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1721008986
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16. बाप और नेहरू की दकन दवशेर्षताओं का वणटन बे० पी० ने 23. नारी की पराधीनता कब शुरू हुई?
अपने भार्षण में दकया हैं? उत्तर:- कृ दर्ष सभ्यता के दवकास के साथ नारी की पराधीनता
उत्तर- जे० पी० जब बाप की बातों का दवरोध करते थे तो बाप शुरू हुई। पुरूर्ष खेत खसलहाल सं भालने लगा और नारी घर में
बुरा नहीं मानते थे। प्रेम से समझाते थे। नेहरू का भी यही फं सी रह गई। घर के सीदमत क्षेत्र में उलझने के कारण नारी
स्वभाव था। वे बड़े भाई की तरह प्रेम िेते थे। पराधीन हो गई।
24. सियोसचत गुण क्या है? इससलए वे युि रोकने का प्रयास करती। पुरूर्ष पौरूर्ष के
उत्तर- प्रेम, िया, ममता, कोमलता, सदहष्णुता, माया, भीरूता अहंकार में समझौता नहीं कर पाता है। इस प्रकार कुं ती और
आदि सियों के गुण है। इस कारण रवीन्द्र नाथ ठाकु र ने सियों गांधारी के सं सध से महाभारत युि रूक सकता था।
को "आधेर मानवी आधेर कल्पना" कहा था |
30. पुरूर्ष के गुण क्या हैं?
25. 'अिट नारीश्वर' की कल्पना क्यों की गई? उत्तर- शौयट, बल, पराक्रम, साहस, सं घर्षट वीरता, कठोरता
उत्तरः - समाज के दवकास में िी और पुरूर्ष के समान योगिान आदि पुरूर्ष के गुण सामान्य रूप से माने जाते हैं। जीवन के
को दिखाने के सलए अिट नारीश्वर की कल्पना की गई है। िेवों वाहूह्य क्षेत्र में काम करने की उसकी मल प्रवृदत होती है।
के िेव महािेव िी और पुरूर्ष िोनों थे। पुरूर्ष के समान ही िी
को भी सम्मान दमलना चादहए। िी-पुरूर्ष पणट रूप से समान 31. नर और नारी एक द्रव्य की डली िो प्रदतमाएाँ है, कै से ?
है। उत्तर- भगवान ने नर और नारी के शरीर का दनमाटण एक वस्तु
से दकया है। ससफट उसकी शारीररक सं रचना में थोड़ा अंतर है।
26. प्रवृदत मागट और दनवृदत मागट क्या है? इस प्रकार िोनों एक ही वस्तु से बनी िो प्रदतमाएाँ है। उनकी
उत्तरः - प्रवृदत मागट और दनवृदत मागट बौि धमट से सम्बस्थन्धत है। शदि में कोई अंतर नहीं है।
प्रवृदत मागट में भोग-दवलास-आनन्द आदि की प्रधानता थी
जबदक दनवृदत्त मागट में साधना, तपस्या, ब्रहमचयट आदि की। 32. कुं ती का पररचय िें।
दनवृदत..... को जीवन के दवकास का वाधक माना जबदक उत्तर- कु ती पांडवों की मााँ थी। वह सामान्य िी की तरह
प्रवृदत मागट में नारी िेह और सुन्दरता को बड़ा िान दिया गया ममतामयी मााँ के रूप में भी दिखाईपड़ती है। कुं ती पं चकन्याओं
है। में भी एक मानी जाती है। यही कारण है दक अदववादहत
अविा में ही उसे कणट जैसा पुत्र प्राप्त हुआ। लोकलाज के
27. सजसे भी पुरूर्ष अपना कायटक्षेत्र मानता है, वह नारी का कारण उसे उन्होंने पररव्यि कर दिया। युसधदष्ठर, भीम, अजुटन,
भी कायटक्षेत्र है कै से? नकु ल और सहिेव ही कुं ती पुत्र के रूप में दवख्यात हुए।
उत्तरः - समाज और सृदष्ट के दवकास में नर और नारी िोनों ही
समान रूप से भागीिार हैं। पुरूर्ष का जो कमट क्षेत्र है वह नारी
का भी है। अतः उिार भाव से नाररयों को साथ लेकर आगे 33. इदतहास की क्रीदमयाई प्रदक्रया का क्या आशय है?
बढ़ना चादहए। उन्हें कमजोर मानना अदहतकार है। उत्तर- यात्रा के क्रम कही बस जाने को इदतहास की क्रीदमयाई
प्रदक्रया कहते है। जैसे सुिर िसक्षण के कणाटटवं शी राजा
28. बुि ने आनन्द से क्या कहा? नान्यिेव दमसथला क्षेत्र में आकर वस गए। दमसथला की सं स्कृ दत
उत्तर- महात्मा बुि ने अपने दप्रय सशष्य आनन्द से कहा के अंग बन गए।
सभक्षुसणयों के प्रवेश के कारण पााँ च हजार वर्षों तक ही चलेगा।
34. मालती के घर का वातावरण कै सा था?
29. कुं ती और गांधारी के सं सधवाताट से महाभारत रूक सकता उत्तरः मालती के घर का वातावरण पणटतः सं वेिन शन्य था।
था। स्पष्ट करें? वहााँ सभी यं त्र वत जीवन व्यतीत कर रहे थे। पाररवाररक
उत्तर- कु त्ती और गांधारी ममतामयी मााँ थी युि से अपने बेटों जीवन में सरसता का अभाव था।
को बचाने के सलए वे समइरीता कर लेती। युि में जो दवनाश
होता है उसका खादमयाजा स्थस्वयों को दवशेर्ष भोगना पड़ता है।
35. 'रोज' कहानी में मालती को िेखकर लेखक ने क्या सोचा? 41. दवद्याथी से भगत ससंह की क्या अपेक्षा थी ? या दवद्याथी
उत्तर:- मालती को िेखकर लेखक ने सोचा बचपन की चं चल को राजनीदत में क्यों भाग लेना चादहए।
भोली-भाली मालती अब पणटतः बिल गई है। उसका जीवन उत्तर:- दवद्याथी िेश का भावी कणटधार होता है। उसे छात्र-
पणटतः यं त्रवत नीरस हो गया है। पदत डाक्टर है जो सुबह से जीवन से ही िेश समाज की पररस्थिदतयों से अवगत होने रहना
शाम तक रोदगयों से दघरा रहता है। एक बच्चा है जो या तो चादहए सजससे वे व्यवहाररक जीवन में सजम्मेिार नागररक बन
सोता है या रोता है। इस प्रकार मालती के जीवन से उत्साह, सके । ससफट पढ़ाई करने वाला तो जीवन के यथाथट से अनजान
उमं ग प्रेम, सं वेिना जैसी कोयल भावनाएाँ समाप्त हो गई है। रह जाता है।
38. मालती के पदत का पररचय िें। 43. भगत ससंह ने अपनी फांसी के सलए दकस समय की इच्छा
उत्तर- मालती का पदत माहेश्वर है। वह िुगटम पहाड़ी क्षेत्र में व्यि की?
सरकारी डाक्टर है। सुबह से शाम तक रोदगयों से दघरा रहता उत्तर- मुदि प्रस्ताव आं िोलन जब दवश्वस्तरीय बनकर अपने
है। चीख सचल्लाहट सुनते-सुनते वह सं वेिन शन्य हो गया। सशखर पर पहुाँच जाय तब उन्होंने अपनी फांसी की इच्छा व्यि
वह नीरस, सना, उिास यं त्रवत जीवन जीने का अभ्यस्त हो की प्रदक्रया का क्या अथट है?
चुका है। उसी के िजट पर उसकी पत्नी मालती का जीवन भी
िल जाता है। 44. भगत ससंह ने कै सी मृत्यु को सुन्दर कहा है? वे आत्महत्या
को कायरता कहते हैं, इस सम्बन्ध में उनके दवचारों को स्पष्ट
39. क्या के वल कष्ट सहकर ही िेश की सेवा की जा सकती करें?
है? उत्तर- सं घर्षट करते हुए कु बाटनी िे ने को भगत ससंह ने सुन्दर मृत्य
उत्तरः भगत ससंह के अनुसार कष्ट सहकर ही िे श सेवा की जा कहा है। अपने ससिान्त पर अदडग रहते हुए फांसी को गले
सकती है। कष्ट या िुख मनुष्य को पणट बनाता है। इससे पाना सुन्दर मृत्यु है। िुख से डर कर लोग आत्महत्या कर लेते
व्यदि में भी आत्म दवश्वास पैिा होता है। हैं। यह वास्तव में कायटरता है। कु छ लोग िुखों से मुदि पाने
के सलए आत्महत्या कर अपने जीवन मल्ों को धदमल कर लेते
40. भगत ससंह कै सी मृत्यु को सुन्दर मानते थे? हैं।
उत्तरः - भगत ससंह िेश सेवा के सलए की गई कु बाटनी को सुन्दर
मानते थे। उसे वे सफल-साथटक समझते थे।
45. दवद्यासथटयों को राजनीदत में भाग क्यों लेना चादहए? कट जाने के कारण बांध टट जाते हैं। बाढ़ का प्रकोप बना
उत्तर- राजनीदत में भाग लेने से छात्रों को िेश-िुदनया की रहता है।
स्थिदत-पररस्थिदत के दवर्षय में जानकारी दमलने लगती है।
इससे उसका चतुदिटक मानससक दवकास होता है। छात्रों को 51. गोरो ने नीलहे दकसानों पर क्या अत्याचार दकया?
पढ़ाई के साथ अपने िेश के दवर्षय में भी सोचना चादहए। उत्तर:- गोरो नीलहे दकसानों के साथ पशुवत व्यवहार करते थे।
पररवाररक जबाव िेही से स्वतं त्र रहने के कारण उनमें िेश के दकसानों के द्वारा तदनक भी दवरोध करने पर उनके घर को जला
सलए कु बाटनी िेने की शदि और साहस भी होता है। दिया जाता था। सजस मागट से अंग्रेज जाते थे उस पर पशु ले
जाना मना था। उनसे बेगार काम सलया जाता था। उन्हें
नजराने के रूप में भी िेना पड़ता था। दवरोध करने पर जेल में
46. गांधी, नेहरू और बोस का नाम दकस पाठ में आया है? बं ि कर दिया जाता था, मारा-पीटा जाता था।
उत्तरः - ये नाम एक लेख और एक पत्र पाठ के अन्तगटत
दवद्याथी और राजनीदत लेख में आया है। 52. पुं डसलक जी कौन थे?
उत्तरः - पुं डसलक जी चं पारण में सभदतहरवा आश्रम दवद्यालय के
47. व्यावहाररक राजनीदत क्या होती है? सशक्षक थे। वे गांधी जी के सच्चे अनुयायी थे। गांधी जी ने
उत्तर- महात्मा गााँ धी, जवाहर लाल नेहरू, सुभार्ष चं द्रबोस का उन्हें वेलगांव से 1917 में गुलवाया। वे बड़े ज्ञानी दनभीक और
स्वागत करना और भार्षण सुनना व्यावहाररक राजनीदत होती है सिाचारी सशक्षक थे।
अथाटत लोगों को िेश के प्रदत सहज रूप में जागरूक करना
व्यावहाररक राजनीदत है। 53. सिानीरा दकसे कहा गया है?
उत्तरः सिानीरा गं डकी निी को कहा गया है।
48 . भगत ससंह कौन थे ?
उत्तर- भगत ससंह भारत के महान स्वतं त्रता सेनानी थे, सजन्होंने 54. घांगड़ शब्द का क्या असभप्राय है?
अंग्रेजो के दवरूि के न्द्रीय एसेम्बली में बम फेका और उसी के उत्तर- धांगड़ शब्द का अथट होता है भाड़े का मजिर । इन्हें
आरोप में उन्हें फांसी की सजा िी गयी। इस प्रकार भगत ससंह 18वीं शताब्दी के अंत में चम्पारण लाया गया। इन्हें छोटानागर
आजािी के सलए शहीि स्वतं त्रता सेनानी थे। पुर के आदिवासी क्षेत्र से लाया गया था। ये ओराव, मुं डा,
लोहार आदि आदिवासी जादत से मेल खाते हैं। ये चम्पारण में
49. चौर और मन दकसे कहते हैं? नील की खेती में सहयोग करते थे। इन्हें गुलामों का जीवल
उत्तर- चौर और मन ताल को कहते हैं। चौर जहााँ उथले ताल जीना पड़ता था। ये अपनी जादत के लोगों के साथ ओराव
होते हैं वही मन गहरे ताल। चौर में जाड़ा एवं गदमटयों में पानी भार्षा में बातें करते थे जबदक िसरे लोगों के साथ भोजपुरीया
कम हो जाता है। उसमें खेती भी होती है तथा मन गहरे और मधेसी में।
दवशाल ताल होते हैं।
50. चम्पारण क्षेत्र में में बाढ़ की प्रचं डता का क्या कारण है? 55. दवशनी मानक को लड़ाई में क्यों भेजती हैं?
उत्तरः - चम्पारण क्षेत्र में बाढ़ की प्रचं डता का सबसे बड़ा कारण उत्तर- दवशनी अपनी बेटी की शािी के सलए धनोपाजटन के सलए
है जं गलों की कटाई। इस कारण तेजी से दमट्टी का कटाव हो अपने बेटे मानक को लड़ाई में भेजती है।
जाता है। पेड़-पौधों की जड़े दमट्टी के कटाव को रोकती है। पेर
56. दवशनी कौन है? 61. हेडमास्टर कली राम ने ओमप्रकाश को क्या आिे श दिया
उत्तर- दवशनी ससपाही (मानक) की मााँ है। वह ममता की था?
प्रदतमदतट है। उसे अपने क्रर पुत्र में भी सरलता नजर आती है। उत्तरः - हेडमास्टर कलीराम ने ओम प्रकाश को शीशम के पेड़
वह अपने पुत्र के समान हो सबो को मानती है। वह अपनी से टहनी तोड़कर लाने और उसी से झाड बनाकर स्कल के
बेटी की दवशनी-ममतामयी मााँ है। कमरे, बरामिे खब बदढ़या से साफ करने का आिे श दिया।
साथ ही सामने के मैिान को भी साफ करने को कहा।
57. मानक और ससपाही एक-िसरे को क्यों मारना चाहते थे?
उत्तर- मानक और ससपाही िोनों ही युि में गोली चलारे-चलाते 62. क्या जठन शीर्षटक साथटक है?
बबटर हो चुके थे। मानक जानता था यदि वह ससपाही को नहीं उत्तर- हााँ जठन शीर्षटक पणटतः साथटक और सटीक है। यह
मारेगा तो ससपाही ही उसे मार िेगा। इसी तरह ससपाही भी शीर्षटक रचना के मल में है और उसी की पररसध में परी रचना
समझता था इस कारण िोनों एक-िसरे को मार िे ना चाहते का फैलाव हुआ है। लेखक जठन खोनेवाले दिन के ििट में ही
थे। इस प्रकार अपनी सुरक्षा के सलए िोनों एक-िसरे को मार रचना को के सन्द्रत रखना चाहता है।
िेना चाहते थे।
63. जठन पाठ के लेखक का नाम क्या है? और उसकी दवधा
58. प्रगीत क्या है? क्या है?
