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AEC ख
जन संचार और
रचनात्मक ले खन
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Eklavyasnatak 1
• Pdf notes
SATENDER PRATAP SINGH
रचनात्मक ले खन का अर्थ बताइए ?

जब मानव अपने ज्ञान के आधार पर अपने


ववचारों / भावनाओ की ं अभभव्यक्ति ले खन के
द्वारा करता है रचनात्मक ले खन कहलाता है

यह वर्थन नया होना चाहहए , वकसी की नक़ल


नहीं होनी चाहहए
Creative Writing is the art of using words to
express ideas and emotions in imaginative
ways. It encompasses various forms including
novels, poetry, and plays,
प्लेटो के समय में रचनात्मक लेखन को दै वीय
शक्ति के रूप में दे खा जाता था
रचनात्मक ले खन का महत्त्व ?
ललखना एक कला है और यह कला मनुष्य को जन्मजात प्राप्त नही ीं होती।

इसे मनुष्य कठोर साधना के द्वारा ही ग्रहण कर सकता है ।

लवलिन्न लवद्वानोीं ने िी माना है लक पढ़ने से िी 'ललखना' अलधक सुखद कला है ।

इस सींबींध में वागीश शुक्ल का मत है लक- 'पढ़ना एक ऋण का स्वीकार है , ललखना उस ऋण


की अदायगी।

लनलित रूप से एक अच्छा पाठक ही रचना के िाव और लवचार को आत्मसात कर पाता है ।


लेलकन उस िाव और लवचार की वास्तलवकता को अलिव्यक्ति दे ना प्रत्ये क लेखक के ललए
सींिव नही ीं है ।
इसके ललए एक श्रेष्ठ लेखक अपनी सृजनात्मक प्रलतिा द्वारा

उस िाव और लवचार को लेखन की लवलवध लवधाओीं में से लकसी का चयन कर


उसमें उन्हें अलिव्यक्ति दे ता है ।

दशशन और श्रवण से उत्पन्न अनुिूलतयोीं को लललपबद्ध रूप से व्यि करना,

घटनाओीं का सजीव और रोचक, स्पष्ट और सरल, सत्य और साधार लचत्रण करना


तब तक सींिव नही ीं है जब तक सींवाददाता अपनी कलम का धनी न हो।

'रचनात्मक लेखन से लेखक के व्यक्तित्त्व की िी अलिव्यक्ति सहज ही हो जाती है ।

यलद कहा जाए लक लेखन रचनाकार के व्यक्तित्व की पूणशता का एक महत्वपू णश अींग है


तो यह लबलकुल सही बात सालबत होगी
रचनात्मक ले खन के ववववध क्षेत्र बताओ ?
रचनात्मक
ले खन के ववववध
क्षेत्र

साहहत्य ववज्ञापन
पत्रकाहरता एवं
जनसंचार
साहहत्य

गद्य पद्य

कहानी काव्य
उपन्यास कववता
व्यंग गीत
संस्मरर् गजल
ननबंध रुबाई
पत्रकाहरता एवं जनसंचार

पत्रकाहरता साहहत्य ऐसा साहहत्य होता है नजसके


द्वारा हमारा ज्ञान वधथन होता है इसे सूचनात्मक
साहहत्य भी कहा जाता है
रचनात्मक ले खन के ववववध रूप बताओ ?
रचनात्मक
ले खन के ववववध नाटक और
रूप मंचीय रूप

मौखखक और कर्ात्मक
नलखखत रूप गद्य और पद्य रूप रूप
मौखखक और नलखखत रूप
मनुष्य ने जब िाषा का ज्ञान प्राप्त लकया तब उसने मौक्तखक रूप में ही अपनी
अलिव्यक्ति को आधार बनाया।

लललप के आलवष्कार के बाद िाषा ने प्रतीकोीं की व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया।

