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16. माँ की संस्कार शाला- आत्मनिर्भरता
16. माँ की संस्कार शाला- आत्मनिर्भरता
माँ क सं कारशाला
मानवीय गुण – आ मिनभरता स ाह . 16
2 | आ मिनभरता
माँ क सं कारशाला-16
िवषय सूची
माँ से िनवेदन
मानवीय मू य :- आ मिव ाश का उ म – वावलंबन
थम िदवस
कहानी:- “अपना काम अपने आप”
ि तीय िदवस
कहानी:- “नए कदम नई राह”
तत
ृ ीय िदवस
कहानी:- “ जो वावलबं ी है भगवान उसी क र ा करते ह ”
चतथ
ु िदवस
कहानी:- “जीवन काश”
मनोवै ािनक एवं यावहा रक समाधान- ब च को आ मिनभर बनने द
पंचम िदवस
कहानी:- “अपना काम वयं करो”
ष म िदवस
कहानी:- “ वावलबं न”
स म िदवस
कहानी:- “अपनी कमाई सदा काम आई ”
गीत :- आसमान से सरू ज िनकला
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मानवीय गण
ु – स ुण
माँ से िनवेदन
िश ा िवकास का आधार है, िकंतु वयं िवकास का व प या हो, यह भी प
रहना चािहए। िवकास का चरम ल य है मुि । इसका ारंभ होता है वावलंबन और संतल ु न
क मता क वृि से। सतं ल ु न के िबना तो अि त व ही खतरे म पड़ जाता है और िवकास
यिद वयं ारा न िकया जाए, वरन दसू र के ारा थोपा जाए, तो इसे िवकास मानने को ही
बुि मान लोग तैयार नह ह गे। इसिलए वावलंबन तथा सतं ुलन, ये दोन ही िवकास क
ाथिमक एवं आधारभतू शत ह। ब चे को इन दोन क िश ा देना येक अिभभावक का
दािय व है। मनोवै ािनक बजािमन लमू के अनसु ार एक ौढ़ यि म िजतनी बुि होती है,
उसका ५० फ सदी भाग चार वष क उ तक और इसके बाद का ३० ितशत भाग आठ
वष क उ तक िवकिसत हो जाता है। डॉ० एिपयोका के अनसु ार ब चा जीवन के ारंिभक
५ वष म जो कुछ बन जाता है, अिधकांशत: वैसा ही बना रहता है। अतः एक सतं िु लत एवं
वावलंबी समाज के िनमाण के िलए ब च को ऐसी िश ा दी जानी आव यक है, जो उनम
ये दोन गणु िनखारे ।
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सभी अिभभावक चाहते तो यही ह िक उनका ब चा जीवन म िवकास करे , िकंतु ऐसा
होता बहत कम है, बि क इसके िवपरीत ब चे भार बन जाते ह। इसका कारण है ब च म
आ मिव ास और वावलंबन के गुण का िवकास वाभािवक म से न होने देना।
अिभभावक अधं मोह के कारण ब च का सारा काम वयं अपने हाथ से करके तैयार करते
ह। जगाना, नहलाना, कपड़े पहनाना, िखलाना, कूल जाने क तैयारी कर देना आिद ऐसे ही
काम ह, िकंतु यह ेम का उ कृ प नह है, िवकृ त प है। इससे ब चे उन छोटे-छोटे काम
को भी नह सीख पाते, जो उ ह बड़े होने पर वयं करने ही पड़ते ह। हमेशा ही ब च का
काम करते रहने पर वे वयं अपने आप को अयो य-अ म ही समझते रहते ह। इससे ब च
म हीनता क भावना का िवकास हो जाता है।
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हािनय से प रिचत भी हो जाते ह, िकंतु येक काम करने से रोकते रहने से ब च क िज ासा
और रचना मक वृि का दमन हो जाता है। इससे आ मिव ास ढ़ नह हो पाता। एकदम
बड़े काम ब च को स प देने से ब चे कर नह पाते। वाभािवक है िक उ ह असफलता
िमलेगी। इससे उन पर उलटा भाव पड़ता है। वे अपने आप को अ म और अयो य समझने
