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पाठ-2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद (MODULE-1)

कवव पररचय
हिन्दी साहित्य की रामभक्ति शाखा के प्रमख ु कवि गोस्िामी
िल ु सीदास को हिन्दी साहित्य का सय ू य किा जािा िै नकका जन्म
सक ् – 1532 में उत्तर प्रदे श के बााँदा क्जले के राजापुर कामक गााँि
िुआ था कुछ विद्िाक नकका जन्म स्थाक सोरों ( क्जला एटा ) भी
माकिे िैं िुलसी का बचपक अकेक कष्टों में बीिा जीिक के
प्रारक्भभक िर्षों में िी ये अपके मािा वपिा से बबछु गए बाबा
करिररदास की
संगति में रिके से नकका झुकाि रामभक्ति की ओर िुआ नन्िोंके
अयोध्या , काशी , चचत्रकूट आहद अकेक िीथों की यात्रा की l
रचकाएाँ
श्रीरामचररि माकस,गीििाली,कविििाली,विकयपबत्रका,
बरिै रामायण,िकम ु ाक-बािुक,िैराग्य संदीपकी आहद
नककी प्रमख ु रचकाएाँ िैं िल ु सी जी के काव्य का
विर्षय मयायदा पुरुर्षोत्तम राम की भक्ति िै अिी ी
और ब्रज दोकों भार्षाओं पर उकका समाक अची कार िै
श्रीरामचररिमाकस अिी ी में िथा विकय पबत्रका एिं
कवििािली ब्रजभार्षा में रचचि िै प्रबन्ी और मत ु िक
दोकों प्रकार के काव्यों का उत्कृष्ट रूप नककी रचकाओं
में ममलिा िै
पाठ - पररचय
‘राम-लक्ष्मण-परशरु ाम संिाद’ कामक पाठ श्रीरामचररि
माकस के बालकांड से मलया गया िै राजा जकक
द्िारा आयोक्जि सीिा-स्यंिर में श्रीराम मशि-ी कर्ष

