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1.

भारतेन्द ु ने इस मुकरी के द्वारा आधुननक शिक्षा व्यवस्था पर चोट की है । आज


पश्चचमी शिक्षा के कारण ववद्यार्थियों में अपने गुरुजनों या शिक्षकों के प्रनत वह
सम्मान की भावना नहीीं रह गयी जो हमारी प्राचीन भारतीय सींस्कृनत में थी। थोड़ी
बहुत पश्चचमी शिक्षा पाकर आज के ववद्याथी दस
ू रों से अपने आपको अलग समझने
लगते हैं। उन्हें ऐसा लगता है ये परु ानी पद्धनत से पढे शलखे लोग उनकी शिक्षा के
सामने कुछ भी नहीीं है। यही सोच ही उन्हें समाज एवीं पररवारजनों से अलग कर दे ता
है। इसी को अपनी खखचड़ी अलग पकाना कहा गया है। सच तो यह है ऐसी शिक्षा
पाने वाले के पास प्रमाणपत्र तो होता है लेककन ज्ञान का अभाव होता है। अपने थोथे
ज्ञान पर ही वे दस
ू रों पर झूठी तेजी ददखते हैं। आखखर यह सब ककसके कारण हो रहा
है? जवाब में सखी कहती है - क्या तम
ु इसके द्वारा ककसी सज्जन के बारे में कह रही
हो?पहली सखी कहती है कक मैं ककसी सज्जन के बारे में नहीीं बश्कक इस अींग्रेजी के
बारे में कह रही हूूँ इसने हमारी भारतीय शिक्षा व्यवस्था, सभ्यता और सींस्कृनत पर
कुठाराघात ककया है।

2. इस मक
ु री में पहली सखी दस
ू री सखी से कहती है कक आज यह दिा हो गयी है कक
तीन बुलाने पर तेरह व्यश्क्त सामने आकार खड़े हो जाते हैं। वे सभी अपना अपना
दख
ु ड़ा सुनाते हैं। वे कहते हैं कक पढ़ते पढ़ते आूँखें फूट गयी लेककन पेट भरने का कोई
उपाय नहीीं है। अथाित ् रोजगार नहीीं शमला। दस
ू री सखी प्रचन पूछती है कक क्या तुम
सज्जनों के बारे में कह रही हो? तब पहली सखी कहती है कक नहीीं मैं तो ग्रेजुएट के
बारे में कह रही हूूँ। यह भारतेन्द ु की दरू दशििता थी कक उन्होंने काफी समय पहले ही
इस समस्या को दे ख शलया था।

3. भारतेन्द ु द्वारा रर्चत प्रस्तत


ु मक
ु री में एक सखी दस
ू रे से यह बझ
ु ने को कह रही है
कक वह कौन व्यश्क्त है जो अपनी बात को सुींदर रीनत से समझाता है। ववधवाओीं के
प्रनत उनका अत्यर्धक स्नेह है। जो दयाननधान और गुखणयों में श्रेष्ठ है । सखी कहती
है क्या ये सज्जन के गण
ु है ? पहली सखी उत्तर में कहती है कक नहीीं ये ववद्यासागर
है। श्जनके गुणों के बारे में मैं कह रही हूूँ। ईचवरचींद्र ववद्यासागर – समाज सुधारक
एवीं शिक्षाववद थे। पीड़ड़त मानवता के प्रनत उनके हृदय में करुणा की भावना थी।
दहन्द ू ववधवाओीं की दयनीय श्स्थनत को दे खकर उनका हृदय रो पड़ा था। इस कुरीनत
को खत्म करने के शलए उन्होंने सींककप कर शलया। धमिग्रींथों के आधार पर अखींड़ित
तकों के द्वारा उन्होंने यह शसद्ध कर ददया कक ववधवा कफर से वववाह कर सकती है।
तब तक ववधवा वववाह को कानूनी अनुमनत नहीीं शमली थी। उन्होंने इसे कानूनी
मान्यता ददलाने के शलए प्रयास िुरू ककया। आखखर कार 1856 में उन्हें सफलता शमल
ही गयी। जब ववधवा वववाह अर्धननयम को 26 जुलाई 1856 को गवनिर जनिल की
स्वीकृनत शमल गयी। और यह अर्धननयम लागू हो गया। पहला ववधवा वववाह 7
ददसींबर 1856 को ववद्यासागर के एक शमत्र राजकृष्ण बनजी के मकान पर उन्हीीं के
द्वारा सम्पन्न कराया गया था।

