो वो वकराल नीली


अ न बना, और फर सामा य पीली अ न। बा रश और तूफान ज द ही इस
साधारण, नयावी अ न को बुझा दे ने वाले थे।

ले कन कुछ था जो अभी भी नीले काश से द त था।

वो दे वता क तलवार थी।

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बनारस क बा सीमा, 2017
कालच

ानंद भयभीत था।

व ुत और बलवंत के ब त आ ह, मठाधीश ारा दए स त नदश क वजह से


ही ोफेसर पाठ उनके साथ जट क गुफा तक चलने के लए तैयार हो पाया
था। व ुत ने महसूस कया था क अपने सारे वरोध के बावजूद, कह न कह
एक आंख वाले ोफेसर क तशोध क चाह ने उसे आने के लए राजी कया
था। वो मृतक-नाथ से अपने दम पर तशोध नह ले सकता था। ले कन ारका
शा ी, व ुत और बलवंत क सहायता से वो इसे वा तव म बदला चुकाने के
अवसर के प म दे ख रहा था।

दल तैयार था। इसका नेतृ व वयं डमा टर कर रहे थे। इस दल म बलवंत, सोनू,
ानंद और मठ के कुछ चु नदा सौ यो ा थे...

...और व ुत।

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वो गहरे नशे म लग रहे थे। य शाला के बाहर, काली, अमाव या क रात म, पहरे
पर खड़े ए तां क सुर ाक मय को बड़ी सहजता से हटा दया गया। ोफेसर
पाठ सही कह रहा था। वो लोग वा तव म कसी गहरे नशे म लग रहे थे।

जट कपा लक क य शाला बनारस के मु य नगर से लगभग चालीस


कलोमीटर बाहर थी। यह ऐसे असामा य र े म त थी, जसे आमतौर
पर ानीय पु लस अनदे खा कर दे ती थी। इस े से जहां पु लस वाल को कुछ
अ त र आय मल जाती थी, वह वो मसान-राजा के काले काम क वजह से
उसके पास जाने से डरते भी थे। ानीय लोग भी उस े से गुजरने से परहेज
करते थे, य क वो जानते थे क वो म यकालीन मशान घाट आ करता था। वो
मानते थे क वो सम त े और वो रह यमयी गुफा सब भू तया थे।

गांववाल का सोचना गलत नह था।

जट कपा लक क य शाला सैकड़ मीटर तक वृ क मोट प र ध से घरी


थी। रात के अंधेरे म, जब ारका शा ी अपने कमंडल से शु जल उस
य शाला क काली धरती पर छड़कते चल रहे थे, तो व ुत व सरे लोग ने
अजीब-अजीब सी चीख सुन । वो चीख थ तो इंसान क ही। ले कन ऐसा तीत
हो रहा था मान धरती के गभ से आ रही थ ।

सामंती मशान जीवंत होने लगा।

जब वो दबे पांव आगे बढ़ रहे थे, उस काले मठ क ऊंची द वार के समीप, तो


कसी अवणनीय चीज ने उ ह रोक लया। उ ह जोर से रोने क आवाज सुनाई द ,
जो सुनने म तो म हला क कराह और पीड़ा का वर लग रहा था। ले कन
आसपास कोई नह दखाई दया।

सोनू व ुत क तरफ मुड़ा, उसके ने भय से फैल गए थे।

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‘डा कनी,’ व ुत ने शां त से कहा।

जैसे ही उसने ये श द कहे, ारका शा ी ने कई योत वाला अपना भ द प


जला लया—ये वैसा ही था, जैसा गंगा आरती के समय पुजारी लए रखते ह।
उसके कपूर का धुआं ऊपर अंधेरे म जा रहा था। जैसे ही यह प व द पक
व लत आ, रोने ही आवाज फुफकारने, गुराने और चघाड़ने क आवाज म
बदल ग । जैसे ही मठाधीश ने मं ो ार शु कया, हवा से जमीन पर पड़ी सूखी
प यां उड़ने लग और पेड़ हलने लगे—मानो उस ाचीन मशान म रहने वाली
और मसान-राजा क सेवा करने वाली सरी नया क ताकत म कोहराम मच
गया हो।

व ुत सही कह रहा था। अपने थके और कु लाहे ए प म भी, दे व-रा स मठ


के डमा टर अपरा जत थे। केवल यह परम-तां क ही ेत-आ मा क पूरी
फौज को उनके गढ़ म आकर मार भगा सकता था।

अब वो उस बड़े से काले दरवाजे के काफ नजद क थे, जो जट कपा लक क


य शाला का वेश ार था। व ुत अपने बाबा को गहन तनाव म दे ख सकता
था। उस भू तया पनाह क ओर उठता येक कदम ो धत आ मा को अ धक
मजबूत और ारका शा ी को और बल बना रहा था। वृ म अ य छायाएं
घात लगाए बैठ तीत हो रही थ , मानो वे ती ा म ह क जैसे ही मं का तेज
ख म हो, वो आ मण कर द।

‘बाबा या मुझे और ोफेसर पाठ को आपके साथ मं ो ार करना चा हए?


आपके अकेले क अपे ा हम तीन साथ मलकर अ धक ताकतवर हो जाएंग!े ’
व ुत ने अपने परदादा के त चता से पूछा।

ारका शा ी ने मना कर दया और काले दरवाजे पर आ मण का इशारा कया।

व ुत बलवंत क ओर मुड़ा, जसने अपनी दोन तलवार बाहर नकाल ल । यह


मुकाबला तलवार , भाल और मु क से लड़ा जाना था। दोन प गो लय क
आवाज से पु लस का यान आक षत नह करना चाहते थे, जब क वो जानते थे

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क इस सं ाम म काफ र पात होने वाला था। मठ के यो ा अब काली ताकत
से लोहा लेने को तैयार थे।

जैसे ही व ुत य शाला क तरफ बढ़ने वाला था, ारका शा ी उसक तरफ


मुड़े, वो अ य धक बेचैन दखाई पड़ रहे थे।

‘कुछ तो गड़बड़ है, व ुत। पशाच और डायन उतने ही भयावह ह, जतना क


मने उनके अमाव या पर होने क उ मीद क थी। ले कन यहां कुछ और भी है...
कुछ ऐसा जो हमारी क पना से भी अ धक भयानक है। इस रात काम हमारी
योजना के मुता बक नह होने वाले।’

व ुत नह जानता था क या त या दे । इस समय का चुनाव ोफेसर


पाठ ने कया था और अभी यहां से वापस जाने का मतलब होगा, अगली
अमाव या तक इंतजार।

ारका शा ी व ुत क वधा समझ गए।

‘चलो, आगे बढ़ते ह, व त


ु । मृतक तो वैसे भी जाग गए ह और अब वापसी का
समय नह है। बस अपना यान रखना, मेरे ब .े ..’

दे वता को डमा टर क आंख म दद दखाई दया। उनका कहा अं तम वा य एक


क म क वदाई तीत हो रहा था।

अब तक जट के ह रय ने मठ क सेना को दे खकर, खतरे क घंट बजा द


थी।

‘हम चलना होगा... अभी!’ बलवंत व ुत क तरफ च लाया।

व ुत अपने परदादा को छोड़कर नह जाना चाहता था। अभी ब त कुछ अनकहा


रह गया था, ब त सा नेह और स मान अभी साझा नह कया गया था।

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‘म आपके पास वापस आऊंगा, बाबा... म वादा करता !ं म आपके पास वापस
आऊंगा!’

