Ramavatar Yadav Special Issue of Videha 5

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156 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.

in

२.१२.कनव राजीव िा 'एकान्दत'-"नहस्टोररओराफी ऑफ मै छिली


ले क्क्सकोराफी"केर मनोवै ज्ञाननक आ आलोचनात्मक व्याख्या

कवि राजीि झा 'एकान्त' (सं पकष- कनफुसकी:


9911562859 व्हाट् सप्प: 8287480484)

"वहस्टोररओग्राफी ऑफ मै थिली ले क्ससकोग्राफी"केर


मनोिै ज्ञावनक आ आलोचनात्मक व्याख्या

नव्े हक 'व्यक्क्तत्व नवशे ष' अं क ले ल जखन श्ीमान रामावतार


या्व जीक केंनद्रत आले खक आरह भे ल कने दुनवधा मे पनि
गे लहुँ । इछतहासक दृछष्ट सँ सलन्खत आले ख केँ प्रामाझणक साक्ष्य
मानल जाइि अिायत आजुक आले ख भनवष्यक इछतहास छिक।
तँ य एकतरहें इछतहासे सलखब भे ल। अनावश्यक आलोचना
पक्षपात छिक मु्ा अनुछचत मनहमामं डन से हो अपकारके छिक ।
मनुक्खक झजनगी मे काल सापे क्ष ओकर कृत्यक पररणाम से हो
्े खा पिै त िै क। ले खनी सऽ लऽ कऽ अन्दयिा नवनवध पक्ष मे
उत्कषय - अपकषय होइत रहै त िै क। असभप्राय जे कोनहुँ जीनवत
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 157

व्यक्क्त पर सलखब एक तरहें दुनू द्स धार बला तलवार पर चलबा


सन छिक कारण जीनवत व्यक्क्तक चाररसत्रक, नै छतक उत्िान आ
पतनक सं भावना शे ष रहै त िै क। सलखल आ प्रकासशत आले ख
मनुक्ख सन क्षणभं गुर ननह होइि। नवचार ऊजायक रूपमे युग-
युगां त धरर स्स्िर रहै ि आ ्े श -समाज- इछतहास कें प्रभानवत करै त
रहै त अछि।

अही सभ चलते ठाढ दुनवधा आ व्यक्क्त नवशे ष खास कऽ झजबै त


लोकक सन्द्भय मे सलखबाक अपन असभरूछचक अभावक पिाछतयो
कलम उठे बाक प्रेरक, ई तथ्य आ सत्य रहल जे मै छिली भाषाक
पररपे क्ष्य मे डॉ रामावतार या्व जी साधारण लोक ननह छिकाह ।
भारत सऽ ने पाल धरर भाषाशास्त्रीक रूपमे बे स प्रसससद्ध िन्न्दह ।
वै झश्वक मं चो पर मै छिलीक प्रछतननछधत्व करै त रहलाह अछि तँ य
मै छिलीक नहत - अनहत केँ प्रभावशाली ढं ग सँ प्रभानवत कऽ सकबा
मे से हो समिय िछि।

एकरा हमर अलहनरै ननये कहल जा सकैत अछि जे छमछिला-


मै छिली आं ्ोलन मे लगभग एक युग सऽ सनक्रय रनहतो श्ीमानक
नवशे ष नकिु पढबाक चे ष्टा ननह केलहुँ , हलाँ नक बि अवसरो ननह
लागल। एहन मे सहजनह अइ आले खक अवलम्ब बनल 'उद्यान
नकरण पस्तकालय, द्ल्ली' मे उपलब्ध डॉ या्व जीक
बहचर्चितपोिी "Histography of Maithili
Lexicography & Francis Bucanan's
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cpmparative Vocabularies"। तँ य सम्प्रछत अइ


आले ख केँ डॉ. या्वक एखन धररक सम्पूणय जीवन यात्राक
नववे चना ननह अनपतु मात्र आ केवल मात्र हुनक उपयुयक्त पोिीक
सं झक्षप्त समीक्षा कहल जा सकैि। ह ! तखन इहो सत्य जे कते को
बे र ले खकक एकटा कृछत ओकर जीवन भररक मुल्यां कनक आ
यश - अपयशक कारक बनन जाइि। हमरा जनै त उक्त पोिी प्रायह
एहने सन उ्हारण छिक। ई आले ख पोिीये क आधारे पर
मनोवै ज्ञाननक दृछष्ट सँ ले खकक व्यक्क्तत्वक ननरीक्षण, पररक्षण आ
मूल्याङ्ग्कनक प्रयास से हो छिक ।

सानहत्य आ इछतहास दुनू दूटा सभन्दन शास्त्र छिकैक । सानहत्य मे


तऽ काल्पननक सं स्प्रत्ययक आ अवयवक सं भावना रहै ि मु्ा
इछतहास मे ननह। इछतहास नवसभन्दन स्रोत सऽ उपलब्ध तथ्य आ
साक्ष्यक आधार पर सलखक जाइि तँ य एखन धरर भारतक
महाभारत आ रामायण केँ इछतहास हे बाक औपचाररक मान्दयता
नवश्व समु्ाय ननह ्े लक अछि । तिानप सानहत्य हो वा इछतहास,
नवषय वस्तुक उपस्िापन, रचनाकारक छचन्दतन आ नवचारक
प्रछतनबम्ब बनन पररचय अबस्से करबै ि । ले खकक मानससकता आ
मनोनवज्ञान अबस्से सोिाँ अबै त अछि। तँ य आइ इछतहासकारोक
वामपं िी, ्झक्षणपं िी आद्-आद् वगीकरण ्े खा पनि रहल।
अस्तु ।
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डॉ. या्वक पोिी पनढ, पोिीक कथ्य, तथ्य आ साक्ष्यक


अध्ययन, अन्दवेषण आ नवश्ले षण केने जे नकिु गप्प नवशे ष
अचं सभत वा उद्वेसलत केलक से आगाँ अपने लोकननक सोिाँ
कविदुवार प्रस्तुत अछि ।

केन्न्दद्रय नवषय आ नाआें : पोिीक नाआें बे स पै घ अछि


"Historiography of Maithili Lexicography &
Francis Buchanan's
ComparativeDictionary". पोिीक नाआें पढला सऽ
जे प्रधान पक्ष बुिा पिै ि से अछि, "Historiography of
Maithili Lexicography" आ तँ य सहजनह शे ष पक्ष
"Francis Buchanan's Comparative
Dictionary" गौण नवषय होबक बोधक होइत अछि । मु्ा से
अछि ठीक एकर नवपररत।

फररि सऽ पोिीक केन्न्दद्रय नवषय केँ छचन्दहबाक ले ल ्े ल गे ल


नवषय सूची केँ एक बे र फेरो व्यवस्स्ित करब समीचीन बुिा पिै त
अछि।

PROLEGOMENA आ Maithili Lexicography


(पृ. सं . 1 सऽ पृ. सं . 28 धरर) ~डॉ. या्व द्वारा पोिीक पररचय,
शब््कोशक इछतहास पर नवमशय।
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The Manuscript, Francis Bucanan's Life &


Work आ Buchanan's Comperative
Vocabulary: A Critique (पृ. सं . 28 सऽ पू. सं . 59
धरर) ~फ्रां ससस बुकानन केर शब््कोशक उपलब्धता, व्यक्क्तत्व,
शब््कोश ननमायणक पृष्ठभूछम आ िोि बहुत आलोचनात्मक
व्याख्या अछि।

Buchanan's Comperative Vocabulary (पृ. सं .