कुछ आलोचकोीं का यह िी मत रहा है लक वाक् िी अींततः एक प्रतीकव्यवस्था ही


तो है और वह िी ऐसी प्रतीक व्यवस्था लजसे वे लेखन से कही ीं अलधक महत्वपूणश
मानते हैं ।

सालहत्य और समाज के सम्बन्ोीं को किी िी नकारा नही ीं जा सकता। मनुष्य ने


जब लललप के द्वारा िाषा को सहे ज कर रखने का प्रयास लकया होगा तिी ललक्तखत
सालहत्य ने जन्म ललया होगा।
अनेक िाषावैज्ञालनक तो यह मानते हैं लक मनुष्य का जन्म बोलने के ललए ही हुआ
है इसीललए वे तकश दे ते हैं लक इस पृथ्वी पर कोई िी ऐसा समाज नही ीं लजसमें वाक्
न हो। इसीललए लवलिन्न समुदायोीं के लोग जब लमलते हैं तो परस्पर सींप्रेषण के ललए
वाक् का प्रयोग करते हैं ।

लेलकन इस मौक्तखक वाताशलाप को सालहत्य की श्रेणी में नही ीं रखा जा सकता।

प्रो. कैलाशनाथ लतवारी का मत है लक, 'लकसी िी समाज की लवचारधारा,


पररक्तस्थलतयााँ और उसकी वतशमान सोच जब ललक्तखत रूप में सालहत्य या इलतहास
के दस्तावेज बन जाते हैं तब वे लचरकाल तक मानव जालत को थाती के रूप में
प्रेरणा प्रदान करते रहते हैं ।
गद्य और पद्य रूप
िारतीय िाषाओीं में ही नही ीं वरन् लवश्व की सिी िाषाओीं में सालहत्य लेखन का आरीं ि
पद्यात्मक रूप में ही हुआ।

सींस्कृत में तो सालहक्तत्यक रचना को काव्य की सींज्ञा से ही अलिलहत लकया जाता रहा है ।

लललप के आगमन से पूवश सींपूणश सालहत्य वालचक परीं परा का लनवशहन करता लदखाई दे ता है
और पद्य रूप राग, सींगीत और गायन से ही सींबद्ध रहा। इसललए इसे कींठस्थ कर पाना
सहज होने के कारण ही सालहत्य का आरीं लिक रूप पद्य में ही प्राप्त होता है ।

कथाओीं को िावात्मक स्तर पर समाज तक सलदयोीं तक पहुाँ चाने के ललए ही पदय रूप का
प्रयोग लकया गया। लेलकन आधुलनक समाज तक आते -आते समाज के बदलते पररवेश,
उसकी समस्याओीं और बौक्तद्धक लवकास के कारण ही पद्य के स्थान पर गद्य को अलधक
लवस्तार लमला।
लहीं दी की लेखन परीं परा में वतशमान समय में गद्य और पद्य दोनोीं ही लेखन-रूपोीं का
समान रूप से लेखन कायश लकया जा रहा है ।

जहााँ गद्य में कहानी, उपन्यास, नाटक आलद लवधाओीं के साथ-साथ सींस्मरण,
रे खालचत्र, यात्रावृत्त, ररपोताशज आलद अनेक नई लवधाओीं के आगमन के कारण इसे
गलत लमली

वही ीं पद्य में खण्डकाव्य, महाकाव्य, गीलतकाव्य आलद परीं परागत रूपोीं के लवस्तृत
रूप के चलते कलवता, लम्बी कलवता, गीत, गजल, रुबाई आलद अनेक काव्य-रूपोीं
को िी अपना ललया।

इससे पद्य रूप को िी अपना अक्तस्तत्व बनाए रखने में सफलता लमली। वतशमान में
गद्य और पद्य दोनोीं ही सालहत्य रूपोीं में सालहत्य समाज श्रेष्ठ लेखन कायश कर रहा
है ।
कर्ात्मक रूप
गद्य सालहत्य आधुलनक काल की वैज्ञालनक और तालकशक चेतना का पररणाम है ।

