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यौन िशक्षा का भूत

डॉ. क द शुक्ला
यौन िशक्षा का भूत
डॉ. क द शक्ु ला

2 | यौ न िश क्षा का भू त
ब्र चारी मोर1

िवज्ञान न पढ़ने से कै सी हा या पद ि थित उ प न हो जाती है, यह आजकल


समाचार म ठहाके बनकर गँजू रही है. लेिकन सौ ठहाक पर एकाध ढ़ वर ऐसे
ु ं को मोर के गभार्धान म योगदान मानते ह.
भी सनु ायी पड़ जाते ह, जो आँसओ
मोर-मोरनी को छोिड़ए और
आगे चिलए. बीसेक साल पहले एक
िफ़ म आयी थी- ‘हम िदल दे चक ुे
सनम’. इसम एक अंतरंग य म
सलमान ऐ यार् से रित-िनवेदन कर रहे
ह और वे गभर् ठहरने का ख़तरा बता
कर उ ह मना कर रही ह. हम लोग उस
य म ठहाके मारकर उस समय हँसे
थे, और हमारे जैसे बहुत से आज भी हँस रहे ह. लेिकन बहुत सोचनीय प्र यह है
िक हँसने के िलए इतने ख़राब चटु कुले हम िमल ही क्य रहे ह?
हा य की बरु ी िवषय-व तु उसकी दयनीयता का प्रितिब बन करती है.
बौिद्धक के चटु कुले भी ऊँचे दज़ेर् के होते ह, जबिक छोटी सोच माँ-बहन की
गाली-भर पर िनपट जाती है. यौन िवषय पर तो चाहे-अनचाहे लोग हँस िदया करते
ह. इस पो ट पर भी मेरे कुछ िमत्र ठहाके वाला िच बना सकते ह. िफर जब बात
इतनी मौिलक यौन-अिशक्षा की हो, तब तो बहुत से लोग को हँसने का मौक़ा िमल
जाता है.

1
कुछ िदन पवू र् राज थान उ च यायालय के एक यायाशीश ने बयान िदया था िकमोर आजीवन ब्र चारी
रहता है. इसके जो आसं ू आते ह, मोरनी उसे चगु कर गभर्वती होती है. मोर कभी भी मोरनी के साथ सेक्स
नहीं करता.
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छूने पर गभर् नहीं ठहरता, यह इतना भी िनिवर्वाद स य नहीं है िजतना म
डॉक्टर होने के कारण मानता हू.ँ यह अच भा तीर की तरह मझु े तब चभु ा जब मने
जाना िक भारत म िकशोर-काल म यौन िशक्षा का तर क्या है. मख ु -मैथनु (oral
sex) व गदु ा-मैथनु (anal sex), िज ह क़ाननू अवैधािनक और बहुत से समाज म
अप्राकृ ितक मानता है, उनसे भी लोग ी के गभर् ठहरने से भयभीत रहते ह. िकसी
अमक ु व तु को खा लेने से िद य महा मा-महापु ष के ज म की तो ख़ैर कथाएँ
ग्र थ म बहु तु -बहुपठ ह ही.
जो बात इस तरह के अज्ञान से िनकलकर सामने आती ह:
वंशविृ द्ध की क्षमता िकस पदाथर् म होती है, यह लोग को पता नहीं. वीयर्
(िजसम शक्र ु ाणु होते ह) और अ डाणु के अलावा संसार का कोई भी पदाथर् अके ले
या िमलाने पर िकसी को भी कै से पैदा कर सकता है? कुदरत के ये न हे त व हम
तब िदखे, जब हमने माइक्रो कोप बना िलया. आप धमर् के आधार पर िकसी भी
िद य ि की बात कर, लेिकन िद य ि याँ तो दरअसल ये ही ह. सदु रू ि थित
िवशालकाय ग्रह -तार को िदखाने वाली दरू दशीर् और समीप सईु की नोक के भी
लाखव िह से के बराबर के कीटाणओ ु ं को िदखाने वाली सू मदशीर्. ये ही हम वह
स य िदखाती ह जो हमारी आँख से परे है. जब तक देखगे नहीं, मानगे नहीं. मानना
चािहए भी नहीं. एक बार शक्र ु ाणु को देख लगे, तो जान जाएँगे िक आप पैदा कै से
हुए ह गे. एक बार अ डाणु का दशर्न कर लेने पर मातृ व का एक-कोिशकीय
ह ताक्षर समझ म आ जाएगा.

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‘जमर्’ (Germ) श द का अथर् कीटाणु बाद म बना, पहले वह बीज था. इसी
से ‘जमार्इनल’ (Germinal) और ‘जिमर्नेशन’ (Germination) िनकले.
काला तर म जब बैक्टीिरया देखे गये, तो एककोिशकीय प्राणी भी बीज-से नज़र
आये. बस, िफर उनका नाम भी ‘जमर्’ पड़ गया.
योिन के रा ते गभार्शय या अ डवािहनी म पहुच ँ ा वीयर् ही औरत को
गभर्वती कर सकता है. अ य िकसी भी रा ते यह ी-गभार्शय तक पहुचँ ही नहीं
सकता. मँहु से, गदु ा से, वचा पर मलने से या िफर कुछ भी करने से पु ष के वीयर्
का ी-गभार्शय से स पकर् नहीं िकया जा सकता. मँहु से ली हुई हर व तु को
पाचन-त त्र म जाना है और पच जाना है. नाक और मँहु के रा ते ली हुई व तु
फे फड़ म भी जानी बहुत हद तक िनयत है. इन दोन त त्र , जठर-त त्र और सन-
त त्र, का यौनांग से कोई स ब ध नहीं है. मलद्वार के रा ते प्रिव व तु भी योिन से
जड़ु े गभार्शय तक साधारण प म नहीं पहुचँ सकती, जब तक मलाशय और योिन
क्षितग्र त होकर पर पर जड़ु न जाएँ.
जो जैिवक घटना िजस अगं घटती है, उसके िलए कुदरत ने परू ी तैयारी की है.
आमाशय म तेज़ाब है, जो हर शक्र
ु ाणु को क्षण भर म न कर देगा. तमाम पाचक-

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रस ह, िजनम िकसी भी का िज़दं ा रहना स भव नहीं. सन-त त्र वायु के आदान-
प्रदान के िलए बनाया गया है. वहाँ एक न हा सा जलकण या भोजनकण भी खाँसी
पैदा करके यह बताता है िक “तमु बाहरी हो, यहाँ तु हारे िलए कोई जगह नहीं”.
वतः जीवन की उ पि जो धमर्ग्र थ म िविवध प म विणर्त है, उसे
मानने वाले पूरी दुिनया म थे. आज भी ह. लेिकन दिु नया म एिशया म यह
संख्या अिधक है. कारण िक एिशयाई समाज आ थावान् समाज है. आ था का
स ब ध भावना से है. प्रबल भावना का उ ीपन ही आ था का सु ढ़ीकरण
है. “ऐसा मझु े महससू होता है, क्य होता है पता नहीं. तमु भी मान लो.” “क्य
माने ल?” “इसिलए मान लो क्य िक तमु से पहले सब मानते आये ह. प्र मत
करो. लक़ीर पर चलते रहो, फ़क़ीर की तरह.”
फ़क़ीरी और स तई वृि से सादी ह, इसिलए तु य ह. लेिकन िच तन उनम
पु तकीय है, िढ़वादी है. उनसे अनभु िू त कराने का प्र िकया जाएगा तो वे
आपकी पात्रता की बात उठा दगे. आसमान म बृह पित ग्रह सबको िदख सकता है,
पर बृह पित देवता के दशर्न आ था ही करा सकती है. िर लेिक्टंग व िरफ्रैिक्टंग
दरू दशीर् आपको िमल जाए,ं यह सरल बात है. आ था तब तक नहीं िमलेगी, जब
तक आप इस खेल को समझ न जाएँ. थक-हार कर आप कह ही दगे “हाँ, मझु े
दशर्न अब होने लगे ह”.
परु ाने लोग गेहूँ और भसू े से चहू की उ पि मानते थे; मगरम छ उनके
अनसु ार पानी म तैरते लट्ठ से उ प न हो जाते थे. यह जीव-िवज्ञान का क्या,
सामा य िवज्ञान का ही अ धकार-काल था. दशर्न की बात करने वाले सक ु रात,
लेटो, अर तू चाहे कुछ भी कह ल, उ ह िवज्ञान की मोटी-मोटी बात भी न पता थीं.
मगर वह उनका ज़माना था, जब तकनीकी नहीं थी. जब िकसी को पता नहीं था िक
कोिशका िकसे कहते ह? िकसी ने कोिशका देखी ही न थी. मनु य के अगं का
प्र यक्ष दशर्न ही िवरलतम बात थी. तब तालीम का मतलब फ़लसफ़े (दशर्न) होता
था- िजतना ऊँचा कि पत दशर्न, उतना िवद्वान यिक्त. बस बात ख़ म. (वैज्ञािनक

