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हद-भष-समपरषण-और-सचर
हद-भष-समपरषण-और-सचर
All UG Courses
Ability Enhancement Courses (AEC)
lsesLVj-II
dkslZ ØsfMV-2
हदी भाषा : सं ष
े ण और संचार ( हदी-क)
संपादक-मंडल
ो. भवानी दास, डॉ. राजकुमार शमा
पा य-साम ी-लेखक
डॉ. हमांशी ीवा तव
डॉ. अ नल कुमार, डॉ. सीमा रानी, डॉ. द नदयाल,
ो. भवानी दास
शै णक सम वयक
दी ा त अव थी
Published by:
Department of Distance and Continuing Education under
the aegis of Campus of Open Learning/School of Open Learning,
University of Delhi, Delhi-110 007
Printed by:
मु त िश ा िव ालय, द ली िव विव ालय
हदी भाषा : सं ष
े ण और संचार ( हदी-क)
वतमान अ ययन साम ी क इकाई 1 (पाठ-1) एवं इकाई 2 (पाठ 1) पवू सी.बी.सी.एस. सेमे टर िस टम के तहत पहले से
उपल ध अ ययन-साम ी का संशोिधत सं करण ह। इकाई 1 (पाठ 2), इकाई 2 (पाठ 2, 3 एवं 4) एन.ई.पी. के तहत नये
पाठ्य म के अनसु ार िलखी भी गई ह और िलखवाई भी गई ह।
व-िश ण साम ी (एस.एल.एम.) म वैधािनक िनकाय, डीय/ू िहतधारक ारा तािवत सधु ार/संशोधन/ सझु ाव अगले सं करण
म शािमल िकए जाएँगे। हालाँिक, ये सधु ार/संशोधन/सझु ाव वेबसाइट https://sol.du.ac.in पर अपलोड कर िदए जाएँगे। कोई
भी िति या या सझु ाव ईमेल- feedbackslm@col.du.ac.in पर भेजे जा सकते ह।
हदी भाषा : सं ष
े ण और संचार ( हदी-क)
हदी भाषा : सं ष
े ण और संचार ( हदी-क)
अ ययन-साम ी : इकाई (1-2)
िवषय-सूची
इकाई 1 सं े षण : सामा य प रचय
पाठ 1 : संঋेषण की अवधारणा और उसकी ले्खका: डॉ. िहमां शी ीवा तव 1-17
ঋिॿया
पाठ 2 : संঋेषण और सं चार तथा सं ঋेषण के लेखक : डॉ. अिनल कुमार 18-33
िविवध आयाम
इकाई 2 सं े षण और संचार के िविवध प
पाठ 1 : संঋेषण के ঋकार ले्खका: डॉ. सीमा रानी 34-45
पाठ 2 : सव८ ण आधाौरत ঋितवे दन (ौरपोट१ ) लेखक: डॉ. दीनदयाल 46-62
तै यार करना, सं भािवत िवषय:
(कोरोना और मानिसक वा य,
िॿ ो जागॹकता अिभयान, कूड़ा
िन तारण योजना)
पाठ 3 : लेखन के िविवध ॺप-अनु छे द- लेखक: डॉ. दीनदयाल 63-78
लेखन, सं वाद-लेखन, डायरी,
लॉग-लेखन
पाठ 4 : सं पादकीय लेखन ले्खका : ঋो. भवानी दास 79-90
1 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
2 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
'Communication' Communication
Communies to share, to transmit, to exchange
To share, to transmit to exchange
To share
to transmit-
To Exchange–
Communis To
Share-
To Impart –
To Transmit-
To make Common
Common-
ß
3 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
“Communication
Communication is the broad field of human interchange of
facts and opinions and not the technologies of telegraph, radio and the like.
like.”
4 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
Þ
(Exchange)
ß
Ü
L. Ron Hubbard has described Communication in terms of ARC triangle. A stands for
affinity, R for reality and C for Communication. Communication in ARC Triangle has been
stated to be the most important in understanding the composition of human relations and thus
human life. ARC
R C
ARC
R C
Trenhalin – “In the main, communication has its central interest those behavioral
situations in which a sourcee transmits a message to receiver (s) with conscious intent to alter
the latter’s behavior. Here, the dimension of intentionality underlying communication is the
key lecture involved in the delineation.”
