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ISBN 978-93-340-8313-2 (Book)

ISSN 2229-547X (online)

𑒀
विदे ह ३९७ म अं क ०१ जुलाई २०२४ (िर्ष १७ मास १९९ अं क ३९७)
[विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in ]

विदे ह मै थिली सावहत्य आन्दोलन: मानुर्ीथमह सं स्कृताम्

विदे ह- प्रिम मै थिली पाक्षिक ई-पत्रिका

सम्पादक: गजे न्द्र ठाकुर।


ऐ पोथीक सिााधिकार सुरक्षि त अधि। कॉपीराइट (©) िारकक लिखित अनुमधतक विना पोथीक कोनो अं शक िाया प्रधत एिं रिकॉडिंग सहित
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कएि जा सकै त अधि।
(c) २०००- २०२४. सिााधिकार सु रक्षित। भािसररक गाि जे सन २००० स, याहूलसटीजपर िि
http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html , http://www.geocities.com/ggajendra आदद लििंकपर
आ अिनो ५ जुिाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html केर रूपमे
मै धथिीक प्रारीनतम उपस्स्थतक रूपमे विद्यमान अधि (वकिु ददन िे ि http://videha.com/2004/07/bhalsarik-
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ई मै धथिीक पवहि इं टरने ट पलिका धथक जकर नाम िादमे १ जनिरी २००८ स, ’विदे ह’ पड़िै । इं टरने टपर मै धथिीक प्रथम उपस्स्थधतक यािा विदे ह- प्रथम
मै धथिी पाक्षिक ई पलिका िरर पह, रि अधि, जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकालशत होइत अधि। आि “भािसररक गाि” जाििृ त्त
'विदे ह' ई-पलिकाक प्रिक्‍टताक सं ग मै धथिी भाषाक जाििृ त्तक ए्रहीगे टरक रूपमे प्रयुक्‍टत भऽ रहि अधि।
(c)२०००- २०२४. विदे ह: प्रथम मै धथिी पाक्षिक ई-पलिका (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004). सम्पादक: गजे न्द्र
ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur. In respect of materials e-published in Videha, the Editor, Videha holds
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पलिकाक मासमे दू टा अं क वनकिै त अधि जे मासक ०१ आ १५ धतधथकेँ www.videha.co.in पर ई प्रकालशत कएि जाइत अधि।
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Videha e-Journal: Issue No. 397 at www.videha.co.in
समानान्द्तर परम्पराक विद्यापधत- धरि विदे ह सम्मानस, सम्मावनत श्री पनकिाि मण्डि द्वारा

मै धथिी भाषा जगज्जननी सीतायााः भाषा आसीत् । हनुमन्द्ताः उक्तिान- मानु षीधमह सं स्कृ ताम् ।

अनुक्रम

ऐ अं कमे अथि:-

१.१.गजे न्द्दर ठाकुर- नूतन अं क सम्पादकीय (पृ. १-४)

१.२.अं क ३९५ आ ३९६ पर वटप्प ी (पृ. ५-१६)

गद्य

२.१.आशीष अनधरन्द्हार- AI एिं मै धथिक ताम-झाम (पृ. १८-१९)

२.२.आराया रामानं द मं डि- अशोक िावटका मे सीता सं ग िाताा भाषा िनाम


मानुषी भाषा (मै धथिी)रामाितार यादिजीक सं क्षिप्त परररय (पृ. २०-२१)

२.३.िािदे ि कामत- डॉ० (प्रो०) कमि कां त झा: एक व्यिक्तत्ि/ मायानं दके
हे रैत दृधि (पृ. २२-२६)
२.४.प्रमोद झा 'गोकुि'- रवनया, (कथा) (पृ. २७-३१)

२.५.प्रेमशं कर झा पिन- सभ गु क िान- फिक राजा आम (पृ. ३२-३५)

२.६.कुमार मनोज कश्यप- िघुकथा-कृतघ्न (पृ. ३६-३७)

पद्य

३.१.विजय कुमार धमश्र "श्री विमि"- कहिखन्द्ह शकुनी मामा (हास्य कविता)
(पृ. ३९-४१)

३.२.मुन्द्ना जी- गजि (पृ. ४२-४३)

