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Solved Sample Paper Class 10 Hindi Mock Paper-1 2024-25 for CBSE Term 2
Solved Sample Paper Class 10 Hindi Mock Paper-1 2024-25 for CBSE Term 2
Solved Sample Paper Class 10 Hindi Mock Paper-1 2024-25 for CBSE Term 2
खंड क
िाढकि सािब िे हिंदी सीखिे के हिए अपिे सामिे गांर्ी िी का आदशा िखा था। अपिे एक भाषण में
उन्िोंिे किा था, "उि कामों में िो मिात्मा िे अपिी दूिदृहि से िमािे देश के हिए, एक हिंदी प्रचाि का
काम ििीं था। हिंदी गांर्ी िी की मातृभाषा ििीं थी ढिि भी उसे इसहिए िै िािा चािा था ढक उिके
हवचाि में दो बातें साफ़ थीं। एक तो यि ढक देश में िो एकता अंग्रेिी भाषा के द्वािा ढदखाई देती िैं वि उस
वक्त तक चि िी सकती िै, िब तक ढक थोड़े से िोग पढ़िा-हिखिा सीखते िैं औि उसके िरिए अपिे को
औिों से ऊँचा किके उिसे अिग-थिग एक हवदेशी का िीवि हबताते िैं। िब देश आिाद िोगा औि िि
बच्चा हिखिा-पढ़िा सीखेगा तो वि हिखिा-पढ़िा हवदेशी भाषा में ििीं िो सकता। देश की हभन्न-हभन्न
भाषाओँ में िोगा औि िोिा भी चाहिए। गांर्ी िी िे अिग-अिग भाषाएँ बोििे वािों को हमिािे के हिए
हिंदी िबाि को चुिा औि ढिि इिादा ढकया ढक इसे िै िाएँगे। वे हिंदी अच्छी ििीं बोिते थे, पि हिंदी िी
बोिी, औि इसके माध्यम से िोगों के ढदिों के अंदि बस गए।"
13 मई, 1967 को िाष्ट्रपहत का पद सँभािते हुए उन्िोंिे किा था, "सािा भाित मेिा घि िै, मैं सच्ची
िगि से इस घि को मिबूत औि सुंदि बिािे की कोहशश करँगा ताढक वि मेिे मिाि देशवाहसयों का
उपयुक्त घि िो हिसमें इंसाि औि खुशिािी का अपिा स्थाि िो।"
उत्ति- ज़ाढकि सािब िे हिंदी सीखिे के हिए गांर्ी िी को अपिा आदशा बिाया क्योंढक वे गांर्ी िी के
हवचािों से अत्यहर्क प्रभाहवत थे। अतः उिके अर्ूिे कायों को पूिा कििा चािते थे।
उत्ति- हवदेशी भाषा में देश ढक एकता तब तक चि सकती िै, िब तक ढक थोड़े से िोग पढ़िा-हिखिा
सीखते िैं औि उसके िरिए स्वयं को औिों से ऊँचा किके उिसे अिग-थिग एक हवदेशी का िीवि हबताते
िैं, क्योंढक देश का प्रत्येक बच्चा हवदेशी भाषा में हशक्षा ग्रिण ििीं कि सकता।
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3. गांर्ी िी का हिंदी प्रेम ढकस प्रकाि हसद्ध कि सकते िैं?
उत्ति- गांर्ी िी का हिंदी प्रेम इस बात से स्वतः हसद्ध िोता िै ढक वे गुििाती भाषी िोते हुए हिंदी बोिते
थे औि उसी के प्रचाि-प्रसाि के हिए उन्िोंिे ताउम्र मेिित की।
4. ज़ाढकि सािब िे िाष्ट्रपहत बििे के बाद िो वक्तव्य ढदया उससे क्या पता चिता िै?
