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साम ी

अ याय एक :लगभग 2300 वष पहले


अ याय दो :वतमान समय
अ याय तीन :लगभग 2300 वष पहले
अ याय अ याय चार
अ याय पांच :लगभग 2300 वष पहले
अ याय छह :वतमान समय
अ याय अ याय सात :लगभग 2300 वष पहले
अ याय आठ : वतमान समय
अ याय नौ :लगभग 2300 वष पहले
अ याय दस :वतमान समय
अ याय यारह :लगभग 2300 वष पहले
अ याय अ याय बारह :वतमान समय
अ याय तेरह :लगभग 2300 वष पहले
अ याय चौदह :वतमान समय
अ याय पं ह : लगभग 2300 वष पहले
अ याय सोलह : वतमान समय
अ याय स ह : लगभग 2300 वष पहले
अ याय अठारह : वतमान समय
अ याय उ ीस : लगभग 2300 वष पहले
अ याय बीस : वतमान समय
लेखक क बात

म अपणा गु ता का ॠणी ं ज ह ने मुझे सबसे पहले चाण य पर उप यास लखने का


सुझाव दया। उनके ारा रोपा गया बीज ही अंतत: इस उप यास के प म फलीभूत
आ।
म अपनी प नी और बेटे का भी आभारी ं ज ह ने इस कताब को लखने और अपनी
बाक़ ज़दगी के साथ तालमेल बठाने के दौरान मेरी लंबी–लंबी अनुप तय को बना
शकायत कए सहन कया।
म अपने प रवार का आभारी ं ज ह ने मेरे उ म म—मेरे लेखन समेत— मेरा साथ
दया।
म मौ लक या े रत कृ तय के लेखक व नमाता के त शु गुज़ार ं। उप यास के
अंत म एक पृथक आभार खंड म व तारपूवक इनक सूची द गई है।
म अपनी संपादक ीता मै ा और अपने काशक गौतम पद्मनाभन का भी आभारी ,ं
जनके बना मेरा कोई भी उप यास—इस समेत—सामने नह आ पाता।
दो अ यंत तभाशाली य , कुशल गोपालका एवं अमीय नायक, के साथ काम करके
मुझे ब त स ता ई। उनक मेहनत और ेरणा के बना हम चाण य मं के
अ व सनीय प से सुंदर संगीत क रचना नह कर पाते।
अंत म, यह मेरा सौभा य है क म वग य ी राम साद गु ता का पोता और उनके भाई
वग य ी राम गोपाल गु ता का भतीजपोता ं। मेरे क़लम को थामने वाली उं ग लय को
उनके आशीवाद े रत करते ह।
आमुख

वृ अ ताल के अपने ब तर पर सारे साज़ो-सामान के साथ लेटे ए थे। उनके


अहम ल ण मापते ए मॉनीटस कुछ सं याएं और ाफ़ दशा रहे थे। उनक कमज़ोर बांह
म बेशुमार सूइयां लगी ई थ और एक ूब उनके मुंह से होकर फेफड़ म जा रही थी। वो
जानते थे क जीवन उनके शरीर से कनारा कर रहा है ले कन उ ह ने श से ाथना क
थी क वो उ ह उस पल का रसा वादन करने तक जीने क अनुम त दे जसक वो ती ा
कर रहे थे।
टे ली वज़न पर चलती- फरती छ वय ारा उ प तल मी रोशनी के अलावा
कमरे म अंधेरा था, धूप को अंदर न आने दे ने के लए मोटे –मोटे पद खचे ए थे। उनके
ट ल के पलंग के पास एक कुस पर, बीच-बीच म ऊंघती ूट नस बैठ थी। भारत के
अठारहव धानमं ी को पद क शपथ लेते दे ख रहे अ सी वष से अ धक आयु के बुजग
क आंख म टे ली वज़न क रोशनी चमक उठ ।
उनके तीन मोबाइल फ़ोन का अनवरत बजना उनके नजी स चव मेनन को अंदर
ले आया था। बाजू़ के कमरे वाला मरीज़ शकायत कर रहा था क नरंतर बजती घंट से
उसे परेशानी हो रही है। लगभग पचास–वष य स चव ने कमरे म झांका तो दे खा क उसके
मा लक अपने ब तर पर लेटे ए ह और उनक नई द ली से दखाई जाती त वीर
पर लगी है। वो फ़ोन क ककश आवाज़ से बेख़बर थे। इस पल के लए उ ह ने तीस साल
लंबा इंतज़ार कया था और फ़ोन कॉल को वो इसम वधान नह डालने दे सकते थे। वैसे
भी, कमब त मुंह म लगी ूब के साथ वो बात कर भी नह सकते थे। मेनन ने सुझाव
दया था क फ़ोन बंद कर द ले कन उ ह ने इंकार कर दया। उ ह ने मन ही मन सोचा था,
इस पल का रसा वादन करने से पहले म कसी भी चीज़ को—अपनी ज़दगी समेत—बंद
करने क इजाज़त दे ने को तैयार नह ं।
कानपुर का अ ताल उनक हालत से नबटने म स म नह था। पं डत
गंगासागर म को कोई फ़ भी नह थी। उ ह ने नई द ली या मुंबई के कसी अ ताल
के ब तर म मर जाने से मना कर दया था। कानपुर घर था और वो अपने रच यता से
अपने ख़ुद के घर से और अपनी शत पर मलगे।
वो रा प त भवन म आकार लेते य को दे खते रहे। रा प त उस क र माई
म हला को पद क शपथ दला रहे थे। वो हमेशा क तरह सुनहरे बॉडर वाली सूती साड़ी
पहने ई थी, और सादा एकल हीरे के बुंद के अलावा कोई भी ज़ेवर उसके शरीर पर नह
था। तया उसके सामने एक प े पर शपथ का आलेख रखा था ले कन मानो उसे
उसक ज़ रत ही नह थी। लगभग ऐसा लग रहा था जैसे अपनी सारी ज़दगी उसने इस
अवसर क तैयारी म लगा द थी। वो चु त अ◌ॉ सफ़ोड उ ारण म बोल रही थी, “म,
चांदनी गु ता, ई र को सा ी मानकर शपथ लेती ं क म व ध ारा ा पत भारत के
सं वधान के त स ी आ ा और न ा वहन क ं गी, क म भारत क सं भुता एवं
अखंडता को बनाए रखूंगी, क ईमानदारी और धमपूवक म धानमं ी के प म अपने
कत का नवहन क ं गी और क कसी डर या प पात के, नेह या े ष के बना
सं वधान और व ध के अनु प सभी लोग के साथ याय क ं गी।” बुजग मु कुराए। डर,
प पात, नेह या े ष के बना! बकवास! इनम से कसी के भी बना धानमं ी बनना
मुम कन ही नह था, और ये भी साला जानती है। य प, ये सफ़ उनक अपनी राय थी।
ले कन फर, धूत मै कया वली का हमेशा से व ास था क त य तो कसी भी मूख के पास
हो सकते ह—राय रखना एक कला है।
वो हंसे और नतीजा आ खरखराती खांसी, जो उनक न रता और उनके फेफड़
म जकड़े कसर क याद दला गया। कमरे के बाहर खड़े ख़ु फ़या वभाग के कमचा रय ने
उ ह खांसते सुना। वो समझ नह पा रहे थे क वो कससे कसक र ा कर रहे ह। बेशक
ऐसे ब त से लोग थे जो इस कमब त क मौत चाहते थे ले कन ऐसा लगता था क ई र
क कुछ और ही योजना है। ऐसा लगता था मानो गंगासागर नाक पर अंगूठा रखकर अपने
मन को चढ़ा रहे ह और कह रहे ह “आओ पकड़ लो मुझे, ले कन म यहां होऊंगा ही
नह !”
उनके सर पर पसीने क महीन परत फैल गई थी, जब क उनका गंजापन दोन
तरफ़ मौजूद एकदम सफ़ेद बाल के गु से और भी यादा होता था। नस ने एक
तौ लए से पसीना प छा। वो अपनी गहरी, ती ण, सव ा आंख से—न हे वी डयो कैमरे
ज ह ने बदतरीन मानव वहार को दे खा था और उसे गीगाबाइट् स म उनके म त क क
हाड ड क म टोर कर दया था—उसक ग त व धय को दे खते रहे। ूब के बावजूद
अपनी अंकुशाकार नाक से जीवनादायी ऑ सीजन को ख चने के लए संघष करते ए,
उ ह ने सांस लेने क को शश क तो उनके पतले–पतले ह ठ कांप गए। उनक वचा कसी
सं हालय के लभ चमप क नमल चंपई रंगत जैसी थी, और उनका पतला– बला
शरीर ब तर पर नाममा ही जगह घेरे ए था। इतना कमज़ोर छोटा सा आदमी इतना
श शाली कैसे हो सकता था?
उनके कमरे के बाहर लॉबी म राजनी तक सहयो गय का जमावड़ा लगा था।
पं डत गंगासागर म के कोई दो त नह थे। उनक सयासी नया म सफ़ मन होते
थे। म क मौत से पहले ही उनक मौत के बारे म कोई भीतरी ख़बर नकालने क उ मीद
म अख़बारी प कार का एक शकारी दल बाहर खड़े नेता से दो ती गांठने म लगा था।
बुजग कुछ बुदबुदाते से तीत ए, श द को बोलने म काफ़ मेहनत करनी पड़ी
थी। यह सं कृत म उनक न य क ाथना थी: आ द श , नमोनम:; सवश , नमोनम:,
थम भगवती, नमोनम:, कुंड लनी माताश ; माताश , नमोनम: / उ ह ने—अब
धानमं ी क शपथ ले चुक — अपनी पा लता को दे खा। वो टे ली वज़न कैमर के सामने
आभार म हाथ जोड़े ए थी... और फर वो पीछे क तरफ़ लड़खड़ा गई। वो लाल ध बा
जो उसके बाएं कंधे पर फैलता चला गया था—मानो लो मोशन म—एक टगर .22
मै नम से फ़ायर कया गया था।
रा प त भवन के भ अशोक हॉल म भगदड़ मच गई थी। टे ली वज़न पर साकार
होते य को दे खते ए म सं कृत म अपना मं ो ार करते रहे, “आ द श ,
नमोनमः; सवश , नमोनम:, थम भगवती, नमोनम:, कुंड लनी माताश ; माताश ,
नमोनम: /”
अ याय एक
लगभग 2300 वष पहले

चुंबन लंबा था। वो अपने ह ठ से धीरे-धीरे उसके ह ठ सहला रही थी जससे उसक रीढ़ म
व ुतीय चगा रयां सी दौड़ रही थ और वो इ ा कर रहा था क ये आवेगपूण या
अपने तृ तपूण समापन क ओर अ सर हो। उसका नाम वशाखा था– जसका अथ था
द न —और वो न संदेह एक द ाणी थी। स लल सी म म आभा वाला उसका
हाथीदांत जैसा नमल वण, उसका मादक मुख, और प े जैसी चंचल आंख आं शक प
से उसके लहराते, रेशमी, सुनहरी बाल से ढक गई थ जब क वो उसके चेहरे पर झुक
उसक आंख , नाक और ह ठ पर परम आनंदपूण छोटे -छोटे चुंबन जड़ रही थी।
पोरस आनंद महल के क म रेशमी पलंगपोश पर लेटा आ था। अंत:क से
वीणा का धीमा-धीमा वर बखर रहा था जहां एक दरबारी राग हडोल— ेम का राग—के
सुर से छे ड़छाड़ कर रहा था। कमरे क उ र-पूव द वार के साथ लगा एक तसला था
जसे शु गुलाबजल से भरा गया था, और ठ क उसके सामने एक बड़ा सा सुनहरी द प
था जसे चंदन के तेल से जलाया गया था। पोरस परम सुख क अव ा म था।
ख़ुद को वशाखा क ग त व धय के अधीन करते ए, वो तृ त भरी आह भर रहा
था। वो याद करने क को शश करने लगा क कस महान गु ने कहा था क नवाण का
पथ द के आगे पूण अधीनता है। या ये रमणीय ाणी द से कम है? उसने बांह
फैलाकर उसके चेहरे को अपने चेहरे क ओर ख चा और उसके ह ठ वशाखा क ल ग
और इलायची से महकती सांस म अपनी यास बुझाने क को शश करने लगे। पोरस के
अंदर आग लगी ई थी।
उसके गले म आग लगी ई थी! पोरस को महसूस आ क वष और पारद का
म ण उसके ह ठ , जीभ और गले को जला रहा है तो उसने घबराकर वशाखा के बाल
को छोड़ा और अपने गले को पकड़ लया। उसने चीख़ने क को शश क ले कन उसके कंठ
से कोई आवाज़ नह नकल सक —उसका गला वशाखा के ह ठ क सं खया से बेकार
हो चुका था। द वशाखा उसके सर को अपने सुडौल व क गम के आ य म रखे
ए उसके शरीर से सांस को ख़ामोशी से नकलते महसूस करती रही। अंदर राजा क पीड़ा
से बेख़बर मोर बाहर शाही बाग़ म अभी भी नाच रहे थे। पोरस, कैकय और मगध का
श शाली राजा, मर चुका था। महाराज अमर रह!

पूव भारत म गंगा क सुंदर घा टय म बसे महान ा ण सा ा य मगध क राजधानी


पाट लपु इस घड़ी शांत थी। शहर के क़ले के चार ओर ख़ंदक़ म मगरम गहरी ऊंघ म
थे और पहरेदार ने शहर के ार को रात के लए बंद कर दया था। इस समय शहर के
भीतर ग त व ध वाली अकेली जगह द ण क ओर यम ार था जहां म दरालय और
ग णका के घर थे। राजधानी के उ री छोर पर, ार क ओर, जहां महल था और
ा ण ज त के लोग रहते थे, सड़क पर मौत जैसी ख़ामोशी पसरी ई थी।
एक साधारण से घर म, चाण य वशाखा क बात को यानपूवक सुन रहा था
जब क उसक अ ययन क चौक के दोन ओर रखे द य क चमक उसके तैलीय वण पर
छाया और काश क भयावह सी धा रयां डाल रहा था। वो एक भ ा सा दखने वाला
था। उसक वचा पर चेचक के दाग़ थे और उसके नैन-न श कुछ टे ढ़े से थे। उसका
गंजा सर कठोर, काला और कड़ा था और उसके माथे पर चंदन के लेप से एक शूल बना
आ था। उसके सर के पछले भाग से एक लंबी सी शखा नकल रही थी। उसके शरीर
पर एकमा कपड़ा एक साधारण सूती व था और उसक एकमा स ा एक
य ोपवीत था। वो वरले ही मु कुराता था य क मु कुराने से उसके टे ढ़े दांत दखते थे।
उसका ज म पूरे दांत के साथ आ था—जो क शासक का च था, ले कन एक
यो तषी योगी ने भ व यवाणी क थी क लड़का मा राजा से यादा श शाली होगा; वो
अपने समय का सबसे श शाली राज नमाता होगा। कई लोग के लए वो कौ ट य—टे ढ़ा
—था; बचपन के म के लए वो व णुगु त था; ले कन अ धकतर लोग के लए वो
चाण य था—महान और व ान चाण य, सारे मगध के सबसे नामी श क चणक का
स पु ।
ह या क व तृत जानकारी लेते ए उसने ज़रा भी भाव या उ साह कट नह
कया। चालाक बूढ़ा ा ण जानता था क अपनी वा त वक भावनाएं सर के सामने
करना कभी लाभ द नह होता। “तीन तभी एक रह य को रह य रख सकते
ह बशत उनम से दो मर जाएं,” वो अ सर कहता था।
ले कन वो मन ही मन हंसे बना नह रह सका। मूख पोरस ने व ास कर लया
था क उसके ब तर म मौजूद द ाणी वशाखा थी—चमकता न हा न । हाह!
जड़बु को पता ही नह चला क वशाखा तो चाण य क श त वषक या थी।
वा तव म, चाण य ने ऐसी क या क एक पूरी सेना के नमाण क नजी प से दे खरेख
क थी। उसका ख़ु फ़या तं ऐसी युवा और आकषक लड़ कय क पहचान करता था
जनक ज मकुंड लयां उनके वधवा होने क भ व यवाणी करती थ । इन सुंद रय को कम
आयु म ही पृथक कर दया जाता और उ ह व भ कार के वष धीरे–धीरे मा ा बढ़ाते
ए खलाए जाते जससे वो उनके हा नकारक भाव से तर त हो जात । त णाव ा
तक प ंचते–प ंचते चाण य क ये वषक याएं अ यंत वषैली हो जात । लार के मामूली
से आदान- दान के साथ कया उनका एक साधारण सा चुंबन बैल जैसे कसी पु ष को
भी मारने के लए पया त होता।
“जाकर चं गु त से कहो क अब वो मगध के स ाट ह,” चालाक ा ण ने
सामा य भाव के साथ अपनी वषैली श या को नदश दया और उसका म त क इस पूरी
कहानी के आरंभ म चला गया।

मगध का राजा धनानंद ोध म था। उसका ा ण महामं ी, बु मान शकतार, उसे


समझा रहा था—पृ वी पर ई र के त न ध को! शकतार चाहता था क राजा शराब म
डू बे कामुक ल य म कम समय बताए और यादा समय मगध के नाग रक के जीवन को
सुधारने म लगाए। धनानंद को शकतार जैसे व ान नीरस और असहनीय लगते थे। पर
फर भी वो उ ह सहन करता था। उसक स म त म ा ण का संर ण उसे बु मान
के प म दखाता था।
मगध के वराट सभागार क छत अ सी वशाल तंभ पर टक थी। ब मू य
साज–स ा और द वारद रयां व के सबसे धनी राजा के दरबार क शोभा म चार चांद
लगा रही थ । महल से कुछ र सोने का पानी चढ़ा राखी दे वी मं दर था, जो एक बौ
मठ होने के साथ–साथ एक आयुवद य अ ताल भी था और मगध क धा मक, सांसा रक
और आ या मक उ त का तीक था।
धनानंद ने अपने दा ओर पहली कुस को दे खा। ये रा य के सबसे मह वपूण
ा ण—महामं ी शकतार—के लए आर त थी। कुस ख़ाली थी य क शकतार राजा
को उपदे श दे ने के लए खड़ा हो गया था। पाखंडी हरामज़ादा, धनानंद ने सोचा। वो सब
वाथ धूत का झुंड थे जो अपने बीच से सबसे दं भी लोग क मं य के प म सफ़ा रश
करते थे, और फर धनानंद के पैसे से वयं को स मान, अनुदान और पद वयां दलाते थे,
और उसे—श शाली धनानंद को—राजा के कत पर भाषण दे ते थे! उनके पाखंड से
उसे घ आती थी।
धनानंद क नज़र अपनी प रचा रका क ओर चली ग । मगध के शासक
हमेशा म हला से घरे रहते थे। वो व भ काम करती थ जनम राजा क सुर ा करना,
उसके क तक प ंच को नयं त करना, भोजन म वष नह होना सु न त करने के लए
उसका भोजन चखना, संदेश प ंचाना, उसका कवच चमकाना, संगीत से उसका मनोरंजन
करना, उसे नान करवाना और कपड़े पहनाना, उसक यौन आव यकताएं तृ त करना,
और रात को उसे सुलाना स म लत था।
धनानंद क सेवा म एक हज़ार से अ धक म हला से वकाएं और दरबारी थ ।
अपने वामी क सुर ा म वो ब ली क तरह घातक थ । धनानंद ने ऐसी ही मनोहर
ब ली को दे खकर चुपके से आंख मारी— जसके घुमावदार शरीर को दे खकर उसक
श और जान से मार डालने क उसक मता क क पना करना क ठन था—और
उसने भी शमाते ए उसी तरह जवाब दया।
ये आंख मारना अं तम तनका स आ। सामा यत: शांत रहने वाले शकतार को
ोध आ गया और उसका बरस का दबा आ ोध पक चुके घाव के सड़ते मवाद क
तरह फट पड़ा। “हे राजा! दरबार के आचरण के कारण अब आपके रा य म कोई
म हला सुर त नह है। लड़ कयां अ सर गंगा के कनार पर मल रही ह—बला कार या
ह या या दोन क शकार। उनका सुराग़ ाय: राजमहल क ओर लेकर आता है!” वो
गरजा।
व म सबसे बड़ी तैयार सेना का वामी धनानंद बुरी तरह ु हो उठा। “अपनी
ज़बान को संभालो, शकतार, वना म इसे अलग करवा ं गा! तुम मेरे ही पैसे पर जीते हो
और तु ह लगता है क तु ह अ धकार है क तुम यहां आओ और मुझ— े ात संसार के
सबसे श शाली स ाट को—बताओ क म अपना काम कस तरह क ं ?” वो च लाया,
और हर श द के साथ उसके ह ठ पर थूक बखरता गया। “रा स! इस को नंद के नक
म फकवा दो। तब इसे पता चलेगा क पुट्ठे म पीड़ा कैसी लगती है,” उसने अपने
आंत रक सुर ा मं ी रा स को आदे श दया।
नंद का नक धनानंद के कारागार प रसर का कु यात यातना क था। इसका
नरी क ग रका एक दानव था। बचपन म भी ग रका को च टय , म खय , चूह और
मछ लयो को पकड़ने और उ ह यातनाएं दे ने म आनंद आता था। बाद म वो कांटे, जाल,
गम मोम, खौलते पानी और तांबे क छड़ ारा ब लय और कु को यातनाएं दे ने लगा।
जन कैदख़ान म ग रका काम करता था, और असहाय बं दय के दांत को धातुई चमट
से उखड़वाता था, उनके गु तांग पर पघला आ तांबा उलटवाता था और उनक गुदा म
जलते ए सुख़ अंगारे घुसवाता था, वहां से हर समय र को जमा दे ने वाली चीख़ सुनी
जा सकती थ ।
रा स ने अपनी कुस पर बेचैनी से पहलू बदला। गम सुख़ अंगार के वचार से
उसक बवासीर उभरने लगी थी। वो जानता था क वो ब त बड़ी वधा म फंस गया है।
शासक क आ ा मानी तो सारी आबाद उसे राजा का दलाल कहेगी—जो क वो था—
और आदे श का पालन नह कया तो ख़ुद उसे ही कैदख़ाने भेज दया जाएगा।
नृ य, नाटक, संगीत, सा ह य और कला का शौक़ न रा स एक सुसं कृत और
प र कृत कलाकार था। अपनी कलापूण नया म सव े म हला स दय से घरा रहने के
कारण वो धनानंद को रा य क सबसे मनमोहक म हलाएं प ंचा पाता था। राजा के साथ
उसक सफलता का यही रह य था। रा स के अंदर का मा हर राजनी त खुले टकराव से
बचता था। मूख शकतार को बखेड़ा खड़ा करने क या ज़ रत थी? रा स हच कचाते
ए अपनी कुस से खड़ा आ और उसने अपने र क को महामं ी को गर तार करने का
आदे श दे दया।
राजक य महल के ार के बाहर एक प र के छ े पर खड़ा धनानंद के
बारे म ज़हर उगल रहा था। “मगध के नाग रको, ये अ याचार लंबे समय से चल रहा है।
राजक य धनानंद ने उस एकमा मं ी को कारागार म डाल दया है जो उससे ट कर
लेने म स म था। या हम यहां इसी तरह असहाय खड़े रा य के संर क—बु मान और
महान महामं ी शकतार—के साथ ऐसा शमनाक वहार होते दे खते रहगे? अभी कतने
और कसान आ मह या करगे य क धनानंद के कर नरी क उनके अनाज को लूट लेते
ह? कतने और सै नक लड़ाइय म मारे जाएंगे य क राजा के आनंद के लए शराब के
याले बनाने को उनके कवच के साथ समझौता कया गया? और कतनी मांएं अपनी
बला कार क गई बे टय क लाश पर आंसू बहाएंगी? अभी और कब तक हम इस
शासक को सहन करगे?” वो च लाया।
वहां भीड़ इक हो गई थी। य क व ा कोई साधारण नह था। वो
चणक थे—रा य के सबसे स मा नत श क—बु मान चाण य के पता और महामं ी
शकतार के क़रीबी म और व ासपा । अपने बेट और भ व य के राजकुमार को
चणक के पास भेजने के लए राजा म होड़ लगी रहती थी ता क उ ह राजक य कत
का श ण और श ा दलवाई जा सके।
महल के अंदर र क ने महामं ी शकतार को पकड़ लया था और गु त ग लयार
क एक ृंखला से होते ए उसे कैदख़ाने तक ले गए थे। रा स ने ख़ामोशी से सेना य
को नदश दया था क शकतार के साथ अ ा वहार होना चा हए और क ग रका उस
पर हाथ न डाले। “ ग रका से कह दे ना क अगर उसने महामं ी के बाल भी छू ने क
को शश क तो म वयं उसक गो लय को काटूं गा, अख़रोट क तरह भूनूंगा, और ना ते म
उसी को खलाऊंगा!” वो सेना य के सामने फुफकारा था।
रा स अभी अपनी अगली चाल के बारे म सोच ही रहा था क शाही र क के
मुख ने तेज़ी से अंदर आकर राजा के साथ कुछ बात करने क इ ा जताई। प से
घबराए ए मुख ने समाचार दया क महल के बाहर एक बड़ी भीड़ जमा हो गई है और
चणक ारा उसे व ोह के लए उकसाया जा रहा है।
धनानंद आगबबूला हो गया। उसका चेहरा बगड़ गया और गदन क नस बाहर
चल रहे र क क ढोल क थाप के साथ धड़कने लग । “मार डालो उस रंडी क औलाद
को! म चाहता ं क चणक का सर काटकर गंगा के कनारे लटका दया जाए। अभी!” वो
च लाया। बेचारा मुख इस डर से क कह वयं उसका अपना सर भोजन क चौक पर
धनानंद क कसी दरबारी चख नया ारा न चखा जाए, अपने सनक शासक के शाही
फ़रमान का पालन करने के लए तेज़ी से चला गया।

“वो मर चुके ह, व णुगु त। मुझे तु हारी त के लए ख है, मेरे बेटे। राजा के जासूस हर
जगह फैले ए ह। तु ह भाग जाना चा हए। वो तु हारी तलाश म ह गे,” धनानंद के
मं मंडल म मं ी और चणक के न ावान म का यायन ने समझाया। दरबार म उसने
चणक के मारे जाने क ख़बर सुनी थी और वो चणक के बेटे व णुगु त को चेतावनी दे ने
तेज़ी से चल दया था।
“ले कन अगर म भाग गया, तो मेरी मां क दे खभाल कौन करेगा? वो तो ब त
बूढ़ ह, इसी लए कह जा भी नह पाएंगी” लड़के ने कहा।
“उनक दे खभाल म क ं गा, घबराओ मत,” स न और आ तपूण का यायन
ने कहा।
“और सुवा सनी?” व णुगु त ने पूछा। सुवा सनी बंद महामं ी शकतार क बेट
और व णुगु त क बचपन क पसंद थी।
“य द तुम केवल अपनी दे खभाल कर लो तो बाक़ सबक दे खभाल म कर लूंगा,
व णुगु त,” का यायन ने अधीर होते ए कहा।
व णुगु त के चेहरे क भावशू यता ने का यायन को च का दया। वहां न तो
नराशा का कोई च था और न पीड़ा का। “मुझे व णुगु त मत क हए,” अ भमानी और
ु लड़के ने का यायन से कहा। “आज के बाद से मेरी एकमा पहचान है चाण य—
भ चणक का पु !”

अमावस क रात थी और चाण य ने का यायन क सुझाई योजना पर अमल करने के लए


पूरे दो दन ती ा क थी। वो तब तक अपने शरीर पर कोयले और तेल का म ण मलता
रहा जब तक क पूणतया काला नह हो गया। चांदनी क पूण अनुप त और उसके
छाया जैसे लए का अथ था क वो गंगा के अ का शत कनारे पर बना नज़र म आए
घूम सकता था।
उसने का यायन के नदश का ठ क-ठ क पालन कया ता क वो नद कनारे
बरगद के पेड़ को ढूं ढ़ सके। ये एक प व पेड़ था जसक योहार पर पूजा होती थी और
इसी लए धनानंद के र क ने चणक के सर को इसी पेड़ क शाखा म टांग दया था
ता क आम लोग इसे छु एं नह । बरगद तक प ंचने के बाद, चाण य उसक जड़ म रखे
द ये को नज़रअंदाज़ करता आ उसके वशाल तने पर चढ़ने लगा। ज द ही तेज़ गध
उसे उस ान तक ले गई जहां उसके य पता का सर एक ेत क तरह उनक एकमा
लट से एक शाखा म बंधा लटका आ था।
अपने पता के कटे ए सर को भयानक सरसराती हवा म झूलते दे खकर
चाण य क आंख डबडबाने लग । उसके पता क आंख पूरी तरह खुली ई थ और दोन
गाल म बड़े-बड़े सूराख़ हो गए थे जहां क ड़ ने दावत उड़ानी शु कर द थी। उनका मुंह
कसकर बंद था, और ये उनक मनपसंद—और अब वडंबनापूण—कहावत क ख़ामोश
याद दलाता था: “जो अपना मुंह ब त यादा खोलता है, उसका अंत ब त खद
हो सकता है, अपच ारा या ाणदं ड ारा!”
चाण य ने ख़ुद को संभाला, शाखा पर चढ़ा और उसने तेज़ी से शखा को खोल
दया। पूरी सावधानी के साथ उसने सर को ऊपर उठाया, अपनी बांह म संभाला और
शीष को एक स मानपूण चुंबन दया। अब उसके आंसू तेज़ी से नकल रहे थे और उसके
पता क खोपड़ी पर बह रहे थे। वो इस ण तक रोया नह था ले कन अब उसने ख़ामोशी
से ख़ुद को वचन दया क ये एकमा अवसर होगा जब क वो ख़ुद को रोने दे गा; चाण य
सर को लाएगा। उ ह अपने कम का फल भोगना होगा। उसके आंसु का बदला उ ह
ख़ून से चुकाना होगा।
वो तेज़ी से पेड़ से उतरा और उसने अपने पता के सर को अपने साथ लाई नई
मलमल म लपेट दया। फर उसने मलमल को अपने धड़ से बांध लया और अं धयारी और
भयंकर नद म कूद गया। जमा दे ने वाले ठं डे पानी के झटके को दबने म कुछ मनट लगे
और वो ज द ही मज़बूती से हाथ-पैर चलाता आ सरे कनारे पर गा मं दर क ओर
बढ़ने लगा।
का यायन ने शाही र क को र त दे कर उनसे चणक का शव ले लया था और
उसे गु त प से मं दर के मैदान तक प ंचाने क व ा कर द थी। ह परंपरा के
अनुसार, मृत शरीर क अं ये सूया त से पूव होनी चा हए थी, ले कन चणक क मृ यु क
पर तय का अथ था क इस परंपरा को फ़लहाल नज़रअंदाज़ करना होगा। अगर
धनानंद को भनक भी लग जाती क चाण य चणक के शव क अं ये कर रहा है, तो वो
अपने गुग को लड़के क तलाश म भेजने म ज़रा भी नह हच कचाता।
तेज़ बहाव म से भीगा आ नकलने पर, उसने नद कनारे पुजारी को अपनी
ती ा करते पाया, जो क भयानक सा कुबड़ा था और ख़ून जैसे लाल रंग क चादर लपेटे
ए था। वो एक मशाल लए खड़ा था और उसने ख़ामोशी से इशारा करके चाण य को
अपने साथ चता क ओर चलने के लए कहा जो क पहले से तैयार क जा चुक थी।
बना एक श द बोले, उसने चणक के सर वाली मलमल को लया और उसे चता म रखे
शेष शरीर के साथ रख दया। उसने चाण य को जलती ई घास क एक गठरी द और
उससे कहा क वो पहले एक बार शव क प र मा करे और फर चता को जला दे । जब
चणक का शरीर लपट से घर गया, तो पुजारी ने उसे एक बांस दे कर लाश का सर फोड़ने
के लए कहा—क थत प से वो कृ य जसके ारा अंदर फंसी चणक क आ मा मु हो
जाएगी।
लपट का ज़ोर कम आ, तो पुजारी ने चाण य को गंगा म एक और डु बक
लगाने का नदश दया और पहनने के लए सूखे गे कपड़े दए। नहाने और कपड़े वदलने
के बाद चाण य ने पुजारी क द ई छोट सी पोटली ली। ये का यायन क ओर से उसके
लए वदाई क भट थी। इसम उसक सुर ा के लए एक छोट सी कटार थी, उसके
जीवन-यापन के लए पचास सोने के पण थे, और त शला व ालय के अ य के लए
एक च थी।
नौ सौ मील क री पर सु र उ रप म म बसा त शला व का पहला
व व ालय था। इसक ापना लगभग तीन सौ वष पूव ई थी और इसम हर वष साठ
से अ धक वषय म दस हज़ार से अ धक छा एक होते थे।
चाण य ने लंबी और गम या ा आरंभ कर द जसम एक वष से अ धक समय
लगना था।
अ याय दो
वतमान समय

कानपुर क धूल भरी बरहाना रोड दन के यादातर समय चटोर का वग होती थी।
सड़क कनारे क छोट -छोट कान म मुंह म पानी लानो वाले नै स मलते थे—
गोलग पे, आलू ट क , दही कचौड़ी—ख –मीठ वा द चीज़ जो सबसे अ धक
अ वा यकर अवयव से मलकर बनती थ : तले ए आलू, मैदा, चीनी, और नमक।
कोले ॉल का धमाकेदार हमला आमतौर पर चटोर को उन मठाई क कान म जाने से
नह रोक पाता था जहां ल , बफ़ , कु फ़ , जलेबी, मलाई-म खन, गुलाब जामुन और
सैकड़ क़ म क सरी शीरे भरी, चप चपी और पापमय मठाइयां बकती थ । सड़क
दन भर ै फ़क से अट रहती थी—काला-काला धुआं उगलते अ◌ॉटो र ा, कार, कूटर,
हथठे ले, भसे, गाय, और इंसान। हवा गंद ले कन फर भी उ साहपूण थी। पसीने और
पेशाब क गंध म काबन मोनोऑ साइड, तले भोजन, और आसपास के मं दर से आने
वाली धूप क गंध मली ई थी।
बरहाना रोड क एक गली म एक ब ग थी जसने कभी बेहतर दन दे खे थे
और अब खड़े रहने के लए संघष कर रही थी। इसके अंदर, एक जीण सा ज़ीना सरे
लोर के एक लैट को ले जाता था जहां कानपुर म इ तहास के सबसे मुख ोफ़ेसर,
पं डत गंगासागर म , रहते थे। अभी-अभी नहाए और एक सामा य सा सफ़ेद सूती कुता-
पाजामा पहने पं डतजी अपनी सवेरे क पूजा म त थे। वो अपनी पूजा क चटाई पर
पूव क ओर—चढ़ते सूरज क दशा म—मुंह कए बैठे थे और अपने लघु मं दर म रखे
छोटे -छोटे चांद के दे वता को फूल, धूप और चंदन का लेप चढ़ा रहे थे। अपने दे वता
को गुड मॉ नग कह लेने के बाद, वो कांपते ज़ीने से उतरकर बाहर सड़क पर चले गए।
था क पं डतजी अपनी जवानी म एक सुंदर आदमी रहे थे। उनके नाक-
ना शे राजसी, माथा चौड़ा और नाक तोते जैसी थी। वो इ तहाई गोरे ले कन नाटे थे।
ले कन उनका छोटा कद ामक था— नेपो लयन क तरह। उनके सर के लगभग सारे ही
बाल गर चुके थे, और पं डतजी बची-खुची लट को बचाकर रखने के लए बड़े यार से
उ ह पूरे सर पर बाएं से दाएं काढ़ते थे।
अगले तीस मनट मोतीझील चौराहे तक तेज़ टहल म बीतगे जहां एक नीरस से
नाम—बनारसी ट हाउस—का चायवाला पं डतजी के लए चाय एकदम तैयार रखेगा।
पं डतजी का नौकर अ सर शकायत करता था क वो घर पर बेहतर चाय बना सकता है
ले कन पं डतजी को अपनी सवेरे क टहल भी पसंद थी और चाय क कान क गपशप
भी जहां वो सवेरे क नय मत भीड़ का भाग थे। फर वो दो कान आगे अपने
अख़बारवाले के पास जाते और उससे अपनी रोज़ाना क जानकारी का भंडार ख़रीदते।
इसके तीस मनट बाद वो वापस घर पर होते और अगले दो घंटे दे श भर के अख़बार को
पढ़ते ए अपने ल वग म म बताते। उनके अख़बारवाले ने ऐसा नेटवक तैयार कर रखा
था जसके ारा वो कानपुर और लखनऊ के ानीय अख़बार के अलावा मुंबई, नई
द ली, कोलकाता और चे ई के अख़बार भी पं डतजी को स लाई कर पाता था।
“ले कन पं डतजी, आप इतने अख़बार य पढ़ते ह?” लड़के ने एक दन
उ सुकतावश पूछ ही लया। पं डतजी ने जवाब दया, “ य क म दे श म होने वाली हर
चीज़ के बारे म जानना चाहता ं। वना म इस पर शासन कैसे क ं गा?” लड़के ने कोई
जवाब नह दया, बस अ व ास से अपना सर हला दया।
सवेरे दस बजे तक पं डतजी दन के अपने पहले आगंतुक का वागत करने के
लए तैयार थे। उनका से े टरी, एक तेज़ केरलवासी— मेनन—आ चुका था और उनक
डाक छांट रहा था। इ तहास के ोफ़ेसर क ज़दगी का एक और, यादा अहम, प भी
था। वो अ खल भारत नव नमाण स म त— जसे प कार सं ेप म कहते थे य क वो पूरा
नाम याद नह रख पाते थे—के अ य थे। पं डतजी ने ये राजनी तक संगठन कई साल
पहले ग ठत कया था और ये एक अनुभवहीन संघषरत अनजान संगठन से तर क़ करते
ए एक ऐसा मु यधारा का राजनी तक दल बन गया था जसे नज़रअंदाज़ नह कया जा
सकता था।
“गुड मॉ नग, सर,” मेनन ने दन भर के मह वपूण काग़ज़ात क एक इंच भर मोट
फ़ाइल बड़े स म ढं ग से पं डत गंगासागर म को दे ते ए कहा। “मॉ नग, मेनन,”
पं डतजी ने कहा, “आपने चांदनी को कस समय मुझसे मलने के लए कहा है?”
“वो यारह बजे तक यहां ह गी, सर। वो वप के उन एमएलए को लेकर आएंगी
जो दल बदलना चाहते ह,” मेनन ने मु कुराते ए कहा। वो जानता था क ये एक
मह वपूण दन है। ये वो दन था जब एबीएनएस भारत के सबसे अ धक आबाद वाले
दे श—और द ली म स ा पाने क चाबी—उ र दे श क वतमान रा य सरकार को
गराएगी और अपना मु यमं ी बठाएगी। इस सबके पीछे जो था वो एक सरल सा
पं डत था जो हर सवेरे बनारसी ट हाउस म चाय पीता था और ख़ुद को इ तहास का
श क कहलवाना पसंद करता था।
उनके क़रीबी प र चत जानते थे क पं डत गंगासागर म को इ तहास पढ़ाने म
च नह है। उ ह इ तहास बनाने म च है।

गंगासागर का ज म 1929 म गंगा नद के कनारे बसे एक शांत से शहर कॉनपोर—कानपुर


का अं ेज़ीकृत नाम—म आ था। कानपुर मूल प से महाभारत के नायक कृ ण के एक
और नाम क हैया पर आधा रत का हापुर आ करता था। अं ेज़ आए तो इसे सात हज़ार
सपा हय क बैरक वाला छावनी शहर बनाने के बाद उ ह ने सोचा क कॉनपोर बेहतर है।
सपा हय ने 1857 म बग़ावत कर द । हो सकता है उ ह नया नाम पसंद नह आया हो।
गंगासागर के पता— म ाजी—एक ग़रीब ा ण थे नद कनारे सरकारी
सहायता वाले कूल म पढ़ाकर रोज़ी-रोट कमाते थे। जब दो बे टय के बाद उनक तीसरी
संतान एक बेटा आ, तो उ ह ने उसका नाम गंगासागर—गंगा क तरह वशाल—रखने
का न य कया। गंगासागर क मां एक सीधी-साद म हला थ जो बस हर समय प रवार
क छोट -छोट ज़ रत को पूरा करने म लगी रहती थ । ले कन गंगा उनका लाड़ला था।
उस समाज म जहां बेट को संप और बे टय को बोझ समझा जाता था, उनके बहीखाते
म गंगासागर इकलौता आइटम था जो उस दहेज क भरपाई करेगा जो अपनी बे टय क
शा दय म उ ह दे ना होगा। गंगासागर अ तरह भोजन कर ले, इसके लए वो ख़ुशी–
ख़ुशी अपना भोजन छोड़ सकती थ ।
ह परंपरा के अनुसार, ा के पखवाड़े म ा ण क ब त मांग होती थी जब
समृ प रवार अपने पूवज क याद म उ ह भोजन कराते और कपड़े दे ते थे। म ाजी के
धनी संर क म से थे एक ापारी अ वालजी। न हे गंगा को हमेशा ा के दन म
उनके घर खाने का इंतज़ार रहता था। वहां खाने के साथ हमेशा असी मत खीर मलती थी।
एक दन अ वालजी के घर खाना खाते ए गंगासागर ने अपने पता से पूछा, “ पताजी,
ा बस अपने पूवज को याद करने के लए होता है ना?”
“हां, बेटा। ा ण को भोजन कराके लोग तीका मक प से मृतक क
आ मा को भोजन कराते ह।”
“तो एक दन आप भी मर जाएंग?े ” गंगासागर ने उदासी से पूछा।
म ाजी मु कुरा दए। सारे मां-बाप चाहते ह क उनके ब े उनसे दल से यार
कर और म ाजी भी कोई अपवाद नह थे। अपने लए अपने बेटे क चता को दे खकर
उनक छाती गव से फूल गई।
“हां, गंगा। एक दन हर कसी को मरना है। मुझे भी।”
गंगा खी हो गया। बादाम और कश मश भरी वा द खीर का एक और कौर
लेते ए उसक आंख डबडबाने लग । म ाजी का दल पघलने लगा। उ ह ने उस ख को
कम करने क को शश क जसम उ ह ने अपने बेटे को डाल दया था। “तुम इन चीज़ के
बारे म य जानना चाहते हो, गंगा?”
“म सोच रहा था क जब आप मर जाएंगे तो या हम फर भी खीर खाने के लए
अ वालजी के घर आ सकगे?”

म ाजी ने कसी तरह इतना पैसा जुटा लया क वो गंगासागर को उस सरकारी सहायता
ा त कूल से बेहतर कूल भेज सक, जहां वो पढ़ाते थे। उ ह ने गंगासागर से कहा क वो
हमेशा े वहार करे। वो उसे कानपुर के कसी और कूल म नह भेज सकते थे।
कूल म पहले ही दन गंगासागर के अ यापक ने उसे खड़ा होने और कुछ सवाल
के जवाब दे ने को कहा। आ म व ास से भरा गंगासागर तुरंत तैयार हो गया। तगड़ी
पूछताछ क उ मीद म पुराने छा ने एक- सरे को आंख मारी।
“अमे रका के पहले रा प त कौन थे?” हेडमा टर ने पूछा।
“जॉज वा शगटन,” गंगासागर ने जवाब दया।
“शाबाश। इ तहास बताता है क उ ह ने बचपन म एक शरारत क थी। वो या
शरारत थी?”
“उ ह ने अपने पता का चैरी का पेड़ काट डाला था।”
“ब त ख़ूब, गंगासागर। इ तहास ये भी बताता है क उनके पता ने उ ह सज़ा नह
द । बता सकते हो य ?”
“ य क जॉज वा शगटन के हाथ म कु हाड़ी थी?” गंगासागर ने बैठते ए पूछा।

कुछ ही महीन के अंदर वो कॉ पयां जांचने म हेडमा टर क मदद करने लगा और उनका
य श य बन गया। कूल म द वाली क छु यां होने वाली थ । परी ाएं ख़ म ई ही थ
और गंगासागर अपने मनपसंद वषय इ तहास क कॉ पयां जांचने म हेडमा टर क
सहायता कर रहा था। उसे अपने कुछ सहपा ठय के हा या द उ र पर हंसी आ जाती
थी।
“ ाचीन भारत म स से भरा आ था जो बाप से बेटे तक बढ़ते चले गए ह। म स
के सं ह को माइथॉलोजी कहते ह।”
“सबसे महान शासक मोगली थे। सबसे महान मोगली अकबर था।”
“ फर अं ेज़ आ गए। वो अपने साथ कई आ व कार लाए, जैसे केट, ै म टाट
और ट ड रेलवेज़ ।”
“आ ख़रकार भारत पर अं ेज़ ओवर ल करने लगे य क यहां एकता म ब त
यादा अनेकता थी। वो े ए ोटट और इंपोटट थे। उ ह ने भारत से नमक के ए ोट
और फर कपड़े के इंपोट से शु आत क ।”
क ठन सवाल म से एक चं गु त मौय के बु मान गु चाण य के बारे म था।
सवाल था “ कर क या चाण य क पु तक ‘अथशा ’ उसक अपनी कृ त थी या
पुराने वचार का सं ह।” एक अ े ले कन सु त छा ने लखा था, “इस सवाल का
जवाब सफ़ ई र ही जान सकता है य क चाण य मर चुका है। शुभ द वाली।”
गंगासागर ने हा शये म लखा, “ई र को ए- लस मलता है, तु ह एफ़। तु ह भी
शुभ द वाली!”

ये म ाजी क आख़री द वाली थी। ज़दगी ने उ ह असाधारण प से कठोर चोट द थ


और आ ख़रकार तनाव ने अपना भाव दखा दया था। पं ह साल क उ म ही
गंगासागर अनाथ हो गया और अब उसे एक बूढ़ मां और दो शाद यो य बहन क
दे खभाल करनी थी। वो जानता था क उसे कूल छोड़ना होगा, कॉलेज को भूलना होगा,
और काम ढूं ढ़ना होगा। उसक पहली शरण ली अ वालजी थे जो उसके पता के दो त
थे और ज ह ने गंगासागर के साथ हमेशा दयालुतापूण वहार कया था।
अ वालजी का घर कानपुर के एक वनीय और अलग-थलग कोने म गंगा के
कनारे था। ये दस बेड म वाला घर एक नजी नद तट के साथ दस एकड़ के लॉट पर
बना आ था जहां दस ा ण रोज़ाना एक धा मक अनु ान करते थे ता क अ वाल
प रवार अगली दस पी ढ़य तक सुखी बना रह सके।
1864 के कपास उछाल के दौरान अ वालजी के पता ने प रवार को ख़ुशहाल
बना दया था और वो कपास ापार के मुख क कानपुर कॉटन ए सचज के एक मुख
व बन गए थे। अमे रक गृहयु के दौरान, टे न अपनी सामा य कपास आपू त से
कट गया था और अपनी कपास क ज़ रत को पूरा करने के लए उसने भारत का ख़
कया था। कपास का स ा त और चंड हो गया था, और सौदे बाज़ी दे र रात तक
चलती रहती थी य क ापा रय को अपने भाव क त बंद करने के लए
अंतररा ीय कपास मू य क जानकारी का इंतज़ार करना पड़ता था। व र अ वाल को
स े बाज़ी ब त पसंद थी। ले कन उस समय के यादातर लोग के लए अनजान होने के
कारण वो स े बाज़ नह थे। उनक दौलत का कारण एक साधारण सी टै नॉलोजी, मोस
कोड, थी। चालाक बाज़ार चालक ने अपने दो आदमी लगाए ए थे, एक यूयॉक म और
एक टो कयो म। यूयॉक का कमचारी मोस कोड के ारा कपास का मू य टो कयो वाले
कमचारी को भेजता था, जो उसे कोड के मा यम से ही कानपुर म व र अ वाल को भेज
दे ता था। नतीजतन व र अ वाल को सर से लगभग एक घंटा पहले ही क़ मत पता चल
जाती थ । अ वाल के अपार धन का रह य रोज़ाना एक घंटे का य- व य था, न क
अंधाधुंध स े बाज़ी ।
व र अ वाल के वा रस उनके बेटे को भी अपने पता क चालाक और
असं कृत कुशा ता वरासत म मली। जहां पता ने अपने ापा रक हत को आगे बढ़ाने
के लए अमे रक गृहयु का सहारा लया था, वह क न अ वाल ने इसके लए तीय
व यु का इ तेमाल कया। यु म टे न क ओर से टे न के भारतीय उप नवेश को
प ीस लाख आदमी दे ने थे और अपनी रा ीय आय का एक क पनातीत अ सी तशत
भाग ख़च करना था, और तगड़े मुनाफ़े पर इसम से अ धकतर आपू त करने वाले
क न अ वाल थे। ले कन अ वालजी कसी भी तरह से टे न के प म नह थे। वो एक
तेज़-तरार आदमी थे ज ह ने भ व य को भांप लया था। वो जानते थे क बस कुछ ही
समय म अं ेज़ को भारत छोड़ना होगा, और इसी आशा म उ ह ने वतं ता संघष के लए
बड़े अनुदान भी दए थे।
गंगासागर के बचपन म महा मा गांधी कानपुर आए थे और अ वालजी के साथ
ठहरे थे। गांधीजी इं डयन नेशनल कां ेस के चालीसव स मेलन म भाग लेने के लए
इलाहाबाद से कानपुर आए थे। उनके वागत के लए कानपुर रेलवे टे शन पर प ीस
हज़ार लोग क भीड़ जमा ई थी। अ वालजी गांधीजी को घर ले गए थे। म ाजी ने ये
योगदान दया था क इस दौरे के दौरान न हा गंगासागर गांधीजी क दे खभाल के लए
उनके साथ रहे। अ वालजी इसके लए तुरंत तैयार हो गए थे।
गांधीजी ने स परेड ाउं ड म भाषण दया और लोग क भीड़ से अपील क
क वो असहयोग आंदोलन का समथन कर और इसे एक बड़ी सफलता बनाएं। बाद म एक
नजी ण के दौरान अ वालजी ने महान नेता से पूछा, “बापू, आपको या चीज़ ये
व ास दे ती है क आप अं ेज़ से लड़ सकगे?”
महा मा गांधी मु कुराए और फर उ ह ने कहा, “हम जीतगे य क हम अपने चार
चरण के संघष के तीसरे चरण म ह।”
“चार चरण का संघष?” अ वालजी आ य से बोले।
“पहला, वो आपको नज़रअंदाज़ करते ह, सरा, वो आप पर हंसते ह, तीसरा, वो
आपसे लड़ते ह, और चौथा—आप जीतते ह। यही चौथा चरण है, मेरे म अ वाल,”
महा मा ने सरल भाव से कहा। गांधीजी के पैर दबा रहा छोटा सा लड़का बु मान नेता क
बात को यानपूवक सुन रहा था। उसने हच कचाते ए पूछा, “बापू, अं ेज़ के पास बं क़
और पु लसवाले ह। म तो एक ब ा ं। म उनसे कैसे लड़ सकता ?ं वो कह अ धक
श शाली ह!”
महा मा गांधी ने यार से लड़के के सर पर हाथ रखा और कहा, “श शारी रक
मता से नह आती है। श अद य इ ा से आती है। म दे ख सकता ं क तुमम अद य
इ ा है, बेटा।”
उस दन से गंगासागर जान गया क एक दन उसके पास भी सा ा य को बनाने
या तोड़ने क श होगी।

गंगासागर बेचैनी से अ वालजी के सामने बैठा आ था। वो प मी कपड़े पहने था ले कन


वो उस पर अजीब से लग रहे थे। उसक क़लम ए वस के टाइल म लंबी और नीचे से
चौड़ी थ । उसक उ त नाक पर मोटे े ़ म के च मे को पाक करने के लए पया त जगह
थी। उसके तेल म चुपड़े पीछे को कढ़े बाल म बा ओर बड़ी मांग नकली ई थी।
उसक साधारण सी पूरी आ तीन वाली शट उसके पुराने बैल–बॉटम के ऊपर लटक ई
थी। वो लीन-शेव था और वो गोरा ले कन काफ़ नाटा था, पांच फ़ट से बस कुछ ही ऊंचा,
और उसके जूते उसके लए कम से कम दो साइज़ बड़े थे। “म समझ नह पा रहा था क
कससे मदद मांग,ूं ” युवा गंगासागर ने हच कचाते ए कहा। “सर, म उ मीद कर रहा था
क आप मुझे कोई नौकरी दे सकगे। आप जो भी कहगे म क ं गा, और म वादा करता ं
क म मेहनत से काम क ं गा। लीज़ मेरी मदद क जए,” उसने नवेदन कया।
अ वालजी ने केसर और इलायची यु तंबाकू से महकते अपने क़े से एक
कश लया और लड़के को दे खकर मु कुराए। “मेरे अपने बेटे नह ह, गंगासागर। म तु ह
काम पर रखूंगा ले कन तुमसे एक ग़लाम क तरह काम लूंगा। तु हारी त ख़ाह प ीस
पए तमाह होगी। तैयार हो?”
“आपको इस पर खेद नह होगा, सर। म वाक़ई भा यशाली ं।”
“हां, म भी भा य म व ास करता ं, बेटे। और मने दे खा है क म जतनी मेहनत
करता ं, उतना ही भा य मेरा साथ दे ता है,” अ वालजी ने मज़ाक़ कया।

सबसे पहले सबक़ बहीखाते और लेखाशा के थे। अ वालजी के खाते उनके भरोसेमंद
मारवाड़ी मुनीम—उनके ख़ज़ांची— ारा संभाले जाते थे जसे नौजवान को दोहरी– व
बहीखाते भरने क बारी कयां सखाने का काम स पा गया।
“गंगासागर, दो और दो कतने होते ह?” मुनीम ने पहले दन पूछा।
“चार,” गंगासागर ने जवाब दया।
“ग़लत जवाब। म बाद म तु ह एक मौक़ा और ं गा।”
कई दन बाद वो ाथ मक खात क दे खरेख, खाता व , और खाता संतुलन
क तैयारी तक प ंच गए थे। मुनीम ने फर से पूछा, “गंगासागर, दो और दो कतने होते
ह?”
“चार,” गंगासागर ने जवाब दया।
“ग़लत | म इसका सही जवाब दे ने के लए तु ह एक मौक़ा और ं गा।”
कुछ ह त बाद वो आय पहचान, य अनुमान, और लाभ-हा न खाते को अं तम
व प दे ने तक प ंच चुके थे।
“तु हारा आख़री मौक़ा। दो और दो कतने होते ह?” मुनीम ने पूछा।
लड़के ने झुंझलाकर कहा, “जो चाहो समझ लो!”
“सही जवाब,” मुनीम ने हंसकर कहा। “आ ख़र तुमने हसाब- कताब क
ख़ूबसूरती समझ ही ली!”

मुनाफ़ा अ वाल ख़ून म था। हर वो चीज़ जसे ख़रीदा और मुनाफ़े पर बेचा जा सके,
अ वालजी के लए दलच ी क चीज़ थी। गंगासागर को ज द ही अहसास हो गया क
वो एक वशेष उ ताद के हाथ म है। एक दन वो अ वालजी और उनके मुनीम के बीच
बातचीत के समय उनके साथ बैठा।
“मुनीमजी, हम जूट का कारोबार य नह कर रहे ह?”
“मुनाफ़ा ब त कम है, सर। इतनी मेहनत लायक़ नह है।”
“तो उसे नयात य न कर?”
“ नयात का मू य हमारी घरेलू ख़रीद से भी कम है। हम माल ख़रीदकर उसे कम
दाम पर बेचगे। ये घाटे का सौदा होगा, सर।”
“ले कन अगर हम जूट का य नयात कर और उसे जूट का नाम द? आ ख़र वो
भी जूट ही तो है।”
“ले कन, सर, हमसे कूड़ा कौन ख़रीदे गा?”
“म ख़री ं गा।”
“वा तव म आपका सुझाव या है, सर?”
“अगर हम अ वाल हांगकांग से आपका कूड़ा ख़रीदने को कह द? आप यहां
भारत म जूट का य ख़रीदगे— जसक क़ मत लगभग नह के बराबर होगी—और उसे
अपने वदे शी उप म को जूट के प म बेच दगे।”
“ले कन मुनाफ़ा तो झूठा होगा। हमारा भारतीय खंड मुनाफ़ा दखाएगा जब क
वदे शी खंड घाटा दखाएगा। खेल शू य रा श का ही रहेगा।”
“नह , मुनीमजी। अगर हम इसका नयात करगे तो सरकार समान मू य के
आयात लाइसस दे रही है। भले ही इस सौदे म हम पैसा नह कमा सक ले कन आयात
लाइसस के ी मयम ारा हम लाभ कमा सकते ह!”
गंगासागर ने ठान लया क वो अपने गु क ती ण चतुरता को सीखने के लए
पूरी मेहनत करेगा।

एक सवेरे अ वालजी टहल रहे थे। उनका सामा य रा ता उनके द तर होकर जाता था। वो
जाड़ क एक ठं डी सुबह थी, और यादातर कानपुर अभी सो ही रहा था। अपने बॉस को
आते दे खकर सुर ा गाड ने सलाम बजाया |
“राम राम, साहब,” उसने कहा।
“राम राम, गौरी साद,” अ वालजी ने कहा। “द तर म लाइट य जल रही ह?
इस समय अंदर कौन हो सकता है?”
“गंगासागरजी ने जलाई ह,” गाड ने कहा।
“गंगासागर इतने सवेरे द तर आता है?” अ वालजी ने अ व ास से पूछा।
“ नह , साहब। यादातर दन म वो ज द नह आते ह,” गौरी साद ने जवाब
दया।
“ठ क है! घर पर उसक मां और दो बहन ह। उसे उनके साथ भी कुछ समय
बताना चा हए,” अ वालजी ने कहा।
“नह , नह , साहब। वो यादातर दन म ज द इस लए नह आते ह क
यादातर रात को वो द तर से जाते ही नह ह।”

गंगासागर अपने बॉस के अ◌ॉ फ़स म उनसे कसी बात पर चचा कर रहा था। अ वालजी
के वचार हमेशा लाभ के बारे म होते थे, और इस समय वो सोने क बात कर रहे थे। सरा
व यु ख़ म हो चुका था और अ वालजी के पास आशा का कारण था।
“अमे रक डॉलर को हमेशा सोने के मू य से जोड़ा गया है। कुछ समय पहले तक
एक ॉय स सोना बारह डॉलर का होता था, ले कन हा लया व यु ने इसे बदल डाला
है। डॉलर का मू य गर गया है और एक ॉय स अब पतीस डॉलर का है,” अ वालजी
ने कहा।
“तो?” गंगासागर ने पूछा।
“इसका मतलब ये है, गंगासागर, क अब डॉलर का मू य एक स सोने का
पतीसवां भाग है।”
“इसम अवसर कहां है?”
“भले ही अमे रक सरकार ने डॉलर के मू य को सोने से जोड़ दया हो, ले कन
डॉलर का वा त वक मू य गरता ही जाएगा य क उ ह यु से होने वाले नुक़सान क
भरपाई के लए और पैसा छापना पड़ेगा।”
“तो?”
“और जब डॉलर का वा त वक मू य गरेगा, तो सोने का वा त वक मू य
चढ़े गा।”
“तो इसम कोई अवसर है?”
“ सफ़ अवसर नह है— य– व य का अवसर है।”
“म समझा नह |”
“साफ़ बात है। अगर मेरे पास एक डॉलर हो, तो म उसके बदले एक स सोने
का पैतीसवां भाग ले सकता ं। सही?”
“सही।”
“ले कन सोने स के उस अंश का वा त वक मू य डॉलर से कह यादा है,
सही?”
“सही।”
“तो, अगर हम डॉलर ख़रीदते रह और उ ह सोने के अ धकृत मू य के बदले बेचते
रह, तो या होगा?”
“हम नफे़ म रहगे?”
“सही। तो इंतज़ार कस बात का कर रहे हो?”
अ वालजी ने डॉलर और सोने के इस य– व य के ारा अपनी कंपनी के लए
लाख कमाए। गंगासागर दे खता, सुनता और समझता रहा।
एक और मौक़े पर कपास के ापार क बात थी। भारत ने कुछ साल पहले अं ेज़ से
आज़ाद हा सल कर ली थी और एक नई सरकार दे श को चला रही थी।
“नाए उ ोग मं ी का इरादा कपड़ा मल को रा ीयकृत करने का है,” एक दन
अ वालजी ने यूं ही कहा।
“हम भा वत नह ह गे। हम ापारी ह, न क कपड़ा नमाता,” गंगासागर ने
सावधानीपूवक जवाब दया।
“तुम ग़लत कह रहे हो, हम भा वत ह गे। उ ोग मंद म आ जाएगा।”
“तो?”
“कपास क क़ मत गर जाएगी।”
“तो हम इससे या नुक़सान होगा?”
“कपास को शॉट सेल करो।”
“ह?”
“कपास को आज बेचो और बाद म कम क़ मत पर ख़रीद लो।”
“ले कन अगर रा ीयकरण तुरंत हो गया, तो लेनदे न के दोन छोर स म ढं ग से
संभालने के लए समय नह होगा, सर।”
“हम सु न त करना होगा क मं ी रा ीयकरण का अपना नाटक कुछ समय बाद
करे।”
“कैसे?”
“हम उसे दखाएं क वो इस मुनाफ़ाब श योजना म हमारा साझेदार बन सकता
है।”
गंगासागर को ापार और राजनी त के बीच के नाजायज़ संबंध समझ आने लगे।

दे र शाम का समय था। गंगासागर द तर से नकल ही रहा था क अ वालजी ने उसे अपने


के बन म बुला लया। “योजना आयोग ने घोषणा क है क दे श अगले पांच साल म बांध ,
सड़क और पुल म भारी नवेश करने वाला है,” उ ह ने घोषणा क ।
“ले कन हम नमाण कारोबार म नह ह,” गंगासागर ने वन तापूवक अपने गु
को याद दलाया।
“तो हम इसम आ जाना चा हए।”
“ले कन ये एक ब त वशेष उ ोग है। हम कारोबारी ह, सर। हम तो नमाण के
बारे म कुछ भी नह जानते।”
“कंपनी को समा व करो। दस तशत शेयर ल मी एंड को. को आवं टत कर
दो। कंपनी का नाम ट ल और सीमट के स लायर के पास पंजीकृत कर दो।”
“ य ?”
“तुम नमाण साम ी के लए अ◌ॉडर दे सकोगे।”
“ले कन हमारे पास कोई ोजे ट नह ह। हाथ म ोजे ट ए बना हम साम ी
कस लए ख़रीद?”
“ य क हम एक साल बाद नमाण कंपनी बेचना चाहते ह।”
“ले कन बना ोजे ट वाली नमाण कंपनी कोई य ख़रीदे गा?”
“कोई भी सरी नमाण कंपनी, य क हमारी कंपनी उन कुछे क कंप नय म से
एक होगी जनके पास सीमट और ट ल के बड़े भंडार ह गे, और उस समय इन दोन क
ही कमी होगी!”
“और अगर व मं ी ने हम पर जमाख़ोर होने का आरोप लगा दया?”
“वो ऐसा कैसे कर सकता है? ल मी एंड को. का मा लक उसका दामाद है।”

“म चाहता ं क तुम पटना चले जाओ,” अ वालजी ने गंगासागर से कहा।


“जैसा आपका आदे श, सर,” गंगासागर ने कहा।
“जानना नह चाहोगे य ?” उसके गु ने पूछा।
“अगर ये ज़ री होगा, तो आप ख़ुद ही बता दगे,” नौजवान ने जवाब दया।
“जैसा क तुम जानते हो, पटना बहार क राजधानी है। बहार ख नज भंडार म
समृ है, ख़ासकर लोहे के अय क म।”
“तो?”
“सरकार खनन म रआयत दे रही है। हम भी इसका भाग बनना चाहगे।”
“और आप मुझसे या काम कराना चाहते ह?”
“सरकार शायद ये नह जानती है क भंडार कहां ह। म बोली लगाने के बा द के
बजाय पहले जानना चाहता ं क नीचे या दबा है।”
“आप चाहते ह क म फावड़ा लेकर क े लोहे के लए खुदाई क ं ?”
“नह । म चाहता ं क तुम मेरे एक म से मलो जो आरएएफ़ म फ़ाइटर पाइलट
आ करते थे। वो पटना म रहते ह।”
“हम ज़मीन को खोलने के लए बम गराने ह गे?”
“ ं य ब त हो गया, गंगा। तुम ख़ुद ही दे ख लोगे क हम उनक ज़ रत य है।
ये एक अदभुत प से सरल और शानदार हल है।”

वै न लीडर मोहनलाल ख़ास कॉच–सोडा वाले थे। ह क उनके लए


जीवनसुधा थी, और उनक घनी सफ़ेद मूंछ उनके हर पेय के लए फ़ टर का काम करती
थ । उ ह ने द ली लाइंग कूल म वमान उड़ाना सीखा था और जब जमनी म ह रकेन
उड़ाने के लए टश रॉयल एयर फ़ोस ने उ ह चौबीस सद यीय भारतीय दल के भाग के
प म बुलाया तो उ ह इं डयन पो ट के पाइलट के प म नयु कया गया था।
अपनी अं तम उड़ान म उ ह ने अचानक दे खा क उनका पूरा डैशबोड ग़ायब है।
पहले वो इंजन के शोर के कारण यान नह दे पाए थे। इं लश चैनल से अठारह हज़ार फ़ट
क बुलंद पर उनके ह रकेन के इंजन से काला धुआं और तेल नकलना शु हो गया था।
सात हज़ार फ़ट पर ाउं ड कं ोल ने उ ह चैनल के ऊपर कूद जाने को कहा। एक नाव उ ह
वहां से ले लेगी।
“नाव मत भेजना,” उ ह ने खरखराते रे डयो पर कहा। “ य ?” अ◌ॉपरेटर ने
पूछा। “ य क मुझे साला तैरना नह आता!” वो च लाए। फर मोहनलाल डोवर क
सफ़ेद चो टय क ओर बढ़ गए ले कन जैसे ही उ ह ने वमान का ल डग गयर खोला,
ह रकेन लपट से घर गया। उ ह ने कसी तरह वमान को गराया और उ ह मलबे म से
घसीटकर नकालना पड़ा। उ ह अ ताल का खाना पसंद नह आया ले कन अपनी नस
और कॉच पसंद आई। ज द ही उ ह अहसास हो गया क नस क तरह कॉच अपना मन
नह बदलती है।
जंग ख़ म होने के बाद, मोहनलाल आरएएफ़ से मली एक ब ढ़या पशन के साथ
भारत लौटे जसके ारा एक पुराने हॉकर हाट के साथ वो एक सी मत ट वाली एयर
चाटर सेवा शु कर सके। इसी से वो अदभुत प से सरल और शानदार हल नकलने
वाला था जसक अ वालजी ने बात क थी।

“दे खा? ये तु हारे नीचे पटना शहर है,” खड़खड़ाते हॉकर हाट के एक बार फर से
लड़खड़ाने के दौरान मोहनलाल च लाए। गंगासागर अपने ना ते को उलटने के लए तैयार
था और एक बेतहाशा ठं डी सुबह के पांच बजे वहां होने के लए वो अ वालजी और मैड
मोहनलाल दोन को कोस रहा था। जहाज़ म उन दोन क सीट आगे-पीछे थ ।
“रेलवे लाइन के द ण म वो खंडहर दे ख रहे हो? वो कु हरार है— ाचीन
पाट लपु शहर के अवशेष जससे पटना को अपना नाम मला है,” पहली बार वमान म
बैठने वाले अपने सहया ी क बेचैनी से बेख़बर मोहनलाल च लाए। दोन ही बी–8
गॉग स, आरएएफ़ हे मेट, ए–2 बॉ बर जैकेट और 1941 आरएएफ़ मैक वै ट पैराशूट
बैकपैक पहने ए थे। गंगासागर ने वमान क साइड से घबराते ए उस ओर झांका जधर
मोहनलाल इशारा कर रहे थे।
“पाट लपु दो हज़ार तीन सौ साल पहले चं गु त मौय के वशाल सा ा य क
राजधानी था। पटना क बदहाली दे खकर क पना करना मु कल लगता है ना?” शोर
मचाती मशीन को नद के साथ चलने के लए मोड़ते ए वो ज़ोर से चीख़े।
“ये शहर गंगा के द णी कनारे पर बसा आ है ले कन ये पूरा े क े लोहे से
समृ है। बस हम वो काम करना है जो सरकार ने अभी तक नह कया है—सही ान
क पहचान!”
गंगासागर ने कुछ गा लयां बुदबुदा , और वो ख़ुश था क इंजन का शोर पाइलट
को वो गा लयां नह सुनने दे गा।
“सारी नया म ख नज क तलाश के लए भूभौ तक य टै नीक के योग म
ज़बरद त वृ ई है। मेरे सामने यहां टै नॉलोजी का वो उपकरण है मै नेटोमीटर कहते
ह। नया म बस कुछ ही मै नेटोमीटर ह। तु हारे बॉस ने ये अमे रक प र चत के ज़ रए
हा सल कया है। ये साला अ व सनीय है!” मोहनलाल ने कहा।
“ये चीज़ कैसे काम करती है?” पेट म अपने ना ते के छपछपाने क सनसनी को
नज़रअंदाज़ करते ए गंगासागर च लाया।
“ये चीज़ पृ वी क सतह के व भ भाग के सापे चुंबक य आकषण को
मापती है। आइरन अ◌ॉ साइड म सारे ख नज म सबसे यादा श शाली चुंबक य
खचाव होता है। इस लए जब हम ख नज के भंडार के ऊपर उड़गे, तो हम चुंबक य
खचाव म एक न त बदलाव दे खने को मलेगा,” ॉपेलस के शोर और इंजन क
ख़तरनाक लड़खड़ाहट म आं शक प से डू बती आवाज़ म मोहनलाल ने समझाया।

“हम गर रहे ह!” हॉकर हाट तेज़ी से नीचे होने लगा तो मोहनलाल चीख़े। गंगासागर ने
पहले मोहनलाल, फर अ वालजी और फर अपनी क़ मत को कोसा। एक ण को उसे
लगा क पागल पाइलट उसके साथ एक ू र मज़ाक़ कर रहा है ले कन कुछ ही सैकंड म
उसे अहसास हो गया क ये मज़ाक़ नह है। हवा म उड़ता कबाड़ तेज़ी से गर रहा था।
“हम कूदना होगा!” मोहनलाल च लाए। उनके नीचे पाट लपु के खंडहर थे जो
इतने सवेरे आंख फाड़ते सैला नय से ख़ाली थे। ‘मेरा नसीब,’ गंगासागर ने सोचा, ‘म दो
हज़ार तीन सौ साल पुरानी ह य से घरा आ म ं गा। अगर बाद म मेरी लाश मली भी
तो मुझे ाचीन स यता का ही एक अवशेष समझा जाएगा! ज़मीन के अंदर सैकड़ फ़ट
नीचे क े लोहे को ढूं ढ़नो साला मेरे लालची बॉस ने मुझे ऊपर हवा म य भेजा? लोहे के
लए खुदाई करने के बजाय इस ज़ंग लगी लोहे क च ड़या म अब वो मेरी लाश के लए
खुदाई करगे। दे खए, अ वालजी, ये रहा वो लोहा जो आपको चा हए था!’
वमान ने कपकपाते ए च कर खाया तो गंगासागर को भी च कर सा आ गया।
“कूदो! फ़ौरन!” मोहनलाल वमान से नकलते और अपने पैराशूट क रपकॉड को खोलते
ए च लाए। गंगासागर ने भी बना सोचे-समझे ऐसा ही कया। अब वो अपने सहारे था।
वो जानता था क वो मरने वाला है और उसे चता नह थी क साला पैराशूट खुलेगा या
नह । मोहनलाल के जहाज़ क हालत दे खते ए ब त संभव था क बैकपैक म पैराशूट हो
ही नह !

वो वग म था। उसे पूरा व ास था क वो मर चुका है और बादल के ऊपर इं लोक म तैर


रहा है। ले कन जब उसने सामने दे खा और मोहनलाल को भी अपने सामने हवा म तैरते
दे खा तब उसे अहसास आ क अगर मोहनलाल भी वह है तो वो लोग वग म नह हो
सकते। दोन के पैराशूट ठ क से खुल गए थे और धरती मां क ओर आ ह ता-आ ह ता
तैरते ए गंगासागर को अपने चेहरे से हवा टकराती महसूस हो रही थी।
ध म! ट कर को कसी भी तरह सौ य तो नह कहा जा सकता था। या पैराशूट
ट कर को ह का नह कर दे ते ह? ज़मीन से अपने टकराव के बारे म सोचने का ब कुल
समय नह था। सौ गज़ से भी कम क री पर, मोहनलाल के हॉकर का कराहता ढे र एक
ककश और भयानाक धमाके के साथ ज़मीन से टकराया और आग के गोले म त द ल हो
गया। मोहनलाल और गंगासागर दोन ने ख़ुद को संभाला और कबाड़ से उठने वाले गम के
धमाके से बचने के लए ज़मीन से लग गए।
कई मनट बाद ही दोन ने अपने सर उठाए। उनके चेहर पर का लख पुती ई थी
और कपड़े फट चुके थे। गंगासागर के बाल इस तरह सीधे खड़े ए थे जैसे करट लग गया
हो। उसक बांह , टांग और चेहरे पर ख़राश और खर च पड़ गई थ । ले कन अपनी
बदहाली के बावजूद उसक बड़ी ती इ ा हो रही थी क वो मोहनलाल का गला घ ट दे
और वो दल से ाथना कर रहा था क वो पाइलट पर हमला न कर बैठे।
उसने अपने आसपास दे खा। सवेरे 5.30 बजे पाट लपु के खंडहर कसी भुतहा
शहर जैसे लग रहे थे। ऐसा लगता था जैसे चं गु त का हलचल भरा सा ा य अचानक थम
गया हो। कु हरार ल के क म अ सी वशाल खंभे खड़े थे, जो शायद कभी मगध के
वराट सभागार का भाग रहे ह गे। ले कन अब वहां न तो छत थी, न ही चमचमाता फ़श, न
द वारद रयां, न सुंदर साज-स ा, जो कभी नया के सबसे धनी राजा के दरबार क
सजावट म चार चांद लगाती ह गी | खंडहर से कुछ री पर राखी दे वी का मं दर था जो
क बौ मठ के अलावा आयुवद य अ ताल भी था। ‘ये बड़ा ज़बरद त सा ा य रहा
होगा,’ गंगासागर ने इ तहास के त अपने जुनून के कारण बरबस ही सोचा।
“हैलो? कस नया म हो?” मैड मोहनलाल ने गंगासागर के सामने हाथ लहराते
ए पूछा। “हम घटना ल पर प ंचकर सु न त करना है क उसके आसपास कोई था
तो नह । लोग मर गए हो सकते ह,” मोहनलाल ने कहा और वो धुएं और लपट क तरफ़
चल दए।

घटना ल पर ज़मीन धंस गई थी। नाक के बल गरे जहाज़ से काला बदबूदार धुआं उठ
रहा था। पाट लपु के वशाल सभागार के अवशेष प म म सौ गज़ र थे। “ या हम
पटना क ओर चल द?” गंगासागर ने पूछा।
“कोई फ़ायदा नह । हम सैला नय के े के ठ क बीचोबीच ह। एक-दो घंटे यहां
बैठो और फर ढे र सारी बस आना शु हो जाएंगी। हम शहर वापस जाने के लए ल ट ले
लगे,” मोहनलाल ने सुझाव दया।
वो मलबे के दायरे से र बैठकर लपट को ठं डा पड़ते दे खने लगे। गंगासागर ने
अपने कपड़ से का लख झाड़ी, और अपने हाथ पर थूककर उससे अपनी आंख साफ़ क ।
मोहनलाल ने अपने जेबी ला क से उसे एक घूंट क पेशकश क । गंगासागर पाइलट को
नज़रअंदाज़ करते ए अपने सामने म म मली एक टहनी से ज़मीन को कुरेदता रहा। ये
सुख़ कछारी म थी—क े लोहे से समृ । अ वालजी, दे खए, सर, मने आपके साले
लोहे के मैदान खोज नकाले, गंगासागर ने सोचा।
टहनी के आगे कोई ऐसा अवरोध आ गया जो उसे नम म म और गहरे खोदने
से रोक रहा था। गंगासागर चढ़कर और ज़ोर से खोदने लगा। गंगासागर को सहनीय बनाने
के यास म मोहनलाल ने कुछ और शराब पी। गंगासागर घुटन के बल बैठकर टहनी से
खुदाई करने लगा। वो जानना चाहता था क अवरोध या है। गंगासागर क कुछ मनट क
खुदाई और मोहनलाल के ह क के कुछ घूंट के बाद अवरोध का ोत मल ही गया।
“च लए! उ ठए और मेरी मदद क जए!” गंगासागर पाइलट पे च लाया।
मोहनलाल चढ़ते ए उठे , उ ह ने अपने जेबी ला क का ढ कन कसा और उसे अपनी
बैगी लाइंग पट क जेब म ख स लया। “हम मलबे म से कुछ धातुई टु कड़े चा हए ह गे
ज ह हम फावड़ क तरह इ तेमाल कर सक,” गंगासागर ने उनसे कहा। डरे ए पाइलट
ए वस जैसी क़लम वाले के ग़ से का सामना नह करना चाहते थे। उ ह एक धातुई छड़
मल गई, जो शायद वमान के कसी पंख क कड़ी थी। उ ह ने उसे सावधानीपूवक छु आ
—वो तेज़ गम नह थी। वो उसे गंगासागर के पास लेकर आए जसने उसे उनसे छ ना और
तेज़ी से खुदाई शु कर द ।
“ऐसा भी या है?” मोहनलाल ने पूछा। “साले एक ेनाइट के टु कड़े को लेकर
हम इतने उ े जत य हो रहे ह? इसक तो चू चयां तक नह ह!”
गंगासागर ने उ ह नज़रअंदाज़ करते ए खुदाई जारी रखी। पं ह मनट के अंदर
उसने यादातर म साफ़ कर द थी और लगभग उलट पड़ी समा ध के प र का एक
खंड दखाई दे ने लगा। ये बेहतरीन ढं ग से पॉ लश कया आ ेनाइट था और उस पर
कसी ऐसी ल प म कुछ लखा था जसे गंगासागर नह समझता था। वो जानता था क ये
शायद ा ी होगी—मौय युग म यु सुलेख—ले कन वो व ास से नह कह सकता था।

“आ द श , नमोनम:; सवश , नमोनम:, थम भगवती, नमोनम:, कुंड लनी


माताश ; माताश , नमोनम:;” बूढ़े श क ने पानी और घया-तोरी के झांबे से प र
को धोते ए कहा। “ये नारी श के गुण क शंसा म एक ाचीन सं कृत मं है,”
गंगासागर के बूढ़े हेडमा टर ने कहा।
गंगासागर और मोहनलाल ने शलाखंड को ज़मीन से नकालने के लए दो टू र ट
गाइड क मदद ली थी, और फर उसे एक बस म चढ़ाया था जो उस जहाज़ से भी
ख़तरनाक लगती थी जो अभी घटना त आ था, और फर वो उसे पटना शहर ले गए
थे। वहां से गंगासागर उसे े न से—अब उसे वमान से नह उड़ना था—कानपुर ले गया
था।
अ वालजी उसके सुर त लौटने से ख़ुश ए थे ले कन इससे भी यादा ख़ुश वो
मै नेटोमीटर के संकेत को लेकर ए थे जसके कारण वो अब खनन क रआयत के लए
यादा आ म व ास के साथ बोली लगा सकते थे। गंगासागर क मां चता और डर से बुरी
तरह ाकुल हो रही थ । उ ह ने उसे सौ बार गले से लगाया, चूमा, उसके सर और गाल
पर हाथ फेरे ता क उ ह व ास हो जाए क वो वाक़ई ज़दा है। उसक सुर त वापसी पर
उसक बहन ने खीर बनाई थी। गंगा क मां अपनी बे टय क सगाई क भी ख़ुशी मना
रही थ , जनके लए दहेज जुटाने म अ वालजी ने मदद क थी।
गंगासागर कुछ दन आराम करने के शलाखंड को एक बैलगाड़ी पर लादकर
अपने पुराने अ यापक के पास ले गया था, जो एकमा थे जो शलालेख क
ा या कर सकते थे। “सुनो, गंगा, हमेशा से माना जाता रहा है क पाट लपु के सारे
शलालेख चं गु त मौय के पोते अशोक—महानतम मौय राजा—ने बनवाए थे। पर ये
अशोक का शलालेख नह हो सकता!” बूढ़े हेडमा टर ने कहा।
“ य ?” हमेशा क तरह ज ासु गंगासागर ने कहा।
“ य क अशोक के युग तक सं कृत का योग लगभग पूरी तरह लु त हो चुका
था। क लग के साथ मगध क लड़ाई म एक लाख लोग का नरसंहार करने के बाद अशोक
क र बौ हो गया था। बौ ने सं कृत को याग दया था। वो इसे उ वग य ा ण क
भाषा मानते थे और चाहते थे क उनक ाथनाएं आम आदमी क भाषा म ह । इसी लए
अशोक के लेख सं कृत म न होकर आम आदमी क भाषा ाकृत म थे। ले कन ये सं कृत
है!” उ े जत अ यापक ने कहा।
“मुझे लगा था ये ा ी है?” उलझन म पड़े गंगासागर ने पूछा।
“ ा ी ल प है, भाषा नह । चाहे सं कृत लखी जाए या ाकृत, ल प एक ही
रहेगी— ा ी।”
“तो इस मं का अथ या है?” गंगासागर ने पूछा।
“मौ लक श , म तुझे नमन करता ं; सव व मान श , म तुझे नमन करता
ं; जसके मा यम से ई र सृ रचता है, म तुझे नमन करता ं; कुंड लनी क सजना मक
श , म तुझे नमन करता ,ं ” उ ह ने मु कुराते ए कहा। “ये नारी श क परम
वीकृ त है।”
“ले कन शलाखंड के सरे मुख पर भी एक लेख है जसम यही मं दोहराया
गया है?” गंगासागर ने पूछा।
“आह! नह , मने उसे दे खा था। उसम इस मं को पढ़े जाने का तरीक़ा और इसके
भाव ह।”
गंगासागर क आंख आ य से फैल ग । “मुझे बताइए उसम या लखा है,”
उसने उ सुकता से पूछा।
उसके पुराने कूल अ यापक मु कुराए। “म इससे बेहतर काम कर चुका ं। मने
उसका अनुवाद करके उसे तु हारे लए एक काग़ज़ पर लख दया है।”

चार हज़ार दन तक तुम उ ारण करोगे


चार हज़ार मं का त दन।
चाण य क श तु हारी हो जाएगी
चं गु त, चाहो उसे बनाओ या बगाड़ो।
य द बाधा पड़े, तो फर से आरंभ करो,
राजा को रानी होना होगा, न त प से।
सुवा सनी का ाप सदा के लए र होगा
य द तुम उपचार कर लो चाण य के दोष का।
अ याय तीन
लगभग 2300 वष पहले

त शला दो बड़े ापार पथ के चौराहे पर था; मगध और गंधार के बीच राजक य


उ रपथ राजमाग, और क मीर और स रेशम माग के बीच सधु पथ। त शला गंधार
—सुगंध के लए सं कृत श द—रा य क घाट क गोद म बसा आ था। पहा ड़य ,
बग़ीच और जंगली फूल से घरा गंधार कृ त क वपुलता का क था।
चाण य हमालय और ह कुश से चलने वाली जाड़े क सद हवा म कांप रहा
था; उसके पास ठं ड से बचने के लए उसके पुराने कपड़ के अलावा कुछ नह था। और
ऐसे म उसने ख़ुद को त शला व व ालय के ार पं डत के पास खड़े पाया। पौ अभी
फट ही थी और हवा मं दर क सुंगध और सवेरे के वेदो ारण से भरी ई थी। सु नयो जत
सड़क बुहारी जा रही थ और भोजनालय अपने पहले ाहक के लए तैया रयां कर रहे थे।
“तुम कससे मलना चाहते हो, लड़के?” ार पं डत ने पूछा। चाण य ने जवाब
दया क उसे व व ालय के अ य आचाय पुंडरीका से मलना है। ार पं डत के
नदश का पालन करते ए चाण य फलदार पेड़ से घरी एक छोट सी कु टया तक
प ंचा। कड़ाके क ठं ड म अ य अपने सवेरे के यान और ाथना के लए न न व
उपवन म बैठे ए थे। चाण य जानता था क व न डालना उ चत नह होगा, इस लए वो
ठं ड से कांपता आ उ ान के एक कोने म बैठ गया। कुछ ण बाद पुंडरीका ने आंख
खोल , तो एक काले, लंबोतरे, बदसूरत और भ े से लड़के को ठं ड से कांपते ए उपवन म
बैठे दे खा।
“तुम कौन हो, व स?” उ ह ने पूछा। “ ीमान, मेरा नाम चाण य है। म मगध के
आचाय चणक का पु ं। मेरे पास मगध मं मंडल के मं ी का यायनजी क चट् ठ है।
उ ह ने कहा था क वो आपको जानते ह,” चाण य ने बताया।
का यायन के नाम से अ य के चेहरे पर मु कुराहट पसर गई। था क दोन
बचपन के म थे। उ ह ने अपने दाएं कंधे पर लापरवाही से पड़ा उ रीय उतारकर
चाण य को ओढ़ा दया। उ ह ने सां वनापूण ढं ग से नवयुवक के गले म हाथ डाला और
उसे अंदर ले गए जहां रसोई के चू हे क गम बड़ी अ लग रही थी। उ ह ने तुरंत अपने
सेवक से कहा क लड़के के लए गम ध का पा और कुछ ल लेकर आए। चाण य को
महसूस आ क वो ब त भूखा था और ध के घूंट के बीच वो सारे लड् डू खा गया।
पुंडरीका का यायन क च पढ़ने म त थे। उसम लखा था क चाण य
मगध के सबसे ती ण छा म से था और राजनी त शा और अथशा के कांड पं डत
आचाय चणक का पु था। “का यायन चाहते ह क म तु ह व व ालय म वेश दला
ं ,” पुंडरीका ने कहा। या मेरे म नह जानते क नया भर के राजकुमार इन द
ार म वेश के लए बरस ती ा करते ह? चट् ठ आगे पढ़ते ए पुंडरीका ने सोचा।
उ ह उन दन क याद आ गई जब का यायन और वो त शला म छा थे। पुंडरीका
एक ग़रीब अनाथ थे और उनका ख़च का यायन के पता ने उठाया था। अ य जानते थे
क उनके पुराने म का यायन ने अपनी कृपा का बदला मांगा है। लड़के के लए वेश को
नकारना कोई वक प था ही नह ।
“तुम थक गए होगे, चाण य। तु ह आराम करना चा हए। म अपने प रचर से
कहता ं क वो तु हारे लए एक गम ब तर तैयार कर दे । म तु हारे बारे म बात करने के
लए वेश नदे शक से मलूंगा। य द वो तु हारे ान क परी ा लेना चाहगे तो शायद म
बाद म तु ह बुलवा लू,ं ” ती णबु अ य ने उठते ए कहा।

“सु शासन का उ े य या है, चाण य?” वेश नदे शक ने पूछा। वो उनके कायालय म
धरती पर बैठे थे, जो क बासी चटाइय , चमप और पांडु ल पय से भरा ब त कम
सजावट वाला क था। कमरे म गंधसफ़ेदा के तेल के द य क गंध बखरी ई थी जो
शाम को वहां रोशनी कर रहे थे।
चाण य का जवाब तुरंत और आ म व ास भरा था। “रंक क ख़ुशी म राजा क
ख़ुशी है और उनके क याण म उसका क याण,” उसने बलपूवक कहा।
“व स, राजा के कत या ह?”
“राजा के तीन कत ह। र ा —रा य को बाहरी आ मण से बचाना; पालन —
रा य म याय व ा बनाना; और अंत म, योग ेम — लोग का क याण।”
“हे चणकपु , वो कौन से संभव साधन ह जनके ारा राजा राजनी तक ववाद
का नपटारा कर सकता है?”
“चार संभव साधन ह, ीमान। साम — वन अनुनय और शंसा; दाम —
आ थक ो साहन; दं ड —सज़ा या यु ; और भेद —बु मानी, चार और चार।”
“एक रा य, दे श, और इसके लोग म या अंतर है?”
“लोग के बना दे श नह हो सकता, और दे श के बना रा य नह हो सकता। लोग
से ही रा य बनता है; एक बांझ गाय क तरह लोग के बना रा य से कुछ पैदा नह होता।”
“रा य का नमाण कन चीज़ से होता है, बु मान श य?”
“इसके नमाण के सात त व होते ह, व ान श क | राजा, मं मंडल, े और
आबाद , ग कृत नगर, राजकोष, सश बल और सहयोगी।”
“राजा को मं य क आव यकता य है?”
“रथ एक प हए से नह चल सकता। राजा को बु मान य को मं य के
प म नयु करना और उनक सलाह को सुनना चा हए।”
“वैभव का मूल या है?”
“वैभव का मूल आ थक ग त व ध है, और इसक कमी भौ तक संकट लाती है।
सफल आ थक ग त व ध क अनुप त म वतमान समृ और भ व य का वकास दोन
ही वनाश के ख़तरे म रहते ह। जस कार हा थय को पकड़ने के लए हा थय क
आव यकता होती है, उसी कार वैभव ा त करने के लए वैभव क आव यकता होती
है।”
“एक रा य के लोग पर कर का उ चत तर या है?”
“ जस कार फल पकने के बाद उ ह उ ान से तोड़ा जाता है, उसी कार राजा
को दे य होने पर राज व वसूलना चा हए। जस कार बना पके फल को नह तोड़ा जाता
है, उसी कार राजा को वो राज व नह वसूलना चा हए जो दे य नह है य क इससे लोग
ु ह गे और राज व के ोत ही न हो जाएंगे।”
“राज व अ धका रय पर राजा को कस सीमा तक व ास करना चा हए?”
“ये जानना असंभव है क पानी म तैरने वाली मछली कब पानी पीती है। इसी
तरह ये पता लगाना भी असंभव है क राज व वसूलने वाले शास नक अ धकारी कब
ग़वन कर लगे।”
“एक रा य के शासन म दं ड कतना मह वपूण है?”
“केवल दं ड क श ही इस लोक और परलोक क र ा करती है, बशत क दं ड
बना भेदभाव के अपराध के अनुपात म दया जाए, और बना ये सोचे क दं ड पाने वाला
राजकुमार है या मन दास।”
“राजा कस तरह सु न त करे क कौन राजा उसके म ह और कौन श ?ु ”
“ नकटवत े का शासक वरोधी है और उसका पड़ोसी म । मेरे श ु का श ु
मेरा म है।”
वेश नदे शक ने आ य से लड़के को दे खा। फर वो पुंडरीका क ओर मुड़कर
मु कुराए। “मुझे इसके ान, व ेषणा मक कौशल और बु म ा म कोई संदेह नह है,
ले कन इसक पढ़ाई का शु क कौन दे गा?” उ ह ने पूछा। अ य ने झपते ए दांत
नकाले। “मेरे बचपन के म ने अपने ॠण का भुगतान मांगा है। इसका शु क म ही
ं गा,” उ ह ने बताया।
चाण य पुंडरीका के सामने दं डवत हो गया और उसने उनसे नवेदन कया क
वो उससे वो दस पण ले ल जो या ा के लए का यायन ारा दए गए पचास पण म से
उसके पास बचे ए थे। “इसे रखो, चाण य। म जब भी उ चत समझूंगा, इस ॠण का
भुगतान मांग लूंगा,” पुंडरीका ने कहा। “तुम पूरे भारत को एक कृत करोगे; तु हारी द त
उस लौ क तरह होगी जो राजा को जुगनु क तरह आक षत करेगी, यहां तक क वो
तु हारे आगे झुक जाएंगे; उठो, चाण य, हमारी मातृभू म को तु हारी ज़ रत है,” अ य
ने घोषणा क । कृत लड़के ने बना कुछ कहे पुंडरीका के चरण छु ए और चला गया।
“पता नह इसे त शला क श ा क आव यकता है भी या नह ,” चाण य के
जाने के बाद वेश नदे शक धीरे से अ य से बोले।

सामने के टे ढ़े दांत, लंबोतरे अंग, ध बेदार और दाग़दार चेहरे, कोयले जैसे रंग और
चक़ ेदार वचा के कारण चाण य त शला म सबसे यादा कु प दखाई दे ता था।
व व ालय राजकुमार और कुलीन प रवार के बेट से भरा आ था जनम से यादातर
उ वग य और सुंदर होने को ब त मह व दे ते थे। चाण य क बु म ा और लगभग हर
वषय पर साह सक वचार भी म जीतने म उसक मदद नह कर सके थे।
एक दन, जब वो शयनागार से अपनी क ा क ओर जा रहा था, तो नद
कनारे उगी सूखी कुश घास के उसके दाएं पैर म चुभने से वो अचानक दद से बल बला
उठा। उसने अचानक अपना पैर ऊपर उठाया और उस कांटेदार तनके को बाहर नकाला
जसने उसे चुनौती दे ने क ह मत क थी। कांटा नकालने और र को नद म धोने के
बाद, चाण य उस तीखी घास को दे खने के लए झुक गया। वो कुश के गु े उखाड़कर
नद म फकने लगा।
“चाण य को दे खो, म ो! हमारे आगे बड़ी-बड़ी बात करता है क वो कस तरह
दे श के मन को न कर दे गा, और दे खो वो उस घास तक को नह कुचल सका जसने
उसके पैर पर आ मण कया!” उसका एक सहपाठ च लाया। चाण य तान को
नज़रअंदाज़ करके अपने सामने क सम या म त रहा। अपने आसपास क हंसी-
ठठोली से बेख़बर वो कुश क तीखी घास को उखाड़ता रहा। कई मनट तक कई मुट्ठ
घास उखाड़ने के बाद, उसने महसूस कया क वो ऐसे अप र कृत तरीक़े से इस श ु घास
को समा त करने म सफल नह हो सकता। उसने अपने म त क म बठा लया क या
करना है और क ा के लए चल दया। “बस हार गए!” उसके साथी च लाने लगे। “अगर
ये वा त वक यु होता तो र पात के बना ही समा त हो जाता। चाण य श ु के आगे
अपने श डाल दे ता,” एक युवा राजकुमार ने कहा। चाण य के पास जवाब दे ने को कुछ
नह था।
अगले दन, चाण य के सहपाठ उसे गाढ़े घोल का एक मटका लाते दे खकर च क
गए। उसके साथी तेज़ी से आगे बढ़े , और चाण य उस सफ़ेद व को घास के एक बड़े भाग
म छड़कने लगा। कुछ और ताने कसे गए। “ये चाण य क नई यु नी त है। अगर तुम
श ु को हरा नह सकते, तो उसे ध पलाओ ता क वो और भी श शाली हो जाए और
तु ह आसानी से न कर डाले,” एक ने कहा। एक और ने तीखी ट पणी क , “नह । नह ।
तुम समझे नह ... ये कुश घास है, हमारे वेद क े य। चाण य घास को चढ़ावा दे रहा है
ता क वो दे वता को स कर सके और इसके ान पर दे वता श ु को न कर सक।”
हमेशा क तरह, चाण य ने कोई सफ़ाई नह द ।
अगले दन लड़के ये दे खकर च कत रह गए क घास के बड़े-बड़े टु कड़े ग़ायब हो
चुके ह। “हे चाण य! तुमने कल जो ध बखेरा था उसम या था?” एक लड़के ने
उ सुकतावश पूछा।
“कुश इतनी चुर और ापक थी क म उसे न नह कर सकता था, इस लए
मने सोचा—मेरे श ु का श ु मेरा म है—कुश का सबसे बड़ा श ु कौन है? जवाब था
फफूंद और च टयां, दोन ही घास पर आ मण करके उसे खा जाती ह। मने कल जो
डाला था वो ध नह था। वो मीठा छाछ था, मेरे म ो। छाछ म ोट न के कारण फफूंद
पैदा ई और चीनी ने च टय को कया,” चतुर युवक ने अपने दं ग सहपा ठय को
समझाया जो ये दे खकर और भी च कत ए क चाण य छाछ का एक मटका और लाया
था और पछले दन वाली या को दोहरा रहा था।
“तुम घास को तो पहले ही मार चुके हो, चाण य। ये सरा मटका कस लए?”
पछले दन मज़ाक़ उड़ाने वाले एक कुलीन लड़के ने पूछा।
“ॠण को अं तम पण तक चुकाना चा हए, और श ु को अं तम च तक न
करना चा हए,” कठोर चाण य ने अपने नए शंसक को समझाया।

“ ख क बात है क भारत—हम सधु-आय का सामा य नवास और सां कृ तक परंपरा


—क अवधारणा को छोटे -छोटे शासक और रा य ने अपने अधीन कर लया है। हमारे
धम ंथ, परंपराएं, सं कृ त, ाथनाएं और दे वता समान ह। फर य हम अपने घर को
मगध, गंधार, काशी, कु , कोसल, मलयरा य या पंचाल के नाम से पुकारते ह? हम ये य
नह कहते क हम भारत के नाग रक ह? यही मौ लक वभाजन भ व य म हमारे पतन का
कारण बनेगा,” अपने सर को आं शक प से अपने मेज़वान के सर क सीध म लाने के
लए थोड़ा झुकाते ए चाण य ने तक कया। वो त शला के सीमा े म ऋ ष दं डायण
क झोपड़ी म था। ऋ ष एक योगी थे और पछले कुछ दन से सर के बल खड़े थे, और
इसी लए चाण य ने अपना चेहरा उ टे खड़े योगी के सामने लाने क को शश क थी।
पछले छह वष म, चाण य ने न केवल त शला म अपने पाठ् य म के हर
वषय म अ ा दशन कया था, ब क वो हर वष े ता सूची म भी रहा था। उसके
शानदार शै णक दशन के कारण उसे अपने य वषय राजनी तशा और अथशा
म उपाचाय का पद मल गया था। नौकरी से ा त कम ले कन पया त आय के ारा वो
अपने वचार ‘ॠण को अं तम पण तक चुकाना चा हए’ के अनुसार अपने गु पुंडरीका
का ॠण चुकाने म स म रहा था, य प पुंडरीका ने वनोदपूवक कहा था क याज
अभी भी दे य है, ले कन रोकड़ म नह ब क एक कृत मातृभू म का सपना पूरा करने के
प म।
पुंडरीका ने ही चाण य का प रचय बु मान योगी से करवाया था, और
चाण य को अ सर उनक कु टया म जाना अ ा लगता था। दं डायण को भी वह मेधावी
नवयुवक पसंद था जसके पास लगभग हर मुख वषय पर वचार थे। “अकेली
मोमब यां अपनी ही लौ पर क त रहती ह जब तक क उस पा को गम न द जाए
जसम वो जल रही हा। एक समान श — ु गम —के सामने मलकर वो एक मोमब ी बन
जाती ह,” उ टे खड़े साधु ने बताया, जनके लंबे सफ़ेद बाल और दाढ़ ने फ़श पर उनके
सर के आसपास एक ताल सा बना दया था।
भभूत मले योगी ने वर भाव से अपनी बात जारी रखी, “सूय के वपरीत जो
क पूव म जागता है और प म म सो जाता है, यूनानी तारा प म म उगा है और तेज़ी से
पूव क ओर बढ़ रहा है। गोरी वचा वाला दे वता हर उस चीज़ और को न करता
जाता है जो उसके सामने आती है। हे चणक क व ान संतान, तु हारा वा त वक श ु
धनानंद नह , ब क वो मैसीडो नयाई द ता है जसे सकंदर महान कहा जाता है!”
“म या क ं , गु जी? धनानंद के त मेरा ोध शांत नह आ है। म अपने
उ े य से कैसे मुंह फेर सकता ?ं ” ाकुल चाण य ने पूछा।
“चाण य। ऐसे पेड़ से फल तोड़ने क आव यकता नह जो काटा जाने वाला है।
फल तो वयं ही गर जाएंगे। बड़े उ े य पर जमाओ तो तु हारे बाक़ उ े य वयं ही
सफल हो जाएंगे।”
अ यापक के प म चाण य का यश और त ा बढ़ती गई। उसक क ा म होने के लए
छा म होड़ लगी रहती थी। अ सर वो रटने क व ा को छोड़कर अपने छा से कहता
क वो उससे व रत पूछ जनके उ र वो राजनी तक आदशवा दता क चता कए
बना अपने सरस और तीखे ढं ग से दे ता।
“आचाय, आप सबसे व ान श क ह। आप राजा य न बन जाएं?”
“सच क ,ं तो मुझे इससे फ़क़ नह पड़ता क म राजा नह ं। मेरी सम या बस ये
है क राजा कोई और है।”
“आचाय, शासन म गोपनीयता का या कारण है?”
“अगर नाग रक ये नह जानगे क आप या कर रहे ह, तो वो ये कस तरह जान
सकगे क आप या ग़लत कर रहे ह? इसी लए गोपनीयता आव यक है, व स।”
“आचाय, लोग दे श के वधान का स मान न करके भी य बच नकलते लगते
ह?”
“अगर हम चाहते ह क लोग वधान का स मान कर, तो पहले हम स मानजनक
वधान बनाने ह गे, पु ।”
“आचाय, या राजा वा तव म लोग का सेवक नह होता है?”
“संशाोधन। वामी बनने के लए एक शासक को वयं को लोग का सेवक मानना
होगा।”
“आचाय, संकट या घबराहट के समय एक महामं ी राजा का बोझ कस कार
कम कर सकता है?”
“इसक या आव यकता है? एक शासक को घबराने दे ना चा हए। उसे ढे र सारे
संकट म त रखना चा हए। ये उनक उपल का माण है!”
“आचाय, या हमेशा सच बोलना राजा का प व कत है?”
“हा! राजा को सच क ज़ रत नह । उसे ज़ रत होती है कसी ऐसी बात क जो
वो लोग को बता सके, य व स। एक अ ा भाषण वो नह जसम आप स कर सक
क राजा सच बोल रहा है, अ ा भाषण वो है जस पर कोई ये न कह सके क वो झूठ
बोल रहा है।”
“आचाय, वो कौन सी वतं ताएं ह जो रा य के नाग रक के लए सु न त
करनी चा हए?”
“ह म... सोचते ह। ये बात सब जानते ह क एक भूखे आदमी को चार
वतं ता से अ धक आव यकता रोट के चार टु कड़ क होती है।”
“आचाय, आप जैसे ा ण राजनी त म या आव यकता है?”
“राजनी त इतना गंभीर वषय है क उसे राजनी त पर नह छोड़ा जा सकता,
पु ।”
“आचाय, या यु राजनी तक मतभेद का एकमा हल है?”
“बु मान श य, राजनी त बना र पात का यु है और यु र पात यु
राजनी त है।”
“आचाय, या नाग रक को ये जानने का अ धकार नह है क उनसे वसूले गए
राज व का कहां योग कया जा रहा है?”
“अह। नह , नह , नह । लोग ये नह जानना चाहगे क उनका राज व कस कार
य कया गया। या कोई भ कभी मं दर के ा ण से पूछता है क उसके चढ़ावे का
या कया गया?”
“आचाय, या अ े शासन का अथ स ांत पर चलना नह है?”
“ न त प से। शासन का अथ ही स ांत पर चलना है। और स ांत ये है क
स ांत पर कभी मत चलो।”
“ या स ांत धन से बड़े होते ह?”
“एक मुख सू याद रखना, व स। जब कोई कहे, ‘बात धन क नह , स ांत क
है,’ तो समझ लो क बात धन क है।”
“आचाय, कसी वषय पर चचा म राजा क प रषद को आदश प से कतना
समय लगाना चा हए?”
“य द आप नह चाहते क प रषद कसी वषय पर अ धक समय लगाए, तो उसे
कायसूची म भोजन से पहले अं तम वषय बना दे ना चा हए।”
“आचाय, या एक राजा को वधान और याय क र ा के लए यु म जाना
चा हए?”
“राजा को हमेशा वधान और याय के प म होना चा हए, बशत क वो इसे
अपनी वदे श नी त के रा ते म न आने दे ।”
“आचाय, ऐसे महामं ी क या सज़ा होनी चा हए जो राजा को रा य क
घटना से अनजान रखे?”
“पु , राजा इस लए अनजान नह होते क महामं ी उ ह सही उ र नह दे ते ह
ब क इस लए अनजान होते ह क वो अपने धान मं य से सही नह पूछते ह। और
अब पाठ का अंत होता है!”
हा ययु उ र और वनोद के नीचे आंत रक उदासी और नराशा का भाव छपा आ था।
चाण य ने सफ़ का यायन के वचन पर अपनी मां को मगध म छोड़ा था। या वो व
ह? या उ ह अपने बेटे क कमी खलती होगी? वो प त और बेटे दोन के चले जाने का
कस तरह सामना कर रही ह गी? इतने साल म, उसने व भ ापा रक दल और
भटकते क वय के हाथ कई संदेश भेजे थे। कभी कोई जवाब नह आया। इसका अथ हो
सकता था क या तो संदेशवाहक उ ह ढूं ढ़ने म स म नह रहे... या इससे भी बदतर।
अमाव या क उस काली रात को दस साल से ऊपर हो चुके थे जसके अंधेरे का
फ़ायदा उठाकर उसने मगध छोड़ा था। पछले वष उसके गु पुंडरीका का दे हांत हो गया
था। अपनी मृ युश या पर क णामय अ य ने चाण य से कहा था क वो मगध जाकर
अपनी मां को त शला ले आए, ता क उनक बेहतर दे खभाल हो सके। “तु हारी मां को
और मातृभू म को दे खभाल क आव यकता है, चाण य, ले कन मां मातृभू म से पहले
आती है।”
पुंडरीका अपने य श य के लए तीन चीजे़ं छोड़कर मरे थे—अपना घर,
अपनी पांडु ल पयां और अपना न ावान सेवक। चाण य ने ज द ही अपने तीन य
छा , सहारण, मे हर और शारंगराव, को अपनी अनुप त म अपने मामले संभालने के
लए घर म रख लया। सहारण े के मु भर गणतं म से एक मलयरा य के ांतपाल
का बेटा था। उसे उसके चाचा ने सहासन से वं चत कर रखा था और मलयरा य का
सहासन उसके पता से हड़प लया था। मे हर एक फ़ारसवासी छा था जो मैसीडो नयाई
आ मण के कारण अपनी मातृभू म से भाग आया था। शारंगराव व व ालय का सबसे
मेधावी ा ण छा था। ये तीन चाण य के य छा थे, य प उनका गंधार के युवराज
आंभी से झगड़ा रहता था जो व व ालय का एक अ खड़ और दं भी नया छा था।
“उसे नयं ण म रखना, सहारण,” चाण य ने सलाह द , और फर व व ालय के
कुलप त से छु लेकर उसने अपने ज म ान क लंबी या ा क तैया रयां आरंभ कर द ।
मगध के क ठन सफ़र ने न केवल माता- पता क ब क य सुवा सनी क भी
याद ताज़ा कर द । सुवा सनी बंद महामं ी शकतार क बेट और चाण य क बचपन क
म थी। वो एक छोट सी, कोमल लड़क थी और कसी सुंदर ढं ग से तराशी गई मू त
जैसी थी। उसके गुलाबी गाल और तीखी भूरी आंख चाण य को पागल कर दे ती थ । उसे
हमेशा उससे ेम रहा था ले कन वो कभी इतना साहस नह बटोर पाया था क उसे बता
सके। वो जानता था क वो जानती है, ले कन सुवा सनी हमेशा ये दखाकर क वो नह
जानती शरारतपूण आनंद लेती थी। धीरे-धीरे मगध क ओर बढ़ते ए उसे लग रहा था क
वो अपनी कशोराव ा क पसंद को अ धक से अ धक याद कर रहा है।
पाट लपु न केवल आकार म ब क भोग- वलास, उ ृ ं खलता, ाचार और राचार म
भी बढ़ गया था। हर नु कड़ पर स े और जुए के अ े थे और पासे, प और पशु क
लड़ाई को लेकर होने वाले झगड़े होना कोई असामा य बात नह थी। म दरापान ब त
अ धक था और पु ष को क व, आसव, मैरेय, मेदक, मधु और स ा—मगध के
म दरालय म उपल म दरा का सं ह—के नशे म धु म दरालय से लड़खड़ाते
नकलते दे खना एक आम य था। एक अ य सं ह ग णका , पजीवा और
पुं लय —वे याएं, वतं सं ग नयां, रखैल—का था। मगध क दरबारी लड़ कयां े
तभाएं तुत करती थ —गायन, वादन, वातालाप, नृ य, मदन, सुगंध बनाना, मालाएं
गूथना, केश ालन, नान कराना, और सबसे बढ़कर, संभोग क कला। मगध के एक
स गु वा यायन ने हाल ही म एक स पु तक कामसू लखी थी, जसम बारह
सौ ोक म संभोग के स र आसन का ववरण दया था।
जब चाण य राजधानी पाट लपु के ार पर प ंचा, तो नशे म धु आ वास
अ धकारी ने उससे कोई ासं गक सवाल पूछना तो र, उसके या ा के काग़ज़ात भी बड़ी
मु कल ही से दे खे, य प अभी दोपहर का ही समय था। शहर के ार पर पहरेदार
पछली रात जमकर पीने के कारण अ त त थे और उनक आंख लाल हो रही थ ।
मगध एक नकारता सा रा य तीत होता था—लगता था जैसे ये उस मैसीडो नयाई
आ मण को नकार रहा हो जसका ख़तरा भारत के सीमावत रा य पर मंडरा रहा था।
राजा और जा दोन ही नह चाहते थे क उ सव ख़ म हो हालां क रात बीत चुक थी।
ले कन अ धकांश नगर बना बदला लगता था, और चाण य के लए का यायन के
घर तक प ंचना ब त मु कल नह था। सड़क, घर और यहां तक क नु कड़ के तेल के
द ये तक वैसे ही लगते थे। जो चीज़ बदली थी वो था का यायन का लया। दस वष ने
उ ह प ीस वष बूढ़ा कर दया था। चाण य को अपने घर क ओर आते दे ख उ ह ने तुरंत
पहचान लया और उससे मलने बाहर क ओर भागे, य प उ ह ने उसे उसके लड़कपन म
दे खा था। चाण य को गले लगाते ए उनक आंख से आंसू बह नकले और वो उसे अपने
से अलग नह होने दे रहे थे। अंदर जाने पर उ ह ने अपने सेवक से कहा क वो चाण य के
हाथ-पैर धोए और रसोइए से दोपहर के खाने क तैयारी करने को कहे।
दोन रसोई के फ़श पर बैठे और सेवक ने उनके सामने केले के प े और म के
गलास रख दए। ा ण परंपरा के अनुसार, उ ह ने प के आसपास थोड़ा सा पानी
छड़का, जो क पृ वी को शु करने क या थी। फर सेवक चावल, स ज़ी और दाल
लाया जो वो उनके प पर डालने लगा। फर परंपरानुसार, दोन ने—हाथ से भोजन
करना आरंभ करने से पहले—दे वता को स करने के लए पशाु —गाय , कु ,
कौ और च टय —के लए तीका मक भोग के प म अपने प से खाने के छोटे -
छोटे भाग नकाल दए। हालां क वो एक दशक से भी अ धक समय के बाद मल रहे थे,
ले कन वै दक परंपरा के अनुसार उ ह ने ब कुल ख़ामोशी से भोजन कया।
उठने और आंगन म चले जाने के बाद ही चाण य बोला। “म पाट लपु अपनी मां
को ले जाने के लए आया ं, का यायनजी। वो कैसी ह?” उसने पूछा। का यायन क
ख़ामोशी ब त लंबी और कानफोडू थी। अंतत:, का यायन बोले। “ व णु... चाण य... म
तु ह कस तरह बताऊं? तु हारे पता क नमम ह या और तु हारे त शला ान के
बाद, मने उ ह अ तरह रखने का पूरा यास कया। मेरे आ ह पर उ ह पाट लपु के
नकट तु हारे पैतृक घर कुसुमपुर भेज दया गया। मेरा मानना था क वो पाट लपु —वो
ान जसे वो अपने प त क ह या और अपने बेटे के लापता होने से जोड़ती थ —से र
ही बेहतर रहगी। म उ ह नय मत प से धन और खानपान क साम ी भेजता था और
जब भी संभव होता था उनसे मलने जाता था ले कन, मेरे य चाण य, वो तु हारे लए
वलाप और अपने य प त क मृ यु पर शोक करती रह । उ ह ने खाना छोड़ दया और
मुरझाने लग । लगभग छह-सात वष पहले उनक मृ यु हो गई। मुझे मा कर दो, चाण य।
म तु हारे जीवन म तु ह दो खद समाचार सुना चुका ं।”
अपने पता के वध का समाचार सुनने पर चाण य क आंख म का यायन ने
जस शू य का भाव दे खा था, लगता था क वो भाव लौट आया था। वृ ने चाण य का
हाथ पकड़ा और कोई त या उ प करने का भरपूर यास कया ले कन वो असफल
रहे। चाण य ने एक बार फर से भावहीन संक प का कवच पहन लया और उसने ज द
से वषय बदल दया, जैसे मां का नधन वातालाप के कई समान प से मह वपूण वषय
म से एक हो।
“ या महामं ी शकतार जी वत ह? वो कैसे ह?” उसने पूछा।
“वो अभी भी जेल म ह। धनानंद ने उनके प रवार को न कर दया है। उ ह
जी वत रखने के लए रा स और म अ सर ग रका को उ कोच दे ते ह। तुम जानते हो क
नंद के नक—दानव ग रका ारा संचा लत कारागार प रसर और यातना क —से जी वत
और अ हालत म नकलना असंभव है। मेरे सूचक ने बताया है क शकतारजी का
जीवन एक सा ात नक है और वो त दन हज़ार मौत मरते ह!”
“तो शकतारजी क बेट —सुवा सनी—भी मर चुक है?” चाण य ने हच कचाते
ए पूछा।
“म जानता ं क तु हारे दय म हमेशा से उसके लए ान रहा है, चाण य।
ले कन म या कह सकता ं? उसका जीवन मृ यु से बदतर है। वो उस भचारी रा स
क दया के कारण बच तो गई, ले कन उसक रखैल बन गई।”
“मेरी य सुवा सनी वे या बन गई? मेरी मां मर ग ! महामं ी एक नारक य
क़ैदख़ाने म ह! मगध म याय कहां है?”
“एकमा संतोष क बात ये है क ा ण पर अ याचार बंद हो गया है। जबसे
रा स ने महामं ी का पद संभाला है, वो धनानंद को म दरा और वे या म डु बोए रखने म
सफल रहा है। नतीजतन ा ण वरोधी नी त म सु ती आ गई है। वयं ा ण होने के
कारण रा स धनानंद से व ान ा ण को अनुदान दे ने के लए एक यास ा पत
कराने म भी सफल रहा है। कौन सोच सकता था क एक शू कभी ा ण के लाभ के
लए कुछ कर सकता है?”
“तो धनानंद और रा स अनुदान के ारा ा ण क मौन वीकृ त को ख़रीदने म
सफल रहे ह? धरती मां इस व ासघात पर रो रही है— ा ण को इसका संर क, और
नी तपरायणता, धा मकता, धम न ता, ईमानदारी, याय, सचाई, सदाचार, मयादा और
स य न ा का र क होना था। इसके बजाय हम सबसे बड़ी बोली लगाने वाले के लए
उपल सामा य वे याएं बन गए ह!”
“ श... चाण य... इतने ऊंचे वर म नह , पु ... द वार के भी कान होते ह। हां,
तुमने ठ क कहा, हम रं डय से बेहतर नह ह। म भी तु हारे सामने अपराधी के प म
खड़ा ं। मने दे खा था क जब तु हारे पता—महान चणक—ने स य बोलने का यास
कया था, तो उनके साथ या आ था। म अभी भी दे ख रहा ं क राजा को सही माग पर
लाने का यास करने के लए हमारे भूतपूव महामं ी शकतार को कैसे घोर अ याचार सहन
करने पड़ रहे ह। तरकश म तीर न ह तो कमान को का कोई लाभ नह , चाण य। तु हारे
लए यही कटु वा त वकता है।”
“म आपको दोष नह दे ता, का यायनजी। य द आप नह होते, तो म बच नह
पाता। म आजीवन आपके त आभारी र ंगा। मेरा ोध नराशाजनक प र तय पर
है। आप पर नह ।”
“म समझता ,ं चाण य। इस ोध को कसी लाभकारी काय क ओर न द
करना चा हए। य द तुम धनानंद को सहासन युत करना चाहते हो, तो तु ह आदमी,
साम ी, सहयोगी, और योजना चा हए... और तुम अ तरह जानते हो क इस सबके
मूल म धन है। य द तुम मगध का शु करण चाहते हो, तो तु ह धन क आव यकता
होगी।”

बु मान का भोज वो वा षक भोज था जो राजा ारा सारे रा य के व ान ा ण के


लए आयो जत कया जाता था। उनके पांव धुलाए जाते, उ ह भोजन कराया जाता, वण
भट द जात , और बदले म वो राजा और उसके रा य को आशीवाद दे ते। इस भ उ सव
के लए पाट लपु महल म गदे के फूल और केले के प क वंदनवार लगाई जात ।
राजक य रसोई म सैकड़ रसोइए ा ण के लए े तम पकवान बनाने म लगे रहते।
महल के ार के बाहर ये घोषणा करने के लए क व ान का भोज आरंभ हो चुका है,
ढोल कए उ वर म अपने ढोल बजाते। ले कन भोज आरंभ होने से पहले उन वजेता
क सूची का फ़ैसला करना होता था ज ह राजा ारा भोजन कराया और स मा नत कया
जाएगा। इसका नणय दरबार म ब त से खुले वाद- ववाद ारा कया जाता था, जहां
शासक उप त रहता था। इन खुले वाद- ववाद म जनका दशन अ ा होता, उ ह
राजा ारा स मा नत होने का सौभा य ा त होता।
धनानंद दरबार म था, ले कन अ न ा से। वो बड़ी बुरी मनो त म था। मोटा
अंधबु राजपुरो हत राजा क कुंडली दे ख रहा था, और उसने ामक केतु के साथ छठे
घर म रहने वाले सरे ह शु को श न के सामी य म दे खा था। उसने धनानंद को
चेतावनी द थी क ये दन उसके लए शुभ नह है और कुछ गड़बड़ी क संभावना है।
“आप पछले वष म रा महादशा म रहे ह, महाराज। मंगल आठवां ह है, जो बल चं मा
और सूय से मृ यु, पांतर और प रवतन का त न ध व करता है। श न, दरवारी लड़ाइय
का छठा नयं क, भी आपके सूय और चं मा के दसव प के पीछे है, और पारगमन ारा
बल का तृतीय प है। आप आज जो भी कह और कर, उसम सावधान रह, हे राजा!”
यो तषी ने कहा।

“तुम आज जो भी कहो और करो, उसम सावधान रहना, चाण य,” का यायन ने सलाह
द , हालां क चाण य का मंत कसी भी त ा म भाग लेने का नह था। वो ऐसे
समारोह के लए कह यादा व श व ान था। वो बस राजा के दरबार क कायवाही को
दे खना और राजा और उसके नए महामं ी रा स के बीच के समीकरण को समझना
चाहता था। उसने सु न त कया क वो महल के अ त थय क भीड़ म और राजा क
नज़र से र रहे। ले कन उसने ये ग़लती कर द थी क वो का यायन के पास खड़ा था और
रा स क के सामने था। रा स ने कु प चाण य को तुरंत पहचान लया। थोड़ी सी
चगा रयां पैदा करने के उ े य से उसने गंभीरतापूवक घोषणा क , “मगध का सौभा य है
क आज हमारे बीच मगध के मेधावी पु चाण य मौजूद ह जो स त शला
व व ालय म अ यापक ह। दरबार को स ता होगी क आज क चचा का आरंभ
आचाय ारा कया जाए।” वन वाहवाही के बाद चाण य ने हच कचाते ए मंच संभाल
लया। “श द नाप-तौलकर बोलना और अपने ोध को नयं ण म रखना,” चाण य चलने
लगा तो का यायन ज द से फुसफुसाए।
“ॐ! दे व एवं दे व वरो धय के गु , व ान एवं राजनी त के वतक बृह त और
शु को णाम,” चाण य ने ारं भक आ ान कया। वो राजसी सहासन पर बैठे धनानंद
के सामने था जसके दाई ओर रा स खड़ा आ था। “ॐ!” सभा ने सहगान कया।
“हे ानी श क, समाज कस कार रा य क उ त म सामंज य के साथ काय
कर सकता है?” रा स ने पूछा।
“अपने कत का नवाह करके। एक ा ण का कत है अ ययन, अ यापन
और मानव क ओर से दे वता के साथ म य ता करना। य का कत है श
रखना और जीवन क र ा करना। वै य का कत है ापार करना, नमाण करना और
धनोपाजन करना। शू का कत है तीन उ वण क सेवा करना,” चाण य ने ये
जानते ए घोषणा क क सहासन पर बैठा राजा शू है।
रा स े षपूण ढं ग से स आ। उसने चगारी पैदा कर द थी। अब व ोट
होने म अ धक समय लगने वाला नह था। आ यजनक प से धनानंद ने आ मसंयम
बनाए रखा और इस ट पणी को कर दया।
“आचाय, एक राजा म या गुण होने चा हएं?”
“एक आदश राजा को वा पटु , नभ क, और कुशा बु , अ मृ त और
ती ण म त क वाला होना चा हए। उसे मागदशन के त संवेदनशील होना चा हए। उसे
श शाली और सेना का नेतृ व करने म स म होना चा हए। उसे पुर कार और दं ड दे ने म
यायसंगत होना चा हए। उसके पास र होनी चा हए और उसे अवसर का लाभ
उठाना चा हए। उसे यु और शां त के समय म शासन करने म स म होना चा हए। उसे
पता होना चा हए क कब यु करना है और कब शां त ा पत करनी है, कब ती ा
करनी चा हए और कब आ मण करना चा हए। उसे हर समय अपनी ग रमा बनाकर
रखनी चा हए, मृ भाषी, वाद और सौ य होना चा हए। उसे उ ता, ोध, लोभ, हठ,
अधीरता और नदा से बचना चा हए। उसे बड़ क सलाह के अनुसार चलना चा हए—”
“बस करो! मुझे ये उपदे श नह चा हए!” धनानंद ने आवेश म आकर ह त ेप
कया। दरबार म स ाटा छा गया। रा स क समझ म नह आ रहा था क या बोले। उसे
इतने शी भाव क आशा नह थी।
“म सहमत ,ं हे राजा। आपको मेरी सलाह क आव यकता नह है। मेरी सलाह
उनके लए है जनम मेरी सलाह को समझने और काया वत करने क यो यता हो। भा य
से आपम इसम से कोई यो यता नह है!” चाण य दहाड़ा। का यायन मन ही मन घबरा
गए। वो चाण य को य यहां लाए? उ ह ने अनजाने म ही अपना हाथ शेर के जबड़े म
डाल दया था।
“रा स! ये कु प मूख कौन है जसे तुम एक श क के प म स मान दे रहे हो?
हम भाषण दे ना तो र, ये तो यहां होने यो य भी नह है!” धनानंद ने कहा।
“हे महान राजा। ये चाण य है, य दवंगता मा चणक का पु ,” रा स ने
चालाक से बताया।
“आह! अब म समझा। जब मने उस मंदबु का सर काटने का आदे श दया था,
तभी मुझे उसके बेटे के साथ भी ऐसा ही करना चा हए था। चूह म आबाद बढ़ाने क गंद
आदत होती है,” धनानंद ने कहा।
“एक बार फर म आपसे सहमत ,ं हे राजा,” चाण य ने कहा, “मुझे जी वत
छोड़कर आपने मूखता क । श ु को अं तम च तक न कर दे ना चा हए, जस तरह एक
दन म आपको और आपके वकृत वंश को न क ं गा,” चाण य ने शांत भाव से
भ व यवाणी क ।
“इस नीच को गर तार करो और नंद के नक भेज दो। ये तभाशाली ग रका के
चमट और कांट के बीच मेरे पतन के तरीक़े सोच सकता है! जस तरह चूहे को उसक
म से पकड़ा जाता है, उसी तरह इसे इसक ु चोट से पकड़ लो!” धनानंद च लाया
और उसके सपाही चाण य क ओर बढ़ने लगे।
चाण य का हाथ अपनी शखा पर गया और उसने उसक गांठ खोल ली। ोध
के बावजूद धनानंद क ज ासा जाग गई और उसने कहा, “पूंछ खोलने से तुझे कोई लाभ
नह होगा! बंदर हमेशा बंदर ही रहेगा!”
“हे मूख और अ ानी राजा, मने पूरे भारत को एक कृत करने को अपना प व
कत बना लया है ता क ये हमारे ार पर आने वाले वदे शी आ मणका रय का
मुक़ाबला कर सके। मेरा पहला क़दम तुझे इ तहास से मटाना होगा। आज म एक प व
सौगंध लेता !ं म सौगंध लेता ं क म अपनी शखा को तब तक नह बांधूंगा जब तक क
म तुझे और मैसीडो नयाई आ मणका रय को अपने दे श से न का सत करके इसे एक
उदार राजा के शासन म एक कृत न कर ं !” चाण य ने सौगंध ली और सै नक उसे अब
तक खुल चुके उसके बाल से पकड़कर नंद के नक क ओर घसीटकर ले जाने लगे।
अ याय अ याय चार
वतमान समय

“अ वालजी, म आपके आशीवाद के साथ आपक नौकरी छोड़ना चा ंगा,” गंगासागर ने


कहा। इतने वष म वो अ वालजी क सारी तरक ब सीख चुका था। वो कृत था ले कन
आगे बढ़ना चाहता था।
“ य , गंगा? मेरे संर ण म तुमने इतना कुछ सीखा है। उस सबको य न करना
चाहते हो?”
“सर, मुझे लगता है क म अंदर रहने के बजाय बाहर रहकर आपक यादा मदद
कर सकूंगा।”
“ या मतलब?”
“भारत के अ र लोकतं म राजनी त और ापार को हमेशा एक- सरे क
ज़ रत रहेगी। राजनी त म स ा होती है ले कन उसके लए पैसे क ज़ रत पड़ती है;
ापार म पैसा होता है ले कन उसे पैदा करने और बनाए रखने के लए श क ज़ रत
होती है। म आपक राजनी तक श बनूंगा।”
“और तुम मुझसे या चाहोगे?”
“आ थक सहायता। जब आपको ज़ रत होगी तो म उसके बदले आपको
राजनी तक सहायता ं गा।”
“मेरा आशीवाद तु हारे साथ है, गंगासागर।”

गंगासागर के लए एक चमकदार हरे पान के प े पर चूना, इलायची, छा लयां और गुलक़ंद


लगाते ए पानवाला गु ता बड़े मज़े से चु ट पी रहा था। उसके खोखे के आसपास गंदगी
और नाली से उठने वाली बदबू इतनी असहनीय थी क सांस लेना भी असंभव था।
“इसी लए म ये चु ट पीता ं,” गु ता ने कहा। “इससे इस बदबू म सांस लेना आसान हो
जाता है। मुझे कसर के जीवाणु क परवाह नह ।”
कानपुर म भारत के कुछ सबसे बड़े चमड़े के कारख़ाने थे, और इस े म भी
ऐसा ही एक कारख़ाना था। कारख़ाने म खाल ऐसी हालत म आती थ क उनम जानवर
का मांस और बाल अभी भी लटकते होते थे और इन अवशेष को साफ़ करने के लए
कारख़ाने म मू और चूने का योग कया जाता था। उसके बाद कमचारी कबूतर का मल
खाल पर मलते थे। पूरे इलाक़े म सड़े मांस, बासी मू और कबूतर के मल क एक तेज़ गंध
हमेशा बसी रहती थी। सबसे ग़रीब क़ म के लोग इन कारख़ान म काम करते थे और
उनके पास यह आसपास झोप ड़य म रहने के अलावा कोई चारा नह था। नतीजतन यहां
एक तेज़ी से फैलती झोपड़प बन गई थी।
कानपुर के धनी लोग के लए ऐसी झोपड़प यां शमनाक नासूर जैसी थ ज ह
फोड़ा जाना ज़ री था; उनम रहने वाल के लए ये— कतनी ही बदहाल सही—उनके
भरण-पोषण का एकमा साधन थ । येक पं ह सौ नवा सय के लए सफ़ एक
शौचालय होने के कारण यादातर नवा सय के पास खुली ना लय म मल याग करने के
अलावा कोई चारा नह था। वो बदबूदार बूचड़ख़ाने जो चमड़े के कारख़ान को खाल
स लाई करते थे, र रं जत अवशेष उ ह खुले नाल म फकते थे जो अनुपचा रत मानव व
औ ो गक अप श से अव रहते थे। इस नारक य जगह पर टायफ़ाइड, हैज़ा और
मले रया जैसी बीमा रयां आम थ ।
इसक प र ध पर गु ता क जैसी छोट -छोट कान थ । झोपड़प एक
आ म नभर छोटा सा समुदाय था और वहां पान व सगरेट क कान, और परचून व
दवाइय के टोर अ ा कारोबार करते थे य क उनके पास ायी उपभो ा थे जो वह
रहते थे। “यहां कोई कूल है?” गंगासागर ने पान चबाते ए पूछा।
“एक यु न सपल कूल आ करता था ले कन अ यापक भाग गए। लोकल
मा फ़या के गु़ंड को वो जगह अपनी अवैध शराब बेचने के लए चा हए थी,” गु ता ने
कड़वे धुएं का एक कश छोड़ते ए कहा। “लोकल नेता हमारे ब क श ा के लए
कूल क ज़ रत क बात ब त करते ह, ले कन वा त वकता ये है क वो हम अनपढ़ और
अ श त रखने म ख़ुश ह। वोट बक बनाए रखने का ये ब ढ़या तरीक़ा है,” गु ता ने
सा ज़शी ढं ग से कहा।
“अगर म यहां कूल खोलूं, तो लोग अपने ब को भेजगे?” गंगासागर ने पूछा।
“ सर का तो नह कह सकता, ले कन म बड़ी ख़ुशी से अपनी बेट को भेजूंगा,”
गु ता बोला।
“उसका नाम या है?”
“चांदनी। सफ़ दस साल क है।”
वो एक भ डा और गंवार च र था ले कन उसके कपड़े बेदाग़ थे। पान से रंगे उसके दांत
उसक आंख के सुख़ रंग से मेल खाते थे। हालां क इकरामभाई शराब नह पीता था। ये
उसके धम के ख़लाफ़ था। वो ज़मीन हड़पने, नाजायज़ स े , जबरन वसूली और नाजायज़
शराब क ब के बेहद मुनाफ़ाब स काम करता था। ले कन वो पीता नह था। उसक
आंख इस लए सुख़ थ क वो ब त कम सोता था। मेहनत करना अ नवाय था, भले ही
आप झोपड़प के दादा ह । उसका काला वण उसके कढ़ाईदार एकदम सफ़ेद कुत के
ब कुल उलट था। बटन चमचमाते हीरे के थे और उसक उं ग लय म कई अंगू ठयां थ
और सभी म भ र न जड़े ए थे।
वो अ े वा य और लंबी उ के लए मा णक पहनता था, हालां क उसक
लंबी उ का मतलब कई बार सर क कम उ होता था। वो धैय के लए लहसु नया
पहनता था, और अ सर तब वो ब त धैयवान रहता था जब उसके गु़ंडे कसी बेचारे को
इस लए पीटते थे क वो उसक बात मानने से इंकार करता था। इसी लए वो सफ़ेद मोती
भी पहनता था, ता क वो शांत और र रह सके। पुखराज उसके धन को बढ़ाने के लए
था, जो चम का रक ढं ग से बढ़ता ही जा रहा था, और हीरा उसे सै सुअल प से
श शाली बनाने के लए था, हालां क उसे पु ष व वभाग म कसी सहायता क ज़ रत
नह थी। हरा प ा इस लए था क वो बेहतर ढं ग से बातचीत कर सके और मूंगा उसे बुरी
नज़र से बचाने के लए था—और उसके पेशे क वजह से उस पर ब त सी बुरी नज़र थ ।
“तुम नीला नीलम य नह पहने हो?” गंगासागर ने इकरामभाई क उं ग लय को
सजा रहे व भ र न को दे खकर कहा।
“ य ? वो मेरे लए या करेगा?”
“वो तु ह श और भाव दे गा—वा त वक श और भाव।”
“वाह! वो पहले ही मेरे पास है। इस झोपड़प म मेरी इजाज़त के गैर कसी म
कुछ करने क ह मत नह है,” गंगासागर के शरीर म आंख भेदते ए उसने अ खड़ भाव
से कहा।
“ले कन बाक़ क नया? तु हारी नया चमड़े का कारख़ाना और झोपड़प है।
तुम जैसी यो यता वाला आदमी पूरे शहर—शायद पूरे रा य—का ब त कुछ भला कर
सकता है।”
“तु हारा मतलब पूरे शहर म जुए के अ े और शराब के गोदाम क ापना?”
इकरामभाई ने गंभीरतापूवक पूछा।
“तु हारे जैसा सा ा य और एक शहर का शासन चलाने म ब त अंतर नह है।
मुझे अ सर लगता है क तुम जैसे बकवास न सुनने के आद लोग शहर को बेहतर ढं ग से
चला सकते ह। इसी लए म ये सुझाव दे ने आया ं क तुम राजनी त म आ जाओ। म
तु हारा गु होऊंगा!”

