Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 40

76 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.

in

Delhi, 1997]
3. A Facsimile Edition of a Maithili Play:
Bhūpatīndramalla's Parśurāmopākhyāna
nāṭaka, Kathmandu: B. P. Koirala India
Nepal Foundation, 2011
4. मै छिली आले ख सञ्चयन (1989-2015), जनकपुरधाम,
मै छिली नवकास कोष, 2016
5. Elegy Written in a Royal Courtyard: A
Facsimile Edition of Jagatprakāśamalla’s
Gītapacaka, New Delhi: Adroit Publishers,
2018
6. Historiography of Maithili Lexicography
& Francis Buchanan's Comparative
Vocabularies: Facsimile Edition of the
British Library, London Manuscript,
Darbhanga: Maharajadhiraja Kameshwar
Singh Kalyani Foundation, 2022.
Kameshwar Singh Bihar Heritage Series 23
7. मै छिली आले ख सञ्चयन (2015-2022), मधुबनी (नबहार,
भारत), अनुप्रास प्रकाशन, 2022
8. मध्ययुगीन मै छिली नाट्य र गीछत कृछतहरूको भाषावै ज्ञाननक
वणयन-नवश्ले षण, काठमाडाौं , ने पाल सङ्ग्गीत तिा नाट्य प्रज्ञा
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 77

प्रछतष्ठान, 2023 (ने पाली)


9. Critical Edition of MSS. of Three Medieval
Sanskrit and Maithili Plays, Janakpurdhām:
Maithili Vikāsa Koṣa, (In Press).

ऊपरक सूचीक अछतररक्त 1976-2023 केर बीच प्रो. डा.


या्वजीक 95 टा शोधपत्र जे नक मै छिली एवं भाषानवज्ञानसँ
सं बंछधत अछि से Nepal, India, USA, UK, and
Germany आद् ्े शमे प्रकासशत भे ल अछि।

िृलि- प्रध्यापन, शै जिक योजना एिं व्यिस्िापन:


सत्रभुवन नवश्वनवद्यालय, काठमां डू (ने पाल)मे प्रध्यापनसँ अवकाश
ले लाक बा् आ तकरा बा् ने पाल सरकाक नवसभन्दन शै झक्षक-
प्रशासननक प्पर अपन से वा ्े लाह। शै झक्षक-प्रशासननक प् केर
सूची एना अछि-

1) Director, Curriculum Development


Centre, Tribhuwan University, Kirtipur,
Kathmandu, 1990-1992.
2) Member, National Education
Commission, HMG / Nepal 1991-1993.
3) Executive Director, National Centre for
Higher Secondary Education, 1992-1993.
4) Director-General, Curriculum
78 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

Development Centre, Ministry of


Education, Keshar Mahal, Kathmandu,
1995-1997.
5) Member-Secretary, High Level National
Education Commission, HMG / Ministry of
Education, Kathmandu, 1997-1998.
6) Joint Secretary, Ministry of Education,
Keshar Mahal, Kathmandu, 1999.
7) Executive Director, National Centre for
Educational Development, MOES,
Sanothimi, January 2000-September 2000.
8) Former Vice-chancellor, Purbanchal
University, Biratnagar, Nepal 2007-2011.

डा. रामाितार जी केर पररिारक अन्य सदस्य :


पत्नी: ननरूपमा या्व
पुत्री: उषा या्व (नवद्यालय सशक्षक, काठमां डू, ने पाल सरकार)
पुत्र: डा. नवजय या्व MBBS, MD (Internal
Medicine), DM (Cardiology)
Fellowship/Super Specialisation in Cardiac
Electrophysiology at the AIG Hospitals,
Hyderabad, India (2023 onwards)
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 79

पुत्रवधु: डा. सररता या्व MBBS, MD


(Ophthalmology), Fellowship for MS in
Ophthalmology at the Kedia Eye Hospital,
Birgunj, Nepal (2022 onwards)

सम्मानः
1) British Council Scholarship Award, 1970-
1971, UK
2) Fulbright-Hays Scholarship Award, 1974-
1979, USA
3) King’s Medal: Mahendra Vidyābhūṣaṇa
Padaka, 1982, Kathmandu, Nepal
4) Alexander-von-Humboldt Language
Scholarship Award, October 1982- January
1983, Bonn, Germany
5) Alexander-von-Humboldt Postdoctoral
Research Fellowship Award, 1983- 1984,
Bonn, Germany
6) British Council Visitor Award, London,
1989, UK
7) Senior Fulbright Visiting Scholar, Council
for International Exchange of Scholars,
Washington DC, USA, 1989
80 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

8) Alexander-von-Humboldt Senior Visiting


Research Fellowship Award, 1989, Bonn,
Germany
Royal Nepal Academy Pāsāṅg Lhāmu
Prajnā Puraskāra- 1996, Kathmandu, Nepal
9) Baidyanātha-Siyādevi Foundation
Maithili Award- 1999 CE, Janakpur, Nepal
10) Alexander-von-Humboldt Senior
Visiting Research Fellowship Award, 2000-
2001, Bonn, Germany
11) Mithilā Ratna, International Maithili
Conference, Chennai, India, 2008
12) Mithilā Vibhūti, Vidyāpati
Sevā Saṁsthāna, Darbhanga, India, 2011
13) Government of Nepal Nepāla Vidyāpati
Maїthilī Anusandhāna Puraskāra- 2068/
2011 CE, Kathmandu, Nepal
14) Alexander-von-Humboldt Senior
Visiting Research Fellowship Award, 2013,
Bonn, Germany
15) Alexander-von-Humboldt Senior
Visiting Research Fellowship Award, 2018,
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 81

Bonn, Germany
16) Nepal Academy Nepāla
Prajnā Bhāṣā Puraskāra-2074/2017 CE,
2017, Kathmandu, Nepal
17) Pahila Śabdakośakāra Paṇḍit
Bhavanātha Miśra Sāhitya Śikhara
Sammāna- 2017, 2017, Sahityāṅgana,
Jhanjharpur, Bihar, India
18) Nepal Music & Drama Academy Nepāla
Music & Drama Prajnā Puraskāra-
2074/2017 CE, 2018, Kathmandu, Nepal
19) Cetanā Samiti Tāmrapatra Sammāna
(Bronze Citation Honor), 2019, Patna, India
20) Dr. Dhīrendra Sāhitya Saṁskr̥ti
Puraskāra 2077, 2022, Maithilī Vikāsa Koṣa,
Janakpurdham, Nepal
21) सद्गहस्ि
ृ सं त जगन्दनाि चौधरी शोध सम्मान-2024 (जय-
राम शोध सं स्िान, सुलतानपुर द्वारा)
82 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

पररिारक सदस्य सभक थचत्र-

थचत्र1-वनरूपमा यादि

थचत्र 2-प्रो.डा. रामािातार यादि एिं वनरूपमा यादि


विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 83

प्रो. डा. रामाितार यादि

ऐ रचनापर अपन
मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।
84 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

२.३.भीमनाि झा- 'तवहया'केँ तवहयाक' राखल- श्री


रामाितार बाबू

भीमनाि झा-सं पकष-7482066855


'तवहया'केँ तवहयाक' राखल- श्री रामाितार बाबू

सं योग एकरे कहै िै । ई सं योग ककरो सौभालय भ' जाइ िै । ताहूसँ


आगाँ जाक' तानहमे नकिु केँ तँ गौरव बढा ्ै िै । ओकरा भारी बना
्ै िै । श्ी रामावतार बाबूक सहपाठी होयबाक जनहयासँ हम
अनुभव कर' लगलहुँ अछि, तनहयासँ अपन ओजन बनढ गे ल सन
बुिना जाइि। मु्ा, हम बुिै िी, अपने केँ सहजेँ ई बात बुिबामे
ननह आयल होयत। 'जनहयासँ ' माने की? जनहयासँ सहपाठी
छिकनन तनहए सँ ने ! तखन जनहयासँ हम अनुभव कर' लगलहुँ की
भे लै? मु्ा, असल बात सै ह भे लै। सहपाठी िसलयनन 1958-60
सत्रमे , तकर अनुभव कर' लगलहुँ ओकर पचास-पचपन वषयक
बा्सँ ।
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 85