उत्ति- ज़ाढकि सािब िे िाष्ट्रपहत बििे के बाद िो वक्तव्य ढदया उससे पता चिता िै ढक ज़ाढकि सािब
एक सच्चे देशभक्त थे औि िमेशा भाित की भिाई के बािे में सोचते थे।
उत्ति- िाष्ट्रपहत पद को स्वीकािते हुए ज़ाढकि हुसैि िे सािे भाित को अपिा घि मािकि सच्ची िगि से
इसे मज़बूत औि सुंदि बिाकि उसमें इंसाि औि खुशिािी सुहिहित कििे का संकल्प हिया।
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देवों िे किा, बड़ा सुख थे इसके मि की
उत्ति- चंदि औि श्रीखंड हवशेष प्रकाि की सुगंहर्त िकड़ी िै। इसका उपयोग र्ार्माक कायों में ढकया िाता
िै।
उत्ति- गीतकाि के याद आिे पि आकाश िवाि िो िाता िै। वि बािि औि भीति से उिाावाि मिसूस
कििे िगता िै।
उत्ति- गीतकाि की मृत्यु पि मदों िे गीतकाि की प्रशंसा की। उन्िोंिे गीतकाि को अिबेिा बाँका, दबंग
औि स्वाहभमािी बताया।
उत्ति- इस कहवता के माध्यम से गीतकाि के आकषाण व्यहक्तत्व पि प्रकाश डािा गया िै। गीतकाि चाँद की
भाँहत सबको शीति प्रकाश देता िै। उसके गीतों के प्रभाव से वाताविण अिुिागमय िो िाता िै। देवता औि
योगी तक उससे प्रभाहवत िैं। ढिि अिबेिे पुरुष तो गीतकाि की भविाओं में िं गकि मदमस्त िो िाते िैं।
कहव िे प्रश्नोक्त पंहक्तयों के माध्यम से अिंकाि, सहृदयता एव सद्व्यविाि को महिमामंहडत कि उसे अपिािे
का संदश
े ढदया िै।
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खंड ‘ख’
1.बच्चा दौड़ कि मेिे पास आया। वाक्य को संयुक्त वाक्य में बदहिए।
4.िब मिदूिों िे गड्ढा खोद हिया तब वे चिे गए। वाक्य को संयुक्त वाक्य में बदहिए।
4
7.प्रश्नों के उत्ति दीहिये –
उत्ति - िस का शाहब्दक अथा िोता िै – आिन्द। काव्य को पढ़ते या सुिते समय िो आिन्द हमिता िै उसे
िस किते िैं।
उत्ति - िो व्यहक्त , पदाथा, अन्य व्यहक्त के ह्रदय के भावों को िगाते िैं उन्िें हवभाव किते िैं।
उत्ति - िो स्थािीय भावों के साथ संचिण किते िैं वे संचािी भाव किते िैं।
उत्ति - िस के अंग :-
1. हवभाव
2. अिुभाव
3. संचािी भाव
4. स्थायीभाव
खंड 'ग'
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सभी िोए, छाती पीट-पीट कि िोए। औि िोगों का हिर्ि िोता िै तो उिके देशवािे िी िोते िैं, बापू का
हिर्ि हुआ तो अंग्रेज़ भी िोए, हििकी सिकाि को बापू िे ‘शैतािी सिकाि’ किा था।
ये सभी क्यों िोए? औि इतिा अहर्क क्यों िोए? क्योंढक ‘बापू’ मािवता के र्िी थे। िि दो िाथ, दो पैि
वािे पशु को िम आदमी समझिे की गिती किते िैं - ‘मािव’ माि िेते िैं। िि दो िाथ, दो पैि वािा पशु
मािव ििीं िोता। स्वामी िामतीथा िे आदहमयों के चाि प्रकाि बताए िैं - 1. िड़-मािव, 2.
विस्पहत-मािव, 3. पशु-मािव औि 4. मािव-मािव। िो व्यहक्त के वि अपिी िी हचंता किता िै,
अपिे से बािि कु छ सोच िी ििीं सकता, वि ‘िड़-मािव’ िै। िो अपिे साथ अपिे परिवाि वािों, अपिे
िगिवािों की भी हचंता किता िै, वि ‘विस्पहत-मािव’ िै। िो अपिे साथ अपिे परिवाि औि िगि के
िोगों तथा अपिे देश के साथ-साथ ‘मािवमात्र’ ढक िी ििीं ‘प्राहणमात्र’ की भी हचंता किता िै, विी
मािव-मािव िै। मौिािा िािी का शेि िै -
िो िोग बापू ढक िाििीहत से सिमत ििीं ििे अथवा मेिी तिि िो िाििीहत को हवशेष समझते भी ििीं
ििे, वैसे िोगों पि भी बापू ढक ‘शािीिता’ बापू ढक ‘मािवता’ िादू-सा असि किती थी। मेिी िी एक ढदि
ढक आपबीती सुहिए -6 ढदसंबि सि् 1945 ढक शाम को मैं बापू की व्यस्तता का ख्याि कि उिकी
कु रटया के भीति पैि िखिे में हिचढकचा ििा था। आवाज़ सुिाई दी- "आइए, आइए !" मैं भीति चिा
गया।
"अब आप यिाँ िििे के हिए आए िैं। एक मिीिा, दो मिीिे, चाि मिीिे, हितिा िि सकें ।" "िाँ बापू,
हितिे ढदि वर्ाा में िहूँगा, यिीं िििे की कोहशश करँगा।" दो-चाि औि बातें कििे के अिंति बापू बोिे,
"अच्छा तो भोिि की घंटी बि गई िै। पििे िाकि भोिि कि िीहिए।" सेवाग्राम में भोिि के समय
भोिि कििे पि दूसिे ढदि तक उसी प्रकाि इंतज़ाि कििा पड़ता था, िैसे िे िगाड़ी छु ट िािे पि ढिि दूसिी
गाड़ी का। "भोिि तो मैं ििीं करँगा बापू, थोड़ा दूर् पी िूँगा।" श्रीमन्नािायण िी को इशािा िो गया औि
मुझे उिके साथ वैसे िी िािा पड़ा िैसे ढकसी कै दी को हसपािी के साथ। यि थी प्रेम ढक कै द। िौटा तो बापू
को बुिी तिि व्यस्त पाया। एक के बाद दूसिी समस्या हिबटाई िा ििी थी। आपसी बात कििे का आग्रि
िखिे में अपिा िी मि संकोच मािता था। तब डॉ. सुशीिा िय्यि िे र्ीिे से सिाि दी, "बापू िी, अब
िैसे भी िो मौि िे िें।" "ििीं, वि तो ििीं िो सकता।" "बापू ! स्रेि बढ़ िाएगा।" "हििको समय
ढदया िा चुका िै, उिको समय देिा तो र्मा िै, वि कै से तोड़ा िा सकता िै?"