ारका शा ी ने मु कुराकर, हां म सर हलाया। उनके प व ने से अ ु बह


आए। उ ह सरा समय याद आ रहा था, कसी और रण- े का, जहां एक य
पु ने अपनी मां से यही वादा कया था। कम का च कसी के नयं ण म नह
था। समय का प हया हमेशा घूमता रहा, और मनु य क आ मा को उसी घटना
म का सा ी बनाता गया।

कालच अनवरत था।

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हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव
स य त मनु

‘ वकराल लय म सबसे पहले हड़ पा का वनाश होगा,’ म य ने कहा।

वे अब वापस गुफा म थे जहां म य बड़ी सी सभा को संबो धत कर रहा था। हर


कोई मछली- जा त के मुख क भयानक घोषणा सुनकर घबराया आ तीत हो
रहा था।

इस सभा से पहली सामू हक सभा म तारा ने म य से पूछने का नणय लया


था क वो कौन था, और वो कैसे ऐसी व च , प रवतनकारी भ व यवाणी कर
सकता था। ले कन यह तब क बात थी। तारा ने कभी म य जैसा इंसान नह
दे खा था। उसे एक झलक नजद क से दे खने के बाद वो मान गई थी क म य
कोई साधारण मनु य नह था। वह कोई और था।

जैसा क पवत-संर क क नेता ने कहा था क यह म य का ही चुनाव होता है


क आप कब उसे कसी अपने क तरह अपनाओगे, ई र क तरह उसक शंसा
करोगे और अपने बालक के समान नेह दान करोगे।

वो उससे नह पूछने वाली थी। उसके तन, मन और आ मा का हर कण इस


नीले व के त समपण को त पर था। उसका मनु और वो म य का
अनुसरण करने वाले थे।

अंध अनुसरण।

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‘हड़ पा का अ त व अब कुछ घंट से अ धक नह रहेगा। कल, रात के अंधेरे म,
र -धारा सम नगर को नगल जाएगी।’

गुफा म पूरी तरह स ाटा था, जो मशाल क म म काश से का शत थी। ठं डी


और गीली रात के बावजूद, सभी को पसीने आ रहे थे।

हड़ पा म बाढ़ आने का मतलब था सैकड़ , हजार लोग क न त मृ यु।

‘कुछ तो ऐसा होगा, म य, जो हम कर सकते ह गे,’ सोमद ने कहा, उसक


आवाज म ता का लकता थी। ‘हमारे पास कुछ ही समय है। हम हड़ पा जाकर
वहां के नाग रक को चेतावनी दे सकते ह। वो अपने ब को बचा सकते ह,
म य! वो वयं को बचा सकते ह...’

म य ने जवाब नह दया। वह सोमद को दे ख रहा था, मानो उसके मन म उठने


वाले बवंडर क त वीर दे ख पा रहा हो।

‘कुछ तो कहो, ओ महान म य,’ सोमद ने वनती क । वह भी द मछली-


पु ष के स मोहन म था। हालां क उसे मन ही मन यक न था क यह सब म य
के नयं ण म था। क म य अकेले ही नया को आने वाली मौत और तबाही से
बचा सकता था।

अब मनु के उठने और बोलने क बारी थी।

‘आपक अनुम त से, हम कुछ ही घंट म हड़ पा प ंच जाएंगे। वा तव म वह वो


नगर और वो लोग ह, ज ह ने मुझसे और मेरे प रवार से सबकुछ छ न लया। वो
हड़ पा के ही सपाही थे, जनके बाण ने मेरी मां का दय छलनी कर दया था।
वो इसी नगर के नाग रक थे, ज ह ने मेरे पता पर प र बरसाए, उनक पीड़ा पर
हंसे और उनके र रं जत होने पर थूका। और फर भी, म कहता ं क हम जाना
चा हए। हम इस लए जाना चा हए क अगर हम अभी लोग को बचाने म
असफल रहे, तो उन काले दल वाले घृ णत लोग और हमम या अंतर रह
जाएगा। हम जाएंगे य क येक मनु य के ाण उतने ही ब मू य ह, जतने
मेरी माता और पता के ह।’

म य क आंख म इस च र वान युवा के लए शंसा उतर आई। वो अपने चयन


पर संतु था।

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केवल ववा वन और संजना ही ऐसे पु का पालन कर सकते थे, जो सरे
मनु य म े है।

‘ या आप दोन यान से मेरी बात नह सुन रहे ह, स य त, सोमद ...?’ म य ने


दोन आद मय को दे खते ए पूछा, ज ह ने अभी-अभी सर क जान बचाने के
लए अपने ाण दांव पर लगाने का ताव दया था। हड़ पा जाने का मतलब था
क उन दोन को तुरंत ही कैद करके, फांसी पर लटका दया जाएगा, ले कन फर
भी वो सर क जान बचाने के लए त पर थे।

‘उन लोग को बचाने क को शश करने का या मतलब, ज ह नय त ने शु के


लए चुना है? लय येक चीज और येक इंसान को ख म कर दे गी!’ उसने
आगे कहा।

‘जो होना है वो होने द, महान म य, ले कन हम हार नह मान सकते,’ मनु ने


स मान से कहा। ‘अगर लय सबकुछ ख म करने ही आ रही है, तो हम कृ त
क इ ा के व कुछ नह कर सकते। ले कन जब तक मुझम एक भी सांस
बाक है, म यूं ही बैठकर, अपने लोग को मरते ए नह दे ख सकता।’

म य ने सर हलाया, मनु क ढ़ता के स मुख वो बेबस था।

‘तो आपको लगता है क उन लोग के लए अपनी जान जो खम म डालना सही


है, जो कुछ महीन बाद वैसे भी मरने वाले ह?’ उसने पूछा।

‘हां, म य।’ इस बार तारा ने कहा।

‘भले ही इसका मतलब इतने लोग को एक दन क जदगी दे ना हो, तो भी ये


जो खम लेना चा हए,’ तारा ने ढ़ता और नेक से अपनी बात रखी।

म य अब मु कुरा रहा था, और क म मौजूद येक म य क मु कुराहट


से राहत म था। उसक मु कुराहट म सहम त थी।

मनु य क अबाध इ ा।

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तय हो गया था, मनु, सोमद , तारा और पवत-संर क म से कुछ चु नदा तुरंत
हड़ पा के लए ान करने वाले थे। अगर वे बना के बढ़ते रहे, तो वो कुछ ही
घंट म शा पत महानगर के ार तक प ंच जाएंगे। अगर वे तुरंत ही नगर खाली
करवाने म कामयाब रहे, तो कुछ जद गय को बचाया जा सकता था।

कम से कम अभी के लए तो।

ले कन इससे पहले क वो अपने वनाशक सफर पर नकल पाते, म य ने एक


छोटे समूह से मुलाकात क । उसने पवत-संर क क सौ य ने ी, सोमद , तारा,
मनु और अपनी जा त के कुछ सद य को एक छोट गुफा म बुलवाया।

‘आप ब त ज हो, स य त,’ म य ने कहा, जब वो सभा क क ओर बढ़ रहे


थे।

मनु ने ककर म य क बांह पकड़कर, उसे रोकने क को शश क । म य मनु


को दे खने के लए मुड़ा, वो उसके इस आचरण से हैरान था।

‘आप मुझे स य त य पुकारते ह, ओ म य? मेरा नाम मनु है।’

म य हंसा और चलने क को शश करने लगा, ले कन मनु क मजबूत पकड़ ने


उसे वापस ख च लया।

‘जब तक आप मेरे का जवाब नह दगे, आप कह नह जा सकते!’ मनु ने


उ साह से कहा, ले कन फर भी उसने अपने म और मागदशक क बांह नह
छोड़ी। अब उनके बीच इतना मजबूत संबंध हो गया था क मनु ऐसी छू ट ले लेता
था।

‘दे खो, मने कहा ही था क आप कतने ज हो!’ म य ने मनु क तरफ मुड़ते


ए जवाब दया।

उसने अपनी बांह फैला और मनु के कंधे पकड़े ।

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‘मुझे बताओ, मनु... स य त का या अथ है?’

मनु को सोचना नह पड़ा।

‘मतलब वो मनु य, जसने स य बोलने क त ा ली हो, म य। जो स य का


संर क हो।’

म य मु कुराया और उसके ने ने शंसा से मनु के चेहरे को दे खा।

‘ बलकुल सही। आप ही हो जो लय के उस पार, अपने साथ स य को लेकर


जाओगे, मनु।

आप ही अकेले स य त ह गे।’

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बनारस क बा सीमा, 2017
सैकड़ हवन कुंड

व ुत क लात उस अघोरी क पसली पर तोप के गोले क तरह पड़ी, जो उस पर


शूल से हमला करने वाला था। आदमी तेज दद से कराह गया। उसक पस लयां
टू ट गई थ ।

दे वता कसी को मा करने क मनो त म नह था, जो व ुत जैसे सुनहरे दल


वाले मनु य के लए सामा य नह था।

अगले दो आदमी भी उतने ही बद क मत नकले। व ुत के मु के ने उनम से एक


के चेहरे को पचका दया। सरा व ुत पर कसाई के चाकू से हार करने चला
था। दे वता ने वार को चकमा दया, एक हाथ से अघोरी क हमले वाली कलाई
पकड़ी और सरे हाथ से उसका गला दबा दया। फर व ुत ने अपना माथा
अघोरी क खोपड़ी म मारा, जो इस नमम वार से कुलबुला के रह गया।

उस कले के काले दरवाजे क राह म बढ़ने पर, व ुत के सामने आने वाले,


जट के प के और भी ब त से आद मय को ऐसी ही क मत से गुजरना पड़ा।
हालां क, उन अघो रय से लड़ते ए अब दे वता को एक बात परेशान कर रही थी।

ये आदमी तो नशे म नह लग रहे, जैसा क आज रात उ ह होना चा हए था।

मसान-राजा क य शाला के आंगन म वेश करते ही व ुत और बलवंत को


अपनी आंख पर भरोसा नह आ। इससे अ धक ण जगह पर वो दोन कभी
पहले नह गए थे या ऐसा भयानक व उ ह ने पहले कभी नह दे खा था। उ ह ने