लगते ह। बार-बार असफलता िमलते रहने से ब च का यि व संकुिचत होने लगता है,
िफर ब चे सदा ही दसू र का सहारा पाने क इ छा रखते ह तथा परावलंबन के िशकार हो
जाते ह।
िकसी काय म असफलता िमलने पर ब च के अिभभावक उ ह डाँटते या मारते ह
तथा हतो सािहत भी करते ह। इस मार-पीट और हतो साह से ब च म भी ता क भावना
आ जाती है, वे भिव य म िकसी भी काम को हाथ म लेने के िलए डरते रहते ह। उससे बचने
के िलए बहाने करने का उ ह एक अ छा अवसर िमल जाता है। इसी तरह का म चलाते
रहने से ब चे कोई काम सीख नह पाते। काय क अनभु वहीनता के कारण छोटे-छोटे काय
को करने के िलए भी दसू र का सहारा देखते रहते ह। अपने क य का उ ह ान नह हो
पाता। वे कत यहीन होकर नकल करने क वृि वाले हो जाते ह। अपनी िज मेदारी न
समझकर लापरवाही करने लगते ह।
ऐसे ब चे सदा ही माता-िपता, बड़े भाई-बहन या नौकर से काम कराते रहने म ही
आनंद का अनभु व करते ह। काम न कर सकने का बहाना कर इसी तरह बेगार म काम
िनकालते रहने म उ ह मजा आता है। यही वृि भिव य म शोषण तथा बेगार कराते रहने क
िहसं ावृि म पनप जाती है। ऐसे समय म जब ब चे िकसी काम को करने म असफल होते ह।
तो उ ह डाँटना नह , ेम से समझाना चािहए। िजतना कुछ उ ह ने िकया है, उसी क सराहना
कर ब च को स मान िदया जाना ब च के आ मिव ास को ढ़ बनाने का सहज सरल
तरीका है।
आ मिव ास क कमी के कारण बालक के वल अपने ही काय को करने म िच लेने
लगता है, सामािजक तथा दसू र के काय को करने म गलती हो जाने के डर से सहयोग देने
म िहचिकचाता है। इस वृि से ब च म सामािजकता का िवकास नह हो पाता।
आ मकि त होकर ब चे वाथ बन जाते ह। ऐसे वाथ तथा परावलबं ी ब च से भिव य
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म सामािजक िहत तथा उसके वयं के िवकास क आशा नह रहती। अतः ब च को आरंभ
से ही दसू र के काय म सहयोग देते रहने के िलए ो साहन देते रहना चािहए।
घर के काय म ब च क राय लेते रहना तथा उिचत होने पर उसके अनसु ार काय
करना ब च के ो साहन के िलए उ म है। उनक राय म कोई कमी रह जाए या वह गलत
हो तो उसका सुधार करके ब च क राय के अनसु ार कुछ काम को कर लेने से उनम
आ मिव ास का िवकास होता है। इससे भिव य क योजना बनाने के िलए सोचने- समझने
क उनम मता का िवकास होता है। घर क सफाई, यव था आिद म ब च क राय लेना
एवं उ ह के सहयोग से काय करना अित उ म तरीका है। इससे काम भी यादा होता है,
ब चे इसे भार भी नह समझते। कोई नए काम को करने के िलए ब च को आ ा या िनदश
देकर ही नह , सहयोग देकर ेमपूवक समझाएँ तथा ेरणा द। इससे उनका अनभु व बढ़ता है।
ब च के उिचत िनमाण के िलए उिचत वातावरण तथा िश ा का बंध होना भी आव यक
है। ऐसे आ मिव ासी ब चे ही जीवन म किठनाइय का सामना करते हए िवकास के पथ पर
बढ़ते जाते ह। परावलंबी, डरपोक तो जीवन का भार ढोते रहते ह।
पं. ीराम शमा आचाय
समा
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थम िदवस
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कहानी