घटना एना िै । 1958 मे गामक हाइ स्कूलसँ मै नरक से केंड


नडवीजनसँ पास कैलहुँ । नपतृहीन रही। ते हन क्यो मागय्शयक ननह।
ररजल्ट भे ना नकिु ए द्न भे ल िलै नक ककरौिक पीसा ऐला।
बुिलनन तँ खुशी भे लनन। कहलनन- कास्ल्ह चलू, आर.के.
काले जमे नाम सलखा ्ै िी। कहसलयनन- एखन तँ नम्बरो-तम्बरो
ननह ऐलै ए। स्कूलसँ एस.एल.सी.से हो ननह ले लहुँ अछि। पाइयो-
कौिी हािपर ननह अछि। आगाँ की करबाक अछि, से हो ननह बुिै
छिऐ। तखन कोना चलू? कहलनन- आगाँ पढब, से तँ ननिय अछि।
कहसलयनन- से हो ननिय ननह अछि जे ननह पढब, पढब तँ कोना
पढब? तानहपर कहलनन- पढू तँ अबस्से । अइ बयसमे कोन नोकरी
है त? नाम सलखै बाक छचन्दता ननह करू। मप्रिससपल हमर अपे झक्षत
िछि। तत्काल एको पाइ ने लागत। कोनो कागज-पत्रक काज
ननह। बा्मे सभटा जमा क' ्े बै । पीसा एक नहसाबे बलजोरी हमरा
मधुबनी ल' गे ला। मप्रिससपल साहे ब (प्रो.अरुण कुमार ्ि)क
आवासपर जा, हुनकासँ गप क', हमरासँ ओतनह एक ्रखास्त
सलखा, ताहीपर ऑडर करबा ले लनन। पीसा कॉले ज ल' जाक',
नबना एको पाइ ्े ने , आइ.ए.मे हमर नाम सलखा ्े लनन। हमर रौल
नम्बर पाँ च भे ल। माने , चारर गोटे हमर पीसोसँ ते ज ननकलला।
फामयपर ऐस्च्छक नवषय सलख' पिै िलै । हमरा तकर ज्ञान ननह।
पीसो अङ्गरे जी पढल ननह। एकटा पररछचत प्रोफेसरकेँ पुिलछिन।
ओ हमरासँ मै नरकक नवषय पुिलनन, ररजल्ट पुिलनन। पीसा
कहलछिन जे सोि नवषय कनहयनु। ओ कहलछिन- तखन
86 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

सससभक्स, साइकोलोजी, मै छिली रान्ख ले िु। हम भरर ्े सलऐ।


सससभक्स आ मै छिली तँ मै नरकमे पढल िलो, साइकोलॉजी की
भे लै, से ननह बुिसलऐ। बा्मे जाक' बुिसलऐ जे सससभक्स
साइकोलॉजी मै छिलीकेँ ताइ द्न कहल जाइ चूिा ्ही चीनी तिा
सससभक्स लौझजक मै छिलीकेँ पान बीिी ससगरे ट। माने ई दुनू रुप
सभसँ सोि, माने नवद्यािी भुसकौल।

कॉले जमे नवद्यािीक सं ख्या बुिबै क? ओनह बै चमे एक वगयमे, फस्ट


इयर आट् यस टामे दू हजार िात्र, तनहना से केंड इयरमे तिा ताही
अनुपातमे नडगरीक दूनू वषयमे। भोर िौ बजे सँ साँ ि िौ बजे धरर
लगातार क्लास चलै त। मुख्य सभ नवषयमे तीन-तीन से क्शन।
सं स्कृत िोनिक'आट् यसक सभ नवषयमे दू से क्शन तँ अबस्से । साौँ से
कॉले ज गनगनाइत।

हमर रौल नम्बर जेँ नक 5 िल, तेँ सभ नवषयमे 'ए' से क्सन भे टल।
हम ते जगर तँ रही ननह, सहछमलुओ ननह रही, ्ब्बू रही, चुपचाप
जाइ-आबी। तेँ छमत्रमं डली कोनो िल ननह। अपनो से क्शनक िात्र
सभसँ घननष्ठता ननह। ओइ समयमे एनुअल इलजाछमने शनक
ररजल्ट पटनाक नहन्द्ी-अङ्गरे जीक ्ै ननक पत्र सभमे प्रकासशत होइ,
सभ पास नवद्यािीक नामसँ । (हमरासँ एक वषय पूवयक बै च, माने
1957 धरर मै नरकोक ररजल्ट अखबारमे नामे सँ अबै क, 1958 सँ
रॉल नम्बर िप' लगलै क। मु्ा, इं टरमे नाम िपब जाररए रहलै ।)
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 87

फस्ट नडवीजनरक नाम योलयताक्रमसँ नबहार युननवर्सिटीक सभ


कॉले ज छमलाक' समे नकत रूपमे एके ठाम रहै क। मन्दत्रेश्वर िा
(सी.एम.कॉले ज)क नाम फस्ट नडवीजनरक सलस्टमे सभसँ ऊपर
रहनन। (ज्ञातव्य जे तनहया नबहारमे दुइएटा युननवर्सिटी रहै , पटना
युननवर्सिटी आ नबहार युननवर्सिटी।) से केण्ड आ िडय नडवीजनसँ
पास नवद्यािीक नामावली 'कॉले ज वाइज' िपै । अपन नाम
आर.के.कॉले जक से केंड नडवीजनरक सलस्टमे भे नट गे ल तँ ताहीसँ
हम सन्दतुष्ट भ' गे लहुँ । तकर बा् फस्ट नडवीजनरक समे नकत सलस्ट
्े ख' लगलहुँ , जानहमे आर.के.कॉले जसँ िौ नक सात गोटे मात्र
अभरला। दू हजार िात्रमे एतबे फस्ट नडवीजन। तानहमे जे नाम
मन पिै त अछि से ई रामावतार या्व, बाले श्वर ठाकुर, माकयण्डे य
िा, महे न्दद्र नारायण कणय आ दू-तीन गोटे रहछि आरो। ओनह साल
अठारह प्रछतशत ररजल्ट भे ल रहै । कहक काज ननह जे
आर.के.कॉले जक दू हजार िात्रमे फस्ट नडनवजनर सभ वास्तवमे
केहन मे धावी रहल हे ता!

तकर बा् ्ीघय अन्दतराल। ओनह बीच रामावतारजी अपन द्शा


ननन्ित कयलनन, प्रछतभाशाली रहबे करछि, अवसरो भे टै त गे लनन,
्े श-नव्े शमे पढलनन-पढौलनन, भाषानवज्ञानमे नवशे षज्ञता प्राप्त
कयलनन, शोध-अनुसन्दधानमे अन्दतरायष्रीय नाम भे लनन, एक-पर-
एक उत्कृष्ट रन्दि आ शोधप्रबन्दधक ले खन-प्रकाशन कयलनन,
अने को महत्त्वपूणय नवलुप्त पाण्डु सलनपकेँ तानक सम्पाद्त क'
88 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

सोिाँ अनलनन। फलत: समस्त प्रबुद्ध मै छिल समाजक बीच ई


चुनल शीषयस्ि नवद्वन्दमझणमालाक एक ्ाना मानल जाय लगला।
मु्ा, गौरवक कारण एतबे टाक हे तु ननह, अनपतु एनहसँ बे सी, कहू
बीस एनह ल'क' िनन जे नहनक अछधकसँ अछधक काज मै छिली
भाषासँ सम्बद्ध िनन, मै छिली सानहत्यपर िनन, छमछिलाक हे तु
िनन; अङ्गरे झजयोमे िनन तँ तकर नवषय मै छिलीए छिकै आ
मै छिलीयोमे तँ िननहेँ । सभ जनै िी जे सम्प्रछत ई शीषय श्े णीक
भाषावै ज्ञाननक िछि, जे छमछिला-मै छिलीक खुट्टाकेँ नवश्वभाषाक
अध्ययन-सं सारमे मजगूतीसँ गािने िछि।