‘To make common’
5 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
(i)
6 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
(ii)
(iii)
(iv)
(v)
7 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
8 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
(communication)
9 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
10 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
11 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
12 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
13 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
14 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
decoding
15 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
16 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
½
½
½
17 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
परे खा
2.1 अ धगम का उ दे य
2.2 तावना
2.3 वषय- वेश एवं ववेचन
2.4 सं ेषण और संचार
2.5 संचार के आधारभत
ू त व
2.5.1 बोध- न
2.6 सं ेषण के आयाम
2.6.1 सूचना- हण एवं सार
2.6.2 सूचना- वशलेषण
2.6.3 सामािजक ान एवं मानव मू य का ेषण
2.6.4 मनोरं जन एवं सं ेषण
2.6.5 श ा दान करना
2.6.6 घटना एवं मु द क या या करना
2.6.7 समाज म एकजुटता लाना
2.7 न कष
2.8 अ यास- न
2.9 संदभ- ंथ
18 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
2.1 अ धगम का उ दे य
2.2 तावना
वचार अ भ यि त और वचार के आदान- दान क भावना के साथ ह मानव समाज
म सं ेषण एवं संचार क या का उ भव और वकास हुआ। सं ेषण और संचार एक
सामािजक या है । इसी लए समाज क सम त सं थाओं, समूह एवं मनु य के म य
सं ेषण एवं संचार होता रहता है । सं ेषण और संचार मा संदेश के आदान-
आदान दान से संबं धत
नह ं है , बि क यह एक- दस
ू रे को पर पर संदेश हण करने क बहु े षत करने और
आयामी या है । अतः सं ेषण और संचार तथा सं ष
े ण के व वध आयाम से प र चत
होना अ याव यक है िजससे क सं ेषण हे तु इसके आयाम को भावी ढं ग से समझा जा
सके और साथ ह इनके योग म भी द ता ा त क जा सके।
19 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
20 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
इन तीन त व म य द कोई पथ
ृ कता या अलगाव होगा तो संचार यानी सं ेषण क
ू नह ं हो पाएगी। सं ेषण म अवरोध उ प न हो जाएगा।
या पण भावशाल संचार के
लए यह आव यक है क सं ेषण क ा के पास परू सच
ू ना हो। संदेश ाह को सं ेषक पर
21 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
भरोसा होना चा हए। सं ेषक म इतनी यो यता होनी चा हए क वह सूचना का ेषण यानी
संदेश का कोडीकरण ऐसे करे क संदेश हण करने वाला उसे ठ क ठ क उसी प म डीकोड
कर सके यानी समझ सके। संचार कता अपने संदेश को संदेश हण कता तक पहुँचाने के
लए कसी मा यम या चैनल का इ तेमाल करता है । यहाँ एक बात यह भी यान रखने क
है क संचार कता जो संदेश भेजे, वह ऐसा होना चा हए क वह संदेश हण कता क हण
मता के अनु प हो। इस संदभ म सं ेषक के लए यह अ याव यक है क वह यह यान
रख क उसका संदेश, संदेश हण करने वाले पा के लए मह वप
पण
ू हो। यानी वह
मनोवै ा नक प से उसके नकट हो।संदेश उपयु त एवं युि तयु त हो और वह संदेश ाह
क वयं क च का हो ता क वह संदेश के वषय म अपनी त या यानी उ र दे सके।
22 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
2.5.1 बोध- न
न-1 न न ल खत न के उ र केवल हाँ अथवा नह ं म दो।
(क) सं ेषण तथा संचार एक असामािजक या है । (हाँ/नह ं)
(ख) सं ेषण या एक बहुआयामी या है । (हाँ/नह ं)
(ग) सं ेषण म टू शेयर से आशय है - कसी को अपने भाव से प र चत कराना।
(हाँ/नह ं)
न-2 खाल थान क पू त क िजए -
(क) ‘सं ेषण के तीन आधारभूत त व ह- सं ेषक, ल य और..........
..........। ( ोत, संदेश,
संदेश हता)
(ख) सं ेषण म मा यम से अ भ ाय है - ....................... (िजसक
िजसके वारा व ता
अपने वचार को े षत करता है, हंद , उद)ू
(ग) मानव के ज म लेते ह उसके ....................... से सं ेषण क या शु हो
खाने-पीने, रोने-हँ सने, दध
जाती है । (खाने ू पीने)
न-3 न न ल खत न के उ र सं ेप म द िजए-
(क) ‘संचार और सं ेषण एक दस
ू रे के पयाय ह’, प ट क िजए।
(ख) सं ेषण क कृ त का ववेचन सं ेप म क िजए?
23 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
24 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
26 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
संचार का अगला मह वप
पूण काय है लोग क ान एवं चंतन के तर म व ृ ध करना
व भ न समाचार प प काएँ रे डयो ट वी सनेमा और अ य तमाम संचार मा यम लोग
को इ ह व श ट घटनाओं क सच
ू ना मा ह नह ं दे ते अ पतु समाज के जीवंत न उनके
प रणाम नी तय आ द का भी ान सं े षत करते ह। इससे मानव जीवन क अनेक
सम याओं का समाधान हो जाता है । संचार मा यम के वारा अनेक तरह क सच
ू नाओं और
उनके त या त सामािजक ि टकोण आ द के वारा यि त क ान के तर म व ृ ध
हो जाती है । आज तो संचार मा यम ने कूल कॉलेज एवं व व व यालय के श ा के
व प को ह प रव तत कर दया है । आज व व व यालय अनुदान आयोग और अ य
शै णक संगठन अनेक श ण संबंधी काय म का सारण कर रहे ह िजनसे लोग के ान
के तर म व ृ ध हो रह है । अतः संचार मा यम कूल श ा के अंग बनते जा रहे ह।
इसके साथ ह यह लोग को सामािजक एवं मानवीय मू य क श ा भी दे रहे ह। वतमान
27 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
28 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
श ा मानव जीवन का एक मख
ु आधार एवं ंग
