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तीसरी कसम के शिल्पकार िैलेंद्र

-प्रहलाद अग्रवाल

प्रश्न 1.
‘तीसरी कसम’ श़िल्म को कौन-कौन से परु स्कारों से सम्माशनत शकया गया है?
उत्तर-
राष्ट्रपशत स्वर्णपदक से सम्माशनत।
बगं ाल श़िल्म जनणशलस्ट एसोशसएिन द्वारा सवणश्रेष्ठ श़िल्म को परु स्कार।
मास्को श़िल्म फे शस्टवल में भी यह परु स्कृ त हुई।

प्रश्न 2.
िैलेंद्र ने शकतनी श़िल्में बनाई?
उत्तर-
िैलेंद्र ने अपने जीवन में के वल एक ही श़िल्म का शनमाणर् शकया। ‘तीसरी कसम’ ही उनकी पहली व
अंशतम श़िल्म थी।
प्रश्न 3.
राजकपरू द्वारा शनदेशित कुछ श़िल्मों के नाम बताइए।
उत्तर-‘मेरा नाम जोकर’
‘अजन्ता’
‘मैं और मेरा दोस्त’
‘सत्यम् शिवम् सदंु रम’्
‘संगम’
‘प्रेमरोग’
प्रश्न 4.
‘तीसरी कसम’ श़िल्म के नायक व नाशयकाओ ं के नाम बताइए और श़िल्म में इन्होंने शकन पात्रों का
अशभनय शकया है?
उत्तर-
‘तीसरी कसम’ श़िल्म के नायक राजकपूर और नाशयका वहीदा रहमान थी। राजकपरू ने हीरामन
गाडीवान का अशभनय शकया है और वहीदा रहमान ने नौटंकी कलाकार ‘हीराबाई’ का अशभनय शकया
है।
प्रश्न 5.
श़िल्म ‘तीसरी कसम’ का शनमाणर् शकसने शकया था?
उत्तर-
शिल्पकार िैलेंद्र ने।

प्रश्न 6.
राजकपरू ने ‘मेरा नाम जोकर’ के शनमाणर् के समय शकस बात की कल्पना भी नहीं की थी?
उत्तर-
राजकपरू ने ‘मेरा नाम जोकर’ के शनमाणर् के समय कल्पना भी नहीं की थी शक श़िल्म के पहले भाग के
शनमाणर् में ही छह साल का समय लग जाएगा।

प्रश्न 7.
राजकपरू की शकस बात पर िैलेंद्र का चेहरा मरु झा गया?
उत्तर-
‘तीसरी कसम’ श़िल्म की कहानी सनु कर राजकपरू ने पाररश्रशमक एडवांस देने की बात कही। इस बात
पर िैलेंद्र का चेहरा मरु झा गया।
प्रश्न 8.
श़िल्म समीक्षक राजकपूर को शकस तरह का कलाकार मानते थे?
उत्तर-
श़िल्म समीक्षक राजकपरू को कला-ममणज्ञ एवं आँखों से बात करनेवाला कुिल अशभनेता मानते थे।

शलशखत
क) शनम्नशलशखत प्रश्नों के उत्तर (25-30 िब्दों में) शलशखए-
प्रश्न 1.
‘तीसरी कसम’ श़िल्म को ‘सैल्यल
ू ाइड पर शलखी कशवता’ क्यों कहा गया है?
उत्तर-
‘तीसरी कसम’ श़िल्म को सैल्यल ू ाइड पर शलखी कशवता अथाणत् कै मरे की रील में उतार कर शचत्र पर
प्रस्ततु करना इसशलए कहा गया है, क्योंशक यह वह श़िल्म है, शजसने शहदं ी साशहत्य की एक अत्यतं
माशमणक कृ शत को सैल्यल
ू ाइड पर साथणकता से उतारा; इसशलए यह श़िल्म नहीं, बशल्क सैल्यल ू ाइड पर
शलखी कशवता थी।

प्रश्न 2.
‘तीसरी कसम’ श़िल्म को खरीददार क्यों नहीं शमल रहे थे?
उत्तर
इस शफल्म में शकसी भी प्रकार के अनावश्यक मसाले जो शफल्म के पैसे वसल ू करने के शलए
आवश्यक होते हैं, नहीं डाले गए थे। श़िल्म शवतरक उसके साशहशत्यक महत्त्व और गौरव को नहीं
समझ सकते थे इसशलए उन्होंने उसे खरीदने से इनकार कर शदया।
प्रश्न 3.
िैलेंद्र के अनसु ार कलाकार का कतणव्य क्या है?
उत्तर-
िैलेंद्र के अनसु ार कलाकार का कतणव्य है शक वह उपभोक्ताओ ं की रुशचयों को पररष्ट्कार करने का
प्रयत्न करे । उसे दिणकों की रुशचयों की आड में सस्तापन/उथलापन नहीं थोपना चाशहए। उसके
अशभनय में िातं नदी का प्रवाह तथा समद्रु की गहराई की छाप छोडने की क्षमता होनी चाशहए।

