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रहीम के दोहे

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Rयहीभ का ऩयू ा नाभ अब्दर ु यहीभ
(अब्दयु रहीभ) खानखाना था। इनका
जन्भ 17 ददसम्फय 1556 को राहौय
भें हुआ। मे फैयभ खाॊ के ऩुत्र थे। यहीभ
अकफय के नवयत्नों भें से एक थे औय
अकफय के दयफाय भें इनका भहत्त्वऩण ू र
स्थान था। यहीभ भध्ममग ु ीन दयफायी
सॊस्कृतत के प्रतततनधध कवव थे।
यहीभ ने अऩने अनुबवों को सयर औय
सहज शैरी भें प्रस्तुत ककमा।प्रस्तुत
दोहों भें यहीभ जी ने हभें नीतत व ऻान
का अनभोर ऩाठ ऩढ़ामा है ।
रहहमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फपर ना ममऱे, ममऱे गाॉठ ऩरर जाय॥

यहीभ के इन दोहों भें यहीभ जी ने हभें प्रेभ की नाजक ु ता के


फाये भें फतामा है । उनके अनुसाय प्रेभ का फॊधन ककसी नाज़क ु
धागे की तयह होता है औय इसे फहुत सॊबार कय यखना
चादहए। हभ फरऩव ू क
र ककसी को प्रेभ के फॊधन भें नहीॊ फाॉध
सकते। ज्मादा खखॊचाव आने ऩय प्रेभ रूऩी धागा चटक कय टूट
सकता है । प्रेभ रूऩी धागे मातन टूटे रयश्ते को कपय से जोड़ना
फेहद भश्ु श्कर होता है । अगय हभ कोशशशें कयके प्रेभ के रयश्ते
को कपय से जोड़ रें, तफ बी रोगों के भन भें कोई कसक तो
फनी ही यह जाती है । दस ू ये शब्दों भें, अगय एक फाय ककसी के
भन भें आऩके प्रतत प्माय की बावना भय गई, तो वह आऩको
दोफाया ऩहरे जैसा प्माय नहीॊ कय सकता। कुछ न कुछ कभी
तो यह ही जाती है ।
चटकाय -c$k ऩरर - p@
रहहमन ननज मन की बफथा, मन ही राखो गोय।
सनु न अहठऱैहैं ऱोग सफ, फाॉहट न ऱैहै कोय॥

• यहीभ के इन दोहों भें हभें यहीभ जी ने फहुत ही


काभ की सीख दी है । श्जसके फाये भें हभ सफ
जानते हैं। यहीभ जी इन ऩॊश्ततमों भें कहते हैं कक
अऩने भन का द्ु ख हभें स्वमॊ तक ही यखना
चादहए। रोग खश ु ी तो फाॉट रेते हैं। ऩयन्तु जफ
फात द्ु ख की आती है , तो वे आऩका द्ु ख सन ु
तो अवश्म रेते हैं, रेककन उसे फाॉटते नहीॊ है । ना
ही उसे कभ कयने का प्रमास कयते हैं। फश्कक
आऩकी ऩीठ ऩीछे वे आऩके द्ु ख का भज़ाक
फनाकय हॊ सी उड़ाते हैं। इसीशरए हभें अऩना द्ु ख
कबी ककसी को नहीॊ फताना चादहए।
बफथा -Vyqa गोय - i^pakr। अहठऱैहैं - mjak £@ana फाॉहट- ba\$
एकै साधे सफ सधै, सफ साधे सफ जाय।
रहहमन मऱ ू हहॊ स ॊचचफो, पूऱै पऱै अघाय॥

• प्रस्तुत ऩॊश्ततमों भें कवव हभें मह शशऺा दे ते हैं कक एक


फाय भें एक ही काभ कयने चादहए। हभें एक साथ कई
साये काभ नहीॊ कयने चादहए। ऐसे भें हभाये साये काभ
अधयू े यह जाते हैं औय कोई काभ ऩयू ा नहीॊ होता। एक
काभ के ऩयू ा होने से कई साये काभ खुद ही ऩूये हो जाते
हैं। श्जस तयह, ककसी ऩौधे को पर-पूर दे ने रामक
फनाने हे तु, हभें उसकी जड़ भें ऩानी डारना ऩड़ता है ।
हभ उसके तने मा ऩत्तों ऩय ऩानी डारकय पर प्राप्त
नहीॊ कय सकते। ठीक इसी प्रकाय, हभें एक ही प्रबु की
श्रद्ध
ृ ाऩवू क
र आयाधना कयनी चादहए। अगय हभ अऩनी
आस्था-रूऩी जर को अरग-अरग जगह व्मथर फहाएॊगे,
तो हभें कबी बी भोऺ प्राप्त नहीॊ हो सकता।
• साधे - kam मऱ
ू हहॊ - j@ स ॊचचफो - panI @alna अघाय - tPt
चचत्रकूट में रमम रहे , रहहमन अवध-नरे स।
जा ऩर बफऩदा ऩड़त है, सो आवत यह दे स॥