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पी.सी. रे और मेघनाद साहा ने प्राचीन भारत म उ च तकनीक और िवज्ञान के पतन
के िलए िजन कारण को िज मेदार ठहराया वो ह (i) जाित यव था का पनु थान
िजससे ‘सोचने’ और ‘करने’ म भीषण जाित िवभाजन हुआ और (ii) समाज म
पहले से या अमतू र् आ याि मक दशर्न और शा ाथर् की प्रवृि िजसे े माना
जाता था. Thema Books की The Scientist in Society देख).
िफर हमारा प्र यक्ष ज्ञान बढ़ने लगा. हमने वह देखना-सीखना शु िकया, जो
अब तक के वल क पना के िसद्धा त पर आधािरत था. िवज्ञान इसी प्र यक्षीरकरण
का इि द्रयज य व प ही तो था! इि द्रयज य स य के प्रित ितर कार कै सा? जो
िदखता और सनु ाई देता है, उसे अधरू ा बता कर ितर कृ त करना क्य ? अनभु व को
अधर्-स य कहते हुए अनभु िू तय की बात म जनता को उलझाना िकस िलए?
अनभु व को समझे-समझाये िबना जो समाज सीधे अनभु िू तय की बात करता
है, उसके भाग्य म ऐसा ही बरु ा हास-पिरहास आता है. यह हँसी जब थमती है, तो
चेहरे पर दयनीयता का अ धकार फै ल जाता है. यह दयनीयता वह है जो हम अतीत
से जोड़े हुए है. यह वह आँवनाल (umbilical cord) है हमारी, जो िगरी ही नहीं.
जानते ह जब िकसी िशशु की आँवनाल न िगरे या देर से िगरे तो उसे
मेिडकल-भाषा म िकसका इशारा माना जाता है? िशशु की प्रितरोधक क्षमता की
हालत बहुत-बहुत बरु ी है. प्रितरोध अँधेरे का, प्रितरोध अज्ञान का- हो नहीं रहा, हो
नहीं पा रहा.

7 | यौ न िश क्षा का भू त
ी का भोकाल

मािसक धमर् म ी वंस धारण करती है. वह कुछ बनाती नहीं, आ मसहं ार करती
है. अपने ही तन को िवन कर वह चक्र-क्रम को आगे बढ़ाती है. शरीर से रक्त
िब दओु -ं मांसख ड के िनःसरण के साथ गभार्धान की स भावनाएँ भी न हो जाती
ह. इस माह जीवन नहीं पनपा. अगले माह िफर देखा जाएगा.
हर महीने इस वंस का मकसद आप तब तक नहीं समझ सकते, जब तक
आप ी को न समझ. ी के मन पर ढेर दाशर्िनक बात की जाती रही ह, लेिकन
तन को इतना क्षद्रु मान िलया गया िक उसपर चचार् ही नहीं की गयी. या य किहए
िक तन के बारे म उ ह कुछ ढंग से पता ही नहीं था. मन के बारे म कि पत बात की
जाती रहीं, तन के सु ढ़ त य तब पता चले जब आधिु नक िवज्ञान ने हर रह य तार-
तार करके उद्घािटत िकया.
दशर्न की यही सम या है. वह मतू र् को एकदम िकनारे कर अमतू र् को साधने
चल देता है. ठोस को बझू े िबना तरल और वायवीय म तैरना चाहता है. ि थत को
जाने िबना अिनि त की तलाश म भटका करता है.
आइए मतू र् ी की बात कर. वह जो हाड़-मांस की बनी है, जो न देवी है और
न नरक म घसीटने वाली तृ णा, बस एक जीव है. जो पु ष का प्रितिलंगी परू क है, न
उससे बेहतर है और न बदतर.
हर सामा य ी के पास एक गभार्शय होता है, िजससे दो अ डवािहकाएँ (या
अ डवािहिनयाँ) िनकलती ह. इन अ डवािहकाओ ं के समीप उनके स पकर् म दो
अ डाशय रहते ह. इ हीं अ डाशय से प्र येक माह एक अ डाणु स तान बनने हेतु
अ डवािहनी से होता हुआ गभार्शय को चलता है, इस आशा म िक रा ते म कहीं
ु ाणु से भट हो सकती है. भट होगी, तो वे िमल जाएँगे. िमल जाएँगे,
भी उसकी शक्र

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तो एक नया जीव बनेगा. वह एक
कोिशकीय जीव, जो अ डवािहनी
या गभार्शय म सृिजत हुआ है, अब
गभार्शय की िकसी दीवार म िचपक
कर धँसने की िक्रया आर भ करे गा.
िफर उसका िवकास शु .
आप िकसी आम ी से
ू कर देिखए िक उसका गभार्शय
पछ
कहाँ है, वह बता न सके गी. पढ़ी-
िलखी मैडम भी मोह ले की
कामवािलय के समतु य िसद्ध हो जाएँगी. और-तो-और पु ष भी. िकसी को
जानकारी ही नहीं अमक ु अगं होता कहाँ है? और बात दशर्न की, मीमांसा की,
त वज्ञान की. िकसे क्या कहा जाए? हँसा जाए या रोया जाए? ये कै सी नक़ली
बिु द्धजीिवता है?
ए ट्रैक्ट से पहले कॉ क्रीट को पकिड़ए. सामा य ी का
गभार्शय लगभग सात सटीमीटर ल बा अगं होता है जो कू हे यानी पेि वस के
भीतर ि थत होता है. गभार्शय कू हे की हड्िडय के िनचले घेरे के भीतर होता है.
सामा यतः वह पेट म नहीं होता और उसे छूकर पता नहीं िकया जा सकता. इस
गभार्शय के आगे ी का मत्रू ाशय होता है और पीछे मलाशय, जैसे प्रकृ ित ने कोई
बड़ा खजाना िकसी कूड़े के ढेर म िछपाया हो. इस गभार्शय का िनचला िह सा
गभर्ग्रीवा से िमलता है, िजसे सिवर्क्स भी कहा जाता है. यह गभर्ग्रीवा और नीचे
योिन या वैजाइना से िमलती है जो बाहर को खल ु ती है.
ऊपर गभार्शय म दोन ओर अ डवािहिनयाँ खल ु ती ह, िजनका काम
अ डाशय म बने अ डाणु को हर माह उसम पहुचँ ाना होता है. गभार्शय कोई
कमज़ोर अगं नहीं, यह मांस से भरपरू होता है. और हर माह इसकी मोटाई हॉम न

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के प्रभाव म घटती-बढ़ती रहती है. गभार्व था म तो यह अपने चरम पर पहुचँ जाती
है क्य िक इसे अपने भीतर पल रहे एक िशशु को रिक्षत-पोिषत करना होता है.
अ डाशय या ओवरी की ि थित भी िनचले पेट म नािभ के नीचे होती है. हर
महीने िकसी एक अ डाशय से एक अ डाणु िनषेचन की स भावना िलए
अ डवािहनी म प्रवेश करता है और वहाँ से गभार्शय म पहुचँ ता है. यिद शक्र
ु ाणु
िमला तो ठीक, नहीं तो वह मािसक धमर् के िवनाश के साथ योिन के रा ते बाहर को
िनःसृत हो जाता है.2
इन सामा य जानकािरय से मिहलाओ ं को यह भी पता चलता है िक
अ डाशय और गभार्शय का ददर् अममू न नािभ के नीचे वाले िह से म होता है. हाँ,
गभर् ठहरने के बाद यह गभार्शय आकार और मज़बतू ी म बढ़ता है और ऊपरी अंग
को धके लता-हटाता बड़ा होते हुए अ ततः परू े पेट को घेर लेता है. िक तु िकसी
सामा य अगभर्वती ी म यह एक कोने म नीचे को अपनी दोन िमत्र अ डाशय
और दोन अ डवािहिनय -संग िनि क्रय पड़ा रहता है.