३.३.सं तोष कुमार राय 'िटोही'- दोसर गां िी (पृ. ४४-४५)

३.४.माने श्वर मनुज- जे अहा, / िोक िानी (पृ. ४६-५९)


विदे ह ३९७ म अं क ०१ जुलाई २०२४ (िर्ष १७ मास १९९ अं क ३९७)|| 1

१.१.गजे न्द्र ठाकुर- नूतन अं क सम्पा्कीय

११७ म सगर राति दीप जरय, दरभं गा (आयोजक हीरे न्द्र झा आ अशोक
कु मार मे हिा)

साहित्य अका्े मीक मै थिली परामर्श्ातृ सथमथतक अध्यक्ष (आब भूतपूर्श)


अर्ोक अहर्चलक दृथि सगर राथत ्ीप जरय पर पड़ल आ ओकरा हगड़बाक
प्रयासमे िीरे न्दर झा केर ब्लै कमे ललिंग केर शर्कार ओ सिर्श भे ला आ टै गोरक
१५० म जयन्दती र्र्शक साहित्य अका्े मीक कायशक्रम जे द्ल्लीक एकटा
सं स्िा करबे ने रिय केर हगनती से िो करै त नम्बरमे िे रफेर करबाक अपराध
केलन्न्दि, जकरा ओ चलाकी बुझैत छथि। मै थिली परामर्श्ातृ सथमथतक
अध्यक्ष बनलाक बा् लोकमे ऐ तरिक प्रर्ृशि ्े खल गे ल छै , जकर शर्कार
राम्े र् झा भे ला, जे र्ोधक ले ल ख्यात रिथि; चन्दरनाि थमश्र अमर
भे ला, जजनकर पहिल फेजक आन्द्ोलनी योग्ान झँ पा गे लन्न्दि , आब
नथचकेतापर ई ग्रिण लागल छन्न्दि। िीरे न्दर झा ऐ लगा ते सर बे र ई कुकृत्य
केलन्न्दि अथछ, जइमे ऐ बे र कमल मोिन झा आहक थमश्र चुन्दनू से िो हुनकर
सं ग ्े लन्खन्दि। िँ सि-सियोजक अर्ोक कुमार मे िता मु्ा ऐ कुकृत्यमे
हुनकर सं ग नै ्े लन्खन्दि।

भे लै की?

पूर्श हनयोजजत र्डयं त्र जइमे अर्ोक अहर्चलक योग्ान ऊपर किल गे ल
अथछ, मे िीरे न्दर झा केँ सगर राथत ्ीप जरय केर सि-आयोजक बनाओल गे ल
(स्पि रूपसँ कहि ्े ल गे लन्न्दि जे नम्बरमे िे रफेर नै करता), फेर कमल मोिन
झा आहक थमश्र चुन्दनूकेँ तै यार राखल गे ल। मु्ा सभ चोररमे एकटा हनर्ान
छु हटते छै । अध्यक्ष मिो्य हबना कोनो प्रस्तार् एने धड़फड़ीमे बाजज ्े लन्खन्दि
जे अहगला गोष्ठी पटना आ तकर अहगला द्ल्ली (जतऽ साहित्य अका्े मीक
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मुख्यालय अथछ) मे िएत, आ फेर गप सम्िारलन्खन्दि जे से तकर हनणशय


(द्ल्लीक) पटनामे कएल जायत। कमल मोिन झा आहक थमश्र चुन्दनू तै यारे -
तै यार रिथि, फटाकसँ चोररक रजजस्टर आ ्ीप ले लन्न्दि िीरे न्दर झा सँ आ
हनलशलज्जापूर्शक िँ सबाक प्रयास करै त (मु्ा िँ सी तँ छोड़ू िास्यक पात्र लगै
छथि) फोटो थिचबे लन्न्दि।

प्रतिकार की हुअय?