उत्तरः - आत्म परक एवं वैयदिक काव्य को प्रगीत कहा जाता उत्तर- जठन पाठ के लेखक का नाम ओम प्रकाश वाल्मीदक
है सजसे अंग्रेजी में सलररक कहते हैं। इसमें न सामासजक यथाथट है। यह गद्य की आत्म कथा दवधा है।
की असभव्यदि होती है और न इसको उसकी अपेक्षा रहती है।
यह तो दनतांत वैयदिक और आत्मपरक अनुभदतयों की 64. धरती का क्षण क्या होता है?
असभव्यदि है। इसे मुिक काव्य कहा जा सकता है। प्रसाि उत्तरः - सजस समय शब्द और अथट एक-िसरे का हाथ पकड़ते
दनराला, मुदिबोध आदि की असधकांश कदवताएाँ प्रगीत हैं। यह हैं वह धरती का क्षण होता है।
"िेखन में छोटन लगे, घाव करे गं भीर" जैसा होता है।
सं सक्षप्तता, भाव प्रवणता, पि लासलत्य नाटकीयता आदि भरे 65. लेखक के अनुसार सुरक्षा कहााँ है?
होते हैं। उत्तर- लेखक डायरी ससफट नाम के सलए नहीं सलखता है बस्थि
उसे वह अपने कमट की साक्षी, बनाना चाहता है। इसी में वह
59. दहंिी कदवता में प्रगीतों का िान दनरूदपत करें | अपनी सुरक्षा िे खता है। वास्तव में लेखक के सलए डायरी
उत्तरः - दवद्यापदत से आधुदनक काल तक के कदवयों की रचनाएाँ आत्मदनमाटण का प्रामासणक अंतरंग साक्ष्य है। उसकी डायरी
प्रगीतात्मक हैं सजसमें सामासजक जीवन का भी सचत्रण है। है। उसकी डायरी में शब्द दवलास के बिले आत्म सं घर्षट है।
यही उसकी सुरक्षा है।
60. कला-कला के सलए ससिान्त क्या है?
उत्तरः - दवश्व स्तर पर सादहत्य के क्षेत्र में कला कला के सलए 66. दतररछ दकसका प्रतीक है?
एवं कला जीवन के सलए ससिांत का चलन है। इसमें कला को उत्तरः - सं वेिन शन्य अमानवीय शहरी सं स्कृ दत का प्रतीक
ससफट मनोरंजनात्मक रूप में प्रस्तुत दकया जाता है। इसमें दतररछ है। हमारे जीवन में दनराधार मान्यताओं की भी
शािीय बातों पर असधक ध्यान दिया जाता है। जैसे महत्वपणट भदमका होती है। मरे हुए सांप आदि कु छ कीड़े -
रीदतकालीन काव्य इसका उिाहरण माना जा सकता है। मकोड़े चांिनी के ओस में पुनः जीदवत हो उठते हैं। वे
बड़े दवर्षैले होते हैं वे हमेशा प्रदतशोध लेने की ताक में रहते हैं। 1. कदव एक आाँ ख की तुलना िपटण से क्यों करता है?
इस प्रकार दनरंकुश, क्रर नगरीय जीवन दृदष्ट का प्रतीक दतररछ उत्तरः - एक आाँ ख वाला कदव िपटण की तरह दनमटल और
है। दनश्छल होता है सभी उसी में
अपना रूप िे खते हैं।
67. सशक्षा का अथट थट और कायट क्या है?
उत्तरः - सशक्षा आत्मा का सं स्कार और प्रकाश होती है। मनुष्य 2. बालक कृ ष्ण भोजन के समय क्या-क्या करते हैं?
को परी तरह भारहीन, स्वतं त्र और आत्मदनभटर करना ही सशक्षा उत्तरः - कु छ मुख में खाते हैं और कु छ धरती पर दगरा िेते हैं
का प्रमुख कायट है। यह लोगों में प्रेम सद्भावना करूणा, िादयत्व अपने भी खाते हैं और बाबा नं ि को भी सखलाते हैं। अपनी
बोध, सजटनात्मक भावना जगाती है। यह व्यदि को पणटतः पसं ि की चीज लेते हैं और फेंकते भी हैं।
दनभीक बना िेती है।
3. गायें दकस ओर िौड़ पड़ी?
68. जीवन क्या है? इसका पररचय लेखक ने दकस रूप में उत्तरः - गायें बछड़े की ओर िौड़ पड़ी।
दिया है?
उत्तर - प्रकृ दत के फल-फल, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, घाटी- 4.सरिास कृ ष्ण को जगाने के सलए क्या-क्या उपमा गढ़ते हैं?
आसमान आदि में हमारा जीवन है। यह समुिायों या जादतयों उत्तरः - सरिास कृ ष्ण को जगाने के सलए कमल का सखलना,
का पारस्पररक सतत सं घर्षट है। है। इसे समझना बड़ा गढ़ है। कौमुिी का ससकु रना, फलों पर भौरों का मं डराना, मुगों का
यह तो मन की ईष्याट, महत्वाकांक्षा, वासना, भय, सफलता, बाग िेना, पसक्षयों का क्रलख, गायों का रंभाना चांि का मसलन
सचंता आदि है। यह के वल कु छ परीक्षओं को पास करना, होना, सयट का दनकला जैसे उपमा ढं ढ़ते हैं।
उद्योग ढं ढ़ लेना दववाह करना, बच्चे पैिा करना नहीं है बस्थि
यह एक ऐसा दवशाल साम्राज्य है जहााँ हम मानव कमट करते 5 . तुलसी ने िीनता और िररद्रता का क्यों प्रयोग दकया है?
हैं। यह असीम है, अगाध है। उत्तरः -शारीररक एवं आसथटक दवपन्नता को बताने के सलए िीनता
और िररद्रता का प्रयोग दकया है।
69. नतन दवश्व का दनमाटण कै से हो सकता है?
उत्तर- सत्य की खोज, दनभीकता, स्वतं त्रता अथाटत वास्तदवक 6. "कबहुाँक अंब अवसर पाई।" यहााँ अंब सम्बोधन दकसके
जीवन मल् की िापना से नतन दवश्व की िापना हो सकती सलए है?
है। प्रेम, िया ममता, भाईचारा आदि की िापना वास्तदवक उत्तर - "कबहुाँक अंब अवसर पाई।" में अम्ब सं बोधन सीता के
सशक्षा के माध्यम से सं भव है। इसी से आपसी वैर या सलए है।
महत्त्वकांक्षा समाप्त होगी। दफर नतन दवश्व का दनमाटण होगा।
7. तुलसी सीधे राम से न कहकर सीता से क्यों कहलवाना
70. जहााँ भय है वहााँ मेधा नहीं हो सकती- चाहते थे?
उत्तरः - मेधा के सलए स्वतं त्रता चादहए। भय में व्यदि परतं त्र उत्तर :- मााँ सीता प्रभु श्री राम की अहलादिका शदि थी। वे
रहता है। अतः भय में मेधा सं भव नहीं है। उनकी बात नहीं काट सकते
थे। धमट पत्नी की बात पदत कै से न मानेगा। इस प्रकार असधक
ध्यान िेने की दृदष्ट से कदव ने सीता के माध्यम से कहवाने का
प्रयास दकया।
8. तुलसी को दकस वस्तु की भख थी? 15. नामािास के छप्पय में कबीर की दकन दवशेर्षताओं का
उत्तरः - तुलसी को श्रीराम की भदि की भख थी। वह भदि उल्लेख दकया गया है?
सुधा का पान करना चाहते थे। उत्तर- कबीर दहंि और मुस्थिम सबों को एक ही मानते थे। वे
जादतभेि नहीं करना चाहते थे। भदि दवमुख धमट बेकार होता
9. तुलसी ने अंब का प्रयोग दकनके सलए दकया है? सलए दकया है। पजा-पाठ यज्ञ आदि कमटकांड भजन के सामने तुच्छ है।
है?
उत्तर:- तुलसी ने अंब का प्रयोग सीता के उत्तर
16. भर्षण ने सशवाजी की तुलना दकन-दकन से की है?
10 . तुलसी सीता से क्या सहायता मांगते हैं? उत्तरः - भर्षण ने सशवाजी की तुलना इन्द्र, वाररवादि राम,
उत्तरः - तुलसी ने अपने ििट भरे जीवन की याि श्रीराम को पवन, सशव, परशुराम, िावादि, चीता, शेर, सयट और कृ ष्ण से
दिला िेने के सलए सीता से सहायता मांगी। की है।
11. तुलसी ने अपने दकन-दकन िुगुटणों का बखान दकया है? 17. छत्रशाल की तलवार कै सी थी?
उत्तरः - तुलसी स्वयं को अत्यन्त िीन-हीन कहा है। वह भखा उत्तर:- छत्रशाल की तलवार दवर्षभरी नादगन सी थी। वह
है, कमजोर है, विहीन है, पापी है, िुजटन है, मसलन है, प्रभु िुश्मनों को खिेड़ खिेड़ का काटती थी। यह तो प्रलयकाल के
का नाम लेकर भेंट भरता है, सभखारी है, पेट है, नीच चररत्र सयट के समान काफी चमकिार थी जो िुश्मनों के हासथयों के
परन्तु मन ऊाँचा है। अंधकार पणट झुं ड को समाप्त िे ती थी।
12. दहन्दी का श्रेष्ठतम महाकाव्य कौन है ? 18. सशवाजी का तुलना मृगराज से क्यों की गई है?2021 Se
उत्तर- दहन्दी का श्रेष्ठतम महाकाव्य रामचररतमानस है। उत्तर- सजस प्रकार मृगराज बड़े हासथयों के झुण्ड पर टट पड़ता
है। उसके मस्तक को फाड़कर उसका खन पी जाता है। उसी
13. कबीर ने भदि को दकतना महत्त्व दिया है ? प्रकार सशवाजी भी मुगलों को मार िेते थे।
उत्तर कबीर ने भदि को सभी धमट से ऊपर बताया है। योग,
यज्ञ, व्रत, िान, भजन आदि अनुष्ठान भदि के सामने तुच्छ हैं। 19. हृिय की बात का क्या अथट है?
भदि दवमुख जो धमट है उसे कबीर ने अधमट माना है। उत्तर:- हृिय की बात का अथट है मन की बात अथाटत मन को
शांदत िेने वाली बात।
14 . नाभािास दकसके समकालीन थे और दकसके सशष्य थे?
उत्तरः - नाभािास रामभदि शाखा के कणटधार गोस्वामी 20. बातकी दकसके सलए तरसती है?
तुलसीिास के समकालीन थे। नाभािास राम भदि परम्परा के उत्तरः - बातकी जलकण को तरसती है। जातकी स्वादत नक्षत्र
ही सं त थे। अतः उनके िीक्षागुरू रामभि अग्रिास हुए। की बं ि के सलए तरसती है। यहााँ यातकी पुरूर्ष मन का प्रतीक
अग्रिास रामानं ि सशष्य परम्परा के कदव थे। इस प्रकार है जो कमट की ज्वाला में जलता रहता है। वह प्रेम-शांदत आदि
नाभािास अग्रिास के सशष्य थे। ये कृ ष्णिास पयहारी के के छोटे से कण के सलए भी व्याकु ल रहता है।
प्रसशष्य थे।
21. 'मैं हृिय की बात रे मन' यह कौन कहता है और दकससे 26. लाल कैं सर और लाल खदड़या दकसके सलए प्रयुि हुआ
कहता है? है?
उत्तरः "में हृिय की बात रे मन" जयशं कर प्रसाि रसचत उत्तर- सयोिय कालीन आकाश के सलए लाल कें सर और लाल
कामायनी मामक महाकाव्य की नादयका श्रिा अपने मन से खदड़या का प्रयोग दकया गया है।
कहती है। यहााँ मन को मनु भी माना जा सकता है।
27. उर्षा का जाि कब टटता है?
22. कवदयत्री का "सखलौना" क्या है? उत्तरः - उर्षा का जाि सयोिय होने पर टटता है।
उत्तर- कवदयत्री का सखलौना उसका पुत्र है। नन्हें पुत्रों के साथ
कवसचन्त्री सखलौनों की तरह खेलती थी। परन्तु असमय वह 28. उर्षा का जाि कै सा है?
उनसे सछन गया। उत्तरः - उर्षा का जाि राख से लीपे गीले चौके , काले सशल पर
लाल के सर मलने तथा लाल खदड़या दघसे िेट जैसे होता है।
23. पुत्र को छौना कहने में क्या भाव सछपा है? बहती निी के दनमटल जल में नहाती गोरी नादयका की
उत्तरः छौना दहरण के बच्चें को कहा जाता है। वह बड़ा सुन्दर सझदमलाती िेह के जैसा भी है।
और चं चल होता है। कवदयत्री को पुत्र भी बड़ा सुन्दर और
चं चल लगता था। अतः उसने पुत्र के सलए छीने शब्द का 29. प्रातः काल का नभ कै सा था?
प्रयोग दकया। उत्तरः -प्रातः काल का नभ नीले शं ख की तरह था। वह राख से
लीपे हुए चौके के समान थोड़ा आि और श्यामला भी था। वह
24. सुभद्रा जी के पदत के व्यदित्व के बारे में बताएं ? काली ससल पर लाल के सर एवं काले िेट पर लाल खदड़या
उत्तर:- सन् 1919 ई० में सुभद्रा जी का दववाह खं डवा, की तरह था।
मध्यप्रिेश दनवासी ठाकु र लक्ष्मण ससंह बौहान के साथ के
हुआ। सुभिा जी के साथ ठाकु र साहब भी बड़े स्वतं त्रता 30. राख से लीपा हुआ चौका के द्वारा कदव क्या कहना
सेनानी थे। अंग्रेजों के दवरूि उन्होंने कु ली प्रथा और गुलामी चाहता हैं?
का नशा नामक नाटक सलखा सजसे अंग्रेजी सरकार द्वारा जब्त उत्तर- कदव राख से लीपा हुआ चौका के माध्यम से उर्षा काल
कर सलया गया। वे प्रससि पत्रकार और कांग्रेसी नेता भी थे। वे के पररवेश का सचत्रण दकया है। सजस प्रकार राख से लीपा
पररवार और िेश को अलग नहीं एक ही मानते थे। हुआ चौका पदवत्र, गीला और मटमैला होता है उसी प्रकार
उर्षाकाल में कु हासा, नमी और पदवत्रता होती है।
25. मााँ के सलए अपना मन समझाना कब कदठन हो जाता है
और क्यों? 31. नदियों की वेिना का क्या कारण है?