उत्ति- 30 ििविी 1948 ढक मिहूस संध्या को बिािस के िेिवे स्टेशि पि िेखक को बापू के हिर्ि का
समाचाि हमिा।
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3.बापू के हिर्ि का उि िोगों पि क्या प्रभाव पड़ा िो इक्कों, ताँगों औि रिक्शों में बैठ चुके थे?
उत्ति- बापू के हिर्ि का इक्कों, ताँगों औि रिक्शों में बैठ चुके िोगों पि यि प्रभाव पड़ा ढक वे सभी िोग
इक्कों, ताँगों औि रिक्शों से उति कि पैदि चििे िगे।
उत्ति- िो मािव अपिे साथ परिवाि औि िगि के िोगों तथा अपिे देश के साथ-साथ ‘मािव -मात्र की
िी ििीं ‘प्राणी मात्र’ की भी हचंता किता िै, विीं मािव-मािव िै।
5.6 ढदसंबि सि् 1945 ढक शाम िेखक बापू की कु रटया के भीति पैि िखिे में क्यों हिचढकचा ििा था?
उत्ति- 6 ढदसंबि सि् 1945 की शाम को िेखक बापू की व्यस्तता का ख्याि कि उिकी कु रटया के
भीति पैि िखिे में हिचढकचा ििा था।
उत्ति- सेवाग्राम में भोिि के समय पि भोिि ि कििे का परिणाम यि था ढक भोिि के हिए दूसिे ढदि
तक उसी प्रकाि इंतज़ाि कििा पड़ता था, िैसे िे िगाड़ी छु ट िािे पि ढिि दूसिी गाड़ी का इंतज़ाि कििा
पड़ता िै।
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देवों िे किा, बड़ा सुख थे इसके मि की
उत्ति- चंदि औि श्रीखंड हवशेष प्रकाि की सुगंहर्त िकड़ी िै। इसका उपयोग र्ार्माक कायों में ढकया िाता
िै।
उत्ति- गीतकाि के याद आिे पि आकाश िवाि िो िाता िै। वि बािि औि भीति से उिाावाि मिसूस
कििे िगता िै।
उत्ति- गीतकाि की मृत्यु पि मदों िे गीतकाि की प्रशंसा की। उन्िोंिे गीतकाि को अिबेिा बाँका, दबंग
औि स्वाहभमािी बताया।
उत्ति- इस कहवता के माध्यम से गीतकाि के आकषाण व्यहक्तत्व पि प्रकाश डािा गया िै। गीतकाि चाँद की
भाँहत सबको शीति प्रकाश देता िै। उसके गीतों के प्रभाव से वाताविण अिुिागमय िो िाता िै। देवता औि
योगी तक उससे प्रभाहवत िैं। ढिि अिबेिे पुरुष तो गीतकाि की भविाओं में िं गकि मदमस्त िो िाते िैं।
कहव िे प्रश्नोक्त पंहक्तयों के माध्यम से अिंकाि, सहृदयता एव सद्व्यविाि को महिमामंहडत कि उसे अपिािे
का संदश
े ढदया िै।
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10. हिम्नहिहखत में से ढकन्िीं चाि प्रश्नों के उत्ति संक्षेप में हिहखए।
1. छोटे भाई िे अपिी पढ़ाई का टाइम-टेहबि बिाते समय क्या-क्या सोचा औि ढिि उसका पािि क्यों
ििीं कि पाया?
