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कक्षा- १२

विषय - ह द
िं ी
पाठ - भक्तिन, म ादे िी िमाा

"स्मतृ ियों की रे खाएँ" में संकलिि "भक्तिन" महादे वी वमाा का प्रलसद्‌


ध संस्मरणात्मक रे खाचित्र है। इसमें
महादे वी वमाा ने अपनी सेववका भक्तिन के अिीि और विामान का पररिय दे िे हुए उसके व्यक्तित्व का
रोिक ककन्िु ममास्पर्शी र्शब्द चित्रण ककया है। महादे वी वमाा हहन्दी साहहत्य के छायावादी काि की प्रमुख
कवतयत्री है। उन्हें आधुतनक युग का मीरा भी कहा जािा है। महादे वी वमाा ने संस्कृि से एम०ए० ककया और
ित्पश्िाि प्रयाग-महहिा ववद्‌
यापीठ की प्रधानािायाा तनयत
ु ि की गईं। महादे वी वमाा ने स्विंत्रिा के पहिे का
भारि भी दे खा और उसके बाद का भी। वे उन कववयों में से एक हैं क्जन्होंने व्यापक समाज में काम करिे हुए
भारि के भीिर ववदयमान हाहाकार, रुदन को दे खा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दरू करने वािी
दृक्टि देने की कोलर्शर्श की। उन्होंने न केवि साहहत्य लिखा बक्कक पीड़िि बच्िों और महहिाओं की सेवा भी
की।
महादे वी वमाा की भाषा संस्कृितनटठ सहज िथा चित्रात्मक है क्जसमें हहन्दी के िद्‌भव व दे र्शज र्शब्दों का भी
प्रयोग ककया गया है। इनकी कुछ प्रलसद्‌ध रिनाओं के नाम हैं - चगकि,ू सोना, अिीि के ििचित्र, स्मतृ ि की
रे खाएँ, हहमािय आहद।