्ोसर द्स एक हम िी जे जतबो पढलहुँ से पढ' पिल तेँ , जतबे


जे सलखलहुँ से सलख' पिल तेँ । मु्ा, सौभालयसँ रहलहुँ जेँ नक
अक्षर-सं सारमे , तेँ घर-बाहरक गछतनवछध, चालचूल, चहल-पहल,
खासक' मै छिली सम्बन्दधी तँ कानमे पनिते आनब रहल अछि। ताही
ससलससलामे रामावतार या्वक प्रशस्स्त सुनब स्वाभानवके िल,
एम्हरो आ जनकपुर यात्रामे से हो। मु्ा ई वै ह छिका
आर.के.कॉले जवला, तनह द्स ध्यान ननह गे ल िल। 'छमछिला
छमनहर'मे रही, तनहएक बात छिक जे एक बे र माकयण्डे यजी
(सहरसा कॉले जक प्रोफेसर आ हमर बै चक एक फस्टनडनवजनर)
गप्पक क्रममे नहनक आ महे न्दद्र नारायण कणय (जे तनहया अनुरह
नारायण ससिह समाज अध्ययन सं स्िानक डाइरे क्टर िला)क चचाय
कयलनन आ कहलनन जे चलू कणयजीसँ भे ट करबै िी। तखन
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 89

जाक' ननिय भे ल जे नवख्यात रामावतारजी तँ हमर क्लासमे टेवला


छिका। तकर बा्सँ जानह कोनो सभामे ई रहछि आ हमरा बजबाक
अवसर भे टय तँ सम्बोधनमे 'छमत्रवर' कनह नहनको नाम ले ब'
लगसलयनन। मु्ा नहनक नवद्विा आ प्रसससद्धक धाह ते हन सहजोर
रहनन जे लग जाक' कनहयो गप करबाक वा पररचय ्े बाक साधं स
ननह होइ िल। एकाध बे र 'छमत्रवर' सुनन ई अनठा ्े ने होछि से
सम्भव छिक, मु्ा अकच्छ भ' गे ल हे ता तँ एक द्न ई
आर.के.काले जक छमत्र (सं योगसँ हमरो छमत्र) डॉ.्े वे न्दद्र िाकेँ
पुिलछिन जे क्यो भीमनाि िा हमरा 'छमत्रवर-छमत्रवर' कहै िछि,
से के छिका ओ? अहाँ छचन्दहै छियनन? कनवता-तनवता बनबै िछि
से बे स, मु्ा हम हुनक छमत्र कनहया भे सलयनन? ओम्हर, ्े वे न्दद्र बाबू
तँ अपनहहि गप्प-सम्राट, से ते ना क' हमरा ्' कहने हे छिन जे
नहनको भे ल हे तनन जे ईहो क्यो अछि! रामावतारो बाबू हुनक
चकमामे आनब गे ला। तकर बा् दुनू गोटे पहुँ चल रही महे न्दद्र
मलं नगया समारोहमे द्ल्ली, जे 8-9 द्सम्बर 2018 ई.केँ भे ल
रहै । ओनहमे पनहने रामावतारे बाबू टोकलनन बहुत स्ने हसँ । ते हन
आत्मीय रूपमे गप कैलनन जे हम तँ पानन-पानन भ' गे लाौँ । खूब
फैलसँ हमर नाम सलन्ख, अपन हस्ताक्षर क' अपन पोिी 'मै छिली
आले ख सं चयन' ्े लनन। काले ज-जीवनक सं स्मरण, अपन
अध्ययन आ काययक नवषयमे तिा नाना प्रकारक आनो स्ने हससक्त
गप सुनबै त रहला।
90 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

तकर बा्सँ तँ काठमां डू आ जनकपुरोसँ फोनपर कुशल-समाचार


रहरहाँ लै त रहै िछि तिा छमछिला-मै छिलीक घर-बाहरक गप कहै त
रहै िछि आ हम तृप्त होइत रहै िी। कहबाक मन होइए जे कही,
'ससखै त रहै िी', मु्ा अपनाकेँ रोनक लै िी एनह कारणे जे हुनक
गूढ भाषानवज्ञानक नवषयकेँ बुिबो ले ल ज्ञानक जे स्तर चाही, से
हमरा कत'? 'मै छिली आले ख सं चयन'क ्ोसर खण्ड अनुप्रास
प्रकाशन मधुबनीसँ 2022 मे ऐलनन। प्रकाशक श्ी नवद्यािीजीकेँ
खासक' हमरा पहुँ चा ्े ब' ले ल कहलछिन।

जून 2023 मे श्ीमती नवभा िाक एक वृहत् समारोहमे भाग ले ब'


जनकपुर गे लाौँ । ईहो काठमां डूसँ खासक' ओही ले ल आयल िला।
दू द्न धरर लगभग सं गनह रहलाौँ । एकसरे आयल िला, तेँ
पररवारसँ भे ट ननह करा सकला। तकर अपसोच व्यक्त कयलनन।
अपन सम्पाद्त बहुत नवसशष्ट, बहुमूल्य रन्दि A Facsimile
Edition of a Maithil Play:
Bhupatindramalla's
Parasuramopakhyana—natak क शाही सं स्करण
हमरा सने समे ्े लनन, से की सलन्खक' ्े लनन से बुिबै ?

With warmest personal regards to Prof.


Bhimnath Jha- Ramavatar Yadav. Janakpur,
Nepal, June 12, 2023.
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 91

जखन कखनो नहनक मै छिलीक अनुसन्दधानपरक ले ख तिा उक्त


पोिी पढै िी तँ दू प्रकारक भावना मनमे एक्के बे र उठै ए,
रामावतारजीक नाम तँ शार्ावतारजी है ब उछचत िलनन आ हमर
नाम अबुसद्धक भीमाकार पहािजी!

एही दुनू ध्रु वक बीच मै छिली न्खलन्खलाइत रहछि।

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com


पर पठाउ।
92 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

२.४.उ्यनारायण ससिह 'नछचकेता'-रामावतार या्व जी-जे ना हम


हुनका छचन्दहने िसलयनन

उदयनारायण ससिंह 'नथचकेता'-सं पकष-9434050218

रामाितार यादि जी-जे ना हम हुनका थचन्हने छललयवन

रामावतार या्व जी सँ पनहल साक्षात् भे ल िल 1978 मे जखन


हम इसलनॉय नवश्वनवद्यालय मे एक से मेस्टर ले ल सलिगनवस्स्टक
इं स्स्टट्यूट प्रोराम मे शोधरत िात्र के रूप मे गे ल रही। हमरो शोध-
कायय अं छतम चरण मे िल द्ल्ली नवश्वनवद्यालय के भाषानवज्ञान
नवभाग मे आ' हुनको िीससस लगभग समाम्प्त के सूचना ्ै त िल।
ता धरर ओ एम.फील. त कैये ने ने िला मु्ा तखन केंसास
नवश्वनवद्यालय के लॉरें स कौंपस सँ ओ डॉक्टरे ट नडरी के अं छतम
चरण मे िला। हम बहुत आियय चनकत भे ल िलहुँ अहू ले ल जे
जखन भारतो मे साधारणतया क्यो प्रायोनगक ध्वनननवज्ञान पर
चचाय ननह क' रहल िल, तखन केंसास के जनयल मे हुनकर
महत्वपूणय ननबं ध, 'A Fiberoptic Study Of Stop
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 93

Production In Maithili' िनप चुकल िल 'केंसास


वर्किग पे पसय इन सलिम्लवस्स्टक्स' के चाररम वॉल्यूम में - जतय वणयन
िलै एनह तरहक: "A fiber optic study was made
to investigate the temporal course and
width of the glottis during the production of
four types of Maithili stops in initial, medial
and final positions. The results show that
the voiced-voiceless distinction correlates
with the adduction-abduction gesture of
the larynx. The study also suggests that
glottal width is the key factor for aspiration
and that sounds which are produced by a
combination of vibrating vocal cords and
aspiration should, in fact, be called 'voiced
aspirated' consonants."