ई ऐ लगा िीरे न्दर झा केर ते सर गलती अथछ से हुनका तीन सगर राथत ले ल बै न
कएल जाय, कमल मोिन झा आहक थमश्र चुन्दनूक ई पहिल गलती अथछ से
हुनका एक सगर राथत ले ल बै न कएल जाय। उपस्स्ित लोकक बहु-सं ख्या
११८ म सगर राथतक आयोजक ताकथि। अहगला सगर राथतक नम्बर ११८
रिय आ तकर प्रचार हुअय, जइसँ साहित्य अका्े मीक मै थिली परामर्श्ातृ
सथमथतक अध्यक्ष ई कुकमश करबाक हर्र्यमे सोथचतो डराथि।

नि सावहत्य अकादे मीक मै तिली परामशषदािृ सतमतिक अध्यक्ष आ


सदस्य लोकवनक कु कृत्य

नर् साहित्य अका्े मीक मै थिली परामर्श्ातृ सथमथत अपन प्रचारमे पुरना
सथमथतक ले ल ई श्लोक पढ़लन्न्दि:

य्ा य्ा हि धमशस्य ग्लाहनभशर्थत भारत।

अभुत्िानमधमशस्य त्ात्मानं सृजाम्यिम् ॥४.७

(श्रीम्भागर््गीता)

जखन-जखन धमशक नार् आ अधमशक उत्िान प्रारम्भ िएत िे भरत, तखन-


तखन िम आयब (र्रीर धारण करब)। आ से तते क अधमश भे लै जे नथचकेता
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आ हुनकर टीम अर्तार ले लक।

आ केलक की?

मासो नै हबतलै पहिल बै सकीमे मोनोग्राफ, अनुर्ा् आद्क बँ टर्ारा भे लै आ


टीमक स्स्य सभ अपने मे सभटा असाइनमे ण्ट बाँ हट लइ गे ल , अपना-अपनी
आ लगुआ-भगुआमे , नथचकेताजी ्े खैत रहि गे ला, र्रन सियोगे केलन्खन्दि।
समानान्दतर धाराकेँ स्कोर पहिनहियो र्ून्दय रिै , अर्तारी पुरुर् सभ तकरा
र्ून्दये रखलन्न्दि।

पुरस्कारक राजनीति

नारायणजी ्ाहड़मक ब्ला अनार शलखलन्न्दि आ बाल साहित्यकार ओ छथि


नै , पुरस्कार ले ल बाल साहित्य शलखलन्न्दि। मुन्दनी कामतक चुक्का हर््े ि
पे टारमे उपलब्ध अथछ, नारायणजी ओइ पोिीकेँ पढ़िु आ हनणशय ले िु जे की
ओइ पोिीक सोझाँ मे हुनकर पोिी ठठै छन्न्दि। आ जँ अन्दतरात्मामा नै छन्न्दि तँ
िीरे न्दर झा/ कमल मोिन झा आहक थमश्र चुन्दनू सन हनलशज्जतासँ पुरस्कार
ले िु, िमर अथग्रम र्ुभकामना। आ जँ अन्दतरात्मा नै मानै छन्न्दि तँ ्ल्लसँ
बािर आबिु। [हर््े ि अं क ३९७ सम्पा्कीय]

[थमर्े ल फोको (Foucault)क "अनुर्ासन सं स्िा" बा मनोर्ै ज्ञाहनक


बाटशन आ ह्वाइटिे डक "गै सलाइटटिंग" दुनूक लक्ष्य एक्के छै । थमर्े ल फोकोक
"अनुर्ासन सं स्िा" अथछ, सोझाँ बलाकेँ अनुर्ासनमे आनू आ तइ ले ल
सभकेँ आपसे मे लड़ाउ, हकछु केँ पुरस्कृत करू आ जे अनुर्ासनमे नै अबै ए
तकरा आस्ते -आस्ते माहुर द्यौ। गै सलाइटटिंगमे सोझाँ बला केँ हर्श्वास
द्आओल जाइत अथछ जे अिाँ जे यिास्स्िथतक हर्रोध कऽ रिल छी से कोनो
हर्रोध नै , ई तँ सभ कऽ रिल अथछ, अिाँ तँ हर्रोधक नामपर हर्रोध कऽ रिल
छी आ से अपन कमी नुकेबा ले ल। ऐमे समाजमे र्तशमान आधारभूत कमीक
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सिायता से िो ले ल जाइत अथछ, आ आस्ते -आस्ते टारगे ट बताि भऽ जाइत


