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ऊँ भूभुवः वः त सिवतुवरे यं भग देव य धीमिह िधयो यो नः चोदयात् ।

माँ क सं कारशाला
मानवीय गुण – आ मिनभरता स ाह . 16

 वेद वा य  कहानी  अ यास के िब दु  िपता-पु /पु ी-संवाद ऑिडयो/िविडओ


 पहेली  मानवीय मू य  मनोवै ािनक समाधान  गीत/लोरी/खेल
युवा को , अिखल िव गाय ी प रवार, शाि तकुंज-ह र ार
माँ क सं कारशाला-16

"गु णामेव सवषां माता गु तरा मृता"


(सब गु म माता को सव े गु माना गया है।)
परम वदं नीय माता जी एवं अखडं योित के शता दी वष के उपल य म
“मां क सं कारशाला” स ािहक पाठ्य म आपको तुत करते हए हम अ यंत हष
हो रहा है। यह पाठ्य म उन माताओ ं हेतु तैयार िकया गया है जो अपने 1 से 8 वष
के ब च को सस ु ं कारी बनाना चाहती ह। इस हेतु 1 वष के िलए 365 कहािनयां एवं
365 वैिदक स ा य तथा 1 वष के 52 स ाह हेतु 52 मानवीय मानवीय मू य तथा
हर स ाह बालक के लालन-पालन म आने वाली सम याओ ं के मनोवै ािनक एवं
यावहा रक समाधान ेिषत िकए जाएगं े। पाठ्य म ित स ाह शिनवार के िदन
ेिषत िकया जाता है । माताएं इसका अ ययन कर ितिदन रात को सोने से पूव एक
कहानी ब चे को सनु ाएं तथा ित स ाह एक मानवीय मू य का अ यास कराए।ं
अ यास हेतु आव यक सुझाव भी िदए जा रहे ह।
 माताएं विववेक एवं अपने अनभु व से इस पाठ्य म म िवषय व तु जोड़ या घटा ल।
 माँ अपने जीवन मे घिटत संग जो तुत मू य से जुड़ा हो, वह भी ब च से साझा
कर ।
 तुत पाठ्य म म मनोवै ािनक समाधान और अ यास के िब दु माँ के िलए ह। माँ
उ हे समझ और अपने तथा ब चे के यावहार म उतारने का यास कर।

इस पाठ्य म को अिखल िव गाय ी प रवार क वेबसाइट www.diya.net.in


एवं www.awgp.org तथा हाट्सएप पु के मा यम से ा कर सकते ह।
“माँ क सं कार शाला” हाट्स प ुप म जुडने हेतु हम हाट्स प न. 9258360962 पर "माँ
क सं कार शाला" िलखकर संदेश भेज त प ात हम आपको ुप से जुडने हेतु िलंक भेजगे
िजसके मा यम से आप हमसे जड़ु कर पाठ्य म ा कर सकगे ।

अित र जानकारी हेतु संपक कर - युवा को , शाि तकुंज, ह र ार


Whatsapp- 9258360962 Mob. No.- 9258360652
E-mail- youthcell@awgp.org

2 | आ मिनभरता
माँ क सं कारशाला-16

िवषय सूची
माँ से िनवेदन
मानवीय मू य :- आ मिव ाश का उ म – वावलंबन
थम िदवस
कहानी:- “अपना काम अपने आप”
ि तीय िदवस
कहानी:- “नए कदम नई राह”
तत
ृ ीय िदवस
कहानी:- “ जो वावलबं ी है भगवान उसी क र ा करते ह ”
चतथ
ु िदवस
कहानी:- “जीवन काश”
मनोवै ािनक एवं यावहा रक समाधान- ब च को आ मिनभर बनने द
पंचम िदवस
कहानी:- “अपना काम वयं करो”
ष म िदवस
कहानी:- “ वावलबं न”
स म िदवस
कहानी:- “अपनी कमाई सदा काम आई ”
गीत :- आसमान से सरू ज िनकला

3 | आ मिनभरता
माँ क सं कारशाला-16

मानवीय गण
ु – स ुण
माँ से िनवेदन
िश ा िवकास का आधार है, िकंतु वयं िवकास का व प या हो, यह भी प
रहना चािहए। िवकास का चरम ल य है मुि । इसका ारंभ होता है वावलंबन और संतल ु न
क मता क वृि से। सतं ल ु न के िबना तो अि त व ही खतरे म पड़ जाता है और िवकास
यिद वयं ारा न िकया जाए, वरन दसू र के ारा थोपा जाए, तो इसे िवकास मानने को ही
बुि मान लोग तैयार नह ह गे। इसिलए वावलंबन तथा सतं ुलन, ये दोन ही िवकास क
ाथिमक एवं आधारभतू शत ह। ब चे को इन दोन क िश ा देना येक अिभभावक का
दािय व है। मनोवै ािनक बजािमन लमू के अनसु ार एक ौढ़ यि म िजतनी बुि होती है,
उसका ५० फ सदी भाग चार वष क उ तक और इसके बाद का ३० ितशत भाग आठ
वष क उ तक िवकिसत हो जाता है। डॉ० एिपयोका के अनसु ार ब चा जीवन के ारंिभक
५ वष म जो कुछ बन जाता है, अिधकांशत: वैसा ही बना रहता है। अतः एक सतं िु लत एवं
वावलंबी समाज के िनमाण के िलए ब च को ऐसी िश ा दी जानी आव यक है, जो उनम
ये दोन गणु िनखारे ।

िशशु एक अनगढ़ धातु है। वातावरण के ताप से ब चे के सं कार , वभाव को उसी


तरह चलाया, िपघलाया, मोड़ा, ठोस िकया और मनोवांिछत अलंकार के प म ढाला जा
सकता है, िजस तरह सनु ार आग क भ ी म सोने को गलाता, तपाता और आभषू ण बनाता
है। महासती मदालसा, महामानवी अनसयू ा, शै या, शकंु तला और
जीजाबाई के उदाहरण हमारे सामने ह। अिभम यु के पवू वत सं कार
या थे? सभु ा ने तपपरायण सु यवि थत जीवन के आधार पर यह
पता ही नह लगने िदया और उसे राजकुल परंपरा के सवथा
अनुकूल साँचे म ढाल िदया। महारथी अजनु और सा वी सभु ा के
य न का यह पु यफल था, जो चौदह वष य राजकुमार अिभम यु
म साहस, शौय और यु -िव ा म वयोवृ नरे श के से गुण
िव मान थे। माता-िपता, बालक के कुटुंबीजन क बस इतनी-सी

4 | आ मिनभरता
माँ क सं कारशाला-16

प रिध भी यिद ब चे को उपयु िमल जाए तो वह े आचरण वाला सं कारवान नाग रक


बन सकता है।
अतः बु माता-िपताओ ं को सव थम तो घर का वातावरण ही वावलबं न और सतं ल ु न
क िश ा देने वाला बनाना चािहए। इतना वे कर सक तो वयं को भी एक सयु ो य संतान
ा होगी और समाज को भी एक उ म नाग रक िमल जाएगा। िन संदहे िशशु पी पौधे के
िवकास म समाज पी भिू म क भी सरं चना आधार म रहती है, तो भी अिभभावक पी
मािलय क भिू मका भी कुछ कम नह होती।

