Ramavatar Yadav special issue of videha 1

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ISBN 978-93-340-7795-7 (Book)

ISSN 2229-547X(online)

�वदे ह ३९६ म अंक १५जन


ू २०२४ (वषर् १७ मास १९८ अंक
३९६)
[�वदे ह(since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004)www.videha.co.in
]

�वदे ह मै�थल� सा�हत्य आन्दोलन: मानुषी�मह संस्कृताम ्

�वदे ह-प्रथम मै�थल� पा��क ई-प�त्रका


ऐ पोथीक सिााधिकार सुरक्षि त अधि। कॉपीराइट (©) िारकक लिखित अनुमधतक विना पोथीक कोनो अं शक िाया प्रधत एिं रिकॉडिंग सहित
इिे क्‍टरॉवनक अथिा यां लिक, कोनो माध्यमस, , अथिा ्ानक सं ्रहह िा पुनप्रायोगक प्र ािी द्वारा कोनो रूपमे पुनरुत्पादन अथिा सं रारन-प्रसार नै
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मै धथिीक प्रारीनतम उपस्स्थतक रूपमे विद्यमान अधि (वकिु ददन िे ि http://videha.com/2004/07/bhalsarik-
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ई मै धथिीक पवहि इं टरने ट पलिका धथक जकर नाम िादमे १ जनिरी २००८ स, ’विदे ह’ पड़िै । इं टरने टपर मै धथिीक प्रथम उपस्स्थधतक यािा विदे ह- प्रथम
मै धथिी पाक्षिक ई पलिका िरर पह, रि अधि, जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकालशत होइत अधि। आि “भािसररक गाि” जाििृ त्त
'विदे ह' ई-पलिकाक प्रिक्‍टताक सं ग मै धथिी भाषाक जाििृ त्तक ए्रहीगे टरक रूपमे प्रयुक्‍टत भऽ रहि अधि।
(c)२०००- २०२४. विदे ह: प्रथम मै धथिी पाक्षिक ई-पलिका (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004). सम्पादक: गजे न्द्र
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Videha e-Journal: Issue No. 396 at www.videha.co.in
समानान्द्तर परम्पराक विद्यापधत- धरि विदे ह सम्मानस, सम्मावनत श्री पनकिाि मण्डि द्वारा

मै धथिी भाषा जगज्जननी सीतायााः भाषा आसीत् । हनुमन्द्ताः उक्तिान- मानु षीधमह सं स्कृ ताम् ।

अनुक्रम

ऐ अं कमे अथि:-

भार्ाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क

१.१.गजे न्द्दर ठाकुर- नूतन अं क सम्पादकीय- िै य्याकर ाराया, शब्द


प्रमा (न्द्याय): ्ान आ तत्त्ि मीमां सा: भाषाविद् रामाितार
यादि (पृ. २-५१)

२.१.प्रस्तुत विशे षां कक सं दभामे (पृ. ५४-७३)

२.२.रामाितार यादिजीक सं क्षिप्त परररय (पृ. ७४-८३)

२.३.भीमनाथ झा- 'तवहया'केँ तवहयाक' रािि- श्री रामाितार


िािू (पृ. ८४-९१)
२.४.उदयनाराय लसिंह 'नधरकेता'-रामाितार यादि जी-जे ना हम
हनका धरन्द्हने िलियवन (पृ. ९२-१००)

२.५.िीरे न्द्दर झा 'मै धथि'-भाषा िै ्ावनक प्रो. डा. रामाितार यादि


(पृ. १०१-१०४)

२.६.राम रै तन्द्य िीरज- भारोपीय भाषा पररिारिाद आ भाषा दशान


(पृ. १०५-११८)

२.७.डॉ. िनाकर ठाकुर- ध्िवनवि्ानी प्रो. डा. रामाितार यादिक


अनुसार ि रा त्नाकरक भाषा मै धथिी (पृ. ११९-१२४)

२.८.अयोध्यानाथ रौिरी- धमधथिा-मै धथिीक मूि स्तम्भ: प्रा. डा.


रामाितार यादि (पृ. १२५-१३६)

२.९.डॉ. लशि कुमार धमश्र- प्रोफेसर डा. रामाितार यादि ओ हनक


वििि अनुसंिान तकनीक (धमधथिा भारती शोि पलिकाक
सं दभामे) (पृ. १३७-१४४)

२.१०.केदार कानन-विद्वानक सत्सं ग-कथा (पृ. १४५-१५२)


२.११.सं तोष कुमार धमश्र-ओ िाद कवहया आओत (पृ. १५३-१५५)

२.१२.कवि राजीि झा 'एकान्द्त'-"वहस्टोररओ्रहाफी ऑफ मै धथिी


िे क्क्‍टसको्रहाफी"केर मनोिै ्ावनक आ आिोरनात्मक व्याख्या
(पृ. १५६-१७४)

२.१३.शै िेन्द्दर धमश्र- डॉ रामाितार यादि : मै धथिी भाषा-


सावहत्यक असाध्य काज सािििा एकटा वनष्काम कमायोगी (पृ.
१७५-१८६)

२.१४.कुन्द्दन कुमार क -ा डा. रामितार यादिस, पवहि भें टक


सं स्मर (पृ. १८७-१९०)

२.१५.आशीष अनधरन्द्हार-विलशष्ट आिे ि सं रयन केर सामान्द्य


परररय (पृ. १९१-१९९)
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 1

१.१.गजे न्द्र ठाकुर- नूतन अं क सम्पा्कीय

िै य्याकरणाचायष, शब्द प्रमाण (न्याय): ज्ञान आ तत्त्ि


मीमां सा: भार्ाविद् रामाितार यादि

वै य्याकरणाचायय लोकननक मत अछि जे शब््-ब्रह्मण बा स्फोट


अन्न्दतम सत्य अछि आ ऐ नवश्वक ननमायणक कारण से हो शब््-
ब्रह्मण अछि। शब््-ब्रह्मणक ने कोनो आद् अछि ने अन्दत, ई सभ
ठाम उपस्स्ित अछि, ई कोनो काज करबामे स्वयं सक्षम अछि आ
सभ घटनाक ई द्रष्टा अछि। आत्मा जखन अपनाकेँ ऐ शब््
ब्राह्मणसँ एकीकृत भे नाइ बुझि जाइए, मुक्त भऽ जाइए।

शब््-ब्रह्मण अछि ध्वनन ससद्धान्दत, जे शब्् आ वस्तु दू भागमे बँ नट


गे ल, मु्ा दुनू भाग एक ्ोसराक समानान्दतर। शब्् चारर भागमे
बँ नट गे ल, (१) परा (२) पश्यन्न्दत, (३) मध्यमा आ (४) वै खारी।
परा स्स्िछतमे शक्क्त आ शक्क्तमानमे पूणय ता्ात्म्य अछि।
पश्यन्न्दतमे काल जुनि गे ल आ ई सभ शब्् आ वस्तुक स्रोत अछि।
पश्यन्न्दत अछि प्रणव (ॐ) जकरा प्रछतभा से हो कहै छिऐ, पश्यन्न्दत
सभ शब््क स्रोत अछि आ प्रछतभा सभ अियक; मु्ा पश्यन्न्दत आ
प्रछतभा एक्के अछि, मात्र तकय ले ल फराक अछि। मध्यमा स्तरपर
शब्् आ वस्तुक अन्दतर छचन्दहल जाइत अछि, आ शब््क क्रम
्े खबामे अबै त अछि, मु्ा अखनो ध्वनन मस्स्तष्क धरर सीछमत
अछि। वै खारी स्तरपर शब्् वस्तुक बोध करबै त अछि आ कण्ठ,
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्ाँ त, मूधाय, झजह्वा आद्सँ छचन्न्दहत होइत अछि आ बहराइत अछि।


प्रारम्भमे शब्् ब्रह्म रहै त अछि सत् , जइमे छचत, आनन्द्, ज्ञान,
इच्छा, नक्रया सभ अछि, स्वातं त्र्य शक्क्त आ काल से हो अछि। फेर
सत अपनाकेँ काल केर म्छत सँ नवभाझजत करऽ चाहै ए आ छचत
आ आनन्द् अलगसँ अबै ए, फेर छचत् सँ ज्ञान आ आनन्द्सँ इच्छा
बहराइए। आ सत् बनन जाइए पश्यन्न्दत, िअ नवछधसँ ; सत् , छचत,
आनन्द्, ज्ञान, इच्छा आ नक्रयासँ । पश्यन्न्दत स्स्िछतमे शब्् आ वस्तु
बड्ड महीन रहै ए, आ एक ्ोसरामे छमज्िर रहै ए। मध्यमामे शब््
आ वस्तु अलग-अलग ्े खार होइए, मु्ा उत्पन्दन अखनो नै होइए।
मु्ा वै खारी मे शब्् आ वस्तु दू अलग-अलग धारामे उत्पन्दन होइए।

भाषाक सभसँ िोट भाग कोन अछि? वणय, प् (शब््) बा वाक्य?


