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अपठित बोध (Unseen Comprehension)

अपठित गद्यां श कय अभ्ययस करने से ठिद्यठथियोां में गद् के भयि को समझकर प्रश्ोां के उत्तर ढूँ ढ़ने की
क्षमतय कय ठिकयस तो होतय ही है , सयथ-ही-सयथ व्ययकरण सांबांधी ज्ञयन में भी िृद्धि होती है ।
1. मयनि जयठत को अन्य जीिधयररयोां से अलग करके महत्त्व प्रदयन करने ियलय जो एकमयत्र गुरु है , िह है
उसकी ठिचयर-शद्धि। मनुष्य के पयस बुद्धि है , ठििेक है, तकिशद्धि है अथयि त उसके पयस ठिचयरोां की
अमल्य पूँजी है। अपने सठिचयरोां की नीांि पर ही आज मयनि ने अपनी श्रेष्ठतय की स्थयपनय की है और
मयनि-सभ्यतय कय ठिशयल महल खडय ठकयय है । यही कयरण है ठक ठिचयरशील मनुष्य के पयस जब
सठिचयरोां कय अभयि रहतय है तो उसकय िह शन्य मयनस कुठिचयरोां से ग्रस्त होकर एक प्रकयर से शै तयन के
िशीभत हो जयतय है । मयनिी बुद्धि जब सद्भयिोां से प्रेररत होकर कल्ययणकयरी योजनयओां में प्रिृत्त रहती है
तो उसकी सदयशयतय कय कोई अांत नहीां होतय, ठकांतु जब िहयूँ कुठिचयर अपनय घर बनय ले ते हैं तो उसकी
पयशठिक प्रिृठत्तययूँ उस पर हयिी हो उिती हैं । ठहां सय और पयपयचयर कय दयनिी सयम्रयज्य इस बयत कय
द्ोतक है ठक मयनि की ठिचयर-शद्धि, जो उसे पशु बनने से रोकती है , उसकय सयथ दे ती है ।
(क) मानव जाठत को महत्त्व दे ने में ठकसका योगदान है ?
(i) शयरीररक शद्धि कय
(ii) पररश्रम और उत्सयह कय
(iii) ठििेक और ठिचयरोां कय
(iv) मयनि सभ्यतय कय
(ख) ठवचारोों की पूँ जी में शाठमल नही ों है -
(i) उत्सयह
(ii) ठििेक
(iii) तकि
(iv) बुद्धि
(ग) मानव में पाशठवक प्रवृठियाूँ क्ोों जागृत होती हैं ?
(i) ठहां सयबुद्धि के कयरण
(ii) असत्य बोलने के कयरण
(iii) कुठिचयरोां के कयरण
(iv) स्वयथि के कयरण
(घ) “मनुष्य के पास बुद्धि है , ठववेक है , तककशद्धि है ’ रचना की दृठि से उपयुकि वाक् है -
(i) सरल
(ii) सांयुि
(iii) ठमश्र
(iv) जठिल
(ङ) गद्ाोंश का उपयुि शीर्कक हो सकता है -
(i) मनुष्य कय गुरु
(ii) ठििेक शद्धि
(iii) दयनिी शद्धि
(iv) पयशठिक प्रिृठत्त
2. बयतचीत करते समय हमें शब्ोां के चयन पर ठिशे ष ध्ययन दे नय चयठहए, क्ोांठक सम्मयनजनक शब्
व्यद्धि को उदयत्त एिां महयन बनयते हैं । बयतचीत को सुगम एिां प्रभयिशयली बनयने के ठलए सदै ि प्रचठलत
भयषय कय ही प्रयोग करनय चयठहए। अत्यांत सयठहद्धत्यक एिां द्धिष्ट भयषय के प्रयोग से कहीां ऐसय न हो ठक
हमयरय व्यद्धित्व चोि खय जयए। बयतचीत में केिल ठिचयरोां कय ही आदयनप्रदयन नहीां होतय, बद्धि व्यद्धित्व
कय भी आदयन-प्रदयन होतय है । अतः ठशक्षक िगि को शब्ोां कय चयन सोच-समझकर करनय चयठहए।
ठशक्षक ियस्ति में एक अच्छय अठभनेतय होतय है , जो अपने व्यद्धित्व, शै ली, बोलचयल और हयिभयि से
ठिद्यठथि योां कय ध्ययन अपनी ओर आकठषित करतय है और उन पर अपनी छयप छोडतय है ।
(क) ठशक्षक होता है
(i) रयजनेतय
(ii) सयठहत्यकयर
(iii) अठभनेतय
(iv) कठि
(ख) बातचीत में ठकस प्रकार की भार्ा का प्रयोग करना चाठहए?
(i) अप्रचठलत
(ii) प्रचठलत
(iii) द्धिष्ट
(iv) रहस्यमयी
(ग) ठशक्षक वगक को बोलना चाठहए?
(i) सोच-समझकर
(ii) ज्ययदय
(iii) ठबनय सोचे-समझे
(iv) तु रांत
(घ) बातचीत में आदान-प्रदान होता है –
(i) केिल ठिचयरोां कय
(ii) केिल भयषय कय
(ii) केिल व्यद्धित्व कय
(iv) ठिचयरोां एिां व्यद्धित्व कय
(ङ) उपयुकि गद्ाोंश का उठचत शीर्कक है
(i) बयतचीत की कलय
(ii) शब्ोां कय चयन
(iii) सयठहद्धत्यक भयषय
(iv) व्यद्धित्व कय प्रभयि