5 | आ मिनभरता
माँ क सं कारशाला-16

मानवीय मू य:- आ मिव ाश का उ म – वावलंबन

सभी अिभभावक चाहते तो यही ह िक उनका ब चा जीवन म िवकास करे , िकंतु ऐसा
होता बहत कम है, बि क इसके िवपरीत ब चे भार बन जाते ह। इसका कारण है ब च म
आ मिव ास और वावलंबन के गुण का िवकास वाभािवक म से न होने देना।
अिभभावक अधं मोह के कारण ब च का सारा काम वयं अपने हाथ से करके तैयार करते
ह। जगाना, नहलाना, कपड़े पहनाना, िखलाना, कूल जाने क तैयारी कर देना आिद ऐसे ही
काम ह, िकंतु यह ेम का उ कृ प नह है, िवकृ त प है। इससे ब चे उन छोटे-छोटे काम
को भी नह सीख पाते, जो उ ह बड़े होने पर वयं करने ही पड़ते ह। हमेशा ही ब च का
काम करते रहने पर वे वयं अपने आप को अयो य-अ म ही समझते रहते ह। इससे ब च
म हीनता क भावना का िवकास हो जाता है।

हीन भाव के आने से ब चे अपने आप के ित उदासीन रहने लगते ह। इस िवकृ ित


का समावेश उनक कृ ित म हो जाने से ब चे हमेशा ही इसी तरह आशा लगाए बैठे रहते ह
िक उनका सारा काम दसू र के ारा ही होता रहे। तैयार काम िमलते रहने से ब चे आलसी,
कामचोर, बहानेबाज बन जाते ह । उिचत है िक ब चे य - य बड़े होते जाएँ, उ ह अपना
काम वयं करने को ो सािहत करते रहा जाए। यिद उनके ारा िकए काम म कह गलती हो
जाती है या कोई कमी रह जाती है तो सहायता देकर उसम सधु ार कर देने से वे अपनी गलती
सधु ार लेते ह। इससे अपना काम वयं करने क आदत िवकिसत हो जाती है। इस वृि को
िवकिसत कर देना ही ब च के ित सही और स चा यार है, अ यथा
ब च के भावी जीवन के साथ िखलवाड़ करना है।
जब ब चे कोई काम करने क इ छा कट करते
ह, तब उ ह रोकना या डाँटना बड़ा घातक होता है। ऐसे
काम िजनसे सक ं ट हो सकता है, जैसे आग के काम,
चाकू आिद हिथयार के उपयोग वाले काम ब च को
नह करने देना चािहए। खतरनाक काम को करने से रोकने
का कारण प प से ब च को समझा देने से वे उनसे होने वाली

6 | आ मिनभरता
माँ क सं कारशाला-16

हािनय से प रिचत भी हो जाते ह, िकंतु येक काम करने से रोकते रहने से ब च क िज ासा
और रचना मक वृि का दमन हो जाता है। इससे आ मिव ास ढ़ नह हो पाता। एकदम
बड़े काम ब च को स प देने से ब चे कर नह पाते। वाभािवक है िक उ ह असफलता
िमलेगी। इससे उन पर उलटा भाव पड़ता है। वे अपने आप को अ म और अयो य समझने
लगते ह। बार-बार असफलता िमलते रहने से ब च का यि व संकुिचत होने लगता है,
िफर ब चे सदा ही दसू र का सहारा पाने क इ छा रखते ह तथा परावलंबन के िशकार हो
जाते ह।
िकसी काय म असफलता िमलने पर ब च के अिभभावक उ ह डाँटते या मारते ह
तथा हतो सािहत भी करते ह। इस मार-पीट और हतो साह से ब च म भी ता क भावना
आ जाती है, वे भिव य म िकसी भी काम को हाथ म लेने के िलए डरते रहते ह। उससे बचने
के िलए बहाने करने का उ ह एक अ छा अवसर िमल जाता है। इसी तरह का म चलाते
रहने से ब चे कोई काम सीख नह पाते। काय क अनभु वहीनता के कारण छोटे-छोटे काय
को करने के िलए भी दसू र का सहारा देखते रहते ह। अपने क य का उ ह ान नह हो
पाता। वे कत यहीन होकर नकल करने क वृि वाले हो जाते ह। अपनी िज मेदारी न
समझकर लापरवाही करने लगते ह।
ऐसे ब चे सदा ही माता-िपता, बड़े भाई-बहन या नौकर से काम कराते रहने म ही
आनंद का अनभु व करते ह। काम न कर सकने का बहाना कर इसी तरह बेगार म काम
िनकालते रहने म उ ह मजा आता है। यही वृि भिव य म शोषण तथा बेगार कराते रहने क
िहसं ावृि म पनप जाती है। ऐसे समय म जब ब चे िकसी काम को करने म असफल होते ह।
तो उ ह डाँटना नह , ेम से समझाना चािहए। िजतना कुछ उ ह ने िकया है, उसी क सराहना
कर ब च को स मान िदया जाना ब च के आ मिव ास को ढ़ बनाने का सहज सरल
तरीका है।
आ मिव ास क कमी के कारण बालक के वल अपने ही काय को करने म िच लेने
लगता है, सामािजक तथा दसू र के काय को करने म गलती हो जाने के डर से सहयोग देने
म िहचिकचाता है। इस वृि से ब च म सामािजकता का िवकास नह हो पाता।
आ मकि त होकर ब चे वाथ बन जाते ह। ऐसे वाथ तथा परावलबं ी ब च से भिव य

7 | आ मिनभरता
माँ क सं कारशाला-16

म सामािजक िहत तथा उसके वयं के िवकास क आशा नह रहती। अतः ब च को आरंभ
से ही दसू र के काय म सहयोग देते रहने के िलए ो साहन देते रहना चािहए।
घर के काय म ब च क राय लेते रहना तथा उिचत होने पर उसके अनसु ार काय
करना ब च के ो साहन के िलए उ म है। उनक राय म कोई कमी रह जाए या वह गलत
हो तो उसका सुधार करके ब च क राय के अनसु ार कुछ काम को कर लेने से उनम
आ मिव ास का िवकास होता है। इससे भिव य क योजना बनाने के िलए सोचने- समझने
क उनम मता का िवकास होता है। घर क सफाई, यव था आिद म ब च क राय लेना
एवं उ ह के सहयोग से काय करना अित उ म तरीका है। इससे काम भी यादा होता है,
ब चे इसे भार भी नह समझते। कोई नए काम को करने के िलए ब च को आ ा या िनदश
देकर ही नह , सहयोग देकर ेमपूवक समझाएँ तथा ेरणा द। इससे उनका अनभु व बढ़ता है।
ब च के उिचत िनमाण के िलए उिचत वातावरण तथा िश ा का बंध होना भी आव यक
है। ऐसे आ मिव ासी ब चे ही जीवन म किठनाइय का सामना करते हए िवकास के पथ पर
बढ़ते जाते ह। परावलंबी, डरपोक तो जीवन का भार ढोते रहते ह।
पं. ीराम शमा आचाय
समा

8 | आ मिनभरता
माँ क सं कारशाला-16

थम िदवस

अ ने स ये मा रषामा वयं तव। -ऋ वेद १ । ९४ । ४

भावाथ: परमे र ! हम तेरे िम भाव म दुःखी


और िवन न ह ।

ऐसी कौन सी चीज है जो पैदा होते ही


िबना पंख के उड़ने लगती है?

