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Saturday-Shanivar-Vrat-Katha-Vidhi-Aur-Mahaatm
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शनिदे व में न्याय के दे वता हैं। शनिवार (Shanivar) का ददि शनिदे व को प्रसन्ि करिे
के लिए ववशेष महत्व का ददि है। शनिदे व की टीि की चादर की बिी मूनति की पूजा की जाती
है। घर अथवा मंददर की अपेक्षा पीपि तथा शमी वक्ष
ृ के िीचे मूनति रखकर पूजा करिा अधिक
िाभदायक रहता है।
कोणस्थ, वपंगि, वभ्रु, कृष्ण, रौद्रान्तक, यम, सौर, शनिश्चर, मन्द और वपप्पिा शनिदे व के दस
िाम हैं। पूजा के बाद इिके साथ िमः िगाकर दस बार शनिदे व को िमि करिे और उिके मंत्र
‘ॐ प्रां प्रां प्ौं सः शनैश्चररय नमः’ का यथाशक्तत जाप करिे से शनिदे व प्रसन्ि होते हैं।
इस व्रत को शत
ु ि पक्ष के प्रथम (जेठे) शनिवार से आरं भ करें । व्रत 51 या 31 करिे चादहए। व्रत
के ददि कािा वस्त्र िारण करके बीज मंत्र ‘ॐ प्रां प्रां प्ौं सः शनैश्चररय नमः’ की 19 या 3 मािा
का जाप करें । फिर एक बतिि में शद्ध
ु जि, कािे नति, कािे िूि या िवंग (िौंग), गंगाजि तथा
शतकर, थोडा दि
ू डािकर पक्श्चम की ओर मुंह करके पीपि वक्ष
ृ की जड में डाि दें । भोजि में
उडद के आटे का बिा पदाथि, पंजीरी, कुछ तेि से पका हुआ पदाथि कुत्ते व गरीब को दें तथा
तेिपतव वस्तु के साथ केिा व अन्य िि स्वयं प्रयोग में िािा चादहए। यही पदाथि दाि भी करें ।
शनिवार के व्रत के ददि अपिे मस्तक पर कािा नतिक करें । शनि दे व की प्रनतमा अथवा शनि
ग्रह के यंत्र को स्वणि पात्र रजत पात्र ताम्रपत्र अथवा भोजपत्र पर अंफकत करके इसकी ववधिवत
षोडशोपचार से पूजा आराििा करके यथाशक्तत शनि दे व के मंत्र का जाप करिा चादहए।
शनिवार के व्रत के उद्यापि के लिए यथासंभव शनि ग्रह का दाि जैसे िीिम, सव
ु णि, िोहा, उडद,
कुल्थी, तेि, कृष्णवस्त्र, कस्तरू ी, कृष्णपष्ु प, कृष्णांग भैंस, उपािह आदद करिा चादहए। शनि
ग्रह से संबंधित दाि के लिए मध्याह्ि का समय सविश्रेष्ठ होता है। यह दाि ब्राह्मण के स्थाि
पर भड्डरी को मध्यान्ह के बाहर बजे ददया जाता है। तया-तया और फकतिा ददया जाये, यह
आपकी श्रद्धा और सामर्थयि पर निभिर रहे गा। शनि ग्रह के मंत्र ‘ॐ प्रां प्रां प्ौं सः शनैश्चररय नमः’
का कम से कम 23000 की संख्या में जाप तथा शनि ग्रह की िकडी शमी से शनि ग्रह के बीज मंत्र
की एक मािा का यज्ञ करिा चादहए।
हवि पूणािहुनत के बाद तेि में पकी हुई वस्तुओं को दे िे के बाद कािा वस्त्र, केवि उडद तथा दे सी
(चमडे का) जूता तेि िगाकर दाि करें । इस व्रत से सब प्रकार की सांसाररक परे शानियां दरू हो
जाती हैं। झगडे में ववजय होती है। िोह-मशीिरी, कारखािे वािों के व्यापार में उन्िनत होती है।