अथछ बा पलायन कऽ जाइत अथछ।

थमर्े ल फोकोक सभटा हडसीस्ललनरी इं स्टीट्यूर्न "अनुर्ासन सं स्िा" जे ना


साहित्य अका्े मी, मै थिली अका्मी, मै थिली भोजपुरी अका्मी, आ
साहित्य अका्े मी द्वारा मान्दयता प्रालत कथित शलटे रेरी असोशसये र्न सभ मूल
धारा लग छै । सगर राथत ्ीप जरय केँ थमर्े ल
फोकोक पररभाहर्त हडसीस्ललनरी इं स्टीट्यूर्नमे अनबाक प्रयास बहुत द्नसँ
कएल जा रिल छै ।]

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


विदे ह ३९७ म अं क ०१ जुलाई २०२४ (िर्ष १७ मास १९९ अं क ३९७)|| 5

१.२.अं क ३९५ आ ३९६ पर हटलपणी

अं क ३९५ आ ३९६ पर विप्पणी


कल्पना झा, पिना
हर््े ि- नरे न्दर झा हर्र्े र्ां क (०१.०६.२०२४)- सद्यः प्रकाशर्त हर््े िक "नरे न्दर
झा हर्र्े र्ां क", जे हर््े िक ३९५ म अं क आ तीसम "हर्र्े र्ां क"
अथछ,हनस्सं ्ेि प्रर्ं सनीय ओ सरािनीय काज अथछ हर््े िक। एहि सरािनीय
काज ले ल साधुर्ा् हर््े ि टीम केँ !
१५/०६/२००८ कऽ प्रकाशर्त "िाइकू हर्र्े र्ां क" सँ र्ुरु भे ल हर््े िक
हर्र्े र्ां क-यात्रा गजल हर्र्े र्ां क,बीिहनकिा, बाल-
साहित्य,नाटक,समीक्षा,अनुर्ा्, बाल गजल,भक्क्त गजल,गजल
आलोचना-समालोचना-समीक्षा हर्र्े र्ां क सन,साहित्त्यक हर्धा ओररएं टेड
हर्र्े र्ां क सभ प्रकाशर्त करै त अनर्रत चशल रिल अथछ।
व्यक्क्त-हर्र्े र् पर पहिल हर्र्े र्ां क कार्ीकान्दत थमश्र 'मधुप' जी पर एक
जनर्री २०१५ कऽ प्रकाशर्त भे ल। इिो हर्र्े र्ां क प्रर्ं सनीय मु्ा अहू सँ बे सी
प्रर्ं सनीय काज अथछ जीहर्त ले खक पर हर्र्े र्ां क प्रकाशर्त करब। जकर
र्ुरुआत भे ल अरहर्न्द् ठाकुर जी पर हर्र्े र्ां क हनकालब सँ । पीठे लागल
्ोसर जग्ीर् चं र ठाकुर 'अहनल'जी पर प्रकाशर्त भे ल।
हर््े ि द्वारा जीर्ै त ले खक पर हर्र्े र्ां क प्रकाशर्त करबाक हर्चारक जते क
प्रर्ं सा कएल जाए कम िोएत। ई हर्र्े र्ां क सभ हनस्सं ्ेि हर््े ि केँ एकटा
सफल "ई मै गजीन"क रूप मे स्िाहपत करबा मे सिायक भे लए। रामलोचन
ठाकुर हर्र्े र्ां क आ रर्ीन्दरनाि ठाकुर हर्र्े र्ां क प्रकाशर्त िोएबा सँ पहिने
ओ दुनू गोटे स्र्गीय भऽ गे लाि,तकरा खराप सं जोग किबाक चािी। मु्ा
आगाँ के्ारनाि चौधरी हर्र्े र्ां क ओ स्र्यं पूरा पढ़ने छलाि,एिन Ashish
Anchinhar जीक पोस्ट सँ जनतब भे टल छलए। ई र्ास्तर् मे सं तोर्क
बात भे ल।
6 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