9 | आ मिनभरता
माँ क सं कारशाला-16

कहानी

अपना काम अपने आप

जीतू को अपने मोती कु े से बहत यार था । उसक खबू देखभाल


करता था। रोज नहलाता था । रोज समय पर उसे खाना िखलाता था।
जीतू मोती को बहत-सी बात िसखाता जैसे तेजी दौड़ना, ऊपर
उछलना, िकसी चीज क पिहचान करना आिद ।
धीरे -धीरे मोती बहत शरारती होता जा रहा
था । एक िदन उसने छलांग लगाई बरामदे म लटके
िचिड़या के घ सले को िगरा डाला । जीतू कूल से
आया तो उसने पाया िक घ सला टूटा पड़ा है । ितनके
जमीन पर िबखरे पड़े ह और िचिड़या च -च करके रो रही है । मोती भ -भ करके िचिड़या
को भगाने क कोिशश कर रहा है । जीतू पलभर मसमझ गया िक यह सब करततू मोती क
ही ह । उसने मोतीके दोन कान ख चे, एक चपत लगायी और समझाया िक ऐसा नह करना
चािहये । माँ बोली- 'देखो ! यह बेचारी िचिड़या िकतने िदन से जटु ी है। एक-एक करके ितनके
बीन कर लाती है । िकतनी मेहनत से इसने घ सला बनाया है । इस मोती ने एक ही झटके म
इसक सारी मेहनत पर पानी िफरा िदया ।' 'ओह ! बेचारी न ह िचिड़या ।' जीतू के मुँह से
िनकला । िफर वह सोचकर बोला- 'माँ ! गलती मोती क है । म उस गलती का ायि
क ँ गा ।'
'कै से बेटे ?' माँ ने पूछा । 'म िचिड़या का घ सला बनाऊँगा ।' जीतू कहने लगा ।
माँ बोली- 'पर बेटे ! िचिड़या उसम बैठेगी नह । अ डे नह देगी ।'
'वाह माँ ! तमु भी या बात करती हो । म इतना बिढ़या घ सला बनाऊँगा िक िचिड़या
देखती रह जायेगी । वह आराम से उसम बैठेगी और मजे से अ डे देगी ।' जीतू बोला ।

10 |
माँ क सं कारशाला-16

जीतू क माँ कुछ नह बोली । वह जानती थी िक जीतू अपने मन क करे गा ज र ।


िफर जीतू के घ सले म िचिड़या भले ही न बैठे, माँ को उसम हज भी या था ? जीतू इसी
बहाने एक नया काम जो सीख लेगा ।
दसू रे िदन रिववार क छु ी थी । जीतू ना ता करके , तैयार होकर अपने काम म जटु
गया । उसने बाग से सूखे ितनके इक े िकये । कुछ टहिनयाँ लाया | बेकार पड़े तार से घ सले
का एक साँचा बनाया । िफर उसम आड़े-ितरछे करके ितनके लटकाये । जैस-े तैसे घ सला
बनकर तैयार हआ । तब जीतू ने उसके अ दर ई क मल ु ायम-मल ु ायम पत िबछा द । य वह
घ सला बाहर से देखने म अिधक सु दर तो नह था, पर तु अ दर से वह बड़ा आराम देह लग
रहा था । जीतू ने घ सला शहतीर पर लटका िदया । वह बड़ा ही स न हो रहा था । मन ही
मन सोच रहा था िक िचिड़या आयेगी तो घ सला तैयार
देखकर खुशी से फुदके गी । िफर वह इस घ सले म
न ह-न ह अ डे देगी । उनसे ब चे िनकलेगे । वे
च -च करके बोलगे, घर म फुदकगे । पर जीतू क सारी
कामनाय यथ गयी । शाम को िचिड़या और िचरौटा
आये। उ ह ने अपनी च च से घ सले का एक-एक ितनका
िनकाल कर फक डाला जीतू दौड़ा-दौड़ा माँ के पास गया और
आँसा होकर बोला- 'माँ ! िचिड़या ने तो सारा
घ सला ही न च कर फक डाला है ।'
'बेटे ! मने तो तु ह पहले ही समझाया
था । ये छोटे-छोटे जीव-ज तु भी वावल बी होते ह । अपनी मेहनत से वयं अपना ही
काम करते ह । हम ही ह जो दसू र पर िनभर रहते ह । आराम-तलबी चाहते ह ।' माँ बोली ।
'तो माँ ! मेरा आज का सारा प र म बेकार ही गया ?' जीतू पछू ने लगा ।
माँ ने समझाया- 'नह बेटे ! पहला सबक तो तु ह िचिड़या से यह िमला िक हम अपना
काम वयं करना चािहये । अपना काम दसू र से कराने क आदत अ छी नह है । दसू रे , भले
ही यह िचिड़या तु हारे बनाये घ सले म न बैठे, पर तमु ने सारी चीज एक थान पर रखकर ही
दी है ।' उसक सहायता तो क । जीतू ने दसू रे िदन कूल से आकर देखा िक िचिड़या और
िचरौटे ने िमलकर उसके बनाये घ सले के सारे ितनके िनकाल िलये ह । उन ितनक से उ ह ने

11 |
माँ क सं कारशाला-16

पास म ही एक नया घ सला बना िलया है। वे दोन ही बड़ी स नता से बैठे-बैठे च -च -च -
च करके शोर मचा रहे ह ।
माँ बोली- 'देखा जीतू ! आज ये दोन िकतने खुश ह । यह खश ु ी अपने म क
सफलता क है । वयं प र म करके जो काय िकया जाता है, उसी म स चा आनदं िमलता
है । आज ये दोन िदनभर घ सला बनाने म ही जुटे रहे ह ।
जीतू सोचने लगा िक यह न ह िचिड़या भी अपना काम अपने आप करती है । िकसी
पर बोझा नह बनती । िफर म भी अपना सारा काम माँ पर य छोडूं । म भी अपना अिधकतर
काम अपने आप ही क ँ गा ।
अब जीतू अपने आप जूत पर पािलश करता है । खदु अपना
कूल का ब ता लगाकर रखता है । यास लगने पर माँ को आवाज नह
लगाता वरन् अपने आप पानी लेकर पी लेता है । अपनी चीज भी संभाल
कर वयं रखता है । माँ उसे अब बात-बात म टोकती भी नह है। वे उसक
सभी से शसं ा करती रहती ह ।

पहेली का उ र – धआ
ु ँ

समा

12 |
माँ क सं कारशाला-16

ि तीय िदवस

एकं सि ा बहधा वदि त । ऋग १ । १६४/४६

भावाथ: उस एक भुको िव ान् लोग अनेक नाम से


पुकारते ह।

वह या है जो देने से बढ़ता है?

13 |
माँ क सं कारशाला-16

कहानी

नए कदम नई राह
म यावकाश का समय था। अिधकांश िव ाथ खाने-पीने के िलए कटीन क ओर
दौड़ गए थे। बागीश के िम उससे भी चलने क िजद कर रहे थे, पर वह बहाना बना कर उ ह
टाल रहा था । सधु ीर बोला- तमु तो ितिदन ही कोई न कोई बहाना बनाते हो । - अरे , तमु
िखलाना नह , चलो खा तो लो हमारे साथ ।
सभी के आ ह पर बागीश चपु चाप बाहर आ गया। अिधकांश लड़के इस समय खाते-
पीते थे, पर उसे मँहु िछपाना पड़ता था। वह अपने घर क ि थित जानता था। उसक माँ उस
पर अिधक पैसे खच नह कर सकती थी।
पढ़ने वाले वे तीन भाई बिहन थे। फ स सभी क माफ थी, परंतु कूल क ैस और
दसू रे काम म तो पैसा खच होता ही था। माँ क बहत इ छा थी िक बागीश अ छी तरह पढ़
जाए इसिलए उ ह ने उसे अ छे कूल म डाला था। कूल म आए िदन खच होते -कभी
ब च को घमु ाने ले जाया जा रहा है, कभी कोई टॉल लग रहा है, तो कभी कोई चंदा जमा
िकया जा रहा है। बागीश को हर बार अपना हाथ पीछे ख चना पड़ता, सबसे मँहु िछपाना
पड़ता। आज उसने िन य िकया िक वह भी छोटा-मोटा कोई न कोई काम अव य ढूँढ़गे ा,
िजससे उसके ये छोटे-छोटे खच परू े हो सक।
बागीश बहत देर तक सोचता रहा िक या काय िकया जाए।
सहसा ही उसे यान आया िक मौह ले म सबु ह-
सबु ह अखबार बाँटने उसके जैसा एक लड़का
आया करता है, बस िफर या था, वह दसू रे िदन
ात:काल ही घर से बाहर िनकल गया और
अखबार वाले का इतं जार करने लगा। वह बहत
ज दी म था िफर भी उसने उसे रोककर पूछ ही
िलया िक वह कहाँ
से अखबार लाता है और या उसे भी यह
काय िमल सके गा ? लड़के ने कहा तुम मेरे बड़े