दे वता भाव के भूखे होते हैं अतः श्रद्धा एवं भक्तत भाव पूवक
ि सामर्थयि के अिुसार पूजा, जप, तप,
ध्याि, होम- हवि, दाि दक्षक्षणा, ब्रह्म भोज करिा चादहए।
भि
ू ोक में राजा ववक्रमाददत्य की सभा में आकर उपक्स्थत हुए और अपिा प्रश्ि राजा के सामिे
रखा।
राजा ववक्रमाददत्य उिकी बात सुिकर बडी धचंता में पड गये फक मैं अपिे मुख से फकसको बडा
और फकसको छोटा बतिाऊं। क्जसको छोटा बतिाऊं वही क्रोि करे गा। उिका झगडा निपटािे के
लिए राजा िे एक उपाय सोचा। उन्होंिे सोिे, चांदी, कांसा, पीति, शीश, रांगा, जस्ता, अभ्रक और
िोहा िौ िातओ
ु ं के आसि बिवाये। सब आसिों के क्रम से जैसे सोिा सबसे आगे और िोहा
सबसे पीछे बबछाये गए। इसके पश्चात ् राजा िे सब ग्रहों से कहा फक आप सब अपिे-अपिे आसिों
पर बैदठए, क्जसका आसि सबसे आगे, वह सबसे बडा और क्जसका आसि सबसे पीछे वह सबसे
छोटा जानिए। तयोंफक िोहा सबसे पीछे था। वह शनिदे व का आसि था इसलिए शनिदे व िे समझ
लिया फक राजा िे मुझ को सबसे छोटा बताया है। इस पर शनिदे व को बडा क्रोि आया और कहा-
हे राजा! तू मेरे परक्रम को िहीं जािता। सूयि एक रालश पर 1 महीिे, चंद्रमा सवा दो ददि, मंगि
डेढ़ महीिा, बह
ृ स्पनत 13 महीिे, बि
ु और शक्रु एक-एक महीिे, राहु और केतु दोिों उल्टे चिते
े़
हुए। केवि 28 महीिे एक रालश पर रहते हैं। परं तु मैं एक रालश ढाई अथवा साढे 7 साि तक रहता
हूं। बडे-बडे दे वताओं को भी मैंिे भीषण दःु ख ददया है। राजि सि
ु ो! रामजी को साढ़े साती आई और
विवास हो गया। रावण पर आई तो राम और िक्ष्मण िे िंका पर चढ़ाई कर दी। रावण के कुि
का िाश कर ददया। हे राजा! तुम अब साविाि रहिा। राजा िे कहा, जो कुछ भाग्य में है दे खा
जाएगा। उसके बाद अन्य ग्रह तो प्रसन्िता के साथ चिे गए। परं तु शनिदे व तो वहां से बडे ही क्रोि
से लसिारे ।
कुछ काि व्यतीत होिे पर राजा को साढ़े -साती की ददशा आई। शनिदे व घोडों के सौदागर बिकर
अिेक सुंदर घोडों के सदहत राजा की राजिािी में आये। जब राजा िे सौदागर के आिे की खबर
सुिी तो अपिे अश्वपाि को अच्छे -अच्छे घोडे खरीदिे की आज्ञा दी। अश्वपाि ऐसी अच्छी िस्ि
के घोडे दे खकर और उिका मूल्य सुिकर चफकत रह गया। तुरन्त ही राजा को खबर दी। राजा उि
घोडों को दे खकर एक अच्छा-सा घोडा चुिकर उस पर सवारी के लिए चढ़ा। राजा के घोडे की पीठ
पर चढ़ते ही थोडा जोर से भागा। घोडा बहुत दरू एक बडे जंगि में जाकर और राजा को छोडकर
अदृश्य हो गया। इसके बाद राजा अकेिा जंगि में भटकता फिरता रहा। बहुत दे र के पश्चात राजा
िे भख
ू और प्यास से दःु खी होकर भटकते-भटकते एक ग्वािे को दे खा। ग्वािे िे राजा को प्यास
अब राजा ववक्रमाददत्य अपादहज होकर दर-दर की ठोकरें खािे िगा। कुछ काि व्यतीत होिे पर
