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पाठ-अनुच्छेद ले खन (Paragraph Writing)

किसी किषय िे सभी क िंदुओिं िो अत्यिंत सारगकभित ढिं ग से एि ही अनुच्छेद में प्रस्तुत िरने िो
अनुच्छेद िहा जाता है । अनुच्छेद ‘कन िंध’ िा सिंकिप्त रूप होता है । इसमें किसी किषय िे किसी एि
पि पर 75 से 100 शब्ोिं में अपने किचार प्रिट किए जाते हैं ।
अनुच्छेद ललखते समय लनम्नललखखत बातोों को ध्यान में रखना चालिए।

 अनुच्छेद िी भाषा सरल होनी चाकहए।


 अनुच्छेद िो दी गई शब्-सीमा में ही पूरा िरना चाकहए।
 किषय से सिं िंकधत सभी क िंदुओिं िो अनुच्छेद में समाकहत िरने िा प्रयास िरना चाकहए।
 अनुच्छेद में शब्-सीमा िा ध्यान रखना चाकहए। छठी ििा में अनुच्छेद िी शब्-सीमा 75-100
शब् हो सिती है।
 अनुच्छेद में भूकमिा आकद िे स्थान पर सीधे ही किषय पर आ जाना चाकहए।

परोपकार
‘परोपिार’ दो शब्ािं शोिं पर + उपिार से कमलिर ना है , कजसिा अथि है -दू सरे िी भलाई िरना।
परोपिारी मनुष्य ही सच्चे अथों में मनुष्य है क्ोिंकि िह िेिल अपने कलए नहीिं जीता, िह पूरे समाज िा
भला चाहता है । सिंपूर्ि सिंसार िे िल्यार् में िह अपना जीिन अकपित िर दे ता है । यही िारर् है कि
परकहत अथिा परोपिार िो स से डा धमि माना गया है । िास्तकिि मनुष्य िह है जो अपने सुख से
अकधि दू सरे िे सुख िो महत्त्व दे । मानि सिंस्कृकत िी प्राचीनता ि कनरिं तरता िा िारर् परोपिार है ।
परोपिार प्रिृकत भी िरती है । नदी मानि िल्यार् िे कलए हती है । िृि दू सरोिं िे कलए फल उत्पन्न
िरते हैं, मेघ प्रार्ी जगत िे कलए रसते हैं। ऋकष दधीकच, राजा कशकि, महादानी िर्ि, महात्मा ुद्ध,
गािं धी, ले कनन आकद ने मानि िल्यार् िे कलए अपना जीिन अकपित िर कदया। अतः परोपिार में सिंिोच
नहीिं िरना चाकहए। हमें व्यक्तिगत हाकन-लाभ से ऊपर उठिर जन-िल्यार् िी भािना से िमि िरना
चाकहए।
पढे गा इों लिया,बढे गा इों लिया

किसी दे श िी उन्नकत िा स से सही माध्यम कशिा ही है । दे श िा हर नागररि कजतना अकधि कशकित


होगा, दे श उतनी ही ते जी से तरक्की िरे गा। सरिार ने इस ात िो जान कलया है , इसी िारर् दे श में
सभी िो कशकित ि सािर नाने िे कलए अनिानेि योजनाएँ चलाई जा रही हैं । च्चोिं िे हाथोिं में पुस्तिें
दे खिर कितनी खुशी कमलती है , कििंतु दे श िा दु भाि ग्य है कि आज भी हर च्चे िे पास पुस्ति नहीिं है ,
पुस्तिोिं िी जगह उनिे हाथोिं में फािडा, तिन, िूडे िी पकन्नयाँ आकद हैं । ‘ ालश्रम एि अपराध है ’ यह
िाक् स िहने भर िो है , सच्चाई इसिे ठीि किपरीत है । आज भी धनी घरोिं में नन्हें हाथ मज ूरी में
फ़शि पर पोिंछा लगाते हुए कदखाई दे जाते हैं या जूतोिं िी पॉकलश िो चमिाते हुए। अतः हम स यह
ात अच्छी तरह जानते हैं कि क ना पढ़ कलखिर दे श िी सही उन्नकत नहीिं हो सिती।।