3. मनुष्य को चयठहए ठक सांतुठलत रहकर अठत के मयगों कय त्ययगकर मध्यम मयगि को अपनयए। अपने
सयमर्थ्ि की पहचयन कर उसकी सीमयओां के अांदर जीिन ठबतयनय एक कठिन कलय है । सयमयन्य पुरुष
अपने अहां के िशीभत होकर अपनय मल्ययां कन अठधक कर बैितय है और इसी के फलस्वरूप िह उन
कययों में हयथ लगय दे तय है जो उसकी शद्धि में नहीां हैं । इसठलए सयमर्थ्ि से अठधक व्यय करने ियलोां के
ठलए कहय जयतय है ठक ‘ते ते पयूँ ि पसयररए, जेती लयां बी सौर’। उन्ीां के ठलए कहय गयय है ठक अपने सयमर्थ्ि ,
को ठिचयर कर उसके अनुरूप कययि करनय और व्यथि के ठदखयिे में स्वयां को न भुलय दे नय एक कठिन
सयधनय तो अिश्य है , पर सबके ठलए यही मयगि अनुकरणीय है।
(क) अठत का मागक क्ा होता है?
(i) असांतुठलत मयगि
(ii) सांतुठलत मयगि
(iii) अमययि ठदत मयगि
(iv) मध्यम मयगि
(ख) कठिन कला क्ा है ?
(i) सयमर्थ्ि के ठबनय सीमयरठहत जीिन ठबतयनय
(ii) सयमर्थ्ि को ठबनय पहचयने जीिन ठबतयनय
(iii) सयमर्थ्ि की सीमय में जीिन ठबतयनय
(iv) सयमर्थ्ि न होने पर भी जीिन ठबतयनय
(ग) मनुष्य अहों के वशीभत होकर
(i) अपने को महत्त्वहीन समझ ले तय है ।
(ii) ठकसी को महत्त्व दे नय छोड दे तय है ।
(iii) अपनय सििस्व खो बैितय है ।
(iv) अपनय अठधक मल्ययां कन कर बैितय है ।
(घ) “ते ते पाूँव पसाररए, जेती लाोंबी सौर’ का आशय है
(i) सयमर्थ्ि के अनुसयर कययि न करनय
(ii) सयमर्थ्ि के अनुसयर कययि करनय
(iii) व्यथि कय ठदखयिय करनय
(iv) आय से अठधक व्यय करनय
(ङ) प्रस्तुत गद्ाोंश का शीर्कक हो सकता है
(i) आय के अनुसयर व्यय
(ii) ठदखयिे में जीिन ठबतयनय
(iii) सयमर्थ्ि से अठधक व्यय करनय
(iv) सयमर्थ्ि के अनुसयर कययि करनय

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