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पास म ही एक नया घ सला बना िलया है। वे दोन ही बड़ी स नता से बैठे-बैठे च -च -च -
च करके शोर मचा रहे ह ।
माँ बोली- 'देखा जीतू ! आज ये दोन िकतने खुश ह । यह खश ु ी अपने म क
सफलता क है । वयं प र म करके जो काय िकया जाता है, उसी म स चा आनदं िमलता
है । आज ये दोन िदनभर घ सला बनाने म ही जुटे रहे ह ।
जीतू सोचने लगा िक यह न ह िचिड़या भी अपना काम अपने आप करती है । िकसी
पर बोझा नह बनती । िफर म भी अपना सारा काम माँ पर य छोडूं । म भी अपना अिधकतर
काम अपने आप ही क ँ गा ।
अब जीतू अपने आप जूत पर पािलश करता है । खदु अपना
कूल का ब ता लगाकर रखता है । यास लगने पर माँ को आवाज नह
लगाता वरन् अपने आप पानी लेकर पी लेता है । अपनी चीज भी संभाल
कर वयं रखता है । माँ उसे अब बात-बात म टोकती भी नह है। वे उसक
सभी से शसं ा करती रहती ह ।
पहेली का उ र – धआ
ु ँ
समा
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ि तीय िदवस
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कहानी
नए कदम नई राह
म यावकाश का समय था। अिधकांश िव ाथ खाने-पीने के िलए कटीन क ओर
दौड़ गए थे। बागीश के िम उससे भी चलने क िजद कर रहे थे, पर वह बहाना बना कर उ ह
टाल रहा था । सधु ीर बोला- तमु तो ितिदन ही कोई न कोई बहाना बनाते हो । - अरे , तमु
िखलाना नह , चलो खा तो लो हमारे साथ ।
सभी के आ ह पर बागीश चपु चाप बाहर आ गया। अिधकांश लड़के इस समय खाते-
पीते थे, पर उसे मँहु िछपाना पड़ता था। वह अपने घर क ि थित जानता था। उसक माँ उस
पर अिधक पैसे खच नह कर सकती थी।
पढ़ने वाले वे तीन भाई बिहन थे। फ स सभी क माफ थी, परंतु कूल क ैस और
दसू रे काम म तो पैसा खच होता ही था। माँ क बहत इ छा थी िक बागीश अ छी तरह पढ़
जाए इसिलए उ ह ने उसे अ छे कूल म डाला था। कूल म आए िदन खच होते -कभी
ब च को घमु ाने ले जाया जा रहा है, कभी कोई टॉल लग रहा है, तो कभी कोई चंदा जमा
िकया जा रहा है। बागीश को हर बार अपना हाथ पीछे ख चना पड़ता, सबसे मँहु िछपाना
पड़ता। आज उसने िन य िकया िक वह भी छोटा-मोटा कोई न कोई काम अव य ढूँढ़गे ा,
िजससे उसके ये छोटे-छोटे खच परू े हो सक।
बागीश बहत देर तक सोचता रहा िक या काय िकया जाए।
सहसा ही उसे यान आया िक मौह ले म सबु ह-
सबु ह अखबार बाँटने उसके जैसा एक लड़का
आया करता है, बस िफर या था, वह दसू रे िदन
ात:काल ही घर से बाहर िनकल गया और
अखबार वाले का इतं जार करने लगा। वह बहत
ज दी म था िफर भी उसने उसे रोककर पूछ ही
िलया िक वह कहाँ
से अखबार लाता है और या उसे भी यह
काय िमल सके गा ? लड़के ने कहा तुम मेरे बड़े
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भाई से िमल लो, उ ह ने ही मझु े यह काम िदलाया है, शायद तु हारी कुछ सहायता कर सक।
'कल वह ही अखबार बाँटने आएँगे, िमल लेना ।' उसने कहा।
अब बागीश दसू रे िदन क आकुलता से ती ा करने लगा। जब अखबार वाले का
भाई आया तो उसने उससे भी यह बात कही। वह अपने छोटे भाई के ारा सब कुछ जान
चकु ा था। इसिलए बोला- 'मै अखबार वाली एजसी ही जा रहा हँ। चलो तु हारी बात करा
