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ch- 20 पाठ- अपठित गद्यांश 6 30.3
ch- 20 पाठ- अपठित गद्यांश 6 30.3
अपठठत’ शब्द का अठिप्राय है -जो पहले पढा न गया हो। अपठित गद्यां श पयठ्यपुस्तक ां से नह ां ठिए
जयते। ये ऐसे गद्यांश ह ते हैं ठजन्हें छयत् ां ने कभ नह ां पढय ह तय। इस प्रकयर के गद्यांश िे कर ठिद्यठथि य ां से
उन पर आधयररत प्रश्न पूछे जयते हैं ।
1. समय बहुत मूल्ययियन ह तय है । यह ब त जयए त ियि -ां कर ड ां रुपये िचि करके भ इसे ियपस नह ां
िययय जय सकतय। इस सांसयर में ठजसने भ समय क कद्र क है , उसने सुि के सयथ ज िन गुजयरय है और
ठजसने समय क बबयि ि क , िह िुि ह बबयि ि ह गयय है । समय कय मूल्य उस खिियड से पूठछए, ज
सेकांड के स ि
ां े ठहस्से से पिक चूक गयय ह । स्टे शन पर िड रे िगयड एक ठमनट के ठििांब से छूट जयत
है । आजकि त कई ठिद्यिय ां में िे र से आने पर ठिद्यिय में प्रिे श भ नह ां करने ठियय जयतय। छयत् ां क
त समय कय मूल्य और भ अच्छ तरह समझ िे नय चयठहए, क् ठां क इस ज िन क कद्र करके िे अपने
ज िन के िक्ष्य क पय सकते हैं ।
2. बढत जनसांख्यय ने अनेक प्रकयर क समस्ययओां क जन्म ठियय है-र ट , कपडय, मकयन क कम ,
बेर जगयर , ठनरक्षतय, कृठष एिां उद् ग ां के उत्पयिन ां में कम आठि। हम ठजतन अठधक उन्नठत करते हैं यय
ठिकयस करते हैं, जनसांख्यय उसके अनुपयत में बढ जयत है । बढत जनसांख्यय के समक्ष हमयरय ठिकयस बहुत
कम रह जयतय है और ठिकयस कययि ठिियई नह ां िे ते। बढत जनसांख्यय के समक्ष सभ सरकयर प्रययस
असफि ठिियई िे ते हैं । कृठष उत्पयिन और औद् ठगक ठिकयस बढत जनसांख्यय के सयमने नगण्य ठसद्ध ह
रहे हैं । इन सभ बयत ां क ध्ययन में रिते हुए जनसांख्यय िृखद्ध पर ठनयत्ांण क अठत आिश्यकतय है । इसके
ठबनय ठिकयस के ठिए ठकए गए सभ प्रकयर के प्रयत्न अधूरे रह जयएँ गे।
1) बढत जनसांख्यय से ठकसमें कम आई है ?
(i) बेर जगयर (ii) गर ब
(iii) ठनरक्षरतय (iv) कृठष एिां उद् ग ां के उत्पयिन ां में
नाम: ठिनाांक:
नाम: ठिनाांक:
4) ठकस कारण से िे श में मानव के बीि, घृणा, ईष्या, वैमनस्यता एवां कटु ता में कमी नही ां आई है ?
(i) नर्फरत से (ii) सयां प्रियठयकतय से
(iii) अम र -गर ब के कयरण (iv) िणि -भेि के कयरण
5) मानवीय मूल्योां के महत्त्व के प्रठत जागरूकता उत्पन्न करने का एकमाि साधन है ……|
(i) ठशक्षय कय व्ययपक प्रसयर (ii) धमि कय व्ययपक प्रसयर
(iii) प्रेम और सद्भयिनय कय व्ययपक प्रसयर (iv) उपयुिक्त सभ