के्ारनाि चौधरीक उपरान्दत प्रेमलता थमश्र 'प्रेम' जी, र्रद्न्ददु चौधरी


जी,किाकार अर्ोक सर,राम भरोस कापहड़ "भ्रमर"जी आ लक्ष्मण झा
'सागर' जी पर हर्र्े र्ां क हनकालल गे ल आ स्र्ाभाहर्के बात जे ओ सभ
अपना उपर हर्र्े र्ां क पहढ़ सं तोर्क अनुभर् कएलहन।
"के्ारनाि चौधरीजी केँ सं पूणश रूपेँ जनबाक ले ल हर््े िक हर्र्े र्ां क पहिल
आ एखन धररक एकमात्र माध्यम छै पाठक ले ल।" ई किब छहन आर्ीर्
जीक। एहि सँ अनुमान लगा सकैत छी,जे ई हर्र्े र्ां क सभ हनकाशल कते क
मित्र्पूणश काज कऽ रिल अथछ हर््े ि टीम। मित्र्पूणश ्स्तार्े ज सन जोगा
कऽ राखएबला काज अथछ सभटा। एखन धरर प्रकाशर्त जते क हर्र्े र्ां क
अथछ,से सभटा मित्र्पूणश अथछ,ओहि व्यक्क्त केँ सं पूणश रूपेँ जनबाक
ले ल,जहनका पर हर््े ि हर्र्े र्ां क हनकालल गे ल अथछ।
िमहूँ हकछु हर्र्े र्ां क ले ल सियोग कऽ सकशलयहन,से सं तोर्क बात िमरा
ले ल। एक टा सािशक काज मे सियोग केलहुँ ,से भार् आबै ए मोन मे । हर््े िक
सं ग जुडथि आ सािशक काज मे सियोग करथि सभ साहित्यकमी,से आग्रि
िमर।
ने आत्मप्रचार,ने हर््े िक प्रचार।नीक काजक सरािना िे बाक चािी।
प्रणि झा
हर््े ि के ३९५ म अं क नरें र झा हर्र्े र्ां क के रूप मे बिरायल। हर्शभन्दन पे र्ा
से जुडल ले खक आ पाठक लोकहन अपन अनुभर्, मन्दतव्य आ हर्चार नई
खाली श्री नरें र झा के मै थिली ले खन के हर्र्य मे रखलाि अथछ अहपतु मै थिली
मे आर्ििंक आ आन आन हर्र्य पर ले खन, थमथिला के आर्ििंक पररस्स्िथत
आ श्री नरे ््न् जी के पररर्ार आ व्यक्क्तगत जीर्न पररचय सहित हुनक
अधाां हगनी डॉ० पन्दना झा के अका्थमक आ ले खकीय पररचय पर से िो खूब
शलखलइि। बे स ई सब आले ख हर्शभन्दन पाठक र्गश मे पढ़ल से िो गे ल िे तय।
ई रे खां हकत करय छै क जे हर््े ि के सं पा्क मण्डल नरें र झा हर्र्े र्ां क
हनकालबा के जै उद्देर् से हनयाराने छलाि से फलीभूत भे लइन।
विदे ह ३९७ म अं क ०१ जुलाई २०२४ (िर्ष १७ मास १९९ अं क ३९७)|| 7