प्रश्न 4.
श़िल्मों में त्रासद शस्थशतयों का शचत्रांकन ग्लोररफाई क्यों कर शदया जाता है?
उत्तर-
श़िल्मों में त्रासद शस्थशतयों का शचत्रांकन ग्लोररफाई इसशलए शकया जाता है शजससे श़िल्म शनमाणता
दिणकों का भावनात्मक िोषर् कर सकें । शनमाणता-शनदेिक हर दृश्य को दिणकों की रुशच का बहाना
बनाकर मशहमामंशडत कर देते हैं शजससे उनके द्वारा खचण शकया गया एक-एक पैसा वसल ू हो सके और
उन्हें सफलता शमल सके ।

प्रश्न 5.
‘िैलेंद्र ने राजकपरू की भावनाओ ं को िब्द शदए हैं’- इस कथन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट
कीशजए।
उत्तर-
‘िैलेंद्र ने राजकपरू की भावनाओ ं को िब्द शदए हैं -का आिय है शक राजकपरू के पास अपनी
भावनाओ ं को व्यक्त कर पाने के शलए िब्दों का अभाव था, शजसकी पशू तण बडी कुिलता तथा
सौंदयणमयी ढंग से कशव हृदय िैलेंद्र जी ने की है। राजकपरू जो कहना चाहते थे, उसे िैलेंद्र ने िब्दों के
माध्यम से प्रकट शकया। राजकपरू अपनी भावनाओ ं को आँखों के द्वारा व्यक्त करने में कुिल थे। उन
भावों को गीतों में ढालने का काम .िैलेंद्र ने शकया।
प्रश्न 6.
लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बडा िोमैन कहा है। िोमैन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
िोमैन का अथण है-प्रशसद्ध प्रशतशनशि-आकषणक व्यशक्तत्व। ऐसा व्यशक्त जो अपने कला-गर्ु , व्यशक्तत्व
तथा आकषणर् के कारर् सब जगह प्रशसद्ध हो। राजकपूर अपने समय के एक महान श़िल्मकार थे।
एशिया में उनके शनदेिन में अनेक श़िल्में प्रदशिणत हुई थीं। उन्हें एशिया का सबसे बडा िोमैन इसशलए
कहा गया है क्योंशक उनकी श़िल्में िोमैन से संबंशित सभी मानदडं ों पर खरी उतरती थीं। वे एक
सवाणशिक लोकशप्रय अशभनेता थे और उनका अशभनय जीवंत था तथा दिणकों के हृदय पर छा जाता
था। दिणक उनके अशभनय कौिल से प्रभाशवत होकर उनकी श़िल्म को देखना और सराहना पसदं
करते थे। राजकपरू की िमू भारत के बाहर देिों में भी थी। रूस में तो नेहरू के बाद लोग राजकपरू को
ही सवाणशिक जानते थे।

प्रश्न 7.
श़िल्म ‘श्री 420′ के गीत ‘रातें दसों शदिाओ ं से कहेंगी अपनी कहाशनयाँ’ पर संगीतकार जयशकिन
ने आपशत्त क्यों की?
उत्तर-
सगं ीतकार जयशकिन ने गीत ‘रातें दसों शदिाओ ं से कहेंगी अपनी कहाशनयाँ’ पर आपशत्त इसशलए
की, क्योंशक उनका ख्याल था शक दिणक चार शदिाएँ तो समझते हैं और समझ सकते हैं, लेशकन दस
शदिाओ ं का गहन ज्ञान दिणकों को नहीं होगा।