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एक पल को एक- सरे को दे खा और फर ोफेसर पाठ को, जो एक जी वत
लाश लग रहा था।

आंगन के क म तां क अनु ान के लए सौ से अ धक हवन कुंड बने थे, सभी


के इद गद बैठने के लए सीमट का नचला चबूतरा बना था। कुंड साल के
अनु ान से काले हो गए थे। जट के अघोरी कसी भी समय सौ सं कार कर
सकते थे... एक ही साथ। व ुत तो उस अपरा जत अशारी रक खचाव क सफ
क पना भर कर सकता था, जो वहां होता होगा। उस आंगन के चार कोन पर
काले माबल क वकराल तमाएं लगी थ । व ुत उ ह दे खते ही पहचान गया था
क वो तमाएं या थ । या अ धक मह वपूण, वो बुत कसके थे। पूरे प रसर म
मांस, र के ध बे, पशु के कटे ए अंग, दे सी शराब और ह यां इ या द पड़ी
ई थ । ले कन एक खास चीज क उप त ने उनके अनु ान को अ धक
भयावह बना दया था।

लाश।

कुछ तो अभी भी सफेद कफन और जूट के र सी से बंधी ई थ । कुछ पर मृ यु के


बाद होने वाली अकड़न दखने लगी थी, उनक आंख चढ़ने लगी थ और जबड़े
भच गए थे। ब त से मृत शरीर बड़े -बड़े कुंड म बछे पड़े थे।

मृ यु और मानव अप य क गंध रा स मठ क हवा को बो झल बना रही थी।

लड़ाई जारी थी। दे व-रा स मठ के युवा यो ा-संत अपने दे वता का अनुसरण


करते ए, बड़ी बहा री से जट कपा लक के प के तलवार, मु क और र -
संघष का सामना कर रहे थे।

व ुत के ने उस रा स क तलाश म पूरे प रसर को छान रहे थे, जो दे व-रा स


मठ क प र ध म घुस आया था। वो उस काले जा गर को ढूं ढ़ रहा था, जसने
बाला के वध क पृ भू म तैयार क थी। वो अनु ा नक े म उस रा स को
खोज रहा था जो वै क काले संगठन से हाथ मलाकर, उ ह मठ, उसके घर तक
ले आया था।

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उसक आंख मृतक नाथ— जट कपा लक को तलाश रही थ ।

जब वो अपने ल य क एक झलक दे खने को ाकुल था, तब व ुत ने बलवंत


को काले माबल क तमा का नरी ण करते ए पाया। वह एक ब ल आदमी
क तमा थी, जसके ागै तहा सक अजगर के समान पंख थे। तमा का चेहरा
सुंदर था, ले कन मनोहर नह ।

‘बलवंत दादा, हम जट को खोजना है,’ व ुत ने मठ के यु - मुख को उसके


स मोहन से बाहर नकालते ए कहा।

बलवंत ने वतमान म वापस आने, और यु म अपना मोचा संभालने म एक पल


लया।

जब वो कंधे से कंधा मलाकर, अनु ा नक भू म, वहां के बरामदे और साथ बने


कमर का नरी ण कर रहे थे, तो बलवंत दे वता से पूछे बना नह रह पाया।

‘ये कसक तमाएं ह, व ुत? ये श शाली, ले कन भयावह बुत कस जीव के


ह? अपने ंथ म मने कभी इसके बारे म नह पढ़ा है।’

व ुत खामोश रहा।

आपने इनके बारे म नह सुना है य क ये हमारे ंथ म है ही नह ।

‘मुझे बताइए, व ुत...’ बलवंत ने जोर दया।

व ुत यु - मुख क ओर मुड़ा।

‘म नह जानता क यहां या चल रहा है, बलवंत दादा। म नह जानता क ये लोग


कौन ह और या पाने क को शश कर रहे ह। म हमेशा सोचता था क जट
काशी का तां क है। ले कन ये तमाएं तो कुछ अलग ही कहानी कह रही ह।
इ ह यहां नह होना चा हए था!’

बलवंत अपने दे वता क बात पूरी तरह समझ नह पा रहा था।

‘ये कौन है, व ुत?’ उसने फर से पूछा।

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दे वता ने केवल एक नाम लया। शायद प मी नया का सबसे भयानक नाम।

‘ये वो है, दादा। ये शैतान है।’

बलवंत को कुछ समझ नह आया। उसने बना कुछ सोचे-समझे व ुत क बात


दोहरा द ।

‘यह शैतान है?’

‘हां, दादा,’ व ुत ने जवाब दया।

‘यह लू सफर है!’

आ खरकार, व ुत ने उसे दे खा। वह भयानक और परेशान करने क हद तक


भ लग रहा था।

लोग ऐसे ही उसे मसान-राजा नह पुकारते थे। अपने काले सा ा य म वो स ाट


क तरह खड़ा था, उसके आसपास चेहरे पर राख और ह ठ पर र लगाए उसके
अनुयायी थे।

और फर व ुत ने उ ह दे खा।

दो पशा चनी। उनक नजर दे वता पर टक थ । वो उसी तरह भारी सांस ले रही
थ , जैसे व ुत ने पहली बार उ ह दे खा था।

ले लो सांस। य क ये आज तु हारी अं तम सांस बनने वाली है।

मसान-राजा ने अपने ने व ुत से मला लए। उसने नडरता से दे वता को अपने


पीछे आने का संकेत दया, और मुड़कर उन सी ढ़य पर गुम हो गया, जो कसी
भू मगत प रसर क तरफ जाती तीत हो रही थ । उसके अनुयायी और दोन
पशा चनी भी उसके साथ चली ग ।

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व ुत ने गु से से अपने दांत भ चे और मसान-राजा क तरफ बढ़ा। तभी ोफेसर
पाठ ने दे वता क बांह पकड़कर, उसे रोक लया।

‘नह व ुत! वो आपको अधोलोक के क म बुला रहा है। वह वह र बीज


अनु ान करता है।

वो आपको ागै तहा सक रसातल म आमं त कर रहा है।

वो आपको पाताल म बुला रहा है।’

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हड़ पा, 1700 ईसापूव
हड़ पा का दे वता

सुरा अपने घुटन के बल बैठा था। उसका सर लटक गया था जब वो अ व ास से


वकराल, चमकती तलवार को दे ख रहा था, जो उसके सीने को भेदते ए पार
नकल गई थी, जो रा स-राजा के र म भीगी ई थी।

पूरी जदगी सुरा ववा वन पुजारी से नफरत करता रहा था। वह स तऋ षय से


नफरत करता था और उसने आयवत का अपमान कया था।

ले कन असुर के स ाट को यह नह पता था क आयवत के म य ही, अं तम


स तऋ ष के संहार के आदे श और ववा वन पुजारी क तलवार से ही उसका अंत
होगा।

कु यात रा स-राजा क नय त उसे ह कुश क कंदरा से बाहर ख च लाई


थी।

मरने के लए।

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ववा वन पुजारी क तलवार क े ता क धरती पर कोई तुलना नह थी। दे वता
को रा स-राजा और उसके सपा हय को मारने म कुछ ही पल लगे। सफ एक
ही असुर अभी तक खड़ा था, वो था चंड, जसने सुरा क ू रता को भी रोकने
क को शश क थी।

अं तम स तऋ ष पथरीली भू म पर लेटा था, तेजी से वयोवृ होते ए, अब वो


अपनी बची-खुची सांस ले रहा था। ववा वन ने स मान से उसे अपनी बांह म
उठाया और एक च ान के सहारे से उसे बठाया।

ाकुल दे वता अब अं तम स तऋ ष के चरण म गर गया। उसने ब त सह लया


था। उसक आ मा अपने पु के वचार से स थी। उसक चेतना उसके वीभ स
प पर रो रही थी। अब ववा वन पुजारी को बस नवाण चा हए था—और वो
अपनी संजना से मल जाना चाहता था, वो जहां भी थी।

‘मुझे मा कर द जए, ओ पावन मु न! मुझे मा कर द जए, अगर आप कर


सक तो...’ दे वता ने कहा, उसक आंख से दद और पछतावे के आंसू नकलकर,
मु नय के पु य ल पर गर रहे थे।

मु न ने कोई जवाब नह दया। उसक आंख यानाव ा म बंद थ ।

दे वता ने आह भरकर, हां म सर हलाया।

मेरी आ मा मा से परे है, उ ार से परे।

ववा वन ने र न-ज ड़त मूंठ वाली अपनी कृपाण नकाली।

‘मेरी बात सु नयेगा, ओ महान मु न। आपका प तत सेवक जानता है क


आ मघात मनु य ारा कया जाने वाला सबसे जघ य अपराध है। यह ांड के
ज म-मरण के च को बदल कर रख दे ता है। ये उस सृ का अपमान है, जसने

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हम जदगी का ब मू य उपहार दया। ले कन मेरी मु का और कोई माग नह
है। इसके लए कोई कम सजा नह द जा सकती। अगर हो सके तो मुझे मा
कर दे ना, ओ द ऋ ष।

म, ववा वन पुजारी, अपना जीवन आपको तुत करता ं। शायद इस कलं कत


दे वता क मृ यु ही आपके लए और उस ई र के लए उसका अं तम समपण हो,
जसे इसने शमसार कर दया!’