2
(ovary= अ डाशय; Fallopian tube= अ डवािहनी; uterus= गभार्शय; cervix= गभर्ग्रीवा; vagina=
योिन)
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सेक्स का गुलद ता

प्रकृ ित के अनसु ार यादा बड़ी और मौिलक घटना ी-पु ष का िमलन नहीं,


बि क ी के अ डाणु का पु ष के शक्र
ु ाणु से िमलन है.
प्र येक जीव का वभाव वयं की वंशवृिद्ध है. वह मरना-िमटना नहीं चाहता,
उसे सृि म बने रहने के य न करते रहने ह गे. जीव के शरीर म मौजदू गु ांग इसी
के िलए िनर तर प्रयासरत रहते ह. ी के अ डाशय और पु ष के वृषण म यही
प्रिक्रया यवु ाव था म िन य चला करती है, तािक अिधकािधक जन को उ प न
िकया जा सके .
अ डाशय, जो ी के िनचले पेट म (नािभ के नीच वाले िह से) म होते ह, हर
महीने एक अ डाणु का िनमार्ण करके उसे पास की अ डवािहनी (या अ डवािहका)
म छोड़ देते ह. यहाँ से वह शक्र
ु ाणु से िमलने के िलए चलता हुआ धीरे -धीरे आगे
बढ़ता है. िमलन हुआ तो ठीक, अ यथा गभार्शय-गभर्ग्रीवा-योिन के रा ते मािसक
धमर् म शरीर से बाहर हो जाता है.
दोन अ डाशय म से िकस से अ डाणु िनकलेगा, यह पहले से तय नहीं होता.
वह िकसी भी अ डाशय से िनकल सकता है. य यह भी ज़ री नहीं िक ी (या
पु ष) के पास दोन अ डाशय या वृषण ह ही. एक से भी परू ी िज़ दगी
स तानो पि की िक्रया आगे बढ़ सकती है.
सेक्स का परू ा ताना-बाना इसी अ डाण-ु शक्र
ु ाणु िमलन को सिु नि त कराने के
िलए है. मादा मछिलयाँ और मेढिकयाँ अपने हज़ार -लाख अ डे बाहर जल म
छोड़ देती ह. नर मछिलयाँ और मेढ़क उ हीं के पीछे अपने शक्रु ाणु प्रवािहत कर देते
ह. यह काम लगभग संग-संग करना होता है तािक अिधकािधक अ डाणओ ु ं का
शक्र
ु ाणओ
ु ं से स पकर् हो जाए और यादा-से- यादा नये जीव का िनमार्ण हो. इन

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जीव म एक साथ ढेर स तान पैदा करने
का प्रयास होता है. बहुत से (बि क
यादातर) अ डाण,ु शक्र ु ाणु से
िमलन से पहले व बाद म
परजीिवय का आहार बन जाएँगे.
बहुत से बाहर के प्रितकूल पयार्वरण म
वतः न हो जाएँगे. जो बचगे, वे
िवकिसत ह गे. और उनम से भी कुछ ही
आगे जाकर िवकासक्रम म बढ़कर पणू र् िवकिसत मछिलयाँ या मेढक बनगे.
अ डाणु और शक्र
ु ाणु का य बाहर पानी म िमलना और िमलकर एक नया
जीव बनाना ‘बा िनषेचन’ कहलाता है. इसम यौन-कमर्का ड उतना िवकिसत
नहीं होता, िजतना हम जैसे मनु य और अ य तनपाियय म होता है. जल म
जीवन का यह िवकास इस बात का प्रमाण है िक जीवन जल से थल की ओर आया
है. लेिकन पानी म एक भयावह शीतलता और परायापन है. वहाँ ख़तरे अिधक ह.
वहाँ जीवन को बचाने के िलए िजस तरह सघं षर् करना पड़ता है, उस तरह और
उतना ऊपरी जीव को नहीं करना पड़ता.
सरीसृप (िजनम मगरम छ-जैसे जीव आते ह), पिक्षय व तनपाियय म
य - य हम ऊपरी पायदान की तरफ़ बढ़ते ह, यह िनषेचन बा से आ तिरक
होता जाता है. इसी आ तिरकता के साथ ही मातृ व के अ य िवकिसत आयाम
गभार्धान-गभर्िवकास- तनपान क्रमशः धीरे -धीरे जड़ु ते चले जाते ह.
आ तिरक िनषेचन के क्या लाभ ह? मनु य या अ य जीव िजस तरह से
स भोग करते ह, उससे इन प्रजाितय म क्या सिु नि त होता है? अगर लाभप्रद न
होता, तो प्रकृ ित इस तरह से इन प्रयास को अजं ाम न देती. बा िनषेचन की तल ु ना
म आ तिरक िनषेचन अ डाणु और शक्र ु ाणओु ं को सरु िक्षत माहौल प्रदान करता है.
सेक्स द्वारा जैसे ही ी-शरीर के भीतर शक्र ु ाणओु ं पहुचँ ने लगते ह, वैसे ही बा

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परजीिवय और प्रितकूल पयार्वरण से उनके और अ डाणु के न होने का ख़तरा
नहीं रहता. िफर यह िनषेिचत अ डाणु भ्रणू बनकर माँ के पेट म पनपता है और एक
िनि त गभार्धान-काल के बाद िशशु प म बाहर आता है.
लेिकन गभर् म स तान को रखकर पोिषत करने के साथ एक सम या भी है.
बाहर खल ु े म तो मछली-मेढकी चाहे िजतने भी अ डाणु छोड़ दे, लेिकन भीतर वह
हज़ार ब च को िवकिसत नहीं कर सकती. उसके शरीर की भी एक सीमा है: वह
एक समय म एक साथ सबको पोषण कै से महु यै ा करा पाएगी? इस कारण प्रकृ ित म
िफर बदलाव होता है. मादाओ ं के शरीर म बनने और शक्र ु ाणु से िमलन हेतु
िनकलने वाले अ डाणओ ु ं की संख्या म कमी आती जाती है. मगरम छ , िचिड़य
और तनपाियय जैसे कु -िबि लय -खरगोश म एक से अिधक अ डाणु
िनषेिचत होकर गभार्शय म िवकिसत होते ह, लेिकन हािथय -मनु य -गाय इ यािद
म यह भी मिु कल होता जाता है. यहाँ एक बार म यह सख्ं या एक ही स तान तक
िसमट जाती है.
िफर एक दसू री बात भी है. छोटे जीव की तल
ु ना म बड़े और ऊपरी पायदान
के जीव के िवकास म समय भी अिधक लगता है. एक मछली का िशशु िजतनी
ज दी िवकिसत होकर आ मिनभर्र हो जाता है, उसकी तल ु ना तिनक मानव-िशशु
से कीिजए. यही देरी गभार्धान-काल के प म सामने आती है.
मोटे तौर पर कहा जाए तो सेक्स और स तानो पि की िक्रयाओ ं म
कोिशकाओ ं और आनवु ंिशक सामग्री की बबार्दी बहुत की जाती है. बा िनषेचन
म अ यिधक, आ तिरक म कुछ कम लेिकन िफर भी बहुत. जानते ह प्रकृ ित ऐसा
क्य करती है?
कारण अिधकािधक व थ स तान को संसार म लाना है. कुदरत नहीं चाहती
िक वंशवृिद्ध की इस प्रिक्रया म िवकृ ितयाँ और िवकार नयी पीढ़ी के साथ आगे
जाएँ. जो िवकृ ित-िवकारग्र त ह , वे पहले ही न हो जाएँ. जो पनप, वे हर तरह से
योग्य और व थ ह .
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सेक्स का झमेला

नौ महीन बाद एक ब चा पैदा करने के िलए इतनी बबार्दी िकसिलए? परु ानी
धािमर्क मा यताएँ जो सेक्स को िघनौना बताती ह और यौन-िक्रया म िहसं ा-वृि
देखती ह, वे कहीं-न-कहीं कुछ ढाँपने-िछपाने का प्रयास कर रही ह. उ ह डर था
और है िक अगर इस मनु य-वृि को ढीला छोड़ा गया तो समाज म िबखराव हो
जाएगा. यौन िक्रया को िववाह से जोड़कर देखने के पीछे भी यही बात काम करती
है. आदमी की औरत से शादी दो यिक्तय का मेल बाद म है: पहले यह जैिवकी
का सामािजकी से िववाह है. बायलॉजी को उ मक्त ु छोड़ना सामािजक ढाँचे और
स ा को चनु ौती देने का काम करने लगेगी. प्रकृ ित के िनयम म सेक्स होता है,
िववाह नहीं|
मगर िफर िववाह और यौनकमर् का स मेल हर जगह एक सा कहाँ है. वह हो
भी नहीं सकता. जैिवकी तो हर मनु य की एक ही है, क्य िक वह कुदरती है. लेिकन
सामािजकी मनु य ने वयं बनायी है. और जो आदमी द्वारा िनिमर्त व तु है, उसम
शा त होने का भाव कै से हो सकता है?
इसिलए धमर् पर अटूट आ था थािपत करने के पीछे का मनोिवज्ञान उसे
प्राकृ ितक सािबत करना है, जो वो है नहीं. “आप मान लीिजए िक मेरा वाला
मजहब कुदरती है. यह मने या िकसी आदमी ने नहीं बनाया, यह हमेशा से ऐसे ही
था. यह आिदकािलक है. यह प्राकृ ितक है. यह मलू तः य ही था, य ही है, य ही
रहेगा.”
शा त कुछ भी नहीं है. न कोई समाज , न लोकाचार और न कोई मानव-मू य
ही. भगू ोल तक बदल जाता है. ग्रह-तारे बदल जाते ह. यहाँ तक की शरीर की
िक्रयाएँ-प्रितिक्रयाएँ भी एक सी सदा-सवर्दा नहीं रहती, न रहगी.