4. इस मुकरी में एक सखी दस


ू री सखी से कहती है कक वह कौन है जो सीटी बजाकर
अपने पास बुलाता है। बबना रूपाय शलये वह अपने पास बैठने नहीीं दे ता। रुपये ले लेने
पर बड़ी तेज गनत से वह अपने साथ ले भागता है। मानो वह उसके शलए खेल हो।
दस
ू री सखी उत्तर दे ती है क्या वह सज्जन है तो पहली सखी उत्तर दे ते हुए यह कहती
है सज्जन नहीीं बश्कक वह तो रे ल गाड़ी है। भारत में रे ल का इनतहास आज से करीब
168 वर्ि पुराना है। इसकी िुरुआत भारत में अींग्रेजों के िासन काल से हुई। भारतीय
रे लवे में सबसे पहली रे लगाड़ी 18 वीीं सदी में चलाई गयी। दे ि की पहली रे ल 16
अप्रैल 1853 को बींबई के बोरी बींदर स्टे िन से ठाणे के बीच चलायी गयी थी। इस
रे लगाड़ी में लगभग 400 याबत्रयों ने सफर ककया था।

5. प्रस्तुत मुकरी में एक सखी दस


ू रे से कहती हैं- कक अींग्रेजों ने भारनतयों से तरह-तरह
से धन वसूला। लेककन समय आने पर यह काम नहीीं आता। वे धन लेकर भी गलत
राह ददखाते हैं तथा जब जरूरत पड़ती है तब गींग
ू े बन जाते हैं यानन समस्या का कोई
समाधान नहीीं दे ते। दस
ू री सखी कहती है कक क्या यह कोई सज्जन है? जवाब में
पहली सखी कहती है कक नहीीं। यह तो अींग्रेजों के द्वारा लगाई गयी चुींगी है।
उकलेखनीय है कक अींग्रेजों ने भारत को लूटने के शलए तरह-तरह के कानून बनाकर।
जैस-े Central Excise Duty Act, Sales Tax, Income taxआदद। इींकम टै क्स 97
प्रनतित था। अगर 100 रुपये कमाते हैं तो 97 रुपये अींग्रेजों को दे ने होंगे। ऐसा करते
करते अींग्रेजों ने कई प्रकार के टै क्स लगाए और भारत वाशसयों को जी भरकर लूटा।

6. इस मक
ु री में भारतेन्द ु ने अींग्रेजों के िासन काल में सरकारी कमिचाररयों के रवैये के
बारे में कहा है। युवती अपनी सहे ली से कहती है कक वे कौन है जो केवल अपने
स्वाथि की ही बात करते हैं। केवल अपना काम ननकालने की घात में लगे रहते हैं।
सरकरी वेि-भूर्ा में सजकर इधर-उधर घूमते हैं। सहे ली उत्तर दे ती हैं कक क्या वे
सज्जन है तो उत्तर में सखी कहती है कक नहीीं। वे सरकारी कमिचारी है। अींग्रेजों के
िासन काल में सरकरी कमिचाररयों की चाूँदी-ही-चाूँदी थी। अींग्रेज़ तो भारनतयों का
िोर्ण करते ही थे, भारतीय सरकारी कमिचारी भी अींग्रेजों से ककसी भी मायने में कम
नहीीं थे। सच्चाई तो यह है कक तब से आज तक सरकरी कमिचाररयों के रवैये में कोई
खास फकि नहीीं आया है । वे आज भी आम जनता को दोनों हाथों से लूट रहे हैं। फकि
केवल इतना ही आया है कक पहले हमे गोरे लूट रहे थे लेककन आज हमारे ही लोग
हमे लूट रहे हैं।
7. भारतेन्द ु द्वारा रर्चत इस मक
ु री में एक सखी दस
ू री सखी से कहती है कक बताओ
वह कौन है जो अपना रूप ददखाकर जनता का सब कुछ लूट लेता है । जो उसके फींदे
में एक बार पड़ गया वह कभी छुट नहीीं पता है । उसके हृदय में कपट रूपी कटारी है
और लूट लेने का भरपूर उमींग। दस
ू री सखी कहती है क्या यह कोई सज्जन है ? उत्तर
में पहली सखी कहती है कक नहीीं। यह तो पुशलस है । उकलेखनीय है कक अींग्रेजों के
िासन काल से आम आदमी के मन में पशु लस के प्रनत बहुत बरु ी भावनाएूँ हैं। लोग
पुशलस को गाली-गलोच करने वाला, चररत्रहीन, निाखोर आदद समझते हैं। यही कारण
है यदद जनता ककसी घटना के बारे में जानती है तो वह जानकारी दे ना नहीीं चाहती
और न ही सहयोग करना चाहती है । इन सब के पीछे पुशलस का जनता के प्रनत बुरा
व्यवहार है। जब तक पुशलस अपने व्यवहारों में सुधार नहीीं लाती है तब तक उसकी
छवव में सध
ु ार नहीीं हो सकता है ।