उत्तरः - पुत्र के मर जाने पर मााँ के सलए अपना मन समझाना उत्तर- नदियों की वेिना का कारण उसके प्रवाह में अवरोध है।
कदठन होता है, क्योंदक पुत्र तो मााँ के सलए जीवन का आधार नदियों का प्रवाह स्वाभदवक जीवन धारा का प्रतीक है सजसमें
होता है। वह पुत्र को हमेशा साथ रखती है। उसे वह कै से भल दनमटलता है, स्वभादवकता है। पं जी वािी व्यविा के कारण
सकती है। उसमें अवरोध पैिा हो रहा है। आम नागररक आक्रांत हो रहे
हैं। यही तो नदियों की वेिना है।
32. कदव ने ससतारे को भयानक क्यों कहा है? 38. िानव िुरात्मा से क्या असभप्राय है?
उत्तर- कदव ने जनता के भयानक आक्रोश या क्रांदत को ससतारा उत्तरः - िेश-समाज के शोर्षकों को िानव िुरात्मा कहा गया है।
माना है जो भयानक रूप में चमक रहा है। शोर्षण के कारण िुदनया का चाहे जो भी िेश-समाज हो शोर्षक और शोदर्षत एक
जनता में एक जोश जग गया है जो उसके चेहरे के झुररयों को जैसे ही होते हैं। शोर्षक िुरात्मा िानव जैसे होते हैं।
आग के लाल गोले के रूप में किल दिया है। यह बड़ा
भयानक दिखाई पड़ता है क्योंदक िेशन्दुदनयााँ इससे बड़ी क्रांदत 39. जन-जन का चेहरा एक कदवता में दकन-दकन नदियों का
हो सकती है। उल्लेख दकया गया है?
उत्तर- गं गा, इरावती, दमनाम, नील, आमेजन, दमसौरी
33. कहााँ की धप एक जैसी होती है?
उत्तर- एसशया, यरोप, अमरीका की गासलयों की धप एक जैसी 40. हररचरण को हरचरना क्यों कहा गया है?
होती है। अथाटत सम्पणट दवश्व की धप एक जैसी होती है। उत्तर:- कदव ने गांव के गरीब, असशसक्षत, उपेसक्षत व्यदि का
सचत्र उभारने के सलए हररचरण के बिले हरचरना शब्द का
34. ज्वाला कहााँ से उठती है? प्रयोग दकए है। हररचरण तो सभ्य, सुसंस्कृ दत स्थिदत-पररस्थिदत
उत्तर- शौदर्षतो पीदड़तों के आक्रोश, जोश, आत्मबल उत्साह वाले व्यदि के सलए प्रयोग दकया जाता है। इस प्रकार हरचरना
आदि से ज्वाला उठती है। के माध्यम से कदव ने िीन-हीन ग्रामीण व्यदि का बोध कराया
है।
35. प्यार का इशारा और क्रोध का िुधारा से क्या तत्पायट है?
उत्तर- ये शोदर्षत वगट पहले शांदतपणट अथाटत प्रेम से अपनी 41. असधनायक का क्या अथट है?
समस्या का समाधान चाहते हैं उसमें दवफल होने पर वे क्रोध- उत्तरः - असधनायक का अथट होता है राजसी ठाठ वाट, परे रोब-
आक्रोश के माध्यम से सं घर्षट करते हैं। िाब के साथ रहने वाले सताधारी लोग। वे शोर्षक प्रवृदत के
होते हैं। अंग्रेज यदि असधनायक थे तो आज के नेता-मं त्री भी
36. बं धी हुई मुदियों का क्या लक्ष्य है ? असधनायक ही है।
उत्तर- िुदनया के सभी िे शों के शोदर्षत नागररकों की िशा एक
है। उनके िुख, सं ताव सं त्रास एक जैसे है और उसके दवरूि 42. राष्टर ीय पवट पर दकसका गुणगान दकया जाता है?
क्रांदत का स्वर भी एक ही जैसा है। जब सब एक साथ शोर्षण उत्तर- राष्टर ीय पवट पर िेश के भाग्य दवधाता का गुणगान दकया
के दवरूि आं िोलन करेंगे तभी िुदनया से िुख का अंत होगा। जाता है। प्रजातं त्र में िेश का भाग्य दवधाता आम नागररक
होता है परंतु ठीक इसके दवपरीत आज नेता मं त्री िे श का
37. जन-जन का चेहरा एक से कदव का क्या तात्पयट है? भाग्य दवधाता बने हुए हैं। राष्टर ीय पवट में उसी का गुणगान हो
उत्तरः - प्रस्तुत काव्यांश के माध्यम से कदव ने दवश्व के तमाम जाता है।
िेशों के आम नागररकों को एक जैसा बताने का प्रयास दकया
है। हर िेश के आम नागररक समान रूप से शोर्षण का सशकार 43. हरचरना कौन है? उसकी क्या पहचान है?
बने हुए हैं। उत्तर- हरचरना भारत के आम आिमी का प्रदतदनसध है। वह
सरकारी स्कल में पढ़ने वाला गरीब लड़का है जो औपचाररकता
वश राष्टर गान गाता है। वह फटा सुथन्ना पहने रहता है। वह
स्वतं त्र िेश में भी परतं त्र जीवन जीता है।
44. डरा हुआ मन बेमन सजसका बाजा रोज बजाता है |यहााँ 51. सड़कों को क्यों सीचा जा रहा है? (Sc. 2023)
बेमन का क्या अथट है? उत्तर:- दवजय पवट परे जोर-शोर से मनाने की तैयारी चल रही
उत्तर- यहााँ बेमन का अथट है दबना इच्छा के अथाटत नागररक थी। इसी तैयारी के क्रम में सड़को को सींचा जा रहा था।
ससफट दिखाने के सलए अपने नेता मं त्री का स्वागत तो करते हैं
परन्तु उनके मन में उनके प्रदत कोई श्रिा भाव नहीं रहता है। 52. नागररक क्यों व्यस्त है?
उत्तरः - दवजयपवट मनाने की तैयारी में नागररक व्यस्त थे। कोई
45. लोहा क्या है ?. सड़क सीच रहा था तो काई प्रकाश सजा रहा था।
उत्तर- लोहा मेहनतकश मजिर का प्रतीक है। इसे िबी शतायी
औरत का भी प्रतीक माना गया है। यह जीवन का अत्यं त 53. उत्सव कौन और क्यों मना रहे हैं?
आवश्यक सुख साधन होता है। इसके दबना हमारा जीवन पं गु उत्तर- दवजय का जश्न मनाने के सलए नागररक उत्सव मना रहे
बन जायेगा। हैं। ये नागररक वास्तदवकता से दबिु ल अनजान है। इन्हें जो
कहा गड़े है वही वे सच मानते हैं।
46. प्यारे नन्हें बेटे को कदवता में दबदटया से क्या सवाल दकया
गया? 54. पं च परमेश्वर के खो जाने को लेकर कदव सचंदतत क्यों है?
उत्तर- लोहा कहााँ -कहााँ दमलता है? उत्तर- पं जीवािी सं स्कृ दत के दवकास के कारण गांव समाज में
वैज्ञादनक दवकास हुआ। एक नव सं स्कृ दि पनपी सजसमें सजसमें
47. दबदटया कहााँ -कहााँ लोहा पहचान पाती है? दबजली बती तो आ गई परन्तु पुरानी सं स्कृ दत के चकाचौंध
उत्तर- दबदटया सचमटा, करकु ल, ससगड़ी, समसी, िरवाजे की पुरानी-सं स्कृ दत का प्रेम-अपनापन, सहजता, सरलता इत्यादि के
सााँ कल, कब्जे आदि के रूप में लोहा पहचान पाती है। नष्ट होने से कदव सचदतत होता है।
48. "जय-जय कराना" का क्या अथट है? 55. ज्ञानेन्द्र पदत ने अपने गांव को दकस-दकस की जन्मभदम
उत्तर- जय-जय करना का अथट नेताओं का यशोगान करना है। बताई है?
उत्तरः - ज्ञानेन्द्र पदत ने अपने गांव को लोकगीतों और सं स्कृ दत
49. गद्य काव्य दकसे कहते हैं? की जन्मभदम माना है। होली, चैती, दवरहा, आल्हा आदि लोग
उत्तर:- गद्य शैली में सलखी गई कदवता का गद्य कदवता कहते गीतों की जन्मभुदम गांव ही है। इसके साथ ही प्राचीन भारतीय
हैं। इस में वाक्य गठन गद्य के ढं ग का होता है जबदक दवचार सं स्कृ दि भी गांव में ही जन्म ली।
अदतशय भाव प्रवण।
56. 'गााँ व का घर' कदवता में दकस शोकगीत की चचाट है?
50. हार-जीत में मशक वाले की भदमका क्या है? उत्तर- इस कदवता में होली-चैती, दबरहा-आल्हा जैसे लोकगीतों
उत्तर- हार-जीत शीर्षटक कदवता में मशक वाला दफर हार गए को शोकगीत माना गया है।
हैं। गाजे-बाजे के साथ जीत नहीं हार लौट रही है। वह बड़ा
अनुभवी है परन्तु सच बोलने की सजम्मेिारी से मुि है। लोग
उस पर ध्यान नहीं िेता है।
सप्रसं ग व्याख्या (गद्य खण्ड) 4. मृत्यु के समय स्मृदत साफ हो जाती है।
उत्तरः - चन्द्रधर शमाट गुलेरी रसचत "उसने कहा था" कहानी से
उिृत प्रस्तुत कथन में मृत्युकालीन स्थिदत का वणटन दकया गया
4अंकीय प्रश्न है। मौत के समय मनुष्य के जीवन भर की घटनाएाँ ससनेमा की
1. "सच हैं जबतक मनुष्य बोलता नहीं, तब तक उसका गुण रील की तरह नाचने लगी है। मरने के समीप पहुाँचा लहना
िोर्ष प्रकट नहीं होता " ससंह के दिमाग में भी अतीत की सारी घटनाएाँ उभरने लगती
उत्तरः - प्रस्तुत गद्यांश बालकृ ष्ण भट्ट रसचत बातचीत शीर्षटत है।
पाठ से उधृत है सजसमें लेखक ने बातचीत के महत्त्व को स्पष्ट
करने का प्रयास दकया है। भार्षा या असभव्यदि के आधार पर
ही व्यदि के व्यदित्व या गुण िोर्ष की पहचान होती है। 5. और अब घर जाओ तो कह िेना दक मुझे जो उसने कहा था
बोलने पर ही व्यदि की अच्छाई या बुराई का पता चल पाता वह मैंने कर दिया"
है। इस प्रकार व्यदि का मानिं ड उसकी भार्षा होती है। उत्तरः - प्रस्तुत गद्य खं ड चन्द्रघर शमाट गुलेरी रसचत उसने कहा
था शीर्षटक कहानी से उधृत है सजसमें लेखक ने लहनाससंह और
सुबेिाररनी के प्रगाढ़ प्रेम का सचत्रण दकया है। सुबेिाररनी ने
2. हमारी भीतरी मनोवृदत्त प्रदतक्षण नए-नए रंग दिखाया करती अपने पदत और पुत्र की दहफाजत की बात कही थी।
हैं................ कोई िुघटट बात नहीं। लहनाससंह युि काल में अपनी जान पर खेल कर उसके पुत्र
उत्तरः - प्रस्तुत गद्यांश बालकृ ष्ण भट्ट रसचत बातचीत शीर्षटक और पदत की रक्षा करता है। उसने अपना धमट दनवाटह कर
पाठ से उधृत है सजसमें लेखक ने आत्मालाप या भीतरी सलया। लहनाससंह वेहोशी की िशा में यह मनोवेिना व्यि
मनोवृदत को दवश्लेदर्षत करने का प्रयास दकया है। इसके करता है।
माध्यम से व्यदि मनोवांसछत दृश्य या भाव का आनन्द ले
सकता है। यह सं सार तो छल प्रपं च से भरा हुआ है। हम इस
छल प्रपं च को आत्मसचंतन के माध्यम से समझ सकते हैं। 6. दबना फेरे घोड़ा दबगड़ता है और दबना लड़े ससपाही
इससे ऊपर उठ सकते हैं। जो व्यदि आत्मसचंतन नहीं करता है उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश अमर कथाकार चं द्रधर शमाट गुलेरी रसचत
वह न तो अपनी कदमयों से पररसचत हो पाता है और न िसरे उसने कहा था कहानी से उिृत है सजसमें लेखक ने हर
के प्रपं च को समझ पाता है। प्रपं च जाल में जीवनभर फंसा ही पररस्थिदत में िुशमनों से मुकाबला करने को तैयार सैदनकों के
रह जाता हैं। इस प्रकार सं सार के प्रपं च से मुदि का एक मागट उत्साह का वणटन दकया है। प्रथम दवश्वयुि में दब्रटे न की तरफ
उपाय आत्मावलोकन ही है। से भारतीय सैदनक लड़ रहे थे। उसने कहा था कहानी का
लहना ससंह अपने िे श से िस गुणा ज्यािा ठं ढ़ प्रिे श में वीरता
से लड़ने को उत्सादहत रहता है। वह तो सैदनकों को घोड़े के
3. जहााँ आिमी को अपनी सजन्दगी मजेिार बनाने के सलए समान मानता है। जैसे िौड़ाये नहीं जाने पर घोड़ा सुस्त हो
खाने पीने चलने दफरने आदि की जरूरत हैं, वहााँ बातचीत की जाता है उसी प्रकार लड़े दबना ससपाही भी कमजोर हो जाता
भी उसको अत्यन्त आवश्यकता है। है।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश बालकृ ष्ण भट्ट रसचत बातचीत शीर्षटक
दनबन्ध से उिृत है सजसमें लेखक बातचीत के महत्त्व को स्पष्ट 7. गरीबी हटाओं के नारे जरूर लगते है लेदकन गरीबी बढ़ी है
दकया है। सजस प्रकार जीवन को सुन्दर-सुखमय बनाने के सलए उत्तरः - प्रस्तुत दवचार खं ड जननायक जयप्रकाश के भार्षण
भोजन आदि की आवश्यकता है उसी प्रकार बातचीत भी "सम्पणट क्रांदत" शीर्षटक पाठ से उिृत है सजसमें उन्होंने
आवश्यक है। समासजक राजनीदतक भ्रष्टाचार पर तीखा व्यं ग्य दकया है। भ्रष्ट
नीदतयों के कारण आज दिनों दिन गरीबी बढ़ती जा रही है।
नेता जनता को ठगने के सलए गरीबी हटाओं का नारा लगाते
हैं। दवकास के नाम पर सैंकड़ों योजनाएाँ बनाई जाती है।
लेदकन वे सारी योजनाएाँ ससफट फाईलों में ही िबी रह जाती है।
सारा धन नेता के घर पहुच जाता है। इस प्रकार यह जय जैसे हमारे िेश के अनदगनत वीरों ने इसी आधार पर अपनी
प्रकाश बाब ने आम जनता की नजर खोलने के सलए सरकार कु वाटदनयााँ िी।
की भ्रष्ट नीदतयों का खुलासा दकया है।
12. उन्हें चादहए दक वे उन दवसधयों का उल्लं घन करें परंतु
8. प्रत्येक पत्नी अपने पदत को…………. / लता वृक्ष को उन्हें औसचत्य का ध्यान रखना चादहए, क्योंदक अनावश्यक एवं
िेखती है। अनुसचत प्रयत्न कभी भी न्यायपणट नहीं माना जा सकता।