14 | यौ न िश क्षा का भू त
आपने सू मदशीर् तले अमीबा देखा न भी हो पर उसका नाम शायद ज़ र
सनु ा होगा. अमीबा जैसे एककोिशकीय प्राणी अममू न अलिगक प्रजनन करते ह.
उनम हमारी तरह नर-मादा नहीं होते. एक कोिशका कुछ समय बाद दो म बँट जाती
है और िफर कुछ समय बाद दो से चार हो जाती ह. मनु य भी तो ऐसे बँट सकता
था. एक आदमी से वह दो बन जाता और िफर दो से चार. सेक्स जैसे ताम-झाम की
भला क्या आव यकता थी?
आम मनु य की सोच यह है िक यह बबार्दी के वल पु ष के शरीर म होती है-
वह ही के वल एक अ डाणु के िनषेचन के िलए लाख शक्र ु ाणु छोड़ता है. ज़ रत
तो के वल एक शक्राणु की है. बाक़ी सभी न ह गे. लेिकन ि याँ म बबार्दी नहीं
होती, यह सोचना भ्रम है. उनके शरीर म हर माह िनकलने वाले एक पिरपक्व
अ डाणु के बदले आठ-दस अ डाणु अधर्िवकिसत ही न हो जाते ह.
रमेश, जो िक एक व थ पु ष है, हर सेके ड 1500 के लगभग शक्र ु ाणु
बनाता है. रमेश के िकतने ब चे ह? एक या दो. या तीन-चार-पाँच-दस-प द्रह.
इमरती देवी जब पैदा हुई थी, तो बीस लाख अ पिवकिसत अ डे लेकर ज मी थी.
वे सभी कहाँ गये? उनम से िकतने रमेश के साथ िमलकर ब च म बदल पाये?
इस ‘िहसं ा’ म, इस नाश के पीछे भी कोई है जो जी रहा है. इस मार-काट से
भी िकसी का भला हो रहा है. प्रकृ ित रमेश या इमरती देवी के िलए नहीं सोचती.
वह प्रजाित के तर पर मनु य-जाित के िलए सोचती है. या िफर वह उससे भी बड़ी
सोच रखती है और समचू े जीवन के िलए सोचती है. या िफर वह कुछ सोचती ही
नहीं. यह सोचना म सोच रहा हूँ और आपको सोचवा रहा हू.ँ खरब वीरान तार
और खरब िनजर्न आकाशगंगाओ ं को ‘सोचकर’ बनाया नहीं गया, नहीं तो इतने
पदाथर् के सृजन म िकफ़ायत बरती जाती. सजु न-समझदार आदमी सफ़े द कमीज़ पर
काला दाग लगाता है. यहाँ मौत की काली कमीज पर सफ़े द टीका है िज़ दगी का.
सेक्स की तैयारी के िलए की गयी बबार्दी के पीछे मल
ू उ े य मनु य-जाित का
उ रो र िवकास है. हर जीव पैदा नहीं हो सकता; हर जीव को कुदरत पैदा नहीं
15 | यौ न िश क्षा का भू त
करना चाहती. वह चाहती है िक सबसे े ही प्रजनन के फल व प ससं ार म आएं
और िफर वे ही प्रजनन करके अपनी प्रजाित को आगे बढ़ाएँ (‘ े ’ के जैिवक अथर्
म, न िक मनु य के द भी और शोषक सामािजक अथर् म). प्रकृ ित की यही मल ू
मंशा है.
लेिकन ऐसा हमेशा हो ही जाएगा ज़ री नहीं. उसकी गोद म इसं ान ही
एकमात्र ब चा नहीं है. साधारण माइक्रो कोप से न िदखने वाले वायरस से लेकर
भीमकाय नीली ेल तक उसके पास हर साइज़ का िशशु है. ये ब चे आपस म
िभड़ सकते ह, एक-दसू रे को चोिटल कर सकते ह, यहाँ तक िक एक-दसू रे को िमटा
भी सकते ह. िफर िजस गोद म, िजस हाथ म ये सब ह, वह ही उसका एकमात्र हाथ
नहीं. कुदरत के सह हाथ ह. वह न जाने कुछ सोचती है और अचानक दसू रे हाथ
से इस हाथ की सारी बनावट िगरा देती है. एक ही पल म सब समा ! िफर िकसी
हाथ म नये िशशु गढ़ने लगती है.
लिगक प्रजनन इसिलए होता है िक नर और मादा अलग-अलग यिक्त ह,
अलग-अलग पिरवार से ह. उनकी कोिशकाओ ं म मौजदू डी.एन.ए. म िविवधता
है. शक्र
ु ाणओ ु ं और अ डाणओ ु ं का िनमार्ण साधारण कोिशका-िवभाजन से नहीं
होता, िविश ढंग से होता है. िफर इस िविश िनमार्ण के बाद जब सेक्स होता है तो
नर का शक्र
ु ाणु मादा के अ डाणु के डी.एन.ए. से िमल जाता है. दो डी.एन.ए. िमले
और जो तीसरा डी.एन.ए. इस दिु नया म आया, वह न परू ी तरह अपने बाप-सा है, न

16 | यौ न िश क्षा का भू त
माँ-सा. वह दोन -सा है और नया भी. जब कोई कहता है िक “मेरी िबिटया मझु सी
है” या “मेरा बेटा मझु सा है”, तो वह के वल बा -सतही बात कर रहा होता है या
िफर थोड़े-बहुत गणु - वभाव की. उसने यह नहीं देखा-जाना होता है िक िबिटया के
मि त क की कोिशकाओ ं म अमक ु काम म मी या डैडी िकससे िमलता है या िफर
हड्िडय का घन व िकससे मेल खाता है.
आदमी-औरत चमड़ी की सतह-भर नहीं ह. और भी बहुत-बहुत कुछ ह उसके
भीतर. आपकी स तान परू ी तरह से आप-सी तभी हो सकती है, जब वह अलिगक
प्रजनन से पैदा हो. दो िमलकर िकसी को पैदा करगे, तो वह दोन -सा/दोन -सी
होगा/होगी. िमलन से उ प न हुआ यह अंतर, यह बदलाव, ज़ री है तािक मानव
िवकास करता रहे. सतं ान म मौजदू िविवधता अगर सयं ोग से पयार्वरण की
पिरि थितय म सटीक बैठी तो नई पीढ़ी की जीिवत रहने की स भावना और
लचीलापन अिधक होगी. सेक्स म शािमल यह बबार्दी और जिटलता इसी
स भावना की कीमत है.

17 | यौ न िश क्षा का भू त
‘मदर् का ददर्’ बनाम ‘औरत का ददर्’

ऑनलाइन िब्रिटश अख़बार ‘द इडं ीपडट’ म बीते िदन एक लेख प्रकािशत हुआ
जो यह त य रे खांिकत करता था िक मिहलाओ ं म मािसक धमर् के समय होने वाला
ददर् दयाघात के समतु य होने के बाद भी िचिक सक का यान उतना आकिषर्त
नहीं करता. ज़ािहर सी बात है िक ऐसे लेख से नारीवािदय को डॉक्टर के समचू े
वगर् को कटघरे म खड़े करने के अपने काम म िबंदु चनु ने म तिनक देर नहीं
लगी: “मािसक-धमर् का ददर् एक मिहला-ददर् है, उसे पु ष नहीं समझ सकते और वे
उसके प्रित एक उदासीन और शु क रवैया प्रदिशर्त करते ह. डॉक्टर चँिू क लालची
और वाथीर् होते ह, इसिलए वे पैसा चसू ने के िलए दयाघात के मरीज़ को
अिधक यान से देखते ह और ‘मािसक-पीिड़ताओ’ं को कम.”
समय हर व तु के बेतक ु े लिगकीकरण का है: ‘औरत की हर चीज़ औरताना है
और जो कुछ भी उसम या उसका औरताना है वह कहीं-न-कहीं मद द्वारा ितर कृ त
है’, ऐसी बात उठाना ि य के पक्ष को सबलता से प्र ततु करना है. मगर औरत को
गु ांग के च मे से देखने की इस हरक़त म बहुधा एक मनु य और उसकी िलंग-
िनरपेक्षता बहुत पीछे छूट जाती है.
ददर् का मह व डॉक्टर इस बात से नहीं तय करते िक
वह मदर् को हो रहा है अथवा औरत को. ददर् को देखने के
िलए उनके पास कई बेहतर मानद ड होते ह. पहला
मानद ड आंिगक है: िकस अंग से वह ददर् पैदा हो
रहा है. दाँत का भीषण ददर् चाहे िजतना क दे, वह
एपिडक्स के कम क कारी ददर् से कम तव जो इसिलए
पाता है क्य िक एपिडक्स पेट म है. वहाँ वह फट सकती है,
पेट म मवाद फ़ै ल सकती है और रोगी मर सकता है. यह
18 | यौ न िश क्षा का भू त
ि थित भयानक दाँत-ददर् म भी शायद कभी न आये. जोड़ म यिू रक एिसड बढ़ने से
होने वाला ददर् गाउट के कारण चाहे िजतनी िश त का हो, उसका मक़
ु ाबला िकसी
पेट म मवाद या आँत फटने से नहीं िकया जा सकता क्य िक उसम मरीज़ की जान
नहीं जा रही.
दूसरा मानद ड ददर् की प्रकृित का है. ऐठं न वाला ददर्, फटन वाला ददर्,
जलन वाला ददर्, िभंचन वाला ददर्- तमाम तरह के ददर् अलग-अलग अनभु िू तयाँ
पैदा करते ह. िप की थैली म पथरी हो, आँत की कावट हो अथवा वृक्क से
पेशाब मत्रू ाशय म लाने वाले यरू े टर म पथरी का ददर्- ये सभी कोिलकी ददर् के प्रकार
ह, जहाँ मांसपेशी की एक खोखली नली कावट को आगे ठे लने की कोिशश
करती है, नाक़ामयाब होती है और एवज़ म रोगी को भयानक ददर् दे जाती है, जो
कुछ क्षण रहता है, िफर बहुत ह का पड़ जाता है या गायब भी हो जाता है.
दयाघात के ददर् म एक ‘से स ऑफ़ इ पिडंग डूम’ या ‘तबाही का पवू ार्भास’ होता
है, जो यह इशारा करता है िक सब कुछ अब न हो जाएगा. चमड़ी अथवा अ य
थान पर होने वाले फोड़ म एक टपकन वाला ददर् होता है और गिठया-रोग से
सजू े जोड़ म एक अकड़न वाला ददर्. हर ददर् म एक ही तरह की भीषणता या एक
ही तरह की प्रकृ ित की की उ मीद नहीं की जा सकती है.
ददर् की यह भीषणता हर रोगी म िमलेगी ही, ऐसा भी नहीं है. हमने
दयाघात के रोगी डॉक्टर के पास ह की उलझन के साथ चल कर आते भी देखे ह
और सईु चभु ने पर लोग को मिू छर् त होते भी देखा है. गोली लगने पर भी लोग
मु कुराते रह सकते ह और दसू रे का ख़नू देखकर भी बेहोश होकर पलट भी जाते ह.
यहाँ अ तर यिक्त- यिक्त का है. हर आदमी एक मेल का नहीं. एक ही अगं म ददर्,
एक ही तरीक़े से होने के बाद भी सबकी अनभु िू तयाँ िभ न ह.
िफर डॉक्टर को ददर् की अविध पर यान देना होता है. भीषण ददर्
अममू न दीघर्कािलक नहीं होते: अगर होते ह तो वे लगातार नहीं होते रहते.
दीघर्कािलक दद के कारण अलग ह, अ पकािलक पीड़ाएँ अलग वजह से होती