लजस तेजी से गद्य का लवकास आधुलनक युग में हुआ वह वास्तव में अिूतपू वश है ।

लवचारोीं और िावोीं को अलधक सशि रूप से अलिव्यि करने के ललए कहानी, उपन्यास,
नाटक, एकाींकी, आलोचना, लनबींध, सींस्मरण, रे खालचत्र, ररपोताशज, साक्षात्कार, जीवनी,
आत्मकथा, डायरी, गद्य-काव्य आलद गद्य-लवधाओीं ने लहीं दी सालहत्य का िींडार िर लदया।

इसीललए आधुलनक युग को गद्य युग िी कहा जाता है ।

गद्य की सवशप्रथम लवधाओीं में कथात्मक लवधाओीं को ही अलधक प्राथलमकता लमली।

गद्य की कथात्मक लवधाओीं में कहानी, उपन्यास, नाटक और एकाींकी को आरीं लिक लवधाओीं
के रूप में स्वीकार लकया जाता है ।
समय के लवकास के साथ-साथ जीवनी, आत्मकथा, सींस्मरण, रे खालचत्र आलद लवधाओीं ने िी
कथात्मक लवधाओीं में लवलशष्ट स्थान बनाया।

आधुलनक युग में कथात्मक लवधाओीं के साथ-साथ कथेतर लवधाओीं को िले ही कथात्मक
लवधाओीं के समान लवशेष स्थान नही ीं लमला हो लकींतु उसके महत्व को इस यु ग में िी नकारा
नही ीं जा सकता।

लनबींध और आलोचना जैसी लवधाओीं ने तो अपने आरीं लिक दौर से लेकर वतशमान समय तक
अपने महत्व को लसद्ध लकया हुआ है ।

स्वातींत्र्योत्तर िारत में डायरी, पत्र, साक्षात्कार आलद नवीन कथेतर लवधाओीं ने अपनी स्वतींत्र
पहचान बनायी।आधुलनक युग में व्यींग्य एक ऐसी लवधा के रूप में उिर कर आया जो
कथात्मक और कथेतर दोनोीं ही रूपोीं में प्राप्त होता है ।
नाटक और मंचीय रूप

नाटक: पाठ्य और मींचीय सालहत्य ने ही सिी लवधाओीं को जन्म लदया।

बहुत समय तक नाटक लवधा को िी 'काव्य' की सींज्ञा से ही जाना जाता था।

लेलकन धीरे -धीरे नाटक ने सालहत्य में अपना एक अलग स्थान बनाया।

नाटक के सींबींध में कहा जाता है लक वह एक प्रयोगधमी कला है ।...

नाट्यानुिूलत के स्तर पर नाटककार की समाज को दे खने की सौद


ीं यशदृलष्ट और उसे अलिव्यि
करने की सृजनशील कलात्मकता का कोई लनलित मापदण्ड नही ीं है ।
कुछ लवद्वानोीं का मत है लक नाटक एक सालहक्तत्यक रचना है

इसललए उसका पठनीय होना उसका प्रधान गुण है ।

लेलकन नाटक का मींलचत रूप सीधे तौर पर समाज से जुड़ता है

इसललए उस रीं गमींचीय लवधान पर िी लेखक से लवचार की अपेक्षा आलोचकोीं द्वारा की जाती है

कुछ आलोचक कहते हैं की सिी नाटक का रीं गमच पर मींचन करना सींिव नही ीं है
जनसंचार के ववववध माध्यम बताओ ?
जन्सचार के
माध्यम बाह्य संचार
माध्यम

वरिंट माध्यम न्यू


इले क्ट्रोननक
माध्यम इले क्ट्रोननक
माध्यम
वरिंट माध्यम अखबार , परचा , इश्तेहार , पुस्तक , पत्रिका