ृ ार है । श ा का उ दे य केवल पढ़ना-
लखना और सखाना मा नह ं है बि क मनु य को एक सुयो य मनु य या नाग रक बनाना
भी है िजससे क वह दे श के संसाधन का पण ू वकास कर सके तथा व ान व तकनीक के
े मग त के उ च शखर पर पहुँच सके। इस ि ट से मनोरं जन के साथ-साथ
साथ श ा दे ना
भी संचार एवं सं ेषण का एक मह वपणू आयाम है । यह स य है क श ा और मनोरं जन
दे श के वकास क गाड़ी को आगे बढ़ाने म गाडी क धरू के दो प हय क भू मका का नवाह
करते ह। आज इसी उ दे य क पू त हे तु व भ न कार के चैनल और व ापन जनसामा य
को अपने-अपने ढं ग से ान का व फोटक चार- सार करके श ा दे रहे ह। जनसामा य
व थ रह तथा दष
ू ण र हत वातावरण का नमाण कर सक। व थ रहने के लए व छता
का वशेष यान रख िजससे क यि त गंदगी से होने वाल बीमा रय से बचा रहे । धन
बजल एवं पे ोल क बचत करने के बारे म चंतन कर, बाल मजदरू , बाल शोषण जैसी
सामािजक सम या से जुझने म स म हो सके, कसान खेती के नवीन तर क को सीख,
मजदरू नवीन कौशल से द ता हा सल कर, उपभो ता अपने अ धकार के त सजग हो,
नाग रक अपने कत य से अवगत हो सके आ द इसके लए ज र है क श ा का चार-
सार हो। श ा ने व ान को ज म दया और व ान ने संचार एवं जनसंचार मा यम को।
अब जनसंचार के साधन श ा के साथ-साथ व ान के सार म भी अपनी मह वपण
ू चार
भू मका नभा रहे ह। एक दे श के सवागीण वकास क कहानी व तुत: वहाँ क श ा और
व ान के वकास क कहानी है । यानी हम कह सकते ह क शै क एवं वै ा नक ग त
आ थक तथा सामािजक ग त क संपूरक होती है । एक के बना दस
ू रे के अि त व क
क पना नह ं क जा सकती और इन दोन क कमी म संचार मा यम क उपलि ध का
सवाल ह पैदा नह ं होता। संचार म श ा के चार सार क ि ट से आजकल 'इ नू' और
29 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
30 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
2.7 न कष
इस कार सं ेषण के अनेक आयाम ह जो समाज व सं कृ त के वकास के साथ-साथ
व ान एवं तकनीक के वकास को ग त दान कर रहे ह। ले कन आज सूचना एवं सं ेषण
31 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
2.8 अ यास- न
32 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
2.9 संदभ- ंथ
33 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
34 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
35 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
36 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
37 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
(i)
(ii)
38 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
39 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
40 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
41 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
42 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
43 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
44 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
45 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
परे खा
2.1 अ धगम का उ दे य
2.2 तावना
2.3 तवेदन : अथ और व प
2.5.1 बोध- न
2.7.1 बोध- न
2.9 न कष
2.10 अ यास- न
2.11 संदभ- ंथ
46 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
2.1 अ धगम का उ दे य
औपचा रक लेखन के पा य म म संक लत इस अ ययन-साम
साम ी से व याथ —
सज
ृ ना मक लेखन के मह व को समझ सकगे।
औपचा रक लेखन म तवेदन के मह व, या और प का बोध ा त करगे।
सव ण संबंधी तवेदन नमाण क मता का वकास कर सकगे।
समसाम यक मु द , घटनाओं पर तवेदन लखने के लए वे अपने आपको े रत कर
सकगे।
2.2 तावना का उ दे य
2.3 तवेदन : अथ और व प
‘ तवेदन’ श द का योग अं ेजी म ‘ रपोट’ के लए कया जाता है । तवेदन को
ववरण, संवाद, सूचना, रपट, अफ़वाह
अफ़वाह, नाम आ द अ य अथ म भी लया जाता है । पर तु ह द म
इसका योग सफ तवेदन के अथ म ह कया जाता है । उदाहरणाथ, पु लस म लखाई गई रपट,
कोई मह वपण
ू समाचार, सच
ू ना
ना, संवाददाताओं वारा समाचार प , दरू दशन आ द म भेजी गई
सूचना, समाचार रपोट तो ह, पर तु हम उ ह तवेदन नह ं कहते।
47 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
2.4 तवेदन के मख
ु त व
तवेदन को तत
ु करने के लए न न ल खत त व अथवा अंग का यान रखना
आव यक है । इन त व के समायोजन से तवेदन भावशाल बन जाता है ।
48 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
पूण जाँच-पड़ताल
पड़ताल के बाद तवेदक सं त ववरण दे ता हुआ अपने नणय को
तवेदन म ततु करता है । पर तु मा ववरण एवं नणय तवेदन नह ं हो सकता इसके
लए तवेदक वारा सफा रश अथवा नजी अ भमत ततु करना भी आव यक होता है ।
तवेदक का अ भमत ब धक के लए बा यकार नह ं होता होता, इस लए इसे मान
मान-स मान का
वषय नह ं बनाया जा सकता,, पर तु इसके अभाव म तवेदन का ल य ह पण होता
ू नह ं होता।
उसक वशेष ता एवं जाँच-पड़ताल
पड़ताल नरथक हो जाती है । स म त वारा तत
ु तवेदन म
यह भी स भव क कसी सद य का मत शेष सद य के मत से भ न हो
हो। ऐसी ि थ त म
उस सद य क स म त भी तवेदन म ल खत प म तत
ु क जाती है ।
49 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
50 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
य दश ह अथवा वषय प
पर कुछ काश डाल सक, उनक सा ी लेने का काय भी इस
चरण म पूरा कर लेना चा हए।।
2.5.1 बोध न
1. तवेदन श द का हंद म अथ प ट क िजए?
2. तवेदन श द अं ेज़ी के.................श द का अनुवाद है । (लेटर/ रपोट)
रपोट
3. या तवेदन म आंकड़ क या भू मका होती है ?
4. एक तवेदन.......................