उत्तरः - प्रस्तुत गद्यांश रामधारी ससंह दिनकर रसचत अिट नारीश्वर उत्तरः - भगत ससंह के प्रस्तुत कथन के माध्यम से उनके दवचारों
पाठ से उिृत है सजसमें लेखक ने नारी के पराधीन जीवन को स्पष्ट दकया गया है। इसके माध्यम से उनमें मानवतावािी
चररत्र को उद्घादटत दकया है। सजस प्रकार लता वृक्ष का गुलाम सचंतन का रूप दिखाई पड़ता है। आवश्यकता अनुकल सं घर्षट
होती है उसी प्रकार पत्नी भी पदत का गुलाम होती है। उसी के को वे उसचत मानते थे। अनावश्यक सं घर्षट को वे व्यथट समझते
सहारे वह आगे बढ़ती है। वहीं उसके जीवन का सहारा होता थे। वे उसचत ढं ग से दवरोध करने की बात करते थे। लोकदहत
है। इस दृदष्ट के आधार पर नारी को पं गु बना दिया गया है। की रक्षा के सलए व्यदि को तुरंत क्रांदत के सलए तैयार हो जाना
चादहए। यह क्रांदत न्यायपणट होगी।
9. (सजस पुरूर्ष में नारीत्व नहीं, अपणट है।
उत्तरः - प्रस्तुत गद्यांश रामधारी ससंह दिनकर रसचत अिट नारीश्वर 13. वसुं धरा भोगी मानव और धमाटध मानव एक ही ससक्के के
पाठ से उिृत हैं सजसमें लेखक ने पुरूर्षों के जीवन में नारी के िो पहल है।
महत्त्व को स्पष्ट करने का प्रयास दकया है। नारी के दबना पुरूर्ष उत्तरः - जगिीशचन्द्र माथुर रसचत "ओ सिानीरा" शीर्षटक दनबं ध
अधुरा होता है। शदि के दबना सशव भी शव के ही समान होते से प्रस्तुत गद्यांश उिृत है सजसमें लेखक ने प्रिर्षण की समस्या
हैं। पुरूर्ष के कठोरपन को नारी अपनी कोमलता से सुन्दर और का भावपणट सचत्रण दकया है। भोगी और योगी िोनों ही यहााँ
सुखमय बनाती है। प्रेम, िया, ममता आदि नाररयोसचत गुण के प्रिर्षण फैलाने का काम करते हैं। एक कलकारखानों के द्वारा
आधार पर ही पुरूर्ष महान बन पाता है। प्रिर्षण फैलता है िसरी तरफ गं गा या अन्य नदियों का जल भी
धादमटक व्यदि के द्वारा प्रिदर्षत दकया जा रहा है। इस प्रकार
10. नर-नारी पणट रूप से समान हैं............... िोनों एक ही ससक्का के िो पहल है। िोनों के द्वारा प्रिर्षण
उत्तरः - प्रस्तुत गाद्यांश रामधारी ससंह दिनकर रसचत अिट नारीश्वर फै लाया जा रहा है। एक ओर निी पर बााँ ध बनाया जा रहा,
पाठ से उधृत है सजसमें लेखक ने िी-पुरूर्ष की समानता का बन को काटा जा रहा, नदियों का जल प्रिदर्षण दकया जा रहा
सचत्रण दकया है। सामन्यतः नारी को लोग कमजोर कामुक, है िसरी ओर धमाटध व्यदि धादमटक अनुष्ठान के नाम पर नदियों
डरपोक मायावी समझते हैं परन्तु नारी तो िया ममता, शील, में गं िगी फैलाते हैं।
गुण, कोमलता, प्रेम की प्रदतभदत होती है। उसका गुण यदि
क्रर-कठोर पुरूर्ष में आ जाय तो वह मयाटिाहीन नहीं महान बन 14. कै सी चम्पारण की यह भदम मानो दवस्मृदत के हाथों अपनी
जायगा। इससे वह पणट मानव बन सकता है। अतः नारी को बड़ी से बड़ी दनसध यों को सौपने के सलए प्रस्तुत रहती हैं।
उपेसक्षत नहीं अपेसक्षत रूप में िे खना चादहए। उत्तरः - प्रस्तुत गद्यांश जगिीश चन्द्रमाथुर रसचत ओ सिानीरा
पाठ (दिगं त भाग 2 में सं कसलत ) से उिृत है सजसमें लेखक
11. हम तो के वल अपने समय की आवश्यकता की उपज है। ने चं पारण के ऐदतहाससक महत्त्व को स्पष्ट करने का प्रयास
उत्तरः -प्रस्तुम गद्य खं ड अमर शहीि भगत ससंह सलसखत दकया है। गांधी की कमट भदम चम्पारण दवश्व प्रससि रहा है।
"सुखिे व के नाम पत्र" शीर्षटक पाठ से उधृत है सजसमें लेखक स्वतं त्रता आं िोलन में यहााँ की बड़ी भदमका रही है परन्तु यह
ने जीवन पर समय के प्रभाव को स्पष्ट दकया है। समय या चम्पारण आज अपना महत्त्व खोता नजर आ रहा है। वह
पररस्थिदत के अनुसार मनुष्य की आवश्यकता बनती है और दवस्मरण के हाथों अपनी बड़ी पहचान खोने जा रही है। ।
मनुष्य उसी आवश्यकता के बीच से अपना जीवन दनधाटरण
करता है। इस प्रकार समय की मांग को ध्यान में रखकर व्यदि
को अपनी जीवन दृदष्ट का दनधाटरण करना चादहए। भगतससंह
15. फौजी वहााँ लड़ने के सलए हैं वे नहीं भाग सकते
|……………. गोली मार िी जाती है। 19. चााँ िनी में जो ओस और शीत होता है उसमें अमृत होता
उत्तरः - प्रस्तुत कथन मोहन राके श रसचत ससपाही की मााँ शीर्षटक है।
एकांकी से उधृत है सजसमें ररफ्युजी लड़की के माध्यम से उत्तर- प्रस्तुत गाद्यांश उिय प्रकाश रसचत दतरीछ शीर्षटक कहानी
दद्वतीय दवश्व युि में बमाट की सीमा पर तैनात सैदनकों के जीवन से उिृत है सजसमें लेखक वे दतरीछ के अमर होने का कारण
का सचत्रण दकया गया है। वे मशीन की तरह ससफट लड़ने के बताया है। चााँ िनी में शीत और ओस होती है। उसमें अमृत
सलए तैनात दकए जाते हैं। भागने की कोसशश करने वाले को होता है। दतरीछ उसी से अमृत प्राप्त कर लेता है। मरा हुआ
गोली मार िी जाती है। इस प्रकार सैदनकों का जीवन काफी दतरीछ सजन्दा हो जाता है। कु छ कीड़े-महोड़े भी रात की
ििट भरा होता है। मरना मारना ही उनके जीवन का लक्ष्य बन चााँ िनी से सजन्दा हो जाते हैं।
जाता है।
20. यहााँ प्रत्येक मनुष्य दकसी न दकसी के दवरोध में खड़ा है
16. दकतने क्रर समाज में रहे है हम, जहााँ श्रम का कोई मोल और सुरसक्षत िान पर पहुचने के सलए प्रदतष्ठा सम्मान, शदि,
नहीं बस्थि दनधटनता का बरकरार रखने का र्षडयं त्र ही था यह व आराम के सलए दनरंतर सं घर्षट कर रहा है।
सब । उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश जे० कृ ष्णमदतट रसचत सशक्षा पाठ से उधृत
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश ओम प्रकाश वाल्मीदक रसचत जठन शीर्षटक है सजसमें लेखक ने सामासजक जीवन सं घर्षट के रूप को स्पष्ट
आत्मकथा से उधृत है सजसमें लेखक ने शोर्षण पणट क्रर दकया है। आज का िेश समाज ऐसा है सजसमें व्यदि अपने
सामासजक व्यविा पर गहरी चोट की है। िसलत वगट के लोगों सुख-शांदत-प्रदतष्ठा के सलए लगातार िसरे को हताहत कर रहा
का बड़ी दनमटमता से शोर्षण दकया जाता था। उन्हें गरीब बनाये है। चाहे साम्यवािी हो या पं जीवािी सभी एक िसरे का दवरोध
रखने का हमेशा कोई कोई र्षडयं त्र दकया जाता था। कदठन करते हैं। दवरोध या सं घर्षट का उद्दे श्य एक-िसरे के दवरोध
पररश्रम करने के बाि भी उन्हें गरीब बनकर जीना पड़ता था। करना है।
17. आिमी यथाथट में जीता ही नहीं, रचना भी है। 21. "इस सं सार से सं पृदि एक रचनात्मक कमट है। इस कमट
उत्तरः - प्रस्तुत दवचार-खं ड मलयज सलसखत 10 मई 78 की के दबना मानवीयता अधरी है।"
डायरी से उधृत है सजसमें लेखक ने जीवन यथाथट को स्पष्ट उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश मलयज रसचत हाँसते हुए मेरा अके लापन
दकया गया है। हर व्यदि अपने जीवन के यथाथट का दनमाटता नामक डायरी से उिृत है सजसमें लेखक ने समासजक जीवन के
होता है। ससफट वह यथाथट में जीता ही नहीं है उसे बनाता भी रूप को स्पष्ट करने का प्रयास दकया है। सांसाररक जीवन का
है। यथाथट बड़ा कठोर और कष्टप्रि होता है। सं घर्षटशील व्यदि आधार यथाथट होता है। एक पीढ़ी के साथ िसरी पीढ़ी का
अपने श्रम और शदि के बल पर कठोर यथाथट को कोमल बना लगाव ही सृदष्ट के दवकास का आधार है। यही सं युदि
लेता हैं। रेदगस्तान में भी मं िदकनी बहा िेता है। रचनातम्क कमट है। यदि यह नहीं रहे तो मानवता अधरी मानी
जायगी।
18. आश्चयट था दक इतने लम्बे असे से उसके अड्डे को इतनी
अच्छी तरह से जानने के बावजि कभी दिन में आकर मैंने उसे
मरने की कोई कोसशश नहीं की थी।
उत्तरः - प्रस्तुत गद्यांश उिय प्रकाश रसचत दतररछ नामक
प्रतीकात्मक कहानी से उिृत है सजसमें लेखक ने दतररछ के अड्डे
का वणटन दकया है। दतररछ बड़ा दवर्षैला कीट होता है। यह
आधुदनक सं स्कृ दत का प्रतीक है। लेखक उसके अड्डे को जानता
था दफर भी उसे मारने का प्रयास नहीं करता था। आज की
पीढ़ी आधुदनक सं स्कृ दत के जहर से पीदड़त तो है परन्तु उसे िर
नहीं कर पाती है। वह उसके जाल से चाहकर भी दनकल नहीं
पाती है। इसी दवडम्बना को लेखक ने यहााँ प्रस्तुत दकया है।
सप्रसं ग व्याख्या (काव्य खण्ड)- 4 अंक कहाँ सुरूप पद्मावदत रानी। कोई न रहा जग रही कहानी।
1.एक नैन कदव मुहमि गुनी । सोई दबमोहा जेइाँ कदव सुनी । उत्तर- प्रस्तुत काव्यांश दिगं त भाग-2 सं कसलत दनगुटण प्रेमभागी
चााँ ि जइस जग दबसध औतारा। िोन्ह कलं क कीन्ह उसजआरा। कदव मसलक मोहम्मि जायसी रसचत कड़बक (पद्मावत नामक
जग सझा एकड़ नैनाहााँ । उवा सक अस नखतन्ह माहााँ । महाकाव्य का अंश) पाठ से उधृत है सजसमें कदव ने रचना
जौं लदह अंबदह डाभ न होई । तौ लदह सुगंध बसाइ न सोई। प्रदक्रया के साथ कीदतट की अमरता का वखान दकया है।
उत्तर- प्रस्तुत काव्यांश प्रेममागी दनगुटण कदव मसलक मोहम्मि जायसी ने जो प्रेम की पीड़ को सुना उसे उन्होंने रि की लेई
जायसी रसचत पद्मावत नामक महाकाव्य का आरंसभक अंश है। से जोड़कर एक रूप दिया। उसे अश्रुजल से धोकर पदवत्र
यह दिगं त भाग - 2 के कड़बक नामक पाठ से सलया गया है। दकया। उसने मन में यही सोच कर कदवता सलखी दक सं सार में
इसमें कदव ने गुण के महत्त्व का वणटन दकया है। काना कदव यही दनशानी रहेगी? पद्मावत के पात्र-पात्रा रत्नसेना जैसा राजा,
जायसी ऐसा गुणवान हुआ दक जो भी उनकी कदवता सुना हीरामन तोता जैसा ज्ञानी-मं त्री, अल्लाउद्दीन जैसा शैतान राघव
मुग्ध हो गया। सं सार में दवसध ने चााँ ि को प्रकसशत तो दकया चेतन जैसा पं दड़त और पसद्मनी नादयका पद्मावती सशरीरतो
साथ ही कलं क भी दिया। नक्षत्रों के बीच अत्यन्त चमकने जीदवत नहीं हैं परन्तु उनके नाम अमर हैं। इस प्रकार इसमें
वाला तारा शुक्र एक ही आाँ ख वाला होता है। जब तक आम में कदव लोगों को कीदतटवान बनने का उपिेश दिया है। कीदत के
मं जरी नहीं आती है तब तक उसमें गं ध नहीं होती है। सं सार में बल लोग अमर जाते है।
दवसध ने गुण के साथ िोर्ष भी दिया है। गुण के आधार पर इस
प्रकार व्यदि या वस्तु सं सार में सम्मान पाता है। 4. धदन सो पुरूख जस कीरदत जास। फल मरै पै मरै न बास।
के इाँ न जगत जस बेंचा के इाँ न लीन्ह जस मोल ।
2. कीन्ह समद्र पादन जौं खारा। तौ अदत भएउ असझ अपारा। जो यह पढ़ें कहानी हम साँ वरै िुइ बोल ॥
जौं सुमेरू दतरसल दबनासा। भा कं चनदगरर लाग अकासा। उत्तर - प्रस्तुत काव्यांश दिगं त भाग-2 सं कसलत दनगुटण
जौं लदह घरी कलं क न परा। कााँ च होइ नदहं कं चन करा। प्रेमभागी कदव मसलक मोहम्मि जायसी रसचत कड़बक
एक नैन जस िरपन औ तेदह दनरमल भाउ । (पद्मावत नामक महाकाव्य का अंश) पाठ से उधृत है सजसमें
सब रूपवं त गदह मुख जोवदहं कइ चाउ ।। कदव ने रचना प्रदक्रया के साथ कीदतट की अमरता का वखान
उत्तर- प्रस्तुत काव्यांश प्रेममागी दनगुटण कदव मसलक मोहम्मि दकया है। इस सं सार में उसी का जन्म धन्य है जो कीदतटवान
जायसी रसचत पद्मावत नामक महाकाव्य का आरंसभक अंश है। है। फल भले ही सुख जाता है परन्तु गं ध नहीं। यह यश
यह दिगं त भाग-2 के कड़बक नामक पाठ से सलया गया है। अमल् है। इसे खरीिा या बेचा नहीं जा सकता है। कदव की
इसमें कदव ने गुण के महत्त्व का वणटन दकया है। दवधाता ने रचना साथटक तब होती है जब उसे लोग पढ़ते हैं।
समुद्र को अगम-अपार तो बना दिया परन्तु उसका जल खारा इस प्रकार इसमें कदव लोगों को कीदतटवान बनने का उपिेश