(ख) शनम्नशलशखत प्रश्नों के उत्तर (50-60 िब्दों में) शलशखए-


प्रश्न 1.
राजकपरू द्वारा श़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी िैलेंद्र ने यह श़िल्म क्यों
बनाई?
उत्तर-
राजकपरू एक पररपक्व श़िल्म-शनमाणता थे तथा िैलेंद्र के शमत्र थे। अतः उन्होंने एक सच्चा शमत्र होने के
नाते िैलेंद्र को श़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह भी शकया था, लेशकन िैलेंद्र ने शफर भी
‘तीसरी कसम’ शफल्म बनाई, क्योंशक उनके मन में इस शफल्म को बनाने की तीव्र इच्छा थी। वे तो एक
भावक ु कशव थे, इसशलए अपनी भावनाओ ं की अशभव्यशक्त इस श़िल्म में करना चाहते थे। उन्हें िन
शलप्सा की नहीं, बशल्क आत्म-संतशु ष्ट की लालसा थी इसशलए उन्होंने यह शफल्म बनाई।

प्रश्न 2.
‘तीसरी कसम’ में राजकपरू का मशहमामय व्यशक्तत्व शकस तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया है?
स्पष्ट कीशजए।
उत्तर-
राजकपरू एक महान कलाकार थे। श़िल्म के पात्र के अनरू ु प अपने-आप को ढाल लेना वे भली-भाँशत
जानते थे। जब “तीसरी कसम” श़िल्म बनी थी उस समय राजकपरू एशिया के सबसे बडे िोमैन के
रूप में स्थाशपत हो चकु े थे। तीसरी कसम में राजकपरू का अशभनय चरम सीमा पर था। उन्हें एक सरल
हृदय ग्रामीर् गाडीवान के रूप में प्रस्ततु शकया गया। उन्होंने अपने-आपको उस ग्रामीर् गाडीवान
हीरामन के साथ एकाकार कर शलया। इस श़िल्म में एक िद्ध ु देहाती जैसा अशभनय शजस प्रकार से
राजकपरू ने शकया है, वह अशद्वतीय है। एक गाडीवान की सरलता, नौटंकी की बाई में अपनापन
खोजना, हीराबाई की बाली पर रीझना, उसकी भोली सरू त पर न्योछावर होना और हीराबाई की
तशनक-सी उपेक्षा पर अपने अशस्तत्व से जझू ना जैसी हीरामन की भावनाओ ं को राजकपरू ने बडे संदु र
ढगं से प्रस्ततु शकया है। श़िल्म में राजकपरू कहीं भी अशभनय करते नहीं शदखते अशपतु ऐसा लगता है
जैसे वे ही हीरामन हों। ‘तीसरी कसम’ श़िल्म में राजकपरू का पूरा व्यशक्तत्व ही जैसे हीरामन की
आत्मा में उतर गया है।
प्रश्न 3.
लेखक ने ऐसा क्यों शलखा है शक ‘तीसरी कसम’ ने साशहत्य-रचना के साथ ित-प्रशतित न्याय शकया
है?
उत्तर-
यह वास्तशवकता है शक ‘तीसरी कसम’ ने साशहत्य-रचना के साथ ित-प्रशतित न्याय शकया है। यह
फर्ीश्वरनाथ रे र्ु की रचना ‘मारे गए गल
ु फाम’ पर बनी है। इस शफल्म में मल
ू कहानी के स्वरूप को
बदला नहीं गया। कहानी के रे िे-रे िे को बडी ही बारीकी से शफल्म में उतारा गया था। साशहत्य की
मल
ू आत्मा को परू ी तरह से सरु शक्षत रखा गया था।

प्रश्न 4.
िैलेंद्र के गीतों की क्या शविेषता है? अपने िब्दों में शलशखए।
उत्तर-
िैलेंद्र एक कशव और सफल गीतकार थे। उनके शलखे गीतों में अनेक शविेषताएँ शदखाई देती हैं। उनके
गीत सरल, सहज भाषा में होने के बावजदू बहुत बडे अथण को अपने में समाशहत रखते थे। वे एक
आदिणवादी भावक ु कशव थे और उनका यही स्वभाव उनके गीतों में भी झलकता था। अपने गीतों में
उन्होंने झठू े शदखावों को कोई स्थान नहीं शदया। उनके गीतों में भावों की प्रिानता थी और वे आम
जनजीवन से जडु े हुए थे। उनके गीतों में करुर्ा के साथ-साथ सघं षण की भावना भी शदखाई देती है।
उनके गीत मनष्ट्ु य को जीवन में दख ु ों से घबराकर रुकने के स्थान पर शनरंतर आगे बढ़ने का संदि
े देते
हैं। उनके गीतों में िांत नदी-सा प्रवाह और समद्रु -सी गहराई होती थी। उनके गीत का एक-एक िब्द
भावनाओ ं की अशभव्यशक्त करने में पर्ू णतः सक्षम है।

