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01-07-2024 प्रात: मुरली ओम्

शान्ति "बापदादा" मधुबन


“मीठे बच्चे - शान्तिधाम पावन
आत्माओं का घर है , उस घर में
चलना है तो सम्पूर्ण पावन बनो”
प्रश्न:- बाप सभी बच्चों से कौन-सी
गैरन्टी करते हैं ?
उत्तर:- मीठे बच्े, तुम मुझे याद
करच तच मैं गैरन्टी करता हूँ कक
कबगर सजा खाये तुम मेरे घर में
चलेंगे। तुम एक बाप से कदल
लगाओ, इस पुरानी दु कनया कच
दे खते भी नहीों दे खच, इस दु कनया में
रहते पकित्र बनकर कदखाओ, तच
बाबा तुम्हें किश्व की बादशाही
अिश्य दें गे।
ओम् शान्ति। रूहानी बच्चों से
रूहानी बाप पूछ रहे हैं , यह तच
बच्े जानते हैं बाप आया है हम
बच्चों कच अपने घर ले जाने कलए,
अब घर जाने की कदल हचती है ?
िह है सब आत्माओों का घर। यहाूँ
सब जीि आत्माओों का घर एक
नहीों है । यह तच समझते हच बाप
आया हुआ है । कनमोंत्रण पर बुलाया
है बाप कच। हमकच घर अर्ाा त्
शान्तिधाम ले चलच। अब बाप
कहते हैं अपने कदल से पूछच - हे
आत्मायें, तुम पकतत कैसे चल
सकेंगी? पािन तच जरूर बनना है ।
अब घर चलना है और तच कचई
बात नहीों कहते। भन्ति मागा में
तुमने इतना समय पुरूषार्ा ककया
है , ककसके कलए? मुन्ति के कलए।
तच अब बाप पूछते हैं घर चलने का
किचार है ? बच्े कहते - बाबा
इसके कलए ही तच इतनी भन्ति की
है । यह भी जानते हच जच भी जीि
आत्मायें हैं , सबकच ले जाना है ।
परिु पकित्र बनकर घर जाना है
किर पकित्र आत्मायें ही पहले-पहले
आती हैं । अपकित्र आत्मायें तच घर
में रह नहीों सकती। अभी जच भी
करचडचों आत्मायें हैं , सबकच घर
जरूर जाना है । उस घर कच
शान्तिधाम िा िानप्रस्र् कहा जाता
है । हम आत्माओों कच पािन बनकर
पािन शान्तिधाम जाना है । बस।
ककतनी सहज बात है । िह है पािन
शान्तिधाम आत्माओों का। िह है
पािन सुखधाम जीि आत्माओों का।
यह है पकतत दु :खधाम जीि
आत्माओों का। इसमें मूूँझने की तच
बात ही नहीों। शान्तिधाम जहाूँ सब
पकित्र आत्मायें कनिास करती हैं ।
िह है आत्माओों की पकित्र दु कनया -
िाइसलेस, इनकारपचररयल िर्ल्ा ।
यह पुरानी दु कनया है सब जीि
आत्माओों की। सब पकतत हैं । अब
बाप आये हैं आत्माओों कच पािन
बनाकर, पािन दु कनया शान्तिधाम
में ले जाने। किर जच राजयचग
सीखते हैं िही पािन सुखधाम में
आयेंगे। यह तच बहुत सहज है ,
इसमें कचई भी बात का किचार नहीों
करना है । बुन्ति से समझना है । हम
आत्माओों का बाप आया हुआ है ,
हमकच पािन शान्तिधाम में ले
जाने। िहाूँ जाने का रास्ता जच हम
भूल गये र्े, सच अब बाप ने बताया
है । कल्प-कल्प मैं ऐसे ही आकर
कहता हूँ - हे बच्े, मुझ कशिबाबा
कच याद करच। सिा का सद्गकत दाता
एक सतगुरू है । िही आकर बच्चों
कच पैगाम अर्िा श्रीमत दे ते हैं कक
बच्चों अभी तुमकच क्या करना है ?
