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राज्यपाल - राजभवन को आमूलचूल सुधारों की आवश्यकता है

सन्दभभ - पिछले कुछ वर्षों से राज्यिाल का िद ख़बरों ,समाचार ित्रों ,न्यजू चैनलों आपद में चचाा में बना रहता है हम
जानते है की भारत एक लोकताांपत्रक देश है पजसमें राज्य सरकारों को लोकताांपत्रक तरीके से अर्ाात पनवाापचत तरीके से
चनु ा जाता है | लेपकन राज्य सरकार के कायों में और राजिाल की काया प्रणाली ने एक दसू रे को सह सम्बन्धी न
बनाकर ,पवरोध से यक्तु एक जपिलता को उत्िन्न पकया है इसी वजह से राज्यिाल का िद चचाा में बना रहा है |
भारतीय राजनीपत में राज्यिाल एक महत्विणू ा स्र्ान रखता है जो देश की सांघीय व्यवस्र्ा में महत्विणू ा भपू मका
पनभाता है| हम कह सकते है की कें द्र और राज्यों के मध्य एक िल ु का काया करता है जो सहयोग की भावना दशााता है
इसी सांदभा में िवू ा राष्ट्रिपत श्री राम नाथ कोवविंद जी ने कहा र्ा की “राज्यिाल राज्य का सांरक्षक और मागादशाक के
रूि में काया करता है |
हालााँपक कुछ राज्यों के राज्यिालों ने अिनी भपू मका ,शपक्तयााँ और पववेकाधीन अपधकार के माध्यम से इस िद के
कताव्यों व् िद की गररमा को ियााप्त क्षपत िहचां ाई है पजस कारण से राजिाल का िद एक लांबे अरसे से राजनीपतक,
सांवैधापनक और काननू ी क्षेत्रों में बहस का मद्दु ा बना हआ है इसमें महारष्ट्र के राज्यिाल तर्ा कनाािक में पवधान सभा
चनु ाव के िश्चात राज्यिाल द्वारा की गई तत्काल कायावाही का योगदान महत्विणू ा है |
राज्यपाल पद का ऐवतहावसक ववकास
➢ स्वतत्रां ता से िहले भारत का प्रशासन ईस्ि इपडिया कांिनी के हार्ों में र्ा लेपकन 1857 के सांग्राम के िश्चात
भारत का प्रशासन 1858 में “पिपिश ताज’’ के अधीन हो गया इसी के सार् “गवनार” िद का सृजन हआ |
इस समय प्राांतीय गवनार क्राउन के नमु ाइदां े हआ करते र्े जो गवनार जनरल के पनदेशन व अधीक्षण में काया
करते र्े|
➢ जब 1935 में भारत शासन अपधपनयम लाया गया और उसमें यह कहा गया की गवनार प्रान्त की पवधापयका
के सदस्यों की सलाह के आधार िर काया करे गा सार् ही उसे पववेकाधीन शपक्तयााँ बनी रहेंगी|
➢ आज़ादी के बाद स्वतांत्र भारत में गवनार िद िर सांपवधान सभा में व्यािक चचाा हई और अांपतम पनणाय यह
हआ की राज्यिाल की भपू मका को पिपिश कालीन व्यवस्र्ा के अनसु ार ही रखा जाए|
➢ इसी क्रम में भारत ने शासन की सांसदीय व्यवस्र्ा व मांत्रीमांिलीय प्रणाली को अिनाया है इसके तहत भारत में
गवनार शब्द कों पहदां ी में राज्यिाल शब्द का प्रयोग पकया जाता है और उसे भारत के पकसी राज्य के
सांवैधापनक प्रमख ु के रूि में जाना जाता है |
भारतीय सविं वधान में राज्यपाल से सबिं विं धत प्रावधान