भक्तिन महादे वी वमाा जी दवारा लिखखि एक संस्मरणत्मक रे खाचित्र है, जो की उन्होंने अपनी सेववका के बारे
में लिखा है। भक्तिन छोिे कद व दब
ु िे र्शरीर वािी वद
ृ ध महहिा है। िेखखका ने उसकी िुिना अंजनीपुत्र
हनुमान से ही है ,जो की बबना थके हदन राि काम करने वािी है। वह िेखखका के पास जब पहिी बार नौकरी
के लिए िो अपना नाम िक्ष्मी बिाया ,िेककन यह भी कहा कक वह नाम से न पक
ु ारी जाय। िक्ष्मी के गिे में
कंठी मािा दे खकर िेखखका ने उसका नाम भक्तिन रख हदया ,क्जसे सन
ु कर वह गदगद हो गयी।
महादे वी वमाा जी ने भक्तिन के जीवन को िार भागों में बािा है, क्जसमें पहिे भाग में मािा -वपिा व वववाह
का वणान है। वह इिाहाबाद के झूंसी में एक सूरमा की एकिौिी बेिी थी। पाँि वषा की आयु में उसका वववाह
हंड़ियां ग्राम के एक संपन्न गोपािक की पत्र
ु वधु बानी। ववमािा ने उसका गौना नौ वषा की आयु में करवा
हदया। िक्ष्मी के वपिा की मत्ृ यु का समािार ,ववमािा ने पहुँिने न हदया और सास भी रोने धोने के अपर्शकुन
के िर से िक्ष्मी को नहीं बिाई। िो बाद में मायके जाने पर िक्ष्मी वापस िौि आयी।वापस िौिने पर सास को
खरी खोिी सन
ु ाई। पति के ऊपर गहने फेंक -फेंक कर अपने दुःु ख को व्यति ककया।
भक्तिन के जीवन का दस
ू रा भाग भी दख
ु द है। उसके एक एक के बाद एक िीन कन्याओं को जन्म हदया ,िो
सास और जेठातनयों ने उपेक्षा की तयों कक दोनों जेठातनयाँ ने कािे - किि
ू े बेिों को जन्म हदया था। उनके पत्र
ु ों
को दध
ू मिाई खाने को लमििी ,वहीीँ भक्तिन की बेहियां कािा गि
ु ,मट्ठा िना ,बाजरा जैसे मोिा अनाज
खािी। िक्ष्मी का पति ,उसे बहुि प्यार करिा था। वाह गाय ,भैस ,खेि ,खलिहान ,फिों के पेिों की दे खभाि
करिी थी।बिी बेिी का वववाह पति ने धम
ू धाम से ककया। िेककन २९ साि की उम्र में ही दोनों बेहियों का भार
िािकर पति स्वगावासी हो गया। ककसी प्रकार भक्तिन ने दोनों बेहियों के हाथ पीिे ककये िथा बिे -दामाद को
घर जमाई बनाकर रखा।
भक्तिन के जीवन के िीसरे भाग में भी दुःु ख काम नहीं हुआ। बिी बेिी ववधवा ह गयी। जेठ के बिे बेिे ने अपने
सािे का वववाह ,अपनी बहहन से करवाना िाहा ,िो उसने नापसंद कर हदया। उस समय िो बाि िि , हदन
बाद भक्तिन के घर में न रहने पर वह िीिरबाज बेिी के घर में घस
ु गया ,जबकक उसके समाथक गाँव वािों को
बि
ु ा िाये। पंिायि ने कलियग
ु का हवािा दे िे हुए वववाह कराने का आदे र्श हदया। दामाद हदन भर िीिर
ििािा। पाररवाररक दवेष में गाय -ढोर ,खेिी बािी सब झि
ु स गए। एक बार िगान न देने पाने के कारण
जमींदार ने उसे हदन भर किी धुप रखा। भक्तिन अपमान के किंक कमाई के लिए िेखखका के घर में सेववका
बन गयी।
भक्तिन के जीवन में िौथे भाग में घि ु ी हुई िाँद की मोिी मैिी धोिी से धनकेँ हुए िेखखका के घर प्रस्िुि
हुई। उसकी वेर्श -भूषा में वैरागी और गहृ स्थ लमश्रण था। वह ििके उठकर नहा धोकर िेखखका की धूलि हुई
धोिी जि के छींिें से पववत्र कर पहनने िगी।भोजन के समय वह एक थािी में मोिी और चित्तीदार रोिी िथा
गाधी दाि िेखखका को परोस हदया। भक्तिन बिी मेहनिी ,ईमानदार और सच्िी स्वालमभति थी। िेखखका
की सेवा करना उसका धमा बन गया था। भक्तिन का स्वभाव ऐसा बन गया था कक वह दस
ू रों को अपने मन
के अनुसार बना िेिी थी ,िेककन स्वयं पररवतिाि नहीं होिी थी। यही कारण है कक वह िेखखका के उत्तर
पुस्िककआ को बाँधना ,अधूरे चित्रों को कोने में रखना ,िेखखका के लिए दही का र्शरबि और िुिसी की िाय
बनाकर िाना ,यह बिी खुसी खुर्शी करिी थी।
युध्य के समय भक्तिन के बेिी दामाद जब िेने आये िो वह िेखखका को अकेिे छोिकर जाने को िैयार न
हुई। उसका कहना था कक जहाँ मालिकन रहे गी ,वहां मैं रहूंगी ,िाहे वह काि कोठरी ही तयों न हो। िेखखका के
साहहक्त्यक लमत्रों का भी भक्तिन बहुि समन्ना करिी थी। िेखखका ऐसी स्वामी भति सेववका को खोना नहीं
िाहिी है।