इसके साथ हड़ पा के ाकुल सूय ने अपनी कृपाण क नोक अपने पेट पर लगा
द । चंड इस पूरे घटनाकम का सा ी था। वो स मोहन और भावना म इतना
जड़ हो गया था क कुछ भी कहने या करने लायक नह बचा था।

दे वता ने अपनी आंख बंद क और अपने हाथ कृपाण के मूंठ पर रखे। उसने भु
के स मुख अं तम ाथना बुदबुदाई।

ले कन युग के महान का अंत इस तरह नह हो सकता था। इससे पहले क


वो कृपाण को अपने पेट म उतारता, अं तम ऋ ष क आवाज सुनाई द ।

‘ओ हड़ पा के सूय, वलाप मत करो! यक नन तुमने पाप कया है, ले कन तु हारी


आ मा उ ार से परे नह है। उसका काय अभी समा त नह आ है। तुम लौटोगे,
ओ दे वता... कसी सरे युग म, कसी सरे समय म।’

ववा वन पुजारी अपने घुटन पर ढह गया और उसने अपने हाथ अपनी जंघा
पर रखे। उसने अपनी आंख बंद करके आभार जताया। इस भयानक रात म ये
पहली बार आ था, जब उसने स तऋ ष क वही पहले वाली प र चत, सौ य
आवाज सुनी थी।

‘मुझे जाने द जए, ऋ ष। आप मेरे साथ इतने नेही कैसे रह सकते ह, जब क म


आपके छह भाइय क मृ यु का कारण बना! म सफ आपक मा के बदले,
अपना जीवन आपको तुत कर सकता ,ं ’ दे वता ने अपने हाथ जोड़कर कहा।

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‘तुमने स तऋ षय को नह मारा है, ववा वन। कोई उ ह नुकसान कैसे प ंचा
सकता है, जो वयं सृ म से ही एक ह ? जैसे ही तुमने यहां कदम रखे, तु हारे
अंदर के दे वता ने भांप लया था क हमारे जीण होते शरीर म हम नह थे। तुम
सही थे। स तऋ ष अना द, अन र ह... और अब हम काले मं दर के क म
रहगे, जो हमारी साधना से नीले काश से व लत ह गे। अब हमारी आ माएं
नए, द शरीर म रहगी। और तु हारा पु , स य त मनु, अब हमारे साथ रहेगा।’

ववा वन पुजारी को लगा क मानो उसक थत आ मा अचानक शां त के


सागर म समा गई हो। उसके पी ड़त मन से मानो कोई भारी बोझ उतर गया हो।
वह जानता था क काले मं दर के दय म या था। वह जानता था क अगर मनु
और स तऋ ष वहां थे, तो वो सब सुर त थे। इस ांड क कसी भी सरी
जगह से अ धक सुर त।

दे वता ने अब स तऋ ष से वनती करने का साहस बटोरा। उससे अं तम अनुनय


करने का।

‘ओ उदार मु न, मेरे पु को अ भशाप से मु कर द। उसके वंशज को इससे


मु कर द। और उनक भी पी ढ़य को। मेरे पाप क सजा मुझे द जए। मुझे
ऐसा दद द जए जो मनु य क सहन श से परे हो। मेरे न र शरीर के टु कड़े
कर द। ले कन मेरे पु को छोड़ द। कृपया... मेरे ब को छोड़ द।’

पहाड़ से आती गरज क आवाज अब दखाई दे ने लगी थी। एक वराट भू- खलन
नद क तरफ बढ़ रहा था। छोटे -छोटे प र पहले ही भारी वषा के साथ सब
जगह बरस रहे थे।

पल भर म ही वो रण े , जहां दे वता और असुर के बीच यु आ था, वो उस


गरजते पवत के नीचे दब जाने वाला था।

‘जो कहा जा चुका है, उसे वापस नह लया जा सकता, ओ दे वता! अ भशाप
वापस नह होता। ले कन मुझे, अं तम मु न को बचाकर तुमने अपने दय क
नेक , अपनी आ मा क अ ाई का प रचय दया है। तो म इस ऋण को
चुकाऊंगा, हड़ पा के सूय। तु हारा पु , स य त मनु, अ भशाप से अछू ता रहेगा।

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और तु हारे वंशज भी महानता हा सल करगे, ले कन अ भशाप क वजह से—उन
सबक मौत ब त हसक होगी! वो तब तक काले मं दर के संर क रहगे, जब तक
तु हारा वापस पृ वी पर आने का समय नह हो जाएगा।

ओ दे वता, इसी अं तम असुर के हाथ र न-मा को काले मं दर भेज दो। चंड


सुरा के सा ा य म लौट जाएगा और एक नई सुबह के साथ अपनी समझ से
शासन करेगा। अब चले जाओ, ववा वन पुजारी, इससे पहले क यह पवत इस
धरती को हमेशा के लए द न कर दे !’

हड़ पा के दे वता ने अं तम मु न के सामने सर झुकाया। स तऋ ष ने उसे वो सब


दे दया था, जसक इ ा एक थत आ मा कर सकती थी। उसने अपनी
तलवार रा स-राजा के शरीर से नकाली और उसे स मान से नद के जल और
वषा क बूंद से धोया।

‘ चंड, इसे काले मं दर ले जाना। म रा ते म तु ह वहां प ंचने का माग समझा


ं गा। इस शानदार तलवार को इसक सही जगह पर प ंचा दे ना,’ दे वता ने आ ह
कया।

चंड ने स मान से तलवार ली और ववा वन पुजारी को भरोसा दलाया।

‘ये हो जाएगा, ओ महान दे वता। म सारा क दं तकथा के साथ ह कुश लौट


जाऊंगा, और असुर क आने वाली पी ढ़य को ान और पूजा सखाऊंगा।
आपके साथ आज रात यहां होना, मेरे जीवन का नणायक पल है। आप वा तव म
आधे-मनु य, आधे-भगवान ह।’

इससे पहले क स तऋ षय का पु य ल प र और धूल के गुबार के नीचे दब


जाता, अं तम ऋ ष क आवाज, बाक सब आवाज के ऊपर सुनाई द ।

‘तु हारा नाम अमर हो जाएगा, ववा वन पुजारी। अब से हजार साल बाद, तुम
फर से ज म लोगे—उस महान नय त को पूरा करने के लए, जो इस ह पर
आने वाले कसी भी सरे से अ धक महान होगी।

तुम इस काले मं दर के राज क र ा इसके अं तम समय म करोगे। तुम ही होगे


जो अब से स दय बाद, रो हणी न क पावन पू णमा को इस रह य का
उ ाटन करोगे।

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ओ महान दे वता, इसके लए तु हारा ही चयन कया गया है।’

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बनारस क बा सीमा, 2017
पाताल

यहां तक क व ुत का दल भी एक पल को धड़कना भूल गया, जब वो सी ढ़य


से उतरकर, भूतल म त जट क य शाला म प ंचा।

यह एक वशाल क था, जसम सूरज क एक भी करण नह प ंचती थी। यह


एक क म क म यकालीन गुफा तीत हो रही थी, जसम काश के नाम पर बस
मशाल क रौशनी थी, जो द वार म बने े म म लगी ई थ । क म पं से लगे,
लोहे के अनेक भाल पर, ब त सी इंसानी खोप ड़यां लगी ई थ । उन खोप ड़य
के मुंह खुले थे, आंख क खाली कोटर अंधेरी नया का आभास दे रहे थे। व ुत
उनका उ े य जानता था। तां क क ाचीन तां क और यो गय के अवशेष म
गहन च होती थी, वशेषकर खोपड़ी म। वो मानते थे क उनके मा यम से वो
रह यमयी श य को आक षत कर सकते थे।

गुफा के सरे कोने म दे वय —मां काली, मां बगलामुखी, मां मशान तारा और
अ य —क वशाल तमाएं लगी थ । मसान-राजा जानता था क मौत क प र ध
म कोई भी अनु ान श के इन अवतार के आशीवाद के बना नह हो सकता।
व ुत को तुरंत महसूस हो गया क जट या बड़ी गलती कर रहा था।