अ वालजी ने कूल के लए आव यक रा श ख़ुशी-ख़ुशी दे द थी। हालां क ये ब त बड़ी


रा श नह थी—ये बस लाइट , पंख , एक लैकबोड, आव यक फ़न चर, पुताई और ढे र
सारी कताब के लए थी। इसका उ ाटन इकरामभाई ने कया। गंगासागर जानता था क
उसे इकरामभाई का साथ चा हए होगा।
“तुम उसे ेय य दे रहे हो?” अ वालजी ने पूछा। “सारी मेहनत तुम कर रहे हो
—ब को इ तहास पढ़ाने समेत—और पैसा म दे रहा ं।”
“ सफ़ यार के बजाय यार और बं क़ से यादा काम लया जा सकता है,”
गंगासागर ने जवाब दया। “ कूल के लए उसे थोड़ा ेय मलने से ये सु न त हो गया है
क हम उसके गु़ंडे परेशान नह करगे। आप जानते ह क उसने सारे लोग को धमकाया है
क अगर उ ह ने अपने ब को कूल नह भेजा तो वो उनक पटाई करेगा?” गंगासागर
हंसा।
“और इकरामभाई के इस उदार बताव के पीछे या कहानी है?” अ वालजी ने
पूछा।
“वो अगला यु न सपल चुनाव लड़ना चाहता है। उसे आ थक और बौ क
सहायता चा हए,” गंगासागर ने समझाया।
“तो तुमने उसे मेरा पैसा दे ने का वादा कर लया है?” अ वालजी ने खेपन से
पूछा।
“और अपनी बु ,” गंगासागर ने जवाब दया, “ले कन तभी जब क वो
एबीएनएस के टकट पर लड़े।”
“ये कौन सा राजनी तक दल है? मने तो इसके बारे म कभी नह सुना।”
“अभी इसका अ त व नह है। ले कन अगले यु न सपल चुनाव तक हो
जाएगा।”
“तुम अपनी नई पाट के टकट मा फ़या डॉन जैसे लोग को दोगे, गंगा?”
“एक चोर ही सबसे अ ा सुझाव दे सकता है क बक क सुर ा कैसे क जाए।
ये डॉन मेरा वोट बक बनाने और बनाए रखने म मेरी मदद करेगा।”
“कैसे?”
“म ा ण ं। म उ जातीय ह के वोट ख च सकता ं ले कन नीची जा त
के ह और मुसलमान मुझे शक क नज़र से दे खते ह। इकरामभाई मु लम वोट को
आक षत करने म मदद करेगा।”
“उसके साथ जुड़ने से तु हारी साख ख़राब नह होगी, गंगा?”
“च र वो है जो आप ह। साख वो है जो लोग आपके बारे म सोचते ह। जब तक
क वो मेरा च र न बदल दे , मुझे फ़क़ नह पड़ता।”
“उ मीद करता ं तुम जानते हो क तुम या कर रहे हो। तुम शैतान के साथ सौदा
कर रहे हो।”
“ई र मुझे माफ़ कर दे गा। आ ख़र उसका काम ही यही है!” गंगासागर ने
अ वालजी को आंख मारते ए कहा।

कानपुर यु न सपै लट क ापना टश राज म थी, ले कन आज़ाद के कुछ वष बाद ये


कॉरपोरेशान—कानपुर नगर महापा लका—म बदल द गई थी, जसका एक मेयर होता
था जसका चुनाव हर पांच साल बाद होता था। चुनाव अ य प से होता था जसम
शहर के व भ भौगो लक वाड से चुने ए कॉरपोरेटर मेयर को चुनते थे। इकरामभाई
यु न सपल काउं सल क सौ म से सफ़ एक सीट पर लड़ रहा था, ले कन गंगासागर ने
कई अ य को भी एबीएनएस के टकट पर चुनाव लड़ने के लए मना लया था। उसने
आ म व ास के साथ घोषणा कर द थी क वो इकरामभाई को मेयर बनाएगा।
“काउं सल जा त और धम के आधार पर बुरी तरह बंट ई है। प ीस तशत
सद य ा ण ह, एक चौथाई यादव जैसी म य जा तय के ह, एक चौथाई द लत ह और
बाक़ एक चौथाई मुसलमान ह,” गंगासागर ने समझाया।
“तु हारा कोई चांस नह है,” अ वालजी ने असहाय प से कहा।
ले कन ये राजनी त थी, न क अथशा । इस खेल का मा हर गंगासागर था, न
क अ वालजी।
“ये सच नह । मुझे बस चार गुट से पांच-पांच तशत लेने ह। ऐसा करके मेरे
पास कुल बीस तशत हो जाएंगे। पांचवां गुट।”
“पर फर भी तु हारे पास बीस तशत ही ह गे, बाक़ चार गुट के बराबर,”
अ वालजी ने तक दया, पर वो ये नह जानते थे क शतरंज के इस खेल क ब त सी
चाल का व ेषण करके ही इस नतीजे पर प ंचा गया था।
“बाक़ चार गुट एक- सरे से नफ़रत करते ह। जसे भी स ा चा हए होगी, उसे
हमारे—एकमा जा त और धम तट दल के—साथ गठजोड़ करना ही पड़ेगा,”
गंगासागर ने वजयी भाव से कहा।
“ले कन वो तु हारा समथन तभी करगे जब क तुम सहमत हो जाओ क तुम
उनके उ मीदवार को मेयर बनाओगे। तुम इकराम को मेयर बनाने क उ मीद कैसे कर
सकते हो?”
“मेयर एक ह तांतरणीय वोट के मा यम से चुना जाता है। ये खेल सामा य वोट से
भ होता है,” गंगासागर ने समझाया। “पहली च ड़या को क ड़ा ज़ र मल जाता है
ले कन सरे चूहे को चीज़ मलता है! इकरामभाई का पहली पसंद होना मेरे लए ज़ री
नह है—वो बस सरी पसंद हो।”
“इससे उसे कैसे फ़ायदा होगा?” अ वालजी ने पूछा।
“ येक कॉरपोरेटर को अपना मत डालते समय पांच उ मीदवार को—अपनी
वरीयता के अनुसार— ेणीब करना होगा।”
“तो?”
“हमारे गुट स हत पांच गुट क पहली पसंद उनके अपने उ मीदवार ह गे।”
“हां। पर इस तरह इकराम बस बाक़ चार उ मीदवार के बराबर होगा।”
“हां, पर हर कॉरपोरेटर को पांच उ मीदवार म से अपनी पहली पसंद ही नह ,
ब क सरी, तीसरी, चौथी, और पांचव पसंद भी दशानी होगी,’ गंगासागर ने बताया।
“बाक़ चार पा टय के बीच जारी घमासान के कारण वो सरी पसंद के प म एक- सरे
के उ मीदवार को नह चुनगे। मुझे बस उनसे ये कहना होगा क वो इकराम को अपनी
सरी पसंद बना ल।”
“ये या कस तरह काम करती है?”
“पहले राउं ड म पहली पसंद वाले उ मीदवार के वोट गने जाते ह। ज़ा हर है,
इकराम समेत पांच बराबर ह गे। कोई वजेता न होने के कारण, सरी पसंद वाले
वोट गने जाएंगे और हर उ मीदवार क गनती म जोड़े जाएंगे। इस चरण म, इकराम सबसे
मज़बूत होगा। सरे चूहे को चीज़ मल जाएगा!”
“म बस यही उ मीद करता ं क तु हारा चूहा कह ब ली न बन जाए, गंगा,”
अ वालजी ने कहा।

“तुमम से कोई बता सकता है क महा मा गांधी का मूल मं या था?”


“अ हसा,” पीछे से जवाब आया। ये एक कमज़ोर और सुंदर सी तेरह वष य
लड़क थी। उसका चेहरा गोल था और उसके गहरे काले बाल क चोट एक लाल रबन से
बंधी ई थी। छोट -छोट जु़ फे़ं जो तेल लगने और चो टय म बंधने से बच गई थ , उसके
माथे पर लटक रही थ । वो एक ह क े कट और फ के नीले रंग का टॉप पहने ए थी—
झोपड़प य के कूल क सामा य नीरस वद । ले कन उसका रंग इस पृ भू म के लए
असाधारण प से गोरा था, और उसके छोटे -छोटे दांत, गुलाबी ह ठ और प े जैसी
चमचमाती हरी आंख उसे मासू मयत के साथ ज़हानत का भाव दे ती थ ।
गंगासागर ने उसे दे खा तो वो थोड़ी घबराई सी अपनी प सल से छे ड़छाड़ कर रही
थी। “ब त ख़ूब, चांदनी। तुम बता सकती हो इसका या अथ है?”
“अ हसा का अथ है हसा न करना।”
“ या इसका मतलब लड़ने से इंकार कर दे ना है?”
“नह । अ हसा कायरता नह है। एक ब त बहा र ही सीना तानकर वार
सह सकता है।”
“तो इसका मतलब है बना लड़े अपनी बात मनवाना?”
“जी। ले कन आप म ऐसी नै तक श होनी चा हए क आप लोग को समझा
सक क या आप या हा सल करना चाहते ह। गांधीजी के पास ज़बरद त नै तक श
थी।”
“बता सकती हो उ ह कस चीज़ ने नै तक श द ?”
“वो गत उदाहरण जो उ ह ने सर के सामने रखा?” गु ता क बेट ने
हच कचाते ए पूछा।
“हां। हम भारतीय याग क सराहना करते ह। ये परंपरा ाचीन यो गय से चली
आ रही है। इस कार गांधीजी एक आधु नक योगी ए।”
“ य क वो ग़रीबी म रहते थे?” उसने अपनी प े जैसी हरी आंख फैलाते ए
पूछा।
“हां, पर उनक ग़रीबी एक तीक थी। एक ऐसा तीक जसने उ ह लोग को
साथ लेकर चलने क राजनी तक श दान क ।”
“और इससे दे श का ब त पैसा बचा?”
“हा! सरो जनी नायडू —हमारे उ र दे श क पहली गवनर—ने बड़ी सुंदर बात
कही थी क महा मा को ग़रीबी बनाए रखने के लए भारत को ब त पैसा ख़च करना पड़ा
था!”
“तो फर उ ह ने य ऐसा कया?”
“यही तो याग क श है, बेटा!”
“ जस तरह आपने मेयर बनने का याग कया ता क इकराम अंकल मेयर बन
सक?”
“हां,” गंगासागर हंसा, “कुछ ऐसा ही समझ लो।”

“हम इस शहर क सफ़ाई करनी होगी, इकराम।”


“आपका मतलब ‘माल समेटने’ वाली ‘सफ़ाई,’ है ना गंगासागरजी?”
“नह ।”
“आपका मतलब सड़क झाड़ने और कूड़ा साफ़ करने वाली सफ़ाई से तो नह
है?”
“हां। मेरा यही मतलब है। ये शहर ब त गंदा है।”
“ यु न सपल कॉरपोरेशन पर क़ ज़ा करने का मक़सद पैसा कमाना होता है,
सफ़ाई करना नह ।”
“अगर म ये क ं क ाचार फैला आ नह है, तो ये मेरी मूख ता होगी।
एबीएनएस को मज़बूत करने के लए हम पैसे क ज़ रत होगी, ले कन साथ ही हम कुछ
अ ा काम भी करना चा हए।”
“ य ? ानीय सरकार म कभी कसी ने कब अ ा काम कया है?”
“हम ये इस लए नह करना चा हए क हम अ ा काम करने वाले लोग ह। हम ये
इस लए करना चा हए क हम अगला चुनाव सरी पा टय क मदद के बना जीतना चाहते
ह।”
“अगर हम इस कायकाल म तगड़ा पैसा कमा लेते ह, तो हम कॉरपोरेशान म एक
और कायकाल क ज़ रत नह पड़ेगी। हम अमीर हो जाएंगे।”
“कॉरपोरेशन क बात कौन कर रहा है?”
“ह?”
“मेरे य इकराम। वा त वक श रा य तर पर है, ानीय सरकार म नह ।
पांच साल बाद हम वहां प ंचना है—उ र दे श क रा य सरकार म।”

“गंगासागरजी। कूड़ा बटोरने वाले हड़ताल पे चले गए ह। वो कहते ह क उन पर लादे गए


नए अनुशासन क वजह से उ ह दे र तक काम करना पड़ता है—वो यादा त ख़ाह और
भ क मांग कर रहे ह।”
“उ ह पहले ही यादा पैसा दया जा रहा है, इकराम। कॉरपोरेशन त ख़ाह नह
बढ़ा सकती।”
“तो मुझे या करना चा हए? यु न सपल क म र मुझे हर दस मनट पर
बातचीत ारा हल नकालने के लए फ़ोन कर रहा है।”
“बातचीत हमेशा श शाली त से करनी चा हए, न क कमज़ोर त से।
अगर अ नवाय सेवाएं ठ प हो ग , तो वो श शाली हो जाएंगे।”
“तो आपक या सलाह है?”
“कूड़े क सफ़ाई ठ प नह होनी चा हए। तब उनक त कमज़ोर होगी।”
“तो आप चाहते ह क म—मेयर—शहर म कूड़ा बटोरता घूमूं?”
“नह । ले कन तु हारी झोपड़प म सैकड़ गुद ड़ये ह। उ ह इस काम के लए
रोज़ाना कुछ पैसे का ताव दो। वो न केवल ये काम करगे ब क कूड़े को रीसाइ कल भी
करगे। ये अथ व ा-अनुकूल और पा र क -अनुकूल हल होगा।”
“कूड़ा बटोरने वाले ो धत हो जाएंगे।”
“हमारे बजाय वो ह तो बेहतर है। वो त हो जाएं तो बातचीत करो |”

“ यु न सपल अ ताल बड़े बुरे हाल म ह, गंगासागरजी।”


“तो हम उ ह बेहतर बना चा हए, इकराम।”
“हमारे पास बजट नह है। हम घाटे म चल रहे ह।”
“तो अ ताल के नाम बदल दे ते ह।”
“नाम बदलने से उनम या सुधार होगा?”
“साफ़ बात है। इस शहर के कौन से ापारी ऐसे ह जन पर टै स के घपल के
मुक़ मे चल रहे ह?”
“कई ह। य ?”
“उनसे कहो क उनके प रवार के नाम कसी धमाथ चीज़ के साथ जोड़े जाएंगे।
सु वधा म सुधार के लए उनसे तगड़ा चंदा मांगो और हम ख़ुशी से साले अ ताल के
नाम बदल दगे! उ ह दानकता का ठ पा मल जाएगा और हम अ ताल को सुधार लगे।”
“अगर वो सहमत नह ए?”
“तो उनसे कहना क उनके टै स के मामल को दोगुनी श से दे खा जाएगा।”

“गंगासागरजी, सड़क म फर से ग े हो गए ह।”


“इकराम, य न हम उन नमाण कंप नय पर जुमाना लगाएं ज ह ने सड़क का
काम कया था?”
“वो कहते ह क साम ी यु न सपल व नदश के अनुसार इ तेमाल क गई थी।
इसम उनक कोई ग़लती नह है क व नदश ही न न तरीय थे।”
“ठ क है। घोषणा कर दो क हम अगले साल के अंदर बड़े तर पर सड़क- नमाण
के ोजे ट लाने वाले ह। ेस व त दे दो।”
“पर हम ोजे ट ला तो नह रहे ह।”
“हां। ले कन वो ये नह जानते। जो कंप नयां भ व य म हमसे काम पाना चाहगी
वो तु हारे ग े मु त म भर दगी।”

“इस साल राज व क वसूली म गरावट आई है, गंगासागरजी।”


“हमारे राज व के ोत या ह, इकराम?”
“संप कर, लाइसस शु क और यु न सपल ज़मीन पर कराया।”
“संप कर या लाइसस शु क बढ़ाना कारगर वक प नह होगा। इससे आ थक
ग त व ध हतो सा हत होती है, और कर क वसूली कम ही हो जाती है। यु न सपल
ज़मीन पर कराया बढ़ा दो।”
“ले कन अव ता अव ध के प क वजह से हम कराए नह बढ़ा सकते—भले
ही कराए माकट रेट से कम ह।”
“प े र कर दो।”
“ कराएदार अदालत चले जाएंगे।”
“जाने दो। हर कराएदार को कई वक ल क ज़ रत पड़ेगी जब क यु न सपल
कॉरपोरेशन का त न ध व एक सरकारी वक ल कर लेगा। हमारा ख़च उनके मुक़ाबले
नग य होगा।”
“ले कन मुक़ े मेबाज़ी म बरस तक उलझा रहेगा। आ ख़रकार हमारी हार होगी।
हमारा क़ानूनी प ब त कमज़ोर है।”
“ठ क है। कराए क ज़मीन को जस का तस बेचने क धमक दो।”
“ कराए क ज़मीन कोई नह ख़रीदे गा।”
“ यारे इकराम, अगर मुझे सही याद है, मेयर के उ पद पर प ंचने से पहले तुम
झोपड़प के डॉन थे ना?”
“ये पद तो आपके आशीवाद और मागदशन का नतीजा है, सर,” इकराम ने
चापलूसी क ।
“तो, ख़ुद से ये सवाल करो। अगर ख़रीदार भी कोई अंडरव ड डॉन हो, तो या
कराएदार इस बात को लेकर सहज ह गे क उनक ज़मीन का मा लक एक डॉन है?”
“क़तई नह । मा फ़या डॉन ज़मीन को ख़ाली कराने के लए हर तरह क क़ानूनी
या गै़रक़ानूनी हरकत करगे। कराएदार आतं कत हो जाएंगे।”
“तो कराएदार से कह दो क उनके सामने दो वक प ह। या तो अ धक कराए
के लए हमसे बात कर या कम ज़दगी के लए कसी मा फ़या डॉन से बात कर। मुझे
यक़ न है यादातर लोग हमसे बात करने को चुनगे।”

“मने मलजल नपटान णाली के लए अनुबंध साइन कर दया है, गंगासागरजी।”


“तुमने पाट के लए पांच तशत रखा, इकराम?”
“हां। जैसा आपने नदश दया था।”
“ले कन या तुमने ये भी सु न त कया क शहर क बीस तशत बचत हो
जाए?”
“हां। नीलामी क या ने ये सु न त कर दया।”
“ब ढ़या। म जानता ं क रा य वधानसभा चुनाव से पहले हमारी पाट को
मज़बूती क ज़ रत है ले कन म लोग के लए पैसा बचाए बना ऐसा नह करने वाला।
यु न सपल कॉरपोरेशन म ब त यादा अ धकारी रहे ह जो आम नाग रक के लए
कुछ कए बना अपनी जेब भरते रहे ह।”
“अफ़सोस, पैसा बुराई क जड़ है।”
“हां। और कभी-कभी इंसान को जड़ क ज़ रत होती है।”

“नौकरशाही को जहां तक हो सके, काट दया जाए, क म र,” गंगासागर ने सुझाव दया।
वो मेयर के शानदार अ◌ॉ फ़स म नए नयु ए यु न सपल क म र से बात कर रहा था।
क म र जानता था क वा त वक राजनी तक श गंगासागर है। मेयर ट वी सैट था
ले कन गंगासागर रमोट कं ोल था।
गंगासागर को ख़ुश करने के लए उसने अपने सहायक से दशा नदश तैयार करने
को कहा क कस तरह लालफ़ ताशाही को कम कया जा सकता है। ये सरकारी क़ानूनी
भाषा म लखा एक लंबा द तावेज़ था। अगले दन गंगासागर ने उसे क म र को एक छोट
सी ट पणी के साथ वापस कर दया था। उसम बस इतना लखा था:

गाय ी मं : 14 श द
पाइथागोरस का स ांत: 24 श द
आ क मडीज़ का स ांत: 67 श द
टै न कमांडमट् स: 179 श द
जवाहरलाल नेह का उदघाटन भाषण: 1,094 श द
लालफ़ ताशाही बंद करने के लए आपक सफ़ा रश: 22,913 श द

इकराम, गंगासागर और अ वालजी अंडर वयर पहने पालथी मारे गंगा कनारे अ वालजी
के ाइवेट बीच पर बैठे थे। तीन के पीछे एक-एक मा लशवाला खड़ा था। तीन सरस के
तेल से महक रहे थे, जो कानपुर के मा ल शय का पसंद दा तेल था। तीन आद मय के
सर को गम तेल से तर करने के बाद वो ज़ोर से उनक मा लश कर रहे थे। अ वालजी
गंजे थे ले कन फर भी उनका मा लशवाला उनक खोपड़ी को पूरे ज़ोर-शोर से चमकाने म
लगा आ था। बीच-बीच म मा ल शए अपने मुख ल य— सर—से भटक जाते और
अपने ाहक क गदन, कंध और पीठ को फटने, दबाने और रगड़ने लगते। ये रौग़न और
कराह का उ सव था।
अ वालजी ने पूछा, “गंगा, तु ह लगता है हम अगला वधानसभा चुनाव लड़ने
लायक़ श शाली ह?”
“बात ये नह है क हम इतने श शाली ह या नह ह, बात ये है क या हम
वरो धय को कमज़ोर बना पाएंगे या नह ,” गंगासागर ने जवाब दया, इस बात से बड़े मज़े
से बेख़बर क उसका मा ल शया उसके कान म उं ग लयां डालकर उसे कंपन थेरेपी का
भारतीय सं करण दे रहा है।
“ जतना म तु ह जानता ,ं तुमने कोई योजना बना रखी होगी,” अ वालजी ने
कहते ए हाथ बढ़ाया ता क उनका मा ल शया उनक हथे लय को अपने अंगूठे से घुमा-
घुमाकर अ तरह रगड़ सके—जो र संचार के लए अ ा है।
“मने सुना है क हमारे स मानीय मु यमं ी म कुछ कम स मानीय आदत ह,”
गंगासागर ने धूतता के साथ कहा।
“वो या ह?” इकराम ने पूछा।
“ यादा सही सवाल होगा वो कौन ह,” गंगासागर ने जवाब दया।
“ठ क है। वो कौन ह?”
“म औरत के नाम वणमाला के अनुसार गाऊं?” गंगासागर ने मज़ाक़ कया।
“जो भी हो, इससे हम फ़ायदा या होगा?” अ वालजी ने पूछा। “हमारे मु यमं ी
के शासन का रकॉड अ ा रहा है। उनके होते वतमान शासन को हटा पाना मु कल
होगा। ले कन वो नह ह , तो बात सरी होगी।”
“काम म यादा उ साही लोग के साथ सम या ये होती है क वो सरे मामल म
भी उतने ही उ साही होते ह,” गंगासागर ने कहा।
“चुनाव नज़द क आने के कारण वो सावधान हो जाएंगे। उ ह फंसाना आसान
नह होगा,” इकराम ने कहा।
“अ सर लोभन से छु टकारा पाने का एकमा तरीक़ा लोभन के आगे झुक
जाना होता है,” गंगासागर ने शांत भाव से कहा।

लखनऊ म अकबरी दरवाज़े के पास गुलबदन का कोठा काफ़ मश र था। ये उन ब त


कम दरवारवा लय के घर म से एक था जो पुराने समय म जमे से रह गए थे। कोठे क
मा लक धनी मैडम कैश मयर ऊन और ोकेड क शॉल पहनती थी, टल का क़ा
गुड़गुड़ाती थी, संगयशब के कटोर म पीती थी, र नज ड़त च पल पहनती थी, चांद के
उगलदान म थूकती थी और शु स क क चादर म सोती थी। ले कन वो एक ही आदमी
के साथ सोती थी।
वो बेहद तुनक मज़ाज थी। उसे पैसे क चाह नह थी—उसके पास पैसा ब त
था। उसे तो ताक़त चा हए थी। एकमा चीज़ जो ब तर म उसे उ े जत कर सकती थी,
वो ये वचार था क उसके साथ एक श शाली आदमी है। और लखनऊ म रा य के
मु यमं ी से यादा श शाली कोई नह था।
बेड म के दरवाज़े के बाहर खड़ा रपोटर मैला-कुचैला और अ त त था।
उसक शट पसीने ध ब से सनी ई थी, स ती सी पट सलवटदार थी और उसके दाएं जूते
का फ़ ता ख़तरनाक ढं ग से खुला आ था। उसका बडी हॉली टाइल का च मा तैलीय हो
रहा था और उसके घने काले बाल से सी झड़कर उसके कंध पर गर रही थी। ले कन
उसके गले म पृथक रजफ़ाइंडर वाला एक ब त शानदार ए जल स कैमरा— इं लड म
बना—लटक रहा था। उसे तगड़ा पैसा मला था—लगभग एक महीने क त ख़ाह। ख़बर
भी प क थी—एक बेदाग़ और बना ह ता र वाले काग़ज़ पर साफ़-साफ़ टाइप क ई
जगह, तारीख़ और समय। ये उसक ज़दगी क सबसे सनसनीखे़ज़ ख़बर होने वाली थी।
बेड म के बाहर नयु नौकरानी ने उसे दरवाज़े का हडल आज़माने के लए
इशारा कया। वो ब त सावधानी से चलता आ दरवाज़े तक गया, उसने दरवाज़े क मूठ
पर हाथ रखा और उसे खोलने क को शश क । दरवाज़ा खुला आ था। होना ही था।
नौकरानी ने उसे अपनी चाबी से खोल दया था। नौकरानी के सहयोग का कारण रपोटर
के हाथ म था— ाउन पेपर म लपटा और सुतली से बंधा एक बड़ा सा पासल। इसम ट बी
से लड़ने के लए एक नई चम का रक दवाई थी—एक ऐसी दवाई जो उस समय सफ़
अमे रका म ही बनती और उपल थी।
गुलबदन के घर पर नज़र रख रहे ाइवेट डटे टव ने सुझाया था क लड़क को
इ तेमाल कया जा सकता है। छानबीन से पता चला था क लड़क क मां ट बी से मर रही
थी और लड़क उसके इलाज क वजह से व ीय तंगी म थी। हाल ही म ट बी के रो गय
के लए एक मह वपूण दवाई क खोज ई थी और गंगासागर ने अ वालजी से कहा था
क वो यूयॉक म अपने एक संपक से वो दवाई मंगवा ल। उसके बाद लड़क को अपने
साथ मलाना ब त आसान हो गया था।
रपोटर ने दरवाज़े क मूठ को छोड़ा और ख़ामोशी से लड़क को इशारा कया क
वो हडल पकड़े रखे ता क वो अपना कैमरा आंख से लगा ले। वो फुसफुसाया, “तीन पर
दरवाज़ा खोल दे ना—एक—दो— तीन!” जैसे ही लड़क ने दरवाज़ा खोला, उसने कैमरे
को एक बार अंदाज़े से लक कया। फर उसने गुलछर उड़ाते जोड़े को ढूं ढ़ा, ूफ़ाइंडर
को उसक ओर मोड़ा और फर से लक कया। वो तीसरी बार एक और त वीर लेना
चाहता था ले कन वो जानता था क उसके पास समय नह होगा। मु यमं ी ने अपनी
सुर ा को आवाज़ द । “गाड् स!” वो च लाए, “पकड़ो इस बेशम कु े को!” ले कन तब
तक ब त दे र हो चुक थी।
रपोटर क वापसी नौकरानी के सहयोग से नौकर वाले ार से पहले से ही तय
थी जब क गाड मु यमं ी क एंबैसडर कार म घर के ाइववे म बैठे ए थे।
घर से उ र क ओर जाने वाली अं धयारी ग लय म से एक म प ंचकर रपोटर ने
सुकून क सांस ली। अपने संपादक और अगली सुबह के अख़बार के लए अपनी टोरी
क योजना बनाते ए उसने अपनी ग त बढ़ा द । उसने अपने कैमरे म क़ैद त वीर के बारे
म सोचा और उसे हंसी आ गई। इरो टका और पोन म बस लाइ टग का फ़क़ है , उसने मन
ही मन सोचा।

“उ ह ने इ तीफ़ा दे दया है,” गंगासागर वजयी भाव से च लाया, “म जानता था हम


आदमी से खेलना है, गद से नह ।”
“आपका मतलब गद से,” इकराम ने मज़ाक़ कया।
“वो भी,” मज़ाक़ को नज़रअंदाज़ करते ए उ सा हत गंगासागर ने कहा। “उनके
इ तीफ़े के बाद उनक पाट बखर जाएगी। हमने जो अभी बायां जैब मारा है, इसके तुरंत
बाद हम दायां अपरकट मारना चा हए। इससे ये सु न त हो जाएगा क पाट संभल नह
सके,” उसने मुंह म एक और पान डालते ए कहा।
“ दे श के मु यमं ी के बाद सबसे श शाली कौन है?”
“रा य का गृहमं ी,” इकराम ने कहा।
“और गृहमं ी का या काम होता है?”
“क़ानून और व ा बनाए रखना।”
“क़ानून और व ा बगड़े तो या होगा?”
“उसके साथी उसे वैक पक उ मीदवार के प म सामने लाने से हच कचाएंगे।”
“इकराम, मेयर क है सयत से पु लस क म र तक तु हारी सीधी प ंच है, है ना?”
“मुझ जैसे और पु लस के बीच हमेशा सीधा संपक रहता है,” इकराम हंसा।
“आप दरअसल कराना या चाहते ह?”

र ो भैया अपनी पुरानी सी म ह ा जीप क ाइवर सीट पर बैठा अपनी घनी काली मूंछ
को प छ रहा था। उसके हाथ म ठं डाई से आधा भरा ट ल का एक गलास था। बादाम,
चीनी, स फ़, गुलाब क प य , काली मच, इलायची, व केसर क महक और अ
ख़ासी मा ा म पो त के बीज वाले ठं डे ध का आधा भाग पहले ही उसके पेट के अंदर
घूम रहा था। ह या, मार-पीट और नाजायज़ ह थयार रखने के छ बीस मामल म
अ भयोगाधीन र ो वधान सभा का सद य था। सै स कांड म पकड़े गए मु यमं ी का
व ासपा र ो रा य क राजनी तक गंदगी का सरा भ ा राज़ था।
उसक बग़ल म उसका पुराना दो त पु लस क म र बैठा था जसने ख़ास तौर से
इस वीरान जगह पर मुलाक़ात के लए कहा था। वो र ो—बज़ा हर एक मन—से
बातचीत करते नह दे खा जाना चाहता था। ो धत ेस और भोली-भाली जनता इस त य
को कभी वीकार नह कर पाती क र ो और पु लस मुख अपने पद एक- सरे के
सहारे ही बनाए ए ह। र ो जैसे लोग आम इंसान के लबास म अपराधी थे, और,
अ सर, पु लसवाले वद पहने अपराधी होते थे। पु लस क म र ढ़ न य के साथ अपनी
नाक कुरेद रहा था। अपनी इस खोज के बीच म उसे महसूस आ क उसके गले म
खुजली हो रही है और उसने खखारते ए बड़ी गहराई से कफ़ नकाला और खुजली के
अपराधी बलग़म के ढे र को अपने मुंह म लाकर उसने उसे ज़मीन पर थूक दया। लगता था
क नाक कुरेदना और गला साफ़ करना उसके मनपसंद शैाक़ थे।
“साले कमीने ने मुझसे कहा है क सारे लं बत मामल क जांच क ं और तु ह
एक मसाल बना ं ,” आ ख़रकार पु लस क म र बोला।
“साले का दमाग़ चल गया है या? मादरचोद को पता नह क इससे पाट क
अपनी ही पोज़ीशन ख़राब होगी? म स ा दल का ख़ास सद य ं, नह या? इससे वो
चुनाव कैसे जीत पाएगा?” ु र ो ने पूछा।
“ फ़लहाल तो रा य के गृहमं ी का उ े य अपने सहयो गय को ये दखाना है क
उसम दम है। एक बार उसक अपनी त मज़बूत हो जाए, तब वो पाट क चता करना
शु करेगा!” क म र ने नाक का एक बाल तोड़ते ए कहा जो उसे परेशान कर रहा था।
“तो फर म हरामज़ादे को दखाऊंगा क म या कर सकता ,ं ” बची ई ठं डाई
जीप के बाहर नम ज़मीन पर फकता आ र ो च लाया।
“खुलेआम मनी मोल लेने के बजाय उसे संकेत दे ने का तु हारे पास एक तरीक़ा
है जससे क़ानून और व ा पूरी तरह बखर जाएगी,” पु लस क म र ने सहायता करने
क को शश म सुझाव दया।
“और वो या तरीक़ा है?”
“तुम राजनी तक प से उसे चुनौती दे सकते हो। उसके चुनाव े म एक रैली
करो। इससे वो थोड़ा हल जाएगा।”
र ो मु कुराया। उसके सामने के दो दांत सोने के थे। उसने अपने वचार से
अपनी वजयी मु कान द और कहा, “तु ह एक आम पु लस क म र कसने बना दया?
तु ह तो मं ी होना चा हए था—और कोई ाथनाएं करने वाला मं ी नह !”

“मने उनसे कहा था क वो रैली न कर, सर। मने समझाया था क इससे क़ानून और
व ा क सम या खड़ी हो सकती है। उ ह ने मुझे व ास दलाया था क वो अपने
फ़ैसले पर पुन वचार करगे। ले कन शायद उ ह ने ऐसा कया नह ,” पु लस क म र ने
उ र दे श के च तत गृहमं ी को समझाया।
“तो उस हरामख़ोर को लगता है क म उसके खुले व ोह को यूं ही वीकार कर
लूंगा,” मं ी च लाए। “मुझे चता ये है क वो पूरी पाट को बखेर दे गा। उसे आज ही
गर तार कर लो!”
मं ी ज़ोर से अपनी कुस पर झूल रहे थे। ‘ चता रॉ कग चेयर जैसी होती है,’
पु लस क म र ने सोचा। ‘ये आपको त तो रखती है ले कन कह ले नह जाती।’ उसने
अपना चतन बंद कया और बोला।
“ये समझदारी नह होगी, सर। उसक अपनी जा त म काफ़ पैठ है। वो उसे एक
तरह के रॉ बन ड के प म दे खते ह। उसे गर तार करके हम उसके जाल म फंस
जाएंगे,” पु लस क म र ने सा ज़शी ढं ग से कहा।
“अगर मने उसे गर तार नह कराया तो मुझे कमज़ोर और ढु लमुल समझा
जाएगा। इसका या भाव होगा? तुम नौकरशाह को कभी चुनाव लड़ने के बारे म च तत
नह होना पड़ता है। तु हारे लए तो सफलता बस रटायरमट तक नौकरी से चपके रहने म
है; मुझ जैसे नेता के लए सफलता का मतलब है इतवार क सुबह तक बने रहना!”
“म आपक भावना को समझता ,ं सर। म एक सुझाव दे सकता ?ं ”
“बोलो,” चढ़े ए मं ी ने कहा।
“इसके बजाय य न उसके क़रीबी सा थय को पकड़ लया जाए? बाद म हम
उ ह ज़मानत पर छोड़ दगे। इस तरह ये संकेत जाएगा क आप अनुशासनहीनता को सहन
नह करगे, और साथ ही आप उससे सीधे टकराने से भी बच जाएंगे। आप उसक हवा
नकाल दगे, सर। उसके पास खड़े रहने के लए टांग भी नह बचेगी।”
उ र दे श के गृहमं ी मु कुराए। वो पचह र साल के बूढ़े आदमी थे। उनके
दांत क जगह डचर लगे ए थे जो उनक इ त दशा के अलावा हर दशा म चलते थे।
पु लस मुख को एक डचर- े रत मु कान दे ते ए वो बोले, “तुम साला राजनी त म य
नह हो? भगवान जानता है तुम प के कपट हो।”
उ ह ने कुस म झूलना बंद कर दया था।

“इन आपस म लड़ते अपरा धय को दे खए, दो तो। ये कहते ह क ये आपक सुर ा और


सलामती को लेकर गंभीर ह। सच ये है क ये बस एक- सरे को सुर त रखने म तह
—आपक सुर ा जाए भाड़ म!” ता लय क गड़गड़ाहट के बीच इकरामभाई दहाड़ा।
“छ बीस लं बत आपरा धक मामल के बावजूद वो र ो य आज़ाद घूम
रहा है?” वो च लाया। फर से ता लयां बज ।
“गृहमं ी के अपने चुनाव े म दनदनाते ए वो य उ ह चढ़ा रहा है? या
इससे ऐसा नह लगता क उनम आपस म मलीभगत है?” ता लय का शोर और यादा
बढ़ गया।
“ये गृहमं ी बदनाम अपरा धय क य र ा कर रहे ह? हमारे स म पु लस
क म र ने र ो के सैकड़ सा थय को धर दबोचा है। हर मामले म, उनके राजनी तक
आक़ा ने इन लोग को ज़मानत पर रहा करने के लए दबाव बनाया है। हम य न इस
कमज़ोर ाणी के इ तीफ़े क मांग कर जो ख़ुद को गृहमं ी कहता है?” इस बार ता लय
क गड़गड़ाहट के साथ अनुमोदन का शोर भी शा मल था।

“तुमने तो इकराम को रातोरात हीरो ही बना दया है,” अ वालजी ने ट पणी क । “अगर
एबीएनस का दशन चुनाव म अ ा रहे तो वो आसानी से मु यमं ी के पद का दावेदार
हो सकता है।”
“यही तो मेरी सम या है,” गंगासागर ने कहा। “वो इस काम के लए सही आदमी
नह है।”
“तुम पागल हो या, गंगा? तुमने उसे कुछ नह से यहां तक प ंचाया है। और अब
जब वो उ र दे श म स ा पाने के एकदम नज़द क है, तो तुम उसे पीछे हटाना चाहते हो?
अ व सनीय!” अ वालजी बड़बड़ाए |
“आपने ए ोपीन के बारे म सुना है?” गंगासागर ने पूछा।
“नह । ये या होता है?”
“ये एक ज़हर होता है। इसे डैडली नाइटशेड नाम के पौधे से नकाला जाता है।”
“ या तुम इकराम को ज़हर दे ने का सोच रहे हो, गंगा? ये कुछ यादा नह हो
जाएगा?”
“म बस ये कह रहा ं क ये ख़तरनाक ज़हर — ए ोपीन—ज़हर के तोड़ के प
म भी योग कया जाता है। हालां क ये ज़हर है, ले कन अगर इसका इ तेमाल छोट -छोट
ख़ुराक म कया जाए, तो ये अपने से बड़े ख़तर से लड़ सकता है।”
“तो इकराम छोट -छोट ख़ुराक म योग कया जाने वाला ज़हर है?”
“ भा य से, वो अपनी अं तम त थ के पार नकल चुका है।”

वो अपने कंधे पर ब ता लटकाए अपनी झोपड़ी क ओर जा रही थी। उसका दन भर का


जेबख़च तीखे नीबू और लाल मच के लेवर वाली उसक मनपसंद मसालेदार मूंगफली के
पैकेट पर ख़ म हो चुका था। पछले ह ते उसके बाप ने बॉलीवुड क जस नई फ़ म पर
फ़जू़लख़च क थी, उसी का एक गाना गुनगुनाते ए वो एक नई नया क ओर उड़ जाने
के बारे म सोच रही थी जहां ग़रीबी, बीमारी, बबाद और गंदगी नह होगी। चांदनी का
यान नशे म धु उस गु़ंडे क ओर नह गया था जो उसका पीछा कर रहा था।
अभी वो घर से कुछ मनट र थी और वो दा ओर दो झोप ड़य के बीच एक
बना खड़क क गली म मुड़ी थी। वो वीरान इलाक़े वाले मोड़ के क़रीब ही प ंची थी क
नशेड़ी ने पीछे से उसे कंध से पकड़ लया। वो पलटकर ठ क उसके सामने आ गई और
मूंगफ लयां ज़मीन पर गरकर बखर ग ।
वो उसक छा तयां पकड़ने के लए आगे बढ़ा। उसक बदबूदार सांस से चांदनी
को उबकाई आने लगी और वो च लाई, ले कन कसी चीज़ ने उसक आवाज़ को
नकलने से रोक दया। ये नशेड़ी का हाथ था। उसने चांदनी को घुमाकर उसके मुंह पर हाथ
रख दया था और सरे हाथ से उसे छू रहा था। वो अपनी कठोरता को पीछे से चांदनी के
शरीर से छू रहा था जो ख़ुद को उसक वासनामय गर त से छु ड़ाने क भरपूर को शश कर
रही थी।
चांदनी ने अपना मुंह खोला और उसक उं ग लय के कुछ मांस को जकड़कर ज़ोर
से काटा। उसने दद से च लाते ए ज द से उसे छोड़ दया। वो पलट , युवक क आंख
म दे खकर मु कुराई, और उसने नशाना साधकर उसक टांग के बीच लात मारी। वो
अपनी गो लय को पकड़े दद से दोहरा हो गया और उसे गा लयां बकने लगा।
चांदनी मु कुराई। उस एक ण के लए कमज़ोर लड़क ग़ायब हो गई थी। वो
बोली, “अगली बार मुझे छू ने क को शश करेगा, तब तक म इतनी ताक़तवर हो चुकूंगी क
म बस तुझे ब धया करने के आदे श ं गी।”
फर वो सुबकती ई घर क ओर दौड़ गई।

“मुझे वो चा हए,” गंगासागर ने कहा। “मुझे बुरी तरह उसक ज़ रत है।”


“पर गंगासागरजी, चांदनी सोलह साल क हो चुक है। मुझे अब उसक शाद
करनी है। म उसे आपके साथ कैसे छोड़ सकता ं?” गु ता ने पूछा।
“ या मने अपने सारे वादे पूरे नह कए ह?” गंगासागर ने थोड़ी री पर नए कूल
और अ ताल क ओर इशारा करते ए कहा। “और फर, एक दन वो बेहद ताक़तवर हो
जाएगी। तु ह उसपर नाज़ होगा। म वादा करता !ं ”
“वो पाट के अंदर या काम करेगी?”
“ फ़लहाल तो म चाहता ं क वो अपनी श ा वदे श म पूरी करे। वापसी पर वो
पाट क एक साधारण कायकता होगी। वो ऐसे े के दौरे करेगी जहां बाढ़, अकाल,
सूखे और भूकंप जैसी ाकृ तक आपदा से लोग बेघर हो गए ह । वो कायकता के
बीच लोक य होने के लए उनके साथ मलकर काम करेगी। वो एक राजनी तक और
सामा जक मंच तैयार करेगी जस पर वो खड़ी हो सके।”
“आप मुझसे और या चाहते ह, गंगासागरजी?”
“म चाहता ं तुम उसे गोद लए जाने क इजाज़त दे दो।”

“आप पागल ह या, गंगासागरजी? उसके अपने जी वत मां-बाप ह और आप चाहते ह क


वो नए मां-बाप बना ले? उसके वतमान मां-बाप म या ख़राबी है?” पानवाला गु ता
च लाया और पान क पीक उसके मुंह से नकलने लगी।
“म चाहता ं इकरामभाई उसे गोद ले ले।”
“आप पागल ह! म अपनी यारी बेट को एक मुसलमान को गोद दे ं ? नह !
हज़ार बार नह !”
“वो सफ़ नाम क द क होगी। रहेगी वो तु हारी ही बेट ।”
“पर ऐसी अजीब योजना क ज़ रत या है?”
“अगर इकरामभाई ने उसे गोद ले लया, तो मेरे तीन बड़े उ े य पूरे ह गे। एक,
वदे श म उसक पढ़ाई का ख़च इकरामभाई उठाएगा। दो, इकराम उसे एक बेट और
वाभा वक उ रा धकारी के प म दे खेगा। और तीन, इससे उसे भारत म ापक
वीकृ त मलेगी—मु लम मां-बाप क ह बेट । अदभुत राजनी तक स म ण,” उसने
वचार कट कया।
“ले कन अगर उसे उसने गोद ले लया, तो वो मेरी बेट नह रहेगी,” गु ता बसूरने
लगा।
“शरीयत—मु लम पसनल लॉ—गोद लेने को मा यता नह दे ती है।”
“तो वो कस तरह गोद लेगा अगर उसका अपना क़ानून इसे मा यता नह दे ता
है?”
“उसे द वानी अदालत म सा बत करना होगा क गोद लेना उसके ख़ास े ीय
समुदाय का रवाज है।”
“और इसक अनुम त है?”
“नह । गोद लेना पंजाब, सध, क मीर, राज ान और म य दे श के ब त से
मु लम वग म च लत है। ले कन ये उ र दे श के मुसलमान म आम नह है। इकराम
अदालत म कुछ सा बत नह कर सकेगा।”
“म समझा नह । आप चाहते ह क वो उसे गोद ले ता क उसके अपने धा मक
क़ानून के साथ-साथ द वानी अदालत भी गोद लेने को र कर दे ?”
“ ब कुल। गोद लेने को वैध नह ठहराया जा सकेगा, इस लए वो तु हारी ही बेट
रहेगी। ले कन भावना रहेगी और राजनी त भावना और तीक का ही खेल है। वो दो
महान धम — ह व और इ लाम— क एकता का तीक होगी।”
“इकरामभाई उसे गोद लेगा ही य ?”
“ य क वो उसे ह वोट दलवाएगी, जस तरह वो उसे मु लम वोट दलवाएगा!
ये एक तीका मक र ता होगा।”

“नह , नह , नह । हज़ार बार—नह ! म इकरामभाई क बेट नह बनूंगी।”


“चांदनी। सुनो—”
“नह । गंगा अंकल, म जानती ं वो आपके राजनी तक सहयोगी ह, ले कन मेरे
एक अ े पता और यार करने वाली मां ह। म इकरामभाई क बेट नह बनूंगी।”
“म तुमसे अपने मां-बाप को छोड़ने को नह कह रहा। तु हारे मां-बाप तु हारे मां-
बाप ही रहगे। इसे कोई कभी नह बदल सकता। म बस तु हारा राजनी तक योरा तैयार
कर रहा ,ं मेरी ब ी—”
“ले कन म अपने मां-बाप को कैसे छोड़ सकती ं? ये ब त बड़ी क़ मत है!”
“तुम भा यशाली हो क तु हारा बला कार नह आ, चांदनी,” गंगासागर ने शांत
भाव से कहा।
“भा य का इससे कोई संबंध नह था।”
“ले कन तु हारी जगह अगर कोई और होता? जानती हो भारत म हर आधे घंटे म
एक म हला का बला कार होता है?”
“नह । म कभी नह —”
“जानती हो हर दो घंटे म एक म हला क ह या होती है—आमतौर पर यादा
दहेज न लाने के लए?”
“हां—मेरा मतलब—नह —मुझे नह पता—”
“ या तुम इन आंकड़ का भाग बनना चाहोगी, चांदनी?”
“नह , गंगा अंकल।”
“ या तुम नह चाहत क तुम दे श पर शासन करो? श शाली बनना नह
चाहत ? नह चाहत क हमेशा मद के रहमो-करम पर न रहो?”
“हां।”
“ या तुम नह चाहत क तुम इस गंदगी और ग़रीबी से बाहर नकलो जो तु ह घेरे
ए है?”
“हां।”
“ या तुम सव े अंतररा ीय श ा ा त करके अपने कै रयर को आगे बढ़ाना
नह चाहत ? अपनी ज़दगी नह बनाना चाहत ?”
“हां।”
“तो जैसा म कहता ं कर लो! इकराम को ख़ुद को गोद लेने दो!”
लड़क ने ख़ामोशी से सहम त म सर हला दया और गंगासागर मु कुरा दया।
अब उसे सु न त करना था क इकराम का वो जसे चांदनी का पीछा करने और
आतं कत करने का काम स पा गया था, अपना मुंह बंद रखे।
“आ द श , नमोनम:; सवश , नमोनम:, थम भगवती, नमोनम:, कुंड लनी
माताश ; माताश , नमोनम:,” वो धीरे से बड़बड़ाया।
अ याय पांच
लगभग 2300 वष पहले

मानव मलमू क गंध ब त तेज़ थी। प र का कठोर फ़श ख़ून, पसीने, मू और मल क


गाढ़ क चड़ से फसलना हो रहा था। धनानंद के कारागार प रसर क बदबूदार कोट रकाएं
यातना दए जा रहे बं दय क चीख़ के साथ अपने नए आगंतुक क घोषणा कर रही थ ।
जलती ई कुछ मशाल का काश टे ढ़े-मेढ़े ढं ग से कट उन पथरीली द वार का ब त कम
ही भाग दखा पा रहा था जन पर तरह-तरह क ज़ंजीर और बे ड़यां लटक ई थ ।
म लन कोठरी का दरवाज़ा धड़ाके से बंद आ, तो चाण य को अपने पैर पर कुछ
रगता आ सा महसूस आ, शायद कोई सांप। उसने तेज़ी से अपना सरा पैर रपट ले
ाणी पर मारा और उसे तब तक दबाए रखा जब तक क सांप अ वचल नह हो गया। वो
काफ़ दे र तक वह खड़ा अपनी आंख को अंधेरे का आद करने क को शश करता रहा।
उसक पुत लयां फैल तो उसने दो चूह को मांस के एक टु कड़े के लए लड़ते दे खा। ब त
संभव था क ये मांस का टु कड़ा कसी मानव का हो।
‘कोई अपनी गुदा को सौ बार भी धो ले तो भी वो घनौनी ही रहेगी,’ चाण य ने
सोचा, ‘और धनानंद भले ही ा ण को हज़ार उपहार दे दे ले कन वो फर भी ही
रहेगा!’ चाण य ने सबसे कम गंदा कोना ढूं ढ़ा और नम द वार से टे क लगाकर बैठ गया।
कोठरी म कोई खड़क नह थी। वायुसंचार नाम क चीज़ ही नह थी। उसने आंख बंद क
और अ व प र तय से लड़ने के लए े य ॠ ष दं डायण ारा सखाया आ
ाणयाम करने लगा।
अ या शत प से उसने एक लक क आवाज़ सुनी और गेट से आती काश
क एक लहराती करण दे खी। ये हाथ म तेल का द या लए एक बौना था। उसने ज द से
ह ठ पर उं गली रखकर चाण य को ख़ामोश रहने का संकेत दया। फर हाथ के इशारे से
उसने चाण य को अपने पीछे आने को कहा।
बौना उसे द वार के साथ लगे एक अ यंत संकरे गढ़े म ले गया। चाण य क कमर
म कसकर र सी बांधते ए बौने को जगह क तंगी का अहसास नह हो रहा था। चाण य
नह जानता था क र सी का सरा सरा कहां है। अचानक उसे एक झटका सा लगा और
उसने अपने पैर ज़मीन से उठते महसूस कए। वो कसी सुरंग म था जो बेहद तंग और
संकरी थी। ऊपर चढ़ते ए, चाण य का चेहरा, जांघ और हाथ सुरंग के कनार से टकरा
रहे थे और या तो घषण से जल रहे थे या खरोच से उनम ख़ून बह रहा था। कुछ समय बाद
जो उसे अनंत सा लगा था, उसे ठं डी हवा महसूस ई और उसने बहते पानी क आवाज़
सुनी। वो वापस गंगा कनारे प ंच गया था।
वो अपने शरीर म बंधी र सी को ख चते बौन के एक पूरे दल को दे खकर च क
गया। उनका अगुवा आगे बढ़ा और बोला, “घबराएं नह , आचाय। हमसे का यायनजी ने
मदद करने को कहा था। वो चाहते थे क हम बौने कारागार से भाग नकलने क ाचीन
सुरंग का योग कर। जैसा क आपने दे खा, ये सुरंग ब त संकरी है—जब क हमने इसे
आपके लए चौड़ा कया है।”
“म तु हारे और का यायनजी के त आभारी ं, ले कन तुम कौन हो? तुम लोग
आजी वका के लए या करते हो?” संकट म भी ज ासु चाण य ने पूछा।
“मगध म बौन का सदा से एक ब त मह वपूण काम रहा है, आचाय। हम
सामा यत: कोष के पहरेदार रहे ह। जैसा क आप जानते ह, अ धकतर राजक य कोष
छपे ान पर होते ह और उनके ग लयारे इस तरह से गु त होते ह क वहां चोर और लुटेरे
नह प ंच सक। ऐसे ान के लए हम नाटे लोग आदश र क होते ह।”
“ले कन तुम तो राजा के सेवक हो। फर तुमने मेरी सहायता य क ?”
“हमारी बड़ी इ ा अपने य भूतपूव महामं ी शकतारजी क सहायता करने क
थी, ज ह ने राजक य कोष क ापना क और हम बौन ारा उसक सुर ा क णाली
ारंभ क । वो कई वष से यहां बंद ह। हम कई महीन से ख़ामोशी और ढ़ता के साथ
इस सुरंग को चौड़ा करने का काम कर रहे थे और आपसे कुछ ही ण पूव हम उ ह मु
कराने म सफल रहे थे। आपको बाहर नकालना हमारा अगला काम था। का यायनजी
और सेनाप त मौय ने हम इस काय के लए इक ा कया था।
“सेनाप त मौय? वो धनानंद के व काम कर रहे ह?”
“बेहतर होगा क वो वयं ही आपको बताएं, ीमान।”
“महामं ी शकतारजी कहां ह?”
“उ ह प प लवन ले जाया गया है जहां सेनाप त मौय उनक ती ा कर रहे ह।
उ ह राजा से सुर त रखना ज़ री है और इसके लए सेनाप त मौय के श वर से बेहतर
कोई ान नह है। आचाय, आपको भी तुरंत ही प प लवन जाना होगा। ख़तरे क घंट
बज चुक होगी और राजक य र क आपक खोज आरंभ कर चुके ह गे। एक घोड़ा
आपक ती ा म है।”
“ले कन का यायनजी का या होगा? मुझे उनसे मलकर धनानंद के राजदरबार म
अपना ोध कट करने के लए मा मांगनी है,” चाण य ने कहा।
“वो आपको अ तरह जानते ह। वो भी सचाई और याय के प धर ह। ले कन
उनका व ास है क वो धनानंद और उसके घनौने शासन को मटाने के लए बाहर के
बजाय अंदर रहकर अ धक काय कर सकते ह। वो कहते ह क आप वो चीते ह जो धनानंद
पर बाहर से आ मण करगे जब क वो धनानंद के पेट म तूफ़ान खड़ा करने वाला क ड़ा
मा ह!”
अंधेरी रात—जो काफ़ हद तक उसी रात जैसी थी जब चाण य अपने पता का
अं तम सं कार करके भागा था—क ख़ामोशी म वो घोड़े पर सवार होकर प प लवन के
लए चल पड़े।

वो प प लवन, जो एक झरने के कनारे कुछ झोप ड़य और म क ट से बने मकान


का समूह मा था, प ंचे तो सवेरा होने म कुछ घंटे शेष थे। बौने घुड़सवार उसे एक थोड़े
बड़े मकान म ले गए। सेनाप त जाग रहे थे और कसी से बात कर रहे थे जो इस दल को
आता दे खते ही उठकर चला गया।
सेनाप त मौय को चाण य को सुर त दे खकर राहत मली। वो आचाय के सामने
झुके और बोले, “मगध को आपक आव यकता है, हे बु मान श क। मुझे अपनी
मातृभू म को उन ज क से मु दलाने म सहायता क जए जो इसका र चूस रही ह!”
“अभी इसके लए उपयु समय नह है, सेनाप त। इसे इ तहास के प म दज
कराने वाली उपल यां केवल वो ह गी ज ह गहन सोच- वचार और तैयारी के साथ कया
जाएगा।”
“म आपके मागदशन क ती ा क ं गा, स मानीय श क। ले कन आइए, आप
थके ए ह गे। और आपके घाव और खर च को सफ़ाई क आव यकता होगी। म अपनी
प नी से क ंगा क वो आपको साफ़ कपड़े और ना ता द। कृपया मेरे साथ आइए, म
आपको बता ं क आप कहां नहा सकते ह।”
‘एक वृषल ारा मेरी आशा से बेहतर वहार,’ चाण य ने मन ही मन सोचा।
मौय को चाण य जैसे ा ण ारा वृषल—एक जा त ब ह कृत य—माना जाता था।
मौय के पता ने ह व के कड़े वण म को यागकर महान श क गौतम बु का रा ता
अपना लया था। सेनाप त वापस ह व म लौट आए थे ले कन उ ह वृषल कहकर हमेशा
ह घृणा का नशाना बनाया गया।
नहाने, व बदलने और सवेरे क पूजा के बाद, चाण य मौय क झोपड़ी के
बाहर छोटे से बरामदे म बैठ गया। सेनाप त क प नी ने उसके सामने वार के हलवे और
गम ध का साधारण सा ना ता रख दया था। सूरज अभी नकला ही था और बाहर
उपवन म मोर नाच रहे थे, जनके इं धनुषी नीले-हरे पंख फैलकर उनक रह यमयी ढं ग से
सुंदर पंखदार आंख दखा रहे थे। ये मोर का दे श था, और मौय का पा रवा रक नाम भी
मोर पर ही था।

घर के बाहर छोटे -छोटे लड़क का एक दल भू मकाएं नभाने के खेल म त था। उनम से


एक ने अपने सर पर एक माल बांधा और उसम मोर का पंख लगा लया था। वो एक
बड़े से प र पर बैठा झूठमूठ का स ाट था। उसके आसपास खड़े शेष लड़के आम
नाग रक या दरबार के अ धकारी थे।
“ यान दो! संसार के स ाट, बु मान और कृपालु महाराज चं गु त का दरबार
आरंभ हो चुका है। आओ और अपनी बात कहो!” महामं ी क भू मका नभा रहा और
राजा के नकट खड़ा एक लड़का घुरघुराया।
“हे महान राजा | म संकट म ं। मेरे पड़ोसी ने अपना कुआं मुझे बेचा था ले कन
वो अभी तक उससे पानी नकालता है। कृपया उसे रोक,” पी ड़त क भू मका कर रहे एक
लड़के ने वनती क ।
“कुआं बेचने वाला कौन है?” छोटे से राजा ने पूछा।
“म ं, महाराज। ले कन मने इसे अपना कुआं बेचा था, उसके अंदर का पानी
नह । कृपया याय कर,” थोड़ी बड़ी आयु का एक लड़का बोला।
बड़े लड़के को संबो धत करते ए राजा ने शानदार ढं ग से कहा, “तुमने ठ क
कहा। तुमने कुआं बेचा था, पानी नह । इसका अथ है क तुमने कसी और के कुएं म
अवैध प से पानी रखा आ है। कृपया उसे ख़ाली कर दो! अगला मामला!”
चाण य हंस रहा था। वो ये नाटक बड़ी दलच ी से दे ख रहा था। उसने भी इस
खेल म भाग लेने का नणय कया। वो उस बरामदे से उठा जहां वो बैठा आ था, और हाथ
जोड़कर राजा के सामने जा खड़ा आ।
“हां, ा ण, तुम या चाहते हो?” लड़के ने गंभीरतापूवक पूछा।
“हे महान राजा, म एक नधन ा ण ं। मुझे य करने के लए ध और घी
चा हए होता है, ले कन मेरे पास गाय नह है। कृपया मेरी सहायता कर, हे दे श के र क,”
चाण य ने गंभीरता से कहा।
“कोषा य ! ा ण को एक गाय दे दो,” राजा ने आदे श दया और एक क पत
अ धकारी ने आगे आकर चाण य को एक कंकरी— गाय क ानाप —दे द ।
“ले कन मेरे पास इसका भुगतान करने के लए पैसा नह है, मेरे राजा,” चाण य
ने कहा।
“हे ा ण। अगर दे वता के त आपके चढ़ावे अपया त ह गे, तो मेरे रा य क
दानशीलता कैसे पया त होगी? और य द मेरा रा य समृ नह होगा, तो म कर कहां से
ा त क ं गा? और अगर कर नह होगा, तो कोष और सेना का या होगा? सेना नह
होगी, तो रा य क र ा कौन करेगा? इस लए, म कोई अनु ह नह कर रहा ं। म तो बस
अपनी समृ को सु न त कर रहा !ं ” बु जीवी लड़के ने समझाया।
चाण य मु कुराया और उसने लड़के को आशीवाद दया। “तुम कौन हो, व स?”
उसने पूछा।
“म चं गु त ं। सेनाप त मौय का पु ।”

“ या म आपको शकतारजी से मलवाने ले चलू?ं ” सेनाप त ने घर से नकलते ए पूछा।


चाण य ने सर हलाया। अपने पता के सबसे य म —ऐसे साथी जनके लए चणक
ने अपनी जान तक दे द थी—से मलने का समय आ गया था।
चाण य ने जस वृ को दे खा वो जीण- ीण था। बरस के य, जीने क म लन
पर तय , मानव योग के लए अनुपयु भोजन, बीमारी, और ू र दमन ने भूतपूव
महामं ी पर अपना भाव दखाया था। चाण य को शकतार एक भ और प र कृत
सामंत के प म याद थे, जो हमेशा े तम रेशम के कपड़े पहनते थे और सोने व हीरे के
ब मू य शुभंकर , अंगू ठय और माला से सुस त रहते थे। वो कभी रा य के सरे
सबसे श शाली रहे को बड़ी मु कल से पहचान पाया।
चाण य ने शकतार के सामने दं डवत कया और वृ ने उसे उठने को कहा।
चाण य ने उठकर शकतार के चेहरे को दे खा, तो अ सी वष य वृ क आंख म आंसू थे।
उ ह ने हाथ आगे बढ़ाकर चाण य के सर पर रखा और उसे नेहपूवक आशीवाद दया।
“तुम मेरे एकमा पु बचे हो, चाण य। मेरे सारे वा त वक पु मर चुके ह। और
मेरी बेट —सुवा सनी— जसे तुम ब त यार करते थे, मृत से भी बदतर है। तु हारे पता ने
ये वषय कभी छे ड़ा नह पर म जानता था क दोन प रवार को एक करने के लए वो
चाहते थे क तु हारा और सुवा सनी का ववाह हो जाए।”
चाण य ख़ामोश रहा।
“पता नह मेरी कुंडली म न के कौन से संयोजन ने इस अंतहीन संकट को
खड़ा कया है? मेरी प नी, मर गई; मेरा सव े म चणक, मर गया; मेरे बेटे, मर गए;
मेरी बेट , रा स क रखैल; मेरा शरीर, टू टा-फूटा और कमज़ोर; रा य—एक मनो वकृत के
हाथ म!” वृ बोलते गए और उनका ख बहता चला गया।
चाण य ने शकतार का हाथ पकड़ा और कहा, “संकट ज द ही समा त होगा। म
वादा करता ं। ले कन आपको अपनी इस थापूण न द से जागना होगा। इंसान को
चा हए क वो जागे, सूय क करण को दे खे और महसूस करे क ये सब बस एक
भयानक सपना था। मेरी सहायता क जए, शकतारजी और सेनाप तजी।”
“मेरे पास ऐसा या है जससे तु हारी सहायता कर सकूं, चाण य?” सेनाप त
मौय ने पूछा।
“चं गु त।”
“और मेरे पास या है जो तु हारी सहायता कर सकता हो?” शकतार ने पूछा।
“बौने।”

मगध का राजा जानता था क सेना पेट के बल चलती है। राजकोष सेना से भी मह वपूण
था य क लड़ने के यं को चलाने वाला धन कोष ही था। खुदाई पर रा य का पूण
नयं ण था, इस लए खुदाई म नकलने वाला सारा सोना, चांद और ब मू य र न वत:
ही राजकोष म चले जाते थे।
राजकोष क सुर ा कई तरीक़ से क जाती थी। राजकोष हमेशा राजधानी म
त होता था ले कन उसका नमाण इस ढं ग से कया जाता था क ब मू य धातु और
प र तक प ंच भू ार और हटाई जा सकने वाली सी ढ़य वाले तीन भू मगत तल के
मा यम से ही हो सकती थी। इस भू मगत ढांचे क द वार और फ़श पर प र क ब त
मोट परत का ख़ोल रहता था ता क य द कोई मह वाकां ी सधमार चाहे भी तो वहां तक
प ंच को ायी प से बा धत पाए। कोष सामा यत: राजधानी के उ री भाग म त
होता था, राज नवास और नगर के मुख मं दर के बीच। पहरेदार के एक के पीछे एक वृ
दन-रात राजकोष क सुर ा करते थे, जब क धनुष और वषैले तीर लए नशानेबाज़
राजकोष के चार ओर असं य बुज पर तैनात रहते। भौ तक संतु के खोजी कसी भी
चोर को तुरंत मौत ही मल सकती थी।
सुर ा का सरा तरीक़ा था राजकोष का वक करण और सु र ान पर गु त
कोष को नमाण। सामा यत:, ऐसे सु र गु त कोष का नमाण दं डत अपरा धय ारा
कराया जाता और फर उ ह तुरंत ही ाणदं ड दे दया जाता। ऐसे गु त भंडार का पता
राजा और महामं ी के अ त र कसी को नह होता था। अ सर, वा त वक भंडारगृह
संकरे गु त ग लयार वाले भू मगत गड् ढ़ म बनाए जाते थे। इनम से ब त से जानबूझकर
इस तरह बनाए जाते क एक वय क आदमी उन तक न प ंच सके और ाय: इन भंडार
तक प ंचने का एकमा तरीक़ा श त बौन को भेजना होता था। सामा यत: कोष पर
घनी वन त का छलावरण होता, और चोर को हतो सा हत करने के लए वहां सांप,
ब ू और जंगली जानवर छोड़ दए जाते थे।
चाण य जानता था क भूतपूव महामं ी शकतार धनानंद के कसी भी गु त भंडार
के बारे म जानते ह गे, और उन तक प ंचने क कुंजी का यायन के बौने ह गे।

प प लवन के उ र म जंगल वशाल और भयानक थे। याज़ क परत क तरह वृ ाकार


जंगल एक के बाद एक दखाई दे ते और हर जंगल पहले से अ धक अंधकारपूण और
नजन लगता। सबसे बाहरी परत, लकड़ी, जड़ी-बू टय और औषधेय पौध के उ पादन के
योग म लाई जाने वाली उपजाऊ झा ड़य क थी; थोड़ा अंदर धमा मा के आ म और
तप के लए आर त जंगल थे; और अंदर जाने पर राजा और सामंत ारा शकार के
लए योग म लाए जाने वाले मैदान मलते थे; इससे अगली परत हा थय के लए
आर त थी जसका बंधन सेना के योग हेतु हा थय के जनन के लए रा य ारा
कया जाता था; और अंत म, सबसे अंदर के वृ म व यजीव अभयार य होते थे जहां शेर,
बाघ, त ए और चीते आज़ाद घूमते थे। शकतार ारा बताया गया गु त राजकोष इसी
अंतभाग म त था।
घोड़ को कम से कम एक योजन—चार योजन—चार मील—पीछे तरोताज़ा
पहरेदार के एक द ते के साथ छोड़ दया गया। घनी वन त और लगभग कसी भी माग
क अनुप त ने घोड़ के लए और आगे जाना असंभव बना दया था। चाण य,
सेनाप त मौय और जीव स —का यायन का एक भरोसेमंद सहयोगी—और उनके साथ
बौन का दल धीरे-धीरे ले कन ढ़ता के साथ आगे बढ़ रहे थे। शकतार ारा दया गया
न शा काफ़ उपयोगी स हो रहा था और जंगल के नरंतर बदलते प रवेश के बावजूद
अ धकतर पहचान अभी भी मौजूद थ ।
इस अ भयान के लए दल का चुनाव ब त सावधानीपूवक कया गया था। अगर
कोष क तलाश म ब त से लोग ले जाए जाते, तो बात धनानंद के कान तक प ंचने का
जो खम रहता। अगर दल को छोटा रखा जाता, तो जंगली जानवर ारा मारे जाने और
लूट का माल लाने के लए कम हाथ रह जाने का ख़तरा होता।
वो प र के एक ढे र के नज़द क प ंच रहे थे जन पर बेल इस तरह उग आई थ
जैसे उ ह ने उस पूरे े को आ ामक ढं ग से अपने णयातुर आ लगन म ले लया हो।
चाण य के हसाब से वो अब अपने ल य के ब त नकट थे, ले कन इससे पहले क वो
अपने न शे को दे खता, उसे एक तीर के सरसराने क आवाज़ आई और उसक गम अपने
बाएं गाल को छू ती महसूस ई। तुरंत सतक होते ए, उसने आ मणकारी के साथ लड़ने
के लए अपनी तलवार उठा ली, और दे खा क वो और कोई नह ब क जीव स था, जो
अभी भी—अपनी कसी और तनी ई कमान म—उसक दशा म एक और तीर ताने ए
था।
कोई भी साधारण जीव स को संदेह क से दे खता, ले कन चाण य
ने ऐसा नह कया। उसने जीव स क आंख से पहचान लया क उसका श भले ही
उसक दशा म हो, ले कन उसक नज़र उसके पार कसी को दे ख रही थ । चाण य शांत
भाव से पलटा और उसने एक वशाल चीते क लाश दे खी जसे चाण य के र क ने
छलांग के बीच ही मार गराया था। वो सुंदर पशु ज़मीन पर पड़ा था और तीर उसक गदन
म आधा धंसा आ था।
चाण य पलटा, उसने अपनी तलवार यान म वापस डाली, और हाथ उठाकर
जीव स को आशीवाद दया। कोई श द नह बोला गया, मूकभं गमा ारा भी हज़ार
श द के अथ का आदान- दान हो गया। उस दन से जीव स आचाय के सबसे
भरोसेमंद सा थय म से हो गया।
वो चोरी-चोरी प र क ओर रगते गए, जो काई क मोट परत और बेल से ढके
ए थे। चाण य ने सेनाप त मौय को अपने कपड़ से वो बुरादा नकालने का नदश दया
जो उसने अपनी दे खरेख म बनवाया था। मौय ने वो बुरादा बौन को दे दया जो मलबे म
हर ओर उसे थोड़ा-थोड़ा छड़कने लगे। ये वा तव म पुद ने के तेल, सड़े ए अंड , लहसुन,
अजवाइन के तेल और गंधक का म ण था जो अ यंत बदबूदार था। इनम से अंड और
लहसुन जैसे अवयव से ा ण परंपरागत प से र रहते थे, ले कन फर भी बौन के
ारा इ ह पीसे और सुखाए जाने तक चाण य उप त रहा था।
जैसे ही हवा म इस भयानक म ण क बदबू फैली, अचानक सरसराहट क
आवाज़ आने लगी और बी सय सांप प र से रगते ए नकले और चाण य के सप-
वकषक से र भाग गए। चाण य ने सर हलाया, और सेनाप त मौय और जीव स उस
भू ार के रा ते को साफ़ करने के लए आगे बढ़ गए जो भू मगत सुरंग क भूलभुलैया म
ले जाने वाला था।
प र और वन त के आवरण म छपा भू ार ब त ही छोटा था— न त प
से पं ह उं गल से छोटा, लगभग एक फ़ट। सेनाप त मौय क गदा ने ाचीन ताला-तं को
तोड़ दया और कुछ ही मनट के अंदर वो गहराइय तक ले जाने वाली एक अंधकारपूण
और खड़ी सुरंग दे ख सकते थे। एक प र म एक र सी बांधी गई और एक बौना अपने
सर पर मशाल बांधकर उसके अंदर गया। कुछ मनट बाद वो च लाया, “ये ख़ाली है! मुझे
कोई और दरवाज़ा ढूं ढ़ना होगा। अगले आदमी को भेजो।” अब बढ़ई के सामान के साथ
एक सरे बौने को भेजा गया। कुछ ही दे र बाद हथौड़े क आवाज़ से पता चला क उ ह ने
पहले तर के अंदर भू ार तलाश लया है। ज द से एक तीसरा बौना एक र सी का पाश
लेकर नीचे उतरा जसे सरे भू ार से नीचे जाने के लए योग कया जाने वाला था।
“ल मी क जय!” अंदर से एक बौना च लाया। “हम मुख परत पर प ंच गए!”
चाण य, सेनाप त मौय और जीव स ने एक- सरे को दे खा और मु कुराए। कुछ और
बौन को नीचे भेजा गया ता क नदश और साम ी भेजने के लए एक सारण टोली बनाई
जा सके। “अंदर जो कुछ है उसे छोट -छोट मा ा म ऊपर भेजो,” चाण य ने नदश दया।
“हमारे पास सारा माल ले जाने के लए पया त आदमी नह ह। हम अपने यास सबसे
मू यवान और ह के माल पर क त करने चा हए।” व भ कार के सं ह उनके सामने
आने लगे—हीरे, मोती, मा णक, नीलम, शु टक, लहसु नया, चांद के पण और तांबे
क का कणी।
“गाय के गोबर और तल के तेल क तलाश करो!” चाण य ने नदश दया।
सेनाप त और जीव स ने आचाय को इस तरह दे खा जैसे वो पागल हो गया हो।
ले कन ऐसा था नह , य क ज द ही सारण टोली ारा तल के तेल म म त गाय के
गोबर क ट भेजी जाना आरंभ हो ग । “गाय के गोबर से धोखा मत खाओ,” चाण य ने
अपने सा थय को समझाया। “सोने को ज ते के ारा शु कया जाता है और अ त र
ज ते को गाय के गोबर ारा हटाया जाता है। अगर सोना भुरभुरा हो, तो उसे तल के तेल
से मुलायम बनाया जाता है। इस लए, सोने को भंडार करने का आदश तरीक़ा ये है क उसे
गाय के गोबर और तल के तेल के म ण म लपेटकर रखा जाए। तु हारे सामने जो है वो
शु सोना है!
“पहली वरीयता सोने को दे नी होगी, जो क मू य म अ धक होता है और जसे
पैसे के प म योग करना आसान होता है। अगली वरीयता चांद के पण को दे नी है,
और अंत म हीरे और मा णक को। हम तांबे, मो तय , नीलम और टक को नह ले
जाना चाहगे। कृपया चंदन, अगर, धूप और कपूर जैसी कोष क अ य व तु को भी
नज़रअंदाज़ कर दे ना,” चाण य ने अपनी बात जारी रखी। मौय और जीव स कोष के
मामल म चाण य के ान क गहराई पर दं ग रह गए और उ ह ने पूछा, “आचाय, आप
एक धमा मा ह—एक स मा नत श क ह। आप धन क साम ी से य सरोकार रखते
ह?”
चाण य ने अपने सामने बनते ब मू य व तु के छोटे से पहाड़ पर नज़र टकाए
ए उ ह उ र दया, “मनु य को कस चीज़ के लए यास करना चा हए? काम, धम, अथ
और मो । ले कन वा त वकता ये है क अगर आप ग़रीब ह , तो न तो आपक प नी
आपको यार करेगी और न संतान, अगर नाग रक व ीय ो साहन या दं ड से े रत न ह
तो वो अपने कत पूरा नह करगे, और कौन मनु य मो क खोज म अपना सांसा रक
जीवन यागेगा अगर उसके प रवार के पास सहारे के लए धन न हो? म एक श क — ं
ले कन अथशा का श क। मनु य क आजी वका का ोत है धन, और इसे ा त करने
और बनाए रखने का व ान है राजनी त!”

चाण य और उसके साथी घोड़ पर चुर मा ा म धन लादे और साथ म सश पहरेदार


के साथ वापस प प लवन क ओर चल पड़े। उस शाम, गम के लए जलते अलाव के
सामने बाहर बैठे ए, चाण य ने ये वषय छे ड़ा। “सेनाप त, आपने अपना कत पूरा
कया है और अपना जीवन जी लया है। ले कन एक भ और समृ मगध का आपका
सपना चं गु त के मा यम से ही पूरा हो सकता है, जसम एक राजा बनने के सारे गुण
मौजूद ह। मुझे उसे त शला ले जाने द जए जहां म उसे शासन- बंध के लए तैयार कर
सकूंगा। इस बीच, आप उस ख़ज़ाने क सहायता से जो हमने ा त कया है एक सेना
तैयार करने म मेरी मदद कर सकते ह।”
सेनाप त ने चाण य के श द पर वचार कया और बोले, “आचाय। वो मेरा
इकलौता पु है। म उससे जदाई सहन नह कर सकता। या आप यह हमारे साथ नह रह
सकते?” चाण य मु कुराया। “काश एक रा य को एक कृत करना इतना ही सरल होता,
सेनाप त। इस समय भी गंधार क सीमाएं सकंदर क सेना के ारा आ मण के ख़तरे म
ह। अगर गंधार ढह गया, तो शेष भारत क भी बारी आ जाएगी। अगर दरवाज़ा खोल डाला
गया हो तो श ु को कैसे बाहर रखा जा सकता है? म अभी ा त कए धन से ऐसी सेना
खड़ी करना चाहता ं जो मैसीडो नयाई घुसपैठ से लड़ सके, और एक ऐसा ग द बनाना
चाहता ं जो उन छोटे -छोटे रा य को जोड़ सके जो कसी भी मु े पर एकमत नह होते ह
—मह वपूण मु पर भी नह ,” उसने बताया।
“य द ऐसी बात है, तो या म और मेरी प नी आपके और चं गु त के साथ
त शला चल?” मौय ने पूछा। “मुझे नह लगता ये अ ा रहेगा,” चाण य ने तक दया।
“य द आप नकट नह ह गे, तो चं गु त के पास सफलता क कह अ धक आशा रहेगी।
आप धनानंद के खुले श ु ह और उसके जासूस हमेशा आपक तलाश म रहगे। त शला
म सैकड़ छा के बीच पढ़ते ए चं गु त गुमनाम और ख़तरे से र रहेगा। और सबसे
अ धक, शकतारजी और का यायनजी, मुझे आपके मगध या इसके समीप रहने क
आव यकता है ता क चं गु त क वापसी तक धनानंद को वो क प ंचाने के लए जसका
क वो पा है, सड़क पर हमारे पया त आदमी रह।”
सेनाप त ने अपनी प नी को आवाज़ द जो घर के अंदर से बातचीत को सुन रही
थ । वो बाहर आकर हाथ तापने लग तो मौय ने उनसे पूछा क आचाय के सुझाव के बारे
म उनका या वचार है। उनके श द म एक स ी यन जैसा भाव था। “हम बु क
कुछ राख ा त करने वाले सौभा यशाली लोग म से थे। हम याद रखना चा हए क हमारे
पू य और वामी ने मो क तलाश म अपने सारे रा य को याग दया था। य होने के
नाते जीवन क र ा करना हमारा कत बनता है। अगर हम एक महान उ े य के लए
अपने बेटे को यागना है, तो ऐसा ही सही,” उ ह ने सरल भाव से कहा। “ ान के बना
ा ण या साहस के बना य समाज के कसी काम का नह होता।”

सेनाप त मौय मगध के श शाली शशुंग शासक महानं दन और उनक प नी, प प लवन
क यो ा जनजा तय —मो रया —के के मुख क इकलौती बेट मुरा के मलाप से
पैदा ए थे। हालां क सेनाप त मौय महानं दन के एक उ कृ उ रा धकारी बन सकते थे,
ले कन बूढ़े राजा के कई अ य पु थे जो इस भू मका के लए यादा उपयु समझे जाते
थे। ले कन मौय का कोई भी अ धक यो य भाई सहासन तक नह प ंच सका। वृ
महानं दन अपने नाई को ब त चाहते थे, जो क महाप नाम का एक चालाक और
चकनी-चुपड़ी बात करने वाला था। महापद्म एक य पता और शू मां का
अवैध पु था।
चालाक नाई महापद्म न केवल राजा का ब क उनक रानी सुनंदा का भी
कृपापा बना आ था। ज द ही वो राजा क हजामत बनाने के साथ-साथ रानी के साथ
संभोग करने लगा था। रानी के दोहन के बाद उसने रानी क सहायता से राजा का दोहन
करने का भी न य कया, राजा और सहासन के बाक़ सभी दावेदार क ह या करके।
एकमा जी वत एक छोटा सा लड़का—मौय—था जो ख़तरा बनने के लए ब त
छोटा था।
य प महाप एक नाई मा था, ले कन वो वल ण बु म ा का वामी था।
उसने मौय क तभा को पहचाना और अंतत: उ ह अपनी सेना का अ य बना दया।
महापद्म नरंकुश था, ले कन उदार था। उसके शासन म अपराध लगभग समा त हो गया
और वो छोटे -छोटे सामंत जो नरंकुश बन गए थे स ती के साथ कुचल दए गए। महापद्म
ने अ धकतर उ री भारत और द ण को जीता और हमालय से कुंतल तक, और यमुना
से पु तक, बड़े-बड़े े को अपने अधीन कर लया था और मगध को उ री भारत
का सबसे श शाली रा य बना दया था। य प वो एक य-शू था, ले कन उसने
ा ण और वर च, ा द और वष जैसे व ान गु को संर ण दया। उ तरीय
मता, श शाली सै या धकार, उ चत कर, वशाल सचाई प रयोजनाएं, और कुल
मलाकर उदारता और सहनशीलता का रवैया उसके शासन क मुख वशेषताएं थ ।
ये व णम युग उसके पु धनानंद के काल म नाटक य ढं ग से बदलने वाला था।
बगड़ैल बेटे ारा सेनाप त मौय को एक वशेषता के बजाय बोझ समझा गया। वो
जसने अ धकांश भारत को जीतने म महापद्म क सहायता क थी, अब वयं ही एक
भगोड़ा था—और भगोड़ा बना दया जाने के ोध से उबल रहा था।
चाण य को ोध पसंद था। ये एक अदभुत प से श शाली भावना थी और
इसे सही दशा दे कर इसका रचना मक उपयोग कया जा सकता था।
अ याय छह
वतमान समय

मस फ़ वरशैम ने उसे धीरे-धीरे ऊपर से नीचे तक दे खा। “म पूरी ईमानदारी बरतूंगी।


तु हारे कंधे घुमावदार ह, तु हारे घुटने कसे ए ह और तु हारा पेट नकला आ है।” ये
सघन श ण का एक और क दायी घंटा था। चांदनी ने झटके से अपने पेट को अंदर
ख चा। नतीजे म वो और भी अजीब सी दखने लगी। मस फ़ वरशैम ने ठं डी आह भरी।
बड़ी मु कल थी। चांदनी लंदन म मस फ़ वरशैम के फ़ न शग कूल म थी—और बुरी
तरह चुक गई थी। “तु हारा एक कंधा सरे से ऊंचा है और तु हारे पैर बाहर को नकलते
ह। तु हारी चाल लड़ कय जैसी नह है।”
चांदनी को कई बार खड़ा कया और बठाया गया और उसक हरकत का बड़ी
बारीक से अ ययन कया गया। “तुम ब त ान घेर रही हो। और खड़े होने पर अपने
कोण को दे खो। तुम अपने हाथ से खुजलाती भी ब त हो। तुम कुछ-कुछ चूहे जैसी
दखती हो। चूहा वन ाणी होता है। जब चलो तो अपने सोलर ले सस को आगे रखो
जो तु हारी ा के नचले भाग के आसपास कह होता है। अपने सर को ऊंचा और गदन
को लंबा बनाए रखो!” चांदनी के कंध को नीचा और सीधा रखने के लए उसक बांह के
बीच और पीठ पर एक छड़ी फराते ए मस फ़ वरशैम ने कहा।
पछले एक महीने से मस फ़ वरशैम लड़क क अं ेज़ी पर यान दे रही थ ।
उसक अं ेज़ी क यो यता, जो कानपुर के एक झोपड़प के कूल म ा त क गई थी,
उसके अपने मां-बाप को भा वत करने के लए अ थी ले कन इं लड म लोग से
बातचीत करने के लए कसी काम क नह थी। मस फ़ वरशैम उसे रोज़मरा क
मुहावरेदार अं ेज़ी म भावशाली ढं ग से और आ म व ास के साथ बात करना सखा रही
थ । ापक पा म उसक सुनने, पढ़ने, लखने और बोलने क यो यता म सुधार
लाने पर आधा रत था।
ले कन केवल भाषा जानना अपया त था। चांदनी को ये सखाया जाना भी ज़ री
था क छु री-कांटे का योग कैसे कया जाए–अगर कई तरह क कटलरी हो, तो कांटे,
चाकू या च मच का इ तेमाल पहले बाहर से करो; कसी पब म खाने का अ◌ॉडर कैसे
दया जाए—आप बता सकते ह क आज का सूप या है, लीज़?; कसी पाट का भाग
कैसे बना जाए—मेज़वान को तोहफ़े म दे ने के लए वाइन क बोतल या फूल या चॉकलेट
लेकर जाओ; रे तरां के बल का भुगतान कस तरह कया जाए—अगर बल म लखा हो
क स वस शा मल नह है, तो टप के प म दस तशत अ त र दे ना सामा य बात है;
चाय कैसे पी जाए—अगर केतली म खुली चाय हो, तो चाय पलटने से पहले कप पर
छलनी रखो; और कोन कैसे खाए जाएं—चाकू से कोन के दो टु कड़े करो, दोन ओर जैम
लगाओ, पहले म खन लगाने क ज़ रत नह है, फर सावधानीपूवक ऊपर गाढ़ म
फैलाओ। ऊपर और नीचे के भाग को अलग-अलग खाओ और लीज़ उ ह सड वच बनाने
क को शश मत करो।
“बात करते समय, अपने हाथ के हलने को धीमा और सु चपूण बनाकर रखो।
और जब बैठने लगो, तो कुस के सामने सही कोण पर खड़ी हो, अपने ऊपरी भाग को
मोड़ो, ख़ुद को नीचे करो और एक टांग को सरी के पीछे फंसा लो। ये सब धीरे-धीरे और
बना कसी आवाज़ के करना चा हए,” मस फ़ वरशैम ने लड़क को समझाया।
“जहां तक शारी रक संपक क बात है, तो इसे लेकर अं ेज़ अभी भी ब त
शम ले ह। अं ेज़ इस तरह हाथ मलाना पसंद करते ह जसम दे र तक चलने का भाव न
हो। “आप कैसे ह?” अ भवादन के अंत का सूचक होता है और इसम कोई भी बदलाव
नह होना चा हए। एक- सरे से अ तरह प र चत म हलाएं एक- सरे को एक या दोन
गाल पर कस कर सकती ह। ऐसा करते समय, म हला को ‘ मस कस’ करना चा हए,
कस करने वाली म हला कस करने क मु ा करते ए कस क जाने वाली म हला के
कान क दशा म उपयु आवाज़ करे। पु ष अ भवादन म म हला को कस कर सकते
ह, ले कन दोन नह सफ़ एक गाल पर,” मस फ़ वरशैम ने ह का-ब का सी हो चुक
लड़क को बताया।
अं ेज़ पागल ह।

अ◌ॉ सफ़ोडशायर इं लड के सबसे ख़ूबसूरत शहर म से एक था। चांदनी आठ सौ वष पूव


ा पत व व ालय क वा तुकला क भ ता और ऐ तहा सक मह व से व मत थी।
बॉडलीयन लाइ ेरी, रैड लफ़ कैमरा, शे ो नयन थएटर और ए मो लयन यु ज़यम क
इमारत एक- सरे म नबाध ढं ग से समे कत होकर इ तहास, सं कृ त, वतं सोच और
बौ क वतं ता का एक मादक सा म ण तुत करती थ । सारे नवागंतुक क तरह,
चांदनी पैदल कारफ़ै स टॉवर तक गई और फर हांफती ई हाई ट पर त
यू नव सट चच तक प ंची, और इन दोन ही ान से लुभावने शहर के अ वरल सुंदर
नज़ारे मलते थे।
ऑ सफ़ोड यू नव सट के प रसर म बखरे अनेक कॉलेज म ाइ ट चच कॉलेज
सबसे बड़ा और सबसे भ था। कॉलेज का ख़ूबसूरत चच अ◌ॉ सफ़ोड कैथी ल का भी
काम दे ता था। अ◌ॉ सफ़ोड के पूव म यूरोप क सबसे सुंदर सड़क थी—आकषक हाई
ट, जो अ◌ॉ सफ़ोड के सबसे मनोहर पाक —हे ड टन हल और साउथ पाक—के
नकट त थी। अ◌ॉ सफ़ोड क केवल इमारत ही भावशाली नह थ । ऐसा लगता था
जैसे ई र ने कृ त क सारी चुरता और स दय एक ही शहर को दान कर दया था।
एकड़ म फैले बल खाते चरागाह, घास चरते जानवर और थे स के चमचमाते झरने एक
यथाथ वग का सा य तुत करते थे।
मस फ़ वरशैम के फ़ न शग कूल ने चांदनी का आ म व ास तो बढ़ाया था,
ले कन अ◌ॉ सफ़ोड के लभ वातावरण म अचानक आरो पत कानपुर क एक झोपड़प
क एक शम ली और अंतमुखी लड़क क झप अभी कुछ समय तक बाक़ रहनी थी।
पै ड टन से सट ह ाज़– अ◌ॉ सफ़ोड म केवल म हला का कॉलेज—का उसका सफ़र
बड़ा भयावह था य क उसके मन म ये डर लगातार समाया आ था क अ◌ॉ सफ़ोड म
वो जस कसी से भी मलेगी, वो बौ क, आ थक और सामा जक प से उससे े
होगा। ले कन सड ह ाज़ जू नयर कॉमन म के म तापूण पा रवा रक माहौल ने उसे
आरंभ से ही सहज बना दया। उसे गाडन ब ग, वो सन म कमरा आवं टत कया
गया, जो क सट ह ाज़ के प रसर का भाग था। जब वो अपना सूटकेस ऊपर अपने
कमरे म लेकर जा रही थी, तो एक लंबी छरहरी लांड लड़क आगे बढ़कर सामान उठाने म
उसक मदद करने लगी। “हैलो। मेरा नाम जोज़ेफ़ न रचडसन है—म आट क मेजर ं।
मेरे याल से तुम वो भारतीय लड़क हो जसे मेरे बग़ल वाला कमरा दया गया है।”
“तुमसे मलकर अ ा लगा,” मस फ़ वरशैम के सघन श ण से ा त साहस
जुटाते ए चांदनी ने कहा, “और सामान उठाने म मेरी मदद करने के लए शु या।”
“कोई बात नह । तुम सामान वग़ैरा लगा लो तो हम लोग बटरी चल?” जोज़फ़ न
ने पूछा।
“बट— या?” चांदनी ने पूछा।
“बटरी सट ह ाज़ क टक शॉप है जहां टो ट , च स, हॉट चॉकलेट और चाय
मलती है। हम यादातर लड़ कयां तु ह वह मलगी। म तु हारा इंतज़ार क ं गी। आह! हम
प ंच गए। कमरे के साथ तु ह एक बेड और रज़ाई, एक डे क, दो कु सयां, एक सक, एक
कपड़ क अ मारी और एक दराज़ का चे ट मलता है—ले कन चादर तु ह अपनी लानी
ह गी। अगर तुम चाहो तो म तु ह एक अ सी जगह दखा सकती ं जहां से तुम चादर
ख़रीद सकती हो।” ज़दा दल जोज़ेफ़ न क मौजूदगी म चांदनी का डर और अवसाद तेज़ी
से घुलने लगा था। नया क सबसे स वाद- ववाद सं ा 1823 म ा पत ई थी।
इसे ऑ सफ़ोड यू नयन कहते थे और ये अ तीय साम ी और भावशाली ववादा द
बहस का मुख क रही थी। 1933 का स ताव, ‘ये सदन कसी भी प र तम
राजा और दे श के लए नह लड़ेगा’ 153 के मुकाबले 275 मत से पा रत आ था और
इसने मी डया म रा ापी रोष पैदा कर दया था। व टन च चल ने इस ‘शमनाक ताव’
क नदा घनौने, अधम, शमनाक घोषणाप के प म क थी। कई लोग का मानना था
क इसी ताव ने यूरोप पर हमला करने के हटलर के फ़ैसले को बल दान कया था।
अ◌ॉ सफ़ोड यू नयन के सद य ने इसक क़तई परवाह नह क क च चल और मी डया
या सोचते ह। वचार का वै भ य और वा दता हमेशा यू नयन क मूल सोच के
मुख त व रहे।
जोज़ेफ़ न और चांदनी यू नयन ारा अपने सद य के नए दल के वागत के लए
आयो जत समारोह म भाग ले रही थ । उनका प रचय अ य से करवाया गया, तो चांदनी
ने एक खुली बहस ारा मु समाज के नमाण म यू नयन ारा कए गए काय क शंसा
क । अ य ने उसे मु कुराकर दे खा और उससे हाथ मलाते ए कहा, “मु समाज वो है
जहां अलोक य होना सुर त हो, ले कन, बोलने क वतं ता के साथ सुनने क वतं ता
भी होनी चा हए!”
और चांदनी ने उसी ण फ़ैसला कर लया क यही उसका भी मूलमं रहेगा, और
वो बाक़ के नौ स खय के साथ राजनी तक शा ाथ क स मोहक नया क या ा पर
चल द ।

वाद- ववाद के अ य ने बृह तवार रात के समारोह का आरंभ बहस और मतदान


णाली के बारे म कुछ श द से कया। “दे वयो और स नो। इस वाद- ववाद क
अ य ता करना मेरे लए स ता का वषय है, य क नया म सरा कोई मु ा ऐसा
नह जो इतने लंबे समय तक चलने वाला और इतना वभाजक रहा हो। आज का ताव
है, इस सदन का व ास है क म हला को क़ानूनी प से समान वेतन का अ धकार
होना चा हए।” फर उ ह ने बहस क शु आत करने के लए पहले व ा यो
हे मगफ़ोड को बुलाया।
अ य व ा का प रचय दे ना ताव के प धर पहले व ा का काम था।
“ ीमान अ य जी, पहले व ा के प म आपके अ य अ त थय का प रचय दे ना मेरे
लए स मान का वषय है। वप क पहली व ा, चांदनी गु ता—संभवत:—भारत के
लए अ◌ॉ सफ़ोड क अगली धानमं ी पद क उ मीदवार ह। पछले कुछ वष म उ ह ने
बहस जीतने का एक बेदाग़ रकॉड क़ायम कया है, चाहे वो उनम व ास करती ह या
नह —जो क कसी भी राजनी त के लए एक मह वपूण यो यता है—और म ऐसा कहने
का साहस कर सकता ं क आज वो जो तक दे ने वाली ह, शायद उनके नजी वचार
उससे भ ही ह गे। ताव के प म मेरा साथ दे ने के लए सरी व ा ह गी, ए लज़ाबेथ
लटन। लटन, ायन एंड यारबरो म ए लज़ाबेथ का अपना काम पहले ही सु न त है, और
म क ंगा क वो इसक हक़दार ह। अ◌ॉ सफ़ोड के सबसे खर युवा दमाग़ा म से एक
ए लज़ाबेथ ताव के प म अपने वचार रखगी। उनके बाद वप के सरे व ा व टर
वॉ लसंगम आएंगे। व टर ने आ मारो पत वराम के पछले बारह महीने अमे रका म या ा
करते ए बताए ह और वो संसार के अ य भाग के लोग के बारे म अपने अनुभव से
े रत कुछ ताज़ा वचार तुत करगे। ीमान अ य जी, ये ह आपके अ त थ और उनका
वागत है।” लगभग पांच सौ लोग के ारा वन ढं ग से सराहना क गई।
“ ीमान अ य जी,” यो ने अपनी बात शु क , “री ेज़टे शन अ◌ॉफ़ पीपुल
ए ट, 1918 ने ेट टे न म म हला को मत दे ने का अ धकार दान कया। ले कन मज़े
क बात ये है क केवल उन म हला को ही बैलेट क पच पर च अं कत करने यो य
बु मान समझा गया जनक आयु तीस वष से अ धक हो और जो एक घर क वा मनी
ह । दस वष बाद क़ानून म संशोधन कया गया और इ क स वष से ऊपर क सभी
म हला को मतदान का अ धकार दे दया गया। या हम ख़ामोश खड़े रहकर ाकृ तक
श य क ती ा करनी चा हए थी क वो ग़लत को सही कर द?”
यो ने ोता म से कई म हला को सहम त म सर हलाते दे खा और
आगे बोला। “अ धकतर म हला के लए यु के बाद के वष के लाभ म त थे। वो
म हलाएं जो वमान और यु -साम ी के कारख़ान म काम करती थ , उ ह अचानक पता
चला क उनक मदाना नौकरी और मदाना त ख़ाह चली गई है। मेहनतकश रोज़ी मजबूरन
फर से वे े स रोज़ी बन गई। यु -पूव वेतन से कम पर! वा तव म समान वेतन का अथ था
पु ष के मुक़ाबले पचह र तशत वेतन। ये बु नयाद भेदभाव इस पीढ़ तक म चला
आ रहा है। या हम इस घोर अ याय को जारी रहने द?” उसने पूछा।
“ ीमान अ य जी, तक दया जाता है क य द संसद के ह त ेप क मांग क
गई होती, तो हमारे संसद सद य अभी तक ऐसे कसी भी ताव के प म ब मत से
मतदान करते। ले कन ब मत ने ऐसा कया नह है। म ोतागण को याद दलाना चा ंगा
क कभी-कभी ब मत का अथ होता है क सारे मूख एक ओर ह। इस मामले म भी ऐसा
ही है,” यो ने कहा। उसने उप त म हला क ज़ोरदार ता लय का मु कुराकर
अ भनंदन कया और बैठ गया।
चांदनी उठ और उसने ोता पर एक नज़र डाली। आधे से यादा ोता पु ष
थे, इस लए वो जानती थी क उसे उ ह अपने प म करना होगा। उसने शु आत पहले
व ा यो हे मगफ़ोड का प रचय दे कर क । पछले वष क ज के ख़लाफ़ नौका दौड़
म अ◌ॉ सफ़ोड को वजय दलाने म अहम भू मका नभाने के कारण यो बेहद
लोक य था। दौड़ वाले दन, पटनी से लेकर मॉटलेक तक टै स के कनार पर ढाई लाख
दशक यो क ट म को दौड़ जीतते दे खने के लए जमा ए थे। चांदनी जानती थी क
उसे मत ा त करने क ज़ रत है—बहस जीतने और मामला हार जाने का कोई फ़ायदा
नह था।
“ ीमान अ य जी, वप क पहली व ा होने के नाते, ये मेरा सुखद कत है
क म ताव के प म बोलने वाले पहले व ा म यो हे मगफ़ोड का प रचय कराऊं,
य प उ ह कसी प रचय क आव यकता नह है। आप सभी नॉथ फ़े स पॉलीटे नक के
हमारे म और उनके ारा एक नौकायन दल हमारे सामने लाने क पुरानी कहानी के बारे
म जानते ह,” उसने क ज के लए अ◌ॉ सफ़ोड वाल ारा यु अपमानसूचक श द
का योग करते ए कहा। “हालां क वो रोज़ाना घंट अ यास करते थे, ले कन वो
अ◌ॉ सफ़ोड को हराने म सफल नह हो सके। आ ख़रकार, उनके दल ने एक जासूस को
भेजने का फ़ैसला कया। उनके जासूस ने झा ड़य म छपकर अ◌ॉ सफ़ोड क ट म को—
यो के नेतृ व म—अपना रोज़ाना का अ यास करते दे खा। दो स ताह बाद जासूस ने
वापस जाकर ऐलान कया क उसने अपने वरो धय का रह य खोज नकाला है। ‘ या?
बताओ ना!’ उसके दल के सा थय ने कहा। ‘हमारे केवल एक आदमी को च लाना
चा हए। बाक़ आठ को नौकायन करना चा हए!’ जासूस ने कहा।” अ◌ॉ सफ़ोड के
नौकायन हीरो के बारे म चांदनी क शंसा पर ज़ोरदार ता लयां बज । ोता म
अ धकांश पु ष का नेह जीतने के बाद वो आगे बोली।
“ ीमान अ य जी, कहते ह क ववा हत पु ष अ ववा हत क तुलना म यादा
जीते ह। ये वयं ही काम करने वाली म हला के प म एक तक है। महज़ उनक
मौजूदगी से ही उनके पु ष सहयो गय क आयु बढ़े गी। ले कन मने ऐसा भी सुना है क
भले ही ववा हत पु ष अ ववा हत के मुक़ाबले कह यादा जीते ह, ले कन वो मरने के
भी यादा इ ु क होते ह।”
ोता हंसने लगे। “और ये भी एक कारण है क अगर कोई आपक प नी
को चुरा ले, तो उस से बदला लेने का इससे अ ा कोई तरीक़ा नह है क प नी को
उसी के पास रहने दया जाए,” वो बोली। इस बार और भी यादा ठहाके गूंजे। वो जानती
थी क उसने पु ष ोता — जनक सं या अ धक थी—पर मज़बूत पकड़ बना ली है।
“एक भारतीय म हला होने के नाते, म आपको बता सकती ं क एक म हला का
मूलभूत मू य पूणतया उस पर नभर करता है जससे उसक तुलना क जाती है—पु ष।
बृह र समानता म हला के वेतन बढ़ाने के लए कृ म क़ानून बनाने म न हत नह है।
ये न हत है तुलना के आधार को बदल डालने म। कुछ काम ऐसे ह जनके लए पु ष
म हला से अ धक उपयु ह—वहां उ ह यादा वेतन मलना चा हए। इसके वपरीत,
कुछ काम ऐसे ह जनके लए म हलाएं पु ष से यादा उपयु ह—वहां म हला को
यादा वेतन मलना चा हए। ले कन ये नणय कौन लेगा क कसको कतना मलना
चा हए? वे ट म न टर के कोई नौकरशाह नह ! ये तो मेरे स मानीय वरोधी से आठ के
बजाय दस ना वक क ट म ले जाने के लए कहने जैसा होगा!” उसने ता लय क ज़ोरदार
गड़गड़ाहट के बीच कहा और यो को ये सोचता छोड़कर बैठ गई क उसका योग
कया गया या योग।
वो उसे दे खकर शम ले ढं ग से मु कुराई। वो चोट खाया सा लगा।

“उ ह ने चुनाव क घोषणा कर द है,” गंगासागर ने वजयी भाव से कहा, “उनके पास


साला कोई वक प ही नह बचा था। स ा दल म दो फाड़ बन गए ह। उ र दे श के
गृहमं ी और र ो भैया के ववाद ने वो कर दखाया है जो हम ख़ुद से कभी नह कर
सकते थे!”
“हमारी जीत न त है,” अ वालजी ने उ सुकता से ती ा करते अपने मुंह म
वा द मलाई-म खन का एक और च मचत डालते ए कहा। ह क और भुरभुरी मठाई
उनक इ ा को और जगाती ई तुरंत ही घुल गई।
“ ज़दगी म एकमा न त चीज़ मौत है,” अपने दाश नक मूड म आते ए
गंगासागर ने कहा, “और मेरी योजना वतमान शासन के लए मौत बनने क है।”
“ले कन तुम इकराम को रा ते से हटाना चाहते थे,” अ वालजी ने टे क लगाते ए
और मठाई को पेट म बठाते ए कहा।
“ नया म ऐसा कोई नह जसे हराया या धोखा नह दया जा सकता,” गंगासागर
ने एक और कौर लेते ए कहा। वो मठाइय के लए स ठ गू के लड् डू —कानपुर का
एक भोजनालय—क सी ढ़य पर बैठे ए थे। भोजनालय के मा लक के दादा ने चीनी—
वो व तु जो महा मा गांधी के नदशानुसार ब ह कृत कर द जानी चा हए थी—के योग से
व - स मठाइयां बनाकर नाम कमाया था। उसे ठग कहा जाने लगा था, इसी लए
कान का नाम ठ गू पड़ा था। भोजनालय का स ांत था, ऐसा कोई सगा नह , जसको
ठगा नह , ऐसी पं जो कानपुर क अकड़ और इसक राजनी त का सार तुत करती
थी।
गंगासागर तो महज़ इसका त बब था।

“उ ह ने चुनाव क घोषणा कर द है,” चांदनी ने वजयी भाव से कहा, “उनके पास साला
कोई वक प ही नह बचा था।” अ य क दौड़ म ए लज़ाबेथ और व टर के बीच
मतभेद ने समझौते क गुंजाइश ही नह छोड़ी थी।
“तु ह च बनवाने के लए शांत बैठना होगा,” जोज़ेफ़ न ने शकायत क ,
जसके कला अ यापक ने उसे अगले असाइनमट के प म एक अ◌ॉयल-अ◌ॉन-कैनवस
बनाने के लए कहा था। जोज़ेफ़ न ने अपना पट श रख दया, जो क एक ऐसे का
च बनाने के दौरान बड़ी राहत क बात थी जो एक ण को भी शांत बैठता ही न हो।
“दोन उ मीदवार ने धोखाधड़ी का दावा कया है, है ना? चुनावी राचरण के बारे म
अफ़वाह का बाज़ार गम है।”
चांदनी ने सर हलाया। “मटन कॉलेज के तेईस साल के समाजशा के छा
व टर वॉ लसंगम ने नवंबर म अ◌ॉ सफ़ोड यू नयन के ी म स का चुनाव औपचा रक
प से जीत लया था। उसने बे लयोल कॉलेज क इ क स साल क राजनी त व क़ानून
मेजर ए लज़ाबेथ लटन को 656 के मुक़ाबले 961 वोट से हराया था,” चांदनी ने उ सा हत
भाव से बताया। “ए लज़ाबेथ ारा ये शकायत कए जाने के बाद क व टर ने मतदान-
सं या पर, यू नयन के नयम का उ लंघन करते ए जनके अनुसार चुनाव चार
तबं धत है, एक वशेष प से आर त कमरे म पतीस लोग को पाट द थी, व टर
को, जो क यू नयन का कोषा य रह चुका था, व व ालय के एक यूनल ने अयो य
ठहराया और भ व य म उसके चुनाव लड़ने पर तबंध लगा दया।”
“तो आ ख़रकार जीता कौन?” अपने श प छते ए जोज़ेफ़ न ने पूछा।
“कोई नह । व टर के गुट ने यू नयन क लाइ े रयन ए लज़ाबेथ पर लंदन के एक
बै र टर—अपने ही पता क कंपनी लटन, ायन एंड यारबरो के—से अपना त न ध व
करवाने के लए नवेदन करके परंपरा तोड़ने का आरोप लगाया। वो उ मीद कर रही थी क
उसे बाइ डफ़ॉ ट अ य घो षत कर दया जाएगा, ले कन यू नयन ने नए चुनाव क
घोषणा कर द ,” चांदनी ने कहा।
“तुम य चुनाव नह लड़त ?” जोज़ेफ़ न ने पूछा।
“म ऐसा नह कर सकती। ए लज़ाबेथ और व टर दोन मेरे दो त ह।”
“राजनी त म दो त क यही सम या है,” जोज़ेफ़ न बोली।
“मतलब?”
“दो त आते-जाते रहते ह। मन बढ़ते रहते ह।”