19 | यौ न िश क्षा का भू त
ह. कुछ ददर् दीघर्कािलक होने के बाद भी घटते-बढ़ते रहते ह. िनदान व उपचार म
इन सब बात पर यान देना पड़ता है.
ददर् को औरताना बताना एक िबलावजह की बात है. ी के तन म भी एक
दय है, एक मि त क है, दो फे फड़े ह, दो गदु ेर् ह. ये सभी अंग लिगक पहचान के
मोहताज नहीं ह, इनम होने वाली हर बीमारी पु ष िजतनी ही क कारी होती है.
दयाघात चाहे मालती देवी को पड़े या राम कुमार को, उसे उसी तरह की इमरजसी
वाली टाइल म देखा जाता है और देखा जाना चािहए भी. कोई भी मािसक धमर्
का ददर् एक मरते दयाघात-रोगी, एक तड़पते कसर के मरीज़ अथवा एक कराहते
ु ाबला करे गा भला!
पिक्रयेटाइिटस-पीिड़त का कै से मक़
हर ी को मािसक-धमर् के समय ददर् नहीं होता, कुछ को ही होता है. बहुत
थोड़ी ि याँ ऐसी ह िजनम यह ददर् बहुत तेज़ हो सकता है. उनके िलए हर महीने
होने वाली यह प्रिक्रया एक अट्ठाइस-िदनी क का नाम होता है. इसके िलए वे
तमाम देसी नु खे आज़माती ह, दवाएँ खाती ह, ी-रोग िवशेषज्ञ के चक्कर
लगाती ह.
अगर मिहलाओ ं के ही यौन-अगं से उठने वाले दद की बात कर, तो प्रसव
का ददर् हर मािसक के ददर् से बहुत-बहुत-बहुत आगे है. िबना िकसी एने थीिज़या के
ज़रा सामा य िडलीवरी या ऑपरे शन से ब चा पैदा करने की सोिचए ज़रा, आपकी
ह काँप जाएगी. गभर्पात के कारण होने वाला ददर् अपने तरीक़े से मिहला को
पीड़ा पहुचँ ाता है. िफर तमाम ऐसे रोग होते ह, जो औरत को तथाकिथत अपने-
अपने ढंग से औरताना ददर् दे सकते ह. गभार्शय म िवकिसत होने वाले फाइब्रॉइड
ट्यमू र, एडं ोमेिट्रयोिसस, पेि वक इं लेमेटरी िडज़ीज़- सभी भीषण, भयावह
क कारी हो सकते ह.
एक िविश बीमारी जो औरत म गभार्धान के समय भयानक ददर् पैदा कर
सकती है और जान का सक ं ट भी, एक्टॉिपक प्रेग्नसी व र चर है. इसम िनषेिचत
अ डाणु गभार्शय म रोपे जाने की बजाय अ डवािहनी म ही ककर िवकिसत होने
20 | यौ न िश क्षा का भू त
लगता है. वह बेचारी पतली सी वािहका उस बढ़ते भ्रणू को सँभाल कहाँ सके गी!
नतीजन फट जाती है और औरत के प्राण संकट म आ जाते ह. िफर ऑपरे शन
करके उसकी िकसी तरह जान बचायी जाती है.
अब ऐसे दद की फ़े हिर त म मािसक धमर् का ददर् भला कहाँ ठहरे गा?
दयाघात और आँत-अग् याशय की सजू न को अगर दरिकनार भी कर िदया जाए,
तो ि य के पास ‘अपने’ अंग के कारण होने वाले भीषण ददर् की एक अलग
सािरणी है, िजसम हर महीने होने वाला सामा य रक्त ाव बहुत नीचे थान पाता है.
ऐसे म डॉक्टर की लापरवाही पर उँगली उठाना और उ ह धनलोलपु िसद्ध करना
नाहक ही उ ह बदनाम करना है.
पहली बात तो मािसक धमर् के कारण होने वाले ददर् के िलए अममू न साधारण
ददर् की दवाएँ ही इ तेमाल की जाती ह. दसू री बात भारत म उ ह या तो मरीज़ वयं
मेिडकल टोर से ख़रीद कर खा लेती है या वह परामशर् के िलए ी रोग िवशेषज्ञ के
पास जाती है. पु ष िचिक सक के पास जाने म, जहाँ तक स भव हो वह परहेज़
करती है. ऐसे म क्या उसकी पीड़ा के िलए गायनेकोलॉिज ट को उसे इमरजसी ले
जाकर कर िड्रप चढ़ाने की कोिशश करनी चािहए या आई.सी.य.ू म रख लेना
चािहए!
अगर दयाघात पर शोध म इतना पैसा ख़चर् हो रहा है और हुआ है, तो उसके
पीछे कारण ह. दयाघात ी-पु ष दोन म मृ यु की एक बड़ी वजह बनकर उभरा
है. मोटापे, मधमु ेह और उ च रक्तचाप के साथ इसका घिन स ब ध है. इसको
अगर विरत गित से सही समय पर उपचािरत नहीं िकया गया, तो रोगी को भीषण
पिरणाम झेलने पड़ सकते ह. ऐसे म हर महीने होने वाले मािसक धमर् से इसकी
ती ता की तल ु ना सतही और ग़ैर-ज़ री है.
समझ म हर जगह लिगक पहचान ठूँसनी ज़ री नहीं. दय ी के भी है,
फे फड़े-आँत-गदु ेर् भी. ददर् ददर् है. वह िजन रोग म भयावह होता है, उ ह तय करने के
िलए डॉक्टर पढ़-िलख कर उनसे जझू ते ह. यहाँ तक िक ी एवं प्रसिू त-रोग
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िवशेषज्ञ भी मानती ह िक मािसक से अिधक भीषण ददर् के कारण ी-गु ांग म
अ य कई ह और वे उनपर परू ा यान देती ह. एक्टॉिपक र चर की एक मरीज़ इस
बात को प करने के काफ़ी होगी, जब वह मिहला िज़ दगी-मौत के बीच झल ू ती
है.
अगं को समिझए, रोग को समिझए. ददर् यिक्तगत अनभु िू त है, लेिकन हँसता
हुआ दयाघात-रोगी भी परलोक िसधार जाएगा, इसिलए उसे पहले डॉक्टर का
यान चािहए. अकारण छद्म ीवाद के नामपर भ्राि तपणू र् धारणाएँ बना लेना और
डॉक्टर पर िम या दोषारोपण बहुत सी ग़लत छिवय को गढ़कर सामने पेश करता
है, िजससे हािन अ ततः सभी की होती है.
पनु : लेख िब्रटेन का है. इसे पढ़कर भारत की िचिक सा- यव था के बारे म अपनी
धारणाएँ गढ़ लेना बड़ी अपिरपक्वता होगी.