देता हँ।' बागीश उसी क साइिकल पर पीछे बैठकर चल िदया। य िप एजसी वाले को नए
हॉकर क ज रत न थी, परंतु वे स दय थे। 'यह पढ़ने वाला ब चा है और पढ़ाई म सहायता
पाने के िलए काम करना चाहता है' यह सोचकर उ ह ने उसे रख िलया और अगले िदन से
ही काम पर आने के िलए कहा।
िपताजी के पास साइिकल थी ही, बस बागीश का काम बन गया। घर जाकर उसने माँ
और िपताजी को भी यह सचू ना दे दी। दसू रे ही िदन वह काम पर िनकल गया और एक-डेढ़
घंटे काम करके वािपस आ गया।
महीना समा होने पर जब उसे 500 पए िदए गए, तो उसक आँख
खुशी से चमक उठ । वावल बन म िकतना सख ु है, यह उसने पहली बार
जाना। उसने झट से अपने छोटे भाई-बिहन और िम के िलए टॉफ खरीद ।
उसक पहली कमाई जो थी। आज तो वह अपने ि यजन को कुछ न कुछ देना
चाहता था। शेष बचे सभी पए उसने घर म जाकर माँ को दे िदए।
अब बागीश कूल म भी उिचत थान पर आव यकता होने
पर थोड़ा-बहत धन यय करने लगा था। उसके िम इस प रवतन पर चिकत
थे। इसके बाद भी बागीश ने अपना यह वावल बन बनाए रखा।
पहेली का उ र – ान
समा
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तत
ृ ीय िदवस
एको िव य भव
ु न य राजा। ऋग ६/३६/४
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कहानी
पहेली का उ र- तारे
समा
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चतथ
ु िदवस
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कहानी
जीवन काश
चौदह वष का सूरज बड़ के बराबर काम करता। वह ातः पाँच बजे उठता और राि
१० बजे तक िनरंतर काय करता रहता। सुबह उठकर वह आधा घंटे पढ़ता, िफर झटपट तैयार
होकर अखबार बाँटने के िलए िनकल पड़ता। िबजली क सी तेजी से वह अखबार घर म
फकता। दो वष म यह उसे अ छी तरह रट गया था िक िकसके घर कौन सा और
िकस भाषा का अखबार फकना है। दो घंटे म यह काम पूरा हो जाता। घर
आकर खाना खाकर कूल जाता। पढ़ाई करके लौटता
तो िफर ट्यश ू न पढ़ाने जाता। छोटे ब च के तीन
ट्यश
ू न उसके पास थे। इसके बाद वह
पु तकालय जाता और वहाँ बैठकर नोट्स
तैयार करता । घर लौटते रात के नौ बज
जाते । खाना खाकर थोड़ी देर माँ और छोटे
भाई-बहन से बातचीत करता रहता। इतने
समय म घड़ी १० बजा चक ु होती ।
माँ अपने बेटे के भोजन का िवशेष यान रखत । वह सबसे अलग उसे पौि क आहार-
दधू , स ते मौसम के फल आिद िखला- िपला देत । छोटे भाई-बहन को भी माँ ने िसखा-पढ़ा
िदया था । वह उनसे वे चीज लेने के िलए कहता तो वे तुरंत रटा हआ उ र देते - 'हमने खा
िलया है भैया ।'
सरू ज क माँ जानती थी िक वह िकतना प र म करता है, पर वह उसे दसू रे ब च क
भाँित सखु -सिु वधाएँ देने म असमथ थ । उ ह वे िदन याद आते, जब सूरज के िपता थे और
सभी सख ु से रहते थे। दो वष पवू नगर म दंगे हए और वे उनक चपेट म आ गए। परू े प रवार
पर िवपि का पहाड़ टूट पड़ा। उनके गहने िबक गए, पर ऐसे कब तक खरच चलता ? उ ह ने
घर पर रहकर िसलाई, कढ़ाई, बुनाई का काम ारंभ िकया, पर उससे भी परू ा न पड़ता। वे
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क ेिनगं के बाद उसे नौकरी िमल गई। प रवार पर छाए सक ं ट के बादल बहत कुछ अब दरू