.......................द तावेज़ होता है । (धारणा मक/त
त या मक
मक)
51 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
52 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
तवेदक को यि तगत राग- वेष से दरू रहकर वषय का व लेषण एवं न कष तुत
करना चा हए। ऐसा न होने पर यि त को यि तगत प से तो ता का लक लाभ हो सकता है ,
पर तु सं था, सरकार और परो तः तवेदक को भी अ ततः हा न ह होगी। यह नह ,ं तवेदक
क व वसनीयता समा त होने का भय भी रहे गा। तवेदन म वषय क वशेष ता और ता ककता
53 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
हए। इसके
तवेदन ल यगामी होना चा हए लए आव यक है क तवेदक को िजस
उ दे य से ना
तवेदन तैयार करना है , वह उसी ओर अपना यान केि त रखे। उस वषय से
ह, य द
स बि धत कुछ अ य ब द ु भी वचारणीय हो सकते ह तवेदक उन ब दओ
ु ं पर भी
वचार करने लगेगा तो वह ल य ट हो सकता है , इससे तवेदन पाएगा।
भावी नह ं बन पाएगा
तवेदन म नणया मकता और सुझावा मकता का होना आव यक है । तवेदक का
व लेषण पाता।
यथ होगा य द वह उस स ब ध म अपना न कष अथवा नणय नह ं दे पाता
इसी कार य द स बि धत वषय पर वह अपना अ भमत तत
ु नह ं करता तो तवेदन
को अधरू ा माना जाएगा।
तवेदन म पण
ू ता का गणु होना आव यक है पर तु इसके लए उसे बहुत व तत
ृ
करने क आव यकता नह ं है । सं ेप म वषय को पण
ू ता के साथ तुत करना ह अ छे
तवेदन क वशेषता है । अनाव यक व तार से तवेदन अपने ल य से भटक सकता है ।
तवेदन क भाषा न ा त,, सहज तथा सरल होनी चा हए। तवे
वेदक िजस भाव से श द
का योग करता है , उन श द से वह भाव प ट होना चा हए
हए। आलंका रकता,
रकता वयथकता
आद तवेदन म गुण के थान पर दोष माने जाते ह
ह। येक तवेदन को उपयु त शीषक
अव य दे ना चा हए, िजससे वह वषय पण
ू तया प ट हो सके। यि त वारा तुत
तवेदन थम पु ष शैल तथा स म त वारा तत
ु तवेदन अ य पु ष शैल म लखा
जाता है ।
तवेदन व तत
ृ होने क ि थ त म उसे अनु छे द म वभािजत कया जा सकता है ।
यद तवेदन बहुत अ धक बड़ा हो तो उसका सारांश भी दे ना चा हए। तवेदन म सभी
54 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
त य मव ध प म दे ने चा हए
हए। म को तवेदक अपने ववेक से नि चत कर सकता
है । सामा यतः यह दनांक के म म होना चा हए
हए। परे खा क ि ट से शीषक,
शीषक सम या,
प ृ ठभू म, वतमान ि थ त, उपल ध त य
य, सा याँ और उनका व लेषण,, बहस व सुझाव के
ब द,ु न कष, नणय, सुझाव तथा त थ स हत ह ता र का म अपनाया जाता है ।
रह, इस
तवेदन के टं कण के समय याकरण क अशु धयाँ न रह ि ट से यान रखा
जाए। तवेदन के अ त म हए। य द
तवेदक के ह ता र होने चा हए तवेदन स म त अथवा
आयोग वारा तत
ु कया जा रहा है तो अ य , स चव तथा सभी सद य के ह ता र
होने चा हए। कुछ ि थ तय म अ य और स चव अथवा मा अ य के ह ता र भी
पया त माने जाते ह। तवेदक वारा संक लत सभी आव यक माण,, पा डु ल पयाँ, प ,
माण
फाइल आ द हए। साथ ह , इनका संल नक
तवेदन के साथ संल न कर दे ने चा हए प म मूल
हए।
तवेदन म संकेत भी कर दे ना चा हए
2.7.1 बोध- न
सह श द चन
ु कर र त थान
न क पू त क िजए
िजए-
1. एक तवेदन म..................
..................अ नवाय होते ह। (त य/ ववाद)
2. समय.............. क अशु धयाँ न रह। ( याकरण/वाचन)
तवेदन के टं कण के समय याकरण
3. तवेदन....................... अनौपचा रक)
.......................लेखन के अंतगत आता है । (औपचा रक/अनौपचा रक
4. तवेदन कतने कार के होते ह या हो सकते ह
ह?
सव ण वाले तवेद
दनन के कुछ समसाम यक नमूने दे खए –
55 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
अनुमान-
ु ान (2020) के अनस
ला सेट के अनम ु ार महामार के वैि वक वा य पर पड़े भाव क वजह
से अवसाद संबंधी मामल म 28% क व ृ ध दे खी गई है , जब क चंता को लेकर होने वाल
परे शा नय म 26% इजाफा हुआ है । एक अनुमान है क वैि वक अथ यव था म मनौवै ा नक
वा य पर होने वाला खच 2030 तक 6 लयन अमे रक डॉलर हो जाएगा।। अवसाद और चंता
के लए सा य-आधा रत दे खभाल म नवेश कया गया येक डॉलर बेहतर वा य और
उ पादकता म 5 अमे रक डॉलर का रटन दे ता है । इसके अलावा, मान सक वा य, द घकाल न
य
वकास ल य , वशेष प से ल य 3 (अ छे वा य और क याण) को ा त करने का अ भ न अंग
है । अतः मान सक वा य को मानवा धकार और आ थक ि टकोण से ाथ मकता दे ने क
आव यकता है ।
यापक भाव-
महामार क वजह से भय
भय, अलगाव और जीवन तथा आय क हा न होने के कारण मान सक