60 सऽ पृ. सं . 202 धरर) ~फ्रां ससस बुकानन द्वारा सं कसलत
शब््कोश

Notes to Introduction (पृ. सं . 203 सऽ पृ. सं . 210


धरर) ~पोिी

पररचय नवषय मे आयल उल्ले ख जे ना अं रेजी मे भे ल सं स्कृत


पोिीक अनुवा् सनहत नकिु छचट्ठी, ईमे ल आद्क प्रछतसलनप ताहू
मे फ्रां ससस बुकानन केर उल्ले ख अनबते अछि नवसभन्दन सन्द्भय मे ।

Bibliography (पृ. सं . 211 सऽ पृ. सं . 227 धरर) ~सन्द्भय


स्रोतक उल्ले ख ।
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्े खल जाइ तऽ आरस्म्भक 28 पृष्ठ पोिीक नवषय मे पररचय आ


नवसभन्दन मै छिली शब््कोश आ तानहक ननमायणक पररचय अछि ।
ले खक द्वारा शब््कोशसं रहक ले ल भे ल यात्रा आ लोक सभ सऽ
भें ट-घां टक नववरण अछि। पुनह ्े खने पनहल 27 पृष्ठ एकटा
ऐछतहाससक पोिीक पररचय ले ल आ्शय बुिा पिै ि । पृष्ठ सं ख्या
28 सऽ 59 धरर घुमा नफरा कऽ फ्रां ससस बुकानन पर केंनद्रत अछि
चाहे हुनक व्यक्क्तत्व हुअय वा शब््कोश ननमायणक पृष्ठभूछम अिवा
आलोचनात्मक व्याख्या। पृष्ठ सं ख्या 60 सऽ 203 धरर तऽ नवशुद्ध
रूपें फ्रां ससस बुकाननक कम्पे रेनटव शब््कोश केर िाया प्रछतये
सं ललन अछि, तँ य कोनो गप्पे ननह हो। पृष्ठ सं ख्या 203 सऽ 227
धरर सन्द्भय रन्दि वा स्रोतक उल्ले ख ्े ने िछि जे , महत्वपूणय रनहतो
रं िक नहस्सा ननह कहल जा सकैि ।

एकर अिय भे ल जे पोिीक साियक 202 पृष्ठ मे 174 पृष्ठ मे


बुकानन िछि केन्न्दद्रय नवषय जानह मे सऽ 143 पृष्ठ तऽ नवशुद्ध
बुकाननक शब््कोशे अछि। 10 प्रछतशत जे अन्दयिा नकिु अछियो
तऽ से पोिीक भूछमका ले ल आ्शय नवषय वस्तु मानल जा सकैि
मु्ा केन्न्दद्रय नवषय हे बा हे तु कते क उपयुक्त से तऽ नवद्वाने लोकनन
कहताह। जँ मानन ली जे एकटा भाषा शास्त्रीक रूपमे स्वयं
ले खकोक दृछष्ट गे ल हे तन्न्दह तखन इहो प्रश्न ठाढ होइि जे 90
प्रछतशत नवषय वस्तु केँ न्दयून नकयै क ्े खे लन्न्दह ?
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नवश्वप्रससद्ध मानव मनोनवज्ञानी A. H. Maslow केर मोतानबक


कोनो मनुक्खक नक्रया पां च तरहक प्रेरणा सऽ ननधायररत होइि,
जकरा "Hierarchy of Need" कहल जाइि। शारीररक /
भौछतक आवश्यकता, सुरक्षा आ स्ने ह आद् प्रेरणाक सं तुष्ट भे ला
पिाछत मनुक्खक नक्रया आत्म-सम्मानक अजयन सऽ प्रेररत होइत
अछि। [1] आगाँ Constantine Sedikides & Coकेर
अध्ययनो मे Self - Potency केर अत्यं त महत्वपूणय भूछमका
ननधायररत होइि कोनहुँ व्यक्क्तक आचरण आ मचितन प्रनक्रया
पर।[2]

पोिीक नाआें ्े बक प्रयोग सऽ ले खकीय श्े य ले बक सुनवचाररत


उद्योग जँ ननह रहै त तऽ "A Critical Analysis Of
Francis Buchanan's Comparative
Dictionary & Maithili Lexicography"
तुलनात्मक दृछष्टये अछधक साियक बुिा पिै त अछि।

ननियात्मकताक सं ग तऽ नकिु कहब कदठन मु्ा ध्यातव्य जे A


Critical Analysis पोिीक नाआें मे रहने , ले खक यशक
भागी तऽ हे बे कररतछि मु्ा पोिीक 90 प्रछतशत केन्न्दद्रय नवषयो
सं ग न्दयाय होइत । कहल जा सकैि जे ले खक फ्रां ससस बुकानन
कऽ सं ग अन्दयान्दय आ 'श्े य ले बक अनावश्यक आरोप' सऽ बछच
सकैत रहछि ।
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नाआें मे अनुछचत शब्् प्रयोग : इछतहास (History) आ


इछतहासनवद्या (Historiography) दुनू मे समानता लनगतो
मौसलक सभन्दनता िै क। समय काल आ घटनाक अध्ययन इछतहास
कहबै त िै क। मु्ा इछतहास नवद्या शब््क असभप्राय बुिबा ले ल
नकिु व्याख्या कें ्े खब आवश्यक।

Britannica मे व्याख्या: Historiography, the


writing of history, especially the writing of
history based on the critical examination of
sources, the selection of particular details
from the authentic materials in those
sources, and the synthesis of those details
into a narrative that stands the test of
critical examination. The term
historiography also refers to the theory and
history of historical writing. [3]

Merriam Webster Dictionary: the writing of


history based on the critical examination of
sources, the selection of particulars from
the authentic materials, and the synthesis
of particulars into a narrative that will
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stand the test of critical methods. [4]

Collin James Dictionary: The narrative


presentation of history based on a critical
examination, evaluation, and selection of
material from primary and secondary
sources and subject to scholarly criteria. [5]

Cambridge Dictionary मे Historiography के


पररभाषा अछि ~ "The study of history and how
it is written." [6]

उपरोक्त व्याख्याक आलोक मे इछतहास नवद्याक असभप्राय भे ल


सलन्खत वा ज्ञात इछतहासक पुनव्ययवस्स्ित अध्ययन जानह सऽ
कोनहुँ नव तथ्यक प्रकट हुअय। अिायत अइ पोिीक अभीष्ट िल
के, केना आ कोन पररस्स्िछत मे मै छिलीक शब््कोशक ननमायण
केलक सं गनह अइ उद्यम केँ कोन बाह्य आ आतं ररक कारक
प्रभानवत केलक।

उपलब्ध इछतहासक समीक्षात्मक अध्ययन द्वारा नव सं कल्पनाक


स्िापना तऽ ननह भऽ सकल अछि। के केलन्न्दह शब््कोश ले खन
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तानहक उल्ले ख तऽ अछि, मु्ा जतय धरर, केना केलन्न्दह आ


शब््कोश ननमायण केँ प्रभानवत करै बला कारक तत्वक नवषय
अछि, से एकतरहें ननहये सन अछि। तँ य हमर दृछष्ट मे
नहस्टोररओराफी शब््क प्रयोग ओजन भलो ्ै त होइक मु्ा
समीचीन ननह अछि ।

मै छिलीक प्राचीनतम शब््कोशक छचन्दहान मे असफल : ले खक


पोिीक नाआें मे Historiography of Maithili
Lexicography (मै छिलीक शब््कोश नवद्याकइछतहास नवद्या)
केर साियकता ससद्ध करबाक ले ल ्े श - नव्े शक जते क शब्् सं रह
वा शब््कोश आ सं रहकिायक उल्ले ख केलन्न्दह अछि आ तानह हे तु
्े श नव्े श नपलन्न्दह अछि से प्रभानवत भलो करै त होइक, मु्ा नव
की िै क ? सभटा तऽ पूवय नवद्त आ स्वघोनषत शब््कोश छिक।
आ तँ य मै छिली शब््कोशक ज्ञात इछतहास मे कोनहुँ नवताक
सं चार ननह करै त अछि।

सि कही तऽ अइ समस्त पोिी मे इछतहासक नामे बुकाननक


शब््कोश आ बाँ की डाटा सं रहक अछतररक्त साियक आयाम मात्र
बुकाननक आलोचनात्मक व्याख्या टा अछि। ले खक नूतन
अन्दवेषणक दृछष्ट आ क्षमताक प्र्शयन ननह कऽ सकलाह अछि।

डॉ. या्व अपन पोिी मे मै छिली भाषाक इछतहास आ


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नवसशष्टाकउल्ले ख करै त वणय रत्नाकरक ननकट गे लाह अछि। वणय