➢ अनच्ु छे द 153 के अनुसार प्रत्येक राज्य का एक राज्यिाल होगा | पकसी व्यपक्त को दो या दो से अपधक
राज्यों का राज्यिाल पनयक्त
ु पकया जा सकता है |
➢ राष्ट्रिपत अनच्ु छे द 155 और 156 के अांतगात राज्य के राज्यिाल को अिने हस्ताक्षर और महु र सपहत
अपधित्र द्वारा पनयपु क्त करे गा और वह राष्ट्रिपत प्रसादियंत तक िद धारण करे गा |
➢ अनच्ु छे द 161 के अनुसार राज्यिाल के िास पकसी मामले से सांबांपधत पकसी काननू के पखलाफ पकसी
अिराध के पलए दोर्षी ठहराए गए पकसी व्यपक्त को क्षमा प्रदान करने ,और कुछ मामलो में सजा को पनलपां बत
करने,हिाने या कम करने की शपक्त होगी | ( पजन्हें पनलांबन ,िररहार ,या लघक ु रण के नाम से भी जानते है )
➢ उच्चतम न्यायालय ने कहा है की पकसी को क्षमा करने की राज्यिाल की शपक्त का प्रयोग वास्तव में राज्य
सरकार की सलाह से पकया जाता है | राज्यिाल राज्य सरकार की सलाह मानने हेतु बाध्य है |
➢ राज्यिाल से यह अिेक्षा की जाती है की वह पववेकानसु ार काया करे लेपकन उन पवर्षयों को छोड़कर अिने
कृ त्यों का प्रयोग हेतु एक मांत्री िररर्षद् होगी पजसका अध्यक्ष राज्य का मख्ु यमांत्री होगा |
➢ राज्यिाल अिनी पववेकाधीन शपक्तयों का प्रयोग ऐसी पस्र्पत में करता है जब राज्य पवधानसभा में पकसी भी
राजनीपतक दल को स्िष्ट बहमत न हों की पस्र्पत में मख्ु यमांत्री की पनयपु क्त करना , अपवश्वास प्रस्ताव तर्ा
राज्य में सवां ैधापनक तत्रां का पवफल होना
➢ पवधायी शपक्तयों के अांतगात राज्यिाल को अनछ ु े द 200 और 201 से प्राप्त होती है जब कोई पवधेयक राज्य
पवधानमिां ल द्वारा राजिाल के समक्ष प्रस्ततु पकया जाता है तो उसके िास पनम्न पवकल्ि मौजदू होते है

✓ पवधेयक िर अिनी अनमु पत दे सकता है पजसका आशय यह हआ की पवधेयक अब एक


अपधपनयम बन गया है |
✓ सहमती को रोक सकता है (समय सीमा पनधााररत नहीं है) अर्ाात पवधेयक अस्वीकृ त माना जाता है |
✓ िनु पवाचार हेतु राज्य पवधान मिां ल को वापिस भेज सकता है यपद वह धन पवधेयक नहीं है |
✓ राज्य पवधानमांिल पकसी पवधेयक को सांशोधन के सार् या पबना सांशोधन के िनु ः राज्यिाल के िास
भेजती है तो राज्यिाल को अनुमपत देना अपनवाया है |
✓ वह पवधेयक को राष्ट्रिपत के पवचार के पलए अरपक्षत कर सकता है |
❖ राज्यिाल को अनच्ु छे द 361 के तहत कहा गया है की वह अिनी शपक्तयों और कताव्यों के पनवाहन हेतु पकसी
न्यायालय का उत्तरदायी नहीं होगा |
राज्यपाल से सिंबिंवधत वववाद-
➢ सत्ताधारी राजनीपतक दल अिने से सांबांपधत राजनेताओ ां या िूवा नौकरशाहों की राज्यिाल के रूि में पनयपु क्त
करते है | इस कारण िद की की पनष्ट्िक्षता और िक्षिात जैसी समस्या देखने कों पमल रही है