पररश्रम का मित्त्व

मानि जीिन में पररश्रम िा अत्यकधि महत्त्व है । यह सभी प्रिार िी उपलक्ति अथिा सफलता िा
आधार है । पररश्रमी मनुष्योिं ने मानि-जाकत िे उत्थान में अतीि योगदान कदया है । हमारी िैज्ञाकनि
उन्नकत िे पीछे अथि पररश्रम िा हुत डा योगदान रहा है । अपने पररश्रम िे सहारे मानि सुदूर
अिंतररि में जा पहुँ चा है । अतः पररश्रम से चने िी िोकशश नहीिं िरनी चाकहए। कजसे राष्ट्र िे नागररि
पररश्रम िो महत्त्व नहीिं दे ते, िह राष्ट्र सिंसार िे अन्य दे शोिं से कपछड जाता है । यही िारर् है कि हमारे
महापुरुषोिं ने लोगोिं िो पररश्रम िरते रहने िी सलाह दी है । िोई भी िायि पररश्रम िरने से ही पूरा
होता है । िेिल इच्छा िरने से नहीिं क्ति किसी ध्येय िी प्राक्तप्त िे कलए पररश्रम िरना अत्यािश्यि
है ।
मीठी वाणी का मित्त्व

‘िार्ी’ ही मनुष्य िो लोिकप्रय नाती है । यकद मनुष्य मीठी िार्ी ोले, तो िह स िा प्यारा न जाता है
और कजसमें अनेि गुर् होते हुए भी यकद उसिी ‘िार्ी’ मीठी नहीिं है तो उसे िोई पसिंद नहीिं िरता।
इस उदाहरर् िो िोयल और िौआ िे तथ्य से अच्छी तरह से समझा जा सिता है । दोनोिं दे खने में एि
समान होते हैं , परिं तु िौए िी िििश आिाज और िोयल िी मधुर िार्ी दोनोिं िी अलग-अलग पहचान
नती है, इसकलए िौआ स िो अकप्रय और िोयल स िो कप्रय लगती है । मीठी िार्ी ोलने िाले िभी
क्रोध नहीिं िरते क्ति प्रेम सौहादि से समाज में मेल-जोल ढ़ाते हैं।

प्रात:कालीन सैर

प्रात:िाल िी सैर िा आनिंद अनूठा होता है । इस समय िातािरर् शािंत एििं स्वच्छ होने से तन-मन िो
अद् भुत शािं कत एििं राहत कमलती है। प्रात:िालीन सैर से व्यक्ति कनरोगी रहता है । कदन भर िायि िरने
िी ताित एििं स्फूकति कमल जाती है । िायि िरने में मन लगता है और थिािट नहीिं होती है ।
प्रात:िालीन सैर से अनेि रोगोिं िा कनिारर् होता है । शरीर िो शु द्ध, प्रदू षर् रकहत हिा प्राप्त होती है ।
पाचन शक्ति ढ़ती है । मोटापा, मधुमेह इत्याकद ीमाररयोिं से मुक्ति कमल सिती है । अतः प्रात:िाल िी
सैर अनेि रूपोिं में लाभदायि कसद्ध होती है । हमें प्रात:िाल िी सैर िा आनिंद अिश्य उठाना
चाकहए।
भारतीय लकसान
भारतीय किसान धूप-िषाि , आिं धी-पानी, सदी-गमी, चाहे िोई भी मौसम हो, भारतीय किसान कदन-रात
खेती में जु टा रहता है । किसान समाज िा अन्नदाता है । किसान कदन-रात पररश्रम िरिे तरह-तरह िी
फल-सक्तियोिं और अनाज िो अपने खेतोिं में उगाता है । किसान िे प्यारे साथी हैं - हल और ैल। किसान
खेतोिं में हल चलाता है , ीज ोता है, और उन्हें सीिंचता है । िह पशु -पकियोिं से खेतोिं िी रिा िरता है ।
जिं गली पौधोिं िो खेतोिं में से उखाडता है । धीरे -धीरे पौधे ढ़ते हैं । किसान पौधोिं िो ढ़ता दे खिर खुश
होता है । ज फसल पिती है तो पिने िे ाद उन्हें िाटता है । किसान िा सारा पररिार खेतोिं में जु टा
रहता है । इतने पररश्रम िे ाद किसानोिं िे खकलहान भरते हैं । किसान िी मेहनत सफल होती है । िह
रात िो चैन िी नीिंद सोता है । अनाज िो मिंडी पहुँ चाता है और धन पाता है । अ कफर समय आता है
खेतोिं में ुआई िरने िा। भारतीय किसान हल और ैल ले िर खेत पहुँ च जाता है। उसे कफर आँ धी-
तू फ़ान िी कचिंता सताने लगती है । िह फसल िो अपने पसीने से सीिंचता है । इसकलए िहा गया है - “जय
किसान”।
काययपलिका: अनुच्छेद ले खन

नाम: लदनाोंक:

मेरा लप्रय शौक


काययपलिका: अनुच्छेद ले खन

नाम: लदनाोंक:

पे ड़ - पौधे और िम
काययपलिका: अनुच्छेद ले खन

नाम: लदनाोंक:

मेट्रो रे ल का सफ़र
काययपलिका: अनुच्छेद ले खन

नाम: लदनाोंक:

इों ट्रने ट् का दु रुपयोग

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