14 |
माँ क सं कारशाला-16

भाई से िमल लो, उ ह ने ही मझु े यह काम िदलाया है, शायद तु हारी कुछ सहायता कर सक।
'कल वह ही अखबार बाँटने आएँगे, िमल लेना ।' उसने कहा।
अब बागीश दसू रे िदन क आकुलता से ती ा करने लगा। जब अखबार वाले का
भाई आया तो उसने उससे भी यह बात कही। वह अपने छोटे भाई के ारा सब कुछ जान
चकु ा था। इसिलए बोला- 'मै अखबार वाली एजसी ही जा रहा हँ। चलो तु हारी बात करा
देता हँ।' बागीश उसी क साइिकल पर पीछे बैठकर चल िदया। य िप एजसी वाले को नए
हॉकर क ज रत न थी, परंतु वे स दय थे। 'यह पढ़ने वाला ब चा है और पढ़ाई म सहायता
पाने के िलए काम करना चाहता है' यह सोचकर उ ह ने उसे रख िलया और अगले िदन से
ही काम पर आने के िलए कहा।
िपताजी के पास साइिकल थी ही, बस बागीश का काम बन गया। घर जाकर उसने माँ
और िपताजी को भी यह सचू ना दे दी। दसू रे ही िदन वह काम पर िनकल गया और एक-डेढ़
घंटे काम करके वािपस आ गया।
महीना समा होने पर जब उसे 500 पए िदए गए, तो उसक आँख
खुशी से चमक उठ । वावल बन म िकतना सख ु है, यह उसने पहली बार
जाना। उसने झट से अपने छोटे भाई-बिहन और िम के िलए टॉफ खरीद ।
उसक पहली कमाई जो थी। आज तो वह अपने ि यजन को कुछ न कुछ देना
चाहता था। शेष बचे सभी पए उसने घर म जाकर माँ को दे िदए।
अब बागीश कूल म भी उिचत थान पर आव यकता होने
पर थोड़ा-बहत धन यय करने लगा था। उसके िम इस प रवतन पर चिकत
थे। इसके बाद भी बागीश ने अपना यह वावल बन बनाए रखा।

पहेली का उ र – ान

समा

15 |
माँ क सं कारशाला-16

तत
ृ ीय िदवस

एको िव य भव
ु न य राजा। ऋग ६/३६/४

भावाथ: वह सब लोक का एकमा वामी है।

िबना सहारे लटक रहे ह,


िबन िबजली के चमक रहे ह |

16 |
माँ क सं कारशाला-16

कहानी

जो वावलंबी ह, भगवान उसी क र ा करते ह।

एक बार अकबर के दरबार म एक िविच सम या तुत हई। तीन सैिनक के बीच


झगड़ा हो गया। एक का कहना था िक सबसे बड़ा
भगवान है, दसू रे का कहना था िक िजसके सहायक
और लोग हो, भगवान उसी क र ा करते है,और
तीसरे का कहना था जो अपनी र ा आप करता है,
भगवान उसी क र ा करते है। अकबर ने बीरबल से
यह सम या सल ु झाने को कहा तो बीरबल ने उिचत
अवसर पर उ र देने का वायदा िकया।
कुछ समय बाद दि ण म लड़ाई िछड़ गयी।
बीरबल ने तीन सैिनक को यु पर भेजा। िजसको
यह िव ास था िक कोई प र म आव यक नही है और भगवान वयं ही र ा कर लगे उसे
िन:श , दसू रा जो सहयोग पर िव ास रखता था उसके साथ एक सश सैिनक और तीसरा
जो अपने प र म से परमा मा क सहायता पर िव ास रखता था, उसे सश सिहत भेजा ।
पहला मृ यु को ा हआ, दसू रा बंदी बना िलया गया और तीसरा अंत तक लड़ा और िवजयी
हो कर वापस लौटा ।
िवजय क ख़ुशी म एक ख़श ु ी इस उ र क भी जोड़ी गयी। अकबर ने िनणय सुनाया िक
जो अपनी र ा करता है, वही अपने धम और सं कृ ित क र ा करने म समथ होता है।

पहेली का उ र- तारे

समा

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माँ क सं कारशाला-16

चतथ
ु िदवस

सङ्ग छ वं संवद वम् । ऋग १०/१९१ । २


भावाथ: िमलकर चलो और िमलकर बोलो।

ऊपर से कुछ हरा-भरा,अंदर से है भरा-भरा


िछलके दूर हटा लो जी,बीज नह है खा लो जी

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माँ क सं कारशाला-16

कहानी

जीवन काश
चौदह वष का सूरज बड़ के बराबर काम करता। वह ातः पाँच बजे उठता और राि
१० बजे तक िनरंतर काय करता रहता। सुबह उठकर वह आधा घंटे पढ़ता, िफर झटपट तैयार
होकर अखबार बाँटने के िलए िनकल पड़ता। िबजली क सी तेजी से वह अखबार घर म
फकता। दो वष म यह उसे अ छी तरह रट गया था िक िकसके घर कौन सा और
िकस भाषा का अखबार फकना है। दो घंटे म यह काम पूरा हो जाता। घर
आकर खाना खाकर कूल जाता। पढ़ाई करके लौटता
तो िफर ट्यश ू न पढ़ाने जाता। छोटे ब च के तीन
ट्यश
ू न उसके पास थे। इसके बाद वह
पु तकालय जाता और वहाँ बैठकर नोट्स
तैयार करता । घर लौटते रात के नौ बज
जाते । खाना खाकर थोड़ी देर माँ और छोटे
भाई-बहन से बातचीत करता रहता। इतने
समय म घड़ी १० बजा चक ु होती ।
माँ अपने बेटे के भोजन का िवशेष यान रखत । वह सबसे अलग उसे पौि क आहार-
दधू , स ते मौसम के फल आिद िखला- िपला देत । छोटे भाई-बहन को भी माँ ने िसखा-पढ़ा
िदया था । वह उनसे वे चीज लेने के िलए कहता तो वे तुरंत रटा हआ उ र देते - 'हमने खा
िलया है भैया ।'
सरू ज क माँ जानती थी िक वह िकतना प र म करता है, पर वह उसे दसू रे ब च क
भाँित सखु -सिु वधाएँ देने म असमथ थ । उ ह वे िदन याद आते, जब सूरज के िपता थे और
सभी सख ु से रहते थे। दो वष पवू नगर म दंगे हए और वे उनक चपेट म आ गए। परू े प रवार
पर िवपि का पहाड़ टूट पड़ा। उनके गहने िबक गए, पर ऐसे कब तक खरच चलता ? उ ह ने
घर पर रहकर िसलाई, कढ़ाई, बुनाई का काम ारंभ िकया, पर उससे भी परू ा न पड़ता। वे