मीमां सक वणयकेँ, नै य्याछयक प् केँ आ वै य्याकरणाचायय वाक्य केँ
भाषाक इकाई मानै िछि।

गं गेश उपाध्यायक तत्त्वछचन्दतामझण चारर खण्डमे नवभाझजत अछि-


१. प्रत्यक्ष (सोिाँ -सोिी), (२) अनुमान, (३) उपमान (तुलना
केनाइ, सादृश्य) आ (४) शब्् (मौन्खक गवाही)। वै ध ज्ञान प्राप्त
करबाक ई चाररटा साधन ऐ चारर खण्डमे अछि। प्रत्यक्ष, अनुमान,
उपमान आ शब््सँ अनुभव प्राप्त होइए। गं गेश उपमानकेँ
न्दयायशास्त्रमे एकटा समुछचत स्िान द्ये लन्न्दह, शब््ािय तकबाक
नवछधक रूपमे ।
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आ अही भाषाकेँ बान्दहबाक प्रयास भे ल, व्याकरण द्वारा। मीमां सक


कहै िछि जे शब्् आ ओकर अियक सं ग सम्बन्दध आद्-अनन्दत
कालसँ अछि, ई बहरायल नै अछि आ तटस्ि अछि। प्रारस्म्भक
मीमां सक ईश्वरमे नवश्वास नै करै िला मु्ा वे ्मे नवश्वास करै िला।
बौद्ध भाषाकेँ, वे ्क भाषाकेँ से हो, मानवीय काल्पननक रचना,
नवकल्प, मानै त िछि। जाक डे रीडा बौद्ध आ मीमां सकक बीच से तु
बनै िछि। ओ भाषाक प्रारम्भ ले खन कलामे मानै त िछि मु्ा तइसँ
ओ नागाजुयनसँ दूर आ भतृयहररक व्याकरण नवचारसँ लग आनब जाइ
िछि। ओना डे रीडा बौद्ध सन भाषाकेँ आ्शयवा्ी बने बाक नवरुद्ध
िछि, आ नवषयननष्ठताक पक्षधर िछि।

पारम्पररक व्याकरण आ आधुवनक भार्ाविज्ञानक बीच


तुलनात्मक अध्ययन- जजयान ली आ ककिंग ममिंग ली
[माननवकी आ नव्े शी भाषा सं काय, सशयान प्रौद्योनगकी
नवश्वनवद्यालय, शान्दसी सशयान, चीन] [सशक्षा, प्रबं धन, वाझणज्य
आ समाज पर अं तरायष्रीय सम्मे लन (ईएमसीएस २०१५) पृ. २८७-
२९१]

पारम्पररक व्याकरण

सबसँ प्राचीन व्याकरणक रूपमे , पारम्पररक व्याकरणक उत्पसि


१५म शताब््ी ईसा पूवयमे भे ल िल, जानहमे यूनानमे प्ले टो आ
अरस्तू आ भारतमे पाझणनी नामक सं स्कृत नवद्वान िलाह। नवसभन्दन
रोमन आ प्रारस्म्भक ईसाई युगक ले खक लोकनन से हो पारम्पररक
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व्याकरणमे योग्ान ्े लनन, मु्ा पारम्पररक व्याकरणकार सभ


१८म शताब््ीमे सबसँ प्रभावशाली रूपेँ सलखब प्रारम्भ कयलनन,
ओइ समयक जखन अङ्ग्रे जीकेँ एकटा अलग भाषाक रूपमे
गम्भीरतासँ ले ल जाय लागल िल, ने नक मात्र एकटा आन
स्िानीय भाषाक सन। पारम्पररक व्याकरणक नवशे षताकेँ एना
छचसत्रत कयल जा सकैत अछि। पनहल, व्याकरणक एकटा मुख्य
नवशे षता ई अछि जे सामान्दयतः अिय पर आधाररत अछि।
पारम्पररक व्याकरणक अनुसार, वाक्य शब््क एकटा समूह अछि
जे पूणय नवचारकेँ व्यक्त करै त अछि। पारम्पररक व्याकरण प्रायः
एकर अिय आ अिय सँ रूप धरर नवश्ले षण करै त अछि। भाषा
सशक्षणक दृछष्टकोणसँ पारम्पररक व्याकरण भाषाई घटनाक
व्यवस्स्ित वणयन ननह ्ै त अछि। ई प्रायः सतह स्तर पर वणयन ्ै त
िै क आ प्रायः कोनो वाक्यक नवश्ले षण अलग-िलग करै त िै क
ने नक प्रवचन स्तर पर । आ कखनो-कखनो ई नबना वणयन स्तरक
से हो होइत िै क, तेँ ई सशक्षककेँ ओइ भाषाक सं तोषजनक नववरण
ननह ्ै त िै क जे ओ पढा रहल िछि, आ िात्रकेँ ओनह भाषाक
पयायप्त नववरण ननह ्ै त िै क जकरा ओकरा ससखबाक
आवश्यकता िै क। पारम्पररक व्याकरण सामान्दयतः मौन्खक
भाषापर नवचार आ अध्ययन कयने नबना सलन्खत भाषाक वणयन
करै त अछि। आ सं गनह, ई सलन्खत केँ मौन्खक रूपसँ भ्रछमत करै त
अछि, मु्ा जे ना नक हम जनै त िी, मौन्खक भाषाक प्रणाली
सलन्खत भाषासँ नकिु ह् धरर सभन्दन अछि। तेँ पारम्पररक व्याकरण
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िात्र सभ ले ल मौन्खक सं चारक तं त्र प्राप्त ननह कऽ सकैत अछि।


आ पारम्पररक व्याकरण आकृछत नवज्ञान आ वाक्यनवन्दयासकेँ
एकटा प्रमुख स्िान ्ै त अछि, पारम्पररक व्याकरणमे ले क्क्सस आ
ध्वनननवज्ञानक उपचार बहुधा अपयायप्त होइत अछि। एकर
नुकसानक बावजू्, पारम्पररक व्याकरण भाषा सशक्षण, नवद्यालय
व्याकरणक ले ल बहुत मूल्यवान अछि, आ बहुत रास लोक अखनो
मानै त िछि जे ई एकटा कायायत्मक, सुरुछचपूणय, समय-सम्माननत
तरीका अछि जे लोकसभकेँ भाषाक नवषयमे की जानबाक चाही
से ससखाबै त अछि|

आधुननक भाषानवज्ञान

आधुननक भाषानवज्ञानक आरम्भ स्स्वस भाषानव्् फर्डिनेल डी


सॉसर (१८५७-१९१३) सँ भे ल िल, झजनका प्रायः 'आधुननक
भाषानवज्ञानक जनक' आ 'एकटा एहन अनुशासनक ननपुण'
कहल जाइत अछि, जकरा 'आधुननक' बनाओल जाय (कुलर
१९७६:७)। आधुननक भाषानवज्ञान भाषाई अध्ययनक नवज्ञान
अछि। आधुननक भाषानवज्ञानक अनुसार, भाषा एकटा प्रणाली
अछि आ व्याकरणकेँ कोनो ननन्ित भाषाक व्यवस्स्ित वणयनक
रूपमे मानल जाइत अछि, चाहे ओ सलन्खत वा मौन्खक हो।
व्याकरण नवतरण मान्ं डक अनुसार सतह सं रचना तत्व सभक
नवतरणात्मक नवश्ले षणकेँ से हो सं ्र्भित करै त अछि। सं गनह,
आधुननक व्याकरणमे ध्वन्दयात्मक आ शब््ािय घटकक से हो ध्यान
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राखल जाइत अछि। सामान्दयतः आधुननक व्याकरणक मूल्यां कन


वतयमानमे प्रयोज्यता, सरलता, पूणत
य ा, स्पष्टता, आ नवरोधाभासक
अभावक आधार पर कयल जाइत अछि। आधुननक व्याकरण
वणयनात्मक व्याकरण, सं रचना व्याकरण, कायायत्मक व्याकरण,
पररवतयनकारी-जननात्मक व्याकरण (प्रकरण व्याकरण) आ बहुत
रास अन्दय व्याकरणसँ प्रारम्भ होइत अछि।