“मने ये सब समझ लया है,” गंगासागर ने घोषणा क ।


“ या?” अ वालजी ने पूछा।
“लोकप त न ध व अ ध नयम क धारा आठ, उपधारा तीन।”
“ या?” अ वालजी ने इस बार और भी असमंजस से पूछा।
“उसम लखा है क कसी दं डनीय अपराध का दोषी सज़ा पाने क त थ
से अयो य ठहराया जाएगा और अगले छह वष तक अयो य ही रहेगा।”
“ले कन इकराम को तो कोई सज़ा नह ई है। हर कोई—तुम स हत—जानता है
क वो डॉन ज़ र है ले कन सज़ा पाने से बचा रहा है। उसका पु लस क म र दो त ये
सु न त करता है।”
“आह! ले कन अगर उ र दे श के गृहमं ी के ान म ये बात ला द जाए क
उनके और र ो भैया के बीच झगड़ा कस पु लस क म र ारा कस कु टल तरीक़े से
भड़काया गया था?” गंगासागर ने शरारती भाव से पूछा।
“तब तो वो गया काम से,” अ वालजी बोले, “ले कन ऐसी प र त से
एबीएनएस को भी फ़ायदा नह होगा, गंगा। पाट अपने मुख उ मीदवार इकराम को खो
बैठेगी।”
“आपने ठ क कहा। इसी लए इकराम को ये बात समझनी होगी क वो एक ऐसे
उ मीदवार के मा यम से स ा म बना रह सकता है जसके चुनाव लड़ने पर क़ानूनी
तबंध नह हो।”
“और वो उ मीदवार कौन होगा?”
“एक बेट से बेहतर कौन हो सकता है?” गंगासागर ने फर से शरारती ढं ग से
पूछा।
अ वालजी हंसने लगे।
“आ द श , नमोनम:; सवश , नमोनम:, थम भगवती, नमोनम:, कुंड लनी
माताश ; माताश , नमोनम:,” गंगासागर ने कहा।
“उसने चुनाव नह लड़ने का फ़ैसला कया है,” ख़ुशी से चूर चांदनी ने जोज़ेफ़ न से कहा।
“ व टर ने मेरा समथन करने का फ़ैसला कया है।”
“ य ?” जोज़ेफ़ न ने अपनी दो त के लए ख़ुश होते ए पूछा।
“उसे लगता है क म तीसरी नया क एक कमज़ोर और नाजक लड़क ं, और
वो मुझे नयं त करके मेरे मा यम से यू नयन चला सकेगा।”
“बेचारा,” जोज़ेफ़ न खल खलाई। “उसे यो से पूछना चा हए।”

वो अ◌ॉ सफ़ोड क पसंद दा मलन ली ईगल एंड चाइ म बैठे थे, जहां कसी समय म
सी.एस. लुइस और जे.आर.आर. टो क न जैसे लोग सा ह य, ेम और जीवन पर बातचीत
करने के लए बैठा करते थे। एक मुख द वार पर लगी मारक प का पर उनके
ह ता रत फ़ोटो ाफ़, अ◌ॉटो ाफ़ और नशे म लखे कथन दज थे क उ ह ने वहां के
वामी के वा य के नाम जाम पया था।
वाद- ववाद के अंत म उसक शम ली मु कान के साथ ही ेम- संग शु हो गया
था। यो ने हच कचाते ए उसे बाहर चलने को कहा था, हालां क वो ये नह जानता
था क एक भारतीय लड़क के लए डेट करना वीकाय होगा या नह । वो पहले से ही
उ मीद कर रही थी क वो उससे ऐसा कहेगा और वो तुरंत ही मान गई थी।
अबाध बातचीत और वाइन क कुछ बोतल के बाद वो दोन ख़ामोश हो गए। वो
मन ही मन सोच रही थी, डेट पर आया लड़का सोचता है क या भा य उसका साथ दे गा
पर लड़क को पहले से ही पता होता है।

यो के नवास जाते ए जहां वो अकेला रहता था, उ ह ने एक- सरे को इस तरह बांह
म भर लया था जैसे वो दोन वशेषकर इसी एक ण के लए बने ह । यो ने चांदनी
को कस कया और चांदनी ने उसे और भी भरपूर ढं ग से कस कया। ऐसा लगता था जैसे
वो उसे अपने म समा लेना चाहती हो, और ख़ुद उसम समा जाना चाहती हो।
अगली सुबह वो जागी, तो वो कचन म चाय बना रहा था और अंडे ाई कर रहा
था। उ ह ने ब तर म ही ना ता कया और फ़ैसला कया क कुछ ग़ल तयां इतनी मज़ेदार
होती ह क उ ह सफ़ एक ही बार नह करना चा हए।
वो एक र ववार क सुबह थी और चांदनी और यो यूरोप के सबसे पुराने उ े य- न मत
कंसट हॉल होलीवैल यु ज़क म म बैठे ए थे। 1748 म आरंभ आ ये हॉल हेडेन और
हडल जैसे नया के महानतम संगीतकार और रच यता के काय म आयो जत कर
चुका था। र ववार क सुबह को होलीवैल म अ◌ॉ सफ़ोड कॉफ़ कंसट होते थे।
शोभायमान माहौल म सव े संगीतकार और ुप अपने काय म तुत करते थे।
संगीत के े म चांदनी क पसंद बॉलीवुड के गान से े रत थी और शु म उसे
बाख, बीथोवेन और मोज़ाट क यो क पसंद बड़ी बेजान सी लगती थी। ले कन ज द
ही उसे अ◌ॉगन और वॉय लन क सादा और दलकश आवाज़ से यार हो गया। तार वाले
वा क चौकड़ी और एक ऑग न ट क संगत पर वॉय ल न ट ववा ी का कंसट इन ए
माइनर पेश कर रहा था। यो ने धीरे से चांदनी के हाथ को छु आ। उसके बाद कलाकार
बड़े सुंदर ढं ग से ुख क कॉ टश फ़टै सी पेश करने लगा। यो ने उसके हाथ को
कसकर अपने हाथ म पकड़ लया। जब तक कलाकार बीथोवेन के वॉय लन कंसट इन डी
मेजर तक प ंचा, तब तक यो का हाथ चांदनी क जांघ तक प ंच चुका था। वो बाख
के पाट टा इन डी माइनर से शैकोन के लए नह के।

पंखे ने चरमराते ए एक च कर और पूरा कया ले कन हवा नह फक । जब क उसके


नीचे बैठा आदमी ढे र सारी हवा नकाल रहा था। वो ला टक क एक गंद सफ़ेद कुस पर
बैठा था जसने कभी अ े दन दे खे ह गे। उसके सामने एक चरमराती सी मेज़ पड़ी थी
जस पर ध बेदार पीली ला टक बछ ई थी। सरी ओर दो और भी गंद ला टक क
कु सयां—बज़ा हर आगंतुक के लए—पड़ी ई थ ।
सब-इं े टर बृजलाल थाने को अपनी नजी जागीर क तरह चलाता था। उसके
दरबार के बाई ओर पु ष हवालात था जसम से ब त गंद बदबू आ रही थी। दाई ओर
अंधकारमय और अलग-थलग सा म हला हवालात था। उसके अ◌ॉ फ़स के म य क ओर
एक ट ल क अलमारी थी जो चूह ारा खाई—और हज़म क जा चुक —केस फ़ाइल
से ठुं सी पड़ी थी। उसक ला टक से ढक डे क पर एक पुराना रोटरी फ़ोन था जो काम
नह करता था और एक ह क क बोतल थी जो काम करती थी। बृजलाल ने अपने
गलास से एक घूंट और लया और सोचने लगा क वो सम या से कैसे नबटे ।
नदश उ र दे श के गृहमं ी के यहां से पु लस डाइरे टर-जनरल के लए चले थे।
डाइरे टर-जनरल ने नदश इं े टर-जनरल को भेज दए जसने सी नयर सुप रटडट को
सू चत कया। आदे श क ृंखला एडीशनल सुप रटडट तक प ंची जसने ड ट
सुप रटडट को नदश दए और उसने सकल अ◌ॉ फ़सर को आदे श दया जसने सी नयर
इं े टर को बोला जसने— ृंखला के ब कुल अं तम छोर पर—सब-इं े टर बृजलाल
से कहा क क़ैद का मुंह खुलवाने के लए जो भी ज़ री हो कया जाए। क़ैद —कानपुर
के मेयर—इकरामभाई का एक जाना-पहचाना साथी था और इकराम के लए उसका
वसूली का धंधा चलाता था।
इकराम के दो त पु लस क म र के दौर म कसी म इतनी ह मत नह थी क
इकराम के कसी आदमी को उठा ले, ले कन अब हालात सरे थे। उ र दे श के गृहमं ी
के पास प क ख़बर थी क पु लस क म र ने जानबूझकर उनके और र ो भैया के बीच
राजनी तक ववाद को भड़काया था। पु लस क म र को नकाल बाहर कया गया। अब
गृहमं ी का इरादा इकराम क ऐसी-तैसी करने का था चाहे इसके लए कतने ही लोग को
कुचलना पड़े।
सब-इं े टर बृजलाल ने एक और घूंट भरा और अपनी कुस पर पीछे को ज़रा
टे ढ़ाकर होकर पादा। पु लस कट न का खाना उसक सेहत के लए अ ा नह था—उसम
क टाणु ब त होते थे। इसी लए अपनी आंत म क टाणु को मारने के लए उसे भारी
मा ा म ह क क ज़ रत होती थी। आ ख़रकार वो उठा, उसने च लाकर अपने एक
कां टे बल से कहा क वो उसके साथ चले और उस एकांत कोठरी क ओर चल दया जहां
इकराम के बदनसीब साथी को मेहमान बनाया गया था। दस गुणा दस क कोठरी, जसम
एक ब ब तक नह था, के एक कोने म क ड़ ारा खाया आ एक कंबल पड़ा था जस
पर क़ैद हैरान-परेशान और नंगा बैठा आ था। कोठरी को शौचालय से अलग करने के
लए एक कोने म तीन फ़ट ऊंची द वार थी। बना रोशनदान वाले हवालात म इसक
सु नयो जत जगह से पेशाब क बदबू उठ रही थी।
बृजलाल के हाथ म उसका समाजसुधारक था। उसका समाजसुधारक लकड़ी के
हडल से जुड़ी दो फ़ट लंबी रबर क एक बे ट था। उसने अपने क़ैद के बाल पकड़े और
उसके कान म फुफकारा, “जब हम इसके साथ अपना समाजसुधार काय म चलाएंग,े तो
न तो ह ी टू टेगी, न ख़ून नकलेगा, न ब त खाल उतरेगी। तेरे पो टमाटम म कुछ नह
नकलेगा। ले कन दद ब त तेज़ होगा। तू बार-बार भगवान को याद करेगा ले कन वो भी
नह सुनेगा। तो, मेरे दो त, तू सुधरने को तैयार है?”
एक घंटे के अंदर इक़बालनामा लखा और द तख़त कया जा चुका था।
गंगासागर क सूचना काम आई थी—समाजसुधारक के अलावा।

“सार,” तेल भरे काले बाल सावधानीपूवक पीछे क ओर काढ़े युवा केरलवासी बोला,
“आई एम आ-नड टु मट यू।”
“यू आर आ-नड टु मट मी?” गंगासागर ने दोहराया। वो ठ क से समझ नह पाया
था क काला, वन नौजवान या बोल रहा है। फर उसे अहसास आ क द ण
भारतीय कह रहा था क उसे उससे मलकर ख़ुशी ई थी।
“म केरल के एक कॉलेज म पढ़ा ं और अब आपके साथ काम करके पैसा
कमाना चाहता ,ं ” उसने अपने उसी ख़ास लहजे म कहा।
गंगासागर ने अपने दमाग़ म इसका अनुवाद कया।
“तुमने केरल य छोड़ दया?” गंगासागर ने पूछा।
“बस म भारतीय राजनी त म आने क उ मीद कर रहा था,” गंगासागर ने फर से
अपने मन म अनुवाद कया और उस गंभीर नौजवान को दे खकर मु कुराया।
“तु हारी अहता या है?”
“यम बी ये।”
“आह! एमबीए हो—ब त ख़ूब। मुझे एक ऐसा आदमी चा हए भी जसके पास
बंधन क यो यताएं ह ।”
“म जानता ,ं सार। आप ब त त आदमी ह।”
“हां। म त ं ले कन फर भी अपना काम अ तरह कर लेता ं। म तु ह
एक मौक़ा ं गा—मुझे लग रहा है क मुझे अफ़सोस नह होगा। एक हज़ार पए त ख़ाह
ठ क है?”
“इतने पर इंगम टै स लगेगा?”
“इंकम टै स? मुझे नह लगता। ये यूनतम सीमा से कम होगा,” गंगासागर ने
मु कुराते ए अपने नए से े टरी से कहा।

“सर। मेरा एक दो त है। वो एक वेटर है। वो आपसे मलने के लए इंतज़ार कर रहा है।”
“म उससे य मलना चा ंगा, मेनन?” लहजे को नज़रअंदाज़ करते ए
गंगासागर ने पूछा। कई महीन बाद, गंगासागर को लगने लगा था क अब वो ख़ुद भी
लगभग मेनन क ही तरह बोलने लगा था।
“सर, मुझे लगता है क आपको उससे मल लेना चा हए। वो ब त कारगर हो
सकता है।”
“एक वेटर मेरे लए कस तरह कारगर हो सकता है?” गंगासागर ने पूछा।
“सर। वो आपके साथ जुड़ना चाहता है।”
“मुझे कसी नौकर क ज़ रत नह है। उससे कहो कह और नौकरी ढूं ढ़े।”
“नह , नह , सर। उसे नौकरी नह चा हए। वो आपको कुछ बेचना चाहता है।”
“ या?”
“जानकारी।”
गंगासागर के कान खड़े हो गए।
“म उसे अंदर ले आऊं? वो एक घंटे से इंतज़ार कर रहा है,” मेनन बोला।
“ज़ र। उससे मलते ह,” गंगासागर ने कहा।
एक नौजवान—केरल का एक मुसलमान—उ सा हत मेनन ारा अंदर लाया
गया। “सर। ये हमीद है। ये यह कानपुर म गो न गेट बार म वेटर है। बोलो हमीद—सर
को अपनी कहानी सुनाओ,” मेनन ने कहा।

सब-जडी शयल म ज े ट ने ज हाई ली। वो सारा दन क़ै दय क ज़मानत क अ ज़यां


सुनता रहा था। उसने एक और मामले म जसके बारे म वो कुछ नह जानता था, बचाव
प के वक ल को सुना और वा य के बीच म ही च लाया “ज़मानत नामंज़ूर!” च कत
वक ल ने ये सोचते ए उसे सवा लया नज़र से दे खा क उसे पूरी सुनवाई का मौक़ा य
नह दया गया। वो नह जानता था क सुनवाई शु होने से ब त पहले ही म ज े ट ने मन
बना लया था।
म ज े ट का एक छोटा सा घ टया रह य था। उसक एक यार करने वाली प नी
थी और उसके दो बेटे थे, ले कन अब उसक प नी उसे उ े जत नह कर पाती थी। अपनी
डू बती कामश को बढ़ाने के लए उसने आयुवद य दवाइयां आज़माई थ ले कन कुछ
फ़ायदा नह आ। वो ये सोचकर कोठ पर जाने लगा क शायद घर से बाहर थोड़ी
अ त र ग त व ध से बात बन जाए। पर वहां लड़ कयां आ ख़र म उस पर हंसती थ ।
अपने दयनीय वजूद से तंग आकर उसने एक बार म जाकर बफ़ के साथ ह क -सोडा का
अ◌ॉडर दया। वेटर उसके लए न सफ़ ह क लाया ब क साथ म मूंगफली और
नमक न भी लाया। उस रात वो वेटर के साथ बार से बाहर नकला तो उसे महसूस आ क
उसके दमाग़ के तार कुछ बदल से गए ह। उसक मशीन अभी भी काम कर रही थी
ले कन उसम सीधी नह , ब क एक वैक पक व ुत दौड़ रही थी। अब वो अचानक ख़ुश
था—और सम लगी था।
वेटर को लगा क एक फ़ायदे मंद अवसर उसका इंतज़ार कर रहा है—गो न गेट
बार म वेटर का काम करने, बतन धोने और नाराज़ ाहक को शांत करने के दन लद गए
लगते थे। अब वो सब-जडी शयल म ज े ट का गु त ेमी था।
म ज े ट का छोटा सा घ टया रह य ये नह था क वो सम लगी था। उसका छोटा
सा घ टया रह य ये था क उसक अदालत म कोई भी मामला एक क़ मत पर तय हो
सकता था। उसका एजट स म वेटर था जो मूंगफ लयां सव करने के बजाय अब फ़ैसले
तय करता था— हमीद।

ये न त था। सारे ल ण थे। ये न त था क ये महीने का वो समय था जब वो


अपने पेट के नचले भाग म दद, गभाशय म ठन, सर म च कर, और बाक़ सब जगह
फुलाव सा महसूस करती थी। ले कन इनम से कोई भी ल ण नह दखा था। वो न त
प से गभ से थी।
नतीज से घबराकर चांदनी दौड़ी-दौड़ी यो के कॉलेज प ंची और उसका
ले चर ख़ म होने तक कॉलेज के बाहर इंतज़ार करने लगी। यो ने उसक नीली आंख
के भाव दे खे और समझ गया। उसके पूरे चेहरे पर घबराहट पसरी ई थी। उसने उसका
हाथ पकड़ा और वो टहलते ए हे ड टन हल क ओर बढ़ गए, ज़मीन पर पड़े पतझड़ के
प े उनके पैर तले कुचलने लगे।
आ ख़रकार उसने पूछा, “हम या करना चा हए, यो ?”
उसका बल हम पर था।
“म वाक़ई नह जानता क तु ह या करना चा हए,” जवाब मला।
बल तुम पर था।

“ये रहे वो पांच पाउं ड जो मुझ पर तु हारे उधार ह,” व टर ने यो को नोट दे ते ए


कहा।
“हे मगफ़ोड कभी शत नह हारते ह,” यो ने शेख़ी बघारी, “ले कन तु ह मुझे
दस पाउं ड दे ने ह।”
“ य ?”
“पांच अगर म पाक को ब तर म ले जाऊं, और पांच अगर उसक ठु काई हो
जाए,” यो ने धूतता से कहा।
“तो वो गभ से है?” व टर ने पूछा।
“बस ये समझ लो क अब तुम बे फ़ होकर अ◌ॉ सफ़ोड यू नयन क अ य ता
पा सकते हो,” व टर से सरा नोट लेते ए यो ने कहा।
गंगासागर के सामने रखे टे ली ाम ने उसे उतना बता दया था जतना वो जानना चाहता
था। ये वो सामा य माहाना रपोट थी जो उसे इं लड के एक स न म हाव रचडसन से
मलती थी। वो उसके ेड, उसक ग त, उसके वाद- ववाद, उसक दो ती और उसक
पाठ् येतर ग त व धय — जनम वो कुछ यादा ही पड़ चुक थी—के बारे म नय मत प
से रपोट दे ते थे।
म रचडसन ब त समृ नह थे ले कन ऐसे ज़ र थे जो मौक़े पर काम
आ सकते थे। वो मूल प से अ वालजी के एक बज़नेस सहयोगी थे और अ वालजी के
साथ गंगासागर के काम करने वाले दन म उ ह ने इं लड म बनी चीज़ को आयात करने
और इं लड को माल नयात करने म गंगासागर क मदद क थी। उनक ख़ुशी का तब कोई
ठकाना नह रहा था जब गंगासागर ने उनक बेट जोज़ेफ़ न रचडसन क अ◌ॉ सफ़ोड म
पढ़ाई का ख़च दे ने का ताव दया था। ये एक अ व सनीय प से उदार कृ य था।
ले कन उदार कृ य आमतौर पर कुछ धाग म बंधे आते ह। उनके—और
जोज़ेफ़ न के—मामले म ये धागा था अ◌ॉ सफ़ोड के सट ह ाज़ म भारतीय लड़क पर
नज़र रखना।

मुख त व थे स रज और कारबॉ लक साबुन क प र वाला फ़ॉमूला| उसक श शाली


धुलाई से गभवती ी के गभाशय क झ ली अड़तालीस घंटे के अंदर झड़ जाती थी
जसके बाद सबकुछ पहले क तरह सामा य हो जाता था। जोज़ेफ़ न जस घर म चांदनी
को लेकर गई थी वो एक अ प आय वाला साधारण सा घर था जसक बेनाम नवासी एक
अधेड़ उ क नेही म हला भयभीत लड़ कय क सफ़ाई करती थी। वो सौ से यादा
ख़ु फ़या गभपात कर चुक थी और अपने घर से सबसे यादा व ल नक म से एक
को चला रही थी।
जोज़ेफ़ न ने इस म हला का नाम एक और लड़क से खोजकर नकाला था।
चांदनी ने, जो आतं कत थी क उसके पता—गु ताजी— को कसी न कसी तरह उसक
हालत क भनक लग जाएगी और वो प रवार को बदनाम करने के लए उसका गला घ टने
को सारी मुसीबत उठाकर भी इं लड के तट पर आ प ंचगे, राहत क सांस ली जब
जोज़ेफ़ न ने उसके हाथ से सारी योजना अपने हाथ म ले ली।
म हला ने चांदनी से कहा क वो कपड़े उतारकर लकड़ी क मेज़ पर लेट जाए,
और एक-एक करके अपने पैर कुंड म डाल ले। वो ख़ुद चांदनी क टांग के बीच आ गई
और उसने चांदनी से टांग खोलने को कहा, ले कन पूरी को शश के बावजूद चांदनी के
घुटन ने हलने से इंकार कर दया। वो एक- सरे से इस तरह चपके रहे जैसे उसके अंदर
से कोई आवाज़ उसे पुकार रही हो क वो गभपात न कराए।

ास मयर म मदर एंड बेबी होम इतना एकांत म था क वहां अनचाहे यान से बचा जा
सकता था। साथ ही, ये न स ारा संचा लत उन सामा य हो स से भ था जहां ‘भटक
ई अ ववा हत मां ’ को वो नाजायज़ ब े पैदा करने के लए भेजा जाता था ज ह बाद
म गोद लेने के लए रखा जाता था। इसके वपरीत ये एक ाइवेट होम था जो उन समृ
प रवार से मोट रक़म वसूलता था जो अपनी गभवती बे टय को इसक दे खरेख म भेजते
थे। व लयम वड वथ के अनुसार, ज ह ने ास मयर म अपने जीवन के चौदह साल
बताए थे, ये मानव ारा ढूं ढ़ा गया सबसे सुंदर ान था। सुंदर लेक ड ट के म य म
बसा धुंध से ढक पहा ड़य , अनंत झील और बल खाते खेत से घरा ास मयर नैस गक
था। हाव रचडसन ने जोज़ेफ़ न को नदश दया था क चांदनी क हालत के बारे म कसी
को—ख़ुद गंगासागर और हाव स हत—पता चले बग़ैर वो उसे वहां ले जाए।
जोज़ेफ़ न ने एक ामोफ़ोन ख़रीदा जसे उसने चांदनी के कमरे म लगा दया था।
उसने चांदनी के लए दे र तक बजने वाले रकॉड – बाख, बीथोवेन, ज़, चाइकॉ क ,
और पैगानीनी के वॉय लन कंसट ज़—क व ा क । चांदनी खड़क पर बैठ शांत
पगडं डय और ऊंची-नीची चो टय से घरे नमल ास मयर को दे खती रहती। जब चांदनी
वॉय लन क धुन म डू बी होती तो जोज़ेफ़ न अ सर बाज़ार चली जाती थी। कभी-कभी
वापसी पर वो चांदनी क नम आंख और चेहरे पर सूख चुके आंसु के नशान दे खती।
वॉय लन क आवाज़ उसे यो क ब त याद दलाती थी। जोज़ेफ़ न उसे ख़ुश करने क
को शश म हर कुछ दन बाद खड़क म चांदनी के मनपसंद गुलाबी गुलदाऊद के फूल
रख दे ती।
वहां प ंचने के आठ ह ते बाद चांदनी ज म दे ने को तैयार थी। उसे अंदाज़ा नह
था क ये नथुने से एक बो लग बॉल नकालने जैसा होगा। जोज़ेफ़ न ने उसका हाथ पकड़ा
जब क मे न ने उसके गभाशयमुख के फैलने क जांच क । ख़ून और ूण व रस रहा था
और नस ने उसे पुश करने के लए कहा। चांदनी ने पुश कया और जैसे ही उसे महसूस
आ क चप चपे पदाथ म एक शरीर उसके अंदर से नकला वैसे ही वो बेहोश हो गई।
चांदनी जागी, तो उसने महसूस कया क उसक सफ़ाई करके उसे वापस उस
कमरे म प ंचा दया गया है जहां झील के हसीन नज़ारे को ढके ए फूल के डज़ाइन वाले
पद पड़े ए थे। जोज़ेफ़ न उसके नज़द क बैठ उसके बाल म उं ग लयां फरा रही थी।
चांदनी ने एक नज़र जोज़फ़ न को दे खा और समझ गई।
“मुझे अफ़सोस है, हनी,” जोज़ेफ़ न फुसफुसाई, “डॉ टर ने कहा है क तुम और
ब े पैदा कर सकती हो, ले कन ये मृत था।”

कुछ दन बाद कानपुर म एक अ य टे ली ाम ने गंगासागर को सू चत कया क ज़ री


काम कया जा चुका था। गंगासागर ने कसी भी पता— गु ताजी या इकराम—को नह
बताया था। टे ली ाम से ये भी पता चला क दोन लड़ कय ने लेक ड ट म एक कॉटे ज
कराए पर ले लया है जहां चांदनी के भारत वापस आने से पहले वो कुछ स ताह
बताएंगी।
“एक गया, एक और बचा है,” नद कनारे टहलने के लए अ वालजी से मलने
आते ए गंगासागर ने सोचा।

लंदन-का हरा-जेनेवा-मुंबई ट पर एयर इं डया बोइंग 707-420 म एक सौ साठ या ी थे।


तूफ़ान के बीच वो जेनेवा म अशांत ढं ग से उतरा तो चांदनी को मतली होने लगी थी। मुंबई
एयरपोट प ंचने पर उसे सुकून मला क अब वो वापस घर आ चुक है।
यो ने उसक ज़दगी के साथ जो खेल खेले थे, वो उनके लए उसे कभी माफ़
नह कर सकती थी। वो भूलने क को शश कर सकती थी, ले कन माफ़ नह कर सकती
थी। न ही गंगासागर माफ़ कर सकता था।

लंदन का बदास एज़मेरा ाज़ बान व टन लेस म त था, जो क नाइट् स ज के


नज़द क एक फ़ैशनेबल सड़क थी। नए गे मग ए ट के बाद खुलने वाले इस सबसे पहले
लब म से एक म शहर के सबसे अ े ू पयर, वेटर, हो टे स और शैफ़ थे। एक संकरा
और अं धयारा सा ग लयारा उस बड़े से अ◌ॉ फ़स म ले जाता था जसम हरे लॉयस लप से
का शत दो वशाल एंट क डे क थ । डे क के पीछे बैठे यूबन सगार पीते दोन
आद मय म सफ़ दस मनट का अंतर था। टे ड े ड से दस मनट पहले पैदा आ था।
जड़व ने आगे चलकर इं लड के सबसे बड़े अपराध स डकेट-पेन दस—का नमाण
कया और उसे नममतापूवक चलाया।
हॉ टन, ई ट लंदन म सोने के कबाड़ी जैक पेन के यहां पैदा ए जड़व ने कूल
म अपनी भ व य क नममता के कोई संकेत नह दखाए थे। उनके दादा उ ह शौ क़या
मु केबाज़ी के े म ले गए और दोन भाई कभी एक भी मुक़ाबला नह हारे। सम या ये
थी क वो रग के अंदर से यादा बाहर पंच चलाने म दलच ी लेते थे। ज द ही उ ह ने
बेथनाल ीन म एक पुराना ानीय नूकर लब ख़रीद लया जहां उ ह ने कई नाजायज़
काम शु कर दए—संर ण, गा ड़य क लूट, सश डकैती, आगज़नी, स े बाज़ी और
वे यावृ । उनक सबसे बड़ी ख़रीद एज़मेरा ाज़ बान थी।
हाव रचडसन लेट बान क ओर बढ़े । ू पयर च स के ढे र लगा रहा था जब क
ाहक अपने रंगीन च स बाज़ी म लगा रहे थे। ू पयर ने लेट क छोट सी सफ़ेद बॉल
को बड़ी महारत से अपने अंगूठे और तजनी के बीच घुमाते ए कनारे पर डाला और बॉल
तेज़ी से घूमने लगी। हाव ने काले पर पांच पाउं ड लगाए। ग त कम होने और धीमी पड़ने पर
बॉल लड़खड़ाई और धीरे से अभी भी घूमते हील म जा पड़ी। “डबल ज़ीरो,” ू पयर ने
कहा, “कोई वजेता नह ।”
“धत!” हाव ने उठते ए कहा। बाउं सर उ ह दे खकर सर हला रहा था। भाई
उनसे मलने को तैयार थे। वो घबराए से थे ले कन अपनी घबराहट को ज़ा हर नह होने दे ने
क को शश कर रहे थे। कहा जाता था क एक बार एक फ़ाम पर भाइय ने एक नशेड़ी को
सूअर को खला दया था। जब टे ड या े ड म से कोई हैरॉड् स जाता था, तो उ ह रा ता दे ने
के लए पं तुरंत ही ऐसे फट जाती थी जैसे मोज़ेज़ के सामने रेड सी फट गया था। इसके
बदले म, भाई समुदाय क ‘दे खभाल’ करते थे। पछले साल तो उ ह ने लंदन म गाइ
फ़ॉ स के एक आ तशबाज़ी तमाशे म हज़ार पाउं ड ख़च कर दए थे।
हाव उ ह जानते थे य क जब उनके घर म चोरी ई थी तो भाइय ने उनक
मदद क थी। चोरी के समय जोज़ेफ़ न अ◌ॉ सफ़ोड म सट ह ाज़ म थी। उ ह ने पु लस
म रपोट क ले कन कुछ नह आ। फर भाइय का एक अ े कपड़े पहना त न ध
रचडसन प रवार से मलने आया। उसने उनक कहानी सुनी और कहा क उसे चोरी के
बारे म सुनकर ख आ और चोरी के ज़ मेदार लोग को ढूं ढ़ नकालने के लए पूरी
को शश करेगा। एक ह ते के अंदर हाव क प नी के सारे ज़ेवरात और बाक़ भी लगभग
सारा सामान वापस मल गया।
गंगासागर जो काम कराना चाहता था, वो कसी और को नह स पा जा सकता
था। ये काम पेन दस—सही मायन म समाजसेवी—ही कर सकते थे। गंगासागर ने हाव
से नवेदन कया था क वो काम के लए सारी शत को अं तम व प दे ल, अं तम क़ मत
स हत।
ओयूवीसी–ऑ सफ़ोड यू नव सट बोट लब—हमेशा क तरह सवेरे-सवेरे जाग रहा था।
टे स पर ओयूबीसी का अपना बोटहाउस था और सवेरे छह बजे तक पहली कुछ नाव जा
भी चुक थ । एक घंटे बाद जब जू नयर ट म क नाव को एक नंगे आदमी क लाश तैरती
मली तो लब का शांत माहौल और लगा-बंधा काय म भंग हो गया। लब क नाव को
जैट के नज़द क ीन ट पो ट से ज़रा आगे सात बजे वो लाश मली थी। तुरंत ही
पु लस को बुला लया गया। लाश बीस से प ीस वष के एक बेहद व गोरे आदमी क
थी। उसके चेहरे को पीट-पीटकर उसका कचूमर नकाल दया गया था, इस लए उसे
पहचान पाना संभव नह था।
तीस मनट बाद अ ात आदमी के कपड़ और सामान को ढूं ढ़ने के लए नद के
कनारे- कनारे पु लस क नाव के साथ सात पु लसवाले और कोरोनर चले। कुछ घंट बाद
उ ह कसी अ◌ॉ सफ़ोड एट क बना आ तीन क र रं जत गहरी नीली वे ट मली।
उसके पास ही ओयूबीसी का गाढ़े ख़ून से सना नीले लेड वाला ख़ास च पू मला। इसी के
ारा पी ड़त के चेहरे का कचूमर नकाला गया था। नद कनारे मली गहरी नीली वे ट के
पीछे सला नामप था। उस पर लखा था ‘ यो ’।
अ याय सात
लगभग 2300 वष पहले

काले कंबल म लपटे और नीली पगड़ी पहने उस आदमी को त शला क सड़क पर चल


रहे हज़ार नाग रक म से कोई एक समझा जा सकता था। उसके वण आभूषण एक
ापारी होने का आभास दे सकते थे, ले कन उसक उमेठ ई मूंछ और लंबे बाल से
उसका लया कसी यो ा जैसा लगता था। दे र शाम का समय था। उसके अंदाज़े से रात
के दस मु त हो चुके थे; दन और रात दोन म पं ह-पं ह मु त होते थे। वो सधे क़दम से
चल रहा था, ले कन तेज़ी से नह । वो इतनी शाम गए अपनी ओर यान नह आक षत
करना चाहता था। उसक नज़र म उस म हला का घर था—जल ड़ा। ये घर एक आनंद
महल था जहां एक तरण ताल था जो समृ और भावशाली आद मय के लए आर त
था। इसक वा मनी सारे त शला क सबसे स ग णका म से एक थी। उसका
नाम मेनका था।
कंबल ढका अजनबी जल ड़ा पर प ंचा और ये सु न त करने के बाद क उसे
कोई दे ख नह रहा है, वो दरवाज़े के पास गया और उसने द तक द —एक, एक-दो, एक-
दो, एक—वो म जसे घर क माल कन पहचानती थी। दरवाज़ा आधा खुला और वो उसे
सीधे अपने शयनक म ले गई। अंदर प ंचते ही उसने दरवाज़ा बंद कर लया। ले कन ये
मेनका के गु त उपवन के आनंद को खोजने वाला रा मलन नह था। आदमी खड़ा रहा
और फुसफुसाया, “मेरे पास ख़बर है।”
“मुझे अभी और कतना तनाव झेलना होगा ?” उसने तीखेपन से पूछा।
“बस दो दन और धैय रखो। गंधार क सेना वाल के भेष म कैकय के सीमावत
खेत पर हमला करती रहती है। वो पशु और अनाज लूट लेते ह और हम कुछ नह करते
ह। हमने अंतत: कुछ करने का नणय ले लया है!”
“ले कन कब ? और तुम मुझसे या करवाना चाहते हो ?” मेनका ने पूछा।
“माघ के इस महीने म, बकुल क तीसरी रात को, कैकय क सेनाएं गंधार पर
आ मण करगी। तु ह सु न त करना होगा क उस दन गंधार का सेनाप त तु हारे साथ
हो।”
“वो उन आनंद पर पूणतया मो हत है जो म तुत करती ं। वो गुनगुने पानी म
नान करने के लए यहां हर रात आता है। ले कन पूरे आ मण के दौरान म उसे यहां कैसे
रोकूंगी ? मेरी वशेषता यही है क म आदमी को आनंद के चरम तक ले जा सकती ं,
ले कन एक बार जब वो उस ण के पार चला जाए तो म उसे यहां नह रोक सकती!”
उसने तक दया।
“ये ब कुल अ नवाय है क हमारे आ मण के समय सेनाप त गंधार क सेना
का नदशन करने क त म न हो—हम आघात और भय का योग करना चाहते ह।
जो भी आव यक हो करो। अगर तु हारे पास चरस हो, तो उसके धुएं का योग करो !” वो
ग़राया।
“ले कन—अह... हम ये य कर रहे ह? या राजनेता एक- सरे से बात करके
मामले को सौहादपूण ढं ग से नह नबटा सकते?” मेनका ने पूछा।
“गंधार के बूढ़े राजा गंधारराज हमारे वामी और कैकय के महाराज पोरस के
साथ अ े पड़ोसी संबंध रखना चाहते ह, ले कन गंधारराज का बगड़ैल और ज़
राजकुमार—आंभी—अपने पड़ोसी को न करने पर तुला आ है, भले ही इसके लए उसे
मैसीडो नयाइय से हाथ मलाना पड़े! ऐसी प र तय म, आ मण ही र ा का सव े
मा यम है,” कैकय गु त सेवा के कमचारी ने तक दया।
“ले कन आंभी तो त शला व व ालय म पढ़ रहा है। वो रा य क नी त को
कस कार भा वत कर सकता है?” च कत ग णका ने पूछा।
“उसके वहार के कारण उसे व व ालय से न का सत कर दया गया है।
व व ालय शासन ने मामले को दबा दया है और गंधारराज ने नवेदन कया है क
राजकुमार क पढ़ाई महल म ही जारी रहे। अ ड़यल और मूख युवक अब अपने ही पता
को सकंदर के हरामज़ाद क सहायता से अपद करके गंधार पर नयं ण ा त करना
चाहता है—”
“ श,” वो फुफकारी, “ये भले ही एक ग णका का घर हो, ले कन मेरे ेम के
प व घ सले के प रसर म गंद भाषा का योग नह कया जाता है।”
“म हज़ार बार माफ़ चाहता ,ं य मेनका। म भूल गया था क हमारे ाचीन
ंथ म मेनका सबसे सुंदर द अ सरा थी जसे भगवान इं ने ॠ ष व ा म का तप
भंग करने के लए भेजा था,” उसने मज़ाक़ कया।
“ये मत भूलो क जब व ा म ने मेनका को आ म के नकट झील म नहाते ए
दे खा था तो उनका तप वाक़ई भंग हो गया था और उनक वासना जागृत हो गई थी, और
तुम चाहते हो क म सेनाप त के साथ यही क ं !” उसने पलटकर जवाब दया।
“एकमा अंतर ये है क तु हारे पास तु हारी अपनी झील है !” त शला क
सड़क के जाड़ भरे अंधेरे म गुम हो जाने से पहले उसने कहा।

चाण य ने अपने नए श य का प रचय अपने छा सहारण, मे हर और शारंगराव से


कराया। “ये चं गु त है। ये सेनाप त मौय का पु है और म इसे इस लए यहां लाया ं ता क
इसे शासन से संबं धत वषय —यु , यु कला, राजनी त, अथशा , भाषाएं, ग णत और
व ान—का अ ययन कराया जा सके। सहारण, म चा ंगा क तुम इसके सव े म
बनो।”
“ऐसा ही होगा, आचाय,” कहते ए सहारण ने युवा चं गु त के गले म बांह डाल
द । “ पछले कुछ वष म आचाय मुझे इ ह वषय का श ण दे ते रहे ह, चं गु त। मेरे
पता मलयरा य के ांतपाल ह और हमारे सामने भी मैसीडो नयाई ख़तरा है। आचाय को
जो तु ह सखाना है, वो मेरी सहायता से तुम दोगुनी ग त से सीख पाओगे,” नए लड़के को,
जो न त प से अपने माता- पता को याद कर रहा था, सहज बनाने के लए उसने
वनोद कया।
सहारण आगे बोला। “ये मेरा म मे हर है। ये फ़ारस का है। म इससे फ़ारसी
सीख रहा — ं अ धकतर गा लयां! जब गंधार का युवराज आंभी यहां का छा था, तो उसे
हमेशा उ सुकता रहती थी क हम उसके बारे म या बोल रहे ह, पर वो नह जानता था क
हम उसे सबसे भ फ़ारसी गा लयां दे रहे ह! और ये है शारंगराव—इसके सामने कुछ भी
बोलते ए सावधान रहना। इसक मृ त हाथी जैसी है !”
भारत के पूव छोर पर मगध से उ रप मी सीमांत े त शला तक क या ा
थकाऊ तो थी, ले कन अ तरह पूण हो गई थी। उ ह ने कुल छह महीने म या ा पूरी कर
ली थी। अपनी पछली या ा के वपरीत इस बार चाण य के पास नए घोड़े बदलने और
सेवक के दल क सु वधा थी। लूटे कोष का कुछ भाग सेनाप त मौय के पास छोड़ दया
गया था ता क वो एक सेना तैयार कर सक जसे अंतत: धनानंद के स ा युत करना था
और बाहरी चढ़ाई को र रखना था। ‘सेनाप त मेरे साथ छल नह करगे,’ खेल के स ांत
से े रत ा ण ने सोचा। ‘आ ख़र उनका बेटा मेरे साथ है, और वो बेटा मगध का होने
वाला राजा और संभवत:, एक कृत भारत का स ाट है।’
चाण य और चं गु त अपने साथ काफ़ मा ा म सोना लाए थे। इसका योग एक
ऐसे छा बल को तैयार करने म होना था जो गंधार के ार पर ही मैसीडो नयाइय को पीछे
धकेलने म सहायता करेगा। लंबी और क ठन या ा के दौरान वो लगातार चोर-डाकु के
ख़तरे म रहे थे। सेनाप त मौय ने वशेष प से श त सै नक का एक बड़ा दल साथ
नह भेजा होता, तो वो वणकोष के साथ सुर त त शला कभी वापस नह प ंच पाते।

“हम यहां के समीकरण को समझ लेना चा हए। गंधार एक श शाली रा य है ले कन


राजा बूढ़ा और कमज़ोर है। उसका बेटा आंभी अधीर और मह वाकां ी है। समय मुझे सही
स करेगा ले कन मुझे व ास है क वो सहासन हड़पने के लए श — ु सकंदर—के
साथ मल जाएगा। इस समय गंधार पर आ मण करना मूखता होगी य क इस तरह
आप इस सबम तेज़ी ला दगे और उसे मैसीडो नयाइय क बांह म धकेल दगे,” चाण य ने
अपने म कैकय के महामं ी इं द को सावधान कया।
वो सधु के कनारे सन क एक मोट सी चटाई पर बैठे थे। उनके इस छोटे से सैर-
सपाटे के लए इं द क प नी ने उ ह फल, दही और कुछ अ य वा द चीज़ द थ ।
उनके घोड़े पास म ही एक पेड़ से बंधे ए थे। इं द और चाण य क मुलाक़ात गु त
रहनी आव यक थ ता क आंभी चाण य पर श ु से मल जाने का आरोप न लगा दे ।
इं द जानते थे क चाण य क बात सही है। जब मन ार के बाहर खड़ा हो
तो ार के क़ ज़ को कमज़ोर करने का कोई लाभ नह । ले कन वो ये भी जानते थे क
उनका अपना राजा पोरस पुराने ढं ग का स मान-साहस-और त ा वाला आदमी था। वो
ख़ुद को एक ऐसा वीर सै नक समझता था जो आंभी को ऐसा पाठ सखाएगा जसे वो
कभी भुला नह सकेगा।
“म आपसे सहमत ,ं व णु”—वो उन कुछ लोग म से था ज ह उसे उसके ज म
के नाम व णुगु त से बुलाने का अ धकार ा त था— “ कतु आंभी ने सीमा पर नरंतर
झगड़ से प र त को बगाड़ दया है। सेना के आद मय को चरवाह के भेष म भेजने
और मवे शय को लूटने ने सारे कैकय को ोध से भर दया है। महाराज पोरस फंस गए ह।
य द वो गंधार के व कुछ नह करते ह, तो उ ह डर है क उनके अपने ही लोग उ ह
कायर कहगे,” इं द ने ांत च भाव से एक सेब म दांत गड़ाते ए कहा।
“कई बार कुछ करने क नह , ब क ये दखाने क आव यकता होती है क आप
कुछ कर रहे ह। पोरस गंधार के व भाषण द। त शला के साथ राजन यक संबंध तोड़
द। सावधान हो जाने का एक कठोर संदेश भेज। सं ेप म, वो बना कुछ कए ऐसा दखाएं
क वो कर रहे ह !” चाण य ने श शाली नद म एक कंकरी फकते ए कहा।
इं द ने आह भरी। वो जानते थे क ये चालाक लोमड़ हमेशा क तरह ब कुल
ठ क कह रहा है। आंभी को मैसीडो नयाइय क बांह म भेजने से बेहतर ये होगा क गंधार
उ ह बाहर रखे। अ यथा गंधार अनाव यक प से वो ग बन जाएगा जसक सुर ा से
मैसीडो नयाई सै नक कैकय से लड़गे। “म न कष के बारे म पोरस से बात क ं गा, व णु,
ले कन ब त उ मीद मत रखना। मेरे राजा वयं को जतनी अ तरह जानते ह, म उ ह
उससे यादा अ तरह जानता ं !”

ई र स हो गया था। इस वशेष मामले म ई र मैसीडो नयाई था, और उसका नाम


सकंदर था। ले कन वो द दखता नह था। एक तो ये क वो ई र होने के लए ब त
छोटा था। ले कन उसके गदन तक लंब,े सुनहरे बाल, उसक एकदम सीधी नाक, चौड़ा
माथा और आगे को नकली सजीली ठोड़ी उसके छोटे क़द क भरपाई कर दे ती थी। इस
सुंदर दे वता ने एक भयानक तूफ़ान खड़ा कर दया था और उसक सेना ने सी रया, म ,
मेसोपोटै मया, फ़ारस और बै या को र द डाला था। उसक मां ओलं पयाज़ ने
मैसीडो नया के राजा फ़ लप के साथ अपने ववाह के नवाह से पहली रात को सपना
दे खा था क उसके गभ पर बजली गरी है। और ओलं पयाज़ और फ़ लप के अलौ कक
मलन ने एक ऐसा बेटा पैदा कया जो बजली से कम नह था।
फर इस बजली ने अपने सहासना ढ़ होने को सु न त करने के लए एक
क ज़न को फांसी चढ़वाया, दो मैसीडो नयाई राजकुमार क ह या कराई, अपने जनरल
को ज़हर दलवाया और अपनी सौतेली मां और उसक बेट को ज़दा जलवा दया। फर ये
बजली बयालीस हज़ार आद मय को लेकर फ़ारस दा रयूश तृतीय को हराने नकल पड़ा
जसे यु के हजाने के प म सकंदर को अपनी ही बेट दे नी पड़ी और फर
सवश मान क न दे वता ने पसपो लस म वेश कया और—सेना क आयु के सारे
पु ष को सूली चढ़ाने और उनक प नय और ब को दासता म बेचने के बाद—ख़ुद
को शहंशाह घो षत कर दया।
शहंशाह अपनी सबसे नई प नी, एक आ यजनक प से सुंदर उज़बेक
राजकुमारी, रॉ सेना, से संभोग कर रहा था, जो क उसक लड़क क सामा य ख़ुराक म
एक बदलाव थी क उसके मन म भारत पर आ मण करने का वचार आया। उसने नणय
कया क आंभी ही इसक चाबी होगा।

धूल भरे मैदान म दौड़ते हज़ार घुड़सवार को दे खना एक व मयकारी य था।


चतुरं गणी—कैकय क चार अंग वाली सेना—श शाली थी, ले कन ये एक अंग वाला
दानव और भी अ धक भयानक था। सामा य सै य यु म सेना के चार अंग पैदल,
घुड़सवार, हाथी और रथ होते थे। ले कन ग त और आ य के त व का लाभ उठाने के
लए कैकय ने गंधार को कुचलने के लए सफ़ घुड़सवार सेना का योग करने का नणय
लया था।
सेनाप त मेनका क जल ड़ा म बेसुध पड़ा आ था। उसे मो हनी मेनका ारा
कोमलता से नहलाया, मादकता से मला, और मृ भाव से खलाया गया था। जब वो सौ य
और शांत ऊंघ म आने लगा, तो मेनका ने अपने शयनक म ब तर के नकट चरस क
गंध जला द और तेज़ी से कमरे से नकलकर उसने दरवाज़ा बंद कर दया। वो कई घंट
तक तेल के यासे द ये क तरह बेसुध रहने वाला था।
ख़तरे क घंट बजाई जा चुक थी और त शला के दै याकार ार को बंद करने
के लए उनक गरा रय को तेज़ी से ख चा जाना आरंभ कर दया गया, ले कन तब तक
ब त दे र हो चुक थी। कैकय के घुड़सवार त शला म दनदनाते ए घुसे, उ ह ने गसेना
को घेरे म लया, गंधारराज के महल तक प ंचे और उ ह ने अंदर और बाहर जाने के रा त
को अव कर दया। गंधार का राजक य प रवार अपने सुनहरे पजरे म कैकय क
घुड़सवार सेना का बंद बना बैठा था। गंधार का सेनाप त गंधार क सबसे महंगी वे या के
शयनक म बेहोश पड़ा था, जब क त शला का नगरकोट भयंकर घुड़सवार क
अचानक आई तेज़ बाढ़ के आगे प त पड़ गया था।
महल के अंदर बूढ़े राजा गंधारराज को एक संदेश ा त आ। जब भी गंधारराज
कुछ समय नकालने को इ ु क ह , तब राजा पोरस के महामं ी इं द उनके त अपना
स मान कट करना चाहते थे! समय नकालने को ! हरामज़ादा कटा कर रहा है। उनके
पास करने को कुछ था ही नह —उनका महल तो घेरेबंद म था!
“महामं ी को सभागार म लाओ। म कुछ ही दे र म उनसे मलूंगा,” कमज़ोर और
थके ए स ाट ने कहा और उनके सेवक ने मदद करके उ ह खड़ा कया। ओह मेरे
अ ववेक पु आंभी, मने कैकय म तेरी मूखतापूण घुसपैठ के व हमेशा तुझे चेताया
था। नतीजा सामने है, शासक ने सोचा जब क उनके प रचर उ ह पोरस के संदेशवाहक से
मुलाक़ात क तैयारी म उनका रेशमी शाला पहनाते और उनके ततीस कैरट के हीर से
ज ड़त आभूषण से सजाते रहे।

इं द गंधारराज के आगे नीचे तक झुके और बोले, “हे श शाली स ाट, गंधार क घाट
के अ धप त और वामी, त शला के उपकारी, हे गंधार के नाग रक के उदार पता, हे
बु मान, व ान, वीर—”
गंधारराज ने उ ह वा य के बीच म ही टोक दया। “मेरे त ये श ाचार दखाना
आपक उदारता है, इं द , कतु स य ये है क आप मेरे वजेता ह, और म परा जत ,ं ”
सफ़ेद दाढ़ वाले वृ राजा ने अपने अधीनकता को बैठने का संकेत करते ए कहा।
इं द वयं को तुत क ई कुस पर नह बैठे। इसके बजाय, वृ शासक के त
अपने स मान व प वो उनके पैर के पास पालथी मारकर बैठ गए।
“आप मेरे त इतना स मान य दखा रहे ह ?” गंधारराज ने पूछा, “म आपका
बंद ं और आपने मुझे एक ही घातक वार म हरा दया है।”
“गंधारराज, कैकय रा य ने आपको हमेशा अ यंत स मान क से दे खा है।
हमारे राजा पोरस ने आपके वषय म हमेशा नेह और स मान से बात क है। वो जानते ह
क आप बु मान, याय य और ईमानदार ह। आपके रा य पर आ मण का नणय
ब त क ठन था, ले कन हमारे पास कोई वक प नह बचा था। आपके पु आंभी
सीमावत े म अशां त फैलाने के लए भेष बदले सै नक और यो ा को भेजते रहे
ह। हमने छोट -मोट झड़प को नज़रअंदाज़ करने का पूरा यास कया, ले कन अकारण
अ त मण म कोई कमी नह आई,” इं द ने थके ए और े य शासक को समझाया।
“म आपक प र त को समझ सकता ,ं इं द । म आंभी पर लगाम लगाने के
लए अपनी सांसा रक श य क सीमा म सबकुछ करने को इ ु क ं, ले कन वो
उजड् ड और धृ है। पोरस से मेरी ओर से कहना क उसे मा कर द,” गंधारराज ने वनती
क।
इं द बोलने से पहले थोड़ा हच कचाए। “हे वद ध राजा, कृपया मुझे श मदा न
कर। म आपका तु सेवक ं और मेरे अपने वामी, पोरस, इस वषय म ह कउह
सम या आपसे नह ब क आंभी से है। वो इस बात को लेकर भी च तत ह क आपके पु
सकंदर के साथ गु त समझौता कर रहे ह। अगर गंधार ने सकंदर को भारत का रा ता दे
दया, तो हम सबके रा य ख़तरे म पड़ जाएंगे,” उ ह ने कहा।
“ये असंभव है! आंभी भी जानता है क मेरे अनुमोदन के बना कसी के पास भी
कसी के साथ समझौता करने का अ धकार नह है,” आ त से यादा आशावान राजा ने
कहा।
“म आंभी के काम के बारे म आपको कैसे व ास दलाऊं, महाराज?” इं द ने
कहा। कथना मक के बाद उ र क ती ा कए बना इं द ने आवाज़ लगाई,
“अभय ! कृपया अंदर आओ।”
कुछ ही ण के अंदर वो जासूस जसने मेनका के साथ उसके आनंद ताल पर
दे र रात को बात क थी अंदर आया। उसने दोन आद मय के अ भवादन म हाथ जोड़े
ले कन ख़ामोश रहा और इं द क ओर से अगले नदश क ती ा करने लगा।
“अभय, या तु हारे आदमी आंभी का पीछा करते रहे ह ?” इं द ने लगभग
अदालती ढं ग से पूछा।
“जी, वामी,” अभय ने जवाब दया।
“और या तुमने राजकुमार पर दन के पं ह मु त और रात के पं ह मु त नज़र
बनाए रखी है ?”
“जी, वामी। वो कभी भी हमारी नज़र से र नह रहे।”
“ या राजकुमार पछले शु लप म त दन त शला म ही रहे ?”
“नह , वामी। वो शकार के लए गए थे और शु लप के सरे दन कंबोज म
वेश कर गए थे।”
“कंबोज म वेश करने के बाद उ ह ने वहां श वर ा पत कया था ?”
“जी, वामी। वो अपने कंबोज के श वर म तीन दन और तीन रात रहे।”
“ या राजकुमार से मलने के लए कोई वशेष अ त थ आए थे ?”
“एक दन, वामी। से यूकस आया था और उसने उनके साथ कुछ घंटे बताए
थे।”
“से यूकस, सकंदर का भरोसेमंद जनरल ?”
“जी, वामी। घोड़ पर मैसीडो नयाई राज च से तो ऐसा ही लगता था।”
“ या तु हारे जासूस ने बातचीत सुनी थी ?”
“नह । पर से यूकस का स चव गम मोम और जनरल क मुहर वाली अंगूठ क
व ा करने के लए भट वाले तंबू से बाहर आया था।”
“तो इसका अथ है क वो कोई म तापूण शकार अ भयान नह था, जब तक क
अब शकार क वैजयं तय को मोम क मुहर से दाग़े जाने का चलन आरंभ न हो गया
हो,” इं द ने तीखे ढं ग से ट पणी करते ए गंधारराज के च तत भाव को दे खा।
“ध यवाद, अभय, तुम जा सकते हो,” इं द ने कहा।
“हाय ! मेरे मूख पु ने या कर डाला? म इसक तपू त कस तरह क ं गा,
इं द ?” अभय के जाते-जाते गंधारराज ने पूछा।
इं द के पास कहने को कुछ नह था। वो जानते थे क चाण य क बात सही
थी। पोरस ने गंधार पर आ मण करके आंभी को सकंदर क बांह म धकेलने के
अ त र कुछ हा सल नह कया था।

वो आकृ त ढ ला सा काला पाजामा और काली सूती बंडी पहने ए थी। उसके चेहरे के
नचले भाग पर एक काला मुखौटा ढका आ था, जससे उसका सर और आंख ही खुली
रह गई थ । सन क एक लंबी सी र सी उसक कमर म कसकर लपट ई थी। उसका
चेहरा और हाथ का लख म सने ए थे ता क शरीर का कोई भाग खुला रह गया हो तो वो
रात के अंधेरे म छप जाए। उसक कमर के एक ओर एक छोट सी कटार लटक ई थी
और सरी ओर एक अ तरह तेल पराई ई बांसुरी जैसी बांस क छड़। वो नंगे पैर था
और महल के ग लयारे के ठं डे और घसे ए प र क सल पर चलते ए उसके पैर से
कोई आवाज़ नह हो रही थी। कुछ मनट बाद, वो एक खड़क के पास का, उसने र सी
खोली, उसे पास ही के एक खंभे म मज़बूती से बांधा और बाक़ र सी को उसने बाहर फक
दया। उसने र सी को मज़बूती से पकड़ा और ख़ुद को नीचे खड़क के छ े तक ले जाने
लगा जो एक तल नीचे था। वहां प ंचने के बाद, वो झूलकर अंदर गया, अनंत ग लयारे के
अंदर उतरा, उसने ख़ुद को संतु लत कया और र उस सजावट दरवाज़े को दे खा जो
राजक य शयनक तक ले जाता था।
बाहर दो पहरेदार एक- सरे के पार तरछे भाले लए खड़े थे। पूरे ग लयारे म
खंभ क क़तार थी जो शयनक के दरवाज़े और उसके बाहर खड़े पहरेदार तक जाती
थी। पहरेदार क नज़र से छपने के लए काली आकृ त धीरे से उछल-उछलकर वशाल
खंभ के पीछे छपती ई अपने उ े य क ओर बढ़ रही थी। उसने ये सु न त करने के
लए क वो आ मण करने लायक़ री पर है अपने आख़री क़दम ब त सावधानी से नापे
और फर एक खंभे के पीछे घुटन के बल झुक गया। उसने अपनी कमर से बांसुरी जैसी
छड़ को खोला और एक लंबी गहरी सांस ली।
छड़ को अपने ह ठ तक लाकर उसने दोन म से अ धक चौक े संतरी का
नशाना लया और पाइप म ज़ोर से फूंक मारी। एक बेहद छोटा सा बाण, जो वषैले कंद
के आसव और सांप के वष म बुझा आ था, तेज़ी से अं धयारे ग लयारे म बढ़ा और उसने
संतरी के गले म एक बेहद छोटा सा छे द कर दया। ये म र के काटे से अ धक नह था
ले कन इसका भाव व वंसकारी था। इससे पहले क वो फ़श पर ढहता और अपने साथी
को सावधान करता एक और मटर के दाने जतना बाण ेपक के मुख से नकला और
सरे पहरेदार क आंख के बीच जा धंसा। दोन आदमी कुछ ही सैकंड म ढह गए और
उनके भाल के गरने से शांत ग लयारे म एक भयानक गूंज ई।
वो उछला, दौड़ता आ दोन पहरेदार के पास प ंचा और घुटन के बल झुककर
उसने उनक गदन क नाड़ी क जांच क । प का कर लेने के बाद क वो वाक़ई मर चुके
ह, उसने अपनी कटार नकाली और सावधानीपूवक दरवाज़ा खोला। पूव छोर क ओर
एक वशाल पलंग पर लेट ई आकृ त से नकल रहे ऊबड़-खाबड़ ख़राट के अ त र
कमरा शांत था। कमरे म अंधेरा था, उस एक द ये के अलावा जो वेश ार के नज़द क
जल रहा था।
ह यारा आगे बढ़ता आ ब तर पर सो रहे तक प ंच गया। उसने अपने
पता के चेहरे को दे खा, अपना चाक़ू ऊंचा कया और उसे गंधारराज के सीने म घ प दया।
बूढ़े राजा का बायां नलय सकुड़ा, धमनीय र के फ़ वारे छू ट पड़े और ब तर म दरा जैसे
रंग के गाढ़े र से भीग गया। शासक के पटल पर ह यारे पु क छ व अं कत ई तो
उनक आंख पलांश को खुल । उनका भयपूण भाव ज द ही शां त के भाव म बदल गया
जब उ ह अहसास आ क अंतत: उनका अपमानजनक जीवन समा त हो चुका है।

“मने आपको चेताया था, इं द ,” त शला के प रसर म म के अखाड़े म चं गु त को


सहारण से कु ती करते दे खते ए चाण य ने कहा। दोन पहलवान म यु लंगो टयां
पहने ए थे और उनके शरीर तल के तेल और पसीने के म ण से चप चपे हो रहे थे।
उनक शैली भारत क चार शै लय —हनुमंती, जंबुवंती, जड़सं ध और भीमसेनी—का
म ण था। ले कन ये कोई सरल कु ती नह थी। जैसे ही एक अपने वरोधी को
पछाड़ने वाला होता, वैसे ही लाठ लए भयानक से दखने वाले आद मय का एक दल उस
पर आ मण कर दे ता। वो उनसे भड़ता तो उसके वरोधी को वापसी का अवसर ा त हो
जाता।
इं द ने इस ट पणी पर बुरा सा मुंह बनाया। “जानता ,ं जानता ं। आपके
पास ‘मने कहा था ना’ बोलने का कारण है ले कन पोरस ने हमारे लए कोई वक प ही
नह छोड़ा। मने गंधारराज के इस आ ासन पर कैकय से अपनी सेनाएं हटा ली थ क वो
अपने बेटे को रोकगे। कौन जान सकता था क वो अपने ही पता क ह या करने का
नणय ले लेगा! हमने सब गड़बड़ कर द है। अब आंभी सकंदर के साथ अपने समझौते
को आगे बढ़ाने के लए आज़ाद है। लोग कहते ह सकंदर कसी दे वता जैसा दखता है !”
चं गु त को सहारण को पछाड़ने क जकड़ म लेते दे खते ए उ ह ने शकायत क ।
इतने बरस म, चं गु त पु ष व के एक शानदार नमूने के प म बड़ा हो गया था।
चौड़े कंधे, मांसल बांह और पहलवान जैसी जांघ उसके सौ य चेहरे, राजसी नाक और
कंध तक लहराते उसके घने, घुंघराले, काले बाल के एकदम उलट दखती थ । उसके
वा य श क ने उसे कु ती, तीरंदाज़ी, घुड़सवारी और तलवारबाज़ी का श ण दया
था।
उसका दै नक नयम सबसे कठोर और सादे भ ु के नयम से भी क ठन था।
तीस मु त के दन-रात म, सूय दय के बाद के दो मु त ायाम, और शारी रक व यु
श ण म जाते थे। अगले दो मु त राजा वाले वषय —अथशा , राजनी त, इ तहास
और भूगोल—क वशेष ता ा त करने म लगते थे। उसके बाद के दो मु त उसके नजी
समय के थे—नहाना और दोपहर का ज द भोजन। दोपहर बाद के दो मु त अ य वषय
—ग णत, सामा य व ान और भाषा —के अ ययन के लए होते थे। फर दो घंटे
घुड़सवारी ग त व धय के लए होते थे जसम घुड़सवारी यु भी शा मल था। सूया त से
पहले के दो मु त आ या मक ान और ाचीन ंथ सीखने के लए थे जसके बाद नहाने
और भोजन के लए दो मु त का समय मलता था। भोजन के बाद के दो मु त गृहकाय
और दन भर सीखी चीज़ को दोहराने के होते थे। अं तम दो मु त यान और चतन के
होते थे जसके बाद वो अपनी लंबी झपक लेता था और फर सवेरे यही काय म दोबारा
आरंभ हो जाता।
“म च तत नह ,ं इं द । और य द म आपके ान पर होता, तो सव े नी त
कुछ भी न करना ही होती,” चाण य ने अ य पहलवान को गनल पहनते और बैठक का
अ यास करते दे खा।
“आप मेरी समझ म नह आते, व णु। आप मैसीडो नयाई यु तं से हमारे दे श
को ख़तरे के बारे म उपदे श दे ते ह और जब वो दरवाज़े म पैर डालने म सफल हो जाते ह तो
आप प क न यता का उपदे श दे ते ह !” हाथ म मुगदर लए ढकूली करते तीन
पहलवान को नज़रअंदाज़ करते ए इं द फट पड़े।
“मे हर ! यहां आओ। कृपया इं द को समझाओ क मुझे इतना व ास कैसे
है,” चाण य ने अपने फ़ारसवासी छा को बुलाते ए कहा। मे हर ने, जो ख़ुद भी पसीने से
तर था, अपना भार गराया और उनके पास आया। उसने दोन जन के त
अ भवादन व प अपने हाथ जोड़े।
“कैकय के महामं ी को बताओ क मने कुछ न करने का सुझाव य दया है,”
चाण य ने कहा।
“आचाय के नदश पर, मने फ़ारसी ापा रय का एक तं बनाया है जो मुझे
पसपो लस क ग त व धय क जानकारी दे ते रहते ह। मने मैसीडो नयाइय के हाथ
पराजय के तुरंत बाद ही उस महान शहर को छोड़ दया था और ऐसा लगता है क उसके
कुछ महीने बाद सकंदर ने महल म एक वशाल म ो सव आयो जत कया था, जससे
एक बड़ी आग लग गई थी। पसपो लस के अदभुत ख़ज़ान स हत अ धकांश शहर न हो
गया। सकंदर क चढ़ाई को फ़ारस के धन से मला बल भावहीन हो गया है,” मे हर ने
बताया।
“इसका अथ ये है, इं द , क सकंदर क ग त धीमी होगी। उसके अ धकतर
सै नक भाड़े के ह। अगर उ ह पैसा नह मलेगा, तो वो लड़गे नह । ऐसी संकु चत मता के
साथ सकंदर के लए कैकय क श शाली सेना को हराना क ठन होगा,” चाण य ने
खोए-खोए भाव से अपने पास रखे बतन से तल का तेल लेकर अपनी कोह नय पर मलते
ए कहा।
“तो मुझे अपने राजा से या कहना चा हए ?” इं द ने पूछा।
“उनसे कहना क वो शां त से सोएं,” चतुर ा ण ने कहा।

“पसपो लस क आग ने सकंदर क तलवार क धार को कुंद नह कया है, फर भी


आपने मुझसे कैकय के महामं ी से झूठ कहलवाया। य , आचाय ?” इं द के जाने के
बाद मे हर ने पूछा।
“मे हर, म चा ंगा क म तुमसे जो पूछने वाला ं उनके उ र दे ने से पहले
ब त यान से सोचना। भारत म सबसे श शाली रा य कौन सा है ?”
“ न संदेह, मगध।”
“और मगध पर कौन शासन करता है ?”
“धनानंद।”
“धनानंद से मगध छ नने के लए हम सरे सबसे श शाली रा य क सहायता
क ज़ रत पड़ेगी। तु हारे वचार म वो रा य कौन सा है ?”
“कैकय।”
“और कैकय पर कौन शासन करता है ?”
“पोरस।”
“ले कन अगर पोरस आव यकता महसूस नह करेगा, तो वो मगध को ा त करने
म हमारी सहायता य करेगा? कन प र तय म वो हमारे साथ मलना चाहेगा ?”
“य द उस पर आ मण आ हो।”
“और उसका घोर श ु कौन है ?”
“गंधार का राजा आंभी।”
“और या आंभी पोरस से अकेले लड़ने म स म है ?”
“ ब कुल नह । उसक अपनी राजधानी को कैकय ने आसानी से अ धकार म ले
लया था!”
“तो आंभी को कैकय पर आ मण करने यो य श शाली कैसे बनाया जा सकता
है ?”
“ सकंदर !”
“ ब कुल।”
“ले कन आचाय, आपने तो कहा था क मैसीडो नयाई वष ह और हम सु न त
करना चा हए क वष फैले नह ।”
“ब धा हम रोग के उपचार के लए थोड़ी-थोड़ी मा ा म वष का योग करते ह
ना ? य द मा ा को ठ क से नापा जाए, तो वही वषैला पदाथ जो ाण ले सकता है, ाण
बचा लेता है। हम मैसीडो नयाइय का योग ठ क इसी कार से करना है।”
“अगर सकंदर आंभी का म बन गया और उ ह ने पोरस पर संयु प से
आ मण कर दया, तो इस बात क संभावना है क सकंदर सारे भारत का स ाट बन
जाएगा!”
“मे हर, म एक बार फर क ंगा क जवाब दे ने से पहले अ तरह वचार करना।
भारत म अपने अ भयान क योजना बनाने से पहले सकंदर ने कन दे श को जीता है ?”
“फ़ारस, सी रया, म , एसी रया, बेबीलो नया—”
“हां, हां, म जानता ं। ले कन कुल कतने सकंदर ह? एक? दो? दस ?”
“केवल एक,” मे हर ने मु कुराते ए कहा।
“केवल एक सकंदर और द सय व जत रा य। वो लड़ेगा और आगे बढ़ जाएगा।
वो एक साथ दस ान पर तो नह रह सकता !”
“ले कन उसके सेनाप त रह सकते ह। वो ांतपाल नयु कर सकता है।”
“ सकंदर अपने सै नक अ भयान पर नकला था तो उसक सेना कतनी बड़ी
थी?”
“मेरे ोत के अनुसार मैसीडो नया छोड़ते समय उसके पास बयालीस हज़ार सेना
थी।”
“ या तु हारे ोत ने तु ह बताया क अब उसके पास कतनी सेना है ?”
“लगभग उतनी ही।”
“ व च । य द वो अपनी कुछ सेना फ़ारस, सी रया, म , एसी रया, बेबीलो नया,
बै या और अ य व जत े म छोड़ता, तो अब उसके सै नक क सं या कम होनी
चा हए थी। इससे या पता चलता है ?”
“ क वो व जत े पर नयं ण बनाए रखने के लए बड़े सै यदल नह छोड़ रहा
है ?”
“और क वो उन व जत े म अपने हत क दे खरेख के लए ानीय
सहयो गय पर नभर करता है।”
“तो हम बैठे आंभी और सकंदर क संयु सेना के हाथ पोरस को हारने द,
आचाय? म तो अपने दे श के लए मर जाना पसंद क ं गा।”
“मूख लोग दे श के लए मरते ह। बु मान सर को उनके दे श के लए मरवाते
ह। याद रखो, जो योजना बनाकर भाग नकले, वो एक दन और लड़ने के लए जीता है। ये
कायरता नह है, ये शतरंज है— और बाज़ी मेरे हाथ म है! सकंदर का अ भयान पोरस
और आंभी दोन को कमज़ोर कर दे गा। उ ह कमज़ोर करने के बाद वो अपने कसी
सेनाप त—शायद से यूकस—को अपना ांतपाल नयु करेगा और आगे बढ़ जाएगा।
वही होगा हमारा ण। चं गु त का ण! भारत का ण !”
“और हम पोरस को हारने से बचाने के लए कुछ न कर?”
“लड़ाइयां लड़ी जाने से पहले ही जीती और हार ली जाती ह। पोरस पहले ही हार
चुका है।”
“और तब तक हम या कर ?” मे हर ने अपने गु को यान से दे खते ए पूछा।
“हम अपनी सेनाएं बनाएंगे और ती ा करगे—धैयपूवक।”
“और इं द ?”
“आज उससे झूठ बोलकर म वो पुल पहले ही जला चुका ं।”
अ याय आठ
वतमान समय

का रदा बोल रहा था। “कानपुर के सब-जुडी शयल ड ट म ज े ट क अदालत आरंभ


हो रही है। माननीय जज एस.सी.पांडेय पीठासीन ह गे। व ा और ख़ामोशी का आदे श
दया जाता है। ई र माननीय यायालय क र ा करे!”
माननीय सब-जुडी शयल ड ट म ज े ट एस.सी.पांडेय ने अपने सामने खड़े
वक ल को दे खा। “आपका मुव कल कहां है ?” जज ने पूछा। वक ल ने इधर-उधर दे खा
जैसे वो अपने मुव कल को अदालत क डे क के नीचे दे खने क उ मीद कर रहा हो।
म ज े ट ने आह भरी। वो यहां अदालत म नह होना चाहता था। वो शहर के बाहरी े म
होटल के कमरे म हमीद के सुंदर शरीर के आनंद म डू बे होने को पसंद करता। उसके बारे
म सोचते ही जज के ह ठ पर एक मंद सी मु कान पसर गई।
“सर, म नह जानता। उ ह ने कहा था क वो न त समय से दस मनट पहले ही
यहां प ंच जाएंग,े ” परेशान वक ल ने म पांडे के कामुक दवा व को तोड़ते ए कहा।
“ऐसी बात है, तो म उनक गर तारी के आदे श जारी कर रहा ं। का रदे , गर तारी का
वारंट जारी करो और सु न त करो क म इकराम शेख़ को मेरे सामने ज द से ज द
पेश कया जाए।”

“कमीने क इतनी ह मत हो गई क मेरी गर तारी का वारंट जारी कर दया,” इकराम ने


ग़ से से कहा।
“इकराम—इकराम—शांत हो जाओ! या आ ?” गंगासागर ने हालात के बारे म
पूण अ ानता दशाते ए कहा।
“जैसा क आप जानते ह, पु लस क म र को रा य के गृहमं ी ने नकाल बाहर
कया था। उसके जाते ही म वीआईपी नह रहा। उ ह ने मेरे और मेरे कारोबार के बारे म
छानबीन शु कर द है, हालां क म इस साले शहर का मेयर ं।”
“ले कन इसम सम या या है? तुम ब त सी छानबीन से गुज़रे होगे। हर छानबीन
क एक क़ मत होती है,” गंगासागर ने राय द ।
“पर इस बार मामला भ है। उ ह ने अहमद—जो मेरे वसूली के काम क
दे खभाल करता था—को पीटा और उससे मेरे ख़लाफ़ ढे र सारे झूठ उगलवा लए !”
प से ु इकराम फड़फड़ाया।
“ फर भी—मुझे यक़ न है क जब मामला म ज े ट के सामने आएगा, तो इससे
नबट लया जाएगा, है ना?” गंगासागर ने चालाक से पूछा।
“मने उस हरामी के मामले म सबकुछ करके दे ख लया। वो हलने को ही तैयार
नह है। ऐसी कोई चीज़ नह जसका मने कमीने को ताव नह दया ले कन वो मुझे
छोड़ने को ही राज़ी नह है। म उसक ठु काई भी नह करवा सकता य क मेरे सारे
आद मय पर मनी पे उतरी पु लस नज़र रखे ए है !” इकराम ने इस अ याय पर शोक
जताते ए कहा।
“दे खो, इकराम, तुम मेरे सबसे क़रीबी दो त हो। और दो त होने के नाते, मेरी राय
है क तुम शांत रहो। मेयर—और मु यमं ी के दावेदार—होने क वजह से हर कोई तुमसे
बैर रखता है,” ‘हर कोई’ म अपना हवाला दए बना गंगासागर ने कहा।
“पर रा य के चुनाव नज़द क ह,” इकराम बोला। “म पाट का त न ध व नह
क ं गा तो कौन करेगा? हमने एबीएनएस को मज़बूत बनाने के लए इतनी मेहनत क है।
बात मेरी नजी शान क नह है— ख़ुदा न करे—बात है आपके और एबीएनएस के त
फ़ज़शनासी क ,” इकराम ने दलील द ।
“म तु ह कभी नह खोना चा ंगा, इकराम,” गंगासागर ने कहा, “ले कन मेरे लए
तु हारी दो ती इतनी अहम है क म तु ह ायी प से खो दे ने का जो खम नह लेना
चाहता। मेरे वचार से तु ह मु यमं ी पद क दावेदारी से पीछे हट जाना चा हए और कसी
और को समथ न दे ना चा हए।”
“आपक या राय है?”
“म कसी को जानता ं जो म ज े ट से वो काम करा सकता है जो हम उससे
कराना चाहते ह। ले कन तु ह शांत पड़े रहना होगा ता क सरकारी मशीनरी तु हारे ख़लाफ़
काम करना बंद कर दे । चांदनी लौट आई है। य न तुम उसे अपना राजनी तक
उ रा धकारी बना दो? वो एक ग़रीब बेसहारा लड़क है—वो फर भी तु हारे नयं ण म
रहेगी,” गंगासागर ने राय द ।
“उसने नह लड़ने का फ़ैसला कर लया है,” गंगासागर ने अ वालजी से कहा। “इकराम ने
अपनी मुंहबोली बेट का समथन करने का फ़ैसला कर लया है।”
“वो कैसे मान गया ?” अ वालजी ने पूछा।
“आदमी क गो लयां जकड़ लो, तो उसका दल और दमाग़ ख़ुद ही आपके हाथ
म आ जाते ह,” गंगासागर ने हंसते ए कहा और हमीद को लाने के लए उसने मन ही मन
अपने से े टरी मेनन को ध यवाद दया।

“चांदनी, म तु ह कुछ ब त अ े छा से मलाना चा ंगा। ये लखनऊ व व ालय से


उप क यप है; ये इलाहाबाद व व ालय से बृजमोहन राय है; ये अलीगढ़ मु लम
व व ालय से इक़बाल आज़मी है; बनारस ह व व ालय से गरीश बाजपेयी—”
चांदनी ने उ र दे श के व भ व व ालय के लड़क को दे खा। वो छा जैसे
नह लगते थे। उनम से यादातर तीस-चालीस साल तक के लगते थे। पहला लड़का,
लखनऊ व व ालय का उप क यप आगे बढ़ा और उसने हाथ जोड़कर चांदनी का
अ भवादन कया। “म जानता ं आप या सोच रही ह, चांदनीजी। हम छा होने के लए
ब त बूढ़े लगते ह! ले कन गंगासागरजी के संर ण म हम सबने अपना पूरा जीवन ड यां
ा त करने म लगा दया है।”
“तो आप कस े म अ ययन कर रहे ह ?” चांदनी ने ज ासावश पूछा।
“ओह, म व व ालय म पं ह साल पहले गया था। पहले दशनशा म बीए क
ड ी ली और फर मने डबल ड ी लेने का फ़ैसला कया, अं ेज़ी म बीए (अ◌ॉनस)।
नातक तर पर दो बु नयाद ड यां लेने के बाद, म मानव व ान म एमए क तैयारी करने
लगा। अब म भाषा व ान म पीएचडी पूरी कर रहा ं।”
“इतने सारे नौजवान कई-कई ड यां लेने के लए व व ालय म य टके
रहते ह ?” चांदनी ने धीरे से गंगासागर से पूछा।
“ता क वो व व ालय के छा बने रह,” गंगासागर ने बताया।
“ले कन वहां उनक या ज़ रत है ?” चांदनी ने पूछा।
“ता क वो चुनाव लड़ सक,” गंगासागर ने बताया।
“कौन से चुनाव ?”
“छा संघ के चुनाव।”
“एबीएनएस को उ र दे श के तीस व व ालय के छा संघ से ख़ुद को
जोड़ने क या ज़ रत है ?”
“ य क अगर हमारे युवा व व ालय के छा संघ को नयं त करगे, तो हम
—एबीएनएस—युवा को नयं त करगे, जो क रा य के श संतुलन का एक मुख
अंग ह।”
“और फर वो या करगे ?”
“अ मान वक श ा आईएएस—इं डयन एड म न े टव स वस—या
आईआरएस—इं डयन रेवे यू स वस—के लए काफ़ है।”
“तो वो नौकरशाही म चले जाएंगे ?” चांदनी ने पूछा।
“इनम से कुछ मक संघ के नेता बन जाएंग,े कुछ इनकम टै स क म र बनगे,
कुछ रज़व बक अ◌ॉफ़ इं डया म से े टरी—ब त से ऐसे काम ह जनम हम अपने लोग
क ज़ रत है !”
कुछ क़दम र, राइफ़ल थामे तीस पु लसवाले जीप और पु लस क वैन के पास
खड़े थे। “हमारे छा संघ के अ य के आसपास इतने पु लसवाले य ह ?” चांदनी ने
पूछा।
“सुर ा,” गु ने जवाब दया।
“सुर ा ?” चांदनी उलझन म पड़ गई।
“हमारे छा संघ के आधे नेता को उन सरी पा टय के उ मीदवार से सुर ा
क ज़ रत है जो उ ह हटाना चाहते ह।”
“और बाक़ आधे?”
“बाक़ आध को उनसे बचाए जाने क ज़ रत है,” उसने ठहाका लगाया।

“तु ह एक बड़ी जीत क ज़ रत है,” चांदनी अंदर आई तो गंगासागर ने कहा।


“पर म तो चुनाव लड़ने के बारे म कुछ भी नह जानती ,ं ” वो बोली।
“मेरा मतलब चुनावी जीत से नह है, बेट । मेरा मतलब है क तु ह एक तगड़ा
जनसंपक शु करना चा हए जससे तु ह तुरंत शोहरत मल जाए ता क तुम इकराम क
वरासत क स ी दावेदार मानी जाओ !”
“आपने ज़ र कुछ सोचा आ होगा, गंगा अंकल,” वो चतुरता से बोली।
गंगासागर मु कुराने लगा। वो जानता था उसका चुनाव सही है।
“ या तुम जानती हो क ं टा एंड सोमानी शहर के बाहरी े म एक बड़ा ट ल
लांट लगा रहे ह ?” उसने पूछा।
“हां। मने इस बारे म पढ़ा था। ये रा य के लए अ ा रहेगा। कुल मलाकर
प ीस हज़ार रोज़गार पैदा ह गे। एक जापानी ब रा ीय कंपनी के सहयोग से ये ोजे ट
बनाया जा रहा है और ये भारत म अभी तक बने येक लांट को पीछे छोड़कर दे श का
सबसे बड़ा सम वत ट ल लांट होगा,” चांदनी ने कहा।
“कुछ अंदाज़ा है क उ ह कतनी ज़मीन चा हए होगी,” गंगासागर ने पूछा।
“मने सुना है क ये एक हज़ार एकड़ म फैला होगा। उ र दे श सरकार ने इसे
मु त ज़मीन दे ने का ताव रखा है। दे श भर क ब त सी दे श सरकार आर एंड एस को
लुभाने क होड़ म लगी ई ह। ये जीडीपी को तुरंत बढ़ाने वाली दवाई है,” चांदनी ने पूरे
हाव-भाव के साथ कहा।
“और जस ज़मीन पर लांट बन रहा है उसका मा लक कौन है ?”
“ यादातर तो खे तहर ज़मीन है। ग़रीब कसान क । वो अपनी ज़मीन दे ने म ख़ुश
ह य क आर एंड एस ने उ ह नौक रयां दे ने क गारंट द है।”
“अगर कसान व ोह कर द? अगर वो कह क उनक मामूली सी संप य को
उनसे छ ना जा रहा है ?”
“तो ेस के मज़े आ जाएंगे,” चांदनी ने जवाब दया, “ले कन अगर आर एंड एस
ने हाथ ख च लया, तो ये दे श क अथ व ा के लए अ ा नह होगा।”
“म चा ंगा क तुम कुछ कसान से मलो। कसी तरह उनक व ा बन जाओ।
और फर तुम ता वत लांट के गेट के बाहर बैठ जाओ और घोषणा करो क जब तक
ग़रीब बदनसीब कसान क सम या का हल नह नकलेगा, तुम अ न तकालीन भूख
हड़ताल—आमरण अनशन–पर रहोगी !”
“ले कन मुझे भूख लगेगी !” वो बोली।
“ याग क श , चांदनी। इ तहास के पाठ और महा मा गांधी याद ह ?”
“ले कन म भूखी रहने क आद नह ं। मेरी शुगर का तर चौबीस घंटे के अंदर
गर जाता है,” कृत भाव से इलायची वाली मीठ चाय को वीकार करते ए उसने
शकायत क । चांदनी क नया म इलायची वाली मीठ चाय से बेहतर पेय कोई नह था।
“मुझपे भरोसा रखो। तु ह एक दन के अंदर जीत मल जाएगी!”
“कैसे ? हमने तो अभी तक बंधन से भी बातचीत नह क है।”
“आह ! म तु ह बताना भूल ही गया क मने म सोमानी—आर एंड एस के
उपा य —से मुलाक़ात क थी और...”
“ या ?”
“—वो कसान का मुआवज़ा बढ़ाने के लए सहमत हो गए थे।”
“प का वादा ?”
“ भा य से, उनके पाटनर चेयरमैन म ं टा पीछे हट गए। उ ह ने कहा क वो
यादा पैसा नह दे सकते।”
“तो आपने उनसे या कह दया है ?”
“मने उनसे कहा क अगर उ र दे श म एबीएनएस क सरकार बनती है, तो हम
आर एंड एस को बीस साल तक ब कर म पूरी छू ट दगे।”
“और ब कर क छू ट कतनी बनेगी ?” उसने चतुरता से पूछा।
“कई अरब,” गंगासागर ने जवाब दया।
“तो रा य सरकार जो ताव उ ह पहले ही दे चुक है उसे आपने बढ़ाने क बात
क है ?” उसने अ व ास के साथ पूछा।
“हां। ले कन वो उस पैसे को कसान क ज़मीन के मुआवज़े के प म वापस दे ने
पर सहमत ह।”
“तो उ ह एक पैसा भी यादा नह ख़च करना है ले कन फर भी वो ये दखा
सकते ह क ज़मीन के तगड़े मुआवज़े क आपक इ ा के आगे झुक गए ह ?”
“ ब कुल। सब ख़ुश रहगे और हम चुनाव म जीत मल जाएगी !”
“ले कन—ले कन—मुझे भूख हड़ताल पर जाने क या ज़ रत है? अगर हमारे
पास उनक सहम त है तो हम ेस म घोषणा कर सकते ह,” चांदनी बोली।
“ यारी लड़क । ेस को उन सम या म दलच ी नह होती है जनका हल
पहले ही नकाला जा चुका हो! पहले उ ह ज़बरद त मु कल वाली नाटक य सम याएं
चा हए होती ह। उन पर बात करना चाहते ह वो। ऐसी ख़बर को वो चाटते ह! उ ह एक
गम सम या दे ने के बाद, हम उ ह एक चम का रक हल दगे। तुम तुरंत हीरोइन बन
जाओगी !”
चांदनी भौच क सी अपने गंगा अंकल को दे ख रही थी। उसने महसूस कया क
उसे अभी ब त कुछ सीखना है। “जाओ जमकर खाना खाओ। कल तु ह खाना नह
मलने वाला,” गंगासागर ने कहा और वो उठकर चल द ।

भूतपूव पु लस क म र गंगासागर के साथ उसके बरहाना रोड वाले छोटे से लैट म बैठा
था। “मने आपके नदश पर गृहमं ी और र ो भैया के बीच झगड़ा बढ़ाने म इकराम क
मदद क थी। अब मुझे नकाल बाहर कया गया है। आप मेरे ॠणी ह,” वो बोला।
“म सहमत ,ं ” गंगासागर ने कहा। “म इससे बड़े पद क व ा क ं गा—
द ली म अपने भाव का योग क ं गा म। ले कन उससे पहले आपको मेरे लए कुछ
और करना होगा।”
“ या ?” पु लस क म र ने ज ासा के साथ पूछा।
“चांदनी को गोली मार दो,” गंगासागर ने सरल भाव से कहा।

े को वो ताज़ा युवा चेहरा तुरंत ही भा गया जो लांट के बाहर चल चलाती धूप म भूख

हड़ताल पर बैठा था। ‘चांदनी द च पयन’, टाइ स अ◌ॉफ़ इं डया ने कहा; ‘चांदनी ने सौदा
बदल डाला’, दै नक ने कहा; ‘चांदनी ने चांस लया—और जीती !’ लोकभारती च लाया।
गुलबदन के कोठे के बाहर खड़े होने और पछले मु यमं ी के पतन का कारण
बनने वाला रपोटर सु ख़यां पढ़ रहा था। उसने सैकड़ कसान के साथ ख़ामोश भूख
हड़ताल पर बैठ सफ़ेद सूती साड़ी पहने और आभा बखेरती सुंदर लड़क क त वीर
दे ख । भूतपूव मु यमं ी क ख़बर ने उसे भी मश र बना दया था। वो सोच रहा था क
ेस के साथ चांदनी का संबंध कतने समय चलेगा। थोड़ा सा पाउडर थोड़ा सा पट लड़क
को वो बना दे ता है जो वो है ही नह , उसने सोचा। गंदगी कहां है? उसने क़ालीन के नीचे
झांकने का फ़ैसला कया।

“तु हारी बेट आ यजनक है,” अपने बरामदे म ठं डे लेमनेड क चु कयां लेते ए
गंगासागर ने इकरामभाई से कहा।
“तकनीक प से वो मेरी बेट नह है। म उसे गोद नह ले सका था। मु लम
पसनल लॉ इसे वीकार नह करता है और अदालत इसे वीकृ त दे ने को अ न ु क थ ,
जैसा क आप जानते ह,” इकराम ने खेपन से कहा।
“वा त वक चीज़ वचार होता है। उसे हर कोई तु हारी उ रा धकारी— तु हारी
व रस—के प म दे खता है,” गंगासागर ने कहा।
“अजीब बात है,” इकराम बोला।
“ या ?” गंगासागर ने अपना गलास अपने सामने मेज़ पर रखते ए पूछा।
“ वरासत पाए बना वा रस बना दे ना,” उसने ठहाका लगाया और गंगासागर भी
हंसने लगा।

“तो आप मुझसे या कराना चाहते ह ?” इकराम ने अपना गलास ख़ाली करते ए कहा।
“वोट इक े करने का काम म संभाल लूंगा ले कन वोट गनने का काम तु ह
संभालना होगा,” गंगासागर ने कहा।
“ गनने का काम चुनाव आयोग करता है—म नह !”
“ले कन वोट म हेराफेरी ई तो? चुनावी गड़ब ड़यां ब त आम ह, इकराम। म
चा ंगा इसे तुम संभालो।”
“आप चाहते ह क म एक एसयूवी लए रा य भर म घूमता फ ं और मतदान
क पर क़ ज़ा करके पे टय म एबीएनएस के लए वोट ठूं सता र ं?” पुराने तज़ के
बा बल के वचार से ल ज़त लेते ए इकराम ने पूछा।
“नह , म बस ये चाहता ं क तुम अपने आद मय को हर मतदान क के बाहर
तैनात करो। चुनावी हेरफेर के ज़रा भी संकेत मलने पर मुझे फ़ोन कर दो।”
“और आप सुपरमैन क तरह उड़ते ए आएंगे और सु न त कर दगे क मतदान
क पर क़ ज़ा न हो ?” इकराम ने ं यपूवक कहा।
“नह । पर हम कम से कम पता हो जाएगा क हम कसी सरे मतदान क पर
क़ ज़ा करके भरपाई तो नह करनी है !”

“पीलीभीत चुनाव े म वप का मुख उ मीदवार कौन है ?” गंगासागर ने पूछा।


“राम साद वेद ,” चांदनी ने जवाब दया।
“इसी नाम का कोई और आदमी ढूं ढ़ो। और बीसलपुर म मुख त ं कौन
है?”
“रफ़ क़ अहमद सैन।”
“ये मु कल नह होना चा हए। इसी नाम के कसी को बीसलपुर से लड़ाते
ह। कुछ पता है पूरनपुर म सबसे श शाली उ मीदवार कौन है?”
“ काश यादव।”
“एक और काश यादव को ढूं ढ़ो।”
“आप एबीएनएस के टकट बना यो यता, बना अनुभव, बना मतदाता समथन
वाले लोग को दे ना चाहते ह, सफ़ इस लए क उनके नाम उनके सबसे श शाली
वरो धय जैसे ह ?”
“नह । एबीएनएस के टकट पर नह । हम उन पर पैसा लगाएंगे ले कन वो
आज़ाद उ मीदवार के प म लड़गे।”
“तो हम ऐसा य कर रहे ह ?”
“ य क फर मुख वप ी उ मीदवार के वोट बंट जाएंगे। एक जैसे नाम के
असमंजस के कारण उनके कुछ वा त वक वोट हमारे ारा खड़े कए गए एक जैसे नाम
वाले आज़ाद उ मीदवार को चले जाएंगे।”
“ या ऐसा करने का कोई फ़ायदा होगा? वप के ख़लाफ़ लड़ने के लए सैकड़
आज़ाद उ मीदवार को ढूं ढ़ने का?”
“जीतने के लए सफ़ ख़ुद को मज़बूत करना ज़ री नह होता, इसके लए मन
को कमज़ोर भी करना ज़ री है। हम जीतना है तो हम हर वो चीज़ करनी होगी जससे
वप के वोट कम ह ।”
“ले कन वरोधी दल हमारे व भी यही नी त अपना सकते ह,” चांदनी ने तक
दया।
“चुनाव आयोग ारा चुनाव क अ धसूचना कब जारी होने क उ मीद है ?”
“इ क स अ ैल को।”
“और नामांकन भरने क अं तम तारीख़ उसके एक ह ते बाद अठाईस अ ैल
होगी, है ना?”
“जी।”
“अठाईस अ ैल को नामांकन भरने का अं तम समय या है ?”
“शाम साढ़े छह बजे।”
“म चा ंगा क व भ चुनावी े के हमारे सारे आज़ाद उ मीदवार अपने
नामांकन अठाईस अ ैल को शाम छह बजे भर। वप को त या करने का कोई समय
ही नह दगे।”

फ़ोन का बल ब त यादा होगा और उसका संपादक ब त नाराज़ होगा। ले कन जब


ख़बर अख़बार के मुखपृ क सुख़ बनेगी तो सब कुछ वीकार कर लया जाएगा।
‘चांदनी का नाजायज़ ब ा’ सनसनीख़ेज़ रहेगा। खोजी प कार ने अपनी संवेदनशील
नाक के लए मन ही मन ई र को ध यवाद दया—वो एक मील से गंदगी को सूंघ सकता
था।
हर कसी का एक अतीत होता है, उसने सोचा। और युवा क ये य आदश, ये
नई सनसनी चांदनी भी भ नह थी। अपने अंदाज़े पर काम करते ए उसने अपने एक
क ज़न को फ़ोन कया था, जो कुछ साल पहले इं लड चला गया था और वहां अ यापक
था। क ज़न ने वादा कया था क वो अ◌ॉ सफ़ोड े म ख़ामोशी से छानबीन करेगा।
क ज़न के एक डॉ टर दो त ने नेशनल है स वस म पता कया। कुछ दन बाद उसने
फ़ोन करके बताया क अ◌ॉ सफ़ोड म चांदनी के जनरल फ़ज़ी शयन ने सट ह ाज़ क
लास से छु लेने के लए उसे वाक़ई मै डकल स ट फ़केट जारी कया था। स ट फ़केट
पर दज कारण था ‘ चंड माहवारी ठन’। माहवारी क ठन म कभी कोई आठ ह ते क
छु नह लेता है, डॉ टर ने तक दया। जनरल फ़ज़ी शयन के साथ ख़ामोशी से बात होने
के बाद चांदनी को सफ़ाई करके गभपात करवाने वाली म हला के पास और ास मयर म
मदर एंड बेबी होम ले जाया गया था।
उसने अपने सामने रखी टोरी के पहले ा ट को दे खा। ‘केवल उ र दे श ही
नह ब क पूरे भारत के व भ भाग म मं दर म पूजी जा रही प व दे वी ल मी,
सर वती या गा नह , ब क चांदनी नाम क एक नई सनसनी है। युवा और सुंदर
राजनी त ने वोटर का दलो- दमाग़ जीत लया है और अब मु यमं ी के त त पद क
मज़बूत दावेदार दखाई दे ती ह। वो कसान के लए आमरण अनशन करती ह, ईमानदारी,
स य न ा और नै तक आचरण के उ आदश के उपदे श दे ती ह। ले कन इस नई नेता क
पृ भू म से कतने लोग प र चत ह? लगता है ब त यादा नह । हम शायद बस इतना
जानते ह क वो ह क सफ़ेद साड़ी पहनती ह और उनम अ लगती ह। ले कन थोड़ी सी
रसच से इस रपोटर को वो गंद मल गई जसने उनक शु और चमचमाती बफ़ जैसी
नमल छ व को दाग़दार कया है। उसे जो पता चला उससे वो भौच का रह गया।’
बेहतरीन शु आत। उसने अपनी बाक़ टोरी को दे खा जसे उसने अपने
भरोसेमंद रै म टन इले क टाइपराइटर पर टाइप कया था और संपादक क डे क क
ओर बढ़ गया। “मने जो टोरी अभी जमा क है उसे पढ़कर आपको लगेगा क मेरे ख़च
का खाता यायो चत है,” उसने कहा और वापस अपनी डे क पर आकर अपने टाइपराइटर
को े रंग के ला टक के कवर से ढक दया।

“तु ह इं लड जाकर त य क जांच करनी होगी,” टोरी पढ़कर संपादक ने कहा।


“व— या ? इस चीथड़े के पास इतना बजट कबसे आ गया क एक रपोटर त य
क जांच के लए सात समंदर पार जा सके ?” उसने पूछा। “म टै सी भी लूं तो आप
नाराज़ होते ह।”
“बजट क बात तब आई जब हमने फ़ैसला कया क हम नह चाहगे क उसका
मुंहबोला बाप—इकरामभाई—हमारी ठु काई करे या उसका माईबाप गंगासागर हमपे
मुक़ मा ठोक दे ।”
“गंगासागर मुझे छू भी नह सकता। वो जानता है क मने पछले मु यमं ी क
पोल खोलने म उसक मदद क थी। अगर मेरी टोरी ने उस बेचारे को तबाह नह कया
होता, तो गंगासागर अपनी पा लता को सहासन पर बठाने के सपने नह दे ख रहा होता !”
“और हम नह चाहते क हम एक ऐसा चीथड़ा समझा जाए जो हर मु यमं ी या
उस पद के अ भलाषी के ख़लाफ़ नै तक यु छे ड़ने को आतुर हो। इसी लए हम चाहते ह
क तुम ख़ुद जाकर त य क जांच करो। सफ़ एक क ज़न से सुनी बात पर आधा रत
करने के लए ये टोरी ब त यादा ही व ोटक है !”

क़ा हरा और जेनेवा होते ए लंदन जाने वाली लाइट दो घंटे बाद नई द ली से चलनी थी।
उसे या ा के कफ़ायती ख़च के साथ इकॉनोमी लास का टकट दया गया था। इस ख़च
पर उसे चूह भरे बल म रहना था। अपने सूटकेस म जांच करने के बाद वो पासपोट
कं ोल पर प ंचा जहां अ◌ॉ फ़सर ने एक सरसरी सी नगाह डाली और उसके सफ़र के
काग़ज़ात पर मुहर लगा द । उसने पासपोट वापस लया और उसे अपने कंधे पर लटके बैग
म डाल लया। वो ान े म प ंचा और सुर ा से गुज़रा।
“ये या है, सर?” उसके बैग क जप खोलने के बाद सुर ा अ धकारी ने पूछा।
बैग क तली म े रंग के ला टक म लपटा और टे प से चपका एक छोटा सा पैकेट था।
“ये मेरा नह है,” रपोटर ने कहा और च कत हो गया क वो पैकेट उसके बैग म कैसे
प ंचा। सुर ा अ धकारी ने, जो क ह रयाणा का एक भारी-भरकम जाट था, जवाब को
नज़रअंदाज़ करते ए एक छोटा सा चाक़ू नकाला जससे उसने पैकेट को फाड़ दया।
उसम से सफ़ेद, ब लौरी सा पाउडर नकला। सुर ा अ धकारी ने उसे अपनी
तजनी से छु आ और उसे धीरे से अपनी ज़बान पर थपथपाया। वो गंधहीन ले कन कड़वा
था। वो यक़ नन हेरोइन थी। “आप डे जरस स ए ट, 1930 क धारा से प र चत ह
ज ह ओ पयम ए ट, 1878 क ासं गक धारा के साथ पढ़ा जाता है, सर ?” सुर ा
अ धकारी ने पूछा और अपने एक साथी को इशारे से कहा क अपराधी को हथक ड़यां
पहना दे ।
“ये मेरा नह है! म आपको बता रहा ं क मुझे नह मालूम ये यहां कैसे प ंचा—”
उसने वरोध कया ले कन इसका कोई फ़ायदा नह आ। मांसल जाट उसे सुर ा जांच
काउं टर पर झुकाकर और उसक बांह कसकर पीछे ख चने के बाद उसक कलाइय म
हथक ड़यां डाल चुका था। “अगर ये तु हारा पैकेट नह है, तो ला टक पर तु हारी
उं ग लय के नशान कैसे ह? वो च लाया। अ धकारी ने उसक गदन पकड़ी, उसे एक
द वार से लगाया और उससे टांग फैलाने को कहा। उसने ज द से उसके पूरे शरीर को
थपथपाया और चुपके से उसके चूतड़ पर नोच भी लया। “बस ये दे ख रहा था क या
तु हारे चूतड़ जेल म होने वाले सुलूक को सहन कर सकगे,” वो ग़राया।
जब रपोटर को हवालात ले जाने के लए एयरपोट के बाहर पु लस क जीप म
लादा जा रहा था, तो वो सोच रहा था, “ ला टक क जांच कए बना साले सुर ा वाले
को ये कैसे पता चला क उसपे मेरी उं ग लय के नशान ह?” फर उसे अपने अख़बार के
अ◌ॉ फ़स म अपने रै म टन इले क टाइपराइटर का े रंग का ला टक कवर याद आ
गया।
वो गंगासागर, अपने संपादक और अपने भा य को कोसने लगा।

लेमन कलर क ब ढ़या सूती साड़ी पहने अंज ल शोफ़र ारा चा लत स वर जैगुआर
ए सजेएस म आई। बॉलीवुड क इस सै स सबल ने अपने सुनहरी बाल एक सफ़ेद
हम ज़ काफ़ से पीछे बांधे ए थे और उसक आंख वसाचे के बेहद महंगे च मे के पीछे
छपी ई थ । उसने अपना माल धीरे से अपने च मे के नीचे थपथपाया और फ़ोटो ाफ़र
का दल तुरंत अपने लैश ब ब चलाकर उस न क दे वी क त वीर लेने लगा जो चुनाव
के अपने डज़ाइनर कपड़ म बेहद आकषक लग रही थी—दयनीय, ज ासु आम लोग के
ना ते के लए ब ढ़या साम ी।
रैली ल तक जाने वाली सड़क झं डय और पताका से सजी ई थ और दो
दे वय —एक राजनी तक और सरी फ़ मी—क एक झलक पाने के लए एक लाख
लोग इंतज़ार कर रहे थे। रैली के मैदान म एबीएनएस के झंडे के तीन रंग—गे , हरा और
लाल—लहलहा रहे थे। गे ह के लए, हरा मुसलमान के लए, और लाल द लत के
लए। एक कोने म एक वशाल टे ज भी बाक़ पूरे मैदान क तरह झंड और फूल से सजा
आ था। अंज ल टे ज तक प ंची जहां चांदनी उसका इंतज़ार कर रही थी। दोन ने एक-
सरे को इस तरह गले लगाया जैसे वो बेहतरीन दो त ह । वा तव म दोन पहली बार मल
रही थ । उनके पीछे उनके गुलाबी रंग के वशाल कटआउट थे, लगभग पं ह फ़ट ऊंचे—
बॉलीवुड क फ़ म के टाइल म। चांदनी का कटआउट उसे चेहरे पर एक मासूम भाव के
साथ दखा रहा था, जसके एक हाथ म इंसाफ़ का तराज़ू था और सरे म तलवार।
अंज ल का कटआउट उसे टै यू अ◌ॉफ़ लबट से े रत एक जलती ई मशाल हाथ म
लए दखा रहा था।
दोन म हलाएं टे ज पर खड़ी थ और पाट कायकता गदे के फूल और लाल-हरे
रबन —पाट के रंग का एक और त न ध व—के बड़े-बड़े छह इंच मोटे हार उनके गले
म डाल रहे थे जैसे क वो वा तव म दे वय का त प ह । दोन म हलाएं खड़ी ई
शंसक भीड़ क ओर हाथ हलाती रह ।
“म आपसे वादा करती ं क म आपको, अपनी य जनता को वशु याय
ं गी। और अगर कभी इस हाथ को याय करने के लए तलवार उठाने क ज़ रत पड़ी, तो
ये केवल एक कारण से उठे गा—इस रा य के ग़रीब और मज़लूम क र ा के लए !”
चांदनी भावुक ढं ग से माइ ोफ़ोन म च लाई और उसके श द रैली के पूरे मैदान म लगे
ीकर पर गूंजने लगे। उसके हज़ार समथक उ ल सत भाव से च लाए, “जब तक
सूरज चांद रहेगा, चांदनी तेरा नाम रहेगा !”
“मुझे आपके यार ने जीत लया है। आपके मान ने मुझे त त कया है।
आपके समथन ने मुझे गौरवां वत कया है। आपके जोश ने मुझे उ साह दया है। मेरे त
आपके व ास ने मुझे े रत कया है। म आपको नराश नह क ं गी—कभी नह !” वो
ता लय क कान फा गड़गड़ाहट के बीच गरजी। पु लस ने मंच को घेरा आ था जहां
दोन म हलाएं खड़ी थ । ला ठयां लए और ख़ाक कपड़े पहने, हे मेट लगाए सैकड़
पु लसवाले लोग के समंदर को मंच पर चढ़ने से रोके ए थे।
चांदनी बैठ और अंज ल बोलने के लए खड़ी ई। वो घबराई ई थी। कैमरे के
सामने ट क पं यां बोलना एक बात थी और लाख राजनी तक कायकता के
सामने भाषण दे ना ब कुल ही अलग बात थी। वो सफ़ इस लए आई थी क उसके ख़ास
रात के दो त—सोमानी— ने उससे कहा था क चांदनी के लए उसका अनुमोदन
मह वपूण था।
“ऐसे दे श म जो अंधेरे, बीमारी, अ श ा और सामंतवाद के अंधेरे म घरा रहा है,
सफ़ एक ही रोशनी है जो तेज़ी से चमकती है! म रोशनी को दे ख रही !ं और आप ?” वो
च लाई, और मैदान अनुमोदन से गूंज उठा। “रोशनी तेज़ है, उ कट है, मने इतनी
चमकदार रोशनी कभी नह दे खी। ये रोशनी का शत कर सकती है, ये रोशनी शु है, ये
रोशनी बना मलावट क ऊजा है, ये रोशनी वो रोशनी है जो पूरे उ र दे श म फैलेगी—
चांदनी !”
भीड़ उ माद होकर च ला- च लाकर अनुमोदन कर ही रही थी क एक गोली क
आवाज़ गूंजी। गोली सुनी भी नह जाती अगर बं क एक खुले माइ ोफ़ोन के आगे नह
चली होती। चांदनी अपना दायां कंधा पकड़े ज़मीन पर गर पड़ी। ख़ून उसक उं ग लय के
बीच से टपक रहा था और उसके ह के सफ़ेद लाउज़ और साड़ी पर एक बड़ा सा लाल
ध बा बन गया था। अंज ल ने ख़ुद को ज़मीन पर गराया और चांदनी के सर को अपनी
गोद म रख लया जब क सुर ा अ धकारी भीड़ को उन तक प ंचने से रोकने म लग गए।
रदशन और सौ ेस फ़ोटो ाफ़र के कैमर ने उस ण को बड़ी सुंदरता से अपने अंदर
क़ैद कर लया।
“आ द श , नमोनम:; सवश , नमोनम:, थम भगवती, नमोनम:, कुंड लनी
माताश ; माताश , नमोनम: ,” र से ये सब दे खते ए गंगासागर बुदबुदाया।

वो अ ताल के ग लयारे म उसके कमरे के बाहर खड़े थे। ेस के सद य के प रसर म


वेश पर तबंध लगा दया गया था। उ ह ने अ ताल के बाहर एक अ ायी कप बना
लया था और—आ यच कत रो गय समेत—हर आने-जाने वाले क त वीर ले रहे थे।
“वो कैसी है ?” गंगासागर ने पूछा।
“ठ क है,” मेनन ने कहा, “गोली ने उसके दाएं कंधे को छु आ है। बस कुछ टांके
लगगे, थोड़ी े सग होगी और कुछ एंट बॉय ट स द जाएंगी—उसके बाद वो जाने के लए
तैयार होगी।”
“तुम भूतपूव पु लस क म र से मले थे?” गंगासागर ने पूछा।
“हां। वो ज़बरद त नशानेबाज़ है—मने उससे कहा क उसके दा ओर गोली
लगे, बा ओर नह । उधर उसके दल को ख़तरा था,” मेनन ने बताया।
“कभी-कभी मुझे लगता है क लड़क के पास दल है भी क नह ,” गंगासागर
बड़बड़ाया, “वो मुझे मेरी ही याद दलाती है। तुमने उससे ये भी कहा था क गोली उसम
धंसे नह , सफ़ छु ए भर ?”
“ ब कुल। ले कन उसने कहा था क इस बारे म गारंट नह द जा सकती। हमने
उससे कहा था क गोली कसी खुले माइ ोफ़ोन के पास चले ता क आवाज़ सुनी जा
सके। उसने अ ा काम कया है—वो आपसे बात करने के लए इंतज़ार कर रहा है ता क
उसे नई द ली म नया पद मल सके।”
“हां, मने उससे वादा कया था। वो तो कुछ नह जानती ना?”
“नह ।”
“ये य रदशन पर कतनी बार दखाया गया है ?”
“लगभग पचास बार।”
“अंज ल क गोद म चांदनी के सर के ेस फ़ोटो हा सल करो। उनके पो टर
बनवाओ जनम नारा हो—म अपने ख़ून क आख़री बूंद भी लोग क सेवा म बहाने को
तैयार ं । ऐसे हज़ार पो टर छपवाकर उ ह पूरे शहर म चपकवा दो। म चाहता ं क वो
मरे बना शहीद बन जाए !”
“ले कन डॉ टर उसे ज द ही छोड़ दे गा। उसे अ ताल म रखने क ज़ रत नह
है—घाव बस सतह पर है,” मेनन ने तक दया।
“डॉ टर को यहां बुलाओ। म चाहता ं क वो ये घोषणा करे क उसे रात भर
नरी ण के लए रखा जाएगा।”
“और ?”
“और कुछ नह । जब तक बेहद ज़ री न हो झूठ मत बोलो।”
“ या डॉ टर को ये बताना चा हए क वो ख़तरे से बाहर है ?”
“वो ये कहे क वो ख़तरे से बाहर है, ले कन कल सुबह। झूठ बोलने और सच
बोलने म दे र करने म ब त बड़ा फ़क़ है !”