आधाकल्प तुमने बहुत भन्ति की
है , दु :ख उठाया है । खचाा करते-
करते कोंगाल बन गये हच। आत्मा
भी सतचप्रधान से तमचप्रधान बन
गई है । बस, यह र्चडी बात ही
समझने की है । अब घर चलना है
िा नहीों? हाूँ बाबा, जरूर चलना है ।
िह हमारा स्वीट साइलेन्स हचम है ।
यह भी समझते हच बरचबर अभी
हम पकतत हैं इसकलए जा नहीों
सकते हैं । अब बाप कहते हैं मुझे
याद करच तच तुम्हारे पाप कट
जायेंगे। कल्प-कल्प यही पैगाम
दे ता हूँ । अपने कच आत्मा समझच,
यह दे ह तच खलास हच जानी है ।
बाकी आत्माओों कच िाकपस जाना
है । उनकच कहते हैं कनराकारी
दु कनया। सब कनराकारी आत्मायें
िहाूँ रहती हैं । िह घर है आत्माओों
का। कनराकार बाप भी िहाूँ रहते
हैं । बाप आते हैं सबसे कपछाडी में
क्यचोंकक किर सबकच िाकपस ले
जाना है । एक भी पकतत आत्मा
रहती नहीों है , इसमें कचई मूूँझने िा
तकलीि की बात नहीों है । गाते भी
हैं हे पकतत-पािन आकर हमकच
पािन बनाए सार् ले चलच। सबका
बाप है ना। किर जब हम नई
दु कनया में पाटा बजाने आते हैं तच
बहुत र्चडे रहते हैं । बाकी इतनी
करचड आत्मायें कहाूँ जाकर रहती
हैं ? यह भी जानते हच सतयुग में
र्चडी जीि आत्मायें र्ी, छचटा झाड
र्ा किर िृन्ति कच पाया है । झाड में
अनेक धमों की िैराइटी है । उसकच
ही कल्प िृक्ष कहा जाता है । कुछ
भी अगर नहीों समझते हच तच पूछ
सकते हच। कई कहते हैं - बाबा,
हम कल्प की आयु 5 हजार िषा
कैसे मानें? अरे , बाप तच सत्य ही
सुनाते हैं । चक्र का कहसाब भी
बताया है ।
इस कल्प के सोंगम पर ही बाप
आकर दै िी राजधानी स्र्ापन करते
हैं , जच अभी नहीों है । सतयुग में
किर एक दै िी राजधानी हचगी। इस
समय तुमकच रचता और रचना का
ज्ञान सुनाते हैं । बाप कहते हैं मैं
कल्प-कल्प, कल्प के सोंगमयुगे
आता हूँ । नई दु कनया की स्र्ापना
करता हूँ । पुरानी दु कनया खत्म हच
जानी है । ड्रामा प्लैन अनुसार, नई
से पुरानी, पुरानी से नई बनती है ।
इसके 4 भाग भी पूरे हैं कजसकच
स्वान्तस्तका भी कहते हैं परिु
समझते कुछ भी नहीों हैं ।
भन्तिमागा में तच जैसे गुकडयचों का
खेल खेलते रहते हैं । अर्ाह कचत्र हैं ,
दीपमाला पर खास दु कान
कनकालते हैं , अनेकानेक कचत्र हैं ।
अभी तुम समझ गये हच एक है
कशिबाबा और हम बच्े। किर
यहाूँ आओ तच लक्ष्मी-नारायण का
राज्य, किर राम-सीता का राज्य,
किर बाद में और-और धमा आते
हैं , कजससे तुम बच्चों का कनेक्शन
ही नहीों है । िह अपने-अपने समय
पर आते हैं किर सबकच िाकपस
जाना है । तुम बच्चों कच भी अब घर
जाना है । यह सारी दु कनया किनाश
हचनी है । अब इसमें क्या रहना है ।