कर दिया। तीनों प्रकार के िुखों को िर करने वाला सुमेरू पवटत दिया है। कीदत के बल लोग अमर जाते है।
आकाश में अवस्थित है। जब तक कच्चा सोना कोयले की भठ्ठी
में नहीं तपता-गलता है तब तक वह कुं िन नहीं बन पाता है। 5. जादगए ब्रजराज कुाँ वर, काँ वल-कु सुम फले।
एक आाँ ख वाला तो िपटण की तरह दनमटल दनश्छल स्वभाव का कु मुि-वृं ि सं कु सचत भए, भृं ग लता भले।
होता है सजसमें सारे रूपवं त अपना रूप दनहार कर सं तुष्ट होते तमचुर खग-रोर सुनहु, बोलत बनराई। रााँ भदत गो खररकदन में,
हैं।इस प्रकार सं सार में दवसध ने गुण के साथ िोर्ष भी दिया है। बछरा दहत धाई।
गुण के आधार पर व्यदि या वस्तु सं सार में सम्मान पाता है। दबधु मलीन रदव प्रकास गावत नर नारी।
सर स्याम प्रात उठौ, अंबुज-कर-धारी ॥
3. मुहमि यदह कदब जोरर सुनावा। सुना जो पेम पीर गा उत्तरः - प्रस्तुत पि दिंगत भाग-2 में सं कसलत महाकदव सरिास
पावा। जोरी लाइ रकत कै लेई । गाढ़ी प्रीदत नैन जल भेई। रसचत है सजसमें कदव नेबालक श्रीकृ ष्ण को जगाने के सलए
औ मन जादन कदबत अस कीन्हा। मकु यह रहै जगत महाँ प्रभाती का वणटन दकया है। हे ब्रजराजकुं वर सबेरा हो गया है
चीन्हा। कहााँ सो रतनसेदन अस राजा। कहााँ सुवा असस बुसध इससलए अब जादगए। कमल सखल गए हैं कु मुि सं कु सचत हो
उपराजा। कहााँ अलाउद्दीन सुलतान्। कहाँ राघौ जेइाँ कीन्ह गया है। भौरे पुष्पों पर मं डराने लगे हैं। पेड़-पौधों (जं गल) के
बखान। बीच मुगों का शोर सुनाई पड़ने लगा है। बाड़े में बछड़ों के
सलए गायें रंभाने लगी हैं। एक ओर चााँ ि मसलन तो िसरी ओर डबा मेरा जीवन िीन हीन अंगहीन और मसलन है। प्रभु का
सयट चमकने लगा है। नर-नारी आनन्द के गीत गा रहे हैं। सर एक िास नाम लेकर पेट पालता है। उनके द्वारा पररचय पछ
के स्याम तो कमल कर घारी है। रात बीतने के कारण अब तो जाने पर आप मेरा पता बता िे गी। कृ पालु श्रीराम जब मेरे
उदठए। दवर्षय में सुन लेगें तो मेरा दबगरा जीवन बन जायगा। जगत
जननी जानकी जब वाणी पर आरूढ हो जायगी तो प्रभु का
6 . जेंवत स्याम नं ि की कदनयााँ । कछु क खात, कछु धरदन गुण गान करते हुए तुलसी भवसागर पारकर जायेगा।
दगरावत, छदब दनरखदत नं ि-रदनयााँ । बरी, बरा बेसन, बहु
भााँ दतदन, व्यं जन दबदवध, अगदनयााँ । डारत, खात, लेत अपनें 8. द्वार हौं भोर ही को आजु । रटत ररररहा आरर और न, कौर
कर, रूसच मानत िसध िोदनयााँ । दमस्री, िसध, माखन दमसश्रत ही तें काजु ॥
करर, मुख नावत छदब धदनयााँ । आपुन खात, नं ि-मुख नावत, उत्तर- कसल कराल िुकाल िारून, सब कु भााँ दत कु साजु । नीच
सो छदब कहत न बदनयााँ । जो रस नं ि जसोिा दबलसत, सो जन, मन ऊाँच, जैसी कोढ़ में की खाजु ॥ हहरर दहय में सिय
नदहं दतहूाँ भुवदनयााँ । भोजन करर नं ि अचमन लीन्हौ, मााँ गत सर बुझायो जाइ साधु-समाजु ॥ मोहुसे कहूाँ कतहुाँ कोउ, दतन्ह
जठदनयााँ । कहयो कोसलराजु ॥ िीनता-िाररि िलै को कृ पाबाररसध बाजु
उत्तरः - प्रस्तुत पि दिंगत भाग-2 में सं कसलत महाकदव सरिास । िादन िसरथरायके , त बानइत ससरताजु ॥ जनमको भखो
रसचत है सजसमें कदव ने बालक श्रीकृ ष्ण के जेवनार का वणटन सभखारी हौं गरीबदनवाजु । पेट भरर तुलससदह जेंवाइय भगदत
दकया है। नं ि की गोि में बैठकर स्याम भोजन कर रहे हैं। कु छ सुधा सुनाजु ॥
खाते हैं, कु छ धरती पर दगराते हैं सजसे िेखकर मााँ यशोिा प्रस्तुत काव्यांश दिगन्त भाग-2 में सं कसलत महाकदव
दनहाल हो जाती हैं। वह बरी, बरा, बेसन आदि से दवदवध तुलसीिास रसचत पि पाठ से उिृत है सजसमें कदव ने श्रीराम
प्रकार के व्यं जन अनेक भांदत से बना कर बालक के आगे के प्रदत अपनी भदि भावना का सचत्रण दकया है। कदव भदि
पड़ोसती है। बालक श्रीकृ ष्ण मन पं सि िसध का िोना हाथ में भोग का भखा है। सुबह से ही प्रभु के द्वार पर रट लगा रहा
लेकर कु छ दगराते हैं, कु छ खाते हैं। दमश्री, िसध और मक्खन है। वह भदि का कौरा (थोड़ा भोजन) पाने को बेचैन है। यह
को दमसश्रत कर अपने मुाँ ह में लगा लेते हैं जो यशोिा को सुन्दर कसल काल बड़ा दवराल और िुगदतटिायी है। सब प्रकार से
लगता है। बालक श्रीकृ ष्ण थोड़ा अपने खाते हैं और थोड़ा अव्यवस्थित है। नीच जन का मन ऊाँचा कोढ में खाज की तरह
बाबा नं ि के मुाँ ह में भी लगा िे ते हैं। बालक कृ ष्ण की यह है। साधु समाज अपने कोमल हृिय से इस िुख का अनुभव
सुन्दरता तो अवणटनीय है। उसे िेखकर जो सुख नं ि और कर सकता है। िीनता का हरण कृ पासागर प्रभु श्रीराम ही कर
यशोिा को दमला वह तीनो लोकों में कही नहीं है। भोजन के सकते हैं। इस सं सार में तो िसरथ सुत श्रीराम ही सवटश्रेष्ठ िानी
बाि बाबा नं ि ने बालक को अचमन कराया। सर तो उनका हैं। कदव स्वं य को जन्म का भखा ससि करता है और अपने
जठन पाना चाहते हैं। प्रभु से भर पेट खीर खाना चाहता है। यहााँ खीर भदि को
कहा गया है।
7. कबहुाँक अंब अवसर पाइ। मेररओ सुसध द्याइबी कछु करून-
कथा चलाइ ॥ िीन, सब अाँगहीन, छीन, मलीन, अघी अघाइ 9. भगदत दवमुख जे धमट सो सब अधमट करर गाए ।
। नाम लै भरै उिर एक प्रभु - िासी िास कहाइ ॥ बसझहैं 'सो योग यज्ञ व्रत िान भजन दबनु तुच्छ दिखाए ॥ दहंि तुरक
है कौन', कदहबी नाम िसा जनाइ । सुनत रामकृ पालु के मेरी प्रमान रमैनी सबिी साखी । पक्षपात नदहं बचन सबदहके
दबगाररऔ बदन जाइ ॥ जानकी जगजनदन जन की सलए बचन- दहतकी भार्षी ॥ आरूढ़ िशा है जगत पै, मुख िेखी नाहीं भनी
सहाइ । तरै तुलसीिास भव तव-नाथ-गुन-गन गाइ ॥ । कबीर कादन राखी नहीं, वणाटश्रम र्षट िशटनी ।
उत्तर- प्रस्तुत पं दियााँ दिगन्त भाग-2 में सं कसलत महाकदव उत्तर- प्रस्तुत काव्यांश दिगन्त भाग-2 में सं कसलत नाभािास
तुलसीिास रसचत पि पाठ से उिृत है सजसमें कदव ने अपनी रसचत छप्पय पाठ से उिृत है सजसमें कदव ने कबीर की
राम भदि का वणटन दकया है। कदव सीधे राम से दवनती न कर दवशेर्षताओं का वणटन दकया है। भदि दवमुख धमट अधमट होता
मााँ सीता के माध्यम से प्रभु श्रीराम की कृ पा पाना चाहता है। है। भजन के दबना योग यज्ञ, व्रत, िान सब बेकार है। साखी
कदव मााँ सीता से उसचत अवसर पाकर प्रभु श्रीराम से करूण सबि और रमैनी प्रमाण है दक उन्होंने दनष्पक्षभाव से दहंि और
कथा की चचाट चलाकर याि दिलाने की बात करता है। पाप में मुिमान िोनों के दहत की बात की सं सार में उन्होंने कभी मुाँ ह
िेखी बात नहीं की। वणाटश्रम हो या र्षडिशी कभी दकसी से 13. तुमुल कोलाहल कलह में, मैं, हृिय की बात रे मन ।
द्वेर्ष नहीं दकया। उत्तरः - प्रस्तुत काव्यांश छायावाि के सरिार कदव जयशं कर
प्रसाि रसचत कामायनी के श्रिा सगट से उिृत "तुमुल कोलाहल
10. उदि चौज अनुप्रास वणट अस्थिदत अदतभारी । वचन प्रीदत कलह में" शीर्षटक कदवता से ली गई है सजसमें कदव ने श्रिा
दनवटही अथट अद्भुत तुकधारी ॥ प्रदतदबं दबत दिदव दृदष्ट हृिय हरर अथाटत भारत की आिशट नारी के गुण स्वभाव का सचत्रण दकया
लीला भासी । जन्म कमट गुन रूप सबदह रसना परकासी ॥ है। श्रिा तो कमट कोलाहल में फं से मनु के सलए बहुत भीतर
दवमल बुदि हो तासुकी, जो यह गुन श्रवनदन धरै । सर कदवत तक सुख-शांदत पहुंचाने वाली आवाज जैसी स्वयं को मानती
सुदन कौन कदव, जो नदहं सशरचालन करै। है। वह ऐसी नारी है जो पुरूर्षों के जलते मन पर शीतल लेप
उत्तर- प्रस्तुत काव्यांश दिगन्त भाग-2 में सं कसलत नाभािास की तरह मत्यटलोक में भी स्वगट सुख का अहसास करा िेती है।
रसचत छप्पय पाठ से उिृत है सजसमें कदव ने सरिास की
काव्यगत दवशेर्षतओं का वणटन दकया है। उनके काव्य में उदि 14. दवर्षाि दवलीन मन की, इस व्यथा के दतदमर वन की मैं
वैसचत्रय, अनुप्रास आदि का अत्यन्त सुन्दर प्रयोग हुआ है। उर्षा सी ज्योदत रेखा, कु सुम दवकससत प्रात रे मन।
अत्यन्त गीतात्मकता या लयात्मकता के साथ बचन माधुरी का उत्तरः - प्रस्तुत काव्यांश दिगं त भाग-2 में सं कसलत जयशं कर
सुन्दर प्रयोग हुआ है। हृिय की दिव्य दृदष्ट से प्रदत दबं दबत प्रसाि रसचत कामायनी के श्रिा सग से उधृत तुमुल कोलहल
हररलीला का उन्होंने सचत्रण दकया। श्रीकृ ष्ण के जन्म, कमट, कलह में कदवता से सलया गया है। सजसमें कदव ने श्रिा का
गुण, रूप के सचत्रण में कदव को उत्कृ ष्ट सफलता दमली। पररचय दिया है। श्रिा िी जादत का प्रतीक है। वह सचर
सजनकी बुदि पदवत्र होगी वही इसे सुनेगा। कौन कदव है जो दवर्षाि में डबे मन तथा व्यथा के अंधकारपणट वन में भटके
सर की कदवता को सुनिर झम नहीं उठे गा? पुरूर्ष के सलए उर्षा की दकरण है। सखले फलों वाला प्रभात है।
अथाटत बेचैन मन की चैन िी होती है।
6. पुं डलीक जी कौन थे? उनके बारे में सलखें। (क) बड़हरवा दवद्यालय: - इसका सं चालन श्री बबन जी
उत्तरः -पुं डलीक जी महान गांधीवािी स्वतं त्रता सेनानी थे। गोखले और उनकी पत्नी अवं दतका वाई गोखले दकया करते थे।
चम्पारण में गांधी जी द्वारा िादपत सभदतहरवा दवद्यालय में (ख) मधुवन दवद्यालय: - इसका सं चालन नरहरर पाररख और
सशक्षक के रूप में काम करते थे। वे गांधी जी के परम उनकी पत्नी दकया करते थे। इसमें महािे व िे साई भी योगिान
अनुयायी थे। उन्होंने पुं डलीक जी को 1917 ई० में वेलगांव से करते थे। (ग) दमदतहरवा दवद्यालय: - इसे डॉ िेव तथा सोपन
बुलबाया था वे बड़े दनभीक, ज्ञानी और सिाचारी सशक्षक थे। जी चलाते थे। बाि में पुं डसलक जी गए । स्वं य कस्तुरबा जी
वे गांधी जी की तरह बच्चों में बुदनयािी सशक्षा का दवकास भी वहााँ रही।
करना चाहते थे। वे बुदनयािी सशक्षा के माध्यम से बच्चों को
स्वाबलम्बी बनाना चाहते थे। जगिीशचन्द्र माथुर के सभदतहरवा 9. ससपाही की मााँ का मल भाव सलखें।
पहुाँचने पर पुं डलीक जी से ही भेंट हुई। स्वतं त्रता आं िोलन में उत्तर-दवश्वस्तरीय आधुदनक युगबोध के रचनाकार मोहन राके श
भाग लेने के कारण अंग्रेजी सरकार ने उन्हें उस सजले से रसचत ससपाही की मााँ शीर्षटक एकांकी में युि की दवभीदर्षका
दनवाटससत कर दिया। बाि में पुं डलीक जी वहााँ आते थे। उन्हें तथा सैदनकों के जीवन की दवकदत के साथ मााँ के हृिय का
अपने पुराने सशष्यों से दमलकर काफी खुशी होती थी। उनके सचत्रण दकया गया है। इस एकांकी में िो दृश्य एवं आठ पात्र
हर सशष्य के दिलो दिमाग में उनका तेजस्वी व्यदित्व, बसलष्ठ हैं।इसके माध्यम से एकांकीकार ने दवसभन्न सामासजक
शरीर, िबं ग आवाज छायी रहती थी। उनके पास अंग्रेज समस्याओं को उद्घदटत दकया है। हमारे समाज में बेटी का
असधकारी एमन साहब भी आए थे। परन्तु उन्होंने अपने दववाह एक बड़ी समस्या बनी हुई है। इस कारण बहुत से दपता
दनभीक न चाहते हुए धन उगाही के सलए अवैध कायट करने पर मजबर
हो जाते हैं, बहुत से भाई भी अमानवीय कृ त्य करने को मजबर कदवता शेरससंह का शि समपटण, दनराला की राम की शदि
हो जाते है। सुन्दर शांत पररवार तबाह हो जाता है। लेखक ने पजा पर असधक सं तोर्ष व्यि करते हैं। ये लम्बी कदवताएाँ हैं।
युि की दवभीदर्षका को भी उद्घादटत दकया है। शासक अपने
स्वाथट के सलए युि करते हैं परन्तु तबाह हो जाती है जनता । 12. जठन कहानी का सारांश सलखें या दवद्यालय में लेखक के
भोले भाले युवक पैसे के सलए फौज में भती होते हैं परन्तु साथ कै सी घटना घटी?