“गंगा अंकल, मेरी चता मत क जए। म उठकर इस अ ताल से नकलना और


वापस चुनावी रै लय म जाना चाहती ं,” उसने वरोध जताया।
“चांदनी। तुम कसी चुनावी रैली म नह जा रही हो। लड़ाइयां लड़े जाने से पहले
ही जीती और हारी जाती ह। ये लड़ाई जीती जा चुक है।”
“तो म मतदान के दन तक कुछ नह क ं ?”
“आह ! तुम त रहोगी। मने एक वमान का इंतज़ाम कया है जो तु ह यहां से
त मलै लेकर जाएगा। त मलै से तुम गोआ जाओगी, और वहां से अजमेर। वही जहाज़
फर तु ह अमृतसर लेकर जाएगा और तीन दन म तुम यहां लौट आओगी।”
“ले कन मुझे इन सारी जगह पर य जाना है? इनम से तो कसी जगह पर
चुनाव हो नह रहे ह !” उसने बहस क ।
“ त मलै म तुम भगवान वकटे र को नमन करोगी और ह को ख़ुश करोगी।
गोआ म तुम बोम जीज़स म मोमब ी जलाओगी और ईसाइय को ख़ुश करोगी। फर तुम
अजमेर म मुईनु न च ती क दरगाह पर फूल क चादर चढ़ाओगी और मुसलमान को
ख़ुश करोगी। आ ख़र म, तुम अमृतसर म वण मं दर म ाथना करोगी और सख को
ख़ुश करोगी। जब तुम सबको ख़ुश कर दोगी, तो वो तु ह ख़ुश करगे—तु हारी पाट क
सरकार बनवाकर।”

मुंबई के शानदार बां ा उपनगर म धनी और स लोग के घर थे। बॉलीवुड क अ सरा


अंज ल का घर समंदर कनारे था जो क एक आलीशान मकान था जसम एक वशाल गेट
लगा था और कड़ी सुर ा थी। उसे सुर ा क वाक़ई ज़ रत थी। कसी ख़तरे क वजह से
नह , ब क एक ख़ास दो त—सोमानी—क वजह से जो यादातर रात को उससे मलने
आता था।
रैली म चांदनी के समथन म उसके भावुक भाषण के बाद गंगासागर उसे एक
कोने म ले गया था। “आपके अंदर बड़ी व श तभाएं ह,” उसने कहा।
“जानती ,ं ” वो बोली, “ब त से लोग मुझसे कहते ह क दोन दशनीय ह।”
बूढ़ा गंगासागर हल जाने वाला नह था। “हां, म समझता ं। ले कन म ख़ुद को
अभ करने, लोग और उनक भावना को भा वत करने क आपक यो यता क
बात कर रहा था। आपने कभी राजनी त म आने का सोचा है ?”
“मुझे संसद म बैठना अ ा लगेगा, ले कन मेरे पास चुनाव के लए धैय नह है।
अफ़सोस, म बॉलीवुड सै स सबल क अपनी तक़द र से संतु ं।”
“ज़ री नह । आपके कारण हम जो समथन मला है, उसके बाद ज द ही उ र
दे श म हमारी सरकार होगी। हम आपको रा यसभा म नामां कत करने म ख़ुशी होगी।
आप संसद म बैठगी, और वो भी बना चुनाव के !”
“और सम या या है? आप उन गंदे बूढ़ म से तो नह ह ?” वो मु कुराकर बोली।
“मेरी य अंज ल। म एक गंदा आदमी — ं ले कन ेम के े म नह । सफ़
राजनी त म। और राजनी त गंद ही होती है। साफ़ राजनी त वरोधाभास है।”
“तो अगर मुझसे आ लगन नह तो और या चाहते ह ?” चमकती आंख के साथ
उसने पूछा।
“बस इतना क जब कभी हम ज़ रत हो तो हम आपका साथ चा हए होगा। तब
तक, आप अपने रात के दो त के साथ मज़े कर।”

“और अब होता जा रहा है क उ र दे श के वधानसभा चुनाव म अ जनादे श


सामने आएगा और कोई एक पाट अपने बूते पर सरकार बनाने म सफल नह रहेगी,”
समाचार वाचक घुरघुराया। अ वालजी, इकरामभाई, मेनन और गंगासागर अ वालजी के
ल वग म म बैठे धीरे-धीरे आते मतदान के नतीजे दे ख रहे थे।
“तुमने तो कहा था क चांदनी मु यमं ी बन जाएगी,” प से च तत
अ वालजी बोले। उ ह ने एबीएनएस क सहायता म लाख ख़च कए थे और अब वो
अपने नवेश को तबाह होते दे ख रहे थे।
“मने ये कभी नह कहा क चांदनी मु यमं ी बनेगी। मने कहा था क स ा क
बागडोर एबीएनएस के हाथ म होगी।”
“ऐसी चीज़ के बारे म आप इतने ढु लमुल कैसे हो सकते ह, गंगासागरजी ?”
इकराम बोला।
“मेनन, उ र दे श वधानसभा म कतनी सीट ह?” गंगासागर ने पूछा।
“चार सौ तीन,” मेनन ने जवाब दया।
“और उनम से कतनी सीट एबीएनएस के पास ह ?”
“एक सौ साठ।”
“तो हमारे पास ब मत म बयालीस सीट कम ह ?”
“हां।”
“ दे श म और कसी पाट ने एबीएनएस से यादा सीट जीती ह ?”
“नह । सरे नंबर पर न यानवे सीट ह।”
“और दे श के सं वधान के अनुसार रा यपाल को उस पाट के लीडर को सरकार
बनाने के लए आमं त करना चा हए जसने वधानसभा म सबसे यादा सीट जीती ह ।
सही ?”
“सही।”
“सम या ये है क अगर रा यपाल ने एबीएनएस को अगली सरकार बनाने के
लए आमं त कया तो हम अपनी ओर पाला बदलने के लए कुछ वप ी एमएलए
चा हए ह गे।”
“तो ?”
“वो मं मंडल म पद मांगगे। हमारे अपने सद य पद से वं चत रह जाएंगे। हमारे
सामने अनुशासन क सम या खड़ी हो जाएगी।”
“तो तुम नह चाहते क रा यपाल हम आमं त कर ?” असमंजस म पड़े
अ वालजी ने पूछा।
“अगर हम अ य पा टय के एमएलए क ओर से समथन प नह दखाएंगे, तो
उ ह सरकार बनाने के लए सरी सबसे बड़ी पाट को आमं त करना पड़ेगा।”
“हां, ले कन अगर उ ह आधे अंक तक प ंचना है तो उ ह अपने न यानवे
वधायक के अ त र एक सौ तीन वधायक क ज़ रत पड़ेगी। उ ह सदन म ब मत
पाने के लए हमारे एबीएनस के वधायक चा हए ह गे।”
“फ़ज़ कर क हम उ ह अपने सारे वधायक के समथन का ताव द ?”
गंगासागर ने शांत भाव से पूछा।
“ या ? आपका दमाग़ ख़राब हो गया है या ?” इकराम च लाया।
“एबीएनएस के समथन के लए मेरी शत होगी क मुझे मं मंडल के सारे पद
अपने वधायक के लए चा हए। सारे वभाग—गृह, व , राज व, उ ोग, मानव संसाधन
—हम मल। वो मु यमं ी अपना बना ल।”
“और चांदनी का या होगा ?”
“वो सरकार म उथल-पुथल होने तक इंतज़ार करेगी।”
“उथल-पुथल ?”
“उनके मु यमं ी के सारे नणय अव ह गे तो वो या करेगा? सारे वभाग तो
हमारे पास ह गे।”
“ले कन अगर उथल-पुथल के कारण रा यपाल ने नई द ली से ह त ेप करने
और रा प त शासन लागू करने को कह दया ?”
“रा यपाल रा प त शासन के लए नह कहगे।”
“ य ?”
“ य क रा प त उ ह इसके वपरीत राय दगे।”
“ य ?”
“ य क धानमं ी इसक सफ़ा रश रा प त से करगे ही नह ।”
“और तु हारी प ंच सीधे भारत के धानमं ी तक है ?”
“लगभग।”

सा वी एक साद , ह क भगवा साड़ी पहने थी और नंगे पैर रहती थी। उसके गले म ा
क माला थी। वो एक सुंदर म हला थी और सफ़ शारी रक प से ही नह । बेशक वो गोरी
थी, सुडौल थी और उसका मु कुराता चेहरा उसके कंध तक फैले खुले बाल से घरा आ
था। ले कन इस सबके अ त र , उसके चेहरे पर एक गहन आ या मक संतु का भाव
था। उसक उप त लगभग जा ई थी— जससे शांत आ म व ास और द शां त
टपकती थी।
वो शीशे क एक बड़ी सी खड़क के सामने जसके बाहर गुलाब का बाग़ीचा
दखाई दे रहा था, एक आरामदे ह सोफ़े पर बैठ थी। गम का मौसम था और नई द ली
क झुलसा दे ने वाली गम कमरे म एयर-कंडीशनर के गुंजन के कारण बाहर ही थी। उसके
बा ओर भारत के धानमं ी सा वी के सोफ़े से ज़रा नीची—सा वी क बु आ मा के
स मान म—एक आरामकुस पर बैठे थे।
“ या चता सता रही है, ब े ?” सा वी ने उनसे पूछा।
“म ब त च तत ,ं माता,” उ ह ने जवाब दया।
ये वडंबनापूण था। वो साठ साल के थे, और वो मु कल से तीस क , ले कन वो
उ ह ‘ब ा’ बोल रही थी और ख़ुद को ‘माता’ कहलवा रही थी। कोई उ ह बात करते
सुनता तो हंसता ले कन उनक बातचीत हमेशा एकदम अकेले म होती थी। धानमं ी के
स चव को भी न तो सरकारी व र ज टर म इसक व करने क अनुम त थी और
न धानमं ी क डायरी म।
“म जानती — ं समझती ं। ब ा परेशानी म हो तो मां ख़ुद ही समझ जाती है,”
वो नम से बोली।
“उ र दे श क प र त असमंजसपूण है। एबीएनएस सबसे बड़ी पाट के प
म सामने आई थी। रा यपाल ने हमसे पूछा था—औपचा रक प से— क या वो उ ह
अगली सरकार का गठन करने के लए आमं त कर। हम लगा क उ ह आमं त न करने
के पया त कारण मौजूद ह।”
“जैसे ?”
“उनके पास ब मत नह था।”
“तु हारी पाट के पास भी नह था—तु हारी पाट के पास उनसे कम सीट थ !”
“ले कन उ ह ने अपनी पाट से बाहर कसी से समथन क च यां लेने का यास
भी नह कया। उ ह ने हमारे लए इस काम को ज़ रत से यादा आसान बना दया क
हम रा यपाल को सरी सबसे बड़ी पाट —हमारी पाट —को सरकार बनाने के लए
आमं त करने को मना ल।”
“तो फर द क़त या है? या तुम इस बात से ख़ुश नह हो क उ र दे श म
तु हारी सरकार होगी ?”
“ कस क़ मत पर? हमारे अपने कुल न यानवे वधायक थे। कामचलाऊ ब मत
के लए बाक़ एक सौ तीन वधायक हम एबीएनएस से लेने पड़े। उनम से कसी को भी
पैसा नह चा हए था, सफ़ मं ीपद चा हए थे।”
“और तुमने दे दए?”
“हां। पर इसका अथ था एक वशाल मं मंडल बनाना—साठ मं ी! पूरा
मं मंडल—अलावा मु यमं ी के—एबीएनएस का था। म कु े को हला रही है!”
“और इससे तु ह चता है ?”
“हे माता, ज द ही उ र दे श म हमारी पाट म बग़ावत हो जाएगी। हमारे अपने
एमएलए— ज ह एबीएनएस को जगह दे ने के लए मं पद से वं चत रखा गया है—बाग़ी
हो रहे ह।”
“तु ह लगता है क उ र दे श म तु हारी सरकार गर जाएगी, ब े ?”
“हां, माता।”
“और बाक़ दे श भर म इसके या भाव ह गे?”
“अगले साल कई रा य म चुनाव होने ह। उ र दे श म सम या होगी तो शेष
भारत म इसके नकारा मक संकेत जाएंगे। इससे लगेगा क हमारी पाट पूरे नयं ण म
नह है।”
“तु हारे या राजनी तक वक प ह, ब े ?”
“म तो दोन तरह मारा जाऊंगा। अगर कुछ नह क ं गा, तो बग़ावत होगी,
सरकार गरेगी और वप आसानी से स ा म आ जाएगा। अगर रा प त से रा प त
शासन क सफ़ा रश क ं गा तो मुझे सं वधान का ग़ ार और चोरी- छपे जोड़तोड़ करने
वाला कहा जाएगा।”
“इधर आओ, ब े,” अचानक उसने आदे श दया। वो उठे और उसके पास जाकर
घुटन के बल झुक गए।
उसने उनके सर पर हाथ रखा और आंख बंद करके गहन भाव से कुछ मं पढ़े ।
एक मनट बाद, उसने अपनी आंख खोल और बताया, “तु हारा उ र कल तक तु हारे
पास होगा !”
“ले कन माता—” उ ह ने बोलना शु कया।
“ श!” उसने ह ठ पर उं गली रखकर उ ह टोक दया। उसका श व ुतीय
था। “ या मने अतीत म तु हारा सही मागदशन नह कया है ?” उसने पूछा।
उ ह ने ख़ामोशी से सर हला दया।
“तो जैसा कहती ं वैसा करो !” उसने नदश दया।
अ याय नौ
लगभग 2300 वष पहले

गंधार क सीमा पर एक वशेष श वर ा पत कया गया था। भोजन, म दरा, सुगंध,


संगीतकार और नृ यांगना से भरे वला सतापूण तंबु म काफ़ चहल-पहल थी और
बंधक बड़ी मु कल से आंभी क मांग को पूरा कर रहे थे। वो वाक़ई जानता था क पाट
कैसे करते ह। “ सकंदर कसी दे वता से कम नह है जो उस शैतान पोरस को कुचलने म
मेरी सहायता करेगा! गंधार म सकंदर का आगमन उसके उ त ान को त ब बत
करे,” आंभी ने अपने नए मं य से कहा—उसके अपने चुने ए समथक जनके उसके
मृत पता के साथ कोई संबंध नह रहे थे।

हज़ार पैर क धमक के साथ जुलूस के नगाड़ और बगुल क आवाज़


कानफा थी। सकंदर का यु तं भोजन क उतावली भरी तलाश म जा रही ह यारी
च टय क तरह आगे बढ़ रहा था। पैदल सेना के ज़मीन पर पड़ते क़दम से होने वाला
कुं ठत सा कंपन नकट आने वाल के लए एक भयानक चेतावनी लगता था। सेना का
धान भाग ख़ैबर पास से होता आया था जब क सकंदर क सीधी कमान म एक छोटे
सै यदल ने यादा घुमावदार उ री माग अपनाया और रा ते म पीर-सार के उस क़ले पर
भी क़ ज़ा कर लया था जसे जीतने म सकंदर से पहले महान हैरे लीज़ असफल रहा
था।
यूनानी-मैसीडो नयाई दानव के आने क आवाज़ सुनकर आंभी के श वर पर
ख़ामोशी पसर गई। संगीत थमने के साथ-साथ गंधार के संगीतकार ने अपने ढोल-नगाड़े
बजाना और नृ यांगना ने अपने पेट और कू हे लहराना बंद कर दए। आगे बढ़ती
मैसीडो नयाई सेना क आवाज़ कुं ठत थी, जैसे कसी दै य क झूमती सी चाल हो जो
अपने हर क़दम के साथ धरती को हला रहा हो।
“शायद हम धोखा दया गया है,” एक मं ी उ े जत ढं ग से सरे मं ी से
फुसफुसाया। “कह ऐसा तो नह क हमने स मान म अपनी धो तयां तो गरा द ह ले कन
हमारा बला कार ही हो जाए?” उसके साथी ने उसे चुप रहने का इशारा कया। अगर आंभी
सुन लेता तो उन दोन को उन सीख़ पर भून डाला जाता ज ह मांस- ेमी अ त थय के
लए मांस पकाने को योग कया जा रहा था। उसने मन ही मन कुछ गा लयां द और
अपने शासक के लए ह ठ पर एक बनावट मु कान चपका ली।
एक ब त ऊंचा वशेष मंच बनवाया गया था। इसका योग दोन नेता को गले
मलते दखाने के लए कया जाना था ता क सै नक को उनक म ता का संकेत दया जा
सके। आगे बढ़ते वशाल दल को बेहतर ढं ग से दे खने के लए आंभी मंच तक जाने वाली
सी ढ़य पर चढ़ा और थोड़ा हांफने लगा। यादा म दरापान के कारण उसक आंख एकदम
लाल हो रही थ , पर उसका शारी रक गठन चु त और सु ढ़ था। उसके चेहरे पर एक
ायी ग़राहट थी जो तब और भी भयानक लगती थी जब वो मु कुराता या अपने दांत
दखाता था। वो हमेशा एक जैसे रंग क पगड़ी, धोती, उ रीय, च पल और आभूषण के
साथ बेदाग़ कपड़ म रहता था। अगर उसके व लाल रंग के होते, तो उसके आभूषण म
मा णक या गुलाबी हीरे होते; अगर कपड़े हरे होते, तो आभूषण म प े होते; अगर उसका
लबास नीला होता, तो वो नीलम पहनता; हीरे कसी भी रंग के साथ जा सकते थे। र
दे खते ए आंभी क आंख चुं धया रही थ । र से उसे बस एक तूफ़ान सा उठता दखाई दे
रहा था। वा तव म ये ढोल क थाप पर सकंदर के आगे बढ़ते ज के क़दम से उठती
धूल थी।
आ ख़र लंबी ती ा के बाद, आंभी को कांसे के सुर ा कवच पहनी पैदल सेना
दखाई द जसके जवान घोड़े के बाल के पंख स हत कांसे के पडली कवच और गाल के
कवच वाले टोप लगाए ए थे। वो सभी कांसे और चमड़े क ढाल, लंबे भाले और छोट
तलवार लए ए थे। पैदल सेना के दोन ओर लगभग तीन हज़ार क घुड़सवार सेना थी जो
दो-दो सौ के दल म बंट ई थी। घोड़े ब त बड़े और सुपो षत दखते थे और उन पर मोटे
न दे पड़े ए थे। उनक छा तय और सर पर कवच थे और कांसे के कवच पहने उनके
सवार जनके पास कंध के कवच और बीयोशन टोप थे, ब लम और छोट घुमावदार
तलवार लए चल रहे थे। सकंदर क सेना दशनीय थी। आंभी ने थूक नगला और सोचने
लगा क कह उसने उससे यादा तो नह काट लया जतना क वो चबा सकता है।
एकदम अ या शत प से ख़ामोशी छा गई। ढोल और बगुल बंद हो गए।
सकंदर ने अपनी पलटन को रोका और घोड़े पर सवार होकर अकेला आंभी के श वर
तक आया। “उफ़! ये सारी चीज़ पहले से य तय नह होती ह,” आंभी बड़बड़ाया और
मैसीडो नयाई द पु ष से मलने को अपने घोड़े पर सवार होने के लए तेज़ी से सी ढ़य
से उतरा। दोन घोड़े आख़री टु कड़े म धीमे पड़े, और दोन ही सवार ख़ुद को ब त उ सुक
नह दखाना चाहते थे। आंभी सोच रहा था क सकंदर उससे या कहेगा। आंभी, मेरे
याल से तुम अ वल दज क र चूसने वाली ज क हो। मेरे लए लड़ाइयां लड़ने के लए
मुझे तु हारी ज़ रत नह है। कसी और के साथ बुरा काम करो!
दोन सवार के पीछे चार-पांच सरे घुड़सवार थे—अंगर क, अनुवादक, ल पक
और सलाहकार। आ ख़रकार जब वो एक- सरे के नज़द क प ंच,े तो पहले सकंदर
बोला। “आंभी, मेरे याल से तुम अ वल दज—”
आंभी को ठं डा-ठं डा पसीना आने लगा। या सकंदर उसका अपमान करने वाला
था?
“—के सकंदर के म हो। म भी तु हारी ओर दो ती का हाथ बढ़ाता ं। हम
दोन मलकर एक श शाली गठजोड़ बनाएंगे!” उसने अपने अफ़ग़ानी साथी श शगु त
के मा यम से कहा जो अनुवादक क भू मका नभा रहा था। आंभी ने शां त क सांस ली।
सब कुछ योजना के अनुसार हो रहा था—उसका वजयी ण। धरती के महानतम यो ा
के साथ एक शानदार गठजोड़।
आंभी सा ात वन ता बना आ था। “हम एक- सरे से य लड़, हे सकंदर?
मुझे ये है क आप हमारा भोजन और पानी हमसे नह छ नगे, जीवन क वो दो
अ नवाय चीज़ जनके लए बु मान लोग लड़ने को मजबूर होते ह। जहां तक धन का
है, तो मेरे पास मेरे उपयोग से अ धक धन है और उसे आपके साथ बांटने म मुझे स ता
होगी, हे भा यशाली!”
दोन घोड़ से उतरे और सकंदर ने आंभी को गले लगाते ए मज़ाक़ कया, “तु ह
लगता है क तु हारा श ाचार, आकषण और वनयशीलता हमारे बीच लड़ाई होने को रोक
सकती है? तु ह ग़लतफ़हमी है। म तुमसे ल ंगा, हे आंभी, ये सु न त करने के लए क
कौन बेहतर म हो सकता है और म वादा करता ं क तुम मुझे हरा नह सकोगे!”

झेलम म बाढ़ आई ई थी। बरसाती हवा ने पंजाब के प र य पर ू रता के साथ


आ मण कया था और सै नक और उनके साज़ो-सामान भीग गए थे। पहा ड़य पर गाढ़
म का एक अनंत वाह था जसके कारण फसले बना कुछ क़दम भी चलना संभव
नह था। हर ओर पानी था—नद म, वषा म, मैसीडो नयाई सेना के खाने म, उनके तंबु
म, यहां तक क उनके चू ह म भी! उफ़ ये पानी !
पर त इस लए और भी ख़राब थी क सकंदर रोज़ाना नद कनारे इस ओर
या उस ओर कुछ मील चलने को कहता था ता क सरा प अनुमान ही लगाता रहे क
सकंदर कस ान से नद पार करेगा। सकंदर के अंदर का वशेष रणनी त जानता
था क झेलम के दाएं कनारे पर पड़ाव डाली उसक सेना क एक-एक चाल के साथ बाएं
कनारे पर पोरस क सेना चल रही थी। वो ये भी जानता था क कैकय क वशाल सेना—
पचास हज़ार पैदल, पांच हज़ार घुड़सवार, तीन हज़ार रथ और दो हज़ार से यादा हाथी—
उसक सेना से कह बड़ी थी।
उसे ये खेल बड़ी चालाक से खेलना होगा। “से यूकस!” उसने अपने भरोसेमंद
सेनाप त को आवाज़ द ।
“जी, मेरे वामी,” से यूकस ने तेज़ी से सकंदर क ओर जाते और उस सेवक को
नज़रअंदाज़ करते ए कहा जो उसके कवच को चमका रहा था।
“ या तुम मुझ जैसे दख सकते हो?” सकंदर ने पूरी गंभीरता से पूछा |
“आप जैसा कोई नह दख सकता, वामी, आप द ह!” से यूकस ने म खन
भरी शंसा क एक मोट सी तह लगाते ए कहा। सकंदर मु कुराया तो वो जान गया क
शंसा कारगर रही थी। चापलूसी आपको कह भी प ंचा सकती है, से यूकस ने सोचा।
“नह , नह । मेरा मतलब था र से। फ़ज़ करो हम राजसी श वर को यह छोड़ द,
अ धकतर पैदल सेना भी छोड़ द, राजसी मंडप को जस का तस छोड़ द और हर कुछ दे र
बाद मेरे जैसा कोई राजसी कपड़ म सामने आता रहे। या इससे सरा प संतु
हो जाएगा क हम गए नह ह?” चतुर रणनी त ने पूछा। से यूकस मु कुराने लगा। वो
जानता था क सकंदर या सोच रहा है। ये पुरानी चमटा चाल थी जसके लए वो मश र
था—श ु को दोन ओर से आ मण के लए खुला रखना।
“मुझसे बेहतर फ़ लपोज़ होगा। उसका गठन यादा आप जैसा है, मेरे वामी।
मुझे लगता है क हम पोरस के जासूस को संतु कर सकगे क हम गए नह ह। अ धक
मह वपूण ये है क उसके बाद या? हम झेलम को कैसे पार करगे और कहां से?”
से यूकस ने ये जानते ए पूछा क वामी को जवाब पहले से मालूम होगा।
“वो नाव याद है जो हमने सधु नद पर क े पुल को पार करने के लए बनाई
थ ? अगर हम उ ह काटकर उनके टु कड़े कर ल, उ ह ख़ामोशी से कुछ री पर ले जाएं
और वहां उ ह फर से बना ल? फर हम उन नाव से नद पार कर सकते ह,” सकंदर ने
कहा।
“चालीस हज़ार आद मय और तीन हज़ार घोड़ के लए नाव को काटना और
फर से बनाना? ये असंभव है!” से यूकस अ व ास से फट पड़ा। उसके आदमी पहले ही
शकायत कर रहे थे क वो भीग रहे ह और थके ए ह।
“आह! तुम और म तीन हज़ार क पूरी घुड़सवार सेना को लेकर जाएंगे ले कन
पैदल सेना म से सफ़ दस हज़ार को। बाक़ सब यह फ़ लपोज़ के साथ रहगे। अपनी
गु त सेना के साथ नद पार करने के बाद हम पोरस पर पीछे से हमला करगे,” सकंदर ने
वजयी भाव से बताया।
“ले कन वो पलटकर पूरी श से हम पर हमला कर सकता है,” से यूकस ने तक
दया। “हमारी सं या ब त कम होगी, मेरे वामी। उसके पास सैकड़ हाथी ह,” उसने
घबराहट से कहा।
“वही ण फ़ लपोज़ के लए नद पार करने का होगा, मेरे म !” सकंदर ने
कहा।
“दोन ही तरह से पोरस दोन ओर लड़ने को मजबूर होगा,” से यूकस ने अपने
वामी क पूरी रणनी त को समझते ए कहा।

“हम पर आ मण हो रहा है,” कैकय क वशाल सेना का हरावल च लाया। च लाकर


सू चत करने क एक ृंखला से होता आ संदेश एक त व न क तरह वशालकाय
पोरस तक प ंचा। उसका नाम पु षो म से बना था और वो कसी भी तरह पु षो म से
कम नह दखता था। साढ़े छह फ़ट से भी लंबे राजा के चेहरे पर एक कां त थी जो राजपूत
यो ा जैसी उसक उमेठ और तेल लगी मूंछ से और भी बढ़ जाती थी। वो अपना
सै नक कवच और राज च इस तरह पहनता था जैसे वो उसके राजसी व के
अ भ भाग ह । उसक हर ग त व ध के साथ उसक मांसपे शयां फड़कती थ और उसक
छाती मांसल गव से फूल जाती थी। उसक गोरी वचा बा रश से भीगी ई थी ले कन
येक बूंद उसके शरीर से इस तरह चपक ई थी जैसे उसे उसके शरीर से यार हो गया
हो और वो शारी रक संपक को यागना नह चाहती हो। उसके एकदम काले बाल कंध
तक लटके ए थे और उसके मुंह को ढके मा णक से जड़े टोप से बंधे ए थे। वो
श शाली पोरस था। क मीर, मलयरा य, कुलुत और सध के पहाड़ी रा य को जीतने के
बाद उसे पवते र का उपनाम मलना वाभा वक ही था।
“ऐसा कैसे हो सकता है?” पोरस ने अपने महामं ी इं द से पूछा। “ या तु हारे
जासूस ने ये नह बाताया था क सकंदर क सेनाएं ठ क हमारी आंख के सामने झेलम
के उस ओर ही पड़ाव डाले ए ह?”
“हां, मेरे वामी। वा तव म, अभय के जासूस ने ानीय कसान से भी बात क
थी ज ह ने उ ह बताया था क कल सकंदर ने नद का मुआयना कया था और कहा था
क नद इतनी गहरी और चौड़ी है क अभी उसे पार करने के बारे म सोचा भी नह जा
सकता,” इं द ने जवाब दया।
“हे इं द , मेरे व ासपा सलाहकार। हम उस चालाक शैतान ने धोखा दे दया
है। रथवान और तीरंदाज़ से कहो क वो पलट और सकंदर को ऐसा पाठ पढ़ाएं जसे वो
कभी भूल न सके!” पोरस गरजा और बा रश लगातार उस पर पड़ती रही। इं द ने सर
हलाया और संदेश बुरी तरह घबराए सेनाप त तक प ंचाने के लए चल दया। सेनाप त के
रथ चकनी म म फसल रहे थे और कई रथ तो बेकार हो चुके थे। तीरंदाज़ के दो मीटर
के धनुष —दै याकार श जो तीर के बजाय भाले चला सकते थे—को टकने के लए
प क ज़मीन चा हए थी जो इस मौसम म असंभा थी।
कैकय के हाथी उनक सबसे बड़ी श थे। आ मण का आघात झेल रहे
प भाग को सहारा दे ने के लए पोरस ने आदे श दया क हा थय से काम लया जाए।
वशालकाय हाथी भयभीत मैसीडो नयाई बल क ओर बढ़े , तो अचानक उन पर भयानक
शला ेपक से फक जाने वाली कु हा ड़य और ब छय से आ मण आरंभ हो गया।
जब कु हाड़े और भाले अपने नशान पर पड़ने लगे, तो हाथी पगला गए और उस भगदड़
म वो कैकय के अपने ही सै य दल को कुचलने लगे। प र त संभवत: इससे ख़राब नह
हो सकती थी, ले कन तभी ख़बर आई क पीछे से आ मण तो केवल सकंदर क एक
छोट सी टु कड़ी ने कया था और क फ़ लपोज़ के नेतृ व म बाक़ सेना सामने से हमला
करने के लए झेलम को पार कर रही है।
और फर यु े के बीच म अपने हाथी के हौदे पर बैठे वीर पोरस को सबसे
अ न कारी समाचार मला। उसके दोन बेटे मारे गए थे, एक कैकय सेना के प भाग क
र ा करते ए और एक अ भाग क र ा करते ए। अब पोरस के पास हारने को कुछ
नह था, इस लए उसने महावत से कहा क वो सकंदर क ओर आ मण करे ता क पोरस
आ मणकारी के दल म ख़ुद भाला उतार सके। सकंदर इसी अवसर क ती ा कर रहा
था। उसने अपने सै यदल को आदे श दया क आगे बढ़कर पोरस और उसक नजी टु कड़ी
को घेर लया जाए। उसके बाद जो तांडव आ वो नरसंहार से कम नह था। कैकय के
हज़ार सै नक मार डाले गए और नद कनारे बहने वाले ख़ून के झरने श शाली झेलम म
जा मले।
अपने दाएं कंधे म धंसे भाले को नकालने के बाद ख़ून बहने से कमज़ोर पड़ चुका
पोरस लड़खड़ाकर अपने हाथी से गरा और उसे तुरंत ही सकंदर के सै नक ने घेरकर बंद
बना लया। परा मी और गव म यो ा को जब सकंदर के सामने लाया गया, जसके
एक ओर आंभी भी उप त था, तो उसने अपनी ग रमा को खोया नह था। “म तु हारे
साथ कैसा सुलूक क ं , हे पोरस,” र रं जत सकंदर ने एक वजेता के घमंड के साथ
कहा। आंभी धूततापूण ढं ग से मु कुराया—अब मज़ा आएगा।
“मेरे साथ वैसा ही सुलूक करो, हे सकंदर, जो एक राजा के साथ होना चा हए!”
यु म हारे ले कन हौसला नह हारे, घायल ले कन प त नह , ज़ंजीर म बंधे ले कन फर
भी गव ले पोरस ने अपने वजेता के सामने खड़े होकर कहा।
राजसी उ र से सकंदर के चेहरे पर मु कान आ गई। “अपनी ख़ा तर म ऐसा ही
क ं गा, हे पोरस,” सकंदर ने कहा और आंभी के चेहरे से मु कान ग़ायब हो गई। “जो
चाहो वरदान मांगो और वो तु ह दया जाएगा,” सकंदर ने भ ढं ग से कहा और पोरस ने
जवाब दया, “म जो कुछ चाहता ं वो मेरे इसी नवेदन म छपा है।”
सकंदर बहा री, शौय और भ ता के काय से ब कुल ही अछू ता नह था। वो
पोरस के पास गया और उसे गले लगाकर बोला, “आज से, तुम मेरे म हो, मेरे सहयोगी
हो। म तु ह तु हारा रा य और तु हारी ज़मीन वापस करता ं। आंभी के साथ शां त
ा पत कर लो और मेरे नाम से शासन करो!”
अ ुपूण पोरस ने अपने आ मसंयम के अं तम अवशेष को जाने दया और
सकंदर और आंभी के साथ शां त ा पत कर ली।

चाण य अपनी झोपड़ी क धरती पर चं गु त के साथ बैठा पोहे खा रहा था। “हम या
ा त आ, बु मान गु ?” हाल क घटना से भौच के चं गु त ने पूछा।
“वो सबकुछ जो हम चाहते थे,” ा ण ने प े से एक मुट्ठ पोहे उठाते ए
कहा।
झोपड़ी के बाहर से सै नक के अपने सवेरे के ायाम म लगे होने क आवाज़
सुनाई दे रही थ । उनका नरी ण करने वाला अ धकारी पया त तेज़ नह दौड़ने, ऊंचा नह
कूदने, ज़ोर से नह मारने और र तक नह फकने के लए उ ह ैण बोल रहा था। वो
न य ही उनसे पहले से यादा कठोर ायाम करवाता था। उसे एक छोटा ले कन अ यंत
भावशाली और ज़बरद त श शाली बल चा हए था—जो श , ग त, लचीलेपन और
च काने के ारा काम कर सके।
बाहर ायाम नरी क क कठोर और कभी-कभी अप व भाषा को
नज़रअंदाज़ करते ए, चाण य ने अपनी बात शांत भाव से जारी रखी। “ सकंदर ने पोरस
को हराया। पोरस ने अपने तेईस हज़ार सै नक खोए। अब वो सकंदर का एक जागीरदार
मा है। हम वयं ये सब कभी ा त नह कर सकते थे,” चाण य ने तक दया।
“ले कन हमने सकंदर को और यादा श शाली बना दया है,” अपने मुंह म
मसालेदार चावल के म ण को डालते ए चं गु त बोला।
“ठ क इसके वपरीत, य चं गु त। पोरस से यु शु होने से पहले ही सकंदर
के सै नक थके-हारे थे। झेलम क वजय ब त बड़ी क़ मत पर मली है। हमारे जासूस बता
रहे ह क सकंदर के सै नक आगे बढ़ने से मना कर रहे ह। नया सकंदर के आगे बढ़ने
को नह रोक सक ले कन साहसी पर मूख पोरस के साथ एक यु ने उसे रोक दया!”
चाण य हंसा।
“हमने जो कया, मुझे अभी भी उस पर संदेह है। जो सही था हम उसके लए
लड़ना चा हए था!”
“चं गु त, मेरे पु , यु कभी इस लए नह होता है क सही कौन है। ये उसके
लए होता है जो बच जाता है!”
“तो अब या होगा, आचाय?”
“ सकंदर पलट जाएगा। वो ज द ही भारत से चला जाएगा। हो सकता है वो
से यूकस को अपने व जत े का ांतपाल बनाकर छोड़ जाए। और हम तभी अपनी
चाल चलगे,” चाण य ने कहा।
बाहर से सैकड़ ला ठय के एक- सरे से टकराने क आवाज़ ने चाण य के श द
को बल दे दया था। बाहर सलंबम जारी था। श क ने पूरे भारत क ाचीन
यु कला का अ ययन कया था और उ ह अपने जवान के ायाम म स म लत कया
था।
“हम भा यशाली ह क वो हमारे साथ है,” ला ठय के एक- सरे से टकराने क
आवाज़ सुनकर चं गु त ने कहा।
“जब तक वो मेनका क बांह से र रहे, तब तक सब ठ क है,” चाण य ने चेहरे
पर एक धूत मु कान के साथ कहा।
“म कभी नह समझ सकता क आपने आंभी के सेनाप त को हमारा श क
बनने के लए कस कार मना लया!” चं गु त तेज़ी से बोला।
“उसके पास और कोई वक प ही नह था। जब त शला पर कैकय क सेनाएं
आ मण कर रही थ तो वो अपनी वे या के शयनक म आराम कर रहा था। वो ये आशा
नह कर सकता था क गंधारराज या आंभी उसका वागत करगे। उसक मूखता के लए
वो उसके सर को भाले से बेधकर पूरे नगर म घुमाते! मने तो उसे एक वक प दया।”
“हा! उसके पास कोई वक प नह था!”
“स य। हमेशा याद रखना क एक जा गर आपको चुनने के लए कई वक प
दे ता है ले कन आप हमेशा वही चुनते ह जो वो चाहता है!”
“म समझा नह । कभी-कभी आप पहे लय म बात करते ह, आचाय!” चं गु त ने
शकायत क ।
“मेनका कौन है? सेनाप त क जल ड़ा के लए उसने जल ड़ा को कस कार
ा त कया? कैसे इं द के जासूस अभय को इसक भनक लगी और उसने कैकय के
लए इसका लाभ उठाने का नणय लया?” चतुर अ यापक ने शांत भाव से पूछा।
चं गु त ने अपने गु के आगे झुककर उसके चरण श कर लए। वो जानता था
क उसके सामने परम गु है—बाहर सखाए जा रहे यु कौशल का नह ब क अंदर
सखाई जा रही कला का।

“मेरी र ा कर, हे बु मान गु , य क मने पाप कया है,” आंभी ने चाण य के सामने
दं डवत करते ए वनती क । “उठ, हे गंधार के राजा। म आपके ारा कए कसी पाप के
बारे म नह जानता। संभवत: आपको लगता है क म सव और सवभूत ं!” चाण य ने
मज़ाक़ कया। युवा राजा ने उठकर वयं को सीधा कया। अभी भी स मानपूवक हाथ
जोड़े ए उसने कहा, “मुझे सकंदर क ओर म ता का हाथ कभी नह बढ़ाना चा हए था।
मुझे केवल अपने लोग क नाराज़गी ही ा त ई। पोरस क हार भी मेरे लए जीत नह
थी य क सकंदर ने उसका रा य मुझे दे ने के बजाय उसे अपना त न ध बना दया।”
“आंभी क आकां ा के लए गंधार पया त बड़ा है?” चाण य ने चमकती
आंख से धूतता के साथ पूछा।
“हां, पर ये मुझे कचोटता है। अब पोरस और म सकंदर क नज़र म बराबर ह।
हम दोन उसके जागीरदार जैसे ह। मुझे अपने लोग का र बहाए बना जो पदवी मली है
वो वही है जो पोरस को अपने हज़ार लोग का ख़ून बहाने के बाद मली है। फर भी
इ तहास उसे नायक मानेगा और मुझे कायर!”असहाय से आंभी ने कहा।
चाण य ने अपनी सव े झूठ मु कान बखेरी और पूछा, “और चाण य आपके
लए या कर सकता है, हे राजा?”
“मुझे आपक बु म ापूण सलाह चा हए, आचाय। मुझे आपका साथ चा हए।
म जानता ं क मेरा भूतपूव सेनाप त आपक मैसीडो नयाई - वरोधी सेना को श ण दे
रहा है। मुझे इस पर आप नह है। म जानता ं क आप चं गु त को मगध का राजा
बनने का श ण दे रहे ह। मुझे इस पर भी कोई आप नह है। मुझे बस आपका
मागदशन और बु म ापूण सलाह चा हए ता क म गंधार को आ थक और राजनी तक
प से श शाली और मज़बूत बना सकूं,” आंभी ने वनती क ।
“और इसके लए मुझे या करना होगा?” चं गु त ने सावधानीपूवक पूछा।
“म चा ंगा क आप मेरे राजगु बन जाएं और मेरे महल के नकट रह। मने
राजगु के लए एक भ सरकारी नवास बनवाया है। म चा ंगा क आप और आपके
श य उसम रहने लग। आपका सारा य वहन कया जाएगा और आपक अ
दे खभाल होगी। अपनी तापी उप त से उस घर का मान बढ़ाइए, हे आचाय। इस
कार मेरा लाभ ये होगा क मुझे जब भी आपक बु मान सलाह क आव यकता होगी,
तो म आपसे मल सकूंगा!” आंभी ने अनुरोध कया।
“हे राजा, म एक ग़रीब ा ण ं। महल और बड़े भवन मेरे कस काम के? म ऐसे
वैभवशाली वातावरण म असहज महसूस क ं गा!” चाण य ने खेपन से कहा, ये जानते
ए क अपनी ग़रीबी बनाए रखने ने उससे एक हाथ और एक टांग छ न ली थी। आंख म
आंसू लए आंभी एक बार फर से चाण य के सामने दं डवत हो गया और वनती करने
लगा, “कृपा करके, आचाय, मुझे राजनी तक जंगल म अकेला न भटकने द। कृपया मेरे
मागदशक बन जाएं। जब तक आप सहम त नह दे ते म जाऊंगा नह !”
“ठ क है, हे आंभी। आप ब त ज़ ह। म वीकृ त दे ता ,ं पर एक शत पर,”
चाण य ने कहा।
“वो या?” आंभी ने अपनी दं डवत अव ा से बड़े अजीब से ढं ग से सर उठाकर
पूछा। “य द ह शुभ नह ए, तो आप मुझे पद यागने क अनुम त दगे,” ा ण ने कहा।
आंभी मान गया और उसने नए राजगु से एक वा तुकार के साथ अपने सरकारी नवास
पर चलने को कहा ता क वहां चाण य क नजी आव यकता को पूरा कया जा सके।

आंभी ने चाण य के लए जो हवेली बनवाई थी उसम रोशन और हवादार कमरे थे, ऊंची
छत थ , और ढे र सारी जगह थी। मकान एक शानदार आंगन के चार ओर बना था और
एक छलछलाते झरने के कनारे त था। इसम जंगली फूल और फल के पेड़ से भरे
खुले बग़ीचे थे जनसे दरवाज़ और खड़ कय म हमेशा सुगं धत हवा के झ के बहते रहते
थे।
चाण य चं गु त, सहारण, मे हर और शारंगराव के साथ प रसर के दौरे पर था।
उसके श य नराश थे। य उनके गु आंभी के बड़े-बड़े दाव से बहक गए थे? य
उ ह ने एक ऐसे धूत को सहयोग दे ने का नणय ले लया था जसने अपनी आ मा तक
सकंदर को बेच द थी? वा तुकार के मागदशन म एक से सरे कमरे तक जाते ए वो ये
सोचे बना नह रह सके क वो यहां या कर रहे ह। जहां तक चाण य का था, तो वो
हवेली के स दय पर कुछ अ धक ही मु ध दखता था। वो तो लकड़ी के दरवाज़- खड़ कय
पर हाथ फेर रहा था और फ़श पर लेटकर दे ख रहा था और म य के सुंदर काम क
शंसा कर रहा था! दौरा पूरा होने पर उसने वा तुकार को स दय ध यवाद कया और
उससे कहा क वो अगले ही दन अपने श य के साथ रहने के लए आ जाएगा। वो आंभी
ारा भेजे ए राजक य रथ पर सवार ए और अपने आ म क ओर चल दए।
“आचाय, आप या कर रहे ह? हम वहां नह रह—”चं गु त ने बोलना आरंभ
कया। चाण य ने एक इशारे से उसे बोलने से रोका और आ ह कया क वो तब तक
ख़ामोशी बनाए रखे जब तक क अकेले म बात करना सुर त न हो।
अपनी साधारण झोपड़ी म प ंचने के बाद कु प ा ण बोला | “ सहारण। म
चाहता ं क तुम आज रात उस घर को जला डालो। ले कन सावधान रहना, कसी को
पता न चले क ये काम तुमने कया है।”
“ले कन य —” सहारण ने बोलना आरंभ कया।
चं गु त ने उसे टोक दया। “आचाय, आप जो करवाना चाहते ह उसका आपके
पास अव य ही कोई ब त अ ा कारण होगा। हम ऐसा ही करगे। ले कन कृपया हम
कारण तो बताइए,” वो बोला।
“ य चं गु त, म सप आंभी क चापलूसी भरी बात म नह आया था।
समझता है क वो मुझे न कर सकता है! वा त वकता ये है क वो च तत है क म रा य
म बैठा उसके भूतपूव सेनाप त से अपने सै यदल को श ण दलवा रहा ं और इसके
लए मेरे पास पया त धन है!” चाण य फुफकारा।
“ले कन उसका राजगु बनने से साफ़ इंकार य न कर द? नवास न बदल। उस
घर को जलाएं य ?” मे हर ने पूछा।
“ य क वहां बा द सुरंग ह। तु ह लगता है क म वहां लेटकर म ी के काम
क शंसा कर रहा था? म वा तव म फ़श क दरार म च टय को पके ए चावल ले जाते
दे ख रहा था। तु ह लगा क म दरवाज़े- खड़ कय के चकनेपन को महसूस कर रहा था,
जब क म उनक लाख का अ ययन कर रहा था!” उनके चेहर पर असमंजस को दे खकर
ा ण हंसते ए बोला।
“चाहते हो म सफ़ाई ं ?” आ ख़र उसने पूछा। और उनके उ र क ती ा कए
बना सफ़ाई दे ने लगा। “अगर एक नजन घर के फ़श क दरार म च टयां उबले चावल ले
जाती दखाई द, तो इसका अथ है क फ़श के नीचे पका आ भोजन मौजूद है। जहां
भोजन होगा, वहां इंसान ह गे। म समझ गया क घर के अंदर एक गु त तहख़ाना है जहां
सै नक मौजूद ह। वो ख़ामोशी से हमारे आगमन क ती ा कर रहे ह और वो हम पर सोते
म आ मण करगे। आंभी एक ही वार म हम धरती से मटा डालेगा!”
चं गु त च कत रह गया। “ले कन आप दरवाज़ और खड़ कय म इतनी च
य ले रहे थे?” उसने पूछा।
उसके गु ने उ र दया, “उन पर लाख चढ़ ई थी।” ये दे खकर क उसके उ र
से बात साफ़ नह ई, उसने आगे कहा। “लाख एक न हे से क ट का चप चपा ाव होता
है। ये गोलाकार मादा क ट टह नय और छोट शाखा पर अपने मल से बने ग द के
को म जी वत रहती है। ये क ट अ धकतर कुसुम के वृ म पाए जाते ह। जी वत क ट
के साथ टह नय को एक त करने और गम पानी ारा उनके ाव को नकालने से रंजक
ा त होता है। इस रंजक को लाख इस लए कहते ह क आधा सेर रंजक बनाने के लए
लाख क ट क आव यकता पड़ती है। लाख को दरवाज़ और खड़ कय पर लगाने से
उनम चकनापन आ जाता है—और तु ह लग रहा था क म उसी चकनेपन को सराह रहा
ं! पर लाख के साथ सम या ये है क ये अ यंत वलनशील होती है। अगर उस घर म आग
लग जाए तो वो आग के गोले क तरह भ म हो जाएगा। शायद आंभी का यही आशय था
— क पहले गु त तहख़ाने के सै नक ारा हम मरवाया जाए और फर घर म आग
लगवाकर हमारी मौत का कारण एक घटना को बता दया जाए। सहारण, म इसी लए
उस घर को आंभी के आद मय स हत जलवा डालना चाहता !ं आज ही रात!”

चाण य वापस ॠ ष दं डायण के आ म म आया था। आचाय ने ॠ ष से अनुरोध कया था


क वो उसे आ म म ठहरने द और माननीय ॠ ष को कसी के आने पर ब त स ता
थी। कुछ दन बाद उनसे मलने आंभी आया। “आंभी, मेरे पु , मेरे लए आर त सरकारी
नवास म लगी वशाल आग द संदेश है क मुझे आपका राजगु नह बनना चा हए।
मेरे ह अ े नह चल रहे और म नह चा ंगा क म अपने साथ-साथ गंधार के भ व य को
भी न कर ं । मुझे पूरा व ास है क आपको मुझसे अ धक यो य कोई और मल
जाएगा,” चाण य ने शांत भाव से कहा।
उसने त या का इंतज़ार कया। वो आंभी के अंदर बलबलाते ोध को महसूस
कर सकता था ले कन आंभी उसे अंदर ही रखने म सफल रहा। “हे आचाय, ये मेरी त
है। म आशा करता ं क आप त शला म ही रहगे ता क म समय-समय पर आपसे
सुझाव लेता र ,ं ” उसने कहा।
और आ ख़र म मुझे मार डालो, चाण य ने सोचा। “अव य। म हमेशा आपक
सहायता के लए उपल र ंगा, हे राजा। कृपया मुझसे मलने म कभी हच कचाना मत,”
चाण य ने झूठ बोला।
आंभी के जाने के बाद चं गु त ने पूछा, “अब या कर, आचाय? सकंदर क
सेनाएं पीछे हट रही ह। या हम यु क तैयारी कर?” चाण य ने एक ण को कुछ सोचा
और फर धूततापूण भाव के साथ कहा, “यु करने का काम मुझ पर छोड़ दो, चं गु त। म
चा ंगा क तुम यार करने पर यान दो!”
वो हमेशा सादे ले कन सु चपूण कपड़े पहनती थी—ह के पीले ोमव का बना
आ तीन का अंगरखा जो उसके पैर तक जाता था, ह के प दार सडल, लंबो भूरे बाल
पीछे त मेदार जाली म बंधे ए, और सर पर एक कोमल सा सोने और हीरे का मुकुट। वो
मुकुट और साधारण सी बा लय के अ त र कोई आभूषण नह पहनती थी। राजसी
ृंगार क अनुप त उसके शा ीय स दय और सरल सौ व को और उभारने म ही मदद
करती थी। उसक वचा ह क सी सुनहरी आभा के साथ गोरी थी और बना आ तीन का
अंगरखा उसक कोमल बांह और सुडौल कंध को उजागर करने के लए एकदम उपयु
था। उसक आंख उ वल नीले सागर क तरह नीली थ और सागर क ही तरह गहरी
थ । उसका पतला सा चेहरा, भरे-भरे ह ठ, खड़ी नाक और कपोल क उ मु ह यां
लुभावनेपन और सरलता का उ कृ म ण थ । उसका नाम कॉन लया था और वो भारत
के सरे सबसे श शाली — से यूकस—क बेट थी।
सबसे श शाली सकंदर अपने ए शयाई उप नवेश को अपने भरोसेमंद
सेनाप त—से यूकस—क दे खरेख म छोड़कर घर वापसी क योजना बना रहा था। उ री
मैसीडो नया म ज मे से यूकस को उसक मां ने बताया था क उसका वा त वक पता
दे वता अपोलो था। अपोलो ने अपने बेटे के जवान होने पर उसे दे ने के लए एक लंगर
राज च वाली अंगूठ द थी। वही लंगर से यूकस क जांघ पर ज म च के प म भी
अं कत था। “जाओ सकंदर के साथ फ़ारसवा सय से लड़ो और तुम नकाटोर— वजयी
—कहलाओगे!” उसे वो अंगूठ दे ते ए उसने कहा था।
वो यु ही म नह ेम म भी वजेता रहा था। फ़ारस को जीतने म सकंदर क
सहायता करने के बाद उसने सूसा म एक भ समारोह म फ़ारस के एक सामंत क अ यंत
सुंदर बेट अपामा से शाद क थी, जहां सकंदर ने भी फ़ारस के राजा दा रयूश तृतीय क
बेट से शाद क थी। से यूकस और अपामा के भावुक ेम-संबंध से एक नाजायज़ बेटा
पैदा आ था। एक वष बाद उनक शाद से एक जायज़ बेट का ज म आ। कॉन लया
को स ता थी क वो अपने मां-बाप के ववाह के बाद ज मी थी।
कॉन लया त शला म आंभी क राजक य अ त थ के प म रह रही थी। ये
लड़क भारत ेमी थी और यूनान से अ धक गंधार म सहज महसूस करती थी। वो न य
ात: काल योग सीखने के लए ॠ ष दं डायण के आ म जाती थी। च तत मैसीडो नयाई
र क का एक दल साथ जाता था, जसके सै नक जानते थे क अगर कुछ गड़बड़ ई तो
से यूकस उनके अंडकोष कुचलवा दे गा।
महान ॠ ष को कठोर जीवन जीते दे खकर वो चाण य से पूछती— जो वयं भी
उस समय दं डायण के साथ रह रहा था—“ ानी आचाय, भारत म याग इतना मह वपूण
य है? ॠ ष दं डायण यहां जंगल म रहते ह जहां गम , सद या वषा से कोई बचाव नह है।
फर भी वो शांत दखाई दे ते ह, उन चीज़ का याग करने के बाद भी ज ह हम
मैसीडो नयाई मह व दे ते ह—श और धन।”
चाण य दल खोलकर हंसा और उसने बेचारी उलझी ई कॉन लया को अपने
टे ढ़े दांत दखाकर डरा दया। हंसी धीमी पड़ने पर उसने कहा, “भगवान राम ने अपने रा य
को यागा और पृ वी पर सबसे श शाली राजा बने। बु ने संसार को यागा और संसार
उनके चरण म गर पड़ा। कॉन लया, मेरी मासूस ब ी, याग का अथ श को यागना
नह है। वा तव म, ये श ा त करने का मा यम है!”
चं गु त तेज़ी से दं डायण क झोपड़ी क ओर जा रहा था जब उसने उसे चाण य
से बात करते दे खा। वो कसी दे वी जैसी दखती है, उसने सोचा। वो ब त ो धत आ था
जब उसके गु ने उससे कहा था क वो चाहता है क चं गु त उस लड़क को रझाए। वो
या है, पु षवे या? उसने य अपना जीवन राजा के कत का श ण लेते ए
बताया है? अंगरखा पहनी एक मैसीडो नयाई लड़क का पीछा करने के लए? ले कन अब
वो ेमास था। इस राजकुमारी से सुंदर कोई नह हो सकता, उसने सोचा।
“आह! चं गु त, दे खता ं क तुम आ गए हो,” चाण य ने आवाज़ दे कर बड़ी
चालाक से चं गु त को बातचीत का भाग बना लया। “ये कॉन लया ह, स मानीय
से यूकस क पु ी। ये यहां ॠ ष दं डायण से योग सीखने आई ह। भा य से, इनके पाठ
श के याग के बारे म हमारी गूढ़ बातचीत से अव हो जाते ह!”
चं गु त आ म व ास के साथ उनक ओर बढ़ा | “कॉन लया, मेरे गु तु ह श
के याग के बारे म नह सखा सकते, ये तु ह याग क श के बारे म सखा सकते ह!”
चाण य ने वयं ही ये प रहासयु वा य चं गु त के लए पहले से तैयार कया आ था
ता क वो पहला भाव अ ा डाल सके।
चं गु त अपने सव े व म था जनम से कुछ ज द -ज द म सहारण से
उधार लए गए थे। एक राजसी बगनी धोती उसक कमर म बंधी थी, और उसने एक नीला
रेशमी उ रीय लापरवाही से अपने कंध पर डाला आ था। गले म उसने मो तय क एक
भारी माला पहनी ई थी। सोने क बा लयां उसक क़लम को उजागर कर रही थ और
उसके उदार- वन चेहरे को कर रही थी जो यो ा जैसी मूंछ के अ त र
सु च कण था। लंबे काले बाल चौड़े कंध तक लटके ए थे; उसक थरथराती मांसल
भुजाएं सोने के बा बंध से अलंकृत थ । भाले ही उसके पास कोई रा य नह था ले कन
वो पूरी तरह एक राजकुमार दख रहा था।
कॉन लया मु कुराई। चं गु त ने भरपूर मु कान द । चाण य खल खलाया। वो
जानता था क कहानी आरंभ हो चुक है। ेम सब कुछ जीत लेता है। उसने अपने बचपन
क पसंद सुवा सनी के बारे म सोचा और नणय कया क समय आ चुका है।
चाण य टहलता आ ॠ ष दं डायण के आ म के बाहर एक मैदान म अपने श य ारा
बांस क जा लय से बनाए चबूतरे क ओर बढ़ गया। उस बाड़े तक प ंचने पर उसे अपने
पंखदार संर त क धीमी सी चहचहाने और कूजने क व न सुनाई द । श क दौड़ता
आ आया और उसने चाण य का अ भवादन कया। “कबूतर अ े हाल म तो ह,
स ाथक?” चाण य ने लापरवाही से पूछा।
“एकदम, मेरे वामी। उ ह खला- पला दया गया है और वो बड़ी उ सुकता से
ायाम क ती ा कर रहे ह,” स ाथक ने ह के ले कन मज़बूत धागे से बंधी एक
स ु टका चाण य से लेते ए कहा। उसने ार पर लगी र सी के ारा एक बड़ा सा दड़बा
खोला और उसक पुकार के जवाब म तुरंत ही एक सुंदर सफ़ेद कपोत उड़ता आ आया
और उसके चमड़े से मढ़े बाज़ू पर बैठ गया। ये कपोत पांच योजन त मु त क ग त से
एक सौ यारह योजन से अ धक उड़ चुका था और कई मु त तक बना आराम कए
नरंतर उड़ सकता था।
मुख चीज़ थी श ण और स ाथक इस े का वशेष था। हर च ड़या को
त दन एक बांस के पजरे म दड़बे से कुछ र ले जाया जाता और छोड़ दया जाता।
च ड़यां रा ता समझने के लए एक अंत न हत दशायं के प म पृ वी के चुंबक य े
का योग करके घर को याद करके वापस लौट आत । इन च ड़य को एक वशेष कारण
से—उ ह जस रा ते ले जाया जाता, वो उसी रा ते से घर वापस आ जात , चाहे जतनी भी
री हो—‘लौटनेवाले कपोत’ कहा जाता था। येक श ण दौरे के साथ माग म
श क के एक जाल के मा यम से री बढ़ा द जाती और लंबी रयां तय करने म
येक च ड़या का अनुभव, श और यो यता बढ़ती जाती। स ाथक के कपोत के पंख
ब त मज़बूत थे और वो तेज़ वरोधी हवा म भी स म प से उड़ पाते थे। उसक येक
च ड़या क नज़र भी ब त पैनी थी और वो एक सामा य मानव क तुलना म कह यादा
र तक दे ख सकती थी। अपने वन वभाव के बावजूद च ड़य म अ व सनीय
सहनश थी और उ ह लंबी या ाएं करने का श ण दया गया था।
स ाथक ने महारत के साथ स ु टका को च ड़या क बा टांग से बांधा और
सीट बजाई | पंख तेज़ी से फड़फड़ाकर च ड़या सीधे हवा म उठती चली गई और ऊंचाई
पकड़ने के बाद ख़ुद को र करने के लए उसने हवा म कुछ च कर लगाए और सीधे
अपनी मं ज़ल—पाट लपु , जहां जीव स ती ा कर रहा था—क ओर बढ़ती चली
गई।
अ याय दस
वतमान समय

रपोटर बदबूदार कोठरी म एक महीने से यादा बता चुका था। सब-जुडी शयल म ज े ट
के सामने उसक ज़मानत क अ ज़यां आत ले कन हर बार सुनवाई के बना ही ख़ा रज
कर द जात ।
उसके बाल म जूएं भर गई थ । उसक वचा हर रात उसे काटने वाले क ड़ क
मेहरबानी से सुख़ और दाग़दार हो गई थी। उसके बाएं कान पर जेल के डॉ टर ारा लगाई
गई प थी जसका कारण एक चूहे ारा उसका कान कुतर लया जाना था। उसका वज़न
कई पाउं ड कम हो चुका था और उसके गाल धंस गए थे। उसका चेहरा लंबोतरा और थका
आ और आंख बेजान सी दखती थ । जेल के घ टया खाने से होने वाले डाय रया के
कारण उसके शरीर म पानी क कमी हो रही थी। कई बार उसे दाल म कॉ ोच मले थे।
उसने शकायत क , तो वाडन ने मज़ाक़ कया, “ श! इतनी ज़ोर से नह । तेरे सा थय ने
सुन लया, तो वो भी मांसाहारी भोजन मांगगे।”
एक काले, तैलीय बाल वाले केरलवासी का दौरा कुछ अजीब सा था। उसक
उप त मा ही दरवाज़े खोलती और स मान पैदा करती लगती थी। वो वाडन के
अ◌ॉ फ़स म एक- सरे के सामने बैठे थे। उनके लए चीनी वाली चाय क व ा क गई
थी। चाय वाले लड़के ने मीठ चाय के दो गलास उनके सामने रखे और ग़ायब हो गया।
“म तु हारी सारी सम याएं र भगा सकता ,ं ” मेनन ने कहा।
“तुम कौन हो?” क़ैद बोला ।
“ये मह वपूण नह है। तुम ब त समझदार आदमी हो। तुम जानते हो तुम यहां
य प ंचे—तुम कुछ यादा ही शरारती हो रहे थे!” उसने एक नटखट ब े को डांटते
हेडमा टर क तरह उं गली उठाते ए डांटा।
“वो रंडी क औलाद—गंगासागर—चाहता है क म पीछे हट जाऊं? उसक उस
छोट सी प व बाब डॉल को छोड़ ं ? लगता है वो इतनी कुंवारी नह है!” वो नफ़रत भरी
सुख़ आंख के साथ च लाया।
मेनन शांत रहा। “मेरे दो त, अगर तुम मेरे साथ श ता से पेश आओगे, तो म
तु हारे साथ यादा उदारता से पेश आऊंगा। हां, तु ह मी डया से र रहना होगा, ले कन
अगर म तु ह इससे भी वा द टोरी दला ं , तो?”
“बोलते जाओ। म सुन रहा ,ं ” रपोटर ने अ च के साथ कहा ले कन मेनन
जानता था क वो उसक च जगा चुका है।
“ या तु ह पता है क इस दे श के धानमं ी के पास एक ब त क़रीबी सलाहकार
है?”
“तु हारा मतलब उनक पाट के महास चव?”
“नह ।”
“भारत के व मं ी?”
“नह ।”
“भारत के गृहमं ी?”
“नह ।”
“ फर कौन?”
“वो शायद हर महीने उनके घर जाती है। उसके दौर का योरा रकॉड म नह रखा
जाता है—न तो मुलाक़ा तय के र ज टर म उ ह दज कया जाता है और न ही धानमं ी
क डायरी म।”
“वो उनक रखैल है?”
“अपने दमाग़ का इ तेमाल करो, मेरे समझदार दो त। अगर उनक कोई रखैल
होती, तो या वो अपने सरकारी आवास पर ही उसक ठु काई करते?”
“ फर कौन है वो?”
“वो बस सा वी के नाम से जानी जाती है। बज़ा हर वो हर बड़े फ़ैसले के बारे म
उससे सलाह लेते ह।”
“और तुम मुझसे या करवाना चाहते हो?”
“मुझे उस पर भु व दलाना।”
“मेरी नाक लडहाउं ड जैसी है—ये कह भी कुछ भी सूंघ सकती है। ले कन म
तु हारी मदद य क ं ?”
“तुम अगले दस मनट म आज़ाद हो सकते हो। सोचो एक लंबा नान, ब ढ़या
खाना, तगड़ी क और ब तर म गमागम औरत कैसी लगेगी?”
“इतना काफ़ नह है। तु ह कुछ बेहतर करना होगा,” रपोटर ग़राया। वो
सौदे बाज़ी कर रहा था ले कन अगर एक ह ी और उसके आगे फक द जाए तो वो ताव
को चाटने को तैयार था।
“अगर म तु हारी ज़दगी के सबसे बड़े टग अ◌ॉपरेशन क व ा कर ं ?”
मेनन ने शांत भाव से कहा।

“वो मह वाकां ी है—” उसने शु आत क ।


“मुझे उसके भ व य म दलच ी नह है,” मेनन ने कहा।
“सा वी लगभग हर स ताह उनके पास जाती है—” उसने कहा।
“मुझे उसके वतमान म भी दलच ी नह है,” मेनन ने कहा।
“तो साला कस चीज़ म दलच ी है तु ह?” रपोटर ने पूछा।
“उसके अतीत म।”
“हम मुख सतह तक प ंच गए ह,” रपोटर ने उ सा हत होते ए कहा।
“बताओ,” मेनन ने शांत भाव से कहा।
“जब हमारे धानमं ी मु यमं ी थे, तो एक म हला उनके पास आती थी। अ सर
दे र रात को।”
“इसम या है! अगर म उन औरत को सरे से सरा मलाकर लटाता जाऊं जो
ापा रय और राजनी त के साथ संबंध बनाती ह, तो साला सारी नया का दायरा बन
जाएगा।”
“ सरे से सरा मलाकर लटाओगे तो थक जाओगे,” रपोटर ने मज़ाक़ कया।
मेनन ने मज़ाक़ को नज़रअंदाज़ कर दया। रपोटर ने गला साफ़ कया और आगे
बोलने लगा। “ख़ैर, तो लगता है क वो औरत—जो बज़ा हर ब त सुंदर थी—उनसे मलने
आती थी, पर एक दन अचानक वो ग़ायब हो गई। छू मंतर! ग़ायब।”
“तो?”
“वो औरत दो महीने बाद एक ह शरण ल म दखाई द , गभ से।”
“तुम ये कैसे जानते हो?”
“अनाथालय ने मु यमं ी—हमारे वतमान धानमं ी—क औपचा रक सफ़ा रश
पर गभवती म हला को रखा था।”
“और इस म हला ने ब ा पैदा कया?”
“ ब कुल। बेट ।”
“ फर मां और बेट का या आ?” मेनन ने अचानक दलच ी लेते ए कहा।
“मां अपना सामान बांधकर चली गई। बेट को शरण ल के बग़ल म त ह
मठ ने पाला।”
“इसका या सुबूत है क लड़क का धानमं ी से कोई संबंध है?”
“मां जाते-जाते ज दबाज़ी म एक पो टकाड छोड़ गई थी। ये मां और ब ी क
ख़ै रयत जानने के लए पता क ओर से था। पुरो हत से जब मने कहा क म एक मै डकल
कॉलेज म उसके बेटे का एड मशन कराने क व ा कर सकता ,ं तो वो उसे मुझे
दखाने को ख़ुशी-ख़ुशी तैयार हो गया।”
मेनन ने नोट कर लया। वादा पूरा कया जाना ज़ री था। “और?”
“वो धानमं ी थे। वही पता ह।”

“तो सा वी उनक नाजायज़ बेट है?” गंगासागर ने अ व ास से पूछा।


“वो पहले से ववा हत थे और उनके तीन ब े थे और साथ ही उनका एक अ ा
राजनी तक भ व य था—वो उसे वीकार नह कर सकते थे,” मेनन ने जवाब दया।
“ले कन सुबूत कहां है?” गंगासागर ने पूछा।
“उस नेवले रपोटर के पास एक पो टकाड है जसम उ ह ने उसक और ब ी
क ख़ै रयत पूछ है।”
“ले कन इसे माण तो नह कहा जा सकता,” गंगासागर ने कहा, और फर
थोड़ा सोचने के बाद बोला। “ले कन ये सनसनी फैलाने के लए काफ़ हो सकता है। और
ये ब ी—ये आगे चलकर सा वी बन गई?”
“हां। बाप-बेट कभी एक- सरे को र तेदार क तरह संबो धत नह करते ह।
ब क वो शायद उ ह ब ा कहती है। या मज़ाक़ है!”
“और वो उसे साला या बुलाते ह—मां?”
“वा तव म, हां।”

“अब समय आ गया है क म उससे मलूं,” गंगासागर ने अख़बार रखते ए कहा।


“आप उससे या कहगे?” मेनन ने पूछा।
“म उससे क ंगा क अगर वो चाहती है क द ली म मां का शासन हो, तो वो
सु न त करे क उ र दे श म साला रा प त शासन नह हो।”
“तु हारे नदश आ गए ह, ब ा,” उसने उनके सर पर हाथ रखते और आंख बंद करके
कुछ और मं पढ़ना आरंभ करते ए कहा। एक मनट बाद उसने आंख खोल और नदश
दया, “उ र दे श म रा प त शासन मत लागू करो।”
“ले कन बु मां—” धानमं ी ने बोलना शु कया।
“ श!” उसने हथेली उनके सामने ले जाकर उ ह रोकने का संकेत करते ए
डांटा। “ या मेरे द संदेश कभी ग़लत गए ह?” उसने पूछा।
“नह ,” उ ह ने शांत भाव से वीकार कया।
“तो म जैसा कहती ं वैसा करो!” उसने नदश दया।

“ठ क है। तो तुमने मामले को रोककर रा प त शासन तो लागू होने से रोक दया है।
ले कन अब?” अ वालजी ने पूछा।
“मु यमं ी से कहगे क वो इ तीफ़ा द और चांदनी को स ा संभालने द,”
गंगासागर ने कहा।
“ले कन उनक पाट भी हमारी मु यमं ी को समथन दे ने के लए उसी तरह मं ी
पद मांगेगी जैसे हमने उनसे मांगे थे। उनका मु यमं ी कसी सौदे के बना य इ तीफ़ा
दे गा?” मेनन ने पूछा।
“म इस वषय को बदलना चा ंगा, मेनन। तु ह ेस के क ड़े के लए टग
अ◌ॉपरेशन क व ा करनी थी ना?” गंगासागर ने पूछा।
मेनन मु कुराया। “आप चाहते ह क मु यमं ी टहलने जाएं?” उसने पूछा। “ता क
आपको उ ह मं ी पद न दे ने पड़?”
“मुझे लंबी टहल पसंद है— वशेषकर जब वो लोग लंबी टहल पर जाएं जनसे
मुझे चढ़ होती है,” गंगासागर ने कहा।

मुंबई का स न सुवे शत, बेदाग़, श और मृ भाषी था। वो पीड यूडी के चीफ़


इंजी नयर के घर पर एक काली म सडीज़-बज़ म आया था। उसके एक हाथ म मु य
अ भयंता क प नी के लए लली के फूल थे और सरे म उसके ब के लए वस
चॉकलेट का ड बा और ख़ुद उसके लए एक महंगा म लां पेन था। मुलाक़ात का समय
एक स ताह पहले मु य अ भयंता के भतीजे के कहने पर तय कया गया था।
ारं भक प रचय होने के बाद मुंबई के स न ने कहा, “ये एक वशाल ोजे ट है
— दे श के मुख राजमाग का सुधार और चौड़ीकरण, चार नए बाइपास का नमाण,
और तीन नए पुल। इसका ख़च कौन उठा रहा है?”
मु य अ भयंता ने जवाब दया। “ स वल काय, नरी ण, ोजे ट बंधन,
अनुबंध क दे खरेख, भू म अ ध हण और नक़द नपटान पूरी तरह उ र दे श सरकार
ारा संभाला जाएगा, जब क पुन: ापन और पुनवास के अ य ख़च व बक ारा
व पोषण के लए खुले रहगे।”
“तो सारी लागत का वहन दे श सरकार या व बक ारा कया जा रहा है?”
“ ब कुल सही,” मु य अ भयंता ने जवाब दया।
“हमने कुछ अपना आंत रक बजट बनाया है और हम लगता है क कुल लागत
डेढ़ अरब के लगभग होनी चा हए,” मुंबई वाले स न ने कहा।
“आह!”
“ले कन हम इसे आव यकतानुसार बढ़ा या घटा सकते ह,” मुंबई के स न ने
सरलभाव से कहा, “इसी लए म यहां आया ं। हम सु न त करना चाहते थे क हमारी
बोली उसी तरह लगे जस तरह आप चाह।”
“इसके लए आपको मुख स चव से मलना होगा,” मु य अ भयंता ने कहा।
“हम उनसे कब मुलाक़ात रख सकते ह?” मुंबई के स न ने मु कुराते ए कहा।

मुंबई का सुवे शत, बेदाग़, श और मृ भाषी स न लखनऊ म मुख स चव के नमाण


भवन कायालय म अपनी काली म सडीज़-बज म आया था। उसके एक हाथ म मुख
स चव के लए ू लप थे, और सरे हाथ म मुख स चव के कायकारी सहायक के लए
एक साधारण म लां पेन था। मुलाक़ात दो दन पहले मु य अ भयंता ारा तय क गई
थी।
“जैसा क आप जानते ह, न वदा या तीन कार से क जा सकती है—
तशत दर, आइटम दर या एकमु त। पहले तरीक़े म, हम लागत आंकगे और आप
आकलन के ऊपर या नीचे एक तशत क बोली लगाएंगे। सरे वक प म, हम आपको
मा ा क सारणी दगे और आप येक आइटम पर अलग-अलग भाव बता सकते ह।
तीसरी या व ध म, आप हमारे व नदश के आधार पर पूरी प रयोजना के लए एकमु त
रा श क बोली लगाएंगे,” मुख स चव ने बताया।
“आप इसे इस कार कैसे घुमा सकते ह क ये हम ही मले?” मुंबई वाले स न
ने पूछा।
“आपक कोई गौण या सहब कंप नयां ह?” मुख स चव ने पूछा।
स न ने सर हलाया। “ब त सी।”
“तो इसे इस तरह करगे। पूवयो यता क बोली म आपसे आपक पृ भू म,
तकनीती वशेष ता और रकॉड के बारे म पूछा जाएगा। सु न त कर लेना क आपक
सारी गौण और सहब कंप नयां अलग-अलग बोली लगाएं।”
“इससे या फ़ायदा होगा?”
“इस चरण म हम अ य बोलीदाता को ख़ा रज करने के लए गुणा मक कारण
ढूं ढ़गे। ले कन अगर सफ़ एक ही पाट ख़ा रज होने से रह जाएगी तो ये बड़ा अजीब
लगेगा। इसी लए हम चाहते ह क आपक कम से कम पांच या छह पूवयो यता बो लयां
ह ।”
“तो ावसा यक बोली तक हम अकेले बोलीदाता रह जाएंगे?”
“हां।”
“और इसके लए कतनी लागत लगेगी?”
“इसके लए आपको मु यमं ी से मलना होगा,” मुख स चव ने कहा।
“उनसे कब मला जा सकता है?” मुंबई वाला स न मु कुराया।

मुंबई का सुवे शत स न उ र दे श के मु यमं ी के सरकारी आवास 5, कालीदास माग


पर अपनी काली म सडीज़-बज़ म आया था। उसके एक हाथ म मु यमं ी के लए
अ◌ॉ कड थे और सरे म मु यमं ी के नजी सहायक के लए एक दस तोला—एक सौ
सोलह ाम क सोने क छड़। मुलाक़ात का समय मुख स चव ारा कुछ घंटे पहले तय
कराया गया था।
“मुझे बताया गया है क आप पहले ही व तार से मु य स चव से बात कर चुके
ह,” मु यमं ी ने हाथ मलाते ए कहा।
“जी। यहां म बस आपका आशीवाद लेने आया ं।”
“मेरा आशीवाद ब त महंगा है।”
“ कतना महंगा?”
“पं ह तशत।”
“एक आशीवाद र करके बाक़ दो मुझे दे द जए।”
“दस तशत?”
“हां।”
“सामा य हालात म म ऐसा नह करता। ले कन आप मेरे लए अ◌ॉ कड लेकर
आए ह,” मु यमं ी ने खड़े होकर मु कुराते मुंबई के स न के साथ सौदा प का करते ए
कहा।

मुंबई का सुवे शत अपनी काली म सडीज़-बज़ म पं डत गंगासागर म के बरहाना रोड


वाले घर पर आया था। उसके एक हाथ म फ़ म का रोल था और सरे म एक छोटा सा
पॉकेट रकॉ डग यं जसके अंदर टे प अभी भी मौजूद था। मेनन मु कुराते ए अपने
रपोटर म को अंदर पं डत गंगासागर म से मलवाने ले गया।
“इस समाचार के साथ तुम नेवले से बाज़ बन जाओगे,” गंगासागर के ल वग म
क ओर बढ़ते ए मेनन ने प कार से कहा।
“म नेवला ही बना रहना पसंद क ं गा,” रपोटर ने कहा।
“ य ?” मेनन ने पूछा।
“बाज़ उड़ ज़ र सकते ह, ले कन नेवले जेट के इंजन म नह फंसते ह!”

कानपुर क धूल भरी बरहाना रोड क एक गली म, एक ब ग म जसने कभी बेहतर


दन भी दे खे थे, तीय तल पर पं डत गंगासागर म के लैट तक जाने वाला चरमराता
ज़ीना सैकड़ क़दम के वज़न के नीचे कराह रहा था। सुबह के यारह बजे थे और पं डतजी
के घर पर चांदनी गु ता आई ई थी। उसके साथ वप के वो एमएलए थे जो दल बदलने
को तैयार थे।
टग अ◌ॉपरेशन ने मु यमं ी को दोबारा सोचने पर मजबूर कर दया था क उ ह
कुस से चपके रहना चा हए या नह । उ ह ने समझदारी से काम लया और इ तीफ़ा दे
दया। “आप ख़ुश ह क वो चले गए?” थके ए मेनन ने पूछा।
“ य मेनन, कुछ लोग जहां भी जाते ह ख़ुशी दे ते ह। कुछ लोग जब भी जाते ह
ख़ुशी दे ते ह।”
“ णाम, गंगा अंकल,” राज नमाता के सामने स मानभाव से हाथ जोड़ते ए
चांदनी ने कहा। “ई र तुम पर कृपा करे, बेटा,” उनके पास कुस पर चांदनी के बैठते-बैठते
वृ ने कहा। वो एक ण को के और उसके सर पर हाथ रखकर वो मन ही मन कुछ
पढ़ने लगे। “आ द श , नमोनम:; सवश , नमोनम:, थम भगवती, नमोनम:,
कुंड लनी माताश ; माताश , नमोनम:।”
“तुम सरकार बनाने के लए दावा करने को रा यपाल के पास जाने को तैयार
हो?” उ ह ने आंख खोलकर पूछा।
उसने मु कुराते ◌ु कुरात ए सर हलाया। “मु यमं ी के वधायक बाहर ह। वो
बना मं ी पद के हमारा समथन करने को तैयार ह—उनके पास और कोई चारा भी नह
था,” वो हंसी।
“मु यमं ी के प म तु हारा पहला काम—” वो शु ए।
“जी?”
“ व बक का अनुबंध अ वालजी क पसंद के को दे ना, ले कन यान
रखना क वहां कोई खुले माइक न ह ! उ ह ने इस चुनाव म पैसा लगाने क ख़ा तर अपने
बचे-खुचे बाल भी नोच डाले ह। उ ह शांत करने के लए कुछ दे ना ज़ री है।”

उ र दे श के मु यमं ी का कायालय लखनऊ म लाल बहा र शा ी भवन के पांचव तल


पर था। वागत े ब त बड़ा था—बड़ी सं या म ती ारत मुलाक़ा तय के लए। स चव
लोग वागत े म बैठे थे और उ ह सफ़ भीड़ को संभालने का काम स पा गया था।
अंदर का कायालय वागत क से छोटा था ले कन कह अ धक भ था। कमरा
लकड़ी के पैनल का था, जन पर महोगनी क ब त बड़ी डे क हावी थी और इस मेज़ के
पीछे पुराने लाल चमड़े क एक रवॉ वंग कुस थी— दे श क सबसे श शाली कुस ।
कुस के पीछे द वार पर महा मा गांधी क बड़ी सी त वीर थी। मुलाक़ा तय क कु सयां,
जनका रंग भी लाल ही था, नीची और छोट थ और मुलाक़ा तय को तुरंत ही कम दज
का महसूस करा दे ती थ । डे क के दा ओर एक बड़ी सी खड़क थी जसके नीचे एक
कै बनेट थी जसे चमकाकर शीशे क तरह कर दया गया था। चांदनी जब अपने नए
अ◌ॉ फ़स म आई तो उसने उस कै बनेट के ऊपर गुलदाऊद का फूलदान रखा दे खा।
“गुड मॉ नग, मैडम,” उसके सहायक ने कहा, जो क भली सी सूरत का नौजवान
था। “म आपका मुख नजी स चव — ं आपका कायकारी सहायक। मेरा नाम शंकर है।”
“गुलाबी गुलदाऊद क व ा तुमने क है, शंकर?” चांदनी ने पूछा।
“जी,” नौजवान ने थोड़ा श मदा होते ए कहा, “उ मीद है आपको पसंद आए
ह गे।”
“तु ह कैसे पता था क गुलाबी गुलदाऊद मेरे मनपसंद ह?” चांदनी ने पूछा।
“मैडम, म आपका स चव — ं आपक पसंद को जानना मेरा काम है,” वो बोला |
“ या हम आपक डायरी दे ख?”
मुलाक़ा तय , फ़ोन कॉ स, च य , मी टग और फ़ाइल का तांता लगा आ था। शाम के
पांच बज चुके थे और चांदनी अपनी डे क से उठ तक नह पाई थी, लंच के लए भी नह ।
“ ब स फ़ेडरेशन के त न धमंडल को अंदर भेजी,” उसने इंटरकॉम पर शंकर
को नदश दया। एक मनट बाद वो एक े लए अंदर आया। “कहां ह वो?” उसने अपने
सामने रखी फ़ाइल से नज़र उठाए बना कहा। उसके स चव ने च तत भाव के साथ े
उसके सामने रखी और बोला, “मैडम, आज आप ब त काम कर चुक ह। मने उनसे बाद
म मलने को कह दया है। मेरे याल से आपको ेक ले लेना चा हए।” चांदनी ने सर
उठाकर उसे दे खा और महसूस कया क वो ठ क कह रहा है—वो भूखी थी। उसने े म
अपनी मनपसंद मीठ इलायची वाली चाय और नीबू के रस वाली चटपट मूंगफ लयां दे ख
तो वो मु कुराने लगी।

“तुमने उसका व ास जीतना शु कर दया है?” गंगासागर ने पूछा।


“आपक द ई पृ भू म क जानकारी के साथ, ये काफ़ आसान रहा,” शंकर ने
वीकार कया। “वो लगभग हर चीज़ के लए मुझ पर नभर करती ह।”
“ब ढ़या। उसक ग त व धय के बारे म मुझे सू चत करते रहना। इस पु ष धान
समाज म वो एक अकेली लड़क है। म कसी वा त वक या का प नक पु ष म के बारे
म व े षपूण अफ़वाह का ख़तरा मोल नह ले सकता,” गंगासागर ग़राया।

“गड़बड़ के आसार अभी से नज़र आने लगे ह,” मेनन ने कहा।


“ या? अभी उसे मु यमं ी बने कुछ ह ते ही ए ह,” गंगासागर बोला |
“पाट म बग़ावत हो रही है। हमारे य राम शंकर वेद इस यास का नेतृ व
कर रहे ह। कुछ गु त मुलाक़ात और बैठक ई ह।”
“इकरामभाई से कहना मुझसे मले। इस प र त म उसके क़ म क मदद
चा हए होगी,” गंगासागर ने कहा।
एक-एक इंच जगह को पूर-े पूरे प रवार ने घेरा आ था। एक गाय रेलवे लेटफ़ॉम के
बीचोबीच उदासीन भाव से बैठ जुगाली कर रही थी, जब क प नी, तीन ब जनम से
एक नवजात था, सास और मु ़गय के साथ एक आदमी फ़श पर अपने सामान के लए
जगह बनाने का यास कर रहा था। पट रय पर पड़े ढे र सारे कचरे से आक षत होकर
म खयां और म र भन भना रहे थे। समृ चाय वाले के नौकर छोटे -छोटे लड़के गम,
मीठ और ध वाली चाय बेचते ए चाय गरम चाय च लाते इधर-उधर दौड़ रहे थे। स ते
ला टक के खलौने, अख़बार, फल, समोसे, टू थ श, जड़ी-बू टय क औष धयां और
यहां तक क ब के कपड़े भी बेचते ए अ य फेरीवाले ब ती त े न के आने का
इंतज़ार करते या य को तंग कर रहे थे। आ ख़रकार, शोर मचाता और हांफता लोहे का
दानव आया, तो एक हलचल सी मच गई और हर कोई े न पर चढ़ने के संघष म जुट गया।
ले कन इकरामभाई का आदमी े न पर सवार होने का इंतज़ार नह कर रहा था।
वो एक ब त ख़ास म हला के आने का इंतज़ार कर रहा था जसे वहां से दरबार लब ले
जाया जाना था।

लखनऊ रेलवे टे शन के सामने दरबार लब म तापमान लगभग दस ड ी कम था। हवा म


चमेली के ताज़ा फूल क महक भरी ई थी। आंत रक स ा गहरे रंग क लकड़ी और
गहरी लाल मख़मल क थी। कमरे के बीच म डांस लोर था जस पर महंगे लहंगे पहने
कोई पं ह लड़ कयां लोक य बॉलीवुड गान पर थरक रही थ । प र ध पर अ याश क़ म
के आदमी बैठे ह क पी रहे थे। कामास लोग पसंद आ गई लड़ कय पर कुरकुरे नोट
क बा रश कर रहे थे। कैश को पास खड़े वेटर ारा फ़श से साफ़ कर लया जाता था।
पचास तशत सं ा के, पचास तशत पसंद क गई लड़क के।
लब के अंदर मौजूद आद मय क वासनापूण नज़र को नज़रअंदाज़ करती ई
ईशा अपनी ही नया म खोई ई थी और ख़ुद को संगीत म डु बोए ई थी। उसे अलंकृत
करती चमचमाती चू ड़यां, चेन, बुंदे और नथनी आभूषण के त उसके शौक़ को दशा रही
थ । उसका मेकअप पेशेवर ढं ग से कया गया था ले कन ज़ रत से यादा नह था। वो
सफ़ इ क स साल क थी और सै स अपील उससे टपक पड़ रही थी। वो पछले तीन
घंटे से डांस कर रही थी ले कन थक नह थी। थकान को चरस के सगरेट ने र भगा दया
था। े न का सफ़र लंबा रहा था ले कन थकान और उबाऊपन को र करने के लए स
उपल थे। शु है क उसे यहां एक ही काम के लए आना था। ये शहर बकवास था!
जहां वो डांस कर रही थी उसके नज़द क ही बैठा एक आदमी उस पर नोट क
बरसात कर चुका था और उसे आंख मारकर ये संकेत भी दे चुका था क वो आमने-सामने
के खेल के लए पैसा दे ने को भी तैयार है। वो उसे दे खकर मु कुराई और उसे आंकने क
को शश क । वो काफ़ पैसे वाला लगता था। उसने बार क ओर दे खा जहां खड़ा इकराम
का आदमी कोक पी रहा था। उसने ईशा को दे खकर सर हलाया। शकार ने चारा ले लया
था।
जब वो ऊपर के एक गंदे कमरे क ओर जा रहे थे, तो राम शंकर वेद ने उसे
ह ी के लए जीभ लटकाए कु े क तरह वासनापूण ढं ग से दे खा। ईशा उसे वो ह ी दे ने
वाली थी जो उसे चा हए थी, हालां क उसक पट के अंदर उभार से लगता था क ख़ुद
उसके पास भी एक ह ी है।
छोटा सा कमरा बारह गुणा बारह का और बना खड़क का था। मुख द वार के
बीच म एक डबल बेड था। एक फूलदार चादर बछ ई थी जस पर कुछ दाग़-ध बे ऐसे
थे जो चादर के डज़ाइन का भाग नह लगते थे। एक कोने म एक इकलौती कुस पड़ी थी
जसके सामने एक आईना था—जो इस घ टया से कमरे के लए एक वल ण चीज़ थी।
शु था क खड़क के बजाय वहां लगा एयर-कंडीशनर काम कर रहा था और कमरा ठं डा
था।
“तो या म तु ह बताऊं क मे यू म या है?” ईशा ने बेड के कनारे बैठते और
अपने पास क जगह को थपथपाते ए पूछा। उसके साज़ो-सामान के नशे म चूर वेद ने
ख़ामोशी से सर हलाया।
“बीबीबीजे, बीडीएसएम, बेयरबैक, जीएफ़ई, डीट , एचजे—”
“म कुछ नह समझा—” उसने बोलना शु कया।
“शश। तु ह समझने क ज़ रत नह है। म तु ह सब कुछ दखाऊंगी,” वो उसके
कपड़े उतारने म मदद करती ई बोली।
इकराम के आदमी ारा नयु फ़ोटो ाफ़र बेड म क द वार पर लगे दो ख़ी
शीशे के सरी ओर खड़ा था। उसने कैमरे को मैनुअल मोड पर और शटर को तीस सैकंड
पर सैट कया आ था। फ़ोटोगाफ़र क उं गली एक तपाई पर टके कैमरे पर मज़बूती से
रखी ई थी। राम शंकर वेद ईशा के व तृत मे यू से आइटम चुनता रहा और शटर
लक करता और आगे बढ़ता रहा।

“हमने अ वालजी के जस उ मीदवार को सड़क का ठे का दया है—” चांदनी ने बोलना


शु कया।
“हां?”
“उनका उ मीदवार तो ं टा एंड सोमानी का संघ सा बत आ, जनसे हमने
कसान क ज़मीन के बारे म बात क थी।”
“सोमानी ने ही बॉलीवुड क छ मया—अंज ल—को तु हारे चुनाव अ भयान के
लए भेजकर हमारा समथन कया था,” गंगासागर ने याद दलाया।
“ ब कुल सही,” चांदनी ने वीकार कया, “पर अब हमारे सामने एक सम या
है।”
“ या?”
“आर एंड एस म अब ववाद है। व बक क प रयोजना एक नजी कंपनी को
आवं टत क गई थी जो सी नयर पाटनर ं टा क है।”
“तो?”
“अब जू नयर पाटनर—सोमानी—दावा कर रहा है क प रयोजना मूल कंपनी के
नाम म आवं टत होनी चा हए थी जसम उसका बराबर का शेयर है।”
“इससे हम या मतलब? मुझे व ास है तुमने पारद शता और न प ता के सारे
ज़ा हरी नयम का पालन करते ए ही न वदा नकाली होगी, सही?” उसके कु टल गु ने
पूछा।
“ ब कुल | ले कन अब सोमानी अदालत जाने क धमक दे रहा है। अगर ऐसा
आ, तो नतीजतन ं टा पर होने वाला आ मण रा य सरकार को परेशानी म डाल दे गा।”
“हम उनम से कसी को भी नाराज़ नह कर सकते। सोमानी को समझाने के लए
उसके साथ एक मी टग तय करते ह।”
“आपको मी टग तय करने क ज़ रत नह है।”
“ य ?”
“वो हमसे मलने के लए बाहर इंतज़ार कर रहा है।”

“मुझसे वो चीज़ छ नी गई है जो यायो चत प से दोन साझेदार म आधी-आधी बंटनी


चा हए थी। आपने ऐसी नाइंसाफ़ कैसे हो जाने द ?” सोमानी ने अंदर आते ए सारी
औपचा रकता को ताक़ पर रखते ए कहा।
“आपसे मलकर अ ा लगा,” गंगासागर ने ं या मक ढं ग से कहा।
“मैडम, म आपसे वनती करता ं। इस ग़लती को ठ क कर द तो म इस मु े को
अदालत म नह घसीटूं गा,” सोमानी ने चांदनी से वनती क ।
“हम साझेदार के बीच के झगड़े म कैसे पड़ सकते ह?” चांदनी ने पूछा।
“आपके पास और कोई वक प नह है। अगर ये ववाद कोट म गया, तो ठे का
दे ने के बारे म सारा घनौना योरा जनता तक प ंच जाएगा,” सोमानी ने कहा।
“आप उ र दे श सरकार और इसक मु यमं ी को धमक दे रहे ह?” चांदनी ने
गु से से पूछा।
“नह , मैडम, ले कन अगर आपने कुछ नह कया तो मेरे पास मामले को जनता
के बीच उठाने के अलावा कोई वक प नह बचेगा,” सोमानी ने कहा।
“तो फर दे श सरकार के भरपूर हमले के लए तैयार रहना! जहां खाते हो वहां
हगना नह चा हए, म सोमानी!” चांदनी ने ऊंची आवाज़ म कहा।
“बस, बस, हम एक- सरे से बहस नह करनी चा हए। हम सब भले लोग ह जो
एक म तापूण हल नकालने के लए जमा ए ह, सही?” गंगासागर ने चांदनी को शांत
रहने का इशारा करते ए पूछा। “ वषय को बदलते ए, म पूछना चा ंगा क मैजे टक
युनीश स पीएलसी म आपका नजी टे क है ना, म सोमानी?”
“आ—आपको कैसे पता?” एक बज़नेस हाउस के उस वा रस ने भौच का होकर
पूछा।
“सब कुछ जानना मेरा काम है,” गंगासागर ने कहा। “जहां तक म समझता ,ं
मैजे टक युनीश स पीएलसी—वो कंपनी जो लंदन टॉक ए सचज पर उ त क जाती
है—के शेयस क एक बड़ी मा ा का अ ध हण एक बई त नवेश बक ने कया था
जसम—जहां तक मेरे ोत ने बताया है—आपका एक बड़ा टे क है।”
“आपक बात सै ां तक प से सही है, पर उससे या आ?” घबराए
बज़नेसमैन ने पूछा।
“प रक पना मक प से बात कर, तो आपक या त या होगी अगर म
आपको बताऊं क इस प रक पना मक नवेश बक म, जसके पास एक प रक पना मक
श कंपनी के प रक पना मक शेयर ह, आपके प रक पना मक टे क का मू य छह गुणा
बढ़ सकता है?”
“कैसे?”
“ या हम अब भी प रक पना मक प से बात कर रहे ह?” गंगासागर ने ताना
कसा। “जहां तक म जानता ,ं मैजे टक युनीश स को सेमी-ऑटोमे टक राइफ़ल का
एक ब त बड़ा अ◌ॉडर दया जाने वाला है ले कन फ़ाइल धानमं ी कायालय म फंसी
पड़ी है। अगर ये ताव पास हो गया, तो मैजे टक म आपके ह से का मू य लगभग छह
गुणा बढ़ जाएगा।”
“ले कन हम सारी को शश कर चुके ह—” सोमानी कहने लगा।
“उसे मुझपे छोड़ द जए। बस इस छह गुणा मुनाफ़े के लए आपको छह चीज़
करनी ह गी।”
“और वो छह चीज़ या ह?”
“पहली चीज़ ये क आपको दो तशत शेयर एक धमाथ यास को आवं टत
करने ह गे। ये यास एक साधारण सा वी का है—जो बड़ी
यारी म हला है।” जसे रा प त शासन लागू होने से रोकने के लए मुझे इनाम
दे ना है।
“ठ क है। और या?”
“ सरी। सौदा होते ही मैजे टक के अपने शेयर बेचकर अपना मुनाफ़ा कमा
लेना। म इसक गारंट नह दे सकता क भ व य म या होगा।”
“ठ क है। और?”
“तीसरी। एक ब त ग़रीब प रवार का एक लड़का है। वो एक ह आ म के
पुरो हत का बेटा है। आप उसे उनम से कसी एक मै डकल कॉलेज म वेश दलाएंगे
जनके आप या सय म से ह।” ॠण हमेशा पूरी तरह चुकाना चा हए।
“आसान काम है। चौथी?”
“नई द ली म अपने दो त—र ा मं ी जो मैजे टक युनीश स के आपके सौदे
के लए समथन जुटा रहे ह—को भ व य म कसी काम के लए मेरा सहयोगी बना
द जए।”
“म उनसे बात क ं गा। पांचव ?”
“मैजे टक युनीश स का ए शयाई सै नक मामल के अमे रक वचार गुट
ै टे जक ए शया रसच डफ़स—एसएआरडी—म टे क है। मुझे शायद अपनी कुछ बात
उन तक प ंचवाने क ज़ रत पड़े।”
“ठ क है। और आख़री?”
“अपने पाटनर ं टा के व मामला वापस ले ल ता क हम साली सरकार
चलाने के मामले से नबट सक! और अब म प रक पना मक बात नह कर रहा !ं ”

“सोमानी से नबटने के लए ध यवाद,” चांदनी ने कहा।


“ वागत है। मुझे ख़ुशी है क तुम मेरी सलाह मानकर उस पर च ला पड़ ,”
गंगासागर ने कहा।
“आपने मुझसे इतना स त होने को य कहा था?”
“अगर एक बुरा पु लसवाला न हो, तो अ ा पु लसवाला अपना काम कैसे
कराएगा?” गंगासागर ने पूछा।

मु यमं ी लखनऊ से लगभग सौ कलोमीटर र एक छोटे से गांव नटपुरवा म एक ाइमरी


कूल का उ ाटन करने जा रही थ । उ ह लखनऊ से एक बजे नकल जाना था ले कन दे र
तक चली बैठक क वजह से दो घंटे क दे री हो चुक थी। शंकर ने दौरा र करने का
सुझाव दया था ले कन चांदनी वहां जाने को ढ़ थी हालां क दे श सरकार का हेलीकॉ टर
ख़राब था। ापा रय और नौकरशाह से मुलाक़ात अहम थ ले कन इतनी अहम नह
जतना क साधारण ामीण और ब से मुलाक़ात जनके लए एक कूल ब त बड़ी
बात था।
जाड़े आ चुके थे और सूया त ज द हो गया था। वो अपनी ख़ास म रंग क
साड़ी और कंध पर एक शानदार भूरी प मीना शॉल लपेटे अपनी सरकारी एंबैसडर कार
क पछली सीट पर बैठ थी। शंकर उसके पास बैठा पछली फ़ाइल को नबटवाने म
उसक मदद कर रहा था। उनक कार के आगे दो मोटरबाइक पर सवार पाइलट
पु लसवाले थे और पीछे मु यमं ी के अंगर क को ला रही पु लस जीप थी। लखनऊ
और नटपुरवा के बीच क सड़क ग भरी थी और वो धीरे-धीरे ही आगे बढ़ पा रहे थे।
शाम ढलने के समय, ये क़ा फ़ला भस के एक झुंड को गुज़रने दे ने के लए ज़रा
सा क गया। झूमती ई भस चांदनी के पु लस ारा नयु ाइवर के बार-बार हॉन
बजाने को नज़रअंदाज़ करते ए धीरे-धीरे बढ़ रही थ । झुंड ब त बड़ा था और मु यमं ी
क कार म सवार लोग ने अचानक ख़ुद को सैकड़ भस से घरा पाया। पांच मनट बाद
जब जानवर आगे बढ़ चुके थे, तो न तो पु लस जीप ही दखाई दे रही थी और न
मोटरसाइ कल सवार पु लसवाले।
जानवर ारा उठाई गई धूल बैठ , तो तीन घुड़सवार दखाई दए और कुछ ही
ण म मु यमं ी क कार घेर ली गई। एक घुड़सवार अपने घोड़े को ाइवर क खड़क
के पास लेकर गया, उसने अपनी .303 बोर क राइफ़ल का ख़ उसक ओर कया और
गलास के पार से ही गोली मारकर उसे मार डाला जससे शीशे क करच बखर ग । “ये
र ो भैया है,” शंकर चांदनी से फुसफुसाया। “अगर हम भागे नह , तो ये हम मार
डालेगा।” चांदनी को डर के मारे जैसे लक़वा ही मार गया था। उसका फ का रंग बफ़ क
तरह सफ़ेद पड़ गया और उसने शंकर क बात पर सर हलाया। एक और घुड़सवार ने
अपनी राइफ़ल के कुंदे से शंकर क ओर क खड़क का शीशा तोड़ डाला और अब वो
उस पर बं क़ ताने ए था।
“वो सूअर का ब ा गंगासागर समझता था क वो मेरे साथ राजनी त खेल सकता
है? अपनी यारी लड़क को ग पर बठाकर पीछे से शासन कर सकता है? उसने मेरी ले
ली, अब म उसक यारी लड़क क लूंगा और म ती क ं गा। लड़क , सामू हक म ती के
लए तैयार है ना?” र ो भैया हंसा और उसके साथ उसके आदमी हंस— े धूत और
भयानक ठहाके।
चांदनी और शंकर दोन बैठे रहे। उनक खड़ कय के टू टे टु कड़े सीट और फ़श
पर बखरे पड़े थे। दोन ओर से उन पर दो .303 बोर क बं क तनी ई थ । र ो के
आदमी उ ह कार से नकालने क कसी ज द म नह थे। उनके पीछे आ रहे अंगर क ,
आगे चल रहे बाइकसवार और ाइवर का काम तमाम करने के बाद वो जानते थे क
चांदनी और शंकर आसान शकार ह।
“तीन क गनती पर,” शंकर चांदनी को इशारे से उसके पास पड़ा ख़ंजर के
आकार का शीशे का टु कड़ा उठाने का संकेत करते ए फुसफुसाया। वो पहले ही एक शीशे
का टु कड़ा पकड़े ए था और ख़ून उसक हथेली से बहकर सीट पर टपक रहा था। “एक
—दो—तीन” वो फुसफुसाया और चांदनी और शंकर दोन ने एक साथ अचानक अपने
हाथ बाहर नकाले और कार के दोन ओर खड़े घोड़ को शीशे घ प दए।
घोड़े पगला गए और चीख़ते और हन हनाते ए बदककर पीछे हट गए।
“मादरचोद!” र ो भैया गु से से च लाया और वो और उसके साथी अपने घोड़ को
नयं त करने म लग गए। राइफ़ल क नाल कुछ दे र को कार के अंदर से नकल ग ।
“अब!” शंकर फुफकारा और उसने कार का दरवाज़ा खोलकर चांदनी को बाहर घसीटा।
वो जानता था क बदके घोड़ ने उ ह एक मनट से भी कम का समय दया है।
लड़खड़ाकर बाहर नकलते- नकलते, शंकर ने अपने पास वाले घोड़े को एक बार
फर शीशे से घ पा और घोड़ा ब कुल ही पागल हो गया। फर उसने नीचे गर पड़ी बं क़
उठाई, बदमाश क खोपड़ी का नशाना लया और गोली चला द । उसे पता नह था क वो
या कर रहा है ले कन उसका म त क और शरीर जैसे वचा लत हो रहा था। जब
घुड़सवार का, जसक एक टांग रकाब म फंसी रह गई थी, बेजान शरीर ज़मीन पर गरा
तब उसे अहसास आ क उसने एक आदमी को मार डाला है। पगलाया घोड़ा तेज़ी से
दौड़ता आ लाश को घसीटता धूल भरे तज क ओर ले गया।
हाथ और घुटन के बल गरते ए शंकर ने चांदनी को अपने साथ नीचे ख चा
और वो कार के नीचे रग गए। उसने मन ही मन भारत सरकार को ध यवाद दया जसने
सरकारी कामकाज के लए अ धका रय और मं य ारा एंबैसडर कार के योग पर ही
बल दया आ था। 1956 के मॉ रस ऑ सफ़ोड तृतीय के आधार पर, इतने बरस म
एंबैसडर म कम ही बदलाव आया था और ये अब भी या ी कार म सबसे यादा ाउं ड
लीयरस वाली कार थी जसके कारण इसके नीचे चले जाना आसान था। “साले मद क
तरह बाहर आकर य नह लड़ता, चू तए?” र ो भैया च लाया।
“उसी वीरता के साथ जसके साथ तूने हम बं क़ क नोक पर रोका था?” शंकर
ने ताना कसा। वो घोड़े के खुर को दे ख रहा था और वो जानता था क उसे र ो भैया के
घोड़े से उतरने से पहले ही कुछ करना होगा। उसने चांदनी को अपने नज़द क ख चा और
उसका हाथ दबाया, उसे आ त करने के लए क वो इस मुसीबत से ज़दा बाहर
नकलगे। उसने अपनी बं क़ पछले बाएं दरवाज़े के नीचे वाले ख़ाली ान क ओर तानी
और ज द से चांदनी से कहा क वो कुछ गो लयां चलाए ले कन यान रखे क गोली
टायर पर न लगे। उसका उ े य र ो और उसके बचे ए साथी का यान भटकाना था
जब क वो ख़ुद अगले दाएं— ाइवर क सीट वाले—दरवाज़े क ओर रग गया।
चांदनी के फ़ायर दोन घुड़सवार को कार के पछले बाएं भाग क ओर ले आए थे
और उसी ण, शंकर ने दरवाज़ा खोला, तेज़ी से ाइवर क लाश को बाहर ख चा और
पु लसवाले के आईओएफ़बी माक वन रवॉ वर को उसके हो टर से ख च नकाला। खड़े
होकर उसने र ो भैया— जसका यान अभी भी पछले बाएं भाग से चली गो लय क
ओर था—का नशाना साधा और गोली चला द । र ो भैया के हाथ से राइफ़ल छू ट और
उसने अपने दल पर हाथ रख लया जससे ख़ून फूट पड़ा था। जब सरी गोली उसक
दोन आंख के बीच लगी तो उसके चेहरे पर एक त ता का भाव था।
तीसरे घुड़सवार ने दे खा क उसका बॉस मर चुका है, तो उसने अपने घोड़े को कार
से र वाली दशा म घुमाया और र पहा ड़य क ओर भगा ले गया। शंकर एक बार फर
से कार के नीचे रगा और उसने चांदनी को संभाला जो अभी तक मशीनी ढं ग से बं क़ को
चलाने का यास कर रही थी हालां क उसम गो लयां ख़ म हो चुक थ । बं क़ को जकड़े
ए वो कांप रही थी। शंकर ने हाथ बढ़ाकर उसके हाथ को छु ड़ाया जो गर से शकंजे क
तरह लपट गया था। फर उसने अपना सरा हाथ उसक ओर बढ़ाया और उसे कार के
नीचे से नकाल लया। अपनी बांह उसके कंधे पर रखकर उसने उसे सामने क या ी सीट
पर बटाया, दौड़कर सरी ओर गया, ाइवर क सीट पर बैठा, फर उसने इंजन चालू
कया, गयर को यू ल से नकाला और ए सीलरेटर पर पैर रख दया। जब तक वो
नटपुरवा के बाहर सरकारी स कट हाउस नह प ंच गए, उसने ए सीलरेटर से पांव नह
हटाया।

जब वो स कट हाउस— ज़ला कले टर ारा बनवाया गया दो बेड म का बं ला—प ंचे,


तो रात के दस बजे से ऊपर हो चुके थे। चौक दार— एक वन , बना दांत वाला वृ
आदमी—ने मु यमं ी क नंबर लेट वाली कार दे खी तो वो दौड़ता आ बाहर आया। उसने
शंकर को कार से नकलते और उसके कपड़ को ख़ून और म म सना आ दे खा, तो वो
च तत वर म बोला, “ या आ?” “मु यमं ी पर हमला आ था। इ ह अंदर ले चलने म
मेरी मदद करो—ये सदमे म ह,” शंकर ने बताया |
दोन ने चांदनी को कार से नकालने म मदद क और उसक बांह को अपने कंध
पर रखकर वो उसे स कट हाउस क सी ढ़य से ऊपर एक कमरे म ले गए। सरकारी
नवास के तर से स कट हाउस बड़ी अ हालत म था। शंकर ने चांदनी को एक बेड पर
ढह जाने दया और फर उसने चौक दार क ओर मुड़ते ए कहा, “ लीज़ हमारे लए चाय
बना दो। और तु हारे पास कोई न द क दवाई है? और मुझे फ़ोन का इ तेमाल तो करना ही
होगा।”
च तत चौक दार ने ि◌सर हलाया और चाय और न द क दवाई लेने चला गया
ले कन जाते-जाते उसक आवाज़ आई, “फ़ोन लाइन आज सवेरे से डेड है, सर। इकलौता
सरा फ़ोन पांच मील र है!”
शंकर ने चांदनी को दो त कए लगाकर टकाया, बेड पर उसके पास बैठा, और
चौक दार ारा लाए गम, मीठे पेय के कुछ घूंट पीने को मजबूर करने लगा। फर उसने उसे
न द क दवाई द । “इस हालत म म आपको लखनऊ ले जाने को लेकर सहज नह ं,”
उसने उससे वन ता से कहा। “म पु लस सुर ा के साथ ही आपको ले जाना चा ंगा।
अगर आपको भूख लगी हो, तो म गांव जाकर कुछ खाने को ले आऊंगा।”
चांदनी ने इंकार म सर हला दया। “मुझे भूख नह है। सुबह चलगे—तब तक
लखनऊ म कं ोल म को अंदाज़ा हो जाएगा क उ ह यहां एक ट म भेजनी चा हए।”
“ठ क है। म चौक दार से क ंगा क जागता रहे और सामने के पोच के पास बैठे।
म बग़ल के कमरे म — ं ” कहते-कहते वो उठने लगा।
“शंकर,” चांदनी ने उसका हाथ पकड़े और उसक आंख म सीधे दे खते ए कहा,
“मुझे छोड़कर मत जाओ। लीज़ क जाओ।” ये एक बेहद अथपूण सरल सा अनुरोध था
और शंकर को लगा क उसे उस बोहद हसीन और कमज़ोर लड़क से यार हो गया है।

“तु ह उसपे नज़र रखनी थी, साला उसके साथ सोना नह था!” गंगासागर दहाड़ा।
मु यमं ी के क़ा फ़ले पर हमला ख़बर म छाया आ था और उ ह सुबह को पहरे म
लखनऊ ले आया गया था। शंकर नहाकर और ज द से कुछ खाकर गंगासागर से मलने
चला गया था। बूढ़े से कुछ भी छपाने का कोई फ़ायदा नह था—उसे पता चल ही जाना
था।
शंकर का दमाग़ घूम रहा था। वो बुरे हाल म था। “मने ऐसा कभी नह चाहा था।
ये सब कुछ अचानक हो गया। उ ह मेरी ज़ रत थी और—”
“—और तुमने उसके साथ बेड म ज ना टक कर ली?” गंगासागर च लाया।
“ऐसा नह था। ये ब त घ न , भावना मक, अचानक—” शंकर बोला।
“ लीज़! मुझे त सील मत बताओ!” गंगासागर ने हाथ पीछे बांधे अपने ल वग
म म इधर से उधर टहलते ए कहा।
“म—म—मुझे लगता है क मुझे उनसे— यार हो गया है,” शंकर हकलाया। “म
नह जानता क म वो कर सकता ं या नह जो आप मुझसे चाहते ह। म उस और—औ—
औरत पर कैसे नज़र रखूंगा और उसक रपोट कैसे ं गा जससे मुझे यार हो गया है?”
गंगासागर मु कुराया। ये एक वन , आ तपूण मु कुराहट थी। वो उस कुस के
पास गया जस पर शंकर बैठा आ था और उसने नौजवान के कंधे पर नेहपूण ढं ग से
हाथ रखते ए कहा, “तुम बहा र और ईमानदार हो, शंकर। मुझे सच बताने के लए मुझे
तुमपे गव है।”
शंकर ने चैन क सांस ली। “मेरी राय है क तुम घर जाओ और थोड़ा आराम करो।
एक-दो दन बाद बात करगे क तु ह इस काम से कैसे नकाल।”
शंकर गंगासागर के पैर म गरकर उ ह छू ने लगा। “आपने जो कुछ मेरे लए
कया है—स चव पद दलाने समेत—म उसके लए आपका आभारी ं। आप मेरे गु ह,
सर और म आपका आभारी ं।”
“शांत हो जाओ, शंकर। यार इतनी भी बुरी चीज़ नह है,” गंगासागर हंसा। “ यार
नह होता, तो न तुम पैदा ए होते न म!”

शंकर ज द जाग गया। उसने शेव कया, नहाया और कपड़े पहने। उसका छोटा सा लैट
जसम वो अकेला रहता था, कॉफ़ से महक रहा था। कॉफ़ उसका रोज़ का नयम था,
जसके लए ताज़ा बी स को पीसा जाता और उसे दम म लाया जाता। ताज़ा-ताज़ा दम ई
कॉफ़ को नज़रअंदाज़ करते ए, उसने अपना ीफ़केस लया, दौड़ता आ सी ढ़य से
उतरा और बस टॉप क ओर बढ़ गया। पछली रात चांदनी से फ़ोन पर ई बातचीत के
बारे म सोचकर उसके क़दम म एक नया जोश आ गया।
“समझ म नह आता तु ह कैसे ध यवाद क ,ं ” चांदनी ने कहा था।
“ श! आप जानती ह क कसी ध यवाद क ज़ रत नह है,” उसने डांटा।
“जानती ं। सुनो, हमारे बीच जो आ—”
“हां?”
“समझ म नह आता कैसे क ं। अगर ये तु हारे लए बेमानी था, तो म समझ
सकती — ं ”
“ या बात कर रही ह आप? बेमानी? म—”
“मुझे ख़ुशी है क इसके तु हारे लए कुछ मायने थे। म तु ह बताना चाहती ं क
मेरे लए इसके अब भी ब त मायने ह।”
“मुझे लगता है क मुझे आपसे यार होने लगा है,” वो बोला।
“ फर तो हम एक ही क ती म सवार ह,” वो सरल भाव से बोली।
शंकर बस टॉप प ंच चुका था जो सड़क के पार था। सड़क पार करने से पहले
उसने पहले दा और फर बा ओर दे खा। बना कसी चेतावनी के एक टाटा क आया,
जसका ाइवर शायद नयं ण खो चुका था। प ीस टन का वशाल रा स शंकर से
टकराया और उसने उसक ह ड् डय का सुरमा बना दया। क ाइवर ने आगे बढ़ते ए
रयर ू मरर म शंकर का त- व त शरीर दे खा जो र और मांस का ढे र बना पड़ा था।
अ याय यारह
लगभग 2300 वष पहले

“म आपसे ेम करती ं,” मगध के महामं ी रा स के गले और कंध को मसलते ए


चाण य क बचपन क पसंद सुवा सनी ने कहा।
सुवा सनी ही वो आदश चगारी है जो मगध म आग लगा सकती है, चाण य ने
नणय लया था। पहली बात तो ये क वो मादक थी। सरे ये क वो चाल खेलना पसंद
करती थी। मगध के राजनी तक प र य म, शारी रक वासना मुख पा — सनी राजा
धनानंद और उसके कामुक महामं ी रा स—के लए मु य उ ेरक थी।
सुवा सनी क वचा म एक कजरारापन था, जो उसे रह यपूण और आकषक
बनाता था। उसे परंपरागत प से सुंदर नह कहा जा सकता था ले कन उसके अंदर कुछ
ऐसा था जो कसी भी वय क पु ष क उवर क पना म ती इ ा के बीज बो सकता था।
उसम सारी उपयु जगह पर घुमाव थे, और इसके साथ उसक गे ंआ रंगत, भरे-भरे
ह ठ, गहरी आंख और घने काले बाल उसे चटपटा, तीखा और मादक बना दे ते थे।
“म आपसे ेम करती ,ं ” सुवा सनी ने रा स से कहा, “ले कन महाराज ने मुझे
बड़ी वधा म डाल दया है, य | वो चाहते ह क म उनक रानी बन जाऊं।”
रा स के शरीर म खचाव सा आया और सुवा सनी ने उसके गले क मांसपे शय
म तनाव महसूस कया। “तुम भी यही चाहती हो?” उसने सावधानीपूवक पूछा।
सुवा सनी ने उसके गले म बांह डाल द और आगे को झुककर उसके कान म
फुसफुसाई, “आप जानते ह जब आप और म श या म होते ह तो या होता है। आपको
वा तव म लगता है क वो मुझे संतु कर सकगे?”
“ले कन एक बार उनक कसी औरत पे टक जाए, तो वो उसे हर क़ मत पर
ा त कर लेते ह। उनसे कोई बहस नह कर सकता— वो साले राजा ह! हम इससे कैसे
नबटगे?’’ रा स ने पूछा जसका चेहरा सुवा सनी क उसके कान म कानाफूसी से
तमतमा रहा था।
“म उनसे बात क ं गी। अगर इसके लए मेरा सर कटता है, तो ऐसा ही
सही।”
“मेरी चता ये है क उ ह तु हारा सर नह चा हए,” रा स ने कहा।

“म आपसे ेम करती ं,” सुवा सनी ने धनानंद के बाल म उं ग लयां फराते ए कहा
जब क वो उसक गोद म सर रखे ए था, “ले कन आपके महामं ी ने मुझे बड़ी वधा म
डाल दया है, यतम | वो चाहते ह क म उनक प नी बन जाऊं।” उसने राजा क
कनप टय म थरथराहट महसूस क ।
“रा स तु ह ऐसा या दे सकता है जो म—मगध का स ाट—तु ह नह दे
सकता?” वो गरजा। सुवा सनी ने अपनी उं ग लयां नीचे उसक छाती पर ले जाकर उसके
चूचुक के चार ओर घुमा , अपना चेहरा नीचे उसके चेहरे के पास लेकर गई और
फुसफुसाई, “आप जानते ह क मुझे ये सब, जो हमारे बीच है, कतना अ ा लगता है।
आप ये भी जानते ह क मुझे आपक श या धन से कोई मतलबा नह है। म तो बस
आपसे ेम करती ,ं वामी।”
“मुझे तु हारे बारे म जो बात पसंद है, सुवा सनी, वो ये है क तुम सवेरे एक
दे खभाल करने वाली मां हो सकती हो, दोपहर को अनुराग करने वाली बहन हो सकती हो,
और रात को रंडी हो सकती हो!” वो अप र कृत ढं ग से बड़बड़ाया। वो अंदर से कांप गई
और उसने अपनी आंख बंद कर ल । व णुगु त ने उससे ये भयंकर कोण बनाने को य
कहा था?
“म उनसे बात क ं गी। अगर इससे उनका दल टू टता है, तो ऐसा ही सही,”
सुवा सनी ने कहा।
“ दल नह टू टेगा ब क ब त नीचे कुछ टू टेगा,” धनानंद हंसा।

आधी रात से पहले का मु त था और महल इस समय एकदम ख़ामोश था। सभाक के


अंदर धनानंद अपने महामं ी रा स के साथ बैठक कर रहा था। खंभ पर शकंज म लगी
कई मशाल जल रही थ और क नाचती ई छाया से भरा आ था।
“जाकर सकंदर से मेरे त के प म मलो, रा स। उसके फ़ारस जाने से पहले
उससे मल लो और उससे कहो क धनानंद उसके म बनना चाहगे और क मगध एक
स मा नत अ त थ के प म उनका वागत करना चाहेगा,” धनानंद ने कहा।
“महाराज, गंधार क या ा लंबी है। आपको व ास है इसका कोई लाभ होगा?
मेरे जाने पर शासन चलाने म कौन आपक सहायता करेगा?” रा स ने पूछा।
“मुझे तु हारी कमी खलेगी, मेरे म । ले कन म ये संवेदनशील अ भयान कसी
और पर नह छोड़ सकता। हम ऐसा नह होने दे सकते क सकंदर आंभी और पोरस का
तो म बने, ले कन धनानंद का नह । अगर वो सब मेरे व एकजुट हो गए तो?”
धनानंद ने पूछा।
“मुझे साथ ले जाने के लए एक सश दल चा हए होगा—हमारे अ धकतर
पड़ोसी रा य म उप व फैला आ है,” रा स ने अनुरोध कया। “साथ ही, अगर मुझे
आपका सदभावना त बनकर जाना है, तो मुझे ब मू य उपहार ले जाने ह गे।”
“ न त प से। कृपया इसक व ा करो, रा स। मुझे व ास है क तुम
अपने उ म म सफल रहोगे। और अपने यजन क चता मत करना। धनानंद उ ह अपने
नकट रखेगा ता क उ ह कसी चीज़ क कमी न हो,” धनानंद ने कहा।
मुझे व ास है तू ऐसा ही करेगा, धूत , राजा के सामने झुकते ए रा स ने मन ही
मन सोचा।

शहर के एक जीण से मं दर म रमणीय सुवा सनी एक अ य आदमी से चोरी- छपे मल रही


थी। उसका नाम जीव स था, जो का यायनजी का एक सहयोगी था और जसने
चाण य को एक चीते के आ मण से बचाया था। अब वो पाट लपु म चाण य का
व ासपा त न ध भी था।
वीरान मं दर कई पी ढ़य से उजाड़ पड़ा था, वशाल तंभ ढहकर मलबे के ढे र के
प म बखरे पड़े थे। बरस क लूटपाट और उपे ा के कारण कोई भी क़ मती चीज़ या तो
चोरी हो चुक थी या न हो गई थी। पूणमासी क रात को, खंडहर ठं डी सी चांदनी म नहा
जाते थे और मं दर के टू टे-फूटे और ऊबड़-खाबड़ अवशेष कसी चं य जैसे दखते थे।
जीव स ारा लाई गई मशाल क वा तव म कोई आव यकता नह थी। अ न मं दर के
कई पी ढ़य से योग म न होने का कारण एक ॠ ष का ाप था जसे ानीय
पुरो हत ने मं दर प रसर म सोने नह दया था।
“आपके पास मेरे लए कुछ है?” जीव स ने पूछा। सुवा सनी ने सर हलाते ए
उसे दो रेशमी थै लयां द । एक म धनानंद के राज च वाली एक अंगूठ थी। और सरी म
एक और अंगूठ थी जो रा स को उसके पता ने द थी और उस पर उसका पा रवा रक
च अं कत था।
“म आशा करती ं क व णुगु त नक म सड़ेगा,” उसने ु भाव से जीव स
से कहा। “उसने अपनी राजनी तक मह वाकां ा के लए मुझे रंडी बनाकर रख दया
है।”
“हम जो कुछ करते ह उसके पीछे एक बड़ा उ े य छपा होता है, सुवा सनीजी,’’
जीव स ने कहा। “आचाय चाण य ने मुझसे कहा क म ये संदेश आपको पढ़कर
सुनाऊं और फर भोजप को न कर ं ।”
“ या? व णु का संदेश? तुमने पहले य नह बताया? बताओ इसम या लखा
है,” सुवा सनी ने आ ह कया। जीव स ने अपने कमरबंद से एक छोटा सा भोजप
नकाला, उसे खोला और पढ़ने लगा।
“मेरी य सुवा सनी। ये कोई रह य नह क मने हमेशा तुमसे ेम कया है। कतु
म ावहा रक रहा और मने ये बात म त क म रखी क तुम हमेशा मेरी प ंच से र थ ।
तुम मेरा एकमा और स ा ेम रही हो, पर—भारत क एकता और सुर ा को पाने के
लए—स ा-राजनी त क अपनी वतमान नया म म जानता ं क मेरे जीवन म कसी
औरत का कोई ान नह है। मने तब तक के लए चय क त ा ली है जब तक क
म एक श शाली भारत के नमाण के अपने सपने को पूरा न कर लूं। कौन जाने, उस
समय तक म इतना बूढ़ा हो जाऊं क मेरी त ा के समा त होने का कोई अथ ही न रहे!
तुमने मेरे लए जो कया है म उसके लए आभारी — ं तुमसे ऐसा करने के लए कहना
एक क ठन नणय था। म चा ंगा तुम याद रखो क तुमने ये एक महान कारण के लए
कया है और म वादा करता ं क म भूलूंगा नह । चाण य तु ह ध यवाद कहता है और
व णुगु त तुमसे ेम करता है। ई र तुमपे कृपा करे।”
ये श द सुनकर उसक आंख भीग आ ले कन इससे पहले क वो जीव स से
कह पाती क वो उसे वो प फर से ज़ोर से पढ़कर सुनाए, जीव स ने भोजप को
मशाल के मुख पर लगा दया और तब तक लगाए रहा जब तक क वो पूरी तरह जल नह
गया। ‘‘शुभरा , सुवा सनीजी,’’ जीव स ने कहा और मशाल लए, अपने पीछे धुएं क
एक लक र छोड़ता आ, रात के अंधेरे म तेज़ी से चल दया। सुवा सनी कांप गई। उसक
हा दक इ ा थी क चाण य सफल हो। उसे वजय दलाने के लए वो शव से ाथना
करने लगी। “ॐ यं कम् यजमाहे, सुगं धम् पु टवधनम्; उवा क मव बंधनान्,
मृ योमु ीय मा मृतात ,” उसने मं ो ार कया। ये ॠ वेद का एक ाचीन मं था और
इसका अथ था “सम त संसार के पालनहार, तीन ने वाले शव क हम आराधना करते
ह, व म सुर भ फैलाने वाले भगवान शव मो से नह मृ यु से हम मु दलाएं! ” मगध
म भ व य म होने वाली घटना के दौरान सुवा सनी ने ये मं अपने य व णुगु त के
लए हज़ार बार दोहराया।
धनानंद के सामने खड़ा जासूस घबराया आ था। उसने ख़ुद को इस दोहरी चाल म कैसे
फंस जाने दया था? उसने च तत भाव से अपने उ रीय को ठ क कया और ती ा करने
लगा क धनानंद उस संदेश को पढ़ ले जो रा स के श वर से नकलकर कैकय जा रहे
एक संदेशवाहक के पास से पकड़ा गया था। धनानंद के चेहरे पर ती ोध का भाव था।
उसके ह ठ भोजप म लखे श द को पढ़ रहे थे, ये व ास करने के लए क वो
वा त वक ह।
“हे महान राजा पोरस। मगध का महामं ी पोरस को णाम भेजता है। म आपके
दे श क ओर आ रहा ं। म मगध सरकार के एक व र अ धकारी के प म नह ब क
अपनी नजी है सयत से आ रहा ं। मने आपक वीरता, बु म ा और स मान क अद्भुत
कहा नयां सुनी ह। य द आप उ चत समझ, तो म आपके साथ पर र सहयोग पर बात
करना चा ंगा जो हम दोन के लए लाभकारी होगा। इससे मेरा मान बढ़े गा जब क आपक
सीमा को काफ़ व तार मलेगा। ले कन ये मह वपूण है क ये वातालाप गु त रहे। मुझे
आपक ओर से भट के लए नमं ण क ती ा रहेगी। आपका तु सेवक, रा स।”
“ये कैसे कहा जा सकता है क ये प वा त वक है?” धनानंद ने इस आशा के
साथ पूछा क शायद ये धोखाधड़ी हो।
“इसक वा त वकता पर संदेह क कोई गुंजाइश नह है, मेरे वामी,” जासूस ने
कहा। उसने रा स क अंगूठ दखाई, “कैकय के राजा के सामने माण के लए ये
भोजप म बंद थी।”
“वो व ासघाती धूत!” धनानंद च लाया। “उस को पकड़कर यहां लाया
जाए और उस पर अ भयोग चलाया जाए। उसने मेरे व ास और म ता के साथ
व ासघात कया है। मने उसे रा य का सबसे श शाली अ धकारी बनाया और उसने
इसका ये बदला दया है। कृत न अधम! उसे लाने के लए सेना भी भेजनी पड़े, तो भेजो!”
उसने आदे श दया।

“मेरी य सुवा सनी | म रा स को मगध से नकालने के अपने यास म सफल हो गया


ं। उसके जाने के बाद हमारे मलन म कोई बाधा नह रह गई है। मेरी इ ा तु हारा चुंबन
और आ लगन करने क हो रही है। भय मत करो। रा स अपने दौरे से लौटे गा नह । मेरे
आद मय को आदे श ह क उसके मगध लौटने से पहले उसे मार डाला जाए। तुम कस
बात क ती ा कर रही हो? शी आ जाओ। ेम म तु हारा सेवक, धनानंद।”
संदेश था। रा स ने धनानंद के राज च वाली अंगूठ को दे खा, जो लपटे
ए भोजप म मला था। वो इसे पहचानता था! हरामज़ादा उसे मरवाना चाहता था
ता क सुवा सनी उसे मल जाए। उसने उसे रा य क सव े छोक रयां दलवाई थ ले कन
लंपट उसी पसी को चाहता था जसे रा स चाहता था—उसक सुवा सनी को।
ब त आ! उसने अपना पूरा जीवन धनानंद के लए दलाली करते तीत कया
था ले कन शंसा मलने के बजाय उसका एक कु े क तरह पीछा कया जा रहा था।
उसने सोचा क वो कस तरह उससे तशोध ले सकता है और फर एक उ कृ वचार
उसके म त क म क धा— चाण य!