रत्नाकर नवलक्षण रन्दि अछि ।कनवशे खरक नवलक्षणता कहल जा
सकैि । सुनीछत कुमार चटजी, गोनवन्द् िा, काञ्चीनाि िा
'नकरण', भुवने श्वर गुरमै ता आ महें द्र मलं नगया जानह दृछष्ट सऽ
्े खबाक प्रयास केलन्न्दह सै ह ्े खा पिलन्न्दह। [7] मु्ा तानहये
दृछष्टकोण सऽ वणयरत्नाकरक मूल्यां कन अइ पोिीक आलोक मे
ननरियक श्म छिक। उपयुयक्त कोनहुँ नवद्वान शब््कोश नवद्या
नवषयक ने नवद्वान रहछि, आ ने से अध्ययन केलन्न्दह। काव्यक
नवसभन्दन धाराक दृछष्ट सँ काव्यशास्त्रीय ननरीक्षण पररक्षण केलन्न्दह।
मु्ा ले खक सऽ तऽ Historiography of Maithili
Lexicography सलखबाक क्रम मे वणयरत्नाकरक नवमशय
ननरीक्षण पररक्षण, अन्दवेषण, मनन - मन्दिन अपे झक्षत रहय।

वणय रत्नाकर वस्तुतह एकटा नवसशष्ट तरहक शब््कोश छिक जकरा


आजुक पररभाषा मे Thesaurus वा सन्द्भय रन्दि कहल
जाइि।[8] अइ लै नटन शब््क व्युत्पसि वास्तव मे रीक भाषाक
'िे ईसाउरोस'(Thesauros)सऽ भे ल अछि जानहक अिय होइि
'खजाना', सं रहालय, स्टोर हाउस (Chest.) ।्ोसर अिां कहल
जा सकैि जे छिसॉरस केर असभप्राय भे ल पयाययवाची शब््क
खजाना कोश ।

ई आिययक नवषय जे मै छिली शब््कोशक इछतहास िनबाक ले ल


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डॉ. या्व मै छिली सानहत्यकार समाजक नकिु छचन्दहल जानल


व्यक्क्तत्व आ नव्े शी स्रोत पर टा नकयै क आसश्त रहलाह। एक
मात्र वणय रत्नाकर के शब््कोश ससद्ध केने प्रयास हुनक सलखल
पोिी ऐछतहाससक भऽ सकैत िल । मु्ा से तऽ अपने वणय
रत्नाकरक स्वरूपोकें छचन्दहबा मे असफल रनह गे लाह से हो तखन
जखन हुनक मूल उद्देश्ये शब््कोशक छचन्दहान आ नव तथ्यक
प्रछतपा्न रहन्न्दह। कहबाक प्रयोजन ननह जे मै छिलीक इछतहास मे
गौरवक स्िान सुननन्ित करबा सऽ चुनक गे लाह।

मै छिलीक भाषाइ अस्स्मता भं जन : अपना पोिी मे डॉ. या्व


मै छिली भाषाक इछतहास तकैत मै छिलीक भाषोत्पसि सन्द्भय मे
सलखने िछि, "Lately, in contradistinction to
contemporary knowledge on the probable
time of the origins of the New Indo-Aryan
languages, including Maithili, Dhiraj (2019:
127) has unabashedly reiterated his earlier
untenable position and additionally erred
into claiming about the existence of
Maithili universally believed to have
originated from the Eastern Māgadhī
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Apabhramśa (and not the Ardhamāgadhī


Apabhraṁśa, as some would erringly
suggest), branching off into West (Awadhi,
Bhojpuri), Central (Magahi, Maithili,
Angika, Kurmali), and East (Bengali,
Assamese, Oriya) New Indo-Aryan
languages (cf. Gangananda Singh 1950,
Govind Jha 1968, Tsuyoshi Nara 1979, and
Tanmoy Bhattacharya 2016) at a time
contemporaneous with the Old Indo-Aryan
Vedic Sanskrit. [9]

ई ्े न्ख हतप्रभ िी जे डॉ. या्व सभटा भाषा वै ज्ञाननक, भाषा


्ाशयननक दृछष्टकोण आ ऐछतहाससक साक्ष्य-तथ्य केँ तऽ ताख पर
रान्खये ्े लन्न्दह अनपतु ननह जानन कोन तरहक प्रेरणाक प्रभाव मे
आनब अपननह समस्त पनहलुक शोधक नवरोधाभास मे ठाढ होइत
िछि।

ई स्िानपत ऐछतहाससक तथ्य अछि जे भागलपुर आ मुंगेर द्स


मै छिलीक ्झक्षणी मानक शै ली आ छिका-छिकी शै लीक प्रयोग
होइि। [10] इहो लगभग स्पष्ट िै क जे भागलपुर नवश्वनवद्यालय
मे नबना UGC के मान्दयताक कहि्ी नवभागक अधीन बलात 2002
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अं नगका नवभाग खोसल कऽ मै छिली केँ खं नडत करबाक कुक्त्सत


प्रयास चसल रहल अछि जानह सऽ अं नगका केँ कालां तर मे नहन्द्ीक
बोली घोनषत कयल जासकय जखन नक कोनहुँ ध्वनन नवज्ञान आ
भाषा वै ज्ञाननक दृछष्ट स अं नगका एखनहुँ कहि्ी स अछधक मै छिलीक
ननकट अछि। अं नगकाक सं कल्पनो 1960 के ्शकक पिाछतये क
छिक। तानह सऽ पनहने भाषाक रूप मे मै छिली सऽ अस्स्तत्वक
कोनो साक्ष्यो ननह िै क। एकरा मै छिलीक दुभायलये कहल जा सकैि
जे भारतक मै छिली ध्वनन वै ज्ञाननक एखन धरर मै छिलीक नहत
रक्षािय कोनो तरहक प्रछतरोधक स्वर ननह उठौलन्न्दह अछि आ ने
कोनहुँ शोध आले ख प्रकासशत करा लोक समाजक मागय्शयने
केलन्न्दह अछि।

कोनहुँ भारतीय वा पािात्य भाषाशास्त्री द्वारा अधय मागधी सऽ


अं नगका के उद्भावक उल्ले ख ननह भे टैत अछि मु्ा ने पाल स्स्ित
छमछिलाक ले खक ननह जानन नकयै क, कोन आधार पर अं नगका आ
मै छिलीक उद्गम एक्कनह स्रोत सऽ सलखबाक प्रेरणा भे टलन्न्दह। नबनु
साक्ष्यक तऽ एहन कोनो बताहे सलख सकैत अछि। दुभायलय जे
मै छिलीक समकक्ष आ एक्कनह स्रोत सऽ अं नगकाक उद्भवक साक्ष्य
कोन पोिी मे भे टलन्न्दह, अधयमागधी अपभ्रं शक केन्न्दद्रय शै ली मे
मै छिली, मगही, कुरमाली सं ग अं नगका नाआें उल्ले ख कतय अछि
तानह स्रोतक स्पष्ट उल्ले ख ननह अछि। अनपतु गप्प के ते ना घुमा
नफरा कऽ सलखल गे ल अछि जानह सऽ पं नडत गोनवन्द् िा आ
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गं गानन्द् ससिह सनहत कुल चारर ले खक पर शं का जाइि। मु्ा तानह


शं काक ननराकरणक उपाय ननह ्े ल अछि।

भाषाशास्त्रीक रूपमे ख्याछत प्राप्त सुनीछत कुमार चटजी, जॉजय


रीयसयन [11], सुभद्र िा [12], पं नडत भगवद्दत [13],
भोलानाि छतवारी [14] आद् नकनकहु पोिी मे अं नगकाक
उल्ले ख ननह अछि। जतबा धरर पढबा मे आयल अछि कोनहुँ आन
उल्ले खनीय भाषा शास्त्रीक अध्ययन मे अं नगकाक इछतहासक
सन्द्भय मे नकिु ननह भे टैि ।

एहना मे ने पाल मे मै छिलीक नवखण्डन रोनक सकबा मे असफल


डा. या्वक ई पोिी मै छिलीक भाषाइ अस्स्मता पर कुठाराघात
तऽ अछिये , लोक दृछष्टमे अनावश्यक भ्रम आ आरजकताक स्स्िछत
ठाढ होइि । अिायत 'अश्विामा हतो नरो वा कं ु जरो वा' के चररतािय
करै त असत्यक स्िापना। भारत सऽ लऽ कऽ ने पाल धरर आ
ओतबे टा ननह नवश्व भरर मे पसरल अपना - अपना स्तर पर
मै छिलीक से वा मे लागल कोनट- कोनट मै छिली प्रेमीक सं ग िल
कहाओत।

ऐछतहाससक अशुसद्धक पररमाजयनक मनोवृसिक अभाव : पािात्य


नवद्वान् एले न थ्रे सर द्वारा मं डन छमश्क ब्रह्मसससद्ध पर टीका सलखै त
Bachaspati के स्िान पर Bacaspati सलखने िछि । 'Ch'
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के स्िान पर 'C' के प्रयोग प्रायह पािात्य नवद्वान् द्वारा एहने त्रुनट