दे वी क सतक नजर के नीचे बुराई क कोई भी ताकत अ ाई का अंत नह कर


सकती है। आज रात जट नह जीतेगा।

ले कन दे वता को जस चीज ने सबसे अ धक च कत कया, वो था गुफा के


बीच बीच बना बड़ा सा ग ा। वो शायद पचास फुट लंबा और बीस फुट चौड़ा था।
व ुत ने ऐसे अनु ा नक कुंड के बारे न तो कभी पढ़ा था, न ही दे खा था। ग ा
लगभग पांच फुट गहरा था, और वो जलते ए कोयल से भरा था। अ न से

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नकलती गम असहनीय थी, और वहां का सम े ही तप रहा था। व ुत ने
यान दया क ग े म केवल कोयले ही नह भरे थे। जैसे ही उसे उस ग े म मानव
अंग और ह यां दखाई द , तो उसे उबकाई आने को ई। उसे अहसास आ क
वहां क हवा वा तव म इंसानी मांस के जलने क बू से गमक रही थी।

अगर पृ वी पर कोई नक था, कोई पाताल था, तो व ुत वहां कदम रख चुका था।

‘मेरी गरीब य शाला म तु हारा वागत है, ओ दे वता!’ व ुत को दे खे बना ही,


ग े के सरी तरफ से जट च लाया। वो म के एक बतन से ग े म र डाल
रहा था। अंगार के ऊपर से चमकते लाल काश क वजह से मसान-राजा अपने
सामा य भयावह प से भी अ धक वकराल नजर आ रहा था। वो व ुत से
ब त र थे, ले कन व ुत ने महा-तां क के चरण म, जदा लाश क तरह बैठ
दो आकृ तय को पहचान लया था।

पशा चनी।

धीरे-धीरे जट के वकराल अघोरी हरी भी गुफा के अंधेरे कोन से नकलकर,


नारंगी ग े के गद जमा होने लगे। वहां गम जबरद त थी और व ुत पसीने से
पूरी तरह तर हो गया। उसे घेरने के लए आते सश अघो रय पर ही नजर
टकाए, उसने आ ह ता से अपनी काली शट के बटन खोले, और उसे उतारकर
अपनी कमर पर बांध लया। दे वता क तराशी ई, ब ल कदकाठ इस म म
ले कन ती काश म चमक रही थी।

अब तक बलवंत, ोफेसर पाठ और सोनू भी सी ढ़य से नीचे आकर, व ुत के


पास खड़े हो गए थे।

जंग शु होने को ही थी।

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व ुत ह के से दौड़ता आ आगे बढ़ा। जस ग त से वो आगे बढ़ा, उससे अघोरी
एकदम हैरान रह गए। सैकंड से पहले ही दे वता ने छलांग लगाकर, एक भारी-
भरकम हरी के सीने पर वार कया। इससे पहले क सरे अघोरी अपने ह थयार
उठा पाते, व ुत ने सरे हरी के सर पर ए रयल कक लगा । दोन आदमी
तड़पते ए धरती पर जा गरे।

जब वो बा कय क तरफ मुड़ा, तो व ुत ने आंख के कोने से दे खा क जट


अब उसी बतन से अपनी दो पशाचा नय पर र उं डेल रहा था। वो दोन कसी
तरह क यानाव ा म तीत हो रही थ । अब तक बलवंत और सोनू भी श ु प
पर टू ट पड़े थे, और मठ के यु - मुख ने पहला र भी नकाल लया था। उसने
एक हमलावर क बांह काट डाली थी।

यह लड़ाई अ धक दे र तक नह चलने वाली थी। और यही बात व ुत को परेशान


कर रही थी।

ये तो ब त आसान है। या मसान-राजा इस तरह से हमारा मुकाबला करने वाला


है?

और फर उसने उसे दे खा।

व ुत ने अपना अंदेशा साफ करने के लए, सर हलाकर वापस दे खा। उस ग े


से दो भू तया काश उभरकर आ रहे थे। दे खने म तो वो लेट धुएं के दो गुबार
जान पड़ रहे थे, ले कन दे वता उनम छपी आकृ त दे ख सकता था। दो भयानक
आकृ तयां। जैसे ही वो व ुत को दे खने के लए मुड़ , तो व ुत के पसीने छू ट
गए। वो व ुत के दे खे ए अब तक के सबसे भयानक, सबसे भ े और सबसे
घनौने चेहरे थे। उनका आतंक इंसानी क पना से परे था। वो आ दकालीन
डा कनी थ , ज ह जट ने मौत क गहराइय से बुलवाया था।

दोन पशाच नयां ग े के कनारे पर बैठ थ , उनक आंख चढ़ ई थ , मुंह खुला


था, और वो बुरी तरह से हांफ रही थ । जट कपा लक लगातार काले मं का
उ ारण करते ए ो धत डा क नय से बात कर रहा था। धुंए क भयावह
आकृ तयां धीरे-धीरे पशाचा नय क तरफ बढ़ रही थ ।

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व ुत अब जान गया था क महा-तां क या कर रहा था। वो दोन ह या रन के
शरीर म डा क नय को बुला रहा था। अगर वो सफल रहा, तो व ुत भी उनके
दानवीय हार का सामना नह कर पाएगा।

‘ॐ बीजं;

नमः श ;

शवाये त क कम...’

व ुत, बलवंत, सोनू, ानंद... सभी ारका शा ी के वशाल व को


दे खने के लए मुड़े, जो भूतल क सी ढ़य से नीचे क ओर आ रहे थे। व ुत और
ोफेसर पाठ जानते थे क डमा टर या उ ारण कर रहे थे।

समय क शु आत से ही यह काली अलौ कक श य के व सवा धक स म


और भावशाली मं रहा था।

वह भु शव के द शा , अबा य— शव कवच का उ ारण कर रहे थे!

दोन भयावह पुंज वरोध म च लाने लगे। उनक चीख इतनी ककश थी क सोनू
डर से कांपते ए अपने घुटन पर बैठ गया। उसने अपनी हथे लय से अपने कान
ढं क लए और डा क नय पर से नजर हटा ली।

उनका बदन अकड़ रहा था, वो कराहते ए च ला रही थ ... ले कन सब बेकार


था। यह था क वो पीछे हट रही थ । वो वापस उसी अंधेरे म जा रही थ ,
जहां से आई थ ।

कोई भी डा कनी या ेत-आ मा शव कवच का सामना नह कर सकती थी।

ले कन शव का द कवच कसी इंसान को सरे मनु य के धोखे से नह बचा


सकता था।

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व ुत को अपना सर दो भाग म बंटता आ महसूस आ। दद असहनीय था
और उसे धुंधला सा दख रहा था। दे वता ने अपने दोन हाथ से अपना सर पकड़ा
आ था। उसक उं ग लयां तुरंत ही उसके अपने र म भीगने लग , जो उसके
सर पर ए गहरे ज म से नकल रहा था। बेहोश होकर गरने से पहले वो ये
दे खने के लए मुड़ा क उसके सर पर लगा या था।

तेजी से धुंधलाती नजर से वो बस एक आंख वाले दानव को दे ख पाया, जसे


उसने तुरंत ही पहचान लया। कसी पागल क तरह हंसते ए ोफेसर पाठ
का च मा उतर गया था। उसक अंधी आंख क जगह गुलाबी रंग के मांस का
खाली कोटर था। वो डा कनी के जतना ही भयानक लग रहा था।

बेहोश होकर गरते ए व ुत को ानंद के कहे आखरी श द सुनाई दए।

‘पाताल म तु हारा वागत है, दे वता!’

