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Kabir Hindi
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ि ितज पाठ-09 कबीर
7. का य स दय प क जए -
ह ती चिढ़ये ान कौ, सहज दल
ु ीचा डा र।
वान प संसार है, भूँकन दे झख मा र।
उ र:- भाव स दय - यहाँ पर किव ने ान के मह व को ितपािदत करते हए बताया है िक ान क ाि के लए ढ़ता तथा सहज
साधना आव यक है, संसार पी कु े अथात् आलोचना करनेवाले भ क-भ ककर शांत हो जाते ह।
िश प स दय - रचना म भि रस क धानता है। सधु कड़ी भाषा,दोहा छ द का योग िकया गया है।
ह ती, वान, ान आिद त सम श द तथा पक अलंकार का योग हआ है।
• रचना और अिभ यि
14. संक लत सा खय और पद के आधार पर कबीर के धािमक और सां दाियक स ाव स ब धी िवचार पर काश डा लए।
उ र:- कबीर ने अपने िवचार दवारा जन मानस क आँ ख पर धम तथा सं दाय के नाम पर पड़े परदे को खोलने का यास िकया
है कबीर ने िह द ू और मुसलमान क पूजा प ित के कारण उ प सां दाियकता को ल य बनाते हए राम और रहीम को एक मानकर
मनु य को स ची भि के लए े रत िकया है। कबीर ने हर एक मनु य को िकसी एक मत, सं दाय, धम आिद के फेरव म न पड़ने
क सलाह दी है। ये सारी चीज मनु य को राह से भटकाने तथा बँटवारे क ओर ले जाती है अत:कबीर के अनुसार हम इन सब
च कर म नह पड़ना चािहए। मनु य को चािहए िक वह िन काम तथा िन छल भाव से भु क अराधना कर।
• भाषा -अ ययन
15. िन न ल खत श द के त सम प ल खए -
पखापखी, अनत, जोग, जुगित, बैराग, िनरपख
उ र:-
त व त सम
पखापखी प -िवप
अनत अनंत
जोग योग
जुगित युि
बैराग वैरा य
िनरपख िनरपे / िन प