िेखते ही िे खते उनमें िानवता आ जाती है। मरने मारने की उत्तरः - िसलत सदहत्यकार ओम प्रकाश वाल्मीदक रसचत जठन
प्रवृदत उनमें भर जाती है। दद्वतीय दवश्व युि के सं िभट में यह कहानी में लेखक ने आत्मकथात्मक शैली में अपने जीवन के
एकांकी सलखी गई है। इसमें एक ओर ररफ्युजी लड़की के ििट का सचत्रण दकया है। िसलत होने के कारण लेखक को
जीवन के ििट का सचत्रण है। िसरी ओर फौज में गए सैदनको समाज के साथ-साथ दवद्यालय में भी अपमादनत जीवन जीना
की मााँ के पुत्र प्रेम का भी सचत्रण दकया गया है। मााँ तो ममता पड़ता था। दवद्यालय में उनके सशक्षक उन्हें अलग बैठाते थे।
की प्रदतभदत होती है। उसे क्रर पुत्र में भी सरलता नजर आती उन्हें चहड़ की सं तान कहा जाता था। उन्हें शीशम के पेड़ से
है। दिन-रात पुत्र को िे खने का ही स्वप्न िेखती है। इस प्रकार टहदनयों को तोड़ कर लाने के सलए कहा जाता था। परे
परी एकांकी में मााँ की ममता का सचत्रण मुख्य रूप से उभरा दवद्यालय को साफ करने के सलए कहा जाता था। लेखक को
दिखाई पड़ता है। रोते-रोते दवद्यालय में सशक्षक के आिेश का पालन करना पड़ता
था। इस प्रकार लेखक को प्रदतदिन झाड लगाना पड़ता था
10. मााँ है, पर उसमें दकसी भी ससपाही की मााँ को ढं ढा जा और दवद्यालय में सबसे अलग रहकर उपेसक्षत जीवन जीना
सकता है, कै से? पड़ता था। दपता के द्वारा दवरोध दकए जाने पर सशक्षक ने उन्हें
उत्तर-ससपाही की मााँ एकांकी में एकांकीकार ने मााँ के व्यापक गाली िेकर भगा दिया।
चररत्र पर प्रकाश डाला है। दवशनी एक मााँ का प्रदतदनसधत्व उन दिनों िसलतों का जीवन अत्यन्त कारूसणक था। उन्हें जठन
करती है। वह तो ममता की प्रदतमदतट है। उसे अपने क्रर पुत्र खाकर जीना पड़ता था। मासलकों के यहााँ भोज होने पर उसके
में भी सरलता नजर आती है। वह सजस प्रकार अपने पुत्र को जठन से ही इनका भोजन चलता था। माल मवेशी के मरने पर
बचाने के सलए बैचेन हो उठती है उसी प्रकार िसरे ससपाही के उसे उठाकर गांव के दकनारे चमड़ा उतारना और उस चमड़े को
मारे जाने पर भी करूणािट हो उठती है। मााँ तो मााँ होती है। बचेना भी इनका काम था। इस प्रकार लेखक अपने बाल
सबों में उसे अपने पुत्र का ही रूप नजर आता है। हर ससपाही जीवन के ििट का कारूसणक सचत्रण दकया है।
की मााँ अपने पुत्र को िेखने के सलए व्याकु ल रहती है।
13. डायरी क्या है? डायरी सलखना क्यों कदठन होता है?
11. आचायट शुक्ल के काव्य आिशट क्या थे? उत्तरः - परी ईमानिारी से िैदनक जीवन का यथाथट सचत्रण ही
उत्तरः -आचायट शुक्ल के काव्य आिशट प्रबं धात्मक थे। प्रबं ध डायरी है। इसमें न कल्पना या भावना की कोई गुं जायश रहती
काव्य में सं पणट जीवन का सचत्रण होता है। उसमें घटनाक्रम है और न पि लासलत्य या अलं कृ त भार्षा का समावेश।
को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत दकया जाता है। प्रसं गानुकल दबिु ल सरल स्वभादवक भार्षा के माध्यम से लोग अपने
उद्दात्त भावों को समेटा जाता है। प्रबं ध काव्य में सामासजक, िैदनक जीवन के दक्रया कलाप का सचत्रण करते हैं। अच्छाई-
राजनीदतक, आसथटक, धादमटक तथ्ों को उद्घादटत दकया जाता बुराई िोनों का सचत्रण होने से लोग धीरे-धीरे बुराई से ऊपर
है। िेश-प्रेम, जातीय भावना, धमट-प्रेम आदि को सटीक रूप में उठने लगते हैं। यह आत्म समीक्षा का सवोतम साधन है।
प्रस्तुत दकया जाता है। इस प्रकार जीवन के यथाथट पक्षों को डायरी में िैदनक जीवन का वृतांत सलखा जाता है। मनुष्य
व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत दकया जाता है। सर का सरसागर यथाथट की हर बातों को व्यि करने की स्थिदत में नहीं रहता
मुिक काव्य होने के कारण शुक्ल के आिशट से अलग हो गया है। ऐसी पररस्थिदत में डायरी अधुरी रह जाती है। ईमानिारी से
। यरोप में कला-कला के सलए का आं िोलन चला। इस कारण सभी बातों को सलखना और उनके सलए उपयुि शब्दों का
वहााँ प्रगीत का बड़ी तेजी से चलन हुआ। लोग यह मानने लगे प्रयोग करना बड़ा कदठन होता है। इस प्रकार डायरी सलखना
की लम्बी कदवता पढ़ने में असधक समय लगता है। आज लोगों कदठन होता है।
के सामने समय की तं गी रहती है। ऐसी कदवताओं में जीवन
की दवदवध ताओं का अभाव रहता है। शुक्ल जी प्रसाि की
14. हाँसते हुए मेरा अके लापन पाठ का सारांश सलखें। या, 15. दतररछ कहानी का सारांश सलखें।
हाँसते हुए मेरा अके लापन शीर्षटक रचना में दकस नवीन दवद्या उत्तरः - उिय प्रकाश रसचत दतररछ कहानी में प्रतीकात्मक रूप
की चचाट दक गई है? में आज के जीवन मल्ों को सचदत्रत करने का प्रयास दकया
उत्तर- मलयज रसचत हाँसते हुए मेरा अके लापन शीर्षटक पाठ गया है। आज का जीवन नगरीय सभ्यता पर आधाररत है।
गद्य की एक महत्त्वपणट आधुदनक दवधा डायरी है सजसमें लेखक नगरीय सभ्यता में स्वाथट छल-प्रपं च कुं ठा, उत्पीड़न, शोर्षण,
ने अपने िैदनक जीवन कमट को परी ईमानिारी से प्रस्तुत दकया घुटन आदि का प्रभाव दिखाई पड़ता है। यह बात सच है दक
है। प्रथम में लेखक ने वन सं रक्षण की ओर इशारा दकया है। नगरीय सं स्कृ दत के दवकास के कारण व्यदि दवसभन्न सुख
दमसलटरी कै म्प में जाड़े के मौसम में जलने वाली लकड़ी का साधनों से युि हो गया है। दवकास की दिशा में बड़ी तेजी से
वणटन के साथ जं गल को जीवन के दवकास का आध ाार माना आगे बढ़ा है परंतु अनाचार िुराचार का भी इसी कारण
गया है। िसरी में फसल की चचाट कर बढ़े और प्रौढ़ की जीवन अप्रत्यासशत ढं ग से दवकास हो गया है। घस घोटाला, लटमार
दृदष्ट प्रस्तुत की गई है। तीसरी में सचिी के आने का तनाव और हत्या भी इसी की उपज है दतररछ एक प्रकार का दवर्षैला कीट
बेचैनी है। वह आज की रचना की भार्षा की सधनता, अनुभदत होता है। ग्राम्य सं स्कृ दत वास्तव में आज पुरानी पीढ़ी में ही
का सजटनात्मक तनाव और अन्तदनटष्ठा है। चौथी में एक दिखाई पड़ती है। लेखक दपता में इस सं स्कृ दत को िे खता है।
रचनाकार की आत्मप्रशं सा मलक मनोभाव साथ सामासजक यहााँ दतररछ शोर्षण, उत्पीड़न नगरीय सं स्कृ दत के दवर्ष का
जीवन का यथाथट उभर कर सामने आया है। भख, िै न्य, प्रतीक है। सजसकों यह डंस लेता है वह बच नहीं पाता है।
गरीबी के बीच पले िो पहाड़ी अध्यापक से पररचय हुआ। वे ऐसी मान्यता है दक दतररछ के काटने पर वह पेशाब में लोटने
अपनी बेवशी के इतने अभ्यस्त हो गये थे दक वह उन्हें अपना लगता है। पेशाब में उसके लोटने से पहले यदि िंससत व्यदि
जीवन का स्वाभादवक अंग लगने लगा था। पााँ चवीं में प्रकृ दत दकसी निी तालाब में नहा लेता है तो वह बच सकता है। ऐसी
की मनोहरता को उद्घादटत दकया गया है। छठीं में गरीबी के भी मान्यता है दक पेशाब में लोटने से पहले उसे यदि मार भी
बीच जीवन की गाड़ी पर चढ़ी एक मासम नन्हीं लड़की के दिया जाय तो लोग बच सकता है। दतररछ तभी काटने िौड़ता
जीवन व्यापार का सचत्रण दकया गया है। वह स्वयं सेव काट है जब कोई उससे आाँ खें दमलाता है। दपता को शहर से लौटते
नहीं सकती है। ग्राहक को ही सेव काटकर चखने के सलए वि दतररछ काट लेता है। वास्तव में शहर की वैज्ञादनक
चाक बढ़ा िेती है। इस प्रकार वह फल बेचती थी। सातवीं में सं स्कृ दत ने हमें बहुत कु छ दिया है परंतु हमारे सलए बहुत सी
वं श दवकास को दबिु ल सादहसत्यक अंिाज में प्रस्तुत दकया दवकृ दतयााँ फैला िी है। दतररछ से भी ज्यािा प्राणघातक ये
गया है। एक पीढ़ी िसरी पीढ़ी को जन्म िेकर पालता पोर्षता अमानवीयताएाँ है।
है। दफर िसरी पीढ़ी भी इसी तरह करता है। हर आिमी का आज के समाज में परस्पर दवरोधी जीवन मल्ों में
अपना रचा हुआ सं सार होता है। इस प्रकार िोनों पीढी का टकराव की स्थिदत दिखाई पड़ती है। एक और सुख-सुदवधा,
अपना-अपना यथाथट होता है। उनमें रचने और भोगने का प्रगदत, तादकट क जीवन दृदष्ट का रूप दिखाई पड़ता है िसरी ओर
यथाथट होता है। आठवीं में डायरी लेखन प्रदक्रया को स्पष्ट अंध दवश्वास जड़ता, सं वेिन शन्यता, स्वाथट आदि का रूप भी
दकया गया है। डायरी लेखन में शब्द और अथट में असभन्न भरा पड़ा है। लेखक को स्वप्न में बार-बार दतररछ दिखाई पड़ता
समन्वय होता है। यही तो धरती का क्षण होता है। है। इससे वह काफी भयभीत हो जाता है। इस प्रकार दतररछ
नवमीं में सुरक्षा की बात की गई है। सुरक्षा सं घर्षट के माध्यम से शहर की सं वेिन हीनता को सचदत्रत दकया गया
करने में है। िसवीं में रचनाकार की रचनाओं के मल् को स्पष्ट है।
दकया है। हर रचना मल्वान नहीं होती है। सजसमें भदवष्य को दतररछ के माध्यम से यह भी बताया गया है दक कु छ बातों या
दनिेसशत करने की शदि होती है वही मल्वान होती है। मान्यताओं का कोई तादकट क आधार नहीं होता है दफर भी
ग्यारवीं में व्यदि मन के डर का सचत्रण दकया गया है। डर जीवन में उसकी महत्त्वपणट भदमका होती है। चांिनी के ओस
हमारे जीवन का एक महत्त्वपणट भाव है। इसी से तो तनाव में अमृत होता है। मरे हुए सांप आदि कु छ कीड़े मकोड़े चांिनी
पैिा होता है। बारहवीं में व्यदि की सजजीदवर्षा को स्पष्ट दकया के ओस में पुनः जीदवत हो उठते हैं। वे हमेशा प्रदतशोध लेने