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हड़ पा के पूव म, 1700 ईसापूव
मनु क नाव

‘ले कन आप हमसे कस कार क नाव बनवाना चाहते ह, म य? और हम नई


नाव बनाने क या आव यकता है? तट पर पहले ही अनेक बड़े -बड़े जहाज खड़े
ह। अगर हम समय रहते वहां प ंच जाएं, तो हम उ ह हा सल कर सकते ह।’

सोमद हैरान आ जब म य ने उससे वशाल नाव का मु य श पकार बनने


को कहा था।

क म खामोशी थी। मनु, तारा और पवत-संर क क ने ी और वहां उप त


सभी जन सोमद क बात से सहमत थे। जब आसमान फट रहा हो, जब तेज
हवा के चलते आंख खुली तक रख पाना संभव न हो, जब मनु य और पशु दोन
के दय भय से जमे ह तो ऐसे म कसी ऐसे काम म य जुटना, जसे पूरा न
कया जा सके।

म य उठा और च ानी द वार म बने ाकृ तक झरोखे से बाहर दे खने लगा। वो


गरजते ए आसमान को दे ख सकता था, जो तेजी से लाल होता जा रहा था।
उसके आकषक नीले चेहरे पर पानी क बूंद तेजी से गर रही थ ।

समय आ प ंचा था।

‘जहां तक आयवत का है, यह नया का अंत है।’

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म य जानता था क अब सबको वो बताने का समय आ गया था, जो वो पहले ही
सं त प से मनु को बता चुका था।

‘ मा क जए, ले कन नया के अंत से आपका या ता पय है, म य? पृ वी


हमम से कसी क भी क पना से अ धक वशाल है। यक नन ऐसे कुछ े ह गे
जो इस लय क पकड़ से बाहर ह गे?’ सोमद ने तक दे ते ए अपनी बात रखी।

वह भूल गया था क ांड क रचना लाख साल पहले ई थी, तब तक मनु य


को तक करना नह आया था। क उस सृजक का तक जो करोड़ आकाशगंगा
और पृ वी जैसे खरब ह का कता-धता है, उसके तक सोमद के तक से
अ धक व तारपूण और सह-संयोजक ह गे।

म य झरोखे से वापस मुड़ा। दन के काश म भी आसमान कड़कती बजली से


चमक रहा था, मानो म य के स मुख झुककर, उसके ारा कहे जाने वाले श द
को वीकार रहा हो।

‘ऐसी लय आयवत ने पहले कभी नह दे खी होगी। या यूं कह क इस सम त


संसार ने। कुछ नह बचेगा। न कोई मनु य, न वन त, न पशु, न प ी, न क ट,
न घर, न मं दर, न पवत, न वन...

लय ांडीय श है जो आयवत क शु के लए आ रही है। इसक लहर


पवत से ऊंची ह गी और रा ते म आने वाली हर व तु को नगल जाएंगी।

हां कुछ ांत बच जाएंगे। ले कन आयवत से कोई भी इतने र कोन


तक नह प ंच पाएगा।

आसमान र म लाल हो जाएगा। यातनामयी बरसात कई महीन तक नह


केगी, और महासागर म इतना जल होगा क वो सम त पृ वी को नगल जाएंगे।

नगर पल भर म तबाह हो जाएंगे, और लाख जद गयां कुछ ही घंट म अपना


च पूण कर लगी।

लय—भीषण बाढ़... आ रही है।’

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उ ह दे खकर मनु अवाक रह गया।

म य अपनी गुफा के ऊपर ऊंची च ान क तरफ इशारा कर रहा था।

सात सं यासी इस मूसलाधार बरसात म, बना हले, ऊंचे पवत पर यान म बैठे
थे। उनसे नम नीला काश नकल रहा था। च ान पर पड़ती बजली क चमक म
मनु इतना तो दे ख सकता था क ये मु न युवा श ु से अ धक नह थे, वो
शायद उससे भी कम उ के थे! वो बेहद शांत और सुकून म थे। उनक वचा
इतनी तेजमयी थी, मानो उनक उ प कसी द कोख से ई हो।

वो द थे।

‘ये स तऋ ष ह, मनु। ये आगे के तु हारे क ठन सफर म आपके साथी ह गे। ये


आपका मागदशन करगे, आपको संभालगे। आप भी इनके लए यही करना। साथ
म आप लोग सृ क नई सुबह का वागत करोगे... उस युग का, जब मनु य
सागर क गहराइय को जीत लेगा, रजत रथ म बैठ आसमान म उड़ान भरेगा और
चांद पर कदम रखेगा। सुनहरा युग।’

मनु म य क ओर मुड़ा।

‘स तऋ ष मेरा मागदशन करगे से आपका या मतलब है? या आप मेरे साथ


नह ह गे, म य?’

म य हंसा। ले कन इस हंसी म आनंद नह था। ये वो हंसी थी, जो बता रही थी


क ज द ही उनके रा ते अलग हो जाने वाले थे।

‘म हमेशा आपके साथ र ंगा, स य त। म हमेशा इस धरती को संचा लत करने


वाले लोग के साथ र ंगा। भले ही मेरा नाम अलग हो, व अलग हो, कसी
सरी जमीन पर...

ले कन म हमेशा र ंगा।’

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म य अब एक ती , ऊंची च ान पर खड़ा था। उसक पृ भू म म नमम
आसमान दखाई पड़ रहा था। मनु, तारा, सोमद और सरे ब त से लोग वहां
उसक बात सुनने के लए एक थे।

हवा हसक तरीके से मछली- जा त के मुख को हला रही थी। उसके खुले केश
और ढ ले कपड़े हवा म लहरा रहे थे। बा रश म भीगा आ, रह यमयी
अपनी बांह, अपने दोन तरफ फैलाए खड़ा था। उसने अपना चेहरा उठाकर ऊपर
आसमान म दे खा, और चमकती बजली ने एक बार फर इस द व का
अ भवादन कया। बजली क सफेद चमक के बीच म य का नीला काश अ त
जान पड़ रहा था।

‘वह मसीहा है...’ तारा ने मनु से फुसफुसाया।

ले कन मनु बेहतर जानता था।

‘नह , वह नह है, तारा। वह वो है, जो मसीहा को भेजता है।’

‘हड़ पा, मोहन जोदड़ो और सरी व ा से द सय हजार पु ष , म हला


और ब को एक करो। पवत और व य जा त के लोग को भी लाओ।

लय से पूव के कुछ महीन म सब कुछ एक कर लो, सबसे बड़ी नाव बनाओ,


इतनी बड़ी जो इस ह पी समु पर चल सके।

ऐसी नाव जसका शीष ऊपर वग तक जाए। इतना वशाल जहाज क द सय


हजार आदमी उसम शरण ले पाएं। ऐसी पोत जसम ब त सी वन त, प य ,
पशु और बीज को ले जाया जा सके।

रसायनशा य , वै , श पकार , कसान , संगीतकार , लेखक , ापा रय ,


श क और पुजा रय को एक करो।

अपने साथ वेद , ंथ , धातु , सूत, औषधीय बूट , उपकरण और र न को रखो।

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तुम इस संसार का पुन नमाण करोगे, स यता को फर से बसाओगे और कालच
को चा लत रखोगे।

यह नाव, मनु क नाव... समय के अंत तक याद रखी जाएगी!

वशाल अमर नाव ांड क सबसे बड़ी वपदा को सहेगी।

यह लय का सामना करेगी।

यह सृ को बचाएगी!’

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हड़ पा, 1700 ईसापूव
ववा वन पुजारी

मील तक फैले नजन दे श म वो अकेला इंसान था। उस तूफानी और असामा य


प से डरावनी रात के अंधेरे म वो मु कल से ही कुछ दे ख पा रहा था। खासकर
उसके बहते र , आंसू और पसीने के साथ इस बेमौसम क मूसलाधार बरसात ने
उसके लए कुछ भी दे ख पाना ब त मु कल बना दया था। इस याह काली रात
म मुंडे सर और नंगी छाती वाला वो ा ण कसी उ माद क तरह अपनी
कु हाड़ी से धड़ाधड़ वार कए जा रहा था। वो उन मोट र सय म से एक को
काटने क को शश कर रहा था, ज ह ने हाल ही म बने मानव- न मत, पवत-
समान बांध को थामा आ था। हालां क प र, ट, धातु और लकड़ी से बने वो
वशाल भारी खंड नद क धारा मोड़ने के उ े य से बनाए गए थे, ले कन सच
पूछो तो वो उ ं ड समु म बड़ी सूनामी को भी रोक सकते थे। ले कन ये नद भी
अपनी रवानगी म, कसी समु से कम नह थी।

मूसलाधार बरसात के बीच वो इंसान वयं से ही कुछ बड़बड़ाए जा रहा था, मानो
उस पर कोई दै वीय श का भाव हो, और साल क साधना और वै दक
अनुशासन से ा त क श के हर कण को वो इस काय म झ क रहा था। मोट
र सी पर वो ती ता से हार कए जा रहा था, इसम उसक उं ग लयां भी बुरी तरह
से छल गई थ और उनसे र बह रहा था। जब वो और सांस नह ले पाया तो
अपना सर पीछे कर आसमान क तरफ दे खने लगा। बा रश क मोट बूंद उसके
चेहरे पर थपेड़े क तरह पड़ रही थ । जब बेरहमी से गरते उस पानी ने उसक
पलक से क चड़ हटा द तो लंबी आह भरकर वो आसमान चीर दे ने वाली आवाज
म च लाया। शायद यह उसक हाल म कलं कत ई आ मा क भगवान के
सामने अपनी पीड़ा रखने क को शश थी। ले कन वह जानता था क ब त दे र हो

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चुक थी। भगवान भी उसके कृ य से आतं कत थे और उसे माफ नह करने वाले
थे। ना ही कोई और उसे माफ करने वाला था।