होते चले गए।
सरू ज क माँ बुि मती थ । सरू ज क नौकरी लग जाने पर भी उ ह ने न वयं काम
करना छोड़ा और न छोटे ब च को ही छोड़ने िदया। वह चाहती थ िक सरू ज जैसा वावलबं न
का गुण सभी म आए। छोटे ब चे भी अब कुछ बड़े हो चले थे। माँ ने प कह िदया- 'अके ला
भाई िकतना कमा सकता है? तुम सब ही अपनी- अपनी पढ़ाई-िलखाई और अपने कपड़
का खरचा वयं अपने आप िनकालो।'
प रणाम यह हआ िक छोटे तीन ब च म भी यह ित प ा रहती थी िक वे िकतने
आ मिनभर बन सकते ह । १०-१२ वष के होते-होते वे छोटे-छोटे ब च के ट्यूशन करने लगे
थे। यही नह वे िकसी के घर का छोटा-मोटा काम घटं े-दो घटं े करके पैसे कमाने म भी सक
ं ोच
न करते। माँ ने उ ह यही िसखाया था िक कोई भी काम बरु ा नह है। चोरी करना और बुरे
साधन से धन कमाना ही बुरा है। अतएव कोई िकसी क मोटर गाड़ी साफ कर देता, कोई
िकसी के घर का बाजार से सामान ला देता, कोई िकसी के ब चे को एक-दो घंटे िखला
लाता। इस कार के एक-दो घंटे अ य अनेक काम से ही उ ह अपनी पढ़ाई आिद का काम
चलाने के िलए धन िमल जाता ।
अब प रवार का िनवाह सिु वधापवू क होने लगा था। प रवार के सभी सद य वावलबं ी
थे। ब चे िनरंतर गित कर रहे थे। र तेदार और पड़ोिसय क सहायता के िबना ही
उ ह ने ऐसा कर िदखाया था, पर उ ह िकतने सक ं ट झेलने पड़े िक यह बात
सरू ज क माँ को अ छी तरह याद थी। िपतृहीन सरू ज ने जो
अभाव सहे थे उ ह भी वह भल ू ी न थी। उ ह ने मन क
बात ब च के सामने रखी। सरू ज और दसू रे
ब च ने भी उसका समथन िकया। सरू ज का
कथन था िक हम तो अपने िनवाह के यो य
िमल ही रहा है, यिद दसू रे संकट त के
िलए हम कुछ कर पाएँ तो यह अ छा ही होगा। सभी
ने िवचार-िवमश के बाद यह िन य
िकया िक घर म टाइप िश ण
क खोला जाए। सभी ने कुछ
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ब च को आ मिनभर बनने द।
जब आदत म शमु ार हो जाती है तो ब चा बड़ा होकर भी अपने छोटे- मोटे काय के िलए
माता-िपता पर ही अवलिं बत रहने लगता है। परिनभरता उसके वभाव का अंग बन जाती है।
फलतः ऐसे ब चे ोध और िचड़िचड़ेपन के िशकार होते ह
दसू र के आि त रहकर अपनी सि यता खोते
चले जाते ह। माता-िपता पर अ यिधक िनभर रहने
वाले ब चे ायः आलसी वभाव के बनते और
अपने ऊपर स पे गए उ रदािय व से मख ु मोड़ने लगते
ह। कुछ काम करगे भी तो िववशता अथवा
हािन क आशंका को देखते हए ही, अ यथा
काम से बचने के िलए अनेकानेक तरह के
बहाने गढ़गे। अिभभावक भी ब च क इस
कामचोर वृि को देखकर बड़े बेचैन होते ह
और अपने दभु ा य को कोसते रहते ह; जबिक
वा तिवकता यह है िक न तो उ ह ने बाल िवकास क िज मेदारी को िनभाया और न ब च
म वावलबं न का गणु ही उ प न कर सके ।
होता है। सही, सु यवि थत एवं सिु नयोिजत तरीके से काम करने वाले बालक क सराहना
करने, यार-दल ु ार भरे ो साहन देन,े उपहार देने से उनका साहस और भी अिधक बढ़ जाता
है। ब चे म सहयोग - सहकार क वृि का िवकास होता है। उसका यि व एक उ मी
के प म ढलता जाता है। िज मेदारी और अनश ु ासन का भाव उ प न होने से गभं ीरता आती