वा य भा वत होने के नए मामले दे खे गए ह या फर परु ाने मामल म ि थ त और भी खराब
हुई है । इसे दे खते हुए मान सक वा य सेवाओं क मांग मख
ु ता से उठने लगी है ।
व भ न समाज म महामार के प रणाम व प सामािजक अलगाव और आ थक संकट के
कारण मान सक वा य क पीड़ा बढ़ गई है । सं मण के भय, मृ यु, प रजन को खोने,
नौकर गंवाने या जीवन-यापन
यापन का रा ता बंद होने और सामािजक तौर पर अलगाव तथा
अपन के बछड़ने या दरू जाने क वजह से लोग क चंताा, अवसाद, अलगाव और उदासी म
व ृ ध दे खी जा रह ह। इसके साथ ह िजन लोग को पहले से ह मान सक बीमार है अथवा
मादक पदाथ का सेवन करने क वजह से उनको मान सक वकार ने जकड़ लया है उनके
को वड-19 से सं मत होने क संभावनाएँ यादा है । इसी कारण ऐसे लोग पर वपर त
मान सक और मनोवै ा नक भाव पड़ने क भी आशंका है । दभ
ु ा यवश म यम से यन
ू तम
आय वाले दे श म मान सक बीमा रय से जूझने वाले 75% से 80% नाग रक को आव यक
पाती।
सहायता कभी मल ह नह ं पाती
56 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
भारत क ि थ त-
वकासशील दे श म म हला सशि तकरण क कमी
कमी, नणय लेने क मता से इंकार
और घरे लू हंसा के बीच खराब मान सक वा य ि थ तय म एक बड़ी भू मका नभाते ह
ह।
म हलाओं के मान सक वा य ि थ तय क यापकता म दशक से कोई प रवतन नह ं
हुआ है । को वड क महामार ने मान सक वा य य-दे
दे खभाल क आव यकता को और बढ़ा
दया है । महामार के बीच चंता क यापकता काफ बढ़ गई है । म यम आय वाले दे श को
को वड-19 महामार ने अनेक कारण क वजह से वशेष प से भा वत कया है । मान सक
वा य ि थ तय क यापकता म दशक से कोई प रवतन नह ं हुआ है । ले कन को वड-19
क महामार ने मान सक वा य दे खभाल क आव यकता को और बढ़ा दया है । वा य
बजट म मान सक वा य के बजट के लए रखी जाने वाल रा श म काफ खा मयाँ ह।
57 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
आउटर च काय म-
आउटर च काय म क आव यकता इस अवलोकन पर आधा रत है क उ योग म मौजूदा
अि थरता के बावजूद टो, िजसम जुआ और स टे बाजी शा मल है ) संप और ऑनलाइन
गे मंग- दोन को अब भी अवैध तर के से बढ़ावा दे रहा है । यह काय म संभा वत नवेशक को कोई
ु को परू तरह से श
भी नणय लेने से पहले खद त करने म मदद करे गा य क टोकरसी
नवेश एक ज टल और जो खम भरा यास है ।
इसका बंधन ा धकरण वारा कया जाता है , िजसे वष 2016 म कंपनी अ ध नयम,
नयम
2013 क धारा 125 के ावधान के तहत था पत कया गया था
था। ा धकरण को IEPF के
शासन क िज मेदार स पी गई है जो नवेशक के बीच जाग कता को बढ़ावा दे ने के
58 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
आगे क राह-
59 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
60 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
2.8 न कष
न कष प म यह कहा जा सकता है क औपचा रक लेखन म तवेदन लेखन का
अपना प और मह व होता है । येक तवेदन का योजन यह होता है क िजस यि त
अथवा यि तय का कसी वषय से स ब ध तो हो
हो, पर तु उसे उसके स ब ध म पूण
त य का ान न हो, उसे पया त आव यक साम ी उपल ध करा द जाए
जाए। तवेदन का
वषय कुछ भी हो सकता है कोई घटना
घटना, कोई समारोह-उ सव, कोई उ घाटन,
घाटन सभा-जुलूस,
बैठक, कसी क पनी क व ीय ि थ त
त, कसी सं थान के कमचा रय म या त अस तोष
तोष,
बाढ़ से बाँध का टूटना आ द।। ता पय यह क तवेदन के अनेकानेक वषय हो सकते ह
ह।
तवेदन ( रपोट) तैयार करने का काय कसी सरकार अथवा गैर सरकार सं था वारा
कसी यि त अथवा स म त को स पा जाता है । तवेदन के लए अथक शोध और सव ण
क आव यकता होती है ।
2.10 अ यास- न
2.11 संदभ- ंथ
62 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
3. लेखन के व वध प
अनु छे द-ले
लेखन
न, संवाद-लेखन, डायर -लेखन, लॉग-ले
लेखन
डॉ. द नदयाल
कॉलेज ऑफ़ वोकेशनल टडीज
द ल यालय, द ल
व व व यालय
परे खा
3.1 अ धगम का उ दे य
3.2 तावना
3.3 अनु छे द : अथ और व प
3.4 अनु छे द लेखन का मह व
3.5 लेखन क
अ छे -अनु छे द-ले वशेषताएँ
3.6 लेखन के
अनु छे द-ले कार
3.7 प लवन और अनु छे द लेखन म अंतर
3.7.1 बोध- न
3.8 लेखन के उदाहरण
अनु छे द-ले
3.9 डायर -लेखन : अ भ ाय और व प
3.10 लेखन और
डायर -ले तत
ु ीकरण के प
3.11 लेखन का मह व और
डायर -ले या
3.11.1 बोध- न
3.12 लेखन के उदाहरण
डायर -ले
3.13 संवाद : अ भ ाय और व प
3.14 संवाद का मह व
3.15 लेखन क
संवाद-ले या
3.15.1 बोध- न
3.16 संवाद के उदाहरण