प्रश्न 5.
श़िल्म शनमाणता के रूप में िैलेंद्र की शविेषताओ ं पर प्रकाि डाशलए।
उत्तर-
श़िल्म शनमाणता के रूप में िैलेंद्र की अनेक शविेषताएँ हैं, लेशकन उनमें से प्रमख
ु शविेषताएँ
शनम्नशलशखत हैं-
श़िल्म शनमाणता के रूप में िैलेंद्र ने जीवन के आदिणवाद एवं भावनाओ ं को इतने अच्छे तरीके से
श़िल्म ‘तीसरी कसम’ के माध्यम से सफलतापवू णक अशभव्यक्त शकया, शजसके कारर् इसे सवणश्रेष्ठ
श़िल्म घोशषत शकया गया और बडे-बडे परु स्कारों द्वारा सम्माशनत शकया गया।
राजकपरू की सवोत्कृ ष्ट भशू मका को िब्द देकर अत्यतं प्रभाविाली ढगं से दिणकों के सामने प्रस्ततु
शकया है।
जीवन की माशमणकता को अत्यतं साथणकता से एवं अपने कशव हृदय की पर्ू णता को बडी ही तन्मयता के
साथ पदे पर उतारा है।
प्रश्न 6.
िैलेंद्र के शनजी जीवन की छाप उनकी श़िल्म में झलकती है-कै से? स्पष्ट कीशजए।
उत्तर-
िैलेंद्र एक आदिणवादी संवेदनिील और भावक ु कशव थे। िैलेंद्र ने अपने जीवन में एक ही शफल्म का
शनमाणर् शकया, शजसका नाम ‘तीसरी कसम’ था। यह एक संवेदनात्मक और भावनापर्ू ण शफल्म थी।
िांत नदी का प्रवाह और समद्रु की गहराई उनके शनजी जीवन की शविेषता थी और यही शविेषता
उनकी शफल्म में भी शदखाई देती है। ‘तीसरी कसम’ का नायक हीरामन अत्यतं सरल हृदयी और
भोला-भाला नवयवु क है, जो के वल शदल की जबु ान समझता है, शदमाग की नहीं। उसके शलए
मोहब्बत के शसवा शकसी चीज़ का कोई अथण नहीं। ऐसा ही व्यशक्तत्व िैलेंद्र का था, हीरामन को िन
की चकाचौंि से दरू रहनेवाले एक देहाती के रूप में प्रस्ततु शकया गया है। िैलेंद्र स्वयं भी यि और
िनशलप्सा से कोसों दरू थे। इसके साथ-साथ श़िल्म ‘तीसँरी कसम’ में दख ु को भी सहज शस्थशत में
जीवन सापेक्ष प्रस्ततु शकया गया है। िैलेंद्र अपने जीवन में भी दख
ु को सहज रूप से जी लेते थे। वे दखु
से घबराकर उससे दरू नहीं भागते थे। इस प्रकार स्पष्ट है शक िैलेंद्र के शनजी जीवन की छाप उनकी
श़िल्म में झलकती है।

प्रश्न 7.
लेखक के इस कथन से शक ‘तीसरी कसम’ श़िल्म कोई सच्चा कशव-हृदय ही बना सकता था, आप
कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट कीशजए।
उत्तर-
लेखक के इस कथन से शक ‘तीसरी कसम’ श़िल्म कोई कशव हृदय ही बना सकता था-से हम परू ी तरह
से सहमत हैं, क्योंशक कशव कोमल भावनाओ ं से ओतप्रोत होता है। उसमें करुर्ा एवं सादगी और
उसके शवचारों में िांत नदी का प्रवाह तथा समद्रु की गहराई का होना जैसे गर्ु कूट-कूट कर भरे होते
हैं। ऐसे ही शवचारों से भरी हुई ‘तीसरी कसम’ एक ऐसी श़िल्म है, शजसमें न के वल दिणकों की रुशचयों
को ध्यान रखा गया है, बशल्क उनकी गलत रुशचयों को पररष्ट्कृत (सिु ारने) करने की भी कोशिि की
गई है।