हमर ज्ञानतः मै छिली नकयै क, नहन्न्द्यो मे भररसक एहन अध्ययन


क्यो ननह क' रहल िल। हँ , ई बात अवश्ये कहब जे आगाँ चसल
कय श्द्धेय डॉ सुभद्र िा जी के सुपुत्र डॉ प्रभाकर िा पे ररस मे एही
तरहक काज कयने िला - सोरबोन में कैल डॉ मुनीश्वर िा के
मै छिली कें आर आगाँ बढबै त। मु्ा जे बुिलहुँ (बुिबा मे द्क्कत
त िलै हे नकयै क त हमर नवषय िलै अन्दवय अिायत ससन्दटैक्स आ'
94 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

समाज-भाषा-नवज्ञान। तखन हम त चाौं कबे करब। भें ट करबाक


इच्छा िलै - मु्ा हम क' रहल िलहुँ एडवां स्ड कोसय यहां सब
नवषय मे - बनायडय कॉमरी के 'भाषाजगतक सावयभौमता'
(Language Universals), जॉर्जिया रीन के 'भाषा-
व्यवहार-नवज्ञान' (Pragmatics), जे री सै डॉक के
'भाषानवज्ञानक तकयप्रणाली' (Linguistic
Argumentation) आ' नवश्वख्यात पाझणनीय नवशे षज्ञ जॉजय
काडाे ना के 'इं नडयन रामे नटकल रे नडशन' - मु्ा ओ त ओिरल
िला ननरीक्षामूलक ध्वननशास्त्रक अत्याधुननक प्रयुक्क्त के क्षे त्र
मे । पनहल ्शयने आर चमत्कृत क' ्े बय बाला िल - हमरा ज्ञानतः
एहन कोनो मै छिली के नवद्वान ननह िछि जे नहनका सँ बे सी प्रभावी
ढं ग सँ अं रेजी तिा जमयन मे अपन बात कें अं तरायष्रीय फोरम मे
रान्ख सकै िछि। तनहये सँ हम नहनकर नक्रयाकमय कें नीक जकाँ
्े खै त पढै त बुिैत रहलहुँ ।

रामावतार जी अध्यापक के रूप मे प्रससद्ध अं रे जी भाषा आ


सानहत्य के जानकार िला - सत्रभुवन नवश्वनवद्यालय आ पाटन
कॉले ज मे पढौने िलछि। मु्ा केंसास नवश्वनवद्यालय के प्रसशक्षण
हुनका ्झक्षण एसशयाई ्े श सभक प्रमुख ध्वनन-नवज्ञानी बना
्े लकनन। मु्ा नहनक नवसशष्टता ईहो जे ओ मात्र नीरस भाषाचायय
ननह िला, सानहत्यो के क्षे त्र मे ओ एकटा प्रछतछष्ठत नाम िछि।
अन्दततः पूवाां चल नवश्वनवद्यालयक कुलपछत से हो ननयुक्त भे ला।
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 95

हुनक मूल पोिी जे हुनका ख्याछतक शीषय पर ल' गे लनन, से िल:


जमयनी के श्े ष्ठ प्रकाशन De Gruyter Mouton सं स्िा द्वारा
िपल A Reference Grammar of Maithili
(1996) आ' ताहू सँ पनहने Selden and Tamm प्रकाशन
सं स्िा सँ िपल Maithili Phonetics and
Phonology (1984)। ्े श-नव्े शक भाषानवज्ञान सम्बन्दधी
पत्र-पसत्रका मे पचासो आले खक प्रकाशन द्वारा ओ मै छिलीक
नवसशष्टताकेँ उजागर केलनन। मै छिली ध्वननशास्त्र आ मै छिलीक
सं ्भय व्याकरण 1पर काजक अलाबे 2000 ई. मे लं ्नसँ
प्रकासशत भारतीय आययभाषा पुस्तक मे सं कसलत नहनकर मै छिली
भाषा सं बंधी आले ख नवशे ष उल्ले खनीय िलनन। ने पाल राजकीय
प्रज्ञा-प्रछतष्ठानसँ पासाङ्ग ल्हामु प्रज्ञा-पुरस्कारसँ सम्माननत भे ल
िला।

एनह बीच मे रामावतार जी कते को महत्वपूणय बात सब कहलनन


जकरा द्सस हम सभक ध्यान आकृष्ट करय चाहब। मै छिली भाषा-
भाषी पर आयोझजत तीन द्वसीय छमछिला कला सानहत्य आ
नफल्म महोत्सव 28 द्सम्बर 2018 मे ओ सहरसा के रमे श चन्दद्र
िा मनहला कॉले ज सभागारमे कहने िला जे मै छिली भाषामे
प्रािछमक सशक्षा भे नाई बहुत जरूरी अछि। छमछिला छमरर मे एकर
नीक नववरण हमसब पढननह िी। समारोहकेँ सं बोछधत करै त
भाषावै ज्ञाननक के रूप मे डा. रामावतार कहने िला जे अं तरायष्रीय
96 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

स्तर पर मै छिली भाषाक व्यापक स्तर पर प्रससदद्व अछि। मु्ा अपने


घरमे माने अपने भूभागमे मै छिलीक स्स्िछत कमजोर भ' गे ल अछि।
हुनकर कहब िलनन जे हमसभ अपन भाषाक प्रयोग कम आ
्ोसर भाषाक प्रयोग बे सी करै त िी। एहन स्स्िछतमे प्रािछमक
सशक्षामे मै छिली भाषाकेँ शाछमल केनाय बहुत जरूरी भ’ गे ल
अछि। एनह पर हमरा सब कें गहन मचितन करबाक जरूरी अछि आ'
सं गनह मै छिली भाषाकेँ अपन ्ै ननक झजनगीक व्यवहारमे आनयके
ननतां त आवश्यक अछि। हुनकर कहबाक तात्पयय िलनन जे
सानहत्यक-सां स्कृछतक गछतनवछध होइत रहै ' आ' एहन तरहक
आयोजनसँ भाषाक पकि मजबूत होयत। मै छिली भाषा हमर
अपन भाषा अछि आ हमरा सभकेँ एनह पर गवय होयवाक चाही।
एम्हर 2021 के ्ै ननक भास्कर ररपोटय कैलक जे रामावतार जी
कहलनन जे मै छिली भाषा माध्यम सँ ने पाल में राजकाज क
शुरुआती प्रनक्रया के शुभारम्भ भ' गे ल। नबहार सरकार तिा
छमछिलां चल पिु आ रही सकैत अछि मु्ा ने पाल तीव्र गछतएँ आगा
बनढ रहल अछि। ्निभं गा के महाराजाछधराज लक्ष्मीश्वर ससिह
सं रहालय के प्रमुख डॉ. सशव कुमार छमश् के कहब िनन जे प्रो.
रामावतार या्व सँ हुनका ई जानकारी भें टल िनन जे लौं लवे ज
कमीशन आफ ने पाल तकर अनुशंसा क' ्े ने अछि जे ने पालक
दूटा प्र्े श मे राजकाज केर भाषा के रूप मे मै छिली आ' भोजपुरीक
प्रयोग शीघ्र है त। धरती पर भररसक पनहल बे रर कोनो सरकार एकर
प्रनक्रया प्रारं भ क' रहल अछि। सभक कहब िलनन जे भरसक
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 97

एकर सकारात्मक प्रभाव नबहार सरकार पर से हो पनि सकैत


अछि। मै छिली सानहत्य सं स्िान क सछचव भै रव लाल ्ास क
कहब िलनन जे ने पाल मे जानह तरहक ननणयय ले ल गे ल अछि,
तानह सँ ईहो भ' सकैि जे आब भारत सरकार से हो मै छिली कें
शास्त्रीय भाषा के ्जाय ्े बय मे राजी भ' जाओत।

2019 मे कोरोना सँ पनहने रामावतार जी के आर एकटा वक्तव्य


हमसब सुनने िी। रमे श िा मनहला महानवद्यालय मे आयोझजत
कला सानहत्य तिा नफल्म महोत्सव मे 2018 के द्वं गत मै छिली
सानहम्त्यक प्रछतभा - प्रफुल्ल कुमार ससिह मौन, मोहन भारद्वाज,
डा.प्रेमशं कर ससिह, आद् कें श्द्धां जसल अर्पित करै त ओ कहलनन
जे ज्याें आम आ्मी जे ना मै छिली भाषा बाजल जाइत अछि तनहना
ओ बाजै त आ' सलखै त रहता तखन मै छिली नहीं मरती - हमर
धरोहर नवलुप्त ननह है त। अपन रे फेरें स रामर मे या्व जी बि स्पष्ट
रूप सँ जॉजय अब्राहम छरयसयनक ओनह बात कें ्ोहराइने िछि जतय
ओ मै छिली भाषा आ' सानहत्यक गहन अध्ययनक बा् ओ
उल्ले ख करै त िछि: Maithili is a language and not
a dialect. It is the custom to look upon it as
an uncouth dialect of untaught villagers,
but it is in reality the native language of
(millions of) people who can neither speak
nor understand either Hindi or Urdu
98 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

without greatest difficulty.