22 | यौ न िश क्षा का भू त
खूनी लीला का सीक्रेट

"पर म मी, पीिरयड्स होते ही क्य ह?" तेरह साल की मग्ु धा अपने शरीर म आये
बदलाव के बारे म अब भी असहज है.
उसकी म मी ने उसे सामा य ि य म हर माह होने वाले मािसक चक्र की
जानकारी दी है. उ ह ने उसे बताया है िक उसके शरीर म आया यह पिरवतर्न इस
बात का सक ं े त है िक अब वह बड़ी हो रही है. बड़े होने का ता पयर् यवु ा होने से है.
यवु ा होना ही बड़ा होना है. और बड़ा इसिलए होना िक म मी की तरह उसे भी
म मी बनना है तािक वह भी िकसी को ज म दे सके . प्रकृ ित नािरदेह म यौवन का
प्रमाण मािसक धमर् के प म प्र ततु करती है. हर महीने अब मग्ु धा के शरीर म वे
चार हॉम न अपने घटते-बढ़ते तर के साथ बदलाव लाया करगे. हर मािसक चक्र
के चौदहव िदन एक अ डाणु अ डाशय से िनकलकर अ डवािहनी-गभार्शय की
ओर चल देगा. हर माह, चँिू क शक्र ु ाणु से उसका मेल तो होगा नहीं, वह अट्ठाईसव
िदन रक्त-मांस के संग शरीर से योिनमागर् द्वारा िनःसृत कर िदया जाएगा.
मग्ु धा मातृ व को लेकर अचि भत तो है, लेिकन अब भी उसे मािसक धमर् को
लेकर अस तिु बनी हुई है. यवु ा होना और म मी बनना उसे आ यर् म डाल रहा है,

23 | यौ न िश क्षा का भू त
पर क्या प्रकृ ित के पास मािसक धमर् के अलावा हर माह इस चक्र को चलाने का
और कोई तरीक़ा न था? क्या योिनमागर् से यह रक्तपात ज़ री था? क्या प्रकृ ित ी-
देह पर सहज बदलाव के संग मातृ व का ह ताक्षर नहीं कर सकती थी?
य अगर हम जंगल म रहते, तो मािसक धमर् के ख़तरे क्या कम होते? ख़नू की
ग ध तमाम िहं जीव को हमारी ओर आकिषर्त करती और हम सरलता से उनका
िशकार बन जाते. िफर साफ़-सफ़ाई रक्तपात के सगं कहाँ सरल होती? कै से हर
महीने संक्रमण से ि याँ िनजर्न वन म अपनी देह की रक्षा कर पातीं?
मािसक धमर् अगर बहुत मौिलक होता, तो वह हर जीव या कम-से-कम बहुत
से जीव म होता. मेढकी को मािसक धमर् नहीं होता, न मादा मगरम छ हर महीने
रक्त ाव के इस दौर से गज़ु रती है. िचिड़य की नाना प्रजाितय म भी इस ढंग की
योिनगत प्रिक्रया नहीं देखी जाती. और िफर तनपायी? उनम भी मािसकधमर् हर
जाित म कहाँ होता है? गाय -शेरिनय -िबि लय -सअ ु रिनय म यह अनपु ि थत है:
गभर् म ब चे तो वे भी िवकिसत करती ह और दधू िपलाती ह. के वल मनु य, कुछ
वानर प्रजाितय और चमगादड़ म माहवारी कुदरत ने बनायी है. मगर मग्ु धा का
सवाल सामने यक्षप्र बनकर खड़ा है िक आिख़र इस रक्तपात की आव यकता ही
क्या थी?
मग्ु धा के इस 'क्य ' को जानने के िलए आपको आँव को समझना पड़ेगा. वह
माँस का लोथड़ा जो गभर्काल म गभर्वती के गभार्शय से एक नाल द्वाराभ्रणू तक
पोषण पहुचँ ाता है और अपिश ग दगी को वापस माँ के शरीर म, तािक वह उसका
उ सजर्न कर सके . गभर् म पल रहे भ्रणू /िशशु के िलए आँव ही उसकी म मी से
उसका कॉ टैक्ट पॉइटं है. उसी के मा यम से वह गभार्शय से जड़ु ा हुआ है: उसी के
ज़िरये उसका िवकास-क्रम अनव द्ध नौ महीन तक चलता रहेगा.
गभर् म िवकिसत होता भ्रणू एक पक्का परजीवी होता है. उसे माँ के तन से
अिधकािधक पोषण चािहए: इस प्रयास म वह गभार्शय की दीवार म धँसने की
कोिशश करता है तािक ख़नू की निलकाओ ं से सीधे स पकर् थािपत कर सके . यह
24 | यौ न िश क्षा का भू त
धँसाव हर तनपायी जाित म अलग-अलग गहराई तक होता है. गाय और
सअु रिनय म भ्रणू गभार्शय की भीतरी दीवार तक पहुचँ कर क जाते ह. ये सबसे
िश भ्रणू ह, इनम परजीिवता सबसे कम है. कु -िबि लय म धँसाव होता है, मगर
थोड़ा सा. इनम थोड़ा परजीवी-भाव बढ़ा है. मानव -वानर म यह अपने चरम पर
पहुचँ जाता है. इनके भ्रणू सवार्िधक माँस म पैठने की प्रवृि रखते ह.
हम भले ही सं कार के कारण सहज प म माता और िशशु को परम प्रेम का
प्रतीक समझ, लेिकन प्रकृ ित के जैिवक इशारे कुछ और ही कहते जान पड़ते ह. माँ
एक जीव है, िजसके पास पोषक त व का भ डार है. भ्रणू जो अभी-अभी बना है,
उसे िज़ दा रहना है. कै से िजएगा? जब खाना िमलेगा? खाना कौन देगा? वह देगी
िजसके गभर् म वह बना है? िकतना चािहए? िजतना यादा-से- यादा िमल सके .
इसिलए धँसो गभार्शय की इस मोटी माँसल दीवार म. पैठो और पहुचँ ो इसकी ख़नू
की निलकाओ ं म. सोखो अिधकािधक पोषक त व. बढ़ो, िवकिसत होओ शीघ्र.
लेिकन पोिषका ऐसे क्य होने दे भला? भ्रणू की इस हरक़त से उसे ख़दु को
बचाना है. अ य भ्रणू भी तो ह गे आगे? के वल इसी भ्रणू को सब कुछ कै से दे िदया
जाए? कै से इस वाथर् के सामने झक ु जाया जाए? इसिलए हर महीने िजस जगह
भ्रणू के आने की स भावना हो, उसकी दीवार को ही क्षत-िवक्षत कर दो. बहा दो
वह ख़नू -माँस योिन के रा ते. परजीिवता न पनपी, एक महीना बीता. अगले माह
िफर देखा जाएगा. लड़ाई जीत ली गयी, मगर यद्ध ु जारी रहेगा.
माँ-भ्रणू के बीच यह र साकशी कुदरत ने अकारण नहीं बनायी. िवज्ञान यह
मानता है िक मािसक धमर् म होने वाले रक्त ाव के रा ते ी उन भ्रणू को बाहर
िनकाल फकती ह, जो ढंग से उसके गभार्शय की भीतरी िभि पर िचपक कर धँस
नहीं पाये ह. यह एक प्रयोग है यह जानने का िक सबसे पिरपु और योग्य भ्रणू को
ही वह अपने गभर् म थान देगी िवकिसत होने के िलए. उसकी चयन-प्रिक्रया बहुत
किठन है तािक सबसे सबल भ्रणू ही उसके गभर् म पल कर िशशु प म बाहर नया

25 | यौ न िश क्षा का भू त
ज म पा सक. ऐसा होने से मानव की जाित म े लोग ही ज म पाएँगे और
जाितगत िवकास सिु नि त होगा.
मानव-ि य और उन अ य प्रजाितय म भी, िजनम मािसक धमर् होता है,
गभार्शय की दीवार म यह धँसाव आँव द्वारा स प न होता है. माँस का यह लोथड़ा
गभार्शय की मासं ल िभि य से िचपकता भर नहीं है, वह उनके भीतर पैठकर माँ की
रक्त-वािहिनय से सीधे स पकर् थािपत कर लेता है तािक भ्रणू के िलए यादा-से-
यादा पोषण जटु ा सके . िवज्ञान ऐसे आँव को हीमोकोिरयल आँव कहता है. िवज्ञान
के अनसु ार यह हीमोकोिरयल आँव का प्रकार ही हमारी ि य -वानिरय -
चमगादिड़य म मािसक धमर् का कारण है.
पछ
ू रही है. यही वह जवाब है जो हम अपनी ि य को देना है. मािसक धमर्
की पहेली का उ र िवकासवाद म िछपा है. मािसक धमर् वाली जाितयाँ स तान के
चनु ाव म सबसे यादा यान रखती ह वे हर िकसी को अपने गभर् म नहीं जगह दे
सकतीं पलने-बढ़ने के िलए.
मग्ु धा एक मानवी है और उसके शरीर ने वयं को गभर्धारण के िलए तैयार कर
िलया है. लेिकन यह तैयारी लचर नहीं है, ढीली-ढाली नहीं है. इसकी यह रिक्तम
जिटलता िवकास-क्रम द्वारा सोच-समझ कर उठाया गया क़दम है.