भे ल अछि ।

ले खक मै छिल छिकाह, छमछिलाक मानट पानन सऽ। एहना मे आस


कयल जा सकैि जे पािात्य नवद्वान लोकननक अइ त्रुनटक
पररमाजयन कररतछि आ से ्ाछयत्वो रहन्न्दह मु्ा से प्रवृछत ननह ्े खा
पिै ि। ओहो Ch के स्िान पर C के प्रयोगे केलन्न्दह अछि । [15]

ननष्कषय : उक्त पोिी आ तानह लािे ले खकक मनोनवज्ञानक


मूल्याङ्ग्कन सऽ जे फररि होइि तानह आधार पर ई कहबा मे
सं कोच ननह जे फ्रां ससस बुकानन अइ पोिीक केन्न्दद्रय नवषय िछि
आ तानह नवषयकें यिे ष्ट श्े य ननह ्े ल गे ल अछि। इहो कहबा मे
सं कोच ननह जे शब््कोशक इछतहास सलखबा काल ले खक केँ
शब््कोशक नवनवध स्वरूपक नवषय मे फररि सऽ ज्ञान रहल है ब,
ननह बुिा पिै त अछि। आ तकरे पररणाम छिक जे वणयरत्नाकरक
वास्तनवक स्वरुपो छचन्दह सकबा मे असफल रहलाह। आ इहो सत्य
जे "Historiography of Maithili
Lexicography" मै छिलीक भाषा सानहत्य- शब््कोश
नवषयक ऐछतहाससक पोिी ननह बनन सकल अछि ।

जहाँ धरर मै छिलीक भाषाइ अस्स्मताक प्रश्न अछि ई पोिी किमनप


मै छिलीक प्रछत सं वे्नशील हृ्यक प्रछतनबन्म्बत ननह छिक आ
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अनावश्यक भ्रम पसरै त अछि। समकालीन ले खकक प्रछत लोक


समाज मे आक्रोश आ शं का पसारै त अछि, का्ो फेकैत अछि।

एहन ननह जे मै छिलीक नहत छचन्दतक सं घषय ननह करत वा हाररये


जायत। इहो ननहजे डॉ. या्व के उल्ले ख मात्र सऽ नकिु प्रमाझणत
भऽ जायत मु्ा भाषाइ राजनीछत मे कमजोर पिै त मै छिलीक
नवरोधी केँ एकटा सशक्त उल्ले ख (reference) केर हछियार
भे ट गे लैक अछि आ मै छिलीक ले ल सं कट अबस्से ठाढ होइत
अछि।

ने पाल मे जखन मै छिलीक नवघटन ्े न्ख रहल िी । पछिमा शै ली


केँ बक्ज्जका नामे पृिक भाषाक ्जाय भे ट गे लैक अछि आ
भारतोक िारखण्ड मे अं नगका के दद्वतीय राज्यभाषा बना ्े ल गे ल
अछि, इछतहास, डॉ. या्व केँ मै छिली नहतै षीक रूपमे कते क द्न
स्वीकार करत वा मोन राखत ई ्े खबाक नवषय अछि । इछत।

सं दभष :

1. A. H. Maslow, Psychological Review, A Theory of


Human, Motivation, 1943
2. Constantine Sedikides & Asst., Psychology,
Faculty Publication University of Dayton, A Three
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Tier Hierarchy of Motivational Self-Potency, 2013,


PP 235-295
3. Britannica Encyclopedia
4. Merriam Webster Dictionary
5. Collin James Dictionary
6. Cambridge Dictionary
7. Dr. Ramavtar Yadav, Historiography of Maithili
Lexicography & Francis Buchanan's Comparative
Dictionary, 2021, Pg. 17
8. Kavi Rajiv Jha Ekant, Pravashi, 2021-22, PP. 21-
30
9. Dr. Ramavtar Yadav, Historiography of Maithili
Lexicography & Francis Buchanan's Comparative
Dictionary, 2021, Pg. 18
10. G. A. Grierson, Linguistic Survey Of India, 1903,
PP 13-29
11. G. A. Grierson, Linguistic Survey Of India, 1903,
PP 13-29
12. Dr. Subhadra Jha, Formation of Maithili
Language, PP. 23-30
13. Pandit Bahgvadutta, Bharatvarsh ka Itihas,
1946
14. Bholanath Tiwari, Hindi Bhasha ka Sankshipt
Itihas, 1981
15. Dr. Ramavtar Yadav, Historiography of Maithili
Lexicography & Francis Buchanan's Comparative
174 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

Dictionary, 2021, Pg. 7-28

सं पादकीय वटप्पणी
जे नकयो International Phonetic Script सीखऽ चाहै
िछि जे एनह (छतरहुता माध्यमसँ ) से एनह सलिकपर आनब सकै
िछि- Learn International Phonetic Script
through Mithilakshar Script
भारतमे अं नगका-बक्ज्जका केर समस्या नकए िै तकर मूल
कारणपर आशीष अनछचन्दहार द्वारा सलखल गे ल आले ख "तीन टा
कबिदु" (भाषाक मनोनवज्ञान-1 एवं 2) नव्े हक 150म अं क, 15
माचय 2014 मे प्रकासशत भे ल िल। पाठक एकरा पनढ सकै िछि।

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com


पर पठाउ।
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२.१३.शै लेन्द्र छमश्- डॉ रामावतार या्व : मै छिली भाषा-


सानहत्यक असाध्य काज साधवला एकटा ननष्काम कमययोगी

शै लेन्र थमश्र- सं पकष-7600744801

डॉ रामाितार यादि : मै थिली भार्ा- सावहत्यक असाध्य


काज साधिला एकटा वनष्काम कमषयोगी
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विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 177

मै छिलीक अकासमे उ्ीयमान नक्षत्र जकाँ चमकैत डॉ या्वक


प्ापयण कोनो चमत्कार सँ कम ननह। मै छिली बड्ड सौभालयशाली
िछि जे एक सँ एक वर्-पुत्रक जननी िछि आ तानह सँ हुनकर
ऐश्वयय आ यश द्नो-द्न बढले जा रहल िन्न्दह। व्यक्क्तगत रूप सँ
हमरा हुनका सँ एक्को बे र प्रत्यक्ष रूपसँ भें ट नै अछि ले नकन
टे लीफोन, ई-मे ल, व्हाट् सप्प आद्क माध्यमससँ कते को साल सँ
हम हुनकर लगातार सं पकय मे िी तें ई नै बुिा रहल अछि जे हमरा
हुनका सँ भें ट नै अछि। तकर कारण कही तँ हुनकर मृदु स्वभाव
ओ एकटा जागरूक असभभावकक गुण, जँ यद् हम हुनका फोन
केनाइ नबसररयो जाइ िी तँ ओ हमरा नै नबसरै िछि, एकटा
ननयछमत अं तराल पर वातायलाप होइत रहै ए आ हुनका सँ बहुत
नकिु ससखै त रहै िी। एते क द्नक सं पकयक आधार पर यद् कही
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तँ आ्रणीय या्व जीक मै छिली भाषा ओ सानहत्यक प्रछत माियय


आ ्ाछयत्व भाव नवरल िन्न्दह।

सुगौलीक सं छध भले ही छमछिलाकेँ दू-खं ड मे बाँ नट ्े लक ले नकन


दूनू भाग मे एक-सँ बनढ नवद्वान िछि। जखन कखनो मै छिलीक
चचाय होइत िै तँ एखनो दूनू पार के समर आधार पर कोनो बात
के ्े खल जाइ िै । डॉ या्वक कृछत सँ ्े खल जाय तँ हुनकर
ख्याछत मै छिलीक एकटा बहुत प्रछतछष्ठत भाषानव् के रूप मे िन्न्दह।
हुनकर सलखल मै छिलीक व्याकरण A Reference
Grammar of Maithili जमयनी सँ प्रकासशत अछि आ
सावयकासलक रूप से एकटा एहन पोिी अछि जे मै छिलीकेँ ठोस
पनहचान द्एबा मे सफल अछि। ्ोसर बात नहनकर सलखल ई
पोिी शोध पर आधाररत िै जानह मे जमयनीक भाषा प्रयोगशाला मे
कंठ मे फाइबर ऑन्प्टकल तार के म््सँ शुद्ध उच्चारण के ले ल
काज कएल गे ल िै । नहनकर आले ख, पोिी ओ नवसभन्दन अवसर
पर ्े ल गे ल व्याख्यान मै छिलीक एकटा धरोहर िै जानह सँ
मै छिलीक डं का ्े श-नव्े श मे तँ फहरे बे कएल, नव पीढी से हो लाभ
उठा रहल अछि आ मै छिली भाषाक असली स्वरूप बुिबा मे ई
पोिी बहुत सहायक िै । जनहना डॉ सुभद्र बाबु द्वारा सलखल गे ल
'The Formation of the Maithili Language'
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एकटा प्रससद्ध आ कालजयी कृछत िै तनहना डॉ रामावतार बाबुक


