330794718-शरीर-के-चक-रों-का-गणित-और-विज-ञान

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शरीर के चक्रों का गणित और विज्ञान

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सद्गरु
ु : आजकल जह ां दे खो, वह ां चक्रों की चच ा हो रही है । ख सकर पश्चचम में जह ां भी आप
ज एांगे आपको हर जगह ‘व्हील अल इनमें ट सेंटर’ ददख ई दें गे, जह ां आप अपने चक्रों को एक सीध में
करव सकते हैं। इसके अल व वह ां योग-स्टूडियो से लेकर क इरो-पै ै्रश्टटस करने व ले, सभी चक्रों पर क म
कर रहे हैं। यह अब एक फैशन स हो गय है ।

आइए समझें कक आखखर ये चक्र हैं टय ? मनुष्य के शरीर में कुल ममल कर 114 चक्र हैं। वैसे तो शरीर में
इससे कहीां ज्य द चक्र हैं, लेककन ये 114 चक्र मुख्य हैं। आप इन्हें न डियों के सांगम य ममलने के स्थ न
कह सकते हैं। यह सांगम हमेश त्रिकोण की शटल में होते हैं। वैसे तो ‘चक्र‘ क मतलब पदहय य गोल क र
होत है । चकूां क इसक सांबांध शरीर में एक आय म से दस
ू रे आय म की ओर गतत से है , इसमलए इसे चक्र
कहते हैं, पर व स्तव में यह एक त्रिकोण है ।

शरीर के सात मल
ू चक्र
अब सव ल यह है कक आखखर ये चक्र इस शरीर-प्रण ली में करते टय हैं? मूल रूप से चक्र केवल स त हैं –
मूल ध र, स्व धधष्ठ न, मखणपूरक, अन हत, ववशुद्धध, आज्ञ और सहस्र र। पहल चक्र है मूलाधार, जो गुद
और जननेंदिय के बीच होत है , स्िाधधष्ठान चक्र जननेंदिय के ठीक ऊपर होत है । मणिपूरक चक्र न मभ के
नीचे होत है । अनाहत चक्र हृदय के स्थन में पसमलयों के ममलने व ली जगह के ठीक नीचे होत है ।
विशुद्धध चक्र कांठ के गड्ढे में होत है । आज्ञा चक्र दोनों भवों के बीच होत है । जबकक सहस्रार चक्र, श्जसे
ब्रम्हरां द्र्र भी कहते हैं, मसर के सबसे ऊपरी जगह पर होत है, जह ां नवज त बच्चे के मसर में ऊपर सबसे
कोमल जगह होती है ।

मल
ू ध र चक्र, जो भोजन और नीांद के मलए तरसत है, अगर आपने सही तरीके से ज गरूकत पैद कर ली
है , तो वही इन चीजों से आप को परू ी तरह से मट
ु त भी कर सकत है ।

हम चक्रों को ऊपर व ले और नीचे व ले चक्र कह सकते हैं, लेककन ऐसी भ ष के प्रयोग से अटसर
गलतफहमी पैद हो ज ती है। यह एक इम रत की नीांव और छत की तुलन करने जैस है । छत कभी नीांव से
ज्य द महत्वपूणा नहीां होती। ककसी भी इम रत की नीांव उसक मुख्य आध र होती है , छत नहीां। इम रत की
मजबूती और वह ककतन दटक ऊ होगी, यह सब उसकी नीांव पर तनभार करत है न कक छत पर। लेककन जब
हम ब त करते हैं तो कहते हैं कक छत ऊपर और नीांव नीचे है ।
मल
ू ाधार
अगर आप की ऊज ा मल
ू ाधार में प्रबल है , तो आपके जीवन में भोजन और तनि क सबसे प्रमख
ु स्थ न
होग । वैस,े चक्रों के एक से ज्य द आय म होते है । चक्रों क एक आय म तो उनक भौततक अश्स्तत्व है ,
लेककन उनके आध्य श्त्मक आय म भी होते हैं। इसक मतलब है कक उनको परू ी तरह से रूप ांतररत ककय
ज सकत है । उद हरण के मलए, मल
ू ध र चक्र, जो भोजन और नीांद के मलए तरसत है , अगर आपने सही
तरीके से ज गरूकत पैद कर ली है , तो वही इन चीजों से आप को परू ी तरह से मट
ु त भी कर सकत है ।
स्िाधधष्ठान
दस
ू र चक्र है ैः स्िाधधष्ठान । अगर आपकी ऊज ा स्व धधष्ठ न में सकक्रय है, तो आपके जीवन में आमोद
प्रमोद की प्रध नत होगी। आप भौततक सख
ु ों क भरपरू मज लेने की कफर क में रहें गे। आप जीवन में हर
चीज क लत्ु फ उठ एांगे।
मणिपरू क
अगर आपकी ऊज ा मणिपरू क में सकक्रय है, तो आप कमायोगी होंगे।आप दतु नय में हर तरह क क म करने
को तैय र रहें गे।
अनाहत
अगर आपकी ऊज ा अनाहत में सकक्रय है , तो आप एक सज
ृ नशील व्यश्टत होंगे।
विशद्
ु धध
इसी तरह से आपकी ऊज ा अगर विशद्
ु धध में सकक्रय है , तो आप अतत शश्टतश ली होंगे।
आज्ञा
अगर आपकी ऊज ा आज्ञ में सकक्रय है , य आप आज्ञा तक पहुांच गये हैं, तो इसक मतलब है कक बौद्धधक
स्तर पर आपने मसद्धध प ली है । बौद्धधक मसद्धध आपको श ांतत दे ती है । आपके अनुभव में यह भले ही
व स्तववक न हो, लेककन जो बौद्धधक मसद्धध आपको ह मसल हुई है , वह आपमें एक श्स्थरत और श ांतत
ल ती है । आपके आस प स च हे कुछ भी हो रह हो, य कैसी भी पररश्स्थततय ां हों, उस से कोई फका नहीां
पिेग ।