8. प्रस्तुत मुकरी में एक सखी दस


ू रे से यह बुझने के शलए कहती है कक वह कौन है जो
भीत ही भीतर लोगों का सब रस चूस लेता है । हूँस-हूँसकर वह तन-मन-धन का नाि
कर िालता है । सामने से बाते करने में तो इतना चतुर है कक लोग उसके झाींसे में आ
जाते हैं। दस
ू री सखी कहती हैं कक क्या वह कोई सज्जन है? पहली सखी उत्तर में
कहती है कक नहीीं वह तो अींग्रेज़ है । अींग्रेजों ने अपने छल पूणि व्यवहार से धीरे -धीरे
पूरे भारत पर अर्धकार जमा शलया था। श्जसे हम मुगलों ने सकतनत बक्ष दी कहानी
के माध्यम से समझ सकते हैं। भारनतयों को उन्होंने अपना गुलाम बना शलया और
भारनतयों का काम बस उनकी सेवा करना था। वेतन के नाम पर लोगों को बहुत कम
पैसे ददये जाते थे। अर्धकाींि काम बेगारी में अथाित्त बबना पैसे के ही करवा शलए जाते
थे। जब अींग्रेज़ भारत आए इन्होंने भारत को राजनीनतक दृश्ष्ट से कमजोर लेककन
आर्थिक दृश्ष्ट से अत्यींत वैभव और ऐचवयि से सम्पन्न पाया। उन्होंने धोखा-धड़ी,
अनैनतकता एवीं भ्रष्टाचार के माध्यम से राज्य हड़पे, अमानवीय कर लगाए तथा
करोड़ों भारनतयों को गरीबी और भुखमरी के गति में धकेल ददया।

9. प्रस्तुत मुकरी में एक सखी दस


ू री से पूछती है कक बताओ वह कौन है जो हर सातवें
और आठवें ददन घर आता है और हमे तरह-तरह की बातें सुनता है । वह घर बैठे ही
सींसार से हमारा सींपकि करा दे ता है। सखी उत्तर दे ती है कक क्या वह कोई सज्जन है ?
उत्तर में पहली सखी कहती है कक नहीीं, वह तो अखबार है। उड़ींत मातंि दहन्दी का
पहला साप्तादहक समाचार पत्र था। श्जसे जुगल ककिोर ने 30 मई 1826 को
प्रकाशित ककया था। तब आज की तरह दै ननक अखबार नहीीं ननकला करते थे। लेककन
सन ् 1854 में सुधावर्िण नामक दै ननक समाचार पत्र का प्रकािन होता है। श्जसे
चयामसींद
ु र ने प्रकाशित ककया था। वतिमान दौर में अनेक दै ननक तथा साप्तादहक
समाचार पत्र प्रकाशित होते हैं। जैसे अमर उजाला, दै ननक जागरण आदद।

10. इस मक
ु री में पहली सखी दस
ू री सखी से यह बझ
ु ने को कहती है कक बताओ वह कौन
है श्जसके गभि में सौ-सौ पुत्र है तथा वे मजबूत है । वे अपना काम बड़े चालाकी और
तेज रफ्तार से कर दे ते हैं। दस
ू री सखी अींदाजा लगाकर कहती है कक क्या वह कोई
सज्जन है ? उत्तर में पहली सखी कहती है कक नहीीं, वह तो छापाखाना है। आज के
छापाखाना काफी ववकशसत है। लेककन िुरू में ऐसा नहीीं था। अक्षरों को छापने के शलए
लकड़ी की तचतरी हुआ करती थी। श्जसमें छोटे -छोटे खाने बने होते थे। इन्हीीं खानों में
एक-एक अक्षर या मात्र को रखे जाते थे। इन्हीीं अक्षरों को क्रम में सजाकर फ्रेम में
कसा जाता था। इस फ्रेम को वप्रींदटींग मिीन में लगाकर स्याही के माध्यम से छापा
जाता था। भारत का पहला छापाखाना पुतग
ि ाशलयों ने स्थावपत ककया था।

11. प्रस्तुत मुकरी में एक सखी दस


ू री सखी से पूछती है कक बताओ वह कौन है जो हर
रोज नई तान सुनाकर दनु नया को अपने जाल में फूँसा लेता है और ददन प्रनतददन वह
बल से िून्य अथाित ् कमजोर करता जाता है । दस
ू री सखी कहती है क्या तुम ककसी
सज्जन के बारे में कह रहे हो? उत्तर में पहली सखी कहती है कक नहीीं मैं तो कानन