क्तिन पात्र का मानलसक दवन्द ,अंिदावद


ं व पीिा का िेखखका महादे वी वमाा जी ने प्रस्िुि ककया है। भक्तिन
संस्मरण में िेखखका ने एक ऐसी दे हािी वद
ृ धा का चित्रण ककया है ,क्जसके अिीि व व्रिमान का चित्रण ककया
है। िेखखका ने भक्तिन की िुिना हनुमान जी से की है। भक्तिन का वास्िववक नाम िक्ष्मी था।पाँि वषा की
आयु में वववाह ९ वषा की आयु में गौना हो गया।वपिा ने मत्ृ यु का समािार ववमािा व सास ने नहीं पहुँिने
हदया। बिी बेिी के वववाह के उपरान्ि पति भी स्वगा लसधार गए। ककसी प्रकार दो बेहियों के हाथ पीिे ककये
,िेककन दै व कृपा से घर - जमाई बिा दामाद भी स्वगा लसधामा गया।पाररवाररक दवेष में जीवन झुिस
गया।गाय भैस ,खेि ,खलिहान सब खिम हो गए। भक्तिन जैसी साहसी महहिा जीवन में संघषा ही करिी
रहिी है।वह हहम्मि नहीं हारिी। वह अंि में िेखखका की सेवा में उपक्स्थि हुई। वह हनुमान जी की िरह
िेखखका की सेवा करिी रहिी है। वह हहम्मि नहीं हारिी।पढी लिखी न होने पर भी वह िेखखका की सहायिा
करिी थी।िेखखका पर स्वयं भक्तिन का इिना प्रभाव पिा कक वह स्वयं दे हातिन हो गयी। वह बेिी - दामाद
के बि
ु ावा आने पर भी िेखखका का साथ छोि कर जाने को िैयार न हुई।
इस प्रकार हम दे खिे हैं कक भक्तिन के रूप में आदर्शा सेववका का रूप प्रस्िि
ु ककया गया है। वह अपने िररत्र
व स्वभाव से सभी को अपना बना िेिी है।

सिंकल्य – तनश्िय। ववचित्र-आश्ियाजनक। क्िजासु – उत्सुक। च ि


िं न – वविार। स्यदध – मक
ु ाबिा। अिंिना
– हनुमान की मािा। दि
ु – क्जसे ढोना मुक्श्कि हो। कयाल – भाग्य, माथा। कुच ि – लसकुिी हुई। शेष
द्ितिित्त
ृ – पूरी कथा। अिंशि: – थोिा-सा।

विमािा – सौिेिी मािा। ककिं िदिं िी – जनिा में प्रिलिि बािें। िय – आय,ु जवानी। गोना – वववाह के बाद पति
का अपने ससरु ाि से अपनी पत्नी को पहिी बार अपने घर िे आना। अगाध – अचधक, गहरा । मरयािक –
जानिेवा। ने र – मायका। अप्रत्याशशि – क्जसकी आर्शा न हो। अनग्र
ु – कृपा। यन
ु राितृ ियााँ – बार-बार
कहना। ठे ले ले िाना –पहुँिाना। लेश – ितनक। च र बिछ – स्थायी ववयोग। ममव्यथा – हृदय को कटि दे ने
वािी पीिा। पररच्छे द – अध्याय। विधात्री – जन्म देने वािी। माच या – खाि की िरह बन
ु ी हुई छोिी िौकी
(बैठकी) । विरािमान – बैठना। यरु खिन – बिी-बढ
ू ी। अशभवषति – क्जसका अलभषेक हुआ हो, अचधका-प्राप्ि।
काकभश
ु डी – राम का एक भति जो र्शापवर्श एक कौआ बना। सक्ृ टि – रिना, संसार। लीक छोड़ना – परंपरा
को िोिना। राि – खाँि, गाढा सीरा। औिना – िाप से गाढा करना। िकसाल – वह स्थान जहाँ लसतके ढािे
जािे हैं। ुगली- िाड़ – तनंदा। पररणति – तनटकषा।

अलगढा – बँिवारा। िशल ान – किी फसि को रखने का स्थान। तनरिं िर – िगािार। कुकुरी – कुतिया।
बिलारी – बबकिी। ोर ा – होिा, आग पर भुना हरे िने का रूप। आक्िया ससुर – पति का बाबा। कै – ककिने
ही। उपाक्िाि – कमाई। कहििद्ध – िैयार। क्िठि – पति के बिे भाई का पत्र
ु । गठििंधन – वववाह, र्शादी।