इले क्ट्रोननक माध्यम रे त्रियो , टीवी ,वीत्रियो , त्रिल्म

बाह्य संचार माध्यम प्रदर्शनी , नाटक , मेला

न्यू इले क्ट्रोननक माध्यम कम्प्युटर , इन्टरनेट


वरिंट मीहिया ले खन की रमुख ववशेषता बताओ ?
लप्रींट माध्यम के लेखन और पठन के ललए साक्षरता अलनवायश तत्व है ।

साक्षर व्यक्ति ही इसे पढ़ और ललख सकता है ।

लप्रींट माध्यम में पुस्तक के ललए गहन, गींिीर िाषा पर अन्य रूपोीं के ललए
लोकलप्रय िाषा का प्रयोग लकया जाता है ।

लप्रींट माध्यम, जन-उपयोगी और जन सुलि माध्यम है ।


लबना लकसी तकनीकी सहायता के इसे किी िी पढ़ा जा सकता है ।
इसललए जन साधारण को ध्यान में रखते हुए िाषा के सहज रूप का
प्रयोग जरूरी है
लप्रीं ट माध्यम दूर दराज तक के गााँ वोीं तक पहुाँ चता है ,
इसललए जन जागृलत के ललए लेखन में सींदेश दे ने का प्रयास होना चालहए।

लप्रींट माध्यम के ललए आज इलेक्ट्रॉलनक मीलडया एक बड़ी चुनौती है ।


ऐसे में रोचक- प्रसींगोीं और रोचक प्रस्तुलत का होना जरूरी है ,

लजससे पाठक को पाठ से जोड़कर रखा जा सके।


साक्षात्कार का अर्थ तर्ा इस के रमुख
तत्व बताओ ?
साक्षात्कार का अर्थ – अींग्रेजी में इसके ललए इीं टरव्यू शब्द का
प्रयोग लकया जाता है ।

सामान्य रूप से दे खा जाए तो लकसी लवषय पर लकसी लवलशष्ट


व्यक्ति के साथ प्रश्नोत्तर के माध्यम से गहन जानकारी प्राप्त करना
ही साक्षात्कार है , प्रश्ोों के माध्यम से न केवल त्रवषय की जानकारी
प्राप्त होती है बल्कि उस व्यल्कि के जीवन के पहलुओ ीं को जानने का
भी अवसर त्रमलता है ।
लवलिन्न पत्र-पलत्रकाओीं में प्रायः लनयलमत रूप से राजनेताओीं, लफल्मी
लसतारोीं के साक्षात्कार छपते हैं और पाठक बहुत रुलच लेकर उन्हें
पढ़ते हैं ।

साक्षात्कार को दो रूपोीं में बाींटा जा सकता है -

लवषय आधाररत एवीं व्यक्ति आधाररत ।


साक्षात्कार के रमुख तत्व बताओ ?

साक्षात्कार के तीन रमुख तत्व है

1) सवं ाद
2) पात्र का बाहरी और आतं ररक व्यक्तित्व
3) दृक्तिकोण
1) सवं ाद -
सवं ाद के जररए दो लोग आपस में जुड़ते हैं।
अकेला व्यल्कि कभी भी साक्षात्कार के रूप में प्रयुि नहीों हो सकता क्ोींलक इसके
ललए साक्षात्कार लेने वाला और दे ने वाला (साक्षात्कारदाता) दोनोीं का होना
जरूरी है ।

ऐसे में सोंवाद ही दोनोों के बीच प्रमुख भूत्रमका त्रनभाता है ।

सोंवाद त्रकसी त्रवचार को स्थात्रपत करने , त्रवकत्रसत करने , व्यल्कि के चररि को समझने
अथवा त्रवश्वसनीयता त्रनत्रमशत करने का काम करता है ।
2 ) पात्र का बाहरी और आतं ररक व्यक्तित्व
साक्षात्कार के माध्यम से पाठक / दशशक/श्रोता केवल लकसी व्यक्ति के बाहरी रूप-रीं ग या
नायकत्व से प्रिालवत नही ीं होता