श्रीमती कल्पना झा अपन ले ख "अनुर्ीलन"क अनुर्ीलन आर्श्यक, के


माध्यम से श्रीमती पन्दना झा के ले खकीय पररचय हुनक ले खनी के अं र् के
माध्यम से बड्ड सुन्दनर रूप मे केशलि अथछ। सुश्री मुन्दनी कामत जी के ले ख
से िो सारगर्भिंत लागल आ ओ श्री नरें र झा के पोिी पर चचाश के माध्यम से
ले खक के ले खकीय हर्र्य र्स्तु पर इजोररया ्ै त छिीन। डॉ० धनकर ठाकुर
के आले ख सूचना आ समालोचना से भरल आ पठनीय छै क। श्री आर्ीर्
अनथचन्दिार के सुगदठत व्यं ग आले ख अहिना रिल की -्े खन मे छोटन लगे
चोट करे गं भीर।- सीथमत र्ब्् मे श्री आर्ीर् अनथचन्दिार हर्र्े र्ां क ले खक के
ले खकीय पररचय ्ै त, ्े र्-हर््े र् मे हर्ज्ञान, अिशर्ास्त्र, मानहर्की आद् के
हर्शभन्दन हर्धा मे कायशरत मै थिल बुशिजीर्ी सब के उकटइत आ व्यं ग र्ाण
छोड़ईत नै खाली सफल आलोचना क के हनकैल जाय छै ि अहपतु ऐ र्गश के
पाठक मे अपन हर्र्य र्स्तु पर मै थिली मे ले खन के ले ल प्रेरणा के एकटा
बीया से िो रोपबा मे सफल िोइत छै ि एिन िमर मन्दतव्य अथछ।
रमे श
श्री राजीर् एकान्दत द्वारा,बहुत नीक समीक्षा/आलोचना, डा. रामार्तार
या्र्क चर्चिंत पोिीक कयल गे ल अथछ। आलोच्य पोिीक जाहि हबन्ददु
सबिक आलोचना,प्रस्तुत कयल गे ल अथछ,से सब आलोचना- हबन्ददु, असं गत
नटििं अथछ। मै थिलीक बोली 'अं हगका'(आ थग्रयसशनक 'थछक्का थछक्की')क
उत्पशि, 'भार्ाक रुप मे ', 'मै थिलीक सं ग िे बाक' 'अ-तथ्य' शलखब,कटु
आलोच्ये नटििं, थमथिला-मै थिलीक ले ल 'अहितकारी आ अकल्याणकारी
से िो' अथछ। 'हिस्टोररयोग्राफी औफ मै थिली ले क्क्जकोग्राफी'क 'केन्दरीय
हर्र्य' नटििं बनब, पोिीक आ प्रश्नगत पोिीक 'नामकरण'क, 'मित्र् आ
प्रासं हगकता' िटा ्ै त अथछ। अइ मे ,ने त' 'हिस्टोररयोग्राफी'( मै थिली
र्ब््कोर्क एखन धररक इथतिास-ले खनक अद्यतन हर्श्ले र्ण आ तकर
शसिां त हनरुपण) पर हर्र्े र् हकछु शलखायल,आ ने एखन धररक मै थिली
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'ले क्क्जकोग्राफी'( मै थिली र्ब््कोर् हनमाशण-हर्ज्ञानक स्स्िथत अिर्ा


सै िान्न्दतक हर्श्ले र्ण)क प्रसं ग मे ,हर्र्े र् शलखायल...(?),तखन त' मात्र
'बुचानन के र्ब््कोर्' िार्ी रिल,पोिी पर..? ..आ थिहटर् उपहनर्े र्र्ा्ी
'भारोपीय भार्ा शसिां त ' (मै थिलीक उत्पशिक सन्द्भश मे ) त' समिशक
छथिए,डा.या्र्! से कोनो 'नर् आ नीक बात' नटििंएं अथछ! तखन,त'
पोिीक सं ग,हिनकर भार्ार्ास्त्रीय हर्चार(मै थिलीक उत्पशि आ हर्कासक
सन्द्भश मे ) से िो आलोच्ये अथछ! कुल्लम मे ,श्री राजीर् एकान्दतक प्रकाशर्त ई
'आलोचना-आले ख', बे सी तकशसं गत अथछ!

कल्पना झा पिना

डॉ. रामार्तार या्र् जीक व्यक्क्तत्र् ओ कृथतत्र् सँ पररथचत िोएबाक इच्छु क


लोकक ले ल 'हर््े ि'क ३९६ म अं क "भार्ाहर््् रामार्तार या्र् हर्र्े र्ां क"
सँ नीक कतहु हकछु उपलब्ध िे तहन,से सं भार्ना नगण्ये बुझू । जे ना हक
आर्ीर् अनथचन्दिार जी एहि हर्र्े र्ां क केर पहिल ले ख "प्रस्तुत हर्र्े र्ां कक
सं ्भश मे " किलहन अथछ,ताहि सँ तँ सएि बुझाइत अथछ। आर्ीर् जीक
र्क्तव्य अथछ "प्रो. डा. रामार्तार या्र् जीक रचना र्ा हुनकर अर््ानक
ऊपर कतहु हकछु प्रकाशर्त भे ल िो तकर सं ख्या बहुत कम िएत कारण कमसँ
कम िम ओकरा अर्लोकन करबासँ र्ं थचत छी।" ओना आगाँ ओ इिो
स्र्ीकार करै त छथि जे "बहुत सं भर् प्रो. डा. रामार्तार या्र् जीक ऊपर
शलखल गे ल िो मु्ा िमिीं नै ्े ख सकल िोइ।"