3.17 लॉग-लेखन : अ भ ाय
63 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
3.1 अ धगम का उ दे य
3.2 तावना
जानने क इ छा और अपने अंतस को बाहर नकालने क मनु य म आदम लालसा रह
है । वतमान युग म भावा
वा भ यि त के अनेक प, वधाएँ और मा यम ह। मनु य को समय-
प समय
समय पर औपचा रक और अनौपचा रक प म मौ खक और लेखन वारा अ भ यि त करनी
होती है । ऐसे म लेखन के व वध प- ा प को समझना, उनम द होना आज क
ाद, डायर , अनु छे द
आव यकता है । लेखन के कौशल से यु त होकर ह कोई भी सजक संवाद
लखता है और लखेगा। यू मी डया के युग म अपना लॉग बनाने और लॉग लखने क
याँ क कला के लए पहले यहाँ
हाँ उ त सभी कार के लेखन को समझ ल।
3.3 अनु छे द : अथ और व प
मीमांसा या ववेचना होती है । हम दे खते ह क कसी लेख, नबंध आ द अपे ाकृत लंबी रचना को
लेखक कुछ वभाग म वभािजत करता है । ऐसा वषय के प ट ववेचन के लए कया जाता है । इस
वभाजन के समय यह यान रखा जाता है क व श ट वभाग म कोई एक व श ट भाव, वचार
अथवा बात पण
ू तः या फर अंशतः प ट हो जाए। इस कार यह वभाग अथवा अनु छे द अपने
पूववत और परवत अनु छे द से जुड़ा होने पर भी भाव, वचार आ द क ि ट से एक सीमा तक पूण
भी होता है । कसी भी अनु छे द म एक वषय वशेष, एक भाषा, एक शैल और वा य क
अ नवायता उसे सह
मब धता क अपे ा-अ प दान करती है ।
अनु छे द के शाि दक अथ के आधार पर इसका कसी रचना का अंश होना अ नवाय है परं तु
आजकल वतं प से अनु छे द लेखन का अ यास भी कराया जाता है । वशेषतः व याथ म
लेखन कौशल क मता का वकास करने के लए मा य मक क ाओं म इसक उपयो गता
न ववाद है । व याथ को सी मत वषय पर अनु छे द लेखन के लए कहा जाता है और इसके
मा यम से उसके पना, तक-शि त और भा षक
ान, क पना मता आ द को परखा जाता है । वतमान
समय म हंद भाषा का उपयोग समाज जीवन के व वध े म बढ़ा है । व भ न समाचार-प ,
प का, दरू दशन के समाचार चैन
नल,
ल अनुवाद आ द म हंद का उपयोग बढ़ने से यह आव यक तीत
होने लगा है क व याथ म व भ न वषय पर सी मत श द म अ धका धक भाव कट करने क
मता का वकास हो। इस ि ट से आज सभी तर पर व या थय को अनु छे द लेखन का
अ यास कराया जाता है ।
65 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
3. अनु छे द और नबंध के वषय म अंतर होता है । नबंध ऐसे वषय पर लखा जाता है ,
िजसका बहुत व तत ृ आयाम हो। अनु छे द वषय का अंश मा हो सकता है , परं तु
वतं अनु छे द का वषय सी मत आयाम वाला होना चा हए।
4. अनु छे द लखते समय वणन म संतुलन रहे , इसका यान रखना आव यक है । संभव है क
कभी यि त को च अ अथवा
थवा अ च के वषय पर अनु छे द लखना हो और वह उसे
अ त व तत ृ अथवा अ त संकु चत कर न दे ।
5. अनु छे द के लए शीषक को यान से समझकर संतु लत प से लखा जाना चा हए।
6. अनु छे द लेखन म वचार का कट करण मब ध एवं तकसंगत व ध से होना चा हए।
य द वचार अथवा वा भाव मब ध तर के से तुत नह ं कए जाएँगे तो पाठक के लए
वषय को समझना द ु कर हो जाएगा तथा अनु छे द जाएगा।
भावह न हो जाएगा
7. अनु छे द के लए आव यक है क वह सग
ु ठत हो तथा उसम वचार और तक का
हो।
ऐसा सु वचा रत पूवापर म हो
8. वषयान
अनु छे द क भाषा वषया नुकूल होनी चा हए। ायः अनु छे द शा वत मह व के वषय
पर लखे जाते ह। अतः उसक भाषा भी उसी के अनु प गंभीर एवं प रमािजत होनी
चा हए। सामािजक वषय पर लखे गए अनु छे द क भाषा अपे ाकृत सहज होती है।
ता पय यह है क भाषा यथासंभव सरससरस, सबु ोध और ग या मक होनी चा हए।
हए
9. अनु छे द-लेखन नबंध लेखन से भ न है । नबंध लखते समय लेखक के पास अवकाश
होता है क वह कसी अ य वषय पर चचा कर बाद म उसका संबंध मु य वषय से
जोड़ दे । अनु छे द का आकार सी मत होता है उसम वषयेतर होने का अवकाश लेखक
के पास नह ं होता। अतः अनु छे द के ारं भ से लेकर अंत तक उसका एक सू म बँधा
होना नतांत आव यक है। अनु छे द मल
ू वषय से इस कार बँधा होना चा हए क परू े
अनु छे द को पढ़ने के बाद पाठक सार प म उसके शीषक को नतांत संगत एवं
उपयु त माने।
10. अनु छे द लेखन एक कला है । इसम दए गए वषय पर सी मत श द म यथासंभव परू
बात कहने का यास कया जाता है । यह वा तव म गागर म सागर भरने के समान
66 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
67 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
3.7.1 बोध- न
1. अनु छे द.....................का
का एक अंश होता है । (क वता/ नबंध)
2. एक अ छे अनु छे द के दो गुण ल खए
खए?