“तुम मूख हो! गम खीर खाते समय हमेशा बाहरी कनारे से खाना आरंभ करो जो ठं डा
होता है, न क बीच से जो एकदम गम होता है,” मां ने अपने छोटे से बेटे क जली ई
उं ग लय को संभालते ए डांटा। दं डायण के आ म के बाहर बैठा चाण य दं डायण क
प रचा रका को अपने बेटे को डांटते दे ख रहा था।
दं डायण का आ म कृ त क दे न का उ कृ उदाहरण था। घने पेड़ से घरा
आ म एक चमचमाते झरने के कनारे त था और हवा म एक ऐसा जा ई पुट था
जसका वणन करना मु कल था— नमल हवा, चीड़ और गंधसफ़ेदा क सुगंध और प व
अ न का पावन धुआं। चाण य के पा व म चं गु त बैठा था और वो भी न य जीवन के
इस छोटे से नाटक को दे खकर अ भभूत था। उसने पलटकर दे खा, तो चाण य उसे दे खकर
मु कुरा रहा था। “ या बात है, आचाय?” चं गु त ने पूछा। चाण य क मु कान का अथ
हमेशा ये होता था क वो कुछ योजना बना रहा है। इससे चं गु त असहज हो जाता था।
“मने सारी रणनी त ही ग़लत बनाई है,” अंतत: चाण य बोला। “ये अ श त और
अनपढ़ म हला मुझसे अ धक समझदार है। इसने वो सट क सै नक रणनी त प रभा षत
क है जो म, बु मान और व ान चाण य, नह सोच सका।” चं गु त असमंजस म पड़
गया ले कन मौन रहा। सामा यत: उसके गु बना पूछे ही ीकरण दे दे ते थे।
“आज तक मेरा यान मगध पर और मगध म तु ह, चं गु त को, स ाट के प म
सहासना ढ़ करने पर रहा, ले कन अब मुझे लगता है क म ग़लत था। मगध तो खीर के
बीच का भाग है। पहले हम उसके आसपास के छोटे -छोटे रा य म घुसपैठ करनी होगी।
फर मगध कह यादा आसानी से ा त हो जाएगा,” चाण य ने कहा। “वो दो बड़े रा य
जो मगध को चुनौती दे सकते थे, वो कैकय और गंधार थे। उन दोन को हमारी बांटो और
शासन करो क नी त ारा ीण कया जा चुका है। और मगध के अंदर, सुवा सनी धनानंद
और रा स के बीच खाई बनाने म सफल रही है। म उ मीद कर रहा ं क अगले कुछ दन
के अंदर रा स यहां हमारे पास होगा। कौन सोच सकता था क चालाक रा स एक दन
हमारा सहयोगी होगा? राजनी त व च लोग को सहयोगी बना दे ती है!” चाण य हंसा।
“ कतु आचाय, मगध तो अब भी उ र भारत का सबसे श शाली रा य है। दो
लाख से अ धक पैदल सेना, अ सी हज़ार घुड़सवार, आठ हज़ार रथ और छह हज़ार
हा थय से यु मगध पर अ धकार करना क ठन होगा। सकंदर के आदमी भी गंगा को
पार करने से डरते थे!” चं गु त ने कहा।
“समझदार नेतृ व वाले दस सै नक बना नेता के सौ सै नक को हरा सकते ह,”
चाण य ने कहा। “यु ामक व तु है। य बल कसी भी सम या का ब त ीण
उपाय है। इसी लए इसका योग छोटे ब े करते ह!”
उनके वचार- वमश म नगाड़ क आवाज़ और आगे बढ़ते सै नक क धमक से
अचानक बाधा पड़ गई। ‘‘ सहारण!” चाण य ने कहा। “दे खो तो कौन है। ज द !”
सहारण के नकट आने पर वो ज द से फुसफुसाया।
“ये तो वयं श शाली सकंदर है,” सहारण ने पहरे वाले पेड़ से उतरते ए
कहा। “वो ॠ ष दं डायण के त स मान कट करने आया है।” सकंदर अपने य घोड़े
यूकेफ़ेलस पर सवार था। ये घोड़ा एक थेसे लयाई घोड़ापालक ने सकंदर के पता राजा
फ़ लप तीय को तीन हज़ार टे लट म दया था, ले कन इस बेक़ाबू घोड़े को फ़ लप के
तीन हज़ार घोड़ा- श क म से कोई भी क़ाबू नह कर सका जो हर उस घुड़सवार को
पटक दे ता था जो उस पर सवारी का यास करता था। सकंदर अकेला था जो इसम
सफल आ। तब से ये घोड़ा उसने अपने पास रखा था। यूकेफ़ेलस ने सकंदर के
यादातर सेनाप तय से यादा दे श और यु दे खे थे।
सकंदर का क़ा फ़ला जब आ म प ंचा तो सकंदर घोड़े से उतर गया, और उसे
दं डायण और उनके योग कर रहे श य के पास ले जाया गया। योग का एक वशेष
ायाम ज़मीन पर पैर मारना था। दे वता जैसे सकंदर के आगमन से बेख़बर ये श य
अपने इस ायाम म लगे रहे। र बैठा चाण य हंसने लगा। मज़ा आएगा।

सकंदर एक छोटा स स लयाई शैली का ू नक पहने था और उसक ोमव क बुनी


ई छातीप का पर एक भारी गुलकारी वाली चमड़े क बे ट लपट ई थी। उसने बड़े से
सफ़ेद पंख वाला एक अ य धक चमचमाता आ टोप और अपने सुडौल गले म उससे मेल
खाती र नज ड़त माला पहन रखी थी। उसक मज़बूत धातु क बनी ले कन लचीली
तलवार, जो उसे एक साइ याई स ाट ने भट क थी, उसके पहलू म लापरवाही से लटक
रही थी। श शगु त के अनुवाद के मा यम से, जो एक अफ़ग़ानी क़बायली मु खया और अब
मैसीडो नयाई सेना का एक मह वपूण अ धकारी था, सकंदर ने दं डायण से पूछा क
ज़मीन पर पैर मारने का या मह व है। दं डायण का उ र सु था। “हे महान राजा के
राजा, एक मनु य पृ वी के बस उतने ही भाग पर अ धकार कर सकता है जतने पर उसका
पैर पड़ता है। हम सभी क तरह आप भी न र ह, फर भी अ धक से अ धक भू म पर
अ धकार करने क इ ा करते ह। ज द ही आप मर जाएंगे और उस अव ा म आप बस
उतनी ही भू म के वामी ह गे जतनी आपके द न के लए चा हए होगी।”
सकंदर पीला पड़ गया। ॠ ष के साहस पर उसके आद मय क सांस थम सी
गई और वो कसी भी अनहोनी के लए तैयार हो गए। ले कन एक ण बाद सकंदर ने
ख़ुद को संभाला और इन श द को झटक दया। वो बु मान और न न दं डायण के आगे
झुका जो अब कमलासन म बैठे थे। “कृपया मेरे साथ चल, ानी ॠ ष। मेरे नजी
सलाहकार बन जाएं। म आपको सोने से ढक ं गा और आपको कभी कसी चीज़ क कमी
नह होगी,” उसने वनती क । सकंदर बु गु के मह व को पहचानता था। उसक
मां ओलं पया ने अपने एक कड़े संबंधी लयो नडाज़ को उसके श क के प म नयु
कया था और उसके पता फ़ लप ने युवा राजकुमार को यूनानी दाश नक अर तू के
संर ण म स प दया था। सकंदर ने हमेशा कहा था क उसके मां-बाप ने उसे जीवन दया
था ले कन लयो नडाज़ और अर तू ने उसे जीना सखाया था।
‘‘ सकंदर, अगर आप ई र के पु ह, तो फर म भी ई र का पु ं। मुझे आपसे
कुछ नह चा हए, य क जो मेरे पास है वो पया त है।मुझे ऐसी कसी चीज़ क इ ा नह
है जो आप मुझे दे सकते ह; मुझे ऐसी कसी दे न से वं चत रह जाने का डर नह जो शायद
आपको मली हो। मेरे जीवन म भारत, अपने मौसमी फल के साथ, पया त है। और अपने
मरने पर म अपने द र शरीर—अपने तु आवास—से छु टकारा ा त कर लूंगा!” ॠ ष
ने उ र दया। सकंदर को आ ख़रकार अपना तु य मल गया था।
वो दं डायण के सामने हाथ जोड़े-जोड़े उठ खड़ा आ। “ फर भी मुझे आपके
आशीवाद क आव यकता होगी, मह ष। मुझे आपका आशीवाद चा हए क म यु म
वजयी बनूं,” सकंदर ने कहा।
“मेरे पु , मेरा आशीवाद आपके साथ है। ई र करे तु ह उस यु म वजय मले
जो तु हारे भीतर चल रहा है!” ॠ ष ने ये जानते ए कहा क सकंदर ने वा तव म इस
आशीवाद क मांग नह क थी।
भीतर चल रहे यु ने सकंदर के सै नक के मनोबल को बुरी तरह भा वत कया
आ था। सकंदर के आदमी फ़ारस को पाठ पढ़ाने के लए मैसीडो नया से नकले थे।
उ ह ने फ़ारस को न केवल हराया था ब क अपने अधीन भी कर लया था। उ ह ने
ख़ामोशी से सकंदर के एक फ़ारस शहंशाह के प म प रवतन को वीकार कर लया था
और उसक झक और सनक को सहा था। वो भारत तक बढ़ आए थे और उ ह ने गंधार
और कैकय पर वजय ा त क थी, ले कन अब उनका राजा चाहता था क वो सु र मगध
म यु कर, जो कभी भी अक म नड सा ा य का भाग नह था और तेज़ गम म,
असहनीय बा रश म आगे बढ़। व ोह उतना ही अव यंभावी था जतना क सकंदर का
भारत से पीठ फेर लेना।

“चाण य, मेरे म , तु ह फर से दे खकर कतना अ ा लग रहा है,” रा स ने


अपनी तबाही को गले लगाते ए झूठ बोला ।
“रा स, आपक मौजूदगी भर से मुझे आ म व ास और स ता ा त होती है,”
जवाब म ा ण ने झूठ बाोला।
“धनानंद ने श ता क सारी सीमाएं लांघ द ह,” रा स ने शकायत क ।
और तुम इतने श हो क ये तु हारी अंतरा मा के व है , चाण य ने
मन ही मन कटा कया। “धनानंद का दरबार आप जैसे स मानीय लोग के लए नह है
—जो लोग एक स मानजनक और आनंदमय जीवन बताना चाहते ह,” चाण य ने
म खन लगाते ए ज़ोर से कहा।
“सम या ये है क जीवन म अ धकांश आनंदमय चीजे़ं अवैध, अनै तक या मोटा
करने वाली होती ह,” रा स ने ख़ुद को तुत क गई चटाई पर बैठते ए कहा।
“आज का पाठ ये है, य रा स क दो बुराइय के बीच आप उस बुराई को चुन
जसे आपने आज़माया नह है। म वही बुराई ं,” चाण य ने मु कुराते ए सुझाव दया।
‘‘अब दे खते ह क म आपके लए या कर सकता ,ं और फर हसाब लगाएंगे क आप
मेरे लए या कर सकते ह।
“तुम हमेशा गु रहोगे!” रा स हंसा।
“और हमेशा सही र ंगा,” चाण य ने गंभीरतापूवक कहा। “धनानंद को आपके
ेम क पा का लोभ हो गया है,” वो बोला।
“तु हारी भी, जहां तक म समझता ,ं ” रा स सावधानीपूवक बोला।
“म आपका त नह ,ं रा स। मुझे दे खए। या म, एक काला, बदसूरत,
चेचक के दाग़ , टे ढ़े दांत वाला, भ डा ा ण आपसे— बेदाग़, श , और स य महामं ी
से—मुक़ाबला कर सकता ं? म आपको वचन दे ता ं क सुवा सनी मेरी पसंद नह है। वो
आपक है, बशत क धनानंद रा ते से हट जाए।”
“ले कन ऐसा कैसे होगा? वो ढ़ता से सहासना ढ़ है। उसक कमान म भारत
का सबसे बड़ा सै यबल है—ऐसा भयानक बल क सकंदर वापस जाने को मजबूर है।”
“यु यु े म ही लड़े जाएं आव यक नह है, मेरे म । मेरा हमेशा से व ास
रहा है क यु सै नक और अनाव यक र पात के बना ही लड़े जाने बेहतर होते ह,”
चाण य ने नम से कहा।
“ या तु हारे पास सारे यु समा त करने का कोई योजना है, आचाय?” रा स ने
पूछा।
“हे रा स, हर व तु अंत म ठ क ही होती है। अगर सही न हो, तो अंत ही नह
होता है,” चाण य ने अपने नए सहयोगी क आंख म दे खते ए सरल भाव से कहा।

पाट लपु के पूव भाग म शव गली का वो घर एक साधारण सा ढांचा था। पड़ोसी इसे
एक भूतपूव ग णका ारा संचा लत नृ य व ालय के प म जानते थे। साधारण सा एक
तल का घर एक ढके ए ांगण के चार ओर बना आ था जसका योग वहां रहने वाली
लड़ कयां अपनी कला के अ यास के लए करती थ । व ालय क ाचाया पचास वष से
ऊपर क एक सु चपूण म हला थी। कहा जाता था क वो कभी धनानंद क मुख
ग णका रही थी और क एक समृ संर क ने उसे उसक राजक य सेवा से मु दलाने
के लए चौबीस हज़ार पण से अ धक य कए थे।
छा ाएं साधारण पृ भू मय क लड़ कयां थ ज ह वयं क और अपने प रवार
क दे खभाल के लए कोई काम चा हए था। वो सामा यत: छह से आठ वष क आयु म
सं ा म वेश लेती थ और उ ह च कला, क वता, संगीत, नृ य, गायन, पाककला और
नाटक जैसी व भ कलाएं सखाई जाती थ । उनके श ण और जीवन तर के य म
कोई कसर नह छोड़ी जाती थी। उ ह सव े आवास, व , भोजन और सु वधाएं द
जाती थ । ाचाया और उनक अ या पकाएं उदार और सहानुभू तपूण थ ।
पर एक व णम नयम कभी नह तोड़ा जा सकता था। उन सबको हर सुबह एक
वशेष प से बनाए गए ध का एक गलास पीना होता था। ध भ रंग , बनावट और
वाद का होता था। येक घोल कसी वशेष लड़क के लए वशेष प से म त कया
जाता था और ाचाया ख़ुद एक व तृत योरा रखती थ क कसने कतना और या
पया। अगर लड़ कयां एक बार व ालय के ार म वेश कर लेने के बाद इस एक कठोर
नयम पर न उठाएं तो वो एक लाड़ भरा और सु वधाजनक जीवन जी सकती थ ।
छह से आठ वष क लड़ कयां जो यौवनारंभ के कोई च नह दखाती थ , उ ह
ह के नीले ध का एक कुडु ब हर रोज़ दया जाता था। जब वो आठ से दस वष क आयु
को प ंचत और उनके व क क लयां उभरने लगत , तो उ ह रोज़ाना केसर-नारंगी रंग के
दो कुडु ब दए जाते। दस से बारह क आयु म, जब उनके जघनकेश उभरने लगते, तब
म ण क ख़ुराक प तई-हरे घोल के तीन पा त दन शाम तक प ंच जाती। बारह से
चौदह क अव ध म, जब उनक बग़ल के बाल नकलने लगते और उनके कू हे कमर क
तुलना म फैलने लगते, उनक त दन क ख़ुराक ध के गुलाबी शबत का एक हो
जाती। चौदह से सोलह क अव ा के बीच जब उनका डबो सजन और मा सक धम
आरंभ होता, तब उ ह बादामी भूरे रंग के ध का एक अधक दया जाता।
सं ा का बारीक से शोध करने पर एक इससे भी चकर त य पता लग सकता
था: सारी लड़ कयां, बना अपवाद के, बैसाख के सातव दन मंगलवार क ज मी ई होत ।
उनक ज मकुंडली भा यपूण प से श शाली होती थी जो ये सु न त करती थी क
उनके साथ संभोग करने वाला पु ष मर जाएगा। उ ह वषक या के नाम से जाना जाता
था।
सं ा को मलने वाले अनुदान क छानबीन से एक और भी दलच त य पता
लग सकता था। सारा पैसा मयूर यास नाम क सं ा ारा दया जाता था, जसके
सं ापक चाण य और सेनाप त मौय थे। जो ये दे खते ए एक उपयु नाम था क मौय
का नाम मोर पर पड़ा था।

“हम मलयरा य पर नयं ण करना होगा,” चाण य ने कहा। “और सहारण के प म


हमारे पास एकदम उपयु उ मीदवार है, जसके पता— व धस मत शासक—को उनके
भाई ने मार डाला था ता क वो पोरस का सहयोगी बन सके। अगर सहारण स ा म हो, तो
हम अपने सै नक के लए आव यक जगह मल सकती है।”
“हमारे साथ ब त लोग ह, आचाय। हम आ मण कर दे ते ह,” चं गु त ने
या शत सुझाव दया।
“ये मूखता होगी। जब श ु ग़लती करने क या म हो, तो उसे कभी मत
छे ड़ो,” रह यमय ा ण ने सलाह द ।
“और मलयरा य या ग़लती कर रहा है?” उलझ गए चं गु त ने पूछा।
“कर नह रहा है। करने वाला है।”
“करने वाला है? आचाय, सदै व क भां त आप पहे लयां बुझा रहे ह।”
“मलयरा य ख़ुद को हम स पने वाला है,” चाण य ने कहा और चं गु त
भौच का रह गया।
नपुणक क कु टया भयानक थी। एक तो ये क ये एक नजन मशान भू म के कनारे
बनी ई थी। सरे ये क ये भुतहा बरगद के पेड़ से घरी ई थी जन पर काले जा के
अनेक तीक लटके ए थे— खोप ड़यां, मृत पशु, म दरा के म के पा , स री र म
रंगे चाक़ू, और नपुणक के काले संसार पर शासन करने वाली अन गनत गूढ़ नकारा मक
श य के अ य चढ़ावे। गु औष ध, च क साशा , तं ान, यो तष और मनो व ान
का सनक साधक नपुणक काले व और शशु क खोप ड़य से बनी माला पहनता
था। उसके अनु ान मानव ब ल और तां क संभोग पर आधा रत माने जाते थे।
चाण य जा के उप कर से भा वत नह आ। नपुणक म य रात म
आनु ा नक अ न म म दरा पलटते ए कसी मृत शरीर पर नृ य भी करना चाहता, तो
चाण य को इसक लेशमा भी चता नह होती। हर कसी का अपना काम होता है,
उसका तक था। चाण य का व ास तो मूख क श और समूह मनो व ान क मूढ़ता
म था।
“ वन मत बनो, नपुणक। तुम इतने महान नह हो। वन ता राजा के लए
छोड़ दो!” चाण य ने उसे सलाह द ।
नपुणक हंसा। ये एक भयानक, कु टल हंसी थी जो अंधकारमय जंगल म
त व न सी करती तीत ई। “लगता है तु हारे इस उवर म त क म कोई योजना
आकार ले रही है,” नपुणक ख खयाया। “ या मुझे कसी कुंआरी क ब ल चढ़ाने का
अवसर ा त होगा?”
“कोई कुंआरा नह होता, नपुणक। जीवन सबको खोल डालता है,” चाण य ने
चंचलतापूवक कहा। नपुणक फर से हंसने लगा। पशाची व ान के व च साधक ारा
हा य– वनोद के त आनंद क अ भ इस बार और भी भयंकर और व च थी।
चाण य के अंदर मानव म त क क गहराइय को नापने क वल ण मता थी। ये
उसक सबसे बड़ी यो यता थी।
“ये मेरा श य सहारण है,” चाण य ने अपने साथी क ओर इशारा करते ए
कहा। “ये मलयरा य के सहासन का अ धकारपूण उ रा धकारी है। मलयरा य इसे
वापस दलाने म मुझे तु हारी सहायता क आव यकता है।”
“म एक साधारण तां क ,ं आचाय। म एक प व अनु ान कर सकता ं ता क
ये सहासना ढ़ हो सक,” नपुणक ने सहायतापूण सुझाव दया।
“मुझे उन वकृत तांडव क आव यकता नह है जनका आयोजन तुम समय-
समय पर कसी मूख के य पर करते रहते हो,” चाण य ने ट पणी क । “मुझे
मनो व ान, नाटक और नाट् यशा क तु हारी यो यताएं चा हए। तु हारे सामा य अशुभ
मं नह ,” उसने पागल व ानी के सामने वण पण क एक थैली रखते ए कहा।
नपुणक मु कुराया। इस बार ख़ामोशी से। “वा तव म तु हारे म त क म है या,
आचाय?” उसने सोने क थैली को चु त, अ य त ढं ग से समेटते ए पूछा।
‘‘ सहारण तु हारे साथ मलयरा य के बारे म कुछ रह य बांटना चाहेगा। इसक
बात यानपूवक सुनो और ये जो कुछ बताए, उसे याद कर लो,” वद ध ा ण ने नदश
दया।
“और फर?” नपुणक ने पूछा।
“आह! फर तुम मलयरा य जाओगे, अपनी अदभुत श य को काम म लाओगे,
और कुछ उ कृ भ व यवा णयां करोगे!”

मलयरा य के राजा के दरबार म मौत का सा स ाटा पसरा आ था। सारी आंख काले
व और गले म मानव-मुंड क माला पहने उस व च तां क पर टक ई थ । उसके
दाएं हाथ म एक दं ड था और उसके भी ऊपरी भाग म एक मानव-मुंड बंधा आ था। उसके
सरे हाथ म र जैसे रंग का एक म का पा था जो संभवत: र से भरा आ था।
“हे राजा, सव ानी नपुणक के श द को सुन!” मलयरा य के बारे म सहारण
ारा द गई जानकारी को अपने म त क म दोहराता आ पागल कपट च लाया। “तेरे
महल म एक क है—एक बदबूदार और अ यु क जसम अ धकतर ताला लगा रहता
है। उस कमरे क धरती म एक ा ण क लाश दबी है जसक यहां ह या क गई थी। उसे
खुदवाकर रा य क सीमा से बाहर द न करवा। उस ा ण क आ मा तेरे वंश को
अ भश त कर रही है और तेरी ग त के माग म अवरोध बनी ई है!”
सहारण जानता था क उसक चाची का महल के एक ा ण पहरेदार के साथ
बड़ा गमागरम अवैध संबंध था। भीषण संभोग के दौरान पकड़े जाने पर पहरेदार को
सहारण के ु चचेरे भाई ारा मार डाला गया था जसने अपनी मां के राजसी संभोग
को दे खा था। उसके बाद बेटे ने और कोई जगह न होने के कारण लाश को एक अ यु
भंडारगृह म गाड़ दया था। इस काम म उसने सहारण क सहानुभू त और नै तक ोध का
लाभ उठाकर उसक मदद ली थी। इस रह य के दो भागीदार— सहारण क चाची और
उसका ु बेटा—कुछ वष बाद मलयरा य पर पोरस के आ मण म मारे गए और गड़ी
ई लाश का रह य अपने साथ अपनी चता म ले गए।
राजा और उसके दरबारी अपने सामने खड़े उ म आदमी के साहस से दं ग रह
गए। राजा ने कसी तरह वयं को शांत रखते ए पूछा, “श शाली गु , आप हम बता
सकते ह क इस ा ण का शरीर कहां है? महल का प रसर सौ एकड़ से अ धक म फैला
आ है और द सहायता के बना लाश को ढूं ढ़ पाना असंभव होगा।”
अधपगले नपुणक ने आंख बंद क और बड़बड़ाना आरंभ कर दया—इतनी ज़ोर
से क दरबार म उप त अ धकतर लोग सुन सक— “म वरोचना के पु बाली के सामने
दं डवत होता ं। म सौ मायावी मं के वामी शंबर से ाथना करता ं। म नकुंभ, नरक,
कुंभ, और श शाली पशु तंतुक को नमन करता ं। हे चांडाली, कुंभी, तुंबा, कटु क,
सारंग, म तुमसे ाथना करता ,ं मुझे उन अ य क दशा दखाओ!” उसने अचानक
अपनी आंख पूरी और उ म भाव से खोल और च लाया, “ मल गया! मेरे साथ आओ!”
वो पागल क तरह उस क क ओर भागने लगा जसक त सहारण उसे
व तारपूवक बता चुका था। सरे तल पर प मी ओर के ग लयारे के सातव दरवाज़े पर
प ंचकर वो क गया। उसने फर से आंख बंद क और उसने अ धकतम संभव
अ त ाकृत ऊजा का आ ान कया और कहा, “म ा ण के भूत क नकारा मक ऊजा
को ठ क यहां महसूस कर रहा ं। म ग़लत नह !ं नपुणक कभी ग़लत नह होता!
चांडाली क श से, इस क को खोदो और मलयरा य क चता को र कर दो।”
फावड़ से खुदे फ़श से अ यां नकल , तो तां क क अलौ कक श य से
भा वत राजा नपुणक के पास जाकर उसके आगे झुक गया। नपुणक ने राजा के माथे
पर भभूत लगाकर उसे आशीवाद दया। राजा ने अपनी टक क माला उतारी और
तां क को दे द , जसने उसे लया और खोद गई क़ म फक दया। “ब मू य र न मेरे
कस काम के, हे राजा? म चाहता, तो सारे संसार क समृ मेरी हो सकती थी ले कन
भौ तक समृ न तो मेरे पास है और न ही मुझे इसक इ ा है,” अ षणीय दखने के
चाण य के नदश का उसने पूरी तरह ले कन हच कचाते ए पालन करते ए कहा।
वद ध गु के न वाथ वहार से दशक म एक त , स मानपूण न त ता फैल गई।
एक दन बाद, राजा बीमार पड़ गया। ठं ड और ठन के साथ तेज़ वर से वो ीण
हो गया और दरबार म आने यो य भी नह रहा। बुख़ार ने उसे मपूण भी बना दया और
इस अ ायी पागलपन क अव ा म वो अपने आसपास हर कसी को गंद -गंद गा लयां
दे ने लगा। नपुणक जानता था क वो भभूत काम कर गई थी जो उसने राजा के माथे पर
लगाई थी। उसम धतूरे के बीज का चूण म त था, जो म त म पैदा करने का एक जाना-
माना गु मं था। च तत रानी ने नपुणक को वापस महल बुलवाया | “कृपया राजा क
अचानक ई अ या शत अव ा का कोई नदान ढूं ढ़,” उसने वनती क ।
“ चता न कर, रानी। राजा को एक गलास ध इस वशेष घोल के साथ पलाएं
जो मने तैयार कया है। मेरा वादा है क ये सवेरे तक एकदम व ह गे,” धूत कपट ने
उसे व ास दलाया। उस औष ध म च क क जड़ का चूण और काली मच मली ई
थी, जसे चाण य ने पहले ही बना लया था।
अगले दन राजा के उ लेखनीय प से व हो जाने ने नपुणक को द ान
दला दया। ये दो दन के भीतर गु क सरी असाधारण उपल थी। ले कन अभी
उ सव मनाने का समय नह था। मलयरा य के सहासन के दावेदार सहारण क सहायता
से चं गु त नाम के एक छोकरे के नेतृ व म सश ह यार ने नगर को घेर लया था और
ग कृत राजधानी अ धकृत प से घेराव म थी। घेराव पूरे कृ ण प के दौरान जारी रहा
और नगर म आव यक व तु क कमी होने लगी। शी तापूण बुलाई गई एक सभा म
सहारण और चं गु त के बाल पर सामने से आ मण करने के नणय के बारे म सोच-
वचार चल ही रहा था क तभी नपुणक ने एक और शानदार वेश कया।
“राजा! मेरे पास तेरे लए एक मह वपूण संदेश है,” धूत ने अपनी बात इस ान के
साथ आरंभ क क सरल भाव मं प रषद उसके येक श द पर व ास करने को तैयार
है। “महल के मं दर म कुबेर क एक मू त है। तेरे राजपुरो हत ारा क जाने वाली पूजा
ु टपूण है और इसी कारण से तुझ पर वनाश का संकट छा गया है। ु ट को र कर और
तू श ु क सेना को पीछे हटते दे खेगा!”
उसके आदे शानुसार और अनेक मं और अनु ान के साथ कुबेर क म क
मू त को हटवाया गया और राजसी झील म घुलने के लए डाल दया गया जब क
म हमामं डत नपुणक ारा नधा रत ोक और तो का उ ारण जारी रहा। उसी
ण, चाण य ने सहारण और चं गु त को आदे श दया क वो अपने सै नक को पीछे
हटा ल और क़लेबंद राजधानी से कुछ र एक गु त ान पर छप जाएं। जैसे ही इस
चम का रक वापसी का समाचार फैला, उ सव शु हो गए और सामंत और सामा य लोग
सभी ने सड़क को भर दया। जब संगीत, म दरा और यां छा ग और उ सव अपने
चरम को प ंचा, तभी चाण य के सै नक ने वापस आकर असंशयी नगर पर आ मण कर
दया। ये एक र हीन त तापलट था—ये आक मक, नाटक य और सरल था, उस
ा ण के अनु प जसने इसक रचना क थी।

मलयराज के प म सहारण का रा या भषेक भ था। “अपने श द हमेशा कोमल और


मृ रखना, हे सहारण | पता नह कब तु ह उ ह वापस लेना पड़ जाए,” नए शासक को
आशीवाद दे ते ए उसके गु ने समझाया।
सहारण ने अपने गु को नमन कया और बोला, “आचाय, मेरे चाचा और उनके
प रवार के साथ जो आ, उसे लेकर मुझे अपराधबोध होता है। रा य पर अ धकार होने के
बाद मने तो उ ह आपके आदे शानुसार रा य से नवा सत कया था। मुझे ये सोचकर ख
हो रहा है क उ ह और उनके प रवार को द यु ने मार डाला। मुझे डर है क कह उनक
मौत मेरे शेष जीवन भर मुझे सताती न रहे।”
“हर संसार को बेहतर प म छोड़कर जाता है, कुछ लोग बस संसार
छोड़ने भर से ही। तु हारे चाचा भी उ ह म से एक थे!” वजेता चाण य ने पछले दन क
घटना पर स होते ए कहा जब नगरवासी उसके आगे अवनत हो गए थे।
‘‘म सहारण पर सहासन के दावेदार को ख़ म करने के कु सत काम का बोझ
नह डालना चाहता,” उसने मे हर से कहा था। “म सहारण से क ंगा क वो अपने चाचा
को रा य नकाला दे दे । हमारा यास ये होगा, मे हर क भूतपूव राजा रा य क सीमा से
पूणतया सुर त नकल जाए।”
“पर या उसे जाने दे ना समझदारी है? वो पोरस का सहयोगी है और वो सेना
खड़ी करने के इरादे से कैकय भाग जाएगा। पोरस को उसका साथ दे ने म स ता ही
होगी। य क सहारण के सहासनारोहण का अथ है क मलयरा य अब कैकय का
ताबेदार नह रहा,” मे हर ने कहा था।
“तुमने ब कुल ठ क कहा, मे हर। और इसी लए म उसे मरवाना चाहता — ं पर
अ धकृत प से नह । मलयरा य क आबाद को अपने नए राजा सहारण से नेह होना
चा हए। वो उ ह दयालु, याय य, स यवाद और उदार लगना चा हए। ये मह वपूण है क
सहारण का चाचा अपने प रवार और सहयो गय के साथ सुर त और बेरोकटोक जाता
दे खा जाए।”
“और फर?” मेहर ने पूछा, उ र जानते ए ले कन ये न जानते ए क ये उ र
अनकहा ही रहेगा।
अ याय अ याय बारह
वतमान समय

लखनऊ म होटल ला स का सुइट ठं डा और अं धयारा था। दोपहर क तेज़ धूप से बचने


के लए पद थोड़े से ख च दए गए थे और एयरकंडीश नग को यूनतम संभव तापमान पर
सैट कर दया गया था। अंदर दो आदमी बैठे ए थे—पं डत गंगासागर म और राम शंकर
वेद । वेद घबराया आ था। वो कभी अपने च मे को ठ क करता तो कभी बाल
संभालने लगता। वो कसी भी अ य भारतीय नेता जैसे लबास म था—सफ़ेद खाद का
कुता और पाजामा—ले कन उसके गांधीवाद लबास को सुशो भत कर रहे ए सेसरीज़
इतने सादा नह थे। उसके च मे का े ़ म गूची का था, जेब म लगा ठोस चांद का पेन म
लां का था, सोने क पीली घड़ी रोले स क थी और उसके पैर म आरामदे ह बैली लोफ़र
थे।
पाट धान ने उसे इस ल ज़री सुइट म मुलाक़ात के लए य बुलाया था, उसने
ख़ुद से पूछा। ठं डे कमरे के बावजूद उसक पीठ पर पसीने क एक धार बही और उसक
रीढ़ पर दौड़ती चली गई। इसक वजह से उसे कपकपी आ गई। ये अ बात नह थी।
राजनी त के मामले म पं डत गंगासागर म एक शांत च ह यारे ह, वेद ने सोचा। वो
या जानते ह? या उसे एबीएनएस के धान ारा फटकारे जाने के लए बुलाया गया है?
गंगासागर ने उसे कुछ दे र ख़ामोशी से घूरा जो उसे एक युग सा लगा। कुछ बोल
भी, यार, वेद ने मन ही मन सोचा। वेद नह जानता था क गंगासागर अपने कुत के
अंदर एक ऊनी ब नयान पहने ए था और कमरे क शू य से कम ड ी क ठं ड म बड़े
आराम से बैठा आ था। इसे कांपने दो, गंगासागर ने सोचा। अगर इसे ठं ड लगेगी, तो इसे
पेशाब आएगा और फर ये और भी नवस होगा।
“सुना है आप आजकल बड़े मलनसार हो रहे ह, वेद जी,” आ ख़रकार
गंगासागर बोला | “म जस कसी से मलता ं वो यही कहता है क वो आपके घर जा
चुका है।”
“मेरा भा य है क आपके पास मेरा मेहमान बनने का समय नह है, पं डतजी। म
आपको डनर पर बुलाना चा ंगा,” वेद ने घबराहट के साथ कहा।
“मुझे सरी तरह बोलना चा हए। एबीएनएस के चौबीस एमएलए आपके घर
अ सर आते दे खे गए ह—और लीज़ ये मत कहना क वो बस ह क और समोसे के
लए आए थे!”
वेद थोड़ा और कुलबुलाया | उसने एक गहरी सांस ली और बोला, “म एक
वफ़ादार पाट कायकता ं, पं डतजी। कुछ नाराज़ त व व ोह करना चाहते थे। मुझे लगा
क उ ह ऐसा न करने को समझाना मेरा परम कत है।”
“मुझे आप पर गव है, वेद जी। मुझे अहसास होना चा हए था क ये फ़ोटो
जाली ह,” गंगासागर सामने पड़ी शीशे क कॉफ़ टे बल पर 4 गुणा 6 इंच के चमकदार
फ़ोटोज़ का एक बंडल डालते ए कहा। वेद ने त वीर म ख़ुद को ईशा के साथ
कामसू से े रत कई आसन म दे खा, तो उसके चेहरे का रंग उड़ गया। वो कुछ
बड़बड़ाया, पर उसके मुंह से श द नह नकले।
“शांत हो जाइए, वेद जी। घबराइए मत। वो बता रही थी क आप ब तर म
काफ़ अ े थे,” गंगासागर नणया मक वार करने से पहले पागल क तरह हंसा। “मेरे
पास उनचास नेगे टव ह—सरकार क बची ई अव ध के हर महीने के लए एक। अगर
उनचासव महीने तक चांदनी मु यमं ी बनी रही, तो सारे नेगे टव आपको लौटा दए
जाएंगे, प का?”
वेद ने इस तरह सर हलाया, जैसे उसके शरीर से जान नचुड़ चुक हो। पं डत
गंगासागर म अपनी कुस से उठा। “और हां, एक वनती और। लीज़ याद रख क अब
ये सु न त करना आपके ही हत म होगा क ये सरकार चलती रहे। वरोध के वर जाग,
तो उनके बारे म मुझे सू चत करना आपक नजी ज़ मेदारी होगी, समझ गए?” उठकर
होटल के सुइट से नकलते और जाते-जाते एयरकंडीशनर को बंद करते ए उसने पूछा।
“आ द श , नमोनम:; सवश , नमोनम:, थम भगवती, नमोनम:, कुंड लनी
माताश ; माताश , नमोनम:,” उसने मन ही मन कहा।
चांदनी टू ट गई थी। शंकर हवा के ताज़े झ के जैसा था, यो के बाद उसक इकलौती
पसंद। बांध तोड़ने को बेताब आंसु को रोकने क को शश करते ए उसने ख़ुद को
आईने म दे खा। वो रोएगी नह । शायद यार करना या कया जाना उसक तक़द र म ही
नह था। उसने एक ट यू अपनी गहरी नीली आंख के नीचे थपथपाया, उसे वमान के
टॉयलेट म बहाया और गंगासागर के पास बैठने को बाहर नकल आई।
लखनऊ से द ली तक क उड़ान छोट ले कन असु वधाजनक थी। एक सहायक
पॉवर स लाई यू नट म ख़राबी क वजह से टे कअ◌ॉफ़ म ही एक घंटे क दे री हो गई और
जब उसक मर मत पूरी ई, तब ख़राब मौसम के कारण एयर ै फ़क कं ोल ने उड़ने क
अनुम त नह द ।
गंगासागर ने नई द ली म नाग रक प रवहन मं ी को फ़ोन करके कहा क वो लखनऊ
एयर ै फ़क कं ोल से कह क उड़ान क अनुम त दे द जाए। वमान के अ य या ी नह
जानते थे क वो राजनी तक उदारता के ा तकता ह—गंगासागर मौजूद नह होता तो
शायद वमान का टे कअ◌ॉफ़ अव हो जाता। चांदनी, इकराम, गंगासागर और मेनन
वमान क अगली पं म बैठे ए थे। आमतौर पर खी सी दखने वाली एयरहो टे स
अचानक ज़दा दल दखने लगी थी और अपने वीआईपी अ त थय क दे खभाल क पूरी
को शश म लग गई थी। हालां क सरी पं तक प ंचते ही उसक उदासीनता वापस लौट
आई थी।
“हम द ली म या हा सल करने क उ मीद कर रहे ह?” इकराम ने पूछा।
“तु ह उस समय क हमारी बातचीत याद है जब तुम मेयर बने ही थे?” गंगासागर
ने पूछा।
“कौन सी? ब त सी बात ई थ ,” इकराम ने मज़ाक़ कया।
“वो जब मने तुमसे कहा था क हम अ े काम करने चा हए य क हम अगला
चुनाव जीतना चाहते ह। क वा त वक श रा य तर पर होती है, न क ानीय
शासन के तर पर।”
“हां। मुझे याद है।”
“तो म तु ह बताना चाहता ं क म ग़लत था।”
“ या मतलब? हमारे पास उ र दे श क स ा क बागडोर है। हमारी अपनी
यारी चांदनी मु यमं ी है। म, इकराम शेख़, कानपुर का मेयर ं।”
“हां। ले कन असली ताक़त नई द ली म, क म ह और कुछ साल बाद हम वह
ह गे। ये उसी क तैयारी का स ताह है।”
“ले कन ये बात तो हम लखनऊ म भी कर सकते थे। हम ये बात

करने द ली य जा रहे ह?” चांदनी ने पूछा।

“मेजर जसपाल सह बेद से मलने,” गंगासागर ने जवाब दया।


“ये कौन ह?” इकराम ने पूछा।
“ये वो आदमी है जो सु न त करेगा क हम उ र दे श म लोकसभा क
प यासी म से पसठ सीट जीत।”
श और सजीला सख छह फ़ट से भी लंबा था। वो गहरा नीला सूट पहने था और उसक
गहरी लाल पगड़ी उसके जेबी माल और टाई के साथ मैच कर रही थी। उसक कलफ़दार
सफ़ेद सूती इ ज शन शट के डबल कफ़ उपयु प से उसके सूट क आ तीन से इंच
भर बाहर नकले ए थे और उनके ठोस चांद के कफ़ लक पर भारतीय सश बल के
च अं कत थे। उसक खचड़ी दाढ़ , मूंछ और भ ह बारीक से बनी ई थ और एक भी
बाल इधर-उधर नह दख रहा था।
मेजर जसपाल सह बेद पंजाब के एक म यवग य प रवार म ज मा था और
अपने बचपन और जवानी म उ ृ ं खल और बेलगाम रहा था। वो एक ऐसे गग का लीडर
था जसने मठाई क लोक य कान से नकल रहे सीधे-सादे ाहक क मठाई चुराने
क कला म महारत हा सल कर ली थी। जसपाल के साथी आपस म लड़कर हंगामा खड़ा
करते थे। अपने शॉ पग बैग ला रहे बेचारे ाहक ह त ेप करने और झगड़े को सुलझाने क
को शश करते और इस बीच जसपाल बड़े श ढं ग से उनके बैग पकड़ लेने का ताव
करता। पांच मनट बाद ाहक सुलह कराने म तो सफल हो जाते ले कन जब वो पलटकर
दे खते तो जसपाल उनके बैग के साथ ग़ायब हो चुका होता।
आ ख़रकार जसपाल के च तत पता ने भारतीय सेना म ले टनट- कनल अपने
एक क ज़न से कहा क वो जसपाल को सेना म एक दस साल का शॉट स वस कमीशन
करने को मना ल। जसपाल ने इंकार कर दया—उसे मठाइयां चुराने म ब त आनंद मल
रहा था। अफ़सर ने उसे अपने गाय के बाड़े म बुलाया और उसक जमकर धुनाई क । उसे
कोई वक प नह दया गया। अगली ही सुबह जसपाल पचास स ताह के लए चे ई म
अ◌ॉ फ़सस े नग एकेडमी के लए चल दया। उसके पता को उ मीद थी क सेना उस
धृ नौजवान को अनुशासन सखा दे गी और उसे एक मक़सद दान करेगी।
ऐसा ही आ। सेना के जीवन का अनुशासन जसपाल को रास आ गया। सेना के
साथ उसके कायकाल ने उसे व ेषणा मक सोच, योजना कौशल और ट म के साथ काम
करने क यो यता द । वो तेज़ी से तर क़ करता आ ले टनट से कै टन और फर मेजर
बन गया। दस वष का कमीशन पूरा होने के बाद, उसे दस वष क जनगणना के संयोजन म
ामीण आबाद का सव ण करने के लए भारत सरकार ारा एक छोट सी माकट रसच
एजसी के साथ जोड़ दया गया। जसपाल ने अगले दस साल पूरे भारत म जनसं या
ववेचन का काम कया, जो क एक ब त बड़ा काम था और जसे उसके अंदर के
अनुशा सत सै नक ने सु व त ढं ग से कया। कं हेड- रल रसच के पद पर प ंचने
के बाद उसने कंपनी को छोड़ दया और अपनी कंस टसी खोल ली, जो दो पर र
सहजीवी े को जोड़ने वाली थी—मतदान और राजनी त।
“लोकसभा भारतीय संसद का य प से नवा चत नचला सदन है। स र
करोड़ से अ धक मतदाता—अमे रका और यूरोप के कुल मतदा से बड़ी सं या—पांच
सौ बावन सद य को सीधे चुनते ह,” मेजर बेद ने अपनी बात आरंभ क । “आज आपके
साथ यहां मेरी मौजूदगी का कारण ये है क आपका रा य—उ र दे श—लोकसभा म
प यासी सद य भेजता है। ये एक वशाल सं या है। य ? य क अगर ये सं या कसी
एक दल ारा नयं त हो—भले ही वो एक े ीय दल हो—तो वो दल क य सरकार के
गठन म मह वपूण भू मका नभाएगा।”
“ले कन ये सपना असंभा है, मेजर बेद । उ र दे श एक समजातीय पड नह
है। इसम ऐसे लोग ह जो धम, जा त, लग और आ थक तर के आधार पर मतदान करते
ह। एक साइज़ सबको फ़ट नह आता है!” मेनन ने कहा।
“आपक बात सही है, म मेनन। और इसी लए उ र दे श म कभी कोई फ़ॉमूला
काम नह करेगा। एक फ़ॉमूला यही है क कोई एक फ़ॉमूला न हो। कुछ सीट जा त के
आधार पर लड़ी जाएंगी—द लत बनाम ा ण या यादव बनाम ब नया; कुछ सीट धा मक
बंटवारे के आधार पर लड़ी जाएंगी— ह बनाम मु लम। कुछ अ य सीट आ थक आधार
पर लड़ी जाएंगी—ग़रीब बनाम अमीर। यही एबीएनएस क जीत है,” गला तर करने के
लए पानी का एक घूंट लेते ए मेजर ने बताया।
“कैसे?” एक मीठा ब कुट चाय म डु बोकर खाते ए इकराम ने पूछा।
“उ र दे श क सारी अ य पा टय का कोई न कोई वशेष जनाधार है। पर
एबीएनएस का कोई नह है,” जसपाल ने आ म व ास के साथ जवाब दया।
“तो हम गए काम से?” इकराम ने चाय को ज़ोर से सुड़कते ए पूछा।
“इसके वपरीत। आपक श कोई वशेष जनाधार नह होने म है। एक कसौट
जसे एक े म श समझा जाता है, वही कसी सरे े म कमज़ोरी हो सकती है।
मसलन, अगर एबीएनस को द लत क पाट माना जाता, तो इससे द लत े म पाट को
मदद मलती ले कन ा ण-ब ल े म यही कमज़ोरी बन जाती,” मेजर बेद ने
समझाया।
“तो आप चाहते ह क हम ह और मु लम, ा ण और द लत, यादव और
ठाकुर, ज़म दार और कसान, अमीर और ग़रीब, पु ष और म हला, बूढ़े और जवान,
सबके साथ जुड़... या इस तरह हम बना कसी एक ख़ास वाद वाली खचड़ी बनकर
नह रह जाएंगे?” चांदनी ने पूछा।
“ सरी पा टय के पास पहले ही ऐसे उ मीदवार ह जो बरस से इन मतदाता-वग
का त न ध व करते रहे ह। आपके पास साफ़ त ती का लाभ है। आप हर चुनाव े
क ज़ रत के हसाब से अपने उ मीदवार चुन सकते ह,” मेजर बेद ने कहा, “और यह
मेरा काम शु होता है।”
“आप या करगे?” चांदनी ने पूछा।
“कर चुका ,ं ” बेद ने उसे त कया। “मुझे गंगासागरजी ने एक साल पहले
उ र दे श क सभी प यासी सीट के लए आदश व न त करने का काम स पा
था। म आपको अपने जांच-प रणाम बताने वाला ं।”

“आपके यहां प यासी चुनाव े ह—खीरी, धौरहरा, बजनौर, अमरोहा, मुरादाबाद,


रामपुर, संभल, बदायूं—”
वो म से अपनी सूची म सारे नाम गनाता गया। हर नाम के साथ वो उसक
आबाद , सा रता दर, उ , लग व जा तय का तशत, धम व सं दाय, और आबाद का
मूल वसाय भी गनाता गया। आंकड़े मेजर बेद के मुंह से धारा वाह नकल रहे थे। वो
कं यूटर का मानव प लगता था।
आख़री चुनाव े पर प ंचने पर वो बोला, “उ र दे श म अभी भी चुनावी
मुक़ाबला सामा जक भु व क़ायम करने के मूल पर आधा रत है। मने सभी प यासी
चुनाव े का इसी मापदं ड के अनुसार व ेषण कया है।”
“सामा जक भु व? आपका मतलब जा त?” इकराम ने पूछा।
“ सफ़ जा त नह । सामा जक भु व जा त, लग, धम, आयु और व ीय श से
भा वत होता है। याद रख क एक भी ऐसा चुनावी े नह है जहां कोई एक मुख गुट
चुनाव जीत सके! मसलन, प मी उ र दे श म—मेरठ म—जाट क बड़ी आबाद है
जसके कारण इसे अ सर जाटभू म कहा जाता है। मेरठ म कतने जाट ह? दस तशत!
या आप दस तशत के साथ चुनाव जीत सकते ह?” बेद ने पूछा।
“तो, मसलन, मेरठ को कैसे जीता जा सकता है?” गंगासागर ने पूछा।
“जा त समीकरण के परे दे ख, गंगासागरजी,” बेद ने सुझाव दया। “मेरठ म पांच
लाख क आबाद है। शहर म बासठ तशत ह ह, पतीस तशत मुसलमान, तीन
तशत सख, आधा तशत ईसाई और आधा तशत जैन; तरेपन तशत पु ष ह
और औसत सा रता दर बह र तशत है जो उ र दे श के हसाब से काफ़ अ धक
है।”
“तो हमारा आदश उ मीदवार एक ह पु ष होना चा हए?” चांदनी ने पूछा।
“इसके वपरीत। ह कसी एक को मत नह दे ते ह। उनके मत जा त और अ य
आधार पर बंट जाते ह। इसके बजाय अगर जाट और मुसलमान का गठबंधन बनाया
जाए तो, सै ां तक प से, आपको पतालीस तशत वोट मल सकते ह,” बेद ने जवाब
दया।
“ले कन जाट और मुसलमान एक ही उ मीदवार को वोट य दगे?” चांदनी ने
पूछा।
“अ ा सवाल है। आपका मानना है क ये दोन गुट ऐ तहा सक प से एक
सरे के वरोधी रहे ह और इस लए आपका अंदाज़ा सही है क दोन गुट को पसंद आने
वाला उ मीदवार मलने क संभावना ब त ही कम है। ले कन म छाछार सं दाय से
संभा वत उ मीदवार क पहचान करने म सफल रहा ,ं ” मेजर बेद ने गव से कहा।
“छाछार ही य ?” असमंजस म पड़ गए मेनन ने पूछा।
“छाछार जाट क एक जनजा त है जो ब त साल पहले मुसलमान हो गए थे।
उनके वंशज मु लम जाट ह। ये े जीतने के लए मु लम जाट आपका उपयु
उ मीदवार होगा,” सजीले सरदार ने घोषणा क ।
“उसके जीतने क उ मीद को और या चीज़ बढ़ा सकती है?” गंगासागर ने शांत
भाव से पूछा।
“मेरठ एक मह वपूण औ ो गक शहर है। वहां यारह चीनी मल ह और स र
तशत से यादा आबाद ग े क पैदावार से जुड़ी है। अगर हमारा छाछार उ मीदवार ग ा
कसान हो, तो अपनी आ थक अव ा के कारण वो और भी यादा वीकाय होगा—अ य
जा तय और समुदाय के लए भी।”
“ले कन आपने कहा क ये सब करके हम पतालीस तशत वोट मलगे। पचपन
तशत फर भी बचगे!” मेनन ने कहा।
“वो पचपन तशत तभी ख़तरनाक ह गे जब क उ ह वप के कसी एक
उ मीदवार के हाथ म जाने दया जाए। इसके लए म अपनी रणनी त के अगले भाग पर
आता ,ं ” बेद ने अपने प े पलटते ए कहा।
“वो या?” गंगासागर ने पूछा।
“रणनी त का सरा भाग है क बाक़ पचपन तशत वोट बंट जाएं।”
“और ये आप कस तरह करगे?” इकराम ने पूछा।
“आसान है। वतमान सांसद क यो यता को दे ख और उसी यो यता का एक
अ त र आज़ाद उ मीदवार खड़ा कर द। इस उ मीदवार का काम बस वप का खेल
बगाड़ना और उनके वोट बांटना होगा।”
“तो हम एक मु लम जाट ग ा कसान ढूं ढ़ना है? फर हम एक खेल बगाडू ढूं ढ़ना
होगा जसक यो यता मेरठ चुनाव े के वतमान एमपी से मेल खाती हो?” इकराम बोला
|
“इनम से पहला म आपके लए पहले ही ढूं ढ़ चुका ं। उसका नाम है दौला हसन
भ । वो एक तरेपन वष य मु लम जाट है—उसका प रवार तीन पीढ़ पहले मेरठ म
बसा था—और उसके पास पांच एकड़ का ग े का खेत और एक शर है। वो वाभा वक
वक प है,” बेद ने बताया |
“ले कन—ले कन या हम इसी तरह लोग से हमारे टकट पर लड़ने के लए
भीख मांगगे? हमारे पास पहले ही ऐसे पाट कायकता ह जो लोकसभा के टकट के लए
लाइन लगाए ए ह, तो य न उनम से ही कसी को चुनकर काम को आसान बना लया
जाए?” इकराम ने पूछा।
“आप चुनाव जीतना चाहते ह या नह ? एक न न तरीय भंडार से चुनने क ग़लती
कभी मत करना। हर चुनाव े के हसाब से उपयु उ मीदवार चुन। तो, अब म बाक़
चौरासी े के आदश उ मीदवार के बारे म बताऊं?” बेद ने पूछा और गंगासागर
ख़ामोशी से बैठा मु कुराता रहा।

“उ र दे श के ापारी हड़ताल पर जा रहे ह,” चांदनी ने कहा।


“ य ?” गंगासागर ने पूछा।
“उनका कहना है क उ र दे श म ब कर क दर ब त यादा है। वो इसे कम
कराना चाहते ह।”
“ कसी को टै स म छू ट सफ़ इस लए नह द जा सकती क उसे छू ट चा हए!
तुम कसी शराबी को इस लए ह क दे ती हो क उसे ह क चा हए?”
“म मानती ं। ले कन म क ं या? हड़ताल से सारी आ थक ग त व ध बंद पड़
जाएगी। आव यक चीज़ के दाम आसमान को छू ने लगगे। हमारे े के लोग नाराज़
ह गे।”
‘‘ ब कर पांच तशत बढ़ा दो!”
“हम ऐसा नह कर सकते! वो पहले ही झगड़ालू मूड म ह—”
“वो हड़ताल जैसा आख़री क़दम तो उठा ही चुके ह ना? इससे यादा या कर
सकते ह वो?”
“और हम उनसे हड़ताल कैसे तुड़वाएंग?े ”
“हड़ताल बंद करने के एवज़ म तुम उ ह तीन तशत क छू ट दे दे ना। फर भी
तु ह दो तशत का फ़ायदा होगा,” पं डत हंसा।
“रा य प रवहन नगम के ाइवर अभी भी शराब के नशे म तेज़ गाड़ी चला रहे ह—ये एक
पखवाड़े म चौथी सड़क घटना है,” अख़बार क रपोट गंगासागर को दखाते ए चांदनी
ने कहा।
“अपराधी पाए जाने पर ाइवर को बख़ा त य न कर दया जाए?” गंगासागर
ने पूछा।
“पहले उन पर अ भयोग चलाना होगा। अदालती मामले बरस चलते ह।”
“इस सम या से नबटने का एक ब त अ ा उपाय है।”
“वो या?”
“ ाइवर क त ख़ाह सीधे उनक प नय को दो। वो शराब के लए कभी पैसा
नह दगी! प रवहन आयु से कहो क वो सु न त करे क भुगतान प नय को कया
जाए। शराब पीकर गाड़ी चलाने के मामले आधे रह जाएंगे!”

“लोन डफ़ॉ ट के मामले हमारे े ीय बक को परेशान कर रहे ह,” रा य के लेखा नयं क


ारा तैयार कया गया व ीय योरा बढ़ाते ए चांदनी बोली |
“ डफ़ॉ टर कौन ह?”
“ कसान, कारोबारी, ापारी, घर के मा लक और वो लोग जो अपने े डट काड
पे ढे र सारा क़ज़ चढ़ा लेते ह। अगर हमने ये पैसा वापस नह लया, तो एक दन उ र
दे श के बक ढह सकते ह।”
“ कसान को छोड़ दो। कम बा रश क वजह से इस साल फ़सल अ नह ई
ह। उ ह भुगतान के लए यादा समय दो और याज माफ़ कर दो।”
“और सरे?”
“उ ह भुगतान करने म कोई द क़त नह होनी चा हए। वो बस हमारे रा य
वा म व वाले बक क ॠण वापसी के ढु लमुल रवैये का फ़ायदा उठा रहे ह।”
“ले कन हम बस अदालती कारवाई ही कर सकते ह। ये महंगा और समय खाने
वाला काम है। नतीजे नकलने म बरस लग सकते ह।”
“अपने ॠण वापस कराने के लए सचला दे वी से कहो।”
“ कससे?”
“सचला दे वी। वो लखनऊ क एक मश र हजड़ा है। म उससे क ंगा क वो
तु हारी मदद करे।”
“म कसी हजड़े से य मदद लूंगी?”
“ य क उसके पास भटकते हजड़ के दल ह जो दनभर कुछ भी रचना मक
नह करते ह, अलावा घर और कान के बाहर खड़े रहने और ज़ोर-ज़ोर से ता लयां
बजाने और च लाने के।”
“वो सफ़ ख़ुशी के अवसर पर ऐसा करते ह—शाद – याह, ज म, उ ाटन।
हजड़ को नेग दे ना सौभा यसूचक माना जाता है।”
“ले कन लोग हजड़ को पैसा सौभा य लाने के लए नह , ब क उ ह भगाने के
लए दे ते ह।”
“तो?”
“सचला दे वी डफ़ॉ टर के घर और अ◌ॉ फ़स के बाहर हजड़ को खडा़ करने
क व ा कर दे गी। वो ज़ोर-ज़ोर से ता लयां बजाएंगी और उनके दो त और पड़ो सय
के सामने उ ह श मदा करगी। वो उकताकर भुगतान कर दगे। सचला दे वी से कहना क
उसे और उसक ट म को उनके ारा उगाहे गए ॠण म से दस तशत मलेगा!”

मं मंडल क मी टग ब त लंबी थी, चाय गुनगुनी थी, नै स बे वाद थे। ले कन एजडा


धमाकेदार था। साउथ लॉक, रायसीना हल पर पीएमओ— धानमं ी कायालय—के
अंदर त मं मंडल क एक सजावट कमरा था जसम कटे ए फूल रोज़ाना बदले
जाते थे और जासूस कु को हर कुछ घंट पर व ोटक क जांच के लए कोन म ले
जाया जाता था। पीएमओ म बैठने के ान क योजना ब त सरल थी; छह संयु स चव
भूतल पर बैठते थे जब क धानमं ी और उनके मुख साथी पहले तल पर। पीएमओ क
एकमा उ लेखनीय वशेषता लगभग हर कमरे म एक पेपर- ेडर क मौजूदगी थी।
धानमं ी गोपनीयता का ब त यान रखते थे और ये ठ क भी था। वो इस लंबी मी टग म
इसी लए बैठे थे क कोई मूख ेडर का योग करना भूल गया था।
अवां छत अनु े द बार-बार पढ़ा गया। “सं वधान के अनु े द 15 और 16 येक
भारतीय नाग रक को दे श के क़ानून के सम वतं ता और समानता दान करते ह। जब
1950 म सं वधान क रचना ई और इसे लागू कया गया तो भारतीय समाज ारा पीछे
छोड़ दए गए लोग के लए आर ण इसका भाग था। वयं सं वधान- नमाता का
मानना था क ये एक अ ायी उपाय है और ये दस वष चलेगा। ले कन आज कई दशक
बाद भी आर ण जारी है। या इससे ये पता नह चलता क अनुसा चत जा तय ,
अनुसू चत जनजा तय और पछड़े वग को मु यधारा म लाने क दशा म भारत ने ब त
कम ग त क है? या अब इस नी त पर नज़र डालने और ये फ़ैसला करने का समय नह
आ गया है क या ये वा तव म कारगर रहा है?”
धानमं ी का कभी ये मंत नह था क आर ण नी त क समी ा क जाए। ये
ऐसा पाउडर का पीपा था जसम व ोट होने पर ये कसी क भी ओर फैल सकता था।
अगर आर ण समा त करने के प म फ़ैसला कया जाता, तो सड़क दशनका रय से
भर जात —उन लोग से जो आर ण नी त के लाभाथ थे। अगर कोई ये वचार कट
करता क आर ण जारी रहना चा हए, तब भी सड़क दशनका रय से भर जात — उन
लोग से जनके साथ इस नी त ने भेदभाव कया था। इसम कसी ओर से जीत क त
नह थी। धानमं ी क नी त इस मामले म कोई नी त नह होने क थी।
ये कु सत द तावेज़ उनके नी त सलाहकार ने तैयार कया था ज ह लगता था
क वप धानमं ी को इस मु े पर लोकसभा म व दे ने को मजबूर कर सकता है।
वो तैयार रहना चाहते थे। ले कन बाद म उ ह ने ेडर का योग य नह कया था?
अवां छत अनु े द साउथ लॉक से नॉथ लॉक और फर वहां से ह तान टाइ स के
संपादक य कायालय म प ंच गया था। अगली सुबह दे श के ना ते के लए धानमं ी को
तल लया गया।
“ ेस इस मामले म हमारे वचार मांग रही है,” कै बनेट स चव ने कहा।
“मांगगे ही। म उ ह नए अ ताल क आधार शलाएं रखने क टोरीज़ भेजता ं
—वो यान नह दे ते। म उ ह नई श ा सुधार नी त पर साम ी भेजता ं—वो यान नह
दे ते। म उ ह अपने उन वदे शी त न धमंडल क त वीर भेजता ं जो शां त और
ा य व के नए युग का सू पात कर रहे ह—वो यान नह दे ते। ले कन उ ह उस रा सी
ापन का एक पैरा ाफ़ मल जाता है जसे वा तव म कभी लखा ही नह जाना चा हए
था, और वो ख़ून के यासे ग क तरह टू ट पड़ते ह!” धानमं ी ने पलटकर जवाब
दया।
“अ... अहं...” व मं ी ने बोलना शु कया।
“हां, या बात है? क हए जो कहना है, गला ही मत साफ़ करते र हए,” चढ़े ए
धानमं ी ने कहा।
“अ... अह! हां। मुझे लगता है क इस त को सी मत करने का एकमा तरीक़ा
ये है क उ ह इससे भी बड़ा मु ा दे दया जाए—कोई ऐसा मु ा जो इस पर हावी हो जाए,”
सफ़ेद बाल वाले व मं ी ने कहा।
“और वो मु ा या होगा?” धानमं ी ने पूछा।
“शायद पा क तान के साथ लड़ाई?” वदे श मं ी बीच म बोले |
“आप चाहते ह क एक अख़बार क ख़बर को दबाने के लए म पा क तान के
साथ लड़ाई क घोषणा कर ं ? या सबका दमाग़ ख़राब हो गया है?” धानमं ी
च लाए।
एक लंबी ख़ामोशी के बाद गृहमं ी बोले। “हम यु क घोषणा करने क ज़ रत
नह है। बस ये भाव दया जाए क भारत-पा क तान सीमा पर कुछ झड़प ई ह। ेस
इसी म लग जाएगा।”
“ताली दोन हाथ से बजती है,” धानमं ी ने कहा। “आप लोग को ऐसा य
लगता है क पा क तान इसम साथ दे गा?”
“पा क तान ज़ र साथ दे गा। उनक अपनी आंत रक राजनी त बुरे हाल म है। ये
उनके लए सुकून क बात होगी क वो उस काम म लग जाएं जो वो सबसे अ ा करते ह,
यु का उ माद फैलाना और सीधे-सादे मूख —आम पा क तानी नाग रक —को उसे
परोसना,” वदे श मं ी ने कहा।
“ या उसी कार क बे दगी अपने नाग रक को परोसने के लए हमारी ेस हम
लानत-मलामत नह करेगी?” धानमं ी ने पूछा।
‘‘कभी-कभी एक छोट सी ग़लती ढे र सारी सफ़ाई दे ने से बचा लेती है, सर,”
कै बनेट स चव ने कहा। व मं ी, गृहमं ी और वदे शमं ी ने समझदारी भरे ढं ग से सर
हलाए। र ामं ी क ख़ामोशी वयं म थी।

“अगर यु जैसी त बनी रहे, तो लोग क सहानुभू त वतमान सरकार के साथ बनी
रहेगी। हमेशा ऐसा ही होता है। जो लोग सरकार क पतलून उतारने को तैयार म रहते ह,
वही अचानक दे शभ बन जाते ह!” अ वालजी ने अपने गाडन म लंच के दौरान
गंगासागर से कहा। चांदनी और इकराम को ही लंच म और बुलाया गया था।
“वो बस अपने चूतड़ बचा रहे ह! और कुछ नह ,” इकराम ने अपने मुंह म गोभी
परांठा भरते ए कहा।
“हर समझदार आदमी अपने चूतड़ बचाता है। और यादा समझदार आदमी
अपनी पट पहने रहता है,” गंगासागर ने कहा।
“हां?”
“ धानमं ी कायालय से हमने आर ण मामले का जो रसाव कराया वो कारगर
रहा। यु का उ माद खड़ा करके धानमं ी हमारी चाल म आ गए ह। अब येक र ा
सौदा क समी ा होगी—ख़ासकर मैजे टक युनीश स क ।”
“ य ?”
“ य क मैजे टक युनीशंस ◌ा को राइफ़ल का एक ब त बड़ा अनुबंध दया
गया था और सोमानी को हमारे दए नदशानुसार अब दो तशत कंपनी सा वी क है।
और सा वी धानमं ी क अवैध बेट है। अनौ च य का मामला, नह ?” गंगासागर ने
अपनी नमक न ल सी के गलास को साफ़ करते ए कहा।
“ले कन इस तरह तो हम सोमानी को नुक़सान प ंचाएंगे। मैजे टक म वो भी
भागीदार है,” चांदनी ने तक दया। “वो अपने नुक़सान क भरपाई क मांग करेगा।”
“मने उससे कहा था क सौदा होते ही वो मैजे टक के शेयर बेच दे । मेरा याल है
क उसके शेयर तीन दन पहले बक चुके ह,” अ वालजी के घर पर मले ब ढ़या भोजन
क शंसा म आई एक छोट सी डकार को दबाते ए पं डत ने कहा।
“तो इस मामले को कैसे संभाल?” इकराम ने खीर का वाद लेते ए पूछा।
“अपने नेवले रपोटर को फर से बुलाया ◌ाया जाए और उससे कहा जाए क
धानमं ी क ग को हला दे । वैसे भी, वो सा वी वाले मामले को उछालने के लए बस
हमारे इशारे के इंतज़ार म बैठा है, सही?”
“सही।”
“ले कन उसके अवैध बेट होने के बारे म कोई बात न हो,” गंगासागर ने कहा।
“अरे गंगा, मुझे नह पता था उसके लए तु हारे दल म एक नम कोना भी है,”
अ वालजी ने मज़ाक म कहा।
“ऐसा नह है। मेरा मानना है क ये जानकारी पैसे क तरह है। इसे नासमझी से
ख़च करने के बजाय बक बैलस क तरह संभालकर रखना चा हए,” गंगासागर ने कहा।
“चांदनी, मुझे लगता है क लोकसभा के चुनाव हमारी उ मीद से ज द हो सकते ह!”
गंगासागर हंसा। हंसी से उसके गले म ख़राश आई और वो खांसने लगा। उसने थोड़ा पानी
नगला और अ नयं त प से दोबारा हंसने लगा। अ वालजी, चांदनी और इकराम उसे
हैरत से दे खने लगे। पं डत को इस तरह अ नयं त दे खना अजीब सा लग रहा था।
“हंसने वाली बात या है?” इकराम ने पूछा।
“ धानमं ी। म बना पट के उनक क पना कर रहा !ं ”

“सुना है वो रोज़ाना आपसे मलती ह! आप या कहगे, सर।”


“कोई ट पणी नह ।”
“लोग का कहना है क आपने मैजे टक को र ा अनुबंध इस लए दए क वो
उसम शेयरधारक ह। या ये सच है?”
“कोई ट पणी नह ।”
“ या ये सच है क उनके पास द श यां ह और क उ ह के योग से उ ह ने
आपको धानमं ी बनाया?”
“कोई ट पणी नह ।”
“ या अकेले म आप दोन मलकर काला जा करते ह?”
“कोई ट पणी नह ।”
“ या वो फ़ैसल को भा वत करने के लए मं मंडल क बैठक म शा मल होती
ह?”
“कोई ट पणी नह ।”
“ या वो आपक े मका ह?”
“कोई ट पणी नह ।”
धानमं ी ने इंतज़ार करती कार म बैठकर एक गहरी सांस ली। ये दन अ ा
नह जा रहा था।

“ धानमं ी के पास इ तीफ़ा दे ने के अलावा कोई चारा नह होगा। व मं ी, गृहमं ी और


वदे श मं ी के बीच उ तम पद के लए संघष होगा,” गंगासागर ने कहा।
“और कौन जीतेगा?” चांदनी ने पूछा।
“कोई नह । जब बकरी के लए शेर लड़ते ह, तो आमतौर पर लकड़ब घा जीतता
है।”
“और लकड़ब घा कौन है?”
“ वदे श मं ी।”
“ले कन वो तो मूख ह!” चांदनी बोली |
“मुझे परवाह नह । म तो बस इतना चाहता ं क वो उ र दे श म अपनी पाट के
उ मीदवार क सूची को अं तम प दे दे ।”
“और आप उस सूची म कसे चाहते ह?”
“उनके सारे वतमान एमपी।”
“ य ?”
“नेता डाइपर क तरह होते ह—उ ह बार-बार बदला जाना ज़ री होता है। स ा-
वरोधी लहर उनके ख़लाफ़ बड़ा सुंदर काम करेगी।”
“ या एबीएनएस को द ली म स ा ढ़ पाट के साथ मतदान-पूव गठबंधन नह कर लेना
चा हए?” चांदनी ने पूछा।
“क़तई नह !” गंगासागर ने कहा।
“ य ? या र ा मं ी ऐसा नह चाहते?”
“ ब कुल चाहते ह। ले कन हम बाद म नणय लगे।”
“ य ? या हमने फ़ैसला नह कया है क हम कस प म ह?”
“ ब कुल कर लया है।”
“तो हम कस प म ह?”
“जीतने वाले प म, मेरी लड़क , जीतने वाले प म।”

“उसे एक जीत मलनी चा हए, ऐसी जीत जो उसे आकषण का क बना सके,” गंगासागर
ने कहा।
“आपका मतलब र ा मं ी को? वो तो कह रहे ह क उ ह धानमं ी बनने क
कोई मह वाकां ा नह है,” चांदनी ने कहा।
“इसका मतलब ये कहना नह है क उनके शुभ चतक चाहगे तो वो अपना नाम
आगे नह बढ़ाया जाने दगे।”
“नई द ली म धानमं ी, व मं ी, वदे श मं ी, गृहमं ी और र ा मं ी—सभी
एक ही स ा ढ़ पाट के सद य ह। हम इससे या फ़क़ पड़ता है क आ ख़र म कौन
जीतता है?”
“एक मह वपूण कारण है, चांदनी।”
“वो या?”
“हमारे युवा उ ोगप त सोमानी का र ा मं ी के साथ अ ा समीकरण है।
मैजे टक युनीश स याद है? हमारे आदमी को पद मलना हमारे हत म होगा।”
“तो आपको लगता है क आप र ा मं ी को धानमं ी पद दला सकते ह?”
“हां, ले कन उ ह उ पद के लए गंभीर दावेदार नह समझा जाता है। अगर उ ह
एक वक प बनना है तो उ ह कुछ नाटक य करना चा हए, कुछ ऐसा जससे उ ह तुरंत
व सनीयता और पहचान मल सके।”
“जैस?े ”
“हम उनसे एक जंग जीतने को कह सकते ह।”
“कहां?”
“एनजे9842 ।”
“कभी इसके बारे म सुना नह ।”
“इसी लए तो ये एकदम उपयु जगह है।”

एनजे9842 वो ब था जहां से भारत और पा क तान के बीच सीमा ववाद नया के


सबसे ऊंचे मैदाने-जंग तक प ंच गया था। दोन दे श के सै नक समु के तर से बीस
हज़ार फ़ट ऊपर और शू य तापमान से नीचे एक- सरे के सामने तैनात थे। सया चन
ले शयर—जो उस कराकोरम पहाड़ी ृंखला म त था जहां नया क कुछ सबसे
ऊंची चो टयां मौजूद थ — नया के सबसे क ठन इलाक़ म से एक था। तापमान शू य से
चालीस ड ी कम तक होता था और अगर कसी क खुली वचा धातु से छू जाए, तो तुरंत
इस तरह चपक जाती थी जैसे ग द ने चपका ली हो। हमनद पर वा षक दस मीटर बफ़
गरती थी और बफ़ ले तूफ़ान क ग त डेढ़ सौ मील तक प ंच जाती थी।
लेह से आने वाले वशेष एएन-32 ए वमान से उतरे र ा मं ी कपड़ क पांच
तह के बावजूद भी कांप रहे थे। सेना का एक आधु नक ह का हैलीकॉ टर उ ह भारतीय
सेना ारा बनाए गए नया के सबसे ऊंचे हैलीपैड पॉइंट सोनम ले जाने के लए इंतज़ार
कर रहा था। चॉपर का पाइलट ख़ामोश रहा। वो मं ी को ये कहकर डराना नह चाहता था
क पॉइंट सोनम पर चॉपर को लड कराना एक भयानक अनुभव होता है।
जब धड़धड़ाते धातुई दानव ने बफ़ क सूई जैसी सू म सी चोट क ओर उतरना
शु कया, तो रोटर लेड कम अ◌ॉ सीजन वाली हवा से यूनतम दाब लेने के लए भी
संघष कर रहे थे। मं ी को बना आव यकता के र सी क सीढ़ से उतारने का फ़ैसला
मूखतापूण है, पाइलट ने सोचा। ले कन सेना भवन क नौकरशाही क बौ क श से
बहस करने वाला वो कौन होता था!
उसने पलटकर पीछे दे खा। उसने घबराए और सद से दोहरे हो रहे मं ी को दांट
कट कटाते दे खा। पाइलट नह जानता था क र सी क सीढ़ से उतरने को तैयार हो रहे
र ा मं ी मन ही मन अपने म — सोमानी—को बुरा-भला कह रहे ह। मं ी नह जानते थे
क ये वचार सोमानी का नह गंगासागर का था।

“कोई यु नह जीता जाना है,” चांदनी बोली।


“नज़द क से दे खो तो हमेशा एक यु होता है,” गंगासागर ने कहा।
“और आप यु को कहां तलाश रहे ह?
“अख़बार म,” गंगासागर ने कहा।
‘‘मतलब?”
“जो जंग जीती जानी है वो क़ागज़ पर है—श द क जंग। सै नक क जंग नह !
हम इतनी भयानक कोई चीज़ नह चा हए।”
“म अब भी नह समझी।”
“हम ख़बर फैलाएंगे क सया चन म तैनात भारतीय और पा क तानी सै नक ने
आपस म फ़ाय रग क है।”
“क है उ ह ने?”
“शायद क हो,” गंगासागर ने जवाब दया। “हम यक़ न से नह कह सकते क
उ ह ने फ़ाय रग नह क है। सया चन म बेवजह क फ़ाय रग रोज़मरा क बात है।”
“आप इस स ांत के सहारे कह सकते ह क कोई भी चीज़ संभव है!”
“ ब कुल। शायद उ ह ने फ़ाय रग क हो। शायद नह क हो। कौन कह सकता है
सच या है?”
“और फर?”
“हम सोमानी से कहगे क वो र ा मं ी से सया चन म भारतीय सै नक से
मलकर आने को कहे। र ा मं ी का चॉपर से र सी क सीढ़ ारा उतरना ब ढ़या चार
होगा। भारत क सं भुता और एकता का वा त वक र क! सुपरमैन और ाइडरमैन का
एक प!”
“और फर?”
“एक और रसाव क र ा मं ी ारा सै नक से मलने जाने और नतीजतन
उनका हौसला बढ़ाने के उनके नजी यास के कारण ही प र त तेज़ी से नयं ण म
आ सक ।”
“अख़बार इस झांसे म नह आएंगे—वो इसे प ल सट टं ट ही समझगे।”
“अगर एक अमे रक र ा वचार दल क गु त रपोट का रसाव ऐसा कहे तो वो
ज़ र यक़ न करगे।”
“आप कसी अमे रक र ा वचार दल से अपनी बात कैसे कहलवाएंग?े ’’
“मैजे टक युनीश स का ै टे जक ए शया रसच डफ़स—एसएआरडी— म
टे क है। सोमानी ने मुझसे जब भी म चा ं एसएआरडी क रपोट का वादा कया है।”
“और रपोट सच होगी?”
“हो सकती है। कौन कह सकता है क पा क तानी सै नक पीछे नह हटे !”
“ले कन उ ह ने हमला तो नह कया!”
“वाक़ई? मुझे नह पता। हो सकता है कया हो।”
“तो ये सब एक बड़ा झूठ है?”
“हो सकता है। ले कन, नह भी हो सकता है!”

“तो र ा मं ी के प म धानमं ी पद मोड़ने के बदले म सोमानी या चाहता है?” चांदनी


ने पूछा।
“कुछ नह । वो अपने दो त को साउथ लॉक म प ंचाकर फ़ायदा हा सल कर
चुका है। अपने व र पाटनर ं टा को सबक़ सखाने के लए अब वो अपनी नई ा त
त का इ तेमाल करेगा,” गंगासागर ने जवाब दया।
“और हम इसम कोई एतराज़ नह ?”
“राजनी त म कोई ाई दो त या मन नह होते।”
“गंगा अंकल, आप ज़ र मरने के बाद नक म जाएंगे!”
“म उसके लए पूरी तरह तैयार ,ं मेरी ब ी। मुझे अपने रच यता से मलकर
ब त ख़ुशी होगी। सौभा य से, मेरे रच यता को अभी मुझसे मलने क कोई ज द नह
है!”

चांदनी लाल बहा र शा ी भवन म अपने वशाल अ◌ॉ फ़स क डे क पर बैठ ई थी।


गंगासागर उसके सुइट के अनौपचा रक कोने म सोफ़े पर बैठा था। वो समाचार दे ख रहे थे।
एंकर कह रहा था:
“बुधवार को भारत के रा प त ने लोकसभा को तुरंत भाव से भंग कर दया
जससे नए सदन के गठन का माग श त हो गया है जसक इस महीने के अंत तक आशा
क जा रही है। रा प त ने भूतपूव र ा और नए धानमं ी क सफ़ा रश पर ये क़दम
उठाया है। क य मं मंडल क बैठक के तुरंत बाद धानमं ी अपनी मं प रषद का
यागप स पने के लए नजी प से रा प त भवन गए। रा प त ने उनसे कहा क नई
मं प रषद बनने तक वो पद पर बने रह। रा प त और धानमं ी क मुलाक़ात तीस
मनट—”
गंगासागर ने एंकर के वा य को बीच म ही काटते ए ट वी बंद कर दया।
‘‘हरामज़ादा ज द चुनाव ये सोचकर कराना चाहता है क सया चन म नई-नई मली
शोहरत से उसे मदद मलेगी,” गंगासागर ने कहा।
“हम चुनाव के लए तैयार ह,” चांदनी बोली। “इससे फ़क़ नह पड़ता क तारीख़
छह महीने पहले ही आ गई है। हमने पछले दो साल सफ़ इसी क तैयारी म बताए ह।”
“ फर भी ये ज़ री है क शु आती जनमत सव ण हम उ र दे श म आगे
दखाएं,” गंगासागर ने कहा।
“ले कन हम जनमत को तो नयं त नह कर सकते,” चांदनी ने कहा।
“जनमत जैसी कोई चीज़ नह होती। सफ़ का शत मत होते ह और हम
सु न त करना होगा क वो हमारे प म ह ।”
“ये कैसे सु न त कर सकते ह हम?” चांदनी ने पूछा। “जनमत तो अख़बार और
प काएं करती ह। हम उनके मा लक तो नह ह!”
“अपनी नजी एजसी से जनमत कराओ। वो अख़बार जनम साम ी क कमी
रहती है उन नतीज को छापने म ब त ख़ुश ह गे बशत क वो ये दावा कर सक क ये
अ ययन ख़ुद उ ह ने कराए ह।”
“ फर भी, हम नतीज पर तो नयं ण नह कर सकते।”
“जा गर के चौथे प े का योग करो।”
“ह? ये या होता है?”
“जब जा गर प े फटता है और आपसे एक प ा चुनने को कहता है, तो वो पहले
से जानता है क आप कौन सा प ा चुनगे—और आप वा तव म वही प ा चुनते ह।
जनमत सव ण भी ऐसे ही होते ह। आप उनका ढांचा इस तरह बनाएं क जवाब दे ने वाला
वही जवाब दे जो आप चाहते ह।”
“ले कन चौथा प ा या है?”
“सव ण चार सवाल पर आधा रत हो जो ख़ासतौर से सवाल पूछे जाने वाले
के अनुसार तैयार कए गए ह । पहले तीन सवाल कभी मत छापो— सफ़ चौथे
सवाल का नतीजा छापो। वही जवाब ासं गक होता है!”

म हला सव क ने कराना टोर से नकल रही ख़रीदार को रोका।


“ एक: एक म हला के प म, या आपको लगता है क पु ष ने हमारे लग
का शोषण कया है और हमारे साथ भेदभाव कया है?”
“हां।”
“ दो: या आपको लगता है क पु ष ने श को अपने ही हाथ म रखकर
म हला का नुक़सान कया है?”
“हां।”
“ तीन: या आपको लगता है क अब समय आ गया है क स ा एक
श शाली म हला के हाथ म हो, न केवल दे श म, ब क क म भी?”
“हां।”
“ चार: या म इसका अथ ये समझूं क म हला को यादा त न ध व दे ने
क चांदनी गु ता क को शश का आप समथन करगी?”
“हां।”

ा ण सा ा कारकता एक ा ण अ यापक से पूछ रहा था:


“ एक: एक ा ण के प म, या आपको लगता है क राजनेता ने उ
जा तय क अनदे खी क है?”
“हां।”
“ दो: या आपको लगता है क श ा व रोज़गार म आर ण के कारण
ा ण धन द अवसर से वं चत हो रहे ह?”
“हां।”
“ तीन: या आपको लगता है क अब समय आ गया है क कोई ा ण के
अ धकार के लए आवाज़ उठाए?”
“हां।”
“ चार: या म इसका अथ ये समझूं क ा ण क आवाज़ को अ धक
ज़ोरदार ढं ग से उठाने के चांदनी गु ता के यास का आप समथन करगे?”
“हां।”

द लत सव णकता एजट झोपड़प म था। उसने अपने द लत स जे ट से पूछा:


“ एक: एक द लत के प म, या आपको लगता है क बरस के भेदभाव
और अ ृ यता के कारण द लत आज भी पूरी तरह सुर त नह ह?”
“हां।”
“ दो: या आपको लगता है क अनुसू चत जा तय व जनजा तय के लए
श ा और रोज़गार म आर ण को बढ़ाए जाने क आव यकता है?”
“हां।”
“ तीन: या आपको लगता है क अब समय आ गया है क द लत के अ धक
त न ध व के लए कोई आवाज़ उठाए?”
“हां।”
“ चार: या म इसका मतलब ये समझूं क आप द लत ग त को यादा
ो साहन दे ने क चांदनी गु ता क को शश का समथन करगे?” ◌े
“हां।”

युवा सव ण अ धकारी यू नव सट छा से बात कर रहा था।


“ एक: एक युवा के प म, या आपको लगता है क हमारे दे श के युवा
को रा के भ व य म पया त आवाज़ दे ने से वं चत रखा गया है?”
“हां।”
“ दो: या आपको लगता है क बूढ़े राजनी त ारा ज़बरद त घाटे ने
आपक पीढ़ क सुर ा को गरवी रखा आ है?”
“हां।”
“ तीन: या आपको लगता है क अब समय आ गया है क स ा अगली पीढ़
के हाथ म हो?”
“हां।”
“ चार: या म इसका अथ ये समझूं क इस दे श के युवा को स ा दलाने
के चांदनी गु ता के यास का आप समथन करगे?”
“हां।”

मु लम सा ा कारकता म जद के बाहर था। जुमे क नमाज़ अभी पूरी ई थी।


“ एक: एक मुसलमान होने के नाते, या आप फ़ मंद ह क एक ह -ब ल
दे श म आप अ पसं यक ह?”
“हां।”
“ दो: या आपको लगता है क सरकार ने लगातार मु लम तर क़ को
नज़रअंदाज़ कया है?”
“हां।”
“ तीन: या आपको लगता है क अब समय आ गया है क मुसलमान कसी
ऐसे श स को चुन जो उनके लए बोल सके?”
“हां।”
“ चार: तो म इसका मतलब ये समझूं क मु लम मु को उठाने के लए
चांदनी गु ता क को शश म आप उनका साथ दगे?”
“हां।”

शाम के समाचार दे खते ए चांदनी मु कुरा रही थी। “इस स ताह ऑ ज़वर ने लोकसभा
चुनाव से पहले उ र दे श के मतदाता के आम मूड के बारे म सीएफ़सी से कराए गए
सव ण के न कष का शत कए। सव ण म पाया गया क अ धकतर लोग नई द ली म
सरकारी उदासीनता से असंतु ह और मानते ह क क म चांदनी गु ता ारा भू मका
नभाने के यास का समथन कया जाना चा हए। ये पहला अवसर है जब हर जा त,
समुदाय, लग और उ के लोग से समान त याएं ा त ई ह। ‘मतदाता के एक
भारी ब मत का मानना है क चांदनी गु ता के नेतृ व म एबीएनएस क म भू मका
नभाकर बेहतर नतीजे दे सकती है,’ कल सव ण के नतीजे जारी करते ए सीएफ़सी
व ा ने कहा।”
end
“सीएफ़सी कस क़ म क एजसी है?” चांदनी ने अपने से े टरी से पूछा।
“मुझे ब कुल अंदाज़ा नह । म मेनन से पता क ं ?”
“हां। उसे पता होगा। इस यास क अगुआई गंगासागरजी ने क थी,” चांदनी ने
कहा।
कुछ मनट बाद से े टरी मु कुराता आ चांदनी के अ◌ॉ फ़स म आया।
“मने सीएफ़सी के पूरे नाम का पता लगा लया है। मेनन जानता था।”
“ या नाम है?”
“कं योरस फ़ोथ काड।”
“पाट क भारी जीत क भ व यवाणी करने के लए मुझे तुम जैसे यो तषी चा हए,”
गंगासागर ने आ यच कत आदमी से कहा। उसे एक फ़टपाथ से उठाया गया था जहां
बैठकर वो ग़रीब मूख को व ास दलाता था क अ व सनीय समृ , अ व सनीय
सौभा य, यश और वैभव बस आने ही वाला है।
“म मश र नह हं, सर। कोई मेरा व ास नह करेगा,” यो तषी बोला |
“वो मुझपे छोड़ दो। मने आज लखनऊ के एक मुख अख़बार के साथ तु हारे
इंटर ू क व ा क है। तु ह भ व यवाणी करनी है क उ र दे श म मं मंडल म
फेरबदल होने वाला है।”
“ले कन म ये नह जानता!”
“अब जान गए हो। म आज मु यमं ी से बात क ं गा और वो सु न त करगी क
कल एक छोटा सा फेरबदल हो जाए। तुम लोग के वपरीत, म ब त पहले से भ व यवाणी
करने से बचता ं। घटना के सु न त हो जाने के बाद भ व यवाणी करना कह बेहतर
रहता है। फेरबदल होने के बाद तुम एक इंटर ू और दोगे।’’
“और म या क ंगा?” भौच के आदमी ने पूछा।
“तुम इस साल ज़बरद त फ़सल क भ व यवाणी करोगे।”
“पर म ये नह जानता!”
‘‘अब जान गए हो। मेरे पास कृ ष मं ालय क एक गोपनीय रपोट है। रपोट
तु हारे इंटर ू के अगले दन सावज नक क जाएगी। और तब तुम अपना तीसरा इंटर ू
दोगे।”
“और तब म या क ंगा?” या शत प से उसने पूछा।
“तुम इलाहाबाद म अ या शत बा रश क भ व यवाणी करोगे।”
“ले कन म तो ये नह जानता!”
“जानते हो। मने व ा कर द है क एक छोटा वमान गंगा के ऊपर स वर
आयोडाइड से बादल रोप दे । तु हारी भ व यवाणी के अगले दन अ या शत बा रश होगी।
तब तक ेस और जनता तु हारी कही हर बात का व ास करने लगगे। और फर तुम
अपना चौथा इंटर ू दोगे।”
“और चौथे इंटर ू म म या क ंगा?”
“तुम एबीएनएस और चांदनी के लए भारी जीत क भ व यवाणी करोगे |”
“ले कन म ये भी नह जानता!”
“म भी नह जानता, ले कन उ मीद करता ं क तु हारी भ व यवाणी सच सा बत
हो।”
गंगा और यमुना के संगम पर बसा इलाहाबाद तनावपूण था। पुराने शहर म, कुछ म ती मार
रहे ह युवा ने मुसलमान पर शराब फक द थी। ग़ से म कुछ नासमझ मु लम लड़क
ने गौमांस के टु कड़े गंगा कनारे सी ढ़य पर छोड़ दए। चगारी भड़क और इलाहाबाद म
हसा फैल गई।
उ र दे श क मु यमं ी—चांदनी गु ता—ने नए पु लस मुख को बुलाया आ
था। चांदनी जानना चाहती थी क दं गे रोकने के लए पु लस या क़दम उठा रही है।
गंगासागर एक मुलाक़ाती कुस पर बैठा था जब क सरी पर पु लस मुख बैठा था।
“ त नयं ण म है, मैडम,” पु लस मुख ने कहा। “दं गा गयर पहने दं गा
पु लस क तीन बटा लयन ने शहर म माच कया और अ नयं त भीड़ को छतराने के
लए आंसूगैस का योग कया। उन पर ट-प र से हमला कया गया ले कन उ ह ने
शहर के मुख भाग म नयं ण कर लया है। यादातर इलाक़ा नयं ण म है, अलावा
पुराने शहर के जहां अभी व ा ा पत करने म कुछ दन लग सकते ह।”
“मौत या हताहत?” चांदनी ने पूछा।
“मौत कोई नह ई, पर कुछ लोग हताहत ह। अगर एक गुमनाम जानकारी के
कारण हमने समय रहते पुराने शहर म बटा लयन न भेजी होत , तो ये सं या अ धक हो
सकती थी।”
“डर,” बातचीत का ख़ अचानक बदलते ए गंगासागर ने कहा।
“जी, सर?” मुख ने पूछा।
“डर! हम आज ही व ा ा पत करना चाहगे—कल या परस नह । डर पैदा
क जए। क़ानून का डर,” गंगासागर ने बालपूवक कहा।
“ले कन सर, क यू क घोषणा कर द गई है और हम तबंध हटाने के लए
आपके आदे श का इंतज़ार कर रहे ह। हम कठोर उपाय के बना भी नतीजे ा त कर
सकते ह।”
“जैसा म कहता ं क जए। म चाहता ं क कल मु यमं ी इलाहाबाद म एक
सावज नक सभा को संबो धत कर।”
“ले कन सर—”
“मेरे याल से नए पु लस मुख ने शंसनीय काम कया है, मु यमं ी,”
गंगासागर ने सरल भाव से कहा, “ले कन कभी-कभी ऐसे हालात म ला ठय और आंसूगैस
से यादा भावना मक अपील क ज़ रत होती है।”
“सर, इस समय इलाहाबाद का दौरा करना ठ क नह रहेगा। इलाहाबाद अभी
ऐसा बा द का ढे र है जसम कभी भी व ोट हो सकता है,” मुख ज द से बोला।
“मु यमं ी क सुर ा के लए वहां आप ह ना? या हम कोई नया आदमी ढूं ढ़ना
होगा जो मु यमं ी के अपने य नाग रक से मलते समय उनक सुर ा भावी ढं ग से
सु न त कर सके?” गंगासागर ने लगभग फुसफुसाहट म कहा।
“हम इनक र ा करगे, सर,” पु लस मुख ने कहा, वो समझ गया था क फ़ैसला
लया जा चुका है।

“ याग के य लोगा—वो महान नगर जहां संसार के नमाण के बाद ने ब ल द थी।


अकबर ारा अपने नए महान मज़हब द न-ए-इलाही के नाम पर रखे गए नाम वाले शहर
इलाहाबाद के सौभा यशाली लोगो। बौ धम के सबसे महान क कौशांबी के महान पु ष
व म हला । आज यहां आपके बीच होना मेरा सौभा य है,” उसने बड़ी चालाक से शहर
के ह , मु लम और बौ त व को संबो धत करते ए कहा। “आज म आपके सामने
एक ह जै वक पता और एक मुसलमान मुंहबोले पता क बेट के जीते-जागते उदाहरण
के प म खड़ी ं। म इस सरज़मीन के दो महान धम का त न ध व करती ं और म
आपके सामने ईमानदारी से त ा करती ं क इससे पहले क कोई इस महान रा को
धा मक आधार पर बांटे, म मर जाना पसंद क ं गी!” चांदनी गरजी।
रैली का आयोजन एबीएनएस के इलाहाबाद ज़ला स म त के मुख ने कया था।
मंच पर इकराम, गंगासागर, इलाहाबाद से लोकसभा का याशी और कई अ य
पदा धकारी बैठे थे। एक लोकल बड आ मा को छू ने वाले और दे शभ के फ़ मी गाने
बजा रहा था जब क ानीय पाट कायकता एक-एक करके मंच पर आ रहे थे और मंच
पर बैठे बड़े लोग के गले म मालाएं डाल रहे थे। द सय हज़ार समथक तेज़ गम और दं ग
के भय का सामना करके आए थे और खुले मैदान म बैठकर अपने य त न धय को
वादे करते सुन रहे थे—वो वादे जनके तोड़ दए जाने क पूरी संभावना थी।
मैदान के सरी ओर, ठ क उस मंच के सामने क ओर जस पर नेता बैठे ए थे,
मुख वप ी नेता के पुतले लगाए गए थे। पर लोग ये नह जानते थे क हर पुतला
पटाख़ से बना आ था। वागत क र म पूरी होने के बाद चांदनी खड़ी ई और मंच के
बीच क ओर बढ़ | एक सहायक उसके लए एक सजावट तीर-कमान लेकर आया जसे
उसने इस तरह संभाला जैसे वो मैदान के पार बने पुतल का नशाना साध रही हो। जैसे ही
उसने नशाना लया, वैसे ही आ तशबाज़ी शु हो गई और पुतल म व ोट हो गया।
भीड़ पगला गई और च ला- च लाकर चांदनी क जय-जयकार करने लगी जब क चांदनी
च लाई, “हम अपनी ऊजा उन लोग को न करने क ओर लगाएंगे जो हम बांटना चाहते
ह। हम शां त और भाईचारे के एक नए युग का सू पात करगे। हम अतीत और वतमान क
लड़ाई से बचगे—ये लड़ाई हमारे भ व य को न कर दे गी!”
गंगासागर आशावा दता से दमक रहा था। उसने इकराम को दे खकर आंख मारी।
रम के एक प वे और एक पाउं ड गौमांस से कतना कुछ कया जा सकता है। और लोग
समझते ह क चुनाव महंगे होते ह! उसने एक गहरी सांस ली और धीरे-धीरे पढ़ना शु कर
दया, “आ द श , नमोनम:; सवश , नमोनम:, थम भगवती, नमोनम:, कुंड लनी
माताश ; माताश , नमोनम:।”
अ याय तेरह
लगभग 2300 वष पहले

“अब जब क सहारण मलयरा य के सहासन पर है, तो हम एक ऐसा रा य मल गया है


जहां हम अपने सै नक को टका सकते ह,” चाण य ने कहा।

“हां,” चं गु त ने उदास भाव से कहा, “ पछले वष प प लवन म मेरे पता क


मृ यु के बाद अब हम आंभी के भूतपूव सेनाप त क दे खरेख म अपनी सेना को सुग ठत
करना चा हए।”
चाण य पता को खो चुके पु के ख को समझ सकता था। चाण य कम से
कम अपने पता का अं तम सं कार तो कर सका था। चं गु त इतना भी नह कर सका था।
ले कन चाण य जानता था क उनके पास शोक मनाने का भी अवसर नह था। “चं गु त,
हम पोरस को अपने सहयोगी के प म नह खो सकते। धनानंद से लड़ने के लए तु ह
उसक आव यकता होगी,” उसने कहा।
“ले कन पोरस हमसे ु है। हमने मलयरा य छ न लया है, जो उसके अधीन
रा य के तं का भाग था। वो हमारे साथ कसी साम रक सहयोग पर य बात करेगा?”
चं गु त ने अ व ासपूवक पूछा।
“ य क वो कुलीनतं ीय, ु , घमंडी और अहंकारी है। ये वो गुण ह जनके
कारण को फुसलाना आसान होता है,” चं गु त के आचाय ने लापरवाही से जवाब
दया।
“तो हम उसक चापलूसी करके उसे सहयोगी बनाएंगे?” चं गु त ने पूछा। “अगर
आदमी एक म हला से कहे क वो सुंदर है, तो वो उसके अ य झूठ नज़रअंदाज़ कर दे ती है!
हम बस पोरस के साथ एक सुंदर औरत जैसा वहार करना है,” चाण य हंसा।
“और अगर वो हमारे जाल म नह फंसा?” चं गु त ने चाण य को कुरेदा।
“तो हम स ा, या त और त ा क उसक मह वाकां ा—भारत का सबसे
श शाली शासक होने क उसक ती इ ा—को ो सा हत करगे।”
“और हम ऐसा कैसे करगे? उसे घूस दे ने के लए हमारे पास कोई ठोस चीज़ तो है
नह ,” चं गु त ने गंभीर भाव से कहा।
“सरल है। म मगध का सहासन तु ह दे ने के बजाय उसे दे ने का ताव रखूंगा,”
चाण य ने धूतता से कहा।
चं गु त अपने गु के आगे झुका और धीर भाव से बोला, “आप जस मता म
चाहगे, म आपक सेवा क ं गा। ले कन म अहंकारी और तु पोरस के अधीन काम करने
को तैयार नह !ं ”
चाण य इस सै ां तक था के दशन पर ज़ोर से हंस पड़ा। “मने केवल ये कहा
क म उसके सामने ताव रखूंगा। मने ये नह कहा क म सहासन उसे दे ं गा। मेरे श द
के चयन पर अ धक यान दया करो, चं गु त। ये पोरस के साथ ऐसा समझौता होगा जसे
म जान-बूझकर तो ंगा!” उसने कहा।
पूणतया मत चं गु त हच कचाते ए बोला, “ या ये बेहतर नह होगा क हम
उसके साथ ईमानदारी बरत और उससे कह क मगध पर आ धप य के लए हम उसक
सहायता चा हए? और हम सहासन के बजाय कुछ ांत का ताव द।”
“वो तु ह नौ स खये के प म दे खता है, हे चं गु त। वो तु ह एक सहयोगी के प
म मह व नह दे गा। बेहतर ये होगा क उसके साथ समझौता कया जाए और उसे मगध पर
शासन करने के हवाई क़ले बनाने दए जाएं। एक बार हमारा उ े य पूरा हो जाएगा, तो
पोरस हमारे लए बेकार हो जाएगा।”
“और आप अपने व ासघात के लए उसे या सफ़ाई दगे?”
“याद रखो अ सर अनुम त पाने से आसान मा पाना होता है!” चाण य ने
अपने कु प चेहरे पर एक चौड़ी मु कान के साथ कहा। “म अपने अ े म इं द से
क ंगा क वो मेरी ओर से म य ता करे और पोरस को समझाए क चाण य के साथ
सहयोग करना उसके हत म होगा।”
“ या चाण य के साथ सहयोग का अथ चं गु त के साथ सहयोग नह होगा?”
मत राजकुमार ने पूछा।
“आह। हम ये बदलना होगा। तुम और म लड़गे और अलग हो जाएंगे,” चाण य ने
जवाब दया।
“म आपसे कभी नह लड़ सकता, आचाय। आपक इ ा मेरे लए आदे श है।
अगर आप मुझसे जान दे ने को भी कहगे, तो म दे ं गा। म कभी आपक इ ा के
व जाने क क पना भी कैसे कर सकता ं?”
“शांत हो जाओ, चं गु त। म म क श क बात कर रहा ं। हम ऐसा म
पैदा करगे जैसे तुम और म अलग हो गए ह—वैचा रक मतभेद। इस कार म पोरस को
व ास दला सकूंगा क म वाक़ई उसे मगध के सहासन पर बठाना चाहता !ं ”
“और ऐसा समय आने तक म या क ं ?” चं गु त ने असहजता से पूछा।
“एक व ोह खड़ा करो!” चाण य ने ज़मीन पर हाथ मारकर धूल उड़ाते ए
कहा।

“ व ोह खड़ा क ं ? कहां?” ववश चं गु त ने पूछा।


“मैसीडो नयाई ांत म—उनम जहां सकंदर के प का सीधा शासन है।”
“कौन से ांत?”
“सबम। जैसा क तुम जानते हो, अ धकांश उ र भारत मगध, कैकय या गंधार
का भाग है। ले कन उन छोटे रा य का या जो इन तीन बड़े गुट के भाग नह ह? सकंदर
का प फ़ लपोज़, जो भारत म सकंदर के चुने ए उ रा धकारी से यूकस के अधीन
है, उन सब पर सीधा शासन करता है। अगर फ़ लपोज़ मर जाए, तो ये ांत बना हमारे
कसी यास के सीधे हमारी झोली म आ गरगे।”
“आचाय, या आपका ता पय वही है जो म समझ रहा ं?” थके ए और हत भ
चं गु त ने पूछा। अपने गु के साथ रणनी त बनाने के ये स उसक ऊजा को चूस डालते
थे।
“नह , नह , य चं गु त। हम फ़ लपोज़ को मारगे नह । हम बस उसके सबसे
प के श ु क पहचान करगे और उसक ह या करने के लए उ ह यायो चत कारण
दखाएंग!े ”
“और सबसे बड़ा श ु कौन है?” चं गु त ने ये जानते ए भी पूछा क ये
अनाव यक है।
“उसका सबसे बड़ा म और सहयोगी।”
“आंभी?”
“नह ।”
“ फर कौन?”
“श शगु त।”
“कौन?”
“मगध म पूव भारत का ब त बड़ा भाग आता है। इसके प म म कैकय है। और
भी प म म बढ़ने पर आप गंधार प ंच जाते ह। पर गंधार के परे, एकदम उ रपूव म,
सधु के पार, कौन रहता है?” चाण य ने पूछा।
“अ क—काबुल नद े के क़बायली घुड़सवार।”
“सही। वो श शाली और भयंकर यो ा ह। उनक मूल श ब त कम भोजन,
पानी या बना आराम के लंबी लड़ाइयां लड़ने म नह ब क े के सव े अ का
जनन करने, उ ह पालने और श त करने म है। उनका अगुआ श शगु त है। तु ह वो
दन याद है जब सकंदर ॠ ष दं डायण के आ म म आया था? श शगु त उसके साथ था
—जो उसके लए ॠ ष के श द का अनुवाद कर रहा था।”
“आप चाहते ह क म उसका समथन मांगूं?” चं गु त ने मासू मयत से पूछा।
“नह , मेरे वीर यो ा, नह ! अ क भाड़े के ह यारे ह। धन के बदले म वो अपने
राजनी तक वचार का वचार कए बना कसी को भी हज़ार घुड़सवार सै नक दे दे ते ह।
वो फ़ारस के लए लड़े थे और बाद म मैसीडो नयाइय के लए भी लड़े। वो ायी प से
कसी के सहयोगी नह ह। घोड़ को श ण दे ना और यु लड़ना बस उनका वसाय
है, न इससे यादा न कम।”
“अभी वो कसके लए लड़ रहे ह?”
“मैसीडो नयाइय के लए। पर ब त समय नह आ जब वो फ़ारस के साथ थे।
फर उ ह दल बदलने म कोई हच कचाहट य होगी?” चाण य ने पूछा।
“ले कन श शगु त य व ोह करेगा? जहां तक म समझता ं, वो पोरस के
व सकंदर क झेलम वजय म भी साथ था। यु समा त होने के बाद, जब पोरस को
सकंदर के सामने लाने म आंभी नाकाम रहा था, तो ऐसा करने म श शगु त ने सफलता
ा त क थी।”
“ले कन श शगु त कसके आदे श पर सकंदर के व लड़ा था?” चाण य ने
पूछा।
चं गु त त रह गया। चाण य मु कुराया और आगे बोला। “अ क भयंकर
यो ा ह ले कन वो अपने आदे श म हला से लेते ह! उनक मुख हमेशा एक रानी होती
है। वतमान रानी कल पणी नाम क एक अदभुत सुंदरी है। उसे ज़रा भी ख़तरा हो, तो
हज़ार ु अ क पलक झपकते मरने को तैयार हो जाएंगे!”
“आप चाहते ह क म उनक रानी का अपहरण कर लूं?” चं गु त ने कसी हद
तक एक सकारा मक उ र क अपे ा करते ए पूछा। वो जानता था क उसका चालाक
गु उसे मगध के सहासन पर बठाने के उ े य क पू त के लए कुछ भी कर सकता था।
“इससे भी अ धक! म चाहता ं तुम कुछ ऐसी व ा करो क उसका
मैसीडो नयाई प फ़ लपोज़ के साथ संबंध बन जाए। अ क ख़ून को इस वचार से
यादा कोई चीज़ नह खौला सकती क उनक रानी एक मैसीडो नयाई पु ष के साथ
संसग कर रही है!”
“और म कैसे इसक व ा क ं गा? उन दोन का अपहरण करके और एक ही
श वर म रखकर?” ो धत चं गु त ने पूछा।
“एक श द का उ र सुनना चाहोगे?”
“ये अ ा रहेगा।”
“कॉन लया।”

कॉन लया और चं गु त बौर पर आए अशोक, भ , चंपक और नागर के पेड़ के वृ ीय


उपवन के एक कोने म एक वशाल स सापा पेड़ क फैली ई शाखा के नीचे बछ एक
कोमल सूती चादर पर लेटे ए थे। ज़मीन पर शाखा से गरे ढे र सारे सुगं धत फूल बखरे
ए थे। चं गु त और कॉन लया पास-पास लेटे ए थे। कॉन लया के साथ हर समय रहने
वाले अंगर क को चं गु त के आद मय ने शहद ारा मीठा कया गया ठं डा ध दया
था। ताज़गी भरे ह के पेय म अ त र सनसनी के लए पसी ई भांग भी मलाई गई थी।
कुछ ही मनट म, वो एक बरगद के नीचे ढे र होकर ख़राटे भरने लगे थे।
“म तु हारी आराधना करता ं,” चं गु त उसके सुनहरी बाल म खोए-खोए भाव
से उं ग लयां फराता आ उसके कान म फुसफुसाया।
वो मु कुराई। “झूठे! तुम मेरे साथ होने क आराधना करते हो ता क तुम अपने
नटखट खेल खेल सको,” उसने डांटा।
चं गु त ने एक ण इस पर सोचा, शरारती भाव से मु कुराया और बोला,
“उसक भी!” और कॉन लया ने बनावट दं ड दे ते ए उसके गाल पर चपत लगाई।
“ य, म तु हारे बना एक ण भी रहना सहन नह कर सकती,” उसे और
नज़द क करते ए कॉन लया ने कहा। “मुझे चता सता रही है क मेरे पता को हमारे बारे
म पता चल जाएगा और वो मुझे बेबीलो नया वापस बुला लगे। म तु हारे बना कैसे
र ंगी?”
“से यूकस ब त र ह, य। इस बात क संभावना ब त कम है क उ ह अपनी
उस लाड़ली बेट के वलासी जीवन के बारे म पता चल सकेगा जसने भारत म रहने का
नणय कया था,” चं गु त ने दलासा दया।
“म तुमसे ववाह करना चाहती ं, चं गु त। मने तुमसे अ धक ेम कसी पु ष से
नह कया। य हम हर बार एक- सरे से मलने के लए ये गोपनीयता बरतनी पड़ती है?”
“तु हारे पता के सामने तु हारा हाथ मुझे स पने के अ त र कोई वक प नह
रहे—म इसे सु न त क ं गा। ले कन इसके लए मुझे मगध का राजा बनना होगा। तुम
एक राजनी तक समझौते का भाग होगी— जसक मुझे ती इ ा है, मेरी य
कॉन लया।”
“और ऐसा कैसे होगा? तु हारे सहपाठ सहारण को एक साधारण रा य के
सहासन पर बठाने के अलावा तुमने और तु हारे आचाय ने कौन सी बड़ी उपल ात
क है? स ाट बनने म तु ह कई युग लग जाएंगे और तब तक तो शायद तुम कुछ करने
यो य भी नह बचो!” कॉन लया ने छे ड़ा।
“ य। चलो यह और अभी ववाह कर लेते ह!” अचानक गंभीर हो गए चं गु त
ने उसे च कत करते ए कहा।
“कैसे? बना अ न के? बना पं डत के? बना अ त थय के?” उलझन म पड़ गई
कॉन लया ने पूछा।
“हमारे ाचीन ह ंथ म आठ कार के ववाह ह। उनम से एक— जसे
शा य ारा वैध माना गया है—गंधव ववाह है। ये एक सरल गु त समारोह होता है
जसम पु ष और म हला के अ त र कोई तीसरा उप त नह होता है। हम बस एक-
सरे को मालाएं पहनाते ह, त ा लेते ह, चुंबन करते ह, और बस। हो गया!”
“ले कन म तु हारे साथ रह नह सकती। मेरे पता हम दोन का वध कर दगे।
अगर मुझे उनक इ ा के व जाते दे खा गया तो वो ब त ु ह गे,” कॉन लया ने
तक दया।
“म मानता ं। हमारा ववाह गु त रहना चा हए। तु ह तब तक अपना जीवन
वतं बताना चा हए जब तक क हम अ धकृत प से ववा हत न हो जाएं। कम से कम
हम ये संतोष रहेगा क हम दोन मंगेतर ह,” चं गु त ने आंख म एक चमक के साथ कहा।
उसने शी ता से अपने कंधे पर पड़ा रेशमी उ रीय उतारा और उसम से दो पतली सी
प यां फाड़ ल । फर उसने घास पर पड़े फूल को उठाकर उ ह उन प य म छोट -छोट
गांठ म बांधना शु कर दया। कॉन लया ने सरी माला बनानी शु कर द । कुछ ही
मनट म, वो भ डी ले कन ेम से े रत मालाएं लए एक- सरे के गले म डालने क
ती ा कर रहे थे।
दोन एक- सरे के सामने खड़े ए। चं गु त ने अपनी माला बड़ी कोमलता से
कॉन लया के गले म डाली और उसके चेहरे को संभालते ए कहा, “मेरी यतमा, मेरी
जान। म वचन दे ता ं क म जीवन भर तु हारी आराधना क ं गा। म अपनी जान से बढ़कर
तु हारी र ा क ं गा और हमेशा तु हारा स मान और लार क ं गा। आज के बाद तुम,
ई र क नज़र म, मेरी प नी हो।” उस ण क गहनता पर आंख म आंसू लए
कॉन लया ने चं गु त के गले म माला डाली और फुसफुसाई, “मेरे प त, मेरे जीवन, मेरे
ेम। तुमसे ववाह करने से यादा मुझे कभी कसी चीज़ ने स ता नह द । म वचन दे ती
ं क म सदा तु हारे त न ावान र ंगी और हमेशा तु हारा स मान और आ ापालन
क ं गी। तुम मेरा एकमा स ा ेम हो और हमेशा रहोगे।”
चं गु त ने उसे अपनी ओर ख चा, उसे अपनी बांह म लया और उसे गहन भाव
से चूमा। वो नह जानता था क अपने आचाय का आ ापालन उसे इतना आनंद दे गा। वो
नह जानता था क कस ण आचाय के नदश समा त हो गए और कॉन लया के त
उसका यार आरंभ हो गया था।

जब प त और प नी स ासा के पेड़ के नीचे आ लगनब थे, तो कॉन लया ने पूछा,


“अब जब क हम गु त प से ववाह कर चुके ह, तो इसे अ धकृत बनाने के लए या
करना होगा?”
“चं गु त और से यूकस के बीच एक राजनी तक समझौता,” उसके प त ने उ र
दया।
“मेरे पता तु हारे साथ ऐसा समझौता य करगे?”
“अगर वो भारत म अपने ांत पर अपनी पकड़ कमज़ोर होते दे खगे। नयं ण
ा त करते जा रहे राजा का श ु बनने से बेहतर म बनना है।”
“और अपने भारतीय े पर मेरे पता का नयं ण य कमज़ोर होगा?”
“आंभी के भय, पोरस के लोभ और श शगु त के ोध के कारण।”
“आंभी का भय?”
“आंभी श शगु त और पोरस के बीच फंसा है। वो एक और यु से डरेगा।”
“और पोरस का लोभ?”
“उसके अतृ य अहंकार को बढ़ाए जाने क आव यकता है। मगध के सहासन के
लए उसक भूख उसके पतन का कारण बनेगी।”
“और श शगु त का ोध।”
“अपने व ासघात पर।”
“ कसके ारा व ासघात?”
“तु हारे पता ारा नयु मैसीडो नयाई ांतपाल फ़ लपोज़ ारा।”
“ले कन फ़ लपोज़ ने तो उसके साथ व ासघात नह कया है।”
“करेगा।”
“ य ?”
“अगर फ़ लपोज़ को अ क रानी कल पणी से ेम हो जाए, तो श शगु त के
नेतृ व म अ क व ोह कर दगे। वो इसे परम व ासघात मानगे।”
“ले कन मेरे य चं गु त, कसी को कसी से यार कैसे कराया जा सकता है?
यार तो हो जाता है। इसे थोपा नह जा सकता।”
“ले कन दो लोग क मुलाक़ात करवा के इसका आरंभ कराया जा सकता है। मने
सुना है क फ़ लपोज़ क आंख चंचल है। उनक मुलाक़ात कराओ और बाक़ नय त पर
छोड़ दो!”
“तुम मुझे इस योजना म डालना चाहते हो?”
“हाह! तुमने ठ क कहा। म तु हारा इ तेमाल कर रहा ं। ले कन म चाहता ं क
तुम उनके मलने म मदद करो, कॉन लया। तुम समाज म हर कसी को जानती हो।
फ़ लपोज़ के पास जाओ और कल पणी को एक म के प म ले जाओ। सुना है क वो
सुंदर है,” चं गु त ने कहा।
“मेरा वचार है क हमने अभी सौगंध ली है क हम एक- सरे के त सम पत
रहगे,” अपने प त ारा एक अ य ी को सुंदर बताए जाने पर थोड़ा सा चढ़ते ए उसने
वनोद कया।
“इसी लए बेहतर होगा क तुम उसे कसी और से जोड़ दो ता क वो मेरे लए
अनुपल हो जाए,” चं गु त ने कहा।

“तुरंत नकल जाओ! मुझे अपना जीवन तु ह श त करने म कभी नह बताना चा हए


था—तुम एक अकृत हो!” चौड़ी सी मु कान लए चाण य चं गु त पर च लाया।
“आपने मुझे अ ा श ण दया है, हे गु । वा तव म, अब मेरा श ण बस
एक काम के लए योग म आएगा—आपका पतन लाने के लए!” नह हंसने का पूरा
यास करते ए जवाब म चं गु त च लाया।
“तु हारी ह मत कैसे ई मुझसे इस तरह बात करने क ? म तु हारा गु ं। मुझे
ु होने का पूरा अ धकार है। सहारण तु हारे भाई क तरह रहा है और तुमने मलयरा य
के सहासन पर उसके अ धकार को चुनौती दे ने का साहस कया?” चाण य ने चं गु त को
पलटकर उ र दे ते ए संकेत दया क वो उसके सामने पूव नयो जत कथानक पर टका
रहे।
“आपने मुझे वचन दया था क राजा म बनूंगा। इसके बजाय आप पोरस और
सहारण के बीच समझौता करवाने म लगे ह। आपको शम आनी चा हए, आचाय! म सोच
भी नह सकता था क आप इतना गर जाएंगे। या आपके गरने क कोई सीमा नह है?
आप अपने ही श य के साथ छल करके सहासन घमंडी पोरस को दे दगे? लानत है आप
पर, मेरे वामी। ध कार है आपको!” अपने गु ारा तैयार कए गए संवाद पर चलने का
यास करते ए चं गु त दहाड़ा।
“तुम तुरंत यहां से चले जाओ। यहां तु हारा कोई ान नह है। मगध का स ाट
बनने के सपने भूल जाओ। तुम अयो य, अ ानी, अस य और अकृत हो। नकल
जाओ!” चं गु त को कमरे से नकल जाने का संकेत करते ए चाण य चीख़ा।
लोग दे खते रह गए और चं गु त तेज़ी से अपने गु के कमरे से नकल गया।
अपने सै नक नेता को पैर पटकते जाता और साम रक नेता को एक कोने म ठा दे खकर
लोग सोचने लगे क एक आशाजनक भागीदारी का अंत हो गया।
कुछ ही मनट म, चाण य के श वर से एक नवयुवक पोरस के गु तचर मुख
अभय से मलने के लए चल पड़ा। ये च काने वाला समाचार था। इतनी बड़ी ख़बर सुनाने
के लए उसे अ ा पैसा मलेगा। ले कन वो ये नह समझ पाया था क आचाय ने चं गु त
को अपने साथ अपने सारे कराए के सै नक के ज े को य ले जाने दया था।

“हे महान राजा, चाण य आपसे सहायता मांगने आया है,” तेज वी और श पोरस ारा
तुत कए गए आसन को हण करते ए कु प ा ण ने कहा। इं द चाण य के
पास बैठ गया।
“आचाय, मने आपक तीखी बु म ा, आपके व तृत ान, न कष क
भ व यवाणी करने के आपके अदभुत कौशल और आपके असीम न य क अदभुत
कहा नयां सुनी ह। ले कन या आप यहां केवल इस लए नह आए ह क आपका चं गु त
के साथ मतभेद हो गया है?” इतनी मह वपूण जानकारी होने के कारण ख़ुद को महत
समझते ए पोरस ने पूछा।
चाण य अपने चेहरे पर े तम नराशापूण भाव लाया और बोला, “आपसे कुछ
छपा नह रह सकता, हे श शाली पोरस। आपके आंख और कान हर जगह मौजूद ह।
हां, ये स य है क मेरा चं गु त के साथ कुछ मतभेद हो गया है। ले कन म यहां चं गु त के
साथ मतभेद के कारण नह आया ;ं ब क मेरा उससे मतभेद इसी लए आ क म
आपसे मलना चाहता था।”
पोरस ने गंभीर भाव से सर हलाया। उसे व ास था क चाण य उसे सच बता
रहा है। अभय ने बताया था क आचाय और उनके मु य श य के बीच ववाद का कारण
यही था क आचाय चं गु त के बजाय उसे—महान पोरस को—मगध के सहासन पर
बठाना चाहते थे।
“म आप पर य व ास क ं , आचाय? आपके कुच के कारण मेरे सहयोगी
मलयराज को उनके भतीजे ारा सहासन युत होना पड़ा,” एक व ोटक उ र पाने क
आशा म पोरस ने क चा।
“हां, अजेय राजा। मने सहारण के लए वो वापस लया जो अ धकृत प से
उसका था। मेरे ान पर आप होते, तो आप भी यही करते। कतु आपके इस के उ र
के लए क आप मुझ पर य व ास कर, कृपया बाहर ती ा कर रहे आगंतुक को
भीतर बुलवाएं,” चाण य ने कहा।
इं द ने अदली से कहा क वो आचाय के अ त थ को अंदर लाए। कुछ ही ण
म अदली रेशमी व , ब मू य र न और राजसी गौरव के अ य सभी ृंगार से सुस त
एक नवयुवक को लेकर अंदर आया। ये मलयरा य का नया अ भ ष राजा था—
सहारण। वो पोरस के नकट गया, उसके आगे नमन कया और बोला, “हे भ स ाट,
मेरा आपसे कोई वैर नह है। मलयरा य आपका नरंतर सहयोगी था और रहेगा। मेरा
ववाद मेरे चाचा के साथ था ज ह ने छल-कपट ारा सहासन ह थया लया था। उस
वषय का समाधान हो चुका है। कृपया मुझे आशीवाद द, महान राजा।”
पोरस उदासीन और तट भाव बनाने का पूरा यास कर रहा था, ले कन
चाण य जानता था क वो राजा के अहंकार को तु करने म सफल रहा है। अगर पोरस
मोर होता, तो उसके पंख पूरी तरह फूल चुके होते! बना दखावे वाले शासक क तुलना म
अहंकारी और दं भी शासक को संभालना कह अ धक सरल था। “उठ, सहारण। आएं
और मेरे नकट बैठ,” इस सबसे पूरी तरह भा वत पोरस ने कहा।
“आपके मन म या है, आचाय?” सहारण के बैठने के बाद पोरस ने पूछा।
“दो लाख पैदल सेना, अ सी हज़ार घुड़सवार सेना, आठ हज़ार रथ और छह
हज़ार हा थय के साथ मगध अभी भी संसार क सबसे बड़ी सै य श है। महान पोरस
और उनके सहयो गय — सहारण स हत—क संयु श भी मगध को झुकाने के लए
अपया त होगी। अगर तेज वी पवते र को मगध के सहासन पर अ धकार करना है, तो
हम आपक श और मेरी चतुरता क आव यकता होगी,” चाण य ने कहा।
“मुझे चतुरता क कोई आव यकता नह है,” अहंकारी पोरस ने टोका।
“ सकंदर के सामने आपक श कस काम आई?” चाण य ने सौ य भाव से
याद दलाया। “मेरी सलाह मान ल, पवत के महान वजेता, तो आप न त प से मगध
के स ाट बन जाएंगे।”
“और चं गु त?”
“मुझे ऐसे श य क आव यकता नह है जो अपने गु का स मान नह करते
ह। वो जो कुछ भी जानता है मने उसे सखाया है और वो इस कार मेरा आभार कर
रहा है? नक म जले वो!”
“ठ क है, आचाय, म आपके उ े य के त तब ता कट करता ं। हम या
तो मगध को जीतगे या फर इस यास म वग ा त करगे!” पोरस ने भ भाव से
घोषणा क ।
“हर कोई वग जाना चाहता है, कतु मरना कोई नह चाहता,” चाण य ने सरल
भाव से कहा।