और िकसी भी काम को छोटा-बड़ा समझे िबना परू ा करने म मनोयोग और त परता का
प रचय सतत देता रहता है। मरण रहे, ब च को मारने-पीटने, धमकाने से नह , वरन
सहानभु िू तपवू क सहयोग सहायता क अपे ा करके उ ह कामकाजी और आ मिनभर
बनाया जा सकता है। उनसे कौन-सा और कै सा काम कराया जाए, इस संबंध
म सव थम तो घर के काम क एक सूची तैयार कर लेनी चािहए। घरे लू
काय क िल ट बनाते समय ब च से सलाह परामश लेना ही आव यक है,
िजससे उनम काम को खोजने ढूँढ़ने क बिु का िवकास होता है। काय का
िवभाजन दैिनक, सा ािहक और मािसक यव था के
अनु प िकया जा सकता है। िकसी काय को बाँटते समय
लड़के -लड़क का भेद वाला ि कोण न अपनाया जाए।
लड़क -लड़के , दोन से सभी तरह के काय म हाथ
बँटाने क अपे ा करनी चािहए। कोई भी काय जब
चनु ौती के प म स पा जाता है तो ब चे उसे बड़ी
अिभ िच के साथ खेलते-कूदते परू ा कर डालते
ह। इससे उनम क यभाव का उदय होने लगता है। उनके
काम म िु टयाँ भी हो सकती ह, पर सयु ो य माता-िपता का क य है िक उसम िकसी भी
कार क मीन-मेख न िनकालकर उसे सही कर द। इससे ब च को सीखने का अवसर िमलता
है।
ब च को उनक अिभ िच और मता के अनु प ही काय स पा जाना चािहए। हो
सकता है िक ब च के वतं प से काय करने म कुछ हािन भी हो जाए। उनके साथ माता-
िपता िमलकर काम कर तो काम करने का सही साथक तरीका सहज ही समझ म आता है।
ब चे यिद िकसी काम को ज दी और सही ढंग से िनपटा लेते ह तो उ ह परु कृ त िकए जाने
का ावधान तो अव य रखा जाए, पर लोभ, लालच और लोभन को ो सािहत करने जैसा
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वातावरण न बनाएँ, अ यथा ब चे म ऐसी बरु ी आदत भी पड़ सकती है। िक अगली बार काम
करने से पूव ही अनौिच यपणू माँग करने लगे ।
िकसी ब चे से काम करवाने का एक तरीका यह भी है। िक उसे िज मेदारी स पी जाए
और समय-समय पर उसे याद िदलाते रहा जाए। साथ िमलकर काम करने से वे और भी
अ छी तरह सीख जाते ह।
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कहानी
एक िचिड़या ने एक गेहं के खेत म अपना घोसला बनाया था। उसमे उसके दो छोटे
ब चे थे। ब चे अभी बहत छोटे थे इसिलए उड़ नह सकते थे। गेहं लगभग पकने वाले थे।
िचिड़या अपने ब चो को छोड़ कर दाना चगु ने जाती थी। एक िदन जब
िचिड़या दाना लाने गयी थी उसी समय िकसान और
उसका बेटा खेत पर आये। वे लोग आपस म
बाते करने लगे िक फसल पकने को ह
चलो हम लोग मजदरू ो से कह के
फसल को कटवाते ह। िचिड़या
के ब चो ने भी ये बात सनु ी और सनु के वो
लोग बहत डर गए। अगर फसल कट गयी
तो वो लोग कहा रहेगे। यह बात सोच के ब चे बहत परे शान हो गए।
शाम को जब िचिड़या वापस लौटी तो ब चे डरे -सहमे उसे ये बाते बताने लगे िक
िकसान आया था और खेत को मजदरू ो से कटवाने क बाते कर रहा था। िचिड़या ने उनक
बात यान से सनु ी और िफर बोली तुम लोग परे शान ना हो कोई फसल काटने नह आएगा।
इस बीच गेहं परु े पक गए। कुछ िदन बाद िकसान और उसका बेटा िफर खेत पर आये।