• इन ऩॊश्ततमों भें यहीभ जी ने याभ के वनवास


के फाये भें फतामा है । जफ उन्हें 14 वषों का
वनवास शभरा था, तो वे धचत्रकूट जैसे घने
जॊगर भें यहने के शरए फाध्म हुए थे। यहीभ
जी के अनस ु ाय, इतने घने जॊगर भें वही यह
सकता है , जो ककसी ववऩदा भें हो। नहीॊ तो,
ऐसी ऩरयश्स्थतत भें कोई बी अऩने भज़़ी से
यहने नहीॊ आएगा।
रमम rhna बफऩदा ivpiTt
दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहहॊ।
ज्यों रहीम नट कॊु डऱी, मसममहट कूहद चहि जाहहॊ॥

• प्रस्तुत ऩॊश्ततमों भें कवव ने हभें एक दोहे की


भहत्ता के फाये भें फतामा है । दोहे के चॊद शब्दों
भें ही ढे य साया ऻान बया होता है , जो हभें
जीवन की फहुत सायी भहत्वऩण ू र सीख दे जाते
हैं। श्जस तयह, कोई नट कॊु डरी भायकय खद ु
को छोटा कय रेता है औय उसके फाद ऊॊचाई
तक छराॊग रगा रेता है । उसी तयह, एक दोहा
बी कुछ ही शब्दों भें हभें ढे य साया ऻान दे
जाता है । दीरघ -Ek आखर -A=r थोरे -qo@e
नट -na$kkar कॊु डऱी - sap kI trh bW#na
धनन रहीम जऱ ऩॊक को ऱघु जजय पऩयत अघाय।
उदचध फड़ाई कौन है , जगत पऩआसो जाय॥

• प्रस्तत
ु ऩॊश्ततमों भें कफीय दास जी कहते हैं कक
वह कीचड़ का थोड़ा-सा ऩानी बी धन्म है , जो
कीचड़ भें होने के फावजूद बी ना जाने ककतने
कीड़े-भकौड़ों की प्मास फुझा दे ता है । वहीीँ दस
ू यी
ओय, सागय का अऩाय जर जो ककसी की बी
प्मास नहीॊ फझ ु ा सकता, कवव को ककसी काभ का
नहीॊ रगता। महाॉ कवव ने एक ऐसे गयीफ के फाये
भें कहा है , श्जसके ऩास धन नहीॊ होने के फावजूद
बी वह दस ू यों की भदद कयता है । साथ ही एक
ऐसे अभीय के फाये भें फतामा है , श्जसके ऩास ढे य
साया धन होने ऩय बी वह दस ू यों की भदद नहीॊ
कयता ऩॊक- kml उदचध - sagr
नाद रीझझ तन दे त मग
ृ , नर धन दे त समेत।
ते रहीम ऩशु से अचधक, रीझेहु कछू न दे त॥

महाॉ ऩय कवव ने स्वाथ़ी भनष्ु म के फाये भें फतामा


है औय उसे ऩशु से बी फदतय कहा है । दहयण एक
ऩशु होने ऩय बी भधयु ध्वतन से भग्ु ध होकय
शशकायी ऩय अऩना सफ कुछ न्मोछावय कय दे ता
है । जैसे कोई भनष्ु म करा से प्रसन्न हो जाए, तो
कपय वह धन के फाये भें नहीॊ सोचता, अवऩतु वह
अऩना साया धन करा ऩय न्मोछावय कय दे ता है ।
ऩयन्तु कुछ भनष्ु म ऩशु से बी फदतय होते हैं, वे
करा का रुत़् तो उठा रेते हैं, ऩयन्तु फदरे भें
कुछ नहीॊ दे त।े नाद - ?vin रीझझ - moiht समेत - sb
कछू- ku^
बफगरी फात फनै नहीॊ, ऱाख करौ फकन कोय।
रहहमन पाटे दध
ू को, मथे न माखन होय॥