उसने अपनी छोट कु हाड़ी से वापस से र सी को काटना शु कर दया, पहले से


भी अ धक उ ेजना से। वह जानता था क पछले एक घंटे से भी अ धक समय
से वो एक संयु गांठ को काटने क को शश कर रहा था। वो र सयां वशेष तौर
पर तैयार क गई थ , कभी वयं उसी के नदश पर। वह जानता था क ऐसी ही
हजार गांठ के मा यम से, ट, कांसे और प र से बने ऐसे 998 तंभ और खड़े
थे ज ह ने इस अटू ट वशाल बांध को सहारा दया आ था। और क अगर
हजार आदमी भी दन-रात काम कर तो भी इसे खोलने म कई स ताह लग
जाएंगे। 999 के आंकड़े क ये अ त कारीगरी वयं उसी क सावधान नजर ,
अ भयां क द ता और यो तषीय मागदशन के अनुसार संप ई थी। वह कर
या रहा था? या वो पागल हो गया था? वह जानता था क वह इस वशाल बांध
का कुछ नह बगाड़ सकता था। ले कन फर भी वो बेतहाशा अपनी कु हाड़ी से
वार कए जा रहा था।

मील तक फैले इस नजन म, गरजते बादल के बीच खड़ा यह आदमी, ववा वन


पुजारी, वयं दशक तक एक दे वता के प म पूजा जाता रहा था। कभी हड़ पा
का सूरज माना जाने वाला यह आदमी, आज कसी भूत क तरह दखाई दे रहा
था। अपने कृ य के भयानक प रणाम के बारे म सोचकर वह अ य धक पीड़ा और
पछतावे से गुजर रहा था, वह ऐसा पाप करने जा रहा था, जसक भरपाई कभी
संभव नह थी। वह रोते ए, बुदबुदाते ए, र सी काटे ही जा रहा था। और फर
उसे वो सुनाई दया।

शु आत हो चुक थी।

श शाली नद क असामा य ंकार, कह र से आती ई, ले कन उस आवाज


ने उसके र को जमा दया। कभी पोषण और नेह दे ने वाली, दया क तमान,
मातृ व प नद एक यासी र -धारा क तरह मानो अपने ही ब को नगलने
के लए ाकुल हो उठ थी। ान क उस नद को उसके अपने यारे ब ारा
ही छला गया था। उसके दे वता बेटे, ववा वन पुजारी ने ही उसको छला था।

कभी सदाचारी और अजय रहे ववा वन पुजारी ने कु हाड़ी को अपने हाथ से


फसल जाने दया और वह गीली जमीन पर थ प क आवाज के साथ गर गई।

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वो जड़ खड़ा आ उसी दशा म दे ख रहा था, जहां से वकराल प धरे ए
उसक मां कट होने वाली थी। वो जान गया था। वो जानता था क उस हवन
कुंड म पहली आ त उसी के र क गरने वाली थी। अचानक, वह उसके त
सहज हो गया।

उसे वयं म आराम और राहत का अहसास आ। उसे कुछ आस बंधी। शायद


उसक मां उसक जदगी लेकर बा कय को मा कर दे । वह घुटन के बल गर
गया, अपनी तरफ से समपण म हाथ को खोलते ए, हथे लय को पसारे।
बरसात ने उसके तने ए और घायल शरीर को साफ करते ए उसक दागदार
चेतना को भी नमल कर दया। मानो कृ त ववा वन पुजारी को उसका अं तम
नान करा रही थी।

‘हे मां, मेरे ाण हर लो! म आपके ोध का भागी ं। और म वयं को आपके


चरण म सम पत कर रहा ं!’ वह च लाया और आसमान म चमकती बजली ने
मानो नाराज होकर उसे तमाचा लगाया। मानो भगवान ने इस गरे ए दे वता क
अज ठु करा द ।

वह फर से च लाया, और इस बार उसक आवाज नराशा और सुब कय के


बीच टू टकर रह गई, ‘अपने हताश ब े क वनती नह सुनोगी मां?! मेरे ाण ले
लो ले कन सर को माफ कर दो! उ ह ने ऐसे पाप नह कए ह, जैसे तु हारे बेटे
ने कए ह। मुझे मार दो!!!’

आसमान फर से रौशन आ। कुछ पल के लए ऐसा लगा मानो दन नकल


आया हो। खामोश रौशनी ववा वन पुजारी के र , पसीने से सने, व त चेहरे
पर पड़ी। और फर वही आ। बादल क गरज सूरज फटने के समान ती ण थी।

भगवान इंकार कर रहे थे!

ववा वन पुजारी को चेहरे पर हवा का तेज झ का महसूस आ और उसने बांध के


र कोने से जल के बड़े से पहाड़ को कट होते दे खा, उसी दशा म जहां वो अपने
घुटने टकाए बैठा था। जल क वो धारा ऐसी तीत हो रही थी, मानो कई सर
वाला अजगर अपने शकार क तरफ बढ़ रहा हो। नद का कोलाहल, अभी कुछ
पल पहले गरजते बादल से भी तेज था। ववा वन पुजारी वहां त बैठा था, इस
अंधेरे म भी वो जल के उस वशाल पवत क छाया दे ख पा रहा था। वो उस सुमे

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पवत के सामने एक छोट सी च ट क तरह महसूस कर रहा था, मातृ व प नद
क आसमान जतनी ऊंची, सूनामी क लहर उसे नगलने से बस कुछ ही पल र
थी।

ववा वन पुजारी पछले कुछ दन म अपने माग से भटक गया था। तशोध क
अंधी आग म उसने जीवन भर क चमक को गंवा दया था। ले कन वह था तो
ववा वन पुजारी ही। एक दे वता! सरे व त यो गय क तरह ही उसने तुरंत
अपनी आ मा को अपनी कुंड लनी म एका कया, अपनी धड़कन को थामा और
अपने न र शरीर को मृ यु के लए तैयार कया। जल म हमेशा के लए समा जाने
से पहले उसने अपने मन म, शां त से अं तम ाथना बुदबुदाई।

‘हे मां, उ ह मा कर दे ना। उ ह मेरे पाप क सजा मत दे ना। उ ह माफ कर दे ना


मां!’

पानी क वनाशकारी लहर ने दे वता ववा वन पुजारी को नगल लया, जैसे कोई
वशालकाय हाथी पैर तले मसलकर सूखी टहनी का अ त व ही ख म कर दे ता
है। भगवान, र रं जत नद , काली रात, इं क गजना, नजन भू म का व तार
और बेरहमी से पड़ती बा रश उस महान आदमी के अंत के मूक सा ी बने। ले कन
ववा वन पुजारी क मौत का भाव इस धरती से यूं ही नह मटने वाला था। यह
तो शु आत थी। वह नफरत, छल, ष ं और हसक झड़प म हजार साल तक
जी वत रहने वाला था। सफ आयवत ही नह , ब क संपूण पृ वी पर ई र के
नाम पर चलने वाली मार-काट म उसका भय ल त होना था। उसक मौत या
इंसानी प भी उसे इस अ भशाप से मु नह करने वाला था।

नद ने अपना नमम वाह जारी रखा। ववा वन पुजारी क अं तम वनती के


बावजूद, र रं जत नद ने उ ह मा नह कया।

श शाली नगर हड़ पा को सर वती उसके येक नवासी के साथ हड़पने जा


रही थी। वहां कुछ नह बचने वाला था।

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बनारस क बाहरी सीमा, 2017
दे व-ब ल

गम असहनीय थी, मानो वो आग के ऊपर ही हो। उसक बांह और टांग ऐसे खच


रहे थे, मानो वो टू टकर अलग हो जाने वाले ह । उसका सर तेज दद से घूम रहा
था। उसक कलाई और टखने ऐसे महसूस हो रहे थे, मानो कोई धातु उ ह काट
रही हो।

वापस होश म आने क को शश करते ए, व ुत असहनीय पीड़ा और बे याली


के से हालात म था। जब उसने अपनी आंख खोल , तो कई पल तक तो वो समझ
ही नह पाया क वो कहां था और उसके साथ या हो रहा था।

उसे ऐसा लग रहा था मानो वो हवा म तैर रहा था, नीचे दखती अ न उसक वचा
को झुलसा रही थी।

वह सही था। पल भर म ही व ुत को याद आ गया क वो कहां था, और फर


उसे हालात क गंभीरता का अहसास आ।

वह जट कपा लक के बड़े से ग े के दस फुट ऊपर तज क समानांतर दशा


म लटका आ था। उसका चेहरा और वचा का ह सा, जहां कपड़े नह थे, नीचे
जलती आग क गम से झुलस रहे थे। उसके हाथ और पैर चार दशा म फैले
ए थे, और उसे लोहे क जंजीर से गुफा क द वार म लगे क पर बांधा गया
था। उसक बेहोश अव ा म, मसान-राजा, दानवीय ानंद, पशा चनी और
महा-तां क के बचे ए सा थय ने दे वता को जंजीर से बांधकर, जलते ए
कोयल और मांस के ऊपर लटका दया था।

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‘दे खो... इस दे वता को दे खो!’ उस ग े के आसपास घूमते ए, जट कपा लक
ने व ुत का मजाक बनाते ए कहा। ‘ या इसी दे वता से वो गोरी-चमड़ी वाले
लोग इतना डर रहे थे?’