पररमािन – र्शुदध करना, सुधार करना। कमाठिा – मेहनि। दीक्षक्षि – क्जसने दीक्षा ग्रहण ककया हो। अथ –
प्रारं भ। अशभनदन – स्वागि।

तनिािंि – पूणाि:। िीिराग – आसक्तिरहहि। आसीन – बैठा। तनहदाटि – तनक्श्िि। वपतिया ससरु – पति का
िािा। मौखिक – जबानी। तनिारण – दरू करना। उप ार – इिाज। िाग्रि – सिेि।

मकड़ – मतका। लयसी-पिला – सा हिुवा। कियात्मक – व्यावहाररक। पोयला – दाँिरहहि मुँह। दि-कथाएाँ
– परं परा से ििे आ रहे ककस्से। किंठस्थ – याद। नरो िा किंु िरो िा – मनुटय या हाथी। शसर घि
ु ाना – जि से
बाि किवाना। अिंकुररि भाि – बबना संकोि के। ड़
ू ाकम – लसर के बाि को पहिे-पहि किवाना। नातयि –
नाई। तनटयन्न – पण
ू ा।अपमान – तनरादर। मिंथरिा – धीमी गति। पिु – ििरु । वपंि छुड़ाया – छुिकारा पाया।

अतिशयोक्तियााँ – बढा-िढाकर कही गई बािें। अमरिेल – जिरहहि बेि जो दस


ू रे वक्ष
ृ ों से जीवनरस िेकर
फैििी है। आभा – प्रकार्श। उदभाशसि – आिोककि। पागरु –जग
ु ािी। तनस्िब्धिा – र्शांति। प्रशािंि – परू ी िरह
र्शांि।

आिािंककि – भयभीि। नािी – बेिी का पत्र


ु । विनीि – ववनम्र। म ान – बाँस आहद की सहायिा से बनाया गया
ऊँिा आसन।

स्ने – प्रेम। सम्मान – आदर। अपभ्रिंश – बबगिा हुआ। कारागार – जेि।

माड़ – माँ। िड़े लाि – वायसराय। विषम – ववपरीि। दल


ु भ – कहठन।

पाठ का उददे श्य

भक्तिन पात्र का मानलसक दवन्द, अंिदावद


ं व पीिा का िेखखका महादे वी वमाा जी ने प्रस्िुि ककया है। भक्तिन
संस्मरण में िेखखका ने एक ऐसी दे हािी वद
ृ धा का चित्रण ककया है, क्जसके अिीि व व्रिमान का चित्रण ककया
है। िेखखका ने भक्तिन की िुिना हनुमान जी से की है। भक्तिन का वास्िववक नाम िक्ष्मी था।पाँि वषा की
आयु में वववाह ९ वषा की आयु में गौना हो गया।वपिा ने मत्ृ यु का समािार ववमािा व सास ने नहीं पहुँिने
हदया। बिी बेिी के वववाह के उपरान्ि पति भी स्वगा लसधार गए। ककसी प्रकार दो बेहियों के हाथ पीिे ककये
,िेककन दै व कृपा से घर - जमाई बिा दामाद भी स्वगा लसधामा गया।पाररवाररक दवेष में जीवन झुिस
गया।गाय भैस ,खेि ,खलिहान सब खिम हो गए। भक्तिन जैसी साहसी महहिा जीवन में संघषा ही करिी
रहिी है।वह हहम्मि नहीं हारिी। वह अंि में िेखखका की सेवा में उपक्स्थि हुई। वह हनुमान जी की िरह
िेखखका की सेवा करिी रहिी है। वह हहम्मि नहीं हारिी।पढी लिखी न होने पर भी वह िेखखका की सहायिा
करिी थी।िेखखका पर स्वयं भक्तिन का इिना प्रभाव पिा कक वह स्वयं दे हातिन हो गयी। वह बेिी - दामाद
के बुिावा आने पर भी िेखखका का साथ छोि कर जाने को िैयार न हुई।
इस प्रकार हम दे खिे हैं कक भक्तिन के रूप में आदर्शा सेववका का रूप प्रस्िुि ककया गया है। वह अपने िररत्र
व स्वभाव से सभी को अपना बना िेिी है।
र्शीषाक की साथाकिा