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माँ क सं कारशाला-16

पास-पड़ोस के घर चौका बरतन आिद का काम भी करना चाहती थ , पर सरू ज ने इसका


िवरोध िकया। वह कहता था िक ऐसा करने पर वह पढ़ाई छोड़ देगा।
सरू ज का तक था िक माँ घर पर तो काम करती ही ह, साथ ही उनका घर पर रहना भी
ज री है, िजससे छोटे भाई-बहन को सरु ा और सरं ण िमले। घर पर माँ नह रहगी तो वे
इधर-उधर मनचाहे ढंग से घमू गे और िबगड़गे। संसार म ऐसे यि य क कमी नह है जो
दसू रे पर िवपि आने पर भी अपना वाथ परू ा करना चाहते ह। सूरज के िपताजी ने दो कमर
का अपना मकान बनवा िलया था। वे सभी उसी म ही रहते थे। सरू ज के िपताजी के मरने पर
शभु िचंतक कहे जाने वाले अनेक र तेदार और पड़ोिसय ने उ ह यह सझु ाव िदया था िक वे
मकान बेच द, िजससे उ ह पैसा िमले और ब च क पढ़ाई-िलखाई, जीवन िनवाह आिद का
काम अ छी तरह से चल सके , परंतु सरू ज क माँ ने यह वीकार नह िकया। िपता के मरने
पर िकशोर सूरज भी कुछ ही िदन म बुजगु बन गया था। उसने भी माँ का समथन िकया, वह
यह बात समझता था िक घर बेच देने पर छत का साया भी उसके िसर से उठ जाएगा और वे
दर-दर क ठोकर खाएँगे। अतएव दोन ने सक ं प िलया था िक हम प र म करके खा-सख ू ा
खाकर जैसे भी होगा अपना काम चला लगे, पर मकान न बेचगे, न िकसी के आगे हाथ
फै लाएँगे। अपना वाथ पूरा न होते देख सलाह देने वाले शभु िचंतक भी उनसे दरू होते चले
गए। वे तो यही सोचते थे िक स ते म मकान खरीद लगे।
सरू ज और उसक माँ के किठन प र म से प रवार क गाड़ी जैस-े तैसे चलने लगी।
यिद साहस न खोया जाए तो घोर संकट म भी कोई न कोई रा ता िनकल ही आता है।
छोटे ब च पर भी सरू ज का भाव पड़ा।
वे भी पढ़ाई के बाद अपनी साम य के अनसु ार
छोटा-मोटा काम करते, जैसे कागज के थैले और
िलफाफे आिद बनाना। माँ चाहती थ िक वे भी
वावलंबन का गुण सीख जाएँ। धीरे -धीरे करके
संकट के िदन िनकलते गए। सरू ज ने इसी कार
पढ़ाई और काम दोन साथ-साथ करते हए इटं र
क परी ा पास कर ली। इसके बाद वह डाक
िवभाग क ितयोगी परी ा म बैठा। मेधावी तो
था ही, एक बार म ही उ ीण हो गया। कुछ मास
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माँ क सं कारशाला-16

क ेिनगं के बाद उसे नौकरी िमल गई। प रवार पर छाए सक ं ट के बादल बहत कुछ अब दरू
होते चले गए।
सरू ज क माँ बुि मती थ । सरू ज क नौकरी लग जाने पर भी उ ह ने न वयं काम
करना छोड़ा और न छोटे ब च को ही छोड़ने िदया। वह चाहती थ िक सरू ज जैसा वावलबं न
का गुण सभी म आए। छोटे ब चे भी अब कुछ बड़े हो चले थे। माँ ने प कह िदया- 'अके ला
भाई िकतना कमा सकता है? तुम सब ही अपनी- अपनी पढ़ाई-िलखाई और अपने कपड़
का खरचा वयं अपने आप िनकालो।'
प रणाम यह हआ िक छोटे तीन ब च म भी यह ित प ा रहती थी िक वे िकतने
आ मिनभर बन सकते ह । १०-१२ वष के होते-होते वे छोटे-छोटे ब च के ट्यूशन करने लगे
थे। यही नह वे िकसी के घर का छोटा-मोटा काम घटं े-दो घटं े करके पैसे कमाने म भी सक
ं ोच
न करते। माँ ने उ ह यही िसखाया था िक कोई भी काम बरु ा नह है। चोरी करना और बुरे
साधन से धन कमाना ही बुरा है। अतएव कोई िकसी क मोटर गाड़ी साफ कर देता, कोई
िकसी के घर का बाजार से सामान ला देता, कोई िकसी के ब चे को एक-दो घंटे िखला
लाता। इस कार के एक-दो घंटे अ य अनेक काम से ही उ ह अपनी पढ़ाई आिद का काम
चलाने के िलए धन िमल जाता ।
अब प रवार का िनवाह सिु वधापवू क होने लगा था। प रवार के सभी सद य वावलबं ी
थे। ब चे िनरंतर गित कर रहे थे। र तेदार और पड़ोिसय क सहायता के िबना ही
उ ह ने ऐसा कर िदखाया था, पर उ ह िकतने सक ं ट झेलने पड़े िक यह बात
सरू ज क माँ को अ छी तरह याद थी। िपतृहीन सरू ज ने जो
अभाव सहे थे उ ह भी वह भल ू ी न थी। उ ह ने मन क
बात ब च के सामने रखी। सरू ज और दसू रे
ब च ने भी उसका समथन िकया। सरू ज का
कथन था िक हम तो अपने िनवाह के यो य
िमल ही रहा है, यिद दसू रे संकट त के
िलए हम कुछ कर पाएँ तो यह अ छा ही होगा। सभी
ने िवचार-िवमश के बाद यह िन य
िकया िक घर म टाइप िश ण
क खोला जाए। सभी ने कुछ
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माँ क सं कारशाला-16

पये डाले और दो टाइप मशीन खरीद ल । घर क दो मेज-कुरी बरामदे म रख दी गई।ं घर के


बाहर बोड लगा िदया गया-'जीवन काश टाइप सं था' जीवन- काश नाम उनके िपता का
था, साथ ही सं थान के िलए साथक भी था। इस क म के वल ऐसे ब चे ही टाइप सीख
सकते थे जो िपतृहीन थे। उनसे कोई शु क नह िलया जाता था। सरू ज ने टाइिपगं का कोस
िकया हआ था। घर म टाइप मशीन आ जाने पर उसने घर के सभी सद य को भी टाइप िसखा
दी। वे सभी एक-एक घंटे इस क म मदान करते । म या १२ से ४ बजे तक उनका यह
क खल ु ा रहता। धीरे -धीरे ब च क सं या बढ़ती गई और भी टाइप मशीन खरीद
ली गई।ं उनक इस िन वाथ भावना को देखकर समाजसेवी सं थाओ ं और कुछ धनी
यि य ने भी उपहार म टाइप राइटर और फन चर िदया। आज सं थान नगर के िपतृहीन -
अनाथ ब च म बहत लोकि य है। यह उ ह िन वाथ भाव से वावलबं न का पाठ जो पढ़ाता
है। सच है िक साहस, धैय और आशावािदता ही वे सबसे बड़े गुण ह जो संकट क घड़ी म
भी यि को ि थर रखते ह। यही नह इनको अपनाकर यि दसू र का भी पथ- दशक
बनता है।
पहेली का उ र-के ला
समा

