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मालव _प्रेम_एकांकी
मालव _प्रेम_एकांकी
मालव _प्रेम_एकांकी
Eklavyasnatak 1
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SATENDER PRATAP SINGH
कहानी के पात्र
वक 'िुम मेरे जीिन की प्राण स्फूविि हो, िुम मेरे रक्त को स्फूविि दे िी हो।
श्रीपाल जाविभेद िथा व्यिस्था में व्याप्त ऊूँच-नीच के भाि को सामने रखने का
प्रयास करिा है ।
जहाूँ विजया आकाश की िारीका को नीचे श्रीपाल की गोद में वगरा दे ने की बाि
कहिी है ।
लेवकन श्रीपाल को दान में वमली िस्तु नही ां चावहए,
जो मालि गण का सेनापवि है ।
लेवकन वकसी के अवभमान को िोड़ने के वलए अपने शत्रु से मैत्री भाि रखना
अवभमान से बड़ा पाप है ।
विजया अपने वनजी स्वाथि में अपने मालि दे श की भेंट नही ां दे सकिी है ।
इसवलए जब एकाांकी में पुनः श्रीपाल का प्रिेश होिा है
इसमें समझाया गया है वकस प्रकार विजया अपने कुल की परां परा को िोड़ कर श्रीपाल के
गले में िरमाला डालिी है और वकस प्रकार अपने प्रेमी को दे शद्रोही होने से बचािी है
इसकी कथा लगभग 2100 िषि पूिि की है । स्थान मालि दे श है जो आज के दवक्षण पविम
मध्य भारि प्रदे श का वहस्सा है ।
मालि िांश के इस अवभमान से िहाूँ के वनम्न िगि के लोगोां के बीच मिभेद उत्पन्न हो जािा है ।
'मालि प्रेम' एकाांकी इविहास पर आधाररि एकाांकी है ।
यवद राष्ट्रप्रे म के मागि में व्यस्क्त की वजज्ञासा, पीड़ा िथा महत्त्वाकाूँक्षा आवद बाधा
बन रही है , िो उसका वनिारण िुरांि करना चावहए।
जगि िथा राष्ट्र की सांकल्पना को सामने रख सिोपरर राष्ट्रप्रे म िथा राष्ट्र का भाि
सामने रखा है ।