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पाठ- अपठठत बोध (Unseen Comprehension)

अपठठत’ शब्द का अठिप्राय है -जो पहले पढा न गया हो। अपठित गद्यां श पयठ्यपुस्तक ां से नह ां ठिए
जयते। ये ऐसे गद्यांश ह ते हैं ठजन्हें छयत् ां ने कभ नह ां पढय ह तय। इस प्रकयर के गद्यांश िे कर ठिद्यठथि य ां से
उन पर आधयररत प्रश्न पूछे जयते हैं ।

अपठित गद्यां श ां के उत्तर िे ने से पूिि ठनम्नठिखित बयत ां कय ध्ययन रिनय चयठहए।

 ठिए गए गद्यांश क कम से कम ि त न बयर अिश्य पढ िें ।


 पूछे गए प्रश्न ां के उत्तर ां क रे ियां ठकत कर िें ।
 प्रश्न ां के उत्तर पूर तरह समझकर सरि भयषय में ठििें।
 भयषय व्ययकरण सम्मत ह न चयठहए।
 उत्तर गद्यां श यय कयव्ययां श से ह नय चयठहए। उसमें अपने ठिचयर समयठहत कर उत्तर नह ां िे नय चयठहए।
 सभ उत्तर िे ने के बयि उन्हें एक बयर अिश्य पढ िें ।

1. समय बहुत मूल्ययियन ह तय है । यह ब त जयए त ियि -ां कर ड ां रुपये िचि करके भ इसे ियपस नह ां
िययय जय सकतय। इस सांसयर में ठजसने भ समय क कद्र क है , उसने सुि के सयथ ज िन गुजयरय है और
ठजसने समय क बबयि ि क , िह िुि ह बबयि ि ह गयय है । समय कय मूल्य उस खिियड से पूठछए, ज
सेकांड के स ि
ां े ठहस्से से पिक चूक गयय ह । स्टे शन पर िड रे िगयड एक ठमनट के ठििांब से छूट जयत
है । आजकि त कई ठिद्यिय ां में िे र से आने पर ठिद्यिय में प्रिे श भ नह ां करने ठियय जयतय। छयत् ां क
त समय कय मूल्य और भ अच्छ तरह समझ िे नय चयठहए, क् ठां क इस ज िन क कद्र करके िे अपने
ज िन के िक्ष्य क पय सकते हैं ।

1) उपर क्त गद्यां श में क मत ठकसे मयनय गयय है ?


(i) ज िन क (ii) अनुशयसन क
(iii) समय क (iv) िेि क

2) ठकसने सुि के सयथ ज िन गुजयरय ?


(i) ठजसने िु ठनयय में िूब धन कमययय (ii) ठजसने म ि बयण ब ि
(iii) ठजसने समय क कद्र क (iv) ठजसने समय क बबयिि ठकयय

3) सेकांड के स िें ठहस्से से पिक क न चूक जयतय है ?


(i) खिियड ठजसने मयमूि अांतर से पिक गांिय ठियय ह (ii) िह ययत् ठजसक टर े न छूट गई
(iii) उपयुिक्त ि न ां ि ग (iv) इनमें क ई नह ां
4) छयत् ां क समय क कद्र करने से क्य ियभ ह तय है ?
(i) िे स्वस्थ ह जयते हैं । (ii) िे मेधयि बन जयते हैं ।
(iii) िे सभ ठिषय ां में 100% अांक प्रयप्त करते हैं । (iv) िे ि कठप्रय ह जयते हैं ।

5) इस गद्यां श कय उपयुक्त श षिक ह गय ।


(i) समय कय मूल्य (ii) ज िन कय िक्ष्य
(iii) ठिद्यथी ज िन में समय कय महत्त्व (iv) अनुशयसन

2. बढत जनसांख्यय ने अनेक प्रकयर क समस्ययओां क जन्म ठियय है-र ट , कपडय, मकयन क कम ,
बेर जगयर , ठनरक्षतय, कृठष एिां उद् ग ां के उत्पयिन ां में कम आठि। हम ठजतन अठधक उन्नठत करते हैं यय
ठिकयस करते हैं, जनसांख्यय उसके अनुपयत में बढ जयत है । बढत जनसांख्यय के समक्ष हमयरय ठिकयस बहुत
कम रह जयतय है और ठिकयस कययि ठिियई नह ां िे ते। बढत जनसांख्यय के समक्ष सभ सरकयर प्रययस
असफि ठिियई िे ते हैं । कृठष उत्पयिन और औद् ठगक ठिकयस बढत जनसांख्यय के सयमने नगण्य ठसद्ध ह
रहे हैं । इन सभ बयत ां क ध्ययन में रिते हुए जनसांख्यय िृखद्ध पर ठनयत्ांण क अठत आिश्यकतय है । इसके
ठबनय ठिकयस के ठिए ठकए गए सभ प्रकयर के प्रयत्न अधूरे रह जयएँ गे।
1) बढत जनसांख्यय से ठकसमें कम आई है ?
(i) बेर जगयर (ii) गर ब
(iii) ठनरक्षरतय (iv) कृठष एिां उद् ग ां के उत्पयिन ां में

2) जनसांख्यय बढने से ठकन च ज ां में बढ त्तर हुई है ?