अँ रेजी भाषा मे सलखल व्याकरण के बुिल जाय।

डॉ रामवातार बाबूकेँ ससफय भाषानव् कहनाइ हम व्यक्क्तगत रूपसँ


उछचत नै मानै त िी, जँ हुनकर अन्दय कृछतकेँ ्े खल जाय तँ ओ
भाषानव् के सं गनह एकटा नीक सानहत्यकार, उत्कृष्ट कोनटक
अनुवा्क, मै छिली भाषाक सं रक्षक आ नटप्पणीकार से हो िछि।
ले नकन अइ सभक मूल मे िै आ्रणीय या्वजीक अपन
मातृभाषा क ले ल प्रेम। हमरा सन एकटा साधारण मनुख डॉ
रामावतार बाबू के बारे मे सलखी तइ योलय नै िी ले नकन भाइ
आशीष अनछचन्दहार जीक समपयणता ओ तत्परताक सामने हम अइ
आले ख ले ल मना नै कऽ सकलहुँ , सच कही तँ जे हने -ते हने आले ख
से हम अइ महत्वपूणय काज मे अपन उपस्स्िछत ्जय करा आ्रणीय
रामावतार बाबू सन सलकविग सलजें डक चरण-कमल मे एकटा फूल
अर्पित कऽ रहल िी। हम नहनकर सलखल नकिु पोिीक अध्ययन
केलहुँ जानह आधार पर नकिु पोिीक सं बंध मे हमर नवचार प्रस्तुत
अछि:-
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1. A Reference Grammar of Maithili,


Mouton de Gruyter Berlin. New York.
(1996)

मै छिली व्याकरणक ई पोिी बहुत बखयक शोधक बा् सलखल गे ल


िै आ एकर ई नवसशष्टता िै जे पनहल बे र मै छिली भाषाकेँ केंद्र मे
रान्ख, पूवय मे सलखल गे ल मै छिली व्याकरण सभक नवश्ले षण
केलाक पिाछत एकरा सलखल गे ल अछि। पूवय मे सलखल व्याकरण
सभ मे मै छिली भाषा मे सं स्कृत व्याकरणक ननयमक अनुसार
व्याख्या कयल गे ल िै परं च डॉ या्व अपन पोिी मे उ्ाहरण
सनहत बहुत रास पूवय मान्दयताकेँ ध्वस्त केने िछि। प्रमुख बात जे
मै छिली मे सं स्कृते जकाँ जे आठ टा कारकक व्याख्या कएल गे ल
िल तकरा ओ कहलछि जे ई मै छिलीक कारक ननह भ' मै छिली
भाषा मे प्रयुक्त सं बोधनक प्रकार िी। नहनकर अइ पोिीकेँ यूरोप
मे भारतीय भाषा अध्ययनक ले ल एकटा अननवायय पोिी के रूप मे
सं ्भय रं ि आ आधार पुस्तकक रूप मे मानल जाइत िै । एखनो
िारखं ड मे कते को िोट-िोट भाषा आ बोलीक ले ल कएल जा
रहल शोध मे ई पोिी अपन महती भूछमका ननमानह रहल अछि।
अइ दुरूह काजक ले ल ओनह समय मे उपलब्ध कते को भारतीय
भाषा, यूरोपीय भाषा आ अफ्रीकी भाषा सभक उपलब्ध
व्याकरणक आ भाषा नवज्ञानक अध्ययन कऽ सलखलछि। नहनकर
ई व्याकरणक पोिी prescriptive ननह भ descriptive
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अछि। मै छिली भाषाक एकटा अनमोल धरोहर। पोिीक अध्ययन


कएलाक बा् हमरा ई कहबा मे सं कोच नै भऽ रहल अछि जे ई
व्याकरण मै छिली भाषाक मूल प्रकृछतक नहसाब सँ सलखल गे ल
एकटा महत्वपूणय काज अछि।

2. "A Facsimile Edition of a Maithili Play:


'Bhupatindramalla's Parsuramopakhyana-
natak' (2011 )

भूपछतन्दद्रमल्ल द्वारा परशुरामोपाख्यान नाटक ने पालक छमछिला मे


सलखल मध्यकालीन नाटक अछि। सब सँ महत्वपूणय बात ई जे
रामावतार या्व जी कदठन मे हनछत सँ ने वारी सलनप सँ ्े वनागरी
सलनप आ तकर अँ रेजी मे अनुवा् प्रस्तुत केने िछि जे बहुत उत्कृष्ट
िै । एनह काजक नवशे ष महत्व िै जे ई ने वारी सलनप मे सलखल
अछि। उल्ले खनीय गप ई जे ने वारी सलनप, छतरहुता सलनप आ
्े वनागरी सलनप जकाँ इं डो आययन लै ड्लवे ज पररवारक स्स्य ननह
्ोसर भाषा पररवार यानन छतब्बतो-बमयन पररवारक स्स्य अछि
आ अइ तथ्य सँ मै छिली भाषा नवसशष्ट बनै त अछि जे मै छिली भाषा
सानहत्यक रचना चारर टा सलनप यानन छतरहुता, कैिी, ्े वनागरी ओ
ने वारी सलनप मे कएल गे ल िै ।
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वस्तुतः परशुरामोपाख्यान-नाटकक उत्पसि पुराण मे िै आ अइ


नाटकक किा ननम्न प्रकार सँ िै :- कन्दनौजक राजा रे णु केँ अपन
नववाहयोलय पुत्री जकर नाम रे णु का ले ल सुयोलय वर चुनवाक हे तु
एकटा स्वयं वरक आयोजन करबाक इच्छा होइत िन्न्दह तें ओ
स्वयं वरक आयोजन करै त िछि। ओइ स्वयं वर मे कते को प्रतापी
राजा ओ राजकुमारगण अबै त िछि परं च रे णु का सभकेँ ठोकरा
जम्म्लन नामक एकटा ऋनष के अपन होमय वला पछतक रूप मे
चुनैत िछि। अइ चुनाव सँ कुनपत भऽ राजा आ राजकुमार सभ
राजा रे णु क नवरुद्ध युद्द ठानन ्ै त अछि। अइ युद्ध मे राजा रे णु आ
जम्म्लन नवजे ता रहलाह आ अपन शत्रु राजा सभक सं हार से हो
केलाह। एकर पिात रे णु का ओ जम्म्लनक नववाह वै द्क नवछध
आ परं परासँ सम्पन्दन भे ल। नववाहक उपलक्ष्य मे ्े वराज इन्दद्र
नहनका कामधे नु गाए से हो उपहार मे ्े लन्खन। नकिु द्नक बा्
रे णु काक पुत्रक रूप मे भगवान नवष्णु अपन नव अवतार परशुरामक
रूप मे मे प्रकट होइत िछि। ्े वाछध्े व महा्े वक ओ भगवान
गणे शक मागय्शयन मे परशुराम फरसा चले बाक कला मे ननपुण भऽ
जाइत िछि। ले नकन जम्म्लनक मोन मे रे णु काक चररत्रक प्रछत
शं का उत्पन्दन भऽ जाइत िन्न्दह। रे णु काक उपर झूठ चररत्रहीनताक
कलं कक आरोप लगाके जम्म्लन अपन पुत्र सभकेँ माताक गर्नन
कटबाक आ्े श ्े लन्खन। दू टा पुत्र आज्ञाक पालन नै कऽ
सकबाक कारण नपताक श्ापक भागी्ार बनन प्राण गमौलनन,
जखन नक परशुराम अपन नपताक आज्ञाक आँ न्ख मूनन पालन करै त
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अपन माताक मूिी कानट ्े लाह। परशुरामक नपताक प्रछत