3. अनु छे द लेखन के कतने कार हो सकते ह
ह? (दो/दो से अ धक)
4. प लवन तथा अनु छे द लेखन म शैल और काल का अंतर होता है । (हाँ/नह ं)
68 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
जीवन-मू य
जीवन मू य हमारे मागदशक है , आचरण के नयामक हमार स यता और सं कृ त के
तीक ह। मू य वह ि ट है , जो आपने ववेक वारा अतीत क मह ा को स ध करके उसे
नया आयाम दे ता है , उसे जीवंत करता है । मू य एक ऐसा मापदं ड है क िजसके वारा
स पण
ू सं कृ त एवं समाज मह ा को ा त करते ह। यह कारण है क जो भी त व मानव
मा के लए हतैषी है , आनंददायक है । ऐसे सारे त व जीवन मू य क ेणी म आ जाते ह।
जीवन मू य के अंतगत ेम, मानवीय क णा, ईमानदार , भात ृ व, परोपकार,
परोपकार याग, न ठा,
उ रदा य व, दया, अ छाई से सरोकार आ द समा हत ह। सा ह य म रचनाकार सभी मू य
को जन-जीवन क यावहा रकता के आधार पर च त करता है । रचनाकार यह उ मीद
करता है क उसने मानव को उ चत दशा दान क है । ऐसी उ मीद तभी कर सकता है क
जब वह वयं जीवन मू य से े रत हो। जीवन-मू य प रवतनशील होते ह। े ठ
सा ह यकार मू य का सह व लेषण करके उन मू य को नकारता है जो समाज क गत
म बाधक होते ह। तभी रचनाकार को अपनी रचना या म अनुभू त क वा त वकताओं से
गुजरने का सौभा य ा त होता ह। समाज म आदश क थापना के लए तुलसीदास ने
अपने सा ह य म इसक वशद चचा क है । उनक चचा उपदे शमूलक न होकर च र के
सहज अंग के प म कट हुई है । प रवार व समाज म शां त क थापना के लए मयादा
अ नवाय है । इसके अलावा स य
य, अ हंसा, दया, आचरण क प व ता, मूल अ धकार एवं उ म
कम सभी क अपे ा इस समाज को है । यह मू य न पण भारतीय सं कृ त म उदा मू य
एवं नै तकता के आदश से अनु ा णत है । कत य परायणता, श टाचार, सदाचरण,
सदाचरण कम यता,
यता,
न कपटता, स चाई, याय यता मा आ द नै तक मू य का े सी मत नह है, इस लए
यह का य अ थान ा त कये हुए दखाया गया है ता क समाज एवं लोक-जीवन उ नत
बने।
69 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
71 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
3.11.1 बोध- न
1. या डायर लेखन एक वधा है ? (हाँ/नह ं)
2. डायर लेखन के लए दो अ नवाय बात या ह
ह?
3. डायर .................कह
कह जा सकती है । (जीवनी/आ मसा ा कार)
4. डायर ....................... प म तुत होती है । (लेख/उप यास)
20 फरवर 2023
रा 10 बजे
21 फरवर 2023
रा 11 बजे
72 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
3.13 संवाद : अ भ ाय और व प
73 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
3.14 संवाद का मह व
3.15 संवाद—ले
लेखन क या
संवाद लखते समय सबसे मह वपूण होता है- कथाव तु अथवा वषय-व
वषय तु का
व लेषण। इसके प चात उसके सह म म संवाद का संयोजन ऐसा होना चा हए क कथा
का उ चत वकास हो और म का भी भल भां त नवहन हो। संवाद
वाद पा ानक
ु ू ल और दे शकाल-
वातावरण के अनु प होने चा हए। संवाद सं त हो तो उ चारण म असु वधा नह ं होती है । कौतूहल
उ प न करने के लए संवाद को नाटक म रखा जाता है । संवाद क भाषा पा ानक
ु ू ल होनी चा हए।
ू ता प ट करने वाल होनी चा हए। दाश नक और वैचा रक संवाद
साथ ह भाषा अ भ यि त को पण
74 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
म गंभीरता का पुट होता है । संवाद लेखन के समय लेखक को यान करना चा हए क गंभीरता को
बनाए रखते हुए सरल भाषा का योग करे । मुहावर आ द के योग से संवाद क भावशीलता बढ़ती
है । अतः इनका यथा थान योग करना चा हए। हा य- यंग भी संवाद को सजीव बनाते ह। संवाद
म प टता बहुत ज र मानी जाती है । उसे सुनने और पढ़ने से वह अथ नकलना चा हए जो अथ
लेखक य त करना चाहता है ।
3.15.1 बोध- न
1. दो या दो से अ धक यि तय के बीच बातचीत को.................. कहते ह। (संवाद/संदेश)
2. भाव)
संवाद...................... क अ भ यि त का मा यम होता है । ( वचार/भाव
3. या संवाद पा ानक
ु ू ल होते ह
ह? (हाँ/नह ं)
4. ......................से
से संवाद यादा भावी होते ह। (वाचन/लेखन)
बटोह के मंच पर वेश। बटोह पूछ रहल बाड़े बाजा बजव नहार सव हया से
बटोह : ढब-ए बबआ
ु ढब
समाजी : का ह बाबा?
बटोह : हम ट सन पर जाइब
जाइब, ए बबआ
ु !
समाजी : ए बाबा, इ हे रा ता सीधे ट सन र चल जाई।
बटोह : अ छा ए बबुआ, ई बताव क क कलक ा के मसूल काटना बा।
समाजी : कलक ा के मसूल एह गहर तीस पया लागी।
बटोह : ( चहा के) तीस पया लागी
लागी? सवा पया म न फ़ रआई?
समाजी : सवा पया म त टकठे न मल , महाराज!
(दो म के होने वाले संवाद)
रमेश : अरे म ! कैसे हो
हो?
