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जनसंचार_और_रचनात्मक_लेखन (1)
जनसंचार_और_रचनात्मक_लेखन (1)
AEC ख
जन संचार और
रचनात्मक ले खन
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Eklavyasnatak 1
• Pdf notes
SATENDER PRATAP SINGH
रचनात्मक ले खन का अर्थ बताइए ?
साहहत्य ववज्ञापन
पत्रकाहरता एवं
जनसंचार
साहहत्य
गद्य पद्य
कहानी काव्य
उपन्यास कववता
व्यंग गीत
संस्मरर् गजल
ननबंध रुबाई
पत्रकाहरता एवं जनसंचार
मौखखक और कर्ात्मक
नलखखत रूप गद्य और पद्य रूप रूप
मौखखक और नलखखत रूप
मनुष्य ने जब िाषा का ज्ञान प्राप्त लकया तब उसने मौक्तखक रूप में ही अपनी
अलिव्यक्ति को आधार बनाया।
सींस्कृत में तो सालहक्तत्यक रचना को काव्य की सींज्ञा से ही अलिलहत लकया जाता रहा है ।
लललप के आगमन से पूवश सींपूणश सालहत्य वालचक परीं परा का लनवशहन करता लदखाई दे ता है
और पद्य रूप राग, सींगीत और गायन से ही सींबद्ध रहा। इसललए इसे कींठस्थ कर पाना
सहज होने के कारण ही सालहत्य का आरीं लिक रूप पद्य में ही प्राप्त होता है ।
कथाओीं को िावात्मक स्तर पर समाज तक सलदयोीं तक पहुाँ चाने के ललए ही पदय रूप का
प्रयोग लकया गया। लेलकन आधुलनक समाज तक आते -आते समाज के बदलते पररवेश,
उसकी समस्याओीं और बौक्तद्धक लवकास के कारण ही पद्य के स्थान पर गद्य को अलधक
लवस्तार लमला।
लहीं दी की लेखन परीं परा में वतशमान समय में गद्य और पद्य दोनोीं ही लेखन-रूपोीं का
समान रूप से लेखन कायश लकया जा रहा है ।
जहााँ गद्य में कहानी, उपन्यास, नाटक आलद लवधाओीं के साथ-साथ सींस्मरण,
रे खालचत्र, यात्रावृत्त, ररपोताशज आलद अनेक नई लवधाओीं के आगमन के कारण इसे
गलत लमली
वही ीं पद्य में खण्डकाव्य, महाकाव्य, गीलतकाव्य आलद परीं परागत रूपोीं के लवस्तृत
रूप के चलते कलवता, लम्बी कलवता, गीत, गजल, रुबाई आलद अनेक काव्य-रूपोीं
को िी अपना ललया।
इससे पद्य रूप को िी अपना अक्तस्तत्व बनाए रखने में सफलता लमली। वतशमान में
गद्य और पद्य दोनोीं ही सालहत्य रूपोीं में सालहत्य समाज श्रेष्ठ लेखन कायश कर रहा
है ।
कर्ात्मक रूप
गद्य सालहत्य आधुलनक काल की वैज्ञालनक और तालकशक चेतना का पररणाम है ।
लजस तेजी से गद्य का लवकास आधुलनक युग में हुआ वह वास्तव में अिूतपू वश है ।
लवचारोीं और िावोीं को अलधक सशि रूप से अलिव्यि करने के ललए कहानी, उपन्यास,
नाटक, एकाींकी, आलोचना, लनबींध, सींस्मरण, रे खालचत्र, ररपोताशज, साक्षात्कार, जीवनी,
आत्मकथा, डायरी, गद्य-काव्य आलद गद्य-लवधाओीं ने लहीं दी सालहत्य का िींडार िर लदया।
गद्य की कथात्मक लवधाओीं में कहानी, उपन्यास, नाटक और एकाींकी को आरीं लिक लवधाओीं
के रूप में स्वीकार लकया जाता है ।
समय के लवकास के साथ-साथ जीवनी, आत्मकथा, सींस्मरण, रे खालचत्र आलद लवधाओीं ने िी
कथात्मक लवधाओीं में लवलशष्ट स्थान बनाया।
आधुलनक युग में कथात्मक लवधाओीं के साथ-साथ कथेतर लवधाओीं को िले ही कथात्मक
लवधाओीं के समान लवशेष स्थान नही ीं लमला हो लकींतु उसके महत्व को इस यु ग में िी नकारा
नही ीं जा सकता।
लनबींध और आलोचना जैसी लवधाओीं ने तो अपने आरीं लिक दौर से लेकर वतशमान समय तक
अपने महत्व को लसद्ध लकया हुआ है ।
स्वातींत्र्योत्तर िारत में डायरी, पत्र, साक्षात्कार आलद नवीन कथेतर लवधाओीं ने अपनी स्वतींत्र
पहचान बनायी।आधुलनक युग में व्यींग्य एक ऐसी लवधा के रूप में उिर कर आया जो
कथात्मक और कथेतर दोनोीं ही रूपोीं में प्राप्त होता है ।
नाटक और मंचीय रूप
लेलकन धीरे -धीरे नाटक ने सालहत्य में अपना एक अलग स्थान बनाया।
इसललए उस रीं गमींचीय लवधान पर िी लेखक से लवचार की अपेक्षा आलोचकोीं द्वारा की जाती है
कुछ आलोचक कहते हैं की सिी नाटक का रीं गमच पर मींचन करना सींिव नही ीं है
जनसंचार के ववववध माध्यम बताओ ?