आज्ञाकाररता ओ समपयण भावसँ प्रसन्दन भऽ जम्म्लन रे णु का आ
दूनू पुत्रकेँ पुनजीनवत कऽ ्ै त िछिन।मानहष्मतीक राजा सहस्राजुयन
जम्म्लनसँ कामधे नु गाए केर माँ ग करै त अछि जकरा ओ ई कनह
नकारर ्ै त िछिन्दह जे कामधे नु गाए स्त्रीधन अछि जे रे णु काक
सं पछत अछि। सहस्राजुयन बलजोरी कामधे नु गाए के लऽ कऽ चसल
जाछत अछि आ िद्मपूवयक जम्म्लनक हत्या कऽ ्ै त अछि। रे णु का
अइ बात सँ अत्यं त दुखी ओ क्रोछधत भऽ अपन पुत्रकेँ नपता
जम्म्लनक हत्याक प्रछतशोध ले ब ले ल प्रेररत करै त िछिन्दह।
परशुराम सहस्राजुयनसँ युद्ध कऽ ओकर हत्या कऽ ्ै त िछिन्दह।
नाटक एतऽ समाप्त भऽ जाइत अछि। "ने वारी सलनप मे सलखल
गे ल अइ मध्यकालीन मै छिली नाटक के सभक समक्ष अनबाक
पािू आ्रणीय रामावतार बाबूक कते को बखयक मे हनछत अछि ननह
तऽ एते क नीक मै छिली नाटक सँ हम सभ प्रायः अपररछचत रनहताौं ।
आब हुनकर मे हनछतक नमूना छचत्रक माध्यम सँ से हो रान्ख रहल
िी।
184 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

ने िारी ललवप मे ललखल गे ल मै थिली नाटकक पां डुललवप

दे िनागरी ललवप मे ललप्यां तरण


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रोमन ललवप मे ललप्यं तरण


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अं रेजी भाषा मे अनुवा्

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर


पठाउ।
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२.१४.कुन्द्न कुमार कणय- डा. रामवतार या्वसँ पनहल भें टक


सं स्मरण

कुन्दन कुमार कणष

डा. रामितार यादिसँ पवहल भें टक सं स्मरण

करीब साढे आठ बररस पनहने ननमायण भऽ रहल ने पालक नव


सं नवधानक नवरोधमे ्े शक नवसभन्दन भागमे भीषण आन्द्ोलन भे ल
िल। खास ने पालक तराइय क्षे त्रमे नवरोधक अवाज आनग जकाँ
पसरर रहल िल। आन्द्ोलने नकिु गोटे शहा्त प्राप्त कऽ चुकल
िल आओर हजारो लोक घायल भे ल िल। छधयापुता, जवान, बूढ,
साक्षर, ननरक्षर, नवद्वान सब स्वःस्फूतय रूपसँ आन्द्ोलनमे सहभागी
होइत ्े खल गे लैए। आन्द्ोलन ्बे बाक ले ल राज्य अपन सम्पूणय
शक्क्त लगा ्े ने िल। नवशे ष रूपसँ ने पाली भाषी मीनडया
आन्द्ोलनक सन्द्भयमे अनावश्यक आ असत्य भ्रम ्े शव्यापी फैला
रहल िल। तानह क्रममे आन्द्ोलन आन्द्ोलनकारी ऊपर गम्भीर
नकसमक आरोप लगायल गे लै। जानहमे एकटा ईहो आरोप िल जे
आन्द्ोलनमे पढल-लीखल आ बुसद्धजीवीक सहभानगता नै िै ।
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गरीब लोक सभके पाइ ्ऽ कऽ आन्द्ोलनमे समावे श कराओल


जा रहल िै । एनह सन्द्भयमे हमरा मोनमे नवचार आएल जे नकिु
नवद्वान/बुसद्धजीनव सभके बजा कऽ एकटा काययक्रम कएल जाए
आओर एनह आन्द्ोलन प्रछत सानहत्यकार एवम् बुसद्धजीवी सभकें
से हो समियन िै ते हन सन्द्ेश प्रवाह कएल जाए।

ओनह समयमे हम काठमाण्डू मे रहै त िलाौं । ओनह समयमे


काठमाण्डू मे उपलब्ध नकिु नवद्वान लोकनन सबसँ सम्पकय करबाक
प्रयास केलौ जानह क्रममे डा. रामवतार या्व जीसँ 7 नोभे म्बर
2015 के द्न पनहल बे र हुनकासँ सम्पकय आ भे ट भे ल। उल्ले न्खत
द्न "वतयमान राजनीछतक सन्द्भय आ मै छिलीक भनवष्य" नवषयक
काययक्रमक आयोजन केने िलाौं जकर प्रमुख अछतछिक रूपमे डा.
रामवतार या्व जीक गररमामय उपस्स्िछत िल। ओनह द्न
हुनकासँ मै छिली भाषा सानहत्य, एकर वतयमान अवस्िा, भनवष्यक
छचन्दता, सं रक्षणके उपाय समे त भाषानवज्ञानक सन्द्भयमे ढे र रास
गप्प-सप्प एवम् नवचार नवमशय करबा भे टल अवसरकें सदुपयोग
करै त ्जयनौ प्रश्न पूिल गे लै आओर हुनकासँ समुछचत जवाफ
प्राप्त भे ल।

नवसभन्दन नवद्वतगण सभक उपस्स्िछत रहल काययक्रममे एकटा अछत


उपयोगी शीषयक "भाषा नकए मरै िै ?" पर गकहिरगर, ज्ञानबधयक
आ नम्हर व्याखान ्े लछि। जानहमे ओ ने पालक मुख्य मातृभाषा
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सभक वतयमान अवस्िा, भाषा सं कटापन्दन एवम् लोप हे बाक


कारण, मै छिली भाषाक नवकासक मुख्य चुनौती, समाधानक
उपाय समे त ढे र रास भाषासँ सम्बन्न्दधत नवषय पर अपन नवचार
रखलछि। हुनकर नवश्ले षणक सभनडयो सलिक हम एनह ठाँ सािा
कऽ रहल िी। सलिक पर जा क हुनका नीक जकाँ सुनन सकै िी।
्े न्ख सकै िी-

https://www.youtube.com/watch?v=TrnR
TpwHDbk&t=4s

हुनकर उल्ले न्खत व्याख्यान सुनन काययक्रममे उपस्स्ित सभ केओ


प्रभानवत भे ल। हम नकिु बे सीए प्रभानवत भे लाौं । हमरा मोन होइत
िल जे नहनका बे र-बे र सुनी। नहनकर साछमप्यता नकिु आर भे नट
जाए। काययक्रम समाप्त भे लाक बा् हम हुनका घर धरर पहुँ चेबाक
बहन्दने गािी नहनका सं गे लगभग पौं तीस धरर यात्रा करबाक मौका
भे टल। ओना काययक्रमस्िलसँ नहनकर घरके दूरी मात्र 20 छमनटके
अछि। 15 छमने ट रानफक जाममे फँसस गे लाौं जे नक हमरा ले ल
लाभ्ायी रहल नहनकासँ मै छिली भाषा सानहत्य सम्बन्दधमे नकिु
गहन पक्षपर बे सी गप्त सप्प करबाक अवसर प्राप्त भे ल। तनहयाँ सँ
आइ धरर हुनकासँ फेर ्ोहराक भें टघाट हे बाक अवसर त नै भे टल
मु्ा हुनकासँ भे ल पनहल भें टक या् एखनो टटका अछि मोनमे ।
190 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

भाषा नवज्ञानक सन्द्भयमे ने पालमे बहुत नवद्वतगण सभ िछि मु्ा


ओनह समूहमे नहनकर अपन नवसशष्ट पनहचान आ स्िान िै ।
"मै छिली आले ख सञ्चयन, A Reference Grammar of
Maithili, Maithili Phonetics and Phonology"
नहनकर नकिु प्रससद्ध पोिी सभ अछि। खास कऽ ने पालक
मीनडयामे ने पाली भाषी भाषा वै ज्ञाननक सभके बे सी प्रचार प्रसार
होइत ्े खल जाइ िै । इय नवभे ् नकनकोसँ नुकाएल नै िै मु्ा ओ
छमछिलावासी रनहतो काठमाण्डू आ सत्रभुवन नवश्वनवद्यालय नहनकर
नाओ सम्मानसँ ले ल जाइ िै ।