व पन : भाई, सब ब ढ़या है ।
रमेश : कल कहाँ थे? दखे ह नह ं।
75 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
3.17 लॉग—लेखन : अ भ ाय
76 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
यह दे ख क पहले कसी दस
ू रे लॉगर ने उस वषय पर कोई लेख तो नह ं लखा है । इसके बाद हम
अपने श द म, अपनी टाइल म लॉग पो ट लख सकते ह। यह यान रखना चा हए क लॉग
कसी क कॉपी नह ं होनी चा हए। अ यथा हम लॉ गंग म सफल नह ं हो पाएँगे
गे। इसे कंटट राइ टंग
क द ु नया म ‘सा हि यक चोर ’ कहा जाता है ; इस लए खद
ु के श द म लॉग लखना चा हए। हमार
रचना मकता ह लॉग क ताकत है । हम जैसा भी लख, अपने श द म लख। इससे धीरे -धीरे
लेखन क कला म सुधार आता चला जाता है । लॉग लखने से पहले गूगल पर सबसे यादा कौन सा
‘क वड’ सच हो रहा है, यह जानना आव यक है । लॉग म यथ क चीज नह ं लखनी चा हए। य द
हम हंद म लख रहे ह तो मा ाओं, श द और याकरण का यान रखना चा हए। वतनी दोष नह ं
होना चा हए। लॉग लखने के लए कई साइ स उपल ध ह, िजनक जानकार होनी चा हए। लॉग
िजसके वारा लखा जाता है , वह लॉगर कहलाता है तथा लॉगर वारा जो कंटट या लेख लखा
जाता है , वह लॉगपो ट कहलाता है । लॉग का पेज आकषक होना चा हए, िजसके लए हम इमेज
( च ) का भी योग कर सकते ह।
3.19 लॉग—ले
लेखन का उ दे य और या
3.19.1 बोध- न
77 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
3.20 न कष
3.21 अ यास- न
1. एक अनु छे द लेखन के लए कन बात का होना अ नवाय है ?
2. संवाद से या अ भ ाय है , इसके व प और भाषा पर लए
काश डा लए।
3. एक सफल और सु ढ़ लॉग लेखन के लए या वशेषताएँ ह?
4. कसी एक समसाम यक वषय पर दो म के बीच होने वाला संवाद ल खए।
खए
5. डायर लेखन क भाषा पर वचार क िजए
िजए।
6. वतमान यग
ु म लो गंग का मह व समझाइए।
3.22 संदभ- ंथ
78 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
4. संपादक य लेखन
ो. भवानी दास
मुक्त श ा व यालय
द ल व व व यालय, द ल
परे खा
4.1 अ धगम का उ दे य
4.2 तावना
4.3 लेखन : अ भ ाय, मह व और कार
4.4 संपादक और संपादक य
4.5 संपादक य का व प
4.5.1 बोध- न
4.6 संपादक य के भेद
4.7 संपादक य के त व और गुण
4.8 संपादक य लेखन के लए अ नवाय बात
4.9 संपादक य क भाषा
4.9.1 बोध- न
4.10 संपादक य : एक उदाहरण
4.11 न कष
4.12 अ यास- न
4.13 संदभ- ंथ
4.1 अ धगम का उ दे य
79 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
4.2 तावना
80 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
81 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
82 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
4.5 संपादक य का व प
4.5.1 बोध— न :-
1. संपादक य ....................
........................घटना पर आधा रत होता है । ( वगत/समसाम यक
समसाम यक)
2. संपादक य कसी प क ....................होती है । (र त-नी त/छाया-माया
माया)
3. संपादक य कौन लखता है ?
4. आदश संपादक य कतने श द का होता है ?
83 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
4.7 संपादक य के त व और गण
ु
85 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
4.9.1 बोध- न
86 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
जासस
ू ी के आकाश म ये चंद गु बारे
( शांत झा ं टन संवाददाता, ह द ु तान टाइ स)
झा, वा शग
जासूसी क द ु नया एक अर य है । य
यहाँ सहयोगी, म और जोड़ीदार,
जोड़ीदार सभी एक-दस
ू रे
पर नजर रखते ह। जब क,, वरोधी अपने त वं वय के इराद व मताओं का पता
लगाने, एक-द
दसू रे क रा य सुर ा व राजनी तक तं को बेधने और मनोनक
ु ू ल नतीजा पाने
के वा ते खु फया ऑपरे शन करने के लए वे सब कुछ करते ह। जो वे कर सकते ह।
इसी लए अगर द ु नया का दस
ू रा सबसे मजबत
ू रा सबसे ताकतवर मु क पर नगाह रखने
और उसे सवशि तशाल क पदवी से बेदखल करने के लए नगरानी के लए गु बारे क
स दय पुरानी तकनीक पर भरोसा कर रहा है तो यह उन लोग के लए कोई खबर नह ं है ,
जो खु फया गर के संसार म रचे-बसे ह। यह खबर तो तब है , जब आप पकड़े जाते ह।
भौगो लक सीमा पार करके अमे रक आसमान म चीनी नगरानी रखने वाले गु बारे
के आने क घटना ने अमे रक समाज म तीखी बहस शु क है । शायद सभी समाचार
नेटवक और सोशल मी डया पर गु बारे क त वीर तैरने के कारण ऐसा हुआ है । चीनी
जासूसी से उ प न खतरे के सयाँ तो वष से जगी हुई थीं, अब
त अमे रक खु फया एज स
अमे रका के राजनेता और नाग रक भी इस बार पया त प से चं तत दख रहे ह। गु बारे
को मार गराने के नदश दे ने संबंधी रा प त जो बाइडन के फैसले क चौतरफा तार फ भी
हो रह है ।
87 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
रहा और इसी लए, बीिजंग के सं थागत खु फया तं और उसक हा लया कारवाइय को लेकर
उसे हदायत द जा रह है ।
88 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
4.11 न कष
4.12 अ यास- न
89 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
4.13 संदभ- ंथ
'आधु नक प का रता'- डॉ
डॉ. अजन
ु तवार , वाराणसी, 1991, प ृ ठ 60
'समाचार, फ चर लेखन एवं स पादन कला
कला'- डॉ. ह रमोहन, द ल , प ृ ठ 173
' ह दु तान'- नई द ल , गु वार, 16 फरवर 2023, प ृ ठ 10
' हंद औपचा रक लेखन''- डॉ. द नदयाल, डॉ. भावना शु ल, प ृ ठ 80
90 । पृ ठ
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग व ालय
978-81-19169-56-6
9 788119 169566