Alexander von Humboldt Foundation मे


हुनकर जे गररमामय शोध-समय बीतलनन ओतय यूरप के श्े ष्ठ
भाषानव् लोकनन के साि ओ काज कयने िला - कय गोटे मै छिल
से जानै िछि? माइन्दज़ के प्रख्यात Institut for Indologie,
जे नक Johannes Gutenberg-University Mainz
मे िै , ओतहुका नवद्वान् Prof. Georg Buddruss के सं ग
ओ काज कयने िला, सं गनह भारत अध्ययनक एकटा प्रमुख केंद्र
नकएल क Seminar for Allgemeine und
Indogermanische Sprachwissenschaft, जे नक
ओतहुका Christian-Albrechts-University Kiel के
अं तगयत अछि, ओतहु ओ िला। ओि' आचायय वे नयर कविटर आ'
जॉन पे टसयन के साि ओ काज कयने िला पोस्ट डाक्टरल के
समय। 2018 मे अं रे जी सानहत्य के क्षे त्र मे प्रकासशत हुनक काज
- Elegy written in a Royal Courtyard - A
Facsimile Edition of Jagatprakasamalla’s
Gitapancaka (जकरा एड्रोइट प्रकाशन िापने िल) से हो
्े खबै त अछि जे सानहत्यो मे हुनक रूछच िलनन। एम्हर ओ एकटा
नव पोिी पर काज क' रहल िछि - a critical edition of
an early 18th-century Maithili play मै नुस्स्क्रप्ट
जे नक भूपतींद्र मल्ल के रचना िलनन, तकरा पर काज क' रहल
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 99

िछि। भक्तपुर शै ली के ने पालमण्डल मे सोडष स्ी के मै छिली


नाटक के stagecraft केहन होइ िलै तकरो पर ओ काज कयने
िछि। ने पाल-प्रां तक इछतहासकार आ भाषा-नवद्वान लोकनन क
ले ल एकटा बुिौअसल जकाँ ई बात काज करै त अछि जे
ने पालमं डलक क्षे त्र मे - जतय शासक आ आम जनता ने वारी बजै त
िल, ओतय मध्यकाल मे कोना एकटा भारतीय-आयय भाषा-
अपन सानहम्त्यक असभव्यक्क्त कें प्रछतछष्ठत क' पौलक एकटा
अत्यं त शक्क्तशाली आ मजबूत साधनक रूप मे तकर आनवभायव
भे लै - एनह केर नन्ानक रूप मे रामावतार जीके नवतम काज मे
प्रयास कयल गे ल िनन। ई ने पाल-छतरहुत कने क्शन कोना बनल,
आओर भूपछतन्दद्र मल्ल (1696-1722) जकाँ मै छिली नाटककार
कोना आनवभूयत भे ला ई तकरे ऐछतहाससक-राजनीछतक-भानषक
्लील बनन सकत से हम नवश्वास करै िी।

अं त मे केहन केहन अपमानजनक पररस्स्िछत के भीतर सँ मात्र


'मधे शी' है बाक कारणें एहन महान व्यक्क्तत्व कें जीवन व्यतीत
करय पिल िलनन, तकर एकटा ममयस्पशी नववरण पाठक ्े न्ख
सकैत िछि हुनक ्ीघय ननबं ध 'ऑन बीइं ग मधे शी' मे । जे
'मधे शनामा' मे प्रकासशत भे ल िल। ्झक्षण एसशयाई ्े शक पुनः
पुनः नवभाजन सँ कते को प्रछतभाशाली व्यक्क्त कें हम सब छमसल
कय दूर नकनार क' कय रखने िी से हम अपन बारम्बार बां लला्े श,
ने पाल, श्ीलं का तिा पानकस्तान भ्रमण के माध्यमें ्े खने िी -
100 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

अपन कते को छप्रय अफ़ग़ान िात्र सँ से हो जानने िी। तौं हमरा


प्रसन्दनता भे ल ई जानन कय जे ई-नव्े हक एकटा नवशे षां क बहरा
रहल अछि जे नक छमत्रवर रामावतार या्व जी जकाँ व्यक्क्तत्व पर
समर्पित अछि।

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com


पर पठाउ।
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 101

२.५.धीरे न्द्र िा 'मै छिल'-भाषा वै ज्ञाननक प्रो. डा. रामावतार या्व

धीरे न्र झा 'मै थिल' (सं पकष- जनकपुर)

भार्ा िै ज्ञावनक प्रो. डा. रामाितार यादि

जनकपुर उद्योग-वाझणज्य सं घक सभा हॉल प्राङ्ग्गन। ओ एकटा


प्लास्स्टक बला कुसीपर बै सल रहछिन। काँ ख तर जाँ तल
प्लास्स्टक फाइल रहनन। अं तरायन्ष्रय मै छिली सम्मे लन ओतऽ
आयोजन िलै । काययक्रम होबऽसँ पनहननह ओ उपस्स्ित िलाह।
हमहूँ तनहना सकाले पहुँ छच गे ल िलहुँ । हम हुनका ्े खसलयनन,
मु्ा नीक जकाँ पररचय ननह िल तँ इ काते -कात ठाढ िलहुँ ।

ओ नकिु बजै त िलन्खन। मै छिली शब््, वाक्य आ भाषा नवज्ञान


सं बंधी नवषय-वस्तु ककरो बुिबै त िलन्खन। हमरो मन-मस्स्तषक
हुनके शब््पर टाङ्गल िल। चीन्दहजान ननह रनहतो हुनक प्रभाव
हमरापर बढै त जा रहल िल। हमरो ननह रहल गे ल। हम ससरर कऽ
102 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

हुनका बगलमे ठाढ भऽ गे लहुँ । भाषा आ शब्् जे हुनका मूँहसँ


ननकसल रहल िलनन से गं भीर ओ भररगर हमरा अनुभव भे ल। हम
रुछचपूवयक हुनकर बात सूनऽ लगलहुँ ।

अपन बात रखै त क्रममे ओ कहलन्खन जे "लोक हमरा ब्राह्मण


बुिैत अछि। िछि, अछि, केलन्खन, बजलाह, चसल गे लाह, की
कहबाक अछि, आद्-आद् शब्् जँ कोनो अनजान व्यक्क्त सुनैत
िछि तऽ हमरा 'बाभन िै की?' से प्रश्न कऽ ्ै त अछि। रामावतार
या्व तऽ बाभन भाषापर जोर ्ै त िछिन। ओ तऽ बाभनकेँ समिय
करै िछिन। ओ तऽ बाभन प्रभानवत व्यक्क्त िछि।" अपने सँ ई
बात ओ बजलन्खन। तहन हम बुझि गे लहुँ जे इएह व्यक्क्त डा.
रामावतार या्व। हमर मोन प्रसन्दन भऽ गे ल। बहुत द्नसँ ई बात
मोनमे घुररआइत िल। बहुत द्नसँ डा. साहे बसँ भें ट करबाक
ननयार िल। कतऽ भे टताह, कोना भे टताह? एनह तरहक बात
हमरा मोनमे बहुत द्नसँ खे सल रहल िल। हमरा मोनमे एकटा
अलग प्रकारकेँ खुशीक तरङ्ग्ग उदठ बै सल। नहनकासँ नकिु बात
करबाक चाही आ नकिु झजज्ञासा रखबाक चाही-एनह तरहक बात
हमरा भीतर उत्पन्दन भे ल।

प्रो. डा. रामावतार या्व असाधारण व्यक्क्तमे सँ एक िछि।


अं रजीक नवद्वान िछि। सुप्रससद्ध भाषावै ज्ञाननक िछि। मै छिली
भाषापर अने क शोध-अनुसंधान केने िछि। भाषा की िै ? कोन
ठाम कोना बाजल जाइत िै ? शब्् कोना सलखल जाए? शब््क
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 103

उच्चारण कोना कएल जाए? मै छिली कतऽ, कोन तरहे बाजल


जाइत अछि? एनह सभ पररवतयनक पािा कारण की िै ? एनह
तरहक सभ नवषयपर स्वयं सलखल पोिीमे चचय केने
िछिन।ब्राह्मण-कायस्िक भाषा एवं अन्दय जाछतक भाषामे फरक
रहल जकर उल्ले ख ओ केने िछिन। हुनका अनुसार भाषामे
जगहक अनुसार फरक होइत िै क। बाजब फरक होइत िै । मु्ा
लीखलमे एकरूपता हे बाक चाही। अं रे जी, कहि्ी, ने पाली वा अन्दय
भाषाक व्याकरण जकाँ मै छिलीक से हो िै । मै छिली समृद्ध भाषा
िै । शब््- व्याकरण आन भाषासँ पै घ िै । ने पालीमे - उहाँ आइसक्नु
भयो' आ्रसूचक वाक्य जे ना होइत िै क तनहना मै छिलीमे 'ओ
आनब गे लाह' शुद्ध बाजल जे तै आ तनहना सलखल जे तै। ई ननह जे
'ऊ अलै ', 'ऊ आनब गे लै' 'ऊ एलै ', 'ऊ एलन्खन' इत्याद्
कनफ्यूजन बात नबल्कुल ननह हे बाक चाही। एनह तहक बात हुनका
मूँहसँ बे र-बे र सुनबाक अवसर भे टल।

