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अन्य गद्य विधाएं one shot 2024
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Eklavyasnatak 1
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SATENDER PRATAP SINGH
लोभ और प्रीति निबंध का प्रतिपाद्य ?
उनका मानना ै। तक मूल भाि में 'लोभ और प्रीति' एक समान ै। तकंिु िास्ति में
उनमें कुछ अंिर ै।
उनके अनुसार सामान्य रूप में तकसी िस्तु के प्रति मन में िो ललक ैोिी ै। िै
लोभ ै। और तकसी व्यस्ि तिशेष की चाै प्रीति ै।
उनका मानना ै। तक प्रेम का पूणय तिकास िभी ैोिा ै। िबं दो हृदर् एक-दूसरे की
ओर क्रमशः स्खंचिे हुए चले िािे ैैं
ि।र्स्िक क्षेत्र में प्रेम का प्रभाि सीतमि रूप में रैिा ै। तिसे उन्ोंने एकांतिक प्रेम
कैा ै।
सामातिक क्षेत्र में प्रेम का प्रभाि सामातिक स्तर पर ैोिा ै। ििा र्ै िनतैिकारी
ैोिा ै। र्ै व्यापक ैोिा ै। ििा साैस और िीरिा से भरा रैिा ै।
व्यस्ित्व की अतभव्यस्ि-
िे कैिे ैैं तक ि।ष्णि िन अिायि ईश्वर का सच्चा प्रेमी उसे ैी समझना चातैए
िो दूसरे की पीडा को, कष्ट को आत्मसाि करना िानिा ैो, समझिा ैो
िो दूसरे के दुख को दे खकर दुखी ैो िाए
ि।ष्णि िन िै ैोिा ै। िो ऐसा करिे हुए मन में अतभमान का भाि भी नैी ं लािा
ि।ष्णि िन िै ैोिा ै। िो लोक में सबंकी िंदना करिा ै। अिायि सबंके सामने
नम्रिा से झुकिा ै। , तकसी की तनंदा नैी ं करिा ै।
िो मन, िचन, कमय से तनश्चल बंनकर सद। ि परतैि में लगा रैिा ै। ,
अिायि िाणी से दृढ़ रैिा ै। , आचरण में दृढ़ रैिा ै।
िो एक पत्नी व्रिीारी ैोिा ै।, सत्य िृिपालक ैोिा ै। , र्ानी कभी असत्य नैी ं बंोलिा ै।
र्ै लेख एक ऐसे शीषयक के साि आरं भ ैोिा ै। िो अनार्ास ैी पाठक का ध्यान
आकतषयि करिा ै।
तक तैम रातश को दे खने के तलए मैं अपनी पत्नी के साि कौसानी की र्ात्रा पर गर्ा िा
िे न।नीिाल, रानीखेि, मझकाली के भर्ानक रास्तों को पार करिे हुए कोसी पहुअ चे िे
पूरे रास्ते सूखे पैाड निर आ रैे िे एक िो रास्ता कष्टों से भरा हुआ िा उस पर बंस का
डर ाइिर नौतसस्खर्ा और लापरिाै तिसके कारण सभी र्ातत्रर्ों के चेैरे पीले पड गए िे
सभी की ैालि खराबं ैो चुकी िी
लेखक अपने सातिर्ों सतैि कोसी उिर गए और कौसानी िाने िाली बंस की प्रिीक्षा करने
लगे
लगभग दो घंिे के बंाद एक दूसरी बंस आई तिसमें लेखक के पररतचि शु क्ला िी िे
िबं उनकी बंस कोसी से चली िो रास्ते का सारा दृश्य भी बंदला हुआ नज़र आर्ा
कल-कल करिी कोसी नदी के िि पर छोिे -छोिे गाअि, मखमली खेि ििा सोमेश्वर घािी की
सुंदरिा उनकी आअ खों को सुकून तमला
बंस ीीरे -ीीरे अपने लक्ष्य की ओर बंढ़ रैी िी लेतकन कुछ ैी दे र बंाद लेखक का मन तनराश
ैोने लगा
अपना सार्ान डाक बींगले र्ें रखकर सब बरार्दे र्ें बैठे धीरे -धीरे बादलों के छाँ टने का
दृश्र् दे ख रहे थे।
उनके र्न र्ें र्ह भाव भी आर्ा कक र्ह बफम ककतनी परु ानी होगी,
न जाने ककतने कालों से र्ह अववनाशी हहर्इन पवमतों पर जर्ी हुई है ।
र्ह सब दे खते-दे खते सरू ज डूबने लगा और ऐसा लगा कक धीरे-धीरे ग्लेमशर्रों र्ें वपघला
हुआ केसर बहने लगा