ने पालक मै थिली केँ प्रथतहनथधत्र् कएहनिार डॉ. रामार्तार या्र् जीक


व्यक्क्तत्र्क सभ आयाम पर चचाश ्े खबाले ल भे टल एहि हर्र्े र्ां कक ले ख
सभ मे । सभ आयाम मतलब नीक/बे जाए सभ। हर््े ि द्वारा एखन धरर
प्रकाशर्त हर्र्े र्ां क सभ जकाँ इिो अं क एकटा मित्र्पूणश ्स्तार्े ज सन
विदे ह ३९७ म अं क ०१ जुलाई २०२४ (िर्ष १७ मास १९९ अं क ३९७)|| 9

अथछ। आ हर््े िक अपन जे काज करबाक र्ै ली छै क,ताहि र्ै लीक तित इिो
अं क मात्र अशभनन्द्न ग्रन्दि नहि बनल अथछ। ई तँ सर्शहर्द्त अथछए जे कोनो
मनुष्य सर्शगुणी नहि िोइत अथछ। तँ से कोनो व्यक्क्त िोइि हक सं स्िा, गुण-
्ोर् दुनूक चचाश िोइत रिल अथछ हर््े िक हर्र्े र्ां क सभ मे ।

हर््े ि टीमक ई कायश र्ै ली बहुतो लोकक ले ल प्रेरणाक स्रोत से िो बहन सकैत
अथछ। 'बहन सकैत अथछ' नहि,बनबे टा करत,से किबाक चािी। एहि तरिक
काजक उपयोहगता सभ आयु र्गशक लोकले ल रित। अनन्दत काल धरर। जा
धरर मै थिली भार्ा जीबै त रित । ले खक,सं पा्क र्ा कोनो तरिक साहित्त्यक
गथतहर्थध सँ जुड़ल लोक सँ ल' क' ररसचश स्कॉलर धरर, सभले ल उपयोगी
शसि िोएत।

उक्त हर्र्े र्ां क मे पाठक केँ डॉ. रामार्तार जीक र्ै क्षजणक उपलस्ब्धक
जनतब तँ भे टबे करतहन सं गहि हुनकर साहित्त्यक, सामाजजक, व्यार्िाररक
गथतहर्थध पर शलखल ले ख से िो भे टतहन। डॉ. रामार्तार या्र् जीक हर्द्वता
सँ पाठक पररथचत िोएताि हिनकर प्रकाशर्त कृथतक नमिर सूची ्े न्ख। जाहि
मे हिनकर शलखल 95 टा र्ोधपत्र,जे हक मै थिली एर्ं भार्ाहर्ज्ञान सँ सं बंथधत
अथछ, से Nepal, India, USA, UK आ Germany आद् ्े र् मे
प्रकाशर्त भे ल अथछ,से िो सन्न्दनहित अथछ। हिनकर हर्स्तृत र्ृशि-क्षे त्रक सं ग
हिनका प्रालत सम्मानक नमिर सूची ्े न्ख स्पि भ' रिल अथछ, जे र्ास्तर् मे
डॉ. रामार्तार या्र्जी थमथिला रत्न छथि।

ने पाल सरकारक हर्शभन्दन र्ै जक्षक-प्रर्ासहनक प्पर अपन से र्ा ्े हनिार डॉ.
रामार्तार या्र् जीक प्-प्रथतष्ठा ्े न्ख हुनकर रचना र्ा हुनकर व्यक्क्तत्र्क
मात्र गुणगान करब हर्र्र्ता नहि बुझाएल एहि हर्र्े र्ां क ले ल ले ख
शलखनािर सभक। ्े खलहुँ जे ,ताहि तरिक ले ख कम अथछ। कोनो पशत्रका

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