वणयनात्मक व्याकरण: वणयनात्मक व्याकरण वणयन करै त अछि जे


कोनो भाषा वास्तवमे कोना बाजल आ सलखल जाइत अछि आ ई
वणयन ननह करै त अछि जे कोनो भाषाकेँ कोना बाजल वा सलखल
जाय। वणयनात्मक व्याकरणक अनुसार, एनहमे कहल गे ल अछि जे
भाषण भाषाक मूल रूप अछि, आ बाजल आ सलखल भाषामे
अन्दतर अछि। फ्राइज एकटा प्रछतछष्ठत व्याकरणनव् िछि, हुनक
कृछत 'अमे ररकन इं स्ललश रामर' एकटा प्रससद्ध कृछत अछि। हुनक
अनुसार, सभ शब््केँ दू भागमे वगीकृत कयल गे ल अछि:
नवषयवस्तु शब्् आ कायायत्मक शब््, पारम्पररक व्याकरण जकाँ
वाणीक ्स अलग-अलग भाग ननह। नवषयवस्तु शब्् ओनह
शब््केँ सन्द्र्भित करै त अछि जकर नवभक्क्त होइत अछि आ जकर
शान्ब््क अिय होइत अछि, जे ना सं ज्ञा, नक्रया, नवशे षण आद्।
कायायत्मक शब्् ओ शब्् िै क जे सं रचना, ननधायररती, अधीनस्ि
सं योजन, सहायक आ जोर्ार शब्् तै यार करबामे महत्वपूणय
भूछमका ननमहाबै त िै क।
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 7

सं रचनात्मक व्याकरण: सं रचनात्मक व्याकरण पारम्पररक


व्याकरणसँ एक्म सभन्दन अछि। एकर ब्ला जँ व्यक्क्तगत शब््
आ ओकर काल्पननक अिय या वाक्यमे एकर वाणीक अं श-कायय
पर ध्यान केन्न्दद्रत कयल जाय तँ सं रचनात्मक व्याकरण सं रचनाक
समूह - ध्वनन, रूप, शब्् समूह, वाक्यां श - िोट सँ पै घ इकाइ धरर
काज करय पर केन्न्दद्रत अछि। सं रचनात्मक व्याकरण शब््ािय केँ
से हो ्े खै त अछि (यद्यनप एकर नकिु पूवयवती अछधवक्तालोकनन
एकर अन्े खी करबाक प्रयास कयलनन), मु्ा ई शब््ािय अियपर,
वाक्यनवन्दयास पर जोर ्ै त अछि। अिायत्, सं रचनात्मक व्याकरण
वाक्यनवन्दयास पै टनय द्वारा कएल गे ल अियक नवश्ले षण करै त िै क
जे मॉफीम आ शब्् एक ्ोसरक सं ग बनबै त िै क, पै टनय जे ना
बहुवचन रूप, सं शोधक-नक्रया या सं शोधक-नवशे षण कने क्शन,
नवषय-नवधे य कने क्शन आद्सँ बनै त िै क।

आकृछत नवज्ञान आ वाक्यनवन्दयास पर सामान्दय जोरक अछतररक्त,


सं रचनात्मक व्याकरण तीन नवशे ष रूपसँ उपयोगी नवश्ले षणात्मक
तकनीक नवकससत कयलक: परीक्षण फ्रेम, तत्काल घटक
नवश्ले षण, आ वाक्य सूत्र। टे स्ट फ्रेम नवशे ष रूपसँ स्कूलसभमे
व्याकरण पढाबै मे सहायक रहल अछि।

सं रचनात्मक व्याकरणक नोकसान ननम्नानुसार अछि:-


8 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

ई भाषाक व्याकरझणक प्रणालीक अपूणय वणयन प्रस्तुत करै त अछि,


आ व्याकरणात्मकताक अनं त श्ृंखलाक ननमायणक ले ल आवश्यक
ननयम प्र्ान ननह करै त अछि।

ई रूपात्मक आ रूप-ध्वन्दयात्मक ननयमसभपर अत्यछधक भार ्ै त


अछि, मु्ा शब््ािय सम्बन्दधपर कने कबे ध्यान ्े ल गे ल, जे ना
पारम्पररक व्याकरणमे अछि।

ई वाक्यक सतहक सं रचना आ कते को गहींर सामान्दयीकरणक


गलत ननमायणक वणयन करै त अछि।

सं रचनात्मक व्याकरण वाक्यक व्याकरझणकता आ


व्याकरणात्मकताक नडरी ननधायररत करबाक ले ल एकटा मान्ण्ड
्ै त अछि। आ ई स्पष्ट समि आ सही उपयोगक गारं टी ्े बाक ले ल
पयायप्त स्पष्टीकरण ननह ्ै त अछि। एनहसँ सशक्षािी त्रुनट कऽ सकैत
िछि।

एनहमे अियक उपचारकेँ शाछमल ननह कयल गे ल अछि, मु्ा यद्


अियकेँ ध्यान मे ननह राखल जायत तँ कोनो व्याकरझणक
नवश्ले षणक कोनो उपयोग ननह होयत।

ई आओर दूटा महत्वपूणय क्षे त्रक ले ल सं तोषजनक आधार प्र्ान


ननह करै त अछि: रचनात्मक नवश्ले षण आ व्यावहाररक
भाषानवज्ञानमे अनुवा्।
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 9

पररवतयनकारी- जननात्मक व्याकरण Transformational-


generative Grammar: पररवतयनकारी-जननात्मक
व्याकरण, टीजी व्याकरण, नॉमयन, चोम्स्की द्वारा नवकससत कयल
गे ल अछि। ई १९५७ मे प्रकट भे ल जखन भाषानवज्ञानमे एकटा
क्रां छत भे ल। नकिु भाषानवज्ञानीक अनुसार, टीजी व्याकरण
[Transformational-generative Grammar]
पारम्पररक व्याकरण आ सं रचनात्मक व्याकरणक योग्ानक
सं श्लेषण अछि। जतय धरर सं रचनात्मक व्याकरणक सवाल अछि,
चोम्स्की अपन व्याकरणक पनहल चरणक रूपमे आईसीए
(तत्काल घटक नवश्ले षण)क पुनर्निमायण कयलनन, मु्ा ओ बहुत
आगू बढलाह आ अपन कते को चरणसँ गुजरल औपचाररकतामे
सटीकताक माँ गकेँ पूरा कयलनन जे ना- शास्त्रीय ससद्धां त, मानक
ससद्धां त, नवस्ताररत ससद्धां त, आ सं शोछधत नवस्ताररत ससद्धां त।

पनहल चरण- प्रछतननछध कृछत, 'वाक्यात्मक


सं रचना'[Syntactic Structure], ई सं ्भय मुक्त सं रचना
द्वारा उत्पाद्त वाक्यसभक अनं त समूहसँ सम्बन्न्दधत अछि। ई मूल
पररवतयनकारी ननयम बनबै त अछि। ्ोसर चरण- प्रछतननछध कृछत
'वाक्यनवन्दयासक ससद्धां तक पहलू'[Aspects of the
Theory of Syntax ] क सङ्ग्ग, मूल वाक्यनवन्दयास
ससद्धान्दतकेँ व्याकरणक एकटा सामान्दय ससद्धां त धरर नवस्ताररत
कयल गे ल अछि जानहमे स्वरनवज्ञान आ शब््ािय सम्म्मसलत अछि।
वाक्यनवन्दयासक आधार गहींर सं रचना िै क, आ सतह सं रचना
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घटना, जे ना स्वर, शब्् क्रम आ नवषय-िं ्। नवस्ताररत ससद्धां तक


चरणमे , एतऽ ध्यान व्यक्क्तगत व्याकरणसँ सावयभौछमक
व्याकरणमे पररवर्तित भऽ गे ल अछि। एनह चरणमे , सभ
पररवतयनकारी ननयमकेँ मात्र एकटा ननयममे घटा ्े ल जाइत िै क।
सं गनह एनह चरणमे , बाधाक सावयभौछमक सूत्रीकरण नवकससत
कयल जाइत अछि। अतः टीजी व्याकरणक लाभ ई अछि : पनहल,
ई वास्तवमे वाक्यनवन्दयास स्वरनवज्ञान, शब््कोश आ शब््ाियकेँ
जोिै त अछि। तेँ ई प्रणाली भाषाक समर अवधारणा ्ै त अछि।
आओर ई तं त्र कोनो आन व्याकरझणक मॉडलक तुलनामे बे सी
सटीक आ बे सी पूणय अछि। ्ोसर, टीजी व्याकरण भाषाक बे सी
नकफायती आ व्यवस्स्ित वणयन ्ै त िै क, ई ननयमक एकटा
प्रणाली प्र्ान करै त िै क जे अनं त सं ख्यामे व्याकरझणक वाक्यक
ननमायणक अनुमछत ्ै त िै क। पारम्पररक व्याकरणक नवपरीत,
टीजी व्याकरणमे कहल गे ल ननयम बहुत स्पष्ट आ औपचाररक
रूपसँ स्पष्ट अछि। ते सर, टीजी व्याकरण हमरा सभकेँ बहुत स्पष्ट
रूपसँ ्े खबै त अछि जे ई एकटा पै घ सामान्दयीकरण शक्क्तकेँ
सं साछधत करै त अछि। ई अन्दतर्निनहत सं रचना आ ननयछमतताकेँ
से हो स्पष्ट करबामे सक्षम अछि, जकरा पारम्पररक व्याकरण आ
सं रचनात्मक व्याकरणक व्याकरणनव् अन्े खी कयलनन अछि।
चाररम, टीजी व्याकरण गहींर सं रचनाक स्तर पर भाषाक बीच
भाषाई सावयभौछमकता आ नवश्ले षणक अस्स्तत्वकेँ स्वीकार करै त
अछि। ..सं रचनात्मक व्याकरणक अनुसार, प्रत्ये क भाषा एकटा
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व्यक्क्तगत सं रचना प्रस्तुत करै त अछि। मु्ा टीजी व्याकरण