➢ कें द्र के एजेंि के रूि में आलोचना जो की सांवैधापनक रूि से तिस्र्ता के पवरूद्ध है िररणामस्वरूि िक्षिात
वातावरण पनपमात होता है
➢ प्रदत्त पववेकाधीन शपक्तयों का दरुु ियोग
➢ िद मपु क्त की प्रपक्रया का मजबतू न होना पजस से उन्हें मनमाने ढगां से हिाया गया है
➢ राज्य सरकार में मख्ु यमांत्री की पनयपु क्त या पवधान सभा कों भांग करने की पस्र्पत में कोई स्िष्ट पदशापनदेश नहीं
है |
राज्यपाल पद के सुधार हेतु वकए गए प्रयास व् उच्चतम न्यायालय के वनर्भय –
सरकाररया आयोग – राज्यिाल की पनयपु क्त ,सबपां धत राज्य के मख्ु यमांत्री के िरामशा से की जानी चापहए ,पजस
व्यपक्त को राज्यिाल का िद िर पनयपु क्त की जा रही है उसे पकसी क्षेत्र में प्रपतपित व्यपक्त होना चापहये सार् ही उस
राज्य से सांबांध न रखता हो |
✓ पवपशष्ट िररपस्र्पत कों छोड़ कर उसे कायाकाल िणू ा होने िर ही हिाया जाना चापहए
✓ वह अिनी पववेकाधीन शपक्तयों का प्रयोग सांयपमत रूि से करना चापहए
✓ वेंकि चलैया आयोग – 2002
✓ राज्यिालों की पनयपु क्त सपमपत के द्वारा की जानी चापहए और उसका कायाकाल 5 वर्षा का कर देना चापहए
जब तक की वह असवां ैधापनक कृ त्य न करे या स्वयां त्यागित्र न दे तब तक राष्ट्रिपत द्वारा िद पवमपु क्त न की
जाए
✓ राज्य के दैपनक प्रशासन में हस्तक्षेि नहीं करना चापहए
पछ
ुिं ी आयोग - इस आयोग ने कहा की राष्ट्रिपत के प्रसाद ियंत का अर्ा है की राज्यिाल कों कें द्र सरकार की इच्छा
िर हिाया जाता है योग ने सझु ाव पदया की राज्यिाल कों राज्य पवधानमिां ल के प्रस्ताव द्वारा हिाया जाना चापहए
शमशेर वसिंह बनाम पिंजाब राज्य (1974) - िहला मामला र्ा जहाां सवोच्च न्यायालय की सात न्यायाधीशों की
िीठ ने राज्य के राज्यिाल की शपक्तयों और कायों की जाांच की र्ी। न्यायालय ने कहा पक राज्यिाल के िास कोई
कायाकारी शपक्तयााँ नहीं हैं और वह के वल मांपत्रिररर्षद की सहायता और सलाह िर काया कर सकता है। वास्तव में,
कायाकारी शपक्तयााँ चनु ी हई सरकार में पनपहत होती हैं, जो पवधापयका के प्रपत उत्तरदायी होती है।
नबाम रेवबया बनाम उपसभापवत (2016) - सप्रु ीम कोिा ने कहा पक राज्यिाल के वल मपां त्रिररर्षद की सलाह िर
काया कर सकते हैं। सप्रु ीम कोिा ने राजीव गाांधी हत्याकाांि के दोर्षी ए.जी िेराररवलन को ररहा करते हए अिने फै सले में
कहा पक पकसी राज्य का राज्यिाल राज्य सरकार के पलए एक आशपु लपि है। यह सांपवधान के अनच्ु छे द 161 के तहत
क्षमादान की शपक्तयों का प्रयोग करते समय होता है।
बी.पी. वसघिं ल बनाम भारत सघिं - हिाए जाने िर- जब कोई राज्यिाल सरकार की मजी तक िद िर बना रहता है
और राष्ट्रिपत की मजी िर हिाने की शपक्त पकसी भी शता या प्रपतबांध से सीपमत नहीं होती है। इससे यह पनष्ट्कर्षा