एक तेिी उसको अपिे घर िे गया और कोल्हू पर बबठा ददया। वीका उस पर बैठा हुआ अपिी
आवाज से बैि हांकता रहता। कुछ वषों में शनि की दशा समाप्त हो गई और एक रात को वषाि
ऋतु में 1 ददि वीका मल्हार राग गािे िगा। उसका गािा सुिकर उस शहर के राजा की कन्या
उस राग पर मोदहत हो गई और दासी को खबर िािे के लिए भेजा फक शहर में कौि गा रहा है।
दासी िे दे खा फक तेिी के घर में चौरं धगया मल्हार राग गा रहा है। दासी िे महि में आकर
राजकुमारी को सब वत्ृ तांत सुिाया। उसी क्षण राजकुमारी िे अपिे मि में यह प्रण कर लिया,
चाहे कुछ भी हो मुझे चौरं धगया के साथ वववाह करिा है। प्रातःकाि होते ही जब दासी िे राजकुमारी
को जगाया तो राजकुमारी अिशि व्रत िेकर पडी रही। तब दासी िे रािी के पास जाकर राजकुमारी
के ि उठिे का वत्ृ तांत कहा। रािी िे तरु न्त ही वहां आकर राजकुमारी को जगाया और उसके दःु ख
का कारण पछ
ू ा। तब राजकुमारी िे कहा फक माता जी, मैंिे यह प्रण कर लिया है फक तेिी के घर
में जो चौरं धगया है। उसी के साथ वववाह करंगी। माता िे कहा पगिी यह तया बात कह रही है।
तझ
ु को फकसी दे श के बडे राजा के साथ परणाया जाएगा। कन्या कहिे िगी फक माता जी, मैं अपिे
प्रण कभी िहीं तोडूग
ं ी। माता िे धचंनतत होकर यह बात राजा को बताई। जब महाराज िे भी आकर
यही समझाया फक मैं अभी दे श-दे शांतर में अपिे दत
ू भेजकर सुयोग्य, रपवाि एवं बडे-से-बडे गुणी
राजकुमार के साथ तुम्हारा वववाह करंगा। ऐसी बात तुमको कभी िहीं ववचारिी चादहए। कन्या
िे कहा, वपता जी! मैं अपिे प्राण त्याग दं ग
ू ी परं तु दस
ू रे से वववाह िहीं करंगी। इतिा सुिकर राजा
िे क्रोि में भरकर कहा-यदद तेरे भाग्य में ऐसा ही लिखा है तो जैसी तेरी इच्छा हो वैसा ही कर।
राजा िे तेिी को बुिाकर कहा फक तेरे घर में जो जो चौरं धगया है। उसके साथ मैं अपिी कन्या का
वववाह करिा चाहता हूं। तेिी िे कहा फक यह कैसे हो सकता है, कहां आप हमारे राजा और कहां
मैं िीच तेिी। राजा िे कहा-भाग्य के लिखे को कोई टाि िहीं सकता, अपिे घर जाकर वववाह
चौरं धगया ववक्रमाददत्य के साथ कर ददया। राबत्र को जब ववक्रमाददत्य और राजकुमारी महि में
सोये हुए थे। तब आिी रात के समय शनि दे व िे ववक्रमाददत्य को स्वप्ि ददया। फक राजा से कहो
मझ
ु को छोटा बतिा कर तम
ु िे फकतिे दःु ख उठाये? राजा िे क्षमा मांगी। शनिदे व िे प्रसन्ि होकर
ववक्रमाददत्य को हाथ पैर ददये। तब राजा िे कहा-महाराज, मेरी एक प्राथििा स्वीकार करें । जैसा
दःु ख आपिे मुझे ददया है, ऐसा और फकसी को ि दे िा। शनिदे व िे कहा-तुम्हारी यह प्राथििा स्वीकार
है। जो मिुष्य मेरी कथा सुिेगा या कहे गा। उसको मेरी दशा में कभी फकसी प्रकार का दःु ख िहीं
होगा और जो नित्य यही मेरा ध्याि करे गा या चीदटयों को आटा डािेगा उसके सब मिोरथ पूणि