स्वीकार करै त अछि जे सभ भाषाक वणयनमे समान सामान्दय रूप
आ एक प्रकारक ननयम होइत अछि। ई पूवय सावयभौछमकता केँ
सं ्र्भित करै त अछि। आ ओ सभ सामान्दय श्े णी आ गहींर सं रचना
से हो प्रस्तुत करै त अछि आ ई मूल सावयभौछमकताकेँ सं ्र्भित करै त
अछि, आ टीजी व्याकरणक अं छतम लाभ ई अछि जे ई
व्याकरझणकता आ व्याकरणात्मकताक स्तरक धारणाकेँ छचछित
कऽ सकैत अछि जे मूल्यां कन, परीक्षण आ त्रुनट नवश्ले षणक
क्षे त्रमे अपररहायय अछि।

फंक्शनल रामर-कायायत्मक व्याकरण एम.ए.के. है सलडे द्वारा


बनाओल गे ल िल। १९५० मे एकरा व्यवस्स्ित व्याकरण कहल
गे ल िल। कायायत्मक व्याकरणमे , अियकेँ एनह उद्देश्यक रूपमे ले ल
जाइत अछि जे वक्ता चाहै त िछि जे सुनननहार बुिछि। एतय
कोनो वाक्यक अिय ओकर काययक समान होइत अछि। कायायत्मक
व्याकरणक उद्देश्य अिय आ शब््क प्रासं नगक नवकल्पक सीमाक
अध्ययन करब अछि। आ भाषाक कायायत्मक दृछष्टकोणक एकटा
महत्वपूणय नननहतािय एकर सं ्भय अछि। माने कायायत्मक व्याकरण
सं ्भयकेँ ध्यानमे रखै त अछि, आ ई भाषानवज्ञानकेँ समाजशास्त्र
द्स लऽ जाइत अछि। ओ सं स्कृछत आ समाजमे प्रासं नगक
नवशे षता सभक व्यवस्स्ित अध्ययन छिक, जे ओनह सन्द्भयक
ननमायण करै त अछि जानहमे भाषाक प्रयोग कयल जाइत अछि।
कायायत्मक व्याकरणक अनुसार, सभटा शब््केँ ओपन से ट आ
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क्लोज्ड से टमे नवभाझजत कयल जा सकैत अछि। ओपन से ट सं ज्ञा,


नक्रया, नवशे षण आ नक्रयानवशे षण अछि; ओ शान्ब््क शब्् वा
सामरी शब्् अछि। .. कायायत्मक व्याकरणमे समूह आ वाक्यां श
दूटा अलग-अलग अवधारणा अछि। समूह शब््क नवस्तार अछि,
जखन नक वाक्यां श खण्डक सं पीिन अछि। वाक्यां श नवशे ष रूपसँ
पी.पी.केँ सं ्र्भित करै त अछि; कायायत्मक व्याकरणमे सं रछचत आ
कायायत्मक ले बल से हो अछि। सं रचनात्मक ले बल तत्वसभक
सं रचनाक प्रकृछतकेँ सं ्र्भित करै त अछि, जखन नक कायायत्मक
ले बल खण्डसभक वाक्यात्मक काययकेँ सन्द्र्भित करै त अछि।

आधुननक भाषानवज्ञान आ पारम्पररक व्याकरणक बीच अन्दतर

भाषानवज्ञान वणयनात्मक अछि नन्े शात्मक ननह: अछधकां श


आधुननक भाषानवज्ञान वणयनात्मक अछि, नकएक तँ ई वणयन
करबाक प्रयास करै त अछि जे लोक वास्तवमे की कहै त िछि, ननह
नक लोककेँ की कहबाक चाही। ई भाषाक वणयन ओकर सभ
पहलूमे करै त अछि, मु्ा 'शुद्धता'क ननयम ननधायररत ननह करै त
अछि। ई पछिला शताब््ीमे भाषाक अध्ययनक नवपरीत अछि। ई
अछधकां शतः नन्े शात्मक िल। पारम्पररक व्याकरण लोकसभकेँ
भाषाक उपयोग केना करब बतबै त िल। स्कूलक सशक्षककेँ
रखरखावक ले ल अपन कतयव्यक रूपमे ्े खबाक चाही। एकर
ब्ला ओ सभ पययवेक्षक आ तथ्यक असभले खकताय बनब पससन्दन
करत, मु्ा न्दयायाधीश ननह। हुनकर मानब िनन जे प्राकृछतक
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भाषण (सं कोच, अपूणय उच्चारण, गलतफहमी आद्) मे जे नकिु


होइत िै क ओकर वणयन हुनकर नवश्ले षणमे कयल जे बाक चाही।
ओ सभ बुझि सकैत िछि जे फैशनक प्रभावक कारणेँ एक
प्रकारक भाषण ्ोसरक तुलनामे सामाझजक रूपसँ बे सी स्वीकायय
प्रतीत होइत अछि। मु्ा एनहसँ हुनका ई ननह सोचय पितनन जे
सामाझजक रूपसँ स्वीकायय नवनवधता आन सभ नकस्मक स्िान लऽ
सकैत अछि, अिवा पुरान शब्् हर्म नव वा नवपरीत सँ नीक
होइत अछि। ओ सभ भाषा आ भाषाक उपयोगमे पररवतयनकेँ
एकटा स्वाभानवक आ ननरं तर पूवायरहक पररणाम मानत, मु्ा
कोनो एहन चीजक ननह जकरा डरबाक चाही। भाषा पररवतयनकेँ
्े खल जे बाक चाही आओर वर्णित कएल जे बाक चाही। मु्ा, ई
एनह बातसँ इनकार ननह करै त अछि जे भाषाक ननयम होइत अछि।
एना स्पष्ट रूपसँ होइत अछि ननह तँ हम सभ एक ्ोसरकेँ ननह
बुझि/ बुिा सकब। ्ोसर द्स, कोनो एकल ननयम या
असभव्यक्क्त आवश्यक रूपसँ स्ाक ले ल ननह रहै त अछि।

भाषानवज्ञान बाजल जायवला भाषाकेँ प्रािछमक मानै त अछि,


सलन्खतकेँ ननह: अतीतमे , व्याकरणनव् सलन्खत शब््क महत्वपर
बे सी जोर ्े लनन अछि, आं सशक रूपसँ एकर स्िाछयत्वक कारण।
ध्वनन ररकॉर्डिगक आनवष्कारसँ पनहने क्षणभं गुर उच्चारणक
सामना करब कदठन िल। पारम्पररक शास्त्रीय सशक्षा से हो
आं सशक रूपसँ ्ोषी िल। लोकसभ शास्त्रीय कालक 'सवयश्ेष्ठ
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ले खक'क उपयोगक अनुसार भाषाकेँ ढालबा पर जोर ्े लनन आ


ई ले खक मात्र सलन्खत रूपमे अस्स्तत्वमे िलाह।

यद्यनप, तथ्यक रूपमे , नक हम सामान्दय रूपसँ मानव वाणीक


इछतहासक नवषयमे सोचै त िी जे व्यक्क्तगत वक्ता, बाजल
जायवला भाषाक भाषाई अनुभव प्रािछमक घटना छिक, आ
ले खन एकर कमोबे श अपूणय प्रछतनबम्ब छिक। हम सभ पढनाइ
ससखबासँ पनहने भाषण बुिनाइ सीखै त िी, आ सलखनाइ
ससखबासँ पनहने बजनाइ सीखै त िी। हम सभ जते क पढै त िी
ओनहसँ बे सी भाषा सुनैत िी आ सलखबासँ बे सी बजै त िी। बाजल
जायवला भाषा सामान्दयतः सलन्खत भाषासँ बे सी लचीला होइत
अछि। ई भाषाई नवकासक ने तृत्व करै त अछि, जखन नक सलन्खत
भाषा बे सी बा कम अं तराल पर ओकर अनुसरण करै त अछि।