के बारे में कह रही हूूँ। जो रोज अींग्रेजों के द्वारा बनाए जाते हैं। अींग्रेजों ने सन ्
1840 से ही भारत के शलए कानून बनाना िुरू कर ददया था। 1857 से उन्होंने भारत
के शलए ऐसे-ऐसे कानून बनाए श्जससे भारत को लूटा जा सके तथा भारनतयों को
हमेिा के शलए गुलामी की जींजीरों में जकड़ा जा सके। बहुत सारे अींग्रेजी कानून तो
ऐसे हैं श्जनका पालन आज़ादी के इतने बरसों बाद भी आज हम कर रहे हैं। जैसे- दीं ि
सींदहता, ववदे िी अर्धननयम आदद। समय-समय पर इनमें सींिोधन भी ककए गए हैं।

12. प्रस्तुत मुकरी में भारतेन्द ु ने अींग्रेजी िासन काल में राजा, जमीींदारों को ददये जाने
वाले खखताब के बारे में कहा है । एक सखी दस
ू रे से पछ
ू ती है कक वह कौन सी चीज
है श्जसे पाने के शलए इनकी-उनकी खखदमत अथाित ् खुिामद करनी पड़ती है । उन्हें
बार-बार रुपये दे ने पड़ते हैं। दस
ू री सखी उत्तर दे ते हुये कहती हैं कक क्या वह कोई
सज्जन है ? पहली सखी कहती है कक वह कोई सज्जन नहीीं बश्कक अींग्रेजों के द्वारा
ददया जाने वाला खखताब या उपार्ध है। खखताब ककसी उपार्ध को कहते हैं। जो ककसी
नाम के साथ लगाया जाता है। जैसे- राजासाहब, रायबहादरु , नवाब आदद। ये खखताब
अींग्रेजों के िासन काल में ददये जाते थे। इन खखताबों को पाने के शलए जमीींदारों को
अींग्रेजी सरकार को भारी रकम दे नी पड़ती थी। उनसे बार बार पैसे शलए जाते थे।
कहने को तो इन खखताबों से सामाश्जक प्रनतष्ठा बढ़ती थी लेककन वास्तववकता तो
यही थी कक खखताब लेने वाले की ककस्मत ही फूट जाती थी। अींग्रेजों के द्वारा खखताब
वैसे लोगों को ददये जाते थे जो उनकी चापलस
ू ी करते थे। एन. गोपालस्वामी अय्यींगर
को अींग्रेज़ के प्रनत वफादारी ददखने के बदले में अींग्रेजों ने सन ् 1931 में नैट हूड़ की
उपार्ध से सम्माननत ककया था।

13. प्रस्तुत मुकरी में पहली सखी दस


ू री सखी से पुछती है कक वह कौन है जो लींगर
(अथाित लोहे का बहुत बड़ा काूँटा) से छूटने के बाद झूमने के शलए खड़ा हो जाता है ।
मौज-मस्ती के शलए खड़ा हो जाता है। जब पररश्स्थनतयाूँ अनुकूल नहीीं होती है , उलटी
गनत में चलकर भी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेती है , सज-धजकर ववशभन्न स्थानों
में घम
ू ती रहती है । भारत में पहली बार अींग्रेज़ जहाज के माध्यम से ही आए थे। उन
जहाजों में अन्य चीजों के साथ अस्त्र-िस्त्र भी थे। अस्त्र-िस्त्र तथा कूटनीनत के बल
पल उन्होंने भारतवर्ि पर अपना अर्धकार कर शलया।
14. प्रस्तुत मुकरी में भारतेन्द ु ने सामाश्जक बुराई की ओर सींकेत ककया है। एक सखी
दस
ू री सखी से पुछती है कक बताओ वह कौनसी चीज है जो एक बार मुींह से लग जाए
कफर छूटती नहीीं। वह जानत, मान-सम्मान, धन सब कुछ लूट लेती है तथा पागल
बना िालती है । मनुष्य को खराब कर दे ती है । उत्तर में दस
ू री सखी कहती है कक क्या
वह कोई सज्जन है। जवाब में पहली सखी कहती है कक नहीीं वह तो िराब है। िराब
का इनतहास बड़ा पुराना रहा है। बड़े लींबे अरसे से पाररवाररक घुटन, टूटन आदद में
िराब का वविेर् योगदान रहा है।

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