(i) ि ग ां के कययि करने क क्षमतय में (ii) ठशक्षय में
(iii) गर ब एिां बेर जगयर में (iv) ि ग ां के स्वयस्थ्य में

3) हमयरय ठिकयस कययि ठिियई नह ां िे तय, क् ठां क…….


(i) ठिकयस के अनुपयत में जनसांख्यय िृठध अठधक है । (ii) जनसांख्यय िृखद्ध कम हैं।
(iii) उपयुिक्त ि न ां । (iv) इनमें से क ई नह ां

4) सरकयर प्रययस कैस ठिि रह है ?


(i) अठधक (ii) कम
(iii) सफि (iv) असफि

5) इस गद्यां श कय उपयुक्त श षिक ह गय ।


(i) ठनरक्षतय (ii) ज िन कय िक्ष्य
(iii) ठिकयस (iv) बढत जनसांख्यय
काययपठिका: अपठठत बोध

नाम: ठिनाांक:

प्र1)गद्ाांश पढकर उठित उत्तर का ियन कीठजए--


सांसयर में सबसे मूल्यियन िस्तु समय है क् ठां क िु ठनयय क अठधकयां श िस्तुओां क घटययय-बढययय जय सकतय
है , पर समय कय एक क्षण भ बढय पयनय व्यखक्त के बस में नह ां है । समय के ब त जयने पर व्यखक्त के पयस
पछतयिे के अियिय कुछ नह ां ह तय। ठिद्यथी के ठिए त समय कय और भ अठधक महत्त्व है । ठिद्यथी ज िन
कय उद्दे श्य है ठशक्षय प्रयप्त करनय। समय के उपय ग से ह ठशक्षय प्रयप्त क जय सकत है । ज ठिद्यथी अपनय
बहुमूल्य समय िेि-कूि, म ज-मस्त तथय आिस्य में ि िे ते हैं िे ज िन भर पछतयते रहते हैं , क् ठां क िे
अच्छ ठशक्षय प्रयप्त करने से िांठचत रह जयते हैं और ज िन में उन्नठत नह ां कर पयते । मनुष्य कय कति व्य है ठक
ज क्षण ब त गए हैं , उनक ठचांतय करने के बजयय ज अब हमयरे सयमने हैं , उसकय सिु पय ग करें ।

1) समय को सबसे अमूल्य वस्तु क्ोां कहा गया है ?


(i) इसकय एकक्षण भ घटययय-बढययय नह ां जय सकतय (ii) समय व्यखक्त के िश में नह ां है ।
(iii) समय ह व्यखक्त के ज िन क बिि सकतय है (iv) मनुष्य उस समय क गठत क नह ां र क
सकतय

2) ठवद्ार्थी जीवन का उद्दे श्य है ?


(i) ज िन क सुि बनयनय (ii) गुरुओां कय आिे श मयननय
(iii) व्यखक्त के ज िन में समय कय महत्त्व (iv) ठशक्षय प्रयप्त करनय

3) ठवद्ार्थी जीवन िर क्ोां पछताते रहते हैं ?


(i) क् ठां क िे आिस ह ते हैं (ii) ज अपनय क मत समय म ज मस्त और
आिस्य में ि िे ते हैं ।
(iii) ज ज्ञयन प्रयप्त नह ां करते । (iv) ज ठिद्यथी मयतय-ठपतय और गुरुओां क
आज्ञय कय पयिन नह ां करते

4) सांमय के सांबांध में व्यक्ति का क्ा कतय व्य बताया गया है ?


(i) पररश्रम करें (ii) मन िगयकर पढयई करें
(iii) ब ते समय के बयरे में पश्चयतयप न करके िति मयन (iv)असफि ह ने पर ठनरयश न ह ,ां पुनः प्रययस करें
समय कय सिु पय ग करें

5) उपयुयि गद्ाांश का उपयुि शीर्यक सुझाइए।


(i) समय कय सिु पय ग (ii) समय और मनुष्य
(iii) ठिद्यथी और समय (iv) अमूल्य समय उत्तर
काययपठिका: अपठठत बोध

नाम: ठिनाांक:

प्र1) गद्ाांश पढकर उठित उत्तर का ियन कीठजए--


गरम के इस प्रक प से अपने आपक बचयने के ठिए मनुष्य ने उपयय ि ज ठनकयिे हैं । सयधयरण आय ियिे
घर ां में ठबजि के पांिे चि रहे हैं , ज नर-नयररय ां क पस ने से रक्षय करते हैं । अम र ां के यहयँ ियतयनुकूिन
यांत् िगे हैं । समथि जन गरम से बचने के ठिए पहयड स्थि ां पर चिे जयते हैं और ज्येष्ठ क तपत ि पहर
पहयड क िां ड हियओां में ठबतयते हैं । प्ययस बुझयने के ठिए श ति पे य है बर्फि और बर्फि से बने पियथि ग्र ष्म के
शत्ु और ि ग ां के ठिए िरियन हैं ।

1) गरमी के प्रकोप से बिने के ठलए ठकसने उपाय खोज ठनकाले हैं ?


(i) मछठिय ां ने (ii) जयनिर ां ने
(iii) मनुष्य ां ने (iv) इन सभ ने

2) अमीरोां के यहााँ क्ा लगे हुए हैं ?


(i) ियतयनुकूिन के यांत् (ii) भूकांपर ध यांत्
(iii) पर क्षण यांत् (iv) उपयुिक्त सभ

3) समर्थय जन गरमी से बिने के ठलए कहााँ िले जाते हैं ?


(i) ठहमयिय पर (ii) ठशमिय
(iii) पहयड ां पर (iv) कन्ययकुमयर

4) प्यास बुझाने के ठलए क्ा है ?


(i) पयन (ii) श ति पेय
(iii) घडे कय जि (iv) ठिज कय जि

5) गरमी में आम लोगोां के ठलए क्ा है?


(i) बर्फि और बर्फि से बने पियथि (ii) श ति पेय
(iii) पयन (iv) प्ययऊ
काययपठिका: अपठठत बोध
नाम: ठिनाांक:

प्र1) गद्ाांश पढकर उठित उत्तर का ियन कीठजए-


सांसयर में शयां ठत, व्यिस्थय और सद्भयिनय के प्रसयर के ठिए बुद्ध, ईसय मस ह, मुहम्मि चैतन्य, नयनक आठि
महयपुरुष ां ने धमि के मयध्यम से मनुष्य क परम कल्ययण के पथ कय ठनिे श ठकयय, ठकांतु बयि में यह धमि
मनुष्य के हयथ में एक अस्त्र बन गयय। धमि के नयम पर पृथ्व पर ठजतनय रक्तपयत हुआ उतनय और ठकस
कयरण से नह ां। पर ध रे -ध रे मनुष्य अपन शु भ बुठध से धमि के कयरण ह ने ियिे अनथि क समझने िग गयय
है । भ ग ठिक स मय और धयठमिक ठिश्वयसजठनत भेिभयि अब धरत से ठमटते जय रहे हैं । ठिज्ञयन क प्रगठत
तथय सांचयर के सयधन ां में िृखद्ध के कयरण िे श ां क िू ररययँ कम ह गई हैं । इसके कयरण मयनि-मयनि में घृणय,
ईष्यय िैमनस्य कटु तय में कम नह ां आई। मयनि य मू ल्य ां के महत्त्व के प्रठत जयगरूकतय उत्पन्न करने कय
एकमयत् सयधन है ठशक्षय कय व्ययपक प्रसयर।

1) मनुष्य अधमय के कारण होने वाले अनर्थय को कैसे समझने लगा है ?


(i) सांत ां के अनुभि से (ii) िणि भेि से
(iii) घृणय, ईष्ययि , िैमनस्य, कटु तय से (iv) अपन शुभ बुठध से

2) ठवज्ञान की प्रगठत और सांिार के साधनोां की वृक्ति का पररणाम क्ा हुआ है ?


(i) िे श ां में ठभन्नतय बढ है । (ii) िे श ां में िैमनस्यतय बढ है ।
(iii) िे श ां क िू ररययँ कम हुई है । (iv) िे श ां में ठििे श व्ययपयर बढय है ।

3) िे श में आज िी कौन-सी समस्या है ?


(i) नर्फरत क (ii) िणि -भेि क
(iii) सयां प्रियठयकतय क (iv) अम र -गर ब क

4) ठकस कारण से िे श में मानव के बीि, घृणा, ईष्या, वैमनस्यता एवां कटु ता में कमी नही ां आई है ?
(i) नर्फरत से (ii) सयां प्रियठयकतय से
(iii) अम र -गर ब के कयरण (iv) िणि -भेि के कयरण

5) मानवीय मूल्योां के महत्त्व के प्रठत जागरूकता उत्पन्न करने का एकमाि साधन है ……|
(i) ठशक्षय कय व्ययपक प्रसयर (ii) धमि कय व्ययपक प्रसयर
(iii) प्रेम और सद्भयिनय कय व्ययपक प्रसयर (iv) उपयुिक्त सभ

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