इस दु कनया से कदल ही नहीों लगती।
कदल लगानी है एक माशुक से, िह
कहते हैं मुझ एक के सार् कदल
लगाओ तच तुम पािन बनेंगे। अब
बहुत गई र्चडी रही, टाइम जाता
रहता है । यचग में नहीों रहे हचोंगे तच
किर अि में िह बहुत पश्चाताप्
करें गे, सजा खायेंगे, पद भी भ्रष्ट हच
जायेगा। यह भी तुमकच अभी
मालूम पडा है कक अपना घर छचडे
हमकच ककतना समय हुआ है । घर
जाने कलए ही तच मार्ा मारते हैं ना।
बाप भी घर में ही कमलेगा। सतयुग
में तच नहीों कमलेगा। मुन्तिधाम में
जाने के कलए मनुष्य ककतनी मेहनत
करते हैं । उसकच कहा जाता है
भन्ति मागा। अभी भन्ति मागा
खलास हचना है ड्रामा अनुसार।
अभी मैं तुमकच घर ले जाने के कलये
आया हूँ । जरूर ले जाऊोंगा।
कजतना जच पािन बनेंगे उतना ऊोंच
पद पायेंगे। इसमें मूूँझने की बात
ही नहीों। बाप कहते हैं - बच्े तुम
मुझे याद करच, मैं गैरन्टी करता हूँ
तुम कबगर सजा खाये घर चले
जायेंगे। याद से तुम्हारे किकमा
किनाश हचोंगे। अगर याद नहीों करें गे
तच सजायें खानी पडे गी, पद भी भ्रष्ट
हच जायेगा। हर 5 हजार िषा बाद
मैं यही आकर समझाता हूँ । मैं
अनेकानेक बार आया हूँ तुमकच
िाकपस ले जाने। तुम बच्े ही हार-
जीत का पाटा बजाते हच, किर मैं
आता हूँ ले जाने। यह है पकतत
दु कनया, इसकलए गाते भी हैं पकतत-
पािन आओ, हम किकारी पकतत हैं ,
आकर कनकिाकारी पािन बनाओ।
यह है किकारी दु कनया। अभी तुम
बच्चों कच सम्पूणा कनकिाकारी बनना
है । जच पीछे आते हैं िह सजा
खाकर जाते हैं इसकलए किर आते
भी ऐसी दु कनया में हैं जहाूँ दच कला
कम हच जाती हैं । उनकच सम्पूणा
पकित्र नहीों कहें गे इसकलए अब
पुरूषार्ा भी पूरा करना चाकहए।
ऐसा न हच कक कम पद हच जाए।
भल रािण राज्य नहीों है परिु पद
तच नम्बरिार है ना। आत्मा में खाद
पडती है तच किर उसकच शरीर भी
ऐसा कमलेगा। आत्मा गचर्ल्न एजेड्
से कसलिर एजेड् बन जाती है ।
चाों दी की खाद आत्मा में पडती है
किर कदन-प्रकतकदन जास्ती छी-छी
खाद पडती है मुलम्मे की। बाप
बहुत अच्छी रीकत समझाते हैं ।
कचई नहीों समझते हैं तच हार्
उठाओ। कजसने 84 जन्चों का चक्र
लगाया है , उनकच ही समझायेंगे।
बाप कहते हैं इनके 84 जन्चों के
अि में मैं आकर प्रिेश करता हूँ ।
इनकच ही किर पहले नम्बर में
आना है । जच पहले र्ा, िह लास्ट में
है । उनकच ही पहले नम्बर में जाना
है , जच बहुत जन्चों के अि में
पकतत बन गया है , मैं पकतत-पािन
उनके ही शरीर में आता हूँ , उनकच
पािन बनाता हूँ । ककतना क्लीयर
कर समझाता हूँ ।
बाप कहते हैं मुझे याद करच तच
तुम्हारे पाप भस्म हचोंगे। गीता का
