मालव _प्रेम_एकांकी

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Unit - 4 Hindi – ‘ख’ GE

Chapter-6 मालव प्रेम


DU – SOL- NEP हरिकृष्ण प्रेमी
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Eklavyasnatak 1
• Pdf notes
SATENDER PRATAP SINGH
कहानी के पात्र

श्रीपाल विजया विजया का भाई


जयदे ि
मालव प्रेम इस एकाांकी की कथािस्तु ऐविहावसक है ।

इस एकाांकी में मालि िांश की गाथा है ।

एकाांकी के शुरू में वदखाया जािा है वक विजया नामक एक लडकी राि के


िक्त चांबल नदी के िट पर बैठी है ।

विजया का िेज आकवषिि करने िाला है ,

िो िही विजया में साांसाररकिा के चािुयि और स्वच्छां द कमिठ नारी होने के


पूरे गुण विद्यमान हैं ।
एकाांकी में जब श्रीपाल विजया को बैठ कर गीि गािे दे खिा है ,

िो उसे दे खिा ही रह जािा है और उसी िजह से िह जाकर कहिा है

वक 'िुम मेरे जीिन की प्राण स्फूविि हो, िुम मेरे रक्त को स्फूविि दे िी हो।

िुम्हें पा लेना मेरे जीिन का उद्दे श्य है ।

लेवकन िुम्हें पा लेना मेरे जीिन की मृत्यु का कारण भी है ।

िुम्हारा भाई वजसे अपने कुल का अवभमान है ... और मैं एक साधारण


वकसान का पुत्र हूँ िो िही ां िुम मालि जावि की कन्या हो।’
इस प्रकार नायक

श्रीपाल जाविभेद िथा व्यिस्था में व्याप्त ऊूँच-नीच के भाि को सामने रखने का
प्रयास करिा है ।

एकाांकी में आगे श्रीपाल के स्वावभमानी और कमिरि होने का वचत्रण भी आिा


है ।

जहाूँ विजया आकाश की िारीका को नीचे श्रीपाल की गोद में वगरा दे ने की बाि
कहिी है ।
लेवकन श्रीपाल को दान में वमली िस्तु नही ां चावहए,

िह जो कुछ भी करना चाहिा है , िह अपने बाहुबल पर करना चाहिा है ।

उसे वकसी की दया सहानुभूवि, क्षमा की आिश्यकिा नही ां है ।

उसकी कमिशीलिा, दृढ़, सांकल्प, कमिठिा ही जीिन का उद्दे श्य है ।


विजया का भाई जयदे ि का आगमन होिा है ,

जो मालि गण का सेनापवि है ।

अपने कांधे पर भाई के हाथ रखने से विजया च क


ां जािी है ।

विर दोनोां में सामान्य िािािलाप होने लगिा है ।

जयदे ि श्रीपाल को पसांद नही ां करिा है ।

लेवकन विजया श्रीपाल से प्रेम करिी है ।


इसवलए जब विजया ने अपने प्रेम के बारे में जयदे ि से कहा,

िो िह गुस्से में लाल-पीला हो उठा

और कहने लगा- 'अब मालि िांश को श्रीपाल का शीश चावहए’

िभी जयदे ि से विजया बोलने लगिी है ।

िुम लोगोां का िांश का अवभमान अपने दे श के वलए शत्रु


उत्पन्न कर रहा है ।

िुमने श्रीपाल का अपमान वकया है ,


और अपमान से उपजी वनराशा उसे शत्रु के पास खी ांच ले गई है ।

इस प्रकार एकाां की में अवभमान राष्ट्र, दे श,

समाज के वलए घािक वसद्ध होिा वदखाया गया है ।

एकाांकी में भले ही अवभमान शत्रुिा को जन्म दे िा है ।

पर अवभमान करने का िरीका सही होना चावहए।

अवभमान वकस िथ्य के वलए वकया गया है ?

अवभमान करने का कारण क्या है ? यह सब एकाांकी में बिाया गया है ।


विजया के प्रश्ोां का उत्तर दे िे हुए जयदे ि कहिा है

वक माना हम अवभमानी हैं ।

हमें अपने बाहुबल और क शल पर अवभमान है ।

हमारा साहस िषों से इस मालि दे श की रक्षा करिे हुए आ रहा है ।

लेवकन वकसी के अवभमान को िोड़ने के वलए अपने शत्रु से मैत्री भाि रखना
अवभमान से बड़ा पाप है ।

श्रीपाल मालि दे श पर आक्रमण करने के वलए शकोां को वनमांत्रण दे आया है ।


हमारे पास इिने हवथयार नही ां वक हम शकोां का सामना कर सकें।

बहन अगर शकोां का मालि दे श पर शासन हो जािा है ,

िो कोई भी स्विांत्र नही ां रह पाएगा।

स्वयां श्रीपाल भी नही ां।

उसे भी उनका दास बनना पड़े गा।

इसवलए स्वयां के प्रेम से बढ़कर दे श प्रेम है ।


एकाांकी में पररस्स्थवि पररिििन के साथ मानवसक पररिििन
की झाूँकी को भी प्रस्तुि वकया गया है ।

जहाूँ विजया को पहले श्रीपाल से लगाि था,

अब उसका विचार बदल गया है ।

विजया अपने वनजी स्वाथि में अपने मालि दे श की भेंट नही ां दे सकिी है ।
इसवलए जब एकाांकी में पुनः श्रीपाल का प्रिेश होिा है