खास कऽ सत्रभुवन नवश्वनवद्यालयमे या्व जी अं रेजी भाषामे बे सी


समय अध्यापन केलछि। जनहना नहनकर अध्यापन प्रभावकारी
रहलै तनहना नहनकर ले खन अछत गुणस्तरीय ्े खल गे लै। मै छिली,
अं रेजी आ ने पाली तीनू भाषा ले खनमे बे जोि पकि िनन नहनकर।
हम फेर ओहने अवसरकें खोजमे िी जे नहनकासँ फेर भें टघाट होइ,
गप्त सप्प होइ। नकिु नव ज्ञान प्राप्त करबाक अवसर भे टै।

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com


पर पठाउ।
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 191

२.१५.आशीष अनछचन्दहार-नवसशष्ट आले ख सं चयन केर सामान्दय


पररचय

आशीर् अनथचन्हार-सं पकष-8876162759


विलशष्ट आले ख सं चयन केर सामान्य पररचय

हम जानह पोिीक चचाय कऽ रहल िी से छिक प्रो. डा. रामावतार


या्वजी द्वारा सलखल "मै थिली आले ख सञ्चयन II (2015-
2022)। ई 9 गोट आले ख केर सं कलन अछि। प्रबुद्ध पाठक एवं
शोधकताय, नवद्वान लोकनन ले ल ई सलखल गे ल अछि मु्ा हम एकर
पररचय सामान्दय पाठक एवं गै र शोधकताय ले खक ले ल लीखल
अछि। उम्मे ् अछि जे हमर ई पररचय दूनू वगय मध्य पुल बनन कऽ
सामने आएत। एनहसँ पनहने नहनक "मै छिली आले ख
सञ्चयन (1989-2015)" प्रकासशत भे ल िल। हमर एनह
आले खमे नकिु पोिी, नाम आ शब््मे ओकर सलिक ्े ल गे ल
अछि, जे ब्लू रं गमे ्े खाएत, तानहपर क्क्लक करबै तँ
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ओ पोिी, नाम आ शब्् खुझज जाएत।

1
एनह पोिीक पनहल आले ख 'नाट्य-विमशष: रमे श रञ्जनकृत
डोमकछ नाटकक सन्दभषमे ' रमे श रं जनक नाटक 'डोमकि'पर
अछि। ई आले ख एनह नाटकक सं पूणय आलोचना अछि, आलोचना
माने चचाय। मै छिलीमे आलोचना शब््क भाव कहि्ीसँ आयाछतत िै
जकर माने भे ल कनि्ा करब। जखन नक आलोचना शब््क सभसँ
साियक प्रयोग असछमया भाषामे होइत िै आ हम असछमये भाषा
बला आलोचना मानै िी। असछमया भाषामे प्रेमी-प्रेछमका, वा नक
पछत-पत्नी वा नक माए-बे टा से हो आलोचना करै त अछि अपनामे ।
मूलतः असछमया भाषामे यद् कोनो लोक आन लोकसँ वा कोनो
कबिदुपर अपन बात कहै िै (्ै ननक बातचीतकेँ) तऽ ओनह ले ल
आलोचना शब्् प्रयोग होइत िै , आ हमरा इएह अिय काम्य
अछि। नक्रये नटभ रचना रचबाक जे प्रनक्रया िै ताहूपर एनह
आले खमे बात भे ल िै । शब््कोशक आधारपर डोमकि नाट्यकेँ
उल्ले न्खत कएल गे ल िै ।

्ोसर आले ख 'ने पालक भार्ा नीथत आ मै थिली' ने पाल ्े श


केर भाषा नीछत आ तानह मध्य मै छिलीक उपस्स्िछतपर चचाय
करै ए। ओकर समस्या एवं मजबूतीपर से हो चचाय करै ए।
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ते सर आले ख 'मै थिलीमे विलोम-सन्न्ध' गोनवन्द् िाजीक


शब््कोशक आलोचनासँ आ तानहपर गोनवन्द् िाजीक एक पत्रसँ
उपजल ई आले ख अछि, जानहमे मै छिली शब््क नवचलनकेँ
्े खाओल गे ल िै से हो पूणयतः अनुसंधानक सं ग। ई आले ख ननन्िते
भाषामे रुछच रखननहारे टा ले ल िनन। ई आले ख मै छिली गजलकार
लोकननकेँ नीक जकाँ पढबाक चाही। 2009-2014 केर अवछधमे
जखन हम मै छिली गजलक व्याकरण स्स्िर करबामे लागल िलहुँ
तखन ई प्रकरण से हो हमरा सामने आएल िल आ एहन
पररस्स्िछतमे गजलक कानफया (तुकां त, Rhyme) ले ल की
ननयम हे तै, ओकर बहर (िं ्, Meter) कोना ननधायरण हे तै से
हम ्े खे ने िलहुँ । ई अलग बात जे गजलक ननयम सभकेँ कारण
भारत-ने पालक 'नकिु लोक' हमरा बनहष्कार केलाह जे एखन
धरर हुनकर व्यवहारमे पररलझक्षत होइत िनन। मु्ा जानह नवधाक
जे ननयम िै से पालन हे बाक चाही। जँ कोनो पाठक मै छिली
गजलमे असभरुछच रखै त िछि से , हमरे द्वारा सलखल- 'मै छिली
गजलक व्याकरण ओ इछतहास' पनढ सकै िछि।

चाररम आले ख 'समीिा-आले ख' ने पाल प्रज्ञा प्रछतष्ठान द्वारा


प्रकासशत 'प्रज्ञा मै छिली-ने पाली-अङ्ग्रे जी शब््कोश' केर
आलोचना अछि। एनह आले खमे ओ सं पूणय मै छिली शब््कोशकेँ
सामने रखै त अपन बात या्वजी रखने िछिन। एक द्स जहाँ
हमरा लोकनन मात्र किे -कनवताक एकपक्षीय नववरण ्ऽ अपनाकेँ
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आलोचक मानन लै त िी तही ठाम या्वजी शब््कोशक आलोचना


करै िछि। किा-कनवताक एकपक्षीय आलोचना करबामे हमरा
लोकनन ्े खबै त छियै जे हम सभ मे हनछत बला काज कऽ रहल िी
जखन नक वास्तनवक मे हनछत बला काज या्वजी करै िछि। ई
आले ख वषय 2017 केर सलखल अछि तँ इ एनह आले खक सं ्भयमे
एक बात रे खां नकत करबा योलय अछि जे एनह आले खमे नव्े ह
शब््कोशक उल्ले ख हमरा ननह भे टल (अिवा हमरे ्े खबामे ननह
आएल)। श्ुछत प्रकाशन द्वारा गजे न्दद्र ठाकुर, नागे न्दद्र कुमार िा आ
पञ्जीकार नवद्यानन्द् िा केर सं युक्त सं पा्नमे कुल चारर टा
शब््कोश प्रकासशत भे ल अछि। पाठक ले ल एनह चारू शब््कोशक
नववरण ननच्चा ्े ल जा रहल अछि-
1. Maithili-English Dictionary Vol. I (2009)
2. Maithili-English Dictionary Vol. II (2009)
3. English-Maithili Computer Dictionary (2009)
4. Videha English Maithili Dictionary, (2012)
उ्यनारायण ससिह 'नछचकेता' अपन एक आले ख नव्े ह
ससरीजक शब््कोशपर केंनद्रत केने िछि जकरा हमरे द्वारा
सं पाद्त 'प्रीछत कारण से तु बान्दहल' नामक पोिीमे ्े खल जा
सकैए। या्वजीक उपरोक्त आले खसँ भारतक ले खक-आलोचक
आ सानहत्यकमी सभकेँ सशक्षा ले बाक चाही। ओना तऽ बहुत एहन
काज, एहन आले ख िनन रामावतार जीक जानहसँ लोककेँ
ससखबाक चाही तानहमे ईहो एकटा अछि जे डा. रामावतारजी ले ल
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मात्र कृछत आ ओकर गुण-्ोष महत्व राखै त िनन, प्-


पोस्ट, धन, जाछत, सं बंध आद्केँ ओ कृछत लग नबसरर जाइत
िछिन। एनह गुणक अभाव भारतक ले खक-आलोचक-
सानहत्यकमी लग िनन।