ज्ञान तच तुमने बहुत सुना और
सुनाया है परिु उनसे भी तुमने
सद्गकत कच नहीों पाया। बहुत
सोंन्याकसयचों ने तुमकच मीठी-मीठी
आिाज से शास्त्र सुनाये, कजस
आिाज कच सुनकर बडे -बडे
आदमी जाकर इकट्ठे हचते हैं ।
कनरस है ना। भन्ति मागा है ही
कनरस। इसमें तच आत्मा कच बाप
कच याद करना है । भन्ति मागा अब
पूरा हचता है । बाप कहते हैं मैं तुम
बच्चों कच ज्ञान दे ने आया हूँ , जच
कचई नहीों जानते। मैं ही ज्ञान का
सागर हूँ । ज्ञान कहा जाता है
नॉलेज कच। तुमकच सब कुछ पढाते
हैं । 84 का चक्र भी समझाते हैं ,
तुम्हारे में सारी नॉलेज है ।
स्र्ूलितन से सूक्ष्मितन क्रास कर
किर मूलितन में जाते हच। पहले -
पहले है लक्ष्मी-नारायण की
कड्नायस्टी। िहाूँ किकारी बच्े नहीों
हचते, रािण राज्य ही नहीों। यचगबल
से सब कुछ हचता है , तुमकच
साक्षात्कार हचता है - अब बच्ा बन
गभा महल में जाना है । खुशी से
जाते हैं । यहाूँ तच मनुष्य ककतना
रचते कचल्लाते हैं । यहाूँ तच गभा जेल
में जाते हैं ना। िहाूँ रचने पीटने की
बात नहीों। शरीर तच बदलना जरूर
है । जैसे सपा का कमसाल है , इसमें
मूूँझने की बात ही नहीों। जास्ती
पूछने का रहता नहीों है । एकदम
पािन बनने के पुरुषार्ा में लग
जाना चाकहए। बाप कच याद करना
मुन्तिल हचता है क्या! बाप के
सामने बैठे हच ना। मैं तुम्हारा बाप
तुमकच सुख का िसाा दे ता हूँ । तुम
यह एक अन्तिम जन् याद में नहीों
रह सकते हच! यहाूँ अच्छी रीकत
समझते भी हैं किर घर में जाकर
स्त्री आकद का चेहरा दे खते हैं तच
माया खा जाती है । बाप कहते हैं
कचई में भी ममत्व नहीों रखच। िह
तच सब कुछ खत्म हचना ही है । याद
तच एक बाप कच ही करना है ।
चलते किरते बाप और अपनी
राजधानी कच याद करच। दै िीगुण
भी धारण करने हैं । सतयुग में यह
गन्दी चीजें मास आकद हचता ही
नहीों। बाप कहते हैं किकारचों कच भी
छचड दच। हम तुमकच किश्व की
बादशाही दे ता हूँ , ककतनी आमदनी
हचती है । तच क्यचों नहीों पकित्र रहें गे।
कसिा एक जन् पकित्र रहने से
ककतनी भारी आमदनी हच जाती है ।
भल इकट्ठे रहच, ज्ञान तलिार बीच
में हच। पकित्र रह कदखाया तच सबसे
ऊोंच पद पायेंगे क्यचोंकक बाल
ब्रह्मचारी ठहरे । किर नॉलेज भी
चाकहए। औरचों कच आप समान
बनाना है । सोंन्याकसयचों कच कदखाना
है कक कैसे हम इकट्ठे रहते पकित्र
रहते हैं । तच समझेंगे इनमें तच बडी
ताकत है । बाप कहते हैं इस एक
जन् पकित्र रहने से 21 जन् तुम
किश्व के माकलक बनेंगे। ककतनी
बडी प्राइज कमलती है तच क्यचों नहीों
पकित्र रह कदखायेंगे। टाइम ही
बाकी र्चडा है । आिाज भी हचता