भक्तिन र्शीषाक बहुि ही सरि व संक्षक्षप्ि है। पाठ का र्शीषाक पढिे ही पाठकों के मन में यह वविार उठिा है कक
वह भक्तिन कौन है ? तया कोई वैरागी औरि है। िेखखका ने स्वयं कहा कक भक्तिन के वेर्श भूषा में गह
ृ स्थ व
सन्यासी का सलमश्र है। वह एक ग्वािा की कन्या थी। भक्तिन का वास्िववक नाम िक्ष्मी था।पाँि वषा की
आयु में वववाह ९ वषा की आयु में गौना हो गया।वपिा ने मत्ृ यु का समािार ववमािा व सास ने नहीं पहुँिने
हदया। बिी बेिी के वववाह के उपरान्ि पति भी स्वगा लसधार गए। ककसी प्रकार दो बेहियों के हाथ पीिे ककये
,िेककन दैव कृपा से घर - जमाई बिा दामाद भी स्वगा लसधामा गया।पाररवाररक दवेष में जीवन झुिस गया।
गाय भैस ,खेि ,खलिहान सब खिम हो गए। भक्तिन जैसी साहसी महहिा जीवन में संघषा ही करिी रहिी
है।वह हहम्मि नहीं हारिी। वह अंि में िेखखका की सेवा में उपक्स्थि हुई। वह हनुमान जी की िरह िेखखका
की सेवा करिी रहिी है। वह हहम्मि नहीं हारिी।पढी लिखी न होने पर भी वह िेखखका की सहायिा करिी
थी।िेखखका पर स्वयं भक्तिन का इिना प्रभाव पिा कक वह स्वयं दे हातिन हो गयी। वह बेिी - दामाद के बुिावा
आने पर भी िेखखका का साथ छोि कर जाने को िैयार न हुई। उसमें स्वालमभक्ति के सभी गुण है। वह िेखखका
की सेवा करना व उन्हें खुर्श रखना अपने जीवन का परम धमा समझिी है। अिुः िेखखका ने भक्तिन के रूप में
एक आदर्शा सेववका का चित्रण ककया है।

कहानी के प्रारम्भ से िेकर अंि िक भक्तिन के ही इदा -चगदा घूमिी है। भक्तिन के जीवन के संघषामय पक्ष
का चित्रण करना िेखखका का उददेश्य रहा है। अिुः भक्तिन र्शीषाक साथाक व सफि है।

प्रश्न

तनम्नशलखिि गदयािंशों को पढकर पछ


ू े गए प्रश्नों के उत्तर दीक्िए-

प्रश्न 1:

सेिक-धमा में नम
ु ान िी से स्पद्र्धा करने िाली भक्तिन ककसी अिंिना की पत्र
ु ी न ोकर एक अनामधन्या
गोपाशलका की कन्या ै-नाम ै लछशमन अथााि लक्ष्मी। पर िैसे मेरे नाम की विशालिा मेरे शलए दि
ु ा ै,
िैसे ी लक्ष्मी की समद्
ृ ध भक्तिन के कपाल की किंु च ि रेिाओिं में न ीिं िाँध सकी। िैसे िो िीिन में प्राय:
सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर िीना पड़िा ै; पर भक्तिन ि ु ि समझदार ै, तयोंकक ि
अपना समद्
ृ धसू क नाम ककसी को ििािी न ीिं।

प्रश्न:
1. भक्तिन के सदभा में नम
ु ान िी का उल्लि तयों ु आ ैं?
2. भक्तिन के नाम और उसके िीिन में तया विरोधाभास था?
3. ‘िीिन में प्राय: सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर िीना पड़िा ैं”-अपने आस-पास
के िगि से उदा रण दे कर प्रस्िि
ु कथन की पक्ु टि कीक्िए।
4. भक्तिन ने लेखिका से तया प्राथना की ?तयों ?

प्रश्न २:

भक्तिन का ररत्र-च त्रण कीक्िए।

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