उत्ति: छोटे भाई िे बड़े भाई की िताड़ सुिकि अपिी पिाई का टाइम टेहबि बिाते यि सोचा ढक वि मि
िगाकि पढ़ाई किे गा औि अपिे बड़े भाई सािब को हशकायत का कोई मौका ि देगा पिन्तु अपिे स्वच्छंद
स्वभाव के कािण वि अपिे िी टाइम-टेहबि का पािि ििीं कि पाया क्योंढक पढ़ाई के समय उसे खेि के
ििे -भिे मैदाि, िु टबॉि, बॉिीबॉि औि हमत्रों की टोहियाँ अपिी ओि खींच िेते थे ।
उत्ति:- पुहिस की ििता पि िारठयाँ बिसािे, िोगों के घायि िोिे औि सुभाष बाबू की हगिफ्तािी के
कािण र्मातल्िे के मोड़ पि आकि िुिस
ू टूट गया।
3. ठाकु िबािी के प्रहत गाँव वािों के मि में अपाि श्रद्धा के िो भाव िैं उससे उिकी ढकस मिोवृहत्त का
पता चिता िै?
उत्ति:- ठाकु िबािी के प्रहत गाँववािों के मि में िो अपाि श्रद्धा के भाव थे उिसे गाँववािों की ठाकु ििी
के प्रहत अगार् हवश्वास, भहक्त-भाविा ईश्वि में आहस्तकता, औि एक प्रकाि की अंर्श्रद्धा िैसी मिोवृहतयों
का पता चिता िै। क्योंढक गाँव वािे अपिी िि छोटी-बड़ी सििता का श्रेय ठाकु िबािी को िी देते थे।
4. कं पिी के वकीि का कत्ि कििे के बाद वज़ीि अिी िे अपिी हििाित कै से की?
उत्ति:- कं पिी के वकीि का कत्ि कििे के बाद वज़ीि अिी आिमगढ़ भाग गया औि विाँ के िवाब से
सिायता पाकि सुिहक्षत घाघिा पहुँच गया औि तब से वि िंगिों में ििकि अपिी शहक्त बढ़ािे िगा ।
उत्ति: प्रस्तुत पंहक्तयाँ ' मीिाबाई' के पद से िी गई िैं।कवहयत्री मीिाबाई िे कृ ष्ण को हप्रयतम के रप में
देखा िै। वे बाि-बाि कृ ष्ण के दशाि कििा चािती िैं ।वे कृ ष्ण को पािे के हिए अिेक काया कििे को तैयाि
िैं। मीिा अपिे हप्रय भगवाि कृ ष्ण से किती िै - िे श्याम ! मुझे अपिी दासी बिा िो। मैं तुम्िािी
सेहवका के रप में िहूँगी औि तुम्िािे हिए बाग-बगीचे िगाऊँगी,हिसमें तुम हविाि कि सको। इसी बिािे
मैं िोि सुबि तुम्िािे दशाि कि सकूँ गी। मैं वृंदावि के कुं िों में औि गहियों में कृ ष्ण की िीिा के गािे
गाऊँगी। इस सेवा के बदिे में मुझे प्रभु-दशाि का अवसि हमिेगा। िाम-स्मिण रपी िेब-खचा प्राप्त िोगा,
भावपूणा भहक्त की िागीि प्राप्त िोगी। इस प्रकाि मीिा दासी बिकि श्री कृ ष्ण के दशाि, िाम स्मिण रपी
िेब-खचा औि भहक्त रपी िागीि तीिों प्राप्त कि अपिा िीवि सिि बिािा चािती िैं।!''
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अथवा
खंड 'घ'
12. हिम्नहिहखत में से ढकसी एक हवषय पि िगभग 200 से 250 शब्दों में हिबंर् हिहखए
13. हििा उपायुक्त को पत्र हिहखए हिसमें हवद्ार्थायों की पढ़ाई में िोिे वािी िाहि के संदभा में शिि के
हसिेमाघिों में प्रातःकािीि शो को बंद कििे का हिवेदि ढकया गया िो।
अथवा
हििा उपायुक्त को पत्र हिहखए हिसमें हवद्ार्थायों की पढ़ाई में िोिे वािी िाहि के संदभा में शिि के
हसिेमाघिों में प्रातःकािीि शो को बंद कििे का हिवेदि ढकया गया िो।
14. मोहित औि श्रवण आठवीं के छात्र िैं। ढदसंबि की पिीक्षाएँ चि ििी िैं। इर्ि भाित-पाढकस्ताि की
एक ढदवसीय ढक्रके ट मैच-शृंखिा का अंहतम मैच िै। दोिों मैच देखिा चािते िैं, पिं तु पढ़ाई के दवाब से भी
डिते िैं उिमें हुई बातचीत की कल्पिा कीहिए। “संवाद हिहखए ।
अथवा
10