बाजल जायवला भाषाकेँ कते को कारणसँ प्रािछमक माध्यम


मानल जाइत अछि। बाजल जायवला भाषा ऐछतहाससक रूपसँ
सलन्खत भाषासँ पनहने होइत अछि। ्ोसर शब््मे , ई सलन्खत
प्रणाली अस्स्तत्वमे अयबासँ बहुत पनहने सँ अस्स्तत्वमे िल।
आइयो बहुत रास सुनवकससत भाषामे एखन धरर सलन्खत प्रणाली
ननह अछि। आनुवंसशक रूपसँ बच्चा सभ सलखब सीखबासँ पनहने
सद्खन बाजब सीखै त अछि। आन्दहर बच्चासभकेँ बाजब
ससखबामे कोनो कदठनाई ननह होइत िै क मु्ा बनहर बच्चासभकेँ
बहुत कदठनाई होइत िै क। एनहसँ पता चलै त अछि जे दृछष्टक चै नल
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ओते क महत्वपूणय ननह अछि जे ना कोनो भाषा सीखबामे ध्वननक


चै नल।

मु्ा, ई सलन्खत भाषाक महत्वसँ इनकार करबाक ले ल ननह अछि,


जकर अपन लाभ अछि जे बाजल जायवला भाषाक ननह अछि।
पनहल, सलन्खत भाषाक सङ्ग्ग, सन्द्ेशकेँ अन्दतररक्षमे लऽ जाय
सकैत अछि। मानव आवाज मात्र कानक शॉटक भीतर प्रभावी
होइत अछि। सलन्खत भाषाक म्छत सँ , ..हम नवशाल स्िान पर
सं ्ेश भे ज आ प्राप्त कए सकैत िी। ्ोसर जे सलन्खत भाषाक
सङ्ग्ग सन्द्ेशकेँ समयक माध्यमसँ लऽ जायल जा सकैत अछि।
बाजल जायवला शब्् 'मरर जाइत अछि', मु्ा एकटा सलन्खत
सन्द्ेशकेँ उत्पा्नक क्षणसँ बहुत आगू, बहुधा पीढीसँ पीढी आ
एक सं स्कृछतसँ ्ोसर सं स्कृछतमे प्रेनषत कयल जा सकैत अछि।
ते सर, मौन्खक सं ्ेश नवकृछतक अधीन होइत िै क, या तँ
अनजानमे (जखन उ्ाहरणक ले ल गलतफहमीक कारण) बा
अन्दयिा। ्ोसर द्स, सलन्खत सं ्ेश ठीक ओनहना रहै त अछि चाहे
एक हजार साल बा् पढल जाय या ्स हजार मील दूर।

बाजल जायवला उच्चारण सलन्खत वाक्यक सङ्ग्ग बहुत रास


सामान्दय नवशे षता सािा करै त अछि, मु्ा ओ काफी अन्दतर से हो
प्र्र्शित करै त अछि। एनह ले ल भाषानव्क मानब िनन जे बाजल
जायवला रूप आ सलन्खत रूप अलग-अलग प्रणालीसँ सम्बन्न्दधत
अछि यद्यनप ओ ओवरलै प भऽ सकैत अछि। ससस्टमक अलग-
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अलग नवश्ले षण करबाक चाही: पनहने बाजल जाइत अछि, फेर


सलखल।

भाषानवज्ञान पारम्पररक व्याकरणसँ एनह ले ल सभन्दन अछि जे ई


भाषासभकेँ लै नटन-आधाररत ढाँ चामे बाध्य ननह करै त अछि:
अतीतमे , बहुत रास पारम्पररक पाठ्यपुस्तक सभ ननस्सन्द्ेह ई
मानलक अछि जे लै नटन एकटा सावयभौछमक रूपरे खा प्र्ान करै त
अछि जानहमे सभ भाषा नफट होइत अछि, आ अननगनत स्कूली
बच्चा अङ्ग्रे जीकेँ नव्े शी पै टनयमे बाध्य करबाक अियहीन प्रयाससँ
भ्रछमत भऽ गे ल अछि। उ्ाहरणक ले ल, कखनो-कखनो ई ्ावा
कयल जाइत अछि जे जॉन ले ल सन वाक्यां श 'डे नटव केस'मे
अछि। मु्ा ई स्पष्ट रूपसँ असत्य अछि, नकएक तँ अङ्ग्रे जीमे
लै नटन-प्रकारक केस ससस्टम ननह अछि। अन्दय समयमे , लै नटन
ढाँ चाक प्रभाव बे सी सूक्ष्म होइत िै क, आ तेँ बे सी भ्रामक होइत
िै क। बहुत रास लोक गलत तरीकासँ नकिु लै नटन श्े णीकेँ
'प्राकृछतक' मानय लगलाह अछि। उ्ाहरणक ले ल, सामान्दयतः ई
मानल जाइत अछि जे भूत, वतयमान आ भनवष्यक लै नटन कालक
नवभाजन अपररहायय अछि। तै यो बे सीकाल एहन भाषासभसँ भेँ ट
होइत अछि जइमे ई तीन सुव्यवस्स्ित काल भे ् ननह होइत अछि।
नकिु भाषामे कोनो नक्रयाक अवछधकेँ व्यक्त करब बे सी महत्वपूणय
अछि, चाहे ओ एकटा फराक काज हुअय बा ननरन्दतर होइबला
काज, नै नक कोनो काजकेँ समयमे ताकब।
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एकर अछतररक्त, नकिु सं रचनापर ननणयय प्रायः लै नटन मूलक


ननकलै त िै क। उ्ाहरणक ले ल, लोकसभ बे सीकाल तकय ्ै त
िछि जे 'नीक अं रेजी' स्स्प्लट इननफनननटव [स्स्प्लट
इननफनननटवमे कोनो नक्रया नवशे षण बा नक्रया नवशे षण वाक्यां श
"टू " आ " इननफनननटव " घटकमे फराक कएल जाइत अछि] सँ
बचै त अछि जे ना to humbly apologize वाक्यां शमे , जतय
to apologize केर 'नवभाजन' कयल जाइत अछि humbly
द्वारा। ई नवचार जे स्स्प्लट इननफनननटव गलत अछि से लै नटन पर
आधाररत अछि। शुद्धतावा्ी लोकनन जोर ्ै त िछि नक, चूँनक
लै नटन इननफनननटव मात्र एकटा शब्् अछि, एकर अं रे जी समकक्ष
एक शब््क यिासं भव नज्ीक होयबाक चाही। भाषानव् ले ल
एक भाषाकेँ ्ोसर भाषाक मानकसँ तुलना कऽ ननणयय करब
अकल्पनीय अछि। ओ लोकनन एनह धारणाक नवरोध करै त िछि
जे कोनो एकटा भाषा आन सभ ले ल पयायप्त रूपरे खा प्र्ान कऽ
सकैत अछि। ओ सभ एकटा सावयभौछमक ढाँ चा स्िानपत करबाक
प्रयास कऽ रहल िछि, मु्ा ई मानव जाछत द्वारा उपयोग कयल
जायवला अछधकां श भाषासभ द्वारा सािा कयल गे ल
नवशे षतासभ पर आधाररत होयत।

सारां श

यद्यनप आधुननक भाषाई आ पारम्पररक व्याकरणक बीच बहुत


अन्दतर िै क, मु्ा समकालीन व्याकरझणक नवश्ले षणमे
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नन्े शात्मक रूपसँ ननह बस्ल्क वणयनात्मक रूपसँ कयल गे ल


अछधकां श काज जे ना ओटो जे स्परसे न, डब्ल्यू. ने ल्सन फ्रां ससस आ
हे नररक पौत्स्मा सन नवद्वान द्वारा, पारम्पररक व्याकरण भाषामे
सलखल गे ल िल। कोनो आधुननक व्याकरणकेँ बुिबाक ले ल, आ
शै लीगत नवश्ले षणक स्तर पर ले खन वा सानहत्यक नवषयमे
वस्तुतः सभटा चचायकेँ बुिबाक ले ल, पारम्पररक व्याकरणसँ
ननकालल गे ल शब््ावलीक समि होयबाक चाही, यद् सम्पूणय
प्रणालीक ननह।

- झजयान ली आ ककिग ममिग ली

ने पालक मै थिली भार्ा पाठ्यपुस्तक ले ल रामाितार यादि


जीक मै थिली व्याकरणक आधारपर बनाओल मानक
उच्चारण आ ले खन शै ली

मै छिलीमे उच्चारण तिा ले खन

१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्दतगयत ङ्ग, ञ, ण, न एवं म


अबै त अछि। सं स्कृत भाषाक अनुसार शब््क अन्दतमे जानह वगयक
अक्षर रहै त अछि ओही वगयक पञ्चमाक्षर अबै त अछि। जे ना-

अङ्ग्क (क वगयक रहबाक कारणे अन्दतमे ङ्ग् आएल अछि।)

पञ्च (च वगयक रहबाक कारणे अन्दतमे ञ् आएल अछि।)


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खण्ड (ट वगयक रहबाक कारणे अन्दतमे ण् आएल अछि।)

सन्न्दध (त वगयक रहबाक कारणे अन्दतमे न् आएल अछि।)

खम्भ (प वगयक रहबाक कारणे अन्दतमे म् आएल अछि।)

उपयुयक्त बात मै छिलीमे कम ्े खल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक


ब्लामे अछधकां श जगहपर अनुस्वारक प्रयोग ्े खल जाइि।
जे ना- अं क, पं च, खं ड, सं छध, खं भ आद्। व्याकरणनव् पस्ण्डत
गोनवन्द् िाक कहब िनन जे कवगय, चवगय आ टवगयसँ पूवय अनुस्वार
सलखल जाए तिा तवगय आ पवगयसँ पूवय पञ्चमाक्षरे सलखल जाए।
जे ना- अं क, चं चल, अं डा, अन्दत तिा कम्पन। मु्ा नहन्द्ीक ननकट
रहल आधुननक ले खक एनह बातकेँ ननह मानै त िछि। ओलोकनन
अन्दत आ कम्पनक जगहपर से हो अं त आ कंपन सलखै त ्े खल
जाइत िछि।

नवीन पद्धछत नकिु सुनवधाजनक अवश्य िै क। नकएक तँ एनहमे


समय आ स्िानक बचत होइत िै क। मु्ा कतोकबे र हस्तले खन वा
मुद्रणमे अनुस्वारक िोटसन नबन्ददु स्पष्ट ननह भे लासँ अियक अनिय
होइत से हो ्े खल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-
्ोषक सम्भावना से हो ततबए ्े खल जाइत अछि। एत्िय कसँ
लऽकऽ पवगयधरर पञ्चमाक्षरे क प्रयोग करब उछचत अछि। यसँ
लऽकऽ ज्ञधररक अक्षरक सङ्ग्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु
कोनो नववा् ननह ्े खल जाइि।
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२.ढ आ ढ : ढक उच्चारण "र् ह"जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ


"र् ह"क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ सलखल जाए। आनठाम
खासल ढ सलखल जएबाक चाही। जे ना-

ढ = ढाकी, ढे की, ढीठ, ढे उआ, ढङ्ग्ग, ढे री, ढाकनन, ढाठ आद्।

ढ = पढाइ, बढब, गढब, मढब, बुढबा, साँ ढ, गाढ, रीढ, चाँ ढ,


सीढी, पीढी आद्।

उपयुयक्त शब््सभकेँ ्े खलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया


शब््क शुरूमे ढ आ मध्य तिा अन्दतमे ढ अबै त अछि। इएह ननयम
ड आ िक सन्द्भय से हो लागू होइत अछि।

३.व आ ब : मै छिलीमे "व"क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मु्ा


ओकरा ब रूपमे ननह सलखल जएबाक चाही। जे ना- उच्चारण :
बै द्यनाि, नबद्या, नब, ्े बता, नबष्णु, बं श, बन्द्ना आद्। एनहसभक
स्िानपर क्रमशः वै द्यनाि, नवद्या, नव, ्े वता, नवष्णु, वं श, वन्द्ना
सलखबाक चाही। सामान्दयतया व उच्चारणक ले ल ओ प्रयोग कएल
जाइत अछि। जे ना- ओकील, ओजह आद्।

४.य आ ज : कतहु-कतहु "य"क उच्चारण "ज"जकाँ करै त


्े खल जाइत अछि, मु्ा ओकरा ज ननह सलखबाक चाही।
उच्चारणमे यज्ञ, जद्, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आद्
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कहल जाएवला शब््सभकेँ क्रमशः यज्ञ, यद्, यमुना, युग, याबत,


योगी, यदु, यम सलखबाक चाही।

५.ए आ य : मै छिलीक वतयनीमे ए आ य दुनू सलखल जाइत अछि।

प्राचीन वतयनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आद्।

नवीन वतयनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आद्।

सामान्दयतया शब््क शुरूमे ए मात्र अबै त अछि। जे ना एनह, एना,


एकर, एहन आद्। एनह शब््सभक स्िानपर यनह, यना, यकर,
यहन आद्क प्रयोग ननह करबाक चाही। यद्यनप मै छिलीभाषी
िारूसनहत नकिु जाछतमे शब््क आरम्भोमे "ए"केँ य कनह
उच्चारण कएल जाइत अछि।

ए आ "य"क प्रयोगक प्रयोगक सन्द्भयमे प्राचीने पद्धछतक


अनुसरण करब उपयुक्त मानन एनह पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल
गे ल अछि। नकएक तँ दुनूक ले खनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक
बात ननह अछि। आ मै छिलीक सवयसाधारणक उच्चारण-शै ली यक
अपे क्षा एसँ बे सी ननकट िै क। खास कऽ कएल, हएब आद्
कछतपय शब््केँ कैल, है ब आद् रूपमे कतहु-कतहु सलखल जाएब
से हो "ए"क प्रयोगकेँ बे सी समीचीन प्रमाझणत करै त अछि।

६.नह, हु तिा एकार, ओकार : मै छिलीक प्राचीन ले खन-परम्परामे


कोनो बातपर बल ्ै त काल शब््क पािाँ नह, हु लगाओल जाइत
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िै क। जे ना- हुनकनह, अपनहु, ओकरहु, तत्कालनह, चोट्टनह, आनहु


आद्। मु्ा आधुननक ले खनमे नहक स्िानपर एकार एवं हुक
स्िानपर ओकारक प्रयोग करै त ्े खल जाइत अछि। जे ना- हुनके,
अपनो, तत्काले , चोट्टे, आनो आद्।

७.ष तिा ख : मै छिली भाषामे अछधकां शतः षक उच्चारण ख होइत


अछि। जे ना- षड्यन्दत्र (खियन्दत्र), षोडशी (खोिशी), षट् कोण
(खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्दतोष (सन्दतोख) आद्।

८.ध्वनन-लोप : ननम्नसलन्खत अवस्िामे शब््सँ ध्वनन-लोप भऽ


जाइत अछि:

(क)नक्रयान्दवयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि।


ओनहमे सँ पनहने अक उच्चारण ्ीघय भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ
लोप-सूचक छचि वा नवकारी (' / ऽ) लगाओल जाइि। जे ना-

पूणय रूप : पढए (पढय) गे लाह, कए (कय) ले ल, उठए (उठय)


पितौक।

अपूणय रूप : पढ' गे लाह, क' ले ल, उठ' पितौक।

पढऽ गे लाह, कऽ ले ल, उठऽ पितौक।

(ख)पूवयकासलक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ


जाइि, मु्ा लोप-सूचक नवकारी ननह लगाओल जाइि। जे ना-
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 23

पूणय रूप : खाए (य) गे ल, पठाय (ए) ्े ब, नहाए (य) अएलाह।

अपूणय रूप : खा गे ल, पठा ्े ब, नहा अएलाह।

(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण नक्रयाप्, सं ज्ञा, ओ नवशे षण तीनूमे


लुप्त भऽ जाइत अछि। जे ना-

पूणय रूप : ्ोसरर मासलनन चसल गे सल।

अपूणय रूप : ्ोसर मासलन चसल गे ल।

(घ)वतयमान कृ्न्दतक अन्न्दतम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जे ना-

पूणय रूप : पढै त अछि, बजै त अछि, गबै त अछि।

अपूणय रूप : पढै अछि, बजै अछि, गबै अछि।

(ङ्ग)नक्रयाप्क अवसान इक, उक, ऐक तिा हीकमे लुप्त भऽ


जाइत अछि। जे ना-

पूणय रूप: छियौक, छियै क, िहीक, िौक, िै क, अनबतै क, होइक।

अपूणय रूप : छियौ, छियै , िही, िौ, िै , अनबतै , होइ।

(च)नक्रयाप्ीय प्रत्यय न्दह, हु तिा हकारक लोप भऽ जाइि।


जे ना-

पूणय रूप : िन्न्दह, कहलन्न्दह, कहलहुँ , गे लह, ननह।


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अपूणय रूप : िनन, कहलनन, कहलाौँ , गे लऽ, नइ, नझञ, नै ।

९.ध्वनन स्िानान्दतरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनन अपना जगहसँ


हनटकऽ ्ोसरठाम चसल जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक
सम्बन्दधमे ई बात लागू होइत अछि। मै छिलीकरण भऽ गे ल शब््क
मध्य वा अन्दतमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनन
स्िानान्दतररत भऽ एक अक्षर आगाँ आनब जाइत अछि। जे ना- शनन
(शइन), पानन (पाइन), ्ासल ( ्ाइल), मानट (माइट), कािु
(काउि), मासु(माउस) आद्। मु्ा तत्सम शब््सभमे ई ननयम
लागू ननह होइत अछि। जे ना- रस्श्मकेँ रइश्म आ सुधां शुकेँ सुधाउं स
ननह कहल जा सकैत अछि।