गया है। इस प्रकार परी डायरी में लेखक सामसजक जीवन के की ताक में रहते हैं।
यथाथट के साथ सादहत्य को जोड़ने का काम दकया है। प्रस्तुत कहानी में शहरी आतं क, नगरीय जीवन दृदष्ट
या दनरंकुश सत्ता का प्रतीक दतररछ को माना जा सकता है।
जीवन मल्ों का सवाटसधक सं क्रमण शहरों में दिखाई पड़ता है। नहीं है परन्तु उसकी कहानी आज भी प्रसचसलत है। उसकी
आधुदनकता के नाम पर टटन की स्थिदत उत्पन्न हो गई है। कहानी अमर है। फल झड़ जाता है परन्तु उसकी खुशब रह
शहरीकरण की प्रवृदत गांव में भी उत्पन्न हो गई है। आज जो जाती के है। इस प्रकार कदव ने ने पिमावत के रचनाकार रूप
दवकृ दतयााँ उत्पन्न हो गई है उसका कही दनिान नजर नहीं आता में स्वयं को याि रखे जाने की इच्छा व्यि की है। व्यदि अपने
है। दपता शहर की आधुदनकता से इतने आक्रांत हो जाते हैं दक कमट या यश के बल पर अमर हो जाता है। नश्वर सं सार में
न दकसी से अिालत का रास्ता पछ पाते हैं और न प्यास बुझाने कीदतट शाश्वत होती है।
के सलए पानी। इस प्रकार आज का व्यदि एक प्रकार के
सं त्रास घुटन वेवशी के बीच जीने को मजबर है। दतररछ रूपी प्रश्न 2. पदठत पाठ के आधार पर सर के पिों का सारांश । या
आधुदनक दवकृ दतयााँ तो रिबीज नामक अमर िानव के समान सर की भदि भावना सलखें।
है। यह मर कर भी जी जाती है। हमेशा प्रदतशोध लेने के फेर उत्तर :- कृ ष्ण भदि शाखा के अष्टछापी कदव सर ने प्रस्तुत
में लगी रहती है। पिों में श्रीकृ ष्ण के वात्सल् भाव का अद्भुत अनोखा सचत्रण
दकया है। सर तो वात्सल् रस के अदद्वतीय कदव थे। जन्मांध
16. सशक्षा पाठ का सारांश सलखें। होकर भी उन्होंने बाल मन का कोना-कोना झांक सलया।
उत्तरः - जे० कृ ष्णमदतट रसचत सशक्षा शीर्षटक दनबं ध में सशक्षा की प्रथम पि में कदव ने प्रभाती के रूप में बालक कृ ष्ण के
आवश्यकता का सचत्रण दकया गया है। सशक्षा आत्मा का जागरण का सचत्रण दकया है। सवेरा हो गया। फल सखल गए।
प्रकाश होती है। चाँ दक सशक्षा आत्मा का सं स्कार है। अतः छात्र कु मुिदनयााँ सं पुदटत होने लगी। भृं ग लता और फल पर मं डराने
या सशक्षक के सलए इसका कारण जानना आवश्यक है। पेड़- लगे। मुगाट ने जं गल में बाग िेना शुरू कर दिया। गायें रंभाने
पौधे, फल-फल, पशु-पक्षी, ध रती-आसमान, ग्रह-नक्षत्र, लगी। िध पीने के सलए बछड़ा भी छट पटाने लगा और उसे
निी-सरोवर सब कु छ हमारे जीवन का अंग है। जीवन तो िध दपलाने के सलए गाये भी बेचैन हो गई हैं। सयट का प्रकाश
वास्तव में प्रकृ दत के साथ जुड़ना है। यह ज्ञान भी है और धमट सछटकने के कारण चांि मसलन होने लगा। अतः ऐसी
भी। इच्छा-आकांक्षा भोग-वासना सफलता-दवफलता, सचंता- पररस्थिदत में सोए रहना उसचत नहीं हैं। हे अम्बुज कर धारी
आशा जैसी मन की प्रच्छन्न वस्तुओ ं का सशक्षा अनावरण करती कृ ष्ण अब जदगए।
है। यह सं पणट जीवन प्रदक्रया को स्पष्ट करती है। अथटकारी िसरे पि में कदव ने बालक श्रीकृ ष्ण के भोजन का सचत्रण
सशक्षा वास्तदवक सशक्षा नहीं होती है। व्यदि को बचपन से ही दकया है। बालक कृ ष्ण नं ि की गोि में बैठकर भोजन करने
दनभटय, उन्मुि वातावरण में रहना चादहए। कुं ठा ग्रस्त जीवन लगे। कु छ नीचे दगरता है और कु छ मुख में जाता है। ऐसे
बोझ बन जाता है। कुं ठा के कारण प्रदतभा िब जाती है। मेघा मनोहारी दृश्य को िेखकर मााँ यशोिा दनहाल हो उठती है। वह
के कारण उन्मुि भाव से जीवन मल्ों को जााँ च-परख की अपने लाडले के सलए बड़े प्रेम से तरह-तरह का व्यं जन बनाती
जाती है। आज परा दवश्व सं घर्षटमय दिखाई पड़ता है। वकीलों, है। बड़ी-बड़ा, वेसन, मक्खन, खन, दमस्री, िसध आदि से
सैदनकों, पुसलसों के बीच फंसा हुआ है। जीवन का लक्ष्य प्राप्त उनके व्यं जन बने हैं। वे िही का िोना लेकर बड़े प्रेम से भोजन
करने के सलए सं घर्षट कर रहा है। दनष्कर्षटतः सशक्षा एक दिव्य करते हैं। खाते-खाते वे बाबा नं ि को भी सखलाने लगते हैं।
शदि है, प्रकाश है सजसके माध्यम से व्यदि अपनी आत्मा का उनका यह सौंियट अवणटनीय है। जो भी िेखता उसका जीवन
उन्नयन कर पाता है। धन्य हो जाता। नं ि और यशोिा को जो सुख दमलता है वह
दत्रभुवन में िुलटभ है। भोजन करने के बाि बाबा उनका मुं ह
काव्य खं ड (िीघट उत्तरीय) 5 अंक धुलवाते हैं। कदव उनका जठन पाना चाहता है। भगवान का
जठन तो प्रसाि होता है। सजसे दमल गया वह दनहाल हो जाता
हैं। इस प्रकार िोनों पिों में श्रीकृ ष्ण के बाल भाव का सचत्रण
प्रश्न 1. जायसी ने दकस रूप में स्वं य को याि रखे जाने की
दकया जाता है।
इच्छा व्यि की है?
उत्तरः - मसलक मोहम्मि जायसी ने रि की लेई से जोड़कर
प्रश्न 3. तुलसी के पिों का सारांश / भदि भावना सलखें।
और गाढ़े प्रेम के अश्रुजल में भींगा कर पिमावत नामक
उत्तरः - मध्यकालीन उत्तर भारत का सबसे प्रामासणक सं िभट
प्रेमकथा का सृजन दकया। उसका पात्र राजा रत्नसेन, रूपवती
कोर्ष दनमाटता रामभि तुलसी ने प्रस्तुत पि में अपने आपको
रानी पिमावती, ज्ञानी सुआ राघव चेतन और अलाउद्दीन अब
िीनियाल श्रीराम का अत्यं त िीन-हीन भि के रूप में सचदत्रत छत्रशाल की वीरता का वणटन है तो िसरी ओर सशवाजी के
दकया है। उनका मानना है दक प्रभु तो िीन बं धु है। िीनों पर पराक्रम का। आज वीर रस के कदव का पयाटय बने हुए हैं।
िया करना उनका गुण धमट है। अतः कष्ट से दनश्चय ही मुि इनकी जादतय भावना दहन्द धमट पर आधाररत है। इनके
कर िेगें। कदव ने अत्यं त कारूसणक भाव मुद्रा में अपनी भदि यशोगान के कारण सशवाजी और छत्रशाल जन जन के हृिय में
भावना का सचत्रण दकया है। प्रस्तुत पि दवनय पदत्रका से उिृत बसे हुए है।
है। कदव ने अत्यं त दवनम्रता के साथ प्रभु के पास दनवेिन पहले कदवत्त में कदव ने सशवराज अथाटत सशवाजी के
प्रेदर्षत दकया है। अनाथ बालक की तरह वह भोर से ही प्रभु के ओज पौरूर्ष का वणटन दकया है। सजस प्रकार िानवों पर इन्द्र,
द्वार पर आत्तट क्रंिन करता है। वह ससफट कु छ कौर भोजन पाना बािलों पर दबजली असभमानी रावण पर राम ने सहज ही
चाहता है। आज कसलयुग अपने दवकराल रूप में दिखाई पड़ता असधकार कर सलया। हवा भी जलधारा के ऊपर वेग से चलती
है। सब कु छ दवकृ त हो गया है। कोढ़ में खाज की तरह नीच रहती है। कामिेव शं भु की तीसरी आाँ ख खुलते ही भस्म हो
व्यदि में ऊाँची-असभलार्षा जग गई है। मेरे हृिय की करूणा गया। आग िेखते ही िेखते जं गलों को अपने आगोश में भर
दनराशा तो ससफट सहृिय साधु समाज ही समझ सकते हैं। इस लेती है। चीता मृग झुं ड को िे खते ही उन्मत्त होकर टट पड़ता
सं सार में कदव को अपना कोई हमििट नजर नहीं आता है। उसे है। हाथी चाहे दकतना भी दवशाल क्यों न हो ससंह उसे िे खते
ससफट प्रभुराम पर ही भरोसा है। उनकी िीनता वही हरण कर उछल पड़ता है। अपने पं जों से उसके मस्तक को फाड़ िेता
सकते हैं। कदव ने स्वं य को अत्यं त भखा, िररद्र, असहाय, है। दकरण दनकलते ही गहन अंधकार भाग जाता है। श्रीकृ ष्ण
िुबटल के रूप में सचदत्रत दकया है। वह तो भर पेट भदि का ने बात-बात में मामा कं स को जीवन से मुदि िे िी। इसी
भोजन प्राप्त करना चाहता है। प्रकार मुगलों को सशवाजी पलक झपकते ही परासजत कर िेते
हैं। उपरोि उिाहरणों के माध्यम से कदव ने अदतश्योदि शैली
दनष्कर्षटतः प्रस्तुत पि में कदव ने स्वं य को भखा-असहाय में सशवाजी की वीरता का वणटन दकया है।
बताकर प्रभु की भदि का सचत्रण दकया है। श्री राम के अनन्य िसरे कदवत्त में कदव ने छत्रशाल की वरछी का वणटन
उपासक तुलसी िास ने प्रथम पि में मााँ सीता के माध्यम से दकया है। म्यान से दनकलते ही वह प्रलयकालीन सयट की तरह
अपने प्रभु के पास दनवेिन प्रेदर्षत दकया है। वह स्वं य न चमक उठती है। अंधकार के हासथयों को वह तुरंत चीर िेती
कहकर सीता के माध्यम से सं वाि प्रेदर्षत करना चाहा है। मााँ है। िुश्मनों के सलए तो वह दवर्षभरी नादगन की तरह है। लपक
सीता तो प्रभु की अहलादिका शदि है। वे औरों की बातों को लपक उसकी गिटनों से सलपटती है और काटती है। मुं ड की
भले ही नजर अंिाज कर िें लेदकन उनकी बात को नजर माला की भेंट चढ़ाकर वह भगवान रूद्र को खुश करती है।
अंिाज नहीं कर सकते है। इनके माध्यम से दनवेिन प्रेदर्षत वीर िुश्मनों को भी वह काट कर कासलका को भोग लगाती है।
करने से सीता और राम िोनों की भदि भी हो जाती है। प्रस्तुत इस प्रकार महाराजा छत्रशाल की वरछी का वणटन करना
पि में कदव ने पत्र शैली में कहा है- असं भव है। दनष्कर्षटतः कदव ने िोनों पिों में अपने िोनों
हे मााँ कभी अवसर पाकर मेरा िुख ििट प्रभु को सुना िेना। आश्रयिाताओं की वीरता का वणटन दकया है।
उन्हें मेरी याि दिला िेना। मैं तो अधम, अंगहीन, क्षीण,
मसलन हूाँ। प्रभु का नाम लेकर पेट पालता रहता हूाँ। यदि वे
मेरे दवर्षय में पछे तो मेरे दवर्षय में बता िेना। मेरी दवगड़ी प्रश्न 5. प्रश्न भर्षण रीदतकाल के दकस धारा के कदव रहे हैं? वे
तकिीर बन जायगी। मेरा उिार हो जायगा।। अन्य रीदतकालीन कदवयों से कै से दवसशष्ट हैं?