िो दे िे िैं जब परशरु ाम को यि समाचार ममलिा
िै िो िे आग बबल ू ा िो जािे िैं सभा में आकर मशि
ी कर्ष
ु िो के िाले को मार डालके की ी मकी दे िे िैं
श्रीराम की विकम्रिा िथा गरुु विश्िाममत्र के समझके
पर िे शांि िो जािे िैं राम-लक्ष्मण और परशरु ाम
के बीच जो संिाद िुआ , उसी प्रसंग को यिााँ प्रस्िि ु
ककया गया िै
काव्यांश - 1
काथ संभुी कु भंजतकिारा l िोनहि केउ एक दास िभ ु िारा ll
आयेर्षु काि कहिअ ककक मोहि l सुतक ररसान बोले मुतक कोहि ll
सेिकु सो जो करै सेिकाई l अररकरकी करर कररअ लराई ll
सुकिु राम जेहि मसिी कु िोरा l सिसबािु सम सो ररपु मोरा ll
सो बबलगाउ बबिान समाजा l क ि मारे जैिहिं सब राजा ll
सुतक मुतकबचक लखक मुस्काके l बोले परसु ी रहि अिमाके ll
बिु ी किु ी िोरी लररकाई l कबिुाँ क अमस ररस कीन्िी गोसाई ll
येहि ी कु पर ममिा केहि िे िु l सुतक ररसान कि भग ृ ुकुलकेिु ll
रे कप ृ बालक कालबस बोलि िोहि क संभार l
ी कहु ि सम बत्रपरु ाररी कु बबहदि सकल संसार ll
शब्दाथय
काथ – स्िामी l संभी ु कु – मशिी कर्ष
ु l भंजतकिारा –
िो के िाला l आयेर्षु – आज्ञा l ररसान – गस्ु सा आ गयाl
कोहि – क्रोी ी l अररकरतक – शत्रु कमय l लराई – ल ाई l
ररपु – शत्रु l बबलागाउ – अलग िोका l बबिान – छो करl
जैिहिं – जाएाँगे l अिमाके – अपमाक करिे िुए l
लररकाई – बचपक में l ररस – गस् ु सा l गोसाईं – स्िामी l
ममिा – स्केि l िे िु – कारण l
अथय
राजा जकक की सभा में सीिा स्ियंिर के समय ी कर्ष ु
टूटके पर क्रोची ि परशरु ाम से राम कििे िैं कक मशि
ी कर्ष
ु को िो के िाला कोई आपका दास िी िोगा l मेरे
मलए तया आज्ञा िै ? यि सक ु कर क्रोी ी मुतक गस्
ु सा
करके बोले, सेिा का कायय करके िाला सेिक िोिा िै l
शत्रि
ु ा का काम करके िाले से िो ल ाई करका िी
उचचि िै l िे राम! क्जसके भी यि मशि ी कर्ष ु िोडा िै ,
िि सिस्त्रबािु के समाक मेरा शत्रु िै , नसमलए िि नस
राजसमाज से अलग िो जाए , अन्यथा एक के ी ोखे
में सभी राजा मारे जाएाँगे l
अथय
ऋवर्ष की क्रोी भरी बािें सक ु कर
परशुराम का अपमाक करिे िुए लक्ष्मण
मस्ु कराकर बोले- िमके बचपक में बिुि परशुराम
ी कुहियााँ िो ी िै , िब िो आपके ऐसा
गस्
ु सा किीं ककया l नस ी कुर्ष पर निका
स्केि ककस कारण से िै ?
यि बाि सक ु कर भग ृ क
ु ु ल पिाका स्िरूप
परशरु ाम के किा – िे राजकुमार काल के
िशीभि ू िोकर िझ ु े बोलके की कुछ भी
समझ किीं िै l विश्ि विख्याि मशि -
ी कर्ष
ु को िम ु सामान्य ी कर्ष ु के समाक
बिा रिे िो l
काव्यांश - 2
लखक किा िमस -------------------------- बबलोकु मिीपकुमारा ll
मािु वपिहि जतक सोचबस करमस मिीसककसोर l
गभयन्ि के अभयक दलक परसु मोर अति घोर ll
( क्षितिज भाग-2 , पष्ृ ठ सं. 13 )
शब्दार्थ :- समाका – समाक l छति – िातक l छुअि – छूिे िी l
चचिै – दे खकर l सठ – दष्ु ट l सभ ु ाउ – स्िभाि l बबस्िबबहदि –
संसार में प्रमसद्द l द्रोिी – शत्रि
ु ा करके िाला l भज ु बल- भजु ाओं
के
बल पर l बबपुल – बिुि l महिदे िन्ि – ब्राह्मणों के मलए l
छे दतकिारा – काटकेिाला l मिीसककसोर – राजकुमार l
गभयन्ि – गभय के l अभयक – बच्चे l
अथय
परशुराम की बाि सक
ु कर लक्ष्मण के िाँ सकर किा- िे दे ि िमारे
ज्ञाक में िो सभी ी कर्ष ु समाक िै l किर नस परु ाके ी कर्ष
ु के टूट
जाके से तया िातक ? और तया लाभ ? श्रीराम के िो नसे कया
समझकर छुआ था पर यि िो छूिे िी टूट गया l नसमें श्रीराम
का कोई दोर्ष किीं िैं l मतु किर आप िो बबका कारण िी गस् ु सा
कर रिे िैं l िब परशुराम अपके परसे की ओर दे खिे िुए बोले –
िू मेरा स्िभाि किीं जाकिा मैं िझ ु े बालक समझकर किीं
मार रिा िूाँ और िू मझ ु े केिल साी ारण मतु क समझ रिा िै l मैं
िबत्रय कुल से द्रोि करके िाला,विश्िप्रमसद्द,अत्यन्िक्रोी ी,बाल
ब्रह्मचारी िूाँ l मैंके अपकी िाकि से कई बार नस ी रिी को राजा
वििीक करके ब्राह्मणों को दाक कर दी l
अथय
िे राजकुमार ! सिस्त्रबािु की भज
ु ाओं को काटके िाले मेरे नस
िरसे की ओर दे ख l
“ िे राजकुमार ! िू अपके मािा-वपिा के मलए सोच का कारण
मि बक l मेरा यि अत्यंि भयाकक िरसा गभय के बच्चों को भी
कष्ट करके में समथय िै l ”

राजेन्द्र प्रसाद
टी.जी.टी. - हिन्दी,संस्कृि
प.ऊ.के.वि. काकरापार

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