१०.हलन्दत(््)क प्रयोग : मै छिली भाषामे सामान्दयतया हलन्दत


(््)क आवश्यकता ननह होइत अछि। कारण जे शब््क अन्दतमे अ
उच्चारण ननह होइत अछि। मु्ा सं स्कृत भाषासँ जनहनाक तनहना
मै छिलीमे आएल (तत्सम) शब््सभमे हलन्दत प्रयोग कएल जाइत
अछि। एनह पोिीमे सामान्दयतया सम्पूणय शब््केँ मै छिली
भाषासम्बन्दधी ननयमअनुसार हलन्दतनवहीन राखल गे ल अछि। मु्ा
व्याकरणसम्बन्दधी प्रयोजनक ले ल अत्यावश्यक स्िानपर कतहु-
कतहु हलन्दत ्े ल गे ल अछि। प्रस्तुत पोिीमे मछिली ले खनक
प्राचीन आ नवीन दुनू शै लीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ
समे नटकऽ वणय-नवन्दयास कएल गे ल अछि। स्िान आ समयमे
बचतक सङ्ग्गनह हस्त-ले खन तिा तकननकी दृछष्टसँ से हो सरल
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 25

होबऽवला नहसाबसँ वणय-नवन्दयास छमलाओल गे ल अछि। वतयमान


समयमे मै छिली मातृभाषीपययन्दतकेँ आन भाषाक माध्यमसँ
मै छिलीक ज्ञान ले बऽ पनिरहल पररप्रेक्ष्यमे ले खनमे सहजता तिा
एकरूपतापर ध्यान ्े ल गे ल अछि। तखन मै छिली भाषाक मूल
नवशे षतासभ कुम्ण्ठत ननह होइक, ताहूद्स ले खक-मण्डल सचे त
अछि। प्रससद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार या्वक कहब िनन जे
सरलताक अनुसन्दधानमे एहन अवस्िा नकन्दनहु ने आबऽ ्े बाक
चाही जे भाषाक नवशे षता िाँ हमे पनड जाए। हमसभ हुनक
धारणाकेँ पूणय रूपसँ सङ्ग्ग लऽ चलबाक प्रयास कएलहुँ अछि।

पोिीक वणयनवन्दयास कक्षा ९ क पोिीसँ नकिु मात्रामे सभन्दन अछि।


ननरन्दतर अध्ययन, अनुसन्दधान आ नवश्ले षणक कारणे ई
सुधारात्मक सभन्दनता आएल अछि। भनवष्यमे आनहु पोिीकेँ
पररमार्जित करै त मै छिली पाठ्यपुस्तकक वणयनवन्दयासमे पूणरू
य पे ण
एकरूपता अनबाक हमरासभक प्रयत्न रहत।

कक्षा १० मै छिली ले खन तिा पररमाजयन महे न्दद्र मलं नगया/ धीरे न्दद्र
प्रेमर्षि सं योजन- गणे शप्रसा् भट्टराई ।

प्रकाशक सशक्षा तिा खे लकू् मन्दत्रालय, पाठ्यक्रम नवकास


केन्दद्र,सानोदठमी, भक्तपुर।

सवायछधकार पाठ्यक्रम नवकास केन्दद्र एवं जनक सशक्षा सामरी


केन्दद्र, सानोदठमी, भक्तपुर।
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पनहल सं स्करण २०५८ बै शाख (२००२ ई.) ।

योग्ान: सशवप्रसा् सत्याल, जगन्दनाि अवा, गोरखबहादुर ससिह,


गणे शप्रसा् भट्टराई, डा. रामावतार या्व, डा. राजे न्दद्र नवमल, डा.
राम्याल राकेश, धमे न्दद्र नवह्वल, रूपा धीरू, नीरज कणय, रमे श
रञ्जन ।

भाषा सम्पा्न- नीरज कणय, रूपा िा ।

मै थिली अकादमी, पटना द्वारा वनधाषररत मै थिली ले खन-शै ली

१. जे शब्् मै छिली-सानहत्यक प्राचीन कालसँ आइ धरर जानह


वियनीमे प्रचसलत अछि, से सामान्दयतः तानह वियनीमे सलखल जाय-
उ्ाहरणािय-

ग्राह्य

एखन

ठाम

जकर, तकर

तननकर

अछि
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 27

अग्राह्य

अखन, अखनन, एखे न, अखनी

दठमा, दठना, ठमा

जे कर, ते कर

छतनकर। (वै कस्ल्पक रूपेँ राह्य)

ऐि, अनह, ए।

२. ननम्नसलन्खत तीन प्रकारक रूप वै कस्ल्पकतया अपनाओल


जाय: भऽ गे ल, भय गे ल वा भए गे ल। जा रहल अछि, जाय रहल
अछि, जाए रहल अछि। कर' गे लाह, वा करय गे लाह वा करए
गे लाह।

३. प्राचीन मै छिलीक 'न्दह' ध्वननक स्िानमे 'न' सलखल जाय सकैत


अछि यिा कहलनन वा कहलन्न्दह।

४. 'ऐ' तिा 'औ' ततय सलखल जाय जत' स्पष्टतः 'अइ' तिा
'अउ' सदृश उच्चारण इष्ट हो। यिा- ्े खै त, िलै क, बौआ, िौक
इत्याद्।

५. मै छिलीक ननम्नसलन्खत शब्् एनह रूपे प्रयुक्त होयत: जै ह, सै ह,


इएह, ओऐह, लै ह तिा ्ै ह।
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६. ह्र्सस्व इकारां त शब््मे 'इ' के लुप्त करब सामान्दयतः अराह्य


छिक। यिा- राह्य ्े न्ख आबह, मासलनन गे सल (मनुष्य मात्रमे )।

७. स्वतं त्र ह्रस्व 'ए' वा 'य' प्राचीन मै छिलीक उद्धरण आद्मे तँ


यिावत राखल जाय, ककितु आधुननक प्रयोगमे वै कस्ल्पक रूपेँ 'ए'
वा 'य' सलखल जाय। यिा:- कयल वा कएल, अयलाह वा
अएलाह, जाय वा जाए इत्याद्।

८. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे 'य' ध्वनन स्वतः आनब जाइत अछि


तकरा ले खमे स्िान वै कस्ल्पक रूपेँ ्े ल जाय। यिा- धीआ,
अढै आ, नवआह, वा धीया, अढै या, नबयाह।

९. सानुनाससक स्वतं त्र स्वरक स्िान यिासं भव 'ञ' सलखल जाय


वा सानुनाससक स्वर। यिा:- मै ञा, कननञा, नकरतननञा वा मै आँ ,
कननआँ , नकरतननआँ ।

१०. कारकक नवभक्क्िक ननम्नसलन्खत रूप राह्य:- हािकेँ, हािसँ ,


हािेँ , हािक, हािमे । 'मे ' मे अनुस्वार सवयिा त्याज्य छिक। 'क'
क वै कस्ल्पक रूप 'केर' राखल जा सकैत अछि।

११. पूवयकासलक नक्रयाप्क बा् 'कय' वा 'कए' अव्यय


वै कस्ल्पक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यिा:- ्े न्ख कय वा
्े न्ख कए।

१२. माँ ग, भाँ ग आद्क स्िानमे माङ्ग, भाङ्ग इत्याद् सलखल जाय।
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 29

१३. अद्धय 'न' ओ अद्धय 'म' क ब्ला अनुसार ननह सलखल जाय,
ककितु िापाक सुनवधािय अद्धय 'ङ्ग' , 'ञ', तिा 'ण' क ब्ला
अनुस्वारो सलखल जा सकैत अछि। यिा:- अङ्ग्क, वा अं क,
अञ्चल वा अं चल, कण्ठ वा कंठ।

१४. हलं त छचि ननअमतः लगाओल जाय, ककितु नवभक्क्तक सं ग


अकारां त प्रयोग कएल जाय। यिा:- श्ीमान् , ककितु श्ीमानक।

१५. सभ एकल कारक छचि शब््मे सटा क' सलखल जाय, हटा
क' ननह, सं युक्त नवभक्क्तक हे तु फराक सलखल जाय, यिा घर
परक।

१६. अनुनाससककेँ चन्दद्रनबन्ददु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परं तु


मुद्रणक सुनवधािय नह समान जनटल मात्रापर अनुस्वारक प्रयोग
चन्दद्रनबन्ददुक ब्ला कयल जा सकैत अछि। यिा- हहि केर ब्ला
कहि।

१७. पूणय नवराम पासीसँ ( । ) सूछचत कयल जाय।

१८. समस्त प् सटा क' सलखल जाय, वा हाइफेनसँ जोनि क' ,


हटा क' ननह।

१९. सलअ तिा द्अ शब््मे नबकारी (ऽ) ननह लगाओल जाय।

२०. अं क ्े वनागरी रूपमे राखल जाय।


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२१.नकिु ध्वननक ले ल नवीन छचन्दह बनबाओल जाय। जा' ई ननह


बनल अछि ताबत एनह दुनू ध्वननक ब्ला पूवयवत् अय/ आय/
अए/ आए/ आओ/ अओ सलखल जाय। आनक ऎ वा ऒ सँ
व्यक्त कएल जाय।