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माँ क सं कारशाला-16

ब च के मनोवै ािनक एवं यावहा रक सम याओ ं के समाधान

ब च को आ मिनभर बनने द।

संसार म ब चे का ज म सीखने और कुछ कर गुजरने क भावनाओ ं के साथ होता है।


िजस कार एक न हे-से पौधे म फलने-फूलने क सम त सभं ावनाएँ िछपी रहती ह, ठीक उसी
तरह ब चे म भी सभी मानवीय गणु मूल प से समािव रहते ह। घर म अनक ु ू ल वातावरण
िमलने पर उसक सृजना मक वृि , वावलबं ी बनने क बल आकां ा और वयं को
उपयोगी िस करने क य नशीलता सिु वकिसत होती और सि यता बढ़ती है, िकंतु माता-
िपता ारा वैसी सतकता बरतने और ब च क माँग के अनु प सुिवधा जुटा तथा भरपरू
सहयोग, सरु ा दान करने क रीित-नीित यिद न अपनायी जाए तो ब च का आलसी और
परावलबं ी होना सहज वाभािवक है। िकसी भी रा को समृ , सपं न और उ नतशील बनाने
क क पना को साकार तभी िकया जा सकता है, जब वहाँ के बालक को, जो देश के भावी
नाग रक ह, आरंभ से ही आ मिनभरता का पाठ पढ़ाया जाए।
ब च को वावलबं ी और ससु ं कारी बनाना देश क भावी आिथक एवं नैितक
यव था को सु ढ़-सश करना है। िव िस मनोिव ानी वाटसन के अनसु ार 'अिभ ेरण
का िस ातं ' इस त य को उजागर करता है िक यि के िलए जीवन के थम पाँच वष बड़े
ही मह वपणू समझे जाते ह; य िक मनु य को जो कुछ बनाना होता है, ायः उसक
आधारिशला इसी समयाविध म रख जाती है। इसके उपरांत तो िवकास म को बल िमलता
रहता है। न व कमजोर रहेगी तो इमारत भी ज दी ही खडं हर म प रवितत होती चली जाएगी।
यिद बालक को इ ह िदन म आ मिनभरता का अ यास करा िदया जाए तो उसका भिव य
सब कार से संदु र और उ वल बन सकता है।
ायः देखा जाता है िक ब चे को िकसी िखलौने से खेलने क आव यकता होती है
तो उसे लाने के िलए दसू रे कमरे म जाना िनतांत आव यक है। ऐसी ि थित म वह अपनी माँ
को पुकारने और िखलौना ले आने का आ ह करने लगता है। माँ उसक आकषक आवाज
म फँ सकर उसक माँग को परू ा कर देती है। यह से बालक के अतं मन म एक िं थ बन जाती
है और वह अपना हर काम माता-िपता पर टालने क कोिशश म लग जाता है। यही मनो ंिथ
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माँ क सं कारशाला-16

जब आदत म शमु ार हो जाती है तो ब चा बड़ा होकर भी अपने छोटे- मोटे काय के िलए
माता-िपता पर ही अवलिं बत रहने लगता है। परिनभरता उसके वभाव का अंग बन जाती है।
फलतः ऐसे ब चे ोध और िचड़िचड़ेपन के िशकार होते ह
दसू र के आि त रहकर अपनी सि यता खोते
चले जाते ह। माता-िपता पर अ यिधक िनभर रहने
वाले ब चे ायः आलसी वभाव के बनते और
अपने ऊपर स पे गए उ रदािय व से मख ु मोड़ने लगते
ह। कुछ काम करगे भी तो िववशता अथवा
हािन क आशंका को देखते हए ही, अ यथा
काम से बचने के िलए अनेकानेक तरह के
बहाने गढ़गे। अिभभावक भी ब च क इस
कामचोर वृि को देखकर बड़े बेचैन होते ह
और अपने दभु ा य को कोसते रहते ह; जबिक
वा तिवकता यह है िक न तो उ ह ने बाल िवकास क िज मेदारी को िनभाया और न ब च
म वावलबं न का गणु ही उ प न कर सके ।

व तुतः आ मिनभरता क वृि ऐसी है, िजसके फल व प छोटे से ब चे म नया


उ साह और उमंग पैदा होती है। उसक मुखमु ा पर सदैव स नता और फु लता क योित
ही कािशत होती रहती है। इतना ही नह , वह दसू रे ब च के स मख ु अपनी गौरव ग रमा
भी अनभु व करने लगता है। ऐसे ब चे जीवन म हमेशा हँसमख ु , फुरतीले और सि य बने
रहते ह।
अब उठता है िक बालक म आ मिनभरता का बीजारोपण कै से िकया जाए?
अिभभावक और माता-िपता उ योजन क आपिू त म बड़ी सराहनीय भूिमका िनभाते ह;
य िक ज मदाता होने के कारण उसका थम संपक उ ह से होता है। उ ह इस त य से भली
भाँित प रिचत होना चािहए िक ब चे क सेवा-सहायता करना और िदशा-िनदश देना एक
बात है, िकंतु कुछ बनाने जैसा कर देना सवथा दसू री ब च से काम कराने और सहयोग लेने
क कला का ान भी उ ह होना चािहए। सगु िृ हणी क सु यव था का उप म भी इसी आधार
पर बैठता है। ब च का मनोबल बढ़ता और घर का काम सँभालने क वृि का िवकास भी
24 |
माँ क सं कारशाला-16

होता है। सही, सु यवि थत एवं सिु नयोिजत तरीके से काम करने वाले बालक क सराहना
करने, यार-दल ु ार भरे ो साहन देन,े उपहार देने से उनका साहस और भी अिधक बढ़ जाता
है। ब चे म सहयोग - सहकार क वृि का िवकास होता है। उसका यि व एक उ मी
के प म ढलता जाता है। िज मेदारी और अनश ु ासन का भाव उ प न होने से गभं ीरता आती
और िकसी भी काम को छोटा-बड़ा समझे िबना परू ा करने म मनोयोग और त परता का
प रचय सतत देता रहता है। मरण रहे, ब च को मारने-पीटने, धमकाने से नह , वरन
सहानभु िू तपवू क सहयोग सहायता क अपे ा करके उ ह कामकाजी और आ मिनभर
बनाया जा सकता है। उनसे कौन-सा और कै सा काम कराया जाए, इस संबंध
म सव थम तो घर के काम क एक सूची तैयार कर लेनी चािहए। घरे लू
काय क िल ट बनाते समय ब च से सलाह परामश लेना ही आव यक है,
िजससे उनम काम को खोजने ढूँढ़ने क बिु का िवकास होता है। काय का
िवभाजन दैिनक, सा ािहक और मािसक यव था के
अनु प िकया जा सकता है। िकसी काय को बाँटते समय
लड़के -लड़क का भेद वाला ि कोण न अपनाया जाए।
लड़क -लड़के , दोन से सभी तरह के काय म हाथ
बँटाने क अपे ा करनी चािहए। कोई भी काय जब
चनु ौती के प म स पा जाता है तो ब चे उसे बड़ी
अिभ िच के साथ खेलते-कूदते परू ा कर डालते
ह। इससे उनम क यभाव का उदय होने लगता है। उनके
काम म िु टयाँ भी हो सकती ह, पर सयु ो य माता-िपता का क य है िक उसम िकसी भी
कार क मीन-मेख न िनकालकर उसे सही कर द। इससे ब च को सीखने का अवसर िमलता
है।
ब च को उनक अिभ िच और मता के अनु प ही काय स पा जाना चािहए। हो
सकता है िक ब च के वतं प से काय करने म कुछ हािन भी हो जाए। उनके साथ माता-
िपता िमलकर काम कर तो काम करने का सही साथक तरीका सहज ही समझ म आता है।
ब चे यिद िकसी काम को ज दी और सही ढंग से िनपटा लेते ह तो उ ह परु कृ त िकए जाने
का ावधान तो अव य रखा जाए, पर लोभ, लालच और लोभन को ो सािहत करने जैसा

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माँ क सं कारशाला-16

वातावरण न बनाएँ, अ यथा ब चे म ऐसी बरु ी आदत भी पड़ सकती है। िक अगली बार काम
करने से पूव ही अनौिच यपणू माँग करने लगे ।
िकसी ब चे से काम करवाने का एक तरीका यह भी है। िक उसे िज मेदारी स पी जाए
और समय-समय पर उसे याद िदलाते रहा जाए। साथ िमलकर काम करने से वे और भी
अ छी तरह सीख जाते ह।