ओ स्पष्ट केलन्खन- "भाषा ब्राह्मण वा अन्दय ककरो खरी्ल नै िै ।


सज्िा सं पछत िै । भाषोक जाछत अनुसार बाँ ट-बखरा जे केयो करऽ
चाहै िछि ओ नीक ननह िछि। ब्राह्मण समु्ायमे मै छिलीक शुद्धता
्े खल गे ल अछि। नीक बातकेँ अनुशरण करबाक चाही। जबर्स्ती
हम इएह शब्् बाजब वा सलखब जे नकयो कहै िछि, नीक ननह
भे ल। मै छिली शब््कोश िै , व्याकरण िै , भाषानवज्ञानक शोधपत्र
िै , काव्य, ननबं ध, नाटक, उपन्दयास, किा, इछतहास लगायत
अने क तरहक पोिी िै । हमरा लोकननकेँ अध्य्यन करबाक चाही।"
104 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

ओ ईहो बातपर जोि ्े लन्खन जे "मै छिली भाषी फुट-फुनट कऽ


मगही-मगही अनाप-सनाप बात केननहार नीक बात नै भे लकै। ई
दुभायलय जे एनह तरहक बात केओ करै िछि वा चे ष्टा करै िछि।
मै छिलीमे व्यक्क्त पािा आ्रसूचक शब्् िै । जे ना-

बाबू ले ल-- बाबू आनब गे लाह / आउ

माय ले ल-- माय आनब गे लीह / आ

समछध ले ल-- समछध आनब गे लाह / आएल जाओ

जमाए ले ल-- जमाय आनब गे लछि / आउ

बौआ ले ल-- बौआ आनब गे लै / आउ

सभ के ले ल एकनह तरहक शब््-वाक्य ननह होइत िै क। ससखबाक


प्रयास करी। नीक-नीके होइत िै । हमरा बाजब ननह भे ल तऽ
गोबर-मानट छमिरा ्े बै , से सोच जे केओ करै िछि से नीक ननह
भे लै। प्रो. डा. रामावतार या्वजीकेँ तानह द्न हम नीक जकाँ
छचन्दहसलयनन। मै छिली भाषानवज्ञानक ओ जननी िछि ने पालक
पररप्रेक्षमे ।

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com


पर पठाउ।
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 105

२.६.राम चै तन्दय धीरज- भारोपीय भाषा पररवारवा् आ भाषा ्शयन

राम चै तन्य धीरज (सं पकष- 6203681693)

भारोपीय भार्ा पररिारिाद आ भार्ा दशषन

मै छिली भाषा नवज्ञान आ धरर ओही भारोपीय भाषा पररवारसँ


सं गदठत आ ननधायररत अछि जे हमर भाषाकेँ गुलामीक जं जीरमे
ते ना जकनि ्े लक जे आइयो रहरहाँ कहि्ी मै छिलीकेँ अपन बोली
कनह धनकयाबै त रहै त अछि। भारत सरकार एकरा सं नवधानक
अष्टम अनुसूचीमे स्िान ्े लक, तकर बा्ो कहि्ी भाषाक राजनीछत
मै छिलीकेँ अपन बोली कहबासँ बाज ननह अबै त अछि। ई मानल
जे सं स्कृतसँ मै छिलीक नवकास भे ल अछि, जखन नक ई तथ्य
यिािय ननह िै क, तिानप मै छिलीक तद्भव सं स्कृतसँ नवकससत
अछि से मानै त िी। नवश्वक कोनो एहन भाषा ननह जकरामे नकिु
ने नकिु ध्वनन साम्य ननह हो, तँ एनह दृछष्टसँ कोनो राष्र वा क्षे त्र
106 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

नवशे षक स्वाधीन भाषा अस्स्मताकेँ नकारर ननह सकैत िी। आ तेँ


भाषा मचितनक जे आयाम ननधायररत होइि, ओ टू टैत रहल अछि।

सं रचनावा्ी दृछष्टकोणक मानब िल जे जँ एनह दृछष्टकेँ नवश्व मानव


रहण कऽ सलअए तँ भे ्क समस्या समाप्त भऽ जाएत। ई
सवयनवद्त अछि जे ई प्रयोग साम्राज्यवा्ी शक्क्त अं रजी तं त्र
प्रारं भ केलक आ एनह दृछष्टकोणसँ नवश्वमे दू टा नवश्व युद्ध भे ल आ
अं ततः प्रत्ये क राष्र साम्राज्यवा्ी शक्क्तसँ सं घषय कऽ स्वयं केँ
स्वाधीन केलक। अपन भाषा-सं स्कृछत, नवचार ओ व्यवहारकेँ
समृद्ध केलक। आइ राष्र भाषा तिा एकर नववे क स्वाधीन अछि
तिा पै घ माि िोटकेँ खाइत अछि, ई मान्दयता क्षे त्रीय भाषाक
समक्ष बनल अछि। कहि्ीक मानससकता जे भारोपीय भाषा-
पररवारसँ ननधायररत िल, एखनो धरर अपन स्वभावसँ मुक्त ननह
भे ल अछि। माने कहि्ी अं रे झजयतक सशकार अछि।

की मै छिली एनह पररवारक सं ग जीनवत रनह सकत? हमरा जनै त


आब मै छिली साम्राज्यवा्ी मानससकताक गुलामी खटबाक ले ल
तै यार ननह अछि। एकर स्वतं त्र इछतहास दृछष्ट िै क तिा अवधारणा
आ नवचारक आयाम िै क, जानहसँ एकर ऐछतहाससक सं स्कृछत
लोकभाषा आ वे ्भाषाक व्यवहार सामं जस्यमे सुरझक्षत अछि। वे ्
भाषक समानान्दतर लोक भाषा चल जकरा ॠगवे ्मे मानुषी भाषा
कहल गे ल अछि। कालक्रममे इएह मै छिली भाषाक नामसँ प्रससद्ध
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 107

भे ल। साम्राज्यवा्ी सोचक जं जीर टू नट रहल अछि आ एकरा समर


रूपें तोनि ्े बाक हम आरही िी। तानह ले ल ननरपे क्ष अनुसंधानक
आवश्यकता िै । सं रचनावा्ी तोता रटं तसँ ई सं भव ननह। हम
तुलनात्मक भाषा नवज्ञानकेँ समीचीन मानै त िी मु्ा एकरा
अं रेझजयतसँ मुक्त होबऽ पितै ।

नवचार सभमे होइत अछि, मु्ा सृछष्ट वा उत्पछत सं ्भें नवचार वा


झजज्ञासा सभमे ननह होइत अछि। आ जँ होइतो अछि तँ झजज्ञासाक
समाधान स्वयं मे सभ ननह होइत अछि। ओकरा ले ल कोनो सशक्षक
वा नवशे षज्ञसँ ज्ञान सलअ पिै त िै क। स्वयं मे झजज्ञासा आ स्वयं मे
समाधान नवरले मानवमे होइत अछि। वस्तुतः नवचारक प्रनक्रया
झजज्ञासा वा प्रश्न तिा समाधान वा उिरमे नननहत होइत अछि। तेँ
नवचारक वा वै ज्ञाननक प्रकृछत रूपसँ नवरले होइत िछि। माने ्शयन
वा नवज्ञान नवरले होइत अछि। ्शयन कोनो प्रकारक झजज्ञासाक
समाधान चे तना वा प्रकृछत सं ्भयमे अपन चे तन नववे कसँ करै त
अछि, तँ नवज्ञान ्शयनक ज्ञानकेँ ननरीक्षण-परीक्षण तिा
अनुसंधानसँ व्यवहाररक बनबै त अछि। तें नवचारक प्रनक्रयामे सं सार
अछि आ एकर नक्रया-प्रछतनक्रया अछि।