ह./- गोनवन्द् िा ११/८/७६ श्ीकान्दत ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्दद्र िा


"सुमन" ११/०८/७६

जजयान ली आ ककिंग ममिंग ली सलखै त िछि-

अछधकां श आधुननक भाषानवज्ञान वणयनात्मक अछि, नकएक तँ ई


वणयन करबाक प्रयास करै त अछि जे लोक वास्तवमे की कहै त
िछि, ननह नक लोककेँ की कहबाक चाही। ई भाषाक वणयन ओकर
सभ पहलूमे करै त अछि, मु्ा 'शुद्धता'क ननयम ननधायररत ननह
करै त अछि। ई पछिला शताब््ीमे भाषाक अध्ययनक नवपरीत
अछि। ई अछधकां शतः नन्े शात्मक िल। पारम्पररक व्याकरण
लोकसभकेँ भाषाक उपयोग केना करब बतबै त िल।

मु्ा गोनवन्द् िा, श्ीकान्दत ठाकुर आ सुरेन्दद्र िा "सुमन" राह्य-


अराह्य ्ऽ कऽ शुद्धता आ अशुद्धताक ननणयय ्ऽ ्ै िछि।
रामावतार या्व से हो "अ रे फेरे न्दस रामर ऑफ मै छिली" मे किौ-
किौ मानकता आद्क आधारपर ननणयय ्ै त बुिाइत िछि।

अ रे फेरे न्स ग्रामर ऑफ मै थिली


विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 31

ऐ पोिीक पृष्ठ १२ पर रामावतारजी सूछचत करै त िछि जे नकिु


शब््क नाकक मे लसँ उच्चारण तिाकछित मानक मै छिलीक
लक्षण कहल जाइत अछि जकरा मै छिलीक ब्राह्मण उपभाषा से हो
कहल जाइत अछि। पृ. ३७६ पर रामावतारजी सूछचत करै त िछि
जे ओ नकिु असशझक्षत/ अद्धय-सशझक्षत ब्राह्मण युवाकेँ पनहने ्े खने
िछि जे 'ननम्न' जाछतक उमे रगर लोक केँ "ताेँ " सँ सम्बोछधत
करै त िछि, मु्ा आब (१९९६ मे ) से ब्ायस्त नै कएल जाइत अछि।

सुभाष चन्दद्र या्व सलखै िछि-मै छिलीक वै याकरण सभ सं स्कृताह


आ कहिद्आह व्याकरझणक ढाँ चा तै यार कयलनन। ओ सभ ्सलत
मै छिलीक नवसशष्टता आ सभन्दनता कें नवचार-योलय ननह बुिलनन।
डॉ. रामावतार या्व एकमात्र एहन भाषाशास्त्री िछि जे एनह पर
िोिे नवचार कयने िछि। ... एक बे र अनुरह नारायण ससन्दहा
सामाझजक सं स्िान, पटना मे एकटा काययक्रम भे ल। केन्दद्रीय भाषा
सं स्िान, मै सूर एनह काययक्रमक आयोजन कयने िल। काययक्रमक
मूल छचन्दता मै छिली भाषाक नवकास िल। नवकास कोना हो,
तानहपर अने क वक्ता अपन-अपन वक्तृता ्े लनन। डॉ. मे घन प्रसा्
से हो अपन नवचार रखलनन। हुनक भाषा मे ओते क आ्रसूचकता
ननह िलनन, जते क नवद्वत समूह कें अपे क्षा रहनन। फल ई भे ल जे
हुनक भानषक स्खलन ले ल भाषणक नबच्चनह मे बहुत
असशष्टतापूवयक हुनकर हँ सी उिाओल गे ल। ई दृश्य हमरा नवचसलत
कयने िल आ एनह तरहक भानषक असनहष्णुताक प्रछतकार हम
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तत्क्षण कयने रही। [पचपननया मै छिली -सुभाष चन्दद्र या्व;


गुलो: कला आ भाषा, २०२२ मे सं कसलत]

सुभाष चन्दद्र या्व सलखै िछि- "डॉ. रामावतार या्व एकमात्र


एहन भाषाशास्त्री िछि जे एनह पर िोिे नवचार कयने िछि।" आ
से सत्य िै कारण ओ िोिे नवचार तँ केने िछि। मु्ा से पयायप्त नै
अछि।

अ रे फेरे न्दस रामर ऑफ मै छिली मे पनहल अध्याय मै छिली


व्याकरणक सय सालक इछतहास, ्ोसर- ध्वननक व्यवस्िा आ
सलनप, ते सर- सं ज्ञा, चाररम- सवयनाम, पाँ चम- नवशे षण, िअम-
नक्रया, सातम- नक्रया-नवशे षण, आठम- मुख्य आ गौण वाक्य
प्रकार आ नौम अध्याय- सरल आ छमश् वाक्यक वाक्य-नवन्दयास
आ शब््ािय नवज्ञान पर आधाररत अछि।

फ्राइज सलखै िछि -Prescriptive and scholarly


grammars belong to a "prescientific era"; ...
the new approach- the application of two of
the methods of structural linguistics,
distributional analysis and substitution
makes it possible to dispense with the usual
eight parts of speech.[ Ch. Fries- The
Structure of English. London, 1959]
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 33

एन. एम. राये वस्का सलखै िछि- सी. फ्राइज शब्् सभकेँ चाररटा
"रूप-वगय"मे वगीकृत करै त िछि, जे सं ख्या द्वारा ननर््िष्ट अछि; आ
"प्रकायय शब््"क पन्दद्रह समूह, जे अक्षर द्वारा ननर््िष्ट अछि।
असभव्यक्क्तक चारर प्रमुख भाग (सं ज्ञा, नक्रया, नवशे षण,
नक्रयानवशे षण) जे फ्राइजक ्जय सामरीमे प्रछतस्िापनक प्रनक्रया
द्वारा स्िानपत कयल गे ल अछि, एनह तरहेँ सं ख्याकेँ िोनि कोनो
नाम ननह ्े ल गे ल अछि: वगय १, वगय २, वगय ३, वगय ४। चारर वगय
मोटा-मोटी ओनहसँ मे ल खाइत अछि जकरा अछधकां श
व्याकरणनव् सं ज्ञा आ सवयनाम, नक्रया, नवशे षण आ नक्रयानवशे षण
कहै त िछि, यद्यनप सी. फ्राइज नवशे ष रूपसँ पाठककेँ ओनह
किनक अनुवा् करबाक प्रयासक नवरुद्ध चे तावनी ्ै त िछि जे
ओ पुरान व्याकरझणक शब्् पुस्तकमे ्े खै त िछि। प्रकायय शब््क
समूहमे ननहये केवल उपसगय आ सं योजन होइत िै क, वरन् नकिु
नवसशष्ट शब्् से हो होइत िै क जकरा बे सी पारम्पररक व्याकरणनव्
एकटा नवशे ष प्रकारक सवयनाम, नक्रयानवशे षण आ नक्रयाक रूपमे
वगीकृत करै त िछि।

[MODERN ENGLISH GRAMMAR, N. M.


RAYEVSKA,
http://web.krao.kg/2_inostran/english/3.p
df]
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मै छिली व्याकरणमे लोक की बजै िछि (नववरणात्मक ननअम) केर


सं ग हुनका की बजबाक चाही (नन्े शात्मक ननअम), दुनु ्े खल
जाइत अछि। आधुननक मै छिली व्याकरणमे एकर समावे श हे बाक
चाही। औपचाररक आ अनौपचाररक भाषा (जे ना क्रमशः उपन्दयास
आ शोध-ननबन्दध), क्षे त्रीय आ आर्ििक-सामाझजक भे ् आ
नन्े शात्मक ननअमक स्स्िछतक अध्ययन समाज-भाषा-भानषकी
कहबै त अछि।

रामावतार या्व वाछचक मै छिलीपर एकटा सं रचना अपन


व्याकरणमे प्रस्तुत केने िछि।

नई ददल्ली विश्व पुस्तक मे ला २०२४- भार्ा पै िेललयनमे


रामाितार यादि आ योगे न्र प्रसाद यादि जीक आदमकद
पोस्टर
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 35

गं गेश उपाध्यायक तत्त्िथचन्तामजण

गं गेश उपाध्यायक तत्त्वछचन्दतामझण चारर खण्डमे नवभाझजत अछि-


१. प्रत्यक्ष (सोिाँ -सोिी), (२) अनुमान, (३) उपमान (तुलना
केनाइ) आ (४) शब्् (मौन्खक गवाही)। वै ध ज्ञान प्राप्त करबाक
ई चाररटा साधन ऐ चारर खण्डमे अछि।

खण्ड एक

प्रत्यक्ष

गङ्ग्गे शक आह्वान: सत्रमूर्ति सशवक आह्वानसँ ई खण्ड शुरू होइत


अछि।आ तेँ आह्वानक नवषयपर चचाय शुरू होइत अछि। ई मानल

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