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VIDEHA_397-1-13
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विदे ह ३९७ म अं क ०१ जुलाई २०२४ (िर्ष १७ मास १९९ अं क ३९७)
[विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in ]
मै धथिी भाषा जगज्जननी सीतायााः भाषा आसीत् । हनुमन्द्ताः उक्तिान- मानु षीधमह सं स्कृ ताम् ।
अनुक्रम
ऐ अं कमे अथि:-
गद्य
२.३.िािदे ि कामत- डॉ० (प्रो०) कमि कां त झा: एक व्यिक्तत्ि/ मायानं दके
हे रैत दृधि (पृ. २२-२६)
२.४.प्रमोद झा 'गोकुि'- रवनया, (कथा) (पृ. २७-३१)
पद्य
३.१.विजय कुमार धमश्र "श्री विमि"- कहिखन्द्ह शकुनी मामा (हास्य कविता)
(पृ. ३९-४१)
११७ म सगर राति दीप जरय, दरभं गा (आयोजक हीरे न्द्र झा आ अशोक
कु मार मे हिा)
भे लै की?
पूर्श हनयोजजत र्डयं त्र जइमे अर्ोक अहर्चलक योग्ान ऊपर किल गे ल
अथछ, मे िीरे न्दर झा केँ सगर राथत ्ीप जरय केर सि-आयोजक बनाओल गे ल
(स्पि रूपसँ कहि ्े ल गे लन्न्दि जे नम्बरमे िे रफेर नै करता), फेर कमल मोिन
झा आहक थमश्र चुन्दनूकेँ तै यार राखल गे ल। मु्ा सभ चोररमे एकटा हनर्ान
छु हटते छै । अध्यक्ष मिो्य हबना कोनो प्रस्तार् एने धड़फड़ीमे बाजज ्े लन्खन्दि
जे अहगला गोष्ठी पटना आ तकर अहगला द्ल्ली (जतऽ साहित्य अका्े मीक
2 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in
प्रतिकार की हुअय?
ई ऐ लगा िीरे न्दर झा केर ते सर गलती अथछ से हुनका तीन सगर राथत ले ल बै न
कएल जाय, कमल मोिन झा आहक थमश्र चुन्दनूक ई पहिल गलती अथछ से
हुनका एक सगर राथत ले ल बै न कएल जाय। उपस्स्ित लोकक बहु-सं ख्या
११८ म सगर राथतक आयोजक ताकथि। अहगला सगर राथतक नम्बर ११८
रिय आ तकर प्रचार हुअय, जइसँ साहित्य अका्े मीक मै थिली परामर्श्ातृ
सथमथतक अध्यक्ष ई कुकमश करबाक हर्र्यमे सोथचतो डराथि।
नर् साहित्य अका्े मीक मै थिली परामर्श्ातृ सथमथत अपन प्रचारमे पुरना
सथमथतक ले ल ई श्लोक पढ़लन्न्दि:
(श्रीम्भागर््गीता)
आ केलक की?
पुरस्कारक राजनीति
कल्पना झा पिना
अथछ। आ हर््े िक अपन जे काज करबाक र्ै ली छै क,ताहि र्ै लीक तित इिो
अं क मात्र अशभनन्द्न ग्रन्दि नहि बनल अथछ। ई तँ सर्शहर्द्त अथछए जे कोनो
मनुष्य सर्शगुणी नहि िोइत अथछ। तँ से कोनो व्यक्क्त िोइि हक सं स्िा, गुण-
्ोर् दुनूक चचाश िोइत रिल अथछ हर््े िक हर्र्े र्ां क सभ मे ।
हर््े ि टीमक ई कायश र्ै ली बहुतो लोकक ले ल प्रेरणाक स्रोत से िो बहन सकैत
अथछ। 'बहन सकैत अथछ' नहि,बनबे टा करत,से किबाक चािी। एहि तरिक
काजक उपयोहगता सभ आयु र्गशक लोकले ल रित। अनन्दत काल धरर। जा
धरर मै थिली भार्ा जीबै त रित । ले खक,सं पा्क र्ा कोनो तरिक साहित्त्यक
गथतहर्थध सँ जुड़ल लोक सँ ल' क' ररसचश स्कॉलर धरर, सभले ल उपयोगी
शसि िोएत।
उक्त हर्र्े र्ां क मे पाठक केँ डॉ. रामार्तार जीक र्ै क्षजणक उपलस्ब्धक
जनतब तँ भे टबे करतहन सं गहि हुनकर साहित्त्यक, सामाजजक, व्यार्िाररक
गथतहर्थध पर शलखल ले ख से िो भे टतहन। डॉ. रामार्तार या्र् जीक हर्द्वता
सँ पाठक पररथचत िोएताि हिनकर प्रकाशर्त कृथतक नमिर सूची ्े न्ख। जाहि
मे हिनकर शलखल 95 टा र्ोधपत्र,जे हक मै थिली एर्ं भार्ाहर्ज्ञान सँ सं बंथधत
अथछ, से Nepal, India, USA, UK आ Germany आद् ्े र् मे
प्रकाशर्त भे ल अथछ,से िो सन्न्दनहित अथछ। हिनकर हर्स्तृत र्ृशि-क्षे त्रक सं ग
हिनका प्रालत सम्मानक नमिर सूची ्े न्ख स्पि भ' रिल अथछ, जे र्ास्तर् मे
डॉ. रामार्तार या्र्जी थमथिला रत्न छथि।
ने पाल सरकारक हर्शभन्दन र्ै जक्षक-प्रर्ासहनक प्पर अपन से र्ा ्े हनिार डॉ.
रामार्तार या्र् जीक प्-प्रथतष्ठा ्े न्ख हुनकर रचना र्ा हुनकर व्यक्क्तत्र्क
मात्र गुणगान करब हर्र्र्ता नहि बुझाएल एहि हर्र्े र्ां क ले ल ले ख
शलखनािर सभक। ्े खलहुँ जे ,ताहि तरिक ले ख कम अथछ। कोनो पशत्रका