चे तना स्वयं नवचार प्रनक्रयामे आनब ्ाशयननक आ वै ज्ञाननक होइत


अछि तिा अपन-अपन ज्ञानसँ सं सारकेँ सहज आ पार्शी बनबै त
अछि। नवशे षज्ञ तिा नवचारकमे अं तर होइत अछि। नवशे षज्ञ अपन
108 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

नवषय तकर सीछमत होइत िछि तँ नवचारक ्शयन आ नवज्ञान तक


नवस्तृत। हमरा जनै त मै छिली भाषामे भाषोत्पछत सन गूढ आ
रहस्यात्मक नवषयकेँ नकयो नै सोििौलनन अनपतु एनह नवषयपर
हमहीं नव रूपसँ नवचार केलहुँ । एनह सं ्भयकेँ 'मन आ भाषोत्पछत'
मे ्े खल जा सकैत अछि।1 हमरा जनै त भाषाक उत्पछत नवचार
प्रनक्रयाक स्फोट छिक। पनहने आकस्स्मक रूपें भाषाक नवचार
मनमे आएल आ तत्पिात क्रछमक रूपें ई स्वरयं त्रसँ असभव्यक्त
भऽ अनुसंधानक क्रममे आकृछत-प्रकृछत रहण करै त, सं सारकेँ नाम
रूप प्रकृछतमे ब्सल ्े लक। पनहने - हे , हो, हे यो, हे य आद्
सं बोधनक उ्चारण भे ल हएत।2

मात्र मूँहसँ उच्चररत शब्् भाषा ननह छिक, अनपतु शरीरक ऐन्न्दद्रक
नक्रयासँ कएल गे ल व्यवहार-नवचार भाषा छिक। तेँ भाषाक दू रूप
होइत अछि- वाछचक तिा काछयक। उच्चारण ननयम काछयक
भाषाक पररणाम छिक। चे तना सभ नक्रया भानषक होइि। भाषा
अपन अव्यक्तावस्िामे काछयक रहै ि, मु्ा व्यकतावस्िामे ई
भानषक भऽ जाइत अछि। अिायत चे तनाक कायय भाषा रूपमे व्यक्त
होइत वाछचक भऽ जाइत अछि। वाछचक भाषामे ध्वननक महिा
सभसँ बे सी भऽ जाइत अछि। नकएक तँ ध्वननएँ वणय-स्वर तिा
अक्षर समूहसँ भाषामे आकृत भऽ जाइत अछि। तें ध्वननक
आकार-प्रकार, जे प्राणवायुसँ ननधायररत होइत अछि- ओ
मात्राबलक सं ग स्वरूपक ननमायण करै त शब््मे रूपां तररत भऽ
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 109

जाइत अछि। एनहसँ ध्वनन शास्त्र एवं व्याकरण ननर्मित होइत


अछि। अिायत ध्वनन प्रभाग एवं वाक्य प्रभागक ननमायण होइत
अछि। अस्तु भाषा नवज्ञान एही प्रभागमे असभव्यक्त होइत चसल
जाइत अछि।

प्रो. डा. रामावतार या्व वस्तुतः नवचारक ननह अनपतु नवचार


कएल गे ल भाषा सं रचनाक वै ज्ञाननक उपस्िापन ्ऽ मै छिली
भाषाकेँ नवश्वपटलपर अनबाक प्रयास केलनन जानहसँ नवश्व
सं रचनावा्ी भाषाक ननकट मै छिली से हो नवस्तार पौलक।
अं रेजीमे मै छिली ध्वननक ननरीक्षण-परीक्षण कऽ ओही परं परामे
एकर सं ्र्भित नवश्ले षण करै त समर मै छिली व्याकरण आ एकर
अवधारणाकेँ ई आयाम ्े लनन।

मु्ा एनह नवश्ले षणक आधार रहल सं रचनात्मक भाषाक


(structured language) स्वरूप आ नवकास, जकरा
अं रजीक नवद्वान अपन कल्पनाक नवछध-ननयममे पारं पररक स्वरूप
्े लनन। अं रजी नवद्वान भारोपीय भाषा पररवारक सं रचनावा्ी
दृछष्टकोणकेँ स्िानपत केलनन आ एही परं परामे कछित आधुननक
भारतीय भाषाक नवकास ्े खौलनन आ ई मानलनन जे एनह भाषा
पररवारक जननी कोनो एकटा भाषा हएत। प्रायः ई मानन ले लनन
जे जननी भाषा सं स्कृत अछि आ एही भाषासँ भारोपीय भाषा
पररवारक नवकास भे ल अछि। आधुननक भारतीय भाषाक
110 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

नवकासक सं ्भयमे एनह नवचारक मान्दयता अछि जे वै द्क सं स्कृतसँ


लौनकक सं स्कृत आ क्रमशः प्राकृत तिा अपभ्रं श होइत आधुननक
भारतीय भाषाक नवकास भे ल अछि। एनहमे मै छिली भाषाक सं ्भय
सं स्कृत, मागधी प्राकृत आ अपभ्रं शसँ जुिल अछि। एकर उपलब्ध
साक्ष्य लोक व्यवहार तिा नवचार ननह अनपतु ओनह पुस्तक सभसँ
ले ल गे ल अछि जे पुस्तक कोनो व्यक्क्त वा व्यक्क्त-परं परामे
सलखल गे ल अछि। जन व्यवहार आ नवचारक आधारपर भाषोत्पछत
एवं एकर नवकासकेँ मोजर ननह भे टल। जमयन भाषा ्ाशयननक
लुडनवग नवटजे न्दसटीन (Ludwig Wittgenstein) सलखै त
िछि जे -if we had to name anything which is
the life of the sign, we should have to say
that it was its use. 3 ई उपयोनगतावा्ी नवचार,
सं रचनावा्ी नवचारक एकमात्र चुनौती िल, जे शब््क प्रयोग
व्यवहार एवं उपयोनगतापर आधाररत होइि, कहै त अछि। तानह
कारणे कोनो प्रकारक अमूतय नवछध-ननयममे नवकासकेँ ्े खे बाक
नव-नव क्षमता ननह होइत अछि। ई एकटा ननयममे मूतय स्वरूप ननह
रनह जाइत अछि। सं गनह ई परं पराक रूपमे नव मचितन, मनन आ
नव चे तनाक आधार ननह बनन पबै त अछि तेँ Ludwig
Wittgenstein परं परासँ स्िानपत ननयमकेँ अमूतय नवधान मात्र
कहै त िछि। "A rule is an abstract entity" 4 एकरे
अध्ययनमे मनुष्य अपन ऊजायकेँ नष्ट कऽ लै त अछि। नव दृछष्टक
नवकास वा मूतय नवचार जे व्यवहार ससद्ध होइत अछि, तकर नवकास
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 111

सं भव ननह। ई ईहो सलखै त िछि जे "the scientific


framework is not appropriate everywhere,
and certainly not for philosophical
investigations." 5 तें नव अवधारणा वा कोनो नव खोज
कोनो खास ननयमसँ प्रछतबं छधत ननह होइत अछि अनपतु नव
पररकल्पनाक सं ग एकटा मागय बनबै त अछि, जकर नवचार आ
व्यवहार जन-समूहक भाषा व्यवहार होइत अछि।

वस्तुतः प्रो. डा. रामावतार या्व सं रचनावा्ी भाषा परं परामे हमर
नवचार आ ्शयनकेँ ्े खलनन आ तेँ नहनका हमर तकय आ प्रमाण
प्रछतकूल बुिा पिलनन-"Dhiraj's claim may tend to
tacitly imply that the grammatical system
of the New Indo-Aryan language Maithili
had indeed intruded and/or influenced the
structure of the grammar of the Old Indo-
Aryan Vedic. Sanskrit of the Rgveda. Lately,
in contradistinction to contemporary
knowledge on the probable time of the
origins of the New Indo-Aryan languages,
including Maithili, Dhiraj (2019: 127) has
unabashedly reiterated his earlier
untenable position and additionally erred
112 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

into claiming about the existence of


Maithili" 6

वस्तुतः आमलोके जकाँ नवद्वानक दृछष्ट अपने ज्ञानक अनुशीलनमे


होइत अछि, तेँ ओ अपने ज्ञान-नवज्ञानसँ ्ोसरोकेँ ्े खै त िछि आ
मतखं डन करै त िछि। प्रो. डा. या्व हमरा सं ्भयमे जे नकिु
सलखलनन ओ नहनक सं रचनावा्ी दृछष्टक प्रछतकबिब छिक जखन नक
हमर दृछष्ट मै छिली भाषाक नवकास सं ्भे - 'भाषाक स्वरूप तिा
मै छिली भाषाक नवकास' मे स्पष्ट अछि जे ॠगवे ् कालमे ज्ञान-
नवज्ञानक भाषा वै द्क सं स्कृत िल, जकरा हम ले ख्य अवराही
भाषा कहने िी, तिा बोलचालक भाषा एकर समानान्दतर लोक
भाषा िल, जकरा हम सं भाष्य अवराही भाषा कहने िी। ओनह
समयमे सं भाष्य अवराही भाषा ले ख्य अवराही भाषासँ सवयिा
स्वतं त्र िल।7