पं. ीराम शमा आचाय


समा

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माँ क सं कारशाला-16

पंचम िदवस

शु ाः पूता भवत यि यासः । ऋग ५/५१/१


भावाथ: शु और पिव बनो तथा परोपकारमय
जीवनवाले हो ।

याद सुबह म आता हँ,दाँत को चमकाता हँ ।


करके अपना काय समय से, िदनभर िफर सु ताता हँ।

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माँ क सं कारशाला-16

कहानी

अपना काम वयं करो

एक िचिड़या ने एक गेहं के खेत म अपना घोसला बनाया था। उसमे उसके दो छोटे
ब चे थे। ब चे अभी बहत छोटे थे इसिलए उड़ नह सकते थे। गेहं लगभग पकने वाले थे।
िचिड़या अपने ब चो को छोड़ कर दाना चगु ने जाती थी। एक िदन जब
िचिड़या दाना लाने गयी थी उसी समय िकसान और
उसका बेटा खेत पर आये। वे लोग आपस म
बाते करने लगे िक फसल पकने को ह
चलो हम लोग मजदरू ो से कह के
फसल को कटवाते ह। िचिड़या
के ब चो ने भी ये बात सनु ी और सनु के वो
लोग बहत डर गए। अगर फसल कट गयी
तो वो लोग कहा रहेगे। यह बात सोच के ब चे बहत परे शान हो गए।
शाम को जब िचिड़या वापस लौटी तो ब चे डरे -सहमे उसे ये बाते बताने लगे िक
िकसान आया था और खेत को मजदरू ो से कटवाने क बाते कर रहा था। िचिड़या ने उनक
बात यान से सनु ी और िफर बोली तुम लोग परे शान ना हो कोई फसल काटने नह आएगा।
इस बीच गेहं परु े पक गए। कुछ िदन बाद िकसान और उसका बेटा िफर खेत पर आये।
वो लोग मजदरू न िमलने के कारण बहत िचंितत थे। िकसान ने कहा गेहं तो पक गए। चलो
हम लोग पड़ोिसय के मदद से फसल को कल काटते ह। िचिड़या के ब चो ने भी ये बात
सनु ी और सनु के वो लोग बहत यादा डर गए। शाम को िचिड़या ने जब ये बात सनु ी तो
उसने अपने ब चो से कहा तुम लोग डरो नह िकसान नह आयगा। पड़ोिसय के पास और
बहत काम ह। वो नह आयेग।
कुछ और िदन िनकल गए। िकसान नह आया। गेहं पक के खराब भी होने लगा।

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माँ क सं कारशाला-16

िफर एक िदन िकसान अपने बेटे के साथ आया। वह बहत दख ु ी था और बोला पडोसी
भी खेत काटने नह आए।ं अब हमे ही खेत काटना पड़ेगा। कल हम खुद आएंगे और फसल
काटगे।
िचिड़या के ब चो ने भी ये बाते सनु ी। शाम को जब िचिड़या आयी तो ब चो ने ये
बात उसको बतायी। िचिड़या ने कहा कल िकसान ज र आयगा अब तुम सब उड़ने के
लायक हो गए हो और अब हम ये खेत छोड़ कर चले जाना चािहए। ब चो को ये बात समझ
म नह आयी। िपछली दो बार भी तो उसने कहा था िक वो कल आएगा और िफर नह आया
िफर इस बार वो य आएगा। तब िचिड़या बोली िपछली बार वो दसु रो के सहारे पर था।
इसिलए वो नह आया लेिकन इस बार वो खुद ये काम करे गा इसिलए मुझे यक न ह िक वो
कल आएगा। तमु सब उड़ने लगे हो। हम कल सबु ह तड़के ही ये खेत छोड़कर चले जाएगं े।

पहेली का उ र–टूथ श

समा

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माँ क सं कारशाला-16

ष म िदवस

ऋत य प था न तरि त दु कृतः । ऋग ९/७३/६


भावाथ: स यके मागको दु कम पार नह कर पाते।

बझ
ू ो ब च एक पहेली,काली थाल क गोरी सहेली
घूम-घूम कर नाच िदखाती,फूल के म कु पा हो जाती

30 |
माँ क सं कारशाला-16

कहानी

वावलंबन

नंदा लोमड़ी को अंगूर बड़े पसंद थे। वह जहाँ


भी हरे -भरे अगं रू के गु छे देखती, उसके मँहु म पानी
भर आता, पर अंगूर उसे मुि कल से ही खाने को
िमलते। लंबू हाथी, प पू खरगोश, चंचल िगलहरी
इनके यहाँ अगं रू क बेल थ । वे सभी बड़ी मेहनत
से उ ह उगाते थे। नंदा लोमड़ी सभी से अंगूर माँगती,
पर एक-दो देकर सभी मना कर देते। चंचल िगलहरी
ने तो साफ कह िदया- “मौसी ! तु ह रोज-रोज अगं रू
खाने ह तो अपने आप मेहनत करो।
अपने प र म से उगाकर खाओ।" चंचल
िगलहरी क यह बात नदं ा को लग गई। वह सोचने
लगी िक यह ठीक ही कहती है। रोज-रोज िकसी से
माँगना उिचत नह है। म भी मेहनत कर सकती हँ। िफर भीख य माँगू ?
िफर नदं ा लोमड़ी ने भी अगं रू क बेल लगाई।ं वह सबु ह-शाम उनम पानी देती, खाद
देती। सारे िदन बैठी वह उनक देख-भाल करती। धीरे -धीरे अंगूर क बेल बढ़ती गई और ं उन
पर बड़े यारे - यारे गु छे लटकने लगे। अपनी मेहनत सफल होते देख नंदा फूली न समाती ।
धीरे -धीरे अगं रू पकने लगे। नदं ा ने एक गु छा चखकर देखा। बड़े ही मीठे अगं रू थे।
कुछ गु छे नंदा ने अपने पड़ोिसय को भी बाँटे सभी ने बड़े वाद से उ ह खाया।
चँ-ू चँू चहू े और प पू खरगोश को अंगूर बहत अ छे लगे। वे जब भी नंदा लोमड़ी के
खेत के आगे से िनकलते, ललचाई िनगाह से अगं रू को देखते जाते। उनक इ छा अगं रू
खाने क होती, पर नदं ा लोमड़ी वहाँ हमेशा देख-भाल करती थी, इसिलए खेत के अंदर जाने

31 |
माँ क सं कारशाला-16

क उनक िह मत न पड़ती। माँगने पर नदं ा कह मना न कर दे, इस कारण वे उससे अगं रू


माँगते भी नह थे।
चँ-ू चँू चहू ा और प पू खरगोश दोन इसी ताक म रहते थे िक कब नंदा लोमड़ी जरा
खेत से हटे और कब वे अगं रू क दावत उड़ाएँ। वे उसके खेत के कई-कई च कर लगाते।
उनको बार- बार च कर लगाते देखकर नंदा भी समझ गई थी िक ये दोन चोरी करना चाहते
ह।
एक िदन च-ँू चँू चहू े और प पू खरगोश ने देखा िक नदं ा खेत म नह है। बस िफर या
था, वे दोन चपु चाप खेत म घुस गए। दोन ने जी भरकर खूब अंगूर तोड़े। पेट भरकर उ ह
खाया और कुछ ले चलने के िलए बाँध िलए। दोन चलने ही वाले थे िक तभी एकाएक पीछे
से नदं ा ने आकर उ ह पकड़ िलया।
अब च-ँू चँू चहू ा और प पू खरगोश दोन ही नदं ा क
िगर त म थे। वे बार-बार िगड़िगड़ा रहे थे- "मौसी ! हम
माफ कर दो। अब हम तमु से िबना पछू े अगं रू नह तोड़गे।"
नंदा बोली - "तुम जानते हो िक िबना पछू े दसू रे
क चीज लेना चोरी कही जाती है। तमु ने चोरी क है,
इसका दडं तो तु ह अव य िमलेगा ही। तमु मझु से
माँगकर अंगूर लेते तो कुछ बात नह थी।"
प पू खरगोश को नंदा ने एक बा टी पकड़ाई और बोली- 'जाओ! और बाहर कुएँ से
दस बा टी पानी ख चकर लाओ। यही तु हारा दडं है। "
िफर चँ-ू चँू चहू े से बोल - "चलो तमु पैने दाँत से इन बेल क कटाई करो। तभी तु ह
छुटकारा िमल सकता है।"
लाचार होकर च-ँू चँू चहू े और प पू खरगोश दोन को काम करना पड़ा। कुएँ से पानी
ख चते-ख चते प पू क सारी पीठ दःु ख गई। उसने इतनी कड़ी मेहनत कभी न क थी। उधर
बेल क कटाई करते-करते च-ँू चँू चहू े के सारे दाँत भी थक गए, पर वह छूट भी कै से सकता
था ?
परू े दो घंटे क कड़ी मेहनत करने के बाद नंदा ने उ ह छुटकारा िदया। बोली-" आज से
तुम दोन यह बात अ छी तरह समझ लो िक जो चीज तु ह चािहए, उसे अपनी मेहनत से
ा करो। अपने प र म से िमलने वाली खी-सख ू ी चीज भी अ छी है। पड़ोसी क चीज
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माँ क सं कारशाला-16