यहीभ जी ने हभें जीवन से सॊफॊधधत कई शशऺाएॉ


दी हैं औय उन्ही भें से एक शशऺा मह है कक हभें
हभेशा कोशशश कयनी चादहए कक कोई फात बफगड़े
नहीॊ। श्जस प्रकाय, अगय एक फाय दधू पट जाए,
तो कपय राख कोशशशों के फावजद ू बी हभ उसे
भथ कय भाखन नहीॊ फना सकते। ठीक उसी
प्रकाय, अगय एक फाय कोई फात बफगड़ जाए, तो
हभ उसे ऩहरे जैसी ठीक कबी नहीॊ कय सकते हैं।
इसशरए फात बफगड़ने से ऩहरे ही हभें उसे सॊबार
रेना चादहए। बफगरी ibg@I मथे mqna
रहहमन दे झख फड़ेन को, ऱघु न दीजजये डारर।
जहाॉ काम आवे सई ु , कहा करे तरवारर॥

• यहीभ जी ने हभें इस दोहे भें जो ऻान ददमा है , उसे हभें


हभेशा माद यखना चादहए। मे ऩयू ी श्जॊदगी हभाये काभ
आएगा। यहीभ जी के अनस ु ाय, हय वस्तु मा व्मश्तत का
अऩना भहत्व होता है , कपय चाहे वह छोटा हो मा फड़ा।
हभें कबी बी ककसी फड़े व्मश्तत मा वस्तु के शरए छोटी
वस्तु मा व्मश्तत की उऩेऺा नहीॊ कयनी चादहए। कवव
कहते हैं कक जहाॉ सईु का काभ होता है , वहाॊ ऩय
तरवाय कोई काभ नहीॊ कय ऩाती, अथारत तरवाय के
आकाय भें फड़े होने ऩय बी वह काभ की साबफत नहीॊ
होती, जफकक सई ु आकाय भें अऩेऺाकृत फहुत छोटी
होकय बी कायगय साबफत होती है । इसीशरए हभें कबी
धन-सॊऩश्त्त, ऊॉच-नीच व आकाय के आधाय ऩय ककसी
चीज़ की उऩेऺा नहीॊ कयनी चादहए। डारर - fekna
रहहमन ननज सॊऩनत बफना, कौ न बफऩनत सहाय।
बफनु ऩान ज्यों जऱज को, नहहॊ रपव सके फचाय॥

• प्रस्तुत ऩॊश्ततमों भें कवव हभसे कह यहे हैं कक


जफ भश्ु श्कर सभम आता है , तो हभायी खद ु
की सम्ऩश्त्त ही हभायी सहामता कयती है ।
अथारत हभें खद ु की सहामता खद ु ही कयनी
होती है , दस ू या कोई हभें उस ववऩश्त्त से नहीॊ
तनकार सकता। श्जस प्रकाय ऩानी के बफना
कभर के पूर को सम ू र के जैसा तेजस्वी बी
नहीॊ फचा ऩाता औय वह भुयझा जाता है । उसी
प्रकाय बफना सॊऩश्त्त के भनष्ु म का जीवन-
तनवारह हो ऩाना असॊबव है । जऱज - panI
रहहमन ऩान राझखए, बफनु ऩान सफ सन ू ।
ऩान गए न ऊफरै , मोत , मानष
ु , चन
ू ॥

• यहीभ जी ने अऩने दोहों भें जीवन के शरए जर के


भहत्व का वणरन ककमा है । उनके अनस ु ाय हभेशा
ऩानी को हभेशा फचाकय यखना चादहए। मह
फहुभक ू म होता है । इसके बफना कुछ बी सॊबव नहीॊ
है । बफना ऩानी के हभें न भोती भें चभक शभरेगी
औय न हभ जीववत यह ऩाएॊगे। महाॉ ऩय भनष्ु म के
सॊदबर भें कवव ने भान-भमारदा को ऩानी की तयह
फतामा है । श्जस तयह ऩानी के बफना भोती की
चभक चरी जाती है , ठीक उसी तयह, एक भनष्ु म
की भान-भमारदा भ्रष्ट हो जाने ऩय उसकी प्रततष्ठा
रूऩी चभक खत्भ हो जाती है ।
मानुष - manv चून - cmk

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