हम ' ओ ना मा सी धं ' आले खमे ईहो स्पष्ट केने िी जे ई ॠगवे ्क


'एम ससद्धं' सँ नवकससत अछि। 'एम ससद्धं', 'ॐ नमः ससद्धम् >
ओ ना मा सी धं '। इएह वै द्क सं स्कृतसँ लोौनकक सं स्कृत तिा
मै छिली भाषाक नवकास छिक। एनह ज्ञानक नवकास छमछिले मे
भे ल। तेँ ससले ट पकिै त काल ्े वनागरी सलनपक प्रारं भमे ओ ना मा
सी धं ' सँ होइत िल। हम स्वयं एकर गवाह िी। माने तत्समसँ
मै छिली तद्भवक नवकास भे ल अछि। ओ ना मा सी धं नवशुद्ध ्शयन
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 113

छिक आ प्रारं सभक अक्षर ज्ञान छिक। व्याकरणक उत्स छिक।


असभप्राय ई जे व्याकरणक उत्पछत ्शयनसँ भे ल अछि, प्रत्ये क
ध्वननक अपन ्शयन होइत िै ।8 तेँ नव पररकल्पना भाषाक क्षे त्रमे
्शयन छिक आ एकरासँ अलग व्याकरण काययरूप कोनो तरहें
अलग ससद्ध ननह अछि। तेँ कोनो टा नव पररकल्पना अपन ्ाशयननक
अनुसंधान तकय आ प्रमाणे क आधारपर करै त अछि। हम ॠगवे ्मे
व्यवहृत तात्कालीन लोक भाषा (सं भाष्य अवराही भाषा)क
पचास टा शब्् जे प्रिमे मण्डलसँ ले ल गे ल अछि सं गनह अही
मण्डलमे 'यो' सं बोधनक प्रयोगक आधारे पर अपन मै छिली भाषा
दृछष्टकेँ स्िानपत केने िी, जे वै चाररक प्रभावमे भाषा ्शयन छिक,
व्याकरण ननह।9 हमर दृछष्ट सं रचनावा्ी भाषा नवज्ञान ननह, अनपतु
भाषा ्शयन अछि, जानहमे नव-नव अनुसंधानक ते वर बनल रहै त
अछि। हमरा जनै त भाषा ्शयनकेँ व्याकरणक आवश्यकता अही
ले ल पिै त अछि जे शब्् वा वाक्यक उपास्िापन शुद्धता हो। ननह
तऽ भाषा ्शयनकेँ व्याकरणक कोनो आवश्यकता ननह अछि।

ई सवयनवद्त अछि जे ॠगवे ् वा अन्दयवे ्क भाषा व्याकरण ससद्ध


ननह अछि आ व्यवहारक भाषा पुश्त ्र पुश्त लोक मूँहसँ
हस्तां तररत होइत अछि, ईहो कोनो व्याकरण ससद्ध ननह िल-तखन
व्याकरणक सं रचनाक आधारपर भाषा ्शयनक कसौटी कोना
मानी आ कोना भारोपीय भाषा पररवारक नवकासकेँ समीचीन
मानी। वे ्केँ जनबाक ले ल व्याकरण बहुत बा्मे बनल, मु्ा भाषा
114 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

्शयनेमे वे ् अछि, जकर भावात्मक साक्षात्कार शब्् ्शयनमे नननहत


अछि। मै छिली भाषाक नवकास हमरा जनै त तत्सम > प्राकृत >
अपभ्रं श होइत ननह अनपतु तत्समसँ सीधे मै छिली तद्भवमे भे ल
अछि आ ्े शजसँ तत्सम से हो बनल अछि।10 हमरा ले ल
महत्वपूणय भाषा ्शयन अछि, छघसल-नपटल तिाकछित भाषा
नवज्ञान ननह। नबररि, हाि, काठ, पीठ आद् शब््क नवकास सीधे
वृक्ष, हस्त, काष्ठ, पृष्ठ आद् तत्सम शब््सँ भे ल अछि, ननह नक
एकरा ले ल कोनो प्राकृत वा अपभ्रं श चक्रायल। जनहना तत्समसँ
मै छिली तद्भव शब््क नवकास भे ल, तनहना नव्े शी शब््सँ मै छिली
नव्े शज शब््क नवकास से हो भे ल। जे ना- ्रोगासँ ्रोगा, नजरसँ
नजरर, पोस्टकाडयसँ पोस्टकाट, स्टे शनसँ टीशन आद्।

हमरा जनै त ॠगवे ् कालमे वै द्क सं स्कृत ज्ञान-नवज्ञान तिा राज-


काजक भाषा रहल हएत। एकर समानान्दतर मानुषी भाषा (जकरा
बा्मे मै छिली भाषा) कहल गे ल, से िल। तेँ मै छिलीक नवकास
मानुषी भाषासँ भे ल, कहल जे बाक चाही। वस्तुतः मै छिली,
छमछिला आ मै छिलक नवकास एकर अपन भूगोल सं स्कृछत, नवचार
एवं व्यवहारसँ भे ल अछि तेँ मै काले सशक्षाक अनुसार एकर
नवश्ले षण ननह हे बाक चाही। ईहो सवयनवद्त अछि जे सं स्कृत
सं स्कार कएल गे ल भाषा छिक जे तात्कालीन लोक भाषाकेँ धातु,
उपसगय तिा प्रत्ययसँ सं स्कार कऽ सं स्कृत बनाओल गे ल। तेँ ई
कनहयो जन-सामान्दयक उपयोगक भाषा ननह रहल। नवद्यापछत स्वयं
विदे ह ३९६ म अं क १५ जून २०२४ (िर्ष १७ मास १९८ अं क ३९६) भाषाविद् रामाितार यादि विशे र्ां क|| 115

एकरा स्वीकार करै त कीर्तिलतामे सलखलनन अछि जे -

सक्कयवानी बहुअ न भावय, पाउअ रस को मम्म न पाबय,

्े ससल बयना सभ जन छमट्ठा, तेँ तै सन जम्पओ अवहट्ठा

अिायत सं स्कृत बहुजनकेँ नीक ननह लगै त अछि। प्राकृत ममयकेँ


व्यक्त ननह कऽ पबै त अछि। ्े सी बाषा सभकेँ मीठ लगै त अछि।
तेँ एहने सन अवहट्ठ भाषाकेँ जन्दम ्ऽ रहल िी। स्पष्ट अछि जे
सं स्कृत असभजात्यक भाषा रहल अछि। तेँ मै छिली भाषाक
सं ्भयमे मै काले सशक्षा यिािय ननह अछि।

ई मानल जे मै छिली भाषाक सं ्भयमे अं रे जी नवद्वान बहुत नकिु


्े लनन, मै छिलीक उद्भव आ नवकासक सं ्भयमे प्रो. डा. या्व जानह
भारोपीय भाषा पररवारक आधारपर हमर पररकल्पनासँ असहमछत
जतौलनन, वस्तुतः ई नहनक भ्रामक दृछष्टकोण छिकनन। कोनो
नवज्ञान ्शयनेसँ प्रारं भ होइत अछि तेँ छमछिला, मै छिल आ मै छिलीकेँ
एही आधारपर रे खां नकत करबाक चाही। एही रे खां कनसँ नव
अवधारणा आ चे तनाक नवकास सं भव हएत।

प्रत्यक पररकल्पनामे एकटा नवज्ञान नननहत होइत अछि। ओना


नवज्ञानक आधारे पररकल्पना छिक, तेँ नवज्ञानकेँ अन्े खा ननह

You might also like