पर कभी ललचाओ मत। चोरी करके िकसी चीज को लेने क कोिशश न करो। चोरी का दडं
कभी न कभी तोिमलता ही है।" "अब हम चोरी नह करगे।" च-ँू चँू चहू े और दोन ने अपने-
अपने कान पकड़कर कहा ।
उनक इस बात पर नदं ा लोमड़ी बड़ी स न हई। िफर दोन को उनके तोड़े हए अंगरू
देते हए बोली - "तु हारी इस ित ा क खुशी म म तु ह यह उपहार देती हँ। कुछ िदन पहले
म भी मु त का माल खाने क सोचती थी, पर धीरे-धीरे मझु े समझ आ गई। मने सोचा िक
दसू र से माँगने क अपे ा खदु मेहनत करके खाया जाए। इससे वािभमान भी बना रहेगा,
दसू र के सामने हाथ भी नह फै लाना पड़ेगा और मनचाही चीज भी िमलेगी। आज तुम मेरी
मेहनत का फल देख ही रहे हो।"
"तमु ठीक कह रही हो मौसी ! अब हम भी तु हारी तरह मेहनत करगे और अगं रू
उगाएँगे। चँ-ू चँू चहू ,े प पू खरगोश ने कहा और खुशी-खुशी अपने घर चले गए।"

पहेली का उ र-रोटी

समा

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माँ क सं कारशाला-16

स म िदवस

वि त प थामनुचरे म। ऋग ५/५१।१५
भावाथ: हम क याण-मागके पिथक ह ।

ख ा मगर रसीला हँ,ऊपर से हरा या पीला हँ


गम म मेरी आती बहार,लगा दूँ रस क धार

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माँ क सं कारशाला-16

कहानी

अपनी कमाई-सदा काम आई

राजा जनमेजय ित माह कुछ समय रा य म यह देखने के िलए मण िकया करते थे


िक उनक जा को िकसी कार क तो नह है। िवकास क जो योजनाएँ ि याि वत क
जाती ह, उनका प रपालन होता है या नह ? उनका लाभ नाग रक को िमलता है या नह ?
वे एक गाँव से गुजर रहे थे। छ वेश म थे, इसिलए कोई पहचान नह सका। एक
जगह, लड़के खेल, खेल रहे थे। एक लड़का उनम शासक बनकर बैठा था, सभासद बने
लड़के सामने बैठे थे। शासक का अिभनय करने वाला लड़का, िजसका नाम कुलेश था, खड़ा
सभासद को या यान दे रहा था- "सभासद ! िजस रा य के कमचारीगण वैभव-िवलास म
डूबे रहते ह, उसका राजा िकतना ही
नेक और जाव सल य न हो, उस
रा य क जा सख ु ी नह रहती। म
चाहता हँ, जो भूल जनमेजय के
रा यािधकारी कर रहे ह, वह आप
लोग न कर, तािक मेरी जा अस तु
न हो। तुम सबको वैभव-िवलास का
जीवन छोड़कर जीना चािहए। जो ऐसा
नह कर सकता वह अभी शासन सेवा से अलग हो जाय। "
सभासद तो अलग न हए पर बालक क यह ितभा उसे ही वहाँ से अव य ख च ले
गई। जनमेजय उससे बहत भािवत हए और उसे ले जाकर महाम ी बना िदया। कुलेश यवु क
था तो भी वह बड़ी सू म ि से रा य काय म सहयोग देने लगा। सामा य जा से उठकर
जब वह महाम ी बनने चला था, तब उसके पास एक कुदाली, लाठी और एक उतरीय व
अँगोछे के अित र कुछ नह था, वह इ ह अपने साथ ही लेता गया।

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माँ क सं कारशाला-16

उसके धानमं ी व काल म अ य मि य साम त एवं रा य कमचा रय के िलए


आचार-संिहता बनाई गई, िजसके अनसु ार येक पदािधकारी को दस घ टे अिनवाय प से
काय करना पड़ता था। अित र आय के ोत ब द कर िदये गये, इससे बचा बहत-सा धन
जा क भलाई मे लगने लगा। सारी जा म खश ु हाली छा गई। जनमेजय कुलेश के आदश
व ब ध से बड़े स न हए।
लेिकन शेष सभासद, िजनक आय व िवलािसतापणू जीवन को रोक लगी थी, महाम ी
कुलेश से जल उठे और उसे अपद थ करने का पड्य रचने लगे। उ ह िकसी तरह पता चल
गया िक महाम ी के िनवास थान पर एक क ऐसा भी है, जहाँ वह िकसी भी यि को
जाने नह देता, जब वह िदन भर के काम से लौटता है, तब वयं ही कुछ देर उसम िव ाम
करता है।सभासद ने इस रह य को लेकर ही जनमेजय के कान भर िदए िक कुलेश ने बहत-
सी अवैध स पि एकि त कर ली है। महाराज उनके कहने म आ गये अतएव जाँच का िन य
कर एक िदन वे वयं सैिनक सिहत कुलेश के िनवास पर जा पहँचे। सब ओर घमू कर देखा
पर महाराज को स पि के नाम पर वहाँ कुछ भी तो नह िदखा, तभी उनक ि उस कमरे
म गई, वे समझे कुलेश िन य ही अपनी कमाई इसम रखता है।
महाराज ने पछू ा - "कुलेश! तमु इस क
म एका त म या िकया करते हो ?" इनक पजू ा
महाराज! उसने उ र िदया। कुदाली मझु े सदैव
प र म के ेरणा देती है और लाठी वजन क
सरु ा क उ रीय व क पजू ा म इसिलए करता
हँ िक घर हो या बाहर यही िबछौना मेरे िलए पया
है। यह कहकर कुलेश ने तीन व तुएँ उठा ल और िफर उसी ामीण जीवन म चला गया।
महाराज जनमेजय को सभासद के षड्य का दःु ख अब भी बना हआ है, वह तब
दरू हो जब कुलेश जैसे रा य कमचारी देश म उ प न ह ।

पहेली का उ र – नीबू
समा

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माँ क सं कारशाला-16

गीत

आसमान मे सूरज िनकला


आसमान म सूरज िनकला।
अ धकार सब उसने िनगला ।।
तार क टोली थी भागी।
ऊषा करवट लेकर जागी।।
उसका रंग सनु हला छाया ।
आसमान को लाल बनाया ।।
रिव कहता आराम हराम ।
उठो करो सब अपना काम ।।
भरो चेतना, लाओ साहस ।
दूर करो तनमन से आलस ।।
परी िकरण क नीचे आती।
ठोका देकर हम जगाती ।।
यारा लगता यह आभास ।
अपना घर िदखता आकाश ।।
और सूय अपना भइया सा ।
या िफर गाड़ी का पिहया सा ।।

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