होंगे। इतिा कहकर शनिदे व अपिे िाम को चिे गये। जब राजकुमारी की आंख खुिी और उसिे
राजा की हाथ-पांव दे खे तो आश्चयिचफकत रह गई। राजा िे अपिी पत्िी से अपिा समस्त हाि
कहा फक मैं उज्जैि का राजा ववक्रमाददत्य हूं। यह बात सुिकर राजकुमारी अत्यंत प्रसन्ि हुई।
प्रातःकाि राजकुमारी से उसकी सखखयों िे पछ ू ा तो उसिे अपिे पनत का समस्त वत्ृ तांत कह
सि
ु ाया। तब सब िे प्रसन्िता प्रकट की और कहा फक ईश्वर िे आपकी मिोकामिा पण
ू ि कर दी।
जब उस सेठ से यह बात सुिी तो वह सेठ ववक्रमाददत्य के पास आया और उसके पैरों से धगरकर
क्षमा मांगिे िगा फक आप पर घर पर मैंिे चोरी का झठ
ू ा दोष िगाया था, अतः आप मझ
ु को जो
चाहे दं ड दें । राजा िे कहा-मझ
ु पर शनि दे व का कोप था। इसी कारण यह सब दःु ख मझ
ु को प्राप्त
हुआ। इसमें तम्
ु हारा कोई दोष िहीं, तम
ु अपिे घर चिकर प्रीनतपव
ू क
ि भोजि करे गें। राजा िे कहा-
जैसी आपकी मजी हो वैसा ही करें । सेठ िे अपिे घर जाकर अिेक प्रकार के संुदर भोजि बिवाये
और राजा ववक्रमाददत्य को प्रीनतभोज ददया। क्जस समय राजा भोजि कर रहे थे, एक अत्यंत
आश्चयि की बात सबको ददखाई दी। जो खूंटी पहिे हार निगि गई थी, वह अब हार उगि रही है।
जब भोजि समाप्त हो गया। तो सेठ िे हाथ जोडकर बहुत-सी मोहरे राजा को भेंट की और कहा-
मेरे श्रीकंवरी िामक एक कन्या है उसका पाखणग्रहण आप करें । इसके बाद सेठ िे अपिी कन्या
का वववाह राजा ववक्रमाददत्य के साथ कर ददया और बहुत-सा दाि-दहे ज आदद ददया। इस प्रकार
कुछ ददिों तक वहां निवास करिे के पश्चात ववक्रमाददत्य िे शहर के राजा से कहा फक अब मेरी
उज्जैि जािे की इच्छा है। फिर कुछ ददि बाद ववदा िेकर राजकुमारी मिभाविी, सेठ की कन्या
श्रीकंवरी तथा दोिों जगह से दहे ज में प्राप्त अिेक दासों, दालसयों, रथों और पािफकयों सदहत
ववक्रमाददत्य उज्जैि की तरि चिे। जब शहर के निकट पहुंचे और परु वालसयों िे राजा के आिे
का संवाद सुिा तो समस्त उज्जैि की प्रजा अगवािी के लिए आई। बडी प्रसन्िता से राजा अपिे
महिे में पिारे । सारे शहर में बडा भारी महोत्सव मिाया गया और राबत्र को दीपमािा की गई।
दस
ू रे ददि राजा िे शहर में यह मुिादी करा दी फक शनिश्चर दे वता सब ग्रहों के सवोपरर है। मैंिे
इिको छोटा बतिाया, इसी से मुझको भीषण दःु ख प्राप्त हुआ। इस कारण सारे शहर में सदा
शनिश्चर की पूजा और कथा होिे िगी और प्रजा अिेक प्रकार के सुख भोगती रही। जो कोई
शनिश्चरा की इस कथा को पढ़ता अथवा सुिता है, शनि दे व की कृपा से उसके सब दःु ख दरू हो
जाते हैं। शनिदे व की कथा को व्रत के ददि अवश्य पढ़िा चादहए। ओम शांनत! ओम शांनत!! ओम
शांनत!!!
मत
ु ति की मािा गिे शोलभत बलिहारी॥
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