“नक म जले वो!” समाचार क पु होते ही श शगु त च लाया। वो वात घाट के म य म


पीरसर म अपने क़ले के महाक म बैठा था। उसने क़ला जीतने म सकंदर क सहायता
क थी और मैसीडो नयाई ने उसे ये बदला दया था? समाचार आया था क उनक
रानी कल पणी ने भारत म सकंदर के प फ़ लपोज़ के साथ रहने का नणय कया था।
कुछ स ताह पूव उसे जासूस ारा उनके उ कट ेम- संग क सूचना द गई थी ले कन
उसने इसे कल पणी क यौन अतृ त का एक दौर समझा था। ले कन फ़ लपोज़ के साथ
उसका रहना एक ब कुल ही भ बात थी।
उसने चांद क मेज़ के उस ओर अपने नए म और साथी चं गु त को दे खा और
उन दोन ने अपने पा से मैरेय के घूंट लए। श शाली पेय ने श शगु त क वाणी को
भा वत करना आरंभ कर दया था और उसके श द लड़खड़ाने लगे थे।
“अ—आ—आपको पता है, च—चं गु त, क आ—आपका और मेरा नाम
वा तव म एक ही है? श—श श का अ—अ—अ—अथ होता है च—च—चांद, और
ययय—यही—अथ च—चं का होता है। हम भ—भ—भाई ह!” श शगु त ने म दरापा
चांद क मेज़ पर इतनी ज़ोर से पटकते ए कहा क म दरा मेज़ पर छलक पड़ी। चं गु त,
जसने बस कुछ चु कयां ही ली थ , पूरी तरह सचेत था। व ोह क आग भड़काने का ये
सुनहरा अवसर था।
पीरसर का भ पुराना क़ला समृ ले कन वषाद त था। वो एक भयानक
जाड़े क ॠतु थी जब सकंदर ने पीरसर पर क़ ज़ा करने का नणय कया था।
मैसीडो नया म अपने बचपन म सकंदर ने अपने महान पूवज हैरे लीज़ के बारे म सुना था
क वो पीरसर के क़ले तक प ंच तो गया था ले कन क़ले पर क़ ज़ा नह कर पाया था।
सकंदर ने न य कया था क वो हैरे लीज़ को पीछे छोड़कर ऐ तहा सक कवदं ती बन
जाएगा। इसके अ त र पीरसर को अधीन करने से उसके आपू त ोत को ख़तरा ख़ म
हो जाएगा जो ह कुश होते ए ब ख़ तक फैले ए थे। पीरसर का क़ला पंजाब के अटक
े के उ र म ऊपरी सधु के एक मोड़ म संकरे दर के ऊपर एक पवत- कंध पर त
था। पहाड़ पर एक समतल चोट थी जसक सचाई ाकृ तक झरन से होती थी और ये
न त प से पया त फ़सल उगाने लायक़ व तृत था। पीरसर को भूखा रखकर अधीन
नह कया जा सकता था।
श शगु त के समथन के बना सकंदर इस पर कभी क़ ज़ा नह कर पाता। उसके
सुझाव पर, सकंदर ने एक नकटवत पवत- कंध को मज़बूत कया था। इसे आधार
बनाकर, सकंदर ने अपने आद मय से क़ले के उ री भाग के साथ लगी घाट पर पुल
बनाने को कहा—जो क क़ले का सबसे कमज़ोर प था, जैसा क श शगु त ने बताया
था। तीन दन के घमासान यु के बाद, जसम क़ले के अंदर से सै नक ारा
मैसीडो नयाई सेना पर वशाल प र फकना भी शा मल था, सकंदर और श शगु त
अंतत: अं तम च ान तक प ंचने म सफल रहे जब क शेष मैसीडो नयाई सेना ने भगोड़
का क़ लेआम शु कर दया। सकंदर ने एथेना और नाइक के नाम के वजय तूप खड़े
कए और पोरस से यु के लए आगे बढ़ गया।
पीरसर उसक सफलता के लए मह वपूण रहा था य क इसने उसक अजेयता
क साख ा पत कर द थी। आगे बढ़कर भारत म उसक अ य वजय म अ सर उसके
अमर व और ढ़ता क ये साख उसके आगे-आगे चलती थी।
श शगु त हकलाया “मने ये स्—स्—साला क़ला और श—श—शेष भारत
मैसीडो नयाइय को थ—थाल म सजाकर दया और वो क—क— कमीने अ क क
रानी को च—च—चोदकर मुझे ब—बदला दे रहे ह?” अ क क रानी एक जी वत दे वी
थी जससे भयंकर क़बायली लड़ाके ेरणा और मागदशन लेते थे। श शगु त उनका
सेनानायक था, ले कन उनक श क ोत कल पणी थी।
बु मान लोग वो सब कुछ सोचते ह जो वो कहते ह, मूख लोग वो सब कुछ कह
दे ते ह जो वो सोचते ह। चं गु त को चाण य के श द अपने कान म गूंजते महसूस ए।
चं गु त ने अपने श द को सावधानीपूवक परखा और थोड़े सोच- वचार के बाद बोला।
“श शगु त, आप मेरे म ह। मेरे पास एक योजना है, य द आपको इसम च हो।”

काबुल नद के कनारे खुर रे पहाड़ म रहने वाले भयंकर, वतं , श शाली और


लोचदार अफ़ग़ान को उनका नाम वहां रहने वाले उनके पूवज —अ क —से मला था।
वो भारतीय-आय थे जो घोड़ — ज ह सं कृत म अ कहा जाता है—के जनन और
श ण के वशेष थे। यु म उनक श और घुड़सवारी के उनके कौशल क मांग—
फ़ारस, यूनान और भारत—हर ओर थी। श शगु त उनका नायक था। आरंभ म फ़ारस के
मोच पर दा रयूश के साथ लड़ने के बाद प बदलकर उसने भारत म सकंदर के अ भयान
का पथ ही बदल डाला था।
श शगु त एक खुर रे प से सुंदर आदमी था। लंबे क़द, मांसल शरीर और मृदंग
जैसे कसे ए पेट वाले श शगु त क वचा बेहद गोरी और आंख हरी थ । उसके लंबे
बादामी सुनहरी बाल रेशमी धाग म लपटे ए थे और वो उसके सर के सामने के भाग म
एक शंख जैसी जूड़ी म बंधे ए थे। उसक घनी दाढ़ और यो ा जैसी मूंछ उसे एक
सै नक का प दे ती थ । मा णक से सुस त उसक ऊंची पगड़ी गहरे नीले रंग क थी
और उसक जूड़ी को ढके ए थी। उसके ढ ले-ढाले ऊनी लबास का रंग भी उसी से मेल
खाता था। उसके गले म मो तय क मालाएं थ । वो कमर पर एक गहरे लाल रंग क पेट
पहने था जसम हीरे के ह े वाली तलवार उड़सी ई थी। वो वाक़ई पु ष स दय का
जीता-जागता उदाहरण था।
उसका पु ष व उसके पूवज क भट थी ज ह ने अ मेध य नाम के एक वशेष
अनु ान क ापना क थी। राजा ारा एक श शाली घोड़े क पूजा क जाती और फर
उसे व भ े म सरपट दौड़ने के लए वतं छोड़ दया जाता जब क राजा क सेना
नज़द क रहकर उसका पीछा करती रहती। जन े म वो घोड़ा जाता, उनके मुख को
या तो घोड़े के आगे झुकना होता या उससे लड़ना होता। हार जाने पर, उ ह उसका
आ धप य वीकार करना होता।
जब सकंदर ने पहली बार श शगु त और उसके जुझा यो ा को झुकाने का
यास कया, तो उसे अहसास आ क आ ख़रकार उसे अपना जोड़ मल गया है। अपनी
मां को लखी एक च म सकंदर ने लखा, “म एक शेर जैसे वीर लोग के इलाक़े म ,ं
जहां एक-एक इंच ज़मीन फ़ौलाद द वार क तरह मेरे सै नक का सामना कर रही है।
आप संसार म एक ही सकंदर लाई ह, ले कन इस े के एक-एक आदमी को सकंदर
कहा जा सकता है।” सकंदर ने इसी को समझदारी माना था क वो श शगु त और उसके
अद य सा थय से लड़ने के बजाय उ ह अपना बना ले। उसका नणय ग़लत नह स
आ था। श शगु त ने न केवल पीरसर जीतने म उसक सहायता क , ब क एक मू य के
बदले उसे हज़ार घुड़सवार भी दए।
“आपके हज़ार घुड़सवार फ़ लपोज़ के मातहत काम कर रहे ह। उनसे व ोह
करवा द जए। उनसे क हए क वो ऐसे वामी क सेवा न कर जो उनक दे वी को अप व
कर रहा है,” चं गु त ने सुझाव दया। ये वचार चाण य का था, ले कन चं गु त इसे अपने
वचार के प म तुत करके ख़ुश था।
“ले कन फ़ लपोज़ अनुशासन ा पत करने के लए ाणदं ड का आदे श दे
सकता है,” श शगु त ने यु र दया।
“यही तो हम चाहते ह,” चं गु त ने अपने नए म को मु कुराकर दे खते ए
कहा।

फ़ लपोज़ का क़लेबंद सै नक श वर इस पहर शांत था। उठे ए वशाल आयताकार


अहाते के चार गेट रात के लए बंद थे। तीन मीटर चौड़ी और दो मीटर गहरी खाई ारा
र त श वर क प र ध तीखे लकड़ी के खूंट से बनी एक ब त ऊंची मोचाबंद थी। बाड़
के चार ओर अनेक जगह पर संतरी खड़े ए थे जब क उनके अ धकारी घूम-घूमकर जांच
कर रहे थे क कह संतरी ऊंघ तो नह रहे ह।
दो छोट द वार म से एक के बीच म मु य ार से श वर क अठारह मीटर चौड़ी
मु य सड़क नकलती थी, जो श वर को दो लंबे आयताकार भाग म वभा जत करती
थी। इस माग के न बे ड ी पर पं ह मीटर चौड़ी एक गौण सड़क थी जो श वर को चार
भाग म बांट दे ती थी। श वर के बीच म इन दो रा त के कटाव पर सबसे बड़ा तंबू था—
सेनानायक फ़ लपोज़ का। फ़ लपोज़ के तंबू के नकट उसके नकटतम मातहत के तंबू
थे। उनके परे भत सै नक क क़तार दर क़तार बैरक थ , दो सौ बीस जवान त एकड़।
फ़ लपोज़ के तंबू का ार वेश प ल के दोन ओर ज़मीन म धंसी दो वशाल
मशाल से जगमगा रहा था। बलूत के बांस पर लोहे के नुक ले शर वाले भाले लए दो
भावहीन यवन संतरी मु तैद से तंबू पर पहरा दे रहे थे। उनके चेहर पर अंदर से आने वाली
आवाज़ क कोई त या नह हो रही थी जहां फ़ लपोज़ अपनी नई जीत, अ क रानी
कल पणी के साथ चंड संभोग म त था।
वफ़ादार मैसीडो नयाई पहरेदार को र कह से एक ह क धमधम क सी
आवाज़ आ रही थी जो हर कुछ मनट पर बढ़ जाती थी। हालां क उ ह र से आ रहे इस
शोर के त ज ासा हो रही थी, ले कन उनका श ण उ ह अपने नयु ान से
हलने क अनुम त नह दे रहा था। हर कुछ मनट पर उनका यान तंबू के अंदर से आ रही
आह और श वर के अ य तज से आ रही धमधमाहट के बीच बंट जाता था।
फ़ लपोज़ के पहरेदार, जो एकमा प मी ार पर तैनात थे, तब तक ये नह
समझ सके क उनके वामी के तंबू म आग लग गई है जब तक क वाला ने उनके गले के
बाल को नह झुलसा दया। वो अंदर से आने वाली च क ई चीख़ क ओर यान दे ने को
मुड़े ले कन तभी पीठ म लगी तीर क बौछार के कारण पीछे को गर पड़े। न न और
भयभीत फ़ लपोज़ और उसके पीछे उतनी ही न न कल पणी बाहर को भागी, तो वहां
जमा हो चुके अ क घुड़सवार ने मैसीडो नयाई प को घेरकर पकड़ा, उसके हाथ पीछे
बांधे और उसक आंख पर प बांध द । इसी बीच, कुछ अ य घुड़सवार ने कल पणी क
लाज को छपाने के लए उस पर एक कंबल डाला और उसे एक घुड़सवार क बांह म
उछाल दया जो तुरंत ही श वर के नकास ार क ओर सरपट दौड़ गया।
“रंडी क घनौनी संतान!” सै नक फ़ लपोज़ पर ोध से च लाए। “तुझे लगता
था क तू हमारी रानी को रगड़कर और हमारे सा थय को ाणदं ड दे कर बच जाएगा? तू
इसके लए मरेगा!” फ़ लपोज़ उतावलेपन से उन र सय से हाथ छु ड़ाने का यास करने
लगा जो उसके हाथ को काट रही थ । उसने समझाने क को शश क क कल पणी के
साथ उसका संबंध पार रक ेम का था, पर भयंकर अ क यो ा बला कार और संभोग
के बीच सू म भेद पर भाषण सुनने को तैयार नह थे। फ़ लपोज़ पर श शगु त के भयानक
सै नक के आ मण का समाचार मैसीडो नयाई सै नक म जंगल क आग क तरह फैल
गया। वो अपने सेनानायक क र ा के लए आगे बढ़े मगर ु क़बाय लय का मुक़ाबला
नह कर सके। एक मैसीडो नयाई सेना य फ़ लपोज़ के चार ओर अ क के घेरे को
तोड़ने म सफल हो गया। वो फ़ लपोज़ को मु कराने के लए आगे बढ़ा, उसने अपनी
बांह से सेनानायक को घेरा और फ़ लपोज़ के हाथ म बंधी र सय को उसने अंधाधुंध
काटना आरंभ कर दया। इससे पहले क वो फ़ लपोज़ को मु करा पाता, उसने प
के चेहरे पर ख़ून थूक दया य क पीछे से आए एक भाले ने ू रतापूवक उसके फेफड़
को बेध डाला था।
श वर घोड़ क टाप क आवाज़ से गूंज रहा था जब क अ क घुड़सवार मु य
सड़क से होते ए तंबु पर घास के जलते गु े फक रहे थे। कई आवास जल चुके थे
और घबराए मैसीडो नयाई सै नक भागकर बाहर नकलते तो उ ह नृशंस प से काट
डाला जाता।
कुछ गज़ र, एक छोट सी पहाड़ी पर खड़ा घुड़सवार का एक ज ा
मैसीडो नयाई श वर क लपट को दे ख रहा था और काटे जा रहे आद मय क चीख़ सुन
रहा था। एक मांसल सुरमई कंबोजी अ पर सवार श शगु त ने एक ेत और मांसल
स दय से भरपूर उ ै वा अ पर सवार चं गु त को दे खा। “मुझे व ास नह है क हमने
सही काम कया है, चं गु त,” श शगु त ने वचारपूण भाव से दाढ़ सहलाते ए कहा। “ये
ह थयार उठाने क अ क परंपरा नह है। ये स मानर हत र पात है।”
“मेरे य म श शगु त, आपका स मान तब कहां था जब आप दा रयूश के लए
लड़े थे? आपका स मान तब कहां था जब आपने वयं को सकंदर के हाथ बेच दया था?
स य का सामना कर—अ क शौय स मान से अ धक ावसा यक हत के लए रहा है।
अब जो कुछ हो रहा है, वो शायद सबसे स मानजनक काय है जो आपने कभी कया है—
अपनी तलवार एक वदे शी आ मणकारी के व उठाना और अपनी रानी के स मान
क र ा करना,” चं गु त ने वो सब याद करते ए कहा जो मन म ऐसे कसी अं तम ण
के बदलाव क तैयारी के लए चाण य ने उसे बताया था।
चं गु त ने अपने वशेष तीरंदाज़ को संकेत दया जसका धातुई तीर पछले
कुछ मनट से नरंतर फ़ लपोज़ क ओर तना आ था। चं गु त क ओर से संकेत मलते
ही,उसने अपनी कसी ई सन क यंचा को ख चा जो उसके वशाल ब परतीय बांस के
धनुष को आकार म रखती थी, सु न त कया क नशाना ण भर को र हो और
अपने पंखदार अ को छोड़ दया। वो चं गु त, अन गनत पेड़ , श वर क प र ध,
मैसीडो नयाई सै नक और अ क घुड़सवार के पास से तेज़ी से गुज़रता आ अपने ल य
से जा मला। तीखी नोक ने अपने शकार क वचा को फाड़ा और र उबाल दया। और
भी र पपासु तीर और भी अंदर धंसता आ धड़कते दल या फुदकते फेफड़े म जा
टका। छाती म लगे तीर का घाव उसके फेफड़ को फाड़ने म सफल रहा और उसने उ ह
उ ह के र रस क बाढ़ म डु बो दया। चूं क उसका दल धड़कता रहा, इस लए ख़ून
उसक ासन लका के रा ते उसके मुंह और नाक से उबलने लगा। उसक आंख पलट
और वो ये इ ा करते ए पीछे को गरा क उसका जीवन शी ही समा त हो जाए—और
ऐसा ही आ। फ़ लपोज़ मर चुका था।
अ याय चौदह
वतमान समय

मेनन सवेरे का अख़बार इकरामभाई को पढ़कर सुना रहा था। मेजर बेद छह महीने के
नरंतर चुनाव चार के बाद शांत दख रहा था और गंगासागर के ल वग म म बैठा चाय
पी रहा था।
“लोकसभा म कामचलाऊ ब मत के साथ, वजयी गठबंधन के अ य मंगलवार
शाम चार बजे भारत के रा प त से भट करके नई सरकार के गठन के लए अपना दावा
पेश करगे। गठबंधन के सहयो गय ारा एक बैठक म ये फ़ैसला एकमत से लया गया।
अ य का नाम स ा ढ़ दल ारा ता वत कया गया और स ा ढ़ दल के सबसे बड़े
सहयोगी साझेदार म से एक, एबीएनएस, के अ य पं डत गंगासागर म ारा इसका
अनुमोदन कया गया।”
“हाह! सबसे बड़ा , न क सबसे बड़े म से एक !” इकराम बोला और मेजर बेद
मु कुराने लगा। कोई फ़ॉमूला न होने का उसका फ़ॉमूला कारगर रहा था। उसने मेनन से
अख़बार लया और आगे पढ़ने लगा। “सबसे अ धक दो सौ सीट जीतने वाले स ा ढ़ दल
के बाद एबीएनएस गठबंधन का सबसे बड़ा घटक दल है, जसके पास उ र दे श से पसठ
एमपी ह। गठबंधन को कई छोट पा टय से समथन क च यां मली ह और अब उसके
पास लगभग तीन सौ सांसद का समथन है जो लोकसभा म आम ब मत के दो सौ बह र
के आंकड़े से कह अ धक है। गठबंधन के अ य ारा रा प त को एक च स पी
जाएगी जसम संसद म स ा ढ़ दल के त न धमंडल के नेता के प म धानमं ी—
भूतपूव र ा मं ी—के पुन: चुनाव के बारे म त सील दज होगी। ये भी आशा है क वो
अपनी पाट को गठबंधन के सहयो गय ारा मली समथन क च यां भी तुत करगे।
संभावना है क रा प त अगली सरकार बनाने के लए गठबंधन को नमं ण दगे। माना जा
रहा है क शपथ हण समारोह शु वार को रा प त भवन म होगा।”
“ये अ ा है क इस सरकार को समथन दे रहे सांसद क तादाद तीन सौ है,”
इकराम ने कहा।
“ य ? य क इस तरह वो आधे से अठाईस यादा हो गए ह?” मेनन ने पूछा।
“नह , य क इस तरह एबीएनएस ारा समथन वापस ले लए जाने पर वो आधे
से सतीस कम रह जाएंग!े ” इकराम ने मज़े से पान चबाते ए कहा, जब क बेद हंसने
लगा।

वो पहली पं म—सोमानी के वजयी धानमं ी के नज़द क—बैठा आ रा प त भवन


म आकार लेते य को दे ख रहा था। रा प त उसे पद क शपथ दला रहे थे। वो कह रही
थी, “म, चांदनी गु ता, ई र को सा ी मानकर शपथ लेती ं क म व ध ारा ा पत
भारत के सं वधान के त स ी आ ा और न ा वहन क ं गी, क म भारत क सं भुता
एवं अखंडता को बनाए रखूंगी, क ईमानदारी और धमपूवक म कै बनेट मं ी के प म
अपने कत का नवहन क ं गी और क कसी डर या प पात के, नेह या े ष के बना
सं वधान और व ध के अनु प सभी लोग के साथ याय क ं गी।”
दे श से उसके क य राजनी त म चले जाने से उ र दे श म एक शू य पैदा हो
गया था। अ वालजी ने पूछा था, “हम मु यमं ी कसे बनाएंगे? मुझे व ास है क इकराम
को अभी भी उ मीद होगी क तुम उसे ये पद दोगे।”
गंगासागर ने उ र दया था, “इकराम जानता है क म एबीएनएस के लए गृह
वभाग लेने का सोच रहा ं— वशेषकर उसके लए। मने उससे कहा है क वो कुछ समय
शांत रहे। वो उ र दे श के मु यमं ी के लए एबीएनएस से कसी और के नाम को
वीकार कर लेगा।”
“तो हम दे श सरकार क शेष अव ध के लए कसे मु यमं ी नयु करगे?”
अ वालजी ने पूछा।
“राम शंकर वेद को,” गंगासागर ने जवाब दया।
“पर ये तो एकदम अनगल होगा! उसी कपट ने चांदनी के व पाट म
व ोह कराया था। उस पर भरोसा नह कया जा सकता!”
“इसके वपरीत, अ वालजी। म उस पर पूरा भरोसा करता ं।”
“ य ?”
“ य क मेरे पास अभी भी उसे लौटाने के लए बीस त वीर ह,” गंगासागर हंसा।

“गंगासागरजी, या सोच रहे ह?” भूतपूव र ा मं ी—वतमान धानमं ी— धीरे से


फुसफुसाया। गंगासागर ने महसूस कया क उसका दमाग़ थोड़ा भटक गया था। “म सोच
रहा ं क या ं टा छपा आ है। म हमारे पर र म सोमानी को दशक म दे ख रहा
ं। आपने समारोह के लए ं टा को आमं त नह कया?” उसने धानमं ी से पूछा।
“ कया तो था, ले कन शायद वो त होगा।”
“ कस चीज़ म?”
“र सी क सीढ़ से उतारने के लए कसी और मं ी क तलाश म। अगर सोमानी
मुझसे ऐसा करा सकता है, तो ं टा भी कसी को ढूं ढ़ सकता है,” धानमं ी ने उस वृ
क ओर दे खते ए कहा जो सया चन म चॉपर क सीढ़ से उसके उतरने का कारण रहा
था। गंगासागर ज़ोर से हंसा। सारे लोग पलटकर दे खने लगे। उसने परवाह नह क । वो
थोड़ा और हंसा।

“कमीना चार मुख मं ी पद— व , वदे श, र ा और गृह—छोड़ने को तैयार नह है। वो


कहता है क स ा ढ़ गठबंधन का व र साथी धानमं ी पद के साथ हमेशा ये चार पद
अपने पास रखता है। या वो नह जानता क अगर एबीएनएस का समथन नह होता तो
वो स ा म नह होता? ये है सोमानी के आदमी को धानमं ी बनाने का नतीजा!” कुस से
उठकर कमरे म टहलते ए गंगासागर ने शकायत क ।
“आप या चाहते ह?” इकराम ने पूछा।
“म चाहता ं क चांदनी वदे श मं ी बने। वै क अनुभव उसे रा ीय और
अंतररा ीय दोन पहचान दे गा,” गंगासागर ने कहा।
“ऐसा आप सफ़ एक तरह कर सकते ह। वदे श मं ालय म कोई संकट पैदा कर
द जए। ऐसा संकट क वदे श मं ी इ तीफ़ा दे ने को मजबूर हो जाए,” इकराम ने सुझाया।
“ये संभव नह लगता। वदे श मं ी पुराना खलाड़ी है—और ब त सावधान है। वो
ये दे खे बना खांसता तक नह है क कह कोई सुन तो नह रहा। और फर, वो प का
ईमानदार है। ईमानदारी बड़ा भयानक गुण है—ईमानदार लोग से काम लेना बड़ा मु कल
होता है,” ग़ से म बौखलाए गंगासागर ने कहा। वो फर से बैठ गया और कुस के ह पर
उं ग लय से ताल दे ने लगा।
“एक तरीक़ा और है,” वो एक ण बाद बोला। “कभी-कभी गोल मारने के लए
गद को गोलपो ट से र फकना पड़ता है। अगर व मं ी अचानक इ तीफ़ा दे दे तो
वतमान वदे श मं ी एकमा है जो सही मायन म व वभाग को संभाल सकेगा।”
“और व मं ी य इ तीफ़ा दे गा?” इकराम ने पूछा।
“आह! वदे श मं ी के उलट वो ब त ईमानदार नह है। लगता है क जहां हमारे
म सोमानी ने धानमं ी पद के लए भूतपूव र ा मं ी के यास का समथन कया था,
वह ं टा ने व मं ी का साथ दया था। वतमान धानमं ी व मं ी से चढ़ता है और
उसे मं मंडल से हटाने म उसे ख़ुशी होगी। हम तो बस उसे इसका अवसर दे ना है।
इकराम, अपने बेहतरीन लड़क को काम पर लगा दो—समझदारी से। व मं ी के साथ
गड़बड़ करने म ब त ख़तरा है। उसे पता चल गया तो वो हम मगरम को खला दे गा!”

शेष मं ी पद क नयु भी र साकशी से कम नह थी। गंगासागर ने एबीएनएस के लए


दस पद क मांग क थी। उसने चांदनी के लए वदे श मं ी पद चाहा था ले कन फर
अगली व ा होने तक वो उसे बना वभाग क मं ी बनाने पर राज़ी हो गया था। इस
बीच, उसने वा ण य, रसंचार, पे ो लयम और कृ ष के लए कै बनेट पद मांगे थे जब क
अ य पांच एबीएनएस सांसद के लए जनके नाम सामने लाए जा रहे थे उनके लए वो
रा यमं ी पद के लए भी तैयार था।
मेनन ने उससे कहा था, “आप अपने मं य क आधी सं या को रा यमं ी बनाने
पर य सहमत ह? आपको दस कै बनेट पद के लए बल दे ना चा हए।”
“म मह वपूण पद के लए बातचीत करना पसंद क ं गा। पांच पर राज़ी होकर
अब म इस त म ं क अपने लोग को अ य श शाली पद दलाने के लए बात कर
सकूं—यानी सफ़ कै बनेट म ही नह ,” गंगासागर ने कहा।
“जैस?े ”
“इंटेलीजस यूरो का नदे शक पद; रज़व बक अ◌ॉफ़ इं डया का गवनर पद; और
स ल बोड अ◌ॉफ़ डाइरे ट टै सेज़ म चेयरमैन का पद। हमारे ब त से भूतपूव छा नेता
अब नौकरशाही म काफ़ व र ह— इलाहाबाद व व ालय का बृजमोहन राय, अलीगढ़
मु लम व व ालय का इक़बाल आज़मी, बनारस ह व व ालय का गरीश
बाजपेयी... ले कन इससे भी मह वपूण ये क म चांदनी के लए वदे श मं ालय का
दरवाज़ा खुला छोड़ना चाहता ं।”
“और आप वशेष प से वा ण य, रसंचार, पे ो लयम और कृ ष के ही कै बनेट
पद पाने के इ ु क य ह?”
“ य क हमारे कै बनेट मं ी अगले दो स ताह अपने वभाग म कए गए सारे
सौद को सूंघने म लगाएंगे ता क मुझे व मं ी के व इ तेमाल करने के लए ह थयार
मल सक!”
गंगासागर और चांदनी वा ण य वभाग के मु यालय उ ोग भवन म थे। अब एबीएनएस
का एक आदमी कै बनेट मं ी के प म इस वभाग का मुख था।
“ ाइवेट कंप नय को ब त कम दाम पर ेशल इकोनॉ मक ज़ोन के लए
ज़मीन उपल करवाई गई,” वा ण य मं ी ने कहा।
“तो या आ?” गंगासागर ने पूछा, “ये तो सरकारी नी त के अनुसार था ना?”
“हां। मा ा मक प से, पर गुणा मक प से नह ।”
“म समझी नह ,” चांदनी ने कहा।
“अ ध हण क गई और ब र को द गई ज़मीन क मा ा नी त के अनुसार
थी।”
“ले कन?” ज ासा भरे गंगासागर ने पूछा।
“सेज़ नी त इस लए लाई गई थी क शु क बंजर भू म का वकास हो सके। माना
जा रहा था क प रवहन से जुड़ाव, बजली के संयं , वाटर स लाई व ा, और इसके
साथ संक त औ ो गक व ापा रक क क ापना ज़मीन क क़ मत बढ़ा दे गी।
इसके बजाय, वा ण य मं ालय ने बना वा त वक दाम पर यान दए े भू म दे द ।
हज़ार एकड़ ज़मीन एक ही कंपनी को दे द गई,” वा ण य मं ी ने ख़ुलासा कया।

गंगासागर और चांदनी रसंचार वभाग के मु यालय संचार भवन म थे। “ रसंचार


लाइसस, दस साल पहले के मानक के हसाब से भी, मनमाने ढं ग से कम मू य पर दए
गए,” रसंचार मं ी ने बताया, जो क एबीएनएस का एक पुराना साथी था।
“तो या आ? तक दया जा सकता है क मू य के बारे म एक का
कोण सरे के कोण से भ हो सकता है,” गंगासागर ने तक दया।
“ले कन बाद म, लाइसस पाने वाली कंप नय ने अपने टे क ज़बरद त मुनाफ़े पर
बाहरी नवेशक को बेच दए,” रसंचार मं ी ने बताया।
“ या ये संभव नह क उ ह ने एक अंत रम बज़नेस बनाकर शेयरधारक का मू य
बढ़ा दया हो?” चांदनी ने सुझाव दया।
“चौबीस घंटे के अंदर?” रसंचार मं ी ने सूचक भाव से पूछा।

गंगासागर और चांदनी पे ो लयम व ाकृ तक गैस वभाग के मु यालय शा ी भवन म


थे। “तेल के अ वेषण के अ धकार क़ानून ारा नधा रत मू य पर एक ही कंपनी को दए
गए,” पे ो लयम मं ी ने कहा, जो क बजनौर संसद य े से एबीएनएस का वजेता था।
“इसम या दोष है?” गंगासागर ने पूछा।
“खोज के अ धकार 24 जुलाई को दए गए।”
“तो?”
“एक आंत रक ापन दखाता है क अ वेषण घाट को सरकारी तेल नगम ारा
पहले ही खोदा जा चुका था।”
“ फर?”
“वो 23 जुलाई को वहां तेल क खोज कर चुके थे।”

गंगासागर और चांदनी कृ ष वभाग के मु यालय कृ ष भवन म थे। मं ी था दौला हसन


भ , मेरठ से मेजर बेद का मु लम-जाट योग। वो अपना चुनाव दो लाख से यादा वोट
से जीता था।
“ पछली सरकार के दौरान चारे और खाद क बड़ी मा ा क ख़रीद क गई,”
कृ ष मं ी ने इस भय से धीरे से कहा क कह उसका स चव न सुन ले।
“इसम तो कोई ख़ास बात नह है,” चांदनी ने कहा। “हर वो सरकार जो वोट से
चपक रहना चाहती है, कसान को ख़ुश रखने के लए चारे और खाद पर स सडी दे गी
ही।”
“ले कन या हमने अमे रका और प मी यूरोप के मवे शय के चारे पर भी
स सडी दे द ?” कृ ष मं ी ने पूछा।
“ या मतलब?” गंगासागर ने पूछा।
“अगर म सरकार ारा स सडी दए गए कुल मवे शय क सं या गनू,ं तो ये
भारत, अमे रका और प मी यूरोप के कुल मवे शय क आबाद के बराबर आती है!
उ ह ने उन कसान और मवे शय को भी स सडी दे द जनका अ त व ही नह है!”
कृ ष मं ी ने ख़ुलासा कया।

“ या इनम से कोई भी सौदा व मं ी क सहभा गता के बना हो सकता था?” चांदनी ने


पूछा। इकराम और अ वालजी ने इंकार म सर हलाए। ये नामुम कन होता। चांदनी और
गंगासागर ख़ामोशी से इन रह यो ाटन पर सोचते रहे। आ ख़रकार चांदनी ने गंगासागर से
पूछा, “इस जानकारी के साथ आपका या करने का इरादा है? ये सब ेस को बताकर
सरकार गराएंगे?”
“इसके वपरीत। जब हम ख़ुद ही इस सरकार म ह तो इसे गराने का या
फ़ायदा? और वो भी इतनी ज द ? जानकारी तभी कारगर होती है जब सावज नक न हो।
म इसक र ा क ं गा और इसके ारा सौदे बाज़ी क ं गा,” चालाक पं डत ने कहा।
“तो आप धानमं ी से बात करगे और चार घोटाल के लए व मं ी का
यागप मांगगे?” चांदनी ने पूछा।
“नह । म चार घोटाल के लए व मं ी का यागप नह मांगूंगा,” गंगासागर ने
कोमलता से कहा।
“ य ?” चांदनी ने ये सोचते ए च कत भाव से पूछा क अगर उ ह इसका
इ तेमाल ही नह करना था तो उ ह ने एक पखवाड़ा गंद जमा करने म य बताया।
“म व मं ी का इ तीफ़ा एक घोटाले क बु नयाद पर मांगूंगा, चार घोटाल क
बु नयाद पर नह ! बाक़ क जानकारी म उ चत समय पर इ तेमाल क ं गा। जब फ़ल
हाउस ही काफ़ हो, तो म े ट हाउस का इ तेमाल य क ं ?”

“बाहरी मामल क मं ी का कायभार संभालने पर बधाई हो, चांदनी जी। म जानता ं क


आप मेहनत करगी और और भी तर क़ करगी,” जब चांदनी कमरे म सबसे हाथ मला
रही थी तो एक शुभ चतक ने कहा।
गंगासागर नज़द क ही खड़ा था। वो अपने वफ़ादार संर क अ वालजी क ओर
पलटा जो भरवां आलू खा रहे थे। “ कतनी अजीब बात है ना?” उसने अ वालजी से कहा।
“इस ग़रीब लड़क को भारत के बाहरी मामल का मं ी बनाने का तु हारा सपना
पूरा होने म अजीब या है?” अ वालजी ने पूछा।
“यही तो अजीब है, मेरे दो त। वो श ा हण करने एक बाहरी दे श जाती है, वहां
उसका मामला हो जाता है, उसे गभ ठहरता है, और म उसे इनाम म बाहरी मामल का मं ी
बना दे ता !ं ”

“ या माननीया वदे श मं ी जानती ह क भारत के झंडा क़ानून क धारा 2.2 उपधारा (xi)
का उ लंघन करते ए पोलड के भारतीय तावास म हमारा रा - वज सूया त के बाद भी
द शत कया गया? या माननीया मं ी सदन को व ास दलाएंगी क वो सुधारा मक
कारवाई करगी?”
“ ीमान अ य महोदय, म सदन को व ास दला सकती ं क म न त प
से कारवाई क ं गी।”
“ ीमान अ य महोदय, या माननीया वदे श मं ी वीकार करगी क हमने
जेनेवा म हा लया वदे श स चव तर क बातचीत म पा क तान को मुखता ा त करने
द ? या मं ीजी ने वहां क गई ग़ल तय से कुछ सीखा?”
“ ीमान अ य महोदय, म सस मान कहना चा ंगी क म और भी ग़ल तयां
करने को इ ु क ं अगर माननीय सांसद उनसे सीखने को तैयार ह ।”
“माननीय अ य क अनुम त से, या माननीया वदे श मं ी जानती ह क उनके
मं ालय के साउथ लॉक द तर म शराब पेश क गई जब क वो एक ाई डे था?”
“ ीमान अ य जी, मेरा नजी वचार है क शराब कसी भी चीज़ का जवाब नह
है। ये इंसान को सवाल ही भुला दे ता है। वैस,े माननीय सांसद का सवाल या था?”
“ ीमान अ य जी। ऐसा लगता है क वदे श मं ालय अंतररा ीय कूटनी त क
बा द सुरंग के बीच अपना रा ता बना रहा है। भा यवश, माननीया मं ी के पास अनुभव
क कमी है और वो अंधेरे म कसी ब े क तरह लड़खड़ा रही ह।”
“ ीमान अ य जी, मेरा मानना है क अंधेरे म ब से घटनाएं होती ह और
अंधेरे म घटना से ब े होते ह। मेरे याल से हम सब इसी तरह यहां प ंचे ह!”
सारी लोकसभा म ठहाके गूंजने लगे और चांदनी बैठ गई। ये था क ये नई
लड़क ऐसी नह थी जससे पंगा लया जा सके। यो हे म फ़ोड ने को शश क थी और
मुंह क खाई थी।
स ल बोड ऑफ़ डाइरे ट टै सेज़—सीबीडीट —के चेयरमैन ने व मं ी के
यागप से पहले उ ह दो फ़ाइल भेज । ये मु े गमागरम थे और वो चाहता था क इन पर
मं ी ख़ुद द तख़त कर।
पहली फ़ाइल आर एंड एस से संबं धत थी और मं ी और ं टा के बीच क़रीबी
संबंध होने के नाते, सीबीडीट के चेयरमैन ने सीधे व मं ी से अनुम त मांगी थी।

माननीय व मं ी। आर एंड एस क ग त व धय क जांच से व ीय अ नय मतता


के कई उदाहरण सामने आए ह। य प के कई आइटम महंगे तीत होते ह, वशेष प
से इस उ े य से क उनक कर यो य आय को कम कया जा सके। साथ ही, ऐसा तीत
होता है क मुनाफ़ा छपाने के उ े य से नजी साझेदा रयां खड़ी क ग । आय प के कई
आइटम गत कर दए गए, बज़ा हर इस उ े य से क कर अ धका रय को राज व से
वं चत रखा जाए। कुछ सौदे — वशेषकर संप य के य- व य से संबं धत—संदेहा द
मू यांकन पर कए गए, जससे कर-दे यता और भी कम हो, कम से कम काग़ज़ पर।
ापन दोहरे ेस म था और अगले पृ पर जारी था।

इन प र तय म, म आपका परामश चा ग ं ा क इन मामल से कैसे नपटा जाए।


ध यवाद। चेयरमैन, स ल बोड अ◌ॉफ़ डाइरे ट टै सेज़।

सरी फ़ाइल आम आदमी के लए कुल कर दर से संबं धत थी— एक राजनी तक


नणय—और यहां भी, सीबीडीट के चेयरमैन ने फ़ैसला कया था क मं ी क अनुम त
लेना ही समझदारी होगी।

माननीय व मं ी। पछले व वष के लए जमा कए गए आयकर रटन दशाते ह


क न नतम आय वाले लोग पर आयकर का बोझ सबसे अ धक रहा। पछले वष क
आ थक मंद के कारण कई करदाता दवा लये या कंगाल हो चुके ह। वशेषकर वो
वेतनभोगी वग जसे गृहॠण जैसे भुगतान भी करने होते ह। आयकर आयु के साथ
आंत रक वचार- वमश म महसूस कया गया है क साधारण वेतनभो गय के साथ इस
वष उदार रवैया अपनाया जाए।

पहले क तरह, ये ापन भी दोहरे ेस म था और अगले पृ तक जारी था।

इन प र तय म, म आपका परामश चा ग ं ा क इस मामले से कैसे नपटा जाए।


ध यवाद। चेयरमैन, स ल बोड अ◌ॉफ़ डाइरे ट टै सेज़।

फ़ाइल एक घंटे बाद नॉथ लॉक प ंच । व मं ी ने अपनी मोट खाद क शट क


जेब से चौदह कैरट सोने का वाटरमैन नकाला और पहले ापन के नीचे कुछ ट पणी
लखी। वो जानते थे क वो अ धकृत प से आर एंड एस को नह बचा सकते। उनके लए
न प दखना ज़ री था, कम से कम काग़ज़ पर। ापन के नीचे उनक ट पणी थी:

मेरा सुझाव है क इनक पूरी तरह जांच हो और सरकार को दे य कर को ा त करने


के लए आप जो भी काय उ चत समझते ह कर। सादर। व मं ी।
सरा ापन अपे ाकृत आसान था। उ ह ने इस मु े पर धानमं ी से बात क थी
और ऐसा लगता था क उ ह वेतनभो गय को कुछ रआयत और कर म छू ट दे नी पड़ेगी।
सरे ापन के नीचे उनक ट पणी थी:

उनके साथ वहार म हम सहानुभू तपूण और वन होना चा हए। उनके समथन के


बना, कोई भी सरकार स ा म बने रहने क आशा नह कर सकती। मेरा सुझाव है क
पया त लचीनापन दखाया जाए। सादर। व मं ी।

कुछ घंट बाद, दोन ापन गंगासागर के हाथ म थे, जहां वो उसके कृपापा , सीबीडीट
चेयरमैन, ारा प ंचा दए गए थे। उसने सावधानीपूवक पहले ापन के दोन प के
टे पल को अलग कया और फर यही या उसने सरे ापन के साथ अपनाई।
फर उसने आर एंड एस वाले ापन के पहले प े को उस ापन के सरे पृ से
जोड़ा जसम साधारण वेतनभो गय के लए राहत क मांग क गई थी और दोन पृ को
एक साथ टे पल कर दया। फर उसने अपनी कार तानी पर संतु भाव से एक नज़र
डाली।
माननीय व मं ी। आर एंड एस क ग त व धय क जांच से व ीय
अ नय मतता के कई उदाहरण सामने आए ह। य प के कई आइटम महंगे तीत होते
ह, वशेष प से इस उ े य से क उनक कर यो य आय को कम कया जा सके। साथ
ही, ऐसा तीत होता है क मुनाफ़ा छपाने के उ े य से नजी साझेदा रयां खड़ी क ग ।
आय प के कई आइटम गत कर दए गए, बज़ा हर इस उ े य से क कर
अ धका रय को राज व से वं चत रखा जाए। कुछ सौदे — वशेषकर संप य के य-
व य से संबं धत—संदेहा द मू यांकन पर कए गए, जससे कर-दे यता और भी कम
हो, कम से कम काग़ज़ पर। इन प र तय म, म आपका परामश चा ंगा क इन मामल
से कैसे नपटा जाए। ध यवाद। चेयरमैन, स ल बोड अ◌ॉफ़ डाइरे ट टै सेज़।

ापन के अंत म व मं ी के हाथ से लखी ट पणी थी।

उनके साथ वहार म हम सहानुभू तपूण और वन होना चा हए। उनके समथन के


बना, कोई भी सरकार स ा म बने रहने क आशा नह कर सकती। मेरा सुझाव है क
पया त लचीनापन दखाया जाए। सादर। व मं ी।
गंगासागर ने ापन अ वालजी को दखाया। वो भौच के रह गए। “इससे या
करना चाहते हो तुम?” उ ह ने पूछा।
“कुछ नह ,” गंगासागर ने जवाब दया, “उसे तबाह करने के लए मेरे पास काफ़
गोला-बा द है।”
“तो फर तुमने अपने आदमी—सीबीडीट चेयरमैन—से इतना लंबा-चौड़ा काम
य करवाया?” अ वालजी ने पूछा।
“ या बीमा लेने के बाद ज द ही आग लगने क उ मीद करनी चा हए?”
गंगासागर ने पूछा।

“चीनी राज त आपसे मलना चाहते ह, मैडम,” वदे श स चव ने कहा।


“ले कन उ ह ने हाल ही म पा क तानी ख़ के समथन म बयान दया है। उ ह ने
कहा है क क मीर म नयं ण रेखा को पार करने वाले उ वाद ग़ैर-रा यीय आज़ाद लोग
ह। हम जानते ह क पा क तानी ख़ु फ़या तं इसम शा मल है और फर भी चीनी इसे
नज़रअंदाज़ कर रहे ह। म उनसे य मलू?ं ” चांदनी ने ग़ से से पूछा।
“हम चीन के साथ टकराव मोल नह ले सकते, मैडम। हमारा हमेशा से मानना
रहा है क 1962 म हम पर आ मण के बाद से चीन ने हमारा पं ह हज़ार वगमील े
ग़ैरक़ानूनी ढं ग से दबा रखा है। साथ ही, बी जग का दावा है क हमारे उ र-पूव म
अ णाचल दे श उनका इलाक़ा है। दोन दे श के बीच राजन यक संबंध मह वपूण ह।”
“म राज त से मलूंगी, ले कन अपनी शत पर... अपना दौरा पूरा होने के बाद,”
चांदनी ने कहा।
“दौरा? मुझे नह पता था क अगले दो दन तक आपका कोई दौरा होना था।”
“नह होना था, ले कन अब होना है। लीज़ मुझे ग गल ले जाने के लए वमान
क व ा क जए।”
“ग गल?”
“धमशाला के नज़द क का एयरपोट। हमाचल दे श म।”
“धमशाला? आप दलाई लामा से मलने तो नह जा रह ? चीनी राज त ब त
नाराज़ ह गे।”
“हां। और जब वो अ तरह से नाराज़ हो जाएंगे, तब म उनसे मलूंगी।”
मश र लोद गाडन ल टयंस क द ली के क म लोद रोड पर त था। मुग़ल स ाट
मायूं और सफ़दरजंग के मक़बरे इसके पूव और प मी छोर पर थे। रसच एंड
एने ल सस वग—रॉ—का मु यालय वह त था जो क एक एजसी नह ब क
धानमं ी कायालय का एक भाग था। इसके कारण ये संसद के बजट आवंटन से बाहर था
हालां क कहा जाता था क इसके बारह हज़ार एजट ह। रॉ मुख सीधे धानमं ी को
रपोट करता था।
ये मुख—जो से े टरी ( रसच) क सामा य पदवी से जाने जाते थे, सवेरे-सवेरे
अपनी शोफ़र वाली सफ़ेद एंबैसडर से साउथ लॉक के गेट से अंदर आए थे। उ ह कसी
मामले म धानमं ी और वदे श मं ी को रपोट दे नी थी। ये मामला चांदनी के दमाग़ क
उपज था।
“हमने कुछ ग त क ?” जैसे ही रॉ मुख धानमं ी क डे क के सामने कुस पर
बैठे, चांदनी ने पूछ लया।
“मुझे ये बताते ए ख़ुशी है क मख़ म को गर तार कर लया गया है,” रॉ मुख
ने चांदनी से कहा।
“ गर तार? कसके ारा?” धानमं ी ने पूछा। “मेरा तो याल था क मख़ म
पा क तान म काम कर रहा हमारा एजट है,” धानमं ी ने कहा।
“ये सच है, सर,” मुख ने बताया, “ले कन चांदनीजी का सुझाव था क मख़ म
को तैयार कया जाए, जानकारी द जाए और पीपु स रप लक अ◌ॉफ़ चाइना के
श जयांग उइग़र अ◌ॉटोनॉमस रीजन भेज दया जाए।”
“और आपको ख़ुशी है क वो गर तार हो गया है?” धानमं ी ने पूछा। रॉ मुख
चांदनी को दे खकर मु कुराया। फर उ ह ने धानमं ी क ओर दे खा और शांत भाव से
कहा, “वो नह जानता था क उसे गर तार कर लया जाएगा। उसे वहां उइग़र से संबंध
ा पत करने भेजा गया था, ले कन हमने ची नय को सू चत करने क व ा कर ली
थी।”
“और इस गर तारी से या हा सल आ?” असमंजस म पड़ गए धानमं ी ने ये
सोचते ए पूछा क या उ ह चांदनी को रॉ के साथ कसी काम के लए सीधे सम वय क
अनुम त दे नी चा हए थी या नह ।
“जैसा क आप जानते ह मख़ म पा क तानी है और कराची म हमारे लए ब त
मह वपूण है। वो एक उ वाद उपदे शक के प म रहता है और क मीर म काम करने वाले
जहा दय को श ण दे ता है,” रॉ मुख ने कहा।
“हम उन एजट को पैसा दे ते ह जो क मीर म घुसपैठ करके मौत और तबाही
फैलाने वाले को श ण दे ते ह?” अनजान धानमं ी ने पूछा।
रॉ अ धकारी बोला। “इजाज़त हो, धानमं ी, तो म आपके संदेह र करना
चा ंगा। हम जानते ह क पा क तान बरस से भारत और पा क तान के बीच छदरी सीमा
को पार करने के लए आतंकवा दय को पैसा और श ण दे ता रहा है। ये श त
ह यारे क मीर म आते ह और आतंक हरकत को बढ़ावा दे ते ह। मख़ म—और उस जैसे
अ य— इन जहाद गुट म हमारे रॉ के जासूस ह। हम जानते ह क पा क तान इन
जहा दय को भेजता ही रहेगा। उनके संगठन म हमारे जासूस का होना कारगर रहता
है।”
“ले कन श जयांग से इसका या संबंध?” धानमं ी ने पूछा।
“ श जयांग उइग़र अ◌ॉटोनॉमस रीजन को पीपु स रप लक अ◌ॉफ़ चाइना चीन
का अ भ अंग मानता है। उइग़र ानीय मु लम आबाद है जो चीन से अलग होने क
लड़ाई लड़ रही है। वो आज़ाद क मांग कर रहे ह,” चांदनी ने बताया।
“और एक साम रक सहयोगी को श जयांग भेजकर और उसे गर तार करवा के
हम या हा सल आ है?” धानमं ी ने पूछा।
“ब त कुछ। चीन पछले वष म पा क तान के भारत वरोधी रवैये का समथन
करता रहा है। चीन पा क तान को भारत के मन के प म दे खता है, और ‘ मन का
मन दो त होता है’। पा क तान का चीनी समथन क मीर ववाद म भी सामने आ गया है
और चीन ने अ सर पा क तान के इस दावे का समथन कया है क क मीर ववाद एक
घरेलू वतं ता संघष है और इसे पा क तानी से व ीय सहायता या ो साहन नह मलता
है,” चांदनी ने कहा।
“ले कन ये संक ण कोण बदल सकता है अगर चीन को पता चले क
पा क तान अ य इ लामी आंदोलन का भी समथन कर रहा है— वशेषकर श जयांग म,”
बातचीत म वापस आने को आतुर रॉ मुख ने कहा।
“तो हमने मख़ म को गर तार य कराया?” धानमं ी ने पूछा।
“ये दे खते ए क वो एक गहरा अंडरकवर रॉ एजट है, उसे एक जहाद समझा
जाता है। उसका बड़ा समृ ववरण है और वो नजी प से पा क तानी ख़ु फ़या तं से
तगड़ी मदद हा सल करता रहा है। हमने उसे इस लए श जयांग भेजा था क वो अ य
इ लामी उ वा दय से संपक करे और उनक मदद करे,” रॉ मुख ने समझाया। “वो ये
नह जानता था क वो गर तार हो जाएगा। अब जब क वो गर तार हो चुका है, तो चीनी
रा य सुर ा मं ालय उससे पूछताछ करेगा और पा क तानी तं से उसके संबंध ची नय
के सामने उजागर हो जाएंगे। अब चीनी पा क तानी उ े य के उतने समथक नह रहगे।”
“ले कन अगर मख़ म मारा गया?” धानमं ी ने पूछा।
“तो हम क मीर के लए ये क़ मत चुकाएंग,े ” से े टरी ( रसच) ने बताया।
“मुझे उ मीद है क अगले ह ते चीनी राज त के साथ मेरी मुलाक़ात और उससे
अगले ह ते मेरा चीन दौरा ब त गमजोशी भरा होगा। ज़ा हर है, दोन दे श के सामने
समान मु े ह!” चांदनी ने ख़ुश होते ए कहा।

तयाना मेन वेयर के प मी भाग से लगा ेट हॉल अ◌ॉफ़ पीपुल अठारह लाख वगफ़ट
म फैला आ था। बी जग का राजनी तक क ेट हॉल कई ऐ तहा सक बैठक का गवाह
रहा था, जनम से एक मश र बैठक म अमे रक रा प त रचड न सन भी शा मल रहे थे।
ब ग के उ री भाग म टे ट बकेट हॉल था जसम सात हज़ार मेहमान आ सकते थे।
भारत क माननीया वदे श मं ी चांदनी गु ता चीन के तीन दवसीय सरकारी दौरे
पर र ववार सुबह को बी जग प ंची थ । ये चांदनी का पहला चीन दौरा था और वहां
आवास के दौरान उसे चीनी धानमं ी और उ व ध नमाता से मलना था—और
साथ ही अपने समक के साथ बातचीत करनी थी। चांदनी को ाकृ तक आपदा से
नबटने के लए ा पत एक संयु चीन-भारत मै डकल ट म के एक समारोह म भी
स म लत होना था। फर उसे बी जग म आधा रत एक सरकारी वचार- वमश समूह,
चाइनीज़ एकेडमी अ◌ॉफ़ सोशल साइंसेज़, म भाषण दे ना था। श आ यूज़ से बातचीत
म चांदनी ने कहा क वो चीन “दोन दे श और हमारी भावी पी ढ़य के लए शोभायमान
संबंध को आकार दे ने और पार रक हत के सभी मु पर उ मु बातचीत करने के
लए खुले दमाग़ से आई थी।”
उसके दौरे क आख़री रात चीनी वदे श मं ी ने उसके स मान म एक भोज का
आयोजन कया। भोज म चीन के पाट और रा य नेता भी स म लत थे। चीन और भारत
के रा ीय वज हॉल म लगाए गए थे और भोज क शु आत म ल बड ारा दोन दे श
के रा गान बजाने से ई। चीनी मं ी ने अपनी कुस से उठकर चांदनी और उसके सरकारी
त न धमंडल का वागत कया। बाद म उ ह ने कहा, “बेशक चीन और भारत के बीच
कुछ मतभेद रहे ह, ले कन भारतीय वदे श मं ी क समझदारी और बु म ा के कारण
हमारे दो महान रा के बीच पार रक हत के मु पर बेहतर समझ पैदा ई है।”
चांदनी वनीत भाव से मु कुराई। चीनी मं ी को लगा क वो उनक बात से ख़ुश
हो रही है। ले कन वो वा तव म मख़ म और उसक एकदम सही समय पर गर तारी के
बारे म सोचकर मु कुरा रही थी। चांदनी ने अपने मेज़बान के नाम जाम उठाकर अपनी
शंसा का जवाब दया। उनके स मान म उसने स अं ेज़ी क व जॉन ाइडेन क दो
पं यां उ त क , ‘ए मैन सो वे रयस ही सी ड टु बी, नॉट वन बट अ◌ॉल मैनकाइंड्स
ए पटोम। ’ (वो व वध गुण का सं ह लगता था, वो एक इंसान नह ब क सारी
इंसा नयत का तीक था।) मं ी ने उसके उदार श द के लए उसे ध यवाद दया। वो
शायद इतना उदार नह होता अगर उसने चांदनी ारा उ त ाइडेन क शेष क वता पढ़
होती।
शेष क वता थी, ए मैन सो वे रयस ही सी ड टु बी, नॉट वन बट अ◌ॉल मैनकाइंड्स
ए पटोम; टफ़ इन ओपी नय स, ऑ वेज़ इन द रॉ ग; वाज़ एवरी थग बाइ टाट् स एंड
न थग लॉ ग; बट इन द कोस अ◌ॉफ़ रवॉ वंग मून, वाज़ के म ट, फ़डलर, टे ट्समैन एंड
बफ़ून !’ (वो व वध गुण का सं ह लगता था, वो एक इंसान नह ब क सारी
इंसा नयत का तीक था; वचार म अ ड़यल, हमेशा ग़लत; बड़ी-बड़ी शु आत करता, र
तक कभी नह जाता; एक ही चांद के अंदर, वो दवासाज़, जालसाज़, राजन यक और
लंगूर सब कुछ बन जाता!)

“ वप के नेता व ा के पर?” अ य ने पूछा।


“हां, ीमान अ य , सर। ासं गकता। मेरा भारत-चीन शां त के बारे म
वदे श मं ी के लए था। माननीय धानमं ी ारा उ र ासं गक नह है—” वप के नेता
ने बात शु क ।
“ वप के नेता अपनी सीट पर बैठ। धानमं ी ने अभी अपना भाषण आरंभ
कया है और वो न त प से ासं गक ह,” अ य ने उनक बात काट द ।
“ व ा के पर, ीमान अ य । वप नेता ारा उठाया गया सवाल ग़लत
ढं ग से तुत कया गया है—” चांदनी ने तक दया।
“ वदे श मं ी मु े पर बहस कर रही ह। या माननीया मं ी के पास व ा का
है?” अ य ने पूछा।
“मेरा व ा का ये है क वप ी नेता व ा का अ व त उठा
रहे ह,” चांदनी ने कहा और वप क बच भी मज़ाक़ म उसके साथ शा मल हो ग ।
“मं ी कृपया अपनी सीट पर बैठगी,” अ य ने आनंद लेते ए कहा। लड़क
टार बन चुक थी।
“ये लड़क टार बन चुक है,” लोकसभा टे ली वज़न दे खते ए उनक प नी ने कहा।
“आपको यान रखना होगा, वना ये कह आपसे यादा लोक य न हो जाए। चीन म
इसक राजन यक वजय ने इसक लोक यता ब त बढ़ा द है!” हाथ म पकड़े झागदार
एंटे सड के गलास से चु क लेते ए धानमं ी ने सर हलाया। लोकसभा के स हमेशा
उनका पेट ख़राब कर दे ते थे और उनके पेट के नासूर उभर आते थे। उनक प नी क बात
सही थी, हमेशा क तरह। उ र दे श चुनाव म गंगासागर क च काने वाली जीत और
चीन म चांदनी क उतनी ही च काने वाली जीत ने उ ह एक ताक़तवर गठजोड़ बना दया
था। उ ह अपने प े सावधानीपूवक खेलने ह गे।

“सर, लगता है हमारे सामने एक सम या आ खड़ी ई है,” मेनन ने असहज भाव से कहा।
“ या बात है, मेनन?” सवेरे के अख़बार से सर उठाते ए गंगासागर ने पूछा।
“हमीद—वेटर— जसने हम म ज े ट तक प ंचाया था। वो और पैसा मांग रहा
है।”
“ले कन हमने तो म ज े ट ारा इकराम के ख़लाफ़ गर तारी का वारंट जारी
कराने के लए उसे पैसा दे दया था ना?”
“हां। ले कन वो और पैसा मांग रहा था।”
“जब इकराम ने मु यमं ी के पद क दौड़ से हटने का फ़ैसला कर लया था, तो
वारंट हटवाने के लए भी हमने उसे पैसा दया था ना?”
“हां। ले कन म ज े ट उससे ऊब गया है और उसने अपने लए एक और सुंदर
लड़का ढूं ढ़ लया है। लगता है, हमीद आ थक संकट म है।”
“दरअसल वो पैसा मांग कस काम के लए रहा है?”
“ख़ामोश रहने के लए।”

इकराम ने लखनऊ क सबसे बड़ी म जद, जामा म जद, म अभी जुमे क नमाज़ पढ़ ही
थी। यहां इकराम क है सयत एक हीरो जैसी थी। उसने छोटे -छोटे काम —नौकरी के लए
सफ़ा रश, कूल म दा ख़ले, जायदाद के झगड़े के नपटारे, बेट के दहेज के लए पैसा दे ने
—म सैकड़ लोग क मदद क थी। जामा म जद म जुमे के नमा ज़य म इकराम कसी
रॉ बन ड से कम नह था।
नमाज़ पूरी होने के बाद इकराम लखनऊ के म य म त पीले बलुआ प र क
पं ह म से एक मेहराबदार गुंबद के नीचे से नकलकर पचास हज़ार वगफ़ट े फल वाले
वशाल सहन म आ गया। उसे तुरंत ही शंसक के एक झुंड ने घेर लया। उसने दे खा क
एक काला नौजवान उसे घूर रहा है। वा तव म उसे यक़ न था क वो लड़का उसका पीछा
करता आ म जद म आया है। यादा सलाम- आ के च कर म न पड़ने वाले इकराम ने
उसे इशारा कया, “लड़के! तु ह मुझसे मलना है? बोलो!” नौजवान ने अपने आसपास इस
तरह दे खा जैसे ख़ौफ़ज़दा चूहा ब ली के सामने हो। इकराम ने अपने प र चत से कहा क
वो थोड़ी दे र उ ह अकेला छोड़ द।
“सर, मने आपके बारे म ब त क़ा बले-तारीफ़ बात सुनी ह। एक इंसाफ़पसंद और
रहम दल आदमी क आपक शोहरत क वजह से ही म आपसे मलने क ह मत जुटा
पाया। मेरे पास कुछ ऐसी जानकारी है जो आपके काम आ सकती है,” नवयुवक ने कहा।
“जानकारी? कस क़ म क जानकारी?” इकराम ने पूछा।
“सर, लीज़ वादा क जए क म जब आपको बताऊंगा तो आप मुझे मारगे नह
—”
“अरे, म य तुम जैसे यारे लड़के को मारने लगा,” इकराम ने ं या मक ढं ग से
पूछा।
“सर, मुझे पैसे क ज़ रत थी और इस च कर म म आपको नुक़सान प ंचा
बैठा। म अ लाह क क़सम खाता ं क मेरा इरादा ऐसा नह —”
वो फूट-फूटकर रोने लगा।
“बेटे। य न तुम मुझे पूरी बात बता दो? तु हारा नाम या है और तुम या काम
करते हो?” इकराम ने लड़के के कंधे पर हाथ रखते ए कहा।
“मेरा नाम हमीद है और म कानपुर म गो न गेट बार म वेटर था...”
“और मुझसे तु हारा या ता लुक़ है?”
“म उस म ज े ट का सम लगी ेमी था जसने आपके ख़लाफ़ गर तारी का
वारंट जारी कया था।”
“अ ा। समझा,” इकराम ने अपनी ठोड़ी खुजाते ए कहा।
“गंगासागरजी के से े टरी मेनन ने मुझसे कहा था क म आपके ख़लाफ़ वारंट
जारी करवाऊं और बाद म र करवा ं —मने वैसा ही कया जैसा उ ह ने कहा था।”
“ले कन अगर तुम इतने ही असरदार हो, तो ऐसी बदहाली म य हो? लगता है
तु हारे दन ख़राब चल रहे ह।”
“मने अपनी वेटर क नौकरी छोड़ द —मुक़ मे हल करवाना यादा फ़ायदे मंद
था। ले कन फर पांडे—म ज े ट—मुझसे ऊब गया और उसने मुझे छोड़ दया।”
“और तुम मुझसे या चाहते हो?” इकराम ने पूछा।
“मने सुना है क आपने हाल ही म अपनी जुमे क मंडली के एक सद य रा शद
को आर एंड एस ए वएशन म नौकरी दलवाई है। या आप मेरी भी सफ़ा रश कर सकते
ह?”
“म य क ं गा ऐसा? तुमने मुझे मु यमं ी के ओहदे से र रखने के लए उस
ा ण लोमड़ी क मदद क थी!”
“ले कन सर, म सारे ख़ास नेता —चांदनीजी समेत—के नज़द क र ंगा य क
आर एंड एस ए वएशन ही सरकारी वभाग को जहाज़ और हैलीकॉ टर दे ता है। म आपक
आंख और कान बन सकता ं। जैसा क आप जानते ह, राजनी त म इकलौती अहम
करसी जानकारी होती है,” हमीद ने वनती क ।
इकराम हमीद क बात पर ग़ौर करता आ ठोड़ी खुजाने लगा। आ ख़रकार वो
बोला, “जाकर रा शद से मलो। उससे कहना तु ह मने भेजा है।”

गहरी े वद पहने ट् युअड रे तरां क ओर जा रहा था। सरकारी चाटड वमान का


लाइट अटडट होना बड़ी नाशु का काम था— आदमी ठ क से काम करे तो गुमनाम रहे
और न करे तो अपमानजनक वहार का सामना करे। इससे भी बढ़कर परेशानी क बात
ये थी क वो ऐसी वमानन कंपनी से जुड़ा आ था जो वदे श मं ी के चॉपर और वमान
का काम दे खती थी। मं ालय मह वपूण लोग — वदे शी और दे शी दोन —के लए कई
वमान चलाता था। बड़े लोग अपने क़ मती समय का एक ण भी ख़राब नह होने दे
सकते थे और उ ह लाख डॉलर के जहाज़ म उनके बगड़ैल ब क बथडे पा टय म ले
जाना होता था। ये बनावट अहम लोग उसे कभी ध यवाद तक नह कहते थे— वो बस
एक बेनाम, नाचीज़ और नज़रअंदाज़ छोकरा था जसका काम वमान के अंदर से उनके
यु ट यू और कडी के रैपर समेटना होता था। ले कन फर भी ये एक सब-म ज े ट का
सम लगी ेमी होने से अ ा था।
इकरामभाई क बदौलत हमीद अब अपनी मां क नज़र म उठ सकता था। उ ह
ख़ुश करना ब त मु कल था। वो उसके नीचे ओहदे और कम वेतन के लए हमेशा उसे
अपमा नत करती रहती थ और उसक तुलना अपने प रवार के उन सद य से करती थ
जो यादा सफल और यादा उ मी रहे थे। वो ब त सहन कर चुका था। अब उसे ज़दगी
म आगे बढ़ना था और आर एंड एस ए वएशन— वदे श मं ालय क सेवा म लगी नजी
एयर चाटर कंपनी—के प म उसे अपने लए सही समय पर सही अवसर मल गया था।
“तु ह फर से दे खकर अ ा लगा, दो त,” बैठते और चाय का अ◌ॉडर दे ते ए
उस भले आदमी—रा शद—ने कहा जसने शु म उसका इंटर ू लया था और
इकरामभाई के नदश पर उसक नयु क थी। “तु हारी पु क चट् ठ तैयार है और
इंतज़ार कर रही है,” चाय क चु क लेते ए उसने कहा। “इससे पहले क हम आगे बढ़,
बस मुझे तुमसे एक काम कराना है।”

वदे श मं ी को आगरा प ंचने के कुछ ही घंट के अंदर सी ापा रय के एक


त न धमंडल के साथ ताजमहल के पास एक होटल म गो ी के लए प ंचना था, और
उनका बैल 400 ट् वन रजर हैलीकॉ टर तैयार था, और उनका इंतज़ार कर रहा था। टे क
अ◌ॉफ़ से पहले क जांच पूरी हो चुक थ और पाइलट को एयर ै फ़क कं ोल से पांच
मनट म टे क अ◌ॉफ़ करने क अनुम त मल चुक थी। छत पर लाल ब ी वाली उनक
एंबैसडर कार के आने से कुछ मनट पहले चमकती रौश नय और बजते भ पु वाली
पु लस कार के एक समूह ने आकर चॉपर को चार ओर से घेर लया। पु लसवाले कूदकर
अपनी गा ड़य से उतरे और उ हाने पास ही खड़े हमीद को हरासत म ले लया। भौच का
पाइलट चॉपर छोड़कर ये दे खने के लए नीचे उतर आया क ये शोर कस लए था।
एक पु लसवाले ने पाइलट का यान फ़लर कैप क ओर आक षत कराया।
पाइलट ने आगे बढ़कर कैप को ठ क से बंद करने के लए उसे खोला ले कन इस हंगामे का
कारण फर भी नह समझ सका। ले कन कैप पूरी खुल जाने के बाद उसने फ़लर नैक म
कंक रयां और रेत दे ख । ये ऐसा मलबा था जो घातक स हो सकता था। ये चॉपर को
टे क अ◌ॉफ़ तो करने दे ता ले कन बाद म गयरबॉ स म घुस जाता और पावर काट दे ता,
जससे मशीन और उसक मं ी सवारी दोन ही नीचे आ रहते। रौश नयां अभी भी चमक
रही थ , भ पू अभी भी बज रहे थे, और पु लसवाल ने हमीद को हथक ड़यां पहनाकर एक
जीप म डाला और तेज़ी से चल दए। पाइलट ने ये यान नह दया क पु लस क कार क
नंबर लेट सरकारी ृंखला क नह थी और उनक राइफ़ल पु लस ारा जारी टडड
राइफ़ल नह थ ।
हमीद क नयु करने वाला आदमी—रा शद—एक सुर त री से ये सारा
घटना म रबीन से दे ख रहा था। अब जाने का समय हो चुका था।

“हमीद अकेला इस व वंस क योजना नह बना सकता था। उसे कसी और ने सखाया
और भा वत कया होगा। हम इसक तह तक प ंचना चा हए,” अ वालजी च तत वर
म बोले।
“कोई चांदनी के साथ पंगा मोल लेकर बच नह सकता, मेनन!” गंगासागर अपने
से े टरी क ओर मुड़कर फुफकारा। “अगर कोई समझता है क उसके पास मुझसे पंगा
लेने लायक़ गो लयां ह, तो मुझे उसक गो लयां चा हए!”
“ऐसा लगता है क हमीद को इस पद पर इकराम क सफ़ा रश पर रखा गया
था,” अ वालजी ने कहा।
“वो पु लसवाल के भेष म इंटेलीजस यूरो के आदमी थे ज ह हमीद को पकड़ने
के लए भेजा गया था। अब हमीद को बोलना होगा—वो बता सकता है क चांदनीजी को
कौन रा ते से हटाना चाहता है। या म इंटेलीजस यूरो के नदे शक से क ं क वो उसक
ज़बान खुलवाएं?” मेनन ने पूछा।
“नह । मने नदे शक से कहा है क वो हमीद को सचला दे वी को दे द—बाक़ काम
वो कर लेगी,” गंगासागर ने कहा।
“सचला दे वी? ले कन वो तो हजड़ा है। वो या करेगी?” अ वालजी ने पूछा।
“मुझे उसक गो लयां चा हए। मेरे लए ये काम वो करेगी।”

ख़ुद को चार तरफ़ से घेरे हजड़ से भयभीत हमीद ने कन खय से अपने आसपास दे खा।
उसे ध और अफ़ म के ह के से म ण का एक पेय पीने को मजबूर कया गया था, जो
बस इतना था क वो थोड़ा सु त पड़ जाए ले कन उसका डर कम न हो। वो एक स त
सतह वाले बेड पर चार हाथ-पैर फैलाए नंगा पड़ा था, और उसके हाथ-पैर पाय से बंधे
ए थे। उसके अंडकोष म एक र सी कसकर बांधी गई थी ता क उसके जननांग तक र
का बहाव न प ंच सके। हर कुछ घंट पर हजड़ का मुख र सी को और कस दे ता
जससे वो बेहोश हो जाता। वो उसे होश म लाने के लए उसके चेहरे पर पानी फकते और
वो फर से अपने गु तांग म वही तेज़ झुलसा दे ने वाला दद महसूस करने लगता।
उसे घेरे ए हजड़े बा चार माता— गा क अवतार—क वंदना कर रहे थे। वो
उसे दबाए ए थे जब क उनक अगुआ सचला दे वी ने एक धारदार, चमचमाता न तर
नकाला जसके कनारे ऊपर जल रही रौशनी म चमक रहे थे। न तर को अपने चु लू बने
हाथ और सामने को फैली बांह म इस तरह लए, जैसे वो उसे कसी उ श को भट
चढ़ाना चाहती हो, वो आंख बंद कए कुछ पढ़ रही थी। फर उसने अपनी आंख खोल
और उससे कहा, “लगता है क तू पूरा मद नह है। मुझे तेरा अंडकोष तुझसे यादा हक़दार
कसी को दे ने का काम स पा गया है!”
हमीद के मुंह से दल दहला दे ने वाली चीख़ नकल पड़ी। आंसू उसके चेहरे पर
ढलकने लगे और वो वनती करने लगा, “ लीज़, तुम जो चाहोगे म बता ं गा! मेरे पास
जतना पैसा है सब ले लो! ले कन मुझे चोट मत प ंचाओ! लीज़! रहम करो!”
“ख़ामोश, ब े, ख़ामोश,” सचला दे वी ने उसके पास जाकर अपने माल से
उसके चेहरे से आंसू प छते ए कहा। “ये तु हारी ज़दगी का सबसे ख़ुशी भरा दन होगा।
अपने बाक़ जीवन भर बा चार माता क सेवा करने का मौक़ा हर कसी को नह मलता
है। तुम भा यशाली हो। रोना बंद करो, भा यशाली।”
“तुम मेरे साथ ऐसा य कर रही हो?” हमीद चीख़ा। “म तो बस अपने लए एक
बेहतर ज़दगी चाहता था। म कभी चॉपर म तोड़फोड़ नह करता। म एक अ ा, भला
और ईमानदार आदमी ं—”
“तुम आदमी नह हो! तुम कभी आदमी नह होगे! मेरा आशीवाद चाहते हो, तो
तुम मुझे सच बताओगे। वो कौन है जसने तु ह ये घ टया काम करने के लए मनाया?
ख़ुद दे वी के अवतार क ह या करने क को शश के लए!”
“म तु ह सब कुछ बता ं गा! लीज़ मुझे ब धया मत करो! लीज़! या ख़ुदा,
लीज़! जस आदमी ने मुझे इस काम पे लगाया था वो ख़ुद को रा शद कहता है—वो आर
एंड एस ए वएशन के लए काम करता है। मने इकरामभाई तक को सब कुछ बता रखा
था। मने तु ह सब कुछ बता दया है, लीज़ मुझे छोड़ दो!”
“मुझे ख़ुशी है क तुमने मुझे सच बता दया, भा यशाली। ये अहम है क तुम ये
सफ़र साफ़ दल के साथ करो,” सचला दे वी ने न तर के एक ही वार म उसके जननांग को
काटते ए कहा। हमीद च ला भी नह सका य क तेज़, सुलगते दद क वजह से वो
बेहोश हो गया था। वो तभी जागा जब उ ह ने उस जगह जहां कभी उसका जननांग होता
था एक लकड़ी का खूंटा धंसाया और घाव को दाग़ने के लए गम तेल डाला।
अ याय पं ह
लगभग 2300 वष पहले

बाबेल म नबूख़दन सर तीय का महल ऐ य का जीवंत उदाहरण था। राजा ने दे वदार


क लकड़ी, कांसे, सोने, चांद और ब मू य र न ारा सजावट म कोई कमी नह छोड़ी
थी। एक भू मगत ग लयारा फ़रात नद ारा वभा जत शहर के दोन भाग को जोड़ता
था। महल से कुछ ही री पर राजा ारा अपनी बीमार रानी अमी तस के लए बनवाए गए
बाबेल के महकदार झूलते उपवन थे। नबूख़दन सर सबसे बड़ा नमाता था। शहर के
प र य म जगह-जगह पर बाबेल के व भ दे वता के स मान म भ मं दर बखरे
दखाई दे ते थे। फ़रात के आर-पार एक अनूठा सेतु न मत था, जो डामर म लपटे ट के
खंड पर खड़ा आ था ज ह इस कार बनाया गया था क वो नद के तरोध और
खलबली को कम कर सक। तीन परत क द वार के र ा तं के कारण शहर लगभग
अभे था।
यारह जून क त थ थी और नबूख़दन सर के महल के अंदर बीमार और मृत ाय
व वजेता पड़ा आ था। ततीस साल से एक महीने कम के सकंदर ने एक रात अपने
य म ला रसा के मी डयस ारा आयो जत एक भोज म अ य धक म दरापान कया
था। रात बीतते-बीतते, सकंदर मले रया के वर से बुरी तरह कांपने लगा था। सकंदर का
राजसी पा वाहक आयोलाज़ उसके पास झुका एंट पेटर- सकंदर क यूरोपीय सेना का
सव सेनानायक— ारा वर के उपचार के लए वशेष प से भेजे गए औषधीय जल
से उसे चु कयां दला रहा था। पर द पु ष बस ये नह जानता था क उसके औषधीय
जल म हे लबो और ब नाग—एक घातक म ण—भी म त था जो एंट पेटर के बेटे
ारा एक ख़ र के खुर म गु त प से भेजा गया था, उपचार के लए नह ब क सकंदर
को मार डालने के लए।
सकंदर क बीमारी क ख़बर फैली, तो सै नक म खलबली मच गई। अंतत:,
सेनप तय के पास इसके अ त र कोई वक प नह बचा क वो अं तम वदाई के लए
सै नक को सकंदर से मलने क अनुम त दे द। उ ह एक-एक करके उसके शयनक म
आने क अनुम त द गई। सकंदर, जो अब एक श द भी बोलने यो य नह था, बस अपने
कमज़ोर हाथ से उ ह संकेत करता रहा। एक दन बाद, वो अमर राजा मर गया।

“ सकंदर बाबेल म मर गया!” पैदल सेना च लाई।


“और फ़ लपोज़ भारत म मार डाला गया!” घुड़सवार सेना च लाई।
“यही आ मण करने का समय है!” चं गु त ने कहा।
“हम ती ा कस बात क कर रहे ह?” श शगु त ने पूछा।
चं गु त और श शगु त क संयु सेनाएं गरजती ई अपने अ ायी श वर से
नकल और ज़मीन को दहलाते हज़ार घोड़ क टाप ने धूल का एक तूफ़ान खड़ा कर
दया। अ के खुर का शोर एक भयानक, अशुभ आवाज़ थी, जैसे मौत क मशीन का
लुढ़काव।
अगले कुछ दन म उ ह ने मैसीडो नयाई शासन वाले सारे ांत को र द डाला।
ये अपे ाकृत सरल रहा, य क मैसीडो नयाई बल क कमान का ढांचा फ़ लपोज़ क
ह या के बाद पूरी तरह चरमरा गया था। सकंदर क मौत ने भी लाभ प ंचाया था य क
इसके नतीजे म मैसीडो नयाई पद म के उ तम पायदान पर स ा के लए संघष आरंभ
हो गया था और वयं से यूकस क त भी अब ख़तरे म पड़ गई थी।
“एक अकेले सकंदर क मौत को मैसीडो नयाइय म एक ासद के प म दे खा
जा रहा है, ले कन उसक सा ा यवाद मह वाकां ा के नतीजो म ई हज़ार मौत बस
एक आंकड़ा समझी जा रही ह,” चं गु त ने ु भाव से श शगु त से कहा। ये सोचकर
उसका ख़ून खौल रहा था।

मगध से नकास के बाद रा स नए माहौल म बड़े आराम से बस गया लगता था। त शला
म अपने नए आवास म वो आंगन म एक सुनहरी कुस पर बैठा था, और उसक मो तया
रंग क पगड़ी हीर से झल मला रही थी। दो अ यंत सुंदर दा सय के हाथ म सोने के द त
वाले याक क पूंछ के मोरछल हल रहे थे। छ धार के हाथ म मौजूद एक सुनहरी छाता
धूप से उसक र ा कर रहा था, जब क उसका एक और सेवक उसक नीलम-मा णक
ज ड़त तलवार को संभाले ए था। वो नंगे पैर बैठा था और उसके सूअर क खाल और
चांद क पा काएं एक ओर पड़ी थी। एक और ग णका उसे ठं डा रखने के लए ताड़ के
प , उशीर क घास और मोर के पंख से बना पंखा झल रही थी। उसक सारी से वकाएं
पारदश लंबे अंतरीय पहने थ जनके ढ ले कायाबंध क गांठ बीच म बंधी ई थ और
उनका झीना कपड़ा क पना के लए ब त कुछ नह छोड़ रहा था।
चाण य बना कसी घोषणा के प ंचा, तो रा स ज द से अपनी कुस से खड़ा
हो गया और उन सारी आकषक लड़ कय को उसने भगा दया जो उसके भ व
क र ा म लगी थ । “दे ख रहा ं क आप बड़े मज़े म रह रहे ह, रा स,” मगध के अनुपम
भूतपूव महामं ी के चार और ऐ य को दे खकर दांत नकालते ए चाण य ने ट पणी
क । “म ये भी दे ख रहा ं क धनानंद ारा सकंदर के लए भेजी गई भट का अ ा
योग हो रहा है,” चाण य ने एकदम रेशमी आवाज़ म कहा। रा स शमा गया। वो जानता
था क इस कु प हरामज़ादे क नज़र से कुछ नह बच सकता था।
“इंसान को पेट तो भरना ही होता है,” रा स ने वन भाव से कहा। “मुझे
व ास है आपको ये दे खकर स ता हो रही होगी क म धनानंद के धन म सध लगा रहा
ं।”
“और मगध के भा यशाली नाग रक के धन म भी,” रा स को अं तम श द
बोलने का अवसर न दे ते ए चाण य ने कहा। ‘‘जो भी हो, मेरे य म रा स, म यहां
उस नधनता पर बात करने नह आया जो आपको घेरे ए है। म एक अ यंत मह वपूण
वषय पर बात करने आया ं—धनानंद के पतन म आपका योगदान!”
“म आपके साथ ,ं आचाय। उस ने मुझसे वो एकमा म हला छ न ली
जससे म स ा यार करता था,” उसने कहा और उस क या को तलवार लाने का संकेत
कया जसके पास उसक तलवार थी। उसने भारी-भरकम तलवार को उसके द ते से
पकड़कर उठाया और नाटक य ढं ग से घोषणा क , “म अंत तक ल ंगा! हम म से एक—
धनानंद या म— ही जी वत बचेगा!”
चाण य खल खलाया। “अरे नह , मेरे य रा स। म आपसे तलवार से लड़ने
जैसा साधारण काम नह लेना चाहता। आपके कोमल हाथ और ब मू य ाण को
जो खम म नह डाला जा सकता।”
“ या आप मेरे शौय पर उठा रहे ह, आचाय?” रा स ने घृणापूण वर म
पूछा।
“मेरे म , वो शौय या है जसक हम बात कर रहे ह? शौय का अथ वो एकमा
होना है जो जानता है क आप भयभीत ह! छाह! आपका मह व आपके शौय म
नह ब क आपके षडयं कारी म त क म है। मुझे आपका म त क चा हए, तौर-तरीक़
के बारे म आपका ान। ब क इससे भी बढ़कर—लोग के बारे म आपका ान!”
“म आपक सेवार म त पर ं, आचाय। धनानंद से लड़ने के लए म हर कार से
आपक सहायता के लए तैयार ,ं ” रा स ने बड़बोलेपन से कहां, “नह , नह , नह ,
रा स, मुझे धनानंद से लड़ने म आपक सहायता नह चा हए। मुझे आपक सहायता बना
लड़े जीतने म चा हए। और इसका हल एक ऐसे के पास है जसे आप ब त नकट
से जानते ह। उसका नाम भ शाल है।”

यम माग और रंगोपजीवी वी थ के कोने पर त म दरालय मगध के सव े पानागार म


से एक था। अ य पानागार के वपरीत जहां म दरापान के लए एक समान े होता था,
यहां पृथक क थे ज ह गंभीर म प आर त करा सकते थे। हर क म आरामदे ह ग े ,
रोमन ढं ग से कोह नयां टकाने के लए गोल त कए, नीची चौ कयां, वायुसंचार के लए
वशाल खड़ कयां, ताज़े पु प और सुगं धत जल था। चावल, आटे , फ लय , अंगूर, मुलैठ ,
गुड़, आम, शहद, बेल, काली मच और अ य मसाल से तैयार क गई म दरा क एक
लंबी सूची से ाहक क सेवा करने के लए अ यंत सुंदर ग णकाएं थ ।
म दरालय क बग़ल म ही एक उतना ही लाभकारी उ म और था— एक
ूतशाला। ये पांसे के खेल के अ त र लगभग हर संभव घटना पर स े के लए भी
स था। एक अनुभवी ूत गु —एक भीमकाय व वाला आदमी— ूतशाला क
दे खरेख करता था और ये सु न त करता था क ाहक उसके नयम का पालन कर और
क सफ़ बना छे ड़छाड़ कए पांसे ही योग म लाए जाएं। वो कोई भी गड़बड़ी नह चाहता
था। उसका अनु ाप ूत व स ा वभाग के नयं क के यहां समी ा के लए गया आ
था और वो कोई गड़बड़ी सहन नह कर सकता था। जीत क कुल रा श का पांच तशत
कर के प म मगध के राजक य कोष म जाता था और शासन को र रखने के लए
इसके अ त र पैसा जाता था।
मेज़ सं या छह का खलाड़ी ूत गु का मनपसंद खलाड़ी था। वो पछले कई
घंटे पांसा फकने और जमकर हारने म बता चुका था, जैसा क लगभग हमेशा ही होता
था। उसका उधार सीमा से अ धक हो चुका था ले कन ूत गु उससे ये कहने का साहस
नह जुटा पा रहा था क अब और ॠण नह दया जा सकता।
अब रात का वो समय होने लगा था जब ये ाहक उठता था और म दरालय चला
जाता था जहां उसका आर त क , और पसंद के पेय व से वकाएं उसक ती ा म होती
थ । वो कोई साधारण नाग रक नह था। इतना तो उसक पोशाक, आभूषण और तौर-
तरीक़ से ही था। ले कन एक आम को बस इतना नह था क रा स के
जाने के बाद वो मगध का सबसे श शाली था। वो मगध क सेना का सेनाप त था
और उसका नाम भ शाल था।
“इसे मेरे खाते म लख लेना,” भ शाल ने लापरवाही से ूत गु से कहा और
खुले आंगन से होता आ अपनी याऊ क ओर बढ़ गया।
सामा यत: अपने लए आर त कमरे म कसी और को दे खकर भ शाल ब त
ो धत आ। “ग णका, मेरे कमरे म कोई अजनबी य बैठा है?” बुरी तरह चढ़े ए
भ शाल ने घबराई ई से वका से कहा। “मने उ ह रोकने का यास कया था, वामी, पर
उ ह ने कहा क वो आपको जानते ह और क वो आपके अ त थ ह,” उसने जवाब दया,
जसे सुनकर भ शाल और भी अ धक ोध म आकर कमरे म घुसता चला गया।
“अ धकृत दवा लय के लए सुर त कारागार क कोठरी म रहने से े होगा
क आप अपना क मेरे साथ बांट ल,” भ शाल के वेश करने पर जीव स —मगध म
चाण य के कम —ने शांत भाव से कहा।
“ नकल जाओ इससे पहले क म तु ह बाहर फकवा ं ,” ोध से लाल चेहरे
वाला भ शाल गरजा। “न तो म तु ह जानता ं न जानना चाहता ं।”
“शांत हो जाइए, भ शालजी,” जीव स ने कहा, “आपके पुराने म रा स ने
मुझसे आपक सम या का समाधान करने को कहा है। वो आपको लेकर च तत ह और
उ ह ने मुझसे आपक सहायता करने को कहा है।”
“ले कन रा स तो त शला म है। वो तु ह कुछ कैसे बता सकता था?” भ शाल
फड़फड़ाया।
“बस यूं समझ ली जए क हमारे बीच एक वायवीय संबंध है,” जीव स ने उसी
सवेरे चाण य और रा स के पास से आई कबूतर डाक के संदभ म कहा।
“और रा स य मेरी सहायता करना चाहता है? म उस को अ तरह
जानता ं। वो कभी कोई ऐसा काम नह करता है जो उसके हत म न हो,” भ शाल ने
कपटपूण ढं ग से कहा।
“वो चाहते ह क आप उनके म और सहयोगी बने रह। धनानंद के दरबार म
वापस ान बनाने के लए उ ह म क आव यकता हो सकती है,” जीव स ने
भ शाल को जानकारी द ।
“और तुम कौन हो?” भ शाल ने संदेहपूवक पूछा। जीव स ने अपना
म दरापा मेज़ पर रखा, टांग उ े यपूवक ग े पर फैला और लापरवाही से कहा, “म
आपक आ थक सम या का हल ं।”
“कैसे? अगर तुम सब कुछ जानते हो, जैसा क तुम दावा कर रहे हो, तो तुमसे ये
भी छपा नह होगा क मेरे ूत के ॠण कतने अ धक ह।”
“ ं। हां। आपक व ीय अव ा संकटपूण है। आपके नजी व ीय ववरण के
आधार पर कोई भी समझदार आपको ॠण नह दे गा,” जीव स ने उपहासपूण
ढं ग से कहा।
“पर है क तु हारे पास ऐसा समाधान है जो मेरी सारी आ थक चताएं र
कर दे गा,” भ शाल का ं यपूण उ र मला।
“आप कैसे कह सकते ह?” जीव स ने चतुरतापूण ढं ग से कहा। “पर वा तव म
मेरे पास एक योजना है। म कंबोज का अ ापारी ं और मेरे पास पाट लपु के ार के
बाहर कुछ सौ घोड़े ह। जैसा क वयं एक घुड़सवार सै नक होने के नाते आप जानते ह,
सव े घोड़े सधु पार अ क े के होते ह।”
“ ापा रक जानकारी के लए ध यवाद,” भ शाल ने ं य के साथ कहा, ले कन
अब ये था क वो जीव स क बात पर यान दे रहा था।
“आपका वागत है,” जीव स ने ं य को नज़रअंदाज़ करते ए कहा।
“मसला ये है क अभी मेरे पास जो अ ह वो नचली न ल के ह, उस अ न ल के नह
जो मगध म मेरे ाहक को चा हए।”
“तुम साली इस थ ापा रक बातचीत से य मेरा समय न कर रहे हो? म
साला कोई अ -पालक नह ं!” भ शाल तड़क उठा।
“जानता ं। अगर होते, तो आप धनी होते, दवा लया नह !” जीव स ने सपाट
भाव से कहा। “म जो योजना आपके सामने रखना चाहता ं वो हम दोन को अ य धक
धनी बना दे गा। आपके सारे ॠण समा त हो जाएंगे और फर भी सात पी ढ़य के लए धन
बच रहेगा!”
“बोलते जाओ। म सुन रहा ं,” भ शाल ने कहा।
अब जीव स समझ चुका था क उसक बात सुनी जा रही है। “आपक
घुड़सवार सेना म हज़ार े न ल के घोड़े ह। मेरा सुझाव है क हम उ ह बेच द,”
जीव स ने कहा।
“तुम पागल हो या?” इस सुझाव क मूखता पर फर से ु होकर भ शाल
चीख़ा | “म रा य क संप को नह बेच सकता, नीच । लेखा नयं क हर महीने
मुझसे हसाब लेता है। और वो कमीना सै नक अ तबल म एक-एक अ को वयं गनता
है। साला धनी होने के लए यही साली योजना है तु हारी? नकल जा यहां से, मंदबु !”
“शांत रह, मेरे य म । मुझे बताएं क अ क सं या गनते समय या वो
अ क न ल क भी जांच करते ह?” जीव स ने सरलभाव से पूछा।
भ शाल के चेहरे पर पहली बार मु कान आई। “तुम चाहते हो म उ ह बदल ं ?”
द ाग क ब ी जलने पर उसने पूछा।
“म आपको साधारण न ल के सैकड़ अ दे सकता ं। आप उ ह सेना के अ
न ल के अ से बदल सकते ह। म अपने संपक के मा यम से अ न ल के अ को
बेच ं गा और उससे अ जत लाभ से हम अपनी जेब भर सकते ह,” जीव स ने पूरी बात
समझा द ।
“हमारे बीच लाभ का बटवारा कैसे होगा?” भ शाल ने पूछा।
“स र-तीस। अ धकांश काम मुझे करना होगा,” जीव स ने कहा। चाण य ने
उसे समझाया था क जमकर सौदे बाज़ी करे, वना भ शाल षडयं क गंध को सूंघ लेगा।
“भाड़ म जाओ! बना मेरे अ के तु हारा ापार नह चलने वाला। मुझे पचास
तशत चा हए, इससे कम नह !” इस अवैध ापार से होने वाले लाभ को मन ही मन
गनते ए भ शाल ने तक दया।
‘‘साठ-चालीस,’’ जीव स ने सौदे बाज़ी क । “इससे यादा पर ये सौदा मेरे लए
वहाय नह होगा। वीकार कर या ठु करा द।”
“ वीकार कया,” भ शाल ने मृ ता से कहा।
“बदलने के लए कतने अ भेजूं आपके पास?” जीव स ने पूछा।
“तु हारे पास कतने उपल ह?” भ शाल ने अपने नए ापा रक साझेदार को
मु कुराकर दे खते ए पूछा।

“पोरस ही वो श है जो मगध को ा त करने म हमारी सहायता करेगा। सम या ये है क


उसके बाद वो हमारे लए बोझ बन जाएगा,” चाण य ने सहारण को बताया, जब क वो
कैकय के महल म अपने नजी क म बैठे ए थे। “वो ऐसी औष ध है जो एक रोग का तो
उपचार कर दे ती है पर सरा रोग उ प कर दे ती है!”
सहारण बोला। “आचाय, संदेशवाहक अ ा समाचार लाए ह। सकंदर क मृ यु
और फ़ लपोज़ क ह या से चं गु त और श शगु त को ो साहन मला है। अ क पर
अ धकार के बाद उ ह ु क और सधव घुड़सवार का साथ मल गया। उ ह ने सध को
लगभग पूरी तरह र द डाला है। इसी के साथ, एलोर, सधववन, महा ऊध, ल और
पटाला क सेना ने मैसीडो नयाइय के व व ोह कर दया है और चं गु त का
भु व वीकार करने को तैयार ह। आपके नदशानुसार, चं गु त को अब सफपुर का
शासक बना दया गया था और अब उसक कमान म दस हज़ार जाट —सबसे श शाली
और भयंकर यो ा—क सेना है। ये सेना श शगु त क सेना, मलयरा य क मेरी सेना,
और हमारे श त यो ा के अ त र है। या हम फर भी पोरस क आव यकता
है?”
“आव यकता है, सहारण। पोरस के पास तीन हज़ार हाथी, पांच हज़ार रथ, दस
हज़ार घोड़े और पचास हज़ार पैदल सेना और इसके अ त र स र हज़ार मैसीडो नयाई,
शक, करात, कंबोज, पर सका, बा क और अ कण सै नक ह। उसे नज़रअंदाज़ नह
कया जा सकता। मगध के पास संसार क सबसे श शाली सेना है, ऐसी सेना जससे
लड़ने म श शाली सकंदर भी हच कचा गया था। पोरस के बना सफलता असंभव
होगी,” चाण य ने वचारपूण भाव से कहा।
“पर मगध पर वजय ा त होने के बाद पोरस को उस पर अ धकार करने से कैसे
रोका जा सकेगा?” सहारण ने चाण य क ही चता भरा कया। “वो य लड़कर भी
व जत संप को लेना नह चाहेगा?”
“पोरस से नबटने का बस एक ही तरीक़ा है। क हम मगध के स ाट के पद के
लए एक और श शाली उ मीदवार खड़ा कर द। फर चं गु त समझौता उ मीदवार बन
जाएगा,” चाण य ने चालाक से कहा।
“ले कन वो उ मीदवार कौन होगा?” सहारण ने पूछा।
“ पछले साठ वष से क लगरा य मगध क अधीनता म रहा है। महानं दन ने उन
पर वजय ा त करके अपने अधीन कर लया था और तभी से वो हर साल यु यपण
के प म लाख वण पण दे ते रहे ह। राजा और उसके लोग को मगध को सबक़ सखाने
का अवसर पाकर स ता होगी,” चाण य ने मृ भाव से सुझाव दया।
“तो आप क लग के राजा के आगे ये चारा डालगे क आप उसे मगध का स ाट
बना दगे?” सहारण ने पूछा।
“नह । बड़े झूठ बोलने क या आव यकता है जब छोटे झूठ उतने ही
भावशाली ह ? म उससे क ंगा क अगर धनानंद को सहासन युत कर दया जाए तो
क लग पछले साठ साल के अ यायपूण समझौते से मु हो जाएगा़ न इससे अ धक, न
कम। उसके बाद म लोभ और मह वाकां ा को अपने राजसी माग पर चलने के लए छोड़
ं गा!”

“एक सम या है,” जीव स ने कहा।


“अब या आ?” भ शाल ने स का पा ख़ाली करते और मुंह साफ़ करके
चढ़ते ए पूछा।
दो सौ से अ धक अ गु त प से बदले जा चुके थे। जीव स उसे आधी या
बना न ल के अ भेजता; इ ह रात म मगध क सेना के े न ल के अ से बदल दया
जाता। अगले दन, जीव स ख़ामोशी से े न ल वाले अ को बेचने क व ा कर
दे ता। इस व ा ने भ शाल को फर से धनी बना दया था और वो मगध क
ूतशाला और म दरालय का फर से मनपसंद ाहक बन गया था।
“लगता है क मने जो अ आपको बदलने को दए थे उनम से लगभग आधे
अ क पीठ पर एक छोटा सा गोदना है। इस पर मेरा यान नह गया य क अ पर
हमेशा व ढका होता था,” जीव स ने बताया।
“कैसा गोदना?” भ शाल ने घबराते ए पूछा।
“चां गु त मौय का राजसी चा —य प वो ब त छोटा सा है,” जीव स ने
कहा।
“यो नभोगी! म इसके लए तेरे अंडकोष कटवा डालूंगा,” भ शाल फुफकारा।
“जानता है अगर ये रह य खुल गया क चं गु त मौय से संबं धत अ मगध क अ सेना
म ह तो मेरा या होगा?”
“आपको ाणदं ड दे दया जाएगा?” जीव स ने सरलभाव से पूछा।
“अगर म गया, तो तुझे अपने साथ लेकर जाऊंगा!” भ शाल गरजा।
“म आपक त समझता ,ं भ शालजाी। वा तव म समझता ं। म आपको
वचन दे ता ं क ये जानकारी हमारे बीच गु त रहेगी। आपक त को संकट म डालने
वाला कोई काय नह कया जाएगा,” जीव स ने ेमपूवक व ास दलाया, ‘‘बशत क
कभी-कभी मेरे कुछ छोटे -मोटे काम कर दए जाएं।”

उसका पेट तक कड़वा हो गया था! रा स को भाग नकलने दया गया था और वो


वे यापु चाण य और चं गु त उसे—अद य धनानंद को—जड़ से उखाड़ने के लए सारे
भारत म ां त उ प करते ए दनदनाते घूम रहे थे।
अद य धनानंद अपने सहासन पर बैठा बैचैनी से करवट बदल रहा था। महल का
रसोइया घ टया भोजन दे रहा था, जससे उसे अपच और अधोवायु क सम या हो गई थी।
उसे—श शाली धनानंद को—घ टया भोजन दे ने के लए उसे उस तु रसोइए को
ाणदं ड दे ना पड़ेगा। भ सभागार के अंदर उसके मं य क प रषद—चापलूस क
मंडली—बैठ थी। मेरे आसपास ऐसे लोग रह जो भयभीत ह , धनानंद ने सोचा। इससे
ां तय और व ोह म ब त कमी रहती थी। वो उन दन के बारे म सोचकर हंसने लगा
जब शकतार जैसा धानमं ी था जो अपने राजा को बार-बार सुधारना अपना कत
समझता था। और फर वो रा स—वो यारा कुटना। आह! भले ही वो त शला भाग गया
हो, ले कन उस क याद तो आती ही थी। उसने हमेशा ये सु न त कया था क
धनानंद क रात व जत उपभोग से भरी रह, और हर रात पछली रात से अ धक शानदार
हो। सुवा सनी को ा त करना थ रहा था। वो उन म हला म से थी जो केवल तभी
तक आकषक लगती ह जब तक क वो कसी और क ह । व च बात है क नारी को
जैसे ही ा त कर लो उसका आकषण कम हो जाता है, धनानंद ने सोचा। एक धृ म खी
उसके सर के आसपास भन भनाई, और मोरछल झल रही क या म से एक ने उसे उड़ा
दया।
“ या मगध पया त प से सुर त है?” धनानंद ने पूछा।
स माननीय का यायन खड़े ए। “मेरे वामी, ये नह है क मगध सुर त है
या नह । अ धक मह वपूण ये है क हमारे श ु को लगता है या नह क मगध
सुर त है।”
धनानंद ख खयाया। उसे य इन न ु र बु जी वय को सहन करना पड़ता है?
“का यायनजी, मने ये हमारे सै यबल के अ य भ शाल से कया था। मेरे वचार से
इस का वही बेहतर उ र दे सकते ह।” का यायन बैठ गए और भ शाल ने
सावधानीपूवक अपने आसपास दे खा। उसे प रषद क सभा से घृणा थी। उसे लगता था
जैसे प रषद के अ य सभी सद य उसे आंक रहे ह । वशेषकर का यायन उसे दे र तक घूरते
रहते थे, जैसे क वो नरी ण म रखा गया कोई जै वक नमूना हो।
“मेरे वामी, हमारी सेना पूरी तरह सतक है। परंतु मेरा सुझाव है क हमारे
अ धकांश सै नक यह रह, पाट लपु के गबंद नगर म। अगर, और कभी श ु आ मण
करे, तो हम उसे फुसलाकर यह ले आएं और फर उ ह काट डाल। हमारी भारी सं या के
कारण ये हमारे लए सरल रहेगा।”
“और इं और अ य सीमावत नगर को असुर त छोड़ द?” धनानंद ने
अ व ासपूवक पूछा। भ शाल ने भयपूवक थूक नगला। उसने य वयं को ूत और
म दरा म डाल दया था जनके कारण वो नीच जीव स उसे नदश दे ने लगा था क वो
इन सभा म या कहे?
“भ शालजी के सुझाव म दम है,” का यायन ने ठ क उस समय कहा जब
भ शाल के माथे से पसीना धीरे-धीरे बहकर नीचे फ़श पर गरने लगा था। का यायन
जानते थे क भ शाल के श द वा तव म चाण य के श द थे। भ शाल आ य से दे खता
रह गया क का यायन ने कस तरह इस मु े को संभाल लया था। “महाराज, राजसी कोष
पाट लपु के ग म त है। इं और अ य सीमावत नगर क सुर ा करने का या
लाभ है जब क रा य का धन यहां है? इसके अ त र , हम पर कई ओर से आ मण होने
क आशंका है, प म से पोरस, द ण से क लग और उ र से नेपाल नरेश के आ मण
क संभावना है। हम सेना को कतने मोच पर बांटगे? मुझे लगता है क भ शाल ने एक
नपुण रणनी त बनाई है। श ु को आ मतु म डाला जाए। उसे मगध म वेश करने दया
जाए। और जैसे ही वो पाट लपु प ंच,े उस पर धावा बोल दया जाए!”
धनानंद ने का यायन को दे खा। फर उसने अपनी नज़र भारमु भ शाल क
ओर घुमा । और फर ज़ोर से हंस पड़ा। “म मूख को स तापूवक सहन करता ं,
ले कन बु जी वय से म और भी अ धक लाड़ करता ं। कभी कोई ऐसा न कहे क
श शाली धनानंद इतना घमंडी था क अपने सलाहकार के सुझाव नह मानता था। जैसा
तुम लोग कहो—हम श ु क यह ती ा करगे!”

“आंभी जानता है क पोरस मगध पर आ मण करने वाला है,” मे हर ने कहा, “और वो


इसे पोरस के रा य कैकय पर आ मण करने के अवसर के प म दे ख रहा है, य क
उस समय पोरस का यान बंटा आ होगा। इसे कैसे रोका जाए?”
“इसका उ र है आंभी को त रखना। उसके पास इतना समय ही न हो क वो
अपनी सीमा से परे कुछ भी दे ख सके,” चाण य ने सुझाव दया।
“कैसे?”
“आंत रक झगड़ा पैदा कर दो। उसे व ध- व ा बनाए रखने म त रखो।”
“ऐसा कहना करने से आसान है। उसक जा स है। वो य व ोह करेगी?”
“उ ह अ स करो। सोचो, मे हर। आंभी के गंधार रा य म सबसे श शाली
समुदाय कौन सा है?
“ ा ण।”
“और उनक श का ोत या है?”
“ द अनुमोदन। ये वेद म लखा है। साधारण मनु य क ओर से दे वता से
संवाद के लए उनक आव यकता पड़ती है।”
“और ा ण क धानता को हर कोई वीकार करता है?”
“नह । बौ मानते ह क ा ण क अनु ान और ाथनाएं दखावा ह।”
“तो, य द ऐसा तीत हो क आंभी बौ धम को ो साहन दे रहा है तो या
होगा?”
“ ा ण व ोह कर दगे!”
“ या फर भी रा य म स और संतु लोग रह जाएंग,े य मे हर?”
मे हर हारकर मु कुराने लगा। “ले कन म आंभी ारा रा य म बौ धम को
ो साहन कैसे दलवाऊं?”
“उ र त शला व व ालय म है। अभी ये मुझ जैसे ा ण क जागीर है।
य द व व ालय के एक भाग को उ श ा के बौ क के प म प रव तत कर दया
जाए, तो ा ण समुदाय वयं को ख़तरे म महसूस करेगा।”
“ले कन आंभी एक बौ उ े य के लए कभी अपना धन ख़च नह करेगा,” मे हर
ने फर से बहस क ।
“म मानता ं। इस वचार को इस तरह तैयार करना होगा क आंभी को बना
समय या धन य कए इस प रयोजना को आरंभ करने का ेय मले।”
“ले कन आचाय, य द हम कसी और से इसम पूंजी लगवाएं, तो भी या धा मक
मतभेद पैदा करना बु मानी है?”
“मेरा धम मुझसे कहता है क मुझे भारत को चं गु त के अंतगत एक कृत करना
है। य द मुझे एकता पैदा करने के लए धा मक मतभेद पैदा करने क आव यकता पड़े, तो
ऐसा ही सही। उ े य साधन का औ च य बताता है।”
“ले कन या ये आपक अंतरा मा के व नह जाता?” मे हर ने पूछा।
“मे हर, एक अंतरा मा सामा यत: बुरी मृ त क पहचान है। वैसे भी,
राजनी त क नया म अंतरा मा जैसी वला सता के साथ नह रहा जा सकता!”
“आचाय, आप वयं एक ा ण ह, फर भी आप एक ऐसी रणनी त का सुझाव
दे रहे ह जसके नतीजे जा त के लए भयानक हो सकते ह?”
“एकमा जा त जससे मेरा संबंध है, वो है भारत क जा त। मेरी एकमा भ
एक कृत भारत क धारणा के त है।”
“तो आप कस प म ह?”
“ वजयी प म,” चाण य ने उ र दया।
“पर हम चं गु त और श शगु त से आंभी पर आ मण ही य नह करवा दे त?े ”
ांत मे हर ने पूछा।
“हमारे चीनी पड़ो सय के पास ाणदं ड दे ने क एक व ध है जो वो सबसे
भयानक अपराध करने वाल के व योग करते ह। उस व ध का नाम है सह चीर
ारा मृ यु । दं डत को शरीर के व भ भाग पर ब त धीरे-धीरे चीरे लगाकर मारा
जाता है। ये एक भयानक मौत होती है जसम अ भयु का र बहाकर उसे मारा जाता
है। मेरी योजना आंभी का र बहाकर उसे मारने क है।”
“ य ?” मे हर ने पूछा।
“ य क उस पर खुला आ मण करने का वक प नह है। हम अ धकृत प से
यही त बनाए रखनी है क हम म ह य प हम म नह ह। हम उसके पीछे खड़े रह
तब भी उसे सहज महसूस होना चा हए।”
“ य , आचाय?”
“ य क कसी को पीछे से छु रा तभी घ पा जा सकता है जब क आप उसके पीछे
खड़े ह , मे हर। इस लए!”

त शला के ब हगत वन म त मठ बु म् शरणम् ग ा म, धमम् शरणम् ग ा म,


संघम् शरणम् ग ा म के मं ो ारण के अ त र एकदम शांत था। छ परदार झोप ड़यां
साद और छ द थ । इन छोटे -छोटे आवास के आसपास क भू म साफ़-सुथरी थी। संघ
—मठ—सादगी, व ता और शां त का जीवंत उदाहरण था। सौ भ ु और भ ु णयां
एक पं म चल रहे थे; उनके मुंडे ए सर तेज़ धूप के कारण पसीने से चमक रहे थे;
भ ु और भ ु णयां एक- सरे से पृथक थे। वो अंतरवसक, उ रसंग, संघ त और
कुशलक पहने ए थे, जो चीथड़ और रंगे ए लाल रंग के कपड़ से सले ए थे। उनके
पैर म बंधी पुरानी-धुरानी लकड़ी क पा काएं उनक पोशाक को पूरा करती थ । संप
के नाम पर उनके पास ब त कम सामान था—एक भ ापा , उ तरा, दं तखुदनी, सलाई
क सूई और छड़ी। चलते-चलते वो अपना मं बु म् शरणम् ग ा म, धमम् शरणम्
ग ा म, संघम् शरणम् ग ा म पढ़ते जा रहे थे।
नचली जा तय के त अपनी नरंतर बढ़ती अस ह णुता, ा ण और य
के लए अनु चत वशेषा धकार , अनमनीय प से प रभा षत अनु ान , और सं कृत ंथ
पर बल के कारण ह व म उन लोग का दम घुटने लगा था जो वण म म सबसे नीचे
सोपान पर थे। ये गौतम बु के नए दशन म, उस दशन म जो सावभौ मक समानता क
श ा दे ता था, म सव थम धमात रत ए थे।
उ ह दे ख रहा पेड़ के ऊपर बैठा छोट आ तीन का अंगरखा, ऊपरी गांठ
क पगड़ी, ठोड़ी बंधन और कणाभूषण पहने ए था। उसक पेट के दा ओर एक हं सया
लटक रहा था और बा ओर एक कु हाड़ी ख सी ई थी। उसके बाएं कंधे पर एक भारी
उ रीय लपटा आ था। सोने क बा लय और तांबे व अधमू यवान र न के बाज़ूबंद के
अलावा उसने कोई आभूषण नह पहना था। उसके माथे पर तीसरी आंख कहा जाने वाला
स र का तलक था—उसका मंगल च । वो एक य क तरह यु क पोशाक म था
पर वो वा तव म एक ा ण द यु था। उसके साथ लगभग पचास डाकू और थे जो मठ को
घेरे ए उस पर बारीक से नज़र रखे ए थे। द यु मुख ु था। ये —बौ — ह
अछू त को समा व और धमात रत करते थे, सामा य लोग से ई र क आराधना के
ा ण अनु ान का याग करने को कहते थे, और प व सं कृत के बजाय ाकृत म
अपने ंथ लखने क भी धृ ता कर बैठे थे। उनक ह मत कैसे ई क वो पाखंडपूण
समानता वाले कसी धम म ह का धमातरण कर! अब तो उ ह प व त शला
व व ालय म भी अ धकार दए जा रहे थे। उ ह पाठ सखाया जाना आव यक था ता क
वो टांग के बीच म दबाकर भाग जाएं। कु क तरह भाग जाएं! ये भी अ ा था क
गोरी वचा वाला फ़ारसवासी मे हर लुटेर के अ भयान और उससे संबं धत य को उठाने
के लए तैयार हो गया था।
उसने अपने से नीचे वाली शाखा पर बके अपने सहायक को सर हलाकर
ख़ामोशी से संकेत दया। नरसंहार आरंभ आ तो आसमान म अंधेरा छाने लगा और
शकारी प ी च कर लगाने लगे।

आंभी का ोध से बुरा हाल था। उनक ह मत कैसे ई! अगर हर कोई इसी तरह याय
करने लगा, तो व ध के शासन का या होगा? ये ा ण लुटेरे समझते ह क ये बौ
भ ु क ह या करगे और बच नकलगे? अब वो अपने राजा का नदयी प दे खगे!
उसके आदे श पर उस भयंकर नरसंहार के लए उ रदायी को उसके सै नक
ने गर तार कर लया। ये दं ड का नह ब क तशोध का मामला था। उन ह यार ने
र पपासा बुझाने के लए सौ नद ष बौ को मार डाला था। वो अपरा धय को दं ड न
दे ने को कस कार यायसंगत ठहरा सकता था?
“उ ह एकदम न न करके बु माग पर खड़ा करो, और सब लोग मानव के साथ
क जा सकने वाली हीनतम ू रता को दे ख। धधकती लाल क ल उनक जीभ म ठ क
जाए, उनके दाएं हाथ उबलते तेल म डु बोए जाएं, बा आंख म गम मोम डाला जाए और
उनके बाएं पैर के अंगूठे को काट डाला जाए। उ ह इस कार त- व त करने के बाद,
उनके चेहर को काला कया जाए और उ ह गध पर बठाकर पूणतया अपमा नत करते
ए सड़क पर घुमाया जाए! मरने वाले बौ भ ु के वपरीत वो जी वत रहगे—परंतु
उनके जीवन जीवंत नक ह गे!” हताश आंभी ने आदे श दया। वो नह जानता था क वो
एक वालामुखी पर बैठा है।

‘‘चं गु त से कहना क रा य के ा ण को रझाने के लए मुझे उसक आव यकता है।


उसे ा ण समुदाय के सबसे बड़े उ ारक के प म दे खा जाए,” चं गु त के पास
स ाथक के कबूतर को भेजते ए चं गु त ने नदश दया।
“हे बु मान वामी, या ये यायपूण नह है क नद ष के ह यारे ा ण
द यु को आंभी ारा दं ड दया जाए?” स ाथक ने न कपट भाव से पूछा।
“ हम खलन का येक कण वयं को नद ष कहता है, स ाथक। म कस
हमकण को दं ड ं ?” चाण य ने आंख सकोड़ते ए पूछा। “ये वो समय है जब चं गु त
को धमर क के प म दखाई दे ना चा हए।”
उतावलेपन से पंख फड़फड़ा रहे शु ेत कबूतर के साथ बांधे गए संदेश म
चं गु त को नदश दया गया था क वो कस कार ा ण जीवनशैली के उपकारी,
र क, उ ारक और पालक का भामंडल ा त कर सकता है। चं गु त से कहा गया था
क वो सह ा ण ारा एक वशाल य करवाए जसम वै दक री त से वशाल
अ नकुंड म घी, ध, अनाज , शहद और सोम का ह दया जाए। उसके बाद राजा को
ंथ पर चचा करने के लए एक वराट ा ण सभा का आयोजन करना था। बना कसी
अपवाद के येक तभागी को एक वेश पुर कार ा त करना था। इसके बाद सह
ा ण के लए भोज क व ा क जानी थी। काय म के अंत म येक ा ण को
और भी उपहार— वण मु ाएं, व , अनाज, और एक गाय— दए जाने थे।
“अनु ान कराने के बजाय, या चं गु त को आंभी पर आ मण करके उसे सदा
के लए मटा नह दे ना चा हए?” स ाथक ने पूछा।
“नह । म ये काम उसके ान पर श शगु त से करवाऊंगा,” चाण य ने उ र
दया।
“ले कन आचाय, या ये संभव नह है क श शगु त गंधार पर आ धप य जमाना
चाहे? जो भी हो, वो भी चं गु त जतना ही श शाली है। अब चं गु त सफपुर का
शासक और सहारण के मा यम से मलयरा य, ू क, सधव, एलोर, ल, पटाला
और महा ऊध पर नयं ण रखता है, परंतु अब श शगु त का नयं ण अ क और सध—
दो अ यंत वशाल और साम रक कोण से मह वपूण रा य —पर है,” स ाथक ने
कहा।
“वो न त प से गंधार पर अ धकार करने का यास करेगा। और म यही
चाहता ं। म चाहता ं क जब वो इस यास म लगा हो, तब चं गु त ा ण और उनके
दे वता क आराधना कर रहा हो!” चाण य ने कहा।
“ य ?” भौच के स ाथक ने पूछा।
“पहली च ड़या को क ड़ा मलता है पर सरे चूहे को पनीर मलता है,” चाण य
ने गूढ़ भाव से कहा।

“आपको पता है क गंधार म आंभी ने एक हज़ार ा ण को अपंग बना दया और मार


डाला है?” ानीय नाई ने पूछा। उसके ाहक— सुनार—ने उसक ओर दे खा। नाई सुनार
क मूंछ कतरने म त था। उसने मूंछ क काट-छांट होने तक धैयपूवक ती ा क और
फर बोला।
“मने केवल इतना ही नह सुना है, मने तो ये भी सुना है क ा ण के स मान का
तशोध लेने के लए अ क और सध का महान राजा श शगु त गंधार पर आ मण
करेगा,” सुनार ने कहा।
“हाह!” ती ा कर रहा ाहक बोला। उसे न तो नाई जानता था और न ही
सुनार। वो इस े म अजनबी लगता था।
“आप कौन ह और इस नजी वातालाप म आप या योगदान दे ना चाहते ह,
ीमान?” नाई ने पूछा। अजनबी ने अभी खाए ख े -मीठे सेब क शंसा व प एक छोट
सी डकार ली।
“म सध का रहने वाला दज़ तु वय ं। म उससे प र चत ं जसे आप श शगु त
कह रहे ह, पर या आप जानते ह क वो गोमांस खाता है?”
“वो प व गाय का मांस खाता है?” हत भ सुनार ने पूछा। “ऐसा ा ण
का उपकारी कैसे हो सकता है?”

“आंभी ने त शला के नकट एक व व ालय बनवाने के लए बौ को वण मु ाएं द


ह। या उसने कभी ये भी सोचा क वो ा ण व ालय क ग त के लए भी अपने
कोष म से कुछ य करे?” ानीय व ालय के अ यापक ने ल सी पीते ए अपने
आयुव दक वै म से पूछा।
उसके सफ़ेद होते बाल वाले वै म ने अपनी ल सी से एक चु क लेते ए
उ र दया। “मने केवल इतना ही नह सुना, ब क ये भी सुना है क अ क का मुख
श शगु त गंधार को र द डालने और ा ण के स मान को पुन ा पत करने क योजना
बना रहा है,” वै ने कहा।
“हाह!” उनके नकट मेज़ पर बैठा ाहक ज़ोर से बोला। उसे न तो अ यापक
जानता था और न ही वै । वो इस े म अजनबी लगता था।
“आप कौन ह? आपको कुछ कहना है, मेरे म ?” अ यापक ने पूछा। अजनबी ने
अभी खाए मसालेदार चावल क शंसा व प एक छोट सी डकार ली।
“म चारण ,ं सध का एक या ी भाट, और यहां मनोरंजन करने के लए आया ं।
म उस से प र चत ं जसे आप महान श शगु त कह रहे ह, पर या आप जानते ह
क श शगु त क प नी शू है?”
“वो एक नीच जा त क म हला के साथ संभोग करता है?” वै ने हत भ
फुसफुसाहट म पूछा। “ऐसा ा ण का पालक कैसे हो सकता है?”