जन्सचार के
माध्यम बाह्य संचार
माध्यम
लप्रींट माध्यम में पुस्तक के ललए गहन, गींिीर िाषा पर अन्य रूपोीं के ललए
लोकलप्रय िाषा का प्रयोग लकया जाता है ।
1) सवं ाद
2) पात्र का बाहरी और आतं ररक व्यक्तित्व
3) दृक्तिकोण
1) सवं ाद -
सवं ाद के जररए दो लोग आपस में जुड़ते हैं।
अकेला व्यल्कि कभी भी साक्षात्कार के रूप में प्रयुि नहीों हो सकता क्ोींलक इसके
ललए साक्षात्कार लेने वाला और दे ने वाला (साक्षात्कारदाता) दोनोीं का होना
जरूरी है ।
सोंवाद त्रकसी त्रवचार को स्थात्रपत करने , त्रवकत्रसत करने , व्यल्कि के चररि को समझने
अथवा त्रवश्वसनीयता त्रनत्रमशत करने का काम करता है ।
2 ) पात्र का बाहरी और आतं ररक व्यक्तित्व
साक्षात्कार के माध्यम से पाठक / दशशक/श्रोता केवल लकसी व्यक्ति के बाहरी रूप-रीं ग या
नायकत्व से प्रिालवत नही ीं होता
बक्ति उसके आीं तररक द्वन्द्द्व, उसके चररत्र लनमाशण की प्रलिया और उसकी यात्रा के दौरान
उसके मानलसक सींघषश को समझना चाहता है ।
जीवन, समाज, कररयर, व्यवहार, दर्शन के प्रत्रत दृत्रि को ही जानने के त्रलए साक्षात्कार
त्रलया जाता है ।
• प्रश्ोत्तर र्ैली –
रे डियो के लिए विज्ञापन जजिंगि के अिंदाज में बनाए जाते हैं जजसे सन
ु कर
श्रोता उसे याद ही न करे बजकक गन ु गन
ु ा भी सके।
रे डियो विज्ञापन की भाषा सहज, सरल और आकषषक होनी चाहहए जजसका प्रयोग एफ.
एम के मध्य कुछ क्षण भर के ललए ही होता है पर फफर भी िह हमेशा के ललए याद
रह जाता है । 30 सेकंि का यह विज्ञापन दे खें- "िीको टमषररक / नहीं कॉस्मेहटक /
िीटो टमषररक आयुिेहदक क्रीम इस विज्ञापन को बाद में टीिी पर भी प्रचाररत फकया
गया और यह अत्यंत लोकवप्रय भी हुआ।
टीिी विज्ञापन तो दशषक के भीतर ब्ांि के प्रतत उत्सक
ु ता
और आग्रह जगाने का सबसे बडा माध्यम है ।
सरल ववश्वशनीय
आकषथक
खरीदने की
ववज्ञापन के
इच्छा रुक्तच
उद्दे श्य -
उत्पन्न उत्पन्न
करने वाला करने वाला
ध्यान आकर्षित
उत्पाद की करना ववश्वशनीय
सूचना देना बनाना
सेल बढ़ाना