ानंद भी शैतान क तरह हंसा। ‘हमने कर दखाया, जट! काम हो गया! वो


जससे स दय तक लोग डरते रहे, वो हमारे सामने भुने ए बकरे क तरह लटका
पड़ा है!’

बलवंत और सोनू को भी र सी से बांधकर, उ ह जमीन पर घुटन के बल बैठा


दया था। व ुत को गहन पीड़ा म दे खकर सोनू रोने लगा। ले कन यह सबसे
भयानक बात नह थी। ारका शा ी के हाथ भी बंधे ए थे, और एक दरांती
उनके गले पर लगी ई थी। र क यासी पशा चनी वैसे ही भारी सांस ले रही
थी।

‘उ ह जाने दो, जट...’ व ुत ने कहा, उसक आवाज दद से कांप रही थी। ‘तुम
ाचीन अघो रय के नाम पर ध बा हो। तुम अ या मक दशन अघोर का अपमान
हो। स े अघोरी तां क भु के साधक होते ह, द ा ेय के भ , और वो
आशीवाद दे ते ह। वो नयावी माया का याग करके, स य क खोज म रत होते
ह। मसान-राजा, तुम तो अघोरी हो ही नह ! तुम स े तां क नह हो! तुम मुझे
ही चाहते थे न। तो अब मुझे मार दो... ले कन उ ह जाने दो।’

‘तु ह मार द?’ मसान-राजा ने पूछा, उस पर व ुत क कार का कोई असर नह


आ था। ‘तब तो तुम सच म कुछ नह जानते, है न?’ व ुत को दोबारा दे खने से
पहले, उसने सवा लया नजर से ारका शा ी को दे खा।

‘तु ह तो साल से जी वत रखा गया है, ओ दे वता। रो हणी न अब अ धक र


नह है। काले मं दर का उदय होगा! उसी के बाद तु ह मारा जाएगा... प का।’

महा-तां क ने धीरे-धीरे अपनी आंख बंद करके, सर ऊपर उठाया, मानो काली
ताकत के स मुख कोई ाथना बुदबुदा रहा हो। कुछ पल बाद उसने अचानक
अपनी आंख खोल द । उसके राख पुते चेहरे से व त ू रता और स ा क
ललक टपक रही थी। उसने व ुत क ओर संकेत कया।

‘उस हर इसी अनु ान-अ न म दे व-ब ल चढ़े गी!’

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‘ जट... यही सुनहरा अवसर है,’ ानंद ने कहा। ‘हमारे अनु ान म अभूतपूव
ताकत जोड़ने का।’

जट ानंद क तरफ पलटा, वो यह जानने के लए उ सुक था क एक-आंख


वाले ोफेसर के दमाग म या चल रहा था। वो अपने अघोरी भाई को अ
तरह जानता था। उसके मन म ज र कोई शैतानी, कोई संहारक बात चल रही
होगी।

‘अपने आसपास दे खो, जट... हमने स म तां क क खोप ड़यां एक करने


म साल बताए ह। येक कपाल ने काले सा ा य तक हमारी प ंच को और
स म कया है। उनम से कुछ तो महा-तां क भी थे।’

मसान-राजा पूरे मनोयोग से सुन रहा था, ले कन अभी भी वह अपने साथी क


बात समझ नह पाया था।

ानंद क आंख चमक रही थ । वो जट क तरफ झुका, ले कन बात उसने


इतनी जोर से कही क हर कोई सुन सके, व त
ु भी। वो महान मठाधीश क
दशा म संकेत कर रहा था।

‘क पना करो जट... नया के इकलौते परम-तां क क खोपड़ी म कतनी


श होगी!’

जट ने पशा चनी क तरफ सर हलाया। उसने अपने सर को पीछे क तरफ


झटका और धीरे से उसे घुमाया, वो आदे श का पालन करने के लए तैयार थी।

‘नह ...! क जाओ...’ अपने हाथ-पैर म बंधी जंजीर को ख चते ए व ुत


च लाया। ले कन जंजीर ब त मजबूत थ ।

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व ुत जानता था क उसके पास समय कम था। उसने फर से जंजीर ख ची, इस
बार अपना पूरा बल लगाकर। उसके सीने क मांसपे शयां लोहे के तार के समान
खच रही थ और उसके ताकतवर हाथ क नस फटने को तैयार थ । दे वता के
अधीर संघष को दे ख सोनू और बलवंत स मो हत थे, जो इस परा म को अपने
नम और आशावान ने से दे ख रहे थे।

व ुत वा तव म दे वता था।

जट और ानंद को भयभीत करते ए, व ुत के दा हने हाथ क जंजीर का


क हलने लगा। पहले तो गुफा क द वार म दरार पड़ी। और फर पल भर म
च ानी सतह भरभराकर गरने लगी।

जैसे ही उसने जंजीर ख चकर, गरती द वार से अपने दा हने हाथ को आजाद
कराया, व ुत ने अंगार सी लाल आंख से जट कपा लक को घूरा। महा-
तां क अब अ व ास से कांप रहा था।

‘तुमने बड़ी गलती कर द , ओ मसान-राजा!’ व ुत च लाया, उसक आवाज


दद, ोध और नफरत से फट रही थी।

इसी के साथ दे वता ने अपने दा हने पैर को भी छु ड़वा लया, और अब वो अ न के


ब तर के ऊपर उड़ान भरते दे वता क तरह लग रहा था।

‘तुम भूल गए, जट!

म आधा-मनु य, आधा-भगवान !ं ’

मश:...

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मश:...

सभी मुख टोस और ऑनलाइन लेटफाम पर उपल ।

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𝐈𝐍𝐃𝐈𝐀𝐍 𝐁𝐄𝐒𝐓 𝐓𝐄𝐋𝐄𝐆𝐑𝐀𝐌 𝐄-𝐁𝐎𝐎𝐊𝐒 𝐂𝐇𝐀𝐍𝐍𝐄𝐋
(𝑪𝒍𝒊𝒄𝒌 𝑯𝒆𝒓𝒆 𝑻𝒐 𝑱𝒐𝒊𝒏)

सा ह य उप यास सं ह
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚𝐧 𝐒𝐭𝐮𝐝𝐲 𝐌𝐚𝐭𝐞𝐫𝐢𝐚𝐥

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐀𝐮𝐝𝐢𝐨 𝐁𝐨𝐨𝐤𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚𝐧 𝐂𝐨𝐦𝐢𝐜𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐆𝐥𝐨𝐛𝐚𝐥 𝐂𝐨𝐦𝐢𝐜𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐆𝐥𝐨𝐛𝐚𝐥 𝐄-𝐁𝐨𝐨𝐤𝐬 𝐌𝐚𝐠𝐚𝐳𝐢𝐧𝐞𝐬

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
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लेखक के बारे म

वनीत युवा उ मी ह। महज 22 साल क उ म ही उ ह ने छोटे तर पर अपनी


कंपनी मे नॉन क शु आत क । आज मे नॉन उपमहा प क सबसे बड़ी
ड जटल एज सय म से एक है, और फॉ यून 500 ओम नकोम ुप का ह सा है।
आप व क टॉप-10 एडवटाइ जग एजसी ट बीड यू का नेतृ व इसके भारत के
सीईओ के प म करते ह। आप दे श क म ट नेशनल एडवटाइ जग नेटवक
कंपनी के सबसे युवा सीईओ ह।
आपने उ मता और कॉप रेट द ता म अनेक अवाड हा सल कए, जनम
आं े योर ऑफ द ईयर 2016 भी शा मल है। आपको अभी हाल म इं डया’स
ड जटल इको स टम के 100 सबसे भावशाली य म भी शा मल कया
गया।
आपक सरी कंपनी टे लट े क इं डया मी डया, मनोरंजन और ए टव इंड के
लए तभा क पहचान करती है। यह इस े का तेजी से बढ़ता आ हाय रग
और नेटव कग लेटफाम है।
आप बंधन और ेरक वषय पर तीन बे टसे लग कताब लख चुके ह— ब
ॉम े च, द ट टू द हाईवे और द 30 सम थग सीईओ ।

आपका पहला उप यास हड़ पा—र धारा का ाप नेशनल बे टसेलर रहा। उसे


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