26 | यौ न िश क्षा का भू त
परदे म रहने दो...

काली प नी म सैिनटरी पैड पकड़ा कर मेिडकल टोर वाले ने अपनी समझ से उसी
िश गोपनीयता का पिरचय िदया है, जो सिदय से हमारे समाज म या रही है.
मनु य-जीवन के दोन िसरे ज म और मृ यु उसे साधारण िसद्ध करने का काम
करते ह. चाहे उसकी सामािजकी उसे िकतना ही िविश थान प्रदान करती हो
अथवा जीवन म आगे करे , लेिकन जैिवकी उसे उसी तरह इस ससं ार म लाती और
ले जाती है, जैसे हर साथी आता रहा है. पिरवार की हैिसयत से वह अ पताल की
सिु वधाएँ प्रा कर सकता है, लेिकन ज म से पहले का गभर्कािलक िवकास और
मृ यु से पहले का प्रितपल दैिहक क्षरण, बहुत हद तक उसके वश म आज भी नहीं.
गु ांग शरीर के सवार्िधक ितर कृ त म शमु ार ह: अगर उ ह अगं के समाज म
प के आधार पर वगीर्कृत िकया जाए तो वे बहुत नीचे थान पाएँगे. कोई आ यर्
नहीं िक िलयोनाड द िव ची जैसा दाशर्िनक यह कहने को मजबरू हुआ िक "मनु य
की स भोग-िक्रया और उसम शािमल गु ागं इतने िव प ह िक अगर उसम चेहर

27 | यौ न िश क्षा का भू त
का सौ दयर्, तन का ंगृ ार और कामो माद न होते, तो स भवतः प्रकृ ित ने मानव
प्रजाित को ही खो िदया होता."
मगर देह के इन अगं के प्रित गोपन-भाव मनु य म इनकी िव पता के कारण
नहीं, बि क इनके कायार् वयन के कारण अि त व म आया है. दो जीव का पर पर
स मेल के बाद तीसरे को उ प न कर देना, िकसी भी अ य जैिवक िक्रया पाचन-
सन-उ सजर्न से कहीं अिधक जादईु और िव मयकारी जान पड़ता है. कहने की
आव यकता नहीं िक इसके िक्रया वयन म पैदा होने वाले सख ु पर आिदकाल से ही
हर िवधान-िनमार्ता और प थ- ा की भृकुिटयाँ ऐसी तनीं िक आज तक हर समाज
को उनसे मक्त
ु होने म सम या पेश आती रही है.
यौनिक्रया म यिक्तगत सख
ु का साधारण भाव-भर नहीं है, उसम वतर्मान पीढ़ी
और भिव यगत पीढ़ी, दोन के िलए एक स पि बोध भी िनिहत है. मनु य की
बढ़ती आबादी के साथ पिरवार -कुनब -खानदान के प म िवकिसत होते समाज
म यही स पि बोध िनयमन का काम करता है. स तानो पि के समय िलया गया
सख
ु उसे लत म बदल कर यिभचार को ज म दे सकता है: यिभचार के फल-
व प ज मने वाली स तान म पर पर स पि -संघषर् बहुत अिधक बढ़ सकता है.
नतीजन प्रजनन के िलए हर समाज म ल बी िनयमावली तय की गयी. प्रजनन
कै से िकया जाए, िकससे िकया जाए, िकतना िकया जाए, कब िकया जाए- सभी
बात पर प थ पी प्राचीन-म ययगु ीन सिं वधान म इतना िलखा गया िजतना अ य
िक्रयाओ ं पर सि मिलत प से भी नहीं.
यौनिक्रया की तल ु ना म अ य िक्रयाएँ िनता त वैयिक्तक ह. यही एक ऐसा त त्र
है िजसम आप िनवैर्यिक्तक होते ह, दसू रे से जड़ु कर तीसरे को संसार म लाते ह और
इस तरह से परू े संसार से एक शृंखला- प म जड़ु ते जाते ह. मगर यह जड़ु ाव गु -
गु -गोपन इसिलए होना चािहए था क्य िक इसका सावर्जिनकीकरण समाज म
अितचार-अनाचार को ज म देकर बहुत को पितत-पथभ्र कर सकता था.

28 | यौ न िश क्षा का भू त
िक तु इस िनषेधभाव के पीछे एक दसू री भावना भी धीरे -धीरे बलवती होती
गयी. िज ह ने िनयमाविलयाँ गढ़ीं, उ ह ने वयं को इनसे ऊपर रखने और िनयिमत
रा त से इतर चलने की यव था कर डालीं. यह सब तब तक िनबार्ध चलता रहा,
जब तक आधिु नक िशक्षा-पद्धित के प्रचार-प्रसार ने यौनांग की संरचना और
िक्रयाओ ं पर िव तृत-समिु चत प्रकाश नहीं डाला.
यौन-िनयम जब भी गढ़े गये, ि य के प्रित स पि भाव के कारण उनके िलए
क्या करना है और क्या नहीं की फ़े हिर त पु ष की तल
ु ना म बहुत अिधक ल बी
बनायी गयी. ी-यौन संरचना और िक्रया को िघनौना िसद्ध करना इसी प्रयास का
एक अंग था तािक वे िनयम को तोड़कर प्रयोगवृि अपनाकर बेलगाम न हो सक.
िफर आिह ता से इसी ी-यौनवृि को मातृ व की िम -ममर्ल अनभु िू त और
कतर् य से जोड़ िदया गया: ऐसा करने से सहज ही ि य को ऊँचा थान देते हुए
उ ह स पि भाव से जकड़ देना स भव हो गया.
समाज िबना िनयमन के चले, ऐसा हो नहीं सकता. और िनयमन जब हो, तो
यौन-िक्रयाओ ं का न हो ऐसा भी स भव नहीं. उ ह तो सबसे पहले िनयिमत करना
होगा. िक तु िनयमन की यह प्रिक्रया भी वतः एकाएक ज म नहीं लेती, इसके िलए
धीरे -धीरे कई पीिढ़याँ कई सही-ग़लत धारणाएँ-िक्रयाएँ गढ़ती-करती िकसी नतीजे
पर पहुचँ ती ह. िफर वे नतीजे भी कोई ज़ री नहीं िक हर देश और काल म एक से
ही ह : अलग-अलग थान और अलग-अलग कालख ड म यौनिनयमन अलग-
अलग होते रह ह और आगे भी होते रहगे.
वैि कता चाहे ससं ार को िकतना भी एक रंग म रँ ग देने का प्रयास करे ,
प्राकृ ितक िविवधता को वह िमटा न सके गी. मेिडकल- टोर-िवक्रेता का काली
प नी म मािसकधमर् हेतु इ तेमाल होने वाले पैड को बेचना उसी क्षेत्रीय गु ता का
िक्रया वयन है, जो गु ांग की सरं चना और िक्रयाओ ं को प्रकट-प्र ततु होने से
रोकती है. उसे डर है िक कहीं इनका प्रकटीकरण समाज म अकारण कोई वंस-भ्रंश
न ले आये.

29 | यौ न िश क्षा का भू त
मेिडकल- टोर-िवक्रेता दवाओ ं को बेच रहे ह, िक तु वे उस आधिु नक सोच
को अपनी दक ु ान म दािखल नहीं कर सके ह िजसने परु ाने सभी प थ कहलाते
संिवधान का बहुत सा भंजन करके नया समाज गढ़ा है.
वे अतीत की सोच के साथ आधिु नकता का िवक्रय कर रहे ह.