रहे गा, अखबार में भी पडे गा।
ररहसाल तच दे खी है ना। एक एटम
बॉम से क्या हाल हच गया। अभी
तक हॉन्तिटल में पडे हैं । अभी तच
ऐसे बॉम्ब्स आकद बनाते हैं जच कचई
तकलीि नहीों, िट से खत्म। और
यह ररहसाल हचकर किर िाइनल
हचगा। दे खेंगे िट से मरते हैं िा
नहीों? किर और युन्ति रचेंगे।
हॉन्तिटल आकद हचोंगी नहीों। कौन
बैठ न्तखदमत (सेिा) करें गे। कचई
ब्राह्मण आकद न्तखलाने िाला नहीों
रहे गा। बॉम छचडा और खलास।
अर्ा क्वेक में सब दब जायेंगे। दे री
नहीों लगेगी। यहाूँ ढे र मनुष्य हैं ।
सतयुग में बहुत र्चडे हचते हैं । तच
इतने सब कैसे किनाश हचोंगे! आगे
चल दे खना है , िहाूँ तच शुरू में 9
लाख हैं ।
फ़कीर भी तुम हच, साहे ब भी
तुमकच प्यारा है । अभी सबकच छचड
अपने कच आत्मा समझ कलया है ,
ऐसे फ़कीरचों कच बाप प्यारा लगता
है । सतयुग में बहुत छचटा-सा झाड
हचगा। बातें तच बहुत समझाते हैं ।
जच भी एक्टसा हैं , सब आत्मायें
अकिनाशी हैं , अपना-अपना पाटा
बजाने आती हैं । कल्प-कल्प तुम
ही आकर बाप से स्टू ड्े ण्ट बन
पढते हच। जानते हच बाबा हमकच
पकित्र बनाकर सार् ले जायेंगे।
बाबा भी ड्रामा अनुसार बोंधायमान
हैं , सबकच िाकपस जरूर ले जायेंगे
इसकलए नाम ही है पाण्डि सेना।
तुम पाण्डि क्या कर रहे हच? तुम
बाप से राज्य भाग्य ले रहे हच, हबह
कल्प पहले कमसल। नम्बरिार
पुरूषार्ा अनुसार। अच्छा!
मीठे -मीठे कसकीलधे बच्चों प्रकत
मात-कपता बापदादा का याद-प्यार
और गुड्मॉकनिंग। रूहानी बाप की
रूहानी बच्चों कच नमस्ते।
धारर्ा के ललए मुख्य सार:-
1) बाप का प्यारा बनने के कलए
पूरा फ़कीर बनना है । दे ह कच
भी भूल स्वयों कच आत्मा
समझना ही फ़कीर बनना है ।
बाप से बडे ते बडी प्राइज लेने
के कलए सम्पूणा पािन बनकर
कदखाना है ।
2) िापस घर जाना है इसकलए
पुरानी दु कनया से कदल नहीों
लगानी है । एक माशूक से ही
कदल लगानी है । बाप और
राजधानी कच याद करना है ।
वरदान:- ब्राह्मर् जीवन में सदा
लचयरफुल और केयरफुल मूड में
रहने वाले कम्बाइन्ड रूपधारी
भव
यकद ककसी भी पररन्तस्र्कत में
प्रसन्नता की मूड् पररितान हचती है
तच उसे सदाकाल की प्रसन्नता नहीों
कहें गे। ब्राह्मण जीिन में सदा
कचयरिुल और केयरिुल मूड् हच।
मूड् बदलनी नहीों चाकहए। जब मूड्
बदलती है तच कहते हैं मुझे तच
एकाि चाकहए। आज मेरा मूड्
ऐसा है । मूड् बदलती तब है जब
अकेले हचते हच, सदा कम्बाइन्ड
रूप में रहच तच मूड् नहीों बदलेगी।
स्लोगन:- कचई भी उत्सि मनाना
अर्ाा त् याद और सेिा के उत्साह में
रहना।
ओम् शान्ति।

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