“आंभी ने पहले वयं को मैसीडो नयाइय के हाथ बेचा और अब बौ के हाथ ! या


उसम ल ा नह बची है?” अपने असामी, एक लेखपाल, क हथेली पढ़ते ए यो तषी ने
तर कारपूवक पूछा।
उसके नवयुवक असामी ने, जी यो तषी से अपने लए सफलता और समृ क
भ व यवाणी क आशा कर रहा था, वृ यो तषी क सनक को वीकार करते ए,
वातालाप को अपने जीवन से भटक जाने दया।
“मने केवल यही नह सुना है क आंभी ा ण क श का भाव समा त करने
के लए बौ धम का ो साहन दे रहा है, ब क ये भी क श शगु त ने श के संतुलन
को पुन ा पत करने के लए उसे चेतावनी भी भेजी है,” लेखपाल ने अभी भी सनक
ह तरेखा वद के हाथ म रखी अपनी हथेली क ओर दे खते ए कहा।
“हाह!” दोपहर के सूरज से अ ायी आराम दे ने वाले पीपल के नीचे अधउन दे
ने कहा। उसे न तो यो तषी जानता था और न ही लेखपाल। वो इस े के लए
अजनबी लगता था।
“तुम कहां के नवासी हो, म ? या तुम कुछ ऐसा जानते हो जो हम नह
जानते?” लेखपाल ने उसे दे खते ए कहा। ऊंघते ने उस सुपारी के शंसा व प
डकार ली जसने अभी उसक पाचन या को सहायता द थी।
“म अ माधक ,ं और सध से अपने उ कृ घोड़े यहां बेचने आया एक अ -
श क ं। म उस से प र चत ं जसे तुम महान श शगु त कहते हो, ले कन या
तुम जानते हो क श शगु त ने एक रथमाग बनाने के लए एक कुबेर मं दर को ढहा दया
था?”
“वो वे ा से मं दर ढहाता है?” भौच के यो तषी ने कहा। “ऐसा
ा ण का र क कस कार हो सकता है?”

“औष ध क तरह राजनी त म भी, कभी-कभी श द ही सव े उपचार होते ह। चार क


श को कभी कम नह आंकना चा हए,” चाण य ने अपने यादे को रानी से दो ख़ाने
आगे बढ़ाते ए कहा। मे हर के लए ये चाल चाण य क रानी को कमज़ोर त म कर
रही थी। वो मु कुराया और उसने जवावी चाल चली | बना यास के, चाण य ने अपने
हाथी को तीन ख़ाने तरछा बढ़ा दया। मे हर क अगली चाल के बाद, उसने रानी को दो
ख़ाने तरछा आगे बढ़ाकर उसे यादे के सामने कर दया। क म तीसरा आदमी नीरस
भाव से खेल को दे ख रहा था और चाल के बीच ऊंघने लगता था।
चाण य हंसने लगा। इससे कोई अंतर नह पड़ता था क मे हर क अगली चाल
या होगी। चाण य अपनी रानी को ठ क वरोधी के यादे तक ले जाता, उसे बंद बनाता
और उसके राजा को मात दे दे ता। राजा रानी को बंद नह बना सकता था य क उसके
बीच म हाथी होता। वो रानी से र भी नह जा सकता था य क वो अपनी ही गोट से
घरा होता | मे हर अपनी प र त क थता को दे खकर नराशा से कराहा। आचाय के
साथ शतरंज खेलने म कोई आनंद नह था। हर बार ऐसा लगता था जैसे वो मे हर के
म त क म जा घुसते ह और उसक अगली चाल को पहले ही समझ लेते ह ।
“मे हर, मेरे य लड़के, इस खेल म मुख गोट को जाने दे ना क ठन होता है,
ले कन कभी-कभी वजय ा त करने के लए साम रक गोट का याग करना ही पड़ता है।
अगर वरोधी क ठन प र त म हो, तो चारा हटाना पड़ता है ता क वो आगे बढ़ सके।
बस ये यान रहे क जी याग आप कर रहे ह उससे आपको वो ा त हो जाए जो आप
चाहते ह!” खेल समा त होते-होते चाण य ने सुझाव दया। चाण य और मे हर के बीच
बाज़ी का दशक शारंगराव था—काले ा ण का उ कृ छा और जासूस। उसने बातचीत
को यानपूवक सुना और डकार ली—अभी पची बु म ा के शंसा व प।
मे हर कु पत हो उठा जब क चाण य ने घाव म मच लगाई। “हारने के लए कोई
अंक नह मलते ह!” चाण य हंसा।
“तो हम यह बैठ शतरंज खेलते रह और श शगु त गंधार को र दता रहे?” फर से
हार जाने पर चढ़े ए मे हर ने पूछा।
“मे हर, वो भले ही गंधार पर आ धप य जमाने म सफल हो जाए, ले कन वो
ा ण छापामार दल उसक नाक म दम कर दगे ज ह हमने भरपूर व ीय सहायता द
है। ये सह चीर ारा मृ यु होगी। छापामार यु णाली अपरंपरागत सश संघष क
मत यी व ध है। घात और छाप जैसी वचल रणनी त के ारा हमारे यो ा का छोटा
सा दल अपने कह अ धक श शाली श ु को अ तकाय त प ंचा सकता है। गंधार
पर श शगु त का आ मण उसके संसाधन को शु क कर डालेगा, अ क और सध म
उसके शासन म अ रता लाएगा, और उसे गंधार के नाग रक के सबसे श शाली गुट
— ा ण—का क र श ु बना दे गा। यही वो ण होगा जब चं गु त बड़ी सहजता से
म खन म गम चाक़ू उतार दे गा। मेरी योजना चं गु त के लए केवल गंधार को जीतना नह
है। म उसे अ क और सध—श शगु त के अपने ांत—भी जताऊंगा। श शगु त पहला
चूहा होगा... जाल उसे मार डालेगा। चं गु त सरा चूहा होगा। पहली च ड़या को क ड़ा
मलता है पर सरे चूहे को पनीर मलता है!”

“ऐसा य है क तुम संभोग कर रहे हो जब क मेरी हालत ख़राब हो रही है?” भ शाल ने
पूछा। जीव स ने उसे खुद को उस ग णका से पृथक करते ए दे खा जो उसक बांह म
लेट थी। ग णका ने हंसते ए उसे और खलवाड़ के लए अपनी ओर ख चने का यास
कया ले कन जीव स ने उसे फटकार दया। वो उठ और मुंह बसूरती ई कमरे से चली
गई, जब क भ शाल बैठ गया। जीव स ने अपनी पगड़ी और व ठ क कए और फर
म दरापा को उठाते ए उसक सारी स चढ़ा गया। उसने अपनी मूंछ प छ और
मज़ाक़ करते ए कहा, “ये स इस बात का माण है क ई र हमसे ेम करता है और
चाहता है क हम स रह! आप इतने उदास य ह?”
भ शाल मौन था। जीव स ने कुरेदा, “ या आपने मं प रषद को मना लया
क हमारी सेनाएं पाट लपु प ंचने तक बना कसी तरोध के मगध म वेश कर जाएं?”
भ शाल ने सर हलाया। “उ ह कसी तरोध का सामना नह करना होगा।
ले कन पाट लपु प ंचने पर भयानक यु के लए तैयार रहना।” भ शाल ने एक और घूंट
लया और म दरा से अपने बोध को ीण होने दया।
“आपको ऐसा य लगता है क हम पाट लपु के लए लड़गे?” जीव स ने
सरलभाव से पूछा।

“सुन, सुन, सुन। गंधार, अ क, सध, सफपुर के स ाट और मलयरा य, ू क, सधव,


एलोर, ल, पटाला और महा ऊध के अ धप त महाराज चं गु त मौय का दरबार
आरंभ हो चुका है। आएं और अपनी बात कह!” उदघोषक च लाया और चं गु त ने
सभागार म वेश कया। इस सूची म बस मगध को स म लत कया जाना शेष था।
चं गु त को अपना बचपन याद आ गया जब उसके म अपने का प नक संसार के
लड़कपन के नाटक म ब कुल यही श द बोलते थे। वो ये सोचकर उदास हो गया क
उसके पता, सेनाप त, अपने पु के राज तलक को नह दे ख पाएंगे।
आंभी मर चुका था और उसे यु े म श शगु त ने मारा था। श शगु त मर चुका
था और उसे उसके पीछे लगाए एक ा ण छापामार दल ने मारा था। चाण य एक प र
से दो च ड़यां मारने म सफल रहा था। चं गु त ने तो बस गंधार म आकर उस पर अ धकार
कर लया था। ानीय जनसं या ने खुली बांह से उसका वागत कया था। अब चं गु त
क लग के राजा से अ धक, पोरस के बराबर, ले कन धनानंद से कुछ कम श शाली था।
ये शी ही बदल जाने वाला था।
सहासन पर प ंचने से पहले, वो अपने दा ओर थोड़ा ठहरा जहां चाण य खड़ा
आ था। उसने झुककर अपने गु के चरण स मानपूवक श कए। चाण य ने उसे
आशीवाद दया, “सदै व इसी कार गुणो कृ , वजयी और तापी रहो!” चं गु त उठा
और एक र आसन क ओर गया जहां साधारण सी पा काएं रखी ई थी। वो उसके
पता क पा काएं थ । वो आसन के आगे झुका और आ मा-संसार से आशीवाद ा त
करने के बाद वो अपनी माता के पास प ंचा। वो उनके चरण छू ने के लए झुका तो सरल
और कमज़ोर सी म हला क आंख म आंसू आ गए। उ ह ने उसके सर पर हाथ रखा और
कहा, “ई र करे तु हारा संसार सुंदर, तु हारे काय कत न , तु हारा वभाव कृपालु और
तु हारा रा य चुर रहे, मेरे पु ।”
चं गु त रेशम माग ारा चीन से आया तत चीनी रेशम चीनांशुक के राजसी व
पहने ए था। उसक अंतरीय धोती ह क सुनहरी, उसका उ रीय स री लाल और
उसका कायाबंध मो तया सफ़ेद था। उसके गले म नाशपाती के आकार का एक हीरा था
जो म य म लगभग पचह र कैरट का था। उसक भुजा पर लगभग छह कैरट के बेदाग़
नीले हीर से ज ड़त बाजू़बंध थे। दोन कलाइय के बंधन चालीस कैरट के दयाकार बमा
मा णक से ज ड़त थे। उसके सर पर एक सुनहरी पगड़ी थी जो एक सौ पचास कैरट के
शु प से अलंकृत थे। वो सर से पैर तक संसार का स ाट दखाई दे रहा था।
चाण य सहासन के नकट गया और उस पर वराजमान चं गु त से बोला, “ या
आप स य न ापूवक वचन दे ते ह और सौगंध लेते ह क आप गंधार, अ क, सध,
सफपुर, मलयरा य, ू क, सधव, एलोर, ल, पटाला और महा ऊध और इनसे
संब अ धरा य के लोग पर वेद के मा यम से हमारे पूवज ारा हम तक प ंचाए गए
शासन के नयम के अनुसार शासन करगे?”
चं गु त ने ाथना व प हाथ जोड़े, आंख बंद क और कहा, “म स य न ापूवक
ऐसा करने का वचन दे ता ं।”
चाण य ने पूछा, “ या आप सु न त करगे क आपके सभी नणय म व ध,
याय और क णा का बोलबाला रहेगा?”
“म सु न त क ं गा,” चं गु त ने उ र दया।
“ या आप, अपनी पूरी श से, ई र के वधान, अपने य र के स मान,
ा ण क र ा, द लत क सुर ा को बनाए रखगे, और या आप अपने मं य और
अ धका रय को स पे गए काय के लए व ध ारा उ ह दए गए सारे वशेषा धकार को
प रर त करगे?” चाण य ने पूछा।
चं गु त ने गंभीर भाव से उ र दया, “म ये सब करने का वचन दे ता ं।” फर
अपना दायां हाथ वेद के एक ढे र पर रखते ए कहा, “मने जन चीज़ का वचन दया है
उ ह क ं गा, ई र मेरी सहायता करे,” और वशाल सभागार जय-जयकार से गूंज उठा।
अ याय सोलह
वतमान समय

“म समझ नह पा रहा ं क ये सब चल या रहा है। आर एंड एस ए वएशन ं टा एंड


सोमानी सा ा य का भाग है। वो चांदनी को य रा ते से हटाना चाहगे? वो तो हमारे ही
प धर ह!” मेनन ने कहा।
“ के आगे दे खो, मेनन। हर चीज़ वैसी नह होती जैसी दखती है,” गंगासागर
ने मेनन को अगले मुलाक़ाती को अंदर भेजने का इशारा करते ए कहा।
नया कलफ़दार धोती और कुता पहने अ वालजी अंदर आए। उ ह ने दोन को
दे खकर सर हलाया और गंगासागर के सामने बैठ गए। “चांदनी ठ क तो है?” उ ह ने
पूछा।
गंगासागर ने गंभीर भाव से सर हलाया। “वो एक यो ा है। वो ख़ौफ़ज़दा नह
है। उसके जीवन के लए जतना डर उसे है, उससे यादा मुझे है!”
“म कस तरह सहायता कर सकता ं?” अ वालजी ने पूछा।
“आर एंड एस साझेदार के बीच ववाद,” गंगासागर ने बोलना आरंभ कया।
“हम थोड़े बेहतर ढं ग से समझना होगा क माजरा या है। म इस सारे मामले म इकराम
क भू मका को भी समझना चाहता ं— बना उसके ान म आए |”
“पर ये है, सर। हमीद को पैसा चा हए था। जब उसे पैसा हमसे नह मला,
तो उसने जाकर इकरामभाई को बता दया क हमने म ज े ट के साथ या व ा क
थी। इकराम ने बदले म उसके ज़ रए चांदनीजी को मरवाने क को शश कर डाली,” मेनन
ने कहा।
“मुझे व ास नह , मेनन। हम इकराम के बारे म ज दबाज़ी म कोई फ़ैसला नह
करना चा हए। आ ख़र उसने चांदनी को गोद लया था। ले कन मुझे कोई और बात
असमंजस म डाल रही है,” गंगासागर ने सर खुजाते ए कहा।
“ या?” मेनन ने पूछा।
“ ं टा एंड सोमानी हमारे राजनी तक आशीवाद से एक वै क ट ल लांट लगाने
के लए उ र दे श आए थे। एक पाटनर कसान को अ धक मुआवज़ा दे ने को सहमत हो
गया था जब क सरा सहमत नह था और वो ब कर म छू ट पाने के लए मुझे मनाने म
सफल हो गया।”
“तो?” अ वालजी ने पूछा।
“ऐसा ही तब आ जब आपने ं टा को व -बक ारा सहायता ा त रोडवेज़
का पोजे ट लेने के लए ना मत कया। छोटे पाटनर— सोमानी — ने आकर शकायत क
क ं टा ने धोखेबाज़ी से उसके शेयर छ न लए। इस या म वो हमसे ह थयार के एक
सौदे के लए मंज़ूरी लेने म सफल रहा। अब इस बारे म सोचकर मुझे इस सारे मामले म
गड़बड़ी दखाई दे रही है!” गंगासागर ने उं ग लयां चटकाते ए कहा।
गंगासागर का। उसने एक ण को अ वालजी क ओर दे खा और आगे बोला।
“एक साझेदार—सोमानी— धानमं ी के पद के लए र ा मं ी के यास का समथन कर
रहा था। सरा— ं टा— व मं ी का समथन कर रहा था। दोन जानते थे क नतीजा
चाहे जो भी हो, उनके आद मय म से कसी एक को उ तम पद मलेगा ही मलेगा।”
“म समझ नह पा रहा क तुम कस बात क शकायत कर रहे हो, गंगासागर!
दोन साझेदार के पर र वरोध क ही वजह से ये सरकार— चांदनी और एबीएनएस के
नौ अ य मं य स हत—स ा म आई। तुम इसे लेकर ख़ुद को य उलझन म डाल रहे
हो?”
“अगर गू जैसा दखे, गू जैसी गंध आए, और गू जैसा महसूस हो, तो ये शायद गू
ही होगा! हम मूख बनाया गया है—म जानता ं,” गंगासागर ने कुस से उठते ए कहा।

“आर एंड एस के साथ आपके कारोबारी संबंध रहे ह ना?” गंगासागर ने लंच के दौरान
पूछा। वो शांत हो गया था।
“हां। याद है तुमने मुझे जी रोडवेज़ का ोजे ट दया था, वो मने ं टा को दला
दया था?” अ वालजी ने अपनी लेट म बचे ए चावल और दाल का नवाला मुंह म
डालते और वाद लेते ए कहा।
“म चाहता ं क आप अपने कसी व ीय शकारी को उनके पीछे लगा द,” ताज़े
दही का याला अ वालजी क ओर बढ़ाते ए गंगासागर ने कहा।
“तुम या कराना चाहते हो?” अ वालजी ने पूछा।
“म चाहता ं क आर एंड एस क कंप नया के ख़रीदे गए एक-एक शेयर का
व ेषण कया जाए। कसने ख़रीदा? कसने बेचा? कब? और म उसे उनके सावज नक
ववरण से जोड़कर दे खना चाहता ं!” अपने च मच को अनुशासना मक ढं ग से हलाते
ए गंगासागर गुराया।
“तुम या मलने क उ मीद कर रहे हो, गंगा?” अ वालजाी ने पूछा।
“म उ मीद नह करता ं। म तलाश म तभी नकलता ं जब म जानता ं क मुझे
या मलेगा।”
“वो या है?”
“एक ऐसा पैटन जो दशाता है क इन दोन साझेदार म मलीभगत है—और ये
सरकार से यादा से यादा बज़नेस बटोरने के लए अपने आपसी मतभेद दखाते रहे ह।
सबसे मह वपूण ये क ये अपनी कंपनी के टॉक ख़रीदने के समय अपने झगड़े सामने
लाते ह और बेचने के समय झगड़ को ठं डा होता दखाते ह। ये हम और जनता को गाय
क तरह ह रहे ह!”
“ले कन आर एंड एस चांदनी को मारने के लए इकराम का साथ य दगे?”
अ वालजी ने अपने नैप कन से मुंह प छते ए कहा।
“शायद इस लए क आर एंड एस एबीएनएस ारा नई द ली म सरकार को दए
जा रहे समथन से तो ख़ुश ह ले कन ये नह चाहते क एबीएनएस नई द ली म सरकार का
नेतृ व करे। धानमं ी पद के लए चांदनी को अब एकमा श शाली दावेदार के प म
दे खा जा रहा है, और इससे इकराम को भी नुक़सान होगा,” गंगासागर ने कहा।
“वो ये भी जानते ह क चांदनी के सौदे के साथ गंगासागर भी रहेगा, जो क एक
भयानक संभावना है,” अ वालजी ने मज़ाक़ कया।

“अ वालजी के चाटड एकाउं टट ने अपना होमवक कर लया है। जब साझेदार ने व


बक के ोजे ट के बारे म अदालत जाने के बारे म सावज नक बयान दया था तो आर एंड
एस इं ा चर के शेयर का मू य एक ही दन म 1,178 से गरकर 900 पए हो गया
था। उसी दन दोन साझेदार ने प र चत नवेश कंप नय के मा यम से बड़ी सं या म शेयर
ख़रीदे । एक स ताह बाद उ ह ने घोषणा क क उ ह ने अदालत के बाहर समझौता कर
लया है और शेयर 1,250 पए पर बेच दए!” मेनन ने अ वालजी क ट म ारा दए गए
व ेषण के पोथ को पलटते ए कहा।
“अगर वो समझते ह क वो चांदनी और एबीएनएस के रा ते म आ सकते ह, तो
उ ह ज द ही पता चल जाएगा क पं डत गंगासागर म के साथ पंगा लेना महंगा पड़ेगा।
आर एंड एस म कतने कमचारी काम करते ह?” गंगासागर ने पूछा।
“लगभग एक लाख, जहां तक मुझे याद है,” मेनन ने जवाब दया।
“और उनम से कतने कमचारी एबीएनएस से जुड़े मक संघ के सद य ह?”
पं डत ने पूछा।
“मने पता लगा लया है, सर। हमारा लखनऊ व व ालय छा संघ का अ य
—उप क यप—हमारे ापार संघ एबीएनकेयू का मुख बन गया था। उसका कहना है
क आर एंड एस के लगभग बीस हज़ार कमचारी एबीएनकेयू के काडधारी सद य ह।”
“और आर एंड एस के बाक़ अ सी हज़ार कमचारी?”
“क यप के अनुसार, वो दो संघ म बराबरी से बंटे ए ह। एबीएनकेयू सबसे छोटा
गुट है—केवल बीस तशत | अ य दोन संघ लगभग चालीस तशत ह।”
“बाक़ दोन संघ कौन से ह?”
“सीपीयूके— व म सह यागी क अ य ता म, और आईएनड यूएफ़-लालजी
गग क अ य ता म।”
“मेनन, म तुमसे दो च ट् ठयां लखवाना चा ंगा, लीज़।”
“जी सर?”
“ य कॉमरेड। जैसा आप जानते ह, सीपीयूके आर एंड एस के कमचा रय क
सहायता के लए अथक यास करती रही है। पर सम या ये है क आपके नेता,
आईएनड यूएफ़ के अ य लालजी गग, ने आपके साथ व ासघात कया है। गग ने, जो
आपके हत का त न ध व करने का दावा करते ह, आपके हत म ं टा को बेच दए ह।
अब वेतन क वृ को अ ा य उ पादन ल य के साथ जोड़ा जाएगा। इससे वेतन
समझौते म महज़ का प नक वृ होगी जब क वा त वक मेहनताना नग य रहेगा। आपम
से हरेक का दो त और शुभ चतक होने के नाते, म आप सभी से अनुरोध क ं गा क आप
आईएनड यूएफ़ को छोड़कर सीपीयूके म शा मल हो जाएं। हम आर एंड एस के
कमचा रय क एकमा स ी आवाज़ ह। मुझे आशा है क आपसे शु वार क हमारी
अगली सभा म मुलाक़ात होगी। शुभकामना स हत | व म सह यागी, अ य ,
सीपीयूके।”
“और सरी चट् ठ ?” मेनन ने शॉटहड म लखी चट् ठ से सर उठाते ए पूछा।
“साथी कायकता। आईएनड यूएफ़ ने आर एंड एस के बंधन के साथ बढ़े वेतन
के समझौते क दशा म पूरी त परता से काम कया है। पर इस यास म आपके अपने संघ
के अ य व म सह यागी बाधा बने रहे ह। म सोमानी के साथ उनके गु त समझौते के
कारण उ ह मलने वाले बड़े भुगतान ने इस समझौते को लागू होने से रोका आ है।
सीपीयूके सद य के लए समय आ गया है क वो अपने व ासघाती और संघ को
छोड़ और एक ऐसे संगठन म शा मल हो जाएं जो पहले आपक बात करता है।
आईएनड यूएफ़ म शा मल ह । म आशा करता ं क मंगलवार को हमारी सा ता हक
सभा म आपसे मुलाक़ात होगी। भवद य। लालजी गग। अ य , आईएनड यूएफ़ |”
“म ये च ट् ठयां क ह भेजू?”
“एबीएनकेयू के अ य उप क यप से कहो क वो गु त प से सीपीयूके और
आईएनड यूएफ़ दोन के लैटरहेड छपवाए। फर ये च ट् ठयां उसे भेजकर कहो क वो
बड़ी सं या म इ ह साइ लो टाइल कराए। सीपीयूके क चट् ठ आईएनड यूएफ़ के
सद य को भेजी जाए और आईएनड यूएफ़ क चट् ठ सीपीयूके के सद य को |”
“ले कन हम दो संघ से दो साझेदार के मामले म ह त ेप करा रहे ह। या ये
समझदारी होगी?” मेनन ने पूछा।
“साझेदार झगड़े का नाटक कर रहे थे, जब क कोई झगड़ा था ही नह । इस नाटक
का योग उ ह ने सरकार गराने, नई सरकार बठाने और ठे के ा त करने म कया, और
अब वो अपने कु टल तरीक़ का इ तेमाल चांदनी और एबीएनएस को ढहाने के लए
करना चाहते ह। अगर उ ह लड़ाई चा हए, तो ई र क सौगंध, म वो लड़ाई उ ह ं गा!”
गंगासागर गरजा।
“ले कन इससे अंतर-संघ त ं ता शु हो सकती है! ये हसक प भी
अ तयार कर सकती है,” मेनन ने कहा।
“दो हाथी लड़गे, तो घास तो कुचली ही जाएगी, मेनन।”

सुर ा हे मेट पहने और ढाल और गैस मा क लए दं गा नयं ण पु लस ने दोन वरोधी


प के बीच क पतली रेखा को घेर रखा था। ये रेखा दोन प के लए बंद घो षत कर
द गई थी और इस पर ब तरबंद पु लस गा ड़यां और तोप को पानी क आपू त करने
वाले भंडारण टक तैनात कर दए गए थे। बं क़, आंसूगैस के कन तर, काली मच े,
ला ठयां और ट ज़र लए पु लसवाले कसी भी प र त के लए तैयार थे। पु लस ारा
तय क गई हदबंद के दोन ओर हज़ार संघकम अपने-अपने संघ के समथन म खड़े
लाल और काले झंडे लहरा रहे थे। दोन प के नेता माइ ोफ़ोन लए अपने सद य को
सरे प और बंधन—पूंजीवाद सूअर!—को न करने के लए उकसा रहे थे। ये य
आर एंड एस सा ा य के लगभग सभी ल पर समान था—आर एंड एस ट ल, आर
एंड एस ए ो, आर एंड एस सीमट, आर एंड एस टै लीकॉम, आर एंड एस पे ो लयम, आर
एंड एस इं ा चर, आर एंड एस टै सटाइ स, आर एंड एस फ़ामा और आर एंड एस
ए वएशन।
भूतपूव व मं ी—उसे गंगासागर क चालबाज़ी के कारण पद युत कर दया
गया था—का ट वी पर इंटर ू चल रहा था। वो कह रहा था, “प र त काफ़ गंभीर है।
मेरे याल से ये बड़े भा य क बात है। आप आर एंड एस समूह को दे ख, तो उनके
कमचारी सबसे अ धक वेतन पाते ह! कुछ बाहरी त व ये सम या खड़ी कर रहे ह। म
कमचा रय के हत क सुर ा का समथक ं। कमचा रय के हत क कसी भी तरह
अनदे खी नह होनी चा हए, ले कन बंधन और कमचा रय के बीच सम या के नपटारे
के लए एक यायो चत या है। मुझे डर है क अगर हालात को नयं त नह कया
गया, तो ये और भी बगड़ सकते ह।”
“ये मूख चाल म आ गया है। अब इसे और कसी भी ऐसे को न करने के
लए मेरे े ट लश को योग करने का समय आ गया है जो ये समझता हो क वो मुझे
खेल से बाहर कर सकता है,” गंगासागर ने इंटर ू दे खते ए सोचा।

“सर, वा ण य मं ालय ारा ेशल इकोनॉ मक जोन—सेज़—के लए भू म उसके


वा त वक मू य के बारे म सोचे बना आवं टत क गई थी। हज़ार एकड़ ज़मीन एक ही
कंपनी आर एंड एस रय ट को द गई थी,” यूज़ एंकर ने कहा, “आप कोई ट पणी
करना चाहगे?”
“कोई ट पणी नह ,” चढ़े ए धानमं ी ने कहा, “म तब र ा मं ी था, आपको
ये सवाल उस समय के वा ण य मं ी से करना चा हए।”
“सर, रसंचार लाइसस, दस साल पहले के मानक के हसाब से भी, मनमाने ढं ग
से कम मू य पर दए गए। बाद म, लाइसस पाने वाली कंपनी ने अपने टे क ज़बरद त
मुनाफ़े पर बाहरी नवेशक को बेच दए। जस कंपनी को लाइसस दया गया वो आर एंड
एस टै लीकॉम थी,” एंकर ने कहा। “ या आप इस मामले पर कुछ काश डाल सकते ह?”
“कोई ट पणी नह ,” ु धानमं ी ने कहा, “म तब र ा मं ी था, आपको ये
सवाल उस समय के रसंचार मं ी से करना चा हए।”
“सर, तेल अ वेषण के अ धकार आर एंड एस पे ो लयम को दए गए, हालां क
तेल क खोज पहले ही हो चुक थी,” यूज़ एंकर ने कहा। “ या आप बता सकते ह क
आपने य ह त ेप नह कया?”
“कोई ट पणी नह ,” हताश धानमं ी ने कहा, “म तब केवल र ा मं ी था,
आपको ये सवाल उस समय के पे ो लयम मं ी से करना चा हए।”
“सर, चारे और खाद क बड़ी मा ा क आर एंड एस ए ो से ख़रीद क गई, उन
कसान और मवे शय के लए जनका अ त व ही नह था,” एंकर ने कहा। “आपने ऐसे
सौद को कैसे पा रत हो जाने दया?”
“कोई ट पणी नह ,” असहाय धानमं ी ने कहा, “म तब केवल र ा मं ी था,
आपको उस समय के कृ ष मं ी से पूछना चा हए।”
“भूतपूव व मं ी ने सु न त कर दया क वो धानमं ी को भी अपने साथ ले डू बे।
ख़बर गम है क धानमं ी ने यागप दे दया है,” अ वालजी ने कहा।
“अगर वो यागप नह दे ते, तो पूरी सरकार ढह जाती—हम अपने सांसद का
समथन वापस लेना पड़ता, और ब मत एकदम ग़ायब हो जाता,” गंगासागर हंसा।
“अब?” मेनन ने पूछा।
“हमन व मं ी को चत कया ता क उनका पद वदे श मं ी संभाल सक, और
चांदनी को वदे श मं ालय मल सके। अब हमने धानमं ी को गरा दया है—पूरी
संभावना इस बात क है क उनक जगह गृहमं ी ारा ली जाएगी। सफ़ उ ह के पास
सभी हलक़ का समथन है,” गंगासागर ने कहा।
“तो अब गृहमं ी क जगह ख़ाली हो जाएगी?” अ वालजी ने पूछा।
“ ब कुल। और एक बात बताऊं, हालात को क़ाबू म करने के लए एक गुंडे क
ज़ रत होगी,” गंगासागर ने कहा।
“इकराम? तुम पागल हो या, गंगा? हम ये तक नह जानते क चांदनी के चॉपर
को उड़ाने के षडयं के पीछे उसी का तो हाथ नह था। और तुम उसे गृहमं ी बनाना चाहते
हो?” अ वालजी ने कहा।
“हां। दो त को हमेशा क़रीब रखना चा हए और मन को और भी क़रीब,”
गंगासागर ने कहा और ज़ोरदार ठहाका लगाया।
“हंसने क या बात है?” अ वालजी ने पूछा।
“इकराम हमेशा से कानपुर के यादातर अपराध के लए ज़ मेदार रहा है। अब
उसे दे शभर के अपराध के लए ज़ मेदार होने का मौक़ा मलेगा!”

“ पछले वष कतने लोग क ह याएं ?”


“32,481।”
“और, कोई, पचास साल पहले?”
“9,802।”
“ पछले वष कतने लोग का अपहरण आ?”
“5,261।”
“चो रयां कतनी ?”
“91,666।”
“और पचास साल पहले?”
“147,379।”
“हम और यादा ह याएं और अपहरण चा हए!”
“ य ?”
“समझे नह ? तु हारे चोर अब ह या और अपहरण जैसे बड़े अपराध करने लगे ह।
और उनक तर क़ होने से चो रयां कम हो गई ह। मुबारक हो!” इकराम ने ं या मक ढं ग
से अपने गृह स चव से कहा।

“भारत और बं लादे श के बीच सीमा क लंबाई कतनी है?”


“4,096 कलोमीटर।”
“भारत और चीन क ?”
“3,488 कलोमीटर।”
“भारत और पा क तान क ?”
“3,323 कलोमीटर।”
“भारत और नेपाल क ?
“1,751 कलोमीटर।”
“भारत और यांमार क ?”
“1,643 कलोमीटर।”
“भूटान और अफ़गा न तान को मलाकर, लगभग पं ह हज़ार कलोमीटर से
यादा, सही?”
“ ब कुल सही।”
“और इन सीमा से आतंकवा दय क घुसपैठ को कैसे रोका जाए?”
“कांटेदार बांड़ और जहां कह संभव हो ग त।”
“धत! पं ह हज़ार कलोमीटर सीमा े क नगरानी करना संभव ही नह है।
जानते हो इन सीमा को तु हारी पु लस से बेहतर कौन पहचानता है?”
“कौन?”
“त कर। उनके माल क त करी म मदद करो। वो आतंकवा दय को पकड़ने म
तु हारी मदद करगे।”
इकराम नेशनल ाइम रकॉड् स यूरो—एनसीआरबी—के दौरे पर था। उसने द सय
हाइ ीड टर को ढे र कागज़ छापते दे खा। “ये या है?” उसने पूछा।
“दै नक रपोट, अपराध के आंकड़े, रा ीय ववरण—गृह मं ालय के व भ
तर पर इनक ज़ रत पड़ती है। आंकड़े यहां संसा धत होते ह और वभाग म कायरत
सैकड़ क मय को भेजे जाते ह,” गृह स चव ने जवाब दया।
“एक स ताह के लए रपोट बंद कर दो,” इकराम ने कहा।
“ या?” च तत गृह स चव ने पूछा। “इससे काम ठ प हो जाएगा। जानकारी के
बना व र अ धकारी कैसे काम करगे?”
“एनसीआरबी से कहो क उन लोग के नाम नोट कर जो इनक मांग करने के
लए फ़ोन कर। जो लोग फ़ोन करगे सफ़ उ ह को इनक ज़ रत होगी। अ य लोग बस
इ ह ा त करते ह और फ़ाइल म लगा दे ते ह। सफ़ उन लोग को रपोट भेजकर ज ह
इनक ज़ रत है, समय और ख़च बचाओ!” इकराम ने नदश दया।

वो इंटेलीजस यूरो के अ◌ॉ फ़स म थे। नदे शक गृहमं ी को दखा रहा था क नया क


सबसे पुरानी गु तचर एजसी कस तरह काम करती है। कानपुर के मेयर और पु लस
क म र के अपने भूतपूव अवतार म वो कभी दो त रहे थे ले कन वतमान पद म ने
उनक बातचीत को थोड़ा असहज बना दया था।
“एजसी क ापना कब ई थी?” इकराम ने पूछा।
“1909 म, भारतीय अराजकतावाद ग त व धय पर नज़र रखने के लए हम
इं डयन पो ल टकल इंटेलीजस बने थे। कमचा रय को कॉटलड याड और एमआई5 ारा
श ण दया जाता था।”
“और फर?”
“1947 म भारत क आज़ाद के साथ हम वतमान व प म आ गए।”
“ जैसे-जैसे आदमी बूढ़ा होता है उसक समझ कम होती जाती है। तुम ब त बूढ़े
हो गए हो,” इकराम ने मज़ाक़ कया और फर सं ान को पूरी तरह बदलने के लए
अपनी योजना बताने लगा। “तुम अपनी सफलता पर कस तरह नज़र रखते हो?”
“हमारे यादातर केस गोपनीय होते ह, इस लए हम कभी अपनी सफलता पर
बातचीत नह कर पाते ह,” नदे शक ने शकायत क ।
“न ही तुम अपनी असफलता पर बातचीत करने को मजबूर हो,” इकराम ने
यु र कया। “जब नाग रक को यही पता नह होगा क तुम या कर रहे हो, तो वो ये
भी नह जान सकते क तुम या ग़लत कर रहे हो! आख़री बार कब तुम कसी
आतंकवाद ग त व ध या आ मण क सही भ व यवाणी कर सके थे?”
“हमारे काम क कुछ ावहा रक सीमाएं ह,” नदे शक ने वरोध कट कया।
“प ीस हज़ार कमचा रय और एजट के होते ए?” इकराम ने आ य कट
कया। वो एक ण को का और फर उसने नदे शक को घूरा। “एक बात क ,ं तुम
कानपुर से प रचत हो, है ना? य न तुम रणबीर गल से एक मुलाक़ात कर लो?”
“वो कौन है?” नदे शक ने पूछा।
“वो बार ओनस एसो सएशन अ◌ॉफ़ इं डया का अ य है और कानपुर म एक
अनै तक सं ान का मा लक है जसे तुम अपने जवानी के दन से पहचानते होगे—
उसका नाम दरबार लब है।”
“उससे य मलूं म?”
“जब लोग नशे म होते ह तो हर चीज़ पर बातचीत होती है। अपनी जानकारी
ा त करने क णाली म सुधार लाना चाहते हो? तो ऐसे गंभीर लोग से मलो जो अपना
समय नाराज़ लोग के साथ बताते ह!”

“वो नाराज़ है,” इंटेलीजस यूरो के नदे शक ने कहा।


“तो उसे ठं डा करो,” गंगासागर ने कहा।
“अगर वो यादा त सील म घुसने लगा, तो हमारे सामने सम या खड़ी हो
जाएगी,” नदे शक ने कहा।
“तो शायद तु ह कसी और हल क ज़ रत होगी,” गंगासागर ने उ र दया।

इकराम और इंटेलीजस यूरो का नदे शक पुरानी द ली म चांदनी चौक क संकरी गली म


टहल रहे थे। नदे शक ने गृहमं ी से नह आने का आ ह कया था—इलाक़े म तनाव था
और वो इकराम क सुर ा क गारंट नह दे सकता था। ले कन मं ी ने आने क ज़द क
थी। पुराने शहर म ह -मु लम दं गा भड़क गया था। चांदनी चौक क ग लयां इतनी संकरी
थ क पु लस क जीप उनम से नह गुज़र सकती थी और इस लए वो दोन गाड़ी से
उतरकर टहलने लगे थे। गंद , तंग और चलने के लए मु कल, संकरी गली अं धयारे और
गंदे कोन से भरी लगती थी जनम एक अजीब सी ख़ामोशी थी। चांदनी चौक जंग के बाद
का इलाक़ा लगता था। पूरी गली म ट और टू ट ई बोतल बखरी ई थ । सारी कान
के शटर बंद थे और कुछे क आवारा कु के अलावा कोई दखाई नह दे ता था।
इकराम ने य का जायज़ा लया और मुंह बनाया। भारत धम से य इतनी
ज द भड़क उठता है? भारत के लोग घ टया साफ़ –सफ़ाई, दयनीय अ ताल , कूल
क कमी, ग भरी सड़क , बजली क कमी, गंदे पानी और महज़ गुज़र-वसर लायक़
जीवनशैली को सहन कर सकते ह, ले कन कसी के धम के बारे म बस एक श द कह दो
तो त तुरंत व ोटक हो जाती है। “मेरे रहते ये आख़री ह –मु लम दं गा है, समझ
गए?” गली म चलते ए उसने नदे शक से कहा। “इसम कोई समझौता नह होगा। दो षय
को पता चाल जाए क हमसे पंगे लेना उ ह महंगा पड़ेगा!”
अभी वो कुछ ही क़दम और आगे बढ़े थे क उनके पीछे एक छनाका आ।
उ ह ने पलटकर दे खा क उनके पीछे तेज़ाब के ढे र म टू टे ए शीशे पड़े ह। पास क एक
इमारत के कसी ऊपरी तल से गृहमं ी पर कसी ने तेज़ाब बम फका था। “इस इमारत क
तलाशी के लए अपने आदमी भेजो। म चाहता ं क अभी सारे मद, औरत और ब को
यहां हा ज़र कया जाए!” इकराम ग़राया, और लगभग तुरंत ही उसके नदश पु लसवाल
तक प ंचा दए गए। दस मनट के अंदर लगभग पचास लोग को पकड़ लाया गया। “इस
इमारत म कोई और भी है?” इकराम ने पूछा। “नह , सर, सब लोग यह ह,” जवाब मला।
“औरत और ब से कहो वापस अंदर जाएं,” इकराम ने आदे श दया। क़दम
क सरसराहट के बीच घबराई ई औरत ने अपने ब को समेटा और ज द -ज द
अंदर चली ग । अब वहां लगभग पं ह आदमी एक पं म खड़े थे। “अपने हाथ आगे
करो, हथे लयां सामने करके,” इकराम च लाया और जब तक सबने आदे श का पालन
कया, वो इंतज़ार करता रहा। इकराम टहलता आ उनक हथे लय को दे खता और
कभी-कभी झुककर उनके हाथ को सूंघता आ उनके पास से गुज़रा। वो क़तार के अंत
तक गया और फर इसी या को दोहराते ए वापस आया। सातव आदमी के पास
ककर उसने फर से सूंघा। “आगे आओ,” उसने नम से कहा। घबराहट से इधर-उधर
घूमती आंख वाला आदमी आगे आया।
“इधर आओ, बेटा,” इकराम ने एक कां टे बल से कहा, “ज़रा मुझे अपनी बं क
दो।” जस आदमी को आगे आने को कहा गया था वो ाकुल हो गया। “नह , कए,
आप ऐसा नह कर सकते। कुछ सा बत नह आ—”
इकराम के हाथ म मौजूद बं क से चली गोली का सीधा नशाना अ भयु क
खोपड़ी थी। वो ज़मीन पर गरा और उसके भेजो क लुगद बन गई। गली म स ाटा छा
गया। “ये तु हारे नए गृहमं ी क ओर से नसीहत है। मेरे साथ कभी भी पंगा मत लेना!
समझ गए? म हमेशा— हमेशा—गोली पहले मा ं गा और सवाल बाद म पूछूंगा। अगर तुम
गोली नह खाना चाहते हो, तो मुझसे पंगा मत लेना!” उसने एक माल से रवॉ वर पर से
अपनी उं ग लय के नशान प छे , उसे कां टे बल को वापस कया और नदे शक से कहा,
“इसे मुठभेड़ के प म दज कर लो। ये गोलीबारी म मारा गया।”
वो पलटकर बाक चौदह आद मय से बोला। “और कसी को सरदद क तेज़
गोली चा हए?” शाम पांच बजे तक चांदनी चौक सामा य हो चुका था। गंगासागर ने सही
गृहमं ी चुना था।

“उसने पलक झपकाए बना एक नाग रक को मार डाला,” इंटेलीजस यूरो के नदे शक ने
कहा।
“यही तो इकराम है,” गंगासागर ने शांत भाव से कहा।
“अगर उसने इसे आदत बना लया, तो हम मुसीबत म पड़ जाएंगे,” नदे शक ने
कहा।
“मने इकराम को ये जानते ए ही गृहमं ी बनाया है क उसे रोकने के लए तुम
उसके नज़द क रहोगे। अपना काम करो,” गंगासागर ने जवाब दया।

एक सौ सत र या य और बारह के चालकदल के साथ नागपुर को जाने वाली इं डयन


एयरलाइंस क लाइट ने मुंबई से दोपहर तीन बजे टे क अ◌ॉफ़ कया। तीस मनट बाद,
जब क वमान ना सक के ऊपर था, हाथ म सेमी-अ◌ॉटोमे टक बं क लए एक भयानक
श ल वाले आदमी ने कॉक पट के दरवाज़े को लात मारकर खोला और पायलट को सरे
या य के साथ पीछे जाकर बैठ जाने का आदे श दया। फर उसने भयभीत सह–पायलट
को जहाज़ का नयं ण संभालने का आदे श दया। उसके तीन बं क़धारी सा थय ने
या य और चालकदल को अपने पूण नयं ण म ले लया था। उनके अगुआ—एक
च तीस वष य पा क तानी— ने सह-पायलट को पाक–अ धकृत क मीर म मुज़ फ़राबाद
क ओर चलने को कहा। घबराए ए सह-पायलट ने उसे बताया क वमान म बस भोपाल
तक प ंचने लायक धन है जहां उ ह धन लेना ही पड़ेगा।
जहाज़ के हाइजैक होने क ख़बर कं ोल टावर और फर गृह मं ालय प ंची, तो
इकराम तुरंत ाइ सस मैनेजमट ुप—वो उ तरीय अ धकारी ज ह ऐसी संकटपूण
तय से नबटने का भा यपूण काम स पा गया था—के नई द ली कं ोल म प ंचा
गया। “साले टायर पे गोली मार दो,” उसने भोपाल प ंच चुके नेशनल स यो रट गाड—
एनएसजी—के कमांडर को आदे श दया। वमान भोपाल हवाई अ े के बीच म खड़ा था
और उसके टायर नशानेबाज़ के साफ़ ल य म थे। वमान पछले तीस मनट से धन का
इंतज़ार कर रहा था ले कन एक भी टकर उसके पास नह गया था।
हाइजैकर क पशुवृ ने उसे सुझाया क कुछ गड़बड़ है। “टे क अ◌ॉफ़ करो!”
उसने सह-पायलट को नदश दया। “हम एयर ै फ़क कं ोल से अनुम त चा हए होगी,”
घबराए ए सह-पायलट ने वरोध जताया ले कन उसे बस सर से लगी बं क क अनुम त
चा हए थी। “अभी टे क अ◌ॉफ़ करो! साली कसी इजाज़त क ज़ रत नह है!” हाइजैकर
ग़राया।

“टायर पे गोली चलाने म इतनी दे र य हो रही है? धन के टकर को भेजो। इससे हम


थोड़ा व त मल जाएगा!” इकराम ने नई द ली से फ़ोन पर एनएसजी से कहा। “सर,
अगर हम तेल के टक को वमान के नज़द क भेजगे, तो हम टायर को फोड़ने क तम
नह रहगे। ज़रा सी भी चगारी वमान और तेल के टक को एक वशाल आग के गोले म
बदल डालेगी,” एनएसजी कमांडर ने तक दया। “तो पता करो क साले जहाज़ म कुल
कतना धन है,” इकराम भ का। “इतना है क वो मुज़ फ़राबाद तक प ंचा दे ,” जबाव
मला। एनएसजी मुंबई म जमा कए गए धन के खाते का मलान मुंबई से भोपाल तक
होने वाले अंदाज़न ख़च के साथ कर चुक थी।
“पायलट से कहो क वो टे क अ◌ॉफ़ करे और हवा म तेल को समझदारी से
फकता रहे—ये बात पायलट से अपनी तकनीक भाषा म कहो!” इकराम ने कहा। “उसे
नई द ली तक उड़ने क अनुम त दे दो। अगर उसने यहां लड कया, तो हम ख़ुश क़ मत
ह गे—यहां राजाधानी म हम चीज़ को बेहतर ढं ग से संभालने क त म ह,” इकराम ने
कहा।

“भोपाल ाउं ड, आईसी-617 , कृपया रे डयो चेक कर,” सह-पायलट च लाया।


“आईसी-617 , संदेश ा त आ,” ाउं ड कं ोल ने जवाब दया।
“आईसी-617 , गेट छह, नवेदन के अनुसार मुज़ फ़राबाद के लए आईएफ़आर
अनुम त द।”
“आईसी-617 , नवेदन के अनुसार अनुम त द ली क द गई है मुज़ फ़राबाद
क नह , लबोन चार माइक ान रनवे छ बीस बाएं, ारं भक पांच हज़ार फ़ट, पहचान
चार-चार-पांच-पांच।"
“आईसी-617 , पुश एंड टाट क अनुम त द।”
“आईसी-617 , पुश एंड टाट क अनुम त द जाती है, टै सी कर।”
वमान ने टै सी कया और टे क अ◌ॉफ़ क तैयारी क । सह-पायलट जानता था
क उसक जदगी गर पर रखी हाइजैकर क उं गली पर नभर है। “तुमने नई द ली क
उड़ान के लए य दख़ा त क ?” हाइजैकर सह-पायलट पर च लाया। “मने
मुज़ फ़राबाद के लए ही कहा था, पर उ ह ने नई द ली क ही इजाज़त द । वो जानते ह
क मुज़ फ़राबाद तक प ंचने लायक़ धन नह है,” पसीने मं नहाए सह-पायलट ने जवाब
दया। “मुझे इससे कोई मतलब नह । हम मुज़ फ़राबाद जाएंगे,” हाइजैकर चीख़ा।
“मुज़ फ़राबाद हवाई अड् डा इ तेमाल म नह है—मुझे नह लगता वहां रात के
समय उतरने क सु वधा होगी,” सह-पायलट ने कहा और वमान को टे क अ◌ॉफ़ कया
और पांच हज़ार फ़ट क ऊंचाई पर प ंचते ही उसने बड़ी चतुराई से एक हज़ार गैलन जेट
धन नकाल फका। जहाज़ के पंख म लगे वशेष वॉ व से धन हवा म नकला और
भोपाल क स त गम म भाप बन गया।
“हम नई द ली म लड नह करगे,” सह-पायलट क गदन म प तौल के कुंदे को
धंसाते ए हाइजैकर ग़राया। “अगर तु हारे पास द ली तक के लए धन है तो कराची के
लए भी है—कराची द ली से नज़द क है।”

“पा क तान से कहो क वो लड करने के नवेदन को ठु करा द!” इकराम ने चांदनी से


कहा। वो दोन गृह स चव के साथ कं ोल म म थे। चांदनी ने सर हलाया और
इ लामाबाद म अपने समक से बात करने के लए हॉटलाइन उठाई।
“ ीमान वदे श मं ी, अगर आपने आईसी–617 को कराची म लड करने क
इजाज़त द , तो हम इसे सारी नया को ये बताने का मौक़ा समझगे क पा क तान ने
स य प से इस आतंकवाद ग त व ध क योजना बनाई, इसके लए पैसा मुहैया कराया
और इसे ो सा हत कया। नया भर म हज़ार ट वी टे शन कराची एयरपोट पर जहाज़
के खड़े होने क त वीर दखाएंग,े ” चांदनी ने फ़ोन पर कहा। “आपको फ़ैसला करना होगा
क या पा क तान इस तरह का चार पसंद करेगा!”
“हम इजाज़त न द, तो भी मुम कन है क वो फर भी लड कर जाएं,” पा क तानी
मं ी ने हाई द ।
“ले कन आप अपना एयर ै फ़क कं ोल और ल डग क रौश नयां शट डाउन कर
सकते ह! अगर आप अपनी संचार– व ा और वायुयान–संचालन को बंद कर द, तो
आईसी–617 कराची से ख़ मोड़ने पर मजबूर होगा,” चांदनी ने कहा, और फ़ोन पटक
दया।

“उ ह ने सारी संचार– व ा बंद कर द है,” सह–पायलट ने हाईजैकर से कहा। “अब


हमारे पास जतना धन है उससे म बस कराची से नई द ली तक ही जा सकूंगा। बताइए
मुझे या करना है।”
“मुझे नीचे साली एक रनवे क प दख रही है—ज़मीन!” हाइजैकर च लाया।
हत भ सह–पायलट ने, जो अब पूरी तरह बस अपनी आंख क न न पर नभर था,
वमान को उस जगह क ओर उतारना शु कर दया जो रनवे जैसी लग रही थी। ले कन
उतरते–उतरते उसे अहसास आ क जो जगह रनवे जैसी दख रही थी वो वा तव म एक
सु का शत सड़क थी। अगर वो ठ क समय से जहाज़ को वापस ऊपर नह उठा लेता तो
एक भयानक हादसा हो जाता। “ठ क है, साला नई द ली ही चलो!” हालात क
नाउ मीद को दे खते ए हमलावर भुनभुनाया।
नई द ली क ओर बढ़ने के दौरान उसी माग पर टश एयरवेज़ का वमान उड़ा
रहे एक पायलट ने उ ह बताया क नई द ली एयरपोट ै फ़क के लए बंद कर दया गया
है। शहर प ंचकर, उ ह ने दे खा क रनवे क और फ़ायर इंजन से भरा पड़ा है। थोड़ा
नीचे आकर उस भीड़ के ऊपर से गुज़रते ए, सह-पायलट ने नई द ली लाइट कं ोल
को रे डयो पर संदेश दया क उनके पास धन ख़ म होता जा रहा है। “उ ह लड करने क
अनुम त दे दो। अब तक उनका रज़व धन भी ख़ म हो गया होगा,” इकराम ने कहा।
सह-पायलट को चम का रक प से एक अ◌ॉटोमे टक ल डग वसी दे द गई।
एक मनट के अंदर उसने फ़ायर क , सेना क जीप और एंबुलस को हटते दे खा। रात के
दस बजो नई द ली म लड करते ही वमान को तुरंत एनएसजी के सश सै नक ने घेर
लया।
“एनएसजी को वहां से हटाओ,” इकराम ने गृह स चव से कहा। “हम अपने हाथ
मासूम के ख़ून से नह रंग सकते।” फर उसने बताया क वो या कराना चाहता है। “ धन
दे ने म दे र लगाओ—ता क समय मल सके!” इकराम ने नदश दया और गृह स चव और
एनएसजी मुख से वक प पर बात करने लगा।
इकराम क दे र करने क रणनी त से ऊबकर हाईजैकर फर से धमक दे ने लगा
क अगर जहाज़ को फ़ौरन धन नह दया गया, तो वो या य और चालकदल के सद य
को गोली मारने लगेगा। तीस मनट बाद उसने व र पायलट को वमान के खुले दरवाज़े
पर सैकड़ ट वी कैमर के ठ क सामने फ़श पर झुकाया और ाणदं ड के अंदाज़ म उसके
सर म गोली मारी और उसके बेजान शरीर को वमान के नीचो प क ज़मीन पर गर जाने
दया। “इससे तुम कमीन को सबक़ मलेगा क हमारे साथ पंगा नह लो!” वो रे डयो पर
च लाया।
ट वी न पर हाइजैकर के चेहरे को दे खकर, इकराम जान गया क उसका
शानदार ण आ प ंचा है। “उससे कहो क गृहमं ी सीधे उससे बात करना चाहते ह,”
इकराम ने कं ोल टावर अ◌ॉपरेटर से कहा।
थोड़ी सी और खड़खड़ाहट के बाद, हाइजैकर ने रे डयो उठा लया।
“म जहाज़ पर आना चा ंगा,” इकराम ने उससे कहा। “तु हारे पास खोने को कुछ
नह और पाने को सब कुछ होगा। अगर हमारे बीच समझौता हो गया, तो तु हारी जीत है।
समझौता नह आ, तो तु हारे पास एक उ तरीय बंधक होगा—भारत का गृहमं ी।”
“आप आ सकते ह, ले कन आपके साथ और कोई नह आए। घमंडी मं य के
च चले न ह !” हाइजैकर ने जवाब दया।
“पैग़ंबर ने कहा है क जस तरह दोन हाथ क उं ग लयां बराबर ह, उसी तरह
सारे इंसान एक- सरे के बराबर ह। जहाज़ के दरवाज़े पे मेरा इंतज़ार करो—तुम मेरी
तलाशी ले सकते हो। म अमन के लए आ रहा — ं हम मुसलमान भाई ह!” इकराम ने
कहा।
जैसे ही हाइजैकर ने सहम त द , इकराम अकेला वमान क ओर चल दया।
उसने एक इयरपीस लगाया आ था जसके ज़ रए वो एनएसजी कमांडर और कं ोल म
के संपक म था। एनएसजी के नशानेबाज़ ने जहाज़ के दरवाज़े को अपने टे ली कोप के
नशाने म रखा आ था ता क आतंकवाद या उसके साथी गृहमं ी को नशाना न बना
सक।

एनएसजी के कमांडो वमान क ओर पीछे से बढ़े —अंध ब से। जहाज़ के ढांचे के नीचे
नकास माग के रा ते जहाज़ तक प ंचने के लए पांच ट म चोरी- छपे ए युमी नयम क
काली सी ढ़य से चढ़ने लग । कं ोल टावर इकराम ारा वमान पर चढ़ने क सरकारी
प त के बारे म लगातार बात करके हाइजैकर के यान को त रखने के यास म लगी
रह । दस मनट बाद जब इकराम वमान क सी ढ़य तक प ंचा, तो हाइजैकर उसक
तलाशी लेने के लए दरवाज़े के नज़द क खड़ा इंतज़ार कर रहा था।
इसी बीच एनएसजी कमांडोज़ ने आपातकालीन दरवाज़े उड़ा डाले और तेज़ी से
वमान म घुसकर या य से च ला- च लाकर फ़श से लग जाने को कहने लगे। तीन
सा थय को तुरंत गोली मार द गई। चौथा— उनका सरगना— वमान के दरवाज़े पर
इकराम का इंतज़ार कर रहा था। वो ये दे खकर हैरतज़दा रह गया क गृहमं ी ने अपनी जेब
से एक नाइपर बं क़ नकाली और नीचे से ही उसका नशाना लेने लगे।

आपातकालीन नकास पहले ही स य कए जा चुके थे और इस डर से क कह वमान


म बम नह लगा दया गया हो, या य और चालकदल को तुरंत बाहर नकाल लया गया।
पांच मनट बाद, कमांडोज़ ने रे डयो कया ‘ ड लैम’, जो क अ भयान के सफलतापूवक
संप होने का कोड था। खड़खड़ाती सूचना इकराम के इयरपीस म सा रत क गई,
ले कन सरी ओर उसे ा त करने को कोई नह था।
कुछ ण बाद धानमं ी को एक रे डयो संदेश भेजा गया। चार हाइजैकर मारे
गए; बंधक आज़ाद; छह घायल; एक गृहमं ी शहीद।

मेनन गंगासागर के ल वग म म बैठा उसे ख़बर पढ़कर सुना रहा था। “शु वार को सारा
उ र दे श ख म डू ब गया और दे श का अ धकांश भाग शहीद गृहमं ी—इकराम शेख़
—क मौत का शोक करने के लए बंद रहा। उनके शरीर को शु वार को वायुसेना के
वमान ारा नई द ली से उनके वतन कानपुर तदफ़ न के लए लाया गया। इससे पहले,
राजधानी म हज़ार लोग ने उस वीर को अं तम वदाई द जसने आई सी-617 के बंधक
को बचाने के लए अपनी जान क क़बानी दे द ,” मेनन ने पढ़ा। उसने त या के लए
गंगासागर को दे खा, ले कन वहां कोई त या नह थी।
उसने आगे पढ़ा, “इकराम शेख़ को, जो बुधवार को एक हाइजैकर क गोली से
मारे गए, कानपुर के बागमारी मु लम क़ तान म उनके मां-बाप के पास दफ़नाया गया।
गृहमं ी के जनाज़े को नरंतर बढ़ती भीड़ के बीच कानपुर क सबसे बड़ी झोपड़प म
उनके घर से ीन पाक टे डयम ले जाया गया जहां उनक शोकाकुल मुंहबोली बेट —
वदे श मं ी चांदनी गु ता—और दे श व दे श के अ य नेता स हत हज़ार लोग ने भारत
के सव े गृहमं य म से एक को ांज ल अ पत क । बाद म, भारतीय सेना का एक
वाहन जनाज़े को क़ तान लेकर प ंचा जब क हज़ार लोग ने उ ह अं तम वदाई द ।
कई जगह पर पु लस शोकाकुल क बढ़ती सं या को नयं ण करने म असफल रही और
लोग ने जनाज़े के नज़द क प ंचने के लए बै रकेड तोड़ डाले। अनेक क य मं य के
साथ आए धानमं ी ने वाहन म रखे मृत शरीर को मालाएं पहना । वो इकराम क
राजनी तक उ रा धकारी और मुंहबोली बेट चांदनी गु ता और वग य नेता के राजनी तक
सहयोगी और गु , एबीएनएस मुख गंगासागर म —से भी मले। धानमं ी ने लोग के
लए अपील जारी क वो दवंगत आ मा के ख म आ मह याएं न कर।”
गंगासागर खांसा। मेनन ने पढ़ना बंद करके सर उठाकर दे खा। वो दे ख सकता था
क गंगासागर क आंख नम थ । मेनन थोड़ा हल गया, पर उसने आगे पढ़ना जारी रखा,
“ टे डयम और क़ तान के बीच क सड़क शोकाकुल से भरी पड़ी थ , जो सड़क
कनारे, छत पर, टे डयम म भीड़ लगाए ए थे और उस को अल वदा कहना
चाहते थे जो एक अचानक, ासद पूण मौत मरा था जससे वो अभी भी उबरने क
को शश म लगे ए थे। जनाज़ा धीरे-धीरे टे डयम तक प ंचा जहां व भ राजनी तक
पा टय के नेता ने ांज ल अ पत क । सैकड़ गा ड़यां उस फूल से लदे क के पीछे
चल रही थ जसम रा ीय वज म लपटे शरीर को रखा गया था। अपने मुंहबोले पता के
शरीर के पास चांदनी गु ता खड़ी थ जो लोग से वाहन को आगे बढ़ने दे ने क अपील कर
रही थ । कुछ लोग रा ीय वज हाथ म लए क क ओर दौड़ रहे थे ता क जनाज़े को
नज़द क से दे ख सक और चांदनी गु ता को सां वना दे सक। शेष उ र दे श म स ाटा
पसर गया और सामा य जीवन अचानक थम सा गया। कूल, कॉलेज, अ◌ॉ फ़स, कान
और ापा रक त ान नेता के स मान म बंद रहे। सवेरे क सामा य गहमागहमी नदारद
रही और सरकार ने दो दन क छु क घोषणा कर द । दे श सरकार ने सात दन के
शोक का ऐलान कया और ट वी अ◌ॉपरेटर ने सारे मनोरंजन चैनल बंद कर दए।”
मेनन लेख के अंत तक प ंच गया था। गंगासागर ने उसक आंख म दे खा और
कहा, “मुझे ू र होना होगा, दयालु होने के लए। इस कार बुरे का आरंभ होता है और
बदतर पीछे छू टता है।” मेनन ने कभी शे सपीयर को नह पढ़ा था वना वो जान जाता क
उसके आक़ा ने अभी हेमलेट का उ रण पढ़ा था। “इंटेलीजस यूरो के नदे शक को फ़ोन
करो। मुझे उससे बात करनी है,” गंगासागर ने अपने बेड म क ओर बढ़ते ए कहा।
वो धीरे-धीरे बड़बड़ा रहा था, “आ द श , नमोनम:; सवश , नमोनम:, थम
भगवती, नमोनम:, कुंड लनी माताश ; माताश , नमोनम:|”

“म बोल नह सकती, य क मेरे मुंह से नकलने वाला हर श द मुझे पीड़ा दे ता है। म सो


नह सकती, य क मुझे बार-बार उ ह खो दे ने के बुरे सपने सताते ह। म सोच नह सकती,
य क याद मुझे त कर दे ती ह। म खा नह सकती, य क मुझे भूख नह लगती है। म
रो नह सकती, य क ऐसा लगता है जैसे मेरे पास आंसू ही नह बचे ह। म दे ख नह
सकती, य क मेरी आंख म बस एक ही छ व जमकर रह गई है—मेरे मुंहबोले पता क ।
म शोक नह कर सकती, य क वो मेरे दय म जी वत ह,” एक त शोकाकुल के सामने
भाषण दे ते ए चांदनी ने कहा।
“आज म आपके सामने खड़ी ं और आपसे ाथना करती ं क उस महान
आ मा—वो जसे अपना पता कहने म मुझे गव महसूस होता है— ारा द गई
क़बानी को याद कर। वो भले ही अब हमारे साथ न ह , ले कन उनक राजनी तक व
सामा जक वरासत हमेशा हमारे साथ रहेगी। म अपना शेष जीवन उन काम के त
सम पत करती ं जो वो सबसे अ े ढं ग से कया करते थे—आंसू पोछना, ख़ाली पेट को
भरना और लोग के ह ठ पर मु कान लाना,” चांदनी ने इस बात का उ लेख नह कया
क इकराम गो लयां चलाने से नह हचकने वाला एक मा फ़या डॉन भी था।
“हमारे दे श के महान धम ने आपस म मलकर अनेकता म इस अदभुत एकता
का नमाण कया जसे हम भारत कहते ह। म ज म से ह ं ले कन एक मुसलमान
मुंहबोले पता क बेट ं। मुझे ई र इससे बेहतर उपहार नह दे सकता था—ये उसका
मुझे ये बताने का तरीक़ा था क म कसी एक गुट से संबं धत नह —म भारत क बेट ं
और म आप सबक !ं ” उसने कहा, और आंसू उसके कला मक चेहरे पर ढलकने लगे।
“मौत अ यंत सुंदर है—ये एक महान वधक है,” मेनन के साथ पछली पं म
बैठा गंगासागर फुसफुसाया। “इकराम ने मरकर चांदनी के लए वो कर दखाया जो वो
जी वत रहकर नह कर सकता था।”

हमीदा— जसे पहले हमीद के नाम से जाना जाता था— कान के बाहर खड़ी ज़वान
चटका रही थी। “तुम नह चाहते हम कान को आएं द?” वो अपनी नक़ली चोट को
शम ले ढं ग से लहराती ई बोली। कानदार उसे और सचला दे वी के गग क उसक सरी
सा थय को दे खने से कतरा रहा था। अपने भड़क ले मेकअप और सा ड़य म लपटे अपने
मांसल ज म क वजह से वो बड़ी भयानक लग रही थ । ये दे खकर क उसक ढक -
छपी धमक का वां छत असर नह आ, बाक़ हजड़ ने ता लयां बजाना और च लाना
शु करके इतना हंगामा खड़ा कर दया क ाहक कान म आने से बचने लग। कानदार
ने ज द से अपना रवैया बदला और, एक क़ मत पर, उनसे आएं ल । हमीदा ने मन ही
मन अपने नसीब को कोसा और उस दन के बारे म सोचने लगी—जव वो हमीद थी—जब
इकराम से मलने के लए वो म जद गई थी। “लड़के! तु ह मुझसे मलना है? बोलो!”
इकराम ने इशारा करते ए कहा था। उस पहली मुलाक़ात के कुछ ह ते बाद हमीद
इकराम से दोबारा म जद म मला था।
“म आर एंड एस ए वएशन म रा शद से मला था, उसने मुझे नौकरी दला द ।
ले कन वो मुझसे एक काम कराना चाहता है... मुझे डर लग रहा है,” हमीद ने कहा।
“डर य लग रहा है?” इकराम ने थोड़ा चढ़ते ए पूछा।
“वो मुझसे एक हैलीकॉ टर के धन क टं क म कंकर भरवाना चाहता है। ये
आपक मुंहबोली बेट चांदनीजी के चॉपर म तोड़-फोड़ क कारवाई के लए है। लीज़ सर,
मदद क जए!”
“घबराओ मत, बेटे। जो रा शद कहता है करो। बाक़ म संभाल लूंगा।”
“ले कन—ले कन—म कसी मुसीबत म नह पड़ना चाहता...”
हमीद के जाने के बाद, इकराम ने फ़ोन उठाया और इंटेलीजस यूरो के नदे शक
से बात क ।
“उससे चांदनी के चॉपर म तोड़-फोड़ के लए कहा गया है,” इकराम बोला।
“तो इस रा शद को फ़ौरन गर तार कर लेते ह,” नदे शक ने सुझाव दया।
“शायद ये उसका असली नाम न हो। इसके अलावा, उसके कुछ साथी भी हो
सकते ह,” इकराम ने कहा। “नह । हमीद को रा शद के नदश पे अमल करने दो। उसे
गर तार करने के लए अपने आद मय को तैयार रखो और इसका दखावा भी करो। म
हमीद को पु लस क नह ब क तु हारी हरासत म चाहता ं। रा शद पे नज़र रखो ता क
हम सफ़ उसे नह ब क उसके पूरे नेटवक को पकड़ सक।”

“साला तुमने हमीद को सचला दे वी के हाथ म जाने कैसे दया?” इकराम इंटेलीजस यूरो
के नदे शक पर च लाया।
“तो म या करता? गंगासागर को इंकार कर दे ता?” नदे शक ने पूछा।
“तुम उसे भागने दे सकते थे!” इकराम दहाड़ा।
“गंगासागर मेरे पीछे पड़ जाता और हमीद के बजाय मेरी गो लयां जात !” हताश
नदे शक बोला।
“तुम गंगासागर को सच बता सकते थे— क हमीद मासूम है और क हम
दरअसल रा शद को धर दबोचना चाहते ह।”
“इसका मतलब उसे ये भी बताना होता क रा शद को और हमीद को भी आर एंड
एस ए वएशन म नौक रयां आपने दलवाई थ ।”
“इकराम को हाइजैकर पर नशाना साधने क कोई ज़ रत नह थी। अगर वो ये काम
एनएसजी पर छोड़ दे ते, तो शायद अभी ज़दा होते,” इंटेलीजस यूरो के नदे शक ने कहा।
“जानता ,ं जानता ,ं ” गंगासागर बोला। “ले कन उसने ट वी पे हाइजैकर का
चेहरा दे ख लया था। वो जान गया था क हाइजैकर रा शद है। इस बात ने उसका ख़ून
खौला दया होगा क रा शद ने ही चांदनी को मारने क को शश क थी और इस लए उसने
ख़ुद ही उसे मार डालने का फ़ैसला कया होगा।”
“इकराम को बचाने क को शश म एनएसजी को मजबूरन रा शद पर गोलीबारी
करनी पड़ी,” नदे शक ने कहा।
“इकराम ऐसा ही था—पहले गोली चलाओ, बाद म सवाल पूछो। इकराम भले ही
एक ग़ सैल बदमाश हो, ले कन वो दल का हीरा था। बेशक वो गोली चलाने म ज दबाज़ी
करता था, ले कन सफ़ तभी जब क उसे यक़ न हो क इससे इंसाफ़ होगा। और हां, जब
हमीद ने उसे बताया होगा क उसे मु यमं ी पद से वं चत रखने के लए मने चाल चली थी,
तो उसे ग़ सा ज़ र आया होगा, ले कन वो अपना बदला चांदनी से कभी नह लेता,”
गंगासागर ने कहा।
“आप कबसे नम पड़ने लगे, सर?” नदे शक ने पूछा।
“उस समय से जब तु ह ग़लत ढं ग से पु लस क म र के ओहदे से हटाया गया था,
और मुझे तु हारे लए ख आ था और मने तु ह इंटेलीजस यूरो म पद दलाने क
व ा क थी। तुम भी इकराम के दो त आ करते थे!”
“अफ़सोस, मेरे काम म कोई ायी दो त नह होते— सफ़ ायी हत होते ह।”

लाल क़ला—पुरानी द ली का सबसे बड़ा मारक— सफ़ वो ल नह था जहां से भारत


के धानमं ी वतं ता दवस पर अपने दे शवा सय को संबो धत करते ह। ये कोठ रय
और सुरंग क एक भूलभुलैया भी था। मुग़ल दौर म, क़ले के अंदर तीन हज़ार से यादा
लोग रहते थे। इसके गभ क गहराई म दस कड़े पहरे म रहने वाली कोठ रयां थ । ये भारत
क इंटेलीजस यूरो क पूछताछ कोठ रयां थ ।
इ ह म से एक कोठरी म रा शद एक अ ताल के बेड पर पड़ा था जसे प र कृत
मै डकल यं के साथ ख़ासतौर से यहां लाया गया था। ये जानने वाले एकमा लोग क
रा शद जी वत बच गया था, इंटेलीजस यूरो का नदे शक और गंगासागर थे।
“आपको इस आदमी को मुझे स पना होगा!”
नदश आदे शा मक प से दया गया था। नदे शक ने अपनी रवॉ वंग कुस पर
पलटकर दे खा क ह त ेप करने का साहस करने वाला गु ताख़ कौन है। वो ये दे खकर दं ग
रह गया क वो रॉ मुख थे।
“आपको इसे रहा करना होगा,” से े टरी ( रसच) ने सरल भाव से कहा।
“म वजह जान सकता ?ं ” इंटेलीजस यूरो के नदे शक ने पूछा।
“ये रॉ का एजट है। इतनी वजह काफ़ है?”

“तुम लोग करना या चाहते हो? रा शद वदे श मं ी के हैलीकॉ टर म तोड़-फोड़ करने


म शा मल था। फर इसने एक वमान को हाइजैक कया जसम एक सौ सत र या ी
सवार थे। एक रॉ एजट य भारतीय मं य के ख़लाफ़ षड् यं रचेगा और नाग रक
वमान को हाइजैक करेगा?” इंटेलीजस यूरो के नदे शक ने पूछा।
“रा शद नक़ली नाम है। इसका असली नाम मख़ म है। ये पा क तानी डबल
एजट है। हमने एक चीनी ऑपरेशन म इसका योग कया था। बद क़ मती से, अ◌ॉपरेशन
के आख़री भाग म इसे—एमएसएस—चीनी रा य सुर ा के मं ालय ारा गर तार होना
था और हमने योजना के इस भाग के बारे म इसे पहले से नह बताया,” रॉ अ धकारी ने
बताया।
“ले कन इस योजना का उ े य या था?”
“उस सफल अ◌ॉपरेशन क वजह से ची नय और पा क ता नय के बीच दरार
आ गई और हमारी वदे श मं ी चीन म मज़बूत पोज़ीशन के साथ बातचीत कर सक ।”
“अगर इसे एमएसएस ने गर तार कर लया था, तो ये भारत कैसे प ंच गया
था?” नदे शक ने पूछा।
“इसके उइग़र सहयो गय ने श जयांग क उस जेल पर हमला कया जहां इसे
रखा गया था और ये भाग नकलने म सफल हो गया। ये नेपाली त कर क मदद से भारत
म दा ख़ल आ और लखनऊ प ंच गया जहां इसने इंसा नयत के नाम पर इकरामभाई से
मदद मांगी। इकरामभाई ने एक मुसलमान भाई के त कत क भावना से इसक मदद
कर द ले कन वो इसक पृ भू म के बारे म नह जानते थे।”
इकराम को ग़ सा आने का कारण यही था क जब उसने दे खा क वही मुसलमान
भाई जसक उसने मदद क थी उसी ने न सफ़ चांदनी के हैलीकॉ टर म तोड़-फोड़ करने
क को शश क ब क एक नाग रक जहाज़ को भी हाइजैक कया, नदे शक ने सोचा।
ते सवे तल पर कायकारी बोड म से शहर का ख़ूबसूरत नज़ारा दखाई दे ता था। मेपलवुड
क चमचमाती कॉ स टे बल के इद- गद लैदर क शानदार रवॉ वंग कु सयां थ ।
सं ापक क वशाल त वीर द वार पर लगी थ । कमरे म यूबन सगार क नशीली
महक बसी ई थी। दोन साझेदार, म ं टा और म सोमानी, मेज़ के दोन सर पर बैठे
कैमोमील क गम चाय पी रहे थे।
“हमने गंगासागर पे जो चाल चली थी वो उ ट पड़ गई है,” ं टा ने खोए-खोए
भाव से अपनी चाय को हलाते ए कहा। “तु हारे आदमी—भूतपूव र ा मं ी—को
अपमानजनक ढं ग से उसके धानमं ी पद से हटा दया गया है। मेरे आदमी— व मं ी
—को व व ालय म भाषण दे कर काम चलाना पड़ रहा है!”
“सारे सौदे बखरे जा रहे ह— रसंचार, तेल, चारा, भू म। सरकार इनम से कसी
को भी आगे बढ़ाने से डर रही है,” सोमानी ने कहा। “यहां तक क हमारे शेयर क ब
और ख़रीद, जो हम अपने झगड़ और सुलह के साथ करते थे, पर भी रेगुलेटर क कड़ी
नज़र है। मक संघ के ववाद ने सारे ापार को लगभग एक ह ते तक ठ प रखा!”
बलूत क लकड़ी के मज़बूत दरवाज़े पर द तक ह क सी थी। “आइए,” ं टा ने
कहा। सु चपूण कपड़े पहने एक से े टरी अंदर आई। “ व न डालने के लए मा चा ंगी,
सर, ले कन आपसे मलने कोई आए ह। उनके पास एपॉइंटमट नह है ले कन वो कहते ह
क अगर म आपको उनका नाम बताऊंगी, तो आप उनसे ज़ र मलना चाहगे।”
“कौन है?”
“वो कहते ह क उनका नाम पं डत गंगासागर म है।”

“आप दोन महाशय दे ख चुके ह क म या कर सकता ं। हालां क अभी बाज़ी मेरे प म


है, ले कन म सं ध करने के लए तैयार ं,” गंगासागर ने घोषणा क । ं टा और सोमानी ने
ये सोचते ए एक- सरे को दे खा क दरअसल ग ा कहां है।
“कोई गड् ढा नह है,” गंगासागर ने उनके दमाग़ को पढ़ते ए कहा। “म इतना
ावहा रक आदमी ं क भावशाली बज़नेसमेन के साथ दो ती क अह मयत को
नज़रअंदाज़ नह कर सकता।”
“और ऐसी दो ती से हम या फ़ायदा होगा?” ं टा ने पूछा।
“सबसे पहले, म एक जाने-माने आतंकवाद —रा शद—को अपनी ए वएशन
कंपनी म शरण दे ने के लए आप दोन को मुक़ मे से बचा लूंगा। उसी रा शद ने माननीया
वदे श मं ी के हैलीकॉ टर म तोड़-फोड़ क को शश क । फर उसने एक वमान को
हाइजैक कया जसम माननीय गृहमं ी क जान चली गई!” गंगासागर गरजा।
दोन पाटनर बुरी तरह हल गए थे और दोन ही ख़ामोश रहे। “ले कन म यहां
आपको कोई सबक़ दे ने नह आया ,ं ” इ तहास के अ यापक ने नम अ तयार कर ली।
“म यहां दो ती करने आया ,ं ” उसने मज़ाक़ कया।
“ई र मुझे मेरे दो त से बचा, मन से म ख़ुद को बचा सकता ं,” ं टा धीरे से
बड़बड़ाया और गंगासागर ने अपने ताव को रखना शु कया।
“एबीएनएस अगले आम चुनाव के बाद नई द ली म स ा ढ़ पाट होने क
उ मीद कर रही है। इसम सफलता ा त करने के लए हम पैसे क ज़ रत है। ढे र सारे पैसे
क ,” गंगासागर ने कहा।
“आपके पास पहले ही अ वालजी ह,” सोमानी ने कहा। “वो तो एबीएनएस के
ब त बड़े उपकारी रहे ह।”
“यही मेरी सम या है,” गंगासागर ने कहा। “अ वालजी हमारे उपकारी ह, ले कन
हमारे उपकारी को उपकार चा हए।”
“ कस तरह?” ं टा ने पूछा।
“आपके चार सौदे घपले म पड़े ह। चार ताव का भा य एबीएनएस के मं य
के हाथ म है। अगर हम दो त ह, तो म अपने मं य से दो ताना होने के लए क ंगा,”
पं डत ने ताव रखा।
“कैसे?” ं टा ने पूछा।
“वा ण य मं ालय को पता चलेगा क आर एंड एस रय ट को आवं टत हज़ार
एकड़ म से कुछ सौ एकड़ का मू य कम था। बाक़ ज़मीन आपके पास रहेगी। रसंचार
मं ी को पता चलेगा क टै लीकॉम लाइसस कम तर पर दए गए थे और वो शु क दोगुना
कर दगे। आर एंड एस टै लीकॉम के फर भी ऐश ह गे, य क उ ह ने बाज़ार मू य का
दसवां भाग ही दया था। तेल मं ालय कहेगा क तेल क खोज के अ धकार आर एंड एस
पे ो लयम को इस लए दए गए थे क कोई भी अ य नजी कंपनी पयावरण बीमा क
वशाल आक मक दे नदारी का ख़तरा मोल नह लेना चाहती थी। और कृ ष मं ी को पता
लगेगा क गणना म थोड़ी ु ट हो गई थी और वो इस नतीजे पर प ंचेगा क आर एंड एस
ए ो को चारे और खाद के दए गए अ◌ॉडर वा तव म सही थे। दे खा, दो ती म म कतना
कुछ करने को तैयार ?ं ” गंगासागर ने कहा।
“और आपने जो यू नयन का ववाद खड़ा कया था?” ं टा ने पूछा। “आपने
मा चस लगाई थी। अब आग को बुझाया कैसे जाए?”
“घबराइए मत। हमारी यू नयन—एबीएनकेयू—ने पछले कुछ महीने आपक
दोन मुख वरोधी यू नयन के सद य को आक षत करने म बताए ह। अब एबीएनकेयू
म लगभग पचास तशत सद य ह। हम एक नया वेतन व उ पादकता अनुबंध तुरंत साइन
करने को तैयार ह।”
“और इसम हमारा कतना ख़च होगा?” सोमानी ने खे ढं ग से पूछा।
“अ वालजी क कंपनी चार दोबारा से शु कए गए सौद से होने वाले मुनाफ़े
के दस तशत क हक़दार होगी,” गंगासागर ने कहा।
“और आप उनपे य इतने मेहरबान ह?” सोमानी ने पूछा।
“चावल क खीर आजकल ब त महंगी पड़ रही है,” गंगासागर ने गूढ़ भाव से
कहा।
अ याय स ह
लगभग 2300 वष पहले

त शला म महल के े से मले जंगल म बनी उस सामा य और साद सी झोपड़ी म


काश कम था। चं गु त क इ ा के ब कुल व चाण य ने नणय कया था क वो
महल म नह ब क अ वलासी वातावरण म ही रहेगा। चाण य ज़मीन पर अपनी चौक पर
बैठा था, जस पर उसके सामने दो द प रखे थे—एक जलता आ और एक बना जला।
उसके सामने ज़मीन पर ही बैठा यूनानी सामंत छोटे क़द, घुंघराले बाल और मुंडे
चेहरे वाला था। वो एक सजावट डज़ाइन वाला काइटन— ह के ौमव का ट् यू नक,
जसम एक कंधा खुला रहता था—पहने था। उसने कोई आभूषण नह पहने ए थे; केवल
उसक पेट म कुछ अधमू यवान र न ज ड़त थे। उसका नाम मैग नीज़ था और वो
से यूकस ारा चं गु त के दरबार म भेजा गया नया राज त था। “कृपया मेरे साथ
बात कर,” चाण य ने नवेदन कया। “आज मेरे साथ आपक भट नजी है या सरकारी?”
मैग नीज़ मु कुराया। उसे इस मुंहफट ा ण के बारे म पहले ही चेतावनी दे द
गई थी जसक कूटनी त ने चं गु त को सहासन पर बठाया था। “म त शला म
महाराज चं गु त के दरबार म अपने वामी से यूकस का अ धकृत त न ध ,ं कतु आज
यहां म आपसे नजी प से मलने को उप त आ ं, ीमान। आपक यो यता ,
श द और कम क या त र- र तक फैल गई है और म इस ा ण से आज वयं
मलना चाहता था जसे एक उपदे वता के पा के प म दे खा जाने लगा है!”
“आह! तब तो आप एक ण ती ा कर,” चाण य ने कहा और उसने बड़ी
कुशलता से एक द ये को बुझाकर सरा द या जला दया।
मैग नीज़ उलझन म पड़ गया। एक द ये को बुझाकर उसी जैसे सरे द ये को
जलाने का या उ े य हो सकता है? उसने हच कचाते ए पूछा, “ ीमान, आपने ऐसा
य कया? दोन द ये एक जैसा ही काश दे ते ह। ”
“ न संदेह ये एक जैसे ह, मेरे म , कतु पहले द ये म मुझे सरकारी कोष से द
तेल है जब क सरे द ये म मेरा अपना ख़रीदा आ तेल है। चूं क आपका दौरा सरकारी
नह है, इस लए म सरकारी संसाधन का उपभोग य क ं ?” चाण य ने कहा। हत भ
मैग नीज़ चं गु त क अभी तक क सफलता का रह य जान गया।
“मेरे वामी से यूकस ने मुझसे कहा था क म अनौपचा रक प से आपको बता
ं क वो स ाट चं गु त के साथ पर र लाभकारी राजन यक संबंध रखने क आशा करते
ह, कतु फ़र जया से सधु तक मैसीडो नयाई नयं ण के बारे म वो कोई समझौता नह
करगे,” राज त ने कहा।
“मुझे लग रहा था क ये नजी दौरा है—आप थ ही मुझे मेरे नजी खाते से य
करने को मजबूर कर रहे ह,” चाण य ने वनोद कया। “हम यु क बात नह करनी
चा हए, ीमान, हम ेम, ववाह और स ता क बात करनी चा हए।”
भौच का राज त सोच ही रहा था क इस नई रणनी त से कैसे नपटा जाए क
चाण य फर से बोला। “हमारे राजा चं गु त आपके श शाली वामी से यूकस क
कुलीन सुंदर पु ी सु ी कॉन लया से ववाह कर चुके ह। उनका गु त ववाह — गंधव
ववाह—कुछ महीने पहले हो चुका है। मैग नीज़, मुझे और आपको एक– सरे का
संबंधी माना जा सकता है!”
“प—पर गु—गु त ववाह या होता है? ऐसा कैसे आ?” मैग नीज़ घबराहट
के साथ बोला |
चाण य हंसने लगा | “एक सामा य ववाह म हा हन से ववाह के बाद ही
संभोग कर पाता है, जब क गंधव ववाह म ववाह करने के लए उससे संभोग करता है!”
उसने भ े ढं ग से कहा। मैग ीनज़ असहजता से ान बदलने लगा—उसम अपनी टांग
के बीच खुजाने क ती इ ा जाग गई थी ले कन इस श शाली दाश नक क उप त
उसे इतना खुला शारी रक काम करने से रोक रही थी।
“पर से यूकस ने तो इस ववाह क अनुम त नह द है,” मैग नीज़ बोला |
“लगता है क कॉन लया को अनुम त क आव यकता नह है। हमारे राजा उन
पर अ य धक मु ध ह। ऐसा तीत होता है क सु ी कॉन लया म एक पूण म हला के चार
प —माता, बहन, बेट और वे या—मौजूद ह। या मने आपको क चार हमारे लए
भा यशाली अंक है?” चाण य ने कहा।
मैग नीज़ क बोलती बंद थी। इससे पहले क वो संभल पाता, चाण य फर से
बोला, “तो, राज त, आपका दौरा वा तव म नजी ही रहा। या अब वधू के दहेज क बात
कर?” मैग नीज़, जसक टांग के बीच अब पहले से भी यादा तेज़ खुजली होने लगी
थी, हकलाया, “द—द— दहेज?”
“हां। से यूकस जैसे शासक क बेट के साथ आने वाले दहेज से उसक श
और त ा त ब बत होनी चा हए। मेरा सुझाव है क से यूकस हमारे यो य शासक को
अराको ज़या, जेदरो ज़या, पारोपामेज़ और आ रया दे द। या मने आपको बताया क चार
हमारे यहां भारत म एक भा यशाली अंक है?” चाण य ने कहा।
“बस इतना ही?” मैग नीज़ ने डरते-डरते पूछा।
“नह । आपके वामी से यूकस को अभी भी सकंदर के सहासन के अ य
दावेदार को हराना शेष है। उ ह अभी भी एंट गोनस और दमी यस को हराना है, जो
दोन ही सकंदर के इलाक़ के दावेदार ह। हमारे स ाट आपके श ु को आतं कत करने
और आपक वजय म योगदान के लए आपको पांच सौ एक हाथी दे ना चाहगे! पांच सौ
एक क सं या और भी भा यशाली है!”
“और इन हा थय के बदले म कसी चीज़ क आशा क जाएगी?” मैग नीज़ ने
च तत भाव से कहा |
“अपने पुराने सहयोगी पोरस से कहना क वो मगध पर आ मण कर सकते ह,
रात भर उसका आनंद ले सकते ह, ले कन अगली सुबह उ ह मगध को छोड़ना होगा |
मगध के साथ उनका संबंध एक रात का होगा, न क लंबा चलने वाला संबंध!” चाण य ने
आंख म एक शैतानी चमक के साथ कहा |

ब त दे र हो चुक थी। पोरस को धोखा दया गया था और वो ु था। उसके गु तचर


मुख अभय ने उसे त शला म चं गु त के सहासनारोहण के बारे म सू चत कया था। वो
बूढ़ा चाण य चं गु तके पद क शपथ दलाने के लए वह मौजूद था। न त प से
गु और श य के बीच कोई झगड़ा नह था। ले कन अब इस बारे म कुछ भी करने के लए
ब त दे र हो चुक थी। उसक सेना पहले ही चल चुक थी और इतने बड़े यु तं को
अचानक नह रोका जा सकता था। धनानंद जान चुका था क वो उससे लड़ने के लए आ
रहा है। अगर पोरस वापस भी जाता, तो धनानंद को उस पर आ मण करने से या चीज़
रोक लेती? नह , अब ये था। उसे योजना के अनुसार आगे ही बढ़ना होगा। पर म
अपनी वजय के उपहार को चाण य या उसक उस कठपुतली, चं गु त, के साथ कसी
भी क़ मत पर नह बांटूंगा, पोरस ने सोचा। मगध मेरा होगा, सफ़ मेरा |
मगध क सीमा से कुछ योजन क री पर एक मैदान म खड़ा उसका
वला सतापूण तंबू तूफ़ानी समु से घरा एक शां त का प था। एक लाख आद मय ,
चालीस हज़ार घोड़ , चार हज़ार रथवान और तीन हज़ार यु हा थय क आवाज़ का
शोर कान फाड़ डालने वाला था | उसका तंबू, अगर उसे तंबू कहा जा सकता था, लकड़ी
का बना आ था। हर बार नई जगह पड़ाव डालने पर इसे नए सरे से खड़ा कया जाता
था। लकड़ी क द वार शोर को आ मसात करने के लए मोटे कपड़े से ढक थ । राजा के
तंबू के अंदर एक चार पाय वाला पलंग और सजावट मेज़ और कुस थी। रेशमी ग़लीचे
और उ कृ सन क चादर उस क को एक कोमलता का भाव दान करती थ जो यु
के यं — उसका कवच, टोप, तलवार, छु रे और भाले—से भरा आ था।
अभय उसके सामने खड़ा आ था। वो बार–बार अपना भार एक पैर से सरे पर
डाल रहा था। वृ राजा ने पछले एक घंटे से उसे इसी तरह खड़ा रखा था। उसक
पा का क क ल और सूइयां अब उसे परेशान करने लगी थ । “चं गु त ने से यूकस क
पु ी कॉन लया से ववाह कर लया है। से यूकस ने चं गु त को दहेज म अराको ज़या,
जेदरो ज़या, पारोपामेज़ और आ रया दे दए ह। चं गु त के दरबार म से यूकस के राज त
मैग नीज़ ने चाण य को आ त कया है क मगध के सहासन पर पोरस क दावेदारी
नह होगी,” अभय ने सूचना द और महामं ी इं द अपने सामने बछे मगध के न शे को
दे खने लगा |
“मैग नीज़ वयं को समझता या है?” पोरस गरजा। “वो मेरी ओर से वचन
नह दे सकता। म अब मैसीडो नयाइय का सेवक नह !ं मगध मेरा है! उसे जीतना और
उसे कैकय के साथ एक कृत करना मेरा द कत है। मुझे कोई नह रोक सकता —
ई र भी नह !”
अभय ने फर भार बदला। उसने अपनी नज़र अपने पैर पर जमाई ई थ । पोरस
को संवेदनशील समाचार दे ने म वो कभी भी सहज नह महसूस करता था। वो ब त
आसानी से खीझ उठता था। “कुल मलाकर दे खा जाए, महाराज, तो हम अब बात से
अ धक काम करना है,” इं द ने बु मानी से सुझाव दया। “मैग नीज़ और उसका
वामी जानते ह क उनके पास हमसे सौदा करने क कोई श नह है। हम चा हए क
मगध पर आ मण कर और इसे सौदे बाज़ी के लए योग कर।”
“हे बु मान महामं ी, अभी और भी बुरा समाचार है। क लगराज ने, जो अपने
ऊपर से मगध के भु व का बोझ उतारना चाहता है, पचास हज़ार सै नक के साथ
आ मण करने का ण लया है। वो पूव से आ मण करेगा जब क हम प म से बढ़गे।
वो भी सहासन का दावेदार हो सकता है,” अभय ने शांत भाव से कहा।
“वो नीच जसने पछले साठ साल से मगध क दासता को वन ता से वीकार
कया आ था, अब सोचता है क वो संसार के सबसे श शाली रा य के सहासन पर
बैठ सकता है?” पोरस ने अहंकारभाव से पूछा। इं द ख़ामोश रहा य प वो अपने दं भी
राजा को याद दलाना चाहता था क उसने भी कुछ ही समय पहले तक मैसीडो नयाइय
का दास होना वीकार कया आ था।
“महाराज, हम से यूकस या क लग क चता नह करनी चा हए। वा तव म
पाट लपु के हमारे माग क बाधाएं ये नह ह,” इं द ने सलाह द ।
“तो फर कौन है?” ु पोरस ने पूछा।
“चाण य,” इं द ने उ र दया।

पाट लपु क प रचारक गली के एक धूल भरे पुराने भंडारगृह म, उन कई आद मय क


ओर कोई यान नह दे रहा था जो एक व च सा म ण कूटने म लगे थे। येक आदमी
प र के बड़े-बड़े मूसल और ओखल के साथ एक अजीब सा लेप बना रहा था उनके
आसपास व भ मा ा म इस म ण के अवयव थे, जनम से कुछ आया तत थे। इन
अवयव म गुलदाऊद , घोरबच, रालगुलाब, ग द, साग बनाज, ख दर का रस, प रता रका,
इलायची, स फ़, बालछड़, भूनीम क जड़, गुलाब क शु क प यां, अफ़ म क बाल,
अजवायन, बबूल, अशक नयान, माचनी, लंबी मच, बा सम, अंडी, लोबान, हपो स टस
का रस, हरड़, बहेड़ा, तेज़पात, गोल अस लया, सालरस, बरोजा, गाजर के बीज
ओपोबा सम, रेवतचीनी क जड़, केसर, अदरक, दालचीनी, सरका और मधु शा मल थे।
इन आद मय का नरी ण जीव स कर रहा था, जो बार-बार कपोत संदेशवाहक ारा
चाण य के भेजे ट पण को दे ख रहा था।
पास के ही एक क म मोटे सूती मुखौटे पहने आद मय का एक और गुट बैठा
था। वे इससे भी यादा घातक घोल तैयार कर रहे थे। वो हरताल को भून रहे थे, जो क
मगध क पूव सीमा पर पाया जाने वाला एक नारंगाी–पीला ख नज था। इसे भूनने से
फेना मभ म—सफ़ेद सं खया—नाम का एक यौ गक ा त होता था। “मूख!” जीव स
एक आदमी पर च लाया जो नंगे हाथ से ओखल को झाड़ रहा था। “तुरंत अपने हाथ
धोओ! और फर सरे क से मथ रदातय का घोल मलो!”
म इन मूख के साथ य फंसा आ ं जो इतना भी नह जानते क ये कर या
रहे ह, उसने सोचा। वो थोड़ा ककर सोचने लगा। फर वो मु कुराने लगा। उसे अहसास
आ क वो सफ़ इसी लए ये काम कर रहे ह य क वो जानते नह ह। सदै व एक कठोर
जानने–क –आव यकता के आधार पर काम करना ही अ ा होता है। और इन
अंधबु य को कुछ भी जानने क आव यकता नह थी।

चरमराती बैलगाड़ी इं से पाट लपु तक जाने वाले नए रथ माग पर आगे बढ़ रही


थी। गाड़ी पुरानी थी और कभी अ हालत म रही होगी, ले कन बैल आ यजनक प से
सुपो षत और श शाली लग रहे थे। उनके शरीर के झूमने के साथ–साथ उनके गले म
लटक छोट –छोट घं टयां बजती जा रही थ । बैलगाड़ी म तीन आदमी बैठे थे | उनम से
एक बूढ़ा, काला और चेचक के च भरे चेहरे वाला था। वो पूणतया न न था—उसके
गु तांग को ढकने के लए एक लंगोट तक नह था। उसके लंबे बाल, और दाढ़ –मूंछ
उलझी ई थ । उसके शरीर और चेहरे पर चंदन का लेप और चता क राख मली ई थी।
उसके लए से लगता था क वो अघोरपंथी है—यो गय का वो पंथ जो उ और झ क
होते थे और शव क पूजा करते थे, और जनके नाम का अथ था ‘अ–भयभीत’ य क
वो मृ यु से नह डरते थे। अघोरपं थय का व ास था क संसार म येक चीज़ द
पदाथ से बनी है और इस लए कुछ भी अशु नह हो सकता | सकल ांड ई र क
तरह प व और ु टहीन है। अघोरपंथी अपने यान और तप के लए मशान म बैठते थे,
जहां वो दवंगत आ मा के लए ाथना करते और मृतक का मांस खाते थे। वो
मृतभ क थे।
अ य दो आदमी तया उसके चेले थे। एक आगे बैठा बैल को चला रहा था,
जब क सरा अपने गु के सामने बैठा था। दोन श य मुद क राख से सने, एक ही
धूसर–सफ़ेद रंग के, छोटे -छोटे लंगोट पहने थे। अघोरपं थय से झगड़ा मोल लेना ठ क नह
था। वो वयं शव का मानव तीक थे। वो मशान म इसी लए रहते थे क शव इसी
ान पर रहा करते थे। अघोरपंथी न न घूमते थे य क उनक न नता साधारण मनु य के
मायावी संसार के त उनक अनास को त ब बत करती थी। उनक उ म ता म एक
व ा थी। अपने चंड तप के मा यम से वो आस , अहंकार, ई या, और घृणा क
मानवीय भावना से ऊपर उठकर स े योगी बन जाते थे।
उनक गाड़ी को रा ते म कसी भी सीमावत जांच चौक पर नह रोका गया।
चौक दार डरते थे क कह वो उ ह ाप न दे द, या इससे भी बढ़कर, कह उ ह जी वत ही
न खा जाएं। अपने नकट से गुज़रने वाल क आंख म भय के भाव दे खकर वो तीन मन
ही मन हंस पड़ते थे। चाण य, चं गु त और शारंगराव काफ़ शी ता से पाट लपु प ंच
गए।

महल के मैदान म, धनानंद उस प व अ न म म खन, मधु, ध, अनाज और सोम क


न दयां बहाने म त था जसक दे खरेख रा य के एक सौ दस बा ण कर रहे थे। ये
ई र से उ कट ाथना थी क वो उसे उन पर वजय दान करे जो उसके सहासन को
हड़पना चाहते थे। सारी व धयां पूरी होने के बाद ा ण को राजसी भोजनक म ले
जाया जाएगा जहां दस व र ा ण शु वण–पा म भोजन कराया जाएगा। उन सौ
कन ा ण को भी भोजन कराया जाएगा जो पीछे खड़े वेद–ॠचा का उ ारण
करते रहे थे, ले कन ठोस चांद के पा म। ा ण को स करना ई र को स करने
के समतु य था और धनानंद ने प व अनु ान म उप त रहने के लए वयं को स
करने के अपने सामा य काय म से थोड़ा समय नकाल लया था।
अनु ान पूरा होने पर ा ण को भोजनक म ले जाया गया जहां वो सोने क
तीन था लय के सामने तीन अघोरपं थय को दे खकर दं ग रह गए। “ये अनगल है! हम यहां
इन घृणा द य के साथ कैसे बैठ सकते ह जो लाश के बीच रहते ह और सड़ा आ
मांस खाते ह?” उनम से मुख ा ण ने पूछा। धनानंद भी भड़क गया था। उसके
पहरेदार ने इन अशोभनीय मनी षय को प रसर म घुसने ही कैसे दया था?
“इ ह ने कहा था क ये मुझे ाप दे दगे और क मेरी अंत ड़यां मेरे पेट से बाहर
उबल पड़गी ज ह ये आनंद लेकर खाएंग!े ” बुरी तरह घबराए एक पहरेदार ने धनानंद से
कहा। उसके सै य अ धकारी ने, जो क तेल से सु च कण मूंछ वाला एक सुंदर नवयुवक
था, घबराए वर म कहा, “महाराज, इ ह ने कहा था क मेरे अंग गर जाएंगे और वत: ही
आपक प व अ न म चले जाएंगे। इ ह ने कहा क मेरी ह ड् डय पर लटका मांस इनके
पहले ास से पहले ही भुन जाएगा!”
“राजन, हम भले ही अघोरपंथी ह कतु यहां आपक वजय के लए द
सहायता सु न त करने आए ह। हमारी श यां इस क म उप त एक सौ दस
ा ण से कह अ धक ह। हमारा अपमान करके आपने शव के ोध को योता दया है।
शव का र आपके कुं को वषा कर दे गा और आपके नाग रक यास से मर जाएंगे
जब क श ु नगर के ार पर भे ड़य क तरह र का यासा खड़ा होगा। अब आपको या
आपके रा य को कोई नह बचा सकता-ब ल क एक हज़ार अ नयां भी!” न न चाण य
च लाया और तीन साधु हाथ म था लयां लए खड़े हो गए। उ ह ने आवेश म अपनी
था लयां ज़मीन पर फक और तेज़ी से भोजनक से बाहर नकल गए। कसी भी पहरेदार
ने उ ह जाने से नह रोका। धनानंद भी भय के मारे त खड़ा रह गया। कई पल बाद ही
पहरेदार ने उसके पैर के पास मू का ढे र दे खा।
“अगर सांप वषैला न हो, तो उसके पास वयं को वषैला दखाने का और भी
कारण है,” प रसर से नकलते– नकलते चाण य ने धीरे से चं गु त और शारंगराव से
कहा।

“ज द करो! सारे कुं म सूया त से पहले फेना मभ म डलवा दो। मुझे य ऐसे अयो य
मूख को सहन करना पड़ रहा है?” जीव स उन लोग के गरोह का नरी ण करते ए
बड़बड़ाया जो पाट लपु के कुं , कुंड , तालाब और जलाशय को वषा करने म
त थे।
“मगध पर अ धकार करने के लए हम नद ष क ह या य कर?” चं गु त ने
चाण य से पूछा था।
उसके गु ने उ र दया था, “सवेरे सबसे पहले पानी पीने वाले पशु ह गे।
इसी लए वषा करण रात को करना आव यक है—मानव जान ब त कम जाएंगी।
अघोरपं थय के अ भशाप का समाचार फैल ही चुका है। ब त समय नह लगेगा जब
जनता हर वो बात करने लगेगी जो हम कहगे |”
“और तब या होगा जब प रषद हम बुलाकर हमसे ाप वापस ले लेने क वनती
करेगी?” शारंगराव ने पूछा।
“सरल है। हम उनसे कहगे क इसके सुधार के लए धनानंद को एक महान याग
करना होगा। उसे अपना महल छोड़कर जंगल म— नवासन म—रहने के लए जाना
होगा। इसी बीच, जीव स अपने आद मय से उस जल म जसम हमने एक रात पहले
वष मलवाया था हमारे ारा न मत वषहर औष ध— मथ रदातय— म त करवा दे गा।
चम कार होते ह!” चाण य हंसा।
“पर हम नगर पर नयं ण कैसे ा पत करगे?” चं गु त ने पूछा। उसके गु क
ज टल योजनाएं उसे हमेशा उलझन म डाल दे ती थ । वो तो आमने-सामने के यु को
पसंद करता था जसम उसके करने के लए कुछ हो।
“धनानंद के सेनानायक—भ शाल—को जीव स ने पूरी तरह ख़रीद लया है।
जैसे ही धनानंद नगर के ार से नकलेगा, भ शाल पूरे मगध क सेना का नेतृ व तु ह स प
दे गा, चं गु त, बशत क उसे पूव नधा रत उ कोच दे दया जाए।”
“ले कन फर भी पोरस और क लगराज पूव और प मी सीमा पर यु के
लए तैयार खड़े ह गे,” चं गु त ने यु र दया।
“उ ह हमसे यु करने क आव यकता नह होगी| हम खुली बांह से उनका
वागत करगे,” चाण य ने कहा।
“तो हमने उ माद न न नरभ य के भेष म इधर से उधर भटकने क ये
क दायक या ा केवल इस लए क है क हम नगर के ार खोल सक और श ु को चा बयां
दे सक?” चं गु त ने इस वचार से चढ़कर कहा क दं भी पोरस का पाट लपु म वागत
करना पड़ेगा।
चाण य हंसने लगा। फर गंभीर होते ए, उसने कहा, “चं गु त, शायद तुम मेरे
ारा सखाई गई सबसे पहली बात म से एक भूल चुके हो | अपने म को नकट रखो
और अपने श ु को और भी नकट रखो।”
जब धनानंद अपने महल और रा य का याग करके अपनी भा यशाली प नय और
सेवक —जो याग करने के लए कसी तरह तैयार नह लगते थे—के साथ चला, तो
भ शाल एक ओर खड़ा रथ , घोड़ और हा थय के जुलूस को दे खता रहा। भ शाल
भारमु था—उसके ॠण अदा कए जा चुके थे और अब वो अ यंत समृ था।
जीव स को चाण य ने ये सु न त करने का नदश दे दया था क जब राजा
का साथवाह नकले, तो सुवा सनी कह भी उसके आसपास न हो। एक अं तम सौदे बाज़ी
के लए उसक अभी भी आव यकता पड़ने वाली थी—या उसने वयं को ये समझा रखा
था। अपने वा भमान के कारण वो उसके त अपने जीवन भर के आकषण को वीकार
नह करना चाहता था।
“म चाहता ं उसे मार डाला जाए,” धनानंद को रथ म जाते दे खकर चाण य ने
शारंगराव से कहा | स ाट एक ही दन म दस वष बूढ़ा हो चुका दखता था। उसके चेहरे
को हमेशा सजाने वाली ू र मु कान लु त हो चुक थी | उसक दं भपूण अकड़ जा चुक थी
| और मगध का रा य भी जा चुका था |
“अगर हमने उसे मरवा दया, तो सारे नगरजन समझगे क इसके पीछे हम ह—
और उनका सोचना सही होगा,” शारंगराव ने तक दया।
“हमारी यादा बड़ी सम या भ शाल है। संभवत: उसे लगता है क वो अभी भी
सेना मुख के पद का अ धकारी है। वो रा स के संपक म रहा है जो हमारे कबूतर
प ाचार का योग करता रहा है,” जीव स फुसफुसाया।
“ या उसने औपचा रक प से अपनी तलवार हम सम पत कर द है,” चाण य
ने पूछा।
“नह ,” जीव स ने उ र दया।
“ये काम तुरंत करो। मुझे उसक तलवार चा हए। मेरी एक योजना है,” चाण य ने
कहा जब क मगध क जनता धनानंद के न कासन का ज मना रही थी। जैसे ही
साथवाह पाट लपु के ार से नकला, चाण य ने पोरस और क लग के शासक को संदेश
भेजे जाने का आदे श दया क वो क़लेबंद नगर म वेश कर सकते ह और एक भ
वागत क आशा कर सकते ह।
“आप उ ह मेरी इ ा के व अंदर आने दे रहे ह,” चं गु त ने चाण य को
सुझाव दया। उसका गु मु कुराया। “मेरी सम या ये है,” आचाय ने कहा, “ क तु हारे
पास एक श शाली इ ाश है ले कन मेरे पास एक कमज़ोर ‘नह ’ है!”
कैकय और क लग क सेनाएं पाट लपु म ढलकती चली आ । स मा नत अ त थय के
वागत के लए चाण य महल के वेश पर खड़ा था | जैसे ही उनके रथ अंदर आए, उनके
वागत म सौ नगाड़े वाल ने अपने नगाड़ का कानफाडू शोर आरंभ कर दया।
क लगराज पोरस जैसा लंबा तो नह था ले कन उतना ही श शाली अव य
दखाई दे ता था। वो यो तष क से अपने लए शुभ लहसु नया ज ड़त कां य का टोप
पहने ए था | उसके व पर चम अ तर वाला व था जस पर लौह-कवच था। एक लंबी
मूठ वाला चौड़ा खड् ग उसक पेट से लटक रहा था | वो अपने रथ से नकला तो चाण य
ने उसका अ भवादन कया। “पाट लपु म वागत है, हे महान राजा,” उसने वर म
कहा और फर थोड़ा धीमे से बोला, “मुझे पूरी आशा है क ये रा य आपके उदार शासन से
गौरवा वत होगा |”
पोरस ने इस अवसर के लए भ पोशाक पहनी थी, उसक ह क पीली पगड़ी
पर प े और नीलम से बना हरा–नीला मोरपंख लगा आ था। उसका वशाल शरीर तीन
घोड़ वाले रथ से बाहर आया, तो चाण य ने पूरी वन ता से हाथ जोड़कर उसका वागत
कया। “पाट लपु म वागत है, हे महान स ाट,” उसने ऊंचे वर म अहंकारी शासक क
चापलूसी करते ए कहा। फर वो फुसफुसाया, “मुझे आशा है क मगध आपके शासन म
समृ ा त करेगा।” पोरस मु कुराया। मने इस को इसका सही ान बता दया है,
उसने सोचा।
जब दोन शासक अपने वला सतापूण नवास म प ंच गए, तो ये चालाक
वयं उनसे मलने प ंचा। “म चं गु त से पहले ही कह चुका ं क वो मगध क दावेदारी से
पीछे हट जाए,” चाण य ने उन दोन से कहा। “ कतु रा य को नेतृ वहीन नह छोड़ा जा
सकता। य द चं गु त शासन नह कर सकता, तो इसका नेतृ व आप दोन म से ही कसी
एक को करना होगा | आप दोन क सेना के लड़ने से अ ा ये होगा क दोन महान
शासक के बीच ं हो जाए,” उसने सुझाव दया। वो जानता था क ये सुझाव दोन के
दं भ को आक षत करेगा।

पोरस ने हाथ बढ़ाकर अपनी तलवार नकाली | उसने उसे यार से पकड़ा, जैसे तलवार का
द ता उसके हाथ का ही भाग हो। उसने अपने फ़ौलाद को तैयार कया, और धातु साथ
धातु के संघष के लए तैयार हो गया |
क लग ने अपने फलके को अपने बाएं हाथ म पकड़ा। वामह त होना वा तव म
लाभकारी होता है, उसने सोचा। उसके अ धकतर वरोधी उससे लड़ते समय ठ क से
अनुमान नह लगा पाते थे। वो वामह त से लड़ने के अ य त नह होते थे जब क वो दाएं
हाथ वाल के साथ लड़ने म अ यंत सहज था।
वो रणकला क शा ीय मु ा म एक– सरे के आसपास मंडरा रहे थे। ऐसा
करते ए वो एक– सरे क आंख म घूरते थे। एक झपक नणय कर दे ती क कौन हावी
होगा | जैसे ही दोन यो ा एक– सरे से भड़े, उनके फलक से चगा रयां उठने लग |
अचानक शोर म ठहराव आ गया य क अब वो एक– सरे क गदन तक तलवार
ले जाने के यास म गुथे ए खड़े थे। ये र मु ा कुछ समय तक जारी रही और फर
क लग क आंख झपक । पोरस ने अपने श को आगे धंसाया, ले कन क लग ने
आ मण से बचने के लए तीन सौ साठ ड ी पर तेज़ी से घूमते ए बड़ी वशेष ता के
साथ वापसी कर ली। पोरस ने र तो नकाला ले कन ाण नह नकाल सका।
दोन वरोधी अपने आ मण म तेज़ी लाने के यास म अपनी पूरी जान लगाने
लगे। दोन जानते थे क ं का अंत एक क मौत के साथ होगा ले कन दोन ये भी जानते
थे क उ ह एक नतीजा चा हए—और वो भी शी ।
क लग लड़खड़ाया और वो उस ण म जान गया था क ये उसके जीवन का अंत
है। पर वो फर भी उछलकर आ मण करने के लए आगे बढ़ा, जब क पोरस शां तपूवक
एक ओर हटा और अपनी तलवार के एक ही वार से उसने क लग क गदन के एक ओर
एक गहरा घाव कर डाला। घाव से र फूट पड़ा, क लग ज़मीन पर गरा और उसक
तलवार झनझना उठ । एक अ यंत शौयपूण ण म पोरस ने अपनी तलवार ज़मीन पर
फक और अपने वरोधी के पास झुक गया | क लग का र बहता और जीवन नकलता
रहा, और पोरस ने कहा, “ वदा, हे वीर राजा। पोरस को गव है क वो आपसे लड़ा।”
एक गया, एक और जाना है, चाण य ने सोचा।

पाट लपु के पूव भाग म शव वी थ म भूतपूव ग णका के संचालन और मयूर यास के


अनुदान से चलने वाली साधारण सी नृ य सं ा म एक और छा ा उपा ध ा त होने वाली
थी। वशाखा न संदेह उनक सव े छा ा म से रही थी। उसका अ यंत मोहक रेतघड़ी
सा शरीर, मोती और हाथीदांत जैसी रंगत, चमचमाती प े जैसी आंख, भरे–भरे मा णक
ह ठ, कोमल आकषक नाक और झरन क तरह लहराते सुनहरी बाल पु ष को उसक
ओर ऐसे आक षत करते थे जैसे मधु पर म खयां। कतु ये मधु वषा था।
वै दक यो तष बारह रा शच म रहने वाले स ाईस न पर आधा रत था।
येक न म तेरह अंश और बीस पल का वृ चाप था और स ाईस से गुणा कए जाने
पर ये वै दक यो त षय को तीन सौ साठ अंश का पूरा वृ दान करता था। ब े के
ज म के समय बारह म से कसी एक रा शच म चं मा क त को ब े क रा श के
प म जाना जाता था, ले कन रा श से भी अ धक मह वपूण उस के न के भीतर
चं मा क त होती थी। मगध के ाचीन ॠ षय क गणना थी क चं मा क कुछ
वशेष तय के समय ज म कुछ य को उनके सा थय क द घायु के लए अ यंत
अशुभ बना दे ता था। बैसाख के सातव चं दवस को मंगलवार को ज मी लड़ कय क
ज मकुंड लयां भा यपूण प से श शाली होती थ जो इस बात को न त कर दे ती थ
क उनके साथ संभोग करने वाला कोई भी पु ष मर जाएगा | ये वषक याएं कहलाती थ ।
उपा ध ा त के स ताह म, वशाखा और व ालय क अ य लड़ कय को स
करना होता था क वो वा तव म वष के भाव से मु ह। स ताह के येक दन ये
लड़ कयां पं ब होत जब क हाथ म एक बड़ी सी ढक ई टोकरी लए उनक ाचाया
उनम से येक का हाथ उस टोकरी म डलवाती। येक टोकरी म पहले से अ धक वषैला
सांप होता और वशाखा उन कुछ लड़ कय म से थी ज ह ने पूरा स ताह डसे जाने पर
कसी भी त या के बना बताया था। वो उतनी ही घातक थी जतने क वो सांप
ज ह ने उसे डसा था। ाचाया जान गई थ क वशाखा ही वो लड़क है जसे वो चाण य
को स पगी। व ालय के सं ापक को उससे कम कोई चीज़ नह द जा सकती थी।
अ याय अठारह
वतमान समय

हैरी रचड् सन ने एक गहरी सांस ली। इ तहास यक़ नन इ तहास का सबसे नीरस वषय
था। उसे हेनरी अ म और नई–नई प नय के उसके शौक़ म भी दलच ी नह होती थी।
उसने अपने नक़ली कॉलर और सफ़ेद टाई को ठ क कया और फर से अपनी कताब को
पढ़ने लगा। उसक गदन म खुजली हो रही थी। वो कभी कूल क यू नफ़ॉम—काला
टे लकोट, वे टकोट और पन ाइ ड ाउज़स—का आद नह हो सका था। ईटन उसके
लए एक मुसीबत था।
गोडॉ फ़न हाउस म अपने नजी कमरे म उसने कुस पर अपने कू ह को
असहजता से खसकाया। पछले दन डवीज़न के लए दे री से प ंचने पर हेडमा टर से
खाई पांच छ ड़य क वजह से उसके कू हे अभी भी ख रहे थे। उसका पेट शकायत कर
रहा था। बे कटन– वशाल क य डाइ नग हॉल प रसर—म ना ता, दोपहर का खाना और
रात का खाना बड़ा ही बे वाद होता था। एकमा भोजन जो उसे अ े लगते थे वो थे म य
सवेरे का चबस का नैक और म य सांय क लड़क क चाय, ले कन आज उस काम क
वजह से जो उसे पूरा करना था, वो ये दोन ही चूक गया था। उसक बड़ी इ ा हो रही थी
क वो घर पर होता।
हैरी एक सुंदर लड़का था। उसक ज़द वचा म एक सुनहरी चमक थी और उसके
काले बाल घने और चमकदार थे। सातव क ा के इस लड़के का क़द अभी से पांच फ़ट
चार इंच हो चुका था और उसके नाक–न श बड़े कोमल से थे। उसका चेहरा मासू मयत
क त वीर था—कोमल ह ठ, तराशी ई नाक और प े जैसी हरी आंख।
उसने अपनी मां जोज़ेफ़ न से कई बार पूछा था क उसे ईटन जाने क या
ज़ रत थी जब क वो रमणीक ास मयर म उनके पास रह सकता था और नज़द क के
कसी भी कूल म पढ़ सकता था। उसे लंबी छु के लए सफ़ छमाही पर और कम छु
के लए दो बार— मकेलमस और लट के दौरान—जाने को मलता था। मम कहती थ क
उसके पता क मौत के बाद उ ह ने उसे अकेले पाला था। दोन के अ ा जीवन बताने
और ईटन क बेतहाशा फ़ स भरने का बस यही एक तरीक़ा था क जोज़ेफ़ न लगातार
काम करती रहे। एक पटर का काम कतना मु कल हो सकता है, हैरी सोचता था।
यादातर कलाकार इस लए प टग बनाते थे ता क प टग बेचकर खा–पी सक और संभोग
कर सक। और वो तो शायद कभी अपनी प टग बेचती भी नह थ —घर प टग से भरा
पड़ा था। जोज़ेफ़ न ने हैरी को ये नह बताया था क उसका संर क भारत का एक वृ
था— जसक उदारता के कारण जोज़ेफ़ न एक कलाकार जैसा जीवन तीत कर
पाती थी—पं डत गंगासागर म । जब से जोज़ेफ़ न और उसके पता ने चांदनी क
दे खभाल क थी, तब से जोज़ेफ़ न क दे खभाल करने को गंगासागर ने अपना कत
समझा था।
ईटन म हर वो खेल होता था जसके बारे म कोई सोच सकता था— फ़टबॉल,
र बी, हॉक , केट, बा केटबॉल, नौकायन, एथले ट स, तलवारबाज़ी, माशल आट् स—
फ़ह र त का कोई अंत नह था। खेल म कम च रखने वाल के लए उनके आधु नकतम
संगीत वभाग म— जसम एक अ व सनीय संगीत टै नॉलोजी सुइट और रकॉ डग
टू डयो शा मल था— डजे रडू समेत हर संगीत यं मौजूद था। कूल म दो थएटर थे और
थएटर के शौक़ न ब े कूल के नाटक , हाउस के नाटक और यहां तक क कथानक
लेखन म भी भाग ले सकते थे। इसके अलावा ईटन म प टग, ॉइंग, मू तकला, सेरे म स,
टमे कग, वाद– ववाद और भाषणकला भी सखाई जाती थी।
ले कन हैरी क एकमा च उसका वॉय लन थी। पछले वष संगीत के लए द
गई आठ छा वृ य म से एक उसे मली थी और इसे पाना सहनशीलता का इ तेहान था।
संग त छा वृ परी ा जनवरी के अंत म ई थी और तयो गय को दो वषम धुन अपने
मुख साज़ पर और एक अपने सरे साज़ पर बजानी थ , लखे ए संगीत को बजाना था,
वण परी ण दे ने थे और अपनी क ा के अनुसार स तक बजाने थे। हैरी ब त अ े
अंक से उ ीण आ था—वो ईटन म दा ख़ले से पहले ही वॉय लन पर ेड एट था। ऐसा
लगता था जैसे वो पैदा ही तार के चौरागे के वर के बीच आ था।

जोज़ेफ़ न ने एक ामोफ़ोन ख़रीदा जसे उसने चांदनी के कमरे म लगा दया था। उसने
चांदनी के लए दे र तक बजने वाले रकॉड —बाख, बीथोवेन, ा ज़, चाइकॉ क , और
पैगानीनी के वॉय लन कंसट ज़—क व ा क । चांदनी खड़क पर बैठ शांत
पगडं ड़य और ऊंची–नीची चो टय से घरे नमल ास मयर को दे खती रहती। जब चांदनी
वॉय लन क धुन म डू बी होती तो जोज़ेफ़ न अ सर बाज़ार चली जाती थी। कभी–कभी
वापसी पर वो चांदनी क नम आंख और चेहरे पर सूख चुके आंसु के नशान दे खती।
वॉय लन क आवाज़ उसे यो क ब त याद दलाती थी। जोज़ेफ़ न उसे ख़ुश करने क
को शश म हर कुछ दन बाद खड़क म चांदनी के मनपसंद गुलाबी गुलदाऊद के फूल
रख दे ती।
वहां प ंचने के आठ ह ते बाद चांदनी ज म दे ने को तैयार थी। उसे अंदाज़ा नह
था क ये नथुने से एक बो लग बॉल नकालने जैसा होगा। जोज़ेफ़ न ने उसका हाथ पकड़ा
जब क मे न ने उसके गभाशयमुख के फैलने क जांच क । ख़ून और ूण व रस रहा था
और नस ने उसे पुश करने के लए कहा। चांदनी ने पुश कया और जैसे ही उसे महसूस
आ क चप चपे पदाथ म एक शरीर उसके अंदर से नकला वैसे ही वो बेहोश हो गई।
चांदनी जागी, तो उसने महसूस कया क उसक सफ़ाई करके उसे वापस उस
कमरे म प ंचा दया गया है जहां झील के हसीन नज़ारे को ढके ए फूल के डज़ाइन वाले
पद पड़े ए थे। जोजे़फ़ न उसके नज़द क बैठ उसके बाल म उं ग लयां फरा रही थी।
चांदनी ने एक नज़र जोजे़फ़ न को दे खा और समझ गई।
“मुझे अफ़सोस है, हनी,” जोज़ेफ़ न फुसफुसाई, “डॉ टर ने कहा है क तुम और
ब े पैदा कर सकती हो, ले कन ये मृत था।”

“भाबुआ टे ट कोअ◌ॉपरे टव बक,” गंगासागर ने कहा।


“ये या है?” अ वालजी ने पूछा।
“म चाहता ं क हमारा नयु रज़व बक अ◌ॉफ़ इं डया का गवनर इस बक क
छानबीन करे।”
“ य ?”
गंगासागर ने एक शेयर ांसफ़र फ़ॉम दखाया। उसके पास ऐसे कई फ़ॉम थे। “ये
लेनदे न दे ख रहे ह? शव फ़ाइनस ा. ल. ने शेयर क ये खेप व णु इंवे टमट् स ा. ल. को
बेची है।”
“कंपनी के शेयर बेचना कब से अपराध बन गया? वैसे भी, बहार के एक छोटे से
सहका रता बक से इसका या ता लुक़?”
“थोड़ा सा गहराई म जाकर दे ख, मेरे म । व णु इंवे टमट् स ा. ल. ने यही खेप
स यो रट ज़ ा. ल. को बेच द ।”
“म अब भी नह समझा, गंगा | शेयर का कारोबार ख़रीदने और बेचने का ही खेल
होता है। इन कंप नय ने ग़लत या कया है? और भाबुआ टे ट कोअ◌ॉपरे टव बक से
इसका या संबंध है?”
“आप अब भी नह समझे? ह क पव मू त– – व णु– शव?”
“माफ़ करना। म तु हारा मतलब नह समझा।”
“ —रच यता, व णु—संर क, शव— वनाशक। एक ही स व के तीन प ।
आपको नह लगता क तीन कंप नयां एक ही मा लक क ह?”
“ फर भी, इसम सम या या है?”
“सम या ये है। शव ने एक सोमवार को शेयर क ये खेप व णु को 140 पए
त शेयर पर बाज़ार मू य पर बेची। अगले दन— मंगलवार को— व णु ने ये शेयर
को बाज़ार मू य से कुछ ऊपर 150 पए त शेयर क दर पर बेचे | बुधवार को, ने
शेयर वापस शव को 160 पए पर बेच दए!”
“तो?”
“ शव को बीस पए त शेयर का नु सान आ जब क व णु और को
दस–दस पए का मुनाफ़ा आ। अगर ये तीन कंप नयां एक ही क ह, तो ये शू य
रा श का खेल है!”
“ले कन ऐसा करने क ज़ रत या है? इसम कोई मुनाफ़ा तो है नह ।”
“ य क अगर आप ये खेल उ ह शेयस और पया त पैसे के साथ खेलते ह, तो
अंत म आप बाज़ार मू य बढ़ा दगे | इन तीन कंप नय ारा लेनदे न कए गए शेयर का
बीजक तीन दन म चौदह तशत बढ़ गया! तीन दन म!”
“और इस लेनदे न के लए पैसा कहां से आया?”
“भाबुआ टे ट कोअ◌ॉपरे टव बक से।”
“ले कन बक को तो एक नक़द आर त अनुपात बनाकर रखना पड़ता है। ऐसा
हो ही नह सकता क बहार के ामीण े का एक छोटा सा बक शेयर बाज़ार के स े के
लए इतनी बड़ी–बड़ी रा शय का ॠण दे और नयामक को पता भी न चले,” अ वालजी
ने बहस क ।
“इसका सरल सा हल है। बक को अपनी नक़द के बैलस क रपोट येक
पखवाड़े पर रज़व बक अ◌ॉफ़ इं डया को दे नी होती है। बीच म तेरह दन होते ह जनम
कोई रपोट नह दे नी होती। इन तेरह दन म ापार कया जाता है और चौदहव दन
हसाब कर लया जाता है। नयामक को कभी पता ही नह चलता है।”
“तो शेयर ापा रय के पीछे य न पड़ा जाए? स ा तो वही लगा रहे ह।”
“ य क , व णु और शव का मा लक एक ब त मह वपूण आदमी है।”
“कौन?”
“ बहार का मु यमं ी।”
“और तुम भाबुआ टे ट कोअ◌ॉपरे टव बक के पीछे पड़कर या हा सल करना
चाहते हो?”
“ यु ज़कल चेयस के खेल म हर बार संगीत थमने पर या होता है?”
“एक कुस कम हो जाती है?”
“ ब कुल| बक के लेनदे न पर उनके रपोट करने वाले पखवाड़े पर रोक लगा द
जाए। वो न धय म असंतुलन क सफ़ाई नह दे सकगे | इसी लए मुझे रज़व बक अ◌ॉफ़
इं डया म अपना आदमी चा हए था।”
“और तु ह या मलेगा?”
“ बहार का घबराया आ मु यमं ी।”

चांदनी आख़री मील पैदल चलकर गांव प ंची। बहार के पूव चंपारण ज़ले का जतौरा
मूसाहार टोला बना सड़क , बजली, पीने के पानी, कूल और अ ताल वाला गांव था।
ऐसा लगता था जैसे स यता ने जतौरा से बचकर ही नकल जाने का फ़ैसला कया आ
था।
वो एक द लत घर म रात बताने वाली थी, अगर उस झोपड़ी को घर कहा जा
सकता था। म र , चूह और सांप से परेशान उस झोपड़ी म मौसम से कसी तरह क
शरण नह थी। झोपड़ी के बाहर म पर एक चटाई बछाकर, उसने अ य द लत के साथ
एक अनौपचा रक खुली बैठक क और फर उनके साथ एक कफ़ायती खाना—रोट ,
याज़ और नमक—खाया। ये वो लोग थे ज ह कसी समय म ा ण अछू त कहते थे।
अ ृ यता भले ही आधी सद पहले तबं धत कर द गई हो, ले कन ये कलंक अभी शेष
था। उन ग़रीब मज़ र क कहा नयां सुनकर उसक आंख म आंसू आ गए ज ह एक
व त का भोजन कमाने के लए अपने ब को बंधुआ मज़ र के प म बेचना पड़ रहा
था।
वापस द ली आने पर, दो दन बाद वो अपने सरकारी नवास 19, तीन मू त लेन
म गंगासागर से मली। “आपने मुझे वहां य भेजा था? वहां के हालात पूरी तरह
नराशाजनक ह! उस गांव के दो सौ ब म से कुल तीन ब े कूल जाते ह! सबसे
नज़द क कूल छह मील र है! अ ताल तो भूल ही जाइए, वहां बु नयाद दवाइयां दे ने
के लए एक दवाख़ाना तक नह है। व ता नाम क तो चीज़ ही नह है— टायफ़ॉइड
और हैज़ा ामीण के सबसे बड़े मुलाक़ाती ह और जब-तब उनसे मलने जा प ंचते ह।
या ये आपको च तत नह करता?” उसने पूछा।
“ चता रॉ कग चेयर जैसी चीज़ है; ये आपको हलाती तो रहती है, ले कन कह
लेकर नह जाती है,” गंगासागर ने उस लाउं जर पर आगे-पीछे झूलते ए कहा जस पर वो
बैठा आ था। “मने अ वालजी से एक नजी यास ा पत करने को कहा है। आर एंड
एस के पैसे को पूरी तरह राजनी तक उ े य के लए योग नह कया जाएगा। ये बहार
के द लत गांव क पहचान करेगा–सबसे ग़रीब गांव क —और कुछ साधारण मु पर
यान दे गा।”
“कौन से मु े ?”
“एक ाथ मक कूल, पीने का साफ़ पानी, एक बु नयाद वा य-र ा क और
दै नक पोषण क गारंट ।”
“और इनसे कन गांव को फ़ायदा होगा?”
“ बहार के रोहतास और भाबुआ ज़ल के गांव।”
“ या रोहतास और भाबुआ को चुनने के पीछे ये कारण है क ये ज़ले बहार के
द लत मु यमं ी के चुनावी गढ़ ह?” चांदनी ने चालाक से पूछा।

“ बहार के मु यमं ी आपसे मलना चाहते ह,” मेनन ने कहा।


“आह!” गंगासागर ने मु कुराते ए कहा।
“आपको बहार म य इतनी दलच ी है?” चांदनी ने पूछा, “हमारा गढ़ तो
उ र दे श है।”
“ यारी लड़क , बहार लोकसभा म चौवन सांसद भेजता है। पछले आम चुनाव
म बहार के मु यमं ी का स ा ढ़ पाट के साथ सीट को लेकर समझौता था। पचास
तशत सीट उनक पाट ने लड़ी थ और बाक़ पचास तशत स ा ढ़ पाट ने। अब वो
अगले चुनाव म सारी सीट पर लड़ना चाहते ह।”
“तो उ ह हमारी या ज़ रत है?”
“ य क अगर हमारे बीच समझौता हो जाता है, तो हम केवल उ र दे श क
सीट लड़गे– बहार क नह , और वो सफ़ बहार क सीट लड़गे–उ र दे श क नह । ये
हम दोन के लए फ़ायदे मंद रहेगा।”
“ले कन आपने तो मुझे बहार म उनके गढ़ म भेजा था!”
“वना म उ ह फंसाता कैसे ?”
“ फर आपने अ वालजी के ज़ रए उनके बक को नयामक के साथ मुसीबत म
डाल दया।”
“बक को फंसाना मु यमं ी को फंसाने का सबसे अ ा तरीक़ा था। और
बज़ा हर ऐसा लगता है क मेरी योजना कामयाब रही है!”
“ले कन अकेला बहार हम सदन म ब मत नह दला सकता। भले ही उ र दे श
क सारी प यासी सीट एबीएनएस को और बहार क सारी चौवन सीट उ ह मल जाएं,
तो भी ये कुल एक सौ उ तालीस होती ह। ये फर भी उस आंकड़े क आधी ह जो हम
अपने बूते पर सरकार बनाने के लए चा हए।”
“बाक़ काम बहार के मु यमं ी करगे |”
“कैसे?”
“ या तुम नह जानत क वो वप ी नेता के घ न दो त ह?”