पाँ चम आले ख 'मै थिली भार्ा-सावहत्यक सं रिण: चुनौती आ


वनदान' मे या्वजी मूलतः 'मै छिली मरर जाएत' नारा केर
परीक्षण केने िछि। 'मै छिली मरर जाएत' एनह तरहक नारा बहुत
पनहने सँ लगै त रहल अछि नवसभन्दन नवद्वान द्वारा। आ मै छिली मरत
वा नक नै मरत तानहपर चचाय भे ल िै एनह आले खमे । ब्लै त
पररस्िछतमे मै छिलीकेँ कोना सबल बनाएल जा सकैए ताहूपर चचाय
केने िछि।

िठम आले ख 'कखनहु आठ-आठटा कहारिाला पालकीमे


बै सल त' कखनहु हौदा-कसल हािीपर सिार एकगोट
वफररङ्गी मै थिली-से िकः सं जिप्त जीिनिृि' मूलतः जीवनी
अछि जे नक प्रारं सभक मै छिलीक शब््कोश ननमायतामे सँ एक
फ्रास्न्दसस ब्युक्याननक जीवनी अछि। हरे क जीवनी अपना-आपमे
इछतहास होइत िै से ईहो जीवनी एक प्रकारक इछतहासे
अछि। पाठक चाररम आ िठम आले खकेँ एक समयमे पढता तँ
हुनका ले ल लाभकारी हे तनन।
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सातम आले ख 'मध्यकालीन मध्य मै थिलीक भार्ािै ज्ञावनक


िणषन - विश्ले र्ण ने पालमण्डलक ने िार नृपलोकवन-विरथचत
ओ ने पाल रान्ष्िय अलभले खालयमे अनुरजित मै थिली नाट्य
तिा गीथत-कृथतसभक हस्तललखखत ने िारी पाण्डु ललवपक
पररपे क्ष्यमे ' ने वार राजा सभ द्वारा ने वारी सलनपमे सलन्खत मै छिली
रचनाक पां डुसलनपक आधारपर ओनह समयक भाषा (मध्यकालीन
मै छिली)क व्याकरझणक वणयन अछि जे नक पूणत
य ः भाषावै ज्ञाननक
आले ख अछि। जे नकयो प्राचीन रचनामे रुछच आ पां डुसलनप
नवज्ञानमे रुछच रखै त िछि से एनह आले खकेँ अवश्य पढछि। ने वार
राजा लोकननक मै छिली नवकासमे की योग्ान िनन से एनह
आले खसँ नीक जकाँ छचन्न्दहत होइत अछि। ने पाल एवं भारत दूनू
पार छमला कऽ ने वारी सलनपमे लीखल गे ल प्राचीन सानहत्य केर
आधुननक प्रकाशन कते भे ल , के सभ केलनन तकर सभ जानकारी
एनह आले खमे अछि।
एवह ठाम ई जनतब दे ब आिश्यक जे विदे ह पलत्रकाक वकछु
अं क से हो ने िारी ललवपमे उपलब्ध अथछ जे विदे हक साइटपर
ओकर हरे क अं क जकाँ सभ ले ल वबना कोनो मूल्य, वबना
कोनो ताम-झामकेँ सभ ले ल राखल गे ल अथछ।

आठम आले ख 'मै थिली भार्ाक ितषमान अिस्स्िथतद' सं जिप्त


वटप्पणी' वतयमानमे ने पालक मै छिलीक स्स्िछत-पररस्स्िछतपर
नवचार करै त सलखल गे ल अछि। ई अलग बात जे पाठक एनह
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आले खसँ भारतक मै छिलीक स्स्िछत-पररस्स्िछत से हो बुझि सकैत


िछि जे नक एनह आले ख केर नवशे षता भे ल।

नवम आ अं छतम आले ख 'थिवटश लाइिे री, लन्दनक Asia,


Pacific and African Collections मे अनुरजित
ओ भारतविद्याशास्त्रज्ञ हे नरी टोमस
कोलिु ककृत Comparative Vocabulary शीर्षकक
अद्यतन अपदठत, अशोथधत, एिम् अप्रकालशत हस्तललखखत
पाण्डु ललवपमे उपलब्ध अमरससिंह -विरथचत सं स्कृतक प्रख्यात
कोश-ग्रन्ि अमरकोर्ःक 370 शब्दक मै थिली पयाषय -
विहङ्गम दृथष्ट' कोलब्रुक द्वारा सलखल गे ल कोशरं िक पां डुसलनप
जे नक छब्रनटश लाइब्रेरीमे सुरझक्षत िै तानहपर आले ख लीखल गे ल
िै । ईहो आले ख पूणत
य ः भाषावै ज्ञाननक आले ख अछि। जँ पाठक
चाररम, िठम आ एनह नवम आले खकेँ एक सं गे पढता तँ हुनका
ले ल नवशे ष लाभकारी रहतनन।

2
सामान्य पाठक एिं गै र शोधकताष ले खक वकए पढ़थि ई पोिी-

1) प्रो. डा. रामावतार या्वजीक ई पोिी मात्र पोिी ननह नवश्वास


िै जानहमे या्वजी अने काने क पोिी पनढ ओकर सार तत्व आ
तानहपर अपन ननष्कषय ्े ने िछि। सामान्दय पाठक एवं गै र शोधकताय
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ले खक एनह पोिीकेँ नवश्वसनीयता ले ल पढछि।


कमसँ कम भारतक मै छिलीमे ई ्े खल जाइए जे नकिु ले खक
अपन पाइ, प्-पोस्ट, उम्र वा अन्दय प्रभावसँ ले खक बनन जाइत
िछि आ नबना पढने अपन ले खकेँ शोध आले ख कहऽ लागै िछि।
नबना पढने सँ हमर मतलब जे ओ कछित ले खक कोनो एक कहि्ी
वा मै छिलीक नीक पोिी लै िछि, आ ओनह पोिीमे ्े ल गे ल
रे फरें सकेँ अपन आले खमे उतारर ्ै िछि, एवं एना ्े खबै िछि जे
जे ना ओ रे फरें समे ्े ल सभ पोिी पढने िछि, जखन नक
वास्तनवकता उल्टा होइत िै । बा्मे जखन ओनह कछित आले ख
सभहक परीक्षण होइत िै तऽ ओनहमे ले ख आ ओ कछित ले खक
दूनू फेल भऽ जाइत िछि।
2) नकिु गै र शोधकताय ले खक अपन ले ख ले ल मे हनछत करै
िछि, तथ्यो जुटा लै िछि मु्ा ओ ओनह तथ्य सभकेँ अपन
आले खमे जँ इ -तँ इ प्रयोग कऽ लै िछि। एना केलासँ ले ख तँ सफल
भऽ जाइत िै मु्ा प्रो. डा. रामावतार या्वजीक ई पोिी पढलासँ
ई ज्ञात होइत अछि जे आले ख कोना लीखी, ओकर
फामे ट (ढाँ चा) कोना राखी जानहसँ ओतबे तथ्यमे ओ आले ख ्े श-
नव्े शक नवश्वनवद्यालयक वा शोध पसत्रकाक शोधपत्र भऽ जाए।
हमरा जनै त एनह कारणसँ एनह पोिीकेँ अवश्ये पढबाक चाही।
3) कोनो सानहत्यकेँ शब््कोश एवं अन्दय मानकरं िक आँ न्खसँ
कोना ्े खल जाए तानह ले ल सामान्दय पाठक, एवं गै र शोधकताय
ले खक एनह पोिीकेँ अवश्य पढछि।
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4) हरे क ्े शक अपन नीछत होइत िै आ ईहो बात सत्य जे हरे क


्े श, ्ोसर ्े शक नीक नीछतकेँ अनुसरण करबाक प्रयास करै त िै ।
एकर नवपरीत कोनो ्े शक नीछतमे जे समस्या िै ताहूपर ्ोसर
्े शक नजरर रहै त िै । भारत ने पालमे मै छिली कॉमन भाषा िै । तँ इ
जँ कोनो झजज्ञासु भारतक आँ न्खसँ ने पालक भाषा नीछत ्े खए
चाहछि छतनका ई पोिी अवश्य पढछि।
5) यद् कोनो झजज्ञासुकेँ सं झक्षप्त रूपमे मै छिली शब््क नवचलन
एवं मै छिली शब््कोशक इछतहास जनबाक हो छतनका सभकेँ ई
पोिी अवश्य पढबाक चाही।
6) कोनो भाषायी समस्याकेँ भाषायी तरीकासँ कोना सही कएल
जाए तानह ले ल पाठककेँ ई पोिी पढबाक चाही।

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।

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