इस प्रकार कदव ने मााँ सीता के माध्यम से अपनी िीनता प्रभु उत्तर - भर्षण रीदतकाल के रीदतबि या आचायट कदव परम्परा
के पास पहुाँचाने का प्रयास दकया है। इसमें प्रभु का गुणगान के कदव थे। उस काल में मुख्यतः श्रृंगाररक काव्य सृजन की
भी दकया गया है। प्रवृदत थी अथाटत साढ़े तीन हाथ की नारी के आं चल में
रीदतकाल लहराता दिखाई पड़ता है। भर्षण रीदतकाल के कदव
प्रश्न 4. भर्षण की कदवता का सारांश सलखें। होने के बाि भी श्रृंगार के बिले ओज, पौरूर्ष और वीरता का
उत्तर:-रीदतकाल के रस रंग के बीच शौयट-पराक्रम, आत्म गौरव वखान करना अपना काव्य लक्ष्य बनाया। इस प्रकार छत्रशाल
आदि का हुंकार भरने वाले भर्षण वास्तव में दहन्दी काव्य के एवं सशवाजी के प्रशास्थस्तगान के माध्यम से उन्होंने जातीय
भर्षण थे। उनकी कदवताओं से एक और अपने आश्रय िाता गौरव गान दकया है। उनमें िेश भदि लवालव छलकती
दिखाई पड़ती है। यही दवसशष्टता भर्षण को तत्कालीन अन्य और प्रभाव की असधकता के कारण सुभद्रा जी अपनी अदद्वतीय
कदवयों से दवलग करती है। पहचान बनाती है। उनकी कदवताओं में आं धी की तरह जोश
और उमं ग है। ममट स्पशी भार्षा प्रयोग के कारण सुभद्रा जी का
प्रश्न 6. तुमुल कोलाहल कलह में कदवता का सारांश सलखें। काव्य असधक लोकदप्रय हो सका है।
उत्तर:- छायावाि के पुरोधा कदव जयशं कर प्रसाि रसचत "तुमुल
कोलाहल कलह" शीर्षटक कदवता कामायनी नामक महाकाव्य प्रश्न 9. पुत्रदवयोग कदवता का भावाथट सलखें।
के श्रिा सगट से उधृत है सजसमें कदव ने श्रिा की चाररदत्रक उत्तर- सुभद्रा कु मारी चौहान रसचत पुत्र दवयोग शीर्षटक कदवता
दवशेशताओं या जीवन मल् को स्पष्ट करने का प्रयास दकया मुकुल नामक-काव्य सं कलन से उिृत है सजसमें कवदयत्री ने
है। हृिय दनसृत ज्ञान का प्रतीक श्रिा अत्यं त दवनम्र परंतु अपने एकलौते पुत्र के मरने की पीड़ा का वणटन दकया है। सजस
स्वासभमान भरे स्वर में अपना पररचय िेती है। श्रिा वास्तव में प्रकार दनराला ने पुत्री सरोज के मरने के बाि अदतशय ममाटहत
सम्पणट नारी वगट का प्रदतदनसधत्व करती है। होकर सरोज स्मृदत नामक शोक काव्य सलखा उसी तरह
कमट कोलाहल में फंसे पुरूर्ष के सलए नारी या हृिय कवदयत्री ने भी इस कदवता में पुत्र पीड़ा का ममाटतक वणटन
की बात अथाटत अत्यं त कोमल शीतल हवा की तरह होती है। दकया है। यह पीड़ा ससफट कवदयत्री की पीड़ा नहीं बस्थि पुत्र
वह तो कई दिनों का जगा हुआ बेचैन पुरूर्ष के सलए गहरी वं सचत हर मााँ का ििट बन गई है। कवदयत्री के सलए तो पुत्र
नींि के समान होती है। सचर दवर्षाि के अंधकार में डबे पुरूर्ष सखलौना के समान था। उससे वह खेलती थी। चारों ओर
के सलए वह शीतल-सुगंसध त उर्षा की दकरण के समान होती आनं ि के वातावरण में भी पुत्र के दबना कवदयत्री िुखी हो
है। रेदगस्तान में भटकते प्यासे पुरूर्ष के सलए नारी मरूधान के जाती है। वह पुत्र ऐसा था सजसकी एक पुकार पर मााँ सारा
समान होती है। वह रस पणट वरसात की तरह शीतल और काम छोड़कर उसके पास चली आती थी। शीत लग जाने के
सुखिायी बन जाती है। तफान या बबं डर में फंसे पुरूर्ष के सलए डर से कभी गोि से नहीं उतारती थी। थपकी िेकर, लोरी सुना
वह वसं तकालीन रादत्र के समान होती है। दनराशा के बािलों से कर उसे सुलाती थी। चेहरे पर तदनक भी उिासीनता दिखाई
दघरे पुरूर्ष के सलए वह सखले कमल की तरह बन जाती है। इस पड़ने पर वह व्याकु ल हो जाती थी। इस पुत्र की प्रादप्त के सलए
प्रकार कदव ने पुरूर्षों के जीवन में नारी के योगिान को स्पष्ट कवदयत्री ने अनेक मन्नतें मांगी। िध नाररयल आदि प्रभु को
करने का प्रयास दकया है। नारी वास्तव में पुरूर्ष की सुखिायी चढ़ाया। इतना करने के बाि भी उसका पुत्र खो गया। पुत्र के
सं चासलका वृदत होती है। वह तापहारी चररत्र के माध्यम से खोने के बाि भी उसके मन में वापसी का भ्रम है। वह बहुत
पुरूर्ष को सुखी बनाने का काम करती है। वह कमट सं कु ल सोचकर भी स्वं य को सं भाल नहीं पाती है। सारे ररस्तेिार उसे
पुरूर्ष की समस्त पीड़ा को िर करने का प्रयास करती है। भल सकते है परन्तु मााँ नहीं। पुत्र को भुलना मााँ के सलए बड़ा
कदठन हो जाता है। पुत्र के दबना मााँ का सम्पणट जीवन नीरस
प्रश्न 7. हृिय की बात का क्या अथट है ? हो जाता है।
उत्तर - हृिय की बात का तात्पयट है बेचैन मन के सलए चैन।
कमट कोलाहल में फंसा पुरूर्ष हमेशा व्याकु ल बेचैन रहता है। प्रश्न 10. उर्षा शीर्षटक कदवता का सारांश सलखें/प्रातः काल का
वह चैन की तरफ लपकता है। वह चैन िेनेवाली सुन्दर कोमल वणटन करें।
नारी होती है। उसे पाकर पुरूर्ष अदतशय सुख-चैन का अनुभव उत्तरः - प्रयोगवािी कदव शमशेर बहािुर ससंह रसचत उर्षा शीर्षटक
करता है। हृिय की बात का अथट चैन की बात है। सजसे श्रिा कदवता में उर्षाकालीन प्रकृ दत का बड़ा ही मोहक सचत्रण दकया
का प्रदतरूप माना गया है। गया है। यहााँ कदव ने उर्षा का बड़ा ही गत्यात्मक सचत्रण दकया
है। शमशेर बहािुर मलतः सचत्रकार ही थे। इस कारण उनकी
प्रश्न 8. सुभद्रा कु मारी चौहान की काव्य भार्षा की दवशेर्षता का कदवताओं सचत्रात्मकता असधक उभरी दिखाई पड़ती है। वे
वणटन करें। कदवता के माध्यम सचत्र खींचते नजर आते है।
उत्तर-सुभद्रा कु मारी चौहान छायावािी काव्यधारा की स्वतं त्रत आवश्यकतानुसार वे रंग योजना भी करते हैं।
धारा की कवदयत्री मानी जाती है सजसमें राष्टर ीय भावना की प्रातः कालीन नभ शं ख जैसा दिखाई पड़ता है। भोरका
प्रबलता है। झांसी की रानी-कदवता उनकी प्रमुख लोकदप्रय नभ राख से लीपे चौके की तरह मं टमैला आद्र और पदवत्र
कदवता है। उनकी काव्य भार्षा में सरलता, सहजता है। प्रवाह दिखाई पड़ता है। सयटिेव का रथ थोड़ा और आगे बढ़ा। काले
अंधकार के ऊपर उर्षा की लासलमा सछटकने लगी। सौंियट के छात्र है। वह ससफट औपचाररक रूप में स्कल में पढ़ता है।
साथ-साथ सुगंध भी वातावरण में फैलने लगा। काले सशल पर राष्टर ीय त्योहार में वह फटा सुथना पहने राष्टर गान गाता है। झं डा
लाल के सर मलने जैसा दृश्य दिखाई पड़ने लगता है। कदव ने फहराया जाता है। प्रजातांदत्रक व्यविा कायम होने पर भी वह
इसे काले िेट पर लाल खदड़या मलने जैसा भी सचत्रण दकया बार-बार असधनायक का गुणगान करता है। वास्तव में भारत
है। इससे कदव के हृिय का वात्सल् भाव उमड़ता दिखाई का आम आिमी असधनायक से मुि नहीं हुआ। वह अंग्रेज से
पड़ता है। निी के दनमटल जल में नहाती गोरी नादयका की मुि होकर भी स्विेशी सत्ताधारी शोर्षकों का गुलाम है।
सझलदमलाती िेह की तरह छोटी-छोटी लहररयों के बीच उर्षा सत्ताधारी राजसी ठाठ-बाट, परे रोब-िाब के साथ रहते है। वे
की लासलमा प्रदतदबस्थम्बत होती है। इस सं िभट में जाि का आम जनता से समय-समय पर गुण गान करवाते है।
आकर्षटण दिखाई पड़ता है। सयोिय के बाि सारा जािई नये जीवन मल् के अनुकल नवीन काव्य भार्षा,
कररश्मा समाप्त हो जाता है। प्रतीक, सशल्, सं वेिना आदि का प्रयोग करना ही प्रयोगवाि
इस प्रकार परी कदवता में कदव ने प्रातः कालीन पररवेश का बड़ा है। प्रस्तुत कदवता में ये सारे तत्व दिखाई पड़ते है। यहााँ
ही मनमोहक गत्यात्मक सचत्र खींचने का प्रयास दकया है। कदव अनुभदत की सच्चाई एक नये रूप में उभर कर सामने आई हैं।
ने ऐंसन्द्रय बोध के सलए सुन्दर दबं बो का प्रयोग दकया है। ग्राम्य यथाथट की असभव्यदि उनके काव्य का आधार रहा है। शोर्षण-
सं स्कार-सं स्कृ दत को सचत्र के माध्यम से प्रकट करने का प्रयास िोहन के प्रदत कदव हमेशा सजग सचेत दिखाई पड़ते है। आम
दकया गया है। जनता से सीधा सरोकार रखने वाली इनकी कदवता है।
नाटकीयता उनके काव्य की अन्यतम दवशेर्षता है। उनकी भार्षा
में ऐसी सपाट बयानी है जो व्यदि के हृिय पर सीधे चोट
प्रश्न 11 जन जन का चेहरा एक है कदवता में मुदिबोध ने क्या करती है। वे हर स्तर के शोर्षकों का चेहरा बेनकाब करना
कहना चाहा है? चाहते हैं। पं जीवािी सं स्कृ दत ही सारे शोर्षणों के मल में हैं।
उत्तर- प्रस्तुत कदवता में जदटल दवम्बों के प्रयोगवािी कदव दनष्कर्षटतः प्रस्तुत कदवता में कदव ने प्रयोगवािी सशल्प के
गजानन माधव मुदिबोध ने अपनी साम्यवािी चेतना को आधार सत्ताधारी शोर्षकों पर बेरोच व्यं ग्य दकया है।
अत्यन्त स्वभादवक रूप में प्रस्तुत दकया है। दवश्व के तमाम िेशों
के आम नागररकों को एक जैसा ही जीवन जीना पड़ता है। ये प्रश्न 13. प्यारे नन्हे बेटे को कदवता का सारांश सलखें।
आम नागररक चाहे एसशया के हो या यरोप के , इन्हें अमीरों के उत्तरः - प्रस्तुत कदवता वह आिमी नामक सं कलन से उिृत है
शेर्षण का िश झेलना ही पड़ता है। इन गरीबों को अपने सजसमें कदव प्रतीकात्मक ढं ग से लोहे की खोज करता है। यहााँ
अस्थस्तत्व की रक्षा के सलए बड़ा कदठन सं घर्षट करना पड़ता है। लोहा मेहनतकश िी-पुरूर्ष मजिर का प्रतीक है। वह अपने
श्रम से इनका तन तो चर हो ही जाता है। कभी-कभी चररत्र बेटे को कं धे पर बैठा कर पछता है दक लोहा कहााँ -कहााँ है? यह
भी िागी बन जाता है। ऐसी स्थिदत में क्रांदत की सचनगारी लोहा अथाटत् मान जीवन के दवकास का आधार यही है। घर में
दनकलेगी ही। सचमटा कड़ाही, सांकल, कील आदि से लेकर सभलाई के
कारखाने तक में है। कृ दर्ष के औचार भी लोहे से ही बने हैं।
प्रश्न 12 असधनायक कदवता की आलोचनात्मक व्याख्या करें। इस प्रकार कदव समस्त पररवर के साथ दमलकर लोहे की खोज
उत्तरः - प्रयोगवािी कदव रघुवीर सहाय रसचत असधनायक करना चाहता है। हर मेहनतकश आिमी और िबी सतायी
शीर्षटक कदवता उनके काव्य सं ग्रह आत्महत्या के दवरूि से औरत लोहा की तरह हैं। यह किम-किम पर व्याप्त है। ठोस
उिृत है सजसमें कदव ने स्वतं त्रोत्तर भारत की शोर्षणात्मक होकर भी वह हमारी सजन्दगी है। दनष्कर्षटतः प्रस्तुत कदवता में
शासन नीदत पर तीखा व्यं ग्य दकया है। इस व्यं ग्य में हास्य नहीं कदवने बड़े सहज रूप में मजिरों के श्रम और शदि के प्रदत
आजािी के बाि सत्ताधारी वगट के प्रदत रोर्षपणट दति कटाक्ष आिा व्यि की है।
है। यह सरकार पणटतः पं जीपदतयों का गुलाम बन गई है। उसी
के इशारे पर चलती है। गरीबों को कोई िेखने वाला नहीं है।
सब के सब गरीबों का ही शोर्षण करते हैं। वे आजाि िेश के
वासी होकर भी गुलाम का जीवन जीने का मजबर है। कदवता
में वसणटत हरर चरना आम आिमी का प्रतीक है। वह एक गरीब
प्रश्न 14. हार-जीत कदवता का सारांश सलखें। माध्यम से दनपटा लेते थे। आज तो वर्षो कोटट -कचहरी का
उत्तरः - दहन्दी के प्रमुख समसादयक कदव अशोक बाजपेयी चक्कर लगाना पड़ता है। पं च अब परमेश्वर नहीं रहें। आल्हा,
रसचत हार-जीत शीर्षटक कदवता उनके गद्य काव्य सं कलन 'कहीं होली, चैती आदि लोक गीत की परम्परा भी दमट गई है।
नहीं वहीं' से उिृत सजसमें शोर्षण, उत्पीड़न, घुटन, वेवशी का बिले टी०वी०, टे प या ससनेमा का चलन, हो गया है। चारों
अत्यं त मादमटक सचत्रण दकया गया है। आज के शोर्षक शासक और उसी के गीत सुनाई पड़ते हैं। लालटे न के बिले चारों ओर
अपने स्वाथट के सलए युि करते हैं। युि में अनदगनत सैदनक दबजली का बल्व चमकता है। गााँ व चमकिार तो बन गया है
मारे जाते हैं। शासक जनता में असं तोर्ष फैलने के डर से मारे लेदकन उसकी मल अस्थस्मता ही समाप्त हो गई है। वह तो
गए सैदनकों की सची नहीं प्रकासशत करते हैं। वे जनता में िंतहीन हाथी की तरह बन गया है। इस प्रकार कदव ने
अपनी शान दिखाने के सलए दवजयोत्सव मानते हैं। भोली पं जीवाि के फैलाव पर िुख प्रकट दकया है। दवज्ञान के कारण
भाली दनरीह जनता हर पल उसके शोर्षण का सशकार होती एक तरफ लोग रोगी बनकर डाक्टरों का चक्कर लगाते हैं िसरी
रहती है। दवजयोत्सव की सारी तैयाररयााँ जनता के द्वारा की तरफ लड़ाई झगड़ा कर कोटट -कचहरी के ।
जाती है। वे ससफट करने के सलए करते जाते है। इसके प्रदत
उनके मन में कोई सं वेिना नहीं रहती है। दनराला की कदवता प्रश्न 16. कदव की स्मृदत में घर का चौखट इतना जीदवत क्यों
'राजे ने रखवाली की' या रघुवीर सहाय की कदवता है?
'असधनायक' का भाव इससे दमलता जुलता है। युि हमेशा उत्तर - घर के चौखट पर कदव को इदतहास, परम्परा और
दवनाशकारी होता है। राजा अपनी क्ररता के कारण युि करता स्मृदतयााँ अपने अद्भुत रूप में छलकती नजर आती है। उसे
है और उसका फल जनता को भोगना पड़ता है। शासक बड़े िेखते ही कदव को अपना सारा अतीत साकार हो उठता है।
धोखे बाज होते हैं। वे जनता को ठगकर शहर में दवजयोत्सव वतटमान वैज्ञादनक जीवन से उबा मन उस अतीत में बड़ा चैन
मनवाते हैं। परा शहर सज जाता है। सड़कों को सजाया जाता का अनुभव करता है। दटकु ली साटने के सलए चौखट पर सटा
है। हार-जीत के भाव से बेखबर दनरीह जनता ससफट काम सहजन का गोंि, खडााँ ऊ की आवाज के साथ बुजुटग का आं गन
करती है। शासक परे गाजे बाजे के साथ जनता के बीच आते में प्रवेश, घर के भीतर से ही ताली या जजीर बजा कर पिाट
हैं। अपनी आन-शान दिखाते हैं। इस प्रकार प्रस्तुत काव्य में नशी औरतों का कु छ कहना कदव को बड़ा आकदर्षटत करता है।
कदव ने एक ओर शोर्षकों के शोर्षण, आन-शान का सचत्रण कदव को घर का चौखट में अपना बचपन दिखाई पड़ता है
दकया है तो िसरी और आम जनता की कुं ठा का भी। युि की इसीसलए वह जीदवत हो उठा है।
दवभीदर्षकों का भी सचत्रण दकया गया है।