पनकलता है पक शपक्त का प्रयोग पकसी भी समय, पबना कोई कारण बताए पकया जा सकता है।
इस मामले में, अदालत ने माना पक ऐसी पवशेर्षापधकार शपक्त का प्रयोग करके हिाने के पलए कोई कारण या कारण
प्रकि नहीं पकया जाएगा या सौंिा नहीं जाएगा, लेपकन हिाने के पलए कुछ वैध कारण मौजदू होना चापहए।
क्षमा करने की शवि पर- न्यायालय का पवचार है पक क्षमा करने की शपक्त सवां ैधापनक योजना का पहस्सा है, न पक
इग्ां लैंि की तरह अनग्रु ह का काया। यह एक सांवैधापनक उत्तरदापयत्व है पजसका प्रयोग सांदभा द्वारा सोचे गए पववेक के
अनसु ार पकया जाना चापहए। यह पवशेर्षापधकार का मामला नहीं बपल्क आपधकाररक कताव्य िालन का मामला है।
सवां ैधापनक शपक्त सपहत सभी सावाजपनक शपक्त का प्रयोग कभी भी मनमाने ढगां से या दभु ाावनािणू ा तरीके से नहीं पकया
जाएगा।
एस.आर. बोम्मई मामला - मामले में, न्यायालय ने माना पक अनच्ु छे द 74(2) के वल इस सवाल की जाच ां िर रोक
लगाता है मांपत्रिररर्षद द्वारा राष्ट्रिपत को सलाह दी गई र्ी पक क्या कोई और यपद हाां, तो क्या? लेपकन सलाह के
आधार िर जाांच िर रोक नहीं लगाई गई है पजस िर राष्ट्रिपत ने आदेश पदया है। इसपलए, हालाांपक सलाह की ियााप्तता
िर सवाल नहीं उठाया जा सकता है, ऐसी सलाह से पनकाले गए पनष्ट्कर्षा की वैधता िर न्यापयक समीक्षा की जा सकती
है।
सवां ैधापनक पवशेर्षज्ञ- फै जान मुस्तफा का नजररया -सांपवधान सभा ने राज्यिाल के अराजनीपतक होने की िररकल्िना
की र्ी। लेपकन राजनेता, राज्यिाल बनते हैं और पफर चनु ाव लड़ने के पलए इस्तीफा दे देते हैं।
वववध सेंटर फॉर लीगल पॉवलसी के सिंवैधावनक ववशेषज्ञ आलोक प्रसन्ना का ववचार- मख्ु यमांत्री जनता के
प्रपत जवाबदेह हैं।' लेपकन राज्यिाल कें द्र के अलावा पकसी के प्रपत जवाबदेह नहीं है। आि इसे सवां ैधापनक नैपतकता
और मल्ू यों के पवचारों के सार् जोड़ सकते हैं, लेपकन सच्चाई यह है पक सांपवधान में एक बपु नयादी दोर्ष है।
इस प्रकार राज्यिालों की भपू मका िर बहस एक सक्ष्ू म और बपु नयादी सधु ारों कों रे खाांपकत करता है | हम कह सकते है
लोकताांपत्रक व्यवस्र्ा कों कमजोर पकए पबना राजिाल का िद व् कायाप्रणाली िारदशी ,पनयपु क्तयों में जवाब देपहता की
वृपद्ध सार् ही पववेकाधीन शपक्तयों का उपचत आधार िर प्रयोग पकया जाए पजस से राज्यिाल के िद की गररमा व
सवां ैधापनक ढाचां ा कों सचु ारू रूि से सचां ापलत करने के पलए राज्य और कें द्र के कायों के पहतों के मध्य एक सतां पु लत
समन्वय स्र्ापित हो सके |
नोट – िॉपिक को समझने या पकसी मद्दु े से सांबांपधत पकसी भी प्रकार की समस्या आती है तो मझु े सांिका करें
psirhindi@shubhraranjan.com , Whatsapp-+91-9319440505

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