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मुकरियों की व्याख्या
मुकरियों की व्याख्या
2. इस मक
ु री में पहली सखी दस
ू री सखी से कहती है कक आज यह दिा हो गयी है कक
तीन बुलाने पर तेरह व्यश्क्त सामने आकार खड़े हो जाते हैं। वे सभी अपना अपना
दख
ु ड़ा सुनाते हैं। वे कहते हैं कक पढ़ते पढ़ते आूँखें फूट गयी लेककन पेट भरने का कोई
उपाय नहीीं है। अथाित ् रोजगार नहीीं शमला। दस
ू री सखी प्रचन पूछती है कक क्या तुम
सज्जनों के बारे में कह रही हो? तब पहली सखी कहती है कक नहीीं मैं तो ग्रेजुएट के
बारे में कह रही हूूँ। यह भारतेन्द ु की दरू दशििता थी कक उन्होंने काफी समय पहले ही
इस समस्या को दे ख शलया था।
6. इस मक
ु री में भारतेन्द ु ने अींग्रेजों के िासन काल में सरकारी कमिचाररयों के रवैये के
बारे में कहा है। युवती अपनी सहे ली से कहती है कक वे कौन है जो केवल अपने
स्वाथि की ही बात करते हैं। केवल अपना काम ननकालने की घात में लगे रहते हैं।
सरकरी वेि-भूर्ा में सजकर इधर-उधर घूमते हैं। सहे ली उत्तर दे ती हैं कक क्या वे
सज्जन है तो उत्तर में सखी कहती है कक नहीीं। वे सरकारी कमिचारी है। अींग्रेजों के
िासन काल में सरकरी कमिचाररयों की चाूँदी-ही-चाूँदी थी। अींग्रेज़ तो भारनतयों का
िोर्ण करते ही थे, भारतीय सरकारी कमिचारी भी अींग्रेजों से ककसी भी मायने में कम
नहीीं थे। सच्चाई तो यह है कक तब से आज तक सरकरी कमिचाररयों के रवैये में कोई
खास फकि नहीीं आया है । वे आज भी आम जनता को दोनों हाथों से लूट रहे हैं। फकि
केवल इतना ही आया है कक पहले हमे गोरे लूट रहे थे लेककन आज हमारे ही लोग
हमे लूट रहे हैं।
7. भारतेन्द ु द्वारा रर्चत इस मक
ु री में एक सखी दस
ू री सखी से कहती है कक बताओ
वह कौन है जो अपना रूप ददखाकर जनता का सब कुछ लूट लेता है । जो उसके फींदे
में एक बार पड़ गया वह कभी छुट नहीीं पता है । उसके हृदय में कपट रूपी कटारी है
और लूट लेने का भरपूर उमींग। दस
ू री सखी कहती है क्या यह कोई सज्जन है ? उत्तर
में पहली सखी कहती है कक नहीीं। यह तो पुशलस है । उकलेखनीय है कक अींग्रेजों के
िासन काल से आम आदमी के मन में पशु लस के प्रनत बहुत बरु ी भावनाएूँ हैं। लोग
पुशलस को गाली-गलोच करने वाला, चररत्रहीन, निाखोर आदद समझते हैं। यही कारण
है यदद जनता ककसी घटना के बारे में जानती है तो वह जानकारी दे ना नहीीं चाहती
और न ही सहयोग करना चाहती है । इन सब के पीछे पुशलस का जनता के प्रनत बुरा
व्यवहार है। जब तक पुशलस अपने व्यवहारों में सुधार नहीीं लाती है तब तक उसकी
छवव में सध
ु ार नहीीं हो सकता है ।
10. इस मक
ु री में पहली सखी दस
ू री सखी से यह बझ
ु ने को कहती है कक बताओ वह कौन
है श्जसके गभि में सौ-सौ पुत्र है तथा वे मजबूत है । वे अपना काम बड़े चालाकी और
तेज रफ्तार से कर दे ते हैं। दस
ू री सखी अींदाजा लगाकर कहती है कक क्या वह कोई
सज्जन है ? उत्तर में पहली सखी कहती है कक नहीीं, वह तो छापाखाना है। आज के
छापाखाना काफी ववकशसत है। लेककन िुरू में ऐसा नहीीं था। अक्षरों को छापने के शलए
लकड़ी की तचतरी हुआ करती थी। श्जसमें छोटे -छोटे खाने बने होते थे। इन्हीीं खानों में
एक-एक अक्षर या मात्र को रखे जाते थे। इन्हीीं अक्षरों को क्रम में सजाकर फ्रेम में
कसा जाता था। इस फ्रेम को वप्रींदटींग मिीन में लगाकर स्याही के माध्यम से छापा
जाता था। भारत का पहला छापाखाना पुतग
ि ाशलयों ने स्थावपत ककया था।
12. प्रस्तुत मुकरी में भारतेन्द ु ने अींग्रेजी िासन काल में राजा, जमीींदारों को ददये जाने
वाले खखताब के बारे में कहा है । एक सखी दस
ू रे से पछ
ू ती है कक वह कौन सी चीज
है श्जसे पाने के शलए इनकी-उनकी खखदमत अथाित ् खुिामद करनी पड़ती है । उन्हें
बार-बार रुपये दे ने पड़ते हैं। दस
ू री सखी उत्तर दे ते हुये कहती हैं कक क्या वह कोई
सज्जन है ? पहली सखी कहती है कक वह कोई सज्जन नहीीं बश्कक अींग्रेजों के द्वारा
ददया जाने वाला खखताब या उपार्ध है। खखताब ककसी उपार्ध को कहते हैं। जो ककसी
नाम के साथ लगाया जाता है। जैसे- राजासाहब, रायबहादरु , नवाब आदद। ये खखताब
अींग्रेजों के िासन काल में ददये जाते थे। इन खखताबों को पाने के शलए जमीींदारों को
अींग्रेजी सरकार को भारी रकम दे नी पड़ती थी। उनसे बार बार पैसे शलए जाते थे।
कहने को तो इन खखताबों से सामाश्जक प्रनतष्ठा बढ़ती थी लेककन वास्तववकता तो
यही थी कक खखताब लेने वाले की ककस्मत ही फूट जाती थी। अींग्रेजों के द्वारा खखताब
वैसे लोगों को ददये जाते थे जो उनकी चापलस
ू ी करते थे। एन. गोपालस्वामी अय्यींगर
को अींग्रेज़ के प्रनत वफादारी ददखने के बदले में अींग्रेजों ने सन ् 1931 में नैट हूड़ की
उपार्ध से सम्माननत ककया था।