सहस्रार
एक ब र इांस न की ऊज ा सहस्रार तक पहुुँच ज ती है , तो वह प गलों की तरह परम आनांद में झूमत है ।
अगर आप त्रबन ककसी क रण ही आनांद में झूमते हैं, तो इसक मतलब है कक आपकी ऊज ा ने उस चरम
मशखर को छू मलय है ।

ऊपर की ओर धगरना

दरअसल, ककसी भी आध्य श्त्मक य ि को हम मूल ध र से सहस्र र की य ि कह सकते हैं। यह एक आय म


से दस
ू रे आय म में ववक स की य ि है , इसमें तीव्रत के स त अलग-अलग स्तर होते हैं।
आपकी ऊज ा को मूल ध र से आज्ञ चक्र तक ले ज ने के मलए कई तरह की आध्य श्त्मक प्रकक्रय एां और
स धन एां हैं, लेककन आज्ञ से सहस्र र तक ज ने के मलए कोई र स्त नहीां है । कोई भी एक ख स तरीक नहीां
है । आपको य तो छल ांग लग नी पिती है य कफर आपको उस गड्ढे में धगरन पित है , जो अथ ह है ,
श्जसक कोई तल नहीां होत । इसे ही ‘ऊपर की ओर धगरन ‘ कहते हैं। योग में कह ज त है कक जब तक
आपमें ऊपर की ओर धगरने’ की ललक नहीां है , तब तक आप वह ां पहुुँच नहीां सकते।

आप आनांद में मग्न हो सकते हैं, इतने मग्न कक पूर ववचव आपके अनुभव और समझ में एक मज क जैस
लगने लगत है । जो चीजें दस
ू रों के मलए बिी गांभीर है , वह आप के मलए एक मज क होती है ।

यही वजह है कक कई तथ कधथत आध्य श्त्मक लोग इस नतीजे पर पहुांचे हैं कक श ांतत ही परम सांभ वन
े़
है , टयोंकक वे सभी आज्ञ में ही अटके पिे हैं। व स्तव में श ांतत परम सांभ वन नहीां है । आप आनांद में मग्न
हो सकते हैं, इतने मग्न कक परू ववचव आपके अनभ
ु व और समझ में एक मज क जैस लगने लगत है । जो
चीजें दस
ू रों के मलए बिी गांभीर है , वह आप के मलए एक मज क होती है ।

लोग अपने मन को छल ांग के मलए तैय र करने में लांबे समय तक आज्ञ चक्र पर रुके रहते हैं। यही वजह है
कक आध्य श्त्मक परां पर में गुरु-मशष्य के सांबधों को महत्व ददय गय है । उसकी वजह मसफा इतनी है कक
जब आपको छल ांग म रनी हो, तो आपको अपने गुरु पर अथ ह ववचव स होन च दहए। 99.9 फीसदी लोगों
को इस ववचव स की जरूरत पिती है , नहीां तो वे छल ांग म र ही नहीां सकते। यही वजह है कक गुरु-मशष्य के
सांबांधों पर इतन महत्व ददय गय है , टयोंकक त्रबन ववचव स कोई भी कूदने को तैय र नहीां होग ।

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