िो विजया का उद्दे श्य बदला-बदला वदखाई पडिा है ।

जहाूँ श्रीपाल विजया को अपने साथ ले जाने की बाि करिा है ,

िो िह कह दे िी है वक मुझे िुम्हारा मोह छोड़ना होगा।

जब श्रीपाल इसका कारण जानना चाहिा है ,

िो विजया कहिी है वक "हम बचपन में एक साथ कई खेल खेले हैं ।

जीिन का अांविम खेल भी मैं िुम्हारे साथ खेलना चाहिी हूँ ।


बोलो खेलोगे।

दोनोां एक साथ एक दूसरे की बाि से सहमि हो जािे हैं ।

विजया श्रीपाल के दोनोां हाथ खूब कस कर बाूँध दे िी है और कहिी है वक


आगे का खेल मेरे भाई खेलेंगे।

इस प्रकार विजया द्वारा श्रीपाल के साथ वकया गया छल एक बदला न होकर


प्रेम होिा है । जहाूँ िह अपने प्रेमी श्रीपाल को दे शद्रोही बनने से बचा लेिी है ,

और एकाांकी के अांि में विजया मालि जावि के अवभमान को चुन िी दे िे हुए


मालि जावि की परां परा का खांडन करिे हुए श्रीपाल को िरमाला पहना दे िी
है और कहिी है वक-
"मैं िुम्हारी हूँ और िुम्हारी ही रहूँ गी।

श्रीपाल के चरणोां की धूल को अपना मूलधन समझिी है

और श्रीपाल के चरणोां को स्पशि करिी है "।


मालि प्रेम एकाांकी की

िास्िक समीक्षा कीवजये ?


मालव प्रेम एकाांकी की कथािस्तु ऐविहावसक है ।

इस एकाांकी में मालि िांश की गाथा है ।

एकाांकी विजया और श्रीपाल के बीच प्रेम का िणिन हैं

इसमें समझाया गया है वकस प्रकार विजया अपने कुल की परां परा को िोड़ कर श्रीपाल के
गले में िरमाला डालिी है और वकस प्रकार अपने प्रेमी को दे शद्रोही होने से बचािी है

इसमें समाज में अमीर - गरीब और जाि भेद भी वदखाया गया है


'मालि प्रेम' एकाांकी में सांिादोां के माध्यम से कथा का विस्तार वकया गया है ।

प्रत्येक सांिाद सारगवभिि होने के साथ उद्दे श्य की पूविि करिा है ।

एकाांकी की शुरुआि में ही लेखक का विजया को चांबल नदी के िट के


वकनारे बैठा गीि गािे हुए वदखाना और श्रीपाल का चुपके से विजया को
दे खिे हुए वदखाना एकाांकी की गांभीर सांिाद-योजना का अांग है ।

जहाूँ हररकृष्ण प्रेमी सांिादोां के माध्यम से विजया और श्रीपाल के चररत्र का


उद् घाटन करिे हैं उसका वचत्रण एकाां की में इस प्रकार करिे हैं -
इस एकाांकी में मालि िांश की िीरिा िथा श यिगाथा का वचत्रण वकया गया है ।

इसकी कथा लगभग 2100 िषि पूिि की है । स्थान मालि दे श है जो आज के दवक्षण पविम
मध्य भारि प्रदे श का वहस्सा है ।

मालि-िांश ने भारि के एक बड़े भू -भाग पर अपनी सत्ता को कायम कर रखा हुआ है ।

वजसमें मालि-िांश के महान योद्धाओां ने अपनी आहुवि दी है ।

इसवलए मालििांश के योद्धा में एक अवभमान भी है वक िह मालि दे श की रक्षा के वलए


सदै ि ित्पर है और सदै ि ित्पर रहें गे।

मालि िांश के इस अवभमान से िहाूँ के वनम्न िगि के लोगोां के बीच मिभेद उत्पन्न हो जािा है ।
'मालि प्रेम' एकाांकी इविहास पर आधाररि एकाांकी है ।

इस एकाांकी को रचने के पीछे हररकृष्ण प्रेमी का एक ही उद्दे श्य था- राष्ट्रप्रे म।

प्रे मी जी के वलए राष्ट्रप्रे म ही सिोपरर है , सभी पररस्स्थवियोां में सिो्च है ।

यवद राष्ट्रप्रे म के मागि में व्यस्क्त की वजज्ञासा, पीड़ा िथा महत्त्वाकाूँक्षा आवद बाधा
बन रही है , िो उसका वनिारण िुरांि करना चावहए।

क्योांवक राष्ट्रप्रे म, राष्ट्रभस्क्त ही सिो्च है ।


मालि प्रेम एकाांकी में हररकृष्ण प्रेमी ने जीिन,

जगि िथा राष्ट्र की सांकल्पना को सामने रख सिोपरर राष्ट्रप्रे म िथा राष्ट्र का भाि
सामने रखा है ।

क्योांवक व्यस्क्त वकिना भी अमीर हो जाए, धन सांपदा से सांपन्न हो जाए, परां िु जब


िक उसका अपना घर सुरवक्षि नही ां है , िब िक िह अपना विकास नही ां कर
सकिा है ।

राष्ट्र वहि के वलए व्यस्क्त को अगर स्वयां की भी आहुवि दे नी पड़े िो उसे दे दे नी


चावहए। जहाूँ विजया श्रीपाल की आहुवि दे कर अपने प्रेम को राष्ट्र पर न्य छािर
करिी है , िो िही ां अमीर-गरीब, उ्च -नीच की सांकल्पना, परां परा आवद का खांडन
भी करिी है ।

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