“अमे रका ने पा क तान को दो अरब डॉलर का सै य हाडवेयर स लाई करने का फ़ैसला


कया है,” रॉ चीफ़ ने बताया | “ये ख़बर अभी सावज नक नह ई है ले कन अगले महीने
हाइट हाउस इसक घोषणा कर सकता है।”
“वो ख़तरनाक खेल खेल रहे ह,” चांदनी ने कहा। “वो जानते ह क पा क तानी
सेना अपने वा त वक मन, इ लामी उ वाद, से लड़ने के बजाय भारत से लड़ने म
मस फ़ ह।”
“ या हम अमे रका को समझा नह सकते क पा क तान को ह थयार स लाई
करना उनके अपने ही हत म नह है?” इंटेलीजस यूरो के नदे शक ने पूछा।
“सारी को शश क जा चुक ह। कोई राजन यक तरीक़ा ऐसा नह है जसका
सहारा नह लया गया हो। हमारे गुटबाज़ अमे रक रा प त क नई पसंद तक से मल चुके
ह। वो काफ़ आकषक है—हालां क थोड़ी गोल-मटोल है,” चांदनी ने मु कुराते ए कहा।
“मेरे पास एक आइ डया है,” नदे शक ने कहा।
“ या?” चांदनी ने पूछा।
“गैस,” नदे शक ने कहा।
“मुझे सुनकर अफ़सोस आ। म आपके लए गैस क दवाई मंगवा ं ?” चांदनी ने
पूछा।
“गैस नह । गैस स यूज,” शमाए नदे शक ने कहा।
“आप दोन या बात कर रहे ह?” रॉ मुख ने नाराज़गी से कहा। वो हवा के बारे
म इस महान बातचीत से अलग-थलग छू टा महसूस कर रहा था।
“गैस स यूज के जन डज़ाइन के योग से पा क तानी अपने परमाणु
रए टर म परमाणु साम ी तैयार करते ह वो यूरो नको नाम क जमनी क एक कंपनी से
चुराए गए थे,” नदे शक ने बताया |
“तो या आ? पा क तान का अ धकांश परमाणु काय म चोरी क टै नॉलोजी
पर ही आधा रत है,” चांदनी ने कहा।
“हां, पर यूरो नको के डज़ाइन एक सी डज़ाइन पर आधा रत थे। अगर आप
उनसे कह तो सी बड़ी ख़ुशी से उस डज़ाइन को हमारे साथ बांट सकते ह,” नदे शक ने
कहा।
“जो टै नॉलोजी पहले ही हमारे पास मौजूद है उसके लए म एक पुराना डज़ाइन
य लेना चा ंगी?” चांदनी ने अ व ास से पूछा।
“ य क मेरे वभाग म एक आदमी है जो पुराने डज़ाइन को बनाने म मा हर है
—वो पुरात व सं ान म काम करता था,” नदे शक ने कहा।
“और उससे हम या मदद मलेगी?” रॉ मुख झट से बोला।
“हम उसक ॉइंग गु त प से उ री को रया और ली बया को बकवा सकते
ह,” नदे शक ने कहा।
“ये नह हो सकता! हमने परमाणु सार कभी नह कया,” चांदनी बोली |
“यह मेरे आदमी का काम शु होगा,” नदे शक ने कहा। अब वो ख़ुद को मल
रहे मह व का आनंद लेने लगा था। भूतपूव पु लस क म र अब अपने असली रंग म था।
“वो एक-दो ऐसी ु टयां पैदा कर दे गा जससे टै नॉलोजी बेकार हो जाएगी। वो उसे इतना
ामा णक बना दे गा क उसका मूल ान सु न त हो सके।”
“ले कन हम अमे र कय के साथ अपनी बातचीत म या मदद मलेगी?” चांदनी
ने पूछा।
“आह! डज़ाइन से लगेगा क वो पा क तान म दोबारा बनाए गए यूरो नको के
डज़ाइन है। मेरा याल है क इससे जो हंगामा खड़ा होगा, उसके बाद आप अमे रका को
समझा सकगी क वो अपना सै य सामान परमाणु सारक को न द।”

“मेरा याल है क आर एंड एस से कमीशन के प म मलने वाले पैसे का बड़ा भाग उसी
तरह ख़च हो रहा होगा जस तरह हमने बात क थी?” गंगासागर ने पूछा।
अ वालजी ने सर हलाया। “ बहार म यास के काम के लए जा रहे थोड़े से अंश
के अलावा सारा पैसा स टयो सस के शेयर ख़रीदने म लग रहा है। अब हमारे पास लगभग
पांच तशत कंपनी है।”
“बा ढ़या,” गंगासागर ने कहा।
“ले कन हम स टयो सस य ख़रीद रहे ह?” अ वालजी ने पूछा। “उससे बेहतर
कई सॉ टवेयर कंप नयां ह जनम हम नवेश कर सकते ह। जनसे हम अपने नवेश पर
दोगुना मुनाफ़ा मल सकता है!”
“मुझे इस नाम क खनक पसंद है,” गंगासागर ने अपने पुराने बॉस को आंख
मारते ए कहा।

“ वप ी नेता व ा के पर?” अ य ने पूछा।


“जी, ीमान अ य जी। मेरा सवाल इस सरकार ारा हा लया हाइजै कग के
मामले म कारवाई—”
“ वप ी नेता अपनी सीट पर “बैठ। धानमं ी ने अभी इस घटना का योरा दे ना
आरंभ कया है। ये सदन उ ह सुनेगा—”
“ व ा के पर, ीमान अ य । धानमं ी कं ोल म म उप त तक
नह थे। वदे श मं ी उप त थ । हम उनक बात सुनना चाहगे,” वप ी नेता ने बहस
क।
धानमं ी बैठ गए, और चांदनी ने उठकर बोलना शु कया। “माननीय वदे श
मं ी सदन को संबो धत कर सकती ह,” अ य ने कहा।
आगंतुक क गैलरी म बैठा गंगासागर मु कुराया। वप नेता चांदनी को टार
बना रहा था।
“आ द श , नमोनम:; सवश , नमोनम:, थम भगवती, नमोनम:, कुंड लनी
माताश ; माताश , नमोनम:,” गंगासागर ने मन ही मन जप कया।

“तु ह इ तीफ़ा दे दे ना चा हए। दरअसल, मं प रषद म एबीएनएस के पूरे दल को इ तीफ़ा


दे दे ना चा हए।”
“ले कन हम सरकार के भाग के प म दे खा जाता है,” चांदनी ने तक दया। “हम
इसे गराने वाल के प म नह दे खे जा सकते!”
“ बना कसी ब त अ े कारण के ब कुल नह ,” गंगासागर ने कहा। उसने ब त
सावधानीपूवक—अ वालजी ारा भट क गई–अपनी चांद क ड बी खोली, उसम से
एक पान नकाला और उसे कुछ सोचते ए अपने मुंह म डाल लया। उसने पीक को अपने
मुंह म घुलने दया जब क उसका दमाग़ वचार के बीच घूमता रहा— वचार का भोजन।
वो चांदनी के उसक सरकारी कार क पछली सीट पर बैठा साउथ लॉक क उस ब ग
क ओर जा रहा था जसम वदे श मं ालय त था।
“और वो अ ा कारण?” चांदनी ने पूछा।
“इस सरकार को गराने और नए चुनाव कराने का ये एकदम सही अवसर है,”
गंगासागर ने कहा। “आज सुबह म अपने म , इंटेलीजस यूरो के नदे शक, से मला था।
उसने कहा क रा शद को धानमं ी के आदे श से पूछताछ से रहा कराया गया था।”
“उस आदमी को रहा कया गया? वो तो मुझे मारने क योजना बना रहा था!”
“ये बात सच है,” गंगासागर ने कहा, “ले कन ये भी उतना ही सच है क रा शद
दरअसल रॉ का एजट मख़ म है, और तुम—मेरी य– उसे ची नय ारा गर तार कराने
क ज़ मेदार थ । ऐसे म कसी को ो धत होने का इ ज़ाम नह दया जा सकता।”
चांदनी के चेहरे क ग़राहट दे खकर उसने दांत नपोरे।
फर उसने आगे कहा। “ले कन धानमं ी कसी भी सूरत म ये नह बता सकते
क रा शद रॉ का एजट है। ये हमारे लए अवसर है क हम दे श के लए मरने वाले
एबीएनएस के हीरो इकराम का म हमामंडन कर। ये हमारे लए इस बात का भी अवसर है
क हम कायर धानमं ी को रा स के प म पेश कर— ज ह ने उस ष ं के सरगना
रा शद को छोड़ दया। और आ ख़र तुमने—इकराम क वरासत क शानदार उ रा धकारी
ने—नाराज़गी म एबीएनएस के अपने सारे सा थय स हत इ तीफ़ा दे दया!”
“हम ये सा बत कैसे करगे?’’
“आइबी नदे शक सावज नक प से सब बताने को तैयार है। वो घोषणा करेगा
क उसने रा शद को हरासत म ले लया था और उसे धानमं ी के कहने पर उसे छोड़ना
पड़ा।”
‘‘अगर हम इ तीफ़ा दगे, तो ये सरकार गर जाएगी। आपको इस बात का
अहसास है?”
“ये सरकार अपने कई घोटाल के कारण अपने व मं ी और धानमं ी को
यागप दे ते दे ख चुक है। बहार के मु यमं ी के साथ हमारा समझौता हो चुका है।
वप ी नेता हमारे संकेत क ती ा म है। अब हम और इंतज़ार नह करना चा हए।”
“ वप का नेता कस संकेत क ती ा म है?”
“एक ै तज रेखा से कटा ‘आर’ अ र।”
‘‘मतलब?”
“ पए का च ।”
“ये बड़ा मु कल समय है। वप अपने चाकु पर धार रख रहा है। बेशक म आपके
साथ ं। पूरी एबीएनएस आपके साथ है। आप हमारे समथन के त आ त रह,”
गंगासागर ने धानमं ी से कहा।
“तो फर म य ज द ही मं प रषद से आपके मं य ारा इ तीफ़े दे ने क बात
सुन रहा ,ं गंगासागरजी?” धानमं ी ने पूछा।
“अफ़वाह तेज़ी से फैलती ह ले कन सच क तरह क़ायम नह रहत । आप ऐसी
कहा नय पर यान मत द जए।”
“मुझे ख़ुशी है क हमने ये बातचीत क । तो, आप मुझसे कस बारे म मलना
चाहते थे?”
“हमारे पास इतनी सारी अ न तता के होते, मुझे लगता है क हम थोड़ी द
सहायता क आव यकता है।”
“आपका या सुझाव है, गंगासागरजी? म नह जानता था क ई र क सहायता
के लए आप ाथना म व ास रखते ह।”
“कभी–कभी झुकने से हम अ तरह खड़े रह पाते ह,” गंगासागर ने मज़ाक
कया। “वैसे भी, म आज मुंबई दौरे पर जाने का इरादा कर रहा ं। जैसा क आप जानते
ह, आजकल गणेशो सव मनाया जा रहा है और म लालबाग़ के राजा के आगे माथा टे कना
चाहता ं।”
धानमं ी ने सर हलाया। उ ह ने लालबाग़ के राजा के बारे म सुना तो था ले कन
उ ह कभी वहां जाने का अवसर नह मला था। हर साल महो सव के दौरान गणेश क एक
वशाल बारह फ़ट क मू त मुंबई के कपड़ा मल े लालबाग़ के बीचोबीच ा पत क
जाती है और फर अगले यारह दन तक रोज़ाना वहां लगभग दस लाख भ आते ह।
“सुना जा रहा है क इस साल दे वता के चढ़ावे म दस करोड़ पए से यादा का
सं ह होने वाला है,” धानमं ी ने कहा।
“ ब कुल। म अपने साथ ये कुछ हज़ार पए लाया ं, और इससे पहले क म इस
भट को आपक ओर से लालबाग़ के राजा के पास लेकर जाऊं और हमारी सफलता जारी
रहने क ाथना क ं , म चा ंगा क आप इ ह अपने हाथ म पकड़,” गंगासागर ने हज़ार
पए के कुरकुरे नोट धानमं ी को दे ते ए कहा।
“ध यवाद, गंगासागरजी, मेरी सरकार का इतना अ ा म होने के लए। इंसान
के काम नराशा क ओर जाते ह ले कन ई र के काम आशा क ओर जाते ह,” धानमं ी
ने पैसा गंगासागर को वापस दे ते ए कहा।
लोकसभा के घोड़े क नाल के आकार के क म अ य क कुस दोन प के बीच म
त थी। क के ग र म, ठ क उनक कुस के नीचे, सदन क मेज़ थी जहां महास चव,
स चवालय के अ धकारी और कारवाई के लेखक बैठते थे। अ य के दा ओर सरकारी
बच थ और बा ओर वप के सद य बैठते थे। धानमं ी सरकारी बच म आगे अपनी
रवायती सीट पर बैठे थे। बा ओर वीआईपी बॉ स था जसम गंगासागर बैठा था।
सरकारी बच क ही पहली पं म चांदनी भी बैठ थी। चकोतरे जैसी हरी साड़ी पहनी
चांदनी क पोशाक—उसक हरी आंख समेत—संसार के सबसे बड़े लोकतं के क के
हरे चमड़े से मेल खा रही थ ।
क म अ य के सामने क ओर क य वधान प रषद के थम अ य
व लभाई पटे ल का च लगा आ था ज ह ने व संसद य परंपरा क वकालत क
थी। च म चेहरे पर ऐसे कोई भाव नह थे क उ ह उस दन सारी संसद य परंपरा के
टू टने का अनुमान हो।
“ बजली मं ी सदन को संबो धत कर सकते ह,” अ य ने कहा।
“आदरणीय अ य , ीमान, म स ल इले सट रे युलेटरी कमीशन क
ापना और उससे संबं धत मामल के लए एक अ यादे श लाने क अनुम त चा ंगा,”
बजली मं ी ने कहा।
“अनुम त है,” अ य ने मशीनी ढं ग से कहा।
“ ीमान, मने नयम 72 के अंतगत इस अ यादे श को लाए जाने के व नो टस
दया है,” वप ी नेता ने अपनी सीट से उठते ए कहा।
“हां, हां। माननीय वप ी नेता सदन को संबो धत कर सकते ह,” अ य ने कहा।
“ ीमान, मेरे हाथ म दस लाख से यादा पए ह। ये पैसा इस अ यादे श को
संसद म लाए जाने के प म अपना वोट दे ने के लए हमारे एक माननीय सद य को
धानमं ी ारा र त के प म दया गया था। म इस पर तुरंत कथन क मांग करता—”
धानमं ी का चेहरा फ़क़ पड़ गया और कारवाई ने हंगामे का प ले लया। शोर
कान फाड़ दे ने वाला था, वप के सद य ‘शम करो!’ च ला रहे थे, और सरकारी बच
वाले सद य ‘झूठ!’ का शोर मचा रहे थे। वप नेता अभी भी हाथ म नोट के बंडल लए
उसी शोर म च ला रहा था, “ये नोट वयं धानमं ी ारा दए गए थे। दे श क जांच
एज सयां पता लगा सकती ह क इन पर उनक उं ग लय के नशान ह या नह !”
हंगामे म सुने जाने क को शश म अ य च लाए, “म सारे सद य से नवेदन
करता ं क कृपया अपनी सीट पर बैठ जाएं। इस सदन ारा अपनी ग रमा और मयादा
बनाए न रखने का कोई कारण नह है।”
“ग रमा बनाए रखना संभव नह है जब क वयं धानमं ी ाचार म ल त ह—
ये सरकार सड़ी ई है और सदन को इसम व ास नह रहा है!” ये आवाज़ वप क बच
से नह आई थी। ये चांदनी क आवाज़ थी। ‘‘एबीएनएस के आठ सद य ने इसी ण
अपने यागप स प दए ह। शासन ने मेरे हैलीकॉ टर म तोड़–फोड़ करने के ज़ मेदार
मुख अपराधी और बाद म आई–617 को हाइजैक करने वाले मु य आरोपी को आज़ाद
कर दया है! या हम वग य इकराम शेख़ क मृ त का स मान इसी तरह करगे ज ह ने
रा के लए अपनी जान क कुबानी द ?”
वप ी सद य सदन के बीचोबीच आ गए और अ य के पास कारवाई को
गत करने के अलावा कोई वक प नह बचा। आगंतुक क गैलरी म गंगासागर
घटना म को दे खकर हंस रहा था। चांदनी एक दन पूव अपना यागप धानमं ी को
स पने क योजना बना रही थी। गंगासागर ने उसे ऐसा न करने क सलाह द थी।
“ले कन आपने तो हम इ तीफ़ा दे ने क सलाह द थी। अब य न हम अपने प
पकड़ा द?” चांदनी ने पूछा था।
“ य क जब तुम ऐसा करो, उस समय मुझे वहां सीधा सारण कर रहे ट वी
कैमरे चा हए,” उसने कहा था।

“स टयो सस के साथ हमारा कैसा चल रहा है?” गंगासागर ने पूछा।


“अब हम प ीस तशत कंपनी के मा लक ह।”
“ब ढ़या,” गंगासागर ने कहा।
“म अब भी नह समझ पा रहा ं क हम स टयो सस को य ख़रीद रहे ह,”
अ वालजी ने कहा। “कंपनी पछले तीन साल से नुक़सान दखा रही है। आर एंड एस से
मल रहे कमीशन ब त बड़े ह और हम फर भी अ े पैसे को ख़राब सौद म फक रहे ह।
य ?”
“मुझे उनक वा षक रपोट का कवर डज़ाइन पसंद है,” गंगासागर ने ज़दा दली
से कहा।

“ या तुमने चांदनी को राज़ी कया क वो सय से गैस स यूज के डज़ाइन ले ले?”


गंगासागर ने पूछा। आईबी नदे शक ने सर हलाकर हामी भरी।
“और उ ह यूरो नको के डज़ाइन जैसा बनाने के लए उनम बदलाव कए गए,
जैसा क मने कहा था?”
“हां—सुंदरता से और सु च से।”
“तुमने रॉ चीफ़ को वो डज़ाइन उ री को रया को बेचने के लए मनाया?” पं डत
ने पूछा।
“वो तो उसे ख़रीदने के लए उतावले हो गए,” नदे शक ने कहा। “उ ह लगता है
क उ ह ये डज़ाइन पा क तानी काला बाज़ार से मले ह।”
“और पैसा?”
“ लकट टाइन बक म उस खाता नंबर म ांसफ़र कर दया गया जो आपने मुझे
दया था।”
“ब त ख़ूब। तुमने पु लस क म र से तु ह डाइरे टर इंटेलीजस यूरो बनाने के
लए मेरा ॠण चुकता कर दया।”

शमला म साधवी के घर का पछवाड़ा शांत था। सा वी— द मां—एक तेज़ भड़कती


अ न के सामने बैठ थी। उसके सामने तीन धानमं ी बैठे थे। पहले उसके पता थे—
पछले धानमं ी ज ह सा वी के साथ र त के बारे म गंगासागर ारा ेस म ख़बर फैला
दए जाने के कारण इ तीफ़ा दे ना पड़ा था। सरे वो थे जो गंगासागर क सलाह पर
हैलीकॉ टर से र सी क सीढ़ से उतरे थे—भूतपूव र ा मं ी। उ ह ने धानमं ी पद हड़प
लया था ले कन फर उनक सरकार भी रसंचार, चारे, सेज़ और पे ो लयम घोटाल के
कारण गर गई थी। तीसरे थे वतमान धानमं ी— वो गृहमं ी जनका वभाग इकराम को
स प दया गया था— जनक सरकार वोट के लए पैसा कांड के कारण गरी थी और जो
अब अगले चुनाव तक बस कायवाहक धानमं ी थे।
तीन आद मय के आगे काले कपड़े से ढक एक बकरे क लाश पड़ी थी, जसके
ऊपर आटे से बना आ एक छोटा सा पुतला रखा था। इसके आसपास नीबू, क ल , पीले
चावल और मुग क ह य जैसी व भ चीज़ रखी थ । सा वी आग को पोस रही थी।
‘ओम लग लग लग लग क ल क ल...’ जपते ए उसने आग म सरस के दाने और कुछ
गु त साम ी फक , जससे आग म व च से रंग, चटचटाने क आवाज़ और अजीब सी
गंध वाला धुआं उठ रहा था।
उसने अपने पता को दे खकर सर हलाया। उ ह ने पुरानी शैली के क़लम को
बकरे के ख़ून से भरे एक याले म डु बोया और सावधानीपूवक एक काग़ज़ के पुज़ पर
‘गंगासागर’ लखा। फर उ ह ने हाथ बढ़ाकर वो पुज़ा सा वी को थमा दया। उसने उसे
पघले म खन के एक बतन म डु बोया और फर उसे आग म फक दया। उसम से लपट
उठने लग ।
फर उसने आटे के पुतले पर पानी छड़का, उसे मोर के पंख से साफ़ कया और
धीमे से उसक गदन म एक धागा बांध दया। उसने भूतपूव र ा मं ी को धागे का एक
सरा पकड़ने को कहा जब क सरा सरा उसने ख़ुद पकड़ा। धागे को दोन ने ख चा, धागा
पुतले क गदन म फांसी के फंदे क तरह कसा और सर अलग होकर आग म गर पड़ा।
फर उसने वोट के लए पैसे के मारे धानमं ी क ओर इशारा कया। सा वी के
‘ओम लग लग लग लग क ल क ल...’ के हर जप के साथ धानमं ी अपने पास पड़े ढे र
से एक क ल उठाते और उसे आटे के पुतले के बना सर के धड़ म धंसा दे ते। सा वी हंसी
और तीन आदमी संतु से मु कुराने लगे। काला जा पूरा हो चुका था। उस षड् यं कारी
गंगासागर को सबक़ सीखना ही होगा।

मी टग सा वी क कु टया के एकांत म ई थी। रपोटर को व ास नह हो रहा था क वो


उस के साथ बैठा है जसक साख को न करने म उसने योगदान दया था। सा वी–
कलं कत भूतपूव धानमं ी ने उसे चाय का कप पेश कया और फर अपनी आरामकुस
म बैठ गया। “मने तुमसे यहां आने का नवेदन इस लए कया क म तु ह बताना चाहता था
क मुझे तुमसे कोई शकायत नह है। तुम तो अपना काम कर रहे थे। भारत म लोकतं
को फलना–फूलना है तो ेस को आज़ाद और नडर रहना होगा,” अनुभवी नेता ने कहा।
रपोटर ने कंधे उचकाए ले कन ख़ामोश रहा।
“मने सुना है क सा वी— द मां—के मेरी नाजायज़ बेट होने क सनसनीख़ेज़
ख़बर के बारे म तु ह जानकारी दए जाने से पहले तुम एक और ख़बर पर काम कर रहे थे।
चांदनी के बारे म,” भूतपूव नेता ने रपोटर को मु कुराकर दे खते ए कहा।
“अगर कर रहा था तो?” उदासीन नज़र आने क पूरी को शश करते ए रपोटर ने
कहा, हालां क उसके कान खड़े हो गए थे।
“अगर म तु ह ये बताऊं क गंगासागर ने लेक ड ट के ास मयर म एक मां
और उसके बेटे क श ा और जीवनयापन के लए गुअज़नी—चैनल आइलड् स—म एक
ट फ़ंड क ापना क थी?”
“तो? वो बुढ़ऊ कोई चारी नह है। उसने कसी औरत को चोदा तो ब त बड़ी
बात हो गई—आपने भी तो यही कया था!” रपोटर ने भूतपूव धानमं ी से आंख मारते
ए कहा।
“तुम कहानी को समझे नह , मेरे दो त। मां या ब े से गंगासागर का कोई संबंध
नह है। वो ब ा चांदनी का है— धानमं ी पद के लए भारत के लोग क लोक य
उ मीदवार का!”
“और आपको ये जानकारी कैसे मली?” रपोटर ने पूछा, अ तरह ये जानते
ए भी क अगर यही सवाल उससे कोई और पूछता तो वो कह दे ता क उसे अपने ोत
के बारे म बताने क आज़ाद नह है।
“ये जानकारी मेरे लए भूतपूव व मं ी ने गुअज़नी फ़ाइन शयल स वसेज़
कमीशन के नदे शक से जुटाई है। उनका ख़ास अहसान,” झुर दार और भुलाए जा चुके
धानमं ी ने बताया।
“मेरे ोत का कहना है क चांदनी को एक ब ा आ था ले कन वो मृत था,”
रपोटर ने सावधानीपूवक अपने श द चुनते ए कहा। “पहले उ ह ने गभपात कराना चाहा
था, ले कन फर मन बदल दया था।”
“तु हारे ोत ग़लत ह,” नेता मु कुराया।
“मुझे त य क जांच ख़ुद करनी होगी।”
“इसी लए मने टकट और वदे शी मु ा क व ा कर द है। तुम कतनी ज द
जाना चाहोगे?’’

“हमीदा नाम का एक हजड़ा है जो लखनऊ म टुं डे कबाब के नज़द क रहता है। मुझे उससे
मलना है,” कायवाहक धानमं ी ने कहा। संसद के हंगामे के कारण भारत म एक और
आम चुनाव होने वाला था और दे श म रा प त शासन लागू हो चुका था। उनक सरकार
ब कुल लंगड़ी थी।
“मुझे नह पता था क फ़ ट लेडी को ब ा आ है, म तुरंत—” उनके नजी
स चव ने कहा।
“ये साला फ़ ट लेडी का मामला नह है,” धानमं ी ने ज़रा दे र से ये महसूस
करते ए कहा क उ ह ने अपनी प नी के लए एक उपा ध रच द है। “मुझे कसी नवजात
के लए आशीवाद नह चा हए। मुझे इस ख़ास हजड़े से मलना है। बस—ज द करो।”

हमीदा से इस अवसर के लए अ े कपड़े पहनने को कहा गया था। उसे एक हजड़े के


प म धानमं ी के बंगले म नह ले जाया जा सकता था। सुर ा गाड या सोचते?
धानमं ी के नजी स चव ने उसके बाल कटवाने और एक बज़नेस सूट का इंतज़ाम
कया था। “ या म इन कपड़ को अपने पास रख सकूंगी?” हमीदा ने पूछा।
नजी स चव ने इक़रार म सर हलाया था। वैसे भी उसके ारा पहने जाने के बाद
उन कपड़ को कोई नह लेना चाहता। गेट पर सुर ाक मय ने हमीदा को एक व ज़टर
काड दया। वो लै मनेटेड था और गले म डालने क नीली डोरी म बंधा आ था। नजी
स चव ने काड उसे दया। ‘‘अगले साठ मनट के लए ये साउथ लॉक, नॉथ लॉक और
रा प त भवन के अ धकांश भाग के लए वैध है। वापसी के समय इसे गाड को दे दे ना,”
उसने कहा, और हमीदा ने बारकोड वाले पास को गले म लटका लया।
उ ह ने अ◌ॉ फ़स म वेश कया, तो धानमं ी ने हमीदा को दे खा और धूतता से
पूछा, “तुम या करोगे अगर म क ं क तु हारे पास गंगासागर से बदला लेने का मौक़ा है?”
“म अपने जागते समय का एक–एक ण ये सोचने म बताती ं क उसे कैसे मार
डालूं। म सपन म भी ख़ुद को उसक ह या करते दे खती ं। उसने सफ़ मेरी गो लयां नह
कटवा , उसने मेरी पूरी ज़दगी को ब धया कर दया है!” हमीदा फट पड़ी।
“एक तरीक़ा है जससे तुम उसे तबाह कर सकती हो, बेट | चांदनी से कहो क
हाइजैक मुठभेड़ के दौरान गंगासागर ने ही इकराम को मरवाने का इंतज़ाम करवाया था।”
“ले कन ये सच नह है। इकरामभाई को रा शद ने मारा था।”
“ले कन वो तु हारी बात का व ास करेगी | तुमने चांदनी को बचाने क को शश
म अपने पा रवा रक आभूषण खोए थे!”
हमीदा के साथ मुलाक़ात बीस मनट से कम चली। वापसी म हमीदा लड़खड़ाई
और बेचारे शमाए ए नजी स चव पर इस तरह गरी क उसक बांह उसके गले म पड़
ग । “लगता है हम एक– सरे के लए ही बने ह,” वो वासनामय ढं ग से उसके कान म
फुसफुसाई। वो कांपकर रह गया |
हमीदा ने जाते–जाते अपना व ज़टर पास यु पास वाले ख़ाने म डाल दया।
अब उसे इसक ज़ रत नह थी। इसके बजाय अब उसके पास नजी स चव का पास था।
सचला दे वी के श ण के अपने फ़ायदे थे।

भूतपूव व मं ी एक आरामदे ह आरामकुस पर बैठे थे, और ं टा और सोमानी उनके


दोन ओर बैठे थे। “अपने सौदे वापस पाने के लए आपने मेरी ब ल चढ़ा द । म समझ
सकता ं। बज़नेस म सब जायज़ है। ले कन आप अपने मुनाफ़े का दस तशत
अ वालजी को दे ने पर य राज़ी हो गए? इस तरह तो आप उ ह व ीय प से मज़बूत
कर रहे ह,” उ ह ने कहा।
“म मानता ं क हमने यादा पैसा दे दया,” ं टा ने कहा, “ले कन अब हम फंस
चुके ह। हम इससे नकल नह सकते।”
“एक तरीक़ा है,” नेता ने नम से कहा। “गंगासागर और चांदनी के बीच फूट डाल
द। अब चांदनी एक रा ीय नेता है। वो बड़ी आसानी से अगली धानमं ी हो सकती है।
उसके दल म गंगासागर के त नफ़रत पैदा कर द तो वो गंगासागर ारा क गई कसी
भी व ा को ख़ुशी–ख़ुशी र कर दे गी।”
“ले कन हम फूट डालगे कैसे?” सोमानी ने पूछा।
“अगर अफ़वाह सच ह, तो चांदनी का शंकर नाम के अपने स चव के साथ च कर
था। गंगासागर इतना नाराज़ आ क उसने उसे एक घटना म मरवा दया।”
“इसे सही कैसे सा बत कया जाएगा?” सोमानी ने पूछा।
“जब दल का मामला सामना आएगा, तो सही सा बत करने का काम आपका
नह होगा। इसे ग़लत सा बत करना गंगासागर का काम होगा, मेरे म ो।”

कायवाहक धानमं ी ने अपने नजी स चव को अंदर बुलाया। “ये चुनाव भ होने वाला
है,” उ ह ने अपनी आइ ड ट क चु क लेते ए कहा।
“वो कैसे, सर?” उनके स मानपूण नजी स चव ने पूछा, जो ब त साल से उनका
राज़दार रहा था।
“अब इकराम नह है। ये कौन सु न त करेगा क उ र दे श म कोई गड़बड़ी न
हो? इकराम के गुंडे सारे मतदान क पर नज़र रखते थे और सु न त करते थे क मतदान
क पर क़ ज़ा न हो। गंगासागर ने एक अहम साथी खो दया है।”
“तो ये हमारे लए अवसर है?” नजी स चव ने अपने बॉस को मु कुराकर दे खते
ए पूछा।

“अब हम कतने स टयो सस के मा लक ह?” गंगासागर ने पूछा।


“इ यावन तशत,” अ वालजी ने सर झटकते ए कहा। ये उनके जीवन के
सबसे ख़राब नवेश म से एक रहा था।
“ब त ख़ूब,” गंगासागर ने कहा, ‘‘अब हम बंधन को अपने हसाब से चला
सकते ह।”
“म तु ह यादातर समझने म नाकाम रहता ,ं गंगा। तुम प के ज़ हो। या तुम
मुझे बताओगे क ये कंपनी तु हारे लए य इतनी अहम है?”
“मने सुना है क उनका सीईओ सफ़ चौबीस साल का है। मुझे युवा का साथ
दे ना अ ा लगता है,” गंगासागर ने हंसते ए कहा।

गंगासागर पछले दन के उपे त अख़बार को पढ़ने म लगा था। वो जस अख़बार को


पढ़ रहा था उसे उसने मोड़ा और ज़मीन पर अलग हटाए अ य अख़बार के ढे र म डाल
दया। गंगासागर, चांदनी, अ वालजी, मेनन और मेजर बेद कानपुर म गंगासागर के छोटे
से लैट म रणनी त पर चचा कर रहे थे।
“आपने इस घूरे के ढे र से नकलने का सोचा?” नई द ली म सरकार म शा मल
होने के बाद चांदनी ने उससे पूछा था। “आप दे श के सबसे श शाली लोग म से एक ह
और फर भी ग़रीबी भरी ज़दगी को तरजीह दे ते ह।”
“ याग के जीवन के बारे म मेरे पाठ को कभी मत भूलना, यारी लड़क ,” उसने
जवाब दया था।
“ये तो चुनाव क रणनी त के लए मेजर बेद के साथ हमारी मी टग है ना? हमने
अभी तक आने वाले लोकसभा चुनाव के लए अपने उ मीदवार तय नह कए ह और
आप अभी अख़बार ही पढ़ रहे ह,” चांदनी ने चढ़ते ए कहा।
“चुनावी रणनी त पर फ़ैसला करने के लए तुम चार लोग हो। म इस पर यान
रखूंगा क दे श म या चल रहा है,” गंगासागर ने जवाब दया।
“ले कन आप इकोनॉ मक टाइ स और फ़ाइन शयल ए स ेस तो कभी नह पढ़ते
थे। आपने राजनी तक मामल के बजाय व ीय मामल म य दलच ी लेना शु कर
दया है?” चांदनी ने पूछा।
“ये साला सब एक है! राजनी तक स ा दे श के आ थक ोत को नयं त करने
क उ मीद करती है। आ थक श राजनी त को नयं त करने क उ मीद करती है,”
उसने हंसमुख भाव से कहा। फर वो दोबारा कंप नय क रपोट दे खने म लग गया,
ख़ासकर स टयो सस क ।
“तो, अगर आप लोग यान दे सक, उ र दे श क प यासी सीट पर हमारे
उ मीदवार पुराने और नए चेहर का म ण ह गे —’’ मेजर बेद ने अपनी बात शु क ।
गंगासागर ने अपने मसले ए फ़ाइन शयल ए स ेस से नज़र उठाई और पूछा,
“ पछले चुनाव म हमारे वोट का तशत या था?”
“तीस तशत,” मेजर बेद ने जवाब दया।
“और फर भी हमने छह र तशत सीट जीती थ । इससे या पता चलता है?”
गंगासागर ने पूछा।
“ क हम इस लए नह जीते क हम ब त यादा वोट मले ब क इस लए जीते
क बाक़ के वोट अ तरह आपस म बंट गए थे,” बेद ने अपनी पगड़ी को ठ क करते
ए और गंगासागर के बेतरतीब घर म सहज महसूस करने क को शश करते ए कहा।
“ऐसे मज़बूत उ मीदवार क पहचान करने क फ़ मत करो जो हमारा वोट
तशत बढ़ा सकते ह। वोट तशत बेमानी है। इसके बजाय, बाक़ सबके तशत म
वभाजन और दरार डालो,” गंगासागर ने वजयी भाव से कहा।
“और आपके हसाब से हम ऐसा कस तरह कर?” चांदनी ने पूछा।
“म इसपे काम कर रहा ,ं ” अपने सामने पड़े अख़बार म स टयो सस के खाते को
दे खते ए गंगासागर ने खोए–खोए भाव से कहा।

“इस बार इकरामभाई नह ह। अगर वप ने मतदान क पर क़ ज़ा कया तो उनसे


नबटने वाला कोई नह होगा,” बाक़ सब लोग के जाने के बाद मेनन ने गंगासागर से
कहा।
“जानते हो एक आम से सड वच को या चीज़ वा द बनाती है?” इकराम क
अनुप त पर ट पणी को नज़रअंदाज़ करते ए गंगासागर ने पूछा।
“ या?” मेनन ने पूछा।
“साइड म रखे च स,” गंगासागर ने कहा।

“ईवीएम!” गंगासागर ने ज़ोर से कहा।


“ या कहा, सर?” मेनन ने पूछा।
“इले ॉ नक वो टग मशीन। इस चुनाव म इले ॉ नक वो टग मशीन का योग
कया जाएगा। अब क़ागज़ी वोट बंद |”
“ओह, हां। वो कह रहे ह क ये यादा स म और सट क है,” मेनन बोला।
“जानते हो ईवीएम के क म या है, मेनन?”
“ या?”
“ च स,” गंगासागर ने कहा। “ईवीएम एक सड वच क तरह है। च स के बना ये
कसी काम क नह ।”
“आपको पता था क ये एक पेचीदा ग णत है जो ईवीएम के अंदर डाले इन च स को
श दे ती है?” गंगासागर ने पूछा।
अ वालजी अपने कप से लेट म चाय डालते–डालते क गए। “नह , मुझे नह
पता था,” उ ह ने कहा। “कोई ख़ास कारण क मुझे ये पता होना चा हए था?”
“ईवीएम व भ कंप नय ारा बनाई जाती ह ले कन वो सभी एक ही क य
चप का इ तेमाल करती ह। इसी चप म वो सॉ टवेयर होता है जसके ारा मशीन वोट
को दज करती है और नतीज का मलान करती है।”
“ओह, समझा,” अ वालजी ने तेज़ आवाज़ से लेट से चाय सुड़कते ए कहा।
“आपने कभी लै टन सीखी?” गंगासागर ने अचानक पूछा।
“नह । मने अं ेज़ी, हद और सं कृत सीखी है। ले कन लै टन नह ।”
“इसी लए।”
“ या?”
“इसी लए आप नह जानते क अं ेज़ी श द वोट का लै टन अनुवाद स टयो होता
है। अब आप उस चप बनाने वाली कंपनी के मा लक ह-स टयो सस |”

“ले कन—ले कन—ये धोखाधड़ी है, गंगा। हम यादा वोट दे ने के लए हम इन मशीन म


गड़बड़ी नह कर सकते,” अ वालजी फड़फड़ाए। ऐसा लगता था क गंगासागर के मंसूब
का कोई अंत ही नह था।
“म सहमत ं। अगर हम यादा वोट दे ने के लए मशीन म गड़बड़ी क जाए, तो
ये धोखाधड़ी होगी | ले कन अगर सर को यादा वोट दे ने के लए उनम गड़बड़ी क
जाए?” उसने मासू मयत से पूछा।
“तुम पागल हो या?” अ वालजी ने पूछा। “तुम मशीन म गड़बड़ी करना चाहते
हो ता क वो सर को यादा वोट दे सक?”
“ सफ़ उ ह ज ह वोट क ज़ रत है,” गंगासागर ने कहा।

“तुम आ ख़र बोल या रहे हो, गंगा?” ु अ वालजी ने पूछा।


‘‘फ़ज़ कर लेते ह क एबीएनएस का एक उ मीदवार एक चुनाव े से लड़ रहा
है। अब मान ल क हमारे उ मीदवार का वोट तशत इ यावन है, तो ये है क वो
वजेता है। सही?”
“सही।”
“ले कन अगर उसके पास पचास तशत वोट ह—इ यावन नह ? तो या चीज़
सु न त करेगी क वो जीतेगा या हारेगा?”
“ क बाक़ पचास तशत कस तरह वभा जत आ है?”
“सही। अगर बाक़ पचास तशत एक ही उ मीदवार को मले, तो बराबरी रहेगी
| ले कन अगर ये दो या दो से यादा उ मीदवार म बंटे, तो हमारा उ मीदवार जीत जाएगा।
तो, अगर हमारे उ मीदवार को चालीस तशत ही वोट मल, तो या होगा?”
“उसक जीत या हार इस पर नभर करेगी क बाक़ साठ तशत कस तरह बंटा
है।”
“सही। बाक़ साठ तशत एक ही उ मीदवार के पास हो सकता है। ऐसे म हमारा
उ मीदवार हार जाएगा। अगर साठ तशत दो उ मीदवार म पचास–दस बंटे, तो भी
हमारा उ मीदवार हारेगा, ले कन अगर तीस–तीस बंटे, तो हमारा उ मीदवार जीत जाएगा।”
“तो तु हारी या योजना है?”
“ग णत मक प से न त करेगी क हमारे उ मीदवार का वोट तशत या
है। ये हमारे खाते म फ़ज़ वोट नह डालेगी ब क बस अव श वोट का पुन वतरण
करेगी। मने हमेशा से कहा है क जीतने का अथ सफ़ अपनी श को बढ़ाना नह ब क
मन क श को कम करना है। और म आपको बता ं , क हम अपने मन से घरे
ए ह—ऐसे लोग जो कोई भी नीच हरकत करने म हच कचाएंगे नह !”

हैरी रचड् सन बेहद ख़ुश था। ईटन कॉलेज कंसट हॉल क सारी सीट भरी ई थ । ये
उसका पहला एकल शो था और ईटन कॉलेज सफ़नी ऑक ा ने उसके साथ संगत क
थी। कंसट का आयोजन तब कया गया था जब वॉय लन वशेष इतज़ाक पलमैन ने
अपने ईटन दौरे के दौरान हैरी को वॉय लन बजाते सुना था। फर उ ह ने अपने वचार
कूल को लखे थे। “शु आत हैरी रचडसन से करते ह। वो एक असाधारण वॉय ल न ट है
जसक शानदार तकनीक उसके संगीतमय म त क से जुड़ी ई है जो छोट से छोट
बारीक को भी नज़रअंदाज़ नह करता है। ऐसा लगता है जैसे हैरी ने वो जवाब भी ा त
कर लए ह जनके अ य को सवाल तक नह पता...”
आज का शो पाट टा नं . 2 इन डी माइनर से शैकोन इन डी माइनर था, जो क
योगा मक संगीत म बाख क सबसे स कृ त थी। शैकोन को बाख के दौर म एकल
वॉय लन सूची का शखर माना जाता था य क इसम वॉय लन–वादन के सारे प आ
जाते थे। हैरी ने इ तहास क सबसे क ठन कृ तय म से एक को चुना था और उसे ु टहीन
ढं ग से बजाकर दखाया था। वो अपनी मां—जोज़ेफ़ न—को सामने क पं म, बाक़
दशक के साथ, पूरे जोश के साथ सराहना करते दे ख सकता था। वो खड़े होकर उसका
अ भनंदन कर रही थ । उसे अपने यारे बेटे पर नाज़ था।
पलमैन के अनुमोदन क वजह से दशक म ेस के सद य भी मौजूद थे। सफ़
टे न से ही नह । वल ण ब े के फ़ोटो ख चे गए और कैमर के लैश से हॉल जगमगा
उठा। हैरी एक भारतीय रपोटर को भी फ़ोटो ख चते दे ख सकता था।

“आपने यो को मार डाला!” वो चीख़ी।


“चांदनी, मेरी बात सुनो—” गंगासागर बोला।
“शंकर क ह या भी आपने करवाई!” वो च लाई।
“इनके कारण थे—” वो बोला।
“और इकरामभाई। उ ह भी आपने ही मरवाया था?”
“ई र सा ी है, म उस बदमाश को ब त चाहता था। म तु हारे सारे आरोप
वीकार करने को तैयार ं ले कन ये नह !” गंगासागर गरजा |
“गंगा अंकल। म हमेशा से जानती थी क आप नदयी आदमी ह— क अपने
मक़सद पूरे करने के लए आप कुछ भी कर सकते ह—ले कन मने ये कभी नह सोचा था
क आपके पास दल है ही नह । आज मेरा वचार बदल गया है,” वो अपनी साड़ी के प लू
से आंसु को थपथपाते ए बोली।
“चुनाव के नतीजे आ चुके ह। ये न त है क तुम अगली धानमं ी बनोगी!
चांदनी, ये फ़ोकस खोने का समय नह है। हम अभी भी ब त कुछ करना बाक़ है।”
“अब कोई हम नह बचा— सफ़ आप और म। और मुझे लगता है क हम दोन
को अपने अलग–अलग रा ते जाना चा हए। अगर मने आपको छोड़ दया तो मुझे
कायवाहक धानमं ी का समथन मल जाएगा जो वैसे भी आपसे नफ़रत करते ह। बहार
और उ र दे श के सांसद के अलावा उनके पास उतने ही सांसद ह जतने मुझे चा हए।”
“ले कन वो तु ह सफ़ इस लए खड़ा करेगा क फर से गरा सके, चांदनी। शैतान
के साथ समझौता मत करो,” गंगासागर ने कहा।
“ य न क ं ?” वो च लाई। “आपके साथ भी तो कया था ना?”
माइ ोफ़ोन व न तरंग को ा त करके पतली सी झ ली म कंपन पैदा कर रही
थी, जो एक व ुतीय संकेत उ प कर रहा था। उसके बाद व ुतीय संकेत कई घर र
एक ांसमीटर पर ा त कए जा रहे थे। एक एयरकंडीश कमरे म कायवाहक धानमं ी
बैठे थे। वो बातचीत को सुनकर हंस रहे थे।
चांदनी तेज़ी से गंगासागर के लैट से नकल गई और गंगासागर च लाता रह
गया, “चांदनी, वापस आ जाओ। ये मने तु हारे लए कया था—” ले कन वो अपना वा य
पूरा नह कर सका। खांसी के तेज़ दौरे ने उसके श द को बा धत कर दया। वो खांसी को
तब तक नज़रअंदाज़ करता रहा जब तक क उसने माल पर ख़ून के लाल ध बे नह दे ख
लए।
अ याय उ ीस
लगभग 2300 वष पहले

द यु एक वशाल पथरीले छ े पर खड़े थे और धनानंद के दल को जंगल म आगे बढ़ते


दे ख रहे थे। बीभ सक नाम के उनके अगुआ के बारे म कहा जाता था क वो एक हज़ार से
अ धक लोग क ह याएं कर चुका है। उसके गंदे बाल तार जैसे और उलझे ए थे। उसक
दाढ़ साफ़ थी ले कन मूंछ उसके गाल पर घूमी ई थ । वो एक ध बेदार सफ़ेद धोती और
मोटे चमड़े क पा काएं पहने था और एक कंबल को उसने उ रीय क तरह कंधे पर लपेट
रखा था। उसक वचा काली और अकड़ी ई थी— जसका कारण बरस से ठ क से नह
नहाना था—और उसके दांत को छाली ने दा़गदार कर दया था।
उसने ढे र सारा बलग़म थूका और अपने शकार क ओर नज़र दौड़ाई। अ धक
म दरापान से सुख़ उसक आंख का रंग उसके माथे पर लगे गहरे लाल रंग के तलक से
मेल खा रहा था। ले कन ये तलक स र के वणक से बनाया गया नह था। ये उसके
आख़री शकार के ख़ून से बनी छाप थी। उसने अपने हाथ म एक कटार पकड़ी ई थी, जो
उसका शुभंकर थी ले कन जो उन हज़ार गल के लए शुभ नह रही थी ज ह इसने काट
डाला था। उसके सरे हाथ म वो तलवार थी जो एक रात पहले उसे भट क गई थी। ये
अ ा रहा था, बीभ सक ने सोचा। हर शकार से न केवल लूट का माल मलता था ब क
दे वी काली के लए ब ल भी। उसने नद तट पर दे वी के लए एक मं दर बनाया था और वो
सु न त करता था क येक दन वो वहां एक नए शकार का र चढ़ाए। उस ान से
सब बचा करते थे जहां उसका मं दर बना था। वो ान काली घाट कहलाता था।
“हम तब धावा बोलगे जब ये रात के लए पड़ाव डालगे,” बीभ सक ने कहा। “इस
दल म ब त लोग ह, वशेषकर र क। इन पर पूरी तरह अनजाने म ही आ मण करना
ठ क रहेगा। ये बड़ा आनंदकारी रहेगा!” उसके आदमी— जनक सं या लगभग दो दजन
थी—हंसने लगे। उनका मुख अपने आद मय क दे खभाल करना जानता था। वो धनी
होने वाले थे।
बीभ सक पहले ही धनी था। शारंगराव के साथ दे र रात क भट म तय हो चुका था
क लूट का माल उसे चाहे जतना भी मले, उसका अपना भुगतान अलग से कया
जाएगा। फर शारंगराव ने उसे भ शाल क तलवार दे कर कहा था क धनानंद को उसी
तलवार से मारा जाए और ये सु न त कया जाए क तलवार अपराध ल पर ही छू ट
जाए।

“ कतु आचाय, या ये बु मानी नह होगी क मगध के स ाट के प म महाराज पोरस


का रा या भषेक तुरंत करा दया जाए?” इं द ने पूछा।
“तेईस अंश धनु के आसपास शु –भंवर संयोजन महाराज के ज म व ण पर
कसकर लपटा आ है, और महाराज के ज म बुध म श न–अ ण वरोध उप त है।
इस लए इस रा या भषेक के संग को महाम हम के मह वपूण बुध–श न–व ण–भंवर
च के आसपास प र मा करनी चा हए,” मोटे राजपुरो हत ने कहा, जब क वो लोग
धनानंद के वशाल आनंद क म बैठे ए थे। चाण य ने अपनी हंसी रोक । यो तष बड़ा
अदभुत व ान था। इसके मा यम से आप बना कुछ कहे वो सब कुछ कह सकते थे जो
आप कहना चाहते थे।
“इसका या अथ आ?” हत भ पोरस ने पूछा।
“इसका अथ ये है, हे श शाली राजा, क अपने रा या भषेक क शुभ घड़ी के
लए आपको दो दन और दो रात और ती ा करनी होगी,” चाण य बीच म बोला।
“पर तब तक म या क ं ?” पोरस ने पूछा।
“मेरा वचार है क महाराज को त रखने के लए मेरे पास एकदम सही हल
है,” चाण य ने सुझाव दया और वशाखा ने एक सहनी क तरह रमणीय ढं ग से वेश
कया।

“ सह तैयार है ना?” चाण य ने पूछा। जीव स ने सर हलाया। “ब ढ़या। चं गु त के


जंगल प ंचने तक अपने गु तचर ारा उसे पजरे म ही बंद रखवाना। जैसे ही चं गु त
सामने दखाई दे , उसका पजरा खोल दे ना, समझ गए ना?” चाण य ने जीव स को
थैली दे ते ए नदश दया। “ यान रहे क सह के पानी म इसे म त कर दया जाए।
इससे वो न ालु और ढ ला–ढाला हो जाएगा,” उसने कहा।
माजार– जा त का सबसे बड़ा सद य और सारे जी वत मांसभ क म सबसे
श शाली पशु मगध के राजा का सव धान खेल था। शकार क सबसे अ धक
च लत तकनीक हांका थी जसम नगाड़े बजाकर जानवर को हांककर घेरते ए ती ा
कर रहे शकारी क ओर लाया जाता था जहां उसके लए जी वत भस का चारा खूंटे से
बंधा होता। चं गु त ज़मीन से बीस फ़ट ऊपर एक छपे ए मचान पर बैठा था। उसके
चेहरे पर एक घनौना, चब भरा, बदबूदार तरल पदाथ मला आ था जसे एक शकार क
गई शेरनी के मू पथ से नकाला गया था। उसके सहायक सरे मचान पर बके बैठे थे
और श शाली सह के आने क ती ा कर रहे थे। जंगल म पूण स ाटा था, और
एकमा व न थमी ई सांस क थी।
चं गु त के साथी सैकड़ हांके और चारे वाल को उन तकड़म क कोई ख़बर
नह थी जो जीव स ारा चोरी– छपे भड़ाई जा रही थ । जीव स ने अपने सहायक
को सर हलाकर संकेत दया और उस ने र सी ख च ली जसने पजरे का ार
खोला और भ पशु को ख़ामोशी से ल त े म छोड़ दया। उन दे पशु ने पजरे से
बाहर नकलकर कुछ सूंघा। सह क सुनने क श अ यंत ती और दे खने क श
ब त पैनी होती थी कतु वो सट क ढं ग से सूंघ नह सकते थे। ले कन ये गंध भ थी और
कोई मूख सह ही इसे चूक सकता था। इसम ऐसे रासाय नक पदाथ थे जो कामवासना को
जागृत करते थे।
जैसे ही सह धीरे–धीरे चलता आ चं गु त के मचान के नीचे तंग ान पर
आया, वैसे ही महान राजा ऊपर से अपना भाला फकने के बजाय नीचे कूद गया और शेर
के ठ क सामने आ गया। न द क औष ध पी चुका जानवर बड़ी मु कल से अपनी आंख
खोले ए था। वो बस इतना जानता था क उसे गंध के ोत— ेम के रासाय नक पदाथ—
को ढूं ढ़ना है।
शी ही पशु ने महसूस कया क वो गंध उसके सामने मौजूद मनभावन शकारी
के गाल से उठ रही है। चं गु त झुक गया ले कन उसने कसी भी भा यपूण प र त से
बचने के लए अपना भाला तैयार रखा, जब क वशाल पशु ने अपने जबड़े खोले, जीभ
बाहर नकाली, चं गु त के गाल पर लगे उस अ यंत बदबूदार चप चपे पदाथ को चाटा
और बेहोश हो गया।
“ये एक द संकेत है!” एक शकारी सहायक फुसफुसाया। “ये चम कार है!
चं गु त के पास द सहायता है। य द ये अलौ कक घटना नह है, तो या है?”
“म सहमत ,ं ” सरा बोला। “ऐसी घटना लाख म एक बार होती है। ये ई र का
आशीवाद है। ये आकाशीय संदेश है जो मगध के लोग को बता रहा है क उनका स ा
राजा आ चुका है और उनके बीच है। और वो राजा महान चं गु त ही है!”
पाट लपु के आनंद महल के उस क म रेशमी पलंगपोश पर अपना चेहरा वशाखा क
छाती म धंसाए पोरस मरा पड़ा था, जब क बाहर शाही बा़ग म मोर अभी भी नाच रहे थे।
धनानंद का नज व शरीर जंगल म पड़ा था जब क भ शाल क र रं जत तलवार
उसके नकट पड़ी ई थी। बीभ सक धनानंद का कुछ र नद के तट पर काली घाट म
दे वी को चढ़ाने के लए ले गया था।
जंगल म सोया आ सह आराम से ख़राटे भर रहा था।

चाण य, चं गु त, शारंगराव और का यायन राजक य सभा क म बैठे अपनी अगली


चाल के बारे म वचार– वमश कर रहे थे। मगध का एक यायाधीश उनके सामने खड़ा
नदश क ती ा कर रहा था। “भ शाल को तुरंत बंद बना लया जाए और फांसी पर
लटका दया जाए,” चाण य ने यायाधीश को नदश दया और यायाधीश अपने नए
वामी के आ ापालन और उसे स करने के लए तुरंत वहां से चला गया।
“भ शाल ने हमारी सहायता क थी, आचाय, हम उसके त उदार होना चा हए।
हम जानते ह क धनानंद के वध के पीछे वो नह था,” शारंगराव ने कहा।
“वो हमारी नह , अपनी सहायता कर रहा था, शारंगराव,” ु ा ण ने
व लत ने के साथ कहा। “वो कसी भी शासक के लए एक बोझ होगा, चाहे वो
धनानंद हो या चं गु त! राजधम दया का नह , श का खेल है।”
“रा स नाराज़ होगा। भ शाल उसका सहयोगी था,” का यायन ने कहा।
“इससे या अंतर पड़ता है, का यायनजी? अब जब क रा स जानता है क
धनानंद रा ते से हट चुका है, तो वो दौड़ता आ मगध आएगा,” चाण य ने कहा।
“ले कन सुना है क रा स का कहना है क वो त शला म आराम से है और
मगध वापस आने क उसक कोई इ ा नह है,” शारंगराव बोला।
“मुझे वो रा स यह वापस चा हए। उप महामं ी के प म उसक उप त
भर चं गु त के शासन को वैधता दान करेगी,” चाण य ने कहा।
“उप महामं ी?” चं गु त ने पूछा। “वो तो धनानंद के शासन काल म महामं ी था
ना?”
“हां। ले कन तु हारे नए महामं ी का यायनजी ह गे—एक ऐसे जो राजा के
सामने अपने वचार कट करने से डरते नह ह!”
वृ का यायन मु कुराए और खड़े ए, चं गु त के पास गए और अपने नए वामी
के आगे झुक गए। फर चाण य क ओर पलटते ए उ ह ने कहा, “ कतु आचाय, आप
रा स को वापसी के लए मजबूर नह कर सकते। वो त शला म अ यंत वला सतापूण
जीवन तीत करता तीत होता है।”
“मुझे व ास है क मे हर— जसे मने त शला म वशेष प से इसी कारण से
छोड़ दया था—ने अब तक इस सम या का समाधान कर लया होगा,” चाण य ने गूढ़
भाव से कहा।
“और मे हर को आपके या नदश थे?” चं गु त ने पूछा।
“ क वो रा स से कहे क मने सुवा सनी को बंधक बना लया है और उसे तब तक
बंधक के ही प म रखा जाएगा जब तक क वो लौट नह आता! फ़श पर थोड़ा सा गुड़
का घोल डाल और फर दे ख कैसे च टयां उस पर आती ह! सुवा सनी मेरा घोल है और
रा स मेरी च ट !” चाण य दहाड़ा।
“आचाय! य द म बोलू,ं तो ये खुली बेईमानी है,” चं गु त ने ट पणी क ।
“पु , कभी भी पूरी तरह ईमानदार नह होना चा हए। तुम अभी तो जंगल म
शकार से लौटे हो। या तुमने नह दे खा क हमेशा सीधे पेड़ ही काटे जाते ह, टे ढ़े कभी
नह !” चाण य ने कहा।
“तो म ऐसे सहासन पर बैठं ू जो छल से जीता गया हो?”
“तुम राजा हो, नह या? तुम शखर पर प ंच चुके हो। तु हारे पास श और
वैभव है—हे राजा, इसका योग बु मानी से करो!” चाण य बोला।
चं गु त अभी भी असहज दख रहा था।
चाण य फर से बोला। “ च ड़यां फलहीन वृ पर नह बैठत , वे या के मन म
ग़रीब पु ष के त ेम नह होता और नाग रक श हीन राजा क आ ा नह मानते! हे
राजा, अपना कत नभाओ!” उसने आदे श दया और धनानंद के दरबार म ब त वष पूव
अपनी शखा को खोलने के बाद आज पहली बार उसने अपनी शखा को बांधा।

सुवा सनी ने कमरे म इधर–उधर दे खा। कमरा खड़क र हत ले कन आरामदे ह था—साफ़,


हवादार और सारे सामान से सुस त। उसने दरवाज़ा खोलने का यास कया ले कन
दरवाज़ा बाहर से बंद था। वो बुरी तरह दरवाज़े को पीटने लगी क शायद कोई सुन ले। पर
कोई फ़ायदा नह आ। लगता था क बाहर कोई नह है। अपने बंद होने को वीकार
करके वो पलंग पर बैठ गई और धीरे–धीरे सुबकने लगी। ये कैसा अभागा जीवन है? रा स
ारा उपयोग, धनानंद ारा उपभोग और चाण य ारा पयोग?
वहां बैठकर अपने दयनीय जीवन पर सोच– वचार करते ए उसे पैर क आहट
सुनाई द । फर उसने दरवाज़े के कुंडे उठने क आवाज़ सुनी। दो र क अंदर आए और
दरवाज़े के दोन ओर तैनात हो गए। और फर अपनी कमर पर हाथ बांधे चाण य अंदर
आया।
सुवा सनी पलंग से उठ और उसक ओर दौड़ी; उसके गाल पर आंसू ढलके थे
और बाल चेहरे पर बखरे ए थे। “ व णु! तु ह दे खकर मुझे चैन मल गया। तुम मुझे मु
कराने आए हो ना? म हमेशा से जानती थी क तुम ही मेरे उ ारक बनोगे!” वो वलाप
करती ई उसके आगे घुटन के बल गर पड़ी।
“उठो, सुवा सनी,” चाण य ने उसे कंध से पकड़कर उठाते ए कहा। “म मा
चाहता ं क मने तु ह इस क म बंद रखा, कतु म जानता था क अगर तुम दखाई द
तो तु हारे पास धनानंद के साथ नवासन म जाने के अ त र कोई वक प नह रहेगा,”
उसने सफ़ाई द ।
“म समझती ,ं व णु,” वो वन ता से बोली। उसने चाण य को गले से लगाया,
और अपना चेहरा उसके व से लगा दया। उसने नज़र उठाकर चाण य को दे खा तो
उसका दल तेज़ी से धड़क रहा था, जब क वो मूकभाव से उसके ेम क याचना कर रही
थी और मन ही मन उसके लए उस वजय क ाथना कर रही थी जो वो पहले ही ा त
कर चुका था। ॐ यं कम् यजमाहे, सुगं धम् पु टवधनम्; उवा क मव बंधनान्,
मृ योमु ीय मा मृतात।
“अब म इस बंद ान से नकल सकती ं? म फर से वतं होना चाहती ,ं ”
उसे कसकर अपने आ लगन म लेते ए वो बड़बड़ाई।
“मुझे ख है, सुवा सनी, य प म तुमसे ेम करता ं, ले कन म वो नह कर
सकता जो तुम मुझसे चाहती हो। मगध के हत म यही होगा क म तु ह यह रखूं,”
चाण य ने अपने वर म भावना को नयं त करते ए उसे ये समाचार दया।
“ या? धनानंद मर चुका है और तुम फर भी मुझे बंद ही रखना चाहते हो? तु ह
या हो गया है, मेरे य व णु? या अब तु हारे व म एक सामा य मानव दय नह
धड़कता है? तुम उस एकमा ी के साथ ऐसा कैसे कर सकते हो जससे तुमने कभी ेम
कया है?” वयं को उसके आ लगन से अलग करते ए उसने ो धत भाव से पूछा।
“ न संदेह म तुमसे ेम करता था, मेरी य सुवा सनी, कतु म भारत से कह
अ धक ेम करता ं। म हर संभव कार से इसक र ा करने के लए कत ब ं। अभी
मुझे रा स क चता है। रा स को तुमसे अ धक कोई व तु य नह है, सुवा सनी। तुम
मेरी वकट प र त को समझ सकती हो?” चाण य ने पूछा।
“तुम जस ी से ेम करते हो, उसे बंद बनाकर रखोगे य क वो तु हारी
शतंरज क बसात म एक यादा है?” वो च लाई। “हे ोध के दे वता और मृ यु के
अवतार! म तुझे कई सह वष के लए नक को स पती ं—ता क तू राजनी त के नाम पर
क गई ह या और कम के लए यातनाएं सहे! तेरा नाम आगे ले जाने के लए कोई
वंश नह होगा और वो ान जसक तुझे इतनी लगन है, वो कसी के काम नह आएगा। तू
और तेरा अ भश त दशन, दोन लु त हो जाएं!” उसने चाण य को शाप दया और पलंग
पर गरकर रोने लगी।
“म तु हारे शाप म व ास नह करता ं, सुवा सनी। ऐसे लोग वा तव म मौजूद ह
—जा गर और वै —जो मं ारा सर को मार सकते ह, अ य हो सकते ह या वयं
को मानवभे ड़य म बदल सकते ह। काले जा के ऐसे तं और मं भी ह जो अंधता, य,
व तता या मृ यु तक के कारण बन सकते ह। ले कन शाप हा दक होना चा हए न क
बनावट । तुम अभी भी मुझसे ेम करती हो और तुम कभी नह चाहोगी क तु हारा शाप
सच हो,” चाण य ने उदासी से कहा।
“म तुमसे ेम करती ,ं व णु, कतु म तु हारे अंदर के चाण य से घृणा करती
ं!” वो रोते ए बोली। “और जहां तक मं और शाप के भाव का है, तो म तु ह
बता ं क तुम वो स ा कभी नह ा त कर पाते जसका तु ह इतना लोभ है, अगर मने
तु हारी वजय के लए येक दन शव से ाथना नह क होती!”
“मेरे पास तु ह बंद बनाए रखने के अ त र कोई वक प नह है, सुवा सनी,”
चाण य ने कहा। “ई र मेरा सा ी है, संसार म कोई ऐसा नह जससे मने तुमसे अ धक
ेम कया हो!”
“य द मेरा कारावास रहेगा, तो मेरा शाप भी रहेगा। परंत,ु चूं क म तुमसे ेम करती
ं, इस लए म तु ह इससे मु का एक उपाय बताती ं। अब से कई सह वष बाद, य द
कोई एक मं पर यान लगाएगा, तो वो फर से चाण य के ान का योग कर
सकेगा, ले कन केवल तभी जब क वो इसका योग कसी ी को आगे बढ़ाने के लए
करेगा!” उसने वयं को बंद बनाने वाले क ओर आरोपपूण उं गली उठाते ए कहा।
“कौन सा मं ?” चाण य ने कहा।
“आ द श , नमोनम:; सवश , नमोनम:, थम भगवती, नमोनम:, कुंड लनी
माताश ; माताश , नमोनम:,” सुवा सनी ने कहा। “य द इस मं का उ ारण चार
हज़ार दन से अ धक तक येक दन चार सौ बार कया जाए, तो व ा को एक और नेता
—जो क एक ी होनी चा हए—को खड़ा करने के लए चाण य क श यां ा त हो
जाएंगी। नए युग म, श शव को पीछे छोड़ दे गी!”
चाण य ने उसे गंभीरतापूवक दे खा। जैसी तु हारी इ ा, मेरी एकमा ेम। अब
मेरा कत अ य लोग , अ य युग के त भी हो गया है, इस लए म एक अं तम बार तु ह
छोड़कर जा रहा ं। मेरी बु और अनुभव मेरे जीवनकाल म न धुंधलाएं। इ तहास, वो
चंचल कला, आने वाले शासक के लाभ और उनके रा क अ धक समृ के लए
शायद मेरे वचार को दज न करे। इस लए मुझे उनको लख लेना चा हए।
वो पीछे छाया म धंसता चलता गया और धीरे से क से नकल गया। “मुझे
सारा कुछ लख डालना चा हए,” सुवा सनी ने कान लगाकर उसे जाते–जाते फुसफुसाते
सुना। “मेरा अथशा —मेरी अपनी खोज— समृ का व ान।”

चाण य अपनी साद सी झोपड़ी म बैठा और उस मं का जप करने लगा। मौ लक श ,


म तुझे नमन करता ;ं सव व मान श , म तुझे नमन करता ं; जसके मा यम से ई र
सृ रचता है, म तुझे नमन करता ं; कुंड लनी क सजना मक श , म तुझे नमन करता
ं।
चाण य जप करता रहा—आंख ाथना म बंद कए—इस ान के साथ क वो
चं गु त के अंतगत भारत को एक कृत करने क अपनी मह वाकां ा को पूरा कर चुका है।
ले कन इसे पूरा करने के लए उसने ेम करने के अपने इकलौते अवसर का याग कर
दया था।

आगे चलकर सुवा सनी अड़तीस वष क प रप व आयु तक जी वत रहने के बाद यौन


अ तस यता और ेम वहीनता से मरी। य प चं गु त का उप महामं ी—रा स—तैयार
और इ ु क था।
अ याय बीस
वतमान समय

इस समय अ◌ॉल इं डया इं ट ूट अ◌ॉफ़ मै डकल साइंसेज़ के ग लयारे सूने पड़े ए थे।
डॉ टर ने गंगासागर से नवेदन कया था क वो उससे मलने ठ क आधी रात से पहले
आए ता क वो कसी को पता चले बना टै ट कर सके। अब वो—गंगासागर और मेनन—
उसके अ◌ॉ फ़स म जज या जूरी के अं तम आदे श क ती ा कर रहे अ भयु क
मा नद बैठे ए थे।
“आपको फेफड़ का कसर है, गंगासागरजी,” डॉ टर ने सहानुभू तपूवक कहा।
“पर म धू पान तो नह करता ं,” गंगासागर ने शकायत क , लगभग इस उ मीद
के साथ क उसक मनुहार क श यां डॉ टर को ये वीकार करने पर मजबूर कर दगी
क उसे ये भयंकर रोग नह है।
“ये रोग सफ़ धू पान करने वाल को ही नह होता है। आप एक बेहद षत
माहौल म रहते ह। ऑटो र का काला धुआं भी उतना ही घातक हो सकता है। कतनी
ही चीज़ ह जो इसका कारण बन सकती ह—धू पान, न य धू पान, वायु षण,
ए बे टस—”
“अभी तक मुझम ऐसे कोई ल ण नह थे,” अपनी ज़दगी क र ा करते ए
गंगासागर ने कहा।
“लगभग प ीस तशत रो गय को तभी पता चलता है जब ब त दे र हो चुक
होती है,” डॉ टर ने वन ता से बताया।
“म जी वत र ंगा?” अचानक अपनी न रता को याद करते ए गंगासागर ने
पूछा।
डॉ टर ने धीरे से सर झटका | “चम कार तो होते ह, गंगासागरजी | बद क़ मती
से, हम कसर के पूरे शरीर म फैलने तक ल ण को नह पकड़ पाए। इस टे ज म, न तो
सजरी से ही ब त मदद मलेगी और न ही क मोथेरेपी से।”
“मेरे पास कतना समय बचा है?” वृ पं डत ने पूछा।
डॉ टर ने कंधे उचकाए। “इन चीज़ क भ व यवाणी करना मु कल है। मेरे
अंदाज़े से एक महीना— यादा से यादा |”
“उसे धानमं ी बनाने के लए इतना काफ़ है,” गंगासागर ने घोषणा क और
डॉ टर च कत रह गया। “आपको ये जानकारी पूरी तरह गोपनीय रखनी है, डॉ टर। अब
म चलता ं। मुझे ब त काम करने ह।”
“पर गंगासागरजी, हम आपको दा ख़ल करना होगा। हम आपका—”
“सु नए, डॉ टर। मर जाना कोई बड़ी बात नह होती—कोई भी ऐसा कर सकता
है। जब म अपने अ न ु क नमाता से मलने के नज़द क होऊंगा तो मेनन मुझे ले
आएगा!” उसने कहा और तेज़ी से डॉ टर के अ◌ॉ फ़स से नकल गया।
मेनन ज द –ज द उसके पीछे गया और उसने दे खा क उसका वामी धीरे–धीरे
बड़बड़ा रहा है, “आ द श , नमोनम:; सवश , नमोनम:, थम भगवती, नमोनम:,
कुंड लनी माताश ; माताश , नमोनम:। ”

“वो धानमं ी बनने वाली है और हम उसक नाजायज़ संतान को बेनक़ाब करने वाले ह,”
सोमानी ने गंगासागर से कहा। “अख़बार को ये ब त अ ा लगेगा।”
“म ऐसा कोई काम करने से पहले ब त अ तरह सोचता,” गंगासागर ने एक
और खांसी के दौरे से बचने के लए धीरे से बोलते ए कहा।
“आपके पास हमारे ख़लाफ़ कुछ नह है, गंगासागर | वैसे भी, आप य परेशान
ह? वो तो आपको हमेशा के लए छोड़ गई है,” ं टा ने कहा।
“जब हज़ार लोग एक प र क मू त क पूजा करते ह, तो वो अपनी श यां
उसे स प दे ते ह। इससे कोई फ़क़ नह पड़ता क मू त या सोचती है। चांदनी वही मू त है
और मुझे कोई फ़क़ नह पड़ता क वो मेरे बारे म या सोचती है। मेरा एकसू ीय एजडा है
उसे धानमं ी बनाना।”
“आपका एजडा बकवास है! भारत जैसा ढ़वाद दे श कभी वीकार नह करेगा
क एक ढ ले नै तक च र क म हला धानमं ी बने,” सोमानी ने कहा।
“ढ ले नै तक च र वाली म हला क बात चली है,” गंगासागर ने कहा, “तो म
आपको एक ब त य म से मलवाना चा ंगा। वो एबीएनएस के लए श का तंभ
रही ह,” गंगासागर बोला।
“कौन?” सोमानी ने ज ासापूवक पूछा।
शरीर से चपक काली साड़ी म बेहद आकषक लगती बॉलीवुड क साइरन अंदर
आई | कमरे म बैठे मद को नज़रअंदाज़ करते ए वो सोफ़े पर बैठ गई और फर बड़े
मादक अंदाज़ से अपना सगरेट जलाने लगी |
“जैसा क आप जानते ह, हम लोग बड़े आभारी थे जब आप महानुभाव ने
अंज ल से उ र दे श के वधान सभा चुनाव म चांदनी के समथन म आने का अनुरोध
कया था। अपनी कृत ता कट करने के लए हमने अंज ल को अपने रा य से रा य सभा
सद य ना मत कया था। अंज ल मुझे नय मत प से एक वशेष रा म के बारे म
बताती रही ह जो लगभग हर रात उनसे मलने मुंबई म उनके शानदार समंदर कनारे के
मकान म जाता है,” गंगासागर ने कहा।
सोमानी का चेहरा सुख़ पड़ गया। गंगासागर बोलता रहा। “ये वशेष म बज़ा हर
काफ़ संप है, ले कन ऐसा लगता है क उसक प नी उसक ज़ रत पूरी नह कर पाती
है। मेरे म त क म ये है: या भारत जैसे ढ़वाद दे श—और वशेष प से
सोमानीजी क सुंदर प नी—को एक मुख बज़नेसमैन क बेड म ड़ा के बारे म
सुनने म दलच ी होगी?”
बुरी तरह नाराज़ ं टा ने सोमानी को घूरकर दे खा। “मने तुमसे कहा था क अपनी
पट क ज़प बंद रखना— क सुर त खेलना कतना अहम है,” वो च लाया।
“म सहमत ं। मेरा मतलब, इंसान को हमेशा सुर ा का यान रखना चा हए,”
गंगासागर ने सर हलाते ए कहा। “लगता है क इस नया म अ सी तशत से यादा
लोग हादस के नतीजे ह।”

“हमने अ वालजी को अपने मुनाफ़े का दस तशत दे ने का जो सौदा कया था, वो हम


बंद करना होगा,” ये महसूस करते ए क उसके बादबान क हवा सरक चुक है, ठे ए
ं टा ने कहा।
“म सहमत ,ं ” गंगासागर ने कहा। “दस तशत का भुगतान बंद कर दे ते ह।”
“ये—ये आपने ब त ही समझदारी क बात क है, गंगासागरजी,” सोमानी बोला।
“और, जो दस तशत मने आपके लए बचाया है, वो कृपया करके अपने
कमचा रय को दे दया कर। कृपया ये सु न त कर ल क इस ज़बरद त बढ़ोतरी का ेय
एबीएनकेयू को जाए, वो यू नयन जो आपके कमचा रय म से लगभग पचह र तशत
को नयं त करती है,” गंगासागर ने कहा |
“ले कन ये हा या द है! अपने मुनाफ़े म से दस तशत कमचा रय को कोई
नह दे ता है!” शरीर क गम को नकलने दे ने के लए अपना कॉलर ढ ला करते ए ं टा
ने कहा।
“शायद आप दोन चाहगे क इसके बजाय कमचा रय से अंज ल मल। म इ ह
एबीएनकेयू क अगली सा ता हक मी टग म आमं त कर सकता ं।”

भूतपूव व मं ी को दे र हो रही थी। एक ा यान के लए दे र हो गई थी। उनके स चव ने


गंगासागर को व ास दलाया क वो दस मनट म आ जाएंगे। “म इंतज़ार क ं गा,”
गंगासागर ने टडी म एक आरामदे ह कुस पर बैठते ए कहा।
कुछ ही मनट बाद भूतपूव मं ी अंदर आए। उ ह ने सावधानीपूवक गंगासागर का
अ भवादन कया। “मुझे इस मुलाक़ात क ख़ुशी कस लए ब शी गई है, गंगासागरजी?”
उ ह ने ं या मक ढं ग से पूछा।
“म बस आपको सूचना दे ना चाहता था क आपके म अब मेरे भी म ह। मने
ं टा एंड सोमानी के साथ अपने मतभेद को र कर दया है,” गंगासागर ने कहा।
“वो आपके दो त बन गए ह, तो इसका ये अथ नह है क म भी आपका दो त
बन गया,” भूतपूव मं ी ने ग़ से से कहा। “आपने मेरी साख और मेरा कै रयर तबाह कर
दया। अब म दे खूंगा क आपक वशेष चेली—चांदनी गु ता— धानमं ी के प म एक
दन भी नह रह सके—अगर वो वहां तक प ंची तो,” भूतपूव क य मं ी ने कहा।
“म अ तरह समझता ं,” गंगासागर ने कहा। “ ेस कॉ स म बुलाऊं या
आप बुलाएंग?े ” उसने पूछा और उस ापन क एक त उसक ओर बढ़ा द जो
सीबीडीट के चेयरमैन ने उसे एक बीमा पॉ लसी के प म द थी।

माननीय व मं ी। आर एंड एस क ग त व धय क जांच से व ीय अ नय मतता


के कई उदाहरण सामने आए ह। य प के कई आइटम महंगे तीत होते ह, वशेष प
से इस उ े य से क उनक कर यो य आय को कम कया जा सके। साथ ही, ऐसा तीत
होता है क मुनाफ़ा छपाने के उ े य से नजी साझेदा रयां खड़ी क ग । आय प के कई
आइटम गत कर दए गए, बज़ा हर इस उ े य से क कर अ धका रय को राज व से
वं चत रखा जाए। कुछ सौदे — वशेषकर संप य के य– व य से संबं धत—संदेहा द
मू यांकन पर कए गए, जससे कर–दे यता और भी कम हो, कम से कम क़ागज़ पर। इन
प र तय म, म आपका परामश चा ंगा क इन मामल से कैसे नपटा जाए। ध यवाद।
चेयरमैन, स ल बोड अ◌ॉफ़ डाइरे ट टै सेज़।

ापन के अंत म व मं ी के हाथ से लखी ट पणी थी।


उनके साथ वहार म हम सहानुभू तपूण और वन होना चा हए। उनके समथन के
बना, कोई भी सरकार स ा म बने रहने क आशा नह कर सकती। मेरा सुझाव है क
पया त लचीनापन दखाया जाए। सादर। व मं ी।

ह शरण ल का पुरो हत एक स मा नत अ त थ का वागत करके ख़ुश था। गंगासागर


ख़ुद को पेश कए गए ग े पर बैठ गया और उसने पूछा, “आपके बेटे क श ा कैसी चल
रही है? मै डकल कूल म दा ख़ले से कुछ मदद मली?”
पुरो हत मु कुराने लगा | वो एकदम गंजा था, उसके चेहरे क झु रयां सूखे
आलूबुख़ारे जैसी थ और उसके मुंह म एक भी दांत नह था। उसक दं तहीन मु कुराहट ने
सब कुछ कह दया था। “जी, गंगासागरजी। आपक उदारता के कारण ज द ही उसका
कोस पूरा हो जाएगा।”
“आपके पास क़ागज़ात ह? वो जो आपने उस टोरी पर काम कर रहे घ टया
रपोटर को नह दए थे?” गंगासागर ने पूछा।
वृ पुरो हत ने पीले पड़ चुके पो टकाड और च य का एक बंडल गंगासागर
को थमा दया। वो यादातर ेम प थे—एक गभवती मां और ग़ैरहा ज़र बाप के बीच।
सा य ठोस था।
“ध यवाद,” गंगासागर ने कहा।
पुजारी बना दांत के हंस दया।

भूतपूव धानमं ी और उनक नाजायज़ बेट शमला म थे। मौसम ठं डा था और चीड़ क


मादक महक हवा म बसी ई थी। गंगासागर को यहां तक सफ़र करने म थोड़ी द क़त ई
थी, ले कन उसका याल था क ठं डी पहाड़ी हवा उसे फ़ायदा करेगी।
मेज़बान अपने अ त थ को दे खकर च कत ए ले कन उनका रवैया दो ताना रहा।
नौकर सेब का गम पेय और पनीर पकौड़े लाया, तो गंगासागर ने क़ागज़ का बंडल उ ह
थमा दया। “ये आप दोन के ह। कसी को ये अ धकार नह क वो एक प रवार के नजी
मामल म ताकाझांक करे,” उसने कहा। भूतपूव धानमं ी ने उन क़ागज़ात को दे खा और
उनके ह ठ पर एक ह क सी मु कान दौड़ गई। उ ह याद आ गया क वो सा वी क मां से
कतना यार करते थे। वो एक अ व सनीय औरत थी—समझदार और ख़ूबसूरत—उन
दोन क बेट क तरह।
“ध यवाद, गंगासागरजी, ले कन आप ये य कर रहे ह? आपने मुझ पर अपनी
बढ़ोतरी मुझे स प द ,” भूतपूव धानमं ी ने कहा जब क सा वी शायद यानम न थी।
“मुझे सब नह चा हए। मने बस कुछ रख लए ह। मने उ ह सेफ़– डपॉ ज़ट म रख
दया है और मेरी वसीयत के हसाब से चाबी आपको मलेगी। और आपको चाबी मेरी
वसीयत के मा णत होने के बाद मलेगी,” गंगासागर ने कहा।
“ले कन य ?” सा वी ने आंख खोलते ए पूछा।
“भारत म वसीयत के मा णत होने म कई वष लग सकते ह। अगर म कल भी
मर जाऊं, तो भी चांदनी को धानमं ी के प म अपनी त मज़बूत करने के लए
पया त समय मल जाएगा।”

कायवाहक धानमं ी के घर पर ज का माहौल था। चुनाव हार जाने के बावजूद उनक


पाट ने चांदनी के साथ गठबंधन कर लया था। उनके सांसद धानमं ी पद के लए
चांदनी के यास का समथन करगे ले कन बदले म मं प रषद म कुछ ान चाहगे।
गंगासागर खी लग रहा था। कायवाहक धानमं ी इससे बहकावे म नह आए। वो जानते
थे क ये उदासी बना ऊजा का ग़ सा था।
“म जानता ं आपने चांदनी के साथ सौदा कर लया है,” गंगासागर ने कहा,
“और म उ मीद करता ं क आप उसक सरकार को समय से पहले गराएंगे नह ।”
“आप को इसक चता य है?” कायवाहक धानमं ी ने पूछा। “मने तो सुना है
क आप और आपक चेली के बीच अब बातचीत तक नह है।”
“आह, हां। हम अ सर लड़ते ह ले कन सर को भटकाने के लए,” गंगासागर ने
कहा, “और ये कारगर रहा है। अगर हम लड़े नह होते तो आप उसे कभी समथन नह
दे ते।” गंगासागर बड़े यान से काय वाहक धानमं ी के ग़ से से लाल होते चेहरे को दे खता
रहा।

“अब म आपको और आपक कठपुतली दोन को दखाऊंगा क म या कर सकता ं,”


कायवाहक धानमं ी गरजे। “मेरे पास इतनी व ोटक साम ी है क आप और आपक
चेली दोन आसमान तक उड़ जाएंग!े आपने नाजायज़ लड़के क श ा और जीने के ख़च
के लए चैनल आइलड् स म एक यास फ़ंड क ापना क थी। इसे सा बत करने के लए
मेरे पास पया त द तावेज़ी सुबूत ह। उसके धानमं ी बनते ही म उनका योग करके
समथन वापस ले लूंगा। उसे इ तहास म सबसे कम समय रहने वाली धानमं ी के प म
याद कया जाएगा!”
“ भा य क बात है क आप इस तरह का वहार कर रहे ह,” गंगासागर ने
लगभग इस तरह कहा जैसे एक मां अपने ब े को डांट रही हो।
“म चाहता ं वो एक ओर हट जाए। वो पद क शपथ नह ले सकती। इस दे श को
धानमं ी के प म उस जैसी कुलटा क ज़ रत नह है!” धानमं ी च लाए।
“मेरी राय है क आप अपने फ़ैसले पर ब त यानपूवक फर से वचार कर,”
गंगासागर ने नम से कहा।
“ य क ं ?” धानमं ी चीख़े।
“ य क मेरे पास लकट टाइन के एक खाते के काग़ज़ात ह। उसम संवेदनशील
परमाणु तकनीक—गैस स यूज—के लए उ री को रया और ली बया से ा त भुगतान
आया है। और व च बात ये है क खाते के लाभाथ आप ह। इस लए म तो नई सरकार
के पूरे कायकाल तक समथन वापस लेने के बारे म ब त सावधान रहता।”

एंबुलस कानपुर क धूल भरी सड़क पर च लाती ई दौड़ी जा रही थी। पीछे , एक डॉ टर
ने गंगासागर के चेहरे पर अ◌ॉ सीजन मा क चढ़ाया और सो डयम लोराइड क आईवी
लगा द । वृ पं डत सवेरे क पूजा से उठने के बाद गर पड़ा था और मेनन ने घबराहट म
एंबुलस के लए फ़ोन कर दया था। नई द ली के अ◌ॉल इं डया इं ट ूट अ◌ॉफ़
मै डकल साइंसेज़ के डॉ टर का कहना था क गंगासागर को तुरंत वमान ारा द ली ले
आया जाए ले कन गंगासागर अड़ गया था। उसे घर पर ही रहना था—कानपुर म।
मेनन पं डत के पास बैठा आ था जसे मा क से सांस लेने म तकलीफ़ हो रही
थी और वो उसका हाथ कोमलता से पकड़े ए था। उसक आंख म आंसू थे। मेनन क
नया म गंगासागर ही सब कुछ था। अपनी ख़राब हालत के बावजूद, बूढ़े पं डत ने मेनन
क चता को दे खा और कुछ कहने क को शश क । “मौ लक—” वो शु आ, ले कन
सांस लेने भर के यास ने उसे आगे बोलने से रोक दया।

कुछ घंटे बाद, वृ अ ताल म अपने कमरे म था और थोड़ी बेहतर हालत म था।
मेनन और अ वालजी गंगासागर के पास बैठे थे जब क वो अपनी ाथना पढ़ने म लगा
आ था।
“मौ लक श , म तुझे नमन करता ं; सव व मान श , म तुझे नमन करता
ं; जसके मा यम से ई र सृ रचता है, म तुझे नमन करता ं; कुंड लनी क सजना मक
श , म तुझे नमन करता ं।”
अगली सुबह, उसे पलंग ऊंचा करके टका दया गया था जब क उसने मेनन से
पूछा, “तुमने उसे तो नह बताया ना?”
“नह तो,” मेनन ने झूठ बोला। उसने अ ताल प ंचते ही चांदनी को फ़ोन कर
दया था।
“मुझे इंटेलीजस यूरो वाले अपने दो त से मलना है,” गंगासागर ं धी ई आवाज़
म मेनन से फुसफुसाया। वो जानता था क डॉ टर ने गंगासागर के मुलाक़ा तय पर पाबंद
लगा रखी थी—इस हालत म ज़रा सा भी खचाव ठ क नह था। अ वालजी ने
वन तापूवक गंगासागर के आदे श क याद दलाई।
“वो गो लय से मेरी बीमारी को नह मार सकता, इस लए मुझे अपने बल से
मारने क को शश कर रहा है! भाड़ म गए डॉ टर के आदे श। आईबी नदे शक को
बुलवाइए।”

हमीदा उस गंदे कमरे म आई और बना कसी के कहे उस आदमी क डे क पर बैठ गई।


कमरे क द वार नंगी ट और कं ट क थ । डे क के ऊपर एक नंगा ब ब अजीब
भयानक से ढं ग से लटका आ था। कमरे म एक ह क सी बदबू पसरी ई थी—उस
आदमी के चु ट के बासी धुएं क महक। आदमी ने एक नज़र हमीदा को दे खा और
घृणापूवक सर घुमा लया।
“यहां य आए हो, छ के?”
“यक़ नन तुमसे मुह बत करने तो नह आई ं, जानेमन,” हमीदा ने छ क क
ख़ास छे ड़छाड़ के अंदाज़ म कहा। “म भीख मांगने भी नह आई ं। म यहां कुछ ख़रीदने
आई ं।”
“ या ख़रीदना चाहते हो, छ के?” उसने पूछा।
“बं क़,” हमीदा ने कहा।
“माफ़ करना, म बना लग वाले आद मय को बं क़ नह बेचता ं। बं क़ ब त
मदाना चीज़ है। ये ज़नाने मद के लए नह होती।”
“सुन, चूहाश ल, म एक टगर .22 मै नम पेन गन के लए सही क़ मत दे ने को
तैयार ं। अगर तू नह बेचेगा, तो म सचला दे वी से क ंगी क वो रोज़ाना यहां आकर तेरे
सामने अपना लौड़ा लहराया करे। शायद तू यही पसंद करे!”
आदमी ग़राया। उसे ाहक के प म नया भर के अजीब ाणी ही य मलते
ह? उसे अपना पेशा बदल लेना चा हए, उसने सोचा और अपने ब स म वो बं क़ तलाश
करने लगा जो इस छ के को चा हए थी।
बाहर, इंटेलीजस यूरो के एक एजट ने जो दे खा था उसक रपोट उसने अपने
नदे शक को दे द ।

हमीदा का अगला पड़ाव थोड़ा कम घ टया था। ये एक न ष माल के ापारी का टोर


था। हमीदा अंदर आई तो टोर के मा लक ने एक आह भरी। “तु ह पैसा चा हए, तो ये
लो,” उसने पचास का नोट दे ते ए कहा, “ले कन लीज़, यहां से चले जाओ। मेरे ाहक
भाग जाएंगे।”
“आज तु हारा ख़ुशनसीब दन है। “म तु ह पैसा दे ने आई ं। मुझे एक पुराना
असाही पटै स 35एमएम एसएलआर चा हए और म सही क़ मत दे ने को तैयार ं।”
“तुम मेरे पास य आए हो, फ़ ट - फ़ ट ?” उसने हजड़ के लए आम गाली
का योग करते ए कहा, “ सरे भी डीलर ह जो तु ह ये दे सकते ह।”
“ले कन तेरी तरह यार से कोई नह बोलता है, चूतड़श ल,” हमीदा ने ं यपूवक
कहा।
मा लक ने फर से आह भरी। उसे इंसा नयत क तलछट के साथ ही य
सौदे बाज़ी करनी पड़ती है? उसने बड़े उदास भाव से सोचा क कोक क एक सुंघनी मल
जाती तो कतना अ ा रहता और अपने काटन म वो कैमरा ढूं ढ़ने लगा जो फ़ ट -
फ़ ट को चा हए था।
बाहर, इंटेलीजस यूरो के एक एजट ने जो दे खा था उसक रपोट उसने अपने
नदे शक को दे द ।

हमीदा अपने कमरे म लकड़ी क छोट सी मेज़ पर झुक ई थी। उसके सामने टग .22
मै नम पेन गन के पास इ तेमाल कया आ पटै स कैमरा खुला पड़ा था। उसने कैमरे के
अंद नी पुज़ नकाले और उनक जगह टगर को धीरे से लगा दया। उसे सु न त करना
था क बं क़ कैमरे के फ़ म–एडवांस लीवर के रा ते चलने के लए ठ क से तैयार हो चुक
थी। ये शटर रलीज़ बटन को दबाने से चलती—सामने लगे शीशे के लस को तोड़ती ई।
मेज़ के एक कोने पर वो पास पड़ा आ था जो उसने धानमं ी के नजी स चव
से चुराया था। उसे बस ये उ मीद थी क बार कोड अभी भी काम करेगा और उसे रा प त
भवन म वेश मल जाएगा। अगर आगंतुक के पास से नॉथ लॉक, साउथ लॉक और
रा प त भवन जाया जा सकता था, तो इस बात क संभावना कम ही थी क एक व र
अ धकारी के पास से इन सारी जगह पर नह जाया जा सकता।
एक द वार पर एक खूंट थी जस पर एक कोट का हगर टं गा आ था। नजी
स चव ारा दया गया सूट, शट और टाई धुलवा ली गई थी और इ तेमाल के लए तैयार
थी। तेरे मरने से मुझे या फ़ायदा, गंगासागर? हमीदा ने सोचा। इससे मेरा बदला लेने का
मौक़ा छ न लया। अफ़सोस, अब तेरी य चांदनी को मरना पड़ेगा।

रा प त भवन का अशोक हॉल— जसे एक वैलरी बॉ स के प म बनाया गया था—


वा तव म एक आम सा आयताकार क था, ब ीस मीटर लंबाई और बीस मीटर चौड़ाई
वाला। हॉल क सबसे बड़ी ख़ा सयत ये थी क इसक छत पट क ई थी। क य प टग—
फ़ारसी शैली म— एक शाही शकारी अ भयान को च त करती थी। मूल प से टश
वाइसरॉय के लए बॉल म के प म बने अशोक हॉल म लकड़ी का डांस लोर भी था।
ये वडंबना ही थी क धानमं ी और अ य मं ी अपने प व पद और गोपनीयता क
शपथ इसी ख़ास हॉल म लेते थे। आ ख़र इस पद तक प ंचने के लए धानमं ी म एक
जानलेवा वृ का होना आव यक था। उनका बाक़ कायकाल भारतीय लोकतं के महान
डांस— दल–बदल, व ोह, और सामा य अराजकता—से रंगीन रहता था।
हॉल खचाखच भरा आ था जब क नई सरकार के नवा चत सद य, और वप
के मुख सद य इस ऐ तहा सक समारोह के लए इक े ए थे जो स ा के एक नाग रक
सरकार से सरी नाग रक सरकार को शां तपूवक ह तांतरण का तीक था। चांदनी हमेशा
क तरह सुनहरे बॉडर वाली ह क सफ़ेद सूती साड़ी पहने ई थी, और सादा एकल हीरे के
बुंद के अलावा कोई भी ज़ेवर उसके शरीर पर नह था। वहां एक त लोग ने तुरंत खड़े
होकर उसका अ भनंदन कया। वो ऐसी वजेता थी जो जीत का माल लेने आ रही थी।
चांदनी ने कृत तापूवक अ भनंदन को वीकार कया और अगली पं म बहार के
मु यमं ी के साथ बैठ गई। इन दोन का गठबंधन श शाली और अजेय सा बत आ था।
लोकसभा के चुनाव म इन दोन ने मलकर भारत के दो सबसे बड़े रा य , उ र दे श और
बहार, म भारी ब मत हा सल कया था। सामा य ब मत के लए बाक़ सीट कायवाहक
धानमं ी ने ये सोचकर दे द थ क चांदनी और गंगासागर आपस म श ु ह।
बगुल बजे और रा प त के अंगर क भारत के रा प त को अंदर लेकर आए।
बड ने भारत का रा गान बजाना शु कया और सारा भारतीय राजनी तक नेतृ व
स मानपूवक खड़ा हो गया, ये सु न त करते ए क ट वी के कैमर के लए, ज ह
लोज़-अप पसंद थे, उ चत ढं ग से गंभीर रह। लगभग एक तहाई हॉल को ेस के लए
पृथक कर दया गया था। उ ह के बीच एक ैण नौजवान था जसके पास एक पटै स
कैमरा था जो शायद कभी लैश नह करता था।

गंगासागर रा प त भवन म आकार लेते य को दे ख रहा था। रा प त चांदनी को पद क


शपथ दला रहे थे। तया उसके सामने एक प े पर शपथ का आलेख रखा था ले कन
मानो उसे उसक ज़ रत ही नह थी। लगभग ऐसा लग रहा था जैसे अपनी सारी ज़दगी
उसने इस अवसर क तैयारी म लगा द थी। वो चु त ऑ सफ़ोड उ ारण म बोल रही थी,
“म, चांदनी गु ता, ई र को सा ी मानकर शपथ लेती ं क म व ध ारा ा पत भारत
के सं वधान के त स ी आ ा और न ा वहन क ं गी, क म भारत क सं भुता एवं
अखंडता को बनाए रखूंगी, क ईमानदारी और धमपूवक म धानमं ी के प म अपने
कत का नवहन क ं गी और क कसी डर या प पात के, नेह या े ष के बना
सं वधान और व ध के अनु प सभी लोग के साथ याय क ं गी।”
गु मु कुराया। डर, प पात, नेह या े ष के बना! बकवास! वृ अपनी ाथना
बुदबुदाता रहा, हालां क उसके लए श द बोल पाना बड़ा भारी हो रहा था। उसक ाथना
थी “मौ लक श , म तुझे नमन करता ;ं सव व मान श , म तुझे नमन करता ं;
जसके मा यम से ई र सृ रचता है, म तुझे नमन करता ;ं कुंड लनी क सजना मक
श , म तुझे नमन करता ं।”
उसने अपनी चेली को दे खा— जसे अब भारत क अठारहव धानमं ी के प
म शपथ दलाई जा चुक थी—टे ली वज़न कैमर के सामने आभार म हाथ जोड़ते और
फर पीछे को लड़खड़ाते। वो लाल ध बा जो उसके बाएं कंधे पर फैलता चला गया था—
मानो लो मोशन म—एक टगर .22 मै नम से फ़ायर कया गया था।.22 का न हा सा
ख़ोल और व न क ग त से तेज़ वेग उसे गर 10/22 साइलसर के साथ योग करने के
लए एकदम उपयु बना दे ता था।
रा प त भवन के भ अशोक हॉल म भगदड़ मच गई थी य क गो लयां चल
रही थ और सैकड़ भारतीय नेता बचने के लए झुक रहे थे। कुछ मनट बाद, इंटेलीजस
यूरो के नदे शक ने हमीदा के बेजान शरीर को वहां से हटवाया और डॉ टर अशोक हॉल
के लकड़ी के डांस लोर पर पड़े चांदनी के र रं जत और मू त शरीर क ओर दौड़
पड़े।
डांस आरंभ हो चुका था।

टे ली वज़न पर साकार होते य को दे खते ए, पं डत गंगासागर म ने अ वालजी से


कहा, “म चाहता ं क मने जो संदेश लखा है वो गुअज़नी म वक ल को भेज दया जाए।
ये आपके लए मेरा आख़री नदश है, मेरे म ।”
अ वालजी और मेनन उसके ब तर के पास खड़े रहे। गंगासागर ने अपनी आंख
ाथना म बंद क और उसने उ ह दोबारा खोलने क ज़हमत नह क ।
उपसंहार
वो हमेशा क तरह सुनहरे बॉडर वाली ह क सफ़ेद साड़ी पहने ए थी। ले कन उसक
सामा य पोशाक म थोड़ी सी त द ली थी। शरद ॠतु क ठं डक क वजह से उसने सूती के
बजाय रेशमी साड़ी पहनी थी। अपनी साड़ी के ऊपर वो एक बरबैरीज़ कोट पहने थी और
अपने सामा य गम के च पल क जगह टॉ क स और जमी चू जूते पहने थी। उसके
चेहरे पर उ का कोई च नह था, ले कन उसक आंख कुछ और ही कहानी कह रही
थ । वो ख़ूबसूरत प े जैसी हरी आंख थ ज ह ने ब त कुछ दे खा था। कुछ ण ऐसे आते
थे जब उसक आंख इ ा करत क वो मानव वृ के बुरे प को दे खना बंद कर सक
और बस ज़दगी के न का आनंद ले सक, हाइड पाक क इस टहल का आनंद ले सक।
उसके साथ एक इ क स वष य नौजवान था। वो अ◌ॉ सफ़ोड क हरी प य
वाली टाई के साथ एक नीला सेवील रो सूट पहने था। उसक हरी आंख उसके लबास के
साथ एकदम मेल खा रही थ । उसके लहरदार बाल अ तरह से कढ़े ए थे, अलावा
माथे पर लटक आई लट के। वो उसके हाथ को अपने हाथ म पकड़े चल रहा था।
पछली रात चांदनी ने टश धानमं ी ारा अपने दौरे के स मान म आयो जत
एक समारोह म भाग लया था। महान सतार कलाकार रा धका शंकरन ने टे न क सबसे
वल ण वॉय लन तभा रॉयल एकेडमी अ◌ॉफ़ यु ज़क के हैरी रचडसन के साथ संगत
क थी, जो अब उसके साथ चल रहा था। वॉय लन और सतार के बीच बुने नृ य म, बीच–
बीच म एक– सरे के नोट् स लेते और उ ह अपने ख़ास अंदाज़ से पेश करते ए रा धका
और हैरी ने ाचीन भारतीय राग के धागे से एक नए तंतु क रचना क थी| ये एक
चम कारपूण तु त रही थी और दोन संगीतकार का चांदनी और टश धानमं ी दोन
के ारा खड़े होकर अ भनंदन कया गया था।
“ टश धानमं ी ने आपका हाथ पकड़कर आपको खड़े होने म य मदद क
थी?” हैरी ने पूछा।
“ य क उनक प नी उनके साथ नह थ ?” उसने मज़ाक़ कया। उ उसक
शरारत म कमी नह ला सक थी। वो टहलते रहे जब क अंगर क का एक दल एक उ चत
री बनाए ए उनके आगे और पीछे चलता रहा।
“वो मुझे पहले ही बता सकते थे क म आपका बेटा ,ं ” हैरी ने कहा। “वो नह ,
तो आप।”
“सच, मुझे नह पता था। सफ़ गंगा अंकल और जोज़ेफ़ न जानते थे। उ ह ने ट
के द तावेज़ म ये लखवा दया था क तु हारे मां–बाप के बारे म इ क स साल क उ म
तु ह ही बताया जाएगा—मुझे नह ,” वो बोली। “मुझे अफ़सोस है क म तु हारे साथ नह
रह सक , हैरी। मुझे तो तु हारे अ त व तक के बारे म नह पता था।”
“ या आप मुझे एक राज़ ही बनाकर रखगी?” हैरी ने इस बात से खी होते ए
पूछा क हर कोई उसे उसक मां के राजनी तक जीवन म एक बोझ क तरह दे खता था।
“भारत क धानमं ी के प म ये मेरा तीसरा कायकाल है, हैरी,” वो बोली। “म
एक लंबी पारी खेल चुक ं—कुछ लोग के हसाब से, ब त लंबी। गंगा अंकल कहते थे
क नेता डाइपर क तरह होते ह, उ ह बार–बार बदला जाना ज़ री होता है,” वो हंसी।
“मेरे लए जो चीज़ अहम है वो ये क मेरा एक बेटा है!”
“मुझे हमेशा एक पता क कमी महसूस ई। मम-जोज़ेफ़ न-ने मुझे हमेशा ये
बताया क मेरे पता भारतीय मूल के थे और क वो एक हवाई हादसे म मर गए थे,” हैरी ने
कहा।
“मेरे याल से वो तु हारी इस ख़ूबसूरती क वजह से ऐसा कहती होगी जो तु ह
तु हारी मां से मली है,” उसने बातचीत म ह कापन लाने का यास करते ए कहा।
“मेरे वचार से अब मेरे पास दो मम ह,” हैरी ने मु कुराते ए कहा।
“और दोन तु ह ब त यार करती ह,” चांदनी ने उसका हाथ दबाते ए कहा।
“और रा धका शंकरन भी, जस तरह कल रात तु त के दौरान वो तु ह नहार रही थी।”
वो एक बच पर बैठ गए और ठं डी–ठं डी हवा उनके चेहर पर पड़ने लगी।
हैरी ने अपनी जैकेट क अंद नी जेब से एक मुहरबंद लफ़ाफ़ा नकाला और
चांदनी को पकड़ा दया। उस पर चांदनी का नाम गंगासागर के लेखन म लखा आ
था। “ये वक ल के पास छोड़ दया गया था। मुझे ये आपको दे ने का नदश दया गया था,”
वो बोला। चांदनी ने उसे खोला और उसम से संदेश नकालकर उसे पढ़ने लगी।

मेरी य चांदनी,
म बस तुमसे माफ़ मांगना चाहता ं। म नशानेबाज़-इंटेलीजस यूरो के नदे शक
—से फर से दाएं कंधे का नशाना लेने को नह कह सका। इसे इलाहाबाद म इ तेमाल
कया जा चुका था। नदे शक ने मुझे व ास दलाया था क हमीदा का यं काम नह
करेगा ले कन वो हमेशा के लए उससे छु टकारा हा सल कर लगे। उसने मुझे ये भी यक़ न
दलाया था क तु हारा घाव छछला होगा। अफ़सोस, राजनी तक जीवन म इस तरह क
क़बा नयां दे नी ही पड़ती ह। तु हारे मामले म तु हारे दोन कंधे और दोन ेमी क़बान हो
गए।
म ाथना करता ं क जब तुम ये चट् ठ पढ़ो तब भी तुम धानमं ी हो—इससे
ये स हो जाएगा क मेरी रणनी त सफल रही। हमारा दे श ब लदान और याग को पसंद
करता है। ये बड़े यारे गुण ह जो लोग के बीच इंसान क लोक यता को क़ायम रख
सकते ह। खड़े रहने के लए कभी–कभी गरना भी पड़ता है। ख का वषय है क हमारी
आख़री बातचीत—हमारी बनावट बहस—हमारे राजनी तक वरो धय और इले ॉ नक
यं पर चोरी– छपे बात सुनने वाल के लए थी। वना, म तु ह ये बताना चाहता क मुझे
तुमपे नाज़ है।
मुझे लग रहा है क जब तुम ये च पढ़ रही हो तो हैरी तु हारे पास बैठा है।
तु हारे राजनी तक कै रयर को बचाने के लए मुझे उसे तुमसे राज़ रखना पड़ा। जहां तक
यो का सवाल है—मने जो कया उसका मुझे कोई पछतावा नह था। वो बुरी ख़बर था।
हां, शंकर का मामला अलग था। मुझे लगता है क वो सचमुच तुमसे यार करता था,
ले कन कभी–कभी यार नफ़रत से वनाशकारी होता है। ए लज़ाबेथ थम ने इं लड पर
व जन वीन बनकर राज कया और यही म तुमसे चाहता था।
जोजे़फ़ न ने यारे हैरी को बताया था क उसने उसका ये नाम इस लए रखा क
उसके पता का अनौपचा रक नाम हैरी था और क वो उस र ते को बनाए रखना चाहती
थी। उसने उसे ये नह बताया क ‘हरी’ हद म एक रंग भी होता है और क उसने ये नाम
ब े क प े जैसी—तु हारी तरह—हरी आंख क वजह से चुना था। जैसा क तुम दे ख
सकती हो, उसे एक ऐसा नौजवान बनाने के लए जस पर तुम नाज़ कर सको, उसक
परव रश म कसी तरह के ख़च क कमी नह आने द गई।
भारत क एकता और अखंडता के लए श शाली नेता क ज़ रत है और
अ सर ऐसे नेता को गंदे खेल खेलने पड़ते ह। चाण य ने अपने चेले—चं गु त—के
लए यही कया और मने अपनी चेली—चांदनी—के लए यही कया। हां, श ने शव को
पीछे छोड़ दया—जो क हमारे दौर का च है। मुझे कोई खेद नह ।
चांदनी ने च को तह कया और खड़ी हो गई। “हम लोग डनर के लए ला के ीस
चल?” उसने पूछा।
“मुझे ब त अ ा लगेगा, ले कन आज के बजाय कल चल सकते ह? मुझे कसी
से मलना है,” हैरी ने कहा।
“ कससे?”
“रा धका शंकरन से,” हैरी ने थोड़ा शमाते ए कहा।
“लगता है मुझे अकेले ही डनर करना पड़ेगा,” चांदनी ने बनावट नराशा से
कहा।
“मने सुना है क खाना ब त बुरा होता है,” हैरी बोला।
“ला के ीस म?” चांदनी ने पूछा।
“नंबर टै न पे। उनक प नी शहर से बाहर ह,” हैरी ने कहा।

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