(ग) शनम्नशलशखत के आिय स्पष्ट कीशजए-


प्रश्न 1.
…. वह तो एक आदिणवादी भावक ु कशव था, शजसे अपार संपशत्त और यि तक की इतनी कामना
नहीं थी शजतनी आत्मसतं शु ष्ट के सख
ु की अशभलाषा थी।
उत्तर-
इसका आिय है शक िैलेंद्र एक आदिणवादी भावक ु हृदय कशव थे। उन्हें अपार संपशत्त तथा
लोकशप्रयता की कामना इतनी नहीं थी, शजतनी आत्मतशु ष्ट, आत्मसतं ोष, मानशसक िाशं त, मानशसक
सांत्वना आशद की थी, क्योंशक ये सद्वशृ त्तयाँ िन से नहीं खरीदी जा सकतीं, न ही इन्हें कोई भेंट कर
सकता है। इन गर्ु ों की अनभु शू त तो अदं र से ईश्वर की कृ पा से ही होती है। इन्हीं अलौशकक अनभु शू तयों
से पररपर्ू ण थे-िैलेंद्र, तभी तो वे आत्मतशु ष्ट चाहते थे।

प्रश्न 2.
उनका यह दृढ़ मंतव्य था शक दिणकों की रुशच की आड में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना
चाशहए। कलाकार का यह कतणव्य भी है शक वह उपभोक्ता की रुशचयों का पररष्ट्कार करने का प्रयत्न
करे ।
उत्तर-
एक आदिणवादी उच्चकोशट के गीतकार व कशव हृदय िैलेंद्र ने रुशचयों की आड में कभी भी दिणकों
पर घशटया गीत थोपने का प्रयास नहीं शकया। शफल्में आज के दौर में मनोरंजन का एक सिक्त माध्यम
हैं। समाज में हर वगण के लोग शफल्म देखते हैं और उनसे प्रभाशवत भी होते हैं। आजकल शजस प्रकार
की श़िल्मों का शनमाणर् होता है। उनमें से अशिकतर इस स्तर की नहीं होती शक परू ा पररवार एक साथ
बैठकर देख सके । श़िल्म शनमाणताओ ं की भाँशत वे दिणकों की पसदं का बहाना बनाकर शनम्नस्तरीय
कला अथवा साशहत्य का शनमाणर् नहीं करना चाहते थे। उनका मानना था शक कलाकार का दाशयत्व है
शक वह दिणकों की रुशच का पररष्ट्कार करें । उनका लक्ष्य दिणकों को नए मल्ू य व शवचार प्रदान करना
था।

प्रश्न 3.
व्यथा आदमी को पराशजत नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का सदं ि
े देती है।
उत्तर-
इसका अथण है शक व्यथा, पीडा, दखु आशद व्यशक्त को कमज़ोर या हतोत्साशहत अवश्य कर देते हैं,
लेशकन उसे पराशजत नहीं करते बशल्क उसे मजबतू बनाकर आगे बढ़ने की प्रेरर्ा देते हैं। हर व्यथा
आदमी को जीवन की एक नई सीख देती है। व्यथा की कोख से ही तो सुख का जन्म होता है इसशलए
व्यथा के बाद, दख
ु के बाद आने वाला सख ु अशिक सख ु कारी होता है।

प्रश्न 4.
दरअसल इस श़िल्म की संवेदना शकसी दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है।
उत्तर-
‘तीसरी कसम’ श़िल्म गहरी संवेदनात्मक तथा भावनात्मक थी। उसे अच्छी रुशचयों वाले संस्कारी मन
और कलात्मक लोग ही समझ-सराह सकते थे। कशव िैलेंद्र की श़िल्म शनमाणर् के पीछे िन और यि
प्राप्त करने की अशभलाषा नहीं थी। वे इस श़िल्म के माध्यम से अपने भीतर के कलाकार को संतष्टु
करना चाहते थे। इस श़िल्म को बनाने के पीछे िैलेंद्र की जो भावना थी उसे के वल िन अशजणत करने
की इच्छा करने वाले व्यशक्त नहीं समझ सकते थे। इस शफल्म की गहरी संवेदना उनकी समझ और
सोच से ऊपर की बात है।
प्रश्न 5.
उनके गीत भाव-प्रवर् थे- दरू
ु ह नहीं।
उत्तर-
इसका अथण है शक िैलेंद्र के द्वारा शलखे गीत भावनाओ ं से ओत-प्रोत थे, उनमें गहराई थी, उनके गीत
जन सामान्य के शलए शलखे गए गीत थे तथा गीतों की भाषा सहज, सरल थी, शक्लष्ट नहीं थी, तभी
तो आज भी इनके द्वारा शलखे गए गीत गनु गुनाए जाते हैं। ऐसा लगता है, मानों हृदय को छूकर उसके
अवसाद को दरू करते हैं।

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