30 | यौ न िश क्षा का भू त
रा ट्र यापी िचंता- मदार्नगी

"धात की बात न उठाना ब धु ,क्य िक वह तो सभी व थ पु ष म बनती है और


बनती रहेगी."
लड़का अठारह साल का है और उसकी बिु द्ध उसके गु ांग की जिड़ता-
बि दनी है. उसके सामने प्रेम भरे जीवन की आशाएँ ह, अरमान ह, उ मीद ह. हर
आशा-उ मीद-अरमान के मल ू म सजर्ना है. हर सजर्ना के के द्र म उसका पु ष व है.
और पु ष व के मल ू म उसका गु ांग. इसिलए वह मेरे पास वीयर् और गु ांग की
सम या को लेकर खल ु रहा है.
म वीयर् और गु ांग का कोई िवशेषज्ञ नहीं, जोड़ के रोग देखता हू.ँ लेिकन
िजस तरह से 'ऑल रोड्स लीड टु रोम' वाली कहावत चलती है, उसी तरह 'ऑल
ए मट्स लीड टु द जेिनट स' वाली बात भी सच सािबत होती है. और िफर भारत
का रोगी सं कार म आहार-िवहार की बात सनु ता आया है. उसे कोई बीमारी हो
जाए, उसकी शक ं ा अ ततः इ हीं दो िब दओ ु ं पर जाकर ठहरती है- 'खाने म कोई
परहेज़?' और 'धात िगरती है'. अतः हर ओ.पी.डी. म खान-पान के सैकड़ सवाल
उठाये जाते ह. हर डॉक्टर को कई बार गोपन गु ांग-गाथा सनु नी ही पड़ती है. पहली
बात सपाट प्र के प म प्र ततु की जाती है , तो दसू री अपराधबोध से ग्र त
वीकृ ित के साथ सामने लायी जाती है.
लड़के को लगता है िक उसका िश (िलंग) टेढ़ा है. उसे यह भी बोध हो रहा
है िक उसका वीयर् पतला हो रहा है. उसे यह भी िच ता सता रही है िक वह
ह तमैथनु की लत से मक्त ु नहीं हो पा रहा. अब वह गलर् ड कै से बनाएगा? अब
शादी िकस तरह हो सके गी? और िफर ब चे?
लड़के से म कहता हूँ िक िश और वीयर् का पर पर उतना स बद्ध नहीं है
िजतना वह सोचता है. िश एक पु ष-अगं है, पेशाब और वीयर् को िनःसृत करने
का. वीयर् का काम ी के अ ड से िमलकर नये भ्रणू का िनमार्ण करना होता है.
31 | यौ न िश क्षा का भू त
सृि म िश हीन ज तु भी ह और उनम भी वीयर् बनता है. उन प्रजाितय के पु ष
अपने गु ांग को ी-शरीर म प्रिव नहीं कराते; वीयर्-अ ड का िमलन उनके यहाँ
बाहर खल ु े म होता है. मेढक इस तरह के यौन-स ब ध का सबसे बड़ा उदाहरण है.
म उसे आगे समझाता हूँ िक िश पु ष की यौन-क्रीड़ा की जीभ है. इससे वह
सेक्स-सखु की प्राि कर पाता है. िजस तरह मानव की िज ा तमाम रस को अपनी
ति त्रकाओ ं द्वारा अनभु िू त करके मि त क तक उ ह पहुचँ ाती है और उनका भोग
पाती है, उसी तरह यह काम िश करता है. उसके अिग्रम िसरे पर, िजसे िश -मु ड
कहा जाता है, तमाम ति त्रकाएँ यौन-उ ेजना को महससू करती ह. िज ा और िश
मात्र अनभु िू तय को बटोरने का थान ह, शेष सारा काम खोपड़ी के भीतर बैठा
िदमाग़ करता है.
िफर म उससे कहता हूँ िक िश की ल बाई को आव यकता से अिधक
मह व दे िदया गया है. अ यिधक ल बा पु ष-गु ांग वीयर्-उ क्षेपण और यौन-सख ु
दोन की कोई गार टी नहीं देता है. के वल ी योिन के मख ु ांग पर वीयर्-आलेप भर

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से भी ी गभर्वती हो सकती है, और कई बार साल -साल पणू र् प्रयास के बाद भी
लोग माँ-बाप नहीं बन पाते. सेक्स का सख ु मात्र गु ांग की योिन म प्रिवि पर ही
िनभर्र नहीं है; यह अ य अनेक कारण पर भी बेहद िनभर्र है.
सच तो यह है िक इस उम्र म स तान-व तान कै से करते ह, इसकी उसे न तो
कोई िजज्ञासा है और न जानकारी. उसका यान यौन क्रीड़ा की सफलता पर
अिधक िटका है. कहीं ऐसा न हो िक वह चक ू जाए और उसकी प्रेयसी-पाटर्नर उसे
क चा समझ कर ितर कार-सिहत याग दे.
लड़के ने सनु ा है िक वीयर् अि थम जा (bone marrow) म बनता है. मने
उसे बताता हूँ िक अि थम जा म मात्र रक्त बनता है. वीयर् का म जा से कोई सीधा
स ब ध नहीं. परु ाने लोग ने मदार्नगी को क़ीमती माना होगा, इसिलए वीरता से
वीयर् का स ब ध जोड़ िलया. और िफर न हीं-नहीं सफ़े द बँदू की कथा को खींचते-
खींचते म जा तक ले गये. म उससे कहता हूँ परम कायर के भी सैकड़ पत्रु को
सकते ह, परम वीर भी िनरबंिसया हो सकता है. परम कायर भी कामक्रीड़ा-पटु-
प्रवीण होकर दिसय -सह ि य को तु कर सकता है और अितशय प्रतापी भी
के िलक्रीड़ा-भिू म का भगोड़ा सािबत हो सकता है.
लड़के को मने बता िदया है िक सेक्स तो परू े ऑकेर् ट्रा की प्र तिु त है; वह
भ्रमवश उसे अके ला िरयाज़ समझ रहा है. और वीयर्? उसके िनमार्ण का सेक्स से
कोई स ब ध नहीं है. वीयर् िन य बना करता है पु ष-वृषण म, जो चमड़ी के कोष
म नीचे झल ू ा करते ह. ऐसा इसिलए िक उनम शक्र ु ाणओ ु ं के िनमार्ण के िलए बाकी
शरीर से एक िडग्री कम तापमान की आव यकता होती है. इसिलए पु ष अपने
वृषण शरीर के भीतर नहीं रखता; उ ह बाहर कोष म थान देता है.
लड़का यही नहीं जानता था िक वीयर् और शक्र ु ाणओु ं म क्या भेद है. म उसे
बताता हूँ िक वीयर् म शक्र
ु ाणु होते ह, मगर उसम और भी बहुत कुछ होता है. तमाम
रसायन, अनेक पदाथर्. िफर वीयर् कोई पतला-वतला नहीं होता. वह कोई देसी-
जरसी गाय का दधू थोड़े ही है! पु ष की स तानो पि -क्षमता वीयर् म शक्र ु ाणओ
ु ं
की संख्या, उनकी गितम ा, उनका व प तय करते ह. िजसके वीयर् म िजतने

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व थ-एथलेिटक-सु प शक्र ु ाण,ु वह स तान जनने के िहसाब से उतना े मदर्!
लेिकन िश के आकार और सेक्स-क्रीड़ा से इस संतानो पित वाली मदार्नगी का
कोई िलंक नहीं है.
सेक्स एक ऑकेर् ट्रा-प्र तिु त है, तो िश एक वाद्य-य त्र िजसका प्रयोग एक
कला है. यौन सख ु और स तान-सख ु उससे उपजने वाली लघक ु ालीन और
दीघर्कालीन आन दप्रदायी उपलि धयाँ. बहुत अ छे य त्र वाला बहुत अ छा
ऑकेर् ट्रा भी कोई आन द न दे सके , ऐसा स भव है. यह भी हो सकता है िक
लघक ु ािलक सख ु देने वाला दीघर्कािलक सख ु न दे पाये और दीघर्कािलक सख ु देने
वाला सदैव अपनी प्रेयसी-प नी को लघक ु ािलक सख ु से विं चत रखे.
लड़के को आज ज्ञान िमला है िक वीयर् कोई धातु नहीं िजसे सोना-चा दी की
तरह सँभाल कर ितजोरी म ताला मारकर रखा जाए. वह बनता रहता है, बनता
रहेगा. तमु प्रयोग करोगे, तो िनकलेगा. नहीं करोगे, तो भी समय-समय पर शरीर उसे
पेशाब के रा ते उ सिजर्त कर देगा. बहुत से शक्र ु ाणु भीतर-भीतर ही न हो जाएँगे.
शरीर उनकी सामग्री से नये शक्र ु ाणओु ं का िनमार्ण कर लेगा.
लड़के को चािहए िक वह ह तमैथनु के अपराध-बोध से बाहर िनकले. यौवन
आया है, तो मैथनु की अपेक्षा है. यह वाभािवक है. उ ेजना की आ मतिु कोई
अपराध नहीं. न उससे कोई नैितक-शारीिरक-मानिसक हािन होती है. जो इस प्रकार
से से तु नहीं होते, उनके िलए सीधे सल ु भ ी-सहवास का मागर् है. देह म उठते
नैसिगर्क यौन- वार के शमन का और कोई मागर् नहीं.
बरु ी मात्र यौन-कु ठाएँ ह. बरु ा मात्र वीकृ ित के िबना भी ी को भोग्या मान
लेना है. िघनौना मात्र बला कार है.
"आओ लड़के , अब बात िफर घटु ने की सजू न की कर िजसके कारण तमु
लँगड़ा रहे हो सात साल से, जब तमु जवान भी न हुए थे."

***

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