बक्ति उसके आीं तररक द्वन्द्द्व, उसके चररत्र लनमाशण की प्रलिया और उसकी यात्रा के दौरान
उसके मानलसक सींघषश को समझना चाहता है ।

यह एक तरह की मनोवैज्ञालनक यात्रा िी है । यही कारण है लक अत्यींत सफल व्यक्तियोीं के


जीवन सींघषश को जानकर सामान्य व्यक्तियोीं के मन में िी यह उम्मीद बाँ धती है लक वह एक
लदन अवश्य सफल होगा।
3 ) दृक्तिकोण -
साक्षात्कार में प्रश्कताश और उत्तरदाता दोनोों का दृत्रिकोण उभरकर आना जरूरी है ।

जीवन, समाज, कररयर, व्यवहार, दर्शन के प्रत्रत दृत्रि को ही जानने के त्रलए साक्षात्कार
त्रलया जाता है ।

प्रत्येक व्यल्कि का एक सामात्रजक, राजनीत्रतक, दार्शत्रनक, धात्रमशक दृत्रिकोण होता है


त्रजसे हम साक्षात्कार से समझ सकते हैं
साक्षात्कार में लेखन र्ैली -

• प्रश्ोत्तर र्ैली –

• प्रश्ावली तैयार करना -


ववज्ञापन वकसे कहते हैं ? अच्छे ववज्ञापन के गुर्
बताओ ?

ववज्ञापन ले खन के समय वकन बातों का ध्यान


रखना चाहहए ?

ववज्ञापन के उद्दे श्य क्या होते हैं ?


ववज्ञापन वकसे कहते हैं

त्रवज्ञापन के माध्यम से लकसी िी उत्पाद की जानकारी सरलता से त्रमल जाती है


और उत्पाद की लबिी के ललए लविेता को भी सरल तरीका त्रमल जाता है ।

त्रवज्ञापन त्रप्रोंट एवों इलेक्ट्रॉत्रनक दोनोों ही त्रवधाओों में अत्योंत लोकत्रप्रय है ।

रे डियो के लिए विज्ञापन जजिंगि के अिंदाज में बनाए जाते हैं जजसे सन
ु कर
श्रोता उसे याद ही न करे बजकक गन ु गन
ु ा भी सके।
रे डियो विज्ञापन की भाषा सहज, सरल और आकषषक होनी चाहहए जजसका प्रयोग एफ.
एम के मध्य कुछ क्षण भर के ललए ही होता है पर फफर भी िह हमेशा के ललए याद
रह जाता है । 30 सेकंि का यह विज्ञापन दे खें- "िीको टमषररक / नहीं कॉस्मेहटक /
िीटो टमषररक आयुिेहदक क्रीम इस विज्ञापन को बाद में टीिी पर भी प्रचाररत फकया
गया और यह अत्यंत लोकवप्रय भी हुआ।
टीिी विज्ञापन तो दशषक के भीतर ब्ांि के प्रतत उत्सक
ु ता
और आग्रह जगाने का सबसे बडा माध्यम है ।

भाषा की सरलता, प्रस्तुतत की आकषषकता और बार-बार


दी जाने िाली प्रस्तुतत दशषक के मन के भीतर उस िस्तु
को खरीदने की इच्छा जगाती है ।
अच्छे ववज्ञापन
के गुर् - रेरक

सरल ववश्वशनीय
आकषथक
खरीदने की
ववज्ञापन के
इच्छा रुक्तच
उद्दे श्य -
उत्पन्न उत्पन्न
करने वाला करने वाला

ध्यान आकर्षित
उत्पाद की करना ववश्वशनीय
सूचना देना बनाना
सेल बढ़ाना

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