वो लोग मजदरू न िमलने के कारण बहत िचंितत थे। िकसान ने कहा गेहं तो पक गए। चलो
हम लोग पड़ोिसय के मदद से फसल को कल काटते ह। िचिड़या के ब चो ने भी ये बात
सनु ी और सनु के वो लोग बहत यादा डर गए। शाम को िचिड़या ने जब ये बात सनु ी तो
उसने अपने ब चो से कहा तुम लोग डरो नह िकसान नह आयगा। पड़ोिसय के पास और
बहत काम ह। वो नह आयेग।
कुछ और िदन िनकल गए। िकसान नह आया। गेहं पक के खराब भी होने लगा।
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िफर एक िदन िकसान अपने बेटे के साथ आया। वह बहत दख ु ी था और बोला पडोसी
भी खेत काटने नह आए।ं अब हमे ही खेत काटना पड़ेगा। कल हम खुद आएंगे और फसल
काटगे।
िचिड़या के ब चो ने भी ये बाते सनु ी। शाम को जब िचिड़या आयी तो ब चो ने ये
बात उसको बतायी। िचिड़या ने कहा कल िकसान ज र आयगा अब तुम सब उड़ने के
लायक हो गए हो और अब हम ये खेत छोड़ कर चले जाना चािहए। ब चो को ये बात समझ
म नह आयी। िपछली दो बार भी तो उसने कहा था िक वो कल आएगा और िफर नह आया
िफर इस बार वो य आएगा। तब िचिड़या बोली िपछली बार वो दसु रो के सहारे पर था।
इसिलए वो नह आया लेिकन इस बार वो खुद ये काम करे गा इसिलए मुझे यक न ह िक वो
कल आएगा। तमु सब उड़ने लगे हो। हम कल सबु ह तड़के ही ये खेत छोड़कर चले जाएगं े।
पहेली का उ र–टूथ श
समा
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माँ क सं कारशाला-16
ष म िदवस
बझ
ू ो ब च एक पहेली,काली थाल क गोरी सहेली
घूम-घूम कर नाच िदखाती,फूल के म कु पा हो जाती
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माँ क सं कारशाला-16
कहानी
वावलंबन
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माँ क सं कारशाला-16
पर कभी ललचाओ मत। चोरी करके िकसी चीज को लेने क कोिशश न करो। चोरी का दडं
कभी न कभी तोिमलता ही है।" "अब हम चोरी नह करगे।" च-ँू चँू चहू े और दोन ने अपने-
अपने कान पकड़कर कहा ।
उनक इस बात पर नदं ा लोमड़ी बड़ी स न हई। िफर दोन को उनके तोड़े हए अंगरू
देते हए बोली - "तु हारी इस ित ा क खुशी म म तु ह यह उपहार देती हँ। कुछ िदन पहले
म भी मु त का माल खाने क सोचती थी, पर धीरे-धीरे मझु े समझ आ गई। मने सोचा िक
दसू र से माँगने क अपे ा खदु मेहनत करके खाया जाए। इससे वािभमान भी बना रहेगा,
दसू र के सामने हाथ भी नह फै लाना पड़ेगा और मनचाही चीज भी िमलेगी। आज तुम मेरी
मेहनत का फल देख ही रहे हो।"
"तमु ठीक कह रही हो मौसी ! अब हम भी तु हारी तरह मेहनत करगे और अगं रू
उगाएँगे। चँ-ू चँू चहू ,े प पू खरगोश ने कहा और खुशी-खुशी अपने घर चले गए।"
पहेली का उ र-रोटी
समा
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माँ क सं कारशाला-16
स म िदवस
वि त प थामनुचरे म। ऋग ५/५१।१५
भावाथ: हम क याण-मागके पिथक ह ।
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